सामान्य ज्ञान

रीयल इस्टेट (नियमन और विकास) विधेयक, 2013 को राज्यसभा में 14 अगस्त 2013 को पेश किया गया। इस विधेयक के माध्यम से एकसमान नियामक वातावरण उपलब्ध कराया गया है ताकि उपभोक्ता हितों की रक्षा हो सके, विवादों का शीघ्र निपटारा हो सके और रीयल इस्टेट क्षेत्र का क्रमबद्ध विकास सुनिश्चित हो सके।
इसका उद्देश्य उपभोक्ता हितों की रक्षा करना, रीयल इस्टेट से संबंधित लेन देन में निष्पक्षता को बढ़ावा देना और परियोजनाओं का समय पर निष्पादन सुनिश्चित करना है। इस विधेयक में अपार्टमेंट, कॉमन एरिया, कारपेट एरिया, विज्ञापन, रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट, आदि को परिभाषित किया गया है ताकि इस क्षेत्र का स्वस्थ और क्रमबद्ध विकास सुनिश्चित हो सके।
वहीं दूरसंचार, बिजली, बैंकिंग, प्रतिभूति, बीमा आदि जैसे अन्य क्षेत्रों की तरह एक विशेष नियमन इस विधेयक में शामिल किया जा रहा है जिसमें सुधारात्मक और रोकथाम संबंधी उपाय शामिल किए गए हैं। विधेयक में रीयल इस्टेट क्षेत्र के एजेंटों के पंजीकरण का प्रस्ताव किया गया है. इससे मनी लाउंडरिंग की गतिविधियों की रोकथाम हो सकेगी.
इसके अलावा प्रोमोटरों के लिए सभी परियोजनाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर उपभोक्ता हितों की रक्षा करने का उपाय किया गया है। साथ ही इस विधेयक से परियोजनाओं से संबंधित लेन देन में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। इस विधेयक में रीयल इस्टेट प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण के द्वारा एक नियामक तंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। इससे प्रोमोटर खरीदार और रीयल इस्टेट एजेंटों के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण हो सकेगा।
प्रस्तावित विधेयक आवासीय रीयल इस्टेट के लिए लागू होगा, जैसे आवास और आवास के लिए इस्तेमाल में आने वाला कोई अन्य स्वतंत्र भू-खंड। हालांकि यह विधेयक उस भू-खंड के लिए लागू नहीं होगा, जो एक हजार वर्गमीटर से अधिक हो अथवा उस पर 12 से अधिक अपार्टमेंट बनाने का प्रस्ताव हो। इस विधेयक में अपार्टमेंट, कॉमन एरिया, कारपेट एरिया, विज्ञापन, रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट, आदि को परिभाषित किया गया है ताकि इस क्षेत्र का स्वस्थ और क्रमबद्ध विकास सुनिश्चित हो सके।
प्रस्तावित विधेयक में प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में एक अथवा एक से अधिक रीयल इस्टेट नियामक प्राधिकरण स्थापित करने अथवा सरकार द्वारा निर्धारित कार्यकलापों, शक्तियों और उत्तरदायित्वों के साथ दो अथवा अधिक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक प्राधिकरण स्थापित करने का विचार किया गया है। इसमें न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रस्ताव किया गया है, जो विभिन्न पक्षों के बीच विवादों का निपटारा कर सकें और जुर्माना तथा ब्याज का निर्धारण कर सके।
विधेयक में किसी प्रकार की अचंल संपत्ति की बिक्री के इच्छुक रीयल इस्टेट एजेंटों और रीयल इस्टेट परियोजनाओं का पंजीकरण अनिवार्य बनाया गया है।
विधेयत में रीयल इस्टेट अपीलीय न्यायधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव है। इसमें राज्य सरकारों द्वारा आदेशों, निर्णयों और प्राधिकरण तथा सक्षम न्यायिक अधिकारी के निर्देशों पर सुनवाई के लिए रीयल इस्टेट अपीलीय न्यायधिकरण की स्थापना की बात कही गई है। अपीलीय न्यायधिकरण की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के निवर्तमान या सेवानिवृत न्यायाधीश करेंगे, इसमें एक न्यायिक और एक प्रशासनिक या तकनीकी सदस्य होगा।