अंतरराष्ट्रीय
लंदन, 9 दिसंबर | एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, अंतरिम विश्लेषण के पहले पूर्ण परिणामों ने पुष्टि की है कि ऑक्सफोर्ड कोविड-19 वैक्सीन काफी असरदार है। वैक्सीन ट्रायल के दौरान 23,745 में से केवल तीन प्रतिभागियों ने गंभीर प्रतिकूल स्थितियों का सामना किया है। ऑक्सफोर्ड कोविड-19 वैक्सीन परीक्षणों के अंतरिम परिणामों में पाया गया कि टीका 70 प्रतिशत मामलों में लक्षणात्मक रोग से बचाता है। जिन्हें दो पूर्ण खुराक दी गई उन पर 62 प्रतिशत टीका असरदार रही और जिन्हें आधा दिया गया उन पर 90 प्रतिशत रही।
परिणाम कोविड-19 वैक्सीन के लिए प्रकाशित होने वाले पहले पूर्ण समीक्षित प्रभावकारिता परिणाम हैं और द लैन्सेट मैगजिन में प्रकाशित किया गया है।
परिणाम ब्रिटेन और ब्राजील (11,636 लोग) में चरण 3 परीक्षणों के पूर्व-निर्दिष्ट पूल्ड एनालिसिस के आधार पर, ब्रिटेन ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में 4 ट्रायल में कुल 23,745 लोगों की भागीदारी और सुरक्षा डेटा के साथ है।
सभी प्रतिभागी ठीक हो गए हैं या ठीक हो रहे हैं, और परीक्षण में बने हुए हैं।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्टडी ऑथर और डॉक्टर मेरीन वोयसे ने कहा, "इस रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए परिणाम हमारे पहले अंतरिम विश्लेषण से महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रदान करते हैं।"
उन्होंने कहा कि भविष्य के विश्लेषणों में और अधिक डेटा के साथ, हम प्रमुख उपसमूहों में अंतर की जांच करेंगे जैसे कि उम्रदराज, वयस्क, विभिन्न जाति के लोग, खुराक, बूस्टर टीकों का समय, और हम यह निर्धारित करेंगे कि कौन सी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं संक्रमण या बीमारी से सुरक्षा के लिए बेहतर हैं।"
अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि पिछले परीक्षण के परिणामों में पाया गया है कि टीका एंटीबॉडी और टी सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को उभारता है, और 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों में सुरक्षित है, जिसमें उम्रदराज वयस्क भी शामिल हैं।
स्टडी के लीड लेखक प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने कहा, "हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि हमारी वैक्सीन की प्रभावकारिता स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।"
सभी 23,745 प्रतिभागियों में गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने की निगरानी की गई। पहली खुराक के 21 दिनों के बाद से कोविड-19 के लिए 10 मामले दर्ज किए गए थे, सभी नियंत्रण में थे, और दो को गंभीर रूप से वगीकृत किया गया था, जिसमें एक मौत भी शामिल रही। (आईएएनएस)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 9 दिसंबर | पाकिस्तान हिंदू और ईसाई महिलाओं को चीन में उप-पत्नी या रखैल और मजबूर दुल्हन के तौर पर मार्केटिंग कर रहा है। ये बात अमेरिका के शीर्ष राजनयिक सैमुअल ब्राउनबैक ने कही है।
ब्राउनबैक ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा कि चीनी पुरुषों के लिए "दुल्हनों के स्रोतों में से एक धार्मिक अल्पसंख्यक ईसाई और हिंदू महिलाएं हैं, जिनकी उपपत्नी के तौर पर मार्केटिंग की जा रही है और चीन में दुल्हन बनने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उनकी वहां स्थिति अच्छी नहीं है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है।"
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत पाकिस्तान को कंट्री ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न (सीपीसी) बताया है। चीन द्वारा दशकों से लागू की गई एक-बच्चे की नीति के कारण और लड़के को प्राथमिकता दिए जाने के कारण चीनी पुरुषों के लिए महिलाओं की खासी कमी हो गई है जिसके कारण वे अन्य देशों से मिस्ट्रेस और मजदूरों के रूप में दुल्हनों को आयात करते हैं।
अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ)ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के अन्य मुद्दों का हवाला देते हुए भारत को सीपीसी पर रखने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सचिव माइक पोम्पिओ ने सोमवार को पदनामों की घोषणा करते समय इस सुझाव को अस्वीकार कर दिया।
हालांकि ब्राउनबैक ने कहा कि वाशिंगटन भारतीय स्थिति को करीब से देख रहा है और ये मुद्दे सरकार, उच्च सरकारी स्तर पर उठे हैं और उठते रहेंगे।
हिंदुओं, ईसाइयों, बौद्धों और सिखों को पड़ोसी इस्लामिक या मुस्लिम बहुल देशों में धार्मिक उत्पीड़न से बचाकर उनको देश में नागरिकता देने के लिए नागरिक संशोधन कानून लाया गया है लेकिन ये कानून सामान्य प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद मुसलमानों को भी नागरिकता प्राप्त करने से नहीं रोकता है।
अमेरिका में भी सीएए जैसा एक कानूनी प्रावधान है जो ईरान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को शरण देता है।
पाकिस्तानी रिपोर्टर द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान को सीपीसी पदनाम देना और भारत को नहीं देना, ये पोम्पिओ का दोहरा मानदंड है? इस पर ब्राउनबैक ने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ काफी कार्रवाई सरकार द्वारा की जाती है, जबकि भारत में ऐसा नहीं है।
उन्होंने कहा, "ईशनिंदा के आरोप वाले दुनिया के आधे लोग केवल पाकिस्तान में बंद हैं। भारत में सीएए जैसी कुछ कार्रवाइयां सरकार द्वारा की जाती हैं, लेकिन सांप्रदायिक हिंसा आदि होने पर हम देखते हैं कि क्या इसके लिए पर्याप्त पुलिस फोर्स लगाई गई या सांप्रदायिक हिंसा के बाद न्यायिक कार्रवाई हुई या नहीं।"
एक अमेरिकी रिपोर्टर द्वारा पूछ जाने पर कि पोम्पिओ ने भारत को सीपीसी नामित करने की यूएससीआईआरएफ की सिफारिश का पालन क्यों नहीं किया। इस पर ब्राउनबैक ने कहा, "सचिव द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में मैं नहीं बोल सकता हूं।"
लेकिन उन्होंने कहा कि पोम्पिओ भारत में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और इससे जुड़े कुछ मुद्दों के बारे में भी जानते हैं।
पोम्पिओ ने रूस और वियतनाम को भी सीपीसी के रूप में नामित करने की सिफारिशों का पालन नहीं किया।
पाकिस्तान के अलावा पोम्पिओ ने चीन, म्यांमार इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को सीपीसी सूची में डाल दिया है। (आईएएनएस)
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने पदभार संभालने के पहले 100 दिनों के अंदर 10 करोड़ कोविड वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा है.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर उनके शुरुआती महीने महामारी ख़त्म नहीं कर सकते लेकिन इसकी गति कम करके ज़िंदगी बदल सकते हैं.
20 जनवरी को शपथ ग्रहण के बाद की अपनी स्वास्थ्य मामलों की टीम से रूबरू कराते हुए बाइडन ने दोहराया कि वो अमेरिका में लोगों को "100 दिन के लिए मास्क पहनने" को कहेंगे.
मंगलवार को एक रिपोर्ट ने अमेरिकियों के लिए फाइज़र/बायोएनटेक वैक्सीन को मंज़ूरी देने और इसे रोल आउट करने का रास्ता साफ़ कर दिया.
इस बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में ऑपरेशन वार्प स्पीड नामक अपने कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम को लेकर हुए एक सम्मेलन में शिरकत की और वैक्सीन की संभावित मंज़ूरी का स्वागत किया.
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक़, अमेरिका में अब तक कोरोना संक्रमण के डेढ़ करोड़ से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 285,000 लोगों की मौत हुई है. दोनों ही आंकड़े दुनिया में सबसे ज़्यादा हैं.
देश के कई हिस्सों में संक्रमण के बहुत ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं और रिकॉर्ड संख्या में लोग अस्पतालों में हैं. कुछ विशेषज्ञ पिछले महीन थैंक्सगिविंग की सालाना छुट्टियों के मौक़े पर लाखों लोगों के यात्रा करने को इसका ज़िम्मेदार मानते हैं.
बाइडन ने क्या कहा?
जो बाइडन ने डेलावेयर में एक प्रेस वार्ता में बताया कि कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल जेवियर बेसेरा उनके स्वास्थ्य मंत्री होंगे जबकि रोशेल वालेंस्की रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की प्रमुख होंगी.
बाइडन ने कहा, "मेरे पहले 100 दिन कोविड-19 वायरस को ख़त्म नहीं कर पाएंगे. मैं इसका वादा नहीं कर सकता. लेकिन हम इससे जल्दी निकलने वाले नहीं हैं."
उन्होंने कहा कि "पहले 100 दिनों में हम बीमारी की गति को बदल सकते हैं और अमेरिका में ज़िंदगी को बेहतर कर सकते हैं."
लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि अगर देश की संसद कांग्रेस ने तुरंत फंड के बारे में फ़ैसला नहीं लिया तो कोरोनो वायरस से निपटने की कोशिशें धीमीं हो सकती हैं.
उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए स्कूल वापस खोलना भी एक प्राथमिकता होगी.
बाइडन के अन्य सहयोगियों में डॉ एंथनी फाउची भी शामिल होंगे. वो चीफ़ कोविड मेडिकल एडवाइज़र होंगे. संक्रामक रोग विशेषज्ञ फाउची ट्रंप टीम के भी सलाहकार थे और अक्सर अपने विचारों की वजह से राष्ट्रपति के निशाने पर रहते थे.
व्हाइट हाउस में क्या हुआ?
मुख्य तौर पर ये अमेरिका के लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने की ऑपरेशन वार्प स्पीड की कोशिशों का जश्न था. वैसे अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत बाइडन की टीम ही करेगी.
वैक्सीन की संभावित मंज़ूरी को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा: "वो कहते हैं कि ये एक जादू है और मुझे लगता है कि ये सच है."
उन्होंने साथ ही कहा, "जो भी अमेरिकी वैक्सीन लगवाना चाहता है उसे वैक्सीन मिलेगी और हमें लगता है कि वसंत ऋतु तक हम ऐसी स्थिति में होंगे जिसके बारे में कुछ महीनों पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था."
ट्रंप प्रशासन उम्मीद कर रहा है कि जनवरी के मध्य तक लगभग ढाई करोड़ लोगों को वैक्सीन मिल सकेगी.
राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर भी हस्ताक्षर किए हैं जिससे सुनिश्चित होगा कि अमेरिकियों को सबसे पहले डोज़ मिले. ये उनकी पुरानी अमेरिका फर्स्ट की नीति का पालन करने वाला कदम लगता है.
लेकिन अभी ये साफ़ नहीं है कि अमेरिकी कंपनियां पहले ही दूसरे देशों से जो कॉन्ट्रेक्ट कर चुकी हैं, उनपर इसका क्या असर होगा. ट्रंप प्रशासन ने फाइज़र/बायोएनटेक की पहली 100 खुराक के लिए डील की है.
ब्रिटेन में मंगलवार से टीकाकरण शुरू कर दिया गया. अमेरिका के कुछ मीडिया का कहना है कि कार्यकारी आदेश चिंता ज़ाहिर करता है कि इतनी डोज़ काफी नहीं होगी.
