अंतरराष्ट्रीय
रामल्लाह, 11 जुलाई । फिलिस्तीन ने इजरायल पर गाजा पट्टी में नाकाबंदी को मजबूत करके मिस्र की मध्यस्थता से युद्धविराम को स्थिर करने के प्रयासों में बाधा डालने का आरोप लगाया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को एक बयान में, फिलीस्तीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि गाजा पट्टी में 20 लाख से ज्यादा लोग "इजरायल की अंतहीन नाकेबंदी के कारण भारी कीमत चुका रहे हैं, जिससे उनकी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है।"
बयान में कहा गया है, "इजरायल की नाकाबंदी ने फिलिस्तीनी नागरिकों के जीवन को तबाह कर दिया है और इजरायल की देरी और जबरन वसूली के दबाव में प्रदान की जाने वाली बुनियादी सेवाओं के स्तर में गिरावट आई है।"
2007 में इस्लामिक हमास मूवमेंट द्वारा तटीय एन्क्लेव पर कब्जा करने के ठीक बाद से इजरायल गाजा पट्टी पर कड़ी नाकाबंदी कर रहा है।
इजरायल ने हमास के नेतृत्व वाले आतंकवादी समूहों के साथ 11-दिवसीय लड़ाई के दौरान नाकाबंदी को कड़ा कर दिया, जो 21 मई को समाप्त हो गया। इस दौरान 250 से अधिक
फिलिस्तीनियों और 13 इजरायलियों की मौत हो गई।
बयान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने और 'अंतर्राष्ट्रीय और मानवीय कानूनों का पालन करने के लिए इजरायल को बाध्य करने के लिए' सभी आवश्यक उपाय करने का आह्वान किया।
9 जुलाई को कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र के संयुक्त राष्ट्र मानवीय समन्वयक लिन हेस्टिंग्स ने चेतावनी दी थी कि घिरे गाजा पट्टी में आपूर्ति लाने पर इजरायल का प्रतिबंध एन्क्लेव में महत्वपूर्ण क्षेत्रों को खतरे में डालता है। (आईएएनएस)
कोलंबो, 11 जुलाई | श्रीलंका सरकार ने पुष्टि की है कि मई में एक्सप्रेस पर्ल कंटेनर जहाज के जलने के कारण 7 जुलाई तक देश के समुद्र तटों पर 176 कछुए, चार व्हेल और 20 डॉल्फिन की मौत हो गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका के बंदरगाह और जहाजरानी मंत्री रोहिथा अबेगुणवर्धना ने संसद को बताया कि सरकारी विश्लेषक और पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान समुद्री जानवरों की मौत के कारणों का पता लगाने के लिए जांच कर रहे हैं।
वन्यजीव विभाग के अधिकारियों ने कहा कि मृत समुद्री जानवर हाल के हफ्तों में देश के दक्षिणी से पश्चिमी तट तक समुद्र तटों पर बह गए थे।
सिंगापुर के झंडे वाला एक्स-प्रेस पर्ल जहाज 15 मई को भारत के हजीरा बंदरगाह से 25 टन नाइट्रिक एसिड और कई अन्य रसायनों और सौंदर्य प्रसाधनों के साथ 1,486 कंटेनर ले जा रहा था।
जहाज ने 20 मई को कोलंबो बंदरगाह के करीब होने के दौरान एक संकटपूर्ण कॉल भेजा और जल्द ही आग लग गई।
श्रीलंका के समुद्री पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण ने कहा कि जलपोत के जलने से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय आपदा आई है क्योंकि समुद्र तटों को मलबे के कारण क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
कंटेनर जहाज में आग कैसे लगी, इसका पता लगाने के लिए फिलहाल आपराधिक जांच चल रही है। (आईएएनएस)
-इक़बाल अहमद
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा है कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अगर अच्छी नियत से निवेश किया होता, तो आज उन्हें जिस मायूसी का सामना करना पड़ रहा है वो नहीं करना पड़ता.
डॉन अख़बार के अनुसार, पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में ये बात कही.
अख़बार लिखता है कि मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा, "भारत की सारी कोशिश इस बात पर थी कि वो अफ़ग़ानिस्तान में अपने क़दम जमाकर पाकिस्तान को नुक़सान पहुँचा सके, लेकिन आज उनको वो तमाम निवेश डूबता नज़र आ रहा है."
इस इंटरव्यू में बाबर इफ़्तिख़ार ने अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर भी बात की. उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान शांति प्रक्रिया के बहुत से पहलू हैं और इस वक़्त यह एक अति महत्वपूर्ण पड़ाव पर है, और सभी इस बात को समझते हैं.
पाकिस्तान का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका सिर्फ़ एक सहयोगी की है, पाकिस्तान उस शांति प्रक्रिया के सफल होने की गारंटी नहीं दे सकता.
इस पूरे मामले में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सेना के प्रवक्ता का कहना था कि "पाकिस्तान ने पूरी नेक नियती से इस शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिश की है, जिसमें निश्चित तौर पर दूसरे साझेदार भी शामिल रहे हैं. लेकिन यह समझने की ज़रूरत है कि इस प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका एक सहायक की है और अभी भी पाकिस्तान यह काम कर रहा है, लेकिन इस प्रक्रिया की सफलता की गारंटी पाकिस्तान नहीं दे सकता."
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का शुरू से यही मानना रहा है कि इस शांति प्रक्रिया का नेतृत्व अफ़ग़ानिस्तान को ही करना है, पाकिस्तान इसके लिए कोशिश करता रहेगा.
अफ़ग़ानिस्तान के 85 फ़ीसद इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के तालिबान के दावे के बारे में उन्होंने कहा कि तालिबान बढ़ा-चढ़ाकर दावे कर रहा है, मगर उनके आकलन के अनुसार तालिबान इस समय अफ़ग़ानिस्तान के 45 से 50 फ़ीसद इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर चुका है.
सेना के प्रवक्ता ने कहा कि अगर भविष्य में तालिबान पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर सत्ता स्थापित करता है, तो यह अफ़ग़ानिस्तान की जनता का अपना फ़ैसला होगा और इसमें बाहर से उनको कोई निर्देश नहीं दे रहा है.
साथ ही उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की सेना अगर सफल होती है तो भी ये अफ़ग़ानिस्तान की जनता का फ़ैसला होगा.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का अपना कोई पसंदीदा गुट नहीं है और अफ़ग़ानिस्तान की जनता को यह तय करना है कि वो अपने देश में कैसी सरकार चाहती है.
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने कहा कि बंदूक़ भविष्य का फ़ैसला नहीं कर सकती.
उनका कहना था कि "बंदूक़ ने पिछले 20 सालों में फ़ैसला नहीं किया, तो आगे क्या फ़ैसला करेगी. तालिबान की हालिया सैन्य सफलता एक आक्रमणकारी कार्रवाई है, लेकिन हर हालत में फ़ैसला बैठकर ही करना होगा, नहीं तो इससे गृहयुद्ध की आशंका है जिसमें किसी की भी भलाई नहीं है." (bbc.com)
अफ़ग़ानिस्तान ने तालिबान के ख़िलाफ़ पाकिस्तान से मदद की गुहार लगाई है. अख़बार जंग के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री हनीफ़ अतमर ने पाकिस्तान के एक निजी न्यूज़ चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि तालिबान को रोकने में पाकिस्तान उनकी मदद करेगा.
उनका कहना था कि इस वक़्त अल-क़ायदा, तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और दूसरे समूह तालिबान के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि सारे दहशतगर्द एक जैसे होते हैं, कोई अच्छा-बुरा नहीं होता है.
उन्होंने पाकिस्तान से अपील की कि वो तालिबान को बातचीत के लिए तैयार करने में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करे.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति बहाल करना अफ़ग़ानिस्तानी नेतृत्व और क्षेत्रीय तथा वैश्विक शक्तियों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है.
उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से फ़ोन पर बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के मामले में पाकिस्तान और अमेरिका की सोच एक जैसी है.
क़ुरैशी ने कहा कि इतिहास से सबक़ सीखकर पाकिस्तान आगे की रणनीति बना रहा है.
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान का कोई 'फ़ेवरेट' नहीं है.
क़ुरैशी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वो तालिबान के शीर्ष नेतृत्व, अफ़ग़ानिस्तान सरकार और उत्तरी गठबंधन (नॉर्दर्न अलायंस) के नेताओं के संपर्क में हैं.
क़ुरैशी ने कहा कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री हनीफ़ अतमर को पाकिस्तान आने की दावत दी है.
उधर पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में हालात बहुत ख़राब हैं और पाकिस्तान के क़ाबू से बाहर हैं. (bbc.com)
पाकिस्तान में डेल्टा वेरिएंट के कई मामले सामने आये हैं. अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्रीय मंत्री और नेशनल कमांड एंड ऑपरेशन सेंटर (एसीओसी) के प्रमुख असद उमर ने कोरोना की चौथी लहर शुरू होने की चेतावनी दी है.
उन्होंने कहा कि अगर कोरोना के दिशा-निर्देशों का सख़्ती से पालन नहीं किया गया तो फिर कई पाबंदियाँ लगाई जाएंगी.
उन्होंने कहा कि दो हफ़्ते पहले ही इसकी चेतावनी दी गई थी, लेकिन अब तो चौथी लहर के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं.
उन्होंने कहा कि बकरीद से पहले और पाबंदियाँ लागू की जाएंगी. एक अगस्त से बग़ैर वैक्सीन लिए हवाई यात्रा की इजाज़त नहीं दी जाएगी.
इसके अलावा देश के अंदर ही पर्यटन पर जाने वाले 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लेना अनिवार्य होगा और वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट के बग़ैर यात्रा करने और होटल में बुकिंग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 10 जुलाई | फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन लेने के बाद लार में बनने वाले एंटीबॉडी के एक नए अध्ययन से पता चला है कि टीके की दूसरी खुराक और चिंता के नए रूपों से निपटने के लिए टीके को अपडेट करना महत्वपूर्ण है। अध्ययन से पता चला है कि वैक्सीन की दूसरी खुराक दिए जाने के बाद टीकाकरण के बाद शरीर में उत्पादित एंटीबॉडी और स्वास्थ्य सुरक्षा में काफी वृद्धि हुई है। यह दूसरी खुराक लेने के महत्व को दर्शाता है।
ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय में निकोल श्नाइडरहान-मारा सहित टीम ने यह भी जांच की कि क्या उसने अल्फा और बीटा वेरिएंट के खिलाफ सुरक्षा की पेशकश की है।
उन्होंने पाया कि अल्फा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने में कोई कमी नहीं आई, बल्कि बीटा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने में काफी कमी आई थी, जैसा कि यूरोपियन कांग्रेस ऑफ क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इंफेक्शियस डिजीज में प्रस्तुत अध्ययन से पता चलता है।
यह देखने के लिए कि विभिन्न प्रकारों के लिए टीके द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा कैसे बदल गई, टीम ने पहले टीकाकरण द्वारा उत्पन्न एंटीबॉडी की रूपरेखा तैयार की और फिर उनकी बेअसर करने की क्षमता की जांच की।
रक्त के भीतर घूमने वाले एंटीबॉडी के अलावा, उन्होंने रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में लार में एंटीबॉडी की मौजूदगी की जांच की।
ऐसा करने के लिए, उन्होंने पहले से विकसित परख को अनुकूलित किया जो रक्त में सार्स-कोव-2 और अन्य कोरोनावाइरस के खिलाफ मौजूद एंटीबॉडी को मापता है, विशेष रूप से तटस्थ एंटीबॉडी को देखने के लिए।
उन्होंने 23 टीकाकृत व्यक्तियों (आयु 26-58 वर्ष, 22 प्रतिशत महिला) से नमूने एकत्र किए, जिन्हें पहली और दूसरी खुराक के बाद फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन का टीका लगाया गया था।
नियंत्रण समूहों के लिए, टीम ने 35 संक्रमित रक्त दाताओं, 27 संक्रमित लार दाताओं और 49 गैर-संक्रमित लार दाताओं से नमूने एकत्र किए और विभिन्न आयु समूहों से महामारी शुरू होने से पहले व्यावसायिक रूप से प्राप्त रक्त और लार के नमूनों को भी नियंत्रित किया।
लार को देखने पर, उन्होंने देखा कि संक्रमित व्यक्तियों की तुलना में टीकाकरण वाले व्यक्तियों में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी मौजूद थे। यह सुझाव देते हुए कि टीकाकरण न केवल संक्रमित होने से सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि यदि आप संक्रमित हो जाते हैं, तो यह आपके द्वारा इसे दूसरों तक फैलने प्रसारित करने की संभावना को कम करता है। (आईएएनएस)
ढाका, 10 जुलाई | ढाका के पास एक औद्योगिक शहर में हाशेम ग्रुप की सहयोगी कंपनी साजीब ग्रुप की एक खाद्य प्रोसेसिंग फैक्ट्री में दो दिन पहले लगी भीषण आग में 52 लोगों की मौत हो गई। शनिवार को एक शिकायत के आधार पर आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार व्यक्तियों में हाशेम समूह के अध्यक्ष और मालिक अबुल हाशेम और उनके बेटे साजिब शामिल हैं।
नारायणगंज के पुलिस अधीक्षक मोहम्मद जैदुल आलम ने आईएएनएस को बताया कि उन्हें नारायणगंज की एक अदालत में ले जाया गया है।
ढाका रेंज पुलिस के डीआईजी हबीबुर रहमान के अनुसार, गिरफ्तार किए गए लोगों की पहचान साजीब ग्रुप के सीएमडी एमडी अबुल हाशेम के रूप में हुई है, जो फैक्ट्री का मालिक है। उनके चार बेटे हसीब बिन हाशेम, तारेक इब्राहिम, तौसीब इब्राहिम और तंजीम इब्राहिम, शाहन शाह आजाद, सीओओ, साजीब ग्रुप, हाशेम फूड्स लिमिटेड के उप महाप्रबंधक मामुनूर राशिद और सलाहुद्दीन, एक सिविल इंजीनियर और कंपनी के प्रशासनिक अधिकारी को गिरफ्तार किया।
राजधानी से 25 किलोमीटर पूर्व में एक औद्योगिक शहर नारायणगंज जिले के रूपगंज में शेजान जूस फैक्ट्री में गुरुवार दोपहर आग लग गई और लगभग 25 घंटे बाद तक जलती रही, जिसमें आग की लपटों में फंसे कम से कम 52 श्रमिकों की मौत हो गई।
इस बीच, बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने शनिवार को कहा, "किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा। हाशेम समूह के खाद्य प्रोसेसिंग कारखाने में श्रमिकों की सुरक्षा और सुरक्षा मानकों की लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।"
फैक्ट्री भवन के अपने दौरे के दौरान, खान ने यह भी कहा कि मृतक और घायल श्रमिकों के परिवार के सदस्यों को सरकार से वित्तीय सहायता मिलेगी।
इस घटना में लगभग 30 लोग घायल हो गए, जबकि सौ से अधिक लापता हो गए थे। श्रमिकों के रिश्तेदारों ने शुक्रवार को कहा था कि सैकड़ों परेशान रिश्तेदार और अन्य कार्यकर्ता जलती हुई इमारत के बाहर इंतजार कर रहे थे।(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 10 जुलाई | अमेरिकी राज्य मोंटाना के अधिकारियों ने कहा है कि इस सप्ताह की शुरुआत में भालू को वन्यजीव अधिकारियों ने गोली मार दी थी। अधिकारियों का मानना है कि इस सप्ताह की शुरुआत में भालू ने एक महिला पर्यटक की हत्या कर दी थी। मोंटाना डिपार्टमेंट ऑफ फिश, वाइल्डलाइफ एंड पार्क्स ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि भालू ओवांडो शहर से दो मील से भी कम दूरी पर मारा गया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, दो दिन पहले एजेंसी द्वारा जारी किए गए हमले के विवरण से संकेत मिलता है कि भालू मंगलवार की सुबह ओवांडो में प्रवेश कर गया था।
