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नई दिल्ली, 11 जुलाई। देश के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता शरद पवार ने ‘सामना’ को धमाकेदार ‘मैराथन’ साक्षात्कार दिया। शरद पवार राजनीति में कौन-सी नीति अपनाते हैं, क्या बोलते हैं, इसे हमेशा ही महत्व रहा है। इस बार शरद पवार ‘सामना’ के माध्यम से बोले। वे जितने मार्गदर्शक हैं, उतने ही खलबली मचानेवाले भी हैं। महाराष्ट्र की ‘ठाकरे सरकार’ को बिल्कुल भी खतरा नहीं! ऐसा उन्होंने विश्वासपूर्वक कहा है। देवेंद्र फडणवीस द्वारा किए गए सभी आरोपों का पवार ने रोकठोक जवाब दिया। सरकार बनाने के संदर्भ में भाजपा से कभी भी चर्चा नहीं हुई। फडणवीस राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में कभी भी नहीं थे। उन्हें कुछ पता नहीं, ऐसा ‘विस्फोट’ शरद पवार ने किया।
लॉकडाउन, कोरोना, चीन का संकट, डगमगाती अर्थव्यवस्था, ऐसे सभी सवालों पर शरद पवार ने दिल खोलकर बोला है।
शरद पवार ने एक भी सवाल को टाला नहीं। ढाई घंटे का यह साक्षात्कार राजनीतिक इतिहास का दस्तावेज साबित होगा!
‘लॉकडाउन’ की बेड़ियों से बाहर आए देश के वरिष्ठ नेता से पूछा, ‘फिलहाल निश्चित तौर पर क्या चल रहा है?’
इस पर उन्होंने कहा, खास कुछ नहीं चल रहा। क्या चलेगा? एक तो देश में और राज्य में क्या चल रहा है इस पर नजर रखना और अलग-अलग लोगों से संवाद करना, राजनीति के बाहर के लोगों से मैं बात करता हूं और कुछ अच्छा पढ़ने मिले तो पढ़ता हूं, इसके अलावा कुछ खास नहीं चल रहा है।
लॉकडाउन के ये फायदे भी हैं।
– संकट तो है ही लेकिन उसमें जो अच्छा किया जा सके, सकारात्मक दृष्टिकोण रखा जा सके वह करना जरूरी है। इसके महत्व की वजह यह कि अभी कोरोना का जो संकट विश्व पर आया है, उसके चलते लॉकडाउन हुआ है। सभी चीजें बंद हैं। दुर्भाग्यवश लॉकडाउन जैसा जो निर्णय सभी को लेना पड़ा उसका यह परिणाम है। समझो यह लॉकडाउन काल नहीं होता, यह संकट नहीं होता तो शायद मेरे बारे में कुछ अलग दृश्य देखने को मिला होता यह निश्चित!
लेकिन लॉकडाउन अभी समाप्त नहीं हुआ है। जीने पर बंदिशें लगी हैं। इंसान को एक तरह से बेड़ियां ही लग गई हैं। मनुष्य जकड़ गया है। राजनीति जकड़ गई है, उद्योग जकड़ गया है। आप कई वर्षों से समाजसेवा और राजनीति में हैं। आपने कई बार भविष्य का वेध लिया। आपको सपने में भी कभी ऐसा लगा था क्या कि इस तरह के संकटों का सामना इंसानों को करना पड़ेगा?
– कभी भी नहीं लगा। मेरे पठन में कुछ पुराने संदर्भ हैं। खासकर कांग्रेस पार्टी का इतिहास पढ़ने में। कांग्रेस पार्टी की स्थापना जो हुई, उसका एक इतिहास है। वर्ष १८८५ में कांग्रेस की स्थापना पुणे में होनी थी और वहां अधिवेशन भी तय हुआ था। लेकिन प्लेग की बीमारी उसी समय बड़े पैमाने पर फैली। इंसान मरने लगे इसलिए पुणे की जगह मुंबई में अधिवेशन हुआ। आज जिस जगह को अगस्त क्रांति मैदान या ग्वालिया टैंक कहा जाता है, वहां कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। उस समय के प्लेग संक्रमण का पूरा इतिहास लिखा गया है। उस समय ऐसा दृश्य था कि राज्य के कई भागों में इंसान प्लेग के कारण मर रहे थे। सभी व्यवहार थम गए थे। लेकिन यह पढ़ी हुई बातें है क्योंकि उस समय मेरा जन्म नहीं हुआ था। और आज कभी अपेक्षा की नहीं, कभी विचार किया नहीं इस तरह का दृश्य है। यह दृश्य सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं बल्कि पूरे विश्व में है। कभी ऐसा अनुभव होगा, ऐसा नहीं सोचा था। लेकिन परिस्थिति का सामना करना ही पड़ेगा।
आज इंसान, इंसान से घबरा रहा है। ऐसा दृश्य है…
– हां, घर-घर में यही दृश्य है। डॉक्टरों का भी सुझाव है कि एक-दूसरे से जितना दूर रह सकें, उतना दूर रहें। तुम सावधानी बरतो नहीं तो उसका दुष्परिणाम सहन करना पड़ेगा। इसलिए पूरा विश्व चिंतित है। इस कालखंड में एक ही चीज बड़े पैमाने में देखने को मिल रही है कि समाज के सभी घटकों में एक तरह की घबराहट है। अब धीरे-धीरे वह कम होने लगी है, यह सही है। लेकिन इस घबराहट के चलते इंसान घर के बाहर नहीं निकलेगा ऐसा कभी लगा नहीं था, वह हमें देखने को मिला है।
अलग तरह का कर्फ्यू लगा है कई बार…
– मुझे याद है कि पहले चीन व पाकिस्तान का युध्द हुआ तब एक-दो दिन का कर्फ्यू रहता था। दुश्मन देश हवाई जहाज से हमला करेगा, ऐसी खबरें आती थीं। तब इस तरह का कर्फ्यू रहता था। लोग घरों में ही रहते थे लेकिन वह भी एक दिन के लिए, आधे दिन के लिए या फिर एक रात के लिए यह कर्फ्यू हुआ करता था। लेकिन अब कोरोना के चलते लोग महीना-महीना, दो-दो महीना, ढाई महीना घर के बाहर नहीं निकले। यह दृश्य कभी देखने को मिलेगा, ऐसा नहीं सोचा था। अब एक अलग ही स्थिति कोरोना के चलते हमें देखने को मिली।
लॉकडाउन का शुरुआती काल सभी ने बिल्कुल सख्ती से पालन किया। चाहे वह कलाकार हो, हमारी तरह राजनीतिज्ञ हो या उद्योजक हो।
– दूसरा क्या विकल्प था? घर पर रहना ही सबसे सुरक्षित उपाय था।
आप तो निरंतर घूमनेवाले नेता हैं। हमेशा लोगों के बीच रहनेवाले नेता हैं। इस लॉकडाउन का शुरुआती काल आपने कैसे व्यतीत किया?
– शुरुआती महीने-डेढ़ महीने मैं अपने घर की चौखट से बाहर तक नहीं गया। प्रांगण में भी नहीं गया। चौखट के अंदर ही रहा। उसकी कुछ वजहें थीं। एक तो घर से प्रेशर था। इसके अलावा सभी विशेषज्ञों ने कहा था कि ७० से ८० आयु वर्ग के लोगों को बिल्कुल सावधानी बरतने की जरूरत है या यह आयु वर्ग बिल्कुल व्हलनरेबल है। मैं भी इसी आयु वर्ग में आता हूं इसलिए अधिक ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा घर के लोगों का आग्रह था और न कहें तो मन में उत्पीड़न। इसलिए मैं उस चौखट के बाहर कहीं गया नहीं। ज्यादा समय टेलीविजन, पढ़ाई के अलावा कुछ दूसरा नहीं किया।
हमने आपका एक वीडियो देखा, जो सुप्रियाताई ने डाला था। उसमें आप बरामदे में घूम रहे हैं और गीत-रामायण सुन रहे हैं।
– हां, इस काल में खूब गीत सुने। भीमसेन जोशी के सभी अभंग सुने। ये सभी अभंग दो-तीन-चार बार नहीं बल्कि कई बार सुना। पुराने दौर में हिंदी में ‘बिनाका गीतमाला’ होती थी। अब वह नए कलेवर में उपलब्ध है। उसे भी बार-बार सुनने का मौका इस काल में मिला। संपूर्ण गीत-रामायण दोबारा सुना। ग. दि. माडगुलकर ने क्या जबरदस्त कलाकृति इस देश, विशेष रूप से महाराष्ट्र की और मराठी लोगों की सांस्कृतिक विश्व में निर्माण करके रखी इसका दोबारा अनुभव हुआ।
आपका राममंदिर के आंदोलन से कभी संबंध नहीं रहा लेकिन गीत-रामायण से आता है…
– नहीं, उस आंदोलन से कभी संबंध नहीं रहा।
पर रामायण से संबंध आया…
– वह गीत-रामायण के माध्यम से!
कोरोना का संकट तो रहेगा ही, ऐसा विश्व के विशेषज्ञों का मानना है। यह संकट इतनी जल्दी दूर नहीं होगा। ये ऐसे ही रहेगा, लेकिन लॉकडाउन का संकट कब तक रहेगा, आपको क्या लगता है?
– एक बात तो इस काल में स्पष्ट हो गई है कि यहां से आगे आपको, मुझे, हम सभी को कोरोना के साथ जीने की तैयारी रखनी होगी। कोरोना हमारी दैनिक जिंदगी का एक हिस्सा बन रहा है, इस प्रकार की बात विशेषज्ञों द्वारा कही गई है। इसलिए अब हमें भी इसे स्वीकारना ही होगा। इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर ही आगे जाने की तैयारी करनी होगी। सवाल है लॉकडाउन का। चिंताजनक परिस्थिति निर्माण करती है लॉकडाउन।
मतलब लॉकडाउन के साथ भी जीना होगा क्या?
– नहीं। हर्गिज नहीं। लॉकडाउन के साथ हमेशा जीना होगा ऐसा मुझे नहीं लगता। हाल ही में मैंने कुछ विशेषज्ञों से बात की। उन्होंने कहा कि लगभग जुलाई महीने के तीसरे सप्ताह से यह ट्रेंड नीचे आएगा। अगस्त और सितंबर में पूरा खाली जाएगा और दोबारा नॉर्मलसी आएगी। लेकिन इसका मतलब कोरोना हमेशा के लिए समाप्त हो गया, ऐसा नहीं मान लेना है। कभी भी रिवर्स हो सकता है। इसलिए आगे से हमें कोरोना को लेकर ध्यान देना होगा और अपने सभी व्यवहारों में सावधानी लेने की जरूरत है। लेकिन ऐसी कोरोना जैसी परिस्थिति दोबारा आई तो लॉकडाउन करने की नौबत आती है और लॉकडाउन करने से जो परिणाम हुए, उदाहरणार्थ वित्तीय व्यवस्था पर हुआ, परिवार में हुआ, व्यापार पर हुआ, यात्रा पर हुआ। यह सब हमने अभी देखा है। इसके आगे ऐसी परिस्थिति दोबारा न आए ऐसी हमारी प्रार्थना है, लेकिन वित्तीय संकट आ ही गया तो उसके लिए हम सबकी तैयारी होनी चाहिए।
इसके लिए समाज में जागरूकता लाने की जरूरत है, ऐसा क्यों लगता है?
– हां, निश्चित ही। मेरा तो साफ मानना है कि, यहां से आगे अब अपने पाठ्यपुस्तक में यह दो-ढाई महीने के कालखंड का जो हमने अनुभव लिया है, इस संबंध में जो देखभाल और सावधानी लेने की जरूरत है, उस पर आधारित एक दूसरा पाठ पाठ्यपुस्तक में होना जरूरी है।
पिछले कुछ दिनों से जो खबरें आ रही हैं उसके आधार पर पूछ रहा हूं कि लॉकडाउन के संदर्भ में आपकी भूमिका और राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की भूमिका अलग है। मतभेद है।
– बिल्कुल नहीं। वैâसा मतभेद? मतभेद किस लिए? इस पूरे काल में मेरा मुख्यमंत्री के साथ उत्तम संवाद था। आज भी है।
पर लॉकडाउन शिथिल करें, आपका ऐसा मानना था और उस संदर्भ में मतभेद था, ऐसा मीडिया में आया।
– मीडिया में क्या आ रहा है, उसे आने दो। एक बात ध्यान देनी चाहिए। अखबारों की भी कुछ समस्या होती है। जैसे लॉकडाउन के चलते हमें घर से बाहर निकलते नहीं बन रहा। हमारे बहुत से काम करते नहीं बन रहे। बहुत सी एक्टिविटीज रुक गई। इसका परिणाम जैसे बहुत से घटकों पर हुआ है वैसे अखबारों पर भी हुआ है। मुख्य परिणाम यानी उन्हें जो खबर चाहिए, वह खबर देनेवाले जो उद्योग हैं, कार्यक्रम हैं, वो कम हुए और इसलिए जगह भरने संबंधित जिम्मेदारी उन्हें टालते नहीं बन रही। फिर इनमें और उनमें नाराजगी है, ऐसी खबरें दी जा रही हैं। दो-तीन दिन से मैं पढ़ रहा हूं कि हमारे यानी कांग्रेस, राष्ट्रवादी और शिवसेना में मतभेद है। उसमें रत्तीभर भी सच्चाई नहीं, लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं। आने दो!
