स्थायी स्तंभ
- 10 नवंबर : परिवहन दिवस और विज्ञान दिवस पर दुनिया को बेहतर बनाने का प्रण लेने की जरूरत
- नयी दिल्ली, 10 नवंबर। राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रदूषण के घटने-बढ़ने को लेकर चल रही तमाम चर्चा के बीच यह जान लेना दिलचस्प होगा कि भारत में 10 नवंबर को ‘परिवहन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और साथ ही यूनेस्को द्वारा इस तारीख को संपूर्ण विश्व में ‘शांति एवं विकास हेतु विश्व विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाने का चलन है।
- परिवहन दिवस के तौर पर इस दिन को मनाने की बात करें तो सड़क, रेल, वायु और जल परिवहन के विस्तार को जहां विकास से जोड़कर देखा जाता है, वहीं पर्यावरण पर इसके दुष्प्रभाव भी किसी से छिपे नहीं हैं। आज दुनियाभर के वैज्ञानिक पर्यावरण को स्वच्छ और इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
- एक अन्य वजह से भी 10 नवंबर के दिन का इतिहास में विशेष महत्व है। इसी दिन विश्व की पहली मोटरसाइकिल पेश की गयी थी।
- देश दुनिया के इतिहास में 10 नवंबर की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1659 : शिवाजी ने प्रतापगढ़ किले के निकट अफजल खान को मार गिराया।
- 1698 : कलकत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी को बेच दिया गया।
- 1848 - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म।
- 1885 - गोटलिएब डेमलेर ने दुनिया की पहली मोटरसाइकिल पेश की।
- 1908 - कन्हाई लाल दत्त ने भारत की आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलकर शहादत दी।
- 1920 - राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म।
- 1983 - बिल गेट्स ने विंडोज 1.0 सार्वजनिक रूप से पेश किया।
- 1990 : चंद्रशेखर भारत के आठवें प्रधानमंत्री बने।
- 2000 - गंगा-मेकांग सम्पर्क परियोजना का कार्य प्रारम्भ। इसमें भारत, म्यामां, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, लाओस और वियतनाम शामिल हैं।
- 2001 - भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया।
- 2006 - श्रीलंका में तमिल समर्थक सांसद एन रविराज की हत्या।
- 2008 - भारत-कतर सम्बन्धों को रणनीतिक गहराई देते हुए दोनों देशों ने मस्कट में रक्षा और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- 2013 - राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार विजयदान देथा का निधन।
- 2022- भारत के स्टार बल्लेबाज विराट कोहली टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चार हजार रन पूरे करने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बने। (भाषा)
- 2023- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और नगालैंड के पूर्व राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य (92) का निधन ।
दीपावली के बाद अब मिलन
साय सरकार के मंत्रियों ने भले ही मीडिया से दूरी बना रखी है, लेकिन डिप्टी सीएम अरुण साव का मिजाज थोड़ा अलग है। उन्होंने रोड कांग्रेस का कार्यक्रम निपटने के बाद अपने निवास पर मीडिया कर्मियों को हाई-टी पर आमंत्रित किया, और उनसे विभागीय कामकाज से परे अनौपचारिक चर्चा की।
दस महीने में पहली बार किसी मंत्री के बुलावे पर मीडिया कर्मी काफी खुश थे। मीडिया, और बाकी लोगों को बुलाने का सिलसिला चल रहा है।
अभी बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री आए, तो उनका सीएम के घर जाना कई दिन पहले से तय था। लेकिन उनके रायपुर पहुँचते ही उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने उन्हें अपने घर न्यौता दिया, और रात दस बजे से सुबह दो-तीन बजे तक मुलाकाती उनसे मिलते हुए बने रहे। दो दिन बाद धीरेंद्र शास्त्री का मुख्यमंत्री के घर जाना, हफ्ते भर पहले से तय था, लेकिन भाजपा के अधिकतर नेता, कुछ ख़ास पत्रकार, चुनिंदा अफसर विजय शर्मा के बंगले पर दो तारीख की रात ही अचानक हुए कार्यक्रम में उनसे मिल लिए थे।
उम्मीदवारों की उम्मीदें
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस संसाधनों की कमी से जूझ रही है। बावजूद इसके पहली बार चुनाव लड़ रहे युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा अपने युवा साथियों के बूते पर कड़ी टक्कर दिख रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी नेता संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए कारोबारियों से मेल मुलाकात कर रहे हैं, जिसकी खूब चर्चा भी हो रही है।
प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है, स्वाभाविक है कांग्रेस को फंड की कमी तो होगी ही। सुनते हैं कि दो प्रमुख नेता, फंड जुटाने के लिए कुछ कारोबारियों से मिले। इनमें एक निगम के पदाधिकारी भी थे। बातचीत शुरू हुई, और चुनाव खर्च के लिए सहयोग की बात आई।
कारोबारी ने उदारता दिखाते हुए प्रत्याशी तक मदद पहुंचाने का वादा किया। मगर पदाधिकारी ने उन्हें प्रत्याशी के बजाए सीधे पार्टी दफ्तर में ‘मदद’ पहुंचाने के लिए कहा। मदद पार्टी दफ्तर तक पहुंच गई, लेकिन बाद में उसे यह कहकर लौटा दिया गया कि मदद उम्मीद से काफी कम है। अब कारोबारी ने आगे मदद की है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन इसकी कारोबारियों के बीच काफी चर्चा हो
रही है।
दूसरी तरफ, भाजपा का भी हाल इससे अलग नहीं है। दिग्गजों के फोन कारोबारी संस्था के प्रमुखों तक पहुंच रहे हैं। यहां तक कहा गया कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी मंत्री बन सकते हैं। ऐसे में संस्था के हितों का ध्यान रखा जाएगा। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन कई कारोबारी चुनाव के चलते काफी परेशान हैं। और कुछ ने तो सीधे तौर पर हाथ खड़े कर दिए हैं।
नक्सली पीछे हटे पर खौफ नहीं गया
बस्तर में आमतौर पर नए कैंप खोलने पर सुरक्षाबलों का ग्रामीण विरोध करते हैं, लेकिन इस बार उलटा हो रहा है। कांकेर जिले के लोहत्तर थाना क्षेत्र के जाड़ेकूड़से गांव में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल का कैंप पिछले एक दशक से है। नक्सल गतिविधियों के सिमट जाने के कारण अब पुलिस इस कैंप को किसी दूसरी जगह ले जाना चाहती है। मगर, ग्रामीणों का कहना है कि कैंप की वजह से आसपास के 10-12 गांवों में सुरक्षा का माहौल बना है। स्कूलों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टरों की उपस्थिति दिख रही है, विकास कार्यों को बल मिला है। कैंप हटने से नक्सली फिर से सक्रिय होंगे और युवाओं पर जबरन भर्ती का दबाव बनाएंगे, फिर शांति भंग हो सकती है। कैंप के बने रहने की ग्रामीणों की मांग नक्सली खतरे के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शा रही है। कैंप खुलने से सडक़, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान होता है। आदिवासी भी इसकी जरूरत महसूस करते हैं।
भाजपा सरकार के हालिया कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। मुठभेड़ों के दौरान बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौत हुई है। लोहत्तर के ग्रामीणों की मांग बताती है कि नक्सलियों के खदेड़े जाने के बावजूद उनका खौफ अब भी बरकरार है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सुरक्षा कैंप हटाना एक सही कदम होगा या फिर ग्रामीणों का डर दूर होते तक इसे बनाकर रखा जाना।
बैगा चलेंगे, बच्चा होगा...
