राष्ट्रीय
देहरादून, 26 अक्टूबर | तीन मई 2022 को अक्षय तृतीया के मौके पर चारधाम यात्रा की शुरूआत हुई थी और अब शीतकाल के लिए धामों के कपाट बंद होने के क्रम शुरू हो रहे हैं। चारधाम यात्रा में अब तक 42 लाख से ज्यादा तीर्थ यात्री पहुंच चुके हैं। सबसे पहले अन्नकूट पर्व पर 26 अक्टूबर को गंगोत्री धाम के कपाट बंद होंगे। 26 अक्टूबर को श्री गंगोत्री धाम के कपाट 12 बजकर 1 मिनट पर शीतकाल हेतु बंद हो जाएंगे। 27 अक्टूबर प्रात: साढ़े आठ बजे श्री केदारनाथ धाम के कपाट बंद होंगे।
यमुनोत्री धाम के कपाट भी 27 अक्टूबर को अभिजीत मुहूर्त में दोपहर को बंद हो जाएंगे। 19 नवंबर को अपराह्न् 3 बजकर 35 मिनट श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होंगे। इसके साथ ही द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट शुक्रवार 18 नवंबर और तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट सात नवंबर को बंद होंगे। बता दें कि विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि विजय दशमी के अवसर पर विधि-विधान पंचाग गणना के पश्चात तय हुई थी।
बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत पंच पूजाओं में 15 नवंबर मंगलवार को पहले दिन पूजा अर्चना पश्चात शाम को श्री गणेश जी के कपाट बंद हो जाएंगे।
दूसरे दिन 16 नवंबर बुधवार को आदि केदारेश्वर मंदिर के कपाट बंद होंगे, तीसरे दिन गुरुवार 17 नवंबर को खडग पुस्तक पूजन एवं वेद ऋचाओं का पाठ बंद हो जाएगा। चौथे दिन शुक्रवार 18 नवंबर को मां लक्ष्मी जी को कढ़ाई भोग लगाया जायेगा। पांचवें दिन 19 नवंबर को रावल जी स्त्री भेष में मां लक्ष्मी को श्री बदरीविशाल के निकट स्थापित करेंगे। इससे पहले श्री उद्धव जी एवं कुबेर जी मंदिर प्रांगण में आएंगे और श्री बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल हेतु बंद हो जायेंगे।
यहां से कुबेर जी रात्रि अवस्थान हेतु बामणी गांव जाएंगे। जबकि उद्धव जी रावल मंदिर के निकट रहेंगे। दिनांक 20 नवंबर को देवडोलियां बदरीनाथ धाम से पांडुकेश्वर एवं श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ हेतु प्रस्थान करेंगी। आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी 20 नवंबर को रावल सहित योगध्यान बदरी पांडुकेश्वर प्रवास करेगी। 21 नवंबर सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंचेगी। इसी के साथ बदरीनाथ धाम यात्रा का समापन भी हो जाएगा।
केदारनाथ धाम के कपाट इस यात्रा वर्ष 27 अक्टूबर प्रात: साढ़े आठ बजे शीतकाल हेतु बंद हो जाएंगे। भगवान केदारनाथ जी की पंचमुखी डोली 27 अक्टूबर को फाटा, 28 अक्टूबर को विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी तथा 29 अक्टूबर को श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। इसी के साथ पंचकेदार गद्दी स्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भगवान केदारनाथ जी की शीतकालीन पूजा शुरू हो जाएंगी। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर | केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारत में रविवार को पिछले 24 घंटों में कोविड-19 के 1,994 नए मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा शनिवार को सामने आए 2,112 मामलों से कम है। इसी अवधि में, कोरोना से चार और मरीजों की मौतें दर्ज की गई। जिसके चलते मरने वालों का आंकड़ा 5,28,961 तक पहुंच गया। वहीं 2,601 मरीज महामारी से ठीक भी हुए है।
देश भर में कोरोना से ठीक होने वालों की कुल संख्या बढ़कर 4,40,90,349 हो गई है। जिसके कारण भारत का रिकवरी रेट 98.76 प्रतिशत हो गया है।
भारत का डेली पॉजिटिविटी रेट 1.24 है, जबकि वीकली पॉजिटिविटी रेट वर्तमान में 0.99 प्रतिशत है।
साथ ही इसी अवधि में, देश भर में कुल 1,61,290 कोरोना टेस्ट किए गए। यह आंकड़ा बढ़कर 89.99 करोड़ से अधिक हो गया। (आईएएनएस)
एम.के. अशोक
बेंगलुरू, 23 अक्टूबर | केंद्रीय मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा संसदीय समिति ने जब से अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी है, तब से कर्नाटक में हिंदी थोपने पर बहस छिड़ी हुई है।
कन्नड़ समूह और राजनीतिक दल हिंदी इस पर चिंता जता रहे हैं।
समिति ने जब से राष्ट्रपति को अपनी सिफारिशें सौंपी हैं तब से राज्य में हिंदी थोपने की आशंका से बहस हो रही है। विभिन्न समूहों ने कर्नाटक सरकार को सुझाव दिया है कि वह तमिलनाडु की तरह राज्य विधानसभा में हिंदी भाषा को लागू करने के खिलाफ प्रस्ताव पारित करे।
कर्नाटक रक्षणा वेदिके की महासचिव सन्नीरप्पा ने आईएएनएस को बताया कि शुरुआत में केंद्र सरकार ने भूमि की भाषा बात की है और बाद में अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी भाषा लागू की जाएगी।
उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। रेलवे, बैंकिंग और डाकघर के साथ यही हुआ है। इसी तरह यहां भी थोपेंगे। इसलिए हमारी सरकार को भी तमिलनाडु सरकार की तरह हिंदी के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए।
सन्नीरप्पा ने कहा कि वर्तमान सरकार को अन्य मुद्दों की तरह विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक प्रस्ताव लाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि धीरे-धीरे यह कहने की कोशिश की जाएगी कि चूंकि केंद्र सरकार फंड मुहैया कराती है, इसलिए उसके आदेश का पालन करना होगा। इसे कानूनी ढांचे के तहत भी लाया जाएगा।
सन्नीरप्पा ने कहा कि नजदीक आ रहे संसदीय चुनाव के कारण फिलहाल केंद्र सरकार हिंदी थोपने का साहस नहीं करेगी उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी फिर से सत्ता में आती है, तो उनके पास एक लाइन का एजेंडा है, एक राष्ट्र, एक भाषा और एक धर्म।
सन्नीरप्पा ने कहा कि भाजपा का इरादा क्षेत्रीय दलों को खत्म करना है और वे अंजाम दे रहे हैं। हिंदी थोपने का कड़ा विरोध होगा। जद (एस) जैसे राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को उठाया है और विपक्षी नेता सिद्दारमैया भी इस बारे में बहुत मुखर हैं, इसलिए इसे थोपना इतना आसान नहीं होगा। कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा को कन्नड़ भाषा का समर्थन करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
कन्नड़ भाषा की दिशा में काम करने वाले पेशेवरों के एक समूह बनवासी बलगा के अरुण जवागल ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में भारतीय प्रबंधन संस्थान (एम्स) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन केंद्र सरकार ने यह नहीं कहा है कि यह गैर-हिंदी राज्यों में भी लागू होगा।
उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में यदि केवल हिंदी में शिक्षा देने का प्रयास किया जाता है और क्षेत्रीय भाषाओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो संकट खड़ा हो जाएगा।
अरुण जगवाल ने कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस संबंध में कई बातें कही हैं। कर्नाटक में भी ऐसा किया जाना चाहिए। अन्यथा यह मान लिया जाएगा कि यहां सवाल करने वाला कोई नहीं है।
जगवाल ने कहा कि कांग्रेस आज समिति के खिलाफ बात कर रही है। लेकिन उन्होंने पहले ही इस तरह की सिफारिशें दी हैं। अब तक इस संबंध में की गईं 11 सिफारिशों में से कांग्रेस सरकारों द्वारा 8 सिफारिशें की हैं।
इसके पहले राज्य के विपक्षी नेता सिद्दारमैया ने हिंदी भाषा थोपने और स्थानीय कन्नड़ भाषा की उपेक्षा को लेकर सोशल मीडिया पर सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला बोला था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार कन्नड़ भाषा को नुकसान पहुंचा रही है और भाजपा के केंद्रीय नेताओं को खुश करने के लिए हिंदी भाषा का महिमामंडन कर रही है।
जद (एस) के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने यह कहकर केंद्र सरकार की खिंचाई की थी कि बीजेपी हिंदी भाषा लाकर भारत को हिंदुस्तान बनाने की साजिश कर रही है।
कुमारस्वामी ने कहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इससे देश में संघवाद ढांचा नष्ट हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एक छिपे हुए एजेंडे के माध्यम से पूरे भारत को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।
अगर बहुमत मिलने के कारण बीजेपी भारत पर हिंदी थोपती है तो भारत को नुकसान होगा।
कुमारस्वामी ने कहा भारत हिंदू और हिंदी के लिए नहीं है। यह सबका है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर | केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गांधी परिवार से जुड़े 2 गैर-सरकारी संगठन राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट का विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस रद्द कर दिया है। दोनों संस्थाओं की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। इन एनजीओ को अब विदेशी फंड लेने की अनुमति नहीं होगी। सूत्रों के मुताबिक राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट का विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस विदेशी फंडिंग नियमों के उलंघन के चलते रद्द किया गया है। गृह मंत्रालय ने इसकी जांच के लिए साल 2020 में एक कमिटी भी गठित की थी। ये निर्णय उसी जांच कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है।
