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नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)| लोकसभा में प्रश्नकाल स्थगित करने के सरकार के फैसले ने सोमवार को मानसून सत्र के शुरुआती दिन विपक्षी दलों के बीच व्यापक नाराजगी पैदा कर दी, जिसमें सांसदों ने कहा कि यह कदम 'लोकतंत्र का गला घोंटने का' प्रयास है। विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह किसी भी प्रकार की जवाबदेही से बचने के लिए कोविड-19 महामारी का उपयोग कर रही है।
लोकसभा में प्रश्नकाल का मुद्दा उठाते हुए, सदन के कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "प्रश्नकाल को रद्द करना सांसदों को राष्ट्रीय महत्व के मामले उठाने से रोकने के बराबर है।"
उन्होंने कहा, "प्रश्नकाल को संसदीय लोकतंत्र के सार के रूप में मान्यता प्राप्त है। इतना ही नहीं, प्रश्नकाल घंटे की व्याख्या सदन की आत्मा के रूप में की जा सकती है। यह हमें (सांसदों) को आम लोगों की समस्या का प्रतिनिधित्व करने का अवसर देता है। यह हमारे लिए स्वर्णकाल (गोल्डन आवर्स) होता है। यह लोकतंत्र का गला घोंटने का एक प्रयास है।"
सरकार के खिलाफ अन्य विपक्षी दलों से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया देखी गई। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि प्रश्नकाल और निजी सदस्य का कार्य हमारे लोकतंत्र की 'बुनियाद' है और ये बेहद जरूरी है।
औवेसी ने कहा, "इस तरह के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने से मंत्री (प्रहलाद जोशी) शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कमजोर कर रहे हैं, जो हमारे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। मैं आपसे (अध्यक्ष) से आग्रह करता हूं कि कार्यपालिका को कानून के क्षेत्र में अतिक्रमण न करने दें।"
प्रश्नकाल स्थगित करने पर ओवैसी ने इसे एक शर्मनाक दिन करार दिया, क्योंकि प्रश्नकाल और निजी सदस्य व्यवसाय को नहीं लिया जाता है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि पहले पूरे सदन को प्रश्नकाल स्थगित करने के सरकार के फैसले से सहमत होना चाहिए। वहीं तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि प्रश्नकाल संसदीय प्रक्रिया की मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है और हम उस हिस्से को नष्ट नहीं कर सकते।
प्रश्नकाल नहीं होने का प्रस्ताव सोमवार की सुबह पारित हुआ। इसके बाद विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाया, जिसमें कहा गया कि लोकसभा का वर्तमान सत्र कोविड-19 महामारी के कारण एक असाधारण स्थिति में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें सामाजिक दूरी को बनाए रखने भी आवश्यक है।
प्रश्नकाल खत्म किए जाने को लेकर उठ रहे सवालों के बीच संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने लोकसभा में कहा कि सरकार चर्चा से भाग नहीं रही है।
संसदीय कार्य मंत्री जोशी ने कहा, "यह एक असाधारण स्थिति है। जब विधानसभाएं एक दिन के लिए भी बैठक करने को तैयार नहीं हैं, हम करीब 800-850 सांसदों के साथ बैठक कर रहे हैं। सरकार से सवाल करने के कई तरीके हैं, सरकार चर्चा से भाग नहीं रही है। वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सुझाव दिया है कि शून्यकाल में सरकार से सवाल किया जा सकता है।"
उन्होंने कहा कि लोकसभा में उपनेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, उन्होंने खुद और उनके सहयोगियों अर्जुन मेघवाल और वी. मुरलीधरन ने प्रश्नकाल को समाप्त करने से पहले लगभग हर पार्टी के सभी नेताओं से बात की है।
उन्होंने कहा कि महामारी को देखते हुए महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, केरल, पंजाब जैसे कई राज्यों ने भी प्रश्नकाल स्थगित कर दिया और बुनियादी ढांचे का पालन किए बिना दो-तीन दिनों में 20-25 विधेयक (बिल) पारित किए।
-अरिजीत बनर्जी
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। जापान ने भारत और अन्य क्षेत्रों में अपना आधार स्थानांतरित करने के लिए जापानी कंपनियों के लिए 22.1 डॉलर की चीन निकास सब्सिडी की घोषणा की है।
यानी जापानी सरकार ने चीन से बाहर निकलने के लिए जापानी कंपनियों को 22.1 करोड़ डॉलर की सब्सिडी या इन्सेंटिव देने का फैसला किया है, जिसका भारत को सीधा फायदा पहुंचने की संभावना है।
अप्रैल में कोरोनावायरस महामारी के बीच, निवर्तमान जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करने का प्रस्ताव रखा था, जो चीन पर कम निर्भर हो, ताकि राष्ट्र आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) व्यवधानों से बच सके।
जुलाई के मध्य में जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय ने अधिक लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए जापान की विनिर्माण कंपनियों के पहले समूह को चीन से दक्षिण पूर्व एशिया या जापान में अपना कारोबार स्थापित करने के लिए सब्सिडी देने की योजना का अनावरण किया था।
भारत-जापान शिखर सम्मेलन से आगे, जापान सरकार ने घोषणा की थी कि वह भारत और बांग्लादेश को चीन से बाहर जाने वाले जापानी निमार्ताओं के लिए सब्सिडी प्राप्त करने के लिए आसियान देशों की सूची में शामिल करेगी।
यह कदम भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के व्यापार एवं उद्योगों से जुड़े मंत्रियों के बीच हाल ही में एक वर्चुअल बैठक के बाद सामने आया है। इस बैठक में चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र में विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला को लचीला बनाने में सहयोग करने पर सहमति बनी थी। दरअसल चीन इन तीनों देशों के साथ एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है। चीन के पास बड़ी विनिर्माण इकाइयां होने के साथ ही वह निर्यात के मामले में भी कहीं बेहतर स्थिति में है। उसके इसी वर्चस्व को खत्म करने के लिए तीनों देश आगे आए हैं। एससीआरआई (सप्लाई चेन्स रेजिलिएशन इनिशिएटिव) का उद्देश्य चीन से दूर एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करना है।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि हम विश्वसनीय, दीर्घकालिक आपूर्ति और उचित क्षमता का एक नेटवर्क बनाकर क्षेत्र में मूल्य श्रृंखलाओं को जोड़ने के लिए मुख्य मार्ग प्रदान कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि मई 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा था कि यह समय की आवश्यकता है कि भारत को आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।
जापानी सरकार के अनुपूरक (सपलिमेंट्री) बजट ने उन व्यवसायों के लिए 22.1 करोड़ डॉलर की घोषणा की, जो चीन से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में अपने उत्पादन को स्थानांतरित करना चाहते हैं।
देश के निर्माता अब पायलट कार्यक्रमों और व्यवहार्यता अध्ययन के लिए सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं। जापानी सरकार का कार्यक्रम किसी भी आपात स्थिति में चिकित्सा आपूर्ति और बिजली के घटकों जैसे उत्पादों की एक स्थिर आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करना है।
वर्तमान में, जापानी कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला चीन पर बहुत निर्भर करती है। कोविड-19 महामारी के दौरान यह मुद्दा सामने आया, जब चीन से आपूर्ति में कटौती की गई।
अनुप्रयोगों के दूसरे दौर में, परियोजनाएं आसियान-जापान आपूर्ति श्रृंखला में योगदान देंगी, यह मानते हुए कि भारत और बांग्लादेश में पुनर्वास होगा। सुविधाओं के प्रायोगिक परिचय के साथ विकेंद्रीकृत विनिर्माण योजनाओं पर व्यवहार्यता अध्ययन भी किया गया है।
सब्सिडी का पहला दौर, जिसे जुलाई में घोषित किया गया था, उसमें जापान ने अपने उत्पादन स्थलों को दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थानांतरित करने वाली 30 कंपनियों को लगभग 10 अरब येन प्रदान किया। अन्य 57 फर्मो को जापान में विनिर्माण सुविधाओं को स्थानांतरित करने के लिए भी समर्थन मिल रहा है।
इस फैसले का चीन पर काफी बड़ा प्रभाव पड़ने वाला है। चीन से बड़ी औद्योगिक इकाइयां बाहर निकलने से उसकी उत्पादन क्षमता पर असर पड़ेगा ही साथ ही कम्युनिस्ट देश में बेरोजगारी भी बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर नौकरियों का संकट खड़ा हो सकता है।
अमेरिका-चीन व्यापार तनाव पहले से ही चीन में लगभग 20 लाख औद्योगिक नौकरियों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। वहीं भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी गतिरोध के बीच भारत में भी चीन विरोधी भावनाएं चरम पर हैं। चूंकि चीन के भारत से भी बड़े व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं, उसे यहां से भी कई व्यापारिक मामलों में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं, जो कि आने वाले समय में और भी बढ़ सकते हैं।
दीर्घकालिक से मध्यम अवधि के दौरान चीन के उत्पादकता पर एक बड़ा नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है।
तिरुवनंतपुरम, 14 सितंबर (आईएएनएस)| केरल में कांग्रेस पार्टी इस बात की जांच कर रही है कि कैसे राहुल गांधी ने भाजपा के एक नेता के बेटे के नाम की सिफारिश केंद्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए कर दी। कांग्रेस पार्टी के नेता ने सोमवार को यह बात कही। कांग्रेस विधायक आई.सी. बालकृष्णन ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता गुस्से में हैं और उन्होंने पार्टी में इसकी शिकायत की है।
उन्होंने कहा, "जैसे ही शिकायत सामने आई, हमने उचित कदम उठाते हुए जांच बैठा दी। जांच हो रही है कि आखिर हुआ क्या। जांच खत्म होने पर हम ये मामला पार्टी नेतृत्व के सामने उठाएंगे।"
