अंतरराष्ट्रीय
एक विज्ञान के प्रोफेसर और एक एयरोस्पेस डाटा एनालिस्ट के नाम की घोषणा मंगलवार को स्पेस एक्स के चार सदस्यीय चालक दल के सदस्यों के रूप में की गई है. यह दल पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएगा. यह पहली नागरिक अंतरिक्ष उड़ान होगी.
फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से हुए वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दो नए नागरिक अंतरिक्ष यात्रियों को पेश किया गया. स्पेस एक्स की ओर से मानव अंतरिक्ष यान के प्रमुख बेनजी रीड और अरबपति उद्यमी जेरेड इसाकमैन, जिन्होंने इस मिशन की कल्पना की थी अंतरिक्ष यात्रियों को दुनिया के सामने पेश किया. इसाकमैन ने ही एक चैरिटी अभियान के रूप में मिशन की कल्पना की थी.
इसाकमैन शिफ्ट4 पेमेंट्स के संस्थापक और सीईओ हैं. वे तीन और अन्य लोगों के साथ अंतरिक्ष की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं. इसके लिए वे एक मोटी रकम खर्च करना चाहते हैं. इसाकमैन के साथ स्पेस एक्स के क्रू ड्रैगन कैप्सूल में सवार होकर अंतरिक्ष की सैर पर निकलने वाले हैं. यह उड़ान 15 सितंबर से पहले निर्धारित नहीं है और लॉन्च के बाद तीन से चार दिनों तक अंतरिक्ष में रहने की उम्मीद है.
38 साल के इसाकमैन ने पत्रकारों से कहा, "जब यह मिशन पूरा हो जाएगा, तो लोग देखेंगे और बोलेंगे कि यह पहली बार था जब आम लोग अंतरिक्ष में गए थे."
इस मिशन को इंसपिरेशन4 नाम दिया गया है और इस मिशन का मकसद बच्चों में होने वाले कैंसर के लिए जागरूकता बढ़ाना है. इसाकमैन ने सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल के लिए 10 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है. सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल एक अग्रणी बाल कैंसर केंद्र है.
मिशन के "कमांडर" की भूमिका संभालने के बाद इसाकमैन ने फरवरी में सेंट जूड की सहायक चिकित्सक हेली अर्केन्यु को अपने पहले चालक सदस्य के रूप में नामित किया, हेली बोन कैंसर सर्वाइवर हैं. अरिजोना के फिनिक्स के साउथ माउंटेन में 51 साल के जियोसाइंस के प्रोफेसर सियान प्रोक्टर को भी इस उड़ान के लिए अलग से हुई प्रतियोगिता के दौरान चुना गया है. शिफ्ट4 पेमेंट्स की ओर से आयोजित बिजनेस प्रतियोगिता में उनका चयन किया गया. वे कभी नासा के अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवार थे. दल के सभी सदस्यों की कठिन ट्रेनिंग होगी और स्पेस एक्स मिशन के लिए उन्हें तैयार किया जाएगा.
एए/सीके (रॉयटर्स)
(dw.com)
लंबे अंतराल के बाद उत्तर कोरिया फिर से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सब्र को परख रहा है और बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है. लेकिन इससे उत्तर कोरिया क्या हासिल करना चाहता है.
डॉयचे वैले पर फ्रांक स्मिथ की रिपोर्ट
उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे अलग थलग देशों में है. वहां से जानकारी बहुत छन छन कर आती है. लेकिन जब बात परमाणु हथियारों और बैलेस्टिक मिसाइलें विकसित करने की हो, तो उसके इरादे बहुत स्पष्ट नजर आते हैं.
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में एशियन इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो गो म्योंग ह्युन कहते हैं, "उत्तर कोरिया ने अपने भावी परमाणु विकास कार्यक्रम का नक्शा तैयार कर लिया है. वे काफी समय से कह रहे हैं और अपनी परेडों में इसे दिखा भी रहे हैं. पिछली पार्टी कांग्रेस में भी इस पर चर्चा हुई थी."
जनवरी में उत्तर कोरिया की सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी की आठवीं कांग्रेस हुई, जिसमें देश भर से आए हजारों प्रतिनिधि राजधानी प्योंगयांग में जुटे. इस आयोजन का समापन एक परेड से हुआ जिसमें आधुनिक मिसाइलों और सैन्य टेक्नोलोजी का प्रदर्शन किया गया. यह परेड अमेरिका और दक्षिण कोरिया के व्यापाक सैन्य अभ्यासों के खिलाफ चेतावनी भी थी.
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से सिंगापुर में मुलाकात की थी. उस वक्त अमेरिका और दक्षिण कोरिया के सैन्य अभ्यासों को रोकने पर सहमति बनी थी. इसके बदले में किम भी उत्तर कोरिया की लंबी दूरी की मिसाइलों या परमाणु परीक्षणों पर रोक के लिए राजी हुए थे.
इसके बाद अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने व्यापक सैन्य अभ्यासों से परहेज किया. लेकिन जब दक्षिण कोरिया और अमेरिका ने मार्च में 10 दिन का कमांड पोस्ट सिमुलेटिड वॉर गेम अभ्यास किया, तो उत्तर कोरिया इससे भड़क गया. किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग ने कहा, "वॉर गेम और दुश्मनी संवाद और सहयोग के साथ साथ नहीं चल सकते." उन्होंने राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन को खुली चुनौती देते हुए कहा कि "अगर अमेरिका को अगले चार साल तक चैन की नींद सोनी है तो बदबू फैलाने से बचे."
उत्तर कोरिया ने 21 मार्च को दो क्रूज मिसाइलें दागीं. इसके दो दिन बाद उसने छोटी दूरी की दो बैलेस्टिक मिसाइलें टेस्ट कीं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों का उल्लंघन करती हैं. बहुत से कोरियाई पर्यवेक्षक मानते हैं कि उत्तर कोरिया अमेरिका में जो बाइडेन के नए प्रशासन को संदेश देना चाहता है. हालांकि बाइडेन प्रशासन ने इन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी और कहा कि "इसमें कुछ भी नया नहीं है".
गो का कहना है, "जब अमेरिका ने क्रूज मिसाइल दागे जाने को अहमियत नहीं दी तो उत्तर कोरिया ने महसूस किया कि उसे खुराक बढ़ानी होगी. उत्तर कोरिया का यही तरीका है कि वह शुरुआत छोटी करता है और फिर तनाव को बढ़ाता चला जाता है.. और फिर एकदम झटका देता है."
हाल में जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन से उत्तर कोरिया को लेकर उनके रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "अगर वे तनाव को बढ़ाने का फैसला करते हैं तो हम उसी तरह से उन्हें जवाब देंगे. लेकिन मैं कुछ हद तक कूटनीति के लिए भी तैयार हूं, लेकिन इसके लिए शर्त अंततः परमाणु निरस्त्रीकरण होगी."
जर्मनी का एनजीओ फ्रीडरिष नॉयमन फाउंडेशन 18 साल से उत्तर कोरिया में काम कर रहा है. इसके कोरियाई ऑफिस के प्रमुख क्रिस्टियान टाक्स कहते हैं कि हालिया हथियार परीक्षणों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से बाइडेन प्रशासन को संदेश देना था. वह कहते हैं कि उत्तर कोरिया ने ठीक उस समय परीक्षण किए जब बाइडेन प्रेस कांफ्रेस कर रहे थे. बाइडेन प्रशासन की तरफ से बातचीत के संकेतों का भी उत्तर कोरिया ने कोई जवाब नहीं दिया.
उत्तर कोरिया की क्षमताएं
उत्तर कोरिया अपने हथियारों की क्षमता को परखने के लिए भी मिसाइल टेस्ट करता है, जिसमें अधिकारियों के मुताबिक "नई तरह की" मिसाइलें भी शामिल हैं. टाक्स कहते हैं, "हमने हाल की परेडों में नई तरह की हथियार टेक्नोलोजी देखी है, जबकि पिछले साल टेस्ट बहुत कम हुए. मुझे लगता है कि वे बातचीत की मेज पर जाने से पहले कुछ टेस्ट पूरे कर लेना चाहते हैं."
उत्तर कोरिया ने पहले भी ऐसे परीक्षण किए हैं, हालांकि उस बात को 11 महीने हो जुके हैं जब उसने पिछली बार छोटी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलों को टेस्ट किया था. लेकिन चीजें उस वक्त और जटिल हो जाती हैं जब ऐसी खुफिया रिपोर्टें मिलती हैं कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों का जखीरा भी बढ़ा रहा है. उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि वह कभी परमाणु हथियार बनाने का अपना कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा, कम से कम अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए तो बिल्कुल नहीं.
उधर अमेरिका में आने वाले नए राष्ट्रपति से हमेशा कोई ना कोई समझौते करने की उम्मीद लगाई जाती है. अगर कोई समझौता होता है तो उत्तर कोरिया को उसका बहुत फायदा होगा. उस पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है. गो भी मानते हैं कि हथियारों में कटौती की डील संभव है, लेकिन वह यह भी कहते हैं, "उत्तर कोरिया का परमाणु निरस्त्रीकरण जल्द संभव नहीं दिखता है, कम से कम एक अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल में तो बिल्कुल नहीं. इसमें बहुत समय लगेगा."