बता दें कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं, जबकि अन्य ट्रस्टियों में पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी शामिल हैं। वहीं राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष भी सोनिया गांधी ही हैं। वहीं इसके ट्रस्टी में राहुल गांधी, अशोल गांगुली, बंसी मेहता और दीप जोशी शामिल हैं।
जानकारी के मुताबिक राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट साल 2020 में जांच के दायरे में आए थे। तब गृह मंत्रालय ने गांधी परिवार से जुड़े कुल 3 एनजीओ की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया था। इनके ऊपर एफसीआरए के संदिग्ध उलंघन सहित आयकर रिटर्न्स में हेरफेर के आरोप लगे थे।
गौरतलब है कि राजीव गांधी फाउंडेशन 1991 में बनाया गया था। वहीं राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना 2002 में की गई थी। गौरतलब है कि साल 2020 में भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी आरोप लगाया था कि इन संस्थाओं ने चीन से ऐसा फंड लिया है, जो देश हित में नहीं है। (आईएएनएस)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर | केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल और राजभवन की भूमिका को लेकर इस देश में लगातार सवाल उठते रहे हैं चाहे केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही हो या तीसरे मोर्चे की सरकार या क्षेत्रीय दलों के समर्थन पर टिकी यूपीए गठबंधन की सरकार रही हो या फिर क्षेत्रीय दलों के ही समर्थन पर टिकी एनडीए गठबंधन की पहली सरकार रही हो। वर्तमान केंद्र सरकार के खिलाफ भी राज्यों के राज्यपाल की भूमिका को लेकर कई राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ने मोर्चा खोल रखा है।
तृणमूल कांग्रेस और उसकी मुखिया एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्य के राजभवन के रिश्ते जगजाहिर है। आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद से ही लगातार दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाती रही है और अब आप के निशाने पर पंजाब के राज्यपाल भी आ गए हैं। अन्य राज्यों की बात करें तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भी नीट के मुद्दे पर लगातार राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं।
तो क्या वाकई, भाजपा राज्यपाल के जरिए विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों को परेशान कर रही है? भाजपा इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए पूरी तरह से निराधार बता रही है।
आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ने कहा किसी भी राज्य का राज्यपाल संविधान और नागरिकों का सरंक्षक होता है और इसलिए राज्यपालों को संविधान के प्रावधान के अनुसार सख्ती से काम करना होता है लेकिन असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल, भ्रष्टाचार की गतिविधियों में सलिंप्त और राजनीतिक विरोधियों को आतंकित करने में लगी राज्य सरकारें ही राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़े कर रही है।
भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता ने जोर देकर कहा कि देश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं जिनमें से 12 राज्यों में गैर भाजपा या गैर एनडीए दलों की सरकारें हैं लेकिन राज्यपाल के साथ टकराव करने में सिर्फ दो राजनीतिक दल - तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सबसे आगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी 'संघवाद' की बात करती हैं लेकिन वह कभी भी 'सहकारी संघवाद' नहीं बोलती क्योंकि 'सहयोग' नाम का शब्द उनकी डिक्शनरी में ही नहीं है। टीएमसी सरकार पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने, कट मनी कल्चर को बढ़ावा देने ,भ्रष्टाचार, हिंसा,आगजनी और आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसे कई गंभीर आरोप लगाते हुए भाजपा सांसद ने कहा कि आखिर राज्य सरकार के इस तरह के रवैये पर कोई भी राज्यपाल या केंद्र सरकार चुप कैसे बैठ सकती है, कैसे नजरअंदाज कर सकती है?
विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा लगाए जा रहे आरोपों के बीच भाजपा भी पलटवार करते हुए राज्यपाल की भूमिका को संविधान सम्मत बताते हुए सवाल उठाने वाले मुख्यमंत्रियों पर संविधान और संवैधानिक परंपराओं के लगातार उल्लंघन का आरोप लगाते यह कह रही है कि ये लोग लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं।
दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ममता बनर्जी पर सत्ता में बने रहने के लिए बार-बार संविधान को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं। तो वहीं भाजपा राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग पंजाब की भगवंत मान सरकार पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार लगातार संवैधानिक संस्थाओं का अपमान कर लोकतंत्र का अपमान कर रही है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 23 अक्टूबर | पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने अगले साल मार्च में राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का बिगुल फूंक दिया है, ऐसे में राजनीतिक गलियारों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 में पिछले तीन मौकों की तुलना में ग्रामीण निकाय चुनाव पूरी तरह से अलग परिस्थितियों में होंगे। 2008 में, ग्रामीण निकाय चुनाव हुए थे, जब हुगली जिले के सिंगूर और पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विपक्षी तृणमूल कांग्रेस के दोहरे आंदोलन के कारण सत्तारूढ़ वाम मोर्चा जबरदस्त दबाव में था। तब वाम मोर्चा सरकार पंचायत के तीन स्तरों जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत में अधिकांश सीटों को बरकरार रखने में कामयाब रही।
लेकिन राज्य के विभिन्न हिस्सों में यह स्पष्ट था कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में वाम दलों की मजबूत पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। 2009 के लोकसभा चुनावों में ये कमजोरी और बढ़ गई और अंतत: 2011 में उन दरारों के कारण वाम मोर्चा शासन का पतन हो गया, जिसने 1977 से 34 वर्षों तक राज्य पर शासन किया था।
2013 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव राज्य में पहले ग्रामीण निकाय चुनाव थे, जिसमें तृणमूल कांग्रेस सत्ता में थी और प्रमुख विपक्षी वाम मोर्चा ये नहीं पता था कि उनके ढहते संगठन नेटवर्क को कैसे पुनर्जीवित किया जाए। जैसे कि उम्मीद थी, तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के साथ सत्ताधारी दल के खिलाफ चुनावों में जीत हासिल की।
2018 के त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ग्रामीण निकाय के तीन स्तरों के बहुमत पर कब्जा करने में तृणमूल कांग्रेस के पूर्ण वर्चस्व की निरंतरता देखी गई। हालांकि, 2018 में परिणाम अलग थे क्योंकि भाजपा पहली बार तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी, जिसने वाम मोर्चा और कांग्रेस को क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर धकेल दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 के पंचायत चुनावों में तीन सामान्य कारक थे। पहला यह था कि इन तीनों चुनावों में जबरदस्त हिंसा हुई थी जिसमें कई लोग मारे गए थे। दूसरा यह था कि इन तीनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के वोट शेयर में एक बड़ी वृद्धि देखी गई जो 2018 में चरम पर पहुंच गई। तीसरा, ग्रामीण बंगाल में वाम मोर्चा के वोट शेयर में भारी गिरावट थी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 2013 और 2018 में दो ग्रामीण निकाय चुनावों में सत्ता में तृणमूल कांग्रेस के साथ, विपक्ष को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ उठाए जाने वाले मुद्दों के बारे में ज्यादातर जानकारी नहीं थी।
हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि इस बार कई मजबूत मुद्दे हैं, जिन्हें विपक्ष पंचायत चुनावों में उजागर करना चाहेगी। विडंबना यह है कि इनमें से अधिकतर मुद्दे ग्रामीण नगर निकायों से संबंधित नहीं हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अरुंधति मुखर्जी ने कहा, पहला मुद्दा भ्रष्टाचार और नेताओं और मंत्रियों की गिरफ्तारी का होगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने शिक्षक भर्ती घोटाले से संबंधित भारी नकदी वसूली की तस्वीरों और वीडियो के साथ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को वास्तव में बैकफुट पर धकेल दिया है। तृणमूल कांग्रेस के नेता डिफेंसिव मोड में हैं क्योंकि पार्टी को दूरी बनानी पड़ी थी -- खुद पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी से, जिनसे उनके सभी मंत्री और पार्टी विभाग छीन लिए गए थे। अब देखना होगा कि ग्रामीण निकाय चुनावों में इस अभियान का मुकाबला करने में सत्ताधारी पार्टी कितनी आक्रामक होती है।
