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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर 7 जुलाई । भिलाई इस्पात संयंत्र के 2 कर्मी कोरोना पॉजीटिव पाए जाने की पुष्टि कल रात को प्राप्त रिपोर्ट में हुई थी। एक अधिकारी परचेस विभाग में मैनेजर के पद पर कार्यरत इस्पात नगर रिसाली निवासी 56 वर्षीय है। जो कि अपने भतीजे के प्राइमरी कांटेक्ट में होने के कारण संक्रमित हुए हैं। उनके डॉक्टर भतीजे का उपचार कोविड-19 हॉस्पिटल में चल रहा है। एक अन्य बीएसपी कर्मचारी एसएम एस के आर ईडी विभाग में सीनियर टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत हैं।
सेक्टर 6 सडक़ 35 में निवासरत है। 55 वर्षीय बीएसपीकर्मी की तबीयत खराब होने पर 27 जून को संयंत्र के चिकित्सालय सेक्टर 9 हॉस्पिटल गया था । जांच करने के पश्चात चिकित्सकों ने उसे जिला अस्पताल जाकर कोरोना टेस्ट कराने की हिदायत दी थी। परंतु इस कर्मचारी के द्वारा डॉक्टर की सलाह को नहीं मानते हुए दोबारा कार्यस्थल चला गया। पुन: तबीयत खराब होने पर 3 जुलाई को सेक्टर 9 हॉस्पिटल पहुंचा था। जहां चिकित्सकों ने उसका सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा था।
6 जुलाई को रात्रि प्राप्त रिपोर्ट में उसके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। बीएसपी जनसंपर्क विभाग ने इस संबंध में बताया कि संयंत्र के एक अधिकारी एवं एक कर्मचारी कोरोना संक्रमित मिला है । दोनों ही के प्राइमरी कांटेक्ट में आए अन्य कर्मचारियों जिनकी संख्या 11 के लगभग है। सभी को आज कार्यस्थल पर आने से रोका गया। प्राइमरी कांटेक्ट में आने वाले अन्य सभी कर्मचारियों का सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा गया है। जिस संक्रमित सीनियर टेक्नीशियन कर्मचारी का इलाज सेक्टर 9 हॉस्पिटल के भी 2 वार्ड में किया गया था। उसे खाली कर पूरी तरह सेनीटाइज करने के पश्चात सील कर दिया गया है।
1939 मे गांधीजी ने मीरा बेन को बालाकोट भेजा था. वहां जाकर उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि ‘ईश्वर करे, कोई नेता इस छोटे से गांव में न पहुंचे!’
-रामचंद्र गुहा
सैन्य इतिहासकारों के लिए बालाकोट वह जगह है जहां मई 1831 में महाराजा रणजीत सिंह और सैयद अहमद बरेलवी की फौजों के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ था. उधर, आम आदमी बालाकोट को एक ऐसी जगह के तौर पर जानता है जहां फरवरी 2019 में भारतीय वायु सेना ने जैश-ए-मोहम्मद के एक ट्रेनिंग कैंप पर हमला किया था.
इस लेख का विषय भी बालाकोट ही है, हालांकि उसका संबंध एक तीसरी घटना से है जो बाकी दोनों घटनाओं के दरम्यान घटी थी. मई 1939 में एक महान भारतीय देशभक्त ने बालाकोट और इसके आसपास की जगहों की यात्रा की थी. इस भारतीय ने अपनी डायरी में यहां के भूगोल और लोगों का एक विवरण भी लिखा था. इस अप्रकाशित डायरी की एक प्रति हाल ही में मुझे आर्काइव्स में मिली.
इस भारतीय देशभक्त का नाम कभी मेडलिन स्लेड हुआ करता था. वे एक ब्रिटिश एडमिरल की बेटी थीं जो बाद में महात्मा गांधी की अनुयायी बन गईं और अहमदाबाद और सेवाग्राम स्थित उनके आश्रमों में रहीं. उन्होंने अपना नाम मीरा रख लिया था. भारत से उन्हें इतना प्रेम था कि वे आजादी की लड़ाई में शामिल हुईं और उन्होंने लंबे समय तक जेल भी काटी. मीरा बेन ने शोषितों का पक्ष लेने के लिए देश और नस्ल की दीवार तोड़ दी थी. स्वाधीनता संग्राम से जुड़े साहित्य में उनका उल्लेख आदर के साथ किया जाता है.
मैं मीरा बेन के बारे में काफी कुछ जानता हूं, लेकिन यह मुझे हाल ही में पता चला कि उन्होंने 1939 में बालाकोट की यात्रा की थी. तब भारत और पाकिस्तान दो अलग मुल्क नहीं थे. बालाकोट ब्रिटिश भारत के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविसेंज (एनडब्लूयएफपी) में पड़ता था. यह सूबा खुदाई खिदमतगार नाम के एक समूह का भी इलाका था. इसकी कमान एक ऐसे शख्स के हाथ में थी जो गांधी के मीरा बेन से भी बड़े अनुयायी थे. उनका नाम था खान अब्दुल गफ्फार खान. उन्होंने अपने नैतिक बल से आक्रामक पठानों में अहिंसा और सहिष्णुता भर दी थी.
1939 के बसंत की बात है. गांधी जी ने मीरा बेन को फ्रंटियर प्रोविंस भेजा. मकसद था इस इलाके में चरखा कताई और बुनाई का प्रचार. इसी यात्रा के दौरान मीरा बेन एबटाबाद (जहां अमेरिकी नेवी सील्स ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था) से सड़क के जरिये बालाकोट गई थीं. मीरा बेन ने अपनी डायरी में इस यात्रा का वर्णन कुछ ऐसे किया है: ‘गांवों-खेतों के चारों ओर और नालों के किनारे हरे-भरे पेड़ दिखते हैं. पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेत समुंदर की लहरों की तरह नजर आते हैं जिनमें भूरे और हरे रंग की विविधिता के दर्शन होते हैं. इस छोटी सी दुनिया को नीली पहाड़ियां घेरे हैं जिनके पार विशाल हिमशिखर हैं.’
बालाकोट का रास्ता आधा तय कर चुकने के बाद मीरा बेन और उनके खुदाई खितमतगार साथी एक जगह पर रात बिताने के लिए रुके. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मीराबेन ने थोड़ी सैर की. उन्होंने लिखा है, ‘खेतों में काम शुरू हो चुका था. मक्का की फसल खलिहान में थी और साथ ही साथ बुआई का काम भी चल रहा था. जब मैं अपने ठिकाने पर लौट रही थी तो मुझे कोयल की मीठी कूक सुनाई दी.’
नाश्ते के बाद मीराबेन और उनके साथी बालाकोट की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने वन विभाग का एक बंगला दिखा जिसे देखकर मीरा बेन को ख्याल आया कि ‘इस जगह बापूजी थोड़ा विश्राम कर सकते हैं.’ यह बंगला 3900 फीट की आरामदायक ऊंचाई पर था: ‘जंगल में अकेली इमारत जिसके पीछे हिम शिखर थे और नीचे पर्वत और घाटियां. यह निश्चित तौर पर एक आकर्षक ठिकाना है, पर यहां पर पानी की कमी है.’ (गांधी इससे पिछले साल ही फ्रंटियर प्रोविंस आए थे और फिर से यहां की यात्रा के बारे में सोच रहे थे. हालांकि ऐसा हो न सका, लेकिन आज यह सोचना ही अजीब लगता है कि वे बालाकोट के इतने नजदीक स्थित किसी बंगले में स्वास्थ्य लाभ कर सकते थे.
बालाकोट गांव का रास्ता कुनहर नदी की घाटी से होकर जाता था. सड़क ‘संकरी’ और ‘खराब’ थी. ‘खड़ी चढ़ाई और मोड़’ थे. गड्ढों और मोड़ों वाली इस सड़क पर गाड़ी बहुत दिक्कत के साथ चल रही थी. मीरा बेन ने लिखा है कि वे इस जगह की खूबसूरती में खो गई थीं. उनके शब्द हैं, ‘हालांकि सड़क नदी के दाएं किनारे के साथ-साथ ही चल रही है और बर्फीले पहाड़ों से नीचे आ रही इस नदी का रूप बहुत रौद्र है. पहाड़ी ढलानों से तेजी से नीचे उतरती और कई मोड़ों से टकराती इस नदी में वैसी ही विशाल लहरें उठ रही हैं जैसी साबरमती में बाढ़ के समय उठा करती हैं. इसके किनारों पर जहां-तहां उन विशाल पेड़ों के तने पड़े हैं जो इसके रास्ते में आ गए.’
