अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कोरोना वायरस को लेकर चीन पर निशाना साधा है.
कोरोना वायरस की लैब लीक थ्योरी पर बढ़ती चर्चा के बीच ट्रंप ने कहा, “अब हर कोई, यहाँ तक कि ‘तथाकथित दुश्मन’ भी मानने लगे हैं कि ट्रंप चाइना वायरस के वुहान लैब से लीक होने को लेकर सही थे.”
ट्रंप ने कहा कि चीन ने अमेरिका और दुनिया भर में जो तबाही मचाई है उसके लिए उसे 10 ट्रिलियन डॉलर का मुआवज़ा देना चाहिए.
उन्होंने अपने बयान में कहा, “डॉक्टर फ़ाउची और चीन के बीच जो बातचीत हुई है, उसे किसी के लिए भी नज़अंदाज करना नामुमकिन है.”
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को 'चीनी वायरस'और 'वुहान वायरस' कहा करते थे. चीन ने इस पर कड़ी आपत्ति ज़ाहिर की थी और इसे नस्लभेदी बताया था.
इस साल की शुरुआत में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक टीम महामारी से जुड़े तथ्यों का पता लगाने के लिए वुहान गई थी.
हालाँकि मार्च में अपनी रिपोर्ट जारी कर डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं है कि कोरोना वायरस वुहान की लैब से दुनिया भर में फैला.
चीन पर जाँच में विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को पूरा सहयोग न देने और वुहान लैब से जुड़ी जानकारियाँ छिपाने के आरोप भी लगते रहे हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन की ताज़ा ख़ुफ़िया रिपोर्ट
कुछ दिनों पहले अमेरिका की एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नवंबर 2019 में कोरोना महामारी फैलने के कुछ समय पहले वुहान लैब के तीन शोधकर्ता बीमार पड़ गए थे और उनके लक्षण कोविड-19 से मिलते-जुलते थे.
चीन ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह ‘झूठ’ करार दिया था और कहा था कि वुहान लैब का कोई भी स्टाफ़ आज तक कोरोना से संक्रमित नहीं हुआ है.
रिपोर्ट आने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ख़ुफ़िया टीमों को 90 दिनों के भीतर कोरोना वायरस के स्रोत को लेकर एक रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था.
अमेरिका के बाद ब्रिटेन की भी एक रिपोर्ट में कहा गया कि यह संभव है कि कोरोना वायरस वुहान लैब से लीक हुआ हो.
हाल ही में अमेरिका के मशहूर संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फ़ाउची के कुछ निजी मेल सामने आए, जिन्होंने लैब लीक थ्योरी को बल दिया.
जनवरी 2020 में एक ईमेल जो डॉक्टर फ़ाउची को अमेरिका की सबसे बड़ी बायोमेडिकल रिसर्च टीम के डायरेक्टर ने भेजा था, उसमें कहा गया कि इस वायरस के कुछ फ़ीचर असामान्य हैं और ऐसा लगता है कि इसे तैयार किया गया है. इसके जवाब में डॉक्टर फ़ाउची ने लिखा कि वे फ़ोन पर उनसे इस बारे में बात करेंगे.
अप्रैल 2020 में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ के डायरेक्टर फ्रांसिस कॉलिन्स ने भी इसी बारे में डॉक्टर फ़ाउची को एक ईमेल लिखा. उनके ईमेल का विषय था: 'वुहान वाली षड्यंत्र की थ्योरी को बल मिल रहा है.'
इस पर डॉक्टर फ़ाउची का जवाब नहीं मिल पाया.
इसी साल मई में, डॉक्टर फ़ाउची ने कहा कि वो इस बात से आश्वस्त नहीं हैं कि ये वायरस क़ुदरती तौर पर पैदा हुआ और उन्होंने कहा कि इसकी गंभीरता से जाँच होनी चाहिए.(bbc.com)
पिछले साल एक यूक्रेन का एक यात्री विमान को गिराने के मामले में अब चार देशों ने ईरान के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है.
क़ानूनी कार्रवाई करने वालों में यूक्रेन, ब्रिटेन, स्वीडन और कनाडा शामिल थे. जिस विमान को गिराया गया उसमें इन चारों देशों के यात्री सवार थे.
इन चारों देशों ने अब माँग की है विमान गिराने के लिए ईरान आधिकारिक तौर पर ज़िम्मेदारी ले. इसके अलावा हादसे में जान गँवाने वाले 170 से ज़्यादा लोगों के परिजनों के लिए आर्थिक मुआवज़े की माँग भी की गई है.
इस हादसे पर ईरान ने जो आख़िरी रिपोर्ट सौंपी थी, उसकी चौतरफ़ा आलोचना हुई थी.
पिछले साल जनवरी में ईरान की सेना ने यूक्रेन के एक यात्री विमान को तेहरान के बाहरी इलाके में गिरा दिया था.
बोइंग 737 फ्लाइट यूक्रेनियन इंटरनेशनल एयरलाइंस की थी और इसमें अलग-अलग देशों के 176 यात्री सवार थे. विमान में सवार सभी लोगों की मौत हो गई थी.
ईरान के सरकारी टीवी की रिपोर्ट के अनुसार सेना ने शनिवार को कहा कि 'ग़लती' से यूक्रेन के यात्री विमान को उसने ही गिरा दिया था.
हादसे के बाद ईरान की सेना ने कहा था कि उसने ‘ग़लती’ से इस विमान को गिराया था. ईरान की तरफ़ से आए बयान में इसे ‘मानवीय भूल’ कहा गया था.
बाद में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ट्वीट करके इसके लिए माफ़ी माँगी थी और दोषियों के ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई का भरोसा दिलाया था. (bbc.com)
-जिम रीड
बीबीसी स्वास्थ्य संवाददाता
ब्रिटेन की सरकारी स्वास्थ्य सेवा पब्लिक हेल्थ इंग्लैड (पीएचई) ने कहा है कि भारत में सबसे पहले पाया गया कोरोना वायरस का वेरिएंट अब ब्रिटेन में हो रहे संक्रमण के अधिकतर मामलों में देखा जा रहा है.
टेस्टिंग लैब्स ने इस बात की पुष्टि की है कि बीते एक सप्ताह में ब्रिटेन में इस वेरिएंट के संक्रमण के मामले 79% बढ़ कर 12,431 हो गए हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि केंट इलाक़े में अधिकतर मामलों में अल्फ़ा वेरिएंट का संक्रमण पाया जा रहा था, लेकिन अब यहां अधिकांश मामलों का कारण वायरस का डेल्टा वेरिएंट है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़ डेल्टा वेरिएंट के कारण अस्पतालों में कोविड-19 मरीज़ों की संख्या अचानक बढ़ सकती है.
हालाँकि पीएचई ने कहा है कि फ़िलहाल जो जानकारी मिली है वो शुरूआती तथ्य हैं और इस बारे में अभी और जानकारी जुटाना ज़रूरी है.
यूके हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी की मुख्य अधिकारी डॉक्टर जेनी हैरिस ने कहा, "यूके में अब संक्रमण के नए मामलों में ये नया वेरिएंट मिल रहा है. इसलिए यह ज़रूरी है कि हम जिसनी हो सके सावधानी बरतें. कोरोना वायरस के वेरिएंट न बने इसके लिए ज़रूरी है कि इसके फैलने को पूरी तरह से रोका जाए."
पीएचई ने कहा है कि फ़िलहाल कोरोना के कारण जो इलाक़े सबसे अधिक प्रभावित हैं उसमें उत्तर पश्चिमी इंग्लैंड शामिल है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने हाल ही में कोरोना वायरस के वेरिएंट के नामकरण के लिए एक नए सिस्टम का ऐलान किया था.
इसके तहत भारत, ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका समेत दूसरे देशों में पाये जाने वाले कोरोना वेरिएंट का नाम रखने के लिए ग्रीक भाषा के अक्षरों का इस्तेमाल किया जाना है.
भारत में सबसे पहले पाये गए B.1.617.1 वैरिएंट को कप्पा और B.1.617.2 वेरिएंट को डेल्टा कहा जाएगा.
साथ ही ब्रिटेन में पाये गए वेरिएंट को अल्फ़ा और दक्षिण अफ़्रीका में पाये गए वेरिएंट को बीटा नाम दिया गया है. (bbc.com)
टोरंटो, 4 जून | टोरंटो के ब्रैम्पटन शहर में अपनी पत्नी की कथित हत्या के आरोप में 64 वर्षीय पंजाबी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। जरनैल रंधावा (64) को उनकी पत्नी दलबीर कौर रंधावा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पत्नी की उम्र भी 64 साल थी। पुलिस ने कहा कि उस पर सेकेंड डिग्री मर्डर का आरोप लगाया जाएगा।
हत्या बुधवार को हुई थी और पुलिस को एक कॉल आने के बाद पता चला कि एक बेहोश महिला शहर की पगडंडी पर पड़ी है।
घटनास्थल पर पहुंचने पर पुलिस ने पाया कि महिला को कई जगह गंभीर चोट लगी थी। उसकी पहचान दलबीर कौर रंधावा के रूप में की गई। पैरामेडिक्स ने पीड़िता की जान बचाने
का भरसक प्रयास किया, लेकिन उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया।
जांच के बाद पुलिस ने उसके पति जरनैल रंधावा को मुख्य संदिग्ध पाया और उसे गिरफ्तार कर लिया।
ब्रैम्पटन कनाडा में पंजाबी समुदाय की सबसे बड़ी एकाग्रता का घर है। वास्तव में, इंडो-कैनेडियन शहर की लगभग 700,000 की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा बनाते हैं।(आईएएनएस)
इंडोनेशिया में हिजाब पहनकर हैवी मेटल संगीत बजाने वाली लड़कियों ने कम उम्र में ही अपने प्रशंसक तो बहुत बनाए लेकिन अपने माता-पिता पर जीत हासिल करने में उन्हें एक कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ा.
वॉयस ऑफ बेसप्रोट (तेज आवाज) के पीछे की छोटी तिकड़ी ने साल 2014 में युवा किशोरियों के रूप में वीओबी बनाने के बाद दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल राष्ट्र के संगीत समारोहों में अपने कौशल को निखारने के लिए सालों बिताए. तीनों लड़कियों ने पश्चिम जावा प्रांत के रूढ़िवादी शहर में बड़े होते हुए लंबा सफर तय किया है. उन्होंने अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए परिवार और पड़ोसियों के तानों को नजरअंदाज किया.
19 साल की बासिस्ट विदी रहमावती कहती हैं, "मेटल संगीत के कारण, मेरे पास अपने मन की बात कहने का साहस और दूसरों से अलग होने का आत्मविश्वास है." वे कहती हैं, "जब मैं मंच पर होती हूं, तो मैं उन नियमों की चिंता किए बिना खुद को व्यक्त कर सकती हूं जिसकी लोग मुझसे उम्मीद करते हैं."
अगर तीनों उन नियमों का पालन कर लेती तो उनकी शादी हाई स्कूल के बाद ही हो गई होती. ऐनक पहनी 20 साल की फिरदा मर्सिया कुर्निया कहती हैं, "मेरे माता-पिता ने मुझसे कहा था कि पढ़ना बेकार है, संगीत बजाना तो दूर की बात है. उन्होंने कहा कि एक बार मेरी शादी हो जाती है तो मेरे पति मुझे किताबें पढ़ने के लिए नहीं बल्कि घर पर रहकर खाना बनाने और सफाई करने के लिए कहेंगे."
तीनों के जिद्दी संकल्प ने आखिरकार उनके संशयी माता-पिता पर जीत हासिल करने में मदद की और वे अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए पिछले साल राजधानी जकार्ता चली आईं. कुर्निया कहती हैं, "संगीत हमारे लिए खुशी हासिल करने और अन्य लोगों के साथ साझा करने का जरिया है. अगर दर्शकों को हमारे संगीत से कुछ संदेश मिलता है तो हम आभारी हैं."
