दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की सबसे बड़ी चर्चा ओपनएआई नाम की कंपनी के बनाए हुए चैटजीपीटी से शुरू हुई, और लोगों को लगा कि यह एक चमत्कार सा हो गया है, और करिश्मे की तरह का यह एआई एप्लीकेशन पूरी दुनिया बदलकर रख देगा। उसने दुनिया बदलना शुरू भी कर दिया क्योंकि विश्वविद्यालयों से लेकर अलग-अलग मंचों तक कुछ भी तैयार करने के लिए चैटजीपीटी का इस्तेमाल होने लगा, और अमरीकी पूंजी बाजार ने सबसे अधिक रफ्तार से सबसे बड़ी रकम आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के विकास से जुड़ी कंपनियों पर लगाई। दूसरी तरफ लोगों को याद होगा कि दुनिया के कई जानकार लोगों ने यह खुली मांग की कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का अंधाधुंध विकास रोका जाए क्योंकि यह कब बेकाबू हो जाएगा, और इंसानों की पकड़ के बाहर हो जाएगा, यह भी तय नहीं है।
लेकिन इस बीच ओपनएआई कंपनी के मुखिया सैम एल्टमैन और उनसे जुड़ी कुछ दूसरी कंपनियां खूब चर्चा में रहीं, उन्हें ओपनएआई के मुखिया पद से कुछ महीनों के लिए हटा भी दिया गया, और उसके बाद उन्हें कंपनी में वापिस भी रख लिया गया। लेकिन वह सब एक अलग कहानी है जिसमें जाना आज का मकसद नहीं है। लेकिन हम आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के एक सबसे बड़े नाम की सोच के एक पहलू पर बात करना चाहते हैं। सैम ने कुछ बरस पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि उनका भरोसा है कि एक दिन प्रलय आएगा, और सब कुछ खत्म हो जाएगा। और ऐसे दिन के लिए वे अपने लिए बंदूकों से लेकर दवाओं, गैसमास्क, और पानी तक का इंतजाम करके चलते हैं। उन्होंने किसी इंटरव्यू में भी ये बातें कही थीं। साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा था कि प्रलय या तबाही किसी एक जानलेवा सिंथेटिक वायरस से भी आ सकती है, या किसी बेकाबू आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से भी आ सकती है जो इंसानों को तबाह करने पर उतारू हो जाए। उन्होंने तबाही के ऐसे किसी दिन की आशंका में हथियारों, बैटरियों, और सोने के साथ-साथ रेडियोधर्मिता को रोकने की तैयारी में पोटेशियम आयोडाइड का इंतजाम करके भी रखा था।
अब हम आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के दुनिया के इस सबसे बड़े नाम को देखें, और उसकी आशंकाओं को देखें तो समझ पड़ता है कि विज्ञान और टेक्नॉलॉजी की इतनी गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति को भी ऐसी प्रलय की आशंका है जो किसी मानव निर्मित वायरस या बेकाबू आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से आ सकती है। हम ऐसे ही कुछ दूसरे लोगों के बारे में जब सोचते हैं, तो लगता है मानव प्रजाति और धरती को लेकर बहुत से लोगों का अलग-अलग सोचना रहता है, और ऐसा सोचने वाले लोग भी हैं कि इंसानों ने धरती को तबाह करके रखा है, और धरती की बाकी तमाम प्रजातियों के हक उन्होंने छीन लिए हैं, वे मौसम से लेकर जलवायु, पर्यावरण, और समूची धरती को तबाह कर रहे हैं। ऐसे लोगों में यह सोचने वाले लोग भी हो सकते हैं कि इंसानों को खत्म करना धरती के लिए एक अधिक लोकतांत्रिक बात होगी जिसमें बाकी प्रजातियों को इंसानों के न रहने पर उनके हक बेहतर तरीके से मिल सकेंगे। ऐसे लोग हो सकता है कि किसी सिंथेटिक वायरस तक पहुंच बना सकें जिससे कि कोरोना से भी कई गुना अधिक तबाही लाई जा सके, यह भी हो सकता है कि ऐसे लोग आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को इंसानों के काबू के बाहर कर सकें, जो कि कुछ उस किस्म का होगा कि किसी अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष तक पहुंचाकर उसे किसी भी काबू से बाहर कर दिया जाए। कुछ लोग इसे एक दर्जा ऊपर ले जाकर एआई-आतंकी मॉडल बना सकते हैं, और किसी धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, या सामाजिक विचारधारा के मुताबिक किसी तबके के खिलाफ तबाही लाने का काम कर सकते हैं।