इस मान्यता पर कितने लोग भरोसा करते हैं? यहां तो दर्जनों महिलाएं लेटी हुई हैं और हजारों की भीड़ है। बच्चा नहीं हुआ तो महिलाओं को ज़मीन में पीठ के बल दण्डवत होना है फिर बैगा आएंगे महिलाओं के पीठ के ऊपर चलते हुए जाएंगे। फिर बच्चा हो जाएगा ! इसके लिए बस एक नारियल और अगरबत्ती चाहिए। अंधश्रद्धा का यह खेल धमतरी के पास गंगरेल में अंगारमोती माता मंदिर में देखा जा सकता है।
ब्राह्मण अचानक केंद्र में
रायपुर दक्षिण में भाजपा को ब्राम्हण वोटरों की नाराजगी का खतरा है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव लड़ते थे, तो ब्राह्मण समाज के 80 फीसदी वोट उन्हें मिल जाते थे। बृजमोहन के विरोधी ब्राह्मण प्रत्याशियों को अपने समाज का समर्थन नहीं मिल पाता था। मगर इस बार का माहौल बदला-बदला सा है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव मैदान में नहीं है। और आम चुनाव में भारी वोटों से चुनाव जीतने के मंत्री बने, तो बृजमोहन कोई ठोस काम नहीं कर पाए। उनके तीन हजार शिक्षकों के तबादला प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसके बाद प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण पर उनकी चुप्पी से न सिर्फ ब्राम्हण बल्कि अन्य कर्मचारियों में नाराजगी देखी जा रही है।
बताते हैं कि पार्टी संगठन को इसका अंदाजा भी है और इसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए व्यूह रचना तैयार की गई है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने रायपुर दक्षिण, और अन्य इलाकों के ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की।
बैठक का प्रतिफल यह रहा है कि सरकार ने प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण की कमिश्नर से जांच की घोषणा हो गई। यही नहीं, परिवार के एक सदस्य को तुरंत अनुकंपा नियुक्ति सहित कई और कदम उठाए जा रहे हैं।
रायपुर के ब्राह्मण युवाओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले योगेश तिवारी, नीलू शर्मा, अंजय शुक्ला, मृत्युजंय दुबे सहित अन्य नेताओं को प्रचार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। देखना है कि आगे क्या नतीजा निकलता है।
एक समाज की अहमियत
दक्षिण के दंगल में एक कारोबारी समुदाय की इन दिनों खूब पूछ परख हो रही है। वैसे यह समाज हमेशा से भाजपा का वोट बैंक रहा है। फिर भी इस बार भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। क्षेत्र में दूसरा बड़ा वोट बैंक कहे जाने वाले समाज के लिए हर रोज किसी न किसी होटल में दीपावली मिलन का आयोजन हो रहा है। और इसमें यह कहा जा रहा है कि वोट देने जरूर जाए। क्योकिं भाजपा का पुराना अनुभव है कि इनके वोटर पहले दुकान जाते हैं और फिर दोपहर तक बूथ। और वहां लिस्ट में नाम न होने या बूथ बदलने से नाराज होकर लौट जाते हैं।
इस बार ऐसे वोटर की जिम्मेदारी पार्टी के ही सामाजिक नेताओं को दी गई है। इस समाज का कांग्रेस में अनुभव खट्टा ही रहा है । पार्टी ने कभी भी समाज के किसी नेता को बी फार्म नहीं दिया। खेमे में एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि जितने लोग मुझसे मिलने आए हैं, उतने भी कांग्रेस को वोट नहीं देते । कांग्रेस ने मनभेद-मतभेद भुलाकर एक वर्ष पहले बागी होकर लड़े प्रत्याशी को भी प्रचार में उतार दिया है ।हालांकि बागी बेटे की वजह से पिता पार्टी में लौट नहीं पाए हैं। अब देखना है कि इस बार समाज का वोट स्विंग कैसे रहता है। वैसे समाज दरबार की बात बहुत मानता है।
अब हादसे हुए तो मंत्रीजी को पकड़ें?
