राजपथ - जनपथ
चांदी के पंखों वाली तितली...
बारिश के बाद पूरे छत्तीसगढ़ में हरे रंग की चादर बिछी है। नन्हें जीव-जंतुओं को भी इस सावन ने नया जीवन दिया है। छत्तीसगढ़ में बस्तर की तो बात ही अलग है। यह तस्वीर तितली की एक खास प्रजाति की है जिसे क्यूरेटिस एक्यूटा कहा जाता है। हिंदी में कहें तो सूर्य के कोण वाली तितली। इसका पृष्ठभाग जैसा दिखाई दे रहा है, चांदी की तरह सफेद है। इसकी वजह से यह सूर्य की किरणों को परावर्तित कर यह अपने शरीर के तापमान को कम रखने में सफल होती है। यह तस्वीर रवि नायडू ने बस्तर के जंगल से खींची है और दावा किया है कि छत्तीसगढ़ में इसे पहली बार रिकॉर्ड किया गया है।
गवर्नर उइके का दर्द छलक उठा...
मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके अर्जुन सिंह की सरकार में तब मंत्री थीं, जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, बाद में भाजपा से जुड़ गईं। मणिपुर से पहले वे छत्तीसगढ़ की ही राज्यपाल थीं। इसलिए अपने प्रदेश के लोगों को यह जानने में दिलचस्पी हो सकती है इस समय मणिपुर में हो रही हिंसा और लोगों की दुर्दशा पर उनकी क्या राय है? वह कुछ बोल भी रही हैं या केंद्रीय मंत्रियों की तरह खामोश हैं। यह जानकर अच्छा लग सकता है कि वह खुलकर बोल रही हैं। एक न्यूज़ चैनल न्यूज 18 इंडिया से कल बात करते हुए उन्होंने हिम्मत के साथ मणिपुर की तस्वीर सामने रख दी। उन्होंने कहा कि यहां के लोगों के दुख और दर्द को देख रही हूं, मिलती हूं। सब मुझसे पूछते हैं कब शांति लौटेगी। कब हम अपने घर लौट पाएंगे। फायरिंग चल रही है, लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं। यह कब तक चलता रहेगा। ढाई महीने से घर नहीं लौट पाए हैं। 5000 के लगभग घर जल गए हैं। 60 हजार लोग आज शिविरों में रह रहे हैं। मैंने यहां की स्थिति आपके सामने रख दी, ऊपर में भी बता भी दिया है। मैं बहुत दुखी भी हूं। यहां का जो सिचुएशन है, मैंने जिंदगी में कभी नहीं देखा..। मैंने कभी ऐसी हिंसा नहीं देखी जो यहां देख रही हूं।
बस्तर से एक और नाजुक खबर
विधानसभा चुनाव के पहले आदिवासियों का धर्मांतरण वहां एक बड़े मुद्दे के रूप में उभर रहा है। एक नया मामला लोहंडीगुड़ा के करीब तारागांव की ग्राम सभा का फैसला है। ग्राम सभा ने प्रस्ताव पारित किया है कि धर्मांतरित लोगों को जल जंगल जमीन पर कोई हक नहीं दिया जाएगा। उन्हें मतदान का भी अधिकार नहीं होगा। वे केवल सरकारी नल का उपयोग कर सकेंगे। जल स्रोतों का पानी उनके लिए उपलब्ध नहीं रहेगा। उनके शव गांव की सीमा के बाहर दफनाये जाएंगे। राशन कार्ड में अपनी पूर्व जाति का उल्लेख करना होगा, तभी राशन मिलेगा।
ग्राम सभा को अधिसूचित क्षेत्रों में अधिक अधिकार मिले हुए हैं लेकिन क्या वे मौलिक अधिकारों को भी हड़प सकती है? ग्राम सभा के पदाधिकारियों ने बस्तर कलेक्टर को अपने फैसले के बारे में जानकारी दे दी है। प्रशासन इससे कैसे निपटेगा यह तो एक सवाल है लेकिन राजनीतिक दल ऐसे मामलों में क्या रुख रखते हैं यह भी देखना होगा।
बच्चों के रंग में रंगी टीचर
शिक्षिका जान्हवी यदु की इस समय सोशल मीडिया पर बड़ी चर्चा हो रही है। राजधानी रायपुर के शासकीय गोकुलराम वर्मा प्राइमरी स्कूल की इस टीचर ने बच्चों में अनुशासन और उत्साह जगाने के लिए नया प्रयोग किया है। वह उनकी ही तरह स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल आने लगी हैं। बच्चे उन्हें यूनिफॉर्म में देखकर खुश हैं। जो बच्चे यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल नहीं आते थे, उन्होंने भी आना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि स्कूली बच्चों की प्रेरणा के स्त्रोत टीचर होते हैं। हमारा वे अनुसरण करते हैं। बच्चों को समझने में मुझे अब ज्यादा आसानी हो रही है और वे भी मेरी बात समझकर, पढऩे में खूब मन लगा रहे हैं। रोचक अनुभव यह हो रहा है कि बाकी टीचर और बच्चों को भी इस यूनिफॉर्म के चलते कई बार धोखा हो जाता है कि वे टीचर हैं या स्टूडेंट। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के क्रियाकलापों की जब रोजाना कोई न कोई अप्रिय खबर आ रही हो, तब ऐसी कोशिशें चर्चा का विषय बन ही जाती हैं।
फूलो देवी के हटने की वजह
महिला कांग्रेस की अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेजा है। वो पिछले सात साल से अध्यक्ष पद पर थीं, और इस्तीफे की वजह भी यही बताई है। मगर कई और कारण गिनाए जा रहे हैं।
राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम के इस्तीफे के संकेत उस वक्त मिलने लग गए थे जब प्रदेश प्रभारी सैलजा ने कुछ दिन पहले फूलोदेवी, और अन्य मोर्चा संगठनों के अध्यक्षों के साथ वन टू वन मीटिंग की थी। चर्चा है कि सैलजा ने किसी विषय को लेकर उन पर नाराजगी जताई थी।
यही नहीं, फूलोदेवी, और नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के बीच बेहतर तालमेल नहीं रहा है। ऐसे में फूलोदेवी को हटाए जाने की चर्चा थी। इससे पहले ही उन्होंने पद छोड़ दिया। अब कुछ और विभागाध्यक्षों को बदले जाने की चर्चा है। देखना है कि पार्टी संगठन में क्या कुछ बदलाव होता है।
सेहत और जेब दोनों के लिए महंगी
11 जुलाई को कोरबा जिले के कटघोरा इलाके के गंगदेई गांव में जंगली पुट्टू या मशरूम खाने से 7 लोगों की तबीयत खराब हो गई। 4 जुलाई को सरगुजा के मैनपाट ब्लॉक के परपटिया मैं जंगली पुटू खाकर एक मांझी परिवार के 4 लोग बीमार हो गए, जिनमें दो बच्चे थे। जशपुर जिले के बगीचा ब्लॉक के चलनी गांव के एक सामाजिक कार्यक्रम में जंगली मशरूम परोसा गया। इसे खाने के बाद 15 लोग बीमार पड़ गए। दो महिलाओं की स्थिति गंभीर हो चुकी थी हालांकि सभी बचा लिए गए।
छत्तीसगढ़ में हर साल बारिश के दिनों में ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अपने आप उगने वाली खुखड़ी, कुकुरमुत्ता या पुट्टू लोग बड़ी मेहनत से जंगल या बाड़ी से उखाडक़र बाजार लाते हैं। इसकी मांग कितनी अधिक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन दिनों यह एक हजार रुपए से 1200 तक किलो के भाव बिक रहा है। दूसरी तरफ प्रदेश में करीब 28 प्रकार खुखड़ी ही खाने योग्य है। बाकी में जहरीला एल्कलाइट होता है। लोग बिना पहचान किए आसमान छूते दाम के बावजूद इसका सेवन करते हैं और अपनी जान जोखिम में डालते हैं। इसकी पहचान आसान भी नहीं है। सामान्य तौर पर यह कहा जाता ह कि रंगीन पुट्टु नहीं खाना चाहिए। सफेद पुट्टू में जहर होने की आशंका कम होती है। इधर, याद नहीं आता कि बाजारों में बिक्री के लिए आने वाले पुटू पर नजर रखने के लिए खाद्य विभाग, स्वास्थ्य विभाग या सरकार की कोई मशीनरी लगी हो। सन् 2016 में मैनपाट में जहरीला पुट्टू खाने से 23 लोगों की एक के बाद एक मौत हो गई थी। सतर्कता नहीं बरती गई तो ऐसी दुर्घटनाएं फिर हो सकती हैं।
तीन माह के शावक तेंदुआ की मौत
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों की लगातार मौत हो रही है। मान लें कि वहां देखभाल में कोई कमी नहीं बरती जा रही होगी, तब भी ऐसी नौबत आ रही हो।
इधर अपने छत्तीसगढ़ के बस्तर में राशन ढोने वाले एक ट्रक में तेंदुए का बच्चा जून माह में मिला। बस्तर में उसे उतारा गया था। कहा गया कि वह डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से ट्रक पर बैठकर आया है। उसके कमर में चोट थी। पशु चिकित्सालय जगदलपुर के डॉक्टरों ने उसे स्वस्थ बताकर रायपुर जंगल सफारी में छोडऩे की अनुशंसा कर दी। इस तीन महीने के शावक की बीते सप्ताह मौत हो गई। यानि जगदलपुर पशु चिकित्सकों ने अपनी बला टालकर इसे रायपुर के जंगल सफारी में भेज दिया। यहां पर भी उनकी देखभाल हुई नहीं।
प्रदेश के चिडिय़ाघरों और वन महकमें में वन्यप्राणियों के विशेषज्ञ चिकित्सकों की बड़ी कमी है। जगदलपुर की तरह ही प्राय: पालतू जानवरों का इलाज करने वाले डॉक्टर ही वन्यप्राणियों का इलाज करते हैं। छत्तीसगढ़ के अनेक अभयारण्यों से घायल वन्य प्राणी रेस्क्यू किये जाते हैं इनमें से कई की मौत हो जाती है। तब सवाल उठता है कि उनकी जान बचाई भी तो जा सकती थी।
हिंसा प्रभावित बच्चों की नाराजगी
प्रदेश के कुछ प्रयास आवासीय विद्यालय हैं, जिनमें नक्सल हिंसा से प्रभावित बच्चों की प्रतिभा को उड़ान मिलती है। ऐसा एक विद्यालय राजधानी रायपुर के सड्डू में संचालित है। सन् 2021 के जेईई एडवांस में जब पूरे प्रदेश के प्रयास विद्यालयों के 53 छात्रों का चयन हुआ था, तो उनमें से 44 इसी विद्यालय से थे। सफलता पर मुख्यमंत्री और तब के शिक्षा मंत्री ने बधाई दी थी। कड़ी मेहनत कर बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता का परचम लहराने वाले बच्चों के आवास, भोजन और कोचिंग की व्यवस्था इस नतीजे के बाद और अच्छी कर दी जानी थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि स्थिति बदतर होती जा रही है। कोचिंग संस्थानों से आने वाले शिक्षकों को तीन-तीन माह तक वेतन भुगतान नहीं होता। वे कोचिंग बीच में छोडक़र चले जाते हैं। फिर कोई नया शिक्षक लाया जाता है तो उनके साथ नए सिरे से तालमेल बिठाना होता है। हॉस्टल की कैंटीन का टेंडर ही नहीं हुआ है, एक स्टाफ को ही जिम्मेदारी दे दी गई है। खाना घटिया है। विद्यालय अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की ओर से संचालित है, जहां करोड़ों का बजट है, जिसकी मॉनिटरिंग नहीं होती। समस्या संवेदनशील हिंसा प्रभावित बच्चों की है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को संवारने की कोशिश कर रहे हैं।
कल बुधवार को इन परेशान बच्चों को सडक़ पर उतरना पड़ा। सड्डू विधानसभा के करीब ही है, कई माननीयों के आने-जाने का रास्ता भी है। पता नहीं उन्होंने इन बच्चों को तख्तियां लेकर प्रदर्शन करते हुए देखा या नहीं। यहां दिखाई गई तस्वीर 2021 की है, जब यहां के छात्रों ने जेईई मेंस में रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी हासिल की थी।
नग्न प्रदर्शन से खलबली
फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों पर कार्रवाई की मांग को लेकर विधानसभा के समीप कुछ युवाओं के नग्न प्रदर्शन ने सरकार को झकझोर कर रख दिया है। इस तरह का प्रदर्शन छत्तीसगढ़, और न ही अविभाजित मध्यप्रदेश में पहले कभी नहीं हुआ। अलबत्ता, कुछ साल पहले देश में मणिपुर में जरूर सेना के खिलाफ इस तरह का प्रदर्शन हुआ था।
सुनते हैं कि प्रदर्शनकारी युवक भीम आर्मी नामक संगठन से भी जुड़े हैं जिसके मुखिया यूपी के चर्चित नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण हैं। कुछ समय पहले भी प्रदर्शनकारी युवाओं ने मंत्रालय भवन के समीप धरना देकर अपनी मांगों की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की थी। तब उन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया। और तो और उन्होंने सोमवार को प्रेस नोट जारी कर विधानसभा के सामने नग्न प्रदर्शन की चेतावनी दी थी। तब भी उन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया।
बताते हैं कि प्रदर्शनकारी युवक आमासिवनी के पास पहले कपड़े उतारकर चुपचाप लाइन से चल रहे थे, मगर विधानसभा मार्ग पर ओवर ब्रिज के नीचे पहुंचते ही प्रदर्शनकारी युवकों ने नारेबाजी शुरू कर दी। इससे वहां हडक़ंप मच गया। आसपास के ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी उन्हें घेरने के लिए पहुंचे, लेकिन वो आगे बढ़ते चले गए। किसी तरह उन्हें विधानसभा भवन पहुंचने से पहले ही हिरासत में ले लिया गया।
नग्न प्रदर्शनकारियों पर तो पुलिस ने बल प्रयोग नहीं किया, लेकिन उनके साथ एक कपड़े पहने हुए एक युवक भी था जिसकी जमकर पिटाई की गई। चर्चा है कि सीएम खुद इस घटना से काफी खफा हैं, और उन्होंने पुलिस अफसरों को फटकार भी लगाई है। खैर, सीएस ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभागों की बैठक भी बुलाई है। देखना है कि आगे क्या होता है।
स्कूल में हिंदी, कॉलेज में अंग्रेजी
प्रदेश में अब तक अंग्रेजी माध्यम के 377 और हिंदी माध्यम के 350 स्वामी आत्मानंद स्कूल खोले जा चुके हैं। साधारण सरकारी स्कूलों की हालत और प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीस के चलते साधारण आमदनी वाले अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला इन स्कूलों में करा रहे हैं। अधिकांश स्कूलों में प्रवेश के लिए सीटों से दो तीन गुना आवेदन आ रहे हैं, जिसके चलते लॉटरी निकालकर प्रवेश देना पड़ रहा है। इनकी सफलता से सरकार का ध्यान स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम कॉलेज खोलने की ओर गया। इस सत्र से 10 ऐसे अंग्रेजी कॉलेज खोलने का निर्णय लिया गया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने कांकेर में राज्य के पहले अंग्रेजी माध्यम अंग्रेजी कॉलेज का उद्घाटन किया। बाकी जगहों पर भी प्रवेश के लिए आवेदन मांगे जा रहे हैं। पर इनमें स्थिति उलट है। सीटों के मुकाबले आवेदन ही नहीं आ रहे हैं। राजनांदगांव जिले का सोमनी आदर्श महाविद्यालय इसका एक उदाहरण है। यहां 250 सीटें हैं, पर अब तक सिर्फ 38 छात्रों ने प्रवेश लिया है। अभिभावक नाराज हैं। अच्छे-खासे हिंदी में उनके बच्चे पढ़ रहे थे। स्कूल में पूरी पढ़ाई हिंदी माध्यम से हुई थी, अब कॉलेज में पहुंचने पर अंग्रेजी माध्यम लाद दिया गया है। उन्हें दूसरे कॉलेज की तलाश करनी पड़ रही है, जहां हिंदी में पढ़ाई होती हो। हाल ही में हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार को आदेश दिया है कि जो बच्चे हिंदी में पढ़ रहे थे, उन्हें जबरन अंग्रेजी पढऩे के लिए बाध्य नहीं किया जाए। उनके लिए उसी स्कूल में हिंदी पढ़ाने की व्यवस्था की जाए, चाहे कक्षाएं दो पालियों में क्यों न लगानी पड़े। याचिका स्कूलों के लिए लगी थी तो आदेश भी स्कूलों के लिए ही है। अंग्रेजी कॉलेजों में यह प्रावधान अपनी ओर से सरकार करेगी या हिंदी के बच्चों को भटकने के लिए मजबूर करेगी, सवाल बनता है।
भालू का आसान दर्शन
कांकेर का गढिय़ा पहाड़ दर्शनीय स्थल है। यहां भालुओं की मौजूदगी सहज है। पहाड़ पर पसरे प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा लोग यहां इसलिये भी पहुंचते हैं कि भालू विचरण करते नजर आ जाएं। अब तक तो किसी पर्यटक पर भालुओं ने हमला नहीं किया पर, कुछ लोग यहां सेल्फी लेने और नजदीक जाकर वीडियो बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में ये वन्यजीव उग्र होकर हमला कर सकते हैं। आए दिन हाथियों के मामले में घटनाएं सामने आ ही रही है।
नदियों में चेतावनी के बोर्ड लगें...
आम तौर पर नदियों में उतरने, नहाने, पुल पार करने के लिए सतर्क तब किया जाता है जब तेज बहाव हो, बाढ़ आई हो या आने की आशंका हो। मगर बिलासपुर की अरपा नदी में कमर तक पानी था। बहाव भी तेज नहीं था, फिर भी तीन बच्चियों की यहां डूब जाने से मौत हो गई। वजह यह थी कि माफियाओं ने रेत खोदकर नदी को खोखली कर दी है। नहाने उतरी बच्चियां इस धोखे में तैर रही थीं कि पानी कम है मगर थोड़ा आगे जाते ही वे 15 फीट गहरे गड्ढे में समा गईं। सालभर मीडिया में खबर चलती रहती है कि रेत माफिया एनजीटी के नियमों को ताक में और अफसरों को जेब में रखकर बड़ी बड़ी मशीनों से रेत निकाल रहे हैं। अब इस दुर्घटना की जिम्मेदारी भी कोई लेने के लिए तैयार नहीं है, न ही रेत माफियाओं पर गैर इरादतन हत्या जैसा कोई अपराध दर्ज किया गया है। आज अरपा में यह हादसा हुआ है, कल शिवनाथ, महानदी या किसी दूसरी नदी में भी ऐसा हो सकता है, क्योंकि सब जगह रेत खुदाई इसी तरह मनमाने ढंग से हुई है। इन मौतों के बाद अफसरों को चाहिए कि इन नदियों के किनारे जगह-जगह बोर्ड लगाने का प्रबंध कर दें कि पानी कम हो तब भी न उतरें, हमारे निकम्मेपन और भ्रष्टाचार के चलते भीतर से नदी खोखली-पोली हो चुकी है, आपकी जल समाधि बन सकती है।
जनरल डिब्बे अब भी थर्ड क्लास..
