राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 23 मई | शिक्षा मंत्रालय द्वारा बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित किए जाने की बात पर विचार-विमर्श शुरू किए जाने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने परीक्षाएं आयोजित किए जाने की तैयारी पर चिंता जताई और कहा कि विद्यार्थियों का स्वास्थ्य और सुरक्षा मायने रखती है। उन्होंने कहा, "मैं पहले भी कह चुकी हूं और अब भी कह रही हूं। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है, जितना की शारीरिक देखभाल। यह एक ऐसा वक्त है, जब हमारी शिक्षा प्रणाली ने बच्चों की बेहतरी के लिए संवेदनशीलता का रुख अपनाया है और इन मुद्दों को गंभीरता से लेना शुरू किया है।"
वह आगे कहती हैं, "किसी बंद जगह पर लोगों के जमाव से कोरोना के प्रसार को बढ़ावा मिलेगा। इस लहर में हमने देखा है कि नए स्ट्रेन का प्रभाव बच्चों पर ज्यादा है। पहले से ही अपनी परीक्षाओं के लिए दबाव झेल रहे बच्चों से यह उम्मीद लगाना कि वे दिनभर एक लंबे समय तक के लिए अपनी सुरक्षा के लिए कई सारी चीजें पहनकर रहें, यह किसी भी मायने में अनुचित है। इनमें से कइयों के परिवार में ऐसे भी लोग होंगे, जो पहले से ही कोविड की मार झेल रहे हों। लोग पहले से ही परेशानी में हैं।"
सीबीएसई बोर्ड में बारहवीं कक्षा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान होने वाली परीक्षाओं की तैयारी को लेकर अपनी चिंताएं साझा कर रहे हैं।
प्रियंका पूछती हैं, "बच्चों की सुरक्षा और सेहत मायने रखती हैं। हम सबक क्यों नहीं ले रहे हैं?"
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने अप्रैल में दसवीं कक्षा की परीक्षाएं रद्द कर दी थीं, जबकि देशभर में कोविड-19 के मामलों में तेजी से हो रही वृद्धि को देखते हुए बारहवीं कक्षा की परीक्षाएं भी स्थगित करने पर विचार किया जा रहा है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 मई | इस साल होने वाले एशिया कप को आधिकारिक रूप से 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। क्रिकबज की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस के बढ़ते मामले और लॉजिस्टिक चुनौतियों को देखते हुए एशिया क्रिकेट परिषद (एसीसी) को इस टूर्नामेंट स्थगित करना पड़ा है।
एसीसी ने बयान में कहा, "कोरोना के कारण खतरे और प्रतिबंधों को देखते हुए एसीसी कार्यकारी बोर्ड ने एश्यिा कप 2021 को स्थगित करने का फैसला लिया है। एसीसी ने प्रतिभागियों और साझेदारों के साथ काम कर इस टूर्नामेंट को इसी साल कराने की कोशिश की थी।"
परिषद ने कहा, "व्यस्त एफटीपी के कारण इस साल इस टूर्नामेंट को कराने के Ýिए कोई विंडो उपलब्ध नहीं है। इस कारण बोर्ड को एशिया कप के इस सीजन को स्थगित करना पड़ा है। इस सीजन को अब 2023 में कराया जाएगा क्योंकि 2022 में पहले से ही एशिया कप का आयोजन होना है। इसकी तारीख की पुष्टि भविष्य में की जाएगी।"
एशिया कप को पहले पिछले साल सितंबर में होना था लेकिन कोरोना के कारण इसे उस समय स्थगित कर 2021 में कराने का फैसला किया गया था। एशिया कप का आयोजन श्रीलंका में जून में होना था। भारत ने 2018 में संयुक्त अरब अमीरात में रोहित शर्मा की कप्तानी में आखिरी बार एशिया कप जीता था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 मई | महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु देश के उन 10 राज्यों में शामिल हैं, जहां कोविड-19 से होने वाली मौतों में 73.88 फीसदी की हिस्सेदारी है। इनपुट तब आया जब पिछले 24 घंटों में देश भर में 3,741 मौतें हुईं, राष्ट्रीय मृत्यु दर वर्तमान में 1.13 प्रतिशत है।
महाराष्ट्र में सबसे अधिक मौत (682) के बाद कर्नाटक (451), तमिलनाडु (448), उत्तर प्रदेश (218), पंजाब (201), दिल्ली (182), केरल (176), पश्चिम बंगाल (154), उत्तराखंड ( 134) और आंध्र प्रदेश (118) में हुई।
रोजाना पॉजिटिविटी दर घटकर 11.34 प्रतिशत हो गई है।
भारत ने लगातार सात दिनों तक रोजाना तीन लाख से कम नए मामले दर्ज किए हैं।
पिछले 24 घंटों में कुल 2,40,842 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इस साल 17 अप्रैल के बाद से सबसे कम आंकड़ा है, जब रोजाना नए मामले 2.34 लाख थे।
भारत की रोजाना रिकवरी भी लगातार नौवें दिन रोजाना नए मामलों से आगे निकल गई है। पिछले 24 घंटों में कुल 3,55,102 रिकवरी दर्ज की गई।
भारत की कुल रिकवरी भी रविवार को राष्ट्रीय रिकवरी दर ग्राफ 88.30 प्रतिशत के साथ 2,34,25,467 तक पहुंच गई है।
दूसरी ओर, रविवार को भारत का कुल सक्रिय मामले घटकर 28,05,399 हो गया है। पिछले 24 घंटों में शुद्ध रूप से 1,18,001 की गिरावट देखी गई। इसमें अब देश के कुल पॉजिटिवि मामलों का 10.57 प्रतिशत शामिल है।
सात राज्यों में भारत के कुल सक्रिय मामलों का कुल 66.88 प्रतिशत हिस्सा है।
कर्नाटक से अधिकतम 4,83,225 सक्रिय मामले सामने आए हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (3,54,830), केरल (2,89,657), तमिलनाडु (2,84,278), आंध्र प्रदेश (2,10,683), पश्चिम बंगाल (1, 31,688) और राजस्थान (1,22,330) हैं।
भारत ने पिछले 24 घंटों में किए गए 21.23 लाख से अधिक टेस्टों के साथ एक रिकॉर्ड भी बनाया। यह भारत में 20 लाख से अधिक टेस्टों का लगातार पांचवां दिन भी है।
भारत ने जनवरी 2020 से प्रतिदिन अपनी टेस्ट क्षमता को लगभग 25 लाख टेस्ट तक बढ़ा दिया है। देश में पिछले 24 घंटों में कुल 21,23,782 टेस्ट किए गए हैं।(आईएएनएस)
हैदराबाद, 23 मई | तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने रविवार को पूर्व मंत्री एटाला राजेंदर के खिलाफ एक और जांच के आदेश दिए। मुख्यमंत्री को राजेंद्र के खिलाफ जमीन हड़पने की एक और शिकायत मिलने के बाद जांच के आदेश दिए गए थे।
मेडचल जिले के रावलकोल गांव निवासी पिटला महेश मुदिराज ने शिकायत दर्ज कराई है कि राजेंद्र के बेटे एटाला नितिन रेड्डी ने उनकी जमीन हड़प ली है। मुदिराज ने मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार लगाई थी।
मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार महेश मुदिराज ने शिकायत के साथ सीएम के पास आवेदन किया था। सीएम ने मुख्य सचिव सोमेश कुमार को शिकायत की तुरंत जांच कराने के निर्देश दिए हैं।
सीएम ने राजस्व विभाग और एसीबी विजिलेंस विभाग को व्यापक जांच करने और सरकार को रिपोर्ट सौंपने का भी निर्देश दिया।
एटाला राजेंदर के खिलाफ यह तीसरी जांच का आदेश दिया गया है, जिन्हें इस महीने की शुरूआत में मुख्यमंत्री ने कैबिनेट से हटा दिया था।
चंद्रशेखर राव ने 30 अप्रैल को राजेंद्र के खिलाफ पहली जांच का आदेश दिया था, जब मेडक जिले के कुछ किसानों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने परिवार द्वारा चलाए जा रहे पोल्ट्री फार्म के लिए उनकी जमीन हड़प ली थी।
राव ने 2 मई को अपने कैबिनेट सहयोगी को बर्खास्त कर दिया था। उन्होंने मेडचल जिले में पूर्व मंत्री और उनके अनुयायियों द्वारा बंदोबस्ती भूमि के कथित अतिक्रमण में चार आईएएस अधिकारियों की एक समिति द्वारा एक और जांच का आदेश दिया।
राजेंद्र ने जमीन हथियाने के आरोपों से इनकार किया है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 मई 2021: छत्रसाल स्टेडियम में 23 साल के रेसलर सागर धनखड़ की हत्या के मामले में गिरफ्तार ओलंपिक पदक विजेता रेसलर सुशील कुमार को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने 6 दिनों की पुलिस कस्टडी में भेज दिया है. सुशील के साथी अजय को भी कोर्ट ने 6 दिनों की पुलिस रिमांड पर भेजा है.
दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने बताया कि जिस वीडियो में सागर की पिटाई की जा रही है वो इसलिए बनाई गई थी, ताकि सुशील का अपने सर्किट में वर्चस्व बना रहे और कोई उसका विरोध न करे. सुशील ने ही प्रिंस को वीडियो बनाने को कहा था, हालांकि जब सागर की मौत हो गई तो आरोपी भाग गए.
दिवंगत रेसलर सागर धनखड़ के पिता का कहना है कि सुशील कुमार के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं और उसे कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुझे कानून पर पूरा भरोसा है.
करीब 20 दिनों बाद दिल्ली के मुंडका से हुई गिरफ्तारी
ओलंपियन सुशील कुमार और उसके साथी अजय को करीब 20 से भी ज्यादा दिनों की मैराथन के बाद दिल्ली पुलिस ने आखिरकार दिल्ली के ही मुंडका इलाके से गिरफ्तार कर लिया है. दिल्ली पुलिस ने सुबह सुशील कुमार और उसके साथी अजय को मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास से उस वक़्त गिरफ्तार किया, जब वह स्कूटी पर सवार होकर अपने साथी के साथ किसी से मिलने जा रहा था.
सुशील कुमार पर एक लाख का था इनाम
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने फरार चल रहे सुशील कुमार से संबंधित सूचना देने पर एक लाख रूपए के इनाम का घोषणा की थी. इसके अलावा सुशील के साथ फरार चल रहे अजय पर भी पुलिस ने 50 हजार रुपए का इनाम रखा है. पुलिस ने दोनों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया था.
