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नई दिल्ली, 15 सितंबर। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि लोगों को आने वाले समय में कोरोना वायरस की खतरनाक लहर का सामना करना पड़ सकता है। इसके लिए दुनिया भर की सरकारों को सतर्क रहने और किसी भी खतरे का जवाब देने के लिए तैयार रहने को कहा गया है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडनॉम घेब्येयियस ने बुधवार को जिनेवा में एक प्रेस वार्ता में कहा, हम महामारी को समाप्त करने के लिए बेहतर स्थिति में कभी नहीं रहे।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 5-11 सितंबर के सप्ताह के दौरान, दुनिया भर में नए साप्ताहिक मामलों की संख्या पिछले सप्ताह की तुलना में 28 प्रतिशत घटकर 3.1 मिलियन से अधिक हो गई। नई साप्ताहिक मौतों की संख्या 22 प्रतिशत घटकर मात्र 11,000 रह गई।
ट्रेडोस ने महामारी की प्रतिक्रिया की तुलना मैराथन दौड़ से की।
उन्होंने कहा, अब कड़ी मेहनत करने और यह सुनिश्चित करने का समय है कि हम कोरोना वायरस जैसी महामारी पर जीत हासिल करेंं और अपनी सारी मेहनत का प्रतिफल प्राप्त करें।
डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम की तकनीकी प्रमुख मारिया वान केरखोव ने कहा, वर्तमान समय में दुनिया भर में वायरस बेहद तेजी से फैल रहा है। वास्तव में, डब्ल्यूएचओ को बताए जा रहे मामलों की संख्या कम है।
उन्होंने कहा, हमें लगता है कि वास्तव में हमारे द्वारा बताए जा रहे मामलों की तुलना में कहीं अधिक मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ के हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम के कार्यकारी निदेशक माइक रयान ने कहा कि महामारी के कम होने पर भी लोगों को उच्च स्तर की सावधानी बरतनी होगी।
रयान ने कहा, दुनिया एक अत्यधिक परिवर्तनशील विकसित होने वाले वायरस से लड़ रही है, जिसने हमें ढाई साल में बार-बार दिखाया है कि यह कैसे अनुकूलित हो सकता है और कैसे बदल सकता है।
(आईएएनएस)
बेंगलुरु में ढांचा चरमरा चुका है. एक तेज बारिश ने दिखा दिया कि शहर ने बीते दो दशक में हुई तरक्की की कितनी भारी कीमत चुकाई है. क्या यह शहर अब मरने लगा है?
हरीश पुल्लानूर याद करते हैं कि 1980 के दशक में उनका बचपन बेंगलुरू के पूर्वी सिरे पर येमालुर में तालाबों और छोटी झीलों के बीच गुजरा है. वहां इतवार को वह अपने चचेरे भाई-बहनों के साथ मछलियां पकड़ा करते थे.
बागों, झीलों और ठंडे मौसम वाला शहर बेंगलुरू 1990 के दशक में भारत का सबसे तेजी से उभरता शहर बना. उसने अमेरिका की सिलीकन वैली को चुनौती दी और भारत के लिए आर्थिक केंद्र बनाकर लाखों लोगों को रोजगार दिया. तभी दुनिया की कुछ सबसे बड़ी आईटी कंपनियों ने यहां डेरा डाला और अपना अरबों का कारोबार खड़ा किया.
इस तरक्की की कीमत कम नहीं थी. कंक्रीट ने हरियाली की जगह ले ली है. जंगलों और झीलों को इमारतों ने हड़प लिया है और नहरों के पानी में शहर की बढ़ती आबादी की प्यास बुझाने की क्षमता नहीं रही.
पिछले हफ्ते बेंगलुरू में बारिश हुईजिसने दशकों के रिकॉर्ड तो तोड़े ही साथ ही शहर की क्षमताएं भी तोड़ डालीं. येलामूर का इलाका कमर तक के पानी में डूबा हुआ था. भारत की सिलीकन वैली के नाम से मशहूर शहर के कई इलाकों की हालत ऐसी थी कि दुनियाभर के लोग तस्वीरें देखकर हैरान थे.
गर्मियों में पानी की कमी से परेशान रहने वाले बेंगलुरू के लोगों को अब हर मौसम में मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं. ऊपर से शहर का ट्रैफिक इतना बढ़ गया है कि सारी व्यवस्थाएं धराशायी हो रही हैं. ऐसे में मॉनसून की बारिश ने इस बात को उघाड़ कर रख दिया है कि बेंगलुरू का ढांचा चरमरा चुका हैऔर पिछले दो दशकों के बेसिरपैर के विकास ने इस इलाके की कुदरती क्षमताओं का दोहन कर उन्हें नष्ट करने का ही काम किया.
बेंगलुरू में जन्मे और अब मुंबई में रहने वाले पुल्लानूर कहते हैं, "यह बहुत, बहुत ज्यादा दुखी करने वाली बात है. पेड़ खत्म हो गए हैं. पार्क लगभग गायब हो चुके हैं. ट्रैफिक तो ऐसा है कि जैसे गर्दन दबोच ली गई हो.”
चिंतित हैं कंपनियां
जिन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कभी बेंगलुरू को अपना ठिकाना बनाया था अब वे शिकायत करने लगी हैं कि ढांचे के कारण उनका कामकाज प्रभावित हो रहा है और हालत लगातार बदतर हो रही है. इन कंपनियों का कहना है कि खराब व्यवस्था के चलते उन्हें रोजाना दसियों करोड़ डॉलर का नुकसान होता है.
बेंगलुरु में 79 टेक-पार्क हैं जिनमें लगभग 3,500 आईटी कंपनियां काम करती हैं. भारत के सबसे होनहार आईटी एक्सपर्ट और इंजीनियर यहां काम करते हैं. यहीं उनके शानदार दफ्तर हैं और मनोरंजन करने के लिए रेस्तरां, कैफे, बाजार आदि भी.
लेकिन पिछले हफ्ते जब पानी बरसा तो इन शानदार दफ्तरों तक पहुंचना दूभर हो गया. येमालुर में जेपी मॉर्गन और डेलॉयट जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर हैं जिनके इर्द-गिर्द पानी के विशाल तालाब बन गए थे. लोगों के घरों, बेडरूम तक में पानी भर गया था. करोड़पतियों को अपने विशाल और शानदार लिविंग रूम छोड़-छोड़ कर भागना पड़ा.
इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि इस बारिश के कारण नुकसान का शुरुआती जायजा ही दसियों करोड़ रुपये का है और आने वाले दिनों में यह संख्या और बढ़ती जाएगी.
असर अंतरराष्ट्रीय हुआ
इन कुछ दिनों की बारिश का असर सिर्फ बेंगलुरू पर नहीं हुआ. लोगों को चिंता है कि 194 अरब डॉलर की भारतीय आईटी इंडस्ट्री पूरी दुनिया से जुड़ी है लिहाजा असर पूरी दुनिया पर होगा. नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) के उपाध्यक्ष केएस विश्वनाथन कहते हैं, "भारत दुनियाभर की कंपनियों के लिए आईटी केंद्र है और बेंगलुरु उस केंद्र का भी केंद्र है.”
विश्वनाथन बताते हैं कि नैसकॉम 15 ऐसे नए शहरों की पहचान में जुटा है जो देश के नए आईटी हब बन सकते हैं. वह बताते हैं, "यह कोई शहरों के बीच मुकाबले की बात नहीं है. एक देश के तौर पर हम इसलिए कमाई खोना नहीं चाहते कि शहर का मूलभूत ढांचा कमजोर है.”
बारिश ने बेंगलुरू की जिस कमजोरी को उभारा है, उसकी चेतावनियां पहले से ही दी जाती रही हैं. इंटेल, गोल्डमन सैक्स, माइक्रोसॉफ्ट और विप्रो जैसी कंपनियों के संगठन आउटर रिंग रोड कंपनीज एसोसिएशन (ओरका) ने पहले भी कहा था कि शहर का मूलभूत ढांचा एक समस्या बन चुका है जिस कारण कंपनियां कहीं और भी जा सकती हैं.
ओरका के जनरल मैनेजर कृष्ण कुमार कहते हैं, "हम इसके बारे में सालों से बात कर रहे हैं. अब बात गंभीर हो चुकी है और सारी कंपनियां इससे सहमत हैं.”
1970 के दशक में बेंगलुरू का 68 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा हरियाली में ढका था. बेंगलुरू के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के टीवी रामचंद्र बताते हैं कि 1990 के दशक में यह हरियाली 45 फीसदी रह गई और 2021 में शहर के 741 वर्गकिलोमीटर में से मात्र तीन प्रतिशत हरियाला है. रामचंद्र कहते हैं, "अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2025 तक 98.5 प्रतिशत शहर सिर्फ कंक्रीट होगा.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
भारत में महिलाएं पुरुषों से और मुसलमान गैर-मुस्लिमों से हजारों रुपये कम कमा रहे हैं और इसकी वजह उनकी पहचान है. एक ताजा रिपोर्ट में इस भेदभाव पर विस्तार से बात की गई है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
भारत में महिलाएं इसलिए श्रम क्षेत्र का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं क्योंकि एक तो उन्हें पैसा बहुत कम मिलता है और उन्हें लैंगिक भेदभाव भी झेलना पड़ता है. मानवाधिकार संगठन ऑक्सफैम ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह बात कही है.
ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि भारत अगर महिलाओं को श्रम क्षेत्र में शामिल करना चाहता है तो सरकार को बेहतर वेतन, प्रशिक्षण और नौकरियों में आरक्षण जैसी सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी. ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022' शीर्षक से जारी की गई यह रिपोर्ट सुझाव देती है कि नियोक्ताओं को भी महिलाओं को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है.
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2021 में भारतीय श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 25 प्रतिशत थी. दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका में यह सबसे कम है. 2020-21 के भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 25.1 प्रतिशत महिलाएं श्रम शक्ति का हिस्सा हैं. यह 2004-05 से भी कम हो गया है जबकि 42.7 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही थीं.
रिपोर्ट कहती है कि इन वर्षों में महिलाओं का काम छोड़ जाना एक चिंता का विषय है जबकि इस दौरान भारत में तेज आर्थिक वृद्धि हुई है. बीते दो साल में कोरोना वायरस महामारी ने भी महिलाओं को बड़े पैमाने पर श्रम बाजार से बाहर कर दिया है क्योंकि नौकरियां कम हो गईं और जिन लोगों की नौकरियां इस दौरान गईं, उनमें महिलाएं ज्यादा थीं.
