अंतरराष्ट्रीय
संयुक्त राष्ट्र, 14 अप्रैल। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध ने अनेक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के लिए तबाही का खतरा पैदा कर दिया है। ये देश पहले ही खाद्यान्न और ईंधन की बढ़ती कीमतों का सामना कर रहे हैं साथ ही जटिल आर्थिक हालात से जूझ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र कार्य बल ने बुधवार को यह चेतावनी दी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने एक रिपोर्ट जारी की और कहा कि युद्ध गरीब देशों में भोजन, ईंधन तथा आर्थिक संकट को और गहरा कर रहा है। ये देश पहले से ही महामारी, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक सुधार के लिए धन की कमी से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं।
गुतारेस ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम अब एक तूफान का सामना कर रहे हैं जो कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने की चेतावनी देता है। लगभग 1.7 अरब लोग अब भोजन, ऊर्जा और वित्त प्रणालियों में संकट की जद में आने के करीब हैं। इनमें से एक तिहाई लोग पहले ही गरीबी में जी रहे हैं।’’
व्यापार और विकास को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की महासचिव रेबेका ग्रिनस्पैन ने कहा कि ये लोग 107 देशों में रहते हैं,जिनके किसी न किसी संकट की जद में आने का काफी जोखिम है।
रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में लोग स्वस्थ आहार नहीं ले पा रहे हैं, भोजन और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात आवश्यक है, लेकिन कर्ज का बोझ और सीमित संसाधन अनेक वैश्विक वित्तीय स्थितियों से निपटने की सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं। (एपी)
वाशिंगटन, 14 अप्रैल। अमेरिका ने शाहबाज शरीफ को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री चुने जाने पर बधाई दी और कहा कि वह उनके साथ काम करने को लेकर उत्सुक है।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने बुधवार को कहा कि पाकिस्तान बीते 75 वर्षों से परस्पर हितों से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में अहम भागीदार रहा है और अमेरिका, पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को महत्व देता है।
ब्लिंकन ने एक बयान में कहा, ‘‘ अमेरिका, पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को बधाई देता है। हम पाकिस्तान की सरकार के साथ लंबे समय से चले आ रहे सहयोग को जारी रखने की उम्मीद करते हैं।’’
शरीफ के इमरान खान की जगह पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद अमेरिका ने यह बयान जारी किया है।
ब्लिंकन ने कहा, ‘‘ अमेरिका एक मजबूत, समृद्ध और लोकतांत्रिक पाकिस्तान को दोनों देशों के हितों के लिए जरूरी मानता है।’’ (भाषा)
वाशिंगटन, 13 अप्रैल। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को यूक्रेन को हेलीकॉप्टर और सैन्य साजो-सामान सहित 80 करोड़ डॉलर की नयी सैन्य सहायता को मंजूरी दी ताकि वह रूसी हमले से खुद का बचाव मजूबती से कर सके।
बाइडन ने सहायता आपूर्ति के समन्वय को लेकर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ फोन पर हुई बातचीत के बाद अमेरिकी सहायता की घोषणा की।
बाइडन ने एक बयान में कहा, 'इस नये सहायता पैकेज में कई अत्यधिक प्रभावी हथियार प्रणालियां शामिल होंगी जोकि हम पहले ही उपलब्ध करा चुके हैं। साथ ही यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में रूस के व्यापक हमले की आशंका के मद्देनजर नया सैन्य साजो-सामान भी शामिल हैं।'
उन्होंने कहा कि संघर्ष जारी रहने की स्थिति में अमेरिका अतिरिक्त हथियारों और संसाधनों को साझा करने के लिए सहयोगियों के साथ काम करना जारी रखेगा। (एपी)
अमेरिका की पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी की एक प्राध्यापिका ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में भारत के बारे में कुछ टिप्पणियाँ की हैं जिसे लेकर हंगामा हो रहा है.
प्रोफेसर एमी वैक्स ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू के दौरान भारत के ख़िलाफ़ अपशब्दों का प्रयोग किया. उन्होंने साथ ही दक्षिण एशिया से अमेरिका पहुंचने वाले लोगों से लेकर ब्राह्मण महिलाओं के प्रति भी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है.
इस इंटरव्यू की क्लिप्स सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं और भारतीय और अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोग उनके इस बयान की निंदा कर रहे हैं.
क्या बोली हैं एमी वैक्स
एमी वैक्स ने बीती 8 अप्रैल को अमेरिकी टीवी चैनल फॉक्स न्यूज़ के एंकर टकर कार्लसन को दिए इंटरव्यू में भारतीय आप्रवासियों की आलोचना की है.
उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि 'पश्चिमी लोगों की बेहतरीन उपलब्धियों एवं भारी योगदान की वजह से ग़ैर पश्चिमी लोगों में उनके ख़िलाफ़ भारी नाराज़गी और शर्म का भाव है'.
उन्होंने एशिया, दक्षिण एशिया और भारतीय लोगों पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें यहां बेहतरीन शिक्षा और शानदार अवसर मिलते हैं लेकिन इसके बदले में वे अमेरिका की आलोचना करते हैं.
प्रोफेसर एमी वैक्स ने कहा, "ये अजीब सी बात है कि एशियाई, दक्षिण एशियाई और भारतीय डॉक्टर पेन्सिल्वेनिया की चिकित्सा सेवा में काम करते हैं. मैं वहां लोगों को जानती हूं और मुझे पता है कि वहां क्या हो रहा है. वे नस्लवाद के ख़िलाफ़ जारी मुहिम को लेकर मोर्चा संभाले हुए हैं. वे अमेरिका को दोष देते रहते हैं जैसे कि अमेरिका एक दुष्ट नस्लवादी जगह है."
इसके बाद उन्होंने भारतीय ब्राह्मण महिलाओं पर भी टिप्पणी करते हुए उनकी आलोचना की.
उन्होंने कहा, "भारत से आने वाली महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ती हैं. उन्हें बेहतरीन शिक्षा मिलती है. हम उन्हें बेहतरीन अवसर देते हैं. और वे पलटकर हम पर ही आरोप लगा देते हैं कि हम नस्लवादी हैं, ख़राब देश हैं जिसमें सुधार की ज़रूरत है. और हमारे मेडिकल सिस्टम को सुधार की ज़रूरत है. समस्या ये है कि उन्हें ये सिखाया गया है कि वे दूसरों से बेहतर हैं क्योंकि वे ब्राह्मण उच्चकुलीन (परिवार से) हैं."
ये कहने के बाद उन्होंने भारत के संदर्भ में कुछ ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया जिसे गाली समझा जाता है.
सोशल मीडिया पर मचा बवाल
एमी वैक्स का ये बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं.
जहां एक ओर तमाम लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं, वहीं भारत में दलितों-शोषितों और वंचितों की आवाज़ बनने वाले वैक्स के इस बयान के प्रति सहमति जता रहे हैं.
भारत में दलित राजनीति पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है, "भारत में शोषण करने वाली जाति बेहद चतुराई से अमेरिका में काले लोग बन जाते हैं (और खुद को पीड़ित के रूप में पेश करते हैं). काले, मूल अमेरिकी लोगों और एक हद तक हिस्पैनिक लोगों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है. सवर्ण हिंदू लोग उन पदों को हथिया रहे हैं जो वास्तव में काले लोगों, हिस्पैनिक्स या मूल अमेरिकियों के पास जाने चाहिए थे."
वहीं, लेखक और पत्रकार सदानंद धूमे ने इस मामले पर अलग तरह का ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा है, "कुछ भारतीय अप्रवासी एमी वैक्स की व्याख्या में फिट होते हैं जो लगातार अमेरिका की आलोचना करते रहते हैं. उनसे ये पूछना जायज़ है कि अगर वे इस देश को इतना बुरा मानते हैं तो वे यहां क्यों आए? लेकिन मेरे अनुभव में ऐसे लोग काफ़ी कम हैं. ज़्यादातर लोग उन अवसरों के प्रति शुक्रगुज़ार हैं जो अमेरिका ने उन्हें दिए हैं."
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर असीम शुक्ला ने ट्वीट करके लिखा है, "एमी वैक्स, हम में से कुछ भारतीय अमेरिकी डॉक्टर अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम को मजबूत बनाने में अपना योगदान देते हैं. ऐसे में हमें आलोचना करने का भी अधिकार है."
पेनसिल्वेनिया के क़ानून विभाग में लेक्चरर नील मखीजा ने भी एमी की आलोचना करते हुए ट्वीट किया है.
उन्होंने कहा है कि प्रोफेसर एमी पेन मेडिसिन में ब्राउन चेहरे देखती हैं और उनसे पूछना चाहती हैं कि वे यहां क्यों आए हैं, जबकि ज़्यादातर अमेरिका में ही पैदा हुए हैं और अपनी पूरी ज़िंदगी अमेरिका में रही हैं. और शायद यही लोग उनका इलाज भी करेंगे अगर वे अस्पताल में भर्ती होती हैं.
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के कानून विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत एमी वैक्स एक जानी-मानी वकील हैं.
न्यूयॉर्क के यहूदी परिवार में जन्म लेने वालीं एमी वैक्स के माता-पिता पूर्वी यूरोप से निकलकर अमेरिका पहुंचे थे. ये तथ्य उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में साझा किया था.
इसके साथ ही एमी वैक्स ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता ने शुरुआती दिनों में कपड़े बनाने की फैक्ट्री में काम किया था. और उनकी मां एक टीचर थीं.
और इसी इंटरव्यू में उन्होंने खुद की व्याख्या एक वर्किंग क्लास गर्ल यानी मध्यम वर्गीय समाज की महिला के रूप में की थी.
अमेरिका की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से बायो-फिजिक्स और बायोकैमिस्ट्री में पढ़ाई करने वाली एमी वैक्स ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी दर्शनशास्त्र विषय में पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने हार्वड लॉ स्कूल में कानून की पढ़ाई की.
अमेरिका के बुश और रीगन प्रशासन के साथ काम कर चुकीं एमी बैक्स पहले भी अपने विवादित बयानों की वजह से चर्चा में आ चुकी हैं.
इससे पहले वह अमेरिका में एशियाई लोगों की मौजूदगी और एशिया अप्रवासियों को लेकर दिए गए विवादित बयान को लेकर चर्चा में आ चुकी हैं.
उन्होंने कहा था कि अगर अमेरिका में एशियाई आप्रवासियों का आना कम हो तो ये अमेरिका के लिए बेहतर रहेगा. (bbc.com)
-संजय धकाल
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के आर्थिक हालात पिछले कई दिनों से लगातार ख़राब होते गए हैं. देश में ज़रूरी सामानों के साथ दवाइयों की घोर कमी हो गई है. इससे परेशान लोग कई दिनों से सड़कों पर उतरकर मौजूदा सरकार का जमकर विरोध कर रहे हैं.
दूसरी ओर भारत के दूसरे पड़ोसी देश नेपाल की भी आर्थिक दशा चिंता का कारण बनती नज़र आ रही है.
ऐसा नहीं कि नेपाल में ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात अचानक पैदा हो गए. आँकड़ों के अनुसार, 16 जुलाई से शुरू हुए मौजूदा वित्त वर्ष (2021-22) के प्रारंभ से ही देश के कई आर्थिक संकेतकों में गिरावट आनी शुरू हो गई थी.
कोरोना महामारी और यूक्रेन संकट के दौर में उच्च महंगाई दर आम लोगों को बहुत परेशान कर रही है. उधर देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी की देखने को मिल रही है.
मौजूदा वित्त वर्ष के बीते आठ महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार में क़रीब 17 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है.
मार्च 2022 के मध्य में देश का विदेशी मुद्रा भंडार महज़ 975 करोड़ डॉलर यानी 1.17 लाख करोड़ नेपाली रुपए (तब एक डॉलर क़रीब 121 नेपाली रुपए के बराबर था) रह गया. हालांकि पिछले साल जुलाई के मध्य में यह भंडार 1,175 करोड़ डॉलर यानी 1.4 लाख करोड़ नेपाली रुपए का था.
