अंतरराष्ट्रीय
सोशल मीडिया पर चीन में कोविड लॉकडाउन के कड़े नियमों के ख़िलाफ़ आम लोगों के विरोध प्रदर्शन के वीडियो सामने आ रहे हैं.
ये प्रदर्शन तब हो रहे हैं जब गुरूवार को एक अपार्टमेंट ब्लॉक में आग लगने से 10 लोगों की मौत हो गई. लोगों का आरोप है कि कोविड के कारण लगाए गए कड़े नियमों के कारण लोग आग से जान नहीं बचा सके.
चीन के उरूमची में लोग सुरक्षाबलों से भिड़ते नज़र आए. ये लोग नारेबाज़ी कर रहे थे- ‘कोविड लॉकडाउन ख़त्म करो.’
चीन में लागू कड़े ज़ीरो-कोविड पॉलिसी के बावजूद वहां कोरोना का संक्रमण एक बार फिर तेज़ी से फैल रहा है.
उरूमची प्रशसान ने कहा है कि वह अब पाबंदियों को धीरे-धीरे कम करेंगे. हालांकि प्रशासन ने लोगों के इस आरोप से इनकार किया है कि लॉकडउन के नियमों के कारण लोग आग से बचकर भाग नहीं पाए.
अगस्त की शुरुआत से पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र की राजधानी उरूमची में कोविड के कारण कड़ी पाबंदियां लगाई गई हैं.
गुरुवार को हुई दुर्घटना के बाद इमारत में रहने वाले एक निवासी ने बीबीसी से कहा था कि जिस कम्पाउंड में आग लगी थी लेकिन उसमें रहने वाले लोगों को लॉकडाउन के कड़े नियमों के कारण अपने घरों से निकलने से रोका गया.
इस दावे को चीन के सरकारी मीडिया ने खारिज किया है.
हालांकि, उरूमची के अधिकारियों ने शुक्रवार देर रात एक माफ़ीनामा जारी किया और कहा कि, “जिसने भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से नहीं किया उसे को भी दंडित किया जाएगा.” (bbc.com/hindi)
रावलपिंडी, 27 नवंबर। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने शनिवार को आरोप लगाया कि इस महीने की शुरुआत में उनकी हत्या के नाकाम प्रयास में शामिल ‘‘तीन अपराधी’’ उन्हें फिर से निशाना बनाने की ताक में हैं।
रावलपिंडी में अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए खान ने कहा कि उनका मौत के साथ करीबी सामना हुआ था और उन्होंने अपने ऊपर हमले के दौरान गोलियों को सिर के ऊपर से गुजरते हुए देखा था।
रावलपिंडी में ही सेना का भी मुख्यालय है। हमले की घटना के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने पहले संबोधन में खान ने आरोप लगाया कि ‘‘तीन अपराधी’’ फिर से उन पर हमला करने की ताक में हैं।
खान (70) ने बार-बार आरोप लगाया है कि उन पर हमले के पीछे प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह और खुफिया एजेंसी आईएसआई के ‘काउंटर इंटेलिजेंस विंग’ के प्रमुख मेजर-जनरल फैसल नसीर थे।
खान ने अपने समर्थकों से आह्वान किया कि अगर वे आजादी से जीना चाहते हैं तो मौत के डर से बेखौफ हो जाएं। उन्होंने कर्बला की लड़ाई का जिक्र करते हुए कहा ‘‘डर पूरे देश को गुलाम बना देता है।’’ कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने अपने समय के अत्याचारी शासक के खिलाफ आवाज उठाई थी।
खान, शनिवार को रावलपिंडी में एक हेलीकॉप्टर से पहुंचे। उनके साथ डॉक्टरों की एक टीम भी थी। पूर्व प्रधानमंत्री खान ने कहा कि जब वह लाहौर से निकल रहे थे तो सभी ने उन्हें सलाह दी कि वह अभी घायल हैं इसलिए ना जाएं क्योंकि इससे खतरा हो सकता है।
खान ने कहा कि वह इसलिए आगे बढ़े क्योंकि उन्होंने मौत को करीब से देखा था। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप जीना चाहते हैं, तो मौत का खौफ छोड़ दें।’’ खान ने कहा कि राष्ट्र एक ‘‘निर्णायक बिंदु’’ और ‘‘चौराहे’’ पर खड़ा है, जिसके सामने दो रास्ते हैं- एक रास्ता दुआओं और महानता का है जबकि दूसरा रास्ता अपमान और विनाश का है। वह देश में जल्द आम चुनाव की मांग करते हुए ‘लॉन्ग मार्च’ का नेतृत्व कर रहे हैं। (भाषा)
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने स्थानीय चुनावों में अपनी पार्टी डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (डीपीपी) के ख़राब प्रदर्शन के बाद शनिवार को इसके अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.
इन चुनावों में विपक्षी पार्टी कुओमिन्तांग (केएमटी) ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है और राजधानी ताइपेई सहित कई मुख्य शहरों में जीत हासिल की है.
ताइवान में हो रहे इन चुनावों पर दुनियाभर की नज़र थी. ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका हालिया वक्त में आमने-सामने रहे हैं और ये द्वीप वैश्विक राजनीति में चर्चा का केंद्र रहा है.
चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र राष्ट्रपति साई इंग वेन ने इस चुनाव में ‘लोकतंत्र के लिए वोट’ का नारा दिया था.
शनिवार को नतीजे आने के बाद साई ने मीडिया से बात करते हुए कहा,“चुनावी परिणाम वैसे नहीं हैं जिसकी हमें उम्मीद थी. इस नतीजे की ज़िम्मेदारी मैं लेती हूं और तत्काल प्रभाव से डीपीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देती हूं.”
स्थानीय परिषदों और शहर के मेयर के चुनावों का केंद्र घरेलू मुद्दे थे, जिसमें अपराध, आवास और सामाजिक कल्याण जैसे मुद्दे को केंद्र में रखा गया था. इन चुनावों का सीधा संबंध किसी भी तरह से चीन या विदेशी नीतियों से नहीं था, लेकिन डीपीपी ने ने लोगों से वोटों की अपील करते हुए कहा था कि वो देश के लोकतंत्र के बारे में सोच कर वोट करें.
मैक्सिको की खाड़ी से गुज़र रहे एक क्रूज़ से लापता हुए एक व्यक्ति को 15 घंटे बाद कोस्टगार्ड्स ने समुद्र से जीवित बचा लिया है.
28 वर्षीय ये व्यक्ति बुधवार को कार्निवल वेलोर नामक जहाज़ के बार में आखिरी बार अपनी बहन के साथ देखे गए थे. इसके बाद वो टॉयलेट गए और फिर लौट कर वापस नहीं आए.
फिर बचाव दल के सदस्यों ने उन्हें ढूंढना शुरू किया और काफ़ी मशक्कत के बाद क़रीब 15 घंटे बाद वे गुरुवार की शाम लुइसियाना के समुद्र तट से क़रीब 30 किलोमीटर दूर मिले.
कोस्टगार्ड ने कहा कि मैक्सिको की खाड़ी में एक क्रूज़ शिप से लापता हुए व्यक्ति को 15 घंटे बाद समुद्र से बचाया गया है.
बचाए गए व्यक्ति की तबीयत स्थिर बताई गई है.
अमेरिकी कोस्ट गार्ड के लेफ़्टिनेंट सेथ ग्रॉस ने कहा कि व्यक्ति 15 घंटे से अधिक समय तक पानी में रहा हो सकता है, "मैंने इतने लंबे वक़्त तक किसी के पानी में रहने के बारे में नहीं सुना और ये धन्यवाद देने वाले चमत्कार के जैसा है."
सीएनएन से वे बोले कि अपने 17 साल के करियर के दौरान उन्होंने ऐसा मामला नहीं देखा है.
मैक्सिकों के कॉटमेल जा रहे इस जहाज से ये व्यक्ति पानी में कैसे गिरे अब तक ये स्पष्ट नहीं है.
2018 में 46 वर्षीय एक ब्रिटिश महिला को एड्रियाटिक सागर से गुज़र रहे एक क्रूज़ शिप से गिरने के 10 घंटे बाद बचाया गया था.
तब उन्होंने एक बचावकर्मी को बताया था कि उनको लगातार योग करते रहने का लाभ मिला और रात के वक़्त पानी में ठंड से बचने के लिए वो गाती रहीं. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के चेयरमैन इमरान ख़ान जलसे में शामिल होने के लिए रावलपिंडी पहुंच गए हैं.
पंजाब सरकार ने जलसे और ख़ास कर इमरान ख़ान की सुरक्षा के लिए सख़्त इंतज़ाम किए हैं.
बीबीसी संवाददाता शहज़ाद मलिक के अनुसार पंजाब के 10 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.
जलसे की जगह और स्टेज के आस-पास की ऊंची इमारतों पर तीन सौ स्नाइपरों को तैनात किया गया है.
प्रशासन ने जलसे की जगह पर जैमर भी लगा दिए हैं और राजधानी इस्लामाबाद को मिलाने वाली तमाम छोटी-बड़ी सड़कों को ट्रैफ़िक के लिए बंद कर दिया गया है.
पूरे पाकिस्तान से पीटीआई के समर्थक जलसे में शामिल होने के लिए रावलपिंडी पहुंच रहे हैं.
इमरान ख़ान ने इस लॉन्ग मार्च को हक़ीक़ी आज़ादी मार्च का नाम दिया है. उनके अनुसार वो पाकिस्तान को सचमुच में आज़ादी दिलाना चाहते हैं और इसी के लिए उन्होंने इस मार्च का आह्वान किया है.
तीन नवंबर को मार्च के दौरान उनके कंटेनर के पास गोली चली थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और इमरान ख़ान के पैरों में गोली लगी थी.
हमले के बाद मार्च को रोक दिया गया था.
लेकिन अस्पताल से डिस्चार्ज होने और पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद इमरान ख़ान ने एक बार फिर मार्च का आह्वान किया है.
