राष्ट्रीय
नई दिल्ली : आंध्र और तेलंगाना के बीच जल विवाद पर CJI एनवी रमना ने कहा कि अगर इस मामले में कानूनी बहस होती है तो वो इसे नहीं सुनेंगे, क्योंकि वो दोनों राज्यों से हैं, लेकिन अगर दोनों राज्य आपसी बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं तो वो देखेंगे. सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई बुधवार को करेगा. दरअसल, पेयजल और सिंचाई जल पर तेलंगाना के साथ आंध्र प्रदेश की खींचतान का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. आंध्र प्रदेश सरकार ने इस मामले में SC में अर्जी लगाई है.आंध्र सरकार ने अपनी याचिका में तेलंगाना सरकार की उस चिट्ठी का हवाला भी दिया गया है जिसमें श्रीशैलम बांध से पानी आपूर्ति से साफ इंकार किया गया है. कृष्णा नदी जल बंटवारा समझौते के हवाले से आंध्र सरकार का कहना है कि तेलंगाना सरकार आंध्र को उसकी जनता के हिस्से का उचित पानी देने से मना कर रही है.
आंध्र सरकार की याचिका में कहा गया है कि श्रीशैलम बांध में जल स्तर काफी घट गया है क्योंकि तेलंगाना सरकार जलाशय तक कृष्णा नदी का पानी पहुंचने से पहले ही इसका अधिकतर पानी पनबिजली परियोजना में इस्तेमाल कर रही है. बांध में आने से पहले ही कृष्णा का जल विद्युत परियोजना तक जाकर दूसरे टनल से निकल जाता है. ये हेराफेरी है और इससे समझौते का उल्लंघन किया गया है. इस पानी पर आंध्र का वैधानिक अधिकार है.
भारत सरकार ने रद्द हो चुके एक कानून का इस्तेमाल रोकने के लिए राज्यों को जिम्मेदार बताया है. 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द की जा चुकी धारा 66A के तहत अब भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66A को रद्द करने के फैसले को लागू करवाने की जिम्मेदारी राज्यों की है. 2015 में रद्द की गई आईटी ऐक्ट की धारा 66A के बारे में केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्यों को बार-बार इस बारे में सलाह दी जा चुकी है कि इस धारा के तहत दर्ज किए गए सारे मामले रद्द किए जाएं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस भेजकर इस बारे में जवाब तलब किया है.
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने निराशा और हैरत जताई थी कि छह साल पहले रद्द किए जाने के बावजूद पुलिस 66ए के तहत मामले दर्ज कर रही है. एक सामाजिक संस्था पीपल्स फॉर सिविल लिबर्टीज ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर दिलाया था कि उसके फैसले के बाद भी 66ए के तहत हजारों मामले दर्ज हुए हैं और इस मामले में केंद्र को दखल देने की जरूरत है.
पीयूसीएल ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की है जिसकी सुनवाई जस्टिस आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही है. भारत के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक इतने संवेदनशील मामले पर पूयूसीएल की याचिका का जवाब देने के लिए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सांइटिस्ट जी अफसर को चुना. इस वैज्ञानिक ने कहा कि वह गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयों से मिली जानकारी के आधार पर जवाब दाखिल कर रहे हैं.
दर्ज हो चुके हैं हजारों मामले
24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था और आईटी ऐक्ट की धारा 66ए को रद्द कर दिया था. अनुच्छेद 66A के तहत आपत्तिजनक जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फोन से भेजना दंडनीय अपराध था. ऐसे मामलों में पहले तीन साल तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती थी.
इस धारा का इस्तेमाल पूरे देश की पुलिस सोशल मीडिया में किसी को पोस्ट को आपत्तिजनक मानकर उसे भेजने वाले को गिरफ्तार करने के लिए कर रही थी. पोस्ट को शेयर करने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा था.
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की खंडपीठ ने कानून की छात्रा श्रेया सिंघल एवं अन्य लोगों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी को सर्वोपरि ठहराया था. न्यायालय ने कहा था कि धारा 66ए असंवैधानिक है और इससे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होता है.
अब भी दर्ज हो रहे हैं मामले
पीयूसीएल ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके बाद भी कई राज्यों में हजारों मामले इसी धारा के तहत दर्ज हुए हैं. पीयूसीएल के मुताबिक महाराष्ट्र में इस धारा के तहत 381 मामले दर्ज हैं. संस्था ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश ने 2015 से पहले इस धारा के तहत 22 मामले दर्ज किए थे जबकि उसके बाद 245 और केस दर्ज किए हैं. झारखंड ने 291 और राजस्थान ने 192 मामले धारा रद्द होने के बाद दर्ज किए हैं.
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि उसने राज्यों को कई बार सूचित किया है कि इस कानून के तहत मामले दर्ज नहीं होने चाहिए. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक राजस्थान के संदर्भ में केंद्र सरकार ने कहा है कि 22 फरवरी 2019 को राज्य सरकार ने केंद्र के निर्देश का जवाब दिया था और कहा था कि इस संदर्भ में जरूरी सूचना जारी कर दी गई है. केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में उत्तर प्रदेश के बारे में कुछ नहीं कहा है, जहां भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है. (dw.com)
आस्था खन्ना बॉलीवुड फिल्म सेट पर अंतरंग सम्बन्ध कैसे फिल्माए जाएं, उसके नियम स्थापित करने का काम कर रही हैं. वह अपने काम से सहमति जैसे मुद्दों को केंद्र में ला रही हैं.
डॉयचे वैले पर आकांक्षा सक्सेना की रिपोर्ट
साक्षी भाटिया कुछ साल पहले एक बॉलीवुड मर्डर मिस्ट्री के सेट पर बतौर निर्देशक की सहायक कार्यरत थीं. फिल्म के निर्देशक ने जो एक्टर आरोपी किलर और पीड़िता बने थे, उनसे अंतरंग सीन की मांग की.
असल घटना पर आधारित इस फिल्म में शिकार पीड़िता एक 14 वर्षीय अभिनेत्री थी और हत्यारे का किरदार एक 45 वर्षीय पुरुष अभिनेता निभा रहे थे.
साक्षी भाटिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस सीन ने मुझे थोड़ा असहज कर दिया, और मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या किसी ने उस किशोरी को समझाया है कि दृश्य को कोरियोग्राफ कैसे किया जाएगा. इस सीन में एक पेशेवर की अदद आवश्यकता थी, तब भी जब उन्हें फिल्माया जा रहा था और जब स्टूडियो की रोशनी बंद थी.
बॉलीवुड सेट पर अभिनेताओं की देख-रेख के लिए आमतौर पर प्रोडक्शन क्रू जिम्मेदार होते हैं. लेकिन अब भारत के फिल्म उद्योग के पास पहली प्रमाणित अंतरंगता प्रोफेशनल या 'इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर है.
आस्था खन्ना का कहना है कि वह सेक्स दृश्यों को कोरियोग्राफ करते हुए सेट पर अभिनेताओं के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाना चाहती हैं. वह इंटिमेसी प्रोफेशनल्स का एक समूह तैयार कर रही हैं जो बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के लिए दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है. आजकल उन्हें बड़ी प्रोडक्शन कम्पनियां नग्नता, नकली यौन अंतरंगता और यौन हिंसा वाले दृश्यों के फिल्मांकन के लिए बुलाती हैं.
खन्ना ने डीडब्ल्यू को बताया, "जहां एक्शन दृश्यों के लिए स्टंट कोरियोग्राफर और नृत्य दृश्यों के लिए नृत्य कोरियोग्राफर थे, वहां अंतरंग दृश्यों को फिल्माने के लिए कोई नहीं होता था. सांस्कृतिक रूप से, अंतरंगता पर चर्चा नहीं की जाती है. इसे निंदनीय या उत्तेजक माना जाता है. पर्दे के पीछे भी इसपर बात करना वर्जित है. लेकिन हमारे लिए इसके बारे में लगातार बातचीत करना बेहद जरूरी है."
भले ही आस्था खन्ना की भूमिका नई हो लेकिन भारतीय मनोरंजन उद्योग में अंतरंग दृश्यों को फिल्माने के लिए लंबे समय से दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है.
'इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर' काम कैसे करता है?
खन्ना ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं पहले अभिनेताओं के साथ उनकी सहमति और सीमाओं के बारे में बात करती हूं. दृश्य को समझना और निर्देशक की दृष्टि के अनुसार इसे कोरियोग्राफ करना भी मेरे काम का हिस्सा है. मैं यह भी सुनिश्चित करती हूं कि एडिटिंग करते वक्त कुछ नयी चीजें न जोड़ दी जाएं, जिन पर पहले से सहमति नहीं है.
लॉस एंजेलिस में इंटिमेसी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन में अपने प्रशिक्षण के दौरान आस्था खन्ना ने नकली सेक्स दृश्यों को फिल्माने के लिए कई नई तकनीकें सीखीं जैसे जननांगो के बीच तकिए, क्रॉच गार्ड, निपल्स पेस्टी, टेप जैसे चीजों का उपयोग किया जाता है ताकि कभी भी वह एक दुसरे को न छुएं.
अपने प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरंगता प्रोटोकॉल, अनुबंधों में नग्नता के क्या नियम हैं और दो अभिनेताओं के बीच क्या पावर-प्ले होता है, इसके बारे में भी सीखा.
वह बताती हैं, "यह एक बहुत ही सेंसिटिव समय होता है, अगर कुछ गलत तरह से फिल्म हुआ तो वह लोगो को मानसिक रूप से ट्रिगर कर सकता है. यह किसी की शारीरिक और मानसिक सीमाओं को तोड़ सकता है और इससे उनके जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है."
एक पेशेवर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर को काम पर रखने से फिल्म का बजट बढ़ सकता है और अभी भी भारत के फिल्म उद्योग में यह काफी हद तक अनसुना है. करीब एक दशक तक फिल्मों में काम करने वाली सहायक निर्देशिका अमित कौर ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत में सेक्स सीन की कोरियोग्राफी काफी हद तक एक विदेशी अवधारणा है और अभिनेताओं को ज्यादातर इसे खुद ही संभालने के लिए छोड़ दिया जाता है और उनसे स्वयं सहज होने की उम्मीद की जाती है."
#MeToo और इंटिमेसी में सहमति की भूमिका
दो साल पहले, एचबीओ नेटवर्क ने यौन अंतरंग दृश्यों को फिल्माने वाले हर सेट पर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर रखना अनिवार्य कर दिया था. जल्द ही, नेटफ्लिक्स और एमेजॉन प्राइम सहित अन्य बड़े निर्माताओं ने भी इसको अपनाया.
भारतीय फिल्मों के इर्द-गिर्द हुईं यौन घटनाओं के बाद इंटिमेसी कोऑर्डिनेशन की चर्चा तेजी हुई है. मनोरंजन पत्रकार रोहित खिलनानी ने कहते हैं, "कितनी ही फिल्मों में ऐसे वाकये हुए, जहां एक अभिनेता ने अभिनेत्री को सीन खत्म होने के बाद भी गलत तरीके से छुआ या उन्हें पकड़े रखा. यह कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न के मामले में आते हैं और इसलिए जरूरी है कि इससे बचाव के लिए एक प्रोफेशनल या स्पेशलिस्ट हो."
अब ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म आने से फिल्में और सीरीज की वृद्धि हुई है. रोहित खिलनानी का कहना है कि एक इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर का सेट पर होना, जरूरी मानक होना चाहिए.
