अंतरराष्ट्रीय
सियोल, 25 मार्च। उत्तर कोरिया ने अपने नेता किम जोंग-उन के आदेशानुसार अपनी सबसे बड़ी अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) के परीक्षण की पुष्टि की है।
ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका के साथ ‘‘लंबे समय से टकराव’’ के मद्देनजर तैयारी करते हुए उत्तर कोरिया अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार कर रहा है।
उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया की ओर से शुक्रवार को एक खबर में इस प्रक्षेपण की पुष्टि की गई। इससे एक दिन पहले, दक्षिण कोरिया तथा जापान ने कहा था कि 2017 के बाद से अपने पहले लंबी दूरी के परीक्षण में उत्तर कोरिया ने राजधानी प्योंगयांग के पास एक हवाई अड्डे से एक आईसीबीएम का प्रक्षेपण किया है।
उत्तर कोरिया की आधिकारिक ‘कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ (केसीएनए) ने बताया कि ह्वासोंग-17 (आईसीबीएम) 6,248 किलोमीटर (3,880 मील) की अधिकतम ऊंचाई पर पहुंची और उत्तर कोरिया तथा जापान के बीच समुद्र में गिरने से पहले उसने 67 मिनट में 1,090 किलोमीटर (680 मील) का सफर तय किया।
एजेंसी ने दावा किया कि परीक्षण ने वांछित तकनीकी उद्देश्यों को पूरा किया और यह साबित करता है कि आईसीबीएम प्रणाली को युद्ध की स्थिति में तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है।
दक्षिण कोरियाई और जापानी सेनाओं ने भी ऐसे ही प्रक्षेपण विवरण दिये थे। उसके बार में विशेषज्ञों का कहना है कि मिसाइल 15,000 किलोमीटर (9,320 मील) तक के लक्ष्य को निशाना बना सकती है, अगर उसे एक टन से कम वजन वाले ‘वारहेड’ (मुखास्त्र) के साथ सामान्य प्रक्षेप-पथ पर दागा जाए।
‘केसीएनए’ ने मिसाइल के प्रक्षेपण की कुछ तस्वीरें भी साझा कीं। तस्वीरों में देश के नेता किम जोंग-उन मुस्कराते हुए ताली बजाते नजर आ रहे हैं।
एजेंसी ने किम के हवाले से कहा कि उनका नया हथियार उत्तर कोरिया की परमाणु ताकतों के बारे में दुनिया को एक स्पष्ट संदेश देगा। उन्होंने (किम ने) अपनी सेना को एक विकट एवं तमाम तकनीक से लैस सेना बनाने का संकल्प किया, जो किसी भी सैन्य खतरे तथा धमकी से न डरे और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ लंबे समय से चले आ रहे टकराव का सामना करने के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार कर ले।
दक्षिण कोरियाई सेना ने जल, थल और हवा से अपनी मिसाइल का परीक्षण कर उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण का जवाब दिया था।
दक्षिण कोरिया ने यह भी कहा है कि उत्तर कोरियाई मिसाइल परीक्षण केन्द्र और इसके कमान एवं सुविधा केन्द्र पर सटीक निशाना साधने की पूरी तैयारी है।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ने अमेरिका में पत्रकारों से कहा कि इस प्रक्षेपण पर शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में एक बैठक होने की उम्मीद है।
यह इस साल उत्तर कोरिया का 12वां प्रक्षेपण था। गत रविवार को उत्तर कोरिया ने समुद्र में संदिग्ध गोले दागे थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया अपने शस्त्रागार को आधुनिक बनाने के लिए तेजी से कार्रवाई कर रहा है और ठप पड़ी परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता के बीच अमेरिका पर रियायतें देने के लिए इसके जरिये दबाव डालना चाहता है।
उत्तर कोरिया, 2017 में तीन आईसीबीएम उड़ान परीक्षणों के साथ अमेरिका की सरजमीं तक पहुंचने की क्षमता का प्रदर्शन कर चुका है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे बड़ी मिसाइल ह्वासोंग-17 विकसित करने का मकसद, उत्तर कोरिया द्वारा मिसाइल रक्षा प्रणालियों को और आगे बढ़ाने के लिए उसे कई हथियारों से लैस करना भी हो सकता है। ह्वासोंग-17 मिसाइल के बारे में सबसे पहले अक्टूबर 2020 में दुनिया को पता चला था। (एपी)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने दुनिया भर के लोगों से गुरुवार को यूक्रेन के लिए अपना समर्थन दिखाते हुए सड़कों पर उतरने की अपील की.
उन्होंने अपने नए वीडियो संबोधन में ये बात कही. युद्ध शुरू होने से लेकर अब तक ये पहली बार है जब उन्होंने अंग्रेजी में संबोधन किया.
उन्होंने कहा, ‘’रूस का युद्ध सिर्फ़ यूक्रेन के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि हर जगह लोगों की आज़ादी के खिलाफ़ है, और दुनिया को रूस के बर्बर बल प्रयोग को रोकने की ज़रूरत है.
उन्होंने दुनिया भर के लोगों से अपील करते हुए कहा, ‘’अपने कार्यालयों, अपने घरों, अपने स्कूलों और विश्वविद्यालयों से बाहर आइए, शांति के नाम पर बाहर आइए, यूक्रेन का समर्थन करने के लिए, स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए, जीवन का समर्थन करने के लिए यूक्रेनी प्रतीकों के साथ सड़कों पर उतरिए."
ज़ेलेंस्की का संबोधन ब्रसेल्स में नेटो के शिखर सम्मेलन से कुछ घंटे पहले सामने आया है, जहाँ पश्चिमी देशों के बीच पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्से की सुरक्षा को मज़बूत करने पर सहमति होने की उम्मीद है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन रूसी आक्रमण के एक महीने पूरे होने पर इस बैठक में भाग लेंगे. (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पूरे देश से अपील की है कि वे राजधानी इस्लामाबाद में रविवार में होने वाली सभा में शामिल हों और देश को ये संदेश दें कि वे ख़रीद फ़रोख़्त के ख़िलाफ़ हैं. गुरुवार को एक वीडियो संदेश में इमरान ख़ान ने कहा कि एक ख़ास ग्रुप पिछले 30 वर्षों से इस देश को लूट रहा है और अब ये लोग इस पैसे का इस्तेमाल खुले तौर पर जन प्रतिनिधियों के विवेक को ख़रीदने के लिए कर रहे हैं.
इमरान ख़ान ने क़ुरान का भी हवाला दिया और कहा कि अल्लाह का हुक़्म है क़ुरान में कि अच्छाई के साथ खड़े होना है और बुराई के ख़िलाफ़ खड़े होना है. उन्होंने कहा कि देश को सांसदों के विवेक को ख़रीदने वालों से स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे इसके ख़िलाफ़ हैं और कोई भी ख़रीद फ़रोख़्त के माध्यम से देश के लोकतंत्र को नुक़सान नहीं पहुँचा सकता. बुधवार को भी इमरान ख़ान ये कह चुके हैं कि विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव नाकाम होगा. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि वे इस्तीफ़ा नहीं देंगे और सेना के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.
पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने आठ मार्च को अविश्वसास प्रस्ताव पेश किया था. उन्होंने पीएम इमरान ख़ान पर कुप्रबंधन और अर्थव्यवस्था को ख़राब करने का आरोप लगाया था. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की बैठक 25 मार्च को होने वाली है. लेकिन इमरान ख़ान का कहना है कि वे किसी भी परिस्थिति में इस्तीफ़ा नहीं देंगे. इमरान ख़ान ने ये भी स्पष्ट किया कि उनके सेना के साथ अच्छे संबंध हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में सेना की ग़लत तरीक़े से आलोचना की गई. अविश्वास प्रस्ताव पास कराने के लिए 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में विपक्ष को 172 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता है. लेकिन सत्ताधारी तहरीक़े इंसाफ़ पार्टी का आरोप है कि विपक्ष सांसदों को इमरान सरकार के ख़िलाफ़ वोट करने के लिए रिश्वत दे रहा है.
तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से खोलने के कुछ ही घंटों बाद अचानक बंद करने का आदेश दे दिया. कट्टरपंथी इस्लामी समूह द्वारा नीति उलटने पर अब भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है.
समाचार एजेंसी एएफपी ने जब तालिबान के प्रवक्ता इनामुल्लाह समांगानी से इस बारे में पूछा कि क्या लड़कियों को स्कूलों से घर जाने का आदेश दिया गया है तो उन्होंने कहा, "हां, यह सच है." एएफपी की एक टीम जरघोना हाईस्कूल के पास वीडियो बना रही थी, तब एक शिक्षक ने सभी छात्राओं को घर जाने का आदेश दिया.
पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद पहली बार कक्षा में वापस आईं छात्राओं ने अपना बस्ता समेटा और आंसुओं के साथ घर की ओर लौट गईं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने नए तालिबान शासन की सहायता और मान्यता पर बातचीत में सभी के लिए शिक्षा के अधिकार को बातचीत के मुख्य बिंदु में रखा है.
तालिबान के प्रवक्ता समांगानी ने तत्काल स्कूलों को बंद करने का कारण नहीं बताया. इस बीच शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता अजीज अहमद रायन ने कहा, "हमें इस पर टिप्पणी करने की इजाजत नहीं है." काबुल में उमरा खान गर्ल्स स्कूल की टीचर पलवाशा ने कहा, "मैंने अपनी छात्राओं को रोते हुए और कक्षाएं छोड़ने के लिए अनिच्छुक देखा. लड़कियों को रोते हुए देखना बहुत ही दर्दनाक है."
संयुक्त राष्ट्र की दूत डेब्राह लियोन्स ने स्कूलों को बंद करने की रिपोर्ट को "परेशान" करने वाला बताया. उन्होंने ट्वीट किया, "अगर सच है, तो संभवतः क्या कारण हो सकता है?"
पिछले साल जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी, तब कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल बंद थे, लेकिन दो महीने बाद केवल लड़कों और छोटी लड़कियों की कक्षाएं फिर से शुरू करने की अनुमति दी थी.
तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं.
बुधवार को लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से शुरू करने का आदेश केवल मामूली रूप से देखा गया, देश के कुछ हिस्सों से ऐसी रिपोर्टें भी आईं कि कक्षाएं अगले महीने से शुरू होंगी, इसमें तालिबान के आध्यात्मिक गढ़ कंधार भी शामिल है.
शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि कि स्कूलों को फिर से खोलना हमेशा से सरकार का उद्देश्य था और तालिबान अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुक रहा है. मंगलवार को शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रायन ने कहा था, "हम अपने छात्रों को शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी के तहत ऐसा कर रहे हैं."
तालिबान ने जोर देकर कहा था कि वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि 12 से 19 साल की लड़कियों के लिए स्कूल अलग-अलग हों और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार काम करें.
इससे पहले तालिबान सरकार ने महिलाओं को बिना पुरुषों के लंबी यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. तालिबान के आदेश के मुताबिक जो महिलाएं लंबी दूरी की यात्रा करना चाहती हैं उनके साथ कोई नजदीकी पुरुष रिश्तेदार होना जरूरी है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के खिलाफ रुख लेने के लिए भारत पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ता जा रहा है. भारत भी पश्चिमी खेमे से लगातार बातचीत कर रहा है और युद्ध की समाप्ति की मांग पर जोर दे रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से फोन पर बातचीत की. एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि दोनों नेताओं ने यूक्रेन पर विस्तार से चर्चा की और मोदी ने युद्ध की समाप्ति और बातचीत के रास्ते पर लौट आने के लिए बार बार की गई भारत की अपील को दोहराया.
उन्होंने जोर दिया कि भारत का विश्वास है कि अंतरराष्ट्रीय कानून और सभी देशों की टेरिटोरियल अखंडता और संप्रभुता के प्रति सम्मान ही समकालीन वैश्विक व्यवस्था का आधार है. दोनों नेताओं ने भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा की और आपसी सहयोग को और बढ़ाने की संभावना पर सहमति व्यक्त की.
