ताजा खबर
रास्ते में पुलिस ने रोका, आश्वासन के बाद भी नहीं हटीं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदा, 6 जुलाई। दो माह से शराब दुकान बंद कराने की मांग कर रही महिलाओं ने आज एनएच-49 पर चक्काजाम करने की कोशिश की, रास्ते में पुलिस बल ने रोका। प्रशासनिक अफसरों ने मौके पर पहुंचकर आश्वासन दिया। वहीं महिलाओं का कहना है कि जब तक शराब दुकान को बंद नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा ब्लॉक के कापन गांव में शराब दुकान का 2 महीने से विरोध कर रही महिलाओं ने आज चक्काजाम कर दिया, जिससे लगभग दो घंटे जांजगीर-कापन मार्ग बाधित रहा। महिलाएं नेशनल हाईवे-49 को बाधित करने गांव से निकली थीं, जिन्हें पुलिस और प्रशासनिक टीम ने बीच रास्ते में रोक लिया, जिसके बाद महिलाएं मौके पर ही अड़ गईं। इस बीच समझाईश के लिए जांजगीर एसडीएम मेनका प्रधान मौके पर पहुंची और कलेक्टर यशवंत कुमार से चर्चा कर महिलाओं को शीघ्र ही दुकान के स्थान परिवर्तन का आश्वासन दिया, वहीं आबकारी विभाग की टीम भी मौके पर पहुंची थी, पर उनके द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
दरअसल, शासन की गाईड लाईन के तहत 4 मई से प्रदेश भर में शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कापन गांव की महिलाओं ने गांव का माहौल खराब होने का हवाला देते हुए अब तक शराब दुकान खुलने नहीं दिया है और 2 माह से शराब दुकान बंद है।
महिलाओं द्वारा शराब दुकान के सामने टेंट लगाकर आंदोलन किया गया। यहां तक कुछ त्योहार में भी महिलाओं ने उसी जगह एकत्रित होकर पूजा करते हुए आंदोलन किया, फिर भी अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली तो महिलाओं ने एनएच-49 पर चक्काजाम करने का अल्टीमेटम दे दिया, इसके बाद प्रशासन हरकत में आया।
गौरतलब है कि कापन गांव की महिलाओं ने इस वित्तीय वर्ष में एक भी दिन गांव में शराब दुकान को खुलने नहीं दिया है, जिससे प्रतिदिन राजस्व का नुकासान शासन को हो रहा है। पिछले 2 माह से इन महिलाओं का आंदोलन अनवरत जारी है। महिलाओं का साफ कहना है कि जब तक शराब दुकान को बंद नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्र के लिए मनरेगा योजना कितना कारगर साबित हो रही है, डाउन टू अर्थ की खास रिपोर्ट-
-सचिन कुमार जैन
2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग ।
मनरेगा कभी भी ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने के करीब नहीं पहुंच पाया। वर्ष 2016-17 से वर्ष 2019-20 के केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के अध्ययन से पता चला कि इस अवधि में औसतन 7.81 करोड़ सक्रिय जाब कार्डधारी परिवारों में से केवल 40.7 लाख (5.2 प्रतिशत) को ही 100 दिन का रोजगार मिला।
बिहार में 54.12 लाख सक्रिय जॉबकार्ड में से केवल 20 हज़ार (0.3 प्रतिशत) परिवारों ने, उत्तरप्रदेश में 85.72 लाख सक्रिय जॉबकार्ड्स में से औसतन 70 हजार (0.8 प्रतिशत) परिवारों ने, मध्यप्रदेश में 52.58 लाख सक्रिय जॉबकार्ड धारियों में से केवल 1.1 लाख (2.1 प्रतिशत) परिवारों ने, छत्तीसगढ़ में 33.41 लाख जॉबकार्ड धारी परिवारों में से 2.9 लाख (8.8 प्रतिशत), कर्नाटक में 33.39 लाख सक्रिय जॉबकार्ड धारियों में से 1.6 लाख (4.7 प्रतिशत) पश्चिम बंगाल में 83.48 लाख कार्ड धारियों में से 6.1 लाख (7.4 प्रतिशत) और राजस्थान में 69.88 लाख जॉबकार्ड धारियों में से 5.2 लाख (7.5 प्रतिशत) परिवारों ने ही यह लक्ष्य हासिल किया।
मनरेगा में हर पंचायत की वार्षिक और पंचवर्षीय कार्ययोजना बनाने का प्रावधान है, लेकिन क्रियान्वयन में सही ढंग से नियोजन न होना, एक बड़ी चुनौती रही है। चार साल की रिपोर्ट्स बताती हैं कि मनरेगा में हर साल औसतन 184.1 लाख काम या तो नए शुरू होते हैं या फिर पहले से चले आ रहे होते हैं। हर साल औसतन 39.4 प्रतिशत काम ही पूरे हो रहे हैं, बाकी अगले साल की कार्ययोजना में जुड़ जाते हैं। सबसे खराब स्थिति बिहार की है। वहां औसतन 12.4 लाख काम खोले गए, जिनमें से औसतन 2.1 लाख (16.1 प्रतिशत) ही पूरे किये गए। छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में 40 प्रतिशत से ज्यादा काम पूरे हुए।
सब्सिडी नहीं, श्रम का पारिश्रमिक
वर्ष 2019-20 के बजट पर चर्चा करते हुए भारत के ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा था कि हमारी सरकार मनरेगा को हमेशा नहीं चलाये रखना चाहती है। यह योजना गरीबों की मदद के लिए है और हम गरीबी मिटा देंगे ताकि यह योजना बंद की जा सके। इस वक्तव्य से यह स्पष्ट दिखता है कि भारत सरकार यह जानती ही नहीं है कि इस योजना से केवल मजदूरों को काम नहीं मिलता है, इससे ऐसी परिसंपत्तियों का निर्माण भी होता है, जिनसे गांवों की बदहाली पर रोक लग रही है। इनसे पानी-पेड़ों-खेतों-पशुपालन-आवागमन का ढांचा भी तैयार हुआ है।
आलोचना के बावजूद उसी साल ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 60 हजार करोड़ रुपये का आवंटन भी किया। कहा था कि इस राशि से 1.52 लाख सूक्ष्म सिंचाई इकाइयां बनाई जाएंगी। वनीकरण के 32 हजार काम किये जाएंगे। इस राशि से कुल मिलाकर 58.21 लाख परिसंपत्तियां बनाने या उनकी मरम्मत का काम किया जाएगा। कभी सोचियेगा कि मनरेगा का भारत को बदहाली से बचाने में क्या योगदान है? इसी कार्यक्रम ने शहरी भारत और ग्रामीण भारत के बीच असमानता की खाई को असीमित होने से और गांवों को फिर से जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह बहुत ही सामान्य सा विषय रहा है कि छोटे किसानों और गांवों को आर्थिक विकास का लाभ दिलाने के लिए उनके संसाधनों को ज्यादा उत्पादक बनाना होगा। यही कारण है कि मनरेगा में खेत तालाब, मेढ़ बंधान, निजी प्रांगण या जमीन पर कुएं खोदना और अब पोषण वाटिका लगाने जैसे काम भी इसमें शामिल हैं। वर्ष 2020-21 के शुरूआती 2 महीनों में ही इस तरह के 1.37 करोड़ व्यक्तिगत कामों को मनरेगा में शामिल करके, उन पर काम चालू किया गया।
