राष्ट्रीय
बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवाती तूफ़ान यास बुधवार की सुबह तक़रीबन नौ बजे उत्तरी ओडिशा के समुद्र तट और उससे सटे पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों से टकरा गया.
इस चक्रवाती तूफ़ान में कम से कम चार लोगों के मारे जाने की अब तक पुष्टि हुई है. इसमें से तीन की मौत ओडिशा और एक की मौत पश्चिम बंगाल में हुई है.
स्थानीय मीडिया के हवाले से समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया है कि कियोंझर और बालासोर में दो लोगों की मौत पेड़ गिरने से हुई है. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है.
वहीं, मयूरभंज ज़िले में घर ढहने से एक बुज़ुर्ग महिला की मौत हुई है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बताया है कि उनके राज्य में एक व्यक्ति की मौत हुई है जिसे शुरुआत में बचा लिया गया था लेकिन बाद में उसकी मौत हो गई.
कब टकराया तूफ़ान
सुबह 10.30 से 11.30 बजे के बीच यह बालासोर पहुँचा जहां पर हवा की रफ़्तार 130-140 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच थी. मौसम विभाग के मुताबिक़, कुछ इलाक़ों में हवा की रफ़्तार 155 किलोमीटर प्रति घंटा थी और कुछ जगहों पर समुद्र में दो मीटर से ऊंची लहरें उठ रही थीं.
मौसम विज्ञानियों ने बताया कि चक्रवाती तूफ़ान यास का असर दोपहर 1.30 बजे तक था. इसके बाद यह एक तूफ़ान में तब्दील होकर झारखंड की ओर बढ़ गया है जहां पर इसके आधी रात तक पहुँचने का अनुमान है.
भुवनेश्वर में मौसम विभाग केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक उमाशंकर दास ने समाचार एजेंसी एएनआई से बताया था कि तूफ़ान ओडिशा से आगे बढ़ चुका है लेकिन मछुआरों को समुद्र में आज पूरे दिन तक जाने के लिए मना किया गया है.
उन्होंने बताया कि यह गुज़र चुका है लेकिन कल तक बारिश होगी.
पश्चिम बंगाल और ओडिशा प्रभावित
तूफ़ान के कारण ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्य ख़ासे प्रभावित हुए हैं. ओडिशा में बालासोर, भद्रक, जगतसिंहपुर और केंद्रपाड़ा प्रभावित हुए हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल के दक्षिणी और उत्तरी 24 परगना, दिगहा, पूर्वी मिदनापुर और नंदीग्राम पर ख़ासा असर पड़ा है
कोलकाता के 13 निचले इलाक़ों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हुए हैं.
ओडिशा ने अपने यहां पर 5.8 लाख लोगों को और पश्चिम बंगाल ने 15 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा था.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा है कि चक्रवाती तूफ़ान यास के कारण राज्य में तीन लाख से अधिक घर तबाह हो गए हैं और इससे एक करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं और 15 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वो चक्रवाती तूफ़ान से प्रभावित पूर्वी मिदनापुर, दक्षिणी और उत्तरी 24 परगना का शुक्रवार को दौरा करेंगी.
उन्होंने बताया है कि प्रभावित इलाक़ों के लिए 10 करोड़ रुपये की राहत सामग्री भेजी गई है.
ज़मीन से पेड़ उखड़े
ओडिशा के स्पेशल रिलीफ़ कमिश्नर पीके जेना ने कहा है कि बालासोर और भद्रक ज़िलों के कई गांवों में समुद्र का पानी घुस गया है और स्थानीय लोगों की मदद से प्रशासन इसे बाहर निकालने की कोशिशें कर रहा है.
उन्होंने बताया कि जगतसिंहपुर, केंद्रपाड़ा और जजपुर जैसे ज़िलों में बिजली को वापस जोड़ने का काम शुरू हो चुका है.
वहीं, ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि यास तूफ़ान आने के बाद बालासोर के तटीय गांवों में दो लोगों की मौत हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई नाव, दुकानें और घर तबाह हो गए हैं और कई पेड़ ज़मीन से उखड़ गए हैं. ओडिशा ने पाँच लाख से अधिक लोगों को राहत शिविरों में भेजा है और लोगों से कोरोना महामारी के कारण सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए कहा गया है.
चक्रवाती तूफ़ान अब धीमा होकर झारखंड की ओर बढ़ गया है लेकिन राज्य को हाई अलर्ट पर रखा गया है. ऐसा अनुमान है कि यह तूफ़ान वहां आधी रात तक पहुँचेगा.
मौसम विभाग के मुताबिक़, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां ज़िलों में भारी बारिश की आशंका है जहां पर 92-117 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से हवाएं चल सकती हैं.
राज्य के पुलिस प्रमुख नीरज सिन्हा ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है, "हम स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं और हमने बचाव टीम का गठन कर दिया है."
रेल और हवाई यातायात पर असर
यास के कारण हवाई और रेल यातायात पर भी ख़ास असर पड़ा है. पश्चिम बंगाल में कोलकाता और दुर्गापुर तो वहीं ओडिशा में भुवनेश्वर, झारसुगुडा और राउरकेला में उड़ानों को रद्द किया गया है.
एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने बताया है कि मौसम की समीक्षा के बाद उड़ानों को लेकर फ़ैसला लिया जाएगा तब तक एयरपोर्ट को मरम्मत का कम करने को कहा गया है.
वहीं, भारतीय रेलवे ने कहा है कि 29 मई तक 30 पैसेंटर ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है. उत्तर-पूर्व फ़्रंटियर रेलवे ने बयान जारी कर कहा है कि दक्षिण की ओर जाने वाली 38 ट्रेनें और कोलकाता जाने वाली यात्री ट्रेनों को 24 से 29 मई तक रद्द किया गया है.
ओडिशा और पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफ़ान हलका पड़कर आगे ज़रूर बढ़ गया है लेकिन दोनों ही राज्यों के कुछ इलाक़ों में आज और कल भारी बारिश की आशंका है.
-शरद त्रिपाठी
सिद्धार्थ नगर. जिले के बढ़नी प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में वैक्सीनेशन को लेकर भारी लापरवाही सामने आई है. बढ़नी प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में 20 ग्रामीणों को पहली डोज कोविडशील्ड की लगाने के बाद दूसरी डोज कोवैक्सीन की लगा दी गई. सीएमओ संदीप चौधरी ने इस पूरे मामले में जांच के आदेश दिए हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की बात कही है. बढ़नी प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में औदही कला गांव के 20 लोगों को पहली डोज कोविडशील्ड की दी गई लेकिन 14 मई को दूसरी डोज कोवैक्सीन की दी गई. हालांकि जिन लोगों को वैक्सीन का ‘कॉकटेल’ दिया गया, वो सब ठीक है.
मीडिया से बात करते हुए सिद्धार्थ नगर सीएमओ संदीप चौधरी ने कहा, “वैक्सीन के 'कॉकटेल' की किसी भी प्रकार की गाइडलाइन भारत सरकार की ओर से जारी नहीं की गई है. इसलिए ये मामला लापरवाही का है. किसी भी व्यक्ति को एक ही वैक्सीन के दोनों डोज दिए जाने चाहिए."
सीएमओ संदीप चौधरी ने स्वीकार किया कि लगभग 20 लोगों को स्वास्थ्यकर्मियों ने लापरवाही बरतते हुए 'कॉकटेल वैक्सीन' लगा दी है. हमारी टीम इन सभी लोगों पर नजर बनाए हुए है. अभी तक किसी व्यक्ति में कोई समस्या नहीं देखने को नहीं मिली है. इस गंभीर लापरवाही के लिए हमने जांच टीम बना दी है. हमारे पास जांच रिपोर्ट आ गई है. इसमें जो भी विभागीय कर्मचारी दोषी हैं, उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है, जिन पर आरोप सिद्ध हो चुके हैं. उन पर विभागीय कार्यवाही की जा रही है.
उन्होंने आगे कहा, "हमारी टीम ने गांव का दौरा किया था और उन लोगों से बात की, जिन्हें वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज अलग-अलग दी गई. सभी लोग ठीक हैं और फिलहाल उन्हें किसी भी तरह की कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं है. हालांकि पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं."
इसी बीच, औदही कला गांव के एक ग्रामीण रामसूरत ने कहा, "मुझे 1 अप्रैल को पहली डोज कोविडशील्ड की दी गई जबकि 14 मई को दूसरी डोज कोवैक्सीन की दी गई. किसी ने मुझसे यह नहीं पूछा कि मुझे पहली डोज कौनसी लगी थी. मुझे कोविडशील्ड के बजाय कोवैक्सीन दी गई. मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन डर जरूर है कि मेरे शरीर के भीतर कुछ हो ना जाए. अभी तक कोई भी हमसे पूछताछ करने नहीं आया है. मेरे गांव में 20 लोगों को गलत वैक्सीन दी गई."
