अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इस्तेमाल की गई सिरिंज के दोबारा इस्तेमाल से फैले एचआईवी संक्रमण की सबसे बड़ी कीमत बच्चे चुका रहे हैं.
पाकिस्तानी प्रांत सिंध के रत्तोडेरो के रहने वाले शाहजादो शार के पांच साल के बेटे को एचआईवी है. उन्हें साल 2019 में अपने बेटे को एचआईवी होने का पता चला था. इस वजह से शार को दवा और भोजन के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इससे पहले, एक डॉक्टर ने सिंध प्रांत के चिकित्सा इतिहास में सबसे बड़ा चिकित्सा घोटालों में से एक का पर्दाफाश किया था, जिसमें गंदी सुई का दोबारा इस्तेमाल हो रहा था. डॉक्टरों का कहना है कि इस्तेमाल की गई सुई के दोबारा इस्तेमाल से एचआईवी का प्रसार हुआ है.
प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार दो वर्षों में कुल 1,500 से अधिक लोग एचआईवी से प्रभावित हो चुके हैं. तेजी से बढ़ते मामलों के बाद पाकिस्तान में सबसे बड़ा एचआईवी परीक्षण और उपचार केंद्र रत्तोडेरो में स्थापित किया गया था. केंद्र एचआईवी रोगियों को मुफ्त जीवन रक्षक दवाएं तो देता है, लेकिन पीड़ित परिवारों को अतिरिक्त खर्च खुद उठाना पड़ता है. शार अपने बेटे के लगातार बुखार, पेट और गुर्दे में दर्द के बारे में बताते हैं, "वे हमें निजी अस्पतालों में आगे के परीक्षण के लिए जाने के लिए कहते हैं, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं."
रत्तोडेरो से कुछ ही किलोमीटर दूर सुभानी शार गांव में करीब 30 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हैं. पाकिस्तान में सार्वजनिक अस्पताल, जो ज्यादातर बड़े शहरों में स्थित हैं, आमतौर पर वहां भारी भीड़ होती है. ग्रामीण परिवारों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि इनमें से अधिकांश लोग भारी शुल्क का भुगतान नहीं कर सकते हैं. ऐसे में कई लोग बिना लाइसेंस वाले डॉक्टरों से इलाज करवाते हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. फातिमा मीर कहती हैं कि अब तक एचआईवी से कम से कम 50 बच्चों की मौत हुई है, लेकिन उनका कहना है कि प्रभावित क्षेत्र में मौत कम है. कुपोषण भी बच्चों में मौत का एक प्रमुख कारण है. अधिकारियों का कहना है कि रत्तोडेरो के जाने-माने बाल रोग विशेषज्ञ मुजफ्फर घांग्रो इस महामारी का कारण है. आरोपी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन वह हाल ही में जमानत पर बाहर आया है. हालांकि घांग्रो ने आरोपों से इनकार किया है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक फिलहाल एशिया में पाकिस्तान दूसरा ऐसा देश है जहां एचआईवी सबसे तेजी से फैल रहा है. (dw.com)
एए/सीके (एएफपी)
नेफ़्टाली बेनेट की नज़र इसराइल के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लंबे समय से थी और अब जाकर उन्हें कामयाबी मिली है. नेफ़्टाली की यामिना पार्टी को पिछले आम चुनाव में मुट्ठी भर सीटों पर ही जीत मिली थी.
इसके साथ ही बिन्यामिन नेतन्याहू की इसराइली प्रधानमंत्री पद से विदाई हो गई है. वे पिछले 12 साल से इसराइल के प्रधानमंत्री थे. इसराइली संसद में नयी गठबंधन सरकार के पक्ष में बहुमत होने के चलते नेतन्याहू को अपना पद गंवाना पड़ा है.
हालांकि नेतन्याहू ने आख़िरी समय तक उम्मीद नहीं छोड़ी थी, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन को 60 प्रतिनिधियों का समर्थन मिला जबकि नेतन्याहू को 59 प्रतिनिधियों का.
नेतन्याहू भले सरकार में नहीं हो लेकिन वे दक्षिण पंथी लिकुड पार्टी के प्रमुख और इसराइली संसद में नेता, प्रतिपक्ष बने रहेंगे.
इसराइली संसद नेफ़्टाली बेनेट की पार्टी सात सांसदों के साथ पाँचवें नंबर पर है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक स्थिति में वह किंगमेकर की भूमिका में थे और इसी वजह से वे अब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है. यामिना पार्टी के साथ ही तीन और पार्टियाँ हैं, जिनके सात-सात सांसद हैं.
नेफ़्टाली का समर्थन इसराइल में सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि किसी भी खेमे के पास बहुमत नहीं है. ये पहले ही साफ़ हो गया था कि अगर कोई गठबंधन सरकार बनती है तो नेफ़्टाली के बिना नहीं बनेगी.
नेफ़्टाली को बिन्यामिन नेतन्याहू और विपक्षी नेता येर लेपिड के साथ प्रधानमंत्री का पद साझा करने का प्रस्ताव दिया गया था. आख़िरकार दक्षिणपंथी नेफ़्टाली ने मध्यमार्गी येर लेपिड के साथ जाने का फ़ैसला किया जबकि दोनों में विचारधारा के स्तर पर काफ़ी दूरियाँ हैं.
49 साल के नेफ़्टाली को एक समय तक नेतन्याहू का वफ़ादार माना जाता था. नेतन्याहू से अलग होने से पहले तक नेफ़्टाली 2006 से 2008 तक इसराइल के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ रहे थे.
नेतन्याहू की लिकुड पार्टी छोड़ने के बाद नेफ़्टाली दक्षिणपंथी धार्मिक यहूदी होम पार्टी में चले गए थे. 2013 के आम चुनाव में नेफ़्टाली इसराइली संसद में चुनकर पहुँचे.
साल 2019 तक हर गठबंधन सरकार में नेफ़्टाली मंत्री बने. साल 2019 में नेफ़्टाली के नए दक्षिणपंथी गठबंधन को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. 11 महीने बाद फिर चुनाव हुए और नेफ़्टाली यामिना पार्टी के प्रमुख के तौर पर संसद में चुनकर पहुँचे.
नेफ़्टाली को नेतन्याहू से भी ज़्यादा अति-राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी माना जाता है. नेफ़्टाली इसराइल की यहूदी राष्ट्र के तौर पर वकालत करते हैं. इसके साथ ही वे वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और सीरियाई गोलान हाइट्स को भी यहूदी इतिहास का हिस्सा बताते हैं.
इन इलाक़ों पर 1967 के मध्य-पूर्व युद्ध के बाद से इसराइल का नियंत्रण है. नेफ़्टाली वेस्ट बैंक में यहूदियों को बसाने का समर्थन करते हैं और इसे लेकर वो काफ़ी आक्रामक रहे हैं.
हालाँकि वे ग़ज़ा पर कोई दावा नहीं करते हैं. 2005 में इसराइल ने यहाँ से सैनिकों को हटा लिया था. वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम की 140 बस्तियों में 6 लाख से ज़्यादा यहूदी रहते हैं. इन बस्तियों को क़रीब-क़रीब पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध मानता है, जबकि इसराइल इसे नकारता है.
फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच बस्तियों का निर्धारण सबसे विवादित मुद्दा है. फ़लस्तीनी इन बस्तियों से यहूदियों को हटाने की मांग कर रहे हैं और वे वेस्ट बैंक, ग़ज़ा के साथ एक स्वतंत्र मुल्क चाहते हैं, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम हो.
नेफ़्टाली इसे सिरे से ख़ारिज करते हैं और वे चाहते हैं कि यहूदियों की बस्तियाँ तेज़ी से बसाई जाएँ. नेफ़्टाली को लगता है कि यहूदियों को बसाने के मुद्दे पर नेतन्याहू की नीति भरोसे लायक़ नहीं है.
नेफ़्टाली फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हैं और अक्सर विदेशी टीवी नेटवर्क पर दिखते हैं और इसराइली कार्रवाइयों का बचाव करते हैं. घरेलू टीवी बहसों में नेफ़्टाली बिना लाग लपेट के और आक्रामक होकर बोलते हैं.
एक बार एक अरब-इसराइली सांसद ने कहा था कि इसराइल को वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियाँ बसाने का कोई अधिकार नहीं है. इसे धिक्कारते हुए नेफ़्टाली ने कहा था- जब आप पेड़ पर झूला झूल रहे थे, तभी से यहाँ एक यहूदी स्टेट है.
नेफ़्टाली इसराइल से लगे फ़लस्तीनियों के लिए एक मुल्क की मांग को ख़ारिज करते हैं. दूसरी तरफ़ अंतरराष्ट्रीय समुदाय दो-राष्ट्र सिद्धांत को इसराइल और फ़लस्तीनियों की समस्या के समाधान के रूप में देखता है.
दो-राष्ट्र सिद्धांत की वकालत अमेरिका भी करता रहा है और राष्ट्रपति जो बाइडन भी इससे सहमत दिखते हैं.
फ़रवरी 2021 में नेफ़्टाली ने एक इंटरव्यू में कहा था, ''जब तक मैं किसी भी रूप में सत्ता में हूँ, तब तक एक सेंटीमीटर ज़मीन नहीं मिलेगी.'' वेस्ट बैंक में नेफ़्टाली इसराइल की पकड़ और मज़बूत करने की वकालत करते हैं. नेफ़्टाली वेस्ट बैंक के इलाक़े को हिब्रू में जुडिया और सामरिया कहते हैं.
नेफ़्टाली फ़लस्तीनी चरमपंथियों से निपटने के लिए और सख़्त क़दम उठाने की बात करते हैं. वह मौत की सज़ा देने की वकालत करते हैं. यहूदियों के जनसंहार में दोषी ठहराए गए एडॉल्फ आइशमन को 1961 में इसराइल में आख़िरी बार फाँसी दी गई थी. उसके बाद से किसी को भी सज़ा-ए-मौत नहीं मिली है.
नेफ़्टाली ने ग़ज़ा के प्रशासक हमास के साथ 2018 में हुई युद्धविराम संधि का विरोध किया था. उन्होंने पिछले महीने मई में 11 दिनों तक हमास के साथ चले हिंसक संघर्ष में मारे गए फ़लस्तीनियों के लिए भी उसे ही ज़िम्मेदार ठहराया है.
नेफ़्टाली की राजनीति में यहूदी गर्व और राष्ट्रवाद सबसे अहम है. वे अपने सिर पर किप्पाह पहनते हैं. इससे धार्मिक यहूदी अपना सिर ढँकते हैं.
2014 में पार्टी के कैंपेन में नेफ़्टाली ने न्यूयॉर्क टाइम्स और लेफ़्ट-विंग अख़बार हारेट्ज़ की नक़ल करते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था. दोनों अख़बारों ने इसराइल की कार्रवाइयों की आलोचना की थी.
इस वीडियो में नेफ़्टाली न्यूयॉर्क टाइम्स और हारेट्ज़ का मज़ाक उड़ाते हुए लगातार सॉरी-सॉरी बोलते दिखे थे. वीडियो के अंत में नेफ़्टाली घोषणा करते हैं कि अब माफ़ी मांगना बंद कर देंगे.
नेफ़्टाली की पृष्ठभूमि राजनीति में आने से पहले सेना और कारोबारी की थी. वे इसराइली विशेष बलों की दो ब्रांचों में सेना में रहने के दौरान सेवा दे चुके हैं. सेना में सेवा देने के बाद उन्होंने कई हाई-टेक कंपनियों को खड़ा किया और इससे उन्होंने बेशुमार पैसे कमाए.
2014 में नेफ़्टाली ने एक इंटरव्यू में अपनी संपत्ति के बारे में कहा था, ''न मैं 17 स्टिक्स खाता हूँ और न ही प्राइवेट प्लेन है. बस मेरी इतनी हैसियत है कि जो करना चाहता हूँ उसे कर लेता हूँ.'' (bbc.com)
इस्राएल की संसद ने प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के 12 साल के शासन को समाप्त करते हुए आठ पार्टियों के गठबंधन सरकार को मंजूरी दे दी है. सरकार की कमान दक्षिणपंथी नेता नफताली बेनेट संभालेंगे.
इस्राएल के सांसदों ने रविवार को गठबंधन सरकार में विश्वास मत को मंजूरी दे दी. और इसी के साथ प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू का युग समाप्त हो गया. गठबंधन सरकार में पार्टियों के बीच मजबूत वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन वे नेतन्याहू को बाहर करने के लिए सहमत हुए.
120 सदस्यीय इस्राएली संसद में नफताली बेनेट के पक्ष में 60 सांसदों ने वोट दिया जबकि 59 सांसदों ने इसके विरोध में वोट डाला. एक सदस्य अनुपस्थित था.
मतदान के तुरंत बाद, नफताली बेनेट ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और वे इस्राएल के पहले रूढ़िवादी यहूदी नेता के रूप में प्रधानमंत्री बने हैं. गठबंधन सरकार के समझौते के तहत, दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नफताली बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे और येश एतिड पार्टी के नेता यश अतीद के नेता याइर लैपिड को दो और वर्षों के लिए सत्ता सौंप दी जाएगी.
बेनेट का कैबिनेट को पहला संबोधन
बेनेट ने पारंपरिक यहूदी तरीके से नए मंत्रिमंडल की पहली बैठक शुरू की. उन्होंने कहा कि देश "एक नई दिशा में आगे बढ़ रहा है. इस्राएल के नागरिक हमारी ओर देख रहे हैं और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना हमारी जिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम सभी को अपने-अपने वैचारिक मुद्दों के प्रति सहिष्णु होना होगा."
याइर लैपिड ने अपने छोटे संबोधन में कहा, "यह सरकार दोस्ती और विश्वास पर आधारित है और हमें इसे बनाए रखना चाहिए."
गठबंधन सरकार में कौन शामिल है?
गठबंधन सरकार अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाली आठ पार्टियों से बनी है, जिनमें दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी यामिना पार्टी से लेकर अरब इस्लामिक कंजर्वेटिव राम पार्टी तक शामिल हैं. 120 सदस्यीय संसद में गठबंधन दलों के कुल 61 सदस्य हैं. गठबंधन सरकार में कुल तीन दक्षिणपंथी, दो मध्यमार्गी, दो वामपंथी और एक अरब दल शामिल हैं. यह पहली बार है जब कोई अरब पार्टी इस्राएल के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हुई है. यामिना पार्टी के नेता बेनेट ने कहा, "आज ढाई साल के राजनीतिक संकट का अंत हो गया."
इस्राएली संसद में इस्लामिक राम पार्टी के प्रमुख मंसूर अब्बास ने कहा कि उनकी पार्टी अपने सहयोगियों के लिए और "देश के सभी नागरिकों, यहूदियों और अरबों के लिए बेहतर, नए, सैद्धांतिक संबंधों के लिए बड़ा बलिदान कर रही है."
विश्व नेताओं की प्रतिक्रिया
दुनिया के कई नेताओं ने इस्राएल को नया प्रधानमंत्री मिलने पर बधाई दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बयान में कहा, "मैं प्रधानमंत्री नफताली बेनेट, वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री याइर लैपिड और नई इस्राएली कैबिनेट के सभी सदस्यों को बधाई देता हूं." उन्होंने कहा, "मैं संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री बेनेट के साथ काम करना चाहता हूं. अमेरिका के लिए इस्राएल से बेहतर कोई दोस्त नहीं हो सकता है."