खन्ना कहती हैं, "मैं #MeToo आंदोलन से बहुत प्रभावित हुई. मुझे लगा कि जब मैं फिल्मों से इतना प्यार करती हूं तो इस कार्यक्षेत्र के तौर पर सुरक्षित क्यों नहीं बना सकती. फिल्मों में कई युवा और नए चेहरे शोषण की चपेट में आते हैं और जरूरी है, हम उन्हें इससे बचा पाएं"
खिलनानी ने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया "भारत में MeToo सफल नहीं रहा. जिन लोगों का नाम सामने आया भी था अब वे मामले शांत होने की वजह से फिल्मों में दोबारा वापस आ गए हैं. इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन आप हर समय सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? MeToo से कुछ घटनाएं सामने आई हैं जो फिल्म के सेट पर नहीं हुईं, फिल्म से पहले या बाद में हुई, सेट से बाहर."
भारतीय मनोरंजन उद्योग दुनिया में सबसे बड़े उद्योगों में से एक है. इस नई चेतना को उद्योग के सभी क्षेत्रों तक पहुंचने में समय लगेगा. साक्षी भाटिया ने कहा कि उन्हें लगता है कि अभी लंबा रास्ता तय करना है.
उनके अनुसार, "इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर यहां कोरियोग्राफ करने और नकली सेक्स को स्क्रीन पर अच्छा दिखाने के लिए हैं. अगर वे प्रोडक्शन हाउस से वेतन ले रहे हैं, तो उनके पास कोई जादुई छड़ी नहीं है कि निर्देशक जिस तरह से सेक्स सीन को फिल्माना चाहता, वह उसमें कोई बड़ा फेरबदल कर सकें. ये दृश्य सिनेमा हॉल में भीड़ लाते हैं और अभी इनको संवेदनशीलता से फिल्माना एक गहरी खायी है जिसे पाटना अभी दूर की बात है." (dw.com)
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश), 2 अगस्त | बाघ के हमले की एक और घटना में एक मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गया है। घटना रविवार को जिले के मितौली क्षेत्र के डोकरपुर गांव की है।
मजदूर कमलेश कुमार, मजदूरों के एक समूह के साथ अपने खेत में काम कर रहे थे, तभी बाघ ने उन पर हमला कर दिया।
उनकी चीख-पुकार सुनकर अन्य लोग उसकी मदद के लिए दौड़े, लाठियां बरसाईं और चिल्लाने लगे। उन्हें देखते ही बाघ वन क्षेत्र की ओर भाग निकला।
कमलेश को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। उसका इलाज कर रहे डॉक्टर ने कहा कि उसकी पीठ पर चोटें आई हैं लेकिन उसकी हालत स्थिर है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि बाघ शायद दुधवा के जंगल से भटक कर बेंत के खेत में छिपा था। इसे स्थानीय लोगों ने कई बार देखा था।
स्थानीय निवासी गणपति ने कहा कि, "हमने नियमित रूप से वन विभाग को सूचित किया है लेकिन अधिकारियों ने बाघ को वापस जंगल में ले जाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।"
संभागीय वन अधिकारी समीर कुमार ने कहा, "हमने गांव में एक टीम भेजी है और पीड़ित के लिए सर्वोत्तम संभव इलाज सुनिश्चित किया है। हमारी टीम क्षेत्र की निगरानी करेगी और जांच करेगी कि बाघ घायल है या कोई अन्य समस्या है।"
"प्रथम ²ष्टया यह एक आकस्मिक हमला लगता है क्योंकि पीड़ित एक घने बेंत के खेत में घुस गया और संयोग से बाघ के साथ उसका सामना हो गया।" (आईएएनएस)
हैदराबाद, 1 अगस्त | तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने रविवार को स्टार शटलर पी.वी. सिंधु को टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने पर बधाई दी।
सिंधु ने चीन की ही बिंगजियाओ को 21-13, 21-15 से हराकर कांस्य पदक जीता। इस जीत के साथ, वह दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने सिंधु को जीत पर बधाई दी। उन्होंने सिंधु पर लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी के रूप में इतिहास रचने पर प्रसन्नता व्यक्त की।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने बैडमिंटन खिलाड़ी को चीन के ही बिंगजियाओ को सीधे सेटों में हराकर कांस्य पदक जीतने पर बधाई दी।
उन्होंने भविष्य के आयोजनों में उनकी सफलता की कामना की और आशा व्यक्त की कि वह देश और राज्य के लिए और अधिक सम्मान लाएगी।
तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने भी सिंधु को कांस्य पदक जीतने पर बधाई दी।
राज्यपाल ने कहा कि वह दो ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। सुंदरराजन ने ट्वीट किया, "भारत को वास्तव में आप पर गर्व है।"
तेलंगाना के खेल मंत्री वी. श्रीनिवास गौड़ ने भी सिंधु को बधाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, "आपने भारत के लिए एक के बाद एक ओलंपिक पदक के साथ इतिहास रच दिया है।"
हैदराबाद, तेलंगाना में जन्मी और पली-बढ़ी, दो बार की ओलंपिक पदक विजेता की जड़ें आंध्र प्रदेश में हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 अगस्त | भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर किसी भी तरह की झड़प से बचने के लिए रविवार को उत्तरी सिक्किम क्षेत्र में एक हॉटलाइन स्थापित की है।
भारतीय सेना ने एक बयान में कहा कि सीमाओं पर विश्वास और सौहार्दपूर्ण संबंधों की भावना को आगे बढ़ाने के लिए तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के खंबा द्जोंग में कोंगरा ला, उत्तरी सिक्किम और पीएलए में भारतीय सेना के बीच एक हॉटलाइन स्थापित की गई।
भारतीय सेना ने कहा कि यह आयोजन 1 अगस्त, 2021 को पीएलए दिवस के साथ हुआ।
बल ने कहा कि दोनों देशों के सशस्त्र बलों के पास जमीनी कमांडर स्तर पर संचार के लिए अच्छी तरह से स्थापित तंत्र हैं। विभिन्न क्षेत्रों में ये हॉटलाइन इसे बढ़ाने और सीमाओं पर शांति बनाए रखने में एक लंबा सफर तय करती हैं।
उद्घाटन में संबंधित सेनाओं के ग्राउंड कमांडरों ने भाग लिया और हॉटलाइन के माध्यम से मित्रता और सद्भाव के संदेश का आदान-प्रदान किया गया।
इस साल की शुरूआत में 20 जनवरी को, भारतीय और चीनी सैनिक शारीरिक रूप से उत्तरी सिक्किम के नकु ला के ऊंचाई वाले इलाके में भिड़ गए थे, जिसमें भारतीय सैनिकों द्वारा भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने के प्रयास को भारतीय सैनिकों द्वारा विफल करने के बाद दोनों पक्षों के कई सैनिक घायल हो गए थे।
पीएलए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मुखरता दिखा रहा है, यहां तक कि भारतीय सेना आक्रामक कार्रवाई का जवाब देने के लिए उच्च सतर्कता की स्थिति में है। मामूली आमना-सामना स्थानीय कमांडरों द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार हल किया गया था।
पिछले साल 9 मई को नाकू ला में भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी, जिसमें दोनों पक्षों के कई सैनिक घायल हो गए थे।
यह 5-6 मई को पूर्वी लद्दाख के उत्तरी तट पर हिंसक झड़पों के बाद हुआ, जब पीएलए भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ के कई प्रयास कर रहा था।
बाद में, 15 जून, 2020 की रात गलवान में एक घातक शारीरिक संघर्ष ने 20 भारतीय लोगों और चार चीनी सैनिकों की जान ले ली।
भारत के लिए त्रि-जंक्शन सहित सिक्किम सीमा अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर यहां एक चीनी सफलता होती है, तो वे सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक पहुंच सकते हैं और भारतीय क्षेत्र की एक संकीर्ण, 27 किलोमीटर चौड़ी पट्टी जो भारत के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती है, उसे ब्लॉक कर सकते हैं।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर चीनी नियंत्रण पूरे पूर्वोत्तर को काट सकता है। इसे रोकने के लिए, भारत सिक्किम को दो पर्वतीय डिवीजनों के साथ भारी सुरक्षा देता है।
भारतीय सेना ने 1967 में पास के नाथू ला में एक बड़ी गोलाबारी के माध्यम से भी सिक्किम सीमा की रक्षा की है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 अगस्त | 'तीन तलाक' के खिलाफ कानून बनने की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर देश भर के विभिन्न संगठनों द्वारा रविवार को 'मुस्लिम महिला अधिकार दिवस' मनाया गया। इस मौके पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी और श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस अवसर पर कार्यक्रम में भाग लिया, जहां मुस्लिम महिलाओं ने इस प्रथा को एक आपराधिक अपराध बनाने वाले कानून को लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तहे दिल से धन्यवाद दिया।
1 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के लिए संसद में ट्रिपल तलाक बिल पारित किया। तभी से इस दिन को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
केंद्रीय मंत्रियों ने तीन तलाक की शिकार कई मुस्लिम महिलाओं से भी बातचीत की।
महिलाओं ने मंत्रियों से कहा कि मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के ' 'आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान, आत्मविश्वास' को मजबूत किया है और तीन तलाक जैसी क्रूर सामाजिक बुराई के खिलाफ कानून लाकर उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की है।
कार्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए यादव ने कहा कि मोदी सरकार समाज के हर वर्ग की महिलाओं की गरिमा और सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है।
यादव ने कहा, "मोदी सरकार ने तीन तलाक की सामाजिक बुराई के खिलाफ कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित की है। सरकार की बिना किसी भेदभाव के विकास की नीति ने पूरे देश में विश्वास का माहौल बनाया है।"
नकवी ने कहा, "हमारी सरकार निर्णय देने में विश्वास करती है और इसलिए हमने ऐसे ऐतिहासिक कदम देखे हैं। न केवल तीन तलाक को खत्म करना, बल्कि हमने यह भी देखा कि कैसे 'मेहरम' को खत्म किया गया और महिलाएं हज के लिए जा सकती हैं।"
नकवी ने बताया कि कानून लागू होने के बाद तीन तलाक के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है और कहा कि देश भर में मुस्लिम महिलाओं ने इस कानून का भारी स्वागत किया है।
इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए ईरानी ने कहा, "1 अगस्त तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं के संघर्ष को सलाम करने का दिन है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय और श्रम मंत्रालय मुस्लिम महिलाओं के बीच उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे।" (आईएएनएस)
जालौन (उत्तर प्रदेश), 1 अगस्त | एक 50 वर्षीय महिला यहां एक नाले में गिर गई और आखिरकार उसे बचाए जाने से पहले उसने 16 घंटे तक खुद को बचाए रखा। जय देवी के रूप में पहचानी जाने वाली महिला लकड़ी के एक टुकड़े से चिपकी हुई थी जो कि तेज धाराओं में उसके रास्ते में आया था। वह शुक्रवार को यमुना में बह गई थी।
हमीरपुर में करीब 25 किलोमीटर दूर कुछ नाविकों ने उसे बचाया, जिन्होंने मदद के लिए उसकी पुकार सुनी और उसे नदी से बाहर निकाला।
बाद में पुलिस ने उसे उसके परिवार से मिलवाया गया।
खबरों के मुताबिक, जय देवी अपने खेतों में गई थीं, जब वह गलती से जालौन में उफनते किलंदर नाले में गिर गईं, जो यमुना नदी में मिल जाती हैं।
शुक्रवार की शाम धारा में गिरने के बाद, वह एक तेज धारा के बाद बह गई जो उसे यमुना नदी में ले गई।
वह लकड़ी के लट्ठे से चिपक गई और 16 घंटे से अधिक समय तक तैरती रही।
हमीरपुर जिले के मनकी गांव में जब नाविकों ने उसे नदी में बहते हुए देखा, तो पुलिस को सूचना दी और बाहर ले आए।
उसे एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बेटे राहुल और बेटी विनीता को सूचित किया गया और वे उसके पास पहुंचे।
बाद में पुलिस ने महिला को उसके परिजनों को सौंप दिया।