इंडियन रोड कांग्रेस के 87वें अधिवेशन में शामिल होने राजधानी रायपुर पहुंचे केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऐसी बड़ी घोषणाएं की है, जो पूरी हुईं तो छत्तीसगढ़ की सूरत सचमुच बदली हुई नजर आएगी। उन्होंने 20 हजार करोड़ रुपये की घोषणाएं की हैं और कहा है कि दो साल के भीतर छत्तीसगढ़ की सडक़ें अमेरिका की तरह हो जाएंगी। अपने भाषण में गडकरी ने माना है कि दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हर साल 1.50 लाख से ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। वह पिछले साल बढक़र 1.68 लाख पहुंच गई। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भविष्य में रोड इंजीनियरिंग के कारण कोई दुर्घटना होती है तो उसे लिए वे खुद को दोषी मानेंगे। मगर, दोषी मान लेने भर से क्या होगा? किसी को सजा मिले तब तो बात बने। गडकरी के बयान से यह बात ध्यान में आती है कि बिलासपुर से पथर्रापाली जाने वाली नेशनल हाईवे पर, सडक़ बन जाने के बाद रतनपुर से पहले सेंदरी गांव के पास तुरकाडीह बाइपास पर रोजाना दुर्घटनाएं होने लगी थी। एक बार तो एक माह के भीतर रिकार्ड 7 मौतें अलग-अलग दुर्घटनाओं में दर्ज की गई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेशभर की सडक़ों की जर्जर हालत पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस सडक़ पर भी संज्ञान लिया। न्याय मित्रों ने सडक़ का निरीक्षण तकनीकी जानकारों के साथ किया। यह पाया कि सडक़ के निर्माण में तकनीकी खामी है। डिजाइनिंग में गड़बड़ी होने के कारण बाइक व हल्के वाहन वाले तेज रफ्तार भारी वाहनों की चपेट में आ रहे हैं। बाद में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इंजीनियरिंग की गड़बड़ी को मान लिया। अब इस रास्ते पर कई बेरिकेट्स और डिवाइडर लगाकर गति को संतुलित किया जा रहा है। अंडरब्रिज बनाने की तैयारी भी है। जब यह हाईवे तैयार हुआ तब भी गडकरी मंत्री थे और ये ही इंजीनियर काम कर रहे थे। इस ब्लैक स्पॉट पर हुई मौतों के लिए कौन जिम्मेदार था। गडकरी की ओर से जिम्मेदारी उठाने के पहले किसकी जिम्मेदारी थी? यह पता नहीं क्योंकि अब तक किसी पर कोई कार्रवाई हुई नहीं है। गडकरी के बयान का सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की गंभीरता से शायद ही मतलब निकले।
अशोक स्तंभ के साथ सात फेरे
समय के साथ-साथ सामाजिक परंपराओं में बदलाव आ रहे हैं। पिछले दो तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में हमने देखा कि वैवाहिक समारोह के कार्ड के साथ कई लोगों ने हसदेव अरण्य को बचाने का संदेश दिया था। कुछ ने संविधान की शपथ लेकर शादी की। ऐसा ही पिछले दिनों सूरत में हुआ। एक व्यवसायी परिवार में धूमधाम से एक शादी हुई। मौर्य कुशवाहा समाज के लक्ष्मी और परमानंद मौर्य ने अशोक स्तंभ के फेरे लगाकर विवाह की रस्म पूरी की। वहां मौजूद लोग सम्राट अशोक, भगवान बुद्ध व संविधान का जय-जयकार कर रहे थे। अतिथियों को संविधान की प्रतियां भेंट की गई।
पहले हो चुका है उपचुनाव
रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां 13 तारीख को मतदान होगा। बहुत कम लोगों को मालूम है कि रायपुर की सीट पर पहले भी एक बार उपचुनाव हो चुका है। तब रायपुर शहर और ग्रामीण मिलाकर एक सीट ही हुआ करती थी।
आजादी के बाद 1952 में सीपी एंड बरार विधानसभा के पहले चुनाव हुए थे। रायपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रजा समाजवादी पार्टी की तरफ से ठाकुर प्यारेलाल विजयी हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी हरि सिंह दरबार को पराजित किया था। बाद में भूदान पदयात्रा के दौरान वर्ष-1954 में जबलपुर के निकट ठाकुर प्यारेलाल सिंह का निधन हो गया। परिणाम स्वरूप यह सीट खाली हो गई।
प्रजा समाजवादी पार्टी ने दिवंगत ठाकुर प्यारेलाल सिंह के पुत्र ठाकुर रामकृष्ण सिंह को प्रत्याशी बनाया। जनवरी 1955 में चुनाव हुए। कांग्रेस की तरफ से पंडित शारदा चरण तिवारी उम्मीदवार बनाए गए। ठाकुर रामकृष्ण सिंह को करीब ढाई हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल हुई थी। उस वक्त सवा 28 हजार वोट पड़े थे।
तब गुढिय़ारी, राजातालाब, रामसागरपारा, ब्राम्हण पारा, बैजनाथ पारा, छोटा पारा, बैरन बाजार, सदर बाजार, तात्यापारा, अमिन पारा, पुरानी बस्ती, गोल बाजार, रेलवे कॉलोनी, टिकरापारा, मौदहापारा रायपुर विधानसभा क्षेत्र का आता था। अब रायपुर चार विधानसभा, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, और ग्रामीण में तब्दील हो चुका है। वर्तमान में अकेले रायपुर दक्षिण में मतदाताओं की संख्या दो लाख 70 हजार पहुंच चुकी है। अब इस उपचुनाव का क्या नतीजा निकलता है, यह तो 20 तारीख को पता चलेगा।
9.15 के बाद पहुंचे तो हाफ-डे
देश भर के अधिकारी कर्मचारियों के लिए ऑफिस पहुंचने की टाइमिंग को लेकर एक नया फरमान जारी हुआ है। अब इन्हें 15 मिनट लेट आने की ही परमिशन होगी। अब असल बात यह है कि यह आदेश मानता कौन है। जो आधे से पौन घंटे देर से आने वालों के लिए तो एडवांटेज मिल जाएगा। सरकार के दिए ये 15 मिनट उस पर अपना टाइम। यानी राष्ट्रपति सचिवालय से लेकर दूर गांव के डाकघरों के केंद्रीय कर्मचारियों को हर हाल में दफ्तर में सुबह 9.15 बजे तक पहुंचकर अपनी उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम में पंच करना अनिवार्य होगी।
कोरोना काल के बाद से अधिकांश सरकारी कर्मचारी बायोमेट्रिक पंच नहीं कर रहे थे, जिससे उपस्थिति की समस्या उत्पन्न हुई? इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने आदेश जारी किया है कि सभी कर्मचारी अब नियमित रूप से बायोमेट्रिक उपस्थिति सुनिश्चित करें। डीओपीटी के आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर कर्मचारी सुबह 9.15 बजे तक दफ्तर नहीं आए, तो उनका हाफ-डे लगा दिया जाएगा। सभी विभाग प्रमुख अपने स्टाफ के दफ्तर में मौजूदगी और समय पर आने-जाने की निगरानी भी करेंगे।
