अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में घोटकी के क़रीब सर सैयद एक्सप्रेस और मिल्लत एक्सप्रेस की टक्कर में कम से कम 40 लोगों की मौत हुई है और 100 से अधिक यात्री घायल हैं.
रेडियो पाकिस्तान के मुताबिक़ सोमवार सुबह डहरकी के क़रीब सर सैयद एक्सप्रेस और मिल्लत एक्सप्रेस में आमने-सामने से टक्कर हो गई.
रिपोर्ट के मुताबिक गंभीर रूप से घायल यात्रियों को अस्पताल भेज दिया गया है जबकि बोगियों में फंसे हुए यात्रियों को निकालने के लिए बचाव अभियान शुरू हो चुका है.
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रेलवे के मुताबिक़, मिल्लत एक्सप्रेस कराची से सरगोधा जबकि सर सैयद एक्सप्रेस रावलपिंडी से कराची जा रही थी.
दुर्घटना के बाद मिल्लत एक्सप्रेस की आठ और सर सैयद एक्सप्रेस के इंजन समेत तीन बोगियां पटरी से उतर गईं, जबकि कुछ बोगियां खाई में जा गिरीं.
यह दुर्घटना घोटकी के नज़दकी रेती और आवबाड़ू के रेलवे स्टेशन के बीच हुई है. इस घटना के बाद यहां पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी गई है.
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इमरान ख़ान ने किया ट्वीट
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दुर्घटना पर दुख जताते हुए ट्वीट किया है, "घोटकी में आज सुबह हुए दर्दनाक ट्रेन हादसे में 30 लोगों के मारे जाने से दुखी हूं. रेल मंत्री को घटनास्थल पर पहुंचने, घायलों की मेडिकल सहायता और मारे गए लोगों के परिजनों की मदद करने को कहा है. रेलवे सुरक्षा में ख़ामियों को लेकर भी जांच के आदेश दिए हैं."
डीआईजी सखर फ़िदा हुसैन मुस्तुई ने 30 लोगों की मौत की पुष्टि की है और आशंका जताई है कि बोगियों में और फंसी हुई लाशें और ज़ख़्मी लोग हो सकते हैं, भारी मशीनरी आ चुकी है और राहत कार्य जारी है.
सूचना मंत्री फ़र्रूख़ हबीब ने बताया है कि यह इलाक़ा पंजाब सीमा के नज़दीक है तो इसलिए घायलों को घोटकी और पंजाब के अस्पतालों में भेजा गया है जबकि फ़ौजी भी बचाव कार्य में लगाए गए हैं.
अब्दुर रहमान फ़ैसलाबाद से रात आठ बजे सर सैयद अहमद एक्सप्रेस में सवार हुए थे. उन्होंने बीबीसी संवाददाता रियाज़ सुहैल को बताया कि ट्रेन 100 से अधिक स्पीड में चल रही थी और वो जाग रहे थे. तक़रीबन 3 बजकर 40 मिनट पर ज़ोरदार झटके लगे, ड्राइवर ने ट्रेन रोकने की कोशिश की लेकिन वो टकरा गई.
उन्होंने बताया कि मिल्लत एक्सप्रेस की कुछ बोगियां ट्रैक से उतरकर दूसरे ट्रैक पर आ गई थीं और ट्रेन ख़ुद आगे चली गई थी.
"उस वक़्त बहुत अंधेरा था. हादसे के बाद आसपास के लोग मोटरसाइकिलों पर पहुंचने शुरू हुए. उन्होंने मोटरसाइकिलों और मोबाइल की रोशनी के सहारे लोगों को बाहर निकाला. पांच बजे के क़रीब सूरज की रोशनी हुई तब तक पुलिस और एंबुलेंस भी वहां पहुंच गई थी."
अब्दुर रहमान के मुताबिक़ दिल दहला देने वाला मंज़र था, ज़ख़्मी चीख़ रहे थे और उनमें यह सब देखने की हिम्मत नहीं थी.
उन्होंने बताया, "स्थानीय लोगों ने बहुत मदद की जो यात्री सुरक्षित थे उन्हें ट्रैक्टरों ट्रॉलियों और मोटरसाइकिलों पर लेकर ढरकी पहुंचाया."
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लगातार होते रेल हादसे
पाकिस्तान में लगातार रेलवे दुर्घटनाएं होती रही हैं और उसमें लोगों की मौत भी होती है.
इस साल मार्च में कराची से लाहौर जाने वाली कराची एक्सप्रेस रोहड़ी शहर के नज़दीक पटरी से उतर गई जिसमें 30 लोग घायल हुए थे और एक शख़्स की मौत हुई थी.
बीते साल फ़रवरी में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के शहर रोहड़ी में कराची से लाहौर जाने वाली पाकिस्तान एक्सप्रेस और एक बस की टक्कर में कम से कम 22 लोगों की मौत हुई थी.
उससे पहले साल 2019 में पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के ज़िले रहीम यार ख़ान में कराची से रावलपिंडी जाने वाली तेज़गाम एक्सप्रेस में आग लगने के कारण 74 लोगों की मौत हुई थी.
"महिलाओं से नफ़रत करने वाली इस दुनिया में मासूमियत पर दोहरे मापदंड हावी हैं. यहां दूसरों की राय का सम्मान नहीं किया जाता है. जहाँ एक महिला का तिरस्कार करने वाले पुरुष की तो तारीफ़ होती है, लेकिन अगर वही काम कोई महिला करे तो उससे नफ़रत की जाती है. जहाँ अपने प्रियजनों से प्यार करने और उनसे बात करने वाली महिला तो ग़लत है, लेकिन महिला की तस्वीर के सामने हस्तमैथुन करने वाले पुरुष का वीडियो इंटरनेट पर वायरल कर दिया जाता है."
ये शब्द पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर के हैं जो उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो के साथ पोस्ट किए गए हैं.
इस वीडियो में हानिया बेहद उदास अवस्था में अपनी बहन से बात करते हुए लगातार अपने आंसू पोंछती नज़र आ रही हैं.
हानिया आमिर सोशल मीडिया पर हर दिन अपनी तस्वीरें और वीडियो शेयर करती हैं और ख़बरों में बनी रहती हैं.
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हमेशा हंसती मुस्कुराती और 'फ़नी स्टोरी' पोस्ट करने वाली हानिया को परेशान होकर यह सब कहना पड़ा?
पिछले शुक्रवार को हानिया का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वे अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लाइव थीं और फ़ैंस से बातचीत कर रही थीं. इसी बीच उसी लाइव सेशन के दौरान एक फ़ैन ने उनकी तस्वीर के सामने कथित तौर पर हस्तमैथुन किया.
यह सब इतना अविश्वसनीय था कि हानिया के चेहरे के भाव अचानक बदल गए और उन्होंने लाइव सेशन बंद कर दिया.
कुछ ही देर बाद किसी ने इस लाइव सेशन का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया, जो पिछले 24 घंटे से वायरल है.
हालाँकि, इस वीडियो की अभी तक पुष्टि नहीं की जा सकी और कुछ यूज़र्स का मानना है कि यह वीडियो फ़ेक और एडिटेड है.
लेकिन ये सिर्फ़ इस वीडियो का मामला नहीं है, बल्कि इस मामले में एक और वीडियो भी शामिल है.
हानिया का एक और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें वह निर्देशक वजाहत रऊफ़ के बेटों आशिर वजाहत और नायल वजाहत के साथ गायक हसन रहीम का गाना 'तेरी आरज़ू' गा रही हैं जिसमें वो उन्हें गले लगाती हैं.
ग़ौरतलब है कि हानिया अक्सर अपने पोस्ट में निर्देशक वजाहत के बेटों और उनकी पत्नी को 'परिवार' का हिस्सा बताती हैं और इस वीडियो के साथ भी उन्होंने कहा था कि "अपने भाई को ऐसे संभाला जाता है जब वह 101 बुख़ार में तप रहा हो."
जहां ज़्यादातर यूज़र्स लाइव सेशन में हानिया आमिर का यौन उत्पीड़न किये जाने की निंदा कर रहे हैं, वहीं कई यूज़र्स वजाहत रऊफ के बेटों के साथ बनाए गए वीडियो के आधार पर हानिया पर 'बेशर्मी और अश्लीलता फैलाने' का आरोप लगा रहे हैं.
इन दो वीडियो की वजह से हानिया पिछले दो दिनों से पाकिस्तान के टॉप ट्रेंड में शामिल हैं.
"हम कितने निराश लोग हैं?"
कुछ यूज़र्स पाकिस्तानी समाज के इस दोहरे मापदंड पर बहस कर रहे हैं, जहां वजाहत रऊफ़ के बेटों को गले लगाने वाले वीडियो के लिए हानिया की आलोचना करना जायज़ समझा जा रहा है, वहीं कोई भी उनके साथ होने वाले उत्पीड़न की बात नहीं कर रहा है.
इस संबंध में ख़ालिद नाम के एक यूज़र ने लिखा, "शर्म और उसूल की वजह से कोई इसके बारे में बात नहीं कर रहा है. और कुछ दिन पहले यही लोग मलाला युसूफज़ई को लेक्चर दे रहे थे कि उन्हें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए."
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हुदा इस्माइल ने हानिया के दोनों वीडियो पर कमेंट करते हुए लिखा, "हानिया को अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ है. लेकिन उनके साथ जो हुआ उसके बारे में कोई बात क्यों नहीं कर रहा है? क्या इतने फ़ैंस के सामने किसी लड़की को परेशान करना ठीक है?"
सिद्दीक़ा ने कमेंट किया, "अफ़सोस है इन लोगों पर. हानिया आमिर के लाइव सेशन में जो हुआ वह उन सभी महिलाओं के लिए रेड सिग्नल है जो फ़ैंस को ज्वाइन करने देती हैं. आपको किसी का अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही वे सार्वजनिक हस्ती क्यों न हों. इससे आपकी नैतिकता और मूल्यों का पता चलता है."
दानिश हसन ने लिखा, "हानिया के साथ जो हुआ वह बेहद निंदनीय है और ऊपर से लोग हानिया को दोषी ठहराते हुए हंस रहे हैं?"
शेख नाम के एक यूज़र ने कमेंट किया, ''हम कितने निराश लोग हैं?' उस बेचारी की हंसी पल भर में गायब हो गई और उसने लाइव बंद कर दिया... मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं और अब तो इन लोगों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए दुआ करने का भी दिल नहीं करता."
कार्रवाई करने की मांग
कुछ यूज़र्स का कहना है कि हानिया को लाइव सेशन के दौरान उनकी तस्वीर पर अपनी हवस निकलने वाले उस व्यक्ति को ढूंढकर उसके ख़िलाफ़ केस दर्ज कराना चाहिए.
कई यूज़र्स सोशल मीडिया ट्रोलिंग के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में भी बात करते हुए दिखाई दिए. कई यूज़र्स का कहना था कि आपकी मज़ाक़ और ट्रोलिंग किसी की जान भी ले सकते हैं, इसलिए इंटरनेट पर ज़िम्मेदारी दिखाएं.
मलाइका नाम की एक यूज़र ने इस संबंध में एक थ्रेड पोस्ट किया जिसमें उन्होंने हानिया के उत्पीड़न की निंदा की और साथ ही उन लोगों की कड़ी आलोचना की जिन्होंने उनका मज़ाक़ उड़ाया और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया.
उन्होंने लिखा, "आखिर हानिया की क्या ग़लती थी? इस समाज में लड़की होना एक गाली है. हानिया जिस मानसिक पीड़ा से गुज़र रही है मैं सोच भी नहीं सकती. एक लड़की के रूप में उनके साथ जो हुआ वह सबसे ख़राब उदाहरण है."
"हम हमेशा ऐसा ही करते हैं और फिर ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि हमने कुछ नहीं किया. एक समाज के रूप में हम असफल हो गए हैं. हम किसी इंसान को इतनी बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं कि वह आत्महत्या कर ले और फिर हम ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं.
हानिया की भी हो रही आलोचना
हानिया आमिर अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी पर्सनल लाइफ़ शेयर करती रहती हैं और किसी न किसी वजह से चर्चा में रहती हैं.
इस ओर इशारा करते हुए सानिया गुलज़ार नाम की एक यूज़र ने कमेंट किया, "दिक्कत तब होती है जब आप सब कुछ शेयर करने की कोशिश करते हैं. जितना अधिक आप अपने जीवन को साझा करने का प्रयास करेंगे, उतनी ही आपकी आलोचना होगी, इसलिए लोगों से सहानुभूति मांगने के बजाय, जीवन में कुछ नियमों और अनुशासन का पालन करने का प्रयास करें."
यसरा नाम की यूज़र की भी ऐसी ही राय है. उन्होंने लिखा, "आप अपनी जगह पर सही हैं. लेकिन कोई चीज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए बिना भी अपने प्रियजनों का ख्याल रख सकते हैं... हर चीज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट करना जरूरी नहीं होता."
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कई यूज़र्स का कहना है कि हानिया अक्सर अपने दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए 'फ़नी वीडियो' पोस्ट करती हैं, लेकिन आलोचक उन्हें नीचा दिखाने और उनकी खुशियों को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं छोड़ते.
याद रहे कि अगस्त 2018 में भी हानिया ने अपने फैंस द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. "अभिनेत्री का कहना था कि एक सेलिब्रिटी होने का यह मतलब नहीं है कि हम सार्वजनिक संपत्ति हैं और फैंस के भेस में पुरुष हमें परेशान कर सकते है."