भालू ने बाद में पीड़िता को उसके टेंट से बाहर निकाला और उसकी हत्या कर दी।
विशेषज्ञों ने गुरुवार को दूसरे कॉप में जाल बिछाया। भालू वहां आया और उसे गोली मार दी गई।
एजेंसी के अनुसार, भालू को गोली मारने में सहायता के लिए उन्होंने नाइट विजन तकनीक का इस्तेमाल किया।
भालू विशेषज्ञों ने इस सप्ताह की शुरूआत में कहा था कि उनका मानना है कि भालू लगभग 181 किलोग्राम का नर था।
अधिकारियों ने त्रासदी के बाद कई दिनों तक हेलीकॉप्टर और जमीन पर भालू की तलाश की है।
मोंटाना अखबार द ग्रेट फॉल्स ट्रिब्यून ने बताया कि हमले के शिकार की पहचान कैलिफोर्निया के 65 वर्षीय लिआ डेविस लोकान के रूप में हुई है। (आईएएनएस)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 10 जुलाई | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने लॉस एंजिल्स के मेयर एरिक गासेर्टी, उनके करीबी राजनीतिक सहयोगी और इंडो-पैसिफिक अनुभव के साथ नौसेना के पूर्व खुफिया अधिकारी को भारत में राजदूत के रूप में नामित किया है।
व्हाइट हाउस ने शुक्रवार को यह भी घोषणा की कि बाइडन एक करियर राजनयिक पीटर हास को बांग्लादेश में राजदूत के रूप में नामित कर रहे हैं।
उन दोनों को सीनेट द्वारा अपने पदों पर पुष्टि करनी होगी।
गासेर्टी ने ट्वीट किया, "क्या मुझे पक्का किया जाना चाहिए, मैं अपनी नई भूमिका में इस शहर के लिए वही ऊर्जा, प्रतिबद्धता और प्यार लाऊंगा और साझेदारी और कनेक्शन बनाऊंगा जो विश्व मंच पर लॉस एंजिल्स की जगह को मजबूत करने में मदद करेगा।"
वैश्विक भारतीय प्रवासी संगठन इंडियास्पोरा के संस्थापक एमआर रंगास्वामी ने कहा, "यह अमेरिका-भारत संबंधों के महत्व को बताता है कि राष्ट्रपति बाइडन का एक करीबी और भरोसेमंद सहयोगी दिल्ली में अमेरिका का बिंदु व्यक्ति हो सकता है।"
नई दिल्ली के राजदूत पद को एक महत्वपूर्ण पद माना जाता है और अधिकांश अमेरिकी राजदूत राजनीतिक रूप से नियुक्त किए गए हैं।
गासेर्टी, बाइडन के चुनाव अभियान के सह-अध्यक्ष थे और उन्होंने उस पैनल में काम किया जिसने उम्मीदवारों को अपना उपाध्यक्ष बनाया।
वाशिंगटन की इंडो-पैसिफिक रणनीति के साथ इस क्षेत्र में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना के साथ, गासेर्टी को यूएस नेवी रिजर्व में एक खुफिया अधिकारी के रूप में यूएस पैसिफिक फ्लीट कमांडर और डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी में 12 साल का अनुभव है।
गासेर्टी जलवायु कार्रवाई के चैंपियन रहे हैं, बाइडन के एजेंडे का एक स्तंभ, जिसे उनसे भारत में बढ़ावा देने की उम्मीद की जाएगी।
व्हाइट हाउस ने कहा, "वह सी40 शहरों के वर्तमान अध्यक्ष हैं। दुनिया के 97 सबसे बड़े शहरों का एक नेटवर्क जो साहसिक जलवायु कार्रवाई कर रहा है - (और) ने भारत में संगठन के जुड़ाव और विस्तार के साथ-साथ सी40 की वैश्विक प्रतिक्रिया का सर्वोत्तम प्रथाओं और संसाधनों को साझा करने के माध्यम से कोविड महामारी का नेतृत्व किया है।"
नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई सी40 शहरों के सक्रिय सदस्य हैं।
नई दिल्ली में, गासेर्टी को भारत की क्षेत्रीय शक्ति और भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख रक्षा सहयोगी के रूप में भारत की भूमिका को समेटने की वाशिंगटन की प्राथमिकता को समेटने के चुनौतीपूर्ण काम का सामना करना पड़ेगा, जहां यह व्यापार, मानवाधिकारों के मुद्दों और भारत की खरीद पर मतभेदों के साथ बीजिंग के आक्रामक रुख का सामना करता है। एक रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली जिसका अमेरिका विरोध करता है।
बाइडन ने गैरेटी को एक कैबिनेट पद की पेशकश की, जिसे उन्होंने उस समय यह कहते हुए ठुकरा दिया कि 'मेरे शहर को अब मेरी जरूरत है।' जब मई में नई दिल्ली की नौकरी के लिए उनका नाम सामने आया, तो उनके प्रवक्ता ने कहा, 'हम कोविड महामारी को समाप्त करने और शहर के लिए न्याय बजट पारित करने पर 100 प्रतिशत ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।'
शहर ने तब से 10.6 बिलियन डॉलर का बजट अपनाया है और कोविड -19 महामारी को नियंत्रण में लाया है।
लेकिन गासेर्टी, जो 2013 में देश के दूसरे सबसे बड़े शहर के मेयर के रूप में पहली बार दो बार चुने गए थे, को कानून द्वारा तीसरे कार्यकाल के लिए चलने से रोक दिया गया है, जब उनका कार्यकाल अगले साल समाप्त हो जाएगा।
एक सफल अंतर्राष्ट्रीय अभियान के साथ लॉस एंजिल्स के लिए 2028 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक जीतना मेयर के रूप में उनकी प्रमुख उपलब्धियों में से एक था।
गासेर्टी के पास कोलंबिया विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय मामलों में मास्टर डिग्री है और वह रोड्स स्कॉलर थे। उन्होंने दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों और ऑक्सिडेंटल कॉलेज में कूटनीति पढ़ाया है। उनका अकादमिक शोध दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में राष्ट्रवाद पर केंद्रित था।
वह यहूदी धर्म के है और मैक्सिकन मूल के एक लातीनो है जो जातीय संगठनों में महापौरों के लातीनो गठबंधन के संस्थापक अध्यक्ष और लातीनो निर्वाचित और नियुक्त अधिकारियों के राष्ट्रीय संघ के बोर्ड के सदस्य के रूप में सक्रिय रहे हैं।
अंतिम अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर थे, जो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की राजनीतिक नियुक्ति थे, जिन्होंने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था जब ट्रम्प ने पद छोड़ दिया था।
तब से नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के दो कार्यवाहक प्रमुख रह चुके हैं। डैनियल स्मिथ, जिन्हें अप्रैल में प्रभारी डी'एफेयर नियुक्त किया गया था, उनकी सेवानिवृत्ति पर एक अन्य वरिष्ठ कैरियर राजनयिक अतुल केशप द्वारा सफल हुए, जिन्हें जून में नामित किया गया था।
नई दिल्ली में 23 राजदूतों में से पंद्रह राजनीतिक नियुक्त किए गए हैं और इसमें पूर्व गवर्नर रिचर्ड फ्रैंक सेलेस्टे और चेस्टर बाउल्स (जिन्होंने दो बार सेवा की), कांग्रेस के पूर्व सदस्य जैसे केनेथ कीटिंग, शर्मन कूपर और विलियम सैक्सबे और सार्वजनिक बुद्धिजीवी जॉन केनेथ जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व शामिल हैं। गैलब्रेथ और डैनियल पैट्रिक मोयनिहान, जो एक सीनेटर भी रह चुके थे।
इस महीने की शुरूआत में गासेर्टी लॉस एंजिल्स बेसबॉल टीम, डोजर्स के साथ व्हाइट हाउस के रिसेप्शन में उनके पिछले साल की वल्र्ड सीरीज चैंपियनशिप जीत का सम्मान करने के लिए गए थे।
उनकी मेजबानी करने वाले बाइडन ने मजाक में कहा, 'मुझे नहीं पता, यार। मुझे यकीन नहीं है कि अगर आप दो बार जीतते हैं तो मैं गासेर्टी को संभाल पाऊंगा। मेरा मतलब है, यह कठिन होने वाला है - वास्तव में कठिन।' अगर ऐसा होता, तो प्रतिद्वंद्वी फिलाडेल्फिया टीम, फिलीज के प्रशंसक, बाइडन को अब गासेर्टी से पुट-डाउन नहीं झेलना पड़ता।
ढाका में, हास एक अन्य करियर राजनयिक अर्ल मिलर की जगह लेंगे, जिन्होंने 2018 में कार्यभार संभाला था।
हास ने दक्षिण एशिया में मुंबई में महावाणिज्य दूत के रूप में काम किया।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मार्शल फेलो के रूप में अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले हास ने विदेश विभाग में व्यापार और व्यापार कूटनीति में विशेषज्ञता हासिल की है।
वह राज्य के कार्यवाहक सहायक सचिव और साथ ही आर्थिक और व्यावसायिक मामलों के प्रमुख उप सहायक सचिव हैं।
इससे पहले, वह व्यापार नीति और वार्ता के लिए एक वरिष्ठ सलाहकार और उप सहायक सचिव और पेरिस में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन में अमेरिका के उप स्थायी प्रतिनिधि रह चुके हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 10 जुलाई | फेसबुक ने अपने प्लेटफॉर्म को साफ करने के अपने नवीनतम प्रयास में अपने मुख्य नेटवर्क और इंस्टाग्राम से 5,381 दुर्भावनापूर्ण अकाउंट और ग्रुप और पेजों को हटा दिया है। जून में, कंपनी ने सात देशों से आठ नेटवर्क हटा दिए। इन अभियानों में से अधिकांश ने अपने ही देशों के लोगों को लक्षित किया।
फेसबुक ने जून में 2,784 अकाउंट, 206 इंस्टाग्राम अकाउंट, 2,249 पेज और 142 ग्रुप को हटा दिया।
फेसबुक ने इराक और ईरान में 675 फेसबुक अकाउंट, 16 पेज और 10 इंस्टाग्राम अकाउंट हटा दिए, जो इराक में दर्शकों को लक्षित करते थे और इराक में अल-मारेफ रेडियो और तेहरान में एक आईटी फर्म अल्बोर्ज एनालिसिस एंड डेवलपमेंट से जुड़े थे।
सोशल नेटवर्क ने एक बयान में कहा, "हमने इस गतिविधि को क्षेत्र में संदिग्ध समन्वित अप्रमाणिक व्यवहार की अपनी आंतरिक जांच के हिस्से के रूप में पाया।"
फेसबुक ने मेक्सिको में 1,621 फेसबुक अकाउंट, 1,795 पेज, 75 ग्रुप और 93 इंस्टाग्राम अकाउंट दिए, जो कैंपेचे राज्य पर केंद्रित थे और उस राज्य के व्यक्तियों से जुड़े थे, जिनमें मेक्सिको में एक राजनीतिक रणनीति और जनसंपर्क फर्म वार्गक्रॉप के लिए काम करने वाले लोग भी शामिल थे।
कंपनी ने कहा, "हमने इस गतिविधि को इस क्षेत्र में संदिग्ध समन्वित अप्रमाणिक व्यवहार की अपनी आंतरिक जांच के हिस्से के रूप में पाया और मैक्सिकन चुनावों से पहले इसे हटा दिया।"
फेसबुक ने आगे कहा "जब हमें घरेलू, गैर-सरकारी अभियान मिलते हैं जिनमें खातों के समूह और पेज शामिल होते हैं जो लोगों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं कि वे कौन हैं और नकली खातों पर भरोसा करते हुए वे क्या कर रहे हैं, तो हम इस गतिविधि में सीधे तौर पर शामिल अप्रमाणिक और प्रामाणिक अकाउंट, पेज और ग्रुप दोनों को हटा देते हैं।" (आईएएनएस)
मियामी, 10 जुलाई | फ्लोरिडा में एक 12 मंजिला आवासीय इमारत के आंशिक रूप से गिरने से मरने वालों की संख्या बढ़कर 78 हो गई है, जबकि मलबे में 14 और लोगों के अवशेष मिले हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मियामी-डेड काउंटी की मेयर डेनिएला लेविन कावा के हवाले से शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा कि 62 लोग ऐसे हैं, जो लापता हैं।
कावा ने कहा कि मृतकों में 47 की पहचान कर ली गई है।
यह हादसा 24 जून को हुआ था।
मियामी-डेड फायर रेस्क्यू असिस्टेंट फायर चीफ ऑफ ऑपरेशंस रेड जदल्लाह ने इसे 'पैनकेक' पतन के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि जिस तरह से इमारत ढह गई, उससे लोगों के बचने की सबसे कम संभावना थी।
फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस ने इस सप्ताह की शुरूआत में कहा था कि यह स्पष्ट नहीं है कि खामियां इमारत, इसके निर्माण या रखरखाव में थीं। (आईएएनएस)
-सारा अतीक़
पाकिस्तान में बांझपन के इलाज के लिए आईवीएफ़ की शुरुआत 1984 में हुई थी और मुल्क में इसकी शुरुआत करने वाले थे डॉक्टर राशिद लतीफ़ ख़ान. जिन्होंने लाहौर में पाकिस्तान के पहले आईवीएफ़ सेंटर 'लाइफ़' की स्थापना की थी.
पांच साल के उनके लगातार प्रयास के बाद साल 1989 में पाकिस्तान के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म संभव हुआ.
ब्रिटेन में जब दुनिया का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा हुआ था, तो कुछ लोगों ने इसे सच मानने से इनकार कर दिया, तो कुछ ने इसकी आलोचना की थी.
भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म कराने वाले डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने तो लगातार आलोचना और उत्पीड़न से परेशान होकर अंत में आत्महत्या ही कर ली थी.
उनकी कहानी किसी और दिन बताएंगे, लेकिन अभी बात करते हैं डॉक्टर राशिद की जिनकी यात्रा बिल्कुल भी आसान नहीं थी और उन्हें भी कमोबेश इसी तरह के रवैयों का सामना करना पड़ा.
आज पाकिस्तान में हर साल हज़ारों बच्चे आईवीएफ़ से पैदा होते हैं लेकिन जब डॉक्टर राशिद ने इस तकनीक को पाकिस्तान लाने के बारे में सोचा, उस समय पूरी दुनिया में इसके बारे में लगभग कोई जागरूकता और संसाधन नहीं थे.
उन्होंने इसके लिए ऑस्ट्रेलिया को एक पत्र लिखा, जहां दुनिया के तीसरे टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था और उनसे इस संबंध में प्रशिक्षण लेने के लिए आवेदन किया.
उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया और डॉक्टर राशिद कोर्स करने के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए. जब वो ऑस्ट्रेलिया से वापस लौटे, तो उन्होंने एक आईवीएफ़ केंद्र की स्थापना कर इसकी शुरुआत की, लेकिन पांच सालों तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली.
हालांकि, डॉक्टर राशिद के मुताबिक़ उन्हें इस इलाज के लिए कभी भी लोगों की तलाश नहीं करनी पड़ी क्योंकि बच्चे की चाहत रखने वाले जोड़े आस लिए उनके पास आते रहे.
वह कहते हैं, "मैंने हमेशा अपने मरीज़ों को सच बताया कि हमें इस इलाज में सफलता नहीं मिल रही है, लेकिन मेरे पास आने वाले हर जोड़े को मुझ पर और मेरी टीम पर पूरा भरोसा था, इसलिए वे कहते थे कि डॉक्टर साहब बिस्मिल्लाह कीजिये हमारा हो जायेगा."
पाकिस्तान में आईवीएफ़ से पहला गर्भधारण
डॉक्टर राशिद बताते हैं कि जब इस इलाज से पहला गर्भ ठहरा, तो उनकी टीम के एक सदस्य का भाई पाकिस्तान के एक प्रमुख अख़बार में काम करता था, इसलिए उन्होंने उस अख़बार में 'पाकिस्तान में आईवीएफ़ से पहला गर्भधारण हो गया है' शीर्षक से ख़बर छपवा दी.
इस ख़बर के छपने के बाद दस मौलवियों ने इसके ख़िलाफ़ मीडिया में बयान जारी कर इसे 'हराम' और अमेरिकी साज़िश बताया.
लेकिन इस गर्भधारण को कुछ ही समय बाद 'एक्टोपिक' गर्भ होने की वजह से गर्भपात कराना पड़ा.
जब आईवीएफ़ के ज़रिये दूसरी महिला को गर्भ ठहरा और कुछ महीने गुज़र गए, तो डॉक्टर राशिद ने आलोचना कर चुके मौलवियों से एक-एक कर मिलकर पूछा, कि क्या वो आईवीएफ़ प्रक्रिया के बारे में जानते भी हैं?
वो बताते हैं, "उस समय पाकिस्तान में बाईपास नया-नया शुरू हुआ था, तो मैंने उनसे कहा कि अगर पुरुष की दिल की नसों में मौजूद किसी विकार को दूर करने के लिए हार्ट का बाईपास किया जा सकता है, तो महिला के गर्भाशय में मौजूद विकार को दूर करने के लिए भी तो बाईपास किया जा सकता है? जिस पर इन मौलवियों को मेरी बात समझ आ गई."
जब पाकिस्तान के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म का दिन नज़दीक आया तो इसके लिए ख़ास इंतज़ाम किए गए. बच्चे के जन्म के लिए 6 जुलाई 1989 का दिन चुना गया और उसी दिन पांच और डिलीवरी करवाई गईं ताकि लोग आईवीएफ़ पद्धति वाले दंपत्ति को तंग न करें.
अगले दिन जब अख़बार में ये ख़बर आई कि पाकिस्तान का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा हो गया है, तो बच्चे के पिता डॉक्टर के पास आए और कहा कि डॉक्टर साहब ये ख़बर पढ़ कर मेरे पिता (बच्चे के दादा) पूछ रहे थे, कि ये हराम काम तुमने तो नहीं किया?
