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नई दिल्ली, 31 जुलाई (आईएएनएस)| नोबल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को कहा कि कोरोनावायरस ने समाज की कमजोरी को उजागर कर दिया है और अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों की पहचान नहीं की जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे मजदूरों की पहचान करना जरूरी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ वार्ता के दौरान बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के संस्थापक ने कहा, "वित्तीय प्रणाली का निर्माण काफी गलत तरीके से किया गया है। और कोविड-19 संकट ने समाज की कमजोरी का बहुत ही गंदे तरीके से खुलासा कर दिया।"
उन्होंने कहा, "यह समाज में जमा हुआ था और हम इसके अभ्यस्त हो चुके थे। वहां गरीब लोग थे, प्रवासी मजदूर शहरों में थे। लेकिन अचानक हमने देखा कि लाखों की संख्या में ये लोग अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं। वह भी इनलोगों ने अपने कदमों से हजारों मिल की दूरी तय की। यह कोविड-19 का सबसे दुखद भाग है, जिसका खुलासा हो गया।"
वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के सवालों के जवाब देते हुए इन बातों को रख रहे थे। राहुल गांधी ने उनसे कोरोना की वजह से गरीबों की वित्तीय हालत, महिलाओं पर गरीबी का असर और कैसे यह कोविड-19 संकट और मौजूदा आर्थिक संकट गरीबों पर प्रभाव डालने वाला है, इत्यादि सवाल पूछे थे।
नोबल पुरस्कार विजेता ने कहा, "अर्थव्यवस्था इन लोगों की पहचान नहीं करती है। वे इसे असंगठित क्षेत्र कहते हैं। असंगठित क्षेत्र मतलब हमें उनसे कोई लेना-देना नहीं है। वे अर्थव्यवस्था का भाग नहीं है। अर्थव्यवस्था की शुरुआत संगठित क्षेत्र से होती है, हम संगठित क्षेत्र के साथ व्यस्त हैं। अगर हम केवल उन्हें वित्तपोषित करेंगे, उनका ख्याल रखेंगे तो वे आगे बढ़ेंगे।"
मोहम्मद यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था।
यूनुस ने कहा, "इनसब में महिलाओं की हालत सबसे खराब है। आप संरचना देखें, ये लोग इसमें सबसे नीचे हैं। उनकी कोई आवाज नहीं है। परंपरा उन्हें पूरी तरह से अलग कर देती है। वे समाज की मूल ताकत हैं।"
उन्होंने कहा, "जब बात औद्योगिक क्षमता की आती है और माइक्रोक्रेडिट महिलाओं को दिया जाता है, तो उन्होंने दिखाया है कि उनमें कितनी उद्यम क्षमता है। इसलिए माइक्रोक्रेडिट को पूरी दुनिया में सभी जानते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। वे लड़ सकती हैं, उनमें क्षमता है और सभी तरह का कौशल है। उन्हें भुला दिया गया क्योंकि वे सभी असंगठित क्षेत्र के तहत आते हैं।"
नई दिल्ली, 31 जुलाई (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर के अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराने के यूजीसी के छह जुलाई के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई 10 अगस्त तक स्थगित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में छह जुलाई को जारी यूजीसी की उस गाइडलाइन को चुनौती दी गई थी, जिसमें देश के सभी विश्वविद्यालयों से 30 सितंबर से पहले अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित कर लेने के लिए कहा गया है।
अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने शीर्ष अदालत से एक अंतरिम आदेश पारित करने का अनुरोध किया और हवाला दिया कि कई छात्र बिहार और असम में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंस गए हैं। उन्होंने दलील देते हुए कहा, "मी लॉर्ड वे यात्रा कैसे करेंगे?"
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत अभी कोई अंतरिम आदेश नहीं दे रही है और मामले को 10 अगस्त को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया गया है।
शीर्ष अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को भी केंद्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा, ताकि मामले पर एमएचए स्पष्ट हो सके। मेहता ने जवाब दिया कि यह सोमवार तक हो जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि छात्रों को यह धारणा नहीं बनानी चाहिए कि उन्हें परीक्षा की तैयारी नहीं करनी है, बल्कि इसके बजाय उन्हें तैयारी करनी चाहिए।
अंतिम वर्ष के छात्र यश दुबे की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ के समक्ष कोविड-19 के लगातार बढ़ रहे मामलों की दलील पेश की। सिंघवी ने कहा कि उन्होंने शीर्ष अदालत से पहले के दिशानिर्देशों की जांच करने और फिर छह जुलाई को जारी किए गए दिशानिर्देशों को देखने के लिए कहा है।
सिंघवी ने कहा कि परीक्षा रद्द होने पर आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सितंबर अंत तक अपनी अंतिम-वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के लिए भारत भर के विश्वविद्यालयों को अनिवार्य किए गए छह जुलाई के दिशानिर्देशों को बदलना संभव नहीं है।
यूजीसी ने अदालत को सूचित किया कि प्रो. आर. सी. कुहाड़ की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने रिपोर्ट सौंपी है कि टर्मिनल सेमेस्टर परीक्षाएं सितंबर के अंत तक विश्वविद्यालयों/संस्थानों द्वारा आयोजित की जानी चाहिए।
तुर्की, 31 जुलाई| दुनियाभर में देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि ऑनलाइन कंटेंट को और बेहतर तरीक़े से कैसे नियंत्रित किया जाए. इसमें हेट स्पीच से लेकर कोरोना वायरस की फ़ेक न्यूज़ तक शामिल है.
तुर्की का भी कहना है कि उसने इसी दिशा में कदम उठाया है लेकिन सरकार की मंशा को लेकर विवाद बना हुआ है.
नए क़ानून के सोशल मीडिया के लिए क्या मायने हैं?
ये क़ानून कहता है कि 10 लाख से ज़्यादा यूज़र वाली सोशल मीडिया फर्म का तुर्की में कार्यालय होना चाहिए और वो कंटेट हटाने के सरकार के अनुरोधों का पालन करे.
अगर कंपनी इससे इनकार करती है तो उस पर जुर्माना लगेगा या डाटा की स्पीड कम हो जाएगी.
ये बदलाव कई बड़ी कंपनियों और प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, गूगल, टिकटॉक और ट्विटर पर भी लागू होते हैं.
नए क़ानून के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बैंडविथ में 95 प्रतिशत तक की कटौती हो सकती है. इस कटौती से वो इस्तेमाल के लायक नहीं रह पाएंगे.
इसके अलावा नया क़ानून कहता है कि सोशल मीडिया नेटवर्क्स को अपना यूज़र डाटा तुर्की में रखना होगा.
तुर्की की आठ करोड़ 40 लाख की जनसंख्या के बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स काफ़ी लोकप्रिय हैं. खासतौर पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, स्नैपचेट और टिकटॉक वहां काफ़ी पसंद किए जाते हैं. उनके करोड़ों यूजर्स हैं.
नए क़ानून से क्या होगा फायदा
सरकार का कहना है कि इस क़ानून का उद्देश्य साइबर-क्राइम से लड़ना है और लोगों को ''अनियंत्रित साजिशों'' से बचाना है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन सालों तक सोशल मीडिया साइट्स को "अनैतिक" ठहराते रहे हैं. इन पर कड़ा नियंत्रण करने की उनकी इच्छा किसी से छुपी नहीं है.
तुर्की की संसद में नए क़ानून पर बहस के दौरान ऑनलाइन विनियमन को लेकर अक्सर जर्मनी का उदाहरण दिया गया है.
साल 2017 में, जर्मनी ने नेटवर्क एनफोर्समेंट एक्ट यानी नेट्जडीजी लागू किया था जिसमें हेट स्पीच और आपत्तिजनक कंटेंट से निपटने के लिए इसी तरह के नियम थे.
जर्मनी में अगर सोशल मीडिया प्लेफॉर्म्स इस तरह के कंटेंट को 24 घंटों में नहीं हटाते हैं तो उन पर 50 मिलियन यूरो तक जुर्माना लग सकता है.
हाल ही में इस क़ानून में ये भी नियम बनाया गया है कि संदेहजनक आपराधिक कंटेंट को सीधे जर्मनी की पुलिस के पास भेजा जाएगा.
क़ानून में समस्या?
लेकिन, इंटरनेट पर नियंत्रण के मामले में तुर्की और जर्मनी का बहुत अलग इतिहास रहा है.
लोकतांत्रिक जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई आंच ना आए इसकी लगातार कोशिशें होती हैं और चर्चाएं की जाती हैं. लेकिन, तुर्की में ऑनलाइन स्वतंत्रता पर कहीं ज़्यादा बंदिशें हैं.
तुर्की में सोशल मीडिया पर पहले ही बड़े स्तर पर पुलिसिंग होती है. कई लोगों पर अर्दोआन या उनके मंत्रियों का अपमान करने का आरोप लगाया है. कई बार विदेशी सैन्य घुसपैठ या कोरोना वायरस से निपटने को लेकर आलोचना के कारण लोगों पर कार्रवाई हुई है.
तुर्की का ज़्यादातर मुख्यधारा मीडिया पिछले एक दशक में सरकार के नियंत्रण में आ चुका है. अब आलोचनात्मक आवाज़ों या स्वतंत्र ख़बरों के लिए सोशल मीडिया और छोटे ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ही बचे हैं.
फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन एसोसिएशन (आईएफओडी) के मुताबिक 4 लाख 8 हज़ार वेबसाइट्स को ब्लॉक कया गया है. इसमें विकीपीडिया भी शामिल है, जिस पर इस साल जनवरी से पहले पिछले तीन सालों तक प्रतिबंध लगा था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नए क़ानून को तुर्की में अभियव्यक्ति की आज़ादी पर खुला हमला बताया है.
मानवाधिकार समूह के तुर्की के शोधकर्ता एंड्रयू गार्डनर कहते हैं, ''नया क़ानून ऑनलाइन कंटेंट को सेंसर करने की सरकार की ताकत बढ़ा देगा. इससे उन लोगों को ख़तरा बढ़ जाएगा जो विरोधी विचारों के कारण प्रशासन के निशाने पर रहे हैं.''
हालांकि, राष्ट्रपति के प्रवक्ता इब्राहिम कालिन इस बात से इनकार करते हैं कि ये क़ानून सेंसरशिप की तरफ़ ले जाएगा. वह कहते हैं कि इसके ज़रिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ वाणिज्यिक और क़ानूनी संबंध स्थापित करने की मंशा है.
अन्य देशों में क़ानून
सरकारें लगातार इस बात पर विचार कर रही हैं कि सोशल मीडिया स्पीच और ऑनलाइन कंटेंट के मसले से कैसे निपटा जाए.
चीन जैसे देशों में सख़्त नियम हैं. यहां हज़ारों-हज़ार की संख्या में साइबर पुलिस राजनीतिक रूप से संवेदनशील पोस्ट और मैसेज को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नज़र रखती है.
रूस और सिंगापुर में भी इसे लेकर कड़े नियम हैं कि ऑनलाइन क्या पोस्ट किया जाएगा.
इसमें कोई शक नहीं कि ऑनलाइन कंटेंट की इस समस्या को लेकर तुर्की के नज़रिए पर अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के सदस्य अध्ययन करेंगे. इन देशों में भी पहले से सोशल मीडिया विनियमन को लेकर बहस तेज़ है.