भारत के सुरक्षित और संपन्न तबकों को इतना तो अहसास होना ही चाहिए कि जिस देश को वे इतना प्रेम करते हैं, वहां गांव और गांव के मजदूरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आए। जो लोग यह मानते हैं कि मनरेगा के लिए किया जाने वाला खर्च मध्यमवर्गीय परिवारों पर बोझ बनता है, तो उन्हें केवल एक जानकारी ग्रहण कर लेना चाहिए। जब वर्ष 2020-21 के लिए भारत सरकार ने मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया, तो वह किसी दान या मुफ्त वितरण के लिए आवंटन नहीं था। इस राशि से 5.5 करोड़ परिवार (और 7.8 करोड़ मजदूर) मेहनत करके भारत को ठोस विकास अवस्था में ले जाते हैं। इससे उत्पादन बढ़ता और भारत की खाद्य असुरक्षा और गरीबी में कमी आती और महंगाई दर नियंत्रण में रहती। (downtoearth)
कोयला उत्खनन से उस क्षेत्र का क्या हाल होता है? कोरबा के उदाहरण से समझिए, जहां वर्ष 1951 में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ
-रमेश शर्मा
कोयला उत्खनन के स्थापित तर्क - विकास, रोजग़ार, बिजली उत्पादन और राजस्व के अवसरों से जुड़े हुये हैं। इन तर्कों के अपने सत्य, असत्य और अर्धसत्य हैं। भारत सरकार (2018) के अनुसार शत-प्रतिशत गांवों में बिजली की आपूर्ति पूरी कर दी गयी है। वैसे तो सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों में यह लक्ष्य पहले ही पूरा किया जा चुका है, लेकिन विश्व बैंक (2018) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 2 करोड़ लोगों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंच पायी है। अर्थात कोयले के उत्खनन, बिजली के उत्पादन और आपूर्ति के बीच का फासला न केवल वाद-विवाद का विषय है, बल्कि शोध का विषय यह भी है कि कोयले के उत्खनन से बिजली के उत्पादन, वितरण और फिर मुनाफे के मध्य लाभार्थी कौन है और वंचित कौन?
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले को एक महत्वपूर्ण बिजली उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों को बिजली आपूर्ति करने वाले कोरबा जिले के बहुसंख्यक आदिवासी समाज नें इसकी क्या क़ीमत चुकाई है, बेहतर होगा वहां के जमीनी हकीकत से इसे समझा जाए।
भूवैज्ञानिक मानते हैं कि गोंडवाना सीरीज के चट्टान, बेहतरीन कोयले के प्रमुख स्रोत हैं। संयोगवश, कोरबा जिले का लगभग 30 फीसदी भौगौलिक क्षेत्र इसी गोंडवाना सीरीज के चट्टानों से बना है। यह क्षेत्र करतला के उत्तर, कोरबा के पूर्व और कठघोरा के उत्तर में विस्तारित है। आज कोरबा, छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
वर्ष 1951 में कोरबा मे कोयले का उत्खनन शुरू हुआ। वर्ष 1958-59 में भिलाई इस्पात संयंत्र में आपूर्ति के लिये कोरबा के कोयला खदान क्षेत्रों के विस्तार में जिन गावों का विस्थापन हुआ उन्हें बताया गया कि देश के विकास के लिये उनका यह छोटा सा त्याग हमेशा याद रखा जाएगा। आदिवासी समाज ने भोलेपन से इस बात को स्वीकार कर लिया और देशहित में अपने जंगल और जमीनों से जुदा हो गये।
फिऱ एक-एक कर खदान खुलते गये - मौजूदा खदानों का विस्तार हुआ और हर बार उजाडऩे से पूर्व ग्रामवासियों को यही बताया गया कि देशहित में उनका यह योगदान हमेशा याद रखा जायेगा। आदिवासी समाज ने, न सिर्फ अपनी संस्कृति गवां दी बल्कि उनके अपने जल जंगल और ज़मीन के स्वामित्व के सवाल भी संविधान और विधानों के संहिताओं के बावज़ूद देशहित में पूरी तरह खारिज़ कर दिये गये।
कोरबा जिले का बड़ा भूभाग, संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत है - जहाँ पंचायत (विस्तार उपबंध) अधिनियम 1996 के अनुसार आदिवासी ग्रामसभाओं को विशेषाधिकार दिये गये हैं। छत्तीसगढ़ उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जहाँ इस क़ानून के लागू होने के लगभग 24 बरस बाद भी इसकी पूरी नियमावली नहीं बन पायी है। देशहित में अपना जल जंगल और जमीन दांव पर लगाने वाले बहुसंख्यक आदिवासी समाज के हिस्से आज केवल और केवल विपन्नता, उपेक्षा और ऐतिहासिक अन्याय है।
खदानों को संपन्नता और रोजग़ार से जोडऩे के राजनैतिक तर्क और उसकी सामाजिक-आर्थिक विफ़लताओं का एक केंद्रबिंदु है- कोरबा जिला। कोरबा जिला सांख्यिकी विभाग (2018) के अनुसार लकड़ी के उत्पाद, सूती तथा रेशमी वस्त्र उद्यम, चमड़े के सामान आदि बनाने वाली इकाईयां समाप्त हो चुकी हैं। अर्थात स्थानीय स्तर पर वैकल्पिक रोजग़ार के अवसर बरसों पहले समाप्त घोषित हो चुके हैं।
कोरबा के जिला रोजगार कार्यालय के अनुसार वर्ष 2017 में कोयला खदानों मे कार्यरत श्रमिकों की संख्या लगभग 14 हजार थी, जबकि इसी दौरान पंजीकृत बेरोजग़ारों की संख्या इससे कई गुनी अधिक थी। यह आंकड़े बताते हैं कि खदानों के खुलने का अर्थ, स्थानीय लोगों के लिए न तो बढ़े हुये रोजगार के अवसर हैं और न ही यह गऱीबी से मुक्ति का मार्ग है। आज कोरबा जिले के लगभग 40 फ़ीसदी लोग गऱीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं जिनमें से बहुसंख्यक आदिवासी ही हैं - आखिर उनकी इस गऱीबी के जवाबदेह कौन है?