शुक्रवार को केंद्रीय गृहमंत्री राना सनाउल्लाह ने कहा था कि इमरान ख़ान की जान को ख़तरा है. उन्होंने इमरान ख़ान से अनुरोध किया था कि वो जलसे को रद्द कर दें.
लेकिन इमरान ख़ान ने उनकी बात को मानने से इनकार कर दिया था.
रावलपिंडी प्रशासन ने उन्हें कई शर्तों के साथ जलसे की इजाज़त दे दी है.
इमरान ख़ान की सबसे अहम मांग है कि जल्द से जल्द चुनाव करवाएं जाएं लेकिन शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व वाली सरकार जल्द चुनाव करवाने के लिए तैयार नहीं है. (bbc.com/hindi)
सिडनी के बॉन्डी बीच पर क़रीब ढाई हज़ार लोगों ने एक आर्टवर्क के लिए न्यूड पोज़ किया है.
ये आर्टवर्कत्वचा कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए किया गया है.
अमेरिकी फोटोग्राफ़र स्पेंसर ट्यूनिक बीच पर न्यूड लोगों की तस्वीरों के ज़रिए त्वचा कैंसर के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं.
इसका मक़सद ऑस्ट्रेलिया के लोगों को नियमित त्वचा टेस्ट कराने के लिए प्रेरित करना है.
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के मुताबिक स्किन कैंसर के मामले में ऑस्ट्रेलिया दुनिया में सर्वाधिक प्रभावित देश है.
स्थानीय समयानुसार 3.30 बजे, स्वयंसेवक बीच पर इकट्ठा हुए और न्यूड पोज़ दिया.
इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 77 वर्षीय ब्रूस फ़िशर ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, “मुझे लगता है कि ये अच्छा विचार है.मुझे बॉन्डी बीच पर कपड़े उतारना वैसे भी पसंद है.”
फ़ोटोग्राफ़र ट्यूनिक दुनियाभर के प्रसिद्ध स्थानों पर न्यूड कलात्मक तस्वीरें लेने के लिए प्रसिद्ध हैं. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान में आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर को देश का नया सेना प्रमुख बनाया गया है. मुनीर को सेना प्रमुख बनाने के पीछे आखिर क्या रणनीति है?
पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना के प्रमुख के पद पर आसिम मुनीर की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब सेना और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच तकरार चल रही है. खान ने सेना पर आरोप लगाया है कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री पद के उनके हाथ से चले जाने में सेना की भी भूमिका है.
खान तब से सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका मुनीर के साथ भी एक खास रिश्ता है. आखिर कौन हैं आसिफ मुनीर और क्यों बनाया गया है उन्हें सेना प्रमुख?
सामरिक तैनाती का तजुर्बा
सेना के पूर्व अधिकारियों का कहना है कि मुनीर एक स्कूल शिक्षक के बेटे हैं और वो रावलपिंडी में बड़े हुए. एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्हें सेना की अकादमी में 'सोर्ड ऑफ ऑनर' अवाॉर्ड मिला था.
मुनीर की ऐसे इलाकों में भी तैनाती रही है जो चीन की सीमा के करीब हैं और जिन पर पाकिस्तान का भारत के साथ विवाद है. वो सऊदी अरब में भी काम कर चुके हैं, जो पाकिस्तान का एक प्रमुख वित्तीय समर्थक है.
बाद में उन्होंने पाकिस्तान की दो सबसे प्रभावशाली गुप्तचर एजेंसियों के मुखिया के रूप में काम किया. 2017 में वो मिलिटरी इंटेलिजेंस के प्रमुख रहे और फिर 2018 में वो आईएसआई के प्रमुख बने.
इस पद पर उन्हें बस आठ महीने ही हुए थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के अनुरोध पर उन्हें हटा दिया गया. उन्हें हटाये जाने का कोई कारण भी नहीं दिया गया था. इस समय वो आर्मी के क्वार्टरमास्टर जनरल के पद पर सेवा दे रहे हैं और सेना की आपूर्ति के इनचार्ज हैं.
"स्पष्ट सोच" वाला जनरल
मुनीर बतौर सेना प्रमुख अपना कार्यकाल खत्म करने वाले जनरल कमर जावेद बाजवा के बाद सबसे वरिष्ठ रैंक वाले जनरल भी हैं. मुनीर का 3 साल का कार्यकाल 29 नवंबर को शुरू होगा. मुनीर के साथ काम कर चुके एक पूर्व जनरल ने उन्हें "स्पष्ट सोच" वाला बताया.
बाजवा ने सेना को राजनीति से अलग करने की शपथ ली थी और मुनीर के सामने इसे आगे बढ़ाने की चुनौती होगी. उनके अपने राजनीतिक संबंधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन विश्लेषकों को सेना के एक गैरराजनीतिक संस्थान बनने पर संदेह है.
खान समेत कई सिविलयन नेता सेना पर उन्हें सत्ता से हटाने का आरोप लगा चुके हैं. सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ भी सेना पर यह इल्जाम लगा चुके हैं. खान को सत्ता से निकालने में सेना ने किसी भी भूमिका से इंकार किया है, लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि खान को सत्ता से बाहर रखने की सेना की कोशिशें मुनीर जारी रखेंगे.
खत्म हो रहा है सेना का संयम?
विश्लेषक जाहिद हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "राजनीतिक प्रक्रिया बहुत कमजोर है और लोकतांत्रिक संस्थाएं लगभग ढह जाने के कगार पर हैं. ऐसी स्थिति में, सेना अपनेआप शक्ति की मध्यस्थ बन जाती है."
आने वाले दिनों में सेना का रुख आक्रामक होने के संकेत खुद बाजवा ने दिये हैं. बुधवार 23 नवंबर को उन्होंने फेयरवेल भाषण में कहा कि सेना और लोगों के बीच दरार पैदा करने वाले सफल नहीं होंगे. उन्होंने यह भी कहा, "सेना अभी तक संयम से पेश आ रही है लेकिन सबको यह मालूम होना चाहिए कि इस संयम की एक सीमा है."
सीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)
व्यापक लॉकडाउन के बावजूद चीन के शहरों में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. वहां के निराश नागरिक प्रतिबंधों के विरोध के लिए अब बड़े जोखिम भी उठा रहे हैं.
डॉयचे वैले पर विलियम यैंग की रिपोर्ट-
चीन के लोग पिछले करीब तीन साल से लगातार जारी लॉकडाउन यानी तालाबंदी और आर्थिक दिक्कतों से निराशा की हद तक परेशान हैं लेकिन चीन की जीरो-कोविड रणनीति का कोई अंत नहीं दिख रहा है.
वायरस को खत्म करने की अधिकारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के हफ्तों में कोविड के नए मामलों में फिर उछाल दिखने लगा है. पिछले 24 घंटों में हर दिन कोविड के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है.
गुरुवार को देश भर में कोविड के 31 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं जो कि इस महामारी के शुरू होनेसे लेकर अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. कई शहरों में लाखों लोग अपने घरों में कैद हैं.
व्यावसायिक लोगों को आदेश दिया गया है कि अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने को कहें जबकि पार्क और संग्रहालय बंद कर दिए गए हैं.
बीजिंग में अधिकारियों का कहना है कि राजधानी के लोग इस समय कोविड के सबसे खतरनाक दौर का सामना कर रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक, अन्य देशों से चीन में आने वाले लोगों के लिए अपने घरों में रहने और तीन दिन तक कोविड टेस्ट अनिवार्य करने संबंधी नए नियम बनाए जाने की जरूरत है.
सोशल मीडिया से प्राप्त वीडियो और कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से पता चलता है कि बुधवार को दुनिया की सबसे बड़ी आईफोन बनाने वाली फैक्ट्री में कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से दबा दिया गया. ये लोग कड़े नियमों के चलते मुश्किल होते जा रहे कामकाजी हालात के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.
चीन में विरोध प्रदर्शन करना खतरनाक है
चीन के दक्षिणी इलाके में स्थित ग्वांगझू शहर में करीब दो करोड़ लोग रहते हैं. यह शहर इस वक्त कोरोनावायरस के प्रकोपसे सबसे ज्यादा प्रभावित है. छिटपुट विरोध प्रदर्शनों के बाद यहां लाखों लोग को घरों में कैद कर दिया गया है.
सोशल मीडिया में पोस्ट किए गए वीडियोज को देखकर लगता है कि यहां रहने वाले लोग कितने परेशान और निराश हैं. इन वीडियोज में हाइझू जिले की सड़कों पर लोगों को दौड़ते हुए, बैरियर्स को पार करते हुए और वर्दी पहने हुए स्वास्थ्यकर्मियों से उलझते-लड़ते हुए देखा जा सकता है.
ग्वांगझू शहर के एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि हालांकि पूरे शहर में लॉकडाउन नहीं लगाया गया है लेकिन टेस्टिंग के लिए लाइनों में लगने और सार्वजनिक जगहों पर जाने के लिए लागू तमाम पाबंदियों से लोग परेशान हो चुके हैं.
उनका कहना था, "कई बार टेस्ट की रिपोर्ट समय पर नहीं आती है और ऐसे में आप कुछ घंटों के लिए ग्रीन हेल्थ कोड से बाहर आ जाते हैं. निश्चित तौर पर इन सबसे लोग परेशान हैं.”
चीन के लोग यदि सार्वजनिक रूप से बाहर निकलकर प्रदर्शन कर रहे हैं, तो स्थिति की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन की वरिष्ठ शोधकर्ता याक्यू वांग ने डीडब्ल्यू को बताया कि ग्वांगझू में स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों के बीच हुई झड़प, प्रतिरोध का एक ‘अंतिम उपाय' था.
वो कहती हैं, "चीन में प्रतिरोध की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और ग्वांगझू में, तमाम निराश नागरिक प्रवासी श्रमिक हैं जिनका लॉकडाउन के चलते रहना दूभर हो गया है. मेरा मानना है कि चीन के लोग अंतिम विकल्प के रूप में ही प्रतिरोध का झंडा बुलंद करते हैं. वो जानते हैं कि प्रतिरोध करना उनके लिए कितना महंगा साबित हो सकता है.”
