अंतरराष्ट्रीय
ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने एक वैज्ञानिक का 'बौद्धिक आजादी' का दावा खारिज करते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी से बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. 2018 में इस विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक को नौकरी से निकाल दिया गया था.
ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने जेम्स कुक यूनिवर्सिटी द्वारा एक वैज्ञानिक पीटर रिड को बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. ऑस्ट्रेलिया का सर्वोच्च न्यायालय हाई कोर्ट कहलाता है.
हाई कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से दिए बयानों को रिड की 'बौद्धिक आजादी' मानने से इनकार कर दिया. क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के पीटर रिड को 2018 में बर्खास्त किया गया था. उन्होंने कहा था कि ग्रेट बैरियर रीफ पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव को वैज्ञानिक बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं.
रिड के इस बयान का पर्यावरणविदों ने खासा विरोध किया था जिसके बाद टाउन्सविल शहर में स्थित यूनिवर्सिटी ने उन्हें दुर्व्यवहार का दोषी माना और बर्खास्त कर दिया. रिड ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी.
अभिव्यक्ति की आजादी अलग है
बुधवार को हाई कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट में जो 'बौद्धिक आजादी' की बात कही गई है, वह 'अभिव्यक्ति की आम आजादी' नहीं है, इसलिए उस प्रावधान के तहत रिड की बर्खास्तगी को गलत नहीं ठहराया जा सकता.
कोर्ट के इस फैसले को अलग-अलग नजरिए से परखा जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री एलन टज ने कहा कि वह विशेषज्ञों से सलाह करेंगे कि इस फैसले का यूनिवर्सिटी सेक्टर में नौकरियों पर क्या असर हो सकता है.
टज ने कहा, "वैसे तो मैं हाई कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं लेकिन मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का हमारे विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की आजादी पर और अकादमिक आजादी पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.”
पीटर रिड ने 27 साल तक जेम्स कुक यूनिवर्सिटी के लिए काम किया था. वह फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष रहे थे और दुनिया के जाने-माने शोधकर्ताओं में गिने जाते हैं. वैज्ञानिकों के लिए यूरोप के सोशल नेटवर्क रिसर्चगेट में पीटर रिड को दुनिया के टॉप 5 प्रतिशत शोधकर्ताओं में गिना जाता है.
कई साल चला विवाद
रिड विवाद में तब फंसे जब 2015 में उन्होंने एक पत्रकार को भेजे ईमेल में आरोप लगाया कि दुनिया के सबसे बड़े कोरल पार्क का प्रबंधन करने वाली ‘ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी' ने कुछ वैज्ञानिक आंकड़ों का हेरफेर किया है ताकि ग्रेट बैरियर रीफ के खतरे को बड़ा बताया जा सके.
2017 में स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने यूनिवर्सिटी से ही जुड़ीं दो संस्थाओं ऑस्ट्रेलियन रिसर्च काउंसिल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रिसर्च और ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ मरीन साइंस की आलोचना की. इसी के बाद उन पर प्रशासनिक कार्रवाई हुई.
यूनिवर्सिटी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है जिसमें कहा गया कि रिड पर दुर्व्यवहार के 18 आरोपों को 'बौद्धिक आजादी' के नाम पर सही नहीं ठहराया जा सकता. एक बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा, "जेम्स कुक यूनिवर्सिटी ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह बौद्धिक खोजबीन और अध्यापकों की अकादमिक वह बौद्धिक आजादी का समर्थन करती है.”
खतरे में है ग्रेट बैरियर रीफ
रिड के विचारों को प्रकाशित करने वाले मेलबर्न स्थित एक रूढ़िवादी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अफेयर्स ने अदालत के फैसले पर निराशा जताई है. एक बयान में इंस्टीट्यूट ने कहा, "यह फैसला दिखाता है कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय संकट में हैं और देश पर सेंसरशिप की संस्कृति हावी हो रही है. रिड के वकीलों ने अभी तक फैसले पर टिप्पणी नहीं की है.
यूनेस्को ने इसी साल ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को खतरे में पड़ीं वैश्विक धरोहरों की सूची से निकालने की सलाह दी थी. इसके लिए समुद्र के बढ़ते तापमान को लेकर जरूरी कदम ना उठाए जाने को जिम्मेदार बताया गया था.
ग्रेट बैरियर रीफ को समुद्र के बढ़ते तापमान का भारी नुकसान हुआ है. 2016, 2017 और पिछले साल के नकुसान से दो तिहाई कोरल नष्ट हो चुके हैं.
वीके/एए (एपी)
धरती पर मनुष्य की औसत आयु 71.4 वर्ष है. कुछ जगहों पर लोग ज्यादा जीते हैं, कुछ पर कम. लेकिन दुनिया में पांच जगह ऐसी हैं जहां के लोगों की आयु अचंभित करती है.
94 साल की उम्र में सातोर नीनो लोपेज हर दिन चार किलोमीटर पैदल चलते हैं. सुबह जल्दी उठ कर वह जलावन के लिए लकड़ियां भी काट लेते हैं. कोस्टा रिका का निकोया प्रायद्वीप धरती की उन जगहों में से एक है जहां सबसे लंबी आयु जीने वाले लोग रहते हैं.
सातोर नीनो कोस्टा रिका के उन 1,010 लोगों में हैं जिनकी आयु 90 साल से ज्यादा है. ये लोग कहीं और से यहां नहीं आए हैं बल्कि हमेशा से यहीं रहे हैं. सातोर बताते हैं, "मेरी उम्र में मैं अच्छा महसूस करता हूं क्योंकि ईश्वर ने मुझे शांति से चलने की शक्ति दी है. मैं एक या चार किलोमीटर तक जाकर वापस लौट सकता हूं, कोई समस्या नहीं है.”
प्रकृति की गोद में
सातोर का घर प्रकृति की गोद में है. लकड़ी की इमारत में कंक्रीट कम मिट्टी और दूसरी चीजें ज्यादा हैं. चारों तरफ हरियाली है और चिड़ियों की चहक का संगीत भी. कोरोना के दौर में भी यहां न तो कोई बदहवासी थी ना कोई परेशानी नहीं.
20वीं सदी के आखिर में डेमोग्राफर मिशेल पाउलन और फिजिशन जॉनी पेस ने नक्शे पर नीली स्याही से इटली के सारडीनिया को चिन्हित किया. उन्होंने देखा कि यहां की आबादी काफी लम्बा जीती है. 2005 में अमेरिका के डैन गोअर्टनर ने पता लगाया कि कैलिफॉर्निया के लोमा लिंडा, ग्रीस के इकेरिया, जापान के ओकिनावा और कोस्टा रिका के निकोया में भी यही खासियत है. इन्हीं जगहों को ब्लू जोन नाम दिया गया.
निकोया में लोग सुबह में चावल और बीन्स खाते हैं. बाद में थोड़े से मांस, फल और आवाकाडो की बारी आती है. यहां का खाना यही है.
राज क्या है?
सातोर नीनो के पड़ोस में ही 91 साल की क्लेमेंटीना रहती हैं. उनके पति और ऑगस्टीन सौ साल के हैं. क्लेमेंटीना के 18 बच्चे हुए जिनमें से 12 जिंदा हैं. छोटे-छोटे कदमों से चलकर वह मुर्गियों को दाना डालती हैं, किचन में बर्तन धोती हैं और खाना पकाती हैं. इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा कोस्टा रिका के 80 साल और बाकी दुनिया के 72 साल के इंसान जितनी है. आखिर इसका राज क्या है?
क्लेमेंटीना बताती हैं, "गांव में आप ज्यादा शांति से रहते हैं. शहरों की तरह नहीं जहां आपको बहुत सावधान रहना पड़ता है. गांव के लोग ज्यादा शांति से जीते हैं और आपके लिए उतना खतरा नहीं होता."
जीवन में लक्ष्यों को बनाए रखना उन्हें सेहतमंद बनाता है. इन लोगों की मदद के लिए एक सपोर्ट सिस्टम भी है. ये लोग मेहनत करते हैं, खुद से उगाया खाना खाते हैं और तनाव को दूर रखते हैं.
बदल रहा है जीवन
यहीं पर जोश विलेगास का भी घर है. अगले साल मई में वह 105 साल के होंगे और उनकी हसरत है इस मौके पर घोड़े की सवारी करना. हालांकि विलेगास मानते हैं कि उनके आसपास भी चीजें बदल रही हैं.
वह कहते हैं, "जीने का तरीका बदल गया है. अब वो पहले जैसा नहीं रहा. लोग पहले एक दूसरे से प्यार करते थे, मदद करते थे. ज्यादा भाईचारा था.”
जानकार बताते हैं कि ब्लू जोन आने वाले कुछ और सालों तक बढ़ते रहेंगे लेकिन ये 20-30 साल से ज्यादा नहीं टिक पाएंगे. धीरे-धीरे इन इलाकों के लोग भी अपने उगाएं खाने से दूर हो रहे हैं. मोटापा और शुगर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. आखिर ये इलाके दुनिया भर में हो रहे बदलावों से खुद को कब तक बचा पाएंगे!
ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में केस दर्ज कराया गया है. आरोप है कुदरत के खिलाफ अपराध करने का.
डॉयचे वैले पर जोन शेल्टन की रिपोर्ट
ऑस्ट्रिया में जलवायु परिवर्तन के लिए काम करने वाली एक संस्था ने ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय से अपील की है कि आधिकारिक तौर पर यह जांच की जाए कि उनकी नीतियां मानवता के खिलाफ अपराध हैं या नहीं.
ऑलराइज नामक इस संस्था का कहना है कि प्रकृति के खिलाफ अपराध मानवता के खिलाफ अपराध हैं. इसके संस्थापक योहानेस वेजेमान ने कहा, "जायर बोल्सोनारो देखते-भालते अमेजन का विनाश करवा रहे हैं जबकि वह जानते हैं कि इसके क्या नतीजे होंगे.” ऑलराइज ने सोशल मीडिया पर दप्लेनेटवीज नाम से एक अभियान की भी शुरुआत की है.
अमेजन पर कहर
मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि अमेजन के जंगलों की कटाई के कारण जितना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, वह इटली या स्पेन के सालाना कुल उत्सर्जन से ज्यादा है. इस कटाई के कारण इतनी कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है, जितनी अमेजन सोख नहीं सकता.
बोल्सोनारो के खिलाफ आईसीसी में यह शिकायत तब दर्ज हुई है जब दुनिया अगले महीने ग्लासगो में होने वाले COP26 जलवायु सम्मेलन की तैयारी कर रही है और सबका ध्यान पर्यावरण की समस्याओं की ओर है.
ऑलराइज के संस्थापक वेजेमान ने डॉयचे वेले से कहा कि आईसीसी में शिकायत करके वह दुनिया में जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं, भले ही इस मामले में जीत की संभावना कम है. उन्होंने बताया, "जीत की परिभाषा क्या है, यह हमें तय करना होगा. अगर जीत का अर्थ बोल्सोनारो को जेल में डालना है तो संभावना कम है. लेकिन, दप्लेनेटवीज का मकसद यह नहीं है. अगर जीत का अर्थ है कि लोग जागरूक हों, आईसीसी हमारी बात सुने और एक शुरुआती जांच हो, तो वह सफलता होगी. ”
अलग है यह केस
वेजेमान उम्मीद कर रहे हैं कि यह मामला एक मिसाल बनेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले और ऐसे मामले सामने आएंगे.
ऑलराइज को उम्मीद है कि इस शिकायत का असर अन्य देशों पर भी होगा और वे पर्यावरण विरोधी कदम उठाने से परहेज करेंगे. वेजेमान कहते हैं, "अगर हम आईसीसी की जांच शुरू करवाने में भी कामयाब हो जाते हैं तो यह सबूत होगा कि हमारा मामला आईसीसी के लिए प्रासंगिक है. फिर कोई सीईओ हो या राजनेता, अपने भविष्य के फैसलों को लेकर चौकस रहेगा.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले द हेग में बोल्सोनारो के खिलाफ तीन और शिकायतें आ चुकी हैं. लेकिन यह मामला बाकियों से अलग है. वेजेमान बताते हैं, "हमारे इस कदम को ब्राजील का मजबूत समर्थन हासिल है. लेकिन हम ब्राजील के लोगों की तरफ से नहीं बोल रहे हैं. ना ही हम उनके प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं. हम उनके संघर्ष को एक अंतरराष्ट्रीय आयाम देना चाहते हैं. अमेजन उनका है लेकिन उसकी जरूरत हम सबको है.”
किसका है अमेजन
बोल्सोनारो कहते रहे हैं कि अमेजन ब्राजील का है और उसके संसाधनों के इस्तेमाल में दखलअंदाजी देश के कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के मकसद से की जा रही है.
इस बार आईसीसी में बोल्सोनारो के खिलाफ दर्ज शिकायत में ऐसे वैज्ञानिक आधार दिए गए हैं जो अमेजन के जंगलों की बढ़ती कटाई को उनकी नीतियों से सीधे तौर पर जोड़ते हैं और यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि इन नीतियों का दुनियाभर की जलवायु पर नकारात्मक असर पड़ेगा. इस शिकायत में कहा गया है कि गर्मी बढ़ने के कारण सदी के अंत तक औसत से 180,000 मौतें ज्यादा होंगी.
