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- बाबा मायाराम
आदिवासियों की जीवन शैली, उनकी परंपरागत खेती किसानी और जंगल का खानपान का अत्यधिक महत्व है। जंगलों का लगातार कटते जाने का सीधा असर लोगों की खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। आदिवासियों ने अब जंगल और खेती बचाने के लिए शुरूआत की है। यह सब न केवल भोजन की दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। समृद्ध और विविधतापूर्ण आदिवासी भोजन परंपरा बची रहे, पोषण संबंधी ज्ञान बचा रहे, परंपरागत चिकित्सा पद्धति बची रहे इन्हीं पहलुओं पर केंद्रित आलेख।
ओडिशा का छोटा कस्बा था-मुनिगुड़ा। स्कूली बच्चों की एक टोली की भीड़ जमा है। यहां एक खाद्य प्रदर्शनी लगी है। कोई बैल की आकृति का भूरा कांदा, गुलाबी और लाल बेर, गहनों की तरह चमकते मक्के के भुट्टे, काली और सुनहरी धान की बालियां,फल्लियां और छोटे दाने का सांवा, कुटकी और मोतियों की तरह की ज्वार।
इस खाद्य प्रदर्शनी में खेतों में होने वाली फसलें, जंगल से सीधे प्राप्त होने वाली गैर खेती सामग्री, फल, फूल, पत्तियां, मशरूम और कई तरह के कंद-मूल शामिल थे। यह एक माध्यम है जिससे नई पीढ़ी में यह परंपरागत ज्ञान हस्तांतरित होता है।
नियमगिरी की यह खूबसूरत पर्वत श्रृंखला बहुत मशहूर है। पिछले कुछ समय पहले खनन के खिलाफ इसी इलाके में आदिवासियों ने जोरदार लड़ाई लड़ी और जीती थी। उस समय यहां के आदिवासियों की काफी चर्चा हुई थी।
यहां का घना जंगल आदमी समेत कई जीव-जंतुओं को पालता पोसता है। ताजी हवा, कंद-मूल, फल, घनी छाया, ईंधन, चारा, और इमारती लकड़ी और जड़ी-बूटियों का खजाना है।
रायगड़ा जिले में लिविंग फार्म एक गैर सरकारी संस्था है जो बरसों से आदिवासियों के खाद्य और पोषण पर लम्बे समय से काम कर रही है। यह संस्था में हर छह माह में उनके भोजन की विविधता का आंकलन करती है।
लिविंग फार्म के विचित्र विश्वाल कहते हैं कि सरकारी योजनाएं बच्चों को पोषण सुरक्षा नहीं दे पाती हैं, वह पूरक हो सकती हैं। हमारे यहां कई प्रकार की दालें, मडिया, ज्वार, बाजरा, सांवा, फल, सब्जियां और मषरूम की कई प्रजातियां हैं। हमें इन्हें बचाना चाहिए।
विषमकटक के सहाड़ा गांव का कृष्णा कहता है कि जंगल हमारा माई-बाप है। वह हमें जीवन देता है। उससे हमारे पर्व-परभणी जुड़े हुए हैं। धरती माता को हम पूजते हैं। कंद, मूल, फल, मशरूम, बांस करील और कई प्रकार की हरी भाजी हमें जंगल से मिलती है।
आदिवासियों की जीवनशैली अमौद्रिक (कैशलेस) होती है। वे प्रकृति के ज्यादा करीब है। प्रकृति से उनका रिष्ता मां-बेटे का है। वे प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जितनी उन्हें जरूरत है। वे पेड़ पहाड़ को देवता के समान मानते हैं। उनकी जिंदगी प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। ये फलदार पेड़ व कंद-मूल उनके भूख के साथी हैं।
लिविंग फार्म के एक अध्ययन के अनुसार भूख के दिनों में आदिवासियों के लिए यह भोजन महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्हें 121 प्रकार की चीजें जंगल से मिलती हैं, जिनमें कंद-मूल, मशरूम, हरी भाजियां, फल, फूल और शहद आदि शामिल हैं। इनमें से कुछ खाद्य सामग्री साल भर मिलती है और कुछ मौसमी होती है।
लिविंग फार्म के संस्थापक देवजीत सारंगी बताते हैं कि हम परंपरागत खानपान को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां 60 प्रकार के फल (आम, कटहल, तेंदू, जंगली काजू, खजूर, जामुन), 40 प्रकार की सब्जियां (जावा, चकुंदा, जाहनी, कनकड़ा, सुनसुनिया की हरी भाजी), 10 प्रकार के तेल बीज, 30 प्रकार के जंगली मशरूम और 20 प्रकार की मछलियां मिलती हैं। कई तरह के मशरूम मिलते हैं। पीता, काठा. भारा, गनी, केतान, कंभा, मीठा, मुंडी, पलेरिका, फाला, पिटाला, रानी, सेमली. साठ, सेदुल आदि कांदा (कंद) मिलते हैं।
यह भोजन पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इससे भूख और कुपोषण की समस्या दूर होती है। खासतौस से जब लोगों के पास रोजगार नहीं होता। हाथ में पैसा नहीं होता। खाद्य पदार्थों तक उनकी पहुंच नहीं होती। यह प्रकृति प्रदत्त भोजन सबको मुफ्त में और सहज ही उपलब्ध हो जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस इलाके में कृत्रिम वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आदि कहता है कि मुझे किसी के सामने हाथ न पसारना पड़े, यह मेरे मां-बाप सिखा गए हैं। इसलिए मैंने 70 प्रकार की फसलें अपने खेत में लगाई हैं। मेरी 10 महीने की जरूरतें खेत से पूरी हो जाती हैं, दो माह का गुजारा जंगल से हो जाता है। यानी एक कटोरा खेत से, एक कटोरा जंगल से हमारा काम चल जाता है। सुबह हमारी भोजन की थाली खेत से आती है, शाम को जंगल से आती है।
लेकिन यहां आदिवासियों ने जंगल और खेती बचाने के लिए एक अनौपचारिक शुरूआत कर दी है। सुखोमती षिकोका कहती हैं कि हमने इस साल मुनिगुड़ा विकासखंड के 35 गांवों में जंगल बचाने और उसे फिर से जिंदा करने का काम किया है। इसमें विषमकटक और मुनिगुड़ा विकासखंड के कई गांवों के लोग जुड़ रहे हैं।
लिविंग फार्म संस्था के कार्यकर्ता प्रदीप पात्रा कहते हैं कि जंगल कम होने का सीधा असर लोगों की खाद्य सुरक्षा पर पड़ता है। इसका प्रत्यक्ष असर फल, फूल और पत्तों के अभाव में रूप में दिखाई देता है।
अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु बदलाव से फसलों पर और मवेशियों के लिए चारे-पानी के अभाव के रूप में दिखाई देता है। पर्यावरणीय असर दिखाई देते हैं। मिट्टी का कटाव होता है। खाद्य संप्रभुता तभी हो सकती है जब लोगों का अपने भोजन पर नियंत्रण हो।
