अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका सितंबर के बाद की स्थिति के लिए पाकिस्तान समेत कई दूसरे देशों से बात कर रहा है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी इंडो-पैसिफ़िक अफ़ेयर्स के सहायक सचिव डेविड एफ़ हॉलवे ने कुछ दिनों पहले अमेरिकी सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति को बताया था कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना के हटने के बाद भी अमेरिका पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल करने में पाकिस्तान की महत्वपूर्ण भूमिका है.
कुछ दिनों पहले न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार में भी एक ख़बर छपी थी कि सैन्य अड्डे के इस्तेमाल को लेकर अमेरिका और पाकिस्तान में गतिरोध पैदा हो गया है.
इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि पाकिस्तान से हर स्तर पर बात हो रही है ताकि अमेरिकी सेना के हटने के बाद इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि अफ़ग़ानिस्तान दोबारा कभी भी अल-क़ायदा, आईएसआईएस या किसी और चरमपंथी संगठन का बेस ना बन सके जहां ये ये संगठन अमेरिका पर हमला कर सकें.
इन ख़बरों के सामने आने के बाद, पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया ने यह दावा किया था कि बलूचिस्तान के नसीराबाद ज़िले में बनाया जाने वाला एयर बेस वास्तव में अमेरिकी सेना के अनुरोध पर बनाया जा रहा है और एयर बेस का उपयोग अमेरिका ही करेगा.
इसके जवाब में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमदू क़ुरैशी ने कहा था कि पाकिस्तानी सैनिक अड्डे को अमेरिका को इस्तेमाल करने की इजाज़त देने की कभी बात हुई ही नहीं थी, इसलिए इसमें गतिरोध पैदा होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
अब उसी बात को इमरान ख़ान ने दोहराया है कि पाकिस्तान किसी भी हालत में अमेरिका को अपने सैन्य अड्डे इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देगा.
'मोदी ने घुटने टेक दिए'
भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत प्रशासित कश्मीर के 14 नेताओं को कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए दिल्ली आने की दावत दी है.
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती समेत कई नेताओं ने दावत मिलने की पुष्टि की है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में यह बैठक 24 जून को दिल्ली में होने वाली है.
अख़बार एक्सप्रेस ने इस ख़बर को भारत की हार क़रार देते हुए लिखा है कि 'नरेंद्र मोदी ने घुटने टेक दिए हैं और कश्मीर की सभी पार्टियों की बैठक बुलाने का फ़ैसला किया है.'
अख़बार लिखता है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीरियों के ठोस इरादे और दृढ़ निश्चय के आगे घुटने टेक दिए और विशेष राज्य की बहाली समेत दूसरी समस्याओं के हल के लिए कश्मीर की सभी पार्टियों के साथ बैठक करने का फ़ैसला किया है."
अख़बार के अनुसार, 'केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की लोकप्रियता तेज़ी से गिरती जा रही है और पाँच अगस्त 2019 को कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने के फ़ैसले में आगे-आगे रहने वाले अमित शाह अब भारत प्रशासित कश्मीर के बदलते हालात पर सिर जोड़ कर बैठ गए हैं. इस सिलसिले में गृहमंत्री ने कश्मीर के उप-राज्यपाल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लंबी बैठक की है.'
अख़बार का यह भी कहना है कि 24 को होने वाली बैठक में कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 की बहाली के बारे में कोई बात नहीं होगी और मोदी सरकार सिर्फ़ राज्य में चुनावी प्रक्रिया शुरू करने के बारे में बातचीत करेगी.
भारत ने पाँच अगस्त, 2019 को कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया था और उसे राज्य की जगह पर दो केंद्र प्रशासित राज्यों में तब्दील कर दिया था. (bbc.com)
-इक़बाल अहमद
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ज़ोर देकर कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान अमेरिका को अपने फ़ौजी अड्डे नहीं देगा.
एक अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट एक्सिओज़ के जोनाथन स्वैन को दिए इंटरव्यू में इमरान ख़ान ने यह बातें कहीं.
इस पूरे इंटरव्यू को रविवार को एचबीओ पर प्रसारित किया जाएगा लेकिन उसकी एक क्लिप वेबसाइट ने शेयर की है जिसके बाद से यह ख़बर पाकिस्तान के हर अख़बार और सोशल मीडिया पर छा गई है.
वेबसाइट ने 38 सेकंड का टीज़र जारी किया है. इसमें जोनाथन स्वैन इमरान ख़ान से पूछते हैं, "क्या आप अमेरिकी सरकार को इस बात की इजाज़त देंगे कि अफ़ग़ानिस्तान में अल-क़ायदा, आईएसआईएस और तालिबान के ख़िलाफ़ सीमा पार आतंकवाद निरोधी ऑपरेशन करने के लिए सीआईए यहां पाकिस्तान में रहे?"
इसके जवाब में इमरान ख़ान ने कहा, "हरगिज़ नहीं. अफ़ग़ानिस्तान के अंदर किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए पाकिस्तान अपने किसी भी अड्डे या अपनी धरती को अमेरिका को इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देगा."
इमरान ख़ान के इस बयान की इसलिए अहमियत है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सेना 11 सितंबर तक वापस चली जाएगी और उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा और वहां चरमपंथी संगठनों के फिर से सक्रिय होने की आशंका जताई जा रही है. (bbc.com)
महुआ वेंकटेश
नई दिल्ली, 19 जून : नेपाल में केवल बेरोजगारी बढ़ी है, जो कोविड 19 की दूसरी लहर और उसके बाद के लॉकडाउन की चपेट में है। पिछले साल नेपाल राष्ट्र बैंक के एक सर्वेक्षण ने संकेत दिया था कि हिमालयी देश में 60 प्रतिशत से अधिक व्यवसाय पूरी तरह से बंद हो सकते हैं। रोजगार के अवसरों की तलाश में बड़ी संख्या में नेपाली एक बार फिर देश से बाहर जाने की योजना बना रहे हैं।
कतर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और ओमान सहित खाड़ी देश नेपालियों के लिए सबसे पसंदीदा रोजगार स्थल बने हुए हैं। मलेशिया भी नेपाली युवाओं को आकर्षित करने वाला एक अन्य देश है। काठमांडू पोस्ट ने कहा, ये सात देश अनुमानित 13 लाख नेपाली प्रवासी श्रमिकों की मेजबानी करते हैं।
इसके अलावा, भारत में काम करने वाले नेपाली लोगों की संख्या 30 से 40 लाख के बीच अनुमानित है। अखबार ने कहा, विदेश में काम करने वाले अधिकांश नेपाली भारत में कार्यरत हैं। लेकिन चूंकि नेपाल और भारत एक खुली सीमा साझा करते हैं, इसलिए कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं।
काठमांडू स्थित एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, नेपाल के युवाओं ने देश में कभी कोई भविष्य नहीं देखा। कोविड-19 महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव ने केवल चीजों को बदतर बना दिया है।
दो साल पहले, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने 3.1 अरब रुपये के आवंटन के साथ एक महत्वाकांक्षी रोजगार सृजन योजना शुरू की थी। लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह भ्रष्टाचार के कारण देने में विफल रहा है।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) ने छह महीने पहले प्रकाशित एक अध्ययन में कहा कि अनौपचारिक क्षेत्र के आठ प्रतिशत और घर पर काम करने वाले 14 लाख श्रमिकों को कोरोना वायरस महामारी के कारण नौकरी गंवाने का गंभीर खतरा है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने पहले उल्लेख किया था कि बड़ी संख्या में श्रम बल, विशेष रूप से युवाओं ने काम पर उच्च आय और सम्मान की तलाश में विदेशों में प्रवास का विकल्प चुना है।
काठमांडू स्थित एक उद्यमी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, यह नहीं बदला है। नेपाली अभी भी सीमित रोजगार के अवसरों के साथ देश के बाहर आकर्षक विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, कोविड 19 की गंभीर दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को और प्रभावित किया है और हम में से कई अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहे हैं।
हाल ही में, एएनआई ने कहा कि जिला अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, एक निराशाजनक रोजगार परिदृश्य के बीच हर दिन बड़ी संख्या में नेपाली प्रवासी श्रमिक भारत में सीमा पार करते हैं।
समाचार एजेंसी ने कहा, 29 अप्रैल से सार्वजनिक परिवहन बंद होने के बावजूद, हताश परिस्थितियों में प्रवासी श्रमिक रोजगार के लिए भारत पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश श्रमिक आपातकालीन सेवाओं के लिए दिए गए पास वाले वाहनों में परिवहन के लिए अपमानजनक कीमत चुका रहे हैं।
क्या ओली के लिए चिंता का विषय बनेगा बेरोजगारी का मुद्दा?
