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अशोक गहलोत की घोषणा के बाद तय माना जा रहा है कि राहुल गांधी अभी भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाह रहे हैं. लेकिन गहलोत हों या शशि थरूर, गांधी परिवार से बाहर किसी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की राह में कई अड़चनें हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पत्रकारों को बताया कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं चाहते हैं कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य पार्टी का अध्यक्ष बने. गहलोत ने पहली बार इस बात की पुष्टि की है कि वो निश्चित रूप से खुद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे.
इसके पहले सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर भी चुनाव लड़ने के इरादे की घोषणा कर चुके हैं. साथ ही दिग्विजय सिंह ने भी चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई है. मीडिया रिपोर्टों में मनीष तिवारी, कमल नाथ और मुकुल वासनिक का नाम भी दावेदारों के रूप में लिया जा रहा है.
अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने की आखिरी तारीख 30 सितंबर है. ये सभी नेता अगर चुनाव के लिए नामांकन कराते हैं तो यह एक ऐतिहासिक प्रतियोगिता होगी, लेकिन इससे पहले इन नेताओं को कई अड़चनों से गुजरना होगा.
कोई गांधी नहीं तो कौन?
सबसे पहली समस्या तो यह है कि कम से कम 11 राज्यों की प्रदेश कांग्रेस समितियों ने बाकायदा संकल्प पारित कर कहा है कि वो राहुल को ही अपने नेता के रूप में देखना चाहती हैं. लेकिन राहुल खुद इस अनुरोध को ठुकरा चुके हैं.
कांग्रेस के एक सूत्र ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि प्रदेश समितियों के ये संकल्प मौखिक हैं और सिर्फ गांधी परिवार के प्रति उनकी श्रद्धा के रूप में पारित किए गए हैं. इस सूत्र के मुताबिक प्रदेश समितियों के सदस्य यह जानते हैं कि ये संकल्प 'महत्वहीन' हैं.
ऐसे में सुई गांधी परिवार से हट कर चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक बाकी नेताओं पर जा कर रुकती है, लेकिन इस संकेत के साथ कि पार्टी को अध्यक्ष के रूप में वही नेता स्वीकार्य होगा जिसकी गांधी परिवार की भूमिका में श्रद्धा हो.
इनमें से मनीष तिवारी का पलड़ा सबसे कमजोर माना जा रहा है, क्योंकि उन्हें पिछले कई महीनों से पार्टी के अंदर एक बागी के रूप में देखा जाता है. वो पार्टी में सुधारों की मांग कर रहे जी-23 नाम के उस समूह का हिस्सा हैं, जिसके कपिल सिबल और गुलाम नबी आजाद जैसे सदस्य पार्टी से इतनी दूर जा चुके थे कि उन्हें पार्टी छोड़ कर चले ही जाना पड़ा.
कमल नाथ की बेहद विवादास्पद छवि है. 2020 में मध्य प्रदेश में चुनाव जीतने के बावजूद वो खुद अपनी ही सरकार बचाने में नाकामयाब भी रहे थे. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके भांजे रतुल पुरी के खिलाफ वीवीआईपी हेलीकॉप्टर डील में घोटाले में आरोप दर्ज किए हुए हैं और जांच भी चल रही है.
शशि थरूर की छवि
मुकुल वासनिक की छवि लोकप्रिय नेता की नहीं है और उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. दिग्विजय सिंह तो कई सालों से पार्टी के अंदर हाशिए पर कर दिए गए हैं. उनके पास इस समय पार्टी में कोई पद नहीं है.
मीडिया रिपोर्टों में शशि थरूर को अध्यक्ष पद के लिए एक गंभीर उम्मीवार माना जा रहा है. वो पूर्व अंतरराष्ट्रीय सिविल सर्वेंट हैं, केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, बतौर सांसद अपने तीसरे कार्यकाल में हैं और मीडिया और सोशल मीडिया में भी बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन विवादों से परे नहीं हैं. तिवारी की तरह वो भी जी-23 समूह में शामिल हैं.
थरूर के जीतने के कितने आसार हैं इसका अंदाजा कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ के एक ट्वीट से भी मिलता है.वल्लभ ने लिखा है कि उनके लिए "चयन बहुत सरल और स्पष्ट है" क्योंकि सोनिया गांधी जब अस्पताल में भर्ती थीं, ऐसे समय में "शशि थरूर साहब" ने पार्टी पर सवाल उठा कर "पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं को पीड़ा पहुंचाई."
इसके अलावा थरूर का हिंदी पट्टी के नेता ना होना भी उनके लिए प्रतिकूल माना जा रहा है. उनका अंग्रेजी पर तो जर्बदस्त नियंत्रण है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे वक्ता के मुकाबले हिंदी श्रोताओं के साथ जन संवाद स्थापित करने के मामले में उनका पलड़ा कमजोर माना जाता है.
अशोक गहलोत सबसे आगे
ऐसे में अध्यक्ष पद के सबसे प्रबल दावेदार गहलोत ही बचते हैं, लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी दुविधा है उनका गृह राज्य. वो तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हैं और पिछली बार तो मुख्यमंत्री पद को हासिल करने के लिए उन्होंने पार्टी में अध्यक्ष के बाद संगठन के सबसे ऊंचे पद को त्याग दिया था.
लेकिन राहुल गांधी द्वारा पार्टी में 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत की अहमियत को रेखांकित करना गहलोत के लिए संकेत माना जा रहा है. वो अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा.
ऐसे में माना जा रहा है कि गहलोत इस बात से चिंतित हैं कि उनकी बाद मुख्यमंत्री पद कहीं सचिन पायलट को तो नहीं दे दिया जाएगा. राजस्थान कांग्रेस में गहलोत और पायलट के अलग अलग खेमे हैं. 2020 में सचिन पायलट के नेतृत्व में राजस्थान के कई कांग्रेसी विधायकों ने जो बगावत कर दी थी, गहलोत उसे भूले नहीं हैं.
लेकिन कांग्रेस के सूत्र ने बताया कि पार्टी के केंद्रीय नेता भी उस प्रकरण को भूले नहीं हैं और उसके बाद से पार्टी के अंदर पायलट की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ा है. सूत्र ने बताया कि ऐसे में अगर पार्टी को राजस्थान में गहलोत का विकल्प ढूंढना पड़ा तो पार्टी की कोशिश रहेगी कि विद्यायक दल किसे तीसरे नेता को अपना मुखिया चुने. इस नेता के गहलोत के विश्वासपात्र होने की संभावना है.
सूत्र ने यह भी कहा कि वो इस बात से खुश हैं कि पार्टी एक नए केंद्रीय नेतृत्व की तरफ बढ़ रही है, क्योंकि पार्टी को इस समय बदलाव ही चाहिए. उन्होंने कहा कि बदलाव सफलता की गारंटी तो नहीं है, लेकिन यथा स्थिति से बेहतर है. (dw.com)
पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रेम संबंध में इस साल पहले छह माह में शादी के लिए भागने वाले ऐसे 1870 मामले सामने आए है. ज्यादातर मामलों में लड़की, लड़के को लेकर भागी.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट-
‘‘चार साल से उसके साथ मेरा प्रेम संबंध है, मैंने अपनी मर्जी से उससे शादी की है. वो मुझे भगाकर नहीं लाया, मैं खुद उसको लेकर भागी हूं.'' सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी एक वीडियो में ये अल्फाज हैं उस लड़की के, जिसके पिता ने एक लड़के के खिलाफ अपनी बिटिया के अपहरण की एफआइआर की है.
बिहार में हाल के महीनों में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ीं हैं, जिसमें लड़की के घरवाले उसके गायब होने पर अपहरण की प्राथमिकी दर्ज करवाते हैं. लेकिन, मामला जब सुलझता है तो वह प्रेम प्रसंग से जुड़ा होता है जिसमें लड़की खुद ही अपने प्रेमी के साथ फरार हुई होती है. ऐसे प्रकरणों से पुलिस तंग-तबाह है. इन्हीं मामलों को हनीमून किडनैपिंग यानि शादी के लिए अपहरण की संज्ञा दी गई है. यह शब्द पुलिस द्वारा गढ़ा गया है जिसका उपयोग वे शादी के लिए घर से लड़के-लड़कियों के भागने वाले मामले के लिए करते थे.
समय के साथ परिदृश्य बदल रहा है, पहले लड़की को लेकर लड़का फरार होता था, अब प्रेमिका ही प्रेमी को लेकर भाग रही है. वे खुलेआम इसका एलान कर पुलिस से हड़बड़ी में लड़के के परिवार वालों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का अनुरोध भी कर रही हैं. सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वायरल ऐसे मामलों से समाज विज्ञानी हतप्रभ हैं.
"मैं लड़के को भगाकर लाई हूं"
दरभंगा की रूपांजलि ने अपने ही गांव के लड़के राजकुमार से भागकर शादी कर ली. लोकलाज के भय से परिजनों ने अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. लेकिन लड़की ने एक वीडियो जारी कर पूरे मामले को ही उलट दिया. उसने मुकदमे को झूठा बताते हुए अपनी मर्जी से भागने की नहीं, लड़के को भगाकर शादी करने का एलान कर दिया. उसने यहां तक कह दिया कि मेरे घरवालों के डर से ही राजकुमार को घर छोड़ना पड़ा. इसी तरह वैशाली की बंधन कुमारी ने पिछले माह भागकर पास के ही गांव के विशाल से शादी कर ली. उसके दो दिन बाद परिवार वालों ने थाने में लड़के और उसके परिजनों पर एफआइआर कर दी.