विदेशी मुद्रा भंडार उपयोगी क्यों
विदेशों से सामान आयात करने के लिए किसी देश को विदेशी मुद्रा की ज़रूरत होती है. नेपाल का जो मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार है, उससे अगले 6.7 महीने तक विदेशी वस्तुओं का आयात आराम से हो सकता है.
पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
इसका मतलब ये हुआ कि पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार उस अहम और रणनीतिक स्तर के नीचे चला गया है. जानकारों के मुताबिक़, नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की ये एक बड़ी वज़ह है.
उधर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन पर हमले के चलते पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते दामों को देखते हुए विदेशी मुद्रा भंडार के अभी और कम होने की आशंका है.
पिछले दो सालों के दौरान कोरोना महामारी और अब बढ़ते आयात ख़र्च के चलते नेपाल का व्यापार घाटा बढ़कर 1.29 लाख करोड़ नेपाली रुपए तक जा पहुँचा है. नेपाली अर्थव्यवस्था के लिए यह भी चिंता की बात है.
यही वजह है कि नेपाल सरकार और वहाँ के केंद्रीय बैंक यानी नेपाल राष्ट्र बैंक ने ''सोना, गाड़ियों जैसे लग्ज़री सामानों के आयात को हतोत्साहित किया है.''
देश के वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने सोमवार को बताया कि सरकार समस्या पर क़ाबू पाने के उपायों पर विचार कर रही है. उनके अनुसार, सरकार 'ग़ैर-ज़रूरी इलेक्ट्रॉनिक सामानों' सहित महंगे सामानों के आयात को अस्थायी रूप से नियंत्रित करने की सोच रही है.
नेपाल सरकार ने ये भी कहा है कि वो पेट्रोलियम उत्पादों की खपत को कम करने के उपाय भी खोज रही है.
वहाँ की कैबिनेट के पास एक प्रस्ताव आया है कि देश में फ़िलहाल हफ़्ते में एक के बजाय दो छुट्टियां दी जाएं. नेपाल में केवल शनिवार को छुट्टी देने की परंपरा है, लेकिन ताज़ा प्रस्ताव यदि मंज़ूर हो गया तो आगे शनिवार के साथ रविवार को भी छुट्टी होगी.
नेपाल को ये दिन इसलिए भी देखने पड़ रहे हैं कि उसकी अर्थव्यवस्था के दो सबसे अहम स्तंभों- नागरिकों द्वारा विदेशों से भेजी जाने वाली आय और पर्यटन से होने वाली कमाई, पर कोरोना महामारी का तगड़ा असर हुआ है.
दूसरी ओर एक नाटकीय घटनाक्रम के बीच सरकार ने नेपाल राष्ट्र बैंक के गवर्नर को बर्ख़ास्त करने का फ़ैसला किया है. अब उन पर लगे 'आरोपों' की जाँच की जाएगी.
सरकार ने कहा, चिंता की बात नहीं
इन सभी तथ्यों को देखते हुए कई आर्थिक विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि नेपाल भी जल्द ही श्रीलंका के रास्ते पर जा सकता है. हालांकि वहाँ के वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने ऐसी चिंताओं को ख़ारिज कर दिया है.
वित्त मंत्री ने सोमवार को गर्वनर को बर्ख़ास्त करने के अपने फ़ैसले का बचाव करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. इसमें उन्होंने कहा कि जाँच के दौरान केंद्रीय बैंक के गवर्नर पर लगे सभी आरोपों को सार्वजनिक किया जाएगा.
उन्होंने उन चिंताओं को भी ख़ारिज कर दिया कि नेपाल भी श्रीलंका के रास्ते पर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि लोग श्रीलंका से हमारी तुलना क्यों कर रहे हैं." जनार्दन शर्मा ने कहा कि नेपाल की आर्थिक स्थिति अच्छी है.
नेपाल के लिए कुल सार्वजनिक कर्ज़ का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ये दक्षिण एशिया या दूसरी जगह के देशों की तुलना में बहुत कम है.
मालूम हो कि श्रीलंका में यही आँकड़ा उसकी जीडीपी का 120% है. वहीं नेपाल पर अभी जीडीपी के मुक़ाबले केवल 43.4 प्रतिशत का सार्वजनिक कर्ज़ है.
मौजूदा वित्त वर्ष में नेपाल को 33 करोड़ डॉलर का कर्ज़ भी लौटाना है. इसके लिए भी उसे विदेशी मुद्रा भंडार की ज़रूरत है.
नेपाल और श्रीलंका के महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों की तुलना:
आर्थिकसंकेतकश्रीलंकानेपाल
जनसंख्या 2.17 करोड़ 2.9 करोड़
अर्थव्यवस्था का आकार 8,000 करोड़ डॉलर3,500 करोड़ डॉलर
विदेशी मुद्रा भंडार 200 करोड़ डॉलर958 करोड़ डॉलर
सार्वजनिक कर्ज़ जीडीपी का 120%जीडीपी का 43%
इस साल लौटाने वाले विदेशी कर्ज़ 400 करोड़ डॉलर 33 करोड़ डॉलर
महंगाई दर 14% 7%
फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन ने कहा है कि उनका देश नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन करेगा या नहीं इसको लेकर ‘हालिया हफ़्तों’ में फ़ैसला लेगा.
उन्होंने कहा कि वो इस फ़ैसले में देरी का कोई कारण नहीं देखती हैं. यह बात उन्होंने स्वीडन की प्रधानमंत्री के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कही.
उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब हाल ही में ऐसी रिपोर्ट सामने आई थीं जिनमें कहा गया था कि फ़िनलैंड की संसद ने कहा था कि इस वैश्विक गुट की सदस्यता के कारण ‘फ़िनलैंड और रूस की सीमा पर तनाव बढ़’ सकता है.
रूस ने हालिया हफ़्तों में नेटो में शामिल होने को लेकर फ़िनलैंड और स्वीडन की चेतावनी दी है.
फ़िनलैंड और स्वीडन सैन्य रूप से गुट-निरपेक्ष हैं लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद जनता के बीच इस बात को लेकर समर्थन देखने को मिला है कि उनका देश पश्चिमी रक्षात्मक गठंबधन का सदस्य बने.
स्वीडन की नेता मैग्डेलेना एंडरसन ने पत्रकारों से कहा कि फ़िनलैंड में भी इसको लेकर ‘गंभीर विश्लेषण’हो रहा है और उन्हें इसमें देरी करने की कोई वजह नहीं दिखती है.
स्वीडन के अख़बार स्वेंस्का डागब्लाडट ने बुधवार को रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि एंडरसन जून के आख़िर में नेटो सम्मेलन की सदस्यता के लिए आवेदन करने पर विचार कर रही हैं.
फ़िनलैंड रूस के साथ 1,340 किलोमीटर की सीमा साझा करता है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोफ़ ने कहा है कि नेटो में शामिल होने को लेकर कोई दावा होता है तो मॉस्को ‘स्थिति को फिर से संतुलित’ करेगा.
मारिन ने कहा है, “मैं किसी भी तरह की कोई समयसूची नहीं दूंगी कि हम कब अपना फ़ैसला लेंगे लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत तेज़ी से होगा.”
उन्होंने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि नेटो की सदस्यता फ़िनलैंड को आर्टिकल फ़ाइव की सुरक्षा की गारंटी देगा जिसके तहत किसी भी सदस्य पर हमले को सभी सदस्यों पर किया गया हमला माना जाता है. (bbc.com)
पाकिस्तान के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की भतीजी और पूर्व पीएम नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ शरीफ़ ने कहा है ज़्यादातर पाकिस्तानियों ने इमरान ख़ान को हटाने का समर्थन किया है. मरियम ने अपने ट्वीट में यह बात कही है.
उन्होंने अपने ट्वीट के समर्थन में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है. रिपोर्ट में गैलप पाकिस्तान की ओर से किए गए सर्वे का ज़िक्र किया गया है.
इसमें कहा गया है 57 फ़ीसदी लोगों ने कहा है कि इमरान ख़ान को हटाए जाने से वो ख़ुश हैं. जबकि 43 फ़ीसदी लोगों ने इमरान को हटाए जाने पर नाराज़गी जताई है.
गैलप पाकिस्तान ने यह सर्वे पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नए प्रधानमंत्री को चुने जाने के लिए हुई वोटिंग के ठीक बाद किया था.
हालाँकि इमरान खान के करीबी और उनकी सरकार में सूचना-प्रसारण मंत्री रहे फ़वाद चौधरी ने मरियम के इस ट्वीट का जवाब दिया है.
उन्होंने लिखा है, ''अगर ज़्यादातर लोग इमरान को हटाए जाने से ख़ुश हैं तो आपको चुनाव से क्यों डर लग रहा है. आप चुनाव से क्यों भाग रहे हैं. आइए चुनाव करा लीजिए. इस मुक़ाबले का फ़ैसला तो मैदान में होना है. ''
पाकिस्तान में इमरान खान को हटाए जाने के बाद विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार शहबाज शरीफ को पीएम चुना गया है.
