राजपथ - जनपथ
जिलाध्यक्ष कैसे लड़ेंगे
कांग्रेस ने विधानसभा प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दावेदारों से आवेदन बुलाए गए हैं। दावेदार पहले ब्लॉक में आवेदन करेंगे, और फिर जिलों में कमेटी दावेदारों का पैनल तैयार कर प्रदेश को भेजेगी। अब पार्टी के अंदरखाने में प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। वजह यह है कि कई जिलाध्यक्ष खुद टिकट के दावेदार हैं। यह पूछा जा रहा है कि दावेदार जिलाध्यक्षों के रहते पैनल कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं।
बताते हैं कि आधा दर्जन से अधिक जिलाध्यक्ष विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। पहले यह बात उठी थी कि जो जिलाध्यक्ष चुनाव लडऩा चाहते हैं उन्हें पद से इस्तीफा देना होगा। पिछले चुनाव से पहले कई जिलाध्यक्षों ने इस्तीफा भी दिया था। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रदेश की कार्यकारिणी अटकी पड़ी है, और इसी बीच प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
कहा जा रहा है कि रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, धरसींवा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसी तरह राजनांदगांव शहर, और ग्रामीण के जिलाध्यक्ष भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। दुर्ग ग्रामीण, भिलाई शहर, बिलासपुर ग्रामीण, मुंगेली, बलौदाबाजार, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बालोद, और कांकेर के जिलाध्यक्ष भी टिकट के दावेदार हैं। पार्टी के कई लोग मानते हैं कि जिलों से तैयार पैनल में जिलाध्यक्ष का नाम स्वाभाविक रूप से आ जाएगा। ऐसे में पैनल निष्पक्ष नहीं हो सकता है। इसके चलते आने वाले दिनों में विवाद खड़ा हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
बृहस्पति के खिलाफ तिर्की ?
कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू होते ही पार्टी के अंदरखाने में जंग छिड़ गई है। सरगुजा के तेज तर्रार नेता बृहस्पति सिंह की विधानसभा सीट रामानुजगंज से अंबिकापुर के पूर्व मेयर डॉ. अजय तिर्की ने ताल ठोक दी है। डॉ. तिर्की बुधवार को रामानुजगंज पहुंचे, तो सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया।
डॉ. तिर्की के स्वागत का वीडियो भी वायरल हो रहा है। जिसमें उत्साही कांग्रेस कार्यकर्ता डॉ. तिर्की को भावी विधायक बताते हुए नारेबाजी कर रहे हैं। डॉ. तिर्की रामानुुजगंज में सीएमओ रहे हैं। लिहाजा, इलाके में अच्छी खासी पकड़ भी रखते हैं। इससे परे बृहस्पत सिंह, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के धुर विरोधी माने जाते हैं। बृहस्पत सिंह खुले तौर पर सिंहदेव के खिलाफ काफी कुछ कह चुके हैं। इसके कारण सिंहदेव ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन भी छोड़ दिया था। ऐसे में अब बारी सिंहदेव की है।
चर्चा है कि सिंहदेव की शह पर ही डॉ. तिर्की ने रामानुजगंज सीट से दावेदारी की है। सिंहदेव खुद भी प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन कमेटी के सदस्य भी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बृहस्पत सिंह के लिए टिकट हासिल करना आसान नहीं होगा। मगर बृहस्पत सिंह भी खामोश रहने वालों में नहीं है। देखना है कि डॉ. तिर्की की दावेदारी को बृहस्पत सिंह किस रूप में लेते हैं।
शिशुओं की मौत पर राजनीति?
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर 7 दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी है। इसमें पूछा गया है कि प्रदेश में 4 साल के भीतर 39000 से अधिक शिशुओं की किन परिस्थितियों में मौत हुई? दरअसल विधानसभा में उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने ही इसकी जानकारी दी थी। तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने इसे चिताजनक बताते हुए आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो को पत्र लिखा था। आयोग ने इस पत्र को संज्ञान में लिया है।
यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है। शिशु मृत्यु दर पर रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स 2021-22 का आंकड़ा बताता है कि छत्तीसगढ़ में उत्तर प्रदेश के बराबर एक हजार बच्चों के पीछे 38 की मौत हो गई। मध्यप्रदेश पूरे देश में टॉप पर है, जहां 40 बच्चों की मौत हुई। इसके बाद असम और ओडिशा है, जहां प्रति एक हजार में 36 बच्चों की मौत हुई। राजस्थान में 32 और मेघालय में 29 मौत दर्ज की गई। यानी हेल्थ सर्वे के मुताबिक कांग्रेस-भाजपा ही नहीं, दूसरे दलों के शासित राज्यों में एक जैसी स्थिति है। छत्तीसगढ़ में भाजपा विपक्ष में है। उसकी जिम्मेदारी तो है कि वह कांग्रेस को घेरे, मगर समाधान क्या है?
जीपीएम जिले के भवन कहां बनें?
10 फरवरी 2020 को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला बनने के बाद से इसका संचालन यहां की पुरानी इमारतों में हो रहा है। कुछ ऐतिहासिक महत्व के हैं, जहां रवींद्रनाथ टैगोर ठहरे थे। कुछ वृक्ष हैं जहां गुरुदेव बैठा करते थे। यहीं पर अब नये कलेक्ट्रेट परिसर की तैयारी चल रही है। यह कहां बने इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच विवाद काफी बढ़ चुका है। खासकर मरवाही इलाके की मांग है कि मुख्यालय पेंड्रा और मरवाही के बीच में बनाया जाए ताकि जिला बनाने की मंशा पूरी हो और अधिकारियों, दफ्तरों तक आम लोगों की आसान पहुंच हो सके। प्रशासन तो चाहता है कि यहां के गुरुकल और सेनेटोरियम की जमीन पर ही नई बिल्डिंग तैयार की जाए। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इसके लिए सौ दो सौ साल पुराने और टैगोर की स्मृतियों से जुड़े कई पेड़ भी काट दिये गए, तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया, श्रद्धांजलि सभा रखी। बीते 11 अगस्त को मरवाही इलाके में बंद का भी आयोजन किया गया था।
जब यहां शिखा राजपूत कलेक्टर थीं तो उन्होंने मरवाही और पेंड्रा के बीच स्थित कोदवाही ग्राम में 50 एकड़ जमीन का चयन किया था। वर्तमान विधायक डॉ. केके ध्रुव सहित अधिकांश जनप्रतिनिधि इस बात से सहमत हैं कि इसी तय जगह पर जिला मुख्यालय बने। इससे सबके लिए मुख्यालय तक पहुंच आसान होगी। दूरी सबके लिए बराबर होगी। अभी पेंड्रा से मरवाही की दूरी 38 किलोमीटर है। नई जगह पर विकास होने से पूरे क्षेत्र का संतुलित विकास होगा और दूर दूर बसे गांवों वाले आदिवासी क्षेत्र में जिला बनाने की मंशा पूरी होगी।
इन सबके बावजूद पेंड्रा में ही जिला मुख्यालय बनाने के लिए प्रशासन क्यों जिद कर रहा है इसके दो कारण सामने आए। एक तो जिला बनाने के लिए चले आंदोलन का केंद्र पेंड्रा-गौरेला ही रहा। यहां के निवासियों के लिए सुविधाजनक होगा कि नई बिल्डिंग भी यहीं बने। यह पहले से विकसित इलाका है, तमाम सुविधायें हैं। दूसरी बात और यह सामने आ रही है कि ज्यादातर बाबू और अफसर अभी यहां नहीं रुकते, वे शाम को बिलासपुर निकल जाते हैं। यदि मरवाही और पेंड्रा के बीच की जगह कोदवाही को मुख्यालय बनाया गया तो ट्रेन पकडऩे के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी, जो अभी सिर्फ 6 किलोमीटर है।
खुद ही बना ली सडक़
स्थानीय विधायक, अफसरों और पंचायत के प्रतिनिधियों से बार-बार मांग करने के बावजूद सडक़ नहीं बनाई गई। बारिश में चलना दूभर हो रहा था। तब गरियाबंद जिले के ताड़ीपारा के ग्रामीणों ने फैसला किया कि वे खुद ही सडक़ बनाएंगे। जनसहयोग से मटेरियल मंगा ली गई। डेढ़ किलोमीटर रास्ते में पूरे गांव के लोगों ने श्रमदान किया और अब सडक़ बन गई। कुछ दिन पहले ऐसी ही एक तस्वीर राजनांदगांव जिले से भी आई थी।
भाजपा टिकटों की कहानी
भाजपा की चुनाव समिति अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन पार्टी के रणनीतिकार विधानसभा वार बेहतर प्रत्याशी की खोज में लगे हैं। चर्चा तो यह भी है कि कुछ दिग्गज नेताओं को 8-8 विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। एक चर्चा यह है कि कुछ सीटिंग एमएलए की टिकट भी काटी जा सकती है, अथवा उनकी सीट बदली जा सकती है।
इन चर्चाओं को उस वक्त बल मिला, जब पड़ोस के जिले की एक विधानसभा सीट से निकाय के पूर्व पदाधिकारी से चुनाव लडऩे की पेशकश की गई। पूर्व पदाधिकारी की साख अच्छी रही है। मगर उन्होंने चुनाव लडऩे से मना कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि यह सीट भाजपा के पास ही है। संकेत साफ है कि विधायक की टिकट कट सकती है। चर्चा है कि टिकट वितरण में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ईडी डीएमएफ और स्कूल
ईडी डीएमएफ की पड़ताल कर रही है। सभी जिलों से चाही गई जानकारी ईडी दफ्तर तक पहुंच गई है। चर्चा है कि डीएमएफ से सबसे ज्यादा काम स्कूल शिक्षा विभाग में हुआ है। आत्मानंद स्कूलों पर काफी खर्च किए गए हैं। सप्लाई का भी काफी काम हुआ है। ऐसे में चर्चा है कि कुछ फर्नीचर सप्लायरों से पूछताछ हो सकती है।
बताते हैं कि कई जिलों में तो अच्छा काम हुआ है, लेकिन कुछ जगहों पर घटिया फर्नीचरों की सप्लाई हुई है। ऐसे में स्कूल शिक्षा, और आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरों पर भी आंच आ सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
उम्मीदवारों पर चर्चा, पार्टी लिस्ट बाकी
प्रदेश कांग्रेस की चुनाव समिति की एक बैठक तो हो चुकी है, लेकिन प्रदेश पदाधिकारियों की सूची अटकी पड़ी है। प्रदेश सचिव, संयुक्त महासचिव, और कोषाध्यक्ष व महासचिव के रिक्त पदों पर नाम प्रस्तावित किए जा चुके हैं।
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा से इस पर बात भी की गई। सैलजा ने प्रमुख नेताओं को कहा बताते हैं कि नाम हाईकमान को भेज दिए गए हैं, और हाईकमान ही सूची जारी करेगा। कहा जा रहा है कि कुछ प्रमुख नेताओं ने अलग-अलग पदों के लिए अपनी तरफ से नाम भी भेज दिए हैं। इन सब वजहों से सूची जारी होने में विलंब हो रहा है।
आजादी की जगमगाहट
सुकमा जिले के एल्मागुंडा गांव के लोगों के लिए इस बार आजादी का जश्न यादगार बन गया। बरसों के इंतजार के बाद यहां के घर बिजली से रोशन हो गए हैं। स्वतंत्रता के 76 साल पूरे हो जाने के बाद भी यहां बिजली नहीं थी। पहले कई बार बिजली बोर्ड ने पोल लगाने की कोशिश की लेकिन नक्सली हर बार नुकसान पहुंचा कर काम रुकवा देते थे। 6 महीने पहले ही यहां सीआरपीएफ का कैंप खोला गया। पुलिस और प्रशासन ने मिलकर तय किया कि यहां हर हाल में बिजली पहुंचाई जाएगी। बिजली विभाग ने फिर से फोन लगाना शुरू किया और उन्हें सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के जवानों ने दिन रात सुरक्षा दी। अब तक इस गांव में सोलर पैनल भी नहीं लगा था लेकिन स्वतंत्रता दिवस के ठीक पहले 14 अगस्त की शाम यह गांव बिजली की रोशनी से जगमगा उठा।
गरीब राज्य की आर्थिक हालत
राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर एक चौंकाने वाली खबर चल रही है। डायचे बैंक इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक दास ने 17 राज्यों की एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें बताया गया है कि महाराष्ट्र के बाद सबसे अच्छी राजकोषीय स्थिति छत्तीसगढ़ की है। इसके बाद ओडिशा, तेलंगाना का नंबर आता है। पिछले वर्ष गुजरात पांचवें नंबर पर था, जो सरक कर सातवें स्थान पर चला गया है। सबसे खराब वित्तीय हालत वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल हैं। यह आकलन राजकोषीय घाटा, स्वयं का कर राजस्व, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत में राज्य का ऋ ण स्तर आदि के आधार पर किया गया है।
इस रिपोर्ट में राजस्थान का उल्लेख नहीं है अन्यथा यह तुलना करना आसान हो जाता कि फ्री बिजली, गरीबों, किसानों, महिलाओं को नगद राशि देने, कर्ज माफ करने जैसी योजनाओं का किसी राज्य पर कितना असर पड़ता है। इस अध्ययन का विषय यह नहीं था। यह भी नहीं था कि क्या इन राहत योजनाओं के चलते इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट के खर्चों में कोई कटौती की गई या नहीं।
दिलचस्प यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब राज्यों में गिने जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ ने आर्थिक रूप से सुदृढ़ समझे जाने वाले महाराष्ट्र के बाद सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
मगर यह तथ्य बार-बार सामने आ चुका है कि नैसर्गिक संसाधनों के मामले में छत्तीसगढ़ गरीब है ही नहीं। इसके बारे में अमीर धरती के गरीब लोग मुहावरा इस्तेमाल में लाया जाता है। मई 2023 में एक आंकड़ा सामने आया था जिसमें जीडीपी के आधार पर छत्तीसगढ़ को सबसे गरीब राज्य माना गया था, पर यहां रहने वाले लोगों के हिसाब से। इसके अनुसार 39.90 प्रतिशत लोग यहां गरीब हैं। झारखंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की स्थिति भी छत्तीसगढ़ से बेहतर है।
तीन विधायकों की चिंता दूर
कांग्रेस में जबसे उस आंतरिक सर्वे की चर्चा है जिसमें 30 से अधिक मौजूदा विधायकों के प्रदर्शन को खराब बताया गया है और उनके टिकट कटने की आशंका है, हर जगह लोग जानने के लिए उत्सुक है कि किसकी कटेगी, किसकी बचेगी। 15 अगस्त को ध्वजारोहण के लिए मनेंद्रगढ़ पहुंचे स्पीकर डॉ. चरण दास महंत से मीडिया ने यही सवाल कर दिया। पूछा गया कि जिले के तीन विधायकों में से किस-किस की टिकट कटेगी? डॉ. महंत ने कहा कि हमारे तीनों विधायकों का परफॉर्मेंस बढिय़ा है। बढिय़ा है, कह रहा हूं, इसका मतलब यह है कि तीनों फिर चुनाव लड़ेंगे।
डॉ. महंत जब सांसद और केंद्रीय मंत्री थे, तब से पार्टी के मामले में, कोरिया जिले में उनकी खूब चलती है। या कहें कि उनकी सहमति के बिना पुराने कोरिया जिले को लेकर हाईकमान कोई फैसला नहीं करता। ऐसे में मानकर चलना चाहिए कि जो वे कह रहे हैं, ठीक ही कह रहे होंगे।
दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि जिले के तीन में से दो विधायकों का रिपोर्ट कार्ड गड़बड़ हैं। महंत भी जानते होंगे। पर मीडिया के सामने क्या कहना है, यह भी वे जानते हैं।
डीआईजी हटना चाहते हैं
स्वतंत्रता दिवस के बाद पुलिस महकमे में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। चर्चा है कि फील्ड में पोस्टेड तीन डीआईजी स्तर के अफसर मौजूदा दायित्व से अलग पोस्टिंग चाह रहे हैं। इस समय रायपुर, बलौदाबाजार-भाटापारा, जशपुर, और बस्तर में डीआईजी स्तर के अफसर एसएसपी के पद पर हैं। रायपुर में तो राज्य बनने के बाद डीआईजी ही एसएसपी रहे हैं।
बताते हैं कि दो एसएसपी अपने व्यक्तिगत कारणों से रायपुर आना चाहते हैं। इनमें से एक तो प्रमोट होकर अगले साल आईजी बन जाएंगे। बस्तर एसएसपी जितेन्द्र सिंह मीणा ने केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन दे दिया है।
चर्चा है कि केन्द्र ने सहमति भी दे दी है, और पोस्टिंग का इंतजार हो रहा है। इन सबके अलावा पीएचक्यू में भी कुछ अफसर इधर से उधर हो
सकते हैं।
सीट की अदला-बदली की हसरत
चर्चा है कि सरकार के एक मंत्री, और संसदीय सचिव अपनी सीट की अदला-बदली चाहते हैं। दोनों का विधानसभा क्षेत्र आसपास ही है। कहा जा रहा है कि सर्वे रिपोर्ट में दोनों की पोजिशन खराब बताई गई है। यही वजह है कि दोनों ही एक-दूसरे की सीट पर शिफ्ट होना चाह रहे हैं।
कहा जा रहा है कि मंत्रीजी को तो सीट बदलने की अनुमति मिल सकती है। मगर संसदीय सचिव को दूसरी सीट से लडऩे की अनुमति शायद ही मिल पाए। संसदीय सचिव को लेकर यह कहा जा रहा है कि सीट बदलने पर भी कोई फायदा नहीं होगा। सीट गंवानी पड़ सकती है। ऐसे में किसी नए चेहरे को मौका देने से पार्टी को फायदा हो सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
उजड़े जंगल में भटकता हाथी
हाथियों के विचरण क्षेत्रों में एक के बाद कोयला खदानों के खुलने से हुए असर को सोशल मीडिया पर जारी हुए एक वीडियो से महसूस किया जा सकता है। इसे सूरजपुर जिले के एसईसीएल खदान का बताया जा रहा है जहां एक हाथी कोयला खदान के भीतर घुस आया है। वीडियो में सुनाई देता है कि हाथी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है लेकिन जैसे ही ग्रामीण कोलाहल कर उसे ललकारते हैं वह एकाएक घबरा जाता है और तेजी से दौडक़र पहाडिय़ों के बीच एक पेड़ के पीछे जाकर छिप जाता है।
टिकट के लिए मीडिया की मदद
भले ही अनुशासन की कार्रवाई हो जाए, पर टिकट की दावेदारी कमजोर नहीं पडऩी चाहिए। सीतापुर की महिला जनपद अध्यक्ष शांति देवी कांग्रेस से ही जुड़ी हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने स्थानीय विधायक व प्रदेश सरकार के मंत्री अमरजीत भगत के लिए प्रचार भी किया था, पर इस बार वे टिकट की खुद दावेदारी कर रही हैं। उन्होंने मंत्री के खिलाफ बकायदा प्रेस कांफ्रेंस ली। यह कहा कि इनके लिए बाहरी लोग ही सब कुछ हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं को उन्होंने बाहर कर दिया है। प्रत्याशी को बदला जाए। शांति देवी विश्व आदिवासी दिवस के उस कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुईं, जिसमें भगत मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अलग से कार्यक्रम रखा।
बिलासपुर जिले में भी कोटा विधानसभा क्षेत्र के कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष संदीप शुक्ला ने प्रदेश अध्यक्ष से जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष विजय केशरवानी की शिकायत की है और उसकी कॉपी सार्वजनिक कर दी है। इसमें आरोप लगाया गया है कि अपना जन्मदिन धूमधाम मनाने के लिए अध्यक्ष ने एक स्कूल का बाउंड्री वाल तोड़वा दिया ताकि वहां एक भव्य स्वागत द्वार बन सके। संदीप शुक्ला और विजय केशरवानी दोनों ही उन दर्जनों कांग्रेसजनों में से एक हैं जो कोटा विधानसभा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। संदीप शुक्ला कोटा इलाके में ही रहते हैं, जबकि केशरवानी बिलासपुर में।
यह कांग्रेस ही है जहां खुलेआम अपनी ही पार्टी के मंत्री के खिलाफ प्रेस कॉफ्रेंस करने और टिकट की दावेदारी करने का मौका मिल सकता है।
शिक्षा विभाग में अधूरी कार्रवाई
स्कूल शिक्षा विभाग के चार संयुक्त संचालकों को निलंबित करने के बाद पदोन्नति के बाद पोस्टिंग घोटाले में आगे की कार्रवाई लगभग रुक गई है, जबकि विभाग के मंत्री ने पैसे लेकर की गई पोस्टिंग को निरस्त करने तथा दोषी अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की घोषणा की थी। पदोन्नति के बाद पोस्टिंग में गड़बड़ी के कारण कई स्कूल अतिशेष वाले हो गए हैं, तो कई में एक दो शिक्षक ही रह गए हैं। इस मामले की शिकायत गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से की थी। शिकायत में बताया गया था कि इस जिले के ट्राइबल स्कूलों में एक एक पोस्टिंग के लिए डेढ़ लाख से दो लाख रुपये की वसूली की गई। गौर करने की बात है कि शिकायत के बाद यहां के ज्वाइंट डायरेक्टर एस के राय भी निलंबन की चपेट में आ गए। मगर अब उन्हें उससे भी बड़ी जगह बिलासपुर में इसी पद का प्रभार दे दिया गया है।
अदालत और कानूनी पढ़ाई
नान घोटाले में फंसे प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने नौकरी के बीच वकालत की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने फेसबुक पर अपनी मार्कशीट साझा किया है। कुछ इसी तरह घोटालों में फंसने के बाद पूर्व आईएएस बाबूलाल अग्रवाल ने भी वकालत की पढ़ाई पूरी की थी।
दोनों अफसरों में एक समानता है कि वो घोटालों की वजह से खुद को बेकसूर साबित करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहे हंै। ऐसे में कानून की बारीकियां जानना जरूरी भी है। अब देखना है कि दोनों ही अपने कानूनी ज्ञान का किस तरह इस्तेमाल करते हैं।
फिलहाल मुख्यमंत्री के मंच पर आलोक शुक्ला को देखकर लोग हैरान होते हैं कि सामने बैठे लोगों को क्या-क्या याद आ रहा होगा।
दारू का हिमायती
प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा के कार्यकर्ता शराबबंदी के लिए मुहिम चला रहे हैं। पार्टी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी को मुद्दा बनाने की सोच रही है। इन सबके बीच बालोद जिले में भाजपा के एक पंचायत पदाधिकारी ने पार्टी लाइन से हटकर अपने पंचायत क्षेत्र में शराब दुकान खोलने की वकालत की है। खास बात यह है कि आबकारी विभाग ने पंचायत पदाधिकारी की बात मानते हुए दो दिन पहले उनके यहां शराब दुकान खोलने के आदेश जारी भी कर दिए हैं।
बताते हैं कि पहले जिस जगह शराब दुकान थी, वहां इसका विरोध हो रहा था। आबकारी अमला किसी दूसरी जगह शराब दुकान को स्थानांतरित करने की कवायद में लगा था। और जब पंचायत पदाधिकारी का पत्र मिला, तो विभाग ने दुकान को स्थानांतरित करने में देर नहीं लगाई। अब इस मामले पर पार्टी के भीतर कलह मच गया है। कहा जा रहा है कि जिले के प्रमुख नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व को इससे अवगत कराया है। इसको लेकर पूछताछ भी चल रही है। देर सवेर यह मामला बड़ा रूप ले सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
धर्मजीत के पुराने रिश्ते
आखिरकार जनता कांग्रेस के निष्कासित विधायक धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए। धर्मजीत सिंह के पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से करीबी संबंध हैं, और ऐसे में अटकलें लगाई जा रही थी कि वो देर सवेर भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
धर्मजीत सिंह को भाजपा में शामिल करने की भूमिका काफी पहले बन चुकी थी। उनका पूर्व विधायक देवजी पटेल से याराना है। धर्मजीत सिंह, देवजी पटेल के उसी सरकारी बंगले में रहते हैं, जिसे पटेल को पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन रहते आवंटित किया गया था। यह बंगला अब धर्मजीत के नाम पर आवंटित हो गया है। यही नहीं, धर्मजीत, देवजी के पुराने स्टॉफ की सेवाएं भी ले रहे हैं।
बताते हैं कि सब कुछ तय होने के बाद देवजी पटेल ने ही धर्मजीत की केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से मुलाकात करवाई। इसके बाद ही धर्मजीत ने मंडाविया के सामने भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया।
आज हमारा दिन है...