मेरा सवाल ऐसा था कि लॉकडाउन धीरे-धीरे हटाएं, ऐसी आपकी भूमिका है। लोगों को छूट देनी चाहिए, ऐसा आपका कहना है।
– देखिए, इसमें मेरा साफ कहना है कि शुरुआती काल में कड़ाई से लॉकडाउन करने की आवश्यकता थी। उसका पालन मुख्यमंत्री ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र में हुआ। यहां वैसी ही आवश्यकता थी। इतनी कठोरता नहीं की गई होती तो शायद न्यूयॉर्क जैसा हाल यहां हुआ होता। हम न्यूयॉर्क के बारे में खबरें पढ़ते हैं कि हजारों लोगों को इस संकट के चलते मौत के मुंह में जाना पड़ा। वही स्थिति यहां आ गई होती। यहां सख्ती से लॉकडाउन लागू हुआ और विशेष रूप से लोगों ने सहयोग भी किया। इसलिए यहां की परिस्थिति सुधारने में मदद मिली, नहीं तो अनर्थ हो गया होता। पहले दो-ढाई महीने इसकी आवश्यकता थी। इस बारे में मुख्यमंत्री ठाकरे और राज्य सरकार का दृष्टिकोण सौ प्रतिशत सही था। हम सबका इसे मन से समर्थन था।
लॉकडाउन का सबसे बड़ा फटका मजदूरों और उद्योगपतियों को लगा इसलिए शिथिलता लाएं ऐसा आपका मत था…
– इस काल में मैंने कइयों से चर्चा की, उसमें उद्योगपति भी थे। मजदूर संगठनों के लोग भी थे। उनसे चर्चा करने के बाद मेरी एक राय बनी, वो मैंने मुख्यमंत्री के कानों पर जरूर डाली। इसे मतभेद नहीं कहते। स्पष्ट कहें तो कुछ जगह, उदाहरणार्थ दिल्ली। दिल्ली में रिलेक्शेसन किया गया। क्या हुआ वहां? उसका नुकसान हुआ। लेकिन व्यवहार धीरे-धीरे शुरू हुआ। कर्नाटक के सरकार ने भी रिलेक्शेसन किया। वहां भी कुछ परिणाम हुआ, नहीं ऐसा नहीं, लेकिन कर्नाटक में भी व्यवहार शुरू हुआ। यह महत्वपूर्ण है। इस तरीके से कदम रखना होगा क्योंकि समाज की, राज्य की, देश की वित्त व्यवस्था पूरी तरह उध्वस्त हुई तो कोरोना से ज्यादा उसका दुष्परिणाम आगे की कुछ पीढ़ियों को सहना पड़ेगा। इसलिए ही वित्त व्यवस्था को दोबारा कैसे संवारा जा सकता है, इस दृष्टि से ध्यान देते हुए हम आगे कैसे जाएं, इसका विचार करना होगा। तब तक का निर्णय लेना होगा। इसका मतलब सब खोल दो, ऐसा नहीं है लेकिन थोड़ी-बहुत तो अब धीरे-धीरे ढील लेने की जरूरत है, वैसे वो दी गई है। उदाहरणार्थ परसों मुख्यमंत्री ठाकरे ने सलून शुरू करने के बारे में निर्णय लिया। उसकी आवश्यकता थी क्योंकि हमारे कई मित्र जब मिलते थे, उन्हें देखकर उनके सिर पर इतने बाल हैं, ये पहली बार पता लगा। कोरोना का परिणाम! दूसरी बात ऐसी कि इस व्यवसाय में आए लोगों की पारिवारिक समस्या काफी बढ़ने लगी थी, उस दृष्टि से सलून शुरू करने का निर्णय मुख्यमंत्री ने लिया और वो मेरी राय से योग्य निर्णय था।
मतलब मुख्यमंत्री ने अपने ढंग से लॉकडाउन शिथिल करने का निर्णय लिया…
– निश्चित ही मुख्यमंत्री ठाकरे द्वारा लिया गया निर्णय कुछ लोगों को थोड़ी देर से लिया गया लगता होगा, लेकिन उन्होंने यह निर्णय सही समय पर लिया है। मुख्यमंत्री का जो स्वभाव है, यह निर्णय उस स्वभाव के अनुकूल ही है। अर्थात निर्णय लेना ही है परंतु बेहद सतर्कता के साथ। निर्णय लेने के बाद कुछ दुष्परिणाम न हो, यह जितना ज्यादा सुनिश्चित किया जा सके, उतना करने के बाद लेना चाहिए और फिर कदम आगे बढ़ाना चाहिए। एक बार कदम बढ़ाने के बाद पीछे नहीं लेना है, यह उनकी कार्यशैली है।
बालासाहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे की कार्यशैली में यह अंतर है तो…
– सही है… यह अंतर है। वैसे यह रहेगा ही।
बालासाहेब ठाकरे फटाफट निर्णय लेकर फैसला सुना देते थे। लेकिन बालासाहेब कभी भी सत्ता में नहीं थे और उद्धव ठाकरे प्रत्यक्ष मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर हैं…
– यह अंतर भी है ही ना। बालासाहेब प्रत्यक्ष सत्ता में नहीं थे, फिर भी सत्ता के पीछे एक मुख्य घटक थे। उनके विचारों से महाराष्ट्र में सत्ता आई, महाराष्ट्र और देश ने देखा। आज विचारों से सत्ता नहीं आई लेकिन सत्ता प्रत्यक्ष कृति से लाने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आज के मुख्यमंत्री ठाकरे की है। यह फर्क महत्वपूर्ण है।
इन तमाम परिस्थितियों में क्या कभी आपको बालासाहेब ठाकरे की याद आती है?
– आती है ना। कोरोना और लॉकडाउन के कारण पहले दो महीने इत्मीनान से घर में बैठा था। बालासाहेब के काम का तरीका मुझसे ज्यादा तुम जानते हो। वह क्या दिन भर घर के बाहर निकल कर कहीं जाते थे, ऐसा नहीं है। कई बार कई दिन वे घर में ही बिताते थे। परंतु घर में रहते हुए भी सहयोगियों को साथ लेकर उन्हें प्रोत्साहित करके सामने आई चुनौतियों का सामना करना बालासाहेब ने सिखाया था, ऐसा मुझे लगता है। मेरे जैसे को इन दो महीनों में बालासाहेब की याद इन्हीं वजहों से आती थी कि हमें घर से तो बाहर निकलना नहीं है लेकिन बाकी के काम, जिस दिशा में हमें जाना है, उस दिशा में जाने के लिए सफर की तैयारी हमें करनी चाहिए। ये जिस तरह से बालासाहेब करते थे उसकी याद मुझे इस दौरान आई।
कोरोना के कारण पूरी दुनिया बदल गई। इस बदली हुई दुनिया का परिणाम हिंदुस्थान पर भी हो रहा है, विदेश में जो नौकरीपेशा वर्ग पूरी दुनिया में फैला था, जो कि हमारा था, वह हमारे देश में लौट आया है। अभी आपने न्यूयॉर्क का उल्लेख किया। वहां से भी हजारों लोग यहां वापस आए। इस बदली हुई दुनिया को आप किस तरह से देखते हैं?
– मेरे अनुसार हमें इन हालातों को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। इस संकट के कारण पहली बार हमें ज्ञात हुआ कि दुनिया के कोने-कोने में हिंदुस्थानी कहां-कहां तक पहुंचे हैं। विशेषत: लॉकडाउन के पहले दो महीनों में मुंबई में रहकर यह काम बहुत ज्यादा करना पड़ा। वह काम यह था कि कई देशों से टेलीफोन आते थे कि हमारे देश में इतने-इतने हिंदुस्थानी हैं, उन्हें वापस लौटना है। उन्हें वापस लौटने के लिए विमान की व्यवस्था करने में सहयोग दें। मुझे आश्चर्यजनक झटका कब लगा? जब फिलीपींस में मेडिकल की पढ़ाई करने गए ४०० बच्चों के लौटने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ी। ताशकंद से ३००-३५० विद्यार्थियों को लाने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ी। इंग्लैंड-अमेरिका ठीक है लेकिन जो ये देश हैं, इन देशों में इतनी बड़ी संख्या में हमारे विद्यार्थी गए हैं, यह पता ही नहीं था। दुनिया के कोने-कोने में हिंदुस्थानी और मराठी, ये दोनों ही देखने को मिले। यह कोरोना के कारण हुआ।
इस पूरे प्रकरण से देश और राज्य की राजनीति ही बदल गई है। अब तक आप जैसे बड़े नेता सार्वजनिक सभा करते थे। हजारों लाखों लोगों की सभा को संबोधित करते थे। प्रधानमंत्री मोदी होंगे। आप होंगे, अन्य नेता होंगे। अब यह सब बंद हो जाएगा। क्या यह राजनीति का ही लॉकडाउन हो गया है?
– आप जो कहते हो, सही है। आज तो हालात ऐसे ही नजर आ रहे हैं। नए ढंग की राजनीति अब स्वीकार करनी होगी।
मूलत: भीड़ भारतीय राजनीति की आत्मा है। भीड़ नहीं होगी तो हमारी राजनीति इंच भर भी आगे नहीं बढ़ेगी। आपका संदेश आगे नहीं जाएगा। लाखों की भीड़ जो जमा करता है। वह बड़ा नेता है यह अब तक हमारे देश की अवस्था थी।
– यह स्थिति एकदम से बदल जाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता। धीरे-धीरे हालात होते जाएंगे लेकिन हमारे लिए इस स्थिति को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव देखते हैं। उन चुनावों में दृश्य एकदम अलग होते हैं। हमारे यहां दृश्य अलग होते हैं। हम हिंदुस्थान को देखते हैं। बालासाहेब की लाखों की सभा होती थी। अटल जी की लाखों की सभा होती थी। इंदिरा गांधी की होती थी, यशवंतराव चव्हाण की होती थी। यह दृश्य अमेरिका एवं पश्चिमी देशों में देखने को नहीं मिलता है लेकिन टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से पूरे देश का ध्यान उस दिन चर्चा की ओर होता था। मान लो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार इन दोनों के बीच डिस्कशन, चर्चा, सवाल-जवाब होते थे। उसको लगा होता था। पूरा देश देखता रहता है। लेकिन यह देखने के लिए और व्यक्त करने के लिए माध्यम अलग होता है। हमारा माध्यम अलग है।
हमारे यहां ये डिजिटल सभा का प्रकरण सफल होगा?
– हमारे यहां ऐसा है, यहां नेताओं वक्ताओं के सामने भीड़ नहीं होगी तो उनकी बातों में धार नहीं आती। मैं जो बोल रहा हूं, सामनेवाले को कितना जंच रहा है, कितना डायजेस्ट हो रहा है, ये उनके चेहरे से समझ आता है और मान लो वह स्तब्ध रह गया… भीड़ से बिलकुल भी प्रतिसाद नहीं मिल रहा होगा तो इसका भी प्रभाव वक्ता पर होता रहता है। इन सबसे हम गुजर चुके हैं। परंतु अब धीरे-धीरे ये तमाम पुराने तरीके हमें बदलने होंगे। मतलब ये सब शत-प्रतिशत समाप्त हो जाएंगे, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। परंतु ये धीरे-धीरे कम होगा ही। कम्युनिकेशन की आधुनिक तकनीक आत्मसात करने के बारे में सोचना होगा।
परंतु ग्रामीण भागों में ये कैसे सफल होगा? विधानसभा चुनाव में जैसा माहौल खुद आपने तैयार किया, जिसके कारण आगे परिवर्तन हो सका। खासकर भरी बरसात में आपकी सातारा जैसी सभा नए तंत्र में कैसे होगी? लोगों को दिल से लगता है कि मैं अपने नेता को देखूं, सामने से सुनूं। इसके आगे ये सब रुक जाएगा ऐसा लगता नहीं है?
– निश्चित ही ये रुक जाएगा। मेरे जैसे इंसान के लिए, मेरी पीढ़ी के इंसान के लिए यह रुक गया तो अच्छा नहीं है। लोगों के बीच जाना ही होगा। चुनावी सभाओं में न जाना, ऐसे भी हालात आएंगे क्या, इसकी चिंता है। लेकिन ये ज्यादा दिन चलेगा, ऐसा लगता नहीं है। चलना नहीं चाहिए, ऐसी प्रार्थना है।
एक साल पहले इस देश में लोकसभा चुनाव हुए थे। सामान्यत: देश की अवस्था और राजनीति ‘जैसे थे’ रही। अर्थात जो व्यवस्था थी व व्यवस्था बरकरार रही। प्रधानमंत्री मोदी हैं। उनकी सरकार बरकरार रही। केंद्र की राजनैतिक व्यवस्था बदलेगी, ऐसी संभावना नहीं थी। लोकसभा चुनाव का परिणाम जैसा अपेक्षित था वैसा ही आया, परंतु कुछ राज्यों में बदलाव हुआ। खासकर हम महाराष्ट्र के बारे में बात करें तो महाराष्ट्र की राजनीति ६ महीने पहले ही पूरी तरह से बदल गई। इस तरह से बदली कि पूरा देश इस महाराष्ट्र की घटनाओं के भविष्य की ओर एक अलग नजरिए से देखने लगा। कइयों के मन में एक सवाल है कि महाराष्ट्र में यह जो बदलाव है, ये एक हादसा था। उस समय हुआ? अथवा ये बदलाव सभी ने मिलकर किया।
– मुझे हादसा बिलकुल भी नहीं लगता। दो बातें हैं। महाराष्ट्र के लोकसभा के चुनाव। देश के लोकसभा के चुनाव में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की मराठी जनतों ने भी देश में जो दृश्य था, उससे सुसंगत महत्वपूर्ण भूमिका अपनाई। परंतु राज्य का सवाल आया, उस समय हमें महाराष्ट्र का नजारा और ही दिखने लगा। ये केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी दिख रहा था। कहीं कांग्रेस आई… कहीं अन्य गठबंधन सत्तासीन हुए। अब मध्यप्रदेश का उदाहरण लें या राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़.. इन सभी राज्यों में तस्वीर बदली। लोकसभा के लिए वहां सीटें थीं। पीछे केंद्र सरकार थी। परंतु विधानसभा में भाजपा मुकरती दिखी। मेरे अनुसार महाराष्ट्र में तस्वीर बदलने का मूड जनता का था।
ऐसा आप कैसे कहते हैं?
– उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के पहले का दौर देखें। इन पांच वर्षों में शिवसेना और भाजपा की सरकार थी। लेकिन शिवसेना के विचारोंवाले जो मतदाता हैं और जो शिवसेना कार्यकर्ता हैं उन सभी में उस सरकार के प्रति एक तरह की व्याकुलता साफ दिखाई दे रही थी।
आपको ऐसा क्या महसूस हुआ?
– शिवसेना के काम करने की विशिष्ट शैली है। कोई काम हाथ में लेने के बाद उसे दृढ़तापूर्वक पूरा करना। उसके लिए कितना भी परिश्रम एवं पैसा देने की तैयारी रखनी चाहिए। भाजपा के साथ सहभाग के उस कालखंड में शिवसेना ने भारी कीमत चुकाई। साधारणत: शिवसेना को शांत वैâसे रखा जा सकता है, रोका वैâसे जा सकता है, उन्हें हाशिए पर कैसे रखा जा सकता है? यह नीति भाजपा ने हमेशा अपनाई। इसलिए शिवसेना को माननेवाला यह वर्ग उद्विग्न था। दूसरी बात, वो जो पांच साल महाराष्ट्र की जनता ने देखे वे वास्तविक अर्थों में भाजपा की ही सरकार होनी चाहिए, ऐसी ही थी। इसके पहले युति की सरकार थी। वर्ष १९९५ में मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे। उस दौरान ऐसा माहौल कभी नहीं था। इसकी वजह, उसका नेतृत्व शिवसेना के पास था और बालासाहेब के पास था। इस सरकार के पीछे उनकी सशक्त भूमिका थी। अभी जो इन दोनों की सरकार थी, उसमें भाजपा ने शिवसेना को करीब-करीब किनारे कर दिया और भाजपा ही असली शासक तथा इसके आगे के कालखंड में राज्य भाजपा के नेतृत्व के विचारों से ही चलेगा, यह भूमिका दृढ़ता से अपनाकर उन्होंने कदम बढ़ाए। महाराष्ट्र की जनता को यह जंचा नहीं।
मतलब इस महाराष्ट्र में हम ही राजनीति करेंगे, अन्य कोई नहीं करेगा…
– हां, कर ही नहीं सकता है। अन्य कोई यहां राजनीति कर ही नहीं सकता है। ऐसी सोच दिख रही थी।
फिर इसके विरोध में लोगों की बगावत उबलकर मतपेटी से निकली, ऐसा लगता है क्या?
– एकदम, सीधे-सीधे ऐसी ही अवस्था है और थोड़ा बहुत ये उपहास का विषय भी बन गया कि ‘मैं फिर आउंगा… मैं फिर आउंगा…’
मैं फिर आऊंंगा…
– हां, मैं फिर आऊंंगा… इस सबके कारण एक तो ऐसा है कि किसी भी शासक, राजनीतिज्ञ नेता को मैं ही आऊंंगा, इस सोच के साथ जनता को जागीर नहीं समझना चाहिए। इस तरह की सोच में थोड़ा दंभ झलकता है। ऐसी भावना लोगोें में हो गई और इन्हें सबक सिखाना चाहिए। यह विचार लोगों में फैल गया।
पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि मेरी सरकार चली गई अथवा मैं मुख्यमंत्री पद पर नहीं हूं, यह पचाने में बड़ी परेशानी हुई। इसे स्वीकार करने में ही दो दिन लगे। इसका अर्थ यह है कि हमारी सत्ता कभी नहीं जाएगी। इस सोच… अमरपट्टा ही बांधकर आए हैं।
– देखो, किसी भी लोकतंत्र में नेता हम अमरत्व लेकर आए हैं, ऐसा नहीं सोच सकता है। इस देश के मतदाताओं के प्रति गलतफहमी पाली तो वह कभी सहन नहीं करता। इंदिरा गांधी जैसी जनमानस में प्रचंड समर्थन प्राप्त महिला को भी पराजय देखने को मिली। इसका अर्थ यह है कि इस देश का सामान्य इंसान लोकतांत्रिक अधिकारों के संदर्भ में हम राजनीतिज्ञों से ज्यादा सयाना है और हमारे कदम चौखट के बाहर निकल रहे हैं, ऐसा दिखा तो वह हमें भी सबक सिखाता है। इसलिए कोई भी भूमिका लेकर बैठे कि हम ही! हम ही आएंगे…तो लोगों को यह पसंद नहीं आता है।
१०५ विधायकों का समर्थन होने के बावजूद प्रमुख पार्टी सत्ता स्थापित नहीं कर सकी। सत्ता में नहीं आ सकी। यह भी एक अजीब कला है अथवा महाराष्ट्र में चमत्कार हुआ। इसे आप क्या कहेंगे?
– ऐसा है कि तुम जिसे प्रमुख पार्टी कहते हो, वह प्रमुख पार्टी वैâसे बनी? इसकी भी गहराई में जाना चाहिए। मेरा स्पष्ट मत है कि विधानसभा में उनके विधायकों का जो १०५ फिगर हुआ, उसमें शिवसेना का योगदान बहुत बड़ा था। उसमें से तुमने शिवसेना को मायनस कर दिया होता, उसमें शामिल नहीं होती तो इस बार १०५ का आंकड़ा तुम्हें कहीं तो ४०-५० के करीब दिखा होता। भाजपा के लोग जो कहते हैं कि हमारे १०५ होने के बावजूद हमें हमारी सहयोगी यानी शिवसेना ने नजरअंदाज किया अथवा सत्ता से दूर रखा। उन्हें १०५ तक पहुंचाने का काम जिन्होंने किया, यदि उन्हीं के प्रति गलतफहमी भरी भूमिका अपनाई तो मुझे नहीं लगता कि औरों को कुछ अलग करने की आवश्यकता है।
परंतु उनके लिए जो संभव नहीं हुआ, वह शरद पवार ने संभव कर दिखाया। और शिवसेना को भाजपा के बगैर मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचा दिया।
– ऐसा कहना पूरी तरह सच नहीं है। मैं जिन बालासाहेब ठाकरे को जानता हूं। मेरी तुलना में आप लोगों को शायद अधिक जानकारी होगी। परंतु बालासाहेब की पूरी विचारधारा, काम करने की शैली भारतीय जनता पार्टी के अनुरूप थी, ऐसा मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ।
क्यों…? आपको ऐसा क्यों लगा?
– बताता हूं ना। सबकी वजह ये है कि बालासाहेब की भूमिका और भाजपा की विचारधारा में अंतर था। खासकर काम की शैली में जमीन आसमान का अंतर है। बालासाहेब ने कुछ व्यक्तियों का आदर किया। उन्होंने अटलबिहारी वाजपेयी का? आदर किया। उन्होंने आडवाणी का किया। उन्होंने प्रमोद महाजन का आदर किया। उन सभी को सम्मान देकर उन्होंने एक साथ आने का विचार किया और आगे सत्ता आने में सहयोग दिया। दूसरी बात ऐसी थी कि कांग्रेस से उनका संघर्ष था, ऐसा मुझे नहीं लगता। शिवसेना हमेशा कांग्रेस के विरोध में ही थी, ऐसा नहीं है।
बालासाहेब अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा मुंह पर ही कहनेवाले नेता थे। इसलिए ये अब हुआ होगा।
– हां, बालासाहेब वैसे ही थे। जितने बिंदास उतने ही दिलदार। राजनीति में वैसी दिलदारी मुश्किल है। शायद बालासाहेब ठाकरे और शिवसेना देश का पहला ऐसा दल है कि किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर सत्ताधारी दल के प्रमुख लोगों का खुद के दल के भविष्य की चिंता न करते हुए समर्थन करते थे। आपातकाल में भी पूरा देश इंदिरा गांधी के विरोध में था। उस समय अनुशासित नेतृत्व के लिए बालासाहेब इंदिरा गांधी के साथ खड़े थे। सिर्फ खड़े ही नहीं हुए बल्कि हम लोगों के लिए चैंकानेवाली बात तो ये भी थी कि उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के चुनाव में वे अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारेंगे! किसी राजनीतिक दल द्वारा हम उम्मीदवार नहीं उतारेंगे बोलकर राजनीतिक दल को चलाना मामूली बात नहीं है। लेकिन ऐसा बालासाहेब ही कर सकते थे और उन्होंने करके भी दिखाया। उसका कारण ये है कि उनके मन में कांग्रेस को लेकर कोई द्वेष नहीं था। कुछ नीतियों को लेकर उनकी स्पष्ट सोच थी। इसलिए उस समय कुछ अलग देखने को मिला और आज लगभग उसी रास्ते पर उद्धव ठाकरे चल रहे हैं, ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं है।
आपका शिवसेना से कभी वैचारिक नाता था, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता…लेकिन आज आप महाराष्ट्र में एक हैं..
– वैचारिक मतभेद थे। कुछ मामलों में रहे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं था कि सुसंवाद नहीं था। बालासाहेब से सुसंवाद था। शिवसेना के वर्तमान नेतृत्व से ज्यादा सुसंवाद था। मिलना-जुलना, चर्चा, एक-दूसरे के यहां आना-जाना, ये सारी बातें थीं। ऐसा मैं कई बार घोषित तौर पर बोल चुका हूं। बालासाहेब ने अगर किसी व्यक्ति, परिवार या दल से संबंधित व्यक्तिगत सुसंवाद रखा या व्यक्तिगत ऋणानुबंध रखा, तो उन्होंने कभी किसी की फिक्र नहीं की। वे ओपनली सबकी मदद करते थे। इसलिए मैं अपने घर का घोषित तौर पर उदाहरण देता हूं कि सुप्रिया के समय सिर्फ बालासाहेब ही उसे निर्विरोध चुनकर लाए। यह सिर्फ बालासाहेब ही कर सकते थे।
आपने राज्य में महाविकास आघाड़ी का प्रयोग किया, आपने उसका नेतृत्व किया। उसे ६ महीने पूरे हो चुके हैं। यह प्रयोग कामयाब हो रहा है, ऐसा आपको लगता है क्या?
– बिल्कुल हो रहा है। यह प्रयोग, और भी कामयाब होगा, इस प्रयोग का फल महाराष्ट्र की जनता और महाराष्ट्र के विभिन्न विभागों को मिलेगा, ऐसी स्थिति हमें अवश्य देखने को मिलेगी। लेकिन अचानक कोरोना संकट आ गया। यह महाराष्ट्र का दुर्भाग्य है। गत कुछ महीनों से राज्य प्रशासन, सत्ताधीश तथा राज्य की पूरी यंत्रणा सिर्फ एक काम में ही जुटी हुई है, वह है कोरोना से लड़ाई। इसलिए बाकी मुद्दे एक तरफ रह गए हैं। एक और बात बताता हूं अगर फिलहाल का सेटअप ना होता तो तो कोरोना संकट से इतने प्रभावीपूर्ण ढंग से नहीं निपटा जा सकता था। ध्यान रहे, कोरोना जितना बड़ा संकट और तीन विचारों की पार्टी, लेकिन सब लोग एक विचार से मुख्यमंत्री ठाकरे के साथ खड़े हैं। उनकी नीतियों के साथ खड़े हैं और परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। लोगों के साथ मजबूती से खड़े हैं। यह कामयाबी है, इसका मुझे पूरा विश्वास है। सब लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं इसलिए यह संभव हुआ है। तीनों दलों में जरा-सी भी नाराजगी नहीं है।
और श्रेय लेने की जल्दबाजी भी नहीं।
– बिल्कुल नहीं।
आपने पुलोद का प्रयोग देश में पहली बार किया। कई पार्टियों को मिलाकर राज किया। पुलोद की सरकार और वर्तमान महा विकास आघाड़ी सरकार में क्या फर्क है?
– फर्क ऐसा है कि पुलोद सरकार का नेतृत्व मेरे पास था। उस सरकार में सभी लोग थे। आज की भाजपा उस समय जनसंघ के रूप में थी, वे भी हमारे साथ थे, वे भी उसमें थे। मंत्रिमंडल एक विचार से काम करने वाला था। उसमें किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं थी। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि केंद्र सरकार उसे पूरा साथ देती थी। पुलोद की सरकार आई, उस समय देश का नेतृत्व मोरारजी भाई देसाई के पास था। वह प्रधानमंत्री के रूप में महाराष्ट्र की पुलोद सरकार को पूरी ताकत से मदद करते थे। आज थोड़ा फर्क यह है कि यहां आइडियोलॉजी अलग होगी, फिर भी एक विचार से काम करनेवाले लोग साथ आए हैं। दिशा कौन सी है, यह स्पष्ट है और उस दिशा में जाने की यात्रा भी अच्छी रहेगी तथा लोगों के हित में रहेगी, इसका ध्यान रखा गया है। लेकिन पुलोद के समय जैसे केंद्र मजबूती से साथ देता था, वैसा इस समय नहीं दिखता।
इस सरकार के आप हेडमास्टर हैं या रिमोट कंट्रोल?