ऑलराइज कहता है, "बोल्सोनारो की सरकार सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से अमेजन की कटाई के लिए जिम्मेदार है. तो यह पर्यावरण को जानबूझ़कर और अनियंत्रित नुकसान पहुंचाना है, जिसके न सिर्फ स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी असर होंगे.”
अमेजन के जंगलों की कटाई के खिलाफ लंबे समय से दुनियाभर में विरोध हो रहा है. 2009 से 2018 के बीच सालाना औसतन 6,500 वर्ग किलोमीटर जंगल काटे गए थे. 1 जनवरी 2019 को बोल्सोनारो द्वारा सत्ता संभालने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 10,500 हो गया. (dw.com)
इटली के चिड़ियाघर पार्को नेचुरा वीवा ने कहा है कि टोबी के शव पर लेप लगाकर उसे ट्रेंटो के 'म्यूजे साइंस' म्यूजियम में रखा जाएगा. यहां वह इसी चिड़ियाघर में पांच साल पहले मरे ब्लैंको नाम के सफेद शेर का साथी बनेगा.
दुनिया के सबसे बुजुर्ग सफेद गैंडे टोबी ने 54 साल की उम्र में उत्तरी इटली के एक चिड़ियाघर में आखिरी सांस ली. मंगलवार को चिड़ियाघर की प्रवक्ता ने यह जानकारी दी.
इटली के उत्तरी शहर वेरोना के पास एक चिड़ियाघर पार्को नेचुरा वीवा की कर्मी एलिसा लिविया पेनाचियोनी ने बताया, "नैनो टोबी यानी दादाजी टोबी छह अक्टूबर को गुजर गया. वह अपनी रात में रहने की जगह से वापस आते हुए बेहोश होकर जमीन पर गिरा और इसके बाद करीब आधे घंटे में उसकी धड़कनें रुक गईं."
लंबी उम्र मिली
पेनाचियोनी ने बताया कि अब टोबी के शव पर लेप लगाकर उसे ट्रेंटो के 'म्यूजे साइंस' म्यूजियम में रखा जाएगा, जहां वह इसी चिड़ियाघर में पांच साल पहले मरे ब्लैंको नाम के सफेद शेर का साथी बनेगा. उन्होंने बताया, "सफेद गैंडे जब कैद में रहते हैं तो सामान्यत: 40 साल तक जीते हैं. वहीं जंगल में ये करीब 30 साल तक जीते हैं."
टोबी की मौत से पहले साल 2012 में उसकी मादा पार्टनर शुगर की मौत हुई थी. अब टोबी की मौत के बाद पार्को नेचुरा वीवा के पास सिर्फ एक सफेद गैंडा 'बेनो' बचा है, जिसकी उम्र 39 साल है.
गैंडों की हथियारबंद सुरक्षा
टोबी एक 'दक्षिणी सफेद गैंडा' था. वह गैंडों की पांच में से उस एकमात्र प्रजाति से था, जो अब भी लुप्तप्राय नहीं मानी जाती है. वर्ल्ड वाइल्ड फंड (WWF) के मुताबिक अभी इस प्रजाति के गैंडों की संख्या 18 हजार से ज्यादा है. पर्यावरण संगठन ने यह भी बताया कि इससे उलट उत्तरी सफेद गैंडे दुनिया में सिर्फ दो बचे हैं. ये केन्या में रहते हैं और हथियारबंद गार्ड इन गैंडों की दिन-रात सुरक्षा करते हैं.
केन्या के नॉर्दन व्हाइट राइनो प्रजाति के यह दोनों ही गैंडे मादा हैं. साल 2018 में इनके साथ रहने वाले अकेले नर सूडान की 45 साल की उम्र में मौत हो गई थी. यह गैंडा काफी पॉपुलर था. इसका डेटिंग ऐप टिंडर पर अकाउंट भी था. दरअसल टिंडर पर गैंडे के लिए चंदा जुटाने की कोशिश की जा रही थी, फिर भी इस नर गैंडे को बचाया नहीं जा सका था.
भारत में सफेद गैंडे नहीं होते हैं, वहां काजीरंगा के नेशनल पार्क में एक सींग वाले गैंडे रहते हैं जो शिकारियों के निशाने पर हैं. पिछले दिनों में उन्हें बचाने की कोशिशें हो रही हैं जिसमें कामयाबी भी मिली है. हाल ही में गैंडों के जब्त किए गए सींगों को जलाकर विश्व गैंडा दिवस मनाया गया.
एडी/एमजे (एएफपी)
कुनमिंग (चीन), 13 अक्टूबर| रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जैव विविधता के संरक्षण और विकासशील देशों को संबंधित सहायता देने के लिए अंतर्राष्ट्रीयसहयोग का आह्वान किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन ने मंगलवार को जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पक्षकारों के सम्मेलन की 15वीं बैठक में वीडियो के माध्यम से अपने भाषण में कहा, "यह निश्चित रूप से जरूरी है कि सभी राज्य की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और विशिष्टताओं को ध्यान में रखा जाए और विकासशील और सबसे कम विकसित देशों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए।"
सीओपी15 सम्मेलन सोमवार को दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग में शुरू हुआ।
अगले दशक के लिए जैव विविधता संरक्षण के लिए तैयार खाका के अनुसार, बैठक का पहला भाग जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक संरक्षण सहित विषयों पर मंचों की समानांतर गतिविधियों के साथ शुक्रवार तक चलेगा। बैठक का दूसरा भाग जो अगले साल होने की उम्मीद है, यह समीक्षा करेगा और '2020 के बाद की वैश्विक जैव विविधता ढांचे' पर निर्णय करेगा।
पुतिन ने रेखांकित करते हुए कहा कि 'अपने प्राकृतिक संसाधनों और आर्थिक गतिविधियों पर राज्यों की संप्रभुता' का इस उद्देश्य से सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हम वनस्पतियों और जीवों के साथ-साथ वायु और जल संसाधनों की रक्षा के सभी जरूरी मुद्दों पर घनिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के विचार का पूर्ण समर्थन करते हैं।"
उन्होंने पर्यावरणीय मामलों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए चीन की सराहना की।
सम्मेलन के विषय 'पारिस्थितिक सभ्यता: पृथ्वी पर सभी जीवन के लिए एक साझा भविष्य के निर्माण' के बारे में पुतिन ने कहा, "यह सम्मेलन मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के तरीके पर विचारों को साझा करने का एक अच्छा अवसर देता है।"
यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारिस्थितिक सभ्यता के विषय पर चीन द्वारा प्रस्तावित एक दर्शन पर आयोजित पहला वैश्विक सम्मेलन है।
पुतिन ने कहा, "यह सम्मेलन एक अच्छा उदाहरण है कि प्रकृति संरक्षण के उद्देश्यों को किसी भी देश द्वारा व्यक्तिगत रूप से सफलतापूर्वक संबोधित नहीं किया जा सकता है। अतिशयोक्ति के बिना सभी मानव जाति के लिए सभी राज्यों के लिए यह एक सामान्य कार्य है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर| अफगानिस्तान के घुर प्रांत में गरीबी, बेरोजगारी और गंभीर आर्थिक समस्याओं के कारण बाल विवाह हो रहे हैं और कई परिवार अपनी कम उम्र की लड़कियों को पैसे, हथियार या पशुधन के बदले मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों से शादी करने दे रहे हैं। राहा प्रेस ने यह जानकारी दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चौंकाने वाली कहानियां सामने आई हैं, जहां परिवारों ने अपनी एक साल की बेटियों को भी पैसे, पशुधन और हथियारों के लिए बेच दिया है।
एक कम उम्र की लड़की की खरीद और बिक्री की दर आमतौर पर प्रांत में 100,000 से 250,000 अफगानी के बीच होती है।
सूत्रों के मुताबिक अगर खरीदार के पास नगद रकम नहीं है तो वह बदले में लड़की के परिवार को हथियार या मवेशी देता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह की घटनाएं राष्ट्रीय राजधानी से ज्यादा सूबे के सुदूर जिलों में होती हैं।
पैसे के बदले लड़कियों की खरीद-बिक्री या बाल विवाह पहले आम बात थी, लेकिन अफगानिस्तान सरकार के पतन और आने वाली आर्थिक उथल-पुथल के बाद अधिक परिवार इस मार्ग को अपनाने के लिए मजबूर हैं।
देश के पश्चिम में एक महिला अधिकार कार्यकर्ता हबीबा जमशेदी ने कहा कि महिलाएं समाज की आबादी का आधा हिस्सा हैं और उनके साथ अमानवीय या गैर-इस्लामी तरीके से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
जमशेदी ने कहा कि जो परिवार लड़कियों और महिलाओं की विधियों से अनभिज्ञ हैं, वे उनका दुरुपयोग करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जमशेदी ने जोर देकर कहा कि बाल विवाह के कारणों में से एक महिलाओं की भूमिका और स्थिति के बारे में उचित जागरूकता की कमी है।
घुर प्रांत में तालिबान अधिकारियों ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। (आईएएनएस)
ब्रिटेन की एक संसदीय समिति ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में ही सरकार ने तालाबंदी लगाने में देर कर दी थी. इस देरी की वजह से हजारों ऐसे लोग मारे गए जिन्हें बचाया जा सकता था.
यह रिपोर्ट ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स की विज्ञान और स्वास्थ्य की समितियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई जांच का नतीजा है. इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शुरू में ही तालाबंदी ना लगाने से महामारी को रोकने का एक अवसर हाथ से निकल गया.
रिपोर्ट कहती है कि इस घातक देरी का कारण था वैज्ञानिक सलाहकारों के सुझावों पर मंत्रियों का सवाल ना उठाना. इस वजह से एक खतरनाक स्तर की "सामूहिक सोच" विकसित हो गई जिसके कारण उन आक्रामक रणनीतियों को नकार दिया गया जिन्हें पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया में लागू किया गया था.
देर से दिया आदेश
प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव सरकार ने तब जा कर तालाबंदी का आदेश दिया जब देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा पर तेजी से बढ़ते हुए संक्रमण के मामलों की वजह से अत्यधिक दबाव पड़ गया.
रिपोर्ट ने कहा, "सरकार तालाबंदी से बचना चाह रही थे क्योंकि उसकी वजह से अर्थव्यवस्था, सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं और समाज को बहुत नुकसान होता. कड़ाई से आइसोलेशन, एक सार्थक जांच और ट्रेस अभियान और सीमाओं पर सशक्त प्रतिबंध जैसे उपायों के अभाव में एक पूर्ण तालाबंदी अनिवार्य थी और उसे और जल्दी लागू किया जाना चाहिए था."
यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों को लेकर एक औपचारिक जांच में हो रही देरी को लेकर निराशा का माहौल है. प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा है कि जांच अगले साल बसंत में शुरू होगी.
सांसदों का कहना है कि जांच की प्रक्रिया को कुछ इस तरह से बनाया गया है जिससे यह सामने लाया जा सके कि महामारी के शुरुआती दिनों में ब्रिटेन का प्रदर्शन दूसरे देशों के मुकाबले "काफी खराब" क्यों रहा. इससे देश को कोविड-19 के मौजूदा और भविष्य के खतरों से निपटने में मदद मिलेगी.
टीकों पर शुरुआती ध्यान की सराहना
संसदीय समिति की रिपोर्ट 150 पन्नों की है और 50 गवाहों के बयानात पर आधारित है. इनमें पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार डोमिनिक कमिंग्स भी शामिल हैं. इसे संसद की तीन सबसे बड़ी पार्टियों के 22 सांसदों ने सर्वसम्मति से स्वीकृति दी थी.इन पार्टियों में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी, विपक्षी लेबर पार्टी और स्कॉटलैंड की स्कॉटिश नेशनल पार्टी शामिल थीं. संसदीय समितियों ने टीकों पर सरकार के शुरुआती ध्यान और टीकों के विकास में निवेश करने के फैसले की सराहना भी की.
इन फैसलों से ब्रिटेन का टीकाकरण कार्यक्रम काफी सफल हुआ और आज 12 साल से ऊपर की उम्र के लगभग 80 प्रतिशत लोगों को टीका लग चुका है. समितियों ने कहा, "यूके ने वैश्विक टीकाकरण अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई है जिसकी वजह से अंत में लाखों जानें बच पाएंगी."
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के पहले तीन महीनों में सरकार की रणनीति औपचारिक वैज्ञानिक सलाह का नतीजा थी, जिसमें कहा गया था कि चूंकि जांच करने की क्षमता सीमित है इसलिए संक्रमण व्यापक रूप से फैलेगा ही.