महिलाओं के साथ भेदभाव जारी
ऑक्सफैम इंडिया के प्रमुख अमिताभ बेहर कहते हैं कि महिलाओं का भेदभाव एक बड़ी समस्या है. एक बयान में बेहर ने कहा, "यह रिपोर्ट दिखाती है कि अगर पुरुष और महिलाएं समान स्तर पर शुरुआत करते हैं तो महिलाओं को आर्थिक क्षेत्र में भेदभाव झेलना होगा. वह वेतन में पीछे छूट जाएंगी और अस्थायी काम या फिर स्वरोजगार में भी आर्थिक रूप से पीछे छूट जाएंगी.”
रिपोर्ट के मुताबिक 98 प्रतिशत गैरबराबरी की वजह लैंगिक भेदभाव होता है. बाकी दो प्रतिशत शिक्षा और अनुभव आदि के कारण हो सकता है. रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि समाज के अन्य तबकों को भी भेदभाव झेलना पड़ता है.
पिछले महीने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महिलाओं को काम करने के लिए बढ़ावा देने की जरूरत का जिक्र किया था. एक भाषण में उन्होंने राज्यों से आग्रह किया था कि काम के घंटों को लचीला रखा जाए ताकि महिलाओं को श्रम शक्ति का हिस्सा बनाया जा सके. उन्होंने कहा था कि अपनी नारी शक्ति का इस्तेमाल किया जाए तो "भारत अपने आर्थिक लक्ष्यों तक” जल्दी पहुंच सकता है.
ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि बड़ी संख्या में महिलाएं रोजगार इसलिए नहीं कर पाती हैं क्योंकि उनके ऊपर ‘पारिवारिक जिम्मेदारियां' होती हैं और उन्हें सामाजिक नियम-कायदों को मानना पड़ता है.
भारत में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव को उजागर करती ऐसी रपटें पहले भी आती रही हैं. यह एक जाना-माना तथ्य है कि भारत में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम काम करती हैं और अधिकतर महिलाओं को कार्यस्थल पर शोषण अथवा भेदभाव से गुजरना पड़ता है. इसके अलावा एक समस्या उनकी घरेलू और सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं जो उन्हें काम करने से हतोत्साहित करती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, "पितृसत्ता के कारण ही पुरुषों के समान और यहां तक कि उनसे बेहतर क्षमता और कौशल के बावजूद महिलाएं श्रम बाजार से बाहर रहती हैं और समय के साथ इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है.”
हजारों रुपये का फर्क है
ऑक्सफैम के शोधकर्ताओं ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2004 से 2020 के बीच के सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण किया है. उन्होंने अलग-अलग तबकों को नौकरियां, वेतनमान, स्वास्थ्य, कृषि कर्ज आदि का अध्ययन किया. इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि हर महीने पुरुष महिलाओं से 4,000 रुपये ज्यादा कमाते हैं. एक गैर मुस्लिम और मुस्लिम के बीच यह अंतर 7,000 रुपये का है जबकि दलित और आदिवासी बाकी लोगों से महीनावार 5,000 रुपये कम कमाते हैं.
यह रिपोर्ट कहती है, "महिलाओं के अलावा ऐतिहासिक रूप से दमित समुदाय जैसे दलित और आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यक जैसे कि मुसलमान भी नौकरी खोजने, रोजी-रोटी कमाने और कृषि आदि क्षेत्र में कर्जा पाने के लिए भेदभाव का सामना करते हैं.” रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बेरोजगारी में सबसे ज्यादा वृद्धि (17 प्रतिशत) मुसलमानों के बीच हुई.
बेहर स्पष्ट करते हैं कि श्रम बाजार में भेदभाव का अर्थ क्या है. वह कहते हैं, "भेदभाव का अर्थ है कि समान क्षमता वाले लोगों के साथ अलग-अलग तरह का व्यवहार किया जाए और इसकी वजह उनकी पहचान या सामाजिक पृष्ठभूमि हो. महिलाओं और अन्य सामाजिक तबकों में गैरबराबरी सिर्फ गरीबी, अनुभव की कमी और शिक्षा तक उनकी कम पहुंच ही नहीं है बल्कि भेदभाव भी है.” (dw.com)
जिस तरह से रिंग में दो बॉक्सर फाइट करते हैं, बिल्कुल उसी तरह से भारत में खूंखार कुत्तों को लड़ाया जा रहा है. इस गैरकानूनी खेल को लोगों ने पैसे और शोहरत की लालसा में पेशेवर बना दिया है. लड़ाई में कुत्ते मर भी रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
छोटे से गांव, गली और मोहल्लों, बड़े शहरों के फ्लाईओवर के नीचे और रात के अंधेरे में एक ऐसा खूनी खेल हो रहा है जिसके बारे में भारत के अधिकतर लोगों को बहुत जानकारी नहीं है. ये बहुत ही खतरनाक और जानलेवा खेल है. यहां इंसान आपस में नहीं भिड़ते बल्कि कुत्तों को लड़ाया जाता है. वह भी कुछ मिनटों के लिए नहीं बल्कि तीन-तीन घंटों के लिए, कुत्ते लड़ते रहते हैं. वे तब तक लड़ते हैं जब तक वे हार नहीं मान जाए या फिर सामने वाले कुत्तों उसे चीर कर मार ना डाले. कई बार कुत्ते इतने जख्मी हो जाते हैं कि उनकी मौत कुछ दिनों बाद हो जाती है.
कुत्तों की लड़ाई या डॉगफाइटिंग को देखने के लिए कई बार पूरा का पूरा गांव ही शामिल हो जाता है और कई बार छोटे स्तर पर आयोजन होता है. हैरानी की बात यह है कि इस तरह की लड़ाई अवैध है और अक्सर लोग बेजुबानों का लड़ता देख मजा लेते हैं. क्या पढ़े लिखे, क्या अनपढ़ और क्या बुजुर्ग यहां तक कि 11वीं और 12वीं तक के छात्र इस तरह के खेल को देखने के लिए पहुंचते हैं.
पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) और दिल्ली के गैर लाभकारी संगठन फौना पुलिस ने एक साल के भीतर ऐसे खेलों की पड़ताल की और कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. कुत्तों के इन लड़ाइयों में कुत्तों को सट्टे के लिए लड़ाया जाता है. लड़ने वाले कुत्तों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह अधिक से अधिक खूंखार हो सके और अपने प्रतिद्वंद्वी जानवर को हमलाकर जमीन पर गिरा दे या फिर उसे मौत के घाट उतार दे.
पेटा इंडिया ने अपनी पड़ताल में पाया कि इन लड़ाइयों में कुत्तों को गंभीर चोटें लगती हैं. पेटा का कहना है कि यह एक तरह का खूनी खेल है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्र शासित राज्यों में अवैध रूप से आयोजित किया जाता है. पेटा ने कुछ वीडियो अपने सोशल मीडिया साइट पर भी पोस्ट किए हैं, जिनमें कुत्तों को लहूलुहान होता दिखाया गया है. कुत्ते एक दूसरे को मरने मारने पर आमादा नजर आ रहे हैं.
इस तरह की डॉगफाइटिंग का आयोजन छोटी से लेकर बड़ी चैंपियनशिप तक के रूप में हो रहा है. और विजेता कुत्ते के मालिक को इनाम के तौर नकद तो मिलता ही है, साथ ही वह जीत के बाद आगे और लड़वाने की चुनौती पेश करता है. जब एक बार कुत्ता जीत जाता है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और उसको हाथोहाथ कोई खरीददार मिल जाता है.
पंजाबी गानों का संबंध
दिल्ली के गैर लाभकारी संगठन फौना पुलिस के अभिनव श्रीहरन ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस तरह की डॉगफाइट का चलन पंजाबी गायकों के गाने के बाद से तेजी से फैला जिसमें आक्रामक कुत्तों को दिखाया जाता और हिंसक दिखने वाले कुत्तों को ग्लैमरस अंदाज में पेश किया जाता.
उन्होंने कहा, "हम एक साल के भीतर 1,100 से लेकर 1,200 तक डॉगफाइट के वीडियो और 1,200 से लेकर 1,300 तक वीडियो जंगली जानवरों के शिकार के लेकर सामने आए हैं."
श्रीहरन कहते हैं कि कई बार कुत्ते लड़ाने वाले शौक के लिए वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं या फिर अपने ग्रुप में उसे साझा करते हैं. उनका कहना है कि लोग ऐसा अपना रुतबा बढ़ाने के लिए करते हैं.
पेटा का कहना है कि कुत्तों को लड़ाने के साथ-साथ लोग जानवरों पर दांव भी लगाते हैं और कुछ लोग तो सिर्फ इस क्रूरता को देखने के लिए जमा होते हैं. कई बार कुत्ते आपस में लड़ते हुए मारे जाते हैं. कुत्तों को लड़ाने के करीब 2,500 वीडियो पेटा इंडिया और फौना पुलिस को मिले हैं.
श्रीहरन का दावा है कि उनके पास ऐसे भी वीडियो हैं जो इन कुत्तों द्वारा शिकार कराने के हैं. उन्होंने बताया कि रेसिंग कुत्तों और बुली कुत्तों का इस्तेमाल पैंगोलिन, एशियाई सिवेट, लोमड़ी, तेंदुए और जंगली सूअर और अन्य जीवों के शिकार के लिए किया जा रहा है जो कि वन्य जीवन (संरक्षण),अधिनियम 1972 का गंभीर उल्लंघन है.
पेटा इंडिया के वेटनरी पॉलिसी एडवाइजर डॉ. नितिन कृष्णगौड़ा के मुताबिक, "इन डॉगफाइटर्स द्वारा गुप्त ठिकानों का चयन किया जाता है. वे वहां कुत्तों की लड़ाई करवाने व आपस में खूनी लड़ाई के लिए उकसाते हैं."
भारत में कैसे हुई शुरुआत
वैसे तो भारत में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत जानवरों को एक दूसरे से लड़ाने के लिए उकसाना अवैध है, लेकिन फिर भी देश भर में इस तरह के आयोजन होते रहते हैं. पिटबुल को इस तरह की लड़ाइयों में इस्तेमाल के लिए पाला जाता है या भारी जंजीरों में बांधकर हमला करने वाले कुत्तों के रूप में रखा जाता है. जिस कारण उन्हें पूरे जीवन शोषण का सामना करना पड़ता है.
श्रीहरन डीडब्ल्यू से कहते हैं कि चीन और कोरिया जैसे देशों में इस तरह की डॉगफाइट हो रही है और वहां की चैंपियन ब्लड लाइन (चैंपियन कुत्तों के बच्चे) को अवैध तरीके से भारत लाया जा रहा है. ऐसे कुत्तों को प्रजनन कर के बेचा जा रहा है. वे कहते हैं कि ऐसे कुत्तों को हमलावर प्रवृत्ति के साथ ही बड़ा किया जा रहा है और डर इस बात का है कि कहीं ये कुत्ते किसी के घर में पालतू जानवर के रूप में आ जाएं तो एक गंभीर खतरा खड़ा हो सकता है.