आईवीएफ़ क्या है?
किसी पुरुष या महिला में दोष या जटिलता के कारण, जब पुरुष का शुक्राणु महिला के एग्स तक नहीं पहुंच पाता है तो इसकी वजह से प्राकृतिक तरीके से बच्चे का जन्म संभव नहीं हो पाता है.
ऐसे में महिला के एग्स और पुरुष के शुक्राणु को उनके शरीर से बाहर निकाल कर लेबोरेटरी में मिला दिया जाता है. इसके दो दिन बाद इसे महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है, जहां यह सामान्य गर्भ की तरह विकसित होता है और नौ महीने बाद बच्चे का जन्म होता है.
हालांकि, यह आईवीएफ़ की केवल एक किस्म है. इसके अलावा, 'सरोगेसी', 'एग डोनेशन' और 'स्पर्म डोनेशन' के ज़रिये निःसंतान दंपत्ति भी संतान का सुख प्राप्त कर सकते हैं.
सरोगेसी की प्रक्रिया में एक पुरुष के शुक्राणु और महिला के एग को मिलाकर तीसरी महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है, जहां नौ महीने तक विकसित होने के बाद बच्चे का जन्म होता है.
इसके अलावा, यदि किसी पुरुष के शुक्राणु या महिला के एग की गुणवत्ता एक स्वस्थ बच्चा पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, तो इसके बजाय किसी डोनर के एग या शुक्राणु से भी बच्चे का जन्म संभव है.
यानी अगर पत्नी के एग की गुणवत्ता अच्छी नहीं है तो पति के शुक्राणु के साथ किसी और महिला का एग मिलाकर पत्नी के गर्भाशय में या दूसरी महिला (सरोगेट मदर) के गर्भाशय में पलने के लिए रखा जा सकता है.
इसी तरह यदि किसी पुरुष के शुक्राणु की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, तो पत्नी के एग्स को दूसरे पुरुष के शुक्राणु के साथ मिलाया जा सकता है.
आईवीएफ़ से 'बेटा' या 'बेटी' चुनना संभव है?
आईवीएफ़ के ज़रिये पैदा होने वाले बच्चे के लिंग का चयन भी संभव है. विशेषज्ञों के मुताबिक़ पाकिस्तानी समाज में ज़्यादातर लोग बेटा चाहते हैं और अक्सर इस इच्छा को पूरा करने के लिए एक के बाद एक बेटी पैदा करने और एक से ज्यादा शादियां करने से भी नहीं कतराते.
इसलिए, पाकिस्तान में 'फैमिली स्पेसिंग' के तहत, आईवीएफ़ करवाने वाले दंपति बच्चे के लिंग का चयन कर सकते हैं.
दुनिया के अन्य देशों में भी आईवीएफ़ से पैदा होने वाले बच्चे के लिंग का चयन किया जा सकता है, लेकिन यह विकल्प माता-पिता की व्यक्तिगत पसंद या नापसंद पर आधारित नहीं होता है. यह विकल्प तब होता है जब माता-पिता में मौजूद किसी जेनेटिक बीमारी के बच्चे में आने का ख़तरा हो.
कुछ ऐसी जेनेटिक बीमारी होती है जिनका ख़तरा लड़कियों में अधिक होता है इसलिए उनके आधार पर बेटे और बेटी का चयन किया जाता है.
क्या पाकिस्तानी क़ानून और इस्लाम में आईवीएफ़ की अनुमति है?
जब 1978 में दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ तब मिस्र की अल-अज़हर यूनिवर्सिटी ने 1980 में एक फ़तवा जारी किया था. फ़तवे में कहा गया था कि अगर आईवीएफ़ में इस्तेमाल किए गए एग्स पत्नी और शुक्राणु पति के हैं, तो पैदा होने वाला बच्चा जायज़ और शरीयत के अनुसार होगा.
इसलिए, जब पाकिस्तान में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ तो बहुत से मौलवियों ने इस पर व्यक्तिगत तौर पर आपत्तियां जताई थीं लेकिन अल-अज़हर यूनिवर्सिटी के इस फ़तवे के आधार पर, 2015 तक राज्य स्तर पर आईवीएफ़ के संबंध में कोई आपत्ति सामने नहीं आई थी.
लेकिन फिर 2015 में आईवीएफ़ से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी के मुद्दे पर एक जोड़े ने फेडरल शरिया कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
पाकिस्तान मूल के अमेरिकी डॉक्टर फ़ारूक़ सिद्दीक़ी और उनकी पत्नी कई सालों से निःसंतान थे. इसलिए उन्होंने अख़बार में विज्ञापन दिया कि उन्हें बच्चा पैदा करने के लिए किराए की कोख की ज़रूरत है यानी उनके होने वाले बच्चे की सरोगेट मां बने और इसके लिए उस महिला को मुआवज़ा भी दिया जाएगा.
इस विज्ञापन को पढ़ने के बाद, फरज़ाना नाहीद ने डॉक्टर फ़ारूक़ सिद्दीक़ी से संपर्क किया और उनके बच्चे की मां बनने की इच्छा व्यक्त की. डॉक्टर फ़ारूक़ का दावा है कि उन्होंने नाहीद के साथ एक मौखिक समझौता किया था कि वह उनके बच्चे को जन्म देगी जिसके लिए उसे मुआवज़ा दिया जाएगा.
डॉक्टर फ़ारूक़ के मुताबिक, उन्होंने फरज़ाना को डॉक्टर की जांच और इलाज के लिए 25 हज़ार रुपये दिए.
फरज़ाना ने नौ महीने बाद एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन बेटी को जन्म देने के बाद उन्होंने डॉक्टर फ़ारूक़ और उनकी पत्नी को बच्चा देने से इनकार कर दिया और दावा किया कि वह डॉक्टर फ़ारूक़ की पत्नी हैं, इसलिए डॉक्टर फ़ारूक़ हर महीने उन्हें बच्ची का खर्चा दें.
जबकि डॉक्टर फ़ारूक़ का कहना था कि परिवार वालों की आलोचना से बचने के लिए उन्होंने फरज़ाना से शादी करने का नाटक किया था.
सरोगेसी गैरक़ानूनी घोषित
फेडरल शरिया कोर्ट ने 2017 में केस का फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि आईवीएफ़ पाकिस्तानी क़ानून और शरिया के अनुसार तभी सही माना जायेगा जब इसमें इस्तेमाल किये गए एग और गर्भाशय दोनों पत्नी के हों और शुक्राणु पति का हो.
शरिया कोर्ट ने इस फ़ैसले में डोनेशन के एग्स और शुक्राणुओं से पैदा हुए बच्चे को नाजायज़ माना. साथ ही सरोगेसी को भी गैरक़ानूनी घोषित कर दिया था.
अदालत ने इस संबंध में और नियम इसी आधार पर बनाने के हुक्म जारी किए.
हालांकि, ईरान और लेबनान में, डोनेट किए गए एग से पैदा होने वाले बच्चे को वैध माना गया है.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज़ के अनुसार, पाकिस्तान में 22 प्रतिशत जोड़ो में बांझपन की समस्या है, जिसका मतलब है कि पांच जोड़ों में से एक जोड़ा प्राकृतिक तरीके से बच्चा पैदा करने में असमर्थ है और उन्हें इसके लिए मदद की ज़रूरत है.
डॉक्टर राशिद लतीफ़ का कहना है कि हालांकि, बांझपन की संभावना पुरुषों और महिलाओं में बराबर होती है, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में बच्चे न होने के लिए ज़्यादातर पत्नियों को दोषी ठहराया जाता है और पुरुष अपना टेस्ट कराने से हिचकते हैं. (bbc.com)
सऊदी अरब ने इस साल हज करने के लिए, जिन 60 हज़ार लोगों के नाम को चुना है, उनकी लिस्ट जारी कर दी गई है.
सऊदी अरब के हज और उमरा मंत्रालय के हवाले सऊदी प्रेस एजेंसी ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी.
अल अरबिया न्यूज़ के मुताबिक़ मंत्रालय ने कहा है कि हज के लिए जिन लोगों को इजाज़त दी गई है, उनमें 150 देशों के लोग हैं. ये लोग सऊदी अरब में रहते हैं. इस बार जो लोग हज चाहते थे, उनके आवेदन दाखिल करने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल की सुविधा दी गई थी.
कुल 558,270 लोगों ने अपना आवेदन भरा था. आवेदकों में 59 फ़ीसदी पुरुष और 41 फ़ीसदी महिलाएं थीं. हज के लिए योग्य उम्मीदवारों के चयन के समय कई बातों का ध्यान रखा गया है. जैसे उनकी उम्र और क्या वे इससे पहले कभी हज गए हैं या नहीं.
कोरोना महामारी को देखते हुए जून में सऊदी अरब ने ये एलान किया था कि वो इस साल के हज के लिए केवल 60 हज़ार लोगों को ही इजाज़त होगी और ये इजाज़त भी केवल उन्हीं लोगों को दी जाएगी तो सऊदी अरब में रह रहते हैं.
हज और उमरा मंत्रालय ने हज जाने के लिए चुने गए सभी लोगों से कोविड वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने की अपील की है. ये लोग बिना पहले से अपॉइंटमेंट लिए वैक्सीन की दूसरी खुराक ले सकेंगे.
हज और उमरा मंत्रालय ने ये स्पष्ट किया है कि श्रद्धालुओं को इस्लामी कैलंडर के आख़िरी महीने धुल-हिज्जाह की सात और आठ तारीख़ को बस से मक्का ले जाया जाएगा.
हज क्या है?
मुसलमानों का ऐसा मानना है कि इस्लाम के आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद (570-632) को अल्लाह ने कहा कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएँ और वहाँ केवल अल्लाह की इबादत होने दें. साल 628 में पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की.
इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पाँचवाँ स्तंभ है. सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएँ.
मुसलमानों के लिए इस्लाम के पाँच स्तंभ काफ़ी मायने रखते हैं. ये स्तंभ पाँच संकल्प की तरह हैं. इस्लाम के मुताबिक़ जीवन जीने के लिए ये काफ़ी अहम हैं.
जब पैगंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए.
मुसलमान मानते हैं कि इसी दौरान पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत निर्माण किया. इसी को काबा कहा जाता है.
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने को हर साल यहाँ मुसलमान आते हैं.
हर बरस कितने लोग मक्का जाते हैं?
साल 2016 में कुल 83 लाख लोग हज के लिए सऊदी अरब आए थे. इनमें से साठ लाख से ज्यादा लोग सउदी अरब के धार्मिक केंद्र अल-उमरा भी गए.
पिछले दशक में औसतन हर बरस 25 लाख मुसलमानों ने हज किया. इससे जुड़ी दो बातें हैं जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है.
एक तो ये कि साल के एक ख़ास समय में ही हज यात्रा की जाती है और दूसरी बात ये सऊदी अरब ने हज आने वाले लोगों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए हरेक देश का एक कोटा तय कर रखा है.
हज जाने वालों की एक बड़ी तादाद सऊदी अरब में ही रह रहे लोगों की भी होती है. इसमें कोई शक नहीं कि उनमें से कई लोग अलग-अलग देशों के नागरिक होते हैं.
पिछले दस सालों में सऊदी अरब के अंदर से हज करने वाले मुसलमानों की संख्या दूसरे देशों से आने वाले तीर्थयात्रियों की तुलना में तकरीबन आधी रहती है.
दुनिया भर में मुसलमानों की जितनी आबादी है, उसका महज दो फीसदी ही सऊदी अरब में रहते हैं. लेकिन पिछले दस साल से हाजी मुसलमानों का एक तिहाई इस मुल्क में रहता है.
इसकी वजहें भी हैं, यहां से मक्का करीब है, लोग अपनी धार्मिक ज़िम्मेदारी समझते हैं और यहां के लोगों के लिए हज करना सस्ता पड़ता है.
हज कब-कब रद्द हुआ?
सऊदी अरब की सरकार ने पिछले साल भी कोरोना वायरस को मद्देनज़र रखते हुए हज करने वालों की संख्या सीमित रखने का फ़ैसला किया था और सिर्फ़ सऊदी अरब में रहने वाले लोगों को हज करने की अनुमति दी थी.
इतिहास में पहली बार हज 629 ई. (छह हिजरी, इस्लामिक कैलेंडर) को मोहम्मद साहब के नेतृत्व में अदा किया गया था. इसके बाद हर साल हज अदा होता रहा.
हालांकि, मुसलमान सोच भी नहीं सकते कि किसी साल हज नहीं हो सकेगा. लेकिन इसके बावजूद इतिहास में लगभग 40 बार ऐसा हुआ है जब हज अदा ना हो सका और कई बार 'ख़ाना ए काबा' हाजियों के लिए बंद रहा.
इसके कई कारण थे जिनमें बैतुल्लाह (पवित्र स्थल) पर हमले से लेकर राजनैतिक झगड़े, महामारी, बाढ़, चोर और डाकुओं द्वारा हाजियों के क़ाफ़िले लूटना और ख़राब मौसम भी शामिल है.
सन 865: अल-सफ़ाक का हमला: सन 865 में स्माइल बिन यूसुफ़ ने, जिन्हें अल-सफ़ाक के नाम से जाना जाता है, उन्होंने बग़दाद में स्थापित अब्बासी सल्तनत के ख़िलाफ़ जंग का एलान किया और मक्का(पवित्र स्थल) में अरफ़ात के पहाड़ पर हमला किया.
उनकी फ़ौज के इस हमले में वहां मौजूद हज के लिए आने वाले हज़ारों श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इस हमले की वजह से उस साल हज न हो सका.
सन 930: क़रामिता का हमला: इस हमले को सऊदी शहर मक्का पर सबसे घातक हमलों में से एक माना जाता है. सन 930 में क़रामिता समुदाय के मुखिया अबु-ताहिर-अलजनाबी ने मक्का पर एक हमला किया इस दौरान इतने क़त्ल और लूटमार हुई कि कई साल तक हज ना हो सका.
सन 983: अब्बासी और फ़ातिमी ख़िलाफ़तों में झगड़े: हज सिर्फ़ लड़ाइयों और जंगों की वजह से रद्द नहीं हुआ बल्कि यह कई साल राजनीति की भेंट भी चढ़ा. सन 983 ई. में इराक़ की अब्बासी और मिस्र की फ़ातिमी ख़िलाफ़तों के मुखियाओं के बीच राजनीतिक कशमकश रही और मुसलमानों को इस दौरान हज के लिए यात्रा नहीं करने दी गई. इसके बाद हज 991 में अदा किया गया.
बीमारियों और महामारियों की वजह से हज रद्द: शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 357 हिजरी में एक बड़ी घटना की वजह से लोग हज ना कर सके और यह घटना असल में एक बीमारी थी. रिपोर्ट में इब्ने ख़तीर की किताब 'आग़ाज़ और इख़्तिताम' का हवाला देकर लिखा गया है कि अलमाशरी नामक बीमारी की वजह से मक्का में बड़ी संख्या में मौतें हुई.
बहुत से श्रद्धालु रास्ते में ही मर गए और जो लोग मक्का पहुंचे भी तो वो हज की तारीख़ के बाद ही वहां पहुंच सके. सन 1831 में भारत से शुरू होने वाली एक महामारी की वजह से मक्का में लगभग तीन-चौथाई श्रद्धालुओं की मौत हुई. यह लोग कई महीने की कठिन यात्रा करके हज के लिए मक्का आए थे.
इसी तरह 1837 से लेकर 1858 में 2 दशकों में 3 बार हज को रद्द किया गया जिसकी वजह से श्रद्धालु मक्का की यात्रा नहीं कर सके. 1846 में मक्का में हैज़े की बीमारी से लगभग 15 हज़ार लोगों की मौत हुई. यह महामारी मक्का में सन 1850 तक फैलती रही लेकिन इसके बाद भी कभी-कभार इससे मौतें होती रहीं.
रास्ते में डाकुओं का डर और हज के बढ़ते हुए ख़र्चे: सन 390 हिजरी (1000 ई. के आसपास)में बढ़ती हुई महंगाई और हज की यात्रा के ख़र्चों में बहुत ज़्यादा वृद्धि की वजह से लोग हज पर न जा सके और इसी तरह 430 हिजरी में इराक़ और खुरासान से लेकर शाम और मिस्र के लोग हज पर नहीं जा सके.
शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार 492 हिजरी में मुस्लिम दुनिया में आपस में जंगों की वजह से मुसलमानों को बहुत नुक़सान हुआ जिससे हज की पवित्र यात्रा भी प्रभावित हुई.
654 हिजरी से लेकर 658 हिजरी तक हेजाज़ के अलावा किसी और देश से हाजी मक्का नहीं पहुंचे. 1213 हिजरी में फ़्रांसिसी क्रांति के दौरान हज के क़ाफ़िलों को सुरक्षा और सलामती की वजह से रोक दिया गया.
