अंतरराष्ट्रीय
वॉशिंगटन, 10 जून | अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फाउची ने एक नए कोविड-19 संस्करण के जोखिमों की चेतावनी दी है,जिसका भारत में पहले पहचान की गई थी और जो अब यूके में व्यापक रूप से फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, डेल्टा संस्करण, जिसे वैज्ञानिक नाम बी,1,617,2 से जाना जाता है, भारत में पहली बार खोजा गया था और अब ये 60 से अधिक देशों में फैल गया है।
फाउची ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका में अनुक्रमित कोविड 19 संक्रमणों में से 6 प्रतिशत से अधिक में हाईली इंफेक्टिड डेल्टा संस्करण का पता चला हैं।
उन्होंने नए संस्करण को देश भर में फैलने से रोकने के लिए अधिक से अधिक अमेरिकियों से टीकाकरण कराने का आग्रह किया।(आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 10 जून| यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने दर्जनों देशों के लिए यात्रा सिफारिशों को कम जोखिम वाले स्तर पर संशोधित किया है, जो टीकाकरण वाले अमेरिकियों के लिए यात्रा मार्गदर्शन को समायोजित करता है। सीडीसी ने जापान, कनाडा, मैक्सिको, इटली, फ्रांस और जर्मनी सहित अपनी अद्यतन यात्रा सिफारिशों की सूची में 60 से अधिक देशों को 'कोविड19 बहुत उच्च' स्तर 4 से 'कोविड 19 उच्च' स्तर 3 तक कम किया है।
सीडीसी ने यात्रियों से कोविड 19 संक्रमण वाले गंतव्यों की यात्रा करने से पहले पूरी तरह से टीका लगवाने का आग्रह किया है।
सीडीसी के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका भर में टीकाकरण दरों में वृद्धि जारी है। अमेरिका की लगभग 51.8 प्रतिशत आबादी कोविड 19 वैक्सीन की एक डोज ले चुकी है। जबकि 42.5 प्रतिशत लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है। (आईएएनएस)
वेलिंग्टन, 10 जून (आईएएनएस)| न्यूजीलैंड ने जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए एक ब्लू प्रिंट जारी किया और कहा कि इस दिशा में अब और एक कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन आयोग की अंतिम सलाह में यह तय किया गया है कि अगले 15 वर्षों में न्यूजीलैंड को उत्सर्जन में कितनी कटौती करनी चाहिए।
यह ब्लू प्रिंट तीन अलग-अलग रास्ते भी प्रदान करता है जो सरकार से प्रस्तावित उत्सर्जन बजट के भीतर रखने के लिए अनुसरण कर सकता है।
प्रधान मंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने बुधवार को एक बयान में कहा कि न्यूजीलैंड के लिए कम उत्सर्जन भविष्य में संक्रमण कीवी व्यवसायों के लिए रोजगार और नए अवसर पैदा करेगा, घरेलू ऊर्जा बिलों को कम करने में मदद करेगा और कोविड-19 से रिकवरी को सुरक्षित करेगा।
अर्डर्न ने कहा, "गर्म, सूखे घरों, अधिक पैदल चलने और साइकिल चलाने और कम वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य को भी लाभ होगा।"
आयोग ने पहली बार स्पष्ट किया है कि कार्रवाई में देरी करने से अर्थव्यवस्था के लिए लंबे समय से चल रहे प्रयास कठिन और अधिक महंगे हो जाएंगे।
प्रधान मंत्री ने कहा कि अभी कार्रवाई नहीं करने पर 2050 तक न्यूजीलैंड को सकल घरेलू उत्पाद का 2.3 प्रतिशत खर्च करना पड़ेगा, जो एक्टिंग की अर्थव्यवस्था की लागत से लगभग दोगुना है।
उन्होंने कहा, "अब कार्य करना अधिक स्मार्ट और सस्ता है, इसीलिए हमने पिछले साढ़े तीन साल एक समृद्ध, कम उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था की नींव रखने में बिता दिए हैं"
सुमी खान
ढाका, 10 जून | बांग्लादेश का भ्रष्टाचार निरोधक आयोग (एसीसी) धन के गबन और भ्रष्टाचार के आरोप में कट्टरपंथी संगठन हेफाजत-ए-इस्लाम के 50 नेताओं से पूछताछ करेगा, जिसमें उसके शीर्ष नेता जुनैद बाबूनगरी और मामुनुल हक शामिल हैं।
एसीसी के सचिव मोहम्मद अनवर हुसैन हावलादर ने बुधवार शाम आईएएनएस को बताया कि संबंधित सूचना मिलने के बाद हेफजत नेताओं से पूछताछ की जाएगी।
हाउलाडर ने कहा कि एसीसी की चौथी बैठक बुधवार को हुई, जिसमें सात मुद्दों पर चर्चा हुई।
आयोग के जासूसों और देश के केंद्रीय बैंक बांग्लादेश बैंक के अधिकारियों द्वारा आरोपों में सच्चाई पाए जाने के बाद एसीसी द्वारा गबन और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का निर्णय लिया गया था।
एसीसी के अधिकारी अख्तर हुसैन आजाद के नेतृत्व में आठ सदस्यीय टीम का गठन 50 से अधिक आतंकवादी हेफाजत नेताओं के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए किया गया है।
बाबूनगरी और हक सहित नेताओं ने कथित तौर पर संगठन के फंड, विभिन्न मदरसों, अनाथालयों, इस्लामी संस्थानों और धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्राप्त विदेशी सहायता से भारी मात्रा में धन का गबन किया था।
हॉवलेडर ने कहा कि केंद्रीय बैंक की बांग्लादेश फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (बीएफआईयू) को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें 50 हेफाजत नेताओं के विशिष्ट वित्तीय विवरण मांगे गए हैं।
एसीसी ने पासपोर्ट कार्यालय और आव्रजन विभाग को भी पत्र भेजे हैं। सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद जांच टीम तय करेगी कि उनसे पूछताछ को लेकर आगे क्या करना है।
शीर्ष हेफाजत नेताओं की संपत्ति के संबंध में रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए भूमि कार्यालय को एक पत्र भी भेजा गया है।
इससे पहले, ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस (डीएमपी) की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने कहा था कि उसने देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक हिंसा फैलाने वाले कट्टरपंथी संगठन हेफाजत-ए-इस्लाम के दानदाताओं के रूप में इस साल मार्च में 313 लोगों की पहचान की है।
इसमें गिरफ्तार उग्रवादी नेता मामुनुल हक के बैंक खातों में 6 करोड़ टका का लेनदेन पाया गया।
पुलिस अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि हेफाजत ने रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता के नाम पर, मदरसों के विकास और उनके छात्रों के कल्याण के लिए, और अपने स्वयं के फंड के लिए, बड़ी मात्रा में दान एकत्र किया था, ज्यादातर प्रवासियों से, लेकिन इस धन का अधिकांश हिस्सा हक के निजी काम औ उग्रवाद पर खर्च किया गया था।(आईएएनएस)
काठमांडू, 9 जून | नेपाल के नए उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री रघुबीर महासेठ ने बुधवार को कोविड वैक्सीन के लिए भारत का समर्थन मांगा। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि विदेश मंत्री ने भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा से यह अनुरोध किया है, जिन्होंने उनसे शिष्टाचार भेंट की और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का बधाई संदेश सौंपा।
मंत्रालय ने कहा कि महासेठ और भारतीय राजदूत ने टीकों की आपूर्ति सहित आपसी हितों के विभिन्न मामलों पर चर्चा की। महासेठ को शुक्रवार को प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी।
अधिकारियों ने कहा कि अन्य नियमित मुद्दों के अलावा, बैठक भारत से कोविड के खिलाफ टीके आयात करने पर केंद्रित रही।
नेपाल को पहले भारत से कोविशील्ड की 20 लाख खुराकें मिल चुकी हैं, जिनमें से 10 लाख अनुदान के तहत दी गई थी और बाकी को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से रियायती दर पर खरीदा गया था। नेपाल को अब और दस लाख खुराक प्राप्त करने का इंतजार है, जिसके लिए वह पहले ही सीरम संस्थान को भुगतान कर चुका है।
नेपाल सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि भारत द्वारा वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद, नेपाल को शेष खुराक नहीं मिल सकी हैं।
अधिकारी ने कहा, टीके प्राप्त करने के लिए, हमने भारत सरकार को एक राजनयिक नोट भी लिखा है और वैक्सीन को जल्द से जल्द फिर से भेजना शुरू करने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट को एक अलग पत्र लिखा गया है। इसकी अति आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि पांच लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें कोविशील्ड की पहली खुराक तो दी जा चुकी है, मगर अब वे दूसरी खुराक की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन कोई टीका नहीं है।
अधिकारी ने कहा कि हम भारत सरकार पर मानवीय आधार पर दस लाख वैक्सीन को फिर से शुरू करने का दबाव डाल रहे हैं।
इससे पहले, नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने भी अपने भारतीय समकक्ष राम नाथ कोविंद को एक पत्र लिखा था, जिसमें नेपाल ने दस लाख वैक्सीन की मांग की थी, ताकि जो लोग अपनी दूसरी खुराक का इंतजार कर रहे हैं, उन्हें कवर किया जा सके। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भारतीय वैक्सीन प्रोड्यूसर से टीकों की खरीद की सुविधा के लिए भारत सरकार से समर्थन भी मांगा।(आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 9 जून| उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में बुधवार को बंदूकधारियों ने पोलियो वैक्सीन कर्मियों की टीम की सुरक्षा कर रहे दो पुलिसकर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी। डीपीए ने बताया कि हमला रूढ़िवादी और अस्थिर प्रांत खैबर-पख्तूनख्वा के मरदान जिले में हुआ।
पुलिस अधिकारी जुम्मा गुल ने डीपीए को बताया कि हमले में स्वास्थ्यकर्मी बाल-बाल बच गए।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अभी भी प्रचलित पोलियो के खात्मे के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र द्वारा वित्त पोषित अभियान के हिस्से के रूप में पाकिस्तान पांच दिनों के टीकाकरण अभियान चल रहा है।
यह अभियान 5 साल से कम उम्र के 3 करोड़ से अधिक बच्चों को लक्षित कर रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "हम स्थानीय प्रशासन के संपर्क में हैं और अभियान को जारी रखने के लिए स्थिति का आकलन कर रहे हैं।"
स्वास्थ्य वर्कर, युवा महिलाएं और पुलिस गार्ड साल में कई बार पांच साल की उम्र तक के बच्चों का टीकाकरण करने के लिए देशभर में घर-घर जाते हैं।
अलकायदा से जुड़े आतंकवादी अक्सर स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करते हैं। इससे पहले तालिबान आतंकवादियों ने दर्जनों वैक्सीन संचालकों और सुरक्षा अधिकारियों को मार डाला था।
उग्रवादियों ने स्वास्थ्यकर्मियों पर जासूसी का काम करने का आरोप लगाया और दावा किया कि पोलियो वैक्सीन का उद्देश्य मुस्लिम बच्चों को रोगहीन बनाना है।
पाकिस्तान ने 1994 में एक पोलियो कार्यक्रम शुरू किया और पोलियो को खत्म करने के बहुत करीब पहुंच गया, लेकिन 2019 में वैक्सीन के बहिष्कार और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर हमलों के बीच 147 मामले दर्ज किए गए, जो पांच साल में सबसे ज्यादा है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक पोलियो का एक ही मामला सामने आया है। (आईएएनएस)
चीन में एक कॉलेज के छात्रों ने अपने प्रिंसिपल को बंधक बनाने की एक घटना हुई है. पुलिस का कहना है कि उन्हें ये डर था कि उनकी डिग्री को कमतर किया जा सकता है और इसलिए वो विरोध कर रहे थे.