यह महज़ संयोग नहीं कि देशहित में उनके योगदान को देखते हुये ही भारत के पूर्व प्रगतिशील प्रधानमंत्री नें आदिवासी समाज को राष्ट्रीय मानव तक कहा था। कहना मुश्किल है कि ऐसा उनके योगदान के लिये कहा गया अथवा आदिवासी समाज के मिटते हुये अस्तित्व को संरक्षित रखने के लिये चिंता व्यक्त की गयी। बहरहाल, संविधान के वायदे और कायदे, बहुसंख्यक आदिवासी समाज के लिये अर्थहीन ही साबित हुये हैं।
केंदई गांव की रुक्मिणी बाई कहतीं है कि बहुत हो चुका - एक बार तो सरकार और समाज साफ़ साफ़ कह ही दे कि मु_ी भर मुआवज़े के एवज में और क्या क्या हमसे लेना चाहते हैं। क्यों नहीं सरकार हमें मु_ी भर ही सही, अब तो ऐसी जमीन और जंगल का अधिकार दे जिसे फिर कोई छीन न पाये। हम अपनी संस्कृति और स्वाभिमान दोनों गवां चुके।
अगली पीढ़ी को देने के लिये आज इन निहत्थे हाथों में कुछ भी नहीं सिवाय उम्मीदों के जिसे अधिग्रहण का एक सरकारी फरमान खारिज कर सकता है। रुक्मिणी बाई मानती हैं कि ये नीलामी, धरती के नीचे दबे कोयले की नहीं बल्कि उस धरती के ऊपर सदियों से रह रहे निर्दोष आदिवासी समाज की है - जो विकास की बोलियों में दांव पर लगा है।
जिस विकास और रोजग़ार के चकाचौंध वायदों के साथ वर्ष 1981 में गेवरा की कोयला खदान खोदी गयीं - वो सब कोयले के गुबार में धुंधले हो गये। गेवरा के खदान में गेट नंबर -1 पर खड़ा मंगतू राम कहता है कि जब तहसीलदार नें हमारी धनहा जमीन के बदले 3 लाख के मुआवज़े की पेशकश की तब ऐसा लगता था कि विकास और संपन्नता स्वयं चलकर हमारे दरवाज़े पर आयी है। लेकिन ज़मीन हमेशा के लिये खो देने का गहरा भय भी था। फिर एक दिन बिना कहे-सुने हमारे ज़मीन की घेराबंदी शुरू हो गयी।
फऱमान आया कि 1 लाख रूपए के मुआवज़े के कागजातों पर दस्तखत करने कोरबा जाना पड़ेगा। हमें मालूम हुआ कि हम सब पराजित घोषित कर दिये गये हैं। मंगतू राम कहते हैं कि चौकीदार का यह ओहदा, मुझ जैसे बेरोजग़ारों को शर्मसार करने के लिये काफ़ी है। मालूम नहीं मैं किस जमीन की और क्यों चौकीदारी कर रहा हूँ।
छत्तीसगढ़ के हरेक 12 कोयला खदानों में रुक्मिणी बाई और मंगतूराम आपको मिल ही जायेंगे। उनके नाम कुछ भी हो सकते हैं - उससे क्या फर्क पड़ता है। फर्क़ तो इस बात से भी नहीं पड़ता कि देशहित के नाम, उनके जंगल - ज़मीन की नीलामी किसने कर दी। फर्क पडऩा चाहिये था उस पूरी व्यवस्था को जिसने संविधान के वैधानिक वायदों और क़ायदों के खि़लाफ़ उस पूरे आदिवासी समाज को विकास के चक्रव्यूह में निहत्थे खड़ा कर दिया -जहां देशहित के अर्थ कुछ भी हो सकते हैं। अंतत: फर्क पड़ा तो केवल उस आदिवासी समाज को जिसके पास देशप्रेमी साबित होने के अलावा आज शायद और कोई दूसरा विकल्प है ही/भी नहीं। (downtoearth)
(लेखक रमेश शर्मा-एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक हैं)
नांदगांव से 18, जगदलपुर से 17, रायपुर से 14
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में आज शाम करीब साढ़े 5 बजे 64 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें नांदगांव से 18, जगदलपुर से 17, रायपुर से 14, बलौदाबाजार से 9, बेमेतरा से 2 व दंतेवाड़ा, नारायणपुर, महासमुंद व कोरबा से 1-1 मरीज शामिल हैं। इसके पहले बीती देर रात 5 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें कोरबा से 3 एवं रायपुर-बिलासपुर से 1-1 मरीज शामिल हैं। इन सभी मरीजों को भर्ती कराने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ आसपास के लोगों की जांच की जा रही है। हेल्थ विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में आज शाम करीब 5 बजे 26 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें अकेले जगदलपुर से 17 मरीज पाए गए हैं। नांदगांव से 2 एवं नारायणपुर-दंतेवाड़ा से 1-1 मरीज सामने आए हैं। इन मरीजों के अलावा बीती देर रात 5 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें कोरबा से 3 एवं रायपुर-बिलासपुर से 1-1 मरीज शामिल हैं। इन सभी मरीजों को भर्ती कराने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ आसपास के लोगों की जांच की जा रही है। हेल्थ विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अफसर दिलीप वासनिकर को विभागीय जांच आयुक्त बनाया गया है। सचिव स्तर के अफसर श्री वासनिकर बस्तर और दुर्ग संभाग के कमिश्नर रहे हैं।
श्री वासनिकर से पहले आरपी जैन विभागीय जांच आयुक्त के पद पर रहे। श्री जैन पांच साल तक विभागीय जांच आयुक्त रहे। सरकार ने उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया था। इसके बाद नई नियुक्ति की संभावना जताई जा रही थी। सरकार ने श्री वासनिकर की नियुक्ति के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। उनकी छवि एक साफ-सुथरे अफसर की है। विधिवत आदेश जारी कर दिए गए हैं। उन्होंने सोमवार को विधिवत कार्यभार संभाल भी लिया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। पेट्रोल-डीजल के दाम में वृद्धि के खिलाफ पिछले कई दिनों से किये जा रहे आंदोलन के क्रम में आज कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गांधी चौक से साइकिल व बैलगाड़ी रैली निकाली।
विधायक शैलेष पांडेय, जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी सहित अनेक पार्टी पदाधिकारी, पार्षद आदि शामिल हुए। उन्होंने नारे लगाते हुए केन्द्र सरकार के फैसले का विरोध जताते हुए पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की मांग की।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। राज्यसभा सदस्य व कांग्रेस विधि प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विवेक के तन्खा ने छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की बोर्ड परीक्षाओं में प्रथम 10 की सूची में शामिल सभी बच्चों को लैपटॉप व टेबलेट देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री को लिखे गये पत्र में उन्हें इसकी जानकारी देते हुए प्रदेश में टेलेन्ट हन्ट के लिये विशेष अभियान चलाने का अनुरोध भी किया है।