मुखर्जी ने कहा, यह पहली बार होगा जब तृणमूल कांग्रेस अपने प्रमुख चुनावी रणनीतिकारों में से एक अनुब्रत मंडल के साथ चुनाव लड़ेगी, क्योंकि पशु तस्करी घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता थी। पर्यवेक्षकों का मानना है कि सिर्फ पार्टी के बीरभूम जिला अध्यक्ष होने के बावजूद, मंडल हमेशा पार्टी के गढ़ जिलों में अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, तो निश्चित रूप से उनकी अनुपस्थिति न केवल बीरभूम में बल्कि बीरभूम से सटे जिलों में भी तृणमूल कांग्रेस के ग्रामीण स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ा झटका होगी।
सभी इस चिंता में हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि 2023 के चुनावों में 2008, 2013 और 2018 की पुनरावृत्ति न हो। राज्य चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि वह राज्य पुलिस बलों के साथ सुरक्षा के प्रभारी के साथ चुनाव कराने के पक्ष में है, विपक्षी दल केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती की मांग पहले ही शुरू कर दी है। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 23 अक्टूबर | मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने खास रणनीति पर अमल तेज कर दिया है। एक तरफ जहां पार्टी दलबदल कर सरकार गिराने वाले विधायकों को सबक सिखाने की तैयारी में है तो दूसरी ओर पार्टी का सारा दारोमदार प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के कंधों पर रहने वाला है।
राज्य में वर्ष 2018 में डेढ़ दशक बाद कांग्रेस के हाथ में सत्ता आई थी, मगर अपनों की दगाबाजी ने कांग्रेस को फिर विपक्ष में लाकर खड़ा कर दिया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ तत्कालीन 22 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी और अब तक यह आंकड़ा 29 पर पहुंच गया है। कमलनाथ दल बदल कर फिर विधायक बने विधायकों को शिकस्त देने की तैयारी में है।
कांग्रेस ने दल-बदल कर विधायक बनने वालों के इलाकों में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और कमलनाथ ने इसका आगाज भी कर दिया है। बीते दिनों छतरपुर जिले के बड़ा मलहरा विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे और जमकर गरजे भी। इस क्षेत्र से वर्तमान में भाजपा के विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी हैं। लोधी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। बड़ा मलहरा विधानसभा सीट से वर्ष 2003 में उमा भारती भी विधायक निर्वाचित हुई थी।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ का सबसे ज्यादा जोर उन विधानसभा क्षेत्रों में है जहां के वर्तमान विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और चुनाव जीत गए। इन क्षेत्रों के लिए कमलनाथ ने एक खास रणनीति बनाई है और उस पर अमल भी शुरू हो गया है। शुरूआत छतरपुर जिले के बड़ा मलहरा विधानसभा से उन्होंने कर भी दी है और आने वाले समय में उन क्षेत्रों तक वे पहुंचेंगे जहां के विधायकों ने कांग्रेस को धोखा किया था।
पार्टी पूरी तरह कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। गुटों में बंटी कांग्रेस को कमल नाथ ने एक बार फिर एक जुट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, इसके बावजूद वर्तमान में कांग्रेस में गुट तो नजर नहीं आ रहे है मगर कई बड़े नेता सक्रिय भी नहीं है। कुल मिलाकर कांग्रेस में सिर्फ एक नाथ के तौर पर कमलनाथ ही दिखाई दे रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। इस चुनाव में दोनों ही राजनीतिक दलों के संगठन की बड़ी भूमिका रहने वाली है। भाजपा लगातार बूथ स्तर पर पहुंचने के अभियान में जुटी है तो वहीं कांग्रेस को भी बूथ स्तर पर अपनी पहुंच को मजबूत बनाना होगा। नेताओं के तौर पर भाजपा के पास लंबी-चौंड़ी लिस्ट है तो कांग्रेस के पास बड़ा चेहरा सिर्फ कमल नाथ और दिग्विजय सिंह ही है, इस स्थिति में जो भी दल कारगर रणनीति बनाने के साथ कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में सफल होगा जीत उसके लिए आसान रहेगी। (आईएएनएस)
गणेश भट्ट
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर | आज के समय में फिलहाल कैंसर का सबसे कारगर उपचार कीमोथेरेपी है। हालांकि कीमोथेरेपी शरीर में कैंसर के सेल पर हमला करने के साथ-साथ अन्य सामान्य कोशिकाओं पर भी हमला करता है जिससे रोगी की हालत कुछ दिनों के लिए बहुत खराब हो जाती है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसी तकनीक खोज निकाली है जिसकी थेरेपी के दौरान केवल कैंसर के सेल पर हमला किया जाएगा और शरीर की बाकी कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
केंद्रीय विश्वविद्यालय बीएचयू के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित माइक्रो आरएनए विशेष रूप से सर्वाइकल कैंसर कोशिकाओं को मारता है। वर्तमान में सर्वाइकल कैंसर के लिए उपलब्ध इलाज कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी हैं, लेकिन इसका गैर कैंसर कोशिकाओं पर भी प्रभाव पड़ता है, जो काफी हानिकारक और विषाक्त है। अध्ययन के निष्कर्षों से भविष्य में सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए माइक्रो आरएनए की ऐसी थेरेपी विकसित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जो कि नुकसानदायक न हो।
स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ समरेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में बीएचयू के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस माइक्रो आरएनए की खोज की है। अध्ययन के दौरान डॉसमरेंद्र सिंह और उनकी पीएचडी छात्रा गरिमा सिंह ने दिखाया कि एक मानव माइक्रोआरएनए, एमआईआर 34ए, वायरल ई6 जीन को खत्म करता है जो बदले में एक ऑन्कोजेनिक कोशिका चक्र कारक को बंद कर देता है और केवल सर्वाइकल कैंसर कोशिकाओं को मारता है।
सर्वाइकल कैंसर के प्रबंधन में एक सुरक्षित और विशिष्ट चिकित्सा विकसित करने के संदर्भ में यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य या गैरकैंसर कोशिकाओं पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं देखा गया। वर्तमान में सर्वाइकल कैंसर के लिए उपलब्ध इलाज जो कि कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी है, का गैरकैंसर कोशिकाओं पर भी प्रभाव पड़ता है, जो काफी हानिकारक और विषाक्त है। पूरा होने पर यह अध्ययन सर्वाइकल कैंसर के लिए विशिष्ट इलाज चिकित्सा विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है। अध्ययन के निष्कर्ष बीएमसी कैंसर में प्रकाशित हुए हैं, जो कैंसर के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में से एक है। यह ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें यह दर्शाया गया है कि एमआईआर 34ए कोशिका चक्र को नियंत्रित करके कैंसर कोशिकाओं का दमन करता है।
उच्च जोखिम वाले मानव पेपिलोमा वायरस एचआर एचपीवी सर्वाइकल कैंसर के 99 प्रतिशत मामलों में कारक है जो होस्ट कोशिका के कई ट्यूमर प्रेसर्स और चेकपॉइंट कारकों को कमजोर करता है। वायरल प्रोटीन कई ऑन्कोजेनिक कारकों को भी स्थिर करता है, जिसमें एक आवश्यक कोशिका चक्र नियामक सीडीटी 2 डीटीएल भी शामिल है जो बदले में कोशिका परिवर्तन और प्रसार को बढ़ावा देता है।
डॉ समरेंद्र सिंह ने कहा, "माइक्रोआरएनए कोशिका चक्र और विभिन्न अन्य सेलुलर प्रक्रियाओं के एक महत्वपूर्ण नियामक के रूप में उभरे हैं। माइक्रोआरएनए में प्रतिकूल परिवर्तन को कई कैंसर और अन्य बीमारियों के विकास से जोड़ा गया है, लेकिन अभी भी उस तंत्र के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसके द्वारा वे इन सेलुलर घटनाओं को नियंत्रित करते हैं।"
डॉ. सिंह ने कहा, हमने बताया है कि खोजा गया माइक्रोआरएनए कुछ प्रोटीनों को अस्थिर करता है और संक्रमित सर्वाइकल कैंसर सेल की वृद्धि को रोकने में भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप एचपीवी पॉजिटिव सर्वाइकल कैंसर कोशिकाओं के सेल प्रसार, आक्रमण और माइग्रेशन क्षमताओं को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
डॉ. समरेंद्र कुमार सिंह की प्रयोगशाला कैंसर, विशेषकर सर्वाइकल और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर के क्षेत्र में अनुसंधान करती हैं। अपने अध्ययन को निष्पादित करने के लिए, वे विभिन्न आणविक जीव विज्ञान, जैव रसायन और संरचनात्मक जीव विज्ञान उपकरणों का उपयोग करते हैं। वे इस बात की जांच करने की कोशिश करते हैं कि कैंसर कोशिकाओं में कोशिका चक्र का व्यवहार गलत तरीके से क्यों और कैसे नियंत्रित होता है। उनकी प्रयोगशाला ने पहले सर्वाइकल कैंसर रोगियों के सीरम में ट्यूमर डीएनए के मात्रा का मूल्यांकन कर कैंसर के निदान की दिशा में एक महत्वपूर्ण खोज की थी जो कि कैंसर के एक बहुत ही प्रतिष्ठित जर्नल जेसीआरटी में प्रकाशित हुई थी। (आईएएनएस)
चेन्नई, 23 अक्टूबर | तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक हमेशा राजभवन के खिलाफ रहा है। लेकिन सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आर.एन. रवि के राज्यपाल बनने के बाद ये तनाव और बढ़ गया है। द्रमुक को संदेह है कि केंद्र की भाजपा सरकार राज्य सरकार के खिलाफ राज्यपाल के कार्यालय का गलत इस्तेमाल कर रही है।
इस संदर्भ में भाकपा के वरिष्ठ नेता महेंद्रन ने हाल ही में कहा था कि राज्यपाल का पद केंद्र की ओर से राज्य सरकारों की जासूसी करने के लिए होता है और इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