अपनी मंजिल पर पहुंचने के बाद मीरा बेन ने उस जगह का भी सजीव वर्णन किया है. उन्होंने लिखा है, ‘बालाकोट एक छोटी से पहाड़ी के एक तरफ बसा एक बड़ा और घना गांव है जो किसी मधुमक्खी के छत्ते जैसा लगता है. यह कंगन घाटी के ठीक मुहाने पर बसा है. यहां कोई सड़क नहीं है. सिर्फ पत्थरों से बने पैदल रास्ते हैं जो सीढ़ियों जैसे ज्यादा लगते हैं. अक्सर इन रास्तों से पानी की कोई धारा भी गुजर रही होती है. बाजार भी घना बसा है और नीचे के घर की छत ऊपर वाले घर के लिए छज्जे का काम करती है. दुकानदारों में से कई हिंदू और सिख हैं.’
मीरा बेन को बताया गया कि बालाकोट में रहने वाले गुज्जर कताई और बुनाई करते हैं और बहुत अच्छे कंबल बनाते हैं. लेकिन यह जानकर उन्हें निराशा हुई कि ये गुज्जर अभी वहां नहीं थे. वे हर बार की तरह साल के इस वक्त ऊंचे पहाड़ों में स्थित चरागाहों की तरफ जा चुके थे. यह जानकर मीरा बेन निराश हो गईं. इस पर उनके साथ आए खुदाई खिदमतगार के एक नेता अब्बास खान ने कहा कि वे किसी को गुज्जरों के पास भेजेंगे ताकि उनमें से कुछ अगले दिन तक नीचे यानी गांव में आ जाएं. ऐसा ही हुआ. गुज्जरों के गांव में आने के बाद मीरा बेन ने उनसे ऊन के उनके काम के बारे में कई सवाल किए.
बालाकोट से मीरा बेन और उनके साथी और भी ऊंचे पहाड़ों की तरफ गए. वे भोगरमंग नाम के एक गांव में रुके. यहां करीने से बनाए गए धान के खेत थे और गांव वाले बुनाई और मधुमक्खी पालन का काम भी कर रहे थे. मीरा बेन इससे बहुत प्रभावित हुईं. लेकिन इससे भी ज्यादा खुशी उन्हें एक दूसरी चीज से हुई. जैसा कि उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है, ‘जिस चीज ने इस गांव में मुझे सबसे ज्यादा खुशी दी वह थी हिंदू-मुस्लिम एकता... एक हिंदू परिवार, जिसका मुखिया, सफेद बालों वाला एक छोटे कद का शख्स था, गांव के नौजवान खान समुदाय के लोगों के साथ बहुत प्रेम से रह रहा था. इन लोगों का कहना था कि यह शख्स उनके पिता और दादा का दोस्त रहा है और दोनों समुदायों के बीच हमेशा आपसी सहयोग और एक-दूसरे की फिक्र का संबंध रहा है.’ यह सुनकर मीरा बेन ने आगे लिखा, ‘स्वाभाविक ही है कि मेरे हृदय में प्रार्थना उठी कि कोई नेता इस छोटे से गांव में न पहुंचे और इसके मधुर और सहज जीवन पर ग्रहण न लगे.’
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल यह गांव मीरा बेन की यात्रा का आखिरी पड़ाव था. अगली सुबह वे एबटाबाद लौट आईं. कुछ ही हफ्ते बाद वे सेवाग्राम आश्रम में थीं. सितंबर 1939 में यूरोप में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया जिसने इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया. भारत और इसके लोगों के लिए इस लड़ाई के जो नतीजे रहे उनमें से एक हिंदू और मुसलमानों के बीच मौजूद दरार का चौड़ा होना भी था. मीरा बेन को आशंका थी कि इस आग को नेता और भड़का रहे थे जो दोनों समुदायों में अच्छी-खासी तादाद में थे. युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, फ्रंटियर प्रोविंस में गफ्फार खान की पार्टी का आधार तेजी से सिमटता गया और मुस्लिम लीग का प्रभाव बढ़ता गया. इसके साथ ही यहां सांप्रदायिक सहिष्णुता पूरी तरह ध्वस्त हो गई. हालांकि यहां अगस्त 1947 के बाद वैसे खूनी दंगे नहीं हुए जैसे पंजाब में हुए थे, लेकिन यहां रह रहे हिंदुओं और सिखों को भी पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी.
जिस बालाकोट में मीरा बेन 1939 में गई थीं वह आज पूरी तरह बदल चुका है. अब यहां का ताना-बाना बहुधार्मिक नहीं है. इसके बजाय यहां इस्लामी कट्टरवाद को बढ़ावा देने वाले जिहादियों का ट्रेनिंग कैंप है. बालाकोट के नजारे भी अब काफी बदल चुके होंगे जैसा कि दक्षिण एशिया के दूसरे पर्वतीय इलाकों में हुआ है, जहां जंगल तेजी से घटे हैं और पत्थर और लकड़ी के सुंदर मकानों की जगह कंक्रीट के बदसूरत ढांचों ने ले ली है. बालाकोट की स्थानीय शिल्प कलाएं भी विलुप्ति के कगार पर होंगी.
इस लेख में हमने ऐतिहासिक स्मृति के एक टुकड़े की बात की, लेकिन आखिर में मैं इस बारे में विचार करना चाहूंगा कि उस अतीत से हमारा वर्तमान क्या सीख ले सकता है? नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंसेज को आज खैबर पख्तूनख्वा कहा जाता है और यहां मुट्ठी भर ही हिंदू और सिख बचे हैं. दूसरी तरफ, भारत के ज्यादातर राज्यों में मुस्लिम अल्पसंख्यक काफी संख्या में हैं. क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस देश के गांवों में हिंदुओं और मुसलमानों में वही आपसी सहयोग और एक-दूसरे की फिक्र का माहौल बनाया जा सकेगा? या हमारे ‘नेता’ ऐसा नहीं होने देंगे?(satyagrah)
नई दिल्ली (एजेंसी ) 7 जुलाई । पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है, अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक रात-दिन वैक्सीन बनाने में जुटे हैं, इस बीमारी को लेकर लगातार शोध भी जारी है, जिसके तहत हर रोज नई बात सामने आ रही है, ताजा स्टडी में कहा गया है कि कोरोना वायरस से केवल फेफड़े ही संक्रमित नहीं हो रहे हैं बल्कि इसकी वजह से शरीर के अन्य अंगों की नसों में खून के थक्के जमने लगते हैं, फ्रांस में हुई स्टडी में कहा गया है कि कोरोना के बेहद गंभीर मरीजों में देखा गया है कि उनकी नसों में खून के थक्के जम गए।
स्टडी में बताया गया है कि एक अस्पताल में कोरोना के करीब 100 मरीज थे, जिनमें से 23 काफी गंभीर स्थिति में थे, इन 23 मरीजों की फेफड़ों की धमनियों में खून के थक्के जम गए थे, स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना रोगियों के प्लेटलेट्स भी कम होने लगते हैं, प्लेटलेट्स काउंट का कम होना भी कोरोना वायरस का लक्षण है। फेफड़ों से संक्रमण आगे बढ़ने पर ये शरीर के अन्य अंगों पर अटैक करता है और बॉडी के अन्य पार्ट की नसों में खून जमने लगता है, इन थक्कों का फेफड़े, हृदय, ब्रेन पर प्रभाव होता है जिसकी वजह से स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, मालूम हो कि खून के थक्के के बनने को लेकर ज्यादातर डेटा चीन के रोगियों से इकट्ठा किया गया ।
गौरतलब है कि पूरी दुनिया में इस वायरस ने कहर बरपा रखा है। दुनिया भर में इसके संक्रमितों की संख्या 1.14 करोड़ से अधिक हो गई है जबकि 5.33 लाख से ज्यादा लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। वहीं भारत की बात करें तो इस वायरस से संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 7 लाख के पार पहुंच गया है । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 24 घंटे में देश में कोरोना के मामले एक बार फिर 20 हजार से ज्यादा सामने आए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 22,252 नए मामले सामने आए हैं और 467 लोगों की मौत हुई है। कोरोना पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 7,19,665 है जिसमें 2,59,557 सक्रिय मामले, 4,39,948 ठीक/डिस्चार्ज/विस्थापित मामले और 20,160 मौतें शामिल हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 जुलाई। नवगठित गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में कानून व्यवस्था को मजबूत करने की नीयत से चार टीआई समेत 22 पुलिसकर्मियों की पोस्टिंग की गई है। राज्य पुलिस स्थापना बोर्ड के अनुमोदन के बाद विधिवत आदेश जारी किए गए हैं।
नवगठित गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में विधानसभा के उपचुनाव भी हैं। ऐसे में पुलिस कर्मियों की पोस्टिंग को अहम माना जा रहा है। आदेश इस प्रकार हैं-
