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लखनऊ, 17 जुलाई। उत्तर प्रदेश की सरकार का कहना है कि पुलिस ने आत्मरक्षा में विकास दुबे पर गोली चलाई. यूपी सरकार ने ये बात सुप्रीम कोर्ट में कही है.
विकास दुबे की कथित पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी. इस कथित एनकाउंटर को लेकर कई सवाल भी उठे थे कि इतनी संख्या में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में विकास दुबे ने भागने की कैसे कोशिश की.
उत्तर प्रदेश की सरकार का कहना है कि 10 जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन से कानपुर लाते समय पुलिस की गाड़ी पलट गई थी और विकास दुबे ने वहाँ से भागने की कोशिश की. सरकार का कहना है कि भागते समय वो लगातार पुलिसवालों पर गोलियाँ चला रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफ़नामे में उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा है कि विकास दुबे के ख़िलाफ़ 64 आपराधिक मामले दर्ज थे और एक मामले में वे आजीवन कारावस की सज़ा पा चुके थे.
यूपी सरकार ने कहा है कि 2 जुलाई की रात बिकरू गाँव में हुई मुठभेड़ के दौरान विकास दुबे ने आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.
कथित एनकाउंटर में विकास दुबे की मौत पर सरकार का कहना है कि पुलिस के पास गोली चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि विकास दुबे पुलिसवालों को मारकर भागने की कोशिश कर रहे थे.
कथित एनकाउंटर पर सवाल
अपने हलफ़नामे में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने कहा है कि विकास दुबे ने पुलिस से पिस्तौल छीनकर फ़ायरिंग शुरू कर दी थी. उन्होंने दावा किया कि घटना बिल्कुल वास्तविक है, इसे गढ़ा नहीं गया है.
उन्होंने ये भी बताया कि सरकार इस मामले में एक न्यायिक जाँच आयोग का गठन पहले ही कर चुकी है. लेकिन उनका कहना था कि इस मामले को फर्जी मुठभेड़ नहीं कहना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में अपराधी-पुलिस-राजनेता संबंध के अलावा बिकरू गाँव में हुई मुठभेड़ और उसके बाद विकास दुबे और उनके कई साथियों की एनकाउंटर में मौत को लेकर कई याचिकाएँ दायर की गई हैं. इसी के जवाब में यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर किया है.
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट 20 जुलाई को इस मामले पर सुनवाई कर सकता है. कोर्ट ने पहले ही ये संकेत दिया है कि हैदराबाद एनकाउंटर की जाँच की तर्ज पर वो इस मामले में भी एक कमेटी का गठन कर सकता है. हालांकि यूपी सरकार का कहना है कि ये मामला हैदराबाद एनकाउंटर से बिल्कुल अलग है.
हैदराबाद में एक डॉक्टर के गैंगरेप और हत्या के मामले में चारों अभियुक्तों को एक कथित एनकाउंटर में पुलिस ने मार दिया था.
क्या है विकास दुबे का पूरा मामला
उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक़ स्पेशल टास्क फ़ोर्स की एक टुकड़ी दुबे को लेकर 10 जुलाई को मध्य प्रदेश से कानपुर लौट रही थी जब उनकी एक गाड़ी पलट गई जिसके बाद विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और पुलिस की कार्रवाई में अभियुक्त की मौत हो गई.
दरअसल, विकास दुबे प्रकरण की शुरुआत 2-3 जुलाई की रात से हुई, जब विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस की एक टीम पर हमला हुआ.
विकास दुबे और उनके साथियों को पकड़ने गई पुलिस की टीम पर ताबड़तोड़ फ़ायरिंग की गई. इस गोलीबारी में एक डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे. यह मुठभेड़ कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के दिकरू गाँव में हुई थी.
मुठभेड़ में कम से कम छह पुलिसकर्मी घायल भी हुए थे. इसके बाद यूपी पुलिस ने विकास दुबे की धरपकड़ का अभियान शुरू किया.
लेकिन नौ जुलाई तक विकास दुबे यूपी पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ सका. नौ जुलाई को उसे उज्जैन के महाकाल मंदिर से पकड़ा गया, जहां उसने खुद से ही अपनी पहचान ज़ाहिर किया था.(bbc)
भोपाल, 17 जुलाई। गुना में दलित किसान की बर्बरतापूर्वक पिटाई और किसान दंपत्ति के जहर पीने के मामले में राजनीति अब पूरे उफान पर है। मध्य प्रदेश सरकार ने आईजी, कलेक्टर और एसपी को हटाये जाने के बाद गुरूवार को उन छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया जिन्होंने किसान और उसके परिजनों को जमकर पीटा था।
गुना से हटाये गये एसपी तरूण नायक ने कार्यमुक्त होने से पहले गुरूवार को इस मामले में शामिल रहे एक उप निरीक्षक और पांच आरक्षकों को निलंबित कर दिया। सस्पेंड किये गये कुल पांच आरक्षकों में दो महिला आरक्षक भी शामिल हैं।
बता दें, मंगलवार को गुना के पीजी काॅलेज से लगी सरकारी ज़मीन से नगर पालिका का अतिक्रमण विरोधी अमला कब्जा हटाने पहुंचा था। दलित किसान राजकुमार अहिरवार और उसके परिवार ने दावा किया था कि वे लोग इस ज़मीन पर दादा के वक्त से खेती कर रहे हैं। उसे भी खेती करते बरसों हो चुके हैं। एक दर्जन लोगों का परिवार खेती पर ही निर्भर है।
राजकुमार और उसके परिवारजनों ने अतिक्रमण विरोधी दस्ते और अफसरों से यह भी कहा था कि उन्होंने चार लाख रुपये का कर्ज लेकर फसल बोई है और अंकुरित फसल को ना उजाड़ा जाये। फसल पकने और कटने के बाद कार्रवाई की जाये। मगर अमला नहीं माना था।
सिंधिया ने की शिवराज से बात
कीटनाशक पीने और पिटाई मामले का वीडियो वायरल होने के बाद हड़कंप मच गया था और राजनीति भी शुरू हो गई थी। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बीजेपी के नये नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से बातचीत की थी और इसके लिए जिम्मेदार बड़े अधिकारियों को तत्काल हटाने और बर्बर तरीके से किसान को पीटने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का अनुरोध किया था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने बुधवार देर रात को रेंज के आईजी, कलेक्टर और एसपी को हटा दिया था। गुरूवार को भी सरकार एक्शन में रही। किसान और उसके परिवार वालों से मारपीट करने में शामिल पुलिस वालों को निलंबित करने के आदेश जारी हो गये।
किसान और उसकी पत्नी द्वारा कीटनाशक पीने और पिटाई मामले की मजिस्ट्रियल जांच का ऑर्डर भी गुरूवार को हो गया। इधर, भोपाल से भी आला अफसरों की टीम गुना पहुंच गई। टीम ने अपने स्तर पर जांच आरंभ कर दी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को यह टीम अपनी रिपोर्ट देगी।
राहुल, मायावती उतरे मैदान में
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी गुरूवार को ‘मैदान’ में उतर आये। दोनों ने ट्वीट करके गुना की घटना की तीखी निंदा करते हुए शिवराज सरकार को आड़े हाथों लिया। राहुल गांधी ने कहा, ‘इसी सोच और अन्याय के खिलाफ है, कांग्रेस की लड़ाई।’ उधर, मायावती ने दलित किसान के साथ बर्बरता को बीजेपी की सरकार का चरित्र करार दिया। मायावती ने कहा, ‘कांग्रेस और बीजेपी एक हैं। दोनों केवल दलित के नाम पर राजनीति करते हैं। दलितों को इस बारे में सोचना होगा।’
कांग्रेस का जांच दल गुना पहुंचा
गुना के घटनाक्रम पर शिवराज सरकार को जमकर आड़े हाथों लेने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमल नाथ ने पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ विधायक बाला बच्चन की अगुवाई में एक जांच दल का गठन किया है। यह जांच दल गुरूवार को गुना पहुंच गया। दल ने जांच के साथ ही किसान और उसके परिवार से बातचीत की। कांग्रेस की प्रदेश महासचिव और दल की सदस्य विभा पटेल ने डेढ़ लाख रुपये की नकद राशि किसान परिवार को भेंट की।(satyahindi)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के तीन अफसरों के प्रभार बदले गए। इस कड़ी में तकनीकी शिक्षा संचालक अवनीश कुमार शरण को सीईओ राज्य कौशल विकास अभिकरण का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। साथ ही साथ नीलेश क्षीर सागर को राज्य भंडार गृह निगम का एमडी बनाया गया है।
आदेश इस प्रकार हैं-
जयपुर, 17 जुलाई। राजस्थान में जारी सियासी घमासान के बीच सचिन पायलट गुट की ओर से दायर संशोधित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान पायलट खेमे को थोड़ी राहत जरूर मिली। कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर को मंगलवार शाम तक नोटिस पर कोई कार्रवाई नहीं करने की बात कही है। इसी के साथ कोर्ट ने मामले पर सुनवाई सोमवार यानी 20 जुलाई, सुबह 10 तक के लिए टाल दी है।