वैक्सीनेशन के मामले में अमेरिका कहां है?
अमेरिकी नियामकों ने मंगलवार को फाइज़र/बायोएनटेक वैक्सीन के 95% प्रभावी होने की पुष्टि की, इसके साथ ही इसके इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति का रास्ता साफ़ हो गया है. पूरी सुरक्षा के लिए इसकी दो खुराक लेनी होगी.
फ़ूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) को ऐसा चिंता का कोई कारण नहीं मिला जिसकी वजह से वैक्सीन को मंज़ूरी ना मिले. इसपर औपचारिक निर्णय लेने के लिए गुरुवार को बैठक होगी. (bbc.com)
आंध्र प्रदेश के एलुरु में फैली रहस्यमयी बीमारी के मरीजों के खून के सैंपलों की जांच में सीसा और निकल जैसे धातु मिले हैं, लेकिन अभी भी सरकार ने किसी तरह के प्रदूषण की संभावना के बारे में स्पष्ट रूप से नहीं कहा है.
डायचेवेले पर चारु कार्तिकेय का लिखा
मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि दिल्ली स्थित एम्स द्वारा की गई प्राथमिक जांच में मरीजों के खून के सैम्पलों में सीसा और निकल मिले हैं. बयान में यह भी कहा गया है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी और दूसरे संस्थान में जांच अभी भी चल रही है और उम्मीद है कि नतीजे जल्द आएंगे.
मंगलवार को इस बीमारी के लक्षणों वाले मरीजों की संख्या बढ़ कर 556 हो गई. हालांकि इनमें से 458 को अस्पतालों से छुट्टी मिल चुकी है और सिर्फ 98 अभी भी भर्ती हैं, जिन पर जांच चल रही है. मरीजों में 12 साल से कम उम्र के 45 बच्चे भी हैं. इन सभी लोगों को दौरे पड़े थे, उल्टियां आई थीं और फिर वो बेहोश हो गए थे.
अधिकारियों का कहना है कि दौरे पड़ना और बेहोश होना सभी मरीजों में सिर्फ एक बार देखा गया. परिवार में सिर्फ एक ही व्यक्ति में ये लक्षण दिखे, जिसका मतलब है कि यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे तक नहीं फैलती है. विद्यानगर के रहने वाले 45 वर्षीय श्रीधर के अलावा रहस्यमयी बीमारी से और किसी के निधन की खबर अभी तक नहीं मिली है.
बीमारी की तफ्तीश में अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शामिल हो गया है. पानी के साथ-साथ दूध और चावल के सैंपलों की जांच भी की जा रही है. एलुरु में विशेष सफाई अभियान भी शुरू किया जा सकता है. कुछ जानकार कीटनाशकों के द्वारा पानी के प्रदूषण की भी संभावना व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है.
कोविड-19 संक्रमण के मामलों में आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से है, लेकिन इस बीमारी के लक्षण कोविड के लक्षणों जैसे नहीं हैं. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री ने पत्रकारों को बताया कि इस बीमारी के सभी पीड़ितों का कोविड टेस्ट हो चुका है और किसी को भी संक्रमित नहीं पाया गया है.
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने "दुनिया का पहला" ऐसा मीडिया बार्गेनिंग कोड पेश किया है जिसके तहत गूगल और फेसबुक को समाचार सामग्री डालने पर कंपनियों को भुगतान करना पड़ेगा.
ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कहना है कि यह दुनिया का पहला कानून है जिसके तहत ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में सबको समान मुकाबले का मौका मिलेगा. प्रस्तावित कानून मसौदे का नाम "समाचार मीडिया अनिवार्य मोलतोल संहिता" (मीडिया बार्गेनिंग कोड) है. वहीं फेसबुक ने कहा कि कानून इंटरनेट की गतिशीलता को गलत बताता है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने जो कानून तैयार किया है उसके तहत गूगल और फेसबुक को देश में पत्रकारिता या समाचार से जुड़ी गतिविधियों के लिए भुगतान करने को बाध्य किया जाएगा.
वित्त मंत्री जोश फ्राइडेनबर्ग ने एक बयान में कहा, "कानून समाचार कारोबार और डिजिटल प्लेटफार्मों के बीच मोलतोल शक्ति असंतुलन को संबोधित करेगा." फ्राइडेनबर्ग ने कहा कि कानून यह सुनिश्चित करेगा कि ऑस्ट्रेलिया में सार्वजनिक हित पत्रकारिता को बनाए रखने में मदद करने के लिए समाचार मीडिया कारोबार को उनके द्वारा दी गई सामग्री का उचित भुगतान हो." उन्होंने आगे कहा, "यह मसौदा इस तरह से तैयार किया गया है जिससे ऑस्ट्रेलियाई मीडिया को बराबरी का मौका मिले और एक स्थायी और व्यवहार्य ऑस्ट्रेलियाई मीडिया परिदृश्य सुनिश्चित हो सके."
क्या है कानून का मसौदा?
इस कानून के मसौदे के मुताबिक बड़ी तकनीकी कंपनियों को सार्वजनिक प्रसारकों समेत ऑस्ट्रेलिया में प्रमुख मीडिया कंपनियों के साथ बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. कंपनियां अपनी खबरों को किस कीमत पर उपयोग की इजाजत देती है इस पर सौदा होगा. अगर मीडिया कंपनी और तकनीकी कंपनी किसी तय कीमत पर करार नहीं कर पाती है तो एक बाध्यकारी निर्णय लेने के लिए एक स्वतंत्र मध्यस्थ नियुक्त किया जाएगा. डिजिटल कंपनियां अगर फैसले का पालन नहीं करती हैं उन पर 74 लॉख अमेरिकी डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
दुनिया का पहला ऐसा कानून
सरकार ने शुरू में राज्य द्वारा वित्त पोषित मीडिया, ऑस्ट्रेलियाई समाचार कॉर्प और विशेष प्रसारण सेवा को टेक कंपनियों द्वारा मुआवजा दिए जाने से बाहर करने की योजना बनाई थी लेकिन नए मसौदा कानून के तहत, उन प्रसारकों को वाणिज्यिक मीडिया व्यवसायों की तरह भुगतान किया जाएगा. मसौदा कानून शुरू में फेसबुक न्यूजफीड और गूगल सर्च पर लागू होगा लेकिन अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म को भी शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया जाएगा. फ्राइडेनबर्ग के मुताबिक ऑनलाइन विज्ञापन का 53 प्रतिशत हिस्सा गूगल ले रहा है जबकि फेसबुक 23 प्रतिशत हिस्सा पा रहा है.
फ्राइडेनबर्ग ने पत्रकारों से बात करते हुए इसे बहुत बड़ा सुधार बताया है. उन्होंने कहा, "यह दुनिया में पहली बार होगा और दुनिया देख रही है कि यहां ऑस्ट्रेलिया में क्या हो रहा है. यह एक समग्र कानून है जो दुनिया में इस तरह के किसी भी कानून की अपेक्षा में आगे जाकर बात करता है."
एए/सीके (डीपीए)
सुमी खान
ढाका, 9 दिसंबर। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की निर्दोष नागरिकों की क्रूर और सामूहिक हत्याएं की थी।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि, यह नरसंहार 'बंगाली' देश के उनकी वैध मांग को अस्वीकार करने और उनकी जातीय राजनीतिक पहचान को समाप्त करने के लिए किया गया था।
हसीना ने आगे कहा, "इस दिन हमें मानवता और वैश्विक शांति के लिए नरसंहार को 'फिर कभी नहीं' के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "साल 1971 में हमें दिया गया दर्द और आघात हमें कहीं भी नरसंहार का अंत करने के लिए प्रेरित करता है और इस जघन्य अपराध के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करता है।"
हसीना ने कहा, "'अंतर्राष्ट्रीय स्मरणोत्सव दिवस' और नरसंहार के पीड़ितों की गरिमा और इस अपराध की रोकथाम के साथ-साथ नरसंहार की रोकथाम और सजा पर कन्वेंशन की 72वीं वर्षगांठ के अवसर पर बांग्लादेश पूरे विश्व के इतिहास में नरसंहार के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ एकजुटता जताता है और इस तरह के जघन्य अपराधों को रोकने के लिए अपनी ²ढ़ प्रतिबद्धता को दोहराता है।"
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि 1971 के युद्ध के दौरान बांग्लादेश उन कुछ देशों में शामिल है जिन्होंने नरसंहार के सबसे बुरे रूपों में से एक का सामना किया है।
हसीना ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आह्वान किया कि वह नरसंहार के मूल कारणों का पता लगाने के लिए सख्त कार्रवाई करे, शुरुआती संकेतों की पहचान करे और दुनिया में कहीं भी किसी भी नरसंहार की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करें।
उन्होंने आगे कहा कि 1971 के नरसंहार के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने और मानवता के खिलाफ इन अपराधों को रोकने के लिए देश की प्रतिबद्धता को बनाए रखने के लिए, देश की संसद ने 25 मार्च को 'नरसंहार दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है और तदनुसार हर साल इसे बांग्लादेश और पूरी दुनिया में रह रहे बांग्लादेशी लोगों, जो अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं, द्वारा मनाया जाता है। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 9 दिसम्बर | अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संकट की घड़ी में परखे जा चुके और 'विश्व स्तरीय' हेल्थ केयर और कोविड टीम को अमेरिका में ऐसे समय में पेश किया है जब वायरस ने देश में 285,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है। बाइडेन द्वारा अमेरिकी सर्जन जनरल पद के लिए नामित विवेक मूर्ति की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने जमकर सराहना की।
विलमिंगटन (डेलावेयर) में भाषण के दौरान बाइडेन ने मूर्ति की जमकर तारीफ की।
उन्होंने कहा, "अमेरिका के सर्जन जनरल के लिए, मैं डॉ. विवेक मूर्ति को नामांकित करता हूं।"
बाइडेन ने कहा, "एक प्रसिद्ध चिकित्सक और अनुसंधान वैज्ञानिक। स्वास्थ्य देखभाल पर एक विश्वसनीय नेशनल लीडर और मेरे लिए, इस अभियान और ट्रांजिशन के दौरान एक विश्वसनीय सलाहकार।"
उन्होंने कहा कि यह पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के प्रशासन में काम कर चुके मूर्ति के लिए अमेरिका के डॉक्टर के रूप में कार्य करने का दूसरा अवसर होगा।
अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सबसे अधिक दबाव वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों में से कुछ को लिया - जिसमें ओपियोइड संकट से लेकर अमेरिका के मानसिक स्वास्थ्य तक के खतरे थे।
उन्होंने कहा कि मैंने डॉ. मूर्ति को सर्जन जनरल के रूप में फिर से सेवा करने के लिए कहा है - लेकिन ज्यादा जिम्मेदारियों के साथ।