जब कड़ाके की सर्दी ने हज रोक दिया: सन 417 हिजरी को इराक़ में बहुत अधिक सर्दी और बाढ़ की वजह से श्रद्धालु मक्का की यात्रा न कर सके. इस तरह बहुत ठन्डे मौसम की वजह से हज को रद्द करना पड़ा था.
किस्वा पर हमला: सन 1344 हिजरी में ख़ाना-ए क-बा के गिलाफ़, किसवा को मिस्र से सऊदी अरब लेकर जाने वाले क़ाफ़िले पर हमला हुआ जिसकी वजह से मिस्र का कोई हाजी भी ख़ाना-ए-काबा न जा सका. ये ईसवी के हिसाब से 1925 का साल बनता है.
लेकिन ये बात भी महत्वपूर्ण है कि जब से सऊदी अरब अस्तित्व में आया है, यानी 1932 से लेकर 2020 तक, ख़ाना-ए-काबा में हज कभी नहीं रुका. (bbc.com)
फिलीपींस में कोई व्यक्ति एक बार ही राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की कार्यशैली कथित तौर पर लोकतंत्र के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है.
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे ने कहा कि अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद वे उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ेंगे. डुटेर्टे का कार्यकाल अगले साल मई महीने में खत्म होने वाला है. डुटेर्टे की घोषणा पर कई लोगों ने चिंता व्यक्त की है. इनका मानना है कि इस तरह से डुटेर्टे राष्ट्रपति बनने की सीमा को दरकिनार कर लंबे समय तक सत्ता में बने रह सकते हैं. साथ ही, वे किसी तरह के आपराधिक आरोपों से भी बचे रहेंगे. डुटेर्टे ने इस सप्ताह मीडिया से बात करते हुए कहा, "मुझे इस समय उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार समझिए.”
1987 के संविधान के तहत फिलीपींस में कोई व्यक्ति एक बार ही राष्ट्रपति बन सकता है. उसका कार्यकाल छह वर्षों का होगा. फिलीपींस के कानून के तहत, उपराष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रपति से अलग होता है. अगर राष्ट्रपति की मौत हो जाती है या किसी वजह से वे काम नहीं कर पाते हैं, तो ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की भूमिका निभाने के लिए कहा जा सकता है.
संभावित आईसीसी जांच
डुटेर्टे की उम्र 76 साल है. राष्ट्रपति बनने से पहले वे मेयर रह चुके हैं. उन्होंने अपराध के प्रति अपने सख्त रवैये को लेकर राजनीति में नाम कमाया. उन्हें विवादास्पद बयानबाजी और विवादास्पद ड्रग युद्ध के लिए भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस ड्रग युद्ध की वजह से दक्षिण पूर्व एशियाई देश में हजारों लोगों की जान गई. मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी एक्टिविस्टों ने इसे लेकर सरकार की काफी निंदा की है.
पिछले महीने, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) के अभियोजकों ने क्रूर ड्रग-विरोधी अभियान और संभवतः दसियों हजार लोगों की कथित गैरकानूनी हत्या की पूरी जांच शुरू करने की मंशा जाहिर की थी. आईसीसी के पूर्व अभियोजक ने पिछले महीने कहा था कि शुरुआती जांच से पता चला है कि ड्रग-विरोधी अभियान के दौरान अमानवीय व्यवहार किया गया. अभियोजक ने औपचारिक जांच शुरू करने के लिए प्राधिकरण की मांग की है. इस मामले पर निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों के पास 120 दिन हैं.
डुटेर्टे को अमानवीय अपराधों के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह आईसीसी की संभावित जांच में कभी भी सहयोग नहीं करेंगे. वहीं, देश और देश से बाहर एक्टिविस्टों की तरफ से लगातार की जा रही आलोचना के बावजूद, फिलीपींस में डुटेर्टे की लोकप्रियता उच्च स्तर पर बनी हुई है.
कमजोर लोकतांत्रिक नींव
डुटेर्टे का लोकतांत्रिक संस्थाओं को कुचलने का एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड है. इनमें सबसे बड़े ब्रॉडकास्ट मीडिया नेटवर्क को बंद कराने से लेकर आतंकवाद विरोधी कानून पारित करना शामिल है. आलोचकों का कहना है कि इस कानून की मदद से असंतोष को दबाया गया और हजारों लोगों की गैर-न्यायिक तरीके से हत्या कर दी गई.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि डुटेर्टे प्रशासन ने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी को उजागर कर दिया है. राजनीतिक विशेषज्ञ रिचर्ड हेडेरियन ने डॉयचे वेले से कहा, "फिलीपींस की लोकतांत्रिक व्यवस्था पहले ही टूट चुकी थी. इससे डुटेर्टे को तानाशाही करने में मदद मिली. डुटेर्टे ने मौजूदा संरचनात्मक कमजोरियों को और अधिक कमजोर कर दिया.”
फिलीपींस में बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था है. आलोचक इसे "प्रशंसक क्लब” के तौर पर बताते हैं जो अपने निजी लाभ के लिए अकसर पार्टियां बदलते हैं. राजनेता और मतदाता विचारधारा की जगह राजनीतिक व्यक्तित्व को ज्यादा तवज्जो देते हैं.
हेडेरियन ने कहा कि 2016 में डुटेर्टे के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद संसद के कई सदस्यों बिना किसी संस्थागत जांच और प्रक्रिया के अपना दल बदल लिया था और सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो गए थे. इसने लोकतंत्र की रक्षा के लिए लागू किए गए सुरक्षा उपायों को भी कुचल दिया. हेडेरियन कहते हैं, "फिलीपींस के लोगों को शायद यह उम्मीद से भरा और सुंदर लोकतंत्र लगता होगा, लेकिन सत्तावादी नेता संस्थाओं पर कब्जा करने को तैयार थे.”
युवा और परिपक्व लोकतंत्र
सदियों के औपनिवेशिक शासन ने फिलीपींस को एक युवा लोकतंत्र बना दिया है. यह देश तीन सौ सालों से स्पेनिश शासन के अधीन था. 1946 में इस देश को आजादी मिली. हालांकि, जब 1972 में राष्ट्रपति फर्डिनांड मार्कोस ने मार्शल लॉ की घोषणा की तो लोकतंत्र कमजोर हुआ. 1986 में देश में हुई क्रांति के बाद मार्कोस को सत्ता से हटा दिया गया. इस तख्तापलट के बाद, मार्कोस के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंदी बेनिग्रो एक्विनो की पत्नी कोराजोन एक्विनो देश की राष्ट्रपति बनी थीं. बेनिग्रो राष्ट्रपति मार्कोस के प्रमुख आलोचकों में से एक थे और 1983 में उनकी हत्या कर दी गई थी.
हालांकि, 1986 की क्रांति के बाद बनी सरकार भी न तो बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था की खामियों को दूर कर सकी और न ही सरकार में राजनीतिक परिवारों के प्रभुत्व को बेअसर कर सकी. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे अब देश की लोकतांत्रिक दिशा तय करेंगे.
राष्ट्रपति डुटेर्टे की बेटी सारा डुटेर्टे और दिवंगत तानाशाह के बेटे फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार के तौर पर उभर रहे हैं. मार्कोस जूनियर ने 2016 के चुनाव में उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ा था और बहुत ही कम अंतर से हार गए थे.
हेडेरियन ने म्यांमार के हालिया सैन्य तख्तापलट का हवाला देते हुए कहा, "फिलीपींस कोई एकमात्र उदाहरण नहीं है. यह सत्तावादी उदासीनता और प्रतिक्रियावादी लोकप्रियता के विभिन्न रूपों को अपनाने की व्यापक प्रवृति का हिस्सा है. दक्षिण एशिया में यह अकसर देखा जाता है.”
विपक्ष को मजबूत करने की कोशिश
राजनीतिक रणनीतिकार एलन जर्मन ने डीडब्लू को बताया कि फिलीपींस उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकता जो दण्ड से मुक्ति की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को समाप्त कर रहा है. जर्मन कहते हैं, "इस प्रवृति का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत और जुझारू विपक्ष की जरूरत होगी. हालांकि, अभी तक हमारे पास ऐसा विपक्ष नहीं है और राष्ट्रपति चुनाव का समय नजदीक आ रहा है.”
उपराष्ट्रपति लियोनोर रोब्रेडो विपक्षी लिबरल पार्टी के प्रमुख सदस्य हैं, लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. इस साल जून महीने में पूर्व राष्ट्रपति बेनिग्रो एक्विनो III की मौत हो गई. ऐसे में बेनिग्रो के प्रति जनता की सहानुभूति को लिबरल पार्टी के पक्ष में मोड़ा जा सकता है. जर्मन कहते हैं, "बेनिग्रो की मौत ने सत्ता पक्ष के वोट में सेंध लगा दी है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? हालांकि, एक बात तो तय है कि देश की जनता दण्ड की संस्कृति से छुटकारा पाना चाहती है.”
राजनीतिक दुष्प्रचार
सोशल मीडिया भी राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल से असंतोष को दबा दिया जाता है. सोशल मीडिया पर नकली खाते बनाकर, ट्रोल और बॉट्स का इस्तेमाल करके जनता की राय बदलने का काम किया जाता है.
हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एक शोधार्थी जोनाथन ओंग ने फिलीपींस में दुष्प्रचार करने वाले नेटवर्क का अध्ययन किया है. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "सोशल मीडिया में हेराफेरी की रणनीतियां दिखाती हैं कि राजनीतिक गलियारों में किस तरह से कॉरपोरेट मार्केटिंग का इस्तेमाल किया जाता है. राजनीतिक विज्ञापन पूरी तरह अनियंत्रित होता है.”
सोशल मीडिया और इसके अल्गोरिदम व्यक्तिगत स्तर पर गलत सूचना दे सकते हैं. साथ ही, साजिश के सिद्धांतों और किसी को टारगेट करके उत्पीड़न करने को बढ़ावा दे सकते हैं. ओंग कहते हैं, "इससे न केवल पत्रकारों में बल्कि आम नागरिकों को भी अपनी बात कहने में डर लगता है.”
अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी के बीच तालिबान एक बार फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. अफगान मीडिया का आरोप है कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है और वह तालिबान की मदद कर रहा है.
डॉयचे वैले पर सैफुल्ला शम्स की रिपोर्ट-
अफगानिस्तान के अधिकांश मीडिया आउटलेट और राजनीतिक टिप्पणीकार अपने देश में मौजूदा उथल-पुथल के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहरा रहे हैं. उनका आरोप है कि पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसियां विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान का समर्थन कर रही हैं. इससे चरमपंथियों को ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों पर कब्जा करने में मदद मिल रही है.
ये आरोप नए नहीं हैं. अफगानिस्तान के अधिकारी लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि पाकिस्तान तालिबान को प्रश्रय देता है और उन्हें सैन्य सहायता मुहैया कराता है. हालांकि, मौजूदा स्थिति में जब अमेरिका अफगानिस्तान में अपने दो दशक के युद्ध को समाप्त कर रहा है और अपने सैनिकों को वापस बुला रहा है, ऐसे में अफगानिस्तान में पाकिस्तान का कथित हस्तक्षेप अफगान मीडिया में चर्चा का एक प्रमुख विषय बन गया है.
अफगानिस्तान के सासंद अब्दुल सत्तार हुसैनी ने हाल में टीवी शो के दौरान कहा, "आपको पता होना चाहिए कि पाकिस्तान हमारे ऊपर हमला कर रहा है. हम तालिबान से नहीं लड़ रहे हैं. हम पाकिस्तान के छद्म युद्ध से निपट रहे हैं. तालिबान के पास अफगानिस्तान के लिए कोई योजना नहीं है और हम पाकिस्तान की योजना को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.”
नाजुक रिश्ता
पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है कि वह तालिबान का समर्थन करता है, लेकिन कई अफगान आधिकारिक पाकिस्तान के रुख पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं. इसी तरह, पाकिस्तानी अधिकारियों को लगता है कि अफगान मीडिया को समझाना काफी चुनौतीपूर्ण है. पिछले महीने, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी एक अफगान टीवी शो में अपने देश से जुड़ी चिंताओं को दूर करते हुए दिखाई दिए, लेकिन इसने उन्हें एक अजीब स्थिति में डाल दिया.
शो के होस्ट ने पूछा कि क्या कुरैशी को पता था कि कुछ तालिबान कमांडर पाकिस्तान में मौजूद हैं? इस सवाल पर विदेश मंत्री ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. तब, होस्ट ने कहा कि कतर में मौजूद रहे तालिबान शांति वार्ताकार शेख हकीम ने शांति प्रक्रिया के बारे में समूह के नेताओं से बात-विचार करने के लिए पाकिस्तान की यात्रा की थी.
कुरैशी ने जवाब दिया, "उसने मुझसे संपर्क नहीं किया, इसलिए मुझे नहीं पता.” इस पर होस्ट ने चुटकी ली, "तो कम से कम आप उनके (तालिबान) नेता नहीं हैं.” पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अफगान टीवी होस्ट को समझाने की कोशिश की कि उनके देश के खिलाफ लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद हैं. इसके बावजूद, उन्हें कठिन सवालों का सामना करना पड़ा.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के टॉक शो पाकिस्तान को दुश्मन देश के तौर पर दिखाते हैं. साथ ही, पाकिस्तान के बारे में अफगानिस्तान की जनता का नजरिया बदलते हैं. दोनों देशों के बीच लंबे समय से कई ऐसी समस्याएं जारी हैं जिनकी वजह से अफगानिस्तान के लोग पाकिस्तान को संदेह की नजरों से देखते हैं.
विश्वास की कमी
काबुल स्थित अरिना न्यूज टीवी चैनल के प्रमुख शरीफ हसनयार ने डॉयचे वेले को बताया, "अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंध बीते चार दशकों से अधिक समय से तनावपूर्ण है. बड़े शहरों में रहने वाले अफगानिस्तान के अधिकांश नागरिक पाकिस्तान के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं. उन्हें याद है कि पाकिस्तान ने 1990 के दशक में तालिबान और मुजाहिदीन का समर्थन किया था.”
राष्ट्रपति के पूर्व प्रवक्ता नजीबुल्लाह आजाद कहते हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के बारे में धारणा वास्तविकता पर आधारित है. वे कहते हैं, "पाकिस्तानी अधिकारियों ने अफगानिस्तान के विशेषज्ञों द्वारा लगाए गए कुछ आरोपों को स्वीकार भी किया है. पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने भारतीय मीडिया आउटलेट के साथ एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि उनका देश तालिबान का समर्थन कर रहा है. वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान 2015 में विपक्ष में थे. उस समय उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके अस्पताल में तालिबान के घायल लड़ाके का इलाज हुआ था.”आजाद आगे कहते हैं, "हाल ही में, पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद ने स्वीकार किया कि तालिबान के सदस्यों के परिवार पाकिस्तान में रह रहे थे. घायलों और मृत लड़ाकों को अफगानिस्तान से पाकिस्तान लाया गया था.”
युद्ध की रेखाएं
नाटो सैनिकों के वापस लौटने और देश में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से, अफगानिस्तान में गृह युद्ध की संभावना पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई है. अफगानिस्तान के एक प्रमुख विशेषज्ञ अहमद राशिद ने हाल ही में डीडब्ल्यू को दिए साक्षात्कार में बताया था कि अफगानिस्तान में स्थिति अराजक होने पर "इसका असर पड़ोसी देशों पर भी होगा." वह कहते हैं, "अगर ऐसा होता है, तो इससे अफगानिस्तान पूरी तरह तबाह हो जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान तब तक अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के साथ बातचीत में शामिल नहीं होगा, जब तक कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी उन्हें शरण देना जारी रखेंगे. वह कहते हैं, "जब तक तालिबानी नेता और उनके परिवार सुरक्षित हैं, तब तक वे बातचीत क्यों करेंगे? अगर पाकिस्तान अपनी ईमानदारी दिखाना चाहते है, तो उसे तत्काल तालिबानी नेताओं को क्वेटा या पेशावर में बनाए गए सुरक्षित ठिकानों को छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहिए.” मौजूदा हालात में, युद्ध की रेखाएं खींची जा रही हैं और नए गठबंधन बनाए जा रहे हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों देशों की मीडिया के बीच भी युद्ध जोरों पर है.
क्या सुधार की गुंजाइश है?
