सामान्य ज्ञान

चंद्रगुप्त प्रथम के बाद समुद्रगुप्त मगध के सिंहासन पर बैठा । उसका समय भारतीय इतिहास में दिग्विजय नामक विजय अभियान के लिए प्रसिद्व है। समुद्रगुप्त ने मथुरा और पद्मावती के नाग राजाओं को पराजित कर उनके राज्यों को अपने अधिकार में ले लिया । उसने वाकाटक राज्य पर विजय प्राप्त कर उसका दक्षिणी भाग, जिसमें चेदि, महाराष्ट्र राज्य थे, वाकाटक राजा रुद्रसेन के अधिकार में छोड़ दिया था । उसने पश्चिम में अर्जुनायन, मालव गण और पश्चिम-उत्तर में यौधेय, मद्र गणों को अपने अधीन कर, सप्तसिंधु को पार कर वाल्हिक राज्य पर भी अपना शासन स्थापित किया । समस्त भारतवर्ष पर एकाधिकार कायम कर उसने दिग्विजय की । समुद्र गुप्त की यह विजय-गाथा इतिहासकारों में प्रयाग प्रशस्ति के नाम से जानी जाती है ।
इस विजय के बाद समुद्रगुप्त का राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विध्य पर्वत, पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी और पश्चिम में चंबल और यमुना नदियों तक हो गया था । पश्चिम-उत्तर के मालव, यौघय, भद्रगणों आदि दक्षिण के राज्यों को उसने अपने साम्राज्य में न मिला कर उन्हें अपने अधीन शासक बनाया । इसी प्रकार उसने पश्चिम और उत्तर के विदेशी शक और देवपुत्र शाहानुशाही कुषाण राजाओं और दक्षिण के सिंहल द्वीप-वासियों से भी उसने विविध उपहार लिये जो उनकी अधीनता के प्रतीक थे ।