अभिनेत्री का कहना था कि 'ऐसी हरकत करने वालों को फैन कैसे कहा जा सकता है, जो हमारे प्यार के जवाब में हमारा यौन उत्पीड़न करते हैं और हमें शर्मिंदगी, दर्द और मानसिक पीड़ा देते हैं.'
हानिया आमिर सोशल मीडिया का इस्तेमाल क्यों करती हैं ?
एक दिन पहले ही हानिया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट के ज़रिये बताया था कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल क्यों करती हैं. उनका कहना था कि "मैं यहां सोशल मीडिया पर अपने जीवन की छोटी-छोटी बातें साझा करती हूं जो कुछ लोगों को पसंद आती हैं, जबकि कुछ यूज़र्स सोचते हैं कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए."
हानिया ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर अपनी निजी ज़िंदगी इसलिए साझा करती हैं, ताकि वह अपने फैंस के संपर्क में रह सकें.
हानिया ने लिखा, "मैं यहां मुस्कान बिखेरने के लिए हूं, मुझे एक ऐसी लड़की के रूप में याद रखें जिसने अपनी सार्थक बातचीत से आपके दिलों को छू लिया और जो मेहरबान, रहम दिल और प्यार करने वाली है."
"मुझे एक ऐसी लड़की के रूप में याद रखें, जिसने अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों की परवाह किए बिना हर पल का आनंद लेने की कोशिश की."
-लॉरा बिकर
उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
उत्तर कोरिया ने हाल ही में एक नया क़ानून लागू किया है जिसके तहत विदेशी फ़िल्में, कपड़े या गालियाँ देने तक पर कड़ी सज़ा हो सकती है. मगर क्यों?
यून मी-सो कहती हैं वो तब 11 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार एक व्यक्ति को मौत की सज़ा दिए जाते देखा क्योंकि उन्हें दक्षिण कोरिया के एक ड्रामे का वीडियो पास रखने के लिए पकड़ा गया था.
इलाक़े के सारे लोगों को फ़रमान जारी किया गया था कि वो इस सज़ा को देखें. सरकार सबको ये स्पष्ट कर देना चाहती थी कि अवैध वीडियो रखने की सज़ा क्या है.
दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में अपने घर से उन्होंने बीबीसी को बताया, "ऐसा नहीं करने पर इसे देशद्रोह समझा जाता".
"मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस व्यक्ति की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई, मैं देख सकती थी कि वो रो रहा था. पट्टी पूरी तरह भीग गई थी. मैं ये देख हिल गई. उन्होंने उसे एक लकड़ी के खंभे से बाँधा, और गोली मार दी."
'बिना हथियारों के जंग'
कल्पना करिए कि आप हमेशा के लिए लॉकडाउन में हैं, ना इंटरनेट है, ना सोशल मीडिया, बस कुछ सरकारी टीवी चैनल हैं जो बताते हैं कि नेता क्या कह रहे हैं - ये उत्तर कोरिया है.
और अब वहाँ के नेता किम जोंग-उन ने इसे और सख़्त कर दिया है, वहाँ एक नया क़ानून लाया गया है. सरकार का कहना है कि इसे प्रतिक्रियावादी सोच को रोकने के लिए लाया गया है.
इसके तहत यदि किसी के पास दक्षिण कोरिया, अमेरिका या जापान के वीडियो का संग्रह मिला, तो उसे मौत की सज़ा मिलेगी.
अगर कोई ये वीडियो देखते पकड़ा गया तो उसे 15 साल जेल में बिताने पड़ सकते हैं.
और बात केवल देखने भर की नहीं है.
किम जोंग-उन ने हाल ही में सरकारी मीडिया को एक चिट्ठी लिखी जिसमें देश की युवा लीग से आह्वान किया कि वो युवाओं में "अप्रिय, व्यक्तिवादी, समाज-विरोधी बर्ताव" के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ें.
वो विदेशी भाषणों, हेयरस्टाइल और कपड़ों पर भी रोक लगाना चाहते हैं जिन्हें वो "ख़तरनाक ज़हर" बताते हैं.
दक्षिण कोरिया से चलने वाले एक ऑनलाइन प्रकाशन द डेली ने उत्तर कोरिया में अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि तीन लड़कों को इसलिए पुनर्शिक्षा शिविरों यानी एक तरह से बंदीगृहों में भेज दिया गया क्योंकि उन्होंने कोरियाई-पॉप के गायकों की तरह बाल रखे थे और घुटनों के ऊपर उनकी जींस फटी थी. हालाँकि बीबीसी इस दावे की पुष्टि नहीं कर सकता.
और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि किम जोंग-उन एक ऐसे युद्ध में जुटे हैं जो परमाणु हथियारों से नहीं लड़ी जा रही है. विश्लेषकों का कहना है, वो उत्तर कोरिया में बाहर से सूचनाओं को पहुँचने पर रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
बताया जा रहा है कि उत्तर कोरिया में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, लाखों लोग भूखे हैं और किम उनका पेट सरकारी प्रचार से भरने की कोशिश कर रहे हैं. वो नहीं चाहते कि लोगों को उनके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की चमक-दमक से भरी ज़िंदगी वाले टीवी सीरियल देखें जो एशिया के सबसे अमीर मुल्क़ों में से एक है.
कोरोना महामारी की वजह से उत्तर कोरिया, बाक़ी दुनिया से और ज़्यादा कट गया है. चीन से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई और व्यापार थम गया है. कुछ सप्लाई अब शुरू हो रही है, मगर वो काफ़ी सीमित है.
इस वजह से देश की पहले से बदहाल अर्थव्यवस्था और बुरी हालत में पहुँच गई है जहाँ ज़्यादातर पैसा परमाणु हथियार बनाने में लगा दिया जाता है.
किम जोंग उन ने इस साल के आरंभ में ये स्वीकार किया था कि लोग "अब तक की सबसे बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं जिस पर हमें क़ाबू पाना है".
क़ानून क्या कहता है?
डेली एनके को इस क़ानून की एक प्रति मिली है जिसके संपादक ली सांग यॉन्ग ने बीबीसी को इसकी जानकारी दी.
उन्होंने कहा,"इसमें कहा गया है कि अगर किसी कामगार को पकड़ा गया, तो फ़ैक्टरी के प्रमुख को सज़ा मिलेगी, और अगर कोई बच्चा समस्या करता है तो उसके माता-पिता को सज़ा दी जाएगी."
वो कहते हैं कि इसका इरादा युवाओं के मन में दक्षिण कोरिया को लेकर किसी भी सपने या अरमान को ख़त्म कर देना है.
यॉन्ग ने कहा, "दूसरे शब्दों में, सरकार ने ये तय कर लिया है कि अगर दूसरे देशों की संस्कृति का यहाँ के युवाओं को पता चला तो वो विरोध में बदल सकता है."
पिछले साल उत्तर कोरिया से भाग निकलने में कामयाब रहे कुछ लोगों में शामिल चोइ जोंग-हून ने बीबीसी को बताया कि वक़्त जितना कठिन होता है, नियम, क़ानून और सज़ा भी वैसे ही सख़्त होते जाते हैं.
वो कहते हैं, "मनोविज्ञान के हिसाब से अगर आपका पेट भरा हो और आप दक्षिण कोरिया की कोई फ़िल्म देखते होंगे तो ये मनोरंजन होगा. मगर खाना ना हो, लोग जूझ रहे हों, तो ऐसे में लोगों के मन में असंतोष जन्म ले सकता है."
इसका फ़ायदा होगा?
इसके पहले उत्तर कोरिया में जब-जब सख़्ती की गई, लोगों ने विदेशी फ़िल्में देखने का नया रास्ता निकाल लिया जो आम तौर पर चीन से स्मगल होकर आती हैं.
चोई कहते हैं वर्षों से ये फ़िल्में पेनड्राइव से आती रही हैं जिन्हें आसानी से छिपाया भी जा सकता है और जिन्हें पासवर्ड से सुरक्षित भी रखा जा सकता है.
उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
वो कहते हैं, "अगर तीन बार ग़लत पासवर्ड डाला तो यूएसबी सारा डेटा उड़ा देता है. अगर सामग्री ज़्यादा संवेदनशील है तो आप ऐसी भी सेटिंग कर सकते हैं कि एक ही ग़लत पासवर्ड से वो डिलीट हो जाए."
"कई बार ऐसी भी सेटिंग कर दी जाती है कि वो वीडियो एक ही कंप्यूटर पर चले, यानी उसे केवल आप देख सकते हैं, दूसरों को नहीं दे सकते."
मी-सो बताती हैं कि कैसे उनके घर के पास लोग फ़िल्में देखने के लिए उपाय निकाला करते थे. वो बताती हैं कि कैसे एक बार उन्होंने कार की बैट्री को एक जेनरेटर से जोड़ टीवी चलाया.
वो याद करती हैं कि उन्होंने तब एक दक्षिण कोरियाई ड्रामा "स्टेयरवेय टू हेवेन" देखा था. ये एक लड़की की प्रेम कथा है जो पहले अपनी सौतेली माँ और फिर कैंसर से लड़ती है. ये ड्राम उत्तर कोरिया में 20 साल पहले काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.
चोई बताते हैं कि विदेशी वीडियो को लेकर लोगों में दिलचस्पी और बढ़ने लगी जब चीन से सस्ते सीडी और डीवीडी आने शुरू हुए.
सख़्ती की शुरूआत
लेकिन धीरे-धीरे उत्तर कोरिया सरकार को इसका पता चलने लगा. चोई बताते हैं कि कैसे 2002 में सुरक्षाकर्मियों ने एक यूनिवर्सिटी पर छापा मार 20,000 सीडी ज़ब्त किए.
वो कहते हैं, "ये केवल एक यूनिवर्सिटी थी. आप सोच सकते हैं कि पूरे देश में क्या हुआ होगा? सरकार हैरान रह गई. और फिर उन्होंने सख़्ती शुरू कर दी."
किम गेउम-ह्योक कहते हैं वो 2009 में 16 साल के थे जब उन्हें अवैध वीडियो शेयर करने वाले लोगों की धर-पकड़ के लिए बनाए गए एक विशेष दस्ते ने पकड़ लिया.
उन्होंने अपने एक दोस्त को दक्षिण कोरिया के पॉप गानों के कुछ वीडियो दिए थे जो उनके पिता चीन से स्मगल कर लाए थे.
वो बताते हैं कि उनके साथ वयस्कों जैसा बर्ताव हुआ, एक सीक्रेट कमरे में पूछताछ की गई जहाँ गार्डों ने उन्हें सोने नहीं दिया, लगातार चार दिन उन्हें पीटा जाता रहा.
अभी सोल में रह रहे किम कहते हैं, "वो जानना चाहते थे कि मुझे ये वीडियो कैसे मिले और मैंने कितने लोगों को दिखाया. मैं कैसे बताता कि ये मेरे पिता लेकर आए थे. मैं बस कहता रहा, मुझे नहीं मालूम, मुझे जाने दीजिए."
किम एक अमीर घर से आते हैं. बाद में उनके पिता ने गार्डों को घूस देकर अपने बेटे को रिहा करवा लिया. अब नए क़ानून आने के बाद इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.
तब ऐसे जुर्म में पकड़े जाने वाले कई लोगों को लेबर-कैंपों में भेज दिया गया. मगर इससे ये कम नहीं हुआ, तो सज़ा बढ़ा दी गई.
चोई बताते हैं कि पहले लेबर कैंप में एक साल रहने की सज़ा थी जिसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया.
वो कहते हैं, "आज अगर आप वहाँ जाएँ तो पाएँ कि वहाँ बंद 50% से ज़्यादा लोग इसलिए बंद हैं क्योंकि उन्होंने विदेशी फ़िल्में देखी थीं."
बीबीसी को कई सूत्रों ने बताया कि पिछले एक साल में उत्तर कोरिया में जेलों का दायरा बढ़ा दिया गया है जिससे पता चलता है कि सख़्त क़ानून का असर हो रहा है.
पर लोग विदेशी फ़िल्में क्यों देखते हैं?
किम कहते हैं कि वो जानना चाहते थे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है.
और सच जानने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई. वो चंद ख़ुशकिस्मत लोगों में से आते हैं जिन्हें बीजिंग में पढ़ने की अनुमति मिल सकी जहाँ उन्होंने पहली बार इंटरनेट को जाना.
वो बताते हैं, "पहले मुझे लगता था कि पश्चिम के लोग मेरे देश के बारे में झूठ बोलते हैं. विकीपीडिया पर कैसे भरोसा करूं? मगर मेरा दिल और दिमाग़ अलग बातें कह रहे थे."
"तो मैंने उत्तर कोरिया पर कई डॉक्यूमेंट्री देखीं, लेख पढ़े और तब मुझे लगा कि शायद ये सही है क्योंकि उनकी बातें समझ में आ रही थीं."
"और ये पता चलने तक बहुत देर हो चुकी थी, मैं वापस नहीं लौट सका."
आख़िर में किम गुएम-ह्योग सोल भाग गए.
मी-सो अब एक फ़ैशन एडवाइज़र हैं. सोल पहुँचने के बाद वो सबसे पहले उन जगहों पर गईं जिन्हें उन्होंने ड्रामे में देखा था.
मगर सबकी कहानी उनके जैसी नहीं होती.
अब वहाँ से भागना लगभग नामुमकिन है क्योंकि वहाँ सीमा पर "देखते ही गोली मारने" के आदेश लागू हैं.
चोई का परिवार उत्तर कोरिया में ही रह गया. वो नहीं मानते कि एकाध ड्रामा देखने से वहाँ दशकों से जारी सख़्त शासन बदल जाएगा. मगर उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया में लोग शक करने लगे हैं कि सरकार जो कहती है वो सच नहीं है.