दिलचस्प बात यह है कि कई स्रोतों ने इंडिया नैरेटिव को बताया कि बढ़ती बेरोजगारी की समस्या ओली के लिए एक बड़ी चिंता का विषय नहीं हो सकती है, भले ही नेपाल नवंबर में आम चुनावों के लिए तैयार हो।
उनमें से एक ने कहा, यह सच है कि बेरोजगारी बढ़ी है, लेकिन यह मुद्दा नया नहीं है। यह कई वर्षों से संकट में है। ओली एक ऐसे व्यक्ति हैं जो जमीनी स्तर से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और इससे उन्हें आगामी आम चुनावों में मदद मिल सकती है।
ओआरएफ अध्ययन में कहा गया है : दुर्भाग्य से, युवाओं के लिए रोजगार सृजन नेपाल में वर्तमान सरकार या अतीत में किसी भी सरकार के लिए प्राथमिकता नहीं रही है। देश में योजनाकार और नीति निर्माता इस समस्या के प्रति उदासीन हैं, क्योंकि वे केवल प्रवासी श्रमिकों से प्रेषण की वृद्धि से संतुष्ट हैं, जो नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद के 30 अरब डॉलर के एक चौथाई से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
(यह आलेख इंडिया नैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत है) (आईएएनएस)
लीमा, 19 जून | पेरू के दक्षिणी क्षेत्र अयाचूचो में एक बस के पलट जाने से कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बस शुक्रवार को अयाचूचो क्षेत्र से अरेक्विपा के लिए इंटरओसीनिक हाईवे पर यात्रा करते समय 250 मीटर की खाई में गिर गई।
दुर्घटना स्थल से शुरूआती रिपोटरें के अनुसार, राजधानी लीमा से 600 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित, वारी पालोमिनो कंपनी की बस खनिकों और उनके परिवारों के एक समूह को ले जा रही थी।
घायलों को बचाने के लिए बचाव दल, दमकलकर्मी और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे, जिन्हें नस्का के नजदीकी अस्पताल ले जाया गया।
पेरू पुलिस दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए जानकारी जुटा रही है। (आईएएनएस)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 19 जून| अमेरिका के इंडिपेंडेंस डे वीकेंड से पहले, राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका 'पिछले साल की तुलना में बहुत अलग समर' की ओर बढ़ रहा है। बाइडन के पदभार ग्रहण करने के बाद से 150 दिनों में 30 करोड़ कोविड -19 के टीके लगाए हैं।
बाइडन ने कहा "हम पिछले साल की तुलना में बहुत अलग समर की ओर बढ़ रहे हैं। एक उज्जवल गर्मी, प्रार्थनापूर्वक, आनंद की गर्मी।"
व्हाइट हाउस ने 4 जुलाई को साउथ लॉन में 1,000 से अधिक मेहमानों, मुख्य रूप से फ्रंटलाइन वर्कर्स और उनके परिवारों की मेजबानी करने की योजना की घोषणा की।
बाइडन का लक्ष्य 4 जुलाई तक 70 प्रतिशत अमेरिकियों का कोविड -19 के खिलाफ टीकाकरण करना था। टीकाकरण की गति अब अप्रैल में उच्च स्तर से तेजी से गिर रही है और वर्तमान संख्या 65 प्रतिशत है। अकेले वयस्कों में, 55 प्रतिशत को पूरी तरह से टीका लगाया जाता है। व्हाइट हाउस के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका के 50 राज्यों में, 26 राज्यों और वाशिंगटन डीसी ने 50 प्रतिशत या अधिक वयस्कों को पूरी तरह से टीका लगाया है।
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के आंकड़ों के आधार पर, अमेरिका की 42.6 प्रतिशत आबादी अब पूरी तरह से वैकसीनेटेड है। पिछले साल महामारी की शुरूआत के बाद से अमेरिका में कोविड मामले, अस्पताल में भर्ती और मौतें अपने सबसे निचले स्तर पर हैं।
मजबूत टीकाकरण के उलट, सीडीसी चेतावनी दे रहा है कि भारत में पहली बार ज्ञात कोरोनावायरस का डेल्टा तेजी से फैल रहा है और यह अमेरिका में प्रमुख स्ट्रेन बन जाएगा।
सीडीसी अमेरिकियों को बता रहा है कि जो लोग अपने शॉट्स प्राप्त करेंगे वह इस डेल्टा संस्करण से बच जाएंगे।
ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन आशीष झा ने एनबीसी को बताया "अगर आप पूरी तरह से टीका लगवाए हुए हैं, तो आप वास्तव में बहुत अच्छी तरह से सुरक्षित हैं। लेकिन अगर आपको आंशिक रूप से टीका लगाया गया है, तो हम बहुत सारे संक्रमण देख रहे हैं। इसलिए, यह संभवत: सबसे खराब वैरियंट है जिसका हमें पता चला है।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 19 जून| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 17.77 करोड़ हो गए, जबकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 38.4 लाख हो गई। जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने यह जानकारी दी। शनिवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 177,753,055 और 3,849,115 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,519,262 और 601,281 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 29,762,793 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (17,801,462), फ्रांस (5,814,648), तुर्की (5,359,728), रूस (5,220,168), यूके (4,626,899), इटली (4,250,902), अर्जेंटीना (4,242,763), कोलंबिया (3,888,614), स्पेन (3,757,442), जर्मनी (3,728,601) और ईरान (3,080,526) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 498,499 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (383,490), मैक्सिको (230,792), यूके (128,220), इटली (127,225), रूस (126,300) और फ्रांस (110,864) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)
लॉस एंजिल्स, 19 जून| मशहूर टॉक शो होस्ट ओपरा विनफ्रे हाल ही में हॉलीवुड स्टार ड्रयू बैरीमोर के चैट शो में एक अतिथि के रूप में दिखाई दी। लोगों का इंटरव्यू लेने वाली ओपरा इस बार खुद माइक के दूसरी ओर नजर आईं। उन्होंने 'द ड्रयू बैरीमोर शो' पर, ट्रॉमा से निपटने के बारे में बात की। "मैं यह निश्चित रूप से जानती हूं कि आपके साथ जो कुछ भी हुआ है वह किसी के साथ भी हो सकता है। मैंने एक बच्चे के रूप में सर्वाइव किया है और उसे अंदर से बाहर करने के लिए कष्ट सहा है।"
"विनफ्रे ने कहा कि उन्होंने अपने जैसी लड़कियों की तलाश में एक स्कूल बनाया।"
उन्होंने भारत में जी कैफे पर प्रसारित होना वाले शो में कहा , "इसलिए मैंने अपना स्कूल विशेष रूप से उन लड़कियों की तलाश में बनाया जो मेरे जैसी हैं। जो लड़कियां गरीब और कमजोर पृष्ठभूमि से आती हैं और कई बार अवांछित महसूस करती हैं। मैंने सोचा, मैं उनके लिए एक माहौल कैसे बनाऊं, कैसे क्या मैं वापस दूं। इस तरह से आप अपने आप को बचा सकते हो!" (आईएएनएस)
इसराइल के 10 लाख कोविड वैक्सीन देने के सौदे को फ़लस्तीनी प्रशासन ने रद्द कर दिया है.
प्रशासन ने कहा है कि फ़ाइज़र की वैक्सीन एक्सपायरी डेट के बहुत नज़दीक है.
इससे पहले इसराइल ने कहा था कि अधिक पुरानी वैक्सीन की अब ज़रूरत नहीं है और इन्हें फ़लस्तीनी टीकाकरण कार्यक्रम में तेज़ी लाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके बदले में फ़लस्तीनियों को इसराइल को उतनी ही वैक्सीन देनी होगी जितनी उसे इस साल के आख़िर में फ़ाइज़र संगठन से मिलने की उम्मीद है.
इसराइल से टीके की जब पहली खेप पहुंची तो फ़लस्तीनी अधिकारियों ने कहा कि उन्हें जितनी उम्मीद थी एक्सपायरी डेट उससे भी अधिक पास है.
उन्होंने कहा कि इन्हें इस्तेमाल के लिए बहुत समय नहीं है और इसलिए सौदे को रद्द कर दिया गया.
फ़लस्तीनी प्रशासन के प्रवक्ता इब्राहिम मेलहेम ने कहा था कि 90,000 टीकों की शुरुआती डिलीवरी ‘सौदे की विशेषताओं को पूरा करने में नाकाम साबित हुई है और प्रधानमंत्री मोहम्मद शतायेह के अनुसार उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को सौदे को रद्द करने के निर्देश दिए.’
मेलहेम ने कहा कि इसके बजाय प्रशासन सीधे फ़ाइज़र को दिए ऑर्डर के लिए इंतज़ार करेगा.
शुक्रवार को किए गए ट्वीट में इसराइल के नए स्वास्थ्य मंत्री नित्ज़ान होरोवित्ज़ ने कहा था कि ‘कोरोना वायरस किसी सीमा को नहीं जानता है और लोगों के बीच भेद नहीं करता है.’
