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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 20 अगस्त। निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस लेने के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका रायपुर से दायर की जा चुकी है, एक अन्य याचिका बिलासपुर से भी दायर की जा रही है।
रायपुर की एक पूर्व बैंकर प्रीति उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस के नाम पर अवैध वसूली की जा रही है। हाईकोर्ट ने ट्यूशन फीस लेने के लिये जो आदेश जारी किया था, उसी आदेश के बहाने पालकों को गुमराह किया जा रहा है। उपाध्याय के दो बच्चे निजी स्कूल में अध्ययनरत हैं। उन्होंने कहा है कि स्कूल में आठ घंटे पढ़ाई होती है जबकि मोबाइल पर यही कोर्स डेढ़ घंटे में पूरा कराया जा रहा है।
छात्रों को असेम्बली, कम्प्यूटर क्लास, लेबोरेट्री, स्पोर्ट्स जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं का लाभ नहीं दिया जा रहा है जो ट्यूशन फीस में शामिल होता है। स्कूलों को नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर चलाया जाना है फिर वे किस बुनियाद पर 100 प्रतिशत फीस वसूल रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि केवल स्कूल ही नहीं पालक भी कोरोना महामारी के चलते आर्थिक संकट से घिरे हैं पर स्कूल प्रबंधक लाभदायी उद्योग की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
बिलासपुर में पालकों के संगठन के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि सीबीएसई द्वारा सन् 2016 से ही गाइडलाइन है कि ट्यूशन फीस व अन्य फीस अनुमोदित कराने के बाद ही प्रबंधन उसे छात्रों से ले सकता है। इसके बावजूद ज्यादातर स्कूलों ने मनमाने ढंग से फीस में वृद्धि की है। ऐसा करने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है। ट्यूशन फीस पर हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध अपील की जा रही है।
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 20 अगस्त (आईएएनएस)| पहली अश्वेत और दक्षिण एशियाई महिला के तौर पर एक प्रमुख अमेरिकी पार्टी से उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में नामित होकर कमला हैरिस ने इतिहास रच दिया है। इस मौके पर उन्होंने अपनी मां को बहुत याद किया।
बुधवार की रात विस्कॉन्सिन के चेज सेंटर में पार्टी के नेशनल कंवेंशन में अपनी मां के बारे में उन्होंने कहा, "काश आज रात वो यहां होतीं, लेकिन मुझे पता है कि वह आज रात मुझे देख रही हैं।"
हैरिस की मां श्यामला गोपालन भारत के तमिलनाडु राज्य की थीं, उनका करीब एक दशक पहले निधन हो चुका है। लेकिन अब भी वह कमला हैरिस के जीवन में एक ताकत बनी हुई हैं।
कैलिफोर्निया की इस सीनेटर के सबसे महत्वपूर्ण भाषणों में से एक में गोपालन का जिक्र बार-बार आया।
गहरे बरगंडी रंग के पैंटसूट में सजी हैरिस ने उप-राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में इस अहम कार्यक्रम में अपना शानदार भाषण दिया। कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, पूर्व विदेश मंत्री हिलरी क्लिंटन, सदन के सभापति नैन्सी पेलोसी और पूर्व प्रतिनिधि गैबी गिफर्डस भी शामिल थे।
इस मौके पर हैरिस ने उन मूल्यों पर भी बात की, जो उन्हें उनकी मां ने सिखाए थे। उन्होंने कहा, "विश्वास से चलना, ना कि केवल ²ष्टि से और अमेरिकियों की पीढ़ियों के लिए एक ऐसे विजन से काम करना जो कि जो बाइडन में है।"
हैरिस के माता-पिता 1960 के दशक की शुरूआत में बर्कले में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉक्टरेट छात्रों के रूप में मिले थे।
जमैका निवासी उनके पिता डोनाल्ड हैरिस अर्थशास्त्र और उनकी मां ने पोषण और एंडोक्रिनोलॉजी का अध्ययन किया था।
अपनी विरासत का हवाला देते हुए हैरिस ने अपने संबोधन में कहा, "मेरे सामने पीढ़ियों के समर्पण का एक वसीयतनामा है।"
अपनी उम्मीदवारी स्वीकार करते हुए उन्होंने आगे कहा, "मैं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के उप-राष्ट्रपति के पद पर आपका नामांकन स्वीकार करती हूं।"
वायरस को लेकर ट्रम्प की अव्यवस्था पर हैरिस ने कहा, "लगातार फैलाई गई अराजकता ने हमें भटकने के लिए छोड़ दिया है, यह हमें भयभीत करती है।"
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 अगस्त। छत्तीसगढ़ ने एक बार फिर देश के स्वच्छतम राज्य होने का दर्जा प्राप्त किया है। केन्द्रीय आवास एवं शहरी मंत्रालय द्वारा आयोजित स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणाम गुरूवार को घोषित किए गए। इसमें पाटन, जशपुर, धमतरी और अंबिकापुर ने अलग-अलग आबादी की श्रेणियों में सबसे स्वच्छ शहरों का दर्जा हासिल किया है।
केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित वर्चुअल ऑनलाइन पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्यमंत्री आवास से यह पुरस्कार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, सचिव सुश्री अलरमेल मंगई डी, सूडा के एडिशनल सीईओ सौमिल रंजन चौबे और सलाहकार डॉ. नितेश शर्मा ने हासिल किया। केेन्द्रीय शहरी आवास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने यह पुरस्कार वितरित किया।
सर्वेक्षण में बतौर राज्य छत्तीसगढ़ ने तो उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इसके अलावा पाटन नगर पंचायत को 25 हजार से कम जनसंख्या श्रेणी में सबसे स्वच्छ शहर होने का दर्जा मिला है। इसी तरह जशपुर नगर को 25 से 50 हजार की जनसंख्या, धमतरी को 50 हजार से 1 लाख की जनसंख्या, अंबिकापुर को 1 लाख से 10 लाख जनसंख्या श्रेणी में सबसे स्वच्छ शहरों का दर्जा मिला है।
पुरस्कार वितरण के दौरान सीएम भूपेश बघेल ने केंद्रीय मंत्री श्री पुरी को छत्तीसगढ़ में चलाई जा रही गोधन न्याय योजना और गोबर खरीदी के विषय में जानकारी दी। जिसे केंद्रीय मंत्री श्री पुरी ने छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना और गोबर क्रय योजना को ‘वेस्ट टू वेल्थ‘ का अच्छा कमर्शियल मॉडल बताते हुए भूरि-भूरि प्रशंसा की और अन्य राज्यों के लिए इसे अनुकरणीय बताया। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि हमारी कोशिश होगी कि अगले साल भी छत्तीसगढ़ स्वच्छ सर्वेक्षण में प्रथम स्थान पर रहें।
उन्होंने केन्द्रीय मंत्री को बताया कि छत्तीसगढ़ में कचरे से खाद बनाई जा रही है। दो रूपए प्रति किलो की दर पर खरीदी कर इससे वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। गांव और शहरों में गोबर से होने वाली गंदगी पर रोक लगी है। गांव और शहर और अधिक स्वच्छ हुए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि गांवों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी यह योजना लागू की गई है। राज्य के शहरी क्षेत्रों में स्थापित 377 गोबर खरीदी केन्द्रों में गोबर खरीदी की जा रही है। इस योजना से लोगों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है। केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने स्वच्छ सर्वेक्षण में छत्तीसगढ़ के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मुख्यमंत्री श्री बघेल और नगरीय विकास मंत्री डॉ. डहरिया को बधाई दी।
प्रदेश के 10 अन्य शहरों में भिलाई का रैंक 34, 50 हजार से 01 लाख की जनसंख्या में भिलाई-चरोदा रैंक-02, चिरमिरी रैंक-03, बीरगांव रैंक-04, 25 से 50 हजार की जनसंख्या में कवर्धा का रैंक-02, चांपा रैंक-05, अकलतरा रैंक-74, 25 हजार से कम जनसंख्या श्रेणी में नरहरपुर रैंक-02 सारागांव रैंक-03 एवं पिपरिया रैंक-04 को भी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने नगरीय निकायों एवं प्रदेश की जनता को बहुत-बहुत बधाई देते हुए इसी प्रकार अपना सहयोग आगे भी देते रहने का आह्वान किया।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 अगस्त। एम्स रायपुर में एक कोरोना पॉजिटिव महिला ने 15 अगस्त को ऑपरेशन से एक बच्ची को जन्म दिया। एम्स के डॉक्टर आजादी की सालगिरह पर जन्मी इस बच्ची का खास ख्याल रख रहे हैं। बच्ची स्वस्थ है, 3.28 किलो की है, और जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत स्थिर है। कोरोना के चलते पिछले 6 महीनों में एम्स में 15 बच्चे पैदा हुए जिनमें से 9 ऑपरेशन से हुए, और 6 सामान्य प्रसूति से।
उल्लेखनीय है कि एम्स की नर्सें अपने त्याग के लिए कुछ महीने पहले तब दुनिया भर में खबरों में आई जब उन्होंने एक कोरोना पॉजिटिव महिला मरीज की तीन महीने की बच्ची की खास मेहनत से देखरेख की थी, और पीपीई सूट पहने हुए भी उसे दूध पिलाकर, उसे खिलाकर उसका ध्यान रखती थीं। वह वीडियो चारों तरफ खूब फैला था।
कैनबेरा 20 अगस्त (वार्ता) ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कोरोना वायरस वैक्सीन को सभी के लिए अनिवार्य करने संबंधी अपनी टिप्पणी वापस ले ली।
श्री मॉरिसन ने बुधवार को कहा था कि मेडिकल आधार पर वैक्सीन लगाने पर हमेशा कुछ छूट होती है लेकिन वह किसी पुख्ता प्रमाण पर होनी चाहिए।
श्री मॉरिसन की तरफ से यह टिप्पणी दरअसल ब्रिटेन स्थित मेडिकल कामोनी आस्त्राजेनेका के साथ ऑस्ट्रेलिया सरकार के कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने को लेकर समझौते के बाद आयी थी।
