अंतरराष्ट्रीय
उत्तर कोरिया में कोरोना वायरस संक्रमण तेजी से फैलता दिख रहा है और अब यहां के नेता किम जोंग उन ने तेजी से बढ़ते संक्रमण को बड़ी आपदा करार दिया है.
उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया ने ये जानकारी दी है कि शनिवार को किम जोंग उन ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और संक्रमण से निपटने के लिए कोशिशों को और तेज करने की बात कही है.
किम जोंग उन का ये बयान और बैठक की जानकारी ऐसे समय सामने आई है जब गुरुवार को पहले कोरोना केस की आधिकारिक पुष्टि की गई. हालांकि, विशेषज्ञ ये मानते हैं कि कोरोना वायरस कुछ समय से उत्तर कोरिया में फैल रहा है. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि बढ़ते संक्रमण के गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.
दरअसल, उत्तर कोरिया की 2.5 करोड़ की आबादी वैक्सीनेशन प्रोग्राम की कमी और ख़राब हेल्थकेयर सिस्टम की वजह से कोरोना की चपेट में आ सकता है. शनिवार को सरकारी मीडिया ने बताया कि हाल के हफ्तों में क़रीब 5 लाख रहस्यमयी बुखार के मामले सामने आए हैं. टेस्टिंग की पर्याप्त सुविधा नहीं होने की वजह से बहुत सारे ऐसे केस में कोविड की पुष्टि नहीं हो सकी है.
केसीएनए न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक़, किम जोंग उन ने नौकरशाही और चिकत्सकीय अक्षमता को इस संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया है और सुझाव दिया है कि देश को चीन जैसे पड़ोसी देशों से सबक लेना चाहिए. सरकारी मीडिया के मुताबिक़, बुखार की वजह से अप्रैल में अबतक 27 लोगों की मौत हो चुकी है. (bbc.com)
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति शेख़ खलीफ़ा बिन ज़ायेद अल नहयान के निधन के एक दिन बाद शनिवार को शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नहयान को राष्ट्रपति चुन लिया गया है.
न्यूज़ एजेंसी एएफपी ने आधिकारिक मीडिया के हवाले से ये जानकारी दी है.
फेडरल सुप्रीम काउंसिल ने ये नियुक्ति की है, इससे पहले शेख़ मोहम्मद ने फेडरल सुप्रीम काउंसिल के सदस्यों से मुलाकात की थी.
शेख़ मोहम्मद संयुक्त अरब अमीरात के संस्थापक राष्ट्रपति शेख़ ज़ायेद बिन सुल्तान अल नहयान के तीसरे बेटे हैं और शेख़ खलीफ़ा के सौतेले भाई हैं.
ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें ही देश की बागडोर सौंपी जाएगी.
शेख़ मोहम्मद को ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है जो मध्य-पूर्व में तेजी से उभरे हैं. इसराइल के साथ यूएई के संबंधों को मजबूत करने और सऊदी अरब के साथ मजबूत साझेदारी बनाए रखने में उनका अहम योगदान रहा है. (bbc.com)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के एक लड़के से मिलने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
इस वीडियो में लड़का ख़ासा भावुक है जिसके बाद इमरान ख़ान लड़के के कुर्ते पर ऑटोग्राफ़ दे रहे हैं.
दरअसल, इस लड़के से इमरान ख़ान की मुलाक़ात एक वायरल वीडियो के बाद हो पाई है. इसके बाद इस मुलाक़ात का वीडियो भी वायरल हो रहा है.
हाल ही में एबटाबाद की एक रैली में अबू बकर नामक लड़का पीटीआई के चेयरमैन इमरान ख़ान से मुलाक़ात करना चाहता था लेकिन उसे मिलने नहीं दिया गया जिसके बाद उसका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो रो रहा था और कह रहा था कि वो इमरान ख़ान से मिलकर रहेगा.
इसके बाद गुरुवार को अबू बकर ने इमरान ख़ान के आवास पर उनसे मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के दौरान भी अबू बकर भावुक हो गए. इस घटना का वीडियो इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई ने ट्वीट किया है.
इस दौरान अबू बकर ने इमरान ख़ान को एक अंगूठी भी दी. अबू बकर ने इमरान ख़ान को बताया कि वो नौवीं क्लास के छात्र हैं.
इमरान ख़ान ने अबू बकर को चुप कराते हुए कहा कि 'जब तुम बड़े हो जाओगे तो तुम्हें बड़े काम करने हैं, रोने की ज़रूरत नहीं है.'
पीटीआई ने ट्वीट में लिखा है, "मोहम्मद अबू बकर ख़ान मरवत लक्की मरवत से एबटाबाद जलसे में शिरकत के लिए ख़ासतौर पर आया था. बनी गाला में इमरान ख़ान ने उसके जज़्बे को देखते हुए बुलाया और इमरान ख़ान साहब से मुलाक़ात हुई और ऑटोग्राफ़ दिया."
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मुलाक़ात के बाद अबू बकर ने कहा
इमरान ख़ान से मुलाक़ात के बाद का भी एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें अबू बकर रो रहे हैं.
रोते हुए अबू बकर कह रहे हैं कि उन्होंने इमरान ख़ान से मुलाक़ात की है और उन्हें बहुत अच्छा लगा है.
वो अपने कुर्ते को दिखाते हुए कह रहे हैं कि इमरान ख़ान ने उन्हें ऑटोग्राफ़ दिया है.
सोशल मीडिया पर आलोचना भी
एक ओर जहां सोशल मीडिया पर लोग अबू बकर की इमरान ख़ान से मुलाक़ात की तारीफ़ कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अबू बकर को मनोचिकित्सक के पास ले जाने को कह रहे हैं.
पाकिस्तान के पत्रकार ख़ुर्रम शहज़ाद ने ट्वीट किया है कि इस लड़के को मनोचिकित्सक की ज़रूरत है.
वो लिखते हैं, "इस बच्चे को मनोचिकित्सक की ज़रूरत है. भावनाओं को काबू करने के लिए इलाज की ज़रूरत है. किसी को चाहना ठीक है लेकिन भावनात्मक रूप से ढह जाने का मतलब है कि आप मानसिक रूप से कमज़ोर हैं."
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वहीं काज़िम हुसैन चन्ना नामक एक शख़्स ट्वीट करते हैं कि 'इस लड़के को अपनी भावनाओं को काबू पाने के लिए मनोचिकित्सक की ज़रूरत है.'
पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से यूज़र हैं जो इस मुलाक़ात की तारीफ़ कर रहे हैं.
अल्ताफ़ अब्बास नामक एक यूज़र लिखते हैं कि यह सोशल मीडिया की ताक़त को दिखाता है.
पाकिस्तान में ट्विटर पर अबू बकर नाम से अब तक साढ़े 14 हज़ार से अधिक ट्वीट किए जा चुके हैं. (bbc.com)
लंदन। कोरोना की मार से ब्रिटेन उबर नहीं पा रहा है। लिहाजा, सरकारी खर्चों में कटौती करने के लिए ब्रिटेश सरकार करीब 91 लाख सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकालने जा रही है। इस लिहाज से ब्रिटेन में हर पांच सरकारी कर्मचारियों में से एक की नौकरी चली जाएगी।
ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने भी डेली मेल अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि हमें जीवन यापन की लागत को कम करने के लिए सरकारी खर्च को कम करना होगा।
बोरिस जॉनसन ने यह भी कहा कि कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि करीब 91 हजार सरकारी नौकरियों को खत्म करना होगा। इसका मतलब है कि ब्रिटेन में करीब 20 फीसदी सरकारी नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इससे सालाना 3.5 अरब ब्रिटिश पाउंड की बचत होगी।
ब्रिटेन सरकार के वरिष्ठ मंत्री जैकब रीस-मोग के मुताबिक यह कार्रवाई सरकारी खर्च को कम करने के मकसद से की जा रही है। जैकब रीस-मोग ने कहा- सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सरकारी नौकरियां उतनी ही पहुंच रही हैं, जितनी साल 2016 में थीं।
गौरतलब है कि ब्रिटेन सरकार कोरोना के बाद से ही अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश में लगी हुई है। सरकार का कहना है कि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है और सरकार जो भी कदम उठा रही है वह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए है। जैकब रीस-मोग ने कहा कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी लोग घर से काम कर रहे हैं।
जैकब रीस-मोग के अनुसार, हर साल 38,000 लोग सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में सही होगा कि सरकारी नौकरियों में होने वाली भर्तियों पर रोक लगा दी जाए। (cinanews.in)
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति शेख़ खलीफ़ा बिन ज़ायेद अल नहयान का निधन हो गया है. यूएई सरकार ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है.
राष्ट्रपति शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायेद अबू धाबी के शासक थे. उनके निधन पर 40 दिनों का शोक रखा गया है.
यूएई के संविधान के मुताबिक उनके निधन के बाद उप-राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मख्तम कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभालेंगे. सात अमीरातों के शासक अगले 30 दिनों में मिलेंगे और नए राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे.
शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायेद 1948 में पैदा हुए थे और 2004 में सबसे अमीर अमीरात अबू धाबी में सत्ता में आए थे. वो यूएई के दूसरे राष्ट्रपति थे और अबू धाबी के 16वें शासक थे. उनके बाद उनके सौतेले भाई क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिना ज़ायेद अल-नहयान अमीरात के अगले शासक हो सकते हैं.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया, ''यूएई के राष्ट्रपति शेख खलीफ़ा बिना जायेद अल-नहयान के निधन पर गहरा दुख है. यूएई ने एक दूरदर्शक नेता और पाकिस्तान ने एक बड़ा दोस्त खो दिया है. हम सरकार और यूएई के लोगों के लिए दिल से संवेदना व्यक्त करते हैं.'' (bbc.com)
टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि ट्विटर को ख़रीदने की डील फ़िलहाल रोक दी गई है.
उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक स्टोरी को ट्वीट करते हुए लिखा, ''ट्वीटर डील अस्थायी तौर पर रुकी, स्पैम या फर्जी अकाउंट पांच प्रतिशत से कम यूजर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं इस आंकड़े को लेकर और जानकारी मिलना बाक़ी है."
रॉयटर्स की रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि ट्वीट के अनुमान के मुताबिक़ पहली तिमाही के दौरान ट्विटर पर स्पैम या फर्जी अकाउंट मोनेटाइज़ किए जा सकने वाले दैनिक सक्रिय यूजर्स के पाँच प्रतिशत से कम का प्रतिनिधित्व करते हैं. यानी पाँच प्रतिशत से कम ऐसे यूजर्स को मोनेटाइज़ किया गया है जो फ़र्जी अकाउंट हैं.
मोनेटाइज यूज़र वो होते हैं जिन्हें विज्ञापन दिया जाता है और उसके बदले उन्हें भुगतान होता है. ट्वीटर के करीब 22 करोड़ 90 लाख यूजर्स थे जिन्हें पहली तिमाही में विज्ञापन दिया गया था.
पिछले दिनों दुनिया के सबसे अमीर शख़्स एलन मस्क ने ट्विटर को 44 अरब डॉलर में खरीदने का ऑफ़र दिया है जिसे कंपनी ने स्वीकार कर लिया था. (bbc.com)
-नितिन श्रीवास्तव
श्रीलंका में हालात बेहतर होने से कहीं दूर हैं, बजाय इसके कि गुरुवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई है.
पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे अब इस्तीफ़ा दे चुके हैं. वे परिवार के साथ देश के उस पूर्वी इलाक़े में जा बैठे हैं, जहाँ वे आधिकारिक दौरे भी कम ही किया करते थे.
महिंदा के भाई गोटाबाया राजपक्षे अभी भी देश के राष्ट्रपति हैं और बढ़ते हुए विरोध के बावजूद सत्ता छोड़ने को तैयार नही हैं.
कोलंबो के एक मैजिस्ट्रेट ने महिंदा राजपक्षे के परिवार समेत 13 लोगों के ऊपर देश से बाहर न जाने का ट्रैवल बैन भी लगा दिया है.
उनके बेटे नमल राजपक्षे ट्वीट के ज़रिए कह रहे हैं, "देश में नफ़रत और हिंसा फैलाने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए और उनके ख़िलाफ़ भी जिन्होंने सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया और उनके ख़िलाफ़ भी जिन्हें बेक़ाबू भीड़ ने निशाना बनाया था."
बात है 9 मई की, जगह थी कोलंबो के सबसे महंगे गॉल स्ट्रीट इलाक़े के सबसे पॉश एड्रेस, टेम्पल ट्रीज़. महिंदा राजपक्षे का आधिकारिक निवास.
इसी के बाहर महिंदा राजपक्षे और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ महीने भर से शांतिपूर्ण विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच भिड़ंत हुई थी.
42 साल की नूरा भी पिछले कई हफ़्तों से श्रीलंका के बिगड़े हालात को लेकर सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रही हैं. उस रात को याद कर वे अब बेचैन हो उठती हैं.
वे कहती हैं, "हम लोग तो गॉल फ़ेस पर धरना स्थल पर ही बैठे थे. फ़ेसबुक पर मैसेज आने शुरू हुए कि राजपक्षे समर्थकों की बड़ी भीड़ हमारी तरफ़ बढ़ रही है. बस उनके घर के पास ही वे आकर हमें मारने-पीटने लगे. मैं अकेली महिला थी क़रीब दो दर्जन लोगों मेरे शरीर को दबाया, कपड़े खींचे और आगे बढ़ गए,"
ये बताते हुए नूरा की आँखे नम हो चुकीं थीं.
उस सदमे को भुलाने की कोशिश करते हुए नूरा फिर से गॉल फ़ेस पर प्रदर्शनकारियों के साथ बैठी हुई हैं और उनकी माँग है, "राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफ़े से कम में कोई यहां से नहीं हिलेगा."