आदिवासियों की भोजन सुरक्षा में जंगल और खेत-खलिहान से प्राप्त खाद्य पदार्थों को ही गैर खेती भोजन कहा जा सकता है। इनमें भी कई तरह के पौष्टिक तत्व हैं। यह सब न केवल भोजन की दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के खानपान के बारे में स्कूली पाठ्यक्रम में भी जगह होनी चाहिए। यह मांग उठाई जा रही है।
समृद्ध और विविधतापूर्ण आदिवासी भोजन परंपरा बची रहे, पोषण संबंधी ज्ञान बचा रहे, परंपरागत चिकित्सा पद्धति बची रहे। पर्यावरण और जैव विविधता का संरक्षण हो, यह आज की जरूरत है। इस दृष्टि से जंगल, आदिवासियों की जीवन शैली, उनकी परंपरागत खेती किसानी और जंगल का खानपान बहुत महत्व है। (sapress)
दूसरी रिपोर्ट भी निगेटिव आने के बाद निश्चित होगा कि वह पूरी तरह कोरोनामुक्त
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। मैसूर से लाये गये रेप के जिस आरोपी की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिली थी आज शाम बिलासपुर सिम्स लैब में की गई जांच के बाद उसकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई है। रिपोर्ट पॉजिटिव मिलने के कारण सिविल लाइन थाने को सील कर दिया गया था और केन्द्रीय जेल में भी हडक़म्प मचा हुआ था।
सिविल लाइन थाने के प्रभारी ने सुरेन्द्र स्वर्णकार बताया कि भाभा रिसर्च सेंटर में अपने आपको साइंटिस्ट बताने वाले मूल रूप से कोरबा के निवासी एक 28 वर्षीय युवक को सिविल लाइन पुलिस पकडऩे के लिये एक जुलाई को मैसूर कर्नाटक गई थी। उसके खिलाफ बिलासपुर की एक युवती ने शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया था।
कोरोना संक्रमण से बचने के लिये आम तौर पर पुलिस दूसरे राज्यों में किसी आरोपी को पकडऩे के लिये इस समय कम जा रही है। पर इस मामले में बताया जाता है कि आरोपी द्वारा युवती के साथ फोन ब्लैकमेलिंग की जा रही थी और तस्वीरें वायरल करने की धमकी दी जा रही थी। इसके चलते उसे गिरफ्तार करके लाना जरूरी हो गया था। सिविल लाइन पुलिस के मुताबिक आरोपी को मैसूर में गिरफ्तार करने के बाद थर्मल स्क्रीनिंग कराई गई और उसके कोविड टेस्ट के लिये सैम्पल दिया गया था। थर्मल स्क्रीनिंग में कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं मिलने के कारण पुलिस उसके कोरोना संक्रमित नहीं होने को लेकर निश्चिन्त थी। यहां पहुंचने के बाद जब सिविल लाइन थाने में एक रात रख लिया गया और उसके अगले दिन कोर्ट ले जाकर जेल भेज दिया गया तब मैसूर के लैब से उसके पॉजिटिव होने की रिपोर्ट प्राप्त हुई। इसके बाद पुलिस व जिला प्रशासन में हडक़म्प मच गया। पुलिस अधीक्षक ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सिविल लाइन थाने को सील कराया और सभी अधिकारियों तथा जवानों को क्वारांटीन पर भेज दिया गया। सेंट्रल जेल से आज सुबह दो कोरोना सैम्पल सिम्स स्थित लैब में लाये गये। इनमें एक रायगढ़ के हत्या का आरोपी तथा दूसरा मैसूर से लाये गये इसी रेप के आरोपी का था। शाम तक इसकी रिपोर्ट आ गई। सिम्स की पीआरओ डॉ. आरती पांडेय ने आज शाम बताया कि दोनों केन्द्रीय जेल से दोनों रिपोर्ट निगेटिव आई है।
जब उनसे यह पूछा गया कि यह कैसे सम्भव है कि मैसूर से जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव बताई जा रही है उसकी यहां पर निगेटिव रिपोर्ट सिर्फ दो दिन बाद आये। उन्होंने कहा कि पहले कहां टेस्ट हुआ यह उन्हें मालूम नहीं पर यह संभव है। कई मरीजों में मामूली लक्षण होते हैं और वे दो तीन में ठीक भी हो जाते हैं।
दो बार टेस्ट रिपोर्ट लगातार निगेटिव होने के बाद ही स्वास्थ्य विभाग इस बात से संतुष्ट होता है कि किसी व्यक्ति में कोरोना के लक्षण नहीं है। इस आधार पर रेप के उक्त आरोपी का एक बार और सैम्पल लेकर टेस्ट लिया जायेगा।
एहतियान मैसूर लेने गई पुलिस टीम का सैम्पल लिया गया है, जिनकी रिपोर्ट कल तक आने की संभावना है। केन्द्रीय जेल में भी बाहर आने वाले प्रत्येक नये कैदी के लिये अलग कोरोना मापदंडों का पालन करने के साथ स्टाफ व बैरक की व्यवस्था की गई है। हालांकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रमोद महाजन ने बताया है कि करीब 20 स्टाफ का जेल में ऐहतियान सैम्पल लिया गया है। इनकी रिपोर्ट भी कल तक मिलने की संभावना है।
सिविल लाइन थाने को सील करने के बाद यहां के थाना प्रभारी सहित 65 स्टाफ को क्वारांटीन पर भी भेजा गया है।
पुलिस ने रेप पीडि़त की रिपोर्ट निगेटिव आने पर राहत की सांस ली है हालांकि उसके दूसरी रिपोर्ट के निगेटिव आने के बाद ही यह निश्चित हो पायेगा कि वह पूरी तरह कोरोना मुक्त है। फिलहाल उसे कोविड-19 अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर 6 जुलाई । जिले में आज रात तीन कोरोना संक्रमित मरीजों की पुष्टि की गई है। जिसमें एक पॉजिटिव युवक अपने चाचा के संपर्क में आने के कारण संक्रमित हुआ है। इसके पूर्व युवक के दादा भी संक्रमित हो चुके हैं।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि आज जिले में तीन कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं। जिनमें से एक युवक इस्पात नगर रिसाली का रहने वाला है। वह अपने चाचा डॉक्टर के संपर्क में आया था। इसके पूर्व भी डॉक्टर अपने पिता को भी कोरोना संक्रमित कर चुका है। दो अन्य मरीज में एक मरीज लोटस आर्केड परसदा कुम्हारी से है। जबकि तीसरा मरीज सेक्टर 6 सडक़ 35 का रहने वाला है तीनों ही मरीजों को ट्रेस करके अस्पताल में दाखिल करने की तैयारी स्वास्थ्य विभाग के द्वारा की जा रही है।