उन्होंने कहा कि यदि वैक्सीन सही साबित होती है तो ऑस्ट्रेलिया में इस दवा का विनिर्माण किया जाएगा तथा उन्होंने वादा करते हुए कहा कि सभी ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों में कोरोना वैक्सीन का टीका निशुल्क लगाया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने हालांकि अपने इस बयान के बाद सिडनी रेडियो स्टेशन पर कहा कि कोरोना वैक्सीन सभी के लिए अनिवार्य नहीं होगी और उन्होंने उम्मीद जताई कि वर्ष 2021 की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिआई लोगों के लिए कोरोना वैक्सीन आसानी से उपलब्ध होगी।
- Ritika
बबली तीन महीने की गर्भवती हैं। वह अपने दूसरे बच्चे के लिए उत्साहित तो हैं पर डरी हुई भी हैं। बबली अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पूरी तरह सरकारी अस्पताल पर निर्भर हैं लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण वह अब तक सिर्फ एक बार ही अस्पताल जा सकी हैं। वह कहती हैं, ‘हमारे पास निजी अस्पताल में जांच कराने जितने पैसे नहीं हैं। हमारे लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र विकल्प है। मैं जिस अस्पताल में अपनी जांच करवाने जाती थी वहां फिलहाल कोरोना के मरीज़ों का इलाज चल रहा। इसलिए मैं अस्पताल जाने से डरती हूं क्योंकि अगर मैं संक्रमित हो गई तो अपना इलाज कैसे करवाऊंगी?’ ये कहानी सिर्फ पटना की बबली की ही नहीं है। कोरोना वायरस के कारण लागू किए गए लॉकडाउन ने देश की कई गर्भवती महिलाओं को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित कर दिया है।
बेरोज़गारी, आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य सुविधाओं की दयनीय स्थिति, बढ़ता मानसिक अवसाद, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में बढ़त, शिक्षा में रुकावट, ये वो चंद समस्याएं हैं जो भारत में 24 मार्च से लागू हुए लॉकडाउन के कारण पैदा हुई। लॉकडाउन से भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में मदद मिली या नहीं इस पर संशय बरकरार है। आज 26 लाख से अधिक कोरोना वायरस के मामलों के साथ भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है। कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण ग्रामीण भारत पर क्या असर हुआ इसपर मीडिया संस्था गांव कनेक्शन ने एक सर्वे किया है। यह सर्वे ग्रामीण भारत पर लॉकडाउन के असर को बताता देश का पहला सर्वे है। इस सर्वे की डिजाइनिंग और डेटा विश्लेषण सेंटर फॉर स्टडी डेवलपिंग सोसायटी और लोकनीति ने किया है। यह सर्वे देश के 23 राज्यों के 179 ज़िलों में किया गया है। इस सर्वे में 25 हज़ार 300 लोगों के जवाब और प्रतिक्रियाएं दर्ज की गई हैं।
कोरोना महामारी की दस्तख के साथ ही देश में अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीज़ हाशिये पर चले गए। लॉकडाउन की शुरुआत में ही सभी अस्पतालों के ओपीडी बंद करने के आदेश दे दिए गए थे। ऐसे में कोरोना के इतर दूसरी बीमारियों का इलाज करवा रहे मरीज़ों, खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए यह लॉकडाउन किसी परीक्षा से कम नहीं था। लॉकडाउन के दौरान गर्भवती महिलाओं को किन परेशानियों से गुज़रना पड़ा गांव कनेक्शन के इस सर्वे में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया है।
क्या कहता है सर्वे
गांव कनेक्शन के सर्वे के मुताबिक सर्वे में शामिल हर आठ में से एक परिवार में एक गर्भवती महिला मौजूद थी। सर्वे में हर पांच में से एक परिवार ने माना कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें अस्पताल या डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत पड़ी। सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण भारत की 42 फीसद गर्भवती महिलाएं न ही किसी जांच के लिए गई और न ही उनका टीकाकरण हो पाया। ग्रीन ज़ोन में 40 फीसद, ऑरेंज ज़ोन में 36 फीसद और रेड ज़ोन में 56 फीसद गर्भवती महिलाओं की न जांच हुई, न ही टीकाकरण। यह स्थिति तब है जब भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही लचर हैं।
राजस्थान में 87 फीसद, उत्तराखंड में 84 फीसद, बिहार में 66 फीसद गर्भवती महिलाओं ने माना कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें जांच और टीकाकरण की सुविधा मिली। सबसे खराब हालत पश्चिम बंगाल में देखने को मिली जहां सिर्फ 29 फीसद गर्भवती महिलाओं को इस दौरान जांच और टीकाकरण की सुविधा मिली। जबकि ओडिशा में सिर्फ 33 फीसद गर्भवती महिलाओं को ये सुविधाएं मिल सकी।
गर्भवती महिलाओं को जहां बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ा, वहीं दूसरी तरफ लाखों महिलाएं अपना सुरक्षित गर्भसमापन नहीं करवा सकी।
लॉकडाउन में गर्भवती महिलाओं को किन परेशानियों का सामना उठाना पड़ा इस स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि नोएडा की एक गर्भवती महिला नीलम कुमारी गौतम को सिर्फ एक बेड के लिए 15 घंटे में 8 अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े थे। लॉकडाउन के दौरान जब हज़ारों मज़दूर पैदल ही अपने घरों को निकल पड़े थे, उसमें गर्भवती महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल थी। महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के सतना के लिए पैदल अपने घर के लिए निकली एक गर्भवती महिला को सड़क किनारे ही अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा था। प्रसव के महज़ 2 घंटे बाद ही उसने अपने नवजात बच्चे के साथ 150 किलोमीटर का सफर तय किया था।
कोरोना वायरस के आने से पहले भी भारत में गर्भवती महिलाओं की स्थिति कुछ खास नहीं थी। साल 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की आई रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर पांच मिनट एक महिला की मौत गर्भावस्था या प्रसव से जुड़ी जटिलताओं के कारण होती है। हालांकि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक साल 2015-17 के मुकाबले साल 2016-18 में मातृ मुत्यु दर में 7.3 फीसद की गिरावट आई है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय किए गए 3.1 फीसद के लक्ष्य के मुकाबले भारत की मातृ मृत्यु दर अभी भी दोगुनी है।
लॉकडाउन में 18.5 लाख महिलाएं सुरक्षित गर्भपात से हुई वंचित
लॉकडाउन न सिर्फ गर्भवती महिलाओं के लिए परेशानियों का सबब बनकर आया बल्कि उन महिलाओं को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा जो किसी कारणवश गर्भ समापन करवाना चाहती थी। इपस डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा 12 राज्यों में किए गए सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान करीब 18.5 लाख महिलाएं अपना सुरक्षित गर्भपात नहीं करवा पाई। अधिकतर महिलाओं का गर्भसमापन तय समय से देर से हुआ और कुछ महिलाओं को मजबूरन बच्चे को जन्म देना पड़ा।
फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया से जुड़ी ऋचा साल्वी के मुताबिक ज्यादातर महिलाएं लॉकडाउन के दौरान क्लिनिक आने में असमर्थ थी। वहीं, कई केस ऐसे भी सामने आए जहां महिलाओं को अपने गर्भवती होने की बात छिपानी पड़ी। यह स्थिति तब पैदा हुई जब गर्भसमापन को लॉकडाउन के दौरान ज़रूरी सेवाओं की सूची में शामिल किया गया था। हम बता दें कि भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हर दिन 10 महिलाओं की मौत असुरक्षित गर्भसमापन के दौरान हो जाती है। भारत में करीब आधे गर्भपात असुरक्षित तरीके और अप्रशिक्षित लोगों द्वारा किया जाता है।
इतना ही नहीं, असम, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में अबॉर्शन पिल्स की भी कमी देखने को मिली। फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ की रिपोर्ट बताती है कि इन राज्यों में 79 फीसद दवा विक्रेताओं के मेडिकल अबॉर्शन पिल्स का स्टॉक जनवरी से मार्च के दौरान ही खत्म हो गया था।
गर्भवती महिलाओं को जहां बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ा, वहीं दूसरी तरफ लाखों महिलाएं अपना सुरक्षित गर्भसमापन नहीं करवा सकी। हम आंकड़ों पर अगर ध्यान दें तो पाएंगे कि ये समस्याएं भारत के लिए नई नहीं है। इन समस्याओं को बस लॉकडाउन और इस महामारी ने पहले से भी अधिक गंभीर बना दिया। कोरोना महामारी को मानो एक बहाना बना लिया गया अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को नज़रअंदाज़ करने के लिए। ये समस्याएं सीधा सवाल उठाती हैं भारत की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और सरकार की नीतियों पर क्योंकि कोरोना महामारी के आने से दूसरी बीमारियां और मरीज़ों की परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं।
( यह रिपोर्ट पहले फेमिनिज्मइनइंडियाडॉटकॉम पर प्रकाशित हुई है)
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| पद्म विभूषण पंडित जसराज का 17 अगस्त को 90 साल की उम्र में अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन के बाद उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि बापूजी का दिल एक बच्चे की तरह था। वह लगातार सीखते रहने में विश्वास रखते थे। दुर्गा जसराज ने आईएएनएस को बताया, "मैं, मेरे भाई (संगीतकार शारंग देव) बापूजी को अपने पिता के रूप में पाकर धन्य और भाग्यशाली महसूस करती हूं, क्योंकि हम सभी भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में उनके योगदान के बारे में जानते हैं। लेकिन उन्होंने जिस तरह अपना जीवन व्यतीत किया उससे हमें उनके नक्शेकदम पर चलने की प्रेरणा मिली।"
उन्होंने आगे कहा, "हम एक ऐसे घर में पले-बढ़े हैं, जहां उनके कम से कम सात से 10 छात्र हमारे साथ रहते थे, क्योंकि वे गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी उनसे पैसे नहीं लिए क्योंकि उनके लिए यह "विद्या दान" था। जब हम बड़े हो रहे थे, तब तक बापूजी एक सुपरस्टार बन चुके थे लेकिन तब भी उनके पास हम सभी के लिए समय होता था।"