– दोनों में से कोई नहीं। हेडमास्टर तो स्कूल में होना चाहिए। लोकतंत्र में सरकार या प्रशासन कभी रिमोट से नहीं चलता। रिमोट कहां चलता है? जहां लोकतंत्र नहीं है वहां। हमने रशिया का उदाहरण देखा है। पुतिन वहां २०३६ तक अध्यक्ष रहेंगे। वो एकतरफा सत्ता है, लोकतंत्र आदि एक तरफ रख दिया है। इसलिए यह कहना कि हम जैसे कहेंगे वैसे सरकार चलेगी, यह एक प्रकार की जिद है। यहां लोकतंत्र की सरकार है और लोकतंत्र की सरकार रिमोट कंट्रोल से कभी नहीं चल सकती। मुझे यह स्वीकार नहीं। सरकार मुख्यमंत्री और उनके मंत्री चला रहे हैं।(hindisaamana)
राशनकार्ड से नहीं कटेगा किसी का नाम- सरकार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। प्रदेश में 18 लाख लोग ऐसे हैं, जिनके पास पांच एकड़ से ज्यादा जमीन है और बीपीएल कार्डधारी हैं। सरकार ऐसे अपात्र राशन कार्डधारियों का कार्ड निरस्त करने पर विचार कर रही है। यह जानकारी खाद्यमंत्री अमरजीत भगत ने मीडिया से चर्चा में दी।
उन्होंने बताया कि सरकार ने राशन कार्ड को लेकर सर्वेक्षण कराया था। इसमें यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश में करीब 18 लाख लोग ऐसे हंै जिनका बीपीएल राशन कार्ड बना है और जो अपात्र पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि जिन व्यक्तियों के पास 5 एकड़ से ज्यादा जमीन है उनका भी बीपीएल कार्ड बना है।
गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोग भूमिहीन माने जाते हैं और उन्हें ही अलग राशन कार्ड दिया जाता है। बीपीएल कार्डधारियों को कई तरह की सुविधाएं हैं। राज्य शासन के एक अधिकारी ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि पूरे राशन कार्ड की जांच होगी। इसके बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
राशनकार्ड से नहीं कटेगा किसी का नाम- सरकार
दूसरी तरफ शासन ने आज शाम यह स्पष्ट किया है कि भूमिहीन श्रमिक और छोटे सीमांत किसान छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत प्राथमिकता श्रेणी के राशनकार्ड हेतु पात्र हैं। उन्हें राशन कार्ड से हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव नहीं है।
खास बात यह है कि खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के हवाले से कुछ टीवी चैनलों में यह खबर आई थी कि प्रदेश में 18 लाख बीपीएल राशन कार्ड अपात्र हैं। इन लोगों के पास 5 एकड़ या अधिक जमीन है। इसके बाद से अटकलें लगाई जा रही थी कि इन कार्डधारियों के कार्ड निरस्त किए जा सकते हैं। इस पर सरकारी प्रेस नोट में खाद्य विभाग के अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया है कि यदि इस संबंध में कोई भ्रमित समाचार प्रसारित हो रहा है तो उस पर ध्यान न दिया जाए। छत्तीसगढ़ में यूनिवर्सल पीडीएस अंतर्गत सभी परिवारों को पात्रतानुसार खाद्यान्न सामग्री उपलब्ध करायी जा रही है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन की अन्य योजनाओं से भूमिहीन कृषक मजदूरों को लाभान्वित करने के लिए उनका सर्वे किया जा रहा है। राजस्व अभिलेख से मिलान कर भूमिहीन कृषक मजदूरों की सूची तैयार की जाएगी। इस कार्य से किसी भी राशनकार्डधारी परिवार का राशनकार्ड निरस्त नही किया जाएगा और न ही वेबसाईट से राशनकार्ड धारी का नाम विलोपित किया जाएगा। राशनकार्डधारी परिवारों को पहले की तरह ही पात्रतानुसार खाद्यान्न मुहैया होता रहेगा।
2017 से अब तक 74 मामलों में मिली क्लीन चिट
लखनऊ, 11 जुलाई। उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटर में पिछले 8 दिन से फरार विकास दुबे शुक्रवार को भागने की कोशिश में मारा गया. 2014 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार यूपी सरकार गैंगस्टर के इस एनकाउंटर की जांच करेगी.
61 मामलों में क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट ने की स्वीकार
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक साल 2017 के बाद विकास दुबे 119वां आरोपी था जो क्रॉस फायरिंग में मारा गया. कुल 74 एनकाउंटर मामलों में इंक्वॉयरी पूरी हो चुकी है, जिसमें से सभी में पुलिस को क्लीन चिट मिली है. इनमें से 61 मामलों में पुलिस द्वारा दी गई क्लोज़र रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है.
13 पुलिसकर्मियों ने एनकाउंटर्स में जान गंवाई
रिकॉर्ड्स की बात करें तो इस दौरान करीब 6145 ऑपरेशन्स को अंजाम दिया गया है, जिसमें से 119 की एनकाउंटर के दौरान मौत हुई है. वहीं इन ऑपरेशन्स में करीब 2258 आरोपी घायल हुए हैं. इन ऑपरेशन्स में 13 पुलिसकर्मियों ने अपनी जान गंवाई जिसमें पिछले हफ्ते कानपुर में शहीद हुए 8 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. इन ऑपरेशन्स में कुल 885 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. कई सवालों के बावजूद पुलिस एनकाउंटर्स लगातार जारी हैं.
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद में 26 साल की पशु चिकित्सक से रेप के मामले के 4 आरोपियों के एनकाउंटर को लेकर पूर्व जज वीएन सिरपुरकर के नेतृत्व में एक स्वतंत्र जांच दल का गठन किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर्स को बताया था गंभीर मुद्दा
ऐसा करके एससी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और तेलंगान उच्च न्यायालय की समक्ष मामलों की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. इस मामले में भी तेलंगाना पुलिस ने कहा था कि आरोपियों ने पुलिस से हथियार छुड़ाकर भागने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें गोली मारी गई. इस मामले की लगभग सात महीने के बाद भी जांच जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस में हुई मुठभेड़ों के मामलों में भी हस्तक्षेप किया है, जनवरी 2019 में शीर्ष अदालत की तरफ से इसे गंभीर मुद्दा बताया गया था. एनएचआरसी ने उत्तर प्रदेश सरकार को मुठभेड़ के बाद होने वाली मौतों के मामलों में 2017 के बीच कम से कम तीन नोटिस जारी किए हैं. हालांकि राज्य ने अपना बचाव करने वाले नोटिसों के लिए एक सामान्य प्रतिक्रिया दर्ज की है.(bharatvarsh)
जयपुर, 11 जुलाई। राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत की सरकार को कथित रूप से गिराने की कोशिशों के मामले में बीजेपी नेताओं का नाम सामने आया है. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में दो बीजेपी नेताओं को देर रात हिरासत में लिया था। पूछताछ के बाद राजस्थान स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर एक्शन
रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में विधायकों की खरीद फरोख्त मामले में ब्यावर के दो भाजपा नेताओं का नाम सामने आया है। इन नेताओं के नाम हैं भरत मालानी और अशोक सिंह। इन्हें ब्यावर उदयपुर से स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने गिरफ्तार किया है। राजस्थान एसओजी के मुताबिक मालानी की कॉल रिकॉर्डिंग से पता चला है कि विधायकों को खरीदने की कोशिश जा रही है।
बीजेपी नेता भरत मालानी गिरफ्तार
इस खुलासे के बाद एसओजी ने भरत मालानी को हिरासत में ले लिया है, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। फिलहाल जयपुर में उनसे पूछताछ हो रही है। भरत मालानी राजस्थान बीजेपी में कई पदों पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
राजस्थान में सरकार गिराने की कोशिशों को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने केस दर्ज किया है। एफआईआर के मुताबिक स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को कुछ फोन नंबरों की रिकॉर्डिंग के दौरान पता चला कि अशोक गहलोत सरकार को गिराने की साजिश चल रही है।
बीजेपी पर धन देकर खरीदने का आरोप
एफआईआर के अनुसार, ऐसी बात फैलाई जा रही है कि राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम में झगड़ा चल रहा है। ऐसी स्थिति में कुछ ताकतें निर्दलीय और कांग्रेस के विधायकों को तोडक़र इस सरकार को गिराना चाहते हैं।
एफआईआर में आरोप है कि बीजेपी नेता विधायकों को धन का प्रलोभन देकर अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्थान का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप इस मामले की जांच कर रहा है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। सरकार ने कॉलेजों की अंतिम वर्ष की परीक्षा के आयोजन को लेकर कुलपतियों से राय मांगी है। बताया गया कि सभी विश्वविद्यालयों से अभिमत आने के बाद परीक्षाओं के आयोजन पर सरकार फैसला लेगी।
कोरोना का फैलाव तेजी से हो रहा है। उच्च शिक्षा विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्नातक और स्नातकोत्तर के अंतिम वर्ष की परीक्षाएं होंगी। ये परीक्षाएं कब और किस तरह होंगी। इसको लेकर चर्चा चल रही है। तकनीकी विवि ने इंजीनियरिंग-पॉलीटेक्निक कॉलेजों की परीक्षाएं ऑनलाइन करने का फैसला लिया है।
सूत्रों के मुताबिक बीए-बीकॉम और अन्य विषयों की परीक्षाएं ऑनलाइन हो पाना संभव नहीं है। वजह यह है कि अंतिम वर्ष में प्रदेश में करीब एक लाख विद्यार्थी हैं। कॉलेज भी दूर दराज हैं। ऐसे में कोरोना के बीच अंतिम वर्ष की परीक्षाओं का आयोजन चुनौतीपूर्ण हो गया है। विभाग ने इस सिलसिले में सभी कुलपतियों से राय मांगी है। इसके आधार पर जल्द ही उच्च शिक्षा विभाग की बैठक होगी और परीक्षा के आयोजन पर निर्णय लिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि स्नातक प्रथम वर्ष और सेकेंड ईयर की बची हुई परीक्षाओं का रिजल्ट हो चुकी परीक्षाओं, आंतरिक मूल्यांकन और रिपोर्ट के आधार पर जारी किया जाएगा। राज्य में नए छात्रों को एडमिशन देने के बाद 1 सितंबर से कक्षाएं संचालित की जाएगी, जबकि पूराने छात्रों की कक्षाएं 1 अगस्त से शुरू की जाएगी। इसके लिए संबंधित विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की तरफ से आदेश जल्द जारी किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में देश की पहली ई लोक अदालत
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 11 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन ने आज देश के पहले ई लोक अदालत का उद्घाटन करते हुए कहा कि नोवेल कोरोना वायरस के इस कठिन दौर में पेंडेंसी कम करने तथा पक्षकारों को राहत पहुंचाने के लिये ई अदालत का आयोजन एक आदर्श विचार है।
हाईकोर्ट ऑडिटोरियम में आयोजित इस उद्घाटन समारोह को प्रदेश भर के जिला अदालतों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देशभर में देखा गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी रायपुर से इसमें पूरे समय जुड़े रहे।
दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए चीफ जस्टिस मेनन ने कहा कि अदालतों के प्रदर्शन की समीक्षा उसके द्वारा निराकृत किये गये मामलों की संख्या से होती है। सन् 2019 में अकेले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 45 हजार 230 मामले फाइल किए गए। इनमें से 39448 यानि 87.3 प्रतिशत मुकदमों का निपटारा किया गया।
सन् 2020 में कोरोना महामारी का दौर शुरू होने से पहले जनवरी से लेकर मार्च तक कोर्ट में 10639 मामले दायर किये गये उनमें से 8736 मामलों में फैसला दिया गया, जो 82.11 प्रतिशत रहा। यही नहीं जब लॉकडाउन के दौरान अदालतों की गतिविधियां ठप पड़ गईं तब भी हमने ग्रीष्मकालीन अवकाश को रद्द करने का निर्णय लिया साथ ही साप्ताहंत में भी कार्य किया। इस अवधि में 5212 केस फाइल किए गए, हाईकोर्ट में 3956 मामलों का निपटारा किया गया। इसका प्रतिशत 75.9 रहा। ये सब सिर्फ 15 जजों ने संभव कर दिखाया। इन सभी निराकृत मामलों में बड़ी संख्या ऐसी थी जिन पर पिछले पांच सालों से ज्यादा समय से सुनवाई चल रही थी। जिला और निचली अदालतों में जरूर मुकदमों के निपटारे का प्रतिशत कम था लेकिन वहां की परिस्थितियों और आधारभूत संरचनाओं को ध्यान में रखें तो उनमें भी अच्छा काम हुआ।
पेंडेंसी ज्यादा से ज्यादा निपटे ऐसा उद्देश्य रहा है लेकिन लोक अदालत के बारे में कुछ नहीं हो पा रहा था। पिछली लोक अदालत छह-सात माह पहले हुई थी। इसी बीच छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत मिश्रा मेरे पास आये और उन्होंने ई-अदालत का सुझाव रखा। उन्होंने अपने विचार को विस्तार से समझाया। फिर अन्य जजों से इस बारे में कई दौर की बातचीत हुई।