केंद्रीय विद्यालय के नियमों के मुताबिक, लोक सभा सांसद केंद्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए हर साल एक तय संख्या में नामों की सिफारिश कर सकते हैं। बता दें कि राहुल गांधी केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद हैं।
नई दिल्ली, 14 सितम्बर (आईएएनएस)| ऑनलाइन शिक्षा वर्तमान में कितनी उपयोगी और सार्थक है इसके लिए दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ने छात्रों से फीडबैक लेने की बात कही है। छात्रों के माध्यम से एक महीने का डेटा तैयार किया जाएगा, जिससे यह पता लगेगा कि कितने प्रतिशत छात्र ऑनलाइन कक्षा ले पा रहे हैं। दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ने सोमवार को कहा, कई छात्र ऑनलाइन क्लास में नहीं आ पा रहे हैं। इसका कारण स्मार्टफोन, इंटरनेट, वाईफाई, लेपटॉप, डाटा कनेक्शन, कम्प्यूटर आदि की सुविधाएं न होना है। विक्लांग छात्र इस व्यवस्था से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय का नया शैक्षिक सत्र 2020-21 कोविड-19 के चलते इस वर्ष तीन सप्ताह विलंब से शुरू हुआ है। फिलहाल अभी तीसरे और पांचवें सेमेस्टर की ऑनलाइन कक्षाएं लग रही हैं। इसके अंतर्गत द्वितीय व तृतीय वर्ष के छात्रों की कक्षाएं शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन एजुकेशन के माध्यम से ली जा रही हैं।
दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के प्रभारी हंसराज सुमन ने कहा, इन कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति 40 से 50 फीसदी है। जो छात्र ऑनलाइन कक्षा ले रहे हैं उनके पास भी अध्ययन सामग्री का अभाव है। छात्रों के पास सिलेबस और पुस्तकें भी नहीं है। एक घंटे की कक्षा में शिक्षक पढ़ा रहे हैं और छात्र मात्र सुन पा रहे हैं। पुस्तकों व अध्ययन सामग्री के अभाव में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम है।
प्रोफेसर हंसराज सुमन ने कहा, कॉलेजों में ऑनलाइन एजुकेशन की कक्षाएं पिछले एक महीने से शुरू हो चुकी हैं, लेकिन कक्षाओं में आ रहे छात्रों के फीडबैक से पता चला है कि कई छात्र कक्षा नहीं ले रहे हैं। दिल्ली के कॉलेजों में पढ़ने वाले कई छात्र दिल्ली से बाहर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मेघालय, असम, गोवा आदि प्रदेशों से हैं। कई छात्रों के यहां इंटरनेट की सुविधाएं नहीं है या वे ऐसे क्षेत्रों से आते हैं जहां इंटरनेट की सुविधा, बिजली कम होती है। वहीं लॉकडाउन के चलते पुस्तकालयों और पुस्तकों की दुकानों तक छात्रों की पहुंच नहीं बन पा रही है।
दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के अनुसार एक घंटे तक एक क्लास में किस तरह पढ़ाया जाए इसकी भी ठीक तरह से ओरिएंटेशन उनके पास नहीं है। शिक्षक स्वाभाविक रूप से अच्छा पढ़ा रहे हैं लेकिन छात्रों के फीडबैक से पता चलता है कि इस एक घन्टे के दौरान छात्रों से ठीक तरह से वातार्लाप न होने के चलते शिक्षक सिर्फ बोलता है और छात्र सुनते हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 सितम्बर। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए रामा बिल्डकॉन द्वारा रायपुर के अमलीडीह में प्रस्तावित रामा ग्रीन्स प्रोजेक्ट पर आगामी आदेश पर रोक लगा दी है।
हाईकोर्ट में जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच में रायपुर के राजकुमार दुबे ने अधिवक्ता अर्जित तिवारी की पीआईएल पर आज सुनवाई हुई। याचिका में बताया गया था कि रामा बिल्डकॉन द्वारा अमलीडीह में रामा ग्रीन्स आवासीय कॉलोनी निर्माण के लिए नगर तथा ग्राम निवेश विभाग से ले आउट पास कराया गया है। जिस स्थान पर कॉलोनी का निर्माण किया जा रहा है उसमें शासकीय भूमि भी सम्मिलित है जो राजस्व विभाग के निस्तार पत्रक में दर्ज है।
कॉलोनाइजर को उक्त भूमि का आबंटन लैंड रेवन्यू कोड 1959 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के अनुसार इस आबंटन को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। शासन और प्रतिवादी की ओर से प्रस्तुत तथ्यों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में स्थगन दिया है। मामले में सुनवाई जारी रहेगी।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 14 सितंबर। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे कांग्रेस के प्रखर आदिवासी नेता चनेश राम राठिया का सोमवार की अलसुबह कोरोना से निधन हो गया।
कांग्रेस के दिग्गज नेता और छत्तीसगढ़ सरकार में पूर्व मंत्री रहे चनेश राम राठिया का सोमवार को कोरोना से निधन हो गया। स्वास्थ्य अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। वे 78 वर्ष के थे।
रायगढ़ के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एस एन केसरी ने कहा कि राठिया पहले से ही कई बीमारियों से जूझ रहे थे। शनिवार को कोरोना से संक्रमित होने के बाद उन्हें यहां के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उनका देहांत हो गया। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं।
उत्तरी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले की धरमजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र में इनकी खास पकड़ थी। स्व. राठिया एक प्रमुख आदिवासी नेता, राठिया को 1977 में पहली बार तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश के धरमजयगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में चुना गया था। बाद में उन्होंने इसी सीट से लगातार पांच और विधानसभा चुनाव जीते।
उन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में पशुपालन मंत्री के रूप में कार्य किया और 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजीत जोगी सरकार (2000-2003) में खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे।
सीएम ने जताया दुख
राठिया के बड़े बेटे लालजीत सिंह राठिया वर्तमान में छत्तीसगढ़ की धरमजयगढ़ सीट से कांग्रेस के विधायक हैं। वहीं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राठिया की मौत पर दुख व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस के प्रखर आदिवासी नेता चनेश राम राठिया जी के निधन का समाचार दुखद है। धरमजयगढ़ के साथ-साथ समूचे प्रदेश में उन्हें एक सच्चे जनसेवक के रूप में सदैव याद किया जाएगा।
शिकायत मिली है-सिविल सर्जन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 14 सितंबर। महारानी अस्पताल में एक ही नाम के दो व्यक्तियों की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट अदला-बदली होने का मामला सामने आया। अस्तपाल के कर्मचारियों द्वारा बरती गई लापरवाही के बाद परिजनों ने हंगामा किया।
दरअसल, बीते दिनों एक ही नाम के दो व्यक्तियों ने महारानी अस्पताल में अपना कोरोना टेस्ट करवाया। कोरोना टेस्ट रिपोर्ट में इनमें से एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो वहीं दूसरा नेगेटिव है। इसके बाद जिस व्यक्ति की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई, उसके परिजनों ने अचानक यहां हंगामा करना शुरू कर दिया।
आनन-फानन में अस्पताल के कर्मचारियों ने दोनों व्यक्तियों की रिपोर्ट का उनके निवास स्थान से मिलान किया। जिसमें रिपोर्ट बदली होने की लापरवाही सामने आई। कर्मचारियों की इस तरह की लापरवाही से एक ओर परिजन तो नाराज हो ही गए। वहीं अस्पताल के ही एक अधिकारी ने दबी जुबान में कर्मचारियों द्वारा बरती गई लापरवाही को स्वीकार किया है।
कर्मचारियों द्वारा बरती गई लापरवाही के मामले को लेकर महारानी अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. विवेक जोशी ने कहा कि इस तरह की शिकायत उन्हें मिली है, लेकिन मामले की पूरी जानकारी मिलने के बाद ही कुछ कह सकूंगा।
पशु चिकित्सालय पंडरी 20, राजभवन 16, समता कॉलोनी 11, जिले से 765
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 सितंबर। राजधानी रायपुर-आसपास की बस्तियों-कॉलोनियों से बीती रात में 765 पॉजिटिव मिले। इसमें पशु चिकित्सालय पंडरी से 20, राजभवन से 16, समता कॉलोनी से 11, अवंति विहार से 8, संकल्प हॉस्पिटल से 6, पुलिस कॉलोनी से 3 मरीज शामिल है। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं।
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जिन जगहों से कोरोना मरीज मिले हैं, उसकी सूची निम्नानुसार है-शंकर नगर (26 लोग), मोवा (9 लोग), अवंति विहार (8 लोग), गुढिय़ारी (9 लोग), राजेंद्र नगर (9 लोग), श्री नारायणा हॉस्पिटल (3 लोग), पंचशील नगर, सदर बाजार, फाफाडीह (7 लोग), कचना, खम्हारडीह (4 लोग), तेलीबांधा (17 लोग), बनियापारा, पचपेड़ी नाका (7 लोग), चौबे कॉलोनी (4 लोग), टाटीबंध (5 लोग), भनपुरी (5 लोग), दुबे कॉलोनी, फरिश्ता कॉम्पलेक्स (5 लोग), डीडी नगर (5 लोग), रामकृष्ण परमहंस वार्ड, अवंति बाई चौक-लोधीपारा (3 लोग), शिवानंद नगर (6 लोग), जोरापारा, भाठागांव (6 लोग), एमएमआई हास्पिटल, राजीव नगर, डीडीयू नगर (5 लोग), कालीबाड़ी कॉलोनी, समता कॉलोनी (11 लोग), कमल विहार, महावीर नगर (16लोग), जनता कॉलोनी-गुढिय़ारी, पुलिस स्टेशन-कबीर नगर (7 लोग), गोविंद नगर, सांई नगर-जोरा, बोरियाखुर्द, आमापारा, टैगोर नगर (2 लोग), शिव मंदिर-राजातालाब, एमजी परिसर, सेजबहार, संतोषी नगर (5 लोग), देवपुरी-भाटापारा (6 लोग), लाखे नगर, शांति नगर, बैजनाथपारा, भोईपारा-लाखेनगर, टिकरापारा, बैरनबाजार, कटोरा तालाब, शांति विहार कॉलोनी-डंगनिया, संकल्प हॉस्पिटल (6 लोग), देवेंद्र नगर (4 लोग), नहरपारा-स्टेशन रोड, विधानसभा रोड (10 लोग), अमलीडीह (11 लोग), ओडिया बस्ती-श्याम नगर, सिटी कोतवाली (2 लोग), जन संपर्क कल्याण, विजय नगर, प्रगति विहार, संजय नगर (4 लोग), भगत सिंह चौक-टिकरापारा, काशीराम नगर, गंज थाना-पुलिस