ताजा खबर
नई दिल्ली, 21 जुलाई (एजेंसी)। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड की दोषी नलिनी ने सोमवार रात को जेल के अंदर आत्महत्या करने की कोशिश की। नलिनी तमिलनाडु के वेल्लोर जेल में बंद है। यहीं उसने कथित तौर पर आत्महत्या करने की कोशिश की। इसकी जानकारी उसके वकील पुगलेंती ने दी।
नलिनी के वकील ने अनुसार, पिछले 29 साल से जेल में बंद नलिनी के साथ पहली बार ऐसा हुआ है जब उसने खुदकुशी करने की कोशिश की हो। वकील ने बताया कि उसका जेल में कथित तौर पर एक कैदी से झगड़ा हुआ था। जिस साथी कैदी के साथ नलिनी का झगड़ा हुआ था वो भी उम्र कैद की सजा के लिए जेल में बंद है। उस कैदी ने जेलर से झगड़े की शिकायत की जिसके बाद नलिनी ने आत्महत्या करने की कोशिश की।
वकील ने बताया कि नलिनी ने पहले कभी ऐसा नहीं किया इसलिए इसकी असल वजह जानने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि नलिनी का पति मुरुगन भी राजीव गांधी हत्याकांड में जेल के अंदर बंद है। उसने अनुरोध किया है कि उसकी पत्नी को वेल्लोर जेल से पुझल जेल में शिफ्ट कर दिया जाए। वकील ने बताया कि अदालत में मुरुगन की मांग को उठाया जाएगा।
-सरोज सिंह
बिहार, 21 जुलाई। बिहार में जुलाई के पहले 18 दिन में कोरोना के 15 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं। मई और जून दोनों महीनों के आंकड़ों को मिला भी दिया जाए तो ये संख्या उससे अधिक है।
इसलिए विपक्ष नीतीश सरकार पर हमलावर है और तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि बिहार कोरोना का ग्लोबल हॉटस्पॉट बनने जा रहा है। कुछ इसी तरह की बात मेडिकल जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट में कही गई है। 17 जुलाई की इस रिपोर्ट में भारत के तमाम राज्यों के 20 जिलों का वल्नरबिलिटी इंडेक्स बताया गया है। 20 में से 8 जिले अकेले बिहार के हैं।
आसान शब्दों में कहें तो इसमें ये बताया गया है कि कौन सा राज्य कोरोना की चपेट में आने के बाद उससे लडऩे के लिए कितना तैयार है। इस इंडेक्स में मध्य प्रदेश के बाद नंबर आता है बिहार का। यानी इन दोनों राज्यों की व्यवस्था चरमराने का खतरा सबसे ज्यादा है।
डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर दोनों ही संस्थाएं कोरोना के खिलाफ लड़ाई में टेस्टिंग को सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई मानती है। यानी टेस्ट अधिक से अधिक होगा, तो पॉजिटिव लोगों के बारे में जानकारी समय पर मिलेगी और फिर उनके कॉन्टेक्ट को ट्रेस और आइसोलेट करने में मदद मिलेगी।
लेकिन प्रदेश की सरकार उसी में पिछड़ती जा रही है। बिहार में प्रति मिलियन टेस्ट की बात करें, तो आंकड़ा 3000 है। बिहार से कहीं छोटा राज्य दिल्ली है। वहां प्रति मिलियन 45000 टेस्ट किए जा रहे हैं।
हालांकि ये आंकड़े महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इससे भी कहीं ज्यादा हैं। इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि बिहार में टेस्टिंग की हालत कितनी खराब है। अगर टेस्ट नहीं होंगे तो पॉजिटिव लोगों के बारे में पता नहीं चल पाएगा। और फिर कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग भी नहीं हो पाएगी।
एलएनजेपी पटना के हड्डी रोग विभाग के पूर्व निदेशक डॉक्टर एचएन दिवाकर की मानें, तो जुलाई में आंकड़ों में इजाफा इसलिए भी आया है क्योंकि टेस्टिंग बढ़ी है। इसे केवल नकारात्मक तरीके से ही नहीं देखना चाहिए। जांच ज्यादा होगी तो मामले ज्यादा निकलेंगे ही। बिहार में आज सुबह तक कुल 3 लाख 78 हजार लोगों के टेस्ट हुए है, जिनमें से पिछले 24 घंटे में 10 हजार से ज्यादा टेस्ट हुए हैं।
बिहार की बिगड़ती गुई कोरोना स्थिति पर केंद्र सरकार की भी नजर है। इसलिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तीन सदस्य टीम स्थिति का जायजा लेने रविवार को बिहार पहुंची है।
इस टीम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डॉक्टर एसके सिंह और एम्स नई दिल्ली के डॉक्टर नीरज निश्चल शामिल हैं। सोमवार देर शाम इनकी वापसी है। लेकिन दो दिन में ये टीम इस बात का पता लगाएगी कि आखिर राज्य सरकार में चूक कहां हुई।
ये हाल तब है जब बिहार में बीजेपी सत्ता में शामिल है. बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ख़ुद बीजेपी कोटे से स्वास्थ्य मंत्री हैं।
दिल्ली में एक समय पर कोरोना की स्थिति ऐसी बिगड़ती नजर आई थी। दिल्ली सरकार ने समय रहते अलार्म बेल बजाया, और केंद्र सरकार हरकत में आई। खु़द मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और स्वास्थ्य मंत्री से मदद माँगी और मामला काबू में आता दिख रहा है।
लोकजनशक्ति पार्टी के नेता और लोकसभा सांसद चिराग पासवान ने ट्वीट पर केंद्र सरकार द्वारा टीम भेजने की पहल की सराहना की है। लेकिन बिहार सरकार की अपनी तरफ से ऐसी कोई पहल नहीं दिखी।
लेकिन बिहार सरकार ने अपनी तरफ से खुल कर केन्द्र से ना कोई मदद मांगी ना ही खतरे की घंटी का जिक्र ही किया। केन्द्रीय टीम ने बिहार दौरे के दौरान केन्द्र सरकार के बनाए कंटेन्मेंट जोन प्लान को सख्ती से अमल में लाने की बात भी कही है। इन सबको देखते हुए विपक्ष भी राज्य सरकार को फेल बताने से भी परहेज नहीं कर रही है।
हालाँकि बिहार सरकार ने कोरोना की बिगड़ती हुई हालत से निपटने के एक बार फिर से लॉकडाउन लगाया है। उसका कितना फायदा मिलेगा इसका पता कुछ समय बाद चलेगा। लेकिन डॉक्टर दिवाकर का मानना है कि पिछले लॉकडाउन का सही इस्तेमाल ना तो सरकार ने किया और ना ही जनता ने। डॉक्टर दिवाकर कहते हैं कि अभी तक बिहार में प्राइवेट अस्पतालों में के लिए कोई टेस्टिंग प्रोटोकॉल सरकार की तरफ से जारी नहीं किया गया है।
इतना ही नहीं पटना में केवल दो अस्पतालों को ही कोविड19 अस्पताल बनाया गया है। इसके अलावा दो अस्पतालों को आइसोलेशन सेंटर बनाया गया है। नतीजा ये कि बाकी जिलों से ज्यादातर मरीजों को पटना रेफर किया जा रहा है और प्राइवेट अस्पतालों ने इलाज के लिए हाथ खड़े कर दिए हैं, उनका बोझ भी इन्ही अस्पतालों पर पड़ रहा है।
दिल्ली या बाकी राज्यों में प्राइवेट अस्पतालों को कोविड से लडऩे के लिए जिस तरह से तैयार रहने के आदेश राज्य सरकार से मिले हैं, वैसे आदेश बिहार सरकार की तरफ से जारी नहीं किए गए हैं।
बिहार का हेल्थ केयर सिस्टम
बिहार सरकार अपने विज्ञापनों और ट्वीट में राज्य के बेहतर रिकवरी रेट का हवाला देती आई है। बिहार में फिलहाल रिकवरी रेट 62.9 फीसदी है. लेकिन जानकारों की मानें, तो रिकवरी रेट कोरोना की सही तस्वीर पेश नहीं करते।
आईएमए बिहार के सचिव सुनील कहते हैं कि बिहार में हेल्थ केयर सिस्टम की खस्ता हालत ही बिहार के कोरोना विस्फोट के लिए जिम्मेदार है। बीबीसी से फोन पर बातचीत में डॉक्टर सुनील कहते हैं, नालंदा मेडिकल कॉलेज पटना में कोविड अस्पताल है. वहाँ एनेस्थेसिया विभाग में 25 सीनियर रेजिडेंट्स का पद हैं। उनमें से एक भी पद पर आज की तारीख में डॉक्टर नहीं हैं। 60 साल की उम्र से अधिक दो डॉक्टरों और 5 जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की मदद से आज किसी तरह से काम चल रहा है।
डॉक्टर सुनील कहते हैं कि यही हाल ज़्यादातर मेडिकल कॉलेज का है। जब फ्रंटलाइन वर्कर ही नहीं होंगे तो कोरोना से निपटेगा कौन?