कम्प्यूटर कमेटी के चेयरमेन जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और सीपीसी शहाबुद्दीन कुरैशी से विचार-विमर्श के बाद मालूम हुआ कि यह संभव है। इस तरह आज यह ई लोक अदालत प्रदेशभर में लगाई जा रही है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अवसर है। देश की पहली ई लोक अदालत का उद्घाटन करते हुए उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता है और इसका श्रेय जस्टिस प्रशांत मिश्रा को जाता है। पूरी योजना उनकी है। मेरा काम केवल सहमति देकर, सबको जोडऩा और प्रोत्साहित करने का रहा है। लॉडाउन के कारण जब सब तरफ गतिविधियां ठप सी हो गई है, आर्थिक गतिविधियों में असर पड़ा है न्यायिक क्षेत्र पर भी प्रभाव पड़ा है। ऐसी स्थिति में यह एक प्रयास है कि हम मुकदमों से जुड़े लोगों की तकलीफों को कुछ कम कर सकें।
सालसा (छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण) के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस मिश्रा ने अध्यक्षयीय उद्बोधन में ई लोक अदालत का विचार आने की पृष्ठभूमि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक मौका है जब वीडियो कांफ्रेंस के जरिये प्रदेशभर की लोक अदालतों में समझौते कर मुकदमों का निपटारा किया जा रहा है। न्यायिक अधिकारियों, अधिवक्ताओं, विधिक अधिकारियों के सहयोग, साथी जजों विशेषकर चीफ जस्टिस के मार्गदर्शन के बिना इसका आयोजन संभव नहीं था। ई अदालत में हमें व्यवधान न हो यह सुनिश्चित करने के लिये सभी जिलों की अदालतों में अतिरिक्त डेटा खरीदकर उपलब्ध कराए गए हैं।
आज 23 जिलों की 195 बेंच में 3133 मामलों को सुना जा रहा है। हाईकोर्ट में भी दो बेंच लगी है जिनमें 165 प्रकरणों पर सुनवाई हो रही है। जस्टिस मिश्रा ने जिलों के पीठासीन अधिकारियों और पक्षकारों से अपील की कि सभी मामलों में समझौता हो जाए इसका प्रयास करें भले ही इसके लिये आज ज्यादा देर तक काम करना पड़े। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यह एक विचार था जो व्यवहारिक रूप से सामने आ गया है। भविष्य में ऐसी अदालतें और लगेंगीं ऐसा उन्हें विश्वास है।
मंच पर कम्प्यूटर कमेटी के चेयरमेन जस्टिस मनीद्रमोहन श्रीवास्तव व हाईकोर्ट लीगल एड सर्विस के चेयरमेन जस्टिस गौतम भादुड़ी भी उपस्थित थे। इसके पहले स्वागत उद्बोधन करते हुए रजिस्ट्रार जनरल नीलम चंद्र साखला ने कहा कि पहली ई अदालत छत्तीसगढ़ के नाम पर दर्ज हो गई है जो ऐतिहासिक अवसर है। कम्प्यूराइजेशन सेक्शन के इंचार्ज व सीपीसी शहाबुद्दीन कुरैशी ने ई लोक अदालत के बारे में संक्षिप्त ब्योरा दिया।
उद्घाटन समारोह में महाधिवक्ता, बार कौंसिल चेयरमैन, बार एसोसियेशन के पदाधिकारी भी सम्मिलित हुए। जिलों में पीठासीन अधिकारी, न्यायिक अधिकारी, लीगल एड सर्विस वालेंटियर्स, वकील एवं पक्षकार भी ऑनलाइन जुड़े।
राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण के सचिव सिद्धार्थ अग्रवाल ने आभार प्रदर्शन किया।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में सैनिटाइजर पर टैक्स चोरी का खुलासा हुआ है। यहां भी दो डिस्टलरियों ने सैनिटाइजर पर करीब 40 लाख जीएसटी की चोरी की है। कुछ और डिस्टलरियों की भी जांच पड़ताल हो रही है।
लॉकडाउन के दौरान सरकार ने प्रदेश की आधा दर्जन डिस्टलरियों को सैनिटाइजर बनाने का लाइसेंस दिया था। इनमें बिलासपुर के साथ-साथ दुर्ग की भी डिस्टलरियां भी हैं। बिलासपुर की दो डिस्टलरियों में डीजीजीआई ने जांच पड़ताल किए हैं। जिसमें यह खुलासा हुआ है कि उक्त डिस्टलरियों ने करीब 40 लाख रूपए टैक्स चोरी की है। बाकी जगहों की भी जांच हो रही है।
बताया गया कि सैनिटाइजर पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है, लेकिन कुछ जगहों पर 12 फीसदी ही जीएसटी चार्ज किया गया है। देशभर में बड़ी संख्या में डिस्टलरियों को सैनिटाइजर उत्पादन का लाइसेंस दिया गया था। इस दौरान टैक्स चोरी भी हुई है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के सोम डिस्टलरी में भी करीब 25 करोड़ की टैक्स चोरी पकड़ी गई थी। यहां के डिस्टलरी संचालक लोग गिरफ्तार भी किया गया। कंपनी ने बिना बिल और बिना जीएसटी चुकाए 25 करोड़ रुपए का सैनिटाइजर बेच दिया था। सैनिटाइजर पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 11 जुलाई। गढ़चिरौली में शनिवार को नक्सलियों ने एक ग्रामीण की हत्या कर दी। बताया जाता है कि मृत ग्रामीण पूर्व में बतौर एसपीओं कार्य करता था। इसी बात से खफा होकर उसकी हत्या की गई है।
मिली जानकारी के अनुसार आज सुबह 11 बजे भामरागढ़ पुलिस डिवीजन के भटपार गांव का देवू ताडो अपने खेत में काम कर रहा था। इसी दौरान आधा दर्जन हथियारबंद नक्सलियों ने उसे घेर लिया। कुछ सवाल करने के बाद हत्या कर दी।
बताया जाता है कि गांव के बाहर करीब एक किमी दूर लोगों ने खून से लथपथ शव देखने के बाद परिवार को जानकारी मिली। मृतक के घर में पत्नी समेत तीन बच्चे हैं।
रवि कुमार दुर्गा
किरंदुल, 11 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। शनिवार सुबह 35 किमी दूर पथरीली व पहाड़ी रास्तों से पैदल चलकर आधार कार्ड बनवाने किरंदुल पहुंचीं ग्रामीण महिला ने मंगल भवन में शिशु को जन्म दिया। सूचना मिलते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम और सचिव मौके पर पहुंच तत्काल उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। जहां मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
बेंगपाल से 35 किमी दूर पथरीली व पहाड़ी रास्तों से पैदल चलकर आधार कार्ड बनवाने ग्रामीणों के साथ गर्भवती भी शुक्रवार को लौह नगर किरंदुल पहुंची और रात्रि विश्राम बंगाली कैंप मंगल भवन में किया। शनिवार सुबह 8 बजे मंगल भवन में शिशु को जन्म दिया ।
ज्ञात हो कि आजादी के इतने साल बाद भी ये लोग परिचय पत्र के बिना ही जीवन जी रहे थे। कलेक्टर दंतेवाड़ा दीपक सोनी को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने इस ओर तत्काल पहल करते हुए एसडीएम बड़े बचेली प्रकाश भारद्वाज और तहसीलदार पुष्पराज पात्रे से बात कर टीम बना कर किरंदुल में आदिवासी ग्रामीणों के लिए आधार कार्ड बनवाने कैम्प आयोजित किया। वर्तमान में ग्रामीणों का आधार कार्ड बनवाया जा रहा है।
जब इस ग्रामीण महिला की यह सूचना मिलते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम और ग्राम सचिव सुनील भास्कर मौके पर पहुंच तत्काल उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। जहां मां और बेटा दोनों स्वस्थ है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पत्थलगांव, 11 जुलाई। शनिवार सुबह खेत की जुताई कर रहे एक युवक की ट्रैक्टर पलट जाने से उसमें दबकर मौत हो गई। उक्त घटना पत्थलगांव से 6 किमी दूर मुड़ापारा गांव की है।
बताया जा रहा है कि शनिवार को बिल्सीदान कुजूर (34) निवासी मुड़ापारा ट्रैक्टर से खेत की जुताई कर रहा था, तभी अचानक ट्रैक्टर एक गड्ढे में फंसकर पलट गया। जिससेजुताई कर रहा युवक ट्रैक्टर इंजन के नीचे आ गया। किसी तरह गाँव वालों ने उसे ट्रैक्टर से बाहर निकाला और पत्थलगांव के सिविल अस्पताल लाया गया। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने युवक को मृत घोषित कर दिया।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पत्थलगांव, 11 जुलाई। शनिवार सुबह पालीडीह के तिलईखार के जंगल में एक 13 वर्षीय लडक़ी की पेड़ पर लटकती हुई लाश मिली। जिससे क्षेत्र में सनसनी फैल गई।
जानकारी मुताबिक पत्थलगांव के तिलईखार के जंगल में नाबालिग लडक़ी का शव पेड़ पर झूलते हुए गाय चराने गए रहे लोगों ने देखा। गांव के लोगों व पत्थलगांव थाने में सूचना दी गई। पत्थलगांव एसडीओपी योगेश देवांगन एवं थाना प्रभारी मौके पर तत्काल पहुंच कर तफ्तीश में जुटे। वहां मौजूद लोगों ने उक्त नाबालिग लडक़ी को पास के ही जंगल पारा बस्ती पालीडीह का बताया।
पत्थलगांव पुलिस ने बताया कि 13 वर्षीय लडक़ी का घर में ही कुछ विवाद हुआ था, जिससे उसने बीती रात को आत्महत्या कर ली। वह आठवीं में पढ़ाई करती थी। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
जयपुर, 11 जुलाई। प्रदेश की राजनीति में पिछले डेढ़ महीने से चल रहे अंदरूनी सियासी घमासान को लेकर एसओजी ने शुक्रवार को बड़ा खुलासा किया है। इस खुलासे में दो मोबाइल नंबर पर हुई बातचीत के अनुसार एसओजी ने खुलासा किया है कि प्रदेश की सरकार को गिराने की भाजपा नेताओं ने कोशिश की है। बातचीत में सामने आया है कि मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के बीच झगड़ा चल रहा है ऐसी स्थिति में कांग्रेस व निर्दलीय विधायक तोडक़र सरकार गिराई जाए। भाजपा नेता द्वारा कांग्रेस से कुशलगढ़ विधायक रमिला खडिय़ा को अपने पक्ष में करने की बात भी सामने आई है। इस बातचीत को तथ्य मानकर एसओजी ने मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है।
एसओजी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में हवाला दिया गया है कि 13 जून 2020 को अवैध हथियार तस्करी की रोकथाम व अवैध विस्फोटक पदार्थ की तस्करी की रोकथाम के लिए दो मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लिया गया। मोबाइल नंबर से हो रही बातचीत में प्रकट होता है कि मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के बीच झगड़ा चल रहा है। ऐसी स्थिति में सत्तापक्ष कांग्रेस पार्टी व निर्दलीय विधायकों को तोडक़र सरकार गिराई जाए।
सूत्रों से मिली सूचना से यह भी जानकारी में आया है कि कुशलगढ़ विधायक रमिला खडिय़ा को एक भाजपा नेता द्वारा अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जा रहा है। बागीदौरा से कांग्रेस विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय के संबंध में भी ये बात करते हैं कि पहले वह उपमुख्यमंत्री के पाले में थे, उन्होंने पाला बदल लिया है। कांग्रेस विधायकों एवं निर्दलीय विधायकों को 20-25 करोड़ रुपए के प्रलोभन देने की जानकारी भी सूत्रों से प्राप्त हुई है।
इन दो मोबाइल नंबरों की बातचीत में सामने आया है कि वर्तमान सरकार को गिरा कर नया मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री हमारा होगा और उपमुख्यमंत्री को केंद्र में मंत्री बना दिया जाएगा। लेकिन उप मुख्यमंत्री का कहना है कि मुख्यमंत्री वो बनेंगे, यह भी इन वार्ताओं में सामने आया है।
राज्यसभा चुनाव से पहले सभी विधायकों के इक_े किए जाने पर इन नम्बरों पर बातचीत हुई है कि 25-25 करोड़ वाला मामला अब टांय टांय फिस्स हो गया है। यह भी बातचीत से ज्ञात हुआ है कि राज्यसभा चुनाव से पहले राजस्थान सरकार को गिराने की पूरी तैयारी हो गई थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यसभा चुनाव से पहले भाजपा द्वारा विधायकों को 25-25 करोड़ का प्रलोभन देकर खरीदने की बात कही थी। इसी संबंध में मुख्य सचेतक महेश जोशी का भी परिवाद प्राप्त हुआ था कि वर्तमान कांग्रेस सरकार के विधायकों व समर्थन दे रहे विधायकों को प्रलोभन देकर राज्यसभा चुनाव में वोटिंग को प्रभावित करने व सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
उप मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे के संबंध में बातचीत करते हैं कि बड़े बड़े राजनीतिक फैसले दिल्ली में हो रहे हैं और 30 जून के बाद घटनाक्रम तेजी से बढ़ेगा। बातचीत में यह भी प्रकट हुआ है कि इस तरह वर्तमान सरकार को गिरा कर नई सरकार का गठन करवा कर ये लोग 1-2 हजार करोड़ रुपए कमा सकते हैं। यह भी कहते हैं कि वह तभी होगा जब इनके हिसाब से मुख्यमंत्री बनेगा। मंत्रिमंडल विस्तार की बातचीत में प्रकट होता है कि विस्तार करेंगे तो 4 आएंगे, 6 नाराज भी होंगे।
उप मुख्यमंत्री के ग्रह नक्षत्रों की बात करते हुए कहते हैं कि 30 जून के बाद इनके ग्रहों में तेजी आएगी और 5 से 10 दिन के बाद ये शपथ लेंगे। दो-तीन दिनों में विधायकों और खास तौर पर निर्दलीय विधायकों के पास धन राशि लेकर उनसे संपर्क साधने की सूचना भी सूत्रों से प्राप्त हुई है। इन बातचीत से स्पष्ट है कि यह वार्ताकार सरकार गिराने की योजना में अन्य लोगों के साथ सम्मिलित हैं और इसके पश्चात पैसा कमाने की योजना बना रहे हैं।