बाइडेन ने कहा कि वह हमारी कोविड प्रतिक्रिया पर एक प्रमुख सार्वजनिक आवाज होंगे। विज्ञान और चिकित्सा में जनता के विश्वास और विश्वास को बहाल करने के लिए। लेकिन वह मेरे लिए एक प्रमुख सलाहकार भी होंगे और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों - मानसिक स्वास्थ्य, व्यसन और स्वास्थ्य संबंधी सामाजिक और पर्यावरण निर्धारकों, और बहुत कुछ के लिए एक सभी-सरकारी ²ष्टिकोण का नेतृत्व करने में मदद करेंगे।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने कहा कि इन सबसे ऊपर, वह इस देश में संभावनाओं के स्थान के रूप में विश्वास को बहाल करने में मदद करेंगे।
उन्होंने मूर्ति की तारीफ करते हुए कहा, "भारतीय प्रवासियों का एक बेटा, जिन्होंने अपने बच्चों को हमेशा अमेरिका के वादे पर विश्वास करने के लिए कहा।"
बाइडेन ने कहा कि डॉ. मूर्ति मेरे सबसे विश्वसनीय पब्लिक हेल्थ और चिकित्सा सलाहकारों में से एक होंगे और "मैं उनकी निरंतर सार्वजनिक सेवा के लिए आभारी हूं।"(आईएएनएस)
बीजिंग, 8 दिसंबर | अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाख ने 7 दिसंबर को आयोजित न्यूज ब्रीफिंग में कहा कि टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाले एथलीटों को कोविड-19 का टीकाकरण करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 2024 के पेरिस ओलंपिक खेलों के आधिकारिक खेल के रूप में ब्रेक डांसिंग, स्केटबोडिर्ंग, रॉक क्लाइंबिंग और सफिर्ंग को मंजूरी दी। 7 दिसंबर को समाप्त अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की कार्यकारी समिति की बैठक के बाद आयोजित न्यूज ब्रीफिंग में थॉमस बाख ने टोक्यो ओलंपिक और पेरिस ओलंपिक के उक्त नए फैसले बताए।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम और नियंत्रण के कदम के हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने टोक्यो ओलंपिक के ओलंपिक गांव के लिए एक संयुक्त गाइडलाइन बनायी।
उन्होंने यह भी कहा कि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ओलंपिक खेलों की मेजबानी की लागत और जटिलता को कम कर रही है। पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाले एथलीटों की संख्या टोक्यो ओलंपिक से 592 कम होगी, और टीम के साथ जाने वाले अधिकारियों की संख्या भी कम हो जाएगी।
आईएएनएस
कुवैत सिटी, 8 दिसंबर | कुवैत के अमीर शेख नवाफ अल-अहमद अल-जबर अल-सबाह ने मंगलवार को शेख सबाह खालिद अल-हमद अल-सबाह को देश के नए प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया। देश के मीडिया को यह जानकारी दी गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने देश के मीडिया के हवाले से कहा कि अमीर ने उन्हें सरकार बनाने और अनुमोदन के लिए नामों की एक सूची भी देने के लिए कहा है।
बायन पैलेस में अमीर के साथ बैठक के दौरान, शेख सबाह खालिद अल-हमद अल-सबाह ने नियुक्ति के लिए आभार व्यक्त किया, देश और नागरिकों के सर्वोत्तम हितों की सेवा के लिए संविधान और कानूनों के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई।
रविवार को, शेख सबाह खालिद अल-हमद अल-सबाह ने कुवैती संविधान के अनुसार संसदीय चुनाव के बाद अपनी सरकार का इस्तीफा सौंप दिया था।
कुवैत में शनिवार को 50 सीटों के लिए चुनाव हुए थे, जिसके लिए 326 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।
आईएएनएस
ढाका, 8 दिसंबर| बांग्लादेश के हबीगंज जिले में एक सड़क हादसे में एक परिवार के तीन सदस्य सहित आठ लोगों की मौत हो गई है। एक पुलिस अधिकारी ने इसकी जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हबीगंज में शेरपुर हाईवे पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी, इरशादुल हक भुइयां ने स्थानीय मीडिया को बताया कि सोमवार की रात को एक पैसेंजर बस ने विपरीत दिशा से आ रही दो ऑटो-रिक्शा को टक्कर मार दी।
अधिकारी के अनुसार, ऑटो-रिक्शा से टकराने के बाद बस के लगभग एक दर्जन यात्री भी चोटिल हो गए।
उन्होंने कहा कि हादसे की वजह के बारे में अभी भी कुछ ठीक से पता नहीं लग पाया है।
बांग्लादेश में सड़क दुर्घटना से हताहतों की संख्या काफी ज्यादा है और ऐसा खासकर टूटे-फूटे राजमार्ग, खराब वाहन, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन और यातायात विभाग की निगरानी में कमी के चलते होता है। (आईएएनएस)
बैंकॉक, 8 दिसंबर| पिछले दो हफ्तों में थाईलैंड में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 29 हो गई है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से अधिकतर मौतें, बाढ़ और पानी में डूबने से हुई।
अधिकारियों ने बताया , 11 दक्षिणी प्रांतों के 101 जिलों के 4,130 गांवों में कुल 555,194 घरों को 25 नवंबर से 8 दिसंबर तक भारी बारिश के बाद गंभीर रूप से बाढ़ और क्षति का सामना करना पड़ा है।
प्रभावित प्रांत सूरत थानी, फट्ठलुंग, सोंगखला, चुम्फॉन, क्राबी, ट्रेंग, सतुन, याला, पट्टानी, नरथिवात और नखोन सी थम्मरात हैं।
अधिकारियों ने बाढ़ पीड़ितों को बचाने के काफी प्रयास किए और उन्हें उच्च आधार पर भोजन, पेय और आश्रय प्रदान किया। (आईएएनएस)
साल - 1987.
जगह - बांग्लादेश में ढाका
लोकतंत्र का समर्थन कर रहे एक युवा प्रदर्शकारी को पुलिस ने गोली मार दी थी. गोली लगे उसके शरीर को पुलिस ने जेल में फेंक दिया था. किसी को पता नहीं था कि इसी नौजवान की एक तस्वीर क्रांति का रुख़ बदल कर रख देगी. और एक तानाशाह को झुका देगी.
बीबीसी के मोआज़्ज़ेम हुसैन उस दिन उस तस्वीर वाले शख़्स की सेल के बगल वाली सेल में ही थे. उन्होंने उस तस्वीर वाले शख़्स की सच्चाई और पूरी कहानी पता की.
10 नवंबर तक चलने वाला 1987 का वो सप्ताह ढाका शहर के लिए बेहद तनावभरा था. राष्ट्रपति हुसैन मुहम्मद इरशाद ने राजधानी ढाका को देश के सभी दूसरे हिस्सों से अलग-थलग कर दिया था.
स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए थे और छात्रों को आदेश दिया गया था कि वे हॉल खाली कर दें.
राजनीतिक विरोध प्रदर्शन और रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इरशाद एक सैन्य-तानाशाह, अपनी आपातकालीन ताक़तों का इस्तेमाल लोकतंत्र समर्थकों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के लिए कर रहा था.
वहीं दूसरी ओर विपक्षी राजनीतिक ताक़तें राष्ट्रपति पर इस्तीफ़े का दबाव बनाने के लिए हज़ारों की संख्या में समर्थकों को जुटा रही थीं. 10 नवंबर की सुबह, मैं उन हज़ारों कार्यकर्ताओं में से एक था.
उन हज़ारों में से जो विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए जा रहे थे. हमने कभी इसे बनाया नहीं था. क़रीब नौ बजे, मुझे और कई अन्य प्रदर्शनकारियों को दंगा-रोधी पुलिस दल ने हिरासत में ले लिया. हमें बेरहमी से मारा-पीटा गया. एक लॉरी में हमें जानवरों की तरह बांधकर बैठा दिया गया और उसके बाद हमें पुलिस स्टेशन ले जाया गया.
जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, राजनीतिक क़ैदियों की संख्या भी बढ़ती गई. पूरे ढाका में जगह-जगह हिंसक झड़पें जारी थीं. कुछ प्रदर्शकारियों को गोली भी लगी थी जिससे उनके शरीर पर गहरा घाव हो गया था. वहीं शवों के बीच में एक शख़्स खड़ा था. उसके नंगे बदन पर नारे लिखे हुए था. उसकी बेजान सी भूरी त्वचा पर चमकदार सफ़ेद रंग में लिखे उन शब्दों ने हममें एक अजीब सा जोश भर दिया था.
"सायराचार नितपत जक" - "डाउन विद ऑटोक्रेसी" (निरंकुशता मुर्दाबाद)
PAVEL RAHMAN
ये नूर हुसैन थे. हम उस समय नहीं जानते थे कि वो कौन हैं.. हम ये भी नहीं जानते थे कि जिस जगह इस शख्स को गोली लगी आगे चलकर उस जगह का नाम उसके नाम पर रखा जाएगा.
हमें ये भी नहीं पता था कि वो आगे चलकर इतने मशहूर हो जाएंगे. उनका त्याग और बलिदान अमर हो जाएगा और उनके ऊपर किताबें लिखी जाएंगी. फ़िल्में बनेंगी. उनके नाम पर कविताएं लिखी जाएंगी और पोस्टल स्टैंप जारी किए जाएंगे.
हम नहीं जानते थे कि उनकी मौत से ठीक पहले ली गई उनकी एक तस्वीर हमारे लोकतंत्र के लिए हमारी पीढ़ी के लंबे और खूनी संघर्ष का प्रतीक बन जाएगी.
भाई
मैंने पिछले 33 सालों में कई बार नूर हुसैन की तस्वीरों को देखा है. वह दृढ़ निश्चय वाले दिखते हैं. उनका शरीर और उनके शरीर पर लिखा नारा, सूरज की चकाचौंध में भी अलग रोशनी बिखेरता नज़र आता है.
जिस समय नूर की मौत हुई वो 26 साल के थे. उनकी मौत के एक दिन बाद उनकी तस्वीरें बांग्लादेश के अख़बारों के पहले पन्ने पर छपीं. इससे एक ओर जहां सरकार को झटका लगा वहीं दूसरी ओर लाखों लोगों को प्रेरणा मिली.
1987 में वो और मैं जिस विरोध प्रदर्शन में शामिल थे उसे हिंसक तरीक़े से दबा दिया गया लेकिन उसके तीन साल बाद एक और विरोध प्रदर्शन हुआ और यह प्रदर्शन राष्ट्रपति इरशाद को झुकाने में कामयाब रहा. इस प्रदर्शन में कई प्रदर्शकारी ऐसे थे जो नूर हुसैन की छवि से प्रेरित हुए थे.
मैं अक्सर सोचता हूं कि ढाका के एक श्रमिक परिवार में जन्मे इस व्यक्ति के साथ ऐसा क्या हुआ होगा या वो क्या परिस्थिति रही होगी जिसने उसे इस असाधारण काम के लिए प्रेरित किया होगा. तानाशाही के ख़िलाफ़ नूर की प्ररेणा से जो बग़ावत शुरू हुई उसकी 30वीं बरसी पर मैंने नूर से जुड़े कुछ सवालों को तलाशने की कोशिश की.
नूर हुसैन के पिता मुजीबुर रहमान उस समय ढाका के पुराने हिस्से में एक ऑटोरिक्शा चलाते थे. नूर के पिता मुजीबुर का 15 साल पहले ही निधन हो चुका था लेकिन नूर के भाई अली से मुलाक़ात की जा सकती थी. वह अब भी अपने भाई नूर के जीवन के आख़िरी दिनों को याद करते हैं.
अली हुसैन, नूर हुसैन के भाई
नूर के भाई अली ने बताया, "मेरे पिता जानते थे कि नूर राजनीतिक तौर पर सक्रिय थे. वह अक्सर घर से दूर ही रहते थे और राजनीतिक रैलियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे."