तमिलनाडु में, डीएमके का सीपीआई के साथ राजनीतिक गठबंधन है और महेंद्रन के बयान को कई लोग डीएमके के शीर्ष अधिकारियों के बयान के रूप में देखते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक और सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी. पद्मनाभन ने आईएएनएस को बताया, "एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान दिया गया भाकपा नेता का बयान सोची समझी टिप्पणी थी, जो डीएमके द्वारा भाकपा की पीठ पर सवार होकर राज्यपाल को सीधा जवाब था। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि क्या सरकार राज्यपाल के साथ समझौता करेगी या अपने टकराववादी रवैये को जारी रखेगी।"
जब रवि ने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में पदभार ग्रहण किया, तो द्रमुक सरकार को संदेह हुआ क्योंकि उन्हें पूर्व खुफिया ब्यूरो अधिकारी होने के अलावा प्रधानमंत्री का करीबी माना जाता है।
राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सीधा टकराव तब शुरू हुआ जब रवि ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित एनईईटी विरोधी विधेयक वापस कर दिया।
राज्यपाल ने अपने अस्वीकृति नोट में कहा था कि नीट विरोधी विधेयक छात्रों के हितों के खिलाफ है और नीट को रद्द करने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र प्रभावित होंगे।
फरवरी में विधेयक को खारिज करते हुए, राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था, "इस मुद्दे की सामाजिक न्याय के एंगल से जांच की गई, जिसमें कहा गया कि यह (नीट) गरीब छात्रों के आर्थिक शोषण को रोकता है और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाता है।" राज्यपाल ने विधेयक को खारिज कर दिया।
उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी ने मदुरै कामराज विश्वविद्यालय में राज्यपाल के एक समारोह का खुले तौर पर बहिष्कार करने के बाद मामले को और बढ़ा दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण और मत्स्य पालन राज्य मंत्री एल. मुरुगन को आमंत्रित कर समारोह का राजनीतिकरण किया।
द्रमुक कार्यकर्ताओं के साथ विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) और वामपंथी पार्टी के कार्यकर्ता उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने धर्मपुरम अधीनम मठ में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए राज्यपाल के वाहन को अवरुद्ध कर दिया और मायलादुथुराई की यात्रा के दौरान उसके सामने कूद गए।
जून में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने राज्यपाल से राज्य विधानसभा में पारित 21 विधेयकों पर अपनी सहमति देने का आग्रह किया था। दिलचस्प बात यह है कि इनमें ऐसे विधेयक भी शामिल हैं जो राज्यपाल की शक्ति को कम कर देंगे।
तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2022, तमिलनाडु डॉ. एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, चेन्नई (संशोधन) विधेयक 2022 और अन्य विधेयक राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने की राज्यपाल की शक्ति को छीन लेते हैं। (आईएएनएस)
मोहम्मद शफीक
दराबाद, 23 अक्टूबर | तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और राज्य में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार के बीच तनातनी और बढ़ने की संभावना है।
तमिलिसाई द्वारा कुछ दिनों पहले अपने गृह राज्य तमिलनाडु की यात्रा के दौरान की गई ताजा टिप्पणियों ने आग में घी डालने का काम किया है।
राज्यपाल, जो अब तक टीआरएस सरकार को निशाने पर लेती रही हैं, ने केसीआर यानि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर सीधा हमला किया है। उन्होंने टिप्पणी की, कि बाढ़ प्रभावित भद्राचलम के वक्त मुख्यमंत्री अपने बंगले में सो रहे थे, इसलिए उन्हें वहां का दौरा करना पड़ा, जिसके बाद सीएम भी दौड़ कर गए।
जुलाई में बाढ़ग्रस्त शहर की अपनी यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, भद्राचलम में मैं क्या कर सकती थी, इसकी आलोचना की गई थी। मेरे दौरे के बाद मुख्यमंत्री वहां गए, जो उस समय तक बंगले में सो रहे थे।
उनकी टिप्पणी भाजपा नेताओं द्वारा बार-बार दोहराई जाने वाले बयान हैं कि केसीआर खुद को अपने फार्महाउस तक सीमित रखते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि वो ट्रेन से भद्राचलम पहुंची, जबकि सीएम पांच घंटे बाद हवाई जहाज से पहुंचे। तमिलिसाई ने दावा किया कि जब उन्होंने ट्रेन से भद्राचलम जाने का फैसला किया, तो डीजीपी और अन्य अधिकारियों ने उन्हें वहां जाने से रोकने की कोशिश की।
जब तमिलिसाई चेन्नई में ये टिप्पणियां कर रही थीं, उसी समय तेलंगाना विधानसभा के उपाध्यक्ष टी. पद्म राव गौड़ ने सरकार द्वारा भेजी गई फाइलों को मंजूरी नहीं देने के लिए उन पर निशाना साधा।
टीआरएस नेता ने टिप्पणी की, सरकार लोगों के कल्याण और राज्य के विकास के लिए कई फैसले करती है, लेकिन इनसे संबंधित फाइलों में देरी हो रही है। वह तेलंगाना की राज्यपाल हैं और पाकिस्तान जैसे किसी अन्य देश की राज्यपाल नहीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आठ साल पहले तेलंगाना राज्य के गठन के बाद से, यहां तक कि पिछले चार दशकों में संयुक्त आंध्र प्रदेश में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंध कभी इतने तनावपूर्ण नहीं रहे।
तमिलनाडु में भाजपा की पूर्व नेता तमिलिसाई सुंदरराजन को 2019 में तेलंगाना के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था, टीआरएस कथित तौर पर नियुक्ति से पहले केंद्र से परामर्श नहीं करने से नाराज थी।
शुरूआत में, राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण थे और टकराव तब शुरू हुआ जब तमिलिसाई ने कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ अस्पतालों का दौरा किया। टीआरएस सरकार महामारी से निपटने के लिए सरकार की उनकी टिप्पणी से चिढ़ गई थी।
कोरोना से निपटने के लिए सुंदरराजन, जो एक चिकित्सक भी हैं, ने कोविड की स्थिति पर अधिकारियों की बैठकें बुलाईं। इससे सत्ताधारी दल को लगा कि राज्यपाल अपनी शक्तियों का बेवजह उपयोग कर रही है।
प्रगति भवन (सीएम का आधिकारिक निवास) और राजभवन (राज्यपाल का आधिकारिक निवास) के बीच संबंधों में पिछले साल खटास आ गई, जब राज्यपाल ने पी. कौशिक रेड्डी को राज्यपाल के कोटे के तहत राज्य विधान परिषद के सदस्य के रूप में नियुक्त करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को मंजूरी नहीं दी।
उन्होंने मीडिया को बताया था कि चूंकि नामांकित पद समाज सेवा की श्रेणी में आता है, इसलिए वह कौशिक रेड्डी के समाज सेवा कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कर रही थी।
टीआरएस सरकार को बाद में विधायक कोटे के तहत कौशिक रेड्डी को राज्य विधानमंडल के उच्च सदन में भेजना पड़ा।
इस बीच, केसीआर ने भी अपनी नीति बदल दी और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के कटु आलोचक बन गए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे कलह और बढ़ गई। सीएम और मंत्री भी राजभवन में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल नहीं हुए थे।
राज्य सरकार द्वारा राज्यपाल के पारंपरिक संबोधन के बिना राज्य विधानमंडल का बजट सत्र शुरू करने के बाद मतभेद और गहरे हो गए। इस पर सरकार ने तर्क दिया कि राज्यपाल के अभिभाषण की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक नया सत्र नहीं था। यह पिछले सत्र को आगे बढ़ाया गया था।
राज्यपाल को 28 मार्च को यादाद्री मंदिर को फिर से खोलने के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री ने जीर्णोद्धार के बाद मंदिर को फिर से खोलने के लिए अनुष्ठान में भाग लिया था।
फरवरी में आयोजित आदिवासी मेले मेदाराम जात्रा में भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने मेदाराम का दौरा किया, इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया।
अप्रैल में, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। बैठकों के बाद, उन्होंने टीआरएस सरकार पर हमला करते हुए कहा कि वह राज्यपाल के कार्यालय का सम्मान नहीं कर रही है।
पिछले महीने अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे होने पर उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल को अपमानित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर एक महिला राज्यपाल के साथ भेदभाव कर रही है।
उन्होंने कहा, तेलंगाना के इतिहास में यह दर्ज होगा कि एक महिला राज्यपाल के साथ कैसा व्यवहार किया गया। यह दावा करते हुए कि वह सच्चे दिल और स्नेह से तेलंगाना के लोगों की सेवा करना चाहती है, उन्होंने कहा कि उन्हें अपने प्रयासों में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने उन्हें गणतंत्र दिवस परेड में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के अवसर से वंचित कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें कोविड-19 प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए राजभवन में झंडा फहराने के लिए कहा गया था। उन्होंने सोचा कि यह प्रतिबंध केवल तेलंगाना में ही क्यों लगाया गया, जब सभी राज्यों में गणतंत्र दिवस परेड आयोजित की गई।