इसका पता चलते ही बंधन ने एक वीडियो जारी कर साफ कह दिया कि मैंने अपनी मर्जी से शादी की है, कृपया हमें डिस्टर्ब न करें. मुजफ्फरपुर की युवती सुधा ने अपनी मर्जी की शादी में जाति को बाधक देखा तो उसने भागकर अपने ही गांव के विजय से विवाह कर लिया. पिता ने जब केस किया तो एक वीडियो जारी कर भागने की वजह को साफ कर दिया.
मुजफ्फरपुर की ही शाजिया ने घरवालों द्वारा तय की गई शादी के हफ्ताभर पहले भाग कर निकाह कर लिया. वीडियो जारी कर उसने पुलिस से ससुराल वालों को परेशान नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा कि घरवाले जबरन उसकी शादी करवा रहे थे. ऐसा ही एक मामला सारण (छपरा) जिले में देखने को मिला जहां दो विभिन्न संप्रदायों के प्रेमी जोड़े ने विवाह कर लिया था. मुकदमा होने के बाद वीडियो जारी कर अपने प्यार का इकरार किया और पिता पर आरोप लगाया कि वे जबरिया उसकी शादी किसी और से करा रहे थे जबकि वह अपनी मर्जी से शादी करना चाह रही थी.
ये अलग बात है कि पुलिस कानून के दायरे में अपना काम कर रही है और इन प्रेमी जोड़ों की तलाश में जुटी है. हाल के ही दिनों में घर से भाग कर शादी करने वाली पश्चिम चंपारण जिले की एक लड़की नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहती है, ‘‘मैं खुद लड़के को लेकर भागी हूं. चार साल से मैं उसके प्यार में हूं. कहने के बावजूद घर के लोग मेरी बात नहीं मान रहे थे. दूसरी जगह शादी करने की बात चल रही थी. कोई चारा नहीं था घर से भागने के अलावा. और इंतजार संभव भी नहीं था. जब पुलिस उसके निर्दोष घरवालों को तंग करने लगी तो मुझे वीडियो जारी कर पुलिस से सच्ची बात कहनी पड़ी.''
औसतन हर रोज भाग रहीं दस लड़कियां
पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रेम संबंध में इस साल पहले छह माह में शादी के लिए भागने वाले ऐसे 1870 मामले सामने आए. अगर प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो औसतन ऐसे दस मामले रोजाना सामने आ रहे हैं. इस प्रकार औसतन हर ढाई घंटे में एक प्रेमी युगल घर से फरार हो रहा है. इस साल अब तक हनीमून किडनैपिंग के 2778 मामले दर्ज हो चुके हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार इस मामले में बिहार दूसरे नंबर पर है. जहां 2020 में 5308 ऐसी घटनाएं हुईं थी, वहीं 2021 में 6589 मामले सामने आए.
पुलिस अधिकारी एमपी सिंह कहते हैं, ‘‘ऐसे मामले काफी परेशान करते हैं. कभी-कभी तो विधि व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाते हैं. दूसरे राज्यों का चक्कर भी काटना पड़ता है, लेकिन जब केस सुलझता है तो मामला कुछ और ही निकलता है.''
प्रेम विवाह को सामाजिक मान्यता नहीं
समाजशास्त्र के जानकार इसे नारी सशक्तिकरण के परिणाम के तौर पर देखते हैं. प्रोफेसर एससी महतो कहते हैं, ‘‘इस स्थिति को आप एक तरह की सामाजिक क्रांति कह सकते हैं, जो तकनीक के बढ़ते प्रयोग तथा महिलाओं की बढ़ती साक्षरता दर की वजह से देखने को मिल रही है. गांव-गांव की महिलाएं कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद स्मार्टफोन व इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहीं हैं, यह क्या है. पीछे झांक कर देखें, महिलाएं तो अपनी वाजिब बात भी नहीं कह पाती थीं.''
पत्रकार सुधीर के. सिंह इसे पाश्चात्य शैली के कुप्रभाव के रूप में देखते हैं. उनका मानना है कि स्मार्टफोन व इंटरनेट के प्रसार के कारण युवा अब 15-16 साल में ही सब कुछ जानने लगे हैं, क्योंकि इंटरनेट पर हर अच्छी-बुरी चीज उपलब्ध है. वे इसी से दिग्भ्रमित हो रहे हैं. इसलिए गायब होने वाली अधिकतर लड़कियां 15 से 20 साल की होती हैं. वे कहते हैं, ‘‘प्रेम विवाह को अभी हमारा समाज मान्यता नहीं देता है. लोकलाज के भय से लड़की के माता-पिता उसे समझाने की बजाय डांटते हैं, धमकाते हैं. इससे स्थिति और बिगड़ती है और अंतत: वे घर से भागकर प्रेमी के पास पहुंच जाती है.''
मनोचिकित्सक डॉ. अनामिका कहती हैं, ‘‘जिंदगी की भागदौड़ के कारण माता-पिता व बच्चों के बीच संवादहीनता की स्थिति बन जाती है. किशोरावस्था में वैसे ही शारीरिक परिवर्तन की वजह से लड़के-लड़कियां तनाव में होते हैं, वे ज्यादा एग्रेसिव रहते हैं. डांट-फटकार के बाद माता-पिता की हर बात बुरी लगती है और धीरे-धीरे वे विद्रोही हो जाते हैं.''
ऐसी स्थिति में इमोशनल होने के कारण बाहरी व्यक्ति जो उनकी बात सुनता है, प्यार जताता है वह उन्हें अच्छा लगने लगता है. उन पर उनका भरोसा बना जाता है और फिर इमोशनल अटैचमेंट के कारण वह फीलिंग्स के आधार पर निर्णय लेने लगता है. उसे सही-गलत का एहसास नहीं हो पाता है. जिसकी परिणति ऐसी ही घटनाओं के रूप में होती है. (dw.com)
जलवायु परिवर्तन की वजह से मध्य पूर्व का इलाका दुनिया के अन्य इलाकों की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. इस वजह से यहां के पिरामिड, महल, चर्च और स्मारकों पर दुनिया में बाकी जगहों की तुलना में ज्यादा खतरा है.
डॉयचे वैले पर काथरीन शेयर की रिपोर्ट-
बेबीलोन कभी दुनिया का सबसे बड़ा शहर था, झूलते बागों (हैंगिंग गार्डेन्स) के लिये इस जगह को दुनिया के सात आश्चर्यों में जगह मिली है. यह शहर टॉवर ऑफ बाबेल यानी बाबेल की मीनार के लिए भी जाना जाता है.
हालांकि इराक के दक्षिणी इलाके में मौजूद प्राचीन शहर बेबीलोन अब खत्म हो रहा है. मूल रूप से करीब 4300 साल पहले बना यह शहर आधुनिकता और प्राचीनता का अद्भुत मिश्रण था. इस ऐतिहासिक विरासत के मूल रूप को बनाये रखने के लिए इनमें बाद में प्लास्टर लगाए गए थे जो अब उखड़ रहे हैं. कभी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहीं और यहां की कई इमारतें में जाना अब खतरे से खाली नहीं है.
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन यानी यूसीएल में प्राचीन और मध्यकालीन पूर्वी इतिहास की प्रोफेसर इलीनॉर रॉबसन पिछले एक दशक से साल में कई बार इन इमारतों को देखने के लिए इराक गई हैं. रॉबसन कहती हैं, "कई साल से यहां भूजल का रिसाव हो रहा है और फिर भीषण गर्मी के कारण इमारतें ढह रही हैं. मई महीने में मैंने एक दिन यहां गुजारा. मेरे साथ अम्मार अल-ताई और उनकी टीम यानी वर्ल्ड मॉन्युमेंट्स फंड इन इराक के लोग भी थे. हमारा अनुभव बेहद परेशान करने वाला था. लोग इन इमारतों को अपनी आंखों से ढहते हुए देख रहे हैं.”
इस प्राचीन इराकी शहर को साल 2019 से यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित कर रखा है और ऐसा नहीं है कि इस इलाके में सिर्फ यही जगह जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रही है.
रेतीले तूफान, आग, बाढ़
मिस्र में, ज्यादा तापमान और नमी के कारण ऐतिहासिक इमारतों का रंग उतर रहा है और उनमें दरारें भी पड़ रही हैं. जंगलों में बार-बार लगने वाली आग, धूल और रेतीले तूफान, वायु प्रदूषण, मिट्टी में नमक की अधिकता और समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी के कारण भी यहां की इमारतों को नुकसान हो रहा है.
जॉर्डन में 2300 साल पुराने शहर पेट्रा के कुछ हिस्से भूस्खलन की बढ़ती आशंकाओं के कारण खतरे में हैं. यह शहर पहाड़ों के भीतर पत्थरों को काटकर बसाया गया है जिसमें पहाड़ों के अंदर ही घर, धार्मिक जगहें और दूसरी इमारतें बनी हुई हैं.
पूर्वी यमन में, भारी वर्षा और बाढ़ के कारण वादी हद्रामवत में कच्ची ईंटों से बनी इमारतों को नुकसान हो रहा है.
लीबिया में, मरुस्थल के बीच बसा हरित प्रदेश गदामेस भी खतरे में है क्योंकि यहां का मुख्य जलस्रोत सूख गया है. स्थानीय वनस्पतियां खत्म हो गई हैं और यहां रहने वाले लोग पलायन कर चुके हैं. समुद्र के बढ़ते जलस्तर और बाढ़ के कारण समुद्र तट पर मौजूद यह पुराना शहर भी खतरे में है.
इस महीने जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री और साइप्रस इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों की एक टीम ने एक रिपोर्ट छापी. जिसमें भविष्यवाणी की गई है कि स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब आने वाली है. रिसर्च से यह नतीजा निकला है कि मध्य पूर्व और भूमध्यसागर के इलाके दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रहे हैं और यहां का तापमान भी "औसत वैश्विक तापमान की तुलना में लगभग दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है.”