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक बयान में कहा, "जर्मनी और इस्राएल के बीच एक अद्वितीय मैत्रीपूर्ण संबंध है और हम इसे और मजबूत करना चाहते हैं. मैं आपके साथ करीब से काम करना चाहती हूं." वहीं यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने भी बेनेट को बधाई दी और क्षेत्र में सामान्य समृद्धि और शांति और स्थिरता के लिए यूरोपीय संघ-इस्राएल संबंधों को मजबूत करने का आह्वान किया.
नए प्रधानमंत्री बेनेट ने हाई टेक सेक्टर में हजारों करोड़ कमाए हैं. वे तेल अवीव के उप नगर में रहते हैं और नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी हैं. उनकी पार्टी ने मार्च में हुए चुनाव में केवल सात सीटें जीती थीं. उनकी धार्मिक राष्ट्रवादी पार्टी के सांसद ने गठबंधन के विरोध में उनका साथ छोड़ दिया लेकिन नेतन्याहू को पद से हटाने के लिए बेनेट अडिग रहे और उन्होंने आखिरकार सत्ता हासिल कर ही ली.
एए/वीके (एपी, डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)
दुनिया के सबसे धनी देशों में से सात ने दुनिया के गरीब देशों को कोविड वैक्सीन की एक अरब खुराक देने का फैसला तो किया है, साथ ही चीन में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की गहन जांच की भी मांग की है.
इंग्लैंड में हुई एक जी-7 की सालाना बैठक में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर चीन की निंदा की गई. शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों की प्रताड़ना के अलावा जी-7 में हांग कांग की स्वायत्तता और चीन में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच का मुद्दा भी गर्माया रहा. जी-7 के नेताओं ने ताइवान जैसे कई ऐसे मुद्दों पर एक साझा तीखा बयान जारी किया, जो चीन के लिए काफी संवेदनशील हैं.
चीन को चेतावनी
चीन को पश्चिमी देश बड़ी चुनौती मानते हैं और पिछले दशकों में उसका एक ताकत के रूप में उभरना अमेरिका सहित बाकी धनी देशों को विचलित करता रहा है. यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बताया है और उसके 'आर्थिक दुर्व्यवहार' व मानवाधिकार उल्लंघनों को आड़े हाथों लेने का संकल्प लिया है.
जी-7 के बयान में भी यही बात केंद्र में रही. उन्होंने कहा, "हम अपने मूल्यों का प्रसार करेंगे. इसमें चीन को मानवाधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रताओँ की सम्मान करने के लिए कहना भी शामिल है, खासकर शिनजियांग प्रांत के संबंध में. और, हांग कांग को अधिकार, स्वतंत्रता और उच्च स्तर की स्वयत्तता देना भी जो चीन व ब्रिटेन की साझा घोषणा में तय की गई है."
साथ ही, जी-7 देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 की चीन में उत्पत्ति की दूसरे दौर की विशेषज्ञों द्वारा पारदर्शी जांच की भी मांग की. जनवरी में हुई पहले दौर की जांच के बारे में बाइडेन ने कहा कि चीन की प्रयोगशालाओं में जाने की इजाजत नहीं दी गई थी. उन्हेंने कहा कि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि "कोविड-19 किसी चमगादड़ के कारण फैला, या किसी प्रयोगशाला में किसी प्रयोग में हुई गड़बड़ी के कारण."
लोकतंत्र बनाम तानाशाही
हालांकि, चीन को इस आलोचना का भान था, इसलिए जी-7 का बयान आने से पहले ही उसने कहा था कि वे दिन अब बीत चुके हैं जब कुछ देशों के एक छोटे से समूह में दुनिया की किस्मत के फैसले लिए जाते थे. चीन कहता रहा है कि बड़ी शक्तियां अब भी पुराने पड़ चुकी उसी साम्राज्यवादी मानसिकता से जकड़ी हुई हैं.
उधर चीन पर निशाना साधते हुए बाइडेन ने कहा कि लोकतांत्रिक सरकारें इस वक्त एकाधिकारवादी सरकारों के साथ मुकाबले में हैं और जी-7 को एक विकल्प बनना होगा. उन्होंने कहा, "हमारा मुकाबला चल रहा है, चीन के साथ नहीं, तानाशाहों के साथ, तानाशाही सरकारों के साथ. और तेजी से बदल रही 21वीं सदी में लोकतांत्रिक सरकारें उनका मुकाबला कर पाएंगी या नहीं... जैसा कि मैंने (चीनी राष्ट्रपति) शी जिनपिंग से कहा था, मैं विवाद नहीं चाहता. जहां हम सहयोग करते हैं, करेंगे. लेकिन, जहां हम असहमत हैं, वो मैं साफ-साफ कहूंगा."
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि चीन ने हाल के सालों में दस लाख से ज्यादा लोगों को उत्तर पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में शिविरों में हिरासत में डाला है. चीन इन आरोपों का खंडन करता है.
महामारी के दौर में
शिखर वार्ता के आखरी दिन जी-7 देशों ने कोरोना वायरस से लड़ने का संकल्प लिया. गरीब देशों को अगले एक साल में एक अरब वैक्सीन की खुराक देने का वादा किया गया है. साथ ही, महामारी के दौर में ओलंपिक और पैरालंपिक प्रतियोगिताएं सफलतापूर्वक कराने में भी मदद का वादा किया गया. ओलंपिक इस साल जुलाई से जापान में होने हैं लेकिन बहुत से संगठन इन खेलों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इन्हें महामारी के लिहाज से असुरक्षित माना जा रहा है.
इस बैठक में जलवायु परिवर्तन की भी चर्चा हुई और इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा माना गया. जी-7 देशों ने 2025 तक जीवाश्म ईंधनों से सब्सिडी खत्म करने का संकल्प दोहराया और इस दशक में महासागरों और जमीन की सुरक्षा की बात कही. जी-7 ने गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सौ अरब डॉलर सालाना उपलब्ध कराने का भी वादा किया गया.
जी-7 वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर का समर्थन किया गया, जिस पर हाल ही में वित्त मंत्रियों की बैठक में फैसला किया गया था. महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की मदद के लिए 12 खरब डॉलर उपलब्ध कराने की योजना पर भी चर्चा हुई.
संकल्पों की आलोचना
स्वास्थ्य और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जी-7 के संकल्पों की आलोचना की है. ऑक्सफैम में असमानता नीति के अध्यक्ष मैक्स लॉसन ने कहा, "जी-7 के नाम पर बट्टा लग गया है. जबकि दुनिया सदी के सबसे बड़े स्वाथ्य आपातकाल से गुजर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह को बर्बाद कर रहा है, तब वे समय की चुनौतियों से निपटने में नाकाम रहे."
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जी-7 देशों ने यह नहीं बताया कि 2030 तक विश्व की 30 फीसदी भूमि और जल को बचाने के लिए जो ‘प्रकृति समझौता' हुआ है, उसके लिए धन कैसे दिया जाएगा. उन्होंने गरीब देशों को को एक अरब खुराक उपलब्ध कराने के फैसले की भी यह कहते हुए आलोचना की है कि ये नाकाफी हैं क्योंकि दुनिया को 11 अरब खुराक चाहिए.
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने कहा कि टीकाकरण के लिए एक ज्यादा महत्वाकांक्षी योजना न बना पाना एक "अक्षम्य नैतिक विफलता" है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
बर्लिन में राजनेताओं और विशेषज्ञों की बैठक “अफ्रीका राउंडटेबल” हुई जिसमें संबंधों को सुधारने के अलावा जलवायु परिवर्तन और महामारी की वजह से आए आर्थिक संकट को सुधारने पर भी चर्चा हुई.
डॉयचे वैलर पर क्रिस्टीना क्रिपफाल की रिपोर्ट
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वाल्टर स्टाइनमायर ने बुधवार को शुरू हुए "अफ्रीका राउंडटेबल” के अपने शुरुआती उद्बोधन में जब यूरोप और अफ्रीका के बीच महान साझेदारी की बात कही तो एक तरह से उन्होंने इस बैठक के उद्देश्य को स्पष्ट कर दिया. ग्लोबल पर्स्पेक्टिव इनिशियेटिव यानी जीपीआई की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन सम्मेलन में उन्होंने कहा, "हमें, अफ्रीका और यूरोप को, बड़ी चुनौतियों से निबटने के लिए एक दूसरे के सहयोग की जरूरत है और हम इस प्रक्रिया में एक दूसरे से काफी कुछ सीख सकते हैं.”
स्टाइनमायर ने कहा कि कोरोना महामारी से लड़ने, जलवायु परिवर्तन, प्रवासन, डिजिटलीकरण, चरमपंथ और वैश्वीकरण के मामले में आपसी सहयोग बहुत महत्वपूर्ण था. उन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ वैश्विक स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने में पश्चिमी देशों के योगदान की जरूरत पर जोर दिया. नाइजीरिया के अर्थशास्त्री ओबी इजेवेस्ली ने कहा कि कोविड महामारी ने दुनिया को एक सीख दी है "स्वास्थ्य ही अर्थव्यवस्था है और अर्थव्यवस्था ही स्वास्थ्य है.” और बहस में शामिल सभी वक्ता उनकी इस बात पर पूरी तरह से सहमत थे.
नगोजी ओकोंजो इविएला ने फरवरी में ही इस बात की चेतावनी दे दी थी जब उन्होंने विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक का पदभार संभाला था. उन्होंने कहा था कि महामारी के बाद सब कुछ पहले जैसा नहीं रह पाएगा. ऑनलाइन परिचर्चा में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वो चाहती हैं कि आधारभूत चिकित्सा उत्पादों, वैक्सीन्स और कुछ अन्य ज़रूरी चीजों पर व्यापारिक व्यवधानों को खत्म किया जाना चाहिए.
अफ्रीका के लिए न्याय
सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल इस बात से सहमत थे कि महामारी के खात्मे के लिए वैश्विक स्तर पर टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण था और वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने के लिए भी यह बहुत जरूरी है. लेकिन अफ्रीका की समस्या सिर्फ इतने से ही हल नहीं होने वाली हैं. साल का कहना था, "हमें मजबूत और नए तरीकों से अर्थव्यवस्था की तेजी के लिए काम करना होगा.”
मैकी साल का सुझाव था कि इन तरीकों में कर्ज सीमा नियमों में लचीलापन और विकासशील देशों के लिए बजट घाटे की सीमा शामिल है. अन्य सुझावों में जरूरी बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और अफ्रीका में निवेश जोखिम को और पारदर्शी बनाने के तरीकों का आकलन करना शामिल है. कई प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि व्यापार निवेश के उच्च जोखिम ने इस महाद्वीप में अत्यावश्यक निवेश प्रक्रिया को बाधित किया है.
कई प्रतिभागियों का कहना था कि अफ्रीकी लोगों के लिए यह अत्यंत जरूरी है, हालांकि यूरोप और दूसरे अन्य देशों की तुलना में ये देश कोविड-19 से उतनी बुरी तरह से नहीं प्रभावित थे. परिचर्चा में शामिल लोगों ने जिस दूसरे मुद्दे पर सबसे ज्यादा चिंता जताई, वो था जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर खतरा.
यूरोप का उत्तरदायित्व
अर्थशास्त्री इजेवेस्ली ने अफ्रीका में अर्थव्वयस्था की वृद्धि के महत्व को स्वीकार किया, खासकर अमीर देशों के साथ बराबर की साझेदारी को लेकर. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि अफ्रीका को अपने विकास की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी. उनका कहना था कि ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि जर्मनी या फिर कोई अन्य यूरोपीय देश विकास को उड़ाकर अफ्रीका तक पहुंचा देगा.
बराबर की साझीदारी के लिए यूरोप को अपने विशेष उत्तरदायित्वों को समझना होगा. मसलन, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में. यूरोपीय संसद में ग्रीन्स/ ईएफए समूह की प्रमुख स्का केलर ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु संकट में अफ्रीकी महाद्वीप का योगदान बहुत थोड़ा है, खासकर जब हम यूरोपियन यूनियन के देशों से तुलना करते हैं जो कि ऐतिहासिक रूप से ग्रीन हाउस कैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए यूरोपीय संघ को और मेहनत करनी होगी ताकि इस मामले में वैश्विक सहयोग को बढ़ाया जा सके.”
यूरोपीय आयोग के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसीडेंट फ्रांस टिमरमैन्स का कहना था कि अफ्रीका के लिए ऊर्जा के नवीकृत स्रोतों के जरिए बड़े आर्थिक अवसर पैदा किए जा सकते हैं. उनके एक सवाल के जवाब में केलर का कहना था, "यह महत्वपूर्ण है कि हमें ऊर्जा के नवीकृत स्रोतों के साथ वह नहीं करना है जो हमने पहले ऊर्जा के खनिज स्रोतों के साथ किया जिनका उत्पादन तो बड़े स्तर पर अफ्रीकी महाद्वीप में हुआ और फिर उन्हें यूरोप भेज दिया गया.”
स्वच्छ ऊर्जा के बिना विकास नहीं
सिएरा लियोन के कृषि अर्थशास्त्री कांडे युमकेला का कहना था कि अफ्रीकी महाद्वीप के सभी लोगों के लिए स्वच्छ और पर्याप्त ऊर्जा के महत्व पर जोर नहीं दिया जा सकता. उनका कहना था, "ग्रामीण समुदाय के लोगों की आमदनी बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के एवज में लंबी अवधि का आर्थिक सहयोग देना बहुत ज़रूरी है. आप विश्वसनीय ऊर्जा के बिना गंभीर तरीके से हिफाजत नहीं कर सकते. बिना ऊर्जा के स्रोतों के आपके पास कोविड-19 से लड़ने के लिए ऑक्सीजन नहीं होगी. महिलाओं को प्रसव के दौरान जब रक्तस्राव होता है तो बिना रक्त का भंडारण किए आप मातृ मृत्युदर को कम नहीं कर सकते.”