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 जुलाई। प्रदेश में आज दोपहर करीब ढाई बजे 18 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें कांकेर से 8, नारायणपुर से 6, बीजापुर से 3 और दंतेवातड़ा से 1 मरीज शामिल हैं। ये सभी मरीज आसपास के कोरोना अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ इनके संपर्क में आने वालों और आसपास के लोगों की जांच-पहचान की जा रही है। राज्य स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि बाकी और भी सैंपलों की जांच चल रही है। शाम तक और जांच रिपोर्ट सामने आ सकती है।
मौतें-14, एक्टिव-647, डिस्चार्ज-2644
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और बीती रात तक उनका यह आंकड़ा 33 सौ पार कर चुका है। कल बीती रात तक सामने आए 92 पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 33 सौ 5 हो गई है। इसमें 14 लोगों की मौत हो चुकी है। 647 एक्टिव हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी है। 26 सौ 44 ठीक होने पर डिस्चार्ज हो गए हैं।
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में बीती रात तक एक लाख 85 हजार 399 सैंपलों की जांच की गई है, जिसमें 33 सौ 5 पॉजिटिव मिले हैं। बाकी सैंपलों की एम्स और रायपुर समेत तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जांच जारी है। बीती रात में नांदगांव से सबसे अधिक 21 पॉजिटिव सामने आए थे। इसके अलावा रायपुर से 18, जगदलपुर से 17, बलौदाबाजार से 8, बिलासपुर से 7, सूरजपुर से 6, जांजगीर-चांपा से 5, बेमेतरा से 3 एवं दुर्ग, महासमुंद, कोरबा, बलरामपुर, सरगुजा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर से 1-1 मरीज मिले थे। ये सभी आसपास अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि हेल्थ की टीम अलग-अलग इलाकों में जाकर कोरोना जांच सैंपल ले रही है। इसमें फल-सब्जी वालों, दुकानदारों से लेकर सभी वर्ग के लोग शामिल किए जा रहे हैं। जहां-जहां कोरोना मरीज मिले हैं, उन इलाकों में भी आसपास के लोगों की जांच की जा रही है। डॉक्टर, नर्स के साथ मेडिकल स्टाफ की समय-समय पर जांच हो रही है। पुलिस वालों की भी जांच की जा रही है और जांच में नए-नए केस सामने आ रहे हैं। उनकी यह जांच आगे भी जारी रहेगी।
नई दिल्ली, 7 जुलाई। कोविड-19 वैक्सीन लॉन्च करने के लिए 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित कर विवादों के घेरे में आए आईसीएमआर के दावे पर देश की सबसे बड़ी विज्ञान अकादमी भारतीय विज्ञान अकादमी (आईएएससी) ने भी सवाल उठाया है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड-19 का स्वदेशी वैक्सीन चिकित्सकीय उपयोग के लिए 15 अगस्त तक उपलब्ध कराने के मकसद से चुनिंदा चिकित्सकीय संस्थाओं और अस्पतालों से कहा है कि वे भारत बॉयोटेक के सहयोग से विकसित किए जा रहे संभावित वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को परीक्षण के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज करें।
ऐसी किसी समयसीमा को निर्धारित किए जाने को अव्यावहारिक बताते हुए आईएएससी ने जोर देकर कहा कि मनुष्यों में उपयोग के लिए वैक्सीन के विकास के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक रूप से निष्पादित क्लीनिकल ट्रायल्स की आवश्यकता होती है।
आईएएससी की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘संक्रमण से लडऩे के लिए मानव शरीर में एंटीबॉडी बनने में भी समय लगता है। इसके बाद इनका असर, डाटा रिपोर्टिंग इत्यादि में एक लंबा वक्त चाहिए होता है। हर चरण के परिणाम की समीक्षा के आधार पर ही उसे अगले दौर में प्रवेश दिया जाता है। अगर इसमें किसी भी तरह की कोताही बरती गई तो बड़ा नुकसान हो सकता है।’
आईएएससी ने आगे कहा, ‘अगर पहले या दूसरे चरण में परीक्षण का परिणाम संतोषजनक नहीं आता है तो उस अध्ययन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इन्हीं कारणों के चलते ऐसे परीक्षणों को समयसीमा में बांधना गलत है। इस तरह के आदेशों से देश के नागरिकों में उम्मीद जगेगी जो अगर पूरी नहीं हुई तो उनका विश्वास टूट सकता है।’
बता दें कि बीते 2 जुलाई को आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने 12 चुनिंदा संस्थानों को पत्र लिखकर कहा था कि वे भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करें।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा वैक्सीन को मानव परीक्षण के लिए दिए जाने के बाद भार्गव द्वारा वैक्सीन को जनस्वास्थ्य के लिए इस्तेमाल किए जाने के लिए तैयार करने की 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित करने पर वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं।
भार्गव की इस घोषणा को राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह से देखा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर वैक्सीन लॉन्च कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे।
हालांकि, वैज्ञानिकों और राजनीतिक दलों की आलोचनाओं के बाद शनिवार को आईसीएमआर ने बयान जारी कर कहा कि अनावश्यक लालफीताशाही से बचने के लिए बिना किसी आवश्यक प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए वैक्सीन के विकास में तेजी लाने का आदेश दिया गया है। (thewirehindi.com)
चुनाव में संपत्ति की गलत जानकारी का आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 जुलाई। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ ईओडब्ल्यू में आज एक शिकायत दर्ज कराई गई हैं। कांग्रेस नेता विनोद तिवारी ने अपने समर्थकों के साथ यह शिकायत दर्ज कराते हुए उन पर अपने 15 साल के कार्यकाल में आय से अधिक संपत्ति हासिल करने और चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है। उन्होंने शपथ पत्र की प्रतिलिपि दिखाते उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।
प्रदेश कांग्रेस के संयुक्त महासचिव तिवारी ने ईओडब्ल्यू में दर्ज शिकायत में आरोप लगाते हुए कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जो शपथ पत्र दाखिल किया था, उसमें उन्होंने अपनी आय की गलत जानकारी दी है, जबकि 15 साल के कार्यकाल में पूर्व सीएम रमन सिंह ने आय से अधिक चल-अचल संपत्ति हासिल की है। इसी तरह उनके बेटे अभिषेक सिंह ने भी अपने कार्यकाल में अनुपातहीन संपत्ति बनाई है।
उन्होंने अपनी शिकायत में यह भी कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने चुनाव आयोग के सामने अपनी व अपने परिवार की चल-अचल संपत्ति की भ्रामक जानकारी दी है, जबकि वास्तविकता कुछ अलग ही है। उन्होंने प्रदेश की जनता को गुमराह कर आय से अधिक संपत्ति बनाने वाले सीएम के खिलाफ जांच की मांग की है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 जुलाई। सरकार के मंत्री रविन्द्र चौबे और मोहम्मद अकबर मंगलवार को मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने रमन सरकार के 180 महीने और अपनी सरकार के 18 महीने के कार्यकाल की तुलना कर तीखे प्रहार किए। श्री चौबे ने कहा कि भाजपा के नेता सरकार से ब्लू प्रिंट मांग रहे हैं, जबकि सरकार के पास भाजपा का ब्लैक प्रिंट मौजूद है। हमारे वायदे याद दिलाए जा रहे हैं, जबकि खुद भूल गए।
