राष्ट्रीय
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जयपुर. राजस्थान में जारी सियासी संकट के बीच कांग्रेस ने रविवार को भी राज्यपाल कलराज मिश्र पर दबाव बनाए रखा है. कांग्रेस ने राज्यपाल पर आरोप लगाया है कि वह पक्षपाती राजस्थान राजभवन की तरफ से 'मास्टर्स' के बयान हू-ब-हू पढ़े जा रहे- कांग्रेसढंग से काम कर रहे हैं और केंद्र में बैठे अपने 'मास्टर्स' की बात हू-ब-हू कह रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा कि राज्य सरकार (काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स) की सहायता और सलाह से कोई भी फैसला करने को राज्यपाल बाध्य होते हैं, लेकिन राजस्थान के राज्यपाल केंद्र में बैठे अपने मास्टर्स की आवाज सुन रहे हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यपाल ने विश्वास दिलाया था हमें कि संविधान की मर्यादाओं का पालन करेंगे. उन्होंने पूछा कि कांग्रेस पार्टी तो कई कारणों से विधानसभा का सत्र बुलाना चाहती है. पुडुचेरी में सत्र हुआ, बिहार और महाराष्ट्र में हो रहा है, तो राजस्थान में क्या दिक्कत है.
सीएम की विधानसभा सत्र बुलाने की मांग
राजस्थान में चल रहे सियासी संकट में रोज नए-नए मोड़ आते दिख रहे हैं. ताजा प्रकरण यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर राज्यपाल कलराज मिश्र को विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर प्रस्ताव भेजा है. सीएम गहलोत ने अपने प्रस्ताव में राज्यपाल से मांग की है कि 31 जुलाई से विधानसभा का सत्र बुलाया जाए. प्रदेश सरकार ने कल देर रात यह प्रस्ताव गवर्नर को भेजा है. इसके साथ ही सरकार ने राज्यपाल को 6 बिंदुओं का जवाब भी भेज दिया है. सरकार ने कल ही कैबिनेट से विधानसभा का सत्र बुलाने का प्रस्ताव पारित कराया था. हालांकि बताया गया है कि राज्यपाल कलराज मिश्र ने सत्र बुलाने को लेकर अभी कोई फैसला नहीं किया है.
4 बार विधानसभा में लाया गया विश्वास प्रस्ताव
इन दिनों प्रदेश की सियासत में सरकार सत्ता में बहुमत के आधार पर है या नहीं है इसको लेकर भी अपने अपने अटकलें लगाई जा रही हैं. इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है, पर ऐसा नहीं है, सत्ता पक्ष भी विश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार में बने रहने का दावा पेश करता है. राजस्थान विधानसभा के इतिहास के पन्नों को देखने पर पता चलता है कि विभिन्न सरकारों की ओर से अब तक 4 बार विश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया है. इन चार बार के विश्वास प्रस्ताव में तीन बार तो अकेले भैरों सिंह शेखावत सदन में लेकर आए हैं और विश्वास प्रस्ताव को पारित कराने में सफल हुए हैं. वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पूर्व की सरकार यानी साल 2009 से 2013 के बीच में एक बार विश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे और वह भी प्रस्ताव को पास करवाने में सफल हुए. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी इतिहास अशोक गहलोत के लिए मददगार होगा.