कॉलोनी (3 लोग), महामाईपारा-पुरानी बस्ती, ईदगाहभाठा-मंगलबाजार 2, जनता कॉलोनी, मोती नगर, बीएसयूपी कॉलोनी, राजभवन (16 लोग), अभनपुर, माना, रावतपुरा कॉलोनी-मठपुरैना, पेंशन बाड़ा, विधायक कॉलोनी, ऑफिसर कॉलोनी-देवेंद्र नगर (2 लोग), सुंदर नगर (11 लोग), खमतराई (4 लोग), नहरपारा, रविग्राम, आनंदम वल्र्ड सिटी-कचना, प्रियर्दशनी नगर, विवेकानंद नगर, वॉल्फोर्ड सिटी-सरोना, जवाहर नगर, आदर्श नगर, संतोषी नगर, पहाड़ी चौक, गीतांजली नगर, स्कूल चौक-कचना, ब्रम्हपुरी, आरडीए कॉलोनी-टिकरापारा (4 लोग), सन्यासीपारा, युनियन बैंक-पंडरी, मौदहापारा, ब्रम्हपुरी-बूढ़ातालाब, कुशालपुर, लक्ष्मी नगर (4 लोग), टुरी हटरी-पुरानी बस्ती (4 लोग), आमासिवनी, स्वर्णभूमि, अनुपम नगर (3 लोग), चरोदा-भाटापारा, मिनी माता चौक-रावणभाठा, सिलतरा, बिरगांव, जागृति नगर, बजरंग चौक, बंजारी चौक, बुधवारी बाजार(5 लोग), त्रिमूर्ति नगर, गायत्री नगर, सूरज भवन-श्याम नगर, आम्रपाली सिटी, प्रोफेसर कॉलोनी (7 लोग), कटोरा तालाब, बिरगांव (13 लोग), कुशालपुर, हीरापुर, गीता नगर, सिविल लाइन (3 लोग), दलदल सिवनी, आदर्श विहार, गोलबाजार, राधा विहार-कृष्णा नगर, महादेव घाट, नहर पारा, नवापारा, उदय सोसायटी-हीरापुर, ब्राम्हणपारा, टिचर कॉलोनी-कोटा, कुकुरबेड़ा, पुलिस लाइन-कालीबाड़ी, वीर सावरकर नगर, पेंशनबाड़ा, सुभाष नगर, शिव चौक-दलदल सिवनी, दुबे कॉलोनी, माना बस्ती-अभनपुर, रावतपुरा कॉलोनी, अवधपुरी-भाठागांव, सिटी ऑफ ड्रीम्स, प्रेम नगर, आनंद नगर (9 लोग), सेल टैक्स कॉलोनी (7 लोग), एसआरपी चौक-सिविल लाइन (7 लोग), मठपुरैना, मेडिकल कॉलेज, मिग्नेटो मॉल (4 लोग), करबला, पंडरी (8 लोग), कोटा, श्यान नगर, लाखे नगर, न्यू शांति नगर, राजातालाब, मोहबाबाजार, बजरंंग पॉवर प्लांट कॉलोनी, कृष्णा नगर-तिल्दा, गांधी चौक-तिल्दा, सतनामी चौक-जोरा, शैलेंद्र नगर, विधायक कॉलोनी, लाभांडी, मारूति एनक्लेव-टाटीबंध (5 लोग), लोट्स वैली, संतोषी नगर चौक, टिंबर मार्केट-भनपुरी, धरसींवा, झंडा चौक-संजय नगर, रोहणीपुरम, नलघर चौक, सिलयारी, कुंदरापारा-मांढर, सिलतरा, मोमिनपारा, पुलिस चौक-सिलयारी, वेटनरी हॉस्पिटल-पंडरी (20 लोग), कपसदा कंपनी, हाउंसिंग बोर्ड कॉलोनी-दोंदेखुर्द, दुर्गापारा-दोंदेखुर्द (4 लोग), निमोरा-अभनपुर (17 लोग), भाटिया हॉस्पिटल, अग्रोहा सोसायटी, वीआईपी स्ट्रीट, राजीव नगर, सड्डू, सरोरा, बजरंग नगर-सरोरा, महादेव नगर-शिव कॉलोनी, नर्मदापारा-स्टेशन चौक।
मौतें-555, एक्टिव-31505, डिस्चार्ज-28195
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 14 सितंबर। प्रदेश में कोरोना मरीज साढ़े 63 हजार के आसपास पहुंच गए हैं। बीती रात मिले 22सौ 28 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 63 हजार 991 हो गई है। इसमें से 555 मरीजों की मौत हो चुकी है। 31 हजार 505 एक्टिव हैं और इनका एम्स समेत अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। 28 हजार 195 मरीज ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
राजधानी रायपुर समेत प्रदेश में कोरोना का कहर जारी है। बुलेटिन के मुताबिक बीती रात 10.15 बजे 2228 नए पॉजिटिव सामने आए। इसमें रायपुर जिले से सबसे अधिक 621 मरीज रहे। बिलासपुर जिले से 309, राजनांदगांव से 253, रायगढ़ से 150, बलौदाबाजार से 108, द ुर्ग से 79, कोरबा से 76, जांजगीर-चांपा से 64, बालोद से 60, मुंगेली से 59, महासमुंद से 57, सूरजपुर से 52, दंतेवाड़ा से 43, बेमेतरा व गरियाबंद से 36-36, कांकेर से 32, कोरिया से 31, धमतरी से 29, कोण्डागांव से 27, सरगुजा से 24, बलरामपुर से 20, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही से 18, जशपुर से 13, बस्तर से 12, सुकमा से 7, नारायणपुर से 6, कबीरधाम से 2 एवं अन्य राज्य से 4 मरीज पाए गए।
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दूसरी तरफ कल 24 घंटे में 16 मरीजों की मौत दर्ज की गई। इसमें सिर्फ कोरोना से तीन एवं अन्य बीमारियों के साथ कोरोना से 13 मौतें हुई हैं। इन मरीजों के संपर्क में आने वालों की जांच-पहचान चल रही है। 1015 मरीज ठीक होने पर डिस्चार्ज किए गए। स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि प्रदेश में करीब सात लाख 84 हजार सैंपलों की जांच पूरी कर ली गई है। आगे और भी सैंपलों की जांच तेजी से चल रही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सैंपलों की जांच में और तेजी आएगी और इसकी तैयारी चल रही है।
मुंबई, 14 सितंबर (आईएएनएस)। अभिनेत्री कंगना रनौत शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार के साथ बढ़ते तनाव के बीच सोमवार को अपने होमटाउन मनाली लौट गईं। अभिनेत्री ने सोमवार सुबह अपने ट्विटर के सत्यापित अकाउंट से ट्वीट किया, "भारी मन से मुंबई से रवाना हो रही हूं, जिस तरह से मैं इन दिनों लगातार भयभीत हुई, मुझ पर लगातार जो हमले किए गए, गालियां दी गई और मेरे कार्यस्थल को तोड़ने के बाद मेरे घर को तोड़ने के प्रयास किए गए, मेरे चारों ओर हथियारों के साथ सतर्क सुरक्षाकर्मी, इन सब को देखकर कहना होगा कि मेरे द्वारा पीओके से इसकी तुलना सही साबित हुई।"
रवाना होने से पहले रविवार दोपहर को कंगना और उनकी बहन रंगोली ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से राजभवन में मुलाकात की थी।
अपनी मुलाकात के बाद कंगना ने एक ट्वीट में कहा था, "थोड़ी देर पहले मैं महामहीम राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी जी से मिली। मैंने उन्हें अपनी बातें बताई और यह भी अनुरोध किया कि मुझे न्याय दिया जाए, इससे सिस्टम में आम नागरिक और खासकर बेटियों का विश्वास बहाल होगा।"
नई दिल्ली, 14 सितम्बर (आईएएनएस)| लोकसभा के इतिहास में पहली बार, मानसून सत्र के साथ सोमवार को शुरू हुई लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने वाले सांसदों को अपनी सीटों पर बैठकर बोलने की अनुमति दी गई। कोविड-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए इस पहल को अमल में लाया गया। मॉनसून सत्र 1 अक्टूबर तक जारी रहेगा।
सांसदों को अपनी सीट पर बैठकर बोलने की अनुमति देते हुए, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा, "इस मानसून सत्र में सभी सासंद पहले अपनी सीटों पर बिना खड़े हुए बोलेंगे। ऐसा कोविड -19 महामारी को देखते हुए किया जा रहा है।"
इससे पहले, सभी सांसद संसद में बोलने से पहले खड़े होते थे। यह आसन के प्रति सम्मान दर्शाने का प्रतीक है।
इस बीच, स्पीकर ओम बिड़ला ने बताया कि यह इतिहास में पहली बार है जब निचले सदन की कार्यवाही के दौरान कई लोकसभा सदस्य राज्य सभा में बैठेंगे और उच्च सदन की कार्यवाही के दौरान राज्यसभा सदस्यों को लोकसभा में बैठने का मौका मिलेगा। कोविड-19 संकट के बीच असाधारण स्थितियों के कारण यह कदम उठाया गया है।
विशेष मानसून सत्र का स्वागत करते हुए, बिड़ला ने सत्र के पहले दिन सांसदों की अधिकतम उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल सुनिश्चित किए गए हैं और अधिकतम डिजिटलाइजेशन किया गया है।
उन्होंने सांसदों से अपनी बात संक्षिप्त रूप से रखने का आग्रह करते हुए कहा कि सदन की कार्यवाही हर दिन केवल चार घंटे के लिए होगी।
अध्यक्ष ने कोरोनवायरस या कोविड-19 महामारी द्वारा बनाई गई असाधारण स्थिति के दौरान देश को संदेश देने के लिए सभी सांसदों का समर्थन मांगा।
सुमी खान
ढाका, 14 सितंबर (आईएएनएस) । बांग्लादेश सरकार ने सद्भभावना का संदेश देते हुए दुर्गा पूजा के अवसर पर भारत को 1,450 टन हिल्सा मछली के निर्यात की मंजूरी दी है।
भारत के पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी हिल्सा को स्वाद के लिए जाना जाता है और लोग इसके लिए अधिक मूल्य देने को भी तैयार रहते हैं। 'पद्मार इलिश' (बांग्लादेश में पद्मा नदी की हिल्सा) को स्वाद में बेहतर गुणवत्ता वाला माना जाता है।
वाणिज्य मंत्रालय ने नौ स्थानीय कंपनियों को हिल्सा निर्यात करने की अनुमति दी है।
फिश इम्पोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव सैयद अनवर मकसूद ने रविवार शाम को आईएएनएस को बताया, "करीब 200 निर्यातकों ने मछली निर्यात करने की अनुमति मांगी। सरकार ने सिर्फ नौ निर्यातकों को अगले सप्ताह 1,450 टन हिल्सा निर्यात करने की विशेष अनुमति दी है।"
उन्होंने कहा, "इसे अगले सप्ताह तक बेनापोल-पेट्रापोल सीमा के माध्यम से कोलकाता के लिए भेजा जाएगा।"
गौरतलब है कि बांग्लादेश ने साल 2012 में हिल्सा के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और अब उसने इसके निर्यात के लिए विशेष अनुमति जारी की है।
मकसूद ने कहा, "विशेष अनुमति पर गुरुवार रात को हस्ताक्षर किए गए और हमें इसके बारे में सूचित किया गया।"
साल 2019 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार ने 28 सितंबर से 10 अक्टूबर तक अस्थायी अवधि के लिए हिल्सा पर निर्यात प्रतिबंध को हटा दिया था और दुर्गा पूजा के उपहार के रूप में 500 टन मछली भेजी थी।
हालांकि फिर 10 अक्टूबर के बाद भारत को निर्यात पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
व्यापारियों को उम्मीद है कि भविष्य में इसके लिए ऑर्डर जारी रहेगा, क्योंकि हिल्सा का उत्पादन बहुत अधिक होता है।
नयी दिल्ली, 14 सितम्बर (वार्ता) लोकसभा ने मानसून सत्र के पहले दिन आज पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, सदन के सदस्य एच वसंतकुमार, शास्त्रीय गायक पंडित जसराज तथा सदन के अन्य पूर्व सदस्यों के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कार्यवाही शुरु करते ही सदन को सभा के पूर्व सदस्यों के निधन की सूचना दी और उनके योगदान का उल्लेख किया। सदन ने देश की सुरक्षा के लिए शहीद हुए जवानों तथा कोरोना से लड़ते हुए अपनी जान देने वाले कोरोना योद्धाओं को भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को संसदीय मामलों का महान ज्ञाता, लोकप्रिय नेता तथा सभी दलों में उनके व्यक्तित्व के लिए सम्मान के भाव का जिक्र किया और कहा कि वह देश के महानतम नेताओं में से एक थे। श्री मुखर्जी एक प्रखर वक्ता, संसदीय मामलों के अद्वितीय जानकार थे और उन्होंने पांच दशक से अधिक के राजनीतिक जीवन में देश को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई है।
