अंतरराष्ट्रीय
एक अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि बगराम एयर बेस को लगभग 20 दिनों में अफगान अधिकारियों को सौंपे जाने की उम्मीद है. अफगान रक्षा मंत्रालय ने इसे प्रबंधित करने के लिए विशेष समितियों का गठन किया है.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना लगभग दो दशक के युद्ध के बाद वतन लौटने के अंतिम चरणों में है. एक वरिष्ठ अमेरिकी सैन्य अधिकारी का कहना है कि वे लगभग 20 दिनों के भीतर देश के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे बगराम एयर बेस का इस्तेमाल बंद करेंगे और इसे अफगान सरकार को सौंप दिया जाएगा. एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हम बगराम एयर बेस (अफगान सरकार) को सौंप रहे हैं." उन्होंने यह नहीं बताया कि हस्तांतरण कब होगा लेकिन एक अफगान सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि लगभग 20 दिनों में सैन्य हवाई अड्डे को सौंपे जाने की उम्मीद है. अफगान के रक्षा मंत्रालय ने बेस को प्रबंधित करने के लिए विशेष समितियों का गठन किया है.
बगराम एयर बेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य हवाई अड्डा है. इसे सोवियत संघ ने 1980 के दशक में बनाया था. अमेरिकी सैन्य अभियानों के दौरान हजारों अमेरिकी और नाटो सैनिक युद्धग्रस्त देश में तैनात थे.
अमेरिकी सैनिकों की त्वरित वापसी
वॉशिंगटन में पेंटागन ने संकेत दिया है कि अमेरिका अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी में तेजी ला रहा है. यूएस सेंट्रल कमांड का अनुमान है कि सोमवार तक 30 से 44 प्रतिशत निकासी का काम पूरा कर लिया गया है. छह सैन्य ठिकानों को अफगान सुरक्षा बलों को सौंप दिया गया है, जबकि आने वाले दिनों में और अधिक सैन्य ठिकानों को अफगान बलों को सौंप दिया जाएगा.
अप्रैल में, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 सितंबर तक सैन्य वापसी का लक्ष्य निर्धारित किया था. लक्ष्य के तहत अफगानिस्तान में मौजूद सभी 2,500 अमेरिकी सैनिकों और लगभग 16,000 सिविल ठेकेदारों को निकालना है. इसी के साथ अमेरिकी का दो दशक पुराना युद्ध भी समाप्त हो जाएगा. सैन्य अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रपति बाइडेन के सैन्य वापसी के फैसले के बाद से अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी तेज हो रही है. अमेरिका ने देश से अपने काफी सैन्य उपकरण भी वापस भेज दिए हैं.
अमेरिका ने पिछले महीने दक्षिणी अफगानिस्तान में कंधार एयरफील्ड से निकासी भी पूरी की, जो उस समय देश का दूसरा सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अड्डा था. बगराम एयर बेस पिछले दो दशक से अमेरिकी सेना के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण ग्राउंड और एयर बेस रहा है. बेस में एक जेल भी है जहां हजारों तालिबान और अन्य कैदी सालों से बंद हैं.
नाटो प्रमुख भी आशावादी
नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी सही दिशा में बढ़ रही है. एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक, नाटो महासचिव का कहना है कि सैन्य गठबंधन ने लगभग दो दशकों तक अफगानिस्तान को सुरक्षा सहायता प्रदान की है, उनका मानना है कि अब अपेक्षाकृत अच्छी तरह से प्रशिक्षित अफगान सरकार और उसके सशस्त्र बल अंतरराष्ट्रीय ताकतों की मदद के बिना, अपने दम पर खड़े होने के लिए काफी मजबूत हैं.
स्टोल्टेनबर्ग ने संगठन के विदेश और रक्षा मंत्रियों की एक वर्चुअल बैठक की अध्यक्षता करने के बाद पत्रकारों से कहा, "हमारे सैनिकों की वापसी एक व्यवस्थित और समन्वित तरीके से आगे बढ़ रही है, लेकिन हर स्तर पर हमारे लोगों की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है." उन्होंने कहा कि हालांकि गठबंधन सेनाएं अब अफगानिस्तान में नहीं होंगी, "30 राष्ट्र गठबंधन और उसके सहयोगी अफगानिस्तान के सक्षम और मजबूत सुरक्षा बल को निधि देना जारी रखेंगे."
इस बीच देश में हिंसा का दौर जारी है. मंगलवार को दो यात्री बसों में विस्फोट के बाद 10 नागरिकों की मौत हो गई और 12 अन्य घायल हो गए. इसी तरह, एक और विस्फोट के कारण बिजली गुल हो गई जिससे काबुल के कई हिस्से अंधेरे में डूब गए.
वहीं कतर में तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता भी ठप पड़ी हुई है. हालांकि, अफगान सरकार के वार्ताकारों का एक समूह बातचीत में शामिल होने के लिए मंगलवार को दोहा पहुंचा है. अफगान सरकार की वार्ता टीम के सदस्य नादिर नादेरी ने कहा कि शांति वार्ता जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है. तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत 12 सितंबर को शुरू हुई थी, लेकिन अभी तक कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है.
एए/ (एएफपी, एपी)
महिलाओं को मैनेजमेंट में जगह देने के मामले में जर्मनी में उतनी प्रगति नहीं हो रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी. बैंकिंग उद्योग में हुआ एक अध्ययन बताता है कि पिछले साल इसमें मामूली वृद्धि हो पाई.
जर्मनी में बैंकों के मैनेजमेंट में सिर्फ 34.8 प्रतिशत महिलाएं हैं. रोजगार के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एजीवी बांकेन के मुताबिक यह संख्या पिछले साल से बस थोड़ी सी ज्यादा है क्योंकि 2019 में 34.3 प्रतिशत महिलाएं बैंकों के मैनेजमेंट में थीं. यह आंकड़ा जर्मनी के विभिन्न उद्योगों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की एक बानगी के तौर पर देखा जा रहा है. खासकर वित्त उद्योगों में तो इसे चिंता का सबब मानकर कुछ कदम उठाने की बात भी हो रही है.
हालांकि 1990 की स्थिति के मुकाबले तो हालात बहुत बेहतर हैं जबकि मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम हुआ करती थी. लेकिन जर्मन उद्योग ब्रेक्जिट के बाद लंदन से मुकाबला कर रहे हैं तो हालात सुधारने की जरूरत महसूस की जा रही है. इसलिए कुछ संस्थाओं जैसे डॉयचे बैंक और कॉमर्स बैंक ने 35 प्रतिशत को अपना लक्ष्य बनाया है.
बदलाव की कोशिश
डॉयचे बैंक का कहना है कि वह हालात पर लगातार नजर रखेगा और तरक्की का हिसाब रखा जाएगा. जर्मनी की सबसे प्रमुख बैंकरों में शामिल कैरोला फोन श्मोटो जब अप्रैल में एचएसबीसी के प्रमुख पद से रिटायर हुईं तो उनकी जगह एक पुरुष ने ली. एचएसबीसी ने कहा कि वह सीनियर मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन फैसलों में अंतर नजर आ ही जाता है. जर्मन सांसद कान्सल कित्सेलटेपे कहती हैं कि वित्त क्षेत्र में पुरुषों का अधिपत्य है और इसे बदलना ही चाहिए.
बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप और म्यूनिख तकनीकी विश्वविद्यालय के एक साझा अध्ययन के मुताबिक महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में जर्मनी कई यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन और फ्रांस से पीछे है. ब्रिटेन में 2034 तक महिलाओं के पुरुषों की बराबरी हासिल कर लेने की उम्मीद है लेकिन जर्मनी में यह स्थिति आने में 2053 तक का वक्त लगेगा. बॉस्टन कन्सल्टिंग की महाप्रबंधक और रिपोर्ट की लेखिका निकोल फोग्ट कहती हैं, "हम आबादी में आधी हैं तो संख्या बराबर क्यों न हो? 35 प्रतिशत क्यों हो?"
सरकार भी चिंतित
जर्मनी में सरकार भी इस जरूरत को समझती दिखती है. इसलिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. मसलन, जून में संसद में एक कानून बनाने पर बात हो सकती है जिसमें सूचीबद्ध 70 बड़ी कंपनियों में, जहां बोर्ड में तीन या उससे ज्यादा सदस्यों का होना जरूरी है, उनमें कम से कम महिला का होना अनिवार्य किया जा सकता है. हालांकि आलोचक इससे बहुत संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि जिन कंपनियों के बोर्ड में दस लोग होंगे, वहां भी सिर्फ एक महिला का होना काफी होगा.
फ्री डेमोक्रैट सांसद बेटिन स्टार्क-वात्सिंगर कहती हैं, "कानूनों के बावजूद हाल के दशकों में सच ज्यादा नहीं बदल पाया है." दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में शामिल यूबीएस की यूरोप में अध्यक्ष क्रिस्टीन नोवाकोविच कहती हैं कि मुश्किलें सिर्फ कानून को लेकर नहीं हैं. वह कहती हैं, "दुर्भाग्य से, अब भी अक्सर ऐसा होता है कि महिलाएं परिवार और करियर में सामंजस्य नहीं बिठा पातीं."
महिलाओं को वेतन में गैरबराबरी भी यूरोप में जिन देशों में सबसे ज्यादा है, जर्मनी उनमें से एक है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि 2020 में यूनिक्रेडिट की जर्मनी में सीनियर एग्जिक्यूटिव को पुरुषों से 76 प्रतिशत कम वेतन मिला और यह बाकी दुनिया की शाखाओं से कम है. हालांकि बैंक का कहना है कि इस साल उसने यह अंतर काफी कम कर दिया है.
एक अन्य सांसद लीजा पॉज चाहती हैं कि बोर्ड में महिलाओं की उपस्थिति को लेकर सख्त कानून बनाया जाए. वह कहती हैं, "बैंकिंग क्षेत्र बड़े बदलावों से गुजर रहा है. इसमें ताजा हवा की जरूरत है और मैनेजमेंट में ज्यादा महिलाओं की भी."
वीके/एए (रॉयटर्स)
-रियाज़ सुहैल
बिजली कब आए और कब जाए. न इसका पता और न ही इंटरनेट का भरोसा की कब चलना बंद हो जाए. तमाम कठिनाइयों से जूझ कर भी राबिया नाज़ शेख़ रोज़ वीडियो बनाती और यूट्यूब के अपने फ़ैशन चैनल पर अपलोड करती हैं.
यूट्यूब राबिया के शौक़ के साथ उनकी आमदनी का ज़रिया है. पाकिस्तान में जहां बहुत से लोगों के लिए अपना घर बनवाना किसी सपने से कम नहीं है, वहीं राबिया इसी आमदनी से दो कमरों का घर बनवाने में कामयाब हो रही हैं.
रोज़गार के इस ज़रिए ने उनकी ज़िंदगी बदल दी है.
सिंध के ज़िले ख़ैरपुर के क़स्बे राहूजा की रहने वालीं 25 वर्षीय राबिया नाज़ ने एक साल पहले यूट्यूब पर 'फ़ैशन एडिक्शन' के नाम से एक चैनल बनाया. यह चैनल चल पड़ा और अब इस पर एक लाख 60 हज़ार से अधिक सब्सक्राइबर्स हो चुके हैं.
यहाँ तक कि यूट्यूब से उन्हें सिल्वर प्ले बटन भी मिल गया है.
राबिया नाज़ ने इंटर तक की पढ़ाई की है. उनका कहना है कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से पढ़ाई छोड़ी थी.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि उन्हें यूट्यूब का बहुत शौक़ था, वे बचपन से ही बड़े शौक़ से यूट्यूब पर वीडियो देखा करती थीं. पाकिस्तान में राबिया समेत बहुत से युवा गूगल को अपना गुरु मानते हैं.
ऐसे में राबिया को आइडिया आया कि क्यों न यूट्यूब पर वो अपना एक चैनल बनाएं और ऐसी चीज़ों से लोगों को अवगत कराया जाए जो उनके लिए दिलचस्प हों.
वे कहती हैं, "यूट्यूब पर वीडियो बनाने के लिए मैंने ज़्यादातर इंटरनेट से ही सीखा है. वहाँ पर सारी मदद और ट्रेनिंग उपलब्ध है. मेरे भाइयों ने मुझे वीडियो एडिटिंग सिखाई और बाक़ी सारा काम मैंने ख़ुद ही किया और अपना दिमाग़ लगाया."
राबिया नाज़ बताती हैं कि उन्होंने सिलाई सीखी थी और इंटरनेट से डिज़ाइन देखकर अपने और घरवालों के कपड़े बनाती थीं. इस सिलाई के शौक़ की वजह से उनका फ़ैशन इंडस्ट्री से संबंध बना और उन्होंने फ़ैशन चैनल शुरू किया.
फ़ैशन वीडियोज़ की तैयारी
राबिया नाज़ रोज़ाना एक वीडियो बनाती हैं. उनका कहना है कि वो अपने वीडियो की तैयारी से पहले जो फ़ैशन चैनल चल रहे हैं उनका काम देखती हैं कि वो क्या कर रहे हैं.
उसके बाद ये देखती हैं कि जो महिलाओं के कपड़ों के ब्रांड्स हैं वो किस तरह के डिज़ाइन दिखा रहे हैं, यानी कपड़ों में किस तरह की कटिंग है, उसके बाज़ू, उसके पाएंचे वग़ैरह किस स्टाइल में हैं और आजकल के फ़ैशन में क्या पसंद किया जा रहा है.
उन सब कामों के लिए किसी मशहूर फ़ैशन कंपनियों के पास हज़ारों लोग होते हैं लेकिन राबिया अपने चैनल के लिए 'वन मैन आर्मी' हैं.