संगीत में विभिन्न प्रयोगों के लिए मशहूर पंडित जसराज को लेकर उनकी बेटी कहती हैं, "बापूजी बहुत खुले विचारों वाले थे और हमेशा हमें प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। लेकिन बापूजी कुछ चीजों को लेकर बहुत सख्त थे। अनुशासन और शारीरिक फिटनेस को लेकर वो बहुत सख्ती बरतते थे। उन्होंने हमेशा कहा कि यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं तो आप किसी भी चीज में उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकते।"
उन्होंने बताया, "बापूजी का दिल बच्चे की तरह था। वह हमेशा कुछ न कुछ नया सीखते रहते थे। लॉकडाउन के दौरान दुनिया भर में फैले स्टूडेंट्स को संगीत सिखाने के लिए उन्होंने टेक्नॉलॉजी का उपयोग करना सीखा।"
-राजु सजवान
देश में कोरोनावायरस की वजह से अब तक 50 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी हैं, लेकिन कोरोनावायरस की वजह से राज्यों की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में आई गिरावट भी लोगों की मौत का कारण बन सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों द्वारा जारी की जाने वाली इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों की जीडीपी में 10 फीसदी से अधिक कमी आएगी, तो वहां कोविड-19 मृत्यु दर में 0.55 से 3.5 प्रतिशत अतिरिक्त वृद्धि होगी। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी राज्यों की जीडीपी में औसतन 16 फीसदी की गिरावट हो सकती है।
रिपोर्ट बताती है कि राज्य की जीडीपी में सबसे अधिक नुकसान महाराष्ट्र को होने वाला है। रिपोर्ट में 2018 में राज्य की मृत्यु दर को आधार बनाया गया है। इसके मुताबिक महाराष्ट्र में आधार मृत्यु दर 5.5 फीसदी थी, कोविड-19 की वजह से चालू मृत्यु दर में 0.34 फीसदी की वृद्धि हुई है और यदि जीडीपी में 10 फीसदी की कमी आती है तो यहां मृत्यु दर 1.28 फीसदी और इजाफा हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों में लॉकडाउन खुलने के बाद अनियोजित तरीके से आजीविका संबंधी कामों पर पाबंदी लगाई जा रही है, बल्कि फिर से नए तरीके से अनियोजित लॉकडाउन लगाए जा रहे हैं, जिसका असर राज्यों की जीडीपी पर दिखेगा।
राज्यों को नुकसान
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कोविड-19 की वजह से महाराष्ट्र को वित्त वर्ष 2020-21 में 5.39 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। महाराष्ट्र को 38,841 रुपए प्रति व्यक्ति आय के नुकसान की आशंका जताई गई है, जबकि राज्य की जीडीपी में 17.6 फीसदी नुकसान का भी आकलन किया गया है। जबकि तमिलनाडु में 18.2 फीसदी का जीडीपी का नुकसान हो सकता है।
कोविड-19 से होने वाले नुकसान के मामले में उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है। उत्तर प्रदेश को 3 लाख 11 हजार 850 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन लगाया गया है। राज्य की जीडीपी में 16.1 फीसदी और प्रति व्यक्ति आय में 14006 रुपए के नुकसान की आशंका जताई गई है।
22 राज्यों में पीक देखना बाकी
इकोरैप में कहा गया है कि कोरोनावायरस संक्रमण अब ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है और अब ऐसे जिलों की संख्या बहुत कम रह गई है, जहां 10 से कम कोरोना केस हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन राज्यों में अभी कोरोना केसों का पीक आना बाकी है। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने 27 राज्यों का विश्लेषण किया है और दावा किया है कि अभी कम से कम 22 राज्यों को पीक देखना बाकी है। जिन राज्यों में कोरोना केसों की संख्या उच्च स्तर (पीक) तक पहुंच चुकी है, उनमें तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात, जम्मू कश्मीर और त्रिपुरा शामिल है। इस रिपोर्ट में 14 अगस्त तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।(downtoearth)
- भागीरथ श्रीवास
हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017-19 के दौरान करीब 5,68,000 लोग बलपूर्वक विस्थापित किए गए हैं। मंगलवार 18 अगस्त 2020 को जारी रिपोर्ट “वर्ष 2019 में भारत में जबरन बेदखली: एक राष्ट्रीय संकट” में बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान 1,17,770 से अधिक आवासों को उजाड़ा गया। इस दौरान औसतन 108 मकानों को प्रतिदिन उजाड़ा गया। दूसरे शब्दों में कहें तो रोज करीब 519 लोगों ने अपना घर खोया और हर घंटे 22 लोग जबरन बेदखल किए गए। वर्ष 2019 में कम से कम 22,250 घरों को उजाड़ा गया जिससे 1,07,600 से अधिक लोग विस्थापित हुए।
रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में लगभग डेढ़ करोड़ लोग बेदखली और विस्थापन के खतरे के बीच रह रहे हैं। एचएलआरएन के अनुसार, यह एक न्यूनतम अनुमान है और वास्तविक स्थिति का एक हिस्सा भर प्रदर्शित करते हैं। भारत में बेदखल और विस्थापित लोगों की कुल संख्या के साथ-साथ विस्थापन के खतरे में रहने वाले लोगों की संख्या लिखित आंकड़ों से अधिक होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, जबरल बेदखली के लगभग सभी मामलों में राज्य के अधिकारियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
बेदखली के बहाने
सर्वाधिक विस्थापन या बेदखली (46 प्रतिशत) का कारण झुग्गी बस्ती को हटाना, अतिक्रमण हटाना और सौंदर्यीकरण अभियान को बताया गया। 27 प्रतिशत मामलों में विस्थापन का कारण बुनियादी ढांचा और अस्थायी विकास परियोजनाएं रहीं। 17 प्रतिशत मामलों में पर्यावरणीय परियोजनाओं, वन संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण का हवाला दिया गया। सात प्रतिशत विस्थापन की वजह आपदा प्रबंधन के प्रयास और तीन प्रतिशत विस्थापन की वजह अन्य कारण (जैसे राजनीतिक रैली) बताए गए।
पुनर्वास केवल 26 प्रतिशत
एचएलआरएन के अनुसार, 2019 में बेदखली के दस्तावेजीकृत मामलों में केवल 26 प्रतिशत मामलों में पुनर्वास किया गया। अधिकांश मामलों में पुनर्वास के अभाव में प्रभावित व्यक्तियों को अपने वैकल्पिक आवास की व्यवस्था खुद करनी पड़ी अथवा उन्हें बेघर ही रहना पड़ा। जिन लोगों का राज्य सरकारों द्वारा किसी प्रकार का पुनर्वास प्राप्त हुआ, उनका पुनर्वास दूरदराज के इलाकों में किया गया। ये इलाके आवश्यक नागरिक व बुनियादी सामाजिक सुविधाओं से वंचित थे। बेदखली के कारण बच्चों, महिलाओं, विक्लांग व्यक्तियों, बुजुर्गों, दलितों, अनुसूचित जनजातियों और हाशिए पर रहने वाले समूहों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में उच्च न्यायालयों, स्टेट कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश से 20,500 से अधिक लोग विस्थापित हो गए।(downtoearh)
वाशिंगटन, 20 अगस्त (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार दुनिया में कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 2.23 करोड़ और मरने वाले लोगों की संख्या 7.86 लाख से अधिक हो गई है।
यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) के ताजा अपडेट के मुताबिक, गुरुवार सुबह तक कुल मामलों की संख्या 22,322,208 थी। वहीं इस घातक वायरस के कारण दुनिया में अब तक 7,86,185 लोगों की मौत हो चुकी थी।
सीएसएसई के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक 55,27,306 मामलों और 1,73,114 मौतों के साथ अमेरिका लगातार सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है। इसके बाद ब्राजील 34,56,652 मामलों और 1,11,100 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
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वहीं संक्रमण के मामलों की संख्या में भारत 27,67,273 संक्रमित लोगों के साथ दुनिया में तीसरे नंबर पर है। इसके बाद ऐसे देश जिनमें मामलों की संख्या 1 लाख से अधिक हो गई है, उनमें रूस (9,35,066), दक्षिण अफ्रीका (5,96,060), पेरू (5,49,321), मैक्सिको (5,37,031), कोलंबिया (4,89,122), चिली (3,90,037), स्पेन (3,70,867), ईरान (3,50,279), ब्रिटेन (3,22,996), अर्जेंटीना (3,12,659), सऊदी अरब (3,02,686), पाकिस्तान (2,90,445), बांग्लादेश (2,85,091), फ्रांस (2,56,534), इटली (2,55,278), तुर्की (2,53,108), जर्मनी (2,29,706), इराक (1,88,802), फिलीपींस (1,73,774), इंडोनेशिया (1,44,945), कनाडा (1,25,408), कतर (1,15,956), इक्वाडोर (1,04,475), कजाकिस्तान (1,03,571) और बोलीविया (1,03,019) हैं।
वहीं कोविड-19 के कारण हुईं 10 हजार से अधिक मौतों वाले देश में मैक्सिको (58,481), भारत (52,889), ब्रिटेन (41,483), इटली (35,412), फ्रांस (30,434), स्पेन (28,797), पेरू (26,658), ईरान (20,125), रूस (15,951), कोलंबिया (15,619), दक्षिण अफ्रीका (12,423) और चिली (10,578) हैं।
सरकार ने बताया कहां तक पहुंचा भारत में वैक्सीन का परीक्षण
भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 64,531 नए मामले सामने आए और 1092 मौतें हुई हैं. देश में अब COVID19 पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 27,67,274 है, जिसमें 6,76,514 सक्रिय मामले हैं. 20,37,871 लोगों को रिकवर किया जा चुका है. भारत में कोरोना वायरस से मरने वालों 52,889 हो गई है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद(ICMR) ने कहा कि कल(18 अगस्त) तक कोरोना वायरस के लिए कुल 3,17,42,782 सैंपल टेस्ट किए गए, जिनमें से 8,01,518 सैंपल की टेस्टिंग कल की गई.