कुछ मानवाधिकार समूहों को चिंता है कि तुर्की का नया क़ानून अन्य देशों को भी ऐसे ही तरीक़े अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. उन्होंने चेतावनी दी है कि ये क़ानून ''ऑनलाइन सेंसरशिप के नए काले युग'' का संकेत देता है.(bbc)
राजकुमार सिन्हा
भरपूर उत्पादन और तीखी भुखमरी के बीच की उलटबासी के मैदानी अनुभवों की एक बड़ी वजह हर साल होती अनाज की बर्बादी और उसके लिए जरूरी भंडारण का अभाव है। अनाज की बर्बादी हमारे यहां सालाना होने वाली एक शर्मनाक दुर्घटना है, लेकिन इसी वजह से 2001 में सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई खाद्य-सुरक्षा याचिका के बावजूद ना तो सरकारें भंडारण को लेकर सचेत हुई हैं और न ही समाज और निजी-क्षेत्र। प्रस्तुत है, इसी साल के अनुभवों पर लिखा गया राजकुमार सिन्हा का यह लेख।
-संपादक
देश भर में इस साल तीन करोड़ 36 लाख हैक्टेयर जमीन पर गेहूँ की बुआई हुई थी और मध्यप्रदेश में 55 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर। गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया है। इस साल 4529 खरीदी केन्द्रों के माध्यम से एक करोड़ 29 लाख 34 हजार 588 मीट्रिक टन गेहूं खरीदी किया गया है। सरकार का दावा है कि 15 लाख 93 हजार 793 किसानों के खाते में 24 हजार 899 करोड़ रुपए जमा भी कर दिए हैं, परन्तु जुलाई में ही समाचार आया कि 450 करोड़ का 2.25 लाख टन गेहूं खरीदी केंद्रों और गोदामों के बाहर रखे-रखे भीग गया है। गेहूं भीगने को लेकर खरीद करने वाली सहकारी समितियां और गोदाम संचालक आमने- सामने आ गए हैं। दोनों संस्थाएं इसकी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर थोप रहे हैं।
ये पूरी समस्या परिवहन में देरी के चलते उपजी है। सवा दो लाख टन से ज्यादा गेहूं गोदामों में भंडारण के लिए स्वीकार नहीं किया गया है। इसकी मुख्य वजह खराब गुणवत्ता और गेहूं में अनुपात से कई गुना अधिक नमी बताई गई है। खरीदा गया गेहूं गोदामों में स्वीकृत नहीं होने से अभी 400 करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खाते में ट्रांसफर नहीं की गई है। जब तक गोदामों में पूरा गेहूं स्वीकृत नहीं होता, तब तक किसानों का भुगतान होना मुश्किल है। अब इसके लिए जिम्मेदार कौन है? एक खबर इंदौर से है कि 85 लाख टन गेहूं उत्पादन की तुलना में भंडारण क्षमता लगभग 22 लाख टन ही है। इस कारण 25 करोड़ से ज्यादा कीमत का गेहूं जून की बरसात में भीगकर खराब हो गया है। इसके बाद भी 'ओपन कैंपÓ में रखा छह करोड़ रूपये से ज्यादा का लगभग 65 हजार टन गेहूं और खराब हुआ है। किसानों के लिए तो यह साल जैसे काल बन कर आया है। कोरोना ने उन्हें फसल को खेत से निकाल कर मंडी तक ले जाने में काफी परेशान किया है।
'नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नियोजन नहीं होने के कारण 2011-12 से 2014 -15 के बीच 5060.63 मीट्रिक टन अनाज सड़ गया है जिसमें 4557 मीट्रिक टन गेहूं था। एक समाचार पत्र के अनुसार 21 मार्च 2017 को 'केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने संसद में दिए जवाब में बताया है कि मध्यप्रदेश के सरकारी गोदामों में 2013-14 और 2014-15 में करीब 157 लाख टन सड गया है जिसकी अनुमानित कीमत 3 हजार 800 करोड़ रुपए है। इसमें 103 लाख टन चावल और 54 लाख टन गेहूं शामिल है। बताया जाता है कि मिलीभगत के चलते अनाज को जान-बूझकर सडऩे दिया जाता है ताकि शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सड़े हुए अनाज, खासकर गेहूँ को औने-पौने दाम पर खरीद सके।
भारत में जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन होता है। इसके बावजूद लाखों लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिल पाता। आए दिन 'भूख से मौत के समाचार भी सुनने मिलते हैं। इसके विपरीत भारत में लगभग 60 हजार करोड़ रूपये का खाद्यान्न प्रति वर्ष बर्बाद हो जाता है, जो कुल खाद्यान्न उत्पादन का सात प्रतिशत है। इसका मुख्य कारण देश में अनाज, फल व सब्जियों के भंडारण की सुविधाओं का घोर अभाव है। दूसरी तरफ, 'संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की 'भूख सबंधी सलाना रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा भुखमरी के शिकार भारतीय हैं। 'यूएनओ के 'खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट 'द स्टेट आफ फूड इनसिक्यूरिटी इन द वल्र्ड-2015 के मुताबिक 'यह विचारणीय और चिंतनीय है कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होकर भी भारत में भूख से जूझ रहे लोगों की संख्या चीन से ज्यादा है। वजह हर स्तर पर होने वाली अन्न की बर्बादी है। इसका बङ़ा खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना पडेगा। सवाल है कि अगले 35 वर्षों में, जब हमारी आबादी 200 करोड़ होगी, तब हम सबको अन्न कैसे उपलब्ध करा पाएंगे? 'कृषि मंत्रालय का कहना है कि पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में देश में अन्न की मांग कम बढ़ी है। यह मांग उत्पादन से कम है। यानी भारत अब अन्न की कमी से उठकर 'सरप्लस (अतिरिक्त) अन्न वाला देश बन गया है। देश में इस समय विश्व के कुल खाद्यान्न का करीब पंद्रह फीसद खपत होता है, लेकिन आज भी हमारे देश में अनाज का प्रति व्यक्ति वितरण बहुत कम है। यह विडम्बना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेती है ! (सप्रेस)
श्री राजकुमार सिन्हा बरगी बांध विस्थापित संघ के वरिष्ठ कार्यकत्र्ता हैं।
नई दिल्ली,31 जुलाई| दरअसल, सोज़ ने ग़ैरक़ानूनी 'नज़रबंदी' के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन अदालत ने यह कहते हुए इसे ख़ारिज़ कर दिया कि उन पर कोई पाबंदी नहीं है.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सोज़ पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है और अदालत ने इस दावे को स्वीकर किया था.
लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद सरकार के दावे के ठीक उलट स्थिति देखने को मिली. कांग्रेस नेता ने गुरुवार को जैसे ही श्रीनगर स्थित अपने घर से बाहर निकलने की कोशिश की, पुलिस ने उन्हें रोक लिया.
कुछ पत्रकार भी इस मौके पर वहां मौजूद थे और उनकी मौजूदगी में ही पुलिस 83 वर्षीय सोज़ को घर के अंदर भेज दिया.
इसके बाद सैफ़ुद्दीन सोज़ ने अपने घर के अंदर ही, दीवार और कटींले तारों के पीछे से पत्रकारों से बात की. उनका दावा है कि बुधवार को भी, सुप्रीम कोर्ट के याचिका ख़ारिज किए जाने के थोड़ी ही देर बाद उन्होंने घर से निकलने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें रोक दिया गया.
सोज़ ने अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि वो इस 'ग़ैरक़ानूनी नज़रबंदी' के ख़िलाफ़ फिर से सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
उन्होंने कहा, "कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मैं आज़ाद हूं. लेकिन मैं आज़ाद नहीं हूं. पांच अगस्त, 2019 से लेकर अब तक मैं अपने घर में ही क़ैद हूं. अगर ऐसा नहीं है तो मुझे बाहर जाने से क्यों रोका जा रहा है?"(bbc)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट में शामिल 5 कोयला खदानों की नीलामी निरस्त करने की सहमति दे दी है। बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार केंद्र सरकार के पास जमा 41 सौ करोड़ एडीशनल लेवी को राज्य को देने की मांग की है। जिस पर केंद्रीय कोयला मंत्री ने सहमति जताई है।
केंद्रीय कोयला मंत्री श्री जोशी ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री श्री बघेल और राज्य शासन के अफसरों के साथ बैठक की। बैठक में एसईसीएल के आला अफसर भी मौजूद थे। बैठक में हसदेव अरण्य, माड़ नदी और लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट में आ रहे कोयला खदानों की नीलामी पर मुख्यमंत्री ने चिंता जताई।
उन्होंने कहा कि पहले फेस में 5 खदानें आ रही है। मुख्यमंत्री ने उन्हें बताया कि 39 सौ वर्गकिमी के पूरे क्षेत्र में अत्यंत घने जंगल हंै। यहां खनन की
अनुमति देने से न सिर्फ पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा बल्कि हसदेव बांगो डेम को भी नुकसान पहुंच सकता है। यही नहीं, इस पूरे क्षेत्र में लेमरू एलीफेंट रिजर्व प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि हाथियों की समस्या गंभीर है और एलीफेंट रिजर्व क्षेत्र घोषित होने से काफी कुछ इस पर काबू पाया जा सकता है।
यह भी कहा गया कि पूरे इलाके में कुल मिलाकर 64 कोयला खदानें हैं, जिनमें से 5 की नीलामी के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। केंद्रीय कोयला मंत्री ने कहा कि पांचों कोयला खदानों की नीलामी नहीं होगी। बैठक में केंद्र सरकार के पास जमा 4 हजार 140 करोड़ एडीशनल लेवी को जारी करने का भी आग्रह किया। इस पर श्री जोशी ने आश्वासन दिया है। यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने उक्त राशि के डिस्पोजल के लिए आवेदन लगाया गया है, उसके आधार पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के कॉमन क्रॉस प्रकरण में दिए गए निर्णय के अनुसार जुर्माने की राशि 10 हजार 129 करोड़ रुपये राज्य को दिए जाने की मांग रखी गई है। साथ ही साथ गारे पेलमा की खदानों में एसईसीएल को तत्काल उत्पादन बढ़ाने के लिए निर्देशित करने का आग्रह किया गया है। स्थानीय लघु उद्योगों को कोयला उपलब्ध कराने की निश्चित मात्रा चेयरमेन कोल इंडिया द्वारा सहमति जताई गई। साथ ही साथ राज्य सरकार को एंजेसी नियुक्त करने का आग्रह किया गया है।