डॉ. ठाकुर ने बताया कि आज जिले के 300 लोगों की रिपोर्ट आई है। इन 300 लोगों की प्राप्त रिपोर्ट में केवल 3 मरीज ही पॉजिटिव मिले हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 6 जुलाई। गोमर्डा अभ्यारण्य में एक सांभर व एक नीलगाय का शिकार हुआ है। पिछले करीब चार से पांच दिन पूर्व अभ्यारण्य में करंट से इनका शिकार किया गया था और आधा अवशेष वहीं पड़ा रहने से उनके सड़ांध के कारण विभाग को इसका पता चल सका। जहां उसके बाद मामले में जांच शुरू की गई और एक शिकारी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया है। फिलहाल मामले में आगे की कार्रवाई जारी है।
इस संबंध में मिली जानकारी के मुताबिक गोमर्डा अभ्यारण्य के सारंगढ़ सर्किल के बटाउपाली बीट के कक्ष क्रमांक 932 पीएफ में किसी वन्यप्राणियों के सड़ांध की बू दूर तक जा रही थी। जब इसकी जानकारी वन अमला को लगी, तो उसकी जांच की गई, तब पता चला कि एक सांभर व एक नीलगाय का आधा अवशेष पड़ा हुआ है और प्रारंभिक जांच में यह बात स्पष्ट हुआ कि करंट से नीलगाय व साम्हर का शिकार किया गया है। इसके बाद मामले की जानकारी
उच्चाधिकारियों को दी गई। जहां विभाग के द्वारा मामले में जांच शुरू करने निर्देशित किया गया और बिलासपुर से डॉग स्क्वायड को बुलाया गया। इसके बाद घटना स्थल से जांच शुरू की गई, तो डॉग सूंघते हुए कांदुरपाली में रहने वाला त्रिलोचन उर्फ पप्पू के घर घुस गया। इसके बाद यहां जांच करने पर करंट के लिए बिछाए गए तार जब्त करते हुए उसे हिरासत में लिया गया।
बताया जा रहा है कि एक साथ दो वन्यप्राणियों का शिकार किया गया और उनका आधा अवशेष वहां नहीं था, तो इससे आशंका जताई जा रही है कि उसे शिकारियों के द्वारा अपने साथ बिक्री या खाने के लिए ले जाया गया हो। बताया जा रहा है कि वन्यप्राणियों के शव लगभग चार से पांच दिन पुराने थे और आधा ही अवशेष वहां पड़ा था, जो सड़ गया था और उसके सड़ांध के कारण ही घटना की जानकारी हो सकी। फिलहाल मामले में आरोपी के खिलाफ अपराध कायम कर न्यायालय में पेश किया गया है और मामले को विवेचना में लिया गया है।
लाश सड़ते रही और वनकर्मियों को पता ही नहीं चला
वहीं जानकारों का कहना है कि हर बीट में एक परिसर रक्षक पदस्थ है और उनकी मानिटारिंग के लिए डिप्टी रेंजर व रेंजर होते हैं, पर गोमर्डा अभ्यारण्य में एक साथ दो वन्यप्राणियों का शिकार हो जाता है और उनके शव लगभग चार से पांच दिनों तक जंगल में ही पड़ा रहता है, पर संबंधित बीटगार्ड से लेकर डिप्टी रेंजर तक को पता नहीं चल पाता है। इससे यह माना जा रहा है कि गोमर्डा अभ्यारण्य में जंगल भ्रमण के नाम पर विभागीय कर्मचारी पर खानापूर्ति कर रहे हैं।
स्थानीय कर्मचारियों को नहीं हटा रहे
विभागीय सूत्रों ने बताया कि गोमर्डा अभ्यारण्य में स्थानीय कर्मचारी लंबे समय से पदस्थ हैं। ऐसे में वे जंगल भ्रमण के बजाए घरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। पूर्व में भी गोमर्डा अभ्यारण्य में स्थानीय कर्मचारियों की पदस्थपना अखबारों की सुर्खियां बन चुकी है, पर इसके बाद भी विभाग के बड़े अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में अभ्यारण्य में अवैध शिकार व वन अपराध पर यहां कोई लगाम नहीं देखी जा रही है।
बटाउपाली बीट में एक नीलगाय व साम्हर का शिकार करने की सूचना मिलने के बाद मामले में जांच शुरू की गई। जहां एक शिकारी त्रिलोचन उर्फ पप्पू को पकड़ा गया है। मामले में अपराध कायम कर उसे न्यायालय में पेश किया गया है और मामले में जांच जारी है।
आर के सिसोदिया
अधीक्षक, गोमर्डा अभ्यारण्य
रास्ते में पुलिस ने रोका, आश्वासन के बाद भी नहीं हटीं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदा, 6 जुलाई। दो माह से शराब दुकान बंद कराने की मांग कर रही महिलाओं ने आज एनएच-49 पर चक्काजाम करने की कोशिश की, रास्ते में पुलिस बल ने रोका। प्रशासनिक अफसरों ने मौके पर पहुंचकर आश्वासन दिया। वहीं महिलाओं का कहना है कि जब तक शराब दुकान को बंद नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा ब्लॉक के कापन गांव में शराब दुकान का 2 महीने से विरोध कर रही महिलाओं ने आज चक्काजाम कर दिया, जिससे लगभग दो घंटे जांजगीर-कापन मार्ग बाधित रहा। महिलाएं नेशनल हाईवे-49 को बाधित करने गांव से निकली थीं, जिन्हें पुलिस और प्रशासनिक टीम ने बीच रास्ते में रोक लिया, जिसके बाद महिलाएं मौके पर ही अड़ गईं। इस बीच समझाईश के लिए जांजगीर एसडीएम मेनका प्रधान मौके पर पहुंची और कलेक्टर यशवंत कुमार से चर्चा कर महिलाओं को शीघ्र ही दुकान के स्थान परिवर्तन का आश्वासन दिया, वहीं आबकारी विभाग की टीम भी मौके पर पहुंची थी, पर उनके द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
दरअसल, शासन की गाईड लाईन के तहत 4 मई से प्रदेश भर में शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कापन गांव की महिलाओं ने गांव का माहौल खराब होने का हवाला देते हुए अब तक शराब दुकान खुलने नहीं दिया है और 2 माह से शराब दुकान बंद है।
महिलाओं द्वारा शराब दुकान के सामने टेंट लगाकर आंदोलन किया गया। यहां तक कुछ त्योहार में भी महिलाओं ने उसी जगह एकत्रित होकर पूजा करते हुए आंदोलन किया, फिर भी अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली तो महिलाओं ने एनएच-49 पर चक्काजाम करने का अल्टीमेटम दे दिया, इसके बाद प्रशासन हरकत में आया।
गौरतलब है कि कापन गांव की महिलाओं ने इस वित्तीय वर्ष में एक भी दिन गांव में शराब दुकान को खुलने नहीं दिया है, जिससे प्रतिदिन राजस्व का नुकासान शासन को हो रहा है। पिछले 2 माह से इन महिलाओं का आंदोलन अनवरत जारी है। महिलाओं का साफ कहना है कि जब तक शराब दुकान को बंद नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्र के लिए मनरेगा योजना कितना कारगर साबित हो रही है, डाउन टू अर्थ की खास रिपोर्ट-