श्री चौबे ने पिछली सरकार की नाकामियों को गिनाया और कहा कि क्या प्रदेश की जनता झीरम हमले को भूल गई? सारकेगुड़ा और एडसमेटा को भूला दिया? उन्होंने कहा कि पिछले 15 सालों में 3 हजार किसानों ने खुदकुशी की है। जिस प्रकार डीएमएफ फंड में घोटाले हुए हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। उन्होंने नसबंदी कांड का जिक्र करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ के बाजार को नकली दवाओं से भर दिया गया था।
कृषि मंत्री ने कहा कि शराब के धंधे में कमीशनखोरी की बात रमन सिंह ने कबूल की थी। उन्होंने रायगढ़ में पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से एक साल कमीशन लेना बंद करने की अपील की थी। रमन सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य की पत्नी के किसी दूसरे के नाम से परीक्षा देने का मामला सुर्खियों में रहा है। महानदी का पानी बेचने का मामला चर्चा रहा है। उन्होंने कहा कि उद्योगों के साथ एमओयू किया गया और फिर जमीन बेच दी गई। जबकि एक भी उद्योग नहीं लगे। कृषि मंत्री ने कहा कि रमन सिंह के इन बातों का जवाब देना चाहिए। परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर 15 साल में पिछली सरकार के अधूरे वायदों को गिनाया।
टुमकुरू (कर्नाटक), 7 जुलाई (एएनआई)। कोरोना वायरस संक्रमण के बीच कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चर्चा लगातार होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार इस बात का दावा कर रहा है कि भारत में अभी तक कम्युनिटी ट्रांसमिशन के मामले सामने नहीं आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मंत्री जेसी मधुस्वामी ने सोमवार को कहा कि कर्नाटक में कोरोना का संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैलने लगा है।
टुमकुरू जिला के प्रभारी मंत्री मधुस्वामी ने मीडिया को बताया, टुमकूर के कोविड अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस के आठ मरीजों की स्वास्थ्य स्थिति काफी चिंताजनक है। जानकारी के मुताबिक उनके बचने की संभावना कम ही है। हम इस बात को महसूस कर रहे हैं साथ ही साथ डर भी रहे हैं कि कोरोना का संक्रमण कम्युनिटी स्तर पर हो रहा है।
उन्होंने कहा, हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं, जहां जिला अधिकारियों के लिए इसे रोकना मुश्किल है। भले ही हम इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं स्थिति हाथ से निकल रही है।
मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, डिप्टी सीएम अश्वथ नारायण, चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. सुधाकर ने कर्नाटक में कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इनकार किया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, कर्नाटक में 13,255 और 372 लोगों सहित 23,474 कोरोनो वायरस के मामले हैं।
जैसे ही कोई आपसे व्हाट्सएप पर मैसेज करने को कहता है तो पहले उसका नंबर सेव करना पड़ता है और फिर व्हाट्सएप में जाकर कॉन्टेक्ट रिफ्रेश करना होता है, लेकिन अब आपको एक नंबर सेव करने के लिए इतना कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब आप क्यूआर कोड को स्कैन करके व्हाट्सएप नंबर सेव कर सकेंगे।
WhatsApp ने पिछले सप्ताह कई सारे नए फीचर्स जारी किए थे जिनमें डार्क मोड एक्पेंशन और काईओएस (4जी फीचर फोन) के लिए स्टेटस फीचर जैसे फीचर्स शामिल थे। व्हाट्सएप जल्द ही क्यूआर कोड आधारित कॉन्टेक्ट सेविंग फीचर ला रहा है जिसके बाद क्यूआर कोड स्कैन करके नंबर को सेव किया जा सकेगा।
व्हाट्सएप पिछले महीने से QR कोड की टेस्टिंग कर रहा है। कई बीटा यूजर्स इसकी टेस्टिंग भी कर रहे हैं। इसका अपडेट आने के बाद सभी व्हाट्सएप यूजर का एक अलग क्यूआर कोड होगा जिसे वे दूसरों के साथ शेयर कर सकेंगे।
कैसे काम करता है व्हाट्सएप क्यूआर कोड फीचर?
व्हाट्सएप में QR कोड यूजर्स की प्रोफाइल में दिखेगा। इसके बाद आपको क्यूआर कोड के आइकन पर टैप करना होगा। उसके बाद एक नया टैब खुलेगा जहां आपका क्यूआर कोड मिलेगा। क्यूआर कोड को फोन के कैमरे से स्कैन करने पर यूजर्स की डिटेल मिल जाएगी और उसके बाद एक क्लिक करके नंबर सेव किया जा सकेगा।
My code के ठीक बगल में यूजर्स को Scan Code का ऑप्शन भी दिखाई देगा। इसके जरिए आपको फोन का कैमरा ओपन हो जाएगा, जिससे आप किसी और यूजर का कोड स्कैन करके उनका नंबर अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव कर पाएंगे। यानी अब आपको नंबर टाइप करने की कोई जरूरत नहीं होगी। पिछले हफ्ते इस फीचर की भी घोषणा की गई थी, लेकिन अभी यह सभी यूजर्स को मिलना बाकी है। यह आने वाले कुछ हफ्तों में यूजर्स तक पहुंच सकता है।
अब जल्द ही आम यूजर्स के लिए QR code का सपॉर्ट आने वाला है। इस फीचर के आ जाने से वॉट्सऐप पर नंबर सेव करने का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।
कंपनी इस फीचर को कई महीनें से टेस्ट कर रही है। कुछ वॉट्सऐप बीटा यूजर्स को यह फीचर पिछले साल ही मिल गया था। अब इसे जल्द ही सभी यूजर्स के लिए जारी कर दिया जाएगा। इसके बाद सभी यूजर्स का अपना यूनीक QR कोड होगा, जिसे दूसरे यूजर्स स्कैन करके अपने फोन में नंबर सेव कर पाएंगे। तो आइए जानते हैं यह फीचर किस तरह काम करेगा
Whatsapp यूजर्स की प्रोफाइल के ठीक बगल में एक QR कोड आ जाएगा। इस कोड को देखने के लिए यूजर्स को ऐप की Settings में जाना होगा, जहां प्रोफाइल नेम और पिक्चर के साथ यह कोड भी मिलेगा। अगर आप QR कोड के आइकॉन पर टैप करेंगे तो यह My Code के नाम की एक टैब में ओपन हो जाएगा। यह कोड आप दूसरों के साथ शेयर भी कर पाएंगे।
किन्नौर/तवांग, 7 जुलाई। कोरोना संकट के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप का आना जारी है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के झटके महसूस किए गए। तीनों ही जगहों पर भूकंप की तीव्रता काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा के बाद किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
हिमाचल में रात 1 बजकर 3 मिनट पर भूकंप के झटके लगे। भूकंप का केंद्र किन्नौर के पूर्वोत्तर इलाके में 7 किमी धरती के नीचे था। वहीं, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में मंगलवार को 5.0 तीव्रता का भूकंप आया। नैशनल सेंटर फॉर सिसमॉलजी के मुताबिक, यूपी की राजधानी लखनऊ से 59 किमी उत्तर-पूर्वोत्तर में धरती के 5 किमी नीचे भूकंप का केंद्र था। भूकंप के झटके सुबह 9 बजकर 55 पर महसूस किए गए।
देश-विदेश के कई इलाकों में बीते दिनों लगातार भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी इलाके में भी हाल ही में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। (navbharattimes.indiatimes.com)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। गढ़चिरौली में मंगलवार को नक्सल आपरेशन एएसपी के चालक ने गोली मारकर खुदकुशी कर ली है। इस खबर से महकमे में खलबली मच गई। बीते एक महीने में गढ़चिरौली पुलिस में जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की दूसरी घटना है।
बीते माह धनोरा थाने में पदस्थ एक एएसआई ने पारिवारिक कारणों से खुद की जान ले ली थी। बताया जा रहा है कि नक्सल ऑपरेशन एएसपी श्री ढ़ोले के बंगले में वाहन चालक मदन गौरकर (47 वर्ष) ने रायफल से जान ले ली।
1992 में उक्त जवान ने गढ़चिरौली जिला पुलिस में भर्ती हुआ था। बताया जा रहा है कि जवान पिछले कुछ दिनों से तनाव में था। जिसके चलते उसने यह घातक कदम उठाया। एसपी शैलेष बलकवड़े ने पूरे मामले की छानबीन करने के निर्देश दिए हैं।
साल भर पहले समर्पण कर भर्ती हुआ था