यह एक अलग किस्म का आतंक रहेगा जो कि किसी नस्ल को, किसी देश के या धर्म के लोगों को, या किसी पेशे के लोगों को खत्म करने के काम लाया जा सकता है।
पल भर के लिए किसी अपराधकथा की तरह कल्पना कर देखें कि धरती पर पर्यावरण को सबसे अधिक बर्बाद करने वाले, जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार, अधिक खपत वाले अमरीकियों को नुकसान पहुंचाकर कोई अगर धरती पर खपत घटाने की कल्पना करे, तो अमरीकी जनजीवन को ध्वस्त करके, या अमरीकी अर्थव्यवस्था को चौपट करके, अमरीकियों के खरीदने की ताकत सीमित करके धरती को बचाने की कल्पना भी कोई कर सकते हैं। हम कोई हिंसक तरीके सुझाना नहीं चाहते, लेकिन अनगिनत फिल्मों और उपन्यासों में ऐसी बात कही जा चुकी है कि व्यापक सार्वजनिक तबाही कैसे लाई जा सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से निबंध लिखने और रिसर्च पेपर तैयार करने, कोई प्रजेटेंशन बनाने की ताकत तो लोगों ने देखी है, लेकिन यही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस किसी देश के सारे कम्प्यूटर सिस्टम को खत्म करके वहां की अर्थव्यवस्था और रोजाना की जिंदगी को घुटनों पर ला सकता है। जब आतंकियों का मकसद ऐसे किसी एआई से लैस हो जाए, तो वह सैकड़ों किस्म से तबाही ला सकता है।
आज दुनिया में धर्म के नाम पर बहुत से आतंकी संगठन खूनखराबा करते हैं, और ओसामा-बिन-लादेन जैसे आतंकी तो अमरीका की नाक की तरह तनी हुई इमारतों को मिट्टी में मिलाकर एक अभूतपूर्व मिसाल पेश करते हैं। यह समझना चाहिए कि आगे होने वाली नए किस्म की कई घटनाएं आने वाले उस वक्त अभूतपूर्व कहला सकती हैं। अब अगर पर्यावरण-आतंकी किसी देश के बिजलीघरों को, वहां के इंटरनेट को, वहां के सभी किस्म के कम्प्यूटर-रिकॉर्डों को खत्म करने का जरिया निकाल लें, तो वैसी तबाही से कोई देश आसानी से तो उबर नहीं सकता। कुछ लोगों को यह भी लग सकता है कि एक धर्म के लोग पूरी दुनिया में हिंसा कर रहे हैं, और इस धर्म के लोगों के आर्थिक हितों, उनकी रोजी-रोटी, और कमाई को खत्म करने की साजिश एआई से तैयार की जाए, तो वह भी हो सकती है।
मैं तो एक अपराधकथा लेखक की तरह, विज्ञान कथा लेखक की तरह कई किस्म की तबाही लाने वाली ऐसी कल्पनाएं आसानी से कर पा रहा हूं जो कि आतंकियों की कल्पनाओं में और अधिक आसानी से आती होंगी, आ सकती हैं। ऐसे में एआई से जुड़े किसी बड़े व्यक्ति का प्रलय पर भरोसा एक खतरनाक बात हो सकती है, अगर एआई के दिमाग में ही यह धारणा बैठ जाए कि प्रलय तो एक दिन आनी ही है, तो हो सकता है एआई उस प्रलय की गारंटी मानकर कई तरह के काम करने को तैयार हो जाए। एआई के बारे में आज भी लोगों का मानना है कि अगर वह आज भी इंसानी काबू से बाहर हो चुका हो, तो हैरान नहीं होना चाहिए। मुझे लगता है कि आने वाली दुनिया में आतंक का सबसे बड़ा हथियार एआई हो सकता है, किसी और के हाथों में भी, या एआई खुद हथियार की जगह हमलावर भी हो सकता है, एक आतंकी हमलावर, या अधिक बेहतर कहना होगा, सबसे बड़ा आतंकी हमलावर, और हो सकता है कि वह दुनिया का आखिरी आतंकी हमलावर भी साबित हो, क्योंकि लोग परमाणु हथियारों को तबाही का सबसे बड़ा सामान मानते हैं, जबकि बिना मिसाइलों पहुंचने वाले वायरस उनसे अधिक तबाही लाने वाला हथियार साबित हो सकते हैं। देखना यही है कि इंसान एआई का इस्तेमाल करेंगे, या फिर एआई खुद इंसानों का इस्तेमाल करेगा। ऐसा लगता है कि ऐसा दिन आने में विज्ञान कथा लेखकों की कल्पना से अधिक वक्त नहीं लगेगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)