-सचिन कुमार जैन
2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग ।
मनरेगा कभी भी ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने के करीब नहीं पहुंच पाया। वर्ष 2016-17 से वर्ष 2019-20 के केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के अध्ययन से पता चला कि इस अवधि में औसतन 7.81 करोड़ सक्रिय जाब कार्डधारी परिवारों में से केवल 40.7 लाख (5.2 प्रतिशत) को ही 100 दिन का रोजगार मिला।
बिहार में 54.12 लाख सक्रिय जॉबकार्ड में से केवल 20 हज़ार (0.3 प्रतिशत) परिवारों ने, उत्तरप्रदेश में 85.72 लाख सक्रिय जॉबकार्ड्स में से औसतन 70 हजार (0.8 प्रतिशत) परिवारों ने, मध्यप्रदेश में 52.58 लाख सक्रिय जॉबकार्ड धारियों में से केवल 1.1 लाख (2.1 प्रतिशत) परिवारों ने, छत्तीसगढ़ में 33.41 लाख जॉबकार्ड धारी परिवारों में से 2.9 लाख (8.8 प्रतिशत), कर्नाटक में 33.39 लाख सक्रिय जॉबकार्ड धारियों में से 1.6 लाख (4.7 प्रतिशत) पश्चिम बंगाल में 83.48 लाख कार्ड धारियों में से 6.1 लाख (7.4 प्रतिशत) और राजस्थान में 69.88 लाख जॉबकार्ड धारियों में से 5.2 लाख (7.5 प्रतिशत) परिवारों ने ही यह लक्ष्य हासिल किया।
मनरेगा में हर पंचायत की वार्षिक और पंचवर्षीय कार्ययोजना बनाने का प्रावधान है, लेकिन क्रियान्वयन में सही ढंग से नियोजन न होना, एक बड़ी चुनौती रही है। चार साल की रिपोर्ट्स बताती हैं कि मनरेगा में हर साल औसतन 184.1 लाख काम या तो नए शुरू होते हैं या फिर पहले से चले आ रहे होते हैं। हर साल औसतन 39.4 प्रतिशत काम ही पूरे हो रहे हैं, बाकी अगले साल की कार्ययोजना में जुड़ जाते हैं। सबसे खराब स्थिति बिहार की है। वहां औसतन 12.4 लाख काम खोले गए, जिनमें से औसतन 2.1 लाख (16.1 प्रतिशत) ही पूरे किये गए। छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में 40 प्रतिशत से ज्यादा काम पूरे हुए।
सब्सिडी नहीं, श्रम का पारिश्रमिक
वर्ष 2019-20 के बजट पर चर्चा करते हुए भारत के ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा था कि हमारी सरकार मनरेगा को हमेशा नहीं चलाये रखना चाहती है। यह योजना गरीबों की मदद के लिए है और हम गरीबी मिटा देंगे ताकि यह योजना बंद की जा सके। इस वक्तव्य से यह स्पष्ट दिखता है कि भारत सरकार यह जानती ही नहीं है कि इस योजना से केवल मजदूरों को काम नहीं मिलता है, इससे ऐसी परिसंपत्तियों का निर्माण भी होता है, जिनसे गांवों की बदहाली पर रोक लग रही है। इनसे पानी-पेड़ों-खेतों-पशुपालन-आवागमन का ढांचा भी तैयार हुआ है।
आलोचना के बावजूद उसी साल ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 60 हजार करोड़ रुपये का आवंटन भी किया। कहा था कि इस राशि से 1.52 लाख सूक्ष्म सिंचाई इकाइयां बनाई जाएंगी। वनीकरण के 32 हजार काम किये जाएंगे। इस राशि से कुल मिलाकर 58.21 लाख परिसंपत्तियां बनाने या उनकी मरम्मत का काम किया जाएगा। कभी सोचियेगा कि मनरेगा का भारत को बदहाली से बचाने में क्या योगदान है? इसी कार्यक्रम ने शहरी भारत और ग्रामीण भारत के बीच असमानता की खाई को असीमित होने से और गांवों को फिर से जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह बहुत ही सामान्य सा विषय रहा है कि छोटे किसानों और गांवों को आर्थिक विकास का लाभ दिलाने के लिए उनके संसाधनों को ज्यादा उत्पादक बनाना होगा। यही कारण है कि मनरेगा में खेत तालाब, मेढ़ बंधान, निजी प्रांगण या जमीन पर कुएं खोदना और अब पोषण वाटिका लगाने जैसे काम भी इसमें शामिल हैं। वर्ष 2020-21 के शुरूआती 2 महीनों में ही इस तरह के 1.37 करोड़ व्यक्तिगत कामों को मनरेगा में शामिल करके, उन पर काम चालू किया गया।
भारत के सुरक्षित और संपन्न तबकों को इतना तो अहसास होना ही चाहिए कि जिस देश को वे इतना प्रेम करते हैं, वहां गांव और गांव के मजदूरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आए। जो लोग यह मानते हैं कि मनरेगा के लिए किया जाने वाला खर्च मध्यमवर्गीय परिवारों पर बोझ बनता है, तो उन्हें केवल एक जानकारी ग्रहण कर लेना चाहिए। जब वर्ष 2020-21 के लिए भारत सरकार ने मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया, तो वह किसी दान या मुफ्त वितरण के लिए आवंटन नहीं था। इस राशि से 5.5 करोड़ परिवार (और 7.8 करोड़ मजदूर) मेहनत करके भारत को ठोस विकास अवस्था में ले जाते हैं। इससे उत्पादन बढ़ता और भारत की खाद्य असुरक्षा और गरीबी में कमी आती और महंगाई दर नियंत्रण में रहती। (downtoearth)
कोयला उत्खनन से उस क्षेत्र का क्या हाल होता है? कोरबा के उदाहरण से समझिए, जहां वर्ष 1951 में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ
-रमेश शर्मा
कोयला उत्खनन के स्थापित तर्क - विकास, रोजग़ार, बिजली उत्पादन और राजस्व के अवसरों से जुड़े हुये हैं। इन तर्कों के अपने सत्य, असत्य और अर्धसत्य हैं। भारत सरकार (2018) के अनुसार शत-प्रतिशत गांवों में बिजली की आपूर्ति पूरी कर दी गयी है। वैसे तो सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों में यह लक्ष्य पहले ही पूरा किया जा चुका है, लेकिन विश्व बैंक (2018) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 2 करोड़ लोगों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंच पायी है। अर्थात कोयले के उत्खनन, बिजली के उत्पादन और आपूर्ति के बीच का फासला न केवल वाद-विवाद का विषय है, बल्कि शोध का विषय यह भी है कि कोयले के उत्खनन से बिजली के उत्पादन, वितरण और फिर मुनाफे के मध्य लाभार्थी कौन है और वंचित कौन?
