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गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि भारत में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा से निपटने के लिए पैसे अपर्याप्त ढंग से खर्च हो रहे हैं. निर्भया कांड के बाद केंद्र सरकार ने निर्भया फंड बनाया था.
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हेल्पलाइन केंद्रों की स्थापना, आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं और अधिकारियों के लिए लिंग-संवेदीकरण प्रशिक्षण के लिए निर्धारित राशि का इस्तेमाल नहीं किया गया. ऑक्सफैम ने देश में महिला सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए बजट का विश्लेषण करने के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की है. सरकार ने निर्भया फंड की स्थापना 2012 में 23 वर्षीय महिला की बलात्कार के बाद हत्या के बाद की थी, रिपोर्ट में पाया गया कि फंड में पहले ही आवंटन कम है और उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा. "टुवर्ड्स वॉयलेंस फ्री लाइव्स फॉर वुमन" नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर 15 मिनट पर एक बलात्कार होता है. ऑक्सफैम ने पिछले तीन वर्षों के भारत के बजट का विश्लेषण किया और पाया कि देश लिंग आधारित हिंसा से लड़ने के लिए सिर्फ 30 रुपये सालाना प्रति महिला खर्च कर रहा है.
आठ करोड़ महिलाएं और लड़कियां जो यौन हिंसा की शिकार होती हैं उनके लिए बजट आवंटन करीब 102 रुपये प्रति व्यक्ति है. ऑक्सफैम इंडिया में लिंग न्याय के लिए प्रमुख विशेषज्ञ अमिता पितरे कहती हैं, "यह समस्त रूप से अपर्याप्त है." महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने इस मुद्दे पर तत्काल टिप्पणी करने से इनकार किया है.
कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारतीय महिलाओं को हिंसा का सामना करना पड़ा है, उनकी नौकरियां चली गईं और उन्हें घर पर हिंसा झेलनी पड़ी, लेकिन पितरे का कहना है कि 2021-22 का लैंगिक बजट पिछले साल से मामूली रूप से अधिक है. उनके मुताबिक, "आप उम्मीद करेंगे कि उनके भोजन सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और उनके साथ होने वाली हिंसा को संबोधित करने के लिए और अधिक किया जाएगा. लेकिन यह आप नहीं देख पाएंगे."
महिलाओं को मिले सीधा लाभ
पितरे का कहना निर्भया फंड में जाने वाले पैसे का इस्तेमाल फॉरेंसिक लैब को मजबूत करने और आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं में सुधार के लिए किया जाता है और यह विशेष कर महिलाओं के लिए नहीं है और इसका लाभ व्यापक कानूनी इकाइयों को मजबूत बनाने में होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 34,000 बलात्कार के मामले रिपोर्ट किए गए और करीब इतने ही मामले इससे पूर्व के साल में दर्ज किए गए. सिर्फ 27 फीसदी मामलों में ही सजा हो पाई.
भारत में महिलाओं की मदद के लिए करीब 600 वन-स्टॉप प्रतिक्रिया केंद्र हैं, जिसकी मदद से महिलाएं पुलिस सेवा, परामर्श और डॉक्टर की सलाह पा सकती हैं और इतनी ही संख्या में महिलाओं के लिए शेल्टर होम हैं जो घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को रहने का मौका देते हैं. महिला अधिकार कार्यकर्ता रेणु मिश्रा कहती हैं, "केवल कुछ ही आश्रय हैं जो अल्पकालिक रहने की पेशकश करते हैं और उनकी क्षमता बहुत खराब है." वे कहती हैं, "आश्रय चाहने वाली महिलाओं की संख्या लाखों में जा सकती है." उनकी संस्था ने लखनऊ में 2020 में 400 घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किए थे.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)