वो कहते हैं, "उत्तर कोरिया के लोगों के मन में शिकायतें हैं, मगर उन्हें नहीं पता कि उसका क्या करें. वहाँ ज़रूरत है कि उन्हें जगाया जाए, बताया जाए."(bbc.com)
काबुल, 7 जून | अफगानिस्तान में रुकी हुई शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के प्रयासों के बावजूद हिंसा का स्तर ऊंचा बना हुआ है। केवल दो दिनों (3-4 जून)को झड़पों और सुरक्षा घटनाओं में कुल 119 लोग मारे गए। एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। टोलो न्यूज ने रविवार को एक अधिकारी के हवाले से बताया कि इस दौरान 196 सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं।
अधिकारी के मुताबिक, 3 जून को 54 लोग मारे गए थे, जबकि अगले दिन 65 लोग मारे गए थे।
119 पीड़ितों में से 102 सुरक्षा बलों के सदस्य थे।
अधिकारी ने कहा कि दो दिनों में 17 नागरिक हताहत हुए, जबकि 55 घायल हुए।
इस बीच, रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि 3 जून को आठ प्रांतों में अफगान रक्षात्मक अभियानों में 183 तालिबान मारे गए थे, और 4 जून को छह प्रांतों में 181 आतंकवादी मारे गए थे।
तालिबान ने हालांकि इन आंकड़ों को खारिज किया है।
देश के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार, बीते साल संघर्ष के कारण 2,950 से अधिक नागरिक मारे गए और 5,540 से अधिक घायल हो गए।
स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अलग-अलग हमलों में कुल हताहतों में से 330 महिलाएं और 565 बच्चे मारे गए थे। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 7 जून | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सोमवार को दो यात्री ट्रेनों की टक्कर में कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए।
लाहौर से कराची जा रही सर सैयद एक्सप्रेस ट्रेन घोटकी जिले के धारकी शहर के पास सरगोधा जाने वाली मिल्लत एक्सप्रेस ट्रेन से टकरा गई।
सुक्कुर डिवीजन में पाकिस्तान रेलवे के डिविजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर सज्जाद वाघो ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि मिल्लत एक्सप्रेस ट्रैक में खराबी के कारण इसके कुछ डिब्बे पटरी से उतरने के बाद भी रेलवे ट्रैक पर खड़ी थी, लेकिन इसकी सुचना उसी ट्रेक पर आ रही सर सैयद एक्सप्रेस के पास नहीं पहुंच सकी, जिसने अंत में उसे टक्कर मार दी।
जिला पुलिस अधिकारी उमर तुफैल ने मीडिया को बताया कि सर सैयद एक्सप्रेस के पांच डिब्बे भी पटरी से उतर गए और टक्कर के बाद पलट गए।
जियो न्यूज से बात करते हुए, घोटकी के उपायुक्त उस्मान अब्दुल्ला ने कहा कि घटना में 13 से 14 डिब्बे पटरी से उतर गए, जबकि छह से आठ डब्बे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए।
स्थानीय मीडिया ने अस्पताल के अधिकारी के हवाले से कहा कि मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि कई घायलों की हालत गंभीर है।
ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री ने मीडिया को बताया कि कुछ लोग अभी भी क्षतिग्रस्त डिब्बों में फंसे हुए हैं।
स्थानीय लोग और बचाव दल घटनास्थल पर पहुंचे, शवों और घायलों को बाहर निकाला और उन्हें पास के अस्पतालों में पहुंचाया।
अर्धसैनिक बल, पाकिस्तान रेंजर्स भी अपनी इंजीनियरिंग मशीनरी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए हैं और शवों और घायलों की तलाश के लिए पटरी से उतरे डिब्बों को काट रहे हैं। (आईएएनएस)
लीमा, 7 जून | पेरू के लोगों ने राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर में राज्य के अगले प्रमुख का चुनाव करने के लिए मतदान किया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को कुल 25,287,954 पेरूवासियों ने 12,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान किया। ये मतदान तय करेगा कि केइको फुजीमोरी या प्रेडो कैस्टिलो 2021 से 2026 की अवधि के लिए राष्ट्रपति पद के लिए शामिल होंगे या नहीं।
कोविड-19 महामारी के कारण, राष्ट्रीय चुनावी प्रक्रिया कार्यालय (ओएनपीई) ने मतदान केंद्रों पर जैव सुरक्षा उपायों की एक श्रृंखला स्थापित की थी।
इस चुनाव के लिए मतदान केंद्रों की निगरानी और शांति बनाए रखने के लिए हजारों पुलिस और सशस्त्र बलों के सदस्यों को तैनात किया गया।
राष्ट्रपति फ्रांसिस्को सगस्ती ने नागरिकों से चुनावों में मतदान करके 'लोकतंत्र को मजबूत करने' का अनुरोध किया।
लीमा में मतदान के बाद उन्होंने कहा, "लोकतंत्र को मजबूत करने और हमारे लिए ज्यादा से ज्यादा मतदाता होने के लिए आपना वोट डालना जरूरी है।"
राष्ट्रीय चुनाव जूरी (जेएनई) के अध्यक्ष, जॉर्ज सलास एरेनास ने कहा कि देश भर के मतदान केंद्रों पर 8,248 राजनीतिक प्रतिनिधि, 8,085 पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बलों के 7,518 सदस्य और 150 अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक स्थापित किए गए थे।
उन्होंने कहा कि अभी तक हिंसा की कोई घटना दर्ज नहीं हुई है।
फुजीमोरी और कैस्टिलो ने 11 अप्रैल को उम्मीदवारों के भीड़ भरे मैदान पर पहला दौर जीता था।
कैस्टिलो को 19.09 प्रतिशत वोट मिले और फुजीमोरी 13.36 प्रतिशत मतपत्रों के साथ उपविजेता बने।
शिक्षक संघ के नेता कैस्टिलो और पूर्व राष्ट्रपति अल्बटरे फुजीमोरी की बेटी फुजीमोरी, दो अलग-अलग राष्ट्रीय योजनाओं और सरकार के मॉडल का प्रतिनिधित्व करते हैं। (आईएएनएस)
बोगोटा, 7 जून | कोलंबिया के राष्ट्रपति इवान ड्यूक ने हिंसक राष्ट्रव्यापी विरोध के बीच रक्षा मंत्रालय के आधुनिकीकरण और राष्ट्रीय पुलिस में व्यापक सुधार की घोषणा की।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रविवार को ड्यूक के हवाले से कहा कि उपायों में हथियारों के व्यावसायीकरण, ले जाने और उपयोग को सीमित करने के साथ-साथ शिकायतों और रिपोटरें को प्राप्त करने, प्रसंस्करण और निगरानी के लिए एक नई प्रणाली को सीमित करने के लिए बहुत सख्त नियम शामिल हैं।
राष्ट्रपति ने पुलिस विश्वविद्यालय के निर्माण के साथ-साथ अधिकारियों के गश्त पर होने पर बॉडी कैमरों के उपयोग में तेजी लाने के साथ-साथ पुलिस के व्यावसायीकरण और पर्यवेक्षण पर भी जोर दिया।
ड्यूक ने कहा कि इस परिवर्तन में कोलंबियाई नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण और सम्मान भी शामिल है।
सुधार एक राष्ट्रीय हड़ताल के बीच में प्रस्तुत किया गया है जो 28 अप्रैल को प्रस्तावित कर वृद्धि के कारण शुरू हुई थी । हालांकि, इसे बाद में रद्द कर दिया गया था।
राष्ट्रीय लोकपाल कार्यालय के अनुसार, प्रदर्शनों के सिलसिले में कम से कम 59 लोग मारे गए हैं।
एक स्वास्थ्य सुधार का विरोध, जिसे भी समाप्त कर दिया गया है और नाजुक शांति प्रक्रिया की वकालत तब कुछ नए मुद्दे थे जिन्होंने लोगों को सड़कों पर उतारा। (आईएएनएस)
जर्मनी की सेना अफगानिस्तान से हजारों लीटर बीयर वापस लाने की योजना बना रही है क्योंकि सुरक्षा कारणों से सैनिकों को शराब पीने की इजाजत नहीं है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
जर्मन सेना 65 हजार से ज्यादा बीयर कैन अफगानिस्तान से वापस जर्मनी ले जाने वाली है. जर्मनी की एक पत्रिका डेर श्पीगल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 20 हजार लीटर बीयर और वाइन की 340 बोतलें वापस लानी होंगी. इसके अलावा शैंडी (फ्लेवर्ड बीयर) भी है, लेकिन उसकी मात्रा का पता नहीं है.
कमांडर अंसगर मेयेर ने जर्मन सैनिकों पर अफगानिस्तान में शराब पीने पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि जर्मनी के सैनिक अब वहां से वापसी के आखिरी चरण में हैं. डेर श्पीगल की रिपोर्ट कहती है कि उस इलाके पर संभावित हमलों के खतरे को देखते हुए यह प्रतिबंध लगाया गया है. जर्मन सेना पर स्थानीय सैनिकों को शराब बेचने पर भी पाबंदी है जिसके पीछे धार्मिक और कानूनी कारण हैं.
बाकी नाटो देशों की सेना के साथ ही जर्मन सेना के भी इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ देने की संभावना है. अमेरिका के बाद जर्मनी ने सबसे ज्यादा सैनिक इस अभियान के लिए भेजे थे. अब तक का जर्मनी की सेना का यह सबसे बड़ा और सबसे महंगा अभियान रहा है. जर्मन अखबार बिल्ड ने कहा कि सेना काबुल से 3,00 किलोमीटर उत्तर में स्थित मजार ए शरीफ में अपने कुछ उपकरण छोड़कर आएगी.
मजार ए शरीफ में लगभग एक हजार जर्मन हैं. चूंकि वे वापसी की तैयारी कर रहे हैं और इस दौरान उन्हें ज्यादा चौकस रहने को कहा गया है. इसीलिए कमांडरों ने शराब पीने पर भी पाबंदी लगा दी है.
जर्मन सेना और बीयर का नाता
जर्मन सेना का अफगानिस्तान में बीयर से नाता काफी पुराना है. 2008 में अफगानिस्तान में तैनात जर्मन टुकड़ी उस वक्त सुर्खियों में आ गई थी जब उसके पास दस लाख लीटर बीयर और 70 हजार लीटर वाइन पहुंचने की खबरें आई थीं. जर्मन लोग तब हैरान रह गए थे जब सेना ने बताया था कि 2007 में सैनिकों को इतनी शराब भेजी गई थी. जर्मन मीडिया ने लिखा था कि इस हिसाब से हर जर्मन सैनिक एक साल में औसतन 278 लीटर बीयर 128 गिलास वाइन पी रहा था.
विभिन्न सेनाओं की विदेशी मिशन के दौरान शराब पीने को लेकर नीति अलग-अलग रहती है. अमेरिका में सैनिकों आमतौर पर विदेशी मिशनों में शराब पीने की इजाजत नहीं होती जबकि ब्रिटिश और अन्य सेनाएं जवानों को ड्यूटी पर न होने के दौरान थोड़ी मात्रा में शराब पीने की इजाजत देती हैं.
कब तक होगी सेनाओं की वापसी
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप और तालिबान के बीच पिछले साल हुए एक समझौते के तहत अमेरिकी सेना की वापसी शुरू हो गई है और इसके 11 सितंबर तक पूरा हो जाने की संभावना है. समझौते के तहत तालिबान ने अमेरिका और नाटो बलों पर हमला नहीं करने का वादा किया था लेकिन एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक तालिबान ने उसे इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या वे वापसी करने वाले अमेरिकी और नाटो बलों पर हमला करेंगे. तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा था, "यह समय से पहले है और भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है." (dw.com)
एक अध्ययन कहता है कि चीन योजनाबद्ध तरीके से उइगुर और अन्य मुसलमान अल्पसख्यंकों की आबादी को कम कर रहा है. चीन में दो दशकों में मुसलमानों की आबादी एक तिहाई तक कम हो जाने की आशंका है.
एक तरफ तो चीन अपनी आबादी बढ़ाने की बात कर रहा है, जिसके तहत हाल ही में तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी गई है, लेकिन देश का एक तबका ऐसा भी है जिसके बारे में शोधकर्ता कहते हैं कि योजनाबद्ध तरीके से उसकी आबादी को कम किया जा रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार एक जर्मन शोधकर्ता ने चीन के विश्लेषकों और शोधकर्ताओं के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की जन्म-नियंत्रण की नीति के चलते आने वाले दो दशकों में उइगुर मुसलमानों और दक्षिणी शिनजियांग प्रांत में अन्य अल्पसंख्यकों में 26 लाख से 45 लाख के बीच कम बच्चे पैदा होंगे.
जर्मन रिसर्चर आड्रियान सेंत्स ने अपनी रिसर्च में उन चीनी अकादमिक और अधिकारियों की रिसर्च का अध्ययन किया है जो शिनजियांग में जन्म-नियंत्रण की नीतियों पर काम करते हैं. सेंत्स के मुताबिक आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि 2017 से 2019 के बीच 48.7 प्रतिशत कम बच्चे पैदा हुए हैं. सांत्स की अपनी तरह की यह पहली रिसर्च रिपोर्ट तब आ रही है जबकि दुनियाभर में चीन की शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों पर कथित अत्याचारों को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के आरोप हैं चीन उइगुर औ अन्य मुसलमानों को योजबद्ध तरीके से प्रताड़ित कर रहा है. मसलन, उइगुर और अन्य अल्पसंख्य मुसलमानों पर जन्म नियंत्रण की नीति लागू की गई है, क्षेत्र के बहुत लोगों को दूसरे इलाकों में भेज दिया गया है और लगभग दस लाख लोगों को ट्रेनिंग कैंपों में रखा गया है. हालांकि चीन इन आरोपों को झुठलाता रहा है.