छत्तीसगढ़ में सरगुजा को हाथियों का सबसे पुराना घर माना जाता है। यहां के हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रमकेला में विश्व हाथी दिवस खास तरीके से मनाया गया। उनका श्रृंगार किया गया। केले, सेब, पूडिय़ा और कई तरह के पकवान खिलाये गए। प्रदेश में इस समय हाथियों की संख्या 254 हैं, जिनमें से सरगुजा रेंज में 110 हाथी हैं। ऐसे हाथी जो अपने दल से बिछड़ गए हों, या हताहत हो गए हों, उन्हें इस पुनर्वास केंद्र में रखा जाता है। यहां इस समय 7 हाथी हैं। इनकी देखभाल प्रशिक्षित महावत करते हैं।
पंचायतों में बढ़ती दबंगई
दुर्ग जिले में भिलाई के पास बागडूमर ग्राम पंचायत के एक पंच ने एसडीएम दफ्तर के बाहर फांसी लगाकर जान दे दी। उनसे सुसाइड नोट छोड़ा है जिसमें बताया है कि राशन कार्ड के लिए सरपंच और सचिव पैसों की मांग करते थे, नहीं मिलने पर प्रताडि़त किया। कुछ दिन पहले तखतपुर तहसील की एक पंचायत ढनढन के सरपंच ने एक ग्रामीण को खंभे से बांधकर लाठियों से पीटते हुए अधमरा कर दिया था। ग्रामीण की शिकायत थी कि प्रधानमंत्री आवास सूची में नाम जोडऩे के लिए सरपंच ने 20 हजार रुपये मांगे थे। सूची में नाम नहीं आया तो उसने अपने पैसे वापस मांगे। उसे इसी वजह से मारा गया।
प्रदेश के कुछ गांव आदर्श हो सकते हैं। पर, अनेक पंचायतों में भ्रष्टाचार चरम पर है। हाल ही में भाजपा ने गोठान चलो अभियान चलाया था। जिन गौठानों के पर लाखों रुपये खर्च किए गए वे खंडहर बन चुके हैं। प्रदेश का कोई ब्लॉक नहीं है जहां से स्कूलों के जर्जर होने, प्लास्टर गिरने की खबरें नहीं आ रही हों। पांच सात साल पहले बने भवनों की हालत जर्जर है। सडक़ बनती हैं, पर टिकती नहीं। तमाम केंद्रीय व राज्य की योजनाओं के लिए बनने वाले भवन भी इसी हालत में दिखाई देंगे। ये सब बनवाने वाले पंच-सरपंच ही हैं। कोविड काल में प्रवासी मजदूरों को ठहराने की जिम्मेदारी पंचायतों को दी गई थी। हर जिले से खबर आई कि फर्जी बिल बनाए गए, लाखों रुपये जनप्रतिनिधि और पंचायत सचिव मिलकर डकार गए। इसमें जनपद और जिला पंचायतों के प्रतिनिधि, अफसर, मॉनिटरिंग करने वाले सब इंजीनियर-सबकी मिलीभगत होती है।
तखतपुर और भिलाई में हुई दो घटनाएं हाल की हैं जो बताती है कि सशक्त होते सरपंच और दूसरे पंचायत पदाधिकारी अपने ही मतदाताओं के लिए खतरा बन रहे हैं। जबसे इन चुनावों को दलीय आधार पर लडऩे-लड़ाने की होड़ बढ़ी है, सही-गलत कामों के बावजूद उन्हें संरक्षण मिल रहा है। उनको किसी न किसी विधायक, मंत्री, सांसद का साथ मिल जाता है।
एक पुलिया और देखें बस्तर की
यह उसी कोंडागांव की तस्वीर है, जहां एक उफनते नाले में बनी बांस की पुलिया को स्कूली बच्चे जोखिम उठाकर पार करते हुए दिखे थे। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद प्रमुख सचिव सहित लोक निर्माण विभाग के तमाम अधिकारी वैकल्पिक व्यवस्था करने में जुटे और कोर्ट को जवाब दिया कि यहां बारिश के बाद स्थायी पुलिया बना दी जाएगी।
यह दूसरी तस्वीर भी कोंडागांव की ही है। स्थायी पुल न होने के कारण बांस और बल्लियों से पलना गांव में यह पुलिया तैयार की गई, ताकि बारिश में नदी पार की जा सके। छोटे वाहन इससे पार भी हो जाते हैं। पर जब एक ट्रैक्टर को निकालने की कोशिश की गई तो पुलिया ने दम तोड़ दिया और ट्रैक्टर भी वहीं फंसकर रह गया।
शहर पर जंगल काबिज !
प्रशासन में आईएएस के कैडर पदों पर विशेषकर आईएफएस अफसरों की पोस्टिंग पर विवाद खड़ा हो गया है। आईएएस अफसरों के वाट्सएप ग्रुप में एक अफसर ने अंग्रेजी अखबार द हिन्दू की एक पुरानी खबर को साझा किया है, जिसमें बताया गया कि आईएएस के कैडर पदों पर अन्य सेवा के अफसरों की पोस्टिंग के खिलाफ केरल आईएएस एसोसिएशन ने कैट में याचिका दायर की है। जिस पर सुनवाई चल रही है।
हालांकि ग्रुप के अन्य सदस्यों ने खबर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन निजी चर्चा में विशेषकर आईएफएस अफसरों की पोस्टिंग पर नाराजगी जता रहे हैं। शुक्रवार को सरकार ने एनआरडीए के चेयरमैन पद पर पूर्व मुख्य सचिव आरपी मंडल की जगह रिटायर्ड आईएफएस एसएस बजाज की पोस्टिंग की है। खास बात यह है कि चेयरमैन पद पर एक-दो मौके को छोडक़र सीएस, या सीनियर आईएएस अफसर पोस्टेड रहे हैं।
नया रायपुर की रुपरेखा तैयार हुई, तो उस समय काडा का गठन किया गया था तब चेयरमैन, उस समय आवास पर्यावरण विभाग के सचिव विवेक ढांड रहे। एनआरडीए के गठन के बाद तत्कालीन एसीएस, और आवास पर्यावरण विभाग के मुखिया पी जॉय उम्मेन चेयरमैन थे। वो सीएस रहते इस पद पर रहे। इसके बाद एन बैजेन्द्र कुमार चेयरमैन बने। बाद में अमन सिंह एनआरडीए के चेयरमैन हुए। यद्यपि अमन सिंह आईएएस नहीं थे, लेकिन आवास पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव होने के नाते उन्हें दायित्व सौंपा गया। उस समय भी प्रशासनिक हल्कों में उनकी पोस्टिंग पर थोड़ी कानाफूसी हुई थी, लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ।
सरकार बदलने के बाद सचिव स्तर की अफसर पी. संगीता, और फिर सीएस पद से रिटायर होने के बाद आरपी मंडल को चेयरमैन बनाया गया। और अब जब मंडल की जगह बजाज को चेयरमैन बनाया गया है, तो आईएएस बिरादरी में कुछ ज्यादा हलचल है। ये अलग बात है कि बजाज को नवा रायपुर को बसाने का श्रेय दिया जाता है। वो लंबे समय तक एनआरडीए के सीईओ रहे, और फिर वाइस चेयरमैन बने।
अकेले बजाज की नियुक्ति को लेकर ही नहीं, बल्कि कई और अफसरों की पोस्टिंग पर विवाद हो रहा है। मसलन, पी अरुण प्रसाद को पर्यावरण संरक्षण मंडल के सदस्य सचिव के साथ-साथ उद्योग संचालक, और सीएसआईडीसी के एमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। उद्योग संचालक आईएएस का कैडर पोस्ट है, और राज्य गठन के बाद से आईएएस अफसर ही उद्योग संचालक रहे हैं। खुद मौजूदा सीएस अमिताभ जैन उद्योग संचालक रहे हैं। इसके अलावा एसके बेहार, कार्तिकेश गोयल, श्रुति सिंह सहित जितने भी अफसरों की पोस्टिंग हुई है, वो सभी आईएएस थे।
दिलचस्प बात यह है कि भूपेश सरकार के सत्तारुढ़ होने के बाद तमाम आईएफएस अफसरों को वापस वन विभाग में भेज दिया गया था। मगर बाद में आईएएस अफसरों की कमी, और अपने विशिष्ट गुणों की वजह से एक के बाद एक प्रशासन में आते चले गए। करीब आधा दर्जन आईएफएस अफसर अहम पदों पर हैं। रिटायरमेंट के बाद तो कई आईएफएस अफसर ऊंचा पद पाने में कामयाब रहे। रिटायर्ड आईएफएस संजय शुक्ला तो रेरा चेयरमैन बन गए। कुल मिलाकर आईएफएस बिरादरी मलाईदार पदों पर आ गए हैं। इससे आईएएस अफसरों में नाराजगी तो स्वाभाविक है।
मण्डल की बिदाई
अपनी अलग कार्यशैली के लिए चर्चित आरपी मंडल को सरकार ने नवा रायपुर के चेयरमैन के दायित्व से मुक्त कर दिया है। मंडल तीन साल से अधिक इस पद पर रहे। उनकी नियुक्ति आगामी आदेश तक के लिए हुई थी, लेकिन उनकी जगह अब एसएस बजाज को बिठा दिया गया।
सुनते हैं कि दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी के बेहद करीबी माने जाने वाले आरपी मंडल को सीएस पद से रिटायर होने के बाद सरकार की महत्वकांक्षी नरवा, घुरुवा, और बाड़ी परियोजना का अहम दायित्व सौंपने की तैयारी थी, लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हुए, और फिर उनकी पसंद पर एनआरडीए चेयरमैन का पद दिया गया।
चेयरमैन बनने के बाद मंडल कोई ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे थे। नवा रायपुर में किसान आंदोलन सुुर्खियों में रहा है। ऐसे में अब सरकार ने उनकी जगह अनुभवी एसएस बजाज को लाया है। देखना है बजाज क्या कुछ करते हैं।
बाबा, अब तो सुध ले लेते
15 अगस्त, 26 जनवरी के सरकारी मुख्य समारोह में ध्वज फहराना किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए बड़े सम्मान की बात होती है। पर विधायक शैलेष पांडेय के हिस्से में अपनी सरकार होने के बावजूद यह मौका आज तक नहीं आया। अंतिम रूप से अब तय हो गया कि उनको अपने इस पांच साल के कार्यकाल में मौका नहीं मिलने वाला है। आगामी 15 अगस्त को जिला मुख्यालय के समारोहों में ध्वज फहराने वालों की सूची जारी हो गई है। बिलासपुर के प्रभारी मंत्री ताम्रध्वज साहू अपने गृह जिले दुर्ग में ध्वजारोहण करने जा रहे हैं। बिलासपुर में चौथी बार तखतपुर की विधायक, संसदीय सचिव रश्मि सिंह को मौका दिया गया है। कांग्रेस सरकार बनने के बाद पहली बार 26 जनवरी 2019 वे बिलासपुर के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं। कार्यकाल खत्म होने के पहले होने वाला आखिरी ध्वजारोहण भी उनके ही हिस्से में आया है। बीच के अवसरों में प्रभारी मंत्री के रूप में जयसिंह अग्रवाल, रविंद्र चौबे और ताम्रध्वज साहू के अलावा उमेश पटेल और विकास उपाध्याय भी मुख्य अतिथि बनाये जा चुके हैं। यही नहीं, बिलासपुर में सालाना दशहरा उत्सव का आयोजन नगर निगम की ओर से किया जाता है। करीब 30 साल से परंपरा रही कि स्थानीय विधायक इसमें मुख्य अतिथि बनाये जाते रहे। पर, अब इसमें जिले के सभी विधायकों और सांसद को बुलाया जाता है और सामूहिक आतिथ्य में समारोह रखा जाता है। कई सरकारी आयोजनों में प्रशासन ने शहर विधायक को बुलाना जरूरी नहीं समझा। एक बार राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया तो नाराज होकर पांडेय ने कलेक्टर को देशद्रोही भी कह दिया। मंत्रिमंडल में अवसर पाने से पांडेय इस नियम के चलते चूक गए थे कि वे पहली बार बने नये विधायक हैं। इसके पहले यदि विधायक सत्तारूढ़ दल से हो तो बिलासपुर को हमेशा मंत्रिमंडल में जगह मिलती रही, मध्यप्रदेश के दौर में भी।
विधायक पांडेय टीएस सिंहदेव के समर्थक हैं। अपनों के खिलाफ एक बार एफआईआर दर्ज हुई तो उन्होंने कोतवाली थाने का घेराव कर दिया, बोले हम बाबा समर्थक हैं, इसलिए हमें पुलिस प्रताडि़त कर रही है। 15 अगस्त को मौका नहीं मिलने पर उनके समर्थक मायूस हैं। कह रहे हैं, बाबा डिप्टी सीएम बन गए, पर हमारे लिए कुछ नहीं बदला- अब भी ‘अन्याय’ हो रहा है...। यहां अन्याय शब्द का इस्तेमाल भाषा को संतुलित बनाये रखने के लिए किया गया।
एक दुर्लभ प्रजाति का गिरगिट
ये मौसम छिपकली, गिरगिट, सांप, गोह, कछुआ, मेंढक, केंचुआ, घोंघा तमाम तरह के सरीसृप और जीव-जंतुओं का है। ऐसे मौके पर अनेक दुर्लभ जीव भी दिखाई दे जाते हैं, पर हम आप इन्हें जानने-पहचानने में असमर्थ होते हैं। गिरगिट को देखते ही पहचाना जा सकता है, पर इसकी अलग-अलग 202 प्रजातियां होती हैं, यह तो कोई जानकार ही बता सकता है।
फोटोग्राफी के शौकीन एक पुलिस अधिकारी नरेंद्र वर्मा ने अपने सोशल मीडिया पेज पर यह तस्वीर डाली है और बताया है कि अंबिकापुर के बाहरी इलाके में मिला यह भारतीय गिरगिट अत्यन्त दुर्लभ प्रजाति का है। इसका नाम है इंडियन केमेलियन। आम गिरगिट से अलग यह शांत प्रकृति का जीव है। केमोफ्लाज (रंग बदलकर छिप जाने) होने में यह माहिर होता है। इसे देखा कम गया है। इसके पहले शायद यह सन् 2018 में भी दिखा हो।
आदिवासी दिवस पर उभरी एक चिंता
यह छत्तीसगढ़ के मणिपुर की बात है। जी हां, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के इस गांव में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में पूर्व विधायक कांग्रेस नेता पहलवान सिंह मरावी बोले- अपने फायदे के लिए जनरल कैटेगरी के लोग आदिवासी लड़कियों को यूज़ कर रहे हैं। उनसे शादी कर लेते हैं- फिर उनको सरपंच बना लेते हैं। इसके बाद उनके पद और मेहनत का दुरुपयोग कर खुद लाभ उठाते हैं। कई लोग तो बिना शादी किए ही अपने साथ रख लेते हैं, यौन शोषण करते हैं। बहन बेटियों को गुमराह करते हैं, अपने बच्चों को आप संभालकर रखें। जब मरावी ने यह बयान दिया तो विधायक डॉ. केके धु्रव भी मंच पर मौजूद थे। कुछ दूसरे जनप्रतिनिधियों ने उनके इस बयान का समर्थन भी किया।
विश्व आदिवासी दिवस पर सरकारी गैर-सरकारी समारोह खूब हुए। नाच गाने, उत्सव, सम्मान के कार्यक्रम रखे गए। पर इस बार कुछ अलग यह देखा गया कि आदिवासियों ने समानान्तर कई जगह अपने अधिकारों के हनन के खिलाफ आक्रोश जताया। समाज के सामने खड़ी हो रही चुनौतियों पर भी बात रखी। मरावी की ही बात लें। सुनने में तीखी जरूर है, पर खुलकर जो कहना था वह उन्होंने कह तो दिया। आदिवासी समाज में धर्मांतरण के अलावा भी और बस्तर से बाहर भी कई मुद्दे हैं। पर ये इन्हें शायद राजनीतिक नहीं सामाजिक समाधान चाहिए।
धरम का काम भी थमा
प्रदेश में ईडी सक्रिय है, और कई प्रकरणों की पड़ताल भी कर रही है। ईडी, लिकर व कोल के बाद धान-चावल और डीएमएफ की भी जांच कर रही है। धान-चावल केस में कई मिलर्स के यहां भी दबिश दे चुकी है। ईडी की जांच के चलते नेता, अफसर, और कारोबारियों में हडक़ंप मचा है। चर्चा है कि ईडी के खौफ की वजह से एक नेताजी के निवास पर धर्म-कर्म से जुड़ा निर्माण कार्य रुक गया है।
कहा जा रहा है कि नेताजी अपने निवास पर धर्म-कर्म का काम करवा रहे थे। काफी कुछ निर्माण काम हो भी चुका है। इसमें कुछ कारोबारी-अफसर भी मुक्त हस्त से सहयोग कर रहे थे। इसी बीच ईडी ने कारोबारियों के यहां दस्तक दे दी। कुछ लोगों से तो दो दिन तक पूछताछ चलती रही। इसका असर यह हुआ कि नेताजी के निवास पर निर्माण कार्य रुक गया है। हल्ला है कि देर सवेर जांच की आंच नेताजी तक पहुंच सकती है। और जब निर्माण पर बात होगी, तो समस्याएं भी पैदा हो जाएंगी। बस, इसी वजह से धर्म-कर्म के काम पर रोक लग गई है।
नाराजों को मनाना शुरू
खबर है कि भाजपा संगठन के नेता अजय जामवाल, और पवन साय खुद होकर नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं। वो इसके लिए नाराज नेताओं के घर तक जाने में परहेज नहीं कर रहे हैं। कुछ दिन पहले जामवाल, रायपुर ग्रामीण जिला के पूर्व अध्यक्ष अनिमेश कश्यप (बॉबी) के घर भी गए।
बताते हैं कि अनिमेश पद से हटाए जाने के बाद से काफी नाराज थे, और एक तरह से पार्टी दफ्तर आना-जाना छोड़ दिया था। उनकी वजह से मंदिरहसौद, और कई अन्य जगहों में भी कई पदाधिकारियों ने पार्टी की गतिविधियों से खुद को अलग कर दिया था।
जामवाल ने अनिमेष को समझाया, और परिवार के सदस्यों के साथ घंटे भर रहे। उन्हें कई कार्यक्रम करने के लिए तैयार भी किए। न सिर्फ अनिमेश बल्कि प्रदेश के अन्य जगहों पर भी जामवाल, और पवन साय की जोड़ी नाराज पदाधिकारियों को मनाने के लिए उनके घर तक जा रहे हैं। अब नाराज नेता कितना सक्रिय होते हैं, यह देखना है।
सिर्फ छात्रों की क्या गलती?
प्रदेश के विश्वविद्यालयों के परीक्षा परिणाम चिंताजनक आए। छात्र आंदोलन पर हैं। पं. रविशंकर विश्वविद्यालय में यूजी के 80 फीसदी छात्र पास नहीं हो पाए। 1700 विद्यार्थियों को तो शून्य अंक मिले। इनमें वे छात्र हैं, जिन्हें जवाब पता नहीं और कुछ भी मन की लिख आए। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर में स्नातक स्तर के सिर्फ 30 फीसदी छात्र पास हो पाए। पूरे प्रदेश में यही हाल है। कांग्रेस की ही छात्र इकाई एनएसयूआई पूरे प्रदेश में इस मांग पर आंदोलन कर रही है कि दो विषयों में फेल छात्रों को पूरक की पात्रता मिले।
इस स्थिति के लिए एक सामान्य धारणा यह बनी है कि कोविड काल में छात्रों की लर्गिंग और राइटिंग स्किल कमजोर पड़ गई। दो, तीन साल तक उन्होंने या तो ऑनलाइन परीक्षा दी या फिर घर में किताबों को देखकर आंसर शीट तैयार की। इसी का नतीजा वे भुगत रहे हैं। मगर कुछ कॉलेज प्रोफेसरों का कहना है कि यह एकमात्र कारण नहीं है। विश्वविद्यालय और कॉलेज के प्रशासन ने भी कॉलेज खुलने के बाद छात्रों में लिखने, पढऩे की आदत में कमी को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं लिया। जिस तरह स्कूली शिक्षा में नवाचार किए गए, कॉलेजों में दूर-दूर नजर नहीं आया। न केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बल्कि राज्य के अधीन विश्वविद्यालयों में सारा जोर नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों को ज्यादा से ज्यादा लागू कर वाहवाही लेने की होड़ मची हुई थी। केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय को और राज्य के विश्वविद्यालय चांसलर को खुश करने की कोशिश में लगे रहे। दोनों ही तरह के विश्वविद्यालयों की कोशिश यह भी थी कि वे नैक ग्रेडिंग में न पिछड़ें ताकि यूजीसी से अधिक अनुदान हासिल कर सकें। सिर्फ ग्रेडिंग के लिए ऐसे-ऐसे एमओयू करते और शोध केंद्र खोलते रहे जिनका धरातल पर कोई रिजल्ट नहीं दिखाई देता। होना यह था कि कोविड के बाद खुले कॉलेजों में पूरा ध्यान छात्रों की फिजिकल लर्निंग को दुबारा दुरुस्त करने में लगाया जाता। नई शिक्षा नीति लाने में और नैक ग्रेडिंग में एक दो साल शिथिलता बरती जा सकती थी।
नुकसान को कांग्रेस का ही करेंगे नेताम
पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी समाज के एक प्रमुख संगठन, सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक अरविंद नेताम ने आखिरकार विश्व जनजातीय दिवस के दिन कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इसके पहले वे सालभर से यह कह रहे थे कि कांग्रेस में हैं भी या नहीं यह उन्हें मालूम नहीं। स्व. इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल रह चुके नेताम 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले ही दोबारा राहुल गांधी के आह्वान पर कांग्रेस में वापस आए थे लेकिन वे लगातार उपेक्षित रहे। इसकी परिणिति यह रही कि उन्होंने सर्व आदिवासी समाज को सामने रखकर कांग्रेस के खिलाफ भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में प्रत्याशी खड़ा किया। इसके बावजूद वे कांग्रेस से निकाले नहीं गए। पार्टी को शायद लगा होगा कार्रवाई करने से उनका कद बढ़ जाएगा।
अब इस्तीफा देने के बाद वे आजाद हैं। इस्तीफा देते वक्त उन्होंने पेसा कानून में बदलाव को प्रमुखता से उठाया है। कहा है कि कांग्रेस के विधायक आदिवासी अधिकारों को छीने जाने के इस फैसले पर चुप रहे, आवाज नहीं उठाई। अब देखते हैं वे इस बार यहां से चुनाव कैसे जीतते हैं।
नेताम के इस बयान से साफ होता है कि सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी कहीं से जीत पाएं या नहीं लेकिन कांग्रेस की हार का कारण जरूर बनेंगे। वैसे भी जब पूरी 12 सीट कांग्रेस के पास है तो भाजपा या सर्व आदिवासी समाज के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उन्हें कुछ न कुछ मिलेगा, नुकसान कांग्रेस को ही उठाना होगा।
यूपी, झारखंड के लिए रूम नहीं?
भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव ने एक तस्वीर के साथ एक पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की है। इसमें वे कह रहे हैं कि- काहे हो, मजदूर हमारा चाहिए, आईएएस हमारा चाहिए, छात्र की बात आए तो?
इस नोटिस बोर्ड को एनआईटी रायपुर के समीप स्थित एक प्राइवेट हॉस्टल के गेट का बताया गया है। इसमें कहा गया है कि यूपी, बिहार, झारखंड के छात्रों को रूम नहीं दिया जाता है।
पोस्ट की प्रतिक्रिया में कुछ राजनीतिक टीका-टिप्पणियां हैं। इसके अलावा एक ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को टैग किया है कि यहां पढऩे वाले 75 प्रतिशत छात्रों को प्राइवेट हॉस्टल में रहना पड़ता है। एनआईटी को यहां जल्द से जल्द हॉस्टल का निर्माण करने का निर्देश दिया जाए।
ये दुनिया वाले पूछेंगे मुलाकात हुई, क्या बात हुई...
विश्व आदिवासी दिवस पर उथल-पुथल
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर प्रदेश में बड़े राजनीतिक फैसले हुए हंै। गत वर्ष इसी दिन 9 अगस्त को भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटाकर बिलासपुर सांसद अरुण साव को पार्टी संगठन की कमान सौंपी थी। इस बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया। नेताम तो पिछले कई समय से पार्टी के खिलाफ मुखर थे, लेकिन वो पार्टी में बने रहे। उन्होंने अपने इस्तीफे के लिए विश्व आदिवासी दिवस का दिन चुना।
नेताम ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भेजे अपने इस्तीफे में भूपेश सरकार को आदिवासी विरोधी करार दिया। इससे परे सीएम भूपेश बघेल ने बुधवार को ही बस्तर, और सरगुजा के आदिवासी दिवस पर कार्यक्रम में कई घोषणाएं भी की। इनमें बीएड-डीएड कॉलेज खोलना भी शामिल है। भाजपा के आदिवासी नेताओं ने विश्व आदिवासी दिवस पर एकमात्र कार्यक्रम प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर भूपेश सरकार को कोसने का ही काम किया। कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव की वजह से आदिवासी दिवस काफी चर्चा में रहा।
गड्ढों की अच्छी तस्वीर खींचें
पूरे प्रदेश में खराब सडक़ों को लेकर आम नागरिक परेशान हैं। बारिश के बाद इनकी हालत और बुरी हो गई है। अफसर बारिश के बाद मरम्मत का नाम ले रहे हैं, पर लोग पूछ रहे हैं कि इतनी बेकार सडक़ बनाई ही क्यों जाती है जो बारिश होते ही उखड़ जाए। जांजगीर के युवा अपना गुस्सा जाहिर करने और सरकार, प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए- लबरा मुक्ति अभियान चला रहे हैं। उन्होंने गड्ढे भरी सडक़ के लिए सेल्फी और रील्स की प्रतियोगिता रखी है। एक वाट्सएप नंबर जारी किया गया है, जिसमें उन्होंने लोगों से अपने शहर, जिले की सडक़ों के साथ सेल्फी या रील्स भेजने कहा है। 17 अगस्त तक इसमें एंट्री ली जाएगी। 20 सबसे असरदार तस्वीर या रील्स को पुरस्कार भी दिए जाएंगे। अभियान का नाम रखा गया है सेल्फी विथ खंचवा ( गड्ढे के साथ सेल्फी)।
इधर शिकायत उधर ट्रेनें रद्द
देशभर के रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण की बड़ी योजना बनाई गई है। छत्तीसगढ़ के भी नौ स्टेशन इसमें शामिल किए गए हैं, जिनमें 1200 करोड़ रुपये से अधिक खर्च की योजना है। इस योजना के शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, मगर छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख स्टेशनों पर जनप्रतिनिधि बुलाए गए। वंदेभारत ट्रेनों का उद्घाटन भी ऐसे ही ताम-झाम से किया गया था। पर, छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली ट्रेनों को समय पर चलाने और लगातार रद्द करने की समस्या पर रेलवे की ओर से कुछ नहीं कहा गया, जिसे लेकर हजारों यात्री रोजाना परेशान होते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जब दो दिन पहले ट्रेनों को रद्द करने से आम लोगों को हो रही दिक्कत का मुद्दा उठाया तो रेलवे अफसरों ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब उनकी घोषणा से आया। पहले दिन 20 ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा की, दूसरे दिन 14 और ट्रेनों को रद्द कर दिया। इन ट्रेनों को पटरियों के रख-रखाव, नई बनी चौथी लाइन से बाकी ट्रैक को जोडऩे आदि के नाम पर निरस्त किया गया है। जब भी रेलवे ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा करती है, साथ में यह भी उल्लेख करती है कि इससे ट्रेनों की रफ्तार बढ़ेगी, समय से ट्रेनों को चलाने में मदद मिलेगी, यात्रियों की सुविधा बढ़ेगी। पर वह दिन कभी आ ही नहीं रहा। कभी हावड़ा रूट तो कभी कटनी रूट पर मरम्मत या अधोसंरचना विकास के नाम पर लगातार ट्रैन कैंसिल किए जा रहे हैं।
फ्लाइंग किस
खडग़े की जांजगीर में सभा इसलिए जरूरी
13 अगस्त को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े जांजगीर पहुंच रहे हैं। वैसे खडग़े फरवरी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में छत्तीसगढ़ आ चुके हैं। अब भरोसे का सम्मेलन में पहुंच रहे हैं। ऐसे ही सम्मेलन में प्रियंका गांधी बस्तर आ चुकी हैं।
खडग़े का कार्यक्रम कहीं और भी रखा जा सकता था लेकिन जांजगीर-चांपा जिले को ही इसके लिए क्यों चुना गया, इसके कुछ कारण साफ हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बिलासपुर संभाग की चार सीटों में से तीन इसी तरफ हैं। मस्तूरी, पामगढ़ और सारंगढ़। इनमें से मस्तूरी बिलासपुर जिले के भीतर होने के बावजूद जांजगीर जिले से सटा है। सारंगढ़ भी नए जिले का मुख्यालय बन चुका है, पर जांजगीर-चांपा जिले से लगा है।
चालीस साल पहले पूरा इलाका कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, इन्हीं अनुसूचित जाति वर्ग के समर्थन के चलते। लेकिन 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार कांशीराम मैदान में उतरे। इसके लिए उन्होंने जांजगीर को चुना। साल भर पहले ही उन्होंने साइकिल, बाइक से गांव-गांव दौरा शुरू कर दिया था। उनका लक्ष्य एसईसीएल, एनटीपीसी, बालको के दलित मतदाता भी थे। वहां वे बामसेफ के जरिये अपना आधार बढ़ा रहे थे। कांशीराम ने तब बहुजन समाज पार्टी का गठन कर लिया लेकिन राजनीतिक दल की मान्यता नहीं मिलने के कारण वे निर्दलीय उतरे। उन्होंने 32 हजार से अधिक वोट हासिल किये। यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था। देशभर से 401 सीटों का विशाल बहुमत कांग्रेस को मिला, जांजगीर से भी कांग्रेस के डॉ. प्रभात कुमार मिश्रा जीते। इसी दौरान सारंगढ़ सीट से दाऊराम रत्नाकर भी विधानसभा चुनाव लड़े और 34 हजार वोट पाकर वे भी हार गए। पर यहां बसपा की नींव पड़ गई और वह मजबूत होती गई। बसपा का एक न एक उम्मीदवार यहां से हर बार चुनाव जीतता है। मौजूदा विधानसभा में भी जैजैपुर से केशव प्रसाद चंद्रा और पामगढ़ से इंदु बंजारे बसपा से हैं। जैजैपुर की तरह अकलतरा भी सामान्य सीट है। यहां भी बसपा उम्मीदवार ऋचा जोगी सिर्फ 1800 मतों से पीछे रह गईं। यह सीट भाजपा के सौरभ सिंह के पास है। मस्तूरी आरक्षित सीट पर बसपा उम्मीदवार जयेंद्र पाटले दूसरे स्थान पर थे। 2013 में चुने गए कांग्रेस के दिलीप लहरिया तीसरे स्थान पर आ गए। दोनों को करीब 53-53 हजार वोट मिले। वोट ऐसे बंटे कि यहां भाजपा जीती, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी विधायक हैं। बीते चुनाव में जब कांग्रेस को विधानसभा में प्रचंड समर्थन मिला तब भी दो सीट भाजपा, दो सीट बसपा के पास चली गई और इतनी ही कांग्रेस को मिल पाई। यदि कोई सीट सामान्य है तो वहां पर भी भाजपा को लाभ मिलता रहा है।
हालांकि कांग्रेस ने हमेशा कहा है कि खडग़े राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपने अनुभव और योग्यता के कारण हैं, पर इस बात से कोई इंकार नहीं करता कि वे पार्टी के एक बड़े दलित चेहरा के रूप में भी उभरे हैं। बीते कुछ वर्षों में बसपा की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हुई है। इस मौके का लाभ कांग्रेस अपने खोये हुए दलित वोटों को हासिल करने के लिए उठा सकती है। दलित वोटों का झुकाव बसपा से कांग्रेस की ओर होने से भाजपा से लड़ाई कांग्रेस के लिए आसान हो जाएगी। खडग़े की सभा जांजगीर में रखने की रणनीति इसीलिए तैयार की गई है।
बसपा ने अकेले लडऩे का इशारा कर दिया
बहुजन समाज पार्टी ने 9 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर बाकी दलों से बाजी मार ली। उसने दोनों मौजूदा विधायकों केशव चंद्रा और इंदु बंजारे की टिकट बरकरार रखी है। इन सीटों में चार जांजगीर-चांपा, जैजैपुर, अकलतरा और बेलतरा सामान्य हैं। अकलतरा में पिछले चुनाव में बसपा कांटे की टक्कर में हार गई थी, जब उनका छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के साथ गठबंधन था। मस्तूरी में भी गठबंधन के चलते बसपा दूसरे नंबर पर थी। इस बार अकलतरा से डॉ. विनोद शर्मा को टिकट दी गई है। मस्तूरी में 2018 में वह दूसरे स्थान पर थी। यहां से पूर्व विधायक दाऊराम रत्नाकर को लड़ाया जा रहा है। बिलाईगढ़ सीट पर श्याम टंडन को फिर टिकट दी गई है। टंडन ने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था और कांग्रेस को करीब 9 हजार वोटों से जीत मिली थी। यहां से अभी चंद्रदेव प्रसाद राय विधायक हैं। जांजगीर-चांपा सामान्य सीट से अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता राधेश्याम सूर्यवंशी को टिकट दी गई है। यहां से पिछली बार ब्यास नारायण कश्यप लड़े थे, जो तीसरे स्थान पर थे। इस सीट पर अभी नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल विधायक हैं। बेलतरा विधानसभा सीट पर समझौते के तहत जेसीसी ने चुनाव लड़ा था। यहां तब उम्मीदवार कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले अनिल टाह उम्मीदवार थे। वे तीसरे स्थान पर जरूर थे लेकिन 38 हजार वोट उन्हें मिले। इसके चलते भाजपा के रजनीश सिंह की जीत आसान हो गई। बेलतरा सीट का पुराना नाम सीपत था, जहां से बसपा से रामेश्वर खरे विधायक रह चुके हैं। अर्थात, यह सीट भी बसपा के लिए महत्वपूर्ण है। इस बार रामकुमार सूर्यवंशी को टिकट दी गई है। ये सात सीटें वे हैं, जिनमें बसपा से या तो विधायक चुने जाते रहे हैं या फिर उसकी मजबूत उपस्थिति रही है। ये सभी सीटें बिलासपुर संभाग की हैं।
इसके अलावा बेमेतरा जिले के नवागढ़ और बलरामपुर जिले सामरी से उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। नवागढ़ सीट से बसपा को 11 प्रतिशत, करीब 18 हजार वोट मिले थे। यहां प्रत्याशी ओमप्रकाश बाचपेयी की टिकट बरकरार रखी गई है। घोषित सूची में एकमात्र अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट सामरी है जहां से इस बार आनंद तिग्गा लड़ेंगे, पिछली बार यहां से प्रत्याशी मिटकू भगत उम्मीदवार थे। उन्हें 4 प्रतिशत 6500 वोट मिले थे। इस हिसाब से उनकी जमानत भी नहीं बची थी।
परंपरागत रूप से आमने-सामने रहने वाले दल कांग्रेस और भाजपा के साथ तो बसपा के गठबंधन की कोई गुंजाइश छत्तीसगढ़ में है नहीं, पर कई दूसरे दल हैं, जो बसपा से तालमेल की संभावना ढूंढ रहे थे। इनमें सर्व आदिवासी समाज प्रमुख है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के अलावा अन्य सीटों पर कुल 50 प्रत्याशी खड़ा करने का ऐलान कर चुका है। कुछ समय पहले जेसीसी के अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी ने कहा था कि बसपा से पिछले चुनाव में गठबंधन हमारी भूल थी। पर, 2023 के लिए उनका रुख स्पष्ट नहीं है। फिलहाल, बसपा ने 9 उम्मीदवारों की घोषणा कर बाकी दलों को यह संदेश तो दे ही दिया है कि यदि कोई दल गठबंधन करना चाहता है तो वह ऐसा अपने ही शर्तों पर करेगी।
बीजेपी के सामने मुश्किलें कम नहीं
भाजपा के कई बड़े नेता इस बार प्रत्याशी के रूप में नजर नहीं आएंगे। बिलासपुर संभाग के एक बड़े नेता को विधानसभा चुनाव नहीं लडऩे के लिए कहा जा चुका है, और अब चर्चा है कि बस्तर के एक प्रमुख नेता को भी बता दिया गया है कि उन्हें विधानसभा के बजाए लोकसभा का चुनाव लडऩा होगा।
कहा जा रहा है कि बस्तर के नेता को सारा ध्यान संगठन पर केन्द्रित करने के लिए कहा गया है। चर्चा है कि नेताजी ने पार्टी के रणनीतिकारों को अपनी जगह भाई को उतारने का सुझाव भी दिया है, लेकिन रणनीतिकारों ने उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है। रणनीतिकारों ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि पार्टी के सर्वे में उपयुक्त पाए जाने पर ही भाई के नाम पर विचार होगा।
चर्चा यह भी है कि पार्टी के रणनीतिकार दो बुजुर्ग विधायकों की जगह नए चेहरे को आगे लाने पर भी विचार कर रहे हैं। मगर दिक्कत यह है कि दोनों ही बुजुर्ग विधायकों का मजबूत विकल्प नहीं मिल पा रहा है। बुजुर्ग विधायक अपने ही परिवार के सदस्यों को आगे करना चाहते हैं। यही नहीं, बुजुर्ग विधायकों की सिफारिश को अनदेखा करने पर बगावत का भी अंदेशा है। देखना है कि पार्टी बुजुर्ग नेताओं को कैसे समझाती है।
मोदी की सभा का जिम्मा
पीएम नरेंद्र मोदी की रायगढ़ सभा के लिए पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को भाजपा ने व्यवस्था प्रभारी बनाया है। पीएम का 17 तारीख को रायगढ़ में कार्यक्रम प्रस्तावित है। साथ ही वो शहर से सटे पांडातराई इलाके में सभा को संबोधित करेंगे। सभा में करीब एक लाख लोगों को लाने का टारगेट दिया गया है।
प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और सह प्रभारी नितिन नबीन सभा को सफल बनाने के लिए लगातार बैठकें कर रहे हैं। चौधरी रायगढ़ कलेक्टर रह चुके हैं, और वो खरसिया सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़े हैं। ऐसे में तमाम व्यवस्थाओं में उनकी अहम भूमिका रहेगी।
सभा की तैयारियों में एक कारोबारी की सक्रियता की पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है। हालांकि कुछ समय पहले कारोबारी के यहां एक केन्द्रीय एजेंसी ने रेड की थी। देखना है कि कारोबारी को आगे मदद मिलती है या नहीं।
मधुमक्खियों का खौफ है या और बात?
इसी साल मुख्यमंत्री के हाथों 26 जनवरी को उद्घाटित जगदलपुर के लामनी स्थित पक्षी विहार की बारिश के बाद सुंदरता देखते ही बनती है लेकिन 2 महीने से लोगों का प्रवेश बंद कर दिया गया है। वन विभाग ने एक सूचना प्रवेश द्वार पर चिपका दी है जिसमें चिडिय़ाघर के बंद होने की जानकारी दी गई है। बताया गया है कि यहां पर मधुमक्खियों के कई छत्ते बने हुए हैं, आने जाने वाले लोगों पर वे हमला कर सकते हैं। दूसरी तरफ मधुमक्खियों की वजह बता कर लंबे समय से पार्क को बंद रखने को लेकर लोग आशंका भी जता रहे हैं। सवाल किया जा रहा है कि अगर मधुमक्खियों के छत्ते खतरनाक तादाद में इतने दिनों से हैं तो उन्हें हटाया क्यों नहीं जाता? बस्तर में प्राकृतिक रूप से बने छत्तों से शहद निकालने वाले बड़ी संख्या में पारंपरिक रूप से जानकार लोग हैं। कुछ लोगों का यह आरोप है कि पार्क के भीतर मौजूद पक्षियों की लगातार मौत हो रही है, जिसकी जानकारी वन विभाग के अफसर बाहर निकलने नहीं देना चाहते। वैसे, यहां पक्षियों की देखभाल के नाम पर स्टाफ को प्रवेश करने की अनुमति है।
डीएमएफ में अब दिखी गड़बड़ी
बीते महीनों में कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू पर डीएमएफ में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने मुख्यमंत्री और अफसरों को चि_ी लिखी। वह वायरल भी हुई। उस समय भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने रानू साहू का बचाव करते हुए प्रेस रिलीज जारी किया था और आरोप लगाया था कि मंत्री अपनी मर्जी से काम नहीं होने के कारण कलेक्टर से नाराज चल रहे हैं, दबाव बना रहे हैं, जबकि उनका काम सही है। अब कंवर ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और पूर्व कलेक्टर संजीव झा और रानू साहू के अलावा डीएमएफ के सचिव, जिला पंचायत सीईओ नूतन कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की है।
शायद वक्त की नजाकत को देखते हुए कंवर ने रुख बदल लिया। कंवर ने जब रानू साहू के समर्थन में कहा था तब वे उनके जिले की कलेक्टर थीं। तब वह लड़ाई कोरबा की स्थानीय राजनीति की थी। आज रानू साहू जेल में हैं, और डीएमएफ में गड़बड़ी को बीजेपी ने सरकार के खिलाफ चुनावी मुद्दा बना लिया है।
नया कानून कितना असरदार?
छत्तीसगढ़ में जुएं और सट्टे के गैर कानूनी कारोबार पर कानून लचीला होने की ओर सरकार का पिछले साल ध्यान गया था और छत्तीसगढ़ जुआ प्रतिषेध विधेयक, 2022 पारित किया गया था। पुराने कानून में ऑनलाइन सट्टा परिभाषित नहीं था। जुआ पर पुराने कानून में 4 महीने की जेल और 100 से लेकर 500 रुपए जुर्माने का प्रावधान था। इसे बढ़ाकर छह महीने की जेल की गई और 10 हजार रुपए जुर्माना किया गया। ऑनलाइन जुआ खेलने खिलाने पर सात साल तक की कैद और 10 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया। थाने की जगह कोर्ट को रिहा करने का अधिकार मिला। इन सब के बावजूद ऑनलाइन सट्टे का कारोबार अकेले छत्तीसगढ़ में अरबों रुपए तक पहुंच चुका है। हजारों लोग नियमित रूप से इसमें दांव लगा रहे हैं और नए लोग रोजाना जुड़ रहे हैं। नया कानून कितना खौफ पैदा कर पाया इसकी बानगी भी देखने कम नहीं मिलती। राजधानी पुलिस ने महादेव एप से क्रिकेट का बड़ा ऑनलाइन नेटवर्क चलाने के आरोप में सिमर्स क्लब के संचालक नितिन मोटवानी को पकड़ा शनिवार को। पुलिस ने उसे बड़ी कामयाबी बताई, पर सोमवार को ही वह कोर्ट से जमानत पर छूट गया। आसान रिहाई इसके बावजूद कि इस केस में कुछ अन्य आरोपियों के खिलाफ रायपुर पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी कर रखा है।
डीएमएफ पर ईडी की नजर से...