बैठक में बंद खदानों को फ्लाईएश भरने को लेकर भी विस्तार से चर्चा हुई। साथ ही साथ रेल परियोजना का काम आगे बढ़ाने पर विचार विमर्श किया गया। बैठक में सचिव कोयला मंत्रालय अनिल कुमार जैन, कोल इंडिया लिमिटेड के प्रमुख (चेयरमेन) प्रमोद अग्रवाल, एसईसीएल के सीएमडी एपी. पण्डा, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, प्रमुख सचिव वन मनोज पिंगुआ, मुख्यमंत्री के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी, खनिज विभाग के सचिव अन्बलगन पी., पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी और संचालक खनिज समीर विश्नोई सहित केन्द्र और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
राज्य के साथ बेहतर बिजनेस वातावरण तैयार करेंगे
बैठक के बाद मीडिया से चर्चा में केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री जोशी ने बताया कि कहा कि राज्य सरकार की आपत्ति के बाद 5 खदानों की नीलामी निरस्त की जा रही है। 3 नई खदानें जुडेंग़ी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के साथ मिलकर बेहतर बिजनेस वातावरण तैयार करने की कोशिश हो रही है।
श्री जोशी ने कहा कि खदानों की नीलामी में निष्पक्षता बरती जा रही है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ है, लेकिन जल्द ही बेहतर कर लिया जाएगा।
लखनऊ, 31जुलाई | राम मंदिर निर्माण के बहाने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से लेकर अगले लोकसभा चुनाव तक राम मंदिर का मुद्दा गरमाए रखने की बीजेपी की पूरी तैयारी है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपतराय का कहना है कि मंदिर निर्माण का काम किसी भी तरह साढ़े तीन साल में पूरा कर लेने का लक्ष्य है। राय ने इस संवाददाता से इतना कहकर फोन रख दिया किः ‘हम तीन साल में मंदिर निर्माण का काम पूरा कर लेने का पूरा प्रयास करेंगे लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए, तो हमारे पास छह माह अतिरिक्त हैं। मंदिर निर्माण का काम 2023 अंत तक या 2024 के शुरूआती महीनों में पूर्णहो जाएगा।’ ध्यान रहे अगला लोकसभा चुनावलगभग उसी समय संभावित हैं।
कोरोना की वजह से इस वक्त लाखों की भीड़ वाले कार्यक्रम का आयोजन संभव नहीं था, फिर भी सबकुछ बड़ा ही हो रहा है। पूरे देश में 5 अगस्त को शाम में हर घर के दरवाजे पर 5 दीप जलाने के वाट्सएप मैसेज वायरल हैं। इसकी भाषा भी साफ है कि ‘हर घर को अयोध्या बना देना है।’ उधर, इस कार्यक्रम का लाइव टीवी प्रसारण होना ही है इसलिए अयोध्या को कायदे से सजाया जा रहा है। ठीक है कि कार्यक्रम के लिए आमंत्रित लोगों की सूची 200 लोगों की है लेकिन यह सूची भर ही तो है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां हेलिपैड पर उतरेंगे, वहां से कार्यक्रम स्थल तक के रास्ते के मकानों के बाहर चित्र उकेरे जा रहे हैं। इस काम में साकेत डिग्री कॉलेज के कला विभाग के छात्र लगे हुए हैं। दीवारों पर राम, लक्ष्मण, हनुमान और रामायण के अन्य चरित्रों के चित्र लग भी गए हैं। ऐसे चित्र सुलभ शौचालय तक की दीवारों पर हैं ताकि कोई हिस्सा छूट न जाए।
बीजेपी विधायक वेद गुप्ता बताते हैं: ‘अयोध्या में तीन दिनों तक दीवाली-जैसा उत्सव रहेगा। 3 अगस्त से ही सभी धार्मिक स्थानों, घाटों, मठों पर रोशनी की झालरें लगाई जाएंगी तथा भजन और धार्मिक संगीत लगातार गाए जाते रहेंगे।’ बीजेपी की शहर इकाई के अध्यक्ष कमलेश श्रीवास्तव ने उत्साहित स्वर में बताया कि ‘इस वक्त कार्यक्रम में स्थानीय आम लोग भी ज्यादा संख्या में आ तो सकते नहीं इसलिए हम अयोध्या शहर में जगह- जगह एलईडी स्क्रीन लगा रहे हैं ताकि सभी लोग इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के गवाह बन सकें।’ उन्होंने बताया कि पूरे शहर में करीब 3,000 लाउडस्पीकर भी लगाए जाएंगे ताकि पूरा माहौल धार्मिक रहे। वैसे तो इन पर भजन वगैरह बजते रहेंगे लेकिन भूमिपूजन के पूरे कार्यक्रम का लोग आनंद ले सकेंगे।(navjivan)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 31 जुलाई। मेड़पार बाजार में हुई 47 गायों की मौत की रिपोर्ट जिला प्रशासन की जांच समिति ने कलेक्टर को सौंप दी है। इसमें बताया गया है कि अमोनिया गैस के कारण दम घुटने से इनकी मौत हुई है। इधर बिलासपुर नगर निगम के आदर्श गौठान में पिछले सात दिनों के भीतर सात गायों की मौत को लेकर भी हडक़म्प मचा हुआ है।
तखतपुर तहसील के हिर्री थाने के अंतर्गत ग्राम मेड़पार में बीते 25 जुलाई को एक पुराने पंचायत भवन में कैद किये गये 60 गोवंश में से 47 की मौत हो गई थी, जिससे पूरा प्रशासन हिल गया था। कलेक्टर डॉ.सारांश मित्तर ने घटना की जांच के लिये अतिरिक्त कलेक्टर बी.एस. उइके की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय जांच टीम बनाई थी। टीम में कोटा के एसडीएम आनंद रूप तिवारी, पशुपालन विभाग के संयुक्त संचालक आर के सोनवाने व कृषि उप संचालक शशांक शिंदे भी शामिल थे। टीम ने ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों से बयान दर्ज करने के बाद रिपोर्ट बनाई गई है, जिसमें बताया गया है कि ग्रामीणों ने फसलों को नुकसान पहुंचने से रोकने के लिये आपसी सहमति से इन गायों को पुराने जर्जर भवन में बंद कर दिया था जहां से हवा नहीं निकल पाई। अधिक संख्या में मौजूद पशु जिनमें अधिकांश गायें थीं जिनसे निकले अमोनिया गैस के चलते 47 गायों की मौत हुई है। रिपोर्ट कलेक्टर डॉ. मित्तर को सौंपी गई है। उन्होंने कहा है कि जो भी व्यक्ति दोषी पाया जायेगा, उस पर कार्रवाई की जायेगी।
दूसरी ओर मोपका में नगर निगम द्वारा बनाये गये आदर्श गौठान में भी पिछले सात दिनों के भीतर आठ गायों की मौत हो गई। यह खबर आने के बाद चिकित्सकों की टीम को वहां पशुओं के उपचार के लिये भेजा गया है। इसे आदर्श गौठान का दर्जा दिया गया है। गोधन योजना का उद्घाटन इसी गौठान से पिछले दिनों किया गया था। यहां दो सौ से अधिक गाय और अन्य पशुओं को रखा गया है। ज्यादातर पशु वे हैं जो सडक़ों पर घूमते मिले हैं। आयुक्त प्रभाकर पांडेय का कहना है कि यहां लाये जाने वाली गायें घायल व बीमार रहती हैं, इसलिये मौतें हो सकती है। उनके स्वास्थ्य की जांच के लिये चिकित्सकों को भेजा गया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 31 जुलाई। हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे एक कैदी की आज संभागीय कोविड अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। कोविड अस्पताल में किसी कोरोना पीडि़त की यह पहली मौत है।
मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रमोद महाजन ने बताया कि मरीज कोरोना संक्रमित अवश्य था लेकिन उसकी मौत हार्ट अटैक से हुई है। वृद्ध कैदी को कोरोना की पुष्टि होने पर 28 जुलाई को संभागीय कोविड अस्पताल में दाखिल कराया गया था। आज सुबह उनसे दम तोड़ दिया।
कोविड अस्पताल में किसी मरीज की इलाज के दौरान हुई यह पहली मौत है। इससे पहले सिम्स में झारखंड के एक युवक को उपचार के लिये लाये जाने पर उसकी मौत के बाद उसके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। मस्तूरी क्षेत्र की एक 13 वर्षीय बीमार बालिका को उसके परिजन बेहतर इलाज के कारण सिम्स से ले गये थे, जिसकी बाद में मौत हो गई थी।
रायपुर 31 जुलाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज यहां छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के नव-नियुक्त अध्यक्ष श्री मिथिलेश स्वर्णकार के कार्यभार ग्रहण कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने श्री स्वर्णकार को नया दायित्व मिलने पर बधाई और शुभकामनाएं दीं।
श्री स्वर्णकार ने वीआईपी रोड स्थित छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के कार्यालय में कार्यभार ग्रहण किया। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा है कि आज सौर ऊर्जा की आवश्यकता भी है और इसकी बड़ी मांग भी है। उन्होंने क्रेडा के नव-नियुक्त अध्यक्ष श्री स्वर्णकार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि श्री स्वर्णकार शासन की नीतियों के अनुरूप जनता के हित में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का काम करेंगे।
इस अवसर पर उद्योग मंत्री कवासी लखमा, छत्तीसगढ़ राज्य खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, राज्य खाद्य एवं आपूर्ति निगम के अध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल, मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू और नगर निगम जगदलपुर की महापौर श्रीमती सफीरा साहू भी उपस्थित थीं।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (वार्ता)। कोरोना महामारी ने दुनिया को जितना बड़ा संकट दिया है उसके गंभीर परिणाम तो आने वाले दिनों में सबको देखने को मिलेंगे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस कोरोना काल ने हमें सोचने का नया मौका भी दिया है।
यह विचार ग्रामीण बैंक के संस्थापक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बातचीत में व्यक्त किये। इस बातचीत का वीडियो श्री गांधी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है जिसमें प्रो. यूनुस ने कहा कोरोना ने हमें सोचने का अवसर दिया है कि हम उस भयानक दुनिया में जाएं जो अपने आप को तबाह कर रही है या हम एक नई दुनिया के निर्माण की तरफ जाएं जहां पर ग्लोबल वार्मिंग, केवल पूंजी आधारित समाज, बेरोजगारी नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि अगर आप लोगों के हित के लिए कुछ कर रहे हैं तो कोई भी उसे नष्ट नहीं कर सकता। अच्छे काम में अवरोध आते हैं और ये सब अवरोध अस्थायी अव्यवस्था का हिस्सा होते है। आपके किये अच्छे काम वापस आ जाएंगे क्योंकि यह काम लोगों के लिए हुआ है क्योंकि अच्छे विचार अटूट होते हैं।