ट्रेनों में सेकंड क्लास स्लीपर या उसके ऊपर के दर्जे में सफर मजदूरों के लिए मुमकिन नहीं हो पाता। प्राय: वे जनरल बोगी में चढ़ते हैं। यदि ऐसी बोगी ठसाठस भरी हो तब भी वे लंबी यात्रा के दौरान आराम की व्यवस्था कैसे भी हो, कर लेते हैं। एक दूसरे पर लद कर, फर्श पर कोई भी खाली जगह हो, टायलेट के दरवाजे के पास... कहीं पर भी। मगर, यदि किसी ट्रेन में कम भीड़ हो तब जनरल बोगी का भाग्यशाली यात्री क्या करता है, इस तस्वीर में दिख रहा है। साइड की सीट में बीच की जगह पर इसने राशन, कपड़े से भरी अपनी बोरी टिका दी, बन गई स्लीपर बर्थ। पति कुछ इस तरह से पीछे टिक गया कि पत्नी सीने पर सिर रखकर सो पाए। पत्नी ने पैर समेटने के लिए भी जगह बना ली। ऊपर सामान रखने की जगह होती है, इसमें एक चादर का झूला लटका कर बच्चे को सुला दिया।
रेलवे ने हाल ही में घोषणा की है कि खाने-पीने के स्टाल जनरल बोगी के सामने भी प्लेटफॉर्म पर लगाए जाएंगे। इसकी वजह यह बताई गई है कि ये बोगियां या तो ट्रेन के सबसे सामने लगती हैं या फिर सबसे पीछे, जबकि अभी खान-पान का स्टाल प्लेटफॉर्म के बीच होता है। इधर, जनरल डिब्बों के यात्रियों से सुनें तो उनके लिए राहत की बात तब होगी, जब कोविड काल के दौरान बढ़ाये गए किराये को पहले की तरह कम कर दिया जाए। उनका सवाल है कि घाटे में चल रही वंदेभारत ट्रेनों का किराया 25 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है, तो निचले तबके के मुसाफिरों की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा? एसी बोगियां बढ़ाई जा रही है, जनरल डिब्बे उतने ही हैं, कई ट्रेनों में कम भी हो गए। नतीजतन, जनरल डिब्बे खचाखच भरे होते हैं। वंदेभारत में यात्री कम मिलते हैं तो बोगियां घटा देते हैं, पर जनरल डिब्बों को बढ़ाने पर विचार नहीं होता। ठीक है, यहां स्लीपर बर्थ नहीं मिलती, लेकिन बैठने के लिए सीट पाना तो इन यात्रियों का हक है? आखिर वे भी किराया चुका रहे हैं। जनरल डिब्बों के टायलेट और फर्श पर गंदगी पसरी होती है, पानी नहीं आता। इन डिब्बों की साफ-सफाई पर सबसे बाद में ध्यान दिया जाता है। शिकायत करने के लिए पीएनआर नंबर देना होता है, जो जनरल टिकट पर नहीं होता। रेलवे को आजादी के बहुत साल बाद लगा कि इन डिब्बों का थर्ड क्लास नाम रखना अपमानजनक है। 1978 में जब मधु दंडवते ने रेल बजट पेश किया तो उन्होंने नाम बदला। शनै:-शनै: लकड़ी की सीट बदलकर गद्दे लगाए गए। पर अब भी इसमें सफर करने वालों की उपेक्षा उतनी ही होती है, जितनी पहले होती थी।
चौक पर बाबा का बिस्तर
राजधानी रायपुर के घड़ी चौक पर एक बाबा आते हैं, चाय पानी, खाना खाते हैं, रुके रहते हैं। कभी-कभी यहीं पर सो भी जाते हैं। कुछ लोगों में उनको देखकर आस्था जाग गई है। यहां उनके लिए बिस्तर लाकर रख दिया गया है। इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले की चिंता यह है कि आगे चलकर बीच चौराहे पर इस सरकारी जमीन पर कोई मठ, मजार न बन जाए।
सैलजा के बाद बैज भी
प्रदेश कांग्रेस में बड़े नेताओं के खिलाफ शिकवा-शिकायतों पर लगाने की कोशिशें चल रही हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने तो पार्टी प्रवक्ताओं की बैठक में साफ तौर पर कह दिया वो सीनियर नेताओं के खिलाफ कुछ भी नहीं सुनेंगे।
सुनते हैं कि पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी सैलजा ने विभागों-प्रकोष्ठों के अध्यक्षों के साथ वन-टू-वन मीटिंग की। चर्चा है कि मीटिंग में एक विभाग के चेयरमैन को इस बात का उलाहना दिया कि वो सरकार और संगठन के बीच दूरियां बनाने का काम कर रहे हैं।
चेयरमैन ने भी अपनी बातें रखी। मगर सैलजा संतुष्ट नहीं हुई, और साफ तौर हिदायत दे रखी है कि पार्टी के सीनियर नेताओं के खिलाफ आपसी बातचीत में भी किसी टीका टिप्पणी न की जाए, देखना है कि पार्टी के नेता इस पर कितना अमल कर पाते हैं।
तरकीबें किस्म-किस्म की
कांग्रेस में टिकट कटने की चर्चाओं के बीच पार्टी के विधायक यदा-कदा दाऊजी से मिलने पहुंच जाते हैं। एक विधायक तो अवसर मिलते ही अलग-अलग समाजों के लोगों को भी ले जाते हैं। बात खत्म होने के बाद एकाध से अपनी तारीफ भी करवा देते हैं। अब इसका कितना असर होता है, ये तो प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस का देखा, अब भाजपा का देखें
विपक्ष में होने का मतलब है सरकार में नहीं होना। सरकार में नहीं होने का मतलब है मतदाताओं में असंतोष का पता करें, मांगों की जानकारी जुटाएं और उसे सत्ता मिलने पर पूरा करने का आश्वासन दें। कैसे पूरा होगा, यह बाद में देखा जाएगा। सन् 2018 में कांग्रेस ने किसान, युवा, मजदूर, नियमित-अनियमित कर्मचारी सबकी सुनी। जो मांग आई, उन्हें घोषणा पत्र में शामिल किया। अब भाजपा वही तरीका अपनाने जा रही है। हर विधानसभा क्षेत्र में एक सुझाव पेटी भेजी जा रही है। लोग सुझाव लिखकर इसमें डालेंगे। कार्यकर्ता सभी वर्ग के लोगों से बात करके उनकी अपेक्षाओं की जानकारी लेंगे। बाजार, बस स्टाप, दफ्तर, कॉलेज, पान ठेले, गार्डन में घूमने, टहलने वालों से भी बात की जाएगी। घोषणा पत्र समिति का आकार भी कांग्रेस के मुकाबले काफी बड़ा है। 15 उप-समितियां बनाई गई हैं। सभी को एक दूसरे के वाट्सएप ग्रुप से भी जोड़ा गया है। मौजूदा कांग्रेस सरकार ने बहुत सी घोषणाएं पूरी की, कुछ आधी-अधूरी हो पाई,- कुछ अब तक पूरा नहीं कर पाई।
संविदा, अनियमित और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों से किया गया वादा इनमें से ही एक है, जिन पर अभी एस्मा लगा दिया गया है। आंदोलन कर रहे कर्मचारियों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, सांसद अरुण साव से एकात्म परिसर में मुलाकात की। साव ने आश्वस्त किया कि उनकी मांग भाजपा सरकार बनने पर पूरी की जाएगी।
पिछले दिनों एक आंकड़ा आया था जिसमें कहा गया था कि 47 विभागों में 87 हजार से अधिक ऐसे कर्मचारी हैं। 22 विभागों से जानकारी अभी नहीं आई है। इसके बाद यह संख्या सवा लाख या उसके ऊपर चली जाएगी। परिवार सहित ये वर्ग बड़ा वोट बैंक हो जाता है। ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार इन्हें भाजपा की ओर इसे खिसकने देगी। मुमकिन है, सरकार कोई फैसला आने वाले दिनों में ले। साव ने जिस तरह से अनियमित कर्मचारियों को आश्वस्त कर दिया है, उससे यह आभास जरूर होता है कि कांग्रेस के 2018 के घोषणा पत्र का भाजपा बारीकी से चीर-फाड़ करने जा रही है।
खुद के प्रचार के लिए
कांग्रेस, और भाजपा के प्रवक्ताओं ने एक- दूसरे के साथ टीवी डिबेट में बैठने का बहिष्कार खत्म कर दिया है। पहले कांग्रेस ने बहिष्कार खत्म करने का ऐलान किया। अगले दिन भाजपा ने भी इस आशय का सहमति पत्र जारी कर दिया।
बहिष्कार से प्रवक्ताओं को व्यक्तिगत रूप से नुकसान हो रहा था। कुछ तो टिकट के दावेदार हैं, और डिबेट में बैठने से खुद की भी ब्रांडिंग हो पा रही थी। बताते हैं कि दोनों ही पार्टियों के प्रवक्ताओं ने आपस में चर्चा की, और पार्टी नेतृत्व से चर्चा कर बहिष्कार खत्म करने के लिए राजी कराया। चुनाव का समय है, तो खुद का प्रचार प्रसार जरूरी है। ([email protected])
इन्हीं हरकतों से 15 साल बाहर रहे
बात हफ्ते दो हफ्ते पुरानी है। राजधानी के च्वाइस सेंटर वाले पैन कार्ड बनाने के एवज में पांच हजार रुपए ले रहे हैं। पैन कार्ड को आधार से लिंक करने के दौर में फीस के नाम पर 5 हजार हर कार्ड पर वसूले जाते रहे। इस वसूली की शिकायत राजधानी के कांग्रेस नेताओं तक पहुंची। तो सभी लामबंद होकर आयकर कमिश्नर के पास वसूली रोकने के लिए आपत्ति दर्ज कराने पहुंचे।
साहब के साथ बैठक के पहले ही ये नेता आपस में उलझ गए। कारण यह कि पांच हजार में से कार्ड की फीस एक ही हजार है और चार हजार राज्य और नगर के नेताओं के नाम पर वसूले जा रहे। साहब ने एक वेंडर का ऑडियो भी सबूत के रूप में सुना दिया। फिर क्या था कि एक विधायक जी ने कहा कि इसी वसूली के कारण 15 साल बाहर रहे, और अब भी न बंद हुई तो 15 साल और ले लो। बस क्या था सब उल्टे पाँव लौट आए।
गलती वैल्युवर की नहीं..
प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालय में एमएससी गणित के सारे छात्र फेल हो गए। नतीजे आए, तो परीक्षार्थियों में गुस्सा स्वाभाविक था। उससे ज्यादा कुलपति महोदय खफा थे। वजह यह है कि विश्वविद्यालय की छवि पर आंच आ रही थी। कुलपति महोदय नए-नए आए हैं, और विश्वविद्यालय का शैक्षणिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कुछ कोशिश करते दिख रहे हैं।
नतीजे खराब आए, तो कुलपति ने उत्तर पुस्तिकाओं की फिर से जांच कराने के लिए मौखिक निर्देश दे दिए। कुल सचिव ने उत्तरपुस्तिकाएं बुलवाई, और कुलपति के सामने रखा। यह बात सामने आई कि विद्यार्थियों ने ही उत्तर गलत लिखा था। कुलसचिव खुद गणित में एमएससी किए हुए हैं। उन्होंने विद्यार्थियों की गलती बताई भी, लेकिन कुलपति नहीं माने। इसके बाद फिर से पेपर की जांच के लिए अन्य परीक्षकों को भेजा गया। दोबारा जांच के बावजूद नतीजे यथावत रहे। यानी सारे परीक्षार्थी फेल करार दिए गए।
दरअसल, कोरोना के दौरान घर से प्रश्न पत्र हल करने की छूट दी जाती रही है, और इसका विद्यार्थी काफी फायदा उठाते रहे हैं। ज्यादातर विषयों में तो शत प्रतिशत रिजल्ट रहा है। अब ऑफलाइन परीक्षा हो रही है, तो विद्यार्थियों की पोल खुल रही है।
थोड़ा सा अवसर मिला तो....
भाजपा ने हाल में दो कमेटियों का गठन किया। इसमें सदस्य नहीं बनाए गए नेताओं से दर्द छिपाए नहीं छिप रहा है। और जो कर्ताधर्ता बने हैं वो अपने तेवर दिखाने बाज नहीं आ रहे हैं। यह हम नहीं कल घोषणा पत्र समिति की पहली बैठक से बाहर निकले नये सदस्य कहने लगे हैं। बताते हैं कि पहले तो मुख्य और तीन अन्य संयोजकों ने आपस में बैठ कर सब कुछ तय कर लिया और फिर प्रभारियों के सामने बाकी 27 सदस्यों को फरमान सुनाया गया। घोषणा पत्र के लिए सुझाव लेने 15 समितियों का गठन का फैसला लिया गया।
मुख्य संयोजक ने तय किया वो दो संभाग जाएंगे। बाकी तीन, एक-एक संभाग में जाएंगे। इतना ही नहीं, मुख्य संयोजक इन तीनों के साथ भी जाएंगे, और तीन सहसंयोजक भी 15 कमेटियों के साथ जाएंगे। अब नये लोगों का कहना है कि ये लोग अपने फ्री टाइम में दौरे तय करेंगे। और सदस्यों को अपनी अपरिहार्य स्थिति के बाद भी जाने दबाव बनाएंगे। जो उचित नहीं।
मेसैज फारवर्ड कर मजे न लें...
सोशल मीडिया पर सूचनाओं की बाढ़ से अदालतें भी पीडि़त है। एक भाजपा नेता के प्रति मद्रास हाईकोर्ट का रुख उन सबके लिए नसीहत है जो घृणा फैलाने वाले, अपमान करने वाले पोस्ट को शेयर, रिट्टवीट या फारवर्ड कर देते हैं। वे यह कहकर नहीं बच सकते कि यह मेसैज किसी और का है। कोर्ट ने कहा है कि मेसैज आगे बढ़ाने का मतलब है कि आप उस पोस्ट से सहमत हैं। मेसैज इस तरह से आगे बढ़ाते रहने से ही उसके प्रभाव का स्तर कई गुना बढ़ता है। इस केस में महिला पत्रकारों के खिलाफ अपमानजनक बातें कही गई थी। बीजेपी नेता यह दलील देकर राहत पाने की कोशिश कर रहे थे कि मेसैज उनका नहीं है। उन्होंने इसे सिर्फ फारवर्ड किया है। कोर्ट ने यह भी पाया कि उक्त व्यक्ति ने पहली बार नहीं कई बार ऐसा किया है। अब विशेष अदालत में उसके खिलाफ दर्ज किए गए मामले खत्म नहीं होंगे और अदालती कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
इस समय सोशल मीडिया खासकर वाट्सएप पर लगातार ऐसे मेसैज आ रहे हैं जिसका उद्देश्य किसी खास नेता को महान बताना और किसी दूसरे की छवि धूमिल करना होता है। छत्तीसगढ़ में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव होंगे, उसके बाद आम चुनाव है। यह तो होना है कि ऐसी सूचनाएं और व्यापक पैमाने पर फैलाने की कोशिश की जाएगी।
छत्तीसगढ़ के हर जिले में पुलिस ने सोशल मीडिया निगरानी सेल बनाया है। पिछली बार चुनाव के समय इसकी मॉनिटरिंग कलेक्ट्रेट से हुई थी। ये अब भी काम कर रहे हैं। राजधानी रायपुर की पुलिस को सन् 2022 में जनवरी से दिसबंर तक की अवधि में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, वाट्सअप आदि पर आपराधिक, भडक़ाऊ, भ्रामक नाबालिगों के अधिकारों के हनन आदि के फेक न्यूज, फोटो, वीडियो वायरल करने की 468 शिकायतें मिली थीं। इनमें से 380 पर पुलिस ने कार्रवाई की। इनमें बहुत से आईडी फर्जी भी पाए गए। जाहिर है पुलिस को मिली शिकायतें बहुत कम हैं। वह भी तब जब ऑनलाइन शिकायत की सुविधा दी गई है। छत्तीसगढ़ पुलिस का एक समाधान ऐप भी है, जिसमें मोबाइल फोन से ही शिकायत की जा सकती है। इसके बावजूद लोग पुलिस के पचड़े में पडऩा नहीं चाहते, दूसरी ओर लोग ऐसे मेसैज आते ही फारवर्ड, शेयर करने के लिए उतावले रहते हैं।
मूर्ति की दुर्दशा
एक ऐतिहासिक घटना को दर्शाती दो महान विभूतियों की यह प्रतिमा लवन खरतोरा मार्ग पर बलौदाबाजार जिले में है। मूर्ति की जो दयनीय दशा है वह बताती है कि नगर के जनप्रतिनिधियों और यहां जिम्मेदार पदों पर बैठे अफसरों के मन में इनके प्रति कितना सम्मान है। शायद जयंती या पुण्यतिथि पर माला चढ़ाकर फोटो खिंचवाने का मौका आएगा तब इस तरफ नजर पड़ेगी।
सरपंच से विधायक को खतरा?
चुनाव आने पर सरपंच किसी विधानसभा प्रत्याशी को अपने गांव का ही वोट तो दिला ही सकता है। कई सरपंच ऐसे भी होते हैं, जिनका आसपास के कई गांवों में प्रभाव होता है। राजनीतिक दल उनका समर्थन पाने के लिए खुशामद करते हैं। अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक है, संभावित प्रत्याशी और विधायक इन ग्राम-प्रमुखों से संपर्क साध रहे हैं और अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
कुनकुरी ब्लॉक के कुंजारा ग्राम की सरपंच सनमानी बाई भाजपा महिला मोर्चा की ब्लॉक अध्यक्ष भी हैं। 6 माह पहले एसडीएम ने धारा 40 की कार्रवाई करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया। सरपंच ने अपर कलेक्टर की कोर्ट में आदेश के विरुद्ध अपील की। दो माह पहले सरपंच के पक्ष में फैसला आया। आदेश में था कि जनपद पंचायत के सीईओ उनकी बहाली का आदेश जारी कर प्रभार दोबारा उनको सौंप दें। पर सीईओ दो माह बीत जाने के बाद भी उन्हें कुर्सी वापस कर ही नहीं रहे हैं। भाजपा नेताओं ने सीईओ का दफ्तर कल घंटों घेरकर रखा, फिर भी आदेश नहीं निकला। एक बड़े अफसर के आदेश का पालन उनके नीचे काम कर रहे अधिकारी नहीं कर रहे हैं। वजह भी नहीं बता रहे हैं। आखिर ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई? जैसा सरपंच के समर्थक बता रहे हैं, विधायक नहीं चाहते कि चुनाव से पहले उक्त महिला सरपंच अपने पद पर दोबारा बैठे और अगर बैठना चाहती हैं तो पाला बदल लें।
कितने को निकालते रहेंगे?
कवर्धा में युवक कांग्रेस के एक जिला उपाध्यक्ष पर मारपीट करने का आरोप लगा। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर फैल गया। प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष आकाश शर्मा को जैसे ही इसका पता चला जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र जांगड़े को निलंबित कर दिया गया। उन्होंने एक जांच समिति भी बनाई जिसे 15 दिन में रिपोर्ट सौंपनी थी। पर समिति ने अपनी रिपोर्ट एक ही दिन में सौंप दी। रिपोर्ट मिलने के बाद जांगड़़े को बहाल कर दिया गया। पाया गया कि वे मारपीट में शामिल नहीं थे, बल्कि बीच-बचाव के लिए वहां पहुंचे थे। गौर की बात यह है कि हाल ही में बिलासपुर में भी युवक कांग्रेस के दो गुटों में जमकर झगड़ा हुआ था। दोनों पक्षों से चार पदाधिकारी निलंबित कर दिए गए थे। एक और जिला अध्यक्ष ने एक किसान को जान से मारने की धमकी दी, उसे भी निलंबित किया गया। हो सकता है कि कवर्धा के मामले में जांच रिपोर्ट सही हो। पर दूसरी बात यह भी है कि युवक कांग्रेसी तो युवा ही हैं, जोश रहता है। फिर सरकार भी अपनी है तो यह जोश बढ़ भी जाता है। सोचा गया होगा कि ऐसे में थोड़ी बहुत मारपीट हो रही हो इसे गंभीरता से लेने की क्या जरूरत है, वह भी तब, जब चुनाव नजदीक आ रहे हों और युवक कांग्रेसियों के बीच से भी टिकट का दावा ठोका जा रहा हो।
लिफ्ट में जातिवाद
यह तस्वीर गुडग़ांव की है जिसे किसी ने सोशल मीडिया पर शेयर की है। नौकरानी, डिलीवरी बॉय जैसे लोगों को अपार्टमेंट रहने वालों ने अछूत समझ रखा है। उन्हें उस लिफ्ट में चढऩे उतरने की छूट नहीं है। चलिये कम से कम यहां लिफ्ट चढऩे की छूट तो है। कई सरकारी दफ्तरों में तो लिखा रहता है- केवल अधिकारियों के लिए। यानि आम लोग और तीसरे चौथे दर्जे के कर्मचारी सीढिय़ों का इस्तेमाल करें।
डिप्टी कहाँ बैठेंगे ?
विधानसभा के आखिरी सत्र में सदन की बैठक व्यवस्था में बदलाव किया जा रहा है। चर्चा है कि सीएम भूपेश बघेल के बगल की सीट पूर्ववत खाली रहेगी, लेकिन डिप्टी सीएम बनने के बाद टीएस सिंहदेव अब रविन्द्र चौबे की सीट पर बैठेंगे। सत्ता पक्ष की दूसरी पंक्ति की पहली लाइन में चौबे, और सिंहदेव अगल-बगल बैठते थे। वो अब भी अगल-बगल बैठेंगे, लेकिन दोनों एक-दूसरे की जगह पर बैठेंगे।
भूपेश कैबिनेट के नए मंत्री मोहन मरकाम अब डॉ. प्रेमसाय सिंह की जगह पर बैठेंगे। जबकि मंत्री पद से हटने के बाद डॉ.प्रेमसाय सिंह सत्तापक्ष के अन्य सदस्यों को साथ पहली पंक्ति में बैठेंगे। विधानसभा का चार दिनों के सत्र के हंगामेदार रहने के आसार हैं।
सत्ता के खिलाफ लडऩा है, तो...
आईएएस नीलकंठ टेकाम इन दिनों उलझन में हैं। टेकाम ने वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) के लिए आवेदन तो दे दिया है, लेकिन उनका वीआरएस अभी तक मंजूर नहीं हुआ है। वो केशकाल सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। भाजपा के लोगों से उनकी बात भी हो चुकी है, लेकिन वीआरएस मंजूर नहीं होने से वो राजनीति में सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं।
टेकाम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सरकार की जानकारी में भी है। वैसे आवेदन करने के तीन महीने के भीतर वीआरएस मंजूर करने का नियम है, लेकिन टेकाम के खिलाफ कोई पुरानी जांच चल रही है। इस वजह से उनका वीआरएस मंजूर नहीं हुआ। उनकी आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि उनसे जूनियर विशेष सचिव बन गए हैं, लेकिन उन्हें अभी तक प्रमोट नहीं किया गया है। अब सत्ता के खिलाफ लड़ाई लडऩा है, तो समस्याओं का निराकरण आसानी से कैसे हो पाएगा। मगर टेकाम साब को ये बात
समझाए कौन?
मंत्री के लोगों के तेवर
मंत्री बनने से पहले ही मोहन मरकाम के कार्यकर्ता चार्ज हो गए हैं। इसका नजारा उस वक्त देखने को मिला, जब मरकाम के करीबी सरपंच-पंचों ने कोंडागांव में एक जनपद अफसर को खूब खरी खोटी सुनाई।
बताते हैं कि मरकाम जब तक प्रदेश अध्यक्ष रहे, तब तक जनपद अफसर काम के लिए आने वाले पंच सरपंचों को घंटों बिठाए रखते थे। लेकिन जैसे ही मरकाम को मंत्रिमंडल में लेने की सूचना आई, करीबी पंच सरपंचों के तेवर बदल गए। और जनपद अफसर पर पिल पड़े। अफसर भी पूरे समय सफाई देते रहे।
सत्ता का अपना अलग ही क्रेज होता है। तभी तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत, प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हुए। जबकि चर्चा है कि भगत के लिए तो बाबा ने भी सहमति दे दी थी। खैर, मरकाम के अपने विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता काफी खुश हैं।
टमाटर छोडिय़े पुटु खरीदकर देखें..