उस रात की हिंसा के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन फिर भी लोगों को ग़ुस्सा नहीं थमा और अगले दिन यानी मंगलवार शाम तक सत्ताधारी पार्टी के लोगों के ख़िलाफ़ मुहिम जारी रही.
तब से राजधानी कोलंबो में कर्फ़्यू लगा दिया गया, जिसमें गुरुवार को सात घंटे की छूट दी गई.
श्रीलंका में गहरा चुके आर्थिक संकट से निबटने में सरकार की नाकामी के ख़िलाफ़ होने वाले प्रदर्शन फिर से तेज़ी पकड़ रहे हैं. गुरुवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ तो ली लेकिन ज़्यादातर लोग इससे बहुत सहमत नहीं दिख रहे हैं.
श्रीलंका के सबसे सफलतम क्रिकेटरों में से एक कुमार संगकारा की पत्नी येहाली भी लोगों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए पहुँची थीं.
उन्होंने कहा, "हम लोग इस देश में सिर्फ़ शांति चाहते हैं और कुछ नहीं. ये प्रदर्शनकारी बहुत प्यारे और शांतिपसंद हैं. मैं यहाँ इसलिए हूँ, क्योंकि ये हमारे देश के भविष्य हैं."
महिंदा राजपक्षे को कभी सिंहला बहुसंख्यक 'वॉर हीरो' के तौर पर देखा जाता था. उनके सिर पर देश में हिंसक 'तमिल फ़्रीडम' की मुहिम चलाने वाली एलटीटीई को जड़ से मिटाने का सेहरा भी बंधता रहा है.
लेकिन जानकारों को लगता है कि महिंदा और उनके परिवार ने देश पर जिस तरह से राज किया, वो लोगों को अखर रहा है.
कोलंबो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल इकोनोमी के प्रोफ़ेसर फ़र्नांडो के मुताबिक़, "आप क़र्ज़ लेते गए, फिर उस पैसे का क्या हुआ साफ़ तौर पर पता नहीं चला. साथ ही आपने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि आपके सरकारी ट्रेज़री में विदेशी मुद्रा ख़ाली होती चली गई. क्या कह कर अब लोगों का ग़ुस्सा ठंडा कीजिएगा?"
श्रीलंका के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि ग़ुस्सा हर तबके, हर समुदाय और हर उम्र के लोगों में दिख रहा है.
गॉल फ़ेस प्रदर्शन स्थल से थोड़ी दूर एक टेंट के भीतर कुछ ईसाई सिस्टर्स बैठीं मिली. पता चला कि वे एक महीने से यहाँ हैं और होली फ़ैमिली चर्च से जुड़ी हुई हैं.
उनमें से एक सिस्टर शिरोमी ने कहा, "हम लोगों को न कोई लाभ चाहिए, न कोई फ़ायदा. बस ये देखना असंभव होता जा रहा था कि देश गर्त में जा रहा है. 9 मई को जो हुआ वो सबसे शर्मनाक था. ग़ुस्साए हुए राजनीतिक समर्थकों ने निहत्थे लोगों को निशाना बनाया. मैंने ख़ुद देखा है कि कैसे महिलाओं के साथ बदसलूकी हुई और कैसे युवा छात्रों को घसीटा गया. वरना उनके विरोध में देशभर में ये ग़ुस्सा क्यों फैलता?".
हक़ीक़त यही है कि आज श्रीलंका में खाने-पीने के सामान, दूध, गैस, केरोसिन तेल और दवाओं जैसी ज़रूरी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. पेट्रोल पंप ख़ाली पड़े हैं, क्योंकि देश के पास बाहर से तेल आयात करने के बदले देने के लिए डॉलर नहीं हैं.
नूरा नूरा ने आख़िर में कहा, "आख़िर हमारा देश कैसे ख़राब हो गया. बिजली नहीं, पानी नहीं, पेट्रोल नहीं, खाना नहीं. हमारे बच्चों के पास पैसा नहीं. अगर अब कुछ नहीं हुआ तो हम कभी भी पहले वाला श्रीलंका नहीं हो सकेंगे." (bbc.com)
कोलंबो, 13 मई । श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि वह अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ करीबी संबंध बनाने को लेकर आशान्वित हैं और उन्होंने देश की आर्थिक सहायता करने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया। श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
विक्रमसिंघे (73) ने देश की कर्ज से दबी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और राजनीतिक उथल-पुथल को खत्म करने के उद्देश्य से बृहस्पतिवार को श्रीलंका के 26वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली।
विक्रमसिंघे ने उनके देश की भारत द्वारा की गयी आर्थिक सहायता का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘मैं करीबी संबंध चाहता हूं और मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं।’’
उनकी यह टिप्पणियां शपथ लेने के बाद गत रात यहां आयोजित एक धार्मिक समारोह में आयी।
भारत ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक श्रीलंका को तीन अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है।
भारत ने बृहस्पतिवार को कहा था कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार गठित नयी श्रीलंका सरकार के साथ काम करने को लेकर आशान्वित है तथा द्वीप राष्ट्र के लोगों के प्रति नयी दिल्ली की प्रतिबद्धता बरकरार रहेगी।
यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। देश में सोमवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया था। महिंदा ने अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले को लेकर भड़की हिंसा के बाद इस्तीफा दिया था।
इस हमले के बाद राजपक्षे के वफादारों के खिलाफ व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई थी, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गयी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए।
विक्रमसिंघे ने कहा कि उनका ध्यान आर्थिक संकट से निपटने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस समस्या को सुलझाना चाहता हूं ताकि पेट्रोल, डीजल और बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।’’
श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘मैंने जिस काम का बीड़ा उठाया है, मैं वह करूंगा।’’
यह पूछने पर कि क्या 225 सदस्यीय संसद में उनका प्रधानमंत्री पद बरकरार रह सकता है क्योंकि उनके पास केवल एक सीट है, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘जब बहुमत साबित करने की बात आएगी तो मैं साबित करूंगा।’’
देशभर में प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सचिवालय के समीप चल रहा मुख्य प्रदर्शन जारी रहने दिया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘अगर प्रदर्शनकारी चाहेंगे तो मैं उनसे बात करूंगा।’’
यह पूछने पर कि क्या उन्हें इस्तीफा देने की मांग को लेकर प्रदर्शन की आशंका है, इस पर विक्रमसिंघे ने कहा कि वह उनका सामना करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘अगर मैं आर्थिक संकट से निपटने का जिम्मा उठा सकता हूं तो मैं इससे भी निपट सकता हूं।’’
सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समागी जन बलवेगया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों के सदस्यों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है।
हालांकि कई वर्ग नए प्रधानमंत्री के रूप में विक्रमसिंघे की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं।
जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना) और तमिल नेशनल एलायंस ने दावा किया कि उनकी नियुक्ति असंवैधानिक है।
पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी ने कहा कि उसकी केंद्रीय समिति फैसला लेने के लिए शुक्रवार सुबह बैठक करेगी।(भाषा)
यूक्रेन और रूस के बीच होते टकराव के चलते अब तक 48 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है, अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही यह आंकड़ा 70 लाख पर पहुंच जाएगा
By Lalit Maurya
युद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओयुद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओ युद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओ
कहते हैं युद्ध से किसी का भला नहीं होता। ऐसा ही कुछ यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते टकराव में भी सामने आया है। कल अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 48 लाख लोगों के रोजगार छिन गए हैं। यह यूक्रेन में संघर्ष से पहले कुल रोजगार का करीब 30 फीसदी है।
इतना है नहीं यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर यह टकराव इसी तरह और अधिक बढ़ता है, तो इससे रोजगार को होने वाले नुकसान का आंकड़ा बढ़कर 70 लाख तक जा सकता है। मतलब कि इसकी वजह से करीब 43.5 फीसदी लोग बेरोजगार हो जाएंगें।
विश्लेषण में इस बात की भी सम्भावना व्यक्त की गई है कि यदि युद्ध तत्काल रोका दिया जाए तो इन परिस्थितियों से जल्द उबरा जा सकता है। यदि ऐसा हो पाता है तो अनुमान है कि इसकी मदद से 34 लाख रोजगार को फिर से बहाल किया जा सकेगा और रोजगार को होने वाली हानि को 8.9 फीसदी पर सीमित रख पाने में सफल रहेंगें।
गौरतलब है कि 24 फरवरी को शुरू हुए रूसी आक्रमण के बाद से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है। इस दौरान करीब 52 लाख से अधिक लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है, जिनमें अधिकतर महिलाएं, बच्चे और 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग हैं।
पता चला है कि कुल शरणार्थियों में लगभग 27 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र काम करने की है। अनुमान है कि इनमें से 43 फीसदी यानी करीब 12 लाख या तो पहले काम कर रहे थे या फिर उन्हें अपने रोजगार को छोड़ शरणार्थी बनने को मजबूर होना पड़ा है।
सिर्फ यूक्रेन ही नहीं अन्य देशों में भी बढ़ सकती है बेरोजगारी
संकट की इस घड़ी में यूक्रेन सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, जिससे राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को जारी रखा जा सके। इसके तहत उन लोगों को भी मदद देने की कोशिश की जा रही है जो लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
देखा जाए तो यूक्रेन में छाए इस संकट से उसके पड़ोसी देशों मुख्य रूप से हंगरी, मोल्दोवा, पोलैण्ड, रोमानिया और स्लोवाकिया में भी रोजगार पर असर पड़ा है। आईएलओ का कहना है कि यदि टकराव की स्थिति और लम्बे समय तक जारी रहती है तो उससे यूक्रेनी शरणार्थियों को लम्बे समय के लिए दूसरे देशों में शरण लेनी होगी, जिसका असर उसके पड़ोसी देशों में रोजगार और उनकी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर पड़ेगा। ऐसे में कुछ देशों में बेरोजगारी बढ़ सकती है।
युद्ध के हालात कितने बदतर हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यूक्रेन की सरकार को अपने नागरिकों से युद्ध में शामिल होने की अपील करनी पड़ी थी। विडम्बना देखिए कि यूक्रेन में जिन वैज्ञानिकों के हाथों में कभी कलम और लैब में परखनली हुआ करती थीं अब उन हाथों में घातक हथियार दिख रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ रूस के आर्थिक क्षेत्र और रोजगार में आए व्यवधान का असर मध्य एशिया के उन देशों में भी देखा जा सकता है, जिनकी अर्थव्यवस्था रूस पर निर्भर है। इसके चलते कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों पर असर पड़ रहा है। गौरतलब है कि रूस में बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए आते हैं जोकि अपनी आय का बड़ा हिस्सा अपने देशों को भेजते हैं, लेकिन इस युद्ध के चलते इसपर असर पड़ा है।
युद्ध का असर भारत में भी कृषि उत्पादों पर पड़ा है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत करीब 70 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन और 20 फीसदी रूस से आयात करता था, लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद आयात पर गंभीर असर पड़ा है।
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि टकराव जारी रहने की स्थिति और रूस द्वारा लगाई पाबन्दियों से प्रवासी श्रमिकों के रोजगार पर असर हो सकता है, जिससे मध्य एशियाई देशों को आर्थिक क्षति हो सकती है। इस युद्ध का दंश वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी झेलना पड़ रहा है, इसके चलते कोविड-19 महामारी से उबरने की डगर और कठिन हो गई है।
इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर रोजगार, आय और सामाजिक सुरक्षा पर असर पड़ने की सम्भावना है। इस युद्ध का असर दुनिया भर के कई देशों में खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ा है, जिनमें अफ्रीका भी शामिल हैं। ऐसे में हम यही आशा करते हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच चलता यह युद्ध जल्द से जल्द थम जाए, जिससे लोगों की जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट आए। (downtoearth.org.in/hindistory)
संयुक्त राष्ट्र, 13 मई । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान की महिलाओं के खिलाफ तालिबान के हालिया दमनकारी फरमान पर चर्चा करने के लिए बृहस्पतिवार को बंद कमरे में बैठक की।
इस दौरान, नॉर्वे द्वारा तैयार किए गए बयान में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियों को पलटने का आह्वान किया गया।
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सिर से लेकर पैर तक बुर्के में ढके रहने का शनिवार को आदेश दिया। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर बाहर जरूरी काम नहीं है तो महिलाओं के लिए बेहतर होगा कि वे घर में ही रहें। इसके साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तालिबान द्वारा कट्टर रुख अपनाने की आशंका को बल मिला है।
उल्लेखनीय है कि तालिबान ने वर्ष 1996-2001 के पिछले शासन काल में भी महिलाओं पर इसी तरह की सख्त पाबंदी लगाई थी।
तालिबान ने कक्षा छह के बाद लड़कियों की शिक्षा पर पहले ही रोक लगा दी है और महिलाओं को अधितकर नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा यदि महिलाओं के साथ कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं है, तो वे विमान में यात्रा नहीं कर सकतीं।
