अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 9 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.38 करोड़ हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 37.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये अंकाड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए।
बुधवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 173,887,864 और 3,744,378 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,390,694 और 598,323 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,996,473 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार
30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (17,037,129), फ्रांस (5,781,556), तुर्की (5,300,236), रूस (5,086,386), यूके (4,544,367), इटली (4,235,592), अर्जेंटीना (4,008,771), जर्मनी (3,712,595), स्पेन (3,711,027) और कोलंबिया (3,611,602) है।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 476,792 संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (351,309), मैक्सिको (229,100), यूके (128,118), इटली (126,690), रूस (122,409) और फ्रांस (110,299) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे हैं. इस यात्रा को उन्होंने लोकतंत्र के लिए निर्धारक क्षण बताया है.
अपने पहले विदेश दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के एजेंडे में जी-7, नाटो और यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लदीमीर पुतिन से जिनेवा में मुलाकात भी होगी. अपनी यात्रा से पहले बाइडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख में लिखा है, "पिछली सदी की रूप-रेखा देने वाले लोकतांत्रिक सहयोगी और संस्थान आधुनिक खतरों और दुश्मनों के सामने अपनी क्षमता साबित कर पाएंगे? मैं मानता हूं कि जवाब है, हां. और इस हफ्ते यूरोप में हमारे पास यह साबित करने का मौका है."
बाइडेन के ये शब्द अमेरिका के दुनिया के बारे में पारंपरिक रवैये को पुख्ता करने का संकेत भी देते हैं जो बीते चार साल में डॉनल्ड ट्रंप के राज में बदल गया था. बाइडेन अपने जी-7 के सहयोगियों ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के नेताओं से शुक्रवार को इंग्लैंड में मिलेंगे. फिर वह विंडसर कासल में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से भेंट करेंगे. वहां से बाइडेन ब्रसेल्स जाएंगे और 14 जून को नाटो की बैठक में हिस्सा लेंगे. 15 को यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति स्विट्जरलैंड जाएंगे, जहां वह व्लादीमीर पुतिन से मिलेंगे. 78 वर्षीय बाइडेन के लिए पद संभालने के बाद यह अब तक का सबसे सघन दौरा है, जिसकी रूप रेखा इस तरह तैयार की गई है कि पुतिन के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति को सिर्फ अमेरिका नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक जगत के नेता के तौर पर पेश किया जा सके. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन कहते हैं कि वह पूरी ताकत के साथ इस बैठक में जाएंगे.
'अमेरिका लौट आया है'
पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का तर्क था कि अमेरिका को दुनिया का थानेदार नहीं होना चाहिए. उनके समर्थकों के बीच यह रुख काफी लोकप्रिय भी था. लेकिन अब जबकि दुनिया कोरोना वायरस महामारी के सामने रेंग रही है, बाइडेन अमेरिका को पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन से लेकर आर्थिक प्रगति के रास्ते पर वापस लाने वाले रहनुमा के तौर पर पेश करना चाहते दिखते हैं. उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत फिर से शुरू कर ही दी है और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी नेतृत्व संभाल लिया है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन कहते हैं, "अमेरिका लौट आया है. विकल्प है, चीन का अधिपत्य या फिर कोलाहल."
हालांकि ट्रंप के दौर के सदमे से उबर रहे यूरोपीय देश इन संकेतों को लेकर कितने आशवस्त हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है. उनके और अमेरिका के बीच अभी भी संघर्ष यदा-कदा नजर आ रहा है. पिछले महीने फ्रांस ने जब संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल और हमास के बीच युद्ध विराम की मांग का प्रस्ताव पेश किया तो अमेरिका ने उसे अवरुद्ध कर दिया. अमेरिका ने जब अपने यहां वैक्सीन को रोके रखा तो यूरोपीय देशों ने नाराजगी जाहिर की. और अब जब नाटो की मुलाकात के दौरान ही बाइडेन तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन से मिलेंगे, तो उसे लेकर भी यूरोपीय देश सशंकित हैं. दोनों नेताओं ने एक दूसरे को लेकर तीखे बयान दिए हैं. बाइडेन ने तुर्की में मानवाधिकारों की गंभीर हालत पर चिंता जताई तो एर्दोआन ने कहा कि अमेरिका एक कीमती दोस्त खो सकता है.
जिनेवा पर निगाहें
सबसे ज्यादा निगाहें जिनेवा पर रहेंगी, जहां पुतिन-बाइडेन मुलाकात होगी. ब्लिंकेन कहते हैं कि अमेरिका ज्यादा स्थिर रिश्ते बनाना चाहता है. अमेरिका रूस के साथ परमाणु हथियारों को लेकर न्यू स्टार्ट संधि को आगे बढ़ाकर संदेश देना चाहेगा कि उसका मकसद काम है. साथ ही ईरान के मामले में उसे रूस की जरूरत भी है. लेकिन तनाव बहुत ज्यादा है. बाइडेन ने हाल ही में सोलरिवंड्स पर हुए साइबर हमले के लिए रूस को जिम्मेदार बताया था. वह यूक्रेन सीमा पर तनाव, पुतिन के विपक्षी अलेक्सी नावाल्नी की रिहाई और बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको के हाल ही में नागरिक विमान से पत्रकार को गिरफ्तार करने जैसे मुद्दे भी उठा सकते हैं.
जेक सुलविन कहते हैं कि पुतिन से मिलने के लिए बाइडेन मतभेदों के बावजूद नहीं बल्कि इसलिए जा रहे हैं कि दोनों देशों के बीच मतभेद हैं. उधर रूस की उम्मीदें भी काफी कम हैं. मॉस्को की एचएसई यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर दमित्री सुसलोव कहते हैं, "हमें रूस-अमेरिका संबंधों में किसी बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. रिश्तों में तनाव तो रहेगा."
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)
पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐप को हैक करके लाखों इनक्रिप्टेड संदेश पढ़े और फिर उनसे मिली जानकारियों के आधार पर 18 देशों में छापे मारकर सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन आयरनसाइड' में एएफपी और एफबीआई ने ऑस्ट्रेलिया, एशिया, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व में सक्रिय गैंग्स के सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस ऑपरेशन ने संगठित अपराध पर ऐसी चोट की है, जिसकी गूंज पूरी दुनिया के अपराध जगत में सुनाई देगी. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की पुलिस के इतिहास में यह एक अहम क्षण है.
ऑपरेशन में शामिल रही यूरोपीय एजेंसी यूरोपोल ने एक बयान में कहा,”यह ऑपरेशन दुनिया के चारों कोनों में अपराधियों की गतिविधियों को हिला देने वाला अब तक का सबसे परिष्कृत प्रयास था.”
ऑस्ट्रेलिया की पुलिस ने 224 लोगों की गिरफ्तारी की बात कही है जबकि न्यूजीलैंड पुलिस ने 35 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह ऑपरेशन 2018 में ऑस्ट्रेलिया फेडरल पुलिस (एएफपी) और एफबीआई ने मिलकर शुरू किया था. इसका जरिया आपराधिक गैंग्स के बीच प्रचलित संदेश भेजने वाली ऐप एनोम को हैक करना था. गैंग्स समझते रहे कि यह ऐप सुरक्षित है लेकिन पुलिस इसमें घुसपैठ कर चुकी थी और उनके संदेश पढ़ रही थी.
बेखौफ अपराधी
एफफपी कमीशनर रीस केरशॉ ने बताया, "हम संगठित अपराध की पिछली जेब में मौजूद थे. वे बस ड्रग्स, हिंसा और एक दूसरे पर हमले करने और मासूम लोगों की हत्याओं की ही बातें करते हैं.”
पुलिस के मुताबिक अपनी बातचीत में ये अपराधी एकदम खुले तौर पर सब कुछ कहते थे और कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं होती थी. केरशॉ ने मिसाल के तौर पर बता कि वे लोग साफ तौर पर बताते थे कि कहां मिलेंगे और कौन क्या करेगा.
अधिकारियों को जिन हमलों के बारे में जानकारी मिली, उनमें ऑस्ट्रेलिया पर एक कैफे पर मशीन गन से हमला शामिल था जिसमें एक ही परिवार के पांच लोगों को निशाना बनाया गया था. अधिकारी उस हमले को रोकने में कामयाब रहे.
ऑस्ट्रेलिया में एक ही दिन में इतिहास के सबसे ज्यादा छापों के दौरान पुलिस ने 104 हथियार और 45 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग ढाई अरब रुपये नकद बरामद किए.
जर्मनी में पुलिस के छापे हेसे और फ्रैंकफर्ट के इर्द गिर्द केंद्रित थे. सुरक्षा बलों ने वीजबाडेन, में भी कुछ गिरफ्तारियां की हैं. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता स्टीव ऑल्टर ने बताया कि मंगलवार को कई जगहों पर छापे मारे गए हैं और यह कार्रवाई सिर्फ जर्मनी में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी ही है.
हाईटेक होते अपराधी
विभिन्न देशों की पुलिस को यह कामयाबी जिस एनोम ऐप को हैक कर मिली, वह बहुत परिष्कृत ऐप थी और उसे बेहद सुरक्षित बनाया गया था. उसका हर संदेश एनक्रिप्टेड था और कैमरे आदि के जरिए भी उसमें घुसपैठ की कोई गुंजाइश नहीं थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह ऑपरेशन लगभग तीन साल तक चला जिसमें दसियों लाख संदेश पढ़े गए और तब जाकर कार्रवाई की गई.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जबकि अपराधियों को इतनी आधुनिक ऐप्स का इस्तेमाल करते पकड़ा गया. पिछले साल यूरपीयन पुलिस ने एन्क्रोचैट नाम का एक अत्याधुनिक सिस्टम हैक किया था जिसे अपराधी गैंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे. इसी साल की शुरुआत में बेल्जियम के अधिकारियों ने स्काईएक नाम का एक ऐप हैक चैट सिस्टम हैक कर दर्जनों अपराधियों को पकड़ा था और 17 टन से ज्यादा कोकीन बरामद की थी.
वीके/सीके (एपी/डीपीए)
-शालू यादव
बीबीसी ने भारत से मिल रही मदद और उसके साथ वर्तमान संबंधों को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से बातचीत की.
इस दौरान पीएम केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संदेश भी दिया और बताया कि चीन से भी उन्हें मदद मिली है साथ ही उन्होंने नेपाल-भारत संबंध की वर्तमान स्थिति के बारे में अपने विचार रखे.
पढ़िए, बीबीसी से उनकी बातचीत के कुछ अंश:
सवालः कोरोना महामारी के दौरान नेपाल ने बहुत मुश्किल समय देखा. क्या भारत से आपको उतनी मदद मिली जितनी उम्मीद थी?
जवाबः वैसे मुझे कोई नकारात्मक बात नहीं करनी है. फिर भी हो सकता है कि ये कोर्ट के फ़ैसले की वजह से हो या वैक्सीन की कमी की वजह से हो या भारत में ऐसा लहर फ़ैल रहा था उसकी वजह से हो क्योंकि ख़ुद भारत मुसीबत में था.
मगर हम ये सोचते हैं कि जितना हमको मदद मिलना चाहिए था... एक पड़ोसी... और जिसके संबंध ऐसे जुड़े हुए हैं कि भारत में अगर कोविड कंट्रोल हुआ है और नेपाल में नहीं हुआ तो भारत में कंट्रोल हुआ का कोई मायने नहीं रखता. तो भी ये ट्रांसमिशन हो ही जाएगा.
अगर हम बॉर्डर सील भी कर दें तो भी ये नहीं हो पाएगा क्योंकि स्थानीय लोगों के दोनों तरफ संबंधी हैं. इतने पड़ोस में रहते हैं कि उनका रहना बसना सब साथ ही साथ होता है. ऐसे संबंध है कि रोक कर भी हम नहीं रोक पाएंगे.
हमको इतनी मदद मिलनी ही चाहिए... ये भारत के हित के लिए भी है.
सवालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए क्या संदेश है?
जवाबः मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन करूंगा कि वे दूसरे देशों से थोड़ा फर्क करें. हम पड़ोसी हैं. हमारी सीमाएं खुली हैं और आवागमन है. अगर दोनों देशों के बीच में पहाड़ होते तो सीमाएं खुली होने के बावजूद आना जाना मुश्किल हो जाता. लेकिन दोनों तरफ खेत खलिहान हैं. एक घर सीमा के इस तरफ है तो एक घर सीमा की दूसरी तरफ. यहाँ के लोगों का वहाँ हर चीज़ के लिए आना जाना होता है.
इसिलिए इन सब बातों को भी ध्यान में रखें. हमारा मित्रतापूर्ण संबंध है उसे भी ध्यान भी रखे.
भारत को चाहिए हमें पूरी तरह से मदद करे. ये मैं नहीं कहता हूं कि भारत मदद नहीं कर रहा है. हम लिक्विड ऑक्सीजन और दवाइयाँ बहुत सारी चीज़ें ला रहे हैं भारत से. भारत सपोर्ट कर रहा है. मैं धन्यवाद दूंगा भारत को कि उसने सबसे पहले हमें वैक्सीन दिया.