हकीकत यह है कि दोनों देश भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं. अगर अफगानिस्तान में उथल-पुथल होती है, तो इसका असर पाकिस्तान में भी होगा. हसनयार कहते हैं, "दोनों देशों के नागरिक समाज के सदस्यों और पत्रकारों ने विश्वास बहाल करने का प्रयास किया है, लेकिन यह काम सरकार को करना चाहिए. अफगानिस्तान के मीडिया आउटलेट किसी भी तरह की प्रतिक्रिया के लिए काबुल स्थित पाकिस्तानी दूतावास तक पहुंचते हैं, लेकिन पाकिस्तानी राजनयिक ही उनके साथ जुड़ना नहीं चाहते.”आजाद ने कहा कि अफगानिस्तान ने कूटनीतिक तरीके से स्थिति से निपटने की कोशिश की है. वह कहते हैं, "पिछले कुछ महीनों में, अफगानिस्तान के कई बड़े अधिकारियों ने पाकिस्तान का दौरा किया है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं बदला. अफगानिस्तान में अपनी छवि सुधारने के लिए पाकिस्तान को चरमपंथियों का समर्थन बंद करना होगा.” इस पूरे मामले पर पाकिस्तान के अधिकारियों का कहना है कि दोनों देशों के बीच संबंध तब तक नहीं सुधरेंगे, जब तक अफगानिस्तान पाकिस्तान के खिलाफ आरोप लगाना बंद नहीं कर देता.” (dw.com)
हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के बारे में ऐसे बात करते हैं मानो ये भविष्य की कोई चीज होगी. लेकिन एआई तो हमारे इर्दगिर्द पहले से ही मौजूद है- कोविड 19 की महामारी ने ये दिखा भी दिया है.
डॉयचे वैले पर जुल्फिकार अब्बानी की रिपोर्ट-
अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य है तो वो भविष्य फिर आज है. महामारी ने दिखाया है कि कितनी तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई काम करती है और कितने अलग अलग तरीकों से ये क्या कुछ कर सकती है. शुरू से ही देखें तो एआई ने हमें सार्स-कोवि-2 के बारे में जानकारी मुहैया करायी है.
कोविड-19 का संक्रमण इसी वायरस से फैलाता है. एआई की मदद से वैज्ञानिकों ने वायरस की जेनेटिक सूचना यानी उसके डीएनए की तेजी से छानबीन की है. डीएनए ही वो व्यवस्था है जो वायरस को वायरस जैसा बनाती है बल्कि हर जीवित चीज़ को. और अगर आप खुद का बचाना चाहते हैं तो आपको अपने दुश्मन का भी पता होना चाहिए.
एआई ने वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद की है कि वायरस कितनी तेजी से म्युटेट होते हैं, एआई की मदद से ही टीके तैयार हो पाए हैं और उनका टेस्ट हो पाया है. ऐसी न जाने कितनी सारी चीजें होंगी जिनके बारे में यहां बताना मुमकिन नहीं – एक जायजा ही लिया जा सकता है. लेकिन एआई के बारे में कुछ बुनियादी बातों को समझने की कोशिश करते हैं.
एआई पर एक स्पीड रिफ्रेशर कोर्स
एआई निर्देशों का एक समुच्चय है जो कम्प्यूटर को ये बताता है कि उसे क्या करना है- हमारे फोन में पड़े फोटो एल्बम में चेहरों की शिनाख्त करने से लेकर डाटा के विशाल ढेर को खंगालने तक. यानी भूसे के बहुत बड़े ढेर से सुई खोज निकालने जैसा काम है एआई का. लोग एआई को अल्गोरिदम भी कह लेते हैं. सुनने में जंचता है लेकिन अल्गोरिदम तो नियमों की एक स्थिर सी सूची भर है जो कम्प्यूटर को इतना ही बताती हैः "If this, then that” यानी "अगर ये, तो वो.”
इसी बीच, मशीन लर्निंग (एमएल) अल्गोरिदम एक ऐसी किस्म की एआई है जिससे हममें से बहुतों को डर लगेगा. ये वो एआई है जो किसी चीज़ को पढ़कर या उसका आकलन कर उसे याद कर लेती है और खुद को नयी नयी चीजें करना सिखा लेती है.
हम इंसानों को अक्सर लगता है कि हम इस एमएल अल्गोरिदम को काबू में नहीं कर सकते हैं और ना ही ये बता सकते हैं कि वो क्या जान लेता है. लेकिन वास्तव में हम ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मौलिक कोड लिखने वाले तो हम ही हैं. इसलिए आप चैन की सांस ले सकते हैं. थोड़ी सी.
संक्षेप में एआई और एमएल वे प्रोग्राम हैं जो हमें, बहुत तेजी के साथ बहुत सारी सूचनाओं को बहुत सारे रॉ यानी कच्चे डाटा को प्रोसेस करने देते हैं. वे सारे के सारे दुष्ट दैत्य नहीं हैं जो हमें मार देंगे या हमारी नौकरियां चुरा लेंगे. ये कतई जरूरी नहीं है कि वे ऐसा करेंगे.
कोविड के खिलाफ लड़ाई में मददगार एआई
कोविड-19 के मामले में देखें तो एआई और एमएल ने कुछ जानें बचाने में मदद ही की है. डायगनॉस्टिक उपकरणों में उनका इस्तेमाल हो रहा है. वे बड़ी संख्या में छाती के एक्सरे रिपोर्टों को किसी रेडियोलॉजिस्ट की तुलना में काफी तेजी से पढ़ लेते हैं. एआई से डॉक्टरों को कोविड मरीजों की पहचान और निगरानी में मदद मिली है.
नाईजीरिया में संक्रमण के जोखिमों के आकलन के लिए टेक्नोलजी का बहुत बुनियादी लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है. लोग बहुत सारे सवालों का ऑनलाइन जवाब देते हैं और उनके जवाबों के आधार पर उन्हें ऑनलाइन ही मेडिकल सलाह दी जाती है या उन्हें अस्पताल भेज दिया जाता है.
एआई बनाने वाली एक कंपनी वैलविस कहती है कि उसकी वजह से रोग नियंत्रण के लिए गठित आपात सेवा पर खामाखां आने वाली कॉलें कम होने लगी हैं.
दक्षिण कोरियाः कोविड की टेस्टिंग
सबसे अहम चीजों में से एक जो हमें हैंडल करनी पड़ती है, वो है संक्रमित लोगों की तेजी से पहचान. और दक्षिण कोरिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने डॉक्टरों का काम आसान किया है.
जब बाकी दुनिया पहले-पहल लॉकडाउन लगाने के बारे में सोच ही रही थी, तब सोल में एक कंपनी ने एआई की मदद से कुछ ही सप्ताहों में, कोविड-19 का टेस्ट तैयार कर लिया था. एआई के बिना उन्हें महीनों लग जाते. सीजीन कंपनी में डाटा साइंस और एआई डेवलेपमेंट की प्रमुख यंगशांह्ग "जेरी” सुह ने डीडब्लू को दिए इंटरव्यू में बताया कि इस बारे में "कभी सुना ही नहीं” गया था. सीजीन के वैज्ञानिकों ने 24 जनवरी को किट्स के लिए कच्चा माल मंगाया था और पांच फरवरी तक टेस्ट का पहला संस्करण तैयार हो चुका था.
टेस्ट को डिजाइन करने के लिए, ये तीसरा ही मौका था जब कंपनी ने अपने सुपर कम्प्यूटर और बिग डाटा एनालिसिस का इस्तेमाल किया था. लेकिन उन्होंने कुछ सही काम ही किया होगा क्योंकि पिछले साल मध्य मार्च में, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में बताया गया था कि दक्षिण कोरिया ने दो लाख तीस हजार लोगों का टेस्ट कर लिया है. और आखिरकार कुछ देर के लिए ही सही, देश में हर दिन नये संक्रमणों की संख्या को स्थिर रखा जा सका. सुह कहती हैं, "जैसे जैसे नये वेरिएंट और म्यूटेशन का पता चल रहा है, हम लगातार अपडेट भी कर रहे हैं. इससे हमारे एमएल को नये वेरिएंट की शिनाख्त का मौका भी मिल जाता है.”
दक्षिण अफ्रीकाः तीसरी लहर की पहचान
एक और प्रमुख मुद्दा हमारे सामने ये ट्रैक करने का था कि बीमारी, खासतौर पर नये वेरिएंट और उनके म्युटेशन किस तरह समुदायों में और एक देश से दूसरे देश में फैल रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका में शोधकर्ताओं ने, भविष्य में रोजाना के कोविड-19 के कन्फर्म मामलों का आकलन करने के लिए एआई आधारित अल्गोरिदम का इस्तेमाल किया था. ये दक्षिण अफ्रीका में पूर्व संक्रमण के इतिहास के डाटा और लोगों की एक समुदाय से दूसरे समुदाय में आवाजाही जैसी दूसरी सूचनाओं पर आधारित था.
मई में शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में महामारी की तीसरी लहर का खतरा कम दिखता था. अफ्रीका-कनाडा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डाटा इनोवेशन कंजोर्टियम के प्रमुख जूड कॉंग कहते हैं, "लोग सोचते थे कि बीटा वेरिएंट पूरे महाद्वीप में फैलेगा और हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को तोड़ कर रख देगा, लेकिन एआई की बदौलत हम उसे काबू में रख पाए.”
ये प्रोजेक्ट दक्षिण अफ्रीका की विट्स यूनिवर्सिटी और गाउटेंग की प्रांतीय सरकार और कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के गठजोड़ से चल रहा है. कैमरून के कॉंग यॉर्क यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. वह कहते हैं, "अफ्रीका में डाटा बहुत बिखरा हुआ सा है” और एक बड़ी समस्या है बीमारियों को लेकर समाज में शर्म और संकोच, चाहे वो कोविड हो या एचआईवी, इबोला या मलेरिया.
उनके मुताबिक वैसे एआई की बदौलत हर इलाके की कुछ "खास छिपी हुई सच्चाइयां” बाहर आ सकी हैं, और स्थानीय स्वास्थ्य नीतियों को भी सचेत किया गया है. उन्होंने अपनी एआई मॉडलिंग को बोत्सवाना, कैमरून, इस्वातिनी, मोजाम्बिक, नामीबिया, नाईजीरिया, रवांडा, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाव्वे जैसे देशों में भी लागू किया है.
कॉंग कहते हैं, "बहुत सारी सूचनाएं एकआयामी हैं. आप जानते हैं कि कितने लोग अस्पताल में दाखिल हुए और कितने वहां से निकले. लेकिन इसके नीचे जो बात छिपी रह जाती है वो है उनकी उम्र, उनकी और बीमारियां और वो समुदाय जहां से वे आते हैं. हम एआई की मदद से वो सब पता लगा लेते हैं कि उन्हें मदद की कितनी जरूरत है और नीतियां बनाने वालों को भी सूचित कर देते हैं.”
एआई की खूबियों के दावे अतिरंजित तो नहीं?
चेहरे की पहचान वाले अल्गोरिदम से मिलते-जुलते दूसरी तरह के एआई का इस्तेमाल भीड़-भाड़ में संक्रमित लोगों की पहचान करने या जिनके शरीर का तामपान बढ़ा हुआ हो, उनकी पहचान करने में हो सकता है. एआई से संचालित रोबोट, अस्पतालों और दूसरी सार्वजनिक जगहों की सफाई कर सकते हैं.
लेकिन उससे आगे क्या? क्योंकि कुछ जानकार ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि एआई की क्षमताएं बढ़ा-चढ़ाकर बतायी गयी हैं. इनमें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मशीन लर्निंग के प्रोफेसर नील लॉरेंस भी शामिल हैं जिन्होंने अप्रैल 2020 में एआई को "हाइप्ड” करार दिया था. उनके मुताबिक इसमें कोई हैरानी नहीं कि महामारी में शोधकर्ताओं ने गणितीय मॉडलिंग जैसी आजमाई हुई तकनीकों पर ही भरोसा किया. लेकिन एक दिन एआई उपयोगी होगी.
ये महज 15 महीने पुरानी बात है. और देखिए हम कितना दूर चले आए हैं. (dw.com)
लंदन, 9 जुलाई | एक नए अध्ययन ने पुष्टि की है कि बच्चों के गंभीर रूप से बीमार होने या कोविड से मरने का समग्र जोखिम बेहद कम है। बीबीसी ने बताया कि यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और यॉर्क, ब्रिस्टल और लिवरपूल विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला है कि बच्चों में अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु का जोखिम कम है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, कई पुरानी बीमारियों और न्यूरो-विकलांगता वाले लोगों को सबसे अधिक जोखिम है।
टीम ने इंग्लैंड के सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि कोविड -19 से मरने वाले युवाओं में से लगभग 15 में पिछले पांच साल में जीवन-सीमित या अंतर्निहित स्थितियां थीं, जिनमें 13 जटिल न्यूरो-विकलांगता के साथ रहते थे, जबकि छह में कोई अंतर्निहित स्थिति दर्ज नहीं थी।
इसके अलावा, 36 बच्चों की मृत्यु के समय एक सकारात्मक कोविड परीक्षण हुआ था, लेकिन विश्लेषण से पता चलता है कि अन्य कारणों से उनकी मृत्यु हुई है।, बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मरने वाले बच्चों और युवाओं की उम्र 10 वर्ष से अधिक और अश्वेत और एशियाई जातीयता के कारण होने की संभावना अधिक थी।
वर्तमान में, अंडर -18 को नियमित रूप से कोविड के टीके नहीं दिए जाते हैं, भले ही उनके पास अन्य अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियां हों जो उन्हें जोखिम में डालती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यूके के वैक्सीन सलाहकार समूह द्वारा निष्कर्षों पर विचार किया जा रहा है।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर रसेल विनर के हवाले से कहा गया है कि बच्चों के टीकाकरण से संबंधित जटिल निर्णयों के लिए गहन शोध की आवश्यकता होती है। अमेरिका और इजराइल में बच्चों में पढ़ाई से अपेक्षित डेटा को भी निर्णय लेते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर पर्याप्त टीके है, तो उनके शोध ने सुझाव दिया कि बच्चों के कुछ समूहों को कोविड की जाब्स प्राप्त करने से लाभ हो सकता है।
विनर ने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे डेटा से, और मेरी पूरी तरह से व्यक्तिगत राय में, हमारे द्वारा अध्ययन किए गए कई समूहों का टीकाकरण करना बहुत ही उचित होगा, जिनके पास मृत्यु का विशेष रूप से उच्च जोखिम नहीं है।
रॉयल कॉलेज ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड स्वास्थ्य और इंपीरियल कॉलेज लंदन से एलिजाबेथ व्हिटेकर ने कहा, "हालांकि यह डेटा फरवरी 2021 तक का है, लेकिन डेल्टा संस्करण के साथ यह हाल ही में नहीं बदला है। हमें उम्मीद है कि यह डेटा बच्चों और युवाओं और उनके परिवारों के लिए आश्वस्त करने वाला होगा।"(आईएएनएस)
बीजिंग, 9 जुलाई | जब जी-20 अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्री 9 से 10 जुलाई को वेनिस में मिलेंगे, तो उन्हें कोविड महामारी के खिलाफ दुनिया को प्रतिरक्षित करने के लिए एक योजना अपनानी चाहिए। प्रत्येक वैक्सीन उत्पादक देश उस बैठक में उपस्थित होंगे, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, यूरोपीय संघ, चीन, और रूस शामिल हैं। साथ में, ये देश 2022 की शुरूआत तक पूरे विश्व के लिए टीकाकरण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त खुराक का उत्पादन करने जा रहे हैं। फिर भी दुनिया में इसे पूरा करने की योजना का अभाव है।
गरीब देशों में वैक्सीन कवरेज लाने का मौजूदा वैश्विक प्रयास, जिसे कोवैक्स के रूप में जाना जाता है, विनाशकारी रूप से कम हो गया है, क्योंकि वैक्सीन-उत्पादक देशों ने अपने उत्पादन का उपयोग अपनी आबादी का टीकाकरण करने के लिए किया है। इतना ही नहीं, वैक्सीन-उत्पादक कंपनियों ने कम कीमत पर कोवैक्स के बजाय द्विपक्षीय रूप से वैक्सीन बेचने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों के साथ गुप्त सौदे किए हैं।
दुनिया वैक्सीन बनाने वाले देशों के स्वार्थ, कंपनियों के लालच और दुनिया के प्रमुख क्षेत्रों के बीच बुनियादी सहकारी शासन के पतन से त्रस्त है। मुझे नहीं लगता अमेरिकी सरकार के विशेषज्ञ कभी वैश्विक वैक्सीन अभियान की योजना बनाने के लिए चीन और रूस में अपने समकक्षों के साथ मुलाकात की हो। अमेरिका पूरी दुनिया की रक्षा के लिए चीन के साथ काम करने की तुलना में थाईवान को वैक्सीन भेजने में अधिक रुचि रखता है, शायद चीन को शर्मिदा करने के लिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कई बार आगाह किया है कि वैश्विक वैक्सीन कवरेज में देरी पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है, क्योंकि वायरस के नए वेरिएंट सामने आते हैं जो मौजूदा वैक्सीन का उन पर असर बेहद कम हैं। इजरायल के वैज्ञानिकों ने बताया है कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ केवल 64 प्रतिशत प्रभावी है, जबकि मूल वायरस के खिलाफ 95 प्रतिशत प्रभावी है।