इसका मतलब यह हुआ कि यहां महल, किले, पिरामिड और दूसरे प्राचीन स्थल पर्यावरण में बदलाव के कारण दुनिया के अन्य प्राचीन धरोहरों की तुलना में कहीं ज्यादा खतरे में हैं.
सबसे ज्यादा खतरे में मध्यपूर्व की विरासतें
जैसा कि इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्युमेंट्स एंड साइट्स का कहना है, "जलवायु परिवर्तन आम लोगों और उनकी सांस्कृतिक विरासत के लिए सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता हुआ खतरा है.”
साइप्रस इंस्टीट्यूट में पुरातत्व और सांस्कृतिक विरासत के विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफेसर निकोलस बकीर्तिज कहते हैं, "इस बात में संदेह नहीं कि मध्य पूर्व इलाकों की सांस्कृतिक धरोहरों पर यह खतरा यूरोप या अन्य जगहों की धरोहरों की तुलना में कहीं ज्यादा है.”
वो कहते हैं कि मध्य पूर्व इलाके की विरासत इसलिए भी ज्यादा खतरे में है क्योंकि एक तो यह इलाका बहुत तेजी से गर्म हो रहा है और दूसरे, इन इलाकों के देश आर्थिक, राजनीतिक और युद्ध की वजहों से इन्हें संरक्षित रखने में भी असमर्थ हैं.
बकीर्तिज कहते हैं, "हर कोई इस बात को जानता है कि यह एक चुनौती है लेकिन हर कोई इस मुद्दे को प्राथमिकता देने में समर्थ नहीं है. जलवायु परिवर्तन निश्चित तौर पर यूरोपियन विरासत स्थलों को भी प्रभावित कर रहे हैं लेकिन यूरोप इस चुनौती को स्वीकार करने में कहीं ज्यादा सक्षम है.”
जलवायु परिवर्तन की चुनौती को देखते हुए मिस्र, जॉर्डन और खाड़ी के कुछ अन्य देश अपने विरासत स्थलों की देखभाल बेहतर तरीके से करने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र के अन्य देश ऐसा करने में ज्यादा सक्षम नहीं हैं.
यूसीएल से जुड़ी रॉबसन कहती हैं कि विरासत वाली जगहों के प्रबंधन के लिए ज्यादातर देशों में सरकारी संस्थान बनाये गये हैं. मसलन, इराक में स्टेट बोर्ड ऑफ एंटीक्विटीज एंड हेरिटेज है. रॉबसन कहती हैं, "ये संस्थान संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, यहां उपकरणों की कमी है और प्रशिक्षित कर्मचारियों का भी अभाव है क्योंकि इराक पिछले बीस साल से वैश्विक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. इस बीच, इन जगहों की जरूरतें बढ़ती ही जा रही हैं और इन्हें संरक्षित रखना महंगा होता जा रहा है.”
काहिरा स्थित मिस्र यूनिवर्सिटी फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर इब्राहिम बद्र कहते हैं, "विरासत स्थलों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के मामले में जागरूकता की अभी बहुत कमी है. इस संबंध में कुछ अध्ययन हुए जरूर हैं लेकिन उन्हें अभी लागू नहीं किया गया है. दुर्भाग्यवश, मध्य पूर्व के ज्यादातर देश इस मुद्दे पर बहुत गंभीर ही नहीं हैं और पुरातात्विक जगहों पर इन सबका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.”
अस्तित्व के लिए सोशल नेटवर्किंग की जरूरत
सबसे महत्वपूर्ण बात शायद यह है कि विशेषज्ञ इस बात पर भी चर्चा कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव विरासत स्थलों के आस-पास रहने वाले समुदायों पर भी बढ़ता जा रहा था. बकीर्तिज कहते हैं, "यह सिर्फ कोई प्राचीन मंदिर या पुरातात्विक स्थल ही नहीं हैं जो कि वहां हैं. बल्कि इससे उन समुदायों का भी वास्ता रहता है जो इन जगहों के आस-पास निवास करते हैं और इनके उपयोग और अनुभव के जरिए इनके महत्व को भी बनाए रखते हैं.”
वो कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से इन जगहों के नजदीक जब लोगों का रहना मुश्किल हो जाएगा तो लोग यहां से पलायन करने लगेंगे और फिर स्थिति यह होगी कि उन स्थलों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा और फिर धीरे-धीरे ये स्थल अपना सांस्कृतिक अर्थ भी खो देंगे.
बकीर्तिज इराक में स्थित कुछ प्राचीन ईसाई धर्म से जुड़े स्थलों का जिक्र करते हैं. उनमें से ज्यादातर अपना महत्व खो चुके हैं. वो कहते हैं, "स्थानीय ईसाई लोग युद्ध, जलवायु परिवर्तन और इस्लामी चरमपंथी समूह इस्लामिक स्टेट के हमलों की वजह से वहां से पलायन कर गए हैं. इसलिए उन जगहों पर अब कोई नहीं जाता और ना ही इन जगहों की देखभाल होती है. इन सब वजहों से ये स्थल अब खंडहर मात्र रह गए हैं.”
लूटपाट का बोलबाला
इसके अलावा विरासत स्थलों पर कुछ दूसरे कारणों से भी खतरा मंडरा रहा है. कई बार स्थानीय लोग यहां की कीमती चीजों की तस्करी करते हैं और उन्हें महंगे दामों पर बेच देते हैं. रॉबसन कहती हैं, "जब लोग मरुस्थलीकरण और उच्च तापमान की वजह से जमीन का उपयोग खेती के लिए नहीं कर पाते, तो हम देखते हैं कि ये लोग इसी तरह लूटमार करने लगते हैं और पुरातात्विक सामग्री को ही लूटने लगते हैं.”
रॉबसन कहती हैं कि इस तरह की स्थिति साल 2003 में इराक पर अमरीकी हमले के बाद आई है. यही कारण है कि सभी विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि मध्य पूर्व की सांस्कृतिक विरासत को जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए.
रॉबसन कहती हैं, "पुरातात्विक शब्दावली में कठोर भाषा में कहें तो बेबीलोन के बारे में हम यही कहेंगे कि हम एक एक और विरासत स्थल का पतन देख सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि पिछले पांच हजार साल में कई बार देखा गया है. भविष्य में पुरातत्वविद आकर सिर्फ इसकी खुदाई कर सकते हैं.” हालांकि वो ये भी कहती हैं कि यह स्थानीय लोगों के लिए इससे भी कहीं ज्यादा दुखद क्षण है.
उदाहरण के लिए, इराक के लोग तमाम चीजों पर बहस कर सकते हैं लेकिन एक चीज जो उन्हें एकता के सूत्र में बांध सकती है, वो है उनकी प्राचीन सभ्यता, प्राचीन मेसोपोटामिया जहां पहली बार लिखने, खेती करने और शहरों के उदाहरण मिलते हैं.
अंत में रॉबसन कहती हैं, "विरासत के साथ हमारा एक निजी संबंध होता है. वास्तव में यह एक विरासत है जो हमें बताती है कि हम कौन हैं, दुनिया में और अपने समुदाय में हमारी क्या अहमियत है. यह हमारे भीतर सामंजस्य की भावना लाता है और आखिरकार हमें हमारी पहचान की याद दिलाता है.” (dw.com)
हम बूढ़े क्यों होते हैं? हजारों साल से यह सवाल इंसानों को उलझाता आ रहा है. निराशा की बात है कि इसका कोई निश्चित जवाब भी तक नहीं मिला है- लेकिन अब तक जो पता चल पाया है, वो ये रहाः
डॉयचे वैले पर एस्तेबान पार्दो की रिपोर्ट-
जैसे जैसे हम उम्रदराज होते हैं, हमारे शरीर की कई प्रणालियां जर्जर होने लगती हैं. जैसे कि हमारी आंखे कमजोर पड़ने लगती हैं, जोड़ हिलने लगते हैं और त्वचा पतली होने लगती है. जितना बूढ़े होते जाते हैं उतना ही बीमार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, हड्डिया चरमरा जाती हैं और आखिरकार हम मर जाते हैं.
हमारी प्रजनन संबंधी कामयाबी, जो जीवनकाल में एक व्यक्ति की संतान पैदा करने की क्षमता के बारे में बताती है, वो भी उम्र के साथ घटने लगती है. फ्राइबुर्ग यूनिवर्सिटी में इवोल्युश्नरी बायोलॉजी के प्रोफेसर थोमास फ्लाट ने डीडब्ल्यू को बताया, "अधिकांश जीवों के साथ यही होता है."
वो कहते हैं, "प्राकृतिक चयन से क्रमिक विकास ठीक ठीक इस बारे में है कि आप कितनी सशक्त संताने पैदा कर पाते हैं. जितनी सशक्त, जीवित रह सकने लायक संतान आप पैदा करते हैं, उतना ही अधिक जीन्स आगे जाएंगी- ये सारा मामला प्रजनन को अधिकतम बनाने का है."
जीवों में उम्र के साथ प्राकृतिक चयन कमजोर पड़ता जाता है
इसका मतलब यह है कि प्रजनन के बाद जो कुछ भी होता है उसका इस बात पर बहुत ही कम असर पड़ता है कि आप अगली पीढ़ी को अपनी जीन्स कितनी कुशलता से दे पाते हैं. यही बात क्रमिक विकास को समझने की कुंजी है.
बूढ़े होते हुए आपकी अवस्था अच्छी है या बुरी है, वास्तव में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है. क्योंकि आप संतान तो पैदा कर ही नहीं पायेंगे.
अतीत मे इंसान, और जंगलों मे रहने वाले अधिकांश जीव, अपने आसपास के खतरनाक पर्यावरण की वजह से, बुढ़ापे की अवस्था में पहुंच ही नहीं पाते थे.
इसका मतलब जीवों में उम्र के साथ प्राकृतिक चयन कमजोर पड़ता जाता है.