भारत से "बहुत निराश"
मोदी ने जॉनसन को भारत आने का निमंत्रण भी दिया. इस बातचीत को मोदी द्वारा यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को लेकर ब्रिटेन की चिंताओं को शांत कराने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
अमेरिका की तरह ब्रिटेन ने भी कई बार भारत के रुख से असंतुष्टि का संकेत दिया है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की कार्रवाई में साथ देने की अपील की है. बल्कि ब्रिटेन की व्यापार मंत्री ऐन-मेरी ट्रेवेल्यान ने कुछ ही दिनों पहले कहा कि ब्रिटेन भारत के रूख से "बहुत निराश" है.
उसके बाद भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने की खबरों के बीच अमेरिकी विदेश मंत्रालय की वरिष्ठ अधिकारी विक्टोरिया नुलैंड भारत आईं और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला से मिलीं. उनकी यात्रा के बीच ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वॉशिंगटन में बयान दिया कि यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत का रुख "ढीला" है.
परीक्षा की घड़ी
नुलैंड ने भारतीय मीडिया संस्थानों को दिए साक्षात्कार में कहा कि "लोकतांत्रिक देशों को एक साथ रहना चाहिए" और "रूस-चीन एक्सिस भारत के लिए अच्छा नहीं है." 23 मार्च को वॉशिंगटन में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक ताजा बयान में अमेरिका-भारत साझेदारी पर जोर दिया.
उन्होंने कहा कि भारत क्वॉड देशों के समूह में एक स्वच्छंद और खुले भारत-प्रशांत प्रांत के साझा सपने को साकार करने में अमेरिका के लिए एक आवश्यक पार्टनर है. उन्होंने भी नुलैंड की तरह कहा कि भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से जो सुरक्षा संबंध हैं, अब अमेरिका भारत के साथ उस तरह के संबंधों के लिए तैयार है.
स्पष्ट है कि रूस के प्रति भारत के रुख में बदलाव लाने को लेकर पश्चिमी देशों की बेचैनी बढ़ रही है. ऐसे में भारत के लिए रूस और पश्चिम के बीच संबंधों में संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है.
बुधवार 23 मार्च को भारत एक बार फिर परीक्षा की घड़ी का सामना करेगा जब संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन युद्ध पर एक के बाद एक तीन प्रस्ताव लाए जाएंगे. पूर्व में भारत ने रूस की आलोचना करने वाले प्रस्तावों पर मत डालने से खुद को बाहर रखा है. देखना होगा इस बार भारत की क्या रणनीति रहती है. (dw.com)
कीव पर कब्जे की कोशिश में रूसी सेना का सामना भारी प्रतिरोध से हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति यूरोपीय नेताओं से यूक्रेन पर चर्चा करने ब्रसेल्स आ रहे हैं. यूक्रेन को सहायता बढ़ाने और रूस पर नए प्रतिबंध का एलान संभव है.
यूक्रेन पर रूस के हमले का आज 28वां दिन है. राजधानी कीव के नगर प्रशासन से जुड़े अधिकारियों ने बताया है कि रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की राजधानी पर पूरी रात और बुधवार सुबह तड़के तक हमले किए. इन हमलों में दो जिलों की कई इमारतें ध्वस्त हो गई हैं. एक शॉपिंग मॉल, कुछ निजी इमारतें और कई बहुमंजिली इमारतों पर ये हमले किए गए हैं. इनमें चार लोग घायल हुए हैं. उत्तर पश्चिमी इलाके की ओर से बुधवार तड़के धमाकों और गोलियों की आवाजें सुनाई दे रही थीं. रूसी सेना कीव के उपनगरों पर नियंत्रण के जरिए राजधानी को घेरने की फिराक में है.
कीव के लिए संघर्ष
कीव पर कब्जे की कोशिश के दौरान रूसी सैनिकों का कड़े प्रतिरोध से सामना हो रहा है और कई बार उन्हें कदम वापस भी खींचने पड़े हैं. पश्चिमी खुफिया एजंसियों का आकलन है कि रूसी सेना का नुकसान बढ़ता जा रहा है. हालांकि घेराबंदी का सामना कर रहे यूक्रेनी शहरों की मानवीय दशा भी तेजी से खराब हो रही है. अमेरिका का अनुमान है कि रूस ने हमले की 10 फीसदी से ज्यादा क्षमता अब तक गंवा दी है. इसमें सैनिक, टैंक और दूसरी चीजें शामिल हैं. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का कहना है कि यूक्रेन के सैनिक देश के कई हिस्सों में अब जवाबी हमले कर रहे हैं. दक्षिणी शहर खेरसान जो रूस के कब्जे में चला गया था वहां अब यूक्रेनी सैनिकों का जवाब हमला चल रहा है.
यूक्रेन में बंदूकों की दुकान के आगे खूब भीड़ लग रही है और युद्ध शुरू होने के बाद बड़ी संख्या में लोग बंदूकें खरीद रहे हैं. बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और बंदूक चलाने की ट्रेनिंग लेकर सेना के साथ लड़ाई में शामिल हो रहे हैं.
रूसी सेना ने चेर्निहीव शहर पर बमबारी कर एक पुल को ध्वस्त कर दिया है. इस शहर पर रूसी सेना की घेराबंदी है. यह पुल यहां फंसे आम लोगों को बाहर निकालने और मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए इस्तेमाल हो रहा था. डेसना नदी पर बना यह पुल शहर को राजधानी कीव से जोड़ता था. रूसी सैनिकों की घेरेबंदी में फंसे शहर में बिजली और पानी की सप्लाई बंद है और नगर प्रशासन के मुताबिक शहर मानवीय संकट का सामना कर रहा है.
रूसी सैनिकों ने चेर्नोबिल के परमाणु संयंत्र के पास एक प्रयोगशाला को भी ध्वस्त कर दिया है. यहां परमाणु कचरे के प्रबंधन को बेहतर बनाने पर रिसर्च होता था. रूसी सेना ने पिछले महीने युद्ध शुरू होने के बाद ही इस बंद हो चुके संयंत्र पर कब्जा कर लिया था. यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है, "प्रयोगशाला में बेहद सक्रिय नमूने और रेडियोन्यूक्लाइड मौजूद हैं जो अब दुश्मनों के हाथ में हैं." रेडियोन्यूक्लाइड रासायनिक तत्वों के अस्थिर परमाणु हैं जो विकिरण पैदा करते हैं.
यूक्रेन की परमाणु नियामक एजेंसी ने सोमवार को बताया था कि संयंत्र के चारों ओर विकिरण पर नजर रखने वाले उपकरणों ने काम बंद कर दिया है.
मुश्किल में मारियोपोल
रूस के जंगी जहाजों से मारियोपोल पर लगातार बम और मिसाइलें गिराई जा रही हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि रूसी सैनिकों ने मारियोपोल पहुंचने की कोशिश में जुटे राहतकर्मियों का रास्ता बंद कर दिया है और उसने राहत कर्मियों और बस ड्राइवरों को बंधक भी बना लिया है. ये लोग मारियोपोल में राहत का सामान ले कर जा रहे थे वहां इसकी बहुत जरूरत है. उनका यह भी कहना है कि रूस ने इस रास्ते के लिए रजामंदी पहले ही दी थी.
जेलेंस्की ने वीडियो के जरिए जारी राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है, "हम मारियोपोल के निवासियों के लिए स्थायी मानवीय गलियारा बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमारी सारी कोशिशें रूसी हमलावर गोलीबारी या फिर जान बूझ कर फैलाए आतंक से नाकाम कर दे रहे हैं."
यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री ने 11 बस ड्राइवरों और चार राहतकर्मियों को उनकी गाड़ियों के साथ बंधक बनाने की बात कही है जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है. इस बीच मंगलवार को 7,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकालने में सफलता मिली है. जेलेंस्की का कहना है कि मारियोपोल में अभी भी एक लाख से ज्यादा लोग भोजन, पानी, बिजली और गर्मी की सप्लाई के बगैर रह रहे हैं. जंग से पहले यहां चार लाख से ज्यादा लोग रहते थे. संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक अब तक 35 लाख लोग यूक्रेन से बाहर निकले हैं.
फ्रांस के अधिकारियों ने कहा है कि लोगों को सुरक्षित निकालने में मदद करने वाली और आपातकालीन सेवा मुहैया कराने वाली गाड़ियां पेरिस से बुधवार को रवाना हो रही हैं जो यूक्रेन की आपातकालीन सेवा को दी जाएंगी. फ्रांस के विदेश और गृह मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि 100 दमकल कर्मचारी और राहतकर्मी गाड़ियों और उपकरणों को रोमानिया में यूक्रेन की सीमा तक ले जाया जाएगा. इनमें 11 आग बुझाने वाली गाड़ियां, 16 बचाव करने वाली गाड़ियां और 23 ट्रकों में 49 टन स्वास्थ्य और आपातकालीन उपकरण भेजे जा रहे हैं. इससे पहले मंगलवार को 21 एंबुलेंसें भेजी गईं.
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने बताया है कि यूक्रेन को स्ट्रेला मिसाइल भेजी जा रही है. यह मिसाइलें पूर्वी जर्मनी के पास थीं जिन्हें अब यूक्रेन को उसकी रक्षा के लिए दिया जा रहा है. जर्मनी ने हाल ही में यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई शुरू की है.
अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस कमेटी के प्रमुख बुधवार को रूस पहुंचे हैं ताकि रूसी हमले के कारण पैदा हुए मानवीय संकट के अलग अलग मुद्दों पर बातचीत की जा सके. उम्मीद का जा रही है कि आईसीआरसी के प्रमुख पीटर माउरर युद्धबंदियों, राहत के अभियानों और युद्ध से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा करेंगे. इससे पहले वह यूक्रेन भी गए थे. उनकी मुलाकात रूस के आईसीआरसी के प्रमुख से भी होगी. आईसीआरसी की रूसी शाखा उन लोगों की मदद कर रही है जो युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेन से रूस आए हैं.
ब्रसेल्स में बाइडेन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन पर चल रहे युद्ध के बारे में यूरोपीय नेताओं से चर्चा करने के लिए ब्रसेल्स आ रहे हैं. यहां नाटो और यूरोपीय संघ के नेता आपस में यूक्रेन की सहायता और युद्ध रोकने के उपायों पर चर्चा करेंगे. यूक्रेन की लंबे समय तक मदद करने के लिए एक विशेष कोष पर भी चर्चा होगी. आशंका है कि कुछ नए प्रतिबंधों का एलान होगा. इसके साथ ही यूक्रेन को और अधिक सैन्य सहायता पर भी चर्चा की जाएगी. जो बाइडेन यहां से पोलैंड भी जाएंगे. पोलैंड में बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे हुए हैं. अब तक यूक्रेन से निकले करीब आधे से ज्यादा लोग पोलैंड ही गए हैं.
बुधवार को पोलैंड की सरकार ने रूसी दूतावास के 45 कर्मचारियों को जासूसी के आरोप लगने के बाद देश छोड़ने का आदेश दे दिया. इस बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बुधवार को एक बार फिर यूक्रेन संकट के बारे में रूसी प्रस्ताव पर चर्चा होनी है. इस मामले में तीन बार पहले वोटिंग हो चुकी है और अब सुरक्षा परिषद के सामने रूसी प्रस्ताव है.
रूस की संसद ने एक कानून को मंजूरी दी है जिसके तहत यूक्रेन युद्ध में हिस्सा लेने वालों को मिलिट्री वेटरन का दर्जा दिया जाएगा. वेटरन का दर्जा मिलने पर उन्हें मासिक भुगतान के अलावा, टैक्स में छूट, सस्ते दर पर सामान और इलाज में प्राथमिकता की सुविधा मिलती है.
एनआर/आरपी (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)
पहली बार जिन लोगों ने यूरोपीय संघ के किसी भी देश में शरण पाने लिए आवेदन किया है, उनकी संख्या में 2021 में काफी बढ़ोत्तरी आई है. यूरोपीय संघ के सांख्यिकी कार्यालय यूरोस्टैट के आंकड़े इसमें 28 फीसदी की उछाल बताते हैं.
(dw.com)
यूरोप के लिए 2015-16 का साल शरणार्थियों की आमद के मामले में रिकॉर्ड बना गया. सीरिया में युद्ध शुरू होने के कारण वहां से जान बचाकर भागने वालों के आने का सिलसिला सालों तक चलता रहा. उस साल अपने यूरोपीय संघ के देशों में सबसे बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे. साल 2021 के आंकड़े हालांकि उस चरम से काफी नीचे हैं लेकिन साल दर साल तुलना करें तो उसमें करीब 28 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है.