अपने शोध के बारे में सेंत्स कहते हैं कि इससे चीन की सरकार की उइगुर आबादी के बारे में लंबी अवधि की योजना और उसकी मंशा का पता चलता है. हालांकि चीन की सरकार ने शिनजियांग में आबादी घटाने की ऐसी कोई सार्वजनिक योजना नहीं घोषित की है. लेकिन जन्म के आधिकारिक आंकड़ों, जनसंख्या के अनुमान और चीनी अकादमिकों व अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित नस्लीय अनुपात के आधार पर सेंत्स ने अनुमान लगाया है कि सरकार की नीति दक्षिणी शिनजियांग में बहुसंख्या हान आबादी को मौजूदा 8.4 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी तक कर सकती है.
सेंत्स कहते हैं, "यह तभी संभव है, जब कि वे वैसा ही करते रहें, जैसा वे करते आ रहे हैं. यानी, उइगुर जन्म दर को सख्ती से कम किया जाए." आड्रियान सेंत्स वॉशिंगटन स्थित विक्टिम्स ऑफ मेमॉरियल फाउंडेशन नामक अलाभकारी संस्था के लिए काम करते हैं. वह चीन की नीतियों की आलोचना करने वाली रिसर्च पहले भी कर चुके हैं जिसकी चीन ने निंदा की थी.
चीन ने पहले भी कहा है कि नस्ली अल्पसंख्यक आबादी के जन्मदर में कमी का कारण क्षेत्र की आबादी पर लागू कोटा पूरी तरह लागू करने और विकास के अन्य कारकों जैसे प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी और परिवार नियोजन सेवाओं की आसान उपलब्धता के कारण हुआ है. चीन के विदेश मंत्रालय ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "शिनजियांग में कथित नरसंहार की बात कोरी बकवास है. यह अमेरिका और पश्चिमी देशों में चीन विरोधी ताकतों के गुप्त अभिप्रायों से उपजी है, और उन लोगों का प्रचार है जो सायनोफोबिया (चीनी लोगों से डर) से ग्रस्त हैं." मंत्रालय ने यह भी कहा कि 2017 से 2019 के बीच शिनजियांग में जन्मदर में कमी हालात सी सच्ची तस्वीर नहीं है क्योंकि शिनजियांग में उइगुर लोगों की जन्मदर आज भी बहुसंख्य हान आबादी से ज्यादा है.
वीके/एए (रायटर्स)
ड्यूक और डचेज़ ऑफ ससेक्स ने अपने दूसरे बच्चे के जन्म की जानकारी दी है.
ब्रितानी शाही परिवार के प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने बताया कि उनकी बेटी लिलीबेट 'लिली'डायना माउंटबेटन-विंडसर का जन्म शुक्रवार की सुबह अमेरिका में कैलिफ़ोर्निया के सैंटा बार्बरा अस्पताल में हुआ.
प्रिंस हैरी और मेगन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बच्चे और माँ दोनों स्वस्थ हैं.
प्रिंस हैरी और मेगन ने कहा है कि उन्होंने अपनी बेटी लिलीबेट का नाम शाही परिवार की महारानी और परदादी के निकनेम पर दिया है. बीच का नाम दादी डायना के सम्मान में रखा गया है. (bbc.com)
बीजिंग, 6 जून| चीन में हर साल बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे राष्ट्रीय कॉलेज प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं, जिसे 'काओखाओ' कहा जाता है। दो दिनों तक चलने वाली इस काओखाओ परीक्षा में बैठने वाले लाखों चीनी छात्र देश के सबसे बेहतरीन और नामी विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के लिए सबसे ज्यादा अंक पाने की कोशिश करते हैं। इस परीक्षा के जरिए छात्रों को उनके शैक्षिक और पेशेवर भविष्य तय करने में मदद मिलती है। साल में एक बार होने वाली इस परीक्षा को देश का हर प्रांत अपने-अपने ढंग से करवाता है। यह परीक्षा पूरे देश में हर साल 7 जून को शुरू होती है और 2 दिन तक जारी रहती है। इस परीक्षा को देने वाले छात्रों के लिए तीन विषय सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं, पहला चीनी भाषा, दूसरा गणित और तीसरा विदेशी भाषा। आमतौर पर विदेशी भाषा में अंग्रेजी की ही परीक्षा होती है, लेकिन उसमें जापानी, रूसी या फ्रेंच भाषा का भी विकल्प होता है। यह परीक्षा इतनी आसान नहीं होती है। यह दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है।
चूंकि काओखाओ की परीक्षा पास करने के बाद ही छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला मिल पाता है, इसलिए इसका दबाव चीनी छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता पर भी रहता है। चीन में हाईस्कूल की पढ़ाई तीन साल की होती है, इसलिए हाई स्कूल के तीसरे साल के छात्र ही आम तौर पर इस परीक्षा में बैठते हैं। परीक्षा के 20 दिन बाद परिणाम घोषित कर दिए जाते हैं।
यहां चीनी विश्वविद्यालयों में आवेदन करने के दो तरीके होते हैं। पहला तरीका यह है कि छात्र काओखाओ से पहले 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उन विश्वविद्यालयों में आवेदन करते हैं, जिनका चुनाव किया गया है। दूसरा तरीका है कि काओखाओ का परिणाम घोषित होने के बाद छात्र अपने अंक के आधार पर 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उनमें विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए आवेदन करते हैं। परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद हरेक विश्वविद्यालय अपना कट-ऑफ लिस्ट निकालता है और उसी के आधार पर छात्रों को दाखिला दिया जाता है।
दरअसल, साल 1949 से पहले चीन में काओखाओ की व्यवस्था नहीं थी। देश में सभी विश्वविद्यालय अपनी जरूरतों के आधार पर छात्रों को दाखिला देते थे। साल 1966 में महान सांस्कृतिक क्रांति होने के कारण इस परीक्षा को बंद कर दिया गया, लेकिन साल 1976 में इस क्रांति की समाप्ति के साथ ही 1977 से यह परीक्षा फिर से शुरू की गई।
साल 1977 में चीन में कॉलेज के लिए प्रवेश परीक्षा को बहाल किए जाने से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी मेधावी लोगों को निखारा गया है, जिन्होंने सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद पिछले 40 सालों के स्थिर और तेज विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। माना जाता है कि काओखाओ की बहाली ने चीनी जनता के ज्ञान सीखने के उत्साह को न केवल प्रेरणा दी, बल्कि सारे समाज में ज्ञान का समादर करने का माहौल बनाया।
(लेखक : अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग में पत्रकार हैं) (आईएएनएस)
कोलंबो, 7 जून | श्रीलंका के आपदा प्रबंधन केंद्र (डीएमसी) ने रविवार को अपने ताजा अपडेट में कहा कि देश में भारी बारिश के कारण 14 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 245,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। मारे गए 14 लोगों में से पांच की मौत राजधानी कोलंबो से 88 किलोमीटर दूर स्थित केगले में हुई है, जबकि तीन मौतें रत्नापुरा जिले से हुई हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, दो लोगों के लापता होने की खबर है, जबकि दो अन्य घायल हो गए हैं।
डीएमसी के आंकड़ों के अनुसार, 15,658 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, जबकि 800 से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा है।
इस बीच, श्रीलंकाई नौसेना ने कहा कि बढ़ती चिंताओं के बाद, कोलंबो के बाहरी इलाके में केलानी नदी में सपुगस्कंदा तेल रिफाइनरी में टैंकों से भट्ठी के तेल को मिलाने का कोई खतरा नहीं है।
शनिवार को भारी बारिश के बाद तेल रिफाइनरी में फर्नेस ऑयल वाले टैंक बारिश के पानी से भर गए थे।
नौसेना ने कहा कि उसने श्रीलंका के तटरक्षक बल के साथ मिलकर बाहरी वातावरण के संपर्क में आने वाले भट्टी के तेल को स्किम करने और आगे फैलने से रोकने के लिए कार्रवाई की है, क्योंकि इससे मुख्य अंबाथले और बियागामा जल उपचार संयंत्रों के जल वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
नौसेना के प्रवक्ता कैप्टन इंडिका डी सिल्वा ने कहा कि फ्लोटिंग बूम का उपयोग करके बाढ़ के पानी से फर्नेस ऑयल को निकालने के लिए ऑपरेशन जारी है।
प्रतिकूल मौसम के कारण स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि कोविड-19 पर टीकाकरण कार्यक्रम को भी झटका लगा है।
स्वास्थ्य सेवा के उप महानिदेशक डॉ. हेमंथा हेराथ ने स्थानीय मीडिया को बताया कि जिलों में टीकाकरण अभियान को स्थगित नहीं किया गया है, लेकिन अधिकारी भारी बारिश के कारण अपना शत-प्रतिशत प्रदर्शन नहीं कर सके।
मौसम विभाग ने अपनी नवीनतम मौसम रिपोर्ट में कहा कि आने वाले दिनों में 150 मिमी की भारी गिरावट की उम्मीद की जा सकती है और जनता से विशेष रूप से भारी बिजली से सतर्क रहने का आग्रह किया गया था।(आईएएनएस)
हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में चीन की एक यूनिवर्सिटी का कैंपस खोले जाने के विरोध में हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे.
शनिवार को बुडापेस्ट में चीन के फ़ुडान यूनिवर्सिटी कैंपस के निर्माण की योजना का विरोध करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने संसद भवन तक मार्च निकाला.
इस परियोजना का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि इससे देश की अपने उच्च शिक्षा के स्तर में कमी आएगी और चीन के कम्युनिस्ट शासन का प्रभाव बढ़ेगा.
देश के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की दक्षिणपंथी सरकार के बीजिंग के साथ बेहद घनिष्ठ संबंध हैं.
इस महीने की शुरुआत में हंगरी ने यूरोपीय संघ के उस बयान को जारी होने से रोक दिया था, जिसमें हॉन्ग कॉन्ग के प्रति चीन के रुख़ की आलोचना की गई थी.
यूनिवर्सिटी के एक छात्र ज़ोंजा रेडिक्स ने न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी से कहा कि "ओरबान और उनकी दक्षिणपंथी पार्टी फ़िदेज़ ख़ुद को कम्युनिस्ट विरोधी के तौर पर दिखाते हैं लेकिन असलियत में कम्युनिस्ट उनके दोस्त हैं."
प्रदर्शन में शामिल पैट्रिक नाम के एक अन्य छात्र ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि फ़ुडान यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट के लिए तय किसी भी तरह के सरकारी धन का उपयोग "हमारे अपने विश्वविद्यालयों को बेहतर बनाने के लिए" किया जाना चाहिए.
बुडापेस्ट में बनने वाले फ़ुडान यूनिवर्सिटी कैंपस के निर्माण में लगभग 1.8 अरब डॉलर की लागत आने का अनुमान है.
ओरबान सरकार ने साल 2019 में अपनी संपूर्ण उच्च शिक्षा प्रणाली पर जितनी रक़म ख़र्च की थी यह लागत उससे कहीं अधिक है.
हंगरी के एक खोजी पत्रकारिता आउटलेट Direkt36 के दस्तावेज़ों के मुताबिक़, इस लागत का कुछ हिस्सा (1.5 अरब डॉलर) चीन के एक बैंक से ऋण के तौर पर दिया जाएगा.
उदारवादी थिंक टैंक रिपब्लिकन इंस्टिट्यूट के अनुसार, लगभग दो तिहाई हंगेरियन चीनी विश्वविद्यालय परिसर का विरोध कर हैं.
उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में घोषणा की थी कि वह चीन के मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों के नाम पर सड़कों का नामकरण कर रहे हैं. चार नई सड़कों के नाम में जिनमें 'फ्री हॉन्ग कॉन्ग', 'दलाई लामा स्ट्रीट' और 'वीगर मार्टर्स' रोड शामिल हैं.
वहीं दूसरी ओर चीन मानवाधिकारों के हनन के किसी भी आरोप से इनकार करता है.
फ़ुडान विश्वविद्यालय चीन के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक है.