पेटा ने अपनी पड़ताल में पाया कि कुत्तों की लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले पाकिस्तानी "बुली" कुत्तों और अन्य मिश्रित नस्ल के कुत्तों को एशियाई पाम सिवेट, लोमड़ियों, तेंदुओं और जंगली सूअरों को मारने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. इस गैरकानूनी काम के लिए कुत्तों के बच्चों को छोटे से ही एक दूसरे से लड़ने के लिए उकसाया जाता है.
पिटबुल पालने का चलन बढ़ा
भारत में पिटबुल कुत्तों को पालने का चलन हाल के सालों में बढ़ा है. खासकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोग अपनी शान बढ़ाने के लिए इसे पालते हैं लेकिन कई बार इन कुत्तों के हमले जानलेवा भी साबित हुए हैं. एक साल के भीतर पिटबुल कुत्ते के हमले के कई मामले सामने आ चुके हैं. इसी साल लखनऊ में एक बुजुर्ग महिला की मौत पालतू पिटबुल के हमले के बाद हो गई थी, इससे पहले मेरठ में भी पिटबुल ने एक लड़की पर हमला कर दिया था जिसमें वह गंभीर रूप से जख्मी हो गई थी. पंजाब में 13 साल के लड़के के कान को इस प्रजाति के कुत्ते ने काट लिया था और उसके बाद हरियाणा के गुरुग्राम में एक महिला पर इस खतरनाक कुत्ते ने हमला कर दिया था.
लखनऊ की घटना के बाद कई लोग अब पिटबुल को घर पर रखना नहीं चाहते हैं और वे कुत्तों की देखभाल करने वाले एनजीओ के पास अपने पालतू जानवर को छोड़ रहे हैं. नोएडा के एक एनजीओ हाउस ऑफ स्ट्रे एनिमल्स के पास पिछले दो महीनों में पांच से छह मालिक अपने पिटबुल कुत्ते छोड़ गए हैं.
पेटा इंडिया द्वारा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (कुत्ता प्रजनन और विपणन) नियम, 2017 में बदलाव कर इस प्रकार की लड़ाइयों के लिए इस्तेमाल होने वाले पिटबुल और अन्य "बुली" नस्लों के कुत्तों के पालन और प्रजनन पर रोक लगाने की मांग की गई है.
श्रीहरन कहते हैं कि कुछ साल पहले तक डॉगफाइट सिर्फ छोटे मोहल्लों में होती थी लेकिन इसका विस्तार हुआ है और यह महाराष्ट्र और चेन्नई जैसे राज्यों तक जा पहुंचा है. जीतने वाले कुत्ते के मालिक को हजार रुपये से लेकर लाखों रुपये तक इनाम में मिल रहा है और आरोप लग रहे हैं कि तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस और प्रशासन इस गैर कानूनी खेलों पर लगाम नहीं कस पा रही है.
श्रीहरन का कहना है कि उन्हें कई बार डॉगफाइट कराने वालों से धमकी मिल चुकी है लेकिन वह देश में बढ़ते इस खतरनाक खेल के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे. (dw.com)
मौसमी आपदाएं दुनिया भर में बीमा कंपनियों की हालत खस्ता कर रही हैं. ताजा मामला भारत की आईटी राजधानी बेंगलुरू का है, जहां करोड़ों रुपये के इंश्योरेंस क्लेम लाइन में हैं.
तीन दिन की भारी बारिश ने भारत की आईटी राजधानी बेंगलुरू को बाढ़ में डुबो दिया. पांच सितंबर को शुरू हुई बारिश ने बेंगलुरू की बेकार अर्बन प्लानिंग को उजागर कर दिया. पॉश इलाके और दिग्गज आईटी कंपनियों के कॉरिडोर भी बाढ़ से नहीं बच सके. बाढ़ ने आम लोगों के साथ साथ लग्जरी गाड़ियों और घरों को भी नुकसान पहुंचाया. बाढ़ का पानी उतरने के हफ्ते भर बाद अब नुकसान की कीमत आंकी जा रही है.
38 साल की प्रभा देव कहती हैं, "जब भारी बारिश शुरू हुई तो मेरी कार बेसमेंट में खड़ी थी. बीमा कंपनी के स्टाफ ने चार दिन तक कार का सर्वे किया, इंश्योरेंस क्लेम को प्रोसेस करने से पहले वे नुकसान का आंकलन करने के लिए गाड़ी को टो कर गराज ले गए." तब से इंतजार कर रही प्रभा कहती हैं, "चेक करने के बाद मुझे बताया गया कि कार मरम्मत के लायक भी नहीं रह गई है."
ऐसे में बीमा अगर सिर्फ रोड एक्सीडेंट से जुड़ा हो तो एक पाई भी नहीं मिलेगी, क्योंकि बाढ़ के कारण आई मैकेनिकल खराबी किसी हादसे का हिस्सा नहीं हैं. प्रभा अब यही उम्मीद कर रही हैं कि कोई उनकी गाड़ी को किसी तरह ठीक कर दे.
प्रीमियम गाड़ियों का कबाड़
इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि फाइनल एस्टीमेट का पता क्लेम फाइल करने के कुछ हफ्तों बाद ही चलेगा. कई बीमा कंपनियों का कहना है कि उनके पास क्लेम की सैकड़ों रिक्वेस्ट आ चुकी हैं. आने वाले दिनों में यह संख्या बढ़ने का अनुमान है.
आईसीआईसीआई लॉम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के संजय दत्ता कहते हैं, "प्रीमियम सेगमेंट व्हीकल्स जैसे, बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज और आउडी जैसी गाड़ियों के हाई वैल्यू क्लेम भी आए हैं. 13 सितंबर तक आए क्लेम के आधार पर अनुमान लगाए तो बेंगलुरू की बाढ़ की प्रीमियम गाड़ियों को ही 100 करोड़ का नुकसान हुआ है." दत्ता कहते हैं कि आने वाले दिनों में महंगी गाड़ियों से जुड़े 100 क्लेम और आने का अनुमान है.
आको जनरल इंश्योरेंस के मुताबिक उसके पास बाढ़ से जुड़े 200 से ज्यादा क्लेम आ चुके हैं. इनमें से 20 फीसदी मामले ऐसे हैं जहां गाड़ियां पूरी तरह बेकार हो चुकी हैं. नाम नहीं बताने की शर्त पर रिलायंस जनरल इंश्योरेंस के अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि बाढ़ के बाद एक हफ्ते के भीतर उनके पास पांच करोड़ रुपये के क्लेम फाइल किए जा चुके हैं.
बजाज आलियांस के मुताबिक बेंगलुरू में मानसून के चलते प्रापर्टी क्लेमों में 100 फीसदी इजाफा हुआ है. साथ ही मोटर क्लेम भी दोगुने हो गए हैं. ये सारी, भारत की बड़ी बीमा कंपनियां हैं.
जलवायु परिवर्तन और आर्थिक नुकसान
स्विट्जरलैंड की दिग्गज बीमा कंपनी स्विस रे के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान लगातार बढ़ता जा रहा है. सिर्फ बाढ़ को ही देखें तो 1991 से 2000 के बीच पूरी दुनिया को 30 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. लेकिन बीते दशक में 2011 से 2020 के बीच अकेले बाढ़ ने 80 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया है.
2021 में जर्मनी के कुछ इलाकों में भीषण बाढ़ आई. जर्मनी की सबसे बड़ी बीमा कंपनियों में गिनी जाने वाली म्यूनिख रे के मुताबिक, 2021 में दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 280 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. वैज्ञानिकों और बीमा कंपनियों का दावा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हर साल नुकसान बढ़ता चला जाएगा. यूरोप, अमेरिका व चीन के सूखे और पाकिस्तान की बाढ़ के कारण 2022 के नौ महीनों में ही नुकसान 280 अरब डॉलर के पार जा चुका है.
महंगा और कई शर्तों वाला बीमा
जर्मनी की आर घाटी में 2021 की बाढ़ ने कुछ बीमा कंपनियों को पांच से सात अरब यूरो का नुकसान पहुंचाया. बाढ़ के बाद देश में नया प्रॉपर्टी इंश्योरेंस महंगा हो गया. बीमा पॉलिसी में कई तरह की शर्तें जुड़ गईं. मसलन, घर की आग, जंगल की आग, बाढ़, ओलावृष्टि, बिजली गिरना आदि आदि. एक दशक पहले तक जो बीमा पॉलिसी काफी कुछ कवर कर लेती थी अब वह विशेष बिंदुओं पर आधारित हो गई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले बरसों में जलवायु संबंधी नुकसान से जुड़ा बीमा महंगा हो जाएगा, फिर भले ही यह प्रॉपर्टी का हो या किसी और चीज का.
ओएसजे/एनआर (रॉयटर्स, एपी)
अजरबाइजान और अर्मेनिया के बीच हुए ताजा संघर्ष में कई दर्जन अर्मेनियाई सैनिक और बड़ी संख्या में अजेरी सैनिकों की मौत हुई है. 2020 में दोनों देशों ने जंग लड़ी थी जिसके बाद इसे अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई कहा जा रहा है.
अब तक मिली जानकारी के मुताबिक दोनों तरफ के कम से कम 100 लोगों की मौत हो चुकी है. दोनों देशों के बीच दक्षिणी काकेशस में मौजूद पूर्व सोवियत देश अर्मेनिया और अजरबाइजान कई दशकों से नागोर्नो काराबाख को लेकर लड़ रहे हैं. नागोर्नो काराबाख एक पहाड़ी इलाका है जो अजरबाइजान का हिस्सा था लेकिन 2020 तक यह जगह अर्मेनियाई लोगों से आबाद और पूरी तरह से उन्हीं के नियंत्रण में थी.
2020 में करीब छह हफ्ते तक चली लड़ाई के बाद अजरबाइजान ने नागोर्नो कारबाख और उसके आसपास के इलाकों पर अधिकार जमा लिया. यह लड़ाई रूस की मध्यस्थता में युद्ध विराम के बाद रुकी हालांकि उसके बाद भी वहां अकसर छोटे छोटे संघर्ष होते रहते हैं. यह हालत तब है जबकि रूसी शांति सैनिकों की वहां तैनाती है.
फिलहाल जो संघर्ष छिड़ा है उसमें अर्मेनिया का कहना है कि कई अर्मेनियाई शहरों पर रात में हमले किये गये हैं. दूसरी तरफ अजरबाइजान का कहना है कि वह अर्मेनिया के उकसावे का जवाब दे रहा है.