वे कहती हैं कि 'पहले मैं विभिन्न वेबसाइट पर जाकर तस्वीरें डाउनलोड करती हूँ. उसके बाद स्क्रिप्ट लिखती हूँ कि क्या बोलना है. अगले चरण में मैं वॉयस ओवर करती हूँ.'
"इन तमाम चीज़ों को सॉफ्टवेयर की मदद से तस्वीर से जोड़ती हूँ और एडिटिंग करती हूँ. इस पूरे काम में दो से ढाई घंटे आराम से लग जाते हैं. फिर काम पूरा होने के बाद इस वीडियो को यूट्यूब पर अपलोड कर देती हूँ."
अपने चैनल के वीडियो बनाने के लिए राबिया नाज़ के पास एक आम स्मार्टफ़ोन है जो शायद आजकल हर किसी के पास मौजूद होता है.
उनके पास न अपना कंप्यूटर है और न ही कोई टेबल या कुर्सी. वो बस चारपाई पर बैठकर, दीवार से टेक लगाकर ये काम करती हैं.
'वीडियो डिलीट कर दें'
चैनल शुरू करने के बाद राबिया को मुश्किल वक़्त से गुज़रना पड़ा था और एक ऐसा वक़्त भी आया था जब वो अपने चैनल की कामयाबी को लेकर मायूस हो गई थीं. लेकिन फिर यूट्यूब पर उनकी एक दोस्त ने उनकी मदद की और एक नया रास्ता दिखाया.
राबिया नाज़ बताती हैं कि "शुरुआत में मैं वीडियोज़ में म्यूज़िक लगाती थी और जब तस्वीर लेती थी तो उन्हें जोड़कर उसमें म्यूज़िक लगा देती थी."
इसके कारण नाज़िया के व्यूअर्स तो हज़ारों में हो गए लेकिन उनका चैनल मोनेटाइज़ नहीं हो पा रहा था यानी उनके लिए पैसे नहीं बना पा रहा था जिसके कारण राबिया के अपने काम में दिलचस्पी कम होती चली जा रही थी.
लेकिन फिर यूट्यूब पर उनकी एक दोस्त ने बताया कि "जब तक वो वॉयस ओवर नहीं करेंगी, पैसे नहीं बनेंगे."
"ये सुनकर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि इतने समय से मैंने वीडियो बनाकर अपलोड किए लेकिन अब उन्हें डिलीट करने का मतलब यह था कि सारी मेहनत बेकार चली जाएगी."
वो कहती हैं, "लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी तमाम वीडियो डिलीट करके दोबारा से वॉयस ओवर करके नए वीडियो डाले. इस पूरे काम के बाद वीडियो की मदद से मोनेटाइज़ यानी आमदनी हासिल करने में पूरा साल लग गया."
यूट्यूब की आमदनी से हैरान हैं लोग
राबिया नाज़ जब यूट्यूब पर अपना चैनल बेहतर बनाने की कोशिशों में लगी हुई थीं उस वक़्त दुनिया में कोरोना वायरस फैल चुका था और दफ़्तर बंद हो चुके थे. राबिया बताती हैं कि उन्हें कोविड की वजह से बड़ी कठिनाइयां पेश आईं.
"जब यूट्यूब किसी का चैनल मोनेटाइज़ करता है तो डाक के ज़रिए एक कोड भेजता है जिसकी मदद से रक़म मिलती है. मेरा वो कोड नहीं आ रहा था. हमने स्थानीय डाक घर के कई चक्कर लगाए लेकिन वो कोड हमारे पास नहीं आया. इसके बाद मैंने यूट्यूब के पास मदद के लिए ईमेल किया तो उन्होंने मेरे पहचान पत्र को स्वीकार करते हुए मेरे लिए रक़म जारी की."
यूट्यूब से पहचान साबित होने के बाद अगली चुनौती बैंक अकाउंट की थी और यह भी आसान नहीं था.
राबिया नाज़ के मुताबिक़ जब वो अपने इलाक़े की तहसील हेडक्वॉर्टर पीर जो गोठ में एक निजी बैंक में अपना अकाउंट खुलवाने पहुँचीं तो बैंक मैनेजर ने उनसे इसकी वजह जानी.
जब राबिया ने उन्हें बताया कि उनके पास बाहर से पैसे आएंगे और यूट्यूब पैसे भेजेगा तो बैंक मैनेजर आश्चर्य में पड़ गए. उन्होंने राबिया से कहा कि यूट्यूब से कैसे आमदनी मुमकिन है और उन्होंने कभी नहीं सुना कि यूट्यूब पैसे भी देता है.
राबिया ने मैनेजर को कहा कि "आप बस अकाउंट खोलें, पैसे आ जाएंगे और जब पैसे आ गए तो उन्हें बहुत हैरानी हुई."
राबिया नाज़ ने यूट्यूब की कमाई से दो कमरों का घर बनाया है
'40 से 50 हज़ार रुपये महीना आमदनी'
राबिया नाज़ बताती हैं कि उन्हें अपने चैनल से महीने में 40 से 50 हज़ार रुपये की आमदनी हो जाती है जिसकी मदद से उन्होंने अपने लिए दो कमरों का घर बनवाया है जिसमें अभी निर्माण कार्य जारी है और छत और दीवारें खड़ी हो चुकी हैं.
राबिया के मुताबिक़, उनकी ख़्वाहिश थी कि उनका अपना घर हो और वे अपने गाँव की पहली लड़की हैं जिन्होंने अपना घर ख़ुद बनवाया है.
राबिया नाज़ संयुक्त परिवार में रहती हैं. उनके साथ उनके चाचा और ख़ानदान के और लोग भी शामिल हैं.
राबिया बताती हैं कि उनके इलाक़े में अधिकतर महिलाएँ अनपढ़ हैं या कुछ सिर्फ़ कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं जिसमें से कुछ पढ़ाती हैं लेकिन अधिकतर महिलाओं को यूट्यूब के बारे में अधिक पता नहीं है.
"मेरी हमउम्र दोस्तों को जब मैंने बताया कि इस तरह यूट्यूब चैनल बनाया है और मुझे आमदनी होती है तो उन्हें यक़ीन नहीं आया कि कोई गाँव में घर में बैठकर ऐसे पैसे कमा सकता है."
घर में बिजली की आपूर्ति बेहतर बनी रहे इसके लिए राबिया ने अब बैटरी की अतिरिक्त व्यवस्था की है
बिजली और इंटरनेट
पाकिस्तान के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इंटरनेट तक पहुँच रखने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 6 करोड़ से कुछ अधिक है और डेटा पोर्टल डॉट कॉम के मुताबिक़ जनवरी 2021 तक उनमें से साढ़े तीन करोड़ उपभोक्ता यूट्यूब इस्तेमाल कर रहे हैं.
पाकिस्तान स्थित टेलीकॉम कंपनियों की ओर से 3जी और 4जी तकनीक के दावे किए जा रहे हैं लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में छह से आठ घंटे बिजली गुल ही रहती है.
राबिया नाज़ का कहना है कि बिजली और इंटरनेट का कोई भरोसा ही नहीं है और उनके गाँव में कभी बिजली नहीं रहती है या कभी इंटरनेट नहीं चलता है.
वो रात को मोबाइल चार्ज करने के बाद वीडियो बना लेती हैं और जैसे ही इंटरनेट चलने लगता है और स्पीड बेहतर होती है तो वो अपने वीडियो को अपलोड कर देती हैं.
इंटरनेट सर्फ़िंग और वीडियो की तैयारी के अलावा घर के कामकाज भी उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल हैं.
वे कहती हैं कि "लड़कियों को कभी घर का काम माफ़ नहीं होता, चाहे वो शादीशुदा हों या फिर ग़ैर-शादीशुदा."
"ये छूट लड़कों के लिए है कि अगर कमाकर आ रहा है तो बिठाकर खिलाओ. लड़कियों के मामले में ऐसा नहीं होता कि वो बैठकर खाएं. उन्हें अपने हिस्से का काम करना होता है और मैं भी अपनी उन ज़िम्मेदारियों के बाद ही वीडियोज़ बनाती हूँ." (bbc.com)
सऊदी अरब ने सभी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों की आवाज का स्तर तय कर दिया है. सोशल मीडिया पर इसका विरोध हो रहा है लेकिन देश के इस्लामी मामलों के मंत्री ने इस कदम का समर्थन किया है.
इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने पिछले सप्ताह मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से संबंधित नए नियम जारी किए थे. नए नियमों के तहत स्पीकरों को उनकी अधिकतम आवाज के एक तिहाई स्तर पर रखने के निर्देश दिए गए हैं. यह भी निर्देश दिए गए हैं कि लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल ही सिर्फ नमाज की अजान देने के लिए किया जाए, ना कि पूरी तकरीर के प्रसारण के लिए. इन नियमों के खिलाफ सोशल मीडिया पर काफी आक्रोश देखा जा रहा है लेकिन सरकार कदम का समर्थन कर रही है.
इस्लामी मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ अल-शेख ने अब इन नए आदेशों का समर्थन करते हुए कहा है कि यह आदेश ज्यादा शोर को ले कर हुई शिकायतों के बाद जारी किए गए थे. उन्होंने बताया कि कई नागरिकों ने शिकायत की थी कि तेज आवाज की वजह से बच्चों और बुजुर्गों को परेशानी हो रही थी. सरकारी टीवी चैनल द्वारा जारी किए गए एक वीडियो में शेख ने कहा, "जिन्हें नमाज पढ़नी है उन्हें इमाम के बुलावे का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. उन्हें नमाज से पहले ही मस्जिद पहुंच जाना चाहिए."
उन्होंने यह भी कहा कि कई टीवी चैनल भी नमाज और कुरान की तकरीरों का प्रसारण करते हैं. उन्होंने संकेत दिया कि लाउडस्पीकरों का उद्देश्य वैसे भी सीमित हो गया है. कई लोगों ने इन कदमों का स्वागत किया है लेकिन सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. रेस्तरां और कैफे में भी ऊंचे स्वर में संगीत बजाने पर बैन की मांग करने वाला एक हैशटैग लोकप्रिय होने लगा.
उदारीकरण की राह पर
शेख कहते हैं कि इस नीति की आलोचना "राज्य के दुश्मनों" द्वारा फैलाई जा रही है जो "जनता को उत्तेजित करना चाहते हैं." यह नीति असल में देश पर शासन कर रहे शहजादे मोहम्मद बिन सलमान के उदारीकरण की विस्तृत मुहिम के बाद आई है. शहजादे की मुहिम ने खुलेपन के एक नए युग के साथ साथ एक और अभियान चलाया है जिसे धर्म पर जोर कम करने के रूप में देखा जा रहा है. युवा शहजादे ने अपने अति-रूढ़िवादी साम्राज्य में सामाजिक प्रतिबंधों को कम किया है.
उन्होंने दशकों से लागू फिल्मों पर और महिलाओं के गाड़ी चलाने पर बैन को हटाया है और पुरुषों और महिलाओं को एक साथ संगीत और खेलों के कार्यक्रमों में भाग लेने की अनुमति दी है. कई नागरिकों ने इन नए कदमों का स्वागत किया है जबकि अति-रूढ़िवादी इनसे नाराज हुए हैं. स्वागत करने वालों में 30 वर्ष से भी कम उम्र के नौजवान हैं जो देश की आबादी का दो-तिहाई हिस्सा हैं. इन कदमों के अलावा देश की धार्मिक पुलिस की शक्तियां भी कम की गई हैं.
इस पुलिस बल के कर्मियों का कभी देश में व्यापक खौफ था, क्योंकि यह पुरुषों और महिलाओं को नमाज पढ़ने के लिए मॉलों से बाहर खदेड़ने और विपरीत लिंग वाले किसी भी व्यक्ति के साथ घुलने-मिलने वाले व्यक्ति को फटकारने जैसे काम भी किया करते थे. शहजादे सलमान ने एक "नरम" सऊदी अरब बनाने का वादा किया है. इस कड़ी में वो देश की कट्टर छवि को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन साथ ही असहमति की आवाज उठाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी कर रहे हैं.
पिछले तीन सालों में सऊदी में दर्जनों एक्टिविस्ट, मौलवियों, पत्रकार और यहां तक की शाही परिवार के सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया है.
सीके/एए (एएफपी)
कोरोना महामारी के दौरान जब जलवायु कार्यक्रम ऑनलाइन होने लगे तो कई कार्यकर्ता खराब इंटरनेट की वजह से शामिल नहीं हो पा रहे हैं. खराब इंटरनेट जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए समस्या पैदा कर रहा है.
जाम्बिया की जलवायु प्रचारक प्रीशियस कलोम्बवाना अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ ऑनलाइन ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर उत्साहित थीं. लेकिन जब उनकी बोलने की बारी आई तो खराब इंटरनेट के कारण उनकी आवाज और लोगों तक नहीं पहुंच पाई. कोरोना महामारी के कारण आयोजन वर्चुअल तरीके से हो रहे हैं. इनमें यूएन की जलवायु वार्ता भी शामिल है, जो सोमवार, 31 मई से शुरू हुई. जलवायु कार्यकर्ता और विशेषज्ञों के लिए इस तरह के आयोजनों में डिजिटल रूप से शामिल होना आसान हो गया है, लेकिन दुनिया भर में कई ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो कहते हैं विश्वसनीय कनेक्टिविटी के बिना उनकी आवाज कहीं गायब हो जाती है.