विधि कांग्रेस प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष संदीप दुबे ने बताया कि इससे पहले तन्खा ने मध्यप्रदेश के प्रावीण्य सूची के बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिये यह घोषणा की थी। हमारे अनुरोध पर उन्होंने छत्तीसगढ़ के लिये भी यह घोषणा की है। 10वीं बोर्ड की परीक्षा में प्रथम 10 स्थान पर आये सभी बच्चों को टेबलेट और 12वीं बोर्ड परीक्षा के टॉप टेन में शामिल सभी बच्चों को लैपटॉप प्रदान किया जायेगा।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में तन्खा ने कहा कि छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि रही है। उन्हें प्रसन्नता है कि राज्य के बच्चे व युवा अपनी प्रतिभा व लगन से राज्य को एक नई दिशा देने के लिये प्रयास कर रहे हैं। इस वर्ष का माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक परीक्षा परिणाम खुश कर देने वाला है। कोविड-19 जैसी भयंकर महामारी का सामना करते हुए बच्चों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि हाल ही में मैंने मध्यप्रदेश सरकार से भी अनुरोध किया और आपसे भी करता हूं कि राज्य में विशेष अभियान चलाकर टैलेंट हंट किया जाये, जिससे प्रदेश के होनहारों को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा सके। अमेरिका जैसे कई देशों ने इस आवश्यकता को पहचाना है और इसे जिम्मेदारी से लागू किया है। ऐसा अभियान राज्य की छुपी प्रतिभाओं को सामने लाने में मददगार साबित होगा।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 6 जुलाई। राजनांदगांव जिले में सोमवार दोपहर को डेढ़ दर्जन कोरोना के नए मरीज मिले है। जिसमें सर्वाधिक 13 मरीज लखोली बस्ती व आसपास के सटे मुहल्ले के हैं।
मिली जानकारी के अनुसार आज दोपहर को जारी मेडिकल रिपोर्ट में राजनांदगांव जिले में 18 नए कोरोनाग्रस्त मरीज सामने आए हैं। लखोली बस्ती, संजय नगर, राजीव नगर में 13 मरीज मिले हैं। वहीं डोंगरगढ़, मोहला, सोमनी व एक पैरामिलिट्री फोर्स का एक जवान शामिल हैं। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि आज मिले नए मरीजो को राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज लाया गया है। पिछले तीन दिनों के बाद कोरोना के नए मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला कोरोना प्रभावित इलाकों में लगातार लोगों की जांच कर रहा है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक माह बाद बाद कोरोना ने फिर दस्तक दी है। हैदराबाद से लौटे 25 साल के युवक की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। युवक हैदराबाद के बिस्किट फैक्टरी में काम करता था। इसकी पुष्टि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. देवेन्द्र पैकरा ने की है। देर शाम युवक की रिपोर्ट आने के बाद से जिले में मचा हडक़ंप हुआ है।
जिले में रविवार को 25 लोगो की रिपोर्ट आई, जिनमें से एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह संक्रमित युवक निमधा के बंधौरी गांव का रहने वाला है। संक्रमित युवक को इलाज के लिए बिलासपुर कोविड अस्पताल लाया गया है। अब तक मिले कुल 4 संक्रमितों में 3 स्वस्थ होकर घर वापस लौट चुके हैं।
मौतें-14, एक्टिव-627, डिस्चार्ज-2578
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 32 सौ पार कर चुके हैं। रायपुर जिले में आज दोपहर मिले 12 नए पॉजिटिव के साथ प्रदेश में इनकी संख्या बढक़र 32 सौ 19 हो गई है। इसमें 14 लोगों की मौत हो चुकी है। 627 एक्टिव हैं, जिनका एम्स समेत सरकारी अस्पतालों में इलाज जारी है। 25 सौ 78 ठीक होने पर डिस्चार्ज होकर अपने घर लौट गए हैं।
जानकारी के मुताबिक रायपुर जिले में आज दोपहर करीब डेढ़ बजे 12 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें पीएचक्यू के एक कांस्टेबल की नेचुरोपैथी डॉक्टर पत्नी, लाभांडी सरकारी अस्पताल के दो हेल्थ वर्कर, पुराने पीएचक्यू के दो कांस्टेबल, किर्गिस्तान व यूएस से आए दो विदेशी मेडिकल छात्र व एक सफाईकर्मी शामिल हैं। इन सभी को आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। वहीं इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। इसके बाद इन सभी की भी कोरोना जांच करायी जाएगी।
कल दोपहर से बीती रात तक 46 पॉजिटिव मिले थे। इसमें रायपुर से सबसे अधिक 15 रहे। कोरबा से 11, कोरिया से 6, बिलासपुर से 5, सरगुजा से 4, जांजगीर-चांपा से 3 व रायगढ़ से 2 मरीज पाए गए। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि उनकी टीम अलग-अलग जगहों पर जाकर जांच में लगी है। खासकर उन लोगों के सैंपल लिए जा रहे हैं, जो लोग दिनभर में ज्यादा से ज्यादा लोगों के संपर्क में आते हैं। सैंपलों की जांच चल रही है। जांच में और भी पॉजिटिव सामने आ सकते हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। दंतेवाड़ा के कटेकल्याण इलाके में प्रेशर बम की चपेट में आने से 2 जवान घायल हो गए, वहीं पुलिस को तीन बम बरामद करने में कामयाबी मिली।
पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने बताया कि कटेकल्याण के अति संवेदनशील मारजूम के जंगलों में नक्सलियों के कैंप की सूचना मिली थी। इसके आधार पर दंतेवाड़ा से जिला आरक्षी बल की टीम को रवाना किया गया। पुलिस दल ने नक्सलियों के कैंप को ध्वस्त कर दिया। कैंप से तीन बम बरामद किए गए, वहीं तीन नक्सली बैग भी पुलिस के हाथ लगे।
पुलिस के जवान जंगलों के रास्ते वापस लौट रहे थे। इसी दौरान प्रेशर बम विस्फोट हुआ। इसकी चपेट में आकर 2 जवान घायल हो गए। जिनका उपचार जारी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। दंतेवाड़ा के बारसूर क्षेत्र के हीरानार गांव में नाले में शुक्रवार को नहाते 2 चचेरी बहनें बह गर्इं। तीन दिन बाद एक बहन की आज लाश मिली, वहीं दूसरी की तलाश जारी है।
नगर निरीक्षक गीदम थाना गोविंद यादव ने बताया कि शुक्रवार को हीरानार गांव के सरपंच पारा की दो चचेरी बहनें जानकी और ईश्वरती (दोनों की उम्र 8-9 वर्ष)अपने खेतों की रखवाली करने गई थीं। इसके बाद दोनों नहाने के लिए समीपवर्ती नाले में गई। जहां पैर फिसलने से दोनों बहनें नाले के तेज बहाव में बह गर्इं।