लखनऊ, 26 मई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी ने सिद्धार्थ नगर स्थित सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया है। द्विवेदी ने बुधवार को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया और कुलपति डॉ. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है।
इस्तीफे को इस मुद्दे पर हंगामे को शांत करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि अरुण द्विवेदी की सिद्धार्थ यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति को लेकर विवाद छिड़ गया था।
अरुण को ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे से मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, साइकोलॉजी विषय के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के दो पद थे।
डॉ. हरेंद्र शर्मा को ओबीसी कोटे से, डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य उम्मीदवार) श्रेणी में नियुक्त किया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि कुलपति सुरेंद्र दुबे का कार्यकाल 21 मई को समाप्त हो रहा था, लेकिन सरकार ने एक दिन पहले 20 मई को उनका कार्यकाल नियमित कुलपति की नियुक्ति तक बढ़ा दिया है।
डॉ. अरुण द्विवेदी को पिछले सप्ताह सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा नियुक्ति पत्र दिया गया था।
कुलपति डॉ. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि उन्हें लगभग 150 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 10 को मेरिट के आधार पर शॉर्टलिस्ट किया गया था।
कुलपति ने संवाददाताओं से कहा, दस उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था और अरुण द्विवेदी दूसरे स्थान पर थे। हमें मंत्री के साथ उनके संबंधों के बारे में जानकारी नहीं थी।
उत्तर प्रदेश के मंत्री सतीश द्विवेदी ने अपने भाई की नियुक्ति के लिए किसी भी तरह के प्रभाव से इनकार किया है और कहा कि उनका भाई स्वतंत्र रूप से रहता है।
इस बीच, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया था कि हजारों शिक्षक अपनी नौकरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं और राज्य के शिक्षा मंत्री ने आपदा में अवसर को भुनाया है और अपने भाई के लिए एक नौकरी का इंतजाम किया है।
उन्होंने इस घटना को समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के साथ मजाक करार दिया।
प्रियंका ने यह भी पूछा कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मामले का संज्ञान लेंगे और कार्रवाई करेंगे।
नई दिल्ली, 26 मई | 'अत्यंत भीषण' चक्रवाती तूफान 'यास' ने बंगाल की खाड़ी में पहुंचकर लैंडफॉल की प्रक्रिया पूरी की और यह कमजोर होकर 'गंभीर चक्रवाती' तूफान में तब्दील हो गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के राष्ट्रीय मौसम पूवार्नुमान केंद्र ने कहा कि 'यास' बुधवार को दोपहर 12.30 बजे उत्तरी तटीय ओडिशा में अक्षांश 21.45 और देशांतर 86.8 ओई के पास केंद्रित हो गया है। वह बालासोर से लगभग 15 किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण में ओडिशा में धामरा और बालासोर से होकर गुजर रहा है। अब वह गंभीर चक्रवाती तूफान में बदल गया है।
अगले छह घंटों के दौरान इसके उत्तर-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने और चक्रवाती तूफान में बदलकर धीरे-धीरे कमजोर होने की संभावना है। चक्रवात ने सुबह 9 बजे के आसपास लैंडफॉल प्रक्रिया शुरू की थी।
भुवनेश्वर के मौसम विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक उमाशंकर दास ने कहा, "चक्रवात यास ने धरती को छूने की प्रक्रिया पूरी कर ली है। प्रभावित इलाकों में बारिश कल तक जारी रहेगी। मछुआरों को सलाह दी जाती है कि वे कल सुबह तक उद्यम न करें, क्योंकि समुद्र की स्थिति खराब होने वाली है।"
आईएमडी के दोपहर 1.30 बजे की रिपोर्ट के अनुसार, चक्रवात इस समय अपने केंद्र के पास तेज है और लगभग 130-140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से 155 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से हवाएं ला रहा है।
चक्रवात पिछले छह घंटों के दौरान लगभग 13 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से उत्तर-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ा।
आईएमडी के पूवार्नुमान के अनुसार, तूफान की हवा की गति धीरे-धीरे घटकर अगले तीन घंटों के दौरान 90-100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से 110 किमी प्रतिघंटे और बाद के छह घंटों के दौरान 60-70 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से 80 किमी प्रतिघंटे हो जाएगी।
यह तूफान अगले 24 घंटों के दौरान ओडिशा में अधिकांश स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश ला रहा है, कुछ स्थानों पर भारी से बहुत भारी बारिश हो रही है, अगले 24 घंटों के दौरान राज्य के उत्तरी आंतरिक भाग में अलग-अलग स्थानों पर अत्यधिक भारी बारिश हो रही है और अलग-अलग स्थानों पर भारी से बहुत भारी बारिश हो रही है। अगले 12 घंटों के दौरान तटीय क्षेत्रों में।
आईएमडी ने कहा कि खगोलीय ज्वार से 1-2 मीटर की ऊंचाई वाली ज्वार की लहरें अगले 2-3 घंटों के दौरान बालासोर, भद्रक, मेदिनीपुर और दक्षिण 24 परगना जिलों के निचले इलाकों में जलमग्न होने की संभावना है और उसके बाद धीरे-धीरे कम हो सकती है।
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर, झारग्राम, बांकुरा में छिटपुट स्थानों पर भारी से बहुत भारी वर्षा के साथ अधिकांश स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा और दक्षिण 24 परगना, पुरुलिया, नादिया, मुर्शिदाबाद, पूर्वी बर्धमान, हावड़ा, हुगली, कोलकाता में छिटपुट स्थानों पर भारी वर्षा। बुधवार को उत्तर 24 परगना, हल्दिया, दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिले।
यह चक्रवात बुधवार और गुरुवार को झारखंड में छिटपुट स्थानों पर भारी से बहुत भारी वर्षा और अत्यधिक भारी वर्षा के साथ अधिकांश स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा ला रहा है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | कोरोना महामारी के मद्देनजर एक बार फिर जेईई की परीक्षा स्थगित करने का फैसला किया गया है। हालांकि इस बार जेईई एडवांस की परीक्षाएं स्थगित की गई हैं। दरअसल जेईई मेंस की परीक्षाएं अपने नियत समय पर नहीं हो पाई, इसी के चलते 3 जुलाई को होने वाली जेईई एडवांस की परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर ने जेईई एडवांस 2021 की परीक्षाएं स्थगित करने की घोषणा की है। जेईई मेंस की परीक्षाएं इसी महीने 24 से 28 मई के बीच होनी थी। देशभर में कोरोना संक्रमण की मौजूदा स्थिति को देखते हुए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने फिलहाल जेईई मेंस की परीक्षाएं स्थगित करने का ऐलान कर दिया है।
इससे पहले अप्रैल महीने में होने वाली जेईई मेंस की परीक्षाएं भी स्थगित की जा चुकी हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने मौजूदा वर्ष में जेईई मेंस की परीक्षाएं 4 बार लेने का निर्णय लिया था।
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते चार बार जेईई मेंस का आयोजन करना था। इसमें अभ्यर्थी चारों परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं। उनके सबसे बेहतर नंबर जेईई एडवांस के लिए माने जाएंगे। लेकिन अभी तक जेईई मेंस के चार सत्रों में से केवल दो सत्रों की ही परीक्षा ली जा सकी है। यही कारण है कि अब जेईई एडवांस की परीक्षा भी स्थगित करनी पड़ी है।
एनटीए की वरिष्ठ परीक्षा निदेशक डा साधना पराशर ने बताया कि परीक्षा का पहला सत्र फरवरी में आयोजित किया गया। इसमें 6 लाख 20 हजार से अधिक छात्र शामिल हुए। इसके बाद दूसरा सत्र मार्च माह में आयोजित किया गया। इस परीक्षा में पांच लाख 56 हजार से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया। परीक्षा का तीसरा सत्र 27 से 30 अप्रैल के बीच आयोजित किया जाना था लेकिन कोरोना की मौजूदा लहर को देखते हुए इसे स्थगित करना पड़ा। कोरोना के ही कारण 24,25,26,27 और 28 मई को पहले से तय जेईई मेंस के चौथे सत्र की परीक्षाएं भी स्थगित की गई हैं।
शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक स्थिति सामान्य होने पर जब भी परीक्षा ली जाएगी तो उस से 15 दिन पहले छात्रों को परीक्षा की तारीख के बारे में अवगत कराया जाएगा।
मार्च में हुई जेईई मेन परीक्षा सीजन 2 के नतीजे घोषित किए जा चुके हैं। यह परीक्षाएं पहली बार क्वालालंपुर और लागोस जैसे विदेशी शहरों में भी आयोजित की गई थी। भारत सरकार के सहयोग से इन परीक्षाओं को 12 विदेशी शहरों और 334 भारतीय शहरों में आयोजित किया गया था।
गौरतलब है कि कोविड की दूसरी लहर के कारण केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने मई, 2021 के महीने में निर्धारित सभी ऑफलाइन परीक्षाओं को स्थगित करने का आग्रह किया है।
यह निर्णय देशभर के सभी केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों पर लागू होगा। इसके अलावा ऐसे उच्च शिक्षण संस्थानों को भी ऑफलाइन परीक्षाएं स्थगित करनी होगी जिनको केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।
केंद्रीय वित्त पोषित संस्थानों के सभी प्रमुखों को संबोधित एक पत्र में उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने इन संस्थानों से मई, 2021 के महीने में होने वाली सभी ऑफलाइन परीक्षाओं को स्थगित करने का आग्रह किया है। हालांकि ऑनलाइन परीक्षाएं जारी रह सकती हैं।(आईएएनएस)
गुरुग्राम, 26 मई | साइबर सिटी गुरुग्राम में हर गुजरते दिन के साथ ब्लैक फंगस के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जिला स्वास्थ्य विभाग ने पिछले 24 घंटों के दौरान संक्रमण के 14 नए मामलों की पुष्टि की है। इसके साथ ही कुल आंकड़ा 170 हो गया है। इनमें गुरुग्राम के अलावा बाहरी जिलों और राज्यों में रहने वाले मरीज शामिल हैं, जिनका इलाज जिला स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जिले के विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है।
गुरुग्राम में ब्लैक फंगस के कारण चार संदिग्ध मौतें दर्ज की गई हैं। हालांकि जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से इनमें से किसी की भी पुष्टि नहीं हुई है।
गुरुग्राम के पारस अस्पताल के ईएनटी विभाग के प्रमुख डॉ. अमिताभ मलिक ने कहा, यह संक्रमण कोविड-19 से जूझ रहे कई मधुमेह रोगियों और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को हो रहा है।
डॉ. मलिक ने कहा, जब एक मधुमेह रोगी को कोरोना होता है, तो उसे स्टेरॉयड दिया जाता है, जो प्रतिरक्षा को कमजोर करता है और शर्करा के स्तर को बढ़ाता है। यह संक्रमण का एक नया रूप नहीं है। इसमें वे लोग शामिल हैं, जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं या वे ऐसी दवाएं लेते हैं, जो शरीर की रोगाणुओं और बीमारी से लड़ने की क्षमता को कम करती हैं। यह आमतौर पर मधुमेह, कैंसर या अंग प्रत्यारोपण वाले लोगों को प्रभावित करता है।