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले को एक महत्वपूर्ण बिजली उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों को बिजली आपूर्ति करने वाले कोरबा जिले के बहुसंख्यक आदिवासी समाज नें इसकी क्या क़ीमत चुकाई है, बेहतर होगा वहां के जमीनी हकीकत से इसे समझा जाए।
भूवैज्ञानिक मानते हैं कि गोंडवाना सीरीज के चट्टान, बेहतरीन कोयले के प्रमुख स्रोत हैं। संयोगवश, कोरबा जिले का लगभग 30 फीसदी भौगौलिक क्षेत्र इसी गोंडवाना सीरीज के चट्टानों से बना है। यह क्षेत्र करतला के उत्तर, कोरबा के पूर्व और कठघोरा के उत्तर में विस्तारित है। आज कोरबा, छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
वर्ष 1951 में कोरबा मे कोयले का उत्खनन शुरू हुआ। वर्ष 1958-59 में भिलाई इस्पात संयंत्र में आपूर्ति के लिये कोरबा के कोयला खदान क्षेत्रों के विस्तार में जिन गावों का विस्थापन हुआ उन्हें बताया गया कि देश के विकास के लिये उनका यह छोटा सा त्याग हमेशा याद रखा जाएगा। आदिवासी समाज ने भोलेपन से इस बात को स्वीकार कर लिया और देशहित में अपने जंगल और जमीनों से जुदा हो गये।
फिऱ एक-एक कर खदान खुलते गये - मौजूदा खदानों का विस्तार हुआ और हर बार उजाडऩे से पूर्व ग्रामवासियों को यही बताया गया कि देशहित में उनका यह योगदान हमेशा याद रखा जायेगा। आदिवासी समाज ने, न सिर्फ अपनी संस्कृति गवां दी बल्कि उनके अपने जल जंगल और ज़मीन के स्वामित्व के सवाल भी संविधान और विधानों के संहिताओं के बावज़ूद देशहित में पूरी तरह खारिज़ कर दिये गये।
कोरबा जिले का बड़ा भूभाग, संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत है - जहाँ पंचायत (विस्तार उपबंध) अधिनियम 1996 के अनुसार आदिवासी ग्रामसभाओं को विशेषाधिकार दिये गये हैं। छत्तीसगढ़ उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जहाँ इस क़ानून के लागू होने के लगभग 24 बरस बाद भी इसकी पूरी नियमावली नहीं बन पायी है। देशहित में अपना जल जंगल और जमीन दांव पर लगाने वाले बहुसंख्यक आदिवासी समाज के हिस्से आज केवल और केवल विपन्नता, उपेक्षा और ऐतिहासिक अन्याय है।
खदानों को संपन्नता और रोजग़ार से जोडऩे के राजनैतिक तर्क और उसकी सामाजिक-आर्थिक विफ़लताओं का एक केंद्रबिंदु है- कोरबा जिला। कोरबा जिला सांख्यिकी विभाग (2018) के अनुसार लकड़ी के उत्पाद, सूती तथा रेशमी वस्त्र उद्यम, चमड़े के सामान आदि बनाने वाली इकाईयां समाप्त हो चुकी हैं। अर्थात स्थानीय स्तर पर वैकल्पिक रोजग़ार के अवसर बरसों पहले समाप्त घोषित हो चुके हैं।
कोरबा के जिला रोजगार कार्यालय के अनुसार वर्ष 2017 में कोयला खदानों मे कार्यरत श्रमिकों की संख्या लगभग 14 हजार थी, जबकि इसी दौरान पंजीकृत बेरोजग़ारों की संख्या इससे कई गुनी अधिक थी। यह आंकड़े बताते हैं कि खदानों के खुलने का अर्थ, स्थानीय लोगों के लिए न तो बढ़े हुये रोजगार के अवसर हैं और न ही यह गऱीबी से मुक्ति का मार्ग है। आज कोरबा जिले के लगभग 40 फ़ीसदी लोग गऱीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं जिनमें से बहुसंख्यक आदिवासी ही हैं - आखिर उनकी इस गऱीबी के जवाबदेह कौन है?
यह महज़ संयोग नहीं कि देशहित में उनके योगदान को देखते हुये ही भारत के पूर्व प्रगतिशील प्रधानमंत्री नें आदिवासी समाज को राष्ट्रीय मानव तक कहा था। कहना मुश्किल है कि ऐसा उनके योगदान के लिये कहा गया अथवा आदिवासी समाज के मिटते हुये अस्तित्व को संरक्षित रखने के लिये चिंता व्यक्त की गयी। बहरहाल, संविधान के वायदे और कायदे, बहुसंख्यक आदिवासी समाज के लिये अर्थहीन ही साबित हुये हैं।
केंदई गांव की रुक्मिणी बाई कहतीं है कि बहुत हो चुका - एक बार तो सरकार और समाज साफ़ साफ़ कह ही दे कि मु_ी भर मुआवज़े के एवज में और क्या क्या हमसे लेना चाहते हैं। क्यों नहीं सरकार हमें मु_ी भर ही सही, अब तो ऐसी जमीन और जंगल का अधिकार दे जिसे फिर कोई छीन न पाये। हम अपनी संस्कृति और स्वाभिमान दोनों गवां चुके।
अगली पीढ़ी को देने के लिये आज इन निहत्थे हाथों में कुछ भी नहीं सिवाय उम्मीदों के जिसे अधिग्रहण का एक सरकारी फरमान खारिज कर सकता है। रुक्मिणी बाई मानती हैं कि ये नीलामी, धरती के नीचे दबे कोयले की नहीं बल्कि उस धरती के ऊपर सदियों से रह रहे निर्दोष आदिवासी समाज की है - जो विकास की बोलियों में दांव पर लगा है।
जिस विकास और रोजग़ार के चकाचौंध वायदों के साथ वर्ष 1981 में गेवरा की कोयला खदान खोदी गयीं - वो सब कोयले के गुबार में धुंधले हो गये। गेवरा के खदान में गेट नंबर -1 पर खड़ा मंगतू राम कहता है कि जब तहसीलदार नें हमारी धनहा जमीन के बदले 3 लाख के मुआवज़े की पेशकश की तब ऐसा लगता था कि विकास और संपन्नता स्वयं चलकर हमारे दरवाज़े पर आयी है। लेकिन ज़मीन हमेशा के लिये खो देने का गहरा भय भी था। फिर एक दिन बिना कहे-सुने हमारे ज़मीन की घेराबंदी शुरू हो गयी।
फऱमान आया कि 1 लाख रूपए के मुआवज़े के कागजातों पर दस्तखत करने कोरबा जाना पड़ेगा। हमें मालूम हुआ कि हम सब पराजित घोषित कर दिये गये हैं। मंगतू राम कहते हैं कि चौकीदार का यह ओहदा, मुझ जैसे बेरोजग़ारों को शर्मसार करने के लिये काफ़ी है। मालूम नहीं मैं किस जमीन की और क्यों चौकीदारी कर रहा हूँ।
छत्तीसगढ़ के हरेक 12 कोयला खदानों में रुक्मिणी बाई और मंगतूराम आपको मिल ही जायेंगे। उनके नाम कुछ भी हो सकते हैं - उससे क्या फर्क पड़ता है। फर्क़ तो इस बात से भी नहीं पड़ता कि देशहित के नाम, उनके जंगल - ज़मीन की नीलामी किसने कर दी। फर्क पडऩा चाहिये था उस पूरी व्यवस्था को जिसने संविधान के वैधानिक वायदों और क़ायदों के खि़लाफ़ उस पूरे आदिवासी समाज को विकास के चक्रव्यूह में निहत्थे खड़ा कर दिया -जहां देशहित के अर्थ कुछ भी हो सकते हैं। अंतत: फर्क पड़ा तो केवल उस आदिवासी समाज को जिसके पास देशप्रेमी साबित होने के अलावा आज शायद और कोई दूसरा विकल्प है ही/भी नहीं। (downtoearth)
(लेखक रमेश शर्मा-एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक हैं)
नांदगांव से 18, जगदलपुर से 17, रायपुर से 14