सोमवार को तीन दिन बाद जानकी का शव बरामद किया गया। उसे घटनास्थल से 3 किलोमीटर की दूरी पर डैम के पास बरामद किया गया, वहीं दूसरी बहन ईश्वरती का समाचार लिखे जाने तक सुराग नहीं मिल सका है। उसकी तलाश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि जिले में शनिवार रात से ही मूसलाधार बारिश का दौर जारी है। इसके चलते ही नदी और नाले उफान पर हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। सरकार ने राज्य पुलिस सेवा के तीन अफसरों समेत कुल 21 पुलिस अफसर-कर्मियों की ईओडब्ल्यू और एंटी करप्शन ब्यूरों में पदस्थ किया है। इनमें एक एडिशनल एसपी, दो डीएसपी और पांच टीआई शामिल हैं। खास बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान युवक की बेरहमी से पिटाई करने वाले टीआई नितिन उपाध्याय को भी पोस्टिंग मिल गई है।
उपाध्याय को लाइन अटैच कर दिया गया था। और उनके खिलाफ मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए थे। मगर उन्हें ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है। एएसपी पंकज चंद्रा की पोस्टिंग पहले ही हो चुकी है। इसके अलावा दो डीएसपी अजितेश सिंह और सपन चौधरी को भी प्रतिनियुक्ति पर ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है। जिन पुलिस अफसरों-कर्मियों को प्रतिनियुक्ति पर ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है, उनके नाम इस प्रकार हैं-
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। नक्सलियों की पूर्वी बस्तर डिवीजन कमेटी ने राज्य शासन की बोधघाट परियोजना का कड़ा विरोध किया है। नक्सली संगठन की पूर्वी बस्तर डिवीजन कमेटी ने पर्चे फेंक कर इस परियोजना से सिर्फ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की बात कही है।
इस पर्चे में कहा गया है कि बोधघाट परियोजना से बस्तर के सौ गांव डूब जाएंगे, 50 हजार एकड़ जमीन डूब जाएगी वहीं 70 हजार एकड़ जनता विस्थापित हो जाएगी। बोधघाट की सस्ती बिजली और पानी से पूंजीपतियों को लाभ दिया जाएगा। इससे बस्तर के रहवासियों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा।
नक्सली पर्चे में कहा गया है कि बोधघाट परियोजना अंतर्गत मुख्य बांध के साथ ही 2 सहायक बांध बनाए जाएंगे। जिससे भूमि के डूबान क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी। इससे पूर्व बस्तर में विभिन्न परियोजनाओं और खदानों से बस्तर के लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ। इस तरह से बस्तर की जनता का शोषण ही हुआ है। नक्सलियों ने बस्तर के लोगों से बोधघाट परियोजना का विरोध करने की अपील की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नारायणपुर, 6 जुलाई। आज सुबह नदी पार करते हुए 14 साल की बालिका व 2 महिलाएं बह गई। जिसमें से एक महिला का शव बरामद कर लिया गया है। मौके पर धनोरा पुलिस और आईटीबीपी के जवान बचाव में लगे हंै। धनोरा थाने क्षेत्र की घटना है।
जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर पर स्थित ओरछा मार्ग पर धनोरा के पास माड़ीन नदी पार करती 14 साल की बालिका व 2 महिलाएं बह गईं। जिसमें से एक महिला का शव एक किमी पर नदी किनारे पेड़ से फंसा हुआ मिला।
बताया जाता है कि झारा गांव की 7 महिलाएं व 14 साल की बालिका निजी काम से रविवार को नदी पार कर दूसरे गांव गई थी। रात को बारिश होने पर वहीं रूक गईं। आज सुबह अपने गांव जाने नदी पार करने लगीं। शुरूआत में घुटने तक पानी था। बीच नदी में पानी बढ़ गया, जिससे बालिका व 2 महिलाएं बह गईं, जिसे देखकर अन्य महिलाएं वापस लौट गईं। घटना की जानकारी मिलने पर धनोरा पुलिस और आईटीबीपी के जवान बचाव में लगे हंै। ज्ञात हो कि माड़ीन नदी अबुझमाड़ की लाइफलाइन है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर 6 जुलाई। मैसूर कर्नाटक से लाए गए रेप के एक आरोपी के कोरोना संक्रमित पाए जाने पर जिला पुलिस और केंद्रीय जेल में हडक़ंप मच गया है। जिला मुख्यालय के सबसे बड़े थाना सिविल लाइन को सील कर दिया गया है। केंद्रीय जेल में आरोपी के संपर्क में आए आए जेल के स्टाफ तथा अन्य कैदियों का सैम्पल लिया जा रहा है। आरोपी को मैसूर लेने गए एक अधिकारी और तीन पुलिस जवानों का सैम्पल लेकर उन्हें चरन्टीन पर भेज दिया गया है। बाकी स्टाफ का भी सैम्पल लिया जा रहा है।
सिविल लाईन थाने में 60 से अधिक पुलिस कर्मचारी अधिकारी काम करते हैं। यह जिला मुख्यालय का सबसे बड़ा थाना है।
मालूम हुआ है कि रेप के आरोपी को एक जुलाई को लेने के लिये पुलिस टीम मैसूर गई थी। उसका यहां कोरोना टेस्ट कराया गया था। अदालत की परमिशन के बगैर किसी भी कैदी को 24 घंटे से ज्यादा नहीं रखा जा सकता है इसलिए उसे कोर्ट में पेश किया गया, जहां से केंद्रीय जेल दाखिल कर दिया गया रिपोर्ट आने पर उसे कोरोना पॉजिटिव पाया गया है जिसके बाद यह कार्रवाई की गई है।
जिले के किसी थाने को सील करने का यह दूसरा मामला है। इसके पहले मस्तूरी तहसील के पचपेड़ी थाने को एक आरक्षक के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद सील कर दिया गया था। सिविल लाईन थाने का सारा कामकाज फिलहाल तारबाहर थाने में शिफ्ट कर दिया गया है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में कार्यरत एक चिकित्सक की पत्नी को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद वहां भी सभी का सैंपल लिया जा रहा है। यह घटना 4 जुलाई की है। 4 जुलाई को ही महाधिवक्ता कार्यालय के पीआरओ को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद पूरा दफ्तर सील कर दिया गया है। इसी के मद्देनजर हाई कोर्ट में भी 10 जुलाई तक कामकाज बंद करने का निर्णय लिया जा चुका है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। भारतीय वनसेवा के दर्जनभर अफसरों की पदोन्नति का प्रस्ताव है। इस कड़ी में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स, दो पीसीसीएफ और चार एडिशनल पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति होगी। इसके लिए पदोन्नति समिति की बैठक हफ्तेभर के भीतर होने की उम्मीद है।
बताया गया कि हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स मुदित कुमार सिंह की वन विभाग से बाहर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान में पोस्टिंग हो गई है। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स का पद सीएस और डीजीपी के समकक्ष वेतनमान का पद है। इस पद पर पीसीसीएफ (मुख्यालय) राकेश चतुर्वेदी की पदोन्नति तकरीबन तय मानी जा रही है। चतुर्वेदी 85 बैच के अफसर हैं और मुदित कुमार सिंह के बाद सबसे सीनियर अफसर हैं। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की डीपीसी में एक सदस्य केन्द्र सरकार द्वारा नामांकित अफसर रहेंगे।