युमकेला के मुताबिक, सिर्फ अशुद्ध ऊर्जा स्रोतों से खाना बनाने की वजह से हर साल दस लाख लोगों की जान जा रही है, जिनमें साठ फीसद महिलाएं और बच्चे हैं. वह कहती हैं, "सामाजिक सुरक्षा के लिए ऊर्जा और स्वास्थ्य दोनों का साथ होना बहुत जरूरी है.” (dw.com)
यरुशलम, 14 जून | दक्षिणपंथी यामिना (यूनाइटेड राइट) पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट ने रविवार रात को इजरायल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसी के साथ बेंजामिन नेतन्याहू का बीते 12 साल से चला आ रहा शासन समाप्त हो गया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, नई गठबंधन सरकार, जिसका नेतृत्व बेनेट और मध्यमार्गी येश अतीद (फ्यूचर) पार्टी के नेता यायर लैपिड कर रहे हैं को संसद या केसेट द्वारा विश्वास मत में अनुमोदित किया गया था।
इससे पहले संसद में हुए विश्वास मत में 120 सदस्यीय सदन के 60 सांसदों ने नई सरकार के पक्ष में मतदान किया जबकि 59 ने इसके खिलाफ मतदान किया।
संसद सत्र के टीवी फुटेज में बेनेट और लैपिड को संसद में गठबंधन सीटों पर अपनी नई सीटें लेते हुए दिखाया गया जबकि इजरायल में सबसे लंबे समय तक काम करने वाले पीएम नेतन्याहू विपक्ष की पिछली सीटों पर चले गए।
नई सरकार के तहत 27 नए मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई।
बेनेट और लैपिड दो साल के अंतराल पर प्रधानमंत्री बनेंगे। बेनेट पहले प्रधानमंत्री बने हैं और इस आधार पर 2023 में लैपिड पीएम बनेंगे। अभी फिलबाल लैपिड इजरायल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में काम करेंगे।(आईएएनएस)
-ज़ुबैर अहमद
अमेरिकी संसद में डेमोक्रैट और रिपब्लिकन, दोनों राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने पाँच विधेयक पेश किए हैं. माना जा रहा है कि इन विधेयकों को मंज़ूरी मिलने पर बड़ी टेक कंपनियों की कथित मनमानी पर रोक लग सकेगी.
अमेज़न, गूगल, ऐपल और फ़ेसबुक जैसी कंपनियों की 16 महीने लंबी पड़ताल के बाद अमेरिकी संसद में पाँच विधेयकों का मसौदा पेश किया गया है.
ये पाँच विधेयक इन ग्लोबल टेक कंपनियों की ताक़त को सीमित करने के उद्देश्य से लाए गए हैं.
इन विधेयकों का ताल्लुक डेटा मैनेजमेंट, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और ख़ुद से छोटी कंपनियों को ख़रीदने से है.
विधेयक को तैयार करने वाली समिति में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों पार्टियों के सांसद शामिल हैं. अभी इन विधेयकों पर सहमति बनने और इनके कानून का रूप में लेने में काफ़ी समय लग सकता है.
मनमानी और जुर्माना
सोमवार को फ़्रांस ने गूगल पर बड़ा जुर्माना लगाया जिससे एक बार फिर टेक्नोलॉजी की वैश्विक कंपनियों की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं.
दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट सर्च इंजन गूगल के ख़िलाफ़ विश्व भर में सरकारें शिकंजा कसती जा रही हैं. फ़ेसबुक, ऐपल और अमेज़न को भी कई सरकारों के मुक़दमे या कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले साल अक्टूबर में अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट और इसके कुछ राज्यों ने गूगल के ख़िलाफ़ मोनोपोली या एकाधिकार जमाने का इल्ज़ाम लगाते हुए शिकायत दर्ज की. गूगल के ख़िलाफ़ 'एंटी ट्रस्ट' कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है.
दिसंबर, 2020 में अमेरिका में 46 राज्यों सहित केंद्र सरकार ने एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा-विरोधी तौर-तरीके अपनाने के लिए फेसबुक पर मुकदमा दायर किया था. फेसबुक को पहले भी अदालत में घसीटा गया है लेकिन यह इसके ख़िलाफ़ अब तक का सबसे गंभीर मुक़दमा माना जा रहा है.
गूगल के ख़िलाफ़ पिछले साल भारत में भी इसी तरह की शिकायत दर्ज की गई है. दो वकीलों की शिकायत पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस बात की जांच कर रहा है जिसमें दावा किया गया है कि गूगल ने स्मार्ट टेलीविजन ऑपरेटिंग सिस्टम में अपनी प्रमुख बाजार स्थिति का दुरुपयोग किया है.
इस साल फ़रवरी में ऑस्ट्रेलिया ने गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को देश की मीडिया कंपनियों के कंटेंट का इस्तेमाल करने के बदले पैसे देने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य किया.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर क़ानून के जानकार विराग गुप्ता बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "गूगल, ऐपल और फेसबुक जैसे टेक जाइंट्स ने अनेक ग्रुप कंपनियों से जमा किए गए भारी-भरकम डेटा के माध्यम से ई-कॉमर्स, मीडिया, विज्ञापन, रिटेल समेत अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना एकाधिकार हासिल कर लिया है. अमेरिका में एफटीसी और ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और भारत में संबंधित प्राधिकरणों की रिपोर्टों से इन कंपनियों के एकाधिकारवादी रवैये की पुष्टि होती है."
अमेरिका में रहने वाली टेक्नोलॉजी क्षेत्र की वकील मिशी चौधरी ने बीबीसी से कहा, "हमने बिग टेक कंपनियों को बिना किसी जांच के लंबे समय तक चलने देने के प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रभावों को देखा है. घटती प्राइवेसी, अधिक विज्ञापन, खराब प्रोडक्ट इसका परिणाम हैं."
भारत और अमेरिका दोनों देशों में सक्रिय मिशी चौधरी कहती हैं कि ऐपल के उपकरण और इकोसिस्टम भारी कीमत पर आते हैं और "गूगल और फेसबुक ने अपने यूजर्स को ही एक प्रोडक्ट बना दिया है."
इसी हफ़्ते फ्रांस ने गूगल पर करोड़ों का जुर्माना लगाया है जिसे गूगल ने स्वीकार कर लिया है. गूगल ने फ्रांस के एंटीट्रस्ट वॉचडॉग के साथ एक अभूतपूर्व समझौते के तहत व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली अपनी कुछ ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं में बदलाव करने पर सहमति व्यक्त की है.
प्राधिकरण ने कैलिफ़ोर्निया स्थित कंपनी पर 26 करोड़ डॉलर से अधिक का जुर्माना भी लगाया, जब एक जांच में पाया गया कि इसने ऑनलाइन जटिल विज्ञापन व्यवसाय में अपनी मार्केट शक्ति का दुरुपयोग किया, जहां बड़े प्रकाशक गूगल के मुताबिक चलने को मजबूर हो गए हैं.
मिशी चौधरी इस पर कहती हैं, "फ्रांसीसी अधिकारियों और गूगल के बीच समझौता इसके एक पहलू को उजागर करता है. गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के लेन-देन की गोपनीयता, विज्ञापन की कीमतों, इन्वेंट्री और उनके पास जो डेटा है जिसका दूसरे मुक़ाबला नहीं कर सकते. निश्चित रूप से कई अन्य बातों की तरह यह एक गंभीर चिंता का विषय है".
इस साल गूगल को लगने वाला ये दूसरा झटका था. पहला झटका ऑस्ट्रेलिया ने फ़रवरी में दिया था जब उसने एक नया क़ानून पारित किया जिसके तहत गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया कि वो अपने प्लेटफार्म पर मीडिया कंपनियों का कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए पैसे दें.
पहले तो फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में न्यूज़ सेवा बंद कर दी और गूगल ने देश छोड़ने की धमकी दी लेकिन अंत में उन्हें क़ानून का पालन करने के लिए बाध्य होना पड़ा और दोनों ने ऑस्ट्रेलिया की मीडिया को पैसे देने पर अलग-अलग समझौते किए.
गूगल से पहले का सर्च सिस्टम
तीस साल पहले किसे मालूम था कि 'खोज' या 'सर्च' खरबों डॉलर का एक वैश्विक व्यापार बन जाएगा.
गूगल के वैश्विक व्यापार के आज के सच की उस समय भी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता था जब लोग सुस्त रफ़्तार इंटरनेट पर 'नेटस्केप' और 'एओएल' जैसे ढीले-ढाले सर्च इंजन का इस्तेमाल कर रहे थे.
सितंबर 1998 में लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने एक बहुत बड़े बाज़ार के सपने को साकार करने के लिए गूगल की शुरूआत की और कुछ सालों में गूगल के बिना इंटरनेट की कल्पना मुश्किल हो गई. इसके बाद गूगल ने सर्च से जुड़े हर क्षेत्र में पैर पसारे और कंपनी जल्दी ही भारी मुनाफ़ा कमाने लगी. उसने सर्च के कारोबार पर एकाधिकार कर लिया.
नवंबर 2006 में गूगल ने सबसे बड़ी वीडियो साइट यूट्यूब को ख़रीद लिया. कंपनी ने न सिर्फ़ विज्ञापन, मार्केटिंग, ट्रेवल, फूड, म्यूज़िक, मीडिया जैसे हर क्षेत्र में अपना पैर फैला लिए बल्कि ग्राहकों से मिलने वाले डेटा का इस्तेमाल अपने धंधे को चमकाने के लिए किया.
गूगल का व्यापार कैसे चलता है?
विशेषज्ञों के अनुसार गूगल का व्यापारिक मॉडल उन अरबों लोगों के व्यक्तिगत डेटा के आधार पर काम करता है जो ऑनलाइन सर्च कर रहे हैं, यूट्यूब वीडियो देख रहे हैं, डिजिटल मैप का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसके वॉयस असिस्टेंट से बात कर रहे हैं या इसके फ़ोन सॉफ़्टवेयर का उपयोग कर रहे हैं.
ये डेटा उस विज्ञापन मशीन को चलाने में मदद करता है जिसने गूगल को एक दिग्गज कंपनी में बदल दिया है. यानी गूगल का डेटा एनालाइज़ करने वाला सिस्टम जानता है कि आपको किस तरह के विज्ञापन दिखाए जाने पर आपके सामान खरीदने की संभावना बढ़ जाएगी.
गूगल क्रोम आज 69 प्रतिशत मार्केट शेयर के साथ न सिर्फ़ सर्च बल्कि ब्राउज़र की दुनिया का बेताज बादशाह है, यानी जब आप सर्च नहीं भी कर रहे होते हैं तब भी जीमेल, क्रोम या किसी अन्य तरीके से गूगल के ही दायरे में होते हैं और आपका डेटा उसके पास जमा होता रहता है.
दूसरी तरफ़ माइक्रोसॉफ़्ट के इंटरनेट एक्स्प्लोरर का मार्केट शेयर अब 5 प्रतिशत तक सीमित हो गया है और माइक्रोसॉफ़्ट ने इसके अंतिम दिन की घोषणा कर दी है, अगले साल 15 जून के बाद एक्सप्लोरर बंद हो रहा है.
गूगल के कथित एकाधिकार का सफ़र
साल 1998 में अपनी स्थापना के बाद गूगल ने दर्जनों कंपनियों के अधिग्रहण किए हैं जिसके कारण ये अमरीकी सर्च मार्केट में 90% का भागीदार बन गया है.
अमेरिकी न्याय विभाग के मुकदमे में दिए गए तर्कों के आधार पर, ये ऐसे सौदे हैं जिन्होंने गूगल को दुनिया भर में ऐसा सर्च इंजन बना दिया है जिसका कोई प्रतिस्पर्धी ही नहीं है.
गूगल के कुछ सौदों पर एक नज़र
- 2005 में एंड्रॉइड को केवल 50 मिलियन डॉलर में खरीदा. ये डिजिटल जगत का सबसे अहम और सबसे सस्ता सौदा माना जाता है. ये गूगल के लिए गेम चेंजर साबित हुआ. आज दुनिया के हर 10 मोबाइल फ़ोन में से 7 एंड्राइड फ़ोन हैं, जिनमें गूगल सर्च इंजन है पहले से लगा हुआ है.
- 2007 में 3.1 अरब डॉलर में 'डबल क्लिक' का अधिग्रहण किया, जिससे डिजिटल विज्ञापन जगत में इसका तेज़ी से विस्तार हुआ. उस समय गूगल याहू से 10 गुना छोटा था.
- 2010 में गूगल ने आईटीए सॉफ्टवेयर को 700 मिलियन डॉलर में खरीद लिया, जिससे ट्रैवल सर्च और बुकिंग में ये एक बड़ा प्लेयर बन गया. इससे पहले उसके प्रतिद्वंदी आईटीए सर्च इंजन पर निर्भर करते थे.
- 2013 में गूगल ने चीनी ऐप वेज़ को 1.1 अरब डॉलर में खरीदकर मैप में अपने प्रतिद्वंद्वियों के व्यवसाय को एक बड़ा झटका दिया, वेज़ की लोकप्रियता का ये हाल है कि गगूल ने इसे आज भी एक अलग सॉफ्टवेयर की तरह स्थापित रखा है और ये गूगल मैप से बेहतर माना जाता है.
गूगल का तर्क
गूगल को एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के अधिग्रहण ने इसके विस्तार और उसकी मोनोपोली बनाने में जितनी मदद की है उतनी किसी और खरीदारी ने नहीं की. आज एंड्रॉइड फ़ोन सर्च से केवल गूगल को ही फायदा है इसीलिए अमेरिकी प्रशासन ने इसके ख़िलाफ़ मोनोपोली ट्रेड करने का आरोप लगाया है.
गूगल इस इल्ज़ाम से इनकार करता है. इसका कहना है, ''लोग गूगल का इस्तेमाल अपनी मर्ज़ी से करते हैं. कोई उन्हें मजबूर नहीं करता और ऐसा भी नहीं है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है."
कपंनी ने कहा कि उसके ख़िलाफ़ मुक़दमों और तर्कों में खोट है.
वकील विराग गुप्ता विराग गुप्ता ने गोविंदाचार्य की ओर से दायर याचिका में इस मामले पर बहस की है. उसी मुकदमे की वजह से पहली बार अगस्त 2013 में कंपनी को भारत में शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के लिए विवश होना पड़ा था.
गुप्ता कहते हैं, "इन कंपनियों का यह कहना कि वे फ्री-सर्विस देते हैं इसलिए कोई एकाधिकार नहीं है, यह बात पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद है. जिस तरीके से सरकार इनकम टैक्स पर डायरेक्ट टैक्स और जीएसटी से इनडायरेक्ट टैक्स वसूलती है, उसी तरीके से बड़ी टेक कंपनियां करोड़ों ग्राहकों से उनकी जानकारी के बगैर पैसे कमा रही हैं. इन कंपनियों के अनूठे व्यापारिक मॉडल से पूरी दुनिया के 300 करोड़ से ज्यादा यूजर्स प्रोडक्ट बनकर डेटा के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में रोज़ाना नीलाम हो रहे हैं".
मगर अमेरिकन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के लिए लिखते हुए आर्ट कार्डेन तर्क देते हैं कि गूगल ने कोई मोनोपोली नहीं बना रखी है.
वो कहते हैं, "सबसे पहले, गूगल सर्च या डिजिटल विज्ञापन स्पेस, या वेब ब्राउज़िंग या वर्ड प्रोसेसिंग, या किसी अन्य क्षेत्र में गूगल व्यापार करने वाली अकेली कंपनी नहीं है. मैंने कल ही अपने गूगल क्रोम ब्राउज़र सिस्टम में आसानी से अपने डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन को गूगल से 'डकडकगो' सर्च इंजन में बदल दिया. केवल कुछ बटन क्लिक करने पड़े. मैं चंद मिनट में अपने फ़ोन या कंप्यूटर से क्रोम डिलीट करके सफ़ारी, ओपेरा, फ़ायरफ़ॉक्स या ब्रेव सर्च इंजन को डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बना सकता हूँ, गूगल हमें रोक नहीं सकता.''