क्या है ये पूरा मामल
4 और 5 मई की रात को दिल्ली के मॉडल टाउन इलाके के छत्रसाल स्टेडियम के अंदर पहलवानों के दो गुटों के बीच में झगड़ा हो गया था. इस झगड़े में सागर धनखड़ नाम के पहलवान की मौत हो गई थी. मामले की जांच के दौरान इसमें ओलंपिक चैंपियन सुशील कुमार का भी नाम सामने आया. पुलिस को जांच के दौरान एक वीडियो भी मिला, जिसमें सुशील कुमार पिटाई करता हुआ नजर आ रहा था.
फॉरेंसिक जांच में सूत्रों का कहना है कि यह वीडियो भी सही पाया गया था. अब पुलिस सुशील से पूछताछ कर यह पता लगाएगी कि आखिरकार वह जब फरार था तो उस दौरान कहां-कहां, किस-किस शहर में रुका. वो कौन-कौन लोग थे, जिन्होंने उसकी मदद की. इतना ही नहीं आखिरकार 4 और 5 मई की रात को किस बात पर झगड़ा हुआ और कौन-कौन लोग झगड़े में सुशील कुमार का साथ दे रहे थे.
पूजा गुप्ता
नई दिल्ली, 23 मई | हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली की हालिया तस्वीरें वायरल हो गई हैं, जिसमें उन्होंने मधुमक्खियों से ढके अपने शरीर के साथ पोज दिया है।
मशहूर फोटोग्राफर डैन विंटर्स द्वारा शूट की गई, जोली बिना किसी प्रकार के सुरक्षात्मक सूट पहने 60,000 मधुमक्खियों के साथ अपने शरीर और चेहरे को ढंकने में 18 मिनट बिताने में सफल रही। फोटोशूट, 'नेशनल ज्योग्राफिक' के सहयोग से, विश्व मधुमक्खी दिवस (20 मई) पर मधुमक्खी पर बातचीत को बढ़ावा देने और महिलाओं को मधुमक्खी पालक बनने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया गया था। इसका उद्देश्य प्रतिष्ठित 1981 के रिचर्ड एवेडन चित्र 'द बीकीपर' को फिर से बनाना है।
जोली को दुनिया भर में महिला मधुमक्खी पालक-उद्यमियों को प्रशिक्षित करने और उनका समर्थन करने के लिए यूनेस्को और गुरलेन द्वारा मधुमक्खियों के लिए महिलाओं के लिए 'गॉडमदर' के रूप में नामित किया गया है। पत्रिका द्वारा एक सोशल मीडिया पोस्ट में बताया गया है कि पहल का उद्देश्य "2025 तक 2,500 मधुमक्खियों का निर्माण और 125 मिलियन मधुमक्खियों को फिर से संगठित करना है। इसके अलावा, 50 महिला मधुमक्खी पालकों को प्रशिक्षण और समर्थन देना है।"
विंटर्स, जो खुद एक मधुमक्खी पालक हैं, उन्होंने अपनी पोस्ट में खुलासा किया "जब मुझे एंजेलीना के साथ काम करने का काम दिया गया, तो मेरी मुख्य चिंता सुरक्षा थी। महामारी के दौरान शूटिंग, एक पूर्ण दल और जीवित मधुमक्खियों के साथ, निष्पादन को जटिल बना दिया। मुझे पता था कि तस्वीर के लिए वांछित प्रभाव प्राप्त करने का एकमात्र तरीका उसी तकनीक का उपयोग करना था जिसे रिचर्ड एवेडन ने 40 साल पहले अपने प्रतिष्ठित मधुमक्खी पालक चित्र बनाने के लिए इस्तेमाल किया था। मैंने अपने दोस्त कोनराड बौफर्ड, एक मास्टर मधुमक्खी पालक को मदद के लिए रखा था। वह एवेडन के लिए एक विशेष फेरोमोन (क्वीन मैंडिबुलर फेरोमोन, या क्यूएमपी के रूप में जाना जाता है) तैयार करने वाले कीटविज्ञानी से संपर्क किया और मधुमक्खी पालक रोनाल्ड फिशर की छवि को पकड़ने के लिए उनके साथ काम किया, जो उनकी पुस्तक 'द अमेरिकन वेस्ट' में दिखाई दिया। एवेडॉन शूट से वास्तविक फेरोमोन का उपयोग करें। हमने इटेलियन मधुमक्खियों का इस्तेमाल किया, कोनराड द्वारा अपनी पूरी शूटिंग के दौरान उन्हें शांत रखा।"
उन्होंने आगे कहा, "एंजेलिना को छोड़कर, सेट पर सभी को एक सुरक्षात्मक सूट में होना पड़ता था। मधुमक्खियों को शांत रखने के लिए इसे शांत और काफी अंधेरा होना पड़ता था। मैंने फेरोमोन को उसके शरीर पर उन जगहों पर लगाया जहां मैं चाहता था कि मधुमक्खियां इकट्ठा हों। मधुमक्खियां फेरोमोन की ओर आकर्षित होती हैं, लेकिन यह उन्हें झुंड न लगाने के लिए भी प्रोत्साहित करती है। हमने बड़ी संख्या में मधुमक्खियों को एक बोर्ड पर रखा जो उसकी कमर के सामने आराम कर रही थी। एंजेलीना पूरी तरह से स्थिर रही, बिना डंक के 18 मिनट तक मधुमक्खियों में ढकी रही। मधुमक्खियों के आस-पास होना हमेशा एक ऐसा अनुभव होता है जो मुझे विस्मय में छोड़ देता है। मुझे लगता है कि यह शूट भी उन सभी के लिए एक विस्मयकारी घटना थी जो उपस्थित थे- और विश्व मधुमक्खी दिवस के लिए हमारी पेशकश की जड़ें फोटोग्राफिक इतिहास में हैं। "(आईएएनएस)
कोलकाता, 23 मई | सोनाली गुहा के बाद, चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस छोड़ने वाले भाजपा के और नेताओं ने अपनी पिछली पार्टी में लौटने की इच्छा व्यक्त की है। हालांकि पार्टी ने अभी इन नेताओं पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन भाजपा ने पहले ही कहा है कि इससे राज्य में पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सरला मुर्मू को हबीबपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए टिकट दिया गया था। हालांकि वह भाजपा में यह कहते हुए शामिल हो गईं थी कि जिला नेतृत्व उन्हें काम नहीं करने दे रहा है। हालांकि पार्टी के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि वह मालदा साउथ से चुनाव लड़ना चाहती थीं। मुर्मू ने रविवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र लिखकर पार्टी में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, पार्टी की ओर से अभी तक इस पत्र की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
मीडिया से बात करते हुए मुर्मू ने कहा, "मैं हमेशा से तृणमूल कांग्रेस की कार्यकर्ता थी और अपनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में काम करना चाहती हूं। बीजेपी में जाने का यह एक भावनात्मक फैसला था और मुझे इसका एहसास हो गया है। भाजपा में काम करने के लिए कोई जगह नहीं है। भाजपा में और मैं तृणमूल कांग्रेस में वापस लौटना चाहती हूं।"
न केवल मुर्मू बल्कि उत्तर दिनाजपुर के इटाहर से दो बार के विधायक ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और इस बार टिकट से वंचित होने के बाद भाजपा में शामिल हो गए।
आचार्य ने कहा, "मैं बीजेपी में शामिल हो गया था लेकिन मैंने काम नहीं किया। ज्यादातर समय मैं घर पर था और अब मैं फिर से तृणमूल कांग्रेस में शामिल होना चाहता हूं। उम्मीद है कि पार्टी मेरी गलती माफ कर देगी और मुझे काम करने का मौका देगी।"
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हालांकि इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, " 6 विधायकों और 3 सांसदों सहित कई लोग वापस आना चाहते हैं। जब पार्टी समस्या में थी तब उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और अब, वे वापस आना चाहते हैं। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि कोई फैसला नहीं लिया गया है। पार्टी इन लोगों का भविष्य तय करेगी।"
हालांकि, भाजपा इस पलायन को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, "चुनाव से पहले इन लोगों ने सोचा था कि भाजपा सत्ता में आएगी और इसलिए वे पार्टी में शामिल हो गए और अब वे छोड़ना चाहते हैं। हमारी पार्टी एक बहुत बड़ी पार्टी है और इस तरह की पार्टी में शामिल होना और छोड़ना चलता रहता है। इसलिए, हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है इस पर। अगर वे छोड़ना चाहते हैं, तो वे जा सकते हैं।"(आईएएनएस)
आगरा, 23 मई | उत्तर प्रदेश में 12 साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने के आरोप में तीन लोगों पर मामला दर्ज किया गया है। शमशाबाद थाना प्रभारी प्रदीप कुमार ने बताया कि शमशाबाद थाने में तीन आरोपियों के खिलाफ धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5,6 के तहत मामला दर्ज किया गया है। कुछ लोगों से पूछताछ की जा रही है और आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि घटना शुक्रवार को हुई जब पीड़िता अपने घर में अकेली थी क्योंकि उसके माता पिता एक शादी समारोह में शामिल होने गए थे।
अधिकारी ने कहा कि आरोपियों में से एक ने लड़की को बहकाया और उसे गांव के बाहरी इलाके में एक सुनसान इमारत में ले गया, जहां उसके दोस्त पहले से मौजूद थे। तीनों ने अपराध किया और भाग गए। उन्होंने पीड़िता को घटना के बारे में बताने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी थी। (आईएएनएस)
कैसर मोहम्मद अली
नई दिल्ली, 23 मई | अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) क्रिकेट को लॉस एंजिल्स में 2028 में होने वाले ओलंपिक खेलों में शामिल करने की कोशिश में लगा है। इसी कड़ी के तहत उसने इन खेलों को ओलंपिक में शामिल करने पर इसके फायदा गिनाए हैं।
आईसीसी का मानना है कि लॉस एंजिल्स ओलंपिक में अगर क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो इससे भारतीय उपमहाद्वीप में दर्शकों की संख्या बढ़ने के अवसर मिल सकते हैं क्योंकि यहां अन्य किसी खेल की तुलना में क्रिकेट को अति महत्व दिया जाता है।
आईसीसी के अनुसार इंग्लैंड में 2019 में हुए वनडे विश्व कप को 54 करोड़ 50 लाख दर्शकों ने देखा था।
आईसीसी ने लॉस एंजिल्स ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया है जिसकी कॉपी आईएएनएस के पास है जिसमें 2019 में भारी संख्या में दर्शकों के इस टूर्नामेंट को देखने की बात कही गई है।
विश्व कप को 4.6 अरब वीडियो व्यूज मिले और यूट्यूब पर तीन करोड़ 10 लाख दर्शकों ने इसे देखा था।
आईसीसी ने इन आंकड़ों की 2016 रियो ओलंपिक से तुलना की है। उन्होंने कहा, "रियो ओलंपिक को भारत में 19 करोड़ 10 लाख दर्शकों ने देखा जबकि 2019 क्रिकेट विश्व कप को 54 करोड़ 50 लाख दर्शकों ने देखा था।"