सवालः क्या नेपाल पर अब चीन का प्रभाव ज़्यादा है क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान चीन आपकी ज़्यादा मदद कर रहा है?
जवाबः इसमें पॉलिटिक्स को बीच में लाने की कोई ज़रूरत नहीं हैं. इसमें किसी के प्रभाव की कोई बात नहीं है. भारत वैक्सीन देगा, चीन देगा, अमेरिका देगा, ब्रिटेन देगा... जो देगा ठीक है. ये वैक्सीन का मामला है... पॉलिटिक्स का मामला नहीं है. इसलिए इस पर पॉलिटिक्स नहीं करना चाहिए और दोनों पड़ोसियों को हम बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं क्योंकि एक ने हमको 18 लाख दे दिया दूसरे ने 20 लाख दे दिया. दोनों से मदद मिल रही है. दोनों से मेडिकल उपकरण मिल रहे हैं. इसलिए दोनों देशों को धन्यवाद देते हैं.
सवालः पिछले छह सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आपके बीच कुछ मनमुटाव आया. आज की तारीख़ में नेपाल के भारत के साथ संबंध पर आपका क्या मत है?
जवाबः एक तो मेरा मानना है कि पड़ोसी हैं इसलिए समस्याएं होती हैं. समस्याएं पैदा क्यों होती हैं? चिली और अर्जेंटीना के आदमी से न कोई प्रेम न कोई घृणा का संबंध है. आज कल फ़ेसबुक का जमाना है उससे कुछ इधर उधर हो भी सकता है लेकिन उसकी संभावना बहुत कम हैं. वहाँ जाना भी नहीं है और वहाँ के लोगों को यहाँ आना भी नहीं है. न प्रेम का न घृणा का संबंध है. जब पड़ोस होता है तो वहाँ प्रेम और समस्याएं पैदा होते रहते हैं.
सवालः तो क्या प्रेम अब समस्याओं में बदल गया है?
जवाबः कभी कभी ग़लतफ़हमी भी पैदा हुई थी. अब ग़लतफ़हमियाँ या नामसमझी हट गई हैं. उसी पर हमें उलझते नहीं रहना चाहिए. हमें चाहिए कि भविष्य को देखें और आगे बढ़ें. हमको नकारात्मक पहलुओं को नहीं सकारात्मक पहलुओं को आगे बढ़ाना है.
ट्रांसजेंडर लोगों को काम पर रखने वाली बांग्लादेशी कंपनियों को टैक्स में छूट दी जा सकती है. क्योंकि सरकार उन लोगों की नौकरी की संभावनाओं को बढ़ावा देना चाहती है. इसे समुदाय के लोगों के लिए सकारात्मक कदम बताया जा रहा है.
बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने हाल ही में संसद में बयान दिया कि अगर कोई कंपनी अपने यहां कुल कर्मचारियों में 10 प्रतिशत या कम से कम 100 ट्रांसजेंडरों को काम पर रखती है तो उसे टैक्स में सीधे छूट मिलेगी. इस प्रस्ताव के बारे में कमाल ने संसद में कहा, "तीसरा लिंग समुदाय हाशिए पर है और समाज का वंचित वर्ग है." बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर समुदाय दशकों से समाज से कटा हुआ है. कमाल ने कहा, "दूसरों की तुलना में, थर्ड जेंडर समुदाय पिछड़ रहा है...और मुख्यधारा के समाज से बाहर निकल गया है. इसमें सक्रिय लोगों को शामिल कर सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जा सकता है. ऐसे लोगों को उत्पादन-उन्मुख व्यवसाय में रोजगार दिया जा सकता है."
अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशियाई देशों में ट्रांसजेंडर अक्सर कम उम्र में ही अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं. उन्हें ना तो अच्छी शिक्षा मिल पाती है और ना ही नौकरी. आखिरकार उन्हें भीख मांग कर या गरीबी में अपना जीवन बिताना पड़ता है. पिछले साल नवंबर में ढाका में किन्नर समुदाय के लोगों की इस्लामी शिक्षा के लिए केंद्र खोला गया था. इसके मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद कहते हैं, "जो लोग ट्रांसजेंडर होते हैं वे भी इंसान होते हैं, उन्हें भी शिक्षा का अधिकार है. उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है."
योजनाओं से ज्यादा की जरूरत
बांग्लादेश सरकार का अनुमान है कि देश में 11,500 ट्रांसजेंडर हैं जबकि अधिकार समूहों का कहना है कि उनकी आबादी एक लाख से अधिक हो सकती है. 2013 में सरकार ने ऐतिहासिक फैसले में एलजीबीटी प्लस को तीसरे लिंग की मान्यता दी थी, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं आया है और समलैंगिक सेक्स अब भी गैर कानूनी है.
अधिकार समूहों ने नए प्रस्ताव का स्वागत किया, जिसके संसद से पारित होने की उम्मीद है, लेकिन समूहों ने सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया यह प्रस्ताव ठीक से क्रियान्वित किया जाए. अधिकार समूह संपोर्कर नोया सेतु की जोया शिकदर कहती हैं, "ऐसी कई घोषणाएं हैं जो कि ट्रांसजेंडर समुदाय के समर्थन में की जाती हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर योजनाएं काम नहीं करतीं. सरकार को इन योजनाओं पर नजर रखने की जरूरत है."
इसी साल मार्च में देश में पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर ने समाचार पढ़कर इतिहास रचा था. 29 वर्षीय तश्नुआ आनन ने ट्रांसजेंडर लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण और नियोक्ताओं के लिए जागरूकता प्रशिक्षण सत्र आयोजन की मांग की है. उन्होंने कहा, "यह एक अच्छी पहल है, लेकिन ये कदम बहुत बड़े पैमाने पर उठाए जाने चाहिए. ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भी अपने कौशल को विकसित करने की जरूरत है, तभी जाकर उन्हें नौकरी पर रखा जा सकता है."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
हथियारों की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एंट्री हो चुकी है. और वे हमारे अंदाजे से कहीं ज्यादा तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं. हाल ही में एक युद्ध में यह दिखाई भी दिया.
डॉयचे वैले पर रिचर्ड वॉलकर की रिपोर्ट
दुनिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू हो चुकी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हथियारों की दौड़ में बाकी सबको पीछे छोड़ दिया है. ये हथियार सेनाओं को ज्यादा तेज, ज्यादा स्मार्ट और ज्यादा सक्षम बना रहे हैं. लेकिन, बेकाबू होकर ये पूरी दुनिया के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है.
जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है. डीडब्ल्यू की नई डॉक्युमेंट्री ‘फ्यूचर वॉर्सः एंड हाउ टु प्रिवेंट देम' में हाइको मास ने कहा, "हम बिल्कुल इसके बीच में हैं. यह सच है जिसका सामना हमें करना ही होगा.”
रेस शुरू हो चुकी है
दुनिया के ताकतवर मुल्कों के बीच आर्टिफिशियल हथियारों की यह होड़ और दौड़ शुरू हो चुकी है. घातक हथियारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के समूह के पूर्व अध्यक्ष अमनदीप सिंह गिल कहते हैं यह दौड़ सेनाओं के बीच ही नहीं बल्कि नागरिक जीवन में भी पैठ बना चुकी है. अमेरिका की ‘नैशनल सिक्युरिटी कमीशन ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' की हालिया रिपोर्ट में भी यह बात काफी उभरकर आई है.
इस रिपोर्ट में युद्ध के नए परिप्रेक्ष्यों पर बात की गई है जहां एक एल्गोरिदम की दूसरे से लड़ाई की संभावना का जिक्र है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संभावित विरोधी लगातार उन्नत हो रहे हैं इसलिए निवेश बढ़ाना होगा.
चीन की नई पंचवर्षीय योजना में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शोध और विकास के केंद्र में जगह दी गई है और उसकी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी भविष्य के ‘इंटेलिजेंटाइज्ड' युद्ध की तैयारी कर रही है. रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने तो 2017 में ही कह दिया था कि जो भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नेतृत्व करेगा, वही दुनिया पर राज करेगा.
लेकिन सिर्फ ताकतवर देश ही इस क्षेत्र में तैयारी कर रहे हों, ऐसा नहीं है.
2020 के दूसरे हिस्से में जब दुनिया महामारी से जूझ रही थी, तब कॉकेशस इलाके में दो देश यद्ध में उलझ गए. अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-कराबाख के विवादित इलाके को लेकर हुआ युद्ध भले ही दो पड़ोसियों के बीच पुराना झगड़ा लगता हो, लेकिन जिन लोगों ने ध्यान से देखा, उन्हें परतों के नीचे कई दिलचस्प चीजें भी नजर आईं.
छोटे ड्रोन, बड़ा खतरा
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस में ड्रोन युद्ध के विशेषज्ञ उलरीके फ्रांके कहते हैं, "मेरे विचार से नागोर्नो-कराबाख विवाद का सबसे अहम पहलू था छोटे ड्रोन का इस्तेमाल. ये स्वचालित सिस्टम होते हैं.”
एक बार छोड़ दिए जाने के बाद ये ड्रोन निशाने वाले इलाके के ऊपर उड़ते हैं और स्कैन करते हुए लक्ष्य को खोजते हैं. जब उन्हें लक्ष्य मिल जाता है तो पूरी ताकत से हमला करते हैं. फ्रांके कहते हैं, "इनका इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से पहले भी हुआ है लेकिन इस बार तो उन्होंने खुलकर बताया कि वे कितने फायदेमंद हैं. और यह समझाया कि इस सिस्टम से लड़ना कितना मुश्किल है.”
सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की एक रिसर्च बताती है कि अजरबैजान को इस्राएली डिजाइन वाले करीब 200 ड्रोन के कारण बड़ा फायदा मिला. अजरबैजान के पास ऐसे चार मॉडल थे जबकि आर्मेनिया के पास सिर्फ एक.
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तो सिर्फ शुरुआत है. बहुत जल्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियार सेनाओं के मुख्य हथियार होंगे और वे मौजूदा हथियारों से कहीं ज्यादा घातक होंगे. (dw.com)
वाशिंगटन, 8 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.35 करोड़ हो गए हैं। इस महामरी से अब तक कुल 37.3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 173,538,801 और 3,734,654 थी।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,377,632 और 597,946 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,909,975 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार 30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (16,984,218), फ्रांस (5,775,535), तुर्की (5,293,627), रूस (5,076,543), यूके (4,538,399), इटली (4,233,698), अर्जेंटीना (3,977,634), जर्मनी (3,710,342), स्पेन (3,707,489) और कोलंबिया (3,593,016) हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 474,414 के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (349,186), मैक्सिको (228,838), यूके (128,841), इटली (126,588), रूस (122,073) और फ्रांस (110,224) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
काबुल, 8 जून| अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में सरकारी बलों द्वारा किए गए हवाई हमलों में तालिबान के प्रति वफादार कम से कम 50 आतंकवादी मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हो गए हैं। एक शीर्ष अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को प्रांतीय गवर्नर मोहम्मद हलीम फेडाई ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मारे गए आतंकियों में से कई विदेशी भी रहे हैं।
गर्वनर ने पुष्टि की कि अफगान वायु सेना ने रविवार देर रात जरमत, मिजार्का और अहमदाबाद जिलों में तालिबान समर्थक आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमलों की शुरूआत की। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि रविवार को मिर्जाका जिले के कल्किन इलाके में तालिबान के कुछ लड़ाकों द्वारा एक चौकी पर धावा बोलने के बाद सरकार समर्थक पांच मिलिशिया लापता हो गए हैं।
इस बीच, एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कल्किन क्षेत्र में हुई लड़ाई में एक दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं और आतंकवादियों ने कुछ सरकार समर्थक मिलिशियामेन को भी अपने कब्जे में कर लिया।
फेडाई ने फिलहाल अधिकारी के इस बयान को खारिज कर दिया।
तालिबान संगठन ने अभी तक इन रिपोटरें पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
1 मई को अफगानिस्तान में अमेरिका और अन्य नाटो सैनिकों की आधिकारिक वापसी के बाद से तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों, जिलों, ठिकानों और चौकियों पर हमले तेज कर दिए हैं। पिछले कुछ हफ्तों में दसियों हजार अफगान विस्थापित हुए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों की वापसी 11 सितंबर तक पूरी होनी है। (आईएएनएस)
खार्तूम, 8 जून| सूडान के दक्षिण दारफुर राज्य में एक नए आदिवासी संघर्ष में कम से कम 36 लोग मारे गए हैं और 32 अन्य घायल हो गए हैं। स्थानीय प्रशासन ने सोमवार को इसकी जानकारी दी। दक्षिण दारफुर राज्य के राज्यपाल मूसा महदी ने एक बयान में कहा, "दक्षिणी दारफुर राज्य के मंडावा, मरमासा और माजंगरी क्षेत्रों में आदिवासी घटकों के बीच एक संघर्ष की शुरूआत हुई थी।"
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आगे कहा कि लड़ाई शनिवार को शुरू हुई और रविवार सुबह तक जारी रही।
उन्होंने आगे यह भी कहा कि राज्य द्वारा भेजे गए संयुक्त बलों ने विवाद क्षेत्रों में स्थिति को नियंत्रित किया है और युद्धरत जनजातियों को एक—दूसरे से अलग किया है।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, फलाटा और अल-ताइशा जनजातियों के बीच झड़पें हुईं।
दक्षिण दारफुर राज्य की सुरक्षा समिति ने उत्तेजित समूहों पर काबू पाने, घटना की पुनरावृत्ति को रोकने और कानूनी जांच समितियों की स्थापना के लिए इलाके में सेना के बलों को भेजने का निर्णय लिया।
अप्रैल में सूडान के पश्चिमी दारफुर राज्य की राजधानी अल जिनीना में आदिवासी संघर्षों में लगभग 137 लोग मारे गए थे और 221 घायल हुए थे।
सूडान का दारफुर क्षेत्र साल 2003 से गृहयुद्ध में चपेट में है। 31 दिसंबर, 2020 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जो दारफुर के इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र-अफ्रीकी यूनियन हाइब्रिड ऑपरेशन (यूएनएएमआईडी) के जनादेश को पूरा करता है।
साल 2007 से दारफुर में तैनात लगभग 16,000 यूएनएएमआईडी सैनिक जुलाई में अपना मिशन पूरा करने के लिए तैयार हैं। सूडान में एक संयुक्त राष्ट्र एकीकृत संक्रमण सहायता मिशन (यूएनआईटीएएमएस) को 2021 के दौरान क्षेत्र में यूएनएएमआईडी के प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए तैनात किया जाना है। (आईएएनएस)
बलूचिस्तान के खुज़दार ज़िले के विढ इलाके में पिछले दिनों एक हिंदू व्यवसायी की हत्या के बाद एक ऐसा पर्चा बांटा गया, जिसमें दुकानदारों से कहा गया है कि महिलाओं को अपनी दुकानों में न आने दें.