भारत सरकार का कहना है कि वैक्सीन बनाने की दिशा में बेहतरीन काम चल रहा है. सरकार ने वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स से कहा है कि वे टीकों की संभावित कीमतों को इंगित करें. NITI अयोग के सदस्य और कोविड वैक्सीन प्रशासनिक पैनल पर सरकार के विशेषज्ञ समूह के प्रमुख डॉ. वी.के. पॉल ने कहा "हमने इन सभी वैक्सीन कैंडिडेट की समीक्षा की है. ये अच्छी तरह से प्रगति कर रहे हैं. उन्होंने कहा "एक टीका फेज-3 में है, अन्य दो भी अच्छी तरह से प्रगति कर रहे हैं और क्लीनिकल ट्रायल्स के फेज 1-2 में हैं.
इस सप्ताह के शुरू में राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक और ज़ायडस कैडिला सहित प्रमुख घरेलू निर्माताओं के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी. ICMR के सहयोग से बन रही Bharat Biotech की वैक्सीन और Zydus Cadila Ltd की COVID-19 वैक्सीन ने फेज -1 ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल्स को पूरा कर लिया है और अब वह फेज-2 बढ़ रहे हैं. सीरम इंस्टिट्यूट, जिसने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित COVID-19 वैक्सीन के निर्माण के लिए AstraZeneca के साथ भागीदारी की है, को भारत में एडवांस क्लीनिकल ट्रायल आयोजित करने की अनुमति दी गई है.
मंगलवार को दिल्ली में 1,374 नए COVID19 मामले सामने आये हैं. जबकि 1,146 लोगों को रिकवर किया गया ही. मुंबई में सोमवार को 931 नए COVID19 मामले और 49 मौतें दर्ज की गई. कुल मामलों की संख्या अब 1,30,410 है. जिनमें 1,05,193 रिकवर हुए हैं.(catch)
नई दिल्ली, 20 अगस्त ( एजेंसी ) | कोरोना वायरस को काबू करने के लिए जब भारत में लॉकडाउन लगा तो रातों रात बेरोजगार हुए ब्रजेश के लिए फैसला करना मुश्किल हो गया. उन्हें वापस गांव चले जाना चाहिए या फिर दिल्ली में अपनी टीबी की दवा मिलने का इंतजार करना चाहिए?
जब टीबी सेंटर जाने का कोई साधन नहीं बचा तो उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर बांधा और अपने गांव की तरफ निकल पड़े जो दिल्ली से 1,100 किलोमीटर दूर पूर्वी बिहार में है.
दिल्ली के बाहरी इलाके में कबाड़ी का काम करने वाले 44 साल के ब्रजेश कहते हैं, "सब कुछ बंद हो गया, इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि मुझे अपनी टीबी की दवा मिलेगी. मेरे पास बहुत कम बचत थी. मुझे चिंता सताने लगी कि अपनी पत्नी और बेटी को क्या खिलाऊंगा. इसलिए हडबड़ी में मैं दिल्ली से निकला." उन्होंने दरभंगा जिले से टेलीफोन पर थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के साथ बातचीत में यह बात कही.
टीबी के मरीजों की संख्या के मामले में भारत दुनिया भर में सबसे ऊपर आता है. इसलिए यह मुश्किल ब्रजेश जैसे बहुत से लोगों के सामने थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि 2018 में दुनिया भर में एक करोड़ लोगों को टीबी हुई जबकि 15 लाख लोग इससे मारे गए. इनमें से 27 प्रतिशत नए मामले भारत में दर्ज किए गए जबकि इससे मरने वालों की संख्या 45 हजार के आसपास रही.
महामारी की मार
भारत में मार्च के आखिर में 70 दिनों का सख्त लॉकडाउन लगाया गया, जिससे भारत के लाखों टीबी मरीजों के लिए दवा पाना, डॉक्टर को दिखाना और इलाज पाना मुश्किल हो गया. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कोरोना महामारी ने पहले ही बोझ तले भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए हालात और मुश्किल बना दिए. ज्यादातर स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सा सेवाएं कोरोना संक्रमण को रोकने में जुट गए. ऐसे में, टीबी के मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था.
हालांकि जून में लॉकडाउन में ढील देनी शुरू की गई, लेकिन लोग अभी भी अस्पतालों में जाने से डर रहे हैं या फिर उन्हें वहां आने नहीं दिया जा रहा है. कई जगह स्टाफ की कमी है तो कई जगहों पर कोविड-19 और टीबी की बीमारी में फर्क करना मुश्किल हो रहा है. दोनों ही बीमारियों में खांसी, कभी बलगम वाली खांसी, छाती में दर्द, कमजोरी और बुखार की शिकायत होती है. सर्वाइवर्स अगेंस्ट टीबी नाम की संस्था से जुड़े चपल मेहरा कहते हैं, "पहले एक-दो महीने तो कोविड-19 और टीबी में बहुत भ्रम की स्थिति रही. इस महामारी ने एक फिर बता दिया है कि हमारी स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था ऐसे संकटों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है."
टीबी से बचाने के लिए नई वैक्सीन
कोरोना के सबसे ज्यादा मामले वाले देशों में भारत अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे नंबर पर है. टीबी के मरीजों की देखभाल पर इस महामारी का सबसे ज्यादा असर पड़ा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि जनवरी से जून के बीच टीबी के नए मामलों के रजिस्ट्रेशन में 25 फीसदी की कमी देखी गई है. इस कमी की वजह उचित देखभाल और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को माना जा रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता है कि इससे 2025 तक टीबी को पूरी तरह खत्म करने का भारत का लक्ष्य पटरी से उतर सकता है. वैश्विक स्तर पर 2030 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य है.
इलाज बना चुनौती
वहीं भारत की केंद्रीय टीबी डिविजन के प्रमुख कुलदीप सिंह सचदेव कहते हैं कि महामारी की वजह से टीबी देखभाल पर बहुत असर पड़ा है, लेकिन इससे टीबी को खत्म करने की समयसीमा प्रभावित नहीं होगी. उनका कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल से टीबी को फैलने से रोकने में भी मदद मिलेगी, जो खांसी और छींक के जरिए फैलती है.
उनका कहना है कि सरकार का अनुमान था कि टीबी के मामले कम दर्ज होंगे. लेकिन वह कहते हैं कि आने वाले महीनों में उनका पता लगा लिया जाएगा.
सचदेव के मुताबिक उनका विभाग कोशिश कर रहा है कि कोविड-19 के साथ साथ टीबी का भी टेस्ट किया जाए. अब तक ऐसे 50 हजार टेस्ट हो चुके हैं. सचदेव का कहना है कि टीबी को लेकर कई तरह के जागरूकता अभियान चलाए गए हैं. उनका दावा है कि जिन लोगों का इलाज लॉकडाउन से पहले शुरू हुआ, उनके घर जाकर उन्हें दवा डिलीवर की गई है.
उधर, टीबी से ग्रस्त जेनेंद्र कहते हैं कि उन्हें घर पर दवाएं तो मुहैया नहीं कराई गई हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उनका इलाज प्रभावित नहीं हुआ है. वहीं 32 साल की मंजु कहती हैं कि उन्हें अपनी दवाएं दोबारा शुरू करनी हैं क्योंकि लॉकडाउन की वजह से वे दो हफ्तों तक दवाएं नहीं ले पाई थीं. वह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में रहती हैं. उनके पति राम छैला ने बताया, "आने जाने का कोई साधन नहीं था, और बाहर निकलने पर पुलिस भी पीट रही थी."
एके/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)(dw)
सुशांत सिंह राजपूत मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेशवर पांडे की रिया चक्रवर्ती पर टिप्पणी सुर्ख़ियाँ बटोर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला सीबीआई को सौंप दिया है और ये भी कहा है कि बिहार सरकार ने सीबीआई जाँच की जो सिफ़ारिश की थी, वो सही थी. कोर्ट ने ये भी कहा कि पटना में दर्ज एफ़आईआर में भी कुछ ग़लत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बिहार के डीजीपी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करने की औकात रिया चक्रवर्ती की नहीं है. डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि बिहार पुलिस ने जो भी किया, वो सही था और क़ानून के दायरे में था.
पत्रकारों ने गुप्तेश्वर पांडे से रिया चक्रवर्ती के उस बयान के बारे में पूछा था, जिसमें रिया ने बिहार पुलिस की जाँच में राजनीति की बात की थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी ज़िक्र किया था. रिया चक्रवर्ती ने बिहार पुलिस की जाँच पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की थी.
हालांकि अब बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने इस मामले में क्षमा मांग ली है. एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर उनकी बात से कोई तकलीफ़ है तो वे क्षमा मांगते हैं.
गुप्तेश्वर पांडे ने कहा, "मुझे कोई समझा दे कि इसमें क्या अभद्र है, क्या अमर्यादित है और क्या ग़ैर क़ानूनी है. मैंने कहा कि उनकी हैसियत नहीं है कि वो बिहार के माननीय मुख्यमंत्री पर रिया चक्रवर्ती कोई अभद्र, अशोभनीय टिप्पणी करें. अगर इससे उनको कोई तकलीफ़ है. उनको लगता है कि मैंने ये औकात शब्द का जो इस्तेमाल किया है, उससे उनकी गरिमा को चोट पहुँची है, तो इसके लिए मुझे क्षमा मांगने में कोई संकोच नहीं है. लेकिन केवल महिला होने की लिबर्टी ये नहीं है कि आप किसी प्रांत के मुख्यमंत्री, वैसा मुख्यमंत्री जो अपनी ईमानदारी के लिए और अपनी इंसाफ़पसंदी के लिए जाना जाता है, उस पर आप कोई अमर्यादित, अशोभनीय टिप्पणी करे. अगर मेरी बात से कोई तकलीफ़ है तो क्षमा मांगते हैं."
बिहार के रहने वाले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत 14 जून को मुंबई स्थित अपने आवास पर मृत पाए गए थे. मुंबई पुलिस ने इसे आत्महत्या कहा था. बाद में सुशांत सिंह के पिता केके सिंह ने पटना पुलिस में एफ़आईआर दर्ज कराई और रिया चक्रवर्ती पर आत्महत्या के लिए उकसाने के साथ-साथ अन्य गंभीर आरोप भी लगाए.