कार्डेन कहते हैं, ''मैं गूगल प्रोडक्ट्स इसलिए इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि इनसे मुझे मुफ़्त में सुविधा और गुणवत्ता हासिल होती है.''
उनका तर्क है कि गूगल को मार्केट में बढ़त बनाए रखने के लिए नई चीज़ें करनी पड़ती हैं, इनोवेशन करते रहना पड़ता है, वरना गूगल का हाल भी इंटरनेट एक्स्प्लोरर की तरह होगा."
ऐपल और गूगल दोनों ही अपने ऐप स्टोर से इन-ऐप खरीदारी के लिए 30% तक शुल्क लेते हैं, दोनों कंपनियों का दावा है कि यूजर्स को सुरक्षा प्रदान करने के बदले शुल्क उचित है.
अमेरिकी सीनेट न्यायपालिका समिति के एंटी ट्रस्ट पैनल का कहना है कि ऐपल के ऐप स्टोर और गूगल के गूगल प्ले प्रतिस्पर्धा-विरोधी हैं. पैनल के मुताबिक़ दोनों स्टोर "उन ऐप्स को बाहर कर देते हैं या दबाते हैं जो उनके साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं". गूगल प्ले और ऐप स्टोर से दुनिया भर में अधिकांश ऐप्स डाउनलोड किए जाते हैं.
डेवलपर्स का दावा है कि प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण ऐपल और गूगल जबरन वसूली कर सकते हैं, ऐसे भी दावे किए गए थे कि ऐपल ने अपने ऐप स्टोर का उपयोग प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए किया था.
मिशी चौधरी कहती हैं कि उन्हें दूसरे देशों का नहीं पता लेकिन "कम से कम अमेरिका में हमने देखा है कि जब दम घुटने वाले एकाधिकार को विभिन्न कंपनियों में विभाजित किया जाता है, तो परिणाम अक्सर अधिक बेहतर होता है जो यूजर्स के लिए अच्छा होता है."
फेसबुक ने ट्रंप के अकाउंट को दो साल के लिए निलंबित कर दिया है. पिछले दिसंबर में उनके शासनकाल में 46 राज्यों सहित उनकी सरकार ने एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा-विरोधी तरीके अपनाने के आरोप में फेसबुक पर मुकदमा दायर किया था.
वर्तमान मुक़दमे में फेसबुक पर एक गंभीर आरोप लगाया गया-फेसबुक अवैध रूप से एक खरीदो और दफनाओ (बाइ एंड बरी) की रणनीति को लागू करके उस एकाधिकार शक्ति को बनाए रखता है जो प्रतिस्पर्धा की संभावना को खत्म करता है, यूजर्स और विज्ञापन देने वालों, दोनों को नुकसान पहुंचाता है.
फेसबुक कॉम्पिटिशन को कैसे मारता है उसकी एक मिसाल इसके सीईओ मार्क ज़ुकेरबर्ग के 2012 के एक आधिकारिक ईमेल से मिलता है जो अब सार्वजनिक है.
इसमें उन्होंने लिखा था, "हाल में मैं एक व्यावसायिक प्रश्न पर ग़ौर कर रहा हूँ कि हमें इंस्टाग्राम और पाथ जैसी मोबाइल ऐप कंपनियों को हासिल करने के लिए कितना भुगतान करना चाहिए जो हमारे अपने साथ प्रतिस्पर्धी नेटवर्क बना रहे हैं, व्यापार अभी शुरूआती दौर में है लेकिन
उनका नेटवर्क स्थापित है. ब्रैंड पहले से ही स्थापित हैं और अगर वे बड़े पैमाने पर विकसित होते हैं तो वे हमारे लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है."
फेसबुक ने इंस्टाग्राम को एक अरब डॉलर में खरीद लिया और दो साल बाद वॉट्सऐप को 19 अरब डॉलर में खरीद लिया. मुक़दमे में अमेरिका के 46 राज्य मांग कर रहे हैं कि अदालत वॉट्सॅऐप और इंस्टाग्राम की ख़रीद को रद्द कर दे.
अगर अदालत इस आकलन से सहमत होती है, तो फेसबुक को अपने तरीकों में सुधार करना होगा. संभवत: वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम को बेचना होगा. साथ ही भविष्य में और कंपनियाँ खरीदना मुश्किल होगा.
हालाँकि मिशी चौधरी के अनुसार भारत में नागरिकों की प्राइवेसी की सुरक्षा के लिए पर्याप्त डेटा प्रोटेक्शन क़ानून नहीं हैं. वो कहती हैं, ''भारत सरकार के पास अधिकार हैं, लेकिन हमने शायद ही कभी उन्हें यूजर्स के हित में इस्तेमाल किया गया हो."
वकील विराग गुप्ता कहते हैं, "भारत में भी फेसबुक और टि्वटर जैसी कंपनियां सरकार की नहीं सुनतीं. कंटेंट मॉडरेशन के बारे में इन कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता न होने के साथ एकरूपता का भी अभाव है, जिससे इंटरमीडियरी की कानूनी छूट पर भी बड़ी बहस शुरू हो गयी है.''
वो कहते हैं, "भारत में पहली बार 2011 में इन कंपनियों के लिए आईटी इंटरमीडिएरी नियम बनाए गए थे, जिनका क्रियान्वयन 2013 में गोविंदाचार्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ. नए नियमों में कई तरह का घालमेल करने से जटिलता बढ़ गई है, जिसकी वजह से इनके क्रियान्वयन में आगे चलकर कठिनाई के साथ कई तरह के न्यायिक विवाद भी सामने आ सकते हैं."
विराग गुप्ता कहते हैं, "इन नियमों के दो प्रमुख उद्देश्य हैं. पहला भारत के कानून के तहत इन कंपनियों की जवाबदेही जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और आपत्तिजनक कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई हो. दूसरा, भारत में इन कंपनियों का फिजिकल इस्टैब्लिशमेंट और औपचारिक कानूनी ऑफिस हो जिससे कि इन कंपनियों से भारत में खरबों रुपए की टैक्स वसूली हो सके."
हालांकि इन कंपनियों के लिए भारत एक विशाल मार्केट है इसलिए ये भारत में टिके रहने के लिए कुछ समझौता करेंगी.
मिशा चौधरी कहती हैं, "मैं व्यवसायों की तरफ़ से नहीं बोल सकती लेकिन सरकार के साथ समझौता करने के लिए उन्हें कुछ कम्प्रोमाइज़ करना पड़ सकता है".
रिलायंस जियो में निवेश करके फेसबुक और गूगल की रणनीति साफ़ ज़ाहिर है कि इन टेक कंपनियों ने भारत में लंबे समय तक रहने के बारे में सोच रखा है. (bbc.com)
कोलंबो, 12 जून | श्रीलंकाई अधिकारियों ने घोषणा की है कि महामारी की तीसरी लहर के बीच कोविड-19 के और प्रसार को रोकने के लिए देश भर में चल रहे यात्रा प्रतिबंधों को 21 जून तक और बढ़ा दिया जाएगा। सेना कमांडर और कोविड-19 की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय अभियान केंद्र के प्रमुख जनरल शैवेंद्र सिल्वा ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि कोरोनोवायरस टास्क फोर्स और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के बीच हुई बैठक के बाद यात्रा प्रतिबंधों में विस्तार करने का निर्देश दिया गया है।े
यात्रा प्रतिबंध शुरू में 14 जून को हटाए जाने की उम्मीद थी।
हालांकि, सिल्वा ने कहा कि परिधान कारखानों, प्रमुख निर्माण परियोजनाओं, आवश्यक सेवाओं, आर्थिक केंद्रों, कृषि परियोजनाओं में शामिल लोगों और जैविक उर्वरक निर्माताओं सहित सभी कारखानों को प्रतिबंधों के दौरान भी काम करने की अनुमति होगी।
श्रीलंका वर्तमान में तीसरी लहर के बीच में है और पिछले दो महीनों के भीतर, 100,000 से अधिक नए संक्रमणों की सूचना मिली है।(आईएएनएस)
अगर चीन ने ये सोचा था कि डॉनल्ड ट्रंप के जाने के बाद अमेरिका से रिश्ते सुधरेंगे, तो ये उसकी भूल थी. चीन हर क्षेत्र में पश्चिमी देशों को टक्कर दे रहा है और चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा एक तल्खी भरा मोड़ ले चुकी है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ही दोनों महाशक्तियों के बीच टकराव शुरू हो गया था, जिसका चरम अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संघर्ष और ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति के रूप में देखने को मिला. जो बाइडेन की सरकार आने पर परिस्थितियां सुधरने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन धीरे-धीरे यह साफ होता जा रहा है कि बाइडेन सरकार का चीन के प्रति रवैया भी वैसा ही रहेगा. आर्थिक मामलों में बाइडेन की सख्ती ट्रंप सरकार के मुकाबले भारी ही पड़ती दिख रही है. मानवाधिकारों और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर भी बाइडेन सरकार की मार चीनी कंपनियों पर ज्यादा पड़ने की संभावना है. इसकी एक झलक हाल में तब देखने को मिली जब पिछले हफ्ते बाइडेन सरकार ने अमेरिकी कंपनियों के चीन में निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. बाइडेन प्रशासन का यह नया प्रतिबंध 2 अगस्त, 2021 से लागू होगा.
इस तरह का ऐसा पहला कानून ट्रंप प्रशासन ने ही बनाया था. बाइडेन ने न सिर्फ इसे जारी रखा है बल्कि 59 कंपनियों की एक नई सूची भी जारी की है जिनमें चीन की विवादित बहुराष्ट्रीय कंपनी हुआवे टेक्नोलॉजीज भी है. यूरोपीय संघ और भारत ने हुआवे पर पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है. आइटी सेक्टर, 5-G तकनीक, और रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों पर बाइडेन प्रशासन की नजर पैनी रही है. प्रतिबंधित कंपनियों की सूची से यह बात बहुत साफ हो जाती है. प्रतिबंधित कंपनियों की फेहरिस्त में चीन की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनियां, चाइना मोबाइल कम्यूनिकेशंस कॉरपोरेशन, चाइना टेलीकम्यूनिकेशंस कॉरपोरेशन और चाइना यूनीकॉम लिमिटेड के अलावा सेमिकंडक्टर बनाने वाली बहुचर्चित कंपनी इंस्पर भी है.
चीन के बाहर विकल्पों की तलाश
सेमिकंडक्टर का इस्तेमाल आइटी सेक्टर में व्यापक पैमाने पर होता है और चीन से निवेश हटाने के चक्कर में ही अमेरिका ताइवान, थाईलैंड, और भारत जैसे देशों में विकल्पों की तलाश में जुटा है. सुरक्षा और सरवेलांस से जुड़ी अन्य कंपनियां भी इस मार की शिकार होंगी जिसमें कुख्यात सर्वेलांस और फेसियल रिकॉग्निशन कंपनी हांगझाऊ डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी भी है जिसने चीन की सरकार को शिनजियांग में मानव चेहरों की पहचान संबंधी अभूतपूर्व डाटाबेस उपलब्ध कराया. अमेरिका को यह आशंका रही है कि कहीं यह कंपनी अमेरिकी नागरिकों के डाटाबेस को चीनी सरकार से साझा न कर दे.
ट्रंप की प्रतिबंधित कंपनियों की सूची से बाइडेन की सूची निस्संदेह एक कदम आगे है और व्यापक और गहन शोध और सुरक्षा चिंताओं के गहन आकलन पर आधारित है. इस नई सूची की और प्रतिबंध से जुड़े प्रावधानों की वजह यह भी रही है कि प्रतिबंधित कंपनियों ने अमेरिकी न्यायालयों में सरकार के निर्णय के खिलाफ अपील की और कुछ सफलता भी पायी. जाहिर है, सरकार को यह बात नागवार गुजरी और लिहाजा नये चाक चौबन्द कानूनों की व्यवस्था की गई. चीन ने भी अपनी तरफ से प्रतिबंधों का मुकाबला करने की तैयारी शुरू कर दी है. उसने इसी हफ्ते एक नया कानून पास किया है जिसमें विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई तय की गई है. इसमें वीजा की मनाही से लेकर एकल व्यक्तियों और उद्यमों के खिलाफ प्रतिबंध और उनकी संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है. इसमें प्रतिबंधित व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है.
अमेरिका और चीन के रिश्ते कितने जटिल हैं, इसका पता इस बात से चलता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने चीनी विदेश मंत्री यांग जीची से बातचीत की है. इस बातचीत में विवाद के कई मुद्दों पर चर्चा हुई. ब्लिंकेन ने शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों के कत्लेआम का आरोप लगाया और हांगकांग में लोकतांत्रिक नियमों को कमजोर किए जाने पर चिंता जताई और चीन से ताइवान पर दबाव नहीं डालने को कहा. तो यांग ने कहा कि अमेरिका को ताइवान सवाल पर संभलकर और सोची समझी कार्रवाई करनी चाहिए.
अमेरिका चीन विवाद का असर तीसरे देशों पर भी पड़ेगा, यह तय है. बहुत से गरीब देश कर्ज में डूबे और कोरोना महामारी ने उनकी अर्थव्यवस्था की हालत और खराब कर दी है. पश्चिमी देश समय समय पर कर्ज माफी की चर्चा करते रहते हैं, लेकिन इस समय अमेरिकी वित्त मंत्री जनेट येलेन की चिंता ये है कि गरीब देशों के कर्ज माफ करने की पहलकदमी का चीन को फायदा पहुंचेगा. अगर इन देशों को वित्तीय मदद दी जाती है तो उसका इस्तेमाल चीन के कर्ज की वापसी के लिए हो सकता है. जी 20 के देश गरीब देशों की ब्याज अदायगी को कुछ समय के लिए रोकने पर सहमत हुए हैं लेकिन अमेरिका चाहता है कि इन रियायतों का लाभ चीन बैंकों को नहीं मिले.
बाइडेन प्रशासन अपने नए पैंतरे से चीन में अमेरिकी कंपनियों के लिए समान और निर्बाध अवसर की तलाश में है. और अब जब तकनीकी कंपनियों का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ गया है तो अमेरिकी कदमों की गंभीरता और बढ़ जाती है. लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद सच यही है कि यह इन दोनों महाशक्तियों के बीच दिनोंदिन बढ़ती दूरियां दुनिया और इन दोनों ही देशों के लिए एक बुरी खबर से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)
अफगानिस्तान में मौजूद बुंडेसवेयर के पूर्व कर्मचारियों को एक ओर जर्मनी में शरण मांगने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर तालिबान से बढ़ते खतरों का. तालिबान से जुड़े लोग इन्हें ‘देशद्रोही’ मानते हैं.