आईसीसी के क्रिकेट को लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भेजने के प्रस्ताव को उस वक्त बल मिला जब पिछले महीने भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने 2028 के ओलंपिक में अपने पुरुष और महिला टीमों को भेजने पर सहमति जताई थी।
अगर इसमें क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग आईसीसी के इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे।
आईसीसी ने कहा, "रियो ओलंपिक के दर्शकों की औसत उम्र 53 थी जबकि 2019 विश्व कप के 32 फीसदी दर्शकों की उम्र 18 से 32 वर्ष के बीच थी और क्रिकेट प्रशंसक की औसत आयु 34 साल की होती है।"
उन्होंने यह भी दावा किया कि 39 फीसदी क्रिकेट प्रशंसक महिलाएं होती हैं।
आईसीसी ने कहा कि अगर क्रिकेट को ओलंपिक में शामिल किया जाता है तो अमेरिका की टीम भी प्रतिभागी के रूप में इसमें शामिल हो सकती है। उन्होंने कहा कि 87 फीसदी प्रशंसक ओलंपिक में टी 20 क्रिकेट देखना चाहते हैं।
आईसीसी इस बात को लेकर भी आश्वस्त है कि अगर ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो इससे नए साझेदार जुड़ सकते हैं और इसके सदस्य देशों को वित्तीय लाभ भी मिल सकता है।
आईसीसी ने अपने 92 सदस्य देशों के साथ सर्वे किया था जिसमें ज्यादातर देशों ने कहा कि अगर क्रिकेट को स्थायी तौर पर ओलंपिक खेलों में शामिल कर लिया जाता है तो उन्हें उनकी सरकार से वार्षिक वित्तीय सहायता मिल सकती है।
आईसीसी के अनुसार, सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 74 फीसदी उसके सदस्यों का मानना है कि अगर क्रिकेट को लॉस एंजिल्स ओलंपिक में शामिल किया जाता है तो उन्हें उनकी सरकार से वित्तीय सहायता मिलेगी जबकि 89 फीसदी का कहना है कि क्रिकेट अगर स्थायी रूप से ओलंपिक खेलों का हिस्सा बनता है तो इन्हें वार्षिक वित्तीय सहायता मिल सकती है।
आईसीसी के 104 सदस्य देश है जिसमें 12 फुल और 92 सहयोगी सदस्य हैं।
आईसीसी के अनुसार अगर पुरुष तथा महिला क्रिकेट को टी 20 प्रारूप में लॉस एंजिल्स ओलंपिक में शामिल किया जाता है तो इससे दर्शकों की तुलना में वित्तीय रूप से काफी लाभ मिल सकता है।
आईसीसी के प्रस्ताव के अनुसार, लॉस एंजिल्स ओलंपिक के दौरान 21 जुलाई से छह अगस्त तक पुरुष और महिला टीमों के बीच टी20 टूर्नामेंट कराया जाए जिसमें आठ टीमें हिस्सा लेंगी और कुल 16 मुकाबला कराए जाएंगे।
हालांकि क्रिकेट को लॉस एंजिल्स ओलंपिक में शामिल होने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि मौजूदा समय क्रिकेट ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है और लॉस एंजिल्स स्थानीय आयोजन समिति (एलओसी) को इसे अतिरिक्त खेल के रूप में लाना होगा।
क्रिकेट के लिए यह एकमात्र विकल्प है क्योंकि टोक्यो 2020 और पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों के लिए किसी अन्य खेल को शामिल नहीं किया जा सकता है।
खेलों को लॉस एंज्लिस ओलंपिक में शामिल करने की प्रक्रिया 2022 के मध्य में शुरू होगी। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति 2023 के मध्य में खेलों को शामिल करने के एलओसी के प्रस्ताव पर कोई फैसला लेगी।
क्रिकेट को बेसबॉल और सॉफ्टबॉल से कड़ी चुनौती मिल सकती है जो अमेरिका में काफी प्रसिद्ध खेल हैं।
ओलंपिक से पहले 2022 में बíमंघम में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में महिला टी 20 क्रिकेट का आयोजन होगा जिसमें आठ टीमें हिस्सा लेंगी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 मई | सेंट्रल विस्टा परियोजना को जारी रखने पर कड़ी आलोचना करते हुए कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने रविवार को एक बयान में कहा, '' भविष्य की सरकार को परियोजना से पट्टिका हटानी चाहिए और नागरिकों के प्रति सरकार की उदासीनता के बारे में लिखना चाहिए।'' कपिल सिब्बल ने रविवार को एक बयान में कहा, "भविष्य में सत्ता में आने वाली सरकार को पट्टिका को हटा देना चाहिए और इसके बजाय यह लिखना चाहिए कि यह परियोजना इस तथ्य के बावजूद बनाई गई थी कि महामारी के दौरान लोगों के जीवन को बचाने के लिए पैसे की जरूरत थी। यह एक स्वेच्छा से परियोजना को नहीं रोकने के लिए स्मारकीय असंवेदनशीलता है।"
सिब्बल ने कहा कि सरकार को वैक्सीन खरीदनी चाहिए और प्रत्येक नागरिक का टीकाकरण करना चाहिए और पीएम केयर्स फंड सहित सभी संसाधनों को लगाना चाहिए और बजट में टीकाकरण के लिए निर्धारित 35,000 करोड़ रुपये का उपयोग करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "इन दिनों देश जिस वास्तविक समस्या का सामना कर रहा है, वह पर्याप्त टीकों और उत्पादन सुविधाओं का अभाव है।"
उन्होंने पूछा कि टीकों के उत्पादन में शामिल कंपनियों की लिमिट क्यों है और अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं को बाहर रखा गया है। उन्होंने विपक्ष द्वारा सरकार को दिए गए सुझाव को सही ठहराया और आरोप लगाया कि संकट के समय सरकार ने प्रदर्शन नहीं किया है।
चार मुख्यमंत्रियों सहित 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने 12 मई को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की थी कि सरकार को सेंट्रल विस्टा परियोजना को रोकना चाहिए और इसके बजाय ऑक्सीजन और टीकों की खरीद के लिए धन का उपयोग करना चाहिए।
कांग्रेस महामारी से निपटने और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्षी दलों की सलाह पर ध्यान नहीं देने को लेकर सरकार पर हमला करती रही है।
दूसरी तरफ, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोविड -19 महामारी की पृष्ठभूमि के खिलाफ सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के निर्माण को रोकने की मांग करने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
(आईएएनएस)
लखनऊ, 23 मई | उत्तर प्रदेश के बुनियादी शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की सिद्धार्थ नगर स्थित सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अरुण द्विवेदी को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे से मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक साइकोलॉजी विषय के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के दो पद थे।
डॉ हरेंद्र शर्मा को ओबीसी कोटे सेनियुक्त किया गया जबकि दूसरे पद पर डॉ अरुण कुमार द्विवेदी को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य उम्मीदवार) श्रेणी में नियुक्त किया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि कुलपति सुरेंद्र दुबे का कार्यकाल 21 मई को समाप्त हो रहा था, लेकिन सरकार ने एक दिन पहले 20 मई को उनका कार्यकाल नियमित कुलपति की नियुक्ति तक बढ़ा दिया है।
अरुण द्विवेदी को शुक्रवार को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा नियुक्ति पत्र दिया गया।
कुलपति डॉ सुरेंद्र दुबे ने कहा कि उन्हें लगभग 150 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 10 को मेरिट के आधार पर शॉर्टलिस्ट किया गया था।
कुलपति ने संवाददाताओं से कहा, "दस उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था और अरुण द्विवेदी दूसरे स्थान पर थे। हमें मंत्री के साथ उनके संबंधों के बारे में जानकारी नहीं थी।"
मंत्री से संपर्क करने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं और उन्होंने फोन नहीं उठाया।
इस बीच, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर आरोप लगाया कि जहां हजारों शिक्षक अपनी नौकरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं, दूसरी ओर, राज्य के शिक्षा मंत्री ने 'आपदा में अवसर' के तहत अपने भाई के लिए एक नौकरी का प्रबंधन किया।
उन्होंने इस घटना को समाज के गरीब और कमजोर वर्ग के साथ मजाक करार दिया।
प्रियंका ने यह भी पूछा कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मामले का संज्ञान लेंगे और कार्रवाई करेंगे।(आईएएनएस)
निशांत अरोड़ा
नई दिल्ली, 23 मई | अगर क्रिप्टोक रेंसी ने आपको परेशान कर दिया है और खासकर आप बिटकॉइन या एथेरियम जैसे डिजिटल सिक्कों में निवेशक हैं, तो सांसे थाम कर बैठिए क्योंकि पिछले सप्ताह क्रिप्टो एसेट क्लास की तबाही में एक चांदी की परत जुड़ गई है।
जबकि छोटी अस्थिर अवधि को व्यापक तौर से एक पाठ्यक्रम सुधार के रूप में बताया गया है । (एक बिटकॉइन वर्तमान में 37,000 डॉलर के आसपास है, कुछ हफ्ते पहले लगभग 60,000 डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर को छूने के बाद) उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशित रहना और लंबे समय तक सोचना, क्रिप्टो निवेशकों के लिए पालन करने वाला एक अहम नियम है।
भारत तेजी से बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी को अपना रहा है। रिपोटरें के अनुसार, देश में वर्तमान में एक करोड़ से ज्यादा क्रिप्टो निवेशक हैं और देश में कई घरेलू क्रिप्टो एक्सचेंजों के संचालन के साथ यह संख्या हर दिन काफी बढ़ रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के क्रिप्टोकरेंसी से सावधान होने के बावजूद, भारतीय डिजिटल सिक्कों में निवेश करने के लिए एक रास्ता बना रहे हैं, जिसे 21वीं सदी का सबसे जरूरी संपत्ति वर्ग कहा गया है।
जेब-पे के सीईओ राहुल पगीदीपति के अनुसार, '' भारतीय निवेशक बिटकॉइन को एक ऐसे परिसंपत्ति वर्ग के रूप में देखना सीख रहे हैं जो हर लंबी अवधि के पोर्टफोलियो में शामिल है।''
पगीदीपति ने कहा "भारतीयों के पास दुनिया के 1 प्रतिशत से भी कम बिटकॉइन हैं। इसके पीछे छूटने से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक रणनीतिक नुकसान होगा। 2021 में, हम अधिक संस्थानों और सरकारी अधिकारियों से उम्मीद करते हैं कि हमें बिटकॉइन अंतर को बंद करने की आवश्यकता है।"