जब नूर लगातार दो रातें घर वापस नहीं लौटे तो माता-पिता को चिंता होने लगी. 10 नवंबर 1987 को वो उन्हें शहर की एक मस्जिद में मिले.
अली बताते हैं, "मेरे माता-पिता ने उनसे घर वापस चलने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने कहा कि वह बाद में आएंगे."
"यह नूर के साथ उनकी आख़िरी मुलाक़ात थी."
उस दिन के बाद से तो नूर प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गए. प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर ईंटें फेंकी और घर में बने बम फेंके. इसके जवाब में पुलिस ने उन पर आंसू गैस के गोले दागे और गोलियां बरसाईं. नूर हुसैन सहित तीन लोग गोलियों से बुरी तरह घायल हो गए थे. दर्जनों लोग इसमें घायल हुए थे.
अगले दिन दोपहर तक नूर के परिवार को यह ख़बर मिल गई थी कि नूर को गोली लग गई है. ख़बर मिलने के साथ ही नूर के पिता मुजीबुर और भाई अली सबसे पहले उस जगह पर पहुँचे जहाँ नूर विरोध कर रहे थे. फिर एक पुलिस अस्पताल में और अंत में उन्हें ख़बर मिली कि नूर को पुलिस स्टेशन ले जाया गया है.
पुलिस स्टेशन के बाहर खड़े अधिकारियों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया लेकिन उन्होंने यह ज़रूर बता दिया की एक शव अंदर है जिसके शरीर पर सिर्फ़ पैंट है. उन्होंने कहा कि अगर वे उन्हें शव देते हैं तो दंगे भड़क सकते हैं.
नूर की हत्या के लिए कभी किसी अधिकारी को आरोपी नहीं बनाया गया. जनरल इरशाद के समय में किसी भी अधिकारी पर कोई आरोप नहीं लगा जबकि प्रदर्शन के दौरान पुलिस की कार्रवाई से सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी.
मैंने अली से पूछा कि क्या उन्हें याद है कि उनके भाई के शरीर पर वह नारा किसने लिखा था. उन्होंने बताया कि उस शख़्स का नाम इकराम हुसैन था. रोचक बात यह है कि इकराम उस समय राष्ट्रपति इरशाद के स्टाफ़ क्वार्टर में रह रहे थे और उनके भाई राष्ट्रपति के दूत थे.
इसके बाद अली ने मुझे इकराम का नंबर दिया.
द पेंटर
मैंने इकराम को फ़ोन किया.
उन्होंने बताया कि, हां वही थे जिन्होंने नूर के बदन पर वो नारे लिखे थे.
साल 1987 में इकराम 18 साल के युवा थे. वो एक साइनबोर्ड आर्टिस्ट थे. वो अपने बड़े के साथ बंगभबन में रहा करते थे. मोतीझील इलाक़े में उनकी एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी. जहां पर ज़्यादातर साइनबोर्ड पेंट किये जाते थे और बैनर बनाए जाते थे.
इकराम ने बताया, "मैं नूर हुसैन को चेहरे से पहचानता था. वो ऑफ़िस के पुराने फर्नीचर बेचने वाली एक कंपनी में बतौर कर्मचारी काम किया करते थे. हालांकि हमारे बीच बहुत बातचीत नहीं हुई थी."
इकराम हुसैन
हर रोज़ की तरह 9 नवंबर को भी इकराम अपने काम में लगे हुए थे और शाम को लगभग पांच बजने के बाद दुकान बंद करने ही जा रहे थे लेकिन इसे पहले की वो दुकान बंद करके जाते नूर हुसैन उनके पास पहुंचे. नूर एक अनुरोध लेकर इकराम के पास गए थे.
इकराम ने बताया "वह मुझे पास की एक संकरी सी गली में लेकर गए. वहाँ पहुंचकर उन्होंने गली की दीवार पर चॉक से नारे लिखे. उसके बाद उन्होंने अपनी शर्ट उतार दी और मुझसे अपने बदन पर नारे लिखने को कहा."
इकराम उस वक़्त काफी डर गए थे.
इकराम ने बताया, "मैंने उनसे कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता. मेरा भाई राष्ट्रपति का दूत है और हम मुश्किल में पड़ जाएंगे. आप गिरफ़्तार हो सकते हैं. आपको मार दिया जा सकता है."
लेकिन नूर पूरी तरह तय करके और मन पक्का करके आए थे. उन्होंने इकराम से कहा कि वे चिंता ना करें क्योंकि अगले दिन ऐसे सैकड़ों लोग होंगे जिनके बदन पर यही नारा लिखा होगा.
इकराम ने नूर के बदन पर दो नारे लिखे थे.
1987 के प्रदर्शन के दौरान पुलिस
SHAHIDUL ALAM
"सायराचार नितपत जक" - निरंकुशता मुर्दाबाद (यह नारा उनकी छाती पर लिखा हुआ था)
"गोनोटोंट्रा मुक्ति पाक" - "लोकतंत्र को मुक्त होने दें" (यह नारा उनकी पीठ पर लिखा हुआ था)
इकराम ने इन नारों को लिखने के बाद दो पूर्ण-विराम भी लगाए.
इकराम ने बताया कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि वो अपने लिखे नारे को सैकड़ों के बीच भी पहचान सकें.
लेकिन अगले दिन, सड़क पर सिर्फ़ एक ही शख़्स था जिसके बदन पर नारे लिखे हुए थे. वो फ़ोटोग्राफ़र्स की नज़र में आ चुका था लेकिन भीड़ में अपनी ओर सबका ध्यान खींचने वाला यह शख़्स कुछ देर बाद ही हमेशा के लिए सो गया.
वो फ़ोटोग्राफ़र
पावेल रहमान ने मुझे बताया कि उन्होंने नूर हुसैन को सिर्फ़ पीछे से ही देखा था. मैं रहमान के साथ ढाका के एक अख़बार में काम करता था. वो बीते पचास सालों से फ़ोटोग्राफ़ी कर रहे हैं.
उस दिन नूर हुसैन को देखकर उनके दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं.
रहमान ने मुझे बताया, "मैंने इससे पहले किसी भी प्रदर्शनकारी को बदन पर नारे लिखकर प्रदर्शन करते नहीं देखा था. इससे पहले की वो सैकड़ों की भीड़ में कहीं गायब हो जाते, मुझे पीछे से केवल दो बार एक वर्टिकल और एक हॉरिजेंटल तस्वीर लेने का मौक़ा मिला. मुझे इस बात की ख़बर नहीं थी कि उनकी छाती पर भी नारा लिखा हुआ है."
उस शाम जब रहमान अपनी रील से तस्वीरें बना रहे थे तब उनके साथ ही काम करने वाले एक शख़्स ने उन्हें बताया कि जिस प्रदर्शनकारी की यह तस्वीर है, उसकी मृत्यु हो गई है.
उन्होंने बताया, "यह पता चलने के बाद तस्वीर छापने को लेकर कुछ बहस हुई कि क्या तस्वीर छापी जानी चाहिए या नहीं छापी जानी चाहिए. मेरे एडिटर को लग रहा था कि यह बहुत जोख़िम भरा हो सकता है. सरकार भी इसे लेकर काफी कड़ा रुख़ अख़्तियार कर सकती है. लेकिन फिर अंत में हमने तस्वीर छापने का फ़ैसला किया."
रहमान याद करते हैं "तस्वीर छपने से राष्ट्रपति इरशाद काफी गुस्से में थे और फिर मुझे कई दिनों तक छिपना पड़ा था."
पावेल की ली गई तस्वीर पूरे देश में फैल चुकी थी और वो एक पोस्टर बन चुके थे. लेकिन ये पोस्टर-मैन कौन है इस बारे किसी को पता तक नहीं चल पाता अगर फ़ोटोग्राफ़र दीनू आलम ने सामने से उनकी तस्वीर नहीं ली होती.
दीनू बताते हैं, "मैंने सामने से उनके कई शॉट्स लिए. मैं नीचे लेटकर कुछ देर तक उनकी तस्वीरें लेता रहा था. लेकिन मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी पीठ पर भी एक नारा लिखा हुआ है."
दीनू कहते हैं, "शायद मैंने नूर के आख़िरी क्षणों की तस्वीर कैमरे में कैद की थी."
रात का पहरेदार
जब अगले दिन इकराम हुसैन ने अख़बार के पहले पन्ने पर उनकी तस्वीर देखी तो बुरी तरह से टूट गए. वो ख़ुद को नूर हुसैन की मौत के लिए दोषी मान रहे थे.
इकराम कहते हैं, "मुझे लग रहा था कि अगर मैं उनके शरीर पर नारे नहीं लिखता तो शायद वो ज़िंदा होते."
अपने को सुरक्षित रखने के लिए इकराम कई सालों तक पुलिस और अधिकारियों से छिपते-बचते रहे.
तीन साल बाद जब तानाशाह राष्ट्रपति इरशाद का पतन हो गया, उसके बाद ही कहीं जाकर इकराम ने ख़ुद को सुरक्षित पाया. इकराम इसके बाद नूर के परिवार से भी मिले और उन्हें पूरी कहानी बतायी.
नूर के परिवार के मिलकर वो रोने लगे और उनसे माफ़ी भी मांगी. लेकिन नूर के पिता ने उन्हें गले लगा लिया.
उन्होंने इकराम से कहा "आप मेरे बेटे की तरह हैं. हमने नूर हुसैन को खो दिया लेकिन अब आप मेरे बेटे हैं. आपके और नूर की वजह से ही अब हम लोकतंत्र में हैं."
मुजीबुर और उनकी पत्नी मरियम बीबी को नूर के शव के बारे में एक सप्ताह बाद पता चला. पुलिस ने उनके बेटे को ढाका में प्रदर्शन के दौरान मारे गए दो अन्य प्रदर्शकारियों के साथ एक गुमनाम कब्र में गुपचुप तरीक़े से दफ़ना दिया था. बाद में जिस शख़्स ने उनके शव को दफ़नाए जाने के लिए तैयार किया था उसने नूर के परिवार को इस बारे में सूचित किया.
मैंने जुरियन कब्रिस्तान के देखरेख करने वाले व्यक्ति से मुलाक़ात की. यह वही कब्रिस्तान है जहां नूर को दफ़नाया गया था. जब मैं उनसे मिलने पहुंचा तो मैंने सबसे पहले उनसे पूछा कि क्या उन्हें उस रात के बारे में कुछ भी याद है.
नूर हुसैन
आलमगीर नाम के इस शख़्स ने बताया, "जब वे यहां आए तो उस समय रात के लगभग ढाई बज रहे थे. मैं रात का पहरेदार था लेकिन मुझे और भी कई काम करने थे... कब्र खोदनी थी, शव को नहलाना था और मुर्दे को दफ़नाना था."
आलमगीर बताते हैं कि उन्होंने देर रात आए उन लोगों से कहा कि वे रात 11 बजे के बाद मुर्दे नहीं दफ़नाते हैं. लेकिन उन लोगों ने ज़ोर देकर कहा कि वे सरकार के लोग हैं. आलमगीर ने शव को नहलाया और दफ़नाए जाने के लिए तैयार किया जबकि बाकी लोगों ने मुर्दे के लिए कब्र खोदी.
आलमगीर याद करते हुए कहते हैं, "उसके शरीर पर गोली का एक छेद था. यह छाती पर लिखे नारे के ठीक नीचे था."