समय की इसी पाबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ कैडर की एक अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटना चाहती थीं। प्रतिष्ठित रक्षा मंत्रालय में पदस्थ थीं। फिर तोड़ निकालकर साउथ ब्लॉक से बाहर के विभाग में पोस्टिंग करा लिया। अब बात महानदी और इंद्रावती भवन से तहसील तक के लेट कमर्स की करें। वो तो नवा रायपुर के लिए मुफ्त की स्टाफ बस की सुविधा न मिली होती तो कोई भी 11 बजे के पहले नहीं पहुंचते। वैसे जीएडी चाहे तो पुराना मंत्रालय से 11 बजे निकलने वाली बीआरटीएस बस को चेक कर लें तो 72 सीटर बस ओवरलोड में 150 लेट कमर्स हर रोज मिलेंगे। ऐसे ही लोग बायोमेट्रिक का विरोध करते हैं ।
वहां हंगामा, यहां सब चंगा जी
अस्पताल में फर्श पर तड़पते मरीज की जिस तस्वीर से हमारी सरकार, डॉक्टर और नर्स ने नजर चुरा ली, कोई भी विचलित नहीं हुआ, उसी को गुजरात ने नाक का सवाल बना लिया। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बिलासपुर के जिला अस्पताल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था। इसमें अस्पताल के बरामदे पर एक घायल मरीज तड़प रहा था, जिसे डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ नजरअंदाज कर आगे बढ़ जा रहे थे। इसी वीडियो पर गुजरात साइबर सेल ने बैज के खिलाफ भ्रामक खबर फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया है ऐसी खबर उड़ गई। यह कहते हुए कि इस वीडियो को गुजरात के अस्पतालों की स्थिति बताकर जनता को भ्रमित किया गया। हालांकि, यह बाद में साफ हुआ कि इस वीडियो क्लिप का गुजरात की तस्वीर बताते हुए किसी अन्य महिला ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर पोस्ट कर दी है। पुलिस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
छत्तीसगढ़ में साइबर सेल या सरकार के किसी दूसरे महकमे को इस वीडियो ने विचलित नहीं किया। शायद यह मानकर कि, छत्तीसगढ़ है- यहां तो सब ऐसा ही है। मगर, गुजरात में इसी वीडियो क्लिप ने इतनी सनसनी फैला दी कि वहां एक जांच एजेंसी को सक्रिय होना पड़ गया। इसका मतलब क्या है? मतलब यह है कि गुजरात के अस्पतालों की दशा, छत्तीसगढ़ जैसी नहीं है। ऐसी तुलना भी की गई तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाएगा। भले ही दोनों जगह मोदी की गारंटी वाली सरकार क्यों न हो।
इस बार सचमुच उम्मीद से?
रायपुर दक्षिण चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हो, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। खुद प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने बुधवार को अनौपचारिक बैठक में बैज की सराहना भी की।
चर्चा के बीच एक-दो नेताओं ने संसाधनों की कमी का रोना रोया, और कहा कि आगामी दिनों में कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इस पर पायलट ने साफ शब्दों में कहा बताते हैं कि संसाधनों से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास असीमित संसाधन हैं, और संसाधनों में उनसे कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पायलट ने आगे कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले पर चुनाव लड़ रही है, और भरोसा जताया कि अंतत: जीत कांग्रेस को ही मिलेगी। कुल मिलाकर पायलट इस बार उम्मीद से हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जंगल में मंगल !!
सरकार के विभागों की तरफ से अलग-अलग प्रकरणों पर हाईकोर्ट में जवाब समय पर दाखिल नहीं हो पाता है। इसकी वजह से कई प्रकरणों पर सुनवाई लंबी खिंच जा रही है। एजी ऑफिस ने सिंचाई विभाग के एक प्रकरण पर तो ईई के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर दी थी।
ताजा मामला वन विभाग से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स पद पर पदोन्नति से जुड़े विवाद पर सुनवाई चल रही है। इस पूरे मामले में एसीएस की हिदायत के बावजूद जवाब दाखिल नहीं हुआ था। इसके बाद अब एसीएस (वन) ने कड़ा रुख दिखाते हुए सीधे तौर पर ओआईसी को दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दे दी है। इसके बाद से विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। प्रकरण पर अगले हफ्ते सुनवाई है। देखना है आगे क्या होता है।
समिति बनेगी या आमसभा होगी?
सामान्य प्रशासन विभाग ने एक लंबे अर्से बाद संयुक्त परामर्शदात्री समितियों (जेसीसी) की सुध ली है। अवर सचिव ने सभी विभागों और कलेक्टरों को निर्देश जारी किया है। इसमें कहा है कि अपने अपने जिलों, विभागों में मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के एक एक सदस्य को शामिल कर संयुक्त परामर्शदात्री समितियों का गठन किया जाए। यह तो हुई व्यवस्थागत आदेश की बात। और यहां से शुरू होगा कर्मचारी संगठनों में राजनीतिक द्वंद्व।
प्रदेश में तीन सौ से अधिक मान्यता प्राप्त अधिकारी कर्मचारी संगठन। इनमें 110 से अधिक फेडरेशन से सम्बद्ध है। इनके अलावा महासंघ, बीएमएस संबंद्ध, पेंशनर्स ये संघ भी हैं। जीएडी ने कहा है इनमें से हर जिले की जेसीसी में एक एक संघ के एक एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। ऐसा होने पर हर जिले की जेसीसी भी तीन सौ सदस्यीय हो जाएगी। लेकिन जीएडी और कलेक्टर विभाग प्रमुख ऐसा नहीं करते। वे मात्र दर्जन डेढ़ दर्जन सदस्य ही लेते हैं।
ऐसे में कर्मचारी नेताओं में सदस्य बनने होड़ मचेगी। और जो नहीं बन पाएगा उसकी भूमिका 'फूफा’ जैसी होनी निश्चित है। इतना ही नहीं ऐसे नाराज लोगों का पाला बदलना या विभीषण बनना भी तय है। निहारिका बारिक सिंह कमेटी की बैठक में जेसीसी गठन की मांग उठाकर कर्मचारी राजनीति के शांत समुद्र में कंकड़ मारकर, नेताओं में अपने ही लिए समस्या खड़ी कर ली है। जीएडी ने भी मांग और मौके का फायदा उठाकर गठन के आदेश जारी कर दिए। अब कर्मचारी राजनीति की धार देखना है।
क्या चल रहा है स्वास्थ्य विभाग में ?