27 साल की कलोम्बवाना के लिए अल गोर के साथ कार्यक्रम निराशाजनक अनुभव था. वह कहती हैं, "जब आप कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं और बोलना चाहते हैं, और ऐसा नहीं हो पाता है तो यह बहुत तनावपूर्ण होता है." कलोम्बवाना, सामुदायिक विकास के लिए नागरिक नेटवर्क जाम्बिया के लिए काम करती हैं, नेटवर्क जलवायु कार्रवाई के लिए एक गैर-लाभकारी अभियान चलाता है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने उन्होंने फोन पर कहा, "मैं उन बैठकों में भाग लेना चाहूंगी क्योंकि एक जलवायु कार्यकर्ता के रूप में मेरे लिए वह बहुत महत्वपूर्ण है. मैं उन बैठकों में लोगों के साथ विचार साझा कर सकती हूं. अगर मैं उन बैठकों में शामिल नहीं हो पाती हूं तो बहुत निराश होती हूं."
कोविड-19 से पहले जलवायु परिवर्तन पर होने वाले आयोजनों में शामिल होने के लिए भी कलोम्बवाना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. कठिन वीजा व्यवस्था, लंबी यात्राएं और महंगे हवाई किराए से कई बार ऐसा संभव नहीं हो पाता था लेकिन आयोजन डिजिटल रूप से होने लगे तो यह आसान हुआ. डिजिटल आयोजन में सिर्फ लॉग इन करने की जरूरत होती है. लेकिन इस बदलाव ने डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है. खासकर गरीब क्षेत्रों और विकासशील देशों में रहने वाले जलवायु कार्यकर्ता अक्सर सबसे खराब कनेक्टिविटी से जूझते हैं.
बहुत से लोग इंटरनेट के लिए अपने कार्यालय पर निर्भर हैं लेकिन महामारी के कारण वे वहां जा नहीं सकते हैं. जबकि अन्य लोगों को अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इंटरनेट शटडाउन का सामना करना पड़ता है. म्यांमार जैसे देश में तो लोग खराब गुणवत्ता वाले मोबाइल फोन डेटा तक सीमित हैं. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में जलवायु प्रभावों पर वरिष्ठ सलाहकार हरजीत सिंह कहते हैं, "यह अनुचित परिणामों की ओर ले जाने वाला है और यह देशों के बीच मौजूद शक्ति असमानताओं को सुदृढ़ करने वाला और साथ ही विरोध की आवाज को बंद करने वाला है."
ऑफलाइन समर्थन
सम्मेलन के प्रारूपों में बदलाव के अलावा, कार्यक्रम के आयोजक आर्थिक तौर पर कार्यकर्ताओं की मदद डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए कर सकते हैं. कुछ संगठन इंटरनेट डेटा के लिए अनुदान भी देते हैं. यही नहीं कुछ ऐसे संगठन भी हैं जो कार्यकर्ताओं के अच्छे होटल में रहने और वहां से काम करने का खर्च उठाते हैं, जिससे पर्यावरण कार्यकर्ताओं को ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने में कोई दिक्कत ना हो. सिंह कहते हैं नेपाल में संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यालय ने उन कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया है जिनकी इंटरनेट के अच्छे कनेक्शन तक पहुंच नहीं हैं. ऐसे कार्यकर्ता कार्यालय में जाकर पर्यावरण से जुड़े सम्मेलनों में ऑनलाइन शामिल हो सकते हैं.
सिंह कहते हैं कि यूएन के कार्यक्रम गंभीर विषयों पर होते हैं और ऐसे में लोग घर के माहौल में रहते हुए उन आयोजन में शामिल होना एक मुश्किल कार्य मानते हैं. वे कहते हैं, "आपको उस विषय पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है जिसका मतलब है कि आप घर वाले माहौल में कतई नहीं हो सकते हैं."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
इसराइल ने पिछले दिनों ग़ज़ा पर हमले के दौरान एक ऐसी इमारत पर हमला किया था, जहाँ मीडिया के दफ़्तर थे. इसराइली सेना प्रमुख ने उस हमले के बारे में कुछ बातें कही हैं, लेकिन इसराइल के रक्षा मंत्री ने इससे अपने आपको अलग कर लिया है.
ये हमला 15 मई को हुआ था, जिसमें इसराइल ने एक हवाई हमला कर एक बहुमंज़िला इमारत को ध्वस्त कर दिया था. इस इमारत में समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस और अल-जज़ीरा मीडिया समूह समेत अन्य विदेश न्यूज़ चैनलों के दफ़्तर थे.
इस हमले की व्यापक निंदा हुई थी.अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने भी तब ट्वीट कर कहा था कि उसने 'सीधे तौर पर इसराइल से कहा है कि सभी पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया की सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी अहम ज़िम्मेदारी है'.
लेकिन समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इसराइली सेना प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल अवीव कोशावी ने इस सप्ताहांत छपे एक लेख में लिखा है कि "इमारत को गिराना जायज़" था और उन्हें "रत्ती भर अफ़सोस" नहीं है.
चैनल 12 न्यूज़ की वेबसाइट पर छपे लेख में दावा किया गया है कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास जाला टावर की कई मंज़िलों का इस्तेमाल "इलेक्ट्रॉनिक युद्ध" में करता था, जिनसे वो इसराइली वायुसेना के जीपीएस संपर्क को बाधित करना चाहता था.
लेख में ये भी कहा गया है कि जनरल कोशावी ने "एक विदेशी सूत्र" को बताया कि एपी के पत्रकार हर सुबह इमारत के प्रवेश पर बने कैफ़ेटेरिया में हमास के इलेक्ट्रॉनिक्स जानकारों के साथ कॉफ़ी पीते थे, हालाँकि ये नहीं मालूम कि उनको इसकी जानकारी थी या नहीं.
इसराइल के एक वरिष्ठ खोजी पत्रकार ने इस लेख का ज़िक्र करते हुए ट्वीट किया है कि "इसराइली सेना प्रमुख ने कहा कि इमारत को गिराना एक सही फ़ैसला था और अगर ज़रूरत पड़ती तो वो फिर से उसपर फिर हमला करते."
एपी के अनुसार इस बारे में सोमवार को इसराइल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सैन्य प्रमुख केवल हालात की बात कर रहे थे.
इसराइली रक्षा मंत्री ने विदेशी पत्रकारों से कहा, "सैन्य प्रमुख जब इस बारे में कह रहे थे तो वो बस माहौल को समझाना चाह रहे थे, असल पहलुओं को नहीं बता रहे थे."
हालाँकि रक्षा मंत्री ने फिर आरोप लगाया कि "उस इमारत में मौजूद दफ़्तरों में हमास के ठिकाने थे जहाँ से वो काम करते थे."
एपी पत्रकारों के हमास के लोगों से बात करने के बयान के बारे में पूछे जाने पर रक्षा मंत्री ने कहा, "सैन्य प्रमुख ने बस ऐसी मुलाक़ातों की संभावनाओं के बारे में कहा था जहाँ हमास आम नागरिकों में मिल कर आम लोगों की इमारतों का सैन्य मक़सद से इस्तेमाल करता है."
मीडिया दफ़्तरों पर हमला
इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथियों के बीच पिछले महीने 11 दिन तक ज़बरदस्त संघर्ष हुआ था, जिसमें फ़लस्तीनी गुट हमास इसराइली इलाक़ों पर रॉकेट हमले करता था और इसराइल अपने सैन्य विमानों से ग़ज़ा में निशाने लगाता था.
इसी दौरान 15 मई को इसराइली सेना ने ग़ज़ा पट्टी में जाला टावर नाम की एक इमारत पर हमला कर उसे गिरा दिया था.
इसराइली सेना ने हमले से पहले इमारत के लोगों को वहाँ से हटने के लिए केवल एक घंटे का नोटिस दिया था.
हमले में इमारत ज़मींदोज़ हो गई थी, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ था.
एपी ने कहा है कि उन्हें इमारत में हमास के होने की कोई जानकारी नहीं थी. उसने इस घटना की स्वतंत्र जाँच कराए जाने की माँग की है और इसराइल से आग्रह किया है कि वो इस बारे में उसके पास उपलब्ध ख़ुफ़िया जानकारी को सार्वजनिक करे.
इसराइली रक्षा मंत्री ने कहा है कि उन्होंने ये जानकारियाँ अमेरिका सरकार के साथ साझा की हैं.
लेकिन उन्होंने ऐसा संकेत दिया कि इसराइल का इस जानकारी को सार्वजनिक करने का कोई इरादा नहीं है.
हमले के बाद अल-जज़ीरा ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया था. संगठन के कार्यवाहक महानिदेशक डॉक्टर मुस्तफ़ा स्वेग ने तब कहा, "ग़ज़ा में मौजूद अल-जाला टावर पर हमला करना, जिसमें अल जज़ीरा और दूसरे मीडिया संस्थानों के दफ्तर थे, मानवाधिकारों का उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे युद्ध अपराध माना जाता है."
अल जज़ीरा ने तब एक बयान जारी कर कहा था कि इसराइल सरकार के इस क़दम का मक़सद मीडिया संस्थानों को ख़ामोश करना और ग़ज़ा में जो हो रहा है, उसे दुनिया के सामने न आने देना है. (bbc.com)
दुनियाभर के परमाणु कार्यक्रमों की निगरानी करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईएईए ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ईरान में कई ऐसी जगहों पर यूरेनियम के संकेत मिले हैं, जिनके बारे में उसने दुनिया को नहीं बताया है.
तीन महीने पहले ही ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिका की उस योजना को खारिज कर दिया था जिसमें आईएईए के बोर्ड द्वारा ईरान की अपने परमाणु कार्यक्रम पर पारदर्शिता न बरतने के कारण निंदा किए जाने का प्रस्ताव था. आईएईए के प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने एक रिपोर्ट में कहा है, "कई महीने बीत जाने पर भी ईरान ने यह नहीं बताया है कि उन तीन जगहों पर नाभिकीय पार्टिकल कहां से आए, जहां एजेंसी ने अनिवार्य परीक्षण किए थे.”
आईएईए के इस खुलासे के बाद यूरोपीय देशों के सामने एक उलझन खड़ी हो सकती है कि वे अमेरिका के ईरान की निंदा के प्रस्ताव का समर्थन करें या न करें, जो असल में 2015 में ईरान के साथ हुई परमाणु संधि को नुकसान पहुंचा सकता है. ईरान परमाणु संधि पर फिलहाल विएना में बातचीत चल रही है. ग्रोसी ने हालांकि उम्मीद जताई है कि अगले हफ्ते बोर्ड की मुलाकात से पहले हालात बदल जाएंगे.
क्या है रिपोर्ट?
उनकी रिपोर्ट कहती है कि आईएईए के ‘महानिदेशक इस बात को लेकर नाखुश हैं कि एजेंसी और ईरान के बीच चल रही तकनीकी बातचीत के अपेक्षित नतीजे नहीं निकले हैं.' रिपोर्ट कहती है, "ईरान की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में उद्घोषणाओं से संबंधित एजेंसी के सवालों के जवाब देने में प्रगति ना होने का असर उसके परमाणु कार्यक्रम के असैनिक होने का आश्वासन देने की आईएईए की क्षमता पर पर पड़ता है.”
सदस्य देशों को भेजी गई एजेंसी की एक अन्य त्रैमासिक रिपोर्ट में एजेंसी ने ये संकेत दिए हैं कि नतांज में धमाके और बिजली कटने से ईरान के यूरेनियम संवर्धन को खासा नुकसान पहुंचा है. इस धमाके के लिए ईराने इस्राएल को जिम्मेदार बताया है. आईएईए के मुताबिक अगस्त 2019 के बाद से ईरान के संवर्धित यूरेनियम के भंडार का स्तर सबसे कम रहा है.
अगस्त में यह भंडार 273 किलोग्राम था जो अब 3,241 किलोग्राम होने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि आईएईए के मुताबिक ईरान के असहयोग के कारण इसे सत्यापित नहीं किया जा सका. परमाणु समझौते के तहत 202.8 किलोग्राम की सीमा तय की गई है जिससे यह मात्रा कहीं ज्यादा है. हालांकि ईरान ने अपने संग्रह को छह टन से कम रखने का वादा किया था.
नतांजमें नुकसान
नतांज में ईरान का भूमिगत यूरेनियम संवर्धन प्लांट है. आईएईए ने 24 मई को इस बात की पुष्टि की थी कि वहां अलग-अलग तरह के सेंट्रिफ्यूग्स के 20 समूहों में यूरेनियम हेक्साफ्लोराइरड संवर्धन के लिए जमा किया जा रहा है. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक धमाके से पहले यह संख्या 35 से 37 के बीच थी. 2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था और उसके खिलाफ नए प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके जवाब ईरान ने भी समझौता तोड़कर 2019 में अपनी परमाणु गतिविधियां फिर से शुरू कर दी थीं.
समझौते के उल्लंघन की सबसे ताजा घटनाओं में यूरेनियम संवर्द्धन का स्तर 20 से बढ़ाकर 60 प्रतिशत तक ले जाना शामिल है, जो हथियार बनाने की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है. समझौते में यह स्तर 3.67 प्रतिशत पर रखना तय किया गया था. ईरान के इन उल्लंघनों के चलते अमेरिका समेत कई देशों ने नाराजगी जताई है.
वीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स, एपी)
यूरोप के नेताओं ने इस खुलासे पर प्रतिक्रिया दी है कि डेनमार्क की जासूसी एजेंसी ने अमेरिका की नेशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी (एनएसए) के जासूसी अभियानों में सहयोग किया था जिसमें मैर्केल का मोबाइल टैप करना भी शामिल था.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने सोमवार को कहा कि उन्हें इस खुलासे के बारे में स्पष्टीकरण की उम्मीद है कि डेनिश डिफेंस इंटेलिजेंस सर्विस (एफई) ने यूरोपीय नेताओं की जासूसी करने में अमेरिका की मदद की थी. यूरोपीय समाचार संस्थान और प्रसारकों की पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि डेनमार्क की खुफिया एजेंसी ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की 2012 और 2014 के बीच जर्मनी, फ्रांस और अन्य देशों के शीर्ष राजनेताओं की जासूसी करने में मदद की थी. उस वक्त जो बाइडेन अमेरिका के उप राष्ट्रपति थे. माक्रों ने मैर्केल के साथ बैठक के बाद डेनिश अधिकारियों द्वारा इस कार्रवाई की निंदा की, जर्मन चांसलर ने सहमति जाहिर की कि वॉशिंगटन और कोपेनहेगन से जवाब जरूरी है.
माक्रों और मैर्केल ने क्या कहा?
माक्रों ने कहा, "यह सहयोगियों के बीच स्वीकार्य नहीं है और यूरोपीय भागीदारों और सहयोगियों के बीच भी स्वीकार्य नहीं है." फ्रांस के राष्ट्रपति ने यूरोप और अमेरिका के बीच अच्छे संबंधों के अहमियत पर जोर दिया, लेकिन उन्होंने साथ ही रेखांकित किया, "संदेह की कोई जगह नहीं होनी चाहिए." उन्होंने कहा कि वे डेनिश और अमेरिकी सहयोगियों से "पूर्ण सफाई" का इंतजार कर रहे हैं. मैर्केल ने कहा कि वह माक्रों की भावनाओं से "केवल सहमत" हो सकती हैं.
हालांकि, चांसलर ने थोड़ा नरम स्वर अपनाया. उन्होंने कहा कि वह डेनमार्क की वर्तमान रक्षा मंत्री ट्राइन ब्रैमसेन की टिप्पणी से "आश्वस्त" हैं. उन्होंने कहा, "इस संबंध में, मैं न केवल मामले के समाधान के लिए, बल्कि वास्तव में विश्वसनीय संबंधों को बनाए रखने के लिए बेहतर आधार देखती हूं."
ब्रैमसन, जासूसी की अवधि के दौरान पद पर नहीं थीं. उन्होंने इन रिपोर्टों की पुष्टि नहीं की है और केवल करीबी सहयोगियों की जासूसी को "अस्वीकार्य" कार्य के रूप में निंदा की है. डेनमार्क के समाचार प्रसारक डीआर के मुताबिक ब्रैमसेन को एफई की कार्रवाइयों के बारे में 2020 के आखिर में बताया गया था. कुछ ही समय बाद, शीर्ष खुफिया अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया, हालांकि उस समय कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया था.
दूसरे देशों की प्रतिक्रिया?
डेनमार्क के स्कैंडिनेवियाई पड़ोसी देशों ने भी इस खुलासे पर जवाब मांगा है कि डेनिश खुफिया एजेंसी की मदद से एनएसए ने नॉर्वे और स्वीडन के नेताओं की भी जासूसी की थी. नॉर्वे की प्रधानमंत्री एरना सोलबर्ग ने समाचार प्रसारक एनआरके से कहा, "यह अस्वीकार्य है अगर उन देशों का घनिष्ठ साझीदार एक दूसरे की जासूसी करने की जरूरत महसूस करते हैं." स्वीडन के रक्षा मंत्री पीटर हकविस्ट ने कहा कि वह चाहते हैं कि चीजें स्पष्ट हों. उन्होंने कहा कि सहयोगियों की जासूसी मंजूर नहीं है.
एनएसए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन ने भी स्पष्टीकरण की मांग की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "न केवल डेनमार्क से बल्कि उसके वरिष्ठ साथी से भी पूर्ण सार्वजनिक खुलासे की स्पष्ट आवश्यकता होनी चाहिए."
एए/वीके (एएफपी, डीपीए)
हाल में एक जनगणना में पता चला कि चीन में जन्मदर कम हो रही है तो चीन की सरकार ने शादीशुदा जोड़ों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी है. दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश अब आबादी को सामरिक महत्व दे रहा है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
किसी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में वहां के लोगों की उम्र का बड़ा योगदान होता है. मिसाल के तौर पर जिस देश के नागरिकों की औसत आयु 20 से 40 के बीच है उन देशों में न सिर्फ संसाधनों की खपत ज्यादा होगी बल्कि अर्थव्यवस्था के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर युवाओं का दखल भी ज्यादा होगा. स्वाभाविक है कि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और आबादी जैसे सभी मोर्चों पर यही वर्ग सबसे सक्रिय रहता है. यही वजह है कि दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत 2050 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभर सकता है.
लेकिन इस मामले में चीन पिछड़ता दिख रहा है. मई 2021 में चीन ने अपने सातवें राष्ट्रीय जनसंख्या सेंसस की रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में लगातार चौथे साल बच्चों की जन्मदर में कमी आई है. यह भी कहा गया है कि 2020 में 60 साल से ऊपर के लोगों की संख्या 26.4 करोड़ रही है जो कुल जनसंख्या का 18.7 प्रतिशत है. 2025 तक यह आंकड़ा 30 करोड़ को पार कर जाएगा.
सिर्फ एक तिहाई युवाओं से कैसे चलेगा काम
आंकड़ों और अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वालों की मानें तो 2050 तक चीन की जनसंख्या का 60 प्रतिशत हिस्सा 60 साल की उम्र पार कर चुका होगा. यह साधारण बात नहीं है. अगर लगभग दो तिहाई जनसंख्या रिटायरमेंट की उमर को छुएगी तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, भारी उद्योगों और रक्षा क्षेत्र में काम कैसे चलेगा. यह 60 प्रतिशत जनता स्वास्थ्य सुविधाओं और इंश्योरेंस जैसे मसलों पर भी थोड़ी कमजोर पड़ सकती है. इन सभी अटकलों और प्रोजेक्शनों ने चीन के नीति निर्धारकों को चिंता में डाल दिया है. जानकार मानते हैं कि देश के सबसे बड़े व्यापारिक केंद्र शंघाई में तो यह समस्या पहले ही घर कर चुकी है. आंकड़ों के अनुसार 2021 में ही युवाओं की संख्या आधे से कम हो चुकी है.
दूरगामी परिदृश्य में देखा जाय तो साफ है कि चीन की युवा पीढ़ी जो आज सबसे सक्रिय है और शायद राष्ट्रपति शी जीनपिंग की आक्रामक नीतियों की बुनियाद में भी बसी है, वही पीढ़ी जब रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ी होगी तो उसके राजनीतिक और सामाजिक नतीजे भी बड़े होंगे. इन नतीजों की चिंताओं ने चीन के नीतिनिर्धारकों की रातों की नीदें उड़ा रखी है. यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के भविष्य से भी जुड़ा है. दुनिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियों, चीन और अमेरिका दोनों के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि धीरे धीरे यह साफ हो चला है कि आने वाले समय में इन देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई पहले से कहीं अधिक कड़वी और तेज रफ्तार हो जाएगी.
चीन और अमेरिका के बीच आबादी का सवाल
चीन की अमेरिका से बढ़ती प्रतिद्वंदिता किसी से छुपी नहीं है. पिछले कुछ सालों में चीन अमेरिका से खुलकर प्रतिस्पर्धा करने की राह पर चल रहा है. इस सदी के दूसरे दशक से यह चलन शुरू हुआ. ओबामा के समय तो इस प्रतिस्पर्धा को कुछ तक अच्छा और सकारात्मक भी आंका गया. लेकिन शी जीनपिंग के चीन के राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन के व्यवहार में दृढ़ता और आक्रामकता दोनों ही पहलुओं में असाधारण परिवर्तन देखने को मिले हैं. चीन की बदलती नीतियों से अमेरिका की आशंकायें बहुत बढ़ी हैं और आज अमेरिका भी चीन को अपने वर्चस्व के लिए दूरगामी खतरा मानने लगा है. चीन के इस नए सेंसस से अमेरिका और पश्चिम की चिंताएं कुछ कम तो हुई होंगी. खास तौर पर इसलिए भी कि पश्चिम के मुकाबले चीन में काम करने की आयु के लोग 2050 तक काफी कम होंगे. बहरहाल, अब जब कि इस बात में कोई शक नहीं है कि चीन का इस मुकाम पर पहुंचना तय ही था तो तीन बड़े सवाल सामने आते हैं.
पहला यह कि चीन यहां पहुँचा कैसे? इस सवाल का जवाब पाना कठिन नहीं है. 1978 में जब डेंग शियाओपिंग चीन की सरकार के मुखिया थे तब उन्होंने देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश रखने के लिए यह नियम लागू कर दिया कि देश में दंपत्तियों को एक से अधिक बच्चा पैदा करने की इजाजत नहीं होगी. इस व्यवस्था में एक छूट यह जरूर थी कि गांवों और छोटे कस्बों में रहने वाले वे दंपत्ति जिनकी पहली संतान लड़की हो, उन्हें एक और बच्चा पैदा करने की इजाजत थी. अल्पसंख्यक समुदायों को भी कई छूटें दी गई थी. वैसे तो इस व्यवस्था को पूरे देश में लागू करने में कई साल लगे लेकिन धीरे-धीरे चीन के लोगों ने इस नीति को अपने जीवन में उतार लिया.
चीन के लिए आबादी बढ़ाने की चुनौतियां
बरसों से चली आई यह परंपरा आसानी से जाने वाली नहीं है. यह लाजमी भी है. आंकड़ों के अनुसार 2020 में चीनी बच्चों की पैदाइश के आंकड़ों में 15 प्रतिशत की कमी आयी है. 2021 के सेंसस के आंकड़े यह भी कहते हैं कि 2000-2010 के दशक में जनसंख्या वृद्धि की जो दर 0.57 प्रतिशत थी, वह पिछले दशक में घट कर 0.53 प्रतिशत हो गयी है. एक बच्चे के होने से दंपत्तियों पर सामाजिक और आर्थिक बोझ तो कम हुआ ही है. रिहाईशी इलाकों में बढ़ती महंगाई, महंगे घर, तेजी से सुधरे जीवन स्तर और नतीजतन बढ़े खर्चों और महंगी शिक्षा ने एक आम चीनी की कमर तोड़ रखी है. विदेश में पढ़ने के मामले में चीनी विद्यार्थियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. अमेरिका हो या ऑस्ट्रेलिया, कनाडा हो या मलेशिया हर जगह चीनी विद्यार्थी विदेशी कोटे में सबसे ऊपर हैं.
बढ़ती महंगाई के कई नुकसानों में एक बड़ा नुकसान है चीन में मजदूरों और कर्मचारियों के भत्ते और वेतन में बढ़ोत्तरी और नतीजतन कंपनियों की सस्ती मजदूरी ढूंढने की कवायद. कंबोडिया और वियतनाम में चीनी फैक्टरियों के लगने के पीछे सस्ती मजदूरी एक बड़ा कारक है. ऐसे में चीन के सामने एक उपाय यही है कि अपनी मैनुफैक्चरिंग और तमाम उद्यमों में आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करे. चीन कब तक ऐसा करने में सक्षम हो सकेगा यह तो वक्त ही बताएगा.
जहां तक दूसरे और इस परिस्थिति से चीन के बाहर निकल सकने की संभावनाओं का सवाल है तो यहां साफ करना जरूरी है कि चीन की ये चिंताएं नई नहीं हैं. चीन ने 2015 में ही वन चाइल्ड नीति को निरस्त कर दो बच्चों की नीति लागू कर दी थी. इस परिवर्तन के पिछले सालों में बहुत सकारात्मक परिणाम नहीं आए हैं. लोग दो बच्चे पैदा करें इसके लिए कई तरह की योजनायें चलाई जा रही हैं, लेकिन लगता है जापानी समाज की तरह चीनी जनता भी एक बच्चे की नीति से संतुष्ट है और दंपत्तियों को दो बच्चे पैदा करना अनावश्यक लग रहा है. जब दो बच्चे पैदा करना अनावश्यक लग रहा है तो क्या वे तीन बच्चों के लिए तैयार होंगे? फिलहाल तो लगता यही है कि चीन के लिए इस परिस्थिति से निपटना मुश्किल होगा. (dw.com)
अतीत के कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जो बार बार हमारे वर्तमान के सामने आकर खड़े हो जाते हैं. ऐसा ही एक हिस्सा है नामीबिया में सौ साल पहले कम से कम 70 हजार लोगों का कत्लेआम, जिनके खून के छींटे जर्मनी के दामन पर हैं.
जर्मनी ने माना है कि उसने नामीबिया में उसके औपनिवेशिक शासन के दौरान जनसंहार हुआ था. इसके साथ ही जर्मनी ने नामीबिया को एक अरब यूरो देने का वादा किया जिसके जरिए जनसंहार पीड़ितों के वशंजों की मदद की जाएगी. नामीबिया ने इसका स्वागत करते हुए इसे "पहला कदम" बताया है. लेकिन कई सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि क्या वित्तीय मदद से वे जख्म भर सकते हैं जो एक सदी से भी ज्यादा समय से रिस रहे हैं.
नामीबिया अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से में है जो 1884 से 1915 तक जर्मनी का गुलाम रहा. इस दौरान जर्मन अधिकारियों ने जो जुल्म वहां के लोगों पर ढाए, उनकी वजह से दशकों तक जर्मनी और नामीबिया के रिश्ते खराब रहे. नामीबिया में जर्मन शासन की बागडोर संभाल रहे अधिकारियों ने 1904 से 1908 के बीच स्थानीय हरेरो और नामा कबीलों के दसियों हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इतिहासकार इसे बीसवीं सदी का पहला जनसंहार कहते हैं.