अभी केन्द्र सरकार ने डीपीसी के एक सदस्य के लिए किसी को नामांकित नहीं किया है। माना जा रहा है कि दो-चार दिन के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने पीसीसीएफ के एक अतिरिक्त पद की स्वीकृति दे दी है। साथ ही साथ पीसीसीएफ स्तर के अफसर वन विकास निगम के एमडी राजेश गोवर्धन भी अगले महीने रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अब दो पद के लिए डीपीसी होने वाली है। इसमें सीनियर एपीसीसीएफ पीसी पाण्डेय और देवाशीष दास का नंबर लग सकता है।
विभाग ने 94 बैच के चार सीसीएफ को एपीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति देने का प्रस्ताव है। इनमें सुनील कुमार मिश्रा, प्रेम कुमार, ओपी यादव और अनूप विश्वास पदोन्नत किए जाएंगे। इसके अलावा पांच सीएफ से सीसीएफ के पद पदोन्नति का भी प्रस्ताव है। पदोन्नति की सारी प्रक्रिया हफ्तेभर के भीतर पूरी होने की उम्मीद है। पदोन्नति के साथ-साथ विभाग में कुछ फेरबदल भी हो सकते हैं।
नेचुरोपैथी डॉक्टर, हेल्थ वर्कर, पीएचक्यू
के कांस्टेबल, विदेशी छात्र संक्रमित मिले
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। रायपुर जिले में आज दोपहर करीब डेढ़ बजे 12 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें एक नेचुरोपैथी डॉक्टर, दो हेल्थ वर्कर, पुराने पीएचक्यू के दो कांस्टेबल, दो विदेशी मेडिकल छात्र व एक सफाई कर्मी शामिल बताए जा रहे हैं। इन सभी को आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। जिला स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
रायपुर जिले में कोरोना मरीज तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं और कुछ नए लोग भी संक्रमित मिलने लगे हैं। जानकारी के मुताबिक आज संक्रमित पाई गईं नेचुरोपैथी डॉक्टर जगदलपुर में रहती हैं और वह यहां पुराने पीएचक्यू के एक कांस्टेबल की पत्नी हैं। दूसरी तरफ संक्रमित दो हेल्थ वर्कर लाभांडी सरकारी अस्पताल से हैं। दो विदेशी मेडिकल छात्रों में एक किर्गिस्तान और एक यूएस का है और दोनों यहां क्वॉरंटाइन में थे।
उल्लेखनीय है कि रायपुर जिले में बीती रात तक कोरोना मरीजों की संख्या 427 रही, जिसमें 198 एक्टिव रहे। आज 12 नए पॉजिटिव आने के बाद इनकी संख्या बढक़र अब 439 हो गई है, जिसमें 210 एक्टिव हैं और इन सभी का आसपास के अस्पतालों में इलाज जारी है। कल यहां 15 पॉजिटिव सामने आए थे।
रायपुर, 6 जुलाई। दिवंगत एडीजी विजयशंकर चौबे की पुत्री सुश्री श्वेता चौबे को आईपीएस अवार्ड हुआ है। वे वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में अपनी सेवाएं दे रही हैं। और देहरादून सिटी एसपी के पद पर कार्यरत हैं।
रायपुर सुंदरनगर की रहवासी सुश्री श्वेता चौबे के पिता स्व. विजयशंकर चौबे की गिनती छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय पुलिस अधिकारियों में होती रही है। वे छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी रहे। इससे परे सुश्री श्वेता उत्तराखंड पुलिस सर्विस की ऑफिसर रही है और उन्हें पिछले दिनों आईपीएस अवार्ड हुआ है।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
कोण्डागांव,6 जुलाई। बीती रात फूड प्वाइजनिंग से मां-बेटी की मौत हो गई। एक व्यक्ति को गंभीर हालत में नारायणपुर के अस्पताल में दाखिल किया गया है।
कोण्डागांव के मर्दापाल थाना अंतर्गत पहुंच विहीन कड़ेनार में देर रात की घटना है। बताया जाता है कि बोड़ा सब्जी खाने से परिवार में फूड प्वाइजनिंग फैला। मौके पर पहुंच कोण्डागांव के स्वास्थ्य अमला ने 4 लोगों का इलाज किया।
प्रेमी ने हत्या कर डोंगरगढ़ प्रज्ञागिरी पहाड़ी में गड़ाया था शव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 6 जुलाई। नौ माह से लापता एक युवती की तलाश कर रही राजनांदगांव पुलिस को डोंगरगढ़ के धार्मिक पहाड़ी प्रज्ञागिरी में कंकाल मिला है। पुलिस ने फॉरेंसिक जांच के बाद पुष्टि करते बताया कि उक्त कंकाल गुम युवती का ही है।
अक्टूबर 2019 से कवर्धा जिले की रणवीरपुर गांव की 20 वर्षीय सुमन पटेल के लापता होने की रिपोर्ट बसंतपुर थाने में परिजनों ने दर्ज कराई थी, तब से पुलिस युवती की तलाश में थी। गुम इंसानों की पतासाजी करने की विशेष अभियान के तहत एसपी जितेन्द्र शुक्ला ने इस मामले की निजी तौर पर मॉनिटरिंग की और इसके बाद पुलिस ने युवती के गांव के ही मनोज वैष्णव (24 वर्ष) को पूछताछ के लिए तलब किया। पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि सुमन पटेल और युवक के बीच प्रेम संबंध था। युवती राजनांदगांव में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही थी। दोनों के बीच प्रेम प्रसंग कायम होने के बाद किसी बात से नाराज होकर प्रेमी ने उसकी हत्या कर दी।
इस संबंध में पत्रकारवार्ता में एसपी जितेन्द्र शुक्ला ने बताया कि आरोपी मनोज वैष्णव मृतिका को 6 अक्टूबर 2019 को डोंगरगढ़ घुमाने ले गया। प्रज्ञागिरी पहाड़ी में दोनों के बीच कहा-सुनी हो गई और 7 अक्टूबर को आरोपी ने युवती की हत्या कर उसकी लाश को पहाड़ी में छुपा दिया। एसपी ने बताया कि युवती की इस पतासाजी करने के दौरान जब उसके निजी जिंदगी पर नजर गई तब आरोपी पर शक हुआ। बताया जा रहा है कि आरोपी और युवती के बीच प्रेम रिश्ता कायम होने की जानकारी गांव में किसी को नहीं थी। यही कारण है कि आरोपी पुलिस की जद में आया। मृतिका के परिजनों को जब इसकी जानकारी लगी तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। बहरहाल आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
पिछली चौथाई सदी से भारत सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से हर 4 या 5 साल में तैयार किए जाने वाले राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आंकड़ों के सहारे है। यह संस्था हर 4-5 बरस में राज्यवार स्वास्थ्य सर्वे से मिली जानकारियों के आधार पर बड़ी रिपोर्ट जारी करती आई है।