राज्य के प्रमुख मंत्रालय जैसे स्वास्थ्य, और गृह न केवल आकार में बड़े हैं बल्कि राज्य में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए इनका चुस्त-दुरुस्त रहना बेहद आवश्यक है। प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ रही है। हत्या, चाकूबाजी के अलावा सीधे पुलिस और प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन इस पूरी स्थिति को गृह मंत्री और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की चूक कहना सही नहीं होगा; हालात काबू में करने में जरूर कुछ कमियां दिखाई दे रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का मामला अलग है। कुछ दिन पहले उन्होंने सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर में समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें डीन अनुपस्थित थे। इस पर बिना देरी किए, मंत्री ने निलंबन का आदेश जारी कर दिया। परंतु, यह आदेश जल्द ही हाईकोर्ट में ध्वस्त हो गया, क्योंकि डीन डॉ. सहारे परिवारिक शोक के चलते विधिवत अवकाश पर थे। इसके बाद स्थिति विकट हो गई। अब कॉलेज में हाईकोर्ट के आदेश से लौटे डॉ. सहारे और स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त डॉ. रणमेश मूर्ति के बीच पदभार को लेकर लड़ाई चल रही है। स्टाफ में भ्रम फैला हुआ है और व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं।
इधर, स्वास्थ्य विभाग में निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाने के निर्णय ने डॉक्टरों में असंतोष भडक़ा दिया है। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के 22 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं, और पूरे प्रदेश में यह संख्या 30 तक पहुँच गई है। सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक हमेशा एक पेचीदा मुद्दा रहा है। ऐसी स्थिति में, जब राज्य के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की भारी कमी है, हर इस्तीफा एक नई चुनौती खड़ी कर रहा है।
मंत्री जायसवाल द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश भी शुरुआती दिखावे तक सीमित रह गया। बलौदाबाजार में जब पत्रकारों ने झोलाछाप डॉक्टरों को कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों का संरक्षण मिलने का आरोप लगाया, तो मंत्री भडक़ उठे और सबूत की मांग करने लगे। मंत्री का यह रवैया, मानो वे आलोचना सुनना ही नहीं चाहते, उनके कामकाज के तरीकों पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। पहली बार विधायक बनने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा बड़ा दायित्व संभालने वाले जायसवाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं। उनके सामने मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान आंख गंवाने वाले मरीजों को न्याय दिलाने जैसे संवेदनशील मुद्दों का समाधान करने की चुनौती भी तो है। ([email protected])
वोट के बदले मिठाई-लिफाफा
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेताओं ने डेरा डाल दिया है। दोनों ही दलों के विधायक, पूर्व विधायक गलियों की खाक छान रहे हैं। चुनाव प्रेक्षक भी खर्च पर नजर गड़ाए हुए हैं। इन सबसे नजरें चुराकर एक प्रत्याशी की तरफ से 25 हजार पैकेट पूजन-मिठाई, और उपहार स्वरूप एक-एक हजार के लिफाफे धनतेरस के दिन मतदाताओं तक पहुंचाए भी गए। मतदान के पहले भी इसी तरह मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए लिफाफे और अन्य उपहार भेजने की तैयारी चल रही है। मतदान पर इसका कितना असर होता है, यह कहना अभी कठिन है।
सांसद-पुत्री अब कलेक्टर
आईएएस की वर्ष-2021 बैच की अफसर तुलिका प्रजापति को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। तुलिका राज्य प्रशासनिक सेवा की अफसर थीं, और फिर उन्हें आईएएस अवार्ड हुआ है। तुलिका को आदिवासी बाहुल्य मानपुर मोहला जिले में काम करने का अवसर मिला है।
अंबिकापुर की रहवासी तुलिका राजनीतिक परिवार से आती हैं। उनके पिता स्व. प्रवीण प्रजापति कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनकी माता हेमंती प्रजापति परियोजना अधिकारी रही हैं, और वो रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस में सक्रिय हंै। वो लूंड्रा से टिकट की दावेदार भी थीं। इससे परे तुलिका का अब तक प्रशासनिक कैरियर बेहतर रहा है। कलेक्टर के रूप में क्या कुछ करती हैं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चूक या राजनीति
इसे चूक कहें या राजनीति, संस्कृति विभाग ने एक अलंकरण की घोषणा ही नहीं की। और वह भी चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी बकायदा विज्ञापन जारी कर आवेदन मंगाए गए। आवेदन भी दर्जनभर से अधिक आए। चयन समिति भी बनी, उसकी बैठक हुई, सबके कृतित्व का आंकलन भी किया। लेकिन उपराष्ट्रपति के हाथों आज कोई सम्मानित नहीं हो पाएगा। यह सम्मान, छत्तीसगढ़ के रंगमंच को विश्व थिएटर तक पहुंचाने वाले पद्मश्री स्व हबीब तनवीर की स्मृति में दिया जाना था। हबीब भाई राजधानी के बैजनाथ पारा में रहा करते थे। यह सम्मान पिछली सरकार ने दो अन्य अलंकरणों लक्ष्मण मस्तुरिया स्मृति और खुमान साव स्मृति के साथ शुरू करने की घोषणा की थी। संस्कृति विभाग ने इन दो के नाम तो घोषित किए लेकिन तनवीर की स्मृति को भूल गया। सूची में इस अलंकरण के शामिल न होने से रंगमंच के नामचीन कलाकारों ने ही यह जानकारी देते हुए अफसोस जाहिर किया है।
हाथियों की सह-अस्तित्व परेड