ये घटना जियांग्सु प्रांत में हुई जहाँ एक कॉलेज को एक एक अन्य वोकेशनल संस्थान के साथ विलय किए जाने की योजना पर विचार चल रहा जिसे कम प्रतिष्ठित माना जाता है.
बताया जा रहा है स्थिति को संभालने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा और कथित तौर पर लाठियों और पेपर स्प्रे के इस्तेमाल से कई छात्र घायल हो गए.
चीन में इस तरह के विरोध कम ही होते हैं. वहाँ इस तरह इकट्ठा होकर कोई प्रदर्शन करने के प्रयासों पर प्रशासन की पैनी नज़र रहती है.
स्थानीय पुलिस ने मंगलवाल को एक बयान जारी कर इस घटना के बारे में बताया कि जियांग्सु प्रांत की नानजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी के ज़ोंगबेइ कॉलेज में छात्र रविवार को जमा हुए और 55 वर्षीय प्रिंसिपल को कैंपस में ही 30 से भी ज़्यादा घंटे तक बंधक बनाए रखा.
पुलिस के अनुसार छात्रों ने गालियाँ दीं और क़ानून पालन करवाने आए लोगों का रास्ता रोका, और अधिकारियों के ये घोषणा करने के बाद भी कि ये योजना स्थगित की जाती है, उन्होंने प्रिंसिपल को नहीं जाने दिया.
सोशल मीडिया पर कैम्पेन पर रोक
सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्वीरें पोस्ट की गई हैं जिनमें पुलिस छात्रों को लाठियों से पीटती और उनपर पेपर स्प्रे (मिर्च पाउडर) करती दिखाई दे रही है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार एक महिला छात्रा के सिर से ख़ून भी बह रहा था.
पुलिस ने बयान के अनुसार कैम्पस में यथास्थिति बहाल करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने क़ानून के हिसाब से आवश्यक कार्रवाई की, और घायलों को फ़ौरन अस्पताल भेज दिया गया.
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सोशल मीडिया पर पुलिस कार्रवाई को लेकर एक कैम्पेन भी चलाया गया मगर बताया जा रहा है कि इससे जुड़े हैशटैग को मंगलवार दोपहर को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर ब्लॉक कर दिया गया.
लेकिन ट्विटर पर एक वीडियो दिखता है जिसमें हज़ारों नारे लगाते छात्रों को पुलिस ने घेरा हुआ है, और पुलिस उनकी ओर दौड़ती है तथा भीड़ से लोगों को अलग निकालकर खींचती है.
चीन के स्वतंत्र कॉलेज और यूनिवर्सिटी
जियांग्सु प्रांत के सभी छह कॉलेजों ने इस घटना के बाद कहा है कि वो मार्च में घोषित विलय की योजनाओं को स्थगित कर रहे हैं.
जियांग्सु शिक्षा विभाग ने कहा है कि ये फ़ैसला शिक्षा मंत्रालय के एक निर्देश की वजह से लिया गया था जिसमें कहा गया था कि स्वतंत्र कॉलेजों को वोकेशनल संस्थाओं में बदल दिया जाए.
इस घोषणा के बाद प्रातं के चार अन्य कॉलेजों में भी हाल के दिनों में प्रदर्शन हुए. चीन की सत्ताधारी पार्टी से संबद्ध अख़बार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार कुछ घटनाओं में "शारीरिक संघर्ष" भी हुआ.
चीन के स्वतंत्र कॉलेजों को यूनिवर्सिटी के अलावा सामाजिक संस्थाओं या व्यक्तियों से फ़ंड मिलता है. ऐसे छात्र जिन्हें नंबरों की वजह से यूनिवर्सिटी में दाख़िला नहीं मिल पाता, वो इन स्वतंत्र कॉलेजों में पढ़ाई के लिए आवेदन कर सकते हैं.
यहाँ से भी उन्हें यूनिवर्सिटी की डिग्री मिल जाती है, मगर ट्यूशन फ़ीस ज़्यादा चुकानी पड़ती है. चीन में पढ़ाई और नौकरियों को लेकर ज़बरदस्त प्रतियोगिता रहती है. वहाँ इस वर्ष यूनिवर्सिटी से रिकॉर्ड 90 लाख छात्र ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करेंगे. (bbc.com)
वाशिंगटन, 9 जून | नासा के जूनो अंतरिक्ष यान ने दो दशकों से अधिक समय में बृहस्पति के सबसे बड़े चंद्रमा के सबसे करीब उड़ान भरने के बाद बर्फीले कक्षा की झलक पेश करते हुए दो चित्र भेजे हैं। 7 जून को उड़ान के दौरान, जूनो बृहस्पति के सबसे बड़े चंद्रमा गैनीमेड की सतह के 645 मील (1,038 किलोमीटर) के भीतर आया और जुपिटर ऑर्बिटर के जूनोकैम इमेजर और इसके स्टेलर रेफरेंस यूनिट स्टार कैमरा से दो चित्र लिए।
तस्वीरें गैनीमेड की सतह को विस्तार से दिखाती हैं, जिसमें क्रेटर, स्पष्ट रूप से अलग डार्क और ब्राइट टेरेन और लंबी संरचनात्मक विशेषताएं संभवत: टेक्टोनिक दोषों से जुड़ी हुई हैं।
सैन एंटोनियो में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के जूनो प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर स्कॉट बोल्टन ने एक बयान में कहा, "यह इस पीढ़ी में इस विशाल चंद्रमा के लिए सबसे निकटतम अंतरिक्ष यान है।"
उन्होंने कहा, "हम किसी भी वैज्ञानिक निष्कर्ष को निकालने से पहले अपना समय लेने जा रहे हैं, लेकिन तब तक हम इस खगोलीय घटना पर आश्चर्य कर सकते हैं।"
अपने हरे रंग के फिल्टर का उपयोग करते हुए, अंतरिक्ष यान के जूनोकैम ²श्य-प्रकाश इमेजर ने पानी-बर्फ से घिरे चंद्रमा के लगभग पूरे हिस्से को कैप्चर कर लिया। बाद में, जब कैमरे के लाल और नीले रंग के फिल्टर को शामिल करते हुए उसी छवि के संस्करण नीचे आते हैं, तो इमेजिंग विशेषज्ञ गेनीमेड का एक रंगीन चित्र प्रदान करने में सक्षम होंगे।
इसके अलावा, जूनो की स्टेलर रेफ्रेंश यूनिट गैनीमेड के अंधेरे पक्ष (सूर्य के विपरीत पक्ष) की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर प्रदान की, जो बृहस्पति से बिखरे हुए मंद प्रकाश में नहाया हुआ था।
आने वाले दिनों में अंतरिक्ष यान अपने गैनीमेड फ्लाईबाई से और तस्वीरें भेजेगा।
गैनीमेड बुध ग्रह से बड़ा है और सौर मंडल का एकमात्र चंद्रमा है जिसका अपना मैग्नेटोस्फीयर है। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र युद्ध अपराध ट्राइब्यूनल ने मंगलवार को ‘बोस्निया का कसाई’ के नाम से चर्चित सर्बियाई जनरल रात्को म्लादिच की सजा कम करने की अपील को खारिज कर दिया है.
डॉयचे वैले पर वेज्ली डॉकरी की रिपोर्ट
बेल्जियम के वकील और इंटरनेशनल रेजिड्यूअल मकैनिजम फॉर क्रिमिनल ट्राइब्यूनल्स के मुख्य वकील सर्गे ब्रामेअर्त्स ने मंगलवार को डीडब्ल्यू को बताया कि वह संयुक्त राष्ट्र युद्ध अपराध ट्राइब्यूनल के उस फैसले से बहुत खुश हैं. संयुक्त राष्ट्र युद्ध अपराध ट्राइब्यूनल ने मंगलवार को ‘बोस्निया का कसाई' के नाम से चर्चित सर्बियाई नेता रात्को म्लादिच की सजा कम करने की अपील को खारिज कर दिया है.
बोस्नियन-सर्ब सेना के पूर्व जनरल म्लादिच को 1995 में सरायेवो के घेराव और स्रेब्रेनित्सा के नरसंहार का दोषी पाया गया है. इस नरसंहार में आठ हजार से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं. जुलाई 1995 में हुए इस नरसंहार में सर्ब सेना ने आठ हजार से ज्यादा बोस्नियाक मुसलमान पुरुषों और किशोरों को कत्ल कर दिया था.
2017 में अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल ने म्लादिच को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ उसने अपील की थी. संयुक्त राष्ट्र की अदालत ने मंगलवार को उसे खारिज कर दिया.
ब्रामेअर्त्स ने कहा कि वह इस फैसले से खुश हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "बेशक, आज आए फैसले से हम बहुत खुश हैं. आज ही अपनी टीम के साथ मैंने स्रेब्रेनीत्सा की मांओं से मुलाकात की है. और जाहिर है, वे इस फैसले से संतुष्ट हैं.” इस मामले में यह आखरी फैसला है जिसके बाद कोई अपील नहीं की जा सकती.
मामला अभी खत्म नहीं
ब्रामेअर्त्स के लिए अभी यह मामला खत्म नहीं हुआ है और बाल्कन युद्ध में हुए अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए और वह काफी कुछ करने की जरूरत समझते हैं. उन्होंने कहा, "यह एक अध्याय है जो पूरा हुआ है. लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्व यूगोस्लाविया में चार हजार से ज्यादा लोग हैं जिन्हें जांच के बाद अदालत के कठघरे में खड़ा करना है.”
ब्रामेअर्त्स ने बोस्निया-हर्जेगोविना के राष्ट्रपति की टिप्पणी की भी आलोचना की. कुछ बाल्कन नेता आज भी स्रेब्रेनीत्सा नरसंहार और उस इलाके में हुए अन्य अपराधों को ज्यादा बड़ा नहीं मानते. बोस्निया-हर्जेगोविना के राष्ट्रपति मिलोराद डोडिच ने हाल ही में कहा था कि स्रेब्रेनीत्सा नरसंहार को जातिसंहार नहीं था. ब्रामेअर्त्स ने इन टिप्पणियों को अस्वीकार्य बताया. उन्होंने कहा, "यह पीड़ितों और बच गए लोगों का अपमान है. यह राजनीतिक रूप से कोई जिम्मेदार टिप्पणी नहीं है.” उन्होंने कहा कि सभी को 1995 में हुए अत्याचारों को स्वीकार करना चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि एक ऐसा कानून होना चाहिए तो जातिसंहारों को खारिज करने और युद्ध अपराधों के गुणगान के खिलाफ हो. उन्होंने कहा कि बाल्कन के कुछ युद्ध अपराधियों को कुछ समुदायों में आज भी नायक माना जाता है.