रिपोर्ट: फ्रांक स्मिथ (स्योल)
(dw.com)
साहेल रेगिस्तान के विशाल भूभाग से सिनाई प्रायद्वीप तक और अब मोजाम्बिक. जिहादी गुटों के लिए अफ्रीका बेहद उपजाऊ जमीन साबित हो रहा है. इस इलाके में पहले से चल रहे संघर्षों ने भी जिहादियों को पैर जमाने के मौके दिए हैं.
हाल में अफ्रीकी देश मोजाम्बिक में प्रांतीय राजधानी पाल्मा शहर पर कट्टरपंथी इस्लामी चरमपंथियों का कब्जा दिखाता है कि कैसे दूसरे कमजोर अफ्रीकी देशों पर भी खतरा मंडरा रहा है, जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है. पाल्मा इसलिए भी अहम है क्योंकि उसके पास मोजाम्बिक के अहम प्राकृतिक गैस प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
दुनिया के दो बड़े आतंकवादी गुटों तथाकथित इस्लामिक स्टेट और अल कायदा को मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. उसकी भरपाई के लिए इन दोनों गुटों को नई जमीन की तलाश है. मोजाम्बिक में चरमपंथियों के उभार पर न्यूयॉर्क स्थित थिंक टैंक सौफान सेंटर के विश्लेषक कहते हैं, "अगर इसे आईएसआईएस से किसी भी तरह की मदद मिल रही है, तो आने वाले दिनों में इसे और बल मिलेगा और यह क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा होगा."
ट्विटर पर खुद को मिस्टर क्यू कहने वाले आतंकवाद के विषयों से जुड़े जाने माने विश्लेषक का कहना है कि इस्लामिक स्टेट ने जनवरी 2020 से जितने भी हमलों की जिम्मेदारी ली है, उनमें से 16.5 प्रतिशत हमले अफ्रीका में हुए हैं. वहीं इराक और सीरिया में 35 प्रतिशत हमले हुए.
संकट का फायदा
इलाके के सरकारी अधिकारियों और पश्चिमी अधिकारियों का मानना है कि उत्तरी अफ्रीका में सालेह के इलाके में एक और संघर्ष उभर रहा है, जहां फ्रांस के बलों को स्थानीय जिहादी गुटों के खिलाफ स्थानीय सेनाओं का साथ देना पड़ा है. आईएस और अल कायदा संघर्ष और संकट की इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में हैं. दोनों ही गुट हाल के सालों में अपने बड़े नेताओं को खोने के बावजूद अपना वजूद बचाए रखना चाहते हैं. जोहानेसबर्ग में आतंकवाद रोधी एक कंसल्टेंट ब्रेंडा गिथिंग्यू का कहना है, "वैश्विक स्तर पर हुए बड़े नुकासनों के बावजूद उनकी अफ्रीकी शाखाएं उन्हें जीवित रखने में अहम योगदान दे रही हैं."
वैसे अफ्रीका में पहले से कई चरमपंथी गुट सक्रिय हैं जिनमें सोमालिया में अल शबाब है तो अल्जीरिया, मिस्र, लीबिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में कई दूसरे गुट हैं. फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि जिहादियों के नियंत्रण में एक व्यवस्थित "साहेलिस्तान" का उभार अभी आकार नहीं दे रहा है. मोजाम्बिक के बारे में मिस्टर क्यू ने समाचार एजेंसी एएफपी के साथ बातचीत में कहा, "जरूरी नहीं कि आईएस वहां पर हथियार या फिर पैसा भेज रहा हो. यहां बात सैद्धांतिक सदस्यता की है, एक साझा मकसद के बारे में सरोकार की."
स्थानीय एजेंडा
अफ्रीका में सक्रिय गुट आम तौर पर बताते हैं कि उनकी वफादारी किसके साथ है और फिर सब सदस्यों तक संदेश पहुंचाया जाता है जो उन्हें आपस में बांधता है, लेकिन सेना के जैसा कोई व्यवस्थित ढांचा देखने को नहीं मिलता है. किसी वैश्विक उद्देश्य के प्रति वफादारी के बाजवूद स्थानीय गुटों के अपने कुछ लक्ष्य होते हैं जिनमें किसी इलाके पर नियंत्रण करना या फिर सरकार की किसी कथित दमनकारी नीति का अंत कराना शामिल होता है. इलाके में फैली गरीबी के कारण उन्हें कई बार सहानुभूति भी आराम से मिल जाती है.
विश्लेषक कहते हैं कि कुछ पश्चिमी अधिकारियों की चेतावनियों के बावजूद अफ्रीकी जिहादी गुटों की इसमें कम ही दिलचस्पी होती है कि वे यूरोप या फिर उत्तरी अमेरिका में जाकर हमले करें. यही वजह है कि स्थानीय चरमपंथी गुट के मुखिया कभी आईएस या फिर अल कायदा के नेतृत्व में ऊपर तक नहीं पहुंच पाते. नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंस में अफ्रीका विशेषज्ञ स्टिग यार्ले हांसेन का कहना है, "उन सब का एक स्थानीय एजेंडा होता है और मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई नेतृत्व का उम्मीदवार होता है. लेकिन उनकी अहमियत बढ़ी जरूरी है."
एके/आईबी (एएफपी)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 31 मार्च | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश की राजधानी की स्थानीय अदालत प्रणाली में एक भारतीय अमेरिकी को जज के रूप में नामित किया है। यह कदम पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नियुक्त किए गए एक और अधिकारी का नामांकन वापस लिए जाने के बाद सामने आया है।
व्हाइट हाउस ने मंगलवार को घोषणा की कि बाइडेन ने रूपा रंगा पुटगुंट्टा को कोलंबिया जिले के सुपीरियर कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नामित किया है, जो वॉशिंगटन के लिए एक स्थानीय अदालत है। पिछले महीने, उन्होंने ट्रंप द्वारा अपने कार्यकाल के आखिरी समय में उच्च स्थानीय अदालत में नियुक्त किए गए जज विजय शंकर का नामांकन वापस ले लिया था। शंकर को अपनी नियुक्ति के लिए सीनेट की पुष्टि की आवश्यकता थी, जिसे डेमोक्रेट्स के नियंत्रण के चलते नहीं पा सकते थे।
पुट्टागुंटा अब कोलंबिया रेंटल हाउसिंग कमीशन के जिला के लिए एक प्रशासनिक न्यायाधीश हैं। इससे पहले वे आपराधिक मामलों में गरीबों का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और उन्होंने घरेलू शोषण के पीड़ितों के साथ भी काम किया है।
इस बीच बाइडेन ने एक पाकिस्तानी अमेरिकी जाहिद एन कुरैशी को संघीय न्यायाधीश नियुक्त किया है। यदि सीनेट उनको अपनी सहमति देती है तो वह देश के पहले मुस्लिम संघीय न्यायाधीश होंगे। इससे पहले 2016 में आबिद कुरैशी को पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा एक संघीय न्यायाधीश के रूप में नामित किया गया था, लेकिन ट्रंप द्वारा पद ग्रहण करने से पहले सीनेट ने उनके नामांकन पर कार्रवाई नहीं की और वह यह पद पाने से चूक गए थे। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 31 मार्च : विश्व बैंक के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था में पिछले एक साल में कोरोना महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद उल्लेखनीय उछाल देखने को मिला है. विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि वित्तीय वर्ष (FY21-22) में देश की वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.5 से 12.5 फीसदी तक रह सकती है.
विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वार्षिक स्प्रिंग बैठक से पहले जारी अपनी साउथ एशिया इकनॉमिक फोकस रिपोर्ट में कहा कि कोरोना महामारी आने से पहले से ही अर्थव्यवस्था धीमी थी. इसमें कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2017 में 8.3 फीसदी पहुचने के बाद वित्त वर्ष 2020 में विकास दर घटकर 4.0 प्रतिशत पर पहुंच गई थी.
दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री हंस टिमर ने बताया, "यह आश्चर्यजनक है कि भारत एक साल पहले की तुलना में कितना आगे आ गया है. यदि आप एक साल पहले की सोचते हैं, तो अभूतपूर्व गिरावट थी. वैक्सीन को लेकर को कोई स्पष्टता नहीं थी. बीमारी के बारे में बड़ी अनिश्चितता थी. और अब अगर आप इसकी तुलना करते हैं, तो भारत की अर्थव्यवस्था में दोबारा उछाल देखने को मिल रहा है. टीकाकरण शुरू कर दिया, वैक्सीन के प्रोडेक्शन में अग्रणी है.'
अधिकारी ने बताया कि हालांकि, स्थिति अभी भी अविश्वसनीय रूप से चुनौतीपूर्ण है. भारत में हर किसी को टीका लगाने की एक बड़ी चुनौती है. ज्यादातर लोगों ने चुनौती को कम करके आंका. (ndtv.in)
वाशिंगटन, 31 मार्च : अमेरिका की एक रिपोर्ट में मंगलवार को कहा गया है कि भारत में मानवाधिकारों से संबंधित कई अहम मुद्दे हैं, जिनमें गैर कानूनी हत्याएं, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता पर पाबंदी, भ्रष्टाचार और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की सहनशीलता शामिल है. अमेरिकी कांग्रेस को ‘2020 कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स प्रेक्टिसेज' में विदेश विभाग ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति में सुधार हुआ है.