डीएमएफ में गड़बड़ी की ईडी पड़ताल कर रही है। फंड बनने के बाद से जिलों में यदा-कदा शिकायतें आती रही हैं। सत्ता हो या विपक्ष, दोनों पक्ष के सदस्य विधानसभा में मामला उठा चुके हैं। चूंकि डीएमएफ से जिला स्तर पर काम स्वीकृत हो जाता है, और भुगतान में भी देरी नहीं होती है, इसलिए डीएमएफ से काम के लिए मारामारी रहती है। और अब जब ईडी ने पड़ताल शुरू की है, तो पंचायत स्तर पर हलचल मच गई है।
सुनते हैं कि डीएमएफ से पंचायतों को अधोसंरचना मद से काम स्वीकृत हुए थे। एक-दो जगह में तो एक-दो किश्त जारी भी हुए। मगर आगे की किश्त लेने के लिए सरपंच, और पंचायत प्रतिनिधियों ने दबाव बनाना बंद कर दिया है। इससे पहले तक पंचायत के लोग डीएमएफ फंड के लिए कलेक्टोरेट के चक्कर लगाते थे, लेकिन ईडी की जांच के चलते निचले स्तर तक भय का माहौल बन गया है। चुनाव आचार संहिता के लगने से जिला मुख्यालय से लेकर पंचायत तक डीएमएफ से निर्माण कार्य स्वीकृत कराने की होड़ मची हुई थी। यह तकरीबन बंद हो चुका है। इससे विशेषकर सत्तापक्ष से जुड़े लोग निराश हैं।
रूबरू इम्तिहान से खुल गई पोल
दो साल बाद प्रदेश के विश्वविद्यालयों में ऑफलाइन परीक्षा हुई, तो विद्यार्थियों की पढ़ाई का स्तर भी पता चला है। कोरोना काल में घर बैठकर प्रश्न पत्र हल करने की सुविधा थी। इसका विद्यार्थियों ने खूब फायदा उठाया, और दो साल तक सबको मनमाफिक नंबर मिल गए। अब जब कॉलेजों में प्रश्न पत्र हल करने की बारी आई, तो पोल खुल गई। तकरीबन सभी विश्वविद्यालयों में विशेषकर स्नातक स्तर की परीक्षाओं के रिजल्ट खराब आए हैं।
एनएसयूआई ने सीएम से मिलकर दो विषय में पूरक परीक्षा की पात्रता देने के लिए गुहार लगाई है। सरकार इस पर विचार भी कर रही है। मगर शिक्षाविद इससे सहमत नहीं हैं। एक सरकारी विवि के विधि विभाग के एक प्रोफेसर ने उत्तरपुस्तिका को लेकर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बीए एलएलबी की एक छात्रा ने उत्तर पुस्तिका में अपनी पारिवारिक स्थितियों का जिक्र किया, और लिखा कि उनकी सगाई हो चुकी है, और शादी होने वाली है। ऐसे में जीवन आपके हाथ में है।
इसी तरह कई परीक्षार्थी तो प्रलोभन भी दे रहे हैं, और अपना मोबाइल नंबर तक लिखे हैं। ऐसे सैकड़ों किस्से सामने आ रहे हैं। इन सबको देखकर शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय के लोग किसी तरह की छूट के खिलाफ हैं। मगर चुनाव को देखते हुए सरकार क्या कुछ करती है यह देखना है।
4 लाख भी डूबे तबादला भी नहीं
इस समय पैसा कमाने के लिए पसीना बहाने की जरूरत नहीं पड़ती । बस थोड़ी सी बुद्धि की जरूरत होती है। ऐसे ही एक अफसर ने बुद्धि लगाकर कमा लिए चार लाख। मामला है पढऩे पढ़ाने वाले विभाग का है। इसी विभाग के एक अफसर को दबंग महिला एसीएस हाल में निकाल बाहर कर चुकी हैं। हम एक नये मामले की बात बता रहे हैं।
डेढ़ दशक से एक ही शिक्षा संस्थान में कार्यरत सहायक प्राध्यापक राजधानी या आसपास तबादले के लिए जोर लगाया । मंत्री, संत्री सबको आवेदन दिया। काम नहीं बना। आखिरी में गांधीजी के अनुयायी एक अफसर से मुलाकात हुई। बात चार लाख में पटी। भुगतान भी कर दिया। इससे पहले कि यह अफसर विभाग के सचिव से चिडिय़ा बिठवाते सचिव का तबादला हो गया और ये अफसर भी विभाग से चलता कर दिए गए। अब वो सहायक प्राध्यापक फिर चक्कर काट रहे हैं।
कितने पानी में हैं, आजमा लीजिए...
इस बार विधानसभा चुनाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का पहले से कहीं ज्यादा इस्तेमाल होने जा रहा है। जो नेता इन पर सक्रिय नहीं थे वे अचानक वाट्सएप पर गुड मॉर्निंग, गुड नाइट संदेश देने लगे हैं। फेसबुक में कई कांग्रेस भाजपा और दूसरे दलों के नेताओं ने नए नए पेज तैयार किए हैं और थोक में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहे हैं। फैन्स क्लब पेज बन रहे हैं। कांग्रेस भाजपा दोनों ने ही सोशल मीडिया कैंपनिंग के लिए अपनी-अपनी टीम बना ली है। सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएंशनर्स की पूछ-परख दोनों दलों में बढ़ गई है। अलावा इसके आम आदमी पार्टी भी सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर सक्रिय है।
इधर कुछ वेबसाइट और ऐप्स भी लोगों को काम में लगाकर माहौल चुनावी बनाने में मदद कर रहे हैं, जिसके जरिये संभावित दावेदार अपने को तौल रहे हैं। राइजिंग पोल जैसी कुछ वेबसाइट हैं, जिसमें टिकट का इच्छुक कोई नेता अपनी स्थिति को तौल सकता है। एक पोल क्रियेट करिये, अपनी और दूसरे दावेदारों की सूची बनाकर लोगों से पूछिये कि आप इनमें से किसे विधायक के रूप में देखना पसंद करेंगे। लोग अपनी पसंद के विकल्प पर क्लिक कर देते हैं और सामने रिजल्ट दिखाई देने लगता है। जिनको लिंक भेजा गया है, परिणाम को वे ही देख सकते हैं, कोई दूसरा नहीं। इसलिये यदि किसी दावेदार को बेहद कम वोट मिल रहे हैं, तब भी इसका पता उन लोगों को ही चलेगा, जिन्होंने पोल में भाग लिया है।
जाहिर है दावेदार यह लिंक अपने परिचितों, संपर्कों और समर्थकों को ज्यादा भेज रहे हैं। इससे पोल उनके पक्ष में दिखाई देता है। पर हर बार ऐसा नहीं होता। कांग्रेस के एक भूतपूर्व विधायक को बड़ी निराशा हुई। उन्होंने पोल क्रियेट किया और अपने संपर्कों को वोटिंग के लिए लिंक भेजा। नतीजा, यह रहा कि उसके विरोधी दावेदार के मुकाबले बेहद कम वोट मिले। विरोधी को हजारों वोट मिल गए, खुद वे हजार भी क्रास नहीं कर पाए। उन्होंने चार दिन के भीतर ही पोल डिलीट कर दिया। वेबसाइट में यह ऑप्शन भी मिलता है कि आप पोल को किसी भी समय डिलीट कर सकते हैं।
रियलटी शो में अबूझमाड़ का दर्द
जैसा आप लोग सामान्य जिंदगी जी रहे हैं, अबूझमाड़ में ऐसा कुछ नहीं है...। हमें वहां बहुत डर लगा रहता है। अबूझमाड़ एक नक्सली एरिया है.., लेकिन आज यहां लाइट में आए, हम लोगों बहुत अच्छा लग रहा है। यहां जो खाना खाया वह नसीब नहीं होता हम लोगों को..। यह हमारी पहली पीढ़ी है जिसने पढ़ाई की है...। हम चाहते हैं, वहां हम और हमारे परिवार के लोग सुरक्षित रहें। मगर वहां यह माहौल नहीं है। वहां पर जीना आसान नहीं है। हम लोग बरसात आने से पहले 4 माह का खाना इक_ा करके रख लेते हैं, क्योंकि वहां छोटे बड़े पुल पुलिया टूट कर बह जाते हैं...।
सोनी टीवी पर इन दिनों चल रहे एक बड़े पापुलर शो- इंडियाज गॉट टैलेंट में अबूझमाड़ मलखंभ अकादमी की टीम ने हैरतअंगेज शारीरिक कौशल दिखाया। शायद छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोगों को भी मालूम नहीं था कि बस्तर के सबसे दुरूह माने जाने वाले इलाके अबूझमाड़ में बच्चों को इतनी अच्छी मलखंब ट्रेनिंग मिल रही है।
ऊपर लिखी बातें अबूझमाड़ के बारे में अकादमी के सीनियर ग्रुप के एक युवक ने मंच से बताई। भले ही इस तरह के टीवी शो में बहुत सारे इमोशनल सीन जानबूझकर डाले जाते हैं, स्क्रिप्टेड भी होते हैं, पर मनोरंजन के चैनल देखने वाले लाखों दर्शकों तक अबूझमाड़ से बाहर निकलकर मुंबई पहुंचे युवक अपनी बात रख पाए।
जो तीन होस्ट इस कार्यक्रम में थे, उनमें एक किरण खेर थीं, जो चंडीगढ़ से सांसद भी हैं। उन्होंने सरकार का थोड़ा बचाव किया, कहा- सरकार काफी काम कर रही है। आगे और भी होगा। दूसरे होस्ट बादशाह थे, जो पहले भी बस्तर के एक छात्र सहदेव दिर्दो को प्रमोट कर चुके हैं। तीसरी होस्ट शिल्पा शेट्टी थीं, जिन्हें अबूझमाड़ नाम ही ठीक तरह से बोलते नहीं बन रहा था। कह रही थीं- अबू-झमाड़।
लगता है एक टिकट तय हो गई...
विधानसभा चुनाव के लिए किसी दल ने अभी अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। मगर चुनाव प्रचार शुरू हो गया है। वह भी चुनाव चिन्ह के साथ। सिहावा विधानसभा क्षेत्र से एक महिला नेत्री मादाल्सा ध्रुव ने कमल फूल पर दावा भी ठोंक दिया है। इस परचे से ऐसा ध्वनित हो रहा है कि उनकी टिकट भाजपा ने तय कर दी है। वैसे 2018 में इन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। 1155 वोटों के साथ उनकी जमानत जब्त हो गई थी। पर कांफिडेंस काबिल-ए-तारीफ है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट से विधायक फिलहाल कांग्रेस की लक्ष्मी ध्रुव हैं। उन्होंने भाजपा की पिंकी शाह को 44 हजार से ज्यादा वोटों के विशाल अंतर से हराया था। इस अंतर को देखते हुए भाजपा उन्हें रिपीट करने के बारे में इस बार शायद न सोचे। पर, पार्टी के पास विकल्प की कोई कमी नहीं है। एक नाम तो सामने ही है।
सडक़ों पर मवेशी हांकते अफसर
कुछ दिन पहले हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने सडक़ों पर मवेशियों के डटे रहने को लेकर सख्त आदेश दिया। पहले भी कई बार हाईकोर्ट का आदेश इसे लेकर हो चुका है। तब प्रशासन की तरफ से यह कोशिश की गई कि बिलासपुर शहर, हाईकोर्ट और हाईकोर्ट आवासीय परिसर के आसपास मवेशियों को फटकने से रोका जाए, जहां से जस्टिस गुजरते हैं। पर दूसरी सडक़ों पर स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। एक मवेशी को पालने का खर्च रोजाना डेढ़ सौ के आसपास है। जब पशुपालकों को इनसे आमदनी नहीं होती तो वे इन्हें खुला छोड़ देते हैं। कहीं बेचने के लिए नहीं ले जा सकते। गौ-रक्षकों का डर बना रहता है।
अब हाईकोर्ट ने हाल के आदेश में जिला स्तर से लेकर पंचायत तक समितियां बनाने का आदेश दिया है। राज्य स्तर की एक समिति भी होगी, जिसमें मुख्य सचिव को शामिल करने कहा गया है। सडक़ पर मवेशियों के डेरा डालने पर इसी समिति को जवाबदेह माना जाएगा। समिति को जिम्मेदारी है कि वह इन्हें सडक़ों पर आने से रोके, मवेशियों के मालिक का पता करे। उनकी नंबरिंग करे।
इस आदेश को पहले की तरह हल्के में लेना प्रशासन के लिए मुश्किल हो रहा है। दरअसल, जैसे ही समय मिल रहा है नए चीफ जस्टिस जिला अदालतों के दौरे पर निकल जाते हैं। यह पिछले कई हफ्ते से हो रहा है। बिलासपुर, जांजगीर, मुंगेली, बेमेतरा, धरसीवां आदि का दौरा वे कर चुके हैं। अभी तो बस्तर से लेकर सरगुजा तक कई अदालतों को सडक़ मार्ग से तय करना बाकी है। कल चीफ जस्टिस धरसीवां के दौरे पर निकले तो सडक़ पर तहसीलदार, कोटवार और कई वालेंटियर जमे रहे और उनका प्रवास खत्म होने तक मवेशियों को हांकने का काम करते रहे।
सडक़ पर धान की खेती
भाजपा के पोल खोल अभियान के जवाब में कांग्रेस की ओर से एक सुनहरा आंकड़ा सामने आया है। इसमें बताया गया है कि रमन सरकार के समय के गड्ढे भी भाजपा पाट रही है और नई सडक़ें भी बनाई जा रही हैं। तब हर साल 218 किलोमीटर सडक़ बनती थी, अब 330 किलोमीटर बनती है। तब हर साल 19 हजार सडक़ दुर्घटनाएं होती थीं, अब उसमें भारी कमी आई है।
पर अब यह तस्वीर भी देख लीजिए। सक्ती जिले के डभरा से चंद्रपुर जाने वाली सडक़ है। बीजेपी कार्यकर्ता इसके गड्ढों में उतरकर धान की रोपाई कर रहे हैं। वैसे कुछ ऐसे दृश्य हमें भाजपा सरकार के दिनों में दिख जाते थे, तब कांग्रेस सडक़ पर उतरती थी। सरकार बदली है, समस्या वहीं है।
योगदान और नाराजगी
पीएम नरेन्द्र मोदी रविवार को रायपुर रेलवे स्टेशन के विस्तारीकरण के करीब 470 करोड़ के कार्यों का भूमिपूजन करेंगे। इस कार्य स्वीकृत कराने के लिए भाजपा नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में सांसद सुनील सोनी को बधाईयां दी जा रही है। मगर पार्टी के कई नेता ऐसे भी हैं जो सांसद महोदय के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं। ऐसे असंतुष्ट नेता सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास भी निकाल रहे हैं।
एक नेता ने लिखा कि पीएम की वजह से योजना पास हुई है। सांसदजी एक खंभा तक नहीं हटवा सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा कि एम्स के संविदा कर्मचारियों पर विपत्ति आई है। उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है। यदि सांसद में दम है तो उसे रूकवाकर बताए। सुनील सोनी की पहल पर न सिर्फ रायपुर बल्कि तिल्दा रेल्वे स्टेशन में सुविधाएं बढ़ाने के लिए 30 करोड़ स्वीकृत हुए हैं। इतना सब होने के बाद भी बहुत से काम रह जाते हैं। जिसको लेकर लोगों की नाराजगी यदा-कदा सामने आ जाती है। खैर, कुछ तो लोग कहेेंगे...।
बुरे फंसे कलेक्टर
बिलासपुर कलेक्टर संजीव कुमार झा की पहली ही पत्रकार वार्ता के बाद विवाद खड़ा हो गया। विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में उन्होंने पत्रकार वार्ता रखी। इस बहाने पत्रकारों से उनकी मुलाकात भी हो गई। अगले दिन एक बड़े अखबार में खबर छपी कि बुजुर्गों, विकलांगो और असमर्थ लोगों के घर तक ईवीएम मशीन लेकर मतदान कर्मचारी वोट डलवाने के लिए जाएंगे, ऐसा कलेक्टर ने कहा है। सबको हैरानी हुई कि ईवीएम मशीन को घर तक ले जाने का फैसला निर्वाचन आयोग ने कब ले लिया? खबर राज्य निर्वाचन आयोग के पास पहुंची। आयोग ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है और साथ ही जिला प्रशासन से कहा गया कि इस खबर का खंडन करें। इसके बाद एक प्रेस विज्ञप्ति उप जिला निर्वाचन अधिकारी ने निकाली। अखबार का नाम लिखते हुए इस विज्ञप्ति में कहा गया कि इसने गलत खबर छाप दी है। उस खबर को जिस रिपोर्टर ने कवर किया और छापा वह भी तैश में आ गया। उसने रिकॉर्डेड वीडियो वायरल कर दिया, जिसमें कलेक्टर यह कह रहे हैं कि ईवीएम मशीन पूरी सुरक्षा के साथ बुजुर्ग और दिव्यांगों के घर तक ले जाई जाएगी।
बजाय इसके कि कलेक्टर अपनी जुबान फिसलने और अधूरी जानकारी होने के लिए खेद जता देते, उन्होंने अखबार पर ही दोष मढ़ दिया। बाद में संशोधित विज्ञप्ति जारी करके मामला ठंडा किया गया।
75 साल का स्कूली छात्र
सीखने-समझने की कोई उम्र नहीं होती। इसे एक बार फिर साबित किया मिजोरम म्यांमार सीमा के चंपई जिले के 78 वर्षीय लालरिंगथारा ने। एक चर्च में गार्ड के रूप में काम करने वाले इस व्यक्ति ने अपने गांव खुवांगलेग से 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में दाखिला लिया है। अपनी बेहद कम आमदनी से जीवन यापन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लालरिंगथारा ने अपनी शिक्षा ग्रहण करने की अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए स्कूल में दाखिला लिया है। रोजाना पैदल जा रहे हैं।
आपको याद होगा छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इसी साल कॉलेजों में नियमित छात्र के रूप में दाखिला लेने की उम्र सीमा का बंधन खत्म कर दिया है। यह दूसरी बात है कि इस बंधन को खत्म हो जाने के बाद भी बहुत कम बुजुर्ग दाखिला ले रहे हैं। मिजोरम के लालरिंगथारा से ऐसे लोग प्रेरणा ले सकते हैं।
एक ने ही किया सलाम
मध्यप्रदेश पुलिस से सेवानिवृत्त डॉग्स को अफसरों-सिपाहियों ने विदाई दी। इनमें से कोई डॉग एसपी तो डीआईजी और आईजी स्तर का पदधारी था। पुलिस ने विदाई समारोह का वीडियो सोशल मीडिया में शेयर किया। वीडियो में एक बात ध्यानाकृष्ठ कर रही है कि आठ डॉग अफसर्स में से एक ने ही ले-डाउन कर सलामी दी।
हमसफर से हमदर्दी
मंत्रालय का जीएडी केंद्रीय एजेंसियों की जांच के घेरे में आए अफसरों के प्रति पूरी सहानुभूति बरते हुए। हो भी क्यों, आखिर वे अपने ही तो हैं। मसला जेल में बंद अफसरों के निलंबन का है। जेल यात्री अफसरों का निलंबन आदेश जारी करने में विभाग किंचित भी जल्दबाजी नहीं कर रहा है। और जब जारी करता है तो किसी को भी कानो कान खबर भी नहीं लगती।
रायपुर से लेकर दिल्ली तक दो दर्जन संबंधितों को निलंबन की सूचना देने के बजाए आईएएस अफसरों की वेबसाइट में एंट्री कर दे रही है। कोल स्कैम में फंसे आईएएस समीर विश्नोई की गिरफ्तारी के महीने भर के बाद कैडर लिस्ट में निलंबन की एंट्री दर्ज की गई थी। जबकि सरकारी अफसर यदि 48 घंटे जेल में रहते हैं, तो उन्हें निलंबित करने का नियम है।
आईएएस अफसर रानू साहू के जेल जाने के हफ्तेभर बाद अब जाकर वेबसाइट में निलंबन की इंट्री की गई। खास बात यह है कि विश्नोई के निलंबन आदेश की गई देरी पर डीओपीटी ने नाराजगी जताई थी। वैसे निलंबन आदेश में देरी का यह सिलसिला माइनिंग अफसर एसएस नाग, एपी त्रिपाठी तक जारी है।
कहा जा रहा है कि लिकर केस में फंसे त्रिपाठी को लेकर मूल विभाग डीओटी को जीएडी ने अब तक गिरफ्तारी की सूचना ही नहीं भेजी है। सरकार मानती है कि कोई स्कैम नहीं हुआ है। केंद्रीय एजेंसियों ने अफसरों-कारोबारियों को बेवजह फंसाया है। स्वाभाविक है कि निलंबन की कार्रवाई मजबूरी में की जा रही है। ऐसे में आदेश निकलने में देरी तो होगी ही।
जेल से सीधे भाजपा
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में पिछले दिनों बीरगांव के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश देवांगन समेत कई प्रमुख नेता, और सामाजिक कार्यकर्ता प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के सामने भाजपा में शामिल हुए। इस मौके पर एक रिटायर्ड शिक्षा अधिकारी जीआर चंद्राकर के भाजपा प्रवेश पर पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है।
चंद्राकर कुछ माह पहले ही जेल से छूटे हैं। उन पर छात्रवृत्ति घोटाले सहित कई गंभीर आरोप हैं। जिसकी जांच भी चल रही है। सुनते हैं कि चंद्राकर को पार्टी में शामिल करवाने में संवैधानिक पद पर आसीन एक दिग्गज नेता की भूमिका अहम रही है। चंद्राकर, नेताजी के साले के करीबी मित्र हैं। और जब पार्टी पदाधिकारियों के पास नेताजी का फोन आया, तो किसी ने भी चंद्राकर को पार्टी में शामिल करने का विरोध नहीं किया।
चंद्राकर करीबियों का तर्क है कि कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ भी केंद्रीय एजेंसियां जांच कर रही है। ऐसे में उनके भाजपा प्रवेश पर सवाल नहीं उठना चाहिए। तर्क में दम तो है।
दिल्ली में मुलाकात का राज
संसद सत्र के बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और शिवरतन शर्मा की जोड़ी दिल्ली में हैं। दोनों ने पहले केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की, और फिर केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिलने गए।
दोनों नेता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात के लिए प्रयासरत हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खेमे के माने जाते हैं। मगर चर्चा है कि दोनों ने बृजमोहन से संबंध बिगाड़े बिना पार्टी के भीतर अपनी अलग लाइन तैयार कर ली है। और जब भी दिल्ली जाते हैं, साथ-साथ राष्ट्रीय नेताओं से मिलते हैं।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी पिछले दिनों दिल्ली में थे, लेकिन उनकी केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान से ही मुलाकात हो पाई। वो राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा से मिलने के लिए प्रयासरत थे। नड्डा से तो वो नहीं मिल पाए, अलबत्ता उनके हनुमान आकाश विग की मुलाकात नड्डा से हो गई। एक और वजह से बृजमोहन दिल्ली में राष्ट्रीय नेताओं से नहीं मिल पाते हैं। यह कि वो देर से सोकर उठते हैं। और ज्यादातर नेता सुबह ही मेल मुलाकात करते हैं। खैर, चुनाव के समय राष्ट्रीय नेताओं से मेल मुलाकात के दौरान कुछ गंभीर चर्चा तो होती ही है।
पारंपरिक खानपान का कमाल
छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक में सुंदरकेरा गांव की बूढ़ी दाई सेवती विश्वकर्मा का उत्साह देखने लायक हैं। बेपरवाह गेड़ी पर दौड़ लगा रही है और पीछे-पीछे जोश बढ़ाने के लिए 50 बच्चे दौड़ रहे हैं।
सुना करो मन की बात
भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष यूपी के अलावा छत्तीसगढ़ में भी संगठन में प्रभारी महामंत्री हैं। यूपी से खबर है कि उन्होंने तमाम जिला अध्यक्षों को नोटिस जारी करके पूछा है कि पिछले महीने के आखिरी रविवार को हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को कितने लोगों ने सुना? बीजेपी ने एक ऐप बनाया है जिसका नाम रखा है सरल। जो लोग मोदी के मन की बात सुनते हैं, उनको सरल ऐप में फोटो या वीडियो अपलोड करना जरूरी है। यूपी में इसका बड़ा खराब नतीजा देखा गया। लाखों भाजपा कार्यकर्ताओं में से सिर्फ 12000 लोगों ने वीडियो फोटो अपलोड की है। जिस वक्त मन की बात हो रही थी, बीएल संतोषी रायपुर में ही थे। अंदर की खबर बीजेपी से बाहर ज्यादा निकलती नहीं है इसलिए यह पता नहीं कि छत्तीसगढ़ में मन की बात सुनने के बाद कितने लोगों ने सरल ऐप में फोटो वीडियो डाली। यूपी में तो नोटिस जारी हो गया लेकिन यहां कोई हलचल नहीं है। संतोष जी क्या छत्तीसगढ़ में सुनने वाले की संख्या से संतुष्ट थे?
ऐसे खत्म हुई हड़ताल...