डॉक्टरों के अनुसार, इस बीमारी से जुड़े सामान्य लक्षण सिरदर्द, चेहरे में दर्द, नाक बंद होना, आंखों की रोशनी कम होना या आंखों में दर्द, गालों और आंखों में सूजन है।
हालांकि, जिले में अब तक व्हाइट फंगस का कोई मामला सामने नहीं आया है।
कोलंबिया एशिया अस्पताल के ईएनटी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. शशांक वशिष्ठ ने कहा कि व्हाइट फंगस कैंडिडा नाम का एक फंगस है, जो सफेद रंग का होता है। यह भी उन लोगों को प्रभावित करता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को घोषणा की कि स्पुतनिक वी के निर्माता रूसी एंटी-कोविड वैक्सीन की आपूर्ति दिल्ली को करने के लिए सहमत हो गए हैं, लेकिन इसकी मात्रा अभी तय नहीं की गई है।
उन्होंने कहा, '' हम स्पुतनिक वी के निमार्ताओं के संपर्क में हैं। उन्होंने आश्वासन दिया है कि वे हमें वैक्सीन देंगे, लेकिन मात्रा अभी तय नहीं की गई है। हमारे अधिकारियों और वैक्सीन निमार्ताओं के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को भी मुलाकात की।''
केजरीवाल ने बुधवार को मीडियाकर्मियों को बताया कि 18-44 आयु वर्ग के लिए टीकाकरण प्रक्रिया को पिछले चार दिनों से निलंबित कर दिया गया है, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि दिल्ली को कोविड रोधी जैब्स की अगली आपूर्ति कब की जाएगी।
उन्होंने कहा कि 45 और उससे अधिक आयु समूहों के लिए कोवैक्सिन स्टॉक भी समाप्त हो गया है और सरकारी टीकाकरण केंद्रों पर केवल कोविशील्ड खुराक दी जा रही है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राजधानी में म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) संक्रमण लगातार बढ़ रहा है और बुधवार तक 15 से अधिक सरकारी और निजी अस्पतालों में इससे जूझ रहे 620 लोगों का इलाज किया जा रहा है।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 26 मई | एक स्थानीय अदालत ने बुधवार को मलयालम अभिनेता उन्नी देव को उनकी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। दिवंगत अभिनेता राजन पी. देव के बेटे उन्नी देव को मंगलवार को उनकी पत्नी प्रियंका द्वारा 12 मई को वट्टापारा स्थित अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या करने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस के अनुसार, कुछ मलयालम फिल्मों में अभिनय कर चुके उन्नी देव ने अपनी पत्नी पर दबाव डालने की बात कबूल की है।
नेदुमनगड पुलिस टीम मंगलवार को एनार्कुलम जिले में उनके घर पहुंची और यह सुनिश्चित करने के बाद कि वह कोविड निगेटिव थे, उन्हें हिरासत में ले लिया। उन्हें राज्य की राजधानी लाया गया, जहां उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
वट्टापारा पुलिस स्टेशन ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया था। उन्होंने कहा कि अपनी मौत से एक दिन पहले उन्होंने घरेलू प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई थी।
बाद में उसके भाई ने भी उन्नी के घर पर हुए दुर्व्यवहार की ओर इशारा करते हुए एक याचिका दायर की।
स्थानीय पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी थी, लेकिन उन्नी के कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद यह अटक गई।
उन्नी के पिता देव बेहद लोकप्रिय फिल्म अभिनेता थे। 200 से अधिक फिल्मों में अभिनय करने के बाद 2009 में उनका निधन हो गया था।
उन्नी और प्रियंका ने 2019 में प्रेम विवाह किया था। प्रियंका शादी के बाद एक निजी स्कूल में फिजिकल शिक्षा शिक्षक के रूप में कार्यरत थीं।
परिजनों के मुताबिक शुरू में शादी ठीक चल रही थी। हालांकि, कुछ समय बाद कई मुद्दे सामने आने लगे थे।(आईएएनएस)
मुंबई, 26 मई । भारतीय शेयर बाजार में बुधवार को बीएसई सेंसेक्स 51,000 अंक के ऊपर जाकर बंद हुआ।
दिन के कारोबार में आईटी शेयरों में अच्छी खरीदारी देखने को मिली। हालांकि मेटल शेयरों में बिकवाली ने बढ़त को सीमित कर दिया।
सेंसेक्स अपने पिछले 50,637.53 अंक से 379.99 अंक या 0.75 प्रतिशत की बढ़त के साथ 51,017.52 पर बंद हुआ।
यह 50,899.58 पर खुला था और 51,072.61 के इंट्रा-डे हाई और 50,620.45 के निचले स्तर को छू गया था।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 50 अपने पिछले बंद से 15,301.45 अंक या 93.00 अंक या 0.61 प्रतिशत पर बंद हुआ।
सेंसेक्स पर सबसे ज्यादा लाभ पाने वाले शेयरों में बजाज फिनसर्व, बजाज फाइनेंस और इंफोसिस शामिल थे जबकि सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले शेयरों में पावर ग्रिड, टाटा स्टील और एनटीपीसी थे।(आईएएनएस)
जयपुर, 26 मई | 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद पश्चिम बंगाल में व्यापक हिंसा की रिपोर्ट के विरोध में, राजस्थान के कुल 108 सेवानिवृत्त अधिकारियों, जिनमें एक पूर्व कुलपति और वरिष्ठ रैंक के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं, उन्होंने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को एक पत्र भेजा है। इन लोगों ने राज्यपाल कलराज मिश्र के जरिये राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नाम भेजे ईमेल के माध्यम से एक ज्ञापन देकर मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। आईएएनएस से बात करते हुए, राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी, जेपी सिंघल ने कहा, '' बंगाल में बड़े पैमाने पर हिंसा को देखकर हमारे दिलों ने हमें चुप नहीं बैठने दिया। लोगों की भावनाए आहत हुई है और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर सवाल उठ रहा है।''
"कोई तो होगा जो इस हिंसा के खिलाफ आकर बोलेगा और इसलिए हम, समान विचारधारा वाले लोगों ने, राष्ट्रपति के नाम से राज्यपाल को ज्ञापन भेजा, जिसमें उनसे मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है।"
हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व आईपीएस अधिकारी के.एल. बैरवा, वरिष्ठ अधिवक्ता, सेवानिवृत्त सेना और पुलिस कर्मी, एससी एसटी समुदाय के प्रतिनिधि, पद्मश्री पुरस्कार विजेता, खिलाड़ी और पत्रकार है।
ज्ञापन में पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 का खुलेआम उल्लंघन करने के अलावा लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को ठेस पहुंची है।
यहां तक कि गरिमा के साथ जीने के अधिकार का भी व्यापक रूप से उल्लंघन किया गया है।
ज्ञापन में राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए हिंसा को रोकने के लिए संवैधानिक प्रावधानों के तहत तत्काल कदम उठाने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देने की मांग की गई।
ज्ञापन में हिंसा प्रभावित राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती के अलावा, हिंसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे और सुरक्षा की भी मांग की गई है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | शिवसेना लीडर प्रियंका चतुर्वेदी ने बुधवार को केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि नए आईटी नियमों ने जवाबदेही मांगने के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने के लिए व्यक्तियों के सभी गोपनीयता मानदंडों को दरकिनार कर दिया है, जो नागरिकों के लिए भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धताओं में शामिल निजता के मूल अधिकार का हनन है।
प्रियंका ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अदालतें इस मुद्दे पर 'बारीक और संतुलित निर्णय' लेंगी।
राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हर देश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही तय करने के लिए अपना कानून तंत्र बनाने के लिए बाध्य है।"
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षो में हमने देखा है कि कैसे ये प्लेटफॉर्म अधिकारियों के प्रति जवाबदेह हुए बिना प्रचार, फर्जी खबरों और हेरफेर के लिए उपकरण बन गए हैं।
प्रियंका ने कहा, "ये मंच यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर जैसे क्षेत्रों द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करते हैं। अमेरिका ने चुनाव परिणामों में उनकी भूमिका को समझने के लिए सार्वजनिक रूप से प्रसारित पूछताछ में मार्क जुकरबर्ग को भी बुलाया था। व्हाट्सएप भारत को एक बाजार के रूप में देखते हुए मुनाफाखोरी के लिए भारतीय नागरिकों के सभी गोपनीयता मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है।"
शिवसेना नेत्री ने कहा, "हालांकि, नए आईटी नियमों ने जवाबदेही मांगने के बजाय इन प्लेटफार्मो को नियंत्रित करने के लिए व्यक्तियों के सभी गोपनीयता मानदंडों को दरकिनार कर दिया है, अपने नागरिकों के लिए भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धताओं में निहित गोपनीयता के मूल अधिकार का हनन किया है। उम्मीद है कि इस मुद्दे पर अदालतें एक सूक्ष्म और संतुलित फैसला लेंगी।"
उनकी टिप्पणी फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप द्वारा बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर करने के बाद आई है, जिसमें कहा गया है कि उपयोगकर्ता की गोपनीयता उसके डीएनए में है और चैट को 'ट्रेस' करने के लिए मैसेजिंग एप की जरूरत लोगों के निजता के अधिकार को कमजोर करती है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो को 25 मई तक सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 का पालन करने या सख्त कार्रवाई का सामना करने के लिए कहा था।
टूलकिट विवाद को लेकर इस सप्ताह की शुरुआत में महामारी के दौरान ट्विटर, व्हाट्सएप, फेसबुक और केंद्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति में पुलिस ने ट्विटर कार्यालयों पर छापा मारा।
व्हाट्सएप अब अदालत में चला गया है, क्योंकि भारत में बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए नए आईटी (मध्यस्थ) नियमों का पालन करने की समय-सीमा मंगलवार को खत्म हो गई है।
व्हाट्सएप ने कहा कि नए नियम यूजर की निजता का हनन करते हैं।
व्हाट्सएप ने 15 मई से अपनी विवादास्पद उपयोगकर्ता गोपनीयता नीति को लागू करने के साथ आगे बढ़ते हुए कहा है कि "हम कम से कम आगामी पीडीपी (व्यक्तिगत डेटा संरक्षण) कानून लागू होने तक इस दृष्टिकोण को बनाए रखेंगे।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | केंद्र सरकार ने राज्यों को ब्लैक फंगस(म्यूकोरमायकोसिस) के उपचार में इस्तेमाल होने वाले एम्फोटेरिसिन-बी दवा की 29,250 शीशियां दीं हैं। यह जानकारी केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने दी है। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बताया कि म्यूकोरमायकोसिस के उपचार में उपयोग की जाने वाली एम्फोटेरिसिन - बी दवा की 29,250 अतिरिक्त शीशियां आज सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित कर दी गई हैं ।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इससे पहले 24 मई को एम्फोटेरिसिन-बी की अतिरिक्त 19,420 शीशियों का आवंटन किया गया था और 21 मई को देश भर में 23,680 शीशियों की आपूर्ति की गई थी।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | भारत के सबसे भरोसेमंद स्मार्टफोन ब्रांड आईटेल ने बुधवार को एक रणनीतिक पहल की घोषणा की, जहां आईटेल ए 23 प्रो स्मार्टफोन, तकनीकी रूप से उन्नत सुविधाओं के साथ सबसे किफायती 4 जी डिवाइस रिलायंस डिजिटल स्टोर, माईजियो स्टोर्स पर उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होगा।