श्री मुखर्जी को सच्चे अर्थाें में लोकतंत्र की मूल भावना का उपासक बताते हुए श्री बिरला ने कहा कि वह प्रणब दा के नाम से लोकप्रिय थे और उनका मानना था कि संविधान मात्र दस्तावेज नहीं है बल्कि यह देश के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने का एक मंत्र है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं है जो देश के लोकतंत्र को आगे बढाने में आने वाली पीढियों का भी मार्ग दर्शन करेंगी।
- Shweta Chauhan
कोरोना महामारी के कारण दुनियाभर की अर्थव्यवस्था बिलकुल ठप्प पड़ चुकी है। लोगों के रोजगार छिन चुके हैं, व्यापार मंदी की मार झेल रहा है, लोगों के हाथों में पैसा नहीं है तो बाज़ारों में मांग भी कम है। लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे खुलने वाले व्यापारों को कारीगर और मज़दूर नहीं मिल रहे क्योंकि लोग अपने-अपने घर को लौट चुके हैं। जो प्रवासी मज़दूर शहरों की ओर दोबारा लौट रहे हैं उन्हें काम नहीं मिल रहा। कई रिपोर्ट में ये दावा किया जा चुका है कि कोरोना के कारण दुनिया की एक बड़ी आबादी गरीबी के मुंह में समा रही है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो यह महामारी अभी अपने अंतिम चरण में नहीं पहुंची है। कई देशों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर भी शुरू हो गई है। इसी संबंध में यूएन वीमेन और सयुंक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के साझा अध्ययन में एक बात सामने आई है जिसके मुताबिक दुनिया के सामाजिक और आर्थिक हालात काफी दयनीय स्थिति में पहुंच सकते हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी महिलाओं को बहुत ज़्यादा प्रभावित करेगी। कोविड-19 के आने से पहले साल 2019 से 2021 के बीच महिलाओं में गरीबी दर 2.7 फीसद तक घटने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन अब महामारी के इस दौर में आई नई रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं की गरीबी में 9.1 फीसद की वृद्धि हुई है। वैश्विक महामारी 2021 तक करीब 9.6 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी की ओर धकेल देगी जिनमें से 4.7 करोड़ महिलाएं और लड़कियां होंगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि महामारी से दुनिया भर में गरीबी की दर काफी बढ़ी है, लेकिन इसका सबसे अधिक असर महिलाओं और खासकर प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं पर हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2021 तक, 25 से 34 साल आयु वर्ग में शामिल अत्यधिक गरीबी का सामना करने वाले हर 100 पुरुषों की तुलना में 118 महिलाएं गरीबी का शिकार होंगी। यह अंतर साल 2030 तक प्रति 100 पुरुष पर 121 महिलाओं का हो जाएगा। इसी वजह से दुनिया की एक बड़ी आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर लाने के लिए दशकों में हुई प्रगति फिर से उसी अवस्था में आ पहुंची है।
‘फॉर्म इनसाइट्स टू एक्शन : जेंडर इक्वॉलिटी इन दी वेक ऑफ कोविड-19’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 के कारण 9.6 करोड़ से ज्यादा लोग साल 2021 तक गरीबी रेखा के बिलकुल नीचे चले जाएंगे। इस तरह से कोविड-19 और उसके बाद के सामाजिक-आर्थिक हालातों के कारण दुनिया में गरीब लोगों की संख्या 43.50 करोड़ हो जाएगी।
वैश्विक महामारी 2021 तक करीब 9.6 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी की ओर धकेल देगी जिनमें से 4.7 करोड़ महिलाएं और लड़कियां होंगी।
बात अगर हम भारत की करें तो इस कठिन दौर में भारत में रोजगार खोने वालों की संख्या भी काफी अधिक है। ‘एशिया और प्रशांत क्षेत्र में कोविड-19 युवा रोजगार संकट से निपटना’ शीर्षक से आईएलओ-एडीबी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 41 लाख युवाओं के रोज़गार जाने का अनुमान है। इनमें 7 प्रमुख क्षेत्रों में से निर्माण और कृषि क्षेत्र में लगे लोगों के रोज़गार गए हैं।” इसमें यह भी कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण युवाओं के लिए रोज़गार की संभावनाओं को भी बड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के कारण 15 से 24 साल के युवा ज्यादा प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं आर्थिक और सामाजिक लागत के हिसाब से यह जोखिम दीर्घकालिक और गंभीर है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महामारी के दौरान कंपनी के स्तर पर दो तिहाई प्रशिक्षण पर असर पड़ा। वहीं तीन चौथाई ‘इंटर्नशिप’ पूरी तरह से बाधित हुई हैं।
रिपोर्ट में सरकारों से युवाओं के लिए रोज़गार पैदा करने, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को फिर से पटरी पर लाने और 66 करोड़ युवा आबादी के भविष्य को लेकर तुरंत बड़े पैमाने पर कदम उठाने के लिए कहा गया है। कोविड-19 से पहले भी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में युवाओं के सामने रोज़गार को लेकर बड़ी चुनौतियां मौजूद थी। इसी कारण बेरोज़गारी दर भी ऊंची थी और बड़ी संख्या में युवा स्कूल और काम दोनों से बाहर थे। साल 2019 में क्षेत्रीय युवा बेरोजगारी दर 13.8 प्रतिशत थी। वहीं 25 साल और उससे अधिक उम्र के वयस्कों में यह 3 प्रतिशत थी। वहीं, बिजसनस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान यानी अप्रैल से लेकर अब तक 2 करोड़ से अधिक वेतनभोगी लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं।
इस बार अर्थव्यवस्था पर संकट 2008 के संकट से कहीं ज्यादा घातक है। अगर इन्हें बचाने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास नहीं किये गए तो अमीर और गरीब के बीच का फासला अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा। रिपोर्ट के हिसाब से तो वायरस से लड़ने का एक ही तरीका है, गरीब और अमीर देश मिलकर महामारी का सामना करें। गरीबी के संबंध में आई इस रिपोर्ट में महिलाओं की संख्या इसलिए ज्यादा है क्योंकि महिलाएं अक्सर असंगठित क्षेत्रों में काम करती हैं। खासकर कि विकाशसील देशों में काम कर रही महिलाओं का कार्यक्षेत्र असंगठित है, भारत के संदर्भ में बात करें तो नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमी रिसर्च’ के अनुसार भारत में 97 फीसद महिला मज़दूर असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं। इन महिलाओं के लिए ट्रेड यूनियन एक्ट (1926), न्यूनतम मज़दूरी क़ानून (1948), मातृत्व लाभ क़ानून (1961) और ऐसे कई क़ानून हैं, जो कहीं भी लागू नहीं होते क्योंकि मालिक मजदूरी का कहीं भी सबूत नहीं छोड़ते। वहीं, संगठित क्षेत्र में भी महिलाओं का प्रतिशत अभी काफी कम है और अब इस महामारी ने इन्हें भी ठप्प कर दिया है इसलिए ज़रूरी है कि रोज़गार के लिए सरकार द्वारा कड़े कदम उठाए जाएं।
लॉकडाउन में रह रही यह पीढ़ी आय के स्त्रोत ढूंढ रही है ऐसा कोई क्षेत्र अछूता नहीं जहां इस बीमारी ने अपना प्रकोप न दिखाया हो। वहीं, दुनियाभर में महिलाएं सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए संघर्ष कर ही रहीं थी लेकिन इस महामारी और लॉकडाउन ने उनके इस संघर्ष को दोगुना कर दिया है। फिलहाल अब देखना ये होगा कि सभी देशों की सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए किस तरह के समाधान निकालती है।
जांच समिति पर उठाए सवाल
नई दिल्लीः मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित प्रतिष्ठित आवासीय संगीत गुरुकुल ‘ध्रुपद संस्थान’ के लोकप्रिय गुरुओं रमाकांत गुंदेचा और अखिलेश गुंदेचा पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद संस्थान के छह छात्र गुरुकुल छोड़ चुके हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुकुल के 24 में से छह छात्र गुरुकुल छोड़ चुके हैं. छात्रों का कहना है कि छह और छात्र रविवार तक संस्थान छोड़ देंगे.
संस्थान से शिक्षा ले चुके दिल्ली के एक छात्र ने कहा, ‘अगले हफ्ते और छात्र संस्थान छोड़ देंगे.’
छात्रों का आरोप है कि आरोपों की जांच के लिए गठित आंतरिक शिकायत समिति में या तो परिवार से जुड़े लोग हैं या फिर ध्रुपद संस्थान के.
शिकायत समिति में सामाजिक कार्यकर्ता सुषमा अयंगर हैं, जो गुंदेचा के अधीनस्थ ही ध्रुपद संस्थान में पढ़ाती हैं.
इसके अलावा दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बहू मोना दीक्षित भी हैं, जो संस्थान का दौरा करती रहती हैं. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अंशु वैश्य, मध्य प्रदेश की जिला एवं सत्र अदालत के पूर्व जज मुंशी सिंह चंद्रावत भी शामिल हैं.
समिति की ऑनलाइन बैठक आठ सितंबर को हुई थी, जिसका प्रभावित छात्रों ने बहिष्कार किया था.
साल 2019 में पिता रमाकांत के निधन के बाद से उमाकांत के साथ गाने वाले रमाकांत के बेटे अनंत का कहना है कि वे समिति के पुनर्गठन की प्रक्रिया में है और वे इसमें छात्रों को भी शामिल करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘कुछ ऐसे छात्र हैं, जिन्हें लगता है कि समिति में परिवार से जुड़े लोगों को नहीं होना चाहिए और वे समिति की बैठकों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं लेकिन ऐसे भी कई छात्र हैं, जो हिस्सा ले रहे हैं.’
अनंत ने कहा कि सुझावों के लिए परिवार गुरुकुल में रह रहे छात्रों के साथ इसके साथ ही अन्य लोगों के भी संपर्क में है.