अजरबाइजान का कहना है कि वह उकसावे का जवाब दे रहा हैअजरबाइजान का कहना है कि वह उकसावे का जवाब दे रहा है
अभी लड़ाई क्यों हो रही है?
यह समय काफी अहम है क्योंकि इसके पहले अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच समझौता कराने में रूस सबसे ज्यादा असरदार रहा है. रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर क्रेमलिन ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रपति पुतिन दक्षिणी काकेशस में हिंसा को रोकने के लिये हर संभव कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि यूक्रेन की लड़ाई ने इलाके में शांति स्थापित करने वाले के रूप में रूस की स्थिति को थोड़ा कमजोर किया है. इस वजह से अजबाइजान को और ज्यादा इलाकों पर अपना दावा करने का मनोबल मिला होगा.
चाथम हाउस थिंक टैंक में रूस और यूरेशिया प्रोग्राम के एसोसियेट फेलो लॉरेंस बोएर्स का कहना है, "मेरे ख्याल से अजरबाइजान में ऐसी भावना उमड़ रही है कि यही समय है जब वह ताकत और अपनी सैन्य बढ़त का इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा हासिल कर सकता है."
अजरबाइजान और अर्मेनिया में शांति समझौता कैसा हो इसे लेकर काफी असहमति है. एक तरफ अजरबाइजान नागोर्नो काराबाख के राजनीतिक ओहदे को खत्म कर अर्मेनिया को वहां किसी तरह की भूमिका निभाने से रोकना चाहता है. दूसरी तरफ अर्मेनियाई अधिकारी स्थानीय अर्मेनियाई लोगों के अधिकार सुनिश्चित करना चाहते हैं.
जोखिम क्या है?
अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच एक और युद्ध होने से रूस और तुर्की जैसे बड़ी ताकतों के इसमें उतरने की आशंका है. इसका नतीजा पूरे दक्षिणी काकेशस में अस्थिरता के रूप में सामने आ सकता है. यह इलाका पाइपलाइनों के लिये एक प्रमुख गलियारा है जहां से तेल और गैस की सप्लाई होती है. ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा की सप्लाई में पहले से ही बाधा आ रही है, एक और सप्लाई लाइन खतरे में घिर सकती है.
रूस का अर्मेनिया के साथ रक्षा गठजोड़ है और वह वहां एक सैन्य अड्डा भी चलाता है. इधर तुर्की अजरबाइजान में तुर्क मूल के लोगों को राजनीतिक और सैन्य समर्थन देता है. अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच जंग और ज्यादा शांति सैनिकों की तैनाती की जरूरत पैदा करेगी. वो भी ऐसे समय में जब रूस उसे मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है.
रूस खुद ही एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और आने वाले दिनों में और उसके लिये उसे आने वाले दिनों में और ज्यादा सैनिकों की जरूरत पड़ सकती है.
यूरोपीय संघ की भूमिका
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस अलग थलग पड़ गया है और इसका असर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिख रहा है. यूरोपीय संघ ने अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच सुलह कराने की कुछ कोशिशें की हैं इनमें शांतिवार्ता, सीमा का परिसीमन और परिवहन मार्गों का खुलना शामिल है. हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि नये संघर्ष ने दोनों देशों को शांति समझौते के करीब लाने की कोशिशों को ध्वस्त कर दिया है. जॉर्जियन स्ट्रैटजिक एनलासिस सेंटर के विश्लेषक गेला वासाद्जे का कहना है कि ताजा संघर्ष ने, "ब्रसेल्स एग्रीमेंट्स को व्यावहारिक रूप से बेकार कर दिया है. दोनों देशों के लोगों के विचार और कट्टर हो गये हैं."
यूरोपीय संघ की मध्यस्थता में मई और अप्रैल में दोनों देशों की बीच बातचीत हुई थी और दोनों देश भविष्य के लिये शांति समझौते पर आगे की बातचीत करने के लिये रजामंद हुए थे.
एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स, एएफपी)
इस्लामाबाद, 15 सितंबर। पाकिस्तान के पूर्व अंपायर असद रऊफ़ का ह्रदय गति रुक जाने के कारण (कार्डिएक अरेस्ट) निधन हो गया. वह आईसीसी के इलीट पैनल के अंपायर रह चुके थे.
पाकिस्तान के ‘दुनिया न्यूज’ की ख़बर के अनुसार रऊफ़ के भाई ताहिर रऊफ़ ने इस ख़बर की पुष्टि की है.
असद रऊफ़ को 2006 में आईसीसी के इलीट पैनल में जगह मिली थी. जिसके बाद उन्होंने 47 टेस्ट, 98 ओडीआई और 23 टी-20 मैच में अंपायरिंग की.
अंपायर के तौर पर उनके करियर की शुरुआत 1998 में हुई थी. भारत और पाकिस्तान के बीच 2000 में खेले गए एक दिवसीय मैच से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिंग की दुनिया में कदम रखा.
रऊफ़ ने आईपीएल में भी दिखे थे लेकिन 2013 में स्पॉट फिक्सिंग में नाम आने के बाद यहां उनका करियर ख़त्म हो गया.
अंपायरिंग पर बैन लगने के बाद असद रऊफ़ पिछले कुछ वर्षों से लाहौर में एक दुकान चलाकर अपनी जीवन बिता रहे थे.
उनकी जूतों और कपड़ों की दुकान थी.
इस दुकान में एक पत्रकार ने उनका इंटरव्यू किया था जो वायरल हो गया था.
पाकिस्तानी क्रिकेटर कामरान अकमल ने उनके निधन पर दुख जताते हुए एक ट्वीट किया. (bbc.com)
बेंगलुरु, 15 सितंबर। बेंगलुरु देश के ऐसे शीर्ष शहर के रूप में उभरा है जो चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भर्तियां करने का सबसे मजबूत इरादा रखता है और इसके पीछे वजह सूचना प्रौद्योगिकी, ई-वाणिज्य, एफएमसीजी तथा अन्य संबंधित क्षेत्रों में हासिल हुई वृद्धि है। एक रिपोर्ट में बृहस्पतिवार को यह कहा गया।
मानव संसाधन कंपनी टीमलीज सर्विसेस की ‘रोजगार परिदृश्य रिपोर्ट’ में बताया गया कि 95 फीसदी नियोक्ताओं ने जुलाई से सितंबर की तिमाही में अधिक भर्तियां करने का मन बनाया है जबकि इससे पहले अप्रैल से जून की अवधि में 91 फीसदी नियोक्ताओं ने ऐसा कहा था।
व्यापक नजरिए से देखें तो भारत की 61 फीसदी कॉरपोरेट कंपनियां इस अवधि में भर्ती की इच्छुक हैं जो पिछली तिमाही की तुलना में सात फीसदी अधिक है। बेंगलुरु में विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में भर्तियों को लेकर सकारात्मक रूख देखने को मिला।
इस मामले में विनिर्माण क्षेत्र में अग्रणी उद्योग हैं दैनिक उपयोग की वस्तुओं वाला क्षेत्र एफएमसीजी (48 फीसदी), स्वास्थ्य देखभाल एवं दवा (43), विनिर्माण, इंजीनियरिंग एवं अवसंरचना (38), ऊर्जा और बिजली (34) तथा कृषि एवं कृषि रसायन (30)।
सेवा क्षेत्र में भर्ती के इरादे के लिहाज से अग्रणी उद्योग हैं सूचना प्रौद्योगिकी (97 फीसदी), ई-वाणिज्य एवं संबंधित स्टार्टअप (85), शैक्षणिक सेवाएं (70), दूरसंचार (60), खुदरा (आवश्यक वस्तुएं) (64), खुदरा (गैर आवश्यक) (30) और वित्तीय सेवाएं (55)।
टीमलीज सर्विसेस में मुख्य कारोबार अधिकारी महेश भट्ट ने कहा कि बीते दशक में बेंगलुरु ने एक बाजार के तौर पर विविध उद्योगों में बढ़िया वृद्धि दर्ज की है। यहां नए दौर की इंटरनेट आधारित कई कंपनियां उभरी हैं जो विविध मूल्य आधारित सेवाओं और उत्पादों की पेशकश करती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इस सकारात्मक वृद्धि से विभिन्न क्षेत्रों और भूमिकाओं में रोजगार के अपार अवसर पैदा हुए हैं। अधिकाधिक नियोक्ता अपने संसाधनों के बेड़े का विस्तार करना चाहते हैं और अधिक वेतन दे सकते हैं। आने वाली तिमाहियों में भर्ती के इरादे और मजबूत होकर 97 फीसदी होने की उम्मीद है।’’
भर्ती के इच्छुक नियोक्ता, विनिर्माण क्षेत्र में सबसे ज्यादा दिल्ली (72 फीसदी), फिर मुंबई (59) और चेन्नई (55) में हैं। सेवा क्षेत्र में सबसे आगे है बेंगलुरु (97 फीसदी), इसके बाद मुंबई (81) और फिर दिल्ली (68) है।(भाषा)
गोंडा, 15 सितंबर। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हत्या के एक मामले में पूछताछ के लिए नवाबगंज थाने बुलाए गए एक युवक की पुलिस हिरासत में संदिग्ध हालात में मौत हो गई। इस मामले में नवाबगंज थाने के प्रभारी निरीक्षक को निलंबित कर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है।
पुलिस अधीक्षक आकाश तोमर ने बृहस्पतिवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि हत्या के एक मामले में गोंडा जिले के नवाबगंज थाने में पूछताछ के लिए लाए गए युवक देव नारायण यादव उर्फ देवा (22) की बुधवार को पूछताछ के दौरान अचानक तबीयत खराब हो गई थी। देवा को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय ले जाया गया, जहां चिकित्सक ने उसे मृत घोषित कर दिया।
तोमर के मुताबिक, देवा की मौत पर उसके परिजनों ने हंगामा करते हुए प्रभारी निरीक्षक तेज प्रताप सिंह पर हत्या का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अभियोग दर्ज कराए जाने की मांग की थी।
उन्होंने बताया कि मृतक के पिता की तहरीर पर प्रभारी निरीक्षक को निलंबित कर बृहस्पतिवार सुबह उनके खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
पुलिस अधीक्षक के अनुसार, देवा के शव का चिकित्सकों के पैनल से पोस्टमार्टम कराया गया है। प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर दर्ज अभियोग की निष्पक्ष विवेचना की जाएगी।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही प्रकरण में लापरवाही बरतने के आरोप में एसओजी प्रभारी अमित यादव को भी तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
हालांकि, तोमर ने यह भी कहा कि नगर मजिस्ट्रेट अर्पित गुप्ता द्वारा भरे गए पंचनामा में भी युवक के शरीर पर चोट के कोई प्रत्यक्ष निशान नहीं पाए गए हैं।
उन्होंने बताया कि नवाबगंज थाना क्षेत्र में हाल ही में एक झोलाछाप डॉक्टर की भी हत्या हुई थी और इस घटना की जांच के लिए एसओजी को लगाया गया था।
तोमर के मुताबिक, बुधवार को एसओजी की टीम नवाबगंज थाने पहुंची थी और उसने पूछताछ के लिए बिजली विभाग में संविदा पर लाइन मैन के रूप में कार्यरत माझा राठ निवासी देवा को थाने पर बुलवाया था।
तोमर ने बताया कि थाने के प्रभारी निरीक्षक तेज प्रताप सिंह के निर्देश पर युवक के पिता अपने बड़े भाई और ग्राम प्रधान दामाद के साथ युवक को लेकर बुधवार दोपहर तीन बजे थाने पहुंचे थे और उसे प्रभारी निरीक्षक को सौंप दिया था।
तोमर के अनुसार, बाद में पांच बजे उन्हें बताया गया कि पूछताछ के दौरान देवा की तबीयत खराब हो गई थी और उसे जिला चिकित्सालय ले जाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि आरोप है कि शाम को परिजनों के अस्पताल पहुंचने पर युवक वहां नहीं मिला और रात करीब आठ बजे उसे एंबुलेंस से जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सक ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस पर परिजनों ने वहां जमकर हंगामा किया था।
इस बीच, समाजवादी पार्टी (सपा) ने घटना को लेकर राज्य सरकार की तीखी आलोचना की है। पार्टी ने एक ट्वीट में कहा, "भाजपा सरकार में एक और कस्टोडियल डेथ! गोंडा के नवाबगंज थाने में पुलिस द्वारा देव नारायण यादव नाम के युवक की हिरासत में पीट-पीटकर हत्या अत्यंत दुखद!"