संविदा कर्मियों की हड़ताल नाटकीय अंदाज में खत्म हुई। चर्चा है कि हड़ताल खत्म करवाने में कांग्रेस के संचार विभाग के मुखिया सुशील आनंद शुक्ला की अहम भूमिका रही है।
बताते हैं कि हड़ताली कर्मचारी सुशील के संपर्क में थे, और नियमितीकरण की मांग पर सीएम से ठोस आश्वासन चाह रहे थे। सुशील ने सीएम से चर्चा का भरोसा दिलाया, लेकिन पेंच उस वक्त फंस गया जब सीएम ने कह दिया कि पहले हड़ताल खत्म करें तभी बातचीत करेंगे। इसके बाद सुशील ने कर्मचारियों को हड़ताल खत्म करने के लिए राजी किया।
हड़ताल खत्म होने के बाद हड़ताली कर्मचारी सीएम से मिले, और सीएम ने उनकी मांगों पर विचार करने की बात कही। पहले ही उन्हें 27 फीसदी की वेतन वृद्धि दी जा चुकी है।
नियमितीकरण पर विचार तो चल ही रहा है। ऐसे में आश्वासन के अलावा और कुछ कहा नहीं जा सकता था। 21 संविदाकर्मियों के बर्खास्त होने के बाद कर्मचारियों पर हड़ताल खत्म करने का दबाव भी था। इसलिए वो आश्वासन पर ही हड़ताल खत्म करने तैयार हो गए।
बीएल संतोष, और बैज में गुफ्तगू
भाजपा संगठन के बड़े नेता बीएल संतोष, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का बुधवार को उस वक्त आमना-सामना हुआ, जब दोनों ही दिल्ली जाने के लिए माना एयरपोर्ट पहुंचे थे। वहां वीआईपी लाउंज में संतोष को छोडऩे आए पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने उनका बैज से परिचय कराया।
आपसी चर्चा में बैज ने बृजमोहन की तारीफों के पुल बांधे। उन्होंने संतोष को बताया कि विधायक बनने के बाद बृजमोहनजी से काफी कुछ सीखने को मिला। अपने नए दायित्व के बारे में बैज ने संतोष को बताया कि प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाले अभी उन्हें 10 दिन ही हुए हैं। वो बस्तर तक ही सीमित थे, और अब प्रदेश के दौरे पर निकले हैं। इस दौरान संतोष, और बैज के साथ फोटो खिंचवाने की होड़ मच गई। दोनों नेताओं ने फोटो खिंचवाने में परहेज भी नहीं किया।
खबर किसने लीक की...
चर्चा है कि भाजपा की अहम बैठक की खबर लीक होने के मामले को पार्टी के रणनीतिकारों ने गंभीरता से लिया है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष, और प्रदेश प्रभारी ओम माथुर चुनिंदा नेताओं के साथ चुनावी तैयारियों पर चर्चा कर रहे थे।
बैठक में कार्यालय मंत्री नरेश गुप्ता को चुनाव आयोग संपर्क सेल के दायित्व से मुक्त करने के निर्देश दिए गए। इसके अलावा कुछ और दिशा निर्देश दिए गए। बैठक खत्म होते ही चंद मिनटों के भीतर तमाम जानकारियां सोशल मीडिया पर आ गई। अब बैठक की बातें इतनी जल्दी मीडिया में कैसे लीक हो गई, इसको लेकर पार्टी के रणनीतिकार माथापच्ची कर रहे हैं।
मीडिया विभाग के लोगों से भी पूछताछ चल रही है। क्योंकि स्वाभाविक तौर पर मीडिया के लोगों से समाचारों का आदान-प्रदान होते रहता है। पार्टी के भीतर जिस नेता पर शक जताया जा रहा है वो बैठक खत्म होने के बाद प्रदेश से बाहर चले गए। ऐसे में खबरें किसने लीक की है यह जानकारी जुटाना मुश्किल हो गया है।
मोदी की चिंता और चुनावी वादे
लोकमान्य तिलक पुरस्कार ग्रहण करने के लिए पुणे पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा में कहा कि उनकी सबसे बड़ी चिंता विकास का कीमत पर, सत्ता के लिए वादे करने की है, जो कांग्रेस की सरकारें कर रही हैं। इसके दुष्परिणाम जल्दी ही दिखाई देने लग जाते हैं।
मोदी ने कर्नाटक का जिक्र किया और कहा कि आईटी हब के चलते यह राज्य निवेश का वैश्विक केंद्र बनता जा रहा है, लेकिन सरकार कहती है कि उसके पास बेंगलुरु के विकास के लिए संसाधन नहीं है। इसी वजह से राजस्थान में भी कर्ज बढ़ रहा है और विकास रुका हुआ है।
पहले भी प्रधानमंत्री दिल्ली सरकार की मुफ्त योजनाओं को रेवड़ी बता चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में सन् 2018 के चुनाव में 'किसानों का कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ' जैसी स्कीम की घोषणा कर कांग्रेस मैदान पर उतरी थी। मोदी ने अपने भाषण में भाजपा शासित मध्य प्रदेश का जिक्र नहीं किया, जहां महिलाओं को इसी चुनावी वर्ष से हर महीने नगद राशि दी जा रही है और चुनाव के बाद इसे बढ़ाने का भी वादा शिवराज सिंह सरकार ने किया है। खुद केंद्र सरकार किसान सम्मान निधि दे रही है। इस तरह की नगद राशि देने का वादा 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने किया था।
इधर, छत्तीसगढ़ में चुनाव घोषणा पत्र समिति की एक बैठक करीब 15 दिन पहले रायपुर में भाजपा कर चुकी है। इसमें चुनाव प्रभारी ओम माथुर ने कहा कि मोदी ने भाजपा को गरीबों की पार्टी बनाया है। घोषणा पत्र में हर वर्ग के उत्थान की बात होनी चाहिए।
यह 2019 की लोकसभा का चुनाव तो है नहीं, जब मंदिर का मुद्दा और मोदी का चेहरा सब वादों,घोषणाओं पर भारी पड़ गया था।
अब यदि प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप बीजेपी ने मतदाताओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाली घोषणाओं से परहेज किया तो फिर छत्तीसगढ़ भाजपा के घोषणा पत्र में आखिर और होगा क्या?
झोपड़ी नहीं तो चूल्हा ही बचा लें
छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही बारिश ने बीजापुर जिले में भी कहर बरपाया है। यहां मां बेटा सहित तीन लोगों की मौत हो गई है। भीतरी इलाकों में झोपडिय़ां बाढ़ के पानी में समा गई हैं। यह धरमा गांव की तस्वीर है, जहां पानी में डूबी हुई झोपड़ी से एक ग्रामीण गैस सिलेंडर उठाकर ला रहा है और दूसरा ग्रामीण उसे लेने के लिए छत पर चढ़ा है। आपदा में यह बहुत काम आएगा।
संशोधन रद्द करने पर फंसा पेंच
शिक्षा विभाग में पदोन्नति के बाद पोस्टिंग और फिर लाखों रुपयों का खेल करके आदेश संशोधित करने के मामले में बड़ी संख्या में बाबू और अफसरों पर कार्रवाई हो गई। अब एक नया सवाल खड़ा हो गया है। संशोधन के पीछे क्योंकि बड़ा लेन-देन था, आदेश जारी करते समय यह नहीं देखा गया कि जहां भेजा जा रहा है उन स्कूलों में पद मंजूर हैं या नहीं। यह भी नहीं देखा गया कि जहां से हटाया जा रहा है वह एकल शिक्षक वाली शाला तो नहीं है?? विभाग थे भ्रष्ट बाबू अफसरों से वे शिक्षक बुरी तरह प्रभावित हुए, जिन्होंने काउंसलिंग में भाग लिया लेकिन कोई सिफारिश नहीं लगाई। उन्हें कार्रवाई का भय दिखाकर जॉइनिंग के लिए मजबूर किया गया। गलत प्रक्रिया अपनाए जाने की बात सामने आने के बावजूद यदि अब ये संशोधन आदेश निरस्त किए जाते हैं तो स्कूलों में बड़ी अफरा-तफरी मच जाएगी। अब तक शिक्षा विभाग में जैसा चलन रहा है कोई दावा नहीं कर सकता कि इतनी बड़ी कार्रवाई के बावजूद फिर नए सिरे से लेने देने का खेल नहीं चलेगा। दूसरी बात कि शिक्षा सत्र प्रारंभ हुए दो महीने से अधिक हो चुके हैं। वैसे भी इस सत्र के दौरान ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और जब सत्र के समापन का समय आएगा लोकसभा चुनाव की भी तैयारी शुरू हो जाएगी। पढ़ाई में इससे व्यवधान आने वाला है। दूसरी तरफ काउंसलिंग प्रक्रिया के बाद दूर-दूर फेंक दिए गए शिक्षक संशोधन आदेश रद्द करने की मांग को लेकर लामबंद भी हो रहे हैं।वे उन जगहों पर जाना चाहते हैं, जहां उनका पहली काउंसलिंग से हक बनता था। सबके बीच सबसे ज्यादा नुकसान छात्र-छात्राओं का होने जा रहा है। उस प्रदेश में जहां स्कूली शिक्षा का स्तर काफी नीचे, देश में 27वें नंबर पर आता है।
पार्टी में खर्च की किच-किच
कांग्रेस में संकल्प शिविर के खर्चों को लेकर किचकिच हो रही है। पार्टी के अंदरखाने में शिविर के लिए विधानसभा चुनाव से पहले टिकट के दावेदारों से राशि एकत्र करने की सहमति बनी थी। सभी विधानसभा क्षेत्रों में शिविर के लिए दावेदारों ने अंशदान भी किया था। मगर इस बार शिविर से पहले ही रायपुर संभाग के एक महिला विधायक के क्षेत्र में अलग तरह का विवाद खड़ा हो गया है।
बताते हैं कि इस बार एक-दो दावेदार, महिला विधायक से पिछले संकल्प शिविर का अपना अंशदान वापस मांग रहे हैं। चुनाव से पहले एक-दो दावेदार ने तो दबाव बनाकर अपना अंशदान वापस ले लिया था। महिला विधायक को चुनाव में भितरघात का खतरा था, इसलिए उन्होंने उनका हिस्सा वापस भी कर दिया था।
इस बार महिला विधायक ने भी शर्त रख दी है कि वो संकल्प शिविर का खर्च उठाने के लिए तैयार हैं, लेकिन कोई और टिकट की दावेदारी नहीं करेगा। बस, इसी बात को लेकर महिला विधायक, और दावेदारों के बीच वाद विवाद चल रहा है। चर्चा है कि अब इस मामले में प्रदेश नेतृत्व को दखल देना पड़ सकता है।
सीटें बदलकर...
चर्चा है कि भाजपा इस बार दिग्गज पार्टी नेताओं की विधानसभा सीट बदलकर चुनाव मैदान में उतार सकती है। पार्टी के रणनीतिकारों का अंदाजा है कि सीट बदलने से पार्टी को फायदा होगा।
कहा जा रहा है कि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह को राजनांदगांव के बजाए कवर्धा अथवा डोंगरगांव सीट से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी के रणनीतिकारों का सोचना है कि राजनांदगांव पार्टी के लिए आसान सीट है। यहां किसी युवा नेता को लड़ाकर जीत हासिल की जा सकती है। मगर कवर्धा में मोहम्मद अकबर, और डोंगरगांव में दलेश्वर साहू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार होने पर ही जीत मिल सकती है। इसके लिए रमन सिंह को उपयुक्त माना जा रहा है। खास बात यह है कि रमन सिंह डोंगरगांव और कवर्धा, दोनों जगह से विधायक रहे हैं।
कुछ इसी तरह की प्लानिंग सीएम भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र के लिए भी बन रही है। पार्टी सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन से उनके भतीजे विजय बघेल को उतारकर घेरने की रणनीति बना रही है। विजय दुर्ग के सांसद हैं, और पाटन से एक बार चुनाव भी जीत चुके हैं। रायगढ़, बिलासपुर, और कसडोल में कुछ इसी तरह की प्लानिंग हो रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
लड़कियां क्यों भाग रही हैं?
संसद में सरकार का जवाब आया है कि दो साल में 13 लाख 30 हजार लड़कियां गायब हो गईं। चिंताजनक है कि छत्तीसगढ़ से गायब होने वाली बच्चियों की संख्या 49 हजार से अधिक है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अलग से आंकड़ा मिलने लगा है, जिससे पता चलने लगा कि यह समस्या कितनी गंभीर है। भाजपा शासनकाल के दौरान एक आंकड़ा आया था, जिस पर विधानसभा में भी बहस हुई थी, बाद में एक राज्य स्तरीय निगरानी समिति भी बनाई गई। तब गायब लड़कियों की संख्या 19 हजार बताई गई थी। चिंता इस बात पर भी हो सकती है कि ज्यादातर गायब लड़कियां आदिवासी इलाकों से हैं। सरगुजा, जशपुर, कुनकुरी, रायगढ़ में दिल्ली, झारखंड की दर्जनों प्लेसमेंट एजेंसियां काम करती हैं। पर इधर अब बस्तर से भी इसी तरह की खबरें आने लगी हैं। निगरानी समिति ने अंतर्राज्जीय बसों और नजदीकी रेलवे स्टेशनों पर कुछ निगरानी बढ़ाई भी है। इसके बावजूद गायब होने की संख्या कम नहीं हो रही बल्कि बढ़ रही है। कुछ तो दोस्ती यारी के चक्कर में भागते हैं, ज्यादातर मामले जॉब ढूंढने के होते हैं। महानगरों में इनकी घरेलू नौकरानियों के रूप में मांग होती है। फिर इनका शारीरिक आर्थिक हर तरह से शोषण होता है, नारकीय स्थिति में रखा जाता है। कई मामले ऐसे भी हैं जब लड़कियों को दलालों के चंगुल से छुड़ाकर गांव वापस लाया गया, लेकिन बाद में वे फिर लापता हो गईं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने महिला अपराधों को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को घेरा है। यह जरूरी है, क्योंकि विपक्ष का काम यही है। पर दूसरी ओर मध्यप्रदेश है, जो बलात्कार और लड़कियों के गायब होने के मामले में देश में सबसे ऊपर है। संसद में ही पिछले दिनों यह बताया गया। वहां कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। समस्या की वजह शिक्षित हो चुकी लड़कियों के लिए स्थानीय स्तर पर सम्मानजनक रोजगार का नहीं होना है। छुड़ाकर लाई गई लड़कियों के पुनर्वास की तरफ सरकारों का ध्यान नहीं है। इसलिए सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की-समस्या मौजूद है।
छत की मरम्मत करते छात्र
पिछले दिनों एक तस्वीर आई थी जिसमें गरियाबंद की छात्राओं से भारी-भरकम की ट्रैक्टर से अनलोडिंग कराई जा रही थी। अब यह तस्वीर देखिये जो कोंडागांव जिला मुख्यालय के तहसील ऑफिस के सामने की स्कूल की है। बच्चों को खपरैल की मरम्मत के लिए छत पर चढ़ा दिया है। शिक्षक ने कहा है तो बच्चों को आदेश का पालन तो करना ही है। स्कूल भवन की हालत भी जर्जर दिखाई दे रही है।
जोगी को ऐसे याद किया भूपेश ने
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बिलासपुर में आठ जिलों के युवाओं से संवाद किया। एक छात्रा ने उनसे कॉलेज के दिनों का अनुभव जानना चाहा तो उन्होंने कलेक्टर के रूप में स्व. अजीत जोगी को याद किया। उन्होंने बताया कि वे सांइस कॉलेज रायपुर के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। वहां के तीनों हॉस्टल में एक भी पंखा नहीं था। कलेक्टर के तौर पर अजीत जोगी कॉलेज का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे। बघेल ने हॉस्टल के छात्रों के साथ मिलकर उनके सामने प्रदर्शन किया और पंखे लगाने की मांग की। जोगी ने बात सुनी, आठ दिन के भीतर मांग पूरी हो गई और सभी कमरों में पंखे लग गए। इस छोटे से किस्से को तो युवाओं ने बड़ी दिलचस्पी से सुना। अगर वे जोगी के साथ अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा करते तो कहानी और अधिक दिलचस्प हो जाती।
रायपुर से निकलकर बढ़े नकवी
रायपुर में पले बढ़े, और प्रतिष्ठित चिकित्सक नकवी भाईयों में सबसे बड़े डॉ. एस डब्ल्यू नकवी मध्यप्रदेश सरकार में स्पेशल डीजीपी के पद पर प्रमोट हो गए हैं। आईपीएस के 90 बैच के अफसर डॉ. नकवी राज्य बंटवारे के बाद मध्य प्रदेश कैडर में चले गए। उनकी गिनती काबिल अफसरों में होती है।
डॉ. एस डब्ल्यू नकवी रायपुर के बैजनाथ पारा के रहवासी हैं। उनके पिता डॉ. एसएस अली रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में बायो साइंस विभाग के प्रमुख रहे हैं। तीन भाइयों में सबसे बड़े डॉ. नकवी ने रायपुर होलीक्रास स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, और रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की उपाधि अर्जित की। एमडी करने के बाद वो आईपीएस के लिए सेलेक्ट हुए।
आईपीएस अफसर के रूप में अलग पहचान बनाई। वो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर भी रहे, और तीन साल ईडी में वेस्टर्न जोन के इंचार्ज रहे। मध्यप्रदेश पुलिस में एडीजी (इंटेलिजेंस) सहित कई अहम पदों पर सेवाएं दी। वर्तमान में एडीजीपी के रूप में उनकी पोस्टिंग नारकोटिक्स विभाग के प्रमुख के रूप में की गई है। डॉ. नकवी के दोनों छोटे भाई डॉ. जव्वाद, और डॉ. अब्बास नकवी रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
स्मार्ट सिटी की जांच
रायपुर नगर निगम के विपक्ष के पार्षदों ने स्मार्ट सिटी के कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, और गड़बड़ी की शिकायती दस्तावेज लेकर केन्द्रीय मंत्री से भी मिले। केन्द्र सरकार ने बकायदा जांच टीम भी भेजी। टीम करीब 6 महीना पहले आई थी। जांच का आगे क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं है।
सुनते हैं कि केन्द्र ने विभाग के अफसरों अथवा किसी जांच एजेंसी के बजाए हैदराबाद की एक निजी फर्म को जांच का जिम्मा दिया था। फर्म करीब 6 सौ करोड़ के कथित घोटाले की जांच की है। जांच के एवज में करीब 12 लाख रुपए का भुगतान होना था। कुछ लोगों को शंका है कि इतनी कम राशि पर जांच का कोई निष्कर्ष निकल पाना मुश्किल है।
हल्ला तो यह भी है कि स्मार्ट सिटी के ठेकेदारों, और अन्य लोगों ने जांच के फर्म को मैनेज कर लिया है। जितनी मुंह, उतनी बातें। पार्षद भी जांच रिपोर्ट पर रुचि नहीं ले रहे हैं। वजह यह है कि पार्टी के दबाव में शिकवा-शिकायतें तो कर दी, लेकिन वो भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी रूप में भागीदार रहे हैं। हालांकि सांसद सुनील सोनी अभी भी जांच-कार्रवाई को लेकर दबाव बनाए हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
प्रदेश के मुस्लिम वोट किस तरफ ?
पहले के किसी चुनाव में भाजपा ने जो नहीं किया वह अब करने जा रही है। मुसलमानों के पिछड़े तबके, जिन्हें पसमांदा कहते हैं, उनको पार्टी से जोडऩे का अभियान चलाया जा रहा है। भाजपा मानती है कि कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों में सिर्फ उन्हीं मुसलमानों को अब तक मौका मिला है, जो ऊंची जाति के हैं। पिछड़ी तबके के मुसलमान किसी एक दल के साथ कभी नहीं गए। मध्य भारत के राज्यों में पार्टी एक स्नेह यात्रा भी निकाल रही है, साथ ही सूफी समागम समारोह रखने की योजना है जो साल भर देश के अलग-अलग भागों में होगा।
आगामी विधानसभा चुनाव के चलते छत्तीसगढ़ में भी तेजी से यह अभियान चल रहा है। रायपुर में पिछले माह भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रखी गई थी। करीब डेढ़ माह से प्रदेश में मोदी मित्र अभियान चलाया गया है, जिसमें खास तौर पर मुस्लिमों को ही भाजपा का सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया। दावा किया गया है कि इस दौरान 4000 से अधिक लोगों को जोड़ लिया गया।
छत्तीसगढ़ में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 5 लाख है। लोकसभावार देखें तो रायपुर में सबसे ज्यादा करीब 90 हजार, उसके बाद बिलासपुर में 65 हजार, राजनांदगांव में 37 हजार और बस्तर में करीब 16 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। मगर, छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां लोकसभा चुनाव में जरूर परिस्थितियां भिन्न हो पर स्थानीय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक अलग ट्रेंड रहा। मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा वोट किसी दल को नहीं दिया। वे उम्मीदवार से प्रभावित होकर वोट डालते रहे हैं। इसका लाभ भाजपा को भी मिलता रहा। सन् 2018 के चुनाव में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया था, पर वे परिणाम नहीं दिला पाए। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने तो अपने यहां इसी वजह से योगी का कार्यक्रम कराने से मना कर दिया था, क्योंकि उन्हें अपने मुस्लिम वोटों के बिखर जाने का डर था।
एक तटस्थ मुस्लिम जो कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को वोट देते रहे हैं, उनका सवाल है कि पसमांदा मुस्लिमों को अन्य मुस्लिम मतदाताओं से अलग करके देखने का आखिर कितना असर होगा? मॉब लिंचिंग और अत्याचार की घटनाओं में ज्यादातर शिकार तो निचले तबके ही लोग हैं। उपद्रव, हिंसा का असली पीडि़त हिंदू समाज में भी दलित और पिछड़ा ही होता है- ऊंची जाति के लोग नहीं। फिर भी आसन्न विधानसभा चुनाव के बीच भाजपा का मुस्लिम मतदाताओं से दोस्ती का अभियान कांग्रेस को सचेत तो करता ही है।
एक पान में क्या गद्दारी भला..
राजकुमार कॉलेज रायपुर के सामने करबला मोहल्ले की यह पान दुकान आते-जाते लोगों का ध्यान अपने नाम से खींच लेता है। गद्दार नाम है, पर ग्राहकों को परहेज नहीं है। तभी तो चौराहे पर चल रही है। बगल में चाय की दुकान है, उसने भी नाम रखा है- पनौती चाय वाला।
तो, सबके सब रिपीट हो जाएंगे?