संगीत और महिला शक्ति
तीनों इन दिनों महिलाओं और पर्यावरण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए गीत लिखती हैं. संगीत विशेषज्ञ युका डियान नरेंद्र कहते हैं रूढ़िवादी सामाजिक मूल्यों की इन लड़कियों द्वारा आलोचनाएं सीमा के पार गूंजती हैं और उन्हें एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय दर्शक मिल सकता है. वे कहते हैं, "बैंड इंडोनेशिया की मुख्यधारा की मुस्लिम लड़कियों का प्रतिबिंब है."
महामारी के कारण बैंड ने कई ऑनलाइन संगीत कार्यक्रम आयोजित किया है. कोरोना के कारण अधिकांश सीमा पार की यात्राएं बंद हैं, जिसमें इंग्लैंड में वॉव यूके फेस्टिवल और ग्लोबल जस्ट रिकवरी गैदरिंग शामिल हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनकी तेज धुनों से उन्हें एक दिन शीर्ष अमेरिकी संगीत समारोह कोचेला में जगह मिलेगी. इस बीच, इन लड़कियां का कहना है कि वे अपने गृहनगर की महिलाओं से प्रेरणा लेती रहेंगी, जहां कई महिलाएं कमर तोड़ काम करती हैं.
ड्रम बजाने वाली इज सिति असियाह कहती हैं, "वहां की महिलाओं के साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार किया जाता है. लेकिन हमारे गांव में बहुत मजबूत महिलाएं भी हैं."
(dw.com)
एए/सीके (एएफपी)
हाल के सालों में चीन में दूध का प्रचार और मांग दोनों तेजी से बढ़े हैं. सरकार भी दूध उत्पादन को बढ़ावा दे रही है. नतीजतन दो सौ नए फार्म बनाए जा रहे हैं. लेकिन उनके लिए गाय नहीं हैं.
चीन में दूध की चाह बहुत बढ़ गई है. बाजार में मांग भी लगातार बढ़ रही है. और जब से डॉक्टरों ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान सेहत के लिए दूध के फायदों के बारे में बात करनी शुरू की है, तब से तो पूरे देश में मिल्क फार्म बनाने की होड़ सी शुरू हो गई है. लेकिन एक समस्या है. चीन के पास गाय नहीं है. जिस तरह से मांग बढ़ रही है, चीन को कम से कम दस लाख गायों की जरूरत है, जो एक बड़ी चुनौती है.
चीन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक है. लेकिन पिछले साल देश में कुल उत्पादन यानी साढ़े तीन करोड़ टन दूध घरेलू मांग भी पूरी नहीं कर पाया और जरूरत से तीस फीसदी कम रह गया. एक तो करेला, उस पर नीम चढ़ाने का काम चारे की बढ़ती कीमतों ने कर दिया है, जो इस वक्त कई साल में सबसे ज्यादा ऊंचाई को छू रही हैं. जमीन और पानी की भी कमी हो रही है, जिस कारण दूध उत्पादन महंगा होता जा रहा है.
मांग में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
बीजिंग स्थित कंसल्टेंसी फर्म बीजिंग ओरिएंट डेयरी के मुताबिक पिछले साल दूध के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए थे और सरकार ने नई सब्सिडी भी दी, जिसका असर यह हुआ कि देश में दो सौ नए डेयरी फार्म बनाए जाने का ऐलान हो गया. फर्म के विश्लेषण के अनुसार नए फार्म प्रोजेक्ट्स में से 60 प्रतिशत ऐसे हैं जो दस हजार से ज्यादा गाय रखने वाले होंगे. यानी आने वाले सालों में 25 लाख गाय और चाहिए होंगी.
ये आंकड़े देखने से तो यही लगता है कि 62 अरब डॉलर की चीन का दूध बाजार और बड़ा होने वाला है. सरकार ने दूध और उसके फायदों का जबर्दस्त प्रचार किया है. इसका मकसद ग्रामीण दुग्ध उद्योग को मदद पहुंचाना भी था. यूं भी चीन में दूध का उपभोग बाकी देशों से काफी कम है. यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल के मुताबिक अमेरिका में प्रति व्यक्ति दूध उपभोग 50 लीटर सालाना है जबकि चीन में सिर्फ 6.8 लीटर. यानी उपभोग और बाजार दोनों के बढ़ने की गुंजाइश है.
चायना मॉडर्न डेयरी होल्डिंग्स लिमिटेड के सीईओ गाओ लिना बताती हैं, "औसत प्रति व्यक्ति उपभोग अभी भी बहुत कम है. गुंजाइश तो बहुत है.” गाओ लिना कहती हैं कि लोगों ने, खासकर बच्चों ने और ज्यादा चीज़ खाना शुरू कर दिया है, जो मांग को और बढ़ाएगा. एक किलो चीज़ बनाने के लिए आमतौर पर दस किलो दूध की जरूरत होती है.
कीमती है दूध
वैसे, चीन में दूध की छवि ऐसी है कि आज भी इसे तोहफे के तौर पर दिया जाता है. ताजा दूध वहां लगभग दो डॉलर (करीब 145 रुपये) प्रति लिटर मिलता है, जो ब्रिटेन और अमेरिका के दामों से लगभग दोगुना है. चीन में दूध 240 मिलीलीटर के पाउच में मिलता है. पर अब ताजे दूध की मांग भी बढ़ रही है. 2020 के पहले 11 महीनों में ताजा दूध की मांग 21 प्रतिशत बढ़ी, जबकि पैकेट में आने वाले दूध की मांग 10.4 प्रतिशत. (dw.com)
हॉन्गकॉन्ग, 3 जून | हॉन्गकॉन्ग के तट पर गुरुवार को एक मालवाहक जहाज में भीषण आग लग गई, जिस पर बाद में काबू पा लिया गया। इस हादसे में किसी के भी हताहत होने की सूचना नहीं मिली है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने सरकार के हवाले से बताया, यह आग बुधवार को शाम 5:26 बजे लगी। उस वक्त मेटल स्क्रैप से लदा यह जहाज त्सिंग यी के दक्षिण के लिए रवाना होने वाला था। रात 11.09 बजे भी इसकी तीव्रता तीसरे अलार्म तक आंकी गई, जबकि सबसे उच्चतम तीव्रता 5 अलार्म तक होती है।
स्थानीय मीडिया के मुताबिक, 120 मीटर लंबे इस मालवाहक जहाज में करीब 2,000 टन धातु का कबाड़ ढोया जा रहा था। (आईएएनएस)
तेहरान, 3 जून | तेहरान में शाहिद टोंडगुयान तेल रिफाइनरी में भीषण आग लग गई है। ये जानकारी स्थानीय मीडिया के हवाले से मिली है।
तेहरान संकट प्रबंधन टीम के प्रबंध निदेशक मसूर दरजाती ने बुधवार रात स्टेट टीवी को बताया, "तेहरान रिफाइनरी में तरल गैस संचारण लाइनों में से एक क्षतिग्रस्त हो गई है, लेकिन जाहिर तौर पर कोई गंभीर खतरा नहीं है।"
दाराजती ने कहा कि आग पर काबू पाने के लिए दमकलकर्मियों को इलाके में भेजा गया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, तेहरान के आपातकालीन केंद्र ने घोषणा की कि अब तक इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ है।
इस बीच, शाहिद टोंडगुयान ऑयल रिफाइनरी के जनसंपर्क ने तोड़फोड़ अधिनियम की संभावना को खारिज कर दिया।
स्थानीय मीडिया ने आग से घने धुएं की तस्वीरें प्रकाशित कीं जो शहर के अन्य हिस्सों से दिखाई दे रही थीं। (आईएएनएस)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा शुक्र ग्रह पर दशक के अंत तक दो मिशन भेजने वाला है. इनका मकसद यह पता लगाना होगा कि शुक्र "एक नरक जैसी दुनिया" क्यों बन गया. ये मिशन साल 2028 से 2030 के बीच लॉन्च होंगे.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बुधवार को शुक्र ग्रह के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए दो नए मिशनों की घोषणा की, जो पृथ्वी के "हॉटहाउस" पड़ोसी के वायुमंडल पता लगाने के लिए दशकों में पहला है. नासा के डिस्कवरी कार्यक्रम ने दो मिशनों के लिए पचास-पचास करोड़ डॉलर का बजट दिया है, जो 2028 और 2030 के बीच होगा. शुक्र के लिए अंतिम अमेरिकी नेतृत्व वाला मिशन 1978 में हुआ था. यह घोषणा अंतरिक्ष एजेंसी के मंगल ग्रह पर सफल मिशन के बाद हुई है, जिसमें नासा का रोवर मंगल के सतह पर सफलतापूर्वक उतरा और नासा के छोटे रोबोट हेलिकॉप्टर इंजेन्युइटी ने मंगल ग्रह की सतह पर उड़ान भी भरी थी.
शुक्र ग्रह पर क्यों जाना चाहता है नासा?
नासा के नए प्रशासक बिल नेल्सन के मुताबिक, "इन दो मिशनों का उद्देश्य यह समझना है कि शुक्र कैसे एक भट्टी जैसी दुनिया बन गया, जिसकी सतह सीसा को पिघलाने में सक्षम है." उन्होंने कहा, "मिशन पूरे विज्ञान समुदाय को एक ऐसे ग्रह की जांच करने का मौका देंगे जिसपर हम 30 से ज्यादा सालों से नहीं गए हैं." हालांकि मिशन का नेतृत्व नासा कर रहा है, जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) इन्फ्रारेड मैपर की आपूर्ति करेगा. इटली की स्पेस एजेंसी और फ्रेंच सेंटर नेशनल डी'ट्यूड्स स्पैटियल्स मिशन के लिए रडार और अन्य उपकरण मुहैया कराएंगे.
नासा के डिस्कवरी कार्यक्रम के मुख्य वैज्ञानिक टॉम वैगनर के मुताबिक, "यह आश्चर्यजनक है कि हम वास्तव में शुक्र के बारे में कितना कम जानते हैं. लेकिन इन मिशनों के संयुक्त परिणाम हमें ग्रह और उसके आकाश में बादलों से लेकर उसकी सतह पर ज्वालामुखियों के बारे में बता पाएंगे." वैगनर कहते हैं, "इन दो अंतरिक्ष मिशनों की मदद से इतनी जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि यह लगभग शुक्र की दोबारा खोज जैसा होगा."
दो मिशनों के लक्ष्य क्या हैं?
दविंची+ (डीप एटमॉस्फियर इंवेस्टिगेशन ऑफ नोबल गैसेस, केमिस्ट्री एंड इमेजिंग) शुक्र के कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण की उत्पत्ति का पता लगाने की कोशिश करेगा. साथ ही यह भी पता लगाने की कोशिश होगी कि क्या शुक्र पर कोई समुद्र भी था. दविंची+ इसकी तीव्र ग्रीनहाउस गैसों के कारणों का पता लगाने की कोशिश करने के लिए ग्रह के तत्वों को मापेगा. नासा के प्रशासक ने कहा कि शुक्र पर भेजे जाने वाले दूसरे मिशन का नाम वेरिटास है, जो शुक्र की सतह पर कठोर चट्टान के नमूने प्राप्त करके इस पड़ोसी ग्रह के भूवैज्ञानिक विज्ञान को समझने में मदद करेगा. इसके जरिए यह समझने में मदद मिल सकती है कि यह ग्रह कैसे बना.
समान आकार और संरचना के कारण शुक्र को अक्सर पृथ्वी की बहन ग्रह कहा जाता है.