कोविड के मामले में चीन के पास कोई दूरगामी नीति नहीं है
इस महीने की शुरुआत में चीनी अधिकारियों ने महामारी नियंत्रण उपायों में थोड़ी ढील दे दी थी जिनमें बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए क्वारंटीन की अवधि को कम करना और कई शहरों में सामूहिक रूप से कोविड परीक्षण बंद करना शामिल थे. इस ढील के बावजूद कई शहरों में लॉकडाउन जारी था.
येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में हेल्थ पॉलिसी के प्रोफेसर शी चेन कहते हैं कि कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए अधिकारियों के लिए एक देशव्यापी समन्वय नीति बनाने में काफी परेशानी होगी.
वो कहते हैं, "कोविड की यह लहर जल्दी ही संक्रमण के उस स्तर को पार कर जाएगी जो इस साल की शुरुआत में शंघाई में लॉकडाउन के समय था. हालांकि तीन साल से चल रहे सामूहिक परीक्षण, क्वारंटीन और धीमी अर्थव्यवस्था के बाद स्थानीय स्तर पर वित्तीय स्थिति को काफी खराब कर दिया है जिसके चलते कोई समन्वित रणनीति बनाना और मुश्किल हो गया है.”
वो आगे कहते हैं, "आने वाले हफ्तों में, इस संकट से निबटने के लिए चीन कुछ कड़े कदम उठा सकता है.”
चेन कहते हैं कि चीनी अधिकारियों के पास कोरोनावायरस की समस्या से निबटने के लिए अभी भी कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं है और वायरस से लड़ने के लिए शुरुआती कोशिशों की सफलता के बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
उनके मुताबिक, "कोविड नियंत्रण के अल्पकालिक उपायों पर दीर्घकालिक निर्भरता से इस खतरे से बाहर निकलने की रणनीति के फेल होने का खतरा है. पूरा ध्यान अभी इस बात पर है कि पीसीआर टेस्टिंग और क्वारंटीन जैसे उपायों से कैसे वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोका जाए.”
जबकि दीर्घकालिक उपायों के लिए ज्यादा प्रभावी वैक्सीन और एंटीवायरल ड्रग्स के निर्माण के साथ स्वास्थ्य तंत्र की तैयारी और जनता के साथ बेहतर तालमेल बनाना जरूरी है. चेन का कहना है कि लगातार देश भर में "कठोर कोविड नियंत्रण उपायों” को जारी रखने से समाज में बिखराव का भी खतरा है.
लॉकडाउन का मानवीय प्रभाव
दैनिक जीवन में व्यवधान के अलावा, इन लॉकडाउन्स का एक और खतरनाक असर चिकित्सा देखभाल पर भी पड़ा है.
पिछले हफ्ते जेंग्झू शहर में चार महीने के एक बच्चे की मौत ने सोशल मीडिया में हंगामा मचा दिया था. इस बच्ची को क्वारंटीन के दौरान सही इलाज नहीं मिल सका था जिसके चलते उसकी मौत हो गई.
हाल ही में ऐसी ही एक और घटना हुई जब लांझू शहर में तीन साल के एक बच्चे की मौत कार्बन मोनो ऑक्साइड से हो गई क्योंकि सरकारी प्रतिबंधों की वजह से उसे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका.
स्थानीय सरकार की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बच्चे के पिता ने हॉटलाइन पर चार बार फोन करने की कोशिश की और जब आखिरकार उसकी बात हुई तो उसने जवाब दिया कि चूंकि परिवार ‘हाई रिस्क जोन' में रहता है इसलिए उन्हें सिर्फ ऑनलाइन चिकित्सा सहायता या परामर्श मिल सकता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच से जुड़ी वांग कहती हैं, "कुछ लोगों की मौत तो इसी वजह से हो गई क्योंकि उनके पास इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी जबकि अन्य लोगों की मौत खाद्य सामग्री के अभाव में या अन्य जरूरी चीजों के अभाव में हो गई.”
वो कहती हैं कि मानवाधिकारों पर महामारी का दूरगामी प्रभाव पड़ा है. उनके मुताबिक, "हालांकि चीन के लोगों पर महामारी को रोकने के लिए सरकारी कोशिशों का दीर्घगामी प्रभाव पड़ेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अव्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध भी जारी रहेगा.
चीन की सरकार ने लोगों के इकट्ठे होने, संगठन बनाने जैसे तमाम सामाजिक आधारों को इस कदर खत्म कर दिया है कि उनके पास प्रतिरोध का कोई रास्ता ही नहीं बचा है. यहां तक कि सरकार के खिलाफ यदि बड़े पैमाने पर भी नाराजगी होती है, तो भी ये लोग विरोध के लिए एक साथ नहीं आ पाएंगे.” (dw.com)
जर्मनी ने एटमी ऊर्जा पर कभी हां कभी ना करते हुए 25 साल लगा दिए. यूक्रेन में युद्ध से पैदा हुए ऊर्जा संकट ने उसे फिर से इस पर सोचने को विवश कर दिया है.
डॉयचे वैले पर क्रिस्टी प्लेडसन और नाइल किंग की रिपोर्ट-
मीलों दूर से भाप की लकीर आसमान में लहराती देखी जा सकती है. लेकिन रिएक्टर को खोज पाना उतना आसान नहीं. पेड़ों के सघन डेरे और एक रसायन फैक्ट्री के बीच एम्सलांड न्यूक्लियर पावर स्टेशन मौजूद है. लोअर सेक्सोनी राज्य के एक छोटे से शहर लिंगेन से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण में यहां चुपचाप एटमी ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है.
इलाके में पली बढ़ी 44 साल की क्रिस्टीन ने लिंगेन की लाल ईंट की सड़क पर डीडब्लू से बात करते हुए कहा, "ईमानदारी से कहूं तो आप इसके बारे में भूल जाते हैं. और आपको यकीन है और उम्मीद है कि सब कुछ अच्छा होगा."
एम्सलांड रिएक्टर जर्मनी के आखिरी तीन एटमी पावर स्टेशनों में से एक है. इस साल नये साल की पूर्व संध्या पर ये तीनों बंद किए जाने थे और इस तरह जर्मनी में एटमी ऊर्जा उत्पादन पूरी तरह से बंद हो जाता. लेकिन यूक्रेन पर रूस नेलड़ाई छेड़ दी.
क्रिस्टीन कहती हैं, "वाकई मैं खुद को एटमी ऊर्जा के खिलाफ पाती हूं. लेकिन मुझे ये स्वीकार करना पड़ेगा कि हालात अभी थोड़ा अलग हो गए हैं."
प्रमुख नीतिगत बदलाव
हाल तक, रूस जर्मनी का एक प्रमुख ऊर्जा सहयोगी रहा था. जर्मनी का अधिकांश तेल और प्राकृतिक गैस आयात रूस से ही होता था. लेकिन यूक्रेन में लड़ाई के तनावों के बीच ये साझेदारी भंग हो गई. जिसकी वजह से जर्मनी वैकल्पिक सप्लाई के लिए परेशान हो उठा क्योंकि यूरोप में सर्दियों की आमद होने लगी थी और ऊर्जा कीमते बुलंदी पर थीं.
अब जर्मनी अपनी एटमी ऊर्जा को फेजआउट करने की रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है. देश के तीनों एटमी रिएक्टर देश का करीब 6 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. 1990 के दशक में, 19 एटमी ऊर्जा संयंत्र जर्मनी की एक तिहाई ऊर्जा का उत्पादन कर रहे थे.
फिर 1998 में, सोशल डेमोक्रेट्स और ग्रीन्स पार्टी वाली मध्य-वाम सरकार ने एटमी ऊर्जा से दूरी बनाने का फैसला किया. ग्रीन्स पार्टी की ये लंबे समय से मांग थी. 1980 के दशक में इसी मुद्दे पर पार्टी का रसूख बनने लगा था.
उसके नेता शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में एटमी हथियारों और एटमी ऊर्जा के खतरों के खिलाफ आंदोलन करने लगे थे. जर्मनी में नये एटमी संयंत्र का निर्माण2002 में खत्म हो गया.
'दिलचस्प' प्रौद्योगिकी
लेकिन एटमी ऊर्जा का जर्मनी के साथ नाटकीय रिश्ता पूरा होने का नाम ही नहीं लेता था. 2010 में कंजरवेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स और लिबरल फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आई और एटमी ऊर्जा का इस्तेमाल 14 साल तक
बढ़ा दिया गया. लेकिन एक साल बाद ही, जापान के फुकुशिमा एटमी ऊर्जा संयंत्र में परमाणु विस्फोटों ने जर्मनी को अपनी नीति पर फिर से गौर करने पर मजबूर कर दिया. 2022 के आखिर तक एटमी ऊर्जा को हटाने की योजना पर जर्मन सरकार लौट आई.
अक्टूबर में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्स ने देश के तीनों एटमी ऊर्जा स्टेशनों को 2023 में मध्य अप्रैल तक जारी रखने का आदेश दिया. उनकी योजनाबद्ध विदाई से तीन महीने से भी कम समय पहले ये आदेश आया था.
एटमी उद्योग से अपने रिटायरमेंट के समय डीडब्लू से बात करते हुए लिंगेन के स्थानीय निवासी और बिजलीकर्मी फ्रांत्स-योसेफ थीरिंग इस बात पर हैरान नहीं है कि जर्मनी एटमी ऊर्जा को छोड़ने को लेकर दुविधा में पड़ा है.
अपने घर पर कॉफी पीते हुए वो यूरेनियम के टुकड़े का मॉडल दिखाते हैं, जो उन्हें यूरेनियम ईंधन की छड़ बनाने वाली कंपनी ने उपहार में दिया था जिसमें वो काम करते थे. एक साफ प्लास्टिक में बंद, सबसे छोटी अंगुली के नाखून के आकार का एक पतला सा टुकड़ा था वो.
थीरिंग कहते हैं कि इस जैसे दो टुकड़े एक साल तक जर्मनी में एक औसत गृहस्थी को बिजली मुहैया करा सकते हैं. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "ये मुझे बड़ा दिलचस्प लगता है. ये भौतिकी है."
ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें
थीरिंग की दलील है कि हरित ऊर्जा की ओर जाने की कोशिश में लगे जर्मनी में एटमी ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की अहमियत को कमतर समझना मूर्खता होगी.
इलेक्ट्रिक कारों और हीट पंपों का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि "हमें भविष्य में और ज्यादा बिजली की जरूरत होगी. ये तथ्य है. और 6 फीसदी गंवाना भारी पड़ेगा जबकि उसकी जगह या उसके बदले कुछ भी नया नहीं है. हम 6 फीसदी गंवा रहे होंगे जबकि हमें वास्तव में ज्यादा की जरूरत है."
कई जर्मन इससे सहमत हैं. जर्मन प्रसारण कंपनी एआरडी के मुताबिक फुकुशिमा तबाही के बाद एटमी फेजआउट के पक्ष में जनता का बहुमत था. लेकिन इस साल अगस्त में 80 फीसदी लोग जर्मनी के मौजूदा एटमी रिएक्टरों की उम्र को बढ़ाने के पक्ष में थे.
तबाही का डर
एटमी तबाही का डर और रेडियो एक्टिव एटमी कचरे के निस्तारण का अनसुलझा सवाल फिर भी कई लोगों को ये मानने को मजबूर करता है कि एटमी रिएक्टरों को चलाए रखने का कदम गलत है. बर्लिन मे हर्टी स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एनर्जी इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर क्लाउडिया केमफेर्ट, एटमी ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर, पड़ोसी देश फ्रांस का हवाला देती हैं.
उन्होंने डीडब्लू से कहा, "फ्रांस में आधे नये एटमी ऊर्जा प्लांट ऑफलाइन हैं क्योंकि उनमें सुरक्षा समस्याएं हैं. जर्मनी में हमारी भी वही समस्याएं हैं. सुरक्षा निरीक्षण हुए 15 साल से ज्यादा हो चुके हैं. और इस समय निरीक्षणों की तत्काल जरूरत है जिससे हमें पता चल सके कि फ्रांस जैसी समस्या यहां है या नहीं."
वो इस बात को भी रेखांकित करती है कि एटमी ऊर्जा प्राकृतिक गैस का एक कमजोर विकल्प है. जिसका इस्तेमाल बिजली पैदा करने के अलावा हीटिंग के लिए भी किया जा सकता है.
छोटा कार्बन फुटप्रिंट
फिर भी कई लोग एटमी ऊर्जा को कोयला जलाने से बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं. लेकिन इस ऊर्जा संकट के बीच जर्मनी कोयला ईंधन की ओर भी देख रहा है.
नीदरलैंड्स स्थित एटमी ऊर्जा विरोधी समूह वाइज के मुताबिक, एटमी संयंत्रो से 117 ग्राम सीओटू प्रति किलोवॉट घंटा निकलती है जबकि कोयले की एक किस्म लिग्नाइट को जलाने से प्रति किलोवॉट घंटा एक किलोग्राम सीओटू उत्सर्जन होता है.
बदलती परिस्थितियों के बावजूद, थीरिंग को नहीं लगता कि ये अस्थायी विस्तार, जर्मनी में मुकम्मल स्तर के एटमी पुनर्जागरण मे तब्दील हो पाएगा. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि ये सिर्फ थोड़े से वक़्त की बात है. एक पुल की तरह." (dw.com)
दार एस सलाम, 26 नवंबर | अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी तंजानिया के माउंट किलीमंजारो पर कम से कम 34.2 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक वनस्पति हाल ही में लगी आग से नष्ट हो गई। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। तंजानिया नेशनल पार्क्स के संरक्षण आयुक्त विलियम म्वाकिलेमा ने शुक्रवार को कहा कि नष्ट हुई प्राकृतिक वनस्पति पहाड़ के संरक्षण क्षेत्र के 1.9 प्रतिशत के बराबर थी।
21 अक्टूबर से 1 नवंबर तक अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत पर लगी आग के प्रभावों के बारे में तंजानिया के उत्तरी शहर अरुशा में पत्रकारों को जानकारी देते हुए मवाकिलेमा ने कहा कि आग ने कई सांपों, छिपकलियों और चूहों को भी मार डाला।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि विभिन्न सार्वजनिक और निजी संस्थानों के अग्निशामकों को आग बुझाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऊंचाई पर आग से बुझाने में असमर्थता, आग लगने वाले क्षेत्रों की दुर्गमता और तेज हवाओं के कारण आग तेजी से फैल गई।
तंजानिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माउंट किलिमंजारो समुद्र तल से लगभग 5,895 मीटर ऊपर है। दुनिया भर से लगभग 50 हजार ट्रेकर्स हर साल पर्वत के शिखर तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। (आईएएनएस)|
सैन फ्रांसिस्को, 26 नवंबर | ट्विटर के सीईओ एलन मस्क ने शनिवार को कहा कि अगर माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म को एप्लिकेशन स्टोर से हटा दिया जाता है तो वह एप्पल और एंड्रॉइड डिवाइस के साथ मुकाबला करने के लिए वैकल्पिक स्मार्टफोन का उत्पादन करेंगे। मस्क ने यह बात तब कही जब जब एक यूजर ने ट्वीट किया, अगर ऐप्पल और गूगल अपने ऐप स्टोर से ट्विटर को हटा देते हैं, तो मस्क को अपना स्मार्टफोन बनाना चाहिए। आधा देश खुशी से पक्षपाती आईफोन और एंड्रॉइड को छोड़ देगा। जो आदमी मंगल ग्रह के लिए रॉकेट बना सकता है, उसके लिए एक छोटा स्मार्टफोन बनाना कठिन नहीं होना चाहिए।
मस्क ने जवाब दिया, मैं आशा करता हूं कि ऐसी परिस्थिति नहीं आएगी, लेकिन अगर कोई अन्य विकल्प नहीं है, तो मैं एक वैकल्पिक फोन बनाउंगा।
मस्क के पोस्ट पर कई यूजर्स ने अपने विचार व्यक्त किए।
एक ने टिप्पणी की, मुझे यकीन है कि वह स्मार्टफोन में क्रांति ला देगा, दूसरे ने कहा, मुझे लगता है कि यह योजना पहले से ही काम कर रही है।
इस बीच ट्विटर के सीईओ ने शुक्रवार को कहा कि माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म अगले सप्ताह शुक्रवार को अस्थायी रूप से 'सत्यापित' सेवा फिर से शुरू करेगा और सभी सत्यापित खातों को सक्रिय होने से पहले मैन्युअल रूप से प्रमाणित किया जाएगा। (आईएएनएस)|
वाशिंगटन, 26 नवंबर | अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने शनिवार को आर्टेमिस आई मून मिशन के तहत ओरियन अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने की प्रक्रिया को पूरा किया। ओरियन चंद्रमा से लगभग 40 हजार मील (64,400 किलोमीटर) ऊपर उड़ान भरेगा। ह्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर में ओरियन को प्रक्षेपित किया गया। ओरियन चंद्रमा की सतह से 5,700अ मील से अधिक की यात्रा कर रहा था, जो मिशन के दौरान चंद्रमा से सबसे अधिक दूरी तक पहुंचेगा।
चंद्र कक्षा में रहते हुए उड़ान नियंत्रक प्रमुख प्रणालियों की निगरानी करेंगे और गहरे अंतरिक्ष के वातावरण में चेकआउट करेंगे।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने एक बयान में कहा, कक्षा की दूरी के कारण चंद्रमा के चारों ओर आधी कक्षा पूरी करने में ओरियन को लगभग एक सप्ताह लगेगा, जहां यह वापसी की यात्रा के लिए कक्षा से बाहर निकल जाएगा।
लगभग चार दिनों के बाद अंतरिक्ष यान एक बार फिर से चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करेगा, 11 दिसंबर को प्रशांत महासागर में एक स्पलैशडाउन से पहले पृथ्वी पर अपने वापसी के रास्ते पर स्लिंगशॉट ओरियन को जलाने के लिए ठीक समय पर चंद्र फ्लाईबी बर्न के साथ संयुक्त होगा।
नासा ने कहा, शनिवार को ओरियन अंतरिक्ष यान मनुष्यों को अंतरिक्ष में ले जाने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए डिजाइन किए गए अंतरिक्ष यान द्वारा तय की गई सबसे दूर की दूरी के रिकॉर्ड को तोड़ देगा। (आईएएनएस)|
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के कहा है कि इस सप्ताह देश में बड़े पैमाने पर मिसाइल हमलों के बाद 60 लाख यूक्रेनी घरों में अभी भी बिजली नहीं है.
अपने रात्रि संबोधन में उन्होंने कहा,"आज शाम तक, अधिकांश क्षेत्रों और कीएव में ब्लैकआउट (बिडटी की कटौती) जारी है.”
उन्होंने कहा है कि बिजली की कटौती से प्रभावित होने वाले घरों की संख्या कम हुई है. लेकिन लाखों लोग अभी भी इस कड़ाके की ठंड में बिना बिजली, गैस और हीटर के रहने को मजबूर हैं.
वीडियो संबोधन में बोलते हुए, राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा, “राजधानी और इसके आसपास के क्षेत्र हमलों से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. शहर के कई निवासियों को "20 या 30 घंटे" से बिजली नहीं मिल पाई है.”
उन्होंने कहा कि राजधानी के अलावा सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में ओडेसा, पश्चिम में लविवी, विन्नित्सिया और निप्रॉपेट्रोस हैं.
ज़ेलेंस्की ने लोगों से अपील की है कि ऐसे ही उपकरण इस्तेमाल करें जिसमें बिजली का कम से कम इस्तेमाल हो.
उन्होंने कहा, “अगर आपके पास बिजली है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि समस्या खत्म हो गई है. एक साथ ज्यादा बिजली की खपत करने वाले उपकरणों को ना चलाएं.”