विदेश विभाग रिपोर्ट के भारत खंड में कहता है कि सरकार कुछ सुरक्षा एवं संचार पाबंदियों को हटा कर जम्मू-कश्मीर में धीरे-धीरे सामान्य हालात बहाल करने के लिए लगातार कदम उठा रही है. उसने कहा कि सरकार ने ज्यादातर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत से छोड़ दिया है. साल 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनते हुए उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था.
विदेश विभाग ने अपनी रिपोर्ट में भारत में एक दर्जन से अधिक मानवाधिकारों से जुड़े़ अहम मुद्दों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें पुलिस द्वारा न्यायेत्तर हत्याओं समेत अवैध कत्ल, कुछ पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित करना, क्रूरता, अमानवीयता या अपमानजनक व्यवहार या सजा के मामले, सरकारी अधिकारियों द्वारा मनमानी गिरफ्तारियां और कुछ राज्यों में राजनीतिक कैदी प्रमुख हैं. भारत अतीत में ऐसी रिपोर्टों को खारिज कर चुका है. (ndt.in)
ढाका, 31 मार्च | बांग्लादेश में हिंदू धर्म मानने वाले दलित समुदाय ने रंगों के त्योहार होली को भारी उत्साह और उमंग के साथ मनाया। हालांकि यहां होली एक दिन बाद मंगलवार को मनाई गई क्योंकि देश में मुसलमानों ने सोमवार को 'शब-ए-बारात' मनाई थी।
बता दें कि बांग्लादेश में दलितों को आधिकारिक तौर पर 'हरिजन' कहा जाता है। होली सेलिब्रेशन के दौरान लोगों को 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली' जैसे लोकप्रिय हिंदी गानों की धुनों पर नाचते-गाते हुए देखा गया। वहीं रंग-गुलाल लगाए महिलाओं ने इस उत्सव को दूर से ही देखा।
इस मौके पर हरिजन समुदाय की एक बुजुर्ग महिला वसंती रानी ने कहा कि होली के दौरान वे भी लोकप्रिय हिंदी गीतों की धुन पर नाचती थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। उन्होंने कहा, "कोविड-19 महामारी के दौरान हमें सरकार द्वारा जारी किए गए सुरक्षा उपायों का पालन करना चाहिए। ऐसे में मास्क लगाकर डांस का मजा कैसे लिया जा सकता है?"
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नूरजहां खान ने आईएएनएस को बताया, "मुस्लिमों के लिए हरिजनों ने अपने उत्सव को मनाने में एक दिन की देरी की। मुझे उम्मीद है कि सांप्रदायिक सौहार्द के सुनहरे दिन जल्द ही आएंगे, जब बाकी लोग भी होली के मौके पर खुशी के इन पलों के साझीदार बनेंगे।"
उन्होंने कहा कि 2021 में भी हरिजनों के साथ होली मनाने के लिए कोई भी यहां नहीं है, क्योंकि 'अछूत' कहा जाता है। खान पिछले 46 सालों से हरिजनों के करीब ही रह रहे हैं। इस बीच, चटगांव में भी हरिजनों ने होली मनाई। (आईएएनएस)
ताजिकिस्तान में हो रही अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया से संबंधित बैठक में भारत का आधिकारिक रूप से शामिल होना इस पूरी प्रक्रिया में एक दिलचस्प मोड़ है. देखना होगा की भारत के शामिल होने से शांति प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
अभी तक भारत इस प्रक्रिया में बाहर से शामिल था, लेकिन यह पहली बार है जब भारत के विदेश मंत्री इस प्रक्रिया में आधिकारिक रूप से शामिल हो रहे हैं. साफ है कि जैसे जैसे अमेरिका के अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ वहां से निकल जाने की समय सीमा करीब आ रही है, शांति वार्ता में शामिल देशों की सोच में भारत की भूमिका को लेकर बदलाव आ रहे हैं.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ताजीकिस्तान की राजधानी दुशांबे में चल रहे हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस के नौवें मिनिस्टीरियल सम्मेलन में अफगानिस्तान और ताजीकिस्तान के विदेश मंत्रियों के निमंत्रण पर भाग लेने पहुंचे हैं. मंगलवार 30 मार्च को सम्मेलन में भाग लेते उन्होंने भारत के नजरिए से तीन बातों पर जोर दिया - भारत प्रांत में दोहरी शांति चाहता है, यानी अफगानिस्तान के अंदर और उसके इर्द-गिर्द भी; शांति वार्ता के सफल होने के लिए जरूरी है कि सभी पक्षों को एक दूसरे पर भरोसा हो और वो एक राजनीतिक समाधान ढूंढने के लिए प्रतिबद्ध हों; और हार्ट ऑफ एशिया प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन हो.
इसके अलावा जयशंकर ने भारत की तरफ से अमेरिका के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक ऐसी शांति प्रक्रिया की बात की गई है जिसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्री साझा रूप से शामिल हों. जानकार जयशंकर के बयान में कई संकेत देख रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉय चौधरी मानती हैं कि विदेश मंत्री ने अपने बयान से अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तीनों को कुछ संकेत दिए हैं.
अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को एक साथ संकेत
नीलोवा ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत जो बाइडेन प्रशासन को संकेत दे रहा है कि अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से निकाल लेने का समय अभी नहीं आया है; अफगानिस्तान सरकार को संकेत दे रहा है कि चाहे जो भी हो, भारत हमेशा अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के समर्थन में रहेगा; और पाकिस्तान को यह संकेत देने की कोशिश कर रहा है कि उसे यह मानना पड़ेगा कि अफगानिस्तान में भारत के वैध हित हैं और भारत अफगान शांति प्रक्रिया का हिस्सा है.
जयशंकर ने अपने बयान में तालिबान का भी जिक्र किया और कहा कि भारत अफगान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत को आगे बढ़ाने की सभी कोशिशों के समर्थन में रहा है. लेकिन कई जानकार इसे एक बुरे आकलन के रूप में देख रहे हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सुशांत सरीन कहते हैं कि जयशंकर ने अपने बयान में सब सही चीजें कही हैं लेकिन हर बात जो उन्होंने की वो सच होगी नहीं. सरीन मानते हैं कि अफगानिस्तान का समाधान बातचीत से नहीं, बल्कि बंदूक से निकलेगा और यही इस स्थिति का कड़वा सच है.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि तालिबान को ऐसा लगता है कि वो जीतने ही वाले हैं, तो इन हालत में वो कोई भी शर्त क्यों मानेंगे? सरीन ने कहा, "आप देखिए अभी तक तालिबान ने क्या कहा है...वो एक अमीरात की स्थापना की महत्वाकांक्षा से पीछे नहीं हटे हैं...उन्होंने अपनी इस्लामिक विचारधारा से समझौता करने से मना कर दिया है...उन्होंने किसी भी तरह के समझौते से इनकार कर दिया है."
क्या करेगा पाकिस्तान
जयशंकर के बयान के बाद अब यह देखने का इंतजार किया जा रहा है कि दुशांबे में उनकी मुलाकात पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से होगी या नहीं. दोनों देशों ने पिछले कुछ दिनों में पिछले दो सालों से खराब हुए आपसी रिश्तों को सुधारने की इच्छा के कई संकेत दिए हैं. कई जानकार मानते हैं कि कई दूसरे देश भी भारत और पाकिस्तान को दोस्ती की तरफ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि क्योंकि उन दोनों के बीच शांति के बिना अफगान शांति प्रक्रिया का सफल होना मुश्किल है.
जयशंकर के बयान में 'अफगानिस्तान के इर्द-गिर्द भी शांति' पर जोर देने को पाकिस्तान के लिए इशारा माना जा रहा है. नीलोवा का कहना है कि पाकिस्तान ने हमेशा से भारत को अफगान शांति प्रक्रिया से बाहर रखना चाहा है, लेकिन इस्लामाबाद को अब मानना होगा कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के न्योते के बाद भारत अब इस प्रक्रिया का आधिकारिक रूप से हिस्सा है.
हार्ट ऑफ एशिया प्रक्रिया 2011 से चल रही है. इसके तहत आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों का उद्देश्य अफगानिस्तान में शांति की प्रक्रिया को लेकर प्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना है. जयशंकर सोमवार को सम्मेलन से पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिले. तीन दिनों की इस यात्रा में वो सम्मेलन में भाग लेने वाले दूसरे देशों के नेताओं से भी मिलेंगे.
अफ्रीकी देश माली की एक युवा महिला के गर्भ में इस समय सात बच्चे पल रहे हैं. जच्चा और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए गरीब देश माली की सरकार ने इसका जिम्मा उठाया है.
सात शिशुओं को अपने गर्भ में पाल रही इस महिला को खास देखभाल और मेडिकल मदद मुहैया कराने के मकसद से माली की सरकार ने उसे मोरक्को भेजने की व्यवस्था की है. माली के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इस 25 वर्षीया महिला की सेहत की बेहतर देखभाल के लिए ऐसा कदम उठाया गया है.
प्रकृति में ऐसी दुर्लभ घटनाएं बहुत कम देखने को मिलती हैं. ऐसा और भी कम होता है कि कोई महिला सात शिशुओं वाली अपनी गर्भावस्था का टर्म पूरा कर पाए. माली की यह महिला बीते दो हफ्ते राजधानी बामाको के अस्पताल में बिता चुकी है और इसके बाद ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह फैसला लिया है.