एए/सीके (एएफपी)
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान नौकरियों के नुकसान ने "पांच साल की प्रगति" को नष्ट कर दिया है. श्रम बाजार में उपजे संकट के खत्म होने के आसार फिलहाल नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ओर से बुधवार को जारी एक रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक संकट के कारण 2022 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी, और गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ विषमता भी बढ़ेगी. आईएलओ का कहना है कि रोजगार के अवसरों में होने वाली बढ़ोतरी साल 2023 तक इस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी.
कोरोना महामारी के कारण उपजे अड़चन का अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे, दो अरब श्रमिकों पर विनाशकारी असर हुआ है. साल 2019 के मुकाबले, अतिरिक्त 10 करोड़ 80 लाख श्रमिक अब ‘गरीब' या ‘बेहद गरीब' की श्रेणी में हैं. संगठन का अनुमान है कि अगले साल तक वैश्विक बेरोजगारी बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी. 2019 में यह संख्या 18 करोड़ 70 लाख थी.
आईएलओ की 164 पन्नों की "विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य: रूझान 2021" नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से श्रम बाजार में पैदा संकट खत्म नहीं हुआ है और नुकसान की भरपाई के लिए रोजगार वृद्धि कम से कम 2023 तक नाकाफी होगी.
बेरोजगारी से गरीबी बढ़ रही
नौकरियों के बड़े पैमाने पर नुकसान का महिलाओं, युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ वैश्विक असमानता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए 2020 में रोजगार के अवसरों में पांच फीसदी की गिरावट आई, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा करीब चार फीसदी रहा. रिपोर्ट में दावा किया गया, "कामकाजी गरीबी उन्मूलन की दिशा में पांच साल की प्रगति बेकार चली गई."
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी ने अनुमान लगाया कि अगर दुनिया में महामारी नहीं आती तो करीब तीन करोड़ नई नौकरी पैदा हो सकती थी, लेकिन महामारी के कारण कई छोटे व्यवसाय दिवालिया हो गए हैं या गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाए रायडर ने महामारी के रोजगार पर असर के बारे में डीडब्ल्यू को बताया कि इसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा, "मौजूदा गति से, जब इसमें सुधार होना शुरू होता है, तो सबसे बड़ा जोखिम यह है कि हमारी काम की दुनिया और अधिक असमान हो सकती है, क्योंकि हमारे पास मजबूत आय और उच्च आय वाले देश हैं. वहां अत्यधिक कुशल कर्मचारियों के लिए काफी संभावनाएं दिखती हैं लेकिन इसके उलट दूसरे किनारे पर जो लोग हैं उनके लिए यह स्थिति नहीं दिखती."
रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार और काम के घंटे कम होने से बेरोजगारी का संकट और गहरा हो जाएगा.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
इस्राएल में विपक्षी दल सरकार बनाने के काफी करीब पहुंच गए हैं और उन्होंने राष्ट्रपति को समझौते के बारे में सूचित कर दिया है. यानी प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू का लंबा कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है.
बुधवार को इस्राएल के विपक्षी दल के नेता राष्ट्रपति को सूचित किया कि उनका गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार है. विपक्षी दलों के पास बुधवार आधी रात तक का ही समय था. समयसीमा खत्म होने से 35 मिनट पहले मध्यमार्गी नेता याइर लैपिड ने राष्ट्रपति रोएवन रिवलिन को एक ईमेल भेजी, जिसमें लिखा था, "मैं आपको सूचित करते हुए बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि मैं सरकार बनाने में सफल हो गया हूं.”
राष्ट्रपति रिवलिन उस वक्त इस्राएली फुटबॉल कप के फाइनल मैच में थे. उनके दफ्तर के मुताबिक उन्होंने फोन कर लैपिड को बधाई दी. लैपिड के मुख्य सहयोगी दक्षिणपंथी नेता नफ्ताली बेनेट हैं. दोनों नेताओं के बीच बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनने का समझौता हुआ है. पहले बेनेट दो साल तक प्रधानमंत्री रहेंगे. उसके बाद पूर्व टीवी होस्ट और वित्त मंत्री, 57 वर्षीय लैपिड प्रधानमंत्री बनेंगे.
इस गठबंधन में कई छोटे दल भी शामिल हैं, जो विभिन्न राजनीतिक विचारधारओँ का प्रतिनिधित्व करते हैं. मसलन, युनाइटेड अरब लिस्ट भी इस गठबंधन का हिस्सा है, जो देश की 21 प्रतिशत अरब आबादी का प्रतिनिधित्व करती है और पहली बार सरकार में शामिल हो रही है. इसके अलावा बेनेट की यामिना पार्टी है जो दक्षिणपंथी झुकाव रखती है जबकि रक्षा मंत्री बेनी गांत्स की ब्लू एंड वाइट वामपंथी झुकाव वाली पार्टी है. वाम दल मेरेत्स और लेबर पार्टी भी सरकार का हिस्सा होंगी. पूर्व रक्षा मंत्री अविग्दोर लिबरमान की राष्ट्रवादी यिसराएल बेतेनू पार्टी और पूर्व शिक्षा मंत्री दक्षिणपंथी गीडन सार की न्यू होप भी गठबंधन में शामिल हुई हैं.
बहुत मामूली बहुमत से बना यह नाजुक गठबंधन दो हफ्ते के भीतर शपथ लेने की तैयारी कर रहा है, जिस कारण नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के पास इसके सदस्यों को तोड़कर अपनी ओर मिलाने के लिए बहुत कम वक्त होगा. हालांकि, इस्राएल के राजनीतिज्ञ मानते हैं के नेतन्याहु हर संभव कोशिश करेंगे. इसमें उनके निशाने पर यामिना पार्टी के सांसद हो सकते हैं जो अरब और वामपंथियों के साथ समझौते से नाखुश हैं.
हारेत्स अखबार के राजनीतिक विश्लेषक आंशेल फेफर ने ट्विटर पर लिखा, "शांत रहिए. जब तक विश्वास मत पारित नहीं हो जाता तब तक नेतन्याहू प्रधानमंत्री हैं. और वह गठबंधन के मामूली बहुमत को तोड़ने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे. अभी यह मामला खत्म नहीं हुआ है.” 120 सदस्यों वाली इस्राएली संसद क्नेसेट में नेतन्याहू के पास 30 सीटें हैं यानी लैपिड की येश एतिद पार्टी से दोगुनी. और उनके पास कम से कम तीन अन्य धार्मिक और राष्ट्रवादी दलों का समर्थन भी है.
12 साल से प्रधानमंत्री पद पर काबिज नेतन्याहू ने सबसे लंबे समय तक इस दफ्तर में वक्त गुजारा है. हालांकि उन्हें देश और दुनिया में ध्रुवीकरण करने वाला नेता माना जाता है. 71 वर्षीय नेतन्याहू ने बेनेट-लैपिड गठबंधन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था. लेकिन पिछले दो साल में चार बार चुनाव के बावजूद वह बहुतम जीतने में नाकाम रहे हैं. इस साल 23 मार्च को हुए चुनाव में भी उनके नाकाम होने के बाद मध्यमार्गी माने जाने वाले लैपिड ने सरकार बनाने का बीड़ा उठाया था. उन्होंने नेतन्याहू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को मुद्दा बनाया और देश में ‘विवेक लौटाने' का आह्वान किया.
लैपिड ने ट्विटर पर लिखा, "यह सरकार सारे इस्राएली लोगों के लिए काम करेगी. जिन्होंने वोट दिया उनके लिए भी, और जिन्होंने नहीं दिया उनके लिए भी. यह अपने विपक्षियों का आदर करेगी और इस्राएल के सारे दलों को एक करने के हर संभव प्रयास करेगी.” यदि नई सरकार बनती है तो उसके सामने कूटनीतिक और सुरक्षा दृष्टि से कई बड़ी चुनौतियां होंगी. ईरान और फलस्तीन के साथ शांति वार्ता और अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत में युद्ध अपराधों की जांच जैसे मोर्चों के अलावा घरेलू स्तर पर डगमगाती अर्थव्यवस्था और महामारी से निपटने के काम भी आसान नहीं होंगे. 2020 में इस्राएली सरकार पर कर्ज उससे पिछले साल के 60 फीसदी से बढ़कर 72.4 प्रतिशत हो गया है.
गठबंधन के लिए हुई बातचीत में शामिल एक सूत्र ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सरकार वेस्ट बैंक जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बात ना करने की ही कोशिश करेगी ताकि वैचारिक मतभेदों को परे रखा जा सके. बेनेट कह चुके हैं कि ऐसे मुद्दों पर दोनों पक्षों को ही समझौते करने होंगे ताकि देश को वापस पटरी पर लाया जा सके.
वीके/ एए (एएफपी, रॉयटर्स)
इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के विरोधियों के बीच गठबंधन सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है जिसके बाद उनकी विदाई का रास्ता साफ़ हो गया है.
नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं और पिछले 12 साल से देश की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूमती रही है.
मार्च में हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के बाद दूसरे नंबर की पार्टी को अन्य सहयोगियों के साथ सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था.
उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था और समयसीमा समाप्त होने के कुछ ही देर पहले विपक्षी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब वो सरकार बनाएँगे.
इसके साथ ही इसराइल में राजनीतिक अनिश्चितता के बीच जारी अटकलों पर विराम लग गया है क्योंकि गठबंधन पर सहमति होने को कई लोग असंभव बात मान रहे थे.
ऐसा नहीं हो पाने की सूरत में इसराइल में दो साल के भीतर पाँचवीं बार चुनाव करवाने की नौबत आ जाती.
नेतन्याहू: हारी बाज़ी जीतना उन्हें आता है, लेकिन इस बार क्या होगा?
इसराइल में नेतन्याहू दौर ख़ात्मे की ओर, ग़ज़ा का वास्ता दे सरकार बचाने की कोशिश
गठबंधन के लिए हुए समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे. सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट प्रधानमंत्री बनेंगे.
बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे. उस साल 27 अगस्त को वो ये पद मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे.
आठ पार्टियों का गठबंधन
लेपिड ने गठबंधन का एलान करते हुए कहा, "ये सरकार इसराइल के सभी नागरिकों के लिए काम करेगी जिन्होंने हमें वोट दिया उनके लिए भी और जिन्होंने नहीं दिया उनके लिए भी. ये सरकार इसराइली समाज को एकजुट रखने के लिए हरसंभव काम करेगी."
इसराइली मीडिया में एक तस्वीर दिखाई जा रही है जिसमें येर लेपिड, नेफ़्ताली बेनेट और अरब इस्लामी राम पार्टी के नेता मंसूर अब्बास समझौते पर दस्तख़त करते दिखाई दे रहे हैं.
मंसूर अब्बास ने पत्रकारों से कहा, "ये मुश्किल फ़ैसला था, हमारे बीच कई मतभेद थे, लेकिन सहमति पर पहुँचना अहम था."
उन्होंने कहा कि "समझौते में कई ऐसी चीजें हैं जिनसे अरब समाज को फ़ायदा होगा".
वैसे नई सरकार को संसद में वोटिंग करवाने के बाद ही शपथ दिलाई जा सकेगी. येर लेपिड ने एक बयान में कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन को गठबंधन पर सहमति हो जाने के बारे में सूचित कर दिया है.
राष्ट्रपति रिवलिन ने संसद से कहा है कि जल्दी से जल्दी सत्र बुलाए ताकि वहाँ विश्वास मत करवाया जा सके.
120 सीटों वाली इसराइली संसद नीसेट में 61 का बहुमत सिद्ध करने के लिए सभी आठ पार्टियों की ज़रूरत होगी. यदि गठबंधन बहुमत साबित नहीं कर पाता तो वहाँ फिर से चुनाव करवाने पड़ सकते हैं.
इसराइल में नए गठबंठन में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी पार्टियाँ शामिल हैं. इन सभी दलों में राजनीतिक तौर पर बहुत कम समानता है मगर इन सबका मक़सद नेतन्याहू के शासन का अंत करना रहा है.