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में आज शाम करीब साढ़े 5 बजे 64 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें नांदगांव से 18, जगदलपुर से 17, रायपुर से 14, बलौदाबाजार से 9, बेमेतरा से 2 व दंतेवाड़ा, नारायणपुर, महासमुंद व कोरबा से 1-1 मरीज शामिल हैं। इसके पहले बीती देर रात 5 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें कोरबा से 3 एवं रायपुर-बिलासपुर से 1-1 मरीज शामिल हैं। इन सभी मरीजों को भर्ती कराने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ आसपास के लोगों की जांच की जा रही है। हेल्थ विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में आज शाम करीब 5 बजे 26 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें अकेले जगदलपुर से 17 मरीज पाए गए हैं। नांदगांव से 2 एवं नारायणपुर-दंतेवाड़ा से 1-1 मरीज सामने आए हैं। इन मरीजों के अलावा बीती देर रात 5 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें कोरबा से 3 एवं रायपुर-बिलासपुर से 1-1 मरीज शामिल हैं। इन सभी मरीजों को भर्ती कराने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ आसपास के लोगों की जांच की जा रही है। हेल्थ विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अफसर दिलीप वासनिकर को विभागीय जांच आयुक्त बनाया गया है। सचिव स्तर के अफसर श्री वासनिकर बस्तर और दुर्ग संभाग के कमिश्नर रहे हैं।
श्री वासनिकर से पहले आरपी जैन विभागीय जांच आयुक्त के पद पर रहे। श्री जैन पांच साल तक विभागीय जांच आयुक्त रहे। सरकार ने उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया था। इसके बाद नई नियुक्ति की संभावना जताई जा रही थी। सरकार ने श्री वासनिकर की नियुक्ति के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। उनकी छवि एक साफ-सुथरे अफसर की है। विधिवत आदेश जारी कर दिए गए हैं। उन्होंने सोमवार को विधिवत कार्यभार संभाल भी लिया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। पेट्रोल-डीजल के दाम में वृद्धि के खिलाफ पिछले कई दिनों से किये जा रहे आंदोलन के क्रम में आज कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गांधी चौक से साइकिल व बैलगाड़ी रैली निकाली।
विधायक शैलेष पांडेय, जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी सहित अनेक पार्टी पदाधिकारी, पार्षद आदि शामिल हुए। उन्होंने नारे लगाते हुए केन्द्र सरकार के फैसले का विरोध जताते हुए पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की मांग की।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। राज्यसभा सदस्य व कांग्रेस विधि प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विवेक के तन्खा ने छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की बोर्ड परीक्षाओं में प्रथम 10 की सूची में शामिल सभी बच्चों को लैपटॉप व टेबलेट देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री को लिखे गये पत्र में उन्हें इसकी जानकारी देते हुए प्रदेश में टेलेन्ट हन्ट के लिये विशेष अभियान चलाने का अनुरोध भी किया है।
विधि कांग्रेस प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष संदीप दुबे ने बताया कि इससे पहले तन्खा ने मध्यप्रदेश के प्रावीण्य सूची के बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिये यह घोषणा की थी। हमारे अनुरोध पर उन्होंने छत्तीसगढ़ के लिये भी यह घोषणा की है। 10वीं बोर्ड की परीक्षा में प्रथम 10 स्थान पर आये सभी बच्चों को टेबलेट और 12वीं बोर्ड परीक्षा के टॉप टेन में शामिल सभी बच्चों को लैपटॉप प्रदान किया जायेगा।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में तन्खा ने कहा कि छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि रही है। उन्हें प्रसन्नता है कि राज्य के बच्चे व युवा अपनी प्रतिभा व लगन से राज्य को एक नई दिशा देने के लिये प्रयास कर रहे हैं। इस वर्ष का माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक परीक्षा परिणाम खुश कर देने वाला है। कोविड-19 जैसी भयंकर महामारी का सामना करते हुए बच्चों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि हाल ही में मैंने मध्यप्रदेश सरकार से भी अनुरोध किया और आपसे भी करता हूं कि राज्य में विशेष अभियान चलाकर टैलेंट हंट किया जाये, जिससे प्रदेश के होनहारों को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा सके। अमेरिका जैसे कई देशों ने इस आवश्यकता को पहचाना है और इसे जिम्मेदारी से लागू किया है। ऐसा अभियान राज्य की छुपी प्रतिभाओं को सामने लाने में मददगार साबित होगा।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 6 जुलाई। राजनांदगांव जिले में सोमवार दोपहर को डेढ़ दर्जन कोरोना के नए मरीज मिले है। जिसमें सर्वाधिक 13 मरीज लखोली बस्ती व आसपास के सटे मुहल्ले के हैं।
मिली जानकारी के अनुसार आज दोपहर को जारी मेडिकल रिपोर्ट में राजनांदगांव जिले में 18 नए कोरोनाग्रस्त मरीज सामने आए हैं। लखोली बस्ती, संजय नगर, राजीव नगर में 13 मरीज मिले हैं। वहीं डोंगरगढ़, मोहला, सोमनी व एक पैरामिलिट्री फोर्स का एक जवान शामिल हैं। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि आज मिले नए मरीजो को राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज लाया गया है। पिछले तीन दिनों के बाद कोरोना के नए मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला कोरोना प्रभावित इलाकों में लगातार लोगों की जांच कर रहा है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 6 जुलाई। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक माह बाद बाद कोरोना ने फिर दस्तक दी है। हैदराबाद से लौटे 25 साल के युवक की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। युवक हैदराबाद के बिस्किट फैक्टरी में काम करता था। इसकी पुष्टि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. देवेन्द्र पैकरा ने की है। देर शाम युवक की रिपोर्ट आने के बाद से जिले में मचा हडक़ंप हुआ है।
जिले में रविवार को 25 लोगो की रिपोर्ट आई, जिनमें से एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह संक्रमित युवक निमधा के बंधौरी गांव का रहने वाला है। संक्रमित युवक को इलाज के लिए बिलासपुर कोविड अस्पताल लाया गया है। अब तक मिले कुल 4 संक्रमितों में 3 स्वस्थ होकर घर वापस लौट चुके हैं।
मौतें-14, एक्टिव-627, डिस्चार्ज-2578
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 32 सौ पार कर चुके हैं। रायपुर जिले में आज दोपहर मिले 12 नए पॉजिटिव के साथ प्रदेश में इनकी संख्या बढक़र 32 सौ 19 हो गई है। इसमें 14 लोगों की मौत हो चुकी है। 627 एक्टिव हैं, जिनका एम्स समेत सरकारी अस्पतालों में इलाज जारी है। 25 सौ 78 ठीक होने पर डिस्चार्ज होकर अपने घर लौट गए हैं।