सपा ने आगे कहा, "आखिर और कितने निर्दोषों की इसी तरह हत्या करेगी योगी सरकार की पुलिस? दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर हो कार्रवाई।" (भाषा)
नयी दिल्ली , 15 सितंबर। कांग्रेस ने थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति के अगस्त में लगातार तीसरे महीने घटने और 11 महीने के निचले स्तर पर चले जाने को लेकर बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि महंगाई पर नरेंद्र मोदी सरकार की चुप्पी तोड़ने के लिए 'भारत जोड़ो यात्रा' निकाली गई है।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, "मोदी सरकार कमर तोड़ महंगाई पर चुप क्यों है? इनकी इसी चुप्पी को तुड़वाने के लिए भारत जोड़ो यात्रा शुरू की गई है।"
विनिर्मित उत्पादों और ईंधन की कीमतों में नरमी से थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति अगस्त में लगातार तीसरे महीने घटी और 11 महीने के निचले स्तर 12.41 प्रतिशत पर आ गई। खाद्य वस्तुओं के दामों में तेजी के बावजूद मुद्रास्फीति घटी है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति में लगातार तीसरे महीने गिरावट का रुख देखने को मिला है। हालांकि, यह पिछले साल अप्रैल से लगातार 17वें महीने में दहाई अंकों में रही। (भाषा)
भारत की मशहूर ट्यूशन, कोचिंग देने वाली एड-टेक कंपनी बायजूस को साल 2020-21 में 4500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. वहीं, इससे पिछले वर्ष में बायजू को सिर्फ 262 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, कंपनी ने बताया है कि इस नुकसान की वजह व्हाइटहैट नामक कंपनी है जिसे बायजूस ने 2020 में तीन सौ मिलियन डॉलर में ख़रीदा था. ये कंपनी बच्चों को कोडिंग क्लासेज़ उपलब्ध कराती है.
कंपनी के सीईओ और संस्थापक बायजू रवींद्रन ने बताया है कि "हमने जिन व्यवसायों को ख़रीदा था, उनमें से ज़्यादातर तेजी से बढ़ रहे थे. लेकिन उनमें नुकसान हो रहा था. वित्तीय वर्ष 2022 में उल्लेखनीय बढ़त की वजह से नुकसान कम होने की संभावना है."
बायजूस ने पिछले कुछ सालों में 20 कंपनियां ख़रीदने में लगभग तीन अरब डॉलर खर्च किए हैं जिसमें पिछले साल आईआईटी, नीट जैसी प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली कोचिंग आकाश एजुकेशन सर्विसेज़ भी शामिल है. (bbc.com/hindi)
केरल में मंकीपॉक्स से मरने वाले शख़्स की मौत पर किए गए देश के पहले अध्ययन में वैज्ञानिकों को वायरस का A.2 वेरिएंट मिला है, जो अमेरिका और यूरोपीय देशों में फैले वैरिएंट से एकदम अलग है.
हिंदी अख़बार अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने कहा कि अमेरिका और यूरोप में ही दुनिया के सबसे अधिक मामले सामने आ रहे हैं और वहां मंकीपॉक्स वायरस का कांगो वैरिएंट अधिक पाया जा रहा है, जिसे गंभीर माना जा रहा है.
इससे पहले, नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर के आईजीआईबी संस्थान के शोधार्थियों ने एक अध्ययन के जरिए भी केरल के पहले दो मंकीपॉक्स संक्रमित मरीजों में वायरस के A.2 वेरिएंट की पुष्टि की थी. यह स्वरूप काफी समय पहले से प्रसारित है. साथ ही भारत के 12 में से 10 मरीजों में इसी स्वरूप की पुष्टि जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए हुई है.
वैज्ञानिकों ने साफ तौर पर कहा है कि युवक की मौत इन्सेफ्लाइटिस बीमारी से हुई है. यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बीमार व्यक्ति के मस्तिष्क में सूजन होने लगती है और धीरे-धीरे वह कोमा में जाने लगता है. (bbc.com/hindi)
सामाजिक बहिष्कार, प्रताड़ना रोकने में सरकार की विफलता को लेकर पीआईएल, कानून बनाने की मांग
बिलासपुर, 15 सितंबर। सामाजिक बहिष्कार से पीड़ितों को न्याय देने में राज्य सरकार की विफलता और पुलिस के पक्षपात रवैये के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 6 जिलों के कलेक्टर-एसपी, मुख्य सचिव, गृह सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता गुरु घासीदास सेवादार संगठन व कानूनी मार्गदर्शक केंद्र की ओर से दायर याचिका में प्रदेश के चुनिंदा 15 मामलों का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़ों व उनके परिजनों को उनके धार्मिक अधिकार, मान्यता तथा उपासना के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। सामाजिक ठेकेदारों की ओर से चुनावों में मतदान के लिए फरमान जारी किए जाते हैं, जिनका पालन नहीं करने पर शादी, मृत्युभोज पर प्रतिबंध लगाते हैं, सामाजिक बहिष्कार करते हैं तथा मारपीट कर धमकाते हैं। पुलिस व प्रशासन से शिकायत करने पर समुचित कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती। पीड़ितों को राहत नहीं दी जाती और दोषियों को सजा नहीं मिलती।
चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी व जस्टिस दीपक तिवारी की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता रजनी सोरेन ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा। इस पर मुख्य सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जांजगीर-चांपा, बलौदाबाजार, कांकेर, रायगढ़, रायपुर व धमतरी के कलेक्टर व एसपी को नोटिस जारी किया गया है। इसके अलावा मालखरौदा, गिधौरी, बलौदाबाजार, जगदलपुर, सारंगढ़ (रायगढ़), बिलाईगढ़ (बलौदाबाजार), भाटापारा, पलारी, विधानसभा पुलिस, भटगांव, सिमगा, नवागढ़ (जांजगीर-चांपा) तथा मगरलोड (धमतरी) के थाना प्रभारियों को भी नोटिस जारी कर सभी को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
याचिका में मांग की गई है कि जिन मामलों को हाईकोर्ट के समक्ष रखा गया है उसमें आपराधिक कानूनी कार्रवाई के लिए प्रशासन कदम उठाए और इस संबंध में न्यायालय गाइडलाइन जारी करे। सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध कानून बनाने के लिए कमेटी बने, पीड़ितों की सुरक्षा तथा मुआवजे के लिए उचित कार्रवाई की जाए। विधिक सेवा प्राधिकरण संदर्भित कानूनी अधिकारों का प्रचार-प्रसार करे तथा ऐसे प्रकरणों पर कानून सम्मत कार्रवाई के लिए पुलिस को प्रशिक्षण दिया जाए।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता लखन सुबोध व संजय अनंत के साथ एक एडवोकेट पैनल रजनी सोरेन के साथ उपस्थित हुए, जिनमें कांता नंदी, दीपाली गुप्ता, दिवेश कुमार, प्रीतम सिंह, अमरनाथ पांडे तथा किशोर नारायण शामिल थे।
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा)। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में दो बहनों की कथित तौर पर हत्या किये जाने की घटना को लेकर बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि बलात्कारियों को रिहा करवाने और उनका सम्मान करने वालों से महिला सुरक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती।
उन्होंने ट्वीट किया, "लखीमपुर में दिन-दहाड़े, दो नाबालिग, दलित बहनों के अपहरण के बाद उनकी हत्या, बेहद विचलित करने वाली घटना है।"
राहुल गांधी ने भाजपा का नाम लिए बगैर उस पर निशाना साधते हुए कहा, "बलात्कारियों को रिहा करवाने और उनका सम्मान करने वालों से महिला सुरक्षा की उम्मीद की भी नहीं जा सकती। हमें अपनी बहनों-बच्चियों के लिए देश में एक सुरक्षित माहौल बनाना ही होगा।"
लखीमपुर खीरी में दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाली दो बहनों के शव पेड़ से लटके पाए गए। परिवार वालों का आरोप है कि दोनों लड़कियों का अपहरण किया गया था।
इस रिपोर्ट के कुछ विवरण पाठकों को विचलित कर सकते हैं.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में एक दलित परिवार की दो सगी नाबालिग बहनों के शव पेड़ से लटके मिलने से सनसनी फैल गई. पुलिस ने इस मामले में छह अभियुक्तों को गिरफ़्तार करने का दावा किया है और कहा है कि लड़कियों को जबरन ले जाने या अपहरण के आरोप ग़लत हैं.
गुस्साए ग्रामीणों ने अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर सड़क पर कई घंटों तक जाम लगाए रखा.
इस ख़बर के सामने आने के बाद सियासी दलों ने उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर सवाल उठाए हैं. पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव, मायावती और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इसे सरकार की विफलता बताया है.
लखीमपुर खीरी ज़िला किसान आंदोलन के दौरान भी चर्चा रहा था, तब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर प्रदर्शनकारी किसानों पर जीप चढ़ा देने के आरोप लगे थे. इस घटना में चार किसानों की मौत हो गई थी.