शहबाज शरीफ के पक्ष में 174 वोट पड़े थे. वोटिंग के दौरान दर्शक दीर्घा में मरियम नवाज शरीफ भी मौजूद थीं. मरियम ने अपने चाचा के पीएम बनने पर ट्वीट कर खुशी जाहिर की थी.(bbc.com)
तोक्यो, 13 अप्रैल। रूस के हमले के बाद यूक्रेन के लाखों लोग जब अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ कर अन्यत्र चले गए, उसी समय तोक्यो में रहने वाली साशा कावेरिना पूर्वी यूरोपीय देश में रह रहे अपने माता-पिता को बचाने के लिए जान हथेली पर रख कर जापान से यूक्रेन चली गईं।
रूस के हमले में यूक्रेन के कई शहर तबाह हो चुके हैं। मार्च के शुरू में एक रूसी मिसाइल ने खारकीव में 16 मंजिला एक इमारत को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया। इस इमारत की आठवीं मंजिल पर रह रहे कावेरिना के माता-पिता इस हमले में बाल-बाल बच गए लेकिन अपने रिश्तेदारों के साथ उन्होंने घर छोड़ दिया।
हमले से घबराईं कावेरिना का मुख्य उद्देश्य अपने माता-पिता को उनके गृहनगर खारकीव से बाहर निकालना था। जान हथेली पर लेकर वह यूक्रेन चली गईं। वहां खारकीव से अपने माता-पिता को वह रोमानिया की सीमा से लगे, दक्षिण पश्चिमी यूक्रेन के शहर चेर्निवित्सी में एक सुरक्षित जगह पर ले गईं।
चेर्निवित्सी से एक ऑनलाइन साक्षात्कार में साशा ने कहा, ‘‘'यूक्रेन के निवासी बेहद चिंतित हैं कि अगर रूस ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया, तो यूक्रेन का समर्थन करने वाले लोग मारे जाएंगे।'
पांच साल से जापान में रह रही कावेरिना ने बताया कि उन्होंने अपने माता-पिता के लिए चेर्निवित्सी में एक घर किराए पर लिया है। उन्होंने कहा ‘'यूक्रेन के अधिकारियों ने पूर्वी यूक्रेन के निवासियों से पश्चिम की ओर जाने का आग्रह किया है। हवाई हमलों की आवाज चेर्निवित्सी में सुनाई देती है।’’
कावेरिना ने बताया कि उनके पिता के परिचितों में से एक व्यक्ति को 'एक फिल्टरिंग कैंप' में ले जाया गया। वहां रूस की सेना ने यूक्रेन के निवासियों को अपनी कमीज़ उतारने के लिए कहा। रूसी सैनिक देखना चाहते थे कि क्या उस व्यक्ति के शरीर में यूक्रेन के पक्ष में कोई टैटू बना हुआ है।
यूक्रेन में कावेरिना ने दवाईयों और अन्य प्राथमिक चिकित्सा किट आदि का भी वितरण किया। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में बड़ी समस्या जापान के लिए हवाई टिकट हासिल करना है क्योंकि रूसी हमले की वजह से लोगों के पास नौकरी, घर, पैसा आदि कुछ भी नहीं है।
गौरतलब है कि 24 फरवरी को रूस का हमला शुरू होने के बाद 40 लाख से अधिक यूक्रेनी नागरिक देश छोड़ कर अन्यत्र जा चुके हैं। हमलों में यूक्रेन के कई शहर तबाह हो गए हैं, कई लोगों की जान चली गई और लाखों लोग देश में ही विस्थापित हुए हैं। (एपी)
संयुक्त राष्ट्र, 13 अप्रैल। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से पिछले साल 7.7 करोड़ लोग गरीबी के गर्त में चले गए और कई विकासशील देश कर्ज पर दिए जाने वाले भारी ब्याज के कारण महामारी के दुष्प्रभावों से उबर नहीं पा रहे हैं। यह संख्या यूक्रेन में जारी युद्ध से पड़ने वाले प्रभाव से पहले की है।
रिपोर्ट कहती है कि धनी देश महामारी के कारण आई गिरावट से काफी कम ब्याज पर कर्ज लेकर उबर सकते हैं, लेकिन गरीब देशों ने अपना कर्ज चुकाने में अरबों डॉलर खर्च किए और चूंकि उन्हें उच्च ब्याज दर पर ऋण मिला था, इसलिए वे शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुधार, पर्यावरण और असमानता घटाने की दिशा में ज्यादा खर्च नहीं कर सके।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 2019 में 81.2 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे और रोजाना 1.90 डॉलर या उससे भी कम राशि कमा रहे थे। वहीं, 2021 तक ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 88.9 करोड़ हो गई।
यह रिपोर्ट 2030 में संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी वित्तपोषण पर आधारित है, जिसमें गरीबी खत्म करना, सभी युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना एवं लैंगिक समानता हासिल करना शामिल है।
यूएन की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने एक प्रेस वार्ता में कहा, “जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी स्थिति को और बदतर बना रही है। इसके अलावा यूक्रेन के युद्ध का वैश्विक प्रभाव भी है।”
मोहम्मद के मुताबिक, एक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से 1.7 अरब लोगों को खाने, ईंधन और उर्वरकों की उच्च कीमतों का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि इसके चलते 2023 के अंत तक 20 प्रतिशत विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2019 से पहले के स्तर पर नहीं लौटेगी।
रिपोर्ट कहती है कि विकासशील देश अपने राजस्व का 14 फीसदी हिस्सा ऋण पर लगने वाला ब्याज चुकाने में् खर्च करते हैं, जबकि अमीर मुल्कों के मामले में यह आंकड़ा महज 3.5 फीसदी है। (एपी)
मनीला, 13 अप्रैल। मध्य और दक्षिण फिलीपीन में आयी बाढ़ और इसकी वजह से हुए भूस्खलन की घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर कम से कम 43 हो गयी है और 28 अन्य लापता हैं। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने बताया कि मध्य लेयते प्रांत के बेबे शहर में सप्ताहांत और सोमवार को तड़के हुए भूस्खलन में 100 से अधिक ग्रामीण घायल हो गए हैं।
सेना, पुलिस और अन्य बचावकर्मी मलबा हटाने के काम में जुटे हुए हैं ताकि लापता लोगों की तलाश की जा सके।
तलाश एवं बचाव अभियान की निगरानी कर रहे सेना के ब्रिगेड कमांडर कर्नल नील वेस्तुइर ने कहा, ‘‘हम इस त्राासदी से दुखी हैं जिससे जान और माल को काफी नुकसान पहुंचा है।’’
स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि बेबे के छह गांवों में हुए भूस्खलन में 36 लोगों के शव बरामद किए गए हैं। मध्य समर और नेगरोस ओरिएंटल तथा दक्षिण दावाओ दि ओरो और दावाओ ओरिएंटल प्रांतों में सात अन्य लोग बाढ़ के पानी में डूब गए हैं।
गौरतलब है कि हर साल जून के आसपास कम से कम 20 तूफान फिलीपीन में आते हैं। आपदा के लिहाज से संवेदनशील इस दक्षिणपूर्व एशियाई देश में ज्वालामुखी फटने और भूकंप आने की घटनाएं भी होती रहती हैं। (एपी)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन के साथ बातचीत पटरी से उतर चुकी है. उनका कहना है कि यूक्रेन युद्ध अपराधों के बारे में 'झूठे दावे' कर रहा है. साथ ही वह अपने लिए सुरक्षा गारंटी की अतिरिक्त मांग कर रहा है.
पुतिन ने कहा, '' हमारी बातचीत एक बार फिर गतिरोध की ओर लौट आई है.'' रूसी राष्ट्रपति ने कहा है कि रूस पूर्वी यूक्रेन में रूसी भाषियों की सुरक्षा के लिए अपना ऑपरेशन जारी रखेगा.
हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोदोलेक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि हालांकि बातचीत के दौरान सौदेबाजी कड़ी रही है लेकिन ये जारी है.
पुतिन ने यूक्रेन की राजधानी कीएव के आसपास से रूसी सेनाओं के पीछे हटने के बाद बातचीत के बारे में पहली बार सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है. (bbc.com)
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और वित्त मंत्री ऋषि सुनक पर कोविड लॉकडाउन के दौरान बर्थडे पार्टी में शामिल होने के आरोप में जुर्माना लगाया जाएगा.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट ने इस बात की पुष्टि की है बोरिस जॉनसन को तय जुर्माने का नोटिस मिलेगा. उन पर 2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान कैबिनेट रूम नंबर 19 में एक घंटे के जमावड़े में शामिल होने के लिए यह जुर्माना लगाया गया है.
ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनक और बोरिस जॉनसन की पत्नी केरी जॉनसन के खिलाफ भी जुर्माने का नोटिस जारी किया गया है. हालांकि केरी जॉनसन और ऋषि सुनक के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उन्हें ये नहीं बताया है कि उन पर लगाया जा रहा जुर्माना किस घटना से जुड़ा है.
कहा जा रहा है कि दोनों प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की बर्थ डे पार्टी में शामिल थे. कोविड लॉकडाउन के दौरान उस पार्टी में 30 लोग शामिल थे. जॉनसन ब्रिटेन के ऐसे पहले प्रधानमंत्री होंगे जो अपने कार्यकाल में कानून तोड़ने के लिए जुर्माने का सामना करेंगे.
लेबर पार्टी के नेता सर कीर स्टारमेर और स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टरजियोन ने कहा है कि जॉनसन और सुनक के अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे देना चाहिए. (bbc.com)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 13 अप्रैल। अमेरिका के विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन ने कहा कि देश की राजधानी वाशिंगटन में स्थित प्रतिष्ठित अनुसंधान विश्वविद्यालय ‘हॉवर्ड यूनिवर्सिटी’ ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
भारत-अमेरिका ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता के एक दिन बाद ब्लिंकन और भारत के विदेश मंत्री एस़ जयशंकर ने मंगलवार को विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों से दोनों देशों के बीच शैक्षणिक संबंधों को मजबूत करने पर बातचीत की।
उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से ही पढ़ाई की है।
ब्लिंकन ने विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ बातचीत में कहा, ‘‘जैसा कि मुझे मालूम हुआ है और हमने इसके इतिहास के बारे में जो थोड़ा सुना है, उसके अनुसार इस संस्थान ने हमारे देशों के बीच संबंधों के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।’’
उन्होंने कहा कि 1935 में हॉवर्ड के तत्कालीन डीन थर्मन ने भारत की एक महीने की यात्रा पर गए चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था।
ब्लिंकन ने कहा, ‘‘वह देश के स्वतंत्रता आंदोलन से सीख लेने की कोशिश कर रहे थे जो अमेरिका में नस्लीय न्याय आंदोलन के लिए प्रासंगिक हो। यात्रा के अंत में थर्मन ने महात्मा गांधी से मुलाकात की थी। उन्होंने पृथक्करण, धर्म, अहिंसक विरोध जैसे कई मुद्दों पर व्यापक बातचीत की थी।’’
उन्होंने कहा कि इस बातचीत और यात्रा का थर्मन पर गहरा असर पड़ा। उन्होंने कहा, ‘‘जब वह वापस आए तो उन्होंने अहिंसा की अपनी व्याख्या की, जो आध्यात्मिक जीवनशैली के तौर पर थी न कि एक राजनीतिक हथकंडे के तौर पर। उन्होंने उपदेशों, भाषणों के जरिये अपने विचार साझा किए और आखिरकार एक प्रभावशाली किताब ‘जीसस एंड द डिसइनहेरिडेट’ सामने आयी।’’
ब्लिंकन के अनुसार, और भी कई उदाहरण हैं जिनसे स्पष्ट है कि हमारे लोगों के बीच एक खास रिश्ता है, दोनों ही देश दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और दोनों ही एक दूसरे से हमेशा सीखते रहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हम हर साल अपने सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों को आगे बढ़ता हुआ देखते हैं। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि अमेरिका में हमारे विश्वविद्यालयों में 2,00,000 भारतीय पढ़ रहे हैं जो हमारे परिसरों, हमारे नागरिकों को समृद्ध कर रहे हैं। ’’
ब्लिंकन ने कहा कि ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता के बाद दोनों देशों ने शिक्षा और कौशल विकास पर एक कार्यकारी समूह की घोषणा की, जो नए संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए अमेरिका तथा भारत में अकादमिक संस्थानों को एक साथ लेकर आएगा।
इस बीच, अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा कि हाल में संपन्न हुई भारत-अमेरिका ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता ‘‘अत्यधिक सार्थक’’ रही।
ब्लिंकन ने कहा, ‘‘हमारे दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के एक साझा एजेंडे पर काम करने के लिए हुई ‘टू प्लस टू’ वार्ता अत्यधिक उपयोगी रही। मैं कहूंगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच बहुत महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण बैठक हुई।’’
उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर कई घंटों तक चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘‘अब लगातार दूसरा दिन.... हमने कल पूरा दिन सुबह का नाश्ता और रात का भोजन करते हुए एक साथ बिताया।’’
ब्लिंकन और जयशंकर ने मंगलवार को हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में भाग लिया और छात्रों से बातचीत की।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने छात्रों से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अमेरिका-भारत सामरिक साझेदारी 21वीं सदी की समस्याओं को हल करने के लिए बहुत आवश्यक एवं अहम है और आपका काम उस रिश्ते के केंद्र में है।’’ (भाषा)
डेस मोइनेस (अमेरिका), 13 अप्रैल। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मंगलवार को कहा कि यूक्रेन में रूस का युद्ध ‘नरसंहार के बराबर’ है। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर ‘यूक्रेनी होने के विचार तक को मिटाने’ की कोशिश करने का आरोप लगाया।
बाइडन ने वाशिंगटन लौटने के लिए एयर फोर्स वन विमान में सवार होने से पहले आयोवा में पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘हां, मैंने इसे नरसंहार करार दिया है। यह साफ हो गया है कि पुतिन यूक्रेनी होने के विचार तक को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।’’
आयोवा के मेनलो में एक कार्यक्रम में युद्ध के कारण ईंधन की बढ़ती कीमतों के बारे में बाइडन ने कहा कि उन्हें लगता है कि पुतिन यूक्रेन के खिलाफ नरसंहार कर रहे हैं। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति ने कोई और जानकारी नहीं दी। बाइडन के नए आकलन के बीच न तो उन्होंने और न ही उनके प्रशासन ने रूस पर नए प्रतिबंध लगाने या यूक्रेन को अतिरिक्त सहायता देने की घोषणा की है।
इस बीच, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बाइडन की टिप्पणियों की सराहना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘एक सच्चे नेता के सच्चे शब्द। बुराई का सामना करने के लिए चीजों को उनके नाम से पुकारना जरूरी है। हम अमेरिका से अब तक मिली मदद के लिए उसके आभारी हैं। हमें रूसी अत्याचारों से निपटने के लिए और अधिक भारी हथियारों की जरूरत है।’’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह तय करना वकीलों का काम है कि रूस की कार्रवाई नरसंहार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल खाती है या नहीं।
उन्होंने कहा, ‘‘रूस ने यूक्रेन में जो भयानक कृत्य किए हैं, उनसे जुड़े और सबूत सामने आ रहे हैं। हमें विनाश के बारे में और जानकारियां मिल रही हैं। वकीलों को तय करने दीजिए कि यह नरसंहार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार है या नहीं।’’
गौरतलब है कि बाइडन ने पिछले हफ्ते रूस की कार्रवाई को ‘नरसंहार’ न बताते हुए केवल ‘युद्ध अपराध’ करार दिया था। (एपी)
(एम जुल्करनैन)
लाहौर (पाकिस्तान), 13 अप्रैल (भाषा)। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के खिलाफ कथित दुष्प्रचार अभियान चलाने के आरोप में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के आठ सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है।
पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने सोशल मीडिया पर बाजवा और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को कथित तौर पर निशाना बनाने के लिए मंगलवार को पंजाब प्रांत के अलग-अलग हिस्सों से ये गिरफ्तारियां कीं।
इमरान को एकजुट विपक्ष द्वारा आठ मार्च को उनके खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बीते रविवार कामयाब होने के बाद प्रधानमंत्री पद गंवाना पड़ा था। अविश्वास प्रस्ताव के बाद के दिनों में बाजवा के खिलाफ चलाया गया एक अभियान ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा था।
एफआईए के मुताबिक, उसे खुफिया एजेंसियों से बाजवा और शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया अभियान में शामिल 50 संदिग्धों की सूची मिली है और इनमें से आठ लोगों को हिरासत में ले लिया गया है।
ट्विटर पर जारी हजारों ट्वीट में पाक सेना प्रमुख और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों पर इमरान को अमेरिका के इशारे पर प्रधानमंत्री पद से हटाने का आरोप लगाया गया था।
इमरान के करीबी सहयोगी असद उमर ने एक ट्वीट में कहा, “पीटीआई के सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को चुनौती देने वाली याचिका को अंतिम रूप दे दिया गया है। इसे बुधवार को उच्च न्यायालयों में दायर किया जाएगा।”
इस बीच, मंगलवार को हुई पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों की एक बैठक में सोशल मीडिया पर सेना के खिलाफ चलाए गए अभियान पर चर्चा की गई। इस दौरान ‘मुल्क में संविधान और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए सैन्य नेतृत्व के सुविचारित रुख’ पर पूर्ण विश्वास जताया गया।
इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, फॉर्मेशन कमांडर्स की 79वीं बैठक सैन्य मुख्यालय में आयोजित की गई थी और इसमें सेना के कोर कमांडरों, प्रमुख स्टाफ अधिकारियों व सभी फॉर्मेशन कमांडरों ने हिस्सा लिया था।
बयान के अनुसार, बैठक की अध्यक्षता सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने की थी। इसमें कहा गया है, “बैठक में कुछ तत्वों द्वारा पाक सेना को बदनाम करने और संस्था व समाज के बीच दूरी पैदा करने के लिए हाल ही में चलाए गए दुष्प्रचार अभियान पर चर्चा की गई।”
बयान के मुताबिक, “पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। पाकिस्तानी सेना इसकी रक्षा के लिए सरकारी प्रतिष्ठानों के साथ हमेशा खड़ी रही है औ
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अमेरिका में न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन के एक सबवे स्टेशन में हुई गोलीबारी में कम से कम 16 लोग घायल हुए हैं.