प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल की हर बात पर लोग भरोसा कर लेते हैं। पर एक बात पर नहीं हो रहा है कि सिर्फ दो चार विधायकों की परफार्मेंस रिपोर्ट सही नहीं है, बाकी सबने पिछले साढ़े चार साल अच्छा काम किया। उन कांग्रेसियों को तो एक रत्ती इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा, जो टिकट की दौड़ में लगे हुए हैं।
वे मुख्यमंत्री के बयान के बावजूद कोशिश में लगे रहना चाहते हैं। क्योंकि उनके पास कई दूसरी रिपोर्ट्स भी हैं जो 30-35 विधायकों के प्रदर्शन को निराशाजनक बताती है। हालांकि ये रिपोर्ट अधिकारिक रूप से जारी नहीं की गई है। टिकट के दावेदारों का कहना है कि यदि दो चार को छोडक़र बाकी विधायकों को कांग्रेस रिपीट करने जा रही है, तो उसे 75 पार की उम्मीद तो छोड़ देनी चाहिए।
जैजैपुर पर दीवान की नजर
रिटायर्ड एडिशनल कलेक्टर एमडी दीवान भी विधिवत कांग्रेस में शामिल हो गए। दीवान रिटायरमेंट के ठीक पहले जांजगीर-चांपा में एडिशनल कलेक्टर थे। उस वक्त आरपीएस त्यागी कलेक्टर थे। त्यागी, और दीवान की काफी छनती थी। बताते हैं कि त्यागी ने कलेक्टर रहते ही राजनीति में आने का मन बना लिया था, और वो निजी कार्यक्रमों में ज्यादा रूचि लेते थे। एक तरह से जिले में प्रशासन की बागडोर दीवान ही संभालते थे।
त्यागी रिटायर होने के तुरंत बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन दीवान रिटायर होने के बाद लंबे समय तक संविदा में काम करते रहे। अब संविदा की अधिकतम उम्र भी पार हो गई है, तो वो अपने कलेक्टर की राह पर चलते हुए राजनीति में आ गए। ये अलग बात है कि त्यागी कांग्रेस छोड़ चुके हैं, और भाजपा में आ गए हैं।
दीवान ने उनसे अलग रास्ता अपनाते हुए कांग्रेस में शामिल होना उचित समझा। वैसे भी दीवान की पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। उनके चाचा लंबे समय तक जांजगीर-चांपा जिले के मंडी अध्यक्ष रहे हैं। दीवान की नजर जैजैपुर विधानसभा सीट पर है। पिछले चुनाव में कांग्रेस यहां तीसरे नंबर पर थी। कांग्रेस जैजैपुर में कुछ नया प्रयोग करने की सोच रही है। देखना है कि दीवान मौका मिलता है या नहीं।
दीवान का एक और कांग्रेस कनेक्शन है। जब वे सरकारी नौकरी में आये, तब वे और चरणदास महंत दोनों ही साथ-साथ नायब तहसीलदार थे। हालांकि दीवान, महंत से एक साल सीनियर थे, लेकिन उनसे पारिवारिक संबंध रहे हैं। महंत राजनीति में जल्द ही आ गये थे, दीवान अब आये हैं।
कोषाध्यक्ष बदलेगा?
चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अपना कोषाध्यक्ष बदल सकती है। वर्तमान में रामगोपाल अग्रवाल पार्टी का कोष संभाल रहे हैं। वो नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन भी हैं। इससे परे रामगोपाल पर ईडी का शिकंजा कसा है। ऐसे में उनका कोषाध्यक्ष पद पर बने रहना मुश्किल हो गया है। चुनाव के समय में कोषाध्यक्ष का पद काफी अहम रहता है।
पार्टी विकल्प के तौर पर दो नामों पर विचार कर रही है। इनमें अरूण सिंघानिया, और पारस चोपड़ा हैं। अरुण प्रदेश के बड़े बिल्डर हैं, और सबके भरोसेमंद भी हैं। इससे परे चोपड़ा सीए हैं, और पहले भी पार्टी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। हाल के दिनों में उनका कद बढ़ा है। उन्हें चुनाव समिति में भी रखा गया है। इन सबके बावजूद कोषाध्यक्ष की नियुक्ति में सीधे हाईकमान की दखल रहती है। ऐसे में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है यह देखना है।
बाघ की खाल को भी गिन लिया?
देशभर के बाघों के आंकड़े आने के बाद पता चला है कि छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या 19 से घटकर 7 रह गई है। इसके अलावा 10 ऐसे बाघ हैं, जो टाइगर रिजर्व से बाहर हैं। तीन साल में बाघ संरक्षण के नाम पर 183 करोड़ खर्च करने का नतीजा यह निकला है। विधानसभा में आए इस जवाब के बाद वन मंत्री ने खर्च को लेकर विभाग के अफसरों का बचाव भी किया, पर अब गिनती के आंकड़े आने के बाद किसी के पास कुछ कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। बस, एक सच्चाई और स्वीकार कर लेनी चाहिए कि इनकी तीनों टाइगर रिजर्व में कुल मिलाकर 7 नहीं केवल 6 बाघ हैं। उदंती अभयारण्य में अब एक भी टाइगर नहीं। गणना के मुताबिक 7 में से 5 अचानकमार अभयारण्य में तथा एक-एक उदंती-सीतानदी तथा एक इंद्रावती में दर्ज है। पर, रिपोर्ट भेजने और गणना के नतीजे आने के बीच, हाल ही में बाघ के दो खाल जब्त किए गए। इसमें से एक को वन विभाग के अफसरों ने ही उदंती-सीतानदी अभयारण्य का माना। इसका मतलब यह हुआ कि यहां के एकमात्र बाघ को मार दिया गया है। अब वहां कोई भी बाघ नहीं है। बाघों की कुल संख्या भी 7 नहीं सिर्फ 6 रह गई है। वन विभाग के एक अफसर ने यह बयान दे दिया कि नक्सली मूवमेंट के कारण इंद्रावती, उदंती में ट्रैप कैमरे नहीं लगाये जा सके, इसलिए पूरी गिनती नहीं हो पाई। ये जवाब ऐसा है मानो ट्रैप कैमरे लगते तो नक्सल इलाकों से धड़ाधड़ बाघ बाहर निकल आते। यह कहते हुए वे यह भूल रहे हैं कि अचानकमार अभयारण्य जहां एक दशक पहले से 18 से 24 टाइगर होना बताया जाता था, वहां केवल 5 कैसे रह गए? यहां तो कैमरों की कोई कमी नहीं।
धोबी घाट जैसा लगा नगर निगम
सीधे-सीधे धरना प्रदर्शन कोई करे तो आजकल न तो अफसरों का ध्यान जाता है न ही मीडिया में जगह मिलती। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने कल रायपुर में गैस सिलेंडर की काठी बनाई और शव के साथ महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया। सीएम और मंत्रियों का मुखौटा लगाकर भ्रष्टाचार और शराब घोटाले के खिलाफ भाजपा कुछ समय पहले प्रदर्शन कर चुकी है। नियमितीकरण की मांग पर शासकीय विभागों के कर्मचारियों को घुटनों के बल चलकर प्रदर्शन करते देखा गया। मृत पंचायत शिक्षाकर्मियों के आश्रित सरकार में कोई भी नौकरी पाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उन्होंने कुछ दिन पहले मुंडन करा लिया था। कुछ की मांगें पूरी हो रही हैं, कुछ की नहीं। पर आम लोगों का ध्यान ऐसे आंदोलन की ओर खिंचता है और लोगों को पता चलता है कि आखिर मांगें क्या हैं। इससे सरकार असहज तो होती ही है।
इसे ही समझते हुए जगदलपुर के जवाहर वार्ड के निवासियों ने अनोखा प्रदर्शन किया। वार्ड में लंबे समय से पानी की किल्लत है। पीने के अलावा निस्तारी जल का संकट कायम है। कई बार पार्षद और नागरिकों ने नगर-निगम के अधिकारियों से समस्या हल करने की मांग की लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। वार्ड के नागरिक बाल्टी, बकेट में घर के कपड़े लेकर आ गए और नगर निगम दफ्तर के सामने सीढ़ी पर बैठकर कपड़े धोने लगे। पहले लोगों को समझ नहीं आया, माजरा क्या है। पर नागरिकों ने बताया कि मोहल्ले में कपड़ा धोने के लायक भी पानी नहीं आता। क्या करें, हमें मजबूरी में यहीं आकर कपड़े धोना पड़़ रहा है। जब तक पानी का संकट दूर नहीं होगा, कपड़ा धोने यहीं आएंगे। बहरहाल, विरोध प्रदर्शन का यह तरीका कामयाब रहा। नगर निगम आयुक्त ने वार्ड का भ्रमण कर न केवल पानी की बल्कि और दूसरी समस्याओं को भी दूर करने का आश्वासन दिया है।
तालाब पर उतरकर अपील
इस अनोखे प्रदर्शन में मांग से ज्यादा अपील है, क्योंकि फरियाद सरकार से नहीं अपने मतदाताओं से की जा रही है। चौबे कॉलोनी रायपुर का तालाब (स्वामी आत्मानंद सरोवर) प्रदूषित हो रहा है। वार्ड के पार्षद अमर बंसल ने पाया कि धार्मिक आयोजनों के बाद पूजन सामग्री तालाब में बहा देने के कारण यह स्थिति बनी है। वे तालाब में उतर गए और अपील की, कि ऐसा नहीं करें। तालाब को समाज के लिए बचाकर रखें। आज राजधानी और दूसरे शहर-गांवों में तालाबों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। ऐसे में जो बच गए हैं, उनकी ही हिफाजत हो जाए तो बड़ी बात होगी।
टिकट दिख गई !
आईटी का जमाना है। कई बार मोबाइल से मैसेज भेजते वक्त ऐसी चूक हो जाती है, जिससे यूजर को हंसी का पात्र बनना पड़ जाता है। कुछ ऐसा ही सरगुजा संभाग के भाजपा नेता के साथ हुआ। हुआ यूं कि पार्टी के एक प्रभावशाली नेता को पिछले दिनों किसी काम से हैदराबाद जाना था। नेताजी ने फ्लाइट की टिकट कराने की जिम्मेदारी सरगुजा के नेता को दी थी।
उन्होंने टिकट कराया भी, और वाट्सएप से टिकट भेजते समय थोड़ी चूक हो गई। टिकट उनके अपने मोबाइल के स्टेटस में दर्ज हो गया। इसके बाद पार्टी के अंदरखाने में सरगुजा के नेता के प्रभावशाली नेता से आर्थिक संबंध की भी चर्चा होने लगी। खैर, गलती सुधार ली गई, और स्टेटस से टिकट को हटा लिया गया। तब तक बात का बतंगड़ बन चुका था।
समितियों की अब कांग्रेस की बारी
कांग्रेस में सचिवों, और संयुक्त महासचिवों की नियुक्ति की तैयारी है। चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रमुख नेताओं से नाम भी ले लिए हैं। दो, या तीन महासचिव बनाए जाएंगे। इसमें आरक्षण को ध्यान में रखा जाएगा।
इसी तरह पार्टी की समन्वय समिति की बैठक में कुछ अहम समितियों के मुखिया के नाम भी तय होने की चर्चा है। इनमें अनुशासन कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी धनेन्द्र साहू को दी जा सकती है।
इसी तरह चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के लिए डॉ. चरणदास महंत, और घोषणा पत्र के लिए सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर के नाम की चर्चा है। सूची हफ्ते- दस दिन में जारी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
सबको पीछे छोड़ देने का राज
सरकार ने वी श्रीनिवास राव, और अनिल साहू को पीसीसीएफ के पद पर प्रमोट कर दिया है। मगर उनकी पोस्टिंग का मसला अभी अटका पड़ा है। श्रीनिवास राव प्रभारी पीसीसीएफ के रूप में प्रशासन संभाल रहे हैं। मगर अनिल साहू सीनियर हैं, और वो पर्यटन बोर्ड के एमडी रहे हैं। सरकार ने कल ही अनिल साहू मूल विभाग में लौटने के इच्छा पूरी कर दी है। ऐसे में फिर महकमे में सीनियर-जूनियर को लेकर बहस चल रही है। इससे पहले 7 अफसरों को सुपरसीड कर श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ प्रशासन का दायित्व सौंपा गया था, तो इसकी खूब चर्चा हुई थी। और अब जब पोस्टिंग की फाइल सीएम के पास है, तो फिर से इस पर महकमे में चर्चा हो रही है। देखना है कि सीएम क्या फैसला लेते हैं।
पद राष्ट्रीय, कद स्थानीय
विधानसभा चुनाव के करीब आते-आते भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में फेरबदल में छत्तीसगढ़ का वजन इस लिहाज से बढ़ा है क्योंकि अपेक्षाकृत बड़े राज्य मध्यप्रदेश की तरह यहां पर भी तीन पदाधिकारी शामिल किए गए हैं। मगर पहले जब डॉ. रमन सिंह को अकेले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर थे तो उनका महत्व अलग था। अब सांसद सरोज पांडेय और डॉ. रमन सिंह के मंत्रिमंडल का कभी हिस्सा रहीं लता उसेंडी को भी उनके ही बराबर ओहदा दिया गया है। इसके कई मायने जानकार निकाल रहे हैं। एक तो यह ध्यान रखा गया कि डॉ. रमन सिंह का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह अवहेलना कर रहा हो, ऐसा नहीं लगना चाहिए। एक पूर्व मुख्यमंत्री और 15 साल तक राज्य की सत्ता संभालने वाले वरिष्ठ नेता इतने सम्मान के हकदार तो हैं। दूसरा यह कि पूर्व मंत्री केदार कश्यप और सांसद मोहन मंडावी के अलावा भी कुछ प्रभावशाली चेहरों की बस्तर में जरूरत है। बीते चार साढ़े साल तक लगभग हाशिये में रहीं उसेंडी को सीधे डॉ. रमन सिंह और वरिष्ठ सांसद सरोज पांडेय के बराबर दर्जा देना बताता है कि बस्तर में भाजपा को हर हाल में अच्छा परिणाम चाहिए। प्रदेश के सर्वाधिक मंत्रियों के साथ दुर्ग जिला कांग्रेस का गढ़ जैसा है। यहां सरोज पांडेय पर भाजपा की स्थिति मजबूत करने के लिए विश्वास जताया गया है।
सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पदों के नाम के अनुरूप दायित्व नहीं देने का चलन बढ़ रहा है। डॉ. सिंह पिछली कार्यकारिणी के दौरान जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे तब भी पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में उन्हें अलग से कोई प्रभार नहीं दिया गया। उन्हें किस राज्य का प्रभार दिया और वहां कब-कब सक्रिय रहे यह लोगों को याद नहीं पड़ता। ऐसा ही मकसद लता उसेंडी और सरोज पांडेय को नियुक्त करने के पीछे हो सकता है। पद के साथ राष्ट्रीय जुड़ जाने का महत्व तो है पर काम शायद उनसे केवल बस्तर और दुर्ग संभाग में पार्टी की स्थिति संभालने का लिया जाए।
उधार मांगने वालों को चेतावनी
इस ठेले वाले की पीड़ा वही समझ सकता है। उधार मांगने वालों से पूछ रहा है कि क्या छिंदवाड़ा छोड़ दें? ये छोड़ देंगे तो कोई दूसरा ठेला यहां लग जाएगा, लेने वाले उससे उधार ले लेंगे। फिर, यह समस्या अकेले किसी एक शहर की तो है नहीं, जिस शहर में चले जाएं- उधार मांगने वाले मिलेंगे। (सोशल मीडिया से)
कोई छोटा-बड़ा जिला नहीं
आईएएस, आईपीएस अफसरों का जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है और वे वरिष्ठ होते जाते हैं, उन्हें छोटे से बड़े जिलों का कमान सौंपा जाता है, फिर उसके बाद मंत्रालय या डेपुटेशन पर केंद्रीय विभागों में लिए जाते हैं। इधर आईएएस सौरभ कुमार ने जून 2021 से जुलाई 2022 तक राजधानी रायपुर में कलेक्टर की जिम्मेदारी संभाली, उसके बाद जुलाई 2022 से जुलाई 2023 तक बिलासपुर कलेक्टर रहे। अब उन्हें कोरबा की जिम्मेदारी दे दी गई है। उनके साथ उल्टा हो रहा है। मगर इसमें किसी की दो राय नहीं हो सकती कि कोरबा जिले को संभालना बिलासपुर और रायपुर से भी ज्यादा मुश्किल है। झा और सौरभ कुमार दोनों को ही अपनी-अपनी जगह पर एक-एक साल ही हुए थे। इसलिये चुनाव आयोग की ओर से भी कोई बंदिश नहीं थी। इस बार तो कोरबा कलेक्टर संजीव कुमार झा के खिलाफ मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कोई मोर्चा भी नहीं खोला, फिर भी हो गया। बिलासपुर में भी किसी विधायक, नेता ने कलेक्टर सौरभ कुमार के बारे में सार्वजनिक शिकायत नहीं की है। यह जरूर है कि जमीन संबंधी मामलों, जमीन अधिग्रहण में फर्जी मुआवजा हासिल करने के मामलों की जांच में पिछले एक साल से कुछ तेजी दिखाई दे रही थी।
टीम नड्डा में छत्तीसगढ़ का दबदबा
भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ को प्रतिनिधित्व दिया गया है, उतना पहले कभी नहीं मिला। पूर्व सीएम रमन सिंह, सरोज पांडेय, और लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं, छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक काम कर चुके सौदान सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है।
हालांकि सौदान सिंह को मध्यप्रदेश के कोटे से लिया गया है। मगर सौदान सिंह की छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन में सबसे ज्यादा पकड़ मानी जाती है। इससे पहले धरमलाल कौशिक, और विष्णुदेव साय भी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह पा चुके हैं। पवन साय, और बृजमोहन अग्रवाल विशेष आमंत्रित सदस्य हैं ही। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश से ज्यादा महत्व संगठन में छत्तीसगढ़ के नेताओं को मिला है। अब इसका चुनाव में कितना फायदा मिलता है यह देखना है।
रेणुका सिंह की शिकायत
खबर है कि केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह के खिलाफ स्थानीय भाजपा नेता मुखर हो रहे हैं। पिछले दिनों पार्टी के सहप्रभारी नितिन नबीन सरगुजा दौरे पर थे, तो कई नेताओं ने रेणुका के खिलाफ खुलकर शिकायतें की।
शिकायतकर्ता नेताओं का कहना था कि रेणुका सिंह फोन तक नहीं उठाती है। ऐसे में किसी भी समस्या से उन्हें अवगत कराने का कोई मतलब नहीं है। यही नहीं, दो-तीन दिन पहले अंबिकापुर में पार्टी की एक प्रेस कांफ्रेंस का स्थानीय मीडिया ने बहिष्कार कर दिया।
उस समय भी बात आई कि मीडिया के विज्ञापन का बिल का पार्टी नेताओं ने भुगतान नहीं किया है। चर्चा है कि बिल के भुगतान की जिम्मेदारी रेणुका सिंह के ऑफिस पर थी। इस मामले की शिकायत भी सहप्रभारी तक पहुंची है। कहा जा रहा है कि तमाम शिकायतों को लेकर नितिन नबीन और अन्य नेताओं ने रेणुका सिंह से बात भी की है। अब शिकायतें दूर होती है या नहीं, यह देखना है।
सरकारी काम निजी भुगतान
तेलीबांधा से वीआईपी रोड तक सौंदर्यीकरण का पेंच अभी तक सुलझ नहीं पाया है। विधानसभा के आखिरी सत्र में बृजमोहन अग्रवाल के सवाल के जवाब में नगरीय प्रशासन मंत्री ने रोचक अंदाज में जवाब दिया कि सौंदर्यीकरण-सड? निर्माण का काम किसने किया है, यह हमें नहीं मालूम।
सौंदर्यीकरण-सड? निर्माण पर ढाई करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। बताते हैं कि पहले निर्माण का काम हो गया और फिर टेंडर आमंत्रित किया गया था। तब राष्ट्रीय सड? प्राधिकरण (एनएचएआई) ने कुछ बिंदुओं पर आपत्ति की थी। इसके बाद आनन-फानन में टेंडर निरस्त किया गया। जाहिर है कि निर्माण हुए हैं तो भुगतान भी हुआ होगा।
चर्चा है कि निगम के पदाधिकारियों और अफसरों ने सीएसआर मद से भुगतान के लिए रास्ता निकाल लिया। यानी भुगतान उद्योगपतियों द्वारा किया गया। ये अलग बात है कि सरकार इसका जवाब नहीं दे पा रही है।
बस्तर की काली मिर्च सबसे तेज
बस्तर की एक और उपलब्धि राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज की गई है। कोंडागांव की काली मिर्च-16 ब्रांड को स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् और भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम ने अपने शोध में पाया है कि उत्पादन की मात्रा, गुणवत्ता और सर्वश्रेष्ठ का निर्धारण करने की दूसरे मापदंडों में यह शीर्ष पर है। केरल और पूर्वोत्तर के राज्यों में तीखी लाल ,काली मिर्च का व्यावसायिक उत्पादन होता है लेकिन बस्तर की काली मिर्च-16 अब तक पाई गई अन्य प्रजातियों की मिर्च से बेहतर है। आमतौर पर मिर्च के पौधे से उत्पादन 4 से 5 किलो होता है लेकिन काली मिर्च-16 एक पौधे में 8 किलो तक उगाई जा सकती है। भारतीय मसाला बोर्ड की पत्रिका स्पाइस इंडिया के ताजा अंक में इसका विवरण दिया गया है।
छापे के बाद गायब अफसर
बीते दिनों कोरबा के नगर निगम आयुक्त प्रभाकर पांडे के सरकारी आवास और दूसरे कुछ ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापा मारा था। इसके बाद से ही पांडे कोरबा से बाहर हैं। दफ्तर पहुंच रहे हैं, न ही घर पर दिखाई दे रहे हैं। दफ्तर में उनके मातहत भी कह रहे हैं कि कहां हैं, उनको कोई जानकारी नहीं। आमतौर पर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और जिले के अन्य विभाग प्रमुख, कलेक्टर को अपने अवकाश की जानकारी देकर जाते हैं। पर खबर है कि कलेक्टर कार्यालय से भी उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है। रायगढ़ कलेक्टर रहते हुए आईएएस रानू साहू के यहां छापा पड़ा था तब वे भी कई दिनों से गायब हो गईं। बाद में उनका तबादला हो गया। पर प्रभाकर पांडे के मामले में ऐसा नहीं हुआ। राज्य प्रशासनिक अधिकारियों की पदोन्नति की दो दिन पहले सूची जारी हुई है जिसमें ज्यादातर लोगों को पुरानी जगह से हटाकर नई जगह पर भेजा गया है। पांडे का पद यथावत रखा गया है। भारतीय जनता पार्टी ने इसको मुद्दा भी बना लिया है और उन्होंने पुलिस में शिकायत की है कि हमारे आयुक्त लापता हैं ,जिसके चलते शहर की व्यवस्था बिगड़ रही है।
साव के मुकाबले साहू
प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद अरुण साव पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि परंपरागत रूप से भाजपा को साथ देने के बावजूद सन् 2018 में कांग्रेस के खाते में चले गए साहू समाज के वोटों को वापस खींच लें। कैबिनेट मंत्री और मौके मौके पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने गए ताम्रध्वज साहू की भी अपने समाज में अच्छी पकड़ है। वे दो दशक से अधिक समय तक अपने समाज का नेतृत्व कर चुके हैं। बिलासपुर लोकसभा सीट के सांसद होने और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर होने के कारण जिले के साहू समाज पर साव का गहरा प्रभाव है। अब जब चुनाव के पहले मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में फेरबदल किया गया तो एक बार फिर ताम्रध्वज साहू को बिलासपुर की जिम्मेदारी दे दी गई है। कांग्रेस की सोच हो सकती है कि बिलासपुर लोकसभा सीट और जिले के साहू वोट एक तरफा साव के प्रभाव में ना आए। ताम्रध्वज को जिले का प्रभार मिलने के बाद इसमें मदद मिलेगी। वैसे पहले भी इसी सरकार के दौरान एक बार ताम्रध्वज साहू जिले के प्रभार को संभाल चुके हैं, पर अधिक दौरा नहीं करते थे। अभी जो प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल थे वह कम से कम रायपुर से कोरबा आते जाते छत्तीसगढ़ भवन में रुक जाते थे। वे अधिकारियों को कार्यकर्ताओं से भेंट मुलाकात करके जिले का हाल-चाल जानते थे। अब यह देखना होगा कि साहू बचे हुए 90-100 दिनों में कितनी बार अपने प्रभार के जिले में पहुंचेंगे।
नांदगांव पहले भी रहा आईजी रेंज
छत्तीसगढ़ सरकार ने डीआईजी रेंज रहे राजनांदगांव को आईजी रेंज में अपग्रेड कर प्रशासनिक कसावट पर जोर दिया है। आईजी की तैनाती के लिए प्रशासनिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा राजनांदगांव का एक पुराना इतिहास भी रहा है। यह पहला मौका नही है जब राजनांदगांव को आईजी रेंज का दर्जा मिला। अविभाजित मध्यप्रदेश में राजनांदगांव 90 के दशक में आईजी रेंज रहा। उस वक्त एसएस बरवड़े बतौर आईजी आखिरी पुलिस अफसर थे। बढ़ती नक्सल समस्या के मद्धेनजर तत्कालीन दिग्विजय सिंह की सरकार ने राजनांदगांव में आईजी कार्यालय की शुरूआत कर बालाघाट और मंडला तक रेंज की सीमा तय कर दी थी। छत्तीसगढ़ गठन के बाद आईजी रेंज खत्म कर दिया गया।
इस बार राज्य में नए जिलों और आईजी स्तर के अफसरों की बढ़ती तादाद से राजनांदगांव को आईजी रेंज बनाना प्रमुख वजह बनी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में राजनांदगांव में डीआईजी पदस्थ होते रहे। नए जिलों के निर्माण से मौजूदा सभी रेंज के आईजी पर प्रशासनिक कामकाज का काफी दबाव था। सुनते है कि सरकार बस्तर और बिलासपुर आईजी के बंटवारें पर भी विचार कर सकती है। रायगढ़ में डीआईजी की पोस्टिंग को इसका शुरूआती रूप माना जा रहा है। बस्तर के सात जिलों का भारी भरकम प्रभार संभालना हमेशा से आईजी के लिए मानसिक तनाव भरा रहा है। कांकेर को आईजी रेंज बनाने की चर्चा आईपीएस बिरादरी की जुबां पर है।
नांदगांव में दोबारा आईजी मुख्यालय का दफ्तर खोलकर सरकार ने 2005 बैच के आरआर आईपीएस राहुल भगत की पोस्टिंग कर दी। वैसे भगत इस रेंज के अधीन कवर्धा जिलें की पुलिस कप्तानी कर चुके है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि रेंज की सभी चारों जिलें में आरआर के एसपी के ओहदे पर है।
शोर के बीच एक खामोश विधेयक
मणिपुर मुद्दे पर संसद में हो रहे लगातार हंगामे के बीच छत्तीसगढ़ के विभिन्न समुदायों, विशेषकर आदिवासियों और प्राकृतिक संसाधनों से सरोकार रखने वाला एक महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में पास हो गया। बीते 26 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंदर यादव ने वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश किया और इसे बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया। विधेयक में दावा किया गया है कि इस कानून के बन जाने से कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा। इस विधेयक का मसौदा सार्वजनिक कर सुझाव मांगे जाने के बाद पर्यावरण के संरक्षण के लिए तथा अंधाधुंध खनिज संसाधनों के दोहन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे छत्तीसगढ़ के करीब दो दर्जन संगठनों ने अनेक प्रावधानों पर आपत्ती जताई थी और संयुक्त संसदीय समिति को सुझाव भेजा था। देशभर से भी सैकड़ों आपत्तियां पहुंची। पर संसदीय समिति ने किसी भी बदलाव के बगैर विधेयक को उसके मूल स्वरूप में लोकसभा में पेश किया और बिना किसी विवाद, बहस के वह पारित भी हो गया।
इन संगठनों का सुझाव काफी विस्तृत था लेकिन मोटे तौर पर नए विधेयक के जरिए जो परिस्थितियां बनेंगी वह यह है कि वनों को संरक्षित करने, प्रबंधन करने और उसकी रक्षा करने का अधिकार स्थानीय समुदायों के हाथ से छिन जाएगा। केंद्र सरकार की शक्तियां बढ़ा दी गई है कि वह किसी व्यक्ति या संस्था को वन भूमि हस्तांतरित कर सके। फॉरेस्ट क्लीयरेंस में भी अनेक प्रकार की छूट दे दी गई है। अब कई तरह की परियोजनाओं को पर्यावरणीय प्रभावों के लिए जनसुनवाई कराने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। गैर वन गतिविधियों का दायरा बढ़ा दिया गया है, जिसके बाद वनों में बाहरी दखलअंदाजी बढ़ेगी। पेसा कानून और एफआरए से जो संरक्षण आदिवासियों को अपनी भूमि पर मिला हुआ है, नए विधेयक के कानून बन जाने के बाद वे हाशिए पर चले जाएंगे।
जब यह विधेयक संसद में पेश किया गया तो कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की मांग पर प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसा पहले भी हुआ है कि महत्वपूर्ण विधेयक पास हो गए और सदन में उस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई। अब इस विधेयक को यदि राज्यसभा की भी मंजूरी मिल जाती है तो कानून बन जाएगा। आशंका यही है कि करीब 40 फ़ीसदी वन क्षेत्र वाले छत्तीसगढ़ के संसाधनों के दोहन को नया कानून आसान कर देगा और पर्यावरण जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर अपनी बात मनवाना और कठिन हो जाएगा।
मिलता-जुलता रेल हादसा
बिलासपुर से रायगढ़ जा रही खाली मालगाड़ी के डिब्बे जिस तरह बेपटरी होने के बाद उछलकर गिरे वह किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकता था। इसकी तुलना बालासोर रेल हादसे से लोग कर रहे हैं। माल गाडिय़ों का भरी हो या खाली, ट्रैक से उतर जाना एक सामान्य घटना है। कई बार इसकी चर्चा भी नहीं होती। मुंबई हावड़ा रूट बड़ी व्यस्त रेल लाइन है। इतनी व्यस्त कि यहां क्षमता के मुकाबले 110 प्रतिशत ट्रेनों को दौड़ाया जाता है, उसके बावजूद यात्री ट्रेनों को ग्रीन सिग्नल नहीं मिलता और घंटों विलंब से चलाना पड़ता है। अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि इस दौरान दूसरे और तीसरे ट्रैक पर इस दौरान कोई यात्री ट्रेन गुजर रही होती तो कितना बड़ा हादसा हो जाता। रेलवे के अफसर बताते हैं कि ट्रैक छोडक़र मालगाड़ी के डिब्बों का दूसरी तीसरी लाइनों में जाकर गिर जाना, अमूमन देखा नहीं गया है। अभी जो शुरुआती जानकारी आई है उसके मुताबिक करीब दो किलोमीटर पहले से ही डिब्बे लडख़ड़ाते हुए पटरी पर दौड़ रहे थे। अकलतरा स्टेशन पर एक कर्मचारी ने सूझबूझ दिखाते हुए लाल झंडी दिखाई और मालगाड़ी रोकी।
बालासोर रेल हादसे के बाद रेलवे बोर्ड ने एक एडवाइजरी सभी जोन में भेजकर कहा था कि लोको पायलटों से 24 घंटे से अधिक काम ना लिया जाए। लोको पायलटों ने यह भी बयान दिया था कि इसके बावजूद उनको कई-कई दिन तक चलने के लिए मजबूर किया जाता है। क्या बहुत ज्यादा ओवरटाइम ड्यूटी भी बढ़ते हादसों का कारण बन रहा है?