इसके अलावा यह भी कहा गया था कि टीके की तुरंत कोई संभावना नहीं है. यह भी माना गया था कि जनता एक लंबी तालाबंदी को स्वीकार नहीं करेगी. इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार वायरस के प्रसार को पूरी तरह से रोकने की जगह सिर्फ उसके प्रबंधन का इंतजाम कर पाई. (dw.com)
सीके/एए (एपी)
डेट पर दो लोग एक-दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करते हैं. इस दौरान दोनों एक-दूसरे को और अच्छे से समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन कई बार कुछ डेट एक्सपीरियंस खौफनाक निकलते हैं. इनके बारे में जानने के बाद लोग डेट पर जाने से ही तौबा कर लेते हैं. ऐसा ही एक अजीबोगरीब मामला सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. इसपर एक लड़की ने अपने पहले डेट का एक्सपीरियंस शेयर किया. जिसमें लड़के ने उसे चूना लगा दिया.
एलीसे म्येर्स नाम की इस लड़की ने अपने पहले डेट की स्टोरी शेयर की. लड़की जिस लड़के के साथ डेट पर गई थी वो अपना पर्स और कार की चाभी साथ लाना भूल गया था. ऐसे में लड़की को ही उसे डिनर और घर तक ड्राप करना पड़ा. लड़के ने पहले रोड के किनारे लड़की से मुलाक़ात की. उसके बाद कहीं खाने जाने का प्लान बनाया. लड़की भी इसके लिए मान गई लेकिन उसे क्या पता था कि आगे लड़के ने कुछ बड़ा प्लान कर रखा है.
खरीदवा लिया 1 हफ्ते का खाना
एलिसे ने 7 अक्टूबर को अपने टिकटोक अकाउंट पर इस घटना का वीडियो शेयर किया. @elsyemyers नाम के बने अकाउंट पर शेयर इस वीडियो को अब तक लाखों बार देखा जा चुका है. लड़की ने घटना के बारे ,में बताया कि उसकी मुलकात इस लड़के से डेटिंग ऐप पर हुई थी. ऐप पर बातचीत के बाद लड़के ने एलिसे से कहा कि उसे उसका चेहरा काफी पसंद आया. दोनों को खाने पर जाना चाहिए. उसके बाद दोनों ने रेस्त्रां जाने का प्लान बनाया. लेकिन वहां लड़के ने अपना पर्स भूल जाने की बात कहकर एलिसे से ही खाने का बिल भरवाया. सबसे हैरानी की बता तो ये थी कि इस दौरान लड़के ने करीब एक हफ्ते का खाना पैक करवा लिया.
पैक करवाए 100 रोल्स
खाना खाने के लिए दोनों टाको बेल पहुंचे. वहां लड़के ने खाना पैक कर घर पर चलकर खाने का प्लान बनाया. जब ऑर्डर देने की बारी आई तो लड़के ने 100 टाको ऑर्डर किये. टाको रोटी के अंदर सब्जियां स्टफ कर बनाई जाती है. 100 टाको का ऑर्डर सुन लड़की हैरान रह गई. लेकिन उसने कुछ कहा नहीं. लड़की ने साढ़े 11 हजार का बिल भरा और लड़के के साथ उसके घर आ गई. घर पर लड़के के पिता मौजूद थे, जिन्होंने तुरंत खाना शुरू किया. लड़की ये देखकर हैरान रह गई. कुछ समय बाद जब लड़के के पिता ने उसे घर दिखाने की बात कही, तो लड़की ने वहां से निकल जाने में भलाई समझी. उसने तुरंत अलविदा कहा और लड़के को तुरंत ब्लॉक कर दिया. इस अजीबोगरीब डेट की कहानी ने लोगों को हैरान कर दिया. कई लोगों ने इसे अबतक का सबसे घटिया डेट एक्सपीरियंस बताया.
2008 में एक बर्फीले तूफान से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की जान बचाने वाला अनुवादक आखिरकार अफगानिस्तान से बच निकला है. अमेरिका ने इसकी पुष्टि की है.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के साथ अनुवादक के तौर पर काम करने वाले अमान खलीली अफगानिस्तान से बच निकले हैं. विदेश मंत्रालय ने बताया कि कई दिन तक अपने परिवार के साथ छिपे रहने के बाद खलीली अब सुरक्षित हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि जमीन के रास्ते सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंचे खलीली और उनके परिवार को अमेरिकी विमान से कतर के दोहा ले जाया गया है, जहां हजारों अन्य शरणार्थी वीजा मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खबर छापी थी कि खलीली, उनकी पत्नी और पांच बच्चे अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के वक्त वहीं रह गए थे. बाद में पूर्व सैनिकों की मदद से उन्होंने सीमा पार की.
खलीली की कहानी
अमन खलीली की कहानी किसी फिल्म सरीखी है. वह 2008 में अमेरिकी फौजों के लिए अफगानिस्तान में बतौर अनुवादक काम करते थे. उन दिनों सेनेटर रहे जो बाइडेन ने अपने दो अन्य सांसद साथियों चक हेगल और जॉन केरी के साथ अफगानिस्तान का दौरा किया था.
बाइडेन और उनके साथी जब एक हेलिकॉप्टर से यात्रा कर रहे थे तो बर्फ के तूफान में फंस गए. इस कारण उनके हेलिकॉप्टर को एक दूर-दराज इलाके में उतरना पड़ा. तब खलीली उस टीम का हिस्सा थे, जो बगराम से सांसदों को बचाने के लिए भेजी गई थी.
13 साल बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने अभियान की समाप्ति का ऐलान किया तो अपनी सेना के साथ काम करने वाले हजारों लोगों को साथ ले जाने की भी बात कही. तब हजारों लोगों ने वीजा के लिए अप्लाई किया, जिनमें खलीली और उनका परिवार भी था. लेकिन उन्हें वीजा नहीं मिला.
15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. उसके बाद दो हफ्तों में अमेरिकी सेना ने 1,20,000 लोगों को बचाया. लेकिन तब भी खलीली एयरपोर्ट नहीं पहुंच सके. अगस्त के आखरी हफ्ते में वॉल स्ट्रीट जर्नल अखबार ने उनकी कहानी छापी. इस कहानी में उन्होंने कहा, "हलो राष्ट्रपति जी, मुझे और मेरे परिवार को बचाइए.”
आखिरकार राहत
खलीली की अपील राष्ट्रपति तक पहुंची और उनकी प्रवक्ता वाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि सरकार खलीली की मदद करेगी. उन्होंने कहा, "हम आपको बाहर निकालेंगे. हम आपकी सेवाओं की इज्जत करते हैं.”
30 सितंबर को अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं के चले जाने के बाद अमन खलीली और उनका परिवार अफगान-अमेरिकीयों और पूर्व अमेरिकी सैनिकों की मदद से एक सुरक्षित ठिकाने पर छिपा रहा. उनके पास अफगान पासपोर्ट नहीं था इसलिए वह मजार ए शरीफ से भी उड़ान नहीं भर सके. बाद में वे लोग दो दिन की पैदल यात्रा करके पाकिस्तान सीमा पर पहुंचे. 5 अक्टूबर को उन्होंने सीमा पार की.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक विदेश मंत्रालय उनकी वीजा अर्जी को जल्दी पास करने के लिए विशेष इमिग्रेशन वीजा की योजना बना रहा है.
वीके/सीके (एएफपी)
डेविड कार्ड, जोशुआ अंगृस्त और गुइडो इम्बेंस ने इस साल का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीत लिया है. पुरस्कार के लिए कार्ड को श्रम बाजार पर उनके काम के लिए और अंगृस्त-इम्बेंस को प्राकृतिक प्रयोगों के लिए चुना गया.
65 साल के डेविड कार्ड मूल रूप से कनाडा के हैं और अभी अमेरिका के बर्कली में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. उन्हें 11 लाख डॉलर के इस पुरस्कार का आधा हिस्सा मिलेगा. दूसरा हिस्सा इजराइली-अमेरिकी अर्थशास्त्री अंगृस्त और उनके डच-अमेरिकी सहयोगी इम्बेंस को संयुक्त रूप से दिया जाएगा.
61-वर्षीय अंगृस्त मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और 58 साल के इम्बेंस स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. नोबेल समिति ने एक बयान में कहा कि तीनों को "श्रम बाजार के बारे में नई समझ" देने और "प्राकृतिक प्रयोगों से कार्य और कारण को समझाने" के लिए सम्मानित किया गया है.
विजेताओं के काम का महत्व
नोबेल समिति की सदस्य एवा मॉर्क ने पत्रकारों को बताया कि तीनों विजेताओं ने "अर्थशास्त्र में आनुभविक कार्य में क्रांति लाई है. उन्होंने दिखाया है कि जब रैंडमाइज्ड प्रयोग करना संभव ना हो तब भी महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए जा सकते हैं."
तीनों अर्थशास्त्रियों को कथित "प्राकृतिक प्रयोगों" के इस्तेमाल के लिए सम्मानित किया गया, जिनमें "किस्मत से हुई घटनाओं या नीतिगत बदलावों की वजह से कुछ लोगों के साथ इस तरह अलग व्यवहार किया जाता है जैसे चिकित्सा में क्लीनिकल ट्रायल में किया जाता है."
इकोनॉमिक साइंसेज समिति के अध्यक्ष पीटर फ्रेडरिकसन ने कहा, "समाज से सम्बंधित महत्वपूर्ण सवालों पर कार्ड के अध्ययन और अंगृस्त-इम्बेंस के प्रणाली संबंधी योगदान ने दिखाया है कि प्राकृतिक प्रयोग ज्ञान का एक समृद्ध स्त्रोत हैं.
उनके शोध ने "कारण बताने वाले अहम सवालों के जवाब खोजने की हमारी क्षमता को काफी बेहतर बनाया है और इससे समाज को बहुत लाभ मिला है."
न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का असर
कार्ड ने प्राकृतिक प्रयोगों का इस्तेमाल कर श्रम बाजार पर न्यूनतम वेतन, अप्रवासन और शिक्षा के असर का अध्ययन किया है. अंगृस्त और इम्बेंस के काम से जो नतीजे सामने आए हैं उनमें यह निष्कर्ष शामिल है कि जरूरी नहीं है कि न्यूनतम वेतन को बढ़ाने से नौकरियां कम हो जाती हों.
अकादमी के अनुसार तीनों के काम ने यह दिखाया है कि अप्रवासन कैसे वेतन और रोजगार के स्तर को प्रभावित करता है जैसे सवालों का जवाब प्राकृतिक प्रयोगों की मदद से दिया जा सकता है. अकादमी ने कहा, "हम अब जानते हैं कि किसी और देश में पैदा होने वाले लोग अब किसी और जगह अप्रवासन कर जाते हैं तो उनके आय बढ़ सकती है."
कार्ड ने ऐसी शोध पर काम किया जिसमें न्यू जर्सी और पूर्वी पेंसिल्वेनिया में रेस्तरांओं का इस्तेमाल कर न्यूनतम वेतन बढ़ाने के असर को नापा गया. उन्होंने और उनके दिवांगात्स शोध सहयोगी एलन क्रूगर ने पाया था कि प्रति घंटे की न्यूनतम मजदूरी को बढ़ा देने से नए लोगों को रोजगार देने में कमी नहीं हुई.
सीके/एए (एपी, एएफपी)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर | चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि भारत के साथ बिगड़ते हालात की स्थिति में चीन को सैन्य संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। ग्लोबल टाइम्स के एक संपादकीय में कहा गया है, "नई दिल्ली को एक बात के बारे में स्पष्ट होने की जरूरत है : उसे सीमा नहीं मिलेगी जैसा वह चाहता है। अगर यह युद्ध शुरू करता है, तो यह निश्चित रूप से हार जाएगा। किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप और दबाव को चीन द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाएगा।"
"भारत के साथ सीमा विवाद को संभालने में, चीन के लिए दो काम करना सबसे महत्वपूर्ण है। पहला, हमें इस सिद्धांत पर टिके रहना चाहिए कि भारत चाहे कितनी भी मुसीबत में क्यों न हो, चीन का क्षेत्र चीन का है और हम इसे कभी नहीं सौंपेंगे। भारत अभी भी सीमा मुद्दे पर नींद में चल रहा है। हम इसके जागने का इंतजार कर सकते हैं।"
"चीनी लोग जानते हैं कि चीन और भारत दोनों एक-दूसरे के साथ लंबे समय तक सीमा गतिरोध को बनाए रखने के लिए पर्याप्त राष्ट्रीय ताकत के साथ महान शक्तियाँ हैं। इस तरह का आपसी अलगाव खेदजनक है, लेकिन अगर भारत ऐसा करने को तैयार है, तो चीन इसे तब तक कंपनी में रखेगा जब तक अंत "
गलवान घाटी संघर्ष यह साबित करता है कि चीन भारत-चीन संबंधों को आसान बनाने के लिए अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा।
ग्लोबल टाइम्स ने कहा, "अगर नई दिल्ली चीन और भारत के बीच अंतर्निहित गतिशीलता को गलत तरीके से समझना जारी रखती है और चीन के संकल्प और ²ढ़ संकल्प को कम आंकती है, तो यह केवल अपने लिए नई गलत सूचना पैदा करेगी और भारत को और नुकसान पहुंचाएगी।"
कहा गया है, "वार्ता में भारत का रवैया अवसरवादी है। नई दिल्ली मानती है कि चीन को अपनी समग्र राष्ट्रीय रणनीति हासिल करने के लिए अपनी पश्चिमी सीमाओं में स्थिरता की इच्छा के कारण भारत की मदद की जरूरत है।"
"विशेष रूप से, भारत चीन-अमेरिका संबंधों में गिरावट को प्रमुख रणनीतिक सौदेबाजी चिप्स हासिल करने के अवसर के रूप में देखता है। नई दिल्ली को उम्मीद है कि बीजिंग सीमा मुद्दे पर अपना रुख नरम करेगा और नई दिल्ली को बीजिंग के खिलाफ वाशिंगटन के साथ खुद को संरेखित करने से रोकने के लिए अपनी मांगों को पूरा करेगा।"(आईएएनएस)
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका और अफगानिस्तान के नए शासक वर्ग के बीच पहली बैठक कतर की राजधानी दोहा में हुई. दो दिवसीय वार्ता के दौरान अमेरिकी वार्ता दल में विभिन्न सरकारी एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.