आकर्षक कीमत पर लॉन्च किया गया यह स्मार्टफोन इसके अलावा रिलायंसडिजीटल डॉट इन और 2 लाख से अधिक खुदरा स्टोर पर भी उपलब्ध होगा।
इस पहल के साथ, आईटेल और जियो यूजर्स को आईटेल ए 23 प्रो 3,899 रुपये की आकर्षक कीमत पर मिलेगा, जिसकी कीमत पहले 4,999 रुपये थी। इस प्रकार सभी उपभोक्ताओं के लिए प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण का अवसर मिलता है। आईटेल ए23 प्रो पूरे भारत में 1 जून से बिक्री के लिए उपलब्ध होगा।
इस ऑफर के तहत जियो नेटवर्क पर डेटा कनेक्टिविटी मिलेगी। जियो पर आईटेल ए23 प्रो ग्राहक 3,000 रुपये के लाभ के हकदार होंगे। लाभ में 249 रुपये और उससे अधिक के चुनिंदा प्रीपेड रिचार्ज पर भागीदारों से 3,000 रुपये के वाउचर शामिल हैं। कंपनी ने एक बयान में कहा कि यह ऑफर नए के साथ-साथ मौजूदा जियो सब्सक्राइबर्स पर भी लागू होगा।
ट्रांशन इंडिया के सीईओ अरिजीत तालपात्रा ने एक बयान में कहा, '' आईटेल डिजिटल विकास की दिशा में भारत के अभियान में तेजी लाने के लिए प्रौद्योगिकी का लोकतंत्रीकरण करके इसे सुलभ और किफायती बनाने की दिशा में काम कर रहा है। यह रणनीतिक पहल भारतीय नागरिकों को डिजिटल स्वतंत्रता प्रदान करने के आईटेल के ²ष्टिकोण (विजन) के अनुरूप है। ''
उन्होंने कहा, '' हम अत्यधिक आशावादी हैं कि यह जादुई पेशकश, तकनीकी रूप से उन्नत फीचर-आधारित डिवाइस आईटेल ए23 प्रो को जोड़ती है, जो कि जियो द्वारा निर्बाध 4जी नेटवर्क कनेक्टिविटी के साथ पूरक है। भारत के लिए डिजिटल सेवाओं का एक नया आयाम और प्रवेश स्तर के स्मार्टफोन सेगमेंट बनाने में व्यवधान लाएगा। यह सभी के लिए सुलभ है। ''
इस पहल का लक्ष्य विशाल आकांक्षी फीचर फोन ऑडियंस पर लक्षित है, जो पेशकश, किफायती उत्पाद प्रस्ताव और निर्बाध 4जी हाई-स्पीड नेटवर्क कनेक्टिविटी द्वारा डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए है।
टियर 3 और नीचे के बाजारों के लिए बेहतर सुविधाओं के साथ डिजाइन किया गया, आईटेल ए23 में 480 गुणा 854 पिक्सल के स्क्रीन रिजॉल्यूशन के साथ 12.7 सेमी (5-इंच) ब्राइट डिस्पले है और यह एंड्रॉएड 10.0 (गो एडिशन) पर चलता है।
डिवाइस क्वाड-कोर, 1.4 गीगाहट्र्ज प्रोसेसर द्वारा संचालित है, जिसे 1 जीबी रैम और 8 जीबी रोम के साथ जोड़ा गया है, जिसे 32 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है।
बैटरी के मोर्चे पर बात की जाए तो ए 23 प्रो में 2400 एमएएच की बैटरी दी गई है। फोन एक बड़ी स्क्रीन के साथ आता है, जो एक अधिक प्रभावशाली विजुअल अनुभव को सक्षम करने के लिए शानदार विजुअल बड़ी ²ष्टि लाता है।
डिवाइस में 2 मेगापिक्सल का रियर कैमरा प्लस सॉफ्ट फ्लैश के साथ वीजीए सेल्फी कैमरा है।
कंपनी ने कहा कि ए 23 प्रो दो सिम स्लॉट के साथ आता है, जिसमें कम से कम एक स्लॉट डेटा कार्यक्षमता केवल जियो सिम के साथ उपलब्ध है और दूसरा स्लॉट गैर-डेटा गतिविधियों के लिए अन्य ऑपरेटरों के लिए कार्यात्मक है।
यह डिवाइस स्मार्ट फेस अनलॉक फीचर से लैस है, जो यूजर्स के फोन को सुरक्षित रखकर उनकी सुविधा में इजाफा करेगा।
इसमें एक चमकदार ग्रेडिएंट टोन बैक कलर फिनिश है और यह दो रंग विकल्पों सैफायर ब्लू और लेक ब्लू में उपलब्ध है।
फोन एक एडेप्टर, यूएसबी केबल, बैटरी, यूजर मैनुअल और एक वारंटी कार्ड के साथ मिलेगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 मई | कोरोना महामारी के बीच, बुधवार को एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि चार में से तीन से अधिक युवा भारतीय कामकाजी लोगों का मानना है कि नियोक्ताओं को कर्मचारियों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए सप्ताह में चार दिन काम करने का अवसर देना चाहिए। मिलेनियल्स (जन्म 1981 से 1996) और जेनरेशन जेड (1997 के बाद पैदा हुए) श्रमिकों से बने, 'बॉर्न डिजिटल' पूरी तरह से डिजिटल दुनिया में विकसित होने वाली पहली पीढ़ी है। ये अब अधिकांश वैश्विक कार्यबल के लिए जिम्मेदार है।
डेस्कटॉप वर्चुअलाइजेशन लीडर सिट्रिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 'बॉर्न डिजिटल' कर्मचारी (76 प्रतिशत) महामारी के बाद रिमोट या हाइब्रिड वर्क मॉडल को बनाए रखना पसंद करते हैं।
भारत में 'बॉर्न डिजिटल' कर्मचारियों में से लगभग 86 प्रतिशत का मानना है कि महामारी ने दिखाया है कि उनके संगठन को 16 प्रतिशत व्यापारिक नेताओं की तुलना में डिजिटल प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।
सिट्रिक्स के कार्यकारी उपाध्यक्ष और मुख्य लोग अधिकारी डोना किमेल ने कहा, "ये युवा कर्मचारी पिछली पीढ़ियों से इस मायने में अलग हैं कि उन्होंने केवल तकनीकी संचालित दुनिया को ही जाना है ।"
किमेल ने एक बयान में कहा, "अपनी भविष्य की व्यावसायिक सफलता को बढ़ाने के लिए, कंपनियों को अपने मूल्यों, करियर की आकांक्षाओं और कार्यशैली को समझना चाहिए और अपने विकास में निवेश करना चाहिए।"
भारत में 'बॉर्न डिजिटल' के 90 फीसदी लोगों को उम्मीद है कि वैश्विक औसत 74 फीसदी की तुलना में नियोक्ताओं को पारिवारिक प्रतिबद्धताओं की बेहतर समझ होगी।
साथ ही, भारत में 92 प्रतिशत 'बॉर्न डिजिटल' कामगारों का कहना है कि वे अपने करियर में आगे बढ़ने के साथ साथ कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देंगे।
सिट्रिक्स ने निकर्ष में दिखाया है कि भारत में युवा कार्यकर्ता करियर स्थिरता और सुरक्षा (94 प्रतिशत), अतिरिक्त योग्यता, प्रशिक्षण, या पुन कौशल (93 प्रतिशत), और गुणवत्ता कार्यस्थल प्रौद्योगिकी (92 प्रतिशत) तक पहुंच के अवसरों पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
दूसरी ओर, देश के नेता सोचते हैं कि युवा कार्यकर्ता अन्य सभी कार्य कारकों पर एक प्रतिस्पर्धी पारिश्रमिक पैकेज और नौकरी की संतुष्टि को प्राथमिकता देते हैं।
व्यापार के कार्यकारी उपाध्यक्ष टिम मिनाहन ने कहा, "बॉर्न डिजिटल को सफलतापूर्वक आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए संगठनों को लचीला, कुशल और व्यस्त कार्य वातावरण बनाने के लिए कार्य मॉडल और उपकरणों में निवेश करने की आवश्यकता होगी, जो कि अगली पीढ़ी के नेता चाहते हैं। (आईएएनएस)
-पुलकित शुक्ला
योगगुरु स्वामी रामदेव का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में बाबा रामदेव बोले रहे है कि किसी के बाप में दम नहीं जो रामदेव को अरेस्ट कर सकता है. सोशल मीडिया पर शोर मचाते हैं कि अरेस्ट करो, कभी कुछ चलाते हैं और कभी कुछ चलाते हैं. कभी चलाते है कि ठग रामदेव, कभी महाठग रामदेव, अरेस्ट रामदेव कुछ लोग चलाते हैं चलाने दो इनको. बताया जा रहा है कि सोशल मीडिया पर #arrestbabaramdev के ट्रेंड होने पर एक ऑनलाइन मीटिंग के दौरान बाबा रामदेव ने यह बयान दिया है. हालांकि न्यूज 18 इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता है. वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पतंजलि योगपीठ के प्रमुख स्वामी रामदेव को मानहानि का नोटिस भेजा है. इस नोटिस में कहा गया है कि बाबा रामदेव अपने बयान के लिए 15 दिनों के भीतर माफी मांगें, नहीं तो IMA उनके खिलाफ 1000 करोड़ रुपए का दावा ठोकेगा. डॉक्टरों के संगठन ने मांग की है कि रामदेव को इस बयान के खिलाफ लिखित में माफी मांगनी होगी, अन्यथा कानूनी रूप से ये दावा ठोका जाएगा.
रामदेव ने आईएमए से पूछे थे 25 सवाल
रामदेव ने एलोपैथिक दवाओं पर अपने हालिया बयान को वापस लेने के लिए मजबूर किए जाने के बाद सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से 25 सवाल पूछे थे. रामदेव ने आईएमए से जानना चाहा कि क्या एलोपैथी उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों से स्थायी राहत देती है? अपने ट्विटर अकाउंट पर खुला पत्र जारी करते हुए रामदेव ने आईएमए से उनके 25 सवालों का जवाब देने को कहा था. रामदेव ने यह भी पूछा कि क्या दवा उद्योग के पास थायराइड, गठिया, अस्थमा और कोलाइटिस जैसी बीमारियों का स्थायी उपचार उपलब्ध है?
उन्होंने पूछा कि क्या एलोपैथी में फैटी लीवर (बढ़ा हुआ यकृत) और लीवर सिरोसिस की दवाएं हैं? उन्होंने सवाल किया, ‘‘जिस प्रकार आपने टीबी और चेचक का इलाज ढूंढ लिया है, उसी तरह लीवर की बीमारियों का भी इलाज ढूंढें. आखिरकार , एलोपैथी अब 200 साल पुरानी है.’’ योग गुरु ने यह भी जानना चाहा कि क्या इस चिकित्सा पद्धति में दिल की रुकावट संबंधी परेशानियों का कोई गैर सर्जरी उपचार उपलब्ध है? उन्होंने पूछा, ''कोलेस्ट्रॉल का क्या इलाज है?'' उन्होंने सवाल किया, ‘क्या फार्मा उद्योग के पास माइग्रेन का इलाज है?’’ योग गुरु ने तमाम बीमारियों जैसे पार्किंसन का नाम गिनाया और जानना चाहा कि क्या एलोपैथी बांझपन का बिना किसी दर्द के दलाज कर सकती है, क्या उसके पास बढ़ती उम्र को रोकने और हेमोग्लोबिन को बढ़ाने का कोई उपाय है.
इस बयान पर शुरू हुआ था बवाल
आईएमए ने सोशल मीडिया पर वायरल हुए उस वीडियो पर आपत्ति जताई थी जिसमें रामदेव ने दावा किया है कि एलोपैथी ‘बकवास विज्ञान’ है और भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूर की गई रेमडेसिविर, फेवीफ्लू तथा ऐसी अन्य दवाएं कोविड-19 मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं. उन्होंने टिप्पणी की थी कि अगर एलोपैथी इतना ही अच्छा है और सर्वगुण संपन्न है तो डॉक्टरों को बीमार नहीं होना चाहिए. इस पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एलोपैथी के बारे में दिये गए योग गुरु रामदेव के बयान को रविवार को 'बेहद दुर्भाग्यपूर्ण' करार देते हुए उन्हें इसे वापस लेने को कहा था, जिसके बाद रामदेव ने बयान वापस ले लिया था.
आईएमए ने बाबा को भेज नोटिस में क्या कहा है?
आईएमए ने बाबा रामदेव को भेजे नोटिस में कहा है कि उनके बयान से संगठन से जुड़े डॉक्टरों के प्रति आम लोगों के मन में साख को अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंची है. कानूनी नोटिस में इसे अपराध बताते हुए सजा और जुर्माने का भी जिक्र किया गया है. IMA ने योगगुरु को साफ-साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर इस पत्र मिलने के 15 दिनों के भीतर वे अपने बयान के लिए माफी मांगें. जिस तरह उनका पहले के बयान का वीडियो मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रचारित किया गया, उसी तरह बाबा रामदेव माफी मांगने का वीडियो भी प्रचारित करें. साथ ही लिखित में माफी मांगें, अन्यथा उनके खिलाफ 1000 करोड़ रुपए का दावा ठोका जाएगा.
भारत में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं है. कोरोना महामारी की चपेट में आकर जान गंवाने वालों की मौत के बाद भी हो रही दुर्दशा से उठे हैं कई सवाल.