उन्होंने कहा कि इस बार की सर्दियों में हमें हिम्मत दिखानी होगी और ये सर्दियां हमेशा याद रखी जाएंगी. (bbc.com/hindi)
ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क कहा है कि वह ट्विटर की प्रीमियन सब्सक्रिप्शन सर्विस 2 दिसंबर को लॉन्च कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि है वेरिफिकेशन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले ट्विटर ब्लू सब्सक्रिप्शन नए चेक मार्क्स के साथ जारी होंगे.
कंपनियों के लिए गोल्ड चेक मार्क, सरकारों के लिए ग्रे चेक मार्क और व्यक्तियों (सेलेब्रिटी समेत सभी के लिए ) के लिए ब्लू चेक मार्क होगा.
एलन मस्क ने एक यूजर से प्रीमियम सब्सक्रिप्शन सर्विस के दोबारा शुरू में हो रही देरी पर माफी के साथ ये जानकारी साझा की है. उन्होंने कहा कि कंपनी 2 दिसंबर को अपनी वेरिफिकेशन सर्विस लॉन्च कर सकती है.
मस्क ने बताया कि चेक मार्क को एक्टिवेट करने से पहले सभी वेरिफाइड एकाउंट्स की मैनुअल तरीके से पुष्टि की जाएगी.
पहले ट्विटर का ब्लू चेक मार्क राजनेताओं, प्रसिद्ध व्यक्तियों, पत्रकारों और तमाम दूसरी हस्तियों के लिए रिजर्व था. लेकिन मस्क ने कंपनी खरीदने के बाद कहा था कि ब्लू टिक के लिए सबको एक फीस चुकानी होगी. (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 25 नवंबर | भारतीयों को खुश करने के लिए जर्मनी ने शेंगेन वीजा नियुक्ति नियमों में ढील दी है और मुंबई में अपने केंद्र में शॉर्ट-टर्म वीजा प्रोसेसिंग को केंद्रीकृत कर रहा है। जर्मन दूतावास ने एक बयान में कहा, जर्मन वीजा सेंटर मुंबई में शेंगेन वीजा (शॉर्ट टर्म वीजा) प्रोसेसिंग के केंद्रीकरण के कारण, हमें अपॉइंटमेंट बुकिंग के संबंध में छूट के बारे में सूचित करते हुए खुशी हो रही है।
शॉर्ट-स्टे शेंगेन वीजा 180 दिनों की अवधि के भीतर अधिकतम 90 दिनों के लिए जर्मनी और अन्य शेंगेन देशों की यात्रा करने की अनुमति देता है।
यह वीजा यात्री के पासपोर्ट पर चिपकाए गए स्टिकर के रूप में जारी किया जाता है।
मिशन के बयान में कहा गया है, अपॉइंटमेंट्स बुक किए जा सकते है और पूरे भारत में वीएफएस ग्लोबल द्वारा चलाए जा रहे सभी वीजा आवेदन केंद्रों में शेंगेन वीजा आवेदन जमा किए जा सकते हैं।
बयान में आगे कहा गया, यदि आपके गृह नगर के निकटतम आवेदन केंद्र पहले से ही पूरी तरह से बुक है, तो कृपया अन्य प्रमुख भारतीय शहरों में से किसी एक में उपलब्ध अपॉइंटमेंट स्लॉट की जांच करने में संकोच न करें।
दूतावास ने कहा कि छूट छात्र, रोजगार या फैमिली रियुनियन वीजा जैसे राष्ट्रीय वीजा (डी-वीजा श्रेणी) के लिए आवेदन पर लागू नहीं होती है।
शेंगेन वीजा आवेदन पत्र इच्छित यात्रा तिथि से तीन महीने पहले जमा किया जा सकता है।
जर्मन शेंगेन वीजा की कीमत वयस्कों के लिए 80 यूरो (6,700 रुपये) और नाबालिगों के लिए 40 यूरो है, जबकि वर्क परमिट (या वीजा) की कीमत 75 यूरो है।
छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए वीजा शुल्क माफ है।
इस साल की शुरूआत में, जर्मन राष्ट्रीय पर्यटन कार्यालय (जीएनटीओ) ने जर्मनी में आने वाले भारतीय पर्यटकों में साल दर साल 214 प्रतिशत की वृद्धि देखी।
इसमें कहा गया है कि देश में भारतीयों की 9 प्रतिशत यूरोपीय यात्राएं होती हैं, जिसमें कहा गया है कि 55 प्रतिशत भारतीय अवकाश के लिए जर्मनी जाते हैं जबकि 38 प्रतिशत व्यापार के लिए यात्रा करते हैं। (आईएएनएस)|
मेलबोर्न, 25 नवंबर । 5 साल का मासूम बच्चा अपने से 3 गुना लंबे अजगर के हमले में बुरी तरह जख्मी हुआ. हमले के बाद अजगर ने मासूम को बुरी तरह दबोचा और घसीटते हुए स्वीमिंग पुल में ले गया. इस दौरान अजगर ने बच्चे को कई जगह काटा भी.
संयोग से इस बच्चे के पिता और दादा उस वक्त स्वीमिंग पुल के आसपास ही मौजूद थे.
उन्होंने फौरन कार्रवाई करते हुए बच्चे को अजगर की पकड़ से छुड़ा लिया.
5 साल का बीयू ब्लेक दरअसल अपने घर के स्विमिंग में नहाने जा रहा था. तभी उस पर झाड़ियों में घात लगाए बैठे अजगर ने उस पर हमला कर दिया.
बीयू के पिता बेन के मुताबिक,"घटना के वक्त बीयू स्वीमिंग पुल के किनारे टहल रहा था. मुझे लगता है अजगर पुल के किनारे झाड़डियों में शिकार की ताक में बैठा था.मैंने देखा, पास की झाड़ियों से काले साये की तरह आकृति बाहर निकली और बीयू को पांव की तरफ से पकड़ लिया."
बच्चे के 76 वर्षीय दादा पुल के ही किनारे मौजूद थे, वो फौरन स्वीमिंग पुल में कूद पड़े और बच्चे को अजगर समेत स्वीमिंग पूल से बाहर खींच लिया.
मेलबोर्न रेडियो स्टेशन 3AW को घटना के बारे में बताते हुए बीयू के पिता बेन ने बताया "जैसे ही मेरे पिता ने बीयू को मेरी तरफ फेंका, मैंने 15-20 सेकेंड में उसे अजगर के चंगुल से छुड़ा लिया. इसके बाद बेन ने करीब 10 मिनट तक अजगर को पकड़े रखा ताकि अपने पिता और बच्चे को शांत करा सकें. वो दोनों बुरी तरह डर गए थे."
इस दौरान बच्चे ने भी पूरी हिम्मत दिखाई. उसे गंभीर चोटे नहीं आईं हैं.
बेन ने बताया, "एक बार बच्चे के शरीर से ख़ून साफ़ करने के बाद हमने उसे समझाया कि डरो मत, तुम बच जाओगे, क्योंकि अजगर ज़हरीला नहीं होता."
बेन का परिवार परिवार ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत के तटीय शहर बायरन बे में रहता है.
घटना के बाद बेन ने कहा कि वो बच्चे के शरीर पर ज़ख्मों की निगरानी कर रहे हैं, ताकि वो संक्रमण का शिकार ना हो.
रेडियो स्टेशन से बातचीत में बेन ने कहा कि इस इलाके में अजगर का पाया जाना समान्य है. बच्चे को छुड़ाने के बाद बेन ने अजगर को वापस झाड़ियों में फेंक दिया.
उन्होंने कहा- "मजे की बात ये है कि छोड़े जाने के बाद अजगर ‘सीन ऑफ क्राइम’ की तरफ वापस चला गया." (bbc.com/hindi)
फ्रीडा कालो, जॉर्जिया ओकीफ, ऐलिस नील, ट्रेसी एमीन जैसे कुछ बड़े नामों की वजह से ऐसा लगता है कि कला जगत के दरवाजे महिलाओं के लिए खुले हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी कला जगत में पुरुषों का ही वर्चस्व है.
1768 में लंदन में रॉयल अकैडमी ऑफ आर्ट्स की स्थापना के साथ लैंगिक बराबरी की तरफ एक उम्मीद भरी शुरुआत की गई थी. अकैडमी के 40 संस्थापक सदस्यों में दो महिला चित्रकारों को भी शामिल किया गया था. लेकिन बाद के सालों में यह कदम सिर्फ एक अच्छी शुरुआत तक ही सीमित रह गया.
उसके बाद कम से कम 1930 के दशक तक किसी और महिला को अकैडमी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नहीं चुना गया. फ्रीडा कालो, जॉर्जिया ओकीफ, ऐलिस नील, ट्रेसी एमीन जैसे कुछ बड़े नामों की वजह से ऐसा लगता है कि उसके बाद से कला जगत के दरवाजे महिलाओं के लिए खुले हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी कला जगत में पुरुषों का ही वर्चस्व है.
पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस के मुताबिक अमेरिका के 18 अग्रणी संग्रहालयों में 87 प्रतिशत कलाकृतियां पुरुषों की है. मैड्रिड के प्रादो में 35,572 कलाकृतियों में से 335 कलाकृतियां - यानी एक प्रतिशत से भी काम - महिलाओं की हैं. इनमें से भी सिर्फ 84 को प्रदर्शित किया गया है.
लेकिन अब रवैया बदल रहा है. 2020 में प्रादो ने सिर्फ महिलाओं के लिए एक प्रदर्शनी का आयोजन किया था और क्यूरेटर कार्लोस नवारो के शब्दों में इस प्रदर्शनी ने संग्रहालय के "ऐतिहासिक स्त्री-द्वेष" को रेखांकित कर दिया. सर्बियाई परफॉरमेंस कलाकार मरीना अब्रामोविच ऐसा सोलो शो मिलने वाली पहली महिला बनेंगी जो अगले साल रॉयल अकैडमी की सभी मुख्य गैलरियों में लगाया जाएगा.