संयुक्त राष्ट्र में नॉर्वे की उप राजदूत ट्रिने हीमरबैक ने परिषद की बैठक से पहले संवाददाताओं से कहा कि तालिबान की नीतियां देश की ‘‘प्रलयकारी आर्थिक एवं मानवीय स्थिति’’ से निपटने के बजाय महिलाओं एवं लड़कियों के दमन पर केंद्रित हैं।
इस बीच, महिलाओं, शांति एवं सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अनौपचारिक विशेषज्ञ समूह के सह-अध्यक्षों आयरलैंड और मैक्सिको ने बृहस्पतिवार को परिषद के सदस्यों को पत्र लिखकर तालिबान के फैसले को भय पैदा करने वाला बताया था।
संयुक्त राष्ट्र में आयरलैंड की राजदूत गेराल्डिन बायरन नैसन ने संवाददाताओं से कहा कि महिलाएं और लड़कियां ‘‘अब कुछ सबसे कठोर प्रतिबंधों का सामना कर रही हैं,’’ और तालिबान की नीतियों की निंदा करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय एवं सुरक्षा परिषद की नैतिक जिम्मेदारी है।(भाषा)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 13 मई। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मनाने के लिए भारतीय अमेरिकियों द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापाी ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के औपचारिक उद्घाटन में 15 से अधिक प्रभावशाली सांसद शामिल हुए।
‘एशियाई विरासत माह’ के दौरान आयोजित इस कार्यक्रम में क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों के सैकड़ों भारतीय-अमेरिकियों ने शिरकत की।
इस अवसर पर सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने समुदाय के नेताओं से अपील की कि वे अमेरिकी संसद तथा अन्य निर्वाचित निकायों में और भारतीय-अमेरिकियों को चुने जाने में मदद करें।
न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और न्यू इंग्लैंड’ के ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन’ (एफआईए) द्वारा यूएस कैपिटल (अमेरिकी संसद) में आयोजित कार्यक्रम में फ्रैंक पालोने और शीला जैक्सन ली समेत 15 से अधिक प्रतिष्ठित सांसदों ने शिरकत की।
फेडरेशन के अंकुर वैद्य ने बताया कि एफआईए स्वतंत्रता दिवस के आसपास न्यूयॉर्क में एक बड़ा समारोह करने की योजना बना रहा है और इस दौरान ‘टाइम्स स्क्वॉयर’ पर झंडा भी फहराया जाएगा। (भाषा)
सैन जुआन (प्यूर्टो रिको), 13 मई। प्यूर्टो रिको के पास एक द्वीप के उत्तर में एक नौका के पलटने से 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि 31 अन्य लोगों को बचा लिया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
ऐसा संदेह है कि नौका में शरणार्थी सवार थे।
अमेरिकी तटरक्षक बल के प्रवक्ता रिकॉर्डो कॉस्ट्रोडैड ने बताया कि नौका पर सवार लोगों की सटीक संख्या का अभी पता नहीं चल पाया है। व्यापक स्तर पर बचाव कार्य अब भी जारी है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हम अधिक से अधिक लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।’’
उन्होंने बताया कि हैती के कम से कम आठ नागरिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, हालांकि नौका पर सवार सभी लोग किस देश के नागरिक थे इसकी तत्काल कोई जानकारी नहीं मिल गई है।
अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा के एक हेलीकॉप्टर ने पलट गई नौका का बृहस्पतिवार को पता लगाया था।
नौका डेसचेओ के द्वीप पर नजर आई थी। इस द्वीप पर लोग नहीं रहते हैं।
अमेरिकी तट रक्षक बल ने बताया कि बचाए गए लोगों में 20 पुरुष और 11 महिलाएं हैं।
अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा के अनुसार, अक्टूबर 2021 से मार्च तक, 571 हैती नागरिकों और डोमिनिकन गणराज्य के 252 लोगों को प्यूर्टो रिको और यूएस वर्जिन आइलैंड्स के आसपास के समुद्री क्षेत्र से हिरासत में लिया गया। वित्त वर्ष 2021 में, 310 हैती नागरिकों और 354 डोमिनिकन लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि वित्त वर्ष 2020 में 22 हैती नागरिक और 313 डोमिनिकन लोगों को पकड़ा गया था।
गौरतलब है कि हैती और डोमिनिकन गणराज्य के लोग अपने देशों में हिंसा तथा गरीबी से परेशान हैं और वहां से निकलने का लगातार प्रयास करते हैं। (भाषा)
रोम, 13 मई। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बात करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि एक समझौता होना चाहिए लेकिन शर्त के रूप में कोई ‘अल्टीमेटम’ नहीं होना चाहिए।
जेलेंस्की ने बृहस्पतिवार रात प्रसारित होने वाले एक साक्षात्कार में इतालवी आरएआई टेलीविजन से कहा कि यूक्रेन कभी भी क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं देगा, जिस पर 2014 में मॉस्को ने कब्जा कर लिया था।
प्रसारण से पहले साक्षात्कार के जारी अंशों के अनुसार, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा, "क्रीमिया की हमेशा अपनी स्वायत्तता रही है, इसकी संसद है, लेकिन यूक्रेन के भीतर।"
उन्होंने कहा कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बात करने के लिए तैयार हैं और एक समझौता होना चाहिए लेकिन शर्त के रूप में कोई ‘अल्टीमेटम’ नहीं होना चाहिए। (भाषा)
अमेरिका में एक अजीबोग़रीब घटना हुई है. वहां की मीडिया फ़्लोरिडा में फ़्लाइट के उस पैसेंजर की तलाश कर रही है जिसने पायलट के बेहोश होने के बाद विमान को सुरक्षित लैंड करा दिया.
उस अज्ञात व्यक्ति की आवाज़ फ़्लाइट रिकॉर्डिंग में सुनी गई जो ट्रैफ़िक कंट्रोल से कह रहा है कि ''उन्हें नहीं मालूम कि प्लेन को कैसे रोका जाए.''
एक एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने उस शख़्स को गाइड किया और फिर उस व्यक्ति ने पाम बीच इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंगलवार को विमान सुरक्षित उतार दिया.
एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर दरअसल नए पायलटों को ट्रेनिंग देने का काम भी करते हैं और उनका अनुभव इस बार प्लेन को सुरक्षित लैंड कराने में काम आया.
प्लेन के एयरपोर्ट पर उतरने के बाद ये दोनों लोग (ट्रैफ़िक कंट्रोलर और पैसेंजर) एयरपोर्ट पर मिले और गले भी लगाया, लेकिन एक-दूसरे को नाम नहीं बताया.
"यहां हालात बेहद गंभीर है. मेरा पायलट काम नहीं कर पा रहा. वे बेहोश हो गया है." उस शख़्स को नौ हज़ार फ़ीट की ऊंचाई से रेडियो पर ऐसा कहते सुना गया.
जब एटीएफ़ ने उनसे उनकी पोज़ीशन पूछी तो उन्होंने कहा, ''मुझे कुछ नहीं पता.'' उन्होंने कहा कि वो अपने सामने फ़्लोरिडा का तट ही देख पा रहे हैं.
उनके ऐसा कहने पर एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने उनसे कहा, ''विंग्स लेवल मेंटेन करें और तट के साथ-साथ उड़ते रहें उत्तर या दक्षिण की ओर. हम आपको लोकेट करने की कोशिश कर रहे हैं.''
एटीएफ़ के साथ बातचीत में एक जगह वो कहते हैं कि ''मुझे नेविगेशन स्क्रीन भी समझ नहीं पा रहा. इसमें कई तरह की सूचनाएं हैं. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं.''
''मुझे ये नहीं पता कि प्लेन को कैसे रोकेंगे. मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम.''
पाम बीच इंटरनेशनल एयरपोर्ट के एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर रॉबर्ट मॉर्गन उस समय ब्रेक पर थे जब एक सहकर्मी ने उन्हें इसकी जानकारी दी.
रॉबर्ट लंबे समय से फ़्लाइट इंस्ट्रक्टर रहे हैं और एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल का उन्हें 20 साल का तज़ुर्बा है. हालांकि सिंगल इंजन वाले इस सेस्ना 208 विमान को उड़ाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं रहा है. लेकिन एयरक्राफ़्ट के कॉकपिट का मैप देख कर वो विमान उड़ाने वाले को निर्देश दे सकते थे.
रॉबर्ट मॉर्गन ने एक टीवी चैनल को बताया, ''मैं जानता था कि प्लेन किसी अन्य प्लेन की तरह ही उड़ रहा है. मुझे ये भी पता था कि विमान को संचालित करने की कोशिश कर रहे व्यक्ति को शांत रखना है. उसे रनवे पर नज़र रखने के लिए कहना है और फिर ये बताना है कि कैसे पावर कम कर विमान को नीचे लाना है.''
मॉर्गन याद करते हैं,''मुझे पता चलता उससे पहले ही उन्होंने कहा कि 'मैं लैंड कर चुका हूं. विमान को बंद कैसे करूं'.''
डब्लूपीबीएफ़-टीवी के एक रिपोर्टर ने बीबीसी को बताया कि उसके बाद पैसेंजर और रॉबर्ट मॉर्गन रनवे पर मिले. उन्हें एक-दूसरे को गले लगाया और एक फ़ोटो भी लिया. लेकिन रोमांच में मॉर्गन उनका नाम भी नहीं पूछ पाए.
उस पैसेंजर का नाम रेडियो पर हुई बातचीत में भी रिकॉर्ड नहीं हुआ है.
'वो भावुक पल था'
रॉबर्ट मॉर्गन ने सीएनएन को बताया, ''उस वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं रो पड़ूंगा क्योंकि मैं बहुत ज़्यादा रोमांचित महसूस कर रहा था.''
''वो एक भावुक पल था. उन्होंने कहा कि वो बस घर जाकर अपनी प्रेग्नेंट पत्नी से मिलना चाहते हैं और ये सुनकर मुझे और भी अच्छा लगा.''
''मेरी नज़रों में वो हीरो थे. ट्रैफ़िक कंट्रोल में मैं तो बस अपना काम कर रहा था.''
विमान की लैंडिंग के बाद रिकॉर्डिंग में रॉबर्ट मॉर्गन को पायलटों से पैसेंजर के हैरतअंगेज़ कारनामे की तारीफ़ करते सुना जा सकता है.
अमेरिका के फ़ेडरल एविएशन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि प्लेन निजी तौर कनेक्टिकट में रजिस्टर्ड था.
फ़्लाइट ट्रैकर फ़्लाइटअवेयर के मुताबिक़, विमान ने एक घंटा पहले बहामा के मार्श आइलैंड से उड़ान भरी थी.
उड़ान के दौरान बीमार हुए पायलट को पाम बीच के अस्पताल में ले जाया गया है.
फ़ेडरल एविएशन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है. (bbc.com)
-सरोज सिंह
भारत और श्रीलंका के बीच यूं तो तुलना नहीं की जा सकती. अर्थव्यवस्था के लिहाज से श्रीलंका बहुत ही छोटा मुल्क है और आबादी भी भारत की तुलना में बहुत कम है.
बावजूद इसके सोशल मीडिया पर इन दिनों कई ऐसे पोस्ट देखे जा सकते हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि कुछ दिन पहले श्रीलंका में वही कुछ हो रहा था जो भारत में इन दिनों हो रहा है. तो क्या भारत भी श्रीलंका की राह पर है?
इस सवाल के जवाब में कई स्क्रीनशॉट शेयर किए जा रहे हैं जिसमें श्रीलंका की डेटलाइन से ख़बरें छपी है जिसमें हलाल बहिष्कार, मुसलमानों की दुकानों और मस्ज़िदों पर हमले और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा की खबरें हैं.
हालांकि इन सब ख़बरों का श्रीलंका संकट में कितना हाथ है, इसके बारे में जानकारों की राय अलग-अलग है, लेकिन एक बात जिसपर जानकारों में आम राय है वो है इस संकट से लेने वाला सबक.
श्रीलंका में आज जो कुछ हो रहा है वो कहानी आर्थिक संकट के रूप में शुरू हुई थी. लेकिन इस आर्थिक संकट का असर राजनीतिक संकट के रूप में अब दुनिया के सामने है.
श्रीलंका - भारत
पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार
इस लिहाज़ से श्रीलंका से भारत क्या सीख सकता है, उसे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है - आर्थिक सबक और राजनीतिक सबक.
सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर पूलाप्री बालकृष्ण कहते हैं दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाएं वैसे तो अलग होती हैं, लेकिन कुछ फॉर्मूले ऐसे होते हैं जो सभी पर लागू होते हैं.
उदाहरण के लिए अगर खाने का ज़रूरी सामान किसी देश में पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है, तो उस देश को बाहर से वो सामान आयात करना पड़ता है, जिसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार की ज़रूरत होती है. विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए उस देश को कुछ निर्यात करने की ज़रूरत पड़ती है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
प्रोफ़ेसर पूलाप्री बालकृष्ण कहते हैं, "आर्थिक मोर्चे पर जो सबसे पहला सबक भारत को श्रीलंका संकट से लेने की ज़रूरत है वो है विदेशी मुद्रा भंडार पर नज़र रखने की. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुछ महीनों में गिरा ज़रूर है, लेकिन फिलहाल वो साल भर के आयात बिल के भुगतान करने के लिए काफ़ी है. इस लिहाज से भारत के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.
लेकिन लंबे अंतराल में केंद्र सरकार को इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत सरकार अपने आयात बिल को कैसे कम कर सके."
पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
आयात बिल घटाने की ओर क़दम
भारत के लिए ज़रूरी है कि आने वाले दिनों में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत, कोयला के लिए विदेशी निर्भरता को कम करें साथ ही साथ खाने के तेल का उत्पादन किस तरह से देश में ही बढ़ाया जाए इस तरफ़ ध्यान देने की ज़रूरत है. इससे आयात बिल को कम करने और आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी.
आँकड़ों के मुताबिक़ भारत अपनी ज़रूरत का कुल 80-85 फ़ीसदी तेल बाहर के मुल्कों से आयात करता है. पिछले कुछ दिनों से रूस-यूक्रेन संकट के बीच तेल के दामों में उछाल देखा गया. अगर भारत इसी तरह से तेल के लिए दुनिया के मुल्कों पर निर्भर रहा और तेल के दाम बढ़ते ही रहे, तो विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने में वक़्त नहीं लगेगा. इस वजह से भारत को तेजी से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर निर्भरता बढ़ानी होगी. ये रातों रात नहीं हो सकता, इसके लिए लंबी प्लानिंग की ज़रूरत होगी.