उन्होंने कहा, ‘हम जितना संभव हो सके, इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया में है. हमारा विश्वास है कि यह संस्थान छात्रों और गुरुओं के संयोजन से बना है. वे सदस्य, जिन्हें हमने चुना है, हमें लगता है कि इस मुद्दे पर उनसे संवेदनशीलता के साथ संपर्क किया जाए. अब हम एक नई समिति का गठन करेंगे, जिसमें पुरानी समिति और साथ ही छात्रों के प्रतिनिधि भी होंगे.’
इस संबंध में हाल ही में छात्रों के एक समूह ने हाल ही में बयान जारी किया है जबकि इससे पहले ध्रुपद संस्थान ने कहा था कि अखिलेश गुंदेचा उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच होने तक स्वेच्छा से संस्थान की सभी गतिविधियों से खुद को दूर रख रहे हैं.
छात्रों के मुताबिक, ‘फेसबुक पर इन आरोपों के सामने आने के बाद दो सितंबर को बैठक हुई थी जिसकी अध्यक्षता संस्थान के चेयरमैन उमाकांत गुंदेचा, उनकी बेटी धानी और अनंत ने की थी.’
बयान में कहा गया, ‘अखिलेश को छात्रों की ओर से बने दबाव की वजह से गुरुकुल छोड़ना पड़ा.’
दिल्ली के छात्र का दावा है कि हाल ही में उमाकांत ने अमेरिका के एक पखावज छात्र को अखिलेश द्वारा पढ़ाए जाने की पेशकश की थी.
छात्रों के बयान में कहा गया, ‘बड़े गुरुजी उमाकांत पर कोई आरोप नहीं है लेकिन जिस तरह से वे व्यवहार कर रहे हैं, वह बेहद अफसोसजनक है. इससे लगता है कि वे सिर्फ अपने परिवार का बचाव कर रहे हैं और उन्हें हमारी कोई चिंता नहीं है. उन्हें यह स्वीकार करने की जरूरत है कि गुंदेचा परिवार को इस तरह के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के मामलों के बारे में पहले से जानकारी थी लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की.’
गुरुकुल के छात्रों का कहना है कि संस्थान में उत्पीड़न की अफवाहें सामान्य थीं लेकिन लॉकडाउन के दौरान ये इतनी तेज हो गईं कि इन्हें छिपाया नहीं जा सका. उदाहरण के लिए एक बार अखिलश कथित तौर पर एक छात्रा के कमरे में घुस आए और उससे कहा कि मुझे जो चाहिए, वो मुझे मिल जाएगा.
एक छात्र का कहना है कि पिछले साल रमाकांत की मौत के बाद गुरु अधिक निर्लज्ज हो गए थे. वह (अखिलेश) अधिक मुखर मांग करने वाले थे. कुछ मामलों में उन्होंने ब्लैकमेल भी किया.
100 कमरों वाले गुरुकुल में कई यूरोपीय छात्र थे, जो कोरोना वायरस की वजह से इस साल की शुरुआत में अपने देश लौट गए.
गुरुकुल की परंपरा के अनुसार छात्रों को संस्थान परिसर में ही रहकर संगीत सीखना होता है. वह इस दौरान साफ-सफाई और खाना पकाने जैसे काम भी करते हैं.
एक युवा छात्र ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘संस्थान में बचे छात्रों ने कक्षाओं से दूरी बना ली है.’
छात्रों के लिए कक्षाएं आयोजित कराने में उमाकांत गुंदेचा की मदद करने वाले एक सीनियर छात्र ने बताया कि छात्रों के न आने की वजह से कई कक्षाएं रद्द करनी पड़ी.
अमेरिका से एक सीनियर छात्र ने कहा, ‘मैंने कल एक क्लास अटैंड की थी लेकिन मैंने आज कोई क्लास नहीं ली क्योंकि इन आरोपों के बाद संगीत पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल है.’
मालूम हो कि ‘ध्रुपद फैमिली यूरोप’ नाम से एक फेसबुक ग्रुप की पोस्ट के बाद ये आरोप पहली बार सामने आए थे. जिसमें संस्थान के गुरुओं रमाकांत और अखिलेश गुंदेचा पर कई सालों तक यौन उत्पीड़न करने के आरोप लगाए गए.
एम्सटर्डम की एक योग शिक्षक ने यह फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिनका कहना है कि उन्होंने अपनी एक दोस्त की ओर से इस बात को सार्वजनिक किया है, क्योंकि वह अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहती हैं.
गुंदेचा बंधुओं में से रमाकांत की पिछले साल दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. उनके बड़े भाई उमाकांत गुंदेचा ध्रुपद संस्थान के प्रमुख हैं.
अखिलेश गुंदेचा इनके छोटे भाई हैं और पखावज वादक हैं. गुंदेचा बंधुओं को 2012 में पद्मश्री और 2017 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है.
बता दें कि ध्रुपद देश के सबसे पुराने शास्त्रीय संगीत प्रारूपों में से एक है. ध्रुपद संस्थान एक आवासीय शास्त्रीय संगीत गुरुकुल है, जिसे यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है.
फेसबुक पोस्ट में दोनों गुरुओं की धमकियों की वजह से कथित पीड़ितों के चुप्पी साधे रखने की बात कही गई थी.(thewire)
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)| नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) आयोजित होने के एक दिन बाद संप्रग सहयोगियों ने सोमवार को संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन कर परीक्षा रद्द करने की मांग की। मानसून सत्र की शुरूआत से कुछ घंटे पहले किए गए इस प्रदर्शन में डीएमके प्रमुख रूप से सक्रिय रहा। डीएमके सांसद गौतम सिगमनी ने आईएएनएस को बताया कि कोविड -19 के कारण कई छात्र नीट की तैयारी अच्छे से नहीं कर सके। इसके अलावा तमिलनाडु में कई छात्र परीक्षा केंद्रों तक नहीं पहुंच सके।
विपक्षी सदस्यों ने नीट परीक्षा को तुरंत रद्द करने की मांग की है। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि देश में जब परिवहन और अन्य सुविधाएं पूरी तरह से बहाल हो जाएं उसके बाद फिर से परीक्षा आयोजित करानी चाहिए।
न्यूयॉर्क, 14 सितम्बर (आईएएनएस)| ऑस्ट्रिया के डॉमिनिक थीम ने टेनिस एकल में अमेरिका ओपन का खिताब जीत लिया है। उन्होंने जर्मनी के अलेक्जेंडर ज्वेरेव को पांच सेटों में 2-6, 4-6, 6-4, 6-3, 7-6(6) से हराया। दो सेट हारने के बाद विश्व के नंबर तीन खिलाड़ी 27 साल के थीम ने तीसरे सेट में जबरदस्त कमबैक किया और तीसरा सेट 6-4 से जीत लिया।
चौथे सेट थीम के लिए आसान रहा और उन्होंने 6-3 से ज्वेरेव को हरा दिया।
पांचवां सेट जीतने के लिए थीम को काफी मशक्कत करनी पड़ी। 5-3 से पिछड़ने के बाद थीम मैच को टाई ब्रेकर में ले गए। चार घंटे से ज्यादा चले मैच को आखिरकार थीम ने जीत कर इतिहास रच दिया।
...जिसे खुद भी सामान्य अर्थों में धर्म नहीं कहा जा सकता
- अशोक वाजपेयी
साधन और सच्चाई
इसमें कोई सन्देह नहीं कि सच्चाई को जानने, दर्ज़ करने और समझने के साधन बहुत बढ़ गये हैं. गतिशीलता भी बहुत बढ़ गयी है. हम चाहें तो बहुत तेज़ी से जान सकते हैं. लेकिन इसके साथ-साथ हमें सच्चाई से विरत करने वाले, हमें भटकाने वाले, हमें सच्चाई के बजाय झूठ बताने वाले साधन भी बहुत बढ़ गये हैं. जो साधन सच्चाई तेज़ी से बताते हैं वही साधन हमें उतनी ही तेजी से झूठ भी दिखा-समझा सकते हैं, रहे हैं. सच और झूठ के बीच जो पारम्परिक स्पर्धा रही है वह हमारे समय में बहुत तीख़ी, तेज़ और कई बार निर्णायक हो गयी है. कई बार तो सच्चाई हम तक पहुंच ही नहीं पाती क्योंकि उसी साधन से अधिक तेज़ी और आक्रान्ति से झूठ पहले आकर बैठ और पैठ जाता है.
यह अद्भुत समय है जब ज़्यादातर झूठ सच्चाई की शक्ल में पेश हो रहा है और उसे मान लेने वाले किसी बेचारगी से नहीं, बहुत उत्साह से ऐसा कर रहे हैं. कई बार लगता है कि सच्चाई जानने-फैलाने के सभी साधन झूठ और फ़रेब ने हथिया लिये हैं और उनसे सच्चाई लगातार अपदस्थ हो रही है. अगर संयोग से एकाध सच्चाई सामने आ भी जाये तो फ़ौरन ही उस पर इतनी तेज़ी से, पूरी अभद्रता और अश्लीलता से, हमले होते हैं कि एक सुनियोजित और बेहद फैला दिया झूठ सच्चाई को ओझल कर देता है. यह नज़रन्दाज़ नहीं किया जा सकता कि अब जितनी तेज़ी से भक्ति फैलती है उतनी तेज़ी से घृणा भी. हम इस समय भक्ति और घृणा के अनोखे गणतन्त्र बन रहे हैं.
सच्चाई से ध्यान हटाने का एक और बेहद कारगर उपाय इन दिनों इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपना रहा है. वह असली मुद्दों को दरकिनार करने के लिए हास्यास्पद ढंग से ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर इस क़दर बहस करता, चीखता-चिल्लाता है कि करोड़ों दर्शकों को यह याद भी नही रहता कि हमारे जीवन, समाज और देश के असली विचारणीय और परेशान करने वाले मुद्दे क्या हैं? हमारी आर्थिक व्यवस्था लगभग पूरी तरह से बर्बाद हो गयी है. हमारी शिक्षा व्यवस्था गम्भीर संकट में हैं. हमारी सीमाओं पर चौकसी में कुछ कमी रही है कि चीन ने इतनी घुसपैठ कर दी है और वहां से हटने को तैयार नहीं हो रहा है. कोरोना महामारी के चलते भारत में, दुनिया में सबसे ज़्यादा दैनिक नये मामले सामने आ रहे हैं और उनकी संख्या 45 लाख के करीब पहुंच रही है. निजी अस्पताल इस दौरान पूरी निर्ममता से अनाप-शनाप वसूली कर रहे हैं. हवाई अड्डे और रेलवे के कुछ हिस्से निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं. मंहगाई आसमान छू रही है. पुलिस, संवैधानिक संस्थाओं का राजनैतिक दुरुपयोग चरम पर है. पर इनमें से एक भी मुद्दा हमारे सार्वजनिक माध्यमों पर ज़ेरे-बहस नहीं है. यह आकस्मिक नहीं हो सकता. निश्चय ही इसके पीछे बहुत चतुर-सक्षम दुर्विनियोजन है. यह सवाल उठता है कि क्या सच्चाई इस समय निरुपाय है या कि अन्तःसलिल?