ट्राइब्यूनल की विरासत
यूगोस्लाविया अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल 1993 में स्थापित किया गया था. इसे 2017 में भंग कर दिया गया था. ब्रामेअर्त्स 2008 से भंग किए जाने तक इस ट्राइब्यूनल के चीफ प्रॉसिक्यूटर रहे. इस ट्राइब्यूनल ने 161 लोगों पर मुकदमा चलाया, जो किसी भी अन्य अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल से अधिक है. ब्रामेअर्त्स कहते हैं कि बाल्कन क्षेत्र में किए गए अपराधों के संदर्भ में यूगोस्लाविया अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल की विरासत बहुत अहम है.
वर्तमान में युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाने के संदर्भ में ब्रामेअर्त्स कहते हैं कि शायद सोवियत संघ के खत्म होने के बाद 1990 के दशक में इसके लिए माहौल ज्यादा सकारात्मक था. उन्होंने कहा, "अगर आप आज की दुनिया को देखो, जहां सीरिया, यमन, म्यानमार और कई जगह युद्ध चल रहे हैं, दुर्भाग्यपूर्ण सत्य यह है कि आज अपराध से मुक्ति नियम बन गई है और जवाबदेही एक अपवाद.” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी, बेल्जियम और फ्रांस जैसे देशों में स्थानीय अदालतों कई अहम मामले उठा रही हैं.
बोस्निया का युद्ध अप्रैल 1992 में शुरू होकर दिसंबर 1995 तक चला था. इस युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे जिनमें से बोस्नियाक मुसलमान बहुलता में थे. अमेरिका के आहायो में विभिन्न पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था. जनरल फ्रेमवर्क अग्रीमेंट फॉर पीस इन बोस्निया एंड हर्जेगोविना नाम के इस समझौते पर पैरिस में दस्तखत हुए थे, जिसके बाद तीन साल लंबा यह युद्ध खत्म हो पाया था. (dw.com)
बांग्लादेश में ऐसे गिरोह के 11 सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है जिन पर शक है कि वे टिक टॉक का इस्तेमाल कर महिलाओं की तस्करी करते थे. आरोप है कि इस मंच का इस्तेमाल कर महिलाओं को फंसाया जाता था.
दुनिया भर में लोकप्रिय शॉर्ट वीडियो ऐप टिक टॉक का इस्तेमाल संदिग्ध तस्कर लड़कियों और महिलाओं को देह व्यापार में लुभाने के लिए बांग्लादेश में कर रहे थे. संदिग्ध तस्कर महिलाओं को अपने जाल में फंसाकर उन्हें भारत में देह व्यापार के लिए तस्करी करते थे. ढाका पुलिस ने 8 जून को इस गिरोह के 11 सदस्यों को गिरफ्तार किया है.
बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) की यूनिट ने एक बयान में कहा गैंग का सरगना रफीजुल इस्लाम रिडॉय उर्फ "टिक टॉक रिडॉय" नौजवान लड़कियों को टिक टॉक और अन्य सोशल मीडिया मंचों पर लुभाता कि उन्हें वह टिक टॉक मॉडल बना देगा. बयान के मुताबिक पीड़ितों को तस्करी कर दक्षिण भारत में ले जाया गया और उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर किया गया.
कई गिरोह सक्रिय
आरएबी के मुताबिक मई के आखिर में एक बांग्लादेशी महिला के कथित यौन उत्पीड़न की वीडियो फुटेज के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद गिरफ्तारी हुई, जिसके बाद गिरोह की जांच शुरू हुई थी. पिछले हफ्ते ही पुलिस ने संदिग्धों को हिरासत में ले लिया था. ढाका पुलिस के उपायुक्त मोहम्मद शाहिदुल्ला ने कहा कि ताजा गिरफ्तारी सोमवार को हुई जब बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी सीमावर्ती जिले में 17 से 22 साल की उम्र की लड़कियों और महिलाओं की कथित तस्करी के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था. शाहिदुल्ला ने बताया, "एक आरोपी ने बताया कि उसने एक हजार लोगों को भारत भेजा है."
पुलिस ने कहा कि बांग्लादेश में कुल नौ लोगों और भारत के बेंगलुरू में दो अन्य लोगों को कथित तौर पर तस्करी गिरोह का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. बेंगलुरु शहर के पुलिस आयुक्त कमल पंत ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है और वीडियो में दिखाए गए कथित यौन उत्पीड़न के आरोपी को भी गिरफ्तार किया गया है. शाहिदुल्ला कहते हैं कि 2019 के बाद से जब बांग्लादेश में टिक टॉक लोकप्रिय हुआ, कम आय वाले परिवारों की लड़कियों को आकर्षित करने के लिए इस तरह के गिरोह सक्रिय हो गए.
वह कहते हैं कि लड़कियों को पूल पार्टियों में बुलाया जाता, टिक टॉक वीडियो में स्टार बनाया जाता, उन्हें कॉल सेंटर, सेल्स और सर्विस सेंटर में अच्छी नौकरियों का सपना दिखाया जाता था.
तस्करी की बढ़ती घटनाएं
एशिया महिलाओं की यौनकर्म के लिए तस्करी का केंद्र बनता जा रहा है. हाल के दिनों में पुलिस ने कई ऐसे मामले पकड़े हैं जबकि महिलाओं की तस्करी करने वाले गिरोह एशिया के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय थे. मार्च में फिलीपींस में आप्रवासन अधिकारियों पर 44 महिलाओं को सीरिया में बेच देने के आरोप लगे थे. संसद की सीनेट द्वारा की गई जांच में पता चला था कि नौकरी का झूठा वादा कर महिलाओं को पर्यटक वीजा पर फिलीपींस से दुबई भेजा गया. 30 दिनों के बाद जब वीजा की समय-सीमा खत्म हो गई तब उन्हें जबरन सीरिया की राजधानी दमिश्क भेज दिया गया. वहां उन्हें 10,000 डॉलर तक की कीमत में बेच दिया गया.
हाल ही में नेपाल की सरकार ने महिलाओं को तस्करी से बचाने के लिए एक नए कानून का प्रस्ताव पेश किया था जिसमें 40 साल से कम उम्र की विदेश जाने वाली इन महिलाओं को अपने परिवार और स्थानीय वॉर्ड कार्यालय से सहमति लेनी होगी. अधिकारियों का कहना है कि कमजोर तबके की नेपाली महिलाओं को मानव तस्करी का शिकार होने से बचाने के लिए इस कानून की जरूरत है.
एए/वीके (एएफपी)
मंगलवार को दुनिया की कई बड़ी वेबसाइट अचानक बंद हो गईं. छोटी सी गड़बड़ी के कारण हुई इस घटना के असर बहुत ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि ऐसा फिर हो सकता है.
डॉयचे वैले पर यानोश डेलकर की रिपोर्ट
8 जून को अचानक दुनिया थम गई. दुनिया थम गई क्योंकि इंटरनेट थम गया था. हजारों छोटी-बड़ी और लोकप्रिय वेबसाइट काम करना बंद कर गईं. उन्हें वापस ऑनलाइन आने में लगभग एक घंटा लगा. इंटरनेट तो वापस आ गया लेकिन एक डर छोड़ गया कि ऐसा फिर हो सकता है. और ज्यादा हो सकता है. ज्यादा बड़े पैमाने पर हो सकता है. तब क्या होगा!
8 जून की घटना एक क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर फास्टली से जोड़ी जा रही है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि यह आखिरी बार नहीं था क्योंकि इंटरनेट से जुड़ा पूरा ढांचा बहुत नाजुक है. बंद होने वाली वेबसाइटों में व्हाइट, न्यू यॉर्क टाइम्स और अमेजॉन जैसे विशालकाय संस्थान शामिल थे. इसके अलावा ब्रिटिश सरकार की वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म रेडिट और कई मीडिया संस्थान जैसे बीबीसी, सीएनएन और फाइनैंशल टाइम्स की वेबसाइटों पर भी त्रुटि (एरर) मेसेज दिखे.
कैसे हुई रुकावट
विश्लेषकों का अनुमान है कि करीब एक घंटे तक रही इस आउटेज ने लाखों डॉलर का नुकसान किया होगा. इस घटना की वजह रही क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर कंपनी फास्टली के यहां हुई गड़बड़ी. अमेरिका की यह कंपनी इन वेबसाइटों का कुछ डेटा अपने सर्वर पर सेव करती है ताकि कंपनियों की वेबसाइट की स्पीड कम ना हो.
एक ईमेल में फास्टली के प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की है कि जिस कारण वेबसाइट प्रभावित हुईं, उस गड़बड़ी का पता लगा लिया गया है. हालांकि कंपनी ने विस्तार से नहीं बताया है कि किस तरह की गड़बड़ी ने इतने बड़े पैमाने पर वेबसाइटों को प्रभावित किया लेकिन यह जरूर कहा कि समस्या सुलझा ली गई है. लेकिन वेबसाइटों में अचानक आई यह रुकावट दिखाती है कि इंटरनेट का पूरा ढांचा बहुत नाजुक आधार पर टिका है. छोटी-छोटी हजारों कंपनियां इस ढांचे का आधार हैं और उनमें से किसी एक में भी आई छोटी सी गड़बड़ी से पूरी व्यवस्था चरमरा सकती है.
इस घटना का विश्लेषण करने वाली कंपनी केंटिक के निदेशक डग मैडोरी कहते हैं, "कुछ ही कंपनियां बहुत सारी सामग्री की देखभाल करती हैं. और बीते कुछ सालों में तो यह सूची और छोटी हो गई है. संभावना तो बहुत ही कम है, लेकिन अगर इन विशाल कंपनियों में से किसी एक में भी कभी रुकावट आ गई, तो बहुत सारी चीजें रुक जाएंगी."
फिर हो सकता है इंटरनेट बंद
फास्टली जैसी कई कंपनियां हैं जिन पर इंटरनेट का पूरा ढांचा टिका हुआ है. सैन फ्रैंसिस्को स्थित इस कंपनी के दुनिया के कई हिस्सों में सर्वर और डेटा सेंटर हैं. इन सेंटरों में इसकी ग्राहक वेबसाइटों का डेटा जमा होता है. तो जब किसी खास हिस्से में कोई ग्राहक वेबसाइट पर जाता है, तब उसे उस इलाके के फास्टली डेटा सेंटर में रखी गई असली डेटा की नकल नजर आती है. यानी वेबसाइट के असली सर्वर पर बोझ नहीं पड़ता और स्पीड तेज रहती है.
इसलिए 8 जून को जब फास्टली के डेटा सेंटर में गड़बड़ हुई, तब कुछ ग्राहकों के लिए ही वेबसाइट बंद हुईं. केंटिक का कहना है कि 75 प्रतिशत तक वेबसाइट बंद हो गई थी. इंटरनेट पर वेबसाइटों का इस तरह अचानक बंद हो जाना कोई नही बात नहीं है. हाल के सालों में कई बार ऐसा हुआ है. 2017 अमेजॉन की क्लाउड सर्विस AWS में गड़बड़ी हुई थी तो वेबसाइट घंटों तक बंद रही थी. पिछले साल दिसंबर में भी एक गड़बड़ी ने गूगल की सेवाओं को प्रभावित किया था. और इस साल जनवरी में बिजनस मेसेजिंग ऐप स्लैक की सेवाएं प्रभावित हुई थीं.