डॉयचे वैले पर मसूद सैफुल्लाह का लिखा
नाटो के कई देशों ने सितंबर से पहले अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में शरण देने के प्रयासों को तेज कर दिया है. पिछले महीने यूनाइटेड किंगडम ने कहा कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी से पहले वह अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में लाने का प्रयास करेगा. पूर्व और वर्तमान अफगान कर्मचारियों के लिए पुनर्वास योजना के तहत 1300 से अधिक अफगान कर्मचारियों और उनके परिवारों को पहले ही यूके लाया जा चुका है. ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस के अनुसार, इस योजना के तहत लगभग 3,000 और लोगों को ब्रिटेन लाया जाएगा. हालांकि, जो अफगानी कर्मचारी जर्मन सेना (बुंडेसवेयर) के साथ काम कर रहे हैं, उन्हें जर्मनी में शरण लेने और वहां जाने के लिए आवेदन करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में दखल दिया था और तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था. इस दौरान विदेशी सेनाओं को स्थानीय लोगों की मदद की काफी जरूरत पड़ी थी. सेनाओं को अनुवादक, दुभाषिए, रसोइये, सफाईकर्मी और साथ ही सुरक्षा विशेषज्ञ चाहिए थे, ताकि वे देश की राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़ी स्थितियों को अच्छे से समझ सकें. इन सभी कामों में विदेशी सेना का सहयोग करने वाले स्थानीय लोगों को तालिबान ‘देशद्रोही' के तौर पर देखता है. तालिबान का कहना है कि इन लोगों ने विदेशी सेनाओं को ‘अवैध' कब्जे को मजबूत करने में मदद की.
करीब दो दशक तक चले युद्ध के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे. जर्मनी सहित नाटो के अन्य सहयोगियों ने भी अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया है और वे भी अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने पर सहमत हो गए हैं. अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की बिना शर्त वापसी से नाटो के लिए काम काम करने वाले स्थानीय लोग मुश्किल स्थिति में फंस गए हैं.
छिन गई नौकरी
डीडब्ल्यू ने पाया कि बुंडेसवेयर के 26 पूर्व कर्मचारियों को पिछले हफ्ते उनकी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण मांगी थी. इन कर्मचारियों में 5 महिलाएं शामिल हैं. जिन लोगों को बर्खास्त किया गया है वे बवार मीडिया सेंटर (बीएमसी) में काम करते थे. इनमें से ज्यादातर लोगों से 2016 तक सेना ने खुद संपर्क किया था. हालांकि, तब से उनके अनुबंध बदल दिए गए हैं. यह सेंटर उत्तर पश्चिमी बल्ख प्रांत में स्थित है. इसे चलाने का पूरा खर्च जर्मन सेना वहन करती है.
जिन लोगों को नौकरी से बर्खास्त किया गया है उनमें से एक ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर डॉयचे वेले को बताया, "अगर तालिबान के लोग मुझे पकड़ लेते हैं, तो वे बदले हुए अनुबंध की परवाह नहीं करेंगे. उनके लिए, मैं एक ऐसा आदमी हूं जो बुंडेसवेयर के लिए काम करता था और आज भी करता है. अनुबंध में बदलाव के बावजूद, हम बुंडेसवेयर के संपर्क में रहे और हमारे काम को लेकर जर्मनी की सेना के साथ नियमित तौर पर बैठक होती रही. इस वजह से हम तालिबान और दूसरे चरमपंथी समूहों को निशाने पर हैं.” बीएमसी के एक पूर्व कर्मचारी ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्होंने नए अनुबंध पर सहमति जताई क्योंकि वे अपनी नौकरी नहीं खोना चाहते थे.
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
अस्वीकार किए जा रहे वीजा के आवेदन
जर्मन सेना के लिए काम करने वाले कुछ दुभाषियों ने शिकायत की है कि उन्हें जर्मनी में शरण नहीं दी जा रही है. 31 साल के जाविद सुल्तानी ने डॉयचे वेले को बताया, "मैंने 2009 से लेकर 2018 तक जर्मन सेना के लिए काम किया. 2018 में मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद से मैं बुंडेसवेयर के लिए काम करने वाले ऐसे दर्जनों कर्मचारियों से मिल चुका हूं जिन्हें किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई है.” सुल्तानी का कहना कि जर्मनी के अधिकारी अब तक आठ बार उनके वीजा को अस्वीकार कर चुके हैं.
सुल्तानी ने कहा कि पूर्व कर्मचारियों के एक समूह ने सुरक्षा की मांग को लेकर बल्ख में जर्मन सेना के अड्डे के पास एक अस्थायी शिविर स्थापित किया है. वह शिकायती लहजे में कहते हैं, "मेरे वीजा के आवेदन को अस्वीकार करने के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं है. किसे शरण मिलती है और किसे नहीं, यह कोई नहीं जानता. हम काफी डरे हुए हैं. अफगानिस्तान में हर कोई जानता है कि विदेशी सैनिकों के लिए हमने क्या काम किया है. 11 सितंबर के बाद हमें आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.”
तालिबान ने हाल में कहा है कि पिछले 20 वर्षों में देश में विदेशी सैनिकों की सहायता करने वाले अफगानिस्तानी नागरिक अगर ‘पश्चाताप' का भाव दिखाते हैं, तो वे "किसी भी खतरे में नहीं होंगे". हालांकि, तालिबान के बयान में ‘आश्वासन के शब्दों' के बीच ‘धमकी' भी छिपी हुई है. चरमपंथी समूह ने चेतावनी दी है कि विदेशी सैनिकों के साथ काम करने वाले स्थानीय लोगों को ‘देश नहीं छोड़ना चाहिए' और ‘भविष्य में ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए.' समूह की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "अगर वे शरण मांगने के लिए ‘खतरे का बहाना' बना रहे हैं, तो यह उनकी अपनी समस्या है.”
जर्मन सेना की प्रतिक्रिया
जर्मन सेना ने एक ईमेल के जवाब में डीडब्ल्यू को बताया कि बीएमसी कर्मचारियों के लिए अनुबंधों में बदलाव नाटो के ‘रेसोल्यूट सपोर्ट मिशन' के रूप में अफगानों को जिम्मेदारी सौंपने का हिस्सा था. सेना के एक प्रवक्ता ने बताया, "यह बदलाव पूरा हो गया था और बीएमसी के कर्मचारियों के अनुबंध को ‘स्वतंत्र रोजगार' में बदल दिया गया था. इसलिए, सभी कर्मचारियों से जुड़ी जिम्मेदारियों के लिए बुंडेसवेयर जवाबदेह नहीं है.”
हालांकि, बीएमसी की ओर से अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि बीएमसी कर्मचारियों को "सलाहकारों के परामर्श और अनुमोदन से" उनकी नौकरी से बर्खास्त किया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण के लिए आवेदन किया था और संगठन के "नियमों और मूल्यों" की अनदेखी की थी.
साल 2104 के बाद से, जर्मन सेना में काम करने वाले कई अफगानियों को जर्मनी में शरण मिल चुकी है. इनमें बीएमसी के कुछ कर्मचारी भी शामिल हैं. साल 2014 में बीएमसी की पूर्व कर्मचारी पावाशा तोखी अपने घर में मृत पाई गई थीं. कहा गया था कि जर्मन सेना के साथ संबंध होने की वजह से उनकी ‘मौत' हुई है. इस घटना के बाद से, शरण पाने वाले लोगों में ज्यादातर 2014 में ही जर्मनी चले आए थे.
अप्रैल महीने में जर्मनी के रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने कहा, "जर्मनी उन अफगान नागरिकों को अपने देश में लाने के लिए तैयार होगा जिन्होंने युद्ध के दौरान बुंडेसवेयर की मदद की थी.” जिन अफगान कर्मचारियों को शरण की जरूरत है उन्हें लाने की एक प्रक्रिया जर्मनी में पहले से मौजूद है. हालांकि, इससे जुड़े कई मामले विवादित हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 2013 से लेकर अब तक 781 लोगों को जर्मनी में शरण दी जा चुकी है. हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि अभी और कितने ऐसे अफगानी कर्मचारी बचे हुए हैं.
क्रांप कारेनबावर इस पूरी प्रक्रिया को आसान और तेज बनाना चाहते हैं. वेल्ट अम जोनटाग अखबार ने गृह मंत्रालय का हवाला दते हुए बताया है कि जर्मनी ने काबुल में एक कार्यालय स्थापित करने की योजना बनाई है. इसमें से एक संभवत: उत्तरी अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में हो सकता है, ताकि शरण मांगने वालों से जुड़ी प्रक्रिया में मदद की जा सके.
पाकिस्तान में कुलभूषण जाधव को सैन्य अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने की अनुमति देने वाला बिल पारित हो गया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार ने तय प्रक्रिया को दरकिनार कर बिल को जबरदस्ती पास करा लिया.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
आईसीजे (रिव्यु एंड रिकंसिडरेशन) बिल, 2020 को पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली ने पास कर दिया है. उम्मीद की जा रही है कि इससे जाधव को थोड़ी राहत मिलेगी और वो उन्हें दिए गए मौत के फैसले के खिलाफ प्रभावी रूप से अपील कर पाएंगे. बिल का संसद के ऊपरी सदन सीनेट से पास होना अभी बाकी है. नेशनल असेंबली में विपक्ष ने बिल का और उसे पारित कराए जाने की प्रक्रिया का विरोध किया.
विपक्ष ने आरोप लगाया कि बिल को जल्दबाजी में पारित कराया गया और विपक्ष के सांसदों को उसे ठीक से पढ़ने का समय भी नहीं दिया गया. विपक्ष ने यह भी कहा कि ऐसा लग रहा है कि यह बिल सिर्फ जाधव के लिए ही लाया गया था और बिल के उद्देश्यों में उनका नाम भी दर्ज है. हालांकि सरकार ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायिक अदालत (आईसीजे) के आदेशों का सम्मान करते हुए लाया गया है और इसे ला कर सरकार ने साबित कर दिया है कि पाकिस्तान एक "जिम्मेदार" देश है.
इस बिल के प्रावधानों को अध्यादेश के जरिए मई 2020 में ही लागू कर दिया था. आईसीजे ने 2019 में ही पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वो जाधव को दी गई सजा पर "प्रभावी रूप से पुनर्विचार" करे और उन्हें भारत के उच्च-आयोग से संपर्क करने दे. जाधव भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं और उन्हें पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोपों का दोषी पाया था. उन्हें अप्रैल 2017 में मौत की सजा सुनाई थी.
वकील कौन होगा
भारत ने इस फैसले के खिलाफ आईसीजे में अपील की थी और आईसीजे ने फैसला भारत के पक्ष में दिया था. लेकिन इस मामले में अब सबसे बड़ी अड़चन इस सवाल पर है कि जाधव का वकील कौन होगा. भारत की काफी समय से यह मांग है कि एक भारतीय वकील को जाधव का केस लड़ने की इजाजत दी जाए, लेकिन पाकिस्तान सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के कानून के तहत किसी विदेशी नागरिक को किसी भी पाकिस्तानी अदालत में जिरह करने की अनुमति नहीं है.
भारत ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि क्वींस काउंसिल यानी इंग्लैंड की महारानी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता को जाधव के पक्ष में दलीलें पेश करने की इजाजत दी जाए. यूके और कुछ कॉमनवेल्थ देशों में यूके की राजशाही की तरफ से कुछ जाने माने वकीलों को क्वींस काउंसिल नियुक्त किया जाता है, जो कॉमनवेल्थ देशों की अदालतों में राजशाही का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव पर अभी तक कुछ नहीं कहा है.
दिलचस्प यह है कि एक तरफ इस मामले में भारत पाकिस्तान पर लगातार सहयोग ना करने का आरोप लगाता आया है, लेकिन दूसरी तरफ यह नया बिल लाने के लिए पाकिस्तान सरकार को विपक्ष की आलोचना झेलनी पड़ रही है.
पाकिस्तानी मीडिया में कहा गया है कि नेशनल असेंबली में बिल के पारित होने पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ नारे लगाए और उन पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती निभाने के लिए पाकिस्तान के साथ गद्दारी करने का आरोप लगाया गया. देखना होगा कि भारत इस बिल के पारित होने पर क्या प्रतिक्रिया देता है और जाधव का मामला क्या मोड़ लेता है. (dw.com)
साल 2007 में ऑस्ट्रेलिया में खोजे गए डायनासोर की एक प्रजाति के जीवाश्म का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने इसे महाद्वीप का अब तक सबसे बड़ा डायनासोर बताया है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया में अब तक जिन 15 सबसे बड़े डायनासोर के बारे में जानकारी मौजूद है. उनमें से द ऑस्ट्रेलोटिटन कोपरेंसिस या द सदर्न टाइटन (टाइटोनोसॉर) एक है.
विशेषज्ञों के अनुसार, ये टाइटोनोसॉर 6.5 मीटर ऊंचे और 30 मीटर तक लंबे रहे होंगे. इसका मतलब ये है कि इनका आकार लगभग एक बास्केटबॉल कोर्ट के जितना रहा होगा.
टाइटोनोसॉर का कंकाल सबसे पहले दक्षिण पश्चिम क्वींसलैंड के अरोमंगा के एक खेत में मिला था.
वैज्ञानिक पिछले एक दशक से अधिक समय से इसका अध्ययन कर रहे हैं. इसकी हड्डियों के स्कैन की तुलना अन्य सॉरोपोड्स से करने के बाद वैज्ञानिकों ने यह तय किया है कि अभी तक जितने भी सॉरोपॉड्स के बारे में जानकारी है, ये उनसे अलग है.
सॉरोपोड्स विशाल आकार के डायनासोर थे जो पेड़-पौधों पर निर्भर रहते थे. उनके सिर का आकार छोटा हुआ करता था और उनकी गर्दन लंबी होती थी. उनकी पूंछ मोटी और लंबी होती थी जबकि उनके पैर खंभों की तरह हुआ करते थे.
वैज्ञानिकों के अनुसार ये डायनासोर लगभग 9.2 से 9.6 करोड़ साल पहले क्रेटेशियस काल के दौरान महाद्वीप पर रहे होंगे.
चूंकि टाइटोनोसॉर का ये जीवाश्म क्वींसलैंड में कूपर क्रीक के पास मिला था, शोधकर्ताओं की टीम ने इसका नाम कूपर रखा था.
वैज्ञानिक बताते हैं कि कंकाल के आकार और आसपास की परिस्थितियों के कारण इस पर शोध करना उनके लिए काफी मुश्किल रहा.
हालांकि, क्वींसलैंड संग्रहालय और अरोमंगा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय ने बताया कि अवशेष के कई टुकड़े अच्छी स्थिति में थे.
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह डायनासोर तीन अन्य सॉरोपोड्स प्रजातियों- विंटोनोटान, डायमेंटिनसॉरस और स्वानासॉरस का क़रीबी रहा होगा.
शोध दल के प्रमुख डॉ. स्कॉट हॉकनाल का कहना है कि ऐसा लगता है कि ऑस्ट्रेलिया का यह सबसे बड़ा डायनासोर एक विशाल परिवार का हिस्सा रहा होगा.
इसके जीवाश्म पहली बार अरोमंगा के पास एक खेत में मिले थे और इसका स्वामित्व दो डायनासोर शोधकर्ताओं, रॉबिन और स्टुअर्ट मैकेंज़ी के पास था.
क्वींसलैंड राज्य सरकार ने इस नई खोज का स्वागत किया है. क्वींसलैंड संग्रहालय नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी डॉ. जिम थॉम्पसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया डायनासोर की खोज के लिए दुनिया की कुछ आख़िरी जगहों में बचा है और इसके बाद अब क्वींसलैंड ऑस्ट्रेलिया की आर्कियोलॉजिकल कैपिटल बनने के लिए तैयार है.
हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इस मामले में अभी बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है. (bbc.com)
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इथियोपिया के टिग्रे प्रांत में लगभग 3,50,000 लोगों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है. और लाखों लोगों के सामने अकाल का खतरा मंडरा रहा है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के प्रमुख डेविड बियस्ली ने इथियोपिया के टिग्रे प्रांत में तत्काल जीवनरक्षक सहायता पहुंचाने के लिए रास्तों को खोले जाने का आग्रह किया है. सरकारी सुरक्षा बलों और हथियारबंद गुटों के बीच लड़ाई जारी रहने से, हिंसा प्रभावित इलाके में साढ़े तीन लाख लोगों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है. यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रांत के 55 लाख लोगों को तत्काल खाद्य सहायता की जरूरत है.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का कहना है कि 2010 से 2012 तक सोमालिया में आए अकाल के बाद टिग्रे में खाद्य संकट सबसे खराब है. सोमालिया में उस दौरान ढाई लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी उनमें से आधे से अधिक बच्चे थे.
दुनिया को चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता के प्रमुख मार्क लोकॉक ने जी7 समूह के प्रतिनिधियों की वर्चुअल बैठक में चेतावनी दी कि "टिग्रे में अब अकाल" है. लोकॉक ने चेतावनी दी कि "यह बहुत खराब होने वाला है." लेकिन साथ ही कहा कि तत्काल कार्रवाई के साथ "सबसे खराब को अभी भी टाला जा सकता है."
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूनिसेफ ने 10 जून को नई चेतावनी दी कि अन्य 20 लाख लोग "तत्काल कार्रवाई के बिना बहुत जल्द ही भुखमरी से मर सकते हैं." वहीं संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख डेविड बियस्ली ने कहा कि क्योंकि क्षेत्र के कई हिस्सों में सशस्त्र समूहों ने पहुंच पर रोक लगा दी है, इसलिए ग्रामीण आबादी तक सहायता नहीं पहुंच सकी. एजेंसियों का कहना है कि अगर उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्रों तक पहुंच दी जाती है तो वे मदद के लिए तैयार हैं.
इथियोपिया सरकार ने पिछले नवंबर में टिग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) के खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया था, जो टिग्रेस प्रांत में सक्रिय है. नतीजतन, क्षेत्र में संघर्ष तेजी से जटिल हो गया है. टीपीएलएफ ने मौजूदा सरकार से पहले तक टिग्रे क्षेत्र में सत्ता संभाली थी.
विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (आईपीसी) की गुरुवार को जारी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र में लगभग 3.5 लाख लोग वर्तमान में एक विनाशकारी सूचकांक के तहत जी रहे हैं जो बेहद गंभीर कठिनाइयों की श्रेणी में आता है. 31 लाख लोगों के लिए खाद्य की कमी "संकट" स्तर पर जा पहुंचा है और 21 लाख लोग "आपात" हालात में जी रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, "यह गंभीर संकट संघर्ष के जबरदस्त प्रभावों का परिणाम है, जिसमें लोगों का विस्थापन, आवाजाही पर प्रतिबंध, सीमित मानव पहुंच और रोजगार में कमी शामिल हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर संघर्ष बढ़ता है या किसी अन्य कारण से मानवीय सहायता बाधित होती है तो टिग्रे के अधिकांश हिस्सों में अकाल का खतरा होगा. हालांकि, इथियोपिया के विदेश मंत्री डेमके मेकोनेन ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि यह झूठी सूचना पर आधारित है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक उनका संगठन, साझीदारों के साथ मिलकर पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छ जल सेवाओं को मुहैया कराने के प्रयासों मे जुटा है. लेकिन मानवीय रास्ता सुलभ ना होने की वजह से, पहुंच से बाहर टिग्रे के इलाकों में गंभीर कुपोषण का शिकार 33 हजार बच्चों की मौत होने का जोखिम है. उन्होंने कहा, "दुनिया ऐसा होने देने की अनुमति नहीं दे सकती."
इलाके में जारी लड़ाई से व्यापक स्तर पर विस्थापन हुआ है, बड़े पैमाने पर आजीविकाएं ध्वस्त हुई हैं और बुनियादी ढांचे व रोजगार का नुकसान हुआ है.
एए/वीके (एएफपी, एपी, डीपीए)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहला विदेश दौरा बिना शर्त किए एक बड़े दान के ऐलान से शुरू हुआ है. लेकिन यह दान क्या काफी है
आठ दिन, चार देश और तीन शिखर वार्ताएं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहला विदेशी दौरा खासा व्यस्त रहगा. इसकी शुरुआत ब्रिटेन के कार्बिस बे में जी-7 शिखर वार्ता से हो गई है. जहां से वह बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स जाएंगे और नाटो व यूरोपीय संघ के नेताओं से बात करेंगे. दौरा खत्म होगा जिनेवा में, जहां बाइडेन की मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से होनी है. इस बीच बहुत सी द्विपक्षीय मुलाकातें भी तय हैं जैसे कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से.
अपने दौरे के पहले ही दिन, गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि जी-7 देश दुनिया के सबसे गरीब देशों को फाइजर वैक्सीन की 50 करोड़ खुराक दान करेंगे. बाइडेन ने कहा कि कोविड-19 महामारी से लड़ने में योगदान के लिए ये खुराक बिना किसी शर्त के दी जाएंगी.
फाइजर के प्रमुख एल्बर्ट बोरला के साथ मुलाकात के बाद कारबिस बे में बाइडेन ने कहा, "अमेरिका ये खुराक बिना किसी शर्त के दे रहा है. हम किसी बिना किसी संभावित छूट या फायदे के दबाव के बिना यह दान कर रहे हैं. हम ऐसा जिंदगियां बचाने के लिए कर रहे हैं." उन्होंने कहा कि अमेरिका दुनिया के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तहत ये दवाएं दान कर रहा है.
उन्होंने कहा, "कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका वैक्सीन का बारूद होगा, ठीक उसी तरह जैसे दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका लोकतंत्र का बारूद बना था." किसी एक देश द्वारा वैक्सीन के अब तक के सबसे बड़े इस दान के लिए अमेरिका को साढ़े तीन अरब डॉलर खर्च करने होंगे. इसके साथ ही जी-7 देश मिलकर एक अरब खुराक दान करने का ऐलान कर सकते हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उम्मीद जताई है कि जी-7 नेता शिखर वार्ता के दौरान एक अरब वैक्सीन खुराक दान करने का ऐलान करेंगे.
अमीर देशों की क्या है योजना
दुनिया के सबसे धनी देशों का यह समूह चाहता है कि 2022 के आखिर तक पूरी दुनिया का टीकाकरण हो जाए ताकि लगभग 40 लाख लोगों की जानें ले चुकी कोविड महामारी को खत्म किया जा सके. फिलहाल धनी देश टीकाकरण के मामले में बाकी दुनिया से काफी आगे चल रहे हैं. अमेरिका, यूरोप, इस्राएल और बहरीन बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा लोगों को टीका लगा चुके हैं. जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक दुनिया की आठ अरब आबादी में से कुल दो अरब 20 करोड़ लोगों को टीका लगा है.
अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर और उसकी जर्मन सहयोगी बायोएनटेक ने अमेरिका को इस साल 20 करोड़ और अगले साल 30 करोड़ वैक्सीन खुराक सप्लाई करने पर सहमति जताई है. फाइजर जो दवाएं अमेरिका में बनाएगा, उन्हें बिना किसी मुनाफे के बेचा जाएगा और सौ देशों को सप्लाई किया जाएगा. फाइजर के प्रमुख बोरला ने कहा कि पूरी दुनिया धनी देशों की ओर देख रही है कि वे किस तरह कोविड महामारी से लड़ते हैं और इसका हल गरीब देशों के साथ कैसे साझा करते हैं.
दुनिया को चाहिए और टीके
अमेरिका के 50 करोड़ दवाएं दान करने के वादे पर उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर यह घोषणा हमारे दुनियाभर में और ज्यादा जानें बचाने की क्षमता को बढ़ाती है."
आमतौर पर इन घोषणाओं का स्वागत हुआ है लेकिन अमीर देशों द्वारा अपने यहां बना लिए गए वैक्सीन भंडारों को खोलने की मांग भी बढ़ी है. सामाजिक संस्था ऑक्सफैम ने कहा है कि विश्व स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए और ज्यादा कोशिश किए जाने की जरूरत है. ऑक्सफैम अमेरिका के वैक्सीन प्रमुख नीको लुइजियानी ने कहा, "बेशक, ये 50 करोड़ खुराक स्वागतयोग्य हैं क्योंकि ये दुनिया के 25 करोड़ से ज्यादा लोगों की मदद करेंगी. लेकिन जो दुनिया की इस वक्त जरूरत है, उसके लिहाज से तो यह एक बाल्टी में एक बूंद जितना है."
एक बयान जारी कर लुइजियानी ने कहा, "हमें ज्यादा विकेंद्रित वैक्सीन उत्पादन की ओर बढ़ना होगा ताकि दुनियाभर के योग्य उत्पादक कम खर्च पर अरबों और खुराक बना सकें और उन पर बौद्धिक संपदा जैसी पाबंदियां ना हों."
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
चीन पर दुनिया के कई देशों ने कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. अब उसने एक कानून पास किया है, जो उसे 'अन्यायपूर्ण' लगने वाले विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार देता है.
(dw.com)
गुरुवार, 10 जून को चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने एक कानून को मंजूरी दे दी, जिसके जरिए चीन को उन विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार मिल गए, जिन्हें वह अन्यायपूर्ण मानता है. इस कानून के तहत चीन ऐसे कदम उठा सकेगा, जो उसके नागरिकों या व्यापारिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ विदेशों में लगाए गए प्रतिबंधों का जवाब होंगे.
चीन के सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी ने खबर दी है कि यह कानून चीन के नागरिकों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका द्वारा लगाए गए 'एकतरफा और पक्षपाती' प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार देता है. आमतौर पर चीन में किसी कानून पर वोटिंग तब होती है, जब उसकी तीन बार समीक्षा हो चुकी हो. इस कानून की यह दूसरी ही समीक्षा थी. पहली समीक्षा गुपचुप तौर पर अप्रैल में की गई थी. इस कानून के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
प्रतिबंधों की वजह
चीन का कहना है कि उसे 'पक्षपातपूर्ण' प्रतिबंधों के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार है. उसका दावा है कि उसे अमेरिका के खिलाफ अपने हितों की रक्षा करनी है, जो बंधुआ मजदूरी, नजरबंदी शिविर और शिनजियां प्रांत में अल्पसंख्यकों की पुनर्शिक्षा जैसे 'झूठों' का इस्तेमाल उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए कर रहा है.
पश्चिमी देशों के मानवाधिकार संगठन चीन पर शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं. ऐसी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, जिनमें कहा गया है कि चीन उइगर मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से प्रताड़ित कर रहा है. पश्चिमी देश, जैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हैं और इस आधार पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुके हैं. लेकिन चीन का कहना है कि ये प्रतिबंध राजनीतिक विचाराधाराओं से प्रेरित हैं और चीन को दबाने के लिए लगाए जा रहे हैं.
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी ने अपनी नई रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें चीन पर 'इस्लाम को नष्ट करने' करने की कोशिश का आरोप लगाया गया है. यह रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार ने पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में 'बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध' तरीके से शोषण किया है.
हाल ही में अमेरिका ने संसद में एक प्रस्ताव पास किया था, जिसके तहत चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे वावे और जेडटीई को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. इसके जवाब में चीन कहता है कि उसे अपने संस्थानों, उद्योगों और नागरिकों के हितों की सुरक्षा के लिए कुछ कानूनी रास्ते तैयार करने होंगे.
कई देशों में हैं ऐसे कानून
चीन ऐसा कानून बनाने वाला पहला देश नहीं है. दुनिया में कई जगह ऐसे कानून बनाए जा चुके हैं. 2018 में रूस ने अपने हितों की सुरक्षा को आधार बताते हुए ऐसे ही कुछ कानून पास किए थे. इन कानूनों में देश की सुरक्षा, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की बात कही गई थी. उसने प्रतिबंधों के खिलाफ ऐसे कदमों की एक सूची भी प्रकाशित की थी. इनमें प्रतिबंध लगाने वाले देश से सहयोग बंद करना और उनके उत्पादों का व्यापार अपने यहां प्रतिबंधित कर देना शामिल था.
पिछले सितंबर में चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने भी ऐसी ही एक सूची जारी की थी. 'अविश्वसनीय संस्थानों की सूची' के नाम से जारी इस लिस्ट को जानकारों ने अमेरिका के प्रतिबंधों के जवाब में उठाया गया कदम बताया था. इस सूची में चीन के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाली कंपनियों और लोगों के खिलाफ सख्त जुर्माने लगाने का प्रावधान किया गया था. हालांकि चीन दावा करता है कि ऐसे कानून या सूचियां किसी देश से उसके रिश्तों को प्रभावित नहीं करेंगी.