इस पर्चे में व्यापारियों, विशेषकर हिंदू दुकानदारों को चेतावनी दी गई है कि यदि कोई व्यावसायी महिलाओं को अपनी दुकान पर आने की अनुमति देता है, तो परिणाम के लिए वह ख़ुद ज़िम्मेदार होगा.
पुलिस ने पर्चे की पुष्टि करते हुए कहा कि फिलहाल यह पता नहीं लगा कि ये पर्चा किस संगठन ने बांटा है और वह संगठन कहाँ का है.
पर्चा विढ बाज़ार में एक साइन बोर्ड पर चिपकाया गया था और कुछ दुकानों के अंदर इसकी प्रतियां फेंकी गई हैं.
विढ में हिंदू पंचायत के सदस्य संतोष कुमार ने बताया कि हिंदू व्यवसायी की हत्या के विरोध में हिंदू समुदाय के व्यापारियों की दुकानें बंद थी. हालांकि, उन्हें यह बताया गया कि हिंदू व्यापारियों के अलावा कुछ मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों में भी प्रतियां फेंकी गई हैं.
उन्होंने कहा कि एक तरफ जहाँ हिंदू समुदाय के व्यापारियों की हत्या की गई, वहीं दूसरी तरफ पर्चे में भी हिंदुओं का विशेष रूप से ज़िक्र किया गया, जिससे उनकी चिंता और बढ़ गई है.
उन्होंने कहा, "हमने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया है, तो फिर हमें क्यों निशाना बनाया जा रहा है."
बीते 31 मई को विढ में एक हिंदू व्यवसायी की हत्या हुई थी, जिसके बाद विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था, लेकिन प्रशासन के आश्वासन के बाद विरोध प्रदर्शन छह दिन बाद समाप्त कर दिया गया था.
पर्चे में क्या कहा गया है, उसपर किस संगठन का नाम लिखा है?
विढ में प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स एसोसिएशन के महासचिव मोहम्मद असलम शेख़ ने बताया कि पर्चा एक साइन बोर्ड पर हाइलाइट करके चिपकाया गया था.
इस पर्चे के कंटेंट हाथ से लिखे गए है और इसके नीचे तलवार बनी हुई है जिस पर "कारवां सैफुल्लाह" लिखा हुआ है.
मोहम्मद असलम शेख़ ने कहा कि दुकानों में फेंके गए पर्चे पर वही लिखा है जो साइन बोर्ड पर चिपके हुए पर्चे पर लिखा हुआ है. लेकिन उन पर्चों के नीचे किसी संगठन का नाम नहीं है.
इस पर्चे में लोगों से कहा गया है कि वे अपनी महिलाओं को अनावश्यक रूप से अपने घरों से बाहर न निकलने दें और विशेष रूप से उन्हें बाज़ारों में घूमने से रोकें.
पर्चे के कंटेंट के अनुसार बाज़ारों में महिलाओं के घूमने से बाज़ार का माहौल ख़राब होता है.
पर्चे में इसके बाद गया है, "महिलाएं हिंदू समुदाय के लोगों की दुकानों में ज़्यादा दिखाई देती हैं. उनसे गुज़ारिश है कि वो महिलाओं को अपनी दुकानों में आने की बिल्कुल भी इजाज़त न दें और यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे इसके परिणामों के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे.
क्या विढ बाज़ार में महिलाएं घूमने आती हैं?
विढ में प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स एसोसिएशन के महासचिव मोहम्मद असलम शेख़ ने कहा कि जहाँ तक विढ में स्थानीय महिलाओं का सवाल है, वे अकेले ख़रीदारी करने के लिए बाज़ार नहीं आती हैं.
उन्होंने कहा कि स्थानीय महिलाएं ज़्यादातर बाज़ार में इलाज के लिए आती हैं, लेकिन उस समय भी उनके पुरुष रिश्तेदार उनके साथ होते हैं.
उन्होंने बताया कि 2011 के बाद, विढ में अशांति की घटनाएं होने का सिलसिला शुरू होने के बाद से यह इस तरह का दूसरा पर्चा है.
असलम शेख़ ने कहा कि हिंदू व्यवसायी की हत्या के ख़िलाफ़ लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और हो सकता है कि इससे ध्यान हटाने के लिए ये पर्चे चिपकाने के अलावा दुकानों में फेंके गए हों.
उनका कहना था कि हिंदू समुदाय के लोग सदियों से विढ में रह रहे हैं और वे बहुत शांतिपूर्ण लोग हैं.
असलम शेख़ ने कहा कि पूर्व में भी हिंदू व्यापारियों समेत मुस्लिम व्यापारियों को कई तरह के बहानों से परेशान किया जाता रहा है और यह धमकी भरा पंफलेट संभवत: इसी सिलसिले की एक कड़ी है.
संतोष कुमार ने भी इस बात से सहमति जताई कि स्थानीय महिलाएं अपने घरों से नहीं निकलती हैं और अगर उन्हें किसी इमरजेंसी में बाज़ार आना हो, तो भी वे अपने पति के बिना नहीं आती हैं.
पुलिस का क्या कहना है?
इस संबंध में विढ पुलिस के एसएचओ अब्दुल रहीम से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस पर्चे की पुष्टि की.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह पर्चा केवल एक जगह पर लगाया गया था. उन्होंने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर किसी व्यवसायी से उनकी दुकान के अंदर पर्चे फेंके जाने की कोई शिकायत नहीं मिली है.
"ज़ाहिरी तौर पर इस पर्चे को कारवां सैफुल्लाह नामक संगठन की तरफ से चिपकाया गया है, लेकिन विढ और उसके आस-पास के इलाक़े में पहले इस तरह के किसी संगठन का नाम नहीं सुना गया है."
उन्होंने बताया कि इस संबंध में अभी तक कोई मामला दर्ज़ नहीं किया गया है लेकिन विभिन्न पहलुओं से इसकी जांच की जा रही है.
प्रशासन के आश्वासन के बाद हिंदू व्यावसायी की हत्या के ख़िलाफ़ विरोध समाप्त
हिंदू व्यवसायी अशोक कुमार की हत्या की घटना विढ में हिंदू समुदाय के किसी व्यवसायी की हत्या की दूसरी घटना थी. इससे नौ महीने पहले, एक और हिंदू व्यवसायी नानक राम की हत्या कर दी गई थी.
अशोक कुमार की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे और पहले दिन क्वेटा-कराची हाइवे को बंद करने के अलावा विढ में व्यापारियों ने विरोध के तौर पर दुकानें बंद रखी थी.
विढ में सभी दुकानें तीन दिनों के लिए बंद रखी गई थीं, लेकिन हिंदू समुदाय के व्यापारियों ने सुरक्षा की गारंटी होने तक अपने व्यवसाय को बंद रखने का फ़ैसला लिया था. इसके साथ-साथ, विढ में एक भूख हड़ताल कैंप भी लगाया गया था.
हालांकि शनिवार को हत्या के ख़िलाफ़ विरोध के छठे दिन व्यापारियों ने एक बार फिर क्वेटा-कराची हाइवे को जाम कर दिया, जिसके बाद उपायुक्त खुज़दार, वली मोहम्मद बड़ेच और एसएसपी खुज़दार अरबाब अमजद कासी के अलावा अन्य अधिकारी व्यापारियों से बातचीत करने विढ पहुँचे थे. (bbc.com)
अमेरिका में सिर्फ पुरुषों को सेना में अनिवार्य सेवा देने के लिए पंजीकरण कराने के कानून को बदलने की मांग हो रही है. वैसे आखिरी बार अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी, लेकिन इस कानून के होने के और भी कई मायने हैं.
मिलिट्री सेलेक्टिव सर्विस कानून के तहत पुरुषों को 18 साल की उम्र का होते ही सेना में सेवा देने के लिए पंजीकरण कराना होता है. अब सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचीका दायर कर अदालत को फैसला करने के लिए कहा गया है कि यह लैंगिक भेदभाव है या नहीं. वैसे तो इसे एक ऐसे सवाल के रूप में भी देखा जा सकता है जिसका कोई खास व्यावहारिक असर नहीं है. पिछली बार सेना में अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी और उसके बाद से आज तक सेना में सब अपनी मर्जी से आते हैं.
लेकिन पंजीकरण की अनिवार्यता उन आखिरी बचे खुचे नियमों में से है जो पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करते हैं. महिला अधिकार समूह उन समूहों में से हैं जिनका मानना है कि इसे बरकरार रखना नुकसानदायक है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियंस वीमेंस राइट्स प्रोजेक्ट की निदेशक रिया तबाक्को मार भी इस अपील में शामिल हैं. वो कहती हैं कि पुरुषों के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने से "उन पर एक ऐसा गंभीर बोझ डाला जा रहा है जो महिलाओं पर नहीं डाला जा रहा है."
जो पुरुष पंजीकरण नहीं करवाते वो विद्यार्थी लोन और सरकारी नौकरी की पात्रता खो सकते हैं. पंजीकरण नहीं करवाना एक बड़ा जुर्म भी है जिसकी सजा 2,50,000 डॉलर तक का जुर्माना और पांच साल तक की जेल है. लेकिन तबाक्को मार कहती हैं कि इस अनिवार्यता के और भी असर हैं. वो कहती हैं, "यह एक अत्यधिक हानिकारक संदेश भी देता है कि महिलाएं अपने देश की सेवा करने के लिए पुरुषों के मुकाबले कम फिट हैं."
संसद के दायरे में
तबाक्को मार यह भी कहती हैं, "यह कानून यह भी संदेश देता है कि किसी सशस्त्र संघर्ष के समय घर रह कर परिवार का ख्याल रखने में पुरुषों महिलाओं से कम लायक हैं. हमें लगता है कि इस तरह के स्टीरियोटाइप पुरुषों और महिलाओं दोनों को नीचे दिखाते हैं." तबाक्को मार इस कानून को चुनौती देने वाले नैशनल कोअलिशन फॉर मेन और दो और पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों का एक समूह और नैशनल आर्गेनाईजेशन फॉर वीमेन फाउंडेशन ने भी अदालत से इस मामले पर सुनवाई करने की अपील की है. अगर अदालत सुनवाई करने की मांग को मान लेती है तो वो यह फैसला नहीं ले रही होगी कि महिलाओं को भी पंजीकरण करवाना होगा या नहीं. अभी अदालत सिर्फ इतना तय करेगी कि मौजूदा सिस्टम संवैधानिक है या नहीं.
अगर यह असंवैधानिक करार दिया जाता है तो यह संसद के ऊपर होगा कि वो सबके लिए पंजीकरण अनिवार्य करने का कानून लागू करेगी या पंजीकरण की अनिवार्यता को ही खत्म कर देगी. यह मामला पहले भी अदालत में आ चुका है लेकिन यह तब की बात है जब अमेरिकी सेना में महिलाएं सक्रीय रूप से लड़ाई की भूमिका में नहीं जा सकती थीं. लेकिन सेना के नियम अब बदल चुके हैं.