टमाटर का पूरे देश में एक जैसा हाल है, रसोई घर से गायब हैं। अच्छे महंगे होटलों में भी सलाद और सब्जियों में इसका इस्तेमाल घट गया है। पर छत्तीसगढ़ के जंगलों से इस मौसम में इससे भी कई गुना महंगी सब्जी आ रही है और शान से बिक रही है। जंगली मशरूम जिसे पुटु कहते हैं इस समय 800 से 1000 रुपये किलो बिक रहा है। इसी तरह से लोकल खेकसी अभी आया नहीं है। इसकी कीमत 500 रुपये किलो तक हो सकती है। जिन्हें खाने का शौक है और जेब गवाही दे रहा हो तो वे इनका मूल्य नहीं देखते। महंगी होने के बावजूद बाजार पहुंचते ही कुछ घंटों के भीतर यह बिक जाती है। वजह, ये प्रचुर उत्पादन वाली सब्जियां नहीं हैं। खेकसी के मुकाबले बड़े आकार का खेकसा सस्ता होता है। उसी तरह से पैकेट में मिलने वाले मशरूम भी पुटु के मुकाबले सस्ते होते हैं। इसकी वजह यह है कि इनका व्यावसायिक उत्पादन किया जाता है। पुटु और खेकसी अपने आप उग जाते हैं, इसमें कठिन काम उगाना, देखभाल करना नहीं है, बल्कि जंगल में घूम-घूमकर बटोरना होता है।
बुदबुदाना स्वाभाविक है..
भाजपा जैसी धनवान पार्टी, और उसका कोष संभालने वालों की बात ही अलग होती है। ऐसे लोगों को चाय-बिस्किट देकर शेयर कर खाने कहा जाए, तो उनका बुदबुदाना स्वाभाविक है। दरअसल, पिछले दिनों महामंत्री संगठन, और प्रदेश कोषाध्यक्ष ने सभी जिलों के कोषाध्यक्षों की बैठक की। 33 में से 26 जिले के लोग आए। बस्तर से केवल दो। इन्हें बताया गया कि हर मंडल में 10-10 हजार रुपए दिए गए हैं भविष्य के आयोजनों के लिए। ये तो बात हुई संगठन के कार्यों की। दूर-दूर जिले से आए थे। उम्मीद थी बैठक में भाजपा के जैसा नाश्ता-खाना मिलेगा। मगर प्लेटें आई 13। उनमें चार-बिस्किट था। उसमें भी महामंत्री ने कहा हर दो के लिए एक प्लेट है शेयर करके खाएं। अब उन्हें कौन याद दिलाए कि पार्टी विपक्ष में है।
एमपी में विपक्ष सिरे खारिज नहीं!
भर्ती में धांधली के आरोपों से कोई प्रदेश नहीं बचा है। हर जगह कड़ा परिश्रम करने वाले प्रतियोगी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में पटवारी परीक्षा हुई है। कांग्रेस नेता अरुण यादव ने एक सूची निकालकर बताया कि ग्वालियर चंबल संभाग के 10 शीर्ष उम्मीदवारों में 7 एक ही परीक्षा केंद्र से हैं। यह केंद्र एक भाजपा विधायक का कॉलेज है। टॉप 10 में 8 इसी संभाग के हैं। और भी कई गड़बडिय़ों की तरफ ध्यान दिलाया गया है। इस पर सुबह सवाल किया गया तो गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने किसी तरह के घोटाले और जांच से इंकार कर दिया लेकिन शाम को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे गड़बड़ी मानते हुए नियुक्ति रोकने और जांच की घोषणा कर दी।
राजस्थान में पीएससी परीक्षा को लेकर बीजेपी सासद किरोड़ीमल मीणा ने कई दस्तावेज सामने लाए और बताया कि अनुभवहीन लोगों से प्रश्न पत्र तैयार कराए गए। भ्रामक सवाल किए गए। कई सवालों को परीक्षा लेने के बाद निरस्त किया गया और अब उत्तर पुस्तिकाओं की जांच प्रॉइवेट कॉलेज के टीचर्स कर रहे हैं, जबकि अनुभवी सरकारी प्राध्यापकों से जांच कराई जाती रही है।
छत्तीसगढ़ में भी भाजपा और आम आदमी पार्टी ने पीएससी के टॉपर और शीर्ष पदों में अफसरों, उद्योगपति, नेताओं के करीबियों के चयन को धांधली और भ्रष्टाचार बताया है। इधर, शिक्षक भर्ती में जितने लोगों ने परीक्षा नहीं दी, उससे अधिक लोगों को उत्तीर्ण दिखा दिया गया। न व्यापमं की ओर से कोई सफाई है और न पीएससी की ओर से। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारों ने खुद ही सामने आकर आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। बिना पड़ताल संबंधित संस्थाओं को क्लीन चिट देने में देरी नहीं की। पर भाजपा शासित मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह ने चुनाव के समय जोखिम उठाया है। उन्होंने विपक्ष की बात सुनी है और जांच का आदेश ही नहीं दिया बल्कि भर्ती रोक ही है। क्या छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तथ्यों सहित लगाये जा रहे आरोप प्रारंभिक जांच के लायक भी नहीं है?
विधायकों की अदालत
मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल पट्टा वितरण के लिए एक शिविर में पहुंचे तो ग्रामीणों ने शिकायत कर दी कि पटवारी 10-10 हजार रुपये रिश्वत लेता है। मंच के सामने ही पटवारी को खड़ा कर विधायक ने फटकार लगाई। रुपये वापस करने वरना सस्पेंड करा देने की धमकी दी। एसडीएम वहीं मौजूद थे। लोगों को विधायक का गुस्से में और पटवारी को हाथ बांधे चुपचाप खड़े देखकर अच्छा लगा। मगर बात यह है कि रिश्वत लेने की बात सामने आने पर तो भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत अपराध दर्ज होना चाहिए। ग्रामीण सामने आकर शिकायत कर रहे हैं तो एसडीएम को जांच करानी चाहिए। कुछ समय पहले इसी सरगुजा संभाग के एक और विधायक बृहस्पत सिंह ने एक थानेदार को फोन पर धमकाया था और रिश्वत के 50 हजार रुपये पीडि़त महिला को लौटाने कहा था, जो अपने बेटे को जेल से छुड़ाना चाहती थी। रिश्वत लेने वाले अधिकारी कर्मचारी इस तरह से डांट खाकर छूटते जाएंगे तो इसे भी अपनी ड्यूटी का हिस्सा मान लेंगे। दूसरी तरफ कानून सम्मत कार्रवाई होगी तब उन्हें और उसकी तरह रिश्वत लेने वाले दूसरे लोगों को सबक सिखाया जा सकेगा। पर विधायक रिश्वत को लौटाने की बात करके मामलों को रफा-दफा करने में लग जाते हैं।
दीपक बैज की खूबियां
बस्तर में कभी टाटा स्टील की स्थापना के लिए मुहिम के अगुवा रहे बस्तर सांसद दीपक बैज छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान सौंपी गई है। दीपक युवक कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे है, और दो बार चित्रकोट सीट से विधायक भी रहे। दीपक को राहुल गांधी की पसंद माना जाता है।
बताते हैं कि दीपक ने ही अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय को कांग्रेस में लाने में पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई थी। और तो और साय के भाजपा प्रवेश की खबर उड़ी, तो भाजपा के बड़े नेता उन्हें होटल-सर्किट हाउस, और उनके रायपुर से लेकर जशपुर बंगले तक तलाशते रहे, लेकिन साय, दीपक के रायपुर स्थित निवास पर थे। फिर अगले दिन साय ने सीएम, और अन्य प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में कांग्रेस प्रवेश कर लिया।
दीपक को सीएम भूपेश बघेल के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत का भी भरोसा हासिल है। और पार्टी हल्कों में ये चर्चा है कि दीपक के अध्यक्ष बनने से विशेषकर बस्तर में पार्टी को काफी फायदा होगा। जहां चर्च जलाने, और धर्मांतरण जैसे विवादों के चलते पार्टी को नुकसान का अंदेशा जताया जा रहा था। देखना है आगे क्या होता है।
बृजमोहन का दिल्ली दौरा
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल दिल्ली में हैं। उनकी गुरुवार को सुबह-सुबह केन्द्र के ताकतवर मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान से लंबी चर्चा हुई है। प्रधान लंबे समय तक छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। कहा जा रहा है कि बृजमोहन ने धर्मेन्द्र से वर्तमान में पार्टी की स्थिति, और आगे की रणनीति पर फीडबैक दिया है। धर्मेन्द्र, अमित शाह के साथ छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों की चुनाव तैयारियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। बृजमोहन के सुझावों पर पार्टी कितना अमल करती है, यह देखना है।
फ्लाई ऐश से पटा कोरबा
कोरबा के बिजली संयंत्रों से हर रोज करीब दो लाख टन राख का उत्सर्जन होता है। राखड़ के निष्पादन के लिए जगह निर्धारित है लेकिन पिछले कुछ समय से परिवहन खर्च बचाने के लिए शहर, गांव के किसी भी छोर में सडक़ के किनारे या कोई भी खाली जगह दिखते ही राखड़ गिराया जा रहा है। प्रदूषण और सेहत की समस्या गहरा रही है। बेतरतीब डंपिंग को लेकर लोग गुस्से में हैं। हाईकोर्ट में इसे लेकर जनहित याचिका दायर की जा चुकी है, जिस पर न्याय मित्रों ने एक रिपोर्ट भी बनाई है। मामले की सुनवाई चल रही है। सांसद सरोज पांडेय ने पिछले साल इस मामले को लोकसभा में भी उठाया था। जनप्रतिनिधियों और कलेक्टर से तो शिकायत आए दिन हो रही है। यहां पर तस्वीर कोरबा के वार्ड नंबर 52 पर स्थित मिडिल स्कूल के सामने की है। खुले मैदान में ही राखड़ का ढेर बिछा दिया गया। पढ़ाई के दौरान स्कूल में राखड़ उडक़र आ रहा है, जिसे लेकर शिक्षकों और छात्रों में चिंता है। प्रधान पाठक ने इसकी शिकायत कलेक्टर से की है और राखड़ डंपिंग पर रोक लगाने की मांग की है। वे बताते हैं कि राखड़ का ठेका कुछ प्रभावशाली लोगों को मिला हुआ है। न प्रशासन कोई कार्रवाई करता है न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को चिंता है।
बस्तर में विधायकों से नाराजगी
आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग तथा बिलासपुर संभाग के दो जिलों कोरबा, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में सरकार ने तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों पर 100 प्रतिशत स्थानीय भर्ती का नियम बनाया था। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। पिछले साल इस पर फैसला आया था, जिसमें राज्यपाल की अधिसूचना को अदालत ने असंवैधानिक बताया और छूट दी थी कि प्रदेश के किसी भी जगह से बेरोजगार इन पदों पर आवेदन कर सकते हैं। कोर्ट के आदेश के परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकार ने सितंबर 2022 में राज्यपाल का आदेश वापस ले लिया। उसके बाद से स्थानीय स्तर पर भर्ती की प्रक्रिया केबिनेट के प्रस्ताव व सदन की मंजूरी के बाद ही मुमकिन है। विधानसभा चुनाव नजदीक आ चुका है और इस पर अब तक स्थिति साफ नहीं हुई है।
स्तर में चल रहे अनेक आंदोलनों में से एक यह भी है। सर्व आदिवासी समाज जो इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा दोनों से दो-दो हाथ करने जा रहा है, ने इस मुद्दे पर कांकेर में रैली निकाली। बेरिकेड्स लांघने की कोशिश में पुलिस से झूमा-झटकी हुई। विधायक शिशुपाल सौरी का पुतला फूंका। वे उनका निवास घेरने के लिए निकले थे। सौरी से मुलाकात नहीं हुई, पर नारायणपुर में बेरोजगार युवकों ने विधायक चंदन कश्यप को घेर लिया। वे उनसे इस्तीफा मांग रहे थे। कहा कि सरकार में रहते हुए हमारी मांग राजधानी में नहीं रखते, हमारे हितैषी नहीं हैं आप। शुरू में बातचीत सामान्य हुई पर बाद में बात बिगड़ गई। विधायक के साथ धक्का-मुक्की हुई, झूमा झटकी हुई। इन सब का एक वीडियो भी वायरल हुआ है।
विधानसभा चुनाव के पहले हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कराने की कोई कोशिश ऊपरी अदालत और विधानसभा के जरिये हो पाएगी, इसकी संभावना अब कम ही दिखाई देती है। फिर उसके बाद भर्तियों के नए विज्ञापन निकलेंगे तो तो आचार संहिता भी आड़े आ सकती है। देखना होगा कि कांग्रेस इस असंतोष को दूर करने के लिए क्या कदम उठाती है।
दो कॉलोनियों के बीच बार्डर
कॉलोनियों के आलीशान घरों में लोग इतने प्राय: आत्मकेंद्रित हो जाते हैं कि अपने पड़ोसियों से भी मेल-मिलाप नहीं रखते। मगर इस तरह का बैर भी नहीं दिखाई देता। बिलासपुर की सबसे पॉश कॉलोनी मिनोचा कॉलोनी है। यहां ज्यादातर लोग करोड़पति व्यवसायी हैं। यहां पर एक नोटिस बोर्ड लगाया गया है। इसके ठीक बगल में बने शिवम् अपार्टमेंट वालों को उन्होंने अपनी कॉलोनी के गार्डन में आने से मना कर दिया है। अपार्टमेंट में रहने वालों ने इसकी शिकायत कलेक्टर से की है। उनका कहना है कि इस तरह से किसी को सार्वजनिक उद्यान में आने-जाने से रोका नहीं जा सकता।
ऐन चुनाव के पहले गणित बिगाड़ा
रायपुर नगर निगम के एल्डरमैन सुनील छतवानी को पद से हटाने पर विवाद छिड़ा है। छतवानी की जगह कुछ दिन पहले जितेन्द्र बारले की नियुक्ति की गई। छतवानी, रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा के करीबी माने जाते हैं, और उनकी ही अनुशंसा पर एल्डरमैन बने थे। मगर उन्हें हटाया गया, तो चर्चा है कि इसकी भनक कुलदीप को भी नहीं लगी।
सुनते हैं कि कुलदीप ने अपने विधानसभा क्षेत्र के सिंधी वोटरों को साधने के लिए छतवानी को एल्डरमैन बनवाया था। छतवानी उनके करीबी माने जाते हैं। चर्चा है कि उन्हें हटवाने में कुलदीप के विरोधी पार्टी नेताओं की भूमिका रही है। सोशल मीडिया पर छतवानी को हटाने की प्रतिक्रिया हुई, तो कुलदीप ने सीएम तक बात पहुंचाई है।
इधर, नये एल्डरमैन जितेन्द्र को सरकार के एक मंत्री का करीबी माना जाता है। ऐसे में फिर से आदेश बदलवाने की गुंजाइश नहीं रह गई है। विधानसभा चुनाव नजदीक है ऐसे में कुलदीप के लिए मुश्किलें पैदा हो गई है। अब वो चाहते हैं कि छतवानी को कहीं दूसरी जगह एडजस्ट किया जाए, देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा में अब किसकी बारी?
विधानसभा चुनाव के चलते भाजपा ने चुनाव घोषणा पत्र, और आरोप पत्र समिति का गठन कर दिया है। मगर चुनाव अभियान समिति की घोषणा बाकी है। पार्टी के शीर्ष स्तर पर चुनाव अभियान के मुखिया के नाम पर मंथन चल रहा है।
चर्चा है कि तीन प्रमुख नामों पर विचार हो रहा है। इनमें पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय हैं। अभियान समिति के मुखिया को पार्टी के भीतर सीएम पद का एक चेहरा भी माना जाता है। ऐसे में समिति के मुखिया की काफी अहमियत है। देखना है कि पार्टी किस चेहरे को आगे करती है।
सी-मार्ट में हरेली का किट
हरेली तिहार के साथ बांस से बने गेड़ी पर चढऩे की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ी त्यौहारों को मौजूदा सरकार प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में अब स्थानीय उत्पादों वाली दुकान सी-मार्ट में भी गेड़ी की बिक्री की जा रही है। गेड़ी का निर्माण एक कला है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के दो इतने बड़े टुकड़े काटे किए हैं कि उसे बांस में बांधने के बाद पैर रखने के लिए जगह बन सके। हरेली के दिन गेड़ी पर चढक़र बच्चे आनंद उठाते हैं। जिसकी गेड़ी जितनी ऊंची होती है, उसे उतनी ही वाहवाही मिलती है। शहर में रहने वालों को सी मार्ट का बना बनाया गेड़ी विलुप्त हो रही परंपरा की जरूर याद दिलाएगा, पर गांवों में गेड़ी बनाने और इस पर चढक़र दौड़ लगाने से जो सामूहिक मेल-मिलाप का अवसर पैदा होता है, उसकी बात अलग है।
तीन माह पहले तय होंगे टिकट?
क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आधी से अधिक सीटों पर विधानसभा चुनाव से तीन माह पहले टिकट घोषित कर देगी?
कर्नाटक के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने ऐसा किया था। वहां करीब ढाई महीने पहले 100 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए गए थे।
पांच दिन पहले दिल्ली में कांग्रेस? कार्यसमिति की बैठक खास तौर पर राजस्थान की चुनावी रणनीति तय करने के लिए बैठक हुई थी। इसमें यह तय किया गया कि 50 फ़ीसदी तक सीटों में उम्मीदवार ढाई से तीन महीने पहले घोषित कर दिए जाएं।
जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने भी हाईकमान तक अपनी बात पहुंचा दी है कि बिना विवाद वाली सीटों पर पहले ही उम्मीदवार घोषित कर देना ठीक होगा।
छत्तीसगढ़ पर अलग से बात नहीं हुई है लेकिन माना जा रहा है कि दोनों राज्यों की तरह यहां भी यही रणनीति अपनाई जाएगी।
दूसरी ओर, यह सवाल बना हुआ है कि ऐसी सीटों की संख्या कितनी हैं, जिनमें प्रत्याशी के नाम को लेकर विवाद नहीं हो? ढाई-तीन महीने पहले तय कर देने अधिकृत प्रत्याशी को तो मतदाताओं तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा लेकिन उतना ही मौका दूसरे दावेदारों को मिल जाएगा जो बगावत कर खेल बिगाड़ देंगे।
आलोक मौर्य से प्रेरित शिकायत
यूपी के बरेली की एसडीएम ज्योति मौर्य और उसके पति आलोक मौर्य के बीच चल रहे विवाद की जानकारी सोशल मीडिया की बदौलत देशभर में फैल गई है। इसका असर गांव कस्बों में भी दिखाई दे रहा है। कोरबा कलेक्टर के पास आलोक मौर्य की तरह एक शिकायत एक मजदूर ने की है। उसका कहना है कि उसने मजदूरी के पैसे जोड़-जोड़ कर शादी के बाद अपनी पत्नी को पढ़ाया और वह शिक्षाकर्मी बन गई। नौकरी मिलने के कुछ समय बाद वह बिना शादी किए ही एक दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लग गई। ? पहले से उसके दो बच्चे थे अब उसके पुरुष मित्र से भी एक बच्चा हो गया है।
इस मामले का दूसरा पहलू यह है कि शिक्षिका पत्नी ने भी अपने पति के खिलाफ प्रताडऩा की शिकायत की है और परिवार परामर्श केंद्र ने भी बयान दिया है। पति का कहना है कि शिकायत झूठी है।
कौन कितना सही या गलत है, यह अनुमान अभी लगाना मुश्किल है। पर यह मुद्दा दिखाता है कि सोशल मीडिया किस तरह कितनी दूर तक अपना असर छोड़ रही है।
महीनों बाद लुकआउट नोटिस !
