अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 29 जून| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 18.13 करोड़ हो गए, जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 39.3 लाख हो गई है। जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने यह जानकारी दी।
मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और इस महामारी से मरने वालों की संख्या क्रमश: 181,374,710 और 3,928,409 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,639,971 और 604,114 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 30,279,331 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (18,448,402), फ्रांस (5,832,490), तुर्की (5,414,310), रूस (5,408,744), यूके (4,771,289), अर्जेंटीना (4,423,636), इटली (4,258,456), कोलंबिया (4,187,194) हैं। , स्पेन (3,792,642), जर्मनी (3,734,830) और ईरान (3,180,092) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 514,092 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (396,730), मेक्सिको (232,564), पेरू (191,899), रूस (131,671), यूके (128,367), इटली (127,500), फ्रांस (111,174) और कोलंबिया (105,326) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)
यूरोप में जैसे जैसे जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है, महिलाओं के खिलाफ घातक हिंसा बढ़ रही है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वाले "नियंत्रण के नुकसान" का अनुभव कर रहे हैं.
यूरोप से इन दिनों महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कई रिपोर्ट आ रही हैं. पिछले दिनों फ्रांस में एक महिला को उसके पति ने जिंदा जला दिया, स्वीडन में वसंत ऋतु के तीन हफ्तों में पांच महिलाओं की हत्या कर दी गई. स्वीडन में समाचार चैनलों पर इन हत्याओं की ही चर्चाएं हो रही हैं.
कुछ यूरोपीय देशों में जहां 2021 के आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध हैं, आंकड़े निर्विवाद हैं. उदाहरण के लिए स्पेन में जहां कोरोना आपातकाल मई में हटा, वहां एक सप्ताह पहले के औसत की तुलना में हर तीन दिन में एक महिला की हत्या हुई है.
एनजीओ के आंकड़ों से पता चलता है कि बेल्जियम में अप्रैल के अंत तक 13 महिलाओं की हत्या हुई. वहीं पिछले पूरे साल में 24 महिलाओं की हत्या हुई थी. जबकि फ्रांस में पिछले साल 46 महिलाओं की हत्या हुई थी. इस साल अब तक 56 महिलाओं की हत्या हो चुकी है.
लैंगिक हिंसा के खिलाफ स्पेनिश सरकार की टास्क फोर्स की प्रमुख विक्टोरिया रोसेल कहती हैं, "महिलाओं को अधिक आजादी मिलने के साथ ही हमलावर को लगता है कि वो नियंत्रण खो रहा है और वो अधिक चरम हिंसा के साथ प्रतिक्रिया करता है."
रोसेल के मुताबिक, "हाल के महीनों में हमने हिंसा की बढ़ती संख्या देखी है, हमने देखा है कि कैसे प्रतिबंधों में ढील ने एक और अंतर्निहित महामारी को उजागर किया है, वह है पुरुष द्वारा हिंसा."
देखें:महिलाओं के प्रति अपराध में 7 प्रतिशत की वृद्धि
यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा
2004 में स्पेन ने यूरोप के पहले कानून को मंजूरी दी जो विशेष रूप से घरेलू हिंसा पर नकेल कसता है, यह कानून लिंग-आधारित हिंसा की रोकथाम के लिए बनाया गया था. हालिया हिंसा ने देश के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज को भी चिंता में डाल दिया है. उन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराध को हमेशा के लिए समाप्त करने की इच्छा दोहराई है.
पूरे यूरोप में लॉकडाउन ने घरेलू हिंसा के मामलों को उठाना कठिन बना दिया. महिलाओं को हिंसा के साथ घरों में रहने को मजबूर होना पड़ा और हिंसा करने वाला और पीड़ित एक छत के नीचे रहे.
समानता मंत्रालय के आंकड़े दिखाते हैं कि महामारी की शुरुआत में स्पेन के तीन महीने के लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन मदद या "साइलेंट" अपील के लिए 2019 की तुलना में 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
रोसेल कहती हैं, "इससे पता चलता है कि कैसे महिलाएं घर से फोन भी नहीं कर पा रही थीं." इटली और जर्मनी में भी यही हाल है.
घर में कैद और हिंसा की शिकार
महिलाओं को राहत पहुंचाने के लिए सरकारें भी अलग-अलग उपाय अपना रही हैं. जोखिम वाली महिलाओं को इटली ने मदद देने के लिए पुलिस की हॉटलाइन सेवा शुरू की है. महिला इस पर फोन पर कोड वर्ड "मैं एक मार्गरीटा पिज्जा ऑर्डर करना चाहती हूं" कहती है, जिसके बाद पुलिस उसके घर पर पहुंच जाती है और उसे मदद देती है.
स्पेन में महिला दवा की दुकान पर जाकर केमिस्ट से "पर्पल मास्क" मांग कर अपने साथ हो रही घरेलू हिंसा को लेकर अलर्ट कर सकती है. केमिस्ट इसके बाद अधिकारियों को सूचित कर देता है और पीड़ित को मदद मिल जाती है.
समाजशास्त्री कार्मेन रुईज रेपुलो के मुताबिक, "एक बार जब आपातकाल की स्थिति और लॉकडाउन समाप्त हो गया, तो कई पीड़ितों ने चीजों को अपने हाथों में ले लिया और साथ छोड़ने का फैसला किया. और उसी पल जोखिम बढ़ जाता है. तब आप हत्याओं की संख्या में उछाल देखते हैं."(dw.com)
एए/सीके (एएफपी)
कोरोना वायरस का घातक वेरिएंट डेल्टा के फैलने के बाद बांग्लादेश में संपूर्ण लॉकडाउन लगने वाला है. ऐसे में राजधानी ढाका से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर गांव लौट रहे हैं.