धर्म नहीं विचारधारा
हिन्दुत्व ने भले हिन्दू धर्म के कुछ प्रतीकों, अनुष्ठानों, देवताओं आदि को हथिया लिया है, उसका धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है. वह एक विचारधारा है. लगभग हर विचारधारा की तरह उसे लड़ने के लिए, घृणा करने के लिए, हिंसा करने और नष्ट करने के लिए ‘अन्य’ चाहिये जबकि हिन्दू धर्म के समूचे इतिहास में ऐसे ‘अन्य’ की कोई ज़रूरत या अनिवार्यता नहीं रही है. इस धर्म ने जो वर्णव्यवस्था विकसित की उसमें ऊंच-नीच, अपने-पराये के भाव तो बद्धमूल थे पर अन्ततः शूद्र भी हिन्दू रहे हैं. उनके साथ सामाजिक हिंसा का बेहद बेशर्म इतिहास तो रहा फिर भी वे अगर ‘अन्य’ थे तो धर्म के अन्तर्गत ही थे. इससे बिलकुल उलट हिन्दुत्व को ‘अन्य’ बाहर चाहिये और मुसलमान, ईसाई उसका ‘अन्य’ हैं. हिन्दू धर्म ने, व्यवहार और चिन्तन दोनों में, सदियों अन्य धर्मों के साथ, इस्लाम और ईसाइयत के साथ, गहरा संवाद किया है और उसका लक्ष्य समरसता रहा है, हिन्दुत्व की तरह सत्ता नहीं. फिर हिन्दू धर्मचिन्तन एकतान नहीं रहा है - उसमें लगभग स्वाभाविक रूप से बहुलता रही है, इसका सहज स्वीकार भी. हिन्दुत्व इस बहुलता के अस्वीकार, उसे ध्वस्त करने को अपना धर्म मानता है.
हिन्दुत्व में, विचारधारा होने के कारण और धर्म से कोई गहरा संबंध न होने के कारण, उन तीन धर्मों - बौद्ध, जैन और सिख - की कोई पहचान नहीं है जो हिन्दू धर्म से असहमत होकर स्वतंत्र धर्मों के रूप में पैदा और विकसित हुए. इस तरह से, ऐतिहासिक रूप से, कई सदियों तक ये धर्म हिन्दू धर्म का ‘अन्य’ थे. हिन्दू धर्म की संवादप्रियता के कारण ही भारतीय इस्लाम और भारतीय ईसाइयत काफ़ी बदले, उन्होंने हिन्दू धर्म को प्रभावित किया और स्वयं उससे प्रभावित हुए. भारत में इस्लाम और ईसाइयत अपने मौलिक, अरबी और पश्चिमी संस्करणों से ख़ासे अलग हैं. वे उन धर्मों के भारतीय संस्करण हैं जो इस बहुधार्मिक संवाद का प्रतिफल है. ऐसी कोई समझ हिन्दुत्व में नहीं है. उसकी जो भी समझ है, वह हिन्दू धर्म के इतिहास के विरोध या नकार की समझ है. इसका एक आशय यह भी है कि हिन्दुत्व धर्म नहीं, हिन्दू धर्म का एक कट्टर हिंसक संस्करण नहीं बल्कि उसके नाम का दुरुपयोग कर विकसित हुई विचारधारा है.
इस विचारधारा का भारतीय संस्कृति और परम्परा से भी कोई सम्बन्ध नहीं है, भले वह उनकी दुहाई देती है. भारतीय संस्कृति के कुछ मूल आधार हैं जिनमें बहुलता, परस्पर आदान-प्रदान, संवाद आदि हैं. जिन धर्मों को हिन्दुत्व अपना अन्य मानता है उनके सर्जनात्मक और बौद्धिक अवदान की कोई स्मृति और समझ उसमें नहीं है. भारत में साहित्य, संगीत, ललित कलाएं, भाषा, नृत्य, रंगमंच, स्थापत्य आदि अनेक क्षेत्रों में बौद्ध, जैन, सिख, इस्लाम, ईसाइयत आदि धर्मों का बहुत मूल्यवान और कई अर्थों में रूपान्तरकारी योगदान रहा है.
फिर हिन्दू धर्म पर लौटें जो सामान्य अर्थ में धर्म है ही नहीं. वह एक पैगन व्यवस्था रही है जिसमें बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, निराकार ब्रह्म, अनीश्वरवाद आदि सब समाये हुए हैं. हिन्दुत्व इस पैगन संरचना को एक मन्दिर, एक देवता आदि में घटाकर इस धर्म की दरअसल अवमानना कर रहा है. एक और पक्ष विचारणीय है. हिन्दू धर्म में प्रकृति के साथ तादात्म्य और उसे दिव्यता का एक रूप मानने का आग्रह रहा है. इसके लिए ठीक उलट हिन्दुत्व जिस आर्थिक नीति का समर्थक है वह प्रकृति के शोषण और पर्यावरण की क्षति को विकास के लिए ज़रूरी मानती है. प्रकृति की पवित्रता को लगातार क्षत-विक्षत करने वाली इस वृत्ति को हिन्दू धर्म से बेमेल बल्कि उससे गम्भीर विचलन ही कहा जा सकता है.
सभ्यता-बोध
एक ग़ैर सिविल सेवक बन्धु ने मुझसे यह जिज्ञासा की कि भारतीय सिविल सेवाओं में किस तरह का सभ्यता-बोध सक्रिय है. उन्होंने यह जोड़ा कि आधुनिक प्रशासन-व्यवस्था का मूल चीनी राज्य व्यवस्था में विकसित मैंडेरिन रहे हैं जिनके लिए कलाओं में केलिग्राफ़ी, कविता आदि में दक्ष होना तक अनिवार्य माना जाता था. मैं थोड़ा सोच में पड़ गया. 35 वर्ष स्वयं सिविल सेवा में रहने और उसके बाद भी उसके कई सदस्यों से सम्पर्क रहने के कारण मेरा यह अनुभव है कि अधिकांश सिविल सेवकों में कोई अच्छा-बुरा, गहरा-सतही सभ्यता-बोध होता ही नहीं है. उन्हें यह लगता ही नहीं है कि वे जिस सभ्यता के हैं उसके प्रति उनकी कोई ज़िम्मेदारी भी है. यह आकस्मिक नहीं है कि उनमें से अधिकांश पश्चिमी सभ्यता के कुछ बेहद सतही अभिप्रायों से प्रेरित रहते हैं और उसी के अनुसार अपनी सफलता का लक्ष्य निर्धारित करते हैं.
भारत जैसे निहायत बहुलतामूलक समाज में, उसके हज़ारों सम्प्रदायों, सैकड़ों भाषाओं और बोलियों, स्थानीय प्रथाओं और स्मृतियों में न तो सिविल सेवकों की दिलचस्पी होती है, न कोई समझ या संवाद. एक कामचलाऊ संस्कृति के लोकप्रिय तत्व जैसे बम्बइया फिल्में, फिल्म संगीत, पॉप संगीत, कैलेण्डर कला, ग़ज़ल गायकी, चालू टेलीविजन आदि से मिलकर उनका सभ्यता बोध बनता है. सिविल सेवा के प्रशिक्षण में इतिहास आदि पढ़ाया तो जाता है पर वह कोई बोध नहीं उपजाता या उकसाता. अलबत्ता जब-तब ऐसे सिविल सेवक मिलते हैं जिनमें, अपवाद स्वरूप, ऐसा बोध होता है. पर उनकी संख्या ख़ासी कम रही है और लगातार कम हो रही है.
इसका एक और पक्ष है. बहुत सारे सिविल सेवक किसी सभ्यता-बोध के अभाव में हिन्दुत्व जैसी घातक विचारधारा को बहुत आसानी से अपना लेते हैं. चूंकि इस विचारधारा ने कुछ पारंपरिक अभिप्राय-अनुष्ठान-प्रतीक आदि हथिया लिये हैं, इस अबोध सिविल सेवा को वह आसानी से आकर्षित कर लेती है. चीनियों से आजकल बड़ी स्पर्धा का माहौल है. उनसे हमने यह सीखा होता कि कैसे सभ्यता-बोध सिविल सेवा के लिए एक अनिवार्य तत्व है तो हम यह स्पर्धा बेहतर ढंग से कर सकते थे.