प्रोफेसर यूनुस ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के साथ उस दुनिया में क्यों वापस जाना है, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता हर किसी से रोजगार छीन रही है। अगले कुछ दशकों में व्यापक बेरोजगारी पैदा होने वाली है। कोरोना ने हमें सोचने का नया मौका दिया है।
उन्होंने कहा हमें प्रवासी मजदूरों को पहचानना होगा। अर्थव्यवस्था इन लोगों को नहीं पहचानती है। वह इसे अनौपचारिक क्षेत्र कहते हैं, जिसका मतलब है कि हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं है, वह अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं। हम औपचारिक क्षेत्र के साथ व्यस्त हैं। हम इसके बजाय एक अलग समानांतर अर्थव्यवस्था, स्वायत्त अर्थव्यवस्था के रूप में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। प्रौद्योगिकी ने हमें वह सुविधा दी है जो पहले कभी नहीं थी।
वेतन काटने, फफूंद-कीड़े लगे खाना देने का आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। अंबेडकर अस्पताल की दर्जनों ठेका सफाई कर्मी घटिया खाना देने का आरोप लगाते हुए बीती रात से हड़ताल पर चली गई हैं। आज भी उनका काम बंद रहा। दूसरी तरफ हड़ताल से कोरोना वार्ड समेत पूरे अस्पताल की सफाई प्रभावित रही। अस्पताल प्रबंधन और सफाई कर्मियों के बीच चर्चा जारी है, लेकिन उनकी काम पर वापसी नहीं हो पाई है।
सफाई कर्मी संघ की अध्यक्ष रूपमाला मेश्राम व अन्य पदाधिकारियों का आरोप लगाते हुए कहना है कि कोरोना के चलते वे सभी छुट्टी के दिन भी काम पर आ रही हैं, लेकिन उनका वेतन काट दिया जा रहा है। दूसरी तरफ उन्हें घटिया किस्म का खाना लगातार दिया जा रहा है। कई बार उसमें कीड़े-अंडे मिल रहे हैं, तो कई बार नाखून, फफूंद लगे चावल दिए जा रहे हैं। इसकी शिकायत अस्पताल प्रबंधन से की जा चुकी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। ऐसे में वे सभी बेमियादी हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर हैं।
पीआरओ अंबेडकर अस्पताल शुभ्रासिंह ठाकुर का कहना है कि ठेका सफाई कर्मी हड़ताल पर हैं। उन्हें सुबह-शाम चाय-नाश्ता और दोपहर-रात में खाना दिया जा रहा है। इसके बाद भी वे लोग असंतुष्ट हैं। उनके हड़ताल पर जाने से यहां सफाई का काम नियमित कर्मी कर रहे हैं। दूसरी तरफ उनकी वापसी को लेकर अस्पताल प्रबंधन से चर्चा जारी है, लेकिन अभी तक उनकी वापसी नहीं हो पाई है।
उल्लेखनीय है कि अस्पताल में करीब 70-80 ठेका सफाई कर्मी हैं और वे सभी 2012-13 से काम कर रहे हैं। इस दौरान वे सभी नियमित करने की मांग भी करते रहे।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (वार्ता)। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी के 2024 तक के पचास करोड़ उपभोक्ताओं के लक्ष्य की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए 2020-21 की पहली तिमाही में वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के बावजूद जियो एक करोड़ ग्राहक जोडक़र 40 करोड़ के निकट पहुंच गई है।
अप्रैल-जून तिमाही के दौरान जियो के विशुद्ध रुप से 99 लाख नये ग्राहक बने और कुल उपभोक्ता 39 करोड़ 83 लाख पर पहुंच गए। महज चार साल पहले मोबाइल क्षेत्र में कदम रखने वाली जियो इस क्षेत्र की दिग्गजों भारती एयरटेल और वोडा-आइडिया को पछाडक़र पहले नंबर पर है और अब उसका अगला लक्ष्य 2024 तक अपने उपभोक्ताओं का आंकड़ा 50 करोड़ करना है।
जियो का आकलन औसतन रोजाना पौने तीन लाख ग्राहक जोडक़र चार साल से कम समय में 40 करोड़ उपभोक्ता अपने साथ जोड़े। श्री अंबानी ने कंपनी की इस सफलता पर कहा, Þभारतीय स्टार्ट-अप्स और दुनिया की प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी कर जियो प्लेटफॉम्र्स अब डिजिटल बिजनेस के अगले हाइपर ग्रोथ के लिए तैयार है। हमारी विकास रणनीति सभी 130 करोड़ भारतीयों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से बनी है। हमारा सारा ध्यान भारत को एक डिजिटल समाज में बदलने पर केंद्रित है।Þ
मुकेश अंबानी ने 15 जुलाई को रिलायंस की 43वीं आम बैठक में ऐलान किया है कि भारतीय बाजार में कंपनी सस्ते स्मार्टफोन लायेगी और उसका मकसद 35 करोड़ जी ग्राहकों को 4जी और 5जी सेवाओं के तहत लाना है। कंपनी का इरादा अगले साल देश में 5जी सेवाएं शुरु करने का है और इसके लिए सभी तैयारियां करीब करीब पूरी कर ली गई हैं और सरकार की हरी झंडी का इंतजार है।
यही नहीं, जहां सस्ती और बेहतर सेवाओं को उपलब्ध कराने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच अन्य कंपनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है, रिलायंस जियो का मुनाफा छलांगें लगा रहा है । गुरुवार को वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में रिलायंस जियो का शुद्ध मुनाफ़ा पिछले साल की इसी अवधि के 891 करोड़ रुपये की तुलना में 182.8 प्रतिशत की बड़ी छलांग लगाकर 2,520 करोड़ रुपये पहुंच गया। जियो का मुनाफा लगातार 11वीं तिमाही में बढ़ा और इसका मुख्य आधार नये ग्राहकों की संख्या में लगातार बड़ी बढ़ोतरी और कर्ज मुक्ति के बाद वित्त लागत कम होना है।
मॉस्को, 31 जुलाई (स्पूतनिक)। नाइजीरिया के उत्तर-पूर्वी शहर मैदुगुरी में बोको हराम के आतंकवादियों ने मोर्टार से गोले दागे जिससे दो लोगों की मौत हो गयी और 16 अन्य घायल हो गये।
पीआर नाइजीरिया समाचार आउटलेट ने बताया कि हमला गुरुवार देर रात को हुआ जब लोग ईद उल अजहा के जश्न की तैयारी कर रहे थे। शहर के तीन जिलों में मोर्टार के गोले गिरे जिससे निवासियों में दहशत फैल गयी। घटना की जांच के लिए पुलिस विस्फोटक ऑर्डिनेंस डिटेक्शन (ईओडी) के अधिकारियों को शहर में भेजा गया है।
गौरतलब है कि बोको हराम पर पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र में कई हमलों और अपहरणों का आरोप है। नाइजीरिया आतंकवादियों से निपटने के लिए नाइजर, कैमरून और चाड के साथ सैन्य अभियान चला रहा है।
डोंगरगांव पुलिस ने 12 घंटे में सुलझाई गुत्थी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 31 जुलाई। डोंगरगांव से सटे कोहका में एक व्यक्ति की हत्या की गुत्थी पुलिस ने सुलझाते हुए एक नाबालिग समेत दो युवकों को गिरफ्तार किया है। हत्या महज मोबाइल रिचार्ज की रकम मांगने के नाम पर हुई। डोंगरगांव पुलिस ने 12 घंटे के भीतर वारदात की गुत्थी को सुलझा लिया।
मिली जानकारी के मुताबिक कोहका के रहने वाले प्रेमलाल मेश्राम का शव नाला के पास लावारिश हालत में मिला। प्रथम दृष्टया मामला हत्या से जुडे होने की आशंका के आधार पर पुलिस ने मामले की तफ्तीश शुरू की। बताया गया है कि कल दोपहर लगभग 3.30 बजे मृतक का शव मिलने की खबर के बाद वहां भीड़ जुट गई। घटनास्थल पर पुलिस को एक दो पहिया वाहन भी मिला। वहीं मृतक के शरीर के पास चप्पल और बियर की बोतलें मिली। उक्त बोतलें छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलने के आधार पर पुलिस ने मामले को हत्या से जोडक़र देखा।
मिली जानकारी के मुताबिक मृतक प्रेमलाल का आरोपी मुकेश वैष्णव तथा एक नाबालिग से मोबाइल रिचार्ज की दो सौ रुपए की रकम को लेकर विवाद हुआ। मृतक ने आरोपी के मोबाइल में रिचार्ज कर दिया और वह पैसे की मांग कर रहा था। इसी बात को लेकर आरोपी और नाबालिग का मृतक से विवाद हुआ और पास में रखे एक पत्थर से वारकर दोनों फरार हो गए। पुलिस को आरोपियों के घटना से पहले मृतक के साथ घूमते पाए जाने की खबर मिली। आरोपियों के मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया। आरोपियों को न्यायालय में पेश कर ज्यूडिशियल रिमांड पर भेजने की तैयारी है।
राहुल गाँधी की नोबेल विजेता और ग्रामीण बैंक संस्थापक प्रो. मोहम्मद यूनुस से विशेष बात-चीत:
RG MY |
आप कैसे हैं प्रोफेसर? बहुत दिन बाद आपको देखकर अच्छा लगा! मैं ठीक हूँ। मुझे भी अच्छा लग रहा है। |
RG |
एक महत्वपूर्ण कारण जिसके चलते मैं आपसे बात करना चाहता था, क्योंकि आप गरीब लोगों की आमदनी और महिलाओं पर गरीबी के प्रभाव को समझते हैं। इसलिए मैं आपसे जानना चाहता हूं कि कोविड और आर्थिक संकट गरीबों, उनकी ऋण उपलब्धता और गरीब महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है। आपके क्या विचार हैं और हमें इस बारे में कैसे सोचना चाहिए? |
MY |
यह वही पुरानी कहानी है, मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूँ। वित्तीय प्रणाली को बहुत ही गलत तरीके से तैयार किया गया है। तो कोरोनोवायरस ने समाज की कमजोरियों को बहुत ही कुरूप तरीके से प्रकट किया है, जिसे आप अभी देख सकते हैं। ये उस समाज से दूर हैं, जहां हमें इनकी जरूरत पड़ती है। गरीब लोग हैं, शहर में प्रवासी मजदूर हैं। हमारे लिए काम करने वाले लोग, खाना बनाने वाले, सुरक्षाकर्मी, हमारे दरबान जो हमारे बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। हम उन्हें जानते थे। लेकिन अचानक से हम उनमें से लाखों को घर जाने की कोशिश में हाइवे पर देखते हैं। अचानक शहर के सभी प्रवासी मजदूर बड़ी भीड़ में शहर से बाहर आ रहे हैं और बाहर जा रहे हैं। साधारण सा कारण है कि उनके पास यहाँ कुछ भी नहीं है, यहाँ कोई जीवन नहीं है, कोई पैसा नहीं बचा है। अंततः वे अपने घर ही वापस जा सकते हैं। इसलिए वे हताश होकर घर जा रहे हैं। हजारों मील पैदल चलकर। यह सबसे दुखद हिस्सा है, जो कोरोनोवायरस की वजह से बाहर आया है।
इसलिए हमें इन लोगों को पहचानना होगा। अर्थव्यवस्था इन लोगों को नहीं पहचानती है। वह इसे अनौपचारिक क्षेत्र कहते हैं। जिसका मतलब है कि हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं है, वह अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं। अर्थव्यवस्था औपचारिक क्षेत्र से शुरू होती है, इसलिए हम औपचारिक क्षेत्र के साथ व्यस्त हैं.