यही हाल कोयले के क्षेत्र में भी है. बिजली के लिए भारत आयात किए गए कोयले पर निर्भर है. हाल के दिनों में कुछ राज्यों ने बिजली संकट का भी सामना किया.
खाने के तेल और सोना - इन दोनों की भी कहानी कोयला और पेट्रोल-डीजल से अलग नहीं है. भारत के आयात बिल का बड़ा हिस्सा इन पर भी ख़र्च होता है.
इस निर्भरता को कम करने के लिए सरकार के साथ साथ जनता को भी पहल करने की ज़रूरत है.
श्रीलंका संकट का दूसरा पहलू राजनीतिक भी है. उस लिहाज से भी कई ऐसी चीज़ें हैं जो भारत सीख सकता है.
सत्ता का केंद्रीकरण
प्रोफ़ेसर पूलाप्री कहते हैं सत्ता का केंद्रीकरण कुछ लोगों के हाथों में सालों तक होना भी किसी देश के हित में नहीं है.
श्रीलंका के बारे में वो कहते हैं कि जिस तरह से वहां सत्ता राजपक्षे परिवार का सालों से दबदबा रहा है, वैसे ही हालात कुछ कुछ भारत में भी है. यहाँ भी आर्थिक और राजनीतिक फैसले लेने का अधिकार सरकार के कुछ चुनिंदा सलाहकारों के हाथ में है. वैसे भारत में सभी सरकारें (चाहे केरल की राज्य सरकार हो या केंद्र की मोदी सरकार) पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ ही काम कर रही है.
उनके मुताबिक़ श्रीलंका संकट से सबक लेते हुए भारत सरकार को इस रणनीति में बदलाव लाने की ज़रूरत है.
बहुसंख्यकवाद की राजनीति
श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी सिंहला है और तमिल अल्पसंख्यक. वहाँ की सरकार पर अक्सर बहुसंख्यकों की राजनीति करने का आरोप लगते रहे हैं.
ऐसा ही आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट भी किया है.
उन्होंने लिखा, "लंबे समय तक श्रीलंका का छात्र रहने के कारण मैं कह सकता हूं कि इस सुंदर देश के संकट की जड़े छोटे समय से मौजूद आर्थिक वजहों से ज़्यादा बीते एक दशक से मौजूद भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक बहुसंख्यवाद से जुड़ी हैं. इसमें भारत के लिए भी सबक हैं."
आज भारत में भी सभी राज्यों पर हिंदी भाषा थोपे जाने का आरोप कई ग़ैर बीजेपी शासित राज्य लगा रहे है. हिजाब, लाउडस्पीकर, मंदिर-मस्जिद विवाद, मीट पर विवाद की ख़बरें इन दिनों देश के अलग अलग राज्यों में आए दिन आ रही हैं.
प्रोफ़ेसर पूलाप्री कहते हैं, "बहुसंख्यकवाद की राजनीति को मैं सांस्कृतिक एजेंडे से जोड़ कर देखता हूं. इस तरह की राजनीति की वजह से देश के एक तबक ख़ुद को अलग-थलग महसूस करने लगती है. इसका परिणाम ये होता है कि सरकार का असल मुद्दों से ध्यान भटक जाता है."
जब किसी देश में ऐसा हो रहा हो, तो उसमें एक बड़ी भूमिका सिविल सोसाइटी और संवैधानिक संस्थाओं की भी होती है.
इस तरफ़ इशारा करते हुए कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने ट्वीट किया, "रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और ये मुश्किल ही होता जा रहा है. देशों की असल परीक्षा अब है. न्यायपालिका, पुलिस, सरकार, संसद जैसी संस्थाओं की ताक़त मायने रखेगी. वो करना जो सही है, लोकलुभावन नहीं, महत्वपूर्ण है. एक 'जलता लंका' हम सबको बताता है कि क्या नहीं करना चाहिए."
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) में श्रीलंका मामलों पर नज़र रखने वालीं एसोसिएट फ़ेलो डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना भी उदय कोटक की बात से सहमत नज़र आती है.
श्रीलंका की आज के हालात के लिए वो कई वजहों को ज़िम्मेदार मानती है. उनके मुताबिक़ कर्ज़ का बोझ, सरकार चलाने का तरीका, उनकी नीतियां सब कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार हैं. इस वजह से वो कहती हैं कि भारत सरकार इतना सबक तो ले सकती है कि गवर्नेंस को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए और केवल वोट की राजनीति के लिए फैसले नहीं लेने चाहिए जैसा श्रीलंका सरकार ने किया.
उदाहरण देते हुए वो कहती हैं, 2019 में राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र गोटाबाया राजपक्षे जनता को टैक्स में छूट देने का वादा किया था. जब वो सत्ता में आए तो उन्होंने इसे लागू भी कर दिया. उस टैक्स में छूट की वजह से सरकार की कमाई पर बहुत असर पड़ा.
साफ़ था, वादा करते समय केवल चुनावी फ़ायदा देखा गया, जानकारों की राय या अर्थव्यवस्था पर असर को नज़रअंदाज़ किया गया. ऐसे में ज़रूरत थी कि संसद और न्यायपालिका या सिविल सोसाइटी की आवाज़ मुखर होती.
भारत में भी ऐसे चुनावी वादे खूब किए जाते हैं. कभी मामला कोर्ट में पहुँचता है, कभी सिविल सोसाइटी इस पर शोर मचाती है तो कभी देश की संसद में हंगामा होता है.
त्वरित फायदे के लिए लंबा नुक़सान
डॉक्टर सुल्ताना श्रीलंका सरकार के एक और अहम फैसले की तरफ़ ध्यान देने की बात करती हैं.
श्रीलंका के आर्थिक संकट के बीच सरकार को ऐसा लगा कि यदि खाद का आयात रोक दिया जाए तो विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है. और अप्रैल 2021 में गोटाबाया राजपक्षे ने खेती में इस्तेमाल होने वाले सभी रसायनों के आयात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी.
मगर सरकार इस फैसले के दूरगामी परिणाम के बारे में नहीं सोच पाई. नतीजा ये हुआ कि पैदावार पर असर पड़ा. बिना खाद के कृषि उत्पादन बहुत कम हुआ. नवंबर आते आते सरकार को फैसला बदलना पड़ा.
इस वजह से डॉक्टर सुल्ताना कहतीं है, "सरकार द्वारा लिए गए फ़ैसलों में अलग-अलग एक्सपर्ट की राय लेना ज़रूरी है. भारत सरकार को भी ये समझने की ज़रूरत है.
त्वरित फायदे के लिए लिए गए फैसले लंबे समय में नुक़सानदायक हो सकते हैं." (bbc.com)
पाकिस्तान में लाहौर की एक अदालत ने आदेश दिया है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ समेत सभी अभियुक्तों को 14 मई को अदालत में हाज़िर होना होगा. उसी दिन उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की जाएगी.
बीबीसी उर्दू के संवाददाता शहबाज़ मलिक की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले लाहौर की विशेष अदालत ने प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की अपील पर उन्हें ख़ुद हाज़िर होने से छूट दे दी थी और उन्हें अंतरिम ज़मानत भी दे दी थी.
लेकिन अब अदालत ने कहा है कि सभी अभियुक्तों को 14 मई को अदालत में हाज़िर होना होगा और अब इस मामले में आगे कोई तारीख़ नहीं दी जाएगी.
शहबाज़ शरीफ़ और उनके बेटों हमज़ा और सुलैमान शरीफ़ पर पाकिस्तान की जाँच एजेंसी एफ़आईए ने नवंबर 2020 में भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुक़दमा दर्ज किया था. बाद में 14 और लोगों के नाम को एफ़आईआर में जोड़ा गया था. (bbc.com)
(के. जे. एम. वर्मा)
बीजिंग, 12 मई। चीन के दक्षिण-पश्चिम चोंगकिंग शहर में बृहस्पतिवार को ‘तिब्बत एयरलाइन्स’ के एक विमान में रनवे से उतर जाने के कारण आग लग गई, जिससे 40 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
‘तिब्बत एयरलाइन्स’ ने बताया कि चोंगकिंग से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के न्यिंगची शहर जा रहे विमान में 113 यात्री और चालक दल के नौ सदस्य सवार थे। विमान से सभी लोगों को निकाल लिया गया है।
सरकारी ‘चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क’ (सीजीटीएन) की खबर के अनुसार, हादसे में 40 से अधिक लोगों को मामूली चोटें आई हैं।
हांगकांग के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ की खबर के अनुसार, ‘चाइना सेंट्रल टेलीविजन’ (सीसीटीवी) द्वारा जारी किए गए वीडियो में चोंगकिंग जियांगबेई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तिब्बत एयरलाइन्स के विमान के आगे के हिस्से से आग की लपटें और काला धुआं निकलता दिखाई दे रहा है। लोग अफरा-तफरी में पिछले दरवाजे से विमान से बाहर निकलते नजर आ रहे हैं।
सीसीटीवी ने कहा कि आग पर काबू पा लिया गया है और रनवे फिलहाल बंद है। विमान तिब्बत के न्यिंगची के लिए रवाना होने वाला था और तभी उसमें आग लग गई।
घटना की जांच की जा रही है।
चीन में हालिया हफ्तों में दुर्घटनाग्रस्त हुआ यह दूसरा विमान है। बोइंग 737 विमान 12 मार्च को दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सवार सभी 132 लोग मारे गए थे। (भाषा)
ये साल 2020 के अक्टूबर का महीना था. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ़ तीन हफ़्ते बाक़ी थे. मुक़ाबला डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन के बीच था.
तभी अमेरिका के मशहूर टेबलॉयड 'द न्यूयॉर्क पोस्ट' ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छापी. ये यूक्रेन की एनर्जी कंपनी बुरिस्मा से जुड़ी थी. जो बाइडन के बेटे हंटर कभी इसके निदेशक थे.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ एक रिपेयर शॉप में आए एक लैपटॉप से कुछ ईमेल मिले. जिनसे जानकारी हुई कि जो बाइडन जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे, तब हंटर ने इस फ़र्म के एक आला अधिकारी के सामने कारोबारी रिश्तों के लिए अपने सरनेम यानी पिता के प्रभाव का इस्तेमाल किया.
रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि जो बाइडन ने बुरिस्मा के संस्थापक की जांच कर रहे यूक्रेन के एक अभियोजक को बर्खास्त कराने के लिए दबाव भी बनाया.
डोनाल्ड ट्रंप और उनके सहयोगियों के मुताबिक़ लीक हुई सामग्री से साफ़ था कि जो बाइडन 'भले ही इनकार करें लेकिन वो अपने बेटे के कारोबार से वाकिफ़ थे.'
इस लैपटॉप से कई और कहानियां और निजी तस्वीरें भी सामने आईं. लेकिन दूसरे मीडिया संस्थानों ने इस स्टोरी को ज़्यादा अहमियत नहीं दी.
न्यूयॉर्क पोस्ट के आलेख के पीछे कहीं 'विदेशी दुष्प्रचार' न हो, इस आशंका में सोशल मीडिया ने भी इस पर रोक लगा दी. उस स्टोरी को 'ब्रेक हुए' दो साल से ज़्यादा वक़्त हो चुका है. लेकिन उस पर अब तक बहस जारी है.
हंटर बाइडन के लैपटॉप में छुपे राज़ और उनके सच तक पहुँचने के पहले समझते हैं कि आख़िर वो हमेशा चर्चा में क्यों बने रहते हैं?
पॉलिटिको मैग़ज़ीन के पत्रकार बेन श्रेकिंजर कहते हैं, "हंटर बाइडन एक ऐसे व्यक्ति हैं, मानो पूरी ज़िंदगी किसी शैतान का साया उनका पीछा करता रहा है."
बेन ने एक किताब भी लिखी है, "द बाइडन्स: इनसाइड द फर्स्ट फैमिलीज़ 50 ईयर्स राइज़ टू पॉवर"
बेन याद दिलाते हैं कि हंटर के पिता जो बाइडन साल 1972 में अमेरिकी राज्य डेलावेयर से सीनेटर चुने गए. तब जो बाइडन की उम्र सिर्फ़ 29 साल थी. एक ही महीने के अंदर एक बड़े हादसे ने उन्हें हिला दिया.
जो बाइडन की पत्नी और तीन बच्चे क्रिसमस ट्री लेने जा रहे थे.
बेन बताते हैं, "हंटर बाइडन, उनके भाई बो बाइडन, छोटी बहन और मां नीलिया कार में थे. इस कार को एक ट्रक ने टक्कर मार दी. उस हादसे में उनकी मां और बहन की मौत हो गई. हंटर और उनके भाई को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा."
बेन बताते हैं कि जो बाइडन ने अस्पताल से ही सीनेटर के रूप में शपथ ली. तब हंटर सिर्फ़ दो साल के थे और वो तभी से लोगों की नज़रों में आ गए.
बेन कहते हैं कि हंटर पढ़ाई में अच्छे थे. लेकिन मां की मौत का सदमा उन्हें परेशान करता रहा. उन्हें पहले शराब और फिर ड्रग्स की लत लग गई.
उनके भाई बो पहले सेना में थे और बाद में पिता के नक्शे क़दम पर चलते हुए राजनीति में आए. वो डेलावेयर के अटॉर्नी जनरल बने.
साल 2015 में बो की ब्रेन कैंसर की वजह से मौत हो गई. हंटर को इसका भी गहरा सदमा लगा.
बेन बताते हैं, "इसी बीच हंटर की अपनी पहली पत्नी से शादी टूट गई और बो की विधवा हैली के साथ उनका अफेयर सामने आया. इसे लेकर अख़बारों में ख़बरें छपीं. उनके पिता ने इस रिश्ते को अपना आशीर्वाद दिया. लेकिन ये रिश्ता भी टूट गया. उन्हें अपने बच्चे का पिता बताते हुए एक महिला ने अरकांसस में उन पर केस भी किया. इसके बाद उन्होंने मेलिसा कोइन से दूसरी शादी की. नशे की लत से बाहर आने के लिए वो उन्हें ही श्रेय देते हैं. दोनों का एक बच्चा भी है."
