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तरह-तरह की बांसुरी
26-Jul-2020 12:09 PM
तरह-तरह की बांसुरी

बांसुरी एक ऐसा वाद्य है जो पूरी दुनिया में मिलता है। दुनिया की सबसे पुरानी बांसुरी 35 हजार साल पुरानी बताई जाती है। पाषाण काल में इंसान बांसुरी गिद्ध की हड्डी से बनाते थे। दुनिया भर में अलग-अलग तरह से बांसुरी बनती है और धुनों का जादू एक से बढ़ कर एक।

यह दुनिया का इकलौता ऐसा साज है जो अफ्रीका से लेकर एशिया तक दुनिया के हर देश में पसंद किया जाता है। जर्मनी में बच्चे सामने से बजाने वाली बांसुरी (पहाड़ी बांसुरी जैसी) बजाना सीखते हैं तो तुर्की में बच्चे ने नाम की बांसुरी बजाते हैं। आयरलैंड में टिन की बांसुरी बजाई जाती है। भारत में बांसुरी को कृष्ण की मुरली कहा जाता है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण इतनी मीठी बांसुरी बजाते थे कि ग्वाल बाल, गायें सब कुछ भूल उसकी धुन में मगन हो जाते थे।  बौद्ध भिक्षु बांसुरी का उपयोग धार्मिक समारोहों और गाय बैल चराने के लिए करते थे। 

कई तरह की बांसुरियां होती हैं। लंबी जर्मन बांसुरी, ऊंची टोन वाली बांसुरी। कुछ बांसुरी को  होठों के बीच में रख कर बजाया जा सकता है कुछ होंठों पर रख कर फूंक से बजाई जाती हैं। बाल्कन देशों में कावेल नाम की, दक्षिण अमेरिका में क्वेना, अफ्रीका की पेउल है या फिर चौड़े सिरे वाली जापानी बांसुरी शाकुहाची काफी लोकप्रिय हैं।  जर्मनी में सामने से बजाई जाने वाली ब्लॉकफ्लूट मशहूर है। वहीं आयरलैंड में टिन व्हिसल नाम की बांसुरी है। 

अफ्रीकी बांसुरी पेउल को बजाना काफी कठिन है। सीधी सादी मेलोडी बजाने में भी कई साल लग जाते हैं। जापानी बांसुरू शाकुहाची सीखने की तकनीक थोड़ी आसान है। 


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