लेकिन ताजा घटना पहले हुईं घटनाओं से ज्यादा परेशान करने वाली है क्योंकि इसका पैमाना बहुत बड़ा था. एक साथ पूरी दुनिया में हजारों वेबसाइट प्रभावित हुईं. अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर स्वीडन की एक इंश्योरेंस एजेंसी तक और ब्रिटेन की बीबीसी से लेकर फ्रांस के अखबार लॉ मोंड तक तमाम बड़ी और अहम वेबसाइट पर इसका असर हुआ.
ज्यादा डरावनी वह संभावना है, जो इस घटना ने पैदा कर दी है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ऐसा फिर हो सकता है. केंटिक के डग मैडरी कहते हैं, "इंटरनेट कंपनियां कितना भी इस तरह की गड़बड़ियों को दूर करने की कोशिश कर लें जो अपने आप हो जाती हैं, इन्हें हमेशा के लिए और जड़ से कभी नहीं हटाया जा सकता. इसलिए भविष्य में भी इंटरनेट तो बंद होगा." (dw.com)
वाशिंगटन, 9 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.38 करोड़ हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 37.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये अंकाड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए।
बुधवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 173,887,864 और 3,744,378 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,390,694 और 598,323 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,996,473 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार
30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (17,037,129), फ्रांस (5,781,556), तुर्की (5,300,236), रूस (5,086,386), यूके (4,544,367), इटली (4,235,592), अर्जेंटीना (4,008,771), जर्मनी (3,712,595), स्पेन (3,711,027) और कोलंबिया (3,611,602) है।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 476,792 संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (351,309), मैक्सिको (229,100), यूके (128,118), इटली (126,690), रूस (122,409) और फ्रांस (110,299) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे हैं. इस यात्रा को उन्होंने लोकतंत्र के लिए निर्धारक क्षण बताया है.
अपने पहले विदेश दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के एजेंडे में जी-7, नाटो और यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लदीमीर पुतिन से जिनेवा में मुलाकात भी होगी. अपनी यात्रा से पहले बाइडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख में लिखा है, "पिछली सदी की रूप-रेखा देने वाले लोकतांत्रिक सहयोगी और संस्थान आधुनिक खतरों और दुश्मनों के सामने अपनी क्षमता साबित कर पाएंगे? मैं मानता हूं कि जवाब है, हां. और इस हफ्ते यूरोप में हमारे पास यह साबित करने का मौका है."
बाइडेन के ये शब्द अमेरिका के दुनिया के बारे में पारंपरिक रवैये को पुख्ता करने का संकेत भी देते हैं जो बीते चार साल में डॉनल्ड ट्रंप के राज में बदल गया था. बाइडेन अपने जी-7 के सहयोगियों ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के नेताओं से शुक्रवार को इंग्लैंड में मिलेंगे. फिर वह विंडसर कासल में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से भेंट करेंगे. वहां से बाइडेन ब्रसेल्स जाएंगे और 14 जून को नाटो की बैठक में हिस्सा लेंगे. 15 को यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति स्विट्जरलैंड जाएंगे, जहां वह व्लादीमीर पुतिन से मिलेंगे. 78 वर्षीय बाइडेन के लिए पद संभालने के बाद यह अब तक का सबसे सघन दौरा है, जिसकी रूप रेखा इस तरह तैयार की गई है कि पुतिन के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति को सिर्फ अमेरिका नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक जगत के नेता के तौर पर पेश किया जा सके. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन कहते हैं कि वह पूरी ताकत के साथ इस बैठक में जाएंगे.
'अमेरिका लौट आया है'
पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का तर्क था कि अमेरिका को दुनिया का थानेदार नहीं होना चाहिए. उनके समर्थकों के बीच यह रुख काफी लोकप्रिय भी था. लेकिन अब जबकि दुनिया कोरोना वायरस महामारी के सामने रेंग रही है, बाइडेन अमेरिका को पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन से लेकर आर्थिक प्रगति के रास्ते पर वापस लाने वाले रहनुमा के तौर पर पेश करना चाहते दिखते हैं. उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत फिर से शुरू कर ही दी है और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी नेतृत्व संभाल लिया है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन कहते हैं, "अमेरिका लौट आया है. विकल्प है, चीन का अधिपत्य या फिर कोलाहल."
हालांकि ट्रंप के दौर के सदमे से उबर रहे यूरोपीय देश इन संकेतों को लेकर कितने आशवस्त हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है. उनके और अमेरिका के बीच अभी भी संघर्ष यदा-कदा नजर आ रहा है. पिछले महीने फ्रांस ने जब संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल और हमास के बीच युद्ध विराम की मांग का प्रस्ताव पेश किया तो अमेरिका ने उसे अवरुद्ध कर दिया. अमेरिका ने जब अपने यहां वैक्सीन को रोके रखा तो यूरोपीय देशों ने नाराजगी जाहिर की. और अब जब नाटो की मुलाकात के दौरान ही बाइडेन तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन से मिलेंगे, तो उसे लेकर भी यूरोपीय देश सशंकित हैं. दोनों नेताओं ने एक दूसरे को लेकर तीखे बयान दिए हैं. बाइडेन ने तुर्की में मानवाधिकारों की गंभीर हालत पर चिंता जताई तो एर्दोआन ने कहा कि अमेरिका एक कीमती दोस्त खो सकता है.
जिनेवा पर निगाहें
सबसे ज्यादा निगाहें जिनेवा पर रहेंगी, जहां पुतिन-बाइडेन मुलाकात होगी. ब्लिंकेन कहते हैं कि अमेरिका ज्यादा स्थिर रिश्ते बनाना चाहता है. अमेरिका रूस के साथ परमाणु हथियारों को लेकर न्यू स्टार्ट संधि को आगे बढ़ाकर संदेश देना चाहेगा कि उसका मकसद काम है. साथ ही ईरान के मामले में उसे रूस की जरूरत भी है. लेकिन तनाव बहुत ज्यादा है. बाइडेन ने हाल ही में सोलरिवंड्स पर हुए साइबर हमले के लिए रूस को जिम्मेदार बताया था. वह यूक्रेन सीमा पर तनाव, पुतिन के विपक्षी अलेक्सी नावाल्नी की रिहाई और बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको के हाल ही में नागरिक विमान से पत्रकार को गिरफ्तार करने जैसे मुद्दे भी उठा सकते हैं.
जेक सुलविन कहते हैं कि पुतिन से मिलने के लिए बाइडेन मतभेदों के बावजूद नहीं बल्कि इसलिए जा रहे हैं कि दोनों देशों के बीच मतभेद हैं. उधर रूस की उम्मीदें भी काफी कम हैं. मॉस्को की एचएसई यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर दमित्री सुसलोव कहते हैं, "हमें रूस-अमेरिका संबंधों में किसी बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. रिश्तों में तनाव तो रहेगा."
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)
पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐप को हैक करके लाखों इनक्रिप्टेड संदेश पढ़े और फिर उनसे मिली जानकारियों के आधार पर 18 देशों में छापे मारकर सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन आयरनसाइड' में एएफपी और एफबीआई ने ऑस्ट्रेलिया, एशिया, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व में सक्रिय गैंग्स के सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस ऑपरेशन ने संगठित अपराध पर ऐसी चोट की है, जिसकी गूंज पूरी दुनिया के अपराध जगत में सुनाई देगी. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की पुलिस के इतिहास में यह एक अहम क्षण है.
ऑपरेशन में शामिल रही यूरोपीय एजेंसी यूरोपोल ने एक बयान में कहा,”यह ऑपरेशन दुनिया के चारों कोनों में अपराधियों की गतिविधियों को हिला देने वाला अब तक का सबसे परिष्कृत प्रयास था.”
ऑस्ट्रेलिया की पुलिस ने 224 लोगों की गिरफ्तारी की बात कही है जबकि न्यूजीलैंड पुलिस ने 35 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह ऑपरेशन 2018 में ऑस्ट्रेलिया फेडरल पुलिस (एएफपी) और एफबीआई ने मिलकर शुरू किया था. इसका जरिया आपराधिक गैंग्स के बीच प्रचलित संदेश भेजने वाली ऐप एनोम को हैक करना था. गैंग्स समझते रहे कि यह ऐप सुरक्षित है लेकिन पुलिस इसमें घुसपैठ कर चुकी थी और उनके संदेश पढ़ रही थी.
बेखौफ अपराधी
एफफपी कमीशनर रीस केरशॉ ने बताया, "हम संगठित अपराध की पिछली जेब में मौजूद थे. वे बस ड्रग्स, हिंसा और एक दूसरे पर हमले करने और मासूम लोगों की हत्याओं की ही बातें करते हैं.”
पुलिस के मुताबिक अपनी बातचीत में ये अपराधी एकदम खुले तौर पर सब कुछ कहते थे और कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं होती थी. केरशॉ ने मिसाल के तौर पर बता कि वे लोग साफ तौर पर बताते थे कि कहां मिलेंगे और कौन क्या करेगा.
अधिकारियों को जिन हमलों के बारे में जानकारी मिली, उनमें ऑस्ट्रेलिया पर एक कैफे पर मशीन गन से हमला शामिल था जिसमें एक ही परिवार के पांच लोगों को निशाना बनाया गया था. अधिकारी उस हमले को रोकने में कामयाब रहे.
ऑस्ट्रेलिया में एक ही दिन में इतिहास के सबसे ज्यादा छापों के दौरान पुलिस ने 104 हथियार और 45 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग ढाई अरब रुपये नकद बरामद किए.
जर्मनी में पुलिस के छापे हेसे और फ्रैंकफर्ट के इर्द गिर्द केंद्रित थे. सुरक्षा बलों ने वीजबाडेन, में भी कुछ गिरफ्तारियां की हैं. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता स्टीव ऑल्टर ने बताया कि मंगलवार को कई जगहों पर छापे मारे गए हैं और यह कार्रवाई सिर्फ जर्मनी में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी ही है.
हाईटेक होते अपराधी
विभिन्न देशों की पुलिस को यह कामयाबी जिस एनोम ऐप को हैक कर मिली, वह बहुत परिष्कृत ऐप थी और उसे बेहद सुरक्षित बनाया गया था. उसका हर संदेश एनक्रिप्टेड था और कैमरे आदि के जरिए भी उसमें घुसपैठ की कोई गुंजाइश नहीं थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह ऑपरेशन लगभग तीन साल तक चला जिसमें दसियों लाख संदेश पढ़े गए और तब जाकर कार्रवाई की गई.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जबकि अपराधियों को इतनी आधुनिक ऐप्स का इस्तेमाल करते पकड़ा गया. पिछले साल यूरपीयन पुलिस ने एन्क्रोचैट नाम का एक अत्याधुनिक सिस्टम हैक किया था जिसे अपराधी गैंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे. इसी साल की शुरुआत में बेल्जियम के अधिकारियों ने स्काईएक नाम का एक ऐप हैक चैट सिस्टम हैक कर दर्जनों अपराधियों को पकड़ा था और 17 टन से ज्यादा कोकीन बरामद की थी.
वीके/सीके (एपी/डीपीए)
-शालू यादव
बीबीसी ने भारत से मिल रही मदद और उसके साथ वर्तमान संबंधों को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से बातचीत की.
इस दौरान पीएम केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संदेश भी दिया और बताया कि चीन से भी उन्हें मदद मिली है साथ ही उन्होंने नेपाल-भारत संबंध की वर्तमान स्थिति के बारे में अपने विचार रखे.
