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नई दिल्ली , 19 जनवरी | कोरोना महामारी के कारण बीते दस माह से बंद दिल्ली के स्कूल सोमवार (18 जनवरी) से खुल गए। स्कूल खुलते ही छात्रों में गजब का उत्साह है। छात्रों के अनुसार बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए स्कूल का खुलना ज्यादा बेहतर है। वहीं निजी स्कूलों ने बच्चों को कोविड रिपोर्ट लाने के लिए भी कहा गया है। छात्रों का कहना है कि, "स्कूल खुलने से हम बहुत खुश हैं। घर पर ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ समस्याएं थी, हम अपने सवालों को न ढंग से पूछ पाते थे और न उत्तर समझ पाते थे।"
"ऑफलाइन पढ़ाई में बेहतर तरीके से अपनी समस्याओं को समझ सकते हैं, और न समझ आने पर फिर पूछ भी सकते हैं।"
कोरोना महामारी के बाद खुल रहे स्कूलों में बच्चों को भेजने के लिए अधिकतर अभिभावकों ने अपनी मंजूरी दी है। स्कूल प्रशासन का मानना है कि जल्द ही बाकी अभिभावक भी मंजूरी देंगे और स्कूल में पहले की तरह संख्या बढ़ जाएगी।
हालांकि स्कूल खुलने के बाद कुछ बदलाव तो जरूर हुए हैं। जिसमें पहला स्कूलों में प्रार्थना सभा(असेंबली) नहीं होगी, ना ही बच्चों के खाने के लिए कैंटीन खोली जाएगी। ना ही स्कूलों ने बच्चों को परिवहन की सुविधा दी है। बच्चों को खुद ही स्कूल पहुंचना होगा।
दिल्ली के प्राइवेट स्कूल प्रशासन ने बच्चों से कोरोना रिपोर्ट भी मांगी है। विद्या बाल भवन स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. सतवीर शर्मा ने आईएएनएस को बताया, "स्कूल खुल जाने से साभी के लिए एक राहत है, बच्चे अब प्रभावी रूप से पढ़ाई कर सकेंगे, वहीं टीचर्स और बच्चे आमने सामने बैठ कर बात कर सकेंगे और पढ़ाई से सम्बंधित समस्याओं पर भी चर्चा कर सकेंगे।"
"हमने बच्चों को कहा है कि आप अपनी कोविड रिपोर्ट भी साथ लेकर आएं और स्कूल में जमा करा दें, इससे हम और हमारे अन्य बच्चे सुरक्षित रहेंगे।"
हालांकि स्कूल में मौजूद मेडिकल रूम को कोविड 19 आइसोलेशन रूम में तब्दील कर दिया गया है।
स्कूल की एक टीचर ने आईएएनएस से कहा कि, "बहुत अच्छा लगा बच्चों से मुलाकात करके। ऑनलाइन क्लास के दौरान बहुत सारी चुनौती होती हैं। हम उम्मीद कर रहे हैं आने वाले दिनों में स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ेगी।"
दरअसल राजधानी दिल्ली में करीब दस महीने के बाद स्कूल खुले हैं। दिल्ली के गवर्नमेंट गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल में जब 10वीं क्लास की छात्राएं स्कूल पहुंची तो बेहद खुश दिखीं। बच्चों ने खुशी जाहिर करते हुए अपने कपड़ों पर मुस्कुराहट वाला एक स्टिकर लगाया हुआ था।
बच्चे मास्क लगाकर स्कूल पहुंचे रहे है और स्कूल्स में कोविड 19 सम्बंधित सभी नियमों का ध्यान रखा जा रहा है।
गवर्नमेंट गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल की वाइस प्रिंसिपल संध्या सिंह ने आईएएनएस को बताया, "मुझे बहुत खुशी है, बच्चे जिक्स वक्त नहीं थे स्कूल में सन्नाटा पसरा हुआ था। हमारे यहां 10वीं क्लास के आज 147 बच्चे उपस्थित हैं, जबकि 107 बच्चे अभी आना बाकी हैं।"
"क्लास में टीचर्स के लिए बहुत चुनौती है, ऑफलाइन क्लासेस के साथ अब ऑनलाइन क्लास भी करनी है।"
दरअसल मई में बोर्ड की परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में अब कई राज्यों ने 10वीं 12वीं के छात्रों के लिए स्कूलों को खोलने का फैसला लिया है।
अभी फिलहाल स्कूल खोलने में काफी सख्ती का पालन किया गया है, जैसे कि छात्रों के अभिभावकों के लिखित इजाजत जरूरी है। वहीं स्कूल में कोई फिजिकल एक्टिविटी नहीं होगी और हर जगह गाइडलाइंस लिखनी होगी।
दिल्ली में कोरोना संक्रमण अब काफी हदतक काबू में आ चुका है, हालांकि खतरा बरकरार है, यही कारण है कि लोगों से नियमों का पालन करने की अपील की जा रही है। (आईएएनएस)
मुंबई, 19 जनवरी | मीडिया की दो हस्तियों के व्हाट्सऐप चैट के हाल में हुए लीक पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी ने मंगलवार को कहा कि इन दोनों हस्तियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया है और देश के गोपनीयता अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया। महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को सौंपे गए एक ज्ञापन में, कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत और राजू वाघमारे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्णब गोस्वामी और टीआरपी एजेंसी बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच हुई कथित सोशल मीडिया चैट के लीक होने से राष्ट्रीय सुरक्षा कमजोर हुई है।
अपनी ओर से, देशमुख ने आश्वासन दिया कि वह फैसला लेने से पहले इस मामले को राज्य मंत्रिमंडल में उठाएंगे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस शामिल हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग के एक दिन बाद देशमुख ने 18 जनवरी को कहा कि सरकार यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित ऐसे उच्च वगीकृत विवरणों तक गोस्वामी को कैसे पहुंच मिली।
सावंत और वाघमारे ने बताया कि एक चैट में, गोस्वामी दासगुप्ता से कहते हैं कि 14 फरवरी, 2019 को हुए सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सीमा पार की जवाबी कार्रवाई की योजना की जानकारी गोस्वामी को कैसे थी।
कांग्रेस के ज्ञापन में कहा गया है, इस चैट पर तारीख और समय बताते हैं कि यह बातचीत 26 फरवरी, 2019 को भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमले से 3 दिन पहले की थी।
दोनों नेताओं ने देशमुख को बताया कि यह कैसे गंभीर चिंता का विषय है कि सशस्त्र बलों के राष्ट्रीय सुरक्षा अभियानों के बारे में न केवल गोस्वामी को जानकारी थी, बल्कि उन्होंने इसे दासगुप्त के साथ खुले तौर पर साझा किया था, और यह भी पता नहीं है कि कितने लोगों तक ये जानकारी पहुंची होगी।
दोनों नेताओं ने कहा, गोस्वामी की कार्रवाई ऑफिशियल सेक्रेट एक्ट (ओएसए) 1923 की धारा 5 का साफ-साफ उल्लंघन है, जो वगीर्कृत राष्ट्रीय सुरक्षा अभियानों की जानकारी किसी भी व्यक्ति से साझा करने को मना करती है।
उन्होंने राज्य के गृह मंत्री से जांच का आदेश देने और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के लिए गोस्वामी के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की।
सावंत और वाघमारे ने रिपब्लिक टीवी के एक अन्य मुद्दे को भी उठाया जिसमें कथित तौर पर रिपब्लिक टीवी ने प्रसार भारती उपग्रह का उपयोग कर अवैध रूप से बिना शुल्क का भुगतान किए लाखों लोगों तक अपनी पहुंच बनाई।
यह मामला गोस्वामी की एक अन्य बातचीत में सामने आया जिसमें वह दावा कर रहे हैं कि तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने इस मामले को तब तक लंबित रखा जब तक कि रिपब्लिक टीवी सरकार की कार्रवाई से बच नहीं गया।
इस मुद्दे पर सावंत और वाघमारे ने मुंबई पुलिस की टीआरपी जांच के साथ-साथ रिपब्लिक टीवी और कुछ अन्य निजी टेलीविजन चैनलों के टीआरपी डेटा में हेरफेर के मामले की भी जांच की मांग की। उनका कहना है कि इससे भारतीय खजाने को भारी नुकसान हुआ है। (आईएएनएस)
इंदौर, 19 जनवरी | मध्य प्रदेश में माफियाओं के खिलाफ जारी अभियान में इंदौर के प्रशासन ने अब तक के सबसे बड़े राशन रैकेट का खुलासा करने में कामयाबी हासिल की है। इस रैकेट के मुखिया भरत दवे को इंदौर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। प्रशासन 12 प्राथमिकी दर्ज कर 40 राशन माफियाओं को आरेापी बना रहा है वहीं कई के खिलाफ राष्टीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इंदौर में अरसे से गरीबों के हक पर डाका डालने की शिकायतें आ रही है। इस शिकायत के आधार पर इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने 12 राशन दुकानों की जांच कराई तो जो तथ्य सामने आए वह चौंकाने वाले थे। इस जांच में पता चला कि गरीबों को राशन दुकान से राशन देने में बड़ी गफलत होती है। यहां लगभग 50 हजार राशन कार्डधरियों के हक पर डाका डाला गया था।
सूत्रों की मानें तो जांच में यह भी बात सामने आई कि प्रभावशाली व्यक्ति अपने नाम या अपने परिजनों के नाम पर एक या उससे ज्यादा राशन दुकानें लिए हुए है और यहां आने वाले राशन में बड़े पैमाने पर गड़बड़़ी कर उसे सीधे बाजार में बेच देता है। इस तरह के रैकेट का जाल हर तरफ फैला हुआ है।
सूत्रों का दावा है कि इस रैकेट में तमाम बड़े कारोबारी शामिल है, इसके सरगना भरत दवे को दबोच लिया गया है। वहीं 12 प्राथमिकी दर्ज की जा रही है और 40 लोगों को आरोपी बनाया जा रहा है। इसके साथ ही कई लेागों पर प्रशासन ने रासुका के तहत कार्रवाई करने का मन भी बना लिया है।
इंदौर में इस रैकेट के खुलासे ने यह तो साफ कर ही दिया है कि राशन के क्षेत्र में भी माफिया सक्रिय हैं। इसके तार सिर्फ इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश में फैले हो सकते हैं। यहां के प्रशासन को एक सिरा मिल गया है और बात आगे बढ़ेगी तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे।
ज्ञात हो कि राज्य में इन दिनों तमाम माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई का दौर जारी है। शराब माफिया, मिलावटखोर से लेकर जमीन माफियाओं के खिलाफ अभियान चला हुआ है। अब राशन माफिया रैकेट का खुलासा हुआ है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | अब देश में हर साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाएगी। मोदी सरकार के निर्णय के बाद संस्कृति मंत्रालय ने मंगलवार को इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। अधिसूचना के मुताबिक, भारत सरकार ने नेताजी की 125वीं जयंती वर्ष को 23 जनवरी 2021 से आरम्भ करने का निर्णय लिया है, ताकि राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर उनका सम्मान किया जा सके।