हरौलीपुर पुलिस चौकी प्रभारी भरत यादव ने कहा, "यह भगवान के चमत्कार के अलावा और कुछ नहीं था।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 अगस्त | नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत चरणबद्ध तरीके से देश के सभी स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में महत्वपूर्ण विषयों और अलग-अलग स्ट्रीम की पाठ्यचर्या के एकीकरण की परिकल्पना की गई है। नई शिक्षा नीति के अनुसार स्कूल में व्यवसायिक शिक्षा छठी कक्षा से ही प्रारंभ होगी और इसमें छात्रों को दी जाने वाली इंटर्नशिप भी शामिल है। यह जानकारी केंद्रीय कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने साझा की केंद्रीय कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक इसके लिए कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय ने हब और स्पोक मॉडल संबंधी एक प्रयोग एक परियोजना शुरू की है। हब और स्पोक मॉडल में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों जैसे आईटीआई, प्रधान मंत्री कौशल केंद्र आदि को व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।
कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि स्कूलों को इस हब से व्यक्तिगत स्पोक के रूप में कौशल विकास प्रशिक्षण सुलभ होगा। इस तालमेल के साथ स्कूली छात्रों को उनके संबंधित क्षेत्रों में उपलब्ध संभावनाओं से अवगत कराया जाएगा। आईआईटी में उपलब्ध नवीनतम तकनीकों के बारे में छात्रों को ट्रेनिंग दी जाएगी।
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों को मल्टीपल एंट्री और एग्जिट के अवसर भी प्रदान किए जा रहे हैं। इस सुविधा के लागू होने से छात्र अपनी पसंद के पाठ्यक्रम में कभी भी प्रवेश ले सकते हैं। साथ ही यदि उन्हें किसी कारणवश पाठ्यक्रम छोड़ना पड़े तो उनके लिए आसान एग्जिट का विकल्प भी उपलब्ध होगा।
कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 6 से 19 वर्ष की आयु का प्रत्येक युवा व व्यस्क या तो 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा पूरी करें अथवा आईटीआई कार्यक्रम के 2 वर्ष के साथ 10 वर्ष की स्कूली शिक्षा का प्रमाणन पूरा करें।
वर्तमान में इस कार्यक्रम की परिकल्पना चार राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल में की गई है। इन राज्य सरकारों ने 2 जिलों और अपने संबंधित राज्यों के प्रत्येक जिले में एक हब आईटीआई को अभिज्ञात किया है। गौरतलब है कि स्पोक स्कूलों की मैपिंग संबंधित राज्य सरकारों द्वारा की जा रही है।(आईएएनएस)
गुरुग्राम, 1 अगस्त | गुरुग्राम स्वास्थ्य विभाग और गुरुग्राम पुलिस की एक संयुक्त टीम ने रविवार को गाजियाबाद के कमला नगर इलाके से एक अवैध लिंग निर्धारण टेस्ट रैकेट का भंडाफोड़ किया और तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। गुरुग्राम स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। इस साल गुरुग्राम स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई यह 14वीं छापेमारी थी।
संयुक्त टीमों ने आरोपी व्यक्तियों के कब्जे से 35,000 रुपये और एक पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन भी बरामद की है।
अधिकारियों ने कहा कि गुरुग्राम के सिविल सर्जन वीरेंद्र यादव को गुरुग्राम में चल रहे एक अवैध लिंग निर्धारण रैकेट के बारे में गुप्त सूचना मिली थी।
इसके बाद, यादव ने प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीएनडीटी) के नोडल अधिकारी अनिल गुप्ता को लीड का पालन करने के लिए अधिकृत किया।
यादव ने कहा, "एक प्रलोभन के माध्यम से, गुरुग्राम के भोंडसी गांव के निवासी गौतम के रूप में पहचाने जाने वाले दलाल के साथ एक संपर्क स्थापित किया गया था। बातचीत के बाद, 35,000 रुपये के लिए एक सौदा तय किया गया था। गौतम ने राजीव चौक, गुरुग्राम में 6.30 बजे सौदा राशि के साथ रविवार को उससे मिलने के लिए कहा। पैसे मिलने के बाद दलाल ने कार में दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।"
इसके बाद टीम के सदस्यों दीपांशु सैनी, हरीश, उमंग और सब-इंस्पेक्टर परमजीत के साथ अनिल गुप्ता ने पीछा किया।
दलाल के गाजियाबाद के कमला नगर पहुंचने के बाद फंदा को टेंट हाउस की दुकान पर ले जाया गया। कुछ देर बाद बदमाश दुकान से बाहर आया और छापेमारी करने वाली टीम को इशारा किया जिसने तुरंत गौतम को दबोच लिया। फंदा ने पुलिस टीम को सूचित किया कि अल्ट्रासाउंड किया गया है और भ्रूण के लिंग का खुलासा फीमेल के रूप में किया गया है।
"छापेमारी टीम ने तब दुकान में प्रवेश किया और दो व्यक्तियों की पहचान अलीगढ़ के प्रेम चंद और जयपाल के रूप में की गई, जो पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनों के पास बैठे थे। स्थानीय पीएनडीटी टीम भी मौके पर पहुंची। टीम ने गौतम से 20,000 रुपये और प्रेम चंद से 15,000 रुपये बरामद किए। स्थानीय पुलिस को बुलाया गया जिन्होंने तीनों को गिरफ्तार कर मशीन व नकद राशि जब्त कर ली।"
आरोपी तीनों के खिलाफ गाजियाबाद के सिहानी पुलिस स्टेशन में पीएनडीटी एक्ट सहित आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।(आईएएनएस)
लखनऊ, 31 जुलाई | रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के मुखिया व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि राज्यों को ओबीसी आरक्षण देने का अधिकार देने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही एक संशोधन बिल लाने जा रही है। लखनऊ दौरे पर शनिवार को आए आठवले ने पत्रकारों से बताया कि केंद्र सरकार संशोधन बिल ला रही है, जिसके बाद ओबीसी आरक्षण देने का अधिकार राज्यों को मिलेगा। राज्यों को आरक्षण देने के अधिकार पर उन्होंने कहा कि यह वैसे ही है जैसे केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि यह आरक्षण सभी के लिए है और इसमें जाति या धर्म का कोई लेना देना नहीं है। जो भी आर्थिक रूप से कमजोर हैं उसको इसका लाभ मिलेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर क्षत्रियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की है।
उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया 26 सितंबर से गाजियाबाद से बहुजन कल्याण यात्रा प्रारंभ करेगी। यह यात्रा प्रदेश के विभिन्न जनपदों से होते हुए 18 दिसंबर को लखनऊ में खत्म होगी। लखनऊ में समापन दिवस पर बहुजन कल्याण महारैली होगी, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी शामिल होंगे।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बारे में आठवले ने कहा कि आरपीआई बसपा का विकल्प बनेगी। कहा कि उनकी पार्टी दलित और मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। उन्होंने कहा कि इससे बसपा और सपा दोनों को नुकसान होगा। वैसे भी विधानसभा चुनाव जीतना दोनो पार्टियों के लिए संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि वो केंद्र में एनडीए के सहयोगी पार्टी हैं। अब वह उत्तर प्रदेश में दस सीट चाहती है, जहां से उसके प्रत्याशी चुनाव लड़ें। नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री आठवले ने कहा कि बसपा का दलित वोट अब आरपीआई का है। बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन पर उन्होंने कहा कि ब्राह्मण भाजपा के साथ है। आरपीआई ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को ब्राह्मण और दलित दिलाएगी।
इससे पहले केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाउस में अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की। वह मौलाना कल्बे जवाद से उनके आवास पर मुलाकात करने गए। उन्होंने आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की। (आईएएनएस)
पटना, 31 जुलाई | बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की शनिवार को दिल्ली में हुई बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को चुन लिया गया। ललन सिंह के अध्यक्ष बनाए जाने पर पटना के पार्टी दफ्तर में जश्न मनाया गया।
दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। बैठक में पार्टी अध्यक्ष पद से आर सी पी सिंह ने इस्तीफा दिया, जिसके बाद ललन सिंह को अध्यक्ष बनाने की घोषणा की गई।
आर सी पी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ही नए पार्टी अध्यक्ष के कयास लगाए जाने लगे थे, जिसमें ललन सिंह सबसे आगे चल रहे थे। ललन सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं।
आईएएनएस ने पूर्व में ही ललन सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना जताई थी, जिस पर शनिवार को मुहर लग गई।
इधर, ललन सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने की खबर जैसे ही पटना पहुंची जदयू कार्यालय में जश्न का माहौल पैदा हो गया। पार्टी के प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार और संजय सिंह पार्टी कार्यालय पहुंचे और जश्न में शामिल हुए। दफ्तर में उपस्थित लोगों ने एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगा कर बधाई दी तथा मिठाइयां बांटी गई।
इधर, ललन सिंह के जदयू के अध्यक्ष बनाए जाने पर उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य के जलसंसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने सांसद ललन सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने पर कहा, जदयू के वरिष्ठ नेता एवं कुशल संगठनकर्ता, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मुझे विश्वास है, आपके सक्षम नेतृत्व में पार्टी संगठन को नया विस्तार मिलेगा।
इधर, पूर्व मंत्री और पार्टी के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि ललन सिंह के अध्यक्ष बनाए जाने पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि सिंह के अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी और मजबूत होगी।(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 31 जुलाई | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार ब्रिटेन से स्वतंत्रता सेनानी और शहीद उधम सिंह की पिस्टल और डायरी की बरामदगी के मुद्दे को केंद्रीय विदेश मंत्रालय के समक्ष उठाएगी। मुख्यमंत्री ने संगरूर जिले में शहीद ऊधम सिंह के 82वें शहादत दिवस पर आयोजित राज्य स्तरीय समारोह से इतर मीडिया से बात करते हुए कहा कि शहीदों की अस्थियां 40 साल बाद भारत को लौटाई गई हैं, वह भी बड़ी कोशिशों के बाद।
उन्होंने कहा कि अभी उधम सिंह की पिस्तौल स्कॉटलैंड में है, जिसके साथ उन्होंने पंजाब के तत्कालीन उपराज्यपाल माइकल ओडायर को मार डाला और डायरी भी कहीं है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस मामले को ब्रिटिश उच्चायोग के सामने उठाना चाहिए ताकि इन्हें वापस लाया जा सके।
अमरिंदर सिंह ने कहा कि विदेशों से इस महान योद्धा की ये गौरव संपत्ति प्राप्त करने के बाद, उन्हें जनता के देखने के लिए सुनाम ऊधम सिंह वाला शहर के संग्रहालय में रखा जाएगा, क्योंकि सरकार की मंशा विश्वस्तरीय कद के इस ऐतिहासिक स्मारक को बनाने की है।
एक प्रश्न के उत्तर में मुख्यमंत्री ने कहा कि जलियांवाला बाग, हुसैनीवाला और अब नवनिर्मित शहीद उधम सिंह जैसे कई स्मारक हैं और जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम के कई अज्ञात नायकों की याद में एक और स्मारक बनाया जाएगा ताकि उन्हें श्रद्धांजलि दी जा सके। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 जुलाई | गृह मंत्रालय (एमएचए) पूर्वोत्तर के दो राज्यों के बीच जारी सीमा विवाद के बीच स्थिति को लेकर असम और मिजोरम प्रशासन के साथ नियमित बातचीत कर रहा है। अधिकारियों ने शनिवार को यहां यह जानकारी दी। यह स्वीकार करते हुए कि स्थिति तनावपूर्ण है, लेकिन नियंत्रण में है, एमएचए अधिकारियों ने कहा कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की बटालियनें दोनों राज्यों के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 306 के साथ क्षेत्र में गश्त कर रही हैं, ताकि राज्य की नीतियों के बीच किसी भी तरह की झड़प को रोका जा सके।