नीतीश ने जताई ख़ुशी
लेकिन मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस को जाँच में सहयोग नहीं किया और अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए. बाद में रिया चक्रवर्ती सुप्रीम कोर्ट पहुँच गईं. इस बीच बिहार सरकार ने इस मामले में सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश भी कर दी और केंद्र सरकार ने सिफ़ारिश मंज़ूर भी कर ली. और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई जाँच को हरी झंडी दे दी है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर की है और कहा है कि उन्हें अब उम्मीद है कि सुशांत सिंह मामले में न्याय हो पाएगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से बिहार सरकार का पक्ष सही साबित हुआ है और ये भी स्पष्ट हो गया है कि इस मामले में कोई राजनीतिक दख़ल नहीं था.
रिया चक्रवर्ती पर टिप्पणी करते हुए बिहार के डीजीपी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग के कारण ही सुशांत सिंह राजपूत को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है.
रिया चक्रवर्ती के मामले में बिहार के डीजीपी ने मुंबई पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे. गुप्तेश्वर पांडे का कहना है कि जब उनके आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी को बेवजह क्वारंटीन किया गया, तभी उन्होंने अपना मुँह खोला.
मीडिया में अपने बयानों के कारण चर्चित गुप्तेश्वर पांडे ने कहा कि उन्हें सरकार ने बिहार पुलिस का पक्ष रखने को कहा है और वे कोई राजनीतिक बयान नहीं दे रहे हैं.
सोशल मीडिया पर घिरे डीजीपी
बिहार के डीजीपी के औकात वाले बयान पर सोशल मीडिया में भी ख़ूब चर्चा हो रही है. ट्विटर पर सलमान नाम के एक यूज़र ने आईपीएस एसोसिएशन को टैग करते हुए लिखा है- क्या है ये. क्या ये महिलाओं का सम्मान है. कृपया कोई कार्रवाई करें. एक तरफ़ बोलते हैं नारी का सम्मान करो, दूसरी तरफ़ नारी की औकात निकाल के उसका अपमान करते हैं.
एक और यूज़र अभिषेक ने लिखा है- किसी औरत की "औकात" पर बोलने वाले आप कोन होते हैं गुप्तेश्वर पांडेय जी?
बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के पक्ष में भी कुछ लोगों ने टिप्पणी की है.
एक यूजर ऋषभ राजपूत ने लिखा है कि हम भारतीय औकात शब्द का इस्तेमाल करते रहते हैं.(bbc)
-अपूर्व कृष्ण
पाकिस्तान में इसराइल को लेकर क्या सोच है, इसका अंदाज़ा 15 साल पहले की एक घटना से मिलता है, जिसका ज़िक्र बीबीसी की उर्दू सेवा के पूर्व संपादक आमिर अहमद ख़ान ने अपने एक लेख में किया था.
जनवरी 2005 में पाकिस्तान के एक बड़े अख़बार द न्यूज़ ने इसराइल के उप प्रधानमंत्री शिमोन पेरेज़ का इंटरव्यू किया, जिन्होंने कहा कि इसराइल और पाकिस्तान को बिना शरमाए एक-दूसरे से खुलकर संपर्क करना चाहिए.
वो छपा, और अगले ही दिन आग-बबूला एक भीड़ ने कराची में अख़बार के दफ़्तर पर धावा बोल दिया, जमकर उत्पात किया.
उनकी नाराज़गी केवल इस बात से नहीं थी कि शिमोन पेरेज़ ने ऐसा क्यों कहा, उन्हें ज़्यादा एतराज़ इस बात पर था कि अख़बार ने किसी इसराइली राजनेता को अख़बार में बोलने कैसे दिया.
कुछ ऐसे ही हालात अब भी हैं, इसराइल की छवि पाकिस्तान में कोई बहुत नहीं बदली है, और यही वजह है कि इमरान ख़ान को इसराइल के बारे में ठीक वही कहना पड़ा है जो पाकिस्तान बरसों से कहता आया है.
इमरान ख़ान ने एक टीवी चैनल पर 13 अगस्त को संयुक्त अरब अमीरात और इसराइल के बीच संबंध बहाल होने को लेकर हुई ऐतिहासिक संधि पर अपनी बात बिल्कुल साफ़ शब्दों में रखी.
उन्होंने कहा," क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने 1948 में साफ़ कर दिया था कि हम इसराइल को तब तक मान्यता नहीं दे सकते जब तक कि फ़लस्तीनियों को उनका हक़ नहीं मिलता."
उन्होंने आगे कहा, "जो फ़लस्तीनियों की टू नेशन थ्योरी थी कि उन्हें उनका अलग देश मिले. जब तक वो नहीं होता, और हम इसराइल को मान्यता दे देते हैं तो फिर कश्मीर में भी ऐसी ही स्थिति है, तो हमें वो मुद्दा भी छोड़ देना चाहिए. इसलिए पाकिस्तान कभी इसराइल को स्वीकार कर नहीं कर सकता."
कुछ अलग कहा इमरान ख़ान ने?
पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रह चुके टीसीए राघवन कहते हैं कि 'इमरान ख़ान ने जो कहा, ये तो वो बार-बार कहते रहे हैं, इसमें नया कुछ भी नहीं है'.
इस्लामाबाद में मौजूद बीबीसी के पूर्व पत्रकार और अख़बार इंडिपेंडेंट उर्दू के संपादक हारून रशीद बताते हैं कि इमरान ख़ान ने लगभग वही बातें दोहराई हैं, जो पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने 14 अगस्त को अपनी प्रतिक्रिया में कही थी.
उन्होंने कहा, "विदेश मंत्रालय ने क़ायदे आज़म का नाम नहीं लिया था, लेकिन उन्होंने कहा था कि इस फ़ैसले के दूरगामी परिणाम होंगे पाकिस्तान का रुख़ इस बात पर निर्भर करेगा कि फ़लस्तीनियों के अधिकारों का इस इलाक़े में कितना ख़याल रखा जाता है."
कश्मीर और फ़लस्तीनियों का मुद्दा एक कैसे?
इमरान ख़ान ने अपने इंटरव्यू में ये भी कहा कि इसराइल को मान्यता देने का मतलब होगा कश्मीर मुद्दे को छोड़ देना क्योंकि दोनों मुद्दे एक हैं.
उन्होंने अपने इंटरव्यू में इसपर विस्तार से कुछ नहीं बताया, लेकिन हारून रशीद का कहना है कि उनका इशारा इस बात से था कि दोनों ही मुद्दे संयुक्त राष्ट्र के मंच पर ले जाए गए थे, और एक से पीछे हटने का मतलब होगा दूसरे मुद्दे से भी पीछे हट जाना.
कश्मीर का मुद्दा 1948 में भारत की ही पहल पर संयुक्त राष्ट्र में गया, जब आज़ादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लड़ाई छिड़ गई.
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तब सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव संख्या 47 पास कर, वहाँ जनमत संग्रह करवाने के लिए कहा. लेकिन दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने को लेकर मतभेद की वजह से ये नहीं हो सका.
फिर संयुक्त राष्ट्र के ही हस्तक्षेप से नियंत्रण रेखा या एलओसी तय हुई और इसके दोनों तरफ़ के इलाक़े भारत और पाकिस्तान के नियंत्रण में चले गए.
लेकिन पाकिस्तान कश्मीर की स्थिति को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बताकर इसे लगातार विवादित मुद्दा बताता रहा है.
कुछ ऐसी ही स्थिति फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच बरसों से चल रहे विवाद की रही है. इस इलाक़े पर 1920 से शासन करने वाले ब्रिटेन ने 1947 में यहूदियों और अरबों का विवाद सुलझाने की ज़िम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र को सौंप दी थी और तबसे लेकर संयुक्त राष्ट्र दसियों प्रस्ताव पास कर चुकी है, लेकिन मामला अभी भी नहीं सुलझ सका है.
वैसे पूर्व उच्चायुक्त टीसीए राघवन का मानना है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की चिंता अभी इसराइल या कश्मीर से ज़्यादा कुछ और है इस बयान को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
टीसीए राघवन ने कहा,"पाकिस्तान या इमरान ख़ान की सबसे बड़ी मुश्किल अभी ये है कि यूएई और सऊदी अरब के साथ जो उनके रिश्ते हैं वो एक नाज़ुक मोड़ पर खड़े हैं. इन देशों में जो बदलाव हो रहा है उसमें पाकिस्तान कुछ भी खुलकर ना कर पा रहा है, ना बोल पा रहा है."
मुशर्रफ़ के ज़माने में दोस्ती की कोशिश
पाकिस्तान इसराइल को कितना नापसंद करता है, उसकी एक मिसाल ये भी है कि पाकिस्तान के लोग अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर इसराइल की यात्रा नहीं कर सकते.
लेकिन ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान और इसराइल ने दूरी को कम करने की कोशिश नहीं की.
जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के शासनकाल में पाकिस्तान ने इसराइल के क़रीब जाने के लिए क़दम बढ़ाया था.
1 सितंबर 2005 को पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख़ुर्शीद महमूद कसूरी ने इसराइल के विदेश मंत्री सिल्वन शेलोम से मुलाक़ात की थी.
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मुलाक़ात तुर्की के इस्तांबुल शहर में हुई. ये पहला मौक़ा था जब पाकिस्तान और इसराइल के नेताओं ने कोई मुलाक़ात की थी.
ये इतना संवेदनशील मुद्दा था कि ख़ुद राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने आकर कहा कि इसका ये मतलब नहीं है कि पाकिस्तान ने इसराइल को स्वीकृति दे दी है.
पाकिस्तान सरकार ने तब स्पष्ट किया कि 'संपर्क' हुआ है ना कि 'संबंध' बने हैं.
टीसीए राघवन याद करते हैं, "जनरल मुशर्रफ़ काफ़ी आगे निकल गए थे, वो शायद इसराइल के साथ कूटनीतिक संबंधों को बहाल भी कर देते, लेकिन तब उनके देश की अंदरूनी परिस्थितियाँ बदलने लगी थीं, तो वो जोखिम नहीं उठाना चाहते थे."
2005 की उस कोशिश के बाद पाकिस्तान और इसराइल के बीच नज़दीकी को लेकर कोई ख़बर नहीं आई.