आईएमए के अनुमान के मुताबिक बिहार में सभी मेडिकल कॉलेजों को मिला कर 3000 पद खाली हैं। उनके मुताबिक आईएमए ने राज्य सरकार में मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य सचिव तक सभी को तुरंत रिक्त पदों पर नियुक्ति के बारे में कई पत्र लिखे हैं लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसी तरह से मरीज और डॉक्टर अनुपात, मरीज और अस्पताल में बेड के अनुपात में भी बिहार देश के सबसे पिछले राज्यों में से एक हैं।
कोरोना और राजनीति
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि कोरोना के लिए बिहार सरकार की तैयारी वैसी ही थी, जैसी किसी को अपने दुश्मन के खिलाफ बिना हथियार के जंग लडऩे के लिए उतार दिया जाए।
राज्य सरकार ने कोरोना के कार्यकाल में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव का ही तबादला कर दिया। इसके पीछे कई वजहें गिनाई गईं लेकिन महामारी के बीच में ऐसा करने पर विपक्ष को राजनीति का हथियार मिल गया।
मणिकांत आगे कहते हैं, जैसे बाकी प्रदेशों के मुख्यमंत्री चाहे वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे हों, या फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों या फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सभी समय समय पर कोरोना काल में हरकत में नजर आए। दूसरे मुख्यमंत्रियों की तुलना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम एक्टिव दिखे। विपक्ष हमेशा नीतीश कुमार के क्वारंटीन में होने की बात ही करता रहा।
हालांकि नीतीश कुमार पाटलिपुत्र स्पोर्टस सेंटर में बने कोविड केयर में मुआयना करने गए थे, लेकिन ज्यादातर वीडियो कॉन्फ्ररेंसिंग से ही स्थिति पर नजर रखते रहे।
मणिकांत ठाकुर के मुताबिक कुछ राज्यों ने कोरोना में आने वाले दिनों में हालात कितने बद से बदतर होने वाले हैं इसके लिए टास्क फोर्स बनाया लेकिन बिहार सरकार ने ऐसी कोई पहल नहीं की।
ये भी वजह थी कि सरकार के पास एक्सपर्ट नहीं थे जो उन्हें सही समय पर सही सलाह दे पाते. उनका मानना है कि राज्य सरकार में ज्यादातर फैसले नौकरशाहों ने किए बीमारी के जानकार डॉक्टरों ने नहीं।
वो मानते हैं कि राज्य सरकार ने प्रवासी मजदूरों पर भी निर्णय देर से लिया। लेकिन वो साथ में ये भी जोड़ते हैं कि उसमें नीतीश सरकार की ज्यादा गलती नहीं थी, क्योंकि उन्होंने केंद्र के प्रोटोकॉल को ही फोलो किया था।
इतना जरूर है कि प्रवासी मज़दूरों को ठीक से संभाल पाने में सरकार कामयाब नहीं रही। क्वारंटीन सेंटर में ना तो खाने की व्यवस्था अच्छी ना रहने की ना शौचालय की। इनकी हालत की और भ्रष्टाचार की भी खबरें सबने देखी ही है। इसलिए सबसे पहले क्वारंटीन सेंटर भी बिहार में ही बंद किया गया।
फिलहाल बिहार में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा दूसरे बड़े राज्यों के मुकाबले कम है। विपक्ष सरकार पर वर्चुअल रैली में व्यस्त रहने का आरोप लगा रही है लेकिन चौक चौराहों से जो तस्वीरें आ रही हैं वो अपने आप मे डराने वाली है।
डॉक्टर दिवाकर की मानें, तो पूरा दोष सरकार पर मढ़ देना भी सही नहीं है। बिहार में जगह-जगह कोरोना के लक्षण और बचाव के बारे में पोस्टर लगे हैं। बावजूद इसके किसी भी चौक चौराहे पर इसका पालन करते आपको लोग नहीं दिखेगें। जब मोबाइल फोन पर आपको इसके बारे में बताया जा रहा है, टीवी पर हर घंटे कई बार विज्ञापन दिखाया जा रहा है, फिर भी लोग ना तो मास्क पहनने को राजी है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं।
बिहार में नेता प्रतिपक्ष ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें जांच के लिए अस्पताल में खड़े लोग एक दूसरे के साथ पीठ से पीठ सटाए खड़े नजर आ रहे हैं।
डॉक्टर दिवाकर कहते हैं कि इसके लिए सरकार को नहीं जनता को दोषी मानना चाहिए। जब तक लोगों में कोरोना से भय नहीं होगा और बचाव के लिए ख़ुद लोग सजग नहीं होंगे, प्रशासन के सारे उपाय धरे के धरे रह जाएंगे।
तो बिहार को क्या करना होगा?
इसका जवाब लैंसेट की रिपोर्ट में है। इस रिपोर्ट को लिखने वाले राजीब आचार्य ने बीबीसी से बात की। राजीब पॉपुलेशन काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ जुड़े हैं। उनके मुताबिक बिहार को हेल्थ सिस्टम पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत है और वो भी जिला स्तर पर। इसके अलावा लोगों की समाजिक और आर्थिक स्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि घरों में पानी, टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधाएं लोगों को मिल सके।
इसके अलावा बिहार में गरीब लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। कोरोना की स्थिति से कैसे निबटेंगे, ये राज्य सरकार को सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उनका इलाज कैसे होगा और खर्च कैसे चलेगा।
जाहिर है ये सभी चीजें रातों रात नहीं होंगी। लेकिन पांच महीने में भी बिहार सरकार ने इस दिशा में क्या किया, ये अब सोचने का सही वक्त है।(bbc.com/hindi)
बिहार की 15 वर्षीय सुशासनी बदनसीबी देख माथा पकड़िए। संक्रमित कोरोना मरीज़ों के बगल में इलाज के अभाव में मरे संक्रमित व्यक्ति का दो दिन से शव पड़ा हुआ है। CM,स्वास्थ्य मंत्री और अधिकारियों को फोन किया लेकिन दो दिन से शव नहीं हटाया गया।
कोरोना मरीज़ों के पास अगर डेडबॉडी रखी है और एक दिन बीत जाने के बाद भी आप उसे हटा नहीं रहे तो दूसरे लोगों को जानबूझकर आप मारने की साजिश रच रहे हैं.
— Chitra Tripathi (@chitraaum) July 21, 2020
बेहद शर्मनाक है, वैसे बिहार के अस्पताल तो छोटी बीमारियों में भी अपनी पोल खोल देते हैं यहाँ तो मामला कोरोना का है. https://t.co/K8CLgJ0fQh
अपने नागरिकों की निगरानी एक बुरी नजीर है और हो सकता है कि यह इस स्वास्थ्य संकट के खत्म होने के बाद भी जारी रहे
-अक्षत संगोमला
कोविड-19 के मरीजों के नाम जारी करने से लेकर, मोबाइल ऐप के माध्यम से लोगों को उनकी निजी जानकारी साझा करने तक, केंद्र और राज्य सरकारें इस स्वास्थ्य संकट के समय खुलेआम लोगों की निजता और मानवीय मर्यादा का उल्लंघन कर रही हैं। दरअसल, सरकारें मोबाइल निगरानी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से चेहरे की पहचान का एक पुरातन कानून का दोहन कर रही है जो टेलीविजन के आविष्कार से पहले वजूद में आया था। यह कानून है महामारी अधिनियम (एपिडेमिक एक्ट) 1897, जो पिछले 123 वर्ष से बिना किसी बड़ा बदलाव के चल रहा है।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स में स्वास्थ्य सलाहकार पीएस राकेश द्वारा वर्ष 2016 में प्रकाशित एक शोधपत्र में पाया गया कि यह कानून सरकारों को लोगों की स्वायतता, गोपनीयता और स्वतंत्रता पर परिस्थिति को बिना स्पष्ट तौर पर परिभाषित करते हुए लगाम लगाने की इजाजत देता है। यह कानून किसी नैतिक और मानव अधिकारों पर तो कुछ नहीं कहता, साथ ही, अधिकारियों को भी किसी मुकदमे या कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा देता है। 1897 का यह कानून, 2005 के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के साथ मिलकर कोविड-19 से लड़ने के कड़े कदमों को उठाने के लिए कानूनी नींव प्रदान करता है।
डिजिटल निगरानी के अलावा सामाजिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए राज्य सरकारें पुलिस के द्वारा इस्तेमाल में लाए दाने वाली तकनीकों का इस्तेमाल अपने नागरिकों के ऊपर नजर रखने के लिए कर रही हैं। प्रशासन हर वे तरीके इस्तेमाल करने के लिए उत्सुक है जिससे वायरस के प्रसार को रोका जा सके, लेकिन जनता के ऊपर बिना किसी मजबूत कानूनी ढांचे के निगरानी की वजह से सार्वजनिक सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता के बीच अनिश्चित संतुलन बनने के खतरे की तरफ इशारा करता है। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रचारित आरोग्य सेतु मोबाइल एप्लीकेशन को देखें तो इसमें भी निजता की चिंताएं शामिल हैं, जैसे ऐप पर दी गई जानकारी को कैसे उपयोग या साझा किया जाएगा।
इसी तरह, राज्य सरकारें ऐप और वेबसाइट का बिना निजता सुरक्षा उपायों के जारी कर रही हैं और जिसका उपयोग बड़ी संख्या में लोगों के गंभीर स्वास्थ्य और निजी जानकारी इकट्ठा करने में हो रहा है। तमिलनाडु अपने क्वारंटाइन ऐप से पुलिस के माध्यम से लोगों की निगरानी कर रही है। बिना गोपनीयता नीति और उपयोग की शर्तों के साथ ऐप को जारी कर दिया। मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक गैर लाभकारी संगठन एक्सेस नाउ की रिपोर्ट चेताती है कि स्थान की निगरानी बिना किसी सुरक्षा उपाय के रखने से वे जानकारियां भी साझा हो सकती हैं जिनका जिनका कोरोनावायरस के संग लड़ाई में कोई काम नहीं है और ऐसे पूरा देश निगरानी की जद में आ जाता है।