बांग्लादेश की राजधानी ढाका से रविवार को प्रवासी मजदूरों की लौटने की नई तस्वीरें सामने आईं. देश अब एक कड़े लॉकडाउन की ओर बढ़ रहा है. कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण लॉकडाउन अधिकांश आर्थिक गतिविधियों पर अंकुश लगाएगा और लोगों को उनके घरों तक सीमित कर देगा.
कोरोना पॉजिटिव और मौतों की बढ़ती रिपोर्टों के बाद से ही अप्रैल के मध्य से गतिविधियों और आवाजाही पर प्रतिबंध लगा हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक मई में संक्रमणों की संख्या में गिरावट आई, लेकिन इस महीने फिर से बढ़ना शुरू हो गया. रविवार को देश में 5,000 से अधिक नए मामले सामने आए और 119 लोगों की मौत हुई.
नए मामले के सामने के बाद देश में चरणबद्ध तरीके से सोमवार से नई पाबंदियों के साथ आर्थिक गतिविधियों, दुकानों, बाजारों, परिवहन और कार्यालयों पर चरणों में प्रतिबंधों को सख्त करने के लिए सरकार को मजबूर किया है.
लॉकडाउन के तहत जनता को घरों में रहने का आदेश दिया जाएगा, जबकि केवल आपातकालीन सेवाओं और निर्यात वाले कारखानों का संचालन जारी रहेगा.
भाग रहे प्रवासी मजदूर
एक जुलाई से लगने वाला लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए नई मुसीबत बन गया है. प्रवासी मजदूर जल्द से जल्द ढाका छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. रविवार को ही लाखों प्रवासियों के बीच ढाका छोड़ने की हड़बड़ी दिखी. 22 जून से ही विभिन्न शहरों के बीच सार्वजनिक परिवहन ठप्प है.
रविवार को गांव लौटने के लिए प्रवासी मजदूर ऑटोरिक्शा, मोटरसाइकिल और यहां तक की एंबुलेंस का सहारा लेते दिखे. नौका सेवाएं भी 24 घंटे काम कर रही हैं. नावों पर क्षमता से अधिक लोग सवार हो रहे हैं, कुछ-कुछ नावों पर हजार से अधिक लोग सवार हुए.
सब इंस्पेक्टर मोहम्मद रेजा कहते हैं, "हम नहीं चाहते कि लोग नावों में क्षमता से अधिक सवार हों लेकिन वे हमारी बात नहीं सुनते."
सरकार द्वारा संचालित बांग्लादेश अंतर्देशीय जल परिवहन निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एएफपी को बताया कि सिर्फ रविवार को कम से कम 50,000 लोगों ने नावों की मदद से यात्रा की.
शहर में रहकर क्या करेंगे?
ढाका से लगभग 70 किलोमीटर दक्षिण में ग्रामीण शहर श्रीनगर के नदी स्टेशन पर रविवार सुबह हजारों पद्मा नदी पार करने के लिए कतार में लगे. 60 साल की फातिमा बेगम ने कहा, "सिवाय शहर छोड़ने के हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. लॉकडाउन के दौरान हमारे पास काम नहीं होता है. हम काम नहीं करेंगे तो किराया कैसे चुकाएंगे? इसलिए हमने सबकुछ बांध लिया है और गांव लौट रहे हैं."
ढाका में रेहड़ी लगाने वाले 30 साल के मोहम्मद मासूम कहते हैं कि ढाका में कैद रहने से अच्छा है कि गांव में अपने परिवार के पास रहें. बांग्लादेश में कुल संक्रमितों की संख्या आठ लाख 80 हजार के पार पहुंच गई है और 14,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि संभावित कम रिपोर्टिंग के कारण वास्तविक संख्या बहुत अधिक हो सकती है. एए/वीके (एएफपी)
अमेरिका की राष्ट्रीय मौसम सेवा का कहना है कि क्षेत्र के कुछ हिस्सों के लिए गर्मी की लहर "रिकॉर्ड किए गए इतिहास में सबसे चरम में से एक होगी." जीवन के लिए खतरनाक गर्मी के खिलाफ लोगों से सावधानी बरतने की अपील की गई है.
(dw.com)
सिएटल और पोर्टलैंड में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है. पोर्टलैंड में गर्म हवा के थपेड़ों से शनिवार को पारा बहुत अधिक बढ़ गया. पूरे वॉशिंगटन, ऑरेगन, आइडहो, व्योमिंग और कैलिफोर्निया के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी की चेतावनी जारी की गई है.
अमेरिका की राष्ट्रीय मौसम सेवा के मुताबिक पूरे क्षेत्र में औसत से अधिक तापमान आने वाले दिनों में बढ़ सकता है. पोर्टलैंड में शनिवार दोपहर को तापमान 41.7 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. ऑरेगन के सबसे बड़े शहर में इससे पहले 1965 और 1981 में अधिक गर्मी पड़ी थी.
राष्ट्रीय मौसम सेवा के मुताबिक, "यह घटना उत्तर-पश्चिम के भीतरी भाग के इतिहास में दर्ज सबसे चरम और लंबी गर्मी की लहरों में से एक होगी."