संस्कृति मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, नेताजी की अदम्य भावना और राष्ट्र के प्रति उनके नि: स्वार्थ सेवा को देखते हुए भारत सरकार ने 23 जनवरी को हर वर्ष उनके जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इससे देश के लोगों, विशेषकर युवाओं को विपत्ति के समय नेताजी के जीवन से प्रेरणा मिलेगी और उनमे देश भक्ति की भावना भी समाहित होगी।
मोदी सरकार इस बार नेताजी की 125वीं जयंती को यादगार तरीके से मनाने की दिशा में जोर शोर से जुटी है। गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाने के लिए मोदी सरकार एक उच्च स्तरीय समिति भी बीते दिनों गठित कर चुकी है। (आईएएनएस)
लखनऊ, 19 जनवरी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आत्मनिर्भर भारत की सबसे बड़ी प्रदर्शनी का मुख्यमंत्री योगी बुधवार को शुभारंभ करने जा रहे हैं। दीनदयाल हस्तकला संकुल बड़ा लालपुर में बुधवार से शुरू होने जा रही प्रदर्शनी में 16 जिलों के 50 जीआई उत्पादों के स्टाल लगाए जाएंगे। प्रदर्शनी में हस्त शिल्पियों के लिए सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान उन्हें भारत सरकार के सहयोग से मुफ्त टूल किट दिए जाएंगे। फिक्की के सहयोग से आयोजित इस फिजिकल और वर्चुअल प्रदर्शनी का मुख्यमंत्री योगी बुधवार को शुभारंभ करेंगे। प्रदर्शनी में प्रदेश के जीआई उत्पादों के साथ जीआई उत्पाद होने कि प्रक्रिया में शामिल उत्पाद भी होंगे। प्रदर्शनी के साथ ही हस्तशिल्पियों को तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। प्रदर्शनी में वाराणसी, भदोही, चंदौली, गाजीपुर, मिजार्पुर, आजमगढ़, बुलंदशहर, फरुखाबाद, फिरोजाबाद, गोरखपुर, कानपुर, कन्नौज, लखनऊ, प्रयागराज, सहारनपुर और सिद्धार्थनगर के 50 जीआई उत्पादों के स्टाल लगाए जाएंगे।
जीआई उत्पादों के लिए तकनीकी उन्नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 240 शिल्पियों को प्रशिक्षण, 600 को साफ्ट स्किल ट्रेनिंग के साथ 270 शिल्पियों को नई तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
कार्यक्रम के दौरान 2000 शिल्पियों को उन्नत टूल किट दिए जाएंगे। विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत 300 और ओडीओपी प्रशिक्षण योजना के तहत 300 लाभार्थियों को हैण्डलूम टूल किट दिए जाएंगे। इसके साथ ही पीएमईजीपी, एमवाईएसवाई, ओडीओपी मार्जिन मनी ऋण योजना के तहत हर योजना के दो लाभार्थियों को चेक वितरित किया जाएगा। 24 जनवरी तक चलने वाली इस प्रदर्शनी के जरिये योगी सरकार ब्रांड यूपी का नया आयाम सामने लाने की तैयारी में है। प्रदर्शनी में 28 अद्वितीय जीआई उत्पाद भी प्रदर्शित किए जाएंगे। जिनमें से 7 वाराणसी के हैं। प्रदर्शनी के जरिये सरकार खरीदारों और विक्रेताओं को संवाद के लिए फिजिकल और वर्चुअल प्लेटफार्म देगी। इस दौरान राज्य सरकार सेमिनार आयोजित कर अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के जरिये जीआई उत्पादों की विशेषता, उपयोगिता, अवसर और व्यापार को बढ़ावा देने का हुनर भी सिखाएगी। (आईएएनएस)
मिर्जापुर (उप्र), 19 जनवरी | उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला स्थित विंध्याचल के राम गया घाट पर मंगलवार को यात्रियों से भरी नाव गंगा में डूब गई। नाव में महिलाएं और पुरुष सवार थे। हलांकि किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। सूचना के बाद मौके पर पहुंचे स्टीमर की मदद से उन्हें बाहर निकाला गया।
विंध्याचल कोतवाली क्षेत्र के राम गया घाट के आसपास रहने वाले लोग गंगा पार मटर के खेत में मजदूरी करने के लिए जाते हैं। मंगलवार को चार नाव से सभी गंगा पार जा रहे थे। इसमें तीन बड़ी नावों पर सवार होकर सभी लोग गंगा के उस पार पहुंच गए लेकिन छोटी नाव में सवार 18 लोगों की नाव बीच गंगा में पलट गई।
विंध्याचल कोतवाली के एसआई के.एन. मौर्या ने बताया कि विन्ध्याचल क्षेत्रान्तर्गत शिवपुर रामगया घाट पर कुल 18 पुरूष, महिला एवं बालिकाएं नाव में सवार होकर मटर की फली तोड़ने के लिए चील्ह क्षेत्र में जा रही थी कि अचानक नाव पलट गयी। नाव में सवार सभी को सकुशल बचा लिया गया है। पानी में गिरने के कारण थोड़ी बहुत ठंड लग सकती है। इसी कारण सभी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
नाव पलटने पर उसमें सवार एक पुरुष और महिला व लड़कियां डूबने लगीं। नाव डूबते देख वहां मौजूद लोगों ने तुरंत पुलिस को फोन कर सूचना दी। मौके पर मल्लाह और पुलिस भी पहुंच गई। मल्लाहों न पुलिस की मदद से सभी 18 लोगों को गंगा से बाहर निकाल लिया।
नाव डूबने की हुई घटना पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी संज्ञान लिया है। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को तत्काल मौके पर पहुंचकर बचाव कार्य करने के निर्देश दिए। साथ ही हर संभव मदद उपलब्ध कराने के लिए कहा है।
नाव डूबने की सूचना पर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और जैसे-जैसे लोगों को पानी से बाहर निकाला गया, उनको जिला अस्पताल भेजने में लग गई। सभी लोग बचा लिए गए, उनको विंध्याचल स्वास्थ्य केंद व जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। नाव सवार लोग विंध्याचल के ही थे। इसी दौरान वहां पर गोताखोरों को लगाया गया। वाराणसी से तत्काल एनडीआरएफ की टीमों को भी मिर्जापुर बुलाया गया। वहीं जानकारी होने के बाद मौके पर जिलाधिकारी मिर्जापुर व पुलिस अधीक्षक मिर्जापुर सहित अन्य प्रशासनिक व पुलिस बल के अधिकारी एवं कर्मचारीगण मौजूद रहे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | आईएएनएस सी-वोटर ने राज्यों के सर्वेक्षण के साथ बड़े पैमाने पर जनता से संबंधित राष्ट्रीय मुद्दों की संभावना के बारे में उनकी राय के आश्चर्यजनक पैटर्न को उजागर किया है। बीते दो महीने से किसानों का मुद्दा राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्र में एक ज्वलंत विषय बना हुआ हैं, लेकिन यह राष्ट्रीय मुद्दों के सार्वजनिक विमर्श में अलोकप्रिय है।
सर्वेक्षण से पता चला कि देश के दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में रहने वाली आबादी के बीच किसानों के मुद्दे सबसे कम परेशान करने वाले कारक हैं। मात्र 0.57 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इसे राष्ट्र के सामने सबसे महत्वपूर्ण समस्या के रूप में बताया।
हालांकि, इस मुद्दे ने तमिलनाडु में जनता की भावनाओं को जरूर झकझोरा है, क्योंकि 25 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने इसे सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा माना।
सर्वेक्षण में पांच राज्यों को शामिल किया गया था, जिनमें पुड्डुचेरी, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम के 45,000 से अधिक उत्तरदाताओं के जवाब सामने आए।
सर्वेक्षण के अनुसार, लोगों को बेरोजगारी के बारे में सबसे अधिक चिंतित पाया गया, इसके बाद वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से वे परेशान हैं। हैरानी की बात तो यह है कोविड-19 महामारी, जिसने पूरी दुनिया को अपने घुटनों पर झुकने के लिए मजबूर किया, वह भी लोगों के लिए ज्यादा चिंता का विषय नहीं है।
हालांकि, यह केरल में राष्ट्रीय मुद्दों के चार्ट में सबसे ऊपर है, क्योंकि 24 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने इसे सबसे अधिक चिंता का विषय के रूप में चुना, जिसका खुलासा सर्वेक्षण में हुआ।
सर्वेक्षण से संकेत मिला कि पश्चिम बंगाल में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। राज्य में बेरोजगारी के बारे में 26.86 प्रतिशत उत्तरदाताओं को सबसे अधिक चिंतित पाया गया।
पुड्डुचेरी में लोगों ने 'स्थानीय मुद्दों' को सबसे अधिक बड़े कारक के रूप में चुना। वहीं 26 प्रतिशत के करीब उत्तरदाताओं ने इसे अपने सबसे महत्वपूर्ण चिंता के रूप में चुना। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | देश की सबसे वयोवृद्ध ऑन्कोलॉजिस्ट वी. शंता का चेन्नई में मंगलवार सुबह निधन हो गया। उन्होंने चेन्नई कैंसर इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआईए) की अगुवाई की थी और उन्हें अडयार कैंसर इंस्टीट्यूट के नाम से भी जाना जाता था। वो 93 साल की थी। पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री और रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित शांता को सोमवार रात तबीयत बिगड़ने के बाद चेन्नई के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. वी. शांता के निधन पर दुख व्यक्त किया है।
एक ट्वीट में, प्रधान मंत्री ने कहा, डॉ. वी. शांता को देश में शीर्ष गुणवत्ता वाले कैंसर केयर सुनिश्चित करने के उनके उत्कृष्ट प्रयासों के लिए याद किया जाएगा। चेन्नई के अडयार स्थित कैंसर संस्थान गरीबों और दलितों की सेवा करने में सबसे आगे है। 2018 में संस्थान की मेरी यात्रा को याद करें। डॉ. वी. शांता के निधन से दुखी। ओम शांति।
शांता ने इलाज के दौरान चेन्नई के अपोलो अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। मंगलवार सुबह करीब 3.55 बजे उनकी मौत हो गई।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी ने घोषणा की कि डॉ. शांता का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। (आईएएनएस)
-शरद शर्मा
कोरोना से निपटने के लिए देशभर में वैक्सीनेशन का काम जारी है. इसी बीच भारत बायोटेक ने फैक्टशीट जारी करके बताया है कि किस बीमारी या अवस्था में लोगों को कोरोना वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. भारत बायोटेक के मुताबिक- यदि किसी बीमारी की वजह से आपकी इम्युनिटी कमजोर है या आप कुछ ऐसी दवाएं ले रहे हैं, जिससे आपकी इम्युनिटी प्रभावित होती है तो आपको कोवैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर आप इम्युनोडेफिशिएंसी से ग्रस्त हैं या इम्युनिटी सप्रैशन पर हैं, यानी आप किसी अन्य ट्रीटमेंट के लिए इम्युनिटी कम कर रहे हैं तो कोरोना वैक्सीन ले सकते हैं. मगर अब भारत बायोटेक द्वारा जारी बयान में ऐसे लोगों को कोवैक्सीन न लगवाने की सलाह दी गई है.