कोरोना महामारी के दौरान संक्रमितों के अंतिम संस्कार तथा शवों को श्मशान या क्रबिस्तान तक ले जाने में लोगों की काफी फजीहत हो रही है. तमाम एहतियातों के बावजूद एंबुलेंस चालक तथा धार्मिक रीति रिवाजों की प्रक्रिया पूरी करने वालों की मनमानी किसी से छुपी नहीं है. संक्रमण के डर से समाज का साथ भी नहीं मिल रहा. परेशान हाल लोग विपदा की इस घड़ी में अपने प्रियजनों के शवों को अस्पतालों में छोड़ देने या नदियों में प्रवाहित करने से गुरेज नहीं कर रहे. यही वजह है कि अदालतों में लोकहित याचिका दायर कर मृतकों के अधिकारों की रक्षा व गरिमा को बनाए रखने की मांग उठने लगी है.
भारत में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में परमानंद कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के एक मामले में कहा है कि न केवल जीवित व्यक्ति के लिए, बल्कि उसके मृत शरीर के मामले में भी जीवन का अधिकार, उपचार व गरिमा लागू है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उन्हें यह अधिकार प्राप्त हैं. कोरोना महामारी के दौरान शवों के परिवहन में एंबुलेंस संचालकों की मनमानी तथा अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान या कब्रिस्तान में तय शुल्क से ज्यादा वसूली की शिकायत काफी बढ़ गई है. इसके लिए स्वजनों से तय मानदंडों से कई गुणा ज्यादा वसूली की जा रही है.
कोरोना से मरने वालों की बड़ी संख्या को देखते हुए देश में कई जगहों पर अस्थाई दाहगृह बनाए गए हैं.
संक्रमण के खौफ व प्रियजन के बिछुड़ने से आहत परिजन हर कुछ सहने को विवश हैं. राजधानी दिल्ली समेत देश के लगभग हर कोने में ऐसी खबरें प्राय: मीडिया की सुर्खियां बनती रही हैं. इसी मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में एक लोकहित याचिका दाखिल की गई है. जिसमें अदालत से केंद्र सरकार को यह निर्देशित करने की मांग की गई है कि वह राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दे कि इस संदर्भ में वे यथाशीघ्र दिशा-निर्देश जारी करे और इसका अनुपालन सुनिश्चित करें. निर्देश का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी प्रावधान किया जाए.
केंद्र को नीति बनाने का निर्देश देने की मांग
अधिवक्ता जोस अब्राहम के जरिए याचिका दायर करने वाली स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) डिस्ट्रेस मैनेजमेंट कलेक्टिव ने अदालत से मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र को नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि यह काफी पीड़ादायक है कि पैसे के अभाव में लोग अपने आत्मीय जनों के शवों को गंगा जैसी नदियों में बहा रहे हैं. एंबुलेंस सेवाओं व अंतिम संस्कार के लिए अनाप-शनाप राशि की मांग ही प्रारंभिक तौर पर इसकी वजह है. यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मृतकों के अधिकारों की रक्षा तथा उनकी गरिमा बरकरार रखने के लिए एडवाइजरी भी जारी की है. लेकिन इस संदर्भ में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है. अदालत से मांग की गई कि मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र तथा राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों को जल्द से जल्द नीति बनाने का निर्देश जारी किया जाए. याचिकाकर्ता ने इस मसले पर दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की थी. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी कोरोना से मरने वाले के लावारिस शवों को विशेष रूप से गैस वाले शवदाह गृहों में जलाने के लिए नीति बनाने की मांग पर विचार करने को कहा है.
क्या है मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन
मृतकों के अधिकारों की रक्षा व गरिमा बनाए रखने के संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कोरोना काल में विशेष तौर पर गाइडलाइन जारी किया है. इसमें कहा गया है कि मरणोपरांत कानूनी अधिकारों की मान्यता मृत लोगों को भारतीय कानून प्रणाली के भीतर महत्वपूर्ण नैतिक स्थिति प्रदान करती है. कानून एक मृतक की इच्छाओं का सम्मान व उसके हितों की रक्षा करने का भी प्रयास करता है. प्राकृतिक या अप्राकृतिक, दोनों तरह की ही मौतों में मृतकों के अधिकारों की रक्षा करना व मृत शरीर पर अपराध को रोकना राज्य का कर्तव्य है. यह जरूरी है कि राज्य व केंद्र शासित प्रदेश एक एसओपी तैयार करे, ताकि मृतकों की गरिमा सुनिश्चित की जा सके और उनके अधिकारों की रक्षा हो सके. इसके लिए कुछ बुनियादी सिद्धांत भी तय किए गए हैं जिनमें शव के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करने, कोई शारीरिक शोषण नहीं करने, सभ्य तरीके से व समय पर दफन या दाह संस्कार करने, अपराध के कारण मृत्यु होने पर न्याय प्राप्त करने, कानूनी वसीयत को पूरा करने, मौत के बाद कोई मानहानि नहीं करने व निजता का उल्लंघन नहीं करने की बात कही गई है.
इसके अलावा अस्पताल व पुलिस-प्रशासन के सभी अवयवों के लिए भी साफ तौर पर जिम्मेदारी तय की गई है. आयोग की सिफारिशों में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशिष्ट कानून बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. श्मशानों में शवों की लंबी कतार और कोरोना से मौतों की बड़ी संख्या को देखते हुए अनुचित देरी से बचने के लिए अस्थाई व्यवस्था करने की बात कही गई है. श्मशानों या कब्रिस्तानों में काम करने वाले कर्मचारियों को उचित भुगतान एवं आवश्यक सुविधाएं व सुरक्षा उपकरण प्रदान करने तथा सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करने को कहा गया है. आयोग ने सामूहिक अंत्येष्टि या दाह संस्कार की अनुमति नहीं दिए जाने को कहा है क्योंकि इससे मृतकों की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन होता है. विशेष तौर पर कोरोना से मृत लोगों के शवों के परिवहन के लिए मनमाने ढंग से वसूली करने पर रोक लगाने तथा शुल्क का विनियमित करने की सिफारिश की गई है, ताकि शवों के परिवहन में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े और लोगों का शोषण न हो सके.
गंगा में तैरतों शवों पर हो चुका है हंगामा
मई के दूसरे सप्ताह में गंगा नदी में तैरते शवों की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनीं थीं. आशंका जताई गई थी कि ये शव कोरोना संक्रमितों के हैं. उत्तर प्रदेश के कई इलाकों तथा बिहार के बक्सर जिले के चौसा में गंगा नदी में शवों के बहकर आने को लेकर खूब हंगामा हुआ. कहा गया कि बक्सर में मिले ये शव उत्तर प्रदेश के विभिन्न गांवों से बहकर आए थे. बक्सर के चौसा में श्मशान घाट पर रहने वाले डोम राजा का कहना था कि शव लेकर आने वाले जबरन ही नदी में शव प्रवाहित कर चले जा रहे हैं. वैसे यह भी चर्चा रही कि चौसा में निरीक्षण के लिए श्मशान घाट पहुंचे स्थानीय अधिकारियों के समक्ष ही राजपुर प्रखंड के किसी गांव से आए कुछ लोगों ने कहा था कि इलाज व दवा में सारे पैसे खर्च हो गए. दाह संस्कार के लिए पैसे नहीं होने पर वे शव को प्रवाहित करने को उतारू थे. बाद में सरकारी मदद पर लकड़ी से दाह संस्कार कराया गया. इसी जिले के सिमरी प्रखंड के किसी गांव का भी वीडियो वायरल हुआ था जिसमें नदी किनारे लगे शवों को दिखाया गया था. कई जगहों पर शवों को कौए व गिद्ध नोंचते हुए देखे गए. बक्सर में बिहार-यूपी की सीमा गंगा नदी में महाजाल लगाया गया. शवों के बहकर आने का मामला सामने आने के बाद करीब 90 शवों को गंगा नदी से निकाल कर दफन किया गया. इस मामले में पटना हाईकोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में बिहार सरकार ने कहा कि बक्सर को दूसरा काशी माने जाने की मान्यता के कारण यहां गंगा तट पर काफी संख्या में अंत्येष्टि होती रही है. दरअसल हाईकोर्ट ने पटना के प्रमंडलीय आयुक्त से बक्सर में जलाए गए शवों के संबंध में ब्योरा तलब किया था.
एनएचआरसी से भी की गई शिकायत
इस संबंध में समाचारों को आधार बनाते हुए एनएचआरसी से शिकायत की गई थी जिसमें आयोग से इस मामले में दखल देने तथा ऐसी घटनाओं को रोकने में लापरवाह रहे अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई थी. आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश व बिहार के मुख्य सचिव तथा केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर कार्यवाही रिपोर्ट देने का निर्देश दिया. आयोग ने यह भी कहा कि पवित्र गंगा नदी में शवों को प्रवाहित करना स्वच्छ गंगा के राष्ट्रीय मिशन की गाइडलाइन के भी खिलाफ है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर कर जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने की मांग की गई है. शवों को नदियों में प्रवाहित करने के मामले में केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय ने इस पर अविलंब रोक लगाने का निर्देश दिया है. वैसे बिहार सरकार ने हाय-तौबा मचने के बाद कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार की राज्य में निशुल्क व्यवस्था की है. राजधानी पटना में बांसघाट, गुलबीघाट व खाजेकलां घाट पर नगर निगम की ओर से संक्रमितों के दाह संस्कार की व्यवस्था है. लकड़ी के लिए किसी तरह का शुल्क परिजनों से नहीं लिया जा रहा है. इससे पहले शव जलाने के लिए 10,500 रुपये देने पड़ते थे. विद्युत शवदाह गृह या लकड़ी के जरिए अंतिम संस्कार, दोनों को निशुल्क कर दिया गया है. निगम ने लोगों की सुविधा के लिए कंट्रोल रूम का नंबर भी जारी किया है, ताकि उन्हें घाट पर ज्यादा देर तक इंतजार न करना पड़े.
जाहिर है, कोरोना महामारी के इस दौर में समाज का भी एक नया चेहरा सामने आ रहा है. मजबूरी में ही सही, मौत के बाद शवों को फेंक देना या नदी में प्रवाहित कर देना समाज को शर्मिंदा करने वाला कृत्य तो है ही, साथ ही यह अमानवीय भी है. किसी भी हाल में इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. जरूरत है, लोकतंत्र के चारों स्तंभों को मिलकर इस संबंध में ठोस नीति बनाने की ताकि जिंदा रहते किसी व्यक्ति को मौत के बाद दुर्गति का डर न सता सके. (dw.com)
पाकिस्तान की केंद्र सरकार देश भर में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने की योजना पर काम कर रही है. इस व्यवस्था में शिक्षा को ज्यादा इस्लामिक करने और कुरान
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट
इमरान खान सरकार पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने जा रही है. पहले दौर में पहली से पांचवीं तक की क्लास वाले प्राइमरी स्कूलों को शामिल किया जाएगा. हर स्कूल और कॉलेज को ये विषय पढ़ाने के लिए एक हाफिज और एक कारी अपने यहां रखना होगा. लेकिन आलोचकों को डर है कि इसका नतीजा स्कूलों और विश्वविद्यालयों के इस्लामीकरण के रूप में सामने आएगा. उनका कहना है कि इससे शिक्षा पर मौलवियों का असर बढ़ेगा, फिरकापरस्ती तेज होगी और सामाजिक ताना-बाना खराब होगा.