यह स्थिति वैश्विक स्तर पर भी समान रूप से गंभीर है क्योंकि कई देश अपने कानूनों में बदलाव कर निरंकुश होकर बिना जनता की सहमति के उन पर नजर रखने का अधिकार पा रहे हैं। प्राइवेसी इंटरनेशनल के एडवोकेसी डायरेक्टर एडिन ओमानोविक कहते हैं, “निगरानी का जो दौर हम लोग देख रहे हैं, वह वाकई अभूतपूर्व है। यह 9/11 के उस समय से भी आगे निकल गया है जब से विश्व में सरकारें जनता पर निगरानी रखने लगी हैं। कानून, ताकत और तकनीकों का उपयोग विश्वभर में मानव की आजादी पर एक गंभीर और लंबे समय तक चलने वाला खतरा पैदा कर रहा है।” यह संस्था 100 दूसरे नागरिक संगठनों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर सरकारों से कोविड-19 के समय उठाए गए आक्रामक कदमों से मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने की सिफारिश कर रही है। वह आगे कहते हैं कि यह जाहिर है कि असाधारण संकट के लिए असाधारण कदमों की जरूरत होती है, लेकिन ऐसे वक्त में अद्वितीय बचाव की भी जरूरत होती है।
सरकारें न केवल लापरवाही से प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही हैं, बल्कि लोग सवाल पूछने से भी डरते हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी की नीति अधिकारी मीरा स्वामीनाथन कहती हैं, “नागरिक अभी अपने परिवारों की चिकित्सीय जानकारी सार्वजनिक डेटाबेस और मोबाइल ऐप पर अंधाधुंध रूप से साझा कर रहे हैं, जो उन्होंने सामान्य परिस्थितियों में कभी नहीं किया होगा।”
साथिया वेंकटेशन 23 मार्च को न्यूयॉर्क से हैदराबाद लौंटी और सेल्फ क्वारंटाइन में लगातार उत्पीड़न और डर के माहौल में रही। वह कहती हैं, “पहले एयरपोर्ट के अधिकारियों ने मेरी कलाई पर सेल्फ-क्वारंटाइन का ठप्पा लगाया। तीन दिन के बाद नगर निगम के लोग आकर मेरे घर के आगे क्वारंटाइन का एक नोटिस चिपका गए। उन्होंने कहा कि वह उनका परीक्षण करने बीच-बीच में आएंगे। हालांकि, उसके बाद से कोई भी उनकी तरफ से नहीं आया। इस दौरान, वह नोटिस मेरे सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में हलचल मचाने लगा। इससे मुझे पता चला कि आपातकालीन जरूरत पड़ने पर मेरी मदद को कोई नहीं आने वाला।” वेंकटेशन ने एक और चिंताजनक बात कही, “सरकार के विभागों के बीच जानकारियां साझा नहीं हो रही हैं। मैंने एयरपोर्ट पर अपनी सारी जानकारी भरी थी। कुछ दिन बाद मुझे स्थानीय पुलिस का फोन आया कि उन्हें मेरा पता चाहिए। उनका कहना था कि एयरपोर्ट से उन्हें सिर्फ मेरा फोन नंबर मिला।”
कई देश निगरानी और लोगों की जानकारी इकट्ठा करने के तरीके अपनाया, लेकिन पुराने अनुभव कहते हैं कि ये जानकारियां किसी काम नहीं आतीं। वर्ष 2014 में अफ्रीका में इबोला के प्रसार पर हुए शोध में योगदान देने वाली सियन मार्टिन मेकडोनाल्ड लिखती हैं, “यह धारणा है कि लोगों की जानकारियां इकट्ठा कर उसका विश्लेषण कर स्वास्थ्य संबंधी कार्यों को गति और बल मिलेगी और मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से इकट्ठा जानकारी से स्वास्थ्य का ढांचा ठीक किया जा सकता है।” मार्च 2016 के शोधपत्र में वह कहती है कि जानकारों ने सुझाव दिया था कि लोकेशन की जानकारी हासिल कर लोगों के संपर्क की जानकारी इकट्ठा की जा सकती है। इस प्रक्रिया में संक्रमण के फैलाव पर नजर रखने के लिए लोगों की आवाजाही की निगरानी होती है जिससे इसका पूर्वानुमान आसानी से लगाया जा सकता है। हालांकि, असल में इस घटना के बाद से मानवता के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने पाया कि डिजिटल माध्यमों के जरिए संपर्कों की निगरानी लीबिया, जो इस संक्रमण का केंद्र था, में सामान्य बात हो गई।
सूचना प्रणाली के विभिन्न हिस्सों- सरकार, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और निजी कंपनियों के बीच समन्वय की अनुपस्थिति के कारण इबोला प्रतिक्रिया के डिजिटलीकरण ने मानवीय प्रतिक्रिया को और अधिक कठिन बना दिया। इसमें शामिल महत्वपूर्ण कानूनी, वित्तीय और व्यावहारिक जोखिमों को हल नहीं किया गया।” कुछ इसी तरह का अनुभव कोविड-19 के संक्रमण के समय भी सामने आ रहा है जिसमें निगरानी का स्तर इबोला से कहीं ज्यादा है। दक्षिण कोरिया में जब निगरानी अगले स्तर तक पहुंची तो लोग अपनी जांच कराने से बचने लगे। इस देश में लोगों की निगरानी जियो लोकेशन के साथ सीसीटीवी फुटेज और क्रेडिट कार्ड के रिकॉर्ड के माध्यम से की जा रही है। जनवरी तक यहां संक्रमित लोगों की जानकारी अपलोड होती रही जिसमें उन्होंने मास्क पहना था या नहीं, या वह कौन सी जगह घूमने गए, जैसी जानकारियां शामिल रहती थीं। लोग भीड़ के हमले के डर से अपनी जांच करवाने से बचने लगे और प्रशासन को सारी जानकारी ऑनलाइन साझा करने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा। एक्सेस नाउ की रिपोर्ट कहती है, “एक महामारी व्यापक और अनावश्यक डेटा एकत्र करने का कोई बहाना नहीं है। स्वास्थ्य डेटा तक पहुंच उन लोगों तक सीमित होगी जिन्हें उपचार, अनुसंधान करने और अन्यथा संकट का समाधान करने के लिए जानकारी की आवश्यकता होती है।
जानकारी को एक अलग डेटाबेस में सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाना चाहिए।” यह रिपोर्ट आगे कहती है कि जानकारियों को संकट का समय खत्म होने के बाद मिटा देना चाहिए। निगरानी के मुद्दे पर रिपोर्ट गोपनीयता की सुरक्षा और सटीकता में सुधार करने के लिए मोबाइल उपकरणों के उपयोग के बजाय विस्तृत इन-पर्सन संपर्क ट्रेसिंग की सिफारिश करती है। जियो लोकेशन ट्रैकिंग के मामले में, डेटा को बिना नाम के होना चाहिए। रिपोर्ट में निजी कंपनियों द्वारा डेटा के दुरुपयोग के खिलाफ सख्त सुरक्षा उपायों की भी मांग की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, “सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए एप्लिकेशन बनाते समय, निजी कंपनियों को अपने उत्पादों के उपयोग से प्राप्त डेटा से पैसा कमाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, डेटा के बाद में होने वाले उपयोग या आगे की प्रक्रिया पर स्पष्ट सीमाएं होनी चाहिए।” भारत में अधिकांश राज्य सरकार के ऐप निजी कंपनियों द्वारा विकसित किए गए हैं और उनमें से कई बिना गोपनीयता नीति के हैं। कंपनियां संयुक्त राज्य में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
निजता का हनन बड़ा खतरा है जिसे कोविड-19 अचानक से बढ़ा सकता है। कई देशों ने अपने कानून में मनमाने तरीके से बदलाव कर निजता हनन के अधिकार पा लिए हैं और यह स्वास्थ्य संकट के खत्म होने के बाद भी जारी रहेगा। लेखक युवाल नोआह हरारी ने फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित लेख के जरिए चेताया कि यह दौर न केवल निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों को सामान्य बना देगा बल्कि उन देशों में भी यह लागू हो जाएगा जो पहले इस निगरानी का खारिज कर चुके हैं। इससे सरकार द्वारा की जाने वाली हमारी निगरानी ओवर द स्किन से अंडर द स्किन हो जाएगी। यानी सरकार पता चल जाएगा कि हमारे जेहन में क्या चल रहा है। वह कहते हैं कि जब आप स्मार्टफोन के स्क्रीन को उंगली से टच करते थे तो सरकार ये जानना चाहती थी कि आप किस जगह क्लिक कर रहे हैं, लेकिन अब स्क्रीन छूते हैं तो सरकार ये भी जानना चाहती है कि आपकी उंगली का तापमान क्या है और आपकी त्वचा के भीतर का रक्तचाप कितना है।
नया खतरा
केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकाराें ने कोविड-19 की निगरानी वाले कई ऐप जारी किए हैं
आरोग्यसेतु
डेवलपर: नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर
डाउनलोड्स: 12 करोड़ से अधिक
अनुमति चाहिए: ब्लूटूथ, जीपीएस, संपर्क और स्टोरेज
जानकारी चाहिए: निजी जानकारी जैसे नाम, उम्र, लिंग, स्थान, व्यवसाय और यात्रा का इतिहास के साथ स्वास्थ्य संबंधी जानकारी
गोपनीयता की समस्या
उपयोगकर्ता को उपयोग और गोपनीयता नीति की शर्तों तक पहुंचने के लिए सभी विवरणों को पंजीकृत और प्रस्तुत करना होगा। गोपनीयता नीति कई बार मैं शब्द का उपयोग करती है। इस बात पर अस्पष्टता रहती है कि बाद में डेटा का उपयोग कैसे किया जा सकता है। उपयोगकर्ता का डेटा लीक होने या अनधिकृत उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने के मामले में सरकार उत्तरदायी नहीं है। उपयोगकर्ता के डेटा का दुरुपयोग नहीं होगा, इस पर गोपनीयता नीति कुछ नहीं कहती।
टेस्ट योरसेल्फ
डेवलपर: इनोवैक्सर आईएनसी
उपयोगकर्ता: 50,000
जानकारी चाहिए: अगर उपयोगकर्ता देना चाहे तो निजी जानकारी जिसमें इंटरनेट उपयोग का इतिहास शामिल है, आईपी एड्रेस की सहायता से सामान्य भू-भाग की जानकारी और सोशल मीडिया की जानकारी।
गोपनीयता की समस्या
यह वेबसाइट जो खुद के माध्यम से कोविड-19 के संक्रमण का मूल्यांकन करने का दावा करती है, बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी इकट्ठा करती है जिससे उपयोगकर्ता को कोई लाभ नहीं मिलता। जानकारों ने आगाह किया है कि ऐसी गैर जरूरी जानकारियां इकट्ठा करने के बजाए सरकार को उपयोगकर्ता को सीधे किसी चिकित्सक से दूर से ही संपर्क करने की सुविधा देनी चाहिए थी।
तमिलनाडु क्वारंटाइन मॉनिटर
डेवलपर: पिक्सोन एआई सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड
डाउनलोड्स: 100,000