अच्छी खबर यह है कि व्यापक वैश्विक वैक्सीन कवरेज संभव है। वैश्विक उत्पादन स्तर अब कुछ ही महीनों में हर देश में वयस्क आबादी के लिए व्यापक कवरेज तक पहुंचने के लिए काफी ऊंचा है। अब हमें दुनिया भर के देशों के बीच वैक्सीन की खुराक साझा करने की योजना बनाने की जरूरत है। यदि जी-20 के सदस्य अंतत: गंभीरता से योजना बनाना शुरू कर देते हैं, तो कोई भी देश वैक्सीन पाने से अछूता नहीं रहेगा।
अनुमान के अनुसार, दुनिया की आबादी 7.8 अरब है, और 5.8 अरब लोग 15 या उससे अधिक उम्र के हैं। यदि हम व्यापक टीकाकरण को प्रत्येक देश में वयस्क (15 और अधिक उम्र) आबादी के 80 प्रतिशत कवरेज के रूप में परिभाषित करते हैं, तो दुनिया का लक्ष्य 4.6 अरब लोगों का टीकाकरण करना होना चाहिए।
इस साल 30 जून तक, लगभग 85 करोड़ लोगों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया जा चुका है, और लगभग 95 करोड़ लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक मिल चुकी है। विश्व स्तर पर 80 प्रतिशत वयस्क टीकाकरण कवरेज प्राप्त करने के लिए लगभग 6 अरब अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता होगी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि वैक्सीन उत्पादक कंपनी और देश के अनुसार अपेक्षित मासिक वैक्सीन उत्पादन पर कोई व्यवस्थित, व्यापक और अप-टू-डेट आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं।
डेल्टा वेरिएंट अब अफ्रीका के माध्यम से बढ़ रहा है। जब तक कि टीकाकरण कवरेज नाटकीय रूप से तेज नहीं हो जाता है, तब तक पूरी दुनिया में एक बड़ी तबाही का खतरा बना रहेगा। इसके अलावा, मौजूदा वैक्सीन से बचने की अधिक क्षमता वाले नए वेरिएंट जल्द ही सामने आ सकते हैं और वैश्विक वैक्सीन-विरोधी आंदोलन और दुष्प्रचार अभियानों ने वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा दिया है, जिसका अर्थ है कि खुराक उपलब्ध होने पर भी व्यापक वयस्क कवरेज में गिरावट आयी है।
संक्षेप में, हम अभी भी पूरी तरह से असुरक्षित हैं। कोविड-19 से अब तक हुई 40 लाख मौतों की पुष्टि कोविड-19 महमारी से लड़ने में दुनिया की विफलता का दुखद परिणाम है। जी-7 ने पिछले महीने 87 करोड़ वैकसीन दान करने का वायदा किया, जो लगभग 43.5 करोड़ लोगों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन यह वैश्विक योजना से बहुत कम है।
यह जरूरी हो जाता है कि जी-20 के सदस्य एक साथ आयें और आवश्यक वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए कार्य करें। सच में, दुनिया की सेहत इस बात पर निर्भर करती है कि इस हफ्ते वेनिस में क्या होता है।(आईएएनएस)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 9 जुलाई | राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने घोषणा की है कि वह भारत और अधिकांश अन्य देशों के स्कॉलर्स के लिए छात्र वीजा को चार साल के कार्यकाल तक सीमित करने के उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प के प्रस्ताव को रद्द कर रहे हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) ने मंगलवार को इस फैसले को प्रकाशित किया और कहा कि वह पत्रकारों के लिए वीजा की प्रस्तावित सीमा को भी खत्म कर देगा।
डीएचएस ने कहा कि उसे लगभग 32,000 सार्वजनिक टिप्पणियां मिली हैं। इनमें से 99 प्रतिशत ट्रम्प प्रशासन द्वारा पिछले सितंबर में किए गए प्रस्ताव के आलोचक थे और इसलिए, यह प्रस्तावित परिवर्तनों को वापस लिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह "चिंता की बात है कि प्रस्तावित परिवर्तन अनावश्यक रूप से अप्रवासन लाभों तक पहुंच को बाधित करते हैं।"
मौजूदा वीजा नियमों को ध्यान में रखते हुए, एफ और जे वीजा पर छात्र अमेरिका में अपना वीजा तब तक रख सकेंगे जब तक वे अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं और पत्रकार अपनी नौकरी करते हुए आई वीजा पर रहते हैं।
अगर ये परिवर्तन हो गए होते तो उन्हें विस्तार के लिए नागरिकता और आप्रवासन सेवा में आवेदन करना होता या देश छोड़ना होगा और सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा एजेंसी को दोबारा प्रवेश के लिए आवेदन करना होगा।
ट्रम्प प्रशासन के प्रस्ताव ने कुछ देशों के लिए छात्र वीजा की सीमा को दो साल तक कम कर दिया था, जिनमें से बड़ी संख्या में नागरिक अपने वीजा से अधिक समय बिता रहे थे।
डीएचएस ने बताया कि समय सीमा का विरोध करने वालों ने कहा था कि 'विदेशी छात्रों, विनिमय विद्वानों, (और) विदेशी मीडिया प्रतिनिधियों पर काफी बोझ पड़ेगा' और अत्यधिक लागत आएगी।'
डीएचएस ने कहा प्रस्ताव के खिलाफ लिखने वाले व्यवसायों ने कहा कि "कई गैर-नागरिक प्रवास के विस्तार के लिए आवेदन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं या इसे समय पर फैशन में मंजूरी दे दी है, जिससे कर्मचारियों की संभावित शुरूआत की तारीखों में देरी हो रही है और/या उन्हें संभावित नौकरी खोने का कारण बनता है।"
हालांकि, डीएचएस ने कहा कि यह अभी भी प्रस्ताव के लक्ष्य का समर्थन करता है, जो 'एफ, जे, और आई' वीजा श्रेणियों में गैर-आप्रवासियों को स्वीकार करने वाले कार्यक्रमों की अखंडता की रक्षा करना था और यह सुनिश्चित करते हुए इसका विश्लेषण करेगा कि यह बाइडन के अनुरूप है। 'हमारी कानूनी आव्रजन प्रणालियों में विश्वास बहाल करने' पर फरवरी में जारी कार्यकारी आदेश है।
आमतौर पर, पीएचडी या शोध कार्यक्रमों या अन्य उन्नत डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को चार साल से अधिक की आवश्यकता होती है।
व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में संक्रमण करने वाले छात्र भी प्रभावित हो सकते हैं, जो उन व्यवसायों को प्रभावित करते हैं जो अपने विकास को शक्ति देने के लिए विदेशी छात्रों पर निर्भर हैं।(आईएएनएस)
-ज़ुबैर अहमद
हमास और इसराइल के बीच मई में 11 दिनों तक हुई भीषण हिंसा के बाद पहले से ही बदहाली और निराशा में घिरा ग़ज़ा का इलाक़ा तबाह और बर्बाद हो चुका है. एक खुली जेल कहे जाने वाले ग़ज़ा के लोग अपने जीवन को दोबारा संभालने के कठिन संघर्ष में लगे हैं.
इसराइल के हवाई हमलों में नष्ट हुए स्कूल, सड़कें, आवासीय इमारतें और बुनियादी सुविधाओं को दोबारा बनाने की तत्काल ज़रुरत है लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ग़ज़ा को अपने 20 लाख निवासियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी तत्काल ध्यान देना होगा क्योंकि वे बुरी तरह आहत महसूस कर रहे हैं.
फ़लीस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की राहत एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए की प्रवक्ता तमारा अलरिफ़ाई का मानना है कि ग़ज़ा की जनता में मानसिक तनाव अपने चरम पर है.
जॉर्डन की राजधानी अम्मान से बीबीसी हिंदी से बातचीत में वो कहती हैं, "संघर्षविराम के बाद ग़ज़ा में मैंने जिस किसी से भी बात की, वही मुझे बहुत आहत लगा. हमें याद रखने की ज़रुरत है कि इस बार की लड़ाई पिछली कई जंगों से ज़्यादा गंभीर थी, यह महामारी के दरमियान हुआ है. इस लड़ाई से पहले ही ग़ज़ा कई वर्षों की नाकेबंदी झेल चुका है इसलिए लोग बर्दाश्त करने की आखिरी हद तक पहुँच चुके हैं. ग़ज़ा में लोग बहुत लंबे समय से कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं."
पवित्र स्थल में फ़लस्तीनियों की वापसी
यूएनआरडब्ल्यूए फ़लीस्तीनी शरणार्थियों के पुनर्वास और ग़ज़ा क्षेत्र में पुनर्निर्माण के काम में लगा है. ग़ज़ा की 20 लाख की आबादी में से 14 लाख फ़लस्तीनी शरणार्थी हैं, ये लोग 1948 में इसराइल के निर्माण के समय अपने घरों से विस्थापित हो गए थे.
सामूहिक पीड़ा का चेहरा
28 वर्षीय ताहिर अलमदून ग़ज़ा के एक अस्पताल में डॉक्टर हैं. वास्तव में वो ग़ज़ा के लोगों की पीड़ाओं का सही मायने में प्रतिनिधित्व करते हैं, चाहे वो पीड़ा मानसिक हो या शारीरिक.
13 मई को ग़ज़ा पर इसराइल के हवाई हमलों के दौरान उन्हें मौत के मुंह से बाहर निकाला गया था. पहले रॉकेट हमले ने उनके घर का एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया था.
बीबीसी से एक लंबी बातचीत में ताहिर कहते हैं, "गुरुवार 13 मई की शाम थी जो एक सामान्य क़िस्म का दिन था. अँधेरा हो गया था, हमले से पहले हम बैठे बातें कर रहे थे- मेरे पिता, मेरी आंटी और मैं", हम ईद मनाने की तैयारी कर रहे थे."
लेकिन कुछ ही मिनटों में उनकी इमारत पर रॉकेटों की बारिश शुरू हो गई. उस हमले को याद करते हुए ताहिर कहते हैं, "मेरे हाथ को छोड़कर मेरा पूरा शरीर मलबे के नीचे था इसलिए मैंने शोर करने के लिए अपने फोन का इस्तेमाल किया ताकि वे मेरी लोकेशन को देखें और मुझे ढूंढ सकें."
ताहिर को दमकल कर्मियों ने मलबे से बाहर निकला लेकिन उनके पिता और बुआ को बचाया नहीं जा सका. ''हमले के दौरान मैंने कभी होश नहीं खोया, मैंने अपने पिता और आंटी को प्रार्थना करते सुना, इससे पहले कि दमकल कर्मी मुझे बचाने आते, मैंने उन्हें कुछ मिनटों के लिए दुआ करते सुना, फिर वे चुप हो गए, इसलिए मुझे पता था कि वे मर चुके हैं."
एक पल वे जीवित थे, ईद मनाने की बात कर रहे थे, अगले ही पल उनमें से दो चल बसे और तीसरा मौत के मुंह से निकाला गया. ये है ग़ज़ा की ज़िन्दगी. सौभाग्य से डॉ. ताहिर की मां और अन्य भाई-बहन घर में नहीं थे, वो ईद ख़रीदारी करने बाहर गए हुए थे. उनका तीन मंज़िला घर पूरी तरह से नष्ट हो गया है.
डॉ. ताहिर अपने पिता और बुआ के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके क्योंकि उन्होंने अगले दो सप्ताह आईसीयू में बिताए, वह कई टूटी हुई पसलियों और फेफड़ों में बुरी चोट से पीड़ित हैं, अब वो एक सर्जरी करवाने का इंतज़ार कर रहे हैं.
लेकिन उनका कहना है कि उनकी पीड़ा शारीरिक चोटों और संपत्ति के नुकसान से परे है, "शुरू के दिनों में हमारे पिताजी और बुआ को लेकर मुझे, माँ और भाई, बहनों को नियमित रूप से बुरे सपने आ रहे थे और हमारा मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ा हुआ था."
युवा डॉक्टर अपने परिवार की मदद करना चाहते हैं, भले ही उनके पास अपनी टूटी हड्डियों पर सोचने के लिए बहुत कम समय हो, वे कहते हैं कि वह अपने पिता की मृत्यु के बाद नई पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ महसूस करते हैं और चाहते हैं कि चीजें जल्दी से ठीक हो जाएँ, लेकिन वे मानते हैं कि कोई चीज़ जल्दी से ठीक नहीं होने वाली नहीं.
वे कहते हैं, "मुझे अपनी नौकरी पर वापस आने में एक या दो साल लग सकते हैं. मुझे रहने के लिए जगह मिल सकती है लेकिन मेरी शारीरिक, मानसिक चोटों से उबरकर मैं सामान्य महसूस करूँ, इसमें साल-दो साल लग सकते हैं."
व्यक्तिगत त्रासदी से पहले डॉक्टर ताहिर अपनी शादी की तैयारी में लगे थे. उनके पिता ने परिवार के लिए तीन-मंज़िला घर ग़ज़ा के एक बेहतर इलाक़े में बनवाया था. डॉक्टर ताहिर ने तीसरी मंज़िल में अपने घर को सजा लिया था.
ग़ज़ा में कितनी मुश्किल है ज़िंदगी
ग़ज़ा में सामान्य ज़िन्दगी गुज़ारना काफ़ी कठिन है, चाहे जंग हो रही हो या शांति हो. सामाजिक कार्यकर्ता नोअल आक़िल ने ग़ज़ा से बीबीसी हिंदी से बात करते हुए इन शब्दों में अपनी समस्याओं के बारे में बताया, "अगर आप मुझे और मेरे परिवार को देखें तो मैं एक महिला हूँ जिसे अपनी माँ, छह बहनों, बेटे, तलाकशुदा बहन, अल्जीरिया और जॉर्डन में पढ़ रहे भाइयों की चिंता है. हम एक सामान्य जीवन के लिए तरसते हैं. हम अपना जीवन जीना चाहते हैं."
नोअल के सहयोगी तामेर अजरमी भी पीड़ित लोगों के बीच काम करते हैं, वे कहते हैं, "फ़लीस्तीनियों को जो मानसिक आघात लगा है, वो केवल इस हमले से नहीं आया है, वह वर्षों से लगातार चलता रहा है, लोगों ने पहले से मौजूद आघात पर एक और आघात झेला है."
अब जबकि ग़ज़ा में एक नाजुक-सा युद्धविराम लागू है, मृत्यु और विनाश की छवियां सामने आ रही हैं. ताहिर के पिता और उनकी बुआ इसराइल के हवाई हमलों में मारे गए 243 ग़ज़ा वासियों में शामिल थे. हमास के मिसाइल हमलों में 12 इसराइली नागरिक भी मारे गए. ग़ज़ा में दो हज़ार से अधिक इमारतें या तो पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुई हैं.
हमास और इसराइल के बीच युद्धविराम की घोषणा के कुछ हफ़्ते बाद बीबीसी हिंदी ने ग़ज़ा में कुछ प्रभावित लोगों से बात की, उनकी सामूहिक भावना यह थी कि "युद्ध के दौरान होने वाली वास्तविक बमबारी की तुलना में जंग के बाद की तकलीफ़ सहन करना अधिक कठिन है."
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नष्ट हुए घरों को दोबारा बनाया जा सकता है लेकिन पीड़ित परिवारों और उनकी मानसिक हालत को फिर से सामान्य करना अधिक मुश्किल है. सईद अल-मंसूर ग़ज़ा में आईटी क्षेत्र के एक साधारण पेशेवर हैं. वो लड़ाई से पहले तक एक छोटे से फ़्लैट के मालिक थे, लेकिन 16 मई को इसराइली हमले में इसके नष्ट होने के बाद से वो अपने परिवार समेत अपनी पत्नी के घर पर रह रहे हैं जिसे अरब समाज में एक अपमान के रूप में देखा जाता है.
ग़ज़ा के निवासियों को इसराइल ने हमले से पहले चेतावनी दी थी इसलिए सईद दूसरों की तरह इतने कम समय में जो भी कीमती सामान और दस्तावेज़ इकट्ठा कर सकते थे, उसे हटाने में कामयाब रहे.
उनका अपार्टमेंट उनकी आंखों के सामने हमले के बाद राख का ढेर बन गया. सईद कहते हैं कि मिसाइल हमला बमुश्किल कुछ सेकंड तक चला, एक क्षण में हमारा अपार्टमेंट मलबे का ढेर बन गया, लेकिन जिस आघात, मानसिक तनाव से हम अभी गुजर रहे हैं, उसे सहन करना मुश्किल है.
वे कहते हैं, "हमारे समाज में परिवार के लिए सब कुछ इंतज़ाम करना मर्दों की ज़िम्मेदारी है. मुझे अपने परिवार के लिए भोजन और आश्रय का इंतज़ाम खुद करना होगा. लेकिन आज मैं उसके लिए अपनी पत्नी के परिवार पर निर्भर हूँ, मुझे बहुत शर्म आती है. हर दिन नरक में रहने जैसा है. जब आप बाहर जाते हैं तो आप नष्ट इमारतों की क़तारें देखते हैं, ये भुतहा शहर जैसा दिखता है."