इस्लामाबाद में पढ़ाने वाले एक अकादमिक अब्दुल हमीद नायर कहते हैं कि नई योजना में उर्दू, अंग्रेजी और सोशल स्टडीज का भारी इस्लामीकरण किया गया है. वह कहते हैं कि बच्चे कुरान के 30 अध्याय और बाद में किताब का पूरा अनुवाद पढ़ेंगे. साथ ही अन्य इस्लामिक किताबें भी पढ़ाई जाएंगी.
नायर कहते हैं कि आधुनिक ज्ञान का आधार आलोचनात्मक सोच पैदा करना है लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार अपने सिलेबस में इसका उलटा ही आगे बढ़ाना चाह रही है.
इस्लामिक ताकतों के सामने टिकते घुटने
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से सरकार और इस्लामिक कट्टरपंथियों में एक रिश्ता रहा है. वैसे देश का इस्लामीकरण 1950 और 60 के दशक में शुरू हो गया था लेकिन 1970 के दशक में इसने रफ्तार पकड़ी और 1980 में जिया उल हक की तानाशाही में यह अपने चरम पर पहुंच गया. हक ने देश के उदारवादी संविधान की शक्ल ओ सूरत बदलने की मुहिम छेड़ी. उन्होंने इस्लामिक कानून लागू किए, पढ़ाई का इस्लामीकरण किया, देशभर में हजारों मदरसे खोले, न्याय व्यवस्था, प्रशासन और सेना में इस्लामिक सोच के लोगों को भरा और ऐसे संस्थान बनाए जहां से मौलवी सरकार के काम काज पर नजर रख सकते थे. 1988 जिया उल हक की मौत के बाद से लगभग हर सरकार ने इस्लामिक ताकतों को खुश रखने की कोशिश की है.
इमरान खान के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार पर भी इस्लामिक ताकतों के सामने घुटने टेकने के आरोप लगते रहे हैं. 2018 में उनकी पार्टी तहरीक ए इंसाफ ने पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने का वादा किया था. तब बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि नयी व्यवस्था विज्ञान, कला, साहित्य और अन्य समकालीन विषयों पर जोर देगी. लेकिन 2019 में जब सरकार ने नई योजना जारी की तो पता चला कि इस्लाम पर जोर बाकी सबसे ज्यादा है.
हालांकि इस योजना को कोरोनावायरस महामारी के कारण लागू करने में देर हुई है लेकिन इस साल इसकी शुरुआत की संभावना है. प्राथमिक स्कूलों कि किताबें छप चुकी हैं. इसमें अंग्रेजी, उर्दू और सोशल स्टडीज कि किताबों पर इस्लाम का प्रभाव साफ देखा जा सकता है. लाहौर स्थित शिक्षाविद रूबीना साइगोल बताती हैं कि सरकारी स्कूलों का मदसरीकरण किया जा रहा है जिसके गंभीर नतीजे होंगे. वह कहती हैं, "इस सिलेबस को पढ़कर बच्चे इस्लामिक रूढ़िवादी सोच के बनेंगे. वे महिलाओँ को ऐसे कमतर इंसान मानेंगे जिन्हें आजादी का हक नहीं है.”
30 फीसदी ज्यादा इस्लामिक सामग्री
इस्लामाबाद स्थित परमाणु विज्ञानी परवेज हूदबोय कहते हैं कि नया सिलेबस पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा, जैसा पहले कभी नहीं पहुंचा. वह कहते हैं, "इसके भीतर ऐसे बदलाव छिपे हुए हैं जिनका असर बहुत गहरा होगा. इतना गहरा जितना किसी ने सोचा नहीं होगा और जिनता जिया उल हक की तानाशाही में भी नहीं हुआ होगा. इसमें सरकारी स्कूलों में इस्लाम की पढ़ाई मदरसों से भी ज्यादा हुआ करेगी.”
कुछ लोगों ने इन बदलावों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी है. लाहौर स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ता पीटर जैकब कहते हैं कि अनिवार्य विषयों का 30-40 फीसदी हिस्सा धार्मिक है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "कई लोग अदालत गए हैं क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है. अल्पसंख्यक समुदाय के लोग नहीं मानते कि इस सामग्री को अनिवार्य विषयों में होना चाहिए.”
सरकार का समर्थन कर रही मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी की सांसद किश्वर जेहरा भी इस्लामीकरण के खिलाफ हैं. वह कहती हैं कि पाकिस्तान को बांग्लादेश से सीखना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें बांग्लादेश से सीखना चाहिए जो अपने यहां धर्म निरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है. मौजूदा नीति बस इस्लामिक ताकतों को खुश करने की कोसिश है. इसके बजाय सरकार को वैश्विक मानवाधिकार मूल्यों को शिक्षा में शामिल करना चाहिए जिनकी पाकिस्तान के स्टूडेंट्स को ज्यादा से ज्यादा सीखने की जरूरत है.” (dw.com)
चंडीगढ़, 25 मई | पंजाब के शिक्षा मंत्री विजय इंदर सिंगला ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को 12वीं कक्षा की परीक्षाओं पर निर्णय लेने से पहले सभी राज्यों को आवश्यक कोविड टीके उपलब्ध कराने चाहिए। सिंगला ने कहा कि शिक्षकों के साथ बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों का टीकाकरण करने की सख्त जरूरत है।
उन्होंने कहा कि प्री-बोर्ड परीक्षाओं और आंतरिक मूल्यांकन पर भी उचित ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
सिंगला ने छात्रों और अभिभावकों की चिंताओं को उठाते हुए कहा कि जब तक सभी हितधारकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो जाती, तब तक परीक्षाएं आयोजित नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि केंद्र को छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को निर्देश जारी करना चाहिए। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 25 मई| सेना के 200 से अधिक पूर्व सैनिकों ने कश्मीर में कोविड ड्यूटी के लिए स्वेच्छा से काम किया है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। कश्मीर के संभागीय आयुक्त पांडुरंग के पोल ने कहा कि कश्मीर के 10 जिलों में 212 सशस्त्र बलों के रिटायर्ड दिग्गजों को कोविड ड्यूटी के लिए तैनात किया गया है।
इन स्वयंसेवकों ने संबंधित जिला कलेक्टरों को सूचना दी है और बाद में जिला अस्पतालों में जनशक्ति बढ़ाने और भीड़ नियंत्रण के लिए आगे आए।
कश्मीर डिवीजन में कुल 8,308 पूर्व सैनिक हैं, जिनमें से 1,412 ने स्वेच्छा से सेवा के लिए आगे आए हैं। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 25 मई| पंजाब के कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने मंगलवार को केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए किसानों के साथ हमदर्दी जताते हुए पटियाला शहर स्थित अपने पैतृक आवास पर काला झंडा फहराया। सिद्धू ने हर पंजाबी से किसानों का समर्थन करने की अपील करते हुए, अपनी पत्नी नवजोत कौर के साथ अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा, "पिछले तीन दशकों से, भारतीय किसान बढ़ते कर्ज और आय में गिरावट के कारण चिंतित हैं।"
"किसानों से झूठ बोला गया है, और अब ये नए काले कानून ताबूत में आखिरी कील साबित हुए हैं।"
"मैं इन कानूनों का विरोध करता हं, और अपने पिता और भाइयों के साथ एकजुटता से खड़ा हूं।"
चालीस से अधिक किसान संघों के छत्र निकाय संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की है कि वह कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे विरोध प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के अवसर पर 26 मई को 'काला दिवस' के रूप में मनाएगा।
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने विरोध दर्ज कराने के लिए लोगों से 26 मई को अपने घरों, वाहनों और दुकानों पर काले झंडे लगाने की अपील की है।
सिद्धू का विरोध मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के रुख के विपरीत है, जिन्होंने राज्य के प्रमुख कृषि संघ बीकेयू (एकता-उग्रहन) से अपने प्रस्तावित धरना-प्रदर्शन को आगे नहीं बढ़ाने का आग्रह किया है, क्योंकि महामारी के बीच किसानों का जमावड़ा 'संक्रमण के सुपर-स्प्रेडर'में बदल सकता है।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने सबसे पहले राज्य विधानसभा में कृषि कानूनों को नकारने के लिए संशोधन कानून पारित किया था। वह किसानों के साथ हैं, लेकिन महामारी के मद्देनजर धरना-प्रदर्शन को आगे नहीं बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं। (आईएएनएस)
- राघवेंद्र राव
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन की सख़्त भाषा में लिखी चिट्ठी मिलने के कुछ घंटों बाद ही योग गुरु स्वामी रामदेव ने अपना विवादित बयान वापस ले लिया. ऐसा लगा कि यह विवाद अब थम जाएगा मगर ऐसा हुआ नहीं.
स्वामी रामदेव ने कहा था कि एलोपैथिक दवाएँ खाने से लाखों लोगों की मौत हुई है. उन्होंने एलोपैथी को 'स्टुपिड और दिवालिया साइंस' भी कहा था.
इसके कुछ ही दिनों पहले उन्होंने कहा था, ''ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन है लेकिन लोग बेवजह सिलेंडर ढूँढ रहे हैं.''
उनके हालिया बयान के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि संकट के इस समय में डॉक्टर रात-दिन मरीज़ों की जान बचाने में लगे हैं, वे 'देवता तुल्य' हैं.
डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा था, ''डॉक्टरों के बारे में रामदेव की टिप्पणी अस्वीकार्य है और उन्हें तत्काल माफ़ी माँगनी चाहिए.''
इसके बाद रामदेव ने कहा कि वो अपना बयान वापस लेकर इस विवाद को विराम दे रहे हैं. लेकिन कुछ ही घंटों में उन्होंने एक बार फिर एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति पर हमला बोला.
रामदेव ने पतंजलि के लेटरपैड पर लिखी एक चिट्ठी में 25 सवाल पूछे. इस चिट्ठी पर उन्होंने खु़द ही हस्ताक्षर भी किए हैं.
उनके सवालों में डॉक्टरों से पूछा गया है: हाइपरटेंशन, मधुमेह, थाइरॉयड, गठिया और दमा जैसी बीमारियों के लिए क्या स्थायी समाधान हैं? उन्होंने पूछा है कि एलोपैथी के पास फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस और हेपेटाइटिस को ठीक करने के लिए क्या दवा है?
रामदेव ने कहा है, ''जैसे आपने टीबी और चेचक आदि का स्थायी समाधान खोजा है, वैसे ही लिवर की बीमारियों का समाधान खोजिए, अब तो एलोपैथी को शुरू हुए 200 साल हो गए. ज़रा बताइए."
रामदेव ने यह भी जानना चाहा है कि क्या उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को उलटने की कोई दवाई है फार्मा इंडस्ट्री के पास? या कोई ऐसी दवाई है जिससे हर तरह के नशे की लत छूट जाए?
उन्होंने यह भी पूछ डाला है कि कोरोना के मरीज़ में बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के इस्तेमाल के ऑक्सीजन बढ़ने का उपाय क्या है?
रामदेव के इन सवालों में व्यंग्य की झलक भी मिलती है.
उन्होंने पूछा है, "एलोपैथी और आयुर्वेद के आपस में झगड़े ख़त्म करने की फार्मा इंडस्ट्री के पास कोई दवाई है तो बता दें. एलोपैथी सर्व शक्तिमान और सर्वगुण-संपन्न है तो फिर एलोपैथी के डॉक्टर तो बीमार होने ही नहीं चाहिए?"