इस समय यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध के कारण भी लगातार लोगों का भागना जारी है. इसके मद्देनजर अभी से ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि इस साल पिछले साल का रिकॉर्ड टूटना तय है. युद्ध के एक महीने में ही यूक्रेन से 35 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं.
2021 का हाल
यूरोस्टैट ने जानकारी दी है कि साल 2021 में 535,000 ऐसे लोगों के आवेदन मिले, जो यूरोपीय संघ के बाहर के देशों से आए थे और पहली बार शरण मांगी थी. यह आंकड़े यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों से लिए गए हैं. इस तरह की तादाद इसके पहले सन 2014 में देखी गई थी. पिछले साल भी शरण मांगने वालों में सबसे बड़ा हिस्सा सीरियाई लोगों का ही रहा. पिछले करीब एक दशक से सीरियाई लोगों का हिस्सा इन आवेदनों में सबसे ज्यादा है. बीते साल यह करीब 18 फीसदी के आसपास था.
सीरिया के बाद जो देश आते हैं, उनमें हैं अफगानिस्तान के 16 फीसदी और इराक के 5 फीसदी लोग. साल दर साल की संख्या को देखा जाए, तो केवल एक साल में ही शरण मांगने वाले अफगानों की तादाद में 90 फीसदी का उछाल आया है. कारण बना दशकों चली हिंसा और फिर पुनर्निमाण की राह पर बढ़ रहे अफगानिस्तान में तालिबान शासन की फिर से वापसी. अगस्त 2021 में करीब दो दशक के बाद एक बार फिर तालिबान सत्ता में आ गए.
वहीं, साल दर साल ही देखा जाए तो सीरिया और इराक से आकर यूरोप में शरण के लिए आवेदन करने वालों में भी 50 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है.
कमी भी दिखी
ऐसा भी नहीं कि सभी देशों से लोग यूरोप आकर शरण मांग रहे हैं. कोलंबिया जैसे देश से लोगों के आवेदनों में 55 प्रतिशत की कमी भी आई. वहीं, वेनेजुएला के लोगों के एप्लिकेशन भी 43 फीसदी कम आए. पिछले साल रूसी लोगों के शरण मांगने में भी 20 फीसदी की कमी दर्ज हुई.
सभी आवेदकों की उम्र को देखा जाए तो इसमें करीब एक तिहाई 18 साल से कम उम्र के हैं. 65 से ऊपर की उम्र वालों को देखें तो पुरुषों के मुकाबले वृद्ध महिलाएं ज्यादा हैं. सभी को देखें तो हर तीन में से एक भी महिला नहीं है यानि कुल मिलाकर शरण मांगने वालों में पुरुषों की संख्या कहीं ज्यादा है.
कायम है जर्मनी का जलवा
सारे आवेदकों में से 28 फीसदी ने जर्मनी में शरण लेनी चाही है. इसके बाद यूरोप के जिन देशों में शरण मांगी गई है वे हैं फ्रांस, स्पेन, इटली और ऑस्ट्रिया. इन चारों देशों को मिलाकर शरणार्थियों का हिस्सा बनता है करीब दो-तिहाई.
इसके अलावा साइप्रस जैसे यूरोपीय देश में उनकी आबादी के अनुपात में इस साल सबसे ज्यादा शरणार्थियों ने आवेदन डाला. यूरोस्टैट ने कहा है कि लगभग 759,000 लोगों का आवेदन पिछले साल के अंत तक बाकी रहा और उन्हें शरण दिए जाने पर अंतिम फैसला नहीं आया है.
आरपी/एनआर (रॉयटर्स)
यूक्रेन का कहना है कि युद्ध में जान गंवाने वाले उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारियों की बढ़ती संख्या रूस के लिए चिंता का सबब बन गई है.
बुधवार को क्रीमिया के शहर सेवास्तोपोल में ब्लैक सी फ्लीट की डिप्टी कमांडर आंद्रेई पालीई के अंतिम संस्कार में सैकड़ों लोग जमा हुए. बंदूकों की सलामी के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. रूस की दक्षिणी बंदरगाह नोवोरोशिस्क के स्थानीय प्रशासन ने 28 फरवरी को एक बयान जारी कर मेजर जनरल आंद्रेय सुखोवेत्स्की की मौत की पुष्टि की थी. इस बयान में बताया गया था कि मेजर जनरल सुखोवेत्स्की ने सीरिया, अबखाजिया और उत्तरी कॉकेशस में सेवाएं दी थीं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइल पोडोलियाक ने रविवार को छह ऐसे रूसी जनरलों के नाम गिनाए, जो 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद मारे जा चुके हैं. यूक्रेन का कहना है कि इनके अलावा दर्जनों कर्नल और अन्य सैन्य अधिकारी इस युद्ध में मारे गए हैं.
सही संख्या नदारद
रूस के रक्षा मंत्रालय ने इन मौतों की पुष्टि नहीं की है. 2 मार्च को उसने बताया था कि यूक्रेन में उसके 498 सैनिक मारे गए हैं. उसके बाद से नया आंकड़ा जारी नहीं किया गया है. यूक्रेन का दावा है कि रूस के 15,600 जवान और अधिकारी यूक्रेन में मारे जा चुके हैं. हालांकि इन दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती.
पोलैंड स्थित सलाहकार संस्था रोखन के निदेशक कोनराड मूजिका का कहना है कि यूक्रेन के दावे सही हो सकते हैं लेकिन असल संख्या इससे ज्यादा नहीं होगी और इन दावों की पुष्टि करने का कोई जरिया नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर हम दो जनरलों की भी बात करें तो यह बड़ी बात है. ना सिर्फ हम जनरलों की बात कर रहे हैं बल्कि कर्नल भी मारे गए हैं जो बहुत वरिष्ठ अधिकारी होते हैं.”
मूजिका कहते हैं कि इन मौतों से यह संकेत तो मिलता है कि रूस को यूक्रेन की आर्टिलरी के ठिकानों की सही समझ नहीं थी और यूक्रेन को रूस के वरिष्ठ अधिकारियों के ठिकाने का पता लगाने में कामयाबी मिल रही है, जो संभवतया उनके मोबाइल फोन के सिग्नलों के जरिए किया जा रहा है.
कर्नल ज्यादा हैं, कॉरपोरेल कम
मॉस्को स्थित एक वरिष्ठ विदेशी राजनयिक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "मेरे लिए जरूरी यह है कि जनरल ही नहीं, कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों की मौत की रिपोर्ट बहुत आ रही हैं, जो कि रूस की सेना की रीढ़ हैं.” इस राजनयिक के मुताबिक रूस की सेना बहुत ज्यादा केंद्रित और वर्गीकृत है और उसमें पश्चिमी सेनाओं की तरह अत्याधिक कुशल जूनियर अफसरों की कमी है.
वह बताते हैं, "कर्नल बहुत ज्यादा हैं और कॉरपोरोल बहुत कम. तो जहां किसी तरह का फैसला लेने की बात होती है, तब वो काम जो पश्चिमी में बहुत कम रैंक के अधिकारी करते हैं वे भी उच्च पदस्थ अधिकारियों तक जाते हैं.”
इस राजनयिक का कहना है कि बहुत ज्यादा वर्गीकृत सेना होने के कारण वरिष्ठ अधिकारियों को भी मोर्चे पर जाना पड़ रहा है ताकि वहां फैसले लिए जा सकें या रणनीति में बदलाव आदि किए जा सकें. ऐसी स्थिति में ये अफसर खतरे में पड़ जाते हैं. वह कहते हैं, "केंद्रीकृत कमांड और नियंत्रण, फैलाव की कमी और सुरक्षित संवाद की कमी ने सीनियर अफसरों को उन जगहों पर पहुंचा दिया है जहां उन्हें यूक्रेन के मानवहति ड्रोन आसानी से पहचान कर हमला कर पा रहे हैं.”
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण शुरू किया था जिसे पूरा एक महीना हो चुका है. इस दौरान हजारों लोग मारे गए हैं और लाखों की संख्या में विस्थापित हो चुके हैं. कुछ अनुमान बताते हैं कि विस्थापित लोगों की संख्या एक करोड़ को पार कर चुकी है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 24 मार्च। विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस से यहां मुलाकात की और यूक्रेन, अफगानिस्तान और म्यांमा की बदलती परिस्थितियों सहित विश्व निकाय की सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर विचार विमर्श किया।
शृंगला मंगलवार को न्यूयार्क पहुंचे और संयुक्त राष्ट्र तथा अरब देशों के लीग के बीच सहयोग को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की ब्रीफिंग में बुधवार को हिस्सा लिया। यह ब्रीफिंग संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की काउंसिल प्रेसिडेंसी के तहत आयोजित की गयी। संरा सुरक्षा परिषद की ब्रीफिंग की अध्यक्षता यूएई के मंत्री खलीफा शाहीन अलमरार ने की।
यूएनएससी की ब्रीफिंग के बाद शृंगला ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गुतारेस से मुलाकात की।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट किया, ‘‘विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने संरा महासचिव एंतोनियो गुतारेस से मुलाकात की। (तथा) यूक्रेन, अफगानिस्तान और म्यांमा सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर विचार विमर्श किया।
सूत्रों ने बताया कि दोनों नेताओं के बीच बैठक करीब एक घंटे तक चली और उन्होंने यूक्रेन की स्थिति पर भी चर्चा की।
ऐसा समझा जाता है कि गुतारेस ने कहा कि भारत उन कुछेक देशों में शामिल है जिनका पूरी दुनिया में सम्मान होता है और भारत जैसे देश को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, क्योंकि मौजूदा स्थिति में यह दोनों पक्षों से सम्पर्क कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से कई बार बातचीत की है और हिंसा के बजाय कूटनीतिक बातचीत और संवाद का रास्ता अपनाने की अपील की है।
पिछले सप्ताह गुतारेस ने कहा था कि वह चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इजरायल और तुर्की सहित तमाम देशों से संपर्क बनाए हुए हैं, ताकि इस युद्ध की समाप्ति के लिए मध्यस्थता के प्रयास किये जा सकें।
सूत्रों ने बताया कि संरा महासचिव ने रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पेट्रोलियम उत्पाद तथा खाद्य सामग्रियों पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी चिंता जताई है, क्योंकि यदि यह संकट जारी रहता है तो कई देशों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
सूत्रों के अनुसार, गुतारेस संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका तथा इस बात को लेकर सकारात्मक थे, कि भारत के साथ बातचीत संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण होगी।
शृंगला के यूएनएससी की ब्रीफिंग में शामिल होने के कुछ घंटे बाद, 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में, रूस के उस प्रस्ताव पर मतदान हुआ जिसमें यूक्रेन की बढ़ती मानवीय जरूरतों को तो स्वीकार किया गया था, लेकिन रूसी आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं था। बहरहाल, वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
रूस को प्रस्ताव पारित कराने के लिए 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में न्यूनतम नौ वोट की आवश्यकता थी, साथ ही जरूरी था कि चार अन्य स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन में से कोई भी ‘वीटो’ का इस्तेमाल ना करे। हालांकि, रूस को केवल अपने सहयोगी चीन का समर्थन मिला, जबकि भारत सहित 13 अन्य परिषद सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।(भाषा)
कीव, 24 मार्च । यूक्रेन की राजधानी कीव में गोलाबारी में एक रूसी पत्रकार की मौत हो गई।
एक स्वतंत्र रूसी समाचार प्रतिष्ठान ‘द इनसाइडर’ ने बताया कि पत्रकार ओक्साना बौलिना बुधवार को मारी गईं। बौलिना, राजधानी कीव के पोडिल जिले में रूसी गोलाबारी से हुए नुकसान के बारे में ‘रिपोर्टिंग’ कर रही थीं और उसी दौरान स्वयं भी हमले की जद में आ कर मारी गईं।
‘द इनसाइडर’ के अनुसार, बौलिना के साथ मौजूद एक अन्य नागिरक की भी मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए, जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा है।