मंत्रालय ने हालांकि इस मामले में राज्यों द्वारा क्रॉस एफआईआर के मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी शनिवार को तनाव कम करने के लिए कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने अपने खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के बारे में बोलते हुए कहा कि उन्हें किसी भी जांच में शामिल होने में बहुत खुशी होगी।
हालांकि, उन्होंने सवाल किया कि मामला एक तटस्थ एजेंसी को क्यों नहीं सौंपा जा रहा है, खासकर जब, घटना की जगह असम के संवैधानिक क्षेत्र के भीतर है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने मिजोरम समकक्ष जोरमथांगा को भी इस बारे में बता दिया है।
मिजोरम पुलिस ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सरमा के खिलाफ सीमा पर हुई झड़पों के सिलसिले में प्राथमिकी दर्ज की है।
सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मुद्दे पर दोनों मुख्यमंत्रियों से कई बार बात की है और उनसे क्षेत्र में शांति सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
इससे पहले, मिजोरम के गृह विभाग के सचिव पी. लालबियाकसांगी ने भी गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (पूर्वोत्तर) पीयूष गोयल को पत्र लिखकर शिकायत की है कि असम द्वारा अंतर-राज्यीय सीमा के साथ धोलाई और हवाईथांग क्षेत्र में सशस्त्र पुलिस कर्मियों को जुटाया जा रहा है।
मीडिया रिपोटरें का हवाला देते हुए कि असम पुलिस कमांडो के लगभग चार प्लाटून को अतिरिक्त रूप से तैनात किया गया है। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय से असम सरकार को इस तरह के सु²ढीकरण से बचने और उन टुकड़ियों को वापस खींचने के लिए उचित निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।
इससे पहले, मिजोरम ने केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर असम से बराक घाटी के निवासियों द्वारा कथित रूप से राज्य मशीनरी के समर्थन से लगाई गई आर्थिक नाकेबंदी को तुरंत हटाने के लिए कहा है, लेकिन असम सरकार ने आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया है।
असम प्रशासन द्वारा कथित यात्रा प्रतिबंध के बारे में स्पष्ट करते हुए, सरमा ने शुक्रवार को कहा था कि राज्य सरकार की सलाह यात्रा पर अंकुश लगाने के लिए नहीं है। उन्होंने कहा, हमने अपने लोगों को मिजोरम जाने से पहले केवल सोचने की सलाह दी है, क्योंकि वहां के नागरिकों के हाथों में हथियार हैं और यह तब तक जारी रहेगा, जब तक मिजोरम सरकार उनके हथियार जब्त नहीं कर लेती।
एक राज्य द्वारा दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण करने के आरोप के बीच, स्थिति 26 जुलाई की दोपहर को काफी बढ़ गई थी, जब मिजोरम के अंदर वैरेंगटे ऑटो स्टैंड पर, असम पुलिस के पांच जवान शहीद हो गए थे और एक नागरिक भी मारा गया था। इसके अलावा एक पुलिस अधीक्षक सहित अन्य 50 से अधिक घायल हुए थे। मिजोरम पुलिस द्वारा कथित तौर पर असम के अधिकारियों की एक टीम पर गोलियां चलाने से वह घायल हो गए थे।
झड़प के तुरंत बाद, शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की और उन्हें तनाव कम करने की सलाह दी और उन्हें विवादित स्थल से अपने पुलिस कर्मियों को वापस लेने के लिए भी कहा।
बाद में, 28 जुलाई को, केंद्रीय गृह सचिव ने असम और मिजोरम के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें दोनों राज्य कमान के तहत एनएच 306 के साथ अशांत सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय पुलिस बल (सीआरपीएफ) की तैनाती के लिए सहमत हुए।
बैठक के दौरान दोनों राज्य सरकारों ने सीमा मुद्दे को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करने के लिए पारस्परिक रूप से चर्चा जारी रखने पर भी सहमति व्यक्त की।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 31 जुलाई | सज्जाद थंगल 45 साल बाद शनिवार की शाम को अपने घर लौट आये। जहां उनका स्वागत करने के लिए उनकी 92 वर्षीय मां इंतजार कर रही थीं। थंगल ने कहा, "क्या अधिक खुशी इस तुलना में मेरे लिए है। यह भगवान की इच्छा है और ऐसा हुआ है और भगवान के पास सभी के लिए एक योजना है।" इसके बाद थंगल ने अपने वृद्ध मां को गले लगाया और वह कोल्लम के पास अपने घर पहुंच गये।
"मैंने हमेशा इस दिन के लिए प्रार्थना की है और अंत में मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है क्योंकि आप मेरे साथ वापस आ गए हैं। मेरी गहरी इच्छा थी कि मैं मरने से पहले, मैं आपको देखना चाहता हूं और यह हुआ है।" बेटे का इंतजार करने वाली मां ने कहा अपने बेटे को एक बार फिर देखने की उसकी जीवन भर की लालसा, उसे अपनी बांहों में पकड़ ले।
थंगल 19 साल के थे, जब उन्होंने 1972 में एक जहाज पर यूएई के लिए अपना घर छोड़ा और एक सांस्कृतिक संगठन में स्टोर कीपर के रूप में काम करना शुरू किया।
वह आखिरी बार 1976 में अपने घर आए थे, जब वे एक सांस्कृतिक मंडली के साथ गए थे, जिसमें तत्कालीन ग्लैमरस अभिनेत्री रानी चंद्रा भी शामिल थीं।
लेकिन थंगल के लिए चीजें खट्टी हो गईं क्योंकि कई लोगों ने सोचा कि अभिनेत्री के साथ उनकी भी मृत्यु हो गई, जब मुंबई से चेन्नई जाने वाली दुर्भाग्यपूर्ण इंडियन एयरलाइन की उड़ान टेकऑफ के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें सभी की मौत हो गई थी।
कई लोगों को लगा कि थंगल भी फ्लाइट में हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। दुर्घटना से बुरी तरह परेशान थंगल ने हर चीज से दूर रहने का फैसला किया।
पिछले हफ्ते ही एक टीवी कार्यक्रम के माध्यम से उनके रिश्तेदारों को पता चला कि वह जीवित है और मुंबई के पनवेल में एक वृद्धाश्रम में है। जल्द ही उनके रिश्तेदारों का एक समूह मुंबई में उतरा और उन्हें वापस ले आया।
इस मौके पर अपने खोए हुए बेटे को पाने के लिए 100 से अधिक लोग मौजूद थे, जिनमें उनके 2 साल के बच्चे से लेकर 92 साल की मां तक के रिश्तेदार शामिल थे।
उनके गांव ने उनके घर पर एक नागरिक रिसेप्शन का आयोजन किया और खुशी के अवसर को चिह्न्ति करने के लिए एक केक काटा गया और स्थानीय विधायक कोवूर कुंजुमन भी मौजूद थे।(आईएएनएस)
पटना, 31 जुलाई | नक्सलियों के एक समूह ने शनिवार सुबह पटना-कोलकाता मार्ग पर स्थित एक रेलवे स्टेशन पर हमला किया और स्टेशन मास्टर को करीब आधे घंटे तक बंधक बनाकर रखा। नक्सलियों ने स्टेशन की इमारत को भी बम से उड़ाने की धमकी दी। चौरा रेलवे स्टेशन की घेराबंदी के कारण मार्ग पर 4 घंटे से अधिक समय तक रेलवे संचालन बाधित रहा, यह नक्सल प्रभावित इलाका जमुई जिले में आता है।
पुलिस की वर्दी में नक्सली सुबह करीब छह बजे चौरा पहुंचे और स्टेशन मास्टर विनय कुमार के केबिन में घुस गए। उन्होंने कुमार को ऑपरेशन रोकने का आदेश दिया क्योंकि वे क्षेत्र में नक्सली सप्ताह मना रहे थे।
स्टेशन पर मौजूद एक और कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, जब स्टेशन मास्टर ने उनसे पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो उन्होंने खुद को नक्सली बताया और अपने हथियार निकाल लिए।"
उन्होंने कहा, रेलवे स्टेशन पर मौजूद ज्यादातर अधिकारी हैरान रह गए। यह एक तनावपूर्ण क्षण था जब उन्होंने स्टेशन परिसर के अंदर सशस्त्र नक्सली को देखा। कुछ समय बाद, हालांकि स्टेशन मास्टर विनय कुमार सहित अधिकारी भागने में सफल रहे।
जमुई के अधीक्षक प्रमोद कुमार मंडल ने घटना की पुष्टि की है, मंडल ने कहा, "हमने रेलवे ट्रैक और रेलवे स्टेशन सहित पूरे इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया है और फिर रेलवे अधिकारियों को इस मार्ग पर परिचालन फिर से शुरू करने के लिए हरी झंडी दे दी है।"
रास्ते में विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर हिमगिरी एक्सप्रेस जैसी प्रमुख ट्रेनों को रोक दिया गया।
पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारियों ने पूरे इलाके की जांच की और हरी झंडी देने के बाद रेलवे को सुचारु रूप से फिर से शुरू किया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 जुलाई | हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के बीच बचाव और राहत कार्यों के दौरान सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के दो अधिकारियों की जान चली गई है। राज्य में राहत एवं बचाव अभियान के दौरान बीआरओ ने एक इंजीनियर और एक परियोजना अधिकारी को खो दिया है।
लाहौल और स्पीति घाटी में, रणनीतिक मनाली-सरचू मार्ग कई स्थानों पर कई भूस्खलन के कारण यातायात के लिए बंद कर दिया गया था। बीआरओ ने एक बयान में कहा, "बचाव और सड़क साफ करने के अभियान के लिए कर्मियों और उपकरणों के साथ तुरंत अपने प्रशिक्षित इंजीनियरिंग टास्क फोर्स को भेजा है।"
29 जुलाई को मनाली लेह रोड पर बारालाचला र्दे से पहले सरचू के पास ऐसे ही एक हिस्से में महिलाओं और बच्चों सहित कई नागरिक फंसे हुए थे और ऊंचाई वाली परिस्थितियों में ऑक्सीजन की कमी के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ा था।
बीआरओ टीम ने 14,480 फीट की ऊंचाई पर स्थित केनलुंग सराय के पास कई अन्य भूस्खलनों के बीच सड़क को साफ किया और लोगों को बचाया गया है।
हालांकि, बचाव प्रयासों में शामिल दीपक प्रोजेक्ट के नायक रीतेश कुमार पाल की जान चली गई। बाद में सड़क को यातायात के लिए खोल दिया गया।
27 जुलाई, 2021 को एक अन्य घटना में, भारी भूस्खलन के कारण अवरुद्ध किलर-टांडी सड़क की निकासी के लिए बीआरओ के एक अलग इंजीनियर टास्क फोर्स को तैनात किया गया है। क्षेत्र में दो यात्री वाहन फंसे हुए हैं।
टीम ने पहले ही रास्ते में दो भूस्खलन को साफ कर दिया था, टीम ने स्लाइड जोन में फंसे नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए देर रात निकासी अभियान चलाया।
ऑपरेशन के दौरान, टीम के कुछ सदस्य, छह नागरिक और एक वाहन अचानक आई बाढ़ में बह गए। घटना में कनिष्ठ अभियंता राहुल कुमार की मौत हो गई, जबकि अन्य को बीआरओ कर्मियों ने बचा लिया।
बाद में बीआरओ कर्मियों ने भूस्खलन को साफ किया, फंसे हुए यात्रियों को बचाया और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। (आईएएनएस)
सोलापुर (महाराष्ट्र), 31 जुलाई | भारत के दूसरे सबसे लंबे समय तक विधायक रहे और पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) के वरिष्ठ नेता गणपतराव देशमुख का शुक्रवार देर रात यहां एक निजी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी है। वह 95 वर्ष के थे और उनका अंतिम संस्कार शनिवार दोपहर यहां सांगोले में किया जाएगा।
नम्रता और सरलता के प्रतीक देशमुख 1962 के बाद से सांगोले सीट से 11 बार महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए थे।
वह भी केवल दो बार चुनाव हारे, पहली बार 1972 में और फिर 1995 में - दूसरी बार उन्हें अपने ही पोते ने हराया, लेकिन लगभग 190 वोटों के मामूली अंतर से।
देशमुख ने 1978 में कुछ समय के लिए मंत्री के रूप में कार्य किया, जब शरद पवार मुख्यमंत्री थे ।
2019 में, देशमुख ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया।