प्रोफेसर फ्लाट कहते हैं, साफ शब्दों में कहें तो बहुत बूढ़े जीव, क्रमिक विकास के नजरिए से व्यर्थ होते हैं."
संचित तब्दीलियां (म्यूटेशन)
अब कल्पना कीजिए कि एक विशुद्ध संयोग की बदौलत आपको वंशानुक्रम यानी विरासत में एक खतरनाक म्यूटेशन मिल जाता है यानी खतरनाक बदलाव आप में आ जाता है. हालांकि आप उन बुरे प्रभावों का अनुभव करने के लिए उतना लंबा नहीं जी पाएंगे, लेकिन वो म्यूटेशन आपके जिनोम (जीन्स) में पड़ा रहेगा और उस तरह आपकी संतान तक पहुंच जाएगा.
यही होता आया है. पीढ़ियों से, बुढ़ापा खराब करने वाले कई म्यूटेशन हमारी जीन्स में जमा होते आ रहे हैं. ऐसे ही नकारात्मक म्यूटेशनों के जमा होने का एक उदाहरण मानी जाती है हंटिन्गटन बीमारी. यह जानलेवा बीमारी करीब 35 साल की उम्र में शुरू होती है.
प्रोफेसर फ्लाट और लिंडा पैट्रिज का एक लेख बीएमसी बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है जिसके मुताबिक इस बात के भी प्रमाण उपलब्ध हैं कि प्राकृतिक चयन कुछ उत्परिवर्तनों (म्यूटेशनों) की मदद कर सकता है जिनका शुरुआती अवस्था में तो सकारात्मक असर हो सकता है लेकिन उम्रदराज होते होते नकारात्मक असर आने लगते हैं.
इसका एक उदाहरण है, महिलाओं में उर्वर क्षमता को बढ़ाने वाली बीआरसीए1/2 जीन में होने वाला म्यूटेशन- जिससे उनमें स्तन कैंसर और गर्भाशय कैंसर का खतरा बन जाता है.
तो उस स्थिति में क्या होता है जब आधुनिक दवाओं और संशोधित आहार, हाइजीन और बेहतर जीवन स्थितियों की बदौलत हम ज्यादा समय तक जी पाते हैं? हम ऐसी उम्र तक जीवित रहते हैं जिसमें हम उन तमाम नकारात्मक प्रभावों का अनुभव कर सकते हैं.
कुछ जीव दूसरों की अपेक्षा ज्यादा क्यों जीते हैं?
अगर हम कुदरत को देखें, तो बुढ़ापा एक बहुत ही विविध प्रक्रिया है. कुछ जीव ऐसे हैं जो लगता है कभी बूढ़े ही नहीं होते हैं. जेलीफिश और मूंगों से संबंधित हाइड्रा मीठे पानी में उगने वाले पोलिप हैं, जो कभी उम्रदराज नही होते और अनश्वर से हैं.
और भी बहुत सारे पौधे हैं जिनमें उम्र का कोई निशान नजर नहीं आता और कुछ पेड़ भी ऐसे हैं जैसे ग्रेट बेसिन ब्रिस्टलकोन पाइन जो हजारों साल तक जिंदा रह सकता है. इनमें से मेथुसेलाह नाम का एक पाइन वृक्ष, करीब करीब 5,000 साल पुराना है.
दूसरा दिलचस्प उदाहरण ग्रीनलैंड शार्क का है. वह 150 साल की अवस्था में यौन परिपक्वता हासिल करती है. और 400 साल तक जिंदा रह सकती है. तमाम वर्टिब्रेट्स यानी कशेरुकी (हड्डी वाले) जीवो में सबसे लंबा जीवनकाल इसी शार्क का होता है.
उसके उलट, और यह बात कई लोगों को राहत भी देगी, कि एक मादा मच्छर, जो आपको नींद में काटने चली आती है, सिर्फ 50 दिन जिंदा रह पाती है.
बुढ़ापे और जीवनकाल में इतना बड़ा विशाल फर्क क्यों है, हम अभी भी नहीं जानते हैं लेकिन एक आंशिक जवाब क्रमिक विकास से जुड़ा है. अलग अलग जीवों में, पर्यावरणीय दबाव की वजह से परिपक्वता और प्रजनन की क्षमता में तेजी आई होगी जबकि दूसरे कारणों और दबावों से ठीक उलट भी हुआ हो सकता है.
माक्स प्लांक इन्स्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजी ऑफ एजिंग में पोस्ट डॉक्टरेट रिसर्चर सेबस्टियान ग्रुएनके ने डीडब्लू को बताया कि "सामान्य रूप से मरने वाले जानवरों का जीवनकाल छोटा होता है. यह बात समझ में आती है. क्योंकि मरने का बड़ा जोखिम तो यूं भी बने ही रहना है, तो आपको लंबे समय तक जीने के लिए खुद को झोंके रखने की जरूरत नहीं. आपको तेजी से प्रजनन में ध्यान लगाना चाहिए ताकि आप मरने से पहले संतान पैदा कर सकें." (dw.com)
भारत और म्यामांर के बॉर्डर पर एक ऐसा गांव है जो सीमा रेखा पर बसा है. गांव के निवासी दोनों देशों को नागरिक हैं. कभी इस गांव में जाने से बाहरी लोग कतराते थे.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
पूर्वोत्तर भारत में कई इलाके ऐसे हैं जिनकी खासियतों के बारे में देश के बाकी हिस्सों को लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है. कई इलाके बाहरी दुनिया से अब तक अछूते हैं. म्यांमार से लगी नागालैंड सीमा पर बसा लोंगवा गांव भी विविधता में एकता की ऐसी ही अनूठी मिसाल है. वैसे तो पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से लगी सीमा पर भी कुछ घर ऐसे हैं जो दोनों देशों की सीमा में हैं. लेकिन जो बात नागालैंड के मोन जिले के इस गांव में वह भारत में कहीं और नहीं है. यह गांव भारत-म्यांमार की सीमा रेखा पर बसा है.
यहां कोन्याक नागा जनजाति के करीब पांच सौ परिवार रहते हैं. इस गांव की अनूठी खासियतों और इलाके के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने के लिए अब धीरे-धीरे पर्यटक भी आने लगे हैं. पहले देश के बाकी हिस्सों के लोग इस अंदरूनी इलाके तक जाने से डरते थे.
भारत का आखिरी गांव
म्यांमार सीमा पर बसे लोंगवा को भारत का आखिरी गांव कहा जाता है. पूर्वोत्तर के बाकी इलाकों की तरह मोन जिला भी प्राकृतिक खूबसूरती की बेहतरीन मिसाल है. असम में सोनारी होकर पहले मोन और वहां से 42 किमी की दूरी तय कर लोंगवा पहुंचा जा सकता है. ऊपरी असम के जोरहाट से इस गांव की दूरी करीब 175 किमी है. पहली निगाह में पर्वतीय इलाके में बसा यह गांव देश के किसी भी आम गांव जैसा लगता है. लेकिन जो बात इसे खास बनाती है वह है इसका ठीक सीमा रेखा पर बसा होना.
गांव का एक हिस्सा भारत में है और दूसरा म्यांमार में. गांव के लोगों को दोहरी नागरिकता हासिल है और स्थानीय लोग बिना किसी वीजा-पासपोर्ट या कागजात के बेरोकटोक सीमा पार आवाजाही कर सकते हैं. गांव के मुखिया या राजा को अंघ कहा जाता है.
यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि इस राज्य में लोकतांत्रिक सरकार के साथ ही ग्रामीण इलाकों में विभिन्न कबीलों का राज चलता है. उनको राजा कहा जाता है. एक राजा आसपास के करीब सौ गांवों पर राज करता है. इलाके में उसकी बात पत्थर की लकीर होती है. लोग एक बार सरकार की बात तो टाल सकते हैं, अपने राजा की नहीं. लोंगवा के राजा की 60 पत्नियां हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि सीमा रेखा राजा के घर के बीचों बीच होकर गुजरती है. यानी राजा के घर का एक हिस्सा भारत में है और दूसरा म्यांमार में. राजा के घर की तरह ही कई और लोगों के घर में भी सोने का कमरा भारत में तो रसोई म्यांमार में है.
कोन्याक नागा जनजाति
इस गांव में कोन्याक नागा जनजाति के लोग रहते हैं. उनको देश की अंतिम हेडहंटर जनजाति के रूप में जाना जाता है. इस जनजाति के लोग पहले लड़ाई की स्थिति में दूसरी जनजाति के लोगों का सिर काटकर अपने पास इनाम के तौर पर रख लेते थे. इसके पीछे यह मान्यता थी कि इंसान की खोपड़ी में उसकी आत्मा की शक्ति होती है जिसका सीधा संबंध समृद्धि और प्रजनन क्षमता से है. 1960 के दशक में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार बढ़ने के बाद धीरे-धीरे यह प्रथा बंद हो गई.
इसके अलावा पीतल की बनी खोपड़ी के हार भी स्थानीय लोगों में काफी लोकप्रिय हैं. इस जनजाति के लोगों के चेहरों और पूरे शरीर पर पारंपरिक रूप से टैटू के निशान होते हैं. यह लोग अपनी उत्कृष्ट लकड़ी की नक्काशी, लोहार और हस्तशिल्प के लिए भी मशहूर हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि गांव के लोग भारतीय सेना के साथ-साथ म्यांमार की सेना में भी भर्ती होते हैं. खुद गांव के राजा का बेटे भी म्यांमार की सेना में है.