यदि हम केवल उन्हें वित्तीय सहायता दें , तो हम उनकी देखभाल कर सकते हैं, उन पर ध्यान दे सकते हैं, वे आगे की तरफ बढ़ रहे हैं। क्योंकि उनके पास कुछ आधारभूत चीज़ें ही हैं और वे जानते हैं कि अपने जीवन के लिए कैसे लड़ना है। लेकिन हम उनकी अनदेखी करते हैं।
इसके बाद आती हैं महिलाएं, जो सबसे अलग कर दी गई हैं। उनकी संरचना को देखिए, वो सबसे निचले पायदान पर हैं। इनकी कोई आवाज नहीं है, समाज में कुछ भी नहीं है, परंपराएं इन्हें पूरी तरह से अलग बनाती हैं। वे समाज की मूल ताकत हैं। उद्यमशील क्षमता के साथ, जब माइक्रो क्रेडिट आया और महिलाओं के पास गया, तो उन्होंने दिखाया कि उनके पास कितनी उद्यमी क्षमता है। यही कारण है कि माइक्रो क्रेडिट को न केवल बांग्लादेश, बल्कि पूरी दुनिया ने जाना, क्योंकि उन्होंने अपना महत्व दिखाया। वे लड़ सकती हैं, उनके पास कौशल है, कारीगरी और सभी प्रकार के सुंदर कौशल इनके पास है। इनको भुला दिया गया, क्योंकि ये 'अनौपचारिक' क्षेत्र से हैं। |
RG |
मेरा मतलब भारत, बांग्लादेश जैसे देशों की यही मूल समस्या है। यह सबसे बड़ी संपत्ति हैं। ये सूक्ष्म उद्यमी, हमारे भविष्य हैं। यह वह जगह है जहाँ पैसा लगाया जाना चाहिए, जहाँ विकास होने वाला है। लेकिन किसी कारण से व्यवस्था उनमें दिलचस्पी नहीं लेती है। हमारी व्यवस्था के लिए उनका महत्व ही नहीं है। |
MY |
बिलकुल, हमने आर्थिक, वित्तीय प्रणाली में पश्चिमी तरीके का अनुसरण किया। इसलिए हमने इस क्षेत्र में भारत, बांग्लादेश जैसे लोगों की जीवंत क्षमता के बारे में नहीं सोचा। चीजों को करने के लिए उनके पास जबरदस्त दृढ़ता है। बहुत रचनात्मक तरीका है। उस रचनात्मकता की प्रशंसा और समर्थन करना होगा। लेकिन सरकार इससे दूर है, यह अनौपचारिक क्षेत्र है, आपके पास कुछ करने को नहीं है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था शहरी अर्थव्यवस्था के लिए एक परिशिष्ट बन गई है। पश्चिम का पारंपरिक तरीका शहरी अर्थव्यवस्था को गतिविधियों के केंद्र के रूप में देखता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था श्रम आपूर्तिकर्ता है, यह श्रम उत्पादक कारखाना है। और वे अपने लोगों को नौकरी खोजने के लिए शहरों में भेजेंगे, अगर आपको नौकरी नहीं मिली, तो यह आपकी बुरी किस्मत है और आप उस शहर में बंद हो जाएंगे। हम इसके बजाय एक अलग समानांतर अर्थव्यवस्था, स्वायत्त अर्थव्यवस्था के रूप में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। आज की स्थिति 100 साल पहले से बदल गई है। प्रौद्योगिकी ने हमें वह सुविधा दी है, जो पहले कभी नहीं थी। शहरवासी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके पास बुनियादी ढांचा था। ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना ही नहीं थी।
आज, बुनियादी ढांचा सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। आपके पास दूरसंचार है, सड़क है, परिवहन है, संचार है। सब कुछ तो है। तो ऐसा क्या है कि आपको शहर जाना है? हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था क्यों नहीं बना सकते, जहाँ लोग मूल स्थान पर रहकर बुनियादी आजीविका प्राप्त कर सकें? |
RG |
लेकिन अगर आप देखें कि तकनीक किस तरह जा रही है, विकेंद्रीकरण, मोबाइल फोन, मूल रूप से कंप्यूटर जो पूरी दुनिया में फैल रहा है, जो अलग-अलग हिस्सों में प्रवेश कर रहा है। संभवतः आप एक ऐसे भविष्य को देख रहे हैं जो आपको बहुत पसंद है। क्योंकि 20 साल पहले, आप ग्रामीण अर्थव्यवस्था का उपयोग कुछ अलग तरह के काम करने के लिए कर सकते थे, जो कि आज की आवश्यकता है। जबकि प्रौद्योगिकी के साथ असहमति का कोई कारण नहीं है, विकेन्द्रीकृत विनिर्माण ग्रामीण परिवेश में नहीं हो सकता है। हालाँकि, आपको शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से पुनर्गठित करना होगा। आपको स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं के पूरी तरह से पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। आपको मूल रूप से सभी चीजों का पुनर्गठन करना होगा, यदि आप उस दिशा में बढ़ना चाहते हैं। मुझे नहीं लगता कि आप वैसा सोचकर जो चाहते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह संभव है। यह पूरी तरह से एक नयी बात है, जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता यह एक वृद्धिशील बात है। |
MY |
यह एक और बिंदु है, मैं अपनी बात को कोरोना महामारी की तरफ मोड़ना चाहता हूं। मैंने कहा कि कोरोना महामारी ने अचानक पूरी प्रक्रिया, पूरी आर्थिक प्रक्रिया को बंद कर दिया। अब पूरा जोर इस बात पर है कि कितनी जल्दी हम वापस उस स्थिति में आ सकते हैं। मैंने कहा, वापस जाने की क्या जल्दी है? क्या हम सबको वापस जाना चाहिए? क्योंकि वह दुनिया बहुत भयानक दुनिया थी। ग्लोबल वार्मिंग के साथ दुनिया का निर्माण हो रहा था और कुछ ही वर्षों में दुनिया की समाप्ति का काउंटडाउन चालू था, जहाँ दो-तीन दशकों में दुनिया एक ऐसे मुकाम पर होगी, जहां कोई नहीं बच सकता।
हमें उस दुनिया में वापस क्यों जाना है और केवल पूंजी आधारित और ग्लोबल वार्मिंग के साथ उस दुनिया में क्यों वापस जाना है। उस दुनिया में धन बहुत कम लोगों के पास रहा है, अधिकांश लोगों को उस धन से कोई लेना-देना नहीं रहा है। तो हमें केवल पूंजी आधारित उस व्यवस्था में वापस क्यों जाना है? आपको उस दुनिया में वापस क्यों जाना है, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता हर किसी से रोजगार छीन रही है। अगले कुछ दशकों में व्यापक बेरोजगारी पैदा होने वाली है, क्या हमें वापस जाना है? पीछे जाना आत्मघाती होगा। इसलिए इस कोरोनावायरस ने हमें सोचने का नया मौका दिया है। आपदा में अवसर की तरह। तो यहाँ मुद्दा यह है कि जो बिंदु आपने उठाया, हम इसके बारे में नहीं सोच रहे हैं। हमें इसकी आदत हो गई है। अचानक हमने कहा, ओह, हमें मौका मिला। चलो अब,अलग तरीके से चलते हैं। और ये अलग-अलग तरीके इस प्रकार हैं। जब तक हम उन साहसिक निर्णयों को नहीं लेते, अभी यही समय है जब हम सख़्त निर्णय ले सकते हैं। यह समय चुपचाप बैठने और घर, दुकानें खुलने का जश्न मनाने का नहीं है।
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RG |
यह मॉडल भारतीय या बांग्लादेशी मॉडल नहीं है। यह पूरी तरह से पश्चिमी मॉडल है कि हमने लॉक स्टॉक और बैरल को अपनाया है। वास्तव में हमने इस मॉडल को अपनाया है और महसूस किया है कि यह मॉडल ऐसा नहीं है। इस मॉडल में गंभीर समस्याएं हैं। गंभीर विरोधाभास है, जो पर्यावरण को नष्ट करता है, समाज को नष्ट करता है? और अगर मैं महात्मा गांधी के बारे में सोचता हूं, जो उन्होंने 78 साल पहले कहा था कि हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में सोचने की जरूरत है। हमें अपनी पारंपरिक संरचनाओं के बारे में सोचने की जरूरत है। निश्चित रूप से, हमारी एक यात्रा रही है और यह एक महत्वपूर्ण यात्रा है, लेकिन मुझे लगता है कि इनमें से कुछ तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिए, आप जानते हैं, एक भारतीय संरचना, बांग्लादेशी संरचना और एशियाई संरचना काफी शक्तिशाली होगी। इसलिए मुझे लगता है कि मैं आपसे सहमत हूं कि इन सबमें ग्रामीण लोगों के लिए बराबरी की जरूरत है और कोरोना में हमें एक नई कल्पना का अवसर मिला है, जो बाहर के बजाय हमारे भीतर से पैदा होती है। |
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इसके मूल आधार पर बिलकुल सहमत होते हुए बस एक छोटा सा संशोधन है। यह एशिया, भारत या बांग्लादेश तक सीमित नहीं है। यह पूर्ण रूप से वैश्विक घटना है। इसका प्रमाण है, जब हमने बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक को पैसा उधार देना शुरू किया। उन्होंने सोचा कि यह बांग्लादेशी घटना है, कि यह एक दीवाना देश है, क्रेजी चीजें करते हैं। अचानक यह एशियाई हो गई। अब, यह वैश्विक है। क्योंकि यह अकेले बांग्लादेश की समस्या नहीं है। |
RG |
लेकिन यूनुस जी वहाँ इसकी प्रकृति स्थानीय है। उदाहरण के लिए मैं आप में बांग्लादेश और वहां की प्रकृति देखता हूँ। मैं मानता हूं कि केंद्रीय समस्या समान है लेकिन उसकी प्रकृति और समाधान उस जगह की संस्कृति के आधार पर थोड़ा अलग है। उदाहरण के लिए, हमारे पास जाति-आधारित समाज है। हमारे पास संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पूरी तरह से अलग प्रकार की संरचना है जिसमें जाति-आधारित समाज नहीं है। इसलिए हमारी संरचनाएं जो उभरती हैं, वे थोड़ी अलग हैं, हालांकि समस्या समान है। |
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मैं सहमत हूँ कि बुनियादी बातें समान है, आपके पास जाति व्यवस्था है, संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति व्यवस्था से भी बदतर एक नस्लीय व्यवस्था है। आप एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। यह अलग आकार, आकृति और रंगों में है। मानव संस्कृति मूल संस्कृति है। हमें मानव संस्कृति में वापस जाना होगा। हम सभी जुड़े हुए हैं और यह तब हुआ जब गरीब महिलाएँ ग्रामीण बैंक समूह में शामिल होने लगी हैं। वे नहीं सोच रही हैं कि वह इस धर्म से संबंधित है या उस धर्म से। वे इस बात की परवाह नहीं करती कि वे किस धर्म में हैं। वे एक ही समूह में हैं और अलग-अलग धर्म की पांच महिलाएं, एक साथ मिल कर, एक साथ काम करके, बहुत करीबी दोस्त बन जाती हैं।
तो दोष माहौल की उस बनावट में है, जो आपने उसके चारों ओर बनाया है। तो यही समय है जब कोरोनोवायरस ने उन सभी को पीछे छोड़ दिया है। इसलिए उन्हें मत जगाओ, नई व्यवस्था बनाओ। नई व्यवस्थाएँ लाएँ और नई व्यवस्थाओं की शुरुआत करें। हजारों-मील की यात्रा पहले कदम के साथ शुरू होती है। चलिए कोरोनावायरस के दौरान पहला कदम उठाते हैं। एक बहुत ही निर्धारित पहला कदम। |
RG |