आखिरकार केन्द्र सरकार ने प्रदेश के दो बड़े सट्टेबाज सौरभ चंद्राकर, और रवि उप्पल की गिरफ्तारी के लिए लुक आउट नोटिस जारी किया है। भिलाई रहवासी सौरभ और रवि, महादेव और रेड्डीअन्ना एप नामक ऑनलाइन सट्टा के कर्ताधर्ता हैं। ऑनलाइन सट्टा का कारोबार भिलाई से शुरू होकर पूरे देश में फैल गया है।
चर्चा है कि ऑनलाइन सट्टा के कारोबार फलने-फूलने देने में पुलिस की भूमिका भी रही है। भिलाई के एक आरक्षक को निलंबित भी किया गया था। वह दुबई से होकर लौटा था। यही नहीं, प्रदेश के बड़े अखबारों में फ्रंट पेज पर विज्ञापन छपते रहे, लेकिन पुलिस आंखों पर पट्टी बांधे रही। पुलिस की नींद तब खुली जब सट्टे की रकम की वसूली के लिए भिलाई, दुर्ग, और रायपुर में गैंगवार शुरू हो गया।
बताते हैं कि ऑनलाइन सट्टा पहले दुबई से संचालित होता था। दोनों सट्टेबाज सौरभ, और रवि के बीच मतभेद की भी खबर आई है। चर्चा है कि अब रवि ने कतर को अपना ठिकाना बना लिया है। दोनों अरबपति सटोरियों के प्रदेश के राजनेताओं से संपर्क की खबरें भी चर्चा में रही है। सीएम भूपेश बघेल, सटोरियों का भाजपा नेताओं से संबंध होने का आरोप लगा चुके हैं। कुछ इसी तरह का पलटवार भाजपा भी कर चुकी है। अब जब दोनों हिरासत में होंगे तभी सच्चाई सामने आ पाएगी। जानकार मानते हैं कि लुक आउट नोटिस जारी होने के बाद भी वापसी की राह आसान नहीं है। ये लोग आर्थिक रूप से इतने ताकतवर हो चुके हैं, जिससे वो वापसी की राह में कानूनी बाधा भी खड़ी कर सकते हैं।
दारू कोर्ट में, विधानसभा से बची
विधानसभा के आखिरी सत्र में भी विपक्ष, कई बड़े विषयों को सदन में नहीं उठा पाएगा। इनमें से शराब पर कोरोना टैक्स का प्रकरण भी शामिल है। विपक्षी भाजपा सदस्यों ने शराब पर कोरोना टैक्स को लेकर सदन में दो साल पहले मामला उठाया था। विपक्ष का आरोप रहा है कि कोरोना टैक्स के नाम पर जमकर वसूली की गई है।
विपक्षी भाजपा सदस्य अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, नारायण चंदेल, और शिवरतन शर्मा वसूली को गैरकानूनी करार देते हुए हाईकोर्ट चले गए। प्रकरण पर सरकार को नोटिस भी जारी हुआ था। जवाब आने के बाद कोर्ट में आगे बहस नहीं हो पाई है। संसदीय परम्परा है कि जो विषय कोर्ट के समक्ष लंबित है, उस पर सदन में बहस नहीं होती है। ऐसे में शराब प्रकरण पर सदन में चर्चा की गुंजाइश नहीं रह गई है।
इसी तरह प्राथमिक सहकारी समितियों में धान के शार्टेज पर भी सदन में काफी हंगामा हुआ था। प्रकरण की जांच की मांग को लेकर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर हाईकोर्ट चले गए। यह प्रकरण भी कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। जानकार मानते हैं कि विपक्ष ने ऐसे विषयों पर सदन के बजाए कोर्ट में चुनौती देकर खुद ही बहस का रास्ता बंद कर दिया है।
बिना जल उठाए किए गए वादे
शराबबंदी को लेकर गंगाजल की कसम कांग्रेस ने खाई थी या नहीं इसका एक नया सबूत मंत्री मो. अकबर ने दे दिया है। अब भाजपा में जा चुके आरपीएन सिंह का वीडियो सामने लाया गया है, जिसमें कांग्रेस की ओर से सन् 2018 के चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने किसानों की कर्ज माफी को लेकर सौगंध ली थी। वह सरकार बनने के बाद पूरा हो गया। पर कई वादे पूरे नहीं हुए हैं। इससे यह ज्ञान मिलता है कि गंगाजल लेकर की गई प्रतिज्ञा और संकल्प पत्र के जरिये किए गए वायदों में फर्क होता है।
छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी को मालूम था कि कागज पर लिखे चुनावी घोषणाओं पर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो रहा है। इसलिए उन्होंने 2018 के चुनाव में अपनी पार्टी का घोषणा पत्र, शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करके जारी किया।
इधर, छत्तीसगढ़ में अनियमित कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हाल ही में संयुक्त कर्मचारी संगठन ने सांकेतिक आंदोलन किया था। आगे वे इसका विस्तार करने जा रहे हैं। स्वास्थ्य और राजस्व विभाग के कर्मचारी ‘जनहित को देखते हुए’ बिना मांग पूरी हुए ही काम पर वापस लौट आए हैं। इनकी मांगें उस कैटेगरी में जिसमें गंगाजल की शपथ शामिल नहीं हैं। फिर भी आंदोलन कर रहे संगठनों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्हें लगता होगा कि चुनाव की अग्नि परीक्षा, गंगाजल की शपथ से बड़ी है। कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा।
केवल एक शिक्षक कैसे बचे?
शालाओं में प्रवेशोत्सव का कार्यक्रम अभी चल ही रहा है कि ग्रामीण शालाओं में शिक्षकों की कमी की खबरें भी आ रही हैं। महासमुंद जिले के शिवपुर ब्लॉक के अमलोर की छात्र-छात्राओं ने राजधानी रायपुर पहुंचकर मुख्यमंत्री से मिलना चाहा। वे अपनी कापी किताब लेकर आई थीं, जिन्हें लाकर यहां सडक़ के किनारे रख दिया। स्कूल में केवल एक शिक्षक है। बच्चे पढऩा चाहते हैं लेकिन पढ़ाई शिक्षकों के नहीं होने कारण ठप है। सत्र की अभी शुरूआत ही हुई है, छात्र-छात्राओं को अभी से सचेत हो जाना अच्छा है। मुख्यमंत्री निवास पहुंचने से पहले बच्चों ने महासमुंद में जिला स्तर के अधिकारियों के सामने भी मांग की होगी, कलेक्टर से भी मिले होंगे। उनकी मांग नहीं सुनी गई होगी, तब वे मजबूरी में राजधानी पहुंचे होंगे। महासमुंद जिला मुख्यालय से अमलोर करीब 45 किलोमीटर दूर पड़ता है, राजधानी रायपुर से यह 90 किलोमीटर की दूरी पर है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें यहां तक पहुंचने में कितनी तकलीफ उठाई होगी। शिक्षा विभाग ऐसा विभाग है जहां तबादलों को लेकर बड़ा खेल चलता है। शहर या उसके आसपास आने के लिए शिक्षक हर तरह की सिफारिश और खर्च करने के लिए तैयार हैं। ऐसे में गांवों के स्कूल खाली हो जाते हैं। अमलोर गांव में एक टीचर बच गए हैं वह शायद इसलिये एकल शिक्षक वाले स्कूलों से तबादला नहीं हो सकता। या फिर शिक्षक का घर इस स्कूल के आसपास होगा। इस मामले में शिक्षकों की नियुक्ति जल्द करने का आश्वासन देकर अधिकारियों ने बच्चों को वापस भेजा है। मगर, ऐसे स्कूल हर ब्लॉक में मिलेंगे, जहां संकट की स्थिति शिक्षा विभाग में चल रहे तबादले के खेल के चलते पैदा हुई है।
चुनाव बहिष्कार का भी रूझान लें...
विभिन्न राजनीतिक दल अपने चुनाव अभियान को धार देने में लगे हैं तो मतदाता चुनाव से पहले आश्वासनों के पूरा कराने की कोशिश में। इसी के साथ चुनाव बहिष्कार की चेतावनी भी सामने आने लगी है। धमतरी जिले के नगरी ब्लॉक के जैतपुरी और कोरमुड़ के नागरिकों ने कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपा। उन्होंने बताया कि हर नेता से बोल चुके, अधिकारियों से गुहार लगा चुके। कोरमुड़ से दुधावा की साढ़े 4 किलोमीटर सडक़ और पुलिया अब तक नहीं बन पाई। चुनाव के समय जो नेता प्रचार के लिए आया, आश्वासन दे गया। अब सब्र का बांध टूट रहा है। ग्रामीणों ने कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में चेतावनी दी है कि चुनाव से पहले सडक़ नहीं बनी तो वे वोट नहीं डालेंगे। प्रभावित ग्राम वनांचल में स्थित है। यहां की सभी पहुंच मार्गों की हालत खराब है। पेजयल, बिजली, शिक्षक से संबंधित समस्याएं हैं। पिछले माह जून में ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में धरना दिया था, जिसमें करीब एक दर्जन गांवों के लोग शामिल हुए थे। उन्होंने भी चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी थी।
कामयाब सभा का खर्च
पीएम नरेंद्र मोदी की सभा भीड़ भाड़ के मामले में काफी सफल रही। लेकिन पार्टी के कई लोगों के मुताबिक ये खर्चीला भी रहा। वह भी तब जब मंच आदि का खर्च केन्द्र सरकार की एजेंसी एनएचआईए ने वहन किया था। सभा से पहले पीएम का सरकारी परियोजनाओं का शिलान्यास-भूमिपूजन, और लोकार्पण कार्यक्रम भी था।
बताते हैं कि बारिश के मौसम में लोगों को लाने ले जाने में काफी खर्च करना पड़ा। चूंकि खेती-किसानी का सीजन चल रहा है। इसलिए ग्रामीण इलाकों से लोग आने के लिए इच्छुक नहीं थे। ऐसे में तो पार्टी के लोगों को सुदूर इलाकों में तो बकरा-भात पार्टी का आयोजन करना पड़ा। सभी इसलिए खुश थे कि बोरे बासी खाने के समय सभा के पहले सुबह ताजा लजीज खाना परोसा गया। खैर, सभा सफल हुई, तो प्रदेश प्रभारी ओम माथुर व सहप्रभारी काफी खुश नजर आए, और एक-दूसरे को बधाई भी देते दिखे।
सेल्फी विथ टमाटर...
टमाटर आम आदमी की पहुंच से बाहर नहीं हुई है। खरीदने की नहीं यहां सेल्फी की बात हो रही है। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर कल से छाई हुई है। यह वेंडर परेशान हो गया होगा। टमाटर के साथ लोग सेल्फी लेकर बिना खरीदे निकल जाते होंगे। इसलिए उसने टमाटर के साथ-साथ सेल्फी का रेट भी लिख दिया है।
कलेक्टर के खिलाफ विधायक
चुनाव नजदीक आ गए हैं। ऐसे में विशेषकर सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधि अपने इलाके में पसंदीदा अफसरों की पोस्टिंग चाह रहे हैं। इसके लिए वो लगातार अनुशंसा पत्र भी लिख रहे हैं। इन सबके बीच एक महिला विधायक ने कलेक्टर को हटाने के लिए सीएम से गुजारिश भी की है।
पेंच यह है कि कलेक्टर का कामकाज ठीक ठाक रहा है, और रायपुर में अलग-अलग पदों पर रहकर कलेक्टर ने सबसे अच्छे रिश्ते बना लिए हैं। ऐसे में उन्हें हटाना आसान नहीं है।
चर्चा है कि पिछले दिनों कलेक्टर, और महिला विधायक को रायपुर बुलाकर शिकवा-शिकायतों को दूर करने के लिए पहल भी हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि अभी भी महिला विधायक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। अब कलेक्टर रहेंगे या जाएंगे, यह तो कुछ दिन बाद ही पता चल पाएगा।
अब घोषणा पत्र की जिम्मेदारी किस पर?
मिशन 2023 के लिए जी-जान लगा रही भाजपा ने सांसद विजय बघेल को घोषणा पत्र समिति का संयोजक बना दिया है। इधर उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने एक बार फिर साफ किया है कि वे इस बार कांग्रेस घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष नहीं रहेंगे। रायपुर में जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि इतना समय नहीं बचा है कि सभी से बात हो सके। सदस्य के रूप में जरूर काम कर लेंगे और फीडबैक देने के लिए भी पार्टी के साथ खड़े रहेंगे।
सरकार कह रही है कि उसने उसने सन् 2018 के चुनाव में किए गए 90 प्रतिशत वादे पूरे कर दिए हैं। सिंहदेव खुद सरकार के कामकाज की तारीफ कर रहे हैं। सिंहदेव को इस बात का श्रेय तो मिलना ही चाहिए कि उनके घोषणा पत्र ने 2018 का चुनाव जिताया और उस पर सरकार ने काम किया। इस साल 75 सीटें जीतने की यदि उम्मीद है तो इसका भी योगदान है। ऐसे में दोबारा घोषणा पत्र समिति का नेतृत्व करना तो पार्टी की उपलब्धि पर ही मुहर लगाने जैसा होगा। पिछली बार घोषणा पत्र समिति ने चुनाव आने के एक साल पहले से ही प्रदेश में दौरा शुरू कर दिया था। पर इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं। सरकार जनता के संपर्क में है, मंत्री विधायक पहले से ही मैदान में हैं। इसलिये लोगों से बात करने के लिए समय कम होने की बात बड़ी नहीं है।
दूसरा पहलू यह है कि इन 54-55 महीनों में सिंहदेव को कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। जब लोगों ने उन्हें घेरकर चुनावी वायदों की याद दिलाई तो कहना पड़ा कि मैं घोषणा समिति का अध्यक्ष था, घोषणा पूरी करने का काम उनका नहीं, बल्कि मंत्रिपरिषद् का है। उलझन इसी में है कि क्या सरकार के दावे पर मतदाता भी मुहर लगाएंगे?
धान खरीदी में पैसा किसका?
भाजपा के इस दावे पर प्रदेश के मंत्रियों ने बार-बार ऐतराज किया है, जिसमें वे कहती है कि धान खरीदी के लिए पैसा केंद्र सरकार देती है। सात जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रायपुर की जनसभा में यही बात कही कि धान खरीदी के लिए केंद्र सरकार पैसा दे रही है। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने कल फिर यही दावा किया कि खरीदी केंद्र के पैसे से हो रही है। यह भी कहा कि धान के लिए केंद्र अब तक छत्तीसगढ़ को 52 हजार 63 करोड़ रुपये दे चुकी है। जब मीडिया के सवालों में उलझ गए तब उन्होंने स्वीकार किया कि यह राशि राज्य से मिले चावल के एवज में दी गई है। उनकी बात से साफ हुआ कि यह केंद्र की ओर से मिल रहा कोई अनुदान नहीं है, इसके बदले में राज्य सरकार से चावल मिलता है।
बीजेपी में कद की घट-बढ़
विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने प्रदेश के दो बड़े नेता विष्णुदेव साय, और धरमलाल कौशिक को बड़ी जिम्मेदारी दी है। उन्हें राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है। दोनों को ही साल भर पहले क्रमश: प्रदेश अध्यक्ष, और नेता प्रतिपक्ष पद से हटाया गया था।
पार्टी हाईकमान ने विभिन्न राज्यों के 10 बड़े नेताओं को राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह दी है। ये वो नेता है जो अपने राज्य में प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं या फिर पार्टी से नाराज चल रहे हैं। विष्णुदेव साय को तो प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के बाद राष्ट्रीय कार्यसमिति में विशेष आमंत्रित सदस्य बना दिया गया था। अब उन्हें प्रमोट कर राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है।
बताते हैं कि अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से आदिवासी वर्ग को साधने के लिए जोरदार कोशिश चल रही है। विष्णुदेव साय भी जशपुर जिले से आते हैं। ऐसे में उनके प्रमोशन को डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
इसी तरह धरमलाल कौशिक के नेता प्रतिपक्ष पद से हटने के बाद पार्टी में उन्हें अहम जिम्मेदारी मिली है। कौशिक, अमित शाह की कुछ दिनों पहले हुई बैठक में भी थे। जबकि इस बैठक में राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय, बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल तक को नहीं बुलाया गया था। अब उनकी नियुक्ति को पार्टी के भीतर उनके बढ़ते कद के रूप में भी देखा जा रहा है।
गडक़री को भी मिली तालियां
पीएम नरेंद्र मोदी की सभा में किसी नेता के प्रति लोगों में विशेष आकर्षण देखने को मिला वो थे केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी। मोदी के बाद सबसे ज्यादा ताली गडकरी के स्वागत में बजी।
गडकरी यहां आए, तो प्रदेश के नेताओं से आत्मीयता से मुलाकात की। इसके बाद पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को अलग ले जाकर विधानसभा चुनाव की तैयारियों, और पार्टी की स्थिति पर काफी देर चर्चा की।
गडकरी की पहल पर प्रदेश में हजारों करोड़ का सडक़ निर्माण हो रहा है। भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत रायपुर से विशाखापट्टनम तक सिक्स लेन सडक़ का निर्माण हो रहा है। इससे रायपुर से विशाखापटनम की दूरी 4 घंटे में तय की जा सकेगी। गडकरी पारदर्शिता, और समय सीमा में काम करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में उनका जोरदार स्वागत होना ही था।
एयरो सिटी टेक ऑफ नहीं कर पाई
राज्य सरकार की एक महत्वाकांक्षी एयरो सिटी प्रोजेक्ट लफड़े में फंस गई है। सरकार ने दिल्ली, और अन्य महानगरों की तरह एयरपोर्ट के समीप आवासीय-व्यावसायिक परियोजना की आधारशिला रखी थी। इसके लिए बजट में राशि का प्रावधान भी किया गया था। मगर जमीन विवाद की वजह से परियोजना आकार नहीं ले पा रही है।
बताते हैं कि पहले 214 एकड़ जमीन पर एयरो सिटी बनाने की योजना तैयार की गई थी। मगर प्रस्तावित क्षेत्र में जमीन का बड़ा हिस्सा एक धार्मिक संस्था का निकल गया। धार्मिक संस्था से जमीन लेने, और उचित मुआवजा देने के लिए बैकडोर चैनल से चर्चा भी की गई। मगर संस्था जमीन देने के लिए तैयार नहीं हुई।
चुनावी साल है। संस्था से प्रदेश में लाखों लोग जुड़े हैं। ऐसे में जोर जबरदस्ती कर जमीन अधिग्रहण करना जोखिम भरा हो गया था। इसके बाद 25 एकड़ अलग जमीन छाँटकर पहले फेस का काम शुरू करने का फैसला लिया गया। मगर प्रोजेक्ट पर सलाह देने के लिए कोई भी कंपनी आगे नहीं आई। दो बार विज्ञापन जारी हो चुके हैं। अब बारिश भी शुरू हो गई है। ऐसे में अब प्रोजेक्ट पर फैसला अगली सरकार में शुरू होने की उम्मीद है।
बात मनवाने का अचूक तरीका
जैसे-जैसे नेशनल हाईवे बनते जा रहे हैं, नए-नए टोल नाके भी तैयार हो रहे हैं। रोजाना कई बार गुजरने वाले, टोल नाका के आसपास के शहरों के रहने वालों के लिए यह एक नया खर्च बनता जा रहा है। बीते दिनों दुर्ग राजनांदगांव बाईपास के टोल नाके में भिलाई कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की गाड़ी को रोका गया, तब बड़ा हंगामा हो गया। टोल नाके में जमकर तोडफ़ोड़ की गई। बैरियर, फास्ट टैग रीडर, कैमरा और बूथ का कांच भी तोड़ दिया गया। नतीजा यह निकला कि सीजी 07 नंबर की गाडिय़ों को यहां से अब बिना टोल टैक्स गुजरने की अनुमति दे दी गई है। इस घटना के बाद लोग कुम्हारी के टोल नाके में हो रही वसूली को लेकर भी सवाल उठाने लगे हैं। दुर्ग राजनांदगांव बाईपास की यहां भी किसी दमदार नेता की दखल का इंतजार हो रहा है।
गुलाब को चुनौती देता कुकुरमुत्ता
चैतुरगढ़ की पहाड़ी पर सावन की बौझार में उगे इस दुर्लभ कुकुरमुत्ते की जोड़ी की सुंदरता को देखिए ।इसकी आभा को यह हक है कि वह फूलों के राजा के अस्तित्व को चुनौती दे सके। इस कुकुरमुत्ते की फोटो यू-ट्यूबर दीपक पटेल ने खींची है,जो इस समय प्रकृति को करीब से महसूस करने समझने, 3060 फीट ऊंची पहाड़ पर कैम्पिंग कर रहे हैं।
ट्रेनों के एसी कोच भी बदहाल
रेलवे वंदे भारत एक्सप्रेस और दूसरी प्रीमियम ट्रेनों का किराया सीटें खाली होने की दशा में 25 प्रतिशत तक कम करने जा रही है। सफर में ज्यादा खर्च करने की हैसियत रखने वाले यात्रियों के लिए यह एक अच्छी सहूलियत होगी और रेलवे की भी आमदनी बढ़ेगी। दूसरी तरफ जनरल और स्लीपर के यात्री डिब्बों के भीतर पसरी अव्यवस्थाओं से परेशान होते हैं। ऐसा लगता है कि रेलवे जनरल भोगियों की हालत सुधारने के बजाय एसी डिब्बों में भी वही अव्यवस्था कायम करके बताना चाहती है कि यात्रियों में वह भेदभाव नहीं कर रही है। छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली हटिया कुर्ला एक्सप्रेस के एसी-2 के एक यात्री ने आज सोशल मीडिया पर अपनी परेशानी जाहिर की है। कोच में कचरा बिखरा पड़ा है और सभी टॉयलेट जाम हैं। दोपहर तक सफाई के लिए कोई नहीं पहुंचा। ऑनलाइन शिकायत का कोई हल नहीं निकला। लोग ऐसी टू की टिकट लेकर इसीलिए सफर करते हैं कि वहां कोच वॉश, बेसिन, टॉयलेट साफ-सुथरे मिल जाते हैं। मगर अब तो रेलवे ने अनेक ट्रेनों से सफाई कर्मचारियों को भी बाहर कर दिया है। यकीन है कि जो वंदे भारत और राजधानी जैसी ट्रेनों में किराया कम करने की घोषणा हुई है उसके बाद इन ट्रेनों की भी हालत दूसरे ट्रेनों के जैसी नहीं होगी।
मिले तो मगर दूरी बनी रही
स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ पहला दौरा 8 जुलाई को होने वाला था लेकिन मौसम की खराबी के चलते यह दौरान रद्द कर दिया गया। फिर मेडिकल कॉलेज के निर्धारित कार्यक्रम में दोनों वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए जुड़े इसके बाद उन्होंने बूथ मैनेजमेंट की ट्रेनिंग के लिए रखी गई कार्यकर्ताओं की बैठक में शामिल हुए। मुख्यमंत्री बघेल सरगुजा में बूथ प्रबंधन की तैयारी देखकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सिंहदेव की प्रशंसा की। कुछ दिन पहले तक जो सिंहदेव समर्थक कार्यकर्ता पार्टी और सरकारी कार्यक्रमों में अलग-अलग है दिखाई देते थे, कल वे उत्साहित नजर आ रहे थे। ऐसा लगने लगा कि सरगुजा में कांग्रेस के भीतर गुटबाजी खत्म हो गई है। पर यह भ्रम कार्यक्रम खत्म होने के बाद टूट गया, जब खाद्य मंत्री अमरजीत भगत और सिंहदेव के समर्थक अलग-अलग झुंड बनाकर बतियाते दिखे।
यानी जमीनी स्तर पर कांग्रेस की गुटबाजी खत्म नहीं हो पाई है। और कांग्रेसका जैसा है कल्चर रहा है यह समस्या चुनाव नजदीक आने तक दूर हो जाएगी कैसा लगता नहीं।
चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा
अमित शाह ने खुद आगे आकर छत्तीसगढ़ भाजपा के चुनाव की कमान संभाल लिया है। पार्टी ने मोदी, और शाह के करीबी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया को सह चुनाव प्रभारी बनाया है। इसका अंदाजा उस वक्त लग गया था जब शाह ने 4 तारीख की रात पार्टी दफ्तर में प्रदेश के चुनिंदा भाजपा नेताओं के साथ मीटिंग की थी, उसमें मंडाविया भी थे।
मंडाविया, शाह के साथ ही पार्टी दफ्तर में ही रात रूके थे। शाह के जाने बाद भी मंडाविया यहां रूके रहे। और मोदी की सभा निपटने के बाद ओम माथुर के साथ चुनाव तैयारियों को लेकर औपचारिक मीटिंग की। इसके बाद ही दिल्ली गए।
सुनते हैं कि पार्टी हाईकमान को मध्यप्रदेश से ज्यादा उम्मीदें नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में हर हाल में सरकार की वापिसी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। शाह 14 जुलाई को फिर आ रहे हैं। उनके साथ मंडाविया भी होंगे। यानी शाह-मंडाविया का चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा।
डिप्टी कहाँ बैठेंगे?
टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के बाद विधानसभा के आखिरी सत्र में सदन के भीतर की बैठक व्यवस्था में बदलाव के संकेत हैं। कहा जा रहा है कि सिंहदेव अब सीएम भूपेश बघेल के बगल की सीट पर बैठेंगे। खबर है कि विधानसभा सचिवालय ने नई बैठक व्यवस्था पर संसदीय कार्य विभाग से राय भी मांगी है।
सदन में सीएम के बगल की सीट अब तक खाली रही है। सिंहदेव भी प्रथम पंक्ति में संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे के साथ बैठते रहे हैं। बैठक व्यवस्था में बदलाव दिवंगत विधायक विद्यारतन भसीन की वजह से भी हो रहा है। भसीन विपक्षी विधायकों के साथ बीच की सीट पर बैठते थे।
दूसरी तरफ, डिप्टी सीएम के रूप में सिंहदेव भले ही कोई अतिरिक्त सुविधाओं की पात्रता नहीं रखते हैं, लेकिन सरकार और आम लोगों के बीच उनकी हैसियत बढ़ी है।
मोदी के मंच पर पहुँचने की दिक्कत
कोरोना केस भले ही नगण्य हो गए हैं, लेकिन पीएम के कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती गई। पीएम के साथ मंच पर रहने वाले सभी नेताओं का पहले आरटीपीसीआर टेस्ट कराया गया था, और रिपोर्ट निगेटिव होने के आने बाद ही उन्हें मंच पर बैठने की अनुमति मिली। यही नहीं, कई ऐसे नेता थे तमाम कोशिशों के बाद भी मंच पर आने की अनुमति नहीं मिल पाई। इनमें युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष कमलचंद्र भंजदेव और पूर्व सांसद दिनेश कश्यप भी थे। वो अपना परिचय देकर किसी तरह मंच पर जगह पाने की कोशिश में लगे थे लेकिन एसपीजी ने तुरंत उन्हेें वहां से हटने के लिए कह दिया। उन्हें आम कार्यकर्ताओं के बीच में बैठना पड़ा।
इन सबके बीच जिले के दो महामंत्री सत्यम दुआ और रमेश ठाकुर मंच पर न सिर्फ पूरे समय तक मौजूद रहे बल्कि पीएम के लिए फूल-माला लाने की पहुंचाने की जिम्मेदारी उन पर थी। दुआ, पूर्व मंत्री राजेश मूणत के करीबी माने जाते हैं और उन्होंने पहली बार महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अहम जिम्मेदारी निभाई। ऐसे में उनका खुश होना लाजमी है।
खौफ के माहौल में प्रवेशोत्सव
इन दिनों शाला प्रवेशोत्सव की जगह जगह से सुंदर-सुंदर तस्वीरें आ रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने शिक्षकों और स्थानीय नेताओं के हाथों से अभिनंदित होकर खुश हैं। मध्याह्न भोजन में पुलाव, खीर, पनीर की सब्जी, हलवा मिल रहा है। नई किताबें, नए जूते, स्कूल यूनिफार्म मिल रहे हैं और बच्चों की आंखों में सुनहरा भविष्य तैर रहा है। पर जो तस्वीर नजर नहीं आ रही है, वह यह है कि जिन स्कूल भवनों में इनकी पढ़ाई हो रही है वे जर्जर और असुरक्षित हैं।
सूरजपुर जिले के मलगा गांव में बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। उसी दौरान बिल्डिंग की छत से प्लास्टर के टुकड़े गिरने लगे। बच्चों ने बाहर भागकर जान बचाई। शिक्षक ने भी उन्हें खींचते हुए बचा लिया। सभी सुरक्षित बाहर आ गए। गनीमत, किसी को चोट नहीं आई। यहां तीसरी और चौथी कक्षा के मासूम बच्चे पढ़ रहे थे।
इसी सरगुजा के बलरामपुर जिले मे वाड्रफनगर ब्लॉक स्थित ग्राम कोटी के स्कूल परिसर में दोपहर के अवकाश के दौरान यहां खेल रहीं एक साथ 3 बच्चियां एक शटर से चिपक गए। उसमें करंट प्रवाहित हो रहा था। 6 और 9 साल की इन तीनों बच्चियों को बेहोश हो जाने पर अस्पताल लाया गया, जिनमें से एक की मौत हो गई।
दो साल पहले बिलासपुर जिले के सीपत में ठीक स्कूल परिसर में बिजली गिरने से 11 बच्चे झुलस गए थे, जिनमें एक छात्र की मौत हो गई थी।
प्राथमिक स्कूलों के भवन का निर्माण प्राय: पंचायत करती है। मगर स्कूल खुलने के बाद में शिक्षा विभाग के अधीन आ जाता है। निर्माण इतना घटिया होता है कि एक भवन आठ 10 साल भी नहीं टिक पाता। गांव के जनप्रतिनिधि अपने ही बच्चों के लिए अच्छा स्कूल उनकी चिंता नहीं करते। बिलासपुर की घटना के बाद सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से तडि़त चालक लगाने का निर्देश मुख्यमंत्री ने दिया था। कितनी जगह इसका पालन हुआ, कोई आंकड़ा नहीं है।
स्कूल तक पहुंचने के रास्ते भी कीचड़ से भरे या जर्जर है। शौचालय की व्यवस्था नहीं, बाउंड्री वॉल नहीं है।
ऐसे माहौल में शिक्षा विभाग और पंचायतों का पूरा जोर सिर्फ प्रवेश का जलसा मनाने की और है, और बच्चे जान को जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं।
अपना-अपना हिसाब-किताब
सरकारी आंकड़ों का मकडज़ाल जबरदस्त होता है। इनमें से अपनी पसंद के हिस्सों को उठाकर नाकामियों भी उपलब्धियों की तरह पेश किया जा सकता है। दूसरों की उपलब्धियों को अपना बताया जा सकता है। नक्सल हिंसा पर नियंत्रण लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार? दोनों की तरफ से कोशिशें की जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में बीते कुछ वर्षों के भीतर नक्सली हिंसा और मुठभेड़ कम हुई हैं। इसका श्रेय किसे मिलना चाहिए? कांग्रेस का आंकड़ा देखें तो लगेगा कि वह ठीक कह रही है। भाजपा को सुनें तो लगेगा यह भी सही है।
7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान भाजपा के आईटी इंचार्ज अमित मालवीय ने एक चार्ट जारी किया। इसने उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान 1 मई 2005 से 30 अप्रैल 2014 तक बस्तर में नक्सली वारदातों की संख्या 4,645 थी। जब 1 मई 2014 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी, तब से लेकर अप्रैल 2023 तक नक्सली वारदातों में 33.4 फीसदी की कमी आई और घटकर संख्या सिर्फ 3,093 रह गई।
इसके जवाब में छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी का ग्राफ जारी हुआ है। इसमें बताया गया है कि 2005 से 2014 तक 4,645 नक्सली वारदातें हुई। इसके बाद 2014 से लेकर 2018 के बीच 1,948 घटनाएं हुई। तब छत्तीसगढ़ में रमन सरकार थी। वहीं इसके बाद 2019 से 2023 की अवधि में भूपेश सरकार के दौरान घटनाएं सिर्फ 1,150 दर्ज हुई।
अब यह आपके ऊपर हैं कि किसे कितने प्रतिशत श्रेय देना है। इन्हीं आंकड़ों से अंदाजा भी लगा लें कि बस्तर में शांति स्थापित करने में कितना वक्त और लग सकता है।
लोकार्पण से पहले दुर्घटना, जिम्मेदार कौन?
प्रधानमंत्री की सभा में शामिल होने के लिए सूरजपुर, विश्रामपुर के कार्यकर्ताओं की बस सुबह 5 बजे सडक़ पर खड़ी हाइवा से टकरा गई। यह दुर्घटना उसी बिलासपुर-पथरापाली फोरलेन पर हुआ है, जिसका लोकार्पण आज प्रधानमंत्री ने किया। लोकार्पण के ही दिन एक बड़ी दुर्घटना का हो जाना विडंबना है, लेकिन क्या इसे टाला जा सकता था? यह सवाल इसलिए क्योंकि सुबह हो रही सभा के लिए दूर दराज से राजधानी पहुंचने वाली बसों को रात में ही निकलना था। भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश भी दिया था कि वे सुबह 9 बजे तक साइंस कॉलेज ग्राउंड पहुंच जाएं। वीवीआईपी विजिट को लेकर पूरे प्रदेश में प्रशासन और पुलिस अलर्ट थी। उसने संदिग्ध लोगों की धरपकड़ की, सभा स्थल के आसपास के एक-एक घर में कौन रहता है, पता किया। सभा स्थल पर जाने वालों के लिए ढेर सारे नियम तय किये गए। पर वह इस तरफ ध्यान देना भूल गई कि प्रदेश के अलग-अलग संभागों से बड़ी संख्या में बसें एक ही दिशा रायपुर की ओर रात में रवाना होंगी। रात में इन सडक़ों पर वीआईपी नहीं बल्कि पार्टी के आम कार्यकर्ता सफर करने वाले थे। बिलासपुर-पथरापाली रोड में कई खतरनाक प्वाइंट हैं। इस पर हाईकोर्ट में पीआईएल भी दाखिल की गई। इस सडक़ पर बार-बार हो रही दुर्घटनाओं और मौतों का हवाला दिया गया। हाईकोर्ट में एनएचएआई ने शपथ पत्र दिया है कि इन गड़बडिय़ों को ठीक किया जाएगा। फोरलेन बन जाने के चलते नई सडक़ का फायदा आम यात्रियों को तो मिलना ही है, पर सबको लगता है कि इससे कोयला परिवहन में बड़ी सहूलियत होगी। जिस जगह पर आज दुर्घटना हुई है वहां से दीपका, गेवरा से पूरी रात कोयले से लदी भारी गाडिय़ां गुजरती हैं, जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनती हैं। रायपुर-बिलासपुर के बीच हिर्री थाने की पुलिस ने बीते कई दिनों से अभियान चला रखा है, जिसमें उसने एनएच पर बेतरतीब खड़े ट्रेलर, हाईवा जब्त किए और उन पर भारी जुर्माना किया, लेकिन जिले की यातायात पुलिस से चूक हो गई कि उसने बीती रात इस नई बन रही सडक़ की पेट्रोलिंग नहीं की, जहां से रायपुर के लिए बसें रातभर गुजरीं।
यात्री ट्रेनों की असल हालत
एक ओर बुलेट ट्रेन एक के बाद एक नए-नए शहरों के बीच शुरू किए जा रहे हैं दूसरी ओर साधारण ट्रेनों में हालत बद से बदतर होती जा रही है। जगह नहीं मिलने के कारण यात्री टॉयलेट के पास बैठ गए हैं। टायलेट से दुर्गंध आ रही है तो उन्होंने अपना नाक कपड़े से ढंक लिया है। यह ट्रेन रांची से सासाराम जा रहे छत्तीसगढ़ के एक यात्री ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की है।
विधुरों, कुंवारों का ख्याल
हरियाणा की मनोहर सिंह खट्टर सरकार ने 45 साल से अधिक उम्र के बीपीएल श्रेणी में आने वाले विधुरों और कुंवारों को पेंशन देने की घोषणा की है। जिनकी आमदनी सालाना 3 लाख रुपये से कम होगी, उनको 2750 रुपये हर माह मिलेंगे। ऐसा करने वाला यह देश का पहला राज्य है। हरियाणा में भाजपा की सरकार है। उससे ठीक लगे दो राज्यों पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जिसकी नजर सन् 2024 में यहां होने जा रहे विधानसभा चुनाव पर है। एक साल पहले ही आप ने अपने आक्रामक अंदाज में वहां पार्टी को मजबूत करने में लग गई। आप ने शिक्षा, अस्पताल, पानी, बिजली की सेवाएं दिल्ली में कई श्रेणियों के लिए मुफ्त दे रखी है। महिलाओं को बसों में सफर भी फ्री है। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के नेता आप के इन फैसलों को रेवड़ी बांटना कहते हैं। पर हरियाणा सरकार ने विधुर और कुंवारे एक अलग तरह के वोट बैंक के रूप में खड़ा कर दिया है। हो सकता है यह आम आदमी पार्टी से टक्कर लेने का एक जरिया बने। हाल ही में अरविंद केजरीवाल छत्तीसगढ़ में रैली करके गए। उन्होंने दिल्ली पंजाब की मुफ्त सुविधाओं का जिक्र किया और छत्तीसगढ़ के लोगों से भी कहा कि उन्हें भी यह सब चाहिए तो उनकी पार्टी को मौका दीजिए। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इशारा कर चुकी है कि चुनाव के चलते उसे रियायत की कुछ घोषणाएं करनी पड़ेगी। हरियाणा ने बाकी राज्यों को एक रास्ता सुझा दिया है कि वे हर बार महिलाओं को ही लुभाने की कोशिश न करें, पुरुष भी पीडि़त हैं, जिनको भी लुभाने के लिए कुछ किया जा सकता है।
मोदी की सभा और तनाव
पीएम नरेंद्र मोदी की शुक्रवार को सभा के लिए भीड़ को लेकर भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं। पार्टी ने एक लाख से अधिक लोगों को लाने की योजना बनाई है। मगर मौसम की बेरुखी आड़े आ सकती है।
सभा के लिए सबसे ज्यादा भीड़ लाने की जिम्मेदारी रायपुर, और आसपास के नेताओं पर है। अगर टारगेट के मुताबिक भीड़ आई, तो मैदान में जगह कम पड़ जाएगी। रायपुर की चारों विधानसभा सीट से करीब 75 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य है। इसके लिए पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, और अन्य नेता लोगों को आमंत्रित करने पीला चावल लेकर गली मोहल्लों में घूम रहे हैं।
बिलासपुर संभाग से 25 हजार, और बस्तर-सरगुजा से 25 हजार लोगों को लाने की जिम्मेदारी दी गई है। चूंकि सभा सुबह है इसलिए बाहर से हजारों लोगों को लाने का इंतजाम किया गया है। कुल मिलाकर भीड़ जुटाने के लिए इतनी मशक्कत पहले कभी नहीं हुई।
खास बात यह है कि कुछ दिन पहले शहडोल में पीएम की सभा में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं आ पाई थी। इससे हाईकमान खफा है, और यही वजह है कि पीएम की इस सभा पर हाईकमान भी नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसे में यहां के रणनीतिकारों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
शाह के साथ बंसोड़
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह यहां आए, तो उनके साथ छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस नीरज बंसोड़ भी थे। नीरज केन्द्रीय गृहमंत्री के ओएसडी हैं। वो कुछ महीना पहले ही केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए थे, और फिर उनकी पोस्टिंग केन्द्रीय गृह मंत्री के ऑफिस स्टॉफ में हुई।
नीरज जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहे हैं। इसके अलावा भूपेश सरकार में भी करीब तीन साल डायरेक्टर हेल्थ के पद पर रहे हैं। नीरज यहां आए, तो कई भाजपा नेता उनसे संपर्क के लिए कोशिश करते रहे।
कुछ तो अमित शाह के दौरे के प्रयोजन की जानकारी के लिए उनके ऑफिस संपर्क करते रहे। मगर उनसे कोई विशेष मदद नहीं मिल पाई। शाह चुनिंदा नेताओं के साथ बैठक की, और चुनाव तैयारियों को मार्गदर्शन देकर निकल गए।
टमाटर का महानगरों से मुकाबला
देशभर में सब्जियों का थोक, चिल्हर भाव बताने वाली एक भरोसेमंद वेबसाइट के मुताबिक आज मुंबई में टमाटर का दाम अधिकतम 103 रुपये है। दिल्ली, चेन्नई में भी दाम रायपुर के मुकाबले कुछ कम ही हैं। कोलकाता में जरूर यह 123 रुपये बता रहा है। बाकी सब्जियों के दाम भी रायपुर के मुकाबले कम ही हैं। रायपुर में रेट 107 बताया जा रहा है पर वास्तव में यह 120 रुपये और कहीं-कहीं उससे अधिक है। खेतों बाडिय़ों से महानगर में खाने-पीने की चीजें पहुंचाने पर भाड़ा खर्च अधिक होता है। वहां जीवन-यापन के लिए भी खर्च अधिक करना पड़ता है इसलिये हर चीज महंगी हो सकती है। रायपुर उनके मुकाबले छोटा शहर है। फिर छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर सब्जियां उगाई भी जाती हैं। यह जरूर हुआ है कि देर से आए मॉनसून ने सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान पहुंचाया, उत्पादन भी घटा। टमाटर सहित कई सब्जियां दूसरे राज्यों से आ रही है। पर थोक व चिल्हर बाजार में जो अंतर दिखाई दे रहा है वह सब्जी महंगी होने का बड़ा कारण है।
थोक बाजार से चिल्हर बाजार तक पहुंचने पर गाड़ी भाड़ा, हमाल की मजदूरी, उतारने चढ़ाने के दौरान हुआ नुकसान, चबूतरे का किराया और नगर निगम का टैक्स शामिल होता है। यह खर्च अलग-अलग सब्जियों के हिसाब से प्रति किलो 5 रुपये से अधिकतम 10 रुपये किलो तक हो सकता है। पर अभी यह हो रहा है कि मंडी में जो टमाटर 65 से 75 रुपये के बीच उपलब्ध है वह चिल्हर विक्रेताओं के पास 110, 120 रुपये में मिल रहा है। इतना अधिक अंतर। अधिक मुनाफा लेने के पीछे चिल्हर विक्रेताओं का अपना तर्क है। वे कह रहे हैं कि महंगाई के कारण बिक्री घटी है, पर कम बिक्री में अपनी आमदनी तो घटा नहीं सकते। पहले जो मुनाफा 500 किलो बेचने पर मिलता था, उसे 50 किलो में ही निकालना पड़ रहा है। वैसे अगस्त अंत तक यही कीमत बने रहने के आसार हैं।
छत्तीसगढ़ की स्लीपर बसें..