2013 में महिलाओं को भी लड़ाई की भूमिका में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई और उसके दो साल बाद सेना में हर भूमिका को महिलाओं के लिए खोल दिया गया. अमेरिकी सरकार सुप्रीम कोर्ट के जजों से अपील कर रही है कि वो इस मामले पर सुनवाई ना करें और इस पर संसद को फैसला लेने दें.
सीके/एए (एपी)
दुनिया के सबसे अमीर देशों के वित्त मंत्रियों ने फेसबुक और अमेजॉन जैसी विशालकाय टेक कंपनियों पर कम से कम 15 फीसदी का कॉरपोरेट टैक्स लगाने का ऐतिहासिक फैसला किया है.
जी-7 के देशों ने शनिवार को इस ऐतिहासिक फैसले पर सहमति जता ही दी, जिसे लेकर सालों से चर्चा चल रही थी. इस कदम का मकसद बहुराष्ट्रीय कंपनियों, खासकर विशालकाय टेक कंपनियों से ज्यादा धन वसूलना है.
लंदन में बैठक के बाद ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सूनक ने कहा, "मैं बहुत खुशी के साथ इस बात का ऐलान कर रहा हूं कि कई साल के विचार विमर्श के बाद आज जी-7 के वित्त मंत्री एक ऐतिहासिक फैसले पर पहुंच गए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कर व्यवस्था में सुधार करेगा. यह पेचीदा मसला है और आज पहला कदम उठाया गया है.”
समझौते का स्वागत
जर्मनी के वित्त मंत्री ओलाफ शोल्त्स ने इस समझौते का ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा, "कर-न्याय के लिए यह बहुत अच्छी खबर है और दुनियाभर की कर-पनाहों के लिए यह बुरी खबर है. अब सबसे कम टैक्स लेने वाले देशों में अपना मुनाफा ले जाकर कंपनियां कर देने की जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगी.”
फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ला मेअर ने कहा कि यह समझौता एक शुरुआत है. उन्होंने कहा, "यह शुरुआती कदम है और आने वाले महीनों में हम यह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करेंगे कि न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स जितना अधिक हो सके, किया जाए.”
अमेरिकी वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने इस कदम को वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाला बताया. उन्होंने कहा कि बराबरी के नियम बनने से सभी देश सकारात्मक आधारों पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.
जी-7 में अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और कनाडा शामिल हैं. इटली अगले महीने वेनिस में होने वाली एक बैठक में इस प्रस्ताव को जी-20 देशों के सामने रखेगा.
क्या है वैश्विक न्यूननतम कॉरपोरेट टैक्स
मौजूदा वैश्विक कर व्यवस्था 1920 के दशक में बनाई गई थी. इसे बदलने पर बातचीत आठ साल से चल रही थी. हालांकि अमेरिका में नई सरकार बनने के बाद इस साल इस बातचीत की रफ्तार बढ़ी थी और अमेरिका ने ही 15 फीसदी टैक्स का यह प्रस्ताव पेश किया था. इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों से एक निश्चित न्यूननतम टैक्स लेने और उसके लिए विशेष नियम बनाने की बात है. ये नियम सुनिश्चित करेंगे कि कंपनियां कितना टैक्स देंगी और किस देश में देंगी. यह टैक्स दुनिया की 100 सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर लगाया जाएगा. इसका अर्थ होगा कि कंपनियों को एक न्यूनतम टैक्स तो देना ही होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसकी दर 15 फीसदी रखने का सुझाव दिया है. यानी यदि कोई कंपनी किसी देश में 15 फीसदी से कम टैक्स दे रही है, तो बाकी का टैक्स उसे टॉप-अप के तौर पर देना होगा.
यह व्यवस्था कर-पनाह कही जाने वाली उस व्यवस्था को तोड़ने की कोशिश है, जिसके तहत कंपनियां अपना मुनाफा सबसे कम टैक्स लेने वाले देशों में दिखाकर अधिक कर देने से बच जाती हैं. कर-पनाह उन देशों को कहा जाता है, जो कम टैक्स का लालच देकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने यहां कारोबार करने के लिए आमंत्रित करते हैं.
नई कर व्यवस्था की आलोचना
टैक्स जस्टिस नेटवर्क के प्रमुख आलेक्स कोबाम ने इस फैसले को ऐतिहासिक तो कहा, लेकिन इसे बहुत अन्यायपूर्ण बताते हुए इसकी आलोचना भी की है. डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में अर्थशास्त्री कोबाम ने कहा कि टैक्स कम से कम 25 प्रतिशत होना चाहिए था. उन्होंने कहा, "जी-7 ने जो इतनी कम दर रखी है, तो इसका अर्थ है कि जितना फायदा हो सकता था, उससे बहुत कम होगा. यह दिखाता है कि ओईसीडी और जी-7 देश किस तरह इस मकसद के खिलाफ हैं क्योंकि अमीर देश ही बाकियों के लिए नियम बनाते हैं. हमें इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाना होगा और ऐसा समझौता करना होगा जो सबके लिए फायदेमंद हो ना कि सिर्फ जी-7 के लिए.”
कंपनियों की प्रतिक्रिया
फेसबुक ने जी-7 की पहल का स्वागत किया है. हालांकि इस समझौते का असर फेसबुक के मुनाफे पर हो सकता है, लेकिन कंपनी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के उपाध्यक्ष निक क्लेग ने कहा, "हम इस महत्वपूर्ण प्रगति का स्वागत करते हैं. इसका अर्थ होगा कि फेसबुक को अलग-अलग जगहों पर ज्यादा टैक्स देना होगा.”
अमेजॉन ने भी इस कदम का स्वागत किया है. ऑनलाइन रीटेल कंपनी अमेजॉन के एक प्रवक्ता ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि जी-20 देशों और इन्क्लूसिव फ्रेमवर्क अलायंस के साथ विमर्श जारी रहेगा.” दुनिया की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों में शामिल गूगल ने उम्मीद जताई है कि जल्द से जल्द एक संतुलित समझौता होगा. एक प्रवक्ता ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि विभिन्न देश एक संतुलित और लंबे समय तक चलने वाले अंतिम समझौते पर जल्द से जल्द पहुंच जाएंगे.”
वीके/एए (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान ने एशिया और अफ्रीका में 2.5 करोड़ लोगों को बिजली खरीदने में असमर्थ बना दिया है. 2030 तक सभी को बिजली देने का वैश्विक लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है.
स्थायी ऊर्जा पर नजर निगरानी रखने वाली संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि प्रभावित लोगों में से दो-तिहाई उप-सहारा अफ्रीका में हैं, जिससे क्षेत्र में बिजली तक की पहुंच में असमानता बढ़ रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में कोविड-19 संकट ने नौकरियों और आय को प्रभावित किया है जिससे पंखे चलाने, बत्ती जलाने, टीवी और मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए आवश्यक बिजली सेवाओं के भुगतान के लिए लाखों लोगों ने संघर्ष किया. इससे पिछले दशक में हुई प्रगति को संकट पैदा हुआ है, जिस दौरान 2010 से करीब एक अरब लोगों ने बिजली तक पहुंच हासिल की थी. इसी प्रगति में 2019 में दुनिया की 90 फीसदी आबादी को जोड़ा गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र समर्थित लक्ष्य को महामारी ने प्रभावित किया है, उस लक्ष्य के तहत सभी के पास 2030 तक बिजली पहुंचनी थी. रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीका में जहां पिछले छह सालों में बिना बिजली वाले घरों की संख्या कम हो रही थी वहीं 2020 में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई. विश्व बैंक में ऊर्जा के लिए वैश्विक निदेशक दिमित्रियोस पापथानासियौ के मुताबिक, "बिजली तक पहुंच विकास के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर कोविड-19 के प्रभावों को कम करने और आर्थिक बढ़त हासिल करने के संदर्भ में." उन्होंने ध्यान दिलाया कि दुनिया में करीब 75.9 करोड़ लोग अब भी बिना बिजली के रहते हैं, उनमें से आधे कमजोर और संघर्षग्रस्त देशों में हैं.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र संघ आर्थिक और सामाजिक विभाग, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान और नियोजित नीतियों के तहत अनुमानित 66 करोड़ लोगों के पास 2030 तक बिजली की पहुंच नहीं होगी.
दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई या 2.6 अरब लोगों के पास 2019 में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच नहीं थी. रिपोर्ट में कहा गया कि एशिया के बड़े हिस्से में बढ़त के बावजूद ऐसे ही देखा गया. उप-सहारा अफ्रीका में समस्या सबसे गंभीर है, जहां अब भी लोग खाना पकाने के लिए मिट्टी का तेल, कोयला और लकड़ी जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ सेहत के लिए भी खतरनाक हैं.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोग घरों से काम करना बंद करें और दफ्तर आना शुरू करें. लेकिन कोविड-19 के बाद जितना रास्ता तय किया जा चुका है, क्या वहां से लौटना आसान होगा?
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
पिछले हफ्ते मीडिया से बातचीत में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने लोगों से घर की जगह दफ्तरों से काम करने का आहवान किया. उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कहा कि वे सामाजिक दूरी के नियमों को पालन करें लेकिन देश में कोरोना वायरस के लगातार कम होते मामलों का असर कामकाज पर दिखना चाहिए. प्रधानमंत्री मॉरिसन का यह बयान कई शहरों के मेयरों द्वारा की जा रही उस अपील के जवाब में आया है, जिसमें लोगों के दफ्तर न आने से बाजारों के खराब हाल का जिक्र किया गया था.
ब्रिसबेन के मेयर एड्रियन श्रीनर ने कहा था कि महामारी की ऑस्ट्रेलिया के राज्यों की राजधानियों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और सिटी सेंटरों के उद्योग धंधे लोगों के घरों से ही काम करने की मार झेल रहे हैं.
इस अपील पर मॉरिसन ने कहा, "मेरा संदेश बहुत साधारण है. अब दफ्तर जाने का वक्त आ गया है. राज्य और केंद्र सरकारों के कर्मचारी कह रहे हैं कि यह वापस दफ्तर जाने का वक्त है.” उन्होंने कहा कि देश में जो सुधार हो रहा है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तौर-तरीकों में वह नजर आना चाहिए और अब संक्रमण से निडर होकर ज्यादा लोगों को दफ्तरों में काम करने के लिए बुलाया जाना चाहिए.
दफ्तर नहीं जाना चाहते कर्मचारी
ऑस्ट्रेलिया के उद्योग समुदाय ने प्रधानमंत्री के इस बयान का स्वागत किया है. ऑस्ट्रेलियन इंडस्ट्री ग्रुप के चीफ एग्जिक्यूटिन इनेस विलोक्स ने ऑस्ट्रेलियन फाइनैंशल रिव्यू अखबार से कहा कि यह वाइट-कॉलर कर्मचारियों का मुद्दा है. उन्होंने कहा, "बहुत से नियोक्तो बता रहे हैं कि कर्मचारी दफ्तरों में अधिक समय बिताने का विरोध कर रहे हैं. ज्यादातर नियोक्ता अधिकतर कर्मचारियों को दफ्तरों में बुलाने पर सहमत हैं. ज्यादातर के लिए घर और दफ्तर का मिश्रित मॉडल काम कर रहा है.” इनेस कहते हैं कि जितने अधिक समय तक कर्मचारी दफ्तरों से दूर रहेंगे, उतना ही उनका अपने सहकर्मियों से संपर्क घटेगा और सहयोग, उत्पादकता व कुछ नवोन्मेष पर सीधा असर पड़ेगा.
सिडनी के एक अस्पताल में काम करने वाले डॉ. दीपक राय भी इस बात से सहमत हैं. वह कहते हैं कि घरों से काम करने का असर सामाजीकरण पर पड़ रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉ. राय ने कहा, "लोग घरों से काम करते हैं तो वे अपने सहयोगियों से मिलते-जुलते ही नहीं है. इसका असर सिर्फ काम पर ही नहीं, मूड पर भी होता है. अकेले में लोग नया नहीं सोच रहे हैं.”
डॉ. राय कहते हैं कि घर से काम करना बैंड-एड है, इलाज नहीं. वह कहते हैं, "लोग घरों से नहीं निकलेंगे बस, ट्रेन टैक्सियों का इस्तेमाल कम होगा. कैफे में चाय-कॉफी और रेस्तराओं में लंच नहीं बिकेगा. यह कोई सामान्य बात नहीं है. इसका चौतरफा असर होता है.”
सितंबर में ऑस्ट्रेलियन पब्लिक सर्विस कमीशन ने सरकारी अधिकारियों से कहा था कि जहां भी संभव हो वे, दफ्तर से ही काम करेंग.