माली के डॉक्टरों की सलाह पर उसे मोरक्को भेजा जा रहा है. मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि "इस असाधारण गर्भावस्था की बेहतर मेडिकल मॉनीटरिंग के लिए" ऐसा कदम उठाया जा रहा है.
सालेह क्षेत्र के गरीबी और संकट-ग्रस्त देश माली के स्थानीय मीडिया में खबरें हैं कि महिला उत्तर में स्थित टिंबकटू शहर की रहने वाली है और उसे सरकारी खर्चे पर मोरक्को भेजा जाएगा. स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार माली के अंतरिम राष्ट्रपति बाह एनडॉ ने इसके खर्च में निजी रूप से कुछ धन दिया है.
मंत्रालय के बयान में लिखा है, "हर कोई समझ सकता है कि इस महिला की डिलीवरी के बाद भी सात शिशुओं की देखभाल करना उसके लिए एक दूसरी चुनौती होगी." साथ ही बयान में कहा गया है कि उस चुनौती का सामना "मददगार माली के लोग हमेशा की तरह बेशक मिल कर करेंगे."
इसके पहले सन 1997 में एक अमेरिकी महिला ने एक साथ सात बच्चों को जन्म दिया था. इसके अलावा, सन 1998 में भी सऊदी अरब की एक 40 वर्षीय महिला के भी सात बच्चे पैदा हुए. आखिरी बार सन 2008 में मिस्र की एक 27 वर्षीया महिला ने एक साथ सात स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया था.
आरपी/आईबी (एएफपी)
लोकतांत्रिक व्यवस्था से और दूर ले जाते हुए चीन ने अपने अर्धस्वायत्त क्षेत्र हांगकांग के चुनावी तंत्र में कई ऐसे बदलाव कर दिए हैं, जिससे हांगकांग के शासन में उसका दखल और बढ़ जाएगा.
चीन ने हांगकांग की विधायिका के लिए जनता द्वारा सीधे चुने जाने वाले प्रतिनिधियों की सीटों में भारी कमी की है. उनकी संख्या पहले के मुकाबले एक चौथाई से भी कम कर दी गई है. यह भी तय किया गया है कि हांगकांग का शासन चलाने वाले ज्यादातर विधायक सीधे सीधे एक बीजिंग-समर्थक समिति चुनेगी. माना जा रहा है कि हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थन में तेज हो रहे आंदोलन को कुचलने के लिए चीन ने यह कदम उठाया है.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने लिखा है कि हांगकांग के मिनी चार्टर 'बेसिक लॉ' में बदलावों का राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आदेश दे दिया है.
हांगकांग के 75 लाख निवासियों को अब तक नए बदलावों की पूरी जानकारी नहीं मिली है. चीन की संसद में हांगकांग की ओर से अकेले प्रतिनिधि टैम यू-चुंग ने इस बाबत मीडियाकर्मियों से बातचीत में बताया कि हर उम्मीदवार का डॉसियर बनेगा जिसका मूल्यांकन सुरक्षा सेवाएं भी करेंगी. उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय सुरक्षा समिति और राष्ट्रीय सुरक्षा पुलिस हर उम्मीदवार पर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी जिससे रिव्यू कमेटी को उनकी योग्यता तय करने में मदद मिलेगी."
चीन
चीन की राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे कमजोर संसद है. इसके करीब 3000 सदस्य हैं. हर पांच साल पर इसका चुनाव होता है. एक सदन वाली चीनी संसद को कानून बनाने, सरकार की गतिविधियों की निगरानी और प्रमुख अधिकारियों के चुनाव का अधिकार है. लेकिन असल में सारे फैसले देश कम्युनिस्ट पार्टी लेती है, जिसका चीन में एकछत्र राज है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस प्रक्रिया के माध्यम से सुनिश्चतित करना चाहती है कि एक "देशभक्त" हांगकांगवासी ही उसकी विधायिका के लिए लिए चुनाव में खड़ा हो. नए कानून के अनुसार, हांगकांग की विधायिका में सीटों की संख्या 70 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी. लेकिन इन 90 में से केवल 20 सीटों पर ही हांगकांग के लोगों के जरिए सीधे तौर पर चुने लोग बैठेंगे. अब तक कुल 70 में से आधी सीटों यानि 35 पर जनता के चुने प्रतिनिधि होते थे.
90 में से बाकी की 40 सीटों पर प्रतिनिधियों का चुनाव एक चीन-समर्थक समिति चुनेगी. बची हुई 30 सीटों के लिए प्रतिनिधि तमाम उद्योग धंधों और विशेष समूहों से चुने जाएंगे, जिन्हें 'फंक्शनल कंस्टीचुएंसी' कहा जाता है. यह समूह भी पारंपरिक रूप से चीन का वफादार रहा है.
मार्च की शुरुआत में बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के हजारों प्रतिनिधि अपनी संसद की सालाना बैठक के लिए जुटे थे. बैठक में अंतरराष्ट्रीय जगत को चेतावनी दी गई कि वो हांगकांग के मामले में दखल ना दे और ऐसा करने वालों का चीन कड़ाई से विरोध करेगा. चीन ने इसी बैठक में घोषणा की थी कि वह हांगकांग की चुनावी व्यवस्था में बड़े बदलाव करने वाला है जिससे हांगकांग की बागडोर "देशभक्त" लोगों को सौंपी जा सके. पिछले साल भी चीन ने हांगकांग के लिए जो नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाया था उसका इस्तेमाल कर अब तक कई दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
पहला दिन
विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हांगकांग में लागू हो चुका है. शहर की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने प्रेस वार्ता में नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की प्रतियां जारी कीं. आलोचकों का कहना है कि इस तरह का कड़ा कानून चीन की मुख्य भूमि पर भी नहीं है.
सन 1997 में ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को सौंपा था और अगले 50 सालों के लिए उसके कुछ राजनीतिक अधिकारों का वादा लिया था. आलोचकों का मानना है कि चीन उन वादों को तोड़ रहा है और हांगकांग में लगातार अपना दखल बढ़ाता जा रहा है. 2019 में चीन हांगकांग के लिए प्रत्यर्पण बिल ले कर आया था जिसका कड़ा विरोध होने पर उसे स्थगित करना पड़ा था. चीन अब हांगकांग की चुनावी व्यवस्था में बदलाव लाकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि फिर वहां ऐसा होना संभव ही ना हो सके. दूसरी ओर, बीते दो सालों से वहां चीन के दखल को कम करने और लोकतांत्रिक सुधारों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन अब भी जारी हैं.
आरपी/एनआर (एएफपी)
मास्को, 31 मार्च| रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग करके सहयोग और अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर चर्चा की। क्रेमलिन ने एक बयान जारी करके यह जानकारी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हुए सभी नेताओं ने यूरोपीय संघ (ईयू) के देशों में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी के पंजीकरण, उपयोग और उत्पादन की संभावना समेत कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई के प्रयासों पर चर्चा की।
यूक्रेन की स्थिति को लेकर पुतिन ने कीव से आग्रह किया कि वो डोनबास के साथ सीधे संवाद करे और क्षेत्र के विशेष दर्जे से जुड़े कानूनी मुद्दों को निपटाने के लिए सभी समझौतों को पूरा करे। साथ ही रूस ने रूसी पक्ष ने डोनबास विद्रोहियों और यूक्रेनी सरकारी बलों के बीच सशस्त्र टकराव में हुई बढ़ोतरी पर भी चिंता जताई।
क्रेमलिन के अनुसार इन तीनों नेताओं ने ईरान परमाणु समझौते को संरक्षित करने और उसे लागू करने की दिशा में समन्वय के लिए भी समर्थन जताया। इस मौके पर पुतिन ने मर्केल और मैक्रों को रूसी विपक्षी नेता अलेक्सी नवालनी का पूरा मामला भी समझाया। इसके अलावा उन्होंने सीरिया और लीबिया की स्थितियों पर भी चर्चा की। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 31 मार्च| म्यांमार में बिगड़ती स्थितियों को देखते हुए अमेरिका ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि वे म्यांमार की यात्रा न करें। साथ ही अमेरिका ने अपनी ट्रैवल एडवाइजरी को भी बढ़ाकर लेवल 4 पर कर दिया है। डीपीए न्यूज एजेंसी के मुताबिक, अमेरिकी विदेश विभाग ने मंगलवार को एक सलाह में कहा कि उसने सभी गैर-आपातकालीन सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों को दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश में फैली कोविड-19 महामारी और क्षेत्र में नागरिक अशांति, सशस्त्र हिंसा के क्षेत्रों हिंसा के चलते उसे छोड़ने का आदेश दिया था। इससे पहले विभाग ने 14 फरवरी को गैर-आपातकालीन सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के 'स्वैच्छिक प्रस्थान' को अधिकृत किया था।
इस एडवाइजरी में कहा गया है, "सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने कोविड-19 के कारण बर्मा के लिए लेवल 4 ट्रैवल हेल्थ नोटिस जारी किया है। बर्मा की सेना ने निर्वाचित सरकारी अधिकारियों को हटा दिया है और उन्हें हिरासत में लिया है। वहां सैन्य शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और इस विरोध के जारी रहने की आशंका है।"
एक मॉनीटरिंग ग्रुप ने मंगलवार को कहा कि म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक में कम से कम 500 लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारी मारे गए हैं। असिस्टेंट एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स (एएपीपी) ने सोमवार को सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए 14 और लोगों के बाद देशव्यापी मौत का आंकड़ा 510 पर पहुंचने की बात कही।
आंग सान सू की सत्ताधारी पार्टी द्वारा भारी मतों से चुनाव जीतने के बाद म्यांमार की सेना ने देश पर नियंत्रण कर लिया है। नई एडवाइजरी के बाद म्यांमार अब लेवल 4 की श्रेणी में सोमालिया और सीरिया जैसे युद्धरत देशों के साथ शामिल हो गया है। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद. भारत और पाकिस्तान के साथ रिश्ते एक बार फिर पटरी पर आ सकते हैं. इसके लिए पाकिस्तान खुद कदम उठा रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पाकिस्तान सरकार बुधवार को भारत के साथ व्यापार संबंधों को फिर से शुरू करने पर विचार करने जा रही है. सूत्रों ने कहा कि आर्थिक मामलों पर पाकिस्तान की कैबिनेट समिति भारत से चीनी और कपास आयात करने का फैसला करने जा रही है.