उनके पत्र और उसमें लिखे सवालों से ऐसा लगता है मानो वो जता रहे हों कि उनके पास हर रोग का इलाज है लेकिन डॉक्टरों के पास बीसियों रोगों का कोई उपचार नहीं है.
क्या है पूरा मामला?
योग गुरु रामदेव की भारतीय जनता पार्टी से नज़दीकी कोई राज़ की बात नहीं है.
फरवरी महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उनके साथ मंच को साझा कर रहे थे जब योग गुरु रामदेव ने दावा किया था कि उनके संस्थान पतंजलि ने जो 'दिव्य कोरोनिल' दवा बनाई है उसे कोविड-19 की सहायक उपाय दवा और इम्युनिटी बूस्टर के रूप में आयुष मंत्रालय से मान्यता मिल गई है.
रामदेव हरियाणा की बीजेपी शासित सरकार के ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं. इसीलिए जब 23 मई को डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को सख्त लहजे में एक पत्र लिख डाला तो उसने सभी का ध्यान खींचा.
भारत में डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने कहा है कि अतीत में भी रामदेव स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में डॉक्टरों को 'हत्यारा' बता चुके हैं.
आईएमए ने यह भी कहा है, "यह यह सबको मालूम है कि योग गुरु और उनके सहयोगी बालकृष्ण बीमारी के समय आधुनिक चिकित्सा और एलोपैथी का उपचार लेते रहे हैं और अब बड़े पैमाने पर जनता को गुमराह करने के लिए वह झूठे और निराधार आरोप लगा रहे हैं ताकि वह अपनी अवैध और अस्वीकृत दवाओं को बेच सकें."
रामदेव का जवाब
स्वास्थ्य मंत्री की कड़ी चिट्ठी के जवाब में रामदेव ने लिखा कि वो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विरोधी नहीं हैं. रामदेव ने कहा, "हम यह मानते हैं कि जीवन रक्षा प्रणाली या शल्य चिकित्सा के विज्ञान में एलोपैथी ने बहुत प्रगति की है और मानवता की सेवा की है."
उन्होंने लिखा कि उनके जिस बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है वह एक कार्यकर्ता बैठक में दिया गया था जिसमें उन्होंने एक व्हाट्सएप्प मैसेज को पढ़कर सुनाया था.
उन्होंने कहा, ''उससे अगर किसी की भी भावनाएं आहत हुई हैं, तो मुझे खेद है."
रामदेव ने अपने जवाब में यह भी कहा कि कोरोना काल में भी एलोपैथी डॉक्टर्स ने अपनी जान जोखिम में डालकर करोड़ों लोगों की जान बचाई है और वे इसका सम्मान करते हैं.
साथ ही रामदेव ने यह भी कहा कि उन्होंने भी आयुर्वेद और योग के प्रयोग से करोड़ों लोगों की जान बचाई है और इसका भी सम्मान होना चाहिए.
रामदेव ने कहा कि किसी भी चिकित्सा पद्धति में होने वाली त्रुटियों का रेखांकन उस पद्धति पर आक्रमण के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.
उनके मुताबिक़, "यह विज्ञान का विरोध तो कतई नहीं है."
रामदेव ने कहा कि इसी प्रकार से कुछ एलोपैथिक डॉक्टर आयुर्वेद और योग को 'छद्म विज्ञान' कहकर उसका निरादर करते हैं जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं."
एलोपैथी पर निशाना
रामदेव ने इस मामले में अपनी सफाई भले ही दे दी हो लेकिन उनके और पतंजलि आयुर्वेद के विचारों को समझने के लिए सिर्फ पतंजलि आयुर्वेद के ट्विटर टाइमलाइन पर नज़र डालने की ज़रूरत है.
ट्विटर टाइमलाइन पर एक के बाद एक ऐसी पोस्ट भरी हैं जिसमें "योग के चमत्कार" का बखान है. ज़्यादातर में लिखा गया है कि मरीज़ को "डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था" यानी डॉक्टरों ने बीमारी से हार मान ली थी.
योग की डॉक्टरों से तुलना करने के लिए जो उदाहरण दिए गए हैं उनमें से एक में यह बताया गया है कि एक मरीज़ ने दो साल पुराने गठिया को 10 दिन में योग से ठीक कर लिया और "अब दौड़ने भी लग गई हैं."
इसी तरह एक अन्य मरीज़ का उदाहरण दिया गया है. जिसमें बताया गया है कि उन्हें "डॉक्टर्स ने कह दिया था कि दो महीने ही ज़िंदा रह पाएँगे" और उन्होंने "योग से लंग्स की समस्या ठीक कर ली और 17 साल तक जिए."
पतंजलि की वेबसाइट पर पतंजलि अनुसंधान संस्थान के बारे में दी गई जानकारी में कहा गया है कि आयुर्वेद के क्षेत्र में क्लीनिकल नियंत्रण का कार्य कभी भी बड़े पैमाने पर नहीं हो सका जिसके कारण इस ज्ञान को वैश्विक मान्यता नहीं मिल सकी.
यह भी बताया गया है कि पतंजलि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है जहां शुरू में 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं और इसका एक बड़ा हिस्सा शोध कार्यों पर खर्च किया जा रहा है.
वेबसाइट के अनुसार इस संस्थान में जानवरों से लेकर मानव शोध की गहन प्रक्रिया होगी और किसी भी दवा का पहले प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाएगा, फिर चूहों और खरगोशों पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा और जानवरों में सफल प्रयोग के बाद इसका इस्तेमाल इंसानों पर किया जाएगा.
साथ ही यह भी लिखा गया है, "इस तरह की प्रक्रिया से आयुर्वेद के वैज्ञानिक तथ्य स्पष्ट होंगे और उन रोगियों के लिए एक नई आशा पैदा होगी जिन्होंने लंबे एलोपैथ उपचार के बाद हार मान ली है. साथ ही आयुर्वेद को साक्ष्य आधारित औषधि के रूप में विश्व में पहचान मिलेगी."
लगातार विवादों में रहे हैं रामदेव
विवादों और रामदेव का निरन्तर साथ रहा है. अतीत में भी स्वामी रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच गरमा-गरमी होती रही है.
साल 2006 में ही कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने आरोप लगाया था कि बाबा रामदेव की फार्मेसी में बनने वाली दवाइयों में जानवरों और इंसानी हड्डियों का चूरा मिलाया जाता है. इसको लेकर ख़ासा विवाद हुआ था.
रामदेव कई बार कह चुके हैं कि "समलैंगिकता एक रोग है और आयुर्वेद में इसका इलाज है." इस पर भी काफ़ी हंगामा हो चुका है.
2013 में रामदेव ने एक रैली में यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि "टोपी पहनने वाले भारत माता की जय नहीं बोलते.'' इसके बाद उनकी काफ़ी आलोचना हुई थी.
उन्होंने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर कई व्यक्तिगत और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की हैं जिनके बाद उनके ख़िलाफ़ कई कांग्रेस शासित राज्यों में एफ़आईआर दर्ज हुई और उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए.
महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ और 'बेटा पैदा करने वाली दवा'
रामदेव कांग्रेस पार्टी, शंकराचार्य से लेकर दलितों और महिलाओं तक के बारे में अनेक बार ऐसी टिप्पणियाँ कर चुके हैं जिनकी वजह से काफ़ी विवाद खड़ा हुआ है.
2008 में आईएमए ने रामदेव की आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ की गई टिप्पणी की आलोचना की थी. आईएमए का आरोप था कि रामदेव ने एक योग शिविर के दौरान कहा था कि डॉक्टर बीमारियों के प्रचारक हैं और मरीज़ों की बीमारियों को भुना रहे हैं.
2015 में ही रामदेव ने हरियाणा सरकार के कैबिनेट रैंक के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह मंत्री पद की तलाश में नहीं हैं और बाबा ही बने रहना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि वे योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा के ब्रैंड एंबेसडर बने रहेंगे.
हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस ने रामदेव को ब्रैंड एंबेसडर बनाने और बाद में कैबिनेट का दर्जा दिए जाने के कदम का विरोध किया था.
उसी वर्ष रामदेव एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गए जब विपक्षी दलों ने संसद में सत्तारूढ़ भाजपा को इस बात पर घेरने की कोशिश की कि उनके समर्थक रामदेव की फार्मेसी में "पुत्रजीवक बीज" के नाम से दवा बनाई जा रही है और यह दावा किया जा रहा है कि इस दवा के इस्तेमाल से बेटे का ही जन्म होगा.
कुछ सांसद "पुत्रजीवक बीज" के पैकेट संसद में लाए और उन्हें दिखाते हुए कहा कि ऐसी चीज़ों को बेचना अवैध और असंवैधानिक है. विपक्षी सांसदों ने यह भी कहा कि हरियाणा सरकार ने ऐसे व्यक्ति को ब्रैंड एम्बेसडर नियुक्त किया है जिनकी फार्मेसी ऐसी तथाकथित दवाएं बेचती है.
पतंजलि के उत्पादों पर सवाल और रामलीला मैदान से भागना
योगगुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि के कई उत्पादों की गुणवत्ता पर भी दुनिया भर में गंभीर सवाल उठे हैं और उनके कई उत्पाद गुणवत्ता परीक्षण पास नहीं कर सके हैं.
यहाँ तक कि नेपाल सरकार ने रामदेव की दिव्य फ़ार्मेसी के सात उत्पादों की बिक्री पर साल 2017 में यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि वे इंसानी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं.
कांग्रेस के शासनकाल में रामदेव विदेशों से काला धन वापस लाने के अपने बयानों और दावों की वजह से चर्चा में रहे हैं.
इसके अलावा उन्होंने पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों को लेकर भी अभियान चलाया था, उन्होंने कहा था कि इनकी कीमत 35 रुपए लीटर होनी चाहिए.
जून 2011 में तत्कालीन सरकार के ख़िलाफ़ रामदेव ने रामलीला मैदान में अनशन शुरू किया था. स्वदेशी की मांग और काले धन के ख़िलाफ़ अनशन के ख़िलाफ़ बाबा रामदेव को गिरफ़्तार करने जब पुलिस पहुँची तो वे एक महिला आंदोलनकारी के कपड़े पहनकर वहाँ से भाग निकले थे.
रामदेव ने कहा था कि उन्हें ऐसा अपनी जान बचाने के लिए करना पड़ा था. (www.bbc.com/hindi)
सोशल मीडिया कंपनियों के लिए बनाए नए नियमों का पालन करने की समय सीमा समाप्त हो रही है. कंपनियां नियम लागू करें या लागू ना करने के लिए सरकार की नाराजगी झेलें, भारत में इंटरनेट की आजादी के लिए यह चिंता का विषय है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना और प्रसारण मंत्रालयों ने 25 फरवरी 2021 को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 की घोषणा की थी. इन नियमों के तहत भारत में सक्रिय सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कई नए नियम लाए गए थे, जिनका पालन करने के लिए उन्हें तीन महीनों का समय दिया गया था. यह समय सीमा अब खत्म हो रही है और इसे लेकर भारत में इन सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों के बीच डर है कि कहीं इन्हें बंद ना कर दिया जाए.