उत्तर-पश्चिम का भीतरी भाग एक कम आबादी वाला क्षेत्र है जिसमें पूर्वी वॉशिंगटन और आइडहो और पूर्वोत्तर ऑरेगन के कुछ हिस्से शामिल हैं.
कई जगह रिकॉर्ड तापमान
पोर्टलैंड, ऑरेगन ने शनिवार को अपना अब तक का सबसे गर्म दिन दर्ज किया, जो दोपहर तक 39.4 डिग्री सेल्सियस से ऊपर था. इससे पहले 1965 और 1981 में इतना ही तापमान दर्ज किया गया था. शनिवार को सिएटल में 42.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. जून महीने में दर्ज तापमान का यह अब तक का रिकॉर्ड है.
रविवार को ब्रिटिश कोलंबिया के दक्षिणी आंतरिक भाग में स्थित लिटन गांव में तापमान बढ़कर 46.1 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया, यह कनाडा में दर्ज अब तक का सबसे गर्म दिन है.
45 सेल्सियस का पिछला रिकॉर्ड 1937 में मध्य प्रांत सास्काचेवान में दर्ज किया गया था. पश्चिमी कनाडा में गर्मी की चेतावनी जारी की गई है.
गर्मी से हाल बुरा
प्रशांत नॉर्थवेस्ट के निवासी आमतौर पर गर्मी से निपटने के लिए तैयार नहीं रहते हैं. कई घरों में एयर कंडीशनिंग नहीं होती है. अब यहां पूरे क्षेत्र की दुकानों के पंखे और एयर कंडीशनरों की बिक जाने की खबरें हैं.
7 लाख 25 हजार आबादी वाले सिएटल में अधिकारियों ने शहर के लोगों से अधिक पानी पीने, खिड़की बंद रखने और पंखों के इस्तेमाल की सलाह दी है. लोगों से कहा गया है कि वे जरूरत पड़ने पर शहर के कूलिंग केंद्र में जाएं.
अधिकारियों ने लोगों से यह भी कहा कि सार्वजनिक परिवहन में इस कारण देरी हो सकती है. उन्होंने बताया कि वे लोगों को गर्मी से बचने के लिए कूलिंग केंद्र मुहैया कराएंगे.
गर्मी के कारण प्रशांत नॉर्थवेस्ट में कृषि और वन्यजीव संरक्षण भी प्रभावित हुआ है. बेरी किसानों को बेल पर सड़ने से पहले फसल लेने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी. वहीं मत्स्य प्रबंधक सैलमन को नदी के गर्म पानी से बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
पिछले हफ्ते आइडहो के द्वारशॉक जलाशय से निचली स्नेक नदी में पानी छोड़ना शुरू किया गया जिससे तापमान में गिरावट हो. अधिकारियों को 2015 की जैसी घटना का डर है, जब कोलंबिया और स्नेक नदी के जलाशयों में पानी का तापमान सैलमन के लिए घातक स्तर तक पहुंच गया था.
इस प्रचंड गर्मी से एक और हफ्ते तक क्षेत्र के लोगों को जूझना पड़ सकता है. मौसम विभाग कैलिफोर्निया में जंगल की आग को लेकर भी अलग से चेतावनी जारी कर सकता है.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स)
उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने खबर दी है कि देश के नेता किम जोंग उन की सेहत को लेकर देश के लोग बहुत चिंतित और परेशान हैं.
किम जोंग उन के एक हालिया वीडियो को देखकर राजधानी प्योंगयांग के एक नागरिक ने सरकारी समाचार एजेंसी को बताया कि उनका तो दिल ही टूट गया. किम जोंग उन की सेहत पिछले दिनों चर्चा में आ गई थी जब कुछ विश्लेषकों ने उनकी एक नई वीडियो देखकर टिप्पणी की थी कि उनका वजन कम हो गया है.
माना जाता है कि किम जोंग उन 37 वर्ष के हैं. जून में वह एक वीडियो में नजर आए थे. उत्तर कोरिया के सरकारी प्रसारक केआरटी ने एक व्यक्ति का इंटव्यू प्रसारित किया है जिसमें उसने कहा, "माननीय जनरल सेक्रटरी को पीला पड़ते देख लोगों का दिल बहुत दुखा है. सब कह रहे हैं कि उनके तो आंसू ही नहीं रुक रहे हैं.” मीडिया में यह बात नहीं बताई गई है कि किम जोंग उन के वजन कम होने की वजह क्या है.
कमजोर हुए किम जोंग उन
किम जोंग उन हाल ही में एक वीडियो में दिखाई दिए थे, जब वह वर्कर्स पार्टी ऑफ कोरिया की बैठक में शामिल हुए थे. प्योंगयांग के लोगों ने यह वीडियो देखा था. उससे पहले लगातार एक महीने तक किम जोंग उन लोगों के सामने नहीं आए थे. दक्षिण कोरिया की एक वेबसाइट एनके न्यूज के विश्लेषकों ने इस वीडियो को देखकर कहा कि किम जोंग उन की घड़ी पहले से ज्यादा तंग है और उनकी कलाई पतली हो गई है.
किम जोंग उन की सेहत पर जासूसी एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय मीडिया और विशेषज्ञों की पैनी नजर रहती है क्योंकि देश पर किम की मजबूत पकड़ है और उनके उत्तराधिकारी को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.
पिछले साल भी किम जोंग उन की सेहत को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया था जब वह 15 अप्रैल को देश के संस्थापक किम जोंग इल की जयंती पर आयोजित समारोहों में शामिल नहीं हुए थे और मई में ही सार्वजनिक तौर पर नजर आए थे. उससे पहले 2014 में भी वह लंबे समय तक नजर नहीं आए थे जिसके बाद सरकारी मीडिया ने खबर दी थी कि वह कुछ अस्वस्थ हैं.