रक्त रंजित इतिहास
जर्मन उपनिवेश के दौरान नामीबिया को जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका कहा जाता था. जर्मनी का शासन खत्म होने के बाद उस पर 75 साल तक दक्षिण अफ्रीका का नियंत्रण रहा और 1990 में वह आखिरकार एक स्वतंत्र देश बना.
नामीबिया में जर्मन औपनिवेशिक शासन के दौरान तनाव की शुरुआत 1904 में हुई, जब स्थानीय हरेरो कबीले के लोगों को मवेशियों और जमीन से वंचित कर दिया गया. यही नहीं, उनकी स्त्रियों को भी चुराया गया. फिर उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ खड़े होने का फैसला किया. उनके लड़ाकों ने चंद दिनों के भीतर 123 जर्मन लोगों की जान ले ली. कुछ समय बाद नामा लोग भी इस बगावत में शामिल हो गए.
अक्टूबर 1904 में इस बगावत को कुचलने के लिए बर्लिन से जर्मन जनरल लोथार फॉन ट्रोथा को भेजा गया जिसने हरेरो लोगों के खिलाफ "समूल विनाश आदेश" पर हस्ताक्षर किए. उसने कहा, "जर्मन सीमाओं के भीतर जो भी हरेरो व्यक्ति है, चाहे उसके पास बंदूक हो या ना हो, मवेशी हो या नहीं हो, उसे गोली मार कर मौत के घाट उतारा जाएगा."
अत्याचार
अगस्त 1904 में वाटरबर्ग की लड़ाई में लगभग 80 हजार हरेरो बोत्सवाना की तरफ भाग खड़े हुए. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. जर्मन सैनिकों ने कालाहारी रेगिस्तान के दूसरे छोर तक उनका पीछा किया. इनमें से सिर्फ 15 हजार लोग ही बच पाए थे.
माना जाता है कि 1904 से 1908 के बीच कम से कम 60 हजार हरेरो और 10 हजार नामा लोगों को कत्ल किया गया. औपनिवेशिक सैनिकों ने बड़े पैमाने पर लोगों को फांसी पर लटकाया, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रेगिस्तान में धकेल दिया, जहां हजारों लोग प्यास से ही मर गए. नाजी जनसंहार से दशकों पहले नामीबिया में यातना शिविर बनाए गए, जहां लोगों को मौत के घाट उतारा गया.
सैकड़ों हरेरो और नामा लोगों की मौत के बाद उनके सिर काटे गए और उनकी खोपड़ियां बर्लिन में रिसर्चरों को दी गईं, जो काले लोगों पर गोरे लोगों की नस्लीय सर्वोच्चता साबित करने के लिए तथाकथित "प्रयोग" कर रहे थे. 1924 में जर्मनी के एक म्यूजियम में इनमें से कुछ हड्डियां एक अमेरिकी संग्रहकर्ता को भी बेची थीं जिसने बाद में उन्हें न्यूयॉर्क के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम को दान कर दिया था. बीसवीं सदी की शुरुआत में नामीबिया की आबादी में हरेरो लोगों की हिस्सेदार 40 प्रतिशत थी. आज वे देश की आबादी में सात प्रतिशत से भी कम हैं.
माफी
जर्मनी के इतिहास का यह ऐसा काला अध्याय है जिसके बारे में आम जर्मनों को ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन अब जर्मन सरकार ने अपने इस अतीत को स्वीकारा है. बीते पांच साल से जर्मनी और नामीबिया के बीच 1884 से 1915 तक की घटनाओं को लेकर वार्ता चल रही थी.
पिछले दिनों जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा, "हम अब आधिकारिक रूप से इन घटनाओं को आज के नजरिए से जनसंहार कहेंगे." उन्होंने कहा, "जर्मनी की ऐतिहासिक और नैतिक जिम्मेदारी की रोशनी में, हम इन अत्याचारों के लिए नामीबिया और पीड़ितों के वंशजों से माफी चाहते हैं."
नामीबिया के लिए आर्थिक मदद का ऐलान करते हुए जर्मन विदेश मंत्री ने कहा, "पीड़ितों को होने वाली असीम पीड़ा को देखते हुए" जर्मनी 1.1 अरब यूरो के वित्तीय कार्यक्रम के जरिए नामीबिया के "पुनर्निर्माण और विकास" में सहयोग करेगा. सूत्रों का कहना है कि यह राशि तीस वर्षों के दौरान दी जाएगी और इससे हरेरो और नामा लोगों के वशंजों को फायदा होगा. हालांकि मास ने कहा कि इस राशि से किसी तरह के "मुआवजे के लिए कानूनी आग्रह" का रास्ता नहीं खुलेगा.
समझौते पर आपत्तियां
नामीबिया के राष्ट्रपति हागे गाइनगोब के प्रवक्ता ने जर्मनी की तरफ से आधिकारिक तौर पर जनसंहार को स्वीकार किए जाने को "सही दिशा में पहला कदम बताया है." उन्होंने कहा, "यह दूसरे कदम का आधार बनेगा जो माफी है और उसके बाद आता है मुआवजा."
दोनों देशों के बीच हुए समझौते को अभी जर्मनी और नामीबिया की संसद से मंजूरी हासिल करनी होगी. लेकिन दोनों ही देशों के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इसमें प्रत्यक्ष तौर पर मुआवजे की बात शामिल ना होने की आलोचना कर रहे हैं.
जर्मनी में "बर्लिन पोस्टकोलोनियल" नाम की एक पहल का कहना है कि यह समझौता "नाकाम होगा" और इसका "उस कागज के बराबर भी मूल्य नहीं है जिस पर यह दर्ज है." इस समूह का कहना है कि दोनों देशों की वार्ता में हरेरो और नामा लोगों से पर्याप्त सलाह मशविरा नहीं किया गया. नामीबिया में कुछ हरेरो नेताओं ने भी समझौते पर अपनी आपत्ति जताई है.
एके/एमजे (एएफपी)
सऊदी अरब प्रशासन ने मस्जिदों के लाउडस्पीकर की आवाज़ को लेकर लगाये गए प्रतिबंधों का बचाव किया है.
सऊदी अरब में इस्लामिक मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ़ अल-शेख ने पिछले सप्ताह इन प्रतिबंधों की घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज़ को ‘अधिकतम आवाज़ के एक तिहाई से ज़्यादा’ नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा था कि लोगों से लगातार मिल रहीं शिक़ायतों के बाद यह निर्णय लिया गया है.
लेकिन सऊदी अरब के रूढ़िवादी मुसलमान सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर इसके ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है.
ये लोग कह रहे हैं कि रेस्त्रां, कैफ़े और बाज़ारों में बजने वाले तेज़ आवाज़ संगीत पर भी फिर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. इससे संबंधित हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं.
अब्दुल लतीफ़ अल-शेख ने यह दलील थी कि “उन्हें ऐसी भी शिक़ायतें मिलीं जिनमें कुछ अभिभावकों ने लिखा कि लाउडस्पीकर की तेज़ आवाज़ से उनके बच्चों की नींद ख़राब होती है.”
सरकारी टीवी पर दिखाये गए एक बयान में शेख ने कहा कि जिन लोगों को नमाज़ पढ़नी है, वो वैसे भी अज़ान (इमाम की अपील) का इंतज़ार नहीं करते.
शेख ने यह भी कहा कि जो लोग सरकार के निर्णय की आलोचना कर रहे हैं, वो ‘सऊदी किंगडम के दुश्मन’ हैं और उन्होंने दावा किया कि ‘आलोचक लोगों को भड़काना चाहते हैं.’
सरकार ने यह प्रतिबंध ऐसे दौर में लगाया है जब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब को एक उदार देश बनाने का प्रसाय कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि सामान्य जन-जीवन में धर्म की भूमिका सीमित रहे.
पिछले दिनों ही सऊदी अरब में महिलाओं के कार चलाने पर से प्रतिबंध हटाया गया था जिसे एक बड़ा बदलाव माना गया था.
इस दौरान सऊदी अरब में कुछ सामाजिक प्रतिबंधों को भी हटाया गया है. हालांकि, उनके आलोचक कहते हैं कि उनके प्रशासन में बोलने की आज़ादी कम हुई है और सरकार के सैकड़ों आलोचकों को या तो गिफ़्तार किया गया है, या उन्हें क़ैद में डाल दिया गया है. (bbc.com)
वॉशिंगटन, 1 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.05 करोड़ हो गए है। इस महामारी से अब तक कुल 35.4 लाख लोगों की मौत हुई हैं। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में कोरोना वायरस मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 170,580,362 और 3,546,731 थी।
उररए के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,264,380 और 594,568 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,047,534 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार, 30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (16,545,554), फ्रांस (5,728,788), तुर्की (5,249,404), रूस (5,013,512), यूके (4,503,224), इटली (4,217,821), अर्जेंटीना (3,781,784), जर्मनी (3,689,921) , स्पेन (3,678,390) और कोलंबिया (3,406,456) हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 462,791 संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (329,100), मैक्सिको (223,507), यूके (128,044), इटली (126,128), रूस (119,464) और फ्रांस (109,690) से मरने वालों की संख्या 100,000 से ज्यादा हैं। (आईएएनएस)
ब्रुसेल्स, 1 जून | यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उसुर्ला वॉन डेर लेयेन ने 2021 की पार्टनरिंग फॉर ग्रीन ग्रोथ और ग्लोबल गोल्स 2030 (पी4जी) सियोल शिखर सम्मेलन में सोमवार को एक वीडियो लिंक के माध्यम से कहा कि यूरोप जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में नेतृत्व लेने की जिम्मेदारी के लिए तैयार है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक,शिखर सम्मेलन में वॉन डेर लेयेन ने कहा कि यूरोप नेतृत्व करने और जलवायु कार्रवाई पर अपने विचारों और रणनीतियों को साझा करने के लिए तैयार है।
उन्होंने यूरोपीय ग्रीन डील की रूपरेखा तैयार की, जो 2050 के लिए कार्बन तटस्थता की दिशा में लक्ष्य को निर्धारित करती है, जिसमें 1990 के स्तर की तुलना में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55 प्रतिशत की कटौती करने का विवरण है।
वॉन डेर लेयेन ने आगे कहा, "यद्यपि हमारा लक्ष्य 30 साल की दूरी पर है, लेकिन रेस की शुरूआत अभी से होती है। 2020 का के इस दशक में हमें आर या पार का रास्ता तय करना है।"
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने इस वैश्विक लड़ाई में एकजुटता पर जोर दिया और इस तथ्य को रेखांकित किया कि सभी देशों को इस दिशा में निवेश करते रहना चाहिए कि हमारा भविष्य हरा—भरा हो।
पी4जी 12 देशों, पांच संगठनों और छह निवेश और नॉलेज पार्टनर्स का एक नेटवर्क है, जो संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों और हरित विकास के लिए प्रतिबद्ध है।(आईएएनएस)
जिनेवा, 1 जून | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषणा की है कि घातक कोविड-19 रूपों को ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों से जाना जाएगा, यह कहते हुए कि यह उन देशों को कलंकित करने से बचने में मदद करेगा जहां वे पहली बार दिखाई दिए हैं। डीपीए समाचार एजेंसी ने सोमवार को डब्ल्यूएचओ के हवाले से बताया कि स्वास्थ्य संगठन द्वारा बुलाई गई विशेषज्ञों के एक समूह ने नई लेबलिंग की सिफारिश की, जो "गैर-वैज्ञानिक दर्शकों द्वारा चर्चा (होना) के लिए आसान और अधिक व्यावहारिक होगी ।"
संगठन ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 के आनुवंशिक वंश के नामकरण और ट्रैकिंग के लिए मौजूदा सिस्टम, वायरस जो कोविड -19 का कारण बनता है वो वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक अनुसंधान में उपयोग में रहेगा।
अब तक, डब्ल्यूएचओ ने चिंता के चार प्रकारों की पहचान की है।
सबसे पहले ब्रिटेन में पाया जाने वाला अल्फा के रूप में जाना जाएगा, दक्षिण अफ्रीका में सबसे पहले पाया जाने वाला बीटा होगा और ब्राजील में सबसे पहले पहचाना जाने वाला गामा होगा।
चार में से सबसे नया, जिसे पहली बार भारत में खोजा गया था और 11 मई को कंसर्न के रूप में नामित किया गया था को डेल्टा के रूप में जाना जाएगा।
लेबलिंग की घोषणा तब हुई जब डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ट्रेडोस एडनॉम घेब्येयियस ने चेतावनी दी कि कोरोनोवायरस महामारी खत्म हो गई है क्योंकि उन्होंने समूह की वार्षिक बैठक को बंद कर दिया था, इस साल बीमारी के कारण ऑनलाइन चले गए।
उन्होंने कहा, "वास्तविकता यह है कि इस महामारी को समाप्त करने के लिए हमें अभी भी बहुत काम करना है। हम बहुत प्रोत्साहित हैं कि वैश्विक स्तर पर मामलों और मौतों में गिरावट जारी है, लेकिन किसी भी देश के लिए यह सोचना एक बड़ी गलती होगी कि खतरा टल गया है।"
उन्होंने महामारी शुरू होने के बाद से आम उपयोग में आने वाली सावधानियों के महत्व पर जोर दिया: सामाजिक-भेद, हाथ धोना, चेहरे पर मास्क पहनना और टीकों का उचित वितरण सुनिश्चित करना।
डब्ल्यूएचओ ने इस तथ्य की आलोचना की है कि अमीर देशों ने बड़ी मात्रा में मुश्किल से मिलने वाले टीके खरीदे हैं, और पहले से ही युवा और स्वस्थ लोगों को टीका लगा रहे हैं, जबकि गरीब देशों में स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों और विशेष रूप से जोखिम वाले लोगों के लिए भी पर्याप्त शॉट नहीं हैं।
ट्रेडोस ने कहा, "एक दिन - उम्मीद है कि जल्द ही - महामारी खत्म होगी।" लेकिन मनोवैज्ञानिक निशान उन लोगों के लिए बने रहेंगे जिन्होंने प्रियजनों को खो दिया है, स्वास्थ्य कार्यकर्ता जिन्हें ब्रेकिंग पॉइंट से आगे बढ़ाया गया है और सभी उम्र के लाखों लोगों ने महीनों अकेलेपन और अलगाव का सामना किया है।