एसओजी ने आगे हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस बातचीत से यह स्पष्ट है कि वर्तमान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई राजस्थान सरकार के विरुद्ध घृणा की भावना से सत्ता पक्ष कांग्रेस व निर्दलीय विधायकों की खरीद-फरोख्त के प्रयास किए जा रहे हैं। इस संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अनुसंधान किया जाना उचित रहेगा।
(Politalks.News)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 11 जुलाई। शुक्रवार की शाम रायगढ़ जिले में 6 मरीजों की पुष्टि हुई है। जिनमें लैलूंगा के 3, धरमजयगढ से 1, तमनार से 1 और बरमकेला से 1 मरीज है। इन सब में बरमकेला का मरीज महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस मरीज का इलाज एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा किया जा रहा था। डॉक्टर बगैर किसी एहतियात के हफ्तेभर तक उसका इलाज करता रहा। मरीज की हालत नहीं सुधरी तो वह अस्पताल पहुंचा। अस्पताल में उसकी बीमारी पुष्ट हुई है। चिंता की बात तो ये है कि कोरोना पॉजीटिव मरीज का इलाज करने वाला डॉक्टर बरमकेला क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से अधिक गांवों में घूम-घूमकर इलाज कर चुका है। इससे संक्रमण के फैलने का खतरा बढऩे की संभावना अधिक है। युवक की ट्रेवल हिस्ट्री भी स्वास्थ्य विभाग खंगाल रही है। बताया जा रहा है कि युवक सराईपाली से लौटा था।
मिली जानकारी के अनुसार बरमकेला क्षेत्र के मौहापाली गांव का मरीज कोरोना संक्रमित हुआ है। कुछ दिन पहले उसे सर्दी-बुखार की षिकायत हुई थी। जिसका इलाज हट्टापाली गांव का रहने वाला झोलाछाप डॉक्टर हरिराम चैहान कर रहा था। बार-बार युवक को वह मामूली दवाई दे देता और दिलासा देता कि उसकी बीमारी ठीक हो जाएगी। लेकिन बीमार युवक की हालत में सुधार नहीं आई। जबकि डॉक्टर ने कभी भी उसे अस्पताल जाने की हिदायत नहीं दी। वहीं जब युवक की हालत नहीं सुधरी तो वह अस्पताल चला गया, जहां ग्रामीण युवक में कोरोना पुष्टि हुई है। संक्रमण काल के इस दौर में भी झोलाछाप डॉक्टरों का वर्चस्व बरकरार है। ग्रामीण अंचलों में झोलाछाप घूम-घूमकर इलाज कर रहे हैं। उन्हें संरक्षण देने में स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी लगे हुए हैं।
इन गांवों में संक्रमण फैलने का खतरा
हट्टापाली का रहने वाला झोलाछाप डॉक्टर हरिराम चौहान आसपास के दर्जनों गांव में घूम-घूमकर इलाज करता है। संचार क्रांति डॉट कॉम को मिली जानकारी के अनुसार उक्त डॉक्टर लंबे समय से ग्रामीण अंचलों में डॉक्टरी कर रहा है। वर्तमान में बरमकेला क्षेत्र के मौहापाली, हट्टापाली, जगदीशपुर, छिंदपतेरा, खैरडीपा, करपी, परधियापाली, कर्रामाल, कालाखूंटा, अमलीपाली समेत लगभग डेढ दर्जन गांवों में वह घूम चुका है।
6 नए की हुई पहचान
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 11 जुलाई। रायगढ़ जिले में कोरोना से मौत का पहला मामला सामने आया है। मृतक पड़ोसी जिले जांजगीर का रहने वाला है। जिसका इलाज रायगढ़ कोविड़ अस्पताल में चल रहा था। इससे पहले भी रायगढ़ के एक व्यक्ति की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है। किंतु वह रायपुर में इलाज करा रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई थी।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में 6 नए कोरोना मरीजों की पहचान की गई है। जिसमें लैलूंगा ब्लाक से 3, बरमकेला से एक, तमनार से एक और धर्मजयगढ़ से एक मरीज शामिल है। इसके अलावा जांजगीर चांपा का मरीज रायगढ़ के जीएच में इलाज के दौरान मौत हो गई जिसकी पुष्टि रायगढ़ के सीएमएचओ एस एन केसरी ने की है नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। जो ग्राम पंचायत ढोर्रोबीजा क्वारँटीन सेंटर में थे। तीनो व्यक्ति कंझारी के रहने वाले हैं। जो प्रवासी मजदूर हैं। कुछ दिन पहले ही झाँसी से वापस आए थे। कल राज्य में 146 नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान हुई वहीं 68 मरीज स्वस्थ होने के उपरांत आज डिस्चार्ज हुए।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 11 जुलाई। खरसिया वन परिक्षेत्र के बरगढ़ परिसर में एक भालू के हमले से ग्रामीण की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि खेत में काम करने के दौरान भालू ने उस पर हमला कर दिया था।
इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार खरसिया वन परिक्षेत्र के ग्राम बरगढ़ में कल देर शाम एक ग्रामीण गणेश राम पिता मदन सिंह कंवर उम्र 60 वर्ष खेत में काम करने गया हुआ था बताया जा रहा है कि इसी दौरान उस पर एक भालू ने हमला कर दिया। भालू के हमले के दौरान ग्रामीण अकेला होने के कारण वह अपना बचाव भी नहीं कर सका और भालू के द्वारा बुरी तरह नोचे जाने के कारण ग्रामीण की मृत्यु हो गई। घटना की जानकारी मिलने पर खरसिया रेंजर मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचना देने के बाद मृतक के शव को पीएम के लिए भिजवाया गया है।
‘ठीक हुए बिना सभी को बार-बार घर जाने कहा जा रहा’
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। कोरोना पॉजिटिव पीजी डॉक्टर ने अंबेडकर अस्पताल के जिन वार्डों में दो दिन पहले राउंड लगाया था, वहां के कई मरीज अब डिस्चार्ज किए जा रहे हैं। अस्पताल से छुट्टी के बाद बाहर आए कुछ मरीजों ने बताया कि वे लोग ठीक नहीं हुए हैं, इसके बाद भी उन्हें छुट्टी दे दी गई। स्टाफ द्वारा वार्ड में भर्ती मरीजों को घर जाने के लिए बार-बार कहा जा रहा है। ऐसे में बाकी मरीज भी ठीक हुए बिना छुट्टी कराकर अपने घर लौट सकते हैं।
अंबेडकर अस्पताल का एक पीजी डॉक्टर दो दिन पहले कोरोना पॉजिटिव पाया गया, लेकिन यह जानकारी होने के बाद भी संबंधित पीजी डॉक्टर सर्जरी समेत कई वार्डों में राउंड पर चला गया। वह यहां अपने को कोरोना पॉजिटिव भी बताता रहा। उसकी यह लापरवाही अब यहां भर्ती सामान्य मरीजों पर देखी जा रही है। कोरोना पॉजिटिव के राउंड वाले वार्डों से मरीज अब छुुट्टी किए जा रहे हैं। जबकि ये मरीज खुद यह बता रहे हैं कि उन्हें अस्पताल में रहकर अभी और इलाज कराना था।
वार्डों से छुट्टी होकर अस्पताल परिसर में आए कुछ मरीजों ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में बताया कि उन्हें 10 से 15 दिन की दवा दी गई है। उन्हें 15 दिन बाद दोबारा अस्पताल पहुंचकर जांच कराने कहा गया है। जबकि उनकी हालत 10-15 दिन घर में ठहरने की नहीं है। ऐसे में उन्हें कुछ दिनों में वापस फिर से अस्पताल आना होगा। इससे उनकी परेशानी और बढ़ेगी।
अस्पताल के पीआरओ शुभ्रासिंह ठाकुर का कहना है कि कोरोना पॉजिटिव डॉक्टर के राउंड के बाद मरीजों की छुट्टी जैसी कोई बात नहीं है। ठीक होने पर ही वार्डों से मरीज डिस्चार्ज किए जाते हैं। यह अस्पताल की नियमित प्रक्रिया है। आज भी कुछ मरीज डिस्चार्ज किए गए होंगे।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुन्द, 11 जुलाई। थाना कोतवाली महासमुन्द में चोरी की 15 बाइक समेत आज दो लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों ने बागबाहरा, पिथौरा, गरियाबंद, रायपुर, फिगेश्वर व आरंग से सभी बाइक चोरी करना बताया।
पुलिस के अनुसार कल सूचना मिली थी कि महासमुन्द निवासी हेमू अग्रवाल चोरी की बाइक को खपाने हेतु खरीददार की तलाश में है और उन्होंने चोरी की बाइक अपने घर पर रखा है। हेमू अग्रवाल पूर्व में भी चोरी एवं आम्र्स एक्ट मामले में जेल जा चुका है। फिंगेश्वर के एक वाहन चोरी के अपराध में वांछित है तथा अपने साथी चन्दू के साथ महासमुन्द जिले के बागबाहरा, पिथौरा एवं सीमावर्ती गरियाबंद व रायपुर के फिंगेश्वर, आरंग से बहुत सारी बाइक चोरी किया है।
सिटी कोतवाली पुलिस ने आज हेमू अग्रवाल और उसके साथी चंदू को घेराबंदी कर पकड़ा। पुलिस का कहना है कि हेमू अग्रवाल उर्फ विकास अग्रवाल शातिर वाहन चोर है और पूर्व में लूट,चोरी जैसे अपराध में वह जेल भी गया है। उसने अपने साथी चन्दू के साथ रायपुर जिला, महासमुन्द जिला, गरियाबंद जिला से चोरी करना बताया।
थाना कोतवाली की टीम ने हेमू अग्रवाल से प्लेटिना वाहन 2 नग, डिलक्स 04 नग, होण्डा साईन 02 नग, एक्टीवा 02 नग, मेस्ट्रो 01 नग, सीडी 100 एक नग, पैशन प्रो 01 नग, पल्सर 01 नग, अपाचे 01 नग, कुल 15 दुपहिया कीमत 4 लाख 50 हजार रूपये जब्त कर कार्रवाई की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 11 जुलाई। जिला कबीरधाम में हुए 71 लाख लूट का फरार आरोपी नारायण चंद्रवंशी को पुलिस ने आज सुबह पॉवर हाउस नंदनी रोड स्थित एसके सेवन लॉज में दबिश देकर पकड़ा है। ज्ञात हो कि इस मामले के 6 आरोपियों को शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया गया था, वहीं 2 फरार थे।
नगर पुलिस अधीक्षक विश्वास चंद्राकर ने बताया कि आज सुबह 8 बजे पुलिस को सूचना मिली कि कवर्धा के 71 लाख रुपए की लूट का एक आरोपी नारायण चंद्रवंशी पॉवर हाउस नंदनी रोड स्थित एसके 7 लॉज ठहरा हुआ है। छावनी पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी नारायण चंद्रवंशी को धर दबोचा।
बताया जा रहा है कि आरोपी नारायण रायपुर अपने वकील से मुलाकात करने के लिए गया हुआ था। लौटते समय आराम करने के लिए लॉज में रुक गया। परंतु होटल के मैनेजर ने इसकी सूचना छावनी पुलिस को दी। खबर लगने पर मौके पर पुलिस पहुंची। जिसे देख नारायण होटल के छत से कूद कर भागने का प्रयास कर रहा था।
नारायण चंद्रवंशी (25) लोहारा रोड रामनगर कवर्धा का रहने वाला है। कवर्धा की लूट की घटना में सह आरोपी था, जिसे पुलिस तलाश कर रही थी।
गौरतलब हो कि कवर्धा में प्लान के तहत राइस मिलर मुंशी से 71 लाख लूट की वारदात को अंजाम देने वाले 6 आरोपियों को पुलिस ने 24 घण्टे के भीतर गिरफ्तार कर लिया था, जिसमें एक निलंबित आरक्षक दिलीप चंद्रवंशी और राइस मिलर मुंशी मनोज कश्यप भी है। उसके बाद से नारायण फरार चल रहा था। आरोपियों के निशानदेही पर पुलिस ने करीब 68 लाख रुपये बरामद किया है।
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 11 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। 12 जुलाई 2009 की वीभत्स नक्सल घटना की कल 11वीं बरसी है। इस लोमहर्षक नक्सली वारदात में तत्कालीन राजनांदगांव एसपी विनोद चौबे समेत 29 जवान नक्सल एम्बुश में फंसकर शहीद हो गए। यह पहला वाकया था जब नक्सल मोर्चे में किसी आईपीएस को जवानों के साथ शहादत झेलनी पड़ी। इस घटना के बाद तेजी से नक्सल मोर्चे में बड़े बदलाव हुए। ऐसा ही एक बदलाव आत्मसमर्पण नीति के तहत महकमे में व्यापक परिवर्तन आया। नतीजतन नक्सली के तौर पर हमलावर रहा पूर्व नक्सली आज महकमे के साथ जुडक़र बेहतर जीवन जी रहा है।
इस घटनाक्रम से जुड़े एक पूर्व नक्सली छोटू पद्दा ने अपनी पत्नी सुनीता के साथ 12 जुलाई 2009 की वारदात का प्रत्यक्ष हमलावर रहा है। छोटू पद्दा ने कंपनी नंबर 4 के सेक्शन कमांडर की हैसियत से स्व. विनोद चौबे एवं जवानों पर कई गोलियां दागी। इस हमले में सहयोगी के तौर पर छोटू पद्दा की पत्नी सुनीता भी मौजूद थी।
गढ़चिरौली के रानकट्टा के रहने वाले इस युवक ने स्व. चौबे और पुलिस फोर्स पर कातिलाना हमला बोला था। कोरकोट्टी हमले के दो साल बाद 2012 में छोटू पद्दा ने पत्नी के साथ राजनांदगांव पुलिस के समक्ष समर्पण कर दिया और इसके बाद पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नक्सलियों की जड़ों को उखाडऩे के मिशन से जुड़ गया। आज वह महकमे में बतौर आरक्षक काम कर रहा है। 11 साल पहले हुए इस हमले के बाद काफी संघर्ष के बाद पुलिस की अंदरूनी इलाकों में ताकत बढ़ी है। आत्मसमर्पण नीति के जरिए छोटू पद्दा एक जिम्मेदार आरक्षक के तौर पर स्व. चौबे की मूर्ति की सफाई करने के साथ-साथ पेंटिंग कर रहा है।
रंग-रोगन करते इस संवाददाता से चर्चा करते छोटू पद्दा ने कहा कि एक आम इंसान की तरह जीने का अपना अलग महत्व है। पत्नी के साथ वह खुशहाल जीवन जी रहा है। इस बीच कंपनी नंबर 4 में सेक्शन कमांडर के ओहदे में रहते छोटू पद्दा ने कोरकोट्टी हमले में फोर्स पर कई गोलियां दागी थी। सेक्शन कमांडर के तौर पर वह नक्सलियों की टुकड़ी का नेतृत्व भी हमले में कर रहा था।