इससे पहले बौलिना, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलोचक एलेक्सी नवेलनी के ‘एंटी-करप्शन फाउंडेशन’ के लिए काम करती थीं। प्राधिकारियों के इस संगठन को ‘‘चरमपंथी’’ घोषित करने के बाद बौलिना को रूस छोड़ना पड़ा था।(एपी)
वाशिंगटन, 24 मार्च। रूस ने देश की राजधानी मॉस्को में अमेरिकी दूतावास से कई अमेरिकी राजनयिकों को निष्कासित कर उन्हें ‘‘अस्वीकार्य व्यक्ति’’ घोषित कर दिया किया है। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी दी।
इस महीने की शुरुआत में, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के मिशन से 12 राजनयिकों को यह कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि वे ‘‘जासूसी गतिविधियों’’ में शामिल हैं। इस कदम को रूस ने ‘‘शत्रुतापूर्ण कार्रवाई’’ करार दिया था और संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के मेजबान देश के रूप में अमेरिका द्वारा प्रतिबद्धताओं का घोर उल्लंघन बताया था।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बुधवार को कहा, ‘‘ हम अमेरिकी दूतावास को 23 मार्च को रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से ‘‘अस्वीकार्य व्यक्ति’’ घोषित किए गए राजनयिकों की एक सूची मिलने की पुष्टि करते हैं।’’
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद दोनों देशों के बीच शब्दों और प्रतिबंधों की जंग तेज हो गई है। अमेरिका ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें व्यक्तिगत तथा आर्थिक प्रतिबंध शामिल हैं। रूस ने भी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत कई अमेरिकी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए हैं।
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ यह हमारे द्विपक्षीय संबंधों में रूस का नवीनतम अनुपयोगी एवं निरर्थक कदम है। हम रूसी सरकार से अमेरिकी राजनयिकों तथा कर्मचारियों के अनुचित निष्कासन को समाप्त करने का आह्वान करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ अब पहले से कहीं अधिक, यह महत्वपूर्ण है कि हमारी सरकारों के बीच संचार कायम करने के लिए हमारे देशों के पास आवश्यक राजनयिक कर्मी हों।’’ (भाषा)
न्यूयॉर्क, 23 मार्च। मॉडर्ना ने बुधवार को दावा किया कि उसके कोविड-रोधी टीके की हल्की खुराक छह साल से कम उम्र के बच्चों पर भी प्रभावी है। अगर नियामक इससे सहमत होते हैं तो छोटे बच्चों का कोविड टीकाकरण इस गर्मी से ही शुरू हो सकता है।
मॉडर्ना ने कहा कि आने वाले सप्ताह में वह अमेरिका और यूरोप के नियामकों से छह साल से छोटे बच्चों के लिए दो हल्की खुराक दिए जाने के संबंध में मंजूरी का अनुरोध करेगा। कंपनी अमेरिका में बड़े बच्चों और किशोरों के लिए भी अधिक खुराक वाले उसके टीके के लिये मंजूरी चाहती है।
अमेरिका में फिलहाल पांच साल से कम उम्र के करीब 18 लाख बच्चे टीकाकरण के दायरे में नहीं हैं। हालांकि, अन्य टीका निर्माता कंपनी फाइजर अभी स्कूल जाने वाले बच्चों तथा 12 और इससे अधिक आयुवर्ग के लिए टीके की पेशकश कर रही है। (एपी)
(सज्जाद हुसैन)
इस्लामाबाद, 23 मार्च। नेशनल असेंबली में नेता प्रतिपक्ष शहबाज शरीफ ने बुधवार को दावा किया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वर्ष 2019 में सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को विस्तार देने में जान-बूझकर देरी की ताकि प्रक्रिया पर 'विवाद' उठें।
डॉन न्यूज की खबर के मुताबिक, शरीफ ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने हमेशा सेना का सम्मान किया जबकि सैन्य बलों को निशाना बनाने वाले एक सोशल मीडिया अभियान के पीछे खान के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का हाथ था।
शहबाज शरीफ की यह टिप्पणी ऐसे समय में सामने आयी है, जब इमरान खान वर्ष 2018 में देश की सत्ता संभालने के बाद सबसे कठिन राजनीतिक परीक्षा का सामना करने जा रहे हैं। पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिसे लेकर शुक्रवार को संसद का सत्र बुलाया गया है।
खबर के मुताबिक, शरीफ ने कहा कि जब 2019 में प्रधानमंत्री खान ने सेना प्रमुख के कार्यकाल को विस्तार देने का प्रयास किया था, तब अधिसूचना में तीन बार संशोधन किया गया था। हालांकि, शरीफ ने स्वीकार किया कि उनके पास अपने दावे की पुष्टि करने के लिए कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। (भाषा)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक में कश्मीर का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि कश्मीर और फलस्तीन के मुद्दे पर मुस्लिम देश नाकाम रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
इमरान खान ने मुसलमानों की समस्याओं से निपटने और दुनिया भर में शांति लाने के लिए इस्लामी दुनिया की एकता का आह्वान किया है. मंगलवार को शुरू हुई इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों की बैठक में इमरान खान ने अपने उदघाटन भाषण के दौरान यह बयान दिया. साथ ही उन्होंने एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया. कश्मीर पर उनका ताजा बयान ऐसे समय पर आया है जब उन्होंने पिछले दिनों भारत की विदेश नीति की तारीफ की थी.
उन्होंने बैठक में कश्मीर मुद्दे पर मदद नहीं मिलने का इशारा किया. उन्होंने कहा, "कश्मीर में दिन के उजाले की लूट की जा रही है. जबकि मुस्लिम दुनिया इसे मौन रूप से देख रही है. भारत जम्मू-कश्मीर राज्य की आबादी को मु्स्लिम बहुल राज्य से मुस्लिम अल्पसंख्यक राज्य में बदल रहा है."
"कश्मीर के लोगों को निराश किया"
साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने का मुद्दा भी उठाया. खान ने अपने बयान में कहा, "हमने फलस्तीन और कश्मीर दोनों जगह के लोगों को निराश किया है. मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है हम उनके लिए कुछ नहीं कर पाए. वो हमें गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि हम आपस में ही बंटे हुए हैं और इस बात को वो ताकतें अच्छी तरह से जानती हैं. हम मुसलमान करीब 1.5 अरब लोग हैं और फिर भी इस घोर अन्याय को रोकने के लिए हमारी आवाज काफी नहीं है. हम किसी देश पर कब्जा करने की बात नहीं कर रहे हैं. हम बस कश्मीर और फलस्तीन के लोगों के मानवाधिकारों की बात कर रहे हैं."
खान ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय कानून जो उनकी तरफदारी करते हैं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जो उनके अधिकारों की बात करता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कश्मीर के लोगों से वादा भी किया था कि उन्हें जनमत संग्रह के जरिए अपना भविष्य निर्धारण का अधिकार दिया जाएगा लेकिन वो अधिकार कश्मीरियों को कभी नहीं दिया गया बल्कि कश्मीरियों से विशेष राज्य का दर्जा भी गैरकानूनी तरीके से छीन लिया गया." इमरान खान ने अब क्यों की भारत की तारीफ?
खान ने ओआईसी की बैठक में कश्मीर और फलस्तीन का मुद्दा क्यों उठाया यह भी दिलचस्प है, क्योंकि घरेलू राजनीति में वे अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं और उनकी सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
दूसरी ओर इसी बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी शामिल हुए, हालांकि चीन पर खुद लाखों उइगुर मुसलमानों को कैद करने के आरोप लगते रहे हैं. यी ने कहा, "चीन और इस्लामिक देशों के बीच मित्रता का लंबा इतिहास है. चीन इस्लामिक देशों के साथ आपसी समझ और सहयोग को बढ़ाना चाहता है."
इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, कई सांसदों ने छोड़ा साथ
खान इसी हफ्ते नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने वाले हैं. विपक्ष ने उन पर अर्थव्यवस्था और विदेश नीति के गलत प्रबंधन का आरोप लगाया है. (dw.com)
आज भी मिडवाइफ के पेशे में बहुत कम आदमी हैं. जिसके नाम में ही 'वाइफ' हो, उससे जुड़ने में हिचक होना ही एक कारण है या कोई और अंतर होता है जब लेबर रूम में एक पुरुष बच्चा पैदा करवाए.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट-
17 घंटे तक दर्द झेलने के बाद एक स्वस्थ बच्चा पैदा हुआ. मां थक के चूर. पिता ने चैन की सांस ली. और बाकी सब खुश. यह दृश्य तो आम है, लेकिन ठहरिए. लेबर रूम में बच्चा पैदा करवाने वाला मिडवाइफ तो एक आदमी है. नाम है जोनास क्यूपर्स. उम्र 30 साल. जर्मनी जैसे विकसित यूरोपीय देश में आज भी जोनास जैसे पेशेवर गिने-चुने ही मिलते हैं. अनुमान है कि पूरे देश में 24,000 के आसपास मिडवाइफ हैं. इनमें से पुरुषों की संख्या सटीक तौर पर बताना मुश्किल है, लेकिन कुछ भरोसेमंद स्रोतों के हवाले से जर्मनी में पुरुष मिडवाइफों की संख्या छह से 30 के बीच मानी जा सकती है.
मिडवाइफ की क्लास में लड़के
जोनास ने जर्मनी के बीलेफेल्ड शहर के खास मिडवाइफरी के स्कूल में ट्रेनिंग ली है. उन्होंने महिलाओं के दबदबे वाले पेशे में आने का फैसला क्यों लिया? वह कहते हैं, "मिडवाइफ तो नहीं, लेकिन मेडिकल पेशे में मैं हमेशा से जाना चाहता था. मैंने अल्टरनेटिव प्रैक्टिशनर के तौर पर ट्रेनिंग भी ली." जोनास बताते हैं कि जब उनके दोस्त मिडवाइफ के पेशे में जाने लगे, तब उनकी भी दिलचस्पी जगी. जब खुद जोनस ने डिलीवरी रूम में इंटर्नशिप की, तो वह अनुभव यादगार रहा. वह कहते हैं, "जब मैंने पहले बच्चे का जन्म करवाया, तो मैं बहुत बहुत खुश था."
फिलहाल जर्मनी में मिडवाइफ की पढ़ाई को मानकीकृत किया जा रहा है. इसे बैचलर्स के डिग्री कोर्स में बदला जा रहा है. इसमें पढ़ाई के साथ साथ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग को भी रखा गया है. जोनास के लिए यह सब 2020 में शुरू हुआ. एक मिडवाइफ के तौर पर उनका काम डिलीवरी रूम से लेकर पोस्टपार्टम वार्ड, जच्चा और बच्चा वॉर्ड में रहता है. जोनास ने एक फ्रीलांसर के तौर पर प्राइवेट मिडवाइफों के साथ काम भी किया है. वह बताते हैं कि हर जगह उन्हें अपनी सर्विस के लिए बहुत पॉजिटिव फीडबैक मिला. मां बनने जा रही महिलाएं, परिवार और खुद उनके सहकर्मी एक पुरुष मिडवाइफ के साथ काम करके खुश ही होते हैं.
क्या आदमी यह काम औरतों से अलग करते हैं
प्रसूति-विज्ञान या आम भाषा में कहें तो दाई का काम अब जोनास को बहुत पसंद आता है. बच्चे को जन्म देने जा रही महिलाओं का साथ देना, उनकी चिंताएं और डर दूर करना, उनके सवालों के सही जवाब देना और जन्म देने की पूरी प्रक्रिया में उनका साथ देना. बच्चे के जन्म के बाद भी एक मिडवाइफ नए माता-पिता को शुरुआती जानकारी और तौर-तरीके सिखाकर अपनी सेवाएं देता है. इसमें शामिल है डायपर बदलने, नहलाने की ट्रेनिंग, ब्रेस्टफीडिंग का सही तरीका और समय वगैरह.
इसके साथ साथ नवजात के जीवन के पहले महीने में मिडवाइफ घर जाकर बच्चे की सेहत और वजन बढ़ने पर नजर रखता है. क्या एक पुरुष मिडवाइफ किसी मामले में महिलाओं से अलग होता है? जोनास तो ऐसा नहीं मानते. लेकिन, उनके कुछ मरीजों ने ऐसा जरूर कहा कि वह बच्चों के साथ महिलाओं से भी ज्यादा सावधानी और सौम्यता से पेश आते हैं.