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा/किरंदुल, 7 जुलाई। बीती रात किरंदुल थाना से 15 किमी की दूरी पर गांव से नक्सलियों ने सिपाही के पिता का अपहरण कर लिया। इससे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। एसपी अभिषेक पल्लव ने इस घटना की पुष्टि की है। ज्ञात हो कि अजय तेलाम करीब साल भर पहले समर्पण कर पुलिस में भर्ती हुआ था, इससे नक्सली उससे नाराज थे।
बताया जा रहा है कि बीती रात दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में पदस्थ पुलिस जवान अजय तेलाम के गांव गुमियापाल में 50 की संख्या में हथियारबंद नक्सली आए। अजय के पिता लछु तेलाम (50) को घर से नक्सली उठाकर ले गए। लछु की पत्नी ने बहुत रोकने की कोशिश की, पर नक्सली नहीं माने। छुड़ाने पीछे-पीछे जाने लगी तो नक्सलियों ने उसे रास्ते से भगा दिया और उसके पिता को ले गए हैं। घटना के समय पुलिस ड्यूटी में गया था। घटना के बाद गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रामीणों के चेहरे में खौफ दिखाई दे रहा है।
मामला सामने आने के बाद पुलिस ने टीमें बनाई है और उनकी खोजबीन चल रही है। उधर अजय भी अपने संपर्कों के आधार पर खोजबीन में लगा है। उसने अपील की है कि नक्सली उसके माता-पिता को मानवता के आधार पर छोड़ दें।
दंतेवाड़ा एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव ने बताया कि नक्सली कमांडर कमलेश व अन्य के खिलाफ किरंदुल थाना में अपराध दर्ज कर लिया गया है।
नई दिल्ली, 7 जुलाई (एजेंसी)। अटलांटा में हाल के विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत का केंद्र रहे एक स्थान के निकट से गुजर रही कार पर हुई गोलीबारी में आठ साल की एक बच्ची की मौत चार जुलाई को हो गई। हथियार से लैस कम से कम दो लोगों ने कार पर गोली चलाई थी।
पुलिस ने बच्ची की पहचान सिकोरिया टर्नर के रूप में की है। अटलांटा की मेयर किशा लांस बॉटम्स ने रविवार को एक भावनात्मक संवाददाता सम्मेलन में बच्ची की शोकाकुल मां के बगल में बैठकर पीडि़त के लिए न्याय की मांग की। यह घटना वेंडी रेस्त्रां के निकट हुई। यह वही स्थल है जहां 12 जून को अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति रेशार्ड बू्रक्स की हत्या अटलांटा के एक पुलिस अधिकारी ने कर दी थी। इसके बाद इस रेस्त्रां को जला दिया गया और इलाका पुलिस बर्बरता के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया।
अधिकारियों ने कहा कि इस क्षेत्र में अवैध तौर पर रखे गए अवरोधकों से बच्ची की मां ने गुजरने का प्रयास किया और उसी समय शनिवार रात में वाहन पर गोलियां चली। अटलांटा जर्नल कंस्टीट्यूशन के अनुसार मेयर ने कहा, तुमने गोली चलाई और आठ साल की एक बच्ची को मार डाला। वहां सिर्फ एक गोली चलानेवाला नहीं था बल्कि गोली चलाने वाले कम से कम दो लोग थे। पुलिस ने कहा है कि लोगों से गोलीबारी करने वालों की पहचान के लिये मदद ली जा रही है। उन्होंने इस संबंध में एक पोस्टर भी जारी किया है कि इसमें शामिल एक व्यक्ति के पूरी तरह से काले कपड़े पहने होने जबकि एक अन्य व्यक्ति के सफेद टीशर्ट में होने की बात कही गई है।
जवानों से पैसे मांगने का भी आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। होमगार्ड कमांडेंट के प्रभार संभाल रहे एक एएसआई का शराब पीने और जुआ खेलने का एक वीडियो वायरल हुआ है। वीडियो में साफ तौर पर प्रभारी कमांडेंट एएसआई द्वारा खुलकर परिसर में जाम छलकाया जा रहा है। वहीं अन्य कर्मियों के साथ बिना रोकटोक एएसआई जुआ भी खेलते नजर आ रहा है। बताया जा रहा है कि पुराना ढाबा स्थित होमगार्ड के कार्यालय में पदस्थ एएसआई नोहर सिंह वर्मा फिलहाल कमांडेंट अरूण सिंह के अवकाश में होने के कारण कमांडेंट का प्रभार सम्हाल रहे हैं। हालांकि यह बड़ा सवाल है कि एएसआई को कमांडेंट जैसे राजपत्रित पद का प्रभार दिया गया है।
मिली जानकारी के मुताबिक कमांडेंट अरूण सिंह पिछले 5 दिनों से अवकाश पर हैं। होमगार्ड में कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर श्री सिंग ने एएसआई को कमांडेंट जैसा एक बड़ा जिम्मेदार प्रभार दे दिया। प्रभारी बनते ही एएसआई ने पूरे कैम्पस को हिलाकर रख दिया है। जवानों से खुलेआम जूते और अन्य जरूरी सामानों के एवज में रुपए भी एएसआई द्वारा मांगा जा रहा है। वहीं कैम्पस में शराब पीने के साथ-साथ एएसआई दूसरे कर्मियों के साथ खुलकर जुआ भी खेल रहा है।
इस संबंध में ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते कमांडेंट अरूण सिंह ने कहा कि फिलहाल मैं छुट्टी पर हूं। कर्मचारियों की कमी के कारण एएसआई को प्रभार देने की मजबूरी थी। उन्होंने कहा कि अवकाश से लौटने के बाद मामले की जानकारी लेकर कार्रवाई की जाएगी। इधर एएसआई के द्वारा कथित तौर पर जूते समेत अन्य आवश्यक सामग्रियों के लिए रुपए भी मांगा जा रहा है। खुलेआम एएसआई प्रभार में रहते हुए जवानों से वसूली कर रहा है। कैम्पस में इस कथित रंगदारी से जवानों में काफी नाराजगी है। अनुशासन के दायरे में रहने के दबाव के सामने जवान आलाधिकारियों को अपनी पीड़ा से अवगत नहीं करा पा रहे हैं। महकमे के अफसर इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ संवाददाता
महासमुंद, 7 जुलाई। जिले के बागबाहरा विकासखंड के टुहलू चौकी क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम द्वारतरा कला में आज एक बुजुर्ग महिला की हत्या कर दी गई। पुलिस आरोपी की तलाश में जुट गई है।
कोमाखान पुलिस के अनुसार ग्राम द्वारतरा कला में रहने वाली 65 वर्षीय वृद्ध महिला बिसाहिन बाई सेन पर आज सुबह 6.30 बजे हेमलाल सेन ने टंगिये से हमला कर दिया। घायल बुजुर्ग को 108 वाहन से जिला अस्पताल महासमुन्द ले जाते समय रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।
-श्रवण गर्ग
दुनिया के देशों में नागरिक अपने राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और अन्य नायकों को विभिन्न रूपों में देखकर कैसी प्रतिक्रियाएँ अंदर से महसूस करते हैं उसका कोई प्रामाणिक सर्वेक्षण और विश्लेषण प्रकट होना अभी बाकी है। नागरिक इस बारे में या तो सोच ही नहीं पाते या फिर व्यक्त किए जाने के सम्भावित खतरों से खौफ खाते हैं। इतना तो तय है कि उनके दिलों में अपने नायकों की एक विशेष छवि लगातार स्थापित होती जाती है। धार्मिक-राजनीतिक ताबीज और बाजूबंद नागरिकों पर ऊपर से आरोपित किए जा सकते हैं पर अंदर की छवियाँ नहीं। न ही उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन या संशोधन किया जा सकता है।
अपवादों को छोड़ दें तो वर्तमान में अधिकांश नायक अपने आंतरिक व्यक्तित्व से ज़्यादा जनता के बीच बाह्य छवि को लेकर ही परेशान रहते हैं। वे अपनी भीतरी कमजोरियों को ऊपरी आवरण या स्वआरोपित आत्मविश्वास से ढंकने की कोशिशों में ही पूरे समय लगे रहते हैं।वे उसी छवि के फिर बंदी भी हो जाते हैं। राजनेताओं के अलावा सेना के सेवानिवृत बड़े अफसर भी उदाहरण के तौर पर गिनाए जा सकते हैं।
दुनिया भर के राजनेता, जहाँ केवल मुखौटों वाला प्रजातंत्र ही बचा है वहाँ भी, अपने विरोधियों की राजनीतिक ताकत या तमाम भ्रष्टाचार के बावजूद हारने या जीतने की संभावनाओं पर घोषित-अघोषित या प्रायोजित सर्वेक्षण करवाते रहते हैं। इन्हें अंजाम देने वाली एजेंसियाँ भी अच्छे से जानती हैं कि उन्हें नतीजे किस तरह के पेश या प्रचारित करना हैं। राजनेता ऐसे किसी सर्वेक्षण की जोखिम नहीं लेते कि कितने लोग उन्हें दिल से और कितने मज़बूरी में पसंद करते हैं!