शांतिपूर्ण, कतारबद्ध सडक़ पार करता हाथियों का यह दल दिखाता है कि ये विशालकाय प्राणी केवल सम्मान और दूरी चाहते हैं। हसदेव अरण्य इलाके के इस वीडियो में कोरबा-अंबिकापुर हाईवे पर ग्राम मड़ई के पास गजराज परिवार का नजारा सुकून देने वाला है। हाल में छत्तीसगढ़ में करंट से चार हाथियों की दर्दनाक मौतों के बीच इस तरह का दृश्य अनमोल है, खासकर जब इस गज दल में नन्हे शावक भी शामिल हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को देखने से यह धारणा मजबूत होती है कि गजराज किसी पर बेवजह हमला नहीं करते। वे स्वभाव में मूल रूप से संकोची हैं। वे भी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की जरूरत महसूस करते हैं पर उन्हें पानी और भोजन की जरूरत पूरी करने के लिए भटकना पड़ता है। जैसे ही वे सडक़ पार कर रहे थे, लोगों में उत्सुकता दिखी। दोनों ओर गाडिय़ों की कतार लग गई, जिनमें एंबुलेंस भी थीं। लोग हाथी से सुरक्षित दूरी बनाकर बिना शोरगुल किए खड़े थे। पर अफसोस कुछ लोगों ने जोर से हॉर्न बजाकर उन्हें डराने की कोशिश की। बाकी लोगों ने उन्हें फटकार लगाते हुए मना किया।
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग भागों में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। हाथियों की असामयिक मृत्यु और मानव के साथ उनका संघर्ष भी इसी अनुपात में बढ़ता जा रहा है। वन्यजीव प्रेमी कहते हैं कि जागरूकता और सहिष्णुता हो तो हाथी भी हमारे जंगलों में सुरक्षित और निश्चिंत रह रहेंगे। आम लोगों की जिम्मेदारी तो बनती है कि वे इसका ध्यान रखें, लेकिन हाल की घटनाएं बताती है कि वन विभाग और प्रशासन में संवेदना का अभाव है।
पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या ऐसे होगी कम
प्रदेश के कॉलेजों में इस बार स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिए आवेदन की संख्या में चौंकाने वाली गिरावट आई है। पूरे प्रदेश के आंकड़े अभी नहीं मिले हैं। एक जानकारी सामने आ रही है, उसके मुताबिक इस साल बस्तर विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले 53 कॉलेजों में स्नातक स्तर पर पिछले साल की तुलना में आधे से भी कम आवेदन हुए हैं। जहां पिछले वर्ष 15,000 से अधिक प्राइवेट परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था, वहीं इस बार अंतिम तारीख तक केवल 6,000 आवेदन ही आए हैं। स्नातकोत्तर में भी यह गिरावट दिखाई दे सकती है, जैसे ही उसकी आवेदन तिथि समाप्त होगी।
इस बदलाव का बड़ा कारण नई शिक्षा नीति 2020 है, जिसके तहत स्नातक और स्नातकोत्तर में निजी छात्रों की परीक्षा प्रक्रिया में बदलाव किए गए हैं। अब स्नातक और स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में छात्रों को साल में दो सेमेस्टर की दो परीक्षाएं देनी होंगी। साथ ही असाइनमेंट के लिए 10-12 दिनों का अतिरिक्त समय भी देना होगा। पहले द्वितीय और अंतिम वर्ष में प्राइवेट परीक्षार्थियों को एक बार आवेदन और एक बार परीक्षा देने की सुविधा थी, परंतु अब केवल प्रथम वर्ष के छात्रों को नई परीक्षा प्रणाली का पालन करना होगा।
नई नीति से प्राइवेट परीक्षार्थियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जो छात्र समय या व्यावसायिक जिम्मेदारियों के चलते नियमित कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते थे, उन्हें अब बार-बार कॉलेज जाना होगा। इससे वे महिलाएं भी प्रभावित होंगी, जिन्हें पहले केवल एक बार परीक्षा देने आना पड़ता था।
प्राइवेट इनरोलमेंट घटने से कॉलेजों की आमदनी पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कॉलेज प्राइवेट परीक्षार्थियों से कई तरह की अतिरिक्त फीस वसूलते थे, जो अब कम हो जाएगी। दूसरी ओर, अधिकतर शिक्षाविद इस बदलाव को सकारात्मक मानते हैं। उनका कहना है कि अब प्राइवेट परीक्षा से मिली डिग्री का वास्तविक मूल्यांकन हो सकेगा, और इसे हल्के में नहीं लिया जाएगा। मगर, इसी के परिणामस्वरूप भविष्य में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारक बेरोजगारों की संख्या में भी कमी देखने को मिल सकती है।
- छह नवंबर : महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ ‘ग्रेट मार्च’ शुरू किया
- नयी दिल्ली, 6 नवंबर। महात्मा गांधी ने अन्याय और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई न सिर्फ भारत में शुरू की बल्कि विदेश में भी वह इसके खिलाफ डटकर लड़े जिसका गवाह दक्षिण अफ्रीका है। आज ही के दिन यानी छह नवंबर 1913 को महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के कुछ अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ मार्च किया था जिसे ‘ग्रेट मार्च’ के नाम से जाना जाता है।
- इस मार्च में करीब दो हजार भारतीय खदान कर्मियों ने न्यूकासल से नेटाल तक की पदयात्रा की थी। साल 1906 में ट्रांसवैल सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय आबादी के पंजीकरण के लिए अपमानजनक अध्यादेश जारी किया जिसके बाद इस कानून का व्यापक विरोध किया गया था।
- देश दुनिया के इतिहास में छह नवंबर की तारीख पर दर्ज कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1763: ब्रिटिश फौज ने मीर कासिम को हराकर पटना पर कब्जा किया।
- 1860 : अमेरिका के लोगों ने अब्राहम लिंकन को देश का राष्ट्रपति चुना।
- 1913 : दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीतियों के खिलाफ महात्मा गांधी ने ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व किया।
- 1917 : रूसी क्रांति के दूसरे दौर की शुरुआत।