लंबे सफर को आरामदायक बनाने के लिए लक्जरी बसों में जो स्लीपर सीट की व्यवस्था की जाती है वह मुसीबत आने पर कितनी जानलेवा हो सकती है, यह नागपुर से पुणे जा रही बस के दुर्घटनाग्रस्त होने से पता चलता है। यह बस देर रात बुलढाणा के पास एक डिवाइडर से टकरा गई थी, जिसके बाद उसमें आग लग गई। 8 लोगों की जान बच पाई, 26 बस के अंदर ही झुलसकर मारे गए। छत्तीसगढ़ के कई शहरों से चलने वाली रात्रिकालीन बसों में स्लीपर सीट की व्यवस्था है। रायपुर, बिलासपुर, जशपुर, अंबिकापुर, जगदलपुर से 400-500 किलोमीटर की दूरी तक चलने वाली बसें हैं। ये बसें कोलकाता, नागपुर, पुणे तक के लिए भी मिलती हैं। दुर्घटनाग्रस्त नागपुर-पुणे बस के मामले में यह पाया गया कि स्लीपर सीट पर सोये यात्री भीतर ही फंस गए थे। स्लीपर सीटों के चलते बस में चलने-फिरने बाहर निकलने की जगह बहुत कम होती है। यह इतना असुविधाजनक होता है कि बहुत से लोग स्लीपर सीट ऑफर करने पर भी नहीं लेते और बैठने वाली सीट ही मांगते हैं। इन बसों के ड्राइवर पूरी रात गाड़ी चलाते हैं। उन पर दबाव होता है कि झपकी भी आ रही हो तो समय पर गंतव्य तक पहुंचा दें, क्योंकि दूरी लंबी होती है। स्लीपर सीट की व्यवस्था भी इसीलिये की जाती है। स्लीपर सीट बसों में जिस जगह पर होती है, वहां इमरजेंसी एग्जिट की कोई व्यवस्था नहीं होती। महाराष्ट्र जैसे एक दो राज्यों में नियम बनाकर ऐसी बसों में अधिकतम 30 सीटों की अनुमति दी गई है। छत्तीसगढ़ सहित अधिकांश राज्यों में परिवहन विभाग ने इन बसों के यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कोई पहल नहीं की है। कई जानकार बसों में स्लीपर सीट की सुविधा बंद करने की मांग भी कर रहे हैं।
आगे क्या हासिल देखना है
प्रदेश भाजपा की पूर्व प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश के पार्टी संगठन का मुखिया बनाया गया है। पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश में पार्टी का सीएम फेस माना जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेता अनमने भाव से छत्तीसगढ़ को प्रभार संभालते रहे हैं। ये अलग बात है कि यहां से जाने के बाद वो लगातार तरक्कियों की सीढ़ी चढ़ते रहे।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय नरेंद्र मोदी के पास छत्तीसगढ़ का प्रभार रहा है। वो यहां के प्रभार से मुक्त होने के बाद पहले गुजरात के सीएम बने, और फिर पीएम बने। इसी तरह पुरंदेश्वरी की तरह छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे राजनाथ सिंह, यहां के प्रभार से मुक्त होने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, और वर्तमान में रक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं।
इसी तरह छत्तीसगढ़ के लंबे समय तक प्रभारी रहे धर्मेन्द्र प्रधान वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैंं। उनके बाद के छत्तीसगढ़ प्रभारी जेपी नड्डा, वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। अलबत्ता, डॉ. अनिल जैन जरूर अपवाद रहे। वो छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहने के बावजूद पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में हाशिए पर धकेल दिए गए। इसके पीछे कुछ लोग उन्हें ही जिम्मेदार ठहराते हैं। यह कहा जाता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की बुरी हार साफ दिख रही थी, लेकिन हाईकमान को उन्होंने अंधेरे में रखा। खैर, पुरंदेश्वरी, और अब ओम माथुर आगे क्या कुछ हासिल करते हैं यह देखना है।
चुनावी सभाओं का दौर
बीते चार दिनों के भीतर भाजपा की दो बड़ी जनसभाएं हुईं। बिलासपुर में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की और कांकेर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की। दोनों ही जगह उम्मीद के अनुसार भीड़ नहीं आई। बिलासपुर में नड्डा के दो दिन बाद आम आदमी पार्टी की जनसभा हुई, जिसमें भाजपा की सभा के मुकाबले कहीं ज्यादा भीड़ थी। कांकेर, बिलासपुर दोनों ही जगह पर भाजपा ने विधायकों और पूर्व विधायकों को टारगेट दिया गया था। पांच-पांच हजार के आसपास लोगों को लाने के लिए। बिलासपुर में अधिकांश सीटें तो भाजपा के पास ही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का भी यही इलाका है, इसके बावजूद नड्डा को सुनने लोग नहीं आए। कुछ शरारत भी की गई, बिना नाम के पोस्टर शहर में चिपकाए गए- ये नड्डा कौन हैं, किसकी सभा है। यह आशय था कि नड्डा के नाम पर भीड़ नहीं आती।
चुनावी राजनीति में जनसभा में उमडऩे वाली भीड़ यह अंदाजा लगाने का जरिया होता है कि जनता किसके पाले में जा रही है। कांग्रेस ने अभी राष्ट्रीय नेताओं का इस तरह से दौरे का सिलसिला शुरू नहीं किया है। राज्य में सरकार होने के कारण संभव है कि अभी इसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही होगी। पर, दोबारा सत्ता में लौटने के लिए धरती आसमान एक कर रही भाजपा के लिए यह जरूर चिंता का विषय हो सकता है। फिलहाल तो सारे नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 7 जुलाई को हो रही सभा के लिए ताकत झोंक रखी है। पार्टी पदाधिकारियों को हर जिले में टारगेट दिया गया है। कहीं 25 हजार तो कहीं 10 हजार। मोदी के लिए ज्यादा भीड़ जुटाने का दबाव है। घर-घर निमंत्रण दिया जा रहा है, मुमकिन है मोदी को सुनने भीड़ आ भी जाएगी। पर, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेता बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की अगली जनसभा बस्तर में होगी। तब लोगों को फिर परखने का मौका मिलेगा कि भीड़ जुटाने में बीजेपी ज्यादा कामयाब रही या आम आदमी पार्टी।
बोधघाट पर चुनाव से पहले फैसला
बस्तर के इंद्रावती नदी पर बोधघाट परियोजना की फाइल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने के बाद फिर खुल गई थी। 40 साल पहले प्रस्तावित इस परियोजना की लागत अब कई गुना बढक़र 22 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था। बस्तर के तमाम नेता इस परियोजना पर फिर सर्वे शुरू कराने का विरोध कर रहे थे, जिस पर आंदोलन भी हुए। बड़ी संख्या में आदिवासी गावों के विस्थापन का मुद्दा था। यह परियोजना बिजली उत्पादन के मापदंड में तो ठीक था, लेकिन बस्तर को सिंचाई सुविधा बहुत कम मिलने वाली थी। इस सरकार ने परियोजना के फिर सर्वे और डीपीआर के लिए करीब 44 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे। प्राथमिक सर्वे का 70 प्रतिशत कार्य भी पिछले साल तक पूरा कर लिया गया था। यह जानकारी विधानसभा में डॉ. रमन सिंह के सवाल पर उस दिन रविंद्र चौबे की अनुपस्थिति में उमेश पटेल ने दी थी। पहले भी सर्वे में 12 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके थे। इस बार स्वीकृत 44 करोड़ रुपये में कितना खर्च हो गया, यह जानकारी सामने नहीं आई है। पर अब ताजा स्थिति यह है कि यह परियोजना पूरी तरह बंद कर दी गई है। तमाम सर्वेक्षण भी स्थगित कर दिए गए हैं। कोई एक वैकल्पिक बैराज बनाने की तैयारी हो रही है। बोधघाट पर निर्णय वहां के कांग्रेस सांसद और विधायकों की सलाह पर लिया गया है। जब तक इसके विरोध में विशेषज्ञ व विपक्ष के नेता बात कर रहे थे, सरकार ने ध्यान नहीं दिया। पर अब जब ऐसा लगा कि वाकई आदिवासी वोटर सशंकित हैं, तो चुनाव से पहले सरकार ने यू टर्न ले लिया।
खेत ही ओढऩा-बिछौना
किसान के पास मानसून शुरू होने के बाद एक पल की फुर्सत नहीं है। खेत में काम करते-करते दोपहर के भोजन का वक्त आ गया तो कीचड़ से सने हुए खेत पर ही बैठ गया। खाना खाने के बाद वह पीठ सीधी नहीं करेगा, फिर से काम पर लग जाएगा। जाने-माने छत्तीसगढ़ी कलाकार और अब भाजपा नेता भी, अनुज शर्मा ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है।
बाघिन की लाड़, शावक की मस्ती
कान्हा टाइगर रिजर्व में वन विभाग से अनुमति लेकर, कुछ नियमों कायदों का पालन करते हुए रात के वक्त न केवल जंगल सफारी की जा सकती है बल्कि तस्वीरें, वीडियो भी बनाए जा सकते हैं। नोमैड वाइल्डरनेस चैनल पर स्वच्छंद, निश्चिंत बाघिन और उसके शावक का एक छोटा सा खूबसूरत वीडियो शेयर किया गया है, जिसमें शावक अपनी बाघिन मां के शरीर को जगह जगह जीभ से फेर कर प्रेम उड़ेल रहा है। जवाब में बाघिन भी शावक को लाड़ देती है। दोनों पर कैमरे की भरपूर रोशनी पड़ रही है लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि वे इसके अभ्यस्त हैं। कान्हा टाइगर रिजर्व के गार्ड भी पर्यटकों को बताते हैं कि उन्हें किन नियमों का पालन करते हुए रात की सफारी करनी है।
ये पहल सब जगह होनी चाहिए
तमिलनाडु सरकार ने होटलों और लॉज मालिकों के लिए आदेश जारी किया है कि वे अनिवार्य रूप से अपने मेहमानों के ड्राइवरों के विश्राम के लिए बेडरूम की व्यवस्था करें।
तमिलनाडु आवास एवं शहरी विकास विभाग ने यह संशोधित आदेश पिछले सप्ताह जारी किया। आदेश में कहा गया है कि शयनगृह में बिस्तरों की संख्या होटल में गाडिय़ों के लिए दी गई पार्किंग की जगह के अनुपात में हो। यह भी कहा गया है कि ड्राइवर के लिए जो बिस्तर होंगे उसके चारों ओर चलने की जगह होनी चाहिए। यानि रूम इतने छोटे न हों कि ठीक तरह से पैर ही न फैल सकें। प्रत्येक आठ बिस्तर के लिए कम से कम एक बाथरूम और एक टॉयलेट अलग-अलग दिया जाना चाहिए। यह जगह या तो होटल परिसर में हो या फिर अधिकतम होटल से 250 मीटर की दूरी पर।
इस जरूरी मानवीय पहलू पर तमिलनाडु का ध्यान गया है। होटलों में पार्किंग स्थल हों, इसके लिए तो शहरी विकास विभाग समय-समय पर आदेश निकालता है। पर, यह ध्यान नहीं दिया जाता कि लंबी यात्रा में मेहमानों से ज्यादा थकान ड्राइवरों को होती है क्योंकि वे ही स्टेयरिंग संभालते हैं, उन्हें भी आराम चाहिए। जब वे अच्छी तरह विश्राम कर आगे की यात्रा पर निकलेंगे तो सडक दुर्घटनाओं की आशंका भी कम होगी। एक विशेषज्ञ का कहना है कि ड्राइवर न केवल वाहन चलाते हैं, बल्कि वे अर्थव्यवस्था के भी संचालक हैं। यदि उनको आराम के लिए अच्छी जगह मिलती है तो सडक़ सुरक्षा में सुधार होगा।
इसी से जुड़ा एक सवाल लंबी यात्रा करने वाले ट्रक ड्राइवरों का है। हाइवे के ढाबों, मोटल में खाने पीने की व्यवस्था होती है। वहां अतिरिक्त सुविधा के रूप में खाट और वाश रूम दे दिया जाता है। इसके लिए वे बाध्य नहीं हैं पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ये सुविधाएं देते हैं। घंटों ड्राइव करते हुए थक जाने के बावजूद ट्रक चालक गाडिय़ां चलाते हैं। ये भी सडक़ सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। इनको अनिवार्य रूप से विश्राम की सुविधा एनएच पर मिले, इसके लिए कोई नियम नहीं बना है। एनएच अथॉरिटी हाईवे के रास्ते पर बीच-बीच में ट्रकों को खड़ी करने की जगह छोड़ता है लेकिन वहां कोई और सुविधा नहीं होती।
पक्षियों के लिए टावर को ना..
फिंगेश्वर ब्लॉक के लचकेरा के ग्रामीणों ने अपने यहां मोबाइल टावर लगाने से मना कर दिया है। दरअसल, इस गांव में हर साल मानसून की शुरूआत में हजारों की संख्या में एशियन ओपन बिल स्टार्क पक्षी पहुंचते हैं। मोबाइल टावर गांव में नहीं लगने के कारण नेटवर्क मिलने में उन्हें थोड़ी परेशानी होती है पर पक्षियों को नुकसान पहुंचने की आशंका को देखकर उन्होंने टावर लगाने के लिए जगह देने से मना कर दिया है। हजारों किलोमीटर का सफर तय कर ये पक्षी इस बार फिर यहां पहुंच गए हैं। गांव के लोग इसकी देखभाल अपने बच्चों की तरह करते हैं। किसी ने इन्हें मारा या चोट पहुंचाई तो उसे अर्थदंड देने का नियम पंचायत ने बना रखा है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि ये पक्षी हमारे गांव में खुशहाली लाते हैं। ये खेतों से हानिकारक जीव जंतु और कीट पतंगों को खा जाते हैं। इनके मल में फास्फोरस, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड होते हैं जो फसल के लिए जैविक खाद का काम करता है।
केंद्र में छत्तीसगढ़ से मंत्री...
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा है। इसमें प्रदेश भाजपा के लोग छत्तीसगढ़ को और प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद से हैं। कहा जा रहा है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें छत्तीसगढ़ में अभी भी पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है, इसको लेकर केन्द्रीय नेतृत्व फिक्रमंद है। यही वजह है कि पार्टी यहां के सामाजिक और राजनीतिक समीकरण को साधने के लिए एक-दो नए चेहरों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे सकती है।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ से सरगुजा की सांसद रेणुका सिंह केन्द्र में अकेली मंत्री हैं। मगर अब तक वो कोई प्रभाव छोडऩे में विफल रही हैं। वो सरगुजा तक ही सीमित रह गई हैं। और तो और उनके अपने इलाके सरगुजा में पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं रह गई है। पहले पार्टी को दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के साथ छोडऩे से झटका लगा, और अब नाराज चल रहे टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाकर कांग्रेस ने भाजपा के रणनीतिकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सिंहदेव के देर सवेर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होने, और न होने की स्थिति में बाहरी मदद की अटकलें लगाई जा रही थीं।
सरगुजा में 14 विधानसभा की सीटों में भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है। यहां कांग्रेस अब भी मजबूत स्थिति में दिख रही है। ऐसे में भाजपा के भीतर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देकर पार्टी की स्थिति को मजबूत करने पर मंथन चल रहा है। चर्चा है कि रेणुका सिंह की जगह रायगढ़ की सांसद गोमती साय को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। गोमती साय को पार्टी के लोग रेणुका की तुलना में ज्यादा सक्रिय और मिलनसार मानते हैं।
दूसरी तरफ, ओबीसी चेहरे के रूप में विजय बघेल के नाम की भी चर्चा है। विजय काफी मुखर हैं, और सीएम भूपेश बघेल के नजदीकी रिश्तेदार हैं। वो विधानसभा चुनाव में एक बार भूपेश बघेल को हरा भी चुके हैं। विजय लोकसभा चुनाव में प्रदेश से सबसे ज्यादा वोट से जीते थे। इसके अलावा जांजगीर-चांपा से दूसरी बार के सांसद गुहा राम अजगल्ले का नाम भी उभरा है। अजगल्ले को मंत्री बनाकर अजा वोटों को साधने की कोशिश हो सकती है। इसी तरह राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का नाम भी चर्चा में है।
गौर करने लायक बात यह है कि छत्तीसगढ़ से केंद्र की अटल सरकार को छोडक़र बाद की सरकारों में एक मंत्री ही रहे हैं। यूपीए-1 में तो किसी को मंत्री नहीं बनाया गया था। जबकि उस समय मोतीलाल वोरा राज्यसभा, अजीत जोगी, और देवव्रत सिंह लोकसभा के सदस्य थे। अलबत्ता, यूपीए-2 में डॉ. चरणदास महंत को राज्यमंत्री के रूप में जगह दी गई। मोदी सरकार में भी अब तक यही परंपरा जारी रही। पिछली सरकार में विष्णुदेव साय मंत्री थे। और वर्तमान में रेणुका सिंह हैं। जबकि अटल सरकार में छत्तीसगढ़ से रमेश बैस, दिलीप सिंह जूदेव, और डॉ. रमन सिंह को मंत्री बनाया गया था। पार्टी के अंदर खाने में चर्चा है कि बदलाव के साथ-साथ यहां से एक से अधिक मंत्री हो सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नेवले से निपटने के बाद नाग
बारिश का मौसम शुरू हो चुका है। गांवों में सर्पदंश की घटनाएं सामने आ रही हैं और भिन्न-भिन्न प्रजातियों के सांप दिख रहे हैं। सांप से निपटने में सबसे कारगर जीव है नेवला। दोनों के बीच जाती दुश्मनी को देखते हुए कई लोग नेवला पालकर सांपों से अपना बचाव करते हैं। नेवला जब सांप को दबोच ले तो उसके शरीर को रस्सी के टुकड़ों की तरह काट डालता है। पर जरूरी नहीं हर बार नेवला भारी पड़े। कई बार वह सांप पर काबू पाने में विफल होता है तो अपनी लंबी सी दुम दबाकर भाग खड़ा भी होता है। यह मुंगेली जिले के तुलसीकापा गांव की तस्वीर है, जो 2 जुलाई को दोपहर 2 बजे ली गई। अपने स्वाभाविक प्राकृतिक आवास में रह रहे नाग पर नेवले ने अचानक हमला बोल दिया। पर नाग ने उसके छक्के छुड़ा दिए। नेवला भाग गया, नाग थककर आराम कर रहा है, साथ ही सतर्क भी है।
2024 के लिए प्रचार कर गए केजरीवाल
छत्तीसगढ़ में पैर जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान 2 जुलाई को बिलासपुर की जनसभा में शामिल हुए। केजरीवाल के पहले भगवंत मान और राष्ट्रीय महामंत्री सांसद संदीप पाठक ने तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरा पर केजरीवाल ने छत्तीसगढ़ के मुद्दे को छुआ ही नहीं। अपनी पार्टी की रीति-नीति के मुताबिक वे कांग्रेस-भाजपा दोनों को जरूर ‘लुटेरा’ कह रहे थे पर छत्तीसगढ़ सरकार के कामकाज पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की और न ही मुख्यमंत्री या किसी मंत्री पर कोई हमला किया। उनका तीन चौथाई भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्ट, अहंकारी और अनपढ़ बताने पर केंद्रित था। ज्यादा तीखी टिप्पणी कर सकें, इसके लिए उन्होंने एक राजा की कहानी के माध्यम से बात कही। केजरीवाल की बघेल और कांग्रेस के प्रति नरमी की लोगों में चर्चा रही। कुछ दिन पहले केजरीवाल ने जब समान नागरिक संहिता का समर्थन करने का ऐलान किया तो लोगों ने यह कयास लगाना शुरू कर दिया कि वे दिल्ली से जुड़े अध्यादेश पर केंद्र से कोई सौदेबाजी की कोशिश कर रहे हैं। पर, यहां के भाषण में सब उल्टा ही दिखा।
आप के एटीएम बनेंगे मान?
मिशन 2023 के लिए आम आदमी पार्टी की छत्तीसगढ़ इकाई ने अपने शीर्ष नेताओं के स्वागत की भव्य तैयारी की। बिना खलल पूरा कार्यक्रम सफल हो, इसके लिए वाटरफ्रूफ शामियाने का इंतजाम भी किया गया था। तैयारी कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले फीकी बिल्कुल नहीं थी। गाडिय़ों का काफिला भी उनके कार्यक्रमों की तरह नजर आ रहा था। केजरीवाल के साथ आए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की मौजूदगी ने कार्यकर्ताओं में और जोश भर दिया था। भाषण के दौरान मान ने रौ में एक लाइन और बोल दी, मंच पर बैठे संदीप पाठक की तरफ देखते हुए- आप पैसे की बिल्कुल चिंता मत करना। मान ने उस बात को दोहराया नहीं, न ही आगे पीछे कोई संदर्भ जोड़ा। इसलिये वे किस बारे में पाठक से यह कह गए, क्या अनायास ही मुंह से निकल गया? एक अटकल यह भी लगाई गई कि मान ने उनको चुनाव अभियान में संसाधनों की कमी नहीं होने का आश्वासन दिया है।
राजनाथ ये क्या कह रहे...
विधानसभा चुनाव के चलते एक के बाद एक केन्द्रीय मंत्री प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं, और प्रदेश के अलग-अलग जगहों पर सभाएं भी हो रही हैं। शनिवार को कांकेर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सभा हुई। उनकी एक और सभा बालोद में 30 तारीख को प्रस्तावित है। राजनाथ सिंह को ओजस्वी वक्ता माना जाता है, लेकिन इस बार का भाषण ज्यादातर कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आया।
राजनाथ सिंह छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश भाजपा के प्रभारी थे। वो तकरीबन पूरा छत्तीसगढ़ जा चुके हैं। स्थानीय बड़े नेताओं, और प्रमुख कार्यकर्ताओं को नाम से जानते हैं। उनसे उम्मीद थी कि वो छत्तीसगढ़ से जुड़े विषयों पर बात करेंगे। मगर उनका भाषण अमेरिका से फ्रांस और जर्मनी होते हुए भारत पहुंचा, और छत्तीसगढ़-सरकार पर काफी कम बातें कही।
भीड़ में ज्यादातर गांवों के लोग थे। जिन्हें भाषण काफी बोरिंग लगा, और भाषण के बीच में ही लोग निकलने लगे। अब जब राजनाथ का दोबारा दौरा प्रस्तावित है, तो इससे पहले ही बालोद के कई नेताओं ने प्रदेश के नेताओं से कह दिया है कि या तो राजनाथ जी की जगह किसी अन्य नेता का दौरा तय करें अथवा उन्हें (राजनाथ जी) अपना भाषण छत्तीसगढ़ पर ही केंद्रित करने का सुझाव दें। बालोद के नेताओं के इस सुझाव की खूब चर्चा हो रही है। देखना है कि बालोद के नेताओं के सुझाव पर अमल होता है या नहीं।
नान स्टाप एसी बसें क्यों नहीं?
