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हम अंग्रेज़ों के ज़माने के कानून हैं..
29-Aug-2021 5:09 PM
हम अंग्रेज़ों के ज़माने के कानून हैं..

सुप्रीम कोर्ट ने अभी महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक पत्रकार की याचिका पर जिला प्रशासन का यह आदेश खारिज कर दिया जिसमें इस पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता को जिला बदर किया गया था। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में अमरावती में पुलिस और प्रशासन से मिलकर पत्रकार रहमत खान को अमरावती शहर या अमरावती ग्रामीण जिले में एक साल तक न आने-जाने का आदेश दिया था। जिला बदर के इस आदेश के खिलाफ यह पत्रकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और अदालत ने सरकार के इस आदेश को खारिज करते हुए कहां कि किसी व्यक्ति को देश में कहीं भी रहने या स्वतंत्र रूप से घूमने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

लोगों को याद होगा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं या राजनीतिक कार्यकर्ताओं को, मजदूर नेताओं को, जिला बदर करने को जिला प्रशासन और पुलिस एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। देश के तकरीबन सभी राज्यों में प्रशासन जिला बदर के अंग्रेजों के समय से चले आ रहे कानून को डराने के लिए भी इस्तेमाल करता है और अपने को नापसंद लोगों को जिले से निकाल देने की एक ऐसी सजा देता है, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना हर किसी के बस का नहीं रहता। छत्तीसगढ़ में कई दशक पहले पीयूसीएल नाम के मानवाधिकार संगठन के एक बड़े कार्यकर्ता राजेंद्र सायल ने इस बात को कई जगह उठाया था कि जिला बदर करने का कानून संविधान में बताए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। उन्होंने कई मंचों पर इस बात को उठाया था, और इस बारे में लिखा भी था। लेकिन पुलिस और प्रशासन को प्रतिबंध के सारे तौर-तरीके बहुत सुहाते हैं क्योंकि उन्हें आसानी से लादा जा सकता है, और सत्तारूढ़ नेताओं को उनके फायदे को गिनाया जा सकता है। दूसरी तरफ सत्तारूढ़ नेता पुलिस और प्रशासन की मदद से अपनी राजनीति चलाते हैं और इसलिए वे तमाम किस्म के प्रतिबंधों की प्रशासन की पहल के हिमायती भी रहते हैं।

इस प्रतिबंध को ही देखें तो अगर कोई व्यक्ति किसी जिले में वहां के लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन जाता है तो उसे उस जिले से बाहर रहने के लिए पर्याप्त कारण मानते हुए उसे जिला बदर कर दिया जाता है। अब कुछ देर के लिए, बहस के लिए यह मान भी लें कि कोई व्यक्ति एक जिले में इतना बड़ा गुंडा हो जाता है, अपराधी हो जाता है कि वहां के लोगों को उससे खतरा रहता है, और उसे जिले से बाहर निकाल देना जिले की हिफाजत के लिए जरूरी लगता है। ऐसे में सवाल यह है कि जो एक जिले के लिए खतरा है उसे उस जिले से निकालकर उसे दूसरे जिले पर खतरा बनाकर क्यों डालना चाहिए? और फिर जिले की सुरक्षा तो अधिकारियों का जिम्मा है, कोई एक व्यक्ति इतना खतरनाक हो सकता है कि वह उस जिले से निकाल देने के लायक हो जाए? दिलचस्प बात यह है कि अभी जिस व्यक्ति को अमरावती से जिला बदर किया गया था उसने सरकार में कई तरह की सूचना के अधिकार की अर्जियां लगाई थीं और कई शैक्षणिक संस्थाओं और मदरसों में हुई आर्थिक अनियमितता के बारे में जानकारी मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट में रहमत खान नाम के इस कार्यकर्ता ने तर्क दिया कि उसके खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि उसने सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को खत्म करने और अवैध गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए कदम उठाया था। उसका कहना है कि कलेक्टर और पुलिस से उसने ऐसे दुरुपयोग की जांच का अनुरोध किया था और इसके बाद इन संस्थाओं से जुड़े लोगों ने उसके खिलाफ एक रिपोर्ट लिखाई थी।