- 1937 : देश के प्रमुख नौकरशाह और राजनीतिज्ञ यशवंत सिन्हा का पटना में जन्म।
- 1956 : मित्र देशों की सेनाओं ने स्वेज नहर पर कब्जा किया। ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाओं ने मिस्र के सैनिकों के खिलाफ स्वेज नहर युद्ध में जीत दर्ज की।
- 1985 : हिंदी सिनेमा के सशक्त अभिनेता संजीव कुमार का निधन। ‘खिलौना’, ‘आंधी’, ‘मौसम’ और ‘अंगूर’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय की जमकर सराहना हुई। 1990 : नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभाला। वह 18 अप्रैल 1993 तक इस पद पर रहे।
- 2014 : सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे’ का विमोचन।
- 2020 : ग्वाटेमाला में चक्रवात इटा के कारण हुए भूस्खलन में 37 लोगों की मौत।
- 2021 : अफ्रीकी देश सिएरा लियोन की राजधानी फ्रीटाउन के निकट एक तेल टैंकर में विस्फोट में 92 लोगों की मौत, कई घायल।
- 2022 : तंजानिया में एक छोटा विमान दुर्घटनाग्रस्त होकर विक्टोरिया झील में गिरा, 19 लोगों की मौत। (भाषा)
धान खरीदी में देरी के नुकसान
छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी हर साल एक नवंबर से शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार 16 नवंबर से शुरू होगी। सरकार का कहना है कि इस समय तक फसल पूरी तरह तैयार नहीं होती, पर अनेक किसानों के लिए यह देरी उनके लिए एक समस्या बन गई है। जल्दी पकने वाली धान की फसल तैयार हो चुकी है, और किसानों के पास उसे रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
छोटे किसानों के पास खलिहान नहीं होते और वे धान काटते ही उसे बेचने के लिए सोसाइटी में पहुंचाना पसंद करते हैं। बड़े किसानों के ही खलिहान का साझा उपयोग करते हैं, ताकि समय पर अपनी फसल को सुरक्षित कर सकें। इस बार धान खरीदी में देरी होने के कारण इन किसानों को अपनी फसल 10-12 दिन तक अपने पास डंप करके रखने की मजबूरी आ पड़ी है।
हाथी प्रभावित इलाकों के किसानों के लिए यह स्थिति और भी जोखिम भरी है। यदि वे धान को खलिहान में रखेंगे, तो हाथियों के हमले का खतरा बना रहता है, जो उनकी मेहनत को बर्बाद कर सकते हैं। इससे बचने के लिए कई किसान अब अपनी फसल खुले बाजार में बेचने पर मजबूर हैं, जिससे उन्हें समर्थन मूल्य से कम कीमत मिल रही है।
दूसरी ओर, उपार्जन केंद्रों के ऑपरेटरों की हाल ही में समाप्त हुई हड़ताल के कारण किसानों का पंजीयन कार्य पिछड़ गया है। इसके अलावा, अब समितियों के प्रबंधक हड़ताल पर चले गए हैं और राजधानी रायपुर में डेरा जमाए हुए हैं।
कन्फर्म बर्थ का जुगाड़
छठ पूजा आते ही दिल्ली से यूपी-बिहार जाने वाली ट्रेनों का हाल देखिए। रेलवे दावा कर रहा है कि इस बार पिछली बार से दोगुनी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, पर भीड़ ऐसी है कि प्लेटफॉर्म और ट्रेन में पैर रखने की जगह भी नहीं। लोग 12-15 घंटे खड़े-खड़े यात्रा कर रहे हैं, मानो रेलवे ने यात्रियों के धैर्य की परीक्षा लेने की ठान ली हो।
मगर कुछ यात्री ऐसे विपरीत हालात में भी धीरज नहीं खोते। इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि ऊपरी बर्थ के बीच रस्सी बांधकर जुगाड़ से एक और बर्थ बना ली गई है। सीट कन्फर्म नहीं मिली तो क्या, खुद अपनी व्यवस्था कर ली! वैसे भी हमारे देश के लोग किसी भी स्थिति में खुद को एडजस्ट करने की कला में निपुण हैं।
कुछ लोग कह रहे हैं कि रेलवे को इस पर जुर्माना लगाना चाहिए, आखिर बिना अनुमति बर्थ तैयार कर ली गई है। लेकिन जो घर से रस्सी लेकर आए, मेहनत से सीट तैयार की, उनसे उगाही के बारे में सोचना अन्याय होगा। बल्कि, यह क्रिएटिविटी भविष्य की ट्रेनों में काम आ सकती है। हो सकता है, अगली बार शायद रेलवे जुगाड़ बर्थ खुद बनाए और उसके लिए टिकट भी बेचना शुरू कर दे।
आरक्षण और अटकलें
सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव के लिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई नीति को मंजूर कर लिया है, और इस सिलसिले में जल्द अधिसूचना जारी होने के संकेत हैं। चुनाव में आरक्षण के मसले पर एक बार फिर प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है।
विधानसभा उपचुनाव निपटने के बाद नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। ताजा विवाद आरक्षण के मसले पर छिड़ सकता है। विश्वकर्मा आयोग ने एससी-एसटी, और ओबीसी मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसदी तक रखने की सिफारिश की है। पिछड़ा वर्ग का स्थानीय निकायों में पिछले चुनाव में 25 फीसदी आरक्षण रहा है लेकिन नई नीति से नगर-निगमों में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ सकता है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में बढ़ोतरी हो सकती है।
यह भी साफ है कि पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित वार्डों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। यही नहीं, अनारक्षित वार्डों की संख्या में कमी आ सकती है। सिर्फ अंबिकापुर ही अकेला ऐसा निगम है जहां वार्डों का आरक्षण यथावत रहेगा।
इधर, निगम चुनाव लडऩे के कई इच्छुक नेता पहले परिसीमन को लेकर नाखुश थे और हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। करीब 50 याचिकाएं दायर की गई थी। ये अलग बात है कि कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी। अब आरक्षण से प्रभावित कई नेता कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल अधिसूचना का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
बंदे में आखिर क्या बात है?