कई उद्योग-धंधे इस बात से सहमत हैं कि घरों से काम करने ने आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है. प्रॉपर्टी काउंसिल के मुखिया केन मॉरिसन ने प्रधानमंत्री मॉरिसन के बयान का स्वागत करते हुए मीडिया से कहा, "सीबीडी (सेंट्रल बिजनस डिस्ट्रिक्ट) में गतिविधियां बने रहने के अहम फायदे हैं, सिर्फ छोटे उद्योगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी. मेलबर्न और सिडनी कोविड के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. अब लोगों को दफ्तरों में वापस लाने के लिए सरकार और कॉरपोरेट जगत की तरफ से प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है.”
उलटे कदम चलेगी दुनिया?
कोविड महामारी जब दुनिया में चरम पर थी और वर्तमान पीढ़ी ने पहली बार राष्ट्रीय स्तर के लॉकडाउन देखे तो एक बात बार-बार कही गई कि दुनिया अब कभी पहले जैसी नहीं हो पाएगी. लोगों का काम करने का तरीका, खरीदारी आदि का तरीका और यहां तक कि हाथ मिलाने तक का तरीका बदल गया था. ‘न्यू नॉर्मल' वाक्यांश का बार-बार प्रयोग किया जा रहा था और नए तौर-तरीकों के सामान्यीकरण पर समाजशास्त्रियों से लेकर कर्मचारी संघों तक में बहस हो रही थी.
जूम, वेबएक्स और टीम्स के टूल्स ने जब मीटिंग्स को आसान बना दिया तो दफ्तरों की जरूरत पर ही बहस होने लगी. नौकरियां उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट फ्लेक्सजॉब्स के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 65 प्रतिशत कर्मचारियों ने कहा कि महामारी के बाद भी वे घरों से काम करना जारी रखना चाहेंगे. 58 प्रतिशत ने तो यहां तक कहा कि उनकी कंपनी ने उन्हें दफ्तर आने पर मजबूर किया तो वे दूसरी नौकरी खोजना चाहेंगे. सिर्फ दो फीसदी कर्मचारी दफ्तर लौटना चाहते थे. मिश्रित मॉडल यानी कुछ दिन घर से काम और कुछ दिन दफ्तर से काम करने का विकल्प भी खासा पसंद किया गया.
मेलबर्न की मोनाश यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले अर्थशास्त्री डॉ. विनोद मिश्रा कहते हैं कि दुनिया उलटे कदम नहीं चलेगी. वह कहते हैं कि महामारी के दौरान जो कुछ हुआ, वह पहले से ही शुरू हो चुके एक चलन के लिए बस रफ्तार बढ़ाने जैसा था.
डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉ मिश्रा ने कहा, "महामारी के दौरान हमने जो देखा, वह तो कई साल से चल ही रहा था. लोग कारें नहीं खरीदना चाहते क्योंकि वे किराये पर कार लेकर चला सकते हैं. ऐसे कितने ही रेस्तरां खुल गए हैं जो सिर्फ मेन्युलोग या डोरडैश जैसी डिलीवरी के भरोसे ही चल रहे हैं और उन्हें अपने यहां बुलाकर लोगों को खाना खिलाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती. लोग घर का सामान तक ऑनलाइन से मंगा रहे हैं. दरअसल, उपभोक्ता संस्कृति का भौतिक बाजार से हटने का सिलसिला तो बहुत पहले शुरू हो चुका है. महामारी में तो बस उसने रफ्तार पकड़ ली. और बेशक, इसके आर्थिक असरात भी होंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि दुनिया अब उलटे कदम चलने वाली है.”
डॉ. मिश्रा कहते हैं कि उपभोक्ता सस्ता विकल्प खोजता है. वह बताते हैं, "अगर उपभोक्ता के लिए दफ्तर जाना एक महंगा विकल्प है, तो वह घर से काम करना ही चुनेगा. राजनेतओं के सामने चुनौती है कि वे उसे सस्ता विकल्प दें. और अर्थव्यवस्था तो अपना नया रास्ता बना ही लेगी.” (dw.com)
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में घोटकी के क़रीब सर सैयद एक्सप्रेस और मिल्लत एक्सप्रेस की टक्कर में कम से कम 40 लोगों की मौत हुई है और 100 से अधिक यात्री घायल हैं.
रेडियो पाकिस्तान के मुताबिक़ सोमवार सुबह डहरकी के क़रीब सर सैयद एक्सप्रेस और मिल्लत एक्सप्रेस में आमने-सामने से टक्कर हो गई.
रिपोर्ट के मुताबिक गंभीर रूप से घायल यात्रियों को अस्पताल भेज दिया गया है जबकि बोगियों में फंसे हुए यात्रियों को निकालने के लिए बचाव अभियान शुरू हो चुका है.
इमेज स्रोत,ISPR
रेलवे के मुताबिक़, मिल्लत एक्सप्रेस कराची से सरगोधा जबकि सर सैयद एक्सप्रेस रावलपिंडी से कराची जा रही थी.
दुर्घटना के बाद मिल्लत एक्सप्रेस की आठ और सर सैयद एक्सप्रेस के इंजन समेत तीन बोगियां पटरी से उतर गईं, जबकि कुछ बोगियां खाई में जा गिरीं.
यह दुर्घटना घोटकी के नज़दकी रेती और आवबाड़ू के रेलवे स्टेशन के बीच हुई है. इस घटना के बाद यहां पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी गई है.
इमेज स्रोत,ISPR
इमरान ख़ान ने किया ट्वीट
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दुर्घटना पर दुख जताते हुए ट्वीट किया है, "घोटकी में आज सुबह हुए दर्दनाक ट्रेन हादसे में 30 लोगों के मारे जाने से दुखी हूं. रेल मंत्री को घटनास्थल पर पहुंचने, घायलों की मेडिकल सहायता और मारे गए लोगों के परिजनों की मदद करने को कहा है. रेलवे सुरक्षा में ख़ामियों को लेकर भी जांच के आदेश दिए हैं."
डीआईजी सखर फ़िदा हुसैन मुस्तुई ने 30 लोगों की मौत की पुष्टि की है और आशंका जताई है कि बोगियों में और फंसी हुई लाशें और ज़ख़्मी लोग हो सकते हैं, भारी मशीनरी आ चुकी है और राहत कार्य जारी है.
सूचना मंत्री फ़र्रूख़ हबीब ने बताया है कि यह इलाक़ा पंजाब सीमा के नज़दीक है तो इसलिए घायलों को घोटकी और पंजाब के अस्पतालों में भेजा गया है जबकि फ़ौजी भी बचाव कार्य में लगाए गए हैं.
अब्दुर रहमान फ़ैसलाबाद से रात आठ बजे सर सैयद अहमद एक्सप्रेस में सवार हुए थे. उन्होंने बीबीसी संवाददाता रियाज़ सुहैल को बताया कि ट्रेन 100 से अधिक स्पीड में चल रही थी और वो जाग रहे थे. तक़रीबन 3 बजकर 40 मिनट पर ज़ोरदार झटके लगे, ड्राइवर ने ट्रेन रोकने की कोशिश की लेकिन वो टकरा गई.
उन्होंने बताया कि मिल्लत एक्सप्रेस की कुछ बोगियां ट्रैक से उतरकर दूसरे ट्रैक पर आ गई थीं और ट्रेन ख़ुद आगे चली गई थी.
"उस वक़्त बहुत अंधेरा था. हादसे के बाद आसपास के लोग मोटरसाइकिलों पर पहुंचने शुरू हुए. उन्होंने मोटरसाइकिलों और मोबाइल की रोशनी के सहारे लोगों को बाहर निकाला. पांच बजे के क़रीब सूरज की रोशनी हुई तब तक पुलिस और एंबुलेंस भी वहां पहुंच गई थी."
अब्दुर रहमान के मुताबिक़ दिल दहला देने वाला मंज़र था, ज़ख़्मी चीख़ रहे थे और उनमें यह सब देखने की हिम्मत नहीं थी.
उन्होंने बताया, "स्थानीय लोगों ने बहुत मदद की जो यात्री सुरक्षित थे उन्हें ट्रैक्टरों ट्रॉलियों और मोटरसाइकिलों पर लेकर ढरकी पहुंचाया."
इमेज स्रोत,MAJID SUNGHER
लगातार होते रेल हादसे
पाकिस्तान में लगातार रेलवे दुर्घटनाएं होती रही हैं और उसमें लोगों की मौत भी होती है.
इस साल मार्च में कराची से लाहौर जाने वाली कराची एक्सप्रेस रोहड़ी शहर के नज़दीक पटरी से उतर गई जिसमें 30 लोग घायल हुए थे और एक शख़्स की मौत हुई थी.
बीते साल फ़रवरी में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के शहर रोहड़ी में कराची से लाहौर जाने वाली पाकिस्तान एक्सप्रेस और एक बस की टक्कर में कम से कम 22 लोगों की मौत हुई थी.
उससे पहले साल 2019 में पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के ज़िले रहीम यार ख़ान में कराची से रावलपिंडी जाने वाली तेज़गाम एक्सप्रेस में आग लगने के कारण 74 लोगों की मौत हुई थी.
"महिलाओं से नफ़रत करने वाली इस दुनिया में मासूमियत पर दोहरे मापदंड हावी हैं. यहां दूसरों की राय का सम्मान नहीं किया जाता है. जहाँ एक महिला का तिरस्कार करने वाले पुरुष की तो तारीफ़ होती है, लेकिन अगर वही काम कोई महिला करे तो उससे नफ़रत की जाती है. जहाँ अपने प्रियजनों से प्यार करने और उनसे बात करने वाली महिला तो ग़लत है, लेकिन महिला की तस्वीर के सामने हस्तमैथुन करने वाले पुरुष का वीडियो इंटरनेट पर वायरल कर दिया जाता है."
ये शब्द पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर के हैं जो उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो के साथ पोस्ट किए गए हैं.
इस वीडियो में हानिया बेहद उदास अवस्था में अपनी बहन से बात करते हुए लगातार अपने आंसू पोंछती नज़र आ रही हैं.
हानिया आमिर सोशल मीडिया पर हर दिन अपनी तस्वीरें और वीडियो शेयर करती हैं और ख़बरों में बनी रहती हैं.
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हमेशा हंसती मुस्कुराती और 'फ़नी स्टोरी' पोस्ट करने वाली हानिया को परेशान होकर यह सब कहना पड़ा?
पिछले शुक्रवार को हानिया का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वे अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लाइव थीं और फ़ैंस से बातचीत कर रही थीं. इसी बीच उसी लाइव सेशन के दौरान एक फ़ैन ने उनकी तस्वीर के सामने कथित तौर पर हस्तमैथुन किया.
यह सब इतना अविश्वसनीय था कि हानिया के चेहरे के भाव अचानक बदल गए और उन्होंने लाइव सेशन बंद कर दिया.
कुछ ही देर बाद किसी ने इस लाइव सेशन का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया, जो पिछले 24 घंटे से वायरल है.
हालाँकि, इस वीडियो की अभी तक पुष्टि नहीं की जा सकी और कुछ यूज़र्स का मानना है कि यह वीडियो फ़ेक और एडिटेड है.
लेकिन ये सिर्फ़ इस वीडियो का मामला नहीं है, बल्कि इस मामले में एक और वीडियो भी शामिल है.
हानिया का एक और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें वह निर्देशक वजाहत रऊफ़ के बेटों आशिर वजाहत और नायल वजाहत के साथ गायक हसन रहीम का गाना 'तेरी आरज़ू' गा रही हैं जिसमें वो उन्हें गले लगाती हैं.
ग़ौरतलब है कि हानिया अक्सर अपने पोस्ट में निर्देशक वजाहत के बेटों और उनकी पत्नी को 'परिवार' का हिस्सा बताती हैं और इस वीडियो के साथ भी उन्होंने कहा था कि "अपने भाई को ऐसे संभाला जाता है जब वह 101 बुख़ार में तप रहा हो."
जहां ज़्यादातर यूज़र्स लाइव सेशन में हानिया आमिर का यौन उत्पीड़न किये जाने की निंदा कर रहे हैं, वहीं कई यूज़र्स वजाहत रऊफ के बेटों के साथ बनाए गए वीडियो के आधार पर हानिया पर 'बेशर्मी और अश्लीलता फैलाने' का आरोप लगा रहे हैं.
इन दो वीडियो की वजह से हानिया पिछले दो दिनों से पाकिस्तान के टॉप ट्रेंड में शामिल हैं.
"हम कितने निराश लोग हैं?"
कुछ यूज़र्स पाकिस्तानी समाज के इस दोहरे मापदंड पर बहस कर रहे हैं, जहां वजाहत रऊफ़ के बेटों को गले लगाने वाले वीडियो के लिए हानिया की आलोचना करना जायज़ समझा जा रहा है, वहीं कोई भी उनके साथ होने वाले उत्पीड़न की बात नहीं कर रहा है.
इस संबंध में ख़ालिद नाम के एक यूज़र ने लिखा, "शर्म और उसूल की वजह से कोई इसके बारे में बात नहीं कर रहा है. और कुछ दिन पहले यही लोग मलाला युसूफज़ई को लेक्चर दे रहे थे कि उन्हें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए."