पुलिस का दावा
लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "अभियुक्त दोनों सगी बहनों को जबरन नहीं ले गए. मुख्य अभियुक्त लड़का इन लड़कियों के घर के पास रहता था. लड़कियों को बरगलाकर खेत में ले जाया गया. मुख्य अभियुक्त ने ही दूसरे तीन लड़कों से ही इन दो लड़कियों की दोस्ती कराई थी. इन चार के अलावा दो अन्य को साक्ष्य मिटाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है."
पुलिस अधीक्षक ने कहा कि पीड़ित परिवार ने तहरीर बुधवार रात एक बजे दी है, पोस्टमार्टम कुछ देर में होगा. इसके लिए तीन डॉक्टर्स का पैनल है. इसकी वीडियोग्राफी भी की जाएगी.
क्या है वारदात
बुधवार की शाम को हुई यह घटना निघासन थाना क्षेत्र की है. लड़कियों की उम्र 15 साल और 17 साल बताई जा रही है. स्थानीय ग्रामीणों और मृतक लड़कियों के परिवारवालों का आरोप है कि तीन लोगों ने लड़कियों के साथ पहले बलात्कार किया और बाद में उनकी हत्या कर शव पेड़ से लटका दिए.
लखनऊ रेंज की पुलिस महानिरीक्षक लक्ष्मी सिंह ने संवाददाताओं को बताया, "लखीमपुर खीरी के एक गांव के बाहर खेत में दो बच्चियों के शव पेड़ से लटके मिले. शुरुआती जाँच में पाया गया कि दोनों बच्चियों से शव उनके ही दुपट्टे से लटके मिले हैं. शवों पर कोई चोट नहीं पाई गई. पोस्टमार्टम के बाद अन्य बातों का पता चलेगा, जांच जारी है."
इस घटना के बाद इलाक़े में गुस्से और तनाव का माहौल है. उत्तेजित ग्रामीणों ने गांव से कुछ दूर निघासन चौराहे पर प्रदर्शन भी किया. प्रदर्शनकारी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की मांग कर रहे थे. निघासन चौराहे पर प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी.
सोशल मीडिया पर घटना के कई वीडियो वायरल हैं जिसमें लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन समेत कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रदर्शनकारियों को समझाते हुए दिख रहे हैं. पुलिस ने गुस्साये ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि इस मामले में जल्द कार्रवाई की जाएगी.
पुलिस ने जबरन पोस्टमॉर्टम कराए जाने की ख़बरों से भी इनकार किया और कहा कि मृतकों के परिजनों की तहरीर के आधार पर ही अभियोग पंजीकृत किया जाएगा. मृतक लड़कियों के शव का पोस्टमॉर्टम परिजनों की सहमति और उनकी उपस्थिति में वरिष्ठ डॉक्टर्स के पैनल द्वारा किया जाएगा.
एसपी संजीव सुमन ने कहा, "पीड़ित परिवार की सभी जायज़ मांगों को माना जाएगा, लेकिन क़ानून व्यवस्था संभालना हमारी प्राथमिकता है." उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही 'सही तस्वीर सामने आ पाएगी.'
परिवार का क्या कहना है?
ग्रामीणों का कहना था कि लड़कियों की लाशें गन्ने के खेत में एक पेड़ से लटकी मिलीं. लड़की की मां ने स्थानीय पत्रकारों को बताया कि उन्हें शक है कि उनकी बेटियों का क़त्ल किया गया है.
उन्होंने आरोप लगाया कि पड़ोस के गांव के तीन युवक मोटरसाइकिल पर आए थे और उन्होंने घर के पास ही चारा काट रही दोनों बहनों को जबरन उठा लिया.
बदायूँ कांड से तुलना
लखीमपुर में हुई घटना के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसकी तुलना बदायूँ रेप कांड से करने लगे. साल 2014 में बदायूँ ज़िले के एक गांव में दो दलित बहनों के शव पेड़ से लटके मिले थे. बाद में केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने लड़कियों के साथ गैंगरेप और उसके बाद हत्या की जाँच की थी.
अखिलेश, मायावती और प्रियंका ने क्या कहा
लखीमपुर खीरी की इस घटना पर सियासी दलों ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, "निघासन पुलिस थाना क्षेत्र में दो दलित बहनों को अगवा करने के बाद उनकी हत्या और उसके बाद पुलिस पर पिता का ये आरोप बेहद गंभीर है कि बिना पंचनामा और सहमति के उनका पोस्टमार्टम किया गया. लखीमपुर में किसानों के बाद अब दलितों की हत्या 'हाथरस की बेटी' हत्याकांड की जघन्य पुनरावृत्ति है."
बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया, "लखीमपुर खीरी में माँ के सामने दो दलित बेटियों का अपहरण व दुष्कर्म के बाद उनके शव पेड़ से लटकाने की हृदय विदारक घटना सर्वत्र चर्चाओं में है, ऐसी दुःखद व शर्मनाक घटनाओं की जितनी भी निन्दा की जाए वह कम है. यूपी में अपराधी बेखौफ हैं क्योंकि सरकार की प्राथमिकताएं गलत हैं."
1. लखीमपुर खीरी में माँ के सामने दो दलित बेटियों का अपहरण व दुष्कर्म के बाद उनके शव पेड़ से लटकाने की हृदय विदारक घटना सर्वत्र चर्चाओं में है, क्योंकि ऐसी दुःखद व शर्मनाक घटनाओं की जितनी भी निन्दा की जाए वह कम। यूपी में अपराधी बेखौफ हैं क्योंकि सरकार की प्राथमिकताएं गलत। 1/2
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया, "लखीमपुर में दो बहनों की हत्या की घटना दिल दहलाने वाली है. परिजनों का कहना है कि इन लड़कियों का दिनदहाड़े अपहरण किया गया था. रोज अख़बारों व टीवी में झूठे विज्ञापन देने से क़ानून व्यवस्था अच्छी नहीं हो जाती. आखिर उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ जघन्य अपराध क्यों बढ़ते जा रहे हैं."
लखीमपुर (उप्र) में दो बहनों की हत्या की घटना दिल दहलाने वाली है। परिजनों का कहना है कि उन लड़कियों का दिनदहाड़े अपहरण किया गया था।
रोज अखबारों व टीवी में झूठे विज्ञापन देने से कानून व्यवस्था अच्छी नहीं हो जाती।आखिर उप्र में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध क्यों बढ़ते जा रहे हैं?
लखीमपुर पहले भी रहा है चर्चा में
लखीमपुर खीरी ज़िला महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामलों में पहले भी चर्चा में रहा है. साल 2020 में अगस्त और सितंबर महीने में ज़िले के अलग-अलग स्थानों पर तीन नाबालिग़ लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या के मामले सामने आए थे.
जून 2011 में निघासन पुलिस थाना परिसर में एक लड़की की लाश पेड़ से लटकी मिली थी, इस मामले में एक पुलिस निरीक्षक समेत 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया था. बाद में सीबीआई कोर्ट ने 28 फ़रवरी 2020 को दिए फ़ैसले में कांस्टेबल अतीक़ अहमद को 14 साल की लड़की की हत्या और बाद में लाश को पेड़ से लटकाकर इसे ख़ुदकुशी की शक्ल देने का दोषी पाया था. पुलिसकर्मी को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. (bbc.com/hindi)
रांची, 14 सितंबर। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के मंडरा रहे खतरे के बीच बुधवार को प्रदेश में ‘स्थानीयता’ तय करने के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का निर्णय लिया है।
सरकार ने इसके साथ ही राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को मौजूदा 14 प्रतिशत के बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है, साथ ही एसी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण में दो-दो प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला किया। सरकार के फैसले पर अमल होने के साथ राज्य में ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का कुल आरक्षण 77 प्रतिशत हो जाएगा।
झारखंड सरकार की मंत्रिमंडल सचिव वंदना डाडेल ने बुधवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में आज यहां हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के फैसले लिये गये।
उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने ‘स्थानीयता’ की नीति 1932 के खतियान के आधार पर तय करने और पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने समेत विभिन्न वर्गों के लिए कुल 77 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित करने के लिए अलग-अलग विधेयक राज्य विधानसभा में पेश किये जाने की स्वीकृति प्रदार की।
उन्होंने बताया कि स्थानीयता की नीति में संशोधन के लिए लाये जाने वाले नये विधेयक का नाम ‘झारखंड के स्थानीय निवासी की परिभाषा एवं पहचान हेतु झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा एवं परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022’ होगा।
वंदना डाडेल ने बताया कि इस विधेयक के माध्यम से राज्य में स्थानीय लोगों को परिभाषित किया जायेगा और आज के मंत्रिमंडलीय फैसले के अनुसार अब राज्य में 1932 के खतियान में जिसका अथवा जिसके पूर्वजों का नाम दर्ज होगा उन्हें ही यहां का स्थानीय निवासी माना जायेगा।
उन्होंने बताया कि जिनके पास अपनी भूमि या संपत्ति नहीं होगी उन्हें 1932 से पहले का राज्य का निवासी होने का प्रमाण अपनी ग्राम सभा से प्राप्त करना होगा।
इसके अलावा राज्य मंत्रिमंडल ने विभिन्न वर्गों के लिए कुल आरक्षण 77 प्रतिशत तक करने का निर्णय लिया।
उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने विधानसभा में ‘झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण:अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिएः अधिनियम 2001 में संशोधन हेतु विधेयक 2022’ पेश करने का फैसला किया, जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए राज्य की नौकरियों में आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण प्रतिशत 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की व्यवस्था होगी।
उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडलीय ने इस प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए भी दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने का फैसला किया।
पिछले वर्गों में अत्यंत पिछड़ों के लिए 15 प्रतिशत और पिछड़ों के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था किये जाने का निर्णय लिया गया है।
स्थानीयता नीति पर राज्य के आदिवासी संगठनों ने लगातार 1932 खतियान को आधार बनाने की मांग की थी क्योंकि उनके अनुसार राज्य के भूमि रिकॉर्ड का अंग्रेज सरकार ने अंतिम बार 1932 में सर्वेक्षण किया था।
इससे पूर्व झारखंड की रघुवर दास सरकार ने स्थानीयता की नीति तय करते हुए वर्ष 2016 में 1985 को राज्य की स्थानीयता तय करने के लिए विभाजक वर्ष माना था, जिसके खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था।