देश में खाने की कमी
इसी महीने किम जोंग उन ने कहा था कि देश में खाद्य सामग्री की हालत खराब है और पिछले साल आए तूफान और कोरोना वायरस के कारण खाने की चीजों की कमी हो गई है.
समाचार एजेंसी केसीएनए ने खबर दी थी कि सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी की सेंट्रल कमेटी की बैठक में योजनाओं और आर्थिक स्थिति की समीक्षा की गई, जिसके बाद किम जोंग उन ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है. उन्होंने कहा कि पहली छमाही में औद्योगिक उत्पाद 25 प्रतिशत बढ़ा है लेकिन खाद्य सामग्री की कमी के कारण नीतियों को लागू करने में दिक्कत हो रही है.
उन्होंने कहा, "लोगों के लिए खाने की स्थिति अब गंभीर हो रही है क्योंकि पिछले साल के तूफन के कारण कृषि क्षेत्र योजना के अनुकूल उत्पादन नहीं कर पाया है.”
उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले कई विशेषज्ञों ने भी माना था कि देश में खाने-पीने की चीजों की भारी कमी है. दक्षिण कोरिया की वेबसाइट कोरिया टाइम्स के मुताबिक किम जोंग उन की नीतियों की विफलता के चलते यह स्थिति पैदा हुई है.
अटलांटिक काउंसिल में सीनियर फेलो रॉबर्ट मैनिंग ने कोरियाटाइम्स को बताया, "ज्यादातर संकेत यही कह रहे हैं कि देश में खाद्य सामग्री जरूरत से 13.5 लाख टन से 15 लाख टन तक कम है, जो कि 1990 के अकाल के बाद सबसे खराब स्थिति है. लेकिन इसे सिर्फ खाद्य सामग्री की कमी के तौर पर देखना एक गलती होगी. यह सिर्फ तूफान और बाढ़ के कारण नहीं है बल्कि नीतियों की विफलता और भ्रष्टाचार भी इसके लिए जिम्मेदार है.”
1994 से 1998 के बीच उत्तर कोरिया में गंभीर अकाल पड़ा था जिसने, एक अनुमान के मुताबिक, दसियों लाख लोगों की जान ले ली थी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
फ्रांस के क्षेत्रीय नतीजे अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले देश की जनता के रुख का रुझान देते हैं. अतिदक्षिणपंथ की हार और उदार दक्षिणपंथियों की जीत नए राष्ट्रपति के लिए रास्ता तय कर सकते हैं.
फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. रविवार को हुए क्षेत्रीय चुनावों में मरीन ला पेन की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है. अगले साल देश में राष्ट्रपति चुनावों से पहले ला पेन की पार्टी का सूपड़ा साफ हो जाना उनके भविष्य पर बड़े सवाल खड़े करता है.
रविवार को हुए चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में रीअसेंबलमेंट नेशनल पार्टी को देश के दक्षिणी प्रोवेन्स आल्प्स कोट डे अजुर (PACA) से बड़ी उम्मीदें थीं. मरीन ला पेन की पार्टी उम्मीद कर रही थी कि इस राज्य में अपना क्षेत्रीय आधार मजबूत कर वह अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जोरदार ताल ठोकेगी. लेकिन तमाम वामपंथी दलों में एकजुट होकर उनकी इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए भी ये नतीजे असहज कर देने वाले रहे. उनकी पार्टी को भी कोई सीट नहीं मिल रही है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि इन नतीजों का असर केंद्रीय राजनीति में फेरबदल के रूप में दिखाई दे सकता है.
ला पेन का दर्द
एग्जिट पोल के नतीजों के मुताबिक सत्ताधारी कंजर्वेटिव को करीब दस पॉइंट्स से जीत मिल रही है. यह स्पष्ट होने के बाद ला पेन ने अपने समर्थकों से कहा, "आज शाम हम एक भी क्षेत्र में नहीं जीतेंगे क्योंकि सत्ताधारियों ने एक अप्राकृतिक गठबंधन बनाया और हमें बाहर रखने के लिए और लोगों को क्षेत्र में अपना प्रशासकीय कौशल दिखाने से रोकने के लिए पूरा जोर लगाया.”
ला पेन ने सत्ताधारी पार्टी पर भयंकर अव्यवस्थित मतदान का आरोप लगाया क्योंकि लगभग दो तिहाई मतदाता वोटिंग से दूर रहे. हालांकि इन नतीजों के बाद अपनी छवि को नरम करने की ला पेन की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं. ला पेन का आधार देश का पारंपरिक दक्षिणपंथी मतदाताओं के बीच रहा है जो उनके प्रवासी विरोधी और यूरोपीय संघ को लेकर सशंकित दिखने का समर्थक माना जाता है.
हालांकि विश्लेषक इन नतीजों के आधार पर ला पेन को अगले राष्ट्रपति चुनावों में पूरी तरह खारिज करना उचित नहीं मानते.
माक्रों को भी झटका
फ्रांस के 13 क्षेत्रों में चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में सत्ताधारी उदार दक्षिणपंथियों या उदार वामपंथियों की जीत का अनुमान लगाया गया. माक्रों की पार्टी, जो 2015 में हुए पिछले क्षेत्रीय चुनावों के बाद अस्तित्तव में आई है, एक भी सीट जीतने में नाकाम रही.