उसने यह भी दावा किया कि जब उनके कार्यालय ने भाषण के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया, तो उन्हें प्रदान नहीं किया गया। उन्होंने इस अवसर पर अपना भाषण देने का बचाव किया। उन्होंने पूछा, आप भाषण नहीं दे रहे हैं, इसका मतलब है कि क्या मैं अपना मुंह बंद कर लूं। क्या मुझे बात करने का अधिकार नहीं है? क्या मुझे वह पढ़ना चाहिए, जो वे गणतंत्र दिवस पर देते हैं।
टीआरएस नेताओं ने तमिलिसाई पर पलटवार किया। सत्तारूढ़ दल के विधायक और केसीआर की बेटी के. कविता ने टिप्पणी की, कि तेलंगाना के राज्यपाल का कार्यालय एक राजनीतिक मंच में बदल गया है, जो टीआरएस सरकार और केसीआर को बदनाम करने के लिए है।
राज्य मंत्री और केसीआर के बेटे के.टी. रामा राव ने उन पर राजनीतिक भाषण देने के लिए उन पर हमला किया। उन्होंने कहा, आपकी दोहरी भूमिका नहीं हो सकती। आप तेलंगाना भाजपा के नेता और साथ ही राज्यपाल नहीं हो सकती। आपको किसी एक को चुनना होगा।
उन्होंने कहा, क्या राज्यपाल का यह कहना ठीक है कि अगर मैं 15 दिनों तक फाइल अपने पास रखती तो सरकार गिर जाती। क्या कोई राज्यपाल इस तरह बात कर सकता है, राजनीतिक भाषण दे सकता है और कह सकता है कि मैं सरकार को गद्दी से हटा सकती हूं। क्या यह उचित है।
उन्होंने कहा कि राज्यपाल एक ऐसी संस्था है जो नाममात्र की है। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित स्थिति नहीं है। वह केंद्र सरकार द्वारा नामित है।
राजनीतिक विश्लेषक पी. राघवेंद्र रेड्डी के अनुसार, 1980 के दशक की शुरूआत में ठाकुर राम लाल के दिनों से, यह पहली बार है, जब हैदराबाद में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच इस तरह का टकराव देखा गया है।
उन्होंने कहा, जब से मोदी सत्ता में आए हैं, उनका प्रशासन राज्य स्तर पर भी घटनाओं पर नियंत्रण चाहता है। इस परि²श्य में राज्यपाल तमिलिसाई का निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ व्यवहार करने का तरीका राजनीति से प्रेरित है। तमिलिसाई और आरिफ मोहम्मद खान (केरल के) जैसे राज्यपाल, जिन्हें भाजपा के प्रतिकूल राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जा रहे राज्यों में नियुक्त किया जाता है, शायद इसी तरह की स्क्रिप्ट का पालन कर रहे हैं। यह स्क्रिप्ट यह सुनिश्चित करने के लिए है कि इन चुनी हुई सरकारों को संविधान विरोधी के रूप में चित्रित किया जाए।
उन्होंने आगे कहा, राज्यपाल तमिलिसाई को एक महिला होने का फायदा है, और मुख्यमंत्री द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किए जाने से केसीआर विरोधी कहानी में इजाफा होने की संभावना है। राज्यपाल तमिलिसाई जितनी लंबी इस लड़ाई को जारी रखेंगी, उतना ही यह केसीआर के प्रशासन की छवि को नुकसान पहुंचाएगा।
उन्होंने कहा, राज्य सरकार भी दुर्भाग्य से भगवा ब्रिगेड के बढ़ते प्रभाव से लड़ने के बजाय राज्यपाल को संवैधानिक रूप से प्रोटोकॉल से वंचित कर राज्य में बेकार लड़ाई को बढ़ावा दे रही है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 23 अक्टूबर | भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार के रूप में घोषित करते हुए उन्हें 'पीपुल्स गवर्नर' कहा था। इस पर देश के विपक्षी दलों, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कहा था कि कि 'पीपुल्स गवर्नर' वाक्यांश भाजपा की राज्यपाल के पद की परिभाषा को दर्शाता है। मामले में तृणमूल कांग्रेस के सबसे मुखर होने के साथ विपक्षी दलों ने इस वाक्यांश को नड्डा द्वारा एक गुप्त स्वीकारोक्ति के रूप में वर्णित किया कि एक आदर्श राज्यपाल वह होता है जो न केवल एक राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है, बल्कि वह एक गुप्त राजनीतिक प्रतिनिधि भी होता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उपराष्ट्रपति के पद पर धनखड़ की पदोन्नति अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों को राज्य सरकार के साथ विवाद करने को प्रोत्साहित करेगी।
हालांकि तृणमूल कांग्रेस द्वारा धनखड़ की भूमिका की तीखी आलोचना उस समय अपना धार खो दी जब पार्टी नेतृत्व ने यूपीए उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा का समर्थन करने की बजाय उपराष्ट्रपति के चुनाव से दूर रहने का फैसला किया। राजनीतिक बहस का सारा फोकस पश्चिम बंगाल सरकार व धनखड़ के विवाद से हटकर कांग्रेस और वाम मोर्चा के इस तर्क पर चला गया कि चुनाव से दूर रहना भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच हुए गुप्त समझौते की पुष्टि करता है।
धनखड़ के कार्यकाल पर विशेष फोकस करने के साथ आईएएनएस पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार व राज्यपाल के बीच हुए खींचतान पर एक नजर डालता है।
20 जुलाई, 2019 से 17 जुलाई, 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में धनखड़ के कार्यकाल को राज्य सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और विधानसभा अध्यक्ष बिमान बंदोपाध्याय के साथ उनके लगातार सार्वजनिक टकराव के रूप में चिह्न्ति किया गया। राज्य सरकार और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को विशेष रूप से धनखड़ के ट्विटर संदेश, राज्य सरकार पर आरोप लगाने वाले उनके बयान और विधानसभा परिसर में उनके प्रेस कान्फ्रेंस से नाराजगी थी।
धनखड़ अक्सर फाइलों को रोक कर रखने लगे और अतिरिक्त पूछताछ के साथ उन्हें विधानसभा सचिवालय में वापस भेजने लगे। विपक्ष ने उन पर राज्य में विपक्ष के नेता की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया, वहीं धनखड़ ने कहा कि राज्य सरकार उनका अपमान कर रही है। झगड़ा तब और बढ़ गया जब इस साल जनवरी में ममता बनर्जी ने घोषणा की कि उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर राज्यपाल को ब्लॉक कर दिया, क्योंकि वह अपने ट्विटर संदेशों में उनका उल्लेख कर रहे थे और उनकी सरकार को गाली दे रहे थे।
धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने के बाद तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि यह राज्य सरकार को परेशान करने का धनखड़ को इनाम है। हालांकि, माकपा और कांग्रेस ने सवाल किया कि अगर धनखड़ के लिए तृणमूल कांग्रेस की ऐसी ही नापसंदगी थी, तो पार्टी ने उप-राष्ट्रपति चुनाव में उनके खिलाफ मतदान से परहेज क्यों किया।
इससे पहले वाम मोर्चा शासन के दौरान भी राज्य सरकार-गवर्नरविवाद हुआ था, लेकिन यह कभी भी उस स्थिति में नहीं पहुंचा जैसा धनखड़ और तृणमूल कांग्रेस के मामले में हुआ था।
राज्य में 34 साल के वाम मोर्चा शासन को समाप्त करने के बाद वर्ष 2011 में सत्ता संभलाने के दो साल के भीतर ही तृणमूल सरकार व गवर्नर के बीच एक मामूली विवाद हुआ था। उस समय तत्कालीन माकपा विधायक और वाम मोर्चा शासन में राज्य के पूर्व भूमि सुधार मंत्री, अब्दुर रज्जाक मुल्ला पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकतार्ओं द्वारा कथित तौर पर हमला कर घायल कर दिया गया था।
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने हमले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था और पुलिस को निष्पक्ष कार्रवाई करने को कहा। कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन के बावजूद तत्कालीन पंचायत मंत्री स्वर्गीय सुब्रत मुखर्जी ने नारायणन की टिप्पणी को एक राजनेता की तरह बताया। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हस्तक्षेप के कारण विवाद बढ़ा नहीं।
राज्य में 2006 से 2011 तक सातवीं और आखिरी वाम मोर्चा सरकार के दौरान तत्कालीन राज्यपाल और महात्मा गांधी के पोते, गोपाल कृष्ण गांधी के साथ एक और विवाद सुर्खियों में रहा था। 14 मार्च, 2007 को राज्य के पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में पुलिस फायरिंग में 14 लोगों की मौत होने पर गांधी ने कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर राज्य सरकार की आलोचना की। फिर नवंबर 2007 में जब नंदीग्राम में सत्ताधारी और विपक्ष के समर्थकों के बीच हिंसा का एक नया दौर शुरू हुआ तो गांधी ने एक और बयान जारी किया, जिसमें दिवाली से पहले की झड़पों का वर्णन किया गया था।
गांधी के बयानों ने सत्तारूढ़ माकपा नेताओं को परेशान किया और उनमें से कुछ ने उन्हें राज्यपाल की कुर्सी छोड़कर राजनीति में शामिल होने की सलाह दी। हालांकि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री की चुप्पी के कारण मामले ने कोई बड़ा रूप नहीं लिया।
पश्चिम बंगाल में पहली बार राज्यपाल-सरकार के बीच विवाद देखने को मिला जब 1967 में राज्यपाल धर्म वीरा ने मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद सरकार की सहयोगी रही सीपीआई (एम) द्वारा धर्मवीरा के खिलाफ रैलियां की गईं।