तमिलनाडु के दिवंगत सीएम और डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि सबसे लंबे समय तक विधायक रहे थे।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने देशमुख के निधन पर शोक व्यक्त किया है। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 31 जुलाई | केरल में एक दुष्कर्म पीड़िता ने उसका यौन शोषण करने वाले एक कैथोलिक पादरी 53 वर्षीय रॉबिन वडक्कुमचेरी से शादी करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पादरी रॉबिन को दुष्कर्म के लिए 20 साल जेल की सजा सुनाई गई है और उसे वेटिकन द्वारा पादरी के पद से भी बर्खास्त कर दिया गया है।
पीड़िता की ओर से दायर याचिका अब सोमवार को शीर्ष अदालत में आएगी और पीड़िता ने उसके साथ यौनाचार करने वाले रॉबिन के लिए जमानत भी मांगी है, ताकि उनकी शादी हो सके।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह याचिका उसकी इच्छा के अनुसार दायर की गई है।
इससे पहले, रॉबिन ने भी पीड़िता से शादी करने की मांग वाली एक याचिका के साथ केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन अदालत ने तब इसे ठुकरा दिया था।
रॉबिन कन्नूर के पास एक पैरिश पादरी के रूप में सेवा कर रहा था और चर्च समर्थित स्कूल का प्रबंधक था, जहां पीड़िता 11वीं कक्षा की छात्रा थी।
स्कूल के बच्चों के बीच काम करने वाली चाइल्ड लाइन एजेंसी ने पुजारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
प्रबंधन द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में 7 फरवरी, 2017 को पीड़िता के बच्चे को जन्म देने के बाद पुजारी पर दबाव बढ़ गया था।
पुजारी को 27 फरवरी, 2017 को कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से गिरफ्तार किया गया था, जब वह देश से बाहर जाने की तैयारी कर रहा था।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉस्को) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के बाद पुजारी को 17 फरवरी, 2019 को थालास्सेरी की एक अदालत ने 20 साल कैद की सजा सुनाई थी।
सुनवाई के दौरान पीड़िता और उसकी मां मुकर गई। मगर इसके बावजूद, अदालत पहले से एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर आगे बढ़ी और फैसला सुनाया।
चार नन, एक अन्य पादरी और कॉन्वेंट से जुड़ी एक और महिला, जो पुलिस चार्जशीट में सह-आरोपी थे, को पर्याप्त सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
संयोग से पिछले साल मार्च में, मंथवाडी (वायनाड जिले में) सूबे के अधिकारियों ने मीडिया को सूचित किया कि वेटिकन ने सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद रॉबिन को उसके पद से बर्खास्त करने का फैसला किया। (आईएएनएस)
इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज से जुड़े वैज्ञानिक अगस्त में जलवायु को लेकर किए गए अपने मूल्यांकन की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करने वाले हैं. आइए जानें कि आईपीसीसी है क्या और क्यों इस पर पूरे विश्व की नजरें लगी हैं.
डॉयचे वैले पर अजीत निरंजन की रिपोर्ट
आईपीसीसी जलवायु संकट के मुद्दे पर काम कर रही है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी धरती के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है. आईपीसीसी की रिपोर्ट सरकार, कारोबारी नेताओं और यहां तक कि युवा प्रदर्शनकारियों को भी प्रभावित करती है. फिर भी, ऐसे कई लोग होंगे जिन्होंने आज तक इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के बारे में शायद नहीं सुना होगा.
आईपीसीसी - संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु विज्ञान और जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन करती है. इससे जुड़े वैज्ञानिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभाव और इसकी वजह से भविष्य में आने वाले खतरों की समीक्षा करते हैं. साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों के बारे में बताते हैं.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में आईपीसीसी को स्थापित किया था. यह संगठन जलवायु के बारे में मूल्यांकन करके कुछ सालों के अंतराल पर रिपोर्ट जारी करता है. इसे आसान भाषा में जारी किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ सकें.
आईपीसीसी दुनिया भर से सैकड़ों वैज्ञानिकों को चुनती है, ताकि वे साथी वैज्ञानिकों, सरकार, और उद्योग जगत से जुड़ी रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद मूल्यांकन रिपोर्ट जारी कर सकें. इस दौरान जलवायु परिवर्तन की स्थिति को जानने और उसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हजारों रिपोर्टों और शोध से जुड़े लेखों का अध्ययन किया जाता है.
हाल के वर्षों में संगठन की ओर से विशेष रिपोर्टों की एक सीरीज प्रकाशित की गई थी. इसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग वाले ग्रह पर रहने और जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन, महासागरों, और बर्फीली जगहों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी दी गई थी.
भविष्यवाणी नहीं, अनुमान
आईपीसीसी के जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि वे सरकारों को यह नहीं बताते कि करना क्या है, बल्कि वे संभावित नीतिगत विकल्पों का आकलन करते हैं. वे कहते हैं कि उनका निष्कर्ष भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वार्मिंग की वजह से होने वाली अलग-अलग घटनाओं के आधार लगाया गया अनुमान है.
मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करने से पहले, आईपीसीसी सरकार और नीति निर्माताओं के लिए खास जानकारी प्रकाशित करते हैं. यह जानकारी विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इनकी पूरी तरह समीक्षा करते हैं. साथ ही, सर्वसम्मति से मंजूरी देते हैं. इस रिपोर्ट से नीति निर्माताओं को भविष्य की योजना बनाने में मदद मिलती है.
जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर आईपीसीसी की तरफ से कुछ सालों के अंतराल पर प्रकाशित की जाने वाली मूल्यांकन रिपोर्ट इन समीक्षाओं के बिना प्रकाशित नहीं की जा सकती. पिछली रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित की गई थी जो इस संगठन की पांचवी रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट के आधार पर ही जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में यह तय किया गया कि इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखना है.
अगली मूल्यांकन रिपोर्ट
जुलाई 2021 के अंत में, लगभग 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के पहले भाग की समीक्षा शुरू की है. अगस्त में प्रकाशित होने के बाद, संभवत: नवंबर में ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में इससे जुड़े फैसलों की घोषणा की जाएगी. मूल्यांकन से जुड़ी पूरी रिपोर्ट 2022 में जारी होगी.
कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आईपीसीसी की आलोचना भी करते हैं. उदाहरण के लिए, आईपीसीसी पर यह आरोप लगाया गया कि संगठन जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई करने में असफल रहा, जो उत्सर्जन में कमी करने के प्रयासों में बाधक बनें.
हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय और मीडिया में, आईपीसीसी की रिपोर्टों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े विस्तृत और विश्वसनीय आकलन के तौर पर देखा जाता है. 2007 में, आईपीसीसी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. (dw.com)
इस्लामाबाद में हाल ही में 27 साल की नूर मुकादम को पहले गोली मारी गई और इसके बाद उसके सिर को धड़ को अलग कर दिया गया. जानकार कहते हैं कि नूर की हत्या पाकिस्तानी समाज में महिलाओं के प्रति जहरीली मानसिकता को उजागर करती है.
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट
नूर मुकादम दक्षिण कोरिया में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत की बेटी थी. 20 जुलाई को इस्लामाबाद में नूर की बेरहमी से हत्या कर दी गई. इस हत्या का आरोप जहीर जमीर जाफर पर लगा जो नूर को पहले से जानता था. पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, जहीर ने पहले नूर को गोली मारी और फिर उसके सिर को काटकर धड़ से अलग कर दिया.
पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बड़े पैमाने पर दर्ज की जाती हैं, लेकिन हाल ही में ऐसी हत्या की घटनाओं ने इस दक्षिण एशियाई देश को झकझोर कर रख दिया है. दक्षिणी सिंध प्रांत में पिछले रविवार को एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को जलाकर मार डाला, जबकि शिकारपुर शहर में उसी दिन एक अन्य व्यक्ति ने अपनी पत्नी, अपनी चाची, और दो नाबालिग बेटियों की गोली मारकर हत्या कर दी. इससे एक दिन पहले रावलपिंडी में 30 साल की महिला के साथ बलात्कार किया गया और फिर छुरा घोंपकर बुरी तरह से घायल कर दिया गया. अगले दिन उस महिला की मौत हो गई.
सिंध प्रांत में 18 जुलाई को एक महिला को उसके पति ने पीट-पीटकर मार डाला. पिछले महीने पेशावर में एक शख्स ने 'इज्जत' के नाम पर अपनी पूर्व पत्नी समेत दो महिलाओं की हत्या कर दी थी.
हाल की घटनाओं ने एक नई बहस छेड़ दी है कि सरकार महिलाओं की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है? क्या लोगों के बीच कानून का डर समाप्त हो गया है? क्या समाज महिलाओं को आजादी से जीने नहीं देना चाहता या समाज में महिलाओं को प्रताड़ित करने की प्रवृति बढ़ रही है? आखिर इन सब की वजह क्या है?
दोषियों को सजा न देने संस्कृति
महिलाओं के लिए दुनिया के खतरनाक देशों के तौर पर पाकिस्तान का छठा स्थान है. देश में महिलाओं के प्रति तेजी से बढ़ रहे घरेलू और यौन हिंसा के मामले इसकी गवाही देते हैं. महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में हालिया वृद्धि के लिए ‘सजा न देने की संस्कृति' जिम्मेदार है.
बलूचिस्तान प्रांत की पूर्व सांसद यास्मीन लहरी ने डॉयचे वेले को बताया, "एक युवा महिला वकील को 12 से अधिक बार चाकू मारने वाले व्यक्ति को हाल ही में अदालत ने रिहा कर दिया था. इससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को अंजाम देने वाले अपराधियों को क्या संदेश मिलता है?”
महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तार माई का भी यही मानना है. वह डॉयचे वेले को बताती हैं, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वाले लोग कानून से नहीं डरते हैं. अधिकांश पाकिस्तानी किसी महिला की पिटाई को हिंसा नहीं मानते हैं. पाकिस्तानी समाज अभी भी सामंती और आदिवासी परंपराओं में उलझा हुआ है.” साल 2002 में मुख्तार माई के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था.
पितृसत्तात्मक समाज और धर्म
अन्य कार्यकर्ताओं का भी कहना है कि पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के पीछे की मुख्य वजह है. लाहौर की रहने वाली महिला आधिकार कार्यकर्ता महनाज रहमान कहती हैं, "महिलाओं को सिखाया जाता है कि वे पुरुषों की बात मानें, क्योंकि परिवार में उनकी स्थिति बेहतर होती है. जब कोई महिला अपने अधिकारों की मांग करती है, तो उसे अक्सर हिंसा का शिकार होना पड़ता है.”
लाहौर की रहने वाली कार्यकर्ता शाजिया खान का मानना है कि कुछ मामलों में, धार्मिक शिक्षाओं से पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है. वह कहती हैं, "इस्लामी मौलवी धर्म की व्याख्या इस तरह से करते हैं जिससे यह आभास होता है कि पुरुषों को महिलाओं को दबाकर रखना चाहिए. वे कम उम्र में शादियों का समर्थन भी करते हैं. साथ ही, महिलाओं से यह कहा जाता है कि वे अपने पति की हर बात मानें. अगर पति हिंसा करे, तो भी उसका विरोध न करें. दरअसल, ये मौलवी पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने के लिए उकसाते हैं.”