स्थानीय मीडिया के मुताबिक़, सनसेट पार्क में 36वें स्ट्रीट स्टेशन में स्थानीय समयानुसार मंगलवार सुबह 8.30 बजे गोलीबारी हुई.
घटनास्थल की तस्वीरों में स्टेशन के फ़र्श पर यात्री ख़ून में लथपथ पड़े हैं.
संदिग्ध हमलावर की तलाश जारी है. उसकी पहचान के बारे में कुछ चश्मदीदों ने बताया है कि उसने नारंगी रंग की कंस्ट्रक्शन वेस्ट और संभावित रूप से गैस मास्क पहना था. माना जा रहा है कि वो घटनास्थल से भाग गया था. हमलावर का क्या उद्देश्य था यह अभी तक साफ़ नहीं है.
एनबीसी न्यूज़ ने पुलिस सूत्रों के हवाले से बताया है कि सुबह को जब भीड़ का समय था तब संदिग्ध हमलावर ने स्मोक बम फेंका जिससे लोगों में अफ़रा-तफ़री मच गई.
इस घटना में 10 लोगों को गोली लगी है जिनमें से 5 की हालत गंभीर है और स्थिर बनी हुई है. इनके अलावा लोग धुएं के कारण और भगदड़ में भी घायल हुए हैं.
न्यूयॉर्क सिटी के मेयर एरिक एडम्स के प्रवक्ता ने न्यूयॉर्क के लोगों से अपील की है कि वो अपनी 'सुरक्षा का ख़याल रखते हुए इलाक़े से दूर रहे हैं.'
सैम कारकामो ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया, "मेरे सबवे (ट्रेन) का दरवाज़ा एक भयंकर आपदा की ओर खुला. हर तरफ़ धुआं फैला हुआ था और लोग चीख़ रहे थे."
उन्होंने बताया कि जैसे ही दरवाज़ा खुला तो ट्रेन से धुएं का गुबार निकलना शुरू हो गया.
एक दूसरी चश्मदीद क्लेयर ने न्यूयॉर्क पोस्ट से कहा कि कितनी गोलियां चलाई गईं उसकी गिनती भी वो भूल गई थीं.
उन्होंने बताया कि संदिग्ध ने पहले 'किसी तरह का सिलेंडर फेंका', शुरुआत में ऐसा लगा कि वो एक सबवे का कर्मचारी है क्योंकि उसने नारंगी रंग का वेस्ट पहना हुआ था.
न्यूयॉर्क के दमकल विभाग ने बीबीसी को बताया है कि उसे स्टेशन से धुआं उठने की कॉल मिली थी.
लेकिन जब अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्हें वहां घायल लोग मिले.
पुलिस ने बताया है कि उसे स्टेशन के अंदर कोई सक्रिय विस्फोटक डिवाइस नहीं मिली है. हालांकि पहले ऐसी ख़बरें थीं कि वहां पर सक्रिय विस्फोटक डिवाइस पाए गए हैं.
राष्ट्रपति जो बाइडन और अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड को घटना के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है.
बीते दो सालों से अमेरिका के कई शहरों में बंदूक़ों के ज़रिए हिंसा में काफ़ी तेज़ी देखी गई है. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान की कमान शहबाज़ शरीफ़ को मिल गई है. शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के छोटे भाई और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के प्रमुख हैं.
पाकिस्तान में हुए इस सत्ता परिवर्तन की चर्चा दुनिया भर के मीडिया में काफ़ी हो रही है.
शहबाज़ शरीफ़ के प्रधानमंत्री बनने पर अरब न्यूज़ ने लिखा है, ''नए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की पहचान एक प्रभावी प्रशासक की रही है. इमरान ख़ान की पार्टी के सदस्यों ने संसद से इस्तीफ़ा दे दिया है. इमरान ख़ान नई सरकार पर जल्द से जल्द चुनाव कराने का दबाव डाल रहे हैं.''
''यह नए स्पीकर पर निर्भर करेगा कि इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के सदस्यों का इस्तीफ़ा स्वीकार करते हैं या नहीं. चुनाव आयोग का कहना है कि अक्टूबर से पहले चुनाव संभव नहीं है. पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के बीच वहाँ के शेयर मार्केट में 1,429.52 अंकों का उछाल देखा गया. इसके अलावा डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपया भी मज़बूत हुआ है.''
शहबाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जो पहला भाषण दिया उसमें सऊदी अरब, तुर्की, चीन और यूएई का नाम लिया. उन्होंने भारत का भी नाम लिया लेकिन कहा कि बिना कश्मीर मुद्दे के समाधान के रिश्ते पटरी पर नहीं आएंगे. इमरान ख़ान भी जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने तुर्की, सऊदी, चीन और यूएई से क़रीबी बढ़ाने की कोशिश की थी.
चीन के अंग्रेज़ी अख़बार ग्लोबल टाइम्स को वहाँ की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाता है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन और पाकिस्तान के संबंध के लिए इमरान ख़ान से बेहतर शहबाज़ शरीफ़ हो सकते हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''चीन और पाकिस्तान के विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन से दोनों देशों के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. शरीफ़ परिवार की लंबे समय से पाकिस्तान और चीन के संबंधों को मज़बूत करने में अहम भूमिका रही है. शहबाज़ शरीफ़ दोनों देशों के संबंधों के लिए इमरान ख़ान की सरकार से भी ज़्यादा अच्छे हो सकते हैं.''
तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी अनादोलु ने लिखा है कि शहबाज़ शरीफ़ को तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने पर बधाई संदेश भेजा है. अनादोलु के अनुसार, अर्दोआन ने फ़ोन करके बधाई दी है. अर्दोआन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच गहरे संबंध हैं और आने दिनों में यह और मज़बूत होगा.
अर्दोआन ने कहा, ''तमाम मुश्किलों के बावजूद पाकिस्तान ने ख़ुद को लोकतंत्र से दूर नहीं किया और क़ानून-व्यवस्था बनी रही. तुर्की पाकिस्तान को हर मोर्चे पर मदद करने के लिए तैयार है.''
अर्दोआन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहबाज़ शरीफ़ को बधाई देने वाले पहले विश्व नेताओं में से हैं. पीएम मोदी की बधाई पर यूएई के हसन सजवानी ने लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने शहबाज़ शरीफ़ को बधाई देने में 'हिज एक्सलेंसी' टर्म का इस्तेमाल किया है. हिज़ एक्सलेंसी किसी देश के पुरुष प्रमुख के लिए किया जाता है.
जापान टाइम्स ने लिखा है कि शहबाज़ शरीफ़ का रुख़ मध्यमार्गी होगा. इमरान ख़ान ने खुलकर कहा था कि अमेरिका ने उनकी सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश की थी और नई सरकार अमेरिका की कठपुतली होगी. शहबाज़ शरीफ़ जब पाकिस्तानी प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री थे तब मिफ़्ताह इस्माइल वित्त मंत्री थे. उन्होंने ब्लूमबर्ग से कहा है, ''शहबाज़ शरीफ़ सभी देशों से दोस्ती रखना चाहते हैं. हम चीन, अमेरिका और रूस तीनों से दोस्ती रखना पसंद करेंगे.''
जापान टाइम्स ने लिखा है कि इमरान ख़ान ने अपनी विदेश नीति में अमेरिका को बिलकुल हाशिए पर रखा था लेकिन शहबाज़ शरीफ़ ऐसा नहीं करेंगे. शहबाज़ शरीफ़ एक बार फिर से आईएमएफ़ से बातचीत शुरू कर सकते हैं. आईएमफ़ से पाकिस्तान को तीन अरब डॉलर का फंड अब भी मिलना है.
ब्लूमबर्ग से वॉशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया के सीनियर फेले माइकल कगलमैन ने कहा, ''शहबाज़ की पहचान एक सीनियर प्रबंधक और नेता की रही है लेकिन वह कभी प्रधानमंत्री नहीं रहे. शहबाज़ शरीफ़ के सामने भी आर्थिक चुनौतियां हैं और वह भी गठबंधन सरकार के मुखिया हैं. इमरान ख़ान ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ने साज़िश के तहत उनकी सरकार को गिरा दिया. इस पर शहबाज़ शरीफ़ ने कहा है कि वह इसकी जांच कराएंगे और इसमें कुछ भी सच्चाई मिलती है तो इस्तीफ़ा दे देंगे.''
नवाज़ शरीफ़ और शहबाज़ शरीफ़ 1999 के बाद सऊदी अरब और लंदन में निर्वासन के तौर पर क़रीब सात सालों तक रहे हैं. जापान टाइम्स ने लिखा है कि शहबाज़ शरीफ़ की एक पहचान यह भी रही है कि वह सरकारी दफ़्तरों में अचानक दस्तक दे देते थे. पंजाब की राजधानी लाहौर के विकास में शहबाज़ शरीफ़ की अहम भूमिका मानी जाती है. लाहौर में रोड नेटवर्क फैलाने में शहबाज़ शरीफ़ का नाम लिया जाता है.
नवाज़ शरीफ़ को ही चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर का श्रेय दिया जाता है. इस्माइल ने जापान टाइम्स से कहा कि शहबाज़ शरीफ़ बिज़नेस फ्रेंडली नेता हैं और उनके नेतृत्व में सीपीईसी के काम में और तेज़ी आएगी.