बिन्यामिन नेतन्याहू ने गठबंधन सरकार बनाने के प्रयासों को "सदी का सबसे बड़ा छल" बताते हुए चेतावनी दी थी कि इससे इसराइल की सुरक्षा और भविष्य पर ख़तरा खड़ा हो जाएगा.
उन्होंने दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट पर "लोगों को गुमराह करने" का आरोप लगाया था. वो बेनेट के पिछले बयानों की ओर इशारा कर रहे थे जिसमें उन्होंने लोगों से वादा किया था कि वो लेपिड के साथ जुड़ी ताक़तों के साथ नहीं जाएँगे.
नेतन्याहू पर आरोप और दो साल में चार चुनाव
71 वर्षीय नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेता हैं और इसराइल की राजनीति में एक पूरे दौर में उनका दबदबा रहा है.
मगर रिश्वत खोरी और धाँधली के आरोपों का सामना कर रहे नेतन्याहू की लिकुड पार्टी मार्च में हुए आम चुनाव में बहुमत नहीं जुटा पाई और चुनाव के बाद भी वो सहयोगियों का समर्थन नहीं हासिल कर सके.
इसराइल में पिछले दो सालों से लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी है और दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं.
इसके बावजूद वहाँ स्थिर सरकार नहीं बन पाई है और ना ही नेतन्याहू बहुमत साबित कर पाए हैं.
नेतन्याहू के बहुमत नहीं साबित करने के बाद येर लेपिड को सरकार बनाने के लिए 28 दिनों का समय दिया गया था लेकिन ग़ज़ा में संघर्ष की वजह से इसपर असर पड़ा.
तब उनकी एक संभावित सहयोगी अरब इस्लामिस्ट राम पार्टी ने गठबंधन के लिए जारी बातचीत से ख़ुद को अलग कर लिया.
फ़लस्तीनी चरमपंथी गुट हमास और इसराइल के बीच 11 दिनों तक चली लड़ाई के दौरान इसराइल के भीतर भी यहूदियों और वहाँ बसे अरबों के बीच संघर्ष हुआ था.
'किंगमेकर'नेफ़्टाली बेनेट की भूमिका
इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है.
ऐसे में छोटे दलों की अहमियत बढ़ जाती है जिनकी बदौलत बड़ी पार्टियाँ सरकार बनाने के आँकड़े को हासिल कर पाती हैं.
जैसे अभी 120 सीटों वाली इसराइली संसद में नेफ़्टाली बेनेट की पार्टी के केवल छह सांसद हैं, मगर विपक्ष को स्पष्ट बहुमत दिलाने में उनकी भूमिका अहम बन गई थी.
बीबीसी के मध्य पूर्व मामलों के संपादक जेरेमी बोवेन का कहना है कि नेतन्याहू की हार उनके वामपंथी विरोधियों की वजह से नहीं बल्कि उन्हीं के दक्षिणपंथी सहयोगियों के कारण हुई जिन्हें उन्होंने अपने सख़्त रवैये की वजह से दुश्मन बना लिया था. (bbc.com)
बोवेन कहते हैं कि नए गठबंधन से किसी को भी बड़े या नए फ़ैसलों की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. वो साथ ही कहते हैं कि गठबंधन के नेताओं का सारा ध्यान अभी नेतन्याहू को मात देने के बाद अपनी सरकार को बचाने पर रहेगा.
वॉशिंगटन, 3 जून | कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 17.15 करोड़ हो गए, जबकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 36.8 लाख हो गई है। जॉन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी।
गुरुवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और मरने वालों की संख्या बढ़कर क्रमश: 171,527,893 और 3,688,032 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश 33,306,908 और 595,822 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 28,307,832 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
वहीं सीएसएसई ने 30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (16,720,081), फ्रांस (5,739,995), तुर्की (5,263,697), रूस (5,031,583), यूके (4,510,597), इटली (4,223,200), अर्जेंटीना (3,852,156), जर्मनी (3,852,156), स्पेन (3,687,762) और कोलंबिया (3,459,422) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 467,706 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (335,102), मैक्सिको (227,840), यूके (128,057), इटली (126,283), रूस (120,217) और फ्रांस (109,841) में 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है। c(आईएएनएस)
मॉस्को, 2 जून | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के रूसी वायरोलॉजिस्ट और विशेषज्ञ दिमित्री लवोव ने कहा कि कोविड-19 की कृत्रिम उत्पत्ति पर चिंता का कोई महत्व (वैल्यू) नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस मुख्य रूप से चमगादड़ से जुड़े वायरस हैं। कोई व्यक्ति या तो उस कमरे में संक्रमित हुआ हो सकता है, जहां किसी चमगादड़ ने रात बिताई होगी या फिर ऐसी एक गुफा में, जहां चमगादड़ आमतौर पर बड़ी संख्या में रहते हैं।
न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले हफ्ते एक रूसी टेलीविजन कार्यक्रम में लवोव ने बताया कि जंगली जानवरों को पालतू बनाने के दौरान जानवरों से मनुष्यों में लगभग 150 वायरस पहुंचे हैं।
उन्होंने कहा कि जब एक व्यक्ति ऐसे किसी जानवर का कोई मांस खाता है, जिसका चमगादड़ के साथ पारिस्थितिक संबंध होता है, तो इस प्रकार संक्रमण का पहला स्रोत बन जाता है।(आईएएनएस)
चीन में हर जोड़े को तीन बच्चे तक पैदा करने की अनुमति मिलने के बाद वहाँ लोग बड़ी संख्या में इस पर ऑनलाइन बहस कर रहे हैं कि क्या अब बहुत देर हो चुकी है?
यह फ़ैसला हाल ही में चीन की जनगणना के आंकड़ों में जन्म दर में भारी गिरावट को देखते हुए लिया गया.
कई लोगों ने जिनमें अधिकतर मिलेनियल हैं, इस पर आश्चर्य किया कि कैसे यह घोषणा रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाने की घोषणा के साथ की गई है.
कई अन्य लोगों ने अतीत में अधिक बच्चों की चाहत के पूरा न होने की वजह से लगे सदमे के लिए मुआवज़े की मांग की है.
चीन में 1979 में एक बच्चे की सख्त नीति को शुरू किया गया था. जो परिवार इसका उल्लंघन करता उन्हें जुर्माना देना पड़ता था. उनकी नौकरी तक चली जाती थी. यह पॉलिसी इतनी सख्त थी कि वहाँ कई लोगों के जबरन गर्भपात करवा दिए गए.
अभियान चलाने वालों का कहना है कि इससे कन्या भ्रूण हत्या और लड़कियों के कम जन्म होने जैसे मुद्दों की भी रिपोर्टिंग की गई.
जिन परिवारों ने पुरानी पॉलिसी का दंश झेला है उनके साथ तब क्या हुआ था, इसकी जानकारी इस नई पॉलिसी के जवाब में अब ऑनलाइन आई हैं.
'हर कोई डेटा बन गया है'
चीन की माइक्रोब्लॉगिंग सर्विस वीबो पर एक व्यक्ति ने दावा किया कि उनकी माँ को उनके जन्म के बाद जबरन आईयूडी लगाया गया क्योंकि वे उनकी दूसरी संतान थे. उन्होंने लिखा कि मेरी माँ को आज भी इससे संक्रमण होता है.
उन्होंने 'चिलीसिरप' के बदले हुए नाम के साथ वीबो पर लिखा, "वह पॉलिसी अब एक पुरानी नोटिस भर है लेकिन ये नहीं देखा गया कि इसकी वजह से कितने लोगों ने दुख झेला है. लोग बस डेटा बन कर रह गए हैं जबकि वे सम्मान के नज़रिए से देखे जाने के हक़दार हैं."
कई लोगों ने फेंग जियामी की कहानी को भी याद किया. उन्हें गर्भावस्था के सातवें महीने में जबरन गर्भपात के लिए मजबूर किया गया था क्योंकि वे दूसरा बच्चा होने का जुर्माना नहीं भर सकती थीं.
जब फेंग और उनके जबरन निकाले गए बच्चे के भ्रूण की तस्वीर से इंटरनेट यूज़र्स हैरान हो गए और काफी प्रतिक्रियाएं आईं तब शहरी अधिकारियों ने माफ़ी मांगी थी.
इंटरनेट पर जिया शुआई के नाम से एक व्यक्ति ने बताया कि कैसे वे एक ग्रामीण इलाके में अवैध बच्चे के रूप में बड़े हुए और एक बार उन्हें परिवार नियोजन के अधिकारियों से बचने के लिए तालाब में कूदना पड़ा था
उन्होंने लिखा, "अगर आप जुर्माना नहीं दे सकते तो कुछ अधिकारी आपके घर को खाली कर देंगे और आपके मवेशी ले जाएंगे. क्या अजीब यादें हैं!"
एक अन्य यूजर ने दावा किया कि उनकी छोटी बहन आज भी जीवित हैं क्योंकि एक दयालु डॉक्टर ने उनकी माँ को अस्पताल से तब भागने दिया था, जब वो आठ माह की गर्भवती थीं और जबरन गर्भपात करने के लिए उन्हें अस्पताल बुलाया गया था.
इस दौरान प्रसिद्ध फ़िल्मकार झांग यिमो और उनकी पत्नी ने भी इस नई घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्हें भी 2014 में देश की एक बच्चे की नीति का उल्लंघन करने पर 1.2 मिलियन डॉलर (क़रीब 8 करोड़ 77 लाख भारतीय रुपये) का भारी जुर्माना भरना पड़ा था.
इस दंपति ने वीबो पर लिखा, "समय से पहले काम पूरा कर लिया."
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने क्या कहा?
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि "पहले की तरह ही अब भी यह पॉलिसी यौन और प्रजनन अधिकारों का उल्लंघन है."
एमनेस्टी इंटरनेशनल के चीन की टीम के प्रमुख जोशुआ रोसेन्ज़वेग ने कहा, "लोगों की कितनी संतानें हों ये फ़ैसला करना सरकार का काम नहीं है. अपनी जन्म नीति को बदलने से बेहतर होता कि चीन अपने लोगों पर यह निर्णय छोड़ देता और लोगों के परिवार नियोजन के निर्णयों पर किसी भी हमलावर और दंडात्मक नियंत्रणों को समाप्त कर देता."
मिलेनियल्स की प्रतिक्रिया
नई पॉलिसी पर सबसे अधिक प्रतिक्रिया चीन की युवा मिलेनियल पीढ़ी की ओर से आई. वे शिकायत करते हैं कि वे बीच में फंसी 'अजीब' सी पीढ़ी हैं.
एक व्यक्ति ने लिखा, "जो लोग 1980 और 1990 के बाद जन्मे हैं- हम एक ब्रेक नहीं ले सकते. सरकार हम पर अधिक बच्चे पैदा करने का दबाव बना रही है. लेकिन साथ ही वो यह भी चाहती है कि हम अधिक समय तक काम भी करते रहें. भला ये किस तरह की ज़िंदगी है?"
चार दशकों से चीन में रिटायरमेंट की उम्र पुरुषों के लिए 60 और महिलाओं के लिए 55 साल बनी हुई है. इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. लेकिन सोमवार को चीन ने कहा कि वह रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाएगा. हालांकि उसने इसके बारे में और कोई जानकारी नहीं दी.
तीन बच्चे की नई नीति पर एक यूज़र ने लिखा, "तीन को तो छोड़ दो, मुझे एक भी नहीं चाहिए."
अभी नई पॉलिसी पर और अधिक जानकारी नहीं आई है लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों ने संदेह जताना शुरू कर दिया है कि इस बदलाव से जन्म दर बढ़ाने में शायद ही मदद मिले.
जब चीन ने 2016 में अपनी दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति में बदलाव कर दो बच्चों की पॉलिसी को अपनाया था तब भी जन्म दर में लगातार वृद्धि नहीं देखी गई.
