सामान्य ज्ञान

आयोलाइट
21-Aug-2020 2:52 PM
आयोलाइट

आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है। इसे हिन्दी में  काका नीली  के नाम से जाना जाता है। यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है। । इस उपरत्न का संबंध शरीर के सहस्रार चक्र से है। सहस्रार चक्र का रंग बैंगनी होता है।  इसलिए इस उपरत्न का संबंध इस चक्र से है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन व्यक्तियों का सहस्रार चक्र कमजोर है और याद्दाश्त कमजोर है वह आयोलाइट उपरत्न को धारण कर सकते हैं।

प्राचीन समय में आयोलाइट एक आकर्षक रत्न के रुप में मशहूर था। प्राचीन काल में नाविकों द्वारा इस उपरत्न का प्रयोग समुद्र में कम्पास के रुप में दिशा निर्धारण में किया जाता था। इसकी मदद से वह दूर देशों की यात्रा करते थे और अपने गंतव्य तक पहुंचते थे। नाविकों ने यह देखा कि जब आयोलाइट को उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में आकाश में देखा जाता है तब वह विभिन्न प्रकार की नीली आभा लिए बैंगनी रंग की तरंगें छोड़ता है। इससे उन्हें दिशा का ज्ञान हो जाता था। पुराने समय में यह धारणा थी कि इस उपरत्न को यदि कलाकार धारण करता है तो उसकी रचनात्मक क्षमता का अत्यधिक विकास होता है।

आयोलाइट धारण करने से गले के विकार दूर होते हैं। नसों में यदि सूजन है तब इस उपरत्न को धारण करने से लाभ मिलता है। त्वचा विकारों से छुटकारा दिलाने में यह उपरत्न उपयोगी है। शरीर पर छाले अधिक पड़ते हों तो इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति को छालों से निदान मिलती है। यह बुद्धि को तीव्र करता है।


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