अपनी सभी कलाकृतियों में महिला कलाकारों की कलाकृतियों की हिस्सेदारी बढ़ाना ऐसे संग्रहालयों के मुश्किल है जिनका ध्यान काफी बीत चुके वक्त पर केंद्रित होता है. पेरिस की लूव्र के पास तो कम से कम यही बहाना है. वहां सिर्फ 1848 चित्र हैं. इन्हें बनाने वाले 3,600 चित्रकारों में सिर्फ 25 महिलाएं हैं.
लेकिन ब्रिटेन के टेट संग्रहालय में सुधार की गुंजाइश है. 1900 से पहले के उसके संग्रह में सिर्फ पांच प्रतिशत कलाकृतियां महिलाओं द्वारा बनाई हुई हैं, लेकिन 1900 से बाद के कलाकारों में यह संख्या बढ़ कर 20 प्रतिशत है और 1965 के बाद के कलाकारों में 38 प्रतिशत.
टेट की ब्रिटिश कला प्रदर्शनी के प्रमुख पॉली स्टेपल ने बताया, "टेट की चारों गैलरियों में हर नई प्रदर्शनी के साथ लैंगिक संतुलन में और सुधार आ जाता है. टेट मॉडर्न ने जब 2016 में अपने नए डिस्प्ले खोले, तब सभी सोलो डिस्प्ले में से आधे महिला चित्रकारों को समर्पित थे और तब से इस संतुलन को बना कर रखा गया है."
निजी खरीदारों की बात करें तो बदलाव धीरे धीरे हुआ है. कला बाजार की अंदर की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने नाम जाहिर ना करने का अनुरोध करते हुए बताया, "आज सभी संग्रहालय बराबरी पर ध्यान देते हैं, महिला चित्रकारों की एकल प्रदर्शनियों की संख्या बढ़ रही है...लेकिन हकीकत में नीलामी घरों में महिलाओं की कलाकृतियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है."
बीसवीं सदी के बाद से महिलाओं का कला के कोर्सों में ज्यादा स्वागत हो रहा है और इस वजह से यहां भी हालात बदल रहे हैं. मार्किट ट्रैकर आर्टप्राइस की 2022 की रिपोर्ट ने पाया कि 40 की उम्र से कम के सबसे ज्यादा बिकने वाले चोटी के 10 चित्रकारों में आठ महिलाएं थीं.
हाल ही में आई किताब "कला की कहानी, बिना पुरुषों के" की लेखिका केटी हेस्सेल कहती हैं कि बीते समय को दोषी ठहराना काफी नहीं है. उन्होंने एएफपी को बताया कि इटली की आर्टीमीसिया जेंटिलेशी या फ्लेमिश चित्रकार क्लारा पीटर्स जैसी महिला चित्रकारों को "उनके जीवनकाल में जाना जाता था लेकिन उन्हें बीतती सदियों के साथ भुला दिया गया है."
इन भुला दिए गए नामों को खोज कर निकालना बहुत लोकप्रिय रहा है. उनके पॉडकास्ट, 'द ग्रेट वीमेन आर्टिस्ट्स', के 3,00,000 से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. अवेयर नाम के एक शोध समूह की संस्थापक कैमिल मोरिनो कहती हैं, "कोई महिला किसी चीज का आविष्कार कर सकती है इसकी कल्पना करना लंबे समय तक एक मानवशास्त्रीय टैबू रहा है."
मोरिनो 2009 में जब पेरिस में सेंटर पोम्पिदो में क्यूरेटर थीं तो दो सालों तक उन्होंने वहां महिला चित्रकारों की कलाकृतियों के अलावा कुछ भी दीवारों पर नहीं टांगा, "यह साबित करने के लिए कि बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी की पूरी कहानी बताने के लिए संग्रहालयों के पास ऐसी पर्याप्त पेंटिंग हैं."
हेसेल कहती हैं कि नए आयामों भी खोज अभी भी बाकी है. वो अल्जीरिया की बया और सिंगापुर की जॉर्जेट चेन के बार में बताते हुए कहती हैं कि उन गैर-पश्चिमी नामों के उदाहरण हैं जो "असल में कभी भी हमारे इतिहास का हिस्सा रहे ही नहीं."
सीके/एए (एएफपी)
सैन फ्रांसिस्को, 25 नवंबर | एलन मस्क के स्वामित्व वाले ट्विटर ने यूरोपीय संघ (ईयू) में ब्रसेल्स में अपना दफ्तर बंद कर दिया है, यह एक ऐसा कदम है जो स्थानीय नियामकों को अच्छा नहीं लग रहा है। द फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, ब्रसेल्स कार्यालय यूरोपीय संघ की डिजिटल नीति पर केंद्रित था, जो यूरोपीय आयोग के साथ काम कर रहा था।
ट्विटर सार्वजनिक नीति कर्मचारी जूलिया मोजर और डारियो ला नासा ने पिछले सप्ताह ट्विटर छोड़ दिया था, जिसके कारण ब्रसेल्स कार्यालय पूरी तरह ठप हो गया।
पिछले हफ्ते, ब्रसेल्स के एक अन्य ट्विटर कर्मचारी स्टीफन टर्नर को मस्क ने निकाल दिया था।
टर्नर ने ट्वीट किया, छह साल बाद मैं आधिकारिक तौर पर ट्विटर से सेवानिवृत्त हो गया हूं। ब्रसेल्स में कार्यालय शुरू करने से लेकर एक शानदार टीम बनाने तक, यह एक अद्भुत यात्रा रही है।
ब्रसेल्स कार्यालय को बंद करने का कदम मस्क द्वारा एक बड़ी रणनीतिक भूल हो सकती है।
यूरोपीय संघ ने संकेत दिया है कि वह आने वाले डिजिटल सेवा अधिनियम (डीएसए) के साथ ट्विटर के अनुपालन के पर्यवेक्षक के रूप में खुद को नियुक्त कर सकता है।
ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय आयोग जल्द ही डीएसए के तहत बड़े इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के नियमन की निगरानी शुरू करेगा।
इस साल जुलाई में, यूरोपीय संसद ने डिजिटल विनियमन के दो प्रमुख टुकड़ों को मंजूरी दी जो एक खुले और प्रतिस्पर्धी डिजिटल बाजार के भीतर ऑनलाइन कंपनियों की जवाबदेही पर अभूतपूर्व मानक स्थापित करेगी।
संसद और परिषद के बीच पहले हुए समझौते के बाद, संसद ने नए डिजिटल सेवा अधिनियम (डीएसए) और डिजिटल बाजार अधिनियम (डीएमए) पर अंतिम मतदान किया।
इस बीच, ट्विटर पर बड़े पैमाने पर छंटनी ने पहले ही आयोग को सतर्क कर दिया है, जिससे ब्रसेल्स को मस्क के स्वामित्व वाले ट्विटर के प्रति अधिक आक्रामक ²ष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है।
इस महीने की शुरूआत में, आयरलैंड के डेटा संरक्षण आयोग ने तीन वरिष्ठ अनुपालन कर्मचारियों के इस्तीफा देने के बाद ट्विटर के साथ बैठक की मांग की। (आईएएनएस)|
वारसॉ, 25 नवंबर | पोलैंड को डेढ़ साल के भीतर यूरोपीय संघ (ईयू) से महामारी रिकवरी फंड मिलेगा। यह बात प्रधानमंत्री माटुस्ज मोरवीकी ने कही। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मोराविकी के हवाले से गुरुवार को स्थानीय मीडिया को बताया, "हमारी बातचीत चल रही है और एक या डेढ़ साल में, हमें यह पैसा मिल जाएगा, यही वजह है कि हमने पहले से ही कुछ परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया है जो पोलिश डेवलपमेंट फंड द्वारा पूर्व-वित्तपोषित की जा रही हैं।"
उन्होंने कहा, "सब कुछ योजना के अनुसार हो रहा है।"
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि, पोलैंड और हंगरी यूरोपीय संघ के धन के लिए बातचीत करने की बात आने पर पूरी तरह से अलग थे और इस मुद्दे पर एक साथ काम नहीं कर रहे थे।
दोनों देश यूरो-संशयवादी हैं और ब्रसेल्स के साथ अपने संबंधित विवादों के कारण फंड से बाहर हो गए हैं।
जून की शुरूआत में, यूरोपीय आयोग (ईसी) ने पोलैंड की राष्ट्रीय रिकवरी योजना को मंजूरी दे दी, जिसमें यह बताया गया कि पोलैंड की सरकार रिकवरी फंड को कैसे खर्च करेगी।
अनुमोदन ने वारसॉ के लिए अनुदान में 23.9 बिलियन यूरो प्राप्त करने का मार्ग खोल दिया, और 11.5 बिलियन यूरो ब्लॉक की महामारी के बाद की रिकवरी और रेजिलिएशन सुविधा से ऋण प्राप्त किया।
हालांकि, चुनाव आयोग ने पोलैंड को धन की पहुंच प्रदान करने से इनकार कर दिया है, जब तक कि वह देश के कानून के शासन के आवेदन के संबंध में कई शर्तों को पूरा नहीं करता। (आईएएनएस)|
बीजिंग, 25 नवंबर। पश्चिमोत्तर चीन के शिनजियांग क्षेत्र में एक अपार्टमेंट में आग लगने से 10 लोगों की मौत हो गई, जबकि नौ अन्य लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
शिनजियांग की राजधानी उरुमची में स्थित अपार्टमेंट में बृहस्पतिवार को आग लग गई। आग को बुझाने में तीन घंटे का समय लगा।
स्थानीय सरकार ने बताया कि इस घटना में घायल हुए किसी व्यक्ति की जान को खतरा नहीं है और आग लगने के कारण का पता लगाया जा रहा है।
इससे कुछ दिन पहले मध्य चीन की एक वाणिज्य एवं व्यापार कंपनी में आग लगने से 38 लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में चार लोगों को हिरासत में लिया गया है।
चीन में पुराने होते बुनियादी ढांचे, सुरक्षा के खराब प्रबंध और कुछ मामलों में सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के कारण इमारतों में आग लगने की घटनाएं काफी आम हो गई हैं। (एपी)
दशकों के इंतज़ार के बाद आख़िर वो घड़ी आ गई जब मलेशिया के राजनेता अनवार इब्राहिम को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है.