गंगरेल में मदिरालय
गंगरेल बांध छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।यहां लोग दोस्तों और परिवार के साथ घूमने के लिए आते हैं। सैर-सपाटा, पिकनिक करके लौटते हैं। कई परिवार रिसोर्ट में ठहरते भी हैं। शायद अब प्रशासन को इस खूबसूरत वादी में मौज मस्ती का सामान अधूरा लग रहा है, इसीलिए यहां अब एक बार और शराब दुकान खोलने का निर्णय लिया गया है। ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है। उनका कहना है कि यहां पहुंचने वाले लोग केवल बांध घूमने के लिए नहीं बल्कि अंगारमोती माता का दर्शन करने के लिए भी आते हैं। परिवार सहित लोग निश्चिंत होकर इस पर्यटन स्थल पर इसीलिए आ जाते हैं क्योंकि यहां शराब पीकर उत्पात मचाने की घटनाएं बहुत कम हैं।
देखा जाए, प्रशासन ग्रामीणों की मांग पर क्या फैसला लेता है। शराब की सुविधा यहां के पर्यटन को और पॉपुलर करेगा या आने वालों को निराश।
गुरु को रिझाने में लगी भाजपा
प्रदेश के समाज विशेष के एक गुरु पर भाजपा की नजर है। पिछले दिनों एक पूर्व मंत्री उनसे मिलने भी गए थे। पूर्व मंत्री, गुरुजी से मोदी सरकार के 9 साल के कामकाज का ब्यौरा देने के बहाने मिलने गए थे। उन्होंने कुछ किताबें भी भेंट की। इस मुलाकात में ज्यादा कुछ बातचीत नहीं हुई, लेकिन चर्चा है कि पार्टी के कुछ और नेता गुरुजी को अपने संगठन के बैनर तले प्रत्याशी उतारने के लिए राजी करने में जुट गए हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि गुरुजी अपने समाज के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारते हैं, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। कुछ इस तरह का प्रयोग पहले भी हो चुका है, और यह काफी सफल भी रहा। भाजपा को वर्ष-2013 के चुनाव में गुरुजी के संगठन के प्रत्याशियों के चलते दर्जनभर सीटों पर फायदा हुआ था। मगर इस बार गुरुजी का क्या रुख होगा, यह अब तक सामने नहीं आया है। देखना है कि आगे क्या होता है।
लेन-देन की रिकॉर्डिंग
ट्रांसफर-पोस्टिंग में लेनदेन की खबरें आती रही है। मगर एक केस में लेनदेन को लेकर कुछ ऐसा हुआ है जिसकी चर्चा राजनीतिक गलियारें में हो रही है। बताते हैं कि दल विशेष के एक प्रमुख पदाधिकारी ने शिक्षाकर्मी (सहायक शिक्षक) का तबादला कराने के नाम पर तीन लाख रुपए ले लिए। भुगतान दो किश्तों में हुआ। एक लाख रुपए तो चेक से दिए गए।
चर्चा है कि पैसे लेने के बावजूद पदाधिकारी, शिक्षाकर्मी का ट्रांसफर नहीं करा पाए। शिक्षाकर्मी ने रकम वापस करने के लिए पदाधिकारी पर दबाव बना रहे हैं। मगर पदाधिकारी उन्हें टालते जा रहे हैं। इसी बीच लेनदेन का सारा रिकॉर्ड, और शिक्षाकर्मी व पदाधिकारी की बातचीत का रिकॉर्ड कुछ और लोगों तक पहुंच गया है। अब यह मामला देर सवेर तूल पकड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
एक कांवड़ यात्रा यह भी
इन 75 सालों में देश ने कितनी तरक्की कर ली। अपने छत्तीसगढ़ में भी कई शहर महानगरों की तरह बढ़ गए। बस्तर के भी कई शहरों में चमचमाती सडक़, शॉपिंग मॉल और लोगों के पास महंगी गाडिय़ां हैं। पर वहीं कुछ तस्वीरें इन्हें चिढ़ाती हुई भी दिखाई देती है। नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके के कई गांवों में नाम की सडक़ है। ये ग्रामीण यदि एंबुलेंस को फोन करते तब भी वह गांव तक नहीं पहुंच पाती। इसलिए पांच किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग तक कांवड़ में उठाकर पहुंचाया गया। बस्तर के उन इलाकों में जहां चार चक्कों वाली एंबुलेंस नहीं जा सकती, उसके लिए बाइक एंबुलेंस की सेवा शुरू गई थी। पर पिछले दिनों खबर आई थी कि उनमें से अधिकांश अब कबाड़ हो चुकी हैं।
स्कूलों में लटकते ताले
बस्तर के केशकाल के एक ग्राम पंचायत कलेपाल की प्रायमरी स्कूल में दूसरे स्कूलों की तरह शाला प्रवेशोत्सव मनाया गया। मगर शिक्षक उसी दिन दिखे, उसके बाद कोई नहीं पहुंचा। बच्चे रोजाना तैयार होकर, कापी किताब लेकर स्कूल पहुंच रहे हैं लेकिन शिक्षक गायब हैं। बच्चे रोज कतार में खड़े होकर राष्ट्रगान गाते हैं। मध्यान्ह भोजन कर लेते हैं और लौट जाते हैं। 24 जुलाई को इन्होंने फिर शिक्षकों का इंतजार किया, नहीं आए तो स्कूल के गेट पर ताला जड़ दिया। धमतरी जिले के कुरुद ब्लॉक के शासकीय हायर सेंकेडरी स्कूल बारना में हिंदी, भूगोल, रसायन और वाणिज्य में एडमिशन तो दिया गया है लेकिन इन विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। उन्होंने ज्ञापन देकर 17 जुलाई तक शिक्षकों की व्यवस्था करने की मांग कलेक्टर से की थी। नहीं हुई तो 18 जुलाई को उन्होंने स्कूल में ताला लगा दिया। बलौदाबाजार जिले के पलारी ब्लॉक के वन ग्राम धमनी में एकमात्र शिक्षक थे, जिनका तबादला कर दिया। अभिभावकों के साथ बच्चों ने गेट में ताला जड़ दिया और धरने पर बैठ गए। मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-बैकुंठपुर जिले के खडग़वां ब्लॉक के बसेलपुर में एक अंधविश्वास के चलते ताला बंद है। दो साल के भीतर अलग-अलग वजह से यहां के पांच शिक्षकों की असामयिक मौत हो गई। इसके बाद यहां कोई शिक्षक आना नहीं चाहता। यहां की पढ़ाई भी ठप है। ये बस कुछ उदाहरण हैं जो छात्रों-पालकों की शिकायत के बाद मीडिया के जरिये सामने आ गए हैं। बहुत से और भी स्कूल हो सकते हैं, जो बमुश्किल सिर्फ मिड-डे मील के लिए खुलता होगा। एक तरफ स्वामी आत्मानंद आदर्श अंग्रेजी विद्यालयों का प्रदेश में डंका बज रहा है दूसरी तरफ सैकड़ों स्कूल हैं जहां बेसिक जरूरतों की भी परवाह नहीं की जा रही है। दूसरी ओर डीएड बीएड डिग्री धारी बेरोजगार रोजाना ट्वीट कर सरकार से मांग कर रहे हैं कि 57 हजार से अधिक शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती शुरू की जाए। अगस्त के पहले सप्ताह में इन्होंने राजधानी पहुंचकर आंदोलन करने की योजना भी बनाई है।
नियमित करने का साइड इफेक्ट
ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि संविदा और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के लगातार आंदोलन के बाद सरकार ने इनकी नियमित नियुक्ति के लिए मन बना लिया है। एक तरफ आंदोलनकारी कर्मचारियों पर एस्मा लगाया गया है दूसरी तरफ जिन विभागों से अभी तक नियुक्तियों और रिक्तियों की जानकारी नहीं मिली है, उन्हें एक सप्ताह के भीतर ब्यौरा देने कहा गया है। सरकार के बचे 100 दिनों में आगे की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी या नहीं, यह देखना होगा लेकिन प्रक्रिया इतने आगे तक जरूर बढ़ा ली जाएगी कि आंदोलनरत कर्मचारियों की उम्मीद बांधकर रखी जा सके। शासन के करीब 47 विभागों में 87 हजार से अधिक कर्मचारी हैं जो दैनिक वेतनभोगी और संविदा पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा प्लेसमेंट तथा दैनिक श्रमिक भी हैं।
संविदा और दैनिक वेतनभोगी संबंधित विभागों में जरूरत के मुताबिक रख लिए जाते हैं। सरकार जो सूची बना रही है, उसमें 2004 से 2018 तक के कर्मचारी शामिल किए जा रहे हैं। ये कर्मचारी कार्यालयों को चलाने में बहुत काम आते हैं। कोविड काल में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर ये किसी प्रतियोगी प्रतियोगिता के माध्यम से नहीं आए हैं। इन्हें उस प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ा है जो नियमित भर्ती में करनी पड़ती है। संविदा को नियमित करने से मिलने वाला राजनीतिक लाभ अपनी जगह है, पर कई युवाओं का मानना है कि इससे सीधे-सीधे नियमित भर्ती वाले हजारों पद विभिन्न विभागों मे कम हो जाएंगे। पर कम होंगे, बेरोजगारों के बीच प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी।
भाजपा के नए-पुराने
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों को बदला जा सकता है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा, जब केन्द्रीय नेतृत्व ने प्रबंधन से जुड़े विषय पर चर्चा के लिए संबंधित पदाधिकारियों को बुलाया। यही नहीं, पार्टी नेतृत्व ने प्रदेश के एक-दो और नेताओं को भी अपनी तरफ से आमंत्रित किया था, जिसका संबंधित काम से लेना देना नहीं था। इसके बाद से दो-तीन प्रमुख पदाधिकारियों को बदले जाने की अटकलें तेज हो गई है।
पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए 16 समितियां बनाई हैं। इन समितियों में उन नेताओं को विशेष जिम्मेदारी दी गई है, जो कि अरुण साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से हाशिए पर चले गए थे। हालांकि ये नियुक्तियां साव की पसंद पर ही की गई है। साव ने अध्यक्ष बनने के बाद नए चेहरों को आगे तो लाया है, लेकिन वो अब तक के कामकाज में अपेक्षाकृत खरे नहीं उतर पा रहे थे। ऐसे में चुनाव के चलते एक बार अनुभवी नेताओं पर ही भरोसा जताया गया है। देखना है कि आगे क्या कुछ बदलाव होता है।
सिंहदेव से अब उम्मीद नहीं
टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने से भाजपा की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। सिंहदेव नाराज चल रहे थे, और उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वो विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे भाजपा के रणनीतिकारों को विशेषकर सरगुजा संभाग में बड़े फायदे की उम्मीद थी। लेकिन समय रहते कांग्रेस हाईकमान ने सिंहदेव को मना लिया।
हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों ने अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है, और चर्चा है कि उन्होंने केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को सिंहदेव से बात करने की जिम्मेदारी दी है। सिंहदेव की सिंधिया से पिछले दिनों मुलाकात भी हुई। मुलाकात की तस्वीरें मीडिया में भी आई।
यह कहा गया कि सिंहदेव की सिंधिया से अंबिकापुर एयरपोर्ट के विस्तार के मसले पर बात हुई है। मगर दोनों महाराजाओं की अकेले में सिर्फ सरकारी विषयों पर बात हुई होगी, यह कई लोगों को हजम नहीं हो रहा है, लेकिन जिस तरह सिंहदेव भाजपा के खिलाफ मुखर हो गए हैं, और सरकारी कामकाज में रूचि ले रहे हैं उससे तो यह दिखने लगा है कि सिंधिया अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाए हैं। राजनीति में आगे क्या कुछ होगा, यह कहा नहीं जा सकता।
साय को पहले से पता था...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा के सीनियर नेताओं के साथ बंद कमरे में चर्चा की। बैठक के बाद बाहर निकलकर आए नेताओं ने कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया। एक चर्चा इस बात की होती रही कि जब तमाम वरिष्ठ नेता बैठक में थे तो पार्टी के एक प्रमुख आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को क्यों बाहर रखा गया? फिर भाजपा के ही सूत्रों ने साफ किया कि 75 से अधिक उम्र वाले नेताओं को ‘मार्गदर्शक’ के रूप में ही रखा जाएगा। यही वजह है कि भाजपा में रहते हुए नंदकुमार साय की भी नहीं सुनी जा रही थी। यदि यह फॉर्मूला विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में भी लागू किया गया तो कंवर की टिकट भी खतरे में पड़ सकती है। साय को इसकी भनक लग गई थी कि पार्टी अब उनकी जरूरत महसूस नहीं कर रही है। वे कांग्रेस में आ गए। उन्हें कुछ ही समय बाद केबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल गया। वे इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि वे जशपुर या रायगढ़ की किसी सीट से चुनाव भी लडऩा चाहते हैं।
घर के जोगी...,आन गांव के सिद्ध
दिसंबर 2012 में विधानसभा में तब के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मो. अकबर के सवाल पर बताया था कि राज्य स्थापना दिवस समारोह में करीना कपूर को 8 मिनट के डांस परफॉर्मेंस के लिए 1.40 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। बाद में इस जवाब को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था और कहा था कि सरकार आने पर हम छत्तीसगढ़ी कलाकारों को प्रोत्साहित करेंगे।
इधर बीते एक से तीन जून तक रायगढ़ में रामायण मेला रखा गया था। छत्तीसगढ़ के अलावा देश के कुछ प्रसिद्ध कलाकार भी पहुंचे। इन कलाकारों को किए गए भुगतान का ब्यौरा देखने से पता चलता है कि बाहरी कलाकारों को फीस के भुगतान में दरियादिली दिखाई गई लेकिन छत्तीसगढ़ के कलाकारों के हाथ मामूली रकम ही लगी। सबसे महंगे कुमार विश्वास थे, जिन्हें कलाकारों पर खर्च की गई कुल राशि का 40 प्रतिशत अकेले ही मिल गया। पिछले दिनों विधानसभा में जो जानकारी दी गई उसके मुताबिक सन्मुख प्रिया-शरद शर्मा को 16.50 लाख रुपये, लखबीर सिंह लक्खा को 18.50 लाख रुपये, हंसराज रघुवंशी को 27.50 लाख रुपये, मैथिली ठाकुर को 15.93 लाख रुपये तथा कुमार विश्वास को 60 लाख रुपये का भुगतान किया गया। ये सब छत्तीसगढ़ से बाहर के कलाकार हैं।
अब छत्तीसगढ़ के कलाकारों को किए गए भुगतान को देखें- दिलीप षडंगी को एक लाख 13 हजार रुपये, देवेश शर्मा को 79 हजार तथा गुलाराम रामनामी को 33 हजार रुपये।
छत्तीसगढ़ के कलाकारों को कुल 2.25 लाख रुपये मिले। यह रकम राज्य के बाहर से आमंत्रित सबसे कम भुगतान पाने वाली अकेले मैथिली ठाकुर या लखबीर सिंह लक्खा को दी गई रकम का छठवां हिस्सा भी नहीं है।
विधानसभा के जवाब में यह भी बताया गया कि सभी कलाकारों को भुगतान किया जा चुका है। भ्रष्टाचार या अनियमितता की इसमें कोई शिकायत नहीं आई है।
माना जा सकता है कि ख्यातिनाम कलाकारों की फीस ऊंची हो सकती है, पर यही फीस देनी है यह कैसे तय की जाती है? क्या उनका कोई रेट लिस्ट है? कलाकारों को बुक करने के लिए किस एजेंसी की सेवा ली गई? क्या सरकारी नुमाइंदों ने खुद ही बात की? कुमार विश्वास पर एकमुश्त 60 लाख रुपये खर्च करने का सुझाव किसका था? गुलाराम रामनामी को केवल 33 हजार मिलना चाहिए, यह भी कैसे तय किया गया?