समिति की बैठक पाकिस्तानी समयानुसार सुबह 11.30 बजे होनी है. अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान रद्द करने और दो नए केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य के बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ संबंध तोड़ दिए थे.
इमरान खान ने मोदी को लिखा पत्र, कहा-वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी
दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर कहा है कि जम्मू कश्मीर मुद्दा सहित दोनों देशों के बीच लंबित सभी मुद्दों का समाधान करने को लेकर सार्थक और नतीजे देने वाली वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है. खान ने यह पत्र पाकिस्तान दिवस के मौके पर पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें भेजी गई बधाइयों के जवाब में लिखा है. मोदी ने अपने पत्र में कहा था कि पाकिस्तान के साथ भारत सौहार्द्रपूर्ण संबंधों की आकांक्षा करता है, लेकिन विश्वास का वातावरण, आतंक और बैर रहित माहौल इसके लिए ‘अनिवार्य’ है.
प्रधानमंत्री मोदी के पत्र के जवाब में खान ने उनका शुक्रिया अदा किया और कहा कि पाकिस्तान के लोग भारत सहित सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण सहयोगी संबंध की आकांक्षा करते हैं. आतंक मुक्त माहौल पर खान ने कहा कि शांति तभी संभव है, यदि कश्मीर जैसे सभी लंबित मुद्दों का समाधान हो जाए.
इमरान ने भारत के लोगों को शुभकमानाएं दीं
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने 29 मार्च को लिखे पत्र में कहा, ‘हम इस बात से सहमत हैं कि खासतौर पर जम्मू कश्मीर विवाद जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच लंबित सभी मुद्दों के समाधान पर दक्षिण एशिया में टिकाऊ शांति एवं स्थिरता निर्भर करती है. ’ खान ने कहा कि सार्थक एवं नतीजे देने वाली वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है. उन्होंने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत के लोगों को शुभकमानाएं भी दीं.
गौरतलब है कि हाल ही में सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने भारत की तरफ शांति का हाथ बढ़ाते हुए कहा था कि वक्त आ गया है कि दोनों पड़ोसी देश अतीत को भुला दें और आगे बढ़ें. (भाषा इनपुट के साथ) (news18.com)
वॉशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मंगलवार को दो अश्वेत महिलाओं और पहले मुस्लिम जज को संघीय न्यायाधीश के पदों पर नियुक्ति के मनोनीत किया है. इसमें भारतीय-अमेरिकी रूपा रंगा पुट्टागुंटा और पाकिस्तानी मूल के जाहिद कुरैशी समेत 10 अन्य उम्मीदवार शामिल है.
45 वर्षीय ज़ाहिद कुरैशी सीनेट द्वारा अनुमोदित होने पर संघीय जिला न्यायाधीश के रूप में सेवा देने वाले अमेरिका के पहले मुस्लिम बन जाएंगे. कुरैशी पाकिस्तानी मूल के हैं. वर्तमान में वह न्यू जर्सी में मजिस्ट्रेट जज के रूप में सेवाएं दे रहे हैं.
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत उम्मीदवारों में से 10 फेडरल सर्किट और जिला अदालत न्यायाधीश पदों के लिए हैं, जबकि एक उम्मीदवार कोलंबिया जिला सुपीरियर कोर्ट के न्यायाधीश पद के लिए है.
कौन हैं पूर्व एस्ट्रोनॉट बिल नेल्सन, जो निभाएंगे NASA के CEO की भूमिका
राष्ट्रपति बाइडन द्वारा मनोनीत जजों में सबसे प्रमुख नाम अफ्रीकी-अमेरिकी मूल की जज केटंजी ब्राउन जैकसन का है. जैकसन अभी डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में यूएस कोर्ट ऑफ अपील की जज हैं और मामलों को बेहतर तरीके से हैंडल करने के लिए जानी जाती हैं. अगर सीनेट ने उनके नाम पर मुहर लगा दी तो 50 वर्षीय जैकसन मेरिक गारलैंड को रिप्लेस करेंगी. गारलैंड हाल ही में बाइडन की अटॉनी जनरल नियुक्त हो चुकी हैं. अगर आगे सुप्रीम कोर्ट में वैकेंसी होती हैं, तो जैकसन वहां जज के लिए मजबूत दावेदार भी हैं.
व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी कर कहा कि अगर अमेरिकी सीनेट से मंजूरी मिल जाती है, तो न्यायाधीश पुट्टागुंटा डीसी जिले के लिए अमेरिकी जिला अदालत में सेवा करने वाली पहली एशियाई-अमेरिकी महिला होंगी. वर्तमान में पुट्टागुंटा डीसी रेंटल हाउसिंग कमीशन में प्रशासनिक न्यायाधीश हैं.
भारतीय-अमेरिकी दम्पत्ति ने हेल्थ सेक्टर के लिए बिहार और झारखंड को दान किए एक करोड़ रुपए
अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने पहले ही कहा था कि उनके प्रशासन में पूरे अमेरिका का प्रतिनिधित्व होगा. बाइडन की टीम में महिलाओं और अश्वेत को भी तरजीह मिलेगी. (एजेंसी इनपुट के साथ) (news18.com)
अफग़ानिस्तान में शांति बहाली की कोशिश के क्रम में मंगलवार से ताजिकिस्तान की राजधानी दोशान्बे में भारत, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की समेत दो दर्जन से अधिक मुल्कों के नेता अहम बातचीत में हिस्सा ले रहे हैं. तालिबान के साथ अमेरिका के समझौते के बाद क़तर के दोहा में हुई बैठकें लंबा खिंचती रही हैं.
उधर, अमेरिका ने कहा है कि तालिबान के साथ हुए समझौते की एक शर्त- यानी अमेरिकी फौजों की पूरी तरह से एक मई तक वापसी पर वो सोच विचार कर रहा है. तालिबान ने कहा है कि इसका मतलब होगा विदेशी फौजों पर हमले.
दोशान्बे में दिए गए अपने भाषण के दौरान अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने ज़ोर देकर कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में बदलाव चुनाव के ज़रिये ही होना चाहिए. अशरफ़ ग़नी ने कहा कि शांति वार्ता के बाद जो चुनाव हों, वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की देख-रेख में करवाए जाएं और वो समावेशी होना चाहिए.
अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत ज़ल्मी ख़लीलज़ाद ने मार्च के महीमे में ही प्रस्ताव दिया था कि मुल्क में शांति की स्थापना के लिए एक कार्यवाहक सरकार बहाल की जानी चाहिए लेकिन अशरफ़ ग़नी ने, जिनका कार्यकाल अभी चार साल बाक़ी है, इस प्रस्ताव का विरोध किया था.
अशरफ़ ग़नी ने फिर से कहा है कि वो चुनाव के लिए तैयार हैं. दूसरी तरफ़, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में वॉशिंगटन में कहा था कि अमेरिकी फौजों की वापसी का एक मई के डेडलाइन को पूरा कर पाना मुश्किल होगा.
संघर्षविराम लागू करना
पहली मई तक अमेरिकी फौजों की वापसी तालिबान और डोनाल्ड ट्रंप के समय की अमेरिकी प्रशासन के फरवरी 2020 में हुए समझौते की एक अहम शर्त है. इस समझौते के बाद तालिबान ने विदेशी फौजों पर अफ़ग़ानिस्तान में हमले कम कर दिए हैं हालांकि सरकारी फौजें और संस्थाओं पर उसके हमलों में तेज़ी से इजाफ़ा हुआ है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, इन हमलों की तादाद पिछले 10 सालों में सबसे अधिक हो गई है. राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने कहा कि मुल्क में संघर्षविराम लागू हो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसकी निगरानी करे.
मॉस्को में अफग़ानिस्तान पर हुई बैठक के बाद रूस, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान ने एक साझा बयान जारी कर तालिबान से कहा था कि वो सर्दियों के पहले हमलों में जिस तरह की तेज़ी लाते हैं उसे रोकें और हिंसा खत्म करें. इस पर तालिबान ने जवाब दिया था कि वो इसके लिए तैयार है, लेकिन वो इसे संघर्षविराम नहीं चाहता.