तानाशाही या एक ही पार्टी वाली व्यवस्थाओं (उत्तर कोरिया, चीन, रूस आदि) में तो इस तरह के सर्वेक्षण का सोच भर ही मौत का इंतज़ाम कर सकता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड के गैस चैम्बरों में हजारों यहूदियों को मारने के लिए डाले जाने से पूर्व क्या उनसे पूछा जा सकता था कि वे किसे पसंद और किसे नापसंद करते हैं और क्या उनके सकारात्मक जवाब को स्वीकार कर उन्हें माफ कर दिया जाता? प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं में भी नागरिकों के मनों को अंदर से खंगालने का कोई फूल-प्रूफ तरीका राजनीतिक वैज्ञानिक अभी ईजाद नहीं कर पाए हैं। शायद इसीलिए बहुत सारे चुनावी सर्वेक्षण या ओपिनियन पोल्स ग़लत साबित हो जाते हैं जैसा कि 1980 और 2004 में हम देख चुके हैं।
कतिपय नायक ऐसे होते हैं जिन्हें अंदर से ही ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त रहती है कि उनके बिना कोई भी इतिहास लिखा ही नहीं जा सकेगा।इसीलिए ऐसे लोगों ने इतिहास लिखने का प्रयास भी कभी नहीं किया। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, जान एफ कैनेडी, नेलसन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग आदि कई उदाहरण हैं। ये लोग केवल अपनी जनता की ओर ही आँखें भरकर देखते रहे; उसकी उपस्थिति मात्र से ही अभिभूत और अनुप्राणित होते रहे। उनका इतिहास गढऩे का काम जनता करती रही। अपने चले जाने के लंबे अरसे के बाद भी ये नायक करोड़ों लोगों के दिलों में जो जगहें बनाए हुए हैं उसके लिए उन्होंने कभी उस तरह के कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयास नहीं किए होंगे जैसे कि इस समय किए जा रहे हैं। इसका कारण तब शायद यही रहा होगा कि न तो उन्हें अपनी छवि के प्रति कोई मोह या अहंकार था और न ही उसके छिन जाने को लेकर भय।अपनी जनता के असीम प्रेम में उनका अनन्य भरोसा था।
ऊपर की पंक्तियों में व्यक्त विचार केवल दो घटनाओं के कारण उपजे हैं और दोनों का संबंध दुनिया के दो सबसे बड़े प्रजातंत्रों-अमेरिका और भारत से है। अमेरिका में चल रहे अश्वेतों के आंदोलन को धार्मिक रूप से परास्त करने के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प व्हाइट हाउस के नजदीक स्थित उस पुराने चर्च तक पैदल गए जो आंदोलन में क्षतिग्रस्त हो गया था। पर वहाँ पहुँचकर ट्रम्प ने सबसे पहले बाहर एक खुले स्थान पर ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल को हाथों में उठाकर फोटो खिंचवाया। अमेरिकी जनता, जिसमें श्वेत अश्वेत सभी शामिल थे, ने ट्रम्प के इस कार्य को इसलिए पसंद नहीं किया कि वह अपने राष्ट्रपति की हरेक गतिविधि को पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के आईने में ही देखती है और अपनी प्रतिक्रिया भी बिना किसी भय के खुले तौर पर व्यक्त करती है।
दूसरा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले दिनों लेह से कोई पैंतीस किलो मीटर दूर नीमू नामक जगह की बहु-प्रचारित यात्रा है। प्रधानमंत्री की पोशाक, सैनिकों (राष्ट्र भी) के समक्ष उनके समूचे उद्बोधन की मुद्राएँ, गलवान घाटी में हुई झड़प में घायल सैनिकों से उनकी कुशल-क्षेम का पता करने कथित तौर पर एक कॉफ्रेंस हाल को परिवर्तित करके बनाए गए (कन्वर्टीबल) अस्पताल की उनकी मुलाकात आदि को लेकर जो चित्र और टिप्पणियाँ प्रचारित हो रही हैं वे उनकी उस ‘विनम्र किंतु दृढ़’ छवि को खंडित करती हैं जो कोराना संकट के दौरान राष्ट्रीय संबोधनों में अब तक प्रकट होती रही है। समान परिस्थितियों को लेकर नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की जो प्रतिमाएँ जनता के हृदयों में स्थापित हैं, वे मोदी की लेह यात्रा से काफी भिन्न हैं।
विश्वभर की जनता के साथ ही हम भी जिस तरह से अपने यहाँ अमरीकी राष्ट्रपति अथवा अन्य नेताओं को उनके बदलते हुए अवतारों में देख रहे हैं, वैसे ही हमारे प्रधानमंत्री को भी दुनिया भर में देखा और परखा जा रहा होगा। अमेरिका में तो खैर चार महीने बाद ही चुनाव हैं पर हमारे यहाँ अभी उसकी दूर-दूर तक आहट भी नहीं है। ट्रम्प के बारे में तो सबको ऐसा ही पता है कि वे किसी की सलाह की परवाह नहीं करते पर हमारे प्रधानमंत्री को तो कोई बताता ही होगा कि उनके कट्टर समर्थकों के अलावा भी जो देश में जनता है वह उनकी छवि को लेकर इस समय क्या सोच रही है !
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 7 जुलाई। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चिकित्सकों और स्टाफ के साथ गत दिनों हुई मारपीट के मामले में चिकित्सकों ने आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होने पर मंगलवार को ओपीडी बंद करने की चेतावनी दी थी, जिसके तहत आज सुबह से चिकित्सक लामबंद हो गए और ओपीडी बंद कर दी।
हड़ताल के कारण प्रात: 9 से लेकर 11 बजे तक ओपीडी बंद रही। चिकित्सक अस्पताल के सामने खड़े होकर हाथ में तख्ती लेकर धरना देने लगे। चिकित्सकों के धरने को लेकर भारी संख्या में मणिपुर पुलिस बल भी तैनात रहा। अंदर एडिशनल एसपी ओम चंदेल सीएससी व अधीक्षक सहित वरिष्ठ चिकित्सकों के बीच आधे घंटे तक चर्चा चली। बाद में बाहर निकलकर एडिशनल एसपी ने चिकित्सकों के सामने दावा करते हुए कहा कि हमने आरोपी को रांची से पकड़ लिया है। पुलिस उसे दोपहर तक अम्बिकापुर लेकर पहुंच जाएगी।
एडिशनल एसपी की समझाइश के बाद चिकित्सक काम पर लौटे, हालांकि कई चिकित्सक बाद में यह कहते हुए भी डटे हुए थे कि जब तक आरोपी को अंबिकापुर लाया नहीं जाता है, तब तक वे धरना देंगे, परंतु बाद में प्रबंधन की समझाइश पर सभी काम पर वापस लौटे।
धरने का समर्थन अस्पताल के कर्मचारियों ने भी किया, हालांकि वार्ड में स्टाफ नर्स काम कर रही थीं, परंतु आखिरी में वे भी धरना में शामिल हो गई थीं। ओपीडी का काम 2 घंटे प्रभावित रहा, परंतु वार्ड में काम प्रभावित नहीं हो पाया था। हालांकि 2 घंटे ओपीडी बंद रहने से मरीजों को परेशानी जरूर हुई।
गौरतलब है कि 3 जुलाई की रात्रि 8 बजे मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थ एवं ड्यूटीरत् चिकित्सक डॉ. पुकेश्वर वर्मा, डॉ. दीपक चन्द्रवंशी एवं स्टॉफ नर्सों के साथ अंकित दुबे नामक युवक ने बदतमीजी गाली-गलौज और मारपीट की थी। जिसके बाद डॉ. भूपेश भगत, डॉ. अनुपम मिंज, डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता के द्वारा उक्त युवक पर एफआईआर दर्ज करने व 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग की गई थी।
आरोपी युवक अंकित दुबे को गिरफ्तार नहीं करने पर चिकित्सकों ने मंगलवार की सुबह से सभी ओपीडी सेवाओं, आपातकालीन सेवाओं को बंद कर दिया और हड़ताल पर चले गए थे। पुलिस द्वारा युवक की गिरफ्तारी करने के आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हुआ।
पार्टी कार्यालय में हंगामे के बाद कार्रवाई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 जुलाई। भाजपा के जिलाध्यक्ष मधुसूदन यादव ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए पूर्व एल्डरमेन पारूल जैन को छह साल के लिए पाटी से बर्खास्त कर दिया है। यह कार्रवाई महिला नेत्री जैन के कल पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष यादव के साथ खराब बर्ताव के चलते हुई है। पारूल जैन को संगठन से चलता कर जिलाध्यक्ष ने पार्टी में अनुशासित नही रहने वाले कार्यकर्ताओं को एक तरह से कड़ा संदेश दिया है।