तो आप जो कह रहे हैं उसका मतलब है कि आपको लोगों पर विश्वास करना होगा। यही नींव है, आप उन पर विश्वास करके, उस विश्वास को सशक्त बनाने वाली संस्थाओं का निर्माण शुरू करते हैं। हम आप पर भरोसा नहीं करते हैं। आप गरीब हैं, इसलिए आपको कुछ भी समझ में नहीं आता है। इसके बजाय आप गरीब हैं, हम जानते हैं कि जरूरत के अनुसार आप सब कुछ समझते हैं। हम आपको केवल सपोर्ट देने जा रहे हैं जो आपको कामयाब और विकसित होने के अवसर देने वाला है। |
MY |
बिल्कुल, और फिर ग्रामीण बैंक में मेरा अनुभव, यदि आपको याद हो तो आपने 2008 में हमसे मुलाकात की थी। और आप सिर्फ एक दिन नहीं, चार-पांच दिनों के लिए आए थे। हम यह कैसे करे? उसका आधार क्या था? लोग हैरान थे कि हम उनके हाथ में इतना पैसा दे रहे हैं। उनके लिए 1000 रुपये एक बड़ी रकम है। 2,000 और 10,000 उनके लिए एक बड़ी रकम है। जिन्होंने केवल 10, 20 रुपये ही देखें हों और अब आप उन्हें 1000 दे रहे हैं।
खैर जैसा मैंने कहा, हमें उन पर विश्वास है, उनकी क्षमता पर विश्वास है और वे हम पर विश्वास करते हैं। यह आपसी विश्वास है। हमें किसी कागजात की आवश्यकता नहीं है। पूरे ग्रामीण तंत्र में, कोई कागजात नहीं है। कोई जमानत नहीं है और यह मैं सिर्फ यूं ही नहीं कह रहा हूं। मैं कहता हूं कि ग्रामीण बैंक दुनिया का एकमात्र बैंक है, जो वकील मुक्त है। हमारे पास कोई कानूनी कागजात या कुछ भी नहीं है। अगर बैंक विश्वास पर काम कर सकता है, तो इसने लोगों की बुनियादी ताकत को दिखाया है। जब हर साल अरबों डॉलर लोन के रूप में दिए जाते हैं और ब्याज के साथ वापस आते हैं, तो आप एक मजबूत संगठन बन जाते हैं। बाढ़ आती है, चक्रवात आता है, सब कुछ धुल जाता है, लेकिन ग्रामीण बैंक मजबूत हो जाता है। |
RG |
लेकिन देखिए मुझे इसका एक व्यक्तिगत अनुभव है और मुझे लगता है कि आप बिलकुल ठीक हो और आप समझ जाओगे कि मैं क्या कह रहा हूँ। मैं आपसे मिलने आया था और आप जानते हैं कि हमने उत्तर प्रदेश में लाखों महिलाओं को शामिल करने वाली एक बड़ी संस्था बनाई है। और तब मुझे एक अत्यंत शक्तिशाली संगठन मिला, लाखों महिलाऐं सशक्त बनी; लाखों महिलाओं ने गरीबी को दूर किया। तब मैंने खुद को एक सरकार के साथ पाया, जिसने इस पर हमला करने का फैसला किया। इसलिए मैं आपसे सहमत हूं लेकिन आप जो कह रहे हैं, उसमें एक टुकड़ा गायब है, जो राजनीतिक वास्तविकता है, वह यह है कि इन व्यवस्थाओं को आपने बनाया है, जैसे कि मैंने उत्तरप्रदेश में बनाया है। इससे कुछ लोगों को परेशानी होती है और फिर वे इसे नष्ट करने के लिए आते हैं और आप जानते हैं, आप समझ जाएंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ। इसलिए मैं आपको चुनौती दूंगा और मुझे यकीन है कि आप मुझे जवाब जरूर देंगे। इस माहौल में, जहां अन्य संस्थान अन्य राजनीतिक उपकरण उस संस्था के प्रकार पर हमला कर रहे हैं, जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं। आप इसका बचाव कैसे करते हैं? और आप इसे कैसे बनाते हैं? ऐसे कौन से तत्व हैं जिनकी आपको इसमें आवश्यकता होती है, जो या तो इन अन्य संस्थानों के साथ काम कर सकते हैं या सह-विकल्प हो सकते हैं या एक समझदार प्रतियोगी के रूप में हो सकते हैं। |
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इसी तरह सरकार जैसी कुछ संस्थाओं में चीजों को नष्ट करने और चीजों को कार्रवाई से दूर करने की जबरदस्त शक्ति होती है। लेकिन मेरी स्थिति यह है कि अगर आप लोगों के लिए कुछ कर रहे हैं और लोगों ने इसे पसंद किया और लोग इसका आनंद भी लेते हैं। तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कितने शक्तिशाली हैं, यह एक अस्थायी अव्यवस्था है। यह वापस आ जाएगा। आप इसे रोक नहीं सकते क्योंकि यह लोगों के लिए काम करता है और अगर इसने विस्तार पा लिया और यदि आप इसे उत्तरप्रदेश में रोकते हैं, तो ये अन्य राज्य या क्षेत्र में अपनी जगह बना लेगा। जितना आपने प्रयास किया है, उससे अधिक ताकत के साथ वापस आएगा और फिर से जीवित होगा। क्योंकि यह लोगों के लिए काम करता है। यह अटूट है। अच्छे विचार अटूट होते हैं। |
MY |
लेकिन आप बेहतर स्थिति में जाने के बारे में कैसा महसूस करते हैं? क्या आप बेलआउट पैकेज लाने और सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सभी बड़े उद्योग फिर से दिशा-निर्देश प्राप्त करें, यह थोड़ा सोचने का समय है। |
RG |
मुझे लगता है कि भारत में बड़े पैमाने पर प्रवासियों का मुद्दा था। आप जानते हैं, जिसे आप सूक्ष्म उद्यमी कहते हैं, अचानक उन्होने खुद को फंसे हुए पाया और मैंने उनमें से काफी लोगों से बात की और बार देखा कि वे क्या कर रहे थे, सचमुच उनकी दुनिया बिखर गई थी और वे अपने गाँव वापस जाने के लिए मजबूर हो गए थे। तो इसका पहला पहलू उन लोगों की तुरंत देखभाल करने की कोशिश करने का था और हमारा उद्देश्य उन्हें भोजन देना था। उन्हें बचाए रखने के लिए सीधे नकद पैसे दें। सरकार का एक अलग दृष्टिकोण था। वो वास्तव में ऐसा नहीं करते थे। वो इसे आवश्यक भी नहीं समझते थे। फिर लाखों लोग हजारों मील पैदल चलकर घर जाने का संकट झेल रहे थे। मुझे संदेह है कि बांग्लादेश में भी ऐसा था, लेकिन मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। मुझे लगता है कि अगर आप कोरोना काल में नई कल्पना के साथ बाहर नहीं आते हैं, तो आपने एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के रूप में एक बड़ा अवसर गंवा दिया है। मुझे लगता है कि कोरोना आपको जो बता रहा है, वह यह है कि जो आप अभी तक कर रहे थे वह समस्याग्रस्त है और आप उसे फिर से करने की कोशिश कर रहे हैं। एक नया दिन और नई कल्पना के साथ शुरू करें, निश्चित रूप से आप शासन में उस तरह से एक छलांग नहीं लगा सकते हैं, लेकिन कम से कम दिमाग वहाँ जाना चाहिए और फिर बाकी संस्थानों और अन्य चीजों का पालन करना चाहिए। इसलिए मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि कल्पना में बदलाव का समय आया है। मुझे लगता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने अपनी कल्पना को बदल दिया, आखिरी बार वास्तविक बड़ी कल्पना उसी वक़्त बदली थी और मुझे लगता है कि कोरोना एक ऐसा अवसर है कि हम चीजों को फिर से जोड़ सकते हैं और उनका पुनर्निर्माण कर सकते हैं। और मुझे भी लगता है कि हमारे जैसे देशों में अन्य देशों की तुलना में बड़ा अवसर है। सिर्फ इसलिए कि हमारे पास खेलने के लिए बहुत अधिक जगह है, इतने अधिक युवा लोग हैं और हमारे पास निर्माण करने के लिए बहुत कुछ है। पश्चिमी दुनिया जो पहले से ही अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण कर चुकी है। |
MY |
एक और सवाल फिर से आपसे पूछना चाहता था क्योंकि आपके पास एक विशाल देश और विशाल राष्ट्र का संदर्भ है। आप भारत की अगली पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी में क्या देखेंगे, हम दुनिया के सपने के उस हिस्से में हैं जो आप भारत की दूसरी पीढ़ी और तीसरी पीढ़ी को देना चाहते हैं। क्या यह वह रास्ता है जिसका आप अनुसरण कर रहे हैं? एक कारण की तरह, मैं यह पूछ रहा हूँ, पूरे विश्व में युवा सड़क पर "Friday’s for Future" मार्च करते हुए अपने माता-पिता पर आरोप लगा रहे हैं कि आपने हमारे जीवन को नष्ट कर दिया, आप ग्लोबल वार्मिंग की दुनिया बनाने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं और आप इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं कि क्या हम जीवित रहेंगे या नहीं, हमारे जीवन के हित में क्या है। क्या आप वही महसूस करते हैं जो युवा लोग महसूस कर रहे हैं या… |
RG |
अगर भारत में देखें, तो लोगों में एक स्पष्ट भावना है कि कुछ बहुत गलत हो गया है और विशेष रूप से युवा लोगों में यह भावना है कि कुछ गलत हो गया है। कुछ काम नहीं हो रहा है और वे भी इस बात को देख सकते हैं, कि भारत में अमीर और गरीब के बीच का अंतर बहुत विशाल है, लेकिन यह गरीब लोगों के चेहरों पर हर दिन नजर आता है। तो बस यही सब है, जो लोगों को परेशान करता है। और इसलिए एक अर्थ यह है कि कुछ नया होना जरूरी है। एक नई कल्पना की आवश्यकता है। एक विपक्ष के रूप में हम उस पर काम कर रहे हैं, ताकि उसमें नयापन दिखे। |
MY |
वही समस्या है, यहां अरबपति बढ़ रहे हैं,आप जानते हैं कि अरबपतियों की संख्या किस कदर बढ़ रही है और बांग्लादेश या भारत जैसे देश में अरबपतियों की संख्या में वृद्धि दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। तो इसका मतलब है कि पैसा एक ही दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यदि आप लोगों के बीच राजनीतिक समझ का उपयोग करें कि हम एक साथ यह प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इससे पैदा हुए क्रोध के कारण यह गायब हो जाता है। मैं कड़ी मेहनत करता हूँ। मैं कुछ नहीं सुनता। मुझे अपनी आजीविका का पता लगाने के लिए मीलों दूर जाना होता है और मैं अपने परिवार को या अपने बच्चों को खाना नहीं खिला सकता, मुझे अपने बच्चों से दूर रहना होता है, अपने परिवार के लिए, घर के लिए अपने परिवार से दूर रहना होता है। तो, गुस्से ने पूरे समाज को अपने आगोश में ले लिया है। |
RG |
आप लालच की अवधारणा पर सवाल उठा रहे हैं? |
MY |
हमने लालच को हवा देने के लिए सब कुछ किया और फिर हमने पूरी दुनिया को नष्ट कर दिया। तो जैसा मैंने कहा यह वही मौका है, जब कोरोना ने हमें विचार करने का मौका दिया है, यह देखने के लिए कि बड़े साहसिक निर्णय कैसे लिए जा सकते हैं, ये वही साहसिक निर्णय हैं। एक सामान्य स्थिति में इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। हम पैसा कमाने में इतने व्यस्त हैं। तो जैसा मैंने कहा कि कोरोनोवायरस ने हमें राहत दी है, हमें सोचने का अवसर दिया है और हमारे पास अब एक विकल्प है कि क्या हम उस भयानक दुनिया में जाएँ जो अपने आप को तबाह कर रही है, या हम एक नई दुनिया के निर्माण की तरफ जाएं, जहां पर कोई ग्लोबल वार्मिंग, केवल पूंजी आधारित समाज, कोई बेरोजगारी नहीं होगी। यह संभव है। |
RG |
बिलकुल, आपके समय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और अब ज्यादा समय नही लेंगे, लेकिन यह हमेशा हमारे लिए खुशी की बात है। यहाँ आने का कोई अवसर?