यह खराब प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि कैसे माक्रों की पार्टी स्थानीय स्तर पर अपना आधार बनाने में विफल रही है और जिस लहर के साथ जीतकर माक्रों राष्ट्रपति बने थे, वह सिर्फ राष्ट्रपति पद के लिए ही थी. इन नतीजों ने अगले साल माक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बनने के रास्ते भी तंग कर दिया है. उदार दक्षिणपंथियों ने वापसी की है, जो एक तिकोने मुकाबले का संकेत है.
नए नेताओं का उभार
इन चुनावों के बाद रूढ़िवादी नेता जेवियर बरट्रैंड की माक्रों के खिलाफ दावेदारी और मजबूत हुई है. उनकी पार्टी ने उत्तरी क्षेत्रों में आरामदायक जीत हासिल की है. बरट्रांड ने खुद को ऐसे फ्रांसीसियों के रखवाले के तौर पर पेश किया है, जो "गुजारा भी नहीं कर पा रहे हैं.” साथ ही, उन्होंने अति दक्षिणपंथ के खिलाफ भी खुद को सबसे मजबूत विरोधी बताया है.
चुनाव की शाम अपने समर्थकों को बरट्रांड ने कहा, "अति दक्षिणपंथी को उसके रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक दिया गया है. और हमने उसे बहुत तेजी से पीछे धकेल दिया है. यह नतीजा मुझे राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं से वोट मांगने की ताकत देता है.”
एक अन्य नेता जो इन चुनावों में दोबारा जीतकर आई हैं, वह हैं वैलरी पेक्रेसे. ग्रेटर पेरिस क्षेत्र से जीतीं पेक्रेसे को अब तक 2022 में एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है. रविवार को उन्होंने देश के दक्षिणपंथियों की तारीफ की. विश्लेषकों ने इसे पेक्रेसे का बरट्रांड का ही समर्थन करने का संकेत माना है.
इन चुनावों में सिर्फ 35 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था. हालांकि देश की क्षेत्रीय सरकारों के प्रति लोगों का झुकाव कम ही रहता है. ये सरकारें आर्थिक विकास, परिवहन और हाई स्कूलों के लिए जिम्मेदारहैं.
पेरिस में रहने वाले ज्याँ-जाक ने रॉयटर्स को बताया, "जो भी हो, मेरी आज वोट देने का कोई इरादा नहीं है क्योंकि नेताओं पर मेरा भरोसा उठ चुका है.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
-पॉलीन ज़ोनुनपुई
एक डॉक्टर, जो ख़ुद भी शरणार्थी हैं, उन्होंने निआंग (बदला हुआ नाम) की जांच करते हुए मुझे बताया जब 16 जून को मैं मिज़ोरम के एक शरणार्थी कैंप में पहुंची.
29 साल की निआंग तीन बच्चों की मां हैं. उन्हें लगा था कि डिलीवरी के लिए उनके पास कुछ दिन और बचे हैं.
"मैंने मार्च में बॉर्डर पार किया और अप्रैल में यहां पहुंची. मुझे लगता है तब मैं 6 महीने की गर्भवती थी. मैं एक डॉक्टर के पास गई, उन्होंने बताया कि जून के आख़िरी हफ़्ते में डिलीवरी होगी.
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महामारी के कारण उनकी प्रसव पूर्व देखभाल ठीक से नहीं हो पाई. वो कहती हैं, "उन्होंने जांच के दौरान मेरे पेट को छुआ भी नहीं. अगले ही दिन अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. मुझे डर है कि मैं बच्चे को खो दूंगी."
दूसरी गर्भवती महिलाएं भी परेशान
इस शरणार्थी कैंप में दूसरी गर्भवती महिलाएं भी ऐसी ही परेशानियों से जूझ रहीं हैं. निआंग के पति, तीन बच्चे और आठ दूसरे परिवार, जिनमें पांच और गर्भवती महिलाएं शामिल हैं, अब इसे ही अपना घर मानती हैं. यहां एक हॉल और कॉमन बाथरूम है. इसे एक एनजीओ ने मार्च में म्यांमार के शरणार्थियों के लिए बनाया था.
राज्य सीआईडी के आंकड़ों के मुताबिक निआंग और ये पांच गर्भवती महिलाएं उन 9036 पंजीकृत शरणार्थियों (911 से अधिक का पंजीकरण नहीं हुआ है) में से हैं जिन्होंने म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद मिज़ोरम में शरण ली है. इनके जैसे कई और लोग भी हैं जो मिज़ोरम में कैंपों में रह रहे हैं.
लेकिन सरकार के पास गर्भवती महिलाओं को ट्रैक करने का कोई सिस्टम नहीं है. सरकार को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि कितनी महिलाओं ने ऐसे कैंपों में बच्चों को जन्म दिया है.
सरकार के पास नहीं हैं आंकड़ें
एक सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "मिज़ोरम में शरणार्थी संकट अजीब सा है. यहां शरणार्थियों के लिए चिन्हित कैंप नहीं हैं. ये शरणार्थी एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, कुछ परिवार के साथ हैं. कई लोग हमें जानकारी नहीं देते, कई वापस जा चुके हैं. इसलिए इनका रिकॉर्ड रखना मुमकिन नहीं है."