लंदन के अख़बार द गार्डियन से पाकिस्तानी पत्रकार सिरिल अलमेडिया ने कहा है, ''शहबाज़ शरीफ़ का यह पुराना सपना था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनें और अपनी प्रशासनिक क्षमता के साथ राजनीतिक कुशलता का परिचय दें. 2013 में ही वह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन उनके भाई ने उन्हें पंजाब में ही रखा था.''
द गर्डियन ने लिखा है, ''70 साल के शहबाज़ शरीफ़ पहले परिवार का कारोबार संभालते थे और उन्होंने 1988 में राजनीति में दस्तक दी थी. 1997 में वह पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री बने. लेकिन 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ़ ने तख़्तापलट किया तो शरीफ़ परिवार को सऊदी अरब जाना पड़ा. 2007 में शहबाज़ शरीफ़ वापस आए थे और फिर से पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे.''
शहबाज़ शरीफ़ जब सोमवार को पाकिस्तान के 23वें प्रधानमंत्री बने तो बधाइयां देने वालों में पीएम नरेंद्र मोदी भी शामिल रहे.
इसी लिस्ट में एक नाम पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफ़रीदी का भी है.
शाहिद अफ़रीदी ने ट्वीट किया, ''शहबाज़ शरीफ़ को पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म बनने की मुबारक़बाद. मैं उम्मीद करता हूं कि वो अपनी मैनेजमेंट स्किल्स का इस्तेमाल करके पाकिस्तान को मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक संकट से निकालने का काम करेंगे. पाकिस्तान ज़िंदाबाद.''
शाहिद अफ़रीदी के इस ट्वीट पर कुछ पाकिस्तानियों की नाराज़गी देखने को मिल रही है. ज़्यादातर लोग शाहिद अफ़रीदी के ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए आलोचना कर रहे हैं. कुछ पाकिस्तानियों की ये शिकायत इतनी ज़्यादा रही कि शाहिद अफ़रीदी ने दो और ट्वीट कर अपनी बात को विस्तार दिया. शाहिद अफ़रीदी ने अपने ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा, ''जब वक़्त-रुख़्सत आ जाए तो चाहे हक़ पर हों या ग़मज़दा, विदाई इज़्ज़त के साथ क़ुबूल करनी चाहिए. आरोप, साज़िशें, यहां तक की हार भी सत्ता के खेल का हिस्सा हैं.''
शाहिद ने किसी और की कही लाइन को ट्वीट किया, ''हर कोई सच सुनना चाहता है पर कोई भी ईमानदार नहीं रहना चाहता.'' हालांकि आलोचना के अलावा कुछ लोग शाहिद का बचाव भी कर रहे हैं. पढ़िए, शाहिद अफ़रीदी को लेकर ट्विटर पर कुछ पाकिस्तानी क्या लिख रहे हैं?
'लाला तुमसे ये उम्मीद नहीं थी'
ट्विटर पर @Zakr1a ने लिखा- न ही मैं निराश हूं न ही हैरान, मुझे आप से उम्मीद थी आप बेकार बात ही करेंगे.
जावेद तारिक़ लिखते हैं, ''अफ़रीदी हमेशा दोनों तरफ से खेलते हैं. अपने कई इंटरव्यू में वो ये बात बोल चुके हैं.''
मीर वसीम ने लिखा, ''लाला तुम लाखों लोगों के दिल नहीं तोड़ सकते. डिलीट कर दो प्लीज़.'' शाहिद अफ़रीदी को प्यार से लाला भी कहा जाता है.
एक यूज़र ने ये ट्वीट किया, ''आपको शर्म आनी चाहिए. मैं आपकी बहुत बड़ी फैन थी कि आप सच और हक़ का हमेशा साथ देते हैं पर अफ़सोस आप... ''
साहिल गुलज़ार लिखते हैं, ''लाला तुमने मेरा दिल तोड़ दिया. तुम ये कैसे कर सकते हो. इंसाफ़ नहीं हुआ.''
सईद फ़वाद लिखते हैं, ''हमेशा औपचारिकता नहीं चलती है. कई बार हमें सही और ग़लत के बीच चुनना होता है और इस बार शाहिद ने ग़लत को चुना.''
किफ़ायत अली ने ट्वीट किया, ''लाला को गाली देने से पहले वो बधाई भी याद कीजिए, जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने पर इमरान ख़ान को दी थी.''
दरअसल जब इमरान ख़ान 2018 में प्रधानमंत्री बने थे तब भी शाहिद अफ़रीदी ने इमरान को भी बधाई दी थी. तब शाहिद ने लिखा था, ''पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की बधाई. मैं उम्मीद करता हूं कि आपकी टीम और इरादे पाकिस्तान को हमारी पीढ़ियों के लिए बेहतर बनाएंगे. पूरा पाकिस्तान आपकी और आपकी टीम की ओर देख रहा है.''
इसके अलावा शाहिद अफ़रीदी ने फरवरी 2018 में भी इमरान ख़ान को शादी की बधाई और शुभकामनाएं दी थीं.
जलाल खालिद लिखते हैं, ''शांत हो जाओ भाइयों. शाहिद बस बधाई दे रहे हैं. इसमें कोई ग़लत बात नहीं है. मैं ख़ुद इमरान ख़ान से प्यार करता हूं पर शाहिद के लिए ऐसा मत बोलो.''(bbc.com)
50-60 साल पहले विस्थापित हुए परिवार क्या आज भी शरणार्थी ही कहे जाएंगे? अरुणाचल सरकार और वहां के हाजोंग व चकमा समुदाय को इसी सवाल का जवाब चाहिए.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में दशकों पुराने हाजोंग और चकमा शरणार्थियों की कथित नस्लीय जनगणना और पुनर्वास पर विवाद लगातार तेज हो रहा है. एक ओर जहां राज्य सरकार और तमाम स्थानीय संगठन उनको राज्य से अन्यत्र बसाए जाने के पक्ष में हैं वहीं दूसरी ओर, इन शरणार्थियों के संगठनों ने राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली पेमा खांडू सरकार पर शरणार्थियों की नस्लीय जनगणना का आरोप लगाया है. इसके विरोध में इन संगठनों ने हाल में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन सौंपा. हालांकि राज्य सरकार ने इस आरोप को निराधार बताया है.
चकमा विकास संगठन (सीडीएफआई) ने मानवाधिकार आयोग से चकमा और हाजोंग जनजाति के करीबी 65,000 लोगों की 11 दिसंबर, 2021 को शुरू हुई जनगणना में हो रहे जातीय भेदभाव को रोकने और अपने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए फौरन हस्तक्षेप करने की मांग की है. शरणार्थियों का आरोप है कि कथित जनगणना के जरिए उनको राज्य से निकालने का प्रयास किया जा रहा है. इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने चकमा और हाजोंग शरणार्थियों के मानवाधिकारों को लेकर चिंता जताई है. आयोग ने गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार से कहा है कि किसी भी सूरत में इन शरणार्थियों के मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिए.
चकमा संगठन ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भेजे गए एक पत्र में भी इस जनजाति के शरणार्थियों की नस्लीय प्रोफाइलिंग का आरोप लगाया था.
कहां से आए चकमा शरणार्थी
चकमा बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं जबकि हाजोंग हिन्दू हैं. यह लोग 1964 से 1966 के बीच तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत में आकर अरुणाचल प्रदेश में बस गए थे. इन दोनों समुदायों के लोग असम समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में फैले हैं. 1962 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कप्ताई बांध को शुरू करने के बाद इन अल्पसंख्यक समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ. उसके बाद यह लोग खुली सीमाओं के रास्ते भारत पहुंचे थे.
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में चकमा और हाजोंग शरणार्थी नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश जनजातीय राज्य है और यहां बाहरी लोगों को बसने की अनुमति नहीं मिल सकती. मुख्यमंत्री का कहना है कि शुरुआत में राज्य में चकमा और हाजोंग लोग शरणार्थी के रूप में आए थे. लेकिन बाद में उनकी संख्या कई गुना बढ़ गई. सरकार ने बीते साल विधानसभा में कहा था कि 2015-16 में कराए गए एक विशेष सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में चकमा और हाजोंग लोगों की संख्या 65,857 थी. हालांकि गैर सरकारी अनुमान के मुताबिक यह तादाद दो लाख से ज्यादा बताई जाती है.
राज्य सरकार का पक्ष
मुख्यमंत्री कहते हैं, "लोगों को बसाने के लिए हमारे पास सटीक आंकड़े होने चाहिए. इसी वजह से जनगणना की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि वैध और अवैध शरणार्थियों की कितनी तादाद है. इसके बाद हम उनको तमाम सुविधाओं समेत दूसरे राज्यों में बसाने के लिए केंद्र से बातचीत शुरू कर सकेंगे.” खांडू के मुताबिक, अब तक केंद्र या राज्य किसी सरकार ने कभी इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास नहीं किया. अब प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व राज्य सरकार इसका एक स्थायी समाधान निकालने का प्रयास कर रही है.
अखिल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) के महासचिव तबोम दाई का कहना है कि चकमा और हाजोंग की जनगणना मूल निवासियों की सुरक्षा के लिए एक नियमित प्रशासनिक कवायद है. संगठन ने नस्लीय आधार पर जनगणना के आरोपों को निराधार करार दिया है.
चकमा और हाजोंग समुदाय का आरोप
लेकिन शरणार्थी अपने दावे पर अडिग हैं. दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले अरुणाचल प्रदेश चकमा छात्र संघ के अध्यक्ष रूप सिंह चकमा कहते हैं, "अरुणाचल सरकार अवैध तरीके से नस्लीय आधार पर जनगणना कर रही है जो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन है.” उनका दावा है कि वर्ष 1964 से 1969 के दौरान भारत आने वाले इन दोनों समुदाय के लोग 1972 के इंदिरा-मुजीब समझौते और 1955 के नागरिकता अधिनियम के मुताबिक भारतीय नागरिक हैं. इसी तरह भारत में पैदा होने वाले चकमा और हाजोंग जनजाति के लोग जन्म से भारत के नागरिक हैं.
चकमा शरणार्थियों को 50 साल बाद मिलेगी नागरिकता
कमेटी फॉर सिटीजनशिप राइट्स ऑफ द चकमाज एंड हाजोंग्स के महासचिव संतोष चकमा कहते हैं, "अरुणाचल सरकार ने इस विवाद को जारी रखने के लिए ही नस्लीय जनगणना शुरू की है. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो ऐसी जनगणना की अनुमति दे. इस विशेष जनगणना के जरिए सरकार सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने का प्रयास कर रही है.”
चकमा नेता सुभाष चकमा कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस मामले में फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि विभाजन का दंश झेल चुके लोगों के वंशजों को निशाना बनने से रोका जा सके.” अमित शाह को सौंपे ज्ञापन में इन नेताओं ने मौजूदा जनगणना को फौरन रोकने और इसे खारिज करने की मांग की है. (dw.com)
नाटो चीफ स्टोल्नटेनबर्ग कह चुके हैं कि अगर ये दोनों देश ब्लॉक में शामिल होना चाहें, तो प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी. जून 2022 में नाटो का मैड्रिड सम्मेलन होना है. अनुमान है कि उसके पहले स्वीडन और फिनलैंड फैसला ले लेंगे.
डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-
"रूस वैसा पड़ोसी नहीं है, जैसा हमने सोचा था. उसके साथ हमारे रिश्ते इस तरह बदले हैं कि अब इसके बेहतर होने या पहले जैसे होने की उम्मीद नहीं है."
ये पंक्तियां फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने 2 अप्रैल को कहीं. पीएम मरीन 'सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ फिनलैंड' की सदस्य हैं. पार्टी काउंसिल में बोलते हुए मरीन रूस के साथ रिश्तों में आए बदलाव और फिनलैंड की सुरक्षा चिंताओं पर अपनी राय रख रही थीं. उनकी टिप्पणियों का संदर्भ यूक्रेन युद्ध से जुड़ा था. इसी क्रम में मरीन ने नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) से जुड़ा एक अहम एलान भी किया. उन्होंने कहा कि नाटो में शामिल होने के मुद्दे पर फिनलैंड इसी साल मई तक फैसला ले लेगा.