सत्र में उपस्थित लोग एक महामारी संधि पर काम शुरू करने के लिए नवंबर में मिलने के लिए भी सहमत हुए, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगली बार महामारी फैलने पर दुनिया बेहतर तरीके से तैयार हो। एक फोकस अगले स्वास्थ्य संकट में बेहतर सहयोग सुनिश्चित करना होगा। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 31 मई| बांग्लादेश पुलिस ने गिरफ्तार आतंकवादी संगठन हेफाजत-ए-इस्लाम के नेता मामुनुल हक के बैंक खाते से 6 करोड़ टाका का लेन-देन पाया है और दान दिए गए धन के उपयोग की जांच कर रही है। अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि ऐसे धन का उपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
हेफाजत ने रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता के नाम पर, मदरसों के विकास और उनके छात्रों के कल्याण के लिए और अपने स्वयं के फंड के लिए ज्यादातर प्रवासियों से बड़ी मात्रा में दान एकत्र किया था। पुलिस अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि इस धन का अधिकांश हिस्सा आतंकवाद पर और मामुनुल के निजी काम में खर्च किया है।
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के संयुक्त आयुक्त, जासूसी शाखा, महबूब आलम ने कहा कि कानून लागू करने वालों ने इन फंडों के उपयोग में विसंगतियां पाईं।
हेफाजत के पूर्व वित्त सचिव मोनिर हुसैन काशमी द्वारा किए गए लेन-देन में भी विसंगतियां थीं।
आलम ने कहा, "पुलिस एजेंसियां बहुत जल्द अदालत में आरोप दायर करेंगी.. सभी की जांच चल रही है, लेकिन हम अभी तक राशि का पता नहीं लगा सके हैं।"
मामुनुल, जिसे 18 अप्रैल को राजधानी के मोहम्मदपुर में जामिया रहमानिया अरब मदरसा से गिरफ्तार किया गया था, मार्च में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की दो यात्राओं के दौरान देशभर में हुई हिंसा के संबंध में और कुछ पहले के मामलों में, उसने स्वीकार किया था कि उसके एक के साथ संबंध थे पाकिस्तान आतंकवादी समूह और तालिबान राज्य की स्थापना के लिए शेख हसीना सरकार को हटाने की कोशिश कर रहा था।
मामुनुल का पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी संगठन के साथ संबंध था। वह 2005 में पाकिस्तान गया और वहां 40 दिनों तक रहा। उसने संगठन से उग्रवाद का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वह कट्टरपंथी विचारधारा के साथ देश लौटा और हमारे देश में हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया। इसके अलावा, उसने सरकार को बेदखल करने की साजिश रची। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि मामुनुल अपने बहनोई नियामत उल्लाह की मदद से पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया था।
पुलिस ने कहा कि ममुनुल, जो अपने घृणास्पद भाषण और धार्मिक सभाओं और सोशल मीडिया पर हिंसक उपदेशों के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों के बीच प्रसिद्ध है, ने आतंकवादियों के प्रजनन स्थल, कौमी मदरसों के छात्रों का उपयोग करके राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए हेफाजत का इस्तेमाल किया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 मई | डोमिनिका की एक अदालत में भी भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी के मामले की सुनवाई बुधवार को होनी है। उसे 26 मई को कैरिबियाई द्वीप राष्ट्र से पकड़े जाने के बाद एंटीगुआ और बारबुडा के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन ने दावा किया है कि हो सकता है कि चोकसी पकड़े जाने से पहले अपनी प्रेमिका को रोमांटिक ट्रिप पर डोमिनिका ले गया हो। एंटीगुआ न्यूज रून के मुताबिक, ब्राउन ने कथित तौर पर एक स्थानीय रेडियो स्टेशन को बताया, "मेहुल चोकसी ने गलती की और हमें जो जानकारी मिल रही है, वह यह है कि चोकसी ने अपनी प्रेमिका के साथ यात्रा की थी, लेकिन वह डोमिनिका में पकड़ा गया था और अब उसे वापस भारत भेजा जा सकता है।"
चोकसी, जो निवेश कार्यक्रम द्वारा 2017 में नागरिकता लेने के बाद 2018 से एंटीगुआ और बारबुडा में रह रहा है, कथित तौर पर 26 मई को पकड़े जाने से पहले 23 मई को डोमिनिका भाग गया था।
आशंका जताई जा रही है कि चोकसी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डिनर पर जा रहा था, तभी उसे पकड़ा गया।
डोमिनिकन की एक अदालत ने चोकसी के वकीलों द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को 2 जून तक के लिए उसके निर्वासन पर रोक लगा दी थी।
उनके वकील विजय अग्रवाल ने आईएएनएस को पहले बताया था कि चोकसी को एंटीगुआ से एक जहाज में चढ़ने के लिए मजबूर किया गया और उसे डोमिनिका ले जाया गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि चोकसी के शरीर पर बल प्रयोग के निशान थे।
उन्होंने कहा, "कुछ गड़बड़ है और मुझे लगता है कि उसे दूसरी जगह ले जाने की रणनीति थी, ताकि उसे भारत वापस भेजने की संभावना हो। इसलिए मुझे नहीं पता कि कौन सी ताकतें काम कर रही हैं। समय सब बताएगा।"
हालांकि, एंटीगुआ के पुलिस आयुक्त एटली रॉडने ने चोकसी के वकील के दावों को खारिज करते हुए कहा था कि उन्हें चोकसी को जबरन हटाए जाने की कोई सूचना नहीं है।(आईएएनएस)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि चीन उनके और न्यूजीलैंड के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहा है. दोनों देशों ने चीन में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर एकजुटता दिखाई है.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच हुई सालाना बातचीत में चीन सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. दोनों देशों के बीच चीन के साथ निपटने के मुद्दे को लेकर मतभेद उबरने के बाद तनाव पैदा हो गया था. हालांकि ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर आईं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने कहा कि वह वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में चीन के खिलाफ कार्रवाई में ऑस्ट्रेलिया का साथ देंगी.
जब पत्रकारों ने न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या उनका देश चीन के नजदीक जा रहा है, तो आर्डर्न ने कहा, "हमारी बातचीत के दौरान किसी भी वक्त हमारे इस रुख में फर्क नजर नहीं कि व्यापार और मानवाधिकारों के मुद्दे पर एक उसूलन मजबूत रवैया होना चाहिए. मोटा-मोटी हम इन मुद्दों पर लगभग एक ही जगह खड़े हैं."
चीन पर मतभेद खुलेआम नहीं
चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी के लिए "फाइव आइज अलायंस" का इस्तेमाल करने को लेकर न्यूजीलैंड ने पहले ही झिझक जाहिर कर दी थी. फाइव आइज अलायंस पांच अंग्रेजी भाषी देशों अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का एक गठबंधन है जो सूचनाएं एक दूसरे से साझा करते हैं. अप्रैल में न्यूजीलैंड ने कहा था कि वह इस गठबंधन के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं है और एक स्वतंत्र एजेंसी को प्रयोग करने के हक में है.
न्यूजीलैंड के इस रुख को चीन के सरकारी मीडिया ने नरम बताते हुए सराहा था. इस बारे में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में चीन का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ हैं जो दोनों देशों के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम दोनों के बीच मतभेद पैदा करके कुछ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सुरक्षा को नकुसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे जबकि मतभेद नहीं हैं. वे जो यहां से बहुत दूर हैं, हमें बांटने की कोशिश करेंगे. वे कामयाब नहीं होंगे."
दोनों नेताओं ने मीडिया के सामने एकजुटता दिखाई और खासकर कोविड-19 की उत्पत्ति की जांच के मसले पर चीन पर दबाव बढ़ाने की बात कही. उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ को सूचनाएं उपलब्ध कराने को लेकर चीन पर दबाव बनाए जाना वे जारी रखेंगे. मॉरिसन ने कहा कि इस जांच का अंतरराष्ट्रीय राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और इस महामारी की जड़ तक पहुंचना इसलिए जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसा ना हो.
इसके अलावा व्यापार के मामले पर भी दोनों ने एक दूसरे का पक्ष लिया. पिछले हफ्ते ही न्यूजीलैंड ने कहा था कि वह डब्ल्यूटीओ में चीन के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया की कार्रवाई में शामिल होगा. ऑस्ट्रेलिया ने जौ के आयात पर चीन के कर बढ़ाने के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में अपील कर रखी है.मानवाधिकार उल्लंघन पर चिंता
न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के नेता करीब 15 महीने बाद मिल रहे थे. हालांकि दोनों ही देशों के लिए चीन एक अहम देश है क्योंकि दोनों का वह सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. लेकिन मानवाधिकारों के मामले पर मॉरिसन और आर्डर्न ने चीन को आड़े हाथों लिया. हांग कांग के अलावा चीन के शिनजियांग प्रांत में भी मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर दोनों ने चिंता जताई.
एक साझा बयान में दोनों नेताओं ने चीन से उइगुर और अन्य मुस्लिम समुदायों के मानवाधिकारों के सम्मान का आग्रह किया. उन्होंने शिनजियांग इलाके में संयुक्त राष्ट्र और अन्य स्वतंत्र एजेंसियों को बेरोकटोक आने-जाने की इजाजत देने की भी मागं उठाई. चीन शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों के किसी तरह के उत्पीड़न को नकारता रहा है जबकि कई मीडिया और मानवाधिकार रिपोर्ट्स में ऐसी बात कही गई है कि हजारों उइगुर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को हिरासत कैंपों में रखा गया है. चीन ने हाल के महीनों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कड़े व्यापारिक फैसले लिए हैं. जौ, वाइन और बीफ जैसे कई ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों के आयात पर चीन ने कड़ी पाबंदियां लगा दी हैं. जौ के मामले पर तो विश्व व्यापार संगठन दोनों देश आमने सामने हैं.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)
इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. वहाँ एक नई गठबंधन सरकार बनने की संभावना और मज़बूत हो गई है जिसके बाद नेतन्याहू ने चेतावनी दी है कि ऐसा हुआ तो यह 'देश की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक' होगा.
उन्होंने यह चेतावनी एक महत्वपूर्ण दक्षिणपंथी नेता नेफ़्टाली बेनेट के प्रस्तावित गठबंधन में शामिल होने के एलान के बाद दी है.
बेनेट को किंगमेकर माना जाता है. उनकी यामिना पार्टी के गठबंधन में शामिल होने से नेतन्याहू की 12 साल से जारी सत्ता का अंत हो सकता है.
71 वर्षीय नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेता हैं और इसराइल की राजनीति में एक पूरे दौर में उनका दबदबा रहा है.
मगर रिश्वत खोरी और धाँधली के आरोपों का सामना कर रहे नेतन्याहू की लिकुड पार्टी मार्च में हुए आम चुनाव में बहुमत नहीं जुटा पाई और चुनाव के बाद भी वो सहयोगियों का समर्थन नहीं हासिल कर सके.
दो साल में चार बार चुनाव, फिर भी स्थिर सरकार नहीं
इसराइल में पिछले दो सालों से लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी है और दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं. इसके बावजूद वहाँ स्थिर सरकार नहीं बन पाई है और न ही नेतन्याहू बहुमत साबित कर पाए हैं.
अभी वहाँ एक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश हो रही है. नेतन्याहू के बहुमत साबित नहीं करने के बाद चुनाव में दूसरे नंबर पर रही पार्टी येश एतिड को सरकार बनाने का मौक़ा दिया गया है.
मध्यमार्गी पार्टी के नेता और पूर्व वित्त मंत्री येर लेपिड को बुधवार 2 जून तक बहुमत साबित करना है.
नेतन्याहू की चेतावनी: वामपंथी सरकार न बनाएं
इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने नेफ़्टाली बेनेट के विपक्षी गठबंधन में जाने के एलान के कुछ ही समय बाद गठबंधन सरकार बनाने को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि इससे इसराइल की 'सुरक्षा पर ख़तरा' होगा.
नेतन्याहू ने कहा, "वामपंथी सरकार मत बनाएँ. ऐसी कोई भी सरकार इसराइल की सुरक्षा और भविष्य के लिए ख़तरा होगी."
उन्होंने कहा, "वो इसराइल की रक्षा के लिए क्या करेंगे? हम हमारे दुश्मनों से आँखें कैसे मिलाएँगे? वो ईरान में क्या करेंगे, ग़ज़ा में क्या करेंगे? वो वाशिंगटन में क्या कहेंगे?"
उन्होंने दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट पर "लोगों को गुमराह करने" का आरोप लगाते हुए कहा कि यह "सदी का सबसे बड़ा छल" है.
नेतन्याहू का इशारा बेनेट के पिछले बयानों की ओर था जिसमें उन्होंने लोगों से वादा किया था कि वो लेपिड के साथ जुड़ी ताक़तों के साथ नहीं जाएँगे.
नेतन्याहू की पार्टी ने शनिवार को बेनेट और एक अन्य पार्टी के सामने बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनने का एक प्रस्ताव रखा था मगर वो नामंज़ूर हो गया. इसके बाद उन्होंने रविवार को दोबारा यह प्रस्ताव रखा.