अनुमति चाहिए: लाइव निगरानी के लिए जीपीएस
जानकारी चाहिए: आवाजाही की जानकारी
गोपनीयता की समस्या
ऐप में गोपनीयता नीति या उपयोग की शर्तें नहीं हैं और इस बात की जानकारी नहीं देती है कि डेटा का उपयोग कैसे किया जाएगा, जो भारत में सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन के तहत अनिवार्य है।
महाराष्ट्र महाकवच
डेवलपर: कई सरकारी और निजी संस्थाएं
डाउनलोड्स: 10,000
अनुमति चाहिए: जीपीएस लोकेशन
जानकारी चाहिए: निजी जानकारी, स्थान की जानकारी, तस्वीरें
गोपनीयता की समस्या
ऐप में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करने के बावजूद सामान्य गोपनीयता नीति है
(स्रोत: दिविज जोशी, मोज़िला में प्रौद्योगिकी नीति विशेषज्ञ और मीडिया रिपोर्ट)
गहन निगरानी
यूरोपीय संघ और कम से कम 23 देश नागरिकों पर नजर रख रहे हैं, जो कोविड संकट के दौरान गैर-सहमति से सरकार के डिजिटल निगरानी में अचानक वृद्धि को उजागर करते हैं। यहां कुछ कदम हैं जो चिंताएं बढ़ाते हैं
ऑस्ट्रिया
सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी ए-1, स्वैच्छा से सभी मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं के प्रोफाइल के साथ आवाजाही की जानकारी सरकार को प्रदान कर रही है। कंपनी ने अपने ग्राहकों को बिना बताए या उनकी सहमति के बिना सूचना साझा करने की शुरुआत की।
ऑस्ट्रेलिया
एडिलेड राज्य में पुलिस कोविड रोगियों और उनके आवाजाही पर नजर रखने के लिए आपराधिक जांच के लिए उपयोग किए जाने वाले एक निगरानी वाले तंत्र पर भरोसा कर रही है। पुलिस को किसी व्यक्ति की निगरानी के लिए सिर्फ उसका फोन नंबर चाहिए और इसके बाद सारी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के साथ साझा की जा रही है।
बुल्गारिया
दूरसंचार से ग्राहक डेटा की मांग करने का अधिकार आंतरिक मंत्रालय को देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संचार अधिनियम में संशोधन किया गया है। संशोधन का मतलब है कि मंत्रालय को निगरानी करने के लिए अदालत के आदेश की आवश्यकता नहीं है और संकट खत्म होने के बाद भी यह विशेषाधिकार जारी रहेगा।
चीन
अली पे और वीचैट जैसे ऐप ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित कर रहे हैं जिनमें संक्रमण का जोखिम अधिक है और उन्हें इसके बाद क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है या भीड़भाड़ से अलग रख दिया जाता है। लोगों को कहीं आने-जाने के लिए इन ऐप के माध्यम से ग्रीन क्लियरेंस प्राप्त करना जरूरी होता है। कंपनियां ऐसे सॉफ्टवेयर भी विकसित कर रही हैं जो कैमरे के माध्यम से बिना संपर्क में आए तापमान का पता लगा सके। कुछ शहर संक्रमित पड़ोसियों की सूचना देने पर इनाम भी दे रहे हैं।
कोलंबिया
एक पुराने ऐप का नाम बदलकर इसे कोरोनऐप के नाम से वायरस की जानकारी हासिल करने के लिए जारी किया गया है। इस ऐप को भारी मात्रा में निजी जानकारी चाहिए जिसमें जातीयता की जानकारी भी शामिल है। इस बात की पारदर्शिता भी नहीं है कि इन जानकारियां का कौन कितना इस्तेमाल कर सकेगा।
यूरोपीय संघ
दूरसंचार कंपनियां और प्रशासन एक ऐसी व्यवस्था बनाने जा रही है जिसमें लोग अपने स्थान की जानकारी साझा करेंगे। अब तक इस व्यवस्था में कुछ पारदर्शिता थी जिससे पता रहता था कि कितनी जानकारी साझा की जा रही है और कितने समय तक यह कानूनन चलेगा। सरकारों के अलावा यूरोपीय कमिशन ने दूरसंचार कंपनियों से वायरस के फैलाव का पता लगाने के लिए और हॉटस्पॉट का पता लगाने के लिए जानकारियां मांगी हैं।
इजराइल
घरेलू सुरक्षा एजेंसी शिन बेट ने कोविड-19 प्रकोप पर नजर रखने के लिए आतंकवादियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अपनी सेलुलर जियोट्रैकिंग तकनीक को फिर से तैयार किया है।
केन्या
एमसफारी ऐप की मदद से संपर्क का पता लगाने के लिए इस ऐप को एक निजी कंपनी ने बनाया है। इसका इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन में लगी बस, टैक्सी और दूसरे परिवहन व्यवस्था में यात्रियों की निगरानी के लिए किया जा रहा है। चालकों से यह उम्मीद की जाता है कि वे इस ऐप को डाउनलोड करके सभी यात्रियों को इस पर पंजीकृत करेंगे। सरकार उन सभी यात्रियों पर निगरानी रखकर उन्हें 14 दिन के क्वारंटाइन में रखेगी।
दक्षिण कोरिया
यहां की सरकार उन लोगों की जानकारी इकट्ठी कर ऑनलाइन डाल रही है जो या तो संक्रमित हैं या इसकी आशंका है। यहां मौजूदा डाटाबेस को नए डेटाबेस से मिलाकर सीसीटीवी फुटेज, क्रेडिट कार्ड और लोकेशन के इतिहास की निगरानी की जा रही है। यह जानकारियां ऑनलाइन जारी की जा रही है जिसमें लोग कब काम से वापस निकले, सबवे में उन्होंने मास्क पहना या नहीं, वे किस स्थान पर बार-बार गए और किस स्थान पर उनकी जांच की गई आदि शामिल हैं। अब सरकार ने निजी जानकारी जारी करना बंद किया है क्योंकि भीड़ ने ऐसे लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया था।
ताइवान
प्रशासन यहां एक्टिव मोबाइल नेटवर्क की निगरानी कर क्वारंटाइन को सुनिश्चित कर इसके संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान कर रहा है। अगर किसी का मोबाइल नेटवर्क घर के बाहर एक्टिव होता है तो प्रशासन सतर्क हो जाता है।
ट्यूनीशिया
इनोवा रोबोटिक्स ने पीगार्ड रोबोट का संचालन शुरू करने के लिए आंतरिक मंत्रालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। ये रोबोट इंफ्रारेड कैमरों के एक सेट से लैस होंगे और लोगों को घर छोड़ने से रोकेंगे। इन रोबोटों को कहां तैनात किया जाएगा, वे कौन सी जानकारी जुटाएंगे, इसकी कोई जानकारी नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र
यहां शोधकर्ता फेसबुक के डेटा का इस्तेमाल सामाजिक दूरी का आकलन करने के लिए कर रहे हैं। जिन उपयोगकर्ताओं ने फेसबुक पर अपना लोकेशन साझा की है, उनके डेटा के इस्तेमाल से एक तरह का नक्सा खींचा जा रहा है। इस काम में गोपनीयता और जानकारियों की रक्षा प्रभावित होती है क्योंकि उपयोगकर्ता ने सिर्फ फेसबुक को यह जानकारी साझा करने की अनुमति दी होती है। गूगल की जैव प्रौद्योगिकी कंपनी वेरिली ने कोविड-19 की स्क्रीनिंग वेबसाइट लॉन्च की है। स्क्रीनिंग के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए, उपयोगकर्ताओं के पास गूगल खाता होना चाहिए और गूगल के साथ जानकारी साझा करने के लिए सहमत होना चाहिए। वेबसाइट कैलिफोर्निया के गवर्नर कार्यालय और अन्य संघीय अधिकारी के सहयोग से काम कर रही है। (downtoearth)
देवरिया, 21 जुलाई (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से एक शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। दरअसल, एक वायरल वीडियो में एक छह साल के मासूम को अपनी मां के साथ अपने बीमार दादाजी को स्ट्रेचर पर लिटाए इसे एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक धक्का देकर ले जाते हुए देखा गया है। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के सामने आते ही वार्ड बॉय को हटा दिया गया है। अस्पताल के कर्मियों ने कथित तौर पर स्ट्रेचर पर लेटे मरीज को वार्ड तक ले जाने के एवज में तीस रुपये मांगे थे।
जिलाधिकारी अमित किशोर ने सोमवार को अस्पताल का दौरा किया और मरीज छेंदी यादव व उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात कीं और इसके साथ ही उन्होंने सदर एसडीएम और अस्पताल के सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी के तहत एक संयुक्त जांच पैनल का गठन किया और उन्हें जल्द से जल्द इस वाक्ये पर रिपोर्ट सौंपने को कहा।
अधिकारियों ने कहा कि गौरा गांव के छेंदी यादव को दो दिन पहले चोट लगने के कारण अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में भर्ती कराया गया है। इस दौरान छेंदी के साथ उनकी बेटी बिंदू और छह साल का पोता था।
बिंदू ने पत्रकारों को बताया कि वार्ड बॉय हर बार उनके पिता की मरहम-पट्टी करने के लिए स्ट्रेचर पर ले जाने के एवज में तीस रुपये की मांगे थे और जब उसने पैसे देने से मना कर दिए, तो वार्डबॉय ने भी स्ट्रेचर खींचने से इंकार कर दिया, इसलिए बिंदू को अपने बेटे शिवम की मदद से स्ट्रेचर को खींचना पड़ा।
बिंदू को इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिस वक्त वह स्ट्रेचर खींच रही थी तो कोई उसका वीडियो बना रहा था जिसे बाद में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया गया।
किशोर कहते हैं, ‘वार्ड बॉय को अपराधी पाए जाने पर हटा दिया गया है। उसे मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा हटाया गया है और इस मामले पर जांच जारी है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो।’
जहर की बोतल और बाइक जब्त
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 21 जुलाई। मगरलोड थाना क्षेत्र के ग्राम बोदल बहरा के जंगल में युवक की लाश मिली है । युवक ने अपने दोस्तों को वाइस मैसेज के जरिए बताया कि उसे जहर देकर मार रहे हैं। मामला हत्या का है या नहीं पुलिस जांच कर रही है ।