तालिबान के साथ लंबी बातचीत में शामिल जलमई खलीलजाद मौजूदा अमेरिकी टीम का हिस्सा नहीं हैं. खलीलजाद अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि हैं. अमेरिकी वार्ता दल में अमेरिकी विदेश विभाग, अमेरिकी सहायता एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों के सदस्य शामिल थे. विदेश विभाग के उप विशेष प्रतिनिधि टॉम वेस्ट और यूएसएआईडी अधिकारी सारा चार्ल्स प्रतिनिधिमंडल में विशेष रूप से प्रमुख हैं.
बातचीत के दौरान दोनों पक्षों ने आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट को नियंत्रित करने को मौजूदा अफगान सरकार के लिए अहम मुद्दा बताया. अफगानिस्तान में विदेशियों की निकासी को भी वार्ता में शामिल किया गया. तालिबान विदेशियों को निकालने में लचीला होने पर सहमत हो गया है.
इस्लामिक स्टेट की चुनौती
तालिबान ने शनिवार को अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक से पहले यह स्पष्ट कर दिया कि बैठक से अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे जिहादी समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस) को नियंत्रित करने के मुद्दे को खुद हल करेंगे.
इस मौके पर तालिबान के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने कहा कि उनकी सरकार इस्लामिक स्टेट को नियंत्रित करने में पूरी तरह सक्षम है. तालिबान सरकार का बयान तब आया जब इस्लामिक स्टेट ने शुक्रवार 8 अक्टूबर को उत्तरी अफगान शहर कुंदुज में एक शिया मस्जिद में नमाजियों पर आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली. आत्मघाती हमलावर ने कम से कम 60 लोगों की जान ले ली और दर्जनों अन्य घायल हो गए.
दोहा बैठक में तालिबान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख और अंतरिम विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने अमेरिका से अपने देश की फ्रीज हुई संपत्ति को तुरंत बहाल करने का आह्वान किया ताकि उनके उपयोग से देश और उसके लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके. अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री का बयान कतर स्थित अरब टेलीविजन स्टेशन अल जजीरा द्वारा प्रसारित किया गया था.
कोरोना वैक्सीन की पेशकश
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के अंतरिम विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने भी कहा कि अमेरिका ने काबुल सरकार को कोरोना वैक्सीन की पेशकश की थी. यह बात मुत्तकी ने बैठक के बाद अल जजीरा संवाददाता से कही. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नया अध्याय शुरू करने पर भी ध्यान केंद्रित किया.
इससे पहले अमेरिका से उनके जाने पर अमेरिकी अधिकारियों ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता में सुधार करने का संकेत दिया था. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि वह तालिबान सरकार के प्रतिनिधियों से लोगों की बेहतरी के लिए प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाने को कहेगा. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश तालिबान सरकार को मानवीय सहायता देने के मुद्दे पर एक भी बिंदु पर सहमत नहीं हैं.
एए/वीके (एएफपी, एपी)
जिहादी संगठन आईएस के दो मददगारों को जर्मनी के श्टुटगार्ट शहर में निलंबित कैद की सजा सुनाई गई है. इसके पहले सीरिया से वापस लाई गई छह महिलाओं आईएस के समर्थन के कारण हिरासत में ले लिया गया था.
श्टुटगार्ट हाईकोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को विदेश में आतंकवादी संगठन की मदद करने का दोषी पाया. एक अभियुक्त को आतंकवाद की वित्तीय मदद का भी दोषी छहराया गया. 44 वर्षीय अभियुक्त को दो साल की निलंबित कैद की सजा दी गई तो 30 वर्षीय अभियुक्त को 20 महीने की निलंबित कैद की. जर्मनी में निलंबित कैद का प्रावधान है, जिसमें अभियुक्त मुचलके पर जेल के बाहर रहता है लेकिन उसे सजायाफ्ता माना जाता है. कोई और अपराध करने पर उसे जेल की निलंबित सजा भी काटनी पड़ती है.
अदालत का कहना है कि दोनों अभियुक्त करीब 2011 से दक्षिणी बाडेन के इलाके में एक जिहादी सर्किल का हिस्सा थे जो धर्म परिवर्तन, इमिग्रेशन और जिहाद के अलावा सीरिया की राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखने जैसी गतिविधियों में संलग्न था. इस सर्किल के दो लोग 2013 में आईएस के साथ लड़ने के लिए सीरिया गए. दोनों ने उसके बाद आईएस के लड़ाकों को 8,000 यूरो भेजा. दोनों अभियुक्तों ने अपना गुनाह कबूल किया है और अदालत की उम्मीद है कि वे और अपराध नहीं करेंगे.
सीरिया से वापस लाई गईं महिलाएं हिरासत में
इससे पहले सीरिया में कुर्द हिरासत केंद्र में कैद से 8 जर्मन महिलाओं और 23 बच्चों को जर्मनी वापस लाया गया. ये महिलाएं कुछ समय पहले जिहादी संगठन आईएस के समर्थन के लिए सीरिया गई थीं और आईएस के पतन के बाद कुर्दों के हिरासत केंद्रों में रह रही थीं. उनमें से छह को जर्मनी आते ही हिरासत में ले लिया गया. जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा कि महिलाओं और बच्चों की वापसी की कार्रवाई डेनमार्क के साथ मिलकर की गई जबकि अमेरिका ने लॉजिस्टिक मदद दी.
जर्मन विदेश मंत्री ने कहा कि बच्चे बेकसूर हैं, वे बिना किसी गलती के इस स्थिति में फंस गए. मास ने कहा, "बच्चे अपनी स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. माताओं को अपने कृत्यों के लिए जवाब देना होगा." गिरफ्तार महिलाओं के खिलाफ आपराधिक जांच चल रही है. सुरक्षा सूत्रों ने जर्मनी की समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि छह महिलाओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था.
विदेश मंत्री ने कहा कि लौटे हुए बच्चों के लिए "सुरक्षा और रहने के लिए बेहतर वातावरण देने के लिए" हर संभव प्रयास करना महत्वपूर्ण है. विदेश मंत्रालय का कहना है, "बच्चों को सुरक्षा की विशेष आवश्यकता है. युवा कल्याण अधिकारी जांच कर रहे हैं कि बच्चों को कहां रखा जा सकता है. कुछ के पास अभी भी जर्मनी में कानूनी अभिभावक हैं."
सीरिया में कहां थीं ये महिलाएं
जर्मनी लौटने से पहले महिलाओं और उनके बच्चों को पूर्वोत्तर सीरिया के रोज इलाके में कुर्दों के एक हिरासत शिविर में रखा गया था. पिछले महीने ऐसी खबर आई थी कि रोज और अल-होल स्थित हिरासत शिविरों में हर हफ्ते दो बच्चे मर रहे थे. बाघौज में आतंकी समूह के अंतिम रूप से उखड़ने के बाद आईएस लड़ाकों के परिवारों को इन केंद्रों में ले जाया गया था, जो कि इस इलाके में इस्लामिक स्टेट के पतन का संकेत था.
पश्चिमी देशों की सरकारें कई महीनों से इस सवाल से जूझ रही हैं कि मार्च 2019 में इस्लामिक स्टेट के पतन के बाद से 'आईएस' में शामिल होने के लिए गए नागरिकों और उनके परिवारों का क्या किया जाए. आतंकवादी समूह में शामिल रहे लोगों की वापसी को स्वीकार करने में इन देशों में एक स्तर की अनिच्छा रही है. खासतौर पर उनसे संभावित खतरे और नकारात्मक जनमत को देखते हुए यह चिंताएं अधिक थीं. जर्मनी में, आतंकवाद का रास्ता छोड़कर वापस आए और कुछ अन्य आरोपों के संदेह पर पहले ही कई लोगों पर मुकदमा चल चुका है.
चीन और ताइवान के बीच एक बार फिर तनाव गहरा होता दिख रहा है. लगातार ताइवान के हवाई क्षेत्र में दख़ल देने के बाद अब चीन के शीर्ष नेतृत्व ने ताइवान के 'एकीकरण' यानी ख़ुद में मिलाने की बात कही है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि ताइवान का 'एकीकरण ज़रूर पूरा होना चाहिए.'
शी ने कहा है कि एकीकरण शांतिपूर्ण तरीक़े से होना चाहिए लेकिन उन्होंने साथ ही यह भी चेतावनी देते हुए कह दिया कि चीन के लोगों की अलगाववाद का विरोध करने की एक 'महान परंपरा' रही है.
इसके जवाब में ताइवान ने भी कह दिया है कि उसका भविष्य उसके लोगों के हाथों में है.
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने कहा है कि ताइवान अपनी सुरक्षा मज़बूत करता रहेगा ताकि उसके द्वीप पर कोई ताक़त का इस्तेमाल न कर सके.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, रविवार को नेशनल डे रैली पर साई ने कहा, "हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करना जारी रखेंगे और ख़ुद की सुरक्षा को लेकर हम अपनी प्रतिबद्धता दिखाते रहेंगे ताकि कोई भी ताइवान को उस रास्ते पर चलने के लिए मजबूर न करे जो चीन ने हमारे लिए बनाया है."
"ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन ने जो प्रस्ताव दिया है वो न ही स्वतंत्र है और न ही ताइवान के जीवन के लिए एक लोकतांत्रिक तरीक़ा है और न ही उससे हमारे 2.3 करोड़ लोगों को संप्रभुता मिलती है."
ख़ुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है ताइवान
ताइवान ख़ुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है जबकि चीन का मानना है कि वो उसका ही प्रांत है.
1940 में गृह युद्ध के दौरान चीन और ताइवान बँट गए थे लेकिन बीजिंग दोहराता रहा है कि वो इस द्वीप को प्राप्त करके रहेगा इसके लिए वो ताक़त का इस्तेमाल करने से भी नहीं बचेगा.
इस द्वीप का अपना संविधान है और लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेता हैं. ताइवान के पास तीन लाख सैनिकों की फौज भी है.
हालांकि, फिर भी कुछ ही देश ताइवान को मान्यता देते हैं. इसकी जगह अधिकतर देशों ने बीजिंग स्थित चीनी सरकार को मान्यता दी हुई है.
अमेरिका के भी ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध नहीं हैं लेकिन उसने एक क़ानून पारित किया हुआ है, जिसके तहत वो इस द्वीप को सुरक्षा मुहैया करा सकता है.
ताइवान पर बीजिंग का शासन स्वीकार करने के लिए लगातार सैन्य और राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है और लगातार ताइवान पर चीनी लड़ाकू विमानों का गुज़रना अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बना हुआ है.
हाल के दिनों में चीन ने कई बार ताइवान के हवाई रक्षा क्षेत्र का उल्लंघन किया है और उसके ऊपर से रिकॉर्ड नंबर में लड़ाकू विमानों को भेजा है. विश्लेषकों का मानना है कि यह उड़ानें रविवार को ताइवान के राष्ट्रीय दिवस से पहले उसके राष्ट्रपति के लिए चेतावनी हैं.
बीजिंग ने बल प्रयोग करके एकीकरण की संभावना को भी ख़ारिज नहीं किया है. ताइवान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि चीन के साथ हालिया तनाव बीते 40 सालों में सबसे ख़राब है.
क्या-क्या हो सकता है
कुछ विश्लेषक, अधिकारी और निवेशक यह भी मानते हैं कि अगले कुछ सालों में यह मामला और गंभीर होगा और इसमें अमेरिका के साथ भी युद्ध होने की आशंका है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने चीन की वायु सेना से निवेदन किया था कि वो ताइवान के ऊपर से निगरानी करे और अगर उस पर निशाना लगाया जाए तो वो 'सैन्य तरीक़े से एकीकरण को पूरा करे.'
वहीं ताइवान कह चुका है कि वो तभी हमला करेगा जब उस पर हमला किया जाएगा.
दोनों ओर के इन बयानों के बीच चीन और ताइवान के पास युद्ध टालने के कई कारण हैं क्योंकि इस युद्ध में हज़ारों लोग मारे जा सकते हैं, अर्थव्यवस्था बर्बाद हो सकती है और अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के साथ परमाणु संघर्ष भी हो सकता है.