जनवरी, 2019 में लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर सरकार की अपनी सांख्यिकीय संस्था ने राज्यवार रोजगार पर कुछ चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए जो भारत में लगातार बढ़ती बेरोजगारी की चिंताजनक तस्वीर दिखा रहे थे। सरकार ने इस रिपोर्ट को नकार दिया। शीर्ष नीति-निर्माता संस्था नीति आयोग ने घोषणा की कि सर्वेक्षण से मिले आंकड़े शायद सही तरह जमा नहीं किए गए इसलिए सरकार को वे विश्वसनीय नहीं लगते। उनको खारिज किया जाता है। आज की तारीख में जब कोविड दावानल की तरह बढ़ रहा है, हमारी सरकार के पास कारगर नीति बनाने के वास्ते रोजगार, जन स्वास्थ्य, शहरी पलायन या गांव-शहर में अलग-अलग रहने वाले परिवारों की आर्थिक स्थिति की बाबत ताजा, व्यवस्थित, राज्यवार डेटा उपलब्ध नहीं है। 2019 में संभवत: सर पर खड़े चुनावों के मद्देनजर भारत में पहली बार हुए डेटा के राजनीतिकरण ने जो गलतियां कीं, उनकी शक्ल अब धीरे-धीरे उभर रही है।
पिछली चौथाई सदी से भारत सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से हर 4 या 5 साल में तैयार किए जाने वाले राष्ट्रीय सर्वेक्षण (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) के आंकड़ों के सहारे है। यह संस्था हर 4-5 बरस में राज्यवार स्वास्थ्य सर्वे से मिली जानकारियों के आधार पर बड़ी रिपोर्ट जारी करती आई है। अब तक ऐसे चार बड़े राज्यवार सर्वेक्षण आ चुके हैं। इनसे उजागर जन स्वास्थ्य, खासकर महिलाओं और बच्चों के प्रजनन और मृत्यु से जुड़ा वैज्ञानिक रूप से जमा डेटा तमाम शोधकर्ता देश और संयुक्त राष्ट्र संघ में बेहतरी की नीति गढऩे के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं। चौथे सर्वेक्षण के बाद इसको भी रोक दिया गया। तेजी से बदलते हालात में अंतिम उपलब्ध डेटा (2015-2016) बासी पड़ चुका है। जून की शुरुआत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि भारत में प्रति दस लाख कोविड मरीजों में मरने वालों की औसत दर समुन्नत देशों- यूरोप, रूस या अमेरिका के बरक्स काफी कम (11 फीसदी) है। अब विश्व संगठन के ताजा डेटा से पता चला है कि जून के अंतिम हफ्ते में दक्षिण एशियाई देशों- नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका में भारत में कोविड से मरने वालों की दर सबसे अधिक हो चुकी है। भारत में इस रोग की बढ़त एक ही पखवाड़े में नेपाल को छोडक़र अन्य सभी देशों से आगे निकल गई है। जब राजधानी दिल्ली और मुंबई भी इस रफ्तार पर अंकुश नहीं लगा पा रहे, तब स्वास्थ्य मंत्रालय ने टेस्टिंग बढ़ाए जाने के बाद मिले आंकड़ों को आधार बना कर मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के सामने (शीर्ष संस्था आईसीएमआर के हवाले से) 23 जून की मीटिंग में जो तस्वीर पेश की, वह बहुत चिंताजनक है।
जब सरकार ने अपने शीर्ष डेटा संकलनकर्ताओं पर सवालिया निशान लगा कर डेटा को सार्वजनिक करने से रोका था, तभी विशेषज्ञों ने आगाह किया था। उनकी राय में सारे का सारा डेटा रद्द करने का मतलब होगा कि आगे से सरकार के नीति-निर्माता महज अपने अनुमान के आधार पर अंधेरे में जुमले फेंकेंगे। जून के आखिरी पखवाड़े में राजधानी के बड़े कोविड अस्पतालों में तिल रखने की जगह नहीं। कोविड के रोगी और परिवार से हर कोई बिदकता है। इसलिए जब घर पर या एम्बुलेंस में अस्पताल से अस्पताल जाते हुए कई संक्रमित मरीज दम तोड़ देते हैं तो परिजनों द्वारा उनकी मौत की वजह कोविड नहीं दर्ज कराई जाए, यह भी नितांत संभव है। उत्तर प्रदेश को केंद्र से अपने यहां मृत्युदर कम रखने तथा ‘आगरा मॉडल’ बनाने का श्रेय दिया जा रहा है। पर ‘द हिंदू’ की शोध टीम के अनुसार, उसने अन्य राज्यों की तुलना में आपराधिक या सांप्रदायिक मामले हों या कोविड संबंधी सूचनाएं, सभी में उत्तर प्रदेश सरकार की जारी की गई रिपोर्टों में कम पारदर्शिता पाई है। मीडिया की किसी भी नकारात्मक रिपोर्ट पर गौर करने के बजाय हर जगह सरकारी प्रतिक्रिया होती है कि वे राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित हैं।
राष्ट्रीय आपदा और भ्रम की इन घडिय़ों में राष्ट्रीय स्वायत्त प्रसारक संस्था प्रसार भारती के बोर्ड ने भी देश की सबसे प्रमुख संवाददाता एजेंसियों में से एक- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई), से जाने क्यों अचानक रार मोल ले ली है। पीटीआई एक न्यास द्वारा संचालित, सम्मानित और प्रोफेशनल तौर से काम करती रही संस्था है। और ऐसी हर स्वायत्त संस्थाका मूल काम होता है, जनहित में हर क्षेत्र से हर तरह की जानकारी और विजुअल जमा करना और उनको अपने नियमित गाहकों को लगातार 24&7 देना। प्रसार भारती बोर्ड को आपत्ति है कि इस एजेंसी ने जिससे वह नियमित रूप से खबरें खरीदती रही है, भारत में चीनी राजदूत और चीन में भारत के राजदूत के दो विवादास्पद साक्षात्कार एक साथ काहे जारी किए? खासकर जब भारत तथा चीन दोनों देशों के बड़े नेताओं के बयानात के बाद सीमा पर तनाव दिनों-दिन गहरा रहा है? उसका यह भी आक्षेप है कि पीटीआई के बोर्ड में अधिकतर मीडिया के लोग भरे पड़े हैं। सच यह है कि आज की तारीख में पीटीआई के बोर्ड में न्यायमूर्ति लाहोटी, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और विदेश सचिव रह चुके कई वरिष्ठ जानकार लोग भी हैं।
मीडिया अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग कैसे न करे जबकि चीन का रुख लगातार अडिय़ल दिखता है, द्विपक्षीय बातचीत का कोई ठोस नतीजा जनता के आगे नहीं लाया जा रहा और नेतृत्व की तरफ से बिना चीन का नाम लिए हम-हमलावर- की-आंख में-आंख-डाल-कर-वाजिब-जवाब-देना-जानते हैं, किस्म, की घोषणाएं भी कोविड के कारण घर में सिमटी जनता का मनोबल बहुत नहीं बढ़ापा रहीं। संसद का मानसून सत्र भी नहीं हो पा रहा, जिससे सरकार की तरफ से द्विपक्षीय जानकारी सदन के पटल पर आती। ऐसी हालत में यह दु:खद है कि एक स्वायत्त संस्था का बोर्ड खत लिखकर अन्य स्वायत्त संस्था से कहे कि उसे चीन मसले पर उसकी रिपोर्टिंग राष्ट्रीय हित के खिलाफ (डेट्रिमेंटल टु द नेशनल इंटरेस्ट) लगी है? और यह भी कि बोर्ड पीटीआई से खबरें लेना बंद करने जैसा कदम भी उठा सकता है, जिसकी औपचारिक घोषणा जारी होगी।
उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रसार भारती इस रुख पर दोबारा विचार करेगा। मीडिया के साथ किसी पार्टी के रिश्ते भी हमेशा बहुत सुखद नहीं होते, और राज्य से केंद्र तक समाचार पत्रों, चैनलों से सरकारों की ठंडी या गर्म लड़ाइयां भी चलती रहती हैं। लेकिन क्या आपको याद आता है कि कोई बड़ी स्वायत्त मीडिया संस्थाया प्रेस काउंसिल पत्रकारों और पत्रकारीय संगठनों की अभिव्यक्ति की आजादी पर देश द्रोह के हवाले से ऐसे सवाल उठाए? फ्री मीडिया में चाहे जितनी भी खामियां हों लेकिन आज देशवासियों ही नहीं, सरकार को भी विश्वस्त प्रोफेशनल लोगों द्वारा तटस्थ नजरिये से लगातार जमा की जा रही सूचनाओं की उतनी ही जरूरत है जितनी भरोसेमंद डेटा की। विश्वस्त जानकारियों के बल पर ही विपक्ष और देश की उस अंतरात्मा को कोंच कर जगाया जा सकता है जिसे गांधी और फिर जेपी के बाद, कोई जागृत, एकजुट नहीं कर पाया।