जिन्हें एलर्जी की शिकायत रही है.
बुखार होने पर न लगवाएं.
जो लोग ब्लीडिंग डिसऑर्डर से ग्रस्त हैं या खून पतला करने की दवाई ले रहे हैं
गर्भवती महिलाएं, या जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं.
इसके अलावा भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर मामलों में नहीं लगवानी चाहिए, जिसके बारे में पूरी जानकारी वैक्सीनेशन ऑफिसर को देनी चाहिए.
भारत बायोटेक का कहना है कि जब आप वैक्सीन लगवा रहे हों तो ऐसी बातों की जानकारी आपको वैक्सीनेशन ऑफिसर को देनी चाहिए. यदि किसी बीमारी की वजह से आपकी नियमित दवाएं चल रही हैं तो इसकी जानकारी भी आपको देनी चाहिए, यानी वैक्सीन लगवाने से पहले अपने बारे में आपको पूरी जानकारी देनी होगी.
गौरतलब है कि देशभर से कोरोना वैक्सीन के कुछ मामूली प्रतिकूल प्रभाव सामने आने के बाद ये फैक्टशीट जारी की गई है. हालांकि कि कंपनी का ये भी कहना है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन से कोई गंभीर एलर्जिक रिएक्शन हो.
-सुनील कुमार सिंह
मुंबई: छोटी-छोटी ठगी करके अब तक 22 हजार से ज्यादा महिलाओं को ठगी का शिकार बना चुका एक शातिर ठग मुंबई पुलिस के हत्थे चढ़ा है. साइबर पुलिस ने 32 साल के एक ऐसे शातिर ठग को पकड़ा है जो अब तक 22 हजार से ज्यादा महिलाओं को हजारों रुपए का चुना लगा चुका है. हैरानी की बात है कि गिरफ्तार युवक का नाम आशीष अहीर है और पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर आशीष लंदन की यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर चुका है.
मुंबई साइबर सेल की डीसीपी रश्मि करंदीकर के मुताबिक उनके पास एक महिला की शिकायत आई थी जिसमें ऑनलाइन शॉपिंग में ठगी की बात थी. इसके बाद मामला दर्ज कर जांच शुरू की गई और फिर आरोपी को सूरत से गिरफ्तार कर लिया गया.
पूछताछ में उसने बताया कि लंदन से पढ़ाई करने के बाद सूरत में उसने कपड़ों का कारोबार शुरू किया था लेकिन लॉकडाउन की वजह से उसे काफी नुकसान हुआ. इस वजह से उस पर कर्जे का बोझ बढ़ गया और उसे चुकाने के लिए उसने ठगी का गलत रास्ता चुना.
आरोपी ने खुद ही Shopiiee.com नाम की वेबसाइट बनाई और उसपर अच्छे कपड़े, सस्ते दामों में बेचने का दावा किया. वेबसाइट पर सुंदर और सस्ते कपड़े देख महिलाओं ने ऑनलाइन खरीदना शुरू किया. आरोपी ने कुछ को तो कपड़े भिजवाए लेकिन ज्यादातर के कपड़े भिजवाए ही नही.
अब चूंकि, ठगी भी कुछ हजार रुपयों की ही होती थी इसलिए पुलिस में में जाना ज्यादातर लोगों ने पसंद नही किया और उसकी ठगी चलती रही. लेकिन मुंबई साइबर सेल में शिकायत आने के बाद इसकी जांच की गई, जिससे कि उसकी ठगी उजागर हो गई औऱ अब वो सलाखों के पीछे है.
करीब चार लाख लोगों को टीका लगने के बाद भारत बायोटेक ने कहा है कि टीका बीमार लोगों और गर्भवती महिलाओं को नहीं लगाया जाना चाहिए. सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे में इस टीके को टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल रखना कितना सही है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
केंद्र सरकार ने सोमवार 18 जनवरी को बताया कि टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक 3,81,305 लोगों को टीका लग चुका है. हालांकि सरकार यह जानकारी नहीं दे रही है कि कितनों को सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड लगाई गई है और कितनों को भारत बायोटेक की कोवैक्सिन, लेकिन केंद्र सरकार के अस्पतालों में सिर्फ कोवैक्सिन ही लगाई जा रही है. लाखों लोगों को टीका लग जाने के बाद सोमवार को भारत बायोटेक ने कहा कि उसका टीका सबके लिए नहीं है.
कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर एक 'फैक्ट-शीट' जारी की जिसमें बताया गया है कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कोवैक्सिन नहीं लेनी चाहिए. इसके अलावा जिन्हें कोई अलर्जी हो, बुखार हो, खून बहने से संबंधित कोई बीमारी हो, जिनकी इम्युनिटी कमजोर हो और इनके अलावा और कोई स्वास्थ्य संबंधी गंभीर शिकायत हो उन्हें कोवैक्सिन नहीं दी जानी चाहिए.
कंपनी के इस बयान को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह जानकारी टीकाकरण शुरू करने से पहले सरकार के पास थी और क्या कोवैक्सिन देने के लिए अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को चुनते समय इन बिंदुओं का ख्याल रखा गया था? सरकार ने अभी इस विषय में कुछ नहीं कहा है. सरकार ने बस इतना कहा है कि इनमें से सिर्फ 580 लोगों में कुछ दुष्प्रभाव देखे गए, लेकिन कोई भी मामला गंभीर नहीं है.
सात लोग अस्पताल में भर्ती हैं. टीका लगने के बाद दो लोगों की मौत भी हो गई, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि उनकी मौत का टीके से कोई संबंध नहीं है. लेकिन टीकाकरण अभियान की रफ्तार अब धीमी पड़ रही है. देश के कई हिस्सों में कर्मचारी उतनी संख्या में टीकाकरण केंद्रों में नहीं आ रहे हैं जितनी अधिकारियों को उम्मीद थी.
मीडिया में आई कुछ खबरों के अनुसार दिल्ली के 81 केंद्रों पर सोमवार को तय लाभार्थियों में से सिर्फ 44 प्रतिशत लोग आए. लोक नायक अस्पताल में कार्यक्रम में तीन घंटों की देर हुई क्योंकि वहां सिर्फ दो लाभार्थी टीका लेने आए. एम्स दिल्ली के रेजिडेंट डॉक्टर्स संगठन के पूर्व अध्यक्ष हरजीत सिंह भट्टी ने दावा किया है कि एम्स में भी सिर्फ आठ लाभार्थी कोवैक्सिन लेने आए जबकि तय था 100 लोगों का आना.
मांग उठ रही है कि सरकार जल्द इन आशंकाओं को संबोधित करे और इस बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से दे.
एक शख्स शिकागो के ओ'हारे हवाई अड्डे पर तीन महीने तक छिपा रहा. उसका दावा है कि उसने कोरोना वायरस से बचने के लिए ऐसा किया और वह डरा हुआ था. आदित्य सिंह नाम का शख्स हवाई अड्डे के प्रतिबंधित सुरक्षा क्षेत्र में रह रहा था.
कैलिफोर्निया के रहने वाले आदित्य सिंह पर गंभीर अपराध के तहत एयरपोर्ट के प्रतिबंधित क्षेत्र में गलत तरीके से दाखिल होने का आरोप लगाया गया है. सिंह पिछले तीन महीने से शिकागो के ओ'हारे हवाई अड्डे पर रह रहा था. 36 वर्षीय सिंह ने पुलिस को बताया कि कोरोना वायरस महामारी के कारण वह यात्रा करने से डर गया था. उस पर एयरपोर्ट के कर्मचारी का बैज चुराने का भी आरोप लगाया गया है. जज ने कहा है कि अगर वे जमानत के लिए एक हजार डॉलर देता है तो उसे छोड़ दिया जाएगा लेकिन उसे दोबारा एयरपोर्ट में दाखिल होने से रोक दिया है.
कुक काउंटी की जज सुजाना ओर्टिज ने चिंता जताते हुए कहा कि कोई सुरक्षित क्षेत्र में बिना किसी के पता चले इतने लंबे समय कैसे रह सकता है. जज ने कहा, "कोर्ट ने इन तथ्यों और परिस्थितियों को कथित अवधि के लिए काफी चौंकाने वाला पाया है." जज ने कहा, "हवाई अड्डे के एक सुरक्षित हिस्से में फर्जी बैज के साथ रहना खतरनाक है और लोगों की सुरक्षित हवाई यात्रा के लिए हवाई अड्डों का पूरी तरह से सुरक्षित होना जरूरी है. मुझे लगता है कि उन कथित आरोप से वह शख्स पूरे समुदाय के लिए खतरा है."
कर्मचारियों को हुआ संदेह पैदा
सुनवाई के दौरान सरकारी वकील कैथलीन हगर्टी ने कहा यूनाइटेड एयरलाइंस के दो कर्मचारियों ने सिंह को देखा और उन्हें शक हुआ. जब कर्मचारियों ने सिंह से पहचान पत्र दिखाने को कहा तो उसने ऑपरेशन मैनेजर का पहचान पत्र दिखाया, हालांकि मैनेजर ने अक्टूबर महीने में ही बैज के गुम होने की शिकायत दर्ज कराई थी. कर्मचारियों ने इसके बाद पुलिस को सूचना दी जिसके बाद सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.
हगर्टी ने कहा कि सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि वह "कोविड-19 के कारण घर जाने को लेकर डर गया था." सिंह ने बताया कि उसे बैज एयरपोर्ट पर मिला और अन्य यात्रियों द्वारा दिए गए भोजन के सहारे वह अपना पेट भर रहा था.