इसराइली मीडिया में ख़बर आई थी कि इसके तहत पहले नेतन्याहू की जगह बेनेट को और उनके बाद लेपिड को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की गई थी.
विपक्ष की सरकार बनाने की कोशिश
नेतन्याहू के बहुमत नहीं साबित करने के बाद येर लेपिड को सरकार बनाने के लिए 28 दिनों का समय दिया गया था लेकिन ग़ज़ा में संघर्ष की वजह से इसपर असर पड़ा. उनकी एक संभावित सहयोगी अरब इस्लामिस्ट राम पार्टी ने गठबंधन के लिए जारी बातचीत से ख़ुद को अलग कर लिया.
फ़लस्तीनी चरमपंथी गुट हमास और इसराइल के बीच 11 दिनों तक चली लड़ाई के दौरान इसराइल के भीतर भी यहूदियों और वहाँ बसे अरबों के बीच संघर्ष हुआ था.
इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है.ऐसे में छोटे दलों की अहमियत बढ़ जाती है जिनकी बदौलत बड़ी पार्टियाँ सरकार बनाने के आँकड़े को हासिल कर पाती हैं.
जैसे अभी 120 सीटों वाली इसराइली संसद में नेफ़्टाली बेनेट की पार्टी के केवल छह सांसद हैं मगर विपक्ष को स्पष्ट बहुमत दिलाने में वो अहम भूमिका निभा सकते हैं.
बेनेट ने अपनी पार्टी की एक बैठक के बाद कहा, "नेतन्याहू एक दक्षिणपंथी सरकार बनाने की कोशिश नहीं कर रहे क्योंकि उन्हें पता है कि ऐसा नहीं हो सकता."
उन्होंने कहा,"मैं चाहता हूँ कि मैं अपने दोस्त येर लेपिड के साथ एक राष्ट्रीय सरकार बनाने के लिए प्रयास करूँ ताकि हम दोनों मिलकर देश को वापस सही रास्ते पर लौटा सकें."
बेनेट ने कहा कि यह फ़ैसला इसलिए ज़रूरी है ताकि देश में दो साल के भीतर पाँचवाँ चुनाव करवाने की नौबत न आए.
इसराइल में नए गठबंठन में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी पार्टियाँ साथ आ जाएंगी. इन सभी दलों में राजनीतिक तौर पर बहुत कम समानता है मगर इन सबका मक़सद नेतन्याहू के शासन का अंत करना है. (bbc.com)
लंदन, 31 मई | विश्व टेस्ट टीम रैंकिंग में दूसरे स्थान पर काबिज न्यूजीलैंड बुधवार से यहां लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ शुरू होने वाले दो मैचों की टेस्ट सीरीज के पहले मैच में जीत दर्ज करके इस मैदान पर अपना खराब रिकॉर्ड सुधारना चाहेगा। इंग्लैंड की टीम अपने मुख्य खिलाड़ियों-बेन स्टोक्स, जोफ्रा आर्चर (दोनों चोट के कारण), जोस बटलर, क्रिस वोक्स, मोइन अली, सैम कुरेन और जॉनी बेयरस्टो (इंडियन प्रीमियर लीग के बाद सभी को आराम दिया गया) के बिना ही पहले टेस्ट मैच में उतरेगी। इन खिलाड़ियों को दूसरे टेस्ट में मौका दिया जा सकता है।
इंग्लैंड में 90 साल के क्रिकेट इतिहास में न्यूजीलैंड ने लॉर्डस के मैदान पर अब तक 17 टेस्ट मैच खेले हैं और उनमें से उसे अब तक केवल एक ही मैच में जीत मिली है। यह एकमात्र जीत उसे स्टीफन फलेमिंग की कप्तानी में 1999 में मिली थी। कीवी टीम को लॉर्डस के इस मैदान पर अब आठ मैचों में हार का सामना करना पड़ा है जबकि आठ मैच ड्रॉ रहे हैं।
न्यूजीलैंड के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में शामिल टिम साउदी और रॉस टेलर का इंग्लैंड का यह चौथा दौरा है, लेकिन वे लॉर्डस में अब तक एक जीत का हिस्सा नहीं बन पाए हैं। न्यूजीलैंड की टीम को साथ ही एजबेस्टन और बमिर्ंघम में भी एक भी जीत नहीं मिली है, जहां उसे इंग्लैंड के साथ दूसरा टेस्ट मैच खेलना है।
इंग्लैंड ने जहां एक तरफ अपने मुख्य खिलाड़ियों को आराम दिया है, तो वह न्यूजीलैंड को भी नए गेंद के साथ गेंदबाजी करने वाली गेंदबाज की कमी खलेगी क्योंकि ट्रेंट बाउल्ट ने आईपीएल से लौटने के बाद न्यूजीलैंड में अपने परिवार के साथ समय बिताने का फैसला किया है। हालांकि बाउल्ट की गैर मौजूदगी के बावजूद न्यूजीलैंड टीम के पास गेंदबाजी में काफी विकल्प है।
कप्तान केन विलियम्सन विश्व टेस्ट क्रिकेट में नंबर 1 बल्लेबाज हैं, जबकि गेंदबाजों की लिस्ट में तेज गेंदबाज नील वेगनर तीसरे और टिम साउदी छठे नंबर पर है। तेज गेंदबाज काइल जेमिसन अपने करियर के शुरूआती छह टेस्ट मैचों में 36 विकेट चटका चुके हैं और वह यहां भी कहर बरपाने के लिए तैयार हैं।
न्यूजीलैंड ने इंग्लैंड में अब तक 54 टेस्ट मैच खेले हैं, जिसमें से उसने केवल पांच में जीत दर्ज की है जबकि 30 मैचों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। वहीं, दोनों टीमों के बीच 19 मैच ड्रॉ रहे हैं।
टीम (संभावित)
इंग्लैंड : जो रूट (कप्तान), जेम्स एंडरसन, जेम्स ब्रेसी, स्टुअर्ट ब्रॉड, रोरी बर्न्स, जैक क्रॉले, हसीब हमीद, सैम बिलिंग्स, डैन लॉरेंस, जैक लीच, क्रेग ओवर्टन, ओली पोप, ओली रॉबिन्सन, डोम सिबली, ओली स्टोन, मार्क वुड।
न्यूजीलैंड : केन विलियमसन (कप्तान), टॉम ब्लंडेल, डग ब्रेसवेल, डेवन कॉनवे, कॉलिन डी ग्रैंडहोम, जैकब डफी, मैट हेनरी, काइल जैमिसन, रॉस टेलर, नील वेगनर, हेनरी निकोल्स, एजाज पटेल, रचिन रवींद्र, मिशेल सेंटनर, टिम साउदी, बीजे वाटलिंग (विकेटकीपर), विल यंग, टॉम लाथम, डेरिल मिशेल। (आईएएनएस)
काबुल, 31 मई अफगानिस्तान के दो प्रांतों में कम से कम 16 तालिबान आतंकवादी मारे गए और आठ अन्य गिरफ्तार किए गए। देश के रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को इसकी पुष्टि की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक बयान में मंत्रालय के हवाले से कहा है कि रविवार रात प्रांतीय राजधानी कुंदुज शहर के बाहरी इलाके कोश तपा गांव में अफगान नेशनल आर्मी कमांडो द्वारा इनके एक ठिकाने पर छापेमारी की गई, जिसके बाद कुंदुज प्रांत में पांच लोगों को तालिबान के चंगुल से छुड़ाया गया।
बयान में आगे कहा गया, "सेना के कमांडो फोर्स ने आधीरात को तालिबान के एक ठिकाने पर छापेमारी की। ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों पर कई दफा फायरिंग की गई। अपनी आत्मरक्षा के लिए इन्होंने भी जवाबी कार्रवाई की। इस मुठभेड़ में 12 आतंकी ढेर कर दिए गए और आठ अन्यों को गिरफ्तार कर लिया गया।"
छुड़ाए गए लोगों सहित गिरफ्तार हुए आतंकियों को सेना के एक शिविर में ले जाया गया है।
बयान में आगे जानकारी दी गई कि तालिबान के ठिकाने को नष्ट कर दिया गया और वहां रखे हथियार और गोला-बारूद भी बरामद कर लिए गए।
रविवार को हेलमंद प्रांत के अशांत नाद अली जिले में स्थित चाह-ए-अंगिर नामक एक इलाके में अफगान वायु सेना द्वारा तालिबान के ठिकानों पर बमबारी के बाद चार आतंकवादी मारे गए और दो घायल हो गए।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा यह घोषित किए जाने कि अमेरिकी सैनिक लगभग 20 सालों के बाद 11 सितंबर, 2021 तक देश से हटा दिए जाएंगे, के बाद से तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों, जिलों, सैनिक शिविरों और चौकियों पर हमले तेज कर दिए हैं। (आईएएनएस)|
ढाका, 31 मई | पुलिस ने कहा कि बांग्लादेशी लड़की से सामूहिक बलात्कार और प्रताड़ना के आरोप में बेंगलुरु में गिरफ्तार किए गए रिफातुल इस्लाम हृदयोय ने दक्षिण पश्चिमी बांग्लादेश और कई भारतीय राज्यों के कुछ अपराधियों के साथ मिलकर एक अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी गिरोह बनाया था। आरोपी द्वारा बनाया गया आपराधिक गिरोह, जिसे 'टिकटॉक हरिदॉय बाबू' के नाम से भी जाना जाता है, उसका नेटवर्क भारत के साथ साथ मध्य पूर्व के कुछ अन्य देशों में है, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल है।
पुलिस ने कहा कि उनके कुछ होटलों के साथ अनुबंध हैं, जो समझौते के अनुसार लड़कियों की आपूर्ति करते हैं।
पुलिस ने यह भी कहा कि समूह द्वारा स्कूल और कॉलेज के छात्रों के साथ साथ गृहिणियों को भी निशाना बनाया गया और उनकी तस्करी की गई।
ढाका के हातीरझील पुलिस स्टेशन में मानव तस्करी और अश्लीलता नियंत्रण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
इसमें शामिल लोगों को भारत से वापस लाने के लिए पुलिस मुख्यालय के माध्यम से संपर्क किया जा रहा है।
गिरफ्तार संदिग्धों पर भारत में भी मुकदमा चलाया गया है।
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस (तेजगांव डिवीजन) के उपायुक्त (डीसी) मोहम्मद शाहिदुल्ला ने रविवार रात आईएएनएस को बताया कि चूंकि वे बांग्लादेशी हैं, इसलिए उन्हें वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
"हम भारत की पुलिस टीम के संपर्क में हैं ताकि अन्य लोगों को गिरफ्तार किया जा सके, जो तस्करी रैकेट में शामिल हैं, साथ ही पीड़ित को भी वापस ला सके ।''
राजधानी के हातीरझील इलाके के रहने वाले हृदय बाबू ने आठवीं तक पढ़ाई की है।
बाद में, वह अपने दोस्तों के साथ टिकटॉक वीडियो बनाने में शामिल हो गया।
हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में तीन से चार युवक और दो लड़कियां एक युवती के कपड़े उतारकर शारीरिक और यौन शोषण करते नजर आए।
बांग्लादेश और भारत के पुलिस अधिकारियों ने जांच की और आरोपियों और पीड़ितों की पहचान की।
बेंगलुरु में दो महिलाओं सहित छह लोगों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। इन सभी के अंतरराष्ट्रीय महिला तस्करी के गिरोह में शामिल होने की पुष्टि की गई है।
पुलिस ने कहा कि वह एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार करने के लिए अपनी कार्रवाई जारी रखेगी।
तस्करी रैकेट की जांच के बाद पुलिस ने सोमवार तक चार को हिरासत में लिया है।
इसके अलावा, तीन पीड़ित भारत से लौटे और उन्हें पुलिस हिरासत में भेज दिया गया।
एक रिश्तेदार ने कहा कि पीड़ित भारतीय राज्य पुलिस के पास से हाल ही में बांग्लादेश लौट आए है। (आईएएनएस)
अबुजा, 31 मई | अज्ञात बंदूकधारियों के एक समूह ने नाइजर राज्य में एक स्कूल पर हमले के बाद एक छात्र की हत्या कर दी और कुछ छात्रों का अपहरण कर लिया। इसकी जानकारी नाइजीरियाई पुलिस ने दी।
नाइजर राज्य के पुलिस प्रमुख अदमू उस्मान ने रविवार देर रात समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि हमला दिन में तेगीना शहर के सालिहू टांको इस्लामिया स्कूल में हुआ था।
उस्मान ने कहा कि मोटरसाइकिल पर सवार बड़ी संख्या में बंदूकधारियों ने शहर में धावा बोल दिया, अंधाधुंध गोलियां चलाईं और इस प्रक्रिया में एक निवासी की मौत हो गई।
हालांकि, उन्होंने हमले के दौरान अगवा किए गए छात्रों की सही संख्या बताने से इनकार कर दिया।
स्थानीय मीडिया ने बताया कि 200 से अधिक छात्रों का अपहरण कर लिया गया था।
स्थानीय प्रसारक चैनल टेलीविजन के अनुसार, स्कूल में माता-पिता अपने बच्चों को इस्लामी शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से रोजाना भेजते हैं।
नाइजर पुलिस के प्रवक्ता वासिउ अबियोदुन ने सिन्हुआ को बताया कि सुरक्षा एजेंसी को अभी यह पता लगाना है कि स्कूल से कितने बच्चों का अपहरण किया गया।
इसको लेकर जांच शुरू कर दी गई है। (आईएएनएस)
डेनमार्क की जासूसी एजेंसी ने अंगेला मैर्केल समेत कई यूरोपीय नेताओं की जासूसी करने में अमेरिका की नेशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी (एनएसए) का साथ दिया था. एक यूरोपीय मीडिया संस्थान ने यह खुलासा किया है.