बताया जाता है कि कल सोमवार शाम को पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष यादव कुछ नेताओं और पदाधिकारियों के साथ सांगठनिक मुद्धे को लेकर बैठक कर रहे थे। इस बैठक के बीच में ही पारूल जैन गुस्से में जिलाध्यक्ष यादव ने कई तरह के सवाल-जवाब कर रही थी। बताया जाता है कि पारूल जैन को कुछ कार्यकर्ताओं ने बदतमीजी के साथ बात करने पर टोका। इसके बाद भी वह यादव से सीधे भिडऩे लगी।
मिली जानकारी के अनुसार पार्टी बैठको और कार्यक्रमों की सूचना नहीं मिलने से नाराज होकर जिलाध्यक्ष से भिडऩे लगी। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं को शुरूआती माजरा समझ में नही आया। लेकिन पारूल जैन की शोर से दूसरे कमरों में बैठे पदाधिकारी भी पहुंच गए। बताया जाता है कि पारूल जैन पर किसी की समझाईश का असर नही पड़ा। वह लगातार भड़ास निकालते हुए पार्टी की दूसरी महिला के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द कहने लगी। मिली जानकारी के अनुसार पारूल जैन हाल ही में नए सिरे से निगम में हुए सफाई ठेेका हासिल करने में पीछे रह गई। यादव के महापौर रहते हुए पारूल जैन ने कई वार्डो में ठेका लेकर कमाई की।
बताया जाता है कि पारूल जैन यादव पर निजी ठेका दिलाने का दबाव भी बनाए हुए थी। हालांकि नए ठेके में भाजपा के आधा दर्जन नेताओं को कांग्रेस शासित निगम से ठेका मिला है। यही बात पारूल जैन को रास नही आई। बताया जाता है कि यादव के साथ पारूल जैन के शर्मनाक स्थिति तक विवाद किया। बताया जाता है कि संगठन ने इस रवैय्ये को लेकर कड़ा रूख अख्तियार करते हुए पारूल जैन को बाहर का रास्ता दिखाया है। जिलाध्यक्ष यादव ने घटनाक्रम के कुछ घंटों के भीतर छह साल के लिए जैन को पार्टी से बर्खास्त करने का फरमान जारी किया।
इस संबंध में ‘छत्तीसगढ़’ से पारूल जैन ने कहा कि बिना नोटिस के मुझे बर्खास्त करने की जानकारी मिली है। लिखित में नोटिस मिलने के बाद प्रदेश संगठन के समक्ष अपनी स्थिति को लेकर जानकारी देगी। इस बीच कल हुए इस तीखी नोंकझोंक के बाद यह साफ दिख रहा है कि भाजपा के भीतर सबकुछ ठीक नही है।
परिवार चाहता है मामले की जांच
AIIMS सूत्र भी बताते हैं कि कहीं ना कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से संक्रमित दिल्ली के पत्रकार की सुइसाइड मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एम्स प्रशासन की तरफ से पत्रकार तरुण सिसोदिया की मौत को लेकर बयान जारी किया गया है, लेकिन बयान के बाद भी सवाल बने हुए हैं, जिसके जवाब के लिए एम्स और एम्स ट्रॉमा सेंटर प्रशासन से लगातार प्रयास किया गया, लेकिन उनकी चुप्पी बनी हुई है।
एम्स सूत्र भी बताते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा गया है।
एम्स प्रशासन की तरफ से बयान जारी कर बताया गया है कि कोविड की वजह से तरुण को एम्स ट्रॉमा सेंटर में 24 जून को एडमिट किया गया था। वह फिलहाल टीसी-1 आईसीयू में था, जो पहली मंजिल पर है।
एम्स ने अपने बयान में कहा है कि तरुण की रिकवरी बेहतर थी और रूम एयर में सांस ले पा रहे थे। इसलिए सोमवार को तरुण को आईसीयू से वॉर्ड में शिफ्ट करने की योजना थी। एम्स ने अपने बयान में उनके ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का भी जिक्र किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि इसको लेकर न्यूरो और सायकायट्री के डॉक्टर को दिखाया गया था।
उनके फैमिली मेंबर को लगातार तरुण की सेहत को लेकर जानकारी दी जा रही थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि तरुण के परिवार के लोग उनके जर्नलिस्ट दोस्तों से फोन करके अपडेट लेते थे। एक दिन ऑक्सीजन पाइप को लेकर दिक्कत आई थी तो उनके दोस्तों ने इसकी सूचना एम्स प्रशासन को दी थी, तब जाकर उसे ठीक किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि अगर अस्पताल की तरफ से जानकारी दी जा रही थी तो परिवार के लोग अस्पताल के बजाय दूसरे को फोन क्यों करते? एम्स ने अपने बयान में आगे लिखा है कि दोपहर 1: 55 बजे तरुण आईसीयू से निकल कर भागे, बताया गया है कि उनके पीछे हॉस्पिटल अटेंडेंट भी भागे। तरुण चौथी मंजिल पर पहुंच गया, वहां विंडो तोड़कर छलांग लगा दी, जिसके बाद उन्हें आनन फानन में आईसीयू में एडमिट किया गया, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी बचा नहीं पाए।
एम्स के सूत्र का कहना है कि प्रशासन की यह यह थ्योरी भी थोड़ी अटपटी लग रही है, क्योंकि एक मरीज, जो पिछले कई दिनों से कोविड संक्रमण की वजह से आईसीयू में एडमिट है, जिसे सांस लेने में दिक्कत है, वह पहली मंजिल से चौथी मंजिल तक भाग कर पहुंच गया और हॉस्पिटल अटेंडेंट उस तक पहुंच नहीं पाया।
एक बीमार मरीज ने विंडो तोड़ दिया और हॉस्पिटल अटेंडेंट फिर भी वहां नहीं पहुंच सका। कहीं न कहीं सिक्यॉरिटी स्तर पर कमी दिख रही है। एक आईसीयू से मरीज निकल जाता है और उसे रोक नहीं पाता है। ऐसे और भी सवाल हैं, जिनके जवाब एम्स को देने चाहिए। एनबीटी ने ऐसे कई सवाल और भी एम्स प्रशासन से पूछे, लेकिन जवाब नहीं मिला। वॉर्ड बदलने का भी एम्स प्रशासन पर आरोप है, लेकिन एम्स की चुप्पी गंभीर सवाल खड़ा दिया है। (navbharattimes.indiatimes.com)
संयुक्त राष्ट्र ने दी चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था का कहना है कि अगर इंसानों ने जंगली जीवों को मारना और उनका उत्पीड़न जारी रखा तो उसे कोरोना वायरस संक्रमण जैसी और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.
यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम ऐंड इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस जैसे ख़तरनाक संक्रमण के लिए पर्यावरण को लगातार पहुंचने वाला नुक़सान, प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों का उत्पीड़न जैसी वजहें ज़िम्मेदार हैं.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जानवरों और पक्षियों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां लगातार बढ़ी हैं. विज्ञान की भाषा में ऐसी बीमारियों को ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ कहा जाता है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर इंसानों ने पर्यावरण और जंगली जीवों को नहीं बचाया तो उसे कोरोना जैसी और ख़तरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रोटीन की बढ़ती मांग के लिए जानवरों को मारा जा रहा है और इसका ख़ामियाज़ा आख़िरकार इंसान को ही भुगतना पड़ रहा है.
हर साल लाखों लोगों की मौत
विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों से होने अलग-अलग तरह की बीमारियों के कारण दुनिया भर में हर साल तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है.
पिछलों कुछ वर्षों में इंसानों में जानवरों से होने वाली बीमारियों यानी ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ में इजाफ़ा हुआ है. इबोला, बर्ड फ़्लू और सार्स जैसी बामारियां इसी श्रेणी में आती हैं.
पहले ये बीमारियां जानवरों और पक्षियों में होती हैं और फिर उनके ज़रिए इंसानों को अपना शिकार बना लेती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़ूनोटिक बीमारियों के बढ़ने की एक बड़ी वजह ख़ुद इंसान और उसके फ़ैसले हैं.
बेतहाशा बढ़ा है मांस का उत्पादन
यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडर्सन ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरसों की वजह से होने वाले कम से कम छह तरह के ख़तरनाक संक्रमण झेल चुका है.
उन्होंने कहा, “मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कम से कम 20 लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज़ जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है. इतना ही नहीं, इन बीमारियों से न जाने कितना आर्थिक नुक़सान भी होता है.”
