राष्ट्रीय

राजा सुहेलदेवः मोदी रखेंगे स्मारक की आधारशिला, जिनपर कई जातियां जताती हैं हक़
16-Feb-2021 8:30 AM
राजा सुहेलदेवः मोदी रखेंगे स्मारक की आधारशिला, जिनपर कई जातियां जताती हैं हक़

इमेज स्रोत,PIB


-समीरात्मज मिश्र

उत्तर प्रदेश सरकार बहराइच में राजा सुहेलदेव की याद में उनका स्मारक बना रही है जिसका आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिलान्यास करेंगे.

स्मारक के अलावा बहराइच और श्रावस्ती ज़िलों के लिए तमाम सौगातों की भी घोषणा की जाएगी. माना जाता है कि इन्हीं ज़िलों में राजा सुहेलदेव का राज्य रहा होगा.

राजा सुहेलदेव को सरकार राजा सुहेलदेव राजभर के तौर पर प्रचारित कर रही है जबकि इससे पहले उन्हें राजा सुहेलदेव पासी के तौर पर भी ख़ूब प्रचारित किया गया जबकि ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो राजा सुहेलदेव को राजपूत समाज का मानते हैं.

शायद इसी वजह से राजपूत समुदाय के लोगों ने राज्य सरकार की इन कोशिशों पर आपत्ति जताई है कि राजा सुहेलदेव को राजपूत की बजाय राजभर क्यों बताया जा रहा है.

रविवार को ट्विटर पर इसके ख़िलाफ़ बाक़ायदा अभियान छेड़ा गया और '#राजपूत_विरोधी_भाजपा' हैशटैग को ट्रेंड कराया गया. रविवार को इस हैशटैग से क़रीब 54 हज़ार ट्वीट किए गए.

राजा सुहेलदेव के नाम पर राजनीतिक पार्टी गठित करने वाले यूपी के पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने सरकार की इन कोशिशों को राजनीतिक स्टंट बताया है तो दूसरी ओर योगी सरकार में मंत्री अनिल राजभर ने ओमप्रकाश राजभर को राजभर समाज का नेता होने पर ही सवाल उठाया है.

इन सबके बीच यह जानना दिलचस्प है कि राजा सुहेलदेव कौन थे और अलग-अलग जातियों के बीच उन पर दावे की वजह क्या हैं?

इतिहास में नहीं अमीर खुसरो की किताब में ज़िक्र

राजा सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी न के बराबर है. माना जाता है कि 11 वीं सदी में महमूद ग़ज़नवी के भारत पर आक्रमण के वक़्त सालार मसूद ग़ाज़ी ने बहराइच पर आक्रमण किया लेकिन वहां के राजा सुहेलदेव से बुरी तरह पराजित हुआ और मारा गया.

सालार मसूद ग़ाज़ी की यह कहानी चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की क़िताब एजाज़-ए-खुसरवी और उसके बाद 17वीं सदी में लिखी गई क़िताब मिरात-ए-मसूदी में मिलता है. लेकिन महमूद ग़ज़नवी के समकालीन इतिहासकारों ने न तो सालार मसूद ग़ाज़ी का ज़िक्र किया है, न तो राजा सुहेलदेव का ज़िक्र किया है और न ही बहराइच का ज़िक्र किया है.

29 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजा सुहेलदेव की याद में एक डाक टिकट जारी किया था.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विभाग में प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी बताते हैं, "मिरात-ए-मसूदी में ज़िक्र ज़रूर मिलता है लेकिन उसे ऐतिहासिक स्रोत नहीं माना जा सकता है. इसकी वजह यह है कि इस तथ्य की कहीं से कोई पुष्टि नहीं हुई है."

"सुहेलदेव के नाम के न तो कहीं कोई सिक्के मिले हैं, न तो कोई अभिलेख मिला है, न किसी भूमि अनुदान का ज़िक्र है और न ही किसी अन्य स्रोत का. यदि सालार मसूद ग़ाज़ी का यह अभियान इतना अहम और बड़ा होता तो महमूद ग़ज़नवी के समकालीन इतिहासकारों- उतबी और अलबरूनी ने इसका ज़िक्र ज़रूर किया होता."

इतिहास के पन्नों में राजा सुहेलदेव का इतिहास भले ही न दर्ज हो लेकिन लोक कथाओं में राजा सुहेलदेव का ज़िक्र होता रहा है और ऐसा हुआ है कि इतिहास के दस्तावेज़ों की तरह लोक के मन में उनकी वीर पुरुष के तौर पर छवि बनी हुई है.