पायलट खेमे को थोड़ी राहत
शुक्रवार को हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में सुनवाई के दौरान पायलट खेमे की ओर से हरीश साल्वे ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि पायलट गुट ने दल-बदल कानून का उल्लंघन नहीं किया है। ऐसे में स्पीकर को नोटिस देने का अधिकार नहीं है। साल्वे के बाद मुकुल रोहतगी ने भी पक्ष रखा। हाईकोर्ट में सचिन पायलट गुट की पैरवी के बाद स्पीकर की ओर से दलील देते हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका को तत्काल खारिज करने की अपील की। सिंघवी ने पायलट गुट की याचिका को प्रीमेच्योर बताते हुए मांग की कि इसको खारिज कर दिया जाए। जिसके बाद हाईकोर्ट ने 20 जुलाई सुबह 10 बजे तक मामले पर सुनवाई टाल दी है।
साल्वे ने स्पीकर के आदेश पर उठाए सवाल
सचिन पायलट खेमे की संशोधित याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत मोहन्ती और जस्टिस प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ में हो रही। याचिका में संविधान की 10वीं अनुसूची के आधार पर दिए गए नोटिस काे चुनौती दी गई है। पायलट खेमे के वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट में अपनी दलील में स्पीकर के आदेश पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा है कि इस मामले में दसवीं अनुसूची का उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने स्पीकर को कोर्ट में बुलाने की मांग की। साथ ही कहा कि पायलट गुट ने दल बदल कानून का उल्लंघन नहीं किया है।
साल्वे की दलील- पार्टी को जगाना बगावत नहीं
हरीश साल्वे ने सचिन पायलट के पक्ष में दलील देते हुए कहा कि पार्टी को जगाना बगावत नहीं है। विधानसभा के बाहर दल-बदल कानून का प्रावधान लागू नहीं होता है। ऐसे में स्पीकर को नोटिस देने का अधिकार नहीं है। साल्वे ने दलील में ये भी कहा कि पार्टी ग्रुप ने कोई विद्रोह नहीं किया है, वह सिर्फ अपनी बात रखने के लिए गए थे। साल्वे ने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने की आजादी के अधिकार के खिलाफ है जो उन्हें नोटिस थमाया गया है। सचिन पायलट और अन्य विधायक दिल्ली में अपना पक्ष रखने के लिए गए थे, जबकि सरकार ने स्पीकर के जरिए अनुच्छेद 10 के तहत नोटिस थमा दिया। साल्वे के बाद मुकुल रोहतगी अपनी दलीलें रखीं।
पायलट खेमे की याचिका पर सुनवाई
वहीं, विधानसभा अध्यक्ष की ओर से सचिन पायलट और कांग्रेस के 18 अन्य विधायकों को मिले नोटिस का जवाब देने का शुक्रवार को अंतिम दिन था। हालांकि, इस बीच हाईकोर्ट से पायलट खेमे को राहत मिली है। कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर को मंगलवार शाम तक इस नोटिस पर कोई कार्रवाई नहीं करने की बात कही है। इससे पहले गुरुवार को हाईकोर्ट पहुंचे पायलट खेमे की याचिका पर दिन में करीब तीन बजे जज सतीश चन्द्र शर्मा ने सुनवाई की। लेकिन, पायलट खेमे की ओर से शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने नए सिरे से याचिका दाखिल करने के लिए समय मांगा। शाम करीब पांच बजे असंतुष्ट खेमे ने संशोधित याचिका दाखिल की और कोर्ट ने इसे दो जजों की पीठ की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत मोहंती को भेज दिया।(nbt)
डीजल खर्च निकालना मुश्किल-बस मालिक
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। प्रदेश में लॉकडाउन में छूट के साथ ही बसें शुरू हो गई हैं, लेकिन करीब दो हफ्ते बाद भी उन्हें पर्याप्त सवारी नहीं मिल रही है। ऐसे में बस मालिक परेशान हैं और एक-एक कर अपनी बसें खड़ी करने में लगे हैं। उनका कहना है कि यात्रियों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ, तो आने वाले दिनों में बसों की संख्या और घट सकती है।
राज्य सरकार के निर्देश पर प्रदेश में यात्री बसें 5 जुलाई से शुरू हुई है, लेकिन बहुत कम बसें सडक़ों पर देखी जा रही हैं। रायपुर से गिनती की बसें आ-जा रही हैं। इसी तरह धमतरी, महासमुंद, दुर्ग-भिलाई समेत बाकी जगहों से भी गिनती की बसें चल रही हैं। बस मालिकों का कहना है कि जिस ढंग से यात्री आ रहे हैं, उससे उन्हें डीजल खर्च निकालना कठिन हो गया है।
छत्तीसगढ़ यातायात महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश देशलहरा व अन्य पदाधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में 10 से 12 हजार निजी बसें हैं, जिसमें से मुश्किल से डेढ़ से दो सौ बसें ही चल रही हैं। बाकी अधिकांश बसें खड़ी हुई हैं। चल रही बसों में भी पर्याप्त सवारी नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में ये बसें भी आगे चलकर खड़ी हो सकती हैं।
उनका कहना है कि सरकार से लॉकडाउन अवधि को छोडक़र बाकी छह महीने का टैक्स माफ करने की मांग की जा रही है, लेकिन सरकार से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। जबकि दूसरी तरफ, खेती किसानी और कोरोना के चलते बसों में सवारी नहीं है। बस मालिकों को डीजल खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। उनका कहना है कि सरकार ने बस चलाने की अनुमति दे दी है, लेकिन यात्री न होने से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
हरेली पर बाहर निकलने पर रोक
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। रायपुर में कोरोना के बढ़ते प्रकरण को रोकने के लिए बीरगांव इलाके में तीन दिन लॉकडाउन करने की तैयारी है। बताया गया कि बीरगांव इलाके से कोरोना शहर की तरफ फैल रहा है। साथ ही कोरोना पीडि़तों का संपर्क सूत्र तलाशने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया गया है।
रायपुर में कोरोना के प्रकरणों में एकाएक तेजी आई है। अभी तक पांच सौ से अधिक पॉजिटिव मरीज हैं। जिनका उपचार अस्पताल में चल रहा है। रायपुर शहर में ज्यादातर कोरोना के प्रकरण बीरगांव से होकर आए हैं। बीरगांव, उरला, गुढियारी, कोटा, कबीर नगर होते हुए धीरे-धीरे शहर में भी कोरोना मरीज मिल रहे हैं।
बीरगांव इलाके में औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग रहते हैं। इनमें बड़ी संख्या में उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग रहते हैं। कोरोना के बढ़ते प्रकरणों को देखते हुए बीरगांव इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित किया जा रहा है। साथ ही तीन दिन का लॉकडाउन करने की तैयारी है। बीरगांव के आसपास में हरेली पर्व के दौरान भी पूरी तरह लॉकडाउन रहेगा।
हरेली पर्व को ग्रामीण इलाकों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस दौरान भीड़ भाड़ को देखते हुए विशेष रूप से सतर्कता बरती जा रही है और इसको लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए गए हैं। खास बात यह है कि बीरगांव इलाके में ही सबसे ज्यादा कोरोना मरीज पाए गए थे। यहां श्रमिक वर्ग ज्यादा कोरोना संक्रमित रहा है। रायपुर शहर के विवेकानंद आश्रम के पीछे के मंगलबाजार इलाके को कंटेनमेेंट जोन घोषित कर दिया है। यहां कोरोना के 23 मरीज मिले हैं।
इसी तरह शांति नगर इलाके में भी एक ही परिवार के 18 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों का संपर्क तलाशने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया गया है। इसके लिए कई टीम बनाई गई है। जिनमें उच्च शिक्षा विभाग, उद्योग विभाग और अन्य विभाग के अफसरों को लगाया गया है।
बताया गया कि रायपुर नगर निगम के सभी 10 जोन में हरेक जोन में दो-दो टीम बनाई गई है। इस टीम के साथ मेडिकल लैब टेक्निशियन भी रहेंगे। सभी जोन में नायब तहसीलदार के अलावा जोन कमिश्नर को भी सहयोग करने के लिए कहा गया है। संपर्क सूत्र टीम नायब तहसीलदार और अन्य अफसरों को रिपोर्ट करेंगे।
कॉलेज शिक्षकों की संपर्क
तलाशने ड्यूटी, आपत्ति भी
कोरोना मरीजों का संपर्क सूत्र तलाशने के लिए कॉलेज शिक्षकों की भी ड्यूटी लगाई गई है। रायपुर शहर के कॉलेजों के करीब 50 से अधिक शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। इनमें से कुछ ने कलेक्टर से मिलकर आपत्ति भी की है।