बुडापेस्ट में इस परिसर के साल 2024 तक बनकर तैयार हो जाने की उम्मीद है. (bbc.com)
ऊगादोगो , 6 जून | उत्तरी बुर्किना फासो के एक गांव में संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा 100 से अधिक नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हो गए हैं। मीडिया रिपोटरें में इसकी जानकारी दी गई है। देश की सरकारी समाचार एजेंसी एआईबी ने कहा कि आतंकवादियों ने याघा प्रांत के सोल्हान गांव में छापेमारी की। इस दौरान यहां के घरों और दुकानों में आग लगा दी गई, कई लोगों की हत्याएं की गईं।
सरकारी सूत्रों के हवाले से एआईबी की दी गई जानकारी के हवाले से सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने कहा कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है।
इसमें कहा गया है कि देश के रक्षा और सुरक्षा बलों ने हमले के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को अपने कब्जे में करने के लिए एक तलाशी अभियान की शुरूआत की है। अभी तक किसी भी समूह ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है।
इस त्रासदी के बाद राष्ट्रपति रोच मार्क क्रिश्चियन काबोरे ने शनिवार से सोमवार तक 72 घंटे के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।
काबोरे ने शनिवार को ट्वीट किया, "मैं इस बर्बर हमले में मारे गए सौ नागरिकों की याद में उन्हें नमन करता हूं और पीड़ितों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। हमें बुराई की ताकतों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।"
इसके अलावा शनिवार को प्रधानमंत्री क्रिस्टोफ जोसेफ मैरी डाबरे ने हमले को 'अविश्वसनीय बर्बरता' करार देते हुए इसकी निंदा की और बुर्किना फासो के सभी लोगों से एकजुट रहने और बहादुरी के साथ अपने देश की की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध होने का आह्वान किया।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी हत्याओं पर नाराजगी जाहिर की है। (आईएएनएस)
एटा (उप्र), 6 जून | उत्तर प्रदेश के एटा जिले से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक दुल्हन को ब्याहने दो-दो दूल्हे मंडप पर पहुंच गए। दुल्हन ने एक को वरमाला पहनाई, तो दूसरे संग विदा हुई। यह घटना एटा जिले के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के सिरों गांव की है।
शादी के बाद दूसरे दूल्हे के साथ विदा होते ही पहले दूल्हे व उसके परिवारवालों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। मामले को तूल पकड़ता देख पुलिस को बीच में आना पड़ा।
पुलिस अधिकारी अब लड़की के पिता और चाचा को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रहे हैं। पुलिस ने दूसरे दूल्हे के परिजनों को भी गिरफ्तार कर लिया है और मामले की जांच कर रही है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि यह अभी भी जांच के दायरे में है।(आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 6 जून | भारत के खिलाफ अमेरिकी टैरिफ वॉर को राष्ट्रपति जो बाइडन ने फिर से मजबूती दी है। नई दिल्ली द्वारा दिग्गज तकनीकी कंपनियों पर डिजिटल सेवा कर (डीएस) लगाने के प्रतिशोध में बाइडन ने झींगा और बासमती चावल से लेकर फर्नीचर और आभूषणों तक कई वस्तुओं के आयातों पर आयात शुल्क बढ़ाने की धमकी दी है।
अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने 2 जून को इस योजना की घोषणा की, जिसके तहत उन्होंने बताया कि भारत से 26 वस्तुओं की टैरिफ में 25 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की जा रही है और यह बढ़ोत्तरी दिसंबर तक जारी रहेगी।
भारत ने पिछले साल अप्रैल की शुरूआत में अमेजन, फेसबुक और गूगल जैसे विदेशी तकनीकि और ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा देश में की जा रही कमाई पर दो प्रतिशत टैक्स लगा दिया था। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने इसका विरोध किया था और अब बाइडेन ने मोर्चा संभाल लिया है।
व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय ने कहा था, भारत का डीएसटी अनुचित व भेदभावपूर्ण है और अमेरिकी वाणिज्य पर बोझ या प्रतिबंध लगाता है।
कार्यालय ने इस बात का अनुमान लगाया था कि भारत से चयनित आयातों पर बढ़ा हुआ कर डीएसटी के तहत अमेरिकी कंपनियों पर भारत द्वारा निर्धारित करों के बराबर होगा।
अनुमानों से इसका संकेत मिलता है कि यूएस-आधारित कंपनी समूहों द्वारा भारत को देय डीएसटी का मूल्य प्रति वर्ष लगभग 5.5 करोड़ डॉलर तक होगा। इस कार्रवाई के तहत पांच तरह के सामानों को शामिल किया गया है। अनुमान है कि इससे भारत के सामनों पर लगाए गए टैरिफ से प्राप्त राशि भारत द्वारा निर्धारित करों की राशि के बराबर होगा।
अन्य सामानों में बांस, विंडो शटर, सिगरेट पेपर, मोती, तांबे की पन्नी और बेडरूम फर्नीचर शामिल हैं।
व्यापार युद्धों के नए चरण का उद्घाटन करते हुए बाइडन प्रशासन ने अपने डीएसटी पर पांच अन्य देशों - ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, इटली, स्पेन और तुर्की को भी आयात पर शुल्क बढ़ाने की भी धमकी दी। (आईएएनएस)
कोलम्बो, 6 जून | बीते दो दिनों से जारी भारी बारिश और उसके बाद भूस्खलन की घटनाओं के कारण श्रीलंका में कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई है जबकि इससे 2.5 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। अधिकारियों ने रविवार को कहा कि मौसम का रौद्र रूप जारी रहेगा और इसे लेकर लोगों के बीच अलर्ट जारी कर दिया गया है।
आपदा प्रबंधन केंद्र के अधिकारी ने कहा कि दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण देश के पश्चिमी, दक्षिणणी और मध्य भाग में जोरदार बारिश हो रही है और इसी के कारण भूस्खलन की घटनाएं भी हो रही हैं।
शनिवार को कोलम्बो से 90 किलोमीटर पूर्व में स्थित अरान्याका में भूस्खलन से एक ही परिवार के चार लोगों की मौत हो गई। ये सब भूस्खलन के कारण मिट्टी में दब गए थे।
इसी तरह बाकी के लोग या तो भूस्खलन में मारे गए या फिर पानी के प्रवाह में बह गए।
अधिकारी ने कहा कि पूरे इलाके से तकरीबन 2 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।(आईएएनएस)
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्लाह मोहिब की टिप्पणियों के जवाब में इमरान ख़ान हुकूमत के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने शनिवार को कहा कि उन्हें अपनी भाषा में सुधार लाना चाहिए.
पाकिस्तानी अख़बार 'डॉन' के मुताबिक़ मुल्तान में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कान खोलकर मेरी बात सुन लो...."
"अगर तुम ऐसी जुबान का इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आए या पाकिस्तान पर जो इलज़ाम तुम लगा रहे हो, जो तुम कर रहे हो, तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री की हैसियत से मैं कह रहा हूँ कि कोई पाकिस्तानी न तुम से हाथ मिलाएगा और न ही तुम से बात करेगा."
शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान ने चरमपंथ की वजह से जान-माल की बड़ी क़ीमत चुकाई है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस इलाक़े में केवल शांति और स्थिरता चाहता है.
'वॉइस ऑफ़ अमेरिका' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मई की शुरुआत में नंगरहार सूबे के दौरे पर थे जहाँ उन्होंने पाकिस्तान को 'चकलाघर' कहा था.
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्लाह मोहिब
अफ़ग़ानिस्तान एनएसए के भाषण पर प्रतिक्रिया
रिपोर्ट के मुताबिक़ हमदुल्लाह मोहिब पाकिस्तान पर अक्सर ही अफ़ग़ान तालिबान को समर्थन और मदद देने का आरोप लगाते रहे हैं.
शाह महमूद क़ुरैशी ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि पाकिस्तान की तरफ़ से प्रधानमंत्री और सेना-प्रमुख से लेकर विदेश मंत्री तक अमन के लिए काबुल का दौरा करते रहे हैं लेकिन इसके बावजूद अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को पाकिस्तान को 'चकलाघर' कहते हैं.
क़ुरैशी ने अफ़ग़ानिस्तान के एनएसए पर तमतमाते हुए कहा, "तुम को इस बात पर शर्म आनी चाहिए. कोई कहे या न कहे लेकिन जब से मैंने नंगरहार में तुम्हारी तक़रीर सुनी है, मेरा तो ख़ून खौल रहा है. डंके की चोट पर कह रहा हूँ, अपना रवैया सुधार लो."
"मैं ये बात अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से भी कहना चाहूँगा कि अगर यही बर्ताव जारी रहता है तो ये आदमी जो ख़ुद को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कहता है, तो ये अमन का माहौल बिगाड़ने वाला काम कर रहा है."
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान एनएसए अमन की राह में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. वे इसमें सुधार करने के बजाय हालात बिगाड़ रहे हैं. इसलिए अफ़ग़ानिस्तान और उसके अमनपसंद समझदार नागरिकों को उनसे अपील करनी चाहिए कि वे अपना बर्ताव ठीक कर लें.
अफ़ग़ानिस्तान का जवाब
शाह महमूद क़ुरैशी ये बात पहले भी उठाते रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे लोग मौजूद हैं जो अमन की राह में रोड़ा अटका रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की न्यूज़ वेबसाइट 'टोलो न्यूज़' की रिपोर्ट के अनुसार इसी हफ़्ते यूरोपीय संघ की संसद को एक वर्चुअल संबोधन के दौरान उन्होंने ये बात कही थी. उसके बाद इसी हफ़्ते इस्लामाबाद में तजाकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान के साथ मुलाक़ात में उन्होंने ये आरोप फिर से लगाया था.
उन्होंने कहा था, "अफ़ग़ानिस्तान के अंदर और बाहर ऐसे लोग हैं जो शांति और सुरक्षा नहीं चाहते हैं. हमें ऐसे काम बिगाड़ने वाले लोगों से सतर्क रहना चाहिए."
इस पर अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने जवाब देते हुए कहा कि अमन के दुश्मन वे लोग हैं जिन्होंने हिंसा जारी रखकर अफ़ग़ानिस्तान की आवाम और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की अपील को ठुकराया है.
"इस नाज़ुक मोड़ पर इलज़ाम लगाने से कुछ भी अच्छा नहीं होने वाला है. अफ़ग़ानिस्तान में अमन इस क्षेत्र के मुल्कों ख़ासकर पाकिस्तान के हित में है. सार्थक शांति वार्ता शुरू करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान के लोग और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पाकिस्तान से व्यावहारिक क़दम की उम्मीद रखते हैं."
अफ़ग़ानिस्तान के सांसद नेमतुल्लाह कारयाब ने कहा, "पाकिस्तान के विदेश मंत्री का हालिया बयान अफ़ग़ानिस्तान के अंदरूनी मामलों में साफ़ तौर पर दखलंदाज़ी है."
शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि वे अगले साल मार्च में कश्मीर के मुद्दे पर बात करने के लिए मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों को इस्लामाबाद बुलाएंगे.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन का मुद्दा उठाते वक़्त उन्होंने कश्मीरियों और फ़लस्तीनियों की मांग के बीच समानता की याद दिलाई थी.
क़ुरैशी ने कहा, "मैं ये वादा करता हूं कि मैंने जिस तरह से फ़लस्तीनियों के लिए लड़ा हूँ, अगर ख़ुदा ने वक्त दिया तो मार्च, 2022 में इस्लामिक जगत के विदेश मंत्रियों को इस्लामाबाद बुलाऊंगा और उनके सामने कश्मीर का मुद्दा रखेंगे. कश्मीरियों का मु्द्दा सच और इंसाफ़ का है जो उनके सामने रखा जाएगा."
अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की है कि अफ़ग़ानिस्तान में तैनात सभी अमेरिकी सैनिक सितंबर की 11 तारीख़ तक लौट जाएंगे. टोलो न्यूज़ के अनुसार इमरान ख़ान चाहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों के जाने से पहले कोई शांति समझौता हो जाए. अमेरिका की इस डेडलाइन पर पाकिस्तान की नज़र है. पाकिस्तान का कहना है कि अमेरिकी सैनिकों के वापस जाने को अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया से जोड़ा जाना चाहिए.
बीस साल यहाँ रहने के बाद अमेरिकी और ब्रिटिश सेना अफ़ग़ानिस्तान छोड़ रहीं हैं. अप्रैल में राष्ट्रपति बाइडन ने घोषणा की थी कि बचे हुए 2,500-3,500 अमेरिकी सैनिक 11 सितंबर तक वापस चले जाएंगे. ब्रिटेन भी अपने बचे हुए 750 सैनिकों को वापस बुला रहा है.
अल-क़ायदा ने अमेरिका पर 9/11 हमले को अफ़ग़ानिस्तान की धरती से अंजाम दिया था. उसके बाद अमेरिका के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीक़े से वहां से तालिबान को सत्ता से हटाया गया और अस्थायी रूप से अल-क़ायदा को बाहर किया गया.
20 साल तक सेना को बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी है- पैसों और ज़िदगियों से. अमेरिकी सेना के 2300 से ज़्य़ादा पुरुष और महिलाओं को जान गंवानी पड़ी और 20,000 से ज़्यादा घायल हुए. इसके अलावा ब्रिटेन के 450 सैनिकों समेत दूसरे देशों के सैंकड़ों सैनिक मारे गए या घायल हुए.
लेकिन सबसे ज़्यादा नुकसान अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को हुआ है. उनके 60,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी इस दौरान मारे गए और इससे दोगुनी संख्या में नागरिक की जान गई.
अमेरिकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का फ़ैसला अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में 2020 में हुई संधि के बाद आया था.
इसकी आधिकारिक घोषणा इसी साल अप्रैल में हुई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि 11 सितंबर तक अमेरिकी सैनिक लौट आएंगे.
11 सितंबर, 2021 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले की 20वीं बरसी भी है. इस हमले के बाद ही अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था. (bbc.com)
बीजिंग, 6 जून : चीन ने 3 से 17 साल तक की उम्र के बच्चों के लिए सिनोवैक बायोटेक की वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. चीन, तीन साल की उम्र के बच्चों के लिए वैक्सीन की मंजूरी देने वाला पहला देश बन गया. वहां अबतक 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को ही वैक्सीन लगाई जा रही थी.
एक ऑफिशियल स्टेटमेंट में सिनोवैक बायोटेक के चेयरमैन यिन वेइदोंग ने शुक्रवार को इस फैसले की जानकारी दी. सरकार ने अभी तक इसकी जानकारी नही दी है कि बच्चों का टीकाकरण कब से शुरू किया जाएगा. स्थानीय मीडिया ने यिन के हवाले से कहा है कि वैक्सीन कब से लगाई जाएगी, यह चीन की टीकाकरण रणनीति तैयार करने वाले स्वास्थ्य अधिकारियों पर निर्भर करता है.