पीड़ित को ही दोषी ठहराना
पाकिस्तान में कई अधिकार कार्यकर्ता देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान के "पीड़िता को दोषी ठहराने" की नीति को जिम्मेदार मानते हैं. पिछले महीने पीएम इमरान खान ने कहा था, "यदि एक महिला बहुत कम कपड़े पहनती है, तो किसी भी आदमी पर इसका असर होगा, अगर वे रोबोट नहीं हैं. अमेरिकी ब्रॉडकास्टर एचबीओ की तरफ से प्रसारित होने वाली डॉक्युमेंट्री-न्यूज सीरीज एक्सियोस के लिए साक्षात्कार के दौरान खान ने इसे "कॉमन सेन्स" वाली बात बताया था. इमरान खान की इस टिप्पणी की तीखी आलोचना हुई.
यह पहला मौका नहीं था जब इमरान खान ने महिलाओं को लेकर इस तरह की टिप्पणी की. इस साल की शुरुआत में, उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में यौन हिंसा में वृद्धि देश में "पर्दा" की कमी के कारण हुई है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता साजिया खान कहती हैं, "पीएम खान और उनके मंत्री अक्सर महिला विरोधी टिप्पणी करते हैं. इससे पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा मिलता है.”
पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का मानना है कि खान की सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया है. इसके बजाय, सरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए एक विधेयक लाई गई जो अभी तक पास नहीं हुई है.
पश्चिमी संस्कृति को दोष देते हैं रूढ़िवादी
पीएम इमरान खान की तरह, देश के रूढ़िवादी वर्ग भी महिलाओं के खिलाफ यौन और शारीरिक हिंसा के लिए "पश्चिमी संस्कृति" को जिम्मेदार ठहराते हैं. पूर्व सांसद सामिया राहील काजी का कहना है कि हिंसा की हालिया घटनाओं में ऐसे लोग शामिल हैं जो इस्लामी शिक्षाओं से दूर हो गए हैं.
काजी ने डॉयचे वेले को बताया, "नूर मुकादम मामले में कथित अपराधी नास्तिक है. देश में पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के बीच पारिवारिक व्यवस्था कमजोर हो रही है और इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं.” सांसद किश्वर जेहरा भी काजी की बातों का समर्थन करती हैं और कहती हैं, "हमें इन अपराधों को रोकने के लिए अपने पारिवारिक मूल्यों को फिर से वापस पाना होगा.” (dw.com)
कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत के शराब कारोबार को भारी घाटा हुआ था लेकिन इस साल कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन के दौरान शराब कारोबार को खास नुकसान नहीं झेलना पड़ा. बल्कि बीयर समेत कई अन्य शराबों की बिक्री बढ़ी.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
साल 2020 में भारत के शराब निर्माताओं और दुकानदारों को करोड़ों लीटर शराब नाली में बहानी पड़ी थी. मार्च 2020 के अंत में लगे देशव्यापी लॉकडाउन के चलते ऐसा हुआ था. खासकर बीयर को लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ी थी क्योंकि इसे लंबे समय तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता और इसकी सबसे ज्यादा बिक्री भी गर्मियों में ही होती है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में साल भर में बिकने वाली कुल बीयर की 60 फीसदी सिर्फ मार्च से सितंबर के बीच बिकती है. लेकिन पिछले साल इनमें से कई महीनों में लॉकडाउन लगा हुआ था और शराब की दुकानें और बार बंद थे. लेकिन साल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन के दौरान शराब कारोबार को खास नुकसान नहीं झेलना पड़ा और बीयर सहित अन्य शराब की बिक्री भी बढ़ती रही.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले साल के अंत में त्योहारों के दौरान शराब की मांग में बढ़ोत्तरी हुई, जो उसके बाद से ही बनी हुई है. इससे लॉकडाउन का भारी नुकसान झेलने वाली शराब कंपनियों को उबरने में बहुत मदद मिली है. बीयर की बात करें तो इसे बनाने वाली कंपनियों - यूनाइटेड ब्रुअरीज, बीरा 91 और सिंबा क्राफ्ट बीयर - जैसी सभी कंपनियों को इस दौरान फायदा हुआ है. वित्त वर्ष 2021 की आखिरी दोनों तिमाहियों में सर्दियों के मौसम के बावजूद बीयर से कमाई पिछले साल के मुकाबले ज्यादा रही है. लेकिन यह हुआ कैसे? भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान जब ज्यादातर उद्योग-धंधों को पहली लहर की ही तरह या उससे भी ज्यादा घाटा देखना पड़ा, शराब उद्योग कैसे इससे बचा रह गया?
दूसरी लहर में नहीं झेलना पड़ा नुकसान
पिछली लहर में बीयर निर्माताओं ने सबसे ज्यादा नुकसान झेला. जानकार बताते हैं गर्मियों में बढ़ने वाली मांग को पूरा करने के लिए बीयर निर्माता इससे पहले ही अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा देते हैं. एक बार पैक करने के बाद बीयर की उम्र 6 महीने ही होती है. जबकि बार और रेस्तरां के टैंक में तो इसे सिर्फ 14 दिन ही रखा जा सकता है. गर्मियों से तुरंत पहले खुदरा विक्रेता भी आने वाले बड़े बिक्री सीजन को ध्यान में रखकर काफी बीयर जमा कर लेते हैं. पिछली गर्मियों में लॉकडाउन से इन सभी को झटका लगा. लॉकडाउन खुलने के बाद भी ज्यादातर जगहों पर सरकार ने शराब की होम डिलीवरी के लिए अनुमति नही दी. इसने भी शराब की बर्बादी को बढ़ाया था. लॉकडाउन के बाद जब शराब की दुकानें खुलीं भी, तो उन्हें सिर्फ कुछ घंटों के लिए ही खोला जाता था. जिससे ज्यादा लोग शराब नहीं खरीद पाते थे.
इसके अलावा कोरोना की पहली लहर के दौरान लोगों में शराब को लेकर कई अफवाहें भी थीं. कई लोगों को डर था कि वे शराब पीने पर कोरोना से संक्रमित हो जाएंगे. कोरोना की दूसरी लहर में यह समस्याएं नहीं रहीं. दूसरी लहर में भी कोरोना लगभग इन्हीं महीनों में चरम पर रहा लेकिन परिस्थितियां पहली बार की तरह खराब नहीं हुई. बीयर निर्माताओं ने पहली लहर से सबक लेते हुए प्रक्रियाओं में कई बदलाव किए, जिनसे उन्हें नुकसान से बचने में मदद मिली. साथ ही शराब की ऑनलाइन डिलीवरी ने भी इस उद्योग को बचाने में काफी मदद की. जानकार बताते हैं कि भले ही अब शराब कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा हो लेकिन उनकी बिक्री अब भी कोरोना से पहले के दौर के मुकाबले कम है. अन्य सेक्टरों की तरह शराब कंपनियों का कारोबार चलाने और ऑफिस से जुड़ा खर्च फिलहाल कम हुआ है, जिससे उनके प्रॉफिट में बढ़त दिख रही है.
फिर भी घाटे में रहे रेस्तरां और बार
शराब की खुदरा दुकानों पर बीयर का स्टॉक हफ्ते भर से ज्यादा नहीं चलता, ऐसे में पिछले साल भी उन्हें उतना बड़ा घाटा नहीं हुआ था लेकिन बीयर निर्माताओं और रेस्टोरेंट्स को काफी नुकसान झेलना पड़ा था. जैसा बताया गया कि निर्माता तो घाटे से उबर गए हैं लेकिन रेस्टोरेंट और बार अब भी मार झेल रहे हैं. जून 2021 तक रेस्तरां, पब और बार में होने वाली शराब की बिक्री घटकर सिर्फ 11 फीसदी रह गई, जो साल 2019 तक 27 फीसदी हुआ करती थी. इनका हिस्सा भी कटकर खुदरा व्यापारियों के पास चला गया है. जिससे शराब की सीधी खरीद साल 2019 के 73 फीसदी आंकड़े से बढ़कर अब 88 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है. एल्कोहल प्रोडक्ट्स की कंपनी रेडिको खेतान लिमिटेड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अमर सिन्हा भी मानते हैं, "घरों में होने वाली शराब की खपत में बढ़ोत्तरी हुई है."
बार और रेस्तरां का बंद रहना बड़ी समस्या है. जानकार बताते हैं पिछले साल मार्च से सितंबर तक रेस्टोरेंट बंद रहे. साल के आखिरी में वहां थोड़ी बहुत मांग बढ़ी लेकिन अब वे फिर से अप्रैल से ही बंद हैं. बार और रेस्टोरेंट मालिकों की शिकायत है कि सरकार उन्हें ही सबसे पहले बंद करती है और सबसे आखिरी में खोले जाने की अनुमति देती है. ब्रुअर वर्ल्ड के टेक्निकल एंड कंसल्टेंसी हेड अमर श्रीवास्तव बताते हैं, "रेस्तरां और बार शराब के ब्रांड्स को नए प्रोडक्ट का प्रमोशन करने में मदद करते हैं. उनके बंद होने से एक पूरा सेगमेंट प्रभावित हुआ है. यहां कई नए ब्रांड भी प्रमोशन के लिए अपने प्रोडक्ट भेजते थे, अब ऐसा नहीं हो पा रहा है."
लोगों ने महंगी शराब पीनी शुरू की
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया कि कोरोना काल में लोगों ने महंगी शराब पीनी शुरू कर दी है. मसलन बीयर का उदाहरण लें तो लोग अब बड़े ग्रुप में बीयर नहीं पी रहे. या तो वे इसे अकेले पी रहे हैं या घर पर कुछ खास दोस्तों के साथ पी रहे हैं. ऐसे में वे ज्यादा पैसे खर्च कर प्रीमियम क्वालिटी की बीयर पी रहे हैं. यही वजह है कि बीयर निर्माता कंपनियां भी अपने प्रीमियम प्रोडक्ट का जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं और अपने प्रीमियम प्रोडक्ट को ज्यादा से ज्यादा राज्यों में पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. यह बातें अन्य शराब पर भी लागू होती हैं. अमर सिन्हा ने भी डीडब्ल्यू को बताया, "कोरोना के दौरान महंगी शराब की खपत में बढ़ोतरी हुई है."
पिछले डेढ़ सालों में शराब से जुड़ी लोगों की आदतों में कुछ और बदलाव भी देखने को मिले हैं. अब लोग एक बार में ज्यादा से ज्यादा शराब खरीद रहे हैं ताकि उन्हें बार-बार भीड़ के बीच ठेके पर न जाना पड़े. यह बात बीयर निर्माताओं और बीयर विक्रेताओं के लिए यह समस्या बन गई है क्योंकि अन्य एल्कोहल पेय के मुकाबले इसकी खपत ज्यादा होती है और लोगों के ऐसा करने से बीयर दुकानों पर तेजी से खत्म हो रही है. बीयर उपभोक्ताओं में एक और बदलाव देखने को मिला है. चूंकि वे घर पर ही इसे पी रहे हैं इसलिए वे कांच की बोतलों के बजाए कैन को ज्यादा वरीयता दे रहे हैं. कैन ज्यादा हल्के होते हैं, इन्हें कहीं ले जाना और स्टोर करना आसान होता है और इन्हें आसानी से फेंका जा सकता है. इन्हीं बदलावों को ध्यान में रखते हुए बीरा बीयर बनाने वाली बी9 बेवरेजेस ने ऐसा मल्टीपैक लॉन्च किया है जिसे लोग आसानी से घरों में इसे स्टोर कर सकें.