मैंने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की मानवाधिकार वकील रोज़ालिन एल. हमर की मदद से कुछ गर्भवती महिलाओं को ट्रैक किया. मैं पांच ऐसी महिलाओं से एक शरणार्थी कैंप में मिली जिसे मिज़ोरम के सबसे ताक़तवर छात्र संगठन, मिज़ो जिरलाई पॉल और कई एनजीओ के एक संगठन 'यूनाइटेड फ़ॉर डेमोक्रेटिक म्यांमार' ने बनाया है.
यूनाइटेड फ़ॉर डेमोक्रेटिक म्यांमार के अध्यक्ष लालरामलावना ने बताया कि अइज़ोल में 1600 शरणार्थी हैं, इस एक कैंप में 258 महिलाएं हैं जिनमें पांच गर्भवती महिलाएं हैं. इनमें से तीन अपनी गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में हैं.
लंबी यात्रा से बिगड़े हालात
इनमें 31 साल की तिन्माह (बदला हुआ नाम) शामिल हैं. उन्हें बताया गया है कि उनकी डिलीवरी का समय बीत चुका है. उनके बच्चे की पोज़िशन भी उल्टी है, आमतौर पर पहले सिर वाली स्थिति नहीं है.
वो पूछती हैं, "क्या ऐसा हमारे यहां तक यात्रा करने के तरीक़े से हुआ है?"
"हम एक मोटरसाइकिल पर आए थे. हमें जंगलों के रास्ते आना पड़ा था." उन्होंने बताया कि पांच मार्च को उन्हें म्यांमार से भागना पड़ा था क्योंकि उनके पति के ख़िलाफ़ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया था.
वो पहले सीमा पर चापी गांव में पहुंचे और फिर वहां से 18 घंटे की यात्रा कर चांपाई में, "चांपाई में हम अपने एक दोस्त से मिले जिन्होंने अइज़ोल की एक सुरक्षित जगह के बारे में बताया. वहां से हमने एक सूमो लिया और 13 अप्रैल को हम यहां पहुंचे."
मिज़ोरम की सरकार शरणार्थियों को जगह देने के पक्ष में है. सीमा के दोनों तरफ़ की जनजातियां परंपरागत तौर पर एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं. मिज़ोरम-म्यांमार की 510 किलोमीटर सीमा पर फेंसिंग नहीं है, इसलिए लोगों का आना जाना रोकना मुश्किल होता है.
फ़रवरी में राज्य सरकार ने "म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों और प्रवासियों की मदद के लिए" निर्देश जारी किए थे. तब से हज़ारों लोग सीमा पार कर चुके हैं.
तिन्माह की तरह की कई दूसरी महिलाएं भी तनावपूर्ण यात्रा के बच्चों पर होने वाले असर को लेकर चिंतित दिखीं. कई दूसरी महिलाएं इस बात को भी लेकर चिंतित थीं कि डिलीवरी रूम में डॉक्टरों से वो कैसे बात करेंगी क्योंकि उनकी भाषा अलग है.
एक महिला ने बताया, "एक बात मुझे रातभर जगाए रखती है कि मेरे परिवार में कोई दूसरी महिला नहीं है. मुझे हर वक्त रोना आता है. काश मेरे बच्चे के जन्म के समय मेरी मां यहां आ जाए."
कोरोना महामारी का भी डर
ज़ुआली, जो कि सात महीने की गर्भवती हैं, कहती हैं, "मैं तीसरी बार गर्भवती हूं, लेकिन इतना तनाव पहले कभी नहीं हुआ. दो बच्चों की मां और गर्भवती होने की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अपनी चार और छह साल की बेटियों की बहुत चिंता होती है. मैं ये सोचकर परेशान रहती हूं कि बच्चे को जन्म देने के बाद जब मुझे आराम की ज़रूरत होगी, तो इनका ध्यान कौन रखेगा."
एक डर और भी है. अप्रैल 2021 से अइज़ोल में कोविड के कारण तीन 'मैटरनल डेथ' हो चुकी हैं. इसलिए ये महिलाएं कैंप के बाहर बच्चों को जन्म देने से भी घबरा रही हैं.
27 साल की कोइमा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "यहां पर कोविड नहीं है. लेकिन मुझे नहीं पता कि अस्पताल में मैं अपनी सुरक्षा कैसे कर पाऊंगी, ख़ासकर डिलीवरी के समय."
केंद्र और राज्य सरकार की बंटी राय
19 जून को मैं मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा से मिली और सरकार इन महिलाओं के लिए क्या क़दम उठा रही है, इससे जुड़े सवाल पूछे. उन्होंने कहा, "मैंने शरणार्थियों की मदद के लिए 30 लाख रुपये का प्रावधान किया है. मैं शुरुआत में ही एक बहुत बड़ी रक़म का प्रावधान नहीं करना चाहता, क्योंकि ये बड़ी संख्या में लोगों को यहां आने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है."
ज़ोरामथांगा केंद्र सरकार से भी मदद मांग रहे हैं. वो इन्हें राजनीतिक शरण देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय की राय अलग है.
भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेशन या इसके 1967 प्रोटोकाल का हिस्सा नहीं है. लेकिन भारत ने यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर (यूएनसीएटी) पर दस्तख़त किए हैं. इसके प्रवाधानों के मुताबिक किसी व्यक्ति को किसी ऐसे दूसरे देश में नहीं भेजा जा सकता जहां उन्हें ख़तरा हो या उन्हें यातना दी जाए.
ज़ोरामथांगा ने मुझे बताया कि शरणार्थी को लेकर कोई लंबे समय की प्लानिंग नहीं है लेकिन "फ़ैसले आवश्यकता के अनुसार" लिये जाएंगे. समुदाय के नेता और गांव के एनजीओ और शरणार्थियों को लाने के पक्ष में हैं.