जानकारी के मुताबिक रायपुर जिले में आज दोपहर करीब डेढ़ बजे 12 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें पीएचक्यू के एक कांस्टेबल की नेचुरोपैथी डॉक्टर पत्नी, लाभांडी सरकारी अस्पताल के दो हेल्थ वर्कर, पुराने पीएचक्यू के दो कांस्टेबल, किर्गिस्तान व यूएस से आए दो विदेशी मेडिकल छात्र व एक सफाईकर्मी शामिल हैं। इन सभी को आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। वहीं इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। इसके बाद इन सभी की भी कोरोना जांच करायी जाएगी।
कल दोपहर से बीती रात तक 46 पॉजिटिव मिले थे। इसमें रायपुर से सबसे अधिक 15 रहे। कोरबा से 11, कोरिया से 6, बिलासपुर से 5, सरगुजा से 4, जांजगीर-चांपा से 3 व रायगढ़ से 2 मरीज पाए गए। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि उनकी टीम अलग-अलग जगहों पर जाकर जांच में लगी है। खासकर उन लोगों के सैंपल लिए जा रहे हैं, जो लोग दिनभर में ज्यादा से ज्यादा लोगों के संपर्क में आते हैं। सैंपलों की जांच चल रही है। जांच में और भी पॉजिटिव सामने आ सकते हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। दंतेवाड़ा के कटेकल्याण इलाके में प्रेशर बम की चपेट में आने से 2 जवान घायल हो गए, वहीं पुलिस को तीन बम बरामद करने में कामयाबी मिली।
पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने बताया कि कटेकल्याण के अति संवेदनशील मारजूम के जंगलों में नक्सलियों के कैंप की सूचना मिली थी। इसके आधार पर दंतेवाड़ा से जिला आरक्षी बल की टीम को रवाना किया गया। पुलिस दल ने नक्सलियों के कैंप को ध्वस्त कर दिया। कैंप से तीन बम बरामद किए गए, वहीं तीन नक्सली बैग भी पुलिस के हाथ लगे।
पुलिस के जवान जंगलों के रास्ते वापस लौट रहे थे। इसी दौरान प्रेशर बम विस्फोट हुआ। इसकी चपेट में आकर 2 जवान घायल हो गए। जिनका उपचार जारी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। दंतेवाड़ा के बारसूर क्षेत्र के हीरानार गांव में नाले में शुक्रवार को नहाते 2 चचेरी बहनें बह गर्इं। तीन दिन बाद एक बहन की आज लाश मिली, वहीं दूसरी की तलाश जारी है।
नगर निरीक्षक गीदम थाना गोविंद यादव ने बताया कि शुक्रवार को हीरानार गांव के सरपंच पारा की दो चचेरी बहनें जानकी और ईश्वरती (दोनों की उम्र 8-9 वर्ष)अपने खेतों की रखवाली करने गई थीं। इसके बाद दोनों नहाने के लिए समीपवर्ती नाले में गई। जहां पैर फिसलने से दोनों बहनें नाले के तेज बहाव में बह गर्इं।
सोमवार को तीन दिन बाद जानकी का शव बरामद किया गया। उसे घटनास्थल से 3 किलोमीटर की दूरी पर डैम के पास बरामद किया गया, वहीं दूसरी बहन ईश्वरती का समाचार लिखे जाने तक सुराग नहीं मिल सका है। उसकी तलाश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि जिले में शनिवार रात से ही मूसलाधार बारिश का दौर जारी है। इसके चलते ही नदी और नाले उफान पर हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। सरकार ने राज्य पुलिस सेवा के तीन अफसरों समेत कुल 21 पुलिस अफसर-कर्मियों की ईओडब्ल्यू और एंटी करप्शन ब्यूरों में पदस्थ किया है। इनमें एक एडिशनल एसपी, दो डीएसपी और पांच टीआई शामिल हैं। खास बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान युवक की बेरहमी से पिटाई करने वाले टीआई नितिन उपाध्याय को भी पोस्टिंग मिल गई है।
उपाध्याय को लाइन अटैच कर दिया गया था। और उनके खिलाफ मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए थे। मगर उन्हें ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है। एएसपी पंकज चंद्रा की पोस्टिंग पहले ही हो चुकी है। इसके अलावा दो डीएसपी अजितेश सिंह और सपन चौधरी को भी प्रतिनियुक्ति पर ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है। जिन पुलिस अफसरों-कर्मियों को प्रतिनियुक्ति पर ईओडब्ल्यू-एसीबी में पदस्थ किया गया है, उनके नाम इस प्रकार हैं-
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 6 जुलाई। नक्सलियों की पूर्वी बस्तर डिवीजन कमेटी ने राज्य शासन की बोधघाट परियोजना का कड़ा विरोध किया है। नक्सली संगठन की पूर्वी बस्तर डिवीजन कमेटी ने पर्चे फेंक कर इस परियोजना से सिर्फ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की बात कही है।
इस पर्चे में कहा गया है कि बोधघाट परियोजना से बस्तर के सौ गांव डूब जाएंगे, 50 हजार एकड़ जमीन डूब जाएगी वहीं 70 हजार एकड़ जनता विस्थापित हो जाएगी। बोधघाट की सस्ती बिजली और पानी से पूंजीपतियों को लाभ दिया जाएगा। इससे बस्तर के रहवासियों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा।
नक्सली पर्चे में कहा गया है कि बोधघाट परियोजना अंतर्गत मुख्य बांध के साथ ही 2 सहायक बांध बनाए जाएंगे। जिससे भूमि के डूबान क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी। इससे पूर्व बस्तर में विभिन्न परियोजनाओं और खदानों से बस्तर के लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ। इस तरह से बस्तर की जनता का शोषण ही हुआ है। नक्सलियों ने बस्तर के लोगों से बोधघाट परियोजना का विरोध करने की अपील की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नारायणपुर, 6 जुलाई। आज सुबह नदी पार करते हुए 14 साल की बालिका व 2 महिलाएं बह गई। जिसमें से एक महिला का शव बरामद कर लिया गया है। मौके पर धनोरा पुलिस और आईटीबीपी के जवान बचाव में लगे हंै। धनोरा थाने क्षेत्र की घटना है।
जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर पर स्थित ओरछा मार्ग पर धनोरा के पास माड़ीन नदी पार करती 14 साल की बालिका व 2 महिलाएं बह गईं। जिसमें से एक महिला का शव एक किमी पर नदी किनारे पेड़ से फंसा हुआ मिला।
बताया जाता है कि झारा गांव की 7 महिलाएं व 14 साल की बालिका निजी काम से रविवार को नदी पार कर दूसरे गांव गई थी। रात को बारिश होने पर वहीं रूक गईं। आज सुबह अपने गांव जाने नदी पार करने लगीं। शुरूआत में घुटने तक पानी था। बीच नदी में पानी बढ़ गया, जिससे बालिका व 2 महिलाएं बह गईं, जिसे देखकर अन्य महिलाएं वापस लौट गईं। घटना की जानकारी मिलने पर धनोरा पुलिस और आईटीबीपी के जवान बचाव में लगे हंै। ज्ञात हो कि माड़ीन नदी अबुझमाड़ की लाइफलाइन है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर 6 जुलाई। मैसूर कर्नाटक से लाए गए रेप के एक आरोपी के कोरोना संक्रमित पाए जाने पर जिला पुलिस और केंद्रीय जेल में हडक़ंप मच गया है। जिला मुख्यालय के सबसे बड़े थाना सिविल लाइन को सील कर दिया गया है। केंद्रीय जेल में आरोपी के संपर्क में आए आए जेल के स्टाफ तथा अन्य कैदियों का सैम्पल लिया जा रहा है। आरोपी को मैसूर लेने गए एक अधिकारी और तीन पुलिस जवानों का सैम्पल लेकर उन्हें चरन्टीन पर भेज दिया गया है। बाकी स्टाफ का भी सैम्पल लिया जा रहा है।