सिविल सेवा में प्रवेश कड़ी स्पर्धा से मिलता है और उसे कुशाग्रता की सर्वोच्च उपलब्धि माना जाता है. यह विचित्र है कि भारत जैसी संसार की गिनी-चुनी सभ्यताओं में से एक के सबसे कुशाग्र लोग सार्वजनिक सेवा में बिना सभ्यता-बोध के सक्रिय रहते हैं और इसके लिए उनके मन में कोई जिज्ञासा तक नहीं होती.(satyagrah)
नई दिल्ली, 14 सितम्बर (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जब तक कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीन नहीं आ जाता तब तक हमें सावधान रहने की जरूरत है। मोदी ने कहा संसद के इस सत्र में कई बड़े फैसले लिए जाएंगे और कई अहम मुद्दों पर चर्चा भी होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मानसून सत्र ऐसे समय में हो रहा है जब पूरा देश कोरोनावायरस से लड़ रहा है और लोगों को कई तरह की बंदिशों से जूझना पड़ रहा है। देश में अभी तक कोरोनावायरस के 47,54, 357 मामले दर्ज हो चुके हैं।
मीडिया से बात करते हुए मोदी ने इस सत्र में हिस्सा लेने वाले सभी सांसदों का आभार जताया और उनसे कहा कि वो वैक्सीन आने तक पूरी सावधानी बरतें।
चीन को संदेश देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पूरा देश आज सीमा पर तैनात जवानों के साथ खड़ा है।
वाशिंगटन, 14 सितंबर (आईएएनएस)| वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 2.88 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई है, जबकि इससे होने वाली मौतें बढ़कर 922,000 से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने सोमवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि सोमवार की सुबह तक कुल मामलों की संख्या 28,891,676 हो गई और मृत्यु दर बढ़कर 922,441 हो गई।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक कोविड-19 के मामलों 6,519,121 और उससे हुई 194,041 मौतों के साथ प्रभावित देशों की सूची में शीर्ष पर बना हुआ है।
भारत वर्तमान में 4,754,356 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में मृत्यु संख्या 78,586 है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, मामलों की ²ष्टि से तीसरे स्थान पर ब्राजील (4,330,455) है और उसके बाद रूस (1,059,024), पेरू (722,832), कोलम्बिया (708,964), मेक्सिको (668,381), दक्षिण अफ्रीका (649,793), स्पेन (566,326), अर्जेंटीना (555,537), चिली (434,748), फ्रांस (402,893), ईरान (402,029), ब्रिटेन (370,928), बांग्लादेश (337,520), सऊदी अरब (325,651), पाकिस्तान (301,481), तुर्की (291,162), इराक (290,309), इटली (287,753), जर्मनी (261,737), फिलीपींस (261,216), इंडोनेशिया (218,382), यूक्रेन (158,122), इजरायल (155,604), कनाडा (138,640), बोलिविया (125,982), कतर (121,740), इक्वाडोर (118,594), कजाकिस्तान (106,803), डोमिनिकन गणराज्य (103,660), रोमानिया (103,495), पनामा (101,745) और मिस्र (101,009) हैं।
वहीं 10,000 से अधिक मौतों वाले अन्य देश ब्राजील (131,625), मेक्सिको (70,821), ब्रिटेन (41,717), इटली (35,610), फ्रांस (30,903), पेरू (30,526), ??स्पेन (29,747), ईरान (23,157), कोलंबिया (22,734), रूस (18,517), दक्षिण अफ्रीका (15,447), चिली (11,949), अर्जेंटीना (11,352) और इक्वाडोर (10,864) हैं।
सैन फ्रांसिस्को, 14 सितंबर (आईएएनएस) अमेरिका के ओरेगन राज्य में जंगल में लगी आग के कारण 19 लोगों की जान चली गई है, वहीं कई लोग लापता हैं। इस आग के कारण सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। यह जानकारी अधिकारियों ने दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रविवार की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी सीमा से तट और क्लैकमास काउंटी तक फैले ओरेगन में आग ने 10 लाख एकड़ से अधिक जंगल को घेर लिया है। यह आंकड़ा पिछले 10 वर्षों में वार्षिक औसत से लगभग दोगुना है।
आग की वजह से 40,000 से अधिक लोगों को अपना घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जैक्सन काउंटी शेरिफ ऑफिस ने कहा कि, कर्मचारियों ने सभी को ढूंढ निकाला है, लेकिन लापता होने को लेकर पहले सूचित किए गए 50 लोगों में से एक अभी भी लापता है।
वहीं ओरेगन लाईव के रविवार की रिपोर्ट के अनुसार, ओरेगन के फायर मार्शल जिम वॉकर ने छुट्टी पर भेजे जाने के बाद इस्तीफा दे दिया है।
यूएस इन्वायरॉनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार, राज्य के सबसे बड़े शहर पोर्टलैंड की वायु गुणवत्ता रविवार सुबह अत्यंत खराब स्तर पर रही, शहर के कुछ हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 516 तक पहुंच गई।
कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए इसराइल एक बार फिर देशभर में लॉकडाउन लगाने जा रहा है. इसके तहत यहूदी नव वर्ष से कड़े प्रतिबंध लागू होंगे.
इसराइल में दूसरा लॉकडाउन शुक्रवार से शुरू होगा और तीन हफ़्तों तक चलेगा.
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा कि इस कदम की "हमें भारी क़ीमत चुकानी होगी", लेकिन इसराइल में अब रोज़ाना संक्रमण के 4,000 मामले सामने आ रहे हैं.
लॉकडाउन ऐसे वक़्त में लगाया जा रहा है कि जब अहम यहूदी त्योहार आ रहे हैं. इस लॉकडाउन के विरोध में एक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है और सत्ताधारी गठबंधन से अपनी पार्टी का समर्थन वापस लेने की धमकी दी है.
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के आंकड़ों के मुताबिक़, क़रीब 90 लाख की आबादी वाले इसराइल में कोविड-19 से 1,108 मौतें हो चुकी हैं और संक्रमण के 153,000 से ज़्यादा पुष्ट मामले हैं. हाल के हफ़्तों में वहां मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
नए प्रतिबंध क्या होंगे?
रविवार को एक टीवी संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि रोज़ाना संक्रमण के चार हज़ार मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
माना जा रहा है कि ये दूसरा लॉकडाउन इसराइल के लिए महंगा साबित होगा. इससे पहले मार्च के अंत से लेकर मई की शुरुआत तक पहला लॉकडाउन लगाया गया था.
नए प्रतिबंधों के तहत:
10 से ज़्यादा लोग अंदर नहीं मिल सकते, वहीं 20 से ज़्यादा लोग बाहर नहीं मिल सकते.
स्कूल और शॉपिंग सेंटर बंद कर दिए जाएंगे, और लोगों को अपने घर के 500 मीटर के दायरे के अंदर ही रहना होगा. काम पर जाने वालों को विशेष छूट दी जाएगी.
ग़ैर-सरकारी कार्यालय और कारोबार खुले रह सकते हैं लेकिन ग्राहक वहां नहीं जा सकते.
हालांकि सुपरमार्केट और दवा की दुकानें लोगों के लिए खुली रहेंगी.
नेतन्याहू ने माना कि धार्मिक त्योहारों की छुट्टियां मना रहे यहूदी समुदायों को लॉकडाउन से परेशानी होगी. लोग आम तौर पर इन त्योहारों को अपने रिश्तेदारों के साथ मिल-जुलकर मनाते हैं.
उन्होंने कहा, "इस बार ये त्योहार पहले की तरह नहीं होंगे. और हो सकता है कि हम अपने रिश्तेदारों के साथ इन्हें ना मना पाएं."
दूसरे लॉकडाउन से इसराइल की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा, जो पहले से ही महामारी की वजह से मंदी झेल रही है. वित्त मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि इससे 1.88 अरब डॉलर का नुक़सान होगा.
लेकिन प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि हमें ये करना होगा, क्योंकि ये फैसला महामारी के इस दौर में इसराइल के लिए ज़रूरी है.
नेतन्याहू के कोरोना महामारी से निपटने के तरीक़ों की आलोचना होती रही है. आलोचकों का कहना है कि उनकी वायरस से निपटने की नाकामी की वजह से दूसरा देशव्यापी लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है.(bbc)
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)| सोमवार से मानसून सत्र शुरू हो रहा है। कोरोनावायरस के प्रकोप के मद्देनजर लोकसभा सचिवालय ने संसद भवन परिसर में मंत्रियों और सांसदों के लाइव टेलीकास्ट और बाइट के लिए मीडियाकर्मियों द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। रविवार को जारी आदेश में कहा गया, "मीडियाकर्मी संसद भवन परिसर में कहीं भी मंत्रियों और संसद सदस्यों की बाइट लेने के लिए अपने मोबाइल फोन का उपयोग नहीं कर सकते।"
आदेश में कहा गया है, लाइव टेलीकास्ट के लिए मोबाइल फोन का उपयोग भी पहले की तरह प्रतिबंधित रहेगा।
"मीडियाकर्मी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा।"
17वीं लोकसभा का चौथा सत्र सोमवार को सुबह 9 बजे से शुरू होगा।
हालांकि, 15 सितंबर से 1 अक्टूबर तक निचले सदन का समय 3 बजे से शाम 7 बजे तक रहेगा। शनिवार और रविवार को भी तय समय अनुसार सत्र चलेगा।
राज्यसभा की बैठक सोमवार को दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक होगी, वहीं 15 सितंबर से बैठक का समय सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक हो जाएगा।
हम चाहें या नहीं, कोविड के कारण आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का ढहना तय है और ये अप्रचलित होते जा रहे पुराने बाजार की तरह ही लुप्त हो जाएंगे। आपके पास तमाम ऐसे लोग हैं जो नई तकनीक से वाकिफ नहीं और इसलिए वे हाशिये पर डाल दिए जाएंगे।
- मृणाल पाण्डे
भारत में इतिहास की पहली विश्व प्रसिद्ध महिला विद्वानों में से एक- इरावती कर्वे ने महाभारत युद्ध के अपने अध्ययन, युगांत (1967 में प्रकाशित) में भारत के इतिहास के एक युग के अंत को चित्रित किया है। इस पतली-सी पुस्तक के लेख मूल संस्कृत ग्रंथों पर आधारित हैं और ये एक समाज वैज्ञानिक और मानवविज्ञानी की सूक्ष्म अंतर्दृष्टि को समेटे हुए हैं। आखिरी निबंध ‘द एंड ऑफ ए युग’ में वह लिखती हैं, “सब बदल गया। सत्य, पराक्रम, कर्तव्यपराणता, भक्तिके आदर्शसब चरम सीमा पर थे। उस समय के लेखकों ने बड़ेही स्पष्टतरीके से जो कुछ भी लिखा, वह आज भी मौजूद है। बेशक पुराना कुछ भी नहीं रहता, लेकिनभाषा तो पुराने को भी सुरक्षित रखती है।”