कॉमर्ज़बैंक में एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हाओ झोउ ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "अगर जन्म नीति में ढील देना प्रभावी होता तो दो बच्चों की पॉलिसी को अपनाने का भी असर होना चाहिए था." (bbc.com)
सैन फ्रांसिस्को, 2 जून | अमेजॉन ने बुधवार को 21-22 जून को चुनिंदा देशों में अपने प्राइम डे की शुरूआत करने और महामारी के बीच छोटे व्यवसाय बेचने वाले भागीदारों का समर्थन करने की घोषणा की।
कंपनी ने एक बयान में कहा कि दो दिवसीय खरीदारी समारोह में प्राइम सदस्यों को फैशन, इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने, गृह सज्जा, ऑटोमोटिव और अन्य सहित हर श्रेणी में 20 लाख से अधिक सौदों की पेशकश की जाएगी।
प्राइम डे यूएस, यूके, यूएई, तुर्की, स्पेन, सिंगापुर, सऊदी अरब, पुर्तगाल, नीदरलैंड, मैक्सिको, लक्जमबर्ग, जापान, इटली, जर्मनी, फ्रांस, चीन, ब्राजील, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया और ऑस्ट्रेलिया में सदस्यों के लिए खुला है।
कंपनी ने कहा "विक्रेता इस प्राइम डे पर एक मिलियन से अधिक सौदों की पेशकश करेंगे और दो सप्ताह के लिए शॉपिंग इवेंट तक, अमेजॉन प्राइम डे पर उपयोग करने के लिए 10 डॉलर क्रेडिट की पेशकश करेगा, जो अमेजन स्टोर में चुनिंदा यूएस छोटे व्यवसाय उत्पादों और ब्रांडों पर 10 डॉलर खर्च करते हैं। "
ग्राहक 7-20 जून तक क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं।
तीसरे पक्ष के विक्रेता अमेजन पर लगभग 60 प्रतिशत बिक्री का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अमेजॉन के स्टोर में विक्रेताओं को फलने-फूलने में मदद करने के लिए 2020 में, अमेजन ने अपने लॉजिस्टिक्स नेटवर्क, टूल्स, सेवाओं, कार्यक्रमों और टीमों में 18 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया।
कंपनी ने कहा, "इस प्राइम डे, हम छोटे व्यवसायों के साथ अपनी साझेदारी का जश्न मनाना चाहते हैं और उन्हें अधिक ग्राहकों तक पहुंचने और अमेजन के साथ और भी अधिक बढ़ने के लिए सशक्त बनाना चाहते हैं।" (आईएएनएस)
काबुल, 2 जून | अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मंगलवार शाम एक बस को निशाना बनाकर किए गए बम हमले में कम से कम छह नागरिकों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। मंत्रालय के हामिद रोशन ने कहा, "शुरूआती जानकारी में पाया गया कि छह नागरिक मारे गए और सात अन्य घायल हो गए। हताहतों की संख्या बदल सकती है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने उनके हवाले से कहा, यह घटना पुलिस जिला 3 के मस्जिद-ए-हलेबिद इलाके में एक बस स्टॉप के पास शाम करीब 7:15 बजे हुई।
अधिकारी ने कहा कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि यह रिमोट कंट्रोल से विस्फोट किया गया था।
स्थानीय निवासियों ने स्थानीय मीडिया को बताया कि विस्फोट के बाद उसी जिले में एक और विस्फोट हुआ।
अभी तक किसी भी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
पिछले वर्षों में, राजधानी शहर तालिबान और इस्लामिक स्टेट (आईएस) समूह के आतंकवादियों द्वारा सरकार का विरोध करने वाले आतंकवादी हमलों से प्रभावित हुआ था।(आईएएनएस)
लंदन, 2 जून | इंग्लैंड के बाएं हाथ के पूर्व स्पिनर मोंटी पनेसर ने कहा है कि भारत और न्यूजीलैंड के बीच 18 जून से शुरू होने वाली विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) फाइनल के दौरान साउथम्पटन की पिच स्पिनरों को मदद करेगी और इससे भारत को फायदा होगा। डब्ल्यूटीसी का फाइनल 18 से 22 जून तक साउथम्पटन में भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेला जाएगा।
पनेसर ने आईएएनएस से कहा, " मुझे लगता है कि साउथम्पटन का विकेट स्पिनरों की मदद करेगा और न्यूजीलैंड के खिलाड़ी स्पिन को बहुत अच्छी तरह से नहीं खेलते हैं और ऐसे में यहां पर भारत को फायदा होने वाला है।"
पनेसर ने इससे पहले कहा था कि भारत और इंग्लैंड के बीच होने वाली आगामी पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में 5-0 से जीतेगा, लेकिन अब उनका कहना है कि भारत मेजबान इंग्लैंड पर क्लीन स्वीप नहीं कर पाएगा। हालांकि उन्होंने कहा कि भारतीय टीम आगामी सीरीज जीत सकती है क्योंकि उसके पास अच्छे तेज गेंदबाज और अनुभवी बल्लेबाज हैं।
उन्होंने कहा, " मुझे लगता है कि इस बार इसका संबंध मौसम से है, लेकिन भारत की यह टीम भी काफी मजबूत है। उनके पास अच्छे तेज गेंदबाज हैं, वे स्विंग गेंद को बेहतर तरीके से खेलते हैं और उनके स्पिनरों के पास इस बात का बेहतर विकल्प है कि कैसे अच्छा प्रदर्शन किया जाए। मौजूदा भारतीय टीम बहुत अच्छा खेल रही है। वह 5-0 से नहीं, लेकिन सीरीज जरूर जीतेगी।"
39 साल के पनेसर ने कहा कि इंग्लैंड की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि अनुभवी तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड किस तरह से प्रदर्शन करते हैं।
पूर्व स्पिनर ने कहा, " मैं समझता हूं कि इंग्लैंड की टीम इंग्लैंड में बहुत अच्छी है। लेकिन भारत ने भी स्पिन के खिलाफ तरीका खोज लिया है। इसलिए यह काफी दिलचस्प सीरीज होने वाली है। हमें यह देखना होगा कि जेम्स एंडरसन और स्टुर्ट ब्रॉड किस तरह का प्रदर्शन करते हैं।"(आईएएनएस)
रूस के इस खूबसूरत गांव के लिए कोरोना वायरस महामारी किसी वरदान की तरह आई है. यहां जमीन के दाम दोगुने हो गए हैं. लोग आए हैं तो साथ में तरक्की भी चली आई है.
काला सागर के करीब बसा क्रासन्या पोल्याना किसी पेंटिंग सा खूबसूरत है. इसके नाम का अर्थ है घास के लाल मैदान. घास तो नहीं, पर जमीन के दाम आजकल क्रासन्या पोल्याना में जरूर लाल चल रहे हैं. मॉस्को में रहने वाले लोगों में दूर-दराज इलाकों में रहने का चलन बढ़ रहा है क्योंकि वे घरों से काम कर सकते हैं. इस चलन ने क्रासन्या पोल्याना की सूरत ही बदल दी है. पांच गलियों का यह गांव चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है. साफ हवा, नीला आसमान और जरा भी भीड़ नहीं. ये चीजें मॉस्को में तो कम से कम नसीब नहीं होतीं.
क्रासन्या पोल्याना की आबादी पांच हजार है, जो किसी रूसी गांव के लिए आम बात है. लेकिन जो बात आम नहीं है, वह है किसी गांव में 20 कैफे, रेस्तरां, एक पब और एक बार का होना. और हां, तेज वाई फाई भी. क्रासन्या पोल्याना में कुछ रेस्तरां तो महामारी से पहले भी थे जो स्कीइंग के लिए आने वालों के भरोसे चलते थे. 2014 के विंटर ओलंपिक के वक्त यहां से कुछ दूर कुछ रिजॉर्ट्स बनाए गए थे, जिसके बाद स्कीइंग करने के लिए लोग आने लगे थे. लेकिन महामारी के चलते आने वाले लोगों ने इन रेस्तराओं की किस्मत चमका दी और मौसमी तौर पर खुलने वाले ये रेस्तरां अब सालभर खुलने लगे हैं.
महामारी ने रूस में दूसरा घर खरीदने का चलन बढ़ाया है. जिसका असर प्रॉपर्टी की कीमतों पर भी हुआ है. रूस में जमीन के दाम 100 वर्ग मीटर के हिसाब से आंके जाते है, जिसे सोत्की कहा जाता है. एक स्थानीय एजेंट निकोलाई रोगाचेव के मुताबिक क्रासन्या पोल्याना में एक सोत्का जमीन की कीमत 20 लाख रूबल्स यानी करीब 20 लाख रुपये से बढ़कर 50 लाख रूबल यानी लगभग 50 लाख रुपये (प्रति 100 वर्ग मीटर) हो गई है. संभावना है कि 2021 के आखिर तक यह कीमत 70 लाख रूबल तक पहुंच जाएगी. एक अन्य प्रॉपर्टी एजेंट के शब्दों में, "हम इसे जोम्बी-कयामत कहते हैं.”
सीआईएएन रीयल एस्टेट के आंकड़ों के मुताबिक गांव में कॉटेज की कीमत 40 लाख रुबल से लेकर नौ करोड़ रूबल तक हो सकती है. यह मांग बड़े शहरों के धनी उद्योगपतियों के कारण बढ़ी है क्योंकि आम रूसी के लिए तो यह कीमत आसमान जैसी ऊंची है.
गांव में घरों का किराया भी बढ़ गया है. बहुत से ऐसे लोग अब क्रासन्या पोल्याना में किराये पर रह रहे हैं, जिनके दफ्तर मॉस्को में हैं और घरों से काम करने की इजाजत या सहूलियत दे रहे हैं. गांव से एयरपोर्ट सिर्फ 40 किलोमीटर है और हाइकिंग भी की जा सकती है. यह बहुत से लोगों को रास आता है. मॉस्को के डेटा ऐनालिस्ट किरील रिजोनकोव कहते हैं, "मुझे हाइकिंग करना बहुत पसंद है. शाम के वक्त आसपास के इलाकों में कुछ लोगों से बढ़िया बातचीत का भी अपना आनंद है."
बीते अक्टूबर में गांव में काम करने के लिए सार्वजनिक दफ्तर भी खुल गया है, जो आमतौर पर आईटी और स्टार्टअप विशेषज्ञ इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके मालिक को उम्मीद है कि महामारी जो भी रूप से क्रासन्या पोल्याना का रूस का सिलिकन वैली बनना तय है.
इस को-वर्किंग स्पेस के मैनेजर इल्या क्रेमर कहते हैं, "लोगों को फायदे नजर आने लगे हैं. मॉस्को का वक्त वही है जो गांव का है. सिर्फ दो घंटे की फ्लाइट है. सर्दियों में स्की और गर्मियों में समुद्र तट उपलब्ध है. और ओलंपिक के कारण यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार है." (dw.com)
एक अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि बगराम एयर बेस को लगभग 20 दिनों में अफगान अधिकारियों को सौंपे जाने की उम्मीद है. अफगान रक्षा मंत्रालय ने इसे प्रबंधित करने के लिए विशेष समितियों का गठन किया है.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना लगभग दो दशक के युद्ध के बाद वतन लौटने के अंतिम चरणों में है. एक वरिष्ठ अमेरिकी सैन्य अधिकारी का कहना है कि वे लगभग 20 दिनों के भीतर देश के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे बगराम एयर बेस का इस्तेमाल बंद करेंगे और इसे अफगान सरकार को सौंप दिया जाएगा. एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हम बगराम एयर बेस (अफगान सरकार) को सौंप रहे हैं." उन्होंने यह नहीं बताया कि हस्तांतरण कब होगा लेकिन एक अफगान सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि लगभग 20 दिनों में सैन्य हवाई अड्डे को सौंपे जाने की उम्मीद है. अफगान के रक्षा मंत्रालय ने बेस को प्रबंधित करने के लिए विशेष समितियों का गठन किया है.