समाचार चैनल ब्लूमबर्ग बताता है कि इन सभी ख़तरों की जगह चीन दूसरे तरीक़ों से ताइवान को नियंत्रण में रखने की कोशिशों को जारी रखेगा.
इसमें चीन सैन्य धमकियों, राजनयिक अलगाव और आर्थिक प्रोत्साहन के ज़रिए ताइवान पर क़ब्ज़ा रखेगा. हाल ही में ताइवान में इक्विटी रिकॉर्ड रूप से ऊंचाई पर थीं.
हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि कुछ महत्वाकांक्षाएं चीन को युद्ध की ओर धकेल सकती हैं. इसमें सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा शी जिनपिंग को ख़ुद को साबित करने की है.
शी जिनपिंग 'खोए हुए क्षेत्रों' को वापस पाकर अपनी ताक़त का लोहा मनवाना चाहते हैं.
दूसरी ओर अमेरिका के साथ ख़राब होते रिश्ते, हॉन्गकॉन्ग में जारी तनाव और कोरोना वायरस की स्थिति से लेकर तकनीक के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा जैसे विषय इस तनाव के पीछे शामिल बताए जा रहे हैं.
प्रोजेक्ट 2049 इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ निदेशक इयान ईस्टन ने ब्लूमबर्ग से कहा है, "मेरी चिंता तेज़ी से इस बात को लेकर बढ़ रही है कि बड़ा संकट आने वाला है."
"इसकी कल्पना पर संभव है कि चौतरफ़ा आक्रमण की कोशिशें सुपरपावर युद्ध के रूप में बदल सकती हैं. अगले पाँच से 10 साल बेहद ख़तरनाक होने जा रहे हैं और मूलभूत रूप से यह अस्थिर है."
ईस्टन जैसे कई विश्लेषकों का मानना है कि चीन कई सालों में ताइवान पर क़ब्ज़ा करेगा. सैन्य अभ्यास, हथियारों की ख़रीद और रणनीतिक दस्तावेज़ों को देखते हुए लगता है कि चीन एक झटके में ताइवान पर क़ब्ज़ा कर लेना चाहता है ताकि अमेरिका को उसकी मदद का मौक़ा न मिला सके.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की गणना के अनुसार, चीन ने अपनी सेना पर ताइवान की तुलना में 25 गुना अधिक ख़र्च किया है और काग़ज़ों पर बीजिंग का सैन्य संतुलन बहुत भारी नज़र आता है.
चीन की मिसाइलों से लेकर लड़ाकू विमान तक हर स्तर पर ख़ासी बढ़त है और उसके पास परमाणु हथियार भी हैं जिसका ज़िक्र वो कभी भी नहीं करता है.
चीन के लक्ष्य क्या हो सकते हैं?
1911 में चीन की अंतिम राजशाही को उखाड़ फेंकने की 110वीं सालगिरह पर बोलते हुए शनिवार को शी जिनपिंग ने कहा था कि एकीकरण 'शांतिपूर्ण तरीक़े' से होना चाहिए जो कि 'चीनी राष्ट्र और ताइवान के लोगों के पूरी तरह हित में होगा.'
लेकिन साथ ही में उन्होंने यह भी कहा कि 'किसी को भी चीन के लोगों के राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की मज़बूत क्षमता और दृढ़ निश्चय को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.'
"मातृभूमि के संपूर्ण एकीकरण का ऐतिहासिक कार्य पूरा किया जाना चाहिए और जो ज़रूर पूरा होगा."
विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग ताइवान पर क़ब्ज़ा करने के लिए कई तरह से हमला कर सकता है, जिनमें सबसे पहले ताइवान की वित्तीय प्रणाली और मूलभूत ढांचों को निशाना बनाना शामिल हो सकता है. इसमें वो साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध छेड़ सकता है, जिसके कारण अमेरिकी सैटेलाइट को बैलिस्टिक मिसाइलों के बारे में न पता चले.
साथ ही चीनी जहाज़ ताइवान जाने वाले जहाज़ों को रोक सकता है ताकि उसके ईंधन और खाने की सप्लाई पर रोक लग जाए.
कई विश्लेषकों का कहना है कि हवाई हमलों के ज़रिए वो ताइवान के शीर्ष राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को निशाना बना सकता है. चीनी सेना बता चुकी है कि उसने कई युद्ध अभ्यास किए हैं. सैटेलाइट की तस्वीरों में दिखा है कि इन अभ्यासों में राष्ट्रपति कार्यालय की इमारत जैसे लक्ष्यों के नक़ली मॉडल वहाँ मौजूद थे.
इसके साथ ही चीन युद्धपोतों और पनडुब्बियों के ज़रिए भी ताइवान पहुँचकर वहाँ पर हमला कर सकता है.
वास्तव में ताइवान पर कोई भी हमला ख़तरनाक ही होगा क्योंकि ताइवान भी इसके लिए हमेशा से तैयार है.
ताइवान के पास प्राकृतिक रक्षा कवच भी है क्योंकि उसके समुद्री तट बेहद उबड़-खाबड़ हैं और वहां के मौसम का अंदाज़ा पहले से नहीं लगाया जा सकता है. इसके पहाड़ों में ऐसी सुरंगें बनी हुई हैं जो मुख्य नेताओं को जीवित रख सकती हैं और चीन के किसी भी आक्रमण से सुरक्षा मुहैया करा सकती हैं.
ताइवान ने 2018 में अपनी सैन्य क्षमता की योजना सार्वजनिक की थी. इसमें मोबाइल मिसाइल सिस्टम भी था, जिसकी मिसाइलें बिना पता चले लक्ष्य तक पहुंच सकती हैं. ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और एंटी-एयरक्राफ़्ट बंदूक़ें चीन के ताइवान पहुंचने से पहले तक उसे भारी नुक़सान पहुंचा सकती हैं.
दूसरी ओर ताइवान के पास अमेरिका जैसी विश्व शक्ति का समर्थन भी है.
हालिया तनाव से काफ़ी पहले 1996 में चीन और ताइवान के रिश्ते बेहद ख़राब थे जब चीन ने मिसाइल टेस्ट के ज़रिए राष्ट्रपति चुनावों को बाधित करने की कोशिश की थी. तब अमेरिका ने अपने लड़ाकू विमान भेजकर इसे रोका था.
कोरोना पर सिंगापुर, ताइवान में सब अच्छा था - फिर क्या हो गया?
अमेरिका ने चीन पर परमाणु हमले का किया था विचार: रिपोर्ट
चीन की सैन्य आकांक्षाओं को लेकर कई पश्चिमी देशों ने चिंता ज़ाहिर की है और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी कह चुके हैं कि शी जिनपिंग 'ताइवान समझौते' का पालन करने के लिए सहमत थे.
बाइडन अमेरिका की लंबे समय से जारी 'वन चाइना' नीति का ज़िक्र कर रहे थे, जिसके तहत अमेरिका ताइवान को छोड़कर पूरे चीन को मान्यता देता है.
इस समझौते के तहत अमेरिका ताइवान के साथ 'ठोस अनौपचारिक' रिश्ते बना सकता है. ताइवान रिलेशंस एक्ट के तहत अमेरिका ताइवान को हथियार बेचता है. इस क़ानून के तहत अमेरिका ताइवान की उसकी रक्षा में मदद कर सकता है.
बीते सप्ताह बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा था कि अमेरिका ताइवान स्ट्रेट में किसी भी ऐसी कार्रवाई के ख़िलाफ़ 'खड़ा होगा और बोलेगा' जो 'शांति और स्थिरता को कमज़ोर करेगी.'
इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि चीन का ताइवान पर क़ब्ज़ा कोई आसान काम नहीं होगा. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 10 अक्टूबर | पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान जो पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम के संस्थापक थे, उनका रविवार को 85 वर्ष की आयु में फेफड़ों की बीमारी की वजह से निधन हो गया। यह जानकारी उनके परिवार ने दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार रात खान की तबीयत बिगड़ने लगी, जिसके बाद उन्हें इस्लामाबाद के खान रिसर्च लेबोरेटरीज अस्पताल ले जाया गया था।
इससे पहले भी अगस्त में, परमाणु वैज्ञानिक को कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण के बाद उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सरकारी अधिकारियों के अनुसार, कोरोनोवायरस बीमारी का सफलतापूर्वक इलाज करने के बाद उन्हें घर वापस ले जाया गया था।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने परमाणु वैज्ञानिक के परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए ट्विटर पर कहा कि "पाकिस्तान को परमाणु हथियार राज्य बनाने में उनके महत्वपूर्ण योगदान" के कारण राष्ट्र उन्हें सदैव प्यार और याद करेगा।
प्रधान मंत्री ने कहा, "पाकिस्तान के लोगों के लिए वह एक राष्ट्रीय आइकन थे।"
पाकिस्तानी राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने एक ट्वीट में कहा , "परमाणु वैज्ञानिक ने पाकिस्तान को राष्ट्र बचाने वाली परमाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद की है, एक आभारी राष्ट्र इस संबंध में उनकी सेवाओं को कभी नहीं भूलेगा।" (आईएएनएस)
बेरूत, 10 अक्टूबर | लेबनान की बिजली ग्रिड पूरे देश में बंद हो गई है क्योंकि अल-जहरानी और दीर अम्मार के दो मुख्य बिजली स्टेशनों में ईंधन की कमी हो गई है। इसकी जानकारी स्थानीय समाचार वेबसाइट एलनाशरा ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने वेबसाइट के हवाले से बताया कि थर्मो इलेक्ट्रिक प्लांट शनिवार को जहरानी पावर स्टेशन पर रुक गया, जबकि डीर अम्मार प्लांट शुक्रवार को ईंधन की कमी के कारण बंद हो गया।
बताया जा रहा है कि कुछ दिनों तक बिजली गुल रहेगी।
शनिवार को, लेबनान की राज्य बिजली कंपनी ने अपनी चेतावनी को नवीनीकृत किया कि अगर सेंट्रल बैंक बिजली संयंत्रों को चलाने के लिए ईंधन तेल खरीदने में विफल रहता है तो देश को कुल ब्लैकआउट का सामना करना पड़ेगा।
लेबनान अपने वित्तीय संकट के कारण ईंधन की कमी से जूझ रहा है, जिसने हजारों व्यवसायों को अपने दरवाजे बंद करने के लिए मजबूर किया, जबकि अधिकांश नागरिक निजी जनरेटर पर निर्भर हैं।(आईएएनएस)
ढाका, 10 अक्टूबर | बांग्लादेश की राजधानी ढाका के बाहरी इलाके सावर में तुराग नदी में एक नाव के पलट जाने से कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई। पांचों के शव बरामद किए गए हैं। अग्निशमन सेवा और नागरिक सुरक्षा मुख्यालय की ड्यूटी अधिकारी खालिदा यास्मीन ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि "अब तक तीन लड़कों, एक महिला और एक लड़की के शव निकाले जा चुके हैं।"
अधिकारी के अनुसार, शनिवार तड़के नदी में रेत से लदे एक जहाज से टक्कर के बाद करीब 18 लोगों को ले जा रही नाव पलट गई।
यास्मीन ने कहा कि घटना के बाद ज्यादातर यात्री तैरने में सक्षम हो गए।
उन्होंने कहा कि जहाज के कुछ यात्री अभी भी लापता हैं।
बांग्लादेश में, फेरी परिवहन का एक प्रमुख साधन है, जबकि उनमें से अधिकांश में अक्सर भीड़भाड़ रहती है। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 9 अक्टूबर | बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में रोहिंग्या नेता मोहम्मद मोहिब उल्लाह की हत्या में कथित संलिप्तता के आरोप में पांच और रोहिंग्या आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
सशस्त्र पुलिस बटालियन (एपीबीएन) द्वारा मामले के सिलसिले में छह अन्य लोगों को गिरफ्तार किए जाने के एक दिन बाद ताजा गिरफ्तारियां हुई हैं।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "एपीबीएन की एक विशेष टीम ने रोहिंग्या नेता मोहिब उल्लाह की हत्या के मद्देनजर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए विभिन्न उखिया शिविरों (कॉक्स बाजार में) पर छापेमारी की।"
अज्ञात बंदूकधारियों के एक समूह ने 29 सितंबर को उखिया के एक शरणार्थी शिविर में 48 वर्षीय मोहिब उल्लाह की हत्या कर दी थी।
मोहिब उल्लाह एक उदारवादी रोहिंग्या समूह, अराकान रोहिंग्या सोसाइटी फॉर पीस एंड ूयहमन राइट्स के अध्यक्ष थे और पश्चिमी मीडिया में 'रोहिंग्या की आवाज' के रूप में जाने जाते थे।