बताते हैं कि छोटू पद्दा ने समर्पण के बाद पुलिस के सामने कई राज उगले। माना जाता है कि सेक्शन कमांडर को नक्सल संगठन में काफी महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि मानपुर क्षेत्र में नक्सलियों का नकल कसने पुलिस ने छोटू पद्दा ने कई अहम जानकारियां दी। आरक्षक की हैसियत से छोटू पद्दा स्व. चौबे और जवानों पर हमले की वारदात को पीछे छोडक़र पूरी निष्ठा के साथ देश सेवा कर रहा है।
-डॉ मुजफ्फर हुसैन गजाली
पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना देखने वाला देश अब पांच किलो अनाज पर आ कर टिक गया है। भारत के दिमाग, उसके बाजार, तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था और कॉर्पोरेट की दुनिया में चर्चा होती रही है। ऐसा क्या हुआ है कि देश दो जून की रोटी की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
प्रधानमंत्री को स्वयं देश को संबोधित कर ‘गरीब कल्याण योजना’ जो 30 जून को समाप्त हो रही थी इसकी अवधि बढ़ाकर नवंबर 2020 तक पांच किलो गेहूं या चावल प्रति व्यक्ति और एक किलो चना हर परिवार को मुफ्त देने की घोषणा करनी पड़ी। दो करोड़ रोजगार मुहैया कराने, किसानों की आय को दोगुना करने, विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने, एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए बुलेट ट्रेन चलाने, 100 स्मार्ट सिटी बनाने, हवाई चप्पल वाले को हवाई जहाज़ में बैठाने, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, 30-35 रुपये में पेट्रोल, डीजल उपलब्ध कराने, डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूत बनाने और पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने की जोर-शोर से बात करने वाली सरकार और सत्ताधारी पार्टी अब पांच किलो अनाज पर आ गयी है।
आज स्थिति यह है कि देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी भुखमरी के कगार पर है। खुद प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में गरीबों की संख्या 80 करोड़ बताई है। जबकि 29 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं। देश में 51 प्रतिशत महिलाएँ और 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। एक तिहाई आबादी को दो वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं हैं। 80 करोड़ गरीबों में से, 44 करोड़ यूपी, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में रहते हैं। इन्हें श्रमिक पैदा करने वाला प्रांत भी कहा जाता है। ऐसा तब है जब संसद का हर चौथा सदस्य यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश से आता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 117 देशों में 102 है। जबकि मई 2014 में देश 55 वें स्थान पर था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंक लगातार गिर रही है। क्योंकि अर्थव्यवस्था के लिए देश के पास कोई विजन नहीं है। ऊपर से रोजग़ार की कमी और राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने की इच्छा ने स्तिथि को बद से बदतर कर दिया है।
पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की चर्चा से, देश में सुधार की आशा बढ़ी थी। इसकी घोषणा वित्त मंत्री ने बजट सत्र को संबोधित करते हुए की थी। अगले दिन, 6 जुलाई, 2019 को प्रधानमंत्री ने वाराणसी में भाजपा कार्यकर्ताओं से अपने सम्बोधन में, इसे देश के लिए बड़ा लक्ष्य बताया था। इस पहल से रोजगार, व्यापार, उत्पादन, निवेश, निर्यात और आयात के नए अवसर की सम्भावना पैदा हुयी थी। विशेषज्ञों के अनुसार, 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लिए, 8 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करना तथा बरकऱार रखना आवश्यक है। इस लक्ष्य के लिए हर क्षेत्र में निवेश की दरकार है। निवेश बढऩे से नए रोजग़ार पैदा होते हैं, मांग बढ़ती है और क्रय शक्ति में इज़ाफ़ा होता है। बोल चाल के शब्दों में खपत + निजी निवेश+सरकारी खर्च+निर्यात में से आयात को घटा दें तो यह देश की विकास दर या अर्थव्यवस्था कहलती है। आर्थिक सर्वेक्षण के पहले अध्याय के पेज चार पर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने के लिए ‘यदि’ के साथ कुछ शर्तों का उल्लेख किया गया है। ‘यदि’ निर्यात बढ़े, ‘यदि’ उत्पादकता बढे, ‘यदि’ रुपये में गिरावट आये, ‘यदि’ वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 8 प्रतिशत हो और मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के आसपास रहे, तो अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन तक पहुंचेगी। बेरोजगारी के कारण खपत और निवेश की मांग में कमी आई है। दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन ने मानसून की गति को धीमा कर दिया है, जिस का प्रभाव कृषि पर पड़ रहा है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था लगातार प्रभावित हो रही है। सेवा क्षेत्र, जिसका अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान है,उसकी स्तिथि भी अच्छी नहीं है।
2019 के चुनावों से पहले, मोदी सरकार ने बुनियादी ढांचे में 100 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। अब सरकार ने रेलवे और बुनियादी ढाँचे में निजी कंपनियों से पीपीपी मोड में निवेश की बात कही है। लेकिन इस श्रेणी की कंपनियां परेशान चल रही हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इसका क़ुरा भी अडानी या अंबानी के नाम ही निकलेगा। निर्यात में भारत लगातार पिछड़ रहा है। जी डी पी के औसत के हिसाब से यह 14 साल के निचले स्तर पर है। भारत-चीन संघर्ष और टैरिफ वॉर का भी उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 3 मई को बेरोजगारी की दर 27.1 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। सीएमआई की रिपोर्ट के अनुसार, जून के तीन सप्ताह में यह घटकर 17.5 और 11.6 पर आ गयी। परन्तु इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि सरकार ने आंकड़ों को दुरुस्त करने के लिए मनरेगा का सहारा लिया है। निजी निवेश में गिरावट आई है, घरेलू कंपनियां अपना कारोबार देश के बाहर स्थानांतरित कर रही हैं। देश की परिस्थितियाँ विदेशी निवेश के लिए अनुकूल नहीं हैं। बैंक, एनबीएफसी, एनपीए के बोझ से डूब रहे हैं। वैसे, सरकारी निवेश जीडीपी वृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन सरकार की दिलचस्पी निवेश के बजाय देश की संम्पदा अपने प्रियजनों के हवाले करने में है।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने 31 अगस्त, 2019 को अपने ट्वीट में सरकार की आर्थिक नीति पर सवाल उठाते हुए कहा था, ‘यदि कोई नई आर्थिक नीति नहीं लाई जाती है, तो पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को गुडबाय कहने को तैयार हो जाइये।’ एक दिन पहले ही 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत बताई गयी थी। यह उस समय छ: साल के सबसे निचले स्तर पर थी।
हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन ने अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिए ऑटोमोबाइल, मैन्युफैक्चरिंग और रियल एस्टेट को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण घोषणाएं की थीं। इसी उद्देश्य के लिए, उन्होंने दस राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों को चार में विलय कर दिया था। फिर भी, मार्च 2020 में जीडीपी वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत दर्ज की गई। इससे पता चलता है कि भाजपा के अन्य वादों की तरह, पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की घोषणा एक सूंदर स्वप्न के अलावा और कुछ भी नहीं।
सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था, रोजगार, व्यवसाय, शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और बुनियादी जरूरतों को यदि सरकार पूरा नहीं कर पा रही है तो भाजपा को वोट कौन देगा, वह चुनाव कैसे जीतेगी। 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देने की घोषणा शायद इसी सवाल का जवाब तलाश करने की कोशिश है। वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपाई के अनुसार, पाँच महीने तक गरीबों को पाँच किलोग्राम मुफ्त खाद्यान्न देने पर सरकार को 90,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे, अगर 80 करोड़ लोगों को एक साल तक हर महीने पांच किलो अनाज दिया जाये, तो इस पर कुल 2.25 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। यदि 2.25 लाख करोड़ रुपये खर्च करके 80 करोड़ लोगों को अपने साथ खड़ा किया जा सकता है तो यह राजनीती में बहुत सस्ता सौदा है। ज्ञात रहे कि 2014 के संसदीय चुनावों में भाजपा को 17.16 करोड़ और 2019 में 22,90,78,261 वोट मिले थे। वैसे मुफ्त अनाज की थ्योरी गज़़ब की है, यदि 2.25 लाख करोड़ रुपये का अनाज देश के 80 करोड़ नागरिकों का पेट भर सकता है, तो जरा सोचिए देश में कितनी असमानता है। अगर इसे वोट से जोड़ कर देखा जाए तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
वर्तमान योजनाओं के अवलोकन से पता चल सकता है कि मुफ्त अनाज की योजना सफल होगी या पिछले वादों की तरह यह भी एक जुमला बन कर रह जाएगी। सरकार ने उन 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को जिन के पास राशन कार्ड नहीं है, मई जून में राशन देने का वादा किया था। लेकिन वह मई में एक करोड़ और 26 जून तक केवल 79,20,000 श्रमिकों को ही राशन दे पाई। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान के अनुसार, उन्हें मई में एफसीआई से 13.5 प्रतिशत और जून में 10 प्रतिशत से भी कम खाद्यान्न मिल पाया। कोरोना संकट के समय भी 42 प्रतिशत राशन कार्ड धारक सरकारी राशन से वंचित रहे। आंकड़े बताते हैं कि आंध्र प्रदेश, केरल, बिहार और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं जिन्होंने राशन की दुकानों से 90 खाद्यान्न वितरित किया। जबकि दिल्ली, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड राज्य केवल 30 प्रतिशत राशन ही बांट पाए। राष्ट्रीय स्तर पर, केवल 58 प्रतिशत को ही सरकारी राशन मिल पाता है। सस्ते राशन की 60 प्रतिशत दुकानें तो बंद ही रहती हैं। मनरेगा की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। बजट में मनरेगा के लिए 61,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी। कोरोना राहत के नाम पर 40,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त देने का निर्णय किया गया, लेकिन अभी तक इस में से केवल 38,999 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। जिस में से नब्बे प्रतिशत खर्च हो चुका है। सरकार मनरेगा में पंजीकृत लोगों को सौ दिन का रोजगार नहीं दे पा रही है और न ही सभी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मेल। देश में न्यूनतम अनिवार्य आय जैसी कोई योजना भी नहीं है। जिस से गरीबों को राहत मिल सके। ऐसी स्थिति में सरकार पांच किलोग्राम मुफ्त खाद्यान्न का वादा पूरा कर पाएगी या नहीं यह आने वाला समय बताएगा। भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश भले ही न बन पाया हो, लेकिन कोड -19 के मामलों के कारण वह दुनिया का तीसरा देश जरूर बन गया है।
-रूचिर गर्ग
स्वाभाविक है कि विकास दुबे जैसे दुर्दांत आतंकी के साथ किसी की सहानुभूति नहीं हो सकती। विकास दुबे और उसके गैंग ने 8 पुलिस वालों को जिस बेरहमी से मारा उसके बाद जनमानस में जो गुस्सा था वो सबने देखा ही है।महाकाल परिसर में जो हुआ वो लोगों के गले उतर नहीं रहा था। अब एनकाउंटर पर सवाल उठ रहे हैं।
स्वाभाविक है कि विकास दुबे भारतीय कानून व्यवस्था के तहत सख्त से सख्त सजा का हकदार था। लेकिन जिन परिस्थितियों में यह सब कुछ घटा वो स्वाभाविक प्रतीत नहीं हो रहीं हैं, इसलिए सवाल भी स्वाभाविक हैं।
कोई सवाल अगर पुलिस नाम की संस्था के हौसले कम करते हों तो व्यापक जनहित में ऐसे सवालों को कुछ देर के लिए रोक लीजिए। गहरी सांस लीजिए, थोड़ा सोचिए, फिर तय कीजिये कि कोई सवाल यदि पुलिस के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए ज़रूरी हों तो भी क्या उनके लिए जगह न रखी जाए? सोचिए कि लोकतंत्र कानून के राज से मजबूत होगा या अराजकता से?
जिस समय आप किसी ऐसे हत्यारे को सरेआम गोलियों से भून डालने की कामना कर रहे होते हैं तब सोचिए कि क्या आपने कभी उस समय एक सवाल भी किया था, जब आपकी आँखों के सामने कोई एक व्यक्ति अपराध करते करते विकास दुबे बन जाता है?