फिनलैंड और स्वीडन: करीबी रिश्ते, कई समानताएं
फिनलैंड के पश्चिम में 'गल्फ ऑफ बॉथनिया' के पार स्वीडन बसा है. नाटो सदस्यता और इस पर फिनलैंड के रुख में स्वीडन की गहरी दिलचस्पी है. ये दोनों नॉर्डिक पड़ोसी 1 जनवरी, 1995 को साथ ही ईयू में शामिल हुए थे. दोनों देशों के बीच बहुत करीबी और पुराने रिश्ते हैं. फिनलैंड करीब 700 साल तक स्वीडन का हिस्सा था. उस दौर में बाल्टिक सागर पर अधिकार को लेकर स्वीडन और रूस के बीच पुराना झगड़ा था. स्वीडन समुद्र और उसके व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण करना चाहता था. वहीं रूस चाहता था कि वह पश्चिम की ओर अपना विस्तार बढ़ाए.
इसी क्रम में 1808-1809 में स्वीडन और रूस के बीच 'फिनिश युद्ध' हुआ. सितंबर 1809 में फिनलैंड के शहर फ्रेयद्रिकसामन में हुए शांति समझौते से युद्ध खत्म हुआ. इस समझौते में स्वीडन का करीब एक तिहाई इलाका उसके हाथ से निकल गया, जिसमें फिनलैंड भी शामिल था. फिनलैंड को रूसी साम्राज्य का स्वायत्त हिस्सा बना दिया गया. इस बंटवारे को स्वीडन के इतिहास के सबसे तकलीफदेह अध्यायों में गिना जाता है. 1917 में फिनलैंड, रूस से आजाद हुआ. इसके बाद से फिनलैंड और स्वीडन के बीच बहुत करीबी ताल्लुकात हैं.
नाटो सदस्यता पर दोनों का रुख एक-दूसरे के लिए मायने रखता है
इसे आप स्वीडन की दूसरी प्रमुख विपक्षी पार्टी 'दी स्वीडन डेमोक्रैट्स' के नेता यिमी ओकेसॉन के बयान से भी समझ सकते हैं. 9 अप्रैल को एक स्वीडिश अखबार के साथ बातचीत में ओकेसॉन ने कहा, "अगर फिनलैंड नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन देता है, तो हमारी पार्टी भी स्वीडन के नाटो सदस्यता लेने का समर्थन करेगी." ओकेसॉन ने यह भी कहा कि अगर फिनलैंड नाटो के लिए अप्लाई करता है, तो वह अपनी पार्टी काउंसिल से भी नाटो सदस्यता का समर्थन करने का आग्रह करेंगे. 'दी स्वीडन डेमोक्रैट्स' पार्टी अब तक अपने देश के नाटो में शामिल होने का विरोध करती आई थी. अगर वह अपना रुख बदलती है, तो स्वीडन के नाटो में शामिल होने के मुद्दे को संसद में बहुमत मिल जाएगा.
अपनी पार्टी के बदले नजरिये की वजह बताते हुए ओकेसॉन ने कहा, "हमारे रुख में आए बदलाव की वजह यह है कि फिनलैंड अब स्पष्ट तौर पर नाटो सदस्यता की ओर बढ़ रहा है. कई संकेत हैं, जो बताते हैं कि यह जल्द ही होने वाला है. एक तो फिनलैंड का रुख और दूसरी यह बात कि यूक्रेन, जो कि नाटो सदस्य नहीं है, जिस तरह अभी बिल्कुल अकेला है, इन दो चीजों ने नाटो के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया है."
सुरक्षा की भावना
नाटो के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है- कलेक्टिव डिफेंस. यानी एक या एक से ज्यादा सदस्यों पर हुआ हमला, सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा. नाटो के सेक्रेटरी जनरल स्टोल्टेनबर्ग के शब्दों में- ऑल फॉर वन, वन फॉर ऑल. यही "एक के लिए सब, सबके लिए हर एक" की सुरक्षा गारंटी है, जो बदले घटनाक्रम में यूरोपीय देशों के लिए नाटो सदस्यता को आर्कषक बनाती है. यूक्रेन की स्थितियां एक हाइपोथिसिस बना रही हैं. अगर कल को युद्ध हुआ, उस स्थिति में कोई देश अकेला नहीं रहना चाहता.
स्वीडन और फिनलैंड के नाटो की तरफ बढ़ रहे कदमों की ऐतिहासिक अहमियत भी है. दोनों देश अपनी रक्षा और विदेश नीति में 'तटस्थता' का पालन करते आए हैं. फिनलैंड की करीब 1,300 किलोमीटर लंबी सीमा रूस से सटी है. 1917 में रूस से आजाद होने के बाद करीब दो दशक तक चीजें ठीक रहीं. फिर नवंबर 1939 में सोवियत संघ ने फिनलैंड पर हमला कर दिया.
1940 में फिनलैंड को मजबूरन सोवियत के साथ संधि करनी पड़ी. युद्ध खत्म होने के बाद 1948 में उसे फिर से सोवियत संघ के साथ "ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप, कोऑपरेशन ऐंड म्युचुअल असिस्टेंस" करनी पड़ी. इसके तहत फिनलैंड ने वादा किया कि वह तटस्थता के सिद्धांत पर अमल करेगा, बशर्ते कि उस पर हमला ना हो. इस संधि के चलते फिनलैंड ना तो नाटो में शामिल हुआ और ना ही वह सोवियत संघ के नेतृत्व वाले 'वॉरसॉ पैक्ट' का हिस्सा बना. सोवियत संघ के साथ हुई संधि 1992 में रद्द हो गई. इसी साल रूस और फिनलैंड के बीच एक नई संधि हुई, जिसमें दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने की बात थी.
तटस्थता स्वीडन के भी इतिहास का हिस्सा रही है
1814 के बाद से स्वीडन ने किसी युद्ध में हिस्सा नहीं लिया. वह कभी किसी सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं हुआ. दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी स्वीडन ने तटस्थता बनाए रखने के लिए "नॉर्डिक डिफेंस अलायंस" बनाने की कोशिश की. मगर डेनमार्क और नॉर्वे इसके लिए राजी नहीं हुए. उन्होंने 1949 में नाटो की सदस्यता ले ली. वहीं स्वीडन ने शांति की स्थिति में गुटनिरपेक्षता और युद्धकाल में तटस्थता को अपनी आधिकारिक नीति बनाया. कई जानकार कहते हैं कि स्वीडन का यह फैसला उसके हित में था. अगर उस समय वह नाटो में गया होता, तो शायद सोवियत संघ फिनलैंड पर कब्जा कर लेता. ऐसा होने पर सोवियत बिल्कुल स्वीडन के पड़ोस में आ जाता.
तटस्थ रहते हुए भी फिनलैंड और स्वीडन के पश्चिमी देशों के साथ मजबूत रिश्ते बने रहे. दोनों ने 1995 में ईयू की सदस्यता ली. लेकिन इसके बाद भी दोनों देशों में बहुसंख्यक राय नाटो सदस्यता के खिलाफ थी. यह स्थिति बीते साल से बदलने लगी. यूक्रेन पर रूस के हमलावर रुख और बाल्टिक सागर में संदिग्ध गतिविधियों के कारण दोनों देशों में आम राय पर असर पड़ा. यूक्रेन पर रूस के हमले के शुरुआती दिनों में स्थानीय मीडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में पता चला कि स्वीडन में 51 फीसदी लोग और फिनलैंड में 53 प्रतिशत जनता नाटो सदस्यता के समर्थन में है.
जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, नाटो सदस्यता के पक्ष में माहौल और जोर पकड़ने लगा. 30 मार्च को हुए हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, फिनलैंड के 61 फीसदी लोग नाटो सदस्यता के पक्ष में हैं. 23 फीसदी अभी अपना मन नहीं बना सके हैं और केवल 16 प्रतिशत लोग ही इसके खिलाफ हैं. इसके अलावा फिनलैंड और यूक्रेन, दोनों ने विदेशी युद्धों में तटस्थ रहने की अपनी नीति से अलग जाकर यूक्रेन के लिए सहायता भी भेजी है. 1939 में सोवियत संघ के खिलाफ फिनलैंड की मदद के बाद यह पहली बार है, जब स्वीडन ने किसी देश को सैन्य सहायता मुहैया कराई हो.
फिनलैंड में नागरिकों ने दो बड़े अभियान शुरू किए
एक नागरिक अभियान में नाटो सदस्यता पर जनमत संग्रह करवाने की मांग की गई. दूसरे में राष्ट्रपति से अपील की गई कि वे नाटो सदस्यता पर संसद में प्रस्ताव लाएं. इन दोनों नागरिक मुहिमों को वहां बहुत समर्थन मिला है. मार्च 2022 में दिए एक इंटव्यू में फिनलैंड के विदेश मंत्री पेक्का हैविस्टो ने कहा, "पहली बार फिनलैंड में बहुसंख्यक आबादी नाटो सदस्यता के पक्ष में है." 8 अप्रैल को एक रूसी विमान ने कथित तौर पर फिनलैंड के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया. फिनलैंड के विदेश और रक्षा मंत्रालय से जुड़ी कुछ वेबसाइटों पर भी हाल में साइबर हमले हुए. इन्हें लेकर भी रूस पर आरोप लग रहे हैं. ऐसी घटनाएं भी नाटो के पक्ष में माहौल बना रही हैं.
फिनलैंड की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार के दो प्रमुख दल- सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ फिनलैंड और सेंटर पार्टी पहले नाटो पर बंटे हुए थे. लेकिन अब उनके बीच भी सहमति बनती दिख रही है. फिनलैंड और स्वीडन में एक आशंका यह है कि अगर वे सदस्यता के लिए अप्लाई करते हैं, तो अप्लाई करने से लेकर नाटो सदस्यों द्वारा इसे मंजूर किए जाने की अवधि के बीच वे जोखिम की स्थिति में आ सकते हैं. इस संबंध में नाटो प्रमुख स्टोल्नटेनबर्ग ने दो अहम संकेत दिए हैं. पहला यह कि दोनों देशों के आवेदन दिए जाने के बाद सदस्यता की प्रक्रिया पूरी करने में बहुत समय नहीं लगेगा. उन्होंने दूसरा संकेत यह दिया है कि अप्लाई करने से लेकर दोनों देशों के आधिकारिक तौर पर नाटो में शामिल होने तक अंतरिम सुरक्षा गारंटी की व्यवस्था की जा सकती है.
रूस का रुख
स्वीडन और फिनलैंड के इस घटनाक्रम पर रूस की भी नजर है. नाटो का विस्तार रूस के लिए संवेदनशील मुद्दा है. वह इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताता है.यूक्रेन पर हमले के लिए भी वह इसे बड़ी वजह बताता है. रूस की लंबी सीमा फिनलैंड से मिलती है. उसके लिए फिनलैंड एक बफर जोन है. वह कतई नहीं चाहता कि नाटो उसके इतने करीब आए. इसीलिए रूस, स्वीडन और फिनलैंड के भी नाटो में जाने का विरोध करता है. यूक्रेन पर हमला करने के अगले दिन ही रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा, "अगर फिनलैंड और स्वीडन नाटो में शामिल होते हैं, जो कि एक सैन्य संगठन है, तो इसके गंभीर सैन्य और राजनैतिक परिणाम होंगे और रशियन फेडरेशन को जवाबी कदम उठाने पड़ेंगे."
रूस ने केवल चेतावनी नहीं दी है. 16 मार्च, 2022 को फिनलैंड के रूसी दूतावास ने वहां रह रहे रूसियों से अपील की कि अगर फिनलैंड में रह रहे रूसी नागरिकों या रूसी भाषियों के साथ किसी तरह का भेदभाव या पक्षपात हो रहा है, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, तो वे ईमेल भेजकर दूतावास को सूचित करें. रूस ने यूक्रेन हमले से पहले भी वहां रह रहे रूसी भाषियों को निशाना बनाए जाने की बात कही थी.