पुलिस के अनुसार सोमवार की रात करीब 10 बजे मगरलोड के ग्राम बोदल बहरा के जंगल में एक युवक की लाश मिली है। जिसकी शिनाख्त अकलतरा क्षेत्र के ग्राम कोड़ा बहरा गांव निवासी चांद देव साहू के रूप मे हुई है, जो कि यहां माइक्रो फाइनेंस कंपनी में काम करता था।
इस मामले में संदेहास्पद पहलू यह बताया जा रहा कि युवक की लाश मिलने के पूर्व उसी युवक ने वाइस मैसेज के जरिये अपने दोस्तों को यह बोला था कि उसे जहर देकर मार रहे हैं। हालांकि अभी इस मामले में यह स्पष्ट रूप से नहीं बोला जा सकता कि मामले की हकीकत क्या है? मामला हत्या का है या आत्महत्या का?, पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।
इस संबंध में पुलिस अधिकारी लल्ला सिंह राजपूत ने बताया कि पुलिस मामले की जांच विवेचना कर रही है। युवक की लाश जंगल में मिली है।
इस संबंध में एएसपी मनीषा ठाकुर ने बताया कि कंट्रोल रूम को सूचना मिलने के बाद तुरंत पुलिस पार्टी रवाना की गई। जंगल घना होने की वजह से लोकेशन नहीं मिल पा रही थी। बड़ी मशक्कत के बाद जब पुलिस पहुंची, तो वहां युवक की लाश मिली है। लाश के पास जहर का बॉटल और उसकी बाइक भी मिली है। फिलहाल मामला संदिग्ध है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
राजनांदगांव, 21 जुलाई। लॉकडाउन में बंद पड़े शहर के थ्री स्टॉर होटल राज इम्पीरियल में लंबे समय से अवैध जुए के कारोबार की शिकायत के बीच पुलिस ने होटल के एक कमरे से दर्जनभर जुआरियों को रंगे हाथ जुआ खेलते गिरफ्तार किया है। इस थ्री स्टॉर होटल में बियर बार की आड़ में जुआ का खेल होने की लोगों में सरगर्मी से चर्चा थी। पुलिस ने कल दबिश देकर नांदगांव शहर के कई रसूखदारों को 7 लाख की रकम के साथ गिरफ्तार किया है।
पुलिस की इस कार्रवाई से यह साफ हो गया कि इस थ्री स्टॉर होटल के संचालक ने कमाई के लिए जुए की महफिल को सजाने का बखूबी इंतजाम किया। बताया जा रहा है कि कल पुलिस के हत्थे चढ़े जुआरियों में कई आदतन शामिल हैं। राज इम्पीरियल होटल को पूर्व शराब ठेकेदार द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस होटल में जुए के खेल से अतिरिक्त मुनाफा हो रहा था। बताया जा रहा है कि होटल संचालक मोटी रकम लेकर धड़ल्ले से जुआरियों की महफिल को सजाने का इंतजाम कर रहा था।
मिली जानकारी के मुताबिक सोमवार शाम राज इम्पीरियल होटल में पुलिस को बड़े पैमाने पर जुआ खेलने की जानकारी मिली थी। प्रशिक्षु डीएसपी व बसंतपुर थाना प्रभारी रूचि वर्मा तथा लालबाग थाना प्रभारी मोनिका पांडे ने टीम के साथ थ्री स्टॉर होटल राज इम्पीरियल पहुंची तो होटल बाहर से पूरी तरह बंद था।
पुलिस ने गेट खुलवाकर भीतर प्रवेश किया। बताया जाता है कि थ्री स्टॉर होटल के एक रूम में जुआ का फड़ जमा हुआ था। पुलिस ने घेराबंदी कर 13 जुआरियों को पकड़ लिया। आरोपियों के पास से लगभग 7 लाख रुपए नगद सहित मोबाइल भी जब्त किया। आरोपियों को पकड़कर लालबाग थाना ले जाया गया, जहां उनसे पूछताछ की गई।
मिली जानकारी के अनुसार थ्री स्टॉर होटल राज इम्पीरियल होटल में जुआ खेल रहे 13 आरोपियों को हिरासत में लिया गया। उनमें दीपेश कुमार पिता स्व. एमएल पटेल 43 वर्ष निवासी सिंधी कालोनी लालबाग, मुकेश पिता नागेश जैन 32 वर्ष निवासी सोमनी, फिरोज पिता स्व. समाल मेमन 44 वर्ष निवासी लखोली, संजय कुमार पिता नानकराम जगवानी 47 वर्ष निवासी सिंधी कालोनी लालबाग, दामोदर दास पिता सीताराम दास 48 वर्ष रामाधीन मार्ग, अरविंदर पिता हरिंदर सिंग 48 वर्ष निवासी कमला कॉलेज रोड, दीपक कुमार पिता डीएल पटेल 46 वर्ष निवासी बसंतपुर, पवन कुमार पिता स्व. रामगोपाल सोनी 38 वर्ष निवासी दुर्गा चौक, किशन पिता स्व. टीकाराम तराने 40 वर्ष निवासी भरकापारा, दिनेश पिता स्व. केसी तेजवानी 44 वर्ष निवासी सिंधी कालोनी लालबाग, अभय पिता पी. झा 38 वर्ष निवासी वार्ड नं. 15 बल्देवबाग, सोहन पिता जयपाल सिंह देवांगन 38 वर्ष निवासी मोहारा तथा दर्पण पिता स्व. नाथालाल बुद्धदेव 42 वर्ष निवासी वार्ड नं. 38 राजीव नगर शामिल हैं।
0 संदिग्ध युवतियां भी मिली
थ्री स्टॉर होटल राज इम्पीरियल में पुलिस टीम ने जुआरियों को पकडऩे दबिश दी। इसी दौरान होटल के अन्य कमरों की भी जांच की गई। सूत्रों का कहना है कि होटल के रूम नंबर 203 से असम की दो युवतियां संदिग्ध अवस्था में मिली। युवतियां होटल में कब और कैसे पहुंचीं फिलहाल इस संबंध में पुलिस जांच कर रही है। प्रशिक्षु डीएसपी व बसंतपुर थाना प्रभारी रूचि वर्मा का कहना है कि होटल में बरामद की गई युवतियों ने प्रारंभिक बयान में बताया कि राजनांदगांव में स्पा शुरू होने की जानकारी मिली थी। जिसके चलते वे यहां पहुंची।
0 होटल पर थी एसपी की निगाह
थ्री स्टॉर होटल राज इम्पीरियल में एसपी जितेन्द्र शुक्ला की निगाह मिली शिकायतों के बीच बनी हुई थी। सोमवार शाम जुआ खेलने की सूचना पर मौके पर एसपी जितेन्द्र शुक्ला भी पहुंच गए। एसपी ने मौके पर मामले की जानकारी ली। इसके बाद वे सीधे लालबाग थाना पहुंचकर जुआरियों से पूछताछ की। इस अवसर पर उनके साथ सीएसपी मणिशंकर चंद्रा भी मौजूद थे।
चंडीगढ़,(आईएएनएस)| पंजाब पुलिस ने अवैध हथियार और मादक पदार्थ तस्करी मामले में एक फौजी जवान और अन्य तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। इसका भंडाफोड़ बीते सप्ताह एक बीएसएफ कर्मी और तीन अन्य की गिरफ्तारी के साथ हुआ था। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। डीजीपी दिनकर गुप्ता ने कहा कि मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
डीजीपी ने कहा कि एक जवान रमनदीप सिंह को यूपी के बरेली से पकड़ा गया। उसे पहले पकड़े गए बीएसएफ कांस्टेबल सुमित कुमार के खुलासे के बाद पकड़ा गया।
रमनदीप के साथ तीन अन्य तरनजोत सिंह, जगजीत सिंह और सतिदंर सिंह को गिरफ्तार किया गया।
सतिंदर के पास से 10 लाख रुपये बरामद हुए, जिससे मामले में अबतक 42.30 लाख रुपये की बरामदगी हो चुकी है।
--आईएएनएस
सात महीनों बाद मंगल पहुंचेगा
बीजिंग, 21 जुलाई (आईएएनएस)| संयुक्त अरब अमीरात के पहले मंगलयान 'अमल' (होप) को दक्षिणी जापान के तनेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया। अनुमान है कि यह मंगलयान साल 2021 में मंगल ग्रह की परिक्रमा करेगा और मंगल ग्रह के वातावरण का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करेगा। यह अरब देशों का पहला मंगल सर्वेक्षण यान है। पिछले हफ्ते खराब मौसम के कारण इस मंगलयान के प्रक्षेपण को स्थगित करना पड़ा था।
गौरतलब है कि मंगलयान 'अमल' संयुक्त अरब अमीरात का पहला मंगलयान है, जिसकी कुल लम्बाई 2.9 मीटर और चौड़ाई 2.37 मीटर है। इसमें कुल 1.5 टन का ईंधन है, जिसका कुल आकार एक छोटी मोटर गाड़ी के बराबर है। करीब सात महीनों के बाद साल 2021 की शुरूआत में यानी संयुक्त अरब अमीरात की स्थापना की 50वीं जयंती के अवसर पर यह मंगलयान मंगल ग्रह की कक्ष में पहुंचेगा और लगभग 687 दिनों का सर्वेक्षण मिशन निभाएगा। संयुक्त अरब अमीरात भी अमेरिका, रूस, यूरोपीय ब्यूरो और भारत के बाद विश्व में मंगल सर्वेक्षण करने वाला पांचवां देश या संगठन बन गया है।
चूंकि संयुक्त अरब अमीरात में अंतरिक्ष उद्योग के पूरे विकास का अभाव है, इसलिए अपने मंगल मिशन को अमेरिका और जापान के साथ सहयोग कर बनाया है। संयुक्त अरब अमीरात ने अमेरिका के साथ मंगलयान बनाया, जबकि वाहन रॉकेट और प्रक्षेपण स्थल जापान द्वारा प्रदान दिया गया है। ( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
जंगल में टेंट लगाकर रहने को मजबूर
कोलकाता, (आईएएनएस)| पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में अपने पैतृक गांव पहुंचे 13 प्रवासी कामगारों को स्थानीय लोगों ने क्वारंटीन सेंटर में प्रवेश नहीं करने दिया। इसके चलते अब ये श्रमिक जंगल में टेंट बनाकर रह रहे हैं। बेराबन वन क्षेत्र में एक तम्बू में रह रहे इन लोगों के पास न तो भोजन की व्यवस्था है और न पीने के पानी की।
ये प्रवासी मजदूर कोविड-19 लॉकडॉउन होने के चार महीने बाद राजस्थान से आए थे। जब वे बांकुरा जिले के जगदल्ला गांव में पहुंचे और दो सप्ताह तक क्वारंटीन में रहने के लिए गांव के एक स्कूल में प्रवेश करने की उन्होंने कोशिश की तो ग्रामीण नाराज हो गए। उन्होंने कोविड संक्रमण के डर से गांव में मजदूरों के प्रवेश का विरोध किया।
सूत्रों ने कहा कि स्थानीय पुलिस और पंचायत सदस्य भी ग्रामीणों को यह समझाने में असफल रहे कि यदि मजदूर सख्ती से क्वारंटीन में रहें तो संक्रमण फैलने की संभावना नहीं होगी।
इस मामले में एक ग्रामीण अनिकेत गोस्वामी ने कहा, "स्कूल हमारे पड़ोस में काफी करीब में है। अगर वे वहां रहते हैं और वे कोरोना पॉजिटिव हैं तो वे गांव में संक्रमण फैला सकते हैं। हम उन्हें स्कूल की इमारत में रहने की अनुमति नहीं दे सकते।"
--आईएएनएस
भुवनेश्वर, 21 जुलाई (आईएएनएस)| वरिष्ठ ओड़िया फिल्म अभिनेता एवं निर्देशक विजय मोहंती का यहां के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 70 वर्ष के थे। मोहंती के पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि मंगलवार को राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि सोमवार की शाम अभिनेता की तबीयत बिगड़ गई। गंभीर में उन्हें भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं।