ट्रायल में सेफ और सुरक्षित पाई गई वैक्सीन
पहले और दूसरे फेज के क्लीनिकल ट्रायल के प्रारंभिक रिजल्ट में वैक्सीन को सेफ और सुरक्षित पाया गया है और इसके प्रतिकूल प्रभाव अब तक माइल्ड रहे हैं. यिन ने कहा कि ट्रायल के दौरान प्रतिभागियों ने अपने दो रेगुलर शॉट देने के बाद तीसरी बूस्टर डोज दी गई. इसके परिणामस्वरूप एक सप्ताह में एंटीबॉडी के स्तर में 10 गुना और 15 दिन महीने में 20 गुना वृद्धि हुई. उन्होंने कहा कि कंपनी तीन डोज का टेस्ट और एंटीबॉडी अवधि का निरीक्षण करना जारी रखेगी और इसके बाद ही सिफारिश करेगी कि तीसरी डोज कब दी जानी चाहिए।
सिनोफार्म ने भी बच्चों के लिए वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मांगी अनुमति
सिनोवैक के बाद सिनोफार्म ने भी सरकार से बच्चों के लिए अपनी वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी है. एक और कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स भी 6 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए वैक्सीन बना रही है और इसके दूसरे फेज के ट्रायल चल रहे हैं.
केवल पांच दिन में लगाए 10 करोड़ टीके
इस बीच, चीन में टीकाकरण अभियान तेज किया गया है. केवल पांच दिनों में 10 करोड़ वैक्सीन लगाई गई हैं. चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि उनका लक्ष्य साल के अंत तक 1.4 अरब की आबादी में से 80 फीसदी लोगों को टीका लगाने का है.
वाशिंगटन, 6 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.28 करोड़ हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 37.1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई हैं। यह आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। रविवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 172,859,512 और 3,718,408 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,357,080 और 597,377 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,694,879 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के मुताबिक
30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब प्रभावित देश ब्राजील (16,907,425), फ्रांस (5,769,291), तुर्की (5,282,594), रूस (5,058,221), यूके (4,527,577), इटली (4,230,153), अर्जेंटीना (3,939,024), जर्मनी (3,706,934) , स्पेन (3,697,981) और कोलंबिया (3,547,017) हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 472,531 संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (344,082), मैक्सिको (228,568), यूके (128,099), इटली (126,472), रूस (121,365) और फ्रांस (110,135) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
ग़ज़ा में हमास के नेता याह्या सिनवार ने दावा किया है कि इसराइल उन सुरंगों के जाल को तबाह करने में नाकाम रहा है जिन्हें पिछले महीने हुई लड़ाई में बर्बाद करना उसका प्रमुख मक़सद था.
इसराइल में इन सुरंगों के नेटवर्क को मेट्रो कहा जाता है.
शनिवार को दिए एक भाषण में हमास नेता याह्या सिनवार ने कहा कि इसराइल इन सुरंगों के नेटवर्क का तीन फीसदी से भी कम हिस्सा बर्बाद कर पाया है.
हमास के अख़बार 'फ़लस्तीन' की वेबसाइट पर पांच जून को प्रकाशित हुई रिपोर्ट के मुताबिक़ ग़ज़ा में अकादमिक और सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "इसराइल के साथ 11 दिनों तक चली लड़ाई हमास के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं को आज़माने का मौका था."
याह्या सिनवार ने ये भी कहा कि इसराइल के साथ रिश्ते सुधारने के लिए अरब देशों की ओर से बढ़ाए गए क़दम के कारण भी तेल अवीव का ग़ज़ा पर हमला करने का हौंसला बढ़ा.
'मध्य पूर्व का नक़्शा बदल जाएगा'
उन्होंने कहा कि हमास ने फ़लस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन को फिर से संगठित करने का हक़ जीत लिया है. अब इसमें हमास और इस्लामिक जिहाद समेत सभी फ़लस्तीनी धड़ों को नुमाइंदगी करने का हक़ मिलेगा.
उन्होंने कहा, "अगर इसराइल के साथ दोबारा संघर्ष शुरू होता है तो मध्य-पूर्व का नक़्शा बदल जाएगा."
"ग़ज़ा में सक्रिय फ़लस्तीनी गुटों ने इसराइल के साथ ताज़ा दौर के संघर्ष में केवल अपनी आधी ही ताक़त का इस्तेमाल किया था. दुश्मन यरूशलम और शेख जर्राह की हकीकत को नहीं बदल सकेगा. और न ही वो फ़लस्तीनियों के आपसी मतभेद का फायदा उठा सकेगा."
उन्होंने कहा, "हमने दुश्मन के सामने ये साबित कर दिया है कि अल-अक़्सा मस्जिद की रक्षा करने वाले लोग हैं और ये रणनीतिक मक़सद फ़लस्तीनियों ने हासिल कर लिया है. वेस्ट बैंक और इसराइली अरबों के खड़े होने से उन पर बहुत दबाव पड़ा है."
'इसराइल को दिखाया कि छोटे स्तर का युद्ध कैसा होता है'
सिनवार ने कहा, "इसराइल का मक़सद 50 फीसदी प्रतिरोधियों की हत्या करने का और ग़ज़ा को दशकों पीछे ले जाने का था लेकिन सिर्फ़ शून्य हासिल हुआ."
उन्होंने कहा, "समुद्र में हमने अपनी मिसाइलों का कई बार परीक्षण किया है और यह ज़रूरी है कि हम उसका अभ्यास करते रहें. यह सिर्फ़ हमारी क्षमताओं का अभ्यास था और इसराइल को दिखाना था कि एक छोटे स्तर का युद्ध कैसा हो सकता है."
ग़ज़ा के पुनर्निर्माण को लेकर सिनवार ने कहा, "हम हर उस पक्ष के लिए दरवाज़े खोलेंगे जो ग़ज़ा का समर्थन करना चाहता है और उनके काम को सुविधाजनक बनाएंगे."
उन्होंने कहा, "ग़ज़ा के पुनर्निर्माण के लिए आवंटित किए गए पैसे का इस्तेमाल हमास और प्रतिरोध के लिए नहीं होगा और हम किसी भी पक्ष को ग़ज़ा को कमज़ोर करने की अनुमति नहीं देंगे."
21 मई को इसराइल और ग़ज़ा में फ़लस्तीनी धड़े के बीच संघर्ष विराम हुआ था. यह संघर्ष 11 दिनों तक चला था जिसमें ग़ज़ा में 250 से अधिक लोग मारे गए थे.
हालिया संघर्ष यरूशलम में अल-अक़्सा मस्जिद कंपाउंड में हुई हिंसा और शेख़ जर्राह से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की योजना के बाद शुरू हुआ था. (bbc.com)
बुरकिना फासो सरकार का कहना है कि देश के उत्तरी इलाक़े में बसे याघा प्रांत के एक गाँव में हुए हमले में 132 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. मारे जाने वालों में सात बच्चे भी शामिल हैं.
सरकार ने कहा है कि हाल के सालों में हुआ यह सबसे भयंकर हमला है.
रात को बंदूकधारियों ने याघा प्रांत के साहेल इलाक़े के सोलान नामक गाँव पर हमला किया. इस दौरान उन्होंने घरों और स्थानीय बाज़ारों को आग के हवाले कर दिया.
अब तक किसी भी चरमपंथी समूह ने इस हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन हाल के वर्षों में देश के सीमावर्ती इलाकों, ख़ासकर नाइजर और माली से लगे इलाक़ों में इस्लामी चरमपंथी समूहों के हमले बढ़े हैं.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेश ने इस हमले की निंदा की और आक्रोश व्यक्त किया है.
उन्होंने कहा, "मैं कड़े से कड़े शब्दों में इस जघन्य हमले की निंदा करता हूँ. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वो हिंसक चरमपंथ और इसके कारण हो रही मौतों से जूझने के लिए अपने सदस्य देश को दी जाने वाली मदद जल्द से जल्द दोगुनी करें."
एक ट्वीट में उन्होंने कहा, "बुरी ताक़तों के ख़िलाफ़ हमें एक साथ डटकर खड़े रहना होगा." उन्होंने कहा कि सुरक्षाबल हमलावरों की तलाश में जुटे हैं.
शुक्रवार को एक अन्य हमले में सोलान शहर से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तदरयात गाँव के 14 लोग मारे गए थे.
वहीं बुरकिना फासो के पूर्वी इलाक़े में पिछले महीने हुए एक और बड़े हमले में 30 लोगों की मौत हुई थी. (bbc.com)
बांग्लादेश ने अपने ई-पासपोर्ट से ‘इस्राएल को छोड़कर’ हिस्सा हटा दिया है, लेकिन वह इस्राएल की मान्यता पर अपने पुराने रुख पर कायम है. कई लोग अब ये पूछ रहे हैं कि क्या बांग्लादेश के नागरिक इस्राएल की यात्रा कर सकते हैं.
डॉयचे वैले पर अराफातुल इस्लाम की रिपोर्ट
नए बांग्लादेशी ई-पासपोर्ट से ‘इस्राएल को छोड़कर' हटाने के बाद यह बहस तेज हो गई है कि क्या यह देश इस्राएल के साथ अपने संबंधों को सामान्य कर सकता है और बांग्लादेशी नागरिकों के मध्य पूर्व देश में जाने का रास्ता साफ कर सकता है. बांग्लादेश के पुराने पासपोर्ट पर लिखा होता था, "यह पासपोर्ट इस्राएल को छोड़कर दुनिया के सभी देशों के लिए मान्य है.” हालांकि, जब करीब छह महीने पहले बांगलादेश ने इलेक्ट्रोनिक चिप वाले अपना ई-पासपोर्ट लॉन्च किया, तब उसमें ‘इस्राएल को छोड़कर' वाक्यांश शामिल नहीं था. ऐसा करने से पहले सरकार ने किसी तरह की सूचना भी जारी नहीं की थी.
बदलाव की यह खबर जंगल में आग की तरह उस समय फैली जब दो बांग्लादेशी नागरिकों ने दावा किया कि उन्हें दो हफ्ते पहले "यह पासपोर्ट दुनिया के सभी देशों के लिए मान्य है" लिखा हुआ पासपोर्ट मिला है. इस पूरे मामले पर बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने जल्द ही बदलाव को स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने "इस्राएल को छोड़कर" वाक्यांश को हटा दिया, ताकि यह पक्का हो सके कि यह पासपोर्ट "अंतर्राष्ट्रीय मानकों" को पूरा करता है.
इस्राएल के विदेश मंत्रालय में पब्लिक इंक्वायरी डिवीजन की प्रमुख रूथ जाख ने बांग्लादेश के इस कदम की सराहना की है. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "इस्राएल बांग्लादेशी पासपोर्ट से 'इस्राएल को छोड़कर' वाक्यांश हटाने का स्वागत करता है.”
इस्राएल के विदेश मंत्रालय में एशिया और प्रशांत क्षेत्र के उप महानिदेशक गिलाद कोहेन ने भी इस बदलाव का स्वागत किया. साथ ही, उन्होंने बांग्लादेशी सरकार से आगे बढ़ने और इस्राएल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने का आह्वान किया.
बांग्लादेश का इस्राएल से सामान्य संबंधों से इनकार
पासपोर्ट से ‘इस्राएल को छोड़कर' वाक्यांश हटाने के फैसले से कई लोग हैरान रह गए. वजह ये है कि बांग्लादेश इस्राएल को एक देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है और दशकों से अपने नागरिकों को वहां जाने पर रोक लगा रखा है. 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र मुल्क बनने के बाद से बांग्लादेश ने सिर्फ फलस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दी है. बांग्लादेश ने कहा है कि वह तब तक इस्राएल को मान्यता नहीं देगा जब तक कि फलस्तीन एक आजाद मुल्क नहीं बन जाता.
बांग्लादेश का कहना है कि वह "1967 से पहले की सीमाओं और पूर्वी यरुशलम को फलस्तीन की राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आलोक में फलस्तीन-इस्राएल संघर्ष के ‘दो देशों वाले समाधान' का समर्थन करता है."
पिछले मई महीने में ही इस्राएल और हमास के बीच 11 दिनों तक चले संघर्ष के दौरान फलस्तीनी एनक्लेव गजा में काफी ज्यादा हवाई हमले हुए. इस्राएल की बमबारी में 232 फलस्तीनी मारे गए जिनमें 65 बच्चे और तीन दर्जन से अधिक महिलाएं शामिल हैं. हमास सशस्त्र फलस्तीनी आतंकवादी समूह है जिसे यूरोपीय संघ और अमेरिका ने आतंकवादी संगठन के तौर पर वर्गीकृत किया है. इससे पहले इस्राएल और हमास के बीच 2014 में 50 दिनों तक भीषण संघर्ष हुआ था.
बांग्लादेश में फलस्तीनी प्राधिकरण के राजदूत यूसेफ रमदान ने स्थानीय मीडिया को बताया कि वह पासपोर्ट में इस्राएल को बाहर न करने के बांग्लादेश के कदम से "दुखी" हैं. उन्होंने कहा, "यह हमारे लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता.” हालांकि, बांग्लादेश ने इस्राएल के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की योजना से इनकार किया है. साथ ही कहा है कि इस्राएल को लेकर उसकी विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. यात्रा पर लगी रोक जारी रहेगी.
बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने कहा, "कोई भी बांग्लादेशी नागरिक इस्राएल की यात्रा नहीं कर सकता है. अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.” मोमेन ने कहा कि ई-पासपोर्ट में बदलाव सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है. मंत्री ने कहा, "पासपोर्ट सिर्फ एक पहचान है और यह किसी देश की विदेश नीति को नहीं दिखाता है. बांग्लादेश की विदेश नीति वैसी ही बनी हुई है जैसी बंगबंधु (शेख मुजीबुर रहमान) के समय थी.”