करियर बनाने और कमाई के मौके
विशेषज्ञ बताते हैं कि आने वाले समय में इस पेशे में पुरुषों की आमद और बढ़ने की उम्मीद है. पूरे यूरोप में कई जगहों पर उनकी सेवाओं की मांग है और यह करियर बनाने का एक अच्छा विकल्प है. जानकार यह भी कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पुरुषों के आने से इस पेशे में आमदनी भी बढ़ेगी और पेशेवरों का सम्मान भी. हैनोवर के एफएचएम संस्थान में मिडवाइपरी साइंस विभाग के प्रमुख श्वेंगर फिंक के अनुसार जर्मनी में भी मिडवाइफों की कमी है, जिसके कारण छोटे अस्पतालों के कई डिलीवरी रूमों को अस्थाई और कहीं-कहीं स्थाई रूप से बंद करना पड़ा.
जोनास का मामला देखें, तो बीलेफेल्ड और हैनोवर दोनों शहरों के एफएचएम सेंटरों में वह एकलौते पुरुष मिडवाइफ हैं. लेकिन श्वेंगर फिंक की मानना है कि यह तस्वीर बदलेगी. जर्मनी के मुकाबले इटली जैसे दूसरे यूरोपीय देशों में माहौल थोड़ा अलग है. इटली जैसे कुछ और देशों में भी इस पेशे को केवल महिलाओं का काम नहीं माना जाता. जोनास को भी एक बार एक अनुभव हुआ था, जब डिलीवरी रूम में ज्यादा अनुभवी मिडवाइफ ने पूछा था कि वह कैसे महिलाओं की योनि की जांच कर सकते हैं. इसके जवाब में जोनास ने उन अनगिनत पुरुष गाइनेकोलॉजिस्ट की मिसाल दी, जिनसे कोई ऐसे सवाल नहीं पूछता.
जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में मिडवाइफों की राज्य स्तरीय एसोसिएशन की अध्यक्ष बारबरा ब्लोमायर कहती हैं, "पुरुष मिडवाइफों के साथ लोगों का अनुभव अच्छा रहा है. हालांकि, अंत में यह महिला का फैसला होना चाहिए अगर वह किसी महिला मिडवाइफ को ही लेना चाहे." जोनास भी चुनने का आजादी का समर्थन करते हैं और बताते हैं कि कई बार डिलीवरी रूम में पिता बनने जा रहे पुरुष उनको वहां पाकर ज्यादा राहत महसूस करते हैं. जोनास कहते हैं, "हालात ऐसे होते हैं कि गर्भवती महिला दर्द में है और उनके पार्टनर भी उसकी ज्यादा मदद नहीं कर पाते. ऐसे में वह माहौल पुरुषों के लिए काफी मुश्किल होता है और मेरे वहां रहने से उन्हें भी सहारा मिलता है." (dw.com)
यूक्रेन के एक केमिकल प्लांट से अमोनिया गैस लीक हुई है. खेती के फर्टिलाइजर में इस्तेमाल होने वाली यह तेज गंध वाली गैस असल में हमारे लिए जहरीली है.
डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉएंड की रिपोर्ट-
यूक्रेन के नागरिक रक्षा विभाग ने बहुत जल्दी इस गैस लीक पर प्रतिक्रिया दी. यूक्रेन के पूर्वोत्तर के सुमी शहर में एक केमिकल प्लांट से अमोनिया लीक हो गई. प्रशासन ने स्थानीय लोगों से बंकरों और ग्राउंड फ्लोर अपार्टमेंट में शरण लेने को कहा.
अमोनिया जहरीली गैस है. यह एक गैस है, जो हवा से भारी होती है और हमारे वातावरण में ऊपर उठती जाती है. इसलिए भी अमोनिया गैस के हवा में मिल जाने की सूरत में निवासियों को नीचे हो जाने की सलाह दी जाती है. या तो लोगों को नीचे किसी अंडरग्राउंड लेवल पर चले जाना चाहिए या फिर कम से कम ऊपर की मंजिलों से ऊपर कर नीचे आ जाना चाहिए. ऐसा करने से इसकी संभावना कम हो जाएगी कि लोग अमोनिया को ना सूंघें.
रिपोर्टों से पता चला है कि रूसी बमबारी की चपेट में आकर यूक्रेन के केमिकल प्लांट को नुकसान हुआ. यहां फर्टिलाइजर बनाने के लिए सबसे जरूरी सामान अमोनिया रखा था. स्थानीय प्रशासन ने गैस के रिसाव को रोकने में कामयाबी पाई है.
अमोनिया क्या है?
अमोनिया एक केमिकल कंपाउंड है, जो नाइट्रोजन और हाइड्रोजन से मिलकर बनता है. यह विश्व में सबसे ज्यादा उत्पादित किए जाने वाले रसायनों में से एक है. हर साल 17 करोड़ टन अमोनिया पैदा होता है. इसका 80 फीसदी हिस्सा नाइट्रोजन फर्टिलाइजर बनाने में इस्तेमाल होता है.
यूक्रेन को यूरोप का अन्न का कटोरा कहा जाता है. यहां बहुत सारा अनाज उपजाया जाता है और उसमें उर्वरकों की भी भारी खपत होती है. देश की काली मिट्टी अनाज उगाने के लिए बहुत उपजाऊ मानी जाती है.
अमोनिया का इस्तेमाल गंदी गैसों को साफ करने में भी होता है और फ्रिज में रेफ्रिजरेंट के रूप में भी. भविष्य में हाइड्रोजन फ्यूल को बढ़ावा देने में भी अमोनिया के इस्तेमाल का एक विकल्प है. अमोनिया में काफी ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन स्टोर होता है, जिसे रिलीज करने के लिए बाहर से ऊर्जा देने की जरूरत होती है.
कितनी जहरीली है?
आज तक अमोनिया का जहरीला असर होने के बहुत कम मामले सामने आए हैं. इसकी गंध ही इतनी तेज और खराब होती है कि इसके हवा में इसके घुले होने का पता चल जाता है. खेतों से उठने वाली ताजा फर्टिलाइजर या घोड़े के तबेलों से आने वाली गंध से तो आप परिचित होंगे.
कई बार बेहोश हो गए लोगों को होश में लाने के लिए पैरामेडिक उनके नाक के पास लाकर अमोनिया का घोल सुंघाते हैं. लेकिन अगर कोई बहुत ज्यादा अमोनिया सूंघ ले, तो वह उसके लिए जहरीला हो सकता है. आंखें, नाक और गले में जलन महसूस होती है और छींकने या खांसने जैसी महसूस होता है. इससे आंखों में पानी आ जाता है और सिर दर्द भी हो सकता है.
अगर मात्रा और भी ज्यादा हो, तो अमोनिया सूंघने वाले इंसान को सांस लेने में परेशानी और सीने में दर्द की शिकायत होती है. ऐसे में आराम दिलाने के लिए बहुत सारी ताजी हवा और भाप लेनी चाहिए.
कैसे बनाई जाती है अमोनिया?
यह प्रकृति में पाई तो जाती है, लेकिन बहुत कम मात्रा में. जहां कहीं भी पौधे और जानवरों का मल सड़ रहा होता है, वहां से यह गैस निकलती है.
इंसान के शरीर में अमोनिया बनता है और अमीनो एसिड (प्रोटीन के सबसे छोटे टुकड़े) को तोड़ने में काम आता है. यह खून में घुलकर लिवर तक पहुंचती है. लिवर में इसका स्तर बहुत ज्यादा न बढ़ जाए, इसके लिए शरीर में एक यूरिया चक्र चल रहा होता है. इससे अमोनिया बदल जाती है. पेशाब की तेज गंध इसी के कारण होती है.
पहले फर्टिलाइजर के लिए अमोनिया हासिल करने के लिए चूना पत्थर को अमोनियम क्लोराइड के साथ गर्म किया जाता था. बाद में अमोनिया का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन होने लगा. इसे हेबर-बॉश प्रक्रिया कहते हैं, जिसमें नाइट्रोजन और हाइड्रोजन गैसों को साथ लाया जाता है. यह रिएक्शन बहुत ज्यादा दबाव और तापमान (450 डिग्री सेल्सियस) वाले माहौल में मेटल कैटेलिस्ट की मौजूदगी में कराया जाता है. (dw.com)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुखर आलोचक ऐलेक्सी नावाल्नी को एक रूसी अदालत ने धोखाधड़ी का दोषी करार दिया है. नावाल्नी पहले से जेल में हैं और उन्हें नौ साल की जेल की सजा सुना दी गई है.
45 साल के नावाल्नी मॉस्को से पूर्व की तरफ एक जेल शिविर में बंद हैं. वो पैरोल की शर्तों के उल्लंघन के लिए पहले से ही साढ़े तीन साल की जेल काट रहे हैं. उन्होंने कहा है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को नाकाम करने के लिए उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं.
ताजा मामले में अदालत ने उन्हें नौ साल की जेल की सजा सुनाई है. इस मामले को भी नावाल्नी ने राजनीति से प्रेरित बताया है. जेल के सुरक्षा अधिकारियों से भरे हुए एक कमरे में जज ने नावाल्नी के सामने ही उनके खिलाफ आरोप पढ़े. अपने वकीलों के पास खड़े नावाल्नी कमजोर नजर आ रहे थे.
लेकिन कागजात पढ़ते हुए वो शांत और निर्भीक लग रहे थे. अभियोजन पक्ष ने अदालत से मांग की थी कि नावाल्नी को धोखाधड़ी और अदालत की अवहेलना के आरोपों पर अधिकतम सुरक्षा वाली जेल में 13 सालों के लिए बंद कर दिया जाए.
नावाल्नी को पिछले साल जर्मनी से वापस रूस पहुंचने के बाद जेल में बंद किया था. जर्मनी में वो अपना इलाज करवा रहे थे. उन पर 2020 में साइबेरिया की एक यात्रा के दौरान सोवियत काल के एक नर्व एजेंट से हमला किया था. उन्होंने हमले का पुतिन पर आरोप लगाया था.
क्रेमलिन ने कहा था कि नावाल्नी को जहर दिए जाने का कोई सबूत नहीं मिला था और अगर ऐसा हुआ भी था तो उसमें रूस की कोई भी भूमिका नहीं थी. आखिरी बार 15 मार्च को इस मामले में सुनवाई हुई थी और उसके बाद नावाल्नी ने विद्रोही स्वर अपनाए रखा.
उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा, "अगर जेल की सजा जो चीजें कहे जाने की जरूरत है उन्हें कहे जाने के मेरे मानवाधिकार की कीमत है...तो वो 113 सालों की मांग कर सकते हैं. मैं अपने शब्दों और कर्मों का त्याग नहीं करूंगा."
रूस के अधिकारियों ने नावाल्नी और उनके समर्थकों को ऐसे विद्रोहियों के रूप में दिखाने की कोशिश की है जिन्होंने पश्चिम के समर्थन के जोर पर रूस को अस्थिर करने का दृढ संकल्प कर लिया है. उनके कई साथी रूस के अंदर जेल या प्रतिबंधों का सामना करने की जगह देश छोड़ कर चले गए.
नावाल्नी के विपक्षी आंदोलन को "चरमपंथी" बता कर बंद कर दिया गया है, लेकिन उनके समर्थक अभी भी अपना राजनीतिक रुख सोशल मीडिया पर व्यक्त करते हैं. उन्होंने यूक्रेन में रूस के सैन्य हस्तक्षेप का भी विरोध किया है.
सीके/एए (रॉयटर्स/एपी)
-एंड्र्यू हार्डिंग
यूक्रेन में जारी रूसी हमले में एक शहर ऐसा है जिसने रूसी सेना को अपनी ज़मीन से खदेड़ दिया.
यह लड़ाई युद्ध की अब तक की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी - खेती और उपजाऊ धरती वाले शहर वोज़्नेसेंस्क और इसके रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पुल के नियंत्रण को लेकर दो दिनों तक ज़बरदस्त संघर्ष चला.
अगर रूस यहां विजयी हो जाता तो काला सागर तट के साथ ओडेसा के विशाल बंदरगाह और एक प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो जाता.
लेकिन इसके बजाय, स्थानीय वॉलेंटियरों की एक सेना के समर्थन से यूक्रेनी सेना ने रूसी सैनिकों के इरादों पर पानी फेर दिया.