हंटर बाइडन सिर्फ़ अपने निजी जीवन की उथल पुथल के लिए ही चर्चा में नहीं रहते. उनके कारोबारी रिश्ते भी लोगों का ध्यान खींचते हैं.
येल लॉ स्कूल से स्नातक करने के बाद उन्होंने एमबीएनए के लिए काम किया. ये उस वक़्त डेलावेयर का सबसे बड़ा बैंक था और इसे लेकर भी वो और जो बाइडन विवादों में घिरे.
बेन बताते हैं, "देश के अख़बारों ने ध्यान दिलाया कि जो बाइडन इस बैंक के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं. ये बैंक हंटर बाइडन को पहले एक कर्मचारी और बाद में सलाहकार के तौर पर पेमेंट कर रहा था. जो बाइडन ने कहा कि हंटर ने कभी सीधे तौर पर लॉबिंग नहीं की. लेकिन जब कभी एक सीनेटर के बेटे लॉबिस्ट के तौर पर काम करते हैं तो सवाल उठते ही हैं."
बिल क्लिंटन जब राष्ट्रपति थे तब हंटर ने अमेरिका के वाणिज्य विभाग के लिए भी काम किया. राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें सरकारी रेल ऑपरेटर एमट्रैक के बोर्ड में नामित किया. वो एक लॉबिंग फर्म के सहसंस्थापक भी रहे. यूक्रेन और चीन में भी कारोबार किया.
साल 2019 में भी वो नशे की लत से जूझ रहे थे. ये दौर ही हमें न्यूयॉर्क पोस्ट की कहानी के स्रोत तक ले जाता है. जिस वक़्त डेलावेयर की दुकान में लैपटॉप रिपेयर करने के लिए दिया गया, उस वक़्त हंटर क्या कर रहे थे?
बेन के मुताबिक़ हंटर कहते हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ याद नहीं है. बेन कहते हैं कि जब हंटर नशे की लत में थे तब ये इकलौता लैपटॉप नहीं रहा होगा. इसके बारे में वो भूल गए हों.
डेलावेयर की रिपेयर शॉप और लैपटॉप
लॉस एंजलिस टाइम्स की व्हाइट हाउस संवाददाता कोर्टनी सुब्रमण्यम बताती हैं, "डेलावेयर में कंप्यूटर रिपेयर की उस दुकान के मालिक हैं, जॉन पॉल मैक आइज़ैक. वो दावा करते हैं कि अप्रैल 2019 में किसी ने उन्हें तीन लैपटॉप रिपेयर के लिए दिए थे."
उनके मुताबिक़ दुकान के मालिक ने बताया कि पानी गिरने से ख़राब हुए दो कंप्यूटर ठीक नहीं हो पाए. दुकान मालिक देख नहीं पाते हैं और वो पक्के तौर पर ये नहीं बता सकते थे कि लैपटॉप लेकर कौन आया था लेकिन जो व्यक्ति आया था, उसने कहा कि वो हंटर बाइडन हैं.
हालांकि हंटर कहते हैं कि उन्हें याद नहीं कि उन्होंने वो लैपटॉप उस दुकान पर दिया था. कई महीने बाद भी जब कोई लैपटॉप लेने नहीं आया तो जॉन ने उसका डेटा परखा.
कोर्टनी कहती हैं, "दुकान मालिक ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब उन्हें जानकारी हुई कि कंप्यूटर में क्या है और ये किसका है, तब उन्होंने एफ़बीआई से संपर्क करने का फ़ैसला किया. लैपटॉप से जो कुछ सामग्री मिली उन्होंने उसकी एक कॉपी भी तैयार की. जॉन के मुताबिक़ डर ये था कि लैपटॉप की सामग्री की जानकारी कर लेने के बाद उन्हें ख़तरा हो सकता है."
हफ़्तों बाद एफ़बीआई ने लैपटॉप सील कर दिया. ये साल 2019 के दिसंबर का महीना था और तब एक बड़ी राजनीतिक ख़बर पक रही थी.
कोर्टनी बताती हैं, "डोनाल्ड ट्रंप पहले महाभियोग का सामना कर रहे थे. ट्रंप पर आरोप था कि उन्होंने यूक्रेन के अधिकारियों पर दबाव बनाया कि सैन्य मदद के बदले वो जो बाइडन की जांच करें. साल 2015 में बाइडन उपराष्ट्रपति थे और तब वो यूक्रेन के एक भ्रष्ट अभियोजक को हटाए जाने के प्रयासों का हिस्सा थे. ये अमेरिका की आधिकारिक नीति के तहत हुआ. लेकिन ट्रंप का दावा था कि इसका मक़सद बाइडन के बेटे को फ़ायदा पहुँचाना था. अभियोजक गैस और तेल की उस कंपनी की जांच कर रहे थे, जिससे हंटर बाइडन जुड़े हुए थे."
कंप्यूटर दुकान के मालिक जॉन ख़ुद को ट्रंप का समर्थक बताते हैं. वो भी महाभियोग की कार्यवाही देख रहे थे. जॉन के मुताबिक़ उन्हें डर था कि एफ़बीआई एजेंट सूचनाएं छुपा सकते हैं और उन्होंने हार्ड ड्राइव की एक कॉपी रूडी जूलियानी के वकील को दी.
रूडी तब ट्रंप के लिए काम कर रहे थे. सब जानते थे कि वो यूक्रेन में बाइडन से जुड़ी सामग्री की तलाश में जुटे थे. ऐसे में मीडिया संस्थानों ने एक अंधे व्यक्ति और लैपटॉप की अजीबोग़रीब कहानी पर संदेह ज़ाहिर किया.
कोर्टनी के मुताबिक़ फॉक्स न्यूज़ को ट्रंप के साथ जोड़कर देखा जाता है लेकिन उन्होंने भी कहानी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. आखिर में रूपर्ट मर्डोक के संस्थान 'न्यूयॉर्क पोस्ट' ने इसे छापा. लेकिन दूसरे पत्रकार अब भी मूल स्रोत की मांग कर रहे थे.
तब ट्रंप के सहयोगी आरोप लगाने लगे कि मीडिया ये कहानी दबाने और जो बाइडन को बचाने के षडयंत्र में शामिल है.
मीडिया की सतर्कता की वजह भी थी. साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उनमें से ज़्यादातर ने लीक मेल से जुड़ी कई कहानियां चलाई थीं जो चुनाव प्रभावित करने के रूसी अभियान का हिस्सा साबित हुईं, जिन्होंने हिलेरी क्लिंटन और डेमोक्रेट्स की छवि ख़राब की.
इस बार सोशल मीडिया ने भी पोस्ट की ख़बर को आगे नहीं जाने दिया.
कोर्टनी कहती हैं, "हमने देखा कि फ़ेसबुक और ट्विटर ने कुछ वक़्त के लिए स्टोरी से जुड़े लिंक को ब्लॉक कर दिया. इसके बाद और नाराज़गी देखी गई. ये कहा गया कि इस कहानी को दबाया जा रहा है."
ट्विटर के सह संस्थापक जैक डोर्सी ने बाद में कहा कि न्यूयॉर्क पोस्ट की स्टोरी को ब्लॉक करना एक ग़लती थी. वो लैपटॉप अब भी एफ़बीआई के पास है. लेकिन तब से अब तक कई लोग ये देख चुके हैं कि उस हार्ड ड्राइव में क्या है
लैपटॉप का डेटा
वॉशिंगटन पोस्ट के व्हाइट हाउस रिपोर्टर मैट वाइज़र बताते हैं, "इस लैपटॉप में 217 गीगाबाइट सामग्री है. इसमें 10 साल के दौरान के क़रीब 129 हज़ार ईमेल हैं. 36 हज़ार तस्वीरें हैं. पाँच हज़ार टेक्स्ट मैसेज की फाइल हैं. 13 सौ वीडियो फ़ाइल हैं."
मैट वाइज़र के पास भी उस लैपटॉप के हार्ड ड्राइव की एक कॉपी है. वो बताते हैं कि ट्रंप के सहयोगी रहे स्टीव बैनन के साथ काम कर चुके जैक मैक्सी ने उन्हें ये हार्ड ड्राइव दी. लेकिन इसमें कई दिक्क़तें नज़र आईं.
मैट वाइज़र बताते हैं, "ये कई लोगों के हाथ से गुज़रा था. हमें ड्राइव पर उनकी उंगलियों के निशान दिखाई दे रहे थे. उन्होंने फोल्डर बनाए थे, जिससे लैपटॉप की सामग्री को सिलसिलेवार तरीक़े से रखा जा सके. ये प्रामाणिक है या नहीं ये पता लगाने के लिए हमें जिस डेटा की ज़रूरत थी, उसकी जगह नया डेटा आ चुका था."
मैट के मुताबिक़ इस ड्राइव में ईमेल के अलावा भी बहुत कुछ था. इसमें हंटर बाइडन की एक महिला के साथ तस्वीरें थीं. दूसरी कई तस्वीरें भी थीं. इनमें से कुछ को अख़बारों ने छापा. ये अटकलें भी लगाई गईं इस ड्राइव में और भी ख़राब किस्म की सामग्री हो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ कभी सामने नहीं आया.
वॉशिंगटन पोस्ट ने इस डेटा में सांठगांठ के साफ़ सबूत तलाशने की कोशिश की.
मैट वाइज़र बताते हैं, "हम ऐसी कारोबारी गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे थे, जहाँ हंटर बाइडन ने अपने पिता के नाम पर कारोबार किया हो. ऐसी बात जो ये रोशनी डाल सके कि हितों का टकराव है और वो अपने बेटे के जरिए इसमें शामिल थे."
मैट बताते हैं कि इस डेटा से हंटर और उनकी कारोबारी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती हैं लेकिन ऐसा कुछ सामने नहीं आया जिससे ये संकेत मिलते कि जो बाइडन ख़ुद हंटर की कारोबारी गतिविधियों में शामिल रहे हों.
हंटर के एक व्यापारिक साझेदार ने एक और मैसेज के सही होने की पुष्टि की. इसमें चीन के व्यापारिक उपक्रम के बारे में योजना थी. ये मई 2017 में भेजा गया था.
उस वक़्त डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे और जो बाइडन व्हाइट हाउस से बाहर थे. वो किताबों की डील और भाषण देकर लाखों डॉलर कमा रहे थे. तो क्या ये ईमेल ये साबित करता है कि जो बाइडन इसमें शामिल थे?
मैट वाइज़र कहते हैं, "आरोप ये था कि हंटर जो डील करते उसका 10 प्रतिशत जो बाइडन को मिलता. राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान जिस एक ईमेल पर खासा ध्यान गया, उसे लेकर माना गया कि जो बाइडन चीन की एनर्जी कंपनी के साथ कारोबारी रिश्ते से होने वाले मुनाफे में अपने बेटे के साथ जुड़े हैं. लेकिन ऐसे कारोबारी रिश्ते कभी बने ही नहीं. और जो बाइडन को कभी 10 फ़ीसदी रकम मिलने के संकेत भी नहीं मिले."
फिर जो बाइडन ने भी इस बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया.
पारिवारिक रिश्तों की कड़ी
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल में गर्वनमेंट प्रोक्योरमेंट लॉ स्टडीज़ की असिस्टेंट डीन जेसिका टिलिपमैन कहती हैं, "मुझे लगता है कि एक कदम पीछे हटें और फिर इस मामले के बारे में सोचें. हम किस बारे में बात कर रहे हैं? यही ना कि कोई व्यक्ति अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार के संपर्कों का इस्तेमाल कर रहा है."
वो कहती हैं कि लैपटॉप से मिले ईमेल संकेत देते हैं कि हंटर बाइडन ने जो ट्रेडिंग की वो साफ सुथरी भले ही ना हो लेकिन अवैध नहीं है.
जेसिका कहती हैं, "इंसान जब से नौकरी कर रहे हैं तब से ही ऐसा हो रहा है. चाहे अमेरिका के राष्ट्रपति हों या किसी छोटे शहर के मेयर, चाहे हम इसे मंजूर करें या फिर इसे अनैतिक मानें और नापसंद करें, ये एक अलग-अलग बात हो सकती है. अगर ऐसे सवाल राष्ट्रपति के बारे में हो तो मान लीजिए उन पर फैसला वोटर ही करते हैं."
हंटर बाइडन पहले शख्स नहीं हैं जिनका राष्ट्रपति से रिश्ता हो और उन्होंने हाईप्रोफ़ाइल काम हासिल किया हो.
जेसिका कहती हैं, " जहां तक मुझे याद है कैनेडी के भाई अटॉर्नी जनरल थे. लोग अलग तरह की बातों की भी आलोचना करते हैं. जेना बुश नेशनल टीवी पर दिखीं तो लोगों ने उनकी भी आलोचना की. मेरी राय में वो शानदार थीं. चाहे फिर चेलसी क्लिंटन को मिले मौके की बात करें हमारे समाज में ऐसे जोखिम तो मौजूद हैं ही. "
डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे तब भी पारिवारिक रिश्तों से फ़ायदा लेने की चर्चा होती रही.
जेसिका कहती हैं कि उस वक़्त अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपनी बेटी और दामाद को व्हाइट हाउस में नौकरी दी. उनके दामाद जेराड कुशनर हैं. हाल में जानकारी सामने आई है कि पद छोड़ने के बाद उनकी इन्वेस्टमेंट फर्म को सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस की अगुवाई वाले फंड से दो अरब डॉलर की रकम मिली.