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MY |
बिलकुल, कोरोना के जाने के बाद। |
RG |
जब यह सब ठीक हो जाएगा तो हम आपसे मिलने के लिए उत्सुक हैं। परिवार और संगठन में सभी को मेरा प्यार। |
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 31 जुलाई। आज सीएमएचओ दफ्तर के सामने स्थित कुएं की सफाई के दौरान टुकड़ों में मानव कंकाल मिला। जिससे क्षेत्र में सनसनी फैल गई। पुलिस मौके पर पहुंच जांच कर रही है।
कोतवाली टीआई राजेश बागड़े ने बताया कि कंकाल की फॉरेंसिक जांच के लिए रायपुर भेजा जाएगा। रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
दुर्ग शहर में शासकीय और निजी मिलाकर लगभग 130 कुएं थे। स्थानीय लोगों की उदासीनता से बहुत से कुओं को लोगों ने पाट दिया। ज्ञात हो कि विधायक अरुण वोरा एवं महापौर धीरज बाकलीवाल के निर्देश पर शहर के धरोहर को संरक्षित करने कार्य प्रारंभ किया गया है। इसके तहत दुर्ग नगर निगम ने शहर में कुओं की सफाई कल से इंदिरा मार्केट के कुएं की सफाई के साथ शुरू की है।
आज सुबह सीएमएचओ दफ्तर के सामने स्थित कुएं की सफाई शुरू की गई। तभी सफाई कर्मियों को पहले मानव कंकाल का सिर मिला, इसके बाद कंकाल के टुकड़े निकाले गए। कंकाल देखने पर बच्चे का होने की आशंका जताई जा रही है। कंकाल के साथ टीशर्ट भी बंधा मिला। इसकी खबर फैलते ही लोगों की भीड़ जुट गई। लोगों में कई तरह की चर्चाएं होने लगी। कोई हत्या या कोई नरबलि की आशंका कर रहे थे। समाचार लिखे जाने तक कुएं में मिले मानव कंकाल के टुकड़ों का पता लगाने में पुलिस जुटी हुई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बंगले के सात और कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव प्रकरण आने के बाद स्वास्थ्य मंत्री का बंगला सील कर दिया गया है।
बताया गया कि सबसे पहले कैंसर पीडि़त महिला के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। महिला अंबिकापुर की रहने वाली है और यहां रायपुर में उनके इलाज की व्यवस्था स्वास्थ्य मंत्री के स्टाफ के लोगों ने की थी। महिला के संपर्क में आने से सबसे पहले बंगले की कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव हो गई।
बाद में बंगले के कई और लोगों का टेस्ट कराया गया। आज रिपोर्ट आई है जिसमें स्वास्थ्य मंत्री के बंगले के सात और स्टाफ के लोगों के कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है। इन सभी को अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री पिछले कई दिनों से बंगले नहीं आ रहे थे। वे आरकेसी गेस्ट हाउस से ही काम निपटा रहे थे। आज बंगला सील कर दिया गया।
मौतें-51, एक्टिव-2884, डिस्चार्ज-5921
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 9 हजार आसपास पहुंचने लगे हैं। बीती रात मिले 256 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 8 हजार 8 सौ 56 हो गई है। इसमें 51 की मौत हो गई हैं। 28 सौ 84 एक्टिव हैं और इन सभी का इलाज जारी है। 5 हजार 9 सौ 21 मरीज ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
प्रदेश में कोरोना मरीज रोज सामने आ रहे हैं और इनकी संख्या तेजी के साथ बढ़ती चली जा रही है। खासकर राजधानी रायपुर और आसपास दर्जनों पॉजिटिव निकल रहे हैं। बुलेटिन के मुताबिक बीती रात करीब 8 बजे 175 नए पॉजिटिव की पहचान की गई। इसमें रायपुर जिले से 93, राजनांदगांव से 21, दुुर्ग से 13, कोंडागांव से 9, बिलासपुर से 8, जांजगीर-चांपा व बलौदाबाजार से 4-4, कांकेर व नारायणपुर से 3-3, मुंगेली, कोरिया, सूरजपुर, बस्तर व दंतेवाड़ा से 2-2 एवं बेमेतरा, कबीरधाम, गरियाबंद, कोरबा, सरगुजा, बलरामपुर व जशपुर से 1-1 मरीज शामिल रहे।
इसके बाद रात 11 बजे 81 और नए पॉजिटीव की पहचान की गई, जिसमें जांजगीर-चांपा जिले से 17, कवर्धा से 16, कोरिया व रायपुर से 11-11, सरगुजा से 7, रायगढ़ से 5, बिलासपुर व सूरजपुर से 4-4, दुर्ग व महासमुंद से 2-2 एवं कोरबा व जशपुर से 1-1 मरीज शामिल रहे। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में दाखिल किए जा रहे हैं। वहीं उनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। दूसरी तरफ टिकरापारा, रायपुर के 45 वर्षीय व्यक्ति की कल मौत हो गई। वह डायबीटिज तथा कनवल्सिव डिसआर्डर से पीडि़त था और जांच में कोरोना पॉजिटिव भी पाया गया था। उसे 28 जुलाई को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 29 जुलाई की देर रात उसने दम तोड़ दिया।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि प्रदेश में नए कोरोना मरीजों के साथ भर्ती मरीज भी जल्द ठीक होकर अपने घर लौट रहे हैं। बीती रात जितने मरीज सामने आए, उससे अधिक 285 मरीज ठीक होकर अपने घर लौटे। लापरवाही कम होने और मास्क लगाकर सामाजिक दूरी बनाए रखने से नए मरीजों के आंकड़े कम होंगे और हम जल्द कोरोना को हराने में सफल होंगे। उनका कहना है कि प्रदेश में 3 लाख से अधिक सैंपलों की जांच पूरी हो चुकी है और आगे सैंपल जांच और ज्यादा बढ़ाने की तैयारी है।
-कनक तिवारी
भीमा कोरेगांव के मामले में अनावश्यक रूप से गिरफ्तार मानव अधिकार कार्यकर्ताओं में एक सुधा भारद्वाज के बारे में मैं शुरू से बता दूं सुधा और मेरा बहुत पुराना परिचय है। दुर्ग जिले में राजहरा में श्रमिक आंदोलन के बहुत बड़े नेता शंकर गुहा नियोगी आपातकाल के पहले ही मेरे बहुत करीब आए। मैं लगातार उनकी मदद करता रहा और उनकी यूनियन की, उनकी सहकारी समितियों की। नियोगी से तो घरोबा जैसा हो गया था। उनकी हत्या कर दी गई। इसका दुख और क्रोध आज तक हम लोगों को है। उन्हीं दिनों उनके सहयोगी सुधा भारद्वाज, अनूप सिंह, विनायक सेन, जनकलाल ठाकुर तथा कई और मित्र वहां हुए। सबसे आत्मीय रिश्ता परिवार की तरह होता गया। वह अनौपचारिकता आज तक कायम है।
सुधा मेरे साथ वकालत में भी मेरे ऑफिस में जूनियर रहीं। हमने कई मुकदमे साथ में किए। मेरे एक और जूनियर रहे गालिब द्विवेदी बंटी ने एक दिलचस्प टिप्पणी की ‘जैसे हम लोग आपकी डांट से डरते थे वैसे ही सुधा दीदी भी डरती थीं। बहुत सी फाइलों के बीच में काम करते करते थककर सोफे पर कुछ देर सो जाती थीं और कहती थीं देखना सर आएंगे तो डांट पड़ेगी कि यह काम नहीं किया। वह काम नहीं किया। वी लव यू सर हम सबका सौभाग्य है कि हमें आपका साथ एवं आपका सानिध्य प्राप्त हुआ है।’
बस्तर में टाटा और एस्सार स्टील के लगने वाले कारखानों को चुनौती देने वाली हमने जनहित याचिका दायर कीं। कई जनहित के मामले भी बस्त के आदिवासियों के पक्ष में हिमांशु कुमार की पहल पर किए। जस्टिस राजेंद्र सच्चर और वकील कन्नाबिरन, राजेंद्र सायल, विनायक सेन और सुधा भारद्वाज के कारण मैं कई बार पीयूसीएल के कार्यक्रमों में गया हूं। मैं विनायक सेन का वकील रहा हूं। उन्हें नक्सलवादी कहा गया। बहुत मुश्किल से उनकी सुप्रीम कोर्ट में जमानत हुई। कुछ और वकील, पत्रकार, छात्र पिछले वर्ष आंध्रप्रदेश से तेलंगाना से छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार किए गए। उनके मामले की भी मैंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पैरवी की।
जिसे नक्सलवादी साहित्य कहते हैं उसमें से बहुत सा तो सरकारी अधिनियमों के तहत ही छपता है। उसे कोई जप्त नहीं कर सकता। मामलों में पुलिस उल्टा ही कहती रहती है। छत्तीसगढ़़ जनसुरक्षा विशेष अधिनियम में डॉक्टरों, कलाकारों, लेखकों, दर्जियों को पकड़ लिया जाता रहा है। छत्तीसगढ़ में सरकार के प्रोत्साहन से तथाकथित सलवा जुडूम नाम का कांग्रेस द्वारा समर्थित वितंडावाद हुआ था। उसकी हम सब ने मुखालफत की थी। अदालत तक गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उस सलवा जुडूम के पूरे सरंजाम को ध्वस्त कर दिया। नंदिनी सुंदर ने इस संबंध में महत्वपूर्ण काम किया है । मेधा पाटकर ने भी, अरुंधती राय ने, सुधा भारद्वाज ने, बहुत लोगों ने। अब ब्रह्मदेव शर्मा से कई मामलों में इसी तरह के मामलों में सक्रिय संबंध हम लोगों का रहा है।
सुधा चाहती तो बहुत ऐशोआराम का जीवन व्यतीत कर सकती थी। चाहती तो बहुत से शहरी लोगों की तरह आंदोलन करतीं। शोहरत भी पाती, दौलत भी पाती। फिर भी गरीबों की नेता बनी रहती। लेकिन उसने वैभव और शहरी ठाटबाट की जिंदगी छोड़ दी। उसने गरीबी से अपनी जिंदगी, जो तारीफ के काबिल है, चलाई है। छत्तीसगढ़ से दिल्ली चली गईं अपने निजी कारणों से। कुछ पारिवारिक कारण भी थे। उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया है। उसका जीवन संवार रही हैं। उसके पहले से बहुत बीमार चल रहा था। बहुत भावुक होकर मैंने फोन भी किया था। लिखा था। मेरी छोटी बहन की तरह काश छत्तीसगढ़ से नहीं जाती। सुधा भारद्वाज की तरह के उदाहरण हिंदुस्तान में उंगलियों पर गिने जाएंगे। इससे ज्यादा मैं क्या कहूं।
सुधा भारद्वाज की अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक गोदी मीडिया द्वारा या ट्रोल आर्मी के द्वारा कोई चरित्र हत्या की कोशिश की जाती रही है। कुछ बातें और बताऊंगा। कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस और कुछ जजों ने सुधा को लेकर मुझसे बात की थी। वे चाहते थे कि सुधा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जज बनने के लिए अपनी स्वीकृति दे दें। सुधा ने विनम्रतापूर्वक इंकार किया। मैंने सुधा से पूछा भी था तो हंसकर टाल गई। उसने कहा आप जानते हैं यह काम मैं नहीं कर पाऊंगी। मुझे जो काम करना है। वह मैं ठीक से कर रही हूं। मैं भी जानता था। वह इस काम के लिए नहीं बनी है। फिर भी उनकी योग्यता और क्षमता को देखकर मैंने सिफारिश करने की कोशिश जरूर की थी।
सुधा एक आडंबररहित सीधा सादा जीवन जीती है। उनमें दुख और कष्ट सहने की बहुत ताकत है। यूनियन में संगठन में मतभेद भी होते थे। बहुत से मामलों को सुलझाने में मैं खुद भी शरीक रहा हूं। बहुत अंतरंग बातें मुझे बहुत सी कई मित्रों के बारे में मालूम है। कुल मिलाकर सब एक परिधि के अंदर रहते थे। उसके बाहर नहीं जाते थे। जैसे बर्तन आपस में रसोई घर में टकरा जाते होंगे। लेकिन एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। ऐसे बहुत से साथियों के बारे में भ्रम फैलाया जाता रहा है। अफवाह फैलाने वाले खराब किस्म के घटिया लोग हैं। मैं तो कांग्रेस पार्टी का पदाधिकारी रहकर भी कांग्रेस की सत्ता के जमाने में नियोगी के कंधे से कंधा मिलाकर सरकारी आदेशों और व्यवस्था के विरोध करने सहयोग करता था। मुझे किसी का भय नहीं था। कांग्रेस पार्टी ने भी कभी मुझे काम करने से नहीं रोका। यह ईमानदार मजदूर लोगों का एक संगठन है, पारदर्शी लोगों का। जब से यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिकाऊ हो गया है, घटिया हो गया है, सड़ा हो गया है। तब से इस तरह की हरकतें वह कर रहा है। न्याय व्यवस्था भी सड़ गई है। जस्टिस कृष्ण अय्यर ने तो न्यायपालिका नामक संस्था को ही अस्तित्वहीन कह दिया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र 25 अगस्त से शुरू हो रहा है। यह सत्र 28 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान कुल 4 बैठकें होंगी। इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी गई है। सत्र के पहले दिन दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस सत्र में वित्तीय कार्य के साथ-साथ अन्य कार्य संपादित किए जाएंगे।