नूर की मौत के काफी सालों बाद उनके माता-पिता से मिलने एक ऐसा शख़्स पहुंचा जिसकी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी. उस शख़्स ने उनसे मुलाक़ात के लिए सालों का इंतज़ार किया था. 1997 में जनरल इरशाद सात साल बाद जेल से रिहा हुए और वो नूर के माता-पिता, मरियम और मुजीबुर से मिलने उनके घर पहुंचे. वो उनसे माफ़ी मांगने गए थे.
अली उस दिन को याद करते हुए बताते हैं, "उन्होंने मेरे पिता से कहा कि अगर आपका बेटा ज़िंदा होता तो जिस तरह वो आपका ख़याल रखता, मैं कोशिश करूंगा कि मैं उसी तरह आपका ख़याल रख सकूं."
इस मुलाक़ात के अगले कुछ सालों तक इरशाद परिवार के संपर्क में रहे और कभी-कभी परिवार को पैसे भी भेजते थे. लेकिन जिस दिन ढाका विश्वविद्यालय में मुजीबुर ने अपने बेटे की स्मारक पर खड़े होकर तानाशाही के वापस ना लौटने की बात कही, उसके बाद से इरशाद की ओर से होने वाली हर पहल बंद हो गई.
अली बताते हैं कि इस बात से इरशाद काफी नाराज़ हो गए थे और इसके बाद उन्होंने नूर और अली के पिता मुजीबुर से कभी संपर्क नहीं किया.
जनरल इरशाद
नूर की मौत के क़रीब एक दशक से अधिक समय बाद मैं जनरल इरशाद से मिला. यह साल 1999 का दौर था और उस समय इरशाद विपक्ष में थे और लोगों का समर्थन वापस पाने के लिए देश की यात्रा कर रहे थे. मैं उनके साथ बांग्लादेश के दक्षिण में एक नदी पर गया. उनके एक सहयोगी ने उन्हें बताया कि मैं अपने छात्र जीवन में एक कट्टरपंथी कार्यकर्ता था और जेल भी गया था.
नाश्ते के दौरान मज़ाकिया अंदाज़ में उन्होंने कहा था, "मैंने सुना है कि आप एक क्रांतिकारी थे."
बीते साल जनरल का निधन हो गया. वो एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले थे लेकिन उनके कई चेहरे थे. वह साल 1982 में एक रक्तहीन सैन्य-तख़्तापलट से सत्ता में आए. उन्होंने भी दुनिया भर के तमाम सैन्य-शासकों की तरह भ्रष्टाचार से लड़ने, सत्ता में सुधार लाने और राजनीति को साफ़ करने का संकल्प लिया था. उन्होंने धार्मिक रूढ़िवादियों को खुश करने के लिए इस्लाम को बांग्लादेश का राज्य-धर्म बना दिया और धर्म-निरपेक्ष संविधान को मूल रूप से बदल दिया.
1986 में उनकी चुनावी जीत वोटरों के फ़्रॉड के आरोपों के कारण विवादों में घिर गई थी. जनरल इरशाद ने सत्ता में रहते हुए देश के संविधान और संसद को निलंबित कर दिया था और राजनीतिक विरोधियों पर सख़्त कार्रवाई की थी. इसके बाद साल 1987 के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक तरीक़े से दबाने के पीछे भी उन्हीं का नेतृत्व था. जिसकी वजह से मुझे भी जेल जाना पड़ा था.
साल 1990 में इरशाद के नौ साल का शासन समाप्त हो गया था. जब उन्हें बड़े पैमाने पर भड़के विद्रोह के कारण मजबूरी में इस्तीफ़ा देना पड़ा. कुछ दिनों बाद उन्हें कैद कर लिया गया. उस दिन ढाका की सड़कों पर हज़ारों लोगों ने मार्च निकाला. लोग सड़कों पर झूम रहे थे. नाच रहे थे. गा रहे थे. साल 1971 में आज़ादी के बाद से देश ने ऐसा कुछ नहीं देखा था. ऐसा लग रहा था कि यह एक नई सुबह है . देश के लिए एक नई शुरुआत लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रहा.
दो मुख्य पार्टियां आवामी लीग और बीएनपी जल्दी ही सत्ता की लड़ाई में आ गईं. आने वाले कुछ दशकों तक वो बारी-बारी से सत्ता पर काबिज़ हुईं और उन्होंने भी कमोबेश वैसे ही तरीक़े अपनाए जैसे पहले अपनाए गए थे.
बांग्लादेश में सत्ता का ये रूप देखना उन लोगों के लिए ख़ासतौर पर पीड़ा देने वाला था जिन्होंने जनरल इरशाद के शासन के ख़िलाफ़ एक लंबी लड़ाई लड़ी थी.
1990 के दौर के एक अनुभवी नसीर उद डोज़ा ने कहा, "हमने अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा लोकतंत्र के लिए लड़ने में कुर्बान कर दिया था. मैं उन राजनेताओं को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा जिन्होंने अपने हितों को साधने के लिए हमारे सपनों को कुचल दिया."
1987 के प्रदर्शन
SHAHIDUL ALAM
नसीर से मैं पहली बार 1987 में उस लॉरी में मिला था जिसमें डालकर हमें पुलिस स्टेशन ले जाया गया था.
इकराम हुसैन याद करते हुए कहते हैं, "बांग्लादेश ने कुछ समय के लिए अंधेरी रात में पूर्णिमा की चांद की तरह लोकतंत्र का ख़ूब मज़ा लिया."
वो कहते है, "अब लोकतंत्र कहां है?"
इकराम अभी भी साइनबोर्ड बनाते हैं. हालांकि अब उनका ज़्यादातर काम डिजीटल हो चुका है. अब उन्हें इनेमल पेंट की बहुत कम ज़रूरत पड़ती है. उनकी छोटी सी दुकान हटकोला रोड पर राष्ट्रपति क्वार्टर से महज़ कुछ सौ मीटर की दूरी पर है. वहीं जहां वो साल 1987 में थे. इकराम की दुकान से कुछ दूरी पर वो गली भी है जहां उन्होंने नूर के शरीर पर वो नारे लिखे थे. वो जगह भी ज़्यादा दूर नहीं है जहां नूर को गोली मारी गई थी. अब उस जगह को "नूर हुसैन स्क्वायर" कहा जाता है.
"नूर हुसैन स्क्वायर"
इकराम नूर के चेहरे पर नारे लिखने की बात को याद करके अब भी सहम जाते हैं.
वो कहते हैं, "वो मेरी सबसे अच्छी हैंडराइटिंग नहीं थी लेकिन ये वो सबसे अच्छी चीज़ थी जो मैंने आज तक लिखी."
तस्वीरें: बीबीसी के लिए यूसुफ़ तुषार. (bbc.com)
जर्मनी ने सोचा था कि आंशिक लॉकडाउन लगाना कोरोना महामारी से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कोरोना संक्रमण और इससे मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
(dw.com)
जर्मनी में कोरोना
जर्मनी में यह समय क्रिसमस का है, लेकिन कोरोना के बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैं
जब कोरोना के मामले लगातार बढ़ने लगे तो नवंबर में जर्मन राज्यों ने कोरोना पाबंदियों का एलान किया. इससे उम्मीद थी कि कोरोना के मामले घटकर स्वीकार्य स्तर पर आ जाएंगे. नवंबर की शुरुआत में रेस्त्रां, कैफे और बार बंद कर दिए गए. थिएटर, सिनेमा, जिम और बहुत से दूसरे छोटे व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी अपने दरवाजे बंद करने पड़े. दूसरी तरफ बाजार, दुकानें और स्कूल खुले रहे. आइडिया यह था कि मनोरंजन गतिविधियां बंद रहे और अर्थव्यवस्था का पहिया चलता रहे.
बंधे हैं मैर्केल के हाथ
जर्मन संविधान में देश के 16 राज्यों को बहुत ज्यादा शक्तियां दी गई हैं. यह तय करने का अधिकार उन्हीं के पास है कि किसी संक्रामक बीमारी के साथ किस तरह निपटना है. किसी चीज की अनुमति देनी है और किस चीज की नहीं, यह बर्लिन में बैठी संघीय सरकार नहीं, बल्कि राज्य सरकारें तय करती हैं.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल तो महामारी को रोकने के लिए कड़े उपायों की समर्थक रही हैं. इस मुद्दे पर कई बार उनकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से झड़प भी हुई है. ऐसे में, चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटना थोड़ा जटिल हो जाता है.
सोमवार को जर्मन सरकार के प्रवक्ता स्टेफान जाइबर्ट ने बताया कि जर्मनी में संक्रमण की दर चिंता का कारण है. उन्होंने कहा, "विपत्ति को टालने के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना है... आंशिक लॉकडाउन को पहले ही दो बार बढ़ा दिया गया है और अब यह 10 जनवरी तक लागू रहेगा. हालांकि ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि इसे और आगे बढ़ाया जाएगा."
लंदन में
लंदन में सैकड़ों लोग कोरोना नियमों के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर जमा हुए. लंदन में रात का लॉकडाउन लगाया गया है जिसके तहत सभी रेस्तरां और बार रात भर बंद रहते हैं.
महामारी के पहले चरण में जर्मनी की बहुत तारीफ हुई थी कि वह प्रभावी तरीके से स्थिति से निपटा है. वसंत के मौसम में प्रति दिन कोरोना के अधिकतम 6000 तक मामले सामने आए थे. लेकिन अब उनकी संख्या चार गुनी हो गई है.
अभी देश भर में चार हजार कोविड-19 के मरीजों का आईसीयू में इलाज हो रहा है. वसंत के मौसम में यह संख्या 2,850 थी. जर्मनी में आपात स्थिति और आईसीयू में काम करने वाले डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था डीआईवीआई का कहना है कि वेंटीलेटर पर रखे गए हर दूसरे व्यक्ति की मौत हो रही है.
ऐसे में सवाल है कि क्या सख्त लॉकडाउन बेहतर होगा? कुछ लोगों का मानना है कि इससे कुछ परेशानियां होंगी, लेकिन फिर जिंदगी जल्दी "सामान्य" हो सकती है. कई यूरोपीय देशों में यह रणनीति कारगर रही है. मसलन बेल्जियम और फ्रांस में, जहां संक्रमण के मामले कम हो गए हैं. इस्राएल में भी इसका असर देखने को मिला है.
लेकिन पूर्ण रूप से लॉकडाउन अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है. ऐसी स्थिति आती है तो फिर राज्य सरकारों को छोटे और बड़े उद्योगों को मदद देनी पड़ेगी. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए लिया गया कर्ज पहले ही 160 अरब यूरो तक पहुंच गया है. अगले साल इसका और बढ़ना तय है.
रिपोर्ट: जाबिने किनकार्त्स
अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की सूची में पहली बार नाइजीरिया को शामिल किया है. इसके अलावा चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे दस और देश ब्लैकलिस्ट में शामिल हैं जहां धार्मिक स्वतंत्रता विशेष चिंता का विषय है.
अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता के मोर्चे पर पहली बार सोमवार 7 दिसंबर को नाइजीरिया को ब्लैकलिस्ट किया है, जबकि चीन, सऊदी अरब और पाकिस्तान को भी ब्लैकलिस्ट में शामिल किया गया. अमेरिका ने कहा है कि ये देश "धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर और घोर उल्लंघन में लिप्त हैं या फिर ये उल्लंघन होने दे रहे हैं."
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ का कहना है कि पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजीरिया भी उन देशों में से एक है जहां "1998 के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत चिंता जताई गई है." नाइजीरिया अमेरिका का एक सहयोगी देश है.