वहीं, हंटर बाइडन ने माना है कि यूक्रेन की एनर्जी कंपनी बुरिस्मा ने उन्हें उनके सरनेम की वजह से साथ जोड़ा. उनके मुताबिक सरनेम सौभाग्य है तो बोझ भी है.
जेसिका कहती हैं, "आप जो बात कर रहे हैं वो ये है कि क्या इसमें किसी तरह के नैतिक मानदंड का उल्लंघन हुआ है, निश्चित ही ऐसे तथ्य हो सकते हैं जो इस फिक्र को ठीक ठहराएं . हम एक राष्ट्रपति के वयस्क बेटे के बारे में बात कर रहे हैं. साथ ही हम ये बात कर रहे हैं कि क्या ये क़ानून के ख़िलाफ़ है. "
अब वापस उसी सवाल पर लौटते हैं. हंटर बाइडन के लैपटॉप का सच क्या है? इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि मूल हार्ड ड्राइव की कॉपी में तमाम गड़बड़ी आ गई हैं.
हम जानते हैं कि हंटर बाइडन ने अपना करियर बेहतर बनाने के लिए परिवार के नाम का सहारा लिया और मीडिया के लिए ये एक बड़ी ख़बर हो सकती है.
ये भी सच है कि लैपटॉप को लेकर राजनीति भी जल्दी ख़त्म होने वाली नहीं है. अगर अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिलता है तो संभव है कि वो इसकी जांच भी शुरू करा सकते हैं. (bbc.com)
कोलंबो, 12 मई। संकट में घिरे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पद छोड़ने से बुधवार को इनकार कर दिया लेकिन कहा कि वह इसी हफ्ते नये प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल की नियुक्ति करेंगे जो संवैधानिक सुधार पेश करेगा। देश में गंभीर आर्थिक संकट के चलते सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं।
संकट के बीच प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले महिंदा राजपक्षे अपने करीबियों पर हमले के मद्देनजर एक नौसेना अड्डे पर सुरक्षा घेरे में हैं।
राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में गोटबाया (72) ने यह भी कहा कि नये प्रधानमंत्री एवं सरकार को नियुक्त करने के बाद संविधान में 19वें संशोधन की सामग्री तैयार करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पेश किया जाएगा जो संसद को और शक्तियां प्रदान करेगा।
गोटबाया ने कहा, ‘‘मैं युवा मंत्रिमंडल नियुक्त करूंगा जिसमें राजपक्षे परिवार का कोई सदस्य नहीं होगा।’’ उन्होंने देश को अराजक स्थिति में पहुंचने से रोकने के लिए राजनीतिक दलों के साथ चर्चा शुरू कर दी है। अपने संबोधन से कुछ मिनट पहले गोटबाया ने पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ बातचीत की।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘नयी सरकार के प्रधानमंत्री को नया कार्यक्रम पेश करने एवं देश को आगे ले जाने का मौका दिया जाएगा।’’
राष्ट्रपति के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद पिछले दो दिनों से देश में कोई सरकार नहीं है। उनके इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति बिना मंत्रिमंडल के ही देश को चलाने के लिए अधिकार प्राप्त हैं। इस सप्ताह के प्रारंभ में हुई हिंसा का जिक्र करते हुए गोटबाया ने कहा कि नौ मई को जो कुछ हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने कहा, ‘‘हत्याओं, हमले, धौंसपट्टी, संपत्ति को नष्ट करना और उसके बाद के जघन्य कृत्यों को बिल्कुल ही सही नहीं ठहराया जा सकता। ’’
उन्होंने कहा कि पुलिस महानिरीक्षक को जांच करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका पुलिस एवं सैन्यबल को हिंसा फैलाने वालों के विरूद्ध कड़ाई से कानून लागू करने का आदेश दिया गया है।
रक्षा मंत्रालय के सचिव कमल गुणरत्ने ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को त्रिंकोमाली स्थित नौसेना अड्डे पर ले जाया गया है जहां वह सुरक्षा घेरे में हैं।
राजधानी में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैनिकों और सैन्य वाहनों को सड़कों पर तैनात कर दिया गया। कोलंबो और उपनगरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सेना के विशेष बलों को भी तैनात किया गया है।
श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इससे निपटने में सरकार की विफलता को लेकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बीच महिंदा को सुरक्षा मुहैया करायी गई है। विपक्षी दल भी उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।
श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) नेता महिंदा 2005 से 2015 तक देश के राष्ट्रपति थे और उस दौरान उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के खिलाफ क्रूर सैन्य अभियान चलाया था। (भाषा)
(एम जुल्करनैन)
लाहौर, 12 मई। पाकिस्तान की एक आतंकवाद रोधी अदालत ने पिछले साल पंजाब प्रांत में एक हिंदू मंदिर पर हमला करने के मामले में बुधवार को 22 व्यक्तियों को पांच-पांच साल जेल की सजा सुनाई।
लाहौर से करीब 590 किलोमीटर दूर रहीम यार खान जिले के भोंग शहर स्थित गणेश मंदिर पर जुलाई 2021 में सैकड़ों लोगों ने हमला कर दिया था। आठ वर्षीय एक हिंदू लड़के द्वारा कथित रूप से एक मदरसे को अपवित्र करने की प्रतिक्रिया में मंदिर पर हमला किया गया था।
इस मामले में गिरफ्तार 84 संदिग्धों के खिलाफ सुनवाई पिछले साल सितंबर में शुरू हुई थी और यह सुनवायी पिछले हफ्ते पूरी हुई थी।
अदालत के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, “आतंकवाद रोधी अदालत (बहावलपुर) के न्यायाधीश नासीर हुसैन ने फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने 22 संदिग्धों को पांच-पांच वर्ष जेल की सज़ा सुनाई और 62 अन्य व्यक्तियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।” (भाषा)
कराची (पाकिस्तान), 12 मई। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष आसिफ जरदारी ने स्पष्ट किया है कि चुनावी प्रक्रिया में सुधार और राष्ट्रीय जवाबदेही कानूनों में संशोधन के बाद ही देश में चुनाव कराए जाएंगे।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ पिछले महीने विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता जरदारी ने कहा कि मौजूदा गठबंधन सरकार द्वारा इन दोनों कार्यों को पूरा करते ही चुनाव कराए जाएंगे।
जरदारी ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘मैंने इस बारे में (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) के संस्थापक) नवाज शरीफ से भी बात की है और हम इस बात पर सहमत हुए कि सुधार होते ही और लक्ष्य हासिल करते ही चुनाव कराए जा सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हमें कानूनों में बदलाव तथा सुधार करना होगा और इसके बाद चुनाव कराने होंगे। भले ही इसमें तीन से चार महीने का समय ही क्यों न लग जाए, हमें नीतियों के क्रियान्वयन और चुनावी प्रक्रिया में सुधार पर काम करना होगा।’’
जरदारी ने कहा कि नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को विदेशी पाकिस्तानियों के मतदान के अधिकार और चुनाव में प्रतिनिधित्व से कोई समस्या नहीं है।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने बुधवार को कहा था कि नवंबर से पहले चुनाव होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बारे में पूछे जाने पर जरदारी ने कहा कि यह पीएमएल-एन नेता की निजी राय है और वह अपनी पार्टी के निर्देशों को सुनने के लिए बाध्य हैं।
उन्होंने कहा कि पीपीपी और पीएमएल-एन ने फैसला किया है कि जब तक चुनाव प्रक्रिया में सुधार नहीं किए जाते, तब तक नए सेना प्रमुख की नियुक्ति के बारे में भी कोई बात नहीं होगी। (भाषा)
क़तर के समाचार चैनल अल जज़ीरा की संवाददाता शिरीन अबू अक़लेह की इसराइली रेड में मौत हो गई है.
शिरीन वेस्ट बैंक के जेनिन शहर में बुधवार को इसराइली छापेमारी को कवर करने के लिए पहुँची थीं.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के अनुसार शिरीन अक़लेह अरबी भाषा के प्रसारक अल-जज़ीरा की जानी-मानी फ़लस्तीनी महिला रिपोर्टर थीं. ख़बर के अनुसार गोली लगने के कुछ देर बाद ही उनकी मौत हो गई.
फ़लस्तीन के एक अन्य पत्रकार के भी घायल होने की ख़बर है. एपी के अनुसार अल-क़ुद्स के लिए काम करने वाले इस फ़लस्तीनी पत्रकार की हालत फ़िलहाल स्थिर बनी हुई है.
क़तर के समाचार चैनल अल जज़ीरा ने इसराइली सेना पर हत्या का आरोप लगाया है. चैनल पर दिखाए बयान में अल-जज़ीरा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वे उनकी सहयोगी अबु अक़लेह को जानबूझकर मारने के लिए इसराइली बलों की निंदा करे और उनकी ज़िम्मेदारी तय करे.
इस मामले पर इसराइल ने भी बयान जारी कर दिया है और शिरीन अबु अक़लेह की मौत की जाँच के लिए फ़लस्तीन के साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया है.
पत्रकार की मौत पर इसराइल का बयान
इसराइल के विदेश मंत्री येर लेपिड ने ट्वीट किया, "हमने फ़लस्तीन को पत्रकार शिरीन अबु अक़लेह की दुखद मौत की संयुक्त जांच करने का प्रस्ताव दिया है. टकराव वाले इलाक़ों में पत्रकारों की सुरक्षा होनी चाहिए और हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि सच तक पहुँचे."
उन्होंने लिखा, "आगे भी जहाँ आतंकवाद और इसराइलियों की हत्या को ज़रूरी होगा, इसराइली सेना काम करती रहेगी."
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, इसराइली सेना ने कहा है कि जेनिन में अचानक उन पर भारी गोलीबारी की जाने लगी और विस्फोटक दागे जाने लगे, जिसके जवाब में फ़ायरिंग की गई.
सेना ने ये भी कहा है कि वो मामले की जाँच कर रही है और आशंका ये भी है कि पत्रकार की मौत फ़लस्तीनी बंदूकधारियों की फ़ायरिंग में हुई हो.
अल-जज़ीरा की वेस्ट बैंक संवाददाता निदा इब्राहिम ने कहा कि शिरीन अबू अक़लेह की मौत की परिस्थितियां स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन घटना का जो वीडियो सामने आया है, उसमें अबू अक़लेह को सिर पर गोली मारी गई है.
इब्राहिम ने कहा, "अभी के लिए जो पता है वो ये है कि फ़लस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनकी मौत की घोषणा की है. शिरीन अबू अक़लेह जेनिन में होने वाली घटनाओं को कवर कर रही थीं. ख़ासकर इसराइल के क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के उत्तर में एक शहर पर एक इसरायली सेना की छापेमारी को कवर करते हुए उन्हें सिर पर गोली लगी.''
वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों का प्रबंधन देखने वाले फ़लस्तीनी प्रशासन ने इस हमले की निंदा करते हुए इसे इसराइली सुरक्षा बलों का किया "दिल दहलाने वाला अपराध" बताया है.
51 वर्षीय अबु अक़लेह का जन्म यरुशलम में हुआ था. उन्होंने सन् 1997 में अल-जज़ीरा के लिए काम करना शुरू किया था और वो सभी फ़लस्तीनी क्षेत्रों से रिपोर्ट करती थीं.
हाल के हफ़्तों में इसराइल ने वेस्ट बैंक में लगातार छापेमारी की है. ये छापेमारी इसराइल के अंदर हुए कई भीषण हमलों के जवाब में की जा रही है, जिनमें से अधिकांश फ़लस्तीन की ओर से हो रहे हैं. जेनिन में शरणार्थी कैंप हैं और इसे लंबे समय से अतिवादियों का गढ़ माना जाता रहा है.
इसराइल ने 1967 में लड़े गए युद्ध के बाद वेस्ट बैंक पर नियंत्रण कर लिया था और फ़लस्तीन भविष्य में इसे अपने आज़ाद देश का अहम हिस्सा बनाना चाहता है.
इस इलाक़े में क़रीब 30 लाख फ़लस्तीनी इसराइली सेना की निगरानी में रहते हैं. इसराइल ने वेस्ट बैंक में क़रीब 130 से ज़्यादा बस्तियां बसाई हैं, जहाँ क़रीब पाँच लाख़ से ज़्यादा यहूदी बसते हैं. इन सबके पास इसराइली नागरिकता है.
इसराइल लंबे समय से अल-जज़ीरा की कवरेज की आलोचना करता आया है लेकिन आम तौर पर इसराइल इस चैनल के पत्रकारों को रिपोर्टिंग से नहीं रोकता है.
बीते साल भी यरुशलम में प्रदर्शन के दौरान अल-जज़ीरा के अन्य रिपोर्टर को हिरासत में ले लिया था. उनके छूटने के बाद अल-जज़ीरा ने दावा किया था कि पुलिस के ख़राब बर्ताव की वजह से उनके कर्मचारी का हाथ टूट गया.
इसराइली सेना और और मीडिया, ख़ासतौर पर फ़लस्तीनी पत्रकारों के बीच संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं. इससे पहले साल 2018 में गज़ा में हो रहे हिंसक प्रदर्शन को कवर करने गए एक पत्रकार की भी इसराइली सुरक्षा बलों ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी.
इससे पहले पिछले साल मई में इसराइल के एक हवाई हमले में ग़ज़ा की एक बहुमंज़िला इमारत ज़मींदोज़ हो गई थी. इस इमारत में कई विदेशी न्यूज़ चैनलों के दफ्तर मौजूद थे. तब अल जज़ीरा के कार्यवाहक महानिदेशक डॉक्टर मुस्तफ़ा स्वेग ने कहा था, "ग़ज़ा में मौजूद अल-जाला टावर पर हमला करना, जिसमें अल जज़ीरा और दूसरे मीडिया संस्थानों के दफ्तर थे, मानवाधिकारों का उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे युद्ध अरपराध माना जाता है." (bbc.com)
-इस्लाम गुल आफ़रीदी
पाकिस्तानी के क़बीलाई ज़िले लोअर औरकज़ई के जहांगीर जानाना (30 साल) और उस इलाक़े के दूसरे किसान बारिश के होने और सरकार से भांग की खेती को क़ानूनी मंज़ूरी मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. किसानों के अनुसार, उन्हें अगले कुछ दिनों में बारिश होने की उम्मीद तो है, पर सरकार के फ़ैसले को लेकर कुछ नहीं पता.