उन्होंने कहा था कि ‘वैक्सीन को लेकर महत्वपूर्ण अदला-बदली’ दोनों के हितों में है और उन्होंने उम्मीद जताई थी कि ‘इसराइल और फ़लस्तीन के बीच सहयोग और अन्य क्षेत्रों में भी होगा.’ (bbc.com)
टोरंटो, 18 जून (आईएएनएस)| भारतीय मूल के न्यायमूर्ति महमूद जमाल कनाडा के सर्वोच्च न्यायालय के लिए नामित होने वाले पहले गैर-श्वेत व्यक्ति बन गए हैं।
उन्हें ओंटारियो के अपीलीय न्यायालय से पदोन्नत किया गया है जहां उन्होंने 2019 से सेवा की है।
जस्टिस जमाल का जन्म 1967 में नैरोबी में हुआ था जहां उनका परिवार एक पीढ़ी पहले भारत से पलायन कर गया था।
परिवार बाद में 1969 में यूके चला गया।
वह 1981 में अपने परिवार के साथ कनाडा आए और कानून की पढ़ाई करने के लिए मैकगिल विश्वविद्यालय और फिर येल विश्वविद्यालय जाने से पहले अपनी डिग्री के लिए टोरंटो विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।
प्रधानमंत्री ट्रूडो ने न्यायमूर्ति जमाल को कनाडा के सर्वोच्च न्यायालय में नामित करने की घोषणा करते हुए खुशी व्यक्त की है। दुनिया भर में सम्मानित, कनाडा का सर्वोच्च न्यायालय अपनी ताकत, स्वतंत्रता और न्यायिक उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है।
"जस्टिस जमाल, अपने असाधारण कानूनी और शैक्षणिक अनुभव और दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पण के साथ, हमारे देश की सर्वोच्च अदालत के लिए एक मूल्यवान संपत्ति होगें।"
अच्छी अंग्रेजी और फ्रेंच बोलने वाले जस्टिस जमाल दीवानी, संवैधानिक, आपराधिक और नियामक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 35 अपीलों में पेश हुए हैं।
जस्टिस जमाल की शादी गोलेटा से हुई है जो ईरान में 1979 की क्रांति के बाद अपने बहाई धर्म के उत्पीड़न से बचने के लिए किशोरी शरणार्थी के रूप में कनाडा भाग गई थी।
उन्होंने शादी के बाद बहाई धर्म में धर्मांतरण किया।
ईरान के लोग आज नए राष्ट्रपति के लिए मतदान करेंगे. कुल चार उम्मीदवारों में से एक को राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह मिलेगी.
ओपिनयन पोल्स का अनुमान है कि रूढ़िवादी शिया मौलवी और सुप्रीम कोर्ट प्रमुख इब्राहिम राईसी को राष्ट्रपति की कुर्सी मिल सकती है. रइसी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ईरान के केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर अब्दुलनासेर हेमाती हैं.
कई अंस्तुष्टों और कुछ सुधारवादियों ने चुनाव का बहिष्कार किया है. इनका कहना है कि कई उम्मीदवारों को चुनाव से बाहर करने के कारण रइसी की राह आसान हो गई है.
ट्रंप प्रशासन ने 2017 में ईरान से परमाणु समझौता ख़त्म कर दिया था और कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. इन पाबंदियों से ईरान के लोग गंभीर आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और इसे लेकर सरकार से काफ़ी नाराज़गी है.
हसन रूहानी की छवि नरम नेता की रही है और वे पश्चिम से संबंधों को ठीक करने की वकालत करते रहे हैं. हालांकि उनका दो कार्यकाल पूरा हो चुका है, इसलिए तीसरी बार वे राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं.
उम्मीदवारों की पुष्टि कौन करता है?
लगभग 600 उम्मीदवारों ने चुनाव के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमें 40 महिलाएं भी शामिल थीं. लेकिन पिछले महीने सात पुरुषों को गार्डियन काउंसिल से मंज़ूरी मिली. इस काउंसिल में 12 सदस्य हैं और इसे रूढ़िवादी माना जाता है.
राष्ट्रपति हसन रूहानी के पहले उपराष्ट्रपति इशाक़ जहांगिरी और ईरानी संसद के पूर्व रूढ़िवादी स्पीकर अली लार्जिआनी समेत कइयों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिली.
गुरुवार को तीन वैसे उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया जिन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति मिली थी. ये हैं- सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सईद जलीली, सांसद अलीरेज़ा ज़कानी और सुधारवादी पूर्व उपराष्ट्रपति मोहसीन मेहरालिज़ादेह.
जलीली और ज़कानी दोनों कट्टरपंथी हैं और इन्होंने राईसी का समर्थन किया है. अगर पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट नहीं मिलेगा तो एक रन-ऑफ चुनाव होगा.
कितने मतदाता?
ईरान में 5.9 करोड़ लोग वोट देने के योग्य हैं. ईरान की आबादी आठ करोड़ है. 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में मतदान 73 फ़ीसदी रहा था लेकिन इस बार सरकार समर्थित ईरानी स्टूडेंट पोलिंग एजेंसी आईएसपीए का कहना है कि मतदान 42 फ़ीसदी तक रह सकता है.
अगर ऐसा होता है कि 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रपति चुनाव में सबसे कम लोगों की भागीदारी होगी. चुनाव में लोगों की कम भागीदारी से वहाँ के नेताओं के लिए मुश्किल परिस्थिति खड़ी हो सकती है. (bbc.com)
इन्हीं आशंकाओं के बीच ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह ख़ामेनेई ने बुधवार को लोगों से आग्रह किया था कि शुक्रवार को राष्ट्रपति के लिए होने वाले मतदान में जमकर हिस्सा लें.
ख़ामेनेई ने कहा था कि ज़्यादा मतदान और इस्लामिक रिपब्लिक पर बाहरी दबाव के बीच सीधा संबंध है.
ख़ामेनेई ने कहा था, ''अगर मतदान में लोगों की भागीदारी कम होती है तो दुश्मनों का दबाव बढ़ेगा...अगर हम विदेशी दबाव और प्रतिबंधों को कम करना चाहते हैं तो मतदान में लोगों की भागीदारी को बढ़ाना बहुत ज़रूरी है. हम इस जम-समर्थन को अपने दुश्मनों को दिखा सकेंगे.'' ख़ामेनेई ने ये बातें बुधवार को टेलीविजन पर प्रसारित अपने भाषण में कही.
ख़ामेनेई ने कहा था कि सभी ईरानी नागरिकों को चाहे वे जिस राजनीति को पसंद करते हों, जमकर मतदान में हिस्सा लेना चाहिए.
ख़ामेनेई ने आरोप लगाया था कि अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया ईरानियों को वोट में हिस्सा नहीं लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. ईरानी के सर्वोच्च नेता ने आरोप लगाया कि ब्रिटिश और अमेरिकी मीडिया ईरान के चुनाव को कमज़ोर करना चाहता है. (bbc.com)
काबुल, 18 जून | अफगानिस्तान के अधिकारियों ने बताया कि पिछले तीन दिनों में फरयाब, हेरात और फराह प्रांतों में अफगान सुरक्षा बलों के साथ जारी भीषण संघर्ष में 100 से अधिक तालिबान आतंकवादी मारे गए हैं।
सेना के एक प्रवक्ता ने गुरुवार को कहा कि तालिबान आतंकवादियों ने 1 मई को अफगानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना की वापसी के बाद से गतिविधियों को तेज कर दिया था और एक दर्जन से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया था।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रवक्ता के अनुसार, तालिबान के बार बार के प्रयासों को विफल कर दिया गया है । लड़ाकू विमानों द्वारा समर्थित सुरक्षा बलों ने पिछले तीन दिनों में फरयाब के शिरीन तगाब और दौलताबाद जिलों में 45 आतंकवादियों को मार गिराया और 60 अन्य को घायल कर दिया।
प्रवक्ता ने कहा कि दौलताबाद जिला सरकारी नियंत्रण में है, और कैसर जिले से आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए अभियान जारी है।
अधिकारी ने सुरक्षा पक्ष में हताहतों की संख्या पर कोई टिप्पणी नहीं की।
हालांकि, उन्होंने कहा कि तालिबान लड़ाकों ने पिछले तीन दिनों में शिरीन तगाब जिले पर लगातार हमले किए, लेकिन कोई नुकसान नहीं हुआ।
एक स्थानीय पर्यवेक्षक के अनुसार, अगर तालिबान फरयाब प्रांत पर कब्जा करने में सफल होता है, तो समूह मजार ए शरीफ के आसपास फंदा कस सकता है। ये अफगानिस्तान के उत्तरी क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर है और उज्बेकिस्तान की सीमा में है।
इसी तरह, तालिबान लड़ाकों ने ईरान की सीमा से लगे हेरात और पड़ोसी फराह प्रांतों में अभियान तेज कर दिया है।
फराह के जवेन और अनार दारा जिलों पर तालिबान के हमलों को नाकाम कर दिया गया है और आतंकवादी 36 शवों को छोड़कर भाग गए हैं।
तालिबान आतंकवादियों ने पिछले कुछ दिनों से हेरात प्रांत के ओबे जिले को घेर लिया था और सुरक्षाकर्मियों से आत्मसमर्पण करने की अपील की थी।
हालांकि, लड़ाकू विमानों ने गुरुवार को तालिबान के ठिकानों पर हमला किया, जिसमें 11 विद्रोही मारे गए और आठ अन्य घायल हो गए।
इस बीच, सैकड़ों लोगों ने अपने बेटों को तालिबान की घेराबंदी से बचाने में मदद के लिए गुरुवार को हेरात के गवर्नर कार्यालय के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने अधिकारियों द्वारा किए गए दावों को खारिज कर दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि आतंकवादियों ने 41 जिलों पर कब्जा कर लिया है।(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 18 जून| पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 17.73 करोड़ हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 38.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये अांकड़े जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने साझा किए हैं। शुक्रवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान कोरोना के मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: 177,355,602 और 3,840,181 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,508,384 और 600,933 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 29,700,313 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार
30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (17,702,630), फ्रांस (5,811,456), तुर्की (5,354,153), रूस (5,203,117), यूके (4,616,616), इटली ( 4,249,755), अर्जेंटीना (4,222,400), कोलंबिया (3,859,824) , स्पेन (3,753,228), जर्मनी (3,727,668) और ईरान (3,070,426)हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 496,004 संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (381,903), मेक्सिको (230,624), यूके (128,209), इटली (127,190), रूस (125,853) और फ्रांस (110,796) में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
नेफ्ताली बेनेट के इजरायल का प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार मंगलवार (15 जून 2021) को सेना ने गाजा पट्टी पर हवाई हमला किया। इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने इस हमले को अंजाम देने के लिए जो टीम चुनी थी उसमें भारतीय मूल की गुजराती लड़की 20 वर्षीय नित्शा मुलियाशा भी शामिल थीं। वह आईडीएफ की बहादुर रंगरूटों में से एक हैं।
तेल अवीव में बसा नित्शा का परिवार मूल रूप से राजकोट के मनावदार तहसील को कोठाड़ी गाँव का रहने वाला है। इजरायल में कुल 45 गुजराती परिवार हैं, जिनमें से अधिकांश हीरा कंपनियों में काम करते हैं। नित्शा इजरायली सेना में शामिल होने वाली पहली गुजराती लड़की हैं।
अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, नित्शा के पिता जीवाभाई मुलियाशा ने बताया है कि इजरायली शिक्षा प्रणाली एक बच्चे के अंदर लीडरशिप की क्वालिटी डेवलप करती है। एक सिक्योरिटी कंपनी चलाने वाले जीवाभाई कहते हैं कि स्कूली शिक्षा बच्चों की योग्यता और स्किल की परीक्षा करने के लिए टेस्ट सीरीज तैयार करती है, जिससे उन्हें एक उपयुक्त पाठ्यक्रम और करियर चुनने में मदद मिलती है।
नित्शा के पिता ने कहा कि इज़रायल में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों के लिए सैन्य सेवा में भर्ती अनिवार्य है। नित्शा को दो साल पहले आईडीएफ ने चुना था। अपनी ड्यूटी के दौरान उसे सेना के वाहनों के साथ घूमना पड़ता है और लोकेशन बदलते रहना पड़ता है। नित्शा पिछले दो साल में लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र की सीमा पर तैनात रह चुकी हैं। मौजूदा समय में नित्शा गश डैन में तैनात हैं, क्योंकि इजरायली सेनाएँ पलटवार कर रही हैं।
नित्शा के पिता ने बताया कि सामान्यतया वह दिन में 8 घंटे काम करती हैं, लेकिन इस तरह के समय में 24 घंटे या उससे अधिक भी काम करना पड़ता है। नित्शा के कैरियर की पसंद उनके परिवार को गौरवान्वित करती है, लेकिन वो उसे याद भी बहुत करते हैं। जीवाभाई ने कहा, “नित्शा अपनी सर्विस के लिए पूरी तरह से समर्पित है। अगर वह आसपास होती है तो हम सप्ताह के अंत में उससे मिल भी लेते हैं, लेकिन कभी-कभी तो महीनों बीत जाते हैं।”
अत्याधुनिक हथियारों के इस्तेमाल में ट्रेंड हैं निशा
नित्शा के पिता बताते हैं कि उसने बैटलफील्ड में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश अत्याधुनिक हथियारों और बहुआयामी युद्धाभ्यास की ट्रेनिंग ली है। नित्शा के पिता ने बताया, “एक बार सेना में 2.4 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद, उन्हें 5 या 10 साल का एक अग्रीमेंट साइन करना होगा, जिसके बाद उन्हें इंजीनियरिंग, मेडिसिन या अपनी मर्जी का कोर्स करने की इजाजत होगी। नित्शा की पढ़ाई का पूरा खर्च इजरायल की सेना उठाएगी।”
कई भाषाएँ जानती हैं नित्शा
इजरायल में रहने वाली नित्शा का कोई भारतीय मित्र नहीं है। उनके पिता ने बताया कि वह अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, हिब्रू और स्पेनिश की अच्छी जानकार हैं। नित्शा ने कई बार भारत की यात्रा की है। भारत के लिए ये उनका प्यार ही है जो हर तीन साल में उन्हें उनके गृहनगर खींच लाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जीवाभाई का परिवार तेल अवीव में पाँच-बेडरूम वाले एक शानदार घर में रहता है। इसमें रॉकेट या अपरंपरागत हथियारों के हमले का सामना करने के लिए ब्लास्ट-प्रूफ खिड़कियों के साथ तहखाने में एक सुरक्षित कमरा भी है। गाजा से लगातार मिसाइल हमले की धमकी के बाद पिछले कुछ महीनों से परिवार सुरक्षित कमरे में ज्यादा समय बिता रहा है।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उनकी पत्नी अंजलीबेन ने अपनी पिछली इज़रायल की यात्रा के दौरान जीवाभाई के घर का दौरा किया था और परिवार के साथ दोपहर का भोजन किया था। (hindi.opindia.com)
लुसाका, 18 जून| जाम्बिया सरकार के अनुसार, जाम्बिया के पहले राष्ट्रपति केनेथ कौंडा का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। कैबिनेट सचिव साइमन मिती ने गुरुवार को बताया कि दोपहर ढाई बजे कौंडा का निधन हो गया। देश की राजधानी लुसाका में एक सैन्य अस्पताल, मेन सोको अस्पताल में उन्हें सोमवार को भर्ती कराया गया था।
कौंडा की मौत के कारणों का खुलासा अभी नहीं किया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, कौंडा के कार्यालय ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि प्रारंभिक परीक्षणों से संकेत मिलता है कि उन्हें निमोनिया है।
जाम्बिया के राष्ट्रपति एडगर लुंगु ने पूर्व राष्ट्रपति के लिए 21 दिनों के शोक की घोषणा की है।
मिती ने स्टेट-ब्रॉडकास्टर, जाम्बिया नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन पर कहा कि सरकार कोविड-19 महामारी के अनुरूप अंतिम संस्कार की विस्तृत व्यवस्था करेगी।
लुंगू ने कहा कि उन्हें आज दोपहर कौंडा के निधन के बारे में बड़े दुख के साथ पता चला।
लुंगु ने गुरुवार को अपने फेसबुक पेज पर लिखा, पूरे देश की ओर से और अपनी ओर से मैं प्रार्थना करता हूं कि पूरे कौंडा परिवार को सांत्वना मिले, क्योंकि हम अपने पहले राष्ट्रपति और सच्चे अफ्रीकी आइकन का शोक मनाते हैं।
1924 में पैदा हुए कौंडा ने जाम्बिया के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और 1964 से 1991 तक देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद से, कौंडा ने अपनी संस्था केनेथ कौंडा चिल्ड्रन ऑफ अफ्रीका फाउंडेशन के माध्यम से एचआईवी/एड्स के खिलाफ लड़ाई के लिए अपना समय समर्पित किया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)| रेडफॉक्सट्रॉट 2014 से सक्रिय है और मुख्य रूप से अन्य देशों के अलावा भारत में एयरोस्पेस और रक्षा, सरकार, दूरसंचार, खनन और अनुसंधान संगठनों को अपना लक्ष्या बनाता है। अन्य देश अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं, जो पीएलए यूनिट 69010 के परिचालन प्रेषण के साथ जुड़ा हुआ है।
इंटरप्राइज सुरक्षा के लिए दुनिया के सबसे बड़ा खुफिया प्रदाता रिकार्डेड फ्युचर, ने गुरुवार को साइबर जासूसी गतिविधि का खुलासा किया, जिसका श्रेय एक संदिग्ध चीनी राज्य-प्रायोजित समूह रेडफॉक्सट्रॉट को दिया जाता है, जिसका नाम रिकॉर्डेड फ्यूचर के थ्रेट रिसर्च आर्म इंसिक्ट ग्रुप द्वारा दिया गया है।
इंसिक्ट ग्रुप ने चीनी सैन्य खुफिया तंत्र और रेडफॉक्सट्रॉट के बीच विशेष संबंध की पहचान की।
रिकॉर्डेड फ्यूचर के बड़े पैमाने पर, स्वचालित नेटवर्क ट्रैफिक एनालिटिक्स और विशेषज्ञ विश्लेषण ने सीमावर्ती एशियाई देशों में क्षेत्रों को लक्षित घुसपैठ करने का पता लगाया।
2014 से सक्रिय, रेडफॉक्सट्रॉट मुख्य रूप से अफगानिस्तान, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान में एयरोस्पेस और रक्षा, सरकार, दूरसंचार, खनन और अनुसंधान संगठनों को लक्षित करता है, जो पीएलए यूनिट 69010 के परिचालन प्रेषण के साथ जुड़ा हुआ है।
रेडफॉक्सट्रॉट बड़ी मात्रा में परिचालन बुनियादी ढांचे का रखरखाव करता है और चीनी साइबर जासूसी समूहों द्वारा आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले बीस्पोक और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध मैलवेयर परिवारों दोनों को नियोजित करता है।
रिकार्डेड फ्युचर के सीईओ और को फाउंडर क्रिस्टोफर अलबर्ग ने कहा, "पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की हालिया गतिविधि काफी हद तक खुफिया समुदाय के लिए एक ब्लैक बॉक्स रही है। विरोधियों को असफल करने और किसी संगठन या सरकार की सुरक्षा स्थिति को सूचित करने के लिए लगातार और व्यापक निगरानी और खुफिया जानकारी का संग्रह महत्वपूर्ण है।
जर्मनी की छवि भले ही एक औद्योगिक शक्ति की है, लेकिन जहां तक क्वांटम कंप्यूटिंग का सवाल है, यूरोप की यह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बाकियों से पीछे रह गई है. लेकिन अब एक नया कंप्यूटर हालात बदल सकता है.