जर्मनी में बांग्लादेश के राजदूत मुशर्रफ हुसैन भुइयां ने कहा कि ‘इस्राएल को छोड़कर' वाक्यांश बांग्लादेशी पासपोर्ट से एक साल पहले हटाया गया था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस्राएल के साथ राजनायिक संबंध स्थापित करने जा रहे हैं. हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. अभी तक करीब एक लाख ऐसे पासपोर्ट जारी हो चुके हैं जिसमें लिखा है ‘यह पासपोर्ट दुनिया के सभी देशों के लिए मान्य है'.
पासपोर्ट में बदलाव से पैदा हुई भ्रम की स्थिति
ई-पासपोर्ट से वाक्यांश को हटाने के बांग्लादेश के फैसले ने इस्राएल की यात्रा पर सरकार के रुख के बारे में कई लोगों को हैरान कर दिया है. वाशिंगटन स्थित वुडरो विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन ने डॉयचे वेले को बताया, "बांग्लादेश ने जो संदेश दिया है उसमें अभी और स्पष्टता की जरूरत है. अब इन नए पासपोर्ट में यह नहीं लिखा है कि इस्राएल जाने पर प्रतिबंध है, तो आप यह कैसे कह सकते हैं कि अभी भी इस्राएल जाने पर प्रतिबंध लागू है? यह काफी विचित्र स्थिति है.”
ढाका में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शाहिदुल आलम का कहना है कि यात्रा पर प्रतिबंध की बात तब तक "तर्कहीन" है जब तक इसे पासपोर्ट में लिखित तौर पर शामिल नहीं किया जाता. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "यह पूरी तरह तर्कहीन है कि आप किसी व्यक्ति को ऐसा दस्तावेज देते हैं जिस पर लिखा है कि आप पूरी दुनिया में कहीं भी यात्रा कर सकते हैं और फिर कहते हैं कि ‘इस तरह' की यात्रा की अनुमति नहीं है.”
क्या बांग्लादेश इस्राएल की यात्रा पर प्रतिबंध लगा सकता है?
कतर स्थित अल जजीरा न्यूज आउटलेट ने आव्रजन अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया कि बदलाव के बाद, बांग्लादेशी नागरिक को अब किसी तीसरे देश से वीजा मिल जाता है, तो वे उस स्थिति में इस्राएल की यात्रा कर सकते हैं. अल जजीरा ने मोमेन की कानूनी कार्रवाई के दावे का खंडन करते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा कि किसी देश की यात्रा करने के लिए सिर्फ पासपोर्ट होना ही जरूरी नहीं है. इसके लिए वीजा भी चाहिए होता है. बांग्लादेश के आव्रजन नियमों को नियंत्रित करने वाले 17 कानूनी धाराओं में से किसी के तहत इस्राएल की यात्रा पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.
रूथ जाख ने कहा कि बांग्लादेशी नागरिक अभी भी इस्राएल की यात्रा पर जा सकते हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "बांग्लादेशी नागरिक पुराने पासपोर्ट के साथ भी इस्राएल जा सकते थे. हमने हमेशा 'इस्राएल को छोड़कर' वाक्यांश को नजरअंदाज किया जब यह दूसरे देशों के पासपोर्ट में दिखाई दिया. हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री जिनके पास 'इस्राएल को छोड़कर' का पासपोर्ट होता है, हर साल इस्राएल आते हैं और उनका गर्मजोशी से स्वागत किया जाता है.”
इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अली रियाज ने डॉयचे वेले को बताया, "जिस व्यक्ति को इस्राएल जाने के लिए वीजा मिल जाएगा, उसे न तो रोका जा सकता है और न ही उस पर किसी तरह का मुकदमा चलाया जा सकता है. ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे उस व्यक्ति को यात्रा करने से रोका जा सके. हालांकि, अगर सरकार किसी दूसरे कानून के तहत मुकदमा चलाती है, तो यह अलग मामला है.”
इस्राएल संबंध मजबूत करने को तैयार
रूथ जाख कहती हैं, "इस्राएल बांग्लादेश के साथ अपने राजनायिक संबंध स्थापित करने के लिए तैयार है. 73 साल पहले अपनी स्थापना के बाद से इस्राएल की नीति पृथ्वी पर मौजूद सभी देशों तक पहुंचने और उन सभी के साथ संबंध स्थापित करने की थी. बांग्लादेश कोई अपवाद नहीं है. इस्राएल बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा के तुरंत बाद उसे मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था.”
जाख कहती हैं, "2017 में इस्राएल ने बांग्लादेशी अधिकारियों से संपर्क किया था और पड़ोसी देश म्यांमार से भागे रोहिंग्या शरणार्थियों को मानवीय और चिकित्सा सहायता देने की अनुमति मांगी थी. पहले हमारी उपेक्षा की गई और फिर हमें मना कर दिया गया. प्रस्ताव अभी भी मेज पर है.”
विश्व बैंक के वर्ल्ड इंटीग्रेटेड ट्रेड सॉल्यूशन डेटाबेस से पता चलता है कि बिना किसी राजनयिक संबंध के बांग्लादेश और इस्राएल के बीच अभी भी व्यापार होता है. डेटाबेस के मुताबिक, इस्राएल ने 2010 और 2018 के बीच अन्य देशों के माध्यम से बांग्लादेश से लगभग 27.35 करोड़ यूरो के उत्पादों का आयात किया. (dw.com)
चीन ने अपनी जनसंख्या नीति में बदलाव करते हुए अपने नागरिकों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी है. सरकार के इस फैसले के बावजूद बहुत सी चीनी महिलाएं अब ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहती हैं. आखिर ऐसा क्यों है?
डॉयचे वैले पर विलियम यांग की रिपोर्ट
चीन पिछले कुछ सालों से अपने देश में उभरते आबादी के संकट से निपटने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने की कोशिश कर रहा है. सरकार ने अपने हाल के फैसले में विवाहित जोड़ों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी है. इस कदम ने पिछले कुछ दशकों में चीनी नागरिकों के बच्चे पैदा करने के अधिकारों पर सरकार के कड़े नियंत्रण को और कम कर दिया है. लेकिन इसके बावजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति का चीन की प्रजनन दर की प्रवृत्ति पर सीमित प्रभाव पड़ेगा.
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सामाजिक विज्ञान और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर स्टुअर्ट गिटेल-बास्टेन ने डॉयचे वेले को बताया कि उनके कुछ सर्वे से यह निष्कर्ष सामने आया है कि चीन में सिर्फ कुछ ही लोग वास्तव में तीसरा बच्चा पैदा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों को पालने में होने वाले खर्च और कामकाजी महिलाओं के करियर के लिए अवसर जैसी चीजें कई चीनी महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के बारे में सोचने से हतोत्साहित कर सकती हैं. वे कहते हैं, "हमें ऐसा नहीं लगता है कि सरकार की नई नीति की वजह से बच्चा पैदा करने को लेकर सामाजिक तौर पर कोई बड़ा बदलाव आएगा.”
तीन बच्चे पैदा करने की नीति लागू करने से पहले, चीन ने 2015 के अंत में दो बच्चे पैदा करने की छूट दी थी. इससे पहले देश में एक बच्चा पैदा करने की नीति सख्ती से लागू थी. इस नीति की शुरुआत 1979 में की गई थी. उस समय चीन की सरकार का कहना था कि गरीबी मिटाने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है. 2015 के अंत में दो बच्चों की नीति लागू होने के बाद देश में प्रजनन दर में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि नहीं दर्ज की गई. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में चीन की प्रजनन दर प्रति महिला 1.3 बच्चे थी. इससे चीन जापान और इटली जैसे देशों के बराबर पहुंच गया जहां युवाओं से ज्यादा आबादी बुजुर्गों की होती जा रही है.
विवाहितों को मनाने की चुनौती
चीन की कुछ महिलाएं तीन बच्चे पैदा करने की नीति को उस उपाय के तौर पर देखती हैं जो उन्हें अपने परिवार नियोजन की मूल योजना से अलग दिशा में ले जाती है. 25 वर्षीय छात्रा ब्रेंडा लियाओ ने डीडब्ल्यू को बताया कि उसकी उम्र के आसपास की कई चीनी महिलाएं अब चीन में "ले डाउन" नामक एक नई जीवन शैली का अभ्यास कर रही हैं. यह एक धारणा को दिखाता है जो चीन में महिलाओं और पुरुषों को जीवन में कर्तव्यों या जरूरतों को पूरा करने के लिए कम से कम कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
लियाओ कहती हैं, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार परिवार नियोजन के लिए कौन सी नीति लागू करती है, क्योंकि मैं पहले से ही अपने ऊपर बच्चे पैदा करने की कोई अपेक्षा न थोपकर 'लाइंग डाउन' की भावना को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं. मेरे कई दोस्तों का भी यही विचार है. वे भी इसी तरह से जिंदगी जीना चाहती हैं.”
कई ऐसी भी महिलाएं हैं जो ज्यादा बच्चे नहीं पैदा करना चाहती हैं. इसकी वजह चीन के बड़े शहरों में बच्चों के लालन-पालन पर होने वाला खर्च है. वे कहती हैं कि बच्चों की परवरिश में होने वाले खर्च की वजह से वे तीन बच्चों की नीति का पालन नहीं करेंगी. यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत लिली बी कहती हैं, "मैं चीन के टियर-वन शहर में रहती हूं, इसलिए बच्चों को पालने में होने वाला खर्च मुझे बहुत चिंतित करता है. मुझे नहीं लगता कि मैं अन्य सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ बच्चे की ठीक से परवरिश करने की चिंता का सामना कर सकती हूं.”
कुछ ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि दशकों से परिवार नियोजन की सख्त नीतियों को लागू करने के बाद चीनी सरकार को अब अपनी ही दवा का स्वाद मिल रहा है. चीन की एक घरेलू महिला अंबर चेन कहती हैं, "सरकार ने महिलाओं पर तीन दशकों तक एक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए जुर्माना लगाया और अब वे जनसांख्यिकीय संकट के कारण अपनी ही नीतियों में तुरंत बदलाव कर रहे हैं. वे अपनी मनमानी नीतियों की कीमत चुका रहे हैं. उन्हें पता होना चाहिए था कि महिलाओं का बच्चा पैदा करने का अधिकार एक बुनियादी मानवाधिकार है और उन्हें इसे हमसे नहीं छीनना चाहिए था.”
दरअसल, माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म वीबो पर सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ द्वारा चलाया गया एक सर्वे भी कई चीनी महिलाओं के साझा किए गए विचारों का समर्थन करता है. सर्वेक्षण में पूछा गया कि क्या वे तीन बच्चों की नीति के लिए तैयार हैं. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले 31,000 लोगों में से 28,000 से अधिक ने कहा कि वे इस पर कभी विचार नहीं करेंगे. पोल को बाद में वीबो से हटा दिया गया था.
सरकार और नागरिकों के बीच ‘सिविल वार'
सरकार ने तीन बच्चे पैदा करने की नीति लाकर बच्चे पैदा करने के अपने कठोर कानून में छूट दी है, लेकिन यह कानून अभी भी चीनी नागरिकों के मूल अधिकारों में दखल देता है. संयुक्त राज्य अमेरिका में विस्कॉन्सिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक यी फुक्सियान ने डॉयचे वेले को बताया, "तीन बच्चों की नीति अभी भी एक तरह से परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, और जनसंख्या को एक बोझ की तरह मानने जैसा है.”
फुक्सियान कहते हैं, "परिवार नियोजन चीनी सरकार और चीनी जनता के बीच आधी सदी तक चल रहा गृहयुद्ध है. इस गृहयुद्ध को समाप्त करने के लिए, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्णय से जनसंख्या नीति की दिशा में पूरी तरह बदलाव करने की जरूरत है. शायद इस बार बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए चीनी अधिकारियों ने सबसे पहले पोलित ब्यूरो की बैठक में एक उपाय के तौर पर तीन बच्चों की नीति की घोषणा की.”
प्रजनन क्षमता बढ़ाने के उपायों की जरूरत
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के गिटेल-बास्टेन का मानना है कि तीन बच्चों की नीति के अलावा, चीनी सरकार को और भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि "अंतिम छोर तक की समस्या को ठीक किया जा सके.” वे कहते हैं, "महिलाओं के बच्चों की संख्या बढ़ाकर चीन की जनसांख्यिकीय चुनौतियों का समाधान नहीं हो पाएगा. अगर चीन की सरकार जन्मदर को बढ़ाना चाहती है, तो उसे इसके लिए लोगों में बच्चा पैदा करने की चाहत बढ़ानी होगी. इसके लिए लोगों की सहायता करने की जरूरत है.
तीन बच्चों की नीति के अलावा, सरकार ऐसे अन्य सहायक उपायों को शुरू करने पर विचार कर रही है जिससे चीन की जनसंख्या संरचना में मौलिक रूप से सुधार हो सके. सरकार शिक्षा में होने वाले खर्च को कम करने, आर्थिक और आवास सहायता बढ़ाने के साथ-साथ कामकाजी महिलाओं के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने की योजना बना रही है.
तीन बच्चों की नीति की आलोचना के बावजूद, गिटेल-बास्टेन का कहना है कि अभी भी कुछ सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं, ताकि चीनी महिलाएं जिन चीजों का सामना करती हैं उन स्थितियों में सुधार किया जा सके. वे कहते हैं, "इस नीति से ऐसे लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आएगा जो तीसरा बच्चा पैदा करना चाहते हैं. साथ ही, महिलाओं को नसबंदी और गर्भपात जैसी परेशानियों से भी काफी हद तक छुटकारा मिलेगा.”