आपत्ति करने वाले शिक्षकों का कहना है कि कोरोना मरीजों का संपर्क सूत्र तलाशने के काम में यंग अफसरों की ड्यूटी लगाने के स्पष्ट निर्देश हैं। मगर 55 और 60 वर्ष वाले शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जा रही है। इनमें से कई शुगर और बीपी के मरीज हैं। इन्हें ही कोरोना संक्रमण का खतरा है। बावजूद इसके उन्हें ड्यूटी लगाई गई है। इनमें से कुछ ने कलेक्टर से मिलकर अपनी आपत्ति जताई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में कोरोना से एक महिला की मौत हो गई। यह महिला बालाघाट से यहां इलाज कराने आई थीं और डायबिटिज से पीडि़त थीं। स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि महिला की मौत बीती शाम-रात में हुई थीं। मौत के बाद उसकी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। उल्लेखनीय है कि अंबेडकर अस्पताल में कल जांजगीर-चांपा के एक 66 वर्षीय व्यक्ति ने दम तोड़ दिया था, जिसे मिलाकर रायपुर जिले में 4 मौतें दर्ज की गई थी।
मौतें-4, एक्टिव-536, डिस्चार्ज-462
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। राजधानी रायपुर समेत जिले में कोरोना मरीज तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं। बीती रात मिले 57 पॉजिटिव के साथ आज दोपहर 27 और नए पॉजिटिव मिले हैं। इन्हें मिलाकर जिले में कोरोना मरीज 975 से बढक़र 1002 हो गए हैं। इसमें 4 की मौत हो चुकी है। 536 एक्टिव हैं और इन सभी का इलाज जारी है। दूसरी तरफ ठीक होने पर 462 मरीज डिस्चार्ज हो चुके हैं।
कोरोना की शुरूआत यहां समता कॉलोनी रायपुर से हुई थी। 18 मार्च को यहां पहला मरीज सामने आया था। इसके बाद मरीजों की संख्या बढ़ती चली गई। और अब यहां दर्जनों की संख्या में हर रोज कोरोना मरीज मिल रहे हैं। बीती रात में 57 नए कोरोना पॉजिटिव मिले थे। इसमें गृहणी, विद्यार्थी, ड्राइवर, पुलिस जवान, फूड सप्लायर, सफाई कर्मी, फेरी वाला, सुरक्षा गार्ड, आया, कूक, फैक्ट्री कर्मी, व्यापारी आदि शामिल रहे। आज एसपी ऑफिस व कबीर नगर थाने के एक-एक जवान कोरोना संक्रमित पाए गए। इसके अलावा मंगलबाजार, स्वीपर कॉलोनी समेत और कई जगहों पर नए मरीज मिले हैं। संपर्क में आने वालों की जांच-पहचान जारी है।
जानकारी के मुताबिक बीती रात मंगलबाजार, ओम कॉम्पलेक्स फाफाडीह, वीआईपी करिश्मा, टाटीबंध, कृष्णा नगर कोटा, शंकर नगर, लालगंगा के पीछे, ढीमर मोहल्ला टिकरापारा, श्रीनगर, मोतीबाग मॉर्डन कॉम्पलेक्स, कुशालपुर, सब्जी बाजार देवपुरी, करण नगर चंगोराभाठा, खल्लारी चौक, आजाद चौक थाना परिसर, प्रोफेसर कॉलोनी, पुलिस लाइन, तिरंगा चौक, लाखेनगर, बेबीलॉन केपिटल, कोटा, टाटीबंध, अमलीडीह, बेबीलॉन केपिटल, पंडरी, कचना हाउसिंग बोर्ड, विवेकानंद आश्रम, सिविल लाइन पुलिस, लालगंगा मॉल के पीछे, विवेकानंद आश्रम, मॉर्डन कॉम्पलेक्स, पुलिस क्वार्टर काशीरामनगर, कबीर नगर एएसआई, बीएसयूपी कॉलोनी भाठागांव, मंगल बाजार, आजाद चौक, मोवा थाना आमासिवनी, सब्जी बाजार देवपुरी, इन फ्रंट मनजीत ग्रीन सिटी चंगोराभाठा, खरोरा सुभाष चौक, मंगलबाजार, मोतीलाला नगर कोटा, महात्मा गांधी परिसर सिटी कोतवाली, टिकरापारा, बिरगांव से कोरोना पॉजिटिव सामने आए थे।
-डॉ राजू पाण्डेय
मध्यप्रदेश के गुना में दलित दंपत्ति के साथ पुलिस की बर्बरता संवेदनहीन भारतीय समाज और शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली का स्थायी भाव है। प्रशासन और पुलिस के जिन उच्चाधिकारियों के तबादले हुए उन्होंने अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में इस घटना को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया था। यह हमारे प्रशासन तंत्र की उस मानसिकता को दर्शाता है जिसमें असहाय पर अत्याचार करना और शक्ति सम्पन्न के सम्मुख शरणागत हो जाना सफलता का सूत्र माना जाता है। इन उच्चाधिकारियों को अपने आचरण में कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा। उन्होंने दलित दंपति की फसल उजाड़ने वाले, इन्हें बेरहमी से पीटने वाले, इनकी मासूम संतानों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले और अंततः इन्हें आत्महत्या के लिए विवश करने वाले पुलिस और प्रशासनिक अमले के आचरण को सही ठहराया। इन अधिकारियों का तर्क था कि मॉडल कॉलेज के लिए दी गई जमीन पर बेजा कब्जा कर खेती कर रहे दलित दंपति ने बेजा कब्जा हटाने गए अमले के कार्य में बाधा डाली और इन पर हल्का बल प्रयोग अनुचित नहीं कहा जा सकता। यह भी कहा गया कि इस दंपति ने विषपान कर लिया था और भीड़ इन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दे रही थी इस कारण भी बल प्रयोग किया गया। पुलिस ने इस दंपति के विरुद्ध धारा 353, 141 और 309 के तहत मामला भी दर्ज कर लिया है। जैसा कि इस तरह के अधिकांश मामलों में होता है सरकार बड़े धीरज और शांति से इस बात की प्रतीक्षा कर रही है कि मीडिया कोई नई सुर्खी ढूंढ ले और बयानबाजी कर रहे विरोधी दल इस मामले से अधिकतम राजनीतिक लाभ लेने के बाद अधिक सनसनीखेज और टिकाऊ मुद्दा तलाश लें। जब मीडिया और विपक्षी पार्टियों का ध्यान इस मुद्दे से हट जाएगा तब भी यह धाराएं कायम रहेंगी और दलित दंपत्ति को पुलिस महकमे और न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच अपनी हारी हुई लड़ाई लड़नी होगी। मध्यप्रदेश सरकार ने पुलिस और प्रशासन के संबंधित उच्चाधिकारियों का तबादला कर दिया है किंतु यदि कोई यह सोचता है कि यह तबादला उनकी अमानवीयता और असंवेदनशीलता के मद्देनजर हुआ है तो यह उसकी भूल है। अधिक से अधिक उन्हें इस बात की सजा दी गई है कि वे एक दीन हीन, लाचार और असहाय दलित परिवार तक से बिना शोरगुल के जमीन खाली करवाने में नाकामयाब रहे और उन्होंने अपनी लापरवाही से मीडिया और विपक्षी दलों को सरकार पर निशाना साधने का मौका दे दिया है - वह भी ऐसे समय में जब उपचुनावों की तैयारी चल रही है।
यह पूरा घटनाक्रम देश के लाखों निर्धनों और दलितों के जीवन में व्याप्त असहायता, अनिश्चितता और अस्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है। सरकारी जमीन पर वास्तविक कब्जा उस क्षेत्र के एक बाहुबली पूर्व पार्षद या स्थानीय नेता का था। उससे यह भूमि संभवतः कृषि कार्य के लिए बंटाई पर इस दलित परिवार द्वारा ली गई थी। यह कोई असाधारण घटना नहीं है। हर कस्बे, हर शहर और हर महानगर में रसूखदार और बाहुबली जनप्रतिनिधि इस तरह के निर्धन लोगों को अपने आर्थिक लाभ हेतु या वोटों की राजनीति के लिए सरकारी जमीनों पर गैरकानूनी रूप से बसाते हैं। जो गरीब ऐसी सरकारी भूमि पर अपनी झोपड़ी या दुकान या ठेला लगाते हैं उन्हें अधिकांशतया यह पता भी नहीं होता कि यह भूमि सरकारी है। पुलिस, नगरीय निकाय और स्थानीय प्रशासन के भ्रष्ट कारिंदे एक नियमित अंतराल पर इनसे अवैध वसूली करते रहते हैं। भ्रष्टाचार का इन निर्धनों के जीवन में ऐसा और इतना दखल है कि यह वसूली इन्हें गलत नहीं लगती क्योंकि अपने हर वाजिब हक के लिए भी इन्हें भ्रष्ट तंत्र शिकार होना पड़ता है। इस तरह अवैध बस्तियां बसती हैं। फिर एक दिन अचानक विकास का वह बुलडोजर जो ताकतवर और सत्ता से नजदीकी रखने वाले लोगों की अवैध संपत्तियों को गिराने में अपनी नाकामी की तमाम खीज समेटे होता है इन बस्तियों तक पहुंचता है और बेरहमी से विकास का मार्ग प्रशस्त करने लगता है। गुना के दलित परिवार पर निर्दयतापूर्वक लाठियां बरसाते पुलिस कर्मियों के प्रहारों के पीछे असली अपराधियों का कुछ न बिगाड़ पाने की हताशा को अनुभव किया जा सकता है। आज भी हमारे देश में लाखों गरीबों की जिंदगी साधन संपन्न लोगों के लिए गुड्डे गुड़ियों के खेल की तरह है- इन्हें जब चाहा बसाया और जब चाहा उजाड़ा जा सकता है। उजड़ने के बाद इनकी सहायता के लिए देश का सरकारी अमला और देश का कानून कभी सामने नहीं आते। इन्हें फिर किसी बाहुबली या फिर किसी भ्रष्ट जनप्रतिनिधि की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जो इन्हें किसी ऐसी जगह पर बसाता है जहां से विस्थापित किया जाना इनकी नियति होती है।