बदलने लगी तस्वीर
इस गांव और आसपास के इलाके प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है. इलाके की खबूसूरती और इस अनूठे गांव की खासियत देखने के लिए अब पर्यटकों की आवक भी बढ़ने लगी है. कोलकाता से जोरहाट होकर इस गांव का दौरा करने वाले एक पर्यटक मुकेश कुमार जायसवाल बताते हैं, "पहले तो बहुत डर लगता था वहां जाने में. कई लोगों से सुना था कि कोन्याक नागा जनजाति के लोग बाहरी लोगो का सिर काट लेते हैं. लेकिन नागालैंड में तैनात अपने एक परिचित से जब इसकी जानकारी मिली तो मैंने वहां जाने का कार्यक्रम बनाया.”
जायसवाल बताते हैं कि वह इलाका बेहद खूबसूरत है. खासकर आप एक घर के भीतर घूमते हुए ही दो देशों की सैर कर सकते हैं. वह भी बिना किसी कागजात के. यह कल्पना से परे है. लोंगवा पहुंच कर लगता है कि आप किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए हैं.
एक समाजशास्त्र प्रोफेसर सुमन भट्टाचार्य बताते हैं, "पहले खासकर नागालैंड के कबीलों के बारे में ऐसी-ऐसी खतरनाक बातें प्रचलित थीं कि आम लोग मोन तो दूर दीमापुर या कोहिमा जैसे शहरों में जाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. लेकिन धीरे-धीरे यह तस्वीर बदल रही है. साल दर साल पर्यटकों की बढ़ती तादाद ही इसका सबसे बड़ा सबूत है.” (dw.com)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 24 सितंबर। सोमनी इलाके के ठेकवा गांव के नजदीक शनिवार को एक आरक्षक की लाश मिली है। मृतक के शरीर पर कई गंभीर चोंट के निशान के आधार पर पुलिस हत्या की आशंका जाहिर कर रही है। फारेंसिंक विशेषज्ञों की मदद से मामले की गुत्थी सुलझाने की पुलिस कोशिश कर रही है। सीएसपी गौरव राय समेत अन्य पुलिस अफसर आरक्षक की मौत की घटना की तफ्तीश कर रहे हैं।
इधर पुलिस लाईन के मोटर प्रतिपालन विभाग में पदस्थ आरक्षक संतोष यादव की मौत की खबर से पुलिस महकमे में हडक़ंप मच गया है। एसपी प्रफुल्ल ठाकुर ने घटनास्थल का मुआयना किया। उन्होंने विशेषज्ञों की सहायता से पूरे मामले का जल्द पर्दाफाश करने का निर्देश दिया है। बताया जा रहा है कि आरक्षक संतोष यादव को कुछ युवकों के साथ घटनास्थल के आसपास देखा गया है।
आरक्षक के चेहरे और दूसरे हिस्सों में धारदार हथियार से चोंट के निशान मिले हैं। इस संबंध में एसपी प्रफुल्ल ठाकुर ने बताया कि आरक्षक का शव मिलने की खबर के बाद जांच की जा रही है। हत्या की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। सूत्रों का कहना है कि आरक्षक के साथ कुछ युवकों का विवाद हुआ था। पुलिस इस बिन्दु पर भी जांच कर रही है। चोंट के आधार पर पुलिस ने हत्या की आशंका जताई है।
सीएम ने डीजीपी को कड़ी कार्रवाई के लिए कहा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 24 सितंबर। प्रदेश में जुआ-सट्टा के विविध स्वरूपों, और प्लेटफार्मों पर प्रभावी रोक के लिए सीएम भूपेश बघेल ने डीजीपी अशोक जुनेजा को सख्त निर्देश दिए हैं। सीएम ने यह भी कहा कि ऑनलाइन कारोबार पर लगाम लगाने के लिए कड़े कानून बनाए जाएंगे।
बघेल ने प्रदेश में जुआ-सट्टा धड़ल्ले से चलने पर नाराजगी जताई। उन्होंने इसके लिए कड़े निर्देश दिए हैं। सीएम ने डीजीपी जुनेजा से चर्चा कर जुआ-सट्टा पर प्रभावी कार्रवाई के लिए कहा है।
बताया गया कि ऑनलाइन सट्टा का कारोबार फल-फूल रहा है। सीएम ने ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स में चल रहे जुआ सट्टा के अवैध कारोबार को बंद करने कड़े नियम बनाने के निर्देश दिए। जुआ सट्टा के ऑनलाइन कारोबार पर लगाम लगाने कड़े नियम कानून बनाए जाएंगे। इस निर्णय से प्रदेश में जुआ सट्टा के बढ़ते कारोबार पर अंकुश लगेगा। सीएम ने इसके लिए जरूरी विधिक प्रावधान, और प्रक्रियाएं तय करने के साथ ही प्रारूप तैयार प्रस्तुत करने को कहा है।
नवरात्र से शुरू हो रही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की धार्मिक यात्रा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव / रायपुर, 24 सितंबर। पचास किलोमीटर पदयात्रा की चुनौती देकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव फंस गए हैं। कोंडागांव के जिला कांग्रेस के पदाधिकारी सुबह-सुबह अरूण साव से मिलने पहुंच गए, और उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के साथ धार्मिक पदयात्रा पर चलने का न्यौता दे दिया। मरकाम नवरात्र के पहले दिन 26 तारीख से पदयात्रा पर निकल रहे हैं। वो कोंडागांव से दंतेवाड़ा तक पदयात्रा करेंगे।
अरूण साव ने कुछ दिन पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने मरकाम के उस दावे को गलत ठहराया था। जिसमें उन्होंने राहुल गांधी से कहा था कि वो एक दिन में 50 किलोमीटर तक पदयात्रा करते हैं। साव ने मरकाम पर झूठ बोलने का आरोप भी लगाया था। अब जब मरकाम पदयात्रा पर निकल रहे हैं, तो कांग्रेस के पदाधिकारी अरूण साव को साथ चलने की चुनौती दे रहे हैं।
मरकाम कोंडागांव से दंतेवाड़ा तक कुल 161 किलोमीटर की दूरी तीन दिन में तय करेंगे। पहले दिन 51 किलोमीटर पैदल चलेंगे। दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन के साथ ही 29 तारीख को यात्रा का समापन होगा।
श्री साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल कोंडागांव में थे। और शनिवार की सुबह दोनों के रवाना होने कोंडागांव जिले के पदाधिकारी उनसे मिले, और दोनों को विधिवत निमंत्रण पत्र सौंपकर मरकाम के साथ पदयात्रा पर चलने का आग्रह किया।
उत्तराखंड में बीजेपी नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य को एक रिसेप्शनिस्ट की हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया है.
उत्तराखंड पुलिस ने शनिवार सुबह अंकिता भंडारी नाम की लड़की की लाश बरामद की है. अंकिता की लाश ऋषिकेश में चीला कनाल से मिली.
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट करके घटना पर दुख जताया और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.
मुख्यमंत्री ने ट्वीट में लिखा, "आज प्रातः काल बेटी अंकिता का पार्थिव शव बरामद कर लिया गया. इस हृदय विदारक घटना से मन अत्यंत व्यथित है. दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने हेतु पुलिस उपमहानिरीक्षक पी. रेणुका देवी जी के नेतृत्व में एसआईटी का गठन कर इस गंभीर मामले की गहराई से जांच के भी आदेश दे दिए हैं. अभियुक्तों के गैर कानूनी रूप से बने रिजॉर्ट पर बुल्डोजर द्वारा कार्रवाई भी कल देर रात की गई है. हमारा संकल्प है कि इस जघन्य अपराध के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा."
छह दिन बाद मिली लाश
अंकिता की हत्या के मामले में पुलिस ने शुक्रवार को पुलकित आर्य, रिजॉर्ट के मैनेजर सौरभ भास्कर और असिस्टेंट मैनेजर अंकित गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया था.
पूछताछ के दौरान उन्होंने बताया कि हत्या के बाद उन्होंने अंकिता की लाश चीला कनाल में फेंक दी थी.
एएसपी शेखर चंद्र सुयाल के मुताबिक, शुरुआती पूछताछ में उन्होंने को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन सख्ती बरतने पर उन्होंने सच कबूल कर लिया.
बीते सोमवार को जब अंकिता अपने कमरे में नहीं मिली और परिजनों को उसका कोई पता नहीं चला तो उन्होंने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य बीजेपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वो उत्तराखंड माटी कला बोर्ड के चेयरमैन थे.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में ज़िलाधिकारियों को सभी रिजॉर्ट की जांच के आदेश दिए हैं और ग़ैरकानूनी ढंग से चल रहे सभी रिसॉर्ट पर कार्रवाई के लिए कहा है.
पौड़ी ज़िले के यमकेश्वर ब्लॉक में बने बीजेपी नेता के रिसॉर्ट पर शुक्रवार शाम बुलडोज़र चला. पुलकित आर्य ही इस रिजॉर्ट को चलाते थे. (bbc.com/hindi)
लोकसभा सांसद श्रीकांत शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कुर्सी पर बैठे नज़र आ रहे हैं. यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है और विपक्ष सवाल उठा रहा है.
श्रीकांत शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे हैं. उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा कि वो अपने पिता के लिए निर्धारित आधिकारिक कुर्सी पर नहीं बैठे थे.
उन्होंने यह भी कहा कि ये मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास भी नहीं है. यह तस्वीर ठाणे स्थित उनके निजी आवास की है जहां ऑफिस भी चलता है.
एनसीपी प्रवक्ता रविकांत वर्पे ने तस्वीर ट्वीट करते हुए तंज कसा और श्रीकांत शिंदे को ‘सुपर सीएम’ बताया. उन्होंने सवाल किया कि ‘ये कैसा राजधर्म है? और ये कैसे धर्मवीर हैं?’
शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ उनकी संवेदनाएं हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी का मज़ाक बनाया है.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘उन्हें तब इस बाद से होती परेशानी थी जब एक मंत्री होकर आदित्य ठाकरे अपना काम करते थे. लेकिन एकनाथ शिंदे का बेटा न मंत्री है और विधायक. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम के साथ मेरी संवेदनाएं हैं जिन्होंने सत्ता की भूख के लिए इस कुर्सी का और अपना भी मज़ाक बनाया है.’’
श्रीकांत शिंदे ने दिया जवाब
श्रीकांत शिंदे की वायरल तस्वीर के पीछे महाराष्ट्र शासन, मुख्यमंत्री का बोर्ड रखा है और शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे की तस्वीर भी रखी है.
हालांकि श्रीकांत शिंदे का कहना है कि उनके पीछे रखा गया बोर्ड एकनाथ शिंदे की उन आधिकारिक वर्चुअल बैठकों के लिए लाया गया था, जो वो अपने निवास से करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पिता 18 से 20 घंटे काम करते हैं. पिछले मुख्यमंत्रियों की तरह एक जगह बैठे नहीं रहते. मुख्यमंत्री और मैं, दोनों लोग इस कार्यालय का इस्तेमाल लोगों से मिलने और उनकी शिकायतें सुनने के लिए करते हैं. मैं मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास या कार्यालय में नहीं था. पीछे रखा बोर्ड हटाया जा सकता है.’’ (bbc.com/hindi)
आईटी कंपनी इंफोसिस के को-फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के दौर में भारत में आर्थिक गतिविधियां 'अवरुद्ध' हो गई थीं और मनमोहन सिंह सरकार ने फ़ैसले लेने में देरी की.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में युवा उद्यमियों और छात्रों से बातचीत के दौरान नारायण मूर्ति ने ये बात कही. मूर्ति ने इस बात पर भरोसा जताया कि नौजवान लोग भारत को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन का योग्य प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं.
भारत का भविष्य वो किस तरह से देखते हैं, इस सवाल पर नारायण मूर्ति ने कहा, "साल 2008 से साल 2012 के बीच मैं लंदन में एचएसबीसी के बोर्ड में हुआ करता था. शुरुआती कुछ सालों में जब बोर्डरूम की बैठकों के दौरान चीन का जिक्र दो से तीन बार हुआ करता था तो भारत का नाम एक बार लिया जाता था."
"लेकिन दुर्भाग्य से, मुझे नहीं मालूम कि बाद के सालों में भारत के साथ क्या हुआ. मनमोहन सिंह एक असाधारण शख़्स थे और मेरे मन में उनके लिए बड़ी इज्जत थी. लेकिन फिर भी भारत का विकास यूपीए के दौर में अवरुद्ध हो गया. फ़ैसले नहीं लिए जा रहे थे और हर काम में देरी हो रही थी."
इंफोसिस के को-फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति
नारायण मूर्ति ने कहा कि साल 2012 में जब उन्होंने एचएसबीसी छोड़ा था तो मीटिंग्स में भारत का जिक्र शायद ही होता था जबकि चीन का नाम लगभग 30 बार लिया गया. उन्होंने कहा, "इसलिए मुझे लगता कि ये आपकी पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि लोग भारत का नाम हर उस जगह पर लें जहां वे दूसरे देशों का जिक्र करते हैं, ख़ासकर चीन के बारे में. मुझे लगता है कि ये आप कर सकते हैं."
इंफोसिस के पूर्व चेयरमैन ने कहा कि एक वक़्त था कि जब पश्चिमी देशों के लोग भारत की तरफ़ देखा करते थे लेकिन आज उनके मन में हमारे लिए इज्जत की भावना है. भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
उन्होंने कहा, "मनमोहन सिंह जब वित्त मंत्री थे और साल 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई और मौजूदा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मेक इन इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया जैसी योजनाएं शुरूं की, इनसे भारत की साख बढ़ी है."
"जब मैं आपकी उम्र का था तो उस वक़्त कोई जिम्मेदारी नहीं थी क्योंकि न तो कोई मुझसे कुछ उम्मीद रखता था और न ही भारत से. लेकिन आज ये उम्मीद की जा रही है कि आप देश को आगे ले जाएंगे. मुझे लगता है कि आप लोग भारत को चीन का एक योग्य प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं."
उन्होंने कहा कि चीन ने महज 44 सालों में भारत को पीछे छोड़ दिया. (bbc.com/hindi)
लखनऊ, 24 सितंबर। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक व्यक्ति के आरोप के हवाले से कहा है कि अयोध्या जिले में जमीन पर अवैध कब्जा करने की नीयत से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मंदिर बनाया गया है और अब मुख्यमंत्री जी बताएं कि ऐसे भूमाफिया पर वो कार्रवाई करेंगे या दिल्ली से विशेष दस्ता आएगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अयोध्या में राम जन्मभूमि से करीब 25 किलोमीटर दूर भरतकुंड क्षेत्र में फैजाबाद-प्रयागराज राजमार्ग पर एक मंदिर बनाया गया है, जहां उनकी नियमित पूजा-अर्चना होती है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शुक्रवार की देर रात ट्वीट किया 'अयोध्या में मुख्यमंत्री जी का जो मंदिर बनाया गया है, उसको बनाने वाले के चाचा ने ही यह शिकायत मुख्यमंत्री जी से की है कि वो ज़मीन पर अवैध कब्जा करने की बदनीयत से बनाया गया है।'
इसी ट्वीट में यादव ने सवाल किया, 'अब मुख्यमंत्री जी बताएं कि ऐसे भू-माफिया भतीजे पर कार्रवाई वो करेंगे या दिल्ली से विशेष दस्ता आयेगा।'
मंदिर का निर्माण करने वाले स्थानीय निवासी प्रभाकर मौर्य ने बीते दिनों कहा था, ‘‘हमने योगी जी का मंदिर बनाया है, जो भगवान राम का मंदिर बना रहे हैं।’’ शनिवार को समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया 'ये जमीन कब्जाने का योगी मॉडल है? कहीं भी, कैसी भी सरकारी या निजी जमीन को कब्जाने हेतु भाजपा से जुड़े लोग ऐसे कुकर्म कर रहे, योगी जी ! ये फ्रॉड आदमी जिसने आपका मंदिर बनवाया ये आपके उपमुख्यमंत्री पद के लिए उचित व्यक्ति प्रतीत होता है क्योंकि इसकी अहर्ताएं आपके मानक अनुसार हैं!'
सपा ने अपने ट्वीट के साथ एक अखबार की खबर साझा की है जिसमें एक व्यक्ति ने आरोप लगाया है उसका भतीजा ग्राम समाज की बंजर भूमि पर मंदिर बनवा दिया है और उसके हिस्से की भी जमीन पर कब्जा करने की नीयत से शनिदेव की मूर्ति लगवा दी है। इसी खबर में भतीजे ने चाचा के आरोपों को खारिज किया है और दावा किया है कि उसने अपनी जमीन पर मंदिर निर्माण कराया है।
गौरतलब है कि अयोध्या में योगी आदित्यनाथ का मंदिर बनाया गया है, जहां नियमित रूप से सुबह और शाम दोनों समय विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और पूजा के बाद भक्तों के बीच प्रसाद बांटा जा रहा है।
यह मंदिर राम जन्मभूमि से करीब 25 किलोमीटर दूर जिले के भरतकुंड क्षेत्र में फैजाबाद-प्रयागराज राजमार्ग पर बनाया गया है। माना जाता है कि भरतकुंड वह स्थान है जहां भगवान राम के भाई भरत ने उन्हें वनवास जाते समय विदाई दी थी।
मंदिर का निर्माण करने वाले स्थानीय निवासी प्रभाकर मौर्य ने बीते दिनों कहा था, कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ने जिस तरह से जनकल्याण के काम किए हैं, उन्हें देवता जैसा स्थान मिल गया है। इसलिए मुझे मुख्यमंत्री का मंदिर बनाने का विचार सूझा।’’
इस मंदिर में धनुष और बाण से सुसज्जित योगी आदित्यनाथ की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है और इस प्रतिमा को भगवा रंग में रंगा गया है। प्रभाकर मौर्य ने कहा कि वह भगवान श्री राम की तरह प्रतिदिन योगी की प्रतिमा के सामने भजन पाठ करते रहते हैं। (भाषा)
मथुरा, 24 सितंबर। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के गोवर्धन थाना इलाके में बोरवेल में गिरे भेड़ के बच्चे (मेमना) को बचाने उतरे चाचा व उसके भतीजे की कुएं में दम घुटकर मृत्यु हो गई। पुलिस ने शनिवार को यह जानकारी दी।
गोवर्धन के थानाध्यक्ष नितिन कसाना ने बताया कि शुक्रवार को मुड़सेरस निवासी सरमन (52) और उनका भतीजा धर्म सिंह (22) जंगल में भेड़ चराने गए थे। उन्होंने बताया कि शाम को बारिश हो रही थी और जब वे लौट रहे थे, तब एक मेमना बोरवेल में गिर गया।
कसाना ने बताया कि मेमने को निकालने के लिए धर्म सिंह बोरवेल में उतर गया, जब वह वापस नहीं निकला, तो सरमन भी उतर गया, लेकिन वे बाहर नहीं आए। उन्होंने बताया कि रास्ते से गुजर रहे लोगों ने देखा तो घटना की जानकारी ग्रामीणों को दी।
कसाना ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने दो घंटे की मशक्कत के बाद ग्रामीणों की मदद से धर्म सिंह व सरमन को बाहर निकालकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा, जहां चिकित्सकों ने मेडिकल परीक्षण के उपरांत उन दोनों को मृत घोषित कर दिया।
मृतक सरमन के भाई झानो ने बताया कि प्रतिदिन की तरह दोनों भेड़ चराने गए थे और लौटते समय मेमना बोरवेल में गिर गया। उन्होंने बताया कि बच्चे को निकालने के दौरान संभवतः कुएं में उतरने पर जहरीली गैस से दम घुटने के कारण दोनों की मौत हो गई।
पुलिस उपाधीक्षक राम मोहन शर्मा ने बताया कि भेड़ चराकर लौटते समय चाचा- भतीजे की बोरवेल में दम घुटने से मौत हुई है। उन्होंने बताया कि दोनों के शवों का पोस्टमार्टम कराया गया है। (भाषा)
नोएडा (उप्र), 24 सितंबर। उत्तर प्रदेश भू- संपदा विनियामक प्राधिकरण (यूपी रेरा) ने उसके कई आदेशों का अनुपालन नहीं करने वाले 13 बिल्डरों पर कुल 1.39 करोड़ों रुपये का जुर्माना लगाया है।
रेरा ने इसके साथ ही बिल्डरों को 15 दिनों के भीतर जुर्माने की राशि जमा कराने का आदेश दिया है और ऐसा नहीं करने पर विधिक तरीके से राशि की वसूली करने करने की चेतावनी दी है।