सोचिए कि सडक़ पर त्वरित न्याय से खुश होने वाले हम या आप क्या कभी उस व्यवस्था पर सवाल उठा भी पाते हैं जो विकास दुबे बनाती है? सोचिए कि जब आप किसी चुनाव में वोट देने के लिए घर से निकलते हैं तो क्या आपने कभी यह सोचा था कि आपको एक अपराध मुक्त, सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण के लिए वोट देना है? सोचिए कि वोट देते समय आपकी प्रज्ञा का हरण कौन कर जाता है! सोचना छोडि़ए हममें से करीब-करीब आधे से कुछ कम तो वोट भी नहीं देने जाते!
कानपुर एनकाउंटर ऐसी कोई इकलौती घटना नहीं है जिस पर तकनीकी सवाल उठे या अंतहीन बहस होती रहे। किसी दुर्दांत अपराधी की मौत का शोकगीत कोई नहीं गाना चाहेगा लेकिन कानपुर एनकाउंटर फिर एक ऐसा मौका जरूर है कि हमको आपको यह तय करना होगा कि हम कैसा समाज चाहते हैं, कैसा देश चाहते हैं? अगर समाज ऐसा ही हो जो न विकास दुबे बनने की प्रक्रिया पर मुंह खोले और ना जिसमें यह सवाल करने की इच्छा हो कि जब घटना स्थल से 2 किलोमीटर पहले मीडिया को रोक दिया गया था तब क्या एनकाउंटर हो चुका था, तो संतोष कीजिये कि अब आप लगभग ऐसे ही समाज का हिस्सा हैं। लेकिन अगर आपको लगता है कि आपको कानून का राज चाहिए, आपको ऐसा समाज चाहिए जिसमें हम आप जैसे नागरिकों की न्याय व्यवस्था पर आस्था अटूट रहे तो इसके लिए आपको सिर्फ सवाल पूछने हैं। आपको सिर्फ इतना ही तो करना है कि टीवी एंकर्स के नजरिए से सब कुछ देखना छोड़ देना है और अपने विवेक को काम पर लगाना है। जब हम ऐसा कर पाएंगे तब यह भी तो देख पाएंगे कि वो कौन सी ताकते हैं,वो कौन सी प्रवृत्तियां हैं, वो कौन सी साजिशें हैं जो हमें सवाल करने से रोकती हैं, जिन्होंने हमारी चेतना का हरण कर लिया है, जो हमें मजबूर कर रहीं हैं कि हम इस व्यवस्था में बस ताली-थाली पीटने वाले दर्शक बने रहें!
अगर लोकतांत्रिक समाज की हमारी आकांक्षा बची है, अगर कानून के राज की आकांक्षा बची है तो इन आकांक्षाओं का एनकाउंटर कर रही प्रवृत्तियों की शिनाख्त जरूरी है।
आज यह चर्चा अलोकप्रिय लग सकती है लेकिन लोकप्रियता का आंनद बड़ा नशीला होता है। हम ना महंगाई समझते हैं, ना बेरोजगारी समझ पाते हैं, न अपराध मुक्त समाज समझ पाते हैं,ना शिक्षा के सवाल समझ आते हैं, विदेश नीति वगैरह को तो छोडि़ए हम पीने के साफ पानी तक की बात नहीं कर पाते। ये आनंद बड़ा उन्मादी बना देता है।
हमें कभी सिर्फ दर्शक तो कभी विदूषक सा बना देता है। हम देख ही नहीं पाते कि हमारे लिए नायकत्व के प्रतिमान कितनी खामोशी से बदलते जा रहे हैं। झूठ हमारे लिए सब से बड़ा सच बन गया और हम इस हकीकत का एहसास भी नहीं करना चाहते।
फिलहाल इतना ही सोचिए कि अब उन सवालों का जवाब कौन देगा जो विकास दुबे से होने थे? ये तो ऐसा सवाल है जो शहीद पुलिस वालों के परिजन भी कर रहे हैं! हम आप तो उनके साथ हैं न? तो सवाल कीजिये?
अच्छा चलिए, इस सवाल से असुविधा हो रही हो तो इतना तो पूछ ही लीजिए कि सीबीएसई के पाठ्यक्रम को हल्का करने के लिए लोकतांत्रिक अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और खाद्य सुरक्षा जैसे पाठ ही हटाने क्यों जरूरी थे?
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। राजधानी रायपुर के लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करने नुक्कड़ कलाकार आज से यहां के चौक-चौराहों पर यमराज और चित्रगुप्त के भेष में निकले हैं। वे यहां लोगों को कोरोना और उससे बचाव से संबंधित जानकारी दे रहे हैं। नियमों को नहीं मानने वालों की चित्रगुप्त कुंडली देख रहे हैं। यमराज भी जमकर क्लास ले रहे हैं।
रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड और रायपुर यातायात पुलिस ने मिलकर यह जन-जागरूकता अभियान यहां शुरू किया है। यमराज और चित्रगुप्त बने कलाकार मास्क न पहनने वालों को आगाह भी कर रहे हैं कि उनकी लापरवाही उनके स्वयं व दूसरों के जीवन को संकट में डाल रही है। ये कलाकार सडक़ पर थूकने वाले और यातायात नियम का उल्लंघन करने वालों को भी बता रहे हैं कि उनकी लापरवाही उनके साथ दूसरों की जिंदगी में भी संकट डालती है।
रायपुर स्मार्ट सिटी के एमडी सौरभ कुमार के अनुसार कोरोना से बचाव को लेकर लोगों को नियमित हाथ धोने, सडक़ पर न थूकने और मास्क लगाने पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने भी कहा जा रहा है। दुकानों में अनावश्यक भीड़ न लगाने की समझाइश भी दी जा रही है। मास्क न पहनने वालों को मुफ्त में मास्क भी दिए जा रहे हैं। इसके बाद भी लापरवाही बरतने पर सख्ती बरतते हुए जुर्माना लगाया जा रहा है।
गुजरात, 11 जुलाई । गुजरात के सूरत में एक ज्वेलरी शॉप ने कोरोना वायरस महामारी के बीच हो रही शादी के लिए कुछ खास इंतजाम किया है। इस ज्वेलरी शॉप ने एक खास तरह का मास्क तैयार किया है जिसकी कीमत 1.5 लाख से 4 लाख तक की होगी।
यह मास्क कोई आम मास्क की तरह नहीं होगा बल्कि यह हीरों से जड़ा मास्क होगा। यह हीरे असली भी हो सकते हैं या आप अमेरिकन डॉयमंड भी लगवा सकता है। यह पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर करता है कि आपको किस तरह के हीरे अपने मास्क के ऊपर लगाने है।
खास बातचीत में ज्वेलरी शॉप के मालिक दीपक चोकसी ने कहा, हीरों से जड़ा मास्क का आइडिया मेरे दिमाग में तब आया जब एक ग्राहक मेरे दुकान पर आए और उनके घर में शादी थी। उन्होंने दुल्हा- दुल्हन के लिए अनोखे तरह की मास्क की मांग की। तब मुझे ख्याल आया कि क्यों न कोरोना वायरस लॉकडाउन के अंतर्गत शादी को यादगार बनाया जाए। और फिर हमने डिजाइनरों को स्पेशल तरह की मास्क बनाने का काम सौंपा।
जानकर हैरानी होगी मास्क बनने के बाद वह ग्राहक फिर हमारे दुकान पर आए और उन्होंने मास्क खरीदा। इसके बाद हमने और भी मास्क बनाए। दीपक चोकसी ने एएनआई को बताया कि अब वह दिन दूर नहीं जब इस तरह के मास्क की जरूरत लोगों को पड़ेगी। इन मास्क को बनाने के लिए सोने के साथ प्योर डायमंड और अमेरिकन डायमंड का इस्तेमाल किया गया है।
दीपक चोकसी ने बताया की मास्क से हीरे और सोने ग्राहकों की इच्छा के अनुसार निकाला जा सकता है और इसका उपयोग दूसरे ज्वेलरी को बनाने में भी किया जा सकता है। दुकान के एक ग्राहक देवांशी ने कहा, मैं ज्वेलरी खरीदने के लिए दुकान पर आई थी, क्योंकि परिवार में शादी है। फिर मैंने हीरा जड़ा मास्क देखा, फिर यह मास्क मुझे ज्वेलरी की तुलना में अधिक अच्छी लगी। इसलिए, मैंने इसे खरीदने का फैसला किया और सबसे खास बात यह है कि यह मेरे ड्रेस के मैचिंग के हिसाब से थी।
हाल ही में, पुणे के रहने वाले शंकर कुराडे नाम के एक व्यक्ति ने सोने का मास्क बनाकर पहने हुए थे। यह मास्क पूरे सोने का बना हुआ था और इसकी कीमत 2.89 लाख रूपये हैं। जब शंकर से इस मास्क को लेकर बात की गई तो उन्होंने कहा यह बेहद आरामदायक मास्क है। (एएनआई)
मुम्बई, 11 जुलाई । बॉलीवुड में जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेन्द्र कुमार ने कई सुपरहिट फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया लेकिन उन्हें अपने करियर के शुरुआती दौर में कड़ा संघर्ष करना पड़ा था।
20 जुलाई 1929 को पंजाब के सिलाकोट शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में राजेन्द्र कुमार अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। जब वह अपने सपनों को साकार करने के लिये मुम्बई पहुंचे थे तो उनके पास मात्र पचास रुपए थे, जो उन्होंने अपने पिता से मिली घड़ी बेचकर हासिल की थी। घड़ी बेचने से उन्हें 63 रुपए मिले थे जिसमें 13 रुपए से उन्होंने फ्रंटियर मेल का टिकट खरीदा। मुंबई पहुंचने पर गीतकार राजेन्द्र कृष्ण की मदद से राजेन्द्र कुमार को 150 रुपए मासिक वेतन पर वह निर्माता-निर्देशक एच. एस. रवैल के सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म, जोगन, में राजेन्द्र कुमार को काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनके साथ दिलीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभायी थी।
वर्ष 1950 से वर्ष 1957 तक राजेन्द्र कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। फिल्म जोगन के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने तूफान और दीया, आवाज और एक झलक जैसी कई फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुयी। वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फिल्म उन्हें बतौर पारश्रमिक 1000 रुपए महीना मिला। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर आधारित थी बावजूद इसके राजेन्द्र कुमार ने अपनी छोटी सी भूमिका के जरिये दर्शकों का मन मोह लिया। इसके बाद गूंज उठी शहनाई, कानून, ससुराल, घराना, आस का पंछी और दिल एक मंदिर जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिये राजेन्द्र कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुये ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।
वर्ष 1959 मे प्रदर्शित विजय भटृ की संगीतमय फिल्म गूंज उठी शहनाई बतौर अभिनेता राजेन्द्र कुमार के सिने करियर की पहली हिट साबित हुई। वहीं, वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म मेरे महबूब की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राजेन्द्र कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। राजेन्द्र कुमार कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बंधे। इसलिए, अपनी इन फिल्मों की कामयाबी के बाद भी उन्होंने वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म संगम में राजकपूर के सहनायक की भूमिका स्वीकार कर ली, जो उनके फिल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी। इसके बावजूद राजेन्द्र कुमार यहां भी दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।
वर्ष 1963 से 1966 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में राजेन्द्र कुमार की लगातार छह फिल्में हिट रहीं। मेरे महबूब, जिन्दगी, संगम, आई मिलन की बेला, आरजू और सूरज सभी फिल्मों ने सिनेमाघरों पर सिल्वर जुबली या गोल्डन जुबली मनायी। इन फिल्मों के बाद राजेन्द्र कुमार के करियर में ऐसा सुनहरा दौर भी आया, जब मुम्बई के सभी दस सिनेमाघरों में उनकी ही फिल्में लगी और सभी फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनायी। यह सिलसिला काफी लंबे समय तक चलता रहा। उनकी फिल्मों की कामयाबी को देखते हुए उनके प्रशंसकों ने उनका नाम ही, जुबली कुमार, रख दिया था।
राजेश खन्ना के आगमन के बाद परदे पर रोमांस का जादू जगाने वाले इस अभिनेता के प्रति दर्शकों का प्यार कम होने लगा। इसे देखते हुए राजेन्द्र कुमार ने कुछ समय के विश्राम के बाद 1978 में, साजन बिना सुहागन, फिल्म से चरित्र अभिनय की शुरुआत कर दी। राजेन्द्र कुमार के सिने करियर में उनकी जोड़ी सायरा बानो, साधना और वैजयंती माला के साथ काफी पसंद की गयी।
वर्ष 1981 में राजेन्द्र कुमार ने अपने पुत्र कुमार गौरव को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए लव स्टोरी का निर्माण और निर्देशन किया, जिसने बॉक्स आफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की। इसके बाद वह कुमार गौरव के करियर को आगे बढाने के लिए ‘नाम’ और ‘फूल’ जैसी फिल्मों का निर्माण किया लेकिन पहली फिल्म की सफलता का श्रेय संजय दत्त ले गए जबकि दूसरी फिल्म बुरी तरह पिट गई और इसके साथ ही कुमार गौरव के फिल्मी करियर पर भी विराम लग गया।
राजेन्द्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए 1969 में उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया। नब्बे के दशक में राजेन्द्र कुमार ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया। अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राजेन्द्र कुमार 12 जुलाई 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। राजेन्द्र कुमार ने अपने करियर में लगभग 85 फिल्मों में काम किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में तलाक, संतान, धूल का फूल, पतंग, धर्मपुत्र, घराना, हमराही, पालकी, साथी, गोरा और काला, अमन, गीत, गंवार, धरती, दो जासूस, साजन की सहेली, बिन फेरे हम तेरे शामिल हैं।(वार्ता)