पुलिस अधीक्षक और 14वीं सशस्त्र पुलिस बटालियन के कप्तान मोहम्मद नैमुल हक ने शनिवार को आईएएनएस को बताया कि शुक्रवार रात से शनिवार सुबह तक उखिया में विभिन्न रोहिंग्या शिविरों में छापेमारी के बाद पांचों को गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तार किए गए लोगों की पहचान खालिद हुसैन (33), मास्टर सैयद (38), मोहम्मद शकर (35), मोहम्मद (18) और मोहम्मद इलियास (22) के रूप में हुई है।
एपीबीएन के कप्तान ने कहा, "रोहिंग्या शिविरों पर केंद्रित एक आतंकवादी संगठन के पांच सदस्यों को हिरासत में लिया गया है। उन पर जबरन वसूली, हत्या, अपहरण, डकैती, मादक पदार्थो की तस्करी, मानव तस्करी और पुलिस पर हमले का आरोप लगाया गया है।"
बंदियों को उखिया पुलिस को सौंप दिया गया।
बांग्लादेश के विदेश सचिव मसूद बिन मोमेन ने उल्ला की हत्या को 'दुर्भाग्यपूर्ण घटना' करार देते हुए आईएएनएस से कहा कि सरकार हत्यारों को नहीं बख्शेगी।
उन्होंने शनिवार को चार रोहिंग्या शिविर का दौरा करने के बाद कहा कि हत्या या कोई गड़बड़ी रोहिंग्याओं की प्रत्यावर्तन प्रक्रिया में बाधा नहीं बनेगी।
रोहिंग्या शरणार्थियों ने कहा कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति 'अराकान रिपब्लिकन सॉल्वेशन आर्मी' (एआरएसए) के सदस्य हैं, जो एक प्रतिबंधित रोहिंग्या आतंकवादी संगठन है।(आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 9 अक्टूबर | एप्पल ने एप स्टोर पर नियंत्रण को लेकर फोर्टनाइट निर्माता एपिक गेम्स के खिलाफ अपने प्रमुख मुकदमे में फैसले के खिलाफ अपील दायर की है। इससे पहले, एपल ने एपिक गेम्स द्वारा किए गए 10 में से 9 दावों में जीत हासिल की, जबकि एक पर उसे हार का सामना करना पड़ा। वह एक दावा यह था कि एप्पल अवैध रूप से उपभोक्ताओं को उनकी पसंद से इन-एप खरीदारी के लिए किस भुगतान प्रणाली का उपयोग कर रहा था। लेकिन एप्पल अब उस फैसले पर अपील कर रहा है जो इस तरह के बदलावों में देरी कर सकता है।
एनसीबी के अनुसार, आईफोन निर्माता ने एपिक गेम्स मामले में अपील का नोटिस भेजकर निषेधाज्ञा पर रोक लगाने के लिए कहा, जो डेवलपर्स को अन्य इन-एप भुगतान प्रणालियों को जोड़ने की अनुमति देगा।
यदि एप्पल अपने अनुरोध में सफल हो जाता है, तो एप स्टोर की भुगतान प्रणाली में परिवर्तन मामले के अंत तक प्रभावी नहीं हो सकता।
एप्पल एप रिव्यू के वरिष्ठ निदेशक ट्रिस्टन कोस्मिन्का ने शुक्रवार को अपील दायर करते हुए कहा था, "उच्च स्तर पर मेरा निर्णय यह है कि उपभोक्ताओं, डेवलपर्स और आईओएस प्लेटफॉर्म की सुरक्षा के लिए विचारशील प्रतिबंधों के बिना, यह परिवर्तन उपयोगकर्ताओं, डेवलपर्स और आईओएस प्लेटफॉर्म को आम तौर पर अधिक नुकसान पहुंचाएगा।"
हाल ही में, एपिक गेम्स के सीईओ टिम स्वीनी ने आईफोन निर्माता एप्पल को एक विज्ञापन स्लॉट तक पहुंच प्रदान करने के लिए बुलाया, जिसके प्रतिस्पर्धियों के पास आईफोन की सेटिंग्स स्क्रीन नहीं है।
कुछ आईओएस 15 उपयोगकर्ताओं ने देखा कि एप्पल अब अपनी एप्पल आईडी के ठीक नीचे अपनी सेटिंग्स के शीर्ष पर अपनी सेवाओं का विज्ञापन कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सुझाई जा रही सेवाओं को डिवाइस के मालिक के लिए वैयक्तिकृत किया जाता है, जिसके आधार पर वे पहले से ही सदस्यता लेते हैं।
उदाहरण के लिए, जिनके पास एप्पल म्यूजिक की सदस्यता नहीं है, वे छह महीने के नि:शुल्क परीक्षण की पेशकश करने वाला विज्ञापन देख सकते हैं। हालांकि, वर्तमान एप्पल म्यूजिक सब्सक्राइबर इसके बजाय एक ऐसी सेवा को जोड़ने का संकेत देख सकते हैं, जो उनके पास अभी तक नहीं है, जैसे कि उनके उपकरणों के लिए एप्पलकेयर कवरेज।(आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 9 अक्टूबर | अमेरिका स्थित दिग्गज सर्च इंजन गूगल ने हाल ही में घोषणा की है कि वह 19 अक्टूबर को पिक्सल 6 सीरीज के स्मार्टफोन लॉन्च करेगा। अब एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिक्सल फोल्ड, पिक्सल वॉच और पिक्सल 6 सीरीज के साथ ही नए नेस्ट स्पीकर भी लॉन्च हो सकते हैं। जीएसएम अरेना की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर लॉन्च नहीं किया जाता है, तो गूगल डिवाइस को छेड़ सकता है या कम से कम हमें इसके विकास के बारे में थोड़ी जानकारी दे सकता है।
2019 में गूगल ने फोल्डेबल स्मार्टफोन प्रोटोटाइप पर अपने विकास का खुलासा किया और यह एलटीपीओ ओएलईड डिस्प्ले का उपयोग करेगा।
पहली पिक्सल-ब्रांडेड स्मार्टवॉच नए वेयरओएस पर चल सकती है, जो वेयर ओएस और सैमसंग के टिजेन ओएस का एक विलय अनुभव प्रदान करती है।
पिक्सल 6 और पिक्सल 6 प्रो दोनों एक ही मुख्य अल्ट्रावाइड कैमरा साझा करेंगे।
एक्सडीए डिवलपर्स की रिपोर्ट के अनुसार, डिवाइस 50एमपी सैमसंग जीएन1 मुख्य कैमरा और 12एमपी सोनी आईएमएक्स286 अल्ट्रावाइड कैमरा के साथ आएंगे। प्रो मॉडल में 4एक्स जूम सपोर्ट के साथ 48एमपी सोनी आईएमएक्स 586 टेलीफोटो कैमरा सेंसर होगा।
सेल्फी के लिए, वेनिला पिक्सल 6 में 8एमपी सेंसर होगा, जबकि प्रो मॉडल 12एमपी सोनी आईएमएक्स663 सेंसर के साथ आएगा। प्रो मॉडल का फ्रंट कैमरा दो जूम स्तर प्रदान करेगा : 0.7एक्स और 1एक्स।
प्राथमिक कैमरा 7एक्स पर अधिकतम जूम स्तर के साथ 4के वीडियो एट द रेट 60एफपीएस को सपोर्ट करेगा। जबकि 4के या एफएचडी एट द रेट 60एफपीएस पर रिकॉर्डिग करते समय 20एक्स तक जूम करना होगा।(आईएएनएस)
दुनिया पर कोरियाई संस्कृति का असर 2013 में 'गंगनम स्टाइल' गाने की रिलीज के साथ ही होने लगा था. इसके बाद पॉप ग्रुप बीटीएस, फिल्म पैरासाइट और टीवी सीरीज स्व्किड गेम ने इसे और लोकप्रिय बनाया.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
दुनिया में कोरियाई संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है. हाल ही में ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में शामिल किए गए शब्दों पर भी इसका असर दिखा. इस साल 26 नए कोरियाई शब्दों को इस प्रतिष्ठित डिक्शनरी में जगह मिली. इनमें से ज्यादातर शब्द कोरियाई खान-पान और संस्कृति से जुड़े हैं.
इन शब्दों को शामिल करने के मौके पर ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने कहा, "हम सभी कोरियाई लहर के शिखर पर सवार हैं." इस बात का प्रमाण डिक्शनरी में जोड़े गए शब्दों से भी मिलता है. इन शब्दों में से एक है- 'हालयू'. इसका मतलब ही होता है, 'दक्षिण कोरिया और इसकी लोकप्रिय संस्कृति में बढ़ती अंतरराष्ट्रीय रुचि, जिसकी झलक दक्षिण कोरियाई संगीत, फिल्मों, टीवी, फैशन और खाने की अंतरराष्ट्रीय सफलता में देखने को मिलती है."
टेक्नोलोजी नहीं संस्कृति
दुनिया दक्षिण कोरियाई संस्कृति का असर साल 2012 से बढ़ा. इसकी शुरुआत करीब एक दशक पहले गंगनम स्टाइल गाने के साथ हुई थी, जिसे कोरियाई रैपर साई ने गाया था. इसके बाद बीटीएस, स्व्किड गेम और पैरासाइट ने इसे और लोकप्रिय बनाया. इस तरह सैमसंग, हुंडई, एलजी और किया जैसी कंपनियों की वजह से दुनियाभर में पहचाना जाने वाला दक्षिण कोरिया अब के-पॉप, के-ड्रामा, किमची, तोफू, किमबाप (एक व्यंजन) और सोजू (एक पेय) जैसी चीजों से पहचाना जाने लगा है.
दशक भर पहले तक दक्षिण कोरिया की जो पहचान टेक्नोलोजी के चलते थी, वह अब संस्कृति ने ले ली है. के-पॉप और के-ड्रामा दुनियाभर में इस संस्कृति के ध्वजवाहक हैं. के-पॉप यानी कोरियन पॉप म्यूजिक, जिसे 2016 में ही ऑक्सफर्ड डिक्शनरी में शामिल किया जा चुका है. के-ड्रामा, यानी ऐसी टीवी सीरीज, जो कोरियाई भाषा में हो और उसे दक्षिण कोरिया में बनाया गया हो. यह शब्द अब की बार इस डिक्शनरी में शामिल हुआ है.
हॉलीवुड बनाम के-ड्रामा
जानकार कहते हैं कि दक्षिण कोरियाई टीवी, हॉलीवुड का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी बन चुका है. खासकर कोरोना काल में इसे बहुत फायदा हुआ. इस दौरान कोरियाई ट्रेंड डलगोना कॉफी को जैसी सफलता मिली, वैसी ही सफलता के-ड्रामा को भी मिली. दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर कोरियन स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर सत्यांशु श्रीवास्तव बताते हैं कि 2012 में पूरी दुनिया में अपनी धाक मनवाने से बहुत पहले से ही कोरियाई संस्कृति पूर्वी एशिया, चीन और जापान में लोकप्रियता पा चुकी थी. जिसे आज के-ड्रामा के नाम से जाना जा रहा है, वैसे कोरियाई टीवी सीरियल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, चीन, जापान, लाओस, वियतनाम और कंबोडिया जैसे इलाकों में 1990 के दशक से ही काफी लोकप्रिय रहे हैं.
उनके मुताबिक इन सीरियल का विविध जॉनर जैसे- साइंस-फिक्शन, रोमांस, हॉरर और ऐतिहासिक थीम पर आधारित होना, इन्हें एक बड़ी ऑडियंस के साथ जोड़ता है. कुछ जानकार कहते हैं कि ये सीरियल अक्सर 16 से 24 एपिसोड में खत्म हो जाते हैं. यह बात भी इनके प्रति लोगों की रुचि बढ़ाती है. हालांकि कुछ पारिवारिक और ऐतिहासिक सीरियल 50 से अधिक एपिसोड तक भी खिंचे हैं. और कुछ की लोकप्रियता इतनी ज्यादा रही है कि उनके अगले सीजन भी आ चुके हैं.
इंटरनेट का योगदान
इसके अलावा पिछले कुछ सालों से लंबे बालों और कान में बालियां पहनने वाले सात स्टाइलिश लड़कों का बैंड बीटीएस भी दुनियाभर में धूम मचाए हुए है. के-पॉप को दुनिया में पॉपुलर करने में यह सबसे आगे रहा है. अमेरिका और यूरोप के देशों में इसके एल्बम चार्ट में टॉप पर रहते हैं. ट्विटर पर इसके दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे इन से 20 गुना ज्यादा फॉलोवर्स हैं. बैंड दावा करता है कि दक्षिण कोरिया में ट्विटर पर एक करोड़ फॉलोवर्स का आंकड़ा भी सबसे पहले उसी ने पार किया था.
इसके बारे में सत्यांशु श्रीवास्तव कहते हैं, "असली बदलाव इंटरनेट ने किया है. यूट्यूब जैसे ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म तक लोगों की पहुंच आसान होने के बाद कोरियाई गाने और सीरियल सीमाओं को तोड़ते हुए यूरोप और अमेरिका तक पहुंच गए."
बोलचाल पर भी असर
ऑक्सफर्ड की लिस्ट में शामिल नए शब्दों में बहुत से खाने से जुड़े हुए हैं. जैसे- बंचन, बुल्गोगी, किमबाप, जपचाई. कला से जुड़े कोरियन शब्द मैनवा को भी डिक्शनरी में जगह मिली है. यह कार्टून और कॉमिक्स का एक ऐसा जॉनर है, जो कुछ-कुछ जापानी मंगा कला से प्रभावित है. लेकिन मजेदार शब्दों में से एक है 'मुकबंग'. यूट्यूब पर इसे सर्च करेंगे तो लाखों की संख्या में इससे जुड़े रिजल्ट मिल जाएंगे. इस शब्द का मतलब है, एक खास तरह के वीडियो, जो अक्सर लाइवस्ट्रीम किए जाते हैं. इनमें एक या दो लोग बैठकर बड़ी मात्रा में खाना खाते हैं और साथ ही साथ दर्शकों से बातचीत भी करते हैं.
ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने इन शब्दों को शामिल करते हुए यह भी कहा कि इतने सारे कोरियाई शब्दों को शामिल करना अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के भाषाई प्रयोग में आए बदलावों को मान्यता देना भी है. कोरियाई संस्कृति से अंग्रेजी में जगह बनाने वाले ऐसे ही शब्द हैं- ऐगयो (मासूम) और डेबाक (जबरदस्त). इन्हें आम अंग्रेजी बोलचाल में भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है.
यूं तो कोरियाई संस्कृति को दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाली भाषा अंग्रेजी ही रही है लेकिन अब इसमें भी बदलाव आ रहा है. बोलने वालों की संख्या के हिसाब से कोरियाई भाषा दुनिया में 15वें स्थान पर है लेकिन दुनिया में कोरियाई भाषा के प्रति लोगों की दीवानगी तेजी से बढ़ रही है. भाषाएं सीखने के प्लेटफॉर्म 'डुओलिंगो' पर कोरियन भाषा सातवीं सबसे ज्यादा सीखी जा रही भाषा है.
आर्थिक फायदे भी
पिछले कुछ सालों में कोरिया से जुड़ी चीजों को दुनियाभर में सराहा भी गया है. ऑस्कर विजेता कोरियाई फिल्म 'पैरासाइट' ब्रिटेन में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली गैर-अंग्रेजी फिल्म रही. पॉप ग्रुप बीटीएस के एल्बम कई देशों में चार्ट में सबसे ऊपर रहे. फिलहाल टीवी सीरीज स्क्विड गेम, अब तक नेटफ्लिक्स पर सबसे ज्यादा देखी गई टीवी सीरीज बनने की ओर बढ़ रही है. भारतीय नेटफ्लिक्स पर यह कई दिनों से टॉप 10 लिस्ट में बनी हुई है और इस शो के 95 फीसदी से ज्यादा व्यूज कोरिया के बाहर से आ रहे हैं.
सत्यांशु बताते हैं, "दरअसल जो दक्षिण कोरियाई लहर हमें दिखाई पड़ रही है, वह अपने आप हुआ कोई बदलाव न होकर दक्षिण कोरियाई सरकार और उद्योगों की संगठित कोशिश है. दक्षिण कोरिया अपनी सॉफ्ट पावर के तौर पर टीवी और म्यूजिक इंडस्ट्री को बढ़ावा देता है. फिलहाल दक्षिण कोरिया में टूरिस्ट कंपनियां हाल्लयू टूरिज्म भी चला रही हैं. इसमें विदेश से आने वाले लोगों को अलग-अलग फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग लोकेशन पर घुमाया जाता है. यही हाल खाने से जुड़ी इंडस्ट्री का है. रेडीमेड कोरियाई खाने की मांग भारत में बढ़ी है."
नेटफ्लिक्स की दुनियाभर में सफलता में कोरियन ड्रामा (के-ड्रामा) का भी खासा योगदान रहा है. दक्षिण कोरिया को इससे आर्थिक फायदा भी हुआ है. हाल ही में में नेटफ्लिक्स ने कोरियाई टीवी कार्यक्रमों की सफलता के बारे में एक वीडियो भी रिलीज किया था. इस वीडियो में नेटफ्लिक्स ने बताया था कि साल 2016 से 2020 के बीच करीब 4.8 अरब डॉलर योगदान दिया है. इसके अलावा वहां 16 हजार फुल टाइम नौकरियां दी हैं. वहीं एक अनुमान के मुताबिक पिछले साल बीटीएस के चलते दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था को लगभग पांच अरब डॉलर का फायदा हुआ है. (dw.com)
पत्रकारों का कहना है कि तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से देश में मीडिया कर्मियों के लिए स्थिति काफी खराब हो गई है. कई को देश छोड़ना पड़ा, तो कई छिपकर रह रहे हैं.
डॉयचे वैले पर फ्रांज जे. मार्टी की रिपोर्ट
अफगानिस्तान में अगस्त में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद देश के आम लोगों की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. पुरुषों को दाढ़ी कटवाने पर रोक लगा दी गई है, तो महिलाएं अब बुर्के में नजर आ रही हैं. उदारवादी समूह और एलजीबीटी समुदाय के सदस्य भी तालिबान के अतीत से खौफजदा हैं. इन सब के साथ-साथ मीडिया समूह और मीडिया कर्मियों की स्थिति दयनीय हो चुकी है. वे भी डर के साये में जी रहे हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक, कई अफगान पत्रकार देश छोड़कर चले गए हैं. जो नहीं जा पाए हैं, उन्हें "तालिबान के नियमों के अधीन काम करना पड़ रहा है. ये नियम काफी अस्पष्ट हैं. इनके तहत, किसी भी तरह से तालिबान की आलोचना नहीं करनी है." कुछ मामलों में कई मीडिया कर्मियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, तो कुछ के साथ हिंसा भी हुई है.
फिलहाल, अफगानिस्तान के सभी इलाकों में तालिबान के नियम एक समान रूप से लागू नहीं हुए हैं, चाहे वह सामान्य लोगों के लिए हो या मीडिया के लिए. ऐसे में पत्रकारों को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. फिर भी, वे ऐसी समस्याओं की रिपोर्ट कर रहे हैं जिनके स्रोत हमेशा तालिबान नहीं होते.
पूर्वी अफगान प्रांत नंगरहार के एक पत्रकार ने डीडब्ल्यू को बताया, "अब तक तालिबान ने मेरे काम में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं किया है और मैं अब भी रिपोर्ट कर सकता हूं. हालांकि, तालिबान हमारे साथ कोई जानकारी साझा नहीं करता है. इससे हमारा काम मुश्किल हो जाता है."
कई पत्रकारों को झेलनी पड़ी परेशानी
नंगरहार प्रांत के ही एक दूसरे पत्रकार कहते हैं, "नंगरहार में एक के बाद एक कई बम धमाके और हत्याएं होने के बाद, मैं कुछ समय के लिए काबुल चला गया." उन्होंने बताया कि उन्हें सीधे तौर पर धमकी नहीं दी गई थी, लेकिन पत्रकार निशाना बन सकते हैं. उन्होंने छोटे-छोटे हमलों का संदर्भ दिया, जिनमें से अधिकांश हमलों की जिम्मेदारी तथाकथित इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन ने ली थी. यह संगठन प्रांत में कई वर्षों से सक्रिय है.
देश के उत्तर-पूर्वी प्रांत बदख्शां के एक पत्रकार का भी कुछ ऐसा ही कहना है. वह कहते हैं, "मुझे सीधे धमकी नहीं मिली, लेकिन स्थिति खतरनाक है. उदाहरण के लिए, अगर मैं एक रिपोर्ट लिखूं जो तालिबान को पसंद नहीं है, तो मैं मुश्किल में पड़ जाऊंगा क्योंकि तालिबान से जुड़े स्थानीय लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं. उन्हें मेरा घर भी पता है."
कई पत्रकारों को सीधे तौर पर भी धमकियां दी गई हैं. कुनार प्रांत के एक पत्रकार कहते हैं, "कुछ हथियारबंद लोग मेरे पिता के घर आए. उन्होंने मेरे बारे में पूछा. वजह ये थी कि मैंने कभी-कभी विदेशी पत्रकारों के साथ काम किया था. मुझ पर जिहाद विरोधी प्रचार प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था." इस घटना के बाद से यह पत्रकार छिपकर रह रहा है.
महिला पत्रकारों के कैमरे के सामने आने पर रोक
बदख्शां प्रांत की एक महिला पत्रकार ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे प्रांत में स्थानीय मीडिया समूहों को परोक्ष रूप से अपना काम बंद करने का दबाव बनाया जा रहा है. जब तालिबान ने बदख्शां की प्रांतीय राजधानी फैजाबाद पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने घोषणा की कि महिला पत्रकारों को कैमरे पर आने की अनुमति नहीं है."
वह आगे कहती हैं, "उन्होंने महिलाओं को रेडियो पत्रकार के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन सिर्फ उस स्थिति में जब कार्यक्रम के लिए काम करने वाले सभी कर्मचारी महिलाएं हों. व्यवहारिक रूप से यह शायद ही संभव है. हमारे रेडियो स्टेशन के कुछ तकनीकी कर्मचारी पुरुष हैं, इसलिए हमें मजबूर होकर कार्यक्रम बंद करना पड़ा."
उन्होंने अपने प्रांत की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा, "बदख्शां में कोई स्वतंत्र मीडिया नहीं बचा है. जो रिपोर्ट करते हैं, वे तालिबान की बातों को ही दोहराते हैं. इससे अच्छा है कि हम ये काम ही न करें." बदख्शां के एक पुरुष पत्रकार ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र के कई मीडिया संगठन तालिबान के कारण बंद नहीं हुए, बल्कि इसलिए बंद हो गए क्योंकि वे विदेशी फंडिंग पर निर्भर थे. तालिबान के सत्ता में आने के बाद उन्हें आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई.
चिंताजनक स्थिति
एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से कम से कम 32 पत्रकारों को अस्थायी रूप से हिरासत में लिया गया है. काबुल स्थित प्रसिद्ध समाचार पत्र 'एतिलात्रोज' के दो पत्रकारों की बुरी तरह पिटाई की गई. एक को तब तक पीटा गया, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया. कई अन्य मामलों में, दूसरे पत्रकारों के साथ न सिर्फ दुर्व्यवहार किया गया, बल्कि मनमाने ढंग से हिरासत में भी लिया गया.
नंगरहार के एक पत्रकार ने बताया, "सितंबर महीने में हमारे एक साथी पत्रकार को हिरासत में लिया गया था. पत्रकार संगठनों के काफी प्रयास के बाद, उन्हें आठ दिन बाद रिहा करवाया गया. तालिबान ने उस पत्रकार पर इस्लामिक स्टेट से संबंध रखने का आरोप लगाया, जो सच नहीं था."
अफगानिस्तान में पत्रकारों के साथ इस तरह की मनमानी नई बात नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के दौरान भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं. जिस पत्रकार को तालिबान ने सितंबर महीने में हिरासत में लिया था, उसी पत्रकार को गनी की सरकार में भी हिरासत में लिया गया था. उस समय पत्रकार के ऊपर तालिबान के साथ सहयोग करने का आरोप लगा था. हालांकि, पहले के मुकाबले अभी पत्रकारों के लिए हालात और ज्यादा खराब हो गए हैं. उनके सामने 'तालिबान के सामने झुको या देश छोड़ो' की स्थिति पैदा हो गई है. (dw.com)
चुनाव में पैकियाओ का मुख्य मुकाबला मौजूदा उपराष्ट्रपति लेनी रोब्रेडो और पूर्व तानाशाह फर्डिनांड मार्कोस के बेटे मार्कोस जूनियर से है. देखना ये है कि पैकियाओ रिंग के बाहर ‘खिताब’ अपने नाम कर पाते हैं या नहीं.
डॉयचे वैले पर एना पी. सैंटोस की रिपोर्ट
फिलीपींस में 2022 में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं. इसके लिए, पांच उम्मीदवार मुख्य तौर पर राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हैं. इनमें प्रसिद्ध मुक्केबाज मैनी पैकियाओ भी शामिल हैं. पैकियाओ रिंग में आठ अलग-अलग डिवीजनों में विश्व खिताब जीतने वाले एकमात्र मुक्केबाज चैंपियन हैं. उन्होंने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ेंगे. चुनाव लड़ने के लिए, उन्होंने पिछले महीने मुक्केबाजी से रिटायर होने का फैसला लिया.
पैकियाओ ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा से पहले कहा था, "मैं हमेशा संघर्ष करता रहूंगा, चाहे वह रिंग में हो या रिंग से बाहर." बॉक्सिंग चैंपियन अब तक दो बार सांसद रह चुके हैं और अभी वह सेनेटर हैं. लेकिन इस बार उनके लिए मुकाबला काफी कठिन हो सकता है.
मनीला के मेयर और पूर्व मैटिनी आइडल आइजैको मोरेना उर्फ फर्डिनांड ‘बोंगबोंग' मार्कोस जूनियर भी इस चुनाव में खड़े हैं. वह पूर्व दिवंगत तानाशाह फर्डिनांड मार्कोस के बेटे हैं. फर्डिनांड ने 1970 के दशक में मार्शल लॉ के तहत फिलीपींस पर शासन किया था.
उप-राष्ट्रपति लेनी रोब्रेडो भी दौड़ में शामिल
फिलीपींस की उप-राष्टरपति लेनी रोब्रेडो ने भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा सोशल मीडिया के जरिए की. उन्होंने 15 मिनट का एक वीडियो भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर शेयर किया है.