यह भी पढ़ें: मलाला यूसुफ़ज़ई के इंटरव्यू पर पाकिस्तान में क्यों हुआ हंगामा
हुदा इस्माइल ने हानिया के दोनों वीडियो पर कमेंट करते हुए लिखा, "हानिया को अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ है. लेकिन उनके साथ जो हुआ उसके बारे में कोई बात क्यों नहीं कर रहा है? क्या इतने फ़ैंस के सामने किसी लड़की को परेशान करना ठीक है?"
सिद्दीक़ा ने कमेंट किया, "अफ़सोस है इन लोगों पर. हानिया आमिर के लाइव सेशन में जो हुआ वह उन सभी महिलाओं के लिए रेड सिग्नल है जो फ़ैंस को ज्वाइन करने देती हैं. आपको किसी का अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही वे सार्वजनिक हस्ती क्यों न हों. इससे आपकी नैतिकता और मूल्यों का पता चलता है."
दानिश हसन ने लिखा, "हानिया के साथ जो हुआ वह बेहद निंदनीय है और ऊपर से लोग हानिया को दोषी ठहराते हुए हंस रहे हैं?"
शेख नाम के एक यूज़र ने कमेंट किया, ''हम कितने निराश लोग हैं?' उस बेचारी की हंसी पल भर में गायब हो गई और उसने लाइव बंद कर दिया... मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं और अब तो इन लोगों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए दुआ करने का भी दिल नहीं करता."
कार्रवाई करने की मांग
कुछ यूज़र्स का कहना है कि हानिया को लाइव सेशन के दौरान उनकी तस्वीर पर अपनी हवस निकलने वाले उस व्यक्ति को ढूंढकर उसके ख़िलाफ़ केस दर्ज कराना चाहिए.
कई यूज़र्स सोशल मीडिया ट्रोलिंग के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में भी बात करते हुए दिखाई दिए. कई यूज़र्स का कहना था कि आपकी मज़ाक़ और ट्रोलिंग किसी की जान भी ले सकते हैं, इसलिए इंटरनेट पर ज़िम्मेदारी दिखाएं.
मलाइका नाम की एक यूज़र ने इस संबंध में एक थ्रेड पोस्ट किया जिसमें उन्होंने हानिया के उत्पीड़न की निंदा की और साथ ही उन लोगों की कड़ी आलोचना की जिन्होंने उनका मज़ाक़ उड़ाया और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया.
उन्होंने लिखा, "आखिर हानिया की क्या ग़लती थी? इस समाज में लड़की होना एक गाली है. हानिया जिस मानसिक पीड़ा से गुज़र रही है मैं सोच भी नहीं सकती. एक लड़की के रूप में उनके साथ जो हुआ वह सबसे ख़राब उदाहरण है."
"हम हमेशा ऐसा ही करते हैं और फिर ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि हमने कुछ नहीं किया. एक समाज के रूप में हम असफल हो गए हैं. हम किसी इंसान को इतनी बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं कि वह आत्महत्या कर ले और फिर हम ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं.
हानिया की भी हो रही आलोचना
हानिया आमिर अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी पर्सनल लाइफ़ शेयर करती रहती हैं और किसी न किसी वजह से चर्चा में रहती हैं.
इस ओर इशारा करते हुए सानिया गुलज़ार नाम की एक यूज़र ने कमेंट किया, "दिक्कत तब होती है जब आप सब कुछ शेयर करने की कोशिश करते हैं. जितना अधिक आप अपने जीवन को साझा करने का प्रयास करेंगे, उतनी ही आपकी आलोचना होगी, इसलिए लोगों से सहानुभूति मांगने के बजाय, जीवन में कुछ नियमों और अनुशासन का पालन करने का प्रयास करें."
यसरा नाम की यूज़र की भी ऐसी ही राय है. उन्होंने लिखा, "आप अपनी जगह पर सही हैं. लेकिन कोई चीज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए बिना भी अपने प्रियजनों का ख्याल रख सकते हैं... हर चीज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट करना जरूरी नहीं होता."
यह भी पढ़ें: मिस्र की वो पहली महिला पायलट, जिन्होंने 1933 में किया था कमाल
कई यूज़र्स का कहना है कि हानिया अक्सर अपने दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए 'फ़नी वीडियो' पोस्ट करती हैं, लेकिन आलोचक उन्हें नीचा दिखाने और उनकी खुशियों को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं छोड़ते.
याद रहे कि अगस्त 2018 में भी हानिया ने अपने फैंस द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. "अभिनेत्री का कहना था कि एक सेलिब्रिटी होने का यह मतलब नहीं है कि हम सार्वजनिक संपत्ति हैं और फैंस के भेस में पुरुष हमें परेशान कर सकते है."
अभिनेत्री का कहना था कि 'ऐसी हरकत करने वालों को फैन कैसे कहा जा सकता है, जो हमारे प्यार के जवाब में हमारा यौन उत्पीड़न करते हैं और हमें शर्मिंदगी, दर्द और मानसिक पीड़ा देते हैं.'
हानिया आमिर सोशल मीडिया का इस्तेमाल क्यों करती हैं ?
एक दिन पहले ही हानिया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट के ज़रिये बताया था कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल क्यों करती हैं. उनका कहना था कि "मैं यहां सोशल मीडिया पर अपने जीवन की छोटी-छोटी बातें साझा करती हूं जो कुछ लोगों को पसंद आती हैं, जबकि कुछ यूज़र्स सोचते हैं कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए."
हानिया ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर अपनी निजी ज़िंदगी इसलिए साझा करती हैं, ताकि वह अपने फैंस के संपर्क में रह सकें.
हानिया ने लिखा, "मैं यहां मुस्कान बिखेरने के लिए हूं, मुझे एक ऐसी लड़की के रूप में याद रखें जिसने अपनी सार्थक बातचीत से आपके दिलों को छू लिया और जो मेहरबान, रहम दिल और प्यार करने वाली है."
"मुझे एक ऐसी लड़की के रूप में याद रखें, जिसने अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों की परवाह किए बिना हर पल का आनंद लेने की कोशिश की."
-लॉरा बिकर
उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
उत्तर कोरिया ने हाल ही में एक नया क़ानून लागू किया है जिसके तहत विदेशी फ़िल्में, कपड़े या गालियाँ देने तक पर कड़ी सज़ा हो सकती है. मगर क्यों?
यून मी-सो कहती हैं वो तब 11 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार एक व्यक्ति को मौत की सज़ा दिए जाते देखा क्योंकि उन्हें दक्षिण कोरिया के एक ड्रामे का वीडियो पास रखने के लिए पकड़ा गया था.
इलाक़े के सारे लोगों को फ़रमान जारी किया गया था कि वो इस सज़ा को देखें. सरकार सबको ये स्पष्ट कर देना चाहती थी कि अवैध वीडियो रखने की सज़ा क्या है.
दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में अपने घर से उन्होंने बीबीसी को बताया, "ऐसा नहीं करने पर इसे देशद्रोह समझा जाता".
"मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस व्यक्ति की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई, मैं देख सकती थी कि वो रो रहा था. पट्टी पूरी तरह भीग गई थी. मैं ये देख हिल गई. उन्होंने उसे एक लकड़ी के खंभे से बाँधा, और गोली मार दी."
'बिना हथियारों के जंग'
कल्पना करिए कि आप हमेशा के लिए लॉकडाउन में हैं, ना इंटरनेट है, ना सोशल मीडिया, बस कुछ सरकारी टीवी चैनल हैं जो बताते हैं कि नेता क्या कह रहे हैं - ये उत्तर कोरिया है.
और अब वहाँ के नेता किम जोंग-उन ने इसे और सख़्त कर दिया है, वहाँ एक नया क़ानून लाया गया है. सरकार का कहना है कि इसे प्रतिक्रियावादी सोच को रोकने के लिए लाया गया है.
इसके तहत यदि किसी के पास दक्षिण कोरिया, अमेरिका या जापान के वीडियो का संग्रह मिला, तो उसे मौत की सज़ा मिलेगी.
अगर कोई ये वीडियो देखते पकड़ा गया तो उसे 15 साल जेल में बिताने पड़ सकते हैं.
और बात केवल देखने भर की नहीं है.
किम जोंग-उन ने हाल ही में सरकारी मीडिया को एक चिट्ठी लिखी जिसमें देश की युवा लीग से आह्वान किया कि वो युवाओं में "अप्रिय, व्यक्तिवादी, समाज-विरोधी बर्ताव" के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ें.
वो विदेशी भाषणों, हेयरस्टाइल और कपड़ों पर भी रोक लगाना चाहते हैं जिन्हें वो "ख़तरनाक ज़हर" बताते हैं.
दक्षिण कोरिया से चलने वाले एक ऑनलाइन प्रकाशन द डेली ने उत्तर कोरिया में अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि तीन लड़कों को इसलिए पुनर्शिक्षा शिविरों यानी एक तरह से बंदीगृहों में भेज दिया गया क्योंकि उन्होंने कोरियाई-पॉप के गायकों की तरह बाल रखे थे और घुटनों के ऊपर उनकी जींस फटी थी. हालाँकि बीबीसी इस दावे की पुष्टि नहीं कर सकता.
और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि किम जोंग-उन एक ऐसे युद्ध में जुटे हैं जो परमाणु हथियारों से नहीं लड़ी जा रही है. विश्लेषकों का कहना है, वो उत्तर कोरिया में बाहर से सूचनाओं को पहुँचने पर रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
बताया जा रहा है कि उत्तर कोरिया में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, लाखों लोग भूखे हैं और किम उनका पेट सरकारी प्रचार से भरने की कोशिश कर रहे हैं. वो नहीं चाहते कि लोगों को उनके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की चमक-दमक से भरी ज़िंदगी वाले टीवी सीरियल देखें जो एशिया के सबसे अमीर मुल्क़ों में से एक है.
कोरोना महामारी की वजह से उत्तर कोरिया, बाक़ी दुनिया से और ज़्यादा कट गया है. चीन से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई और व्यापार थम गया है. कुछ सप्लाई अब शुरू हो रही है, मगर वो काफ़ी सीमित है.
इस वजह से देश की पहले से बदहाल अर्थव्यवस्था और बुरी हालत में पहुँच गई है जहाँ ज़्यादातर पैसा परमाणु हथियार बनाने में लगा दिया जाता है.
किम जोंग उन ने इस साल के आरंभ में ये स्वीकार किया था कि लोग "अब तक की सबसे बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं जिस पर हमें क़ाबू पाना है".
क़ानून क्या कहता है?
डेली एनके को इस क़ानून की एक प्रति मिली है जिसके संपादक ली सांग यॉन्ग ने बीबीसी को इसकी जानकारी दी.
उन्होंने कहा,"इसमें कहा गया है कि अगर किसी कामगार को पकड़ा गया, तो फ़ैक्टरी के प्रमुख को सज़ा मिलेगी, और अगर कोई बच्चा समस्या करता है तो उसके माता-पिता को सज़ा दी जाएगी."
वो कहते हैं कि इसका इरादा युवाओं के मन में दक्षिण कोरिया को लेकर किसी भी सपने या अरमान को ख़त्म कर देना है.
यॉन्ग ने कहा, "दूसरे शब्दों में, सरकार ने ये तय कर लिया है कि अगर दूसरे देशों की संस्कृति का यहाँ के युवाओं को पता चला तो वो विरोध में बदल सकता है."
पिछले साल उत्तर कोरिया से भाग निकलने में कामयाब रहे कुछ लोगों में शामिल चोइ जोंग-हून ने बीबीसी को बताया कि वक़्त जितना कठिन होता है, नियम, क़ानून और सज़ा भी वैसे ही सख़्त होते जाते हैं.
वो कहते हैं, "मनोविज्ञान के हिसाब से अगर आपका पेट भरा हो और आप दक्षिण कोरिया की कोई फ़िल्म देखते होंगे तो ये मनोरंजन होगा. मगर खाना ना हो, लोग जूझ रहे हों, तो ऐसे में लोगों के मन में असंतोष जन्म ले सकता है."
इसका फ़ायदा होगा?
इसके पहले उत्तर कोरिया में जब-जब सख़्ती की गई, लोगों ने विदेशी फ़िल्में देखने का नया रास्ता निकाल लिया जो आम तौर पर चीन से स्मगल होकर आती हैं.
चोई कहते हैं वर्षों से ये फ़िल्में पेनड्राइव से आती रही हैं जिन्हें आसानी से छिपाया भी जा सकता है और जिन्हें पासवर्ड से सुरक्षित भी रखा जा सकता है.
उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
वो कहते हैं, "अगर तीन बार ग़लत पासवर्ड डाला तो यूएसबी सारा डेटा उड़ा देता है. अगर सामग्री ज़्यादा संवेदनशील है तो आप ऐसी भी सेटिंग कर सकते हैं कि एक ही ग़लत पासवर्ड से वो डिलीट हो जाए."