गुना में दलित परिवार के साथ जो कुछ घटा वह अपवाद नहीं है। अपवाद तो तब होता जब भूमि सुधारों के क्रियान्वयन द्वारा इन्हें खेती के लिए किसी छोटी सी जमीन का मालिकाना हक मिल जाता, राज्य और केंद्र सरकार की किसी ऋण योजना के अधीन -इन्हें बिना ब्याज का या कम ब्याज दरों पर ही- ऋण मिल जाता। इनके द्वारा उपजाए गए अन्न को कोई बिचौलिया नहीं बल्कि स्वयं सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद लेती और बिना देरी इनके खाते में भुगतान भी कर दिया जाता। अपवाद तब भी होता जब कृषि मजदूरों को कृषक का दर्जा और मान-सम्मान दिया गया होता और तब शायद प्रचार तंत्र द्वारा गढ़े गए आभासी लोक में सफलता के नए कीर्तिमान बना रही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनाओं का लाभ इस परिवार को मिल रहा होता। शायद तब प्रधानमंत्री के कोरोना राहत पैकेज में घोषित तथा सरकारी अर्थशास्त्रियों द्वारा गेम चेंजर के रूप में प्रशंसित ऋण योजनाओं की जद में भी यह परिवार आ जाता। किन्तु मीडिया द्वारा गढ़े गए चमकीले और रेशमी आभासी लोक से एकदम अलग यथार्थ की अंधेरी और पथरीली दुनिया है जहां दूसरों के खेतों पर आजीवन बेगार करना और सूदखोरों का कभी खत्म न होने वाला कर्ज लेना किसान की नियति है। अब ऐसे अपवादों की आशा करना भी व्यर्थ है। भारतीय राजनीति में अब जनकल्याण कर वोट बटोरने का चलन कम होता जा रहा है। इसका स्थान घृणा, दमन, हिंसा और विभाजन की रणनीति ने लिया है जो चुनाव जीतने के लिए ज्यादा कारगर लगती है।
विकास के हर पैमाने पर दलितों की स्थिति चिंताजनक है। देश के 68 प्रतिशत लोगों पर निर्धनता की छाया है, इनमें से 30 प्रतिशत लोग तो गरीबी रेखा से नीचे हैं। प्रतिदिन 70 रुपए से भी कम कमाने वाले इन लोगों में 90 प्रतिशत दलित हैं। देश में बंधुआ मजदूरों की कुल संख्या का 80 प्रतिशत दलित ही हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर 15 मिनट में कोई न कोई दलित अपराध का शिकार होता है। प्रतिदिन 6 दलित महिलाएं बलात्कार की यातना और पीड़ा भोगने के लिए विवश होती हैं। शहरी गंदी बस्तियों में रहने वाले 56000 दलित बच्चे प्रतिवर्ष कुपोषण के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं। वैसे भी मध्यप्रदेश उन राज्यों में शामिल है जहां दलितों पर होने अत्याचारों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 से 2018 की अवधि में दलितों पर होने वाले अत्याचारों में सर्वाधिक 47 प्रतिशत की वृद्धि उत्तरप्रदेश में दर्ज की गई। जबकि गुजरात 26 प्रतिशत के साथ दूसरे तथा हरियाणा एवं मध्यप्रदेश 15 तथा 14 प्रतिशत की वृद्धि के साथ असम्मानजनक तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। क्या इन सब राज्यों का भाजपा शासित होना महज संयोग ही है? या फिर भाजपा जिस समरसता की चर्चा करती है उसमें समता के लिए कोई स्थान नहीं है- इस बात पर चिंतन होना चाहिए।
नेशनल दलित मूवमेंट फ़ॉर जस्टिस की 10 जून 2020 की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार विभिन्न मीडिया सूत्रों के जरिए एकत्रित डाटा यह दर्शाता है कि लॉक डाउन की अवधि में दलितों पर अत्याचार की 92 घटनाएं हुईं। यह घटनाएं छुआछूत, शारीरिक और यौनिक हमले, पुलिस की क्रूरता, हत्या, सफाई कर्मियों के लिए पीपीई किट की अनुपलब्धता, भूख से मृत्यु, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में मौत तथा प्रवासी मजदूरों की मृत्यु से संबंधित हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि महामारी या अन्य किसी भीषण प्राकृतिक आपदा के दौरान जो आर्थिक-सामाजिक संकट उत्पन्न होता है वह उन समुदायों के लिए सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध होता है जो पहले से हाशिए पर होते हैं। कोरोना काल की वर्तमान परिस्थितियां इसी ओर संकेत कर रही हैं।
इस घटना पर राजनेताओं और राजनीतिक दलों के बयान आ रहे हैं। एक बयान पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ का है जिनके परिजन स्वयं उद्योगपति हैं तथा जिनके उद्योगपतियों से पारिवारिक संबंध हैं और इसी कारण जिन्हें उद्योगों की स्थापना के लिए छल-कपट, प्रलोभन, बल प्रयोग एवं शासकीय तंत्र के दुरुपयोग द्वारा ग्रामीणों से जमीनें खाली कराने का विशद अनुभव अवश्य होगा। एक बयान सुश्री मायावती जी का है जो बसपा को सवर्ण मानसिकता से संचालित दलित राजनीति की धुरी बनाने में लगी हैं और दलित हितों को उससे कहीं अधिक नुकसान पहुंचा रही हैं जितना सवर्ण नेतृत्व प्रधान मुख्य धारा का कोई दल पहुंचा सकता था। बयान हाल ही में दल बदल कर नए नए भाजपाई बने श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दिया है। उन्हें लगता होगा उनके राजनीतिक जीवन के इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण काल में उपचुनावों की चर्चा के बीच उनके किसी राजनीतिक शत्रु ने ही यह घातक दांव चला है। स्वाभाविक है कि इन बयानों में नैतिक बल नहीं है। बयान शिवराज सरकार के मंत्रियों की ओर से भी आ रहे हैं। इन बयानों में पीड़ा से अधिक निश्चिंतता झलकती है। आखिर निश्चिंतता हो भी क्यों न। मंदसौर में जून 2017 में किसानों पर हुई फायरिंग में 6 किसानों की मौत के बाद हुए विधानसभा चुनावों में जनता द्वारा नकार दिए गए शिवराज आज पुनः सत्तासीन हैं। चुनावों का परिणाम कुछ भी हो सत्ता वापस हासिल कर लेने का हुनर जिसे पता हो वह तो निश्चिंत रहेगा ही।
यह पूरा घटनाक्रम जिस परिस्थिति की ओर संकेत कर रहा है उसे लिखने और स्वीकारने का साहस नहीं हो पा रहा है- यदि आप निर्धन हैं, दलित हैं और ऊपर से किसान भी हैं तो नए भारत की विकास धारा में आपका वैसा ही स्वागत होगा जैसा गुना के इस दलित परिवार का हुआ।
रायगढ़, छत्तीसगढ़
देश के प्रमुख मीडिया से निराश और नाराज राहुल गांधी ने अब सोशल मीडिया के मार्फत अपनी बात रखना तय किया है। उन्होंने घोषणा की है कि वे रोज मुद्दों पर अपनी सोच के वीडियो पोस्ट करेंगे। आज दोपहर पोस्ट किए अपने वीडियो में उन्होंने मोदी सरकार की विदेश नीति को नाकामयाब बताते हुए करीब 4 मिनट में अपनी बात कही है।
Since 2014, the PM's constant blunders and indiscretions have fundamentally weakened India and left us vulnerable.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 17, 2020
Empty words don't suffice in the world of geopolitics. pic.twitter.com/XM6PXcRuFh
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। कोरोना मरीज मिलने पर राजधानी रायपुर का एसएसपी दफ्तर व कबीर नगर थाना आज सील कर दिया गया। एसएसपी ऑफिस तीन दिन बाद खोला जाएगा। फिलहाल यहां सफाई के साथ सेनिटाइज जारी है। इसी तरह कबीर नगर थाने में भी सफाई-सेनिटाइज का काम चल रहा है।
राजधानी रायपुर में कोरोना मरीज लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आज एसएसपी ऑफिस के ऊपर की एक शाखा में पुलिस कर्मी पॉजिटिव पाया गया। ऐसे में पूरे एसएसपी ऑफिस को सील किया गया है। एसएसपी अजय यादव यहां से अपना कामकाज हटाकर अब रेडक्रॉस सभा भवन में अपना काम निपटा रहे हैं। दूसरी तरफ कबीर नगर थाने का एक एसआई कोरोना पॉजिटिव मिला है। यहां भी पूरे थाने को सील किया गया है। थाने का काम आमानाका पुलिस को दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि इसके पहले कोरोना मरीज मिलने पर रायपुर के मंदिर हसौद, तेलीबांधा, पुरानी बस्ती, आजाद चौक थाने सील हो चुके हैं और यहां का कामकाज दूसरे थानों को सौंपा गया है।
देश के प्रमुख मीडिया से निराश और नाराज राहुल गांधी ने अब सोशल मीडिया के मार्फत अपनी बात रखना तय किया है। उन्होंने घोषणा की है कि वे रोज मुद्दों पर अपनी सोच के वीडियो पोस्ट करेंगे। आज दोपहर पोस्ट किए अपने वीडियो में उन्होंने मोदी सरकार की विदेश नीति को नाकामयाब बताते हुए करीब 4 मिनट में अपनी बात कही है।
Since 2014, the PM's constant blunders and indiscretions have fundamentally weakened India and left us vulnerable.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 17, 2020
Empty words don't suffice in the world of geopolitics. pic.twitter.com/XM6PXcRuFh
बीती रात मिले थे 27 संक्रमित, अधिकांश फेरीवाले
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। राजधानी रायपुर के विवेकानंद आश्रम के पीछे मंगलबाजार (आमापारा) में बीती रात में एक साथ 27 नए पॉजिटिव मिले हैं। वहीं पास के स्वीपर कॉलोनी में आज दोपहर 3 नए पॉजिटिव पाए गए हैं। ये सभी मरीज अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ पूरा मोहल्ला सील कर मरीजों के परिजनों और संपर्क में आने वालों की जांच-पहचान की जा रही है। इस तरह एक साथ यहां 30 मरीज मिलने पर हडक़ंप की स्थिति है।