राजनीतिक विश्लेषक राजगोपाल धर चक्रवर्ती के अनुसार राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल और विपक्षी दल द्वारा शासित राज्य सरकार के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है, लेकिन इतना स्पष्ट रूप कभी नहीं लिया, जैसा कि वर्तमान राज्य सरकार और जगदीप धनखड़ के संबंध में हुआ था। पहले के राज्यपाल और राज्य के कार्यकारी प्रमुख जानते थे कि रेखा कहां खींचनी है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्यपाल के माध्यम से राज्य को नियंत्रित करने के कांग्रेस के पहले के प्रयासों को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने एक कदम और आगे बढ़ाया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर | भारत में राज्यपाल के पद का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है, क्योंकि इसका इस्तेमाल विभिन्न सरकारों ने अपनी राजनीतिक जरूरतों के अनुरूप किया है। पहला मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां लोकतांत्रिक कांग्रेस और अन्य विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद जब बहुमत नहीं रहा, तो 1998 में अदालत ने हस्तक्षेप कर कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया।
तब यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने तुरंत सरकार को बर्खास्त कर दिया और लोकतांत्रिक कांग्रेस के जगदंबिका पाल को नया मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन अदालत द्वारा कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल करने के तीन दिन बाद जगदंबिका पाल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दूसरा मामला बिहार का है, 2005 में बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की थी। तब 243 सदस्यीय सदन में जद (यू) और भाजपा को 115 विधायकों के समर्थन से बहुमत का दावा किया था।
उसी साल, झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिभु सोरेन को नई सरकार बनाने की अनुमति दी थी, हालांकि एनडीए ने 80 सदस्यीय विधानसभा में 41 विधायकों के समर्थन का दावा किया था। यह मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा, जिसने शक्ति परीक्षण का आदेश दिया। इसमें झामुमो बहुमत साबित नहीं कर सका और भाजपा के अर्जुन मुंडा ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
1959 से राज्यपाल की भूमिका सुर्खियों में आई। पहली बार केरल में ई.एम.एस. नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली सरकार को राज्यपाल बी.आर. राव ने हटा दिया। यह तब हुआ जब वाम सरकार द्वारा प्रस्तावित भू-स्वामित्व और शिक्षा पर विधेयकों के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए।
वहीं, 1967 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल धर्म वीरा ने अजय मुखर्जी की सरकार को बर्खास्त कर दिया। जिसके बाद पी.सी. घोष नए मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी।
एक दूसरा उदाहरण हरियाणा के राज्यपाल जी.डी. तापसे का भी है, जिन्होंने लोक दल और सीएम उम्मीदवार देवीलाल की अनदेखी की और 1982 में कांग्रेस के भजन लाल को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई।
आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री एन.टी. रामा राव 1984 में दिल की सर्जरी के लिए अमेरिका गए थे, जब उनके वित्त मंत्री एन. भास्कर राव ने पार्टी छोड़ दी और सीएम के रूप में दावा पेश कर दिया। राज्यपाल रामलाल ने उन्हें शपथ दिलाई।
कर्नाटक के राज्यपाल पी. वेंकटसुब्बैया ने 1988 में मुख्यमंत्री एस.आर. बोम्मई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद विधानसभा में बहुमत साबित करने की अनुमति नहीं दी थी।
1996 में, भाजपा के गुजरात के मुख्यमंत्री सुरेश मेहता को शंकर सिंह वाघेला और 40 अन्य विधायकों के नेतृत्व वाले एक समूह द्वारा विद्रोह का सामना करना पड़ा। भाजपा के बहुमत साबित करने के बाद भी राज्यपाल कृष्ण पाल सिंह ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 22 अक्टूबर | केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के गृहनगर कन्नूर में शनिवार को एक संदिग्ध हत्या के मामले में 23 वर्षीय एक महिला का गला काट दिया गया, जब वह अपने घर में अकेली थी। स्थानीय लोगों ने कहा कि हत्या के पीछे एक संदिग्ध व्यक्ति ने अपने सिर पर नकाब पहन रखा था और उसे कथित तौर पर इलाके में देखा गया था।
घटना का पता तब चला जब विष्णु प्रिया के रूप में पहचानी गई महिला के परिवार के सदस्य अपने घर के पास अंतिम संस्कार में शामिल होकर लौटे थे। स्थानीय चिकित्सा प्रयोगशाला में काम करने वाली विष्णु को खून से लथपथ पड़ा देखकर वे चौंक गए।
पुलिस सतर्क हो गई और मामले की जांच शुरू कर दी है। (आईएएनएस)|
पटना, 22 अक्टूबर | चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर लगातार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं। अपनी जन सुराज यात्रा से राजनीतिक जमीन तलाश रहे प्रशांत किशोर ने शनिवार को नीतीश कुमार को चुनौती देते हुए कहा कि अगर भाजपा से मतलब नहीं तो फिर राज्यसभा उपसभापति पद क्यों नहीं छोड़ देते। किशोर ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए लिखा कि नीतीश कुमार जी अगर आपका भाजपा, एनडीए से कोई लेना-देना नहीं है तो अपने सांसद को राज्यसभा के उपसभापति का पद छोड़ने के लिए कहें।
उन्होंने आगे यह भी सुझाव दिया कि आपके पास हर समय दोनों तरीके नहीं हो सकते।
इससे पहले भी किशोर ने दावा करते हुए कहा था कि नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। भाजपा के साथ जाने के लिए उन्होंने अपने एक खास नेता को इस काम के लिए रिजर्व रखा है।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए अपने दल का व्यक्ति लगाए हुए हैं और बिहार में गठबंधन बनाकर बिहार की जनता को फिर से ठगने का प्रयास कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हालांकि शुक्रवार को प्रशांत किशोर के इस दावे को खारिज करते हुए कहा था कि पब्लिसिटी के लिए प्रशांत किशोर इस तरह का बयान देते रहते हैं। वो प्रचार के लिए कुछ भी बोलते हैं। हमें इन सब चीजों से फर्क नहीं पड़ता है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था एक वक्त था जब वो प्रशांत किशोर को मानते थे। लेकिन जिन लोगों को मैंने इज्जत दी वो आज क्या क्या बोलते रहते हैं।
भाजपा से रिश्ता खत्म होने के बाद भी जदयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति हैं और इसे लेकर ही प्रशांत किशोर संभावना जता रहे हैं।
इस बीच, भाजपा के नेताओं का दावा है कि भाजपा अब कभी नीतीश कुमार को नहीं स्वीकार करेगी।
इधर, प्रशांत किशोर के दावे के बाद हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। बिहार के हित में यदि मुख्यमंत्री इस तरह का कदम उठाते हैं, तो वह स्वागत करेंगे। (आईएएनएस)|
सूरत, 22 अक्टूबर | सूरत में आम आदमी पार्टी की पार्षद सेजल मालवीय ने एक महिला सुरक्षा गार्ड को उस समय काट लिया, जब उन्हें सूरत नगर निगम के सामान्य बोर्ड की बैठक से बाहर ले जाया जा रहा था। यह घटना शुक्रवार को बैठक के शून्यकाल के दौरान हुई जब भाजपा नेता अमित राजपूत ने दिल्ली के पूर्व सामाजिक न्याय मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से जुड़े शपथ के मुद्दे को उठाने की कोशिश की। इसका उपस्थित आप पार्षदों ने विरोध किया, जिससे हंगामा हुआ।
हंगामे के जवाब में सूरत की मेयर हेमाली बोघावाला ने आप पार्षद महेश अंगन को बैठक से निलंबित कर दिया, जिसके बाद सुरक्षा गाडरें को पार्टी के सभी पार्षदों को बाहर निकालने का आदेश दिया गया।
इस दौरान मालवीय ने सिक्युरिटी गार्ड को काट लिया।
राजपूत ने इस कृत्य की निंदा की है और नगरसेवक से माफी की मांग की है। (आईएएनएस)|
श्रीनगर, 22 अक्टूबर | जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष जांच एजेंसी (एसआईए) ने शनिवार को कई जगहों पर छापेमारी की। एसआईए ने श्रीनगर के रेजीडेंसी रोड, परिमपोरा, पालपोरा, नूरबाग इलाकों के साथ-साथ पट्टन, बारामूला जिले में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स पर एक साथ छापेमारी की।
सूत्रों ने कहा कि ये छापे टेरर फंडिंग मामले और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में एसआईए की चल रही जांच का हिस्सा हैं। (आईएएनएस)|
पटना, 22 अक्टूबर | छठ महापर्व को लेकर गंगा घाटों को तैयार करने का काम तेज हो गया है। गंगा के जलस्तर में कमी के बाद कई कच्चे घाटों की स्थिति सुधारने में भी जिला प्रशासन जुटा है। पटना के एक अधिकारी बताते हैं कि गंगा के जलस्तर में कमी आई है, लेकिन कच्चे घाटों पर दलदल की स्थिति बनी हुई है। बांसघाट और कलेक्ट्रेट घाट पर अब भी पानी जमा है।
लोक आस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर पक्के घाटों की सीढ़ियों पर जमी मिट्टी हटाई जा रही है। कच्चे घाटों पर, जहां दलदल है, वहां संपर्क पथ बनाने का काम किया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि 25 अक्टूबर के बाद बैरिकेडिंग का काम प्रारंभ होगा। खतरनाक तथा अधिक जलस्तर वाले इलाकों की बैरिकेडिंग की जाएगी।
इसके अलावा अस्थायी चेंजिग रूम की भी व्यवस्था की जा रही है।
अधिकारियों का कहना है कि 28 अक्टूबर तक सभी घाटों को तैयार कर लिया जाएगा। वे घाटों का निरीक्षण कर रहे हैं। गंगा के जलस्तर में लगातार कमी आ रही है।
छठ पूजा के लिए दानापुर से दीदारगंज तक 105 घाटों को चिह्न्ति किया गया है। इन सभी घाटों की स्थिति का जायजा लेने के लिए 21 टीमें गठित की गईं हैं।
उल्लेखनीय है कि छठ की शुरूआत 28 अक्टूबर से होगी। (आईएएनएस)|
नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके मिगिंग में दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले सेना के उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) से हवाई यातायात नियंत्रण (एटीसी) कक्ष को तकनीकी खराबी के बारे में आपात संदेश भेजा गया था। सेना के सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
शुक्रवार को हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कुछ घंटे बाद बचाव दलों ने पांच में से चार कर्मियों के पार्थिव शरीर बरामद कर लिए थे।
एक सूत्र ने कहा, “दुर्घटना से पहले, हवाई यातायात नियंत्रण (एटीसी) कक्ष को तकनीकी या यांत्रिक खराबी के बारे में सूचित किया गया था।”
सूत्र ने बताया गया कि उड़ान भरने के लिहाज से मौसम अच्छा था। पायलटों के पास इस तरह के हेलीकॉप्टर उड़ाने का संयुक्त रूप से 600 से अधिक घंटे का अनुभव था।
हेलीकॉप्टर को जून 2015 में सेना में शामिल किया गया था।
भारतीय सेना ने शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने भारतीय सेना के लिए यह हेलीकॉप्टर तैयार किया था। यह रुद्र मार्क IV के नाम से भी जाना जाता है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर निर्वाचन आयोग ने गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले अधिकारियों के तबादले और पदस्थापना संबंधी अनुपालन रिपोर्ट भेजने में राज्य सरकार के अधिकारियों की विफलता पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से स्पष्टीकरण मांगा है।
सूत्रों ने गुजरात के मुख्य सचिव को शुक्रवार को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा कि मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक चुनाव से पहले कुछ विशेष श्रेणी के अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापना पर अनुपालन रिपोर्ट भेजने में विफल रहे हैं।
पत्र का हवाला देते हुए एक सूत्र ने कहा कि अब अधिकारियों को स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि 'मामले में निर्देश जारी करने के बावजूद निर्धारित समयसीमा समाप्त होने के बाद भी अब तक अनुपालन रिपोर्ट जमा क्यों नहीं की गई।'
अधिकारियों के स्थानांतरण एवं पदस्थापना संबंधी पत्र हिमाचल प्रदेश और गुजरात को भेजे गए थे।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होगा, जबकि गुजरात चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा फिलहाल नहीं की गई है।
आयोग ने दोनों राज्य सरकारों को गृह जिलों में तैनात अधिकारियों और पिछले चार वर्षों में एक जिले में तीन साल बिताने वाले अधिकारियों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था।
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले इस तरह के निर्देश जारी करना सामान्य बात है। (भाषा)
शाजापुर, 22 अक्टूबर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में शनिवार तड़के एक तेज रफ्तार जीप बिजली के खंभे से टकरा गई, जिससे इसमें सवार चार लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
अकोदिया थाना प्रभारी नरेन्द्र कुशवाह ने बताया कि यह हादसा शाजापुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बोलाई-अकोदिया मार्ग पर पलसावद मोड़ के निकट तड़के करीब तीन बजे हुआ।
उन्होंने कहा कि मृतकों की पहचान पवन हाड़ा कंजर (30), बबलू कंजर (30), गजेन्द्र सिंह ठाकुर (38) और दौलत सिंह मेवाड़ा (50) के रूप में हुई है। उन्होंने कहा कि इन लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।
कुशवाह ने बताया कि इस हादसे में तीन अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिन्हें शुजालपुर शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
उन्होंने कहा कि इस संबंध में मामला दर्ज कर विस्तृत जांच जारी है।
राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया, ‘‘मध्य प्रदेश के शाजापुर में सड़क दुर्घटना का दु:खद समाचार प्राप्त हुआ। मैं घायलों के सकुशल होने तथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूं। परमात्मा से दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान देने की प्रार्थना करता हूं। ॐ शांति।’’ (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि सरकार कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया भर के कई देशों के सामने आ रहीं आर्थिक समस्याओं को कम करने की दिशा में काम कर रही है।
सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के बीच 75,000 नियुक्ति पत्र वितरित करने के बाद ‘रोजगार मेले’ को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार युवाओं के लिए रोजगार के अधिकतम अवसर पैदा करने को लेकर भी कई मोर्चों पर काम कर रही है।
मोदी ने कहा, “यह सच है कि वैश्विक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष कर रही हैं। कई देशों में महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याएं चरम पर हैं।”
उन्होंने कहा कि सदी में एक बार आने वाली ऐसी महामारी के दुष्प्रभाव 100 दिन में दूर नहीं होंगे।
मोदी ने कहा, “लेकिन दुनियाभर में हर जगह महसूस किए जा रहे इस संकट के असर बावजूद भारत लोगों को इन समस्याओं से प्रभावित होने से बचाने के लिए नयी-नयी पहल कर रहा है और कुछ जोखिम उठा रहा है।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “हम अपने देश पर इस प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। यह एक चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन आपके आशीर्वाद से हम अब तक ऐसा कर पा रहे हैं।”
इससे पहले, प्रधानमंत्री ने नौकरी के इच्छुक 75,000 उम्मीदवारों को डिजिटल माध्यम से नियुक्ति पत्र भेजे।
देश भर से चयनित इन लोगों को भारत सरकार के 38 मंत्रालयों या विभागों में नौकरी दी जाएगी। इन्हें समूह ‘ए’ और ‘बी’ (राजपत्रित), समूह ‘बी’ (अराजपत्रित) और समूह ‘सी’ में विभिन्न स्तरों पर नौकरियां दी जाएंगी।
सरकार द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, जिन पदों पर नियुक्तियां की जा रही हैं उनमें केंद्रीय सशस्त्र बल के जवान, उपनिरीक्षक, कांस्टेबल, एलडीसी, स्टेनोग्राफर, पीए, आयकर निरीक्षक और एमटीएस शामिल हैं। ये भर्तियां मंत्रालयों और विभागों द्वारा या तो स्वयं या भर्ती एजेंसियों जैसे यूपीएससी, एसएससी और रेलवे भर्ती बोर्ड के माध्यम से की जा रही हैं।
सरकार ने कहा था कि तेजी से भर्ती के लिए चयन प्रक्रियाओं को सरल और तकनीकी रूप से आसान बनाया गया है।
प्रधानमंत्री ने जून में विभिन्न सरकारी विभागों और मंत्रालयों से कहा था कि वे अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों को 'मिशन मोड' पर नौकरियां दें। (भाषा)
गोपेश्वर, 22 अक्टूबर उत्तराखंड में चमोली जिले के थराली क्षेत्र में तीन मकानों के भूस्खलन की चपेट में आने से दो महिलाओं सहित एक ही परिवार के चार लोगों की मौत हो गयी जबकि एक अन्य घायल हो गया।
थराली के उपजिलाधिकारी रविंद्र सिंह जुआंटा ने बताया कि थराली की पिंडर घाटी में बसे पैनगढ़ गांव में हादसा शुक्रवार आधी रात के बाद करीब डेढ़ बजे हुआ। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में हुए भूस्खलन की वजह से भारी बोल्डर (चट्टाने) गांव के तीन मकानों पर आ गिरे।
उन्होंने बताया कि बोल्डर से मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए और उनमें से एक मकान में रहने वाले परिवार के पांच सदस्य मलबे में दब गए।
जुआंटा ने बताया कि सूचना मिलते ही राहत एवं बचाव दल मौके पर पहुंच गया था। उन्होंने कहा कि राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसडीआरएफ), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) तथा स्थानीय बचाव दलों ने मलबे में फंसे लोगों को बाहर निकाला।
जुआंटा ने बताया कि हादसे में बचुली देवी (75) की मौके पर ही मौत हो गयी जबकि उनके दो पुत्रों, 57 वर्षीय देवानंद, 45 वर्षीय घनानंद और उनकी पुत्रवधु (घनानंद की पत्नी)37 वर्षीया सुनीता ने उपचार के दौरान दम तोड़ा।
घटना में घनानंद का 15 वर्षीय पुत्र योगेश घायल हो गया जिसका थराली के अस्पताल में इलाज किया जा रहा है। (भाषा)
कोटद्वार, 22 अक्टूबर उत्तराखंड के पौड़ी जिला स्थित कार्बेट बाघ अभयारण्य में दक्षिणी सीमा से कथित तौर पर वन्यजीवों के अवैध शिकार के लिए घुसे तीन संदिग्ध शिकारियों को वन विभाग की टीम ने गिरफ्तार कर लिया।
वन प्रभागीय अधिकारी प्रकाश चंद्र आर्य ने बताया कि बृहस्पतिवार देर रात वन विभाग के गश्ती दल द्वारा गिरफ्तार संदिग्ध शिकारियों की जीप से 12 बोर की दुनाली बंदूक, 17 जिंदा कारतूस, तीन आधुनिक टॉर्च, गंडासा व चार चाकू बरामद हुए हैं।
उन्होंने बताया कि संदिग्ध शिकारियों के खिलाफ वन अधिनियम और वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर उनके वाहन को जब्त कर लिया गया।
आर्य ने बताया कि बाद में उन्हें न्यायालय में पेश किया गया जहां से उन्हें पौड़ी जेल भेज दिया गया।
उन्होंने बताया कि गिरफ्तार आरोपियों की पहचान उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी सैय्यद जफ्फर याब अली जैदी और बिजनौर निवासी फहीम और इंतजार के रूप में की गई है। (भाषा)
आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहे भारत ने गरीबी और भूख मिटाने में काफी प्रगति की है. हाल ही में वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत के खराब प्रदर्शन पर बहुत शोर मचा. यह इंडेक्स बनता कैसे है और भारत की रैंकिंग क्यों खराब है.