डॉयचे वैले पर कृस्टी प्लाडसन की रिपोर्ट
जर्मनी नए क्वांटम युग के मुहाने पर खड़ा है. जर्मनी क्वांटम कंप्यूटिंग में चीन और अमेरिका जैसी औद्योगिक ताकतों से मुकाबला करना चाहता है. और जिसके पास भी जितनी आधुनिक क्वांटम कंप्यूटिंग तकनीक है, वह उतना ही ज्यादा ताकतवर है. इसलिए जर्मनी अब इस ओर विशेष ध्यान दे रहा है. इस हफ्ते म्यूनिख स्थित फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट और अमेरिकी कंपनी आईबीएम ने क्वांटम कंप्यूटिंग में मिलकर काम करने का ऐलान किया है, आईबीएस के नए क्वांटम सिस्टम वन कंप्यूटर के इर्द-गिर्द केंद्रित होगा. यह दुनिया का सबसे ताकतवर कंप्यूटर है.
क्यों चाहिए क्वांटम कंप्यूटर
चीन और अमेरिका के पास क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में जर्मनी से कहीं ज्यादा पेटेंट हैं. और ऐसा तब है जबकि जर्मनी में रिसर्च पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाता है, जिसके बारे में दुनिया को ज्यादा नहीं पता है. हनोवर की लाइबनित्स यूनिवर्सिटी में क्वांटम फिजिक्स के प्रोफेसर क्रिस्टियान ऑस्पेलकाउस कहते हैं, "मैं कहूंगा कि अब तक हम राडार की पकड़ में आए बिना ही उड़ते रहे हैं. इसकी वजह है कि इस क्षेत्र में मिलने वाली वित्तीय मदद को अक्सर अलग तरह के तकनीकी नाम दिए जाते रहे हैं. यानी हमने यह कभी नहीं कहा कि हम एक क्वांटम कंप्यूटर बना रहे हैं. बल्कि हमने कहा, हम ऐसी अवस्था का अध्ययन कर रहे हैं जिसमें 20 आयन हैं.”
अब QUTAC और आईबीएम क्वांटम सिस्टम वन मिलकर इस विशेषज्ञता को खुले में ला रहे हैं. प्रोफेसर क्रिस्टियान ऑस्पेलकाउस कहते हैं कि क्वांटम कंप्यूटर बनाने से जुड़े हर क्षेत्र में जर्मनी काफी समय से मजबूत रहा है, अब तो बस हम उसे बना रहे हैं. वह कहते हैं, "जर्मनी में हमें अपने कल-पुर्जे चाहिए, जो हम खुद बनाएं ना कि कहीं और से किसी और के बनाए पुर्जे खरीदें.”
क्या है क्वांटम कंप्यूटर?
आम कंप्यूटर बाइनरी गणना करते हैं, यानी एक बार जीरो अगली बार एक. लेकिन क्वांटम कंप्यूटर जीरो और एक दोनों को एक साथ गणना में रखते हैं. जैसे आम कंप्यूटिंग में ईकाई को बिट कहते हैं, यहां क्वीबिट कहा जाता है. क्वीबिट्स में होने वाली गणना कहीं ज्यादा तेज होती है. मौजूदा सुपर कंप्यटूर से भी कहीं ज्यादा तेज.
ऑस्पेलकाउस कहते हैं कि फिलहाल क्वांटम कंप्यूटर आम कंप्यूटरों से ज्यादा काम तो करने लगे हैं लेकिन अभी ऐसा नहीं है कि यह ज्यादा काम बहुत बड़ी भूमिका निभा पा रहा हो. यूं समझिए कि वैज्ञानिक ऐसी समस्याएं बना रहे हैं जो आम कंप्यूटर हल नहीं कर सकते. फिर उन्हें क्वांटम कंप्यूटर से हल कराया जाता है. ऑस्पेलकाउस बताते हैं, "लेकिन ये समस्याएं इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं.”
हालांकि वह यह भी जोड़ते हैं कि अब स्थिति बदल रही है और क्वांटम कंप्यूटर फायदेमंद नतीजे देने लगे हैं.
उद्योगों का क्या फायदा?
जर्मन उद्योग क्वांटम कंप्यूटर्स के फायदों में कई साल से दिलचस्पी दिखा रहे हैं. QUTAC का हिस्सा कई कंपनियों ने क्वांटम विशेषज्ञों को अपने यहां नौकरी पर रखा हुआ है. और ये विशेषज्ञ लगातार अहम होते जा रहे हैं. जैसे कि कार कंपनी फॉक्सवॉगन एक ऐसा क्वांटम विशेषज्ञ ढूंढ रही थी जो कार बनाने में क्वांटम तकनीक के फायदे खोज सके. अन्य कार कंपनी बीएमडब्ल्यू का एक वीडियो बताता है कि क्वांटम कंप्यूटर ने उनके रोबोट को कार में सीलिंग मैटिरियल लगाने के ज्यादा सक्षम तरीके बताए, जिससे कंपनी को वक्त और धन की काफी बचत हुई.
क्वांटम कंप्यूटर बता सकते हैं कि सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के सबसे सस्ते और छोटे रास्ते कौन से हो सकते हैं. वे मशीनों की जानकारी बढ़ा सकते हैं. कंप्यूटरों को भाषाएं या बोलता हुआ इंसान क्या कह रहा है यह समझने में मदद कर सकते हैं. कई विशेषज्ञ कहते हैं कि एनक्रिप्टेड यानी छिपे हुए संदेश हल करने में क्वांटम कंप्यूटर काफी सफल रहे हैं. हालांकि इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.
प्रतिष्ठित फ्राउनहोफर संस्थान के पास अब अपना एक क्वांटम कंप्यूटर होगा, जिस पर परीक्षण किए जा सकेंगे. QUTAC और उसके बाहर की कंपनियां, या कोई भी इंस्टीट्यूट के साथ समझौता करके अपने प्रयोग कर सकता है और इस तकनीक को समझ सकता है.
अपनी वेबसाइट पर QUTAC ने कहा है कि उद्योगों में क्वांटम कंप्यूटर किस तरह मदद कर सकते हैं, इस क्षेत्र में काम शुरू किये जाने की योजना है. (dw.com)
मेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने अपनी पहली मुलाकात में सहयोग और सहमतियों की बातें की लेकिन एक-दूसरे को खरी-खरी सुनाने से भी नहीं चूके.
जेनेवा में रूस और अमेरिका के राष्ट्रपतियों की इस मुलाकात पर दुनियाभर की निगाहें थीं. दोनों देशों के बीच हाल के महीनों में लगातार तनाव रहा है. उस पृष्ठभूमि में जब दोनों नेता स्विट्जरलैंड में एक झील किनारे स्थित विला में मिले, तो आशंकाएं और संभावनाएं कान लगाए बैठी थीं. दोनों पक्षों ने इस बैठक के पांच घंटे तक चलने की संभावना जताई थी लेकिन यह पहले ही खत्म हो गई. उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति का हवा में उठा हुआ अंगूठा इस बात का प्रतीक था कि मुलाकात खराब नहीं रही. बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने इस बैठक को ‘काफी सफल' बताया.
मुलाकात के बाद दोनों पक्षों ने एक साझा बयान भी जारी किया जिसके केंद्र में परमाणु अप्रसार का मु्द्द था. बयान में कहा गया, "परमाणु युद्ध कभी नहीं जीते जा सकते और कभी नहीं होने चाहिए.” साझा बयान में कहा गया कि ‘तनाव के बावजूद' साझे लक्ष्यों पर प्रगति हुई. दोनों नेताओं ने कहा, "निकट भविष्य में अमेरिका और रूस ‘रणनीतिक स्थिरता विमर्श' शुरू करेंगे जो गहन और सुविचारित होगा.” इस बयान में हथियारों पर नियंत्रण खतरे कम करने के उपायों के लिए काम शुरू करने पर भी सहमति जताई गई.
अमेरिका को खरी-खरी
रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने डॉनल्ड ट्रंप को हराकर अमेरिका के राष्ट्रपति बने जो बाइडेन को संतुलित और अनुभवी नेता बताया, जो घंटों तक बैठकर बातचीत को तैयार थे. बाइडेन के पद संभालने के बाद उनसे अपनी पहली बैठक को पुतिन ने रचनात्मक बताया. मीडियाकर्मियों से बातचीत में उन्होंने कहा, "असल में यह काफी नतीजे देने वाली बैठक रही. यह सारभूत थी, विशिष्ट थी और इसका मकसद नतीजे हासिल करना था, जिनमें से एक नतीजा था कि एक दूसरे पर भरोसे की हदों को बढ़ाया जाए.”