"कई बार ऐसी भी सेटिंग कर दी जाती है कि वो वीडियो एक ही कंप्यूटर पर चले, यानी उसे केवल आप देख सकते हैं, दूसरों को नहीं दे सकते."
मी-सो बताती हैं कि कैसे उनके घर के पास लोग फ़िल्में देखने के लिए उपाय निकाला करते थे. वो बताती हैं कि कैसे एक बार उन्होंने कार की बैट्री को एक जेनरेटर से जोड़ टीवी चलाया.
वो याद करती हैं कि उन्होंने तब एक दक्षिण कोरियाई ड्रामा "स्टेयरवेय टू हेवेन" देखा था. ये एक लड़की की प्रेम कथा है जो पहले अपनी सौतेली माँ और फिर कैंसर से लड़ती है. ये ड्राम उत्तर कोरिया में 20 साल पहले काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.
चोई बताते हैं कि विदेशी वीडियो को लेकर लोगों में दिलचस्पी और बढ़ने लगी जब चीन से सस्ते सीडी और डीवीडी आने शुरू हुए.
सख़्ती की शुरूआत
लेकिन धीरे-धीरे उत्तर कोरिया सरकार को इसका पता चलने लगा. चोई बताते हैं कि कैसे 2002 में सुरक्षाकर्मियों ने एक यूनिवर्सिटी पर छापा मार 20,000 सीडी ज़ब्त किए.
वो कहते हैं, "ये केवल एक यूनिवर्सिटी थी. आप सोच सकते हैं कि पूरे देश में क्या हुआ होगा? सरकार हैरान रह गई. और फिर उन्होंने सख़्ती शुरू कर दी."
किम गेउम-ह्योक कहते हैं वो 2009 में 16 साल के थे जब उन्हें अवैध वीडियो शेयर करने वाले लोगों की धर-पकड़ के लिए बनाए गए एक विशेष दस्ते ने पकड़ लिया.
उन्होंने अपने एक दोस्त को दक्षिण कोरिया के पॉप गानों के कुछ वीडियो दिए थे जो उनके पिता चीन से स्मगल कर लाए थे.
वो बताते हैं कि उनके साथ वयस्कों जैसा बर्ताव हुआ, एक सीक्रेट कमरे में पूछताछ की गई जहाँ गार्डों ने उन्हें सोने नहीं दिया, लगातार चार दिन उन्हें पीटा जाता रहा.
अभी सोल में रह रहे किम कहते हैं, "वो जानना चाहते थे कि मुझे ये वीडियो कैसे मिले और मैंने कितने लोगों को दिखाया. मैं कैसे बताता कि ये मेरे पिता लेकर आए थे. मैं बस कहता रहा, मुझे नहीं मालूम, मुझे जाने दीजिए."
किम एक अमीर घर से आते हैं. बाद में उनके पिता ने गार्डों को घूस देकर अपने बेटे को रिहा करवा लिया. अब नए क़ानून आने के बाद इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.
तब ऐसे जुर्म में पकड़े जाने वाले कई लोगों को लेबर-कैंपों में भेज दिया गया. मगर इससे ये कम नहीं हुआ, तो सज़ा बढ़ा दी गई.
चोई बताते हैं कि पहले लेबर कैंप में एक साल रहने की सज़ा थी जिसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया.
वो कहते हैं, "आज अगर आप वहाँ जाएँ तो पाएँ कि वहाँ बंद 50% से ज़्यादा लोग इसलिए बंद हैं क्योंकि उन्होंने विदेशी फ़िल्में देखी थीं."
बीबीसी को कई सूत्रों ने बताया कि पिछले एक साल में उत्तर कोरिया में जेलों का दायरा बढ़ा दिया गया है जिससे पता चलता है कि सख़्त क़ानून का असर हो रहा है.
पर लोग विदेशी फ़िल्में क्यों देखते हैं?
किम कहते हैं कि वो जानना चाहते थे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है.
और सच जानने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई. वो चंद ख़ुशकिस्मत लोगों में से आते हैं जिन्हें बीजिंग में पढ़ने की अनुमति मिल सकी जहाँ उन्होंने पहली बार इंटरनेट को जाना.
वो बताते हैं, "पहले मुझे लगता था कि पश्चिम के लोग मेरे देश के बारे में झूठ बोलते हैं. विकीपीडिया पर कैसे भरोसा करूं? मगर मेरा दिल और दिमाग़ अलग बातें कह रहे थे."
"तो मैंने उत्तर कोरिया पर कई डॉक्यूमेंट्री देखीं, लेख पढ़े और तब मुझे लगा कि शायद ये सही है क्योंकि उनकी बातें समझ में आ रही थीं."
"और ये पता चलने तक बहुत देर हो चुकी थी, मैं वापस नहीं लौट सका."
आख़िर में किम गुएम-ह्योग सोल भाग गए.
मी-सो अब एक फ़ैशन एडवाइज़र हैं. सोल पहुँचने के बाद वो सबसे पहले उन जगहों पर गईं जिन्हें उन्होंने ड्रामे में देखा था.
मगर सबकी कहानी उनके जैसी नहीं होती.
अब वहाँ से भागना लगभग नामुमकिन है क्योंकि वहाँ सीमा पर "देखते ही गोली मारने" के आदेश लागू हैं.
चोई का परिवार उत्तर कोरिया में ही रह गया. वो नहीं मानते कि एकाध ड्रामा देखने से वहाँ दशकों से जारी सख़्त शासन बदल जाएगा. मगर उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया में लोग शक करने लगे हैं कि सरकार जो कहती है वो सच नहीं है.
वो कहते हैं, "उत्तर कोरिया के लोगों के मन में शिकायतें हैं, मगर उन्हें नहीं पता कि उसका क्या करें. वहाँ ज़रूरत है कि उन्हें जगाया जाए, बताया जाए."(bbc.com)
काबुल, 7 जून | अफगानिस्तान में रुकी हुई शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के प्रयासों के बावजूद हिंसा का स्तर ऊंचा बना हुआ है। केवल दो दिनों (3-4 जून)को झड़पों और सुरक्षा घटनाओं में कुल 119 लोग मारे गए। एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। टोलो न्यूज ने रविवार को एक अधिकारी के हवाले से बताया कि इस दौरान 196 सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं।
अधिकारी के मुताबिक, 3 जून को 54 लोग मारे गए थे, जबकि अगले दिन 65 लोग मारे गए थे।
119 पीड़ितों में से 102 सुरक्षा बलों के सदस्य थे।
अधिकारी ने कहा कि दो दिनों में 17 नागरिक हताहत हुए, जबकि 55 घायल हुए।
इस बीच, रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि 3 जून को आठ प्रांतों में अफगान रक्षात्मक अभियानों में 183 तालिबान मारे गए थे, और 4 जून को छह प्रांतों में 181 आतंकवादी मारे गए थे।
तालिबान ने हालांकि इन आंकड़ों को खारिज किया है।
देश के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार, बीते साल संघर्ष के कारण 2,950 से अधिक नागरिक मारे गए और 5,540 से अधिक घायल हो गए।
स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अलग-अलग हमलों में कुल हताहतों में से 330 महिलाएं और 565 बच्चे मारे गए थे। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 7 जून | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सोमवार को दो यात्री ट्रेनों की टक्कर में कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए।
लाहौर से कराची जा रही सर सैयद एक्सप्रेस ट्रेन घोटकी जिले के धारकी शहर के पास सरगोधा जाने वाली मिल्लत एक्सप्रेस ट्रेन से टकरा गई।
सुक्कुर डिवीजन में पाकिस्तान रेलवे के डिविजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर सज्जाद वाघो ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि मिल्लत एक्सप्रेस ट्रैक में खराबी के कारण इसके कुछ डिब्बे पटरी से उतरने के बाद भी रेलवे ट्रैक पर खड़ी थी, लेकिन इसकी सुचना उसी ट्रेक पर आ रही सर सैयद एक्सप्रेस के पास नहीं पहुंच सकी, जिसने अंत में उसे टक्कर मार दी।
जिला पुलिस अधिकारी उमर तुफैल ने मीडिया को बताया कि सर सैयद एक्सप्रेस के पांच डिब्बे भी पटरी से उतर गए और टक्कर के बाद पलट गए।
जियो न्यूज से बात करते हुए, घोटकी के उपायुक्त उस्मान अब्दुल्ला ने कहा कि घटना में 13 से 14 डिब्बे पटरी से उतर गए, जबकि छह से आठ डब्बे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए।
स्थानीय मीडिया ने अस्पताल के अधिकारी के हवाले से कहा कि मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि कई घायलों की हालत गंभीर है।
ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री ने मीडिया को बताया कि कुछ लोग अभी भी क्षतिग्रस्त डिब्बों में फंसे हुए हैं।
स्थानीय लोग और बचाव दल घटनास्थल पर पहुंचे, शवों और घायलों को बाहर निकाला और उन्हें पास के अस्पतालों में पहुंचाया।
अर्धसैनिक बल, पाकिस्तान रेंजर्स भी अपनी इंजीनियरिंग मशीनरी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए हैं और शवों और घायलों की तलाश के लिए पटरी से उतरे डिब्बों को काट रहे हैं। (आईएएनएस)
लीमा, 7 जून | पेरू के लोगों ने राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर में राज्य के अगले प्रमुख का चुनाव करने के लिए मतदान किया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को कुल 25,287,954 पेरूवासियों ने 12,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान किया। ये मतदान तय करेगा कि केइको फुजीमोरी या प्रेडो कैस्टिलो 2021 से 2026 की अवधि के लिए राष्ट्रपति पद के लिए शामिल होंगे या नहीं।
कोविड-19 महामारी के कारण, राष्ट्रीय चुनावी प्रक्रिया कार्यालय (ओएनपीई) ने मतदान केंद्रों पर जैव सुरक्षा उपायों की एक श्रृंखला स्थापित की थी।
इस चुनाव के लिए मतदान केंद्रों की निगरानी और शांति बनाए रखने के लिए हजारों पुलिस और सशस्त्र बलों के सदस्यों को तैनात किया गया।
राष्ट्रपति फ्रांसिस्को सगस्ती ने नागरिकों से चुनावों में मतदान करके 'लोकतंत्र को मजबूत करने' का अनुरोध किया।
लीमा में मतदान के बाद उन्होंने कहा, "लोकतंत्र को मजबूत करने और हमारे लिए ज्यादा से ज्यादा मतदाता होने के लिए आपना वोट डालना जरूरी है।"
राष्ट्रीय चुनाव जूरी (जेएनई) के अध्यक्ष, जॉर्ज सलास एरेनास ने कहा कि देश भर के मतदान केंद्रों पर 8,248 राजनीतिक प्रतिनिधि, 8,085 पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बलों के 7,518 सदस्य और 150 अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक स्थापित किए गए थे।
उन्होंने कहा कि अभी तक हिंसा की कोई घटना दर्ज नहीं हुई है।
फुजीमोरी और कैस्टिलो ने 11 अप्रैल को उम्मीदवारों के भीड़ भरे मैदान पर पहला दौर जीता था।
कैस्टिलो को 19.09 प्रतिशत वोट मिले और फुजीमोरी 13.36 प्रतिशत मतपत्रों के साथ उपविजेता बने।
शिक्षक संघ के नेता कैस्टिलो और पूर्व राष्ट्रपति अल्बटरे फुजीमोरी की बेटी फुजीमोरी, दो अलग-अलग राष्ट्रीय योजनाओं और सरकार के मॉडल का प्रतिनिधित्व करते हैं। (आईएएनएस)
बोगोटा, 7 जून | कोलंबिया के राष्ट्रपति इवान ड्यूक ने हिंसक राष्ट्रव्यापी विरोध के बीच रक्षा मंत्रालय के आधुनिकीकरण और राष्ट्रीय पुलिस में व्यापक सुधार की घोषणा की।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रविवार को ड्यूक के हवाले से कहा कि उपायों में हथियारों के व्यावसायीकरण, ले जाने और उपयोग को सीमित करने के साथ-साथ शिकायतों और रिपोटरें को प्राप्त करने, प्रसंस्करण और निगरानी के लिए एक नई प्रणाली को सीमित करने के लिए बहुत सख्त नियम शामिल हैं।
राष्ट्रपति ने पुलिस विश्वविद्यालय के निर्माण के साथ-साथ अधिकारियों के गश्त पर होने पर बॉडी कैमरों के उपयोग में तेजी लाने के साथ-साथ पुलिस के व्यावसायीकरण और पर्यवेक्षण पर भी जोर दिया।
ड्यूक ने कहा कि इस परिवर्तन में कोलंबियाई नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण और सम्मान भी शामिल है।
सुधार एक राष्ट्रीय हड़ताल के बीच में प्रस्तुत किया गया है जो 28 अप्रैल को प्रस्तावित कर वृद्धि के कारण शुरू हुई थी । हालांकि, इसे बाद में रद्द कर दिया गया था।
राष्ट्रीय लोकपाल कार्यालय के अनुसार, प्रदर्शनों के सिलसिले में कम से कम 59 लोग मारे गए हैं।
एक स्वास्थ्य सुधार का विरोध, जिसे भी समाप्त कर दिया गया है और नाजुक शांति प्रक्रिया की वकालत तब कुछ नए मुद्दे थे जिन्होंने लोगों को सड़कों पर उतारा। (आईएएनएस)
जर्मनी की सेना अफगानिस्तान से हजारों लीटर बीयर वापस लाने की योजना बना रही है क्योंकि सुरक्षा कारणों से सैनिकों को शराब पीने की इजाजत नहीं है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
जर्मन सेना 65 हजार से ज्यादा बीयर कैन अफगानिस्तान से वापस जर्मनी ले जाने वाली है. जर्मनी की एक पत्रिका डेर श्पीगल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 20 हजार लीटर बीयर और वाइन की 340 बोतलें वापस लानी होंगी. इसके अलावा शैंडी (फ्लेवर्ड बीयर) भी है, लेकिन उसकी मात्रा का पता नहीं है.
