सामान्य ज्ञान

महारत्न - महारत्न का खिताब पाने की योग्यता के लिए एक कंपनी का वर्ष में औसत कारोबार 20 हजार करोड़ रुपए होना चाहिए जो तीन साल पहले 25 हजार करोड़ रुपए निर्धारित किया गया था। कंपनी का औसत वार्षिक कुल मूल्य 10 हजार करोड़ रुपए होना चाहिए।
महारत्न का खिताब वृहद केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम -सीपीएसई को अपने अभियान का विस्तार करने और वैश्विक के रूप में उभरने की ताकत प्रदान करता है। यह दर्जा उन फर्मों के बोर्डों को जिनकी वर्तमान निवेश सीमा एक हजार करोड़ रुपए है को बिना सरकार की मंजूरी के तय सीमा के खिलाफ 5 हजार करोड़ रुपए का निवेश करने का फैसला लेने का अधिकार प्रदान करता है। महारत्न फर्में अब अपनी परियोजना के कुल मूल्य के 15 फीसदी हिस्से तक निवेश करने के लिए मुक्त होंगी, परंतु यह निवेश 5 हजार करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा से अधिक नहीं होगा।
नवरत्न- केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसई) निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने पर नवरत्न का दर्जा प्रदान करने के लिए विचार किए जाने के पात्र होते हैं- अनुसूची अ और मिनीरत्न श्रेणी -1 का दर्जा प्राप्त करने के बाद। पिछले पांच वर्षों के दौरान कम से कम तीन उत्कृष्ट या बहुत अच्छा होने की रेटिंग (एमओयू) प्राप्त करना।
नवरत्न का खिताब सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) को 1 हजार करोड़ या एक परियोजना में उसके कुल मूल्य का 15 फीसदी तक बिना सरकारी मंजूरी के निवेश करने का क्षमता प्रदान करता है। एक साल में ऐसी कंपनियां कुल मूल्य का 30 फीसदी तक खर्च कर सकती हैं परंतु यह एक हजार करोड़ रुपए से अधिक नहीं होना चाहिए। ये कंपनियां संयुक्त उद्यम, गठबंधन और विदेशी सहायक के रूप में प्रवेश का भी लाभ उठाती हैं।
मिनीरत्न श्रेणी- मिनीरत्न श्रेणी का खिताब पाने के लिए सीपीएसई को पिछले तीन सालों में लगातार लाभ कमाना चाहिए, इन तीन वर्षों में से किसी एक में कम से कम 30 करोड़ रुपए या इससे अधिक का पूर्व कर लाभ प्राप्त होना चाहिए और एक सकारात्मक मूल्य होना चाहिए। द्वितीय श्रेणी के लिए सीपीएसई को लगातार तीन वर्षों तक लाभ कमाना चाहिए और सकारात्मक कुल मूल्य होना चाहिए।
मिनीरत्न कंपनियां कुछ शर्तों पर संयुक्त उद्यमों में तब्दील, सहायक कंपनियां रखना और विदेशों में कार्यालय स्थापित कर सकती हैं। यह पद पीएसई को तब मिलता है जब उसने निरंतर तीन वर्षों तक लाभ कमाया हो या उसका शुद्ध लाभ 30 करोड़ हो या तीन वर्षों में से किसी एक में इससे अधिक लाभ कमाया हो। द्वितीय श्रेणी की मिनीरत्न कंपनियां सरकार की मंजूरी के बिना 300 करोड़ रुपए या अपने मूल्य का 50 फीसदी तक जो भी कम हो पूंजी व्यय की स्वायत्ता रखती हैं।