पुतिन ने हथियारों पर नियंत्रण के मामले में बाइडेन के मूल्यांकन की भी बात की. उन्होंने कहा, "मेरे ख्याल से यह एकदम स्पष्ट है कि राष्ट्रपति बाइडेन ने एक जिम्मेदाराना और हमारे विचार से सही वक्त पर न्यू स्टार्ट समझौते की समयसीमा को बढ़ाकर पांच साल, यानी 2024 तक करने का फैसला किया है.”
न्यू स्टार्ट समझौता 2010 में हुआ था जिसके तहत रणनीतिक परमाणु हथियारों, मिसाइलों और बमवर्षकों की एक संख्या तय कर दी गई थी. इसके तहत अमेरिका और रूस 1550 से ज्यादा हथियार तैनात नहीं कर सकते. पुतिन ने भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि बेशक, यहां सवाल उठता है कि अब क्या होगा. उन्होंने कहा कि एक दूसरे की संस्थाओं के स्तर पर हथियारों के नियंत्रण के मुद्दे पर विमर्श शुरू किया जाएगा.
पश्चिमी देशों के पत्रकारों ने पुतिन ने उनके देश में मानवाधिकारों और रूस के विपक्षी नेता अलेक्सी नवाल्नी के मुद्दे पर कई सीधे सवाल पूछे. नवाल्नी का तो पुतिन ने नाम तक नहीं लिया और सिर्फ ‘एक रूसी नागरिक' व ‘बार-बार अपराध करने वाला' कहकर संबोधित किया. उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति जानता था कि वह रूस का कानून तोड़ रहा है. जानबूझकर कानून को नजरअंदाज करते हुए वह इलाज के लिए विदेश गया और जानबूझकर ऐसा काम किया जिसके लिए हिरासत में लिया जा सकता है.”
रूसी राष्ट्रपति ने उलटे अमेरिका पर ही दोहरा रवैया रखने का आरोप लगा दिया और कहा कि वह रूस के अंदरूनी मामलों में दखल देना चाहता है. उन्होंने 6 जनवरी को अमेरिका के कैपिटल हिल पर चढ़ाई करने वालों का भी यह कहते हुए बचाव किया कि उनकी चिंताएं जायज थीं. पुतिन ने साफ कहा, "मानवाधिकारों पर (अमेरिका से) भाषण नहीं सुनेंगे.”
बाइडेन ने क्या कहा
डीडब्ल्यू की मॉस्को संवाददाता एमिली शेरविन ने कहा कि रूस की इच्छा है कि उसे अहम भू-राजनीतिक शक्ति माना जाए और यह इच्छा पूरी करके पुतिन ने एक संतुलन साध ही लिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने बैठक के बाद अलग से पत्रकारों से बातचीत की. मुलाकात के बारे में उन्होंने कहा, "मैं आपको बता दूं कि करीब चार घंटे तक चली इस बैठक का माहौल अच्छा था, सकारात्मक था. कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया. जहां हम असहमत थे, मैने असहमति भी जताई. जहां वह असहमत थे, उन्होंने भी साफ कहा. लेकिन यह सब तनावपूर्ण माहौल में नहीं हुआ. कुल मिलाकर, मैंने राष्ट्रपति पुतिन से कहा कि हमें कुछ मूलभूत नियम बनाने होंगे, जिन्हें हम सब मानें.”
बाइडेन ने कहा कि उन्होंने साझा हितों से जुड़े क्षेत्रों पर बात की, जिनका फायदा दोनों देशों को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को होगा. उन्होंने साइबर सुरक्षा पर हुई बातचीत को भी अहम बताया. उन्होंने कहा, "हमने साइबर और साइबर सुरक्षा पर काफी समय बिताया. मैंने प्रस्ताव रखा कि कुछ विशेष बुनियादी ढांचों पर हमलों के दायरे से बाहर कर दिया जाए, फिर चाहे वह साइबर हो या कोई और. मैंने उन्हें एक सूची भी दी. इसमें 16 संस्थानों के नाम हैं.”
बाइडेन ने कहा कि अमेरिका के पास बड़ी साइबर क्षमताएं हैं और रूस इस बात को जानता है. उन्होंने कहा, "अगर वे इन मूलभूत नियमों को तोड़ते हैं तो फिर हम जवाब देंगे. और दूसरी बात, मेरे ख्याल अब वह भी शीत युद्ध तो नहीं चाहते.”
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)
ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह ख़ामेनेई ने बुधवार को ईरान के लोगों से आग्रह किया है कि शुक्रवार को राष्ट्रपति के लिए होने वाले मतदान में जमकर हिस्सा लें.
ख़ामेनेई ने कहा कि ज़्यादा मतदान और इस्लामिक रिपब्लिक पर बाहरी दबाव के बीच सीधा संबंध है.
ख़ामेनेई ने कहा, ''अगर मतदान में लोगों की भागीदारी कम होती है तो दुश्मनों का दबाव बढ़ेगा...अगर हम विदेशी दबाव और प्रतिबंधों को कम करना चाहते हैं तो मतदान में लोगों की भागीदारी को बढ़ाना बहुत ज़रूरी है. हम इस जम-समर्थन को अपने दुश्मनों को दिखा सकेंगे.'' ख़ामेनेई ने ये बातें बुधवार को टेलीविजन पर प्रसारित अपने भाषण में कही.
ख़ामेनेई ने कहा कि सभी ईरानी नागरिकों को चाहे वे जिस राजनीति को पसंद करते हों, जमकर मतदान में हिस्सा लेना चाहिए.
ख़ामेनेई ने आरोप लगाया कि अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया ईरानियों को वोट में हिस्सा नहीं लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. ईरानी के सर्वोच्च नेता ने आरोप लगाया कि ब्रिटिश और अमेरिकी मीडिया ईरान के चुनाव को कमज़ोर करना चाहता है.
ऐसी आशंका है कि ईरान के आम लोगों में बहुत नाराज़गी है और इसे दिखाने के लिए मतदान का बहिष्कार कर सकते हैं. ऐसे में मतदान प्रतिशत कम रहने की आशंका जताई जा रही है.
शेनझोउ-12 कैप्सूल ने अपने लॉन्ग मार्च 2F नाम के रॉकेट के ज़रिए सफलतापूर्वक उड़ान भरी.Image caption: शेनझोउ-12 कैप्सूल ने अपने लॉन्ग मार्च 2F नाम के रॉकेट के ज़रिए सफलतापूर्वक उड़ान भरी.
चीन ने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अपने एक नए स्पेस स्टेशन की ओर रवाना कर दिया है.
नी हैशेंग, लियू बोमिंग और टैंग होंगबो - पृथ्वी से लगभग 380 किमी ऊपर, अंतरिक्ष में बनाए गए तियानहे मॉड्यूल पर तीन महीने बिताएंगे.
यह चीन का अब तक का सबसे लंबा मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन होगा.
गुरुवार को चीन के शेनझोउ-12 कैप्सूल ने अपने लॉन्ग मार्च 2F नाम के रॉकेट के ज़रिए सफलतापूर्वक उड़ान भरी.
ये उड़ान गोबी रेगिस्तान में जिउक्वान उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से आज सुबह भरी गई है. ये प्रक्षेपण अंतरिक्ष रिसर्च में चीन के बढ़ते आत्मविश्वास और क्षमता का एक और नमूना पेश करता है.
पिछले छह महीनों में चीन चांद की सतह से चट्टान और मिट्टी के नमूने भी लाया है. इसके अलावा मंगल पर उसने छह पहियों वाला एक रोबोट उतारा है. ये दोनों ही बहुत जटिल और चुनौतीपूर्ण मिशन थे जिन्हें चीन ने बख़ूबी पूरा किया है.
स्पेस में करेंगे क्या?
कमांडर नी हैशेंग और उनकी दो साथियों के स्पेस मिशन का पहला मक़सद साढ़े बाइस टन के तियानहे मोड्यूल को रिपेयर करना होगा.
नी हैशेंग ने मिशन से पहले कहा था, "हम अंतरिक्ष में अपना नया घर स्थापित करेंगे और वहां नई तकनीकों का परीक्षण करेंगे. इसलिए ये मिशन कठिन और चुनौतीपूर्ण है. मेरा मानना है कि हम तीनों एक साथ मिलकर काम करके इन चुनौतियों को दूर कर सकते हैं. हमें पूरा यक़ीन है कि हम इस मिशन सफल होंगे.” (bbc.com)
चीन की मशहूर फ़ोन और 5-जी तकनीक निर्माता कंपनी ख़्वावे को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा है. इस कंपनी को अमेरिका समेत यूरोप के कई देशों के अलावा भारत ने भी बाहर कर दिया है.
बाहर करने का मतलब है कि ख़्वावे के नए 5जी उपकरण ख़रीदने पर पाबंदी होगी. अमेरिका का ऐसा ही दबाव दुनिया के बाक़ी देशों पर भी है.