प्रधानमंत्री पद पर अनवार इब्राहिम की नियुक्ति उनके दशकों लंबे सफ़र और इंतज़ार का नतीज़ा है. इस सफ़र में उन्हें एक नहीं दो बार ये मौका मिला, लेकिन वे सत्ता के क़रीब पहुंचकर चूक गए.
अनवार इब्राहिम के कभी सरपरस्त रहे देश के पूर्व प्रधानमंत्री और कद्दावर राजनेता महातिर मोहम्मद के दौर में उन्हें सालों जेल में बंद रखा गया.
देश के इन दो दिग्गज राजनेताओं के उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते न केवल उनकी कहानी बल्कि मलेशिया की राजनीति और उसमें अनवार इब्राहिम के क़द को भी बयान करते हैं.
अनवार इब्राहिम अब 75 साल के हो चुके हैं. मलेशिया के इस्लामिक यूथ मूवमेंट 'एबीआईएम' की शुरुआत करने वाले इब्राहिम ने करिश्माई और कद्दावर छात्र नेता के तौर पर अपनी पहचान नौजवानी के दिनों में ही बना ली थी.
साल 1982 में देश पर लंबे समय तक हुकूमत करने वाली राजनीतिक पार्टी यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन (यूएमएनओ) का दामन थामकर उन्होंने कई लोगों को चौंका दिया था.
लेकिन आने वाले वक़्त ने ये साबित कर दिया कि यूएमएनओ से जुड़ना उनका सोचा-समझा और सधा हुआ राजनीतिक फ़ैसला था.
वे तेज़ी से सियासी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने लगे और सरकार के कई अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाली. साल 1993 में वे महातिर मोहम्मद के डिप्टी बन गए और उस वक़्त उन्हें उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाने लगा था.
लेकिन 1997 में मलेशिया एशियाई वित्तीय संकट की चपेट में आ गया और दोनों नेताओं के बीच अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर मतभेद उभर आए.
1998 के सितंबर में अनवार इब्राहिम को पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया जिसके बाद उन्होंने महातिर मोहम्मद के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई की.
यहीं से 'रिफॉर्मासी' आंदोलन की शुरुआत हुई. इस सुधार आंदोलन ने मलेशिया के लोकतंत्र समर्थकों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया. अनवार इब्राहिम को गिरफ़्तार कर लिया गया. उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और सोडोमी के आरोप लगाए गए.
इस मुक़दमे की सुनवाई विवादास्पद रही जिसमें इब्राहिम ने ख़ुद पर लगे आरोपों से इनकार किया.
मुस्लिम बहुल मलेशिया में समलैंगिकता अपराध है. हालांकि समलैंगिकता के लिए किसी को कसूरवार ठहराए जाने के मामले मलेशिया में कम ही मिलते हैं.
महातिर मोहम्मद से प्रतिद्वंद्विता
अनवार इब्राहिम के मामले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई और इस कार्रवाई को राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित बताया गया.
भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें जब छह साल की सज़ा सुनाई गई तो सड़कों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. इसके एक साल बाद उन्हें सोडोमी के 'अपराध' के लिए नौ साल जेल की सज़ा सुनाई गई.
इस आरोप पर अनवार इब्राहिम हमेशा यही कहते रहे कि ये उन्हें बदनाम करने की साज़िश थी ताकि उन्हें महातिर मोहम्मद के सामने राजनीतिक ख़तरा बनने से रोका जा सके. साल 2003 में महातिर मोहम्मद देश के प्रधानमंत्री पद से हट गए.
इसके साल भर बाद साल 2004 के आख़िर में मलेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने अनवार इब्राहिम के ख़िलाफ़ दिए गए सोडोमी के फ़ैसले को पलट दिया और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.
रिहाई के बाद वे मज़बूत हो रहे विपक्ष का चेहरा बनकर उभरे. साल 2008 के चुनावों में विपक्ष ने अच्छा प्रदर्शन भी किया.
नेशनल कोएलिशन
लेकिन उसी साल इब्राहिम के ख़िलाफ़ सोडोमी के आरोप दोबारा लगे. इस पर इब्राहिम ने कहा कि उन्हें सियासी तौर पर दरकिनार करने के लिए ये सरकार की एक और कोशिश है.
जनवरी, 2012 में हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए आख़िरकार इब्राहिम को बरी कर दिया.
इसके अगले साल उन्होंने विपक्ष का नेतृत्व किया और चुनावों में उसे नई ऊंचाइयों पर ले गए. सत्तारूढ़ बारिसान नेशनल कोएलिशन के लिए ये ऐतिहासिक तौर पर अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन था.
लेकिन इब्राहिम की महत्वाकांक्षाओं को एक बार फिर झटका लगा. साल 2014 में वे एक स्टेट इलेक्शन लड़ने की तैयारी कर रहे थे तभी उन्हें बरी किए जाने के फ़ैसले को पलट दिया गया और उन्हें वापस जेल भेज दिया गया.
साल 2016 में सियासी घटनाक्रम में उस वक़्त नाटकीय बदलाव आ गया जब उनके पूर्व प्रतिद्वंद्वी महातिर मोहम्मद ने प्रधानमंत्री पद के लिए एक बार फिर रेस में उतरने का एलान कर दिया.
उस वक़्त महातिर मोहम्मद की उम्र 92 साल थी. तब उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नजीब रज़्ज़ाक के भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने चुनावी मैदान में उतरने का एलान किया.
अनवार इब्राहिम की लोकप्रियता
लेकिन अपनी वापसी के लिए महातिर मोहम्मद ने जेल में बंद अनवार इब्राहिम के साथ हाथ मिलाकर सियासी हलकों में बहुत से लोगों को चौंका दिया.
महातिर के इस फ़ैसले की वजह विपक्षी कार्यकर्ताओं के बीच इब्राहिम की लोकप्रियता का बने रहना था.
महातिर मोहम्मद और अनवार इब्राहिम एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाएंगे, इस राजनीतिक गठबंधन के बारे में सोचना उस वक़्त नामुमकिन की हद तक मुश्किल था.
साल 2018 के चुनावों में महातिर मोहम्मद की अगुवाई में पाकतन हरपन गठबंधन को ऐतिहासिक जीत मिली और उसके साथ ही 61 साल से देश की सत्ता पर क़ाबिज़ बारिसान नेशनल कोएलिशन का दौर ख़त्म हो गया.
इस गठबंधन में चार पार्टियां शामिल थीं और इसे एक ऐसा विविधतापूर्ण गठबंधन कहा गया जिसमें कई नस्लीय समूह शामिल थे. इस गठबंधन को मलय मुसलमानों, देश के चीनी लोगों और भारतीय मूल के लोगों का भी साथ मिला.
मलेशिया के प्रधानमंत्री के तौर पर महातिर मोहम्मद ने अपना वादा पूरा किया और अनवार इब्राहिम को जेल से रिहा कर दिया. उन्हें सरकार की ओर से माफ़ी दे दी गई.
कोरोना महामारी के समय
महातिर मोहम्मद ने ये भी संकेत दिए कि वे इब्राहिम को दो साल के भीतर सत्ता सौंप देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और वे इब्राहिम को सत्ता सौंपने की अपनी डेडलाइन लगातार बदलने लगे.
सत्ता के हस्तांतरण और मलय राष्ट्रवाद के उभार के साथ दोनों नेताओं के बीच कड़वाहट एक बार फिर से बढ़ने लगी.
फ़रवरी, 2020 में महातिर मोहम्मद ने अप्रत्याशित तरीके से इस्तीफ़ा दे दिया और उनके त्यागपत्र के साथ ही पाकतन हरपन गठबंधन टूट गया.
मलेशिया के राजनीतिक अस्थिरता के दौर में दाखिल होने के साथ ही इब्राहिम एक बार फिर सत्ता के क़रीब पहुंचकर प्रधानमंत्री बनने से चूक गए.
नई सरकार के गिरने के बाद यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन की सत्ता में वापसी हुई और मुहयिद्दीन यासीन को देश का नया प्रधानमंत्री बनाया गया.
लेकिन जब कोरोना महामारी अपने चरम पर थी तो यासीन ने संसद का भरोसा खो दिया और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.
25 सालों का इंतज़ार
अक्टूबर, 2022 में यासीन के उत्तराधिकारी और यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन के नेता इस्माइल साबरी याकूब ने मध्यावधि चुनावों का एलान किया.
यूएनएमओ को उम्मीद थी कि वे चुनाव जीतेंगे और सत्ता में वापस लौट पाएंगे.
लेकिन अनवार इब्राहिम के पाकतन हरपन गठबंधन ने ज़्यादातर सीटें जीत लीं हालांकि अभी भी वे सरकार गठन के लिए ज़रूरी सीटों से थोड़े फ़ासले पर हैं.
हालांकि कुछ दिनों की अनिश्चितता के बाद मलेशिया के किंग ने अनवार इब्राहिम के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति का एलान कर दिया और इसके साथ ही उनका 25 सालों का इंतज़ार ख़त्म हो गया.
लेकिन इब्राहिम के लिए आगे की राह चुनौतियों से भरी है. उन्हें एक ऐसा कामचलाऊ गठबंधन बनाना होगा जिसमें मलेशिया के विविधतापूर्ण समाज की भागीदारी हो.(bbc.com/hindi)
मलेशिया में चुनाव के बाद कई दिनों तक चले गतिरोध के बाद दिग्गज विपक्षी नेता अनवार इब्राहिम ने देश के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है.
अनवार इब्राहिम को राजा सुल्तान अब्दुल्ला ने नियुक्त किया है. चुनाव में अनवार इब्राहिम और पूर्व प्रधानमंत्री मुहीदीन यासिन, दोनों ही बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे.
यह अभी साफ़ नहीं है कि अनवार किसके साथ गठबंधन करेंगे.
पैलेस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "मलय शासकों की बातों को ध्यान में रखते हुए महामहिम ने अनवार इब्राहिम को मलेशिया के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने की सहमति दी है."