पहले तो यूक्रेनी सेना ने पुल को उड़ा दिया और फिर हमलावर रूसी सेना को पूर्व की ओर 100 किमी पीछे खदेड़ दिया.
स्थानीय लोगों का जज़्बा
वोज़्नेसेंस्क के 32 वर्षीय मेयर येवेनी वेलिचको टाउन हॉल के बाहर ख़ुद बॉडी आर्मर पहने हुए जनता से बात करते हुए कहते हैं, '' यह समझाना मुश्किल है कि हमने यह कैसे किया. हमारे स्थानीय लोगों और यूक्रेनी सेना को लड़ने और लोहा लेने के जज़्बे के लिए धन्यवाद है."
लेकिन उस लड़ाई के लगभग तीन हफ्ते बाद, मेयर ने चेतावनी दी कि रूसी सेना दोबारा एक और हमला कर सकती है और शहर के वॉलंटियर्स के पास दूसरी बार उन्हें रोकने के लिए हथियारों की कमी है.
उन्होंने कहा, "यह एक रणनीतिक जगह है, हम न केवल इस शहर की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि इसके पीछे के सभी क्षेत्रों की रक्षा हमारे हाथों में है और हमारे पास हमारे दुश्मनों की तरह भारी हथियार नहीं हैं."
ब्रिटिश एंटी टैंक मिसाइलों की मदद
यूक्रेन में कई मोर्चों पर भेजी गई ब्रितानी एंटी-टैंक मिसाइलों ने वोज़्नेसेंस्क में रूसी सेना को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई.
वेलिचको ने कहा, "इन हथियारों की बदौलत ही हम यहां अपने दुश्मन को हरा पाए. हम अपने सहयोगियों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद कहते हैं. लेकिन हमें और चाहिए क्योंकि दुश्मन के काफ़िले आते रहेंगे."
यूक्रेन की दूसरी सबसे बड़ी नदी दक्षिणी बुह पर बने इस बड़े ब्रिज को रूसी सेना अपने क़ब्ज़े में नहीं ले सकी और इससे वोज़्नेसेंस्क का रणनीतिक महत्व और भी स्पष्ट हो गया.
आज, वोज़्नेसेंस्क यूक्रेन के कई शहरों की तरह भूतिया शहर तो नहीं बना है, लेकिन यहां की हवाओं में नियमित हवाई हमले के सायरन जैसे घुल चुके हैं.
हालांकि हाल के हफ़्तों में हज़ारों लोग ट्रेन से या गड्ढों वाली ग्रामीण सड़कों के ज़रिए शहर को छोड़ रहे हैं.
लेकिन इनमें से कई लोग जो अभी भी इस शहर में रह रहे हैं वो अपनी बड़ी जीत की इस कहानी को बार-बार सुनाने के लिए उत्सुक नज़र आते हैं.
एक स्थानीय दुकानदार एलेक्ज़ेंडर ने ख़ुद एके-47 के साथ फ़्रंटलाइन पर मोर्चा संभालते हुए एक वीडियो बनाया, उन्होंने कहा- "यह पूरे शहर की ओर से एक बड़ा प्रयास था. हमने शिकार करने वाली राइफ़लों का इस्तेमाल किया, लोगों ने ईंट और जार से हमले का जवाब देकर कर रूसी सेना का सामना किया, बूढ़ी महिलाओं ने रेत का भारी बैग लादा और इस लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया.''
वह कहते हैं, ''रूसियों को नहीं पता था कि कहां देखना है या अगला हमला कहां से हो सकता है. मैंने कभी भी समुदाय को इस तरह एक साथ आते नहीं देखा." ये बात वह उस टूटे हुए पुल पर खड़े हो कर कह रहे थे जिसे यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना के हमले के चंद घंटों के भीतर नष्ट कर दिया था. वोज़्नेसेंस्क के दक्षिणी किनारे पर राकोव गांव में स्वेतलाना निकोलायेवना के बगीचे में नज़र आने वाला रूसी टैंक और कुछ सामानों का उलझा हुआ ढेर दूर से ही ध्यान आकर्षित करता है. यहां सबसे ज़बर्दस्त लड़ाइयों में से एक लड़ाई लड़ी गई थी.
ख़ून से सनी पट्टियाँ और रूसी राशन पैकेज इस बागीचे में नज़र आते हैं. 59 साल की स्वेतलाना अपने पति के टूल शेड की ओर इशारा करते हुए बताती हैं कि रूसियों ने दो यूक्रेनी सैनिकों को बंधक बना कर वहां रखा था.
अपने जर्जर झोपड़ीनुमा घर में आगंतुकों को अंदर बुलाते हुए वह कहती हैं, "मेरे दरवाज़े पर ख़ून के धब्बे देखिए."
जब इस शहर पर हमला हुआ तो स्वेतलाना का घर रूसियों के क़ब्ज़े में था और उनका परिवार एक तहखाने में शरण लेकर रह रहा था. उस समय रूसी सेना ने उनके पूरे घर को एक अस्थायी अस्पताल में बदल दिया था.
वह बताती हैं, "जब मैं दूसरे दिन कुछ कपड़े लेने के लिए वापस आई. तो देखा हर जगह घायल लोग पड़े थे. दसियों लोग. अब मैंने अधिकांश ख़ून साफ़ कर दिया है.''
"एक रात वे जल्दी में ये जगह छोड़ कर चले गए. उन्होंने सब कुछ पीछे छोड़ दिया - जूते, मोज़े, बॉडी आर्मर, हेलमेट- और बस अपने मृतकों और घायलों को लादकर भाग गए."
यहां के स्थानीय अंतिम संस्कार निदेशक, मिखाइलो सोकुरेंको को काम दिया गया कि वह खेतों में जा कर रूसी सैनिकों के शवों को गाड़ियों में लाद कर बाहर निकालें.
उन्होंने कहा, " उन्होंने यहां जो किया उसके बाद मैं उन्हें इंसान नहीं मानता, लेकिन यह ग़लत होगा कि उन्हें मैदान में छोड़ दिया जाए, वो लोग अपनी मौत के बाद भी लोगों को डरा रहे हैं.''
'' रूसी मानसिक तौर पर बीमार हैं इसलिए हमें तैयार रहना होगा, लेकिन जीत हमारी होगी और हम रूसियों को अपनी ज़मीन से बाहर खदेड़ कर रहेंगे.'' (bbc.com)
रूस के यूक्रेन पर हमले के समय से वहां हो रही हिंसा और कथित अपराधों को लेकर रूस और पुतिन पर युद्ध अपराध के मुकदमे चल सकते हैं. पर सवाल यह है कि ऐसा होगा कैसे और क्या पुतिन पर यह दोष सिद्ध हो पाएगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सार्वजनिक रूप से 'युद्ध अपराधी' कहा है. हालांकि, कानूनी जानकारों का कहना है कि पुतिन या किसी अन्य रूसी नेता पर मुकदमा चलाना आसान नहीं होगा. इस राह में कई बाधाएं होंगी और इसमें बरसों लग सकते हैं.
क्या होता है युद्ध अपराध?
नीदरलैंड्स के द हेग शहर में स्थित 'इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट' यानी ICC इसे ऐसे परिभाषित करता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने जिनेवा कन्वेंशन का गंभीर उल्लंघन 'युद्ध अपराध' कहलाता है. जिनेवा कन्वेंशन में वे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून दर्ज हैं, जिनका युद्ध के समय पालन किया जाता है. जानकार बताते हैं कि अगर कोई देश जान-बूझकर दूसरे देश के नागरिकों को निशाना बनाता है या सेना के ऐसे ठिकानों पर हमला करता है, जहां आम नागरिक ज्यादा हताहत हो सकते हैं, तो इसे कन्वेंशन का उल्लंघन माना जाएगा.
यूक्रेन और इसके पश्चिमी सहयोगी रूसी सेनाओं पर आम नागरिकों को अंधाधुंध निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं. रूस यूक्रेन पर हमला करने को 'स्पेशल ऑपरेशन' करार दे रहा है. वह आम नागरिकों को निशाना बनाने से इनकार कर रहा है और कह रहा है कि इसका लक्ष्य यूक्रेन को सैन्यीकरण और नाजीवाद के रास्ते पर जाने से रोकना है. रूस का दावा है कि यूक्रेन और सहयोगियों के आरोप बेबुनियाद हैं.
सोवियत संघ ने 1954 में जिनेवा कन्वेंशन पर सहमति दी थी. फिर 2019 में रूस ने इसके एक प्रोटोकॉल से खुद को अलग कर लिया. हालांकि, वह बाकी समझौतों का हिस्सा बना हुआ है. ICC की स्थापना 2002 में की गई थी. यह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) से अलग है. ICJ संयुक्त राष्ट्र की संस्था है, जो दो देशों के बीच मसलों की सुनवाई करती है.
किस दिशा में बढ़ सकता है मुकदमा?
ICC के मुख्य अभियोजक करीम खान बताते हैं कि इस महीने उन्होंने यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों की जांच शुरू की है. रूस और यूक्रेन दोनों ही ICC के सदस्य नहीं हैं और रूस तो इस संस्था को मान्यता भी नहीं देता है. हालांकि, यूक्रेन ने अपनी जमीन पर 2014 तक हुए कथित अत्याचारों की जांच करने को मंजूरी दे दी है. 2014 यानी वह साल, जब रूस ने क्रीमिया को अपने में मिला लिया था.
वहीं रूस ICC की जांच में सहयोग करने से इनकार कर सकता है. ऐसे में मुकदमा तब तक खिंचेगा, जब तक इस मामले में कोई अभियुक्त गिरफ्तार नहीं हो जाता. अमेरिकन यूनिवर्सिटी में कानून की प्रोफेसर रेबेका हैमिल्टन कहती हैं, "इससे ICC को अपना मुकदमा चलाने और गिरफ्तारी वारंट जारी करने की राह में कोई बाधा नहीं आएगी."
पर सुबूत कैसे तय होंगे?
अगर अभियोजन पक्ष मजबूती से यह दिखा पाए कि युद्ध अपराध किए गए हैं, तो ICC गिरफ्तारी का वारंट जारी कर देगी. जानकार बताते हैं कि ऐसे मामलों में सजा दिलाने के लिए अभियोजन पक्ष को बिना किसी संदेह के यह साबित करना होता है कि अभियुक्त ने वह अपराध किया है. ज्यादातर आरोपों में मंशा साबित करने की जरूरत पड़ती है. अभियोजक के लिए मंशा साबित करने का एक तरीका तो यह होता है कि वह साबित करे कि जिस इलाके में हमला किया गया, वहां कोई सैन्य ठिकाना नहीं था और हमला गलती से नहीं, बल्कि जान-बूझकर किया गया था. हार्वर्ड लॉ स्कूल में विजिटिंग प्रोफेसर एलेक्स वाइटिंग बताते हैं, "अगर ऐसे हमले बार-बार होते हैं और शहरी इलाकों में आम नागरिकों को निशाना बनाने की सोची-समझी रणनीति सामने आती है, तो यह मंशा साबित करने का एक बेहद पुख्ता सुबूत हो सकता है."
किस पर चलाया जा सकता है मुकदमा?
जानकार बताते हैं कि युद्ध अपराध की जांच के केंद्र में सैनिक, कमांडर और राष्ट्रप्रमुख होते हैं. अभियोजक पक्ष ऐसे सुबूत पेश कर सकता है कि पुतिन या किसी अन्य राष्ट्रप्रमुख ने सीधे तौर पर अवैध हमले का आदेश देकर युद्ध अपराध किया है. ऐसे सुबूत भी पेश किए जा सकते हैं कि राष्ट्रप्रमुखों को ऐसे अपराधों की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने इसे रोकने की कोशिश नहीं की या रोकने में नाकाम रहे.
विएना यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कानून विभाग में लेक्चरर एस्ट्रिड रीसिंगर कोरासिनी बताती हैं कि ICC की टीम के सामने जमीन पर होने वाले अपराधों को ऊपरी नेताओं से जोड़ने वाले सुबूत पेश करने की चुनौती होती है. वह कहती हैं, "बात जितने ऊंचे नेताओं तक पहुंचती है, सुबूतों को उनसे जोड़ना उतना ही मुश्किल होता जाता है."
युद्ध अपराध में दोषी ठहराया जाना क्यों होता है मुश्किल?