पोम्पेओ ने कहा, "अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. किसी भी देश या संस्था को मान्यताओं के आधार पर अपवादों के साथ लोगों पर अत्याचार करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस वार्षिक रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि जहां भी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला होता है, हम उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे."
अमेरिकी कानून के मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता के लिए जिन देशों को ब्लैकलिस्ट किया जाता है उन्हें सुधार करने की जरूरत है, नहीं तो अमेरिकी सहायता में कटौती की जा सकती है और प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. हालांकि अमेरिकी प्रशासन इन प्रतिबंधों को किसी भी समय हटा सकता है.
विदेश विभाग का कहना है कि उसने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि दुनिया में दस में से आठ लोग धर्म के आधार पर प्रतिबंध का सामना करते हैं. विदेश विभाग ने एक बयान में कहा, "जहां भी धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है, वहां आतंकवाद और हिंसा है. विदेशों में धार्मिक समुदायों के लिए स्वतंत्रता की वकालत अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने में मदद करती है."
पोम्पेओ ने वॉशिंगटन में एक डिनर पार्टी के दौरान कहा, "धार्मिक स्वतंत्रता हमारी पहली स्वतंत्रता है." उन्होंने आगे कहा, "हम में से हर कोई आजाद रूप से पूजा या इबादत कर सकता है और आत्मा के शाश्वत प्रश्न पर खुलकर बात कर सकता है, तब ही हम समझते हैं कि हमें अपने जीवन को व्यक्तिगत या सामाजिक रूप से कैसे जीना है."
सूची में भारत नहीं
गौरतलब है कि इस लिस्ट में भारत का नाम नहीं है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के आलोचक कहते आए हैं कि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं देश में धार्मिक आजादी में गिरावट आई है. लेकिन हाल के सालों में भारत के रिश्ते ट्रंप के शासन में अमेरिका से गहरे हुए हैं. ट्रंप प्रशासन ने भारत में विशेष रूप से गिरती धार्मिक स्वतंत्रता की अनदेखी की है.
पाकिस्तान और चीन के अलावा अमेरिका ने जिन और देशों को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की ब्लैकलिस्ट में डाला है वे हैं- इरीट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, सऊदी अरब, उत्तर कोरिया, म्यांमार, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान.
एए/सीके (एएफपी)
अमेरिकी मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ नव-निवार्चित जो बाइडन ने रिटायर्ड जनरल लॉयड ऑस्टिन को अपना रक्षा मंत्री चुना है.
67 साल के जनरल ऑस्टिन इस पद पर पहले अफ्ऱीकी-अमेरिकी होंगे. ओबामा सरकार के समय उन्होंने अमेरिकी सेंट्रल कमांड का नेतृत्व किया था. हालांकि उनके नाम पर संसद की रज़ामंदी भी ज़रूरी होगी क्योंकि उन्हें रिटायर हुए अभी सात साल से कम वक़्त गुज़रा है.
बाइडन का ये कथित फ़ैसला उनके राष्ट्रीय सुरक्षा टीम के वरिष्ठ सदस्यों के नाम की घोषणा के दो हफ़्ते बाद आया है.
बाइडन और जनरल ऑस्टिन ने इस मामले पर अभी कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है. पहले मीडिया में ख़बरें आई थीं कि बाइडन वरिष्ठ पेंटागन अधिकारी मिशेल फ्लोरनॉय को इस पद के लिए चुनेंगे. ऐसा होता तो वे इस पद पर आने वाली पहली महिला होतीं.
बाइडन 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं. राष्ट्रपति ट्रंप अब भी अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहे हैं और बिना सबूत के आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव में धांधली हुई है.
कौन हैं जनरल ऑस्टिन?
पोलिटिको ने सबसे पहले बाइडन के इस फ़ैसले की ख़बर प्रकाशित की थी. पोलिटिको ने इस फ़ैसले के बारे में जानने वाले तीन लोगों का नाम भी बताया था.
पोलिटिको की ख़बर के मुताबिक़ पहले जनरल ऑस्टिन की उम्मीदवारी दूर की बात लगती थी लेकिन हाल के दिनों में वे एक टॉप उम्मीदवार के रूप में नज़र आने लगे हैं और एक सुरक्षित नाम के तौर पर भी.
बीबीसी के अमेरिकी मीडिया पार्टनर सीबीएस न्यूज़ ने कई लोगों को हवाले से जनरल ऑस्टिन के नाम पर फ़ैसला होने की बात कही.
सीबीएस के मुताबिक़ जनरल ऑस्टिन का नाम नागरिक अधिकार संगठनों और डेमोक्रेटिक एशियाई, ब्लैक और लातिन कॉक्स की वजह से आगे आया है जो चाहते हैं कि बाइडन अल्पसंख्यकों और महिलाओं को कैबिनेट पद दें.
इस बीच सीएनएन ने स्रोत के हवाले से कहा कि बाइडन ने हफ़्ते का आख़िर में जनरल को इस पद का प्रस्ताव दिया है जो उन्होंने मान लिया है. जनरल ऑस्टिन ने 2013-16 तक अमेरिका की सेंट्रल कमांड को संभाला है जिसकी ज़िम्मेदारी मध्य-पूर्व, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया हैं.
इससे पहले वह सेना के वाइस-चीफ़ ऑफ स्टाफ़ थे और इराक़ में अमेरिकी सेना के कमांडिंग जनरल. इन सालों में उन्होंने बाइडन के साथ काफ़ी काम किया है जब बाइडन ओबामा सरकार में उप-राष्ट्रपति थे.
लेकिन सीबीएस के मुताबिक़ जनरल ऑस्टिन के सामने कुछ दिक्क़तें भी हैं क्योंकि वे हाल तक डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर रेयथॉन में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्य थे. (bbc.com)
तेहरान, 8 दिसंबर| ईरान के केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कहा कि अमेरिकी 'अमानवीय प्रतिबंधों' ने देश को कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए जरूरी वैक्सीन की खरीदी करने से रोक दिया है। यह जानकारी आधिकारिक समाचार एजेंसी आईआरएनए ने दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को केन्द्रीय बैंक के गवर्नर अब्दोलनसेर हेम्माती ने सोशल मीडिया पर लिखा, "क्योंकि कोविड-19 वैक्सीन की खरीद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आधिकारिक चैनलों के जरिए ही की जानी है। ऐसे में अमेरिकी सरकार के अमानवीय व्यवहार ने अब तक जरूरी मुद्रा का भुगतान करने और हस्तांतरण करने के सभी रास्ते अवरुद्ध किए हुए हैं और विदेशी संपत्ति नियंत्रण (ओएफएसी) लाइसेंस प्राप्त करने को जरूरी बनाया है।"
उन्होंने आगे कहा, "अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अमेरिका के दबाव और धमकी के कारण ईरान के इस मानवीय ऋण के अनुरोध को उठाने की हिम्मत भी नहीं की। जबकि वो यह जानते हैं कि यह ईरान का अधिकार है।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 8 दिसंबर | अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी स्वास्थ्य टीम में कुछ सदस्यों को नियुक्त करने और कुछ को नामांकित करने की घोषणा की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बाइडेन ने सोमवार को एक बयान में कहा कि वह कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल जेवियर बेसेरा को सेक्रेटरी ऑफ हेल्थ एंड हयूमन सर्विसेस नामांकित कर रहे हैं।
कैलिफोर्निया से आने वाले एक पूर्व अमेरिकी कांग्रेसी बेसेरा को यह जिम्मेदारी दिए जाने की यदि पुष्टि होती है तो वे इस विभाग का नेतृत्व करने वाले वो पहले लैटिन अमेरिकी होंगे और आने वाले महीनों में कोविड-19 टीकों के वितरण की देखरेख करेंगे।
इस बीच बाइडेन ने कहा कि उन्होंने विवेक मूर्ति को अमेरिकी सर्जन जनरल के रूप में सेवा देने के लिए चुना है। साथ ही मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल में संक्रामक रोगों के प्रमुख और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन के प्रोफेसर रोशेल वालेंस्की को चुना है। अब वे सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का नेतृत्व करेंगे।
साथ ही उन्होंने कोविड-19 इक्विटी टास्क फोर्स चेयर पर सेवाएं देने के लिए स्वास्थ्य देखभाल में असमानताओं की विशेषज्ञ मासेर्ला नुनेज-स्मिथ को नियुक्त किया है। वहीं नेशनल इकॉनॉमिक काउंसिल के पूर्व डायरेक्टर जेफ जीन्ट्स को कोविड-19 रिस्पांस के लिए राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया है।
संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ और अमेरिका के 6 अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रह चुके एंथोनी फौची को बाइेडन का चीफ मेडिकल एडवाइजर बनाया गया है। साथ ही वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्सियस डिसीज के डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाते रहेंगे।
बाइडेन ने अपने बयान में कहा कि वह चाहते हैं कि उनकी स्वास्थ्य टीम "ईमानदारी, वैज्ञानिक ²ढ़ता, और संकट के समय में बेहतरीन प्रबंधन करने के अनुभव को उच्चतम स्तर पर लाकर काम करे क्योंकि अमेरिका अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। हमें महामारी को नियंत्रण में लाना है ताकि अमेरिकी लोग काम पर वापस जा सकें, फिर से सामान्य जीवन जी सकें और प्रियजनों के पास आ-जा सकें।"
देश में 1,49,33,847 लोगों को संक्रमित करने वाली और अमेरिका में 2,83,631 लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली महामारी से निपटना बाइडेन के प्रशासन की पहली प्राथमिकता है।(आईएएनएस)
फ़ाक्स न्यूज़ पर अचानक नज़र आए अमरीका के नेशनल इंटैलीजेन्स चीफ़ जान राटक्लिफ़...कहा बाइडन सरकार को मान्यता नहीं, चुनावों में हुई है भारी धांधली!