कमांडर अंसगर मेयेर ने जर्मन सैनिकों पर अफगानिस्तान में शराब पीने पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि जर्मनी के सैनिक अब वहां से वापसी के आखिरी चरण में हैं. डेर श्पीगल की रिपोर्ट कहती है कि उस इलाके पर संभावित हमलों के खतरे को देखते हुए यह प्रतिबंध लगाया गया है. जर्मन सेना पर स्थानीय सैनिकों को शराब बेचने पर भी पाबंदी है जिसके पीछे धार्मिक और कानूनी कारण हैं.
बाकी नाटो देशों की सेना के साथ ही जर्मन सेना के भी इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ देने की संभावना है. अमेरिका के बाद जर्मनी ने सबसे ज्यादा सैनिक इस अभियान के लिए भेजे थे. अब तक का जर्मनी की सेना का यह सबसे बड़ा और सबसे महंगा अभियान रहा है. जर्मन अखबार बिल्ड ने कहा कि सेना काबुल से 3,00 किलोमीटर उत्तर में स्थित मजार ए शरीफ में अपने कुछ उपकरण छोड़कर आएगी.
मजार ए शरीफ में लगभग एक हजार जर्मन हैं. चूंकि वे वापसी की तैयारी कर रहे हैं और इस दौरान उन्हें ज्यादा चौकस रहने को कहा गया है. इसीलिए कमांडरों ने शराब पीने पर भी पाबंदी लगा दी है.
जर्मन सेना और बीयर का नाता
जर्मन सेना का अफगानिस्तान में बीयर से नाता काफी पुराना है. 2008 में अफगानिस्तान में तैनात जर्मन टुकड़ी उस वक्त सुर्खियों में आ गई थी जब उसके पास दस लाख लीटर बीयर और 70 हजार लीटर वाइन पहुंचने की खबरें आई थीं. जर्मन लोग तब हैरान रह गए थे जब सेना ने बताया था कि 2007 में सैनिकों को इतनी शराब भेजी गई थी. जर्मन मीडिया ने लिखा था कि इस हिसाब से हर जर्मन सैनिक एक साल में औसतन 278 लीटर बीयर 128 गिलास वाइन पी रहा था.
विभिन्न सेनाओं की विदेशी मिशन के दौरान शराब पीने को लेकर नीति अलग-अलग रहती है. अमेरिका में सैनिकों आमतौर पर विदेशी मिशनों में शराब पीने की इजाजत नहीं होती जबकि ब्रिटिश और अन्य सेनाएं जवानों को ड्यूटी पर न होने के दौरान थोड़ी मात्रा में शराब पीने की इजाजत देती हैं.
कब तक होगी सेनाओं की वापसी
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप और तालिबान के बीच पिछले साल हुए एक समझौते के तहत अमेरिकी सेना की वापसी शुरू हो गई है और इसके 11 सितंबर तक पूरा हो जाने की संभावना है. समझौते के तहत तालिबान ने अमेरिका और नाटो बलों पर हमला नहीं करने का वादा किया था लेकिन एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक तालिबान ने उसे इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या वे वापसी करने वाले अमेरिकी और नाटो बलों पर हमला करेंगे. तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा था, "यह समय से पहले है और भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है." (dw.com)
एक अध्ययन कहता है कि चीन योजनाबद्ध तरीके से उइगुर और अन्य मुसलमान अल्पसख्यंकों की आबादी को कम कर रहा है. चीन में दो दशकों में मुसलमानों की आबादी एक तिहाई तक कम हो जाने की आशंका है.
एक तरफ तो चीन अपनी आबादी बढ़ाने की बात कर रहा है, जिसके तहत हाल ही में तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी गई है, लेकिन देश का एक तबका ऐसा भी है जिसके बारे में शोधकर्ता कहते हैं कि योजनाबद्ध तरीके से उसकी आबादी को कम किया जा रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार एक जर्मन शोधकर्ता ने चीन के विश्लेषकों और शोधकर्ताओं के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की जन्म-नियंत्रण की नीति के चलते आने वाले दो दशकों में उइगुर मुसलमानों और दक्षिणी शिनजियांग प्रांत में अन्य अल्पसंख्यकों में 26 लाख से 45 लाख के बीच कम बच्चे पैदा होंगे.
जर्मन रिसर्चर आड्रियान सेंत्स ने अपनी रिसर्च में उन चीनी अकादमिक और अधिकारियों की रिसर्च का अध्ययन किया है जो शिनजियांग में जन्म-नियंत्रण की नीतियों पर काम करते हैं. सेंत्स के मुताबिक आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि 2017 से 2019 के बीच 48.7 प्रतिशत कम बच्चे पैदा हुए हैं. सांत्स की अपनी तरह की यह पहली रिसर्च रिपोर्ट तब आ रही है जबकि दुनियाभर में चीन की शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों पर कथित अत्याचारों को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के आरोप हैं चीन उइगुर औ अन्य मुसलमानों को योजबद्ध तरीके से प्रताड़ित कर रहा है. मसलन, उइगुर और अन्य अल्पसंख्य मुसलमानों पर जन्म नियंत्रण की नीति लागू की गई है, क्षेत्र के बहुत लोगों को दूसरे इलाकों में भेज दिया गया है और लगभग दस लाख लोगों को ट्रेनिंग कैंपों में रखा गया है. हालांकि चीन इन आरोपों को झुठलाता रहा है.
अपने शोध के बारे में सेंत्स कहते हैं कि इससे चीन की सरकार की उइगुर आबादी के बारे में लंबी अवधि की योजना और उसकी मंशा का पता चलता है. हालांकि चीन की सरकार ने शिनजियांग में आबादी घटाने की ऐसी कोई सार्वजनिक योजना नहीं घोषित की है. लेकिन जन्म के आधिकारिक आंकड़ों, जनसंख्या के अनुमान और चीनी अकादमिकों व अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित नस्लीय अनुपात के आधार पर सेंत्स ने अनुमान लगाया है कि सरकार की नीति दक्षिणी शिनजियांग में बहुसंख्या हान आबादी को मौजूदा 8.4 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी तक कर सकती है.
सेंत्स कहते हैं, "यह तभी संभव है, जब कि वे वैसा ही करते रहें, जैसा वे करते आ रहे हैं. यानी, उइगुर जन्म दर को सख्ती से कम किया जाए." आड्रियान सेंत्स वॉशिंगटन स्थित विक्टिम्स ऑफ मेमॉरियल फाउंडेशन नामक अलाभकारी संस्था के लिए काम करते हैं. वह चीन की नीतियों की आलोचना करने वाली रिसर्च पहले भी कर चुके हैं जिसकी चीन ने निंदा की थी.
चीन ने पहले भी कहा है कि नस्ली अल्पसंख्यक आबादी के जन्मदर में कमी का कारण क्षेत्र की आबादी पर लागू कोटा पूरी तरह लागू करने और विकास के अन्य कारकों जैसे प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी और परिवार नियोजन सेवाओं की आसान उपलब्धता के कारण हुआ है. चीन के विदेश मंत्रालय ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "शिनजियांग में कथित नरसंहार की बात कोरी बकवास है. यह अमेरिका और पश्चिमी देशों में चीन विरोधी ताकतों के गुप्त अभिप्रायों से उपजी है, और उन लोगों का प्रचार है जो सायनोफोबिया (चीनी लोगों से डर) से ग्रस्त हैं." मंत्रालय ने यह भी कहा कि 2017 से 2019 के बीच शिनजियांग में जन्मदर में कमी हालात सी सच्ची तस्वीर नहीं है क्योंकि शिनजियांग में उइगुर लोगों की जन्मदर आज भी बहुसंख्य हान आबादी से ज्यादा है.
वीके/एए (रायटर्स)
ड्यूक और डचेज़ ऑफ ससेक्स ने अपने दूसरे बच्चे के जन्म की जानकारी दी है.
ब्रितानी शाही परिवार के प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने बताया कि उनकी बेटी लिलीबेट 'लिली'डायना माउंटबेटन-विंडसर का जन्म शुक्रवार की सुबह अमेरिका में कैलिफ़ोर्निया के सैंटा बार्बरा अस्पताल में हुआ.
प्रिंस हैरी और मेगन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बच्चे और माँ दोनों स्वस्थ हैं.
प्रिंस हैरी और मेगन ने कहा है कि उन्होंने अपनी बेटी लिलीबेट का नाम शाही परिवार की महारानी और परदादी के निकनेम पर दिया है. बीच का नाम दादी डायना के सम्मान में रखा गया है. (bbc.com)
बीजिंग, 6 जून| चीन में हर साल बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे राष्ट्रीय कॉलेज प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं, जिसे 'काओखाओ' कहा जाता है। दो दिनों तक चलने वाली इस काओखाओ परीक्षा में बैठने वाले लाखों चीनी छात्र देश के सबसे बेहतरीन और नामी विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के लिए सबसे ज्यादा अंक पाने की कोशिश करते हैं। इस परीक्षा के जरिए छात्रों को उनके शैक्षिक और पेशेवर भविष्य तय करने में मदद मिलती है। साल में एक बार होने वाली इस परीक्षा को देश का हर प्रांत अपने-अपने ढंग से करवाता है। यह परीक्षा पूरे देश में हर साल 7 जून को शुरू होती है और 2 दिन तक जारी रहती है। इस परीक्षा को देने वाले छात्रों के लिए तीन विषय सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं, पहला चीनी भाषा, दूसरा गणित और तीसरा विदेशी भाषा। आमतौर पर विदेशी भाषा में अंग्रेजी की ही परीक्षा होती है, लेकिन उसमें जापानी, रूसी या फ्रेंच भाषा का भी विकल्प होता है। यह परीक्षा इतनी आसान नहीं होती है। यह दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है।
चूंकि काओखाओ की परीक्षा पास करने के बाद ही छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला मिल पाता है, इसलिए इसका दबाव चीनी छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता पर भी रहता है। चीन में हाईस्कूल की पढ़ाई तीन साल की होती है, इसलिए हाई स्कूल के तीसरे साल के छात्र ही आम तौर पर इस परीक्षा में बैठते हैं। परीक्षा के 20 दिन बाद परिणाम घोषित कर दिए जाते हैं।
यहां चीनी विश्वविद्यालयों में आवेदन करने के दो तरीके होते हैं। पहला तरीका यह है कि छात्र काओखाओ से पहले 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उन विश्वविद्यालयों में आवेदन करते हैं, जिनका चुनाव किया गया है। दूसरा तरीका है कि काओखाओ का परिणाम घोषित होने के बाद छात्र अपने अंक के आधार पर 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उनमें विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए आवेदन करते हैं। परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद हरेक विश्वविद्यालय अपना कट-ऑफ लिस्ट निकालता है और उसी के आधार पर छात्रों को दाखिला दिया जाता है।
दरअसल, साल 1949 से पहले चीन में काओखाओ की व्यवस्था नहीं थी। देश में सभी विश्वविद्यालय अपनी जरूरतों के आधार पर छात्रों को दाखिला देते थे। साल 1966 में महान सांस्कृतिक क्रांति होने के कारण इस परीक्षा को बंद कर दिया गया, लेकिन साल 1976 में इस क्रांति की समाप्ति के साथ ही 1977 से यह परीक्षा फिर से शुरू की गई।
साल 1977 में चीन में कॉलेज के लिए प्रवेश परीक्षा को बहाल किए जाने से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी मेधावी लोगों को निखारा गया है, जिन्होंने सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद पिछले 40 सालों के स्थिर और तेज विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। माना जाता है कि काओखाओ की बहाली ने चीनी जनता के ज्ञान सीखने के उत्साह को न केवल प्रेरणा दी, बल्कि सारे समाज में ज्ञान का समादर करने का माहौल बनाया।
(लेखक : अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग में पत्रकार हैं) (आईएएनएस)