जानकारी के मुताबिक मंगलबाजार व आसपास क्षेत्र में गुजरात से आकर कई परिवार रहते हैं और ये सभी गली-सडक़ों पर फेरी लगाते हुए पुराने कपड़ों के बदले नए बर्तन बेचते हैं। इनमें से कुछ लोग पॉजिटिव निकले हैं। इसके अलावा यहां के दर्जभर पॉजिटिव यादव परिवार से हैं। स्वीपर कॉलोनी में भी अब पॉजिटिव निकल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले 2 दिनों में यहां स्वास्थ्य शिविर लगाकर जांच की जा रही थी। कल 80 लोगों की जांच कर इनके कोरोना सैंपल भेजे गए हैं। आज भी परिजनों और संपर्क में आने वालों की जांच चल रही है।
बताया गया कि मंगलबाजार की गली नंबर 9 में चार दिन पहले एक कोरोना मरीज मिला था। इसके बाद जिला प्रशासन ने इस पूरे मोहल्ले को कंटेनमेंट जोन घोषित करते हुए जांच शुरू करा दी। जांच में कल एक साथ 27 मरीजों के सामने आने पर यहां आज जांच और तेज कर दी गई है। मंगलबाजार के अलावा आसपास की बस्तियों में भी जांच शुरू की जा रही है। दूसरी तरफ निगम की टीम नाली-सडक़ों की सफाई करते हुए सेनिटाइज में लगी है।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी कमेटी के सदस्य और ऑर्गेनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने अपनी पार्टी को आगाह किया है कि पार्टी के अंदर एक सीमित वर्ग से उठ रही जोरदार आवाज भाजपा आलाकमान को चेता रही है कि वह हर उस बागी को जगह न दे जो उसका दरवाजा खटखटाता है, विशेषकर उन्हें जो कड़ी मेहनत, वैचारिक प्रतिबद्धता या निस्वार्थ सेवा और बलिदान के जरिये हासिल करने के बजाये ‘विरासत’ में मिली नेतृत्वशीलता को अपना उत्तराधिकार समझते हों।
उनका कहना है कि भाजपा जैसी कैडर-आधारित पार्टी के लिए बहुत बाद में और पिछले दरवाजे से आने वाले विपक्षी खेमे के नेताओं के कुछ मायने नजर नहीं आते हैं। यह राजस्थान में और भी ज्यादा प्रासंगिक है, जहां भाजपा के पास अच्छी कैडर क्षमता, व्यापक जनाधार वाले और हर स्तर पर लोकप्रिय नेता हैं।भाजपा को ध्यान में रखना चाहिए कि हर राज्य असम नहीं हो सकता, जहां कांग्रेस से आए हेमंत बिस्व सरमा ने पार्टी को 2016 में पहली बार सत्ता में लाने के लिए स्थितियों को एकदम बदलकर रख दिया था। असम एक अलग किस्म का मामला है।
एक वेबसाइट, ‘द प्रिंट’ पर लिखे एक लेख में शेषाद्री चारी ने राजस्थान के सचिन पायलट के भाजपा प्रवेश के सन्दर्भ में यह बातें लिखीं हैं।
उन्होंने लिखा- अपने ‘युवा और होनहार नेता’ सचिन पायलट को राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और राज्य इकाई के अध्यक्ष के पद से हटाने के 24 घंटे के भीतर ही कांग्रेस ने उनसे पार्टी में लौटने और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ जो भी ‘कोई मतभेद’ हों उन्हें सुलझाने की अपील कर दी। फिलहाल तो सचिन पायलट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल नहीं हो रहे हैं, जो कांग्रेस नेता के साथ ही संभवत: 15 विधायक जो उनका समर्थन कर रहे हैं, को अपने पाले में लाने के लिए बेहद उत्सुक थी। लेकिन कुछ बातें हैं जो भाजपा को अवश्य ही ध्यान में रखनी चाहिए। यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस में कई ऐसे असंतुष्ट तत्व हैं जो ‘डूबते जहाज’ को छोडऩे की मंशा रखते हैं। ऐसा लगता है कि खुद कांग्रेस ही भाजपा के ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के संकल्प को पूरा करने में लगी है। ऐसे में, सचिन पायलट के ऐलान को शपथ लेकर की गई दृढ़ प्रतिज्ञा जैसा नहीं माना जा सकता है। जैसे-जैसे घटनाक्रम आगे बढ़ेगा, कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आ सकती है। ऐसे परिदृश्य में भाजपा के लिए आंतरिक चेतावनियों को सुनना ही ज्यादा बेहतर रहेगा।
सतर्क भाजपा
चारी का कहना है- फिलहाल अभी, पार्टी के अंदर एक सीमित वर्ग से उठ रही जोरदार आवाज भाजपा आलाकमान को चेता रही है कि वह हर उस बागी को जगह न दे जो उसका दरवाजा खटखटाता है, विशेषकर उन्हें जो कड़ी मेहनत, वैचारिक प्रतिबद्धता या निस्वार्थ सेवा और बलिदान के जरिये हासिल करने के बजाये ‘विरासत’ में मिली नेतृत्वशीलता को अपना उत्तराधिकार समझते हों। भाजपा जैसी कैडर-आधारित पार्टी के लिए बहुत बाद में और पिछले दरवाजे से आने वाले विपक्षी खेमे के नेताओं के कुछ मायने नजर नहीं आते हैं। यह राजस्थान में और भी ज्यादा प्रासंगिक है, जहां भाजपा के पास अच्छी कैडर क्षमता, व्यापक जनाधार वाले और हर स्तर पर लोकप्रिय नेता हैं। भाजपा को ध्यान में रखना चाहिए कि हर राज्य असम नहीं हो सकता, जहां कांग्रेस से आए हेमंत बिस्व सरमा ने पार्टी को 2016 में पहली बार सत्ता में लाने के लिए स्थितियों को एकदम बदलकर रख दिया था। असम एक अलग किस्म का मामला है।
उन्होंने लिखा-आमतौर पर भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व और गृह मंत्री अमित शाह की शानदार रणनीतियों के बलबूते चुनाव जीतती रही है। नवागंतुक शायद ही इस मामले में पार्टी में कोई योगदान दे पाते हैं। भाजपा वैसे उन चुनाव क्षेत्रों में अपनी जीत की संभावनाएं बेहतर कर सकती है, जहां बागी नेता का खासा प्रभाव है और जैसे चुनाव नजदीक आएगा। इसका दामन थामने के इच्छुक बागियों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी। लेकिन पार्टी को अभी अनपेक्षित नतीजों पर नजर रखनी चाहिए और पार्टी के अंदर उठ रही आवाजों को सुनना चाहिए।
कांग्रेस के लिए एक और संकट
लेख में आगे लिखा है- कांग्रेस के लिए राजस्थान संकट काफी समय से गहरा रहा था। वास्तव में, अशोक गहलोत को 2018 में जब मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब ऐसा माना जा रहा था कि ऐसी सहमति बनी है कि एक-दो साल बाद ही सचिन पायलट, जिन्हें राज्य में कांग्रेस की जीत का श्रेय दिया जाता है, मुख्यमंत्री से कमान अपने हाथ में ले लेंगे। लेकिन तथ्य यह है कि गहलोत के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया गया, यह देखते हुए कि पुराने योद्धा को रणनीतिक रूप से और शासन क्षमता का गहरा अनुभव है। उनके ‘जादू’ (गहलोत के बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपने पिता से जादू के गुर सीखे थे) ने तो महाराष्ट्र में भी काम किया था, जहां उनके अनुसार, कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही हार मान ली थी। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ‘यह मानकर कि पार्टी सफल नहीं हो सकती, उन्होंने (महाराष्ट्र और हरियाणा कांग्रेस) ने विधानसभा चुनाव जीतने की कोई कोशिश करनी भी बंद कर दी थी। जबकि पार्टी को अपनी पूरी क्षमता और ऊर्जा के साथ चुनाव लडऩा चाहिए, न कि पराजित मानसिकता के साथ।’
चारी ने लिखा-एक समय जब उनके केंद्र में पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाने की उम्मीद थी, उन्हें राजस्थान भेज दिया गया और उन्हें अपने वर्चस्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। अशोक गहलोत ने राज्य का बजट को पेश करने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘मैं मुख्यमंत्री पद का हकदार था। यह स्पष्ट था कि किसे मुख्यमंत्री बनना चाहिए और किसे नहीं। जनभावना का सम्मान करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के नाते राहुल गांधी ने मुझे मौका दिया।’ जाहिर है इसके आगे पायलट संकट बहुत ही मामूली नजर आता है।
कांग्रेस में क्या बचा?
उनका कहना है-क्या कांग्रेस एक और विभाजन के कगार पर खड़ी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि बड़ा आंतरिक झगड़ा ‘हिलाकर रख देने वाले’ अंजाम तक पहुंचा सकता हो? सीधा नतीजा यह हो सकता है कि सिंधिया की तरह, कांग्रेस की युवा पीढ़ी के कई बागी भाजपा की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं, जो हमेशा ऐसे लोगों के स्वागत में रेड कार्पेट बिछाने को तैयार रहती है। इन नेताओं में से अधिकांश में यह भावना बढ़ रही है कि ऐसी पार्टी में बने रहना निरर्थक है जिसका कम से कम हाल-फिलहाल तो कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है। एक राजनीतिक व्यक्ति जो सार्वजनिक जीवन पर अपना लंबा समय और बहुत कुछ व्यय करता है, जाहिर है इसे लेकर चिंतित जरूर होगा कि बदले में हासिल क्या है और इसलिए भाजपा में सुनहरा भविष्य तलाशेगा।
शेषाद्री चारी ने लिखा है-कांग्रेस में वंशवाद की राजनीति पर बोलते हुए सचिन पायलट ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में सुझाव दिया था कि प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए आगे लाया जाना चाहिए। उन्हें और कुछ अन्य युवा नेताओं को ‘प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ’ लॉबी का हिस्सा माना जाता रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बगावत प्रकरण में राहुल गांधी एकदम पीछे रहे। प्रियंका, बीच-बचाव की भूमिका में रहीं, ने कथित तौर पर चार बार पायलट से बात की और उन्हें पार्टी न छोडऩे के लिए समझाया जबकि वह मुख्यमंत्री गहलोत की बुलाई बैठकों में भाग नहीं ले रहे थे।