भविष्य का रास्ता ऑनलाइन
पिछले साल निर्माता, रेस्तरां मालिक और उपभोक्ता तीनों ही सरकार से एल्कोहल बिक्री को ऑनलाइन करने की मांग करते रहे थे लेकिन इसे बहुत देर से और बहुत कम राज्यों में शुरू किया जा सका था. अब न सिर्फ इसके लिए कई ऐप आ गई हैं बल्कि कई खुदरा विक्रेता भी इनकी होम डिलीवरी करने लगे हैं. रेडिको के अमर सिन्हा कहते हैं, "ऑनलाइन डिलीवरी बढ़ी है और आगे भी इसके बढ़ते रहने का अनुमान है. यह आगे चलकर गेमचेंजर साबित हो सकती है क्योंकि इससे महिला ग्राहक भी आसानी से शराब खरीद सकती हैं, जबकि भारत में भीड़भाड़ वाली शराब दुकानों और ठेकों से वे खरीददारी नहीं कर सकतीं."
शराब में सरकार को प्रभावित करने की ताकत
भारत में शराब पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. ऐसे में पिछले साल राज्य सरकारों ने इन पर कोविड-19 सेस भी लगाया, जबकि पहले ही शराब पर कई टैक्स लगते हैं. कई राज्यों में तो यह कोविड-19 सेस 70 फीसदी तक रहा. जिससे इनके दामों में तेज बढ़ोतरी हुई और पहले से ही महामारी से जूझ रही शराब की खपत और घटी. हालांकि अब ज्यादातर राज्यों में इसे खत्म किया जा चुका है. बीयर की बात करें तो एल्कोहल की मात्रा कम होने के बावजूद इस पर अन्य शराब के मुकाबले 2.5 गुना ज्यादा टैक्स वसूला जाता है.
फिर भी अमर श्रीवास्तव भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं. वे कहते हैं, 'भारत एक बड़ी युवा आबादी वाला देश है और यहां पर धीरे-धीरे शराब से जुड़े पूर्वाग्रह खत्म हो रहे हैं. आज से पंद्रह साल पहले इसकी सालाना प्रति व्यक्ति खपत 0.75 लीटर हुआ करती थी जो अब करीब 3 लीटर हो चुकी है.' शराब की खपत के मामले में भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020 में भारत की सरकारों को शराब पर टैक्स से 17 खरब रुपये का राजस्व मिला था, जो सेल्स टैक्स और जीएसटी से मिले टैक्स के बाद सबसे ज्यादा था. ये आंकड़े बताते हैं कि भले ही भारतीय समाज में आज भी शराब को नीची नजरों से देखा जाता हो लेकिन इसमें सरकारों पर भी बड़े दबाव बनाने की ताकत है.
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प्राथमिक स्कूलों में नामांकन के सरकारी आंकड़ों में जातिगत विभाजन के आंकड़े सामने आए हैं. इसे 2021 की जनगणना में जातिगत जनगणना ना करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद सामने आई एक महत्वपूर्ण जानकारी माना जा रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
जिला स्तर पर देश के सभी स्कूलों का डाटा इकट्ठा करने वाली प्रणाली यूडीआईएसईप्लस के तहत एक दशक से भी ज्यादा से स्कूलों में भर्ती होने वाले बच्चों की जाति की जानकारी की जा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने इन सरकारी आंकड़ों को छापा है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में प्राथमिक स्तर पर भर्ती होने वाले बच्चों में 45 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे.
रिपोर्ट के अनुसार बाकी लगभग 25 प्रतिशत हिन्दू सवर्ण और बौद्ध धर्म को छोड़ कर बाकी सभी धर्मों के अधिकतर बच्चे आते हैं. अखबार का मानना है कि चूंकि पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक नामांकन दर 100 प्रतिशत है, इस जातिगत तस्वीर को देश की आबादी में अलग अलग जातियों के हिस्सों का संकेत माना जा सकता है.
2011 की जनगणना
भारत की जनगणना में एससी और एसटी वर्गों की अलग से गिनती होती है, लेकिन बाकी जातियों की आबादी की गिनती नहीं होती है. 2011 की जनगणना की साथ साथ सामाजिक-आर्थिक जनगणना भी हुई थी, जिसके तहत जातिगत जनगणना भी की गई थी. हालांकि उस जनगणना में हासिल हुआ अलग अलग जातियों का आंकड़ा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इसी वजह से पिछले कुछ दिनों से कई पार्टियां 2021 की जनगणना के लिए जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही हैं, लेकिन केंद्र सरकार इसके खिलाफ है. केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोक सभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा, "भारत सरकार ने नीतिगत निर्णय लिया है कि जनगणना में एससी और एसटी के अलावा जाती के आधार पर जनगणना नहीं की जाएगी."
इसे लेकर विशेष रूप से तथाकथित पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों में नाराजगी है. ऐसे समय में यूडीआईएसईप्लस का यह डाटा काफी महत्वपूर्ण है. दूसरी जातियों की गिनती को तो कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि उस समय देश की आबादी में पिछड़े वर्गों की 52 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जिन्हें ओबीसी कहा गया.
आबादी के हिसाब से आरक्षण
स्कूल नामांकन के आंकड़े इस संख्या से कुछ नीचे हैं, लेकिन सांकेतिक जरूर हैं. राज्यवार आंकड़े भी उपलब्ध हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा ओबीसी (71 प्रतिशत) तमिलनाडु में हैं. राज्य में एससी 23 प्रतिशत, एसटी दो प्रतिशत और सामान्य श्रेणी चार प्रतिशत हैं. केरल में ओबीसी 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत और बिहार में 61 प्रतिशत हैं.
सबसे कम ओबीसी पश्चिम बंगाल (13 प्रतिशत) और पंजाब में (15 प्रतिशत) हैं. पंजाब में एससी सबसे ज्यादा (37 प्रतिशत) हैं. एसटी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ (32 प्रतिशत) हैं. पिछड़े वर्गों में लोकप्रिय पार्टियां लंबे समय से मांग करती आई हैं कि शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण आबादी में हिस्सेदारी के हिसाब से मिलना चाहिए. (dw.com)
सीमा विवाद पर असम और मिजोरम के बीच हुई हिंसा के बाद दोनों राज्यों में तनाव लगातार बढ़ रहा है. इस बीच, असम सरकार ने अपने नागरिकों को मिजोरम की यात्रा से बचने की सलाह दी है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
दोनों राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप के तेज होते दौर के बीच असम सरकार ने मिजोरम से राज्य में आने वाले सभी वाहनों की मादक वस्तुओं की तस्करी के सिलसिले में जांच का निर्देश दिया है. बराक घाटी के लोगों की ओर से नेशनल हाइवे की आर्थिक नाकेबंदी के कारण तीन दिनों से असम से कोई वाहन मिजोरम नहीं गया है. दूसरी ओर, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस सीमा पर सीआरपीएफ जवानों को तैनात करने का फैसला किया है.
हिंसा और तनाव
असम-मिजोरम सीमा पर सोमवार को तनाव बढ़ने के बाद मिजोरम पुलिस के जवानो की कथित फायरिंग में असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी. उसके बाद भी दोनों ओर से भड़काऊ बयानों का सिलसिला जारी है. असम सरकार ने जहां मिजोरम सीमा में बंकर बनाने का आरोप लगाया है वहीं मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि हमारे पास सबूत है कि असम ने पहले गोली चलाई. उनका कहना था, "असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मेरे मित्र हैं और मैंने निजी तौर उनसे इस मुद्दे पर बात की है. मुझे लगता है कि कुछ तत्व हैं जिन्होंने असम सरकार को गुमराह करने कि कोशिश की."
इस बीच, सीमा पर हिंसक झड़प के बाद असम सरकार ने राज्य के लोगों से मिजोरम नहीं जाने की सलाह दी है. राज्य के गृह सचिव एमएस मणिवन्नन की ओर से जारी इस एडवाइजरी में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए असम के लोगों को सलाह दी जाती है कि वे मिजोरम की यात्रा न करें. इससे उनको खतरा हो सकता है. सरकार का दावा है कि सोमवार की हिंसा के बाद भी कई मिजो संगठन असम और उसके लोगों के खिलाफ लगातार भड़काऊ बयान जारी कर रहे हैं. असम पुलिस के पास उपलब्ध वीडियो फुटेज से यह पता चला है कि कई नागरिक भारी हथियारों से लैस हैं.
हालांकि इससे पहले मिजोरम सरकार ने कहा था कि राज्य में रहने वाले असमिया लोगों को कोई खतरा नहीं है और उनकी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. मिजोरम के विभिन्न इलाकों में असम के करीब तीन हजार लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर दैनिक मजदूरी के काम से जुड़े हैं.
मिजोरम ने गुरुवार को केंद्र को एक लंबा पत्र लिख कर मौजूदा हालात में असम के साथ दोबारा अशांति भड़कने का अंदेशा जताया है. गृह सचिव की ओर से भेजे इस पत्र में कहा गया है कि असम सरकार जिस तरह सीमा पर सुरक्षाबलों के जवानों की भारी तैनाती कर रही है उससे हिंसा भड़कने का खतरा है.
आर्थिक नाकेबंदी
उधर, हिंसक झड़पों के बाद बराक घाटी के लोगों ने मिजोरम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले नेशनल हाइवे 306 की नाकेबंदी कर दी है जिससे जरूरी सामान और खाद्यान्नों से लदे ट्रक मिजोरम नहीं जा पा रहे हैं. यही नहीं, मिजोरम के वैरांग्टी तक जाने वाली एकमात्र रेलवे लाइन पर भी तोड़-फोड़ की गई है जिससे ट्रेनों की आवाजाही भी ठप है. मिजोरम सरकार ने बुधवार को केंद्रीयय गृह सचिव को पत्र भेज कर इस नाकेबंदी को फौरन खत्म करने की मांग की थी. लेकिन असम सरकार ने ऐसी किसी नाकेबंदी से इंकार किया है. कछार की एसपी रमनदीप कौर ने कहा कि ट्रक वालों और खाद्यान्न व्यापारियों ने सोमवार की झड़प के बाद मिजोरम को सप्लाई स्वेच्छा से बंद कर दी है.
मिजोरम के खाद्य, नागरिक आपूर्ति व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के. लालरिनलियाना ने कहा है कि असम की बराक घाटी के लोगों की ओर से की गई आर्थिक नाकेबंदी से राज्य में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पहले की तरह प्रभावित नहीं होगी. राज्य में खाद्यान्नों की कमी नहीं है और इसके वैकल्पिक इंतजाम किए जा रहे हैं.
लेकिन बढ़ती तनातनी के बीच ही असम सरकार ने गुरुवार को एक अधिसूचना में कहा है कि मिजोरम से असम में प्रवेश करने वाले सभी वाहनों की प्रतिबंधित मादक पदार्थों के लिए जांच की जाएगी. मिजोरम ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है. लेकिन असम सरकार ने यह कहते हुए इसे सही ठहराया है कि दो महीने के भीतर ऐसे 912 मामले दर्ज हुए हैं और 15 सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ ही सीमा पार से पहुंचने वाली प्रतिबंधित नशीली दवाएं भी भारी मात्रा में जब्त की गई है.
कानूनी लड़ाई
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार सीमा पर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. उधर, मिजोरम ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा कि वह किसी भी मुकदमे का सामना करने के लिए तैयार है. मिजोरम के उपमुख्यमंत्री पी तानलुइया ने कहा कि वे केवल अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हम तैयार हैं और अदालत में मुकदमा लड़ने के लिए भी तैयार हैं. हमारे पास अपना पक्ष साबित करने के लिए वैध दस्तावेज हैं."