म्यांमार में हिंसा जारी है,ऐसे में मिज़ोरम में रह रहे हज़ारों शरणार्थियों के वापस लौटने की उम्मीद कम ही है. कई मांएं जिन्होंने अपने लिए अस्थायी घर बना लिए हैं, कहती हैं, कि उनके परिवार बिछड़ गए हैं, लेकिन उन्हें पता है कि म्यांमार से दूर रहना ही बेहतर है.
कुछ लोगों को वापस लौटने की उम्मीद कम है, लेकिन कुछ की उम्मीद अभी भी बची है.
कोइमा कहती हैं, "ये कैंप हमारे घर नहीं हैं लेकिन हम सुरक्षित है, सो सकते हैं, खाना है, कपड़े हैं, दवाइयां हैं. जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो मुझे उम्मीद है मैं अपने बच्चों और होने वाले बच्चे के साथ वापस लौट पाऊंगी. मुझे उम्मीद है कि एक दिन फिर मैं पढ़ा सकूंगी."
(नाम अनुरोध के मुताबिक पहचान छुपाने के लिए बदले गए हैं)
(पॉलीन ज़ोनुनपुई मिज़ोरम की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.) (bbc.com)
उत्तर पश्चिम अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्सों में भयंकर गर्मी पड़ रही है. इनमें से कई इलाक़े ऐसे हैं जहां सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है. लेकिन इस बार अधिकतर तापमान के तमाम रिकॉर्ड टूट रह हैं.
यूएस नेशनल वेदर सर्विस ने लगभग पूरे वॉशिंगटन और ओरेगन राज्य में और अधिक गर्मी की चेतावनी जारी की है.
इस गर्मी की लहर से कैलिफ़ोर्निया और इडाहो के कुछ हिस्से भी प्रभावित हैं. अमेरिकी राज्य ओरेगन की मुल्नोमाह काउंटी ने ‘जानलेवा गर्मी’ की चेतावनी जारी की है.
लोगों को गर्मी से निजात दिलाने के लिए कुछ शहरों ने कूलिंग सेंटर खोले हैं, जहां के निवासी एसी इमारतों में गर्मी से राहत पा सकते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर-पश्चिमी अमेरिका और कनाडा में तापमान बढ़ने का कारण, आसमान में उच्च दबाव वाले क्षेत्र की मौजूदगी है.
अजीब मौसम की वजह?
जानकार कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ठंड वाले इलाक़ों में भी हीटवेव जैसी स्थितियां होने की आशंका बढ़ती जा रही है, हालांकि किसी एक घटना को ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़ना थोड़ा जटिल काम है.
विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन होता है, बाढ़, तूफ़ान और लू से मरने वालों की संख्या में वृद्धि होगी.
अमेरिका के मौसम विभाग ने कहा कि इस पूरे इलाक़े में सोमवार को भी गर्म तापमान का अनुमान है.
मौसम विभाग ने "देश के उत्तर-पश्चिमी कोने के साथ-साथ कैलिफ़ोर्निया के कुछ हिस्सों में कई और दिनों तक ख़तरनाक गर्मी की चेतावनी दी है. (bbc.com)
पाकिस्तान के सूचना प्रसारण मंत्री फ़वाद चौधरी ने एक टीवी कार्यक्रम में सफ़ाई दी है कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का अलक़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को ‘शहीद’बताना ‘स्लिप ऑफ़ टंग’ (ज़बान फिसलना) था.
चौधरी पाकिस्तानी समाचार चैनल जियो न्यूज़ के जिरगा कार्यक्रम में बातचीत कर रहे थे जब उनसे एंकर सलीम साफ़ी ने पूछा कि ‘अलक़ायदा को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है और संसद में प्रधानमंत्री उन्हें शहीद कहते हैं तो यह ग़ैर ज़िम्मेदाराना नहीं है?’
इस पर फ़वाद चौधरी ने कहा, “इसके फ़ौरन बाद प्रधानमंत्री के प्रवक्ता का बयान आया था जिसमें उन्होंने सफ़ाई दी थी.”
एंकर साफ़ी ने उनसे पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी का अफ़ग़ानी न्यूज़ चैलन टोलो न्यूज़ के इंटरव्यू में लादेन को ‘शहीद’ बतानेवाले सवाल को टालने के बारे में भी पूछा जिस पर चौधरी ने कहा, “इमरान ख़ान साहब और विदेश मंत्री इस पर अपनी बात साफ़ कर चुके हैं. हमारा मीडिया इन चीज़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाएगा तो बाहर वाले यहीं से प्रेरित होंगे.”
चौधरी ने कहा कि “संयुक्त राष्ट्र में अलक़ायदा के ख़िलाफ़ पाकिस्तान वोट दे चुका है और हम अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को स्वीकार करते हैं और शहीद कहना ‘स्लिप ऑफ़ टंग’ था.”