पीटीआई और प्रसार भारती दरअसल लोकतंत्र के पेड़ पर बैठे एक शरीर और दो सिर वाले पक्षी की तरह हैं। उनके बीच गलतफहमी हद से बढ़ जाए और एक सर दूसरे सर को ही काटने की सोचने लगे तो उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि कहीं यह हत्या आत्महत्या तो नहीं बनजाएगी? बाकी हालात क्या हैं बताने की जरूरत नहीं। (navjivanindia.com)
-मृणाल पाण्डे
नई दिल्ली, 6 जुलाई (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण की बढ़ती विकरालता के बीच पिछले 24 घंटों में 24 हजार से अधिक नये मामले सामने आए हैं और अब भारत संक्रमण से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में तीसरे स्थान पर आ गया है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 24,248 नए मामले सामने आये हैं जिससे कुल संक्रमितों की संख्या बढक़र 6,97,413 हो गई है। इसी अवधि में कोरोना वायरस से 425 लोगों की मृत्यु होने से मृतकों की संख्या बढक़र 19,693 हो गई है। इस बीच संक्रमणमुक्त होने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है और पिछले 24 घंटों के दौरान 15,350 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 4,24,433 लोग रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 2,53,287 सक्रिय मामले हैं।
क्लिक करें और यह भी पढ़ें : विश्व में 1.14 करोड़ से अधिक संक्रमित, 5.33 लाख मौतें
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में संंक्रमण के 6555 मामले दर्ज किए गए जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,06,619 पर पहुंच गया है तथा 151 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या बढक़र 8822 हो गयी है। राज्य में 1,11,740 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में संक्रमितों की संख्या 4150 बढक़र 1,11,151 पर पहुंच गयी है और इसी अवधि में 60 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 1510 हो गयी है। राज्य में 62,778 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी ने कहर बरपा रखा है और यहां संक्रमितों का आंकड़ा एक लाख के करीब पहुंच चुका है। यहां अब तक 99,444 लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं जबकि इसके संक्रमण से मरने वालों की संख्या 3067 हो गयी है। राजधानी में 71,339 मरीज रोगमुक्त हुए हैं, जिन्हें विभिन्न अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या मामले में चौथे स्थान पर है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में अब तक 36,037 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 1943 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 25,892 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 27,707 मामले सामने आए हैं तथा इस वायरस से 785 लोगों की मौत हुई है जबकि 18,761 मरीज स्वस्थ हो गए है।
दक्षिण भारतीय राज्यों में तेलंगाना और कर्नाटक में कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में संक्रमितों की संख्या 23,902 हो गयी है और 295 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि अब तक 12,703 लोग बीमारी से ठीक हो चुके है। कर्नाटक में 23,474 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 372 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में इसके अलावा 9847 लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
पश्चिम बंगाल में 22,126 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 757 लोगों की मौत हुई है और अब तक 14,711 लोग स्वस्थ हुए हैं।
राजस्थान में भी कोरोना का प्रकोप जोरों पर है और यहां संक्रमितों की संख्या 20,164 हो गयी है और अब तक 456 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 15,928 लोग पूरी तरह ठीक हुए है।
आंध्र प्रदेश में 18,697 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 232 हो गयी है। हरियाणा में 17,005 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 265 लोगों की मौत हुई है।
इस महामारी से मध्य प्रदेश में 608, पंजाब में 164, जम्मू-कश्मीर में 132, बिहार में 95, उत्तराखंड में 42, ओडिशा में 36, केरल में 25, झारखंड में 19, छत्तीसगढ़ और असम में 14, पुड्डुचेरी में 12, हिमाचल प्रदेश में 11, गोवा में सात, चंडीगढ़ में छह, तथा अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, लद्दाख और मेघालय में एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है।
स्टार किड्स की वजह से कई फिल्में निकल गई : तापसी
मुंबई (वार्ता) बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू का कहना है कि स्टार किड्स की वजह से उनके हाथों से कई फिल्में निकल गयी ।
सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद से ही बॉलीवुड इंडस्ट्री में खेमेबाजी और भाई-भतीजावाद (नेपोटिज्म) को लेकर बहस छिड़ी हुई है। तापसी पन्नू ने इस मामले में अपनी राय दी है। तापसी ने कहा कि स्टार किड्स की वजह से उनके हाथ से कई फिल्में निकल गई थीं। यहां तक की अच्छे रिव्यूज के बाद भी उनकी फिल्मों को कम अहमियत दी जाती है।
तापसी ने कहा “बॉलीवुड में कई ऐसे लोग हैं जिनकी वजह से आउटसाइडर्स को काम नहीं मिलता है। मेरी फिल्म कुछ लोगों के कहने या अच्छे रिव्यूज आने के बाद देखी जाती हैं। स्टार किड्स की फिल्में लोग फर्स्ट डे टिकट लेकर देखने जाते हैं। हालांकि आउटसाइडर होना ही मेरी मजबूती भी है। इस फील्ड में काफी संघर्ष है जिसका प्रभाव नए लोगों पर पड़ता है।”
तापसी ने बॉलीवुड में बढ़ते नेपोटिज्म के लिए पब्लिक को जिम्मेदार ठहराया है। तापसी ने कहा ,“ यदि पब्लिक खुद चाहे तो इंडस्ट्री में परिस्थितियां बदल सकती हैं। इसलिए फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों पर आरोप लगाने से बेहतर पब्लिक को खुद इस बारे में सोचना चाहिए। ”
-प्रेम सतीश