कानूनी जानकार बताते हैं कि मारियूपोल के प्रसूति अस्पताल और बच्चों को पनाह देने वाले थिएटर पर में बम विस्फोट युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है. हालांकि, इसमें दोषी को सजा दिलाना मुश्किल होता है. कई मामलों में मंशा साबित करने और खास हमलों को बड़े नेताओं से जोड़ने में एक और चुनौती यह आती है कि अभियोजक पक्ष को सुबूत इकट्ठा करने में बहुत समय लगता है. उन्हें ऐसे गवाहों की गवाही भी चाहिए होता है, जिन्हें कई बार डराया-धमकाया गया होता है या वे खुद ही बात नहीं करना चाहते हैं.
यूक्रेन के मामले में ICC के अभियोजक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तस्वीरों और वीडियो की मदद लेंगे. हैमिल्टन कहते हैं, "यह किसी भी तरह से तेजी से होने वाला काम नहीं है. इस दिशा में काम होना ही अपने आप में बड़ा संकेत है." वहीं आरोपितों को कठघरे तक लाना मुश्किल होता है. यह बात करीब-करीब तय मानी जा रही है कि रूस गिरफ्तारी का वारंट मानने से इनकार कर देगा. ऐसे में ICC को संभावित अभियुक्तों पर निगाह रखनी होगा कि वे कब विदेश यात्रा करते हैं, जहां उन्हें गिरफ्तार किया जा सके.
क्या कहता है अतीत?
ICC की वेबसाइट बताती है कि कोर्ट अपनी स्थापना से अब तक 30 मामलों की सुनवाई कर चुकी है. ICC के जजों ने अब तक पांच लोगों को युद्ध अपराधों, मानवता के विरुद्ध अपराधों और नरसंहार के मामलों में दोषी ठहराया है. वहीं चार अन्य लोगों को बरी किया है. 2012 में कोर्ट ने कांगो के सिपहसालार थॉमस लुबंगा डायलो को दोषी ठहराया था. कोर्ट युगांडा में हथियारबंद समूह लॉर्ड्स रेसिस्टेंस आर्मी के मुखिया जोसेफ कोनी समेत कई बड़े आरोपितों के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी किए हैं.
1993 में संयुक्त राष्ट्र ने बाल्कन युद्धों के दौरान हुए कथित अपराधों की जांच के लिए पूर्व यूगोस्लाविया के लिए अलग इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्राइब्यूनल (ICT) बनाया. 2017 में बंद हुई इस अदालत ने कुल 161 अभियोग जारी किए थे और 90 लोगों को सजा सुनाई थी. लाइबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स टाइलर को संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी. कानूनी जानकार इस बात की संभावना जता चुके हैं कि यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र या एक संधि के जरिए अलग से एक अदालत बनाई जा सकती है.
वीएस/आरपी (रॉयटर्स)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 23 मार्च। भारत ने कहा है कि इजराइल और फलस्तीन के बीच शेष मुद्दों पर प्रत्यक्ष रूप से विश्वसनीय वार्ताएं शुरू करके राजनीतिक माहौल को कायम किया जाना चाहिये। साथ ही उसने कहा कि दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत का अभाव दीर्घकालिक शांति हासिल करने के लिए अनुकूल नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा, “हम संबंधित पक्षों से ऐसी किसी भी एकतरफा कार्रवाई से परहेज करने का आह्वान करते हैं जिससे जमीनी यथास्थिति अनुचित रूप से बदल सकती है और इससे दो-राष्ट्र समाधान की व्यवहार्यता कम हो सकती है। हमें हाल के सकारात्मक घटनाक्रमों पर तत्काल आगे बढ़ने की जरूरत है, पीछे हटने की नहीं।'
तिरुमूर्ति ने मंगलवार को फलस्तीन को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मासिक बैठक में कहा कि फलस्तीनी प्राधिकरण की अनिश्चित वित्तीय स्थिति सहित सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों से निपटने और राजनीतिक माहौल बनाने के लिए एक ठोस मार्ग तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ' दोनों पक्षों के बीच शेष मुद्दों पर प्रत्यक्ष रूप से विश्वसनीय वार्ता शुरू करके राजनीतिक माहौल की जल्द बहाली की आवश्यकता है। सीधी बातचीत का अभाव दीर्घकालिक शांति हासिल करने के लिए अनुकूल नहीं है।'
तिरूमूर्ति ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने इजराइल और फलस्तीन के बीच, अंतरराष्ट्रीय सहमति से तैयार किए गए फ्रेमवर्क के आधार पर सीधी शांति वार्ता करने का लगातार आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि वार्ता के दौरान पृथक देश के लिए फलस्तीनियों की जायज महत्वाकांक्षा को और इजराइल की वैध सुरक्षा चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। (भाषा)
वुझू (चीन), 23 मार्च। चीन में इस सप्ताह के शुरु में हुई विमान दुर्घटना की जांच अभी भी जारी है, जिसमें बुधवार को ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बारिश ने खलल डाल दिया। विमान में 132 लोग सवार थे और सभी के मारे जाने की आशंका जतायी जा रही है।
बारिश के मौसम के बीच खोजकर्ता दुर्घटनास्थल पर विमान के ब्लैक बॉक्स, कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर और मानव अवशेषों की तलाश में जुटे हैं।
चीन के सरकारी मीडिया द्वारा जारी किए गए वीडियो क्लिप में हादसे का शिकार हुए बोइंग 737-800 विमान के छोटे-छोटे टुकड़े दुर्घटनास्थल पर बिखरे पड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा कीचड़ में सने हुए बटुए, बैंक संबंधी कागजात और पहचान पत्र भी बरामद हुए हैं।
जांचकर्ताओं ने कहा है कि अभी दुर्घटना का कारण बताना जल्दबाजी होगी। विमान रवाना होने के एक घंटे के अंदर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और 96 सेकेंड के अंदर इससे संपर्क टूट गया था।
दुर्घटना सोमवार को दोपहर में गुवांगझी क्षेत्र के वुझू शहर में हुई थी। विमान युन्नान प्रांत की राजधानी कुमिंग से औद्योगिक केंद्र ग्वांगझू जा रहा था। (एपी)
ल्वीव (यूक्रेन), 23 मार्च। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूसी सैन्य बलों ने मंगलवार को आवश्यक आपूर्ति लेकर मारियुपोल पहुंचने की कोशिश कर रहे एक मानवीय काफिले को न केवल रोका, बल्कि कुछ बचावकर्मियों तथा बस चालकों को बंदी भी बना लिया।
उन्होंने कहा कि रूस इससे पूर्व काफिले को रास्ता देने को लेकर सहमत हुआ था। जेलेंस्की ने मंगलवार रात राष्ट्र के नाम एक वीडियो संबोधन में कहा, ‘‘ हम मारियुपोल के निवासियों के लिए स्थिर मानवीय गलियारे बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे लगभग सभी प्रयासों को रूस ने गोलाबारी कर या जानबूझकर हिंसक गतिविधियों से विफल कर दिया है।’’
यूक्रेन की उप राष्ट्रपति इरिना वेरेश्चुक ने कहा कि रूसियों ने 11 बस चालकों और चार बचावकर्मियों को उनके वाहनों के साथ कब्जे में ले लिया है। उनके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
जेलेंस्की ने कहा कि मंगलवार को मारियुपोल से 7,000 से अधिक लोगों को निकाला गया, लेकिन शहर में लगभग 1,00,000 लोग अब भी ‘‘अमानवीय परिस्थितियों में, पूर्ण नाकाबंदी के कारण भोजन, पानी, दवा के बगैर और लगातार गोलाबारी के बीच’’ रह रहे हैं। युद्ध से पहले, इस बंदरगाह शहर की आबादी 4,30,000 थी। (एपी)
श्रीलंका में मंगलवार को सरकारी पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात कर दी गई. देश में पेट्रोल-डीजल की भारी किल्लत की वजह से पेट्रोल पंपों पर लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं.
भीड़ में कोई हंगामा ना हो और लोग हिंसक ना हो उठें इसलिए सेना के जवानों को यहां तैनात किया गया है. श्रीलंका इस वक्त भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार काफी घट गया है. इस वजह से पेट्रोल-डीजल का आयात मुश्किल हो रहा है. महंगाई भी चरम पर है.
देश में अनाज, चीनी, सब्जियों से लेकर दवाओं की कमी हो रही है. महंगाई की वजह से लोगों का खर्चा चार गुना तक बढ़ गया है.
विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से श्रीलंका पड़ोसी देशों से इन चीजों को खरीद भी नहीं पा रहा है. हालात इतने ख़राब हैं कि देश में स्कूली छात्रों की परीक्षा के पेपर छापने के लिए कागज और स्याही तक के पैसे नहीं है. इस वजह से परीक्षा रद्द करनी पड़ी है.
श्रीलंका को इस वक्त अनाज, तेल और दवाओं की खरीद के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. हाल में भारत ने इसे एक अरब डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है. चीन भी इसे ढाई अरब डॉलर का कर्ज दे सकता है. श्रीलंका पर चीन का पहले से ही काफी कर्ज है. 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका का ये सबसे भयावह आर्थिक संकट है.
श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल के लिए लंबी लाइनों को देखते हुए मंगलवार को सरकारी तेल कंपनी सिलोन पेट्रोलियम कॉरपोरशन ने अपने पंपों पर सैनिकों को तैनात कर दिया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ऊर्जा मंत्री गामिनी लुकोगे ने कहा,'' पेट्रोल पंपों पर कोई अप्रिय स्थिति पैदा न हो इसलिए हमने सेना के लोगों को यहां तैनात करने का फैसला किया है. लोग बड़े कैन में पेट्रोल ले जाकर बिजनेस कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि पेट्रोल सबको मिले. ''
रसोई गैस के लिए भी लोग खाली सिलेंडर लिए घंटों लाइन में खड़े दिख रहे हैं. पेट्रोल और केरोसिन के लिए लाइनों में खड़े चार लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से तीन बुजुर्ग थे. एक शख्स की मौत लाइन में लगे लोगों के बीच झगड़े के दौरान चाकूबाजी की वजह से हुई.
खस्ताहाल विदेशी मुद्रा भंडार की मार
श्रीलंका को भारी बिजली संकट का भी सामना करना पड़ रहा है. मार्च की शुरुआत में श्रीलंका ने देश में अधिकतम साढ़े सात घंटे तक की बिजली कटौती का एलान किया. किया था.
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खस्ता है.
यहां के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24.8 फीसदी घट कर 2.36 अरब डॉलर रह गया था.
रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो सकती है.रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है.
रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंकाई पर्यटक भी आते हैं. रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से भी इसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है. भारत, चीन और रूस के सबसे ज्यादा पर्यटक श्रीलंका पहुंचते हैं.
श्रीलंका में आर्थिक हालात इतने खराब क्यों ?
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का काफी बड़ा दारोमदार इसके पर्यटन उद्योग पर है. देश की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी है दस फीसदी के करीब है.
लेकिन कोविड की वजह से श्रीलंका में पर्यटकों का आना बिल्कुल थम गया. इसने इसके पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ दी. विदेशी मुद्रा की कमी से कनाडा जैसे कई देशों ने फिलहाल श्रीलंका में निवेश बंद कर दिया है.
कोविड से पर्यटन को लगे झटके का नुकसान उठाने के साथ ही श्रीलंका की सरकार ने कुछ ऐसी गलतियां की, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो गई. 2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाने के लिए टैक्स कम कर दिया. इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ.
देश में केमिकल फर्टिलाइजर से खेती बंद करने के आदेश का भी काफी घातक असर हुआ. विशेषज्ञों के मुताबिक इससे फसल उत्पादन में खासी गिरावट आई.
श्रीलंका की खराब आर्थिक स्थिति की वजह इस पर बढ़ता कर्ज भी है. अकेले चीन का ही इस पर 5 अरब डॉलर का कर्ज है. भारत और जापान का भी इस पर काफी कर्ज है. श्रीलंका को आयात के लिए महंगा डॉलर खरीदना पड़ रहा है. इससे वो और अधिक कर्ज में डूबता जा रहा है. इसने श्रीलंकाई मुद्रा की कीमत भी घटा दी है.