‘यूपी रेरा’ के अधिकारियों ने बताया कि उसे कुल 45 हजार से अधिक शिकायतें मिली थीं जिनमें से करीब 40 हजार शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है, लेकिन बिल्डर कई आदेशों का पालन नहीं कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि यूपी रेरा ने समीक्षा बैठक के दौरान पाया कि 13 बिल्डरों को दिए गए सैकड़ों आदेशों का कई बार नोटिस दिए जाने के बाद भी अनुपालन नहीं किया गया है।
यूपी रेरा के अधिकारियों ने बताया कि सभी बिल्डर एनसीआर (उत्तर प्रदेश में आने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)के हैं। उन्होंने बताया कि अबतक रेरा बिल्डरों पर करीब 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुका है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 24 सितंबर। कांग्रेस के पूर्व नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को केंद्र पर परोक्ष हमला करते हुए आरोप लगाया कि लोग जांच एजेंसियों, सत्ता और पुलिस के डर के साये में जी रहे हैं।
‘‘धर्म का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल’’ के बारे में बात करते हुए, राज्यसभा सदस्य सिब्बल ने कहा कि भले ही यह पूरी दुनिया में हो रहा हो, ‘‘भारत धर्म के इस्तेमाल का एक ज्वलंत उदाहरण है।’’
सिब्बल ने कहा, ‘‘यह पूरी दुनिया में हो रहा है। कल लेस्टर में जो घटना हुई वह पूरी तरह से असहिष्णुता थी। हम सभी जानते हैं कि वहां क्या हुआ था। अब वहां भी ये चीजें पहुंच गई हैं। असली समस्या यह है कि आज भारत में नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने में जो शामिल हैं, वे एक खास विचारधारा का हिस्सा हैं। पुलिस कुछ भी करने को तैयार नहीं है।’’
पूर्व कैबिनेट मंत्री ‘रूपा पब्लिकेशन’ द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘‘रिफ्लेक्शंस: इन राइम एंड रिदम’’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों पर मुकदमा नहीं चलाया जाता है और इसलिए वे उसी तरह का एक और भाषण देने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।’’ (भाषा)
नयी दिल्ली, 24 सितंबर। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) सांख्यिकीय रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 35 के मुकाबले 2020 में घटकर 32 रह गई है। सबसे अधिक गिरावट उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में दर्ज की गई है।
भारत के महापंजीयक द्वारा बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2014 से शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) और नवजात मृत्यु दर (एनएमआर) में कमी देखी जा रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि देश 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्त करने की दिशा में है। मांडविया ने इस उपलब्धि पर देश को बधाई दी और सभी स्वास्थ्यकर्मियों, सेवा से जुड़े लोगों तथा समुदाय के सदस्यों को शिशु मृत्यु दर कम करने में अथक कार्य करने के लिए धन्यवाद दिया।
मंत्री ने कहा, ‘‘एसआरएस 2020 ने 2014 से शिशु मृत्यु दर में लगातार गिरावट दिखाई है। भारत केन्द्रित कार्यक्रमों, मजबूत केंद्र-राज्य साझेदारी तथा सभी स्वास्थ्यकर्मियों के समर्पण से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शिशु मृत्यु दर के 2030 एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार है।’’
देश में पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) में 2019 से तीन अंकों की (वार्षिक कमी दर 8.6 प्रतिशत) देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 35 के मुकाबले 2020 में घटकर 32 रह गई है।
रिपोर्ट के अनुसार शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में भी 2019 में प्रति 1000 जीवित शिशुओं में से 30 के मुकाबले 2020 में प्रति 1000 जीवित शिशुओं में से 28 के साथ दो अंकों की गिरावट दर्ज की गई है और वार्षिक गिरावट दर 6.7 प्रतिशत रही।
रिपोर्ट के अनुसार अधिकतम आईएमआर मध्य प्रदेश (43) और न्यूनतम केरल (6) में देखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में आईएमआर 2020 में घटकर 28 हो गया है, जो 2015 में 37 था। पिछले पांच वर्षों में नौ अंकों की गिरावट और लगभग 1.8 अंकों की वार्षिक औसत गिरावट आई है।
इसमें कहा गया है, ‘‘इस गिरावट के बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 35 शिशुओं में से एक, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 32 शिशुओं में से एक और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक 52 शिशुओं में से एक की अभी भी जन्म के एक वर्ष के भीतर मृत्यु हो जाती है।’’
रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म के समय लिंग अनुपात 2017-19 में 904 के मुकाबले 2018-20 में तीन अंक बढ़कर 907 हो गया है। केरल में जन्म के समय उच्चतम लिंगानुपात (974) है जबकि उत्तराखंड में सबसे कम (844) है।
नवजात मृत्यु दर भी 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 22 के मुकाबले दो अंक घटकर 2020 में 20 रह गई। रिपोर्ट के अनुसार, देश के लिए कुल प्रजनन दर (टीएफआर) भी 2019 में 2.1 से घटकर 2020 में 2.0 हो गई है। बिहार में 2020 के दौरान उच्चतम टीएफआर (3.0) दर्ज गई जबकि दिल्ली, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में न्यूनतम टीएफआर (1.4) दर्ज की गई।
इसके अनुसार छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों, केरल (4), दिल्ली (9), तमिलनाडु (9), महाराष्ट्र (11), जम्मू और कश्मीर (12) और पंजाब (12) ने पहले ही नवजात मृत्यु दर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्यारह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) - केरल (8), तमिलनाडु (13), दिल्ली (14), महाराष्ट्र (18), जम्मू कश्मीर (17), कर्नाटक (21), पंजाब (22), पश्चिम बंगाल (22), तेलंगाना (23), गुजरात (24), और हिमाचल प्रदेश (24) पहले ही यू5एमआर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं। (भाषा)
नयी दिल्ली, 24 सितंबर। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार को कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के विदेश में रहने वाले कुछ सदस्यों ने भारत में प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) खातों में कोष भेजा जिसे बाद में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन को स्थानांतरित कर दिया गया। इसका मकसद विदेशी वित्तोषण से संबंधित कानून से बचना था।
एक दिन पहले राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने पीएफआई के खिलाफ देशभर में छापे मारे थे और उसके चार सदस्यों को गिरफ्तार किया था।
ईडी ने आरोप लगाया कि पीएफआई ने विदेश में कोष इकट्ठा किया और उसे हवाला/अन्य माध्यम से भारत भेजा। ईडी ने कहा कि कोष पीएफआई/सीएफआई और अन्य संबंधित संगठनों के सदस्यों, कार्यकर्ताओं या पदाधिकारियों के खातों के जरिए भी भेजा गया।
एजेंसी ने कहा कि विदेश से हासिल कोष को सरकारी एजेंसियों से छुपाया गया और पीएफआई द्वारा ऐसे कोष और चंदा को जुटाने में नियमों का पालन नहीं किया गया, क्योंकि वह विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकृत नहीं है।(भाषा)
औरंगाबाद (बिहार), 24 सितंबर। बिहार एवं झारखंड के सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान के दौरान औरंगाबाद जिले से चार वांछित नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि गिरफ्तार नक्सलियों में भाकपा (माओवादी) का स्वयंभू 'क्षेत्रीय कमांडर' विनय यादव भी शामिल है, जिस पर 18 लाख रुपये का इनाम था। पुलिस ने नक्सलियों के पास से 20 लाख रुपये नकदी भी बरामद की है।
औरंगाबाद के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कांतेश कुमार मिश्रा ने कहा कि एक गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए, सुरक्षाकर्मियों ने जिले के कुछ वन क्षेत्रों में तलाशी अभियान शुरू किया था। उन्होंने कहा, ‘‘ये नक्सली कई अपराधों में शामिल थे। उनके पास से हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किया गया है।’’
पलामू के एसपी चंदन कुमार सिन्हा ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘औरंगाबाद जिले के दाउद नगर, मदनपुर और मायापुर इलाकों से वांछित नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया।’’
इससे पहले 18 सितंबर को झारखंड और बिहार में 60 से अधिक मामलों में वांछित नक्सली दीपक यादव उर्फ कारू यादव को महाराष्ट्र से गिरफ्तार किया गया था। (भाषा)
इंटकवेल को सप्लाई देने वाले बिजली खंबे को ट्रक ने तोड़ा
रायपुर, 24 सितम्बर। आज सुबह शहर के बड़े इलाके में नलों में पानी नहीं आया। सुबह से जल संकट है जो शाम तक बना रहेगा।
महादेव घाट रोड में एक ट्रक ने बिजली खंभे को गिराया है। इस खंबे की लाइन से ही फ़िल्टर प्लान्ट को पानी देने वाले इंटेक वेल से बिजली सप्लाई होती है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुधार कार्य शुरू नहीं हुआ था। इस तोड़ फोड़ के लिए ट्रक चालक या कंपनी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, उनके कारण पूरा शहर परेशान होगा। शहर की 41 में 34 टंकियों में नहीं भर पानी पाया ।एक वाहन चालक की गलती से पूरे शहर को नहीं मिला पानी।
अधिकारियों का कहना, शाम के पहले नहीं हो पाएगी जलापूर्ति