इंगर एंडर्सन ने कहा, “पिछले 50 वर्षों में मांस का उत्पादन 260% बढ़ गया है. कई ऐसे समुदाय हैं जो काफ़ी हद तक पालतू और जंगली जीव-जंतुओं पर निर्भर हैं. हमने खेती बढ़ा दी है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बेतहाशा किए जा रहे हैं. हम जंगली जानवरों के रहने की जगहों को नष्ट कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि बांध, सिंचाई के साधन, फ़ैक्ट्रियां और खेत भी इंसानों में होने वाली संक्रामक बीमारियों के लिए 25% तक ज़िम्मेदार हैं.
कैसे हल होगी मुश्किल?
इस रिपोर्ट में सिर्फ़ समस्याएं ही नहीं गिनाई गई हैं, बल्कि सरकारों को ये भी समझाया गया है कि भविष्य में इस तरह की बीमारियों से कैसे बचा जाए.
विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में पर्यावरण को कम नुक़सान पहुंचाने वाली खेती को बढ़ावा देने और जैव विविधता को बचाए रखने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है.
एंडर्सन कहती हैं, “विज्ञान साफ़ बताता है कि अगर हम इकोसिस्टम के साथ खिलवाड़ करते रहे, जंगलों और जीव-जंतुओं को नुक़सान पहुंचाते रहे तो आने वाले समय में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ेंगी.”
उन्होंने कहा कि भविष्य में कोरोना वायरस संक्रमण जैसी ख़तरनाक बीमारियों को रोकने के लिए इंसान को पर्यावरण और जीव-जंतुओं की रक्षा को लेकर और संज़ीदा होना पड़ेगा. (www.bbc.com)
केंद्र द्वारा आबंटित अनाज जरूरतमंद लोगों को उपलब्ध कराए
रायपुर: छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) ने कांग्रेस सरकार पर राज्य के गरीबों और जरूरतमंदों को खाद्यान्न सुरक्षा से वंचित करने का आरोप लगाया है। किसान सभा ने सरकार से पूछा है कि मुफ्त अनाज का नागरिकों के बीच वितरण किये बिना ही वह जनता का पेट भरने का चमत्कार कैसे कर रही है?
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने केंद्र सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि प्रवासी मजदूरों सहित राज्य के गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त अनाज वितरण के लिए मई और जून माह में 20000 टन चावल का आबंटन किया गया था। इस आबंटन से प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल मुफ्त देने की केंद्र की घोषणा के अनुसार प्रदेश के 40 लाख लोगों को कुछ राहत पहुंचाई जा सकती है। लेकिन राज्य सरकार ने केवल 944 टन चावल का उठाव किया है, जो अधिकतम 95 हजार लोगों के बीच ही वितरित किया जा सकता है। हालांकि केंद्र द्वारा यह आबंटन प्रदेश की जरूरतों से कम है, इसके बावजूद इस खाद्यान्न के केवल 5% का ही उठाव यह बताता है कि उसे जनता को पोषण-आहार देने की कोई चिंता नहीं है। उठाये गए इस खाद्यान्न का भी पूरा वितरण हुआ है कि नहीं, इस बात की भी कोई जानकारी नहीं है।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि जिस प्रदेश में दो-तिहाई से ज्यादा आबादी गरीब हो, असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूरों और ग्रामीण गरीबों की आजीविका खत्म हो गई हो और 5 लाख प्रवासी मजदूर अपने गांव-घरों में लौटकर भुखमरी का शिकार हो रहे हैं, वहां जरूरतमंद और गरीब नागरिकों को मुफ्त अनाज न देकर उन्हें खाद्यान्न सुरक्षा से वंचित करना आपराधिक कार्य है। वास्तव में इस सरकार ने आम जनता को अपनी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार के रहमोकरम पर छोड़ दिया है। उसका जनविरोधी रूख इससे भी स्पष्ट है कि वह राज्य के पास उपलब्ध अतिशेष चावल को भुखमरी मिटाने के लिए इस्तेमाल करने के बजाय इससे इथेनॉल बनाने की मंजूरी केंद्र से मांग रही है।
उन्होंने कहा कि कोरोना संकट की आड़ में कालाबाजारियों ने रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया है और वे दुगुने-तिगुने भाव में बिक रही हैं। इससे आम जनता को बचाने के लिए मुफ्त अनाज वितरण ही न्यूनतम सुरक्षा का उपाय है, जिसे पूरा करने से कांग्रेस सरकार ने इंकार किया है।
किसान सभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि केंद्र द्वारा आबंटित अनाज का उठाव कर सभी जरूरतमंद लोगों को इसे उपलब्ध कराए, उसके पास जमा अतिशेष चावल का भी वितरण करें तथा इस चावल को इथेनॉल में बदलने के अपने फैसले को रद्द करें। किसान सभा ने कहा है कि हवा-हवाई विज्ञापनी दावों से आम जनता का पेट नहीं भरने वाला है।
93 देशों के 1300 शोधकर्ता और विशेषज्ञ शामिल
आजकल पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से परेशान है। लाखों लोग इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं, जबकि मरने वालों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस जानलेवा वायरस को काबू में करने के लिए वैक्सीन कब तैयार होगी।
आजकल पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से परेशान है। लाखों लोग इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं, जबकि मरने वालों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस जानलेवा वायरस को काबू में करने के लिए वैक्सीन कब तैयार होगी। इस दौरान विश्व भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता शिद्दत के साथ इस कोशिश में जुटे हैं कि जल्द से जल्द इसका टीका बनाया जा सके। ताकि इस महामारी पर नियंत्रण किया जा सके।
चीन सहित कई देश वैक्सीन विकसित करने के लिए पूरी मेहनत से लगे हैं। इसमें विश्व की सबसे स्वास्थ्य एजेंसी डब्ल्यूएचओ की भूमिका को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। हालांकि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का फंड रोक दिया है, बावजूद इसके चीन आदि देश इस संगठन को मदद दे रहे हैं। क्योंकि वायरस को कंट्रोल में करना बहुत जरूरी है, अन्यथा विश्व में आर्थिक मंदी का असर और गहरा होता जाएगा।
गौरतलब है कि कई देशों के वैज्ञानिक बार-बार दावा कर रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में वैक्सीन तैयार हो सकती है। लेकिन कई चरणों के ह्यूमन ट्रायल के बाद ही टीके की असली परख होती है। ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि वैक्सीन कब तक बाजार में आ पाएगी। इस बीच भारत में दावा किया जा रहा है कि 15 अगस्त को कोविड-19 रोधी वैक्सीन मरीजों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो जाएगी।
डब्ल्यूएचओ के हालिया बयान पर गौर करें तो पता चल जाएगा कि इस हेल्थ एजेंसी ने टीका तैयार होने की कोई निश्चित समय-सीमा तय बताने से इनकार किया है। पर इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन शायद 2020 के अंत तक तैयार हो जाए। भले ही वैक्सीन बन जाए, लेकिन यह सवाल कम बड़ा नहीं कि बड़ी मात्रा में इसका निर्माण हो। और साथ ही कौन सी वैक्सीन असल में प्रभावी होगी, यह भी एक समस्या है।
डब्ल्यूएचओ के आपात परियोजना प्रमुख माइकल रयान के मुताबिक कुछ टीकों के शुरुआती ट्रायल के डेटा आशा की किरण जगाते हैं, लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन सा टीका अधिक प्रभावी होगा।
वहीं बताया जाता है कि डब्लूएचओ के कोविड-19 ग्लोबल रिसर्च फोरम में 93 देशों और क्षेत्रों के लगभग 1300 शोधकर्ता और विशेषज्ञ शामिल हैं। जो कि लगातार अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। इतना ही नहीं डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में 39 देशों और क्षेत्रों के लगभग साढ़े पांच हजार रोगियों को भर्ती किया गया और अगले कुछ सप्ताह में इसके परिणाम सामने आएंगे। (आईएएनएस)
24 घंटे में 22,252 नए केस, 467 मौतें
देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 7 लाख के पार पहुंच गया है। पिछले 24 घंटे में 22,252 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 67 लोगों की मौत हो गई है।
पिछले 24 घंटे में 2,41,430 सैंपल का टेस्ट किया गया: ICMR
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने बताया कि 5 जुलाई तक कुल 1,02,11,092 सैंपल का टेस्ट किया गया, जिनमें से 2,41,430 सैंपल का टेस्ट कल किया गया।