-तामेश्वर सिन्हा
सुकमा जिले के एक गांव की 20 वर्षीय युवती से सीआरपीएफ 150वीं वाहनी के जवान पर बलात्कार करने का आरोप है। आरोपी जवान के खिलाफ दोरनापाल थाना में युवती ने रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके बाद पुलिस ने सीआरपीएफ जवान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। आरोपी जवान को छुटटी से लौटने के बाद दुब्बाटोटा स्थित हाईस्कूल भवन में 21 दिनों के लिए क्वारंटीन किया गया था।
पीडि़ता समेत एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीण दोरनापाल थाने पहुंचे। पीडि़ता ने दुब्बाटोटा स्थित सीआरपीएफ 150वीं वाहिनी के क्वारंटीन सेंटर में रखे जवान पर बलात्कार की रिर्पोट दर्ज कराई है। पीडि़त युवती के मुताबिक सोमवार 27 जुलाई की दोपहर को युवती और उसकी बहन रोज की तरह जानवर चराने हाईस्कूल भवन के पीछे नदी के पास गए थे। इस दौरान क्वॉरंटीन सेंटर में रह रहे जवान दुलीचंद पांचे पहुंचा और जबरन हाथ पकडऩे लगा। जवान की हरकत को देखकर छोटी बहन मौके से भाग गई। जवान पीडि़ता का मुंह दबाकर उसे पास के जंगल में ले गया और दुष्कर्म किया।
सीआरपीएफ जवान पर आदिवासी युवती के साथ बलात्कार की रिर्पोट दर्ज होने के बाद ही पुलिस हरकत में आ गई। पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा ने एएसपी सुनील शर्मा को दोरनापाल रवाना किया। दोरनापाल पहुंचने के बाद एएसपी ने पीडि़ता और ग्रामीणों की शिकायत सुनी। इसके बाद सीआरपीएफ जवान की पहचान पीडि़ता से कराई गई।
पीडि़ता की पहचान के बाद जवान को गिरफ्तार कर लिया गया। गुरुवार को पीडि़ता और आरोपी जवान का मुलाहिजा कराया गया। दोपहर को पीडि़ता को सुकमा न्यायालय के समक्ष पेश कर धारा 164 के तहत बयान दर्ज कर आरोपी जवान को जेल भेज दिया गया।
युवती को प्रलोभन देने का भी प्रयास
ग्रामीणों ने बताया कि जवान ने युवती के साथ बलात्कार करने के बाद मामले को दबाने के लिए पैसों का प्रलोभन भी दिया। 27 तारीख को युवती के साथ बलात्कार की घटना के बाद जवान ने दोबारा 29 जुलाई को भी एक दूसरी युवती के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। युवती द्वारा मना करने पर पैसों का प्रलोभन दिया गया। युवती मौके से भागने में कामयाब हो गई। इसके बाद उसने पूरी जानकारी परिजनों को दी।
कैंप प्रभारी पर भी हो कार्रवाई
पूर्व विधायक और आदिवासी नेता मनीष कुंजाम ने मामले की निंदा करते हुए जवान के साथ कैंप प्रभारी पर भी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि जवानों के महिलाओं के साथ दुष्कर्म और छेड़छाड़ के मामले लंबे समय से सामने आ रहे हैं। महिलाएं लोकलाज के डर से थाने तक नहीं पहुंचती हैं। बलात्कार के आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन छेड़छाड़ करने वाले अन्य जवानों पर कार्रवाई नहीं की गई है। आदिवासी महासभा उक्त दोषी जवानों की गिरफ्तारी की मांग करती है।
मनीष कुंजाम ने कहा कि यह गांव राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इसके बावजूद सीआरपीएफ जवानों द्वारा महिलाओं और युवतियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाएं होती रहती हैं। अंदरूनी इलाकों में क्या होता होगा इसे सहज ही समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि दोषी जवानों पर कार्रवाई नहीं होने की दिशा में आदिवासी महासभा उग्र प्रदर्शन करेगी।
सुकमा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा ने बताया कि पीडि़ता ने सीआरपीएफ जवान के खिलाफ बलात्कार करने की रिर्पोट दर्ज कराई है। युवती की शिकायत के बाद मामले की पड़ताल की गई और आरोपी जवान को गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपी ने युवती के साथ बलात्कार करना कबूल कर लिया है। आईपीसी की धारा 376 के तहत मामला पंजीबद्ध कर उसे जेल भेज दिया गया है। (janchowk.com)
(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)
विवेक त्रिपाठी
गोण्डा, 31 जुलाई (आईएएनएस)| रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहनों के प्रेम और सुरक्षा की कसमें खाने के पर्व के रूप में जाना जाता है लेकिन गोंडा जिले के वजीरगंज विकासखंड के ग्राम पंचायत डुमरियाडीह के भीखमपुर जगतपुरवा में पर्व मनाना तो दूर कोई इसका जिक्र करना भी पसंद नहीं करता है। ऐसा करने पर सभी लोगों की आंखों के सामने पूर्व घटित हुई घटनाएं जैसे नाचने लगतीं हैं और उन्हें इस पर्व से दूरी बनाए रखने को आगाह करती हैं।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के जगतपुरवा में 20 ऐसे घर हैं, जिनमें करीब 200 बच्चे, बूढ़े व नौजवान भाई रक्षासूत्र का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। ग्राम पंचायत डुमरियाडीह की राजस्व गांव भीखमपुर जगतपुरवा घरों में आजादी के 8 सालों के बाद करीब पांच दशक से अधिक बीत जाने के बाद बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र नहीं बांधा है।
यहां तक कि आसपास के गांव पहुंचे, यहां के बाशिंदे रक्षाबंधन के दिन जब सिर्फ अपने गांव का नाम बताते हैं और वहां की बहनें उन्हें रखी बांधने से खुद माना कर देतीं हैं।
इधर, जगतपुरवा के नौजवानों के मन मे इस त्योहार को लेकर उल्लास तो रहता है लेकिन पूर्वजों की बनाई परंपरा को न तोडना ही ही इनका मकसद बन चुका है।
जगतपुरवा निवासी डुमरियाडीह ग्राम पंचायत की मुखिया ऊषा मिश्रा के पति सूर्यनारायण मिश्र के अलावा ग्रामीण सत्यनारायण मिश्र, सिद्घनारायन मिश्र, अयोध्या प्रसाद, दीप नारायण मिश्र, बाल गोविंद मिश्र, संतोष मिश्र, देवनारायण मिश्र, धुव्र नारायण मिश्रा और स्वामीनाथ मिश्र ने बताया कि बहनों ने जब कभी हमारे घरों में अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधे, तब-तब इस गांव में अनहोनी हुई।
बकौल सूर्यनारायण मिश्रा वर्ष ने बताया कि आजादी के आठ साल बाद करीब 5 दशक पहले (1955) में रक्षाबंधन के दिन सुबह हमारे परिवार के पूर्वज में एक नौजवान की मौत हो गई थी। तब से इस गांव में बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षासूत्र नहीं बांधतीं हैं। एक दशक पूर्व रक्षाबंधन के दिन बहनों के आग्रह पर रक्षासूत्र बंधवाने का निर्णय लिया गया था, लेकर उस दिन भी कुछ अनहोनी हुई थी। इसके बाद ऐसा करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। आज भी यही भय, बहनों को अपने भाइयों को कलाई पर रक्षासूत्र बांधने से रोकती है।
सूर्य नारायण ने बताया कि रक्षा बंधन वाले दिन अगर इस कुल में कोई बच्चा जन्म लेगा, तभी त्यौहार मनाया जाएगा। इसका इंतजार करीब तीन पीढ़ियों से चल रहा है। अभी तक यह अवसर आया नहीं है।
उन्होंने बताया कि जगतपुरवा गांव में भले ही रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है, लेकिन आसपास के गांवों की बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं। बावजूद इसके जगतपुरवा गांव के भाई-बहनों में जरा भी निराशा नहीं है। कहते हैं कि जो बड़ो ने बताया, उसी पर अमल करते हैं। अपने पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा को नहीं तोड़ेंगे। परंपरा को निभाते रहेंगे।
सूर्यनरायण मिश्रा ने बताया कि रक्षा सूत्र के बंधन सिर्फ सुनते हैं, लेकिन उसका आनन्द नहीं उठा पाते हैं। रक्षाबंधन के दिन अगर यह 20 घर के लोग आसपास के किसी दूसरे गांव में जाते हैं तो सिर्फ जगतपुरवा निवासी कहने पर बहनें रक्षासूत्र नहीं बांधती।
दूसरे को देखकर रक्षा सूत्र में बंधे रहने का मन हर किसी को करता है। लेकिन, गांव की परंपरा की जब याद आती है तो लोग स्वत: ही रक्षा सूत्र नहीं बंधवाते।
ग्रामीणों ने बताया कि रक्षा सूत्र के दिन इस गांव के अधिकांश लोग गांव से बाहर नहीं जाते। जगतपुरवा गांव रक्षा सूत्र के दिन सन्नाटा रहता है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। कोरोना संक्रमण से जूझ रहे एडीजी आरके विज का प्रभार एडीजी हिमांशु गुप्ता को सौंपा गया है। विज के पास योजना प्रबंध और तकनीकी सेवा का प्रभार था। इसी तरह डीआईजी आरपी साय को लेखा व कल्याण शाखा का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
भापुसे के 88 बैच के अफसर आरके विज कोरोना से पीडि़त हैं और वे क्वारंटीन पर हैं। इस अवधि में एडीजी (प्रशासन) श्री गुप्ता अपने कार्यों के साथ-साथ विज का भी प्रभार देखेंगे।
वाशिंगटन, 31 जुलाई (आईएएनएस)| अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को स्थगित करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि मतदान के लिए पोस्टल प्रक्रिया से धोखाधड़ी बढ़ सकती है और परिणाम में ऊंच-नीच हो सकती है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने चुनाव को तब तक स्थगित करने की बात कही, जब तक लोग 'ठीक से, सुरक्षित रूप से' वोट देने की हालत में नहीं आ जाते।
हालांकि ट्रंप के दावों का समर्थन करने के लिए बहुत कम सबूत हैं, लेकिन वह लंबे समय से मेल के माध्यम से वोटिंग करने के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका मानना है कि इसमें धोखाधड़ी होने की संभावना है और यह अतिसंवेदनशील प्रक्रिया है।
अमेरिकी राज्य कोरोनोवायरस महामारी के दौरान लोगों के स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण पोस्टल वोटिंग की प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं, जिससे लोगों को मतदान करने में आसानी होगी।
हालांकि अमेरिकी संविधान के तहत ट्रंप के पास चुनाव स्थगित करने का अधिकार नहीं है। किसी भी तरह का स्थगन या विलंब के लिए कांग्रेस की अनुमति आवश्यक है। राष्ट्रपति के पास कांग्रेस के दो सदनों से परे प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है।
कई ट्वीट्स में ट्रंप ने कहा, यूनिवर्सल मेल-इन वोटिंग 'नवंबर के मतदान को' इतिहास का सबसे गलत और फर्जी चुनाव और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक बड़ी शमिर्ंदगी की वजह बनेगी।
उन्होंने सुझाव देते हुए कहा, "बिना सबूत उपलब्ध कराए, अमेरिका में मेल-इन वोटिंग विदेशी हस्तक्षेप के लिए अतिसंवेदनशील होगा।"
उन्होंने कहा, "मतदान में विदेशी प्रभाव की बात की जाती हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि मेल-इन वोटिंग के माध्यमस से विदेशी देश इस दौड़ में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं।"