हालांकि भारत मॉस्को में हुई वार्ता का हिस्सा नहीं था लेकिन दोशान्बे शांति वार्ता में वो शामिल है और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अफ़गानिस्तान में शांति की स्थापना के लिए ज़रूरी है कि उसके आसपास के क्षेत्र में भी शांति कायम रहे. उन्होंने अपने भाषण में डबल पीस (दोहरी शांति) की बात की.
इससे समझा जाता है कि एस जयशंकर कहना चाहते हैं कि पास के देशों को अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करना ही चाहिए, साथ ही ये भी ज़रूरी है कि वो अपने पड़ोसियों से भी शांति स्थापित करें. भारतीय विदेश मंत्री ने राजनीतिक समाधान की बात भी कही.
दूसरी तरफ़, पाकिस्तान और भारत को लेकर स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि ताजिकिस्तान में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच किसी तरह की बैठक की अब तक कोई योजना नहीं है. हालांकि सूत्रों के हवाले से कही गई ख़बर में ये बात भी है कि ऐसी कोई बैठक हो सकती है इससे पूरी तरह से मना नहीं किया जा सकता है.
इस बीच, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने अफ़ग़ानिस्तान को चीन समर्थित प्रोजेक्ट में शामिल होने का न्योता दिया है.
शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा, "बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर जो पहल की गई है, पाकिस्तान उसका हिस्सा है. ये प्रोजेक्ट अफ़ग़ानिस्तान के लिए भी खुला है, इससे उसका फ़ायदा होगा."
चीन के पैसे से तैयार हो रहे इस प्रोजेक्ट की दावत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने श्रीलंका के दौरे के बीच उस मुल्क को भी दी थी. भारत इस योजना को लेकर असहज रहा है. हालांकि हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी होती दिख रही है.
दोनों मुल्कों ने नियंत्रण रेखा पर साल 2003 में किए गए युद्धविराम समझौते को फिर से लागू किया है. पाकिस्तान की एक खेल टीम भारत भी आई और दोनों मुल्कों के बीच नदियों के मामले पर बैठक भी हुई है. (bbc.com)
-शुमाइला जाफ़री
इस्लामाबाद में क़रीब एक सदी पुराने हिंदू मंदिर को क्षतिग्रस्त करने के आरोप में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ किया गया है.
बनी गाला थाने में दर्ज़ एफआईआर के अनुसार रावलपिंडी के पुराना किला इलाके में स्थित इस मंदिर पर रविवार शाम को हमला किया गया.
पाकिस्तान की दंड संहिता के ईशनिंदा और दंगा भड़काने की कोशिश के साथ ग़ैर-क़ानूनी तौर पर जमा होने के ख़िलाफ़ लगने वाली धाराओं के तहत ये मामला दर्ज़ किया गया है.
बंटवारे के बाद पिछले 74 सालों से बंद पड़े इस मंदिर को फ़िलहाल पहले जैसी दशा में लाने के लिए 24 मार्च से मरम्मत का काम चल रहा है.
एफआईआर के अनुसार मरम्मत का काम शुरू होने के बाद इस ऐतिहासिक मंदिर के सामने से कुछ अतिक्रमणों को हटाया गया था.
'मंदिर को अपवित्र किया गया'
एफआईआर में कहा गया है कि रविवार शाम साढ़े सात बजे जब मज़दूर काम नहीं कर रहे थे, तब 10-15 लोगों ने मंदिर में घुसकर भवन को क्षतिग्रस्त कर दिया.
मंदिर के दरवाजा तोड़ने के साथ उसकी सीढ़ियों को नुक़सान पहुंचाया गया और मंदिर को अपवित्र भी किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार सूचना मिलने के बाद शहर के पुलिस प्रमुख भारी सुरक्षा बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, चूंकि मंदिर की मरम्मत चल रही है, इसलिए इसमें पूजा नहीं होती. न ही मंदिर में कोई मूर्ति है और कोई धार्मिक साहित्य भी वहां नहीं है.
यह एफआईआर अल्पसंख्यकों की संपत्ति की देखरेख करने वाले ट्रस्ट ईटीपीबी के सहायक सुरक्षा अधिकारी सैयद रज़ा अब्बास की शिकायत पर दर्ज़ हुई है.
पाकिस्तान से लौटी गीता को क्या उनका परिवार मिल गया है
'पाकिस्तान में हमें काफ़िर कहते हैं और भारत में पाकिस्तानी'
मंदिर की सुरक्षा की मांग
स्थानीय प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के बाद मरम्मत करने के लिए मंदिर को इसी ट्रस्ट को सौंपा था.
अपने आवेदन में अब्बास ने प्रशासन से इस मामले में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ मंदिर की सुरक्षा की भी मांग की है.
पूजा न होने के बावज़ूद मंदिर परिसर से अतिक्रमण हटने और मरम्मत का काम शुरू होने का हिंदुओं ने जश्न मनाया. 25 मार्च को हिंदू लोगों ने वहां होली भी खेली.
अतिक्रमण करने वालों ने मंदिर के चारों ओर कपड़ा बाजार बना लिया और मंदिर की चहारदीवारी के भीतर और प्रवेश द्वार पर दुकानें खोल ली थीं.
रावलपिंडी प्रशासन ने शहर के पुराने इलाके को फिर से पहले जैसा बनाने के लिए सुजान सिंह हवेली के एक किलोमीटर दायरे के भीतर के सात छोटे मंदिरों की मरम्मती का फ़ैसला लिया है. पुराना किला का यह माता मंदिर इन्हीं सात मंदिरों में से एक है.
मंदिरों पर हुए हालिया हमले
पिछले साल दिसंबर में ख़ैबर पख़्तूनख्वा के करक जिले में एक हिंदू संत की समाधि पर हमला किया गया था.
इस मामले में एक मौलवी के उकसावे पर कुछ लोगों ने समाधि को क्षतिग्रस्त कर उसे अपवित्र कर दिया था.
मामले का पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत स्वत: संज्ञान लिया और आदेश दिया कि दो हफ़्ते के भीतर समाधि की मरम्मत की जाए.
उस घटना में शामिल मौलवी के साथ और लोगों को भी गिरफ़्तार किया गया था.
बाद में वहां राज्य सरकार ने समाधि को फिर से बनाने के साथ एक स्थानीय जिरगा के गठन का भी एलान किया.
इस संस्था को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के तनाव को दूर करने का काम सौंपा गया.
'सरकार हिंदुओं की रक्षा करेगी'
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दोहराया है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए वचनबद्ध है.
इस साल के शुरू में तुर्की के एक चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हमारे यहां कोई अल्पसंख्यक किसी मुसलमान जितना ही पाकिस्तान का नागरिक है, इसलिए उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है.
हिंदू समुदाय के मुख्य संरक्षक डॉ रमेश कुमार ने ताज़ा मामला सामने के बाद कहा कि पाकिस्तान के संविधान के तहत हिंदुओं के समान नागरिक अधिकार तय हैं.
उनके अनुसार, हिंदुओं के खिलाफ़ घटने वाली छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो हमारी केंद्रीय और राज्य सरकारें हमेशा हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर हैं. पहले भी ऐसे मामलों में सरकार ने कड़ी कार्रवाई की है और आगे भी इसे गंभीरता से लिया जाएगा. (bbc.com)
नैरोबी. तंजानिया में दिवंगत राष्ट्रपति जॉन पोम्बे जोसेफ मागुफुली के पार्थिव शरीर के दर्शन के दौरान भगदड़ होने से 45 लोगों की मौत हो गयी. पुलिस ने मंगलवार को यह जानकारी दी, जबकि यह घटना पिछले सप्ताह हुई थी. अब देश की पूर्व उपराष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन हैं. उन्होंने मांगुफुली के निधन के बाद ये पद संभाला है. वह तंजानिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं.
शहर के पुलिस प्रमुख लजारो मम्बोसा ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति जॉन पोम्बे जोसेफ मागुफुली के शव को देखने के लिए बड़ी संख्या में समर्थक पहुंचे थे. उनका पार्थिव शरीर दार एस सलाम में एक स्टेडियम में रखा गया था. लोग दीवार फांंद कर अंंदर जाने की कोशिश कर रहे थे कि दीवार ढह गई, इससे वहां भगदड़ मच गई. इसमें कम से कम 45 लोगों की मौत हो गई.
सरकार के अनुसार हृदय संबंधी जटिलताओं के कारण मागुफुली का निधन हो गया. हालांकि विपक्षी नेताओं का कहना है कि कोरोना वायरस से संक्रमण को लेकर पैदा हुई जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हुई. भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान और अपनी नेतृत्व शैली को लेकर मागुफुली लोगों के एक तबके के बीच काफी लोकप्रिय थे.