चुनाव आयोग ने झारखंड, और महाराष्ट्र के डीजीपी को हटा दिया है। इन दोनों राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। राजनीतिक दलों की शिकायत पर दोनों राज्यों के डीजीपी को हटाया गया है। इस मामले में छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा भाग्यशाली रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बीच डीजीपी अशोक जुनेजा को हटाने की मांग की गई थी।
भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल ने जुनेजा के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा चुनाव आयोग को सौंपा था। आयोग ने इस पूरे मामले में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। और जब भाजपा सरकार में आई, तो जुनेजा के हटने की अटकलें भी लगाई जा रही थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
यही नहीं, रिटायरमेंट के बाद छह महीने का एक्सटेंशन भी दे दिया गया। जिन दिग्गजों ने जुनेजा के खिलाफ शिकायत की थी वो अब भी समझ पा रहे हैं कि उन्हें एक्सटेंशन क्यों दिया गया। दबे स्वर में प्रदेश में खराब पुलिसिंग के लिए जुनेजा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, जुनेजा को दाद देनी ही पड़ेगी।
भाजपा के जिन नेताओं ने विधानसभा चुनाव के पहले जुनेजा को हटाने की माँग की थी, वे अब सामने पडऩे पर नजऱें छुड़ाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ ऐसा ही भूपेश सरकार के आने के वक्त हुआ था। चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी अनिल टुटेजा के खून की प्यासी थी। और चुनाव हो गया फिर? फिर कांग्रेसी नए राजा से मुँह चुरा रहे थे।
छत्तीसगढ़ में रहने वाले...
भाजपा में संगठन चुनाव चल रहे हैं। दिसंबर के पहले पखवाड़े में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा, और दिसंबर के आखिरी हफ्ते में ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए जो नाम अभी से चर्चा में है, उनमें केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रमुख है। प्रधान छत्तीसगढ़ भाजपा के लंबे समय तक प्रभारी रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी रहे हैं, और हाल में ही हरियाणा चुनाव में जीत के लिए रणनीति उन्होंने ही तैयार की थी।
धर्मेन्द्र प्रधान, पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। इन सबको देखते हुए छत्तीसगढ़ के कई भाजपा नेता अभी से धर्मेन्द्र प्रधान के अध्यक्ष बनने की संभावना जता रहे हैं। कई नेता उनके संपर्क में भी हैं।
खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं। मोदी के बाद वेंकैया नायडू प्रभारी थे, जो बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। इसके बाद राजनाथ सिंह प्रभारी बने वो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं।
ऐसे में धर्मेन्द्र प्रधान के प्रोफाइल, और छत्तीसगढ़ से जुड़े संयोग को देखकर उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही है, तो वह बेवजह नहीं है।
टारगेट रेलवे का, या साहब का
रायपुर रेल ‘मंडल’ के रायपुर- दुर्ग के ट्रेन में चलने वाले टीटीई और प्लेटफॉर्म ड्यूटी करने वाले टीसी, इन दिनों अपने साहब से परेशान हैं। परेशानी की बात यह है कि बेटिकिट, बिना बुकिंग लगेज, बिना रिजर्वेशन के स्लीपर में सफर करने पर कार्रवाई का ‘मंडल’ का टारगेट पूरा करें या साहब का टारगेट पूरा करें। साहब ने इन सभी को अपने लिए मासिक टारगेट बांध दिया है कि मुझे इतना तो चाहिए ही। नहीं तो ट्रेन से उतार कर आफिस में बाबू गिरी या प्लेटफॉर्म में लूप लाइन में डाल दिए जाओगे।
रायपुर के टीटीई, नागपुर तक और दुर्ग के कटनी और विशाखापट्टनम तक ड्यूटी पर जाते हैं। इन सबकी कमाई साहब जानते जो हैं। क्योंकि वो स्वयं भी नीचे से ही ऊपर आए हैं। नागपुर से तीन माह पहले यहां आने के बाद अब साहब सक्रिय हुए हैं। वैसे साहब के यहां आने की वजह भी ऐसी ही कुछ प्रताडऩाएं रहीं है। इसे लेकर वहां की दो महिला टीसियों की शिकायत पर साहब महिला आयोग में पेशियों का सामना कर रहे हैं। अब देखना यह है कि टारगेट पूरा होता है या साहब पीछे हटते हैं।
झारखंड चुनाव में हसदेव
झारखंड में एक ओर विधानसभा में वापसी के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए जूझ रहे हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य होने के साथ-साथ दोनों आदिवासी बाहुल्य प्रदेश हैं। दोनों राज्य खनिज संसाधनों से संपन्न हैं। इन संसाधनों के दोहन के लिए जल-जंगल-जमीन को उजाडऩा और आदिवासियों को बेदखल करना, हर राजनीतिक दल के लिए मुद्दा रहा है। मगर, तब जब वह सत्ता में नहीं हो।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते थे कि भाजपा को वोट देना मतलब अडानी को हसदेव का जंगल सौंप देना। विधानसभा में जब हसदेव के जंगल को बचाने की संकल्प पारित किया गया तो सभी राजनीतिक दल साथ थे। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने तब कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया था कि वह जंगल काटने के लिए आदिवासियों पर बल प्रयोग कर रही है। हालांकि, अब भाजपा की सरकार बनने के बाद उतना ही बल या उससे अधिक लगाकर प्रस्तावित खदान के लिए कटाई का सिलसिला शुरू हो गया। कांग्रेस ने इसका विरोध किया, पर यहां कोई चुनाव सामने नहीं है, इसलिए विरोध औपचारिक ही रहा। इस ताजा पेड़ कटाई के दौरान लोग राहुल गांधी की प्रतिक्रिया भी ढूंढ रहे थे, नहीं मिली।
मगर, झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगभग हर चुनावी सभा में यह कह रहे हैं कि भाजपा झारखंड की सत्ता में इसलिये आना चाहती है ताकि यहां के जंगल और जमीन को वह अपने उद्योगपति मित्रों के हवाले कर सके। और इस बयान के दौरान वे छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों की हो रही कटाई का उदाहरण दे रहे हैं। भाजपा का यह रुख है कि वह इस मुद्दे पर कोई जवाब ही न दे। उसने यूसीसी, एनआरसी और बांगलादेशी घुसपैठ व सोरेन सरकार के भ्रष्टाचार पर चुनाव पर प्रचार अभियान फोकस किया है।
हम भी लटककर चलते हैं...
चीन जैसे देशों में ट्रेनें लटककर चलती है, जो तकनीकी और इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है। वहीं, हमारे भारत में लोग अक्सर भीड़-भाड़ वाली ट्रेनों में लटककर यात्रा करते हैं। यह स्थिति हमारे देश के यात्रियों की सहनशीलता और विवशता का उदाहरण है।