पिछली रात दिल्ली पुलिस द्वारा गुड़गांव स्थित ट्विट्टर के दफ्तर जा कर कंपनी को जांच का एक नोटिस देने की खबर से इन अटकलों को बल मिला है. ट्विट्टर ने सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा के एक ट्वीट को "मनिप्युलेटेड मीडिया" का टैग लगा दिया था, यानी उस ट्वीट पर जानकारी में हेरफेर का आरोप लगाया था. दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसे ट्विट्टर के इस कदम के खिलाफ शिकायत मिली थी.
सरकार ने अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है कि अगर समय सीमा समाप्त होने तक इन कंपनियों ने नए नियमों का पालन नहीं किया तो उनके खिलाफ कोई कदम उठाए जाएंगे या नहीं. जानकारों का कहना है कि ये नए नियम कई समस्याओं को जन्म देते हैं और यह भारत में इंटरनेट की आजादी के लिए नुकसानदेह हैं. इनके खिलाफ कम से कम तीन अलग अलग उच्च अदालतों में छह याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है.
क्या हैं नियम
नए नियमों के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को उन पर छपने वाली सामग्री के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है और उन्हें इनसे संबंधित शिकायतों को निपटाने के लिए एक अधिकारी नियुक्त करने को कहा गया है. इसके अलावा इन अधिकारियों को 24 घंटों में शिकायत मिलने के बारे में बताना होगा और अधिकतम 15 दिनों में शिकायतों पर फैसला लेना होगा. अगर किसी अधिकृत संस्था या अधिकारी से कोई सामग्री हटाना का आदेश जारी होता है तो उसे 36 घंटों के अंदर हटाना होगा. अतिरिक्त कानूनी कार्रवाई के लिए जांच एजेंसियों की 72 घंटों के अंदर मदद करनी होगी.
इसके अलावा ट्विटर, फेसबुक आदि जैसी बड़ी सोशल मीडिया मध्यस्थ कंपनियों के लिए एक मासिक रिपोर्ट जारी करना अनिवार्य कर दिया गया है जिसमें उन्हें बताना होगा कि उन्हें शिकायतें मिलीं और उन्होंने कितने समय में उन पर क्या कार्रवाई की. उन्होंने खुद भी आपत्तिजनक सामग्री ढूंढ कर उसे हटाया या नहीं, इसका भी ब्यौरा देना होगा. अगर कंपनी इन नियमों का पालन नहीं करती है तो उसे ही कथित सामग्री के लिए जिम्मेदार माना जाएगा और उसके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
दुरुपयोग से बचाव
व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल आदि जैसी संदेश भेजने वाली सेवाएं भी इन नियमों के तहत आती हैं. इन सेवाओं को अब किसी भी फॉरवर्ड किए जा रहे संदेशों को सबसे पहले भेजने वाले का पता लगाना होगा और अगर उस पर कोई एजेंसी जांच कर रही है तो उसे उस व्यक्ति के बारे में बताना होगा. इससे इन सेवाओं की एन्क्रिप्शन की शक्ति बेकार हो जाएगी और इस्तेमाल करने वालों की निजता के साथ समझौता होगा.
कई आपराधिक मामलों में तो यह सहायक हो सकता है लेकिन जानकारों का कहना है कि एजेंसियों को इसका दुरूपयोग करने से रोकने के लिए कोई प्रावधान नहीं लाया गया है. फेसबुक ने एक बयान में कहा है कि उसका लक्ष्य है कि वो इन नियमों का पालन करे लेकिन कुछ मुद्दों पर सरकार से और बातचीत की जरूरत है. ट्विट्टर ने अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है. देखना होगा कि समय सीमा समाप्त होने पर इन कंपनियों को और समय देगी या इनके खिलाफ कार्रवाई करेगी. (dw.com)
कोलकाता, 25 मई | पश्चिम बंगाल सरकार ने मंगलवार को कहा कि भीषण चक्रवात 'यास' से तबाही कम हो, इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले 24 घंटों में तटीय इलाकों से 9 लाख से अधिक लोगों को निकालकर उन्हें विभिन्न चक्रवात शिविरों, खाली पड़े स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सरकारी स्थानों पर भेजा गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि तूफान के दौरान और बाद में राहत व बचाव कार्य में सीधे तौर पर लगे तीन लाख लोगों को लेकर राज्य सरकार ने मास्टर प्लान बनाया है।
उन्होंने राज्य सचिवालय 'नबान्न' में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "हमने 4,000 बाढ़ केंद्र विकसित किए हैं। विशेष रूप से दीघा, सुंदरबन, काकद्वीप, सागर द्वीप और अन्य निचले इलाकों के 9 लाख से अधिक लोगों को निकाला गया है और उन लोगों को बाढ़ केंद्रों और विभिन्न स्कूलों में भेज दिया गया है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने की प्रक्रिया अभी भी जारी है। पिछले साल हमने तटीय इलाकों से 10 लाख लोगों को निकाला था।"
ममता ने राज्यभर के घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखने के लिए मंगलवार रात राज्य सचिवालय में ही रहने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, "हमने हर ब्लॉक में वार रूम खोल दिए हैं और उन्हें जिला प्रशासन को अपडेट रखने के लिए कहा जाता है। भीषण चक्रवात से निपटने के लिए 3 लाख लोगों के फोर्स को तैनात किया गया है।"
मुख्यमंत्री ने कहा, "फोर्स में 74,000 सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और 2 लाख पुलिसकर्मी शामिल हैं। इसके अलावा, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बिजली और दूरसंचार कर्मचारियों की टीमों को किसी भी तरह की आपातस्थिति के लिए तैयार रखा गया है।"
सेना को भी आपात उपयोग के लिए तैयार रखा गया है।
मुख्यमंत्री ने सभी क्लबों, पूजा समितियों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य सामाजिक संगठनों से मदद की मांग करते हुए कहा कि सभी फेरी सेवाएं रद्द कर दी गई हैं और कई ट्रेनें भी रद्द कर दी गई हैं।
उन्होंने कहा, "पर्यटन गतिविधि पूरी तरह से रद्द कर दी गई है और अगले कुछ दिनों के लिए समुद्र में मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। हमने ब्लॉक और पंचायत स्तर पर सभी राहत सामग्री की आपूर्ति की है और हम राज्य सचिवालय से हर चीज की निगरानी करेंगे।"
राज्य सरकार के अधिकारियों को तूफान के बाद जल्द से जल्द बिजली और दूरसंचार कनेक्टिविटी बहाल हो जाने की उम्मीद है। 1,000 बिजली बहाली और 450 दूरसंचार बहाली दल हैं जो तूफान खत्म होने के बाद तुरंत काम करना शुरू कर देंगे और 51 आपदा प्रबंधन टीमों की भी व्यवस्था की गई है।
यास इस समय ओडिशा के पारादीप से 270 किलोमीटर दूर है। बुधवार सुबह पारादीप और सागर द्वीप के बीच कहीं इसके लैंडफॉल बनाने और झारखंड की ओर बढ़ने की संभावना है। हालांकि समूचे पश्चिम बंगाल पर तूफान का सीधा असर नहीं होगा, लेकिन दो जिलों पूर्वी मिदनापुर और दक्षिण 24 परगना में इसका असर दिखेगा।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 मई | भारतीय टीम के बल्लेबाज पृथ्वी शॉ ने कहा है कि टीम के पूर्व बल्लेबाज राहुल द्रविड़ ने उनसे कभी उनका प्राकृतिक खेल बदलने के लिए नहीं कहा।
शॉ ने क्रिकबज से कहा, "हमने द्रविड़ सर के साथ दो साल पहले दौरा किया था। हमें पता था कि वह अलग हैं लेकिन उन्होंने कभी भी हम लोगों से अपने जैसा बनने का दबाव नहीं डाला। उन्होंने कभी भी मुझसे कुछ भी बदलने के लिए नहीं कहा। द्रविड़ सर हमेशा मुझे प्राकृतिक खेल खेलने के लिए कहते थे।"
शॉ की कप्तानी में भारतीय अंडर-19 टीम ने विश्व कप जीता था और उस वक्त द्रविड़ टीम के कोच थे।
शॉ ने कहा, "जब द्रविड़ सर होते हैं तो आपको अनुशासित होकर रहना पड़ता है। उनसे थोड़ा डर लगता है लेकिन मैदान के बाहर वह हमारे साथ दोस्त की तरह रहते थे।"
उन्होंने कहा, "द्रविड़ सर हमारे साथ डिनर के लिए जाते थे और उन जैसे लेजेंड खिलाड़ी के साथ डिनर करने का मेरा सपना सच हुआ था। कोई भी युवा खिलाड़ी लेजेंड क्रिकेटर के साथ डिनर करना पसंद करेगा जिसने 15-16 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला है। उनके साथ बात करना मेरे लिए अच्छा अनुभव रहा।"
शॉ ने कहा, "मुझे यकीन है कि द्रविड़ सर भी अंडर-19 और रणजी ट्रॉफी के समय में इस दौर से गुजरे होंगे। उन्हें पता है कि दौरे के दौरान हम लोगों से किस तरह प्रदर्शन कराना है।"
उन्होंने कहा, "द्रविड़ सर हर एक खिलाड़ी से बात करते थे जो काफी अच्छा था। मुझे बस वह यह कहते थे कि अपना प्राकृतिक खेल खेलो।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 मई | फ्रांसीसी वायरोलॉजिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यूक मॉन्टैग्नियर ने महामारी के दौरान कोरोनावायरस के खिलाफ सामूहिक टीकाकरण को ऐतिहासिक भूल करार दिया। उनका कहना है कि इसी के चलते नए वेरिएंट्स का निर्माण हो रहा है, जिससे मौतें भी हो रही हैं। लाइफसाइट न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी। "यह एक बहुत बड़ी गलती है। न केवल वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से, बल्कि चिकित्सकीय ²ष्टिकोण से भी यह एक भूल है। इसे स्वीकारा नहीं जा सकता है।" मॉन्टैग्नियर ने अपने एक इंटरव्यू में यह बात कही, जिसे अमेरिका के रेयर फाउंडेशन द्वारा अनुवाद और प्रकाशित किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया, "इतिहास की किताबों में इस गलती का जिक्र होगा क्योंकि इसी वैक्सीनेशन के चलते वेरिएंट्स बन रहे हैं।"
उन्होंने इस महीने की शुरूआत में होल्ड-अप मीडिया के पियरे बार्नरियास के साथ हुए एक साक्षात्कार में कहा, "कई महामारी वैज्ञानिक इस बात से अवगत हैं और यह जानते हुए भी चुप हैं कि एंटीबॉडी से निर्भरता में वृद्धि होती है। यह वायरस द्वारा उत्पादित एंटीबॉडी ही है, जो संक्रमण को और मजबूत बनाता है।"
उन्होंने पूछा कि "वैक्सीनेशन से होगा क्या? क्या वायरस मर जाएगा या क्या कोई और समाधान ढूंढ़ लेगा? यह स्पष्ट है कि नए वेरिएंट टीकाकरण के कारण एंटीबॉडी-मिडिएटेड सिलेक्शन द्वारा बनाए गए हैं।"
साल 2008 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीत चुके इस वैज्ञानिक ने कहा, "किसी महामारी के दौरान टीकाकरण अकल्पनीय है। यह मौत का कारण बन सकता है।"
रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने यह भी कहा, "नए वेरिएंट्स टीकाकरण का ही परिणाम है। आप हर देश में ऐसा देख सकते हैं। वैक्सीनेशन के बाद ही मौतें हो रही हैं।"(आईएएनएस)