अभिनेता को 14 जून को विशेष एंबुलेंस से हैदराबाद से ओडिशा लाया गया था। इससे पहले, दिल का दौरा पड़ने के बाद वह हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे।
विजय मोहंती राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रह चुके हैं। उन्होंने 1977 में ओड़िया फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत की थी। वह अब तक 150 फिल्मों में काम कर चुके हैं। उन्हें साल 2014 में जयदेव पुरस्कार और कला व साहित्य में उतकृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
भोपाल, 21 जुलाई (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को दिए जाने वाले आरक्षण को 14 से 27 प्रतिशत करने के फैसले पर उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया स्थगन जारी रहेगा। इस तरह राज्य में अभी पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण ही मिलेगा। न्यायालयीन सूत्रों ने बताया है कि राज्य सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 से 27 फीसदी किए जाने के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका पर पिछले साल स्थगन दिया गया था। इस स्थगन को हटाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अपील की गई। इस अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संजय यादव व न्यायाधीश वी.के. श्रीवास्तव की युगलपीठ ने सरकार की तरफ से दायर अपील तथा दो अन्य याचिकाओं की सुनवाई करते हुए स्थगन आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने के विरोध में अशिता दुबे सहित एक दर्जन याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता अशिता दुबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में ओबीसी वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के अंतरिम आदेश 19 मार्च 2019 को जारी किए थे।
युगलपीठ ने पीएससी द्वारा विभिन्न पदों पर ली गई परीक्षाओं की चयन सूची में भी ओबीसी वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिए जाने का अंतरिम आदेश पारित किए थे।
बताया गया है कि प्रदेश सरकार तथा कलेक्टर रायसेन ने पूर्व में जारी स्थगन आदेश वापस लेने तथा ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने अपील और दायर अन्य याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पूर्व में पारित स्थगन आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया। अपील पर नोटिस जारी करते हुए युगलपीठ ने अनावेदकों से जवाब मांगा है।
याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से उप-अधिवक्ता आशीष आनंद बर्नाड तथा सरकार की तरफ से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पैरवी की।
मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का निधन हो गया है. वे कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे.
उन्होंने 85 वर्ष की उम्र में लखनऊ के एक अस्पताल में अंतिम साँसें लीं.
लालजी टंडन के बेटे और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन ने ट्विटर पर अपने पिता की मृत्यु की पुष्टि करते हुए लिखा - 'बाबूजी नहीं रहे'.
लालजी टंडन को 11 जून को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बाद लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती किया गया था.
उनकी अनुपस्थिति में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को मध्य प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त दायित्व सौंप दिया गया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालजी टंडन के निधन पर शोक जताते हुए ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि 'उन्होंने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई'.
भाजपा के बड़े नेता
लखनऊ में 1935 में जन्मे लालजी टंडन भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ राजनेता थे.
दो बार उत्तर प्रदेश में विधान परिषद का सदस्य रहने के बाद वो 1996 से 2009 के बीच तीन बार उत्तर प्रदेश से ही विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए.
वे उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार और मायावती की बीएसपी-बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री रहे.
वे 2003 से 2007 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विपक्ष भी रहे. तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव की सरकार थी.
2009 में वे लखनऊ से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए. ये सीट इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सीट थी जहाँ से वे लगातार चार बार सांसद रहे.
2018 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था. इसके अगले साल वो मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए.(bbc)
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर खुदाई के दौरान मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए दायर दो जनहित याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं.
जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने इन याचिकाओं को गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं पाया और इसे अयोध्या भूमि विवाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने से रोकने की कोशिश के रूप में देखा.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाते हुए उन्हें एक महीने के भीतर यह राशि जमा करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि पांच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुना चुकी है और यह इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस निर्णय से आगे निकलने का प्रयास है.
याचिकाकर्ताओं की ओर पेश वकील ने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास ने भी स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र में ऐसी अनेक कलाकृतियां हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दायर की.
पीठ ने कहा, ‘आपको इस तरह की तुच्छ याचिका दायर करना बंद करना चाहिए. इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा.’
केंद्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायालय को याचिकाकर्ता पर अर्थदंड लगाने के बारे में विचार करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि प्रत्येक याचिकाकर्ता पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाया जाता है जिसका भुगतान एक महीने के भीतर किया जाना चाहिए.
ये याचिकाएं सतीश चिंधूजी शंभार्कर और डॉ. आम्बेडकर फाउंडेशन ने दायर की थीं. इनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालाय में सुनवाई के दौरान अदालत की निगरानी में हुई खुदाई के समय मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
इन याचिकाओं में नए राम मंदिर के लिए नींव की खुदाई के दौरान मिलने वाली कलाकृतियों को भी संरक्षित करने तथा यह काम पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था.
लाइव लॉ के मुताबिक याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य पर भी ध्यान आकर्षित किया कि बिना किसी वैज्ञानिक शोध या विश्लेषण के बरामद कलाकृतियों को हिंदू संस्कृति और धर्म के अवशेषों के रूप में पेश किया जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘ये कलाकृतियां प्राचीन भारतीय संस्कृतियों के अवशेष हैं, इसलिए इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और इस पर वैज्ञानिक एवं पुरातात्विक शोध किया जाना चाहिए.’
इसके अलावा यह आरोप लगाया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक की देखरेख में खुदाई और समतल करने की गतिविधियां नहीं की जा रही हैं, जो कि प्राचीन स्थलों और स्मारकों को सुरक्षित और संरक्षित करने वाला विभाग है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि खुदाई और समतल करने के दौरान स्थानीय अधिकारी और सक्षम एएसआई अधिकारी भी साइट पर मौजूद नहीं रहते हैं, इसलिए पता लगाई गईं कलाकृतियों और मूर्तियों को बरामद नहीं किया जा रहा है.
अपनी दलीलों पुख्ता करने के लिए उन्होंने कहा कि हैदराबाद के दलित अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष ने दावा किया था कि इन कलाकृतियों का प्राचीन बौद्ध संस्कृति और साहित्य से गहरा संबंध है. उन्होंने कहा कि इसे लेकर सम्यक विश्व संघ ने एएसआई के डीजी को पत्र लिखकर कहा था कि इन्हें वे अपने कस्टडी में लें और इसको संरक्षित करें.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने इस मामले को लेकर एएसआई के डीजी और अन्य स्थानीय विभागों को पत्र लिखकर गुजारिश की थी लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया.
