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सकारात्मक खबरों के लिए मीडिया का मोहताज रहना जरूरी तो नहीं...
16-Feb-2025 4:04 PM
सकारात्मक खबरों के लिए मीडिया का मोहताज रहना जरूरी तो नहीं...

दुनिया में अच्छी खबरें भी कम नहीं रहती हैं, लेकिन उनमें से चर्चा में वे ही खबरें आती हैं जिनमें बहुत सी नाटकीयता होती है, किसी फिल्म किस्म की कहानी रहती है, या जो बिल्कुल ही अविश्वसनीय दर्जे की रहती हैं। रोजाना की जिंदगी की छोटी-छोटी बुरी खबरें भी सतह पर तैरते दिखती हैं, लेकिन अच्छी खबरों का बहुत अधिक अच्छा रहना जरूरी रहता है। ऐसी ही एक अच्छी कहानी अभी योरप और अमरीका के बीच सामने आई है।

नीदरलैंड्स में रह रही एद्री पैंडलटन का अपने साथी से रिश्ता टूटा था, और उसे इसके बाद अपने बूढ़े पालतू कुत्ते को लेकर अमरीका के कैलिफोर्निया अपने घर लौटना था। उसने बहुत सी एयरलाईंस को देखा, लेकिन वे कुत्तों को पार्सल की तरह ढोती थीं, और अपने बूढ़े कुत्ते को एद्री उस तरह ले जाना नहीं चाहती थी। ऐसे में उसने लोगों से सलाह और मदद के लिए एक वीडियो बनाकर टिकटॉक पर डाला। उसमें कुत्ते का जिक्र था, फ्लाईट का जिक्र था, तो टिकटॉक पर मौजूद एक जर्मन पायलट, निकलस ने उसे देखा, और उसका जवाब लिखा। कुत्ते को लेकर कैलिफोर्निया जाने की बात तो शुरू हुई लेकिन वह जल्द ही इन दोनों के बीच दोस्ती में बदल गई, ऑनलाईन वीडियोकॉल बात होने लगीं, दोस्ती मोहब्बत में बदल गई, और दोनों ने शादी कर ली। अब कैलिफोर्निया जाना रह गया, और दोनों स्विटजरलैंड में बस गए हैं।

इस किस्म की बहुत सी दिलचस्प और सकारात्मक कहानियां जो असल जिंदगी से निकलीं असली भी हैं, वे बीच-बीच में सामने आती हैं, लेकिन बुरी और नकारात्मक खबरों के सैलाब के बीच वे किनारे बह जाती हैं। अभी कुछ ही दिन पहले भारत में सकारात्मक खबरों की एक वेबसाइट, बेटरइंडिया में एक कहानी आई कि किस तरह केरल में अपने घर में काली मिर्च तोड़ते हुए एक बुजुर्ग कुएं में गिर गया। 64 बरस के रमेशन को बचाने के लिए 56 बरस की उसकी पत्नी पद्मा रस्से से 40 फीट गहरे कुएं में तुरंत उतरी, और 20 मिनट बाद फायरब्रिगेड के पहुंचने तक उसने पति को पानी में उठाकर रखा था कि वह डूब न जाए। बाद में जाल डालकर इन्हें निकाला गया।

लोगों को चाहिए कि अपने बच्चों, परिवार के लोगों, और आसपास के दायरे में जिंदगी के प्रति एक सकारात्मक आस्था पैदा करने वाली ऐसी सच्ची घटनाओं को आगे बढ़ाएं, उन पर चर्चा करें। स्कूलों को भी चाहिए कि वे बच्चों का उत्साह बढ़ाएं कि वे बड़ों से पूछकर या कहीं ढूंढकर सकारात्मक खबरों की कतरनें लेकर आएं, और फिर उनमें से चुनिंदा कतरनों को स्कूल में बाकी लोगों के पढऩे के लिए किसी नोटिस बोर्ड पर लगाया जाए। इन दिनों सोशल मीडिया की मेहरबानी से यह आसान हो गया है कि लोग अपनी पसंद की बातों को, तस्वीर या वीडियो को भी मुफ्त में बहुत से लोगों तक पहुंचा सकते हैं, और जिंदगी और दुनिया के प्रति जमी हुई निराशा दूर हो सकती है।