ऐसा माना जाता है कि राज्य में अपने नाम खनन पट्टा आवंटित करवाने के कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार पर खतरा मंडराने की आशंका है, इसलिए उन्होंने राजनीतिक रूप से अहम नीतिगत फैसले लिए हैं।
माना जा रहा है कि चुनाव आयोग ने उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर अपना निर्णय 25 अगस्त को राज्यपाल के पास भेज दिया था, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक इस बारे में अपना फैसला नहीं सुनाया है जिससे राज्य सरकार पिछले लगभग तीन सप्ताह से संशय की स्थिति में है। सत्तारूढ़ पक्ष का आरोप है कि इस तरह की संशय की स्थिति पैदा कर राज्य में विधायकों की खरीद फरोख्त की कोशिश की जा रही है, ताकि सरकार को अस्थिर किया जा सके।
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सचिवालय में मीडिया से बातचीत करते हुए सोरेन ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने आज अनेक ऐतिहासिक फैसले किये। राज्य ने आज निर्णय ले लिया है कि यहां 1932 का खतियान लागू होगा। राज्य में पिछड़ों को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इस राज्य में कर्मचारियों को उनका हक मिलेगा।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी सरकार की स्थिरता को लेकर विपक्षी माहौल को दूषित कर रहे हैं। सोरने ने दावा किया, ‘‘ मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है।’’(भाषा)
जयपुर, 15 सितंबर। राजस्थान में शहरी इलाकों में जरूरतमंदों को रोजगार देने के लिए शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना के तहत पहले छह दिन में ही एक लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है।
एक आला अधिकारी ने बताया कि शहरी क्षेत्र के जरूरतमंद तबके में योजना को लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है और इसका फायदा लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
स्थानीय निकाय विभाग के शासन सचिव जोगाराम ने कहा, “योजना के तहत अब तक 2.45 लाख से अधिक परिवारों के जॉब कार्ड बनाए गए हैं। इन परिवारों के 3,83,639 लोगों का नाम जॉब कार्ड में शामिल है।”
उन्होंने बताया, “योजना में अब तक 96,452 परिवारों के 1,39,798 लोगों ने रोजगार की मांग की है। मांग के अनुरूप योजना शुरू होने के मात्र छह दिन में ही लगभग एक लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा दिया गया है।”
जोगाराम के मुताबिक, योजना में मांग के अनुरूप तत्काल प्रभाव से रोजगार उपलब्ध करवाया जा रहा है और राज्य सरकार का प्रयास है कि कोई भी व्यक्ति आजीविका के लिए रोजगार से वंचित न रहे।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी बजटीय घोषणा के अनुरूप नौ सितंबर को इस योजना की शुरुआत की थी। राज्य सरकार इसके तहत शहरी इलाकों में रह रहे जरूरतमंद परिवारों को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दे रही है।
पहले साल, इसके लिए 800 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है और मुख्यमंत्री ने कहा है कि योजना के क्रियान्वयन में धन की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी।
योजना से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, इसमें अकुशल श्रमिक की मजदूरी 259 रुपये प्रति दिवस, जबकि मेट का मानदेय 271 रुपये और कुशल श्रमिक की मजदूरी 283 रुपये प्रतिदिन निर्धारित की गई है। रोजगार प्राप्त करने वाले श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान भी निर्धारित अवधि में सीधे उनके बैंक खातों में किया जाएगा।
जोगाराम ने कहा कि राजस्थान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ऐसी योजना शुरू करने वाला देश काा पहला राज्य है। इसमें शहरों के हर जरूरतमंद परिवार के 18 से 60 वर्ष के लोगों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।
योजना में पर्यावरण सरंक्षण कार्य, जल संरक्षण संबंधी कार्य, स्वच्छता एवं साफ-सफाई संबंधित कार्य, संपत्ति विरूपण रोकने से संबंधित कार्य, सेवा संबंधित कार्य, विरासत संरक्षण संबंधित कार्य सहित अन्य कई तरह के कार्य शामिल किए गए हैं। (भाषा)
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को इंजीनियर दिवस के मौके पर लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह भारत की खुशनसीबी है कि उसके पास बड़ी संख्या ऐसे में कुशल और प्रतिभाशाली इंजीनियर हैं, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
इंजीनियर दिवस तत्कालीन मैसूर साम्राज्य के दीवान एम विश्वेश्वरैया की जयंती के मौके पर मनाया जाता है, जिन्हें इंजीनियरिंग क्षेत्र में उनके अग्रणी कार्यों के लिए जाना जाता था।
मोदी ने ट्वीट किया, “इंजीनियर दिवस पर सभी इंजीनियरों को शुभकामनाएं। हमारा देश खुशनसीब है कि हमारे पास बड़ी संख्या में ऐसे कुशल और प्रतिभाशाली इंजीनियर हैं, जो राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। हमारी सरकार अधिक इंजीनियरिंग कॉलेजों के निर्माण सहित इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।”
उन्होंने कहा, “इंजीनियर दिवस पर हम सर एम विश्वेश्वरैया के अभूतपूर्व योगदान को याद करते हैं। वह इंजीनियरों की भावी पीढ़ियों को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित करते रहें, यही कामना है।”
प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम का एक अंश भी साझा किया, जिसमें वह इस विषय पर बात करते सुनाई दे रहे हैं।
-रवीश रंजन शुक्ला
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से गन्ने के खेत में दो दलित नाबालिग किशोरियों के शव मिले हैं. घटना निघासन कोतवाली क्षेत्र की है. बताया जा रहा है कि मृतक दोनों किशोरियां सगी बहने हैं. इनका शव गन्ने के खेत से पेड़ से लटकता मिला. वहीं घटना की सूचना मिलने पर तत्काल पुलिस मौके पर पहुंची और घटना के कारणों की जांच में जुट गई. घटना के पीछे बाइक सवारों का हाथ होने की आशंका जताय़ा जा रहा है, जिनपर नाबालिग किशोरियों को घर से अगवा कर मार कर लटकाने का आरोप लोग लगा रहे हैं. लखीमपुर में दो सगी बहनों की संदिग्ध मौत के इस मामले में एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने संज्ञान लिया है. उन्होंने बताया कि जांच के लिए अफसरों को लखीमपुर भेजा गया है. शवों का पोस्टमार्टम कराया जा रहा है और पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी कराई जा रही है.
इस घटना के विरोध में स्थानीय ग्रामीणों ने निघासन चौराहे पर रास्ता जाम कर प्रदर्शन किया. पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन और अपर पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार सिंह बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और नाराज ग्रामीणों को उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया.
इस बीच समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार को घेरने का प्रयास किया. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस घटना की तुलना हाथरस कांड से करते हुए ट्वीट किया, ‘‘निघासन पुलिस थाना क्षेत्र में दो दलित बहनों को अगवा करने के बाद उनकी हत्या और उसके बाद पुलिस पर पिता का ये आरोप बेहद गंभीर है कि बिना पंचनामा और सहमति के उनका पोस्टमार्टम किया गया. लखीमपुर में किसानों के बाद अब दलितों की हत्या ‘हाथरस की बेटी' हत्याकांड की जघन्य पुनरावृत्ति है.'
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने ट्वीट किया, ‘‘लखीमपुर में दो बहनों की हत्या की घटना दिल दहलाने वाली है. परिजनों का कहना है कि उन लड़कियों का दिनदहाड़े अपहरण किया गया था. रोज अखबारों व टीवी में झूठे विज्ञापन देने से कानून व्यवस्था अच्छी नहीं हो जाती. आखिर उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध क्यों बढ़ते जा रहे हैं? कब जागेगी सरकार?'' (ndtv.in)
प्रबंधन ने कहा फर्जी फार्म भरवाकर युवाओं को गुमराह किया जा रहा, प्रशिक्षितों को नौकरी देने का कोई प्रावधान नहीं
बिलासपुर, 15 सितंबर। एसईसीएल में अप्रेंटिस युवाओं ने रोजगार की मांग पर एसईसीएल के गेट पर जमकर प्रदर्शन किया और कर्मचारियों को भीतर जाने से रोक दिया गया। उनका कहना है कि एसईसीएल प्रबंधन ने उन्हें आउटसोर्सिंग में रखने का आश्वासन दिया था। दूसरी ओर एसईसीएल ने कहा है कि अप्रेंटिस युवाओं को नौकरी देने का कोई प्रावधान नहीं है। फर्जी फॉर्म भरवाकर युवाओं को गुमराह किया जा रहा है।
जून महीने से एसईसीएल मुख्यालय के गेट के सामने आंदोलन कर रहे युवाओं ने बुधवार को गेट के सामने प्रदर्शन किया और कर्मचारियों, अधिकारियों को भीतर जाने से रोका। यह प्रदर्शन एनएसयूआई के नेता लक्की मिश्रा और अन्य लोग कर रहे थे। इनका कहना है कि एसईसीएल के डायरेक्टर पर्सनल ने उन्हें वार्ता करके आउटसोर्सिंग में नौकरी देने का आश्वासन दिया है। युवाओं ने उन्हें सूची भी उपलब्ध कराई है पर नौकरी नहीं दी जा रही है।
दूसरी तरफ एसईसीएल प्रबंधन का कहना है कि अप्रेंटिस को नौकरी दिए जाने का कोल इंडिया में कोई प्रावधान नहीं है। इस बारे में संसद में भी मंत्री ने स्पष्ट किया है। जो युवा प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हें भी कई बार की वार्ता में यह बात बताई जा चुकी है। स्वयं सीएमडी ने उन्हें स्पष्ट किया है। इसके बावजूद युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो भुगतान किया जाना था, सभी किए जा चुके हैं। जनसंपर्क अधिकारी सनिश चंद्र ने कहा कि पूर्व आईटीआई प्रशिक्षुओं की हड़ताल के कारण कामकाज में बाधा पहुंची। बुधवार को दिनभर 50 से 60 हजार टन कोयले की आपूर्ति के ऑर्डर जारी होने वाले थे, जो नहीं हो पाए। दूर दराज के खदानों के श्रमिकों के इलाज के लिए भी आर्डर नहीं निकल पाए। टेंडर, डिस्पैच व अवार्ड का काम ठप रहा। कुछ की डेडलाइन आज थी, पर गेट जाम कर देने से अधिकारी कर्मचारी व संबंधित व्यक्ति भीतर प्रवेश नहीं कर सके। इसके अलावा प्रशिक्षुओं को नियमित करने की मांग पर सेंट्रल के डिप्टी चीफ लेबर के यहां रायपुर में सुनवाई चल रही है। ऐसे में आंदोलन का औचित्य नहीं है।