रोब्रेडो ने कहा, "हमें मौजूदा स्थिति से खुद को मुक्त करने की जरूरत है. मैं लड़ूंगी, हम लड़ेंगे." रोब्रेडो की पहचान उदार मानवाधिकार वकील के तौर पर है. उन्होंने पूर्व सेनेटर फर्डिनांड मार्कोस जूनियर को 2016 के उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में हराया था.
रोब्रेडो ने मार्कोस जूनियर के 1972 से 1981 तक अपने पिता के तानाशाही शासन के तहत हजारों मानवाधिकार पीड़ितों पर माफी मांगने और खेद व्यक्त करने से इनकार करने की बात पर भी तीखा हमला बोला.
उन्होंने कहा कि वह ऐसे लोगों के खिलाफ लड़ रही हैं जिनके पास पैसा है, पूरी मशीनरी है, और जो किसी भी कहानी को फैला सकते हैं. लेकिन कोई भी शोर सच्चाई को दफन नहीं कर सकता. यह कठिन चढ़ाई है जिसे हमें पार करना है.
राजनीतिक विश्लेषक टोनी लाविना ने डीडब्ल्यू को बताया कि राजनीति में ज्यादा अनुभव नहीं होने के बावजूद पैकियाओ के पास चुनाव जीतने का बढ़िया मौका है. वह कहते हैं, "राष्ट्रपति बनने की रेस में पांच लोग शामिल हैं. इसकी वजह से 30 प्रतिशत से कम वोट पाने के बावजूद चुनाव जीता जा सकता है."
गृह प्रांत से मिल सकती है बढ़त
लाविना अनुमान लगाते हैं कि पैकियाओ अपने गृह प्रांत मिंडानाओ, दक्षिणी फिलीपीन द्वीप और देश के मध्य इलाके से वोट पा सकते हैं. अगर यहां की जनता उन्हें वोट देती है, तो राष्ट्रपति बनने का उनका सपना पूरा हो सकता है.
लाविना कहते हैं, "मतदाता चाहते हैं कि उनके इलाके का कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बने. इससे वह उन इलाकों के विकास को प्राथमिकता देगा."
वर्तमान राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे के पूर्व राजनीतिक सहयोगी पैकियाओ उसी राजनीतिक दल पीडीपी-लबान से चुनाव लड़ेंगे. डुटेर्टे की तरह ही, पैकियाओ भी गरीबों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं. वह फिलीपींस के 19 लाख बेघरों को घर देने का वादा कर रहे हैं.
बॉक्सिंग और राजनीति में पैकियाओ के करियर को कवर करने वाले खेल पत्रकार रेयान सोंगलिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "पैकियाओ खुद को जनता से जुड़े होने और उनके बीच का होने का दावा कर सकते हैं. यह दावा शायद ही कोई दूसरा उम्मीदवार कर सकता है. जो चीज उन्हें अन्य उम्मीदवारों से अलग करती है, वह है अपने मुक्केबाजी मुकाबलों के साथ मीडिया में बने रहने की क्षमता."
हालांकि, समाजशास्त्री निकोल क्यूरेटो ने कहा कि चुनाव पैकियाओ के पक्ष में नहीं है. खुद को गरीबों का रहनुमा दिखाकर वे चुनाव नहीं जीत सकते. क्यूरेटो ने डॉयचे वेले को बताया, "पैकियाओ के अलावा दूसरे उम्मीदवार भी खुद को गरीबों के बीच का और उनके रहनुमा होने का दावा कर सकते हैं."
वह कहते हैं, "पैकियाओ की टीम के लिए अलग चुनौती है. उन्हें लोगों को जोड़ने वाले वादों के साथ मतदाताओं से जुड़ना है. इसके लिए, विशेष तैयारी करनी होगी. फिलहाल, उसकी संभावना कम दिखती है."
वर्तमान राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की बेटी सारा डुटेर्टे भी राष्ट्रपति पद के पसंदीदा उम्मीदवार के तौर पर सर्वे में आगे चल रही हैं. हालांकि, उनके कार्यालय ने यह साफ कर दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी. इसके बावजूद, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वह नवंबर के मध्य में देर से उम्मीदवारी दाखिल कर सकती हैं, जैसा कि उनके पिता ने किया था.
मतदाताओं के लिए 2022 के चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है. देश की अर्थव्यवस्था अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है. कोरोना महामारी के दौरान स्थिति और भी खराब हो गई थी. ब्लूमबर्ग न्यूज ने फिलीपींस को महामारी के दौरान सबसे खराब जगह करार दिया था. कोरोना महामारी के दौरान दसियों हजार लोगों की मौत हुई थी.
मतदान के प्रति बढ़ा रूझान
देश के मौजूदा हालात को देखते हुए, मतदान करने को लेकर लोगों का रूझान बढ़ा है. फिलीपींस में रहने वाली क्रिस्टीन कीको सूजी मतदान सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए 10 घंटे तक कतार में लगी रहीं. सूजी 26 साल की हैं. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि 2016 में उन्होंने अपने मत का प्रयोग नहीं किया था. इसका उन्हें काफी अफसोस है.
वह कहती हैं, "मतदान के लिए पंजीकरण कराने के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा. मैं पैकियाओ और मार्कोस जूनियर के खिलाफ वोट करना चाहती हूं."
टेक्सस के डैलस में रहने वाली पेटेर्नो मतदान पंजीकरण कराने के लिए ह्यूस्टन स्थित फिलीपीन वाणिज्य दूतावास में पहुंचीं. इसके लिए उन्होंने चार घंटे का सफर किया.
पेटर्नो ने डॉयचे वेले से कहा, "हम उन तथाकथित नेताओं को वोट नहीं करेंगे जो टैक्स के पैसे चुराते हैं या सिर्फ सार्वजनिक हित के बारे में चिंतित होने का नाटक करते हैं." वह भी पैकियाओ के खिलाफ हैं.
वह कहती हैं, "क्या वे यह भी समझते हैं कि राष्ट्रपति बनने के लिए क्या करना पड़ता है? उन्हें लगता है कि उनके पास दैवीय शक्ति है और वह देश के डूबते जहाज को बचा सकते हैं." (dw.com)
कनाडा में एक मंदिर के पुजारी को जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. इस पुजारी ने दो लड़कियों की आपस में शादी कराई थी, जिसके बाद उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया.
कनाडा के टोरंटो में एक हिंदू पुजारी को इसलिए धमकियां मिल रही हैं क्योंकि उन्होंने समलैंगिक शादी संपन्न कराई. श्रीरंगनाथन कुरुकल को ऑनलाइन और अन्य कई तरीकों से प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है. टोरंटो पुलिस ने इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया है.
कुरुकल ने स्थानीय मीडिया को बताया है कि उन्हें फोन, मैसेज और सोशल मीडिया के जरिए जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. उन्हें अपने हिंदू समाज से भी बहिष्कार झेलना पड़ रहा है. कई स्थानीय हिंदू संस्थाओं ने उन्हें बाहर निकाल दिया है और पुजारियों की स्थानीय एसोसिएशन भी उनसे नाराज है.
हिंदू प्रीस्ट एसोसिएशन ऑफ कनाडा ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे इस शादी की निंदा करते हैं. तमिल में लिखे इस बयान में एसोसिएशन ने कहा, "हम ग्राफ्टन में पिछले रविवार को हुई एक शादी की कड़ी निंदा करते हैं जो हिंदू मान्यताओं के विपरीत कराई गई और जिसने बहुत से हिंदुओं को आहत किया.”
शादी कराने से नाराज
एसोसिएशन के इस बयान की न सिर्फ कनाडा में बल्कि भारत और अन्य देशों में भी कई विचारकों ने निंदा की है. टोरंटो में रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सुमाथी फेसबुक इस पूरे घटनाक्रम के बारे में लिखा है.
सुमाथी ने लिखा, "एक हिंदू पुजारी ने पिछले हफ्ते कनाडा में दो लड़कियों की शादी कराई. उसके फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. लेकिन तब से पुजारी को जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. हिंदू मंदिर एसोसिएशन ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया है. उन्होंने तमिल में एक बयान जारी किया है.”
सुमाथी ने इस घटना को समलैंगिकों के खिलाफ नफरत से जुड़ा हुआ बताया. उन्होंने कहा, "साम्राज्यवाद ने हमारे समुदायों से तीसरे लिंग को खत्म करने की कोशिश की और समलैंगिकों के प्रति नफरत आजतक जारी है जबकि दक्षिण एशियाई लोग कनाडा में बस चुके हैं. यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है.”
कई जगह विरोध
दुनिया के दर्जनों मानवाधिकार संगठनों और सौ से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने पुजारी कुरुकल के समर्थन में एक बयान भी जारी किया है. अमेरिका स्थित साधना कोएलिशन की ओर से जारी इस बयान में कुरुकल के साथ हो रहे बर्ताव की आलोचना की गई है.
यह बयान कहता है,"बतौर धार्मिक प्रतिनिधि, धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि और सचेत सामाजिक सदस्य होने के नाते हम श्री रंगननाथन कुरुकल को दी जारी धमकियों और प्रताड़ना से बेहद परेशान हैं. कुरुकल ने यह शादी कराने पर तब सहमति दी जबकि क्षेत्र के कई मंदिर और पुजारी उन्हें लौटा चुके थे."
अमेरिका स्थित एक अन्य हिंदू संगठन ‘हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स' ने डॉयचे वेले को बताया कि कुछ रूढ़िवादी लोगों का यह व्यवहार निंदनीय है. संगठन ने कहा, "एक धार्मिक प्रतिनिधि ने एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के दो लोगों के प्यार को सम्मान देने का फैसला किया. उन पर हो रहे हमलों की हम निंदा करते हैं. हम श्री रंगनाथन कुरुकल के समर्थन में खड़े हैं.”
समलैंगिकता को मान्यता
संगठन कहता है कि हिंदू समुदाय ने हमेशा लैंगिक और यौनिक विविधता का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, "वैसे समलैंगिकों के खिलाफ और ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ नफरत मौजूद रही है लेकिन एलजीबीटीक्यू प्लस लोगों को धार्मिक आख्यानों और पुस्तकों के जरिए मान्यता मिली है.”
कनाडा पुलिस ने इस मामले में एक महिला को नफरत के मकसद से किए गए कृत्यों के आरोप में गिरफ्तार किया है. टोरंटो पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा है कि एक व्यक्ति को एक धार्मिक अनुष्ठान कराने के आरोप में धमकियां मिली थीं. पुलिस के मुताबिक 1 अक्टूबर क टोरंटो में 47 वर्षीय उमानथानी निशानाथन को धमकियां देने और अपराधिक प्रताड़ना के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
कनाडा में समलैंगिक शादियां कानूनन जायज हैं. 2005 में ही कनाडा ने इसे वैध कर दिया था और ऐसा करने वाला वह दुनिया का चौथा और यूरोप के बाहर पहला मुल्क बन गया था. भारत में समलैंगिक शादियां अभी भी वैध नहीं हैं.
ब्रितानी सरकार सरकार ने 11 अक्टूबर से भारतीय यात्रियों पर ब्रिटेन पहुंचने के बाद लगाई जाने वाली पाबंदी को वापस ले लिया है. अगर भारतीयों ने कोविशील्ड या यूके की मंज़ूरी वाली किसी भी वैक्सीन की दो डोज़ ली है तो उन्हें क्वारंटीन नहीं करना होगा.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़, गुरुवार को इसका एलान करते हुए भारत में ब्रिटेन के राजदूत एलेक्सी एलिस ने कहा, ''सोमवार, 11 अक्टूबर से, भारत से ब्रिटेन जाने वाले यात्रियों को कोविशील्ड या यूके के नियामक द्वारा मान्यता प्राप्त किसी वैक्सीन की दो ख़ुराक़ लगने के बाद क्वारंटीन करने की ज़रूरत नहीं है. अब ब्रिटेन जाना आसान और सस्ता होगा. यह अच्छी ख़बर है ''
माना जा रहा है कि ब्रिटेन के इस फ़ैसले के बाद भारत भी ब्रिटिश नागरिकों पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को वापस ले लेगा. हालांकि अब तक सरकार की ओर से इसपर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
हाल ही में भारत ने ब्रिटेन के ख़िलाफ़ जवाबी क़दम उठाते हुए भारत की यात्रा करने वाले ब्रिटिश नागरिकों के लिए भी कोविड-19 को लेकर सख़्ती बरतने का फ़ैसला किया था. इसके तहत भारत आने वाले सभी ब्रिटिश नागरिकों को, चाहे उनकी वैक्सीन की स्थिति जो भी हो, इनका पालन करना होगा.
ब्रिटिश नागरिकों को भारत यात्रा के लिए प्रस्थान से 72 घंटे पहले तक की आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट साथ रखनी होगी. भारत में उनके आगमन के बाद हवाईअड्डे पर उनकी कोविड-19 आरटीपीसीआर जांच की जाएगी. वैक्सीन की डोज़ लगे होने के बाद भी ब्रिटेन से आने वाले यात्रियों को 10 दिनों के लिए होम क्वारंटीन या उनके गंतव्य पर क्वारंटीन में रहना होगा. (bbc.com)