अप्रैल 2018 में, आरबीआई ने वित्तीय संस्थानों को बिटकॉइन जैसी वर्चुअल मुद्रा में काम करने वाले व्यक्तियों या व्यवसायों के साथ संबंध खत्म करने का आदेश दिया। हालांकि, मार्च 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को क्रिप्टो निवेशकों को राहत देते हुए व्यापारियों और एक्सचेंजों से क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को जारी रखने की अनुमति दी।
इस साल मार्च में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी पर सभी विंडो बंद नहीं की जाएंगी, जिससे हितधारकों को और राहत मिलेगी।
इस महीने की शुरूआत में, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने सरकार को क्रिप्टोकरेंसी पर मुख्य चिंताओं को साझा किया है।
इस करेंसी के दिग्गज खिलाड़ियों का कहना है कि अनिश्चितताओं के बीच यह तथ्य निहित है कि बिटकॉइन की कीमत में अपने सर्वकालिक उच्च से 40 प्रतिशत की गिरावट नाटकीय है, लेकिन क्रिप्टो सहित कई अस्थिर बाजारों में सामान्य है, खासकर इतनी बड़ी रैली के बाद।
जेब-पे के सह-सीईओ अविनाश शेखर ने कहा, "इस तरह के सुधार मुख्य रूप से अल्पकालिक व्यापारियों के फायदा लेने के कारण होते हैं। निवेशकों को पहले शिक्षा में निवेश करना चाहिए। बिटकॉइन, एथेरियम और अन्य क्रिप्टो परिसंपत्तियों के अंतर्निहित मूल्य पर शोध करें क्योंकि आप स्टॉक खरीदने से पहले कंपनी की जानकारी देख सकते हैं।"
खरीदार आक्रामक रूप से ज्यादा से ज्यादा बिटकॉइन जमा कर रहे हैं। यह वह प्रेरक कारक है जिसने डिजिटल सिक्के के मूल्य बढ़ोतरी को प्रेरित किया है।
प्रभु राम, हेड-इंडस्ट्री इंटेलिजेंस ग्रुप, सीएमआर के अनुसार, '' यदि कोई पिछले दशक में पीछे मुड़कर देखता है, तो ऐसी अस्थिरता क्रिप्टो के लिए सुसंगत और बराबर है।''
राम ने आईएएनएस से कहा, "छोटे वक्त के लिए कोई चिंतित महसूस कर सकता है, लेकिन लंबे समय के लिए पॉजिटिव होगा। आगे जाकर, बिटकॉइन निवेशक पोर्टफोलियो में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण निवेश बना रहेगा।"
प्रमुख उद्योग के खिलाड़ियों को लगता है कि भारत एक तकनीकी और आर्थिक शक्ति है, जो क्रिप्टो और ब्लॉकचैन अपनाने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा।
क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज क्वाइनडीसीएक्स के सीईओ और सह-संस्थापक सुमित गुप्ता के अनुसार, '' क्रिप्टोकरेंसी ने अब खुद को निवेश के लिए एक मैक्रो एसेट क्लास के रूप में वगीर्कृत किया है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।''
गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, "यह पहले से कहीं ज्यादा मेंनस्ट्रीम की स्वीकृति को आगे बढ़ाएगा।" (आईएएनएस)
लखनऊ, 23 मई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य होने के बावजूद भी सबसे ज्यादा युवाओं को टीका लगाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
1 मई से जब 18-44 की श्रेणी के लिए पंजीकरण शुरू हुआ, तब से राज्य में लगभग दस लाख युवा टीका ले चुके हैं। वर्तमान में यह अभियान राज्य के 23 जिलों में चल रहा है।
सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, '' 18 प्लस के लिए टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद से इस श्रेणी में टीकाकरण की यह सबसे ज्यादा संख्या है।''
उल्लेखनीय है कि नए कोविड वेरिएंट द्वारा संचालित घातक वायरस युवा आबादी को ज्यादा प्रभावित कर रहा है।
तीसरी लहर की आशंका के साथ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अभियान का विस्तार करने और 10 साल से कम उम्र के बच्चों के माता-पिता को जल्द से जल्द टीकाकरण करने की योजना बना रहे हैं।
प्रवक्ता ने कहा, "कोरोना की तीसरी लहर आने से पहले हम 10 साल से कम उम्र के सभी बच्चों के माता-पिता को वैक्सीन की खुराक देकर सुरक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था कर रहे हैं।"
कोविड टीकाकरण में आगे की भूमिका निभाते हुए, राज्य ने अब तक टीके की 1,62,16,379 खुराकें दी हैं।
इनमें से 1,28,74,451 ने अपनी पहली खुराक प्राप्त कर ली है और लगभग 33,41,928 को वैक्सीन की दूसरी खुराक मिल गई है। मुख्यमंत्री लगातार राज्य में टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए काम कर रहे हैं।
इस बीच, मुख्यमंत्री, जो शनिवार को कानपुर में थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी अधिकारियों को पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार, सभी आधुनिक प्रकार के उपकरण उपलब्ध कराने और बच्चों के लिए एक नगर निगम अस्पताल को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया था, जो पिछले वर्षों से बंद है।
उन्होंने आगे कहा कि हर मेडिकल कॉलेज को 100-आईसीयू बाल चिकित्सा बेड, 100 बेड (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) एनआईसीयू के साथ ऑक्सीजन, 20-25 एनआईसीयू बेड जिला अस्पतालों में और कुछ सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) ग्रामीण क्षेत्रों में भी तैयार करना चाहिए। तीसरे चरण की तैयारी शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का लक्ष्य दूसरी लहर से जूझते हुए तीसरी लहर की तैयारी करना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार का लक्ष्य 30 मई के तक महामारी की दूसरी लहर को नियंत्रित करना है और नागरिकों से उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री पहले ही कोरोना कर्फ्यू को 30 मई तक बढ़ा चुके हैं।
नई दिल्ली, 23 मई | छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में युवक को पुलिस से पिटवाने वाले कलेक्टर रणबीर शर्मा की हरकत की आईएएस एसोसिएशन ने कड़ी निंदा की है। कलेक्टर के रवैये पर गहरी नाराजगी जताते हुए आईएएस एसोसिएशन ने हरकत को अस्वीकार्य और सेवा के सिद्धांतों के खिलाफ बताया है। वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर कलेक्टर के खिलाफ आम जन से लेकर प्रमुख व्यक्तियों ने भड़ास निकाली। जिसके बाद कलेक्टर ने एक वीडियो जारी कर घटना को लेकर माफी भी मांगी है। हालांकि, उनके खिलाफ निलंबन जैसी सख्त कार्रवाई के लिए लोग भूपेश बघेल सरकार से मांग कर रहे हैं। दरअसल, शनिवार को एक युवक सड़क पर निकला था। उस दौरान लॉकडाउन का पालन कराने के लिए गुजर रहे कलेक्टर रणबीर शर्मा ने युवक को रोककर कुछ पूछताछ की। इसके बाद उसे थप्पड़ रसीद कर पुलिस से पिटवाया। वीडियो बनाने की आशंका पर कलेक्टर ने मोबाइल भी सड़क पर फेंककर तोड़ दिया। इस घटना का किसी ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। जिसके बाद कलेक्टर के इस तानाशाही भरे रवैये की निंदा होने लगी।
लोगों ने आईएएस एसोसिएशन को टैग कर ट्वीट भी करना शुरू कर दिया। जिसके बाद रविवार को आईएएस एसोसिएशन ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, " आईएएस एसोसिएशन, कलेक्टर सूरजपुर, छत्तीसगढ़ के व्यवहार की कड़ी निंदा करता है। यह अस्वीकार्य है और सेवा और सभ्यता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। सिविल सेवकों को सहानुभूति रखनी चाहिए और इस कठिन समय में संवेदना से पेश आना चाहिए।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 मई | कांग्रेस नेता अलका लांबा ने केजरीवाल सरकार के द्वारा शहीद कोरोना वारियरों का अपमान व गलत टेस्टिंग नीति पर गंभीर सवाल उठाया। उन्होंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा जारी कोरोना की दूसरी लहर में जान गवाने वाले 100 डॉक्टरों को तुरन्त 1 करोड़ की सम्मान राशि जारी करने की मांग की है। कांग्रेस नेता अलका लांबा ने कहा कि, "केजरीवाल द्वारा हाल में शहीद कोरोना योद्धा शिवजी मिश्रा के परिवार को एक करोड़ की सम्मान राशि, लगभग एक साल बाद दी है।"
"पिछले वर्षों के तमाम ऐसे मामले हैं जिसे अबतक सम्मान राशि नहीं दी गई हैं या फिर कोरोना योद्धा मानने से इंकार कर दिया गया है। उन्हें जल्द से जल्द सम्मान राशि देने की मांग की है।"
केजरीवाल सरकार पर कोरोना योद्धाओं का अपमान किये जाने का आरोप लगाते हुए अलका लांबा ने कहा कि, "केजरीवाल केवल कुछ गिने चुने परिवारों को ही सम्मान राशि देते हैं व फोटो खिचवाकर सोशल मिडिया के जरिये प्रचार करते हैं।"
दूसरी ओर अलका लांबा ने केजरीवाल सरकार के टेस्टिंग नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि, "महामारी के दौरान जैसे-जैसे संक्रमण की दर बढ़ती जा रही थी, दिल्ली सरकार टेस्ट की संख्या कम करते जा रही थी।"
आंकड़े का हवाला देते हुए कहा कि, "11 अप्रैल को जब संक्रमण की दर 9.43 फीसदी दर्ज हुफ 1.14 लाख टेस्ट हुए, लेकिन 15 दिन बाद 26 अप्रैल जब संक्रमण की दर बढ़कर 35 फीसदी हो गई।"
"केजरीवाल ने धीरे- धीरे टेस्ट की संख्या लगभग आधा 57,690 कर दी। बाद में टेस्ट की संख्या अधिकांश दिनों में 50-60 हजार के बीच में रखी गई, जिसका नतीजा था कि संक्रमण की दर फैलती गई।"
लांबा के अनुसार, केजरीवाल सरकार की गलत टेस्टिंग नीति के कारण हुई मौत के लिए अब तक किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है।(आईएएनएस)
लखनऊ, 22 मई| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कोविड नियंत्रण अभियान में लगे विधान परिषद सदस्य अरविंद कुमार शर्मा ने शनिवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले। मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर उनके साथ बैठक के बाद उन्हीं के आवास पर शर्मा ने शासन के उच्चाधिकारियों से भी भेंट की। हालांकि इस मुलाकात को सार्वजनिक नहीं किया गया। बताया जा रहा कि इस दौरान काशी के कोविड प्रबंधन पर चर्चा की गई, जिसकी तारीफ पीएम भी कर चुके हैं।