एसईसीएल का कहना है कि युवाओं से ऋषि पटेल तथा कुछ अन्य युवाओं ने फॉर्म बी भरवाया है जो शासकीय दस्तावेज है। इसे कोई भी निजी व्यक्ति नहीं भरवा सकता है। ऐसा करके युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। इसे भरवाने के लिए सहयोग राशि भी ली गई है। ऐसा करने के लिए एसईसीएल ने उन्हें नहीं कहा है। इसके पहले भी 5 अगस्त को एसईसीएल का घेराव इन प्रदर्शनकारियों ने किया था और अधिकारी कर्मचारियों को दफ्तर नहीं जाने दिया था। मुख्यालय का संचालन ठप होने से कोयले का उत्पादन और डिस्पैच प्रभावित होने की आशंका है।
बिलासपुर, 15 सितंबर। हाईकोर्ट के अधिवक्ता कक्ष से एक वकील का 15 हजार रुपये से भरा पर्स किसी ने पार कर दिया।
सकरी निवासी अधिवक्ता जयप्रकाश तिवारी कोर्ट का काम करने के बाद अधिवक्ता कक्ष में बैठे थे। उन्होंने अपना पर्स बैठते समय सोफे पर रख दिया। कुछ काम आने के बाद वे उठकर वहां से बाहर आ गए और पर्स भूल गए। याद आने पर वे वापस गए तो पर्स गायब था। उस दौरान वहां मौजूद अधिवक्ताओं से उन्होंने पूछा तो उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली। पर्स में 15 हजार रुपये, ड्राइविंग लाइसेंस और कुछ जरूरी कागजात थे। उन्होंने चकरभाठा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है।
सीवीआरयू में हिंदी दिवस पर चार दिवसीय कार्यशाला प्रारंभ
बिलासपुर, 15 सितंबर। डॉ सी वी रामन विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस के अवसर पर चार दिवसीय कार्यशाला का प्रारंभ हुआ। पहले दिन हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता एवं यात्रा विषय पर कार्यशाल रखी गई। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित एयरपोर्ट एथॉरिटी ऑफ इंडिया रायपुर के सहायक महाप्रबंधक अभिजीत शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था, कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो इस विविधता भरे देश में एकता के सूत्र में बांधे रख सकती है।
उन्होंने कहा कि आजादी के पूर्व से ही हिंदी का अपना अलग सम्मान है। सुभाष चंद्र बोस ने 1928 में यह कह दिया था , कि देश जब भी आजाद होगा, लेकिन इसकी राष्ट्रभाषा हिंदी ही होगी। उन्होंने बताया कि आज संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी वेबसाइट और ट्विटर भी हिंदी में बनाया है। इसके साथ दुनिया भर में हिंदी में पढ़ाई होती है। इंटरनेट में 94% कंटेंट प्रति वर्ष हिंदी के बढ़ते जा रहे हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हिंदी का एक अपना वैश्विक स्थान है। कार्यक्रम में वक्ता के रूप में उपस्थित बिलासा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ तारणीश गौतम ने कहा कि हम हिंदी के बारे में चर्चा करने से पहले संस्कृत में की यात्रा को समझना होगा। उन्होंने सनातन काल से लेकर गुरुकुल और मैकाले तक की शिक्षा प्रणाली के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जब पढ़ाई गुरुकुल तक थी तब तक देश में बेरोजगारी नहीं थी, लेकिन जब से मैकाले की शिक्षा पद्धति आई बेरोजगारी आ गई। डॉ. गौतम ने कहा कि हमने अपने भाषा के प्रति मोह छोड़ दिया है, लेकिन इसके बाद भी भारत में आज संपर्क भाषा के रूप में हिंदी प्रथम स्थान पर है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव गौरव शुक्ला ने कहा कि आज यह तय करने की जरूरत है कि हम हिंदी को विषय के रूप में बढ़ते हैं या भाषा के रूप में। जिन विषयों को विषय के विशेष रूप में पढ़ा जाता है। उसकी पढ़ाई के बाद को विद्यार्थी डॉक्टर इंजीनियर और अन्य डिग्री प्राप्त करता है ,लेकिन हिंदी को लेकर आज भी इस पर चिंतन की जरूरत है।
विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक डॉ अरविंद तिवारी ने कहा कि विश्वरंग के माध्यम से हमें वैश्विक स्तर पर हिंदी को स्थापित करने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि संस्कृति को जीवित रखना है तो भाषा को बचाए रखना होगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने संकल्प लिया है कि वह हिंदी को पोषित करेंगे और जन-जन तक पहुंचाएंगे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के की सम कुलपति डॉ जयति चटर्जी सहित विश्वविद्यालय के अधिकारी कर्मचारी प्राध्यापक एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
डॉ सी वी रामन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रवि प्रकाश दुबे ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि हिंदी भाषा हम सब की शक्ति है। भाषा को समृद्ध बनाने के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी हम शिक्षण संस्थानों की ही है। विश्वविद्यालय इस दिशा में निरंतर कार्य कर रहा है। साथ ही आगे इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन के पाठ्यक्रमों को हिंदी में प्रारंभ करने के लिए एआईसीटीई के दिशा निर्देशों का पालन किया जाएगा।
दूसरी ओर सितंबर से 15 सितंबर तक चल रहे स्वच्छता पखवाड़ा के अंतर्गत विश्व विद्यालय में विद्यार्थियों ने वृहद सफाई सफाई अभियान चलाया। इस दौरान विद्यार्थियों ने पूरे विश्व विद्यालय कैंपस की सफाई की और सभी को स्वच्छता के लिए जागरूक भी किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के अधिकारी कर्मचारी और विद्यार्थी मौजूद थे।
बिलासपुर, 15 सितंबर। हाईकोर्ट जस्टिस रजनी दुबे ने एक आपराधिक मामले में फैसला देते हुए राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दी, जिसमें सिंचाई विभाग के तीन अधिकारी-कर्मचारियों को सीमेंट के गबन के मामले में बरी करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। इनमें से दो की अब मौत हो चुकी है। हिंदी दिवस के मौके पर आदेश हिंदी में दिया गया है।
कार्यपालन यंत्री के पद से सेवानिवृत्त हुए सीधी निवासी स्व. अविनाश चंद्र, सेवानिवृत्त उप यंत्री गुलाब सिंह वर्मा और स्टोर कीपर स्व. सफदर अली के खिलाफ धारा 409, 367, 471 व 120 बी आईपीसी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) व 13 (2) के तहत अपराध दर्ज किया गया था। इन पर आरोप था कि तरईगांव जलाशय में पदस्थ रहने के दौरान उन्होंने 252 बोरी सीमेंट का गबन किया था तथा खराब गुणवत्ता का निर्माण कार्य कराया था। बिलासपुर के प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया था। इसे हाईकोर्ट में शासन ने 10 अप्रैल 2022 को चुनौती दी । हाईकोर्ट ने इसकी सुनवाई कर 26 जुलाई 2022 को फैसला सुरक्षित रखा था। 14 सितंबर को आदेश आया, जिसमें उन्होंने शासन की अपील खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर निर्णय दिया है, जिसमें दो निष्कर्ष संभव हैं। अपीलीय अदालत इस फैसले पर हस्तक्षेप नहीं किया।
हिंदी दिवस पर हिंदी में दिए गए फैसले की कोर्ट परिसर में दिनभर चर्चा रही। इसके पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पूर्व चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह प्रत्येक दिन अपना पहला फैसला हिंदी में देते थे। जस्टिस फखरुद्दीन ने अपने कार्यकाल में एक फैसला छत्तीसगढ़ी में भी दिया था।
बिलासपुर, 15 सितंबर। खाद्य विभाग ने बिल्हा और तखतपुर की राइस मिलों में छापा मारकर करीब 30 हजार क्विंटल धान और 800 क्विंटल चावल जब्त किया है। राइस मिलों की ओर से धान जमा करने में देरी की वजह से यह कार्रवाई की गई है। जब्त खाद्यान्न की कीमत करीब 7 करोड़ रुपये बताई गई है।
खाद्य विभाग के नियंत्रक अनुराग सिंह भदौरिया और उनकी टीम ने बिल्हा के भवानी राइस मिल में छापा मारकर 14 हजार 609 क्विंटल धान और 500 क्विंटल चावल जब्त किया। संचालक अजय गर्ग से धान चावल का दस्तावेज मांगा गया था, जो वह नहीं दिखा सका। तखतपुर में भी 14 हजार 370 क्विंटल धान और 291 क्विंटल चावल जब्त किया गया। यहां भी शिव शक्ति राइस मिल संचालक अक्षत अग्रवाल कोई दस्तावेज नहीं दिखा सका।
ज्ञात हो कि जिले में इस बार करीब 48 लाख क्विंटल धान की खरीदी हुई है। धान खरीदी को सात माह बीत जाने के बाद भी कई संचालक चावल जमा करने में देरी कर रहे हैं। बार-बार चेतावनी के बाद भी जब उन्होंने चावल को रोककर रखा तो यह कार्रवाई की गई।
हाईकोर्ट में पीआईएल पर शासन ने दिया जवाब
बिलासपुर, 15 सितंबर। प्रदेश में मानसिक रोगियों की चिकित्सा के लिए पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराने की मांग पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शासन ने हाईकोर्ट में स्वीकार किया है कि एकमात्र राज्य मानसिक चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टरों और बिस्तरों की संख्या कम है। शासन ने जवाब दिया है कि दोनों कमियां शीघ्र दूर कर ली जाएगी। छोटे बच्चों के इलाज के लिए अलग व्यवस्था करने की बात भी कही गई।
रायपुर के अधिवक्ता विशाल कोहली ने अधिवक्ता हिमांशु शुक्ला के माध्यम से एक याचिका दायर की है जिस पर कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई की। कोर्ट ने इससे संबंधित मुद्दों का स्वतः संज्ञान भी लिया है। याचिका में कहा गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक 10 हजार में एक मानसिक चिकित्सक होना चाहिए पर छत्तीसगढ़ में 8 लाख लोगों पर एक है। हर जिले में एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र तथा एक चिकित्सक भी जरूरी है। प्रदेश में एकमात्र राज्य मानसिक चिकित्सालय बिलासपुर के सेंदरी में स्थित है। यहां 11 पद स्वीकृत हैं पर केवल 3 डॉक्टर पदस्थ हैं। राज्य के 78 प्रतिशत मानसिक रोगियों को उपचार नहीं मिल पा रहा है।
शासन की ओर से बताया गया कि 3 मनोचिकित्सक के अलावा एक ईएनटी तथा एक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर की नियुक्ति मानसिक चिकित्सालय में की गई है। आगे और पद भरे जाएंगे। हालांकि सरकार की ओर से यह भी दावा किया गया कि वर्तमान सुविधाएं चिकित्सालय में आ रहे मरीजों के लिए पर्याप्त है।
हाईकोर्ट ने चिकित्सकों और सुविधाओं की कमी पर चिंता जताई है। मामले की सुनवाई जारी रहेगी।