डॉक्टर ताहिर बताते हैं कि उनके पिता ग़ज़ा में कॉफी बीन्स के इम्पोर्टर थे, वे चाहते थे कि उनके सभी बच्चे डॉक्टर बनें और उनके मरने से पहले उनका सपना सच में पूरा हो गया. ताहिर की तीन बहनें डॉक्टर हैं और उनके दो छोटे भाई डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं. उनके पिता ने अपने बच्चों के लिए एक तीन मंजिला कोठी बनवाई. वे यह देखने के लिए जीवित नहीं रहे कि उनके बच्चे अब किस स्थिति में हैं.
'ग़ज़ा एक खुली जेल की तरह है'
ग़ज़ा के कई निवासियों का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे एक खुली जेल में रह रहे हैं. कुछ सालों से जारी इसराइली नाकाबंदी इसका एक मुख्य कारण है.
ग़ज़ा ज़मीन की एक छोटी, तंग-सी पट्टी है, जो इसराइल और मिस्र के बीच स्थित है. ग़ज़ा पर हमास की राजनीतिक इकाई का शासन है. हमास को इसराइल और अमेरिका एक आतंकवादी संगठन मानते हैं, वेस्ट बैंक यानी पश्चिमी तट पर राष्ट्रपति महबूब अब्बास के नेतृत्व वाले प्राधिकरण का शासन है, जिसे इसराइल वैध सरकार के रूप में मान्यता देता है.
जंग अक्सर ग़ज़ा में रहने वाले हमास के हथियारबंद लड़ाकों और इसराइली सशस्त्र बलों के बीच होती है. पहला घातक संघर्ष 2006 में हुआ, फिर 2007 में हुआ, सबसे घातक इसराइली हवाई हमले 2014 में हुए, जो 51 दिनों तक चले, मई में हुए हमले 11 दिनों तक चले.
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र की तमारा अलरिफाई ने कहा, "यह याद रखने की बात है कि यह 15 वर्षों से कम समय में चौथा युद्ध है, यह एक छोटे से इलाक़े के सहने के लिए बहुत बड़ी यातनाएँ हैं. ग़ज़ा एक ऐसी जगह है जो एक सख्त नाकेबंदी के तहत है इसलिए इसकी अर्थव्यवस्था चौपट है, और दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह ग़ज़ा भी महामारी का असर झेल रहा है. ऐसे में कई चीज़ें हैं जो ग़ज़ा की कठिनाई को बढ़ा रही हैं."
इसराइल के साथ हर संघर्ष ने इसे अधिक कमज़ोर किया, इसने और ज़्यादा जान-माल का नुक़सान उठाया. डॉक्टर ताहिर जैसे कई लोगों ने अपना घर पूरी तरह से खो दिया है. ताजा हमले के बाद हज़ारों परिवार बेघर हो गए हैं, उनमें से कई लोगों के लिए यह नया अनुभव नहीं है. 2014 में लंबे अरसे तक चले हमलों में जिन हज़ारों लोगों के घर तबाह हुए उनमें से कई अब भी मदद के इंतज़ार में हैं.
तबाही का वायरल वीडियो
ग़ज़ा में रिहाइशी मकानों के अलावा कई कमर्शियल इमारतें भी तबाह हुई हैं. इन इमारतों में कई ग़ैर सरकारी संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के दफ्तर थे, हमलों के कई वीडियो वायरल हुए थे जिनमें से एक वाणिज्यिक क्षेत्र के मध्य में प्रसिद्ध 14-मंजिला अल-शोरोक टॉवर पर इसराइली हमला था जिसकी फुटेज काफी डरावनी थी.
इस इमारत की दो अलग-अलग मंजिलों पर नोअल आक़िल और उनके साथी तामिर अजरमी के दफ़्तर हैं. बसमा सोसाइटी फॉर कल्चर एंड आर्ट्स नाम की ग़ैर-सरकारी संस्था में काम करने वाले ये दोनों कार्यकर्ता अब अपने दफ़्तर से काम नहीं कर सकते. बसमा एक ग़ैर-सरकारी संस्था है जो ग़ज़ा में युवाओं को सशक्त बनाने के लिए थिएटर कार्यक्रम और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलाती है.
ग़ज़ा के लोगों के लिए वाणिज्यिक क्षेत्रों पर हमला हैरानी वाली बात थी. तामेर अजरमी कहते हैं, "हमने नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा, क्योंकि सभी को लगा कि यह एक सुरक्षित क्षेत्र है क्योंकि वहां कई गैर-सरकारी संगठनों के कार्यालय हैं और फिर पड़ोस में सबसे प्रसिद्ध अल-शिफा अस्पताल है."
नोअल और तामेर ने कहा कि चेतावनी का समय कम था इसलिए 13वीं मंजिल पर वापस जाने का कोई मतलब नहीं था, जहां उनका कार्यालय स्थित था जिसमें दफ़्तर के सारे दस्तावेज रखे थे. नोअल आक़िल और तामेर अजरमी कहते हैं, "मिनटों में मिसाइलों ने ऊंची इमारत को नष्ट कर दिया. हमने सभी दस्तावेज, वर्षों के आर्काइव मटेरियल और अन्य सामान खो दिए, हमने सब कुछ खो दिया."
पहले मलबा साफ किया जाएगा
हालांकि, फ़िलहाल ग़ज़ा में रॉकेट और बमों के फटने की आवाज़ें बंद चुकी हैं और युद्धविराम किसी तरह से जारी है, ग़ज़ा को हुए जानी और माली नुकसान का जायज़ा लेने और पुनर्निर्माण और पुनर्वास की योजना बनाने का समय आ गया है. यह ग़ज़ा के पीड़ित नागरिकों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का समय है.
ग़ज़ा के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी कई संस्थाएं और एजेंसियां ले रही हैं. मिस्र भी इसमें मदद कर रहा है. यूएनआरडब्ल्यूए इसमें सब से आगे है. इसने तीन प्राथमिकताएँ तय की हैं, जैसा कि इसकी प्रवक्ता तमारा अलरिफाई ने बताया, "हम तीन प्राथमिकताओं को देख रहे हैं: पहली, हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि युद्ध में बेघर हुए सभी लोगों के पास घर हो, इसका मतलब यह कि यूएनआरडब्ल्यूए लोगों के घरों के पुनर्निर्माण में मदद करेगा या जिनके घरों को नुकसान हुआ है उनका पुनर्वास करेगा.
"हमारी दूसरी प्राथमिकता लोगों पर हुए युद्ध के मानसिक असर से निपटना है, ग़ज़ा में मेरे सहयोगी मौजूदा हालात को एक विशाल मनोवैज्ञानिक संकट मान रहे हैं, ऐसा लगता है ग़ज़ा में सभी लोग मानसिक रूप से पीड़ित हैं. हमारी तीसरी प्राथमिकता यह है कि हम अपनी सुविधाओं का पुनर्निर्माण करें. ग़ज़ा में हमारी 113 सुविधाएं हैं, जिनमें 28 स्कूल और छह स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं जो जंग में क्षतिग्रस्त हो गए हैं."
तमारा का कहना है कि बुनियादी ग्राउंडवर्क तैयार किया जा चुका है. वो कहती हैं कि सभी प्राथमिकताओं पर अनुमानित लागत 152 मिलियन डॉलर आएगी, क़तर और मिस्र ने मिलकर एक अरब डॉलर की सहायता देने का वादा किया है, कई अन्य देशों ने भी मदद की घोषणा की है.
लोगों ने सहायता के लिए दावों का पंजीकरण शुरू कर दिया है, डॉ ताहिर उनमें से एक हैं लेकिन उन्हें मालूम नहीं है कि उन तक मदद पहुंचने में कितना समय लगेगा. वह कहते हैं, "पंजीकरण के बाद हम इंतज़ार ही कर सकते हैं लेकिन नष्ट हुए घरों के पुनर्निर्माण के लिए पिछले संघर्ष (2014) की लिस्ट में शामिल लोगों में कई अब भी मदद का इंतज़ार कर रहे हैं."
मलबे के ढेर चारों तरफ़ हैं, स्थानीय प्रशासन का अनुमान है कि कोई भी पुनर्निर्माण कार्य शुरू होने से पहले मलबे को साफ करने में एक महीने का समय लगेगा. तमारा कहती हैं, "यह सिर्फ़ एक इमारत के पुनर्निर्माण का सवाल नहीं है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम सुरक्षित तरीके से मलबे को हटा दें." अधिकारियों का मानना है कि पुनर्निर्माण कार्य सितंबर से पहले शुरू नहीं हो सकेगा.
क्या सब कुछ हो सकता है सामान्य?
युद्धविराम के बाद इसराइल सरकार और ग़ज़ा की सत्ताधारी पार्टी हमास दोनों ने जीत की घोषणा की. प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार अब सत्ता से बाहर है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हमास को ग़ज़ा के सभी नागरिकों का सम्मान और समर्थन पूरी तरह से कभी भी नहीं मिल पाया है. लेकिन अनुमान है कि इस बार के झगड़े के बाद से हमास के लिए स्थानीय समर्थन में और कमी आई है.
ग़ज़ा की अधिकतर आबादी मुस्लिम है, वहाँ एक छोटा ईसाई अल्पसंख्यक तबका भी आबाद है लेकिन ग़ज़ा में कोई फलीस्तीनी यहूदी नहीं रहता. ग़ज़ा में और इसराइल के अंदर यहूदी-मुसलमान मेल-जोल की बात करना भी कल्पना के बाहर है.
दोनों पक्षों के राजनीतिक वर्ग दो-राज्य सिद्धांत पर सहमत हों इसमें कई दशक लगे और कई और दशक भी लग सकते हैं. क्या ग़ज़ा के मुसलमान इसराइल के यहूदियों से व्यक्तिगत रूप से ही सही बातचीत को तैयार हैं? क्या दोनों में नज़दीकियां बन सकती हैं?
डॉ. ताहेर को यहूदी लोगों से समस्या नहीं है लेकिन वह 'इसराइली राज्य की नस्लभेद की नीति के ख़िलाफ़ हैं और ज़रुरत से ज़्यादा बल प्रयोग के खिलाफ हैं. वे कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि आप भारतीय लोगों और भारत सरकार को मेरा संदेश दें कि इस त्रासदी को समाप्त करने के लिए इसराइल की सरकार का बहिष्कार करें और प्रतिबंध लगाएं. हम उनके ज़ुल्म को 1948 से सह रहे हैं.''
आक़िल का केवल एक यहूदी मित्र है जो अमेरिका में रहता है, वह निश्चित रूप से दोनों समुदायों के बीच दोस्ती के विचार के ख़िलाफ़ नहीं हैं, "हम मुस्लिम या ईसाई या यहूदी या फ़लीस्तीनी या इसराइली होने से पहले इंसान हैं, चूंकि हम इंसान हैं इसलिए हमें एक-दूसरे की रक्षा करनी चाहिए और हमें एक-दूसरे के साथ संवाद करना चाहिए."
उनके सहयोगी तामेर अजरमी भी सकारात्मक नज़रिया रखते हैं. वे कहते हैं, "इसराइल के साथ समस्या उसके लोग नहीं हैं, बल्कि सरकार है, हम फ़लीस्तीनी मुसलमानों और ईसाइयों को किसी यहूदी व्यक्ति से कोई समस्या नहीं है, हम विभिन्न धर्मों के लोगों का सम्मान करते हैं. (bbc.com)
स्पेन के एक मंत्री ने जब लोगों को कम मांस खाने की सलाह दी, तो अपनी ही सरकार के लोग उनके पीछे पड़ गए. मांस कितना खाएं, स्पेन में इस बात पर बवाल हो गया है.
कितना मांस खाया जाना चाहिए, इस बात को लेकर स्पेन में बहस इतनी बढ़ गई है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार आ गई है. प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज की कैबिनेट के मंत्री आपसे में इस सवाल को लेकर उलझे हुए हैं. एक पक्ष का कहना है कि देश के लोगों को गोमांस और अन्य तरह के पशुओं में मिलने वाले प्रोटीन कम खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यह पक्ष शाकाहारी भोजन को प्रोत्साहित करने को लेकर अभियान चलाने की बात कह रहा है.
मांस खाने को लेकर यह बहस इस कदर बढ़ गई है कि लिथुआनिया के दौरे पर गए प्रधानमंत्री सांचेज को वहीं से दखल देना पड़ा. अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, "जहां तक मेरी बात है, तो अगर तुम मुझे एक रिब-आई स्टेक दोगे, तो उस जैसी कोई बात नहीं है."
2020 की शुरुआत में सत्ता में आने के बाद से सांचेज और उनकी वामपंथी रुझाने वाली सोशलिस्ट पार्टी व गठबंधन की जूनियर पार्टनर वामपंथी पार्टी युनाइटेड वी कैन का कई मामलों पर विवाद हो चुका है. इनमें ट्रांसजेंडरों के अधिकार, बढ़ते किराये का मुद्दा, करों में बढ़ोतरी और लोगों को मिलने वाली सरकारी मदद शामिल हैं
यूं छिड़ा विवाद
विवाद के मुद्दों में मांस पिछले हफ्ते तब शामिल हुआ जब 7 जुलाई को युनाइटेड वी कैन पार्टी के नेता और उपभोक्ता मंत्री अल्बर्टो गारजन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया. इस वीडियो में उन्होंने लोगों से अपने खाने में कम से कम मांस का प्रयोग करने की अपील की थी. गारजन ने कहा, "मैं अपने नागरिकों की और अपने ग्रह की सेहत को लेकर फिक्रमंद हूं."
मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के हवाले से कहा कि यूरोपीय संघ में स्पेन मांस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. यूरोप में प्रतिव्यक्ति सालाना औसत उपभोग 76 किलो है जबकि स्पेन में 98 किलो. गारजन ने कहा कि चार करोड़ 70 लाख लोगों के देश में हर साल सात करोड़ गाय, सूअर, भेड़, मुर्गे और अन्य जानवर खाने के लिए काटे जाते हैं.
गारजन ने आगाह किया कि इतने मांस के उत्पादन के लिए इससे कहीं ज्यादा मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार है. गारजन ने हालांकि स्पष्ट किया कि वह मांसाहार के विरोधी नहीं हैं. उन्होंने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है कि हम कभी-कभार परिवार के साथ बार्बेक्यू नहीं कर सकते. हमें बस थोड़ा सा परहेज बरतना होगा और जिन दिनों में हम मांस खाते हैं उसका संतुलन बनाने के लिए बाकी दिनों ज्यादा सलाद, चावल और दालें खानी चाहिए."
उबल पड़े आलोचक
स्पेन के कृषि मंत्री लुई प्लानास को गारजन का यह अभियान कतई नहीं भाया. कैबिनेट मंत्री प्लानास ने इस अभियान को दुर्भाग्यपूर्ण और देश के बीस फीसदी निर्यात के लिए जिम्मेदार उस उद्योग के प्रति अन्यायपूर्ण बताया, जो 10 अरब यूरो यानी लगभग 880 अरब रुपयों का है.
एक रेडियो को दिए इंटरव्यू में प्लानास ने कहा, "पशुपालक इसके हकदार नहीं हैं. उद्योग को बहुत ज्यादा अन्यायपूर्ण आलोचना झेलनी पड़ रही है. यह उद्योग अपने ईमानदार काम और अर्थव्यवस्था में अपने योगदान के लिए सम्मान का हकदार है."
स्पेन के छह मुख्य उद्योग संघों की एक संस्थान ने उपभोक्ता मंत्रालय के अभियान की आलोचना में एक पर्चा भी छापा है. गारजन पर चुनिंदा आंकड़ों के आधार पर ढाई अरब लोगों को रोजगार देने वाले उद्योगों की आलोचना का आरोप लगाते हुए इस पर्चे में उनके अभियान को निंदनीय बताया गया है.
एक संगठन अनाफरिक ने उपभोक्ता मंत्री पर आरोप लगाया कि जिस उद्योग ने यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों को अपनाया है, उसे अपराधी की तरह पेश किया जा रहा है. छोटे किसानों और पशुपालकों के एक संघ यूपीए ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है.
संघ के एक प्रवक्ता ने कहा, "स्पेन में हम बढ़िया खाना खाते हैं. हमारे भूमध्यसागरीय खान-पान के कारण ही दुनिया में हमारे देश के लोग तीसरे सबसे ज्यादा जीने वाले लोग हैं."
वीके/एए (रॉयटर्स)
एक अमेरिकी राजदूत ने कहा है कि बीजिंग के पास जल्द ही पानी के भीतर ड्रोन और परमाणु हथियार वाली मिसाइलें जैसे "अनोखे परमाणु" हथियार हो सकते हैं.