सूत्रों की मानें तो अरविंद कुमार शर्मा शुक्रवार को दिल्ली पहुंचे थे। यहां उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। यहां पर दोनों के बीच क्या बात हुई यह सार्वजनिक नहीं किया गया। हालांकि दिल्ली से लौटकर वह सीधे लखनऊ पहुंचे और यहां पर शनिवार सुबह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की।
वाराणसी में कोरोना मॉडल को लेकर एमएलसी शर्मा की प्रधानमंत्री ने काफी तारीफ की थी। शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनके प्रयास को काफी सराहा है। सेवानिवृत्त आईएएस अफसर अरविंद कुमार (एके) शर्मा भाजपा से विधान परिषद सदस्य हैं। वाराणसी में शुक्रवार को डॉक्टर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ तथा जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की प्रधानमंत्री मोदी के साथ वर्चुअल बैठक के दौरान वाराणसी में मौजूद रहे शर्मा शुक्रवार को नई दिल्ली जाने के बाद शनिवार सुबह लखनऊ लौटे।
राजधानी में एके शर्मा ने मुख्यमंत्री योगी से उनके सरकारी आवास पर करीब 15 मिनट तक बात की। इसके बाद उन्होंने सीएम आवास में ही अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी और अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल से भी काफी देर तक वार्ता की। एके शर्मा को मुख्यमंत्री योगी ने वार्ता के लिए लखनऊ बुलाया था।
ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी हाल ही में नाकैरशाह से राजनीति में आए अरविंद कुमार शर्मा ने न केवल मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काम किया, बल्कि राज्य के 21 अन्य पूर्वी यूपी जिलों में वह लगातार सक्रिय हैं।
शर्मा को इसी साल की शुरुआत में भाजपा ने एमएलसी बनाया। वह प्रधानमंत्री कार्यालय और वाराणसी के बीच सेतु का काम किया। मोदी ने भी उनकी तारीफ की। वह कोरोना की दूसरी लहर आने के तुरंत बाद से शर्मा काशी में डेरा डाले हुए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी, उत्तर प्रदेश के मऊ के निवासी गुजरात कैडर के आईएएस अफसर अरविंद कुमार शर्मा ने हाल ही में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। इसके बाद भाजपा में शामिल होने वाले शर्मा को पार्टी उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य भी बनाया। केंद्र सरकार में भी बेहद अहम विभाग के सचिव रहे शर्मा ने अचानक ही सेवानिवृत्ति का फैसला लिया। (आईएएनएस)
गुवाहाटी, 22 मई। असम के राज्यपाल जगदीश मुखी ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार अगले विधानसभा सत्र में गौ संरक्षण विधेयक पेश करने की योजना बना रही है। इसके जरिये गाय के राज्य के बाहर परिवहन पर प्रतिबंध लग जाएगा। 15वीं विधानसभा के पहले सत्र को संबोधित करते हुए जगदीश मुखी ने कहा कि लोग गाय को पवित्र मानते हुए उसका सम्मान और पूजा करते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि गाय के संरक्षण के लिए राज्य सरकार जीरो-टालरेंस की नीति अपनाएगी और जो उसे राज्य के बाहर ले जाते हुए पाया जाएगा, उसे कड़ा दंड दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पारित हो जाने पर असम भी उन राज्यों में शुमार हो जाएगा जिन्होंने इस तरह के विधेयक पारित किए हैं। मुखी ने कहा कि गाय लोगों को जीवनदायी दूध देती है, इस तरह वह लोगों का पोषण करती है।
वहीं दूसरी ओर लव जिहाद के खिलाफ सख्त कानून बनाने वाले राज्यों में गुजरात भी शामिल हो गया है। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने उस संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में शादी के जरिये जबरन मतांतरण पर तीन से 10 साल तक की कैद की सजा के साथ ही लाखों के जुर्माने का प्रविधान है। गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2021 इस साल पहली अप्रैल को राज्य विधानसभा में पारित हुआ था।
इस बीच भाजपा के बिस्वजीत दैमरी को 15वीं असम विधानसभा का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया है। चूंकि अन्य कोई नामांकन ही नहीं आया इसलिए प्रोटेम स्पीकर फणी भूषण चौधरी ने 47 वर्षीय आदिवासी नेता दैमरी को विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित करने की घोषणा कर दी। इस पद के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल ने किसी उम्मीदवार को खड़ा नहीं किया था। वह बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। उन्होंने पनेरी से 32,852 मतों से विधानसभा चुनाव जीता था। (पीटीआई)
देश में कोरोना वायरस महामारी के चलते ब्लैक फंगस के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. मध्य प्रदेश में भी इस बीमारी को महामारी घोषित कर दिया गया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को राज्य में कोरोना के हालात को लेकर समीक्षा बैठक की. जिसके बाद उन्होंने कहा कि प्रदेश में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया जाता है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि राज्य में जो भी इसकी चपेट में आएगा उसे इलाज की अच्छी से अच्छी व्यवस्था प्रदान की जाए. साथ ही ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसिन-बी की आपूर्ति में कोई कमी ना हो इसके भी हरसम्भव प्रयास किए जाएंगे.
ब्लैक फंगस को महामारी घोषित करने के साथ ही इसको लेकर राज्य के सभी निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए गाइडलाइन लागू कर दी गयी है. साथ ही इसके इलाज के लिए आवश्यक दवाइयों की आपूर्ति केंद्र और राज्य स्तर से सुनिश्चित की जाएगी. प्रदेश में अभी पांच मेडिकल कॉलेजों में इसका उपचार किया जा रहा है. बता दें कि प्रदेश में राजधानी भोपाल समेत कई और इलाकों में ब्लैक फंगस के कई मरीज सामने आ रहे हैं. राज्य सरकार ने सरकारी अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीजों के मुफ्त इलाज की व्यवस्था की है.
महामारी घोषित होने पर क्या होता है?
बता दें कि जो राज्य किसी बीमारी को महामारी घोषित कर देते हैं फिर उन्हें केस, इलाज, दवा और बीमारी से होने वाली मौत का हिसाब रखना होता है. साथ ही सभी मामलों की रिपोर्ट चीफ मेडिकल ऑफिसर को देनी होती है. इसके अलावा केंद्र सरकार और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर की गाइडलाइन्स का पालन करना होता है.
कोरोना की तेज रफ्तार का असर बिहार में गांवों की आर्थिक सेहत पर पड़ने लगा है. रोजी-रोटी के संसाधन तो संकुचित हो ही गए है, उपज के भी वाजिब दाम नहीं मिल रहे. लॉकडाउन के कारण उन्हें बाजार नहीं मिल पा रहा है.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
कोविड संक्रमण की दूसरी लहर गांवों को तेजी से अपनी चपेट में ले रही है. जागरूकता की कमी, कमजोर मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर व लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण हो रही मौतों से भय का वातावरण बन गया है. नतीजतन खेती व अन्य आर्थिक गतिविधियों पर इसका खासा असर पड़ा है. गांवों में लोग खेती, पशुपालन या फिर मजदूरी करके जीवन-यापन करते हैं. परंपरागत खेती में गेहूं-चावल जैसे मोटे अनाज को छोड़ दें तो लॉकडाउन के कारण सब्जी, फलों व डेयरी उत्पादों का उठाव बुरी तरह प्रभावित हुआ है. व्यापारी गांवों तक नहीं पहुंच पा रहे. इस वजह से इन्हें बाजार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. लॉकडाउन के कारण बृहत स्तर पर शादी-विवाह जैसे अन्य धार्मिक व सामाजिक आयोजनों पर रोक लगी है. होटल, रेस्तरां व मिठाई या खानपान की अन्य दुकानें काफी दिनों से बंद हैं. इस कारण दूध व अन्य डेयरी उत्पाद, सब्जी व फलों की मांग काफी कम हो गई है.
स्टोरेज की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण इन उत्पादों को किसान अपने पास रखने में सक्षम नहीं है. उनकी रोजी-रोटी तो रोजाना इनसे होने वाली आमदनी पर निर्भर है. उठाव नहीं हो पाने के कारण या तो इन्हें औने-पौने भाव में बेचना पड़ रहा है या फिर उन्हें फेंकना पड़ रहा है. कोरोना की दूसरी लहर ने उन किसानों की हालत खास्ता कर दी है जो भूमिहीन होने के कारण बटाईदारी कर या एक-दो गाय, भैंस पाल कर जीवन-यापन करते हैं. दुग्ध समितियां या कंपनियां जो गांवों से दूध कलेक्ट करतीं हैं, उनकी बिक्री में काफी कमी आने से उनका कलेक्शन भी घट गया है. किंतु दुग्ध उत्पादन तो ज्यों का त्यों है. जानकार बताते हैं कि कुल दूध उत्पादन का 60 प्रतिशत इस्तेमाल होटलों, मिठाई या चाय की दुकानों में हैं जबकि 40 फीसद इस्तेमाल संगठित क्षेत्र यानी सरकारी, सहकारी या निजी कंपनियां प्रोसेसिंग के लिए करती हैं.
दूध के कारोबारी हुए कोरोना से बेहाल
मुंगेर जिले के जमालपुर शहर की प्रसिद्ध बांग्ला मिठाई के लिए दुकानों में दूध सप्लाई करने वाले पशुपालक करीब सौ क्विंटल दूध रोजाना पहुंचा रहे थे. लेकिन दुकान बंद होने से इनकी परेशानी बढ़ गई है. बरियारपुर निवासी अशोक यादव कहते हैं, "कुछ घरों में दूध पहुंचा रहे हैं, फिर भी काफी दूध बच जाता है जो बर्बाद हो रहा है. पूरा आर्थिक चक्र ही गड़बड़ा गया है." दरअसल, लॉकडाउन के गाइडलाइन के कारण ऐसे पशुपालक ज्यादा दूरी तक जाकर बेच भी नहीं पाते. सब्जी या फल उपजाने वाले किसानों का भी यही हाल है. खरीददार नहीं मिल पाने के कारण उनके लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है.