भीषण युद्ध और महामारी ने अक्सर विद्वानों को अतीत के साहित्य पर गौर करने को प्रेरित किया है जब दुनिया व्यापक बदलाव के दौर से गुजरी। इसलिए मानव इतिहास में चहुं ओर एक काल खंड के अंत का उद्घोष करने वाला कोविड लेखकों को पीछे जाकर राष्ट्रों के रूप में हमारे अतीत की पुन: जांच-परख करने को बाध्यकर रहा है। मार्च, 2020 से अधिकांश भारत लॉकडाउन में है। भीड़भाड़ वाले हमारे कई महानगर वायरस प्रसार के केंद्र बन गए हैं क्योंकि वे मूल रूप से मध्ययुगीन काल के दौरान विकसित हुए। धीमी रफ्तार से खिसकती जिंदगी के उस दौर में दिल्ली, पुणे, लखनऊ, इलाहाबाद और अहमदाबाद कारों और दो-पहिया वाहनों के लिए नहीं बल्कि इंसानों के लिए बसाए गए थे। वास्तुकला के लिहाज से ये शहर आज भी मध्ययुगी नही हैं जो वर्ग, जाति और धर्म के प्रति पुराने दृष्टिकोण को अपनाए हुए हैं।
आज फर्क सिर्फ इतना है कि सड़कें ही बीमार या मरने वालों से पटी नहीं हैं बल्कि रोग और काल के पंजों ने भारतीय समाज और सत्ता के सभी स्तंभों को जकड़ लिया है। 14वीं शताब्दीकी शुरुआत के इटली की तरह हम भी समृद्ध से लेकर निपट गरीब रियासतों-रजवाड़ों का एक समूह थे जो सामंती और औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की बेड़ियों से मुक्त हुआ था। महामारी के प्रकोप से पहले तक मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद और कोलकाता-जैसे शहरों का इस्तेमाल नए वैश्विक पूंजीवाद के बीज को पुष्पित-पल्लवित करने वाले केंद्रके तौर पर, तो गोवा, उत्तराखंड और पांडिचेरी जैसी अन्य जगहों का इस्तेमाल केंद्र थके-मांदे व्यापारियों, सामंती घरानों के वंशजों और नेताओं के परिजनों के लिए पर्यटनस्थल के तौर पर होता था।
लेकिन इन्हीं सकारात्मकता का सायास इस्तेमाल दवा के बारे में भारत के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के खांटी मध्ययुगीन सोच को छिपाने के लिए किया जाता है। ये नेता बीमार और भयभीत लोगों को धड़ल्ले से आयुर्वेदिक उपचारों को आजमाने, गोमूत्र का सेवन करने, कोरोनिल की गोलियां (जिसका किसी भी आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में परीक्षणनहीं हुआ) खाने या फिर बस प्रार्थना करने और अपनी बालकनी में बर्तन पीटने की सलाह देते हैं। लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह पूरे देश में कोरोना की यह भयंकर बीमारी फैल चुकी है, होशियार लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई है कि नेताओं और झाड़-फूंक करने वाले लोगों की ज्यादातर सलाह बेकार ही हैं। यहां तक कि प्रशिक्षित डॉक्टर और उनकी एंटी वायरल दवाओं के अक्षय पात्र की महिमा भी पूरी तरह बेकार ही साबित हुई है।
बोकाचियो ने 14वीं सदी में प्लेग की विभीषिका झेल रहे इटली का जिक्र किया है जहां कुछ लोगों ने जीवन के बचे-खुचे सुख को भोग लेने का फैसला किया, अलग-अलग समूहों का गठन किया और खुद को अतिरंजित हास्य और कहानियों (अर्नब याद है? ) के साथ एक दूसरे से अलगकर लिया। दिलचस्प है कि बोकाचियो की विश्वविख्यात हास्य कृति ‘डेकामौरॉन’ की कहानियों की तरह जो अलग- थलग पड़े भयातुर समूहों द्वारा सुनाई जाती हैं, हमारे ज्यादातर सामाजिक समाचार मीडिया ने समाज और कलुष, धर्मपरायणता अथवा अभिभावकीय अनुमति के बारे में पूर्व सोच को जैसे भुला ही दिया है। पंडित-पुजारी से लेकर राजनेता, बॉलीवुड अभिनेता- सबको खुलेआम अनैतिक और पाखंडी बताया जाता है। बाबाओं और झाड़-फूंक करने वाले आम तौर पर मूर्ख, कामुक और लालची होते हैं और उनके मठ-आश्रम नरक के द्वार हैं, जिन्हें लंबे समय तक नहीं खोला जाना चाहिए।
मानकर चलना चाहिए कि कोविड बाद के भारत में वही सब होने वाला है जो मध्ययुगीन यूरोप के उस विनाशकारी कालखंड के बाद हुआ। इटली में राजनीतिक-रूढ़ीवादी-चिकित्सीय प्रतिष्ठानों को उखाड़ फेंकने के बाद अंततः बदलाव की ताजा हवा का प्रवेश हुआ जिसने पुनर्जागरण का आधार रखा और विज्ञान, कला और राजनीतिक विचार के एक शानदार युग की शुरुआत हुई। जब दुनिया कोविड- 19 के लौह-पाश से मुक्त हो जाएगी तब ऐसी ही नाटकीयता देखने को मिल सकती है। हो सकता है कि दवा के क्षेत्र में ऐसा न हो जहां सभी इस वायरस के खिलाफ किसी चमत्कारिक टीके के इजाद की दुआ कर रहे हैं, लेकिन अर्थव्यवस्थाऔर संस्कृति में तो शर्तिया बड़ा बदलाव आने जा रहा है।
ब्लैक डेथ यानी प्लेग-काल का वर्णन करने वाले इतिहास लेखकों ने दर्ज किया है कि कैसे उस समय परिवार व्यवस्था धराशायी हो गई थी। आज भी वैसा ही दिखता है जब तमाम मुश्किलों का सामना करके घर गए प्रवासी अब इस एहसास के साथ वापस हो रहे हैं कि परिवार तो अब वैसा रहा ही नहीं। शहरों में छोटे-सी जगह में लंबे समय से कैद परिवार के सदस्यों की आपस में तीखी झड़प और चरम मनोभावों के तमाम मामले मनोचिकित्सकों के पास आ रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति बीमार और बुजुर्गों की घर से दूर संस्थागत देखभाल की अवधारणा को लेकर भी है। वर्ष 1918 में जब फ्लू ने महामारी का रूप धरा, अंग्रेजों ने अपने परिवारों को पहाड़ों पर भेज दिया। लेकिन तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने पहाड़ों में जो दोहरी व्यवस्था बना रखी थी- हिल स्टेशनों में अपने रहने के लिए तो साफ-सुथरे सिविल लाइंस लेकिन गंदगी में जीवन गुजारती स्थानीय आबादी- वह उनके अपने ही स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक थी। इसलिए पहले हेल्थ बोर्ड और महामारी कानून तैयार किए गए और ‘साहब’ और उनके खान सामा, धोबियों और नौकरानियों तथा उनके परिवारों के लिए अस्पताल बनाए गए क्योंकि इन लोगों के बिना अंग्रेजों का काम नहीं चलने वाला था।
वापस वर्तमान में आते हैं। अंततः कर्फ्यूहटा लिए गए हैं और सबसे ज्यादा विस्फोटक स्थिति रोजगार क्षेत्र में आने वाली है। हमारे देखते-देखते पूरे सेवा क्षेत्र की जगह ऑनलाइन डिलीवरी सिस्टम ले रहा है। वैसे ही शिक्षा और मनोरंजन भी तेजी से डिजिटल हो रहे हैं। इसलिए पुराने स्टाइल के क्लास, सिनेमा हॉल और रेस्तरां को अलविदा कहने का समय है। पत्रकारों की तरह ही तमाम लोग जब काम पर लौटकर आते हैं तो पता चलता है कि उनके लिए तो काम ही नहीं रहा। प्रिंट मीडिया तेजी से अप्रचलित होता जा रहा है और फिल्मों की धूम-धड़ाके के साथ लॉन्च की जगह ओटीटी (ओवर दिटॉप) लॉन्च ले रहे हैं।
इसलिए हम चाहें या नहीं, कोविड के कारण आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का ढहना तय है और ये अप्रचलित होते जा रहे पुराने बाजार की तरह ही लुप्त हो जाएंगे। आपके पास तमाम ऐसे लोग हैं जो नई तकनीक से वाकिफ नहीं और इसलिए वे हाशिये पर डाल दिए जाएंगे लेकिन मुट्ठीभर नए प्रशिक्षित लोगों को मोटी तनख्वाह मिलेगी। पूंजी और श्रम की वर्तमान स्थिति उस कार की तरह है जो दुर्घटना के बाद अभी पलटियां मारती हुई घिसटती जा रही है। उसमें बैठे किसी को पता नहीं है कि अंततः कौन और कैसे जीवित बचेगा।
अब जरा देखते हैं कि इन स्थितियों से किस तरह के फायदे की संभावना है। उदाहरण के लिए, कॉरपोरेट जीवन का वह पुराना तरीका बदल जाने वाला है जिसमें लोगों को लगातार विभिन्न समय क्षेत्रों की बेतहाशा हवाई यात्रा करनी पड़ती थी। अब आलस के कारण तीसरी दुनिया के देशों को काम आउटसोर्स नहीं होंगे, संदिग्ध हेज फंडों की अल्पावधि जमा नहीं होगी और ‘राजनीतिक कनेक्शन’ के आधार पर दीर्घकालिक बैंक ऋण नहीं दिए जाएंगे। हमारे राष्ट्रीय कृत बैंक ऋण बोझ से दबे हुए हैं। नतो ईश्वरीय प्रारब्ध मानकर इन्हें बंद किया जा सकता है और नही उद्यमशीलता को कला, शिल्पया हाथ से तैयार खिलौनों के आधार पर आत्मनिर्भरता के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है।
जैसा कि जॉनमेनार्ड कींस ने कहा था कि जब आप संकट में होते हैं तो स्वस्थ अर्थव्यवस्था और दृढ़ राजनीति आधारित पहले की नैतिकता की परवाह नहीं करते और इससे संकट और गहरा जाता है। अगर आप नवाब आसफुद्दौला को पसंद करते हैं, तो आप इमामबाड़ा जैसा निर्माण करेंगे। आप बेशक कुछ भी बनाएं लेकिन रोजगार पैदा करें। भारत के शासक वर्ग को वास्तव में पुनर्विचार करना होगा। उन्हें महामारी को नए सोच का प्रेरक बनाना चाहिए। महामारी के पहले से ही अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी और हमारी रेटिंग हर माह गिर रही थी। 1918 में स्पैनिश फ्लू और विश्वयुद्ध में लाखों लोगों की मौत ने सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की, वैसे ही यूरोप में महिलाओं को मताधिकार के आंदोलन ने जन्म लिया। यह संयोग नहीं है कि उन महिलाओं ने गांधी का समर्थन किया, उनकी प्रशंसा की। इन घटनाओं को बदलाव की उन्हीं ताजा हवाओं ने आकार दिया था। दूसरे विश्व युद्ध ने महिलाओं के आंदोलन और गांधीवादी सत्याग्रह- दोनों को तेज किया था। हमें कोविड के इस काल का भी इस्तेमाल सामंती मध्ययुगीन मानसिकता से बाहर निकलने और अभूतपूर्व तरीके से दम तोड़ रही अपनी अर्थव्यवस्था, राज व्यवस्था और समाज-व्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए करना चाहिए। जब तक हम अपनी मरणासन्न अवस्था को स्वीकार नहीं करेंगे, कुछ भी ठीक नहीं होगा।(navjivan)
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)| लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने रविवार को कहा कि कामकाज सलाहकार समिति (बीएसी) की बैठक में भाग लेने वाले सभी दलों ने सोमवार से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में अधिकतम सहयोग देने का आश्वासन दिया है। संसद भवन में सुबह 11 बजे बीएसी की बैठक में भाग लेने के बाद बिड़ला ने पत्रकारों से बातचीत की।
उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य संबंधी प्रोटोकॉल को ध्यान रखते हुए, बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि सत्र के दौरान मुद्दों पर अधिक से अधिक सार्थक और सकारात्मक चर्चा होनी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि सभी दलों ने अधिकतम सहयोग का आश्वासन दिया है। सभी सांसद अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अपने संबोधन ने लोकसभा स्पीकर ने बताया कि बीएसी ने 36 सिटिंग के बैठक के दौरान अन्य मुद्दों और विधेयकों की सूची पर भी चर्चा की, जिसमें 18 लोकसभा और 18 राज्यसभा सदस्य शामिल हैं। बैठक में तृणमूल सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय को छोड़कर लगभग सभी 15 बीएसी सदस्य शामिल हुए।
सोमवार से शुरू होने वाला मानसून सत्र 1 अक्टूबर तक चलेगा। सरकार ने इस सत्र में 23 विधेयकों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें 11 अध्यादेश भी शामिल हैं।