अप्रसार पर जिनेवा में अमेरिकी राजदूत रॉबर्ट वुड ने कहा कि सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि चीन मिसाइलों को सुरक्षित रखने के लिए उत्तर-पश्चिमी शहर युमेन के पास एक रेगिस्तान में 119 साइलो (भूमिगत गोदाम) बना रहा है. वुड ने आगे कहा कि ये भूमिगत गोदाम उसी प्रकार के हैं जिसमें चीन ने मौजूदा परमाणु हथियारों का भंडार किया है और यह बहुत चिंता का विषय है.
क्या हो सकते हैं चीन के नए परमाणु हथियार?
चीन अत्याधुनिक तकनीक की मदद से अपने परमाणु हथियारों को उन्नत करने का काम कर रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर वे अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना सके. पेंटागन ने पिछले साल अनुमान लगाया था कि चीन के पास पहले से ही 200 से अधिक परमाणु हथियार हैं और उस संख्या को दोगुना करने की योजना है.
वुड ने कहा, "चीन वहां नहीं था जहां वह 10 साल पहले था, और वह उसी परमाणु-संचालित कार्यक्रम को हासिल करने की कोशिश कर रहा है, जिस पर रूस काम कर रहा है." अमेरिकी बैलिस्टिक हथियारों से खुद को बचाने के लिए रूस नए रक्षा तरीकों पर विचार कर रहा है, और रॉबर्ट वुड को संदेह है कि चीन अब उसी रास्ते पर चल रहा है.
क्या है उपाय?
रॉबर्ट वुड का तर्क है कि इस मुद्दे से निपटने के लिए रूस और अमेरिका के बीच पहले से ही एक ढांचा है, जबकि चीन के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रूस और अमेरिका के पास लगभग 11,000 परमाणु हथियार हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है.
वुड ने कहा, "जब तक चीन इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ द्विपक्षीय बैठक नहीं करता, तब तक विनाशकारी हथियारों की दौड़ का खतरा बढ़ता रहेगा और किसी को कोई फायदा नहीं होगा."
हालांकि उन्होंने कहा कि चीन दावा करता है कि वह केवल रक्षा क्षमता के साथ "एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति" है. वुड का कहना है, "जब हम देखते हैं कि चीन क्या कर रहा है, तो वह जो कह रहा है, वह उसके विपरीत है."
उन्होंने कहा, "यह सभी के हित में है कि परमाणु शक्तियां एक दूसरे से सीधे परमाणु खतरों को कम करने और गलत अनुमान से बचने के बारे में बात करें."
एए/वीके (एपी, एएफपी)
हैती पुलिस ने गुरुवार को कहा कि अमेरिकियों और कोलंबियाई लोगों से बने 28 सदस्यीय दस्ते ने राष्ट्रपति जोवेनल मोइस की हत्या की है. बताया जा रहा है कि आठ आरोपी फरार हैं.
राष्ट्रपति जोवेनल मोइस की 7 जुलाई को उनके निजी आवास में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड में 17 संदिग्धों को हिरासत में लिया है. हैती के राष्ट्रपति की हत्या में अब तक गिरफ्तार लोगों में से दो हैती और अमेरिका की दोहरी नागरिकता रखते हैं. वहीं कोलंबिया की सरकार का कहना है कि दस्ते में शामिल कम से कम छह पूर्व सैनिक हैं.
तीन आरोपी मारे गए
हैती के राष्ट्रीय पुलिस बल के प्रमुख लिओन चार्ल्स ने कहा कि हिरासत में लिए गए 15 लोग कोलंबिया के हैं. पुलिस प्रमुख का कहना है कि इस हत्याकांड में शामिल आठ और लोगों की तलाश जारी है. उन्होंने कहा कि तीन आरोपी पुलिस की गोली से मारे गए हैं.
हालांकि चार्ल्स ने पहले कहा था कि सात लोग मारे गए हैं. पत्रकारों के सामने 17 संदिग्ध आरोपी को पेश करते हुए चार्ल्स ने कहा, ''हम इन्हें न्याय का सामना कराएंगे.''
कोलंबिया की सरकार ने कहा कि उससे छह संदिग्धों के बारे में पूछा गया है, उनमें वे दो लोग भी शामिल हैं जो मारे गए. सरकार से पूछा गया है कि वह बताए कि क्या ये लोग उसकी सेना के सेवानिवृत्त सदस्य थे. सरकार ने उनकी पहचान जारी नहीं की है.
खूनी दस्ते में दो अमेरिकी भी
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि वह उन रिपोर्टों से अवगत है कि हैती-अमेरिकी हिरासत में हैं लेकिन पुष्टि या टिप्पणी नहीं कर सकता. हैती-अमेरिकी नागरिक की पहचान हैती के अधिकारियों द्वारा की गई है. इनमें जेम्स सोलेजेस, 35 वर्ष और जोसेफ विंसेंट 55 वर्षीय के रूप में हुई है.
चश्मदीदों ने कहा कि भीड़ ने गुरुवार को दो संदिग्धों को पोर्ट ऑ प्रिंस में झाड़ियों में छिपा पाया और कुछ लोगों ने संदिग्धों को पकड़ लिया. लोगों ने आरोपियों की पिटाई की. एसोसिएटेड प्रेस पत्रकार ने देखा कि अधिकारी जोड़ी को पिकअप ट्रक में डालकर ले गए.
भीड़ पिकअप ट्रक के पीछे दौड़ते हुए स्थानीय थाने जा पहुंची और नारेबाजी करने लगी. लोगों ने नारा लगाते हुए कहा, ''उन्होंने राष्ट्रपति को मारा है, उन्हें हमें सौंप दो. हम उन्हें जला डालेंगे.''
हैती के अंतरिम प्रधानमंत्री क्लाउड जोसेफ ने लोगों से व्यवसायों को फिर से खोलने और काम पर वापस जाने को कहा है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को फिर से खोलने का आदेश दिया है.
53 साल के मोइस ने फरवरी 2017 में ही राष्ट्रपति पद संभाला था. राजनीति में आने से पहले मोइस एक कारोबारी थे. मोइस की हत्या के बाद से देश स्तब्ध है.
एए/वीके (एएफपी, डीपीए, एपी)
गुरुवार को एक भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से फौजें बुलाने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि वहां के लोगों को अपना भविष्य खुद तय करना चाहिए.
अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिक वापस बुलाने की समयावधि को और कम कर दिया है. 11 सितंबर के बजाय अब 31 अगस्त से पहले ही पूरी तरह अफगानिस्तान छोड़ देंगे.
व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में एक आयोजन में बाइडेन ने कहा कि अफगान सेना में तालिबान को जवाब देने की क्षमता है. उन्होंने उन खबरों का भी खंडन किया जिनमें कहा गया था कि अमेरिकी एजेंसियों की रिपोर्ट है कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से चले जाने के छह महीने के भीतर तालिबान सत्ता कब्जा लेगा.
बाइडेन ने अपनी फौजों को वापस बुलाने के लिए 31 अगस्त की समयसीमा तय की है. हालांकि काबुल में अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा के लिए लगभग 650 सैनिक वहां तैनात रहेंगे. बाइडेन ने अफगान अनुवादकों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की भी बात कही.
जीत का ऐलान नहीं
अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी को लेकर जो बाइडेन बहुत पहले से सशंकित रहे हैं. गुरुवार को उन्होंने कहा कि 2001 में अफगानिस्तान पर हमला करने का मकसद अमेरिका बहुत पहले हासिल कर चुका है, और वह था अल कायदा का खात्मा और अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 जैसे दूसरे आतंकवादी हमले की संभावनाओं का नाश. अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को 2011 में अमेरिकी सैनिकों ने पाकिस्तान स्थित एक घर में मार गिराया था.
अपने भाषण में बाइडेन ने सावधानी बरती कि वह किसी तरह की जीत का ऐलान न करें. उन्होंने कहा कि कोई अभियान पूरा नहीं हुआ है. बाइडेन ने कहा, "हमने वे मकसद हासिल कर लिए. इसीलिए हम वहां गए थे. हम अफगानिस्तान में कोई राष्ट्र स्थापित करने नहीं गए थे. यह फर्ज और जिम्मेदारी अफगान लोगों की है कि वे अपने देश को कैसे चलाना चाहते हैं.”
इप्सोस संस्था के एक सर्वेक्षण के मुताबिक ज्यादातर अमेरिकी लोग बाइडेन के अफगानिस्तान से सेनाएं वापस बुलाने के फैसले का समर्थन करते हैं. हालांकि 28 प्रतिशत वयस्क ही मानते हैं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपना लक्ष्य हासिल किया. 43 फीसदी लोगों ने कहा है कि अमेरिका की वापसी अल कायदा के लिए मददगार साबित होगी.
खुद संभालें अफगानिस्तान
अपने फैसले के आलोचकों से बाइडेन सीधे सीधे सवाल किया, "आप लोग और कितने हजार अमेरिकी बेटों और बेटियों की जान खतरे में डालना चाहते हैं? कब तक आप उन्हें वहां रखना चाहते हैं? मैं अमेरीकियों की एक और पीढ़ी को अफगानिस्तान नहीं भेजूंगा जबकि किसी और तरह के नतीजे की कोई तार्किक उम्मीद नहीं है.”
अमेरिकी राष्ट्रपति ने जो अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से भी अपील की कि विभिन्न विरोधी राजनीतिक पक्षों के बीच एक समझौता कराने में मदद करें. उन्होंने कहा कि अफगान सरकार को तालिबान के साथ समझौता करना चाहिए ताकि दोनों पक्ष शांतिपूर्ण तरीके से एक साथ रह सकें. हालांकि उन्होंने कहा, "पूरे देश पर नियंत्रण करने वाली एक सरकार के अफगानिस्तान में होने की संभावनाएं कम ही हैं.”
बाइडेन ने अपनी सेना के साथ काम करने वाले अफगान अनुवादकों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि हजारों अफगान अनुवादकों को अगस्त में सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जाएगा और वे अमेरिकी वीजा के लिए अप्लाई कर पाएंगे.
मुश्किल में काबुल
अमेरिकी सैनिकों ने पिछले हफ्ते ही बगराम एयर बेस को खाली कर दिया था. देश के 90 फीसदी सैनिक अफगानिस्तान से जा चुके हैं. ऐसा पिछले साल तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ हुए एक समझौते के तहत हो रहा है. कुछ अमेरिकी सैन्य अधिकारी इलाके में अपनी मौजूदगी को और लंबे समय तक बनाए रखना चाहते थे लेकिन जो बाइडेन ने उनकी सालह नहीं मानी. पहले उन्होंने 11 सितंबर तक सैनिकों की वापसी खत्म कर लेने की बात कही थी.
जो बाइडेन के भाषण पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं. रिपब्लिकन सांसद माइकल मैकॉल ने कहा कि राष्ट्रपति ने बस खोखले वादे किए हैं. विदेशी मामलों की समिति के सदस्य मैकॉल ने कहा, "कोई विस्तृत योजना पेश नहीं की गई. एक दूसरे पर इल्जाम लगाने का वक्त जा चुका है. अमेरिकी लोग जवाब और ठोस हल पाने के हकदार हैं.”
अमेरिका की जासूसी एजेंसियों के लोग मानते हैं कि अफगान सेना कमजोर है और अमेरिकी सेना के चले जाने के बाद काबुल में सरकार के बचे रहने की संभावनाएं कम ही हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
कोरोना के नए-नए स्ट्रेन दुनिया के तमाम देशों को शिकार बना रहे हैं. दूसरी लहर में इंडोनेशिया भी भारत जैसी स्थिति में है. अस्पतालों में दवाओं, वेंटिलेटरों और बिस्तरों की किल्लत है और वैक्सीन की समस्या भी खत्म नहीं हो रही.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
कोविड के मार झेल रहे दूसरे कई देशों की तरह इंडोनेशिया भी महामारी की रोकथाम में सबसे अहम - टेस्टिंग के मामले में पिछड़ रहा है. और जब से कोविड के सबसे खतरनाक डेल्टा वेरिएंट का प्रसार बढ़ा है संक्रमण और कुल मौतों की गिनती में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. इंडोनेशिया के लिए सबसे बड़ी समस्या फिलहाल यही है कि देश के पास न अपनी वैक्सीन है और न वैक्सीन की आपूर्ति का कोई किफायती, भरोसेमंद और असरदार स्रोत. फिलहाल इंडोनेशिया की वैक्सीन आपूर्ति चीन से हो रही है जिसकी गुणवत्ता और असरकारक क्षमता दोनों पर ही सवालिया निशान लगते रहे हैं.
अब तक इंडोनेशिया की कुल वयस्क जनसंख्या के केवल 5 प्रतिशत को ही पूरी तरह वैक्सीन लगाया जा सका है. उसकी मुश्किल यह भी है कि डेल्टा के प्रसार के कोविड-19 से जुडी बच्चों की मौतों में भी इंडोनेशिया में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. बच्चों में कोविड संक्रमण के मामले में इंडोनेशिया दुनिया के सबसे प्रभावित देशों में है. समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में हर आठवां कोविड पीड़ित 18 से कम उम्र का है. 18 से कम आयु वर्ग के 600 से ज्यादा लोग अब तक अपनी जान गवां चुके हैं. अभी तक 18 से कम आयु वर्ग में कोविड महामारी फैलने की वजहें साफ तौर पर सामने नहीं आ सकी है.
जावा और बाली में स्थिति खराब
जावा और बाली द्वीपों में स्थिति ज्यादा भयावह है. इंडोनेशिया के हालातों से यह साफ है कि बिना अंतरराष्ट्रीय समुदाय और बड़ी ताकतों की मदद के बिना उसके हालात और खराब ही होंगे. इन दोनों ही क्षेत्रों में लोगों के बाहर निकलने और आने जाने पर और कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए हैं लेकिन कोविड केसों में कमी आने में समय लगेगा. जकार्ता और जावा के तमाम शहरों में अस्पताल 90 प्रतिशत तक भरे हुए हैं और स्वास्थ्य कर्मियों और सरकार की चिंताएं बढ़ रही हैं कि यह संख्या कहीं और न बढ़ जाय. देश में अब तक लगभग 23.5 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और लगभग 62 हजार लोग मारे जा चुके हैं. माना जा रहा है कि इस हफ्ते दैनिक संक्रमण का आंकड़ा 50 हजार को पार कर जाएगा.
अपनी क्षमतानुसार इंडोनेशिया ने इस महामारी से निपटने की कोशिश भी की है. कोविड के चलते रोजगार खो चुके और गरीबी की मार झेल रहे लोगों की मदद करने के लिए सरकार ने आर्थिक मदद के कई कदम उठाए हैं. सरकार ने इसी हफ्ते स्वास्थ्य-संबंधी सुविधाओं के लिए बजट में बढ़ोत्तरी करने का वादा किया है. कोविड से होने वाली आर्थिक नुकसान से निपटने के लिए इंडोनेशिया की सरकार ने कई चरणों में और कई स्तरों पर स्टिमुलस पैकेजों और आर्थिक सहायता अनुदानों की भी घोषणा की है.
आर्थिक मदद और हेल्थकेयर पर जोर
जोकोवी सरकार ने 16 जून 2020 को कोविड से निपटने के लिए स्टेट बजट की घोषणा की थी जिसका नाम नेशनल रिकवरी प्लान था. यह बजट शुरू में 695 ट्रिलियन इंडोनेशियन रूपिया था लेकिन नवंबर 2020 तक इसे बढ़ाकर लगभग 750 ट्रिलियन रूपिया कर दिया गया. इसने अर्थव्यवस्था की डावांडोल स्थिति से उबरने में सरकार की मदद की है. जोकोवी सरकार ने हेल्थकेयर, सोशल प्रोटेक्शन, छोटे और मझोले उद्योगों को राहत और इन्सेन्टिव, और सरकारी संस्थानों को भी मदद की कई योजनाएं पेश की है. मिसाल के तौर पर अस्पतालों में अब टेली-मेडिसिन के जरिये उन मरीजों का इलाज होगा जिनकी स्थिति गंभीर नहीं है और उन्हें इमरजेंसी देखरेख की जरूरत नहीं है. यह एक अच्छा कदम है जिसे पहले ही लागू कर देना चाहिए था. पर अभी भी देर नहीं हुई है.
कोविड महामारी ने कई मोर्चों पर आम जनजीवन और सरकारों को प्रभावित किया है कि कोई भी सरकार इससे सुरक्षित नहीं निकल पायी है. तमाम देशों की तरह इंडोनेशिया में भी कोविड महामारी के इतने भयावह रुप धारण करने के पीछे एक बड़ी वजह रही है, लोगों का स्वास्थ्य संबंधी सुझावों और सोशल डिस्टेंसिंग तथा मास्क लगाने जैसी बातों का न मानना. हालांकि देर तो काफी हो चुकी है, लेकिन सरकार इस पर भी कड़ी नजर रख रही है. कोविड महामारी से जूझने में शायद वैक्सीन न मिलना ही इस समय इंडोनेशिया के गले की फांस बन रहा है. (dw.com)