मुजफ्फरपुर जिले के कई गांवों में अन्य जिलों के अलावा असम, नेपाल व पश्चिम बंगाल तक के व्यापारी टमाटर की खरीद के लिए पहुंचते थे. कोरोना के कारण इस बार वे नहीं आ रहे हैं. इसी जिले के मीनापुर के किसान अजय बाबू कहते हैं, "हालत इतनी बुरी है कि जो 25 किलो टमाटर 250 रुपये में बिक रहा था, उसे अब महज 30-40 रुपये में बेचना पड़ रहा है. इससे खर्चा भी निकलना मुश्किल है, आमदनी की तो बात छोड़िए." लीची-आम जैसे फल बेचने वाले तो लॉकडाउन में बिक्री की तय समय सीमा को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. पटना फ्रूट एंड वेजिटेबल एसोसिएशन के अध्यक्ष शशिकांत प्रसाद कहते हैं, "लीची-आम जैसे नाजुक फल 12 से 24 घंटे में खराब होने लगते हैं. इसलिए बिक्री के लिए रोजाना कम से कम एक घंटा अतिरिक्त समय मिलना चाहिए. अन्यथा मंडी में इन फसलों के उठाव पर इसका असर पड़ेगा. लॉकडाउन के कारण व्यापार वैसे ही मंदा है."
पीले सोने पर भी कोरोना की काली नजर
मोटे अनाज यथा गेहूं-चावल, चना उपजाने वाले किसान भी बेहाल हैं. खगड़िया जिले के चौथम निवासी ब्रजेश सिंह कहते हैं, "लॉकडाउन के पहले गांव आकर व्यापारी साढ़े सोलह-सत्रह सौ रुपये प्रति क्विंटल गेहूं ले जा रहे थे. जैसे ही लॉकडाउन लगा, वे पंद्रह सौ रुपये प्रति क्विंटल भी देने को तैयार नहीं हैं." इसी गांव के अजय शर्मा कहते हैं, "जो ठोस किसान हैं वे कुछ दिनों तक अनाज रख लेंगे, किंतु जिन्हें बेटी की शादी या अन्य काम करना है वे तो औने-पौने दाम में इसे बेचेंगे ही. समझ में नहीं आता, कोरोना से कब छूटेंगे. ऐसे में तो जीना मुहाल हो जाएगा." अगर खेती की लागत ही नहीं निकलेगी या फिर कम आमदनी होगी तो किसानों की आर्थिक सेहत ही बिगड़ जाएगी.
बिहार में पीले सोने के नाम से विख्यात मक्के की फसल भी कोरोना की मार से अछूती नहीं है. खगड़िया जिले के गोगरी निवासी किसान अजय चौधरी कहते हैं, "2019 में मक्के की बिक्री प्रति क्विंटल 1800 रुपये हुई थी, किंतु कोरोना के कारण पिछले साल 1300 रुपये का रेट मिला और इस बार भी यही रेट मिल रहा है." मक्का व्यवसायी नरेश गुप्ता कहते हैं, "बाहर नहीं भेजे जाने के कारण कीमत में गिरावट आई है. कोरोना के कारण आगे क्या होगा, यह सोचकर हर कोई डरा हुआ है. इसलिए पूर्णिया की गुलाबबाग जैसी मंडी में भी डिमांड कम है." स्थिति की व्याख्या करते हुए अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डॉ वीएन खरे कहते हैं, "किसान की पूरी प्लानिंग उपज से प्राप्त धनराशि पर निर्भर करती है. अमूमन 30 प्रतिशत हिस्सा वह खेती के लिए रखता है, करीब 30-35 फीसद राशि जीवन-यापन के लिए और फिर करीब इतना ही हिस्सा वह अन्य जरूरी कार्यो के लिए रखता है चाहे वह भवन निर्माण हो या बाल-बच्चे की पढ़ाई या फिर बेटी की शादी."
परियोजनाएं ठप पड़ने से रुका नकदी का प्रवाह
कोरोना की दूसरी लहर व लॉकडाउन के कारण ग्रामीण इलाकों में रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर यथा सड़क, आवास, सिंचाई व निर्माण संबंधी परियोजनाओं का काम रुक गया है. जानकार बताते हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खेती का हिस्सा बमुश्किल 40 प्रतिशत ही है. शेष हिस्सा गैर कृषि कार्यों का है. जाहिर है इनमें परियोजनाओं या फिर अन्य स्रोतों से प्राप्त धनराशि ही अहम है. वैसे भी अप्रैल से जून तक गांवों में रोजी-रोटी के लिए लोग खेती का काम नहीं होने से अर्थोपार्जन के लिए मजदूरी पर निर्भर रहते हैं. कोरोना काल में विनिर्माण के सारे कार्य ठप हैं जिससे नकदी का प्रवाह रुक गया है. हालांकि मनरेगा के जरिए लोगों को काम दिया जा रहा है. किंतु इसके तहत आठ घंटे काम करने पर मिलने वाली महज 198 रुपये की मजदूरी उन्हें आकर्षित नहीं कर रही है. इतनी कम राशि में तो एक छोटे परिवार की परवरिश भी बमुश्किल ही हो सकेगी. श्रमिक बतौर मजदूरी कम से कम 300 रुपये की मांग कर रहे हैं.
बाहर से लौटे प्रवासी श्रमिकों को केंद्र प्रायोजित गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत भी कम से कम 125 दिनों तक रोजगार देने की व्यवस्था की जा रही है. वहीं कामगारों के लिए पिछली बार की तरह ही स्किल मैपिंग कराने की तैयारी है, ताकि उनकी क्षमता के अनुरुप उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जा सके. कोरोना की दूसरी लहर में यह भी देखने में आया है कि पिछले साल की तरह इस बार प्रवासियों का गांवों की ओर अपेक्षाकृत कम पलायन हुआ है. लॉकडाउन के कारण शहरों में भी काम बाधित होने से उनकी आमदनी पर असर पड़ा है. इसलिए वे अपने परिजनों को भी पर्याप्त राशि नहीं भेज पा रहे हैं. इससे भी गांवों की अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बाधित हुआ है. कोविड-19 की पहली लहर ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर खासा नकारात्मक प्रभाव डाला था. दूसरी लहर भी जितनी लंबी होगी, किसानों-खेतिहरों व मजदूरों की आमदनी व क्रय शक्ति भी उसी अनुपात में कमजोर होती जाएगी. अंतत: इससे गरीबी में ही इजाफा होगा. (dw.com)
नासिक (महाराष्ट्र), 21 मई | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शुक्रवार को नासिक में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक उप शाखा प्रबंधक को एक शिकायतकर्ता से 10,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। एक अधिकारी ने बताया कि आरोपी की पहचान मलाई कंचन के रूप में हुई है, जो यहां एसबीआई मालेगांव शाखा में प्रोसेसिंग ऑफिसर के तौर पर काम करता है।
शिकायतकर्ता के कमीशन बिलों को जारी करने के लिए कथित तौर पर 80,000 रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में आरोपी के खिलाफ गुरुवार को दर्ज शिकायत के बाद यह कार्रवाई की गई है।
शिकायतकर्ता होम लोन काउंसलर के रूप में काम करता है और बैंक के लिए ग्राहक प्रदान करता है, जिसके लिए उसे ऋण राशि का 0.30 प्रतिशत कमीशन दिया जाता है।
सीबीआई ने जाल बिछाया और शिकायतकर्ता से 10,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए कंचन को रंगे हाथ पकड़ लिया।
आगे की जांच चल रही है सीबीआई अब उसके आवासीय परिसर की तलाशी ले रही है और उसे रिमांड के लिए विशेष सीबीआई अदालत में पेश किया जाएगा।(आईएएनएस)
हैदराबाद, 20 मई| तेलंगाना पुलिस ने महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी करने के आरोप में अब तक 128 मामले दर्ज किए हैं और 258 लोगों को गिरफ्तार किया है। इस बात का खुलासा गुरुवार को उद्योग एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के.टी. रामा राव न किया, जो कोविड-19 के लिए दवाओं और टीकों की खरीद के लिए टास्क फोर्स का नेतृत्व कर रहे हैं।
उन्होंने कई ट्वीट्स में कहा, तेलंगाना पुलिस इस महामारी में दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी को रोकने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही है।
दूसरी लहर में, 128 मामले दर्ज किए गए हैं और 258 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसके पास कालाबाजारी करने वालों की जानकारी है, वह 100 डायल कर सकता है या ट्वीट कर सकता है। (आईएएनएस)
खेतीबाड़ी में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को अक्सर उनके सशक्तिकरण से जोड़ा जाता है लेकिन ये विडंबना है कि इस भागीदारी की कीमत उन्हें गिरती सेहत और खराब पोषण से चुकानी पड़ती है. वे खेत से लेकर घर तक जूझती रहती हैं.
डॉयचे वैले पर शिवप्रसाद जोशी की रिपोर्ट-
भारत जैसे कृषिप्रधान देशों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने कृषि सेक्टर को एक नयी ऊंचाई पर पहुंचाया है. अक्सर कृषि के महिलाकरण की बात भी की जाती है. लेकिन इस तथ्य को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि महिलाएं कृषि में विभिन्न रूपों में बुनियादी भूमिका निभा तो रही हैं लेकिन इससे उन्हें आखिरकार वांछित लाभ हासिल नहीं हो पाता है. अव्वल तो खेतों में उनकी उपस्थिति किस रूप में है ये देखा जाना जरूरी है, मजदूर के रूप में, कर्मचारी के रूप में या उद्यमी या मालिक के रूप में. ये भी देखे जाने की जरूरत है कि खेतों में काम करने वाली महिलाएं किस समुदाय या जाति या वर्ग से आती हैं. क्योंकि इससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति का भी पता चल सकता है. खेत में उनका काम करना कोई रुमानियत नहीं है, ये भी देखा जाना चाहिए कि इसमें कितनी इच्छा, लगाव या विवशता छिपी है. भारत जैसे देशों के मामले में अक्सर देखा गया है कि गरीब और वंचित तबकों की महिलाएं पारिवारिक जरूरतों, भरण-पोषण और आर्थिक तंगहाली से निपटने के लिए भी खेतों में काम करती हैं. इस लिहाज से इसे सशक्तिकरण कह देना जल्दबाजी होगी.
खेती में एक तिहाई महिलाएं
खेती में कार्यरत श्रम शक्ति की एक तिहाई संख्या महिलाओं की है. वे अपना 32 प्रतिशत समय खेती के कामों में लगाती हैं. औसतन 300 मिनट वो घर में खाना पकाने, साफसफाई, बर्तन धोने, बच्चों और परिवार की देखभाल समेत बहुत से घरेलू कामों में खर्च करती हैं. लेकिन जब पीक सीजन में खेतों में उनका काम बढ़ जाता है तो वहां वो ज्यादा समय देने लगती हैं. खेती में महिलाओं की व्यस्तता ज्यादा है और पुरुषों जैसी ही है. लेकिन चूंकि उन्हें घर के भी सारे काम करने पड़ते हैं लिहाजा जब खेती में ज्यादा काम के दिन आते हैं तो वहां पूरा समय झोंककर वो अपने लिए घर पर समय नहीं दे पातीं. इसका असर उनके अपने खानेपीने पर पड़ता है. आशय ये है कि खेत में काम से देर शाम घर लौटकर थकी-मांदी महिलाएं अक्सर खाना पकाने में कोताही कर देती हैं या आसानी से तैयार हो जाने वाला भोजन बना लेती हैं. कम समय और कम मेहनत वाला. उसमें जरूरी पोषक तत्वों का अभाव होता है.
महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में हुई एक रिसर्च के मुताबिक पीक सीजन में खेती में अधिक व्यस्तता का संबंध पोषक तत्वों में गिरावट से पाया गया है. अध्ययन के मुताबिक जब महिलाएं खेतों में बीजों की रोपाई, गुड़ाई और कटाई में अतिरिक्त समय देती हैं तो इसका असर उनके घर में खाना पकाने की तैयारी पर पड़ता है. महिलाएं इस तरह दोहरी मार झेल रही हैं. खेती में खर्च हुए दस अतिरिक्त मिनटों का अर्थ है शाम का खाना पकाने के समय में चार मिनट की कमी. शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं को खेती से होने वाली आमदनी में सौ रुपये की बढ़त उनकी दिन की कुल कैलोरी में उल्लेखनीय गिरावट से जुड़ी है. आईआईएम अहमदाबाद की वेमीरेड्डी और अमेरिका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी में कार्यरत प्रभु पिंगली ने ये अध्ययन किया है.रोजगार खोने की चिंता
लेबर सेविंग प्रौद्योगिकी के जरिए महिलाओं की हालत में सुधार की बात तो की जा रही है लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि ऐसी प्रौद्योगिकियों को लागू करने के बाद महिलाओं को उनके रोजगार से वंचित नहीं किया जाएगा. घर चलाने या घरेलू वित्त खड़ा करने की एक बड़ी चुनौती खेतिहर समुदायों और उनकी महिलाओं में रही हैं.
श्रम की बचत के तरीके खेती में ही नहीं घरेलू कार्यों में ही अपनाए जाने की जरूरत है. पुरुषों के शहरों की ओर माइग्रेशन से अधिक से अधिक महिलाएं खेतों में विभिन्न भूमिकाओं में सामने आ रही हैं, फसल उगाने वालों से लेकर उद्यमी और मजदूरिन तक. लेकिन महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का उन्हें वो उचित हासिल नहीं मिल रहा है जिसकी वो हकदार है. चाहे वो समय की बचत हो, मानदेय में वृद्धि हो या श्रम में बचत से जुड़े उपकरण हों. और अगर वे मिल भी रहे हैं तो उनका परस्पर संबंध नहीं हैं.
लैंगिक भेदभाव भी एक समस्या है. लैंगिक अंतर सबसे अधिक दिखता है जमीन के मालिकाना हक में. महिला जिस जमीन पर खेती करती हैं उसकी मालिक वे नहीं होती हैं. आंकड़ों के मुताबिक 55 फीसदी पुरुष और 73 फीसदी महिलाएं कृषि कामगार हैं, फिर भी करीब 13 प्रतिशत महिलाओं के पास ही अपनी खुद की जमीन है. बाकी उन्हीं जमीनों पर काम करती हैं जिनके मालिक घर के पुरुष सदस्य हैं या बाहर का कोई व्यक्ति है. यूं तो कृषि उत्पादन और किसानों की आजीविका पर जलवायु परिवर्तन का असर देखा ही जाता है लेकिन इसका एक बड़ा पहलू ये भी है कि जलवायु परिवर्तन का ज्यादा असर ग्रामीण महिलाओं पर पड़ता है.
पोषण में सुधार जरूरी
अंतरराष्ट्रीय शोध भागीदारी की संस्था, लेवरेजिंग एग्रीकल्चर फॉर न्यूट्रीशन इन साउथ एशिया (लानसा) भी इस बारे में मुख्य मुद्दों को रेखांकित करती आयी है. लानसा के तहत किए गए शोध बताते हैं कि भारत समेत दक्षिण एशिया में महिलाओं का कृषि कार्य, घरेलू गरीबी और अल्प पोषण के बीच एक बड़ा फैक्टर है. शोध के मुताबिक कृषि वर्कफोर्स का फेमिनाइजेशन तो हुआ है लेकिन उसके समांतर पोषण में सुधार नहीं हो पाया है.
सरकार को एक ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी कि पब्लिक सब्सिडी का कुछ हिस्सा महिला कृषि मजदूरों को मिले और उनके योगदान को पहचान मिले. पैदावार के मूल्य और संबद्ध समर्थन मूल्यों, फसल को दी जाने वाली सब्सिडी में महिला श्रम को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. कृषि से जुड़ी और कृषि विस्तारित सेवाओं को स्त्रियोन्मुखी बनाए जाने की जरूरत भी है. महिला किसानों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए जमीन से लेकर उपज तक उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए. श्रम की बचत वाली तरतीबें खेतों से लेकर घर तक किए जाने की जरूरत है लेकिन ख्याल रहे कि ऐसा करते हुए महिलाओं से उनका रोजगार न छीन लिया जाए. श्रम में वे बराबर की भागीदार हैं तो उससे मिलने वाले लाभों से भी उन्हें दूर नहीं किया जा सकता है. (dw.com)
जकार्ता में लोगों ने शुद्ध हवा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने राष्ट्रपति से लेकर कई मंत्रियों पर मुकदमा ठोक कर अस्वस्थ हवा की समस्या को सुलझाने की मांग की है. अब अदालत को इस पर फैसला सुनाना है.
इंडोनेशिया की घनी आबादी, ट्रैफिक जाम वाली राजधानी जकार्ता में पैदा हुईं और पली-बढ़ी पर्यावरणविद् खलीसा खालिद लंबे वक्त से शहर की जहरीली हवा से परेशान हैं. उनकी छोटी बेटी की तबीयत जन्म से ही खराब रहती है. वह इसके लिए शहर के बिगड़ते वायु प्रदूषण को जिम्मेदार मानती हैं. खलीसा कहती हैं, "जकार्ता की खराब होती हवा के साथ-साथ मेरी बेटी के स्वास्थ्य को खतरा बढ़ता जा रहा है." उनकी बेटी अब 10 साल की हो गई है.
खलीसा के मुताबिक, "नागरिकों के पास अच्छा वातावरण और शुद्ध हवा हो इसके लिए हम चाहते हैं कि सरकार नियम बनाए." इंडोनेशिया के राष्ट्रपति, स्वास्थ्य, पर्यावरण और गृह मंत्री और कई क्षेत्रीय नेताओं पर मुकदमा करने वाले 32 लोगों में 42 वर्षीय मां खलीसा भी शामिल हैं. उनकी मांग है कि जहरीली हवा को सुधारने के लिए कदम उठाए जाएं.
मध्य जकार्ता की जिला अदालत 2019 के इस मामले पर फैसला सुनाने वाली थी लेकिन खलीसा का कहना है कि यह स्थगित किया गया है क्योंकि जजों को इस पर विचार करने के लिए और समय चाहिए. स्विस आईक्यू एयर के साल 2020 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के सबसे खराब वायु प्रदूषण वाले शीर्ष 148 शहर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हैं. मुकदमा दायर करने वाली कानूनी टीम का दावा है कि इंडोनेशियाई प्राधिकारियों ने अपने नागरिकों को वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों से रोकने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से लापरवाही बरती है. उन्होंने दलील दी कि वैज्ञानिक शोधों ने खराब वायु गुणवत्ता को अस्थमा, गंभीर हृदय रोग, आघात, फेफड़ों से जुड़ी बीमारी और जीवन काल कम होने का कारण बताया है.
जलवायु परिवर्तन पर जकार्ता के गवर्नर के विशेष दूत इरफान पुलुंगन कहते हैं कि मुकदमा दायर होने के बाद से शहर ने नए नियम पारित किए हैं. उन्होंने बताया कि सरकारी भवनों में सौर पैनल लगाने और उत्सर्जन जांच को बढ़ावा दिया जा रहा है. 2019 में जकार्ता ने वायु प्रदूषण से निपटने की कोशिश करने और उस पर लगाम लगाने के लिए निजी कारों के इस्तेमाल पर नए प्रतिबंधों की भी घोषणा की थी. सेंटर ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के मुताबिक तेज शहरीकरण और यातायात इंडोनेशियाई राजधानी में खराब वायु गुणवत्ता के मुख्य कारक हैं, साथ ही शहर के पास कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र भी जिम्मेदार हैं.
कोविड-19 महामारी के दौरान सामाजिक प्रतिबंधों के बावजूद जकार्ता की वायु गुणवत्ता नहीं सुधरी. सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से पता चला कि आस पास के शहरों में पावर प्लांट हमेशा की तरह चलते रहे. (dw.com)
एए/सीके (रॉयटर्स)
भारत में कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही कोरोना के डाटा इकट्ठा करने के लिए कई ट्रैकिंग ऐप का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये ऐप आम लोगों की चिंता बढ़ा रहे हैं, क्योंकि ऐसे तमाम ऐप में लोगों को अपनी निजी सूचनाएं भरनी होती हैं.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
कोरोना ट्रैकिंग के ज्यादातर ऐप की शर्तों में यह साफ नहीं है कि जमा किए जा रहे डाटा का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा. इससे उनकी गोपनीयता सवालों के घेरे में है. एप्पल ने अपने आईफोन उपभोक्ताओं के लिए जारी एक नए अपडेट में उनको विकल्प दिया है कि वे चाहें तो ऐसे ऐप को अनुमति देने से इंकार कर सकते हैं. लेकिन फेसबुक ने इसके खिलाफ विज्ञापन के जरिए अभियान छेड़ दिया है. इस बीच, कोरोना की पहली लहर में जिस आरोग्य सेतु ऐप की सबसे ज्यादा चर्चा थी, दूसरी लहर में उसकी कहीं कोई चर्चा तक नहीं हो रही है.
ऐप की भरमार
कोरोना की दूसरी लहर तेजी से फैलने के साथ ही देश में इस महामारी पर निगाह रखने वाले ऐप भी उसी तेजी से विकसित हुए हैं. बीते साल पहली लहर के दौरान जहां सिर्फ एक आरोग्य सेतु ऐप ही था, वहीं अब ऐसे कम से कम 19 ऐप आ गए हैं. अब बिहार और केरल समेत ज्यादातर राज्यों ने अपने अलग ऐप बनाए हैं. बीते साल आरोग्य सेतु ऐप का बड़े पैमाने पर प्रचार किया गया था. इसी वजह से पहले कुछ महीनों के दौरान इसे 17 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया था. हालांकि आंकड़ों की गोपनीयता का सवाल उस समय भी उठाया गया था. लेकिन महामारी से जान बचाना इस चिंता पर भारी पड़ा था और इसकी कहीं कोई खास चर्चा नहीं हुई थी.