बचाव पक्ष के वकील कर्टनी स्मॉलवुड ने कहा कि यह साफ नहीं है कि लॉस एंजेलिस का रहने वाला सिंह शिकागो क्यों आया. स्मॉलवुड के मुताबिक सिंह बेरोजगार है और इस इलाके से उसका संबंध क्या है यह अस्पष्ट है. सिंह को कोर्ट से जमानत मिल गई. उसका कोई अपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.
एए/सीके (एएफपी)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | कुछ हालिया साबुन विज्ञापनों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, जिसमें उन्होंने कुछ सवाल उठाए हैं, जिसमें पूछा गया है कि क्या मानव त्वचा के लिए कोई सही पीएच उत्पाद है? एक अच्छे साबुन को कौन सी विशेषताएं परिभाषित करती हैं? चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं। पीएच (पोटेंशियल हाइड्रोजन) को एक कंसन्ट्रेशन में हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता के रूप में परिभाषित किया गया है। पीएच मान 0 से 14 के बीच होता है। 7 न्यूट्रल प्वॉइंट हैं, 0 सबसे अम्लीय है और 14 सबसे क्षारीय है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि आपकी त्वचा बिल्कुल पीएच 5.5 नहीं है। यह हर किसी के शरीर के अंग, उम्र, आनुवंशिकी, जातीयता, पर्यावरण की स्थिति के रूप में विविधता के आधार पर 4.0 से 7.0 के बीच की सीमा में आता है।
तो, क्या पीएच 5.5 पर तैयार उत्पाद त्वचा के लिए एकदम सही हैं? इसका छोटा सा जवाब है: नहीं। सबसे पहले तो सर्फेक्टेंट, बनावट और अन्य अवयवों जैसे पैरामीटर एक क्लीन्जर की गुणवत्ता को इंगित करते हैं, जो अकेले पीएच से बहुत बेहतर है।
दूसरा यह कि, त्वचा का पीएच सादे पानी से भी साफ करने के तुरंत बाद थोड़ा बढ़ जाता है, यह एक घंटे में अपने हल्के अम्लीय पीएच को बदल देता है। स्वस्थ त्वचा जल्दी से 'एसिड मेंटल' को पुनर्जीवित करती है, त्वचा पर एक सुरक्षात्मक परत और क्लींजर के पीएच द्वारा लंबे समय तक अप्रभावित रहती है। त्वचा पीएच को नियंत्रित करती है, जिससे त्वचा उत्पाद न केवल विभिन्न पीएच स्तर पर, बल्कि समग्र सूत्र के संयोजन में भी कार्य करते हैं। तो मार्केट क्यों पीएच 5.5 उत्पादों को 'सही' बता रहा है? खैर, कुछ प्रकार की त्वचा के लिए (जैसे तैलीय त्वचा) और कुछ त्वचा की स्थिति (जैसे मुंहासे), पीएच में वृद्धि इन त्वचा स्थितियों को बढ़ा सकती है। इनकी बेहतर सफाई के लिए 5.5 पीएच पर होने वाले उत्पाद की उचित व्याख्या हो सकती है।"
भारतीय मानक ब्यूरो के साबुन के लिए अनिवार्य दिशानिर्देश में भी पीएच को बाहर रखा गया है, यह दर्शाता है कि संरचना सुरक्षा और सौम्यता के लिए अधिक प्रासंगिक है। यहां तक कि बीआईएस बच्चे की त्वचा के लिए एक ऐसे साबुन के उपयोग को भी मंजूरी दे देता है, जो सामान्य उपयोग की शर्तों के तहत उनकी सुरक्षा को कम करता है।
इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए डॉ. अपर्णा संथानम (एमडी, डीएनबी) परामर्श त्वचा विशेषज्ञ, सलाहकार और लेखिका ने कहा, "हाल के वैज्ञानिक प्रगति ने त्वचा के स्वास्थ्य में एसिड मेंटल के महत्व को पेश किया है। हालांकि, एक उत्पाद का पीएच त्वचा को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से सिर्फ एक है। पहले से मौजूद त्वचा की स्थिति, पानी की गुणवत्ता, सही उपयोग और संपर्क समय सहित कई अन्य कारक हैं, जो एक उत्पाद का उपयोग करने के बाद एसिड मेंटल में योगदान करते हैं। त्वचा भी इन सभी या किसी भी कारक के संपर्क में आने के बाद पीएच को शारीरिक स्तर पर लाने के लिए मरम्मत और रिस्टोरेटिव मैकेनिज्म करती है। इस तरह इन सभी कारकों को समझना महत्वपूर्ण है, बजाय उनमें से सिर्फ एक के।"
देश भर के स्किनकेयर विशेषज्ञों ने पीएच के मुद्दे पर कई कारकों के अनुसार उत्पाद सुरक्षा और एसिड मेंटल संरक्षण के एकमात्र पैमाने पर फैसला व्यक्त करने को लेकर संदेह व्यक्त किया है, क्योंकि सादा पानी तक इसमें योगदान दे सकते हैं, जो इनके कई कारकों में शामिल है। तो, क्या हम इस आदर्श पीएच को एक सफाई उत्पाद के एकमात्र आदर्श माप के रूप में देख सकते हैं? इसका जवाब है, मात्र पीएच से आगे बढ़कर देखना चाहिए। (आईएएनएस)
आगरा, 19 जनवरी | एक 90 वर्षीय महिला माया देवी को 60 वर्षीय बहू ने कथित तौर पर बाह क्षेत्र में झाड़ू से पीटा क्योंकि वृद्ध महिला किसी को बताए बिना घर से बाहर चली गई थी। घटना का एक वीडियो, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, कथित तौर पर माया देवी रोती हुई एक खाट पर लेटी हुई दिखाई देती है और मदद की गुहार लगा रही होती है क्योंकि उनकी बहू मुन्नी देवी उसे पीट रही होती है।
वीडियो का संज्ञान लेते हुए, आगरा पुलिस ने अब सीआरपीसी की धारा 151 (सं™ोय अपराधोंको रोकने के लिए गिरफ्तारी) के तहत मुन्नी देवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
महिला को सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की अदालत में पेश किया गया था और बाद में सोमवार को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
के. वेंकट अशोक, पुलिस अधीक्षक (पूर्व) ने संवाददाताओं को बताया कि पीड़िता और आरोपी दोनों विधवा हैं और भाउपुरा गांव में एक साथ रहती हैं।
मुन्नी देवी ने पुलिस को बताया कि वह परेशान थी क्योंकि उसकी सास को बिना बताए बाहर जाने की आदत है और फिर उसे पूरे गांव में उन्हें खोजना पड़ता है।
एसपी ने कहा कि मुन्नी देवी को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी सास के साथ दुर्व्यवहार न करें और उसका सम्मान करें। पुलिस ने माया देवी को खिलाया-पिलाया और भविष्य में उनकी मदद का आश्वासन दिया। (आईएएनएस)
महोबा (उत्तर प्रदेश), 19 जनवरी | एक दलित लड़की का दुष्कर्म करने और उसकी हत्या करने के आरोप में तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। लड़की का शव एक पेड़ से लटका हुआ पाया गया। सर्कल अधिकारी रामप्रवेश राय ने कहा, "18 वर्षीय युवती रविवार दोपहर को सब्जियां खरीदने के लिए घर से निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। बाद में उसके परिवार के सदस्यों ने उसका शव बेलाताल इलाके में एक पेड़ से लटका पाया।"
पीड़िता की मां ने शिकायत दर्ज की और दलित किशोरी के साथ दुष्कर्म करने और उसे मारने के लिए सोमवार को तीन पुरुषों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
कुलपहाड़ थाना प्रभारी, रविंद्र तिवारी ने कहा कि रोहित, भूपेंद्र और तरुण के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोप और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
मामले की जांच की जा रही है लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है।
मृतक की चाची ने पुलिस को बताया कि उनके इलाके में एक व्यक्ति द्वारा उसे परेशान किया जा रहा था, जो पिछले एक महीने से उसे फोन कर रहे थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, पुड्डुचेरी और केरल के मतदाताओं का मानना है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए 'सबसे उपयुक्त' व्यक्ति हैं। ये खुलासा आईएएनएस सी-वोटर के सर्वेक्षण से हुआ है। सर्वेक्षण के अनुसार, पुड्डुचेरी में 50.67 प्रतिशत लोग, पश्चिम बंगाल में 54.53 प्रतिशत, तमिलनाडु में 25.59 प्रतिशत, केरल में 36. 51 प्रतिशत और असम में 45.52 प्रतिशत लोगों ने मोदी को पीएम पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार माना है।
दिलचस्प बात यह है कि तमिलनाडु में 48 फीसदी मतदाता पूर्व कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से सांसद के रूप में चुने गए थे।
सर्वेक्षण में पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 45,000 लोगों को शामिल किया गया।
पुडुचेरी में 57.97 फीसदी मतदाता, पश्चिम बंगाल में 62.19 फीसदी, तमिलनाडु में 26.62 फीसदी, केरल में 36.84 फीसदी और असम में 43.62 फीसदी लोग मोदी को सीधे प्रधानमंत्री के रूप में चुनना चाहते हैं।
पश्चिम बंगाल में कोई भी यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता। हालांकि, पुडुचेरी में 1.11 फीसदी मतदाताओं को लगता है कि वह एक प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं। तमिलनाडु में कुल 9.89 प्रतिशत मतदाताओं ने इसी तरह की राय साझा की, जबकि केरल में 3.61 प्रतिशत और असम में 2.51 प्रतिशत ने इस विचार का समर्थन किया।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पीएम के पद के लिए पुडुचेरी में 10.56 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 5.4 प्रतिशत, तमिलनाडु में 1.85 प्रतिशत, केरल में 4.1 प्रतिशत और असम में 2.51 प्रतिशत मतदाताओं की पसंद हैं। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पूर्णिया, 19 जनवरी (आईएएनएस)| एक ओर जहां प्रतिदिन मानवता को शर्मसार करने वाली घटना प्रकाश में आती रहती है, वहीं बिहार के पूर्णिया में एक कुत्ते के मरने के बाद वफादारी की कीमत मिली, जब उसकी मनुष्य की तरह पूरे विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उसके अंतिम यात्रा में शामिल लोगों ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से उसे अंतिम विदाई दी।