एक साल पहले जब अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने जान राटक्लिफ़ को नेशनल इंटेलीजेन्स एजेंसी के प्रमुख पद के लिए नामित किया तो बहुत से लोगों को आश्चर्य हुआ था।
इसका कारण यह था कि टेक्सास के एक इलाक़े से प्रतिनिधि सभा के रिपब्लिकन सदस्य राटक्लिफ़ का कोई इंटैलीजेन्स बैक ग्राउंड नहीं था। उस समय लोगों का यही विचार था कि ट्रम्प के बहुत क़रीब होने की वजह से उन्हें योग्यता के बग़ैर यह पद मिल गया है।
अमरीका की 17 इंटैलीजेन्स एजेंसियों पर नज़र रखने वाली इंटैलीजेन्स एजेंसी के चीफ़ राटक्लिफ़ पर यह आरोप कई बार लगा कि वह ट्रम्प को राजनैतिक फ़ायदा पहुंचाने के लिए इंटेलीजेन्स जानकारियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी क्रम में अब राटक्लिफ़ ने जो बाइडन की चुनावी जीत को मानने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि बैलेट बाक्स से बैलेट निकाले जाने की घटनाएं रिकार्ड की गई हैं। राटक्लिफ़ का कहना है कि यह भी देखने में आया कि बहुत सारे बैलेट बाक्स न्यूयार्क से पेन्सेलवानिया ले जाए गए हैं।
राटक्लिफ़ ने कहा कि ज़रूरी है कि इस बारे में एफ़बीआई और न्याय मंत्रालय जनता से बात करें क्योंकि बड़ी संख्या में देशवासियों का विश्वास ख़त्म हो रहा है और उन्हें लगता है कि उनके वोटों की पारदर्शिता के साथ गिनती नहीं की गई है।
अब तक ट्रम्प की टीम की ओर से दर्जनों की संख्या में शिकायतें दर्ज कराई गई हैं मगर कहीं किसी जांच में उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी हैं। ट्रम्प पूरी कोशिश कर रहे हैं कि चुनावों के परिणामों को किसी तरह बदलवा दें मगर सफलता नहीं मिल पा रही है।
राटक्लिफ़ के बयान से भी ज़मीनी सतह पर कोई ख़ास असर होने की संभावना नहीं है। निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने नेशनल इंटैलीजेन्स चीफ़ के पद के लिए एक महिला आवरिल हाइन्ज़ का चयन किया है। (parstoday)
काठमांडू, 7 दिसंबर | नेपाल और भारत के संबंधों में पिछले कुछ महीनों में आई खटास के बाद दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए हाल ही में कई उच्च स्तरीय वार्ता में हिस्सा लिया है। इस बीच भारत और नेपाल के संबंधों में मजबूती को दर्शाती एक और सुखद खबर सामने आई है कि दोनों देशों ने एक संयुक्त व्यापार मंच बनाने पर सहमति व्यक्त की है। व्यापार और पारगमन (ट्रेड एंड ट्रांसिट) पर भारत-नेपाल अंतर-सरकारी समिति की बैठक में दोनों पक्षों से निजी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक ऐसा मंच बनाने का निर्णय लिया गया है।
दो वर्षो के बाद हुई वाणिज्य सचिव स्तर की बैठक में दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य मुद्दों पर हुई प्रगति की समीक्षा की गई।
भारतीय वाणिज्य सचिव अनूप वधावन और नेपाल के वाणिज्य और आपूर्ति सचिव बैकुंठ आर्यल की मौजूदगी में हुई इस वर्चुअल (ऑनलाइन) बैठक में यह निर्णय लिया गया, जो कि सोमवार को आयोजित हुई।
बैठक के बाद काठमांडू में भारतीय दूतावास की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, दोनों पक्षों ने विभिन्न सरकार-स्तरीय पहलों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की, जिन्हें भविष्य में व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ाने के लिए उठाए जाने की आवश्यकता है।
समिति द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आगे की समीक्षा के लिए सर्वोच्च द्विपक्षीय तंत्र है। इनमें दोनों पक्षों की ओर से पारगमन की संधि एवं व्यापार की संधि, रेल सेवा समझौतों में संशोधन, निवेश प्रोत्साहन के लिए किए जाने वाले उपाय, संयुक्त व्यापार मंच का गठन, मानकों के सामंजस्य के साथ-साथ व्यापार ढांचे के समन्वित विकास पर व्यापक समीक्षा पर होने वाली महत्वपूर्ण चर्चा शामिल होती है।
आयात और निर्यात दोनों के मामले में भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार और निवेश भागीदार है।
बयान में कहा गया, "आज की व्यापक चर्चा और बैठक में हुई प्रगति से भारत और नेपाल के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों में विस्तार को समर्थन मिलने की उम्मीद है।"
व्यापार और पारगमन पर अंतर-सरकारी समिति की बैठक पिछले महीने भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला की नेपाल यात्रा के बाद हुई है। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के एक अस्पताल में ऑक्सीजन के किल्लत के चलते कई लोग मारे गए हैं. पेशावर के अस्पताल में मरीजों को पर्याप्त ऑक्सीजन के बिना यूं ही छोड़ दिया गया.
पेशावर के सरकारी अस्पताल में कोरोना के छह मरीजों की मौत आइसोलेशन वॉर्ड में हुई जबकि एक मरीज आईसीयू में मारा गया. मामले की शुरुआती जांच में संकेत मिलता है कि मरीजों को ऑक्सीजन मिलने में देरी हुई. इस मामले में अस्पताल के छह कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है.
रिपोर्ट कहती है कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी पहले भी होती रही है और किसी ने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और ना ही आपात स्थिति के लिए कोई बैकअप ऑक्सीजन रखी गई. निलंबित होने वाले लोगों में अस्पताल के निदेशक भी शामिल हैं.
मंत्री ने उठाए सवाल
प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्री तैमूर सलीम झगड़ा ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि अगले पांच दिनों में अधिकारी मामले की गहराई से पड़ताल करने के लिए एक और जांच करेंगे. उन्होंने कहा, "शाम आठ बजे के आसपास अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हो गई, लेकिन वे लोग 12 बजे तक कैसे इस समस्या को हल नहीं कर पाए?" उन्होंने बताया, "कुछ कर्मचारी छुट्टी पर थे, कुछ गैरहाजिर और फिर कुछ वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई, यहां तक कि आपात दस्ता भी वहां नहीं था."
अस्पताल के प्रवक्ता फरहाद खान ने बताया कि जो वेंडर अस्पताल को ऑक्सीजन की सप्लाई करता है, वह समय से अस्पताल नहीं पहुंच पाया. उन्होंने बताया कि अस्पताल में ऑक्सीजन 190 किलोमीटर दूर रावलपिंडी से आती है. प्रवक्ता ने बताया कि ऑक्सीजन की सप्लाई में बाधा से लगभग 200 लोग प्रभावित हुए, जिनमें करीब 100 कोरोना के मरीज थे.
पाकिस्तान में फरवरी से लेकर अब तक कोरोना के 40 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं जबकि आठ हजार लोग इस महामारी की वजह से मारे गए हैं. पाकिस्तान के अस्पतालों में आईसीयू लगभग फुल हो गए हैं. ऐसे में बढ़ते संक्रमण के मामलों के बीच प्रांतीय सरकारों को जूझना पड़ रहा है.
पाकिस्तान में संक्रमित लोगों की असल संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि देश भर में सिर्फ 58 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ है. इस तरह कुल 22 करोड़ की आबादी में सिर्फ 2.6 प्रतिशत लोगों का टेस्ट किया गया है.
चरमराई व्यवस्था
पाकिस्तान के मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सज्जाद कैसर ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया, "हम बहुत ही गंभीर स्थिति में हैं क्योंकि नए मामलों के साथ स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है." उन्होंने बताया कि अस्पताल कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित लोगों से भरे पड़े हैं. वह कहते हैं, "किसी नए मरीज को तभी बेड मिल सकता है, या तो वह भाग्यशाली हो या फिर किसी अन्य मरीज को छुट्टी मिली हो." पाकिस्तान में हर दिन सामने आने वाले संक्रमण के मामले लगातार पढ़ रहे हैं. दो दिसंबर से हर दिन वहां तीन हजार नए मामले रिपोर्ट हो रहे हैं.
संक्रमण की रफ्तार को कम करने के लिए पिछले महीने पाकिस्तान ने शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया और सबसे गंभीर हालात वाले इलाकों में लॉकडाउन लगा दिया. हालांकि बाजार, व्यापारिक प्रतिष्ठान, सार्वजनिक परिवहन को बंद नहीं किया गया.
विपक्षी पार्टियां भी सरकार विरोधी रैलियां कर रही हैं जिनमें हजारों लोग आते हैं. वहां ना तो किसी को मास्क की फिक्र दिखती है और ना ही सोशल डिस्टैंसिंग की. पाकिस्तान दुनिया में पांचवां सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है लेकिन उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है.
एके/ओएसजे (एपी, एएफपी, डीपीए)
नाइजीरिया, 07 दिसम्बर| दक्षिण पश्चिमी नाइजीरिया के मोवे इलाके में छापेमारी के दौरान पुलिस को छह महिलाएं और चार बच्चे मिले. इन सभी को कैद में रखा गया था. पुलिस प्रवक्ता अबिमबोला ओयेयेमी ने समचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मुखबिर से सूचना मिलने के बाद हमारे लोग गैरकानूनी प्रसव केंद्र में घुसे और 10 लोगों को रेस्क्यू किया."
छुड़ाई गई छह महिलाओं में से चार गर्भवती हैं. महिलाओं ने पुलिस को बताया कि उन्हें जबरन कैद किया गया. उनसे बलात्कार किया गया और फिर उनके नवजात शिशुओं को ब्लैक मार्केट में बेच दिया गया.
गैरकानूनी कामों के लिए शिशुओं की बिक्री
ऐसी तथाकथित बेबी फैक्ट्री में पैदा होने वाले बच्चों को आम तौर पर बाल मजदूरी, सेक्स वर्क या नर बलि के लिए बेचा जाता है. पुलिस द्वारा छुड़ाई गई एक महिला ने पत्रकारों से कहा कि नवजात लड़के को ढाई लाख नाइरा और लड़कियों को दो लाख नाइरा में बेचा जाता है.
पुलिस ने दो लोगों को मौके पर ही गिरफ्तार भी किया है. मुख्य आरोपी फरार है.
ऐसी बेबी फैक्ट्रियां आम तौर पर खुद को अनाथालय, मैटरनिटी होम और धार्मिक केंद्रों की तरह पेश करती हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन गैरकानूनी बेबी फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं.
गिरफ्तारी के बाद भी कई आरोपी बच निकलते हैं. पुलिस प्रवक्ता अबिमबोला ओयेयेमी के मुताबिक,"एक महिला इस साल की शुरुआत में ही मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार की गई, उस पर मुकदमा भी चल रहा है लेकिन उसे जमानत मिल गई और वह फिर से यही काम करने लगी."
कितनी गंभीर है नाइजीरिया में महिलाओं की स्थिति
नाइजीरिया में लड़कियों के अपहरण के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक संगठन की तसित्सी माटेकायरा के मुताबिक, उनके देश में कई साल से बेबी फैक्ट्रियां चल रही हैं. माटेकायरा कहती हैं कि 2006 में पहली बार यूनेस्को ने पहला ऐसा मामला दर्ज किया था. तब से करीबन हर साल दक्षिणी नाइजीरिया में ऐसी बेबी फैक्ट्रियों के नए नए मामले सामने आते रहते हैं. 2011 में ऐसी बेबी फैक्ट्रियों ने 49 गर्भवती महिलाओं को रेस्क्यू किया गया. 2013 और 2015 में भी कुल 13 बेबी फैक्ट्रियां पुलिस के रडार में आईं.
नाइजीरिया को अफ्रीका में मानव तस्करी का स्रोत भी कहा जाता है. देश के ग्रामीण इलाकों से महिलाओं और बच्चों को बहला फुसलाकर अगवा किया जाता है. और फिर उन्हें गैबॉन, कैमरून, घाना, चाड, बेनिन, टोगो, नाइजर, बुर्किना फासा और गाम्बिया जैसे देशों में बेचा जाता है. नाइजीरिया की महिलाओं को जबरन देह व्यापार के लिए इटली, रूस और मध्य पूर्व एशिया के देशों तक भी पहुंचाया जाता है.