देशभर में वंदेभारत ट्रेनों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों भोपाल में नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग रूटों पर एक साथ पांच वंदेभारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई। भोपाल से इंदौर की वंदेभारत में वे स्वयं मौजूद थे, बाकी जगह वर्चुअली उद्घाटन किया गया। इंदौर भोपाल में लोग सवाल उठा रहे हैं कि वे आखिर वंदेभारत में क्यों सफर करें। वजह इसका किराया 900 रुपये से अधिक है और बीच में एक स्टापेज भी है। दूसरी तरफ दिन भर इंदौर-भोपाल के बीच नान स्टाप एसी बसें चलती हैं। किराया लगभग एक तिहाई 330 रुपये है। भोपाल इंदौर के बीच की दूरी वंदेभारत 3 घंटे 10 मिनट में तय करती है जबकि एसी बसें 3 घंटे में ही पहुंचा देती हैं। इन सबके बावजूद वंदेभारत को यात्री नहीं मिलेंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ट्रेन का सफर लोग आरामदायक मानते हैं, कई लोग स्टेटस सिंबल के लिए भी इसमें सफर करते हैं। बिलासपुर से नागपुर के बीच चलने वाली वंदेभारत ट्रेन में पर्याप्त यात्री नहीं मिलने के कारण बोगियां 15 से घटाकर 8 कर दी गई हैं। रफ्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटे होने का दावा किया जाता है लेकिन औसत रफ्तार 85 से 90 किलोमीटर के बीच ही मिल रही है। अधिकतम 130 किलोमीटर की रफ्तार से इसे चलाया जा रहा है। बात यह भी उठती है कि बिलासपुर से रायपुर के बीच इंदौर भोपाल की तरह नान स्टाप एसी बसें क्यों नहीं चलाई जा रही है। प्रमुख मार्गों के लिए एसी बसें चलाने की योजना भाजपा सरकार के समय बनी थी। एक दो एसी बसें बिलासपुर रायपुर, रायपुर दुर्ग, रायपुर नागपुर के बीच चल रही हैं लेकिन वे नान स्टाप होने के बावजूद सवारियों के लिए रास्ते में रोक दी जाती हैं। यदि समयबद्धता का पालन करने के लिए बस चालकों पर नजर रखी जाए तो लोगों को एसी बसों में आरामदायक यात्रा कम खर्च में करने का मौका मिल सकता है।
गाड़ी नहीं सुधरी तो आगाह किया..
सागर, मध्यप्रदेश के इस व्यक्ति ने एक ओला इलेक्ट्रिक बाइक खऱीदी। समस्या आने पर उसने कंपनी को फोन किया, डीलर से संपर्क किया, पर उनको कोई सहायता नहीं मिली। किसी तरह बाहर से उन्होंने गाड़ी ठीक कराई। ओला की तौर-तरीके पर विरोध जताने के लिए गाड़ी के सामने उन्होंने लिखवा लिया- ले मत लेना।
हेलीकॉप्टर का मालिक बनेगा किसान
सफेद मूसली और काली मिर्च की खेती कर करोड़पति बने कोंडागांव के किसान राजाराम त्रिपाठी अब हेलिकॉप्टर खऱीदने जा रहे हैं। उनके मुताबिक यूं तो उन्हें इसकी खास जरूरत नहीं है पर युवा पीढ़ी को वे बताना चाहते हैं कि वे नौकरी के पीछे नहीं भागें। खेती में भी बहुत कमाई की जा सकती है। त्रिपाठी को उत्कृष्ट खेती के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। उनकी उन्नत खेती को देखने के लिए छत्तीसगढ़ ही नहीं, दूसरे राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं। चार सीटर हेलिकॉप्टर की कीमत करीब 7 करोड़ रुपये है, जिसके लिए हालैंड की एक कंपनी को एडवांस दिया जा चुका है। ([email protected])
जोगी पार्टी का विलय इस तरह टला
आखिरकार दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस का तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस में विलय टल गया। अब जनता कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि पार्टी सर्वआदिवासी समाज और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ेगी।
सब कुछ तय होने के बाद भी जनता कांग्रेस का बीआरएस में विलय क्यों नहीं हो पाया, इसको लेकर किस्से छनकर बाहर आ रहे हैं। बताते हैं कि अमित जोगी की चंद्रशेखर राव से चर्चा के बाद जनता कांग्रेस के 25 नेताओं का फ्लाइट से हैदराबाद जाने का कार्यक्रम तय हुआ था।
यही नहीं, 4 बस से जनता कांग्रेस के कार्यकर्ता हैदराबाद जाने वाले थे। मगर नियत तिथि के 4 दिन पहले ही बीआरएस के रणनीतिकारों ने जनता कांग्रेस के लोगों का फोन उठाना बंद कर दिया। इसके बाद विलय के कार्यक्रम को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी बीआरएस नेताओं का बदला रूख जनता कांग्रेस के नेताओं को समझ नहीं आया। इसके बाद जनता कांग्रेस के मुखिया अमित जोगी को बीआरएस में विलय नहीं करने का ऐलान करना पड़ा।
नए जिले नए मौके
विधानसभा चुनाव के चलते कांग्रेस नए जिलों, मानपुर-मोहला, खैरागढ़, बिलाईगढ़-सारंगढ़, मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी, और सक्ती में संगठन का ढांचा तैयार कर रही है। अगले कुछ दिनों में इन सभी जिलों में अध्यक्षों का ऐलान किया जा सकता है। इस सिलसिले में प्रदेश प्रभारी शैलजा की प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम, और सीएम भूपेश बघेल के साथ अन्य बड़े नेताओं से चर्चा हो चुकी है। चर्चा में कुछ प्रमुख नेताओं को जिला प्रभारी बनाने का भी फैसला हुआ है।
स्थानीय को महत्व का मौसम
प्रदेश भाजपा ने राष्ट्रीय नेताओं के स्वागत के लिए नई व्यवस्था बनाई है। किसी जिले में पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के आगमन पर स्वागत के लिए सिर्फ उसी संभाग के नेता ही रहेंगे। मसलन, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्?ा बिलासपुर आए तो स्वागत के लिए सिर्फ बिलासपुर संभाग के प्रमुख नेता ही थे। सिर्फ पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते हर जगह रहने की छूट है।
अमित शाह दुर्ग पहुंंचे, तो वहां भी दुर्ग संभाग के नेता ही स्वागत के लिए आए थे। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि नई व्यवस्था से स्थानीय प्रमुख नेताओं को राष्ट्रीय नेताओं से रूबरू होने का मौका मिल रहा है। साथ ही राष्ट्रीय नेता भी अन्य स्थानीय प्रमुख नेताओं से काफी कुछ जानकारी ले पा रहे हैं। कुल मिलाकर इससे एक अच्छा संदेश गया है।
हजारों शिकायतें, कार्रवाई जीरो
राजधानी रायपुर में रहते हुए यदि आप में चिड़चिड़ापन, क्रोध, हाई ब्लड प्रेशर, अनिद्रा और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं, सुनाई कम दे रहा हो तो अचरज की बात नहीं है। डायल 112 टीम ने पुलिस कप्तान को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें इसकी वजह छिपी है। पत्र बताता है कि 1 जनवरी 2023 से 13 जून 2023 तक डायल 112 को ध्वनि विस्तारक यंत्रों से प्रदूषण फैलने की दो चार नहीं बल्कि कुल 2241 शिकायतें मिलीं। अब इनमें कार्रवाई क्या हुई? पत्र में यह भी बताया गया है। संबंधित थाना क्षेत्रों से पुलिस टीम पहुंची, विस्तारक यंत्रों को तत्काल बंद करवाया गया और समझाया कि इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो।
हजारों शिकायतें आने के बावजूद पुलिस और प्रदूषण निवारण बोर्ड बहुत उदार है। वरना, कोलाहल अधिनियम नियम 1985 की धारा 15 (1) के तहत इसमें 6 माह तक के कारावास की अथवा 1000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है।
बुके (गुलदस्ते) बता रहे किसके कितने करीब
जबरदस्ती की पेनाल्टी
पैन कार्ड को आधार कार्ड के साथ लिंक कराने की अंतिम तिथि 30 जून को समाप्त हो गई। हजारों लोग इस प्रक्रिया को पूरी नहीं कर पाए। पहले सरकार ने बैंक खाते के साथ आधार कार्ड को अनिवार्य किया फिर पैन कार्ड के लिए जरूरी बताया। अब आधार कार्ड और पैन कार्ड को एक दूसरे से लिंक करना जरूरी किया गया है। इस प्रक्रिया को पूरी नहीं कर पाने वाले लोगों के लिए अब आगे एक हजार रुपए की फीस तय की गई है। यदि आयकर रिटर्न भरते हैं तो 10 हजार रुपए की पेनाल्टी भी देनी पड़ सकती है। मिडिल क्लास के वे लोग जो प्रयास के बावजूद लिंक नहीं करा पाए उनको पेनल्टी की बात नहीं जंच रही है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट ठप होने के पीछे उनकी गलती नहीं है फिर भी उन्हें जुर्माना देना पड़ेगा।
चुनाव से पहले भर पायेंगे पद?
शिक्षक भर्ती के लिए जारी प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। इससे मालूम होता है कि पीएससी की तरह व्यावसायिक परीक्षा मंडल भी युवाओं से खिलवाड़ करने के मामले में पीछे नहीं। यह सामान्य सी बात थी कि विज्ञापन सेवा भर्ती नियमों को ध्यान में रखते हुए जारी किया जाना था। 2019 में लागू नियम में अतिथि शिक्षकों को बोनस अंक देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। अतिथि शिक्षकों की ओर से यह मांग थी लेकिन बिना नियम बदले यह जोड़ा गया। इसके अलावा यह भी साफ करना जरूरी था कि किस विषय में कितने खाली पद हैं। दोनों पर नियम स्पष्ट हैं। भर्ती विज्ञापन जारी करने की प्रक्रिया में इन्हें लेकर त्रुटि होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। आरक्षण में 58 प्रतिशत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक मीटिंग ली थी और उसके बाद कहा था खाली पदों पर मिशन मोड में हजारों भर्तियां की जाएंगी। इसके बाद कई विज्ञापन जारी हो चुके और लगातार आगे निकल रहे हैं। पर शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन में बरती गई लापरवाही यदि आगे के विज्ञापनों में भी कायम रही तो फिर अगले चुनाव के बाद ही कुछ हो पाएगा। ([email protected])
हैडिंग देने वाला नेता...
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं में कुरूद के विधायक अजय चंद्राकर सबसे ही तीखी जुबान बोलने वाले हैं। वे सरकार और विधानसभा दोनों के कामकाज से सबसे अधिक वाकिफ लोगों में से एक हैं। उन्होंने टी.एस. सिंहदेव के उपमुख्यमंत्री घोषित किए जाने पर लिखा- माननीय टी.एस.सिंहदेव, उपमुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ (कांग्रेस शोषित) आपकी निष्ठा, सेवा, समर्पण का चार महीने के लिए गांधी परिवार ने बहुत शानदार मूल्यांकन किया है। भिश्ती राज की तरह आपको शायद एक दिन के लिए भी बना देते तो भी आप शायद अहसानमंद होते। आपको ढाई-ढाई साल की अफवाह उड़ाने की जरूरत नहीं थी।
उन्होंने इसके अलावा नंदकुमार साय पर भी बड़ा तेजाबी तंज कसा है जो कि पूरी जिंदगी भाजपा में रहकर अब कांग्रेस में चले गए हैं। इधर दिल्ली कांग्रेस ने सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया, उधर अगले ही दिन छत्तीसगढ़ में सिंहदेव वाले सरगुजा इलाके के ही नंदकुमार साय को सरकार ने मंत्री स्तर का निगम अध्यक्ष बना दिया। इस पर अजय चंद्राकर ने लिखा- बधाई साय जी, खून पिलाकर जो शेर पाला था, उसने सर्कस में नौकरी कर ली।
आज उन्होंने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बारे में लिखा है कि कांग्रेस का जो सर्कस चल रहा है उसमें अब भूपेश बघेल निर्विवाद रिंगमास्टर हो गए हैं। अब सर्कस के सभी ‘‘.......’’ उनके ही इशारों पर करतब दिखाएंगे।
कुल मिलाकर मीडिया को जब अजय चंद्राकर से बात करनी होती है तो खबर में हैंडिंग ढूंढने में दिक्कत नहीं होती।
बड़ा मैदान तो ठीक है, लेकिन भीड़ ?
केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के शनिवार को कांकेर की प्रस्तावित सभा को लेकर भाजपा में किचकिच चल रही है। पार्टी के अनुभवी स्थानीय नेताओं ने पहले सभा स्थानीय मेला ग्राऊंड में कराने का फैसला लिया था। सब कुछ उसी अनुरूप तैयारी चल रही थी। इसी बीच तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, और पवन साय ने सभा स्थल बदलकर नरहरदेव स्कूल मैदान तय कर दिया।
पहले सभा स्थल छोटा था, और इसमें 15-20 हजार लोगों की क्षमता थी। अब जिस नरहरदेव स्कूल मैदान में सभा होनी है, और वहां एक लाख लोग आसानी से आ सकते हैं। मगर इतनी भीड़ जुटाना पार्टी नेताओं के लिए टेढ़ी खीर है। कुछ पुराने नेता बताते हैं कि कांकेर के लोग बस्तर के बाकी विधानसभा क्षेत्र की तुलना में ज्यादा जागरूक हैं। यहां तो नरेन्द्र मोदी की सभा भी फ्लॉप हो चुकी है। वह भी तब जब मोदी की लोकप्रियता 2014 में पूरे शबाब पर थी। पिछले विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव की सभा में तो 20-25 लोग ही थे। उनसे ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात थे।
बताते हैं कि कुछ प्रमुख नेताओं ने वस्तु स्थिति से जामवाल को अवगत कराया। इसके बाद प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से प्रमुख नेताओं को बुलाकर सभा को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी गई। अब भीड़ कम न दिखे, यह सोचकर मैदान का आधा हिस्सा पार्किंग आदि के लिए बना दिया गया है। फिर भी बारिश के मौसम में 20-25 हजार की भीड़ लाना भी आसान नहीं है। अब देखना है कि सभा में अपेक्षाकृत भीड़ जुट पाती है अथवा नहीं।
जंगल में अफसरों का मंगल
वन विभाग में दो डीएफओ व दो-तीन रेंजरों के वित्तीय अधिकार वापस लेने, और फिर बाद में फैसले को पलटने के आदेश से काफी हलचल है। यही नहीं, एक महिला डीएफओ पर रेंजर ने तो लाखों रुपए की बेगारी कराने का आरोप लगाकर थाने तक चले गए। एक के बाद एक विभाग में भ्रष्टाचार के प्रकरण आने से सरकार के रणनीतिकार भी चिंतित हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ये सारी गड़बडिय़ां विभागीय अफसरों की आपसी खींचतान की वजह से उजागर हुई हैं। चर्चा है कि खुद दाऊजी ने प्रभारी पीसीसीएफ से बातचीत की है, और इन गड़बडिय़ों को लेकर उन्हें चेताया भी है। हल्ला तो यह भी है कि इन गड़बडिय़ों के चलते ही पीसीसीएफ की डीपीसी रूक गई है। जबकि कागजी कार्रवाई पूरी कर डीपीसी के लिए फाइल हफ्तेभर पहले सीएस को भेजी जा चुकी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सीजी पुलिस को सीखने की जरूरत
सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो पर मुंबई पुलिस ने जो कार्रवाई की वह यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों को तो सबक सिखाती ही है, छत्तीसगढ़ और देश के दूसरे राज्यों की पुलिस भी सीख ले सकती है। 40 साल के एक शख्स ने अपने स्कूटर पर 7 बच्चों को बैठाया और भीड़ भरी सडक़ पर निकल गया। पीछे चल रहे एक दूसरे व्यक्ति ने उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया और लिखा- यह गैर जिम्मेदार पागल एक स्कूटर पर 7 बच्चों के साथ सवारी कर रहा है। बच्चों की जान जोखिम में डालने के लिए उसे तुरंत गिरफ्तार करना चाहिए और इन बच्चों के माता-पिता पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए। यूजर ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर और मुख्यमंत्री को अपना ट्वीट टैग किया। इलाके की पुलिस एक्शन में आई। उसने आरोपी के खिलाफ मोटरयान अधिनियम के अलावा गैर इरादतन हत्या के प्रयास का अपराध आईपीसी 308 दर्ज किया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया, कोर्ट ने उसे जमानत नहीं दी, जेल भेज दिया गया।
छत्तीसगढ़ की बात करें इन दिनों बर्थडे पार्टी और नेताओं के स्वागत में सडक़ों पर झूमते गाते चार पहिया दोपहिया सवार दिखाई देते हैं, प्रेमी जोड़े बाइक पर ही जिमनास्टिक करते हैं। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस खोजबीन करके ऐसे कुछ मामलों में कार्रवाई भी कर रही है। दूसरी हाल के दिनों में प्रदेश के किसी भी जिले की बड़ी दुर्घटना पर नजर डालिए। ट्रैक्टर ट्राली, मालवाहक मिनी डोर आदि वाहनों में सामान की तरह सवारी ढोए जाते हैं। एक साथ 4, 6 या 10 मौतें हो रही हैं। याद नहीं आता कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने कभी दुर्घटनाओं के बाद भी ऐसी गाडिय़ों के चालकों और मालिकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 308 का इस्तेमाल किया हो। मुंबई पुलिस ने तो दुर्घटना हुए बिना ही यह कार्रवाई कर दी और आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। अपने प्रदेश में रोजाना थाना, एसपी और कलेक्टर ऑफिस के सामने से, पुलिस गश्त वाले चौक चौराहे से लोगों से लदी मालवाहक गाडिय़ां गुजरती हैं। यदि पुलिस इन सब पर मुंबई पुलिस की तरह, नजराना लेने के बजाय कार्रवाई शुरू कर दे तो सडक़ दुर्घटनाओं में काफी हद तक कमी आ जाएगी।
साहू के लिए साव की हमदर्दी
सन् 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे। उनमें भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के अलावा ताम्रध्वज साहू का नाम भी था। उस वक्त ऐसी चर्चा चली थी कि उनके समाज के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी ताम्रध्वज को फाइनल कराने लॉबिंग कर रहे थे। पर बाद में वे रेस से बाहर हो गए। बघेल के शपथ ग्रहण के साथ ही चर्चा चल रही थी कि क्या मंत्रिमंडल में एक या दो डिप्टी सीएम होंगे, पर ऐसा हुआ नहीं।
इधऱ सिंहदेव को उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा नेताओं की लगातार प्रतिक्रिया आ रही है। इसी दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव का बयान आया है। वे कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार तो ताम्रध्वज भी थे। उनसे क्या गलती हो गई जो उन्हें डिप्टी सीएम बनने का मौका नहीं मिला?
साव की इस हमदर्दी की वजह है। बीते विधानसभा चुनाव में साहू समाज के वोट भी पिछड़ा वर्ग के बाकी मतों की तरह कांग्रेस के साथ आ गए थे, जबकि भाजपा मानती है कि साहू समाज उनके साथ रहता आया है। 2018 में भाजपा ने साहू समाज के 14 प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन इनमें से केवल एक धमतरी सीट पर रंजना साहू को जीत मिल सकी बाकी 13 हार गए। इनमें तब के विधायक चंद्रशेखर साहू, अशोक साहू जैसे वरिष्ठ नेता भी थे। प्रदेश में अगर 52त्न ओबीसी वोट हैं तो उनमें 22त्न साहू समाज का कहा जाता है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव भी साहू समाज से आते हैं। दो दशक से अधिक समय तक प्रदेश साहू समाज के अध्यक्ष रहे ताम्रध्वज की अपने समाज में अच्छी पैठ है। उन्हें डिप्टी सीएम नहीं बनाकर कांग्रेस ने साहू समाज की उपेक्षा की, साव का यही संदेश दिखाई पड़ता है कि उनके समाज के लोग पहले की तरह बीजेपी की ओर लौट आएं।
टमाटर के जवाब में कमरख
हर किसी का भाव एक दिन गिरता है, फिर ऊपर भी उठता है। कभी 5 -10 रुपए में मिलने वाला टमाटर अभी 100 और 120 रुपये किलो पहुंच गया है। सितंबर से फिर दाम गिरने लगेंगे। इस वक्त तो लोग बताने लगे हैं कि बारिश के दिनों में टमाटर नहीं खाना चाहिए, कई तरह की बीमारी हो जाती है। कुछ लोगों ने टमाटर का विकल्प भी सुझाया है। यह है कमरख, जिसे स्टार फ्रूट भी कहा जाता है। यह औषधीय फल में गिना जाता है। हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, वात रोग में कारगर है। इसे अलग से भी खाया जा सकता है, सब्जी में मिलाने से टमाटर की कमी दूर भी की जा सकती है। कीमत सिर्फ 10 से 15 रुपये किलो है। पर यह फल हर जगह नहीं मिलता। जंगलों में होता है। वहां से जहां तक के बाजारों में पहुंच जाए, उपलब्ध रहता है। यह तस्वीर पेंड्रा रोड के एक किसान के बगीचे से ली गई है।
एक पदाधिकारी मुद्दा बन गया !!