शहर में जगह जगह मेंटेनेंस चल रहा है जिसके कारण 3 बजे तक बिजली सप्लाई बाधित है। इससे आज बोर वाले भी परेशान होंगे।
इंटकवेल को सप्लाई देने वाले बिजली खंबे को ट्रक ने तोड़ा
रायपुर, 24 सितम्बर। आज सुबह शहर के बड़े इलाके में नलों में पानी नहीं आया.।सुबह से जल संकट है जो शाम तक बना रहेगा।
महादेव घाट रोड में एक ट्रक ने बिजली खंभे को गिराया है। इस खंबे की लाइन से ही फ़िल्टर प्लान्ट को पानी देने वाले इंटेक वेल से बिजली सप्लाई होती है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुधार कार्य शुरू नहीं हुआ था।इस तोड़ फोड़ के लिए ट्रक चालक या कंपनी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, उनके कारण पूरा शहर परेशान होगा।
शिमला, 24 सितंबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक युवा रैली को संबोधित करने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंकेंगे।
भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) द्वारा मंडी के पड्डल मैदान में ‘युवा विजय संकल्प रैली’ का आयोजन किया जा रहा है।
भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने कहा कि इस रैली में हिमाचल प्रदेश के एक लाख से अधिक युवा हिस्सा लेंगे।
हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के नेतृत्व में भारत निर्वाचन आयोग का एक उच्च स्तरीय दल चुनावी तैयारियों का जायजा लेने के लिए हिमाचल प्रदेश के तीन दिवसीय दौरे पर है।
हिमाचल प्रदेश के तीन दिवसीय दौरे के दूसरे दिन शुक्रवार को कुमार ने राज्य के मुख्य सचिव आर डी धीमान और पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू के साथ बैठक की थी। (भाषा)
त्रिशूर, 24 सितंबर। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को एक दिन के आराम के बाद त्रिशूर के पास पेरम्बरा से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ फिर से शुरू की। यात्रा में उनके साथ कांग्रेस पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए।
यात्रा सुबह करीब 6.30 बजे फिर से शुरू हुई। इसके सुबह का चरण 12 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद अंबल्लूर जंक्शन पर समाप्त होगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “एक दिन के विश्राम के बाद भारत जोड़ो यात्रा का 17वां दिन त्रिशूर जिले के पेरम्बरा जंक्शन से शनिवार सुबह लगभग 6.35 बजे शुरू हुआ। यात्रा में शामिल लोग शनिवार सुबह 12 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे।”
शुक्रवार को विश्राम के दिन यात्रा में हिस्सा लेने वाले लोगों और सेवा दल की टीम के लिए चलाकुडी में एक चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया था। सात सितंबर को यात्रा शुरू होने के बाद से यह दूसरा विश्राम दिवस था।
कांग्रेस की 3,570 किलोमीटर लंबी और 150 दिनों तक चलने वाली भारत जोड़ो यात्रा सात सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और यह जम्मू-कश्मीर में संपन्न होगी।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ 10 सितंबर की शाम को केरल पहुंची थी। एक अक्टूबर को कर्नाटक पहुंचने से पहले यह 19 दिनों में केरल के सात जिलों से गुजरते हुए 450 किलोमीटर लंबी दूरी तय करेगी। (भाषा)
रायपुर, 24 सितम्बर। मंत्रालय के संयुक्त एवं अंडर सचिवों के प्रभार बदले गए हैं। जीएडी से जारी आदेश अनुसार एम डी दीवान को संसदीय कार्य से मुक्त करते हुए जल संसाधन विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। उनके पास खेल युवा कल्याण और राजस्व विभाग का प्रभार बना रहेगा। एफ. केरकेट्टा को संसदीय कार्य का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। अवर सचिव मनोज श्रीवास्तव को गृह विभाग से मुक्त करते हुए आई टी और विमानन विभाग में पदस्थ किया गया है। उनके प्रभार लेने पर के के गौतम आईटी से और रविन्द्र मेढ़ेकर विमानन से मुक्त होंगे।
मुंबई, 23 सितंबर । महाराष्ट्र में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मध्य मुंबई में स्थित शिवाजी पार्क में वार्षिक दशहरा रैली निकालने की अनुमति देने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले का शुक्रवार को स्वागत करते हुए कहा कि न्यायपालिका में उसका भरोसा और मजबूत हुआ है।
वहीं, शिवसेना की गठबंधन सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने भी फैसले का स्वागत किया है।
ठाकरे ने कहा कि पांच अक्टूबर की रैली के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की है और आशा जतायी कि राज्य प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाएगा।
अदालत के फैसले पर ठाकरे ने कहा, ‘‘न्यायपालिका में हमारा भरोसा और मजबूत हुआ है। पार्टी के गठन के वक्त से अभी तक हमने शिवाजी पार्क में विजयदशमी बनानी बंद नहीं की है, सिर्फ कोरोना के दौरान उत्सव नहीं हुआ।’’
उद्धव ठाकरे ने शिवसैनिकों से दशहरा रैली में अनुशासन बनाए रखने और दशकों पुरानी परंपरा का गौरव बरकरार रखने का अनुरोध किया है।
गौरतलब है कि शिवाजी पार्क में पांच अक्टूबर को दशहरा रैली आयोजित करने के लिए शिवसेना के दोनों धड़ों (ठाकरे नीत, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत धड़े) ने अनुमति मांगी थी, जिसके बाद दोनों अदालत भी पहुंच गए।
शिंदे समूह की प्रवक्ता किरण पावस्कर ने कहा कि वे उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने पर विचार कर रहे हैं।
वहीं, ठाकरे के वफादार शिवसेना के अन्य नेताओं ने भी अदालत के फैसले का स्वागत किया।
फैसले का स्वागत करते हुए पार्टी की प्रवक्ता मनीषा कायान्डे ने कहा कि कोविड के कारण दो साल बाद आयोजित हो रही इस साल की दशहरा रैली भव्य होगी।
उन्होंने दावा किया कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर निश्चित ही कुछ दबाव रहा होगा, जिसके कारण उनसे अनुमति नहीं दी।
शिवसेना के सचिव विनायक राउत ने कहा, ‘‘न्यायपालिका में हमारा भरोसा कायम रहा है। पिछले कई वर्षों से ‘शिव तीर्थ’ (शिवसेना शिवाजी पार्क को यही कहती है) में दशहरा रैली हो रही है, लेकिन इस साल शिंदे गुट और भाजपा ने मिलकर बाधा उत्पन्न करने का प्रयास किया। शुक्र है कि अदालत ने इसे खारिज कर दिया।’’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले शिवसेना के गुट ने भी पांच अक्टूबर को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करने की अनुमति मांगी थी।
हालांकि, बीएमसी ने दोनों गुटों को अनुमति देने से इंकार कर दिया और कहा कि किसी एक पक्ष को अनुमति देने से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।
न्यायमूर्ति आर. डी. धनुका और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने ठाकरे नीत शिवसेना गुट और उसके सचिव अनिल देसाई की, बृहन्मुंबई महानगरपालिका के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति दे दी। अदालत ने कहा कि बीएमसी का आदेश ‘‘स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’’
पीठ ने ठाकरे नीत शिवसेना को दो से छह अक्टूबर तक शिवाजी पार्क का उपयोग करने की अनुमति दी है, लेकिन साथ ही कानून-व्यवस्था बनाए रखने को कहा है।
वहीं, राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने भी अदालत के फैसले पर प्रसन्नता जतायी है।
पुणे में पत्रकारों से बातचीत में विधानसभा में विपक्ष के नेता पवार ने कहा कि जो लोग मुख्यमंत्री शिंदे का भाषण सुनना चाहते हैं वे बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) जा सकते हैं, जो ठाकरे की रैली में हिस्सा लेना चाहते हैं वे शिवाजी पार्क का रूख करें।
गौरतलब है कि शिवसेना के शिंदे नीत धड़े को बीकेसी के मैदान का इस्तेमाल करने की अनुमति मिल गई है। (भाषा)
नोएडा (उप्र), 24 सितंबर। केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) के एक निरीक्षक को अपनी एक वरिष्ठ सहयोगी को ‘अनुचित, अपमानजनक’ संदेश भेजने और उन्हें जान से मारने की धमकी देने के आरोप में शुक्रवार को यहां गिरफ्तार किया गया।
अधिकारियों ने कहा कि उपायुक्त स्तर की अफसर की शिकायत के आधार पर मामले में 20 सितंबर को फेज-3 थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, लेकिन सीजीएसटी निरीक्षक तब से फरार था।
एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने कहा कि शिकायतकर्ता, नोएडा की एक सीजीएसटी उपायुक्त हैं और शहर के सेक्टर 121 में रहती हैं और उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके अधीनस्थ निरीक्षक ने उन्हें "व्हाट्सऐप पर अनुचित, अपमानजनक संदेश" भेजा है।
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘उन्होंने यह भी दावा किया कि अपने संदेशों में उसने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी।’’
अधिकारी ने कहा, ‘‘अफसर ने दावा किया कि उन्हें निरीक्षक से हानि की आशंका है और उन्होंने उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग की। शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई जिसके बाद से ही फरार आरोपी को शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया गया।’’
पुलिस ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 504, 506 और 509 (बी) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। पुलिस ने कहा कि आरोपी को बाद में स्थानीय अदालत में पेश किया गया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। (भाषा)