सामान्य ज्ञान

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ञ्जद्धद्ग हृड्डह्लद्बशठ्ठड्डद्य रूशठ्ठह्वद्वद्गठ्ठह्ल ्रह्वह्लद्धशह्म्द्बह्ल4 का गठन प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल एवं अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम 2010 के द्वारा किया गया जो मार्च 2010 में प्रभावी हुआ। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण को संरक्षित स्मारकों एवं पुरास्थलों की सुरक्षा एवं संरक्षा से संबंधित विभिन्न कार्यों के अनुपालन की जिम्मेदारी प्रतिषिद्ध क्षेत्र एवं विनियमित क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में सौंपी गयी है।
नगरीकरण के विकास एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण संरक्षित स्मारकों के आसपास स्थित भूखंडों पर लगातार बढ़ते दबाव के कारण स्मारकों एवं पुरास्थलों के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि स्मारकों के सरंक्षण एवं व्यक्तिगत आवश्यकताओं, विकास कार्यो के बीच समन्वय स्थापित किया जाए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आरंभिक उपाय के रूप में स्मारक के चारों तरफ के क्षेत्र/भूखंडों को ‘‘प्रतिरोधक क्षेत्र‘‘ के रूप में अधिसूचित किया। यह अधिसूचना 1992 में जारी की गयी, जिसके अनुसार स्मारक के संरक्षित क्षेत्र के सभी दिशाओं में 100 मी. की दूरी को प्रतिषिद्ध क्षेत्र एवं इस सीमा के परे 200 मी. की दूरी में स्थित क्षेत्र को विनियमित क्षेत्र घोषित किया गया। 2010 में किये गये संशोधन के पहले ऐसी व्यवस्था थी कि कोई भी व्यक्ति यदि इन प्रतिषिद्ध क्षेत्र/विनियमित क्षेत्र में निर्माण/मरम्मत या खनन कार्य करना चाहता था तो उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता था। 2006 में इस प्रक्रिया को सुदृढ़ करने हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित की गयी, जिसका मुख्य कार्य प्रतिषिद्ध क्षेत्र से संबंधित अनापत्ति प्रमाण पत्र हेतु आवेदन के संबंध में महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को परामर्श देना था।
2010 में इन प्रावधानों में भी बदलाव किया गया जो प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल एवं अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम 2010 के रूप में अस्तित्व में आया। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण एवं सक्षम प्राधिकारी का गठन किया गया। वर्तमान में प्रतिषिद्ध क्षेत्र एवं विनियमित क्षेत्र में निर्माण/मरम्मत कार्य से संबंधित सभी आवेदन पत्र उस क्षेत्र के सक्षम प्राधिकारी के पास जमा किये जाते हैं और वहॉ से अग्रसारित होकर विचार के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण को भेजा जाता है।
इस अधिनियम के द्वारा कुछ अन्य महत्वपूर्ण बदलाव भी किए गए हैं। अधिनियम के अनुसार राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, पॉच पूर्णकालिक सदस्य, पांच अंशकालिक सदस्य एवं एक सदस्य सचिव की नियुक्ति की जाएगी। इनके अतिरिक्त महानिदेशक पदेन सदस्य होगें। वर्तमान में यहां एक पूर्णकालिक सदस्य एवं दो अंशकालिक सदस्य हैं।
अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि सक्षम प्राधिकारी का स्तर राज्य सरकार में आयुक्त या पुरातत्व निदेशालय के निदेशक या केन्द्रीय सरकार में निदेशक के समकक्ष होना चाहिए इसके नीचे के स्तर का नहीं। सक्षम प्राधिकारियों की नियुक्ति राज्य सरकार की सहमति एवं परामर्श से की जाएगी।