निर्माण प्रक्रिया को रोकने के प्रयास के किसी भी विचार से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे राम मंदिर बनाने के लिए की जा रही खुदाई और उत्खनन का वीडियो बनाएं.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास गठित करने का निर्णय दिया था. न्यायालय ने इसके साथ ही मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश भी सरकार को दिया था.(thewire)
इस्लामाबाद, 21 जुलाई (आईएएनएस)| पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 22.9 करोड़ आंकी गई है और यह प्रति जोड़े 3.6 बच्चों की वार्षिक प्रजनन दर के साथ तेजी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। डॉन न्यूज ने सोमवार को बताया कि अमेरिकी जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो द्वारा जारी 2020 की विश्व जनसंख्या डेटा शीट का यह भी अनुमान है कि दुनिया में आज कुल 7.8 अरब लोग हैं।
कोविड-19 संकट का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि "शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व, घरेलू आकार और लोगों की उम्र महामारी के प्रति कमजोर बनाती है।"
रिपोर्ट ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान को सबसे तेजी से बढ़ती आबादी के रूप में दर्शाया गया है।
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की तुलना में तेज दर है, जो प्रति जोड़ा 4.5 है। लेकिन उच्च मृत्यु दर और कम जीवन प्रत्याशा के कारण, देश की कुल जनसंख्या अभी भी 3.89 करोड़ है।
पाकिस्तान की दर 3.6 है, इससे 19.4 वर्षों में जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी।
देश को अपनी जनसंख्या को कम करने के लिए अपनी आबादी दर को प्रति वर्ष 2 प्रतिशत तक लाने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी रेट 2.1 है।
कुल 1.424 अरब की जनसंख्या के साथ चीन अभी भी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, लेकिन यह प्रजनन दर को घटाकर 1.5 करने में सक्षम रहा है। इस एशियाई देश की आबादी 2050 तक घटने का अनुमान है।
रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 1.4 अरब लोगों के साथ, भारत दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, लेकिन इसकी प्रजनन दर घटकर 2.2 हो गई है।
--आईएएनएस
दाऊद बैकसीट पर
स्पेशल रिपोर्ट
कराची, 21 जुलाई (आईएएनएस)| पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के चहेते मंत्री अली हैदर जैदी ने जब शनिवार को सिंध के एक विपक्षी मंत्री पर ड्रग कारोबार को पनाह देने का आरोप लगाया तो यह भुट्टो परिवार पर कोई फौरी राजनीतिक हमला नहीं था। जैदी ने दूसरे दिन एक ट्वीट में बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी-सिंध में सत्ताधारी) को 'अपहरण, उगाही, भ्रष्टाचार..यहां तक कि हत्या' में संलिप्त बताया।
भारत और पूरी दुनिया में माना जाता है कि बंदरगाह शहर कराची की सत्ता अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहिम के इशारे पर चलती है। लेकिन सिंध में, अली हैदर जैदी की तरह कई लोगों का मानना है कि संगठित अपराध पाकिस्तान के इस बड़े शहर में मंत्रियों के गुटों के रूप में फैल गया है। इस प्रांत में पीपीपी सत्ता में है।
भुट्टो परिवार पर विपक्षी दलों द्वारा यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वे अंडवर्ल्ड डॉन उजैर बलूच को संरक्षण देते रहे हैं, जबकि वह 150 लोगों की हत्या में संलिप्त रहा है। उजैर अभी कराची सेंट्रल जेल में बंद है और जेल से ही अपने गैंग का संचालन करता है।
भारत का मोस्ट वांटेड भगोड़ा दाऊद इब्राहिम, बताया जाता है कि पॉश क्लिफ्टन इलाके में रहता है और वह ड्रग, उगाही, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराधों को लेकर स्थानीय प्रतिद्वंद्विता से लगातार खुद को दूर रखे हुए है।
दाऊद की कुख्यात डी-कंपनी इंटरनेशनल सिंडिकेट क्राइम और हवाला आपरेशंस पर ज्यादा फोकस करता है। अभी तक डी कंपनी का ल्यारी गैंग्स से कोई विवाद सामने नहीं आया है। ल्यारी कराची में स्थित घनी आबादी वाला इलाका है। ल्यारी आपराधिक गिरोहों, ड्रग्स और बंदूक के कारोबार के लिए कुख्यात है।
इस समय, उजैर बलूच(41) से संबद्ध ल्यारी गैंग्स का इस बंदरगाह शहर पर राज है और जहां अंडरवर्ल्ड मुख्य रूप से अफगानिस्तान से मादक पदार्थो की तस्करी पर फल-फूल रहा है।
उजैर 2013 में लाइमलाइट में तब आया था, जब उसने अंडवर्ल्ड के दिग्गज पप्पू अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
करांची पुलिस के रिकार्ड के अनुसार, उजैर पॉश डिफेंस हाउसिंग एरिया(डीएचए) में 20 हथियारबंद लोगों के साथ उसके घर गया और अशरफ व उसके दो साथियों का पहले अपहरण कर लिया और फिर बाद में हत्या कर दी।
पाकिस्तान और ईरान की दोहरी नागरिकता रखने वाला उजैर दोनों देशों के बीच शिफ्टिंग करने के दौरान अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करता था। इस खूंखार गैंगस्टर को नियंत्रित करने के लिए, अधिकारियों ने 2017 में जासूसी के एक मामले में इसे सेना को सौंप दिया था।
इसबीच, समुद्री मामलों के संघीय मंत्री अली हैदर जैदी ने मीडिया के साथ एक वीडियो साझा किया है, जिससे उजैर और भुट्टो परिवार के नापाक रिश्ते का खुलासा होता है। जैदी ने पीपीपी अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी को बेनकाब करने के लिए जान हबीब नामक एक इनसाइडर के बयान वाला एक वीडियो जारी किया है।
जियो टीवी के अनुसार, जान हबीब ने खुलासा किया है कि पीपीपी उजैर के कहने पर पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर करती रही है। जान ने आरोप लगाते हुए कहा है, "यह सच है। आईजी सिंध का ट्रांसफर भी किया गया था और आंतरिक मंत्रालय रहमान मलिक के रूप में उसके दरवाजे पर खड़ा रहता था।"
वीडियो में जान ने दावा किया है कि उजैर निजी तौर पर जरदारी से मिल चुका है। उसने कहा, "जरदारी ने उजैर से मुलाकात की और यह एक महत्वूर्ण बैठक थी। उजैर ने मुझे बुलाया और कहा कि जरदारी ने उसे बुलाया है और उससे मुलाकात करना चाहता है। उसे कादिर पटेल के साथ उसे जरदारी से मुलाकात करने जाना होगा। जरदारी अपने तथाकथित भाई उजैर को ल्यारी से चुनाव लड़वाना चाहते थे।"
इमरान खान के करीबी सहयोगी जैदी के आरोप ने कराची में लोगों का ध्यान अंडरवर्ल्ड की तरफ केंद्रित कर दिया है। चर्चा में केवल ल्यारी गैंग्स हैं, जो बाद में डी-कंपनी को पीछे धकेल सकता है, जिसका पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व के साथ निकट संबंध है।
सैकड़ों ग्राहक बुरी तरह खतरे में !
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 20 जुलाई. छत्तीसगढ़ में कपड़ों के सबसे बड़े शोरूम श्री शिवम् में आज कोरोना का विस्फोट हुआ. इस दूकान के १५ मर्मचारी एक साथ कोरोना पॉजिटिव पाए गए. राज्य सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि इन सबका सीधा संपर्क वहां की एक महिला कर्मचारी से था जो चार दिन पहले कोरोना पॉजिटिव निकली थी. इसके पॉजिटिव निकलने के बाद ग्राहकों को सावधान करने के बजाय शिव शिवम् के मालिकों ने मीडिया में खबर दबाने की कोशिश की. वहां के सैकड़ों ग्राहक अब खतरे में हैं.
आज की सरकारी जाँच रिपोर्ट को देखें तो रायपुर जिले में 84 कोरोना पॉजिटिव केस मिले हैं, इनमें से 15 अकेले श्री शिवम् शोरूम के कर्मचारी हैं.
न्यूयॉर्क, 20 जुलाई (आईएएनएस)| टीवी चैनल सीबीएस न्यूयॉर्क की एक युवा भारतीय अमेरिकी रिपोर्टर की मोपेड दुर्घटना में मौत हो गई। सीबीएस ने रविवार को कहा कि 26 वर्षीय नीना कपूर का शनिवार को सड़क दुर्घटना में निधन हो गया।
टीवी स्टेशन ने बताया, "रिपोर्टर नीना कपूर जून 2019 में टीम में शामिल हुई थीं। वह अपनी मोहक मुस्कान और खबर कहने के विशिष्ट अंदाज के लिए जानी गईं।" न्यूयॉर्क में सीबीएस ऑन-एयर स्टेशन के लिए जमीनी रिपोर्टिग के अलावा उन्होंने सीबीएस न्यूज 24-7 न्यूयॉर्क चैनल के लिए नियमित रूप से तीन राज्यों का क्षेत्रीय
समाचार राउंड-अप किया। उन्होंने सीबीएस में शामिल होने से पहले कनेक्टिकट में चैनल 12 न्यूज के लिए काम किया था। न्यूज 12 ने एक बयान में कहा, "न्यूज 12 के कर्मचारी कपूर को उनकी काम के प्रति अद्भुत नैतिकता के साथ-साथ उनके हास्य और मुस्कराहट के लिए याद कर रहे हैं।"
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 जुलाई। राज्य में आज रात 9.30 बजे तक 173 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं। इसमें जिला रायपुर से 66, दंतेवाड़ा 27, जांजगीर-चांपा 22, राजनांदगांव 13, बिलासपुर 9, दुर्ग 8, बीजापुर व जशपुर 7-7, सरगुजा 4, महासमुंद 3, रायगढ़ व सुकमा 2-2, कांकेर, कोरिया, व धमतरी 1-1 पॉजिटिव मरीज मिले हैं।
आज रायपुर निवासी एक 51 वर्षीय महिला को मृत अवस्था में रायपुर लाया गया जो कि कोरोना पॉजिटिव पाई गई। राजनांदगांव निवासी एक 21 वर्षीय व्यक्ति को एम्स में 19 जुलाई को भर्ती किया गया था जो कि उच्च रक्तचाप से पीडि़त था, जिसे बे्रनहेमरेज हो गया था, और वह कोरोना पॉजिटिव भी था उसकी मृत्यु 19 जुलाई को ही हो गई।
रायपुर निवासी एक 52 वर्षीय व्यक्ति हाईपर टेंशन और डायबिटिज से पीडि़त था, कोरोना पॉजिटिव पाया गया था, उसकी भी आज मौत हो गई।
रायपुर के भाठागांव की एक 65 बरस की महिला को 16 जुलाई को मेकाहारा में भर्ती किया गया था और जो बिना इजाजत अस्पताल से गायब हो गई थी, उसकी भी मौत 17 जुलाई की रात घर पर हो गई। यह महिला उच्च रक्तचाप और डायबिटिज से भी पीडि़त थी।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 जुलाई। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े कपड़ों के शोरूम श्री शिवम में बड़ी संख्या में दर्जन भर कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। अ भी तीन दिन पहले वहां की एक महिला कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव निकली थी और उस मामले को दबाने की भरसक कोशिश की गई थी। इस दूकान ने अपने ग्राहकों को भी सूचित नहीं किया था कि एक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव निकली है और वहां आने वाले ग्राहक अपना ध्यान रखें।
जानकार सूत्रों के अनुसार आज इतनी बड़ी संख्या में पॉजिटिव निकलने के बाद प्रशासन का निर्देश है कि जो भी श्री शिवम गया हो वो घर पर रहे।
अधिकृत सूत्रों ने बताया है कि श्री शिवम कपड़ा शोरूम जाने वाले ग्राहकों की सूचना प्रशासन ने इस दूकान से मांगी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 जुलाई। जम्मू-कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक बयान को लेकर कहा है कि भूपेश बघेल जल्द ही उनके वकीलों का नोटिस पाएंगे। उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर यह बयान भूपेश बघेल के एक कथन पर दिया है जो कि उन्होंने अंगे्रजी अखबार द हिंदू को एक इंटरव्यू में दिया था।
हिंदू में प्रकाशित एक इंटरव्यू में भूपेश बघेल ने कहा था कि वे राजस्थान के घटनाक्रम को बहुत बारीकी से तो नहीं देख रहे हैं, लेकिन जहां तक सचिन पायलट का मामला है, एक उत्सुकता पैदा होती है कि उमर अब्दुल्ला को क्यों रिहा किया गया था? उन्हें और महबूबा मुफ्तीजी को एक ही दफाओं में गिरफ्तार किया गया था, जबकि वे अभी जेल में ही हैं, उमर अब्दुल्ला बाहर हैं। क्या यह इसलिए है कि सचिन पायलट उमर अब्दुल्ला के बहनोई हैं?