अपने पालतू जानवर के प्रति प्रेम और मानवता की अनूठी मिसाल की चर्चा इस क्षेत्र में चारों ओर है। लोग इस कार्य के लिए हिमकर मिश्र की प्रशंसा कर रहे हैं।
पूर्णिया जिले के केनगर प्रखंड के कुंवारा पंचायत के रामनगर में समर शैल नेशनल पार्क के संस्थापक हिमकर मिश्रा ने फार्म के संरक्षण के लिए अनेक नस्ल के कुत्ते पाल रखे हैं। हिमकर मिश्र का सबसे चहेता कुत्ता ब्राउनी था, जिसकी रविवार को मौत हो गई।
मिश्र ने आईएएनएस को बताया कि ब्राउनी इंडियन शीप ब्रीड का डॉग था और हमारे परिवार के एक सदस्य के जैसा था।
उन्होंने बताया, जब मैं मध्य प्रदेश में था तब उस समय 2006 में ब्राउनी को पुणे से एक जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था से लाया था तब से आज तक यह मेरे परिवार को सदस्य की तरह रहा।
उन्होंने कहा कि बाद में ब्राउनी को पूर्णिया के फॉर्म हाउस की सुरक्षा की जिम्मेदारी ब्राउनी को दे दी गई। उन्होंने बताया कि वृद्ध होने की वजह से ब्राउनी की रविवार को मौत हो गई और उसका अंतिम संस्कार सोमवार को किया गया।
ब्राउनी की मौत के बाद हिमकर मिश्रा परिवार और फॉर्म के सभी लोगों ने अपने चहेते कुत्ते का अंतिम संस्कार रीति रिवाज से करने का निर्णय लिया और उसकी अंतिम यात्रा निकाली।
हिमकर मिश्रा ने बताया कि जिस जगह ब्राउनी को दफनाया गया है, उस जगह उसकी याद में 'ब्राउनी स्मृति स्मारक' बनाया जाएगा।
हिमकर ने बताया कि ब्राउनी सिर्फ कुत्ता नहीं बल्कि उनके फार्म का रक्षक भी था। वह हम सभी की जिंदगी का एक हिस्सा था, जिसने पूरी वफादारी और ईमानदारी से फार्म की रक्षा की।
उन्होंने बताया कि ब्राउनी स्मारक स्थल को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर ब्राउनी पार्क का नाम दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जो भी लोग यहां आएंगे उन्हें यह स्मारक दिखाया जाएगा।
इधर, फॉर्म के प्रबंधक सुबेाध कुमार कहते हैं कि ब्राउनी का जाना बहुत दुखदायी है। उन्होंने अपने जीवनपयर्ंत वफादारी से कार्य किया और फार्म की रक्षा की। उन्होंने कहा कि ब्राउनी फार्म का एक सदस्य बन गया है। बा्रउनी से बच्चे भी काफी प्यार करते हैं।
मिश्र के इस पशु प्रेम की सर्वत्र चर्चा हो रही है तथा पशु प्रमियों का कहना है कि लोगों को मिश्र से आज सीखने की जरूरत है।
नई दिल्ली, 19 जनवरी | केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक वोट मिलने का अनुमान है। ये खुलासा आईएएनएस सी-वोटर के राज्यों के सर्वेक्षण से हुआ है। सर्वेक्षण में केरल के सभी 140 विधानसभा क्षेत्रों के 6,000 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया।
सर्वे के अनुसार, एलडीएफ को 42.6 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है, जो पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में 1.9 फीसदी कम है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को आगामी विधानसभा चुनावों में 34.6 प्रतिशत वोट शेयर रहने का अनुमान है, जो पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में 4.2 प्रतिशत अधिक है।
भाजपा, जिसे 2016 के विधानसभा चुनावों में 14.9 प्रतिशत वोट मिले थे, उसे 15.3 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है, जो 0.4 प्रतिशत अधिक है।
सर्वेक्षण के अनुसार, अन्य पार्टियों को 8.5 प्रतिशत वोट मिलेंगे, पिछले चुनावों की तुलना में 5.7 प्रतिशत अधिक।
सर्वेक्षण ने बताया है कि एलडीएफ गठबंधन को आगामी विधानसभा में 85 सीटें मिलेंगी, 2016 में प्रबंधित 91 की तुलना में छह कम।
यूडीएफ गठबंधन, जिसने 2016 में 47 सीटें हासिल की थीं, को इस बार 53 सीटें मिलने का अनुमान है। बीजेपी गठबंधन को एक सीट जीतने का अनुमान है। (आईएएनएस)
-ललित मौर्य
एक तरफ जहां कॉफी व्यापार से जुड़ी बड़ी कंपनियां अरबों डॉलर कमा रही हैं, वहीं दूसरी ओर इसकी खेती कर रहे किसान दिन प्रतिदिन और गरीब होते जा रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में जारी कॉफी बैरोमीटर रिपोर्ट 2020 में सामने आई है। जिसने इन किसानों पर बढ़ते जलवायु परिवर्तन के खतरे को भी उजागर किया है।
2020 में यह अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरने में पूरी तरह विफल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार न तो यह कंपनियां पर्यावरण पर ध्यान दे रही हैं। न ही इन्होने किसानों और खेती की दशा में सुधार लाने के लिए कोई खास प्रयास किए हैं। इन कंपनियों की लिस्ट में नेस्ले, स्टारबक्स, लवाज़्ज़ा, यूसीसी और स्ट्रॉस जैसे नाम शामिल हैं।
पूरी दुनिया में 1.25 करोड़ खेतों में कॉफी उगाई जाती है। इनमें से 95 फीसदी फार्म 5 हेक्टेयर से छोटे हैं जबकि 84 फीसदी का आकार 2 हेक्टेयर से भी कम है| इन छोटे खेतों में दुनिया की करीब 73 फीसदी कॉफी उगती है| हालांकि इन लाखों फार्म्स के बावजूद इनके द्वारा उगाई करीब आधी कॉफी केवल 5 कंपनियों द्वारा निर्यात की जाती है। जिन्हें इसके बाद भूनने के लिए बड़ी कंपनियों द्वारा आयात किया जाता है।
35 फीसदी कॉफी को केवल 10 कंपनियों द्वारा किया जाता है तैयार
विश्व में केवल 10 कंपनियों द्वारा 35 फीसदी कॉफी को रोस्ट किया जाता है| 2019 के आंकड़ों को देखें तो इन कंपनियों ने करीब 4,03,299 करोड़ रुपय (5,500करोड़ डॉलर) कमाए थे। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस तैयार कॉफी को बेचने से जो आय होती है उसका 10 फीसदी से भी कम इन कॉफी उगाने वाले देशों को मिलता है| उसमें से भी काट छांटकर जो बचता है वो वहां के किसानों की जेबों तक पहुंचता है| ऐसे में उनका गरीब होना स्वाभाविक ही है।
कॉफी से जुड़ी अनेक समस्याओं में से किसानों को उपज की मिलने वाली कम कीमत भी है। जबकि यदि कॉफी उत्पादन के खर्च को देखा जाए तो उसका करीब 60 फीसदी उससे जुड़ी मजदूरी में जाता है। पहले ही इसकी खेती कर रहे किसान गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। ऐसे में न तो यह किसान अपने खेतों पर निवेश कर पाते हैं, न ही अपनी उपज को पर्यावरण अनुकूल बना पाते हैं| उनकी छोटी सी आय में जहां घर चलाना मुश्किल हो जाता है वहां पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर निवेश की बात करना तो बेमानी ही लगता है| ऊपर से बाढ़, सूखा, तूफान, कीट और बीमारियां उनकी आय में कमी और खर्चों में इजाफा कर रही हैं| ऐसे में केन्या, अल साल्वाडोर और मेक्सिको जैसे देशों में जहां बेहतरीन कॉफी पैदा होती है, वहां इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है| जिस तरह से कॉफी की मांग बढ़ रही है उसके चलते भूमि पर दबाव बढ़ रहा है और मांग को पूरा करने के लिए तेजी से जंगलों को काटा जा रहा है।
यह कॉफी उत्पादक देश और बड़ी कंपनियां आपस में मिलकर पर्यावरण और समाज से जुड़ी कई समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती है| लेकिन अपने निजी स्वार्थ, नीतियों और योजनाओं के चलते यह स्थानीय मुद्दों से बहुत दूर हो जाते हैं| रिपोर्ट से पता चला है कि इन रोस्टरों और व्यापारियों में से 15 प्रमुख कंपनियां ऐसी हैं जो एसडीजी में अपना कोई सार्थक योगदान नहीं दे रही हैं| न ही पर्यावरण संरक्षण और न ही किसानों और उससे जुड़े लोगों के विकास पर ध्यान दे रही हैं| हालांकि कुछ कंपनियों ने इस विषय पर व्यापक नीतियां बनाई हैं, लेकिन वो अपनी प्रतिबद्धताओं और वादों पर खरी नहीं हैं।
ऐसे में क्या यह उन कंपनियों की जिम्मेवारी नहीं है कि वो कॉफी उत्पादन में लगे किसानों के हितों का भी ध्यान रखें साथ ही साथ ही कॉफी उत्पादन से लेकर उसकी पूरी सप्लाई चेन को दुरुस्त करें जिससे वो पर्यावरण पर कम से कम असर डालें| (downtoearth.org.in)
-शरद पाण्डेय
नई दिल्ली. इंटरस्टेट ट्रांसपोर्ट की तरह अब पड़ोसी देशों में पैसेंजर Passenger और गुड्स Goods वाहन चल सकेंगे. सड़क परिवहन मंत्रालय ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है, जो तत्काल प्रभावी हो गया है. अब वाहन चलाने से पूर्व दोनों देशों को केवल एक एमओयू साइन करना होगा. मंत्रालय ने यह फैसला लगातार मिल रहे सुझाव के आधार पर लिया है.अभी तक पड़ोसी देशों neighbouring countries
में वाहन चलाने से पूर्व कई तरह औपचारिकताएं पूरी करनी होती थीं. इसके तहत कई मंत्रालयों और विभागों क्लीयरेंस लेनी होती थी, जिसमें समय लगता था और कागजी कार्रवाई भी अधिक होती थी. इस संबंध में सड़क परिवहन मंत्रालय के पास सुझाव आ रहे थे. नए नियम के बाद अब किसी पड़ोसी देश में ट्रांसपोर्ट शुरू करना हो, तो दोनों देश आपस में एमओयू साइन कर तुरंत वाहन चला सकेंगे. सड़क परिवहन मंत्रालय ने पिछले सप्ताह नोटिफिकेशन जारी कर चुका है. इस संबंध में बस एंड कार ऑपरेटर्स कंफडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष गुरमीत सिंह तनेजा ने कहा कि सरकार के इस फैसले से काफी राहत मिलेगी.अभी जिस तरह एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बसों का संचालन होता है. इसमें केवल दो प्रदेश के बीच सहमति की जरूरत होती है, भविष्य में पड़ोसी देशों के बीच भी बसों का संचालन भी इसी तरह हो सकेगा.