हालाँकि, दो साल पहले एक कथित इसराइली विमान के इस्लामाबाद उतरने की ख़बर आई, जिसकी काफ़ी चर्चा हुई थी.
बीबीसी उर्दू ने इसकी छानबीन की तो पता चला कि लाइव एयर ट्रैफ़िक पर नज़र रखने वाली वेबसाइट फ़्लाइट रडार पर एक विमान के इस्लामाबाद आने और 10 घंटे बाद जाने के सबूत मौजूद हैं.
हालाँकि, पाकिस्तान सरकार ने इस बात से सीधे इनकार किया था कि इसराइल का कोई विमान उनकी सीमा में आया.
हारून रशीद बताते हैं, "आज तक स्पष्ट नहीं हो सका कि वो इसराइली विमान पाकिस्तानी एयरस्पेस में कैसे आया था और किस मक़सद से आया था."
यूएई संधि के बाद अटकलें
वैसे इसराइल-यूएई संधि के बाद अटकलें लग रही हैं कि ये एक शुरुआत है और अब इसराइल से दूर रहने वाले दूसरे देश भी यही रास्ता अख़्तियार करेंगे, जिनमें बहरीन और ओमान का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है.
तो क्या इसराइल से संबंध सामान्य करने का ये सिलसिला कभी पाकिस्तान तक भी जा सकता है?
टीसीए राघवन का कहना है, "ये परिस्थितियों पर निर्भर करता है, मुशर्रफ़ काफ़ी आगे चले गए थे, तो परिस्थितियाँ बदलती हैं. हालाँकि अभी एक-दो साल में ऐसा कुछ होनेवाला है, ऐसा मुझे नहीं लगता."
हारून रशीद कहते हैं, "बुनियादी मुद्दा फ़लस्तीनियों का है, अगर उसको दरकिनार कर सरकार कोई भी फ़ैसला लेती है तो आवाम भी ख़ुश नहीं होगी और ऐसे लोग तो विरोध पर उतर ही आएँगे जिनकी रोज़ी रोटी ही आज़ादी के नारों से चल रही है."(bbc)
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज मनोज कुमार ने बुधवार को खेल मंत्री किरण रिजिजू को पत्र लिखकर उनसे द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए अपने निजी कोच राजेश कुमार राजौंद के नाम पर विचार करने का अनुरोध किया है। चयन समिति ने द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए सोमवार को 13 नामों की सिफारिश की, जिसमें मनोज के कोच का नाम नहीं है।
मनोज ने रिजिजू को लिखे पत्र में कहा, " प्रिय रिजिजू सर, मैं, मनोज कुमार, दो बार के ओलंपियन और कॉमनवेल्थ गेम्स का पदक विजेता, आप पर पूर्ण विश्वास है और आपसे सकारात्मक जवाब की उम्मीद कर रहा हूं।"
उन्होंने लिखा, " आपसे इस साल के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए घोषित किए गए नामों पर एक बार विचार करने का आग्रह करता हूं। मैं आपसे मेरे कोच राजेश कुमार की उपलब्धियों पर विचार करने और उनकी उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करने में मदद करने का अनुरोध करता हूं क्योंकि इस मामले में आप हमारे लिए आखिरी उम्मीद हैं।"
मनोज ने आगे लिखा, " अगर फिर से एक कोच और उसके शिष्यों की कड़ी मेहनत को नजरअंदाज कर दिया जाता है और उनके 23 साल के संघर्ष की कहानी पूरे देश को पता होने के बावजूद उन्हें पुरस्कार नहीं दिया जाता है तो फिर नयी प्रतिभा देश के लिए अपना जीवन समर्पित करने के प्रति कैसे प्रेरित होगी।"
उन्होंने कहा, " जब हॉकी में एक से अधिक कोच को पुरस्कार के लिए चुना जा सकता है तो फिर मुक्केबाजी में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। आपसे त्वरित और सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद है।"
मनोज को 2014 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। लेकिन इसके लिए उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। चयन समिति ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया था और चयन समिति के इस फैसले को उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
बाद में दिल्ली की अदालत ने उन्हें पुरस्कार देने का सरकार को आदेश दिया था।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)| वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दायर की है, जिसमें अवमानना मामले के संबंध में उनकी सजा पर सुनवाई टालने की गुहार लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि जब तक इस संबंध में एक समीक्षा याचिका दायर नहीं की जाती और अदालत द्वारा इस पर विचार नहीं किया जाता, तब तक सजा पर सुनवाई को टाल दिया जाए। भूषण को दो ट्वीट के माध्यम से न्यायपालिका पर टिप्पणी करने के मामले में अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है और गुरुवार को उनकी सजा सुनाने के बारे में फैसला होना है।
अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर एक आवेदन में उन्होंने कहा है किया कि मानव निर्णय अचूक नहीं है और सभी प्रावधानों के बावजूद निष्पक्ष सुनवाई तथा न्यायपूर्ण निर्णय सुनिश्चित करने में गलती संभव है और त्रुटियों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अर्जी में कहा गया है, आपराधिक अवमानना कार्यवाही में यह अदालत एक ट्रायल कोर्ट की तरह काम करती है और यह अंतिम अदालत भी है। धारा 19 (1) हाईकोर्ट द्वारा अवमानना का दोषी पाए गए व्यक्ति को अपील का वैधानिक अधिकार देती है। यह फैक्ट है कि अदालत के फैसले के खिलाफ कोई भी अपील नहीं है और यह दोगुना आवश्यक हो जाता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत सावधानी बरती जाए कि न्याय केवल किया ही नहीं जाए, बल्कि यह होता हुआ दिखे भी।
शीर्ष अदालत में 2009 के अवमानना मामले में भूषण की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि भूषण 14 अगस्त के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा दायर कर सकते हैं, जिन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है।
भूषण ने सुप्रीम कोर्ट और प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबड़े के खिलाफ कथित तौर पर ट्वीट किया था, जिस पर स्वत: संज्ञान लेकर अदालत कार्यवाही कर रही है।
प्रशांत भूषण ने 27 जून को अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ और दूसरा ट्वीट प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ किया था। 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रशांत भूषण को नोटिस मिला।
प्रशांत भूषण ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था कि जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और प्रधान न्यायाधीश की भूमिका को लेकर सवाल पूछेंगे।
छिंदवाड़ा, 19 अगस्त (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में प्रेमी जोड़े की याद में हर साल आयोजित किए जाने वाले गोटमार मेले में परंपरा के मुताबिक दो पक्षों में जमकर पत्थरबाजी हुई। इस पत्थरबाजी में 25 लोगों केा चोटें आई हैं। छिंदवाड़ा मुख्यालय से 98 किलोमीटर दूर विकासखंड पांढुर्णा में वर्षो से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, पोला पर्व के दूसरे दिन गोटमार मेला भरता है। इस वर्ष कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव और रोकथाम के दृष्टिगत अनुविभाग स्तरीय आपदा प्रबंधन समूह और शांति समिति की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार, मेला समिति द्वारा सांकेतिक रूप से गोटमार मेला मनाने के लिए सुबह 10 बजे तक झंडा मां चंडिका देवी के मंदिर में समर्पित कर पूजन व आरती के बाद मेला समाप्त कर जनता कर्फ्यू का निर्णय लिया गया था, मगर प्रशासन के निर्देशों को दरकिनार कर पांढुर्णा और सांवरगांव के लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाए।
छिंदवाड़ा के पुलिस अधीक्षक विवेक अग्रवाल ने बताया है कि गोटमार में कुल 25 लोगों के घायल होने की सूचना मिली है, जिनका उपचार किया गया। दूसरी ओर, स्थानीय लोग घायलों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बता रहे हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि गोटमार मेले केा लेकर किंवदंती है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के ने प्रेम प्रसंग था और उसने सावरगांव की लड़की से चोरी-छिपे प्रेम विवाह कर लिया था। जब वह लड़का अपने साथ लड़की को लेकर जाम नदी पार कर रहा था, तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने उन पर पत्थरों से हमला कर दिया था।
प्रचलित किंवदंती के अनुसार, जब सावरगांव के लोगों के पथराव करने की सूचना पांढुर्णा के लोगों हुई तो वे भी जवाब में पथराव करने लगे। दोनों गांवों के लोगों द्वारा किए गए पथराव से प्रेमी जोड़े की मौत हो गई थी। बाद में दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर क्षेत्र में स्थित किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का हर साल आयोजन होता है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
धार, 20 अगस्त (आईएएनएस)| हर पिता का सपना होता है कि उसका बेटा सफलताओं के कीर्तिमान स्थापित करें और जब कोई बाधा सामने आती है तो वह मुकाबला करने से भी नहीं हिचकता। मध्यप्रदेश के धार जिले में भी ऐसी ही कुछ बात सामने आई है, जहां बेटे को परीक्षा दिलाने के लिए पिता ने 105 किलोमीटर साइकिल चलाई। वाक्या धार जिले के मनावर तहसील के बायडीपुरा गांव का है। यहां मजदूरी करने वाले शोभाराम के बेटे ने माध्यमिक शिक्षा मंडल की दसवीं की परीक्षा दी थी मगर उसे सफलता नहीं मिली। राज्य सरकार ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में असफल छात्रों के लिए रुक जाना नहीं योजना शुरू की। इसके तहत असफल छात्र दोबारा परीक्षा दे सकते हैं और अपना भविष्य संवार सकते हैं।
शोभाराम के बेटे आशीष भी दसवीं की परीक्षा में असफल रहा और उसे भी रुक जाना नहीं योजना के तहत परीक्षा देनी थी मगर कोरोना महामारी के कारण सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद होने पर उसके सामने एक बड़ी समस्या आ गई, क्योंकि मोटरसाइकिल आदि उसके पास थी नहीं, लिहाजा उसने साइकिल से ही जिला मुख्यालय पर स्थित परीक्षा केंद्र तक पहुंचने का फैसला लिया। उसके घर से परीक्षा केंद्र की दूरी 105 किलोमीटर है।
शोभाराम ने बेटे आशीष को साइकिल पर बैठाया और चल दिया परीक्षा केंद्र की ओर जहां परीक्षा होनी थी। शोभाराम ने लगभग 7 घंटे साइकिल चलाई तब वह कहीं जाकर परीक्षा केंद्र तक पहुंच पाया।
सोशल मीडिया पर शोभाराम का वीडियो वायरल हो रहा है। शोभाराम 3 दिन का राशन बांधकर गांव से परीक्षा दिलाने आया है। वह अपने बेटे को अधिकारी बनाना चाहता है। वह अपने साथ बिछौना भी लेकर आया है, क्योंकि होटल आदि में रुकने की उसकी हैसियत नहीं है।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 19 अगस्त. राज्य में आज रात तक कोरोना पॉजिटिव बढ़ते हुए 752 हो गए हैं, इनमें से 320 अकेले रायपुर जिले के हैं. इनमें से भी अधिकतर रायपुर शहर के हैं.