पढ़िए, बीबीसी से उनकी बातचीत के कुछ अंश:
सवालः कोरोना महामारी के दौरान नेपाल ने बहुत मुश्किल समय देखा. क्या भारत से आपको उतनी मदद मिली जितनी उम्मीद थी?
जवाबः वैसे मुझे कोई नकारात्मक बात नहीं करनी है. फिर भी हो सकता है कि ये कोर्ट के फ़ैसले की वजह से हो या वैक्सीन की कमी की वजह से हो या भारत में ऐसा लहर फ़ैल रहा था उसकी वजह से हो क्योंकि ख़ुद भारत मुसीबत में था.
मगर हम ये सोचते हैं कि जितना हमको मदद मिलना चाहिए था... एक पड़ोसी... और जिसके संबंध ऐसे जुड़े हुए हैं कि भारत में अगर कोविड कंट्रोल हुआ है और नेपाल में नहीं हुआ तो भारत में कंट्रोल हुआ का कोई मायने नहीं रखता. तो भी ये ट्रांसमिशन हो ही जाएगा.
अगर हम बॉर्डर सील भी कर दें तो भी ये नहीं हो पाएगा क्योंकि स्थानीय लोगों के दोनों तरफ संबंधी हैं. इतने पड़ोस में रहते हैं कि उनका रहना बसना सब साथ ही साथ होता है. ऐसे संबंध है कि रोक कर भी हम नहीं रोक पाएंगे.
हमको इतनी मदद मिलनी ही चाहिए... ये भारत के हित के लिए भी है.
सवालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए क्या संदेश है?
जवाबः मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन करूंगा कि वे दूसरे देशों से थोड़ा फर्क करें. हम पड़ोसी हैं. हमारी सीमाएं खुली हैं और आवागमन है. अगर दोनों देशों के बीच में पहाड़ होते तो सीमाएं खुली होने के बावजूद आना जाना मुश्किल हो जाता. लेकिन दोनों तरफ खेत खलिहान हैं. एक घर सीमा के इस तरफ है तो एक घर सीमा की दूसरी तरफ. यहाँ के लोगों का वहाँ हर चीज़ के लिए आना जाना होता है.
इसिलिए इन सब बातों को भी ध्यान में रखें. हमारा मित्रतापूर्ण संबंध है उसे भी ध्यान भी रखे.
भारत को चाहिए हमें पूरी तरह से मदद करे. ये मैं नहीं कहता हूं कि भारत मदद नहीं कर रहा है. हम लिक्विड ऑक्सीजन और दवाइयाँ बहुत सारी चीज़ें ला रहे हैं भारत से. भारत सपोर्ट कर रहा है. मैं धन्यवाद दूंगा भारत को कि उसने सबसे पहले हमें वैक्सीन दिया.
सवालः क्या नेपाल पर अब चीन का प्रभाव ज़्यादा है क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान चीन आपकी ज़्यादा मदद कर रहा है?
जवाबः इसमें पॉलिटिक्स को बीच में लाने की कोई ज़रूरत नहीं हैं. इसमें किसी के प्रभाव की कोई बात नहीं है. भारत वैक्सीन देगा, चीन देगा, अमेरिका देगा, ब्रिटेन देगा... जो देगा ठीक है. ये वैक्सीन का मामला है... पॉलिटिक्स का मामला नहीं है. इसलिए इस पर पॉलिटिक्स नहीं करना चाहिए और दोनों पड़ोसियों को हम बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं क्योंकि एक ने हमको 18 लाख दे दिया दूसरे ने 20 लाख दे दिया. दोनों से मदद मिल रही है. दोनों से मेडिकल उपकरण मिल रहे हैं. इसलिए दोनों देशों को धन्यवाद देते हैं.
सवालः पिछले छह सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आपके बीच कुछ मनमुटाव आया. आज की तारीख़ में नेपाल के भारत के साथ संबंध पर आपका क्या मत है?
जवाबः एक तो मेरा मानना है कि पड़ोसी हैं इसलिए समस्याएं होती हैं. समस्याएं पैदा क्यों होती हैं? चिली और अर्जेंटीना के आदमी से न कोई प्रेम न कोई घृणा का संबंध है. आज कल फ़ेसबुक का जमाना है उससे कुछ इधर उधर हो भी सकता है लेकिन उसकी संभावना बहुत कम हैं. वहाँ जाना भी नहीं है और वहाँ के लोगों को यहाँ आना भी नहीं है. न प्रेम का न घृणा का संबंध है. जब पड़ोस होता है तो वहाँ प्रेम और समस्याएं पैदा होते रहते हैं.
सवालः तो क्या प्रेम अब समस्याओं में बदल गया है?
जवाबः कभी कभी ग़लतफ़हमी भी पैदा हुई थी. अब ग़लतफ़हमियाँ या नामसमझी हट गई हैं. उसी पर हमें उलझते नहीं रहना चाहिए. हमें चाहिए कि भविष्य को देखें और आगे बढ़ें. हमको नकारात्मक पहलुओं को नहीं सकारात्मक पहलुओं को आगे बढ़ाना है.
ट्रांसजेंडर लोगों को काम पर रखने वाली बांग्लादेशी कंपनियों को टैक्स में छूट दी जा सकती है. क्योंकि सरकार उन लोगों की नौकरी की संभावनाओं को बढ़ावा देना चाहती है. इसे समुदाय के लोगों के लिए सकारात्मक कदम बताया जा रहा है.
बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने हाल ही में संसद में बयान दिया कि अगर कोई कंपनी अपने यहां कुल कर्मचारियों में 10 प्रतिशत या कम से कम 100 ट्रांसजेंडरों को काम पर रखती है तो उसे टैक्स में सीधे छूट मिलेगी. इस प्रस्ताव के बारे में कमाल ने संसद में कहा, "तीसरा लिंग समुदाय हाशिए पर है और समाज का वंचित वर्ग है." बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर समुदाय दशकों से समाज से कटा हुआ है. कमाल ने कहा, "दूसरों की तुलना में, थर्ड जेंडर समुदाय पिछड़ रहा है...और मुख्यधारा के समाज से बाहर निकल गया है. इसमें सक्रिय लोगों को शामिल कर सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जा सकता है. ऐसे लोगों को उत्पादन-उन्मुख व्यवसाय में रोजगार दिया जा सकता है."
अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशियाई देशों में ट्रांसजेंडर अक्सर कम उम्र में ही अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं. उन्हें ना तो अच्छी शिक्षा मिल पाती है और ना ही नौकरी. आखिरकार उन्हें भीख मांग कर या गरीबी में अपना जीवन बिताना पड़ता है. पिछले साल नवंबर में ढाका में किन्नर समुदाय के लोगों की इस्लामी शिक्षा के लिए केंद्र खोला गया था. इसके मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद कहते हैं, "जो लोग ट्रांसजेंडर होते हैं वे भी इंसान होते हैं, उन्हें भी शिक्षा का अधिकार है. उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है."
योजनाओं से ज्यादा की जरूरत
बांग्लादेश सरकार का अनुमान है कि देश में 11,500 ट्रांसजेंडर हैं जबकि अधिकार समूहों का कहना है कि उनकी आबादी एक लाख से अधिक हो सकती है. 2013 में सरकार ने ऐतिहासिक फैसले में एलजीबीटी प्लस को तीसरे लिंग की मान्यता दी थी, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं आया है और समलैंगिक सेक्स अब भी गैर कानूनी है.
अधिकार समूहों ने नए प्रस्ताव का स्वागत किया, जिसके संसद से पारित होने की उम्मीद है, लेकिन समूहों ने सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया यह प्रस्ताव ठीक से क्रियान्वित किया जाए. अधिकार समूह संपोर्कर नोया सेतु की जोया शिकदर कहती हैं, "ऐसी कई घोषणाएं हैं जो कि ट्रांसजेंडर समुदाय के समर्थन में की जाती हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर योजनाएं काम नहीं करतीं. सरकार को इन योजनाओं पर नजर रखने की जरूरत है."
इसी साल मार्च में देश में पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर ने समाचार पढ़कर इतिहास रचा था. 29 वर्षीय तश्नुआ आनन ने ट्रांसजेंडर लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण और नियोक्ताओं के लिए जागरूकता प्रशिक्षण सत्र आयोजन की मांग की है. उन्होंने कहा, "यह एक अच्छी पहल है, लेकिन ये कदम बहुत बड़े पैमाने पर उठाए जाने चाहिए. ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भी अपने कौशल को विकसित करने की जरूरत है, तभी जाकर उन्हें नौकरी पर रखा जा सकता है."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
हथियारों की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एंट्री हो चुकी है. और वे हमारे अंदाजे से कहीं ज्यादा तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं. हाल ही में एक युद्ध में यह दिखाई भी दिया.
डॉयचे वैले पर रिचर्ड वॉलकर की रिपोर्ट
दुनिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू हो चुकी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हथियारों की दौड़ में बाकी सबको पीछे छोड़ दिया है. ये हथियार सेनाओं को ज्यादा तेज, ज्यादा स्मार्ट और ज्यादा सक्षम बना रहे हैं. लेकिन, बेकाबू होकर ये पूरी दुनिया के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है.
जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है. डीडब्ल्यू की नई डॉक्युमेंट्री ‘फ्यूचर वॉर्सः एंड हाउ टु प्रिवेंट देम' में हाइको मास ने कहा, "हम बिल्कुल इसके बीच में हैं. यह सच है जिसका सामना हमें करना ही होगा.”
रेस शुरू हो चुकी है
दुनिया के ताकतवर मुल्कों के बीच आर्टिफिशियल हथियारों की यह होड़ और दौड़ शुरू हो चुकी है. घातक हथियारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के समूह के पूर्व अध्यक्ष अमनदीप सिंह गिल कहते हैं यह दौड़ सेनाओं के बीच ही नहीं बल्कि नागरिक जीवन में भी पैठ बना चुकी है. अमेरिका की ‘नैशनल सिक्युरिटी कमीशन ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' की हालिया रिपोर्ट में भी यह बात काफी उभरकर आई है.
इस रिपोर्ट में युद्ध के नए परिप्रेक्ष्यों पर बात की गई है जहां एक एल्गोरिदम की दूसरे से लड़ाई की संभावना का जिक्र है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संभावित विरोधी लगातार उन्नत हो रहे हैं इसलिए निवेश बढ़ाना होगा.
चीन की नई पंचवर्षीय योजना में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शोध और विकास के केंद्र में जगह दी गई है और उसकी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी भविष्य के ‘इंटेलिजेंटाइज्ड' युद्ध की तैयारी कर रही है. रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने तो 2017 में ही कह दिया था कि जो भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नेतृत्व करेगा, वही दुनिया पर राज करेगा.
लेकिन सिर्फ ताकतवर देश ही इस क्षेत्र में तैयारी कर रहे हों, ऐसा नहीं है.
2020 के दूसरे हिस्से में जब दुनिया महामारी से जूझ रही थी, तब कॉकेशस इलाके में दो देश यद्ध में उलझ गए. अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-कराबाख के विवादित इलाके को लेकर हुआ युद्ध भले ही दो पड़ोसियों के बीच पुराना झगड़ा लगता हो, लेकिन जिन लोगों ने ध्यान से देखा, उन्हें परतों के नीचे कई दिलचस्प चीजें भी नजर आईं.