वीके/एए (डीपीए, केएनए)
लंदन, 11 जून| ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपनी पहली व्यक्तिगत बैठक के दौरान वैश्विक चुनौतियों पर एक साथ काम करने के उद्देश्य से एक नए अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, जी 7 लीडर्स समिट की पूर्व संध्या पर गुरुवार को कॉर्नवाल के कार्बिस बे के समुद्र तटीय रिसॉर्ट में बैठक हुई।
जनवरी में सत्ता में आने के बाद बाइडन की यह पहली विदेश यात्रा है।
डाउनिंग स्ट्रीट द्वारा जारी एक बयान में, दोनों नेताओं ने 1941 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट द्वारा हस्ताक्षरित नए अटलांटिक चार्टर के माध्यम से सहयोग को गहरा करने का वचन दिया था।
नए चार्टर में अवैध वित्त, हिंसक संघर्ष और उग्रवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक स्वास्थ्य संकट जैसे कोविड-19 महामारी सहित आधुनिक समय के खतरों को रेखांकित किया गया है।
डाउनिंग स्ट्रीट के प्रवक्ता ने बयान में कहा, "दोनों नेता हमारे देशों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोरोनावायरस के प्रसार को हराने में मदद करने वाली जानकारी साझा करना जारी रखने के लिए काम करने के लिए सहमत हुए।"
बैठक के दौरान, बिडेन और जॉनसन ने उत्तरी आयरलैंड के मुद्दे पर अपने मतभेदों को दूर करने की भी कोशिश की, लेकिन अभी तक एक वास्तविक समाधान नहीं खोजा जा सका है।
डाउनिंग स्ट्रीट के बयान में कहा गया है, "नेताओं ने सहमति व्यक्त की कि यूरोपीय संघ और यूके दोनों के पास एक साथ काम करने और उत्तरी आयरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड गणराज्य के बीच निर्बाध व्यापार की अनुमति देने के लिए व्यावहारिक समाधान खोजने की जिम्मेदारी है।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 11 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.47 करोड़ हो गए है। इस महामारी से अब तक कुल 37.6 लाख लोगों की मौत हुई है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। शुक्रवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 174,759,974 और 3,769,088 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,427,481 और 598,728 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 29,183,121 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार, 30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (17,210,969), फ्रांस (5,791,608), तुर्की (5,313,098), रूस (5,108,217), यूके (4,558,926), इटली (4,239,868), अर्जेंटीना (4,066,156), स्पेन (3,729,458), जर्मनी (3,718,617) और कोलंबिया (3,665,137) हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में, ब्राजील 482,019 संख्या के साथ दूसरे स्थान पर है।
भारत (359,676), मैक्सिको (229,580), यूके (128,131), इटली (126,855), रूस (123,178) और फ्रांस (110,432) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
नैरोबी, 11 जून | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अधिकारी ने के मुताबिक 10 में से 9 अफ्रीकी देश इस साल सितंबर तक अपनी 10 फीसदी आबादी को कोविड-19 वैक्सीन देने के लक्ष्य से चूक सकते हैं। अफ्रीका के लिए डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय निदेशक मत्शिदिसो मोएती ने गुरुवार को समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि अगले तीन महीनों में वायरस के खिलाफ अपनी 10 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने के मामले में लगभग 90 प्रतिशत या 54 अफ्रीकी देशों में से 47 दिशाहीन हैं।
मोइती ने एक बयान में कहा, अफ्रीका की अधिकांश जनता हमेशा खतरे में रह रही है। अफ्रीका में अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है, तो पूरे अफ्रीका में संक्रमण का खतरा है क्योंकि यहां तय समय तक वैक्सीनेशन का प्रोग्राम पूरा नहीं हो सकेगा।
अफ्रीकन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (अफ्रीका सीडीसी) के आंकड़े बताते हैं कि महाद्वीप ने 5.49 करोड़ वैक्सीन खुराक हासिल कर ली थी और 7 जून तक 3.59 करोड़ लगाए जा चुके हैं।
अफ्रीका सीडीसी के अनुसार, शीर्ष पांच अफ्रीकी देश जिन्होंने कोविड-19 टीकाकरण का नेतृत्व किया है, उनमें मोरक्को, मिस्र, नाइजीरिया, इथियोपिया और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
मोएती ने कहा कि अफ्रीका को 10 प्रतिशत टीकाकरण लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 22.5 करोड़ खुराक की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अफ्रीका के 20 देशों ने कोवैक्स सुविधा के तहत प्राप्त टीके की 50 प्रतिशत से कम खुराक का उपयोग किया है, जबकि 12 में एस्ट्राजेनेका की 10 प्रतिशत से अधिक खुराक अगस्त के अंत तक समाप्त होने का खतरा है।(आईएएनएस)
दक्षिण अफ्रीका की राजधानी प्रिटोरिया में एक महिला ने एक साथ दस बच्चों को जन्म दिया है. मेडिकल साइंस में इस घटना को एक नए विश्व रिकॉर्ड की तरह देखा जा रहा है.
गोसियाम थमारे सिटहोले के पति टेबोहो त्सोतेत्सी ने बताया कि दस बच्चे देखकर वे अचंभित रह गए. डॉक्टरों ने उन्हें अल्ट्रासाउंड के जरिये गर्भ में केवल आठ बच्चों के होने की बात बताई थी.
बच्चों के जन्म के बाद टेबोहो त्सोतेत्सी ने प्रिटोरिया न्यूज़ को बताया, "सात लड़के हैं और तीन लड़कियां. मैं बहुत खुश हूं. भावुक हो रहा हूं. ज्यादा बात नहीं कर सकता."
दक्षिण अफ्रीका के एक अधिकारी ने बीबीसी से दस बच्चों के जन्म की पुष्टि की है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अभी तक बच्चों को देखा नहीं है. बच्चों का जन्म सोमवार को हुआ था.
परिवार के एक सदस्य ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि गोसियाम थमारे सिटहोले ने पांच बच्चों को प्राकृतिक तरीके से जन्म दिया जबकि पांच को ऑपरेशन के जरिए बाहर निकाला गया.
माली की हलीमा सिसे का मामला
गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बीबीसी को कहा कि वे गोसियाम थमारे सिटहोले के मामले की जांच कर रहे हैं.
अभी अमेरिका की एक महिला के नाम 2009 में सबसे ज़्यादा आठ बच्चों को जन्म देने और उनके जीवित रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड गिनीज़ बुक में दर्ज है.
पिछले महीने माली की हलीमा सिसे ने नौ बच्चों को जन्म दिया था. ये बच्चे अभी मोरोक्को के एक क्लीनिक में हैं और स्वस्थ हैं.
बीबीसी अफ्रीका की हेल्थ रिपोर्टर रोडा ओढियांबो बताती हैं कि ऐसे गर्भ जिनमें अधिक संख्या में बच्चे होते हैं, उनकी समय से पहले डिलिवरी हो जाती है.
तीन से ज्यादा बच्चों के जन्म के मामले बहुत कम देखने में आते हैं और अक्सर ही ये कृत्रिम गर्भाधान के कारण होता है. लेकिन इस मामले में इस जोड़े का कहना है कि गर्भ प्राकृतिक रूप से ही ठहरा था.
मां को क्या थी चिंता?
37 वर्षीया गोसियाम थमारे सिटहोले ने इससे पहले जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था जो अब छह साल के हैं.
बताया जाता है कि ये डिलिवरी गर्भ के 29वें हफ्ते में हुई.
महीने भर पहले प्रिटोरिया न्यूज़ से बात करते हुए उन्होंने अपनी प्रिग्नेंसी के बारे में कहा था, "शुरू में ये मुश्किल था और वे बच्चों के स्वस्थ जन्म लेने के लिए प्रार्थना करती थीं. रातों को नींद नहीं आती थी. ये फिक्र रहती थी कि क्या होने वाला है."
उन्होंने खुद से पूछा, "वे कैसे गर्भ में जगह बना पाएंगे? क्या वे बच भी पाएंगे."
लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनका गर्भ फैल रहा है.
जब डॉक्टरों ने ये कहा कि उनके गर्भ में आठ बच्चे हैं तो गोसियाम थमारे सिटहोले के पैरों में दर्द रहता था. डॉक्टरों ने जांच के बाद पाया कि दो बच्चे गलत ट्यूब में हैं.
सिटहोले ने प्रिटोरिया न्यूज़ को बताया, "लेकिन वो मुश्किल दूर हो गई और मैं तब से ठीक हूं. मैं अपने बच्चों को देखने के लिए बेकरार हूं."
उनके पति का कहना था कि वे अपने कदम ज़मीन पर महसूस नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें ऐसा लग रहा था कि ईश्वर ने उन्हें इसके लिए चुना है. वो एक चमत्कार की तरह है. (bbc.com)
ईरान में अगले सप्ताह राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और वहां एक अति रूढ़िवादी की जीत से महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व और बदतर हो सकता है.
ईरान के न्यायतंत्र के प्रमुख इब्राहिम रईसी बाकी छह उम्मीदवारों के मुकाबले रूढ़िवादियों में पसंदीदा उम्मीदवार माने जा रहे हैं, जो मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह ले सकते हैं. आर्थिक और सामाजिक संकट से उपजे असंतोष के बीच ईरान के लोग 18 जून को राष्ट्रपति हसन रूहानी के उत्तराधिकारी का चुनाव करने जा रहे हैं. ईरान में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने रूहानी की उस वादा खिलाफी की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने महिला मंत्रालय बनाने और तीन महिला मंत्रियों को नियुक्त करने का वादा किया था.
इसके बजाय रूहानी ने अपने दो कार्यकालों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कमी ही की. रूहानी की निवर्तमान कार्यकारिणी में केवल दो महिलाओं को प्रतिनिधित्व का मौका मिला. महिलाओं और परिवारों की उपाध्यक्ष मासौमेह एबतेकर और कानूनी मामलों की उपाध्यक्ष लया जोनेदी को ही जिम्मेदारी सौंपी गई थी. ईरान में मंत्रिस्तरीय पदों के उलट उपाध्यक्ष के पदों के लिए संसदीय अनुमोदन की जरूरत नहीं होती है. और आलोचकों ने रूहानी पर आरोप लगाया कि वे नरमपंथियों के बहुमत के बावजूद, महिला मंत्रियों के नाम की सिफारिश संसद में पेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए.
महिलाओं की राजनीति में अहमियत बहुत कम
पूर्व सुधारवादी सांसद इलाहेह कौलेई ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "ईरानी महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती निर्णय लेने वाली संस्थाओं से उनकी पूरी तरह से गैरमौजूदगी से जुड़ी है."
18 जून को रूहानी की जगह लेने की होड़ में सात उम्मीदवारों में से किसी के लिए भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व प्राथमिकता नहीं है. अति रूढ़िवादी रईसी ने महिलाओं के मुद्दे पर बहुत ही कम ध्यान दिया है. रूहानी के अधूरे वादों की आलोचना तो उन्होंने की है लेकिन अपने इरादों को जाहिर किए बिना. पर्यवेक्षकों को अति-रूढ़िवादी मोहसिन रेजाई के वादों में कुछ खास दिखाई नहीं देता है. जिन्होंने "कम से कम दो महिला मंत्री" बनाने का वादा किया है, और सुधारवादी अब्दोलनासर हेममती ने "कम से कम एक" महिला मंत्री बनाने का वादा किया है. लेकिन संसद की मंजूरी के बगैर इस तरह के वादे के कोई मायने नहीं दिखते हैं.
सुधारवादी महिला पार्टी की प्रमुख जहरा शोजाई कहती हैं कि ईरान की 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद वर्तमान में 290 में से सिर्फ 17 महिलाएं ही सांसद हैं. 1997 से 2005 तक महिलाओं के मामलों के लिए सुधारवादी अध्यक्ष मोहम्मद खतामी की सलाहकार के रूप में काम करने वाली शोजाई कहती हैं, महिलाओं की मान्यता की दिशा में सफर "लंबा और कठिन है." रईसी को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई का करीबी माना जाता है. अनुमान लगाया जा रहा है कि उनके मुकाबले बाकी उम्मीदवार काफी कमजोर हैं.
एए/वीके (एएफपी)
दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देश प्रतिद्वन्द्वी हो गए हैं, खासकर चीन के. लेकिन जलवायु परिवर्तन और हथियारों पर नियंत्रण जैसे मामलों में मुकाबला नहीं सहयोग से काम बनेगा. इस साल की म्युनिख सिक्यॉरिटी रिपोर्ट पर एक रिपोर्ट...
डॉयचे वैले पर मथायस फोन हाइन की रिपोर्ट
ताजा म्यूनिख सिक्योरिटी रिपोर्ट बड़े सही मौके पर आई है. सही क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने पहले विदेश दौरे पर यूरोप आए हैं. वह इंग्लैंड में जी-7 की बैठक में हिस्सा लेने के बाद ब्रसेल्स में नाटो शिखर वार्ता के दौरान दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के नेताओं से मुलाकात करेंगे. और उसके बाद जेनेवा में उनकी मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से होगी.
इस पृष्ठभूमि में म्यूनिख सुरक्षा रिपोर्ट अहम हो जाती है, जिसे शीर्षक दिया गया है – बिटविन स्टेट्स ऑफ मैटर - कॉम्पटिशन एंड कोऑपरेशन.
‘संघर्ष और सहयोग', यह शीर्षक 160 पेज की इस रिपोर्ट के मुख्य असमंजस को बयान करता है कि पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों को खासकर चीन से चुनौती मिल रही है. लेकिन उसी वक्त दोनों पक्षों को एक दूसरे की जरूरत भी है, न सिर्फ व्यापार में बल्कि दुनिया के सामने इस वक्त मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियों से निपटने में भी. कोविड-19 महामारी ऐसी ही एक मिसाल है, जहां पूरी दुनिया के सहयोग की जरूरत है. फिर, जलवायु परिवर्तन और परमाणु हथियारों की होड़ जैसे मसले भी हैं. लेकिन चीन के इस वक्त बाकी बड़े देशों के साथ दो तरह के रिश्ते हैं. एक तरफ वह तगड़ा प्रतिद्वन्द्वी है तो दूसरी तरफ रणनीतिक साझीदार भी है.
चीन, एक चुनौती
राष्ट्रीय पूंजीवाद के सिद्धांत पर चलने वाली चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने वो हासिल कर लिया है, जो सोवियत संघ नहीं कर पाया था. एकाधिकारवादी शासन को आर्थिक प्रगति के साथ मिलाकर संपन्न होती जाती जनता. शायद इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को बार-बार कहना पड़ता है, "हमें मिलकर यह दिखाना होगा कि इस बदली दुनिया में लोकतंत्र अब भी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर सकता है.”
चीन ने साबित कर दिया है कि लगभग डेढ़ अरब की आबादी वाला देश जब चार दशक तक दो अंकों में आर्थिक प्रगति करता है तो फिर वह आर्थिक ताकत एक समय के बाद राजनीतिक और सैन्य ताकत में तब्दील होती ही है.
और चीन ने अपने लिए छोटे लक्ष्य तय नहीं किए हैं. 2049 में जब देश की सौवीं वर्षगांठ मनाई जाएगी तो चीन अपने आपको पूरी तरह से विकसित, आधुनिक और समाजवादी ताकत के रूप में देखना चाहता है. एक ऐसी ताकत जो फैसले ले सके, और तकनीकी, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से सर्वोच्च स्तरों पर हो. दूसरे शब्दों में, चीन सबसे बड़ी ताकत बनना चाहता है.
पश्चिमी एकता की जरूरत
म्यूनिख सिक्योरिटी रिपोर्ट के मुताबिक उदार लोकतंत्र अपने अनुदार प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ एक निर्णायक रुख अपनाने को तैयार हैं. म्यूनिख सिक्यॉरिटी कॉन्फ्रेंस में नीति और विश्लेषण विभाग के अध्यक्ष टोबाएस बुंडे इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं. उन्होंने इस रिपोर्ट के छपने से पहले जो बाइडेन की कही एक बात का उल्लेख किया थाः "ट्रांसअलटांटिक नेता एक सहमति पर पहुंचते दिखते हैं कि साझे लक्ष्य हासिल करने के लिए दुनिया की मुख्य लोकतांत्रिक ताकतों के बीच सहयोग का मजबूत होना जरूरी है. जैसे कि राष्ट्रपति बाइडेन कहते हैं, हम एक मोड़ पर पहुंच चुके हैं और यहां से दुनिया के लोकतंत्रों को एक साथ आना ही होगा.”
हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्र
इस साल की रिपोर्ट में हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर खास ध्यान दिया गया है. और ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह इलाका वैश्विक अर्थव्यवस्था का 60 प्रतिशत है और आर्थिक उन्नति के दो तिहाई के लिए जिम्मेदार है. म्यूनिख सिक्योरिटी रिपोर्ट कहती कि इस इलाके पर ध्यान इसलिए जरूरी है क्योंकि, रिपोर्ट की सह-लेखक सोफी आइजनट्राउट के शब्दों में, "अब तक बहुत से लोग इस बात से सहम हैं कि यह ऐसा क्षेत्र है जहां स्थिरता खतरे में है और आने वाले दशकों में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का नीति-निर्धारण इसी क्षेत्र से होगा.”