लेकिन 11वीं सदी के किसी राजा के बारे में चार-पांच शताब्दियों के बाद हुए उल्लेख को इतिहासकार ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं मानते. यही नहीं, जिन दस्तावेज़ों में उनका ज़िक्र हुआ भी है, उनमें भी स्पष्टता की कमी है जो संदेह को और पुख़्ता करती है.

इमेज स्रोत,PIB

राजा सुहेलदेव की जाति को लेकर विवाद क्यों?
सवाल यह है कि जब किसी राजा की ऐतिहासिकता पर ही संदेह हो तो उसकी जाति को लेकर इतना विवाद क्यों है और कैसे है?

राजा सुहेलदेव के बारे में समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर बद्री नारायण ने अपनी पुस्तक 'फ़ैसिनेटिंग हिन्दुत्व: सैफ़्रॉन पॉलिटिक्स एंड दलित मोबिलाइज़ेशन' नामक पुस्तक में विस्तार से लिखा है.

हालांकि सुहेलदेव की ऐतिहासिकता पर बद्री नारायण भी बात नहीं करते हैं लेकिन उनकी जाति को लेकर होने वाले विवाद पर ज़रूर चर्चा करते हैं.

बीबीसी से बातचीत में बद्री नारायण कहते हैं, "सुहेलदेव भर समुदाय के नायक थे. दलित समुदाय में आने वाली पासी जाति भी उन पर अपना अधिकार जताती है और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भर या राजभर जाति के लोग भी उन्हें अपना नायक बताते हैं."

"दरअसल, उस समय जो समुदाय लाठी से मज़बूत होते थे, वो ताकत के बूते अपना राज्य स्थापित करने में कामयाब हो जाते थे. राजा सुहेलदेव के साथ भी ऐसा ही रहा होगा."

OMPRAKASH RAJBHAR /FACEBOOK
सुहेलदेव की जाति को लेकर कई जाति समूह दावा जता चुके हैं.

मिरात-ए-मसूदी के बाद के लेखकों ने सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत, भारशिव या फिर नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है. इसी आधार पर क्षत्रिय समाज इस बात पर आपत्ति जता रहा है कि सुहेलदेव को उनकी जाति के नायक की बजाय किसी और जाति को नायक के रूप में क्यों सौंपा जा रहा है.

राजपूत करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह रघुवंशी कहते हैं, "क्षत्रिय समाज के राजा सुहेलदेव बैस के इतिहास से छेड़छाड़ करने को राजपूत समाज बर्दाश्त नहीं करेगा. यह हमारे मान, सम्मान और स्वाभिमान से जुड़ा मामला है. राजनीतिक लाभ लेने के लिए उन्हें राजपूत समाज से अलग करने की साज़िश की जा रही है जिसका हम सड़क पर उतरकर विरोध करेंगे."

दरअसल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में क़रीब 18 फ़ीसद राजभर हैं और बहराइच से लेकर वाराणसी तक के 15 ज़िलों की 60 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का काफ़ी प्रभाव है.

राजभर उत्तर प्रदेश की उन अति पिछड़ी जातियों में से हैं जो लंबे समय से अनुसूचित जाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं.

बद्री नारायण बताते हैं कि 1960 के दशक में बहराइच और इसके आस-पास के ज़िलों के नेताओं ने पासियों को आकर्षित करने के मक़सद से सुहेलदेव को महान पासी राजा के रूप में चित्रित करना शुरू किया.

उनके मुताबिक़, "दशकों से दबाए गए पासियों ने भी सुहेलदेव पर दावा जताते हुए उन्हें गर्व भरी निगाह से देखना शुरू किया. बाद में बहुजन समाज पार्टी ने इन सामाजिक प्रतीकों का राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास किया और अब बीजेपी उसी अभियान का आगे बढ़ा रही है."

साल 2002 में बहुजन समाज पार्टी से अलग होने के बाद ओमप्रकाश राजभर ने नई पार्टी बनाई और उसका नाम रखा- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी. लेकिन बीजेपी सुहेलदेव के नाम पर राजभर समुदाय को जोड़ने की कोशिश में है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी पहले बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन में थी लेकिन अब वह उस गठबंधन से अलग है. (bbc.com)


अन्य पोस्ट