डॉयचे वैले पर पेटर हीले की रिपोर्ट-
एक प्लेट में चावल, दाल और थोड़ी सी सब्जी. सरकार के मुताबिक भारत के करीब 12 करोड़ स्कूली बच्चों को रोज दोपहर में यह ताजा खाना मिलता है. 2001 से ही हर सरकारी स्कूल में सभी बच्चों को "दोपहर को भोजन" अनिवार्य रूप से दिया जाता है.
इसी महीने भारत के महिला और बाल विकास मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, "सरकार दुनिया में सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को चला रही है." इसमें सरकार की तरफ से गरीब परिवारों को हर महीने दिये जा रहे मुफ्त अनाज का भी जिक्र किया गया है.
साल दर साल ज्यादा कैलोरी
मंत्रालय ने बताया है कि कृषि उत्पादन में सुधारों की वजह से भी भारत में प्रति व्यक्ति कैलोरी की सप्लाई साल दर साल बढ़ रही है. सरकार का कहना है, "देश में कुपोषण क्यों बढ़ा है इसका निश्चित रूप से इसका कोई कारण मौजूद नहीं है."
भारत सरकार ने यह बयान 2022 के वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के जवाब में जारी किया है. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत को पोषण की स्थिति को "गंभीर" माना गया है और 29.1 अंक के साथ वह 121 देशों की सूची में 107 नंबर के निचले स्थान पर है. दुनिया में आर्थिक तौर पर उभरता भारत अपने पड़ोसियों भारत और पाकिस्तान से भी नीचे है और इस वजह से देश में हैरानी हो रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी खासतौर से इसे देश के सम्मान पर पश्चिमी देशों के हमले के रूप में देखती है. महिला और बाल विकास मंत्रालय का कहना है, "एक बार फिर भारत की गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश की गई है." मंत्रालय के मुताबिक इंडेक्स तैयार करने में भूख को मापने के गलत पैमाने इस्तेमाल किये गये हैं और इसके तौर तरीके में गंभीर समस्याएं हैं.
भूख- एक जटिल समस्या
वेल्टहुंगरहिल्फे की लॉरा राइनर का कहना है "निश्चित रूप से भूख को मापने के अलग अलग तरीके हैं." जर्मनी की वेल्टहुंगरहिल्फे, आयरलैंड के गैर सरकारी संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड के साथ मिल कर हर साल वर्ल्ड हंगर इंडेक्स जारी करती है. वेल्टहुंगरहिल्फे एक सहायता एजेंसी है जिसे सरकार और निजी कोष से खर्चे के लिए धन मिलता है. डीडब्ल्यू से बातचीत में राइनर ने कहा, "हमारे लिए यह जरूरी है कि हम भूख की समस्या को इसकी जटिलता के साथ मापें."
राइनर ने बताया कि भूख को मापने के लिए चार सूचकों को मिलाया जाता है. एक है फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेश (एफएओ) की कुपोषण के लिए दी गई वैल्यू. यह वैल्यू बताती है कि क्या आबादी के लिए पर्याप्त कैलोरी उपलब्ध है. राइनर ने कहा, "यह कैलोरी मुमकिन है कि कहीं गोदामों में भरी हुई हो और लोगों तक ना पहुंचे."
बचपन में कमी का दीर्घकालीन असर
इसके साथ ही प्रोटीन और जरूरी खनिजों की कमी से स्वास्थ्य की समस्याएं होती है. ज्यादा विस्तृत तस्वीर हासिल करने के लिए यह देखना होगा कि देश में कितने बच्चे लंबाई में पर्याप्त रूप से नहीं बढ़े या फिर लंबाई के हिसाब से उनका वजन उचित नहीं है जिसे दुर्बलता कहा जाता है. ये आंकड़े भारत सरकार के विभाग जुटाते हैं. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में नवजात शिशु के मृत्यु दर को शामिल किया गया है.
राइनर ने बताया, "बीते दशकों में ऐसी कई स्टडी हुई हैं और विशेषज्ञों के बीच इन्हें मान्यता दी गई कि बाल कुपोषण और मृत्युदर इस बात के बहुत संवेदी सूचक हैं कि पूरी आबादी पोषण के मामले में किस हाल में है. इसके साथ ही जब कुपोषण की बारी आती है तो बच्चों पर नजर रखना बहुत मायने रखता है क्योंकि बचपन में जो कुपोषण शुरू हो जाता है उसे युवावस्था में पाटना मुश्किल है." व्यक्ति और समाज दोनों के लिए इसके दीर्घकालीन और गंभीर नतीजे होते हैं.
हर पांच में एक बच्चे का वजन कम
भारत के महिला और बाल विकास मंत्रालय का कहना है कि किसी बच्चे के स्वास्थ्य के आधार पर भूख को मापना ना तो वैज्ञानिक है और ना ही उचित. बाल मृत्यु, दुर्बलता और विकास में कमी सिर्फ भूख की वजह से नहीं बल्कि, "पीने के पानी, सफाई, जेनेटिक्स और पर्यावरण जैसे कारकों के जटिल मेल का नतीजा है."
वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत के हर पांचवां बच्चा दुर्बलता से पीड़ित है. इसका मतलब है कि उनका वजन उनकी लंबाई के लिहाज से कम है. जितने देशों का सर्वेक्षण किया गया है उसमें यह दर सबसे खराब है. राइनर का कहना है, "इसके लिए आप इस बात को भी जिम्मेदार मान सकते हैं कि भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है. महिलाएं जितनी बेहतर स्थिति में होती हैं बच्चों के शुरुआती पांच सालों में पोषण की स्थिति उतनी ही अच्छी होती है."
भूख होनी ही नहीं होना चाहिए
राइनर का कहना है कि वयस्क लोगों में कुपोषण की दर भारत में खासतौर से उतनी ऊंची नहीं है. भारत ने भूख से लड़ने में साल 2000 के बाद काफी प्रगति की है. राइनर ने कहा, "भारत के सामने बड़ी संख्या में कुपोषण के लिहाज से भूखे और कुपोषित बच्चों की समस्या है."
खुद भारत में भी वर्ल्ड हंगर इंडेक्स को लेकर जो चर्चा हो रही है वो पार्टियों में बंटी है. विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने ट्वीटर पर लिखा है कि सत्ताधारी पार्टी लोगों को धोखा देकर भारत को कमजोर कर रही है.
भूरणनीतिक लिहाज से भारत एक उभरता हुआ देश है. डिजिटलाइजेशन जैसे क्षेत्रों में भारत अगुआ है. भोजन उत्पादन के मामले में भी यह एक प्रमुख देश है और कई देशों को भोजन की सप्लाई देता है. हालांकि राइनर का कहना है, "कोई देश चाहे जितनी बड़ी महत्वाकांक्षा रखे लेकिन उसे कुछ भी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए. खासतौर से उन्हें जो सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं और वे हैं भूखे बच्चे."
राइनर के मुताबिक एक देश तभी विकास में अच्छा कर सकता है जब वो किसी को भी पीछे ना रहने दे. भारत के लिए इसका मतलब है यह सुनिश्चित करना कि छोटे से छोटे बच्चे को भी पर्याप्त मात्रा में जरूरी पोषक तत्व मिले. सही राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ भूख ऐसी समस्या है जिसका समाधान हो सकता है, भारत में और दुनिया में भी. (dw.com)
नई दिल्ली, 22 अक्टूबर | भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य विधानसभा चुनावों की रणनीति तैयार करने और राज्य में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को घेरने के लिए राजस्थान भाजपा कोर कमेटी के नेताओं के साथ बैठक की। शुक्रवार को पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में बुलाई गई बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बी.एल. संतोष, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया, प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, राज्य संगठन महासचिव चंद्रशेखर, ओम प्रकाश माथुर, राज्य सह प्रभारी विजया राहतकर और संघ मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के अलावा राज्य कोर कमेटी के अन्य सदस्य भी मौजूद थे।
पार्टी नेताओं ने गहलोत सरकार की चौथी वर्षगांठ पर उसे घेरने पर बातचीत के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य के प्रस्तावित दौरे की तैयारियों पर भी चर्चा की।
बैठक के दौरान राज्य के नेताओं से कहा गया कि, पार्टी के भीतर गुटबाजी के मुद्दे को सुलझाएं और अशोक गहलोत सरकार को घेरने के लिए एकजुट हों।
कोर कमेटी की बैठक के बाद नड्डा ने वरिष्ठ नेताओं के साथ अलग से बैठक की। इसके बाद राज्य पदाधिकारियों की तीसरी बैठक हुई, जिसमें कोर कमेटी में लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन और आगामी रणनीति पर चर्चा हुई।
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के साथ ही उम्मीद है कि राजस्थान को लेकर पार्टी कोई बड़ा फैसला ले सकती है।
पार्टी आलाकमान चाहे अशोक गहलोत या सचिन पायलट का पक्ष लें, लेकिन यह तय है कि राजस्थान कांग्रेस में खटपट जरूर शुरू हो सकती है और ऐसे में बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। (आईएएनएस)|