यह बात व्यवहारिक राजनीति में नजर भी आ रही है. जून की शुरुआत में यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रतिनिधि योसेप बोरेल इंडोनेशिया के दौरे से लौटे हैं, जहां वह देश के रक्षा मंत्री प्राबोवो सुबिआंतो से मिले थे. जकार्ता की यात्रा के दौरान बोरेल ने आसियान-केंद्रित सुरक्षा ढांचे के साथ यूरोप के सहयोग की इच्छा जाहिर, खासकर समुद्री सुरक्षा को लेकर. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ का हित इस क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था बनाए रखने में है और इसके लिए वह सहयोग भी कर सकते हैं.
हालांकि म्यूनिख सिक्यॉरिटी रिपोर्ट यूरोप से इससे ज्यादा की उम्मीद करती है. और बर्लिन ने तो इस दिशा में सधे हुए कदमों से चलना भी शुरू कर दिया है. मई के आखिर में जर्मनी की रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रैंप-कैरेनबावर दक्षिण कोरिया की यात्रा पर गई थीं. इस दौरे का मकसद प्रशांत महासागर में जर्मन युद्धपोत बायर्न की तैनाती की तैयारी था. इस दौरान वह गुआम स्थित अमेरिकी सैन्य बेस भी गईं. इस यात्रा से पहले मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि जर्मनी समुद्री रास्तों पर चीन के खतरों के बारे में सिर्फ बात नहीं करना चाहता, बल्कि इस बारे में कुछ करने को भी तैयार है. (dw.com)
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) पार्टी की नेता फ़िरदौस आशिक़ अवान और पीपीपी पार्टी के नेता अब्दुल क़ादिर ख़ान मंदोखेल के बीच हाथापाई देखी जा सकती है.
दरअलस, यह घटना पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल एक्सप्रेस न्यूज़ के एक कार्यक्रम के दौरान हुई.
एंकर जावेद चौधरी के 'कल तक' नामक कार्यक्रम में दोनों नेताओं को भ्रष्टाचार पर चर्चा के लिए बुलाया गया था जिसके दौरान दोनों के बीच काफ़ी तीखी बहस शुरू हो गई.
पीपीपी नेता मंदोखेल जो कि सांसद भी हैं वो फ़िरदौस अवान पर सीधे भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे. इस पर अवान ने उनसे भ्रष्टाचार के सबूत मांगे और कहा कि वो मानहानि का केस करेंगी.
बहसबाज़ी बढ़ती चली गई और इसके बाद फ़िरदौस ने उनका गिरेबान पकड़ लिया और उन्हें थप्पड़ मारा इसके बाद दोनों नेताओं के बीच हाथापाई शुरू हो गई.
कौन हैं फ़िरदौस अवान और मंदोखेल
पीटीआई नेता फ़िरदौस अवान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सूचना एवं प्रसारण मामलों की विशेष सहायक रह चुकी हैं और फ़िलहाल पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री की विशेष सहायक (सूचना) हैं.
वहीं, क़ादिर ख़ान मंदोखेल बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी से नेशनल एसेंबली के सदस्य हैं.
उन्होंने हाल ही में अप्रैल में हुए उप-चुनावों में कराची वेस्ट-2 सीट से जीत दर्ज की थी.
पीटीआई नेता अवान ने ट्वीट करके इस घटना पर सफ़ाई जारी की है. उन्होंने वीडियो पोस्ट किया है जिसमें वो कह रही हैं कि मंदोखेल उनके ख़िलाफ़ लगातार अपशब्द कह रहे थे.
उन्होंने बताया कि कार्यक्रम में ब्रेक के दौरान सांसद ने उन्हें और उनके पिता को गालियां दीं और धमकियां दीं.
अवान ने बताया कि उन्होंने आत्मरक्षा में मंदोखेल पर हाथ उठाया क्योंकि उनकी इज़्ज़त दांव पर लगी हुई थी.
उनका कहना है कि यह छोटी सी वीडियो लीक की गई है जबकि इस कार्यक्रम का पूरा वीडियो पेश किया जाना चाहिए जिससे सच पता चल सके कि उन्हें क्यों हाथ उठाने पर मजबूर किया गया.
इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि वे अपने क़ानूनी सलाहकारों से बात कर रही हैं और वो मंदोखेल के ख़िलाफ़ महिला शोषण ही नहीं बल्कि मानहानि का मामला दर्ज करने पर विचार कर रही हैं. (bbc.com)
जापान में ऐसी आइसक्रीम खाई जाती हैं, जो दुनिया में कहीं नहीं मिलती. आइसक्रीम के दीवाने इस देश में स्वादों की फेहरिस्त बहुत अनोखी है. ना पिघलने वाली आइसक्रीम भी है.
डॉयचे वैले पर जूलियन रायल की रिपोर्ट
जापान में लोगों को बहुत पसंद है, आइसक्रीम. आइसक्रीम तो कहां नहीं पसंद की जाती, लेकिन जापान में जितनी तरह की आइसक्रीम मिलती है, उसकी लज्जत का कोई जवाब नहीं. सोया सॉस से लेकर लहसुन, ईल और शार्क के पंख जैसे फ्लेवर्स भी उपलब्ध हैं. लेकिन ना पिघलने वाली आइसक्रीम तो जापानी जीनियस का गजब ही उदाहरण है. लेकिन आइसक्रीम बनाने में जापान का कौशल यहां से तो शुरू होता है.
जापान में तापमान बढ़ना शुरू हो गया है और लोग उमस के लिए तैयार हो रहे हैं. लेकिन वे परेशान नहीं, खुश हैं क्योंकि आइसक्रीम खाने को मिलेगी. अब से सितंबर तक, जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा, जापान में आइसक्रीम की बिक्री बढ़ेगी. इस द्वीप पर आइसक्रीम 1878 में पहुंची थी जब किसी विदेशी नाविक व्यापारी ने योकोहोमा को इसका स्वाद पहली बार चखाया था. लेकिन तब से आइसक्रीम ऐसी बसी कि अब यहीं की हो गई है. इसके विशाल घरेलू ब्रैंड्स हैं जो हागेन-डाज जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड्स को तगड़ा मुकाबला देते हैं. और इसका राज है वे घरेलू नए फ्लेवर्स जो जापानियों ने तैयार किए हैं. वजह तो पता नहीं, पर ये ज्यादातर घरेलू कंपनियां ऐतिहासिक शहर कानाजावा में स्थित हैं जिसे जापान की आइसक्रीम कैपिटल भी कहते हैं.
सोया सॉस आइसक्रीम
कानाजावा स्थित यामाटो सोया सॉस एंड मीजो कंपनी के प्रवक्ता ईजी ताशिरो कहते हैं, "वैसे तो हम मसाले बनाने वाली कंपनी हैं लेकिन 15 साल पहले हमने कुछ अलग करने की कोशिश की. हमने सोचा कि जैसे जापानी लोग पारपंरिक चीजों जैसे सोया और मीजो को पसंद करते हैं, तो क्यों ना इन्हें आइसक्रीम में डालकर देखा जाए." और नतीजा था, सोया सॉस फ्लेवर वाली वनीला आइसक्रीम. डीडब्ल्यू से बातचीत में ताशिरो ने बताया कि प्रयोग बेहद सफल रहा है. वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि पहली बार ट्राई करने पर ज्यादातर लोग हैरान होते है. इसका स्वाद सोया सॉस जैसा तो नहीं है. आइसक्रीम में यह कैरामल जैसी ज्यादा लगती है."
अपने कासल और पारंपरिक बागों के लिए मशहूर इस शहर में थोड़ा बहुत घूमकर ही पता चल जाता है कि क्यों लोग कानाजावा का नाम आइसक्रीम के साथ लेते हैं. यहां आपको आइसक्रीम मिलेगी, जिस पर स्वर्ण भस्म से लेकर होजिचा ग्रीन टी तक छिड़क कर दी जाती हैं. राइस वाइन के फ्लेवर वाली आइसक्रीम भी है. और, नाकातानी तोफू कंपनी तोफू आइसक्रीम भी बनाती है. बसंत में खूब पसंद किए जाने वाला फ्लेवर है चेरी ब्लॉसम या फिर भुनी शकरगंद भी.
न पिघलने वाली आइसक्रीम
न पिघलने वाली आइसक्रीम भी कानाजावा में ही बनाई गई थी. हालांकि यह एक हादसे के चलते हुए था. बताते हैं कि बायोथेरेपी डिवेलपमेंट रिसर्च सेंटर कंपनी और कानाजावा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मिलकर स्ट्रॉबरी पॉलीफिनोल पाउडर से एक कुदरती स्वास्थ्यवर्धक फ्लेवर बनाने पर काम कर रहे थे. लेकिन उन्होंने देखा कि जब इसे पानी के साथ मिलाकर जमाया गया तो जो बना उसमें और आइसक्रीम में फर्क करना मुश्किल था. और यह पिघल नहीं रहा था.
अप्रैल 2017 में इसे कानाजावा आइसक्रीम कंपनी ने पहली बार बाजार मे उतारा था और अब यह अलग-अलग आकारों और स्वादों में उपलब्ध है. गर्मी शुरू होते ही टोक्यो के सनशाइन सिटी में एक आइसक्रीम थीम पार्क खोला जाता है, जहां पूरे जापान के कुल्फी वाले जमा होते हैं और अपने-अपने यहां के स्वाद लेकर आते हैं जो एक दूसरे से एकदम भिन्न हैं. जैसे कि दक्षिणी जापान की घोड़े के कच्चे मांस के फ्लेवर वाली आइसक्रीम. या फिर मध्य जापान के धान के खेतों से चावल के स्वाद वाली कुल्फी. नागोया से आती है चिकन विंग के फ्लेवर वाली आइसक्रीम. कहीं मिर्ची वाली तीखी आइसक्रीम है तो केकड़ा, झींगा, बैंगन, काली चीनी और लहसुन का स्वाद भी उपलब्ध है. (dw.com)
हर दस में से एक काम करने वाले बच्चे के साथ दुनिया "बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में जमीन खोने" के कगार पर है. बाल श्रम आमतौर पर मजदूरी के भुगतान के बिना या भुगतान के साथ बच्चों से शारीरिक कार्य कराना है.यह एक वैश्विक घटना है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि दुनिया ने 20 साल में पहली बार बाल श्रम में बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोरोनो वायरस संकट से और अधिक किशोरों को एक ही भाग्य की ओर धकेले जाने का खतरा है. बाल मजदूरों की संख्या 2016 के 15.2 करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ हो गई है. यह दर्शाता है कि 2000 के बाद से हासिल प्रमुख लाभ, जब 24.6 करोड़ बच्चे श्रम में लगे हुए थे, वह पलट रहा है.
साझा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बड़े कदम नहीं उठाए गए तो 2022 के अंत तक यह आंकड़ा 20.6 करोड़ तक जा सकता है. यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक, "हम बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में जमीन खो रहे हैं, और पिछले साल ने उस लड़ाई को आसान नहीं बनाया है." उनके मुताबिक, "अब, वैश्विक लॉकडाउन के दूसरे साल में स्कूल बंद होने, आर्थिक व्यवधान और सिकुड़ते बजट के कारण परिवारों को दिल तोड़ने वाले विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. "
चिंताजनक स्थिति
बाल मजदूरों में सबसे बड़ी बढ़ोतरी अफ्रीका में मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि, संकट और गरीबी के कारण देखी गई. उप-सहारा अफ्रीका में, पांच से 17 वर्ष की आयु के लगभग एक चौथाई बच्चे पहले से ही बाल श्रम में हैं, जबकि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह 2.3 फीसदी है. एजेंसियों ने चेतावनी दी कि कोरोना संकट पहले से ही बाल श्रम करने वाले बच्चों को लंबे घंटे और बिगड़ती परिस्थितियों में काम करने की ओर धकेल सकता है.
रिपोर्ट की सह लेखक और यूनिसेफ सांख्यिकी विशेषज्ञ क्लाउडिया कापा के मुताबिक, "अगर सामाजिक सुरक्षा कवरेज मौजूदा स्तरों से फिसल जाती है तो खर्च में कटौती और अन्य कारकों के परिणामस्वरूप बाल श्रम में पड़ने वाले बच्चों की संख्या अगले साल के अंत तक (अतिरिक्त) 4.6 करोड़ तक बढ़ सकती है."
हर चार साल में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि पांच से 11 साल की उम्र के बच्चों की संख्या वैश्विक संख्या के आधे से अधिक है. हालांकि लड़कों के बाल श्रम में जाने की संभावना ज्यादा है. रिपोर्ट कहती है कि पांच से 17 साल के बीच के बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो सप्ताह में 43 घंटे से अधिक समय तक खनन या भारी मशीनों के साथ "खतरनाक काम" में लगे हुए हैं. आईएलओ के महानिदेशक गाए रायडर ने एक बयान में कहा, "नए अनुमान एक चेतावनी हैं. बच्चों की एक नई पीढ़ी को जोखिम में जाता हुए हम नहीं देख सकते. हम एक महत्वपूर्ण क्षण में हैं और हम कैसे प्रतिक्रिया देते हैं इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है."
तुरंत कदम उठाने होंगे
संयुक्त राष्ट्र ने साल 2021 को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष के रूप में घोषित किया है. यूएन ने 2025 तक देशों से इसे खत्म करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई करने के लक्ष्य हासिल करने का आग्रह किया है. यूएन का कहना है कि इस दिशा में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है क्योंकि कोविड-19 के कारण अधिक बच्चे खतरे में आते दिख रहे हैं और सालों की प्रगति संकट में पड़ती दिख रही है.
भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है. लेकिन स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं. इस प्रावधान का नियोक्ता और मानव तस्कर व्यापक रूप से शोषण करते हैं. बिहार जैसे राज्यों में जहां साढ़े चार लाख बच्चे मजदूरी करते हैं, वहां ऐसे तंत्र तैयार किए जा रहे हैं जिससे बाल श्रम को मैप किया जा सके. पूरे देश में 5 से 14 साल तक की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है.
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)
वॉशिंगटन, 10 जून| जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, समग्र वैश्विक कोविड-19 आंकड़ा 17.43 करोड़ के पार पहुंच चुका है, जबकि मौतें 37.5 लाख से अधिक हो चुकी हैं। गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में वैश्विक आंकड़ा और मरने वालों की संख्या क्रमश 174,311,218 और 3,754,914 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश 33,413,999 और 598,760 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 29,089,069 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े दिखाए गए 30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे खराब देशों में ब्राजील (17,122,877), फ्रांस (5,787,125), तुर्की (5,306,690), रूस (5,096,657), यूके (4,551,687), इटली (4,237,790), अर्जेंटीना (4,038,528), जर्मनी (3,715,870) हैं। , स्पेन (3,715,454) और कोलंबिया (3,633,481) है।
मौतों के मामले में ब्राजील 479,515 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (353,528), मैक्सिको (229,100), यूके (128,124), इटली (126,767), रूस (122,802) और फ्रांस (110,364) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)