पड़ोसी देशों में चल चुकी हैं बस
नई दिल्ली और लाहौर वर्ष 2000 में
कोलकाता और ढाका वर्ष 2000 में
अमृतसर और लाहौर वर्ष 2006 में
अमृतसर और नानकसर वर्ष 2006 में
अगर आप भी उन कर्मचारियों में से हैं जो कोरोना काल में घर से काम यानी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं तो आपकी सैलरी कट सकती है. जी हां ऐसा संभव है. दरअसल लेबर मिनिस्ट्री वर्क फ्रॉम होम कॉन्सेप्ट को लेकर एक ड्राफ्ट तैयार कर रही है, जिसमें लोगों से सुझाव भी मांगे गए है. लेबर मिनिस्ट्री के पास आने वाले सुझावों में से कुछ सुझाव ऐसे भी है जिनमें घर से काम करने वालों की सैलरी कट सकती है.
सर्विस सेक्टर, आईटी प्रोफेशनल्स के ऐसे कर्मचारियों को सैलरी पर गाज गिर सकती है. जो कोरोना के दौरान महानगरों को छोड़कर छोटे शहरों में अपने घर जाकर शिफ्ट हो गए हैं और वहीं से काम कर रहे हैं. क्योंकि कंपनियों का मानना है कि इस दौरान कई तरह के भत्तो का उपयोग नहीं हो सका है.
कंपनियां कर रही विचार
कई सेकटर की कंपनियां ऐसे कर्मचारियों की सैलरी कट करने का विचार कर रही है. इन सेक्टर्स में सर्विस, आईटी, आईटीएस, फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे सेक्टर शामिल हैं. दरअसल सुझाव दिया गया है कि ऐसे कर्मचारी जो छोटे शहरों में शिफ्ट हो चुके हैं उनका खर्च घट गया है. लिहाजा उनका भत्ता कम किया जाए. क्योंकि कई कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए फर्नीचर, हाई स्पीड इंटरनेट समेत कई तरह के अलाउंस दिए है.
क्या कहता है लेबर मिनिस्ट्री का ड्राफ्ट
लेबर मिनिस्ट्री का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद अगर नया नियम होता है कंपनियों को छोटे शहरों में घर से काम करने वाले प्रत्येक कर्मचारी की कॉस्ट पर 20 से 25 फीसदी तक बचत हो सकती है. यहां तक की कई कंपनियों के एचआर प्रोफेशनल ने ऐसे कर्मचारियों की सैलरी में कटौती करने पर विचार शुरू कर दिया है.
1 अप्रैल से लागू होंगे नए नियम
वर्क फ्रॉम होम कॉन्सेप्ट में बदवाल करने के लिए लेबर मिनिस्ट्री ड्राफ्ट पर तेजी से काम कर रही है. माना जा रहा है कि नए नियम 1 अप्रैल 2021 से लागू हो जाएंगे. वहीं बजट में भी वर्क फ्रॉम होम वाले कर्मचारियों को लेकर कुठ घोषणाएं हो सकती हैं. वहीं जहां तक सैलरी में कटौती की बात है तो कई कंपनियां ट्रांसपोर्ट जैसे भत्तों को हटाने की बात कर रही है. क्योंकि कोरोना के दौरान कर्मचारियों को ऑफिस नहीं आना पड़ा है. लिहाजा इस भत्ते का उपयोग नहीं रह जाता. (tv9hindi.com)
-सरोज सिंह
भारत में कोरोना का टीकाकरण शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ अब तक 3 लाख 81 हज़ार से ज़्यादा लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है.
इसी बीच अब तक 580 लोगों को टीका लगने के बाद 'एडवर्स इफ़ेक्ट' (प्रतिकूल प्रभाव) देखने को मिला है. ये कुल लोगों को लगे टीके का मात्र 0.2 फ़ीसदी ही है. यानी कुल मिलाकर देखें तो 0.2 फ़ीसदी लोगों में टीका लगने के बाद परेशानी देखी गई.
फिर भी भारत सरकार पहले दो दिन में अपने टीकाकरण अभियान के लक्ष्य को केवल 64 फ़ीसदी ही हासिल कर पाई है. पहले दो दिन में सरकार तक़रीबन 3 लाख 16 हज़ार लोगों को कोरोना का टीका लगाना चाहती थी, लेकिन केवल 2 लाख 24 हज़ार लोगों को ही टीका लग पाया.
कई राज्यों में टीका लगवाने वाले लोग पहले दिन टीकाकरण केंद्र पर नहीं पहुँचे. दिल्ली की बात करें तो तय लोगों में से केवल 54 फ़ीसदी लोगों को ही टीका लगा.
तो क्या टीका लगने के बाद लोगों में एडवर्स इफ़ेक्ट दिखने की वजह से कम लोग टीका लगवा रहे हैं? या वजह कुछ और है?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने टीकाकरण के बाद होने वाले इस तरह के इफे़क्ट के बारे में विस्तार से समझाया.
उनके मुताबिक़, "टीका लगने के बाद उस इंसान में किसी भी तरह के अनपेक्षित मेडिकल परेशानियों को एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन कहा जाता है. ये दिक़्क़त वैक्सीन की वजह से भी हो सकती है, वैक्सीनेशन प्रक्रिया की वजह से भी हो सकती है या फिर किसी दूसरे कारण से भी हो सकती है. ये अमूमन तीन प्रकार के होते हैं- मामूली, गंभीर और बहुत गंभीर."
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उन्होंने बताया कि ज़्यादातर ये दिक़्क़तें मामूली होती हैं, जिन्हें माइनर एडवर्स इफ़ेक्ट कहा जाता है. ऐसे मामलों में किसी तरह का दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द, घबराहट, एलर्जी और रैशेज़ जैसी दिक़्क़त देखने को मिलती है."
लेकिन कुछ दिक़्क़तें गंभीर भी होती हैं, जिन्हें सीवियर केस माना जाता है. ऐसे मामलों में टीका लगवाने वाले को बहुत तेज़ बुखार आ सकता है या फिर ऐनफ़लैक्सिस की शिकायत हो सकती है. इस सूरत में भी जीवन भर भुगतने वाले परिणाम नहीं होते. ऐसे गंभीर मामले में भी अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत नहीं पड़ती है.
लेकिन बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट में टीका लगने वाले व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की नौबत आती है. इन्हें सीरियस केस माना जाता है. ऐसी सूरत में जान भी जा सकती है या फिर व्यक्ति को आजीवन किसी तरह की दिक़्क़त झेलनी पड़ सकती है. बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं. लेकिन इसका असर पूरे टीकाकरण अभियान पर पड़ता है.
भारत में हुए अब तक के टीककारण अभियान के बाद केवल तीन लोगों को अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत पड़ी है, जिनमें से दो को छुट्टी दी जा चुकी है.
दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ. बीएल शेरवाल के मुताबिक़, हर टीकाकरण अभियान में इस तरह के कुछ एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिलते हैं. पूरे टीकाकरण अभियान में 5 से 10 फ़ीसदी तक इस तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट का मिलना सामान्य बात है.
ऐनफ़लैक्सिस क्या है?
बीबीसी से बातचीत में डॉ. बीएल शेरवाल ने बताया कि जब टीकाकरण के बाद किसी व्यक्ति में गंभीर एलर्जी के रिएक्शन देखने को मिलते हैं तो उस स्थिति को ऐनफ़लैक्सिस कहा जाता है. इसकी वजह टीकाकरण नहीं होता है. किसी ड्रग से एलर्जी होने पर भी इस तरह की दिक़्क़त व्यक्ति में देखने को मिलती है.
ऐसी अवस्था के लिए एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन किट में इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे ऐसी ज़रूरत ना के बराबर ही पड़ती है. ये सीवियर केस एडवर्स इफ़ेक्ट के अंतर्गत आते हैं.
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रक्रिया में क्या होता है?
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन से जुड़े तमाम मुद्दों के बारे में हमने बात की एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय से.
उन्होंने बताया कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के लिए बाक़ायदा पहले से प्रोटोकॉल तय किए जाते हैं. ऐसे एडवर्स इफ़ेक्ट की सूरत में टीकाकरण केंद्र पर मौजूद डॉक्टर और स्टाफ़ को आपात स्थिति से निपटने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.
उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति को टीका लगने के बाद 30 मिनट तक टीकाकरण केंद्र पर इंतज़ार करने के लिए कहा जाता है, ताकि किसी भी तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट को मॉनिटर किया जा सके. हर टीकाकरण केंद्र में इसके लिए एक किट तैयार कर रखने की बात की गई है, जिसमें ऐनफ़लैक्सिस की अवस्था से निपटने के लिए कुछ इंजेक्शन, पानी चढ़ाने वाली ड्रिप और बाक़ी ज़रूरी समान का होना अनिवार्य बताया गया है.
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए किसी नज़दीकी अस्पताल में ख़बर करनी है और किस तरह से उसके बारे में Co-WIN ऐप में पूरी विस्तृत जानकारी को भरना है, ये भी बताया गया है.
ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए ज़रूरी है कि टीके को सही तरह से सुरक्षित रखा जाए, व्यक्ति को टीका लगाने के पहले उसकी मेडिकल हिस्ट्री की पूरी जानकारी ली जाए. किसी ड्रग से एलर्जी की सूरत में भारत सरकार के नियमों के मुताबिक़ उन्हें कोरोना का टीका नहीं लगाया जा सकता.
टीका लगाने से पहले व्यक्ति को टीके के बाद होने वाली दिक़्क़तों के बारे में पहले से बताया जाए. सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक़ हर व्यक्ति को टीका लगाते वक़्त ऐसी तमाम जानकारियाँ दी जा रही हैं.
सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट
इतना ही नहीं, अगर बहुत गंभीर यानी सीरीयस एडवर्स इफ़ेक्ट होने पर किसी की मौत हो जाती है, तो इसके लिए नेशनल एईएफ़आई (AEFI) गाइडलाइन के हिसाब से जाँच की जाएगी, जिसके लिए बाक़ायदा डॉक्टरों का एक पैनल है.
अगर सीरीयस मामले में टीकाकरण के बाद व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था, तो मामले में परिवार की रज़ामंदी से पोस्टमॉर्टम कराने की बात कही गई है. अगर परिवार इसके लिए राज़ी ना हो, तो भी एक अलग फ़ॉर्म भरने और जाँच की ज़रूरत होती है.