उन्हें दोपहर बाद राजा ने शपथ दिलाई. अनवार की पकातन हरपन पार्टी ने चुनावों में सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं. लेकिन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं जीत पाए थे.
नेताओं के निजी और वैचारिक मतभेदों के चलते अनवर इब्राहिम बहुमत हासिल नहीं कर पाए और आख़िर में ये काम करने की ज़िम्मेदारी मलेशिया के संवैधानिक सम्राट राजा अब्दुल्ला को दे दी गई.
यह अभी साफ़ नहीं है कि नई सरकार का क्या रूप होगा. वह किसके साथ गठबंधन करेगी या कौन सी पार्टियां उन्हें अपना समर्थन देंगी.
कौन हैं अनवार इब्राहिम
एक करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में अनवार इब्राहीम का राजनीतिक सफ़र एक छात्र के रूप मे शुरू हुआ था.
मलेशिया के सुधारवादी प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के उत्तराधिकारी माने जाने वाले अनवार इब्राहीम सन 1998 में उस समय सत्ता से हटा दिए गए जब महाथिर मोहम्मद सत्ता से बाहर हुए.
1998 में ही अनवार इब्राहीम पर भ्रष्टाचार और समलैंगिकता के आरोप मे मुक़दमा चलाया गया औऱ उन्हें छह साल की सज़ा हुई.
अपनी लोकप्रिय छवि के कारण अनवार इब्राहीम अपने राजनीतिक सफ़र में शुरू से ही सफल नेता के तौर पर जाने गए.
उन्होंने देश के बिखरे हुए अल्पसंख्यकों के दलों को एक छत के नीचे इकट्ठा कर उनके गठबंधन की कमान संभाली. (bbc.com/hindi)
मलेशिया, 24 नवंबर । मलेशिया में चुनाव के बाद कई दिनों तक चले गतिरोध के बाद दिग्गज विपक्षी नेता अनवार इब्राहिम ने देश के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है.
अनवार इब्राहिम को राजा सुल्तान अब्दुल्ला ने नियुक्त किया है. चुनाव में अनवार इब्राहिम और पूर्व प्रधानमंत्री मुहीदीन यासिन, दोनों ही बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे.
यह अभी साफ़ नहीं है कि अनवार किसके साथ गठबंधन करेंगे.
पैलेस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "मलय शासकों की बातों को ध्यान में रखते हुए महामहिम ने अनवार इब्राहिम को मलेशिया के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने की सहमति दी है."
उन्हें दोपहर बाद राजा ने शपथ दिलाई. अनवार की पकातन हरपन पार्टी ने चुनावों में सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं. लेकिन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं जीत पाए थे.
नेताओं के निजी और वैचारिक मतभेदों के चलते अनवर इब्राहिम बहुमत हासिल नहीं कर पाए और आख़िर में ये काम करने की ज़िम्मेदारी मलेशिया के संवैधानिक सम्राट राजा अब्दुल्ला को दे दी गई.
यह अभी साफ़ नहीं है कि नई सरकार का क्या रूप होगा. वह किसके साथ गठबंधन करेगी या कौन सी पार्टियां उन्हें अपना समर्थन देंगी.
कौन हैं अनवार इब्राहिम
एक करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में अनवार इब्राहीम का राजनीतिक सफ़र एक छात्र के रूप मे शुरू हुआ था.
मलेशिया के सुधारवादी प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के उत्तराधिकारी माने जाने वाले अनवार इब्राहीम सन 1998 में उस समय सत्ता से हटा दिए गए जब महाथिर मोहम्मद सत्ता से बाहर हुए.
1998 में ही अनवार इब्राहीम पर भ्रष्टाचार और समलैंगिकता के आरोप मे मुक़दमा चलाया गया औऱ उन्हें छह साल की सज़ा हुई.
अपनी लोकप्रिय छवि के कारण अनवार इब्राहीम अपने राजनीतिक सफ़र में शुरू से ही सफल नेता के तौर पर जाने गए.
उन्होंने देश के बिखरे हुए अल्पसंख्यकों के दलों को एक छत के नीचे इकट्ठा कर उनके गठबंधन की कमान संभाली. (bbc.com/hindi)
चीन, 24 नवंबर । चीन में 'ज़ीरो कोविड पॉलिसी' के बावजूद कोरोना के मामले एक बार फिर तेज़ी से बढ़ने लगे हैं.
राजधानी बीजिंग और दक्षिणी ट्रेड हब ग्वांगझू समेत कई प्रमुख शहरों में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.
बुधवार को चीन में 31 हजार 527 मामले दर्ज किए गए हैं. अप्रैल महीने में सबसे ज़्यादा 28 हज़ार मामले दर्ज हुए थे, उस समय शंघाई को बंद कर दिया गया था.
चीन की 'ज़ीरो कोविड पॉलिसी' ने बड़े पैमाने पर लोगों की जान तो बचाई है लेकिन अर्थव्यवस्था और लोगों की ज़िंदगी को मुश्किलों में ला दिया है.
हालांकि ये केस, चीन में 'ज़ीरो कोविड पॉलिसी' में कुछ ढील देने के बाद दर्ज किए गए हैं. इस पॉलिसी के तहत सरकार ने सरकारी जगहों पर सात दिनों के क्वारंटाइन को घटाकर पांच दिन और घरों में पांच दिन से घटाकर तीन दिन किया है.
अधिकारी अब पूरे के पूरे शहर को बंद करने के पक्ष में नहीं हैं. अधिकारियों ने घोषणा की है कि शुक्रवार से 60 लाख आबादी वाले शहर झेंगझोऊ में लॉकडाउन लगाने जा रहे हैं.
इससे पहले चीन में आईफ़ोन बनाने वाली सबसे बड़ी फैक्ट्री को कोरोना के केस बढ़ने पर बंद कर दिया था. उसके बाद उसे चलाने वाले फॉक्सकॉन कंपनी ने नए कर्मचारियों की भर्ती की.
हाल ही में कर्मचारियों ने फॉक्सकॉन की फैक्ट्री में हिंसक झड़पों को अंजाम दिया है. सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में कर्मचारी तोड़फोड़ करते हुए नजर आए थे.
कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि उन्हें बोनस नहीं दिया जा रहा है. इस पर कंपनी ने टेक्निकल गलती का हवाला देते हुए माफ़ी मांगी है. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान, 24 नवंबर । पाकिस्तान की सूचना प्रसारण मंत्री मरियम औरंगज़ेब ने घोषणा की है कि आसिम मुनीर देश के अगले आर्मी चीफ़ होंगे. अब पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अल्वी प्रधानमंत्री के फ़ैसले पर मुहर लगाएंगे.
इस वक़्त लेफ़्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तानी सेना में क्वार्टरमास्टर जनरल के तौर पर सेवा दे रहे हैं.
वे अगला चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ बनने की दौड़ में शामिल जनरलों में सबसे वरिष्ठ थे.
दिलचस्प है कि उनका लेफ़्टिनेंट जनरल का कार्यकाल, जनरल बाजवा के रिटायरमेंट के दो दिन पहले ही 27 नवंबर को ख़त्म हो रहा है.
लेकिन अब वे अगले आर्मी चीफ़ होंगे.
ले. जनरल आसिम पहले डीजी आईएसआई के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. वो फ्रंटियर फ़ोर्स रेजिमेंट से आते हैं.
मरियम औरंगज़ेब ने अपने ट्वीट ने जानकारी देते हुए कहा, "प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने लेफ़्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा को चेयरमैन ऑफ़ जॉइंट चीफ़्स नियुक्त किया है. उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकार इस्तेमाल करते हुए सैयद आसिम मुनीर को नया आर्मी चीफ़ नियुक्त किया है. इस बारे में राष्ट्रपति को सूचित कर दिया गया है."
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने ट्वीट कर कहा है, "अब इमरान ख़ान का ये इम्तिहान होगा कि वो वाक़ई देश के रक्षा संस्थानों को मज़बूत करना चाहते हैं या विवाद ही करना चाहते हैं."
कैसे होता है चयन
पाकिस्तान के संविधान के तहत राष्ट्रपति नए सेना प्रमुख की नियुक्ति करते हैं लेकिन ये औपचारिक शक्ति अधिक है क्योंकि राष्ट्रपति इस निर्णय को प्रधानमंत्री की सलाह पर ही लेने के लिए बाध्य हैं.
इसका मतलब ये है कि सेनाओं का प्रमुख चुनने का अधिकार वास्तविकता में प्रधानमंत्री के पास ही है. लेकिन पाकिस्तानी सेना एक ताक़तवर संस्था जो अपने फ़ैसले अधिकतर समय खुद ही लेती है.
वर्तमान सेना प्रमुख जनरल बाजवा के रिटायर होने से कुछ दिन पहले तक नए सेना प्रमुख के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था.
नियम ये है कि पीएम के ऑफ़िस को वरिष्ठ जनरलों की सूची भेजी जाती है और प्रधानमंत्री कार्यालय फिर इन नामों की समीक्षा करता है. पीएम इन नामों को ख़ारिज करके और अधिक नाम भी मांग सकते हैं.
एक बार प्रधानमंत्री नाम तय कर लेते हैं तो उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है ताकि वो औपचारिक रूप से अनुमति दे सकें. शहबाज़ शरीफ़ ने भी यही किया है.
सेना का सियासत में दख़ल
कुल मिलाकर नियमों के तहत चुनाव मेरिट और वरिष्ठता के आधार पर होता है.
लेकिन पाकिस्तान में सेना के राजनीति में सीधे और परोक्ष दख़ल देने के इतिहास को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में सेना प्रमुख का चयन सिर्फ़ मेरिट के आधार पर नहीं होता है बल्कि ये राजनीतिक चयन अधिक होता है.
कई बार ऐसा हुआ है जब वरिष्ठता के नियम को नज़रअंदाज़ करके जूनियर जनरल को सेना प्रमुख बनाया गया हो.
लेकिन ऐसे उदाहरण भी हैं जब राजनीतिक वजहों को ध्यान में रखकर की गईं नियुक्तियां भी भारी पड़ी हैं. (bbc.com/hindi)