चिबोक गर्ल्स
नाइजीरिया में होने वाले ये अपराध किस हद तक जा सकते हैं, इसका पता दुनिया को अप्रैल 2014 में चला. तब आतंकवादी संगठन बोको हराम ने चिबोक शहर के एक स्कूल से 276 लड़कियों को अगवा कर लिया. अगवा की गई ज्यादातर लड़कियों से बलात्कार भी किया गया. 2016 में 50 गर्भवती छात्राओं को रिहा करने के बदले बोको हराम ने अपने सदस्यों की जेल से रिहाई की मांग भी की.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा समेत कई दिग्गज हस्तियों के अभियान छेड़ने के बाद हुई सैन्य कार्रवाई में ज्यादातर लड़कियों को आजाद कराया गया.(dw.com)
काबुल, 7 दिसंबर | अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में एक जिला पुलिस स्टेशन के बाहर सोमवार को एक कार बम विस्फोट में करीब 24 लोग घायल हो गए। एक प्रांतीय पुलिस प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया, दमन जिले के केंद्रीय पुलिस स्टेशन के बाहर सुबह लगभग 10.30 बजे कार बम विस्फोट किया गया। प्रारंभिक सूचना में विस्फोट से 13 नागरिकों सहित 24 लोग घायल हो गए।
उन्होंने आगे कहा, "घायलों को जिला अस्पताल पहुंचाया गया। गंभीर रूप से घायल पीड़ितों को कंधार शहर के एक क्षेत्रीय अस्पताल में स्थानांतरित किया जाएगा।"
प्रवक्ता ने कहा कि विस्फोट के बाद आकाश में घने धुएं का गुब्बार फैल गया।
सुरक्षा बलों ने एहतियात के लिए इलाके की घेराबंदी कर दी।
किसी भी समूह ने अभी तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
देश में हाल के महीनों में बड़े पैमाने पर बम विस्फोट हुए हैं।
--आईएएनएस
काठमांडू, 7 दिसंबर | नेपाल सरकार मंगलवार को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की संशोधित ऊंचाई का खुलासा करेगी। यहां की मीडिया ने सोमवार को ये जानकारी दी। द हिमालयन टाइम्स अखबार के मुताबिक, देश का सर्वे विभाग मंगलवार की दोपहर में एक कार्यक्रम के दौरान यह घोषणा करेगा।
हिमालय पहाड़ की वर्तमान ऊंचाई, 8,848 मीटर है और इसे 1954 में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा मापा गया था।
2015 के भूकंप के बाद वास्तविक ऊंचाई में बदलाव होने के अनुमान के बाद नेपाल ने शिखर की ऊंचाई फिर से मापने का फैसला किया।
नेपाल सरकार के अधिकारियों ने चीन के साथ समन्वय किया, जिसने हिमालय की ऊंचाई मापने के लिए अपनी एक टीम भेजी।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 2019 में नेपाल यात्रा के दौरान काठमांडू और बीजिंग ने संयुक्त रूप से संशोधित ऊंचाई की घोषणा करने पर सहमति जताई थी।
आईएएनएस
दुबई, 7 दिसंबर | दुबई के एक प्रवासी भारतीय पर एक झगड़े में अपने ही हमवतन को पीट-पीटकर मार डालने का आरोप लगा है। इस मामले की सुनवाई शहर की एक अदालत में चल रही है। गल्फ न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को दुबई की एक अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई। बताया जा रहा है कि पीड़ित और आरोपी एक साथ एक ही आवास में रहते थे और जब उनका झगड़ा हुआ, तब पीड़ित शराब के नशे में था।
अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, पीड़ित की मां ने अपने दोस्त उसके बेटे के बारे में पता करने को कहा था, क्योंकि पीड़ित ने उनसे पिछले कई दिनों से संपर्क नहीं किया था।
जब दोस्त जांच करने गया, तो उसने पाया कि पीड़ित एक बिस्तर पर मृत पड़ा है।
प्रारंभिक जांच के अनुसार, पीड़ित का पार्थिव शरीर मिलने से तीन दिन पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी।
अपार्टमेंट में रहने वाले चार गवाहों ने गवाही दी है कि पीड़ित शायद ही कभी अपने कमरे से बाहर आता था और वह हमेशा शराब के नशे में ही रहता था।
31 वर्षीय भारतीय अभियुक्त ने अदालत को बताया कि उसे अपार्टमेंट के मालिक द्वारा किरायेदारों से किराया लेने का काम सौंपा गया था।
बचाव पक्ष का कहना है कि घटना के दिन, निरीक्षक उन उल्लंघनकर्ताओं को पकड़ने के लिए आवासीय यूनिट्स की खोज कर रहे थे, जिन्होंने अपने अपार्टमेंट को अवैध रूप से किराए पर लिया था।
गल्फ न्यूज की रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिसकर्मी ने अदालत में कहा है, "बचाव पक्ष ने दावा किया है कि पीड़ित शराब के प्रभाव में था और उसने उसका अपमान किया।"
पुलिस ने अदालत के सामने कहा कि आरोपी ने पीड़ित के साथ मारपीट की, जिसके बाद वह बेहोश हो गया।
पीड़ित के बेहोश होने के बाद आरोपी ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
मेडिकल रिपोर्टों से पता चला कि हमले के चलते पीड़ित की मौत हो गई। बताया गया है कि उसके मस्तिष्क में आंतरिक रक्तस्राव हुआ था। (आईएएनएस)
बगावत और क्रांति का गवाह बन रहे कई अरब देशों में झंडे भी हथियार बन रहे हैं. सीरिया, लीबिया और हाल में सूडान में तानाशाहों के खिलाफ खड़े लोग अपने देश के पुराने झंडों का सहारा ले रहे हैं.
लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में प्रोफेसर गिल्बर्ट आचर कहते हैं, "सीरिया और लीबिया में जो मौजूदा झंडे हैं, वे राष्ट्रीय प्रतीक होने से ज्यादा वहां की मौजूदा सत्ताओं की पहचान को जाहिर करते हैं, इसीलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है."
लीबिया में जब 2011 में तानाशाह मुआम्मर गद्दाफी के खिलाफ बगावत शुरू हुई, तो प्रदर्शनकारियों ने 1977 में अपनाए गए गद्दाफी के झंडे को खारिज कर दिया, जो पूरी तरह हरा था. उन्होंने इस झंडे को जलाया और तुरंत उस झंडे को अपना लिया जो देश में राजशाही के दौरान चलता था. लीबिया को 1951 में आजादी मिलने के बाद देश की बागडोर राजशाही के हाथों में थी. लेकिन 1969 में गद्दाफी ने शाह इदरीस को सत्ता से बेदखल कर दिया.
प्रोफेसर अचर कहते हैं कि राजशाही के दौर वाले झंडे की वापसी का यह मतलब नहीं है कि लोगों को उस दौर की याद सता रही है, बल्कि उन्होंने तो गद्दाफी का विरोध करने के लिए इस झंडे का इस्तेमाल किया है. आज लीबिया की आबादी का ज्यादातर हिस्सा ऐसा है जिसने गद्दाफी की तानाशाही के अलावा कोई और दौर नहीं देखा. उन्होंने तो बस उत्साह में देश को आजादी मिलने पर अपनाए गए झंडे को हाथों में उठा लिया.
लीबिया के पुराने झंडे में तीन रंग थे लाल, काला और हरा. बीच में काली पट्टी पर चांद सितारा थे. गद्दाफी के एक विरोधी ने कहा, "यह 17 फरवरी की क्रांति का सबसे ताकतवर प्रतीक था." गद्दाफी के एजेंटों के डर से प्रदर्शनकारियों ने छिपकर झंड़े बनाए. खास तौर से उन्होंने अलग अलग रंगों का कपड़ा अलग अलग दुकानों से लिया.
सीरिया में भी प्रदर्शनकारियों ने 2011 में अपनी बगावत का प्रतीक उस झंडे को बनाया जो 1932 में सीरियाई स्वाधनीता सेनानियों ने तैयार किया था. इस झंडे में तीन रंग थे. पहला हरा जो शुरुआती मुस्लिम शासन का प्रतीक था, सफेद उम्मायिद राजवंश के लिए और काला रंग 750 ईसवी से लेकर 13वीं सदी तक राज करने वाले इस्लामिक साम्राज्य के अरबी राजवंश के लिए. इसके साथ ही बीच वाली पट्टी पर तीन सितारे दमिश्क, अलेप्पो और दायर एजोर इलाकों का प्रतिनिधित्व करते थे.
इसके विपरीत मौजूदा राष्ट्रपति बशर असद के पिता और पूर्व राष्ट्रपति हाफेज अल असद ने 1980 में नया झंडा अपनाया जिसमें लाल, सफेद और काली पट्टियों के साथ दो सितारे थे.
बेरुत की सेंट जोसेफ यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर करीम एमिल बितार कहते हैं, "सीरिया और लीबिया में दो कारक काम कर रहे थे. लोगों के बीच 1950 के दशक की अच्छी यादें थीं. यह एक हद तक उदारवादी अरब राष्ट्रवाद का दशक था जबकि 1960 के दशक में एकदम तानाशाहियों का दौर आ गया. तो लोगों ने तानाशाहों को हटाने के लिए उनके बनाए प्रतीकों को भी बदलना शुरू किया."
सीरिया की बगावत के शुरुआती दिनों में अहम रोल अदा करने वाले विपक्षी नेता जॉर्ज साबरा कहते हैं कि आजादी के बाद के झंडे लोगों को 1950 के दशक की काफी हद तक आजादी और आर्थिक विकास की याद दिलाते हैं. वह कहते हैं, "यह सीरिया में लोकतंत्र के दौर का झंडा है, तख्तापलट और तानाशाही व्यवस्था शुरू होने से पहले का."
तख्तापलट का प्रतीक
लीबिया और सीरिया में बदलाव के बावजूद अरब क्रांति के केंद्र में रहे एक देश में कोई बदलाव नहीं हुआ. मिस्र का झंडा वही रहा जो 1952 से है. लाल, सफेद और काली पट्टियों वाला झंडा जिसके बीच में सुनहरे बाज का निशान है जो मध्य पूर्व के 12वीं सदी के शासक सालादीन का प्रतीक है.
बितार कहते हैं, "जुलाई 1952 में हुई क्रांति के बाद देश की सत्ता संभालने वाली सत्ता का झुकाव तानाशाही की तरफ था. बावजूद इसके बहुत से लोग मानते हैं कि वह एक भ्रष्ट राजशाही और औपनिवेशिक हस्तक्षेप के खिलाफ एक जायज विद्रोह था."
मिस्र के पड़ोसी सूडान में अरब क्रांति के पहले दौर में कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी. लेकिन वहां विरोध की ज्वाला 2019 में भड़की और बरसों से राज कर रहे राष्ट्रपति ओमर अल बशीर को हटना पड़ा. इसके साथ ही यहां के लोगों का भी देश के पुराने झंडे को लेकर लगाव बढ़ गया. इस झंडे में नीला रंग नील नदी के पानी का प्रतीक है, जबकि पीला रंग रेगिस्तान और हरा रंग कृषि को दर्शाता है. लेकिन 1970 में राष्ट्रपति गफार अल निमेरी ने इस झंडे को छोड़ दिया और अरब राष्ट्रवाद के असर में उन्होंने ऐसा किया.
देश की मौजूदा सत्तादारी संप्रभु परिषद की सदस्य आयशा मूसा पुराने झंडे की वापसी का समर्थन करती हैं. वह कहती हैं, "यह झंडा आजादी का प्रतीक है इसलिए यही सही है. क्रांति के बाद यह हमारे देश की जातीय और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है." वह कहती हैं, "इससे भी बढ़कर यह कि मौजूदा झंडा सैन्य तख्तापलट से जुड़ा है. लेकिन इस देश में सैन्य सरकार को अच्छा नहीं माना जाता."
एके/ओएसजे (एएफपी)