टीकाकरण होने के बाद सीरियस एडवर्स इफे़क्ट के कारण अस्पताल में भर्ती होने पर मौत होती है, तो गाइडलाइन के मुताबिक़ पूरी प्रक्रिया की विस्तृत जाँच की जानी चाहिए. जाँच द्वारा ये स्थापित होता है कि ये एडवर्स इफ़ेक्ट वैक्सीन में इस्तेमाल किसी ड्रग की वजह से हुआ है या फिर वैक्सीन की क्वालिटी में दिक़्क़त की वजह से, या टीका लगाने के दौरान हुई गड़बड़ी की वजह से या ये किसी और तरह के संयोग की वजह से हुआ है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ हर एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन में गड़बड़ी की वजह को जल्द से जल्द सूचित किया जाना बेहद ज़रूरी है.
एडवर्स इफ़ेक्ट क्या होंगे ये कैसे तय होता है?
एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय के मुताबिक़, "फ़िलहाल एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के जो भी प्रोटोकॉल तय किए गए हैं, वो अब तक के ट्रायल डेटा के आधार पर हैं. लॉन्ग टर्म ट्रायल डेटा के आधार पर आमतौर पर ऐसे प्रोटोकॉल तैयार किए जाते हैं. लेकिन भारत में कोरोना के जो टीके लगाए जा रहे हैं, उनके बारे में लॉन्ग टर्म स्टडी डेटा का अभाव है. इसलिए फ़िलहाल जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसी के आधार पर ये एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रोटोकॉल तैयार किया गया है."
क्या हर टीकाकरण अभियान में एक जैसा ही एडवर्स इफ़ेक्ट होता है?
ऐसा नहीं है कि हर वैक्सीन के बाद एक ही तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिले. कई बार लक्षण अलग-अलग भी होते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि वैक्सीन बनाने का तरीक़ा क्या है और जिसको लगाया जा रहा है उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कैसी है.
जैसे बीसीजी का टीका देने के बाद उस जगह पर छाला जैसा उभार देखने को मिलता है. उसी तरह से डीपीटी के टीके के बाद कुछ बच्चों को हल्का बुख़ार होता है. ओरल पोलियो ड्रॉप देने पर किसी तरह का एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिलता है. इसी तरह से कोरोना का टीका - कोविशील्ड और कोवैक्सीन के एडवर्स इफ़ेक्ट भी एक जैसे नहीं भी हो सकते हैं.
कोवैक्सीन और कोविशील्ड के एडवर्स इफ़ेक्ट क्या हैं?
कोवैक्सीन की ट्रायल प्रक्रिया को ख़ुद डॉ संजय राय काफ़ी नज़दीक से देखा है. उनके मुताबिक़ कोवैक्सीन में किसी तरह के गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट तीनों चरणों के ट्रायल में देखने को नहीं मिले हैं. हालांकि इसके तीसरे चरण में अभी पूरा डेटा नहीं आया है. तीसरे चरण में 25 हज़ार लोगों को ये वैक्सीन लगाया जा चुका है.
कोवैक्सीन के दौरान जो हल्के लक्षण देखने को मिले वो हैं- दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द और रैशेज़ जैसी मामूली दिक़्क़तें. ऐसे लोगों की संख्या ट्रायल के दौरान 10 फ़ीसदी थी. 90 फ़ीसदी लोगों में कोई दिक़्क़त देखने को नहीं मिली थी.
भारत सरकार दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाती है, जिनमें देशभर के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया जाता है. पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान तो भारत में तीन दिन में एक करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया जाता है. अगर इतना बड़ा अभियान सालों से भारत चला पा रहा है, इसका मतलब है कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन का प्रोटोकॉल भारत में अच्छे से पालन किया जा रहा है.
एक भी एडवर्स इफ़ेक्ट होने का बुरा असर टीकाकरण अभियान पर ज़रूर पड़ता है.
क्या एडवर्स इफ़ेक्ट होने से लोग वैक्सीन लेने से घबराने लगते हैं? वैक्सीन हेज़िटेंसी के लिए ये एक कारण है?
अभी तक टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया में केवल तीन ही मामले ऐसे आए हैं, जिनमें एडवर्स इफ़ेक्ट में व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की ज़रूरत पड़ी है.
वैसे वैक्सीन हेज़िटेंसी का सीधा एडवर्स इफ़ेक्ट से संबंध नहीं होता है. वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट के कई कारण होते हैं. लोगों को वैक्सीन के बारे में सही जानकारी का पता ना होना इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारण माना जाता है.
वैक्सीन की सेफ़्टी और एफ़िकेसी से जुड़े सवाल हों तो भी लोग टीका लगाने से हिचकते हैं. अक्सर वैक्सीन लगने की शुरुआत होने पर ये हिचक लोगों में देखने को मिलती है, फिर बीतते समय के साथ ये कम होते जाती है. लेकिन अगर एडवर्स इफ़ेक्ट में कोई गंभीर बात सामने आती है, तो लोग टीका लगवाने से परहेज़ कर सकते हैं, वर्ना ये मामूली दिक़्क़तें सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं.
लोकल सर्कल्स नाम की एक संस्था पिछले कुछ समय से भारत में लोगों में वैक्सीन हेज़िटेंसी कितनी है, इसे लेकर ऑनलाइन सर्वे कर रही है. 3 जनवरी के आँकड़ों के मुताबिक़, भारत में 69 फ़ीसदी जनता को कोरोना वैक्सीन को लगाने को लेकर हिचकिचाहट है.
आंकड़े
ये सर्वे भारत के 224 ज़िलों के 18000 लोगों की ऑन-लाइन प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार किया गया है. इस संस्था के सर्वे के मुताबिक़, हर बीतते महीने के साथ भारत में लोगों में ये हिचकिचाहट बढ़ती जा रही है. लेकिन टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद लोगों में क्या ये हिचक बढ़ी है, इसके बारे में अभी कोई अध्यन नहीं हुआ है.
पूरी दुनिया में इस वक़्त कोरोना की नौ वैक्सीन्स को अलग-अलग देशों की सरकार ने मंज़ूरी दी है. इनमें से दो फ़ाइज़र और मोडर्ना वैक्सीन mRNA वैक्सीन हैं. इस तकनीक से निर्मित वैक्सीन का इस्तेमाल पहली बार इंसान पर किया जा रहा है. डॉ. संजय के मुताबिक़ इनके टीकाकरण के बाद कुछ गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट रिपोर्ट किए गए हैं.
बाक़ी चार वैक्सीन ऐसी हैं, जो वायरस को इन-एक्टीवेट कर बनाई गई हैं, जिनमें भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन और चीन वाली वैक्सीन शामिल हैं.
बाक़ी दो वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्राज़ेनेका (कोविशील्ड) और स्पूतनिक हैं, उन्हें वैक्टर वैक्सीन कहा जा रहा है. mRNA वैक्सीन के अलावा किसी और वैक्सीन के इस्तेमाल में कोई सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट सामने नहीं आए हैं. (bbc.com)
मणिपुर पुलिस ने स्थानीय न्यूज़ पोर्टल के जिन दो संपादकों को रविवार की सुबह हिरासत में लिया था उन्हें सोमवार की दोपहर क़रीब साढ़े तीन बजे ज़मानत पर छोड़ दिया गया.
इस दौरान दोनों पत्रकारों ने पुलिस को लिखित में दिया है कि वे ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे.
दरअसल पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों को राज्य के विद्रोही आंदोलन से जुड़े एक लेख के प्रकाशन को लेकर पकड़ा था.
पुलिस हिरासत में रहे पत्रकार पाओजेल चाओबा ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल 'द फ्रंटियर मणिपुर' के कार्यकारी संपादक हैं. वहीं धीरेन सदोकपम पोर्टल के संपादक है.
पुलिस ने कहा यूएपीए की धाराएं नहीं लगाईं
सोमवार सुबह इंडियन एक्सप्रेस समेत कई प्रमुख मीडिया में प्रकाशित हुई खबरों मे पुलिस द्वारा दोनों पत्रकारों पर इस मामले को लेकर 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट' यानी यूएपीए की धारा 39 (आतंकवादी संगठन का समर्थन) और राजद्रोह की धारा 124-ए लगाने की बात सामने आई थी.
इसके साथ ही दोनों पत्रकारों पर आपराधिक साज़िश के लिए 120 बी और राज्य के ख़िलाफ़ अपराध को प्रेरित करने के लिए धारा 505 बी का उपयोग करने की बात भी कही जा रही थी लेकिन अब पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में ऐसी कोई भी धारा नहीं लगाने की बात कही है.
इस मामले को देख रहे इम्फ़ाल वेस्ट के पुलिस अधीक्षक के. मेघाचंद्र सिंह ने बीबीसी से कहा, "हमने एक ग़लत लेख प्रकाशित करने के मामले में दोनों पत्रकारों को हिरासत में लिया था और वेरिफ़ाइड किया है. लेकिन अब दोनों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है. इन पत्रकारों का 'द फ्रंटियर मणिपुर' नाम से एक फ़ेसबुक वेब पेज है जो अभी तक पंजीकृत नहीं है और न ही इसका यहां कोई ऑफ़िस है. इन लोगों ने किसी अज्ञात व्यक्ति से व्हाट्सऐप पर प्राप्त एक आर्टिकल को अपने वेब पोर्टल पर योगदानकर्ता के किसी भी प्रमाणीकरण के बिना प्रकाशित कर दिया."
"उस लेख में मणिपुर के विद्रोही संगठन से जुड़ी कई सारी ग़लत जानकारियाँ थीं. लेख में ऐसा कहा गया कि मणिपुर में विद्रोही आंदोलन भयावह हो रहा है और इस तरह से लोगों में एक ग़लत संदेश गया. क्योंकि ऐसे बहुत से विद्रोही हैं जो मुख्यधारा में लौटे हैं. लेकिन बाद में राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकार से इस मामले में कुछ सहानुभूति दिखाने की अपील की. चूंकि ऐसी ग़लती पहली दफ़ा हुई है और सभी बातों पर दिए गए क्लेरिफ़िकेशन को ध्यान में रखते हुए उन्हें रिहा किया गया है."
एक सवाल का जवाब देते हुए एसपी सिंह ने कहा, "हमने दोनों को बॉन्ड पर रिहा किया है और इस मामले में जो धाराएं पहले लगाने की सोच रहे थे वो अब नहीं लगाई गई हैं. हमने इस मामले में उनके इरादों को ग़लत नहीं पाया है क्योंकि दोनों पत्रकारों ने वायदा किया है कि वे फिर से इस तरह की भूल नहीं करेंगे. हालांकि हमने एक एफ़आईआर ज़रूर दर्ज की है."