कोरोना को प्रार्थना के जरिए मात देने का दावा किया था
जॉन मागुफुली ने कई महीनों तक प्रार्थना के जरिए कोविड-19 को मात देने का दावा किया था, लेकिन फिर फरवरी 2021 में उन्हें यह स्वीकार करना पड़ गया था कि देश में वायरस संक्रमण है. इसके बाद जारी अपील में राष्ट्रपति मागुफुली ने पूर्वी अफ्रीकी देश के लोगों से एहतियाती उपाय करने और मास्क पहनने का अनुरोध किया था. मागुफुली ने महामारी के दौरान कोविड-19 टीकों सहित विदेश में निर्मित सामानों को लेकर आगाह भी किया. राष्ट्रपति का यह बयान जांजीबार के उपराष्ट्रपति के निधन के कुछ दिन बाद आया था. उनकी पार्टी ने नेता के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि की थी. राष्ट्रपति के मुख्य सचिव का भी हाल ही में निधन हो गया था, लेकिन मौत के कारण का खुलासा नहीं किया गया. तंजानिया ने पिछले साल अप्रैल से ही देश में कोविड-19 के मामलों को लेकर कोई जानकारी नहीं दे रहा था. राष्ट्रपति लगातार इस बात का दावा करते रहे हैं कि इसे मात दी जा चुकी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम ने एक बयान में कहा था कि तंजानिया का वायरस की समस्या को स्वीकार करना उसके नागरिकों, पड़ोसी देशों और विश्व के लिए काफी अच्छा होगा. (news18.com)
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते की एक वायरल वीडियो के चलते खूब आलोचना हो रही है। दरअसल, वायरल वीडियो में दुतेर्ते को उनके घर पर एक महिला हेल्पर के प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश करते देखा गया था।
मामले के सामने आने पर प्रेसिडेंशियल पैलेस ने वायरल वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दुतेर्ते वीडियो में सिर्फ प्लेफुल होने की कोशिश कर रहे थे। बता दें कि इससे पहले, दक्षिण कोरिया में एक भाषण के बीच में दुतेर्ते ने एक विदेशी फिलिपिनो कार्यकर्ता को किस किया था जिसपर उनकी आलोचना हुई थी। (livehindustan.com)
WATCH: Duterte's "simple birthday celebration" in Davao City. pic.twitter.com/BZ1gp7glvo
— iMPACT Leadership (@iMPACTPH2019) March 28, 2021
न्यूयॉर्क. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन पर निशाना साधा है. ट्रंप ने बाइडेन को उनकी विदेश नीति को लेकर घेरा है. वो फ्लोरिडा के एक रिसॉर्ट में शादी समारोह के दौरान पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद लोगों से ये भी पूछा कि क्या वे उन्हें मिस कर रहे हैं? शादी के दौरान दिया गया उनका ये भाषण इन दिनों वायरल हो रहा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस समारोह में ट्रंप के दो खास दोस्त मेगन नॉड्रर और जॉन एरिगो भी पहुंचे थे. ट्रंप ने इस दौरान अमेरिका मेक्सिको बॉर्डर से लेकर चीन और ईरान के मुद्दों को लेकर बाइडन की आलोचना की. बता दें कि जब से बाइडन ने अमेरीका की सत्ता संभाली है तब से प्रवासियों की समस्या बढ़ गई है. बड़ी संख्या में लोग सीमा को पार कर अमेरिका पहुंच रहे हैं. मेक्सिको की सीमा पर जिस हालात में बच्चों को रखा जा रहा है, ट्रंप ने इसकी जमकर आलोचना की.
चुनाव का उठाया मुद्दा
इतना ही नहीं ट्रंप ने एक बार फिर से नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव का मुद्दा उठाया. उन्होंने चुनाव के नतीजों पर फिर से सवाल उठाए. ट्रंप को राष्ट्रपति के चुनाव में करीब 70 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वो हार मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने चुनावी नतीजों को अदालत में भी चुनौती दी थी. लेकिन यहां भी उनकी हार हुई थी.
हिंसा फैलाने का आरोप
बता दें कि इस साल 6 जनवरी को ट्रंप पर अमेरिकी कैपिटल पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा था. इस घटना में एक पुलिस अधिकारी सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी. हालांकि बाद में अमेरिका की सीनेट में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव गिर गया था. (news18.com)
लाहौर, 30 मार्च| पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक बाजार में गोलीबारी में तीन लोग मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट में ये जानकारी दी गई है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने कहा कि सोमवार की घटना लाहौर के व्यस्त बाजार में दो समूहों के बीच झड़प का परिणाम थी और मरने वालों में व्यापारी संघ के एक अध्यक्ष शामिल थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापारी संघ के अध्यक्ष ने भीड़भाड़ वाली सड़कों पर वाहनों के प्रवेश को रोकने के लिए बैरिकेडिंग की थी, लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी समूह ने उन्हें ऐसा करने से रोका और झड़प के बाद गोलियां चला दीं।
घायलों को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी हालत स्थिर है।
पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार ने अधिकारियों से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है। (आईएएनएस)
-Kuldeep Singh
इस्लामाबाद : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वित्त मंत्री डॉ अब्दुल हफीज शेख को पद से हटा दिया है और उनके स्थान पर उद्योग एवं उत्पादन मंत्री हम्माद अजहर को नया वित्त मंत्री नियुक्त किया है। सूचना मंत्री ने सोमवार को यह जानकारी दी।
समा टीवी न्यूज चैनल ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री शिबली फराज के हवाले से कहा कि प्रधानमंत्री खान ने बढ़ती महंगाई के मद्देनजर नई वित्त टीम को लाने का निर्णय लिया है।
खान के 2018 में सत्ता में आने के बाद से वित्त मंत्रालय संभालने वाले अजहर तीसरे मंत्री होंगे। फराज ने कहा कि मंगलवार तक कई अन्य बदलाव के संबंध में भी जानकारी सामने आ सकती है।
अजहर ने ट्वीट किया, प्रधानमंत्री द्वारा मुझे वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। हाल ही में सीनेट चुनाव में युसूफ रजा गिलानी से हारने के बाद शेख के राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता थी। शेख को पिछले साल वित्त मंत्री बनाया गया था। हालांकि, वह संसद के सदस्य नहीं थे। (amarujala.com)
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के सहसंस्थापक और सीईओ जैक डोर्सी का एक ट्वीट 22 मार्च को लगभग 18 करोड़ रुपए में बिका है. लगभग 15 साल पुराने इस ट्वीट में लिखा हुआ है- जस्ट सेटिंग अप माय ट्विटर अकाउंट. तब क्या बात है जो इस ट्वीट की नीलामी हुई और इतने ऊंचे दामों पर खरीदा गया?
इस ट्वीट में कोई खास बात नहीं है, सिवाय इसके कि ये ट्विटर के CEO का पहला ट्वीट था, जिसके साथ ही ट्विटर के आने की आधिकारिक घोषणा हुई थी. इसमें उन्होंने लिखा था- “just setting up my twttr”. लेकिन ट्विटर की अंग्रेजी स्पेलिंग तो Twitter है, तब क्या खुद CEO ने इसे गलत लिखा था! ऐसा नहीं है. न्यूज 18 अंग्रेजी में इस बारे में विस्तार से बताया गया है.
लाइफवायर में द रिअल हिस्ट्री ऑफ ट्विटर नामक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि ट्विटर का नाम हमेशा से ही यही था. हालांकि डोमेन नाम में फायदा लेने के लिए वॉवेल को हटाकर बोलने का चलन तब हुआ करता था. यही कारण है कि सॉफ्टवेयर बनाने वालों ने पहले इसे twttr लिखा और फिर साथ ही साथ Twitter इसके फाइनल संस्करण की तरह आया. यही आधिकारिक भी था.
6 मार्च 2006 को हुआ ये ट्वीट साल 2020 के दिसंबर में नीलामी के लिए आया था. तब इसके नीलामी के लिए वैलुएबल्स नामक प्लेटफॉर्म सामने आया. ये एक एनएफटी प्लेटफॉर्म है, जो एक तरह का डिजिटल प्रमाण पत्र है. ये बताता है कि ऑनलाइन मीडिया में फोटो, वीडियो जैसी चीजों का मालिक कौन है. जैसे कोई कलाकृति बेची जाती है, वैसे ही इसपर भी ये चीजें बिकती हैं. इसका इस्तेमाल डिजिटल असेट्स या सामानों के लिए किया जा सकता है जो एक दूसरे से अलग होते हैं. इससे उनकी कीमत और अनोखापन साबित होता है.
इन्हें पारंपरिक प्लेटफॉर्म पर नहीं बेचा जा सकता, बल्कि डिजिटल मार्केटप्लेस में खरीदा या बेचा जा सकता है. ऑनलाइन गेमिंग के शौकीनों के लिए भी एनएफटी बड़ी चीज साबित हो सकती है. इसपर अगर किसी ने खेल के लिए कोई वर्चुअल स्पेस खरीद लिया तो उसे खेलने के शौकीनों को मालिक को पैसे देने होंगे.
इसी प्लेटफॉर्म पर डोर्सी का पहला ट्वीट नीलामी के लिए आया. ट्वीट के बिक्री के लिए आने के मिनटों के भीतर ही धड़ाधड़ इसपर बोलियां लगने लगीं. यहां तक कि कुछ ही मिनटों के भीतर ये लाखों से होते हुए करोड़ों तक चली गई. आखिरकार इसे ब्रिज ओरेकल के सीईओ सीना एस्तावि ने लगभग 18 करोड़ रुपयों में खरीदा. ट्वीट लिखने वाले यानी डोर्सी ने कहा कि मिलने वाली सारी राशि वे अफ्रीका में कोरोना पीड़ितों के लिए दान कर देंगे. बता दें कि अफ्रीका में कोरोना महामारी बुरी तरह से कोहराम मचा रही है, वहां म्यूटेशन के बाद मिले वेरिएंट ज्यादा संक्रामक और घातक भी साबित हुए हैं.