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद जहांगीर और उनके परिवार की आय का मुख्य स्रोत भांग की फ़सल से मिलने वाली चरस की ग़ैर क़ानूनी बिक्री है, जिससे वे पांच से छह लाख रुपए सालाना कमा लेते हैं. हालांकि पिछले कई सालों से इस फ़सल से होने वाली उनकी आय अब आधी रह गई है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान से होने वाली तस्करी के कारण दाम में कमी आई है.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के तीन ज़िलों यानी ख़ैबर की वादी तीराह, औरकज़ई और कुर्रम के ख़ास इलाक़ों में भांग की खेती की जाती है. इससे बनने वाली चरस की तस्करी न सिर्फ़ देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी होती है.
दूसरे देशों में भांग के अवयवों से भोजन, कपड़े, दवाइयां और निर्माण सामग्रियां बनती हैं, जो भांग से बनने वाली चरस की अपेक्षा बहुत अधिक आय देती हैं.
कैसे बंद होगा जेलों में ड्रग्स का इस्तेमाल?
आखिर पंजाब कैसे निकल पाएगा ड्रग्स की लत से बाहर?
इस आधार पर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सरकार ने सन 2021 में ज़िला ख़ैबर की वादी तीराह, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की क़ानूनी खेती और इससे चरस व अन्य मादक पदार्थ बनाने के बदले उसके लाभकारी इस्तेमाल के उद्देश्य से सर्वे कराने का निर्णय किया था जिसकी ज़िम्मेदारी पेशावर विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग को दी गयी थी.
फार्मेसी विभाग से संबद्ध प्रोफेसर फ़ज़ल नासिर उस योजना के संरक्षक थे. बीबीसी को उन्होंने बताया कि जून 2021 से तीन ज़िलों में भांग से संबंधित सर्वे शुरू हुआ और आधुनिक प्रणाली और प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लाते हुए छह महीने की अल्प अवधि में कुल क्षेत्रफल पर भांग की खेती और चरस की सालाना उपज से संबंधित जानकारी एकत्रित कर दिसंबर 2021 में ख़ैबर पख़्तूनख़्वा इकोनॉमिक ज़ोन के पास जमा किया गया है.
उन्होंने बताया कि इस शोध कार्य पर एक करोड़ 43 लाख रुपये खर्च हुए हैं. जिन क्षेत्रों में सर्वे हुआ था वहां से संबंध रखने वाले किसान आशान्वित थे कि राज्य सरकार चालू साल में भांग की खेती के लिए सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकारी कार्रवाई पूरी कर लेगी लेकिन यह योजना विलंब का शिकार हो गयी.
सर्वे रिपोर्ट से क्या पता चला?
सर्वे रिपोर्ट में सरकार को प्रस्ताव दिया गया है कि चरस से 'सीबीडी' तेल निकालने और भांग के तने से विभिन्न सामान तैयार करने के लिए भांग की खेती वाले तीन ज़िलों में छह कारख़ाने लगाये जाएं जिससे छह हज़ार लोगों को सीधे काम के अवसर मिलेंगे.
खुले बाज़ार में 'सीबीडी' तेल का प्रति लीटर मूल्य 1250 से 1500 अमेरिकी डालर है जबकि साढ़े तीन किलो चरस से एक लीटर तेल निकलता है. 'सीबीडी' तेल के अच्छे मूल्य के कारण इसे 'हरा सोना' भी कहा जाता है.
रिपोर्ट में भांग के बीज में आधारभूत परिवर्तन लाने का प्रस्ताव दिया गया है क्योंकि वर्तमान फ़सल में नशे का भाग यानी 'एचटीसी' की मात्रा 43 प्रतिशत है, जो बहुत अधिक है.
राज्य सरकार ने भांग से बनने वाली दवाइयों के इस्तेमाल और इस पर शोध कार्यों की ज़िम्मेदारी पेशावर यूनिवर्सिटी के फार्मेसी विभाग और मार्केटिंग व बिज़नेज प्लान से संबंधित ज़िम्मेदारी मैनेजमेंट स्टडीज़ को दी थी. इसी तरह मशीन लगाये जाने से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के लिए पर्यावरण विभाग, भौगोलिक जानकारी के लिए भूगर्भ शास्त्र, वैधानिक स्थिति की समीक्षा की ज़िम्मेदारी लॉ कॉलेज और लोगों में सामाजिक जागरुकता लाने की ज़िम्मेदारी समाज शास्त्र विभाग के हवाले की गयी थी.
इस पूरे शोध कार्यक्रम में पेशावर यूनिवर्सिटी के उन विभागों में अध्ययनरत ख़ैबर, कुर्रम और औरकज़ई के विद्यार्थियों ने भाग लिया.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा इकोनॉमिक ज़ोन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जावेद इक़बाल ख़टक के अनुसार भांग से संबंधित प्रारंभिक रिपोर्ट को स्माॅल इंडस्ट्री डेवलपमेंट बोर्ड और प्लानिंग ऐंड डेवलपमेंट को विचार-विमर्श के लिए भेज दिया गया है.
उन्होंने कहा कि उन संस्थाओं और इकोनॉमिक ज़ोन के प्रस्तावों की अंतिम रिपोर्ट न सिर्फ संस्थान की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी बल्कि इस क्षेत्र में निवेश और आर्थिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए व्यावहारिक पहल भी की जाएगी.
ख़ैबर, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की क़ानूनी खेती में देरी के बारे में राज्य सरकार के प्रवक्ता बैरिस्टर सैफ़ से संपर्क किया गया मगर उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला हालांकि राज्य के उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि भांग की क़ानूनी खेती में देरी का एक कारण राष्ट्रीय भांग नीति की स्वीकृति में आने वाली अड़चनें हैं.
उन्होंने कहा कि राज्य स्तर पर शोध का काम संपन्न हो चुका है हालांकि इस बारे में संबंधित संस्थाओं के साथ विचार विमर्श का काम जारी है जिसके जल्द पूरा होने के बाद भांग की खेती क़ानूनी तरीक़े से शुरू हो जाएगी.
भांग की खेती के आंकड़े
ख़ैबर, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की वर्तमान खेती से संबंधित किसी भी सरकारी संस्था के पास संपुष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन प्रोफेसर फ़ज़ल नासिर ने दावा किया कि आधुनिक टेक्नोलॉजी और स्थानीय बाज़ार के आंकड़े के अनुसार तीनों ज़िलों में दो सौ वर्ग किलोमीटर यानी 49 हज़ार एकड़ ज़मीन पर भांग की खेती की जाती है जिससे वार्षिक पचास लाख किलोग्राम तक चरस प्राप्त होती है.
क्षेत्रफल के हिसाब से औरकज़ई पहले, तीराह दूसरे जबकि कुर्रम तीसरे नंबर पर है, हालांकि सबसे अच्छी फ़सल तीराह में पैदा होती है। उन्होंने कहा कि आधे एकड़ खेत से तीराह में पांच किलो, औरकज़ई में साढ़े तीन किलोग्राम और कुर्रम में दो से ढाई किलो तक चरस हासिल की जा सकती है.
चरस की कीमत कम क्यों हो गयी
तीराह की घाटी के 70 वर्षीय हाजी करीम ने चालू साल में फ़सल के लिए खेतों को पहले से तैयार कर दिया है लेकिन समय पर वर्षा नहीं होेने के कारण अब तक उन्होंने भांग की फ़सल नहीं लगायी है.
उनका कहना है कि दो एकड़ कृषि भूमि से पंद्रह लाख वार्षिक आय होती थी लेकिन बाज़ार में चरस की क़ीमत साठ हज़ार रुपये प्रति किलो से कम होकर 12 हज़ार तक गिरने के कारण ख़र्च भी मुश्किल से निकल पाता है.
उनके अनुसार स्थानीय लोगों के पास भांग की खेती के अलावा कोई और वैकल्पिक स्रोत नहीं हालांकि सरकार की ओर से कहा गया है कि क्षेत्र में भांग की क़ानूनी खेती की अनुमति मिलने के बाद लोगों की आय बढ़ेगी लेकिन अब तक इस बारे में कुछ भी पता नहीं है.
इस क्षेत्र से संबंध रखने वाले शेर खान- काल्पनिक नाम- चरस की ग़ैर क़ानूनी बिक्री के धंधे से जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि मई 2018 में क़बीलाई इलाक़ों के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में विलय के बाद विभिन्न संस्थाओं और क़ानूनों के विस्तार के कारण चरस का कारोबार जारी रखने में काफी कठिनाई उत्पन्न हो गयी है, क्योंकि दूसरे इलाक़ों तक भेजने में परेशानी और ख़र्च बढ़ चुके हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से बलूचिस्तान के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान से चरस की भारी मात्रा में तस्करी की वजह से चरस की क़ीमत सत्तर हज़ार रुपये प्रति किलो से कम होकर दस से बारह हज़ार रुपये किलो तक गिर चुकी है जिसके कारण पाकिस्तान में भांग की फसल पर आने वाली लागत भी मुश्किल से मिल पा रही है.
'जब भांग की खेती क़ानूनी होगी तो किसान को लाभ होगा'
भविष्य में ख़ैबर, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की क़ानूनी खेती के बारे में अगर एक तरफ स्थानीय लोग सरकार के इस क़दम से बेहतर आर्थिक भविष्य की आशा रखते हैं तो दूसरी तरफ लोग इसके बारे में कई सवाल उठा रहे हैं.
आबाद गुल औरकज़ई फ़ीरोज़ख़ेल मेले के निवासी हैं और छह एकड़ खेत में भांग की खेती करते हैं. अपने खेत में भांग की उपज के अलावा वे हर साल 8 से 10 लाख रुपये मूल्य की भांग स्थानीय किसानों से भी ख़रीदते हैं.
उन्होंने कहा कि कारख़ाने लगाने, भांग से प्राप्त सामग्री की मार्केटिंग और अन्य योजनाओं में स्थानीय किसानों और पूंजी लगाने वालों को अवसर उपलब्ध कराया जाए क्योंकि इन इलाक़ों में भांग के अलावा कमाई का कोई दूसरा साधन नहीं.
प्रोफेसर फ़ज़ल नासिर ने कहा कि उन्होंने स्थानीय आबादी की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक लाभ स्थानीय लोगों को देने की पहल पर ज़ोर दिया है और सरकार को प्रस्ताव दिया है कि प्रस्तावित पहलों से होने वाले आर्थिक लाभ में बड़ा भाग स्थानीय आबादी का होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि एक कारख़ाने पर लगभग छह से आठ करोड़ की लागत आएगी जबकि निजी क्षेत्र में स्थानीय निवेशक छोटे कारख़ाने एक से डेढ़ करोड़ रुपये में लगा सकते हैं.
जावेद इक़बाल ख़टक ने बताया कि भांग से प्राप्त होने वाली रासायनिक सामग्री के लिए सिर्फ स्थानीय बाज़ार ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट तक पहुंच के लिए ज़िला ख़ैबर में एक हज़ार एकड़ ज़मीन पर ख़ैबर इकोनॉमिक कारिडोर स्थापित करने के लिए सभी प्रबंध किये जा चुके हैं.
इनमें पहला काम भांग के छोटे और मध्यम दर्जे के कारख़ाने स्थापित करना, रास्तों में आने वाली बाधाओं की स्थिति में अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली गाड़ियों के लिए टर्मिनल और ताज़ा सब्ज़ी और मेवों को ले जाने वाले कोल्ड स्टोरेज कन्टेनर को रिचार्ज करने की सुविधा मिल सकेगी.
उन्होंने कहा कि जब भांग से क़ानून के अनुसार सामग्री प्राप्त करने का सिलसिला शुरू होगा तो किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा जबकि तीराह, औरकज़ई और कुर्रम में भी छोटी यूनिट की स्थापना को बढ़ावा दिया जाएगा.
भांग की क़ानूनी खेती और आमदनी
नेशनल एसेंबली की सायंस एवं टेक्नोलॉजी समिति ने पिछले साल अक्टूबर में निर्णय किया था कि साल के अंत में राष्ट्रीय भांग नीति स्वीकृत हो जाएगी लेकिन अब तक इसमें कोई विशेष प्रगति नहीं हो सकी है.
पाकिस्तान काउन्सिल आफ सायंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिचर्स के सदस्य डॉ. नसीम रउफ ने इस संबंध में बताया कि कैनाबीज या भांग का दुनिया भर में दवाओं के लिए इस्तेमाल होता है और दर्द निवारक तेल 'सीडीबी' इससे बनाया जाता है जिसका एक लीटर 10 हज़ार डाॅलर तक में बिकता है.
इसके अलावा कपड़े की तैयारी में भी इसका बहुत महत्व है. उनका कहना है कि दुनिया में इस पौधे से जुड़ा व्यापार 29 अरब डाॅलर तक पहुंच चुका है और 2025 तक इसके व्यापार का संभावित आकार 95 अरब डॉलर तक होगा.
उनके बक़ौल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जून 2020 में भांग की खेती के आर्थिक लाभ को ध्यान में रखते हुए सरकार को क़दम उठाने का निर्देश दिया था जिसपर सितंबर 2020 में कैबिनेट की स्वीकृति के बाद पीसी वन तैयार किया गया.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के साथ विलय होने वाले ज़िलों में भांग के साथ पोस्त की फ़सल को भी शोध योजना में शामिल किया गया था लेकिन जब योजना पर काम शुरू हुआ तो उस वक्त उस फ़सल का समय बीत चुका था.