उनका कहना है- राजनीतिक दल विचारधारा-आधारित रहने के बजाय तेजी से नेता-उन्मुख होते जा रहे हैं। लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत नेतृत्व की अपरिहार्यता बढ़ती जा रही है। कांग्रेस का प्रथम परिवार पार्टी के लिए उत्तरदायित्व साबित हो रहा है। भिन्न स्तर पर, अत्यधिक प्रतिभाशाली लोग साथ छोडक़र एक दूसरे मंच पर दूसरे नेता की छत्रछाया में नया अवतार ले सकते हैं। गांधी परिवार जितनी जल्दी इस बात को समझकर एक प्रतिभाशाली टीम को कमान सौंपता है, कांग्रेस के लिए उतना ही अच्छा होगा। (hindi.theprint.in)
भोपाल, 17 जुलाई। मध्यप्रदेश विधानसभा का 20 जुलाई से प्रारंभ होने वाला मानसून सत्र कोरोना संक्रमण के चलते आज स्थगित करने का निर्णय लिया गया।
प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा की अध्यक्षता में यहां सर्वदलीय बैठक में चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया। बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, संसदीय कार्य मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा और अन्य वरिष्ठ जनप्रतिनिधि भी मौजूद थे।
सूत्रों के अनुसार बैठक में तय किया गया कि भोपाल और अन्य शहरों में कोरोना के प्रकरण लगातार बढऩे के मद्देनजर सत्र स्थगित किया जाना चाहिए। अंतत-इस पर निर्णय ले लिया गया।
बैठक के बाद मुख्यमंत्री श्री चौहान ने मीडिया से कहा कि कोरोना को लेकर मौजूदा परिस्थितियों में सत्र चलाना उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए अध्यक्ष से चर्चा के बाद सत्र स्थगित करने का फैसला किया गया है। संवैधानिक कार्यों को पूर्ण करने के लिए हम लोग चर्चा करेंगे।
सत्र 20 जुलाई से प्रारंभ होकर पांच दिन तक चलना था। इस दौरान वित्त वर्ष 2020़ 21 के लिए बजट भी पारित कराना था। माना जा रहा है कि अब बजट पारित करने के लिए अन्य संवैधानिक विकल्पों जैसे अध्यादेश के उपयोग पर भी विचार किया जाएगा।
मौजूदा कोरोना काल के दौरान लगभग आधा दर्जन विधायक भी कोरोना संक्रमण के शिकार हो चुके हैं। विधानसभा के कुछ कर्मचारी, राज्य सरकार के अधिकारी कर्मचारी और मीडिया से जुड़े लोग भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। (वार्ता)
नई दिल्ली, 17 जुलाई । राजधानी दिल्ली के बाद अब मुंबई में भी डीजल की कीमत ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई है। देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अनुसार, मुंबई में शुक्रवार को डीजल 16 पैसे महंगा होकर 79.56 रुपये प्रति लीटर बिका जो अब तक का उच्चतम भाव है। दिल्ली में जून से ही डीजल की महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है। यहां डीजल की कीमत आज 17 पैसे बढक़र 81.35 रुपये प्रति लीटर पर पहुँच गई।
कोलकाता और चेन्नई में भी डीजल की कीमत ऐतिहासिक उच्चतम स्तर के करीब पहुंच गई है। कोलकाता में डीजल 16 पैसे बढक़र 76.49 रुपये और चेन्नई में 15 पैसे महंगा होकर 78.37 रुपये प्रति लीटर के भाव बिका।
दिल्ली में पेट्रोल का मूल्य 80.43 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रहा जो 27 अक्टूबर 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में भी पेट्रोल की कीमत क्रमश: 82.10 रुपये, 87.19 रुपये और 83.63 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रही। (वार्ता)
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और आरएसएस के गहरे रिश्तों का आरोप एक डिजाइन बनाकर लगाया है। इस पर उन्होंने जुड़े हुए पैदा बच्चे भी लिखा है। ट्विटर पर पोस्ट इस तस्वीर के जवाब में पवन सेठी नाम के एक व्यक्ति ने एक दूसरी फोटो पोस्ट की जिसमें कांग्रेस के अंग्रेजी हिज्जों के भीतर ही आरएसएस ढूंढकर दिखा दिया, और लिखा कि यह कांग्रेस के भीतर गहरे तक बैठा हुआ है। कांग्रेस ने यह डिजाइन पोस्ट करते हुए आम आदमी पार्टी पर तंज कसा था, और उसे आप की जगह, जनता से छिपाया गया पाप, लिखा था। उस पर कुछ लोगों ने लिखा- मत छेड़ो उसको, वो है सबका पाप। एक ने लिखा- जनता तुम्हारी ही हाथ तुम्हारे गाल पर देगी छाप। एक ने लिखा- आप के झापड़ की छाप दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी-आरएसएस को पड़ चुकी है, अब तो सुधर जाओ। एक ने लिखा- अरे तुम क्यों रहे हो इतना कांप?
आशीष द्विवेदी ने लिखा- जनता बटन कांग्रेस का मत देना तुम दबाए, आज का कांग्रेसी न जाने कल भाजपा में बिक जाए।
अकेले रायपुर से 27, दुर्ग-नांदगांव-बालोद से 9-9 संक्रमित
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। प्रदेश में आज दोपहर करीब 2 बजे 62 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें अकेले रायपुर से 27, दुर्ग-नांदगांव-बालोद से 9-9, गरियाबंद से 5, मुंगेली से 3 एवं बिलासपुर से 1 मरीज शामिल हैं। स्वास्थ्य अफसरों ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि ये सभी मरीज आसपास के कोरोना अस्पतालों में भर्ती किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है।
मौतें-21, एक्टिव-1282, डिस्चार्ज-3451
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। राजधानी रायपुर समेत प्रदेश में कोरोना मरीज तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं और बीती रात मिले 197 नए पॉजिटिव को मिलाकर इनकी संख्या 47 सौ 54 तक पहुंच गई है। इसमें 21 की मौत हो चुकी है। 12 सौ 82 एक्टिव हैं, जो एम्स व अन्य अस्पतालों में भर्ती हैं। 34 सौ 51 ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। सैंपल जांच जारी है।
जानकारी के मुताबिक राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में कल जांजगीर-चांपा के एक 66 वर्षीय कोरोना पीडि़त की मौत हो गई। वहीं प्रदेश में बीती रात में एक साथ सबसे अधिक 197 नए पॉजिटिव सामने आए। इसमें अकेले रायपुर से 57, बिलासपुर से 32, नांदगांव से 23, दुर्ग से 17, कबीरधाम से 16, सरगुजा से 14, जांजगीर-चांपा से 12, बेमेतरा से 9, जशपुर से 5, कोरबा से 4, रायगढ़ व बलौदाबाजार से 3-3, बलरामपुर व अन्य राज्य से 1-1 मरीज शामिल हैं। ये सभी मरीज एम्स व अन्य कोरोना अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ ठीक होने पर 127 मरीज डिस्चार्ज भी किए गए हैं।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि रायपुर समेत प्रदेश में जांच का दायरा बढ़ाने से अब नए-नए कोरोना मरीज मिल रहे हैं। इसमें प्रायमरी के साथ सेकंडरी कांटेक्ट वाले ज्यादा हैं। इन सभी के आसपास और संपर्क में आने वालों की भी जांच-पहचान की जा रही है। जांच में और लोग भी पॉजिटिव मिल सकते हैं। उनका कहना है कि कोरोना से बचने मास्क लगाना और सामाजिक दूरी बनाकर चलना बहुत ही जरूरी है, पर लोग इस नियम का सही ढंग से पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग भीड़ वाली जगहों या बाजारों में जाने पर जल्द कोरोना संक्रमित हो रहे हैं और अपने घर-परिवार के साथ आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर रहे हैं। कोरोना से बचाव जरूरी है।
सवा दो लाख से अधिक सैंपलों की जांच
जानकारी के मुताबिक प्रदेश के एम्स और रायपुर, जगदलपुर, रायगढ़ मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना जांच लगातार जारी है। प्रदेश में दो लाख 25 हजार 913 लोगों की कोरोना जांच पूरी कर ली गई है। बाकी जगहों से एकत्र किए गए सैंपलों की जांच चल रही है और हर रोज इसकी रिपोर्ट भी सामने आ रही है।
‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
एरनाकुलम (केरल), 17 जुलाई। टोमी थॉमस नाम का एक फोटोग्राफर नहीं होता, तो एक जिंदगी खत्म हो चुकी रहती। बीते इतवार टोमी थॉमस को पुलिस ने बुलाया कि जिले के एक मकान में मर गए एक आदमी की फोटो लेना है। ऐसी फोटो खिंचवाना पुलिस जांच का हिस्सा था, जब फोटोग्राफर फोटो ले रहा था तो उसे ‘लाश’ के पास से कुछ हल्की सी आवाज आई।