जून तक लिया जा सकता है फैसला
आने वाले दिन, खासतौर पर अप्रैल, मई और जून बहुत अहम होने वाले हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद फिनलैंड की सरकार 14 अप्रैल को एक रिपोर्ट लाने वाली है. इसमें फिनलैंड की सुरक्षा नीति के अपडेट्स होने की उम्मीद है. उसके बाद संसद में इस मुद्दे पर बहस शुरू होगी. फिर सरकार एक और रिपोर्ट लाएगी, जिसमें नाटो सदस्यता के लिए आधिकारिक तौर पर अनुशंसा किए जाने का अनुमान है.
फिनलैंड के रुख का दोहराव स्वीडन में भी होने की उम्मीद है. फिनलैंड की पीएम सना मरीन ने 9 अप्रैल को भी कहा है कि उनका मकसद है कि स्वीडन और फिनलैंड, दोनों एकसाथ एक जैसा फैसला लें. 29 जून, 2022 को नाटो का मैड्रिड सम्मेलन होना है. उम्मीद है कि उसके पहले ही स्वीडन और फिनलैंड अपना फैसला ले लेंगे.
फिलहाल नाटो के सदस्य देशों (नॉर्वे, पोलैंड, एस्टोनिया, लातिविया, लिथुआनिया) की रूस के साथ करीब 1,200 किलोमीटर लंबी सीमा है. अगर फिनलैंड भी नाटो में आ जाता है, तो यह बढ़कर दोगुनी हो जाएगी. 2014 में रूस ने जब पहली बार यूक्रेन पर हमला किया, तब भी स्वीडन और फिनलैंड की पॉलिसी पर असर दिखा था. दोनों देशों ने नाटो के साथ सहयोग बढ़ा दिया था. साझा सैन्य अभ्यास बढ़ा दिए थे. वे नाटो के सदस्य ना होते हुए भी उसका करीबी हिस्सा बन गए थे. अब ताजा यूक्रेन युद्ध के बाद जैसे हालात बन रहे हैं, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि नाटो के जिस कथित विस्तारवाद के मुद्दे पर व्लादिमीर पुतिन ने यह जंग शुरू की, वही युद्ध अब यूरोप में नाटो की हवा बना रहा है. (dw.com)
भारत और अमेरिका के बीच 2+2 बैठक से पहले नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन के बीच वर्चुअल मुलाकात हुई. इस दौरान यूक्रेन पर भारतीय प्रतिक्रिया सबसे अहम मुद्दा रही.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि रूस से तेल खरीदना भारत के हित में नहीं है और इससे यूक्रेन युद्ध के खिलाफ उठाए जा रहे अमेरिकी कदमों में बाधा आ सकती है. एक अमेरिकी अधिकारी ने यह जानकारी दी.
भारत और अमेरिका के नेताओं ने सोमवार को वीडियो पर करीब एक घंटा लंबी बातचीत की जिसे अमेरिकी अधिकारियों ने गर्मजोश मुलाकात बताया. दोनों नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर यूक्रेन में हो रही बर्बादी पर चिंता जाहिर की और खासतौर पर बुचा का जिक्र किया जहां सैकड़ों आम नागरिकों की मौत हुई है.
एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि जो बाइडेन ने नरेंद्र मोदी से कुछ ठोस मांग नहीं कि जबकि भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन और रूस की बढ़ती करीबियों को लेकर चिंता जाहिर की. लेकिन बाइडेन ने मोदी से कहा कि रूसी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता से वैश्विक पटल पर भारत की स्थिति मजबूत नहीं होगी. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा, "राष्ट्रपति ने बहुत स्पष्टता से कहा कि उसे (रूस पर निर्भरता) बढ़ाना उनके हित में नहीं है."
अमेरिका ने रूस पर दबाव बढ़ाने में भारत से और ज्यादा मदद करने की अपील की. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "हाल ही में बुचा में मासूम नागरिकों के मारे जाने की खबर बहुत चिंताजनक है. हमने फौरन उसकी निंदा की और निष्पक्ष जांच की मांग की.” मोदी ने यह भी कहा कि भारत ने रूस से हाल की एक बातचीत में सुझाव दिया था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की आमने-सामने बैठकर बात करें.
भारत से उम्मीद
भारत ने यूक्रेन पर हमले को लेकर अपने पुराने मित्र देश रूस की आलोचना नहीं की है. रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए तीनों प्रस्तावों पर मतदान के दौरान भी उसने गैरहाजिर रहने का फैसला किया, जिसे रूस का साथ देने के रूप में देखा गया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि क्वॉड देशों में एक भारत ही है जो रूस के खिलाफ कदम उठाने को लेकर संदिग्ध है. हालांकि भारत सरकार ने दोनों पक्षों से फौरन हिंसा रोकने और बातचीत से विवाद सुलझाने की अपील की है.
जेन साकी ने यह नहीं बताया कि भारत ने रूस से आयात घटाने के बारे में कोई वादा किया या नहीं लेकिन कहा कि अमेरिका ऊर्जा स्रोतों की विविधता बढ़ाने में भारत की मदद को तैयार है. युद्ध के बारे में नरेंद्र मोदी के बयान का जिक्र करते हुए साकी ने कहा कि अब "हम इससे आगे बढ़ते हुए उन्हें और ज्यादा कदम उठाने को प्रोत्साहित करेंगे और इसीलिए नेताओं की आपसी बातचीत महत्वपूर्ण है." 24 मई को दोनों नेता दोबारा मिलेंगे जब जापान में क्वॉड देशों अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत की बैठक होगी.
जो बाइडेन और नरेंद्र मोदी की वर्चुअल मुलाकात के बाद भारतीय और अमेरिकी रक्षा व विदेश मंत्रियों के बीच सालाना ‘2+2 डायलॉग' के तहत बातचीत शुरू हुई. इसके लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर वॉशिंगटन में हैं. दोनों देशों के बीच यह चौथा वार्षिक सम्मेलन है. इसकी शुरुआत में मीडिया से बातचीत करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा, "हम रूस के यूक्रेन युद्ध, कोविड-19 महामारी का खात्मा, जलवायु परिवर्तन आदि अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर बात कर रहे हैं."
ब्लिंकेन ने कहा कि इन बैठकों ने द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती में अहम भूमिका निभाई है और इस वक्त वैश्विक मामलों का बहुत अहम दौर है. इससे पहले ब्लिंकेन ने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर ने अलग से भी मुलाकात की.
भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक की शुरुआत में कहा कि दोनों देशों के बीच और मजबूत रक्षा संबंधों की उम्मीद है. उन्होंने कहा, "एक दशक में अमेरिका से हमारी रक्षा आपूर्ति नाममात्र से बढ़कर 20 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है. हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करेंगी और मेक इन इंडिया योजना का समर्थन करेंगी." इससे पहले राजनाथ सिंह ने अमेरिकी रक्षा उद्योग के कई बड़े उद्योगपतियों से भी मुलाकात की और उनसे भारत में निवेश करने का आग्रह किया.
वीके/वीएस (रॉयटर्स, एएफपी)
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट पनप रहा है. नेपाल सरकार ने अपना खर्च घटाने के लिए कार, सोना और कॉस्मेटिक्स जैसे उत्पादों का आयात आधा कर दिया है.
नेपाल ने अपना खर्च घटाने के लिए कार, सोना और कॉस्मेटिक्स का आयात आधा कर दिया है. देश के केंद्रीय बैंक ने कहा है कि नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार आधा रह गया है. सरकार ने केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निलंबित कर दिया है और उनके डिप्टी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया है.
भारत के उत्तर-पूर्वी पड़ोसी नेपाल पर भी वही मार पड़ी है, जो श्रीलंका ने झेली. पर्यटन पर आधारित उसकी अर्थव्यवस्था दो साल लंबी कोविड महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई और उसका विदेशी मुद्रा भंडार आधा रह गया.
गैर जरूरी चीजों के आयात पर लगाम
नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) के उप प्रवक्ता नारायण प्रसाद पोखरियाल कहते हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार काफी दबाव में है. उन्होंने कहा, "एनआरबी को लगता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत दबाव में है और बिना जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित किए, गैर-जरूरी चीजों के आयात को कसने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है.”
पोखरियाल ने यह तो नहीं बताया कि किन चीजों के आयात पर पाबंदी लगाई जा रही है लेकिन उन्होंने कहा कि आयातकों को 50 ‘लग्जरियस गुड्स' के आयात के लिए पूरा भुगतान पहले करने पर ही इजाजत दी जाएगी. उन्होंने कहा, "हमने इन वस्तुओं के आयात के बारे में नए नियमों के सभी सीमा चौकियों को अवगत करा दिया है. यह आयात पर प्रतिबंध नहीं है बल्कि उन्हें बस हतोत्साहित किया जा रहा है.”
नेपाल के वित्त मंत्रालय ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि एनआरबी के गवर्नर महा प्रसाद अधिकारी को निलंबित क्यों किया गया. अधिकारी को बीते शुक्रवार को निलंबित किया गया था. मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि एक सरकारी पैनल मामले की जांच करेगा. हालांकि, एक सरकारी अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि निलंबित गवर्नर अधिकारी पर वित्तीय सूचनाएं मीडियो को लीक करने के आरोप लगे थे. इस बारे में अधिकारी ने स्वयं कोई टिप्पणी नहीं की है.
नेपाल में पर्यटन उद्योग लगातार संघर्ष कर रहा है. कोविड-19 महामारी के दो सालके दौरान पूरा उद्योग लगभग बंद रहा. इस दौरान देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार बीती मध्य जुलाई के स्तर से 17 प्रतिशत गिरकर फरवरी के मध्य में 9.75 अरब डॉलर यानी लगभग साढ़े सात खरब रह गया था. अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा मुद्रा भंडार अगले छह महीने के आयात के लिए काफी होगा.
विपक्ष ने की आलोचना
केंद्रीय बैंक आंकड़े बताते हैं कि जुलाई से फरवरी के बीच विदेश से आने वाले धन में 5.8 प्रतिशत की कमी आई और यह 4.53 अरब डॉलर ही रह गया. पिछले साल जुलाई में शुरू हुए मौजूदा वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में व्यापार घाटा 2.07 अरब डॉलर रहा. इसी अवधि में पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह घाटा 81.76 करोड़ डॉलर था.
विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री शेर बहादुर देओबा की नीतियों की आलोचना की है. उन्होंने ऐसे समय में एनआरबी गवर्नर को निलंबित करने की नीति को भी गलत बताया, जबकि देश की आर्थिक स्थिति कमजोर है. कम्युनिस्ट यूनिफाइड मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी के वरिष्ठ सांसद सुरेंद्र पांडेय ने कहा, "वह अच्छा काम कर रहे थे और जब देश के आर्थिक संकेत अच्छे नहीं हैं, तब यह (अधिकारी का निलंबन) एक गलत फैसला है.”
एशियाई डिवेलपमेंट बैंक ने इसी महीने की शुरुआत में कहा था कि 2021 में नेपाल का कर्ज बढ़कर जीडीपी का 41.4 प्रतिशत हो गया था. 2016 से 2019 के बीच यह कर्ज औसतन 25.1 प्रतिशत रहा था लेकिन महामारी के दौरान हुए खर्च ने इसमें वृद्धि की है. फिलीपींस स्थित अपने मुख्यालय से एडीबी ने पूर्वानुमान जाहिर किया इस वित्त वर्ष में देश के कर्ज में जीडीपी के 9.7 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जो पिछले साल 8 प्रतिशत थी.
श्रीलंका का संकट
कोविड महामारी के चलते पर्यटन पर निर्भर श्रीलंकाई अर्थव्यवथा की हालत भी खासी लचरहो गई. फरवरी के अंत तक इसका भंडार घटकर 2.31 अरब डॉलर रह गया, जो दो साल पहले की तुलना में करीब 70 फीसदी कम है.
श्रीलंका की सरकार और वहां के लोगों के लिए यह संकट कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि देश की कमाई के हर 100 अमेरिकी डॉलर पर उन्हें 119 डॉलर का कर्ज अदा करना है.
1948 में अंग्रेजी शासन से आजादी के बाद से अब तक श्रीलंका के ऐसे बुरे दिन कभी नहीं आए. श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक संकट अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों, अर्थशास्त्रियों और श्रीलंका पर्यवेक्षकों के लिए शायद ही कोई आश्चर्य की बात हो.