छोटे ड्रोन, बड़ा खतरा
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस में ड्रोन युद्ध के विशेषज्ञ उलरीके फ्रांके कहते हैं, "मेरे विचार से नागोर्नो-कराबाख विवाद का सबसे अहम पहलू था छोटे ड्रोन का इस्तेमाल. ये स्वचालित सिस्टम होते हैं.”
एक बार छोड़ दिए जाने के बाद ये ड्रोन निशाने वाले इलाके के ऊपर उड़ते हैं और स्कैन करते हुए लक्ष्य को खोजते हैं. जब उन्हें लक्ष्य मिल जाता है तो पूरी ताकत से हमला करते हैं. फ्रांके कहते हैं, "इनका इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से पहले भी हुआ है लेकिन इस बार तो उन्होंने खुलकर बताया कि वे कितने फायदेमंद हैं. और यह समझाया कि इस सिस्टम से लड़ना कितना मुश्किल है.”
सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की एक रिसर्च बताती है कि अजरबैजान को इस्राएली डिजाइन वाले करीब 200 ड्रोन के कारण बड़ा फायदा मिला. अजरबैजान के पास ऐसे चार मॉडल थे जबकि आर्मेनिया के पास सिर्फ एक.
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तो सिर्फ शुरुआत है. बहुत जल्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियार सेनाओं के मुख्य हथियार होंगे और वे मौजूदा हथियारों से कहीं ज्यादा घातक होंगे. (dw.com)
वाशिंगटन, 8 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.35 करोड़ हो गए हैं। इस महामरी से अब तक कुल 37.3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान में पूरे विश्व में कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 173,538,801 और 3,734,654 थी।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,377,632 और 597,946 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 28,909,975 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार 30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (16,984,218), फ्रांस (5,775,535), तुर्की (5,293,627), रूस (5,076,543), यूके (4,538,399), इटली (4,233,698), अर्जेंटीना (3,977,634), जर्मनी (3,710,342), स्पेन (3,707,489) और कोलंबिया (3,593,016) हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 474,414 के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (349,186), मैक्सिको (228,838), यूके (128,841), इटली (126,588), रूस (122,073) और फ्रांस (110,224) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
काबुल, 8 जून| अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में सरकारी बलों द्वारा किए गए हवाई हमलों में तालिबान के प्रति वफादार कम से कम 50 आतंकवादी मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हो गए हैं। एक शीर्ष अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को प्रांतीय गवर्नर मोहम्मद हलीम फेडाई ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मारे गए आतंकियों में से कई विदेशी भी रहे हैं।
गर्वनर ने पुष्टि की कि अफगान वायु सेना ने रविवार देर रात जरमत, मिजार्का और अहमदाबाद जिलों में तालिबान समर्थक आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमलों की शुरूआत की। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि रविवार को मिर्जाका जिले के कल्किन इलाके में तालिबान के कुछ लड़ाकों द्वारा एक चौकी पर धावा बोलने के बाद सरकार समर्थक पांच मिलिशिया लापता हो गए हैं।
इस बीच, एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कल्किन क्षेत्र में हुई लड़ाई में एक दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं और आतंकवादियों ने कुछ सरकार समर्थक मिलिशियामेन को भी अपने कब्जे में कर लिया।
फेडाई ने फिलहाल अधिकारी के इस बयान को खारिज कर दिया।
तालिबान संगठन ने अभी तक इन रिपोटरें पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
1 मई को अफगानिस्तान में अमेरिका और अन्य नाटो सैनिकों की आधिकारिक वापसी के बाद से तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों, जिलों, ठिकानों और चौकियों पर हमले तेज कर दिए हैं। पिछले कुछ हफ्तों में दसियों हजार अफगान विस्थापित हुए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों की वापसी 11 सितंबर तक पूरी होनी है। (आईएएनएस)
खार्तूम, 8 जून| सूडान के दक्षिण दारफुर राज्य में एक नए आदिवासी संघर्ष में कम से कम 36 लोग मारे गए हैं और 32 अन्य घायल हो गए हैं। स्थानीय प्रशासन ने सोमवार को इसकी जानकारी दी। दक्षिण दारफुर राज्य के राज्यपाल मूसा महदी ने एक बयान में कहा, "दक्षिणी दारफुर राज्य के मंडावा, मरमासा और माजंगरी क्षेत्रों में आदिवासी घटकों के बीच एक संघर्ष की शुरूआत हुई थी।"
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आगे कहा कि लड़ाई शनिवार को शुरू हुई और रविवार सुबह तक जारी रही।
उन्होंने आगे यह भी कहा कि राज्य द्वारा भेजे गए संयुक्त बलों ने विवाद क्षेत्रों में स्थिति को नियंत्रित किया है और युद्धरत जनजातियों को एक—दूसरे से अलग किया है।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, फलाटा और अल-ताइशा जनजातियों के बीच झड़पें हुईं।
दक्षिण दारफुर राज्य की सुरक्षा समिति ने उत्तेजित समूहों पर काबू पाने, घटना की पुनरावृत्ति को रोकने और कानूनी जांच समितियों की स्थापना के लिए इलाके में सेना के बलों को भेजने का निर्णय लिया।
अप्रैल में सूडान के पश्चिमी दारफुर राज्य की राजधानी अल जिनीना में आदिवासी संघर्षों में लगभग 137 लोग मारे गए थे और 221 घायल हुए थे।
सूडान का दारफुर क्षेत्र साल 2003 से गृहयुद्ध में चपेट में है। 31 दिसंबर, 2020 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जो दारफुर के इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र-अफ्रीकी यूनियन हाइब्रिड ऑपरेशन (यूएनएएमआईडी) के जनादेश को पूरा करता है।
साल 2007 से दारफुर में तैनात लगभग 16,000 यूएनएएमआईडी सैनिक जुलाई में अपना मिशन पूरा करने के लिए तैयार हैं। सूडान में एक संयुक्त राष्ट्र एकीकृत संक्रमण सहायता मिशन (यूएनआईटीएएमएस) को 2021 के दौरान क्षेत्र में यूएनएएमआईडी के प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए तैनात किया जाना है। (आईएएनएस)
बलूचिस्तान के खुज़दार ज़िले के विढ इलाके में पिछले दिनों एक हिंदू व्यवसायी की हत्या के बाद एक ऐसा पर्चा बांटा गया, जिसमें दुकानदारों से कहा गया है कि महिलाओं को अपनी दुकानों में न आने दें.
इस पर्चे में व्यापारियों, विशेषकर हिंदू दुकानदारों को चेतावनी दी गई है कि यदि कोई व्यावसायी महिलाओं को अपनी दुकान पर आने की अनुमति देता है, तो परिणाम के लिए वह ख़ुद ज़िम्मेदार होगा.
पुलिस ने पर्चे की पुष्टि करते हुए कहा कि फिलहाल यह पता नहीं लगा कि ये पर्चा किस संगठन ने बांटा है और वह संगठन कहाँ का है.
पर्चा विढ बाज़ार में एक साइन बोर्ड पर चिपकाया गया था और कुछ दुकानों के अंदर इसकी प्रतियां फेंकी गई हैं.
विढ में हिंदू पंचायत के सदस्य संतोष कुमार ने बताया कि हिंदू व्यवसायी की हत्या के विरोध में हिंदू समुदाय के व्यापारियों की दुकानें बंद थी. हालांकि, उन्हें यह बताया गया कि हिंदू व्यापारियों के अलावा कुछ मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों में भी प्रतियां फेंकी गई हैं.
उन्होंने कहा कि एक तरफ जहाँ हिंदू समुदाय के व्यापारियों की हत्या की गई, वहीं दूसरी तरफ पर्चे में भी हिंदुओं का विशेष रूप से ज़िक्र किया गया, जिससे उनकी चिंता और बढ़ गई है.
उन्होंने कहा, "हमने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया है, तो फिर हमें क्यों निशाना बनाया जा रहा है."
बीते 31 मई को विढ में एक हिंदू व्यवसायी की हत्या हुई थी, जिसके बाद विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था, लेकिन प्रशासन के आश्वासन के बाद विरोध प्रदर्शन छह दिन बाद समाप्त कर दिया गया था.
पर्चे में क्या कहा गया है, उसपर किस संगठन का नाम लिखा है?
विढ में प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स एसोसिएशन के महासचिव मोहम्मद असलम शेख़ ने बताया कि पर्चा एक साइन बोर्ड पर हाइलाइट करके चिपकाया गया था.
इस पर्चे के कंटेंट हाथ से लिखे गए है और इसके नीचे तलवार बनी हुई है जिस पर "कारवां सैफुल्लाह" लिखा हुआ है.
मोहम्मद असलम शेख़ ने कहा कि दुकानों में फेंके गए पर्चे पर वही लिखा है जो साइन बोर्ड पर चिपके हुए पर्चे पर लिखा हुआ है. लेकिन उन पर्चों के नीचे किसी संगठन का नाम नहीं है.
इस पर्चे में लोगों से कहा गया है कि वे अपनी महिलाओं को अनावश्यक रूप से अपने घरों से बाहर न निकलने दें और विशेष रूप से उन्हें बाज़ारों में घूमने से रोकें.
पर्चे के कंटेंट के अनुसार बाज़ारों में महिलाओं के घूमने से बाज़ार का माहौल ख़राब होता है.
पर्चे में इसके बाद गया है, "महिलाएं हिंदू समुदाय के लोगों की दुकानों में ज़्यादा दिखाई देती हैं. उनसे गुज़ारिश है कि वो महिलाओं को अपनी दुकानों में आने की बिल्कुल भी इजाज़त न दें और यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे इसके परिणामों के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे.
क्या विढ बाज़ार में महिलाएं घूमने आती हैं?
विढ में प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स एसोसिएशन के महासचिव मोहम्मद असलम शेख़ ने कहा कि जहाँ तक विढ में स्थानीय महिलाओं का सवाल है, वे अकेले ख़रीदारी करने के लिए बाज़ार नहीं आती हैं.
उन्होंने कहा कि स्थानीय महिलाएं ज़्यादातर बाज़ार में इलाज के लिए आती हैं, लेकिन उस समय भी उनके पुरुष रिश्तेदार उनके साथ होते हैं.
उन्होंने बताया कि 2011 के बाद, विढ में अशांति की घटनाएं होने का सिलसिला शुरू होने के बाद से यह इस तरह का दूसरा पर्चा है.
असलम शेख़ ने कहा कि हिंदू व्यवसायी की हत्या के ख़िलाफ़ लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और हो सकता है कि इससे ध्यान हटाने के लिए ये पर्चे चिपकाने के अलावा दुकानों में फेंके गए हों.
उनका कहना था कि हिंदू समुदाय के लोग सदियों से विढ में रह रहे हैं और वे बहुत शांतिपूर्ण लोग हैं.
असलम शेख़ ने कहा कि पूर्व में भी हिंदू व्यापारियों समेत मुस्लिम व्यापारियों को कई तरह के बहानों से परेशान किया जाता रहा है और यह धमकी भरा पंफलेट संभवत: इसी सिलसिले की एक कड़ी है.
संतोष कुमार ने भी इस बात से सहमति जताई कि स्थानीय महिलाएं अपने घरों से नहीं निकलती हैं और अगर उन्हें किसी इमरजेंसी में बाज़ार आना हो, तो भी वे अपने पति के बिना नहीं आती हैं.