पिछले साल जून में संसद में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अमेरिका पर बोलते हुए कहा था कि एबटाबाद में ऑपरेशन करते हुए ओसामा बिन लादेन को मार दिया ‘उन्हें शहीद कर दिया.’ (bbc.com)
काबुल, 28 जून| अफगानिस्तान के उत्तरी फरयाब प्रांत के अंधखोय जिले में तालिबान आतंकवादियों ने कम से कम 100 दुकानों और 20 घरों को आग के हवाले कर दिया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, 23 जून को अशांत जिले में सरकारी बलों और तालिबान के बीच लड़ाई शुरू हुई और अगले दिन आतंकवादियों ने इसपर कब्जा कर लिया।
प्रांतीय पुलिस प्रवक्ता मोहम्मद करीम युराश ने रविवार को कहा कि हालांकि, भारी लड़ाई के बाद आतंवादियों से 25 जून को जिले को खाली करा लिया गया था, जहां 25 विद्रोही मारे गए थे।
युराश ने सिन्हुआ को बताया, "तालिबान आतंकवादी 25 शवों को छोड़कर भाग गए। लेकिन भागने से पहले उन्होंने कालीन, किराना और सब्जियां बेचने वाली 100 दुकानों को आग लगा दी। आतंकवादियों ने जिले में 20 घरों को भी आग के हवाले कर दिया।"
इस घटना की पुष्टि करते हुए, एक अन्य प्रांतीय अधिकारी नासिर अहमद अजीमी ने कहा कि चल रहे युद्ध और हालिया संघर्षों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया है क्योंकि कई दुकानें और घर नष्ट हो गए हैं।
प्रांतीय परिषद के एक अन्य सदस्य अब्दुल अहद एल्बिक ने सिन्हुआ को बताया कि लड़ाई से लोगों को भारी संपत्ति का नुकसान हुआ है और अशांत जिले के कुछ हिस्सों में लड़ाई अभी भी जारी है।
अंधखोय फरयाब प्रांत का एक बंदरगाह जिला है, जो युद्धग्रस्त अफगानिस्तान को तुर्कमेनिस्तान से जोड़ता है।
1 मई को अफगानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना की वापसी शुरू होने के बाद से तालिबान आतंकवादियों ने 70 से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 28 जून| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 18.1 करोड़ हो गए हैं। जबकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या बए़कर 39.2 लाख हो गई है। सोमवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक कोरोना मामले और मरने वालों की संख्या बढ़कर क्रमश: 181,038,754 और 3,921,974 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,624,871 और 603,966 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 30,233,183 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (18,420,598), फ्रांस (5,831,972), तुर्की (5,409,027), रूस (5,387,486), यूके (4,748,644), अर्जेंटीना (4,405,247), इटली (4,258,069), कोलंबिया (4,158,716) हैं। , स्पेन (3,782,463), जर्मनी (3,734,489) और ईरान (3,167,741) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 513,474 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (395,751), मैक्सिको (232,521), पेरू (191,584), रूस (131,070), यूके (128,364), इटली (127,472), फ्रांस (111,130) और कोलंबिया (104,678) में 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 27 जून| यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की साप्ताहिक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति दिन दी जाने वाली वैक्सीन की खुराक की नवीनतम 7-दिवसीय औसत संख्या पिछले सप्ताह की तुलना में 55.3 प्रतिशत कम है। सीडीसी के आंकड़ों से पता चला है कि अमेरिका की लगभग 45.8 प्रतिशत आबादी को कोविड -19 के खिलाफ पूरी तरह से टीका लगाया गया है और 53.9 प्रतिशत आबादी को कम से कम एक शॉट मिला है।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने बताया कि 152.2 मिलियन लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया था। लेकिन कुछ राज्यों, जैसे अलबामा, अर्कासस, लुइसियाना, मिसिसिपी, टेनेसी और व्योमिंग में टीकाकरण की दर कम है।
एक नए सीडीसी अध्ययन से पता चला है कि 18 से 24 वर्ष की आयु के वयस्कों के साथ-साथ गैर-हिस्पैनिक अश्वेत वयस्क और कम शिक्षा वाले, कोई बीमा नहीं और कम घरेलू आय वाले लोगों में टीकाकरण कवरेज और टीकाकरण करवाने की इच्छा सबसे कम है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 27 जून| अमेरिका के दक्षिणपूर्वी राज्य फ्लोरिडा के सर्फसाइड शहर में 12 मंजिला आवासीय इमारत के आंशिक रूप से गिरने के मामले में मरने वालों की संख्या बढ़कर पांच हो गई है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
मियामी-डेड काउंटी के मेयर डेनिएला लेविन कावा ने शनिवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "आज हमारी खोज और बचाव टीमों को मलबे में एक और शव मिला है।"
महापौर ने कहा, "हमारी तलाशी में कुछ मानव अवशेष मिले हैं। अबतक 130 लोगों का पता चला है और 156 का पता नहीं चल पाया है।"
उन्होंने कहा "हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता खोज और बचाव और किसी भी जीवन को बचाने के लिए जारी है। मलबे के ढेर के भीतर आग और धुएं ने शनिवार को खोज प्रयासों में बाधा डाली।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में बनाया गया चम्पलेन टावर्स साउथ कॉन्डोमिनियम, मियामी बीच से लगभग 9.6 किमी उत्तर में सर्फसाइड में गुरुवार को स्थानीय समयानुसार (लगभग 0530 जीएमटी) 1:30 बजे आंशिक रूप से ढह गया।
मियामी-डेड इमरजेंसी मैनेजमेंट के निदेशक फ्रैंक रोलसन के अनुसार, 130 अपार्टमेंटों में से लगभग 70 नष्ट हो गए या क्षतिग्रस्त हो गए। (आईएएनएस)
पिछले 6 महीने में चीन ने कुल 2.2 करोड़ वैक्सीन डोज दान में दी हैं. चीन ने अब तक दुनिया के 84 देशों को वैक्सीन दी है. चीन के मुकाबले भारत ने पिछले 6