आज की लिस्ट देखें, तो शहर से अधिकतर इलाकों से कोरोना पॉजिटिव मिले हैं. आज के इलाके इस प्रकार हैं- कैपिटल प्लेस-अवन्ति विहार, नूरानी चौक-राजा तालाब, सिंधु वाटिका-टाटीबंध, सूखा झाड़ गली-समता कॉलोनी, जवाहर नगर, दुबे कॉलोनी, दलदलसिवनी, खम्हारडीह मार्ग, ब्रम्हा देव कॉलोनी-भाटागांव, शैलेन्द्र नगर, साउथ एवेन्यू-चौबे कॉलोनी, हिरा हाउस-फाफाडीह नाका, सदर बाजार-बूढ़ापारा, सिंधु वाटिका-अमलीडीह, गोविन्द नगर, मठपारा, टेकारी, पुलिस लाइन, हीरापुर, टिकरापारा, लोटस टावर-ढेबर सिटी, न्यू चंगोराभाठा, संतोषी नगर, गुढ़ियारी, सैलानी नगर, बोरियाकला, एम्स -रायपुर, राजातालाब, श्री शिवम् गली, पंडरी, राजीव नगर, श्री नगर-खमतराई, सरस्वती नगर, विजेता काम्प्लेक्स, साई विहार कॉलोनी-देवेंद्र नगर, डीडी नगर, पंडरी-गंगा नगर, डॉल्फिन इनफरेंस-मोवा, विकास नगर-गुढ़ियारी, आदर्श नगर, लालपुर, नई राजेंद्र नगर, बिरगांव, इंद्रावती कॉलोनी, स्वर्णभूमि, देवेंद्र नगर-ऑफिसर्स कॉलोनी, अशोका रतन, मोती नगर, नई टिम्बर मार्किट, पारस नगर-देवेंद्र नगर, पंचवटी नगर, सिंचाई कॉलोनी-शंकर नगर, दरगाह के पास-मौदहापारा, कोटा, बॉयज हॉस्टल-प्रियदर्शिनी नगर, मन कैंप, दुबे कॉलोनी, सेक्टर-29-नया रायपुर, नेहरू नगर-पुलिस लाइन के पास, हर्ष विहार-मोवा, कबीर नगर, वल्लभ नगर, मोमिनपर, गणपति चौक-चंगोराभाठा, BSF -पलौद, सुमीत सिटी-कचना, ब्राह्मणपारा, सिलतरा, पुराणी बस्ती, MMI-हॉस्पिटल, एकता हॉस्पिटल-शांति नगर, रामेश्वर नगर-भनपुरी, गंगानगर-भनपुरी, होटल बेबीलोन, गौतम नगर-लखे नगर, कुशालपुर, गीतांजलि नगर-अवन्ति विहार, SKS पावर, कैलाश नगर-बिरगांव, राजभवन-कॉलोनी, झंडा चौक-पंडरी, रामसागरपारा, वीआईपी सिटी, प्रोफेसर कॉलोनी, शांति रेजीडेंसी-पचपेड़ीनाका, बंजारी नगर-खुशालपुर, अमृत टॉकीज के पीछे-समता कॉलोनी, महावीर नगर, लक्ष्मी नगर-मोवा, सोनडोंगरी, केंद्रीय विद्यालय-नया रायपुर, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी-अमलीडीह, कटोरा तालाब, नहरपारा, अनुपम नगर, वीरभद्र नगर, आज़ाद चौक-ब्राम्हणपारा, कविदास नगर-भनपुरी, गोलछा एन्क्लेव-अमलीडीह, RDA कॉलोनी-टिकरापारा, मुर्राभट्टी-गुढ़ियारी, कांशीरामनगर, महामाईपारा-पुरानीबस्ती, साहूपारा-गुढ़ियारी, बजरंगनगर, रामसागरपारा, संजयनगर वगैरह.
रात 100 और पॉजिटिव मिले,
प्रदेश में 752, रायपुर 320 हुए
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर 19 अगस्त। राज्य में आज रात 11 बजे 100 और कोरोना पॉजिटिव मिलने के साथ ही आज की कुल संख्या 752 हो गयी है. अभी रात में मिले मरीजों में रायपुर जिले से 29 , राजनांदगाव से 26, रायगढ़ 25, बालोद 8 , कबीरधाम 4 मरीज हैं. आज कुल 6 कोरोना मौतें हुई हैं।
जिले में आज 78 कोरोनाग्रस्त, दो मौतें
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
भिलाईनगर 19 अगस्त। जिला दुर्ग से आज देर रात तक प्राप्त रिपोर्ट में 78 संक्रमित मरीजों की पुष्टि की गई है। दो संक्रमित मरीजों की मौत भी हुई है एक एम्स अस्पताल रायपुर में और एक सेक्टर 9 हॉस्पिटल में भर्ती थे।
चंदूलाल चंद्राकर कोविड-19 केयर सेंटर, आजाद कोविड-19 केयर सेंटर एवं बीएसएफ आइसोलेशन वार्ड के प्रभारी डॉ अनिल शुक्ला ने बताया कि आज रात तक प्राप्त रिपोर्ट में 78 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं ।
उन्होंने बताया कि दो मौतें भी हुई है जिसमें एक 44 वर्षीय पुरुष पचरी पारा दुर्ग जो एम्स अस्पताल रायपुर में एडमिट था । सेक्टर 9 हॉस्पिटल में एडमिट एक 73 वर्षीय वृद्धा वैशाली नगर निवासी है। महाराणा प्रताप सेक्टर 6 स्थित बीएसएफ कैंप से 2 जवान , वार्ड 32 सदर बाजार दुर्ग से एक ही परिवार के 11 सदस्य एक डीएनबी डॉक्टर एक फायर ऑफिसर बीएसपी कर्मी स्कूल की शिक्षिका सहित कुल 78 मरीज मिले हैं। जिनमें शंकर नगर दुर्ग से 2 मरीजों में एक महिला एवं एक 20 वर्षीय युवक शामिल है।
इसके अलावा कैंप 2 भिलाई से एक 21 वर्षीय युवक, श्याम नगर कैंप 2 पावर हाउस भिलाई से एक महिला, ग्राम बाग डूमर नंदिनी वार्ड 8 से एक महिला एवं देवबलोदा पाटन से एक महिला संक्रमित पाई गई है। भिलाई 3 शांतिपारा से एक पुरुष ,रिसाली भिलाई से एक महिला, सड़क 16 हॉस्पिटल सेक्टर भिलाई से एक पुरुष, सुपेला भिलाई से एक पुरुष, दुर्ग से एक महिला, दुर्ग से ही एक बुजुर्ग भिलाई से ही एक महिला एवं पुरुष बोरसी भाठा से एक पुरुष, एक फायर ऑफिसर ग्राम उमरपोटी ,मरोदा से एक महिला खुर्सीपार से पुरुष, हॉस्पिटल सेक्टर से डीएनबी डॉक्टर, शांति नगर वार्ड 17 से एक पुरुष गंजपारा दुर्ग से पुरुष, विद्युत नगर दुर्ग से एक महिला, शंकर नगर दुर्ग से एक युवती, टंकी मरोदा से एक युवक शामिल है। सभी मरीजों को ट्रेस कर जिला कोविड-19 अस्पताल एवं जिला कोविड-19 केयर सेंटर में भर्ती करने की तैयारी की जा रही है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 अगस्त। राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग ने रात 8.30 बजे तक 652 कोरोना पॉजिटिव की पुष्टि की है। इनमें सर्वाधिक 291 रायपुर जिले के हैं। इसके बाद दुर्ग 77, बिलासपुर 49, रायगढ़ 41, सुकमा 27, बलौदाबाजार 25, कोरिया 24, राजनांदगांव व गरियाबंद 18-18, नारायणपुर 12, कोंडागांव व बीजापुर 9-9, बस्तर , दंतेवाड़ा व कांकेर 7-7, सूरजपुर व जशपुर 5-5, महासमुंद, जांजगीर-चांपा व मुंगेली 4-4, बालोद, धमतरी, सरगुजा व बलरामपुर 2-2, कबीरधाम 1 पॉजिटिव मिले हैं।
राज्य में आज 3 कोरोनाग्रस्त मरीजों की मृत्यु हुई है।
मध्यप्रदेश में सत्ता की चाहत में जनता को खतरे में डाला
-पंकज मुकाती
(राजनीतिक विश्लेषक )
लापरवाह..गैरजिम्मेदार..जनता की जान के दुश्मन... कोरोना प्रतिनिधि...शिवराज सरकार के मंत्रियों पर ये सारे शब्द इस वक्त एक दम सटीक है। मध्यप्रदेश में सरकार ने ही कोरोना प्रसार का जिम्मा ले रखा है। ऐसा लगता है मानो शिवराज कैबिनेट में कोरोना फैलाने की होड़ लगी है। एक के बाद एक मंत्री संक्रमित हो रहे हैं। पर कोई भी सुधारने को तैयार नहीं। नेता, मंत्री और उनके समर्थकों की भीड़ प्रतिदिन जुट रही है। शुरुवात में कांग्रेस सरकार पर कोरोना में लापरवाही का आरोप लगाने वाले शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया अब खुद अपने-अपने समर्थकों के साथ सत्ता के शक्ति प्रदर्शन में कोरोना फैलाने पर आमादा हैं। ये सभी जनता की जान के दुश्मन बनते नजर आ रहे हैं। देश में सर्वाधिक मंत्री और संघ से जुड़े लोग मध्यप्रदेश में ही संक्रमित हुए हैं।
मंगलवार को उज्जैन के विधायक और प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव संक्रमित हो गए। यादव सोमवार को पूरा दिन राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ महाकाल की सवारी के आयोजन में शामिल रहे। वे पूरा दिन सिंधिया के साथ रहे। इस आयोजन में भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती, मंत्री कमल पटेल, तुलसी सिलावट और सैकड़ों कार्यकर्त्ता बिना सोशल डिस्टेंसिंग के एक दम सटकर पूजा में बैठे रहे। तस्वीरों में सब एक दूसरे से इस कदर बैठे हैं मानों सिंधिया से एक इंच की दूरी भी उनकी आस्था को कम कर देगी। राजनीतिक सत्ता की भूख और बड़े नेताओं के करीब दिखने का ये तमाशा प्रदेश की करोड़ों जनता की सेहत पर भारी पड़ सकता हैं।
करीबी की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी यादव आयोजन में बने रहे
माना जा रहा है कि मोहन यादव के निवास पर सोमवार को रखे गए सिंधिया के सम्मान कार्यक्रम में शामिल दीनदयाल मंडल के एक पदाधिकारी के संपर्क में आने से संक्रमित हुए हैं। इस पदाधिकारी की रिपोर्ट सोमवार को ही पॉजिटिव आई थी। इसके बाद से ही भाजपा सांसद अनिल फिरोजिया, नगर अध्यक्ष विवेक जोशी, उपाध्यक्ष अमित श्रीवास्तव सहित 200 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने खुद को होम आइसोलेट कर लिया था, पर मोहन यादव पूरे वक्त सिंधिया के साथ बने रहे।