बाहरी कलाकारों के प्रति ऐसा लगाव राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रमों में भी दिखाई दे रहा है। उनमें भी बड़ी रकम खर्च की जा रही है और स्थानीय कलाकार उपेक्षित हैं। बुलाया भी जाता है तो फीस के भुगतान में इसी तरह भेदभाव होता है। मंच प्रस्तुति का वक्त गुजर जाने के बाद छत्तीसगढ़ के कई कलाकार आर्थिक तंगी से गुजरने लगते हैं। इसकी खबरें निकलकर भी आती रहती है। लगे हाथ जानकारी हो कि छत्तीसगढ़ सरकार के इस बार अंतरराष्ट्रीय रामायण मेला के लिए बजट में 12 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
बस्तर बंद को लखमा का समर्थन
मणिपुर मामले में केंद्र सरकार के रवैये के विरोध में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने प्रदर्शन और ज्ञापन कार्यक्रम तो रखा लेकिन सर्व आदिवासी समाज (एसएएस) इन दोनों से आगे निकल गया। बस्तर बंद का उसने आह्वान 24 जुलाई को खास इसी मुद्दे पर किया था लेकिन इसी बहाने से उसे शक्ति प्रदर्शन का मौका मिल गया। अधिकांश शहरों में चेंबर ऑफ कॉमर्स और अन्य व्यापारिक संगठनों ने समर्थन दे दिया था, जिससे बंद को सफलता मिल गई। सर्व आदिवासी समाज बस्तर की सभी सीटों से चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुका है। इससे भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर की स्थिति में फर्क देखने को मिल सकता है। कांग्रेस को चिंता है कि कहीं इसकी उपस्थिति के चलते उसे कोई सीट उसे खोनी न पड़ जाए। उप-चुनावों के बाद तो अब यहां की सभी सीटें उसके पास आ चुकी है। वहीं भाजपा भी पिछला परिणाम दोहराना नहीं चाहती। पर एसएएस की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से उसका भी समीकरण बिगड़ सकता है। बंद के दौरान बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग सडक़ पर उतरे। आबकारी मंत्री कवासी लखमा की नजर इस बात पर थी। उन्होंने सर्व आदिवासी समाज के बंद के आह्वान को मौके की नजाकत को देखते हुए समर्थन कर दिया। मगर, प्रदेश में कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह नहीं सूझा कि मणिपुर को लेकर बंद जैसा कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन करे और अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी भाजपा को कटघरे में खड़ा सके। एसएएस ने इसमें बाजी मार ली। ([email protected])
भूपेश ने की पूर्व सीएस की तारीफ!
नवा रायपुर के एक होटल में तीन दिनी आईएएस कॉन्क्लेव सोमवार को खुशनुमा माहौल में निपट गया। समापन मौके पर सीएम भूपेश बघेल भी मौजूद थे, और उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि सरकार की जो भी उपलब्धियां हैं, उसमें अफसरों का योगदान रहा है।
सीएम ने एक-दो अफसरों के कार्यशैली की जमकर तारीफ की। उन्होंने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के करीबी रहे पूर्व सीएस शिवराज सिंह का नाम लेकर कहा कि उन्होंने (शिवराज सिंह) ने अविभाजित मध्यप्रदेश में ट्रांसपोर्ट (परिवहन) कमिश्नर के रूप में जो काम किया था, वह माइल स्टोन है।
अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने से परिवहन विभाग कुख्यात रहा है। खुद मध्यप्रदेश सरकार में उप मंत्री के रूप में भूपेश परिवहन विभाग को करीब से परख चुके हैं। बताते हैं कि शिवराज सिंह ने ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहते भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई थी। उस वक्त के लोग बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट विभाग में बिना पैसे के ट्रांसफर-पोस्टिंग हुई थी। शिवराज सिंह ने विभाग में पारदर्शिता लाने के लिए जो नीतियां तैयार की थी वो आज भी प्रचलित है। कोई अच्छा काम करता है, तो सालों गुजरने के बाद लोगों को याद रहता ही है।
मेल मुलाकात की नसीहत
आईएएस कॉन्क्लेव में केन्द्र सरकार में पदस्थ अफसर तो नहीं आ पाए, लेकिन ज्यादातर रिटायर्ड अफसरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पूर्व सीएस एसके मिश्रा, और एमके राउत ने नए अफसरों को सीख दी कि आम लोगों से मेल मुलाकात करते रहना चाहिए।
नए नवेले, और कई सीनियर हो चुके अफसरों को लेकर यह शिकायत रहती है कि वो लोगों से मेल मुलाकात करने में परहेज करते हैं। इस वजह से सरकार की योजनाओं का फीडबैक उन्हें नहीं मिल पाता है, और खामियां रह जाती हैं।
सीएस अमिताभ जैन ने भी सलाह दी कि स्वास्थ्य का ध्यान में रखते हुए योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचे, इस दिशा में सार्थक प्रयास करना चाहिए। कॉन्क्लेव में एसोसिएशन के चेयरमैन मनोज पिंगुवा ने कहा कि हममें से ज्यादातर अफसर प्रदेश के बाहर हैं। ऐसे में यहां की संस्कृति, और लोगों को समझने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब सब माहौल में रच-बस चुके हैं।
कॉन्क्लेव में सुलभ इंटरनेशनल के संचालक बिंदेश्वरी पाठक, कुछ पूर्व महिला सफाई कर्मियों को लेकर आए थे। उन्होंने सफाई के क्षेत्र में संघर्षों का ब्यौरा दिया। कुल मिलाकर कॉन्क्लेव में नयापन तो था ही लेकिन आपसी चर्चा में अफसर रानू साहू, और समीर विश्नोई को याद करते रहे, जो कि जेल में हैं।
कुलदीप के खिलाफ मोर्चा
भाजपा का विधानसभा क्षेत्रों में प्रदर्शन का कार्यक्रम चल रहा है। इसमें सत्ताधारी दल के विधायकों के कच्चे चि_े खोलकर उन्हें असफल-नकारा साबित करने की कोशिश चल रही है। ऐसे ही रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा के खिलाफ प्रदर्शन में भाजपाइयों ने हाउसिंग बोर्ड में करोड़ों के घोटाले को जोर-शोर से प्रचारित किया। कुलदीप हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन हैं।
कुलदीप के खिलाफ हाऊसिंग बोर्ड के ठेके में करोड़ों के घोटाले की शिकायत लोक आयोग में हुई है। आयोग ने इस पर बोर्ड से जवाब भी मांगा है। चर्चा है कि यह शिकायत कोई और नहीं, कुलदीप के पार्टी में विरोधी नेता ने करवाई है। जो कि खुद रायपुर उत्तर से टिकट चाह रहे हैं। इधर, कुलदीप समर्थकों का दावा है कि शिकायतों में कोई दम नहीं है। सारे ठेके ऑनलाइन हुए हैं। चेयरमैन का तो दूर-दूर तक लेना देना नहीं है। भले ही कुलदीप समर्थक सही कह रहे हों, लेकिन विपक्ष को तो चुनाव के वक्त एक मुद्दा तो मिल ही गया।
टिकट की चिंता करें या पीए की?
कांग्रेस के बहुत से विधायक उस रिपोर्ट से चिंतित नहीं है, जिसमें 40 फीसदी के आसपास विधायकों का परफार्मेंस ठीक नहीं बताया गया है। उन्हें अगले चुनाव में टिकट देने के बारे में फैसला लेने में यह रिपोर्ट मदद करेगी। संसदीय सचिव और एमसीबी जिले के विधायक गुलाब कमरो को ही देख लीजिए। खबर है कि वीआईपी रोड, रायपुर में देर रात उनका पीए सब-इंस्पेक्टर से उलझ गया। पुलिस वहां समय खत्म हो जाने के बावजूद चल रहे बार को बंद बंद कराने पहुंची थी। कहा जा रहा है कि जब पीए ने सीनियर पुलिस अफसरों की धौंस दिखाई तो पुलिस ने उनको और उनके साथियों को पीट दिया। इतना ही नहीं, उसे पकडक़र वह थाने भी ले आई। खबर मिलने पर संसदीय सचिव कुछ कार्यकर्ताओं के साथ थाने पहुंच गए। वहां पुलिस पर नाराज हुए और आखिरकार पीए को छुड़ाकर ले आए। अब मामला देर रात बार में दारू पीते हुए पकड़े जाने और पुलिस पर रौब छाडऩे का था। विधायक को किसी सर्वे की चिंता होती तो वे पुलिस को फोन करते, कहते कि कानून के मुताबिक काम करिये, अभी बीच में नहीं पडऩा।
चिटफंड का जवाब सहारा..
छत्तीसगढ़ में करीब 54 लाख निवेशक हैं, जिनकी रकम सहारा की चार भिन्न-भिन्न योजनाओं में डूबी हुई है। अधिकांश निचले तबके के लोग, जैसे मजदूरी, प्राइवेट जॉब करने वाले और छोटे व्यवसायी हैं। लोगों को इसमें निवेश आसान लगता था क्योंकि एजेंट घर-दुकान में रोज पहुंचकर रकम इक_ा करते थे। निवेशकों की राशि 15 साल पहले परिपक्व हो चुकी है। कई लोग रकम वापस नहीं मिलने के कारण बर्बाद हो गए। वे सडक़ पर आए, एफआईआर दर्ज कराई। कई प्रबंधकों की गिरफ्तारी भी हुई। सहारा बीच-बीच में विज्ञापन देकर निवेशकों को ढांढस बताता रहा और सेबी पर आरोप लगाता रहा कि उसने रकम रोक रखी है।
सहारा चूंकि कोई फरार कंपनी नहीं है। अधिकारिक रूप से वह रकम वापस करने का दिलासा भी देती आ रही है, इसलिए मामला चिटफंड कंपनियों की ठगी की तरह नहीं है। सन् 2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ सरकार ने चिटफंड कंपनियों की रकम लौटाने का वादा किया था। इसके लिए कोशिश भी हुई। बहुत से डायरेक्टर गिरफ्तार भी किए गए हैं और कुछ संपत्तियों को नीलाम कर रकम लौटाने में सफलता भी मिली है। पर जालसाजी इतनी बड़ी है कि अब तक 10-15 प्रतिशत रकम भी वापस नहीं हो पाई है। अब सहारा इंडिया ने अपने निवेशकों को पैसा लौटाने का ऐलान ठीक ऐसे समय किया है जब इनमें से दो राज्यों, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने जा रहे हैं। ठगी के शिकार लोग इन दोनों राज्यों के अलावा उत्तरप्रदेश और बिहार के भी हैं। भाजपा ने हेल्प डेस्क बनाने का ऐलान किया है जो ऑनलाइन आवेदन करने में लोगों की मदद करेगा। इस तरह से सहारा की रकम वापसी का श्रेय वह ले सकती है। पर इतने बरसों बाद सहारा ने सिर्फ 10-10 हजार रुपये लौटाने का वादा किया है। वे छोटे निवेशक प्राथमिकता में होंगे जिन्होंने 50 हजार रुपये या उससे कम रकम लगाई है। जिन लोगों ने लाखों रुपये जमा कर रखे हैं, उनके लिए अभी कोई उम्मीद नहीं है। कोई तारीख नहीं बताई गई है। उन्हें सिर्फ 10 हजार लौटाने की बात करना छलावा भी लग सकता है। संकेत यही मिल रहा है कि चुनाव को देखते हुए मजबूरी में सहारा इसके लिए तैयार हुई है।
तलवार लेकर काटा केक
मंत्री, विधायकों का बर्थ डे समारोह अब भव्य से भव्यतम होता जा रहा है। जो सत्ता में होते हैं, उनके लिए यह मुश्किल नहीं। समर्थक आगे आकर तैयारी करते हैं। पीएचई मंत्री गुरु रुद्र कुमार का जन्मदिन भी कल शानदार तरीके से मनाया गया। रथ पर बिठाया गया, लोक नर्तकों की टोली पहुंची, गुब्बारे छोड़े गए, फूलों की वर्षा की गई। मंत्री ने सब तस्वीरें अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर की है। इनमें एक वीडियो वह भी है, जिसमें वे टेबल पर सजाए गए सारे केक एक साथ तलवार से काट रहे हैं। बकेक तो इतना नरम और मुलायम होता है कि वह प्लास्टिक की चाकू से भी कट जाता है। पर मंत्री अपने समर्थकों का उत्साह देखकर जोश में भरे हुए थे। तलवार एक प्रतिबंधित हथियार है। इसे लहराने और प्रदर्शन करने की मनाही है। कई ऐसी बर्थ डे पार्टियां हुई है जिनमें इसका इस्तेमाल करने पर पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत अपराध दर्ज किया है, गिरफ्तारियां भी की हैं। पर जब बात सरकार में बैठे जिम्मेदार जनप्रतिनिधि की हो तो कोई कार्रवाई होगी, ऐसा सोचना नहीं चाहिए।
दारू ओवररेट का मुद्दा कांग्रेस में
विधानसभा के आखिरी सत्र में शराब पर काफी कुछ चर्चा हुई। कुछ इसी तरह की बहस पिछले दिनों रायपुर संभाग के एक ब्लॉक कांग्रेस की बैठक में भी हुई। बताते हैं कि बैठक में पदाधिकारियों ने क्षेत्र में ओवर रेट पर शराब बिक्री का मुद्दा उठाया। यह कहा गया कि इससे विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। बैठक में ओवररेट शराब बिक्री के खिलाफ बकायदा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर आबकारी मंत्री को ज्ञापन देने का फैसला लिया गया। खास बात यह है कि बैठक में स्थानीय महिला विधायक भी मौजूद थीं। थोड़ा ना-नुकुर के बाद उन्होंने भी ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए। चर्चा है कि एक मंत्री जी को प्रमाण देने के लिए एक पदाधिकारी ने शराब दुकान में ओवर रेट पर बिक्री का स्टिंग ऑपरेशन भी किया था।
इसके बाद सत्र के दौरान आबकारी मंत्री को ज्ञापन देने के लिए कुछ पदाधिकारी विधानसभा भी गए, लेकिन वहां माहौल पहले से गरम था। लिहाजा, मंत्री जी से मुलाकात नहीं हो पाई, और वो लौट आए। मगर पार्टी के भीतर ओवर रेट शराब वाले प्रस्ताव की खूब चर्चा हो रही है। ये अलग बात है कि पदाधिकारी इस पर बात करने से बच रहे हैं।
महिलाओं की शिकायत
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पखवाड़े भर के भीतर दूसरी बार रायपुर पहुंचे, तो वो इस बार भी पार्टी के चुनिंदा नेताओं के साथ बैठक कर निकल गए। पार्टी के कई प्रमुख नेता उनसे मुलाकात की कोशिश में थे, लेकिन वो बैठक स्थल के आसपास भी फटक नहीं पाए। पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर को तो पार्टी दफ्तर के बाहर ही रोक दिया गया था।
बताते हैं कि पार्टी की महिला नेत्रियों का एक दल पिछले दिनों दिल्ली प्रवास पर था। महिला नेत्रियों ने राष्ट्रीय नेताओं से शिकायत की, कि केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात नहीं करने दिया जाता है। ऐसे में मंत्रियों को स्थानीय समस्याओं को अवगत नहीं करा पाते हैं। कहा जा रहा है कि महिला नेत्रियों की शिकायत को पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है। चर्चा है कि केन्द्रीय मंत्री यहां आने पार्टी नेताओं से मेल-मुलाकात करेंगे। वाकई ऐसा होगा,यह तो मंत्रियों के आने के बाद ही पता चलेगा।
छात्राओं से हमाली का काम
गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर स्थित सरकारी कन्या हाईस्कूल में ट्रक से भारी-भरकम फर्नीचर उतारने के लिए छात्राओं की ही ड्यूटी लगा दी गई। स्कूलों में गणवेश, फर्नीचर, साइकिल, लैब के सामान खरीदी का भारी बजट होता है और इसमें बंदरबांट भी आम बात है। पर लगता है कि इस स्कूल के प्राचार्य ने इतनी मितव्ययिता बरती है कि उसके पास अनलोडिंग के लिए मजदूर लगाने को देने के पैसे नहीं थे।
स्कूल खाली हुए तबादलों से
स्कूल शिक्षा विभाग में पदोन्नति के बाद तबादला आदेश में संशोधन के लिए अफसरों और बाबुओं ने करोड़ों रुपयों की वसूली की। सर्वाधिक मामले बिलासपुर में आए थे जहां 600 से अधिक तबादला संशोधन आदेश निकाले गए। संयुक्त संचालक और एक बाबू के निलंबन के बाद अफसर शांत बैठ गए हैं। मामला ठंडा होते ही निलंबन समाप्त भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। पर गड़बड़ी केवल बिलासपुर में नहीं रायपुर संभाग में हुई। यहां किसी पर आंच नहीं आई। फिंगेश्वर ब्लॉक के मैनपुर ब्लॉक के लिए संशोधित आदेश जारी कर दूर-दराज के स्कूलों से शिक्षकों को वापस उनकी सहूलियत वाले स्कूलों में भेज दिया गया। 80 शिक्षकों का तबादला किया गया, इसके चलते 40 से अधिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक रह गए हैं। शिक्षकों का वेतन भी अब मामूली नहीं है, इसलिए उन्होंने पसंद के स्कूलों में आने के लिए खर्च करने में कंजूसी नहीं बरती। छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा की स्थिति बेहद खराब देश के राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में 30वें नंबर पर। छत्तीसगढ़ के जिलों में गरियाबंद का स्थान नीचे से चौथा है। अफसरों ने तबादले में खेल करते समय यह नहीं सोचा कि वे इस आदिवासी बाहुल्य इलाके के प्रायमरी स्कूलों के बच्चों के भविष्य से वे कैसा खिलवाड़ कर रहे हैं।
स्मार्ट सिटी का फुटपाथ
स्मार्ट सिटी परियोजना के अधूरे काम वैसे तो दिसंबर 2021 तक पूरा करने का निर्देश था, पर कोरोना महामारी के चलते इसे जून 2023 तक बढ़ा दिया गया था। रायपुर सहित अन्य शहरों में, जहां यह परियोजना लागू है- फंड जल्दी खत्म करने की कोशिश की जा रही है, पर इस दौरान काम किस तरह किया जा रहा है, यह देखना हो तो 17 करोड़ रुपये के सौंदर्यीकरण के तहत बूढ़ा तालाब के किनारे बन रहे फुटपाथ को देखा जा सकता है। निर्माण अभी हो ही रहा है और बारिश के दौरान फुटपाथ घंसकर भीतर चला गया। वैसे छत्तीसगढ़ की स्मार्ट सिटी परियोजना अनोखी है, जिसमें क्या काम होगा, कैसे होगा, इस पर जनप्रतिनिधियों का कोई हस्तक्षेप नहीं है। एक कंपनी बनाई गई है, जिसमें निर्णय अफसर लते हैं।
निखर गई कांगेर घाटी
बस्तर की कांगेर घाटी की सीमा जगदलपुर जिला मुख्यालय से केवल 27 किलोमीटर बाद शुरू हो जाती है। करीब 200 वर्गकिलोमीटर में फैले यहां के राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 22 साल पहले 22 जुलाई को हुई थी। तब से यहां की वन विकास समिति और वन विभाग ने यहां ईको टूरिज्म का विकास करनें में काफी प्रयास किए। इन दिनों बारिश के बाद इसकी खूबसूरती और निखर आई है। बड़ी संख्या में यहां पर्यटक पहुंच रहे हैं। यह तस्वीर वहीं से ली गई है।
पद या टिकट?
दीपक बैज की नई टीम को लेकर कांग्रेस के अंदरखाने में मंथन चल रहा हैै। चर्चा है कि टीम भूपेश का हिस्सा रहे कुछ अनुभवी नेताओं को संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।
खनिज निगम के चेयरमैन गिरीश देवांगन को फिर प्रभारी महामंत्री प्रशासन, और संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसी तरह शैलेश नितिन त्रिवेदी सहित कई ऐसे नाम हैं जिन्हें संगठन लाया जा सकता है। मगर पेंच यह है कि गिरीश देवांगन का नाम भाटापारा से टिकट के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है।
इसी तरह शैलेश भी बलौदाबाजार से चुनाव लडऩा चाहते हैं, और वो इसकी तैयारी भी कर रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि जिन्हें संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जाएगी, वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे परे चर्चा है कि खुद दीपक के करीबी बस्तर के मलकीत सिंह गेंदू जैसे कई नेता भी अहम पद चाहते हैं।
मोहन मरकाम ने प्रदेश अध्यक्ष रहते कोंडागांव से अपने करीबी रवि घोष को यहां लाकर प्रभारी महामंत्री प्रशासन का दायित्व सौंपा था वो अभी भी ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। देखना है कि दीपक बैज की टीम में किसको क्या जिम्मेदारी मिलती है।
ओपी आँखों के तारे!
वैसे तो कई पूर्व अफसरों ने भाजपा से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूवात की, और चुनाव मैदान में उतरने के इच्छुक हैं। इनमें अकेले ओपी चौधरी को ही पार्टी में अच्छा महत्व मिल रहा है। वो केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ चुनावी रणनीति तैयार करने वाली टीम का हिस्सा बन गए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल व अजय चंद्राकर को भी शाह की बैठक में नहीं बुलाया गया। इसके अलावा पूर्व आईएएस आरपीएस त्यागी हाल में भाजपा में आए हैं। उनकी पूछपरख नहीं हो रही है। इससे परे दुग्ध संघ के पूर्व एमडी एके गहरवार को पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह के आफिस में दायित्व मिल गया है। लोगों से पूर्व सीएम की मेल-मुलाकात कराने की जिम्मेदारी डॉ गहरवार संभाल रहे हैं।
कहा जा रहा है कि आने वाले समय में कुछ और अफसर भाजपा से राजनीतिक कैरियर की शुरूवात करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका क्या होता है, यह देखना है।
बाघ से ज्यादा नक्सलियों का खौफ
बीते शुक्रवार की घटना को मिलाकर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में तीन माह के भीतर बाघ के शिकार की दो घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इसके अलावा इस माह के पहले सप्ताह मंद्देड़ बफर रेंज में बाघ के खाल के साथ शिकारी पकड़े गए थे। तीनों मामलों में 50 से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए। हाल ही में देशभर में बाघों की संख्या पर एक रिपोर्ट आई थी, पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 33 प्रतिशत वृद्धि की जानकारी थी। छत्तीसगढ़ में 40 से अधिक बाघ होने का दावा किया जाता है लेकिन पहले की गणना में सिर्फ 19 बाघों की पुष्टि हो पाई थी। सन् 2022 की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के टाइगर रिजर्व में कुल कितने बाघ हैं, इसका कोई अलग आंकड़ा अब तक जानकारी में नहीं है। बाकी अभयारण्यों में ट्रैप कैमरे की तकनीक गिनती के लिए अपनाई जाती है पर इंद्रावती में नक्सली आवाजाही के चलते स्टेक और पगमार्क कलेक्शन की पुरानी तकनीक अपनाई जाती है। राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण कई बार ये सैंपल अमान्य कर चुका है। यहां लगाने के लिए 200 से अधिक ट्रैप कैमरों की खरीदी भी कर ली गई, जिनमें से कुछ ही अब तक लगाए जा सके हैं। वन विभाग के अफसर कहते हैं कि स्थानीय ग्रामीण भी कोर जोन में जाकर कैमरे लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि बाघों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए पेट्रोलिंग की स्थिति क्या है? हाल की घटनाओं से पता चलता है कि टाइगर रिजर्व के अफसर और फारेस्ट गार्ड के मुकाबले शिकारियों की पहुंच इंद्रावती रिजर्व में अधिक भीतर तक है। बफर जोन में खाल, नाखून, मूंछ, बाल के साथ शिकारी तब पकड़े गए जब वे बफर जोन में निकलकर आए। जंगल के भीतर इनकी आमद-रफ्त जारी है। शिकारियों को नक्सलियों का डर नहीं है पर वन विभाग को है। एक पहलू यह भी है कि शिकारी और नक्सली दोनों हथियारों से लैस होते हैं, पर पेट्रोलिंग करने वाले वनकर्मियों के पास यह नहीं है।