लेकिन अब ऐसे ऐप की बढ़ती तादाद ने आंकड़ों की गोपनीयता के सवाल को एक बार फिर सतह पर ला दिया है. मिसाल के तौर पर केरल में पुलिस क्वारंटीन में रहने वाले मरीजों पर निगाह रखने के लिए अनमेज ऐप का इस्तेमाल कर रही है. इसी तरह कासरगोड पुलिस बीते 25 मार्च से कोविड सेफ्टी ऐप का इस्तेमाल कर रही है. इसके जरिए 20 हजार लोगों पर निगाह रखी जा रही है. यह ऐप क्वारंटीन में रहने वालों की लोकेशन पुलिस मुख्यालय में भेजता है. कोच्चि पुलिस का दावा है कि इसके जरिए क्वांरटीन नियमों का उल्लंघन करने वाले तीन हजार लोगों का पता चला है. केरल सरकार स्वास्थ्य पर ताजा अपडेट्स देने के लिए गो-के-डाइरेक्ट केरल ऐप का इस्तेमाल कर रही है.
लोकेशन और ट्रैवल हिस्ट्री
केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्रालय ने भी आम लोगों के इलाज और जांच से संबंधित आंकड़े जुटाने के लिए कोविड-19 फीडबैक ऐप लॉन्च किया है. सरकार का दावा है कि इन आंकड़ों से उन इलाकों की शिनाख्त करने में मदद मिलती है जहां जांच और इलाज में सुधार जरूरी है. इसके अलावा सर्वे ऑफ इंडिया ने भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए सहयोग नामक ऐप बनाया है. इसके लिए राज्य स्तर पर आंकड़े जुटाए जाते हैं. बाद में सर्वे ऑफ इंडिया इन आंकड़ों का विश्लेषण कर सरकार को रिपोर्ट देता है.
कोरोना पर काबू पाने के लिए फिलहाल देश के ज्यादातर राज्यों में आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लागू है. ऐसे में कमोबेश तमाम राज्यों ने अलग-अलग ऐप बनाए हैं. कहीं इनके जरिए ई-पास जारी किए जा रहे हैं तो कहीं क्वारंटीन में रहने वालों पर निगाह रखी जाती है. इसके अलावा अब ताजा मामले में वैक्सीन के लिए भी कोविन जैसे ऐप शुरू हुए हैं. ऐसे तमाम ऐप डाउनलोड करने के बाद लोगों को उसमें अपना आधार नंबर, मोबाइल नंबर और दूसरे जरूरी आंकड़े भरने पड़ते हैं. कोरोना की दूसरी लहर इतनी घातक है कि लोग बिना सोचे-समझे ऐसे ज्यादातर ऐप डाउनलोड कर रहे हैं.
कर्नाटक ने तो कोरोना वाच नामक एक ऐसा ऐप विकसित किया है जिसके जरिए इसे डाउनलोड करने वाले मरीजों की लोकेशन और ट्रेवल हिस्ट्री का पता चल जाता है. इस ऐप को भी अब तक एक लाख से ज्यादा लोग डाउनलोड कर चुके हैं. शायद ही ऐसा कोई राज्य है जिसने कोरोना के आंकड़े जुटाने और मरीजों पर निगाह रखने के लिए ऐसे एक से ज्यादा ऐप विकसित नहीं किए हों.
आंकड़ों की सुरक्षा पर चिंता
साइबर विशेषज्ञों ने ऐसे ऐपों के जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की है. डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में काम करने वाले दिल्ली स्थित सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर का कहना है कि ऐसे ज्यादातर ऐप उपभोक्ता से नाम, लिंग और पेशे के अलावा बीते कम से कम एक महीने का यात्रा विवरण मांगते हैं. आरोग्य सेतु ऐप में लोगों से उनके स्वास्थ्य की तमाम जानकारियों के साथ ही यह भी पूछा जाता है कि वे सिगरेट पीते हैं या नहीं. दिल्ली स्थित एक अन्य संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का कहना है कि ऐसे ऐप सामूहिक निगरानी को संस्थागत स्वरूप देने का खतरा बढ़ा रहे हैं. संगठन का कहना है कि ऐसे ज्यादातर ऐप कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के नाम पर लोगों की गतिविधियों के नियंत्रण की प्रणाली के तौर इस्तेमाल हो सकते हैं.
हालांकि सरकार ने इस चिंता को निराधार करार दिया है. सूचना तकनीक मंत्रालय के प्रवक्ता राजीव जैन ने कहा है कि इसमें निजता के उल्लंघन का कोई खतरा नहीं है. आरोग्य सेतु ऐप के जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों का इस्तेमाल सिर्फ कोरोना से मुकाबले के लिए किया जाता है, आम लोगों की गतिविधियों की निगरानी के लिए नहीं. इसके जरिए कोरोना के मरीजों पर निगाह रखी जाती है ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
एप्पल की पहल
स्मार्ट फोन बनाने वाली टेक कंपनी एप्पल ने हाल ही में अपने उपभोक्ताओं के लिए एक अपडेट जारी किया है जिसमें कई सुरक्षा फीचर्स दिए गए हैं. इनके जरिए उपभोक्ता यूजर्स आसानी से यह जान सकते हैं कि कोई भी ऐप कौन यूजर का कौन सा डाटा ले रहा है. इसके साथ ही वे ऐप को डाटा ट्रैक करने से रोक भी सकते हैं. इसी कड़ी में गूगल ऐप ने भी नया फीचर जोड़ने का ऐलान किया है जिसमें उपभोक्ता यह जान सकेंगे कि ऐप उनका कौन सा डाटा इकट्ठा या इस्तेमाल कर रहे हैं. इस फीचर को 2022 की दूसरी तिमाही में लॉन्च किया जाएगा. गूगल नए ऐप सबमिशन और ऐप अपडेट डेवलपर्स को यह जानकारी शामिल करने के लिए कहेगा कि उनके ऐप किस तरह के डाटा ऐप के जरिए एकत्र करते हैं और इनका इस्तेमाल कैसे किया जाता है.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ ऋद्धिमान चटर्जी कहते हैं, "ऐसे तमाम ऐप धड़ाधड़ तैयार हुए हैं. लेकिन उनमें से कहीं इनके जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों की सुरक्षा को लेकर कोई भरोसा नहीं दिया गया है. ऐसे में कोरोना महामारी खत्म होने के बाद उन आंकड़ों का क्या और कैसा इस्तेमाल होगा, इसकी आशंका जस की तस है. केंद्र सरकार को आंकड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए. ऐसे ऐप पर निगरानी के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन भी किया जा सकता है.” (dw.com)
अरब सागर में चक्रवात ताउते की चपेट में आए एक जहाज में सवार 26 लोगों की मौत हो गई है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या चक्रवात को लेकर चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया. इस लापरवाही के जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
भारतीय नौसेना के जहाज और ओएनसीजी के ऑफशोर जहाज ने बुधवार को अरब सागर से 26 शव बरामद किए हैं. चक्रवात ताउते की चपेट में आने के बाद ओएनजीसी के लिए काम करने वाला बार्ज पी-305 डूब गया था. लापता हुए 61 लोगों की तलाशी का अभियान जारी है. बार्ज पी-305 पर सवार 50 लोग अब भी लापता हैं और एक टगबोट वराप्रदा में सवार 11 लोगों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया है.
बुधवार को अधिकारियों ने बताया कि बरामद शवों को भारतीय नौसेना के जहाजों द्वारा मुंबई लाया गया है जो पिछले 48 घंटों से बचाव अभियान पर गए थे. बजरे पी-305 पर मौजूद सभी लोगों ने लाइफ जैकेट पहन रखी थी, इसलिए बचाव दल ने लापता लोगों के जीवित मिलने की उम्मीद अभी छोड़ी नहीं है. जैसे ही चक्रवात ताउते ने महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों को तबाह कर दिया और गुजरात की ओर बढ़ गया, बॉम्बे हाई फील्ड के अपतटीय विकास क्षेत्र में बार्ज पी-305 सोमवार देर रात डूब गया.
इस बार्ज में कुल 273 व्यक्ति सवार थे जिनमें 188 लोगों को बचा लिया गया है. इसके अलावा जीएएल कंस्ट्रक्टर पर 137 लोग फंसे थे जिन्हें बचा लिया गया है. बार्ज एसएस-3 पर 202 और सागर भूषण पर सवार 101 लोग सुरक्षित हैं. नौसेना के वेस्टर्न नवल कमांड के ऑपरेशन कमांडर एमके झा के मुताबिक तूफान के समय समुद्र में तेज लहरें उठ रही थीं जिस वजह से लाइफ राफ्ट पर बचाव दल सवार नहीं हो पाए.
कहां हुई चूक
उन्होंने कहा, "बचाए गए लोगों की आंखों में उम्मीद है लेकिन निश्चित रूप से वे व्यथित हैं... वे कई घंटों तक समुद्र की भयावह स्थिति से जूझते रहे." मुंबई में नौसेना के जहाज से उतरने के बाद बचाए गए एक व्यक्ति ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम भाग्यशाली हैं कि बच गए." उसने कहा, "भारतीय नौसेना हमारे लिए वरदान थी. वह ऐन वक्त पर पहुंच गई. हम बजरे से चिपके हुए थे और सौभाग्य से लाइफ जैकेट ने हमारी मदद की क्योंकि पानी हमारे सिर के ऊपर से गुजर रहा था."
अरब सागर में तूफान ताउते के आने को लेकर चेतावनी मौसम विभाग ने कई दिनों पहले ही जारी कर दी थी. इसके बावजूद ओएनजीसी के कई जहाज जिनमें 600 से अधिक लोग सवार थे. वे इस तूफान में फंस गए जिसकी वजह से कई लोगों की मौत हो गई. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने गलती और लापरवाही के लिए उच्च स्तरीय जांच के लिए समिति का गठन किया है.
बुधवार को जारी मंत्रालय के बयान के मुताबिक, "ओएनजीसी के कई जहाज, जिनमें 600 से ज्यादा लोग सवार थे, चक्रवात ताउते के दौरान अपतटीय क्षेत्रों में फंसे हुए थे. फंसे होने, प्रवाहित होने और उसके बाद की घटनाओं के कारण कई लोगों की जान चली गई." इस समिति को जांच रिपोर्ट एक महीने के अंदर पेश करनी है. समिति को जिन विषयों पर जांच करना है उसमें एक विषय यह भी है कि क्या मौसम विभाग और अन्य एजेंसियों द्वारा दी गई चेतावनियों पर पर्याप्त रूप से विचार किया गया और उन पर कार्रवाई की गई. (dw.com)