डॉयचे वैले पर आलेक्स बेरी की रिपोर्ट
सबसे पहले यह बात 2013 में सामने आई थी कि अमेरिकी एजेंसियां यूरोप सहित अपने कई सहयोगी देशों के नेताओं की जासूसी कर रहे हैं. लेकिन अब पत्रकारों को पता चला है कि इस काम में डेनिश डिफेंस इंटेलिजेंस सर्विस (एफई) भी एनएसए की मदद कर रही थी. जर्मनी के लिए यह परेशान करने वाली बात है कि उसका पड़ोसी ही उसके चांसलर और राष्ट्रपति की जासूसी में शामिल था. रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त एसपीडी पार्टी की ओर से जर्मनी के चांसलर उम्मीदवार रहे पीअर श्टाइनब्रूक भी एनएसए के निशाने पर थे.
जर्मनी की प्रतिक्रिया
सीक्रेट सर्विस के सूत्रों ने यह सूचना डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे के समाचार प्रसारकों डीआर, एसवीटी और एनआरके को दी थी. इसके अलावा फ्रांस के ला मोंड और जर्मनी के ज्युडडॉयचे त्साइटुंग अखबार और जर्मन टीवी चैनलों एनडीआर और डब्ल्यूडीआर को भी यह सूचना दी गई. इस पूरे खुलासे में शामिल रही रिसर्च टीम को संबोधित करते हुए श्टाइनब्रूक ने कहा कि राजनीतिक रूप से तो यह एक कांड ही है. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों को जासूसी एजेंसियों की जरूरत तो है लेकिन अपने ही सहयोगियों की जासूसी में डेनमार्क की एजेंसी का शामिल होना बताता है कि वे अपने आप ही कुछ चीजें कर रहे थे. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर दोनों को ही इन जासूसी गतिविधियों की जानकारी नहीं थी. एक प्रवक्ता ने कहा कि चांसलर को इस बारे में सूचना दे दी गई है.
डेनमार्क ने क्या किया?
एनडीआर में अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2013 में जासूसी कांड का खुलासा होने के बाद डेनमार्क ने डनहैमर रिपोर्ट के जरिए यह जांच शुरू की थी. 2013 में एनएसए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन ने यह खुलासा कर सनसनी फैला दी थी कि अमेरिकी अधिकारी अपने सहयोगियों की ही जासूसी कर रहे हैं. इसके बाद डेनमार्क ने 2012 से 2014 के बीच एफई और एनएसए के बीच गठजोड़ के बारे में जांच करनी शुरू की. 2015 तक डेनमार्क को अपनी जासूसी एजेंसियों के एनएसए के साथ गतिविधियों में शामिल होने का पता चल गया था. इस जांच में पता चला कि एफई ने स्वीडन, नॉर्वे, नीदरलैंड्स, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं की जासूसी में एनएसए की मदद की थी.
डेनमार्क की एजेंसी ने अपने ही देश के विदेश और वित्त मंत्रालयों और हथियार निर्माताओं की जासूसी में भी एनएसए की मदद की. और तो और, अमेरिकी सरकार की गतिविधियों की भी जासूसी की गई जिसमें एफई ने एनएसए की मदद की. यह जानकारी सामने आने के बाद डेनमार्क सरकार ने 2020 में एफई के सारे उच्च अधिकारियों को पद छोड़ने को कह दिया था.
अमेरिका का सहयोग क्यों?
जासूसी गतिविधियों में डेनमार्क के विशेषज्ञ थोमास वेगेनर फ्राइस मानते हैं कि एफई के सामने यह विकल्प पैदा हुआ होगा कि किस अंतरराष्ट्रीय साझीदार के साथ मिलकर काम करें. एनडीआर को उन्होंने बताया, "उन्होंने अपने यूरोपीय साझीदारों के बजाय अमेरिका के साथ काम करने का फैसला किया."
एनएसए की जासूसी गतिविधियों की जांच के लिए जर्मनी में बनाई गई संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे पैट्रिक जेनबर्ग को इस खुलासे पर कोई हैरत नहीं हुई. मैर्केल की पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रैटिक यूनियन के सांसद रहे जेनबर्ग कहते हैं कि जासूसी एजेंसियों के उद्देश्यों को समझना जरूरी है. उन्होंने एनडीआर को बताया, "इसमें दोस्ती का मामला नहीं है. ना ही यह नैतिक या असूलों की बात है. यह बस अपने हितों से तय होता है."
एनएसए, एफई और डेनमार्क के रक्षा मंत्रालय ने इस खबर पर कोई टिप्पणी नहीं की है. हालांकि डेनमार्क के रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में इतना कहा गया है कि करीबी सहयोगियों की संस्थागत जासूसी अस्वीकार्य है.
कोविड-19 महामारी ने हजारों विमानों को बेकार बना दिया है. इनके साथ ही बेकार हुए हैं इन्हें चलाने वाले, यानी पायलट. अब बहुत से पायलट अपना करियर बदल कर ट्रेन ड्राइवर बन रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आंद्रियास स्पाएथ की रिपोर्ट
दुनिया भर में विमानन उद्योग संकट में है. कोरोना वायरस महामारी ने इस उद्योग की चूलें हिला दी हैं. हजारों विमान महीनों सेउड़ने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सीमाएं बंद हैं, आना-जाना बंद है और यात्राओं पर प्रतिबंध हैं. इस महीने में ही अब तक अकेले यूरोप में एक तिहाई विमान उड़ नहीं पाए हैं. जर्मनी की सबसे बड़ी एयरलाइंस लुफ्थांसा ने 4 मई को बताया था कि 2019 में उसने रोजाना 81 प्रतिशत कम उड़ानें भरीं.
306 में सेअधिकतर उड़ाने सामान वाहक विमानों की थीं. इन हालात ने विमानन उद्योग में काम करने वाले लोगों पर भी कहर बरपाया है. विमान उड़ नहीं रहे हैं तो क्रू मेंबर्स और पायलटों की जरूरत किसी को नहीं है. लिहाजा हजारों नौकरियां खतरें में पड़ गई हैं. यूरोपीयन पायलट यूनियन ईपीए का अनुमान है कि यूरोप के 65 हजार कॉकपिट स्टाफ में से 18 हजार की नौकरियां स्थायी रूप से जा सकती हैं. सिर्फ लुफ्थांसा को अगले साल 1,200 कॉकपिट स्टाफ को हटाना पड़ सकता है.
इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन की फ्लाइटग्लोबल ने दुनिया भर के 2,600 पायलटों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक 43 फीसदी ही वो काम कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग ली थी. 30 प्रतिशत पायलट बेरोजगार थे जबकि 10 प्रतिशत उड़ान से इतर कोई काम कर रहे थे. सर्वे में शामिल 82 प्रतिशत पायलटों ने कहा कि अगर उन्हें नई नौकरी मिलती है तो वे कम तनख्वाह पर भी काम कर लेंगे.
हजारों नौकरियां खतरे में
विमानन उद्योग का संकट तो जल्दी खत्म होता नजर नहीं आ रहा है लेकिन विमान चालकों ने एक ऐसा रास्ता खोज लिया है जहां उनके कौशल का सही इस्तेमाल हो सकता है. इसके लिए उन्हें आसमान से जमीन पर उतरना होगा. जर्मनी,ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड की रेलवे कंपनियों को बड़ी संख्या में पेशेवर ड्राइवरों की जरूरत है. इसके अलावा हॉन्ग कॉन्ग की ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी और ऑस्ट्रेलिया के चार्टर बस ऑपरेटरों को भी कुशल ड्राइवरों की तलाश है.
महामारी शुरू होने से पहले भी जर्मनी की रेल चालक कंपनी डॉयचे बान ड्राइवरों की कमी से जूझ रही थी. स्विट्जरलैंड कंपनी एसबीबी ने तोयूरोप के अन्य देशों में भर्ती अभियान शुरू किया था लेकिन कोई बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली. अब जबकि पेशेवर पायलट नौकरी की तलाश में हैं तो ट्रेन कंपनियों के भागों छींका टूट पड़ा है.
पायलट पहले ही इस तरह के काम के लिए तैयार होते हैं. डॉयचेबान ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया है कि उन्हें पिछले दिनों में पूर्व पायलटों और अन्य क्रू मेंबर्स की 1,500 जॉब ऐप्लिकेशन मिली हैं. इनमें से 280 को तो नौकरी भी मिल गई है. नौकरी पाने वालों में 55 पायलटहैं और 107 पूर्व केबिन क्रू सदस्य हैं. मसलन, डेनिस सीडल जो एलजीवी के लिए दस साल तक पायलट के तौर पर काम कर चुके हैं. एरलाइनर्स नामक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि पायलट बनना उनके बचपन का सपना था.
ट्रेनों ने बदली जिंदगी
लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण 2019 में एलजीवी बंदहो गई और उनका सपना भी बिखर गया. ट्रेन ड्राइवर बनना उनका दूसरा विकल्प था, जोउन्होंने अपना लिया और यह नौकरी उनके लिए ज्यादा मुश्किल भी नहीं है. सीडल फिलहाल डॉयचे बान के लिए ट्रेन ड्राइवर बननेकी ट्रेनिंग कर रहे हैं. इसमें 10 से 12 महीने तक लगते हैं. ट्रेनिंग में मुख्यतया ट्रेनइंजन की कार्यविधि की जानकारी दी जाती है.
सीडन ने एयरलाइनर को बताया, "काम तो लगभग एक जैसे ही हैं. ट्रेन ड्राइवर का काम भी उतना ही जिम्मेदारी भरा होता है जितना किसी पायलट का.” फर्कबस इतन है कि ट्रेन का ड्राइवर अपने केबिन में अकेला होता है और उसके यात्रियों कीसंख्या प्लेन के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है. 27 साल के फेलिशियन बॉमन ने भी अपना करियर बदला है. हैम्बर्ग के बॉमन ने ऑस्ट्रियन एयरलाइन्स के साथ पायलट की ट्रेनिंग पूरी की ही थी कि महामारी आ गई और उनके पायलट बनने के सपने के पर कतर दिए गए.
तब उन्होंने विएना की ट्राम ऑपरेटर कंपनी वीनर लीनियन के लिए ट्राम चालक बनने का फैसला किया. कंपनी के एक यूट्यूब वीडियो में वह कहते हैं, "दोनों ही पेशों में काम है लोगों को सुरक्षित एक जगह से दूसरी जगह ले जाना.”एक स्थानीय अखबार को उन्होंने बताया कि दोनों नौकरियों की सैलरी में भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. (dw.com)
नफ्ताली बेनेट ने बेन्यामिन नेतन्याहू के 12 साल के शासन को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया, उन्होंने ऐलान किया है कि वे विरोधियों के साथ एक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश करेंगे.
धुर दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी पार्टी के नेताओं ने रविवार को पुष्टि की कि वे इस्राएल में एक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश में जुटे हैं. अगर यह गठबंधन सफल होता है तो वह 2009 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनकी लिकुड पार्टी को अपदस्थ कर पाएगा. दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट ने टीवी पर प्रसारित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह विपक्ष के प्रमुख याइर लैपिड के साथ गठबंधन सरकार बनाएंगे. लैपिड की पार्टी का नाम येश एतिड पार्टी है. बेनेट ने कहा, "यह मेरा इरादा है कि मैं अपने दोस्त याइर लैपिड के साथ एक राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने की पूरी कोशिश करूं. भगवान की इच्छा से हम इस देश को बचा सकें और इसे रास्ते पर लौटा सकें." नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी रहे बेनेट ने कहा कि उन्होंने दो वर्षों में इस्राएल को पांचवें चुनाव में जाने से रोकने के लिए यह फैसला लिया है. हालांकि बेनेट नेतन्याहू की राष्ट्रवादी विचारधारा को साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि कट्टर दक्षिणपंथियों के लिए संसद में बहुमत पाने का कोई संभव तरीका नहीं था.
नेतन्याहू ने क्या कहा?
नेतन्याहू ने कहा है कि नफ्ताली बेनेट ने देश के दक्षिणपंथियों को धोखा दिया है. उन्होंने बेनेट पर "सदी की धोखाधड़ी" का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "इस तरह की सरकार इस्राएल की सुरक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य के लिए भी खतरा है." येरुशलम स्थित पत्रकार सामी सोकोल ने डीडब्ल्यू से कहा कि गठबंधन सरकार के लिए नेतन्याहू का संभावित आह्वान एक अतिशयोक्ति से ज्यादा कुछ नहीं है. उनके मुताबिक, "नेतन्याहू इस घटनाक्रम को लेकर इतने उत्साहित हैं कि ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसा बयान देकर अपना आपा खो दिया है."
अगर बेनेट और लैपिड गठबंधन सरकार बनाने में विफल रहते हैं और नए चुनाव होते हैं, तो नेतन्याहू को लाभ होने की अधिक संभावना है. लेकिन अगर दोनों नेता सरकार बनाने के लिए सहमत होते हैं, तो दोनों नेता आम सहमति के फार्मूले के अनुसार दो साल तक प्रधान मंत्री के रूप में काम करेंगे.
मार्च के चुनाव में, येश एतिड पार्टी 17 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही, जबकि नेतन्याहू की लिकुड पार्टी ने 30 सीटों पर जीत हासिल की. 57 वर्षीय पूर्व पत्रकार लैपिड ने वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया, लेकिन नेतन्याहू के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण गठबंधन सरकार गिर गई.
एए/वीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)