तुलसी सिलावट के सारे गुनाह माफ़
ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे करीबी तुलसी सिलावट तो कोरोना गुनाहों के देवता बनते नजर आ रहे हैं। सबसे पहले तो मुख्यमंत्री की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी तुलसी सिलावट आइसोलेट नहीं हुए। वे दूसरे ही दिन भाजपा कार्यालय इंदौर में एक बैठक में पहुँच गए। पत्रकारों के सवालों के जवाब में बचकाना सा जवाब दिया -भाजपा कार्यालय मेरा घर है और मैं होम आइसोलेट ही हूं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर उन्होंने जांच करवाई और रिपोर्ट पॉजिटिव निकली। इसके बाद भी वे नहीं माने सोमवार को इंदौर में सिंधिया को लेने एयरपोर्ट पहुंचे। बाद में वे पूरा दिन सिंधिया के साथ रहे। इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन के अलावा वे कैलाश विजयवर्गीय के घर डिनर में भी सिंधिया के साथ रहे।
मुख्यमंत्री इस दौड़ में सबसे आगे
ऐसा ही नहीं कि सिर्फ मंत्री ऐसी लापरवाही कर रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का व्यवहार भी ऐसा ही है। वे पॉजिटिव होने के बाद भी अस्पताल में सक्रिय रहे। उनसे मिलने लोग आते रहे। अस्पताल में उन्होंने एक संक्रमित से राखी भी बंधवाई। आखिर कोरोना के इस दौर में अस्पताल में ऐसा करने की छूट उन्हें किसने दी।
उमा भारती, कमल पटेल भी मुश्किल में
उज्जैन में पूरे वक्त मोहन यादव के साथ रही उमा भारती और कृषि मंत्री कमल पटेल के भी संक्रमित होने का खतरा बना हुआ है। इसके अलावा इंदौर में हजारों कार्यकर्त्ता इसकी चपेट में आ सकते हैं।
संक्रमितों की इस सूची को देखिये आप समझ जायेंगे संक्रमण कौन फैला रहा
शिवराज सिंह चौहान (मुख्यमंत्री
ज्योतिरादित्य सिंधिया (सांसद )
अरविंद भदौरिया (मंत्री)
तुलसी सिलावट (मंत्री )
मोहन यादव (मंत्री )
विश्वास सारंग (मंत्री )
ओमप्रकाश सकलेचा (मंत्री )
रामखेलावन पटेल (मंत्री )
महेंद्र सिसोदिया (मंत्री )
हीरासिंह राजपूत (गोविंद राजपूत मंत्री के भाई)
वीडी शर्मा (भाजपा प्रदेश अध्यक्ष )
सुहास भगत - संगठन मंत्री
आशुतोष तिवारी -सहसंगठन मंत्री
मुंबई, 19 अगस्त (आईएएनएस)| महाराष्ट्र में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को सुशांत सिंह मौत मामले की सीबीआई जांच को अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। बीजेपी के कई नेता अब महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वहीं जानेमाने वकील उज्जवल निकम ने भी इसे 'एक ऐतिहासिक फैसला' करार दिया। विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "अब दिवंगत अभिनेता और उसके फैंस को न्याय मिलने की उम्मीद की जा सकती है।"
फडणवीस ने कहा, "इस फैसले ने न्यायिक प्रणाली में विश्वास बढ़ाया है। महाराष्ट्र सरकार को अब खुद का अवलोकन करने की जरूरत है, जिस तरह से उन्होंने केस को हैंडल किया। मुझे विश्वास है कि सीबीआई जल्द ही अपनी जांच शुरू करेगी।"
निकम ने कहा कि, " इस फैसले का दूरगामी प्रभाव दिखेगा। इतिहास में यह पहली बार है कि अपराध किसी अन्य जगह हुआ, एफआईआर कहीं और दर्ज की गई और तीसरी एजेंसी-सीबीआई इसकी जांच करेगी।"
उन्होंने कहा कि, " सुशांत सिंह की मौत मामले में पूरे देश में इस बात पर संदेह जताया जा रहा था कि यह आत्महत्या है या हत्या। साथ ही मुंबई पुलिस की क्षमता पर भी सवाल उठे, जिसने समय पर इस संदेह को मिटाने के लिए कार्य नहीं किया।"
वहीं प्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष किरिट सोमैया ने कहा, "अब तो ठाकरे सरकार की दादागीरी खत्म होगी।"
सोमैया ने साथ ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख और मुंबई पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह से इस्तीफे की मांग की।
भाजपा नेता नीतीश राणे ने राज्य के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे पर ट्वीट कर निशाना साधा, "अब बेबी पेंगुईन तो गियो। इट इज शोटाइम।"
वहीं दूसरी तरफ शिवसेना नेता और शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों की निंदा की है। साथ ही उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद ही इस पर टिप्पणी करेंगे।
इटावा, 19 अगस्त (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के आगरा में करीब 15 घंटे की सनसनी फैलाने के बाद आखिरकार अगवा बस को इटावा में बरामद कर लिया गया है। पुलिस ने बताया कि सभी यात्री सुरक्षित हैं और मध्यप्रदेश के थाना नौगांव पहुंचे हैं। किसी के साथ किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। इटावा पुलिस अधीक्षक अधीक्षक अकाश तोमर ने बताया कि आगरा जनपद से एक बस अगवा हुई थी। बुधवार दोपहर में हाइजेक बस इटावा के बलरइ थाना क्षेत्र के लखेरे कुआं पर ढाबे पर बस बड़ी मिली है। इसे एक व्यक्ति लाया था। उन्होंने कहा, "इस मामले में हम आगरा पुलिस के साथ सहयोग से काम कर रहे हैं।"
आगरा के अतरिक्त पुलिस अधीक्षक रवि कुमार ने बताया कि मंगलवार रात आगरा के न्यू दक्षिणी बाइपास से हाइजैक बस को इटावा में बराबद कर लिया गया है। उसमें बैठे सभी यात्री सुरक्षित हैं। वे अपने गंतव्य को जा रहे हैं। सभी से मध्यप्रदेश के नौगांव थाना क्षेत्र में बात की गई है। किसी के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। हाईजैक होने के बाद बस से यात्री दूसरी बस में चले गए थे, लेकिन किसी के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया गया है। सभी यात्रियों को छतरपुर के नौगांव थाने में रुकवा लिया गया और उनसे बातचीत की गई। सभी सुरक्षित हैं, किसी के साथ कोई घटना नहीं हुई है। इस घटना को अंजाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सभी की पहचान की जा रही है। मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा।
ज्ञात हो कि आगरा के मलपुरा के न्यू दक्षिणी बाईपास स्थित रायभा टोल प्लाजा के पास से 34 यात्रियों को लेकर गुरुग्राम से मध्यप्रदेश के पन्ना जा रही बस को बुधवार सुबह हाईजैक कर लिया गया है।
चालक के अनुसार, गाड़ी सवार कुछ लोगों ने बस का पीछा करके रुकवाया। उन्होंने खुद को फाइनेंस कर्मी बताया था। बस को रोकने के बाद उन्होंने इसे अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद बस को लेकर आगे बढ़े। रास्ते में एक ढाबे पर बस को रोका और सभी यात्रियों के पैसे वापस करवाए। खाना भी खिलाया। इसके बाद उन्होंने एत्मादपुर क्षेत्र में चालक को उतार दिया।
चालक ने मलपुरा थाने आकर पुलिस को सूचना दी। घटना की जानकारी के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया।
आगरा के एसएसपी बबलू कुमार ने घटना के बारे में कहा कि उनकी टीम ने बस में मौजूद सवारियों से बात की है। उन्होंने बताया, "रात सवा दो बजे इस बस ने जैसे ही इटावा टोल क्रॉस किया, पीछे से आए कुछ लोगों ने उसे रोक लिया। उन्होंने यात्रियों से खुद को फाइनेंस कर्मी बताया। उन्होंने बस और परिचालक को खाना खिलाया। दोनों को 300-300 रुपये भी दिए, फिर उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद वे यात्रियों को गंतव्य तक छोड़ देने की बात कहते हुए बस अपने साथ ले गए। बस मालिक का मंगलवार को ही देहांत हुआ था। वह किस्त नहीं दे पा रहा था।"
पूरे मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए मुख्यमंत्री योगी और यूपी के गृह विभाग ने भी रिपोर्ट तलब की है। सरकार और पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि 34 यात्रियों से भरी बस को अगवा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।