पिछले महीने बैंक ऑफ सिलोन ने 40 हजार टन पेट्रोल मंगाने के लिए 35.5 अरब डॉलर जारी किए. दरअसल पेट्रोल की शिपमेंट चार दिनों तक कोलंबो बंदरगाह पर इंतजार कर रही थी. सरकार के पास इसके भुगतान के लिए पैसा नहीं था. आखिरकार बैंक ऑफ सिलोन को पैसा देना पड़ा.
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24.8 फीसदी घट कर 2.36 अरब डॉलर रह गया था. 2022 में श्रीलंका को सात अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. मौजूदा हालात को देखते हुए श्रीलंका के डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो गया है. हालात नहीं सुधरे तो इसे कर्ज के लिए आईएमएफ के पास भी जाना पड़ सकता है
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी. फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई.
श्रीलंका
श्रीलंका ने अपने देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए चीन से काफी कर्ज लिया है. अप्रैल 2021 तक श्रीलंका पर 35 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था. इसमें दस फीसदी हिस्सेदारी चीन की थी. अगर श्रीलंका की कंपनियों और उसके केंद्रीय बैंक को दिया गया चीनी कर्ज भी मिला दिया जाए तो यह और ज्यादा हो सकता है.
श्रीलंका ने जिन इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए कर्ज लिया था, उनमें से कुछ फंस गए. दक्षिणी श्रीलंका के हम्बनटोटा में बंदरगाह बनाने के लिए श्रीलंका ने चीन से 1.4 अरब डॉलर का कर्ज लिया था. लेकिन वह कर्ज चुका नहीं पाया. आखिरकार 2017 में एक चीनी कंपनी को इसे 99 साल की लीज पर सौंप दिया गया. चीन से आसान कर्ज भी इसके लिए मुसीबत बन गया है. श्रीलंका की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं हो पा रही है कि वह चीन का कर्ज चुका सके. चीन से अब वह फिर 2.5 अरब डॉलर का कर्ज लेने की तैयारी कर रहा है.
श्रीलंका इस वक्त सबसे ज्यादा भारत, चीन और बांग्लादेश पर निर्भर है. खाने-पीने की चीजों के से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए भी उसे इन तीनों ओर से बड़ी मदद की जरूरत है.
पिचले कुछ साल से श्रीलंका में बढ़ रही चीनी गतिविधियों की वजह से भारत के सथ इसके रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. लेकिन चीनी कर्ज के दम पर शुरू की गई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के फंस जाने के बाद इसने भारत के साथ रिश्तों में संतुलन लाने की कोशिश की है. (bbc.com)
एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया के इर्द गिर्द समुद्र में गर्मी की ज्यादा और गंभीर लहरें आने की संभावना है, जिनसे प्राकृतिक धरोहर ग्रेट बैरियर रीफ को काफी खतरा है.
ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण समूह क्लाइमेट काउंसिल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि देश के उत्तर-पूर्वी तट के पास समुद्री तापमान औसत से दो से चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है और इससे ग्रेट बैरियर रीफ में एक सामूहिक ब्लीचिंग का खतरा बढ़ गया है.
सामूहिक ब्लीचिंग तब होती है जब मूंगे अपने अंदर रह रहे शैवालों को बाहर निकाल देते हैं और इस वजह से मूंगों का रंग सफेद हो जाता है. पिछले छह सालों में यहां तीन बार सामूहिक ब्लीचिंग हो चुकी है और एक और ब्लीचिंग का खतरा मंडरा रहा है.
"खतरे में" रीफ
संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने भी इस विश्व धरोहर स्थल की यात्रा शुरू की है. टीम का उद्देश्य है यह मूल्यांकन करना कि रीफ को "खतरे में" घोषित किया जाए या नहीं. ऑस्ट्रेलिया सरकार के ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क प्राधिकरण ने पिछले शुक्रवार कहा था कि क्वींसलैंड राज्य के तट के पास अधिकांश मरीन पार्क में गर्मियों के दौरान गर्मी का स्तर काफी बढ़ गया था.
समुद्र में इस तरह की गर्मी की लहरें मछलियों को प्रभावित कर रही हैं, नस्लों को नुकसान पहुंचा रही हैं और पर्यटन को भी चोट पहुंचा रही हैं.
क्वींसलैंड के जेम्स कुक विश्वविद्यालय में मरीन बायोलॉजिस्ट जोडी रम्मर ने बताया, "स्थिति विकट होती जा रही है और ऐसे बिंदु तक पहुंचने वाली है जहां हम इसे समझने के लिए रीफ द्वारा महसूस किए जा रहे हालात की लैब में नकल भी कर सकें."
क्लाइमेट काउंसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर जलवायु परिवर्तन इसी तरह चलता रहा तो 2044 के बाद तो हर साल ही ब्लीचिंग होने की संभावना है. समूह ने मांग की है की ऑस्ट्रेलिया अपने कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक 2005 के स्तर के मुकाबले 75 प्रतिशत नीचे ले कर आए. यह सरकार के लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा है.
यूनेस्को करेगा फैसला
यूनेस्को के विशेषज्ञ 21 मार्च को ही ऑस्ट्रेलिया की 10-दिवसीय यात्रा शुरू करने वाले हैं. यात्रा के दौरान वो सरकार की रीफ 2050 योजना की समीक्षा करने के लिए वैज्ञानिकों, नियामकों, नीति निर्माताओं, स्थानीय समुदायों और मूल निवासी के नेताओं से मिलेंगे.
यूनेस्को ने एक बयान में कहा कि टीम का मुख्य लक्ष्य यह पता करना है कि योजना "जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों की वजह से ग्रेट बैरियर रीफ के प्रति खतरों का सामना करती है या नहीं और तेजी से कदम बढ़ाने का रास्ता बताती है या नहीं."
विशेषज्ञों की रिपोर्ट मई में आने की संभावना है, जिसके बाद विश्व धरोहर समिति में अनुशंसा भेजी जाएगी कि स्थल को "खतरे में" घोषित किया जाए या नहीं. समिति की बैठक जून में होनी है. 2015 और 2021 में ऑस्ट्रेलिया को "खतरे में" की घोषणा बचाने के लिए भारी लॉबिंग करनी पड़ी थी.
सीके/एए (रॉयटर्स)
मणिपुर में पहली बार अपने बूते बीजेपी को सत्ता दिलाने वाले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर संघर्ष की मिसाल है. ऐसा संघर्ष जो उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस नहीं देख सकी.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
सोमवार को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले बीरेन ने किसी पूर्वोत्तर राज्य में किसी बीजेपी नेता के लगातार दूसरी बार यह कुर्सी हासिल करने का रिकार्ड तो बनाया ही है, चुनाव नतीजों के बाद दस दिनों तक कुर्सी के लिए चलने वाली तिकोनी लड़ाई में बाकी दावेदारों को मात देने में भी कामयाबी हासिल की है. एक फुटबालर और पत्रकार के तौर पर अनुभव ने उनको इस कठिन मुकाबले में मुकाम तक पहुंचाया है.
बीरेन सिंह चुनाव अभियान के दौरान ही राज्य की 60 में से कम से कम 40 सीटें जीतने के दावे करते रहे थे. बीजेपी को 40 सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन उसने अपने बूते बहुमत का आंकड़ा जरूर पार कर लिया. चुनाव से पहले पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था. लेकिन नतीजों के बाद दो और दावेदारों के सामने आने के बावजूद पार्टी के प्रदर्शन ने बीरेन के पक्ष में पलड़ा झुका दिया.
दावेदारों के दो-दो बार दिल्ली दौरे और तमाम केंद्रीय नेताओं से मुलाकात के बावजूद बीरेन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े. यही वजह थी कि रविवार को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों निर्मला सीतारमण और किरेन रिजिजू की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में बीरेन को आम राय से नेता चुन लिया गया. दरअसल, पार्टी के जबरदस्त प्रदर्शन के पीछे बीरेन को ही सबसे प्रमुख वजह माना जा रहा था. जिस पार्टी का 2012 तक राज्य में कोई नामलेवा तक नहीं था उसके अपने बूते बहुमत हासिल करने की उम्मीद तो खुद बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को भी नहीं थी. ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन का सेहरा बीरेन सिंह को मिलना तय था क्योंकि उन्होंने पूरे राज्य में अभियान की कमान संभाल रखी थी.
एक फुटबॉलर के तौर पर उनके करियर को देखते हुए राज्य के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि गेंद लेकर आगे बढ़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वियों को छकाने की कला ही राजनीति में उनके काम आई है.
फुटबॉल और पत्रकारिता
एक जनवरी, 1961 को मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैदा होने वाले बीरेन सिंह ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मणिपुर यूनिवर्सिटी से ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. लेकिन खेल में ज्यादा रुचि होने की वजह से उन्होंने शुरुआत में फुटबॉल को अपने करियर के तौर पर चुना. फुटबॉल में पारंगत होने की वजह से उनको 18 साल की उम्र में ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिया गया. वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. बीरेन साल 1981 में डूरंड कप जीतने के लिए कोलकाता के मोहन बागान को हराने वाली बीएसएफ की टीम का हिस्सा थे. हालांकि, उन्होंने अगले साल ही बीएसएफ टीम से नाता तोड़ लिया. लेकिन मणिपुर टीम के लिए वर्ष 1992 तक खेलते रहे.
वर्ष 1992 में बीरेन सिंह की रुचि पत्रकारिता की तरफ बढ़ी और उन्होंने मणिपुर के ही स्थानीय अखबार नाहरोल्गी थोउदांग में नौकरी शुरू की. पत्रकारिता में भी बीरेन सिंह काफी तेजी से आगे बढ़े और 2001 तक वे संपादक के पद पर पहुंच गए. पत्रकारिता के दौरान ही उन्होंने राजनीति को करीब से देखा और आखिरकार इस क्षेत्र में किस्मत आजमाने का फैसला किया.
राजनीतिक करियर
बीरेन सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 2002 में क्षेत्रीय पार्टी डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (डीपीपी) से की. उन्होंने मणिपुर के हिंगांग विधानसभा क्षेत्र से अपनी पहली चुनावी लड़ाई लड़ी और जीती. उन्होंने 2007 में कांग्रेस के टिकट पर सीट बरकरार रखी. वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में सतर्कता राज्य मंत्री भी बनाए गए. वर्ष 2007 में एक बार फिर वह इसी विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और उनको सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण, युवा मामले और खेल मंत्री बनाया गया.
वर्ष 2012 में वह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने के कारण इबोबी सिंह से उनके संबंध खराब हो गए. आखिरकार अक्टूबर, 2016 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. वर्ष 2017 में उन्होंने फिर से अपनी सीट से जीत हासिल की उसके बाद उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वे लगातार पांचवीं बार हिंगांग सीट से चुने गए हैं. इस सीट पर उन्होंने कांग्रेस के शरतचंद्र सिंह को 18 हजार वोटों से पराजित किया.
वरिष्ठ पत्रकार ओ. कंचन सिंह बताते हैं, "बीरेन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान पहाड़ पर चलो, हर महीने की 15 तारीख को आम लोगों का दिन और पर्वतीय नेता दिवस जैसी जो योजनाएं शुरू की उससे घाटी और पर्वतीय इलाके के लोगों के बीच पनपी खाई को पाटने में काफी मदद मिली. इन योजनाओं के तहत दुर्गम इलाके में रहने वाले लोग भी महीने के तय दिन को अपने नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर पाते थे.” वह बताते हैं कि बीरेन सिंह को राज्य की नियति बन चुकी आर्थिक नाकेबंदी को खत्म करने, पर्वतीय और घाटी के बीच बढ़ती खाई को पाटने और राज्य में शांति बहाल करने का श्रेय भी दिया जाता है. उनके नेतृत्व में पार्टी के चुनावी और बीते पांच साल के कार्यकाल ने ही तमाम दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए बीरेन सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने पहले कार्यकाल में बीरेन सिंह के सामने सहयोगी दलों के साथ संतुलन बनाए रखने की जो चुनौती थी अबकी पार्टी के पास बहुमत होने के कारण उनको वैसी चुनौती से तो नहीं जूझना पड़ेगा. लेकिन पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार उनके लिए मुश्किलें जरूर पैदा कर सकते हैं. इन चुनौतियों से बीरेन सिंह कैसे निपटते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. (dw.com)