यूएई पर भी इसी तरह के दबाव की बात सामने आई है. बुधवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उसके प्रवक्ता चाओ लिजिअन से चाइना अरब टीवी ने पूछा कि अमेरिका ने यूएई से कहा है कि वो अपने नेटवर्क से चीनी कंपनी ख़्वावे के उपकरणों को हटाए.
अगर यूएई ऐसा नहीं करता है तो अमेरिका उसे F-35 लड़ाकू विमान नहीं देगा. इस पर आपकी क्या टिप्पणी है?
इस सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ''सालों से यूएई की आर्थिक प्रगति में चीनी कंपनियों, जिनमें ख़्वावे भी शामिल है; की अहम भूमिका रही है. यूएई हमारा साझेदार है. हमारे सहयोग की सराहना यूएई में भी हुई है.’’
‘’दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और साझे हितों पर नियमित वार्ता होती है. हम दोनों के बीच व्यापक मुद्दों पर आपसी सहमति है. हम दोनों का मानना है कि चीन-यूएई सहयोग से दोनों देशों के लोगों का हित जुड़ा हुआ है. इसमें किसी तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप के लिए जगह नहीं है.
दक्षिणी चीन के शेंजन में एक पूर्व सैन्य अधिकारी रेन जंगफ़ेई ने 1987 में ख़्वावे की शुरुआत की थी. इसने शुरुआत में मोबाइल फ़ोन नेटवर्क के लिए संचार उपकरण बनाने शुरू किए थे और बाद में यह विश्व में एक बड़ी कंपनी के तौर पर उभरी जिसमें 1,80,000 कर्मचारी काम करते हैं.
सैमसंग के बाद ख़्वावे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्मार्टफ़ोन सप्लायर कंपनी है जिसका 18 फ़ीसदी बाज़ार पर क़ब्ज़ा है जो ऐपल और बाक़ी कंपनियों से आगे है.
इस कंपनी को लेकर पूरी बहस इस पर टिकी है कि क्या पश्चिमी देश ख़्वावे पर भरोसा करते हैं या फिर हमारे मोबाइल फ़ोन भी इस कंपनी की गिरफ़्त में हैं? अमरीका कहता है कि 5जी उपकरणों के ज़रिए चीन ख़्वावे का इस्तेमाल जासूसी के लिए कर सकता है.
इसमें कंपनी के मालिक रेन की सैन्य पृष्ठभूमि का हवाला दिया जाता है. रेन 1983 तक चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी के नौ साल तक सदस्य रहे. वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी हैं.
हालांकि, ख़्वावे का कहना है कि इसका कंपनी से अब कोई लेना-देना नहीं है. कंपनी कहती है, "रेन जंगफ़ेई जब युवा थे तब आपको कम्युनिस्ट पार्टी की किसी भी पद की ज़िम्मेदारी लेना आवश्यक था." अमरीका अपने यहाँ कंपनियों को ख़्वावे के साथ व्यापार करने पर प्रतिबंध लगा चुका है और चाहता है कि उससे जुड़ी सहयोगी कंपनियों को भी 5जी नेटवर्क से हटाया जाए. ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने भी अमरीका की तरह क़दम उठाए हैं.
ब्रिटेन के लिए ख़्वावे को प्रतिबंधित करना ब्रिटेन-अमरीका के बीच व्यापार बातचीत के लिए ज़रूरी है क्योंकि अमरीका ने चेतावनी दी थी कि इस तरह का फ़ैसला न लेने से भविष्य के सुरक्षा सहयोग पर ख़तरा हो सकता है. लेकिन अब ब्रिटेन में ख़्वावे के उपकरणों को 5जी नेटवर्क में प्रतिबंधित कर देने से चीन के जवाबी हमले का ख़तरा बढ़ गया है जिसमें संभावित साइबर हमला भी शामिल है. (bbc.com)
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र को सूचित करते हुए गंभीर चिंता जताई है कि भारत कश्मीर में फिर से कुछ बड़ा कर सकता है.
बुधवार को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ''भारत कश्मीर में फिर से अवैध और एकतरफ़ा क़दम उठा सकता है. फिरसे विभाजन और वहां की जनसांख्यिकी बदलने के लिए कुछ किया जा सकता है.''
पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र महासचिव को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा है. अपने पत्र में क़ुरैशी ने लिखा है कि कश्मीरियों को दबाने के लिए पिछले 22 महीनों से भारत कुछ न कुछ कर रहा है. कश्मीर में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है.''
पाकिस्तान के इस बयान पर भारत की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि भारत हमेशा से कहता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और पाकिस्तान को इस पर बोलने का कोई हक़ नहीं है.
क़ुरैशी ने कहा कि भारत कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को कमज़ोर कर रहा है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि इस अधिकार को वहाँ की जनसांख्यिकी में परिवर्तन के ज़रिए कमज़ोर किया जा रहा है. क़ुरैशी ने कहा कि कश्मीर के बाहर के लोगों को फ़र्ज़ी निवास प्रमाण पत्र दिया जा रहा है.
क़ुरैशी ने कहा, ''कश्मीर में 1951 से सभी तरह के अवैध और एकतरफ़ा क़दम उठाए जा रहे हैं. इनमें पाँच अगस्त, 2019 का वो फ़ैसला भी शामिल है, जिसके तहत कश्मीर का संवैधानिक दर्जा बदल दिया गया.
अगर भविष्य में भारत कश्मीर में फिर से कोई एकतरफ़ा बदलाव करता है तो यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन होगा, जिनमें सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और चौथा जेनेवा कन्वेंशन भी शामिल हैं.''
क़ुरैशी ने कहा कि सुरक्षा परिषद को अपने प्रस्तावों को लागू करने की पहल करनी चाहिए. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि वो अपने पड़ोसियों से शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं और इन पड़ोसियों में भारत भी शामिल है. क़ुरैशी ने कहा कि कश्मीर विवाद का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत ही हो सकता है.
उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए बेहद ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि ने क़ुरैशी के पत्र को यूएन महासचिव और सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष तक पहुँचाया है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ाहिद चौधरी ने कहा है कि भारत के किसी नए क़दम से कश्मीर की जो क़ानूनी स्थिति है, उसमें बदलाव नहीं हो सकता.
ज़ाहिद चौधरी ने कहा, ''कश्मीर विवादित है इसे भारत नहीं बदल सकता. कश्मीर पर यूएन सु़रक्षा परिषद के प्रस्ताव को भारत नहीं बदल सकता. न ही भारत कश्मीरियों और पाकिस्तन को अपना फ़ैसला स्वीकार करने के लिए मजबूर कर सकता है. कश्मीर को अंतराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हुई है कि यह विवादित है. पाकिस्तान कश्मीर में भारत की जनसांख्यिकी परिवर्तन की कोशिश का हमेशा विरोध करेगा.'' (bbc.com)
नई दिल्ली, 16 जून| अमेरिका स्थित पाकिस्तान से जुड़े चैरिटी संगठनों ने कोविड संकट के दौरान भारत की मदद के नाम पर फंड इकट्ठा किया। मीडिया रिपोर्ट्स से यह जानकारी मिली है। लाखों डॉलर इकट्ठा करने के बाद, उनमें से कुछ ने एक साथ आकर मदद के नाम पर कुछ भी खास नहीं किया। डिसइन्फो लैब की रिपोर्ट के अनुसार, उन सभी ने क्रेडिट का दावा किया, ताकि उनके दानदाताओं को लगे कि पैसा अच्छी तरह से खर्च किया गया है।
डिसइन्फो लैब ने अपने खुलासे में कहा है कि इकट्ठा किया गया पैसा आतंकी वित्त के तौर पर पाकिस्तानी सेना से लेकर इस्लामवादियों जैसे हमास के लिए जा सकता है। चैरिटी के लिए एकत्रित पैसे का यह स्पष्ट तौर पर दुरुपयोग है।
इसे कोविड-19 स्कैम 2021 नाम दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका स्थित पाक से जुड़े चैरिटी संगठनों ने कोरोना संकट में भारत की मदद करने के नाम पर चंदा जुटाया और इस आड़ में लॉखों डॉलर की चोरी की गई।
रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पाक सेना के साथ मिलकर चलाए जा रहे ये संगठन दान का दुरुपयोग विरोध भड़काने और आतंकी हमलों को प्रायोजित करने के लिए किया जा सकता है।
डिसइन्फो लैब नामक संस्था ने अपनी इस रिपोर्ट में बताया कि मानवीय सहायता हेल्पिंग इंडिया ब्रीद के नाम पर किस तरह दुनिया में सबसे बुरा घोटाला किया गया।
दरअसल, कोविड की दूसरी लहर का सामना कर रहे भारत को दुनिया भर से मदद मिली है, लेकिन कुछ संगठनों ने दान के नाम पर अवैध रूप से धन एकत्र करने के लिए संकट का उपयोग किया।
डिसइन्फो लैब ने ऐसे कई चैरिटी संगठनों का पदार्फाश किया है जो दान की रकम आतंकी हमलों को प्रायोजित करने में लगा सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 27 और 28 अप्रैल को अमेरिका में पाकिस्तान से चलाए जा रहे इस्लामी संगठनों द्वारा कई फंड-राइजर स्थापित किए गए थे।
उन संगठनों में से एक, जो फंड संग्रह में बहुत आक्रामक था, इमाना था, जो इंस्टाग्राम पर एक सहायता अभियान चला रहा था और सबसे तेज धन प्राप्त करने वालों में से एक था।
निधि संग्रह इतना अच्छा था कि पिछली बार पूरा होने के बाद, इमाना अपनी लक्ष्य राशि को बार-बार संशोधित कर रहा था। लेकिन यह अपडेट प्रदान करने के मामले में सबसे कम पारदर्शी संगठनों में से एक था।
दस्तावेज के अनुसार, यह भी पता चला कि भारत में कोविड के समय में मदद के लिए एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों फंड संग्रह चल रहे हैं और इसके लिए कई प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा था - सोशल मीडिया से लेकर समर्पित फंड जुटाने वाले प्लेटफॉर्म तक।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में सबसे कम पारदर्शी इंस्टाग्राम रहा, जो सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले प्लेटफॉर्म में से एक रहा। धन उगाहने वाले प्लेटफार्मों में, जो जिसने सबसे अधिक धन उगाही की और न्यूनतम पारदर्शिता बरती, उनमें लॉन्च गुड का नाम ऊपर रहा है।
इमाना - इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका - एक इलिनोइस-आधारित चिकित्सा राहत संगठन है, जिसे पहले 1967 में इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के रूप में स्थापित किया गया था, और बाद में इसका नाम बदलकर इमाना यानी आईएमएएनए कर दिया गया।
इसका गठन इस्लामिक संगठन इस्लामिक सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका (इसना या आईएसएनए) के कुछ प्रमुख सदस्यों द्वारा किया गया था। (आईएएनएस)
डिजीटल सेक्स अपराध अब दक्षिण कोरिया में इतना व्यापक हो गया है कि इसका डर महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि दक्षिण कोरिया वैश्विक खुफिया कैमरे का केंद्र बन गया है. छोटे और छिपे हुए कैमरे से पीड़ितों का नग्न या पेशाब करते वक्त वीडियो बनाया जा रहा है या फिर यौन संबंधों की रिकॉर्डिंग की जा रही है. अन्य मामले अंतरंग तस्वीरें बिना सहमति से लीक होने से जुड़े हैं या फिर यौन शोषण जैसे बलात्कार की वारदात कैमरे पर रिकॉर्ड कर उसे ऑनलाइन साझा किया गया है.
एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीड़ितों को तब ज्यादा सदमा लगता है जब उनका सामना पुलिस या अभियोजकों से होता है. और उनसे ही सबूत इकट्ठा करने और इंटरनेट की निगरानी करने को कहा जाता ताकि नई तस्वीरें सामने आने पर वे सूचित कर सकें. रिपोर्ट की लेखिका हीथर बर कहती हैं, "दक्षिण कोरिया में डिजीटल यौन अपराध इतने आम हो गए हैं कि वे महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं."
उन्होंने एक बयान में कहा, "महिलाओं और लड़कियों ने हमें बताया कि वे सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल करने से बचती हैं. यहां तक कि वे अपने घरों में छिपे हुए कैमरे को लेकर चिंता महसूस करती हैं. डिजीटल सेक्स की पीड़ितों की एक खतरनाक संख्या ने बताया कि उन्होंने आत्महत्या का विचार किया था."
38 साक्षात्कारों और एक ऑनलाइन सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट कहती है कि डिजीटल यौन अपराध के मामले 2017 की तुलना में 2018 में 11 गुना बढ़े. डिजीटल सेक्स अपराध के आंकड़े कोरिया के अपराध विभाग से जुटाए गए थे. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने यौन अपराध की बढ़ती संख्यों के दावों, जिसमें हाल ही में सेना के सदस्यों पर भी आरोप लगे हैं, कि जांच के लिए पुलिस को आदेश दिए हैं.
पिछले साल, पुलिस ने प्रलोभन देने वाले एक ऑनलाइन नेटवर्क को भंडाफोड़ किया था जो दर्जनों महिलाओं और कम उम्र की लड़कियों को ब्लैकमेल कर तस्वीरें मंगाता था. अधिकारियों का कहना था कि नेटवर्क लड़कियों से अपने बारे में हिंसक यौन कल्पना कर खुद से तस्वीरें निकालकर भेजने को कहता.
एचआरडब्ल्यू का कहना है कि सरकार को कानून को मजबूत करते हुए दोषियों को सख्त देनी चाहिए. पुलिस, अभियोजकों और जजों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जानी चाहिए.
एए/वीके (रॉयटर्स)
हंगरी की संसद ने एक कानून पास किया है, जिसके तहत समलैंगिकता और लिंग परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली सामग्री को स्कूलों में बांटना अवैध बना दिया गया है. मानवाधिकार संगठनों और देश के विपक्षी दलों ने इस कदम की आलोचना की है.
हंगरी की सरकार ने समलैंगिकता विरोधी एक कानून पास किया है जिसे लेकर कई मानवाधिकार संगठनों में नाराजगी है. दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान को अगले साल चुनाव का सामना करना है और पिछले कुछ समय में उनका कट्टरपंथी रवैया बढ़ता देखा गया है. समलैंगिकों और आप्रवासियों को लेकर उनका रुख लगातार सख्त होता गया है, जिस कारण देश के लोगों की सोच में भी विभाजन नजर आ रहा है.
विक्टर ओरबान की फिदेश पार्टी देश में ईसाई-रूढ़िवादी एजेंडो को बढ़ावा देती है. उसने बाल यौन शोषण के खिलाफ सजा को सख्त बनाने वाले एक विस्तृत कानून में ही स्कूलों में समलैंगिकता पर बात करने को भी जोड़ दिया, जिससे विपक्षी दलों के लिए इस कानून के विरोध में वोट करना मुश्किल हो गया.
ओरबान ने 2010 से लगातार तीन बार जोरदार बहुमत से चुनाव जीते हैं. लेकिन अब वहां के विपक्षी दलों ने पहली बार गठजोड़ बना लिया है जिसके बाद वे फिदेश पार्टी को ओपीनियन पोल में चुनौती दे रहे हैं.
बच्चों के बहाने से
आलोचकों का कहना है कि यह कदम गलत तरीके से बाल यौन शोषण को समलैंगिक मुद्दों से जोड़ता है. इस कानून के विरोध में 15 जून को संसद के बाहर एक रैली भी हुई थी जिसमें फिदेश पार्टी से अपना बिल वापस लेने की अपील की गई थी. लेकिन फिदेश के सांसदों ने पूरे जोश-ओ-खरोश से इल बिल का समर्थन किया. वामपंथी दलों ने वोटिंग का बहिष्कार कर दिया था.
पिछले हफ्ते ही इस बिल में कुछ संशोधन किए गए जिनके तहत 18 साल के कम आयु के किशोरों और बच्चों को ऐसी कोई सामग्री नहीं दिखाई जा सकती, जो उन्हें समलैंगिक बनने या लिंग परिवर्तन के लिए उकसाए या प्रोत्साहित करे. यह शर्त विज्ञापनों पर भी लागू होगी. इस कानून के तहत कुछ संगठनों की सूची दी गई है जो जिनके अलावा किसी और को स्कूलों में यौन शिक्षा की इजाजत नहीं होगी.
हंगरी में समलैंगिक विवाह गैर कानूनी है और पुरुष और स्त्री ही विवाह के बाद बच्चा गोद ले सकते हैं. ओरबान की सरकार ने विवाह की परिभाषा में बदलाव किए हैं जिसके बाद संविधान के तहत एक पुरुष और स्त्री के विवाह को ही मान्यता दी गई है. समलैंगिकों द्वारा बच्चे गोद लेने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून की आलोचना हो रही है. हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि इस कानून के समलैंगिकता विरोधी पहलू को लेकर वह गंभीर रूप से चिंतित है. अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान में अमेरिकी दूतावास ने कहा, "अमेरिका का विचार है कि सरकारों को अभिव्यक्ति की आजादी को बढ़ावा देना चाहिए और मानवाधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, जिनमें समलैंगिक समुदायों के अधिकार भी शामिल हैं."
नए कानून के आलोचकों ने इसकी तुलना रूस के 2013 के एक कानून से की है, जिसके तहत युवाओं के बीच "गैर-पारंपरिक यौन संबंधों के बारे में प्रचार सामग्री बांटना" अवैध करार दे दिया गया था.
पोलैंड की रूढ़िवादी सत्ताधारी पार्टी लॉ एंड जस्टिस यूरोपीय संघ में फिदेश की मुख्य सहयोगी है. उसने भी समलैंगिकता के मुद्दे पर ऐसा ही रुख अपनायया है. हालांकि यूरोपीय संघ में हंगरी और पोलैंड कुछ रूढ़िवादी सुधारों को लेकर एक दूसरे के आमने-सामने हैं.
हंगरी के हालात पर यूरोपीय संसद के प्रतिवेदक ग्रीन्स सांसद ग्वेन्डोलिन डेलबोस-कोरफील्ड ने देश के नए कानून की आलोचना की. मंगलवार को उन्होंने कहा, "बच्चों की सुरक्षा को बहाना बनाकर समलैंगिक समुदाय पर निशाना साधना हंगरी के सारे बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है."
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)