इस संबंध में भांग पर शोध के लिए बनी टीम राज्य सरकार के फैसले की प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन देर होने के कारण फ़सल का समय इस साल भी समाप्त हो गया है.
पाकिस्तान में भांग की क़ानूनी खेती का इतिहास
पाकिस्तान में भांग की क़ानूनी खेती के लिए पहली नीति 1950 में बनायी गयी थी जिसके तहत पंजाब के ज़िले बहावलपुर में पहली खेती हुई थी हालांकि यह योजना विफल हो गयी क्योंकि उस क्षेत्र की जलवायु गर्म थी.
सरकार ने हज़ारा डिविज़न के ठंडे क्षेत्र में भांग की खेती के सफल प्रयोग किये लेकिन बाद में उन योजनाओं पर कोई विशेष काम नहीं हुआ.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में भी भांग की ग़ैर क़ाननी खेती होती थी और अब लंबे अर्से से तीराह, औरकज़ई और कुर्रम में भांग उपजायी जाती है.
भांग से चरस कैसे प्राप्त होती है
मई के शुरू में तीराह, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की विधिवत खेती शुरू होकर दो तीन सप्ताहों में यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। पौधों की लंबाई ढाई फीट होने के बाद उसमें गोड़ाई करके जड़ी बूटियां निकाल ली जाती हैं और साथ में पौधों की संख्या भी कम कर ली जाती है.
स्थानीय किसान पिछले साल की फ़सल से प्राप्त बीज बोते हैं. मई और जून के महीने में कृत्रिम खाद के इस्तेमाल से नर पौधे भी निकाल लिये जाते हैं ताकि फ़सल की पैदावार बेहतर हो सके.
फ़सल की कटाई अक्टूबर के अंत में होती है और पौधों को छोटे आकार में बांध लेने के बाद उनको खेत में ही छोड़ दिया जाता है ताकि उन पर बारिश और बर्फ़बारी पड़े क्योंकि इस प्रक्रिया से प्राप्त होने वाली चरस का स्तर बेहतर हो जाता है.
पहली बारिश या बर्फ़बारी के बाद भांग को सुरक्षित स्थान पर रखकर दिसंबर- जनवरी के शुरुआत में फ़सल से चरस प्राप्त करने का काम शुरू हो जाता है जो फरवरी या मार्च तक जारी रहता है.
युवा वैकल्पिक रोज़गार की तलाश में
तीराह घाटी में कुछ युवा ऐसे रोज़गार की तलाश में हैं जो कम लागत और अधिक आमदनी के साथ क़ानूनी हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए न्यूक्लियर इंस्टीट्यूट फॉर फूड ऐंड एग्रीकल्चर- एनआईएफए- की तकनीकी मदद से जनवरी 2021 में मशरूम की खेती के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी थी जिसमें 30 से अधिक स्थानीय किसानों ने भाग लिया। इनमें तीस साल के फ़ज़ल रब्बी भी शामिल थे जिन्होंने ट्रेनिंग लेने के बाद अपने घर पर मशरूम की खेती की.
इसके साथ उस क्षेत्र में मशरूम की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्होंने तीराह में मशरूम क्लब के नाम से एक संगठन बनाया जिसमें घाटी के सत्तर से अधिक किसान सदस्य हैं.
फ़ज़ल रब्बी का कहना है कि पहले की तुलना में कृषि भूमि से प्राप्त होने वाली भांग की फ़सल की क़ीमत कम होने की वहज से इलाक़़े के नौजवान बड़ी संख्या में नये रास्तों की तलाश में थे.
और फिर स्थानीय सैन्य अफसरों की सहायता से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग की व्यवस्था की. उनके बक़ौल युवाओं ने इसी आधार पर मशरूम की खेती शुरू की जिसके काफी अच्छे नतीजे सामने आने शुरू हुए जिसके कारण लोगों की इसमें रुचि बढ़ गयी.
मशरूम क्लब की ओर से और किसानों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया गया और यह सिलसिला अब भी जारी है.
कृषि विभाग, ख़ैबर के निदेशक ज़िया इस्लाम दावड़ ने बताया कि जिन इलाक़ो में भांग की खेती होती है वहां पर ज़बर्दस्ती खेती बंद नहीं कर रहे हैं बल्कि संस्थान और सैन्य अफसरों की सहायता से इलाक़े में ऐसी सब्ज़ियां, फ़सलें और बाग़ लगाये जा रहे हैं जिनसे आमदनी भांग की तुलना में अधिक हो.
उन्होंने कहा कि इस सिलसिल में कृषि विभाग की ओर से तीराह में केसर, प्याज़, आलू और टमाटर की खेती पर काम जारी है. (bbc.com)
उद्योगपति इलॉन मस्क ने ट्विटर को खरीदने की पेशकश करने के बाद एक बयान में कहा कि वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से ट्विटर बैन हटाएंगे. मस्क ने बैन करने के कदम को "मूर्खता" बताया है.
अरबपति मस्क ने मंगलवार को कहा कि जब वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर खरीद लेंगे, तो वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर ट्विटर के प्रतिबंध को पलट देंगे. मस्क खुद को "फ्री स्पीच का समर्थक" बताते हैं. हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का अधिग्रहण करने के लिए 44 अरब डॉलर की पेशकश की थी.
मस्क ने ट्रंप के ट्विटर बैन को "बेहद मूर्ख" बताया
फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा आयोजित फ्यूचर ऑफ द कार शिखर सम्मेलन के दौरान मस्क ने प्रतिबंध को "नैतिक रूप से बुरा फैसला" और "बेवकूफाना" बताया है. मस्क ने कहा, "मुझे लगता है कि यह एक गलती थी क्योंकि इसने देश के एक बड़े हिस्से को अलग-थलग कर दिया और आखिरकार ऐसा करने में नाकामी मिली कि ट्रंप के पास बोलने के लिए मंच ना हो."
उन्होंने कहा, "तो मुझे लगता है कि यह एक एकल मंच होने से स्पष्ट रूप से बदतर हो सकता है जहां हर कोई बहस कर सकता है. मुझे लगता है कि इसका जवाब यह है कि मैं स्थायी प्रतिबंध को उलट दूंगा."
हालांकि ट्विटर ने मस्क के इस बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है और ना ही ट्रंप के प्रवक्ता ने कोई प्रतिक्रिया दी है.
मस्क ने साथ ही कहा कि प्रतिबंध जैसे कदम दुलर्भ परिस्थितियों में होना चाहिए और ऐसे कदम उन अकाउंट के लिए उठाए जाने चाहिए जो "गैरकानूनी" सामग्री पोस्ट करते हैं और जो "दुनिया के लिए विनाशकारी हैं."
मस्क ने संकेत दिया है कि अगर वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण हासिल कर लेते हैं तो वह कंटेंट मॉडरेशन नीतियों को ढीला करेंगे. मस्क ट्विटर पर फ्री स्पीच की वकालत करते आए हैं.
ट्विटर ने ट्रंप पर प्रतिबंध क्यों लगाया?
ट्विटर ने 6 जनवरी 2021 को अमेरिका के कैपिटल हिल में हुई हिंसा के बाद ट्रंप को मंच से प्रतिबंधित कर दिया था. चुनावों में राष्ट्रपति ट्रंप की हार को अस्वीकार करने वाले उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए कैपिटल बिल्डिंग पर ही धावा बोल दिया था.
ट्रंप ने ट्विटर पर अक्सर चुनाव परिणाम के खिलाफ पोस्ट डाले थे और उन्होंने चुनाव को लेकर झूठे दावे किए थे कि बाइडेन के पक्ष में व्यापक मतदाता धोखाधड़ी हुई थी. आरोप है कि ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के साथ कैपिटल में हिंसा को उकसाया था जिसके कारण अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्रपति पर दूसरी बार ऐतिहासिक महाभियोग चलाया.
ट्विटर ने कहा था कि उसने दंगा के बाद "हिंसा भड़काने" के लिए ट्रंप पर प्रतिबंध लगाया. उसके बाद से ट्रंप मुख्य रूप से अपने समर्थकों से संवाद करने के लिए रैलियों और बयानों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं.
ट्रंप ने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें अनुमति मिलती है तो वे ट्विटर पर वापस नहीं लौटेंगे. उनका अपना सोशल मीडिया ऐप ‘ट्रूथ सोशल' फरवरी के अंत में ऐप्पल ऐप स्टोर पर लॉन्च किया गया था.
लेफ्ट की तरफ झुकाव रखने वाले मीडिया मैटर्स के प्रमुख एंजेलो कारुसोन ने कहा कि ट्रंप को ट्विटर पर बहाल करने की मस्क की योजना मंच पर "नफरत और दुष्प्रचार की बाढ़" खोलने का पहला कदम होगा.
दूसरी ओर अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के निदेशक एंथोनी रोमेरो ने कहा, "ट्रंप को फिर ट्विटर पर लाने का फैसला सही न्योता है."
ट्रंप का जब ट्विटर अकाउंट बैन हुआ था तब उनके 8.8 करोड़ से अधिक फॉलोअर्स थे.
एए/वीके (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में छिड़े संघर्ष और उसके बाद प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफ़े को लेकर देश-दुनिया के जाने-माने बैंकर उदय कोटक ने टिप्पणी की है.
उन्होंने कहा है कि "जलता श्रीलंका" हम सबको बताता है कि क्या नहीं करना चाहिए.
कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने ट्वीट किया, "रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और ये मुश्किल ही होता जा रहा है. देशों की असल परीक्षा अब है. न्यायपालिका, नियामक, पुलिस, सरकार, संसद जैसी संस्थाओं की ताक़त मायने रखेगी. वो करना जो सही है, लोकलुभावन नहीं, महत्वपूर्ण है. एक 'जलता लंका' हम सबको बताता है कि क्या नहीं करना चाहिए."
हालांकि, इसके स्पष्ट संकेत नहीं हैं लेकिन उदय कोटक की टिप्पणी को मोदी सरकार के लिए सलाह के तौर पर देखा जा रहा है. उदय कोटक मोदी सरकार के समर्थकों में से एक रहे हैं.
मोदी सरकार भी कई मोर्चों पर चुनौती का सामना कर रही है. भारत में महंगाई दर 7.5 फ़ीसदी को पार कर सकती है, जो कि 18 महीनों में सबसे अधिक है. भोजन, पेट्रोल-डीज़ल और रोज़ाना के इस्तेमाल में आने वाले उत्पादों की बढ़ती कीमतें, आपूर्ति में कमी और बिजली की कमी जैसी कई समस्याएं हैं, जो भारत में भी मौजूद हैं.
एक सप्ताह पहले ही उदय कोटक ने महंगाई को लेकर ट्वीट किया था. जिसमें उन्होंने कहा था, "महंगाई की दुश्वारी मज़बूती से आ गई है. भविष्य यहाँ है. भविष्य अब है."
भारतीय रुपए की क़ीमत डॉलर की तुलना में लगातार गिर रही है. सोमवार को ये एक डॉलर के बदले 77.53 रुपए तक गिर गई, जो अब तक का सबसे निचला स्तर था. हालांकि, मंगलवार को रुपये की क़ीमत में सुधार हुआ लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल जून माह के आखिर तक रुपया गिरकर 79 रुपये तक जा सकता है.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी श्रीलंका की स्थिति को भारत के लिए चेतावनी के तौर पर पेश किया है.
भारत ने ऐन मौक़े पर श्रीलंका को बचाया, श्रीलंकाई अख़बारों में क्या छपा है?
श्रीलंका में चीन के सामने कहां चूक गया भारत?
गुहा ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा, "श्रीलंका एशिया का सबसे समृद्ध देश हो सकता है. उनके यहाँ साक्षरता, स्वास्थ्य सेवाएं, लिंगानुपात की दरें ऊंची थीं. लेकिन सिंहला और बौद्ध बहुसंख्यकों की वजह ये देश बर्बाद हो गया."
उन्होंने ये भी कहा कि अगर एक धर्म और एक भाषा को महत्व दिया गया तो भारत का हाल भी श्रीलंका जैसा होगा.
उन्होंने ट्वीट किया, "लंबे समय तक श्रीलंका का छात्र रहने के कारण मैं कह सकता हूं कि इस सुंदर देश के संकट की जड़े छोटे समय से मौजूद आर्थिक वजहों से ज़्यादा बीते एक दशक से मौजूद भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक बहुसंख्यवाद से जुड़ी हैं. इसमें भारत के लिए भी सबक हैं."
वरिष्ठ वकील और ऐक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने भी श्रीलंका के कुछ अख़बारों की क्लिपिंग की तुलना भारतीय ख़बरों से की है.
ये ख़बरें श्रीलंका में हलाल मांस का बहिष्कार करने, बुर्का पर रोक, ईसाइयों और मुसलमानों पर हमले और राष्ट्रपति चुनाव से धार्मिक मतभेद बढ़ने से जुड़ी हैं.
उन्होंने इसके साथ लिखा है, "श्रीलंका के सत्ताधारियों ने बीते कुछ सालों में जो किया और भारत के सत्ताधारी जो आज कर रहे हैं, उनमें आपको कुछ समानता दिख रही है? क्या भारत में इसके परिणाम भी वैसे ही होंगे जैसे आज श्रीलंका के हालात हैं?"
बता दें कि श्रीलंका में आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. देश में विदेशी मुद्रा भंडार घटकर केवल 50 अरब डॉलर तक आ गया है. वहीं, श्रीलंका का दूसरे देशों से लिया कर्ज़ भी बढ़कर 51 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है. द टेलिग्राफ़ अख़बार की ख़बर के अनुसार भारत के पास फिलहाल 600 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है. (bbc.com)