पुलिस का क्या कहना है?
इस संबंध में विढ पुलिस के एसएचओ अब्दुल रहीम से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस पर्चे की पुष्टि की.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह पर्चा केवल एक जगह पर लगाया गया था. उन्होंने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर किसी व्यवसायी से उनकी दुकान के अंदर पर्चे फेंके जाने की कोई शिकायत नहीं मिली है.
"ज़ाहिरी तौर पर इस पर्चे को कारवां सैफुल्लाह नामक संगठन की तरफ से चिपकाया गया है, लेकिन विढ और उसके आस-पास के इलाक़े में पहले इस तरह के किसी संगठन का नाम नहीं सुना गया है."
उन्होंने बताया कि इस संबंध में अभी तक कोई मामला दर्ज़ नहीं किया गया है लेकिन विभिन्न पहलुओं से इसकी जांच की जा रही है.
प्रशासन के आश्वासन के बाद हिंदू व्यावसायी की हत्या के ख़िलाफ़ विरोध समाप्त
हिंदू व्यवसायी अशोक कुमार की हत्या की घटना विढ में हिंदू समुदाय के किसी व्यवसायी की हत्या की दूसरी घटना थी. इससे नौ महीने पहले, एक और हिंदू व्यवसायी नानक राम की हत्या कर दी गई थी.
अशोक कुमार की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे और पहले दिन क्वेटा-कराची हाइवे को बंद करने के अलावा विढ में व्यापारियों ने विरोध के तौर पर दुकानें बंद रखी थी.
विढ में सभी दुकानें तीन दिनों के लिए बंद रखी गई थीं, लेकिन हिंदू समुदाय के व्यापारियों ने सुरक्षा की गारंटी होने तक अपने व्यवसाय को बंद रखने का फ़ैसला लिया था. इसके साथ-साथ, विढ में एक भूख हड़ताल कैंप भी लगाया गया था.
हालांकि शनिवार को हत्या के ख़िलाफ़ विरोध के छठे दिन व्यापारियों ने एक बार फिर क्वेटा-कराची हाइवे को जाम कर दिया, जिसके बाद उपायुक्त खुज़दार, वली मोहम्मद बड़ेच और एसएसपी खुज़दार अरबाब अमजद कासी के अलावा अन्य अधिकारी व्यापारियों से बातचीत करने विढ पहुँचे थे. (bbc.com)
अमेरिका में सिर्फ पुरुषों को सेना में अनिवार्य सेवा देने के लिए पंजीकरण कराने के कानून को बदलने की मांग हो रही है. वैसे आखिरी बार अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी, लेकिन इस कानून के होने के और भी कई मायने हैं.
मिलिट्री सेलेक्टिव सर्विस कानून के तहत पुरुषों को 18 साल की उम्र का होते ही सेना में सेवा देने के लिए पंजीकरण कराना होता है. अब सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचीका दायर कर अदालत को फैसला करने के लिए कहा गया है कि यह लैंगिक भेदभाव है या नहीं. वैसे तो इसे एक ऐसे सवाल के रूप में भी देखा जा सकता है जिसका कोई खास व्यावहारिक असर नहीं है. पिछली बार सेना में अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी और उसके बाद से आज तक सेना में सब अपनी मर्जी से आते हैं.
लेकिन पंजीकरण की अनिवार्यता उन आखिरी बचे खुचे नियमों में से है जो पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करते हैं. महिला अधिकार समूह उन समूहों में से हैं जिनका मानना है कि इसे बरकरार रखना नुकसानदायक है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियंस वीमेंस राइट्स प्रोजेक्ट की निदेशक रिया तबाक्को मार भी इस अपील में शामिल हैं. वो कहती हैं कि पुरुषों के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने से "उन पर एक ऐसा गंभीर बोझ डाला जा रहा है जो महिलाओं पर नहीं डाला जा रहा है."
जो पुरुष पंजीकरण नहीं करवाते वो विद्यार्थी लोन और सरकारी नौकरी की पात्रता खो सकते हैं. पंजीकरण नहीं करवाना एक बड़ा जुर्म भी है जिसकी सजा 2,50,000 डॉलर तक का जुर्माना और पांच साल तक की जेल है. लेकिन तबाक्को मार कहती हैं कि इस अनिवार्यता के और भी असर हैं. वो कहती हैं, "यह एक अत्यधिक हानिकारक संदेश भी देता है कि महिलाएं अपने देश की सेवा करने के लिए पुरुषों के मुकाबले कम फिट हैं."
संसद के दायरे में
तबाक्को मार यह भी कहती हैं, "यह कानून यह भी संदेश देता है कि किसी सशस्त्र संघर्ष के समय घर रह कर परिवार का ख्याल रखने में पुरुषों महिलाओं से कम लायक हैं. हमें लगता है कि इस तरह के स्टीरियोटाइप पुरुषों और महिलाओं दोनों को नीचे दिखाते हैं." तबाक्को मार इस कानून को चुनौती देने वाले नैशनल कोअलिशन फॉर मेन और दो और पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों का एक समूह और नैशनल आर्गेनाईजेशन फॉर वीमेन फाउंडेशन ने भी अदालत से इस मामले पर सुनवाई करने की अपील की है. अगर अदालत सुनवाई करने की मांग को मान लेती है तो वो यह फैसला नहीं ले रही होगी कि महिलाओं को भी पंजीकरण करवाना होगा या नहीं. अभी अदालत सिर्फ इतना तय करेगी कि मौजूदा सिस्टम संवैधानिक है या नहीं.
अगर यह असंवैधानिक करार दिया जाता है तो यह संसद के ऊपर होगा कि वो सबके लिए पंजीकरण अनिवार्य करने का कानून लागू करेगी या पंजीकरण की अनिवार्यता को ही खत्म कर देगी. यह मामला पहले भी अदालत में आ चुका है लेकिन यह तब की बात है जब अमेरिकी सेना में महिलाएं सक्रीय रूप से लड़ाई की भूमिका में नहीं जा सकती थीं. लेकिन सेना के नियम अब बदल चुके हैं.
2013 में महिलाओं को भी लड़ाई की भूमिका में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई और उसके दो साल बाद सेना में हर भूमिका को महिलाओं के लिए खोल दिया गया. अमेरिकी सरकार सुप्रीम कोर्ट के जजों से अपील कर रही है कि वो इस मामले पर सुनवाई ना करें और इस पर संसद को फैसला लेने दें.
सीके/एए (एपी)
दुनिया के सबसे अमीर देशों के वित्त मंत्रियों ने फेसबुक और अमेजॉन जैसी विशालकाय टेक कंपनियों पर कम से कम 15 फीसदी का कॉरपोरेट टैक्स लगाने का ऐतिहासिक फैसला किया है.
जी-7 के देशों ने शनिवार को इस ऐतिहासिक फैसले पर सहमति जता ही दी, जिसे लेकर सालों से चर्चा चल रही थी. इस कदम का मकसद बहुराष्ट्रीय कंपनियों, खासकर विशालकाय टेक कंपनियों से ज्यादा धन वसूलना है.
लंदन में बैठक के बाद ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सूनक ने कहा, "मैं बहुत खुशी के साथ इस बात का ऐलान कर रहा हूं कि कई साल के विचार विमर्श के बाद आज जी-7 के वित्त मंत्री एक ऐतिहासिक फैसले पर पहुंच गए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कर व्यवस्था में सुधार करेगा. यह पेचीदा मसला है और आज पहला कदम उठाया गया है.”
समझौते का स्वागत
जर्मनी के वित्त मंत्री ओलाफ शोल्त्स ने इस समझौते का ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा, "कर-न्याय के लिए यह बहुत अच्छी खबर है और दुनियाभर की कर-पनाहों के लिए यह बुरी खबर है. अब सबसे कम टैक्स लेने वाले देशों में अपना मुनाफा ले जाकर कंपनियां कर देने की जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगी.”
फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ला मेअर ने कहा कि यह समझौता एक शुरुआत है. उन्होंने कहा, "यह शुरुआती कदम है और आने वाले महीनों में हम यह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करेंगे कि न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स जितना अधिक हो सके, किया जाए.”
अमेरिकी वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने इस कदम को वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाला बताया. उन्होंने कहा कि बराबरी के नियम बनने से सभी देश सकारात्मक आधारों पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.
जी-7 में अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और कनाडा शामिल हैं. इटली अगले महीने वेनिस में होने वाली एक बैठक में इस प्रस्ताव को जी-20 देशों के सामने रखेगा.
क्या है वैश्विक न्यूननतम कॉरपोरेट टैक्स
मौजूदा वैश्विक कर व्यवस्था 1920 के दशक में बनाई गई थी. इसे बदलने पर बातचीत आठ साल से चल रही थी. हालांकि अमेरिका में नई सरकार बनने के बाद इस साल इस बातचीत की रफ्तार बढ़ी थी और अमेरिका ने ही 15 फीसदी टैक्स का यह प्रस्ताव पेश किया था. इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों से एक निश्चित न्यूननतम टैक्स लेने और उसके लिए विशेष नियम बनाने की बात है. ये नियम सुनिश्चित करेंगे कि कंपनियां कितना टैक्स देंगी और किस देश में देंगी. यह टैक्स दुनिया की 100 सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर लगाया जाएगा. इसका अर्थ होगा कि कंपनियों को एक न्यूनतम टैक्स तो देना ही होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसकी दर 15 फीसदी रखने का सुझाव दिया है. यानी यदि कोई कंपनी किसी देश में 15 फीसदी से कम टैक्स दे रही है, तो बाकी का टैक्स उसे टॉप-अप के तौर पर देना होगा.
यह व्यवस्था कर-पनाह कही जाने वाली उस व्यवस्था को तोड़ने की कोशिश है, जिसके तहत कंपनियां अपना मुनाफा सबसे कम टैक्स लेने वाले देशों में दिखाकर अधिक कर देने से बच जाती हैं. कर-पनाह उन देशों को कहा जाता है, जो कम टैक्स का लालच देकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने यहां कारोबार करने के लिए आमंत्रित करते हैं.
नई कर व्यवस्था की आलोचना
टैक्स जस्टिस नेटवर्क के प्रमुख आलेक्स कोबाम ने इस फैसले को ऐतिहासिक तो कहा, लेकिन इसे बहुत अन्यायपूर्ण बताते हुए इसकी आलोचना भी की है. डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में अर्थशास्त्री कोबाम ने कहा कि टैक्स कम से कम 25 प्रतिशत होना चाहिए था. उन्होंने कहा, "जी-7 ने जो इतनी कम दर रखी है, तो इसका अर्थ है कि जितना फायदा हो सकता था, उससे बहुत कम होगा. यह दिखाता है कि ओईसीडी और जी-7 देश किस तरह इस मकसद के खिलाफ हैं क्योंकि अमीर देश ही बाकियों के लिए नियम बनाते हैं. हमें इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाना होगा और ऐसा समझौता करना होगा जो सबके लिए फायदेमंद हो ना कि सिर्फ जी-7 के लिए.”
कंपनियों की प्रतिक्रिया
फेसबुक ने जी-7 की पहल का स्वागत किया है. हालांकि इस समझौते का असर फेसबुक के मुनाफे पर हो सकता है, लेकिन कंपनी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के उपाध्यक्ष निक क्लेग ने कहा, "हम इस महत्वपूर्ण प्रगति का स्वागत करते हैं. इसका अर्थ होगा कि फेसबुक को अलग-अलग जगहों पर ज्यादा टैक्स देना होगा.”