बगराम एयर बेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य हवाई अड्डा है. इसे सोवियत संघ ने 1980 के दशक में बनाया था. अमेरिकी सैन्य अभियानों के दौरान हजारों अमेरिकी और नाटो सैनिक युद्धग्रस्त देश में तैनात थे.
अमेरिकी सैनिकों की त्वरित वापसी
वॉशिंगटन में पेंटागन ने संकेत दिया है कि अमेरिका अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी में तेजी ला रहा है. यूएस सेंट्रल कमांड का अनुमान है कि सोमवार तक 30 से 44 प्रतिशत निकासी का काम पूरा कर लिया गया है. छह सैन्य ठिकानों को अफगान सुरक्षा बलों को सौंप दिया गया है, जबकि आने वाले दिनों में और अधिक सैन्य ठिकानों को अफगान बलों को सौंप दिया जाएगा.
अप्रैल में, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 सितंबर तक सैन्य वापसी का लक्ष्य निर्धारित किया था. लक्ष्य के तहत अफगानिस्तान में मौजूद सभी 2,500 अमेरिकी सैनिकों और लगभग 16,000 सिविल ठेकेदारों को निकालना है. इसी के साथ अमेरिकी का दो दशक पुराना युद्ध भी समाप्त हो जाएगा. सैन्य अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रपति बाइडेन के सैन्य वापसी के फैसले के बाद से अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी तेज हो रही है. अमेरिका ने देश से अपने काफी सैन्य उपकरण भी वापस भेज दिए हैं.
अमेरिका ने पिछले महीने दक्षिणी अफगानिस्तान में कंधार एयरफील्ड से निकासी भी पूरी की, जो उस समय देश का दूसरा सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अड्डा था. बगराम एयर बेस पिछले दो दशक से अमेरिकी सेना के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण ग्राउंड और एयर बेस रहा है. बेस में एक जेल भी है जहां हजारों तालिबान और अन्य कैदी सालों से बंद हैं.
नाटो प्रमुख भी आशावादी
नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी सही दिशा में बढ़ रही है. एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक, नाटो महासचिव का कहना है कि सैन्य गठबंधन ने लगभग दो दशकों तक अफगानिस्तान को सुरक्षा सहायता प्रदान की है, उनका मानना है कि अब अपेक्षाकृत अच्छी तरह से प्रशिक्षित अफगान सरकार और उसके सशस्त्र बल अंतरराष्ट्रीय ताकतों की मदद के बिना, अपने दम पर खड़े होने के लिए काफी मजबूत हैं.
स्टोल्टेनबर्ग ने संगठन के विदेश और रक्षा मंत्रियों की एक वर्चुअल बैठक की अध्यक्षता करने के बाद पत्रकारों से कहा, "हमारे सैनिकों की वापसी एक व्यवस्थित और समन्वित तरीके से आगे बढ़ रही है, लेकिन हर स्तर पर हमारे लोगों की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है." उन्होंने कहा कि हालांकि गठबंधन सेनाएं अब अफगानिस्तान में नहीं होंगी, "30 राष्ट्र गठबंधन और उसके सहयोगी अफगानिस्तान के सक्षम और मजबूत सुरक्षा बल को निधि देना जारी रखेंगे."
इस बीच देश में हिंसा का दौर जारी है. मंगलवार को दो यात्री बसों में विस्फोट के बाद 10 नागरिकों की मौत हो गई और 12 अन्य घायल हो गए. इसी तरह, एक और विस्फोट के कारण बिजली गुल हो गई जिससे काबुल के कई हिस्से अंधेरे में डूब गए.
वहीं कतर में तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता भी ठप पड़ी हुई है. हालांकि, अफगान सरकार के वार्ताकारों का एक समूह बातचीत में शामिल होने के लिए मंगलवार को दोहा पहुंचा है. अफगान सरकार की वार्ता टीम के सदस्य नादिर नादेरी ने कहा कि शांति वार्ता जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है. तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत 12 सितंबर को शुरू हुई थी, लेकिन अभी तक कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है.
एए/ (एएफपी, एपी)
महिलाओं को मैनेजमेंट में जगह देने के मामले में जर्मनी में उतनी प्रगति नहीं हो रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी. बैंकिंग उद्योग में हुआ एक अध्ययन बताता है कि पिछले साल इसमें मामूली वृद्धि हो पाई.
जर्मनी में बैंकों के मैनेजमेंट में सिर्फ 34.8 प्रतिशत महिलाएं हैं. रोजगार के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एजीवी बांकेन के मुताबिक यह संख्या पिछले साल से बस थोड़ी सी ज्यादा है क्योंकि 2019 में 34.3 प्रतिशत महिलाएं बैंकों के मैनेजमेंट में थीं. यह आंकड़ा जर्मनी के विभिन्न उद्योगों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की एक बानगी के तौर पर देखा जा रहा है. खासकर वित्त उद्योगों में तो इसे चिंता का सबब मानकर कुछ कदम उठाने की बात भी हो रही है.
हालांकि 1990 की स्थिति के मुकाबले तो हालात बहुत बेहतर हैं जबकि मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम हुआ करती थी. लेकिन जर्मन उद्योग ब्रेक्जिट के बाद लंदन से मुकाबला कर रहे हैं तो हालात सुधारने की जरूरत महसूस की जा रही है. इसलिए कुछ संस्थाओं जैसे डॉयचे बैंक और कॉमर्स बैंक ने 35 प्रतिशत को अपना लक्ष्य बनाया है.
बदलाव की कोशिश
डॉयचे बैंक का कहना है कि वह हालात पर लगातार नजर रखेगा और तरक्की का हिसाब रखा जाएगा. जर्मनी की सबसे प्रमुख बैंकरों में शामिल कैरोला फोन श्मोटो जब अप्रैल में एचएसबीसी के प्रमुख पद से रिटायर हुईं तो उनकी जगह एक पुरुष ने ली. एचएसबीसी ने कहा कि वह सीनियर मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन फैसलों में अंतर नजर आ ही जाता है. जर्मन सांसद कान्सल कित्सेलटेपे कहती हैं कि वित्त क्षेत्र में पुरुषों का अधिपत्य है और इसे बदलना ही चाहिए.
बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप और म्यूनिख तकनीकी विश्वविद्यालय के एक साझा अध्ययन के मुताबिक महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में जर्मनी कई यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन और फ्रांस से पीछे है. ब्रिटेन में 2034 तक महिलाओं के पुरुषों की बराबरी हासिल कर लेने की उम्मीद है लेकिन जर्मनी में यह स्थिति आने में 2053 तक का वक्त लगेगा. बॉस्टन कन्सल्टिंग की महाप्रबंधक और रिपोर्ट की लेखिका निकोल फोग्ट कहती हैं, "हम आबादी में आधी हैं तो संख्या बराबर क्यों न हो? 35 प्रतिशत क्यों हो?"
सरकार भी चिंतित
जर्मनी में सरकार भी इस जरूरत को समझती दिखती है. इसलिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. मसलन, जून में संसद में एक कानून बनाने पर बात हो सकती है जिसमें सूचीबद्ध 70 बड़ी कंपनियों में, जहां बोर्ड में तीन या उससे ज्यादा सदस्यों का होना जरूरी है, उनमें कम से कम महिला का होना अनिवार्य किया जा सकता है. हालांकि आलोचक इससे बहुत संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि जिन कंपनियों के बोर्ड में दस लोग होंगे, वहां भी सिर्फ एक महिला का होना काफी होगा.
फ्री डेमोक्रैट सांसद बेटिन स्टार्क-वात्सिंगर कहती हैं, "कानूनों के बावजूद हाल के दशकों में सच ज्यादा नहीं बदल पाया है." दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में शामिल यूबीएस की यूरोप में अध्यक्ष क्रिस्टीन नोवाकोविच कहती हैं कि मुश्किलें सिर्फ कानून को लेकर नहीं हैं. वह कहती हैं, "दुर्भाग्य से, अब भी अक्सर ऐसा होता है कि महिलाएं परिवार और करियर में सामंजस्य नहीं बिठा पातीं."
महिलाओं को वेतन में गैरबराबरी भी यूरोप में जिन देशों में सबसे ज्यादा है, जर्मनी उनमें से एक है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि 2020 में यूनिक्रेडिट की जर्मनी में सीनियर एग्जिक्यूटिव को पुरुषों से 76 प्रतिशत कम वेतन मिला और यह बाकी दुनिया की शाखाओं से कम है. हालांकि बैंक का कहना है कि इस साल उसने यह अंतर काफी कम कर दिया है.
एक अन्य सांसद लीजा पॉज चाहती हैं कि बोर्ड में महिलाओं की उपस्थिति को लेकर सख्त कानून बनाया जाए. वह कहती हैं, "बैंकिंग क्षेत्र बड़े बदलावों से गुजर रहा है. इसमें ताजा हवा की जरूरत है और मैनेजमेंट में ज्यादा महिलाओं की भी."
वीके/एए (रॉयटर्स)
-रियाज़ सुहैल
बिजली कब आए और कब जाए. न इसका पता और न ही इंटरनेट का भरोसा की कब चलना बंद हो जाए. तमाम कठिनाइयों से जूझ कर भी राबिया नाज़ शेख़ रोज़ वीडियो बनाती और यूट्यूब के अपने फ़ैशन चैनल पर अपलोड करती हैं.
यूट्यूब राबिया के शौक़ के साथ उनकी आमदनी का ज़रिया है. पाकिस्तान में जहां बहुत से लोगों के लिए अपना घर बनवाना किसी सपने से कम नहीं है, वहीं राबिया इसी आमदनी से दो कमरों का घर बनवाने में कामयाब हो रही हैं.
रोज़गार के इस ज़रिए ने उनकी ज़िंदगी बदल दी है.
सिंध के ज़िले ख़ैरपुर के क़स्बे राहूजा की रहने वालीं 25 वर्षीय राबिया नाज़ ने एक साल पहले यूट्यूब पर 'फ़ैशन एडिक्शन' के नाम से एक चैनल बनाया. यह चैनल चल पड़ा और अब इस पर एक लाख 60 हज़ार से अधिक सब्सक्राइबर्स हो चुके हैं.
यहाँ तक कि यूट्यूब से उन्हें सिल्वर प्ले बटन भी मिल गया है.
राबिया नाज़ ने इंटर तक की पढ़ाई की है. उनका कहना है कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से पढ़ाई छोड़ी थी.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि उन्हें यूट्यूब का बहुत शौक़ था, वे बचपन से ही बड़े शौक़ से यूट्यूब पर वीडियो देखा करती थीं. पाकिस्तान में राबिया समेत बहुत से युवा गूगल को अपना गुरु मानते हैं.
ऐसे में राबिया को आइडिया आया कि क्यों न यूट्यूब पर वो अपना एक चैनल बनाएं और ऐसी चीज़ों से लोगों को अवगत कराया जाए जो उनके लिए दिलचस्प हों.
वे कहती हैं, "यूट्यूब पर वीडियो बनाने के लिए मैंने ज़्यादातर इंटरनेट से ही सीखा है. वहाँ पर सारी मदद और ट्रेनिंग उपलब्ध है. मेरे भाइयों ने मुझे वीडियो एडिटिंग सिखाई और बाक़ी सारा काम मैंने ख़ुद ही किया और अपना दिमाग़ लगाया."
राबिया नाज़ बताती हैं कि उन्होंने सिलाई सीखी थी और इंटरनेट से डिज़ाइन देखकर अपने और घरवालों के कपड़े बनाती थीं. इस सिलाई के शौक़ की वजह से उनका फ़ैशन इंडस्ट्री से संबंध बना और उन्होंने फ़ैशन चैनल शुरू किया.