टोमी ने तुरंत ही पुलिसवालों को इस बारे में बताया और अपना शक जाहिर किया कि हो सकता है कि वह लाश न होकर जिंदा व्यक्ति हो। पुलिस ने जब देखा तो फोटोग्राफर का शक सही निकला और जिसे मरा हुआ समझ लिया गया था, उसे अब अस्पताल में भर्ती किया गया है, और आईसीयू में उसका इलाज चल रहा है।
पलक्कड़ का रहने वाला शिवदासन नाम का व्यक्ति एरनाकुलम जिले में किराए के मकान में रहता है। एक व्यक्ति जो उससे मिलने आया उसने पुलिस को जाकर खबर की कि शिवदासन मरा पड़ा है। पुलिस के लिए नियमित रूप से काम करने वाले टोमी नाम के फोटोग्राफर को पुलिस ने फोटो खींचने भेजा। वहां यह आदमी फर्श पर पड़ा था और उसका चेहरा नीचे था। कमरे में अंधेरा था, और टोमी को जब हल्की सी आवाज आई, तो उसके तन-मन में भी सिहरन दौड़ गई कि क्या यह जिंदा है? जब उसने पुलिस को खबर की और पुलिस ने उस आदमी को सीधा किया तो पता लगा कि उसकी धडक़न हल्की सी चल रही है। एम्बुलेंस बुलाई गई और उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसका इलाज चल रहा है।
पुलिस ने बताया कि शिवदासन को उसके एक कर्मचारी ने इस हालत में पाया था, लेकिन कोरोना की दहशत इतनी है कि उसने यह देखने की कोशिश नहीं की कि वह जिंदा है या नहीं। (द न्यूज मिनट)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 17 जुलाई। राजनांदगांव जिले में लखोली बस्ती के बाद पैरामिलिट्री फोर्स आईटीबीपी का क्वॉरंटीन सेंटर कोरोना का हॉटस्पॉट बन गया है। पिछले पखवाड़ेभर में 50 से अधिक जवान कोरोनाग्रस्त मिले हैं। यह सिलसिला शुक्रवार सुबह भी जारी रहा। सुबह मेडिकल रिपोर्ट में 9 जवान कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। बीती रात को एकमुश्त 20 जवान कोरोना से बीमार मिले।
बताया जा रहा है कि सोमनी स्थित क्वॉरंटीन सेंटर में आईटीबीपी के जवान अवकाश से लौटने के बाद स्वास्थ्य जांच में कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। बताया जा रहा है कि क्वॉरंटीन सेंटर में जवानों को सीधे छुट्टी से लौटने के बाद भेजा जा रहा है। दीगर राज्य से आए जवान साथियों को संक्रमित कर रहे हैं। नतीजतन कोरोना ने पूरे क्वॉरंटीन सेंटर को विस्फोटक बना दिया है। आईटीबीपी में सिलसिलेवार संक्रमित मिल रहे जवानों को बेहतर इलाज के लिए कोविड-19 अस्पताल में दाखिल कराया जा रहा है।
सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि संक्रमित जवानों को मेडिकल कॉलेज कोविड-19 में भर्ती कराया गया है। लगातार स्वास्थ्य विभाग की तकनीकी टीम सेंटर में जवानों की जांच कर रही है। उधर दूसरे राज्य केरल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा दिल्ली से लौटने वाले जवानों के कारण आईटीबीपी क्वॉरंटीन सेंटर में कोरोना का कहर बढ़ा है। कोरोना संक्रमित मरीजों के समुचित इलाज के लिए फोर्स के अफसर भी प्रयासरत हैं।
बताया जा रहा है कि बढ़ते मामलों की वजह से क्वॉरंटीन सेंटर में ही अब अब अस्थाई अस्पताल बनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। बताया जा रहा है मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सुविधाओं की कमी होने की वजह से संक्रमित जवान कोविड-19 अस्पताल में जाने से परहेज कर रहे हैं। यही कारण है कि अब आईटीबीपी द्वारा सोमनी में ही अस्थाई चिकित्सालय बनाया जा रहा है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जुलाई। राज्य पुलिस सेवा की एक महिला अधिकारी के कोरोना पॉजिटिव मिलने का असर दूर तक हुआ। रायपुर में आज डॉ. राधा बाई शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय को एक पखवाड़े के लिए बंद कर दिया गया है क्योंकि इस कॉलेज की एक प्राध्यापिका इस पुलिस अधिकारी से अभी चार दिन पहले एक पारिवारिक समारोह में मिली थी।
जानकार सूत्रों से मिली खबर के अनुसार डीएसपी स्तर की इस महिला अधिकारी के कोरोना पॉजिटिव मिलने की खबर पाते ही इस सहायक प्राध्यापिका ने कॉलेज के प्राचार्य को यह सूचना दी कि वह एक पारिवारिक समारोह में इस अफसर से अभी मिली थी। इस समारोह के बाद वह कॉलेज भी आ रही थी, और सभी लोगों से उसकी मुलाकात भी हुई थी। यह जानते ही प्राचार्य ने तुरंत प्रशासन को इसकी सूचना दी, और सभी प्राध्यापकों-कर्मचारियों को 14 दिन कॉलेज न आने के निर्देश दिए हैं।
-देवेंद्र वर्मा
संसदीय प्रणाली मैं संख्या बल ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।संख्या के आधार पर ही न केवल सरकार का गठन होता है, अपितु सदन में होने वाली प्रत्येक प्रक्रिया, चाहे वह वित्तीय कार्य हो अथवा विधिक कार्य,या सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना हो, आशय यह कि संसदीय प्रणाली का मूलाधार किसी राजनीतिक दल में सदस्यों की संख्या है। सभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के अंतर्गत किसी प्रस्ताव या किसी विषय का प्रस्तुत किया जाना अथवा उसका पारित होना अथवा स्वीकृत होना इसी बात पर निर्भर होता है कि उस प्रस्ताव अथवा किसी भी विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कितने सदस्य हैं और इस सदस्य संख्या के आधार पर ही अध्यक्ष यह निर्णय करते हैं कि कोई प्रस्ताव अथवा कोई विषय सभा के द्वारा स्वीकृत हुआ अथवा नहीं ?
सभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के अंतर्गत ऐसे अनेक विषय होते हैं जब किसी प्रस्ताव के अथवा किसी विषय के बहुमत के द्वारा स्वीकृत ना होने की स्थिति में सरकारें अपदस्थ भी हो सकती है।यही कारण है कि सत्ता पक्ष और प्रति पक्ष सदन में यह प्रयास करते हैं कि उनके समस्त सदस्य ऐसे मतदान के अवसर पर सभा में उपस्थित रहे ताकि मतदान के दौरान किसी भी पक्ष को अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़े, विशेष कर सत्ताधारी दल को।
हमारे देश की राजनीति में साठ के दशक में दल बदल के ऐसे एकाधिक मामले हुए जब सदस्यों द्वारा अन्यान्य कारणों से जिसमें मुख्य रुप से स्वयं को लाभान्वित करना रहा सभा में अपने दल अर्थात जिस दल की विचारधारा एवं प्रत्याशी के रूप में वे निर्वाचित हुए हैं,के विरुद्ध मतदान करने के कारण जनादेश द्वारा चुनी हुई,सरकारें अपदस्थ हुई।
सदस्यों द्वारा इस प्रकार एक दल से दूसरे दल में जाने वापस आने के दिन प्रतिदिन होने वाले, प्रजातांत्रिक एवं संसदीय प्रणाली के विरुद्ध आचरण को रोकने, और जनादेश प्राप्त सरकारों को अपदस्थ करने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए के लिए वर्ष 1985 में संविधान को संशोधित करते हुए दसवीं अनु सूची सम्मिलित की गई जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में दल बदल कानून कहते हैं।
दल बदल को रोकने हेतु दल बदल कानून में जो अन्य दूसरे प्रावधान किए गए, उनके साथ ही पैरा दो दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हरता (disqualification on ground of defection) पेरा (1) (ख) मैं यह प्रावधान किया गया कि यदि कोई सदस्य जिस राजनीतिक दल का सदस्य है उसके द्वारा अथवा दल द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे राजनीतिक दल व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से 15 दिन के भीतर माफ नहीं किया है तो उसे दल बदल कानून के पैरा (1) (ख) के अंतर्गत सदस्यता से निर्रहरित (disqualify) किया जा सकेगा।
सभा की कार्यवाही के दौरान जब सभा विभिन्न कार्यों का संपादन करती है कार्य संपादन के समय/ चर्चा के समय राजनीतिक दलों के सदस्य उपस्थित रहे इस उद्देश्य से राजनीतिक दलों द्वारा उनके दल के वरिष्ठ विधायकों में से chief whip नियुक्त किए जाते हैं। और उनकी सहायता के लिए यदि आवश्यक हो तो एक अथवा एक से अधिक विधायकों को राजनीतिक दलों द्वारा व्हिप नियुक्त किया जाता है.
व्हिप (सचेतक) का मुख्य कार्य होता है कि वह अपने दल के सदस्यों की उपस्थिति सदन में अथवा सदन के आसपास ही सुनिश्चित करें ताकि अचानक सभा में होने वाले मतदान के समय, मतदान में उस राजनीतिक दल के सभी सदस्य हिस्सा ले सकें और ऐसी अप्रिय स्थिति निर्मित ना हो कि सत्ताधारी दल का कोई प्रस्ताव पारित ही ना हो सके क्योंकि ऐसी स्थिति सत्ताधारी दल के लिए शर्मनाक मानी जाती है, और कुछ मामलों में सरकारें अपदस्थ भी हो जाती हैं।
वर्ष 1985 में संविधान में दसवीं अनु सूची का समावेश किया गया जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में दल बदल कानून भी कहा जाता है और दल बदल कानून में किसी राजनीतिक दल द्वारा जारी व्हिप के संबंध में भी कुछ प्रावधान किए गए।.