सिविल लाईन थाने में 60 से अधिक पुलिस कर्मचारी अधिकारी काम करते हैं। यह जिला मुख्यालय का सबसे बड़ा थाना है।
मालूम हुआ है कि रेप के आरोपी को एक जुलाई को लेने के लिये पुलिस टीम मैसूर गई थी। उसका यहां कोरोना टेस्ट कराया गया था। अदालत की परमिशन के बगैर किसी भी कैदी को 24 घंटे से ज्यादा नहीं रखा जा सकता है इसलिए उसे कोर्ट में पेश किया गया, जहां से केंद्रीय जेल दाखिल कर दिया गया रिपोर्ट आने पर उसे कोरोना पॉजिटिव पाया गया है जिसके बाद यह कार्रवाई की गई है।
जिले के किसी थाने को सील करने का यह दूसरा मामला है। इसके पहले मस्तूरी तहसील के पचपेड़ी थाने को एक आरक्षक के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद सील कर दिया गया था। सिविल लाईन थाने का सारा कामकाज फिलहाल तारबाहर थाने में शिफ्ट कर दिया गया है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में कार्यरत एक चिकित्सक की पत्नी को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद वहां भी सभी का सैंपल लिया जा रहा है। यह घटना 4 जुलाई की है। 4 जुलाई को ही महाधिवक्ता कार्यालय के पीआरओ को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद पूरा दफ्तर सील कर दिया गया है। इसी के मद्देनजर हाई कोर्ट में भी 10 जुलाई तक कामकाज बंद करने का निर्णय लिया जा चुका है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। भारतीय वनसेवा के दर्जनभर अफसरों की पदोन्नति का प्रस्ताव है। इस कड़ी में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स, दो पीसीसीएफ और चार एडिशनल पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति होगी। इसके लिए पदोन्नति समिति की बैठक हफ्तेभर के भीतर होने की उम्मीद है।
बताया गया कि हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स मुदित कुमार सिंह की वन विभाग से बाहर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान में पोस्टिंग हो गई है। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स का पद सीएस और डीजीपी के समकक्ष वेतनमान का पद है। इस पद पर पीसीसीएफ (मुख्यालय) राकेश चतुर्वेदी की पदोन्नति तकरीबन तय मानी जा रही है। चतुर्वेदी 85 बैच के अफसर हैं और मुदित कुमार सिंह के बाद सबसे सीनियर अफसर हैं। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की डीपीसी में एक सदस्य केन्द्र सरकार द्वारा नामांकित अफसर रहेंगे।
अभी केन्द्र सरकार ने डीपीसी के एक सदस्य के लिए किसी को नामांकित नहीं किया है। माना जा रहा है कि दो-चार दिन के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने पीसीसीएफ के एक अतिरिक्त पद की स्वीकृति दे दी है। साथ ही साथ पीसीसीएफ स्तर के अफसर वन विकास निगम के एमडी राजेश गोवर्धन भी अगले महीने रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अब दो पद के लिए डीपीसी होने वाली है। इसमें सीनियर एपीसीसीएफ पीसी पाण्डेय और देवाशीष दास का नंबर लग सकता है।
विभाग ने 94 बैच के चार सीसीएफ को एपीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति देने का प्रस्ताव है। इनमें सुनील कुमार मिश्रा, प्रेम कुमार, ओपी यादव और अनूप विश्वास पदोन्नत किए जाएंगे। इसके अलावा पांच सीएफ से सीसीएफ के पद पदोन्नति का भी प्रस्ताव है। पदोन्नति की सारी प्रक्रिया हफ्तेभर के भीतर पूरी होने की उम्मीद है। पदोन्नति के साथ-साथ विभाग में कुछ फेरबदल भी हो सकते हैं।
नेचुरोपैथी डॉक्टर, हेल्थ वर्कर, पीएचक्यू
के कांस्टेबल, विदेशी छात्र संक्रमित मिले
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जुलाई। रायपुर जिले में आज दोपहर करीब डेढ़ बजे 12 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें एक नेचुरोपैथी डॉक्टर, दो हेल्थ वर्कर, पुराने पीएचक्यू के दो कांस्टेबल, दो विदेशी मेडिकल छात्र व एक सफाई कर्मी शामिल बताए जा रहे हैं। इन सभी को आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। जिला स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि की है।
रायपुर जिले में कोरोना मरीज तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं और कुछ नए लोग भी संक्रमित मिलने लगे हैं। जानकारी के मुताबिक आज संक्रमित पाई गईं नेचुरोपैथी डॉक्टर जगदलपुर में रहती हैं और वह यहां पुराने पीएचक्यू के एक कांस्टेबल की पत्नी हैं। दूसरी तरफ संक्रमित दो हेल्थ वर्कर लाभांडी सरकारी अस्पताल से हैं। दो विदेशी मेडिकल छात्रों में एक किर्गिस्तान और एक यूएस का है और दोनों यहां क्वॉरंटाइन में थे।
उल्लेखनीय है कि रायपुर जिले में बीती रात तक कोरोना मरीजों की संख्या 427 रही, जिसमें 198 एक्टिव रहे। आज 12 नए पॉजिटिव आने के बाद इनकी संख्या बढक़र अब 439 हो गई है, जिसमें 210 एक्टिव हैं और इन सभी का आसपास के अस्पतालों में इलाज जारी है। कल यहां 15 पॉजिटिव सामने आए थे।
रायपुर, 6 जुलाई। दिवंगत एडीजी विजयशंकर चौबे की पुत्री सुश्री श्वेता चौबे को आईपीएस अवार्ड हुआ है। वे वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में अपनी सेवाएं दे रही हैं। और देहरादून सिटी एसपी के पद पर कार्यरत हैं।
रायपुर सुंदरनगर की रहवासी सुश्री श्वेता चौबे के पिता स्व. विजयशंकर चौबे की गिनती छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय पुलिस अधिकारियों में होती रही है। वे छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी रहे। इससे परे सुश्री श्वेता उत्तराखंड पुलिस सर्विस की ऑफिसर रही है और उन्हें पिछले दिनों आईपीएस अवार्ड हुआ है।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
कोण्डागांव,6 जुलाई। बीती रात फूड प्वाइजनिंग से मां-बेटी की मौत हो गई। एक व्यक्ति को गंभीर हालत में नारायणपुर के अस्पताल में दाखिल किया गया है।
कोण्डागांव के मर्दापाल थाना अंतर्गत पहुंच विहीन कड़ेनार में देर रात की घटना है। बताया जाता है कि बोड़ा सब्जी खाने से परिवार में फूड प्वाइजनिंग फैला। मौके पर पहुंच कोण्डागांव के स्वास्थ्य अमला ने 4 लोगों का इलाज किया।