अमेजॉन ने भी इस कदम का स्वागत किया है. ऑनलाइन रीटेल कंपनी अमेजॉन के एक प्रवक्ता ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि जी-20 देशों और इन्क्लूसिव फ्रेमवर्क अलायंस के साथ विमर्श जारी रहेगा.” दुनिया की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों में शामिल गूगल ने उम्मीद जताई है कि जल्द से जल्द एक संतुलित समझौता होगा. एक प्रवक्ता ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि विभिन्न देश एक संतुलित और लंबे समय तक चलने वाले अंतिम समझौते पर जल्द से जल्द पहुंच जाएंगे.”
वीके/एए (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान ने एशिया और अफ्रीका में 2.5 करोड़ लोगों को बिजली खरीदने में असमर्थ बना दिया है. 2030 तक सभी को बिजली देने का वैश्विक लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है.
स्थायी ऊर्जा पर नजर निगरानी रखने वाली संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि प्रभावित लोगों में से दो-तिहाई उप-सहारा अफ्रीका में हैं, जिससे क्षेत्र में बिजली तक की पहुंच में असमानता बढ़ रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में कोविड-19 संकट ने नौकरियों और आय को प्रभावित किया है जिससे पंखे चलाने, बत्ती जलाने, टीवी और मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए आवश्यक बिजली सेवाओं के भुगतान के लिए लाखों लोगों ने संघर्ष किया. इससे पिछले दशक में हुई प्रगति को संकट पैदा हुआ है, जिस दौरान 2010 से करीब एक अरब लोगों ने बिजली तक पहुंच हासिल की थी. इसी प्रगति में 2019 में दुनिया की 90 फीसदी आबादी को जोड़ा गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र समर्थित लक्ष्य को महामारी ने प्रभावित किया है, उस लक्ष्य के तहत सभी के पास 2030 तक बिजली पहुंचनी थी. रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीका में जहां पिछले छह सालों में बिना बिजली वाले घरों की संख्या कम हो रही थी वहीं 2020 में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई. विश्व बैंक में ऊर्जा के लिए वैश्विक निदेशक दिमित्रियोस पापथानासियौ के मुताबिक, "बिजली तक पहुंच विकास के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर कोविड-19 के प्रभावों को कम करने और आर्थिक बढ़त हासिल करने के संदर्भ में." उन्होंने ध्यान दिलाया कि दुनिया में करीब 75.9 करोड़ लोग अब भी बिना बिजली के रहते हैं, उनमें से आधे कमजोर और संघर्षग्रस्त देशों में हैं.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र संघ आर्थिक और सामाजिक विभाग, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान और नियोजित नीतियों के तहत अनुमानित 66 करोड़ लोगों के पास 2030 तक बिजली की पहुंच नहीं होगी.
दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई या 2.6 अरब लोगों के पास 2019 में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच नहीं थी. रिपोर्ट में कहा गया कि एशिया के बड़े हिस्से में बढ़त के बावजूद ऐसे ही देखा गया. उप-सहारा अफ्रीका में समस्या सबसे गंभीर है, जहां अब भी लोग खाना पकाने के लिए मिट्टी का तेल, कोयला और लकड़ी जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ सेहत के लिए भी खतरनाक हैं.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोग घरों से काम करना बंद करें और दफ्तर आना शुरू करें. लेकिन कोविड-19 के बाद जितना रास्ता तय किया जा चुका है, क्या वहां से लौटना आसान होगा?
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
पिछले हफ्ते मीडिया से बातचीत में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने लोगों से घर की जगह दफ्तरों से काम करने का आहवान किया. उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कहा कि वे सामाजिक दूरी के नियमों को पालन करें लेकिन देश में कोरोना वायरस के लगातार कम होते मामलों का असर कामकाज पर दिखना चाहिए. प्रधानमंत्री मॉरिसन का यह बयान कई शहरों के मेयरों द्वारा की जा रही उस अपील के जवाब में आया है, जिसमें लोगों के दफ्तर न आने से बाजारों के खराब हाल का जिक्र किया गया था.
ब्रिसबेन के मेयर एड्रियन श्रीनर ने कहा था कि महामारी की ऑस्ट्रेलिया के राज्यों की राजधानियों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और सिटी सेंटरों के उद्योग धंधे लोगों के घरों से ही काम करने की मार झेल रहे हैं.
इस अपील पर मॉरिसन ने कहा, "मेरा संदेश बहुत साधारण है. अब दफ्तर जाने का वक्त आ गया है. राज्य और केंद्र सरकारों के कर्मचारी कह रहे हैं कि यह वापस दफ्तर जाने का वक्त है.” उन्होंने कहा कि देश में जो सुधार हो रहा है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तौर-तरीकों में वह नजर आना चाहिए और अब संक्रमण से निडर होकर ज्यादा लोगों को दफ्तरों में काम करने के लिए बुलाया जाना चाहिए.
दफ्तर नहीं जाना चाहते कर्मचारी
ऑस्ट्रेलिया के उद्योग समुदाय ने प्रधानमंत्री के इस बयान का स्वागत किया है. ऑस्ट्रेलियन इंडस्ट्री ग्रुप के चीफ एग्जिक्यूटिन इनेस विलोक्स ने ऑस्ट्रेलियन फाइनैंशल रिव्यू अखबार से कहा कि यह वाइट-कॉलर कर्मचारियों का मुद्दा है. उन्होंने कहा, "बहुत से नियोक्तो बता रहे हैं कि कर्मचारी दफ्तरों में अधिक समय बिताने का विरोध कर रहे हैं. ज्यादातर नियोक्ता अधिकतर कर्मचारियों को दफ्तरों में बुलाने पर सहमत हैं. ज्यादातर के लिए घर और दफ्तर का मिश्रित मॉडल काम कर रहा है.” इनेस कहते हैं कि जितने अधिक समय तक कर्मचारी दफ्तरों से दूर रहेंगे, उतना ही उनका अपने सहकर्मियों से संपर्क घटेगा और सहयोग, उत्पादकता व कुछ नवोन्मेष पर सीधा असर पड़ेगा.
सिडनी के एक अस्पताल में काम करने वाले डॉ. दीपक राय भी इस बात से सहमत हैं. वह कहते हैं कि घरों से काम करने का असर सामाजीकरण पर पड़ रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉ. राय ने कहा, "लोग घरों से काम करते हैं तो वे अपने सहयोगियों से मिलते-जुलते ही नहीं है. इसका असर सिर्फ काम पर ही नहीं, मूड पर भी होता है. अकेले में लोग नया नहीं सोच रहे हैं.”
डॉ. राय कहते हैं कि घर से काम करना बैंड-एड है, इलाज नहीं. वह कहते हैं, "लोग घरों से नहीं निकलेंगे बस, ट्रेन टैक्सियों का इस्तेमाल कम होगा. कैफे में चाय-कॉफी और रेस्तराओं में लंच नहीं बिकेगा. यह कोई सामान्य बात नहीं है. इसका चौतरफा असर होता है.”
सितंबर में ऑस्ट्रेलियन पब्लिक सर्विस कमीशन ने सरकारी अधिकारियों से कहा था कि जहां भी संभव हो वे, दफ्तर से ही काम करेंग.
कई उद्योग-धंधे इस बात से सहमत हैं कि घरों से काम करने ने आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है. प्रॉपर्टी काउंसिल के मुखिया केन मॉरिसन ने प्रधानमंत्री मॉरिसन के बयान का स्वागत करते हुए मीडिया से कहा, "सीबीडी (सेंट्रल बिजनस डिस्ट्रिक्ट) में गतिविधियां बने रहने के अहम फायदे हैं, सिर्फ छोटे उद्योगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी. मेलबर्न और सिडनी कोविड के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. अब लोगों को दफ्तरों में वापस लाने के लिए सरकार और कॉरपोरेट जगत की तरफ से प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है.”
उलटे कदम चलेगी दुनिया?
कोविड महामारी जब दुनिया में चरम पर थी और वर्तमान पीढ़ी ने पहली बार राष्ट्रीय स्तर के लॉकडाउन देखे तो एक बात बार-बार कही गई कि दुनिया अब कभी पहले जैसी नहीं हो पाएगी. लोगों का काम करने का तरीका, खरीदारी आदि का तरीका और यहां तक कि हाथ मिलाने तक का तरीका बदल गया था. ‘न्यू नॉर्मल' वाक्यांश का बार-बार प्रयोग किया जा रहा था और नए तौर-तरीकों के सामान्यीकरण पर समाजशास्त्रियों से लेकर कर्मचारी संघों तक में बहस हो रही थी.
जूम, वेबएक्स और टीम्स के टूल्स ने जब मीटिंग्स को आसान बना दिया तो दफ्तरों की जरूरत पर ही बहस होने लगी. नौकरियां उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट फ्लेक्सजॉब्स के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 65 प्रतिशत कर्मचारियों ने कहा कि महामारी के बाद भी वे घरों से काम करना जारी रखना चाहेंगे. 58 प्रतिशत ने तो यहां तक कहा कि उनकी कंपनी ने उन्हें दफ्तर आने पर मजबूर किया तो वे दूसरी नौकरी खोजना चाहेंगे. सिर्फ दो फीसदी कर्मचारी दफ्तर लौटना चाहते थे. मिश्रित मॉडल यानी कुछ दिन घर से काम और कुछ दिन दफ्तर से काम करने का विकल्प भी खासा पसंद किया गया.
मेलबर्न की मोनाश यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले अर्थशास्त्री डॉ. विनोद मिश्रा कहते हैं कि दुनिया उलटे कदम नहीं चलेगी. वह कहते हैं कि महामारी के दौरान जो कुछ हुआ, वह पहले से ही शुरू हो चुके एक चलन के लिए बस रफ्तार बढ़ाने जैसा था.
डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉ मिश्रा ने कहा, "महामारी के दौरान हमने जो देखा, वह तो कई साल से चल ही रहा था. लोग कारें नहीं खरीदना चाहते क्योंकि वे किराये पर कार लेकर चला सकते हैं. ऐसे कितने ही रेस्तरां खुल गए हैं जो सिर्फ मेन्युलोग या डोरडैश जैसी डिलीवरी के भरोसे ही चल रहे हैं और उन्हें अपने यहां बुलाकर लोगों को खाना खिलाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती. लोग घर का सामान तक ऑनलाइन से मंगा रहे हैं. दरअसल, उपभोक्ता संस्कृति का भौतिक बाजार से हटने का सिलसिला तो बहुत पहले शुरू हो चुका है. महामारी में तो बस उसने रफ्तार पकड़ ली. और बेशक, इसके आर्थिक असरात भी होंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि दुनिया अब उलटे कदम चलने वाली है.”
डॉ. मिश्रा कहते हैं कि उपभोक्ता सस्ता विकल्प खोजता है. वह बताते हैं, "अगर उपभोक्ता के लिए दफ्तर जाना एक महंगा विकल्प है, तो वह घर से काम करना ही चुनेगा. राजनेतओं के सामने चुनौती है कि वे उसे सस्ता विकल्प दें. और अर्थव्यवस्था तो अपना नया रास्ता बना ही लेगी.” (dw.com)