दल परिवर्तन के आधार पर निर्रहरता (disqualification) के संबंध में पैरा दो ध्यान देने योग्य है। पैरा (2) के अनुसार कोई सदस्य सदन का सदस्य होने के लिए डिसक्वालीफाई होगा यदि वह ऐसे राजनीतिक दल जिसका वह सदस्य है अथवा उसके द्वारा निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दिए गए किसी ने निदेश के विरुद्ध ऐसे राजनीतिक दल व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है, और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे राजनीतिक दल व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से 15 दिन के भीतर माफ नहीं किया है तो ऐसा समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का,यदि कोई हो सदस्य है, और निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में खड़ा किया था, सदस्य बने रहने के लिए अयोग्य हो गया है।
उपरोक्त से यह संदेह रहित है, कि व्हिप का प्रयोग केवल और केवल सभा से संबंधित कार्यों के लिए ही होता है किसी राजनीतिक दल के अंदर होने वाली दिन प्रतिदिन की कार्यवाही या घटनाएँ आदि के संबंध में यदि व्हिप जारी की भी जाती है तो वह प्रभावी नहीं होती और उसे दसवीं अनु सूची के अंतर्गत जारी की गई नहीं मानी जा सकती।वह दल के अंदर अनुशासन बनाए रखने संबंधी पत्राचार की श्रेणी में ही आता है।
विगत कुछ वर्षों में राजनीतिक दलों के मध्य सत्ता प्राप्त करने के लिए संसदीय प्रक्रियाओं के अलावा अन्य तरीके इजाद करते हुए जो प्रयास किए जा रहे हैं वस्तुतः इन्हीं के कारण राजनीतिक दलों द्वारा दसवीं अनु सूची के अंतर्गत प्रावधान का पालन नहीं करने पर अयोग्यता जैसे प्रावधानों का प्रयोग भी सदस्यों को अनुशासित रखने, और लोभ,लालच के कारण अन्य दलों में जाने से रोकने के लिए किया जाने लगा है। क्योंकि यदि कोई सदस्य व्हिप का उल्लंघन करता है अर्थात व्हिप को नहीं मानता है तो उसे अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ सकता है।किंतु जैसा पूर्व पैरा में उल्लेख किया है यह केवल दल के अंदर अनुशासन बनाए रखने संबंधी पत्राचार की श्रेणी में ही आता है।
वस्तुतः अध्यक्ष व्हिप जारी करने हेतु प्राधिकृत व्यक्ति नहीं रहता बल्कि प्रत्येक राजनीतिक दल अर्थात विधायक दल का मुख्य सचेतक/सचेतक (Chief Whip/whip) ही व्हिप जारी करने के लिए अधिकृत रहता है। व्हिप सभा से संबंधित कार्यों के अतिरिक्त राजनीतिक दलों की बैठकों में जिसमें विधायक दल की बैठक भी सम्मिलित है,यदि जारी की भी जाती है, और यदि कोई सदस्य उसका पालन नहीं करता है अथवा व्हिप के अनुरूप व्यवहार नहीं करता है ऐसी स्थिति में दल बदल कानून के अंतर्गत उस पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा सकती, अपितु दल में अनुशासन के आधार पर राजनीतिक दल यथा आवश्यक कार्यवाही कर सकता है।
यह अवश्य है कि, यदि किसी राजनीतिक दल के सदस्य द्वारा दल-बदल कानून के अंतर्गत किसी प्रकार की अर्जी अध्यक्ष को प्राप्त होती है, तब अर्जी पर निर्णय करने के पूर्व,यदि अध्यक्ष आवश्यक समझे, जिन सदस्यों के विरुद्ध अर्जी प्राप्त हुई है उनसे वस्तु स्थिति ज्ञात करने के लिए नोटिस जारी कर सकते हैं।
संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष का पद विधायिका का सर्वोच्च पद है, वह सभा एवं इसके सदस्यों के अधिकारों एवं विशेष अधिकारों का संरक्षक है, और सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अध्यक्ष के पद का मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा कायम रखें। क्योंकि सदस्यों का मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा भी अध्यक्ष की प्रतिष्ठा में समाहित है। यदि अध्यक्ष ने किसी प्रकार का कोई नोटिस जारी भी किया है तो सदस्यों का यह दायित्व है कि वह उस नोटिस का जवाब अध्यक्ष को दे।
विगत वर्षों में यह देखने में आ रहा है कि प्रत्येक मामलों में राजनीतिक दलों के सदस्य न्यायालय में जा रहे हैं और न्यायालय सभा की कार्यवाही किस प्रकार से संचालित हो बैठक कब हो और कब नहीं हो, बैठकों में क्या-क्या व्यवस्थाएं की जाए और मतदान कैसे हो, आदि निर्देश भी न्यायालय के द्वारा जारी किए गए हैं। राजनीतिक दलों एवं इसके सदस्यों के इस प्रकार के कार्य व्यवहार से विधायिका की प्रतिष्ठा जन साधारण के दिलो-दिमाग में दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।
जिस प्रकार न्यायालय से किसी भी व्यक्ति को उनके विरुद्ध दायर किसी पिटीशन पर उत्तर देने हेतु सूचना प्राप्त होती है और न्यायालय का सम्मान करते हुए उस सूचना पर प्रति उत्तर निर्धारित अवधि में प्रत्येक नागरिक प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार यदि सदस्यों को अध्यक्ष से किसी प्रकार का कोई नोटिस प्राप्त होता है तब सदस्यों का भी यह दायित्व है, वे अध्यक्ष के पद का मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा के प्रति निष्ठा एवं विश्वास का भाव रखते हुए प्राप्त नोटिस का प्रति उत्तर अध्यक्ष को दें और इसी में न केवल विधायिका की अपितु विधायिका के प्रत्येक पदाधिकारी और सदस्यों की प्रतिष्ठा एवं मान सम्मान अक्षुण्ण बना रहेगा।
(पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा, संसदीय एवं संविधानिक विशेषज्ञ)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुन्द, 17 जुलाई। जिले के ग्राम कोमा की एक महिला ने खल्लारी थाना प्रभारी पर एक मामले में एक लाख रुपए लेने का आरोप लगाया है। महिला के मुताबिक थानेदार ने रकम लेने के बाद भी उसके पति के खिलाफ शराब मामले में प्रकरण बना दिया। अब पीडि़त महिला ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री सहित डीजीपी को पत्र भेजकर की है।
गुरूवार को ग्राम कोमा निवासी पीडि़त महिला रूखमणी साहू शिकायत लेकर संसदीय सचिव विनोद सेवनलाल चंद्राकर के कार्यालय पहुंची थी। उन्होंने शिकायत पत्र देते हुए उचित कार्रवाई की मांग की है। अपनी शिकायत में उन्होंने बताया है कि पिछले दिनों ग्राम कोलदा में शराब बेच रहे दो लडक़ों को खल्लारी पुलिस ने पकड़ा था। इस मामले में खल्लारी थाना प्रभारी ने अपने थाने की पुलिस मोनू सरदार और देवचरण सिन्हा को उनके घर भेजकर पैसे की मांग की। लगातार थाना प्रभारी के दबाव के चलते इधर-उधर से पैसे की व्यवस्था कर एक लाख रुपए थाना प्रभारी के कहने पर मोनू सरदार व देवचरण सिन्हा को दिया गया।
आरोप है कि पैसा मिलने के बाद भी प्रार्थी महिला के पति हितेश साहू को शराब के एक मामले में फंसा दिया गया। उन्होंने शिकायत पत्र देते हुए थाना प्रभारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
महिला का आरोप है कि एक लाख रुपए देने के बाद थानेदार फिर से एक लाख रुपए की मांग कर रही है। थानेदार ने मांग पूरा नहीं करने पर उसके पति को फंसा देने की बात कह रही है जबकि एक लाख रुपए थानेदार को पहले ही दिया जा चुका है। मांग पूरी नहीं करने पर पुलिस उसके घर में रखी कार को जबरदस्ती ले गई हंै उसमें शराब रखवाकर कार की जब्ती बनाई गई है और उसके पति के खिलाफ झूठा मामला बनाने की बात कह रही है। टीआई लगतार धमकी दे रही है कि मांगें नहीं मानी तो गांजा के मामले में फंसा दिया जाएगा। पुलिस की इस धमकी से उसका परिवार भयभीत है।
इस मामले में खल्लारी थाना टीआई दीपा केंवट का कहना है कि महिला का आरोप बेबुनियाद है। मामले की जांच कराने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाएगी। रहा सवाल हितेश साहू को फंसाने का, तो उसके खिलाफ थान में पहले ही कई मामले दर्ज हंै।
बीजिंग/जिनेवा/नई दिल्ली, 17 जुलाई (वार्ता)। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का कहर तेजी से बढ़ता जा रहा है और दुनियाभर में इसके कारण अब तक 5.89 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तथा 1.37 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
कोविड-19 के संक्रमितों के मामले में अमेरिका दुनिया भर में पहले, ब्राजील दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर है। वहीं इस महामारी से हुई मौतों के आंकड़ों के मामले में अमेरिका पहले, ब्राजील दूसरे और ब्रिटेन तीसरे स्थान पर है जबकि भारत मृतकों की संख्या के मामले में आठवें स्थान पर है।
अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग केन्द्र (सीएसएसई) की ओर से जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,37,892,73 हो गयी है जबकि अब तक इस महामारी के कारण 5,84,990 लोगों ने जान गंवाई है।
विश्व महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका में कोरोना से अब तक 3754371 लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 1,38339 लोगों की मौत हो चुकी है। ब्राजील में अब तक 2012151 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं जबकि 76688 लोगों की मौत हो चुकी है।
भारत में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 34956 नये मामले सामने आये हैं और इसके बाद संक्रमितों की संख्या 1003832 हो गयी है। वहीं इस दौरान 687 लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 25602 हो गई है। संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। देश में अब तक 635757 मरीज रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना के 342473 सक्रिय मामले हैं।
रूस कोविड-19 के मामलों में चौथे नंबर पर है और यहां इसके संक्रमण से अब तक 7,51,612 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 11,920 लोगों ने जान गंवाई है। पेरू में लगातार हालात खराब होते जा रहे है वह इस सूची में पांचवें नम्बर पर पहुंच गया है। यहां संक्रमितों की संख्या 3,41,586 हो गई तथा 12,615 लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना से संक्रमित होने के मामले में दक्षिण अफ्रीका छठे स्थान पर पहुंच गया है। यहां इससे अब तक 324221 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 4669 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं मैक्सिको में कोरोना से अब तक 3,24041 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 37574 लोगों की मौत हुई है। कोविड-19 से संक्रमित होने के मामले चिली अब आठवें नंबर पहुंच गया है। यहां इससे अब तक 3,23698 लोग संक्रमित हुए हैं और मृतकों की संख्या 77290 है।
ब्रिटेन संक्रमण के मामले में नौवें नंबर पर है। यहां अब तक इस महामारी से 2,94114 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 45,204 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
वहीं खाड़ी देश ईरान में संक्रमितों की संख्या 2,67,061 हो गई है और 13,608 लोगों की इसके कारण मौत हुई है। वहीं स्पेन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,58,855 है जबकि 28,416 लोगों की मौत हो चुकी है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में कोरोना से अब तक 2,57,914 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 5426 लोगों की मौत हो चुकी है।
यूरोपीय देश इटली में इस जानलेवा विषाणु से 2,43,736 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 35017 लोगों की मौत हुई है। सऊदी अरब में कोरोना संक्रमण से अब तक 2,43,238 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 2370 लोगों की मौत हो चुकी है। तुर्की में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,16873 हो गयी है और 5440 लोगों की मौत हो चुकी है। फ्रांस में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,11102 हैं और 30,141 लोगों की मौत हो चुकी है। जर्मनी में 2,01,450 लोग संक्रमित हुए हैं और 9086 लोगों की मौत हुई है।
बंगलादेश में 1,96323 लोग कोरोना की चपेट में आए हैं जबकि 2496 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस से बेल्जियम में 9792, कनाडा में 8875, नीदरलैंड में 6156, स्वीडन में 5593, इक्वाडोर में 5207, मिस्र में 4129, इंडोनेशिया में 3873, इराक में 3522, स्विट्जरलैंड में 1969, रोमानिया में 1971, अर्जेंटीना में 2112, बोलीविया में 1984, आयरलैंड में 1749 और पुर्तगाल में 1679 लोगों की मौत हो चुकी है।