वीके/एए (रॉयटर्स)
ल्वीव, 11 अप्रैल । यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल के मेयर ने सोमवार को दावा किया कि रूसी बलों द्वारा शहर के घेराव के दौरान किए गए हमलों से 10,000 से अधिक आम लोगों की जान चली गई।
मेयर वी. बॉयशेंको ने ‘एसोसिएटेड प्रेस’ से बातचीत के दौरान कहा कि रूसी हमले के कारण मारियुपोल में मृतक संख्या बढ़कर 20,000 के पार जा सकती है क्योंकि सड़कों पर कफन से ढकी लाशें देखी जा सकती हैं।
मेयर ने यह भी दावा किया कि रूसी बल शवों को ठिकाने लगाने के लिए अपने साथ कुछ उपकरण भी लाये थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि रूसी बल कई शवों को एक विशाल शॉपिंग केन्द्र ले गए और उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।(एपी)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 11 अप्रैल। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि रूस से तेल की खरीद बढ़ाना भारत के हित में नहीं है और वह ऊर्जा आयात में और विविधता लाने में भारत की मदद करने को तैयार हैं। व्हाइट हाउस ने यह जानकारी दी।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने संवाददाताओं से कहा कि बाइडन ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई डिजिटल बैठक के दौरान यह टिप्पणी की।
साकी ने मोदी-बाइडन वार्ता के तुरंत बाद अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से कहा कि वार्ता रचनात्मक रही और भारत के साथ संबंध अमेरिका और राष्ट्रपति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
बैठक के दौरान बाइडन ने कहा कि रूस से अपने तेल आयात में तेजी लाना या इसे बढ़ाना भारत के हित में नहीं है।
अभी भारत अपनी जरूरत का एक से दो फीसदी तेल रूस से जबकि 10 फीसदी तेल अमेरिका से आयात करता है।
साकी ने कहा कि अमेरिका ऊर्जा संसाधनों में और विविधता लाने में भारत की मदद करने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा कि भारत का रूस से तेल और गैस खरीदना किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं है। (भाषा)
-तनवीर मलिक
पाकिस्तान में इमरान खान की सत्ता से विदाई के बाद आने वाली शहबाज़ शरीफ़ नई सरकार को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा. नए पीएम को गठबंधन सरकार चलाने के साथ ही जिन बड़ी आर्थिक चुनौतियों से जूझना होगा, उनमें सबसे ऊपर महंगाई है.
इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) पार्टी की सरकार को बढ़ती महंगाई को लेकर अपने सियासी विरोधियों के तीखे तेवरों का सामना करना पड़ा है. पाकिस्तान में इस वक्त कई ज़रूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं.
दुनिया में जिन देशों में खाने-पीने की चीजों की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हुई हैं उनमें पाकिस्तान भी शुमार है. पाकिस्तान को अपनी ऊर्जा और खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है.
पाकिस्तान में नई सरकार के आने के बाद महंगाई घटने की उम्मीद जताई जा रही है लेकिन अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि यह कम नहीं होने जा रही है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने पहले ही कह दिया है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति बनी रहेगी.
पीएमएल (एन) की आर्थिक टीम की प्रमुख सदस्य और पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. आयशा घोष पाशा के मुताबिक महंगाई बढ़ने की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वजहें हैं.
उनके मुताबिक नई सरकार इन दोनों पहलुओं को ध्यान में रख कर आर्थिक रणनीति तैयार करेगी.
पीटीआई के दौर में कैसी रही महंगाई की मार?
पाकिस्तान के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक जिस दौर में पीएमएल( एन) के दौर में 2017-18 के दौरान वित्त वर्ष में महंगाई दर 5.2 फीसदी थी. लेकिन पीटीआई सरकार के पहले वित्त वर्ष यानी 2018-19 के पहले ही नौ महीनों में महंगाई दर बढ़ कर सात फीसदी पर पहुंच गई.
सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-2020 में महंगाई की दर आगे बढ़कर 10.74 हो गई. हालांकि, अगले वित्त वर्ष ( 2020-21) के दौरान इसमें थोड़ी गिरावट देखी गई और ये दर गिर कर नौ फीसदी पर पहुंच गई.
लेकिन वित्त वर्ष 2021-22 के पहले नौ महीनों में महंगाई दर बढ़ कर 12.7 फीसदी पर पहुंच गई.
सेंट्रल बैंक ऑफ पाकिस्तान ने ब्याज़ दरों में वृद्धि करते हुए चालू वित्त वर्ष के अंत तक देश में मुद्रास्फीति के अपने पुराने अनुमानों को संशोधित कर दिया है. उसने महंगाई दर 11 फीसदी से अधिक रहने का अनुमान लगाया है.
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री और अर्थशास्त्री डॉक्टर हफ़ीज़ पाशा का कहना है कि देश की मौजूदा महंगाई दर 13 फीसदी है.
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के एक अर्थशास्त्री और रिसर्च फेलो शाहिद महमूद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, '' आधिकारिक आंकड़े आम तौर पर वास्तविक महंगाई दर थोड़ा कम होते हैं. ''
उन्होंने दावा किया कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में महंगाई दर अब करीब 15 फीसदी पर पहुंच गई है.
ऊंची महंगाई दर की क्या वजह है?
देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों के अनुसार, देश में ऊंची महंगाई दर की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और और दूसरे उत्पादों की ऊंची कीमतें हैं. पाकिस्तान को स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए उनके आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं डॉलर के मुकाबले रुपये के विनिमय दर में तेज़ गिरावट से भी देश में महंगाई बढ़ रही है.
डॉक्टर हफीज पाशा ने कहा कि इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल, गैस और वस्तुओं की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं और उनमें कोई बड़ी कमी नहीं है. डॉ. पाशा ने कहा कि यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष ने तेल और गैस की कीमतों को बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है.
आरिफ हबीब लिमिटेड की इकोनॉमिक एनालिस्ट सना तौफीक ने कहा कि ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी की कीमतों में 'सुपर बूम साइकल' आया हुआ है, जिसकी वजह से कीमतें काफी ज्यादा हैं.
उनके मुताबिक, पाकिस्तान में मौजूदा समय में महंगाई 'आयातित महंगाई' है यानी आयातित सामान की वजह से महंगाई बढ़ी है. पाकिस्तान का कमज़ोर रुपया भी स्थानीय उपभोक्ताओं के लिए इसे और महंगा बनाता है.
अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि वैश्विक रुझानों की वजह से पाकिस्तान में जो महंगाई दर है, उस पर सत्ता में आने वाली नई सरकार की वजह से तुरंत कमी की उम्मीद बेमानी होगी.
पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने भी हाल ही में एक बयान में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और कमोडिटी की कीमतों में तत्काल कमी की कोई संभावना नहीं है.
अर्थशास्त्री डॉ. फारुख सलीम ने कहा कि महंगाई के मूल कारणों को तुरंत दूर करना बहुत मुश्किल है. उन्होंने कहा कि नई सरकार के लिए दूध, चीनी, गेहूं, खाना पकाने के तेल और दालों के दाम कम करना मुश्किल होगा.
उन्होंने कहा कि देश में दालें, गेहूं और खाद्य तेल का आयात किया जा रहा है. मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए नई सरकार के लिए उन पर सब्सिडी देना मुश्किल होगा क्योंकि खजाने में पैसा नहीं है.
उन्होंने सवाल किया कि आम आदमी को राहत देने के लिए पैसा कहां से आएगा क्योंकि इस देश में चार अरब डॉलर की गैस ही चोरी होती है. बिजली क्षेत्र में 450 अरब तक का कर्ज़ है. ऐसा ही सामानों का कारोबार का संचालन भी है. अरबों का निवेश किया जाता है और वही गेहूं फिर चोरी हो जाता है. उनके मुताबिक आम आदमी को महंगाई से राहत मिलना मुश्किल है.
उन्होंने कहा कि नई सरकार को आईएमएफ के पास जाना होगा. लिहाजा मौजूदा सब्सिडी को समाप्त करना होगा. उस स्थिति में देश में चीजों की कीमतें और बढ़ जाएंगी.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को इस वित्त वर्ष के अंत तक 5 अरब रुपये का बाहरी भुगतान करना है. यह तभी संभव होगा जब उसे आईएमएफ से मदद मिलेगी. आईएमएफ से पैसा लेना है तो सब्सिडी खत्म करनी होगी.
डॉ. हफीज़ पाशा ने कहा कि अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति को कम करना बहुत मुश्किल है. तेल, गैस और दूसरी चीजों की की कीमतें बहुत अधिक हैं. सरकार सब्सिडी नहीं दे पाएगी. लिहाजा पाकिस्तान में महंगाई की ऊंची दरें बरकरार रहेंगीं.
उन्होंने कहा कि देश का बजट घाटा 3500 अरब रुपया आंका गया है लेकिन लग रहा है कि अब यह बढ़कर 4500 अरब रुपये हो जाएगा.
नवाज लीग की आर्थिक टीम की सदस्य और पंजाब की पूर्व वित्त मंत्री डॉ आयशा बख्श पाशा ने कहा, "हमारे पास अर्थशास्त्रियों की एक टीम है जो मुद्रास्फीति के स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कारणों पर गौर करेगी."
उन्होंने कहा कि घरेलू नीति और प्रशासनिक मामलों पर भी ध्यान दिया जाएगा ताकि कीमतों को स्थिर किया जा सके.
आर्थिक पत्रकार शहबाज़ राणा ने कहा कि मुद्रास्फीति के अंतरराष्ट्रीय कारणों के साथ कुछ नीतिगत फैसले हैं जिन्हें पीटीआई सरकार ठीक से नहीं ले सकी और अब यह अगली सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इन फैसलों को कैसे लेती है.
उन्होंने कहा कि नीतिगत फैसलों में सरकार किसी ऐसी चीज की मांग और आपूर्ति पर काम करती है जो पिछली सरकार ठीक से नहीं कर पाई थी. इसी तरह विनिमय दर और मूल्य प्रबंधन के क्षेत्र हैं, जिन पर नई सरकार को विशेष रूप से ध्यान देना होगा.
क्या तेल और बिजली की कीमत स्थिर रहेगी ?
पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान ने मार्च की शुरुआत में घोषणा की थी कि देश के पेट्रोल और बिजली की कीमतें अगले बजट तक स्थिर रहेंगी. इसके लिए सरकार को अपनी जेब से सब्सिडी का भुगतान करना होगा.
डॉ. फारुख सलीम ने कहा कि सरकार डीजल और पेट्रोल की कीमत को मौजूदा स्तर पर रखने के लिए हर दिन 3 अरब रुपये की सब्सिडी दे रही है. उन्होंने कहा कि अगर नई सरकार ने वैश्विक रूझान के अनुरूप कीमतों में वृद्धि की अनुमति दी तो इसका स्थानीय स्तर पर महंगाई दर पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि सरकार को बाहरी भुगतान करना होगा. इसके लिए उसे आईएमएफ के पास जाना होगा जो उसे सभी प्रकार की सब्सिडी समाप्त करने के लिए कहेगा.
डॉ. हफीज पाशा ने कहा कि आईएमएफ के साथ बातचीत करनी होगी क्योंकि बाहरी भुगतान एक बड़ा मुद्दा बन गया है. सरकार को आईएमएफ की शर्तों को पूरा करने के लिए डीजल और पेट्रोल की कीमत 25 रुपये तक बढ़ानी होगी.
इस संबंध में शाहिद महमूद ने कहा कि बजट घाटे के लिए हर साल साढ़े तीन से चार ट्रिलियन रुपये घरेलू स्रोतों से और चौदह से पंद्रह अरब डॉलर बाहरी स्रोतों से प्राप्त होते हैं. पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी भी इसी श्रेणी में आती है.
डॉ. आयशा ने कहा कि जब नई सरकार आएगी तो वह स्थानीय उपभोक्ताओं पर वैश्विक तेल कीमतों के प्रभाव को कम करने के मुद्दे पर गौर करेगी. (bbc.com)