इस बीच, कांग्रेस ने असम सरकार की ओर से जारी एडवाइजरी के मुद्दे पर बीजेपी और केंद्र सरकार पर हमला किया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला हिंदी में एक ट्वीट में कहा, "देश के इतिहास में सबसे शर्मसार करने वाला दिन. जब देशवासी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में न जा पाएं तो क्या मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है? मोदी है तो यही मुमकिन है.” (dw.com)
सब जानते हैं कि नेपाल के पहाड़ों से आने वाली नदियां बिहार में तबाही मचाती हैं. तो क्या भारत और नेपाल, दोनों ही इसके समाधान के प्रति उदासीन हैं? शायद, हां.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
तभी तो नेपाल के बराह क्षेत्र में बांध निर्माण के लिए सर्वे का काम आज भी दोनों ही देशों की सरकारों के उदासीन रवैये के कारण अटका पड़ा है. नेपाल के साथ साथ भारत की केन्द्र सरकार भी इसके निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखा रही. एक तरफ बाढ़ की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हुईं हैं तो नदियों को जोड़ने की योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतर सकीं हैं. कइयों को तो अभी केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है. आजादी के बाद से ही हर साल बिहार बाढ़ की विभीषिका से जूझता रहा है. इस बार भी एनडीआरएफ की सात और एसडीआरएफ की नौ टीमें 11 लाख लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा चुकी है. करीब 15 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है.
बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है. देश की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी में 22.1 प्रतिशत हिस्सा बिहार का ही है. बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 फीसदी इलाका बाढ़ की मार झेलने को विवश है. बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार में है लेकिन इससे नुकसान 22.8 प्रतिशत का है. वहीं यूपी में 25 फीसदी बाढ़ प्रभावित इलाके हैं लेकिन नुकसान सिर्फ 14.4 प्रतिशत का है. बिहार सरकार 1979 से बाढ़ के आंकड़े प्रकाशित करती आई है और तबसे अब तक बाढ़ से लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले पांच साल से हर साल औसतन राज्य के 19 जिलों में बाढ़ आती है और इस दौरान करीब 130 करोड़ की निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है.
उत्तर बिहार में मुख्य तौर से गंगा, कोसी, महानंदा, बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, कमला, अधवारा समूह और कनकई नदियां कहर ढाती हैं, वहीं दक्षिण बिहार में सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ आती है. बिहार में जो नदियां बहती हैं, उसका उद्गम स्थल ज्यादातर नेपाल में ही है. नेपाल से नदियां बहती हुई बिहार में आती है. नेपाल में जब बारिश अधिक होती है तो नदियों का जलस्तर बढ़ने लगता है और फिर बिहार में भी नदियां रौद्र रूप दिखाना शुरु कर देती है. करीब 50 छोटी बड़ी नदियां नेपाल से आए पानी से बाढ़ लाती हैं.
पानी के बदलते रंग से मिलती है बाढ़ की आहट
नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. कोसी नदी को तो बिहार का शोक ही कहा जाता है. कोसी नदी भारत और नेपाल के बड़े इलाके में फैली हुई है. इसका जलग्रहण क्षेत्र 95,656 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. 2008 में कोसी नदी के कारण ही कुसहा के पास बांध टूटा था जिससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी और करोड़ों का नुकसान हुआ था. जिसके निशान अब तक सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जैसे जिलों में देखने को मिल रहे हैं.
कोसी इलाके में लोग नदी में पानी के बदलते रंग को देख कर बाढ़ का अनुमान लगा लेते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब नदी के पानी का रंग लाल होने लगता है तब लोग यह समझ लेते हैं कि नदी में हिमालय से पानी आने लगा है और लोग बाढ़ से बचाव की तैयारी शुरु कर देते हैं. अकसर मई के आखिरी हफ्ते और जून के पहले हफ्ते के बीच पानी का रंग लाल होने लगता है. जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक के मुताबिक, "कोसी रंग से ही पहचानी जाती है कि उसका रूप कैसा होगा. प्रारंभिक दौर में ललपनिया, रौद्र रूप में मटमैला जो उसके गुस्सा को दर्शाता है और सौम्य रूप में शांत, निर्मल और स्वच्छ दिखती है कोसी."
नदी जोड़ परियोजनाओं की हकीकत
बिहार समेत देश में नदियों को जोड़ने की परियोजना का शोर बहुत रहा है लेकिन जमीनी सच्चाई इससे कोसों दूर है. धरातल पर काम होता दिख नहीं रहा है. नदी जोड़ परियोजना का मुख्य मकसद था कि जिस नदी में पानी ज्यादा है उसे वैसी नदी से जोड़ना जिसमें पानी कम हो. इससे दो फायदे थे, पहला बाढ़ से बचाव होता और दूसरा सिंचाई की सुविधा भी मिलती. बिहार सरकार ने पहले बाढ़ के लिए जिम्मेदार दो मुख्य नदियों, बागमती और बूढ़ी गंडक को जोड़ने की योजना बनाई थी लेकिन इस पर केंद्र की मंजूरी नहीं मिली. केंद्र सरकार ने इसे व्यावहारिक नहीं माना.
बिहार में ऐसी आठ नदी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. कोसी मेची परियोजना को केंद्र सरकार की अनुमति मिल गयी है. बिहार सरकार की कोशिश है कि केंद्र इसे राष्ट्रीय योजना घोषित कर दे ताकि 4,900 करोड़ रुपये की इस परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च केंद्र उठाए. इस योजना के तहत 76.20 किलोमीटर लंबी नहर बना कर कोसी के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा. बिहार सरकार के अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता इंदुभूषण कुमार का कहना है कि "कोसी-मेची नदी जोड़ योजना बाढ़ की समस्या को कुछ हद तक कम करेगी. नदियों का अधिक पानी जब दूसरी कम पानी वाली नदी में जाएगा तो बाढ़ का कहर कम होगा." वहीं बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा के अनुसार, "बिहार सरकार जल्द अपने दम पर छोटी नदियों को जोड़ने का काम शुरु करेगी." बिहार के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री प्रो आरबी सिंह भी कहते हैं, "इससे बरसाती नदियों का कहर कम हो सकता है जो कम समय में ज्यादा तबाही मचा कर निकल जाती है. वैसी नदियों को जोड़ने पर बाढ़ से काफी राहत मिल सकती है."
कई परियोजनाएं पड़ी हैं अधूरी
सरकार ने बाढ़ से बचाव और सिंचाई की व्यवस्था को देखते हुई कई नदी परियोजना की शुरुआत की लेकिन इसका भी फायदा मिलता दिख नहीं रहा है. जमीन की कमी, स्थानीय लोगों का विरोध, लालफीताशाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण योजनाएं मूर्त रुप नहीं ले पायी हैं. चाहे गंडक या महानंदा नदी परियोजना हो या फिर बागमती या कोसी नहर परियोजना हो, सभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है.
महानंदा नदी परियोजना से पूर्णिया, कटिहार,अररिया, किशनगंज की करीब पचास लाख की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती, लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो पायी है. बागमती परियोजना से सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर जिले में बाढ़ से राहत मिलती. किंतु अधूरी परियोजना के कारण बाढ़ का पानी नए इलाके में फैल रहा है. मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और गायघाट ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. सीतामढ़ी के पुपरी में पिछले दो साल से बांध टूट रहा है. स्थायी तौर पर मरम्मत नहीं होने से बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. पूर्वी चंपारण में बूढ़ी गंडक को सिकरहना नदी के नाम से जाना जाता है. वहां पर 93 किलोमीटर लंबा बांध बनना है लेकिन काम शुरु नहीं हो पाया है. गंडक नहर परियोजना के तहत 1,200 किलोमीटर लंबा बांध बनना है, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण योजना अधर में लटक गयी है. कोसी नहर योजना के तहत पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली जमीन के अभाव में हाल तक अटकी पड़ी थी.
कब पूरी होगी कोसी हाई डैम परियोजना
बिहार के जलसंसाधन मंत्री संजय झा का साफ मानना है, "जब तक नेपाल में कोसी नदी पर हाई डैम नहीं बनाया जाता तब तक बिहार में बाढ़ की समस्या से निजात नहीं मिल सकेगी." नेपाल और भारत के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद कोसी हाई डैम परियोजना की शुरुआत तक नहीं हो पायी है. नेपाल में कोसी नदी पर बांध बनाने से कोसी के प्रवाह को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी क्योंकि कोसी का उद्गम स्थल नेपाल में ही है. इस परियोजना के पूरा होने से दक्षिण पूर्व नेपाल और उत्तर बिहार को बाढ़ से राहत मिलती वहीं जल विद्युत का भी उत्पादन होता. साथ ही दोनों देशों को सिंचाई और नौ-परिवहन की भी सुविधा मिलती. लेकिन नेपाल में स्थानीय लोगों के विरोध के कारण आज तक सर्वे तक का काम नहीं हो पाया है.
बिहार सरकार के प्रयास से 2004 में नेपाल के काठमांडू, लहान व विराट नगर में सर्वे के लिए कार्यालय खोले गए, किंतु स्थानीय लोगों के भारी विरोध के कारण काम नहीं हो सका. नेपाल के लोगों का मानना है कि कोसी पर हाई डैम बनने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और बहुत बड़ा भू-भाग डूब जाएगा. भारत और नेपाल के बीच हाईडैम को लेकर पिछले बीस साल में कई बार बातचीत हो चुकी है लेकिन नतीजा अब तक शून्य ही है. नेपाल सरकार हर बार आश्वासन देती है कि काम जल्द शुरु हो जाएगा लेकिन आश्वासन हकीकत में परिणत होता नहीं दिख रहा है.
जल्द उफान मारने लगीं हैं नदियां
नदियों में जमा होता गाद भी बिहार में बाढ़ का एक अन्य कारण है. नदियों की तलहटी की सफाई नहीं होने के कारण गाद जमा होता जाता है. गंगा के साथ ही कोसी और गंडक नदी में गाद की समस्या बढ़ती जा रही है. सरकार का ध्यान सिर्फ गंगा में गाद की समस्या पर ही है. फिर भी गंगा में गाद की समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा में गाद होने का बड़ा कारण फरक्का बराज है. अन्य नदियों से भी गाद गंगा में बाढ़ के पानी से आता है लेकिन वह बंगाल की खाड़ी में नहीं जा पाता है. क्योंकि फरक्का में बांध बन जाने के कारण गाद बांध पर रुक जाता है.
केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार फरक्का में गंगा में गाद जमा होने की दर 218 मिलियन टन प्रति वर्ष है. गाद के कारण नदी की गहराई कम हो जाती है नतीजतन बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से नदी का पानी आसपास फैलने लगता है और वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बन जाता है. गाद के कारण नदी की अविरलता प्रभावित होती है. बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार कई बार गंगा की अविरलता बनाए रखने की मांग उठाते रहे हैं. बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र भी मानते हैं कि "बिहार में बाढ़ की समस्या की मूल वजह पानी की निकासी न होना और उसके साथ आने वाला गाद है."
विशेषज्ञों के अनुसार बिहार की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है कि यहां बाढ़ को टाला नहीं जा सकता है लेकिन सही प्रयास किया जाए तो उसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है. तभी तो बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं "बिहार में बाढ़ के आने को रोका जाना संभव नहीं है, लेकिन बेहतर प्रबंधन से आम जनजीवन को होने वाले नुकसान को अवश्य ही कम किया जा सकता है." इसलिए जरूरी है कि भारत और नेपाल सरकार के बीच बिना समय गवाएं सकारात्मक बातचीत हो, ताकि नेपाल के बराह क्षेत्र में बहुद्देशीय बांध निर्माण की बहुप्रतीक्षित योजना मूर्त रूप ले सके. (dw.com)