अब ट्वीट के खरीददार को एनएफटी के तहत न केवल उस 15 साल पुराने ट्वीट का मालिकाना हक मिला है, बल्कि साथ ही एक डिजिटल सर्टिफिकेट और क्रिप्टोग्राफी मिलेगी, जिसपर इस बात का जिक्र होगा कि असली ट्वीट का मेटाडाटा क्या है. ये ट्वीट ट्विटर पर उपलब्ध भी रहेगा. (news18.com)
हाल ही में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 50 पाउंड का नया नोट जारी किया है. इसकी खास बात ये है कि ये महान गणितज्ञ और कंप्यूटर साइंस के जानकार एलन टूरिंग को समर्पित है. माना जाता है कि इसी वैज्ञानिक के कारण दूसरा विश्व युद्ध जल्दी रोका जा सका था, वरना वो साल-दो साल लंबा खिंच सकता था. अब पहली बार एलन टूरिंग को वैश्विक मान्यता मिल सकी है.
क्यों छपी नोट पर टूरिंग की तस्वीर
घोषणा के लगभग दो साल बाद 25 मार्च को 50 पाउंड का वो नोट छपा, जिसपर टूरिंग की तस्वीर नजर आ रही है. 23 जून से नया नोट बाजार में आ जाएगा. हालांकि हम नोट पर चर्चा नहीं कर रहे, बल्कि हम बात कर रहे हैं उसपर छपे चेहरे की. एलन टूरिंग ने महान गणितज्ञ होने के साथ-साथ दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन पनडुब्बियों को डिकोड किया था, जिससे ब्रिटिश सेना ने लगभग हार की कगार पर पहुंचने के बाद जीत हासिल कर ली और इस तरह से युद्ध विराम हो सका था.
समलैंगिकता के कारण दी जान
बाद में विज्ञान की ख्यात पत्रिका साइंस मैगजीन ने टूरिंग को मशीन और आर्मी का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क भी कहा, हालांकि ज्यादातर लोग इस वैज्ञानिक के बारे में कम ही जानते हैं. यहां तक कि हालात इतने खराब हुए कि टूरिंग को खुदकुशी करनी पड़ गई. तब वे महज 41 साल के थे. दरअसल टूरिंग के बारे में कहा जाता था कि उनके अपने एक साथी से प्रेम-संबंध थे.
समलैंगिक लोगों को मिलती थी सजा
तब ब्रिटेन में समलैंगिकता एक अपराध था और समलैंगिक होने पर लोगों को सख्त सजा मिलती थी. इसे बीमारी माना जाता था और मान्यता थी कि समलैंगिक जोड़े अपने आसपास भी यही बीमारी फैलाते हैं. ये पचास के दशक की बात है. तब टूरिंग के बारे में भी वैज्ञानिक जगत में यही बात होने लगी. बात इतनी बढ़ी कि उन्हें नपुंसक बनाए जाने तक पहुंच गई. इसपर टूरिंग इतने परेशान हुए कि उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली. 7 जून 1954 को टूरिंग की आत्महत्या के तुरंत बाद भी बड़े गणितज्ञ की मौत का कोई शोक नहीं मनाया गया, बल्कि चुप्पी छाई रही.
किया था एनिग्मा को डिकोड
टूरिंग ने वैसे तो कई आविष्कार किए लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान जर्मन सेना की पनडुब्बी एनिग्मा को डिकोड करना रहा. ये दूसरे विश्व युद्ध की बात है, जब नाजियों की बनाई एनिग्मा मशीन दुनियाभर में कहर बरपा रही थी. इस मशीन का जर्मन अफसरों ने दुश्मन देशों की सेना का भेद लेने के लिए इस्तेमाल किया था. साथ ही जर्मन सैन्य संदेशों को एनकोड करने के लिए भी सेना के भीतर इसका इस्तेमाल हुआ करता था.
टूरिंग ही हो सके थे सफल
नाजियों की बनाई हुई ये मशीन इतनी जटिल थी कि इसे तोड़ने के लिए दुनिया के कई देशों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. खासकर दुश्मन राष्ट्र पोलैंड के गणितज्ञों ने इसे समझने की भरपूर कोशिश की थी. कुछ हद तक वे सफल भी हुए लेकिन नाजियों को इसकी भनक पड़ गई. उन्होंने न केवल उस वक्त कोड बदल दिया, बल्कि लगातार ही मशीन का कोड बदलने लगे. इसी समय आए ब्रिटिश गणितज्ञ एलन टूरिंग. उन्होंने एनिग्मा मशीन के कोड को क्रैक करने में सफलता पाई.
कोड क्रैक करना क्यों जरूरी था
दरअसल कोड लैंग्वेज को पकड़ने पर नाजियों की योजना का पता लगाया जा सकता था. उस दौरान जर्मन-यू-बोट्स ने तबाही मचा रखी थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्हीं कोड्स से लड़ाई करते हुए लगभग 2700 बोट्स समुद्र में डुबो दी गई थीं. मशीन डिकोड होने के बाद ही जर्मन सेना को तबाही मचाने से रोका जा सका.
विश्व युद्ध खत्म होने के बाद टूरिंग मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में कंप्यूटिंग मशीन में डेपुटी डायरेक्टर बतौर काम करने लगे. इस दौरान भी वे लगातार नई खोजें करते रहे. जैसे उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बनाने में पहली सफलता पाई. आज इसी एआई के दम पर सारी दुनिया के काम होते हैं.
सेब में जहर मिलाकर खा लिया
हालांकि हर महान शख्स को दुनिया का सम्मान नहीं मिल पाता है. टूरिंग के साथ भी यही हुआ. तब ब्रिटेन में समलैंगिकता जघन्य अपराध था. यहां तक कि बहुत से लोग सामाजिक अपमान और नपुंसकता की सजा के डर से अपनी पहचान छिपाकर रखते थे और यहां तक कि विपरीत लिंगी से शादी भी कर लेते थे ताकि किसी को पता न चले. लेकिन टूरिंग के साथ ऐसा नहीं हुआ. उनके समलैंगिक होने की बाद सबको पता चल गई और प्रतिष्ठा को चोट पहुंचने के डर से उन्होंने सायनाइड वाला सेब खा लिया.
पहली बार माफी मांगी गई
अगस्त 2009 में पहली बार ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने टूरिंग की खुदकुशी को देश का नुकसान बताते हुए औपचारिक तौर पर माफी मांगी. साल 2013 के दिसंबर में ब्रिटेन की महारानी ने भी टूरिंग पर समलैंगिकता के कारण लगी धाराएं हटाते हुए उन्हें दोषमुक्त कहा. (news18.com)
एंकरेज. अमेरिका में अलास्का के कम आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्र में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें पायलट और 4 अन्य लोगों की मौत हो गई. मृतकों में चेक गणराज्यका सबसे अमीर व्यक्ति भी शामिल है.
भाड़े पर लिया गया हेलिकॉप्टर एक लॉज से गाइड और मेहमानों को लेकर जा रहा था. अलास्का स्टेट ट्रूपर्स ने बताया कि शनिवार को हुई दुर्घटना में पांच लोगों की मौत हो गई.
दुर्घटना में मरने वाला केलनर नाम के शख्स चेक गणराज्य के अरबपति व्यवसायी थे और फोर्ब्स 2020 की विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची के अनुसार उसके पास 17 अरब डॉलर की संपत्ति थी. (news18.com)
म्यांमार में शनिवार को 'आर्म्ड फोर्सेज़ डे' के मौके पर सेना की चेतावनी के बावजूद सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों में 90 से अधिक लोग गोलियां लगने की वजह से मारे गए, लेकिन इसके बावजूद सैन्य प्रमुख मिन आंग लाइंग और उनके जनरलों ने रात में भव्य पार्टी की.
कुछ ख़बरों में कहा गया है कि रविवार सुबह जब मृतकों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था, सेना ने उसमें दख़ल देने की कोशिश की.
शनिवार को सेना के दमन के बावजूद रविवार को विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है.
म्यांमार में इस साल फरवरी में सैन्य तख़्तापलट के बाद शनिवार 27 मार्च का दिन प्रदर्शनकारियों के लिए सबसे अधिक हिंसक साबित हुआ. फरवरी से अब तक प्रदर्शन के दौरान 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
रविवार को कई देशों के रक्षा प्रमुखों ने एक संयुक्त बयान जारी करके म्यांमार की हिंसक सैन्य कार्रवाई की भर्त्सना की है.
इस बयान में कहा गया है कि "कोई भी पेशेवर फौज आचरण के मामले में अतंरराष्ट्रीय मानकों का पालन करती है और उसकी ज़िम्मेदारी अपने देश के लोगों को नुकसान पहुंचाने की नहीं बल्कि बचाने की होती है."
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेश ने कहा है कि म्यांमार में हुई हिंसा से उन्हें 'गहरा सदमा' लगा है.
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब ने इसे 'गिरावट का नया स्तर' बताया है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टॉम एंड्रूस ने इस सिलसिले में एक अंतराष्ट्रीय आपात सम्मेलन बुलाने की मांग की है.
म्यांमार की आलोचना करने वाले देशों में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, लेकिन चीन और रूस म्यांमार की आलोचना में शामिल नहीं हुए हैं. (bbc.com)