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रवि घोष की एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसमें वो माना एयरपोर्ट पर टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनने पर बधाई देते, और चरण छूकर आशीर्वाद लेते नजर आ रहे हैं। रवि घोष के संगठन में दायित्व को लेकर प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद की स्थिति बनी हुई है।
सुनते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम चाहते हैं कि रवि घोष को राजीव भवन के कामकाज से मुक्त कर बस्तर संभाग का प्रभार दिया जाए। उन्होंने आदेश निकाल भी दिया था, लेकिन प्रदेश प्रभारी सैलजा ने हस्तक्षेप कर आदेश को फिलहाल रूकवा दिया। रवि घोष, मरकाम के करीबी रहे हैं। मरकाम ने ही प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कोंडागांव से यहां बुलाकर उन्हें महामंत्री (प्रशासन) का दायित्व सौंपा था।
रवि घोष जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं, और उन्हें पार्टी के कई लोग अच्छा संगठनकर्ता भी मानते हैं। मगर संगठन के भीतर ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि रवि घोष की ज्यादा जरूरत बस्तर में है। सालों से वो मरकाम के विधानसभा चुनाव का संचालन करते आए हैं। उनके नहीं रहने से मरकाम का चुनाव प्रबंधन गड़बड़ा सकता है। जबकि सीएम खेमा उन्हें बस्तर भेजने के पक्ष में नहीं है।
चर्चा है कि रवि घोष खुद भी रायपुर में ही रहना चाहते हैं। बस, इन्हीं सब वजहों से पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच किचकिच चल रही है। अभी तो रवि घोष का प्रभार बदलने का आदेश रुक गया है, लेकिन आगे क्या कुछ बदलाव होता है यह देखना है।
सिंहदेव के बनते ही साय भी...
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय को कांग्रेस में आने के बाद दो माह के भीतर सीएसआईडीसी चेयरमैन का पद दे दिया गया। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। साय को कुछ न कुछ तो मिलना ही था। यह भी संयोग है कि टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के साथ ही साय को भी पद दिया गया। दोनों ही सरगुजा से आते हैं। वैसे तो नंदकुमार साय जशपुर के रहने वाले हैं, लेकिन सरगुजा के सांसद भी रह चुके हैं।
साय विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं, लेकिन शायद पार्टी के भीतर उनके टिकट को लेकर एकमत न बने। क्योंकि जशपुर जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, और विधायक की टिकट काटकर भाजपा से आए नेता को प्रत्याशी बनाना जोखिम भरा भी हो सकता है।
ऐसे में उन्हें साथ रखने के लिए जिम्मेदारी तो मिलनी ही थी। इसके अलावा वो सरकारी बंगले में काबिज हैं। किसी पद पर न होने के बावजूद उनसे बंगला खाली नहीं कराया गया था। अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हो गया है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर वो बंगला रखने के पात्र हो गए हैं। साय को कांग्रेस में लाने में बस्तर सांसद दीपक बैज की भूमिका अहम रही है।
डिप्टी सीएम पद की संवैधानिक स्थिति
संविधान में केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप-मंत्री पदों का प्रावधान तो है लेकिन उप-मुख्यमंत्री पद का कोई जिक्र नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने क लिए एक मंत्री परिषद् होगी, जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा। अनुच्छेद 164 के मुताबिक राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे, साथ ही मुख्यमंत्री की सलाह पर ही मंत्रिपरिषद् में केबिनेट, राज्य और उप-मंत्री नियुक्त करेंगे। राज्यपाल और संविधान की दृष्टि में कोई उप-मुख्यमंत्री मंत्रि परिषद् के एक सदस्य से अधिक नहीं हैं। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति और व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होता हैं। राज्यपाल किसी को उप मुख्यमंत्री पद की अलग से शपथ भी नहीं दिलाते, वे केबिनेट मंत्री के रूप में ही शपथ लेते हैं।
प्रतीकात्मक होने के बावजूद पद में मुख्यमंत्री शब्द आ जाता है जिससे उप-मुख्यमंत्री को बाकी मंत्रियों से ऊपर और मुख्यमंत्री के ठीक बाद का ओहदा मान लिया जाता है। विभिन्न दल राजनीतिक, क्षेत्रीय, जातिगत संतुलन बनाने के लिए उप-मुख्यमंत्री पद का सृजन करते हैं और इसका लाभ भी मिलता है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव के समर्थकों के बीच जश्न इसीलिये मनाया जा रहा है कि उनके साथ यह पदनाम जुड़ गया। राज्य बनने के बाद यह सिंहदेव पहले उप-मुख्यमंत्री पर छत्तीसगढ़ के दूसरे नंबर के हैं। संयुक्त मध्यप्रदेश में जब 1993 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी, तब रामपुर (कोरबा) से 6 बार विधायक रहे प्यारेलाल कंवर उप-मुख्यमंत्री बनाये गए थे। तब उनके पास वित्त और आदिम जाति कल्याण विभाग की जिम्मेदारी थी।
राजीव शुक्ला के होते हुए...
नया रायपुर का शहीद वीरनारायण अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम देश का तीसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है, जिसकी क्षमता 65 हजार लोगों के बैठने की है। दुनिया का यह चौथा सबसे बड़ा स्टेडियम भी है। मध्य भारत में तो इससे बड़ा कोई स्टेडियम नहीं। 2010 में यहां पहली बार कनाडा और छत्तीसगढ़ का एक फ्रैंडली मैच हुआ था। सन् 2013 में आईपीएल का एक मैच हुआ। पहला अंतर्राष्ट्रीय वन डे क्रिकेट इसी साल भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ जिसमें भारत की जीत हुई। यहां रोड सेफ्टी वर्ल्ड क्रिकेट भी हुआ था। प्रत्येक आयोजन यहां सफलता के साथ हुआ था। मेहमान खिलाडिय़ों तथा एसोसिएशन ने इसकी तारीफ भी की। इस बार भारत में 5 अक्टूबर से 12 नवंबर तक क्रिकेट वर्ल्ड कप होने जा रहा है, जिसमें 12 स्थानों पर 48 मैच होंगे। पर नया रायपुर के इतने महत्वपूर्ण स्टेडियम का नाम इस सूची में नहीं है। मोहाली सहित पंजाब में एक भी मैच तय नहीं करने पर वहां के क्रिकेट एसोसियेशन ने गहरी नाराजगी जताई है। तिरूअनंतपुरम् में मैच तय नहीं करने पर वहां के सांसद शशि थरूर ने भी आपत्ति दर्ज कराई है। मई महीने में खबर चली थी कि एक मैच नया रायपुर में होने जा रहा है लेकिन जून में जब आईसीसी ने सूची जारी की तो नाम गायब था। जिन शहरों में मैच हो रहे हैं वे हैं- अहमदाबाद, बेंगलूरू, चेन्नई, दिल्ली, धर्मशाला, लखनऊ, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता और मुंबई। कई लोग इसे राजनीति से जोडक़र भी देख रहे हैं। जहां भाजपा शासित राज्य है, वहां की कम क्षमता और सुविधा वाले स्टेडियम भी तय कर दिए गए हैं। बीसीसीआई के पदाधिकारियों के हिसाब से भी जगह तय किए गए हैं। यह आरोप पंजाब क्रिकेट एसोसियेशन ने खुलकर लगाया भी है। अहमदाबाद में ओपनिंग सहित 6 मैच होने वाले हैं, जहां स्टेडियम का नाम ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर है, फिर जय शाह भी वहीं से आते हैं। छत्तीसगढ़ के लोग भी उम्मीद कर रहे थे कि बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में पहुंचे हैं तो कम से कम एक मैच यहां कराने के लिए जोर दे सकते थे।
देशभर में ईडी...
मोदी सरकार की दूसरी पाली में ईडी की धमक देशभर में सुनाई दे रही है। ईडी ने पिछले चार साल में कुल 7 सौ से अधिक केस दर्ज किए हैं। इनमें से राजनेताओं पर कुल 180 केस दर्ज हुए हैं। छत्तीसगढ़ में भी ईडी की कार्रवाई तेज रफ्तार से चल रही है। यहां अभी सिर्फ 3 नेताओं पर ही कार्रवाई हुई है। इनमें कांग्रेस विधायक द्वय देवेन्द्र यादव, चंद्रदेव राय, और प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल हैं।
हालांकि कई और नेताओं के यहां ईडी ने जांच पड़ताल की है। लेकिन अभी किसी और खिलाफ प्रापर्टी अटैच, या गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई नहीं की है। विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए हैं। राजनीतिक हल्कों में ये चर्चा है कि आने वाले दिनों में ईडी कई और को निशाने पर ले सकती है। चर्चा है कि ईडी ने जांच के लिए कुछ नए सेक्टर खोज लिए हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ हो सकता है।
धरसीवां में एक अनार सौ बीमार
विधानसभा चुनाव में चार महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में भाजपा में रायपुर शहर से सटे धरसींवा विधानसभा में टिकट के लिए दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। दावेदार एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत भी कर रहे हैं। पिछले दिनों रायपुर ग्रामीण जिलाध्यक्ष अनिमेश कश्यप (बॉबी) को हटा दिया गया। हटाने की एक वजह दावेदारों की शिकायत भी थी।
अनिमेष को धरसींवा से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। इससे परे पूर्व विधायक देवजी पटेल की स्वाभाविक दावेदारी है। रायपुर से अंजय शुक्ला भी धरसींवा में सक्रिय हैं, और वो भी टिकट मांग रहे हैं। इसके अलावा पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा भी धरसींवा से टिकट चाहते हैं। इनके अलावा अशोक सिन्हा, दिलेन्द्र बंछोर सहित कुछ कारोबारियों की नजर भी धरसींवा सीट पर है। यहां दावेदारों में इतनी खींचतान है कि कुछ लोग तो सामूहिक इस्तीफा दे चुके हैं। कहा जा रहा है कि धरसींवा से प्रत्याशी तय करने में पार्टी को सबसे ज्यादा मुश्किल आ सकती है।
एनएच पर खड़े यमराज..
शायद ही कोई दिन गुजरता हो छत्तीसगढ़ में भारी वाहनों के कारण सडक़ दुर्घटनाएं न होती हों। इसके लिए जरूरी नहीं कि वह सडक़ पर दौड़े, खड़े होने पर भी जान-माल की हानि हो सकती है। यह राजधानी रायपुर की सडक़ है जहां शहर के भीतर नो पार्किंग पर खड़ी दोपहिया गाडिय़ों, कारों का रोज चालान कर पुलिस प्रेस नोट जारी करती है। वहीं नेशनल हाईवे पर भाटागांव के सामने रात में कतार में ट्रकों को इस तरह से खड़ा कर दिया गया है मानो वह पार्किंग की जगह हो। रोजाना यही हाल होता है।
‘बस्तर’ एजेंडे वाली फिल्म तो नहीं?
इस साल जनवरी माह में रायपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस लेकर मुंबई की एक प्रोडक्शन कंपनी डी. सोनी ने झीरम हमले पर फिल्म बनाने की घोषणा की थी। यह फिल्म कांग्रेस नेताओं की नक्सली हिंसा में मारे जाने की घटना पर आधारित होने की बात कही गई थी। छत्तीसगढ़ में भी इसकी शूटिंग होनी थी, पर यह अभी किस मुकाम पर पहुंची है, कोई घोषणा नहीं की गई है। हो सकता है अचानक विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रिलीज हो जाए। पर जब तक निर्माता –निर्देशक इस बारे में नहीं बताएंगे, कुछ नहीं कहा जा सकता।
इधर ‘द केरला स्टोरी’ की निर्माता कंपनी सनशाइन प्रोडक्शन की ओर से सोशल मीडिया पर ऐलान किया गया है कि वे बस्तर पर फिल्म बनाएंगे। घोषणा के साथ ही इसके रिलीज की तारीख भी घोषित कर दी गई है- 5 अप्रैल 2024। फिल्म की पटकथा क्या है इस पर कोई घोषणा नहीं की गई है लेकिन पोस्टर में कहा गया है कि- एक छिपा हुआ सच, जो देश में तूफान लेकर आएगा।
इसके पहले लाल सलाम (नंदिता दास), रेड अलर्ट (सुनील शेट्टी, समीरा रेड्डी), चक्रव्यूह (प्रकाश झा), बुद्धा इन ट्रैफिक जाम ( विवेक अग्निहोत्री), न्यूटन (राजकुमार राव) जैसी कुछ फिल्में आ चुकी हैं जिनमें अलग-अलग कोण से बस्तर की माओवादी समस्या का जिक्र है। अब तक बस्तर के सभी पहलुओं को किसी एक फिल्म में समेट पाना किसी भी निर्माता के लिए मुमकिन नहीं हो पाया, है भी नहीं।
द केरला स्टोरी के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह और निर्देशक सुदीप्तो सेन विवादों में घिरे हुए हैं। उन्होंने इस फिल्म के टीजऱ में दावा किया गया कि केरल की 32 हजार लड़कियों का धर्मांतरण कर दिया गया और सीरिया ले जाकर उन्हें आतंकियों के संगठन में भर्ती करा दिया गया। कर्नाटक चुनाव के पहले यह फिल्म रिलीज हुई थी। केरल सरकार ने इस फिल्म को रिलीज करने पर रोक लगाई। कहा कि यह उनके प्रदेश की छवि खराब करने के लिए बनाई गई फिल्म है। कई काउंटर तथ्य सामने रखे जाने के बाद 32 हजार लड़कियों की लाइन वापस लेनी पड़ी। पता चला कि सिर्फ दो चार लड़कियों का मामला है। द केरला स्टोरी फिल्म का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में भी किया। फिल्म रिलीज करने की टाइमिंग और कई गलत तथ्यों के चलते निर्माताओं पर आरोप लगा कि यह फिल्म खास एजेंडे से बनाई गई है। अब इन्हीं निर्माताओं की फिल्म बस्तर, ठीक लोकसभा चुनाव से पहले आ रही है। निर्माताओं ने छिपा हुआ सच सामने लाने का दावा किया है। फिल्म निर्माताओं ने जरा भी संकेत नहीं दिया है कि वे किस पहलू को फिल्म में दिखाने वाले हैं। क्या सुरक्षा बलों और नक्सलियों की ज्यादती पर आधारित होगी, तालमेटड़ा और झीरम जैसी घटनाओं पर होगी या फिर अभी धर्मांतरण पर?
पहला ट्राइबल इंटरनेशनल क्रिकेटर
जशपुर के खिलाडिय़ों ने खेलों में राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाया है। हॉकी और फुटबाल में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने प्रदेश का नाम ऊंचा किया है। अब व्यावसायिक क्रिकेट में भी उनकी इंट्री हो रही है। जशपुर के प्रशांत पैकरा काफी समय से बतौर गेंदबाज छत्तीसगढ़ की टीमों में खेल रहे हैं। इसी सिलसिले में वे अंडर 25 वन डे ट्रॉफी खेलने के लिए मुंबई गए थे। वहां मुंबई इंडियंस कंपनी के स्काउट ने उन्हें देखकर सपोर्ट बॉलर के रूप में चुन लिया है। प्रशांत दायें हाथ के गेंदबाज हैं और 135 किलोमीटर की रफ्तार से गेंद फेंक सकते हैं। उन्हें ट्रेनिंग के लिए इंग्लैड भेजा जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद मुंबई इंडियंस की ओर से खेलने की पूरी संभावना है और तब वे पहले आदिवासी इंटरनेशनल खिलाड़ी हो जाएंगे। उनके साथ रांची के ही आदिवासी युवक रॉबिन मिंज को भी चुना गया है वे भी इंग्लैंड प्रशिक्षण लेने इंग्लैंड जाएंगे।
ओहदे से परे भी ताकत होती है...
वन विभाग में अफसरों के बीच आपसी खींचतान चल रही है। पड़ोस के वन मंडल में तो सीसीएफ ने एक शिकायत पर डीएफओ के वित्तीय अधिकार छीन लिए। आदेश जारी हुए 48 घंटे नहीं हुए थे कि डीएफओ के वित्तीय अधिकार को मुख्यालय ने बहाल कर दिया। ऐसा नहीं है कि शिकायत गंभीर नहीं थी। बल्कि सीसीएफ को डीएफओ की ताकत का अंदाजा नहीं था।
सुनते हैं कि डीएफओ एक राजनीतिक दल के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नजदीकी रिश्तेदार हैं। राष्ट्रीय पदाधिकारी कई बार रायपुर आ चुके हैं, और पार्टी कार्यक्रम निपटने के बाद दामाद से भी मिलने जाते रहे हैं। विभाग के ज्यादातर प्रमुख अफसरों को इसकी जानकारी है। सिर्फ सीसीएफ ही इससे अनभिज्ञ थे। फिर क्या था, शीर्ष अफसरों ने हस्तक्षेप किया, और डीएफओ को वित्तीय अधिकार वापस करने में देर नहीं लगाई।
पोस्टर पर चेहरा भले न हो, लड़ेंगे...
भाजपा ने भले ही मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। पार्टी के रणनीतिकार यह भी साफ कर चुके हैं कि सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा। बहुमत मिलने पर विधायक दल में ही नेता का चुनाव किया जाएगा। ऐसे में 15 साल सीएम रहे डॉ. रमन सिंह के चुनाव लडऩे को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थी। लेकिन पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने दो दिन पहले अपने विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में मीडिया कर्मियों से अनौपचारिक चर्चा में संकेत दिए, कि वो विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे।
पूर्व सीएम ने मीडियाकर्मियों के साथ लंच भी किया, और राजनांदगांव के विकास के लिए उनकी सरकार में किए गए कार्यों का ब्यौरा भी दिया। पूर्व सीएम ताल ठोककर चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं, और उनके करीबी समर्थकों ने ग्रामीण इलाकों में वाल पेंटिंग शुरू भी कर दिया है। अब पूर्व सीएम चुनाव लड़ेंगे, तो वो स्वाभाविक तौर पर अघोषित सीएम का चेहरा हो जाएंगे। अब पार्टी में सीएम पद के दूसरे दावेदार, और रमन विरोधी नेताओं का क्या रूख रहता है, यह तो चुनाव के नजदीक आते-आते पता चल जाएगा।
सरकार पर कर्मचारियों का दबाव
राज्य सरकार के अधीन काम कर रहे अनियमित और संविदा कर्मचारियों को नियमित करना कांग्रेस की चुनावी घोषणाओं से एक था, जो अब तक अधूरी है। ? ऐसी कर्मचारियों की संख्या करीब 45 हजार है। दैनिक वेतन भोगी और अन्य अस्थायी कर्मचारियों को जोडऩे पर उनकी संख्या एक लाख 80 हजार तक पहुंच रही है। नियमित करने की मांग पर संविदा कर्मचारी लगातार आंदोलन चला रहे हैं। इसी माह उन्होंने प्रदेश भर में एक महीने लंबी रथयात्रा भी जगह जगह निकाली। 8 माह पहले भूपेश सरकार ने इस दिशा में थोड़ी कार्रवाई शुरू की। उसने सामान्य प्रशासन विभाग से सभी विभागों से डाटा एकत्र करने के लिए कहा था। सरकार के करीब 42 विभाग हैं, जिनमें से 20 विभागों की जानकारी जीएडी के पास आ चुकी है लेकिन 22 विभागों से कोई ब्यौरा नहीं मिला है। आंदोलनरत कर्मचारियों की चिंता है कि यदि यही रफ्तार रही तो उनकी मांगे आचार संहिता लागू होने के पहले पूरी ही हो पाएगी भी या नहीं? दरअसल जीएडी के पास सूची आ जाने के बाद भी वरिष्ठता क्रम तय करने और वित्त विभाग से मंजूरी लेने की प्रक्रिया बची रहेगी। कई कर्मचारी ऐसे हैं जो पूरी नौकरी अनियमित या संविदा कर्मचारी के रूप में कर चुके और कुछ बरस बाद उनके रिटायरमेंट का समय आ जाएगा।
दूसरी ओर रेगुलर कर्मचारी संगठनों का फेडरेशन भी 7 जुलाई को तालाबंदी आंदोलन करने जा रहा है। एक अगस्त से उन्होंने बेमियादी हड़ताल की घोषणा कर दी है। उनकी चार स्तरीय वेतनमान, पिंगुआ कमेटी की रिपोर्ट और सातवें वेतनमान में संशोधित गृह भाड़ा तथा केंद्र के समान महंगाई भत्ता देने जैसी मांगें हैं।
यह भी सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। चुनाव मैदान में उतरने से पहले कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी कि अधिकारी कर्मचारी उनसे नाराज चलें। देखना है कि इन दबावों के बीच सरकार क्या कदम उठाती है।
महुआ पेड़ों पर मंडराता संकट
महुआ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य भारत ?के कई राज्यों में आदिवासियों के जीविकोपार्जन का बहुत बड़ा माध्यम है। आदिवासी परिवारों में संपत्ति का जब बंटवारा होता है तो इन पेड़ों को भी गिना जाता है। अभी तो छत्तीसगढ़ के जंगल महुआ पेड़ों से मुक्त नहीं दिखाई देते हैं, मगर ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का शोध जरूर चिंताजनक है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान के चलते महुआ पेड़ की जो औसत आयु 8 से 15 वर्ष की होती थी, वह घट रही है। बीजों पर इसका क्या असर हुआ है इस पर शोध करना बचा है। और पेड़ों की आयु को धीरे धीरे कम हो रही है। इस नुकसान के लिए सरकार को कानून बनाने की भी जरूरत पर यह वैज्ञानिक बल देते हैं।
कुछ बरस पहले एक और शोध छपा था, जिसमें इस बात पर चिंता जताई गई थी कि पहले महुआ और जामुन जैसे पेड़ों से जंगल आबाद दिखाई देते थे लेकिन अब स्वाभाविक रूप से इनके उगने की रफ्तार कम हो गई है। लोग भी इन पेड़ों को कम लगा रहे हैं। क्योंकि इसे तैयार करने में ज्यादा श्रम और देखभाल की जरूरत पड़ती है।
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि वह 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी करती है। मगर ये वनोपज भविष्य में भी जंगल में रहने वालों की आजीविका के स्रोत बने रहेंगे, इस पर शासन स्तर पर शायद ही कोई अध्ययन हो रहा हो। ([email protected])