अमरावती जिला प्रशासन और पुलिस का यह रुख बताता है कि अफसर अपने अधिकारों का कैसा बेजा इस्तेमाल करते हैं, और हो सकता है कि राजनीतिक ताकतें भी ऐसे भ्रष्टाचार को बचाने के पीछे रहती हों। पुलिस और सत्तारूढ़ नेताओं के बीच का गठबंधन पूरे देश के हर राज्य में इतना खतरनाक हो चुका है कि अभी दो-चार दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ एक टिप्पणी भी की है। छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस जीपी सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ऐसी बहुत सी बातें कहीं। अदालत ने देश के कई राज्यों के ऐसे मामलों के बारे में कहा कि जब कोई सरकार जब कोई पार्टी सत्ता में आती है तो पिछली सरकार के करीबी अफसरों के खिलाफ कई तरह के मामले दर्ज होने लगते हैं, यह हिंदुस्तान में एक नया रुख देखने में आ रहा है। देश के बहुत से राज्यों में ऐसा हो रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी को नापसंद लोगों के खिलाफ तरह-तरह के फर्जी मामले दर्ज कर लिए जाते हैं। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी जिसमें राज्य सरकार द्वारा दंगाइयों के खिलाफ दर्ज मामले वापस ले लिए गए, और उसके लिए हाईकोर्ट से लेने इजाजत लेने की शर्त भी पूरी नहीं की गई। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि हाईकोर्ट की इजाजत के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है।

पुलिस और प्रशासन के हथियार अंग्रेजों के वक्त बनाए गए ऐसे बहुत से कानून हैं जिन्हें कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी बताया जाता है, लेकिन जो मोटे तौर पर एक विदेशी जुल्मी सरकार के अत्याचार जारी रखने के लिए अंग्रेजों के वक्त पर बनाए गए थे। आज भी हिंदुस्तान की अफसरशाही, यहां की पुलिस उन्हें जारी रखने के पक्ष में हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ऐसे बहुत से कानूनों को खत्म करने की बात करती है, कई कानूनों को खत्म किया भी गया है, लेकिन नरेंद्र मोदी की पार्टी ही कई प्रदेशों की अपनी सरकारों में लोगों के खिलाफ बड़ी रफ्तार से राजद्रोह के मामले दर्ज करती है, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट बरसों पहले फैसला दे चुका है। अभी सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली का ही एक मामला चल रहा है जिसमें जब अदालत ने यह पूछा कि कुछ छात्रों के खिलाफ राजद्रोह का मामला कैसे दर्ज किया गया, तो पुलिस ने कुछ टीवी चैनलों का नाम लिया कि वहां वीडियो देखकर पुलिस ने उन पर राजद्रोह का मामला लगाया। जब इन चैनलों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने ट्विटर पर कुछ ट्वीट में यह वीडियो देखकर उन्हें अपने समाचारों में दिखाया था। और जब उन ट्वीट की जांच की गई तो यह पता लगा कि उन्हें भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख ने ट्वीट किया था, और वहां से लेकर वे समाचार चैनलों में दिखाए गए, और वहां से उन वीडियो को देखकर पुलिस ने राजद्रोह के मुकदमे दर्ज कर लिए थे।

अब यह वक्त आ गया है कि पूरे देश में पुलिस और प्रशासन के ऐसे मनमानी करने के अधिकार खत्म किए जाएं, ऐसे कानून खत्म किए जाएं जिनमें कानून-व्यवस्था बनाए रखने जैसे बहुत ही अमूर्त और अस्पष्ट किस्म के बहाने गिनाकर लोगों पर कड़ी कार्यवाही की जाती है, और लंबे समय तक उन्हें परेशान किया जाता है। आज क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि किसी मामूली व्यक्ति को एक साल के लिए जिला बदर कर दिया जाए तो किस तरह वह अपने जिले के बाहर रहेगा, कैसे जिंदा रहेगा, उसे कौन काम देगा, और किस तरह उसका परिवार उसके बिना साल भर जिंदा रह सकेगा? ऐसी नौबत की सोचे बिना सिर्फ सरकारी बहाने बनाकर ऐसी कार्रवाई पूरी तरह पूरी तरह से नाजायज है और इस पर रोक लगनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा किया है जो जिला बदर करने की कार्रवाई के खिलाफ एक व्यापक टिप्पणी की है जो कि जिला बदर के बाकी मामलों में भी देशभर मैं इस्तेमाल की जा सकेगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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