भूपेश बघेल की इस उत्सुकता को लेकर उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर आज शाम लिखा- मैं उन झूठे और बदनीयत आरोपों से थक चुका हूं कि मेरे और मेरे पिता की रिहाई का सचिन पायलट से कोई लेना-देना है। अब बहुत हो गया। अब भूपेश बघेल से मेरे वकील संपर्क करेंगे।
उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफे्रंस ने भी भूपेश बघेल की शंकाओं का लंबा जवाब देते हुए कहा है कि यह कथन झूठा और अपमानजनक है। यह सर्वविदित सार्वजनिक तथ्य है कि उमर अब्दुल्ला की रिहाई अदालती दखल से हुई है, और इस गैरकानूनी हिरासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बचाव का रास्ता न देखते हुए यह हिरासत खत्म की थी।
नेशनल कांफे्रंस ने आगे कहा है कि वे भूपेश बघेल के अपमानजनक बयान और अपने वकीलों से बात कर रही है, और आगे कार्रवाई करने जा रही है।
इस पर उमर अब्दुल्ला के ट्वीट का जवाब देते हुए भूपेश बघेल ने वहीं लिखा- उमर अब्दुल्लाजी लोकतंत्र के खात्मे की इस त्रासदी को इस तरह न मोड़ें। यह ‘आरोप’ महज एक सवाल था, और हम ऐसे सवाल पूछना जारी रखेंगे जैसे देश पूछ रहा है।
इस पर उमर अब्दुल्ला ने जवाब दिया- आप अपना जवाब मेरे वकीलों को भेज सकते हैं। आज भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के साथ यही दिक्कत है कि आप लोग अपने दोस्तों और दुश्मनों में फर्क नहीं जानते। यही वजह है कि आज आप लोग ऐसी बुरी फजीहत में फंसे हैं। आपका सवाल बुरी नीयत का था, और उसे इस तरह छोड़ा नहीं जाएगा।
रांची, 20 जुलाई (आईएएनएस)| झारखंड के कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने पार्टी नेता राहुल गांधी से उत्त प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए फंड जुटाने की अगुवाई करने की अपील की है। यादव ने राहुल को एक पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है, "अगर कोई विशेष राजनीतिक दल राम मंदिर निर्माण का आगे बढ़कर नेतृत्व करेगा तो वह राजनीतिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेगा। मेरा अनुरोध देश की एकता और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत करेगा। यह किसी भी विशेष पार्टी को मंदिर निर्माण पर अपनी इच्छा को लागू नहीं करने देगा।"
यादव ने झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) के टिकट पर 2019 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। जेवीएम-पी के भाजपा में विलय के बाद, उन्होंने कांग्रेस में शामिल होना पसंद किया। इसके पहले 2006 में यादव भाजपा से जेवीएम-पी में शामिल हुए थे।
पत्र की प्रतियां कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बसपा अध्यक्ष मायावती, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और अन्य मुख्यमंत्रियों को भी भेजी गई हैं।
लखनऊ, 20 जुलाई (आइएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बड़ी संख्या में कोविड-19 के लक्षणरहित संक्रमित लोग बीमारी को छुपा रहे हैं, जिससे संक्रमण बढ़ सकता है। इसे देखते हुए राज्य सरकार एक निर्धारित प्रोटोकॉल के अधीन शर्तों के साथ होम आइसोलेशन की अनुमति देगी। मुख्यमंत्री योगी सोमवार को यहां अपने सरकारी आवास पर आहूत एक उच्च स्तरीय बैठक में अनलॉक व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 के लक्षणरहित संक्रमित लोग बीमारी को छुपा रहे हैं, जिससे संक्रमण बढ़ सकता है। इसलिये राज्य सरकार एक निर्धारित प्रोटोकॉल के अधीन शर्तों के साथ होम आइसोलेशन की अनुमति देगी। रोगी और उसके परिवार को होम आइसोलेशन के प्रोटोकॉल का पालन करना अनिवार्य होगा। यद्यपि राज्य सरकार के पास कोविड हॉस्पिटल में पर्याप्त संख्या में कोविड बेड्स मौजूद हैं।
उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था को लागू करने के साथ-साथ लोगों को कोविड-19 से बचाव के बारे में सतत जागरूक किया जाए। इस सम्बन्ध में एक व्यापक जागरूकता अभियान संचालित किया जाए। जागरूकता अभियान में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया सहित बैनर, होर्डिंग, पोस्टर तथा पब्लिक एड्रेस सिस्टम का उपयोग किया जाए। उन्होंने मास्क के अनिवार्य रूप से उपयोग तथा सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराए जाने के निर्देश भी दिए।
योगी ने कहा कि बेहतर इम्युनिटी कोविड-19 से बचाव के लिए जरूरी है। इस सम्बन्ध में भी जनता को जागरूक किए जाने के निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को ‘आरोग्य सेतु’ एप तथा ‘आयुष कवच-कोविड’ एप को डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
योगी ने कहा कि डोर-टू-डोर सर्वे एक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत मेडिकल स्क्रीनिंग के माध्यम से कोविड-19 के रोगियों को चिन्हित करने में बड़ी सहायता मिल रही है। उन्होंने इस कार्य को सतत जारी रखे जाने के निर्देश देते हुए कहा कि कोरोना की दृष्टि से संदिग्ध पाए गए व्यक्तियों की रैपिड एन्टीजन टेस्ट के द्वारा जांच की जाए।
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि कोविड-19 से होने वाली मृत्यु की दर को न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग तथा चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रभावी कार्यवाही करें। संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग प्रत्येक दशा में की जाए। उन्होंने जनपद लखनऊ , कानपुर नगर, बस्ती, प्रयागराज, बरेली, गोरखपुर, बलिया, झांसी, मुरादाबाद एवं वाराणसी में चिकित्सकों की विशेष टीम भेजने के लिए स्वास्थ्य विभाग तथा चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देशित किया। उन्होंने कहा कि इन जनपदों के नोडल अधिकारी भी टीम के साथ रहेंगे।
नई दिल्ली, 20 जुलाई (आईएएनएस)| जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर इस बार स्वतंत्रता दिवस से पहले मोदी सरकार का रुख स्पष्ट हो सकता है। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर 14 अगस्त को केंद्र सरकार जवाब दाखिल करेगी। देश मे लंबे समय से उठ रही जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग के मद्देनजर सरकार के रुख पर अब सभी की निगाहें हैं। पिछले वर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने भी जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताते हुए कहा था कि इससे अनेक संकट पैदा होते हैं। सीमित परिवार रखने को उन्होंने देशभक्ति से जोड़ा था। ऐसे में एक बार फिर 15 अगस्त से पहले इस मुद्दे पर हो रही सुनवाई को लेकर हलचल है।
दरअसल, भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की दाखिल याचिका पर बीते 10 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय के साथ विधि एवं न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। मगर, छह महीने तक केंद्र सरकार ने जवाब नहीं दाखिल किया तो याचिकाकर्ता ने सवाल उठाए। याचिकाकर्ता ने साइलेंस इज ऐक्सेप्टेंस की बात कहते हुए कहा कि सरकार के जवाब न दाखिल करने का मतलब है कि वह इसे स्वीकार कर रही है।
बीते 13 जुलाई को सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट ने फिर केंद्र सरकार से इस मसले पर जवाब-तलब किया तो सरकार ने कहा है कि उसे चार हफ्ते का वक्त चाहिए। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त तक समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए यह तिथि तय की है।
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने आईएएनएसस से कहा, "14 अगस्त तक केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून पर जवाब दाखिल करना है। जवाब से ही पता चल जाएगा कि सरकार इस कानून पर क्या सोचती है? हम दो हमारे दो कानून के जरिए देश की करीब 50 फीसदी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।"
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक, वाजपेयी सरकार में जस्टिस वेंकट चलैया की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग गठित हुआ था। दो साल तक संविधान की समीक्षा के बाद वेंकटचलैया कमीशन ने संविधान में अनुच्छेद 47 ए जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। कमीशन ने यह भी कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण कानून मानवाधिकार या किसी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन नहीं करता।
अश्विनी उपाध्याय ने आईएएनएस से कहा, "वेंकटचलैया कमीशन ने केंद्र सरकार को 31 मार्च 2002 को रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर आरटीआई, राईट टू फूड और राईट टू एजुकेशन, जैसे अहम कानून देश में आगे चलकर बने। मगर, जनसंख्या नियंत्रण कानून की सिफारिशों पर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया।"