मुख्यमंत्री से पत्रकारों ने की थी मुलाक़ात
अपनी रिहाई को लेकर दोनों पत्रकारों ने ऐसा फिर से नहीं करने को लेकर एसपी को लिखित में एक पत्र दिया है. इसके अलावा ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से भी मुलाक़ात की.
इस मामले में दोनों पत्रकारों की तरफ़ से कोर्ट पहुंचे वकील चोंगथम विक्टर पुलिस की रिहाई करने की इस प्रक्रिया से आश्चर्यचकित हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "पुलिस पहले राजद्रोह का मामला दर्ज करने वाली थी और मैं यहां उनका कोर्ट में इंतज़ार करता रहा. अब पता चला कि पुलिस स्टेशन से ही उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है. 24 घंटे से ज़्यादा हिरासत में रखने के बाद क़ानून के अनुसार उन लोगों को कोर्ट से रिहा होना चाहिए था. पत्रकारों के संगठन ने इस मामले में मुख्यमंत्री से भी मुलाक़ात की है."
एसपी को लिखा गया पत्र
क्या इस लेख को प्रकाशित कर इन लोगों ने बहुत बड़ी ग़लती की है? इस सवाल का जवाब देते हुए वकील विक्टर कहते हैं, "यह लेख इन लोगों के प्रकाशित करने से पहले यहां के दो अख़बारों में छप चुका है. यह पिछले साल अक्टूबर में छपा था और इस जनवरी में भी प्रकाशित हुआ है. लेकिन जब 'द फ्रंटियर मणिपुर' के पत्रकारों ने इसे छापा तो उन लोगों को पकड़ लिया गया."
"मणिपुर में पत्रकारों को पकड़ने की घटना पहली बार नहीं हुई है, ऐसा पहले कई बार हो चुका है. ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के लोगों ने ही यह सबकुछ किया है. जब पहले दो अख़बारों ने इस लेख को प्रकाशित किया था तब सब लोग चुप थे लेकिन अब इन दोनों को पकड़ लिया."
'एक बेतरतीब रिवोल्यूशनरी यात्रा' नामक यह लेख एम जोय लुवांग के नाम से 8 जनवरी को प्रकाशित हुआ था जिसके बाद मणिपुर पुलिस ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए लेखक और संपादक के नाम पर एक मामला दर्ज किया था.
बीजेपी सरकार पर लगते आरोप
हाल के दिनों में मणिपुर में सत्तारुढ़ बीजेपी की तरफ़ से मीडिया हाउस, पत्रकार और कई लोगों पर अलग-अलग मामले दर्ज कराने की ख़बरें सामने आई हैं.
पिछले साल जुलाई में सामाजिक कार्यकर्ता एरेन्द्रो लीचोम्बम पर एक फ़ेसबुक पोस्ट को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
इससे पहले 2018 में एक स्थानीय पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम पर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को लेकर कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया गया जिसके बाद उन्हें साढ़े चार महीनों तक जेल में रहना पड़ा.
इम्फ़ाल से निकलने वाले एक अख़बार के संपादक ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि मणिपुर में मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ कुछ भी लिखने से पहले एक बार सोचना पड़ता है. जिन दो पत्रकारों ने अपने न्यूज़ पोर्टल में इस लेख को प्रकाशित किया था उनका ना कोई पंजीयन है और न ही यहां कोई कार्यालय है. लिहाज़ा उनकी इन कमियों के कारण यह कार्रवाई हुई है. (bbc)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | पेट्रोल और डीजल के दाम में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन बढ़ोतरी दर्ज की गई। देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल का भाव 85 रुपये प्रति लीटर के उपर चला गया है और अन्य महानगरों में भी पेट्रोल का दाम नई ऊंचाई पर है। दिल्ली में लगातार दो दिनों में पेट्रोल और डीजल के दाम में 50 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि हुई है। उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में लगातार तीन सत्रों की नरमी के बाद तकरीबन स्थिरता बनी हुई थी।
तेल विपणन कंपनियों ने मंगलवार को पेट्रोल के दाम में दिल्ली में 25 पैसे, कोलकाता और मुंबई में 24 पैसे जबकि चेन्नई में 22 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की। वहीं, डीजल के दाम दिल्ली और कोलकाता में 25 पैसे प्रति लीटर जबकि मुंबई में 26 पैसे और चेन्नई में 24 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई है।
इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में पेट्रोल की कीमतें बढ़कर क्रमश: 85.20 रुपये, 86.63 रुपये, 91.80 रुपये और 87.85 रुपये प्रति लीटर हो गई हैं।
डीजल की कीमतें भी बढ़कर दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में क्रमश: 75.38 रुपये, 78.97 रुपये, 82.13 रुपये और 80.67 रुपये प्रति लीटर हो गई हैं।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर बेंचमार्क कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड के मार्च डिलीवरी अनुबंध में बीते सत्र में 0.48 फीसदी की बढ़त के साथ 54.99 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था
न्यूयार्क मर्के टाइल एक्सचेंज (नायमैक्स) पर वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के मार्च अनुबंध में 0.15 फीसदी की गिरावट के साथ 52.34 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 19 जनवरी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बेंगलुरु में 19 और 20 मार्च को होने जा रही महत्वपूर्ण बैठक के बाद संगठन में बड़ा परिवर्तन होने की संभावना जताई जा रही है। संघ के इतिहास में पहली पर नागपुर से बाहर होने जा रही यह चुनावी बैठक इसलिए भी अहम है कि इसमें संघ में नंबर दो के पद यानी सरकार्यवाह का चुनाव होना है।
संकेत मिल रहे हैं कि लगातार 12 वर्षो से सरकार्यवाह (महासचिव) की जिम्मेदारी देख रहे भैय्याजी जोशी की जगह किसी नए चेहरे को मौका मिल सकता है।
सूत्रों का कहना है कि भैय्याजी जोशी यूं तो तीन साल पहले वर्ष 2018 में भी यह जिम्मेदारी छोड़ने की इच्छा जता चुके थे, हालांकि सांगठनिक कुशलता के कारण जरूरत को देखते हुए उन्हें एक और विस्तार दिया गया था।
सूत्रों का यह भी कहना है कि भैय्याजी जोशी को नई भूमिका में संघ परिवार के सभी संगठनों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी मिल सकती है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद कई प्रचारकों और शीर्ष पदाधिकारियों को प्रमोशन देकर बड़ी जिम्मेदारियां देने की तैयारी है। कुछ नए चेहरे सह-सरकार्यवाह बन सकते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हर तीन वर्ष पर सर कार्यवाह पद का चुनाव होता है। यह संगठन में कार्यकारी पद होता है, जबकि सरसंघचालक का पद मार्गदर्शक का होता है। संघ के नियमित कार्यों के संचालन की जिम्मेदारी सरकार्यवाह की होती है। आमबोल चाल की भाषा में जिसे महासचिव कहते हैं, उसे संघ की भाषा में सर कार्यवाह कहा जाता है। जबकि सह-सरकार्यवाह ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी होते हैं।
सुरेश भैय्याजी जोशी वर्ष 2009 से लगातार सर कार्यवाह पद(महासचिव) की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। संघ सूत्रों का कहना है कि उनकी उम्र करीब 73 वर्ष हो चुकी है। वर्ष 2018 में अस्वस्थता के कारण वह खुद यह जिम्मेदारी छोड़ने की इच्छा जता चुके हैं। हालांकि सांगठनिक कुशलता के कारण वर्ष 2018 की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में उन्हें तीन साल के लिए और कार्यविस्तार देने का निर्णय सर्वसम्मति से हुआ था। लेकिन इस बार उनके जिम्मेदारी छोड़ने की प्रबल संभावना है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि संघ में सरकार्यवाह पद का चुनाव हमेशा सर्वसम्मति से होता है। संघ में किसी सरकार्यवाह की जिम्मेदारी मिलेगी, यह देश के सभी प्रांतों के करीब 1400 प्रतिनिधि सर्वसम्मति से तय करते हैं।
नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर ने आईएएनएस को बताया, "अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह के पद पर सर्वसम्मति से चुनाव होना है। सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी को विस्तार मिलेगा या किसी नए चेहरे को मौका मिलेगा, यह 19-20 को करीब 1400 प्रतिनिधि सर्वसम्मति से निर्णय करेंगे। मुझे लगता है कि इस बार आधे दर्जन सह-सरकार्यवाह में से किसी एक को प्रमोशन देकर इस पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। दत्तात्रेय होसबोले का नाम सर्वाधिक चर्चा में है।"
संघ विचारक दिलीप देवधर ने बताया कि संघ में सरकार्यवाह पद का चुनाव आगामी दो घटनाओं की ²ष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। पहला 2024 का चुनाव और वर्ष 2025 में संघ के सौ साल पूरे होने पर जन्मशताब्दी वर्ष। इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को देखते हुए नए सरकार्यवाह का चुनाव महत्वपूर्ण है।
दत्तात्रेय होसबोले बन सकते हैं सर कार्यवाह
सूत्रों का कहना कि अगर भैय्याजी जोशी को फिर से विस्तार नहीं मिला तो फिर सरकार्यवाह पद की जिम्मेदारी वर्तमान में सह- सर कार्यवाह (ज्वाइंट जनरल सेकेट्ररी) दत्तात्रेय होसबोले को यह जिम्मेदारी मिल सकती है। वजह कि संघ कार्य की ²ष्टि से वह अन्य सह -सरकार्यवाह से वरिष्ठ माने जाते हैं। दत्तात्रेय होसबोले अभी 65 वर्ष के हैं। ऐसे में वह आगे 71 वर्ष की उम्र होने तक सरकार्यवाह का दो कार्यकाल पूरा कर सकते हैं। इन दो कार्यकाल में वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव और संघ का जन्मशताब्दी वर्ष संपन्न हो जाएगा। इस प्रकार उम्र भी उनके पक्ष में है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि संघ का दक्षिण पर फोकस है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में आगामी समय चुनाव है। दक्षिण से ताल्लुक नजर रखने वाले होसबोले इसमें मददगार हो सकते हैं। एबीवीपी में लंबे समय तक रहने के दौरान दत्तात्रेय के पास सांगठनिक कौशल भी है। हालांकि, डॉ. कृष्ण गोपाल, मनमोहन वैद्य का भी नाम सरकार्यवाह पद के लिए चर्चा में है।
--आईएएनएस