मीडिया के अपने मिजाज के मुताबिक नकारात्मक खबरें अधिक जगह पाती हैं, और अधिक चर्चा में रहती हैं। लेकिन मुख्यधारा के मीडिया से परे सकारात्मक खबरों के अपने पेज और ग्रुप बने हुए हैं, बनते और बढ़ते भी जा रहे हैं, जिन्हें बड़ी संख्या में लोग देखते हैं। हमें भी कुत्ते और पायलट वाली यह खबर बीबीसी के एक साप्ताहिक पॉडकास्ट, हैप्पीपॉड पर सुनने मिली, और फिर मामूली सी तलाश पर इंटरनेट पर इनकी और जानकारी भी मिल गई।

आज तमाम लोगों को यह दिक्कत रहती है कि उनके बच्चे इंटरनेट और सोशल मीडिया का क्या इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें खबर नहीं रहती। ऐसे में लोगों को चाहिए कि सकारात्मक खबरों की जांच-पड़ताल करने के बाद उनके सही निकलने पर उनके लिंक अपने आसपास के लोगों को बढ़ाएं ताकि उनका देखना-पढऩा, सोचना, और आसपास बात करना सब कुछ में सकारात्मकता बढ़े।

अभी मैंने दो दिन पहले ही हमारे यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल के लिए छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी पद्मश्री काष्ठशिल्पी और समाजसेवी अजय मंडावी से बातचीत की। वे बस्तर के कांकेर के पास दो गांवों में वहां के स्कूली बच्चों के साथ एक नया अभियान चला रहे हैं। जिन स्कूली बच्चों के घर पर कोई पेड़ लगाने की जगह है, वहां पर वे ऐसे बच्चे छांटकर स्कूल शिक्षक-शिक्षिका के साथ उनके घर जाते हैं, वहां पौधा लगाते हैं, और उन बच्चों को दस रूपए महीने देते हैं कि उन्हें पौधे का रखरखाव करना है। वे तीन बरस तक बच्चों को यह पैसा देने वाले हैं ताकि पौधा मजबूत हो जाए।

इस बातचीत में अजय मंडावी ने बताया कि ऐसे 45 बच्चों में से एक बच्चा टीचर के पास दस रूपए लेकर आया, और कहा कि पैसा वापिस ले लो, मेरा पौधा मर गया है। अब पौधा जिस किसी वजह से मर गया हो, बहुत मामूली कपड़ों में उस गरीब आदिवासी स्कूली बच्चे को यह जिम्मेदारी सूझ रही थी कि वह पैसा लौटाए क्योंकि अब पौधा ही नहीं रह गया है। एक गरीब बच्चे की यह नैतिकता और ईमानदारी, और उसकी जिम्मेदारी की भावना हिलाकर रख देती है, और अगर इसी एक सच्ची घटना को बाकी बच्चों के सामने रखा जाए, तो हो सकता है कि उनमें से बहुत से बच्चे भी किसी दुविधा में फंसने पर एक सही नैतिक फैसला ले सकें जो कि उनके तात्कालिक फायदे से परे का होगा, और समाज के सामने एक अच्छी मिसाल भी रहेगा।

अजय मंडावी अपने जेब के पैसों से अब तक 45 बच्चों को पौधा-परवरिश भत्ता दे रहे हैं, और अपनी क्षमता रहने तक इसे आगे भी बढ़ाने वाले हैं। अब नेक नीयत से उनके शुरू किए गए इस काम का भी शायद यह असर पड़ा होगा कि उनसे 10 रूपए पाने वाला बच्चा भी पौधा मर जाने पर रकम लौटाने आ गया। लोगों को असल जिंदगी की सच्ची कहानियां देखकर दूसरों तक बढ़ाना चाहिए ताकि यह समझ पड़े कि दुनिया में सिर्फ बलात्कारी और हत्यारे ही नहीं भरे हुए हैं, सिर्फ चोर और बेईमान ही नहीं भरे हुए हैं।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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