रिपोर्टिंग में जर्मन सार्वजनिक मीडिया एआरडी के शंघाई ब्यूरो की जोस कियान ने मदद की. (dw.com)
मंगल पर जीवन की तलाश को लेकर दुनिया भर में अध्ययन और अंतरिक्ष के अभियान जारी हैं. क्या मंगल को रहने लायक बनाने के सूत्र इंसानी जीन्स में छिपे हैं? मशहूर अमेरिकी जनेटिसिस्ट क्रिस्टोफर जेसन ने ऐसे सवालों पर खोज की है.
डॉयचे वैले पर जुल्फिकार अबानी की रिपोर्ट
अमेरिकी आनुवांशिकी विज्ञानी क्रिस मेसन का कहना है कि जीवन के तमाम रूपों की हिफाजत, हमारा नैतिक कर्तव्य है. उन्होंने मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश के लिए 500 साल का एक खाका तैयार किया है.
डीडब्ल्यू: जब बात आती है मंगल जैसे ग्रहों में इंसानीं जिंदगियों की, तो हमारा रुख टेक्नोलॉजी के समाधानों की ओर मुड़ जाता है, जैसे स्पेस सूट और सुरक्षित रिहाइशें. लेकिन अपनी किताब, द नेक्स्ट 500 इयर्सः इंजीनियरिंग लाइफ टू रीच न्यू वर्ल्ड्स, में आपने मनुष्य प्रजाति में ज्यादा बुनियादी, जैविक बदलाव प्रस्तावित किए हैं. आप जीवन के सभी रूपों की हिफाजत की दार्शनिक ड्यूटी की बात भी करते हैं. हमें जरा खुल कर बताइए.
क्रिस्टोफर मेसनः हम अक्सर अंतरिक्ष में भौतिक-प्राकृतिक या यांत्रिक सुरक्षा उपायों के बारे में सोचते हैं, या औषधीय उपायों के बारे में, जैसे जिंदा रहने में मददगार दवाएं. हम ये कर चुके हैं. मैं कहता हूं कि इन चीजों के विस्तार के रूप में बचाव और सुरक्षा के जैविक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए.
मिसाल के लिए, सीएआर-टी कोशिकाएं (कार्ट सेल) एक तरह की डिजाइनदार टी कोशिकाएं हैं जिनका उपयोग हम अपनी लैब में करते हैं और रूटीनी तौर पर और जगह भी. लोगों को कैंसर से मुक्त रखने के लिए, वैज्ञानिक एक तयशुदा ढांचे के तहत निर्धारित विकास और निर्धारित स्वरूप वाली कोशिकाओं का उपयोग करते हैं. लेकिन इस पर लोग न हैरान होते हैं न चिंतित.
ऐसे ट्रायल भी हुए हैं जो जीवित मरीजों में सीआरआईएसपीआर (क्रिस्पर- जीन एडिटिंग प्रौद्योगिकी) का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये एक या दो नहीं, दर्जनों और सैकड़ों हैं.
मंगल पर जीवित रहने के औजार
मैं इसे हर रोज देखता हूं. इसलिए मेरा विचार, मौजूदा उपचार से जुड़े हमारे परहेजों का बस एक तार्किक विस्तार ही है...लोग सर्वश्रेष्ठ कोशिकाएं बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, माइक्रोबायोम यानी जीवाणुओं को रूपांतरित करने से लेकर प्रतिरोधक कोशिकाओं को बदलने तक. ये सब हो रहा है बीमारी का उपचार करने या उसे रोकने के लिए.
हम यही कोशिश कर रहे हैं, दूसरे ग्रहों में हमारे जीने के लिए मददगार टूल बक्से में, टेक्नोलॉजी के उपयोग से एक अतिरिक्त औजार और मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं. यही एक तरीका नहीं हैं. मैं दूसरे यांत्रिक और औषधीय तरीकों की बात भी करता हूं. 20 साल और लगेंगे ये सब सही ढंग से कर पाने में. इसीलिए ये प्लान 500 साल का बनाया गया है!
ये दिलचस्प है कि आप नागवार और चरम हालातों में रह सकने वाले जीवाणुओं, एक्सट्रीमोफाइल्स से काफी सबक ले रहे हैं. ये जीव चरम पर्यावरणों जैसे महासागरों की अत्यधिक गहराइयों या उष्मजलीय निकासों (हाइड्रोथर्मल वेंट्स) में रहते हैं. अंतरिक्ष जैसे चरम पर्यावरण में हमारे भविष्य पर इसका क्या असर पड़ सकता है?
एक्सट्रीमोफाइल्स का अध्ययन करना दिलचस्प रहा है. इनमें वे सूक्ष्मजीव भी हैं जो अंतरिक्ष के निर्वात या अंतरिक्ष स्टेशन में रहते हैं. विकिरण के प्रतिरोध, सूखेपन के प्रतिरोध के अलावा एक्स्ट्रीमोफाइल में डीएनए मरम्मत के लिए हम बहुत सारी जीन्स की तलाश करते रहते हैं. लगता है कि चरम अवस्था वाले जीवन के हिसाब से ढलने लायक कई मिलतीजुलती खूबियां उनमें मौजूद हैं.
जितना ज्यादा हम देखते जाएंगे ये चरम हालात में टिके रह जाने वाले जीव हमें उन तमाम जगहों पर मिलेंगे जहां खारापन या तापमान या विकिरण के स्तरों को देखते हुए, आप आमतौर पर यही मानते आए हैं कि वहां तो जीवन हो ही नहीं सकता. लेकिन देखिए, हम लगातार गलत साबित होते रहते हैं.
अगर हम जेनेटिक इंजीनियरिंग से जुड़े तमाम नैतिक और तकनीकी सवाल हम सुलझा लेते हैं, तब क्या होगा?
जी हां, ये मानते हुए कि तमाम प्रश्नों के उत्तर मिल गए तो फिर दो अहम सवाल उभरते हैं, क्या हम सोचते हैं कि ये चीज काम करेगी और क्या ऐसा किया ही जाना चाहिए. लेकिन क्रियात्मक रूप से हमने टार्डिग्रेडों (बहुत छोटे इनवर्टिब्रेट) की जीन्स का अध्ययन किया है जो विकिरण के खिलाफ अपनी प्रतिरोधी क्षमता को 80 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं. तो तकनीकी रूप से ये संभव है.
लोग जीन के संपादन को लेकर या उनमे जोड़घटाव को लेकर अक्सर परेशान हो उठते हैं. जीन्स को बारबार खोलकर और बंद कर हम जीन्स की "क्षणिक सक्रियता” भी देख रहे हैं. अगर आप विकिरण की चपेट में हैं और मैं आपकी मौजूदा जीन्स लेकर उन्हें ऊपर नीचे खिसकाऊं और बाद में उन्हें वापस लौटा दूं तो मेरे ख्याल से एक अलग चीज होगी.
अंतरिक्ष में सेक्स
सबसे बड़े मुद्दों में एक है कि हम मंगल में आबादी कैसे बढ़ाएंगे. आप कहते हैं कि मनुष्य अगले 200 साल तक मंगल में पैदा नहीं होगे.
हां, प्रारंभिक मंगलवासियों पर तो ये बात लागू होगी, जिनमें दोनों मातापिता वहां पैदा हुए हों और फिर उनकी संतानें भी वहीं पैदा हुई हों.
मुझे यकीन है कि उससे पहले मंगल में लोग पैदा हो जाएंगे. चलिए मान लेते हैं कि 2030 के मध्य या 2040 में वहां पर लोग होंगे, तो हो सकता है कि लोगों को 10 साल वहां पर रह चुकने के दौरान बच्चा भी पैदा हो जाए. ये लगभग अवश्यंभावी है, अगर दोनों स्त्री पुरुष वहां है और लोग बोर होने लगें...तो ये तो होकर रहेगा...
हम करोड़ों साल से दूसरे बुरे पर्यावरणों में ये करते आ रहे हैं इसलिए ये वहां पर भी होगा. लेकिन दूसरी पीढ़ी के मंगलवासियों का, या मंगल के नागरिकों का बच्चा होने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा.
अंतरिक्ष में प्रकाश के बारे में क्या कहेंगे या भूमिगत जीवन के बारे में? आप विटामिन संश्लेषण या विटामिन सिंथेसिस की बात भी करते हैं.
हां, मंगल में रोशनी अलग होगी...लिखते हुए ये हिस्सा मजेदार था, एक इच्छा सूची की तरहः क्या हो अगर हमारी आंखें अलग हों?
"सावधान, हम सबकुछ गुड़गोबर न कर दें”
इवोल्युशन यानी क्रमिक विकास का अधिकांश इतिहास दुर्घटना ही रहा है. लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि हमारे पास कोई नियंत्रण आ जाए, अनियंत्रित विकास की अपेक्षा एक नियंत्रित विकास का. अगर हमें चीजों को थोड़ा बेहतर करने के तरीके हासिल हो जाएं?
ये भी हो सकता है कि आप सब कुछ गुड़गोबर कर दें, इसलिए आपको बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी.
लेकिन आप अलग अलग वेव लेंथों में देख पाने की कल्पना कर सकते हैं. या अपने तमाम विटामिनों या अमीनो एसिड्स को संश्लेषित कर सकने का ख्वाब देख सकते हैं. लेकिन निराशा की बात है कि आज हम ऐसा कर पाने की स्थिति में हैं ही नहीं. मैं इसे "मॉलीक्युलर इनेप्टिट्यूड” यानी "आणविक अयोग्यता” कहता हूं. अपने अमीनो एसिड या विटामिन सी को ही लीजिए, हम भला क्यों नहीं बना सकते हैं? गीली नाक वाले लेमुर जैसे प्राइमेट यानी नरवानर अभी भी ये कर सकते हैं लेकिन हमने ये क्षमता गंवा दी और देखा जाए तो बहुत लंबा समय नहीं हुआ है. ऐसा महज इसलिए हुआ क्योंकि हमें अपनी खुराक से ये चीजें पर्याप्त मात्रा में मिल गयीं.
लेकिन ये तो वाकई दिलचस्प चीज है कि ये बात सिर्फ आगे की ओर क्रमिक विकास की नहीं बल्कि पीछे लौटने की भी है कि हम कैसे हुआ करते थे. आपको इस बात की चिंता नहीं होती कि लोग आपको सनकी कहेंगें?
नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं! आज हम न कर पाएं लेकिन अगले कुछ दशक बहुत खोजपूर्ण होंगे. लेकिन ये एक जरूरी कर्तव्य है, हमारी तमाम नस्लों के लिए एक बहुत जरूरी ड्यूटी. अगर उन औजारों की बदौलत हम बचे रह पाते हैं और अपनी संरक्षक वाली भूमिका निभा पाते हैं, तो मैं उनके पक्ष में हूं.
संरक्षक के रूप में हमारा कर्तव्य
हो सकता है हम खुशकिस्मत हों, हम लोगों को मंगल पर भेज पाएं और वे वहां खुद को ढाल लें. फिर तो क्या ही बात होगी. लेकिन पर्यावरण को देखते हुए मुझे लगता है कि ये नहीं होगा. वैसे ये अनैतिक भी होगा क्योंकि हमारे पास अगर किसी को बचाने के औजार आ गए लेकिन हमने उनका उपयोग ये कहते हुए नहीं किया कि, "विकिरण की चपेट में आ रहे हो तो आ जाओ. हम तुम्हें बचा तो सकते हैं लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं,” तो मेरे हिसाब से ये बहुत बुरा होगा.
विलुप्ति का अहसास सिर्फ इंसानी नस्ल को ही है.
लेकिन मैं जोर देकर कहूंगा कि ये सिर्फ इंसानी नजरिया नहीं है. अगर ऑक्टोपस भी सचेतन हो जाएं और सवाल पूछना शुरू कर दें तो मैं तब भी यही कहूंगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी. लेकिन जब तक कोई कारण या कर्तव्य-बोध नहीं होगा, कोई भी ये नहीं करेगा.
तो जैसा कि हम अपने जीवन को जानते हैं, ये उसकी हिफाजत की बात भी है. लेकिन आपका कहना है कि महाविस्फोट से पहले ब्रह्मांड किसी दूसरे रूप में रहा होगा, जैसा कि हम सोचते हैं कि हम पहले से ही "दूसरा संस्करण” हों...
सबसे बड़ा सवाल ये हैः हम क्या करेंगे अगर ये हमारा दूसरा चक्कर हो? क्या ब्रह्मांड को दोबारा फटने और खुद को तीसरे महाविस्फोट से रोकना गलत होगा? क्या हमें ये उम्मीद है कि दोबारा जीवन घटित हो जाएगा? या हम अपने ब्रह्मांड के अंत को रोकने की कोशिश करेंगे? मैं सोचता हूं कि हमें ये करना पड़ेगा क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि ऐसा दोबारा भी होगा. सारी बात यही है.
क्रिस्टोफर ई मेसन आनुवांशिकी विज्ञानी और कंप्यूटेशनल जीवविज्ञानी हैं. वो न्यू यार्क स्थित वाइल कॉरनेल मेडिसिन में प्रोफेसर भी हैं. उनकी किताब "द नेक्स्ट 500 इयर्सः इंजीनियरिंग लाइफ टू रीच न्यू वर्ल्ड्स” अप्रैल 2021 में एमआईटी प्रेस से प्रकाशित हुई है. (dw.com)