फ़ैशन वीडियोज़ की तैयारी
राबिया नाज़ रोज़ाना एक वीडियो बनाती हैं. उनका कहना है कि वो अपने वीडियो की तैयारी से पहले जो फ़ैशन चैनल चल रहे हैं उनका काम देखती हैं कि वो क्या कर रहे हैं.
उसके बाद ये देखती हैं कि जो महिलाओं के कपड़ों के ब्रांड्स हैं वो किस तरह के डिज़ाइन दिखा रहे हैं, यानी कपड़ों में किस तरह की कटिंग है, उसके बाज़ू, उसके पाएंचे वग़ैरह किस स्टाइल में हैं और आजकल के फ़ैशन में क्या पसंद किया जा रहा है.
उन सब कामों के लिए किसी मशहूर फ़ैशन कंपनियों के पास हज़ारों लोग होते हैं लेकिन राबिया अपने चैनल के लिए 'वन मैन आर्मी' हैं.
वे कहती हैं कि 'पहले मैं विभिन्न वेबसाइट पर जाकर तस्वीरें डाउनलोड करती हूँ. उसके बाद स्क्रिप्ट लिखती हूँ कि क्या बोलना है. अगले चरण में मैं वॉयस ओवर करती हूँ.'
"इन तमाम चीज़ों को सॉफ्टवेयर की मदद से तस्वीर से जोड़ती हूँ और एडिटिंग करती हूँ. इस पूरे काम में दो से ढाई घंटे आराम से लग जाते हैं. फिर काम पूरा होने के बाद इस वीडियो को यूट्यूब पर अपलोड कर देती हूँ."
अपने चैनल के वीडियो बनाने के लिए राबिया नाज़ के पास एक आम स्मार्टफ़ोन है जो शायद आजकल हर किसी के पास मौजूद होता है.
उनके पास न अपना कंप्यूटर है और न ही कोई टेबल या कुर्सी. वो बस चारपाई पर बैठकर, दीवार से टेक लगाकर ये काम करती हैं.
'वीडियो डिलीट कर दें'
चैनल शुरू करने के बाद राबिया को मुश्किल वक़्त से गुज़रना पड़ा था और एक ऐसा वक़्त भी आया था जब वो अपने चैनल की कामयाबी को लेकर मायूस हो गई थीं. लेकिन फिर यूट्यूब पर उनकी एक दोस्त ने उनकी मदद की और एक नया रास्ता दिखाया.
राबिया नाज़ बताती हैं कि "शुरुआत में मैं वीडियोज़ में म्यूज़िक लगाती थी और जब तस्वीर लेती थी तो उन्हें जोड़कर उसमें म्यूज़िक लगा देती थी."
इसके कारण नाज़िया के व्यूअर्स तो हज़ारों में हो गए लेकिन उनका चैनल मोनेटाइज़ नहीं हो पा रहा था यानी उनके लिए पैसे नहीं बना पा रहा था जिसके कारण राबिया के अपने काम में दिलचस्पी कम होती चली जा रही थी.
लेकिन फिर यूट्यूब पर उनकी एक दोस्त ने बताया कि "जब तक वो वॉयस ओवर नहीं करेंगी, पैसे नहीं बनेंगे."
"ये सुनकर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि इतने समय से मैंने वीडियो बनाकर अपलोड किए लेकिन अब उन्हें डिलीट करने का मतलब यह था कि सारी मेहनत बेकार चली जाएगी."
वो कहती हैं, "लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी तमाम वीडियो डिलीट करके दोबारा से वॉयस ओवर करके नए वीडियो डाले. इस पूरे काम के बाद वीडियो की मदद से मोनेटाइज़ यानी आमदनी हासिल करने में पूरा साल लग गया."
यूट्यूब की आमदनी से हैरान हैं लोग
राबिया नाज़ जब यूट्यूब पर अपना चैनल बेहतर बनाने की कोशिशों में लगी हुई थीं उस वक़्त दुनिया में कोरोना वायरस फैल चुका था और दफ़्तर बंद हो चुके थे. राबिया बताती हैं कि उन्हें कोविड की वजह से बड़ी कठिनाइयां पेश आईं.
"जब यूट्यूब किसी का चैनल मोनेटाइज़ करता है तो डाक के ज़रिए एक कोड भेजता है जिसकी मदद से रक़म मिलती है. मेरा वो कोड नहीं आ रहा था. हमने स्थानीय डाक घर के कई चक्कर लगाए लेकिन वो कोड हमारे पास नहीं आया. इसके बाद मैंने यूट्यूब के पास मदद के लिए ईमेल किया तो उन्होंने मेरे पहचान पत्र को स्वीकार करते हुए मेरे लिए रक़म जारी की."
यूट्यूब से पहचान साबित होने के बाद अगली चुनौती बैंक अकाउंट की थी और यह भी आसान नहीं था.
राबिया नाज़ के मुताबिक़ जब वो अपने इलाक़े की तहसील हेडक्वॉर्टर पीर जो गोठ में एक निजी बैंक में अपना अकाउंट खुलवाने पहुँचीं तो बैंक मैनेजर ने उनसे इसकी वजह जानी.
जब राबिया ने उन्हें बताया कि उनके पास बाहर से पैसे आएंगे और यूट्यूब पैसे भेजेगा तो बैंक मैनेजर आश्चर्य में पड़ गए. उन्होंने राबिया से कहा कि यूट्यूब से कैसे आमदनी मुमकिन है और उन्होंने कभी नहीं सुना कि यूट्यूब पैसे भी देता है.
राबिया ने मैनेजर को कहा कि "आप बस अकाउंट खोलें, पैसे आ जाएंगे और जब पैसे आ गए तो उन्हें बहुत हैरानी हुई."
राबिया नाज़ ने यूट्यूब की कमाई से दो कमरों का घर बनाया है
'40 से 50 हज़ार रुपये महीना आमदनी'
राबिया नाज़ बताती हैं कि उन्हें अपने चैनल से महीने में 40 से 50 हज़ार रुपये की आमदनी हो जाती है जिसकी मदद से उन्होंने अपने लिए दो कमरों का घर बनवाया है जिसमें अभी निर्माण कार्य जारी है और छत और दीवारें खड़ी हो चुकी हैं.
राबिया के मुताबिक़, उनकी ख़्वाहिश थी कि उनका अपना घर हो और वे अपने गाँव की पहली लड़की हैं जिन्होंने अपना घर ख़ुद बनवाया है.
राबिया नाज़ संयुक्त परिवार में रहती हैं. उनके साथ उनके चाचा और ख़ानदान के और लोग भी शामिल हैं.
राबिया बताती हैं कि उनके इलाक़े में अधिकतर महिलाएँ अनपढ़ हैं या कुछ सिर्फ़ कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं जिसमें से कुछ पढ़ाती हैं लेकिन अधिकतर महिलाओं को यूट्यूब के बारे में अधिक पता नहीं है.
"मेरी हमउम्र दोस्तों को जब मैंने बताया कि इस तरह यूट्यूब चैनल बनाया है और मुझे आमदनी होती है तो उन्हें यक़ीन नहीं आया कि कोई गाँव में घर में बैठकर ऐसे पैसे कमा सकता है."
घर में बिजली की आपूर्ति बेहतर बनी रहे इसके लिए राबिया ने अब बैटरी की अतिरिक्त व्यवस्था की है
बिजली और इंटरनेट
पाकिस्तान के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इंटरनेट तक पहुँच रखने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 6 करोड़ से कुछ अधिक है और डेटा पोर्टल डॉट कॉम के मुताबिक़ जनवरी 2021 तक उनमें से साढ़े तीन करोड़ उपभोक्ता यूट्यूब इस्तेमाल कर रहे हैं.
पाकिस्तान स्थित टेलीकॉम कंपनियों की ओर से 3जी और 4जी तकनीक के दावे किए जा रहे हैं लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में छह से आठ घंटे बिजली गुल ही रहती है.
राबिया नाज़ का कहना है कि बिजली और इंटरनेट का कोई भरोसा ही नहीं है और उनके गाँव में कभी बिजली नहीं रहती है या कभी इंटरनेट नहीं चलता है.
वो रात को मोबाइल चार्ज करने के बाद वीडियो बना लेती हैं और जैसे ही इंटरनेट चलने लगता है और स्पीड बेहतर होती है तो वो अपने वीडियो को अपलोड कर देती हैं.
इंटरनेट सर्फ़िंग और वीडियो की तैयारी के अलावा घर के कामकाज भी उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल हैं.
वे कहती हैं कि "लड़कियों को कभी घर का काम माफ़ नहीं होता, चाहे वो शादीशुदा हों या फिर ग़ैर-शादीशुदा."
"ये छूट लड़कों के लिए है कि अगर कमाकर आ रहा है तो बिठाकर खिलाओ. लड़कियों के मामले में ऐसा नहीं होता कि वो बैठकर खाएं. उन्हें अपने हिस्से का काम करना होता है और मैं भी अपनी उन ज़िम्मेदारियों के बाद ही वीडियोज़ बनाती हूँ." (bbc.com)
सऊदी अरब ने सभी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों की आवाज का स्तर तय कर दिया है. सोशल मीडिया पर इसका विरोध हो रहा है लेकिन देश के इस्लामी मामलों के मंत्री ने इस कदम का समर्थन किया है.
इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने पिछले सप्ताह मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से संबंधित नए नियम जारी किए थे. नए नियमों के तहत स्पीकरों को उनकी अधिकतम आवाज के एक तिहाई स्तर पर रखने के निर्देश दिए गए हैं. यह भी निर्देश दिए गए हैं कि लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल ही सिर्फ नमाज की अजान देने के लिए किया जाए, ना कि पूरी तकरीर के प्रसारण के लिए. इन नियमों के खिलाफ सोशल मीडिया पर काफी आक्रोश देखा जा रहा है लेकिन सरकार कदम का समर्थन कर रही है.
इस्लामी मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ अल-शेख ने अब इन नए आदेशों का समर्थन करते हुए कहा है कि यह आदेश ज्यादा शोर को ले कर हुई शिकायतों के बाद जारी किए गए थे. उन्होंने बताया कि कई नागरिकों ने शिकायत की थी कि तेज आवाज की वजह से बच्चों और बुजुर्गों को परेशानी हो रही थी. सरकारी टीवी चैनल द्वारा जारी किए गए एक वीडियो में शेख ने कहा, "जिन्हें नमाज पढ़नी है उन्हें इमाम के बुलावे का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. उन्हें नमाज से पहले ही मस्जिद पहुंच जाना चाहिए."
उन्होंने यह भी कहा कि कई टीवी चैनल भी नमाज और कुरान की तकरीरों का प्रसारण करते हैं. उन्होंने संकेत दिया कि लाउडस्पीकरों का उद्देश्य वैसे भी सीमित हो गया है. कई लोगों ने इन कदमों का स्वागत किया है लेकिन सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. रेस्तरां और कैफे में भी ऊंचे स्वर में संगीत बजाने पर बैन की मांग करने वाला एक हैशटैग लोकप्रिय होने लगा.
उदारीकरण की राह पर
शेख कहते हैं कि इस नीति की आलोचना "राज्य के दुश्मनों" द्वारा फैलाई जा रही है जो "जनता को उत्तेजित करना चाहते हैं." यह नीति असल में देश पर शासन कर रहे शहजादे मोहम्मद बिन सलमान के उदारीकरण की विस्तृत मुहिम के बाद आई है. शहजादे की मुहिम ने खुलेपन के एक नए युग के साथ साथ एक और अभियान चलाया है जिसे धर्म पर जोर कम करने के रूप में देखा जा रहा है. युवा शहजादे ने अपने अति-रूढ़िवादी साम्राज्य में सामाजिक प्रतिबंधों को कम किया है.
उन्होंने दशकों से लागू फिल्मों पर और महिलाओं के गाड़ी चलाने पर बैन को हटाया है और पुरुषों और महिलाओं को एक साथ संगीत और खेलों के कार्यक्रमों में भाग लेने की अनुमति दी है. कई नागरिकों ने इन नए कदमों का स्वागत किया है जबकि अति-रूढ़िवादी इनसे नाराज हुए हैं. स्वागत करने वालों में 30 वर्ष से भी कम उम्र के नौजवान हैं जो देश की आबादी का दो-तिहाई हिस्सा हैं. इन कदमों के अलावा देश की धार्मिक पुलिस की शक्तियां भी कम की गई हैं.
इस पुलिस बल के कर्मियों का कभी देश में व्यापक खौफ था, क्योंकि यह पुरुषों और महिलाओं को नमाज पढ़ने के लिए मॉलों से बाहर खदेड़ने और विपरीत लिंग वाले किसी भी व्यक्ति के साथ घुलने-मिलने वाले व्यक्ति को फटकारने जैसे काम भी किया करते थे. शहजादे सलमान ने एक "नरम" सऊदी अरब बनाने का वादा किया है. इस कड़ी में वो देश की कट्टर छवि को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन साथ ही असहमति की आवाज उठाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी कर रहे हैं.
पिछले तीन सालों में सऊदी में दर्जनों एक्टिविस्ट, मौलवियों, पत्रकार और यहां तक की शाही परिवार के सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया है.
सीके/एए (एएफपी)
कोरोना महामारी के दौरान जब जलवायु कार्यक्रम ऑनलाइन होने लगे तो कई कार्यकर्ता खराब इंटरनेट की वजह से शामिल नहीं हो पा रहे हैं. खराब इंटरनेट जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए समस्या पैदा कर रहा है.
जाम्बिया की जलवायु प्रचारक प्रीशियस कलोम्बवाना अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ ऑनलाइन ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर उत्साहित थीं. लेकिन जब उनकी बोलने की बारी आई तो खराब इंटरनेट के कारण उनकी आवाज और लोगों तक नहीं पहुंच पाई. कोरोना महामारी के कारण आयोजन वर्चुअल तरीके से हो रहे हैं. इनमें यूएन की जलवायु वार्ता भी शामिल है, जो सोमवार, 31 मई से शुरू हुई. जलवायु कार्यकर्ता और विशेषज्ञों के लिए इस तरह के आयोजनों में डिजिटल रूप से शामिल होना आसान हो गया है, लेकिन दुनिया भर में कई ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो कहते हैं विश्वसनीय कनेक्टिविटी के बिना उनकी आवाज कहीं गायब हो जाती है.
27 साल की कलोम्बवाना के लिए अल गोर के साथ कार्यक्रम निराशाजनक अनुभव था. वह कहती हैं, "जब आप कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं और बोलना चाहते हैं, और ऐसा नहीं हो पाता है तो यह बहुत तनावपूर्ण होता है." कलोम्बवाना, सामुदायिक विकास के लिए नागरिक नेटवर्क जाम्बिया के लिए काम करती हैं, नेटवर्क जलवायु कार्रवाई के लिए एक गैर-लाभकारी अभियान चलाता है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने उन्होंने फोन पर कहा, "मैं उन बैठकों में भाग लेना चाहूंगी क्योंकि एक जलवायु कार्यकर्ता के रूप में मेरे लिए वह बहुत महत्वपूर्ण है. मैं उन बैठकों में लोगों के साथ विचार साझा कर सकती हूं. अगर मैं उन बैठकों में शामिल नहीं हो पाती हूं तो बहुत निराश होती हूं."
कोविड-19 से पहले जलवायु परिवर्तन पर होने वाले आयोजनों में शामिल होने के लिए भी कलोम्बवाना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. कठिन वीजा व्यवस्था, लंबी यात्राएं और महंगे हवाई किराए से कई बार ऐसा संभव नहीं हो पाता था लेकिन आयोजन डिजिटल रूप से होने लगे तो यह आसान हुआ. डिजिटल आयोजन में सिर्फ लॉग इन करने की जरूरत होती है. लेकिन इस बदलाव ने डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है. खासकर गरीब क्षेत्रों और विकासशील देशों में रहने वाले जलवायु कार्यकर्ता अक्सर सबसे खराब कनेक्टिविटी से जूझते हैं.
बहुत से लोग इंटरनेट के लिए अपने कार्यालय पर निर्भर हैं लेकिन महामारी के कारण वे वहां जा नहीं सकते हैं. जबकि अन्य लोगों को अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इंटरनेट शटडाउन का सामना करना पड़ता है. म्यांमार जैसे देश में तो लोग खराब गुणवत्ता वाले मोबाइल फोन डेटा तक सीमित हैं. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में जलवायु प्रभावों पर वरिष्ठ सलाहकार हरजीत सिंह कहते हैं, "यह अनुचित परिणामों की ओर ले जाने वाला है और यह देशों के बीच मौजूद शक्ति असमानताओं को सुदृढ़ करने वाला और साथ ही विरोध की आवाज को बंद करने वाला है."
ऑफलाइन समर्थन
सम्मेलन के प्रारूपों में बदलाव के अलावा, कार्यक्रम के आयोजक आर्थिक तौर पर कार्यकर्ताओं की मदद डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए कर सकते हैं. कुछ संगठन इंटरनेट डेटा के लिए अनुदान भी देते हैं. यही नहीं कुछ ऐसे संगठन भी हैं जो कार्यकर्ताओं के अच्छे होटल में रहने और वहां से काम करने का खर्च उठाते हैं, जिससे पर्यावरण कार्यकर्ताओं को ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने में कोई दिक्कत ना हो. सिंह कहते हैं नेपाल में संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यालय ने उन कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया है जिनकी इंटरनेट के अच्छे कनेक्शन तक पहुंच नहीं हैं. ऐसे कार्यकर्ता कार्यालय में जाकर पर्यावरण से जुड़े सम्मेलनों में ऑनलाइन शामिल हो सकते हैं.
सिंह कहते हैं कि यूएन के कार्यक्रम गंभीर विषयों पर होते हैं और ऐसे में लोग घर के माहौल में रहते हुए उन आयोजन में शामिल होना एक मुश्किल कार्य मानते हैं. वे कहते हैं, "आपको उस विषय पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है जिसका मतलब है कि आप घर वाले माहौल में कतई नहीं हो सकते हैं."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
इसराइल ने पिछले दिनों ग़ज़ा पर हमले के दौरान एक ऐसी इमारत पर हमला किया था, जहाँ मीडिया के दफ़्तर थे. इसराइली सेना प्रमुख ने उस हमले के बारे में कुछ बातें कही हैं, लेकिन इसराइल के रक्षा मंत्री ने इससे अपने आपको अलग कर लिया है.
ये हमला 15 मई को हुआ था, जिसमें इसराइल ने एक हवाई हमला कर एक बहुमंज़िला इमारत को ध्वस्त कर दिया था. इस इमारत में समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस और अल-जज़ीरा मीडिया समूह समेत अन्य विदेश न्यूज़ चैनलों के दफ़्तर थे.
इस हमले की व्यापक निंदा हुई थी.अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने भी तब ट्वीट कर कहा था कि उसने 'सीधे तौर पर इसराइल से कहा है कि सभी पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया की सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी अहम ज़िम्मेदारी है'.
लेकिन समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इसराइली सेना प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल अवीव कोशावी ने इस सप्ताहांत छपे एक लेख में लिखा है कि "इमारत को गिराना जायज़" था और उन्हें "रत्ती भर अफ़सोस" नहीं है.
चैनल 12 न्यूज़ की वेबसाइट पर छपे लेख में दावा किया गया है कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास जाला टावर की कई मंज़िलों का इस्तेमाल "इलेक्ट्रॉनिक युद्ध" में करता था, जिनसे वो इसराइली वायुसेना के जीपीएस संपर्क को बाधित करना चाहता था.
लेख में ये भी कहा गया है कि जनरल कोशावी ने "एक विदेशी सूत्र" को बताया कि एपी के पत्रकार हर सुबह इमारत के प्रवेश पर बने कैफ़ेटेरिया में हमास के इलेक्ट्रॉनिक्स जानकारों के साथ कॉफ़ी पीते थे, हालाँकि ये नहीं मालूम कि उनको इसकी जानकारी थी या नहीं.
इसराइल के एक वरिष्ठ खोजी पत्रकार ने इस लेख का ज़िक्र करते हुए ट्वीट किया है कि "इसराइली सेना प्रमुख ने कहा कि इमारत को गिराना एक सही फ़ैसला था और अगर ज़रूरत पड़ती तो वो फिर से उसपर फिर हमला करते."
एपी के अनुसार इस बारे में सोमवार को इसराइल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सैन्य प्रमुख केवल हालात की बात कर रहे थे.
इसराइली रक्षा मंत्री ने विदेशी पत्रकारों से कहा, "सैन्य प्रमुख जब इस बारे में कह रहे थे तो वो बस माहौल को समझाना चाह रहे थे, असल पहलुओं को नहीं बता रहे थे."
हालाँकि रक्षा मंत्री ने फिर आरोप लगाया कि "उस इमारत में मौजूद दफ़्तरों में हमास के ठिकाने थे जहाँ से वो काम करते थे."
एपी पत्रकारों के हमास के लोगों से बात करने के बयान के बारे में पूछे जाने पर रक्षा मंत्री ने कहा, "सैन्य प्रमुख ने बस ऐसी मुलाक़ातों की संभावनाओं के बारे में कहा था जहाँ हमास आम नागरिकों में मिल कर आम लोगों की इमारतों का सैन्य मक़सद से इस्तेमाल करता है."
मीडिया दफ़्तरों पर हमला
इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथियों के बीच पिछले महीने 11 दिन तक ज़बरदस्त संघर्ष हुआ था, जिसमें फ़लस्तीनी गुट हमास इसराइली इलाक़ों पर रॉकेट हमले करता था और इसराइल अपने सैन्य विमानों से ग़ज़ा में निशाने लगाता था.
इसी दौरान 15 मई को इसराइली सेना ने ग़ज़ा पट्टी में जाला टावर नाम की एक इमारत पर हमला कर उसे गिरा दिया था.
इसराइली सेना ने हमले से पहले इमारत के लोगों को वहाँ से हटने के लिए केवल एक घंटे का नोटिस दिया था.
हमले में इमारत ज़मींदोज़ हो गई थी, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ था.
एपी ने कहा है कि उन्हें इमारत में हमास के होने की कोई जानकारी नहीं थी. उसने इस घटना की स्वतंत्र जाँच कराए जाने की माँग की है और इसराइल से आग्रह किया है कि वो इस बारे में उसके पास उपलब्ध ख़ुफ़िया जानकारी को सार्वजनिक करे.
इसराइली रक्षा मंत्री ने कहा है कि उन्होंने ये जानकारियाँ अमेरिका सरकार के साथ साझा की हैं.
लेकिन उन्होंने ऐसा संकेत दिया कि इसराइल का इस जानकारी को सार्वजनिक करने का कोई इरादा नहीं है.
हमले के बाद अल-जज़ीरा ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया था. संगठन के कार्यवाहक महानिदेशक डॉक्टर मुस्तफ़ा स्वेग ने तब कहा, "ग़ज़ा में मौजूद अल-जाला टावर पर हमला करना, जिसमें अल जज़ीरा और दूसरे मीडिया संस्थानों के दफ्तर थे, मानवाधिकारों का उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे युद्ध अपराध माना जाता है."
अल जज़ीरा ने तब एक बयान जारी कर कहा था कि इसराइल सरकार के इस क़दम का मक़सद मीडिया संस्थानों को ख़ामोश करना और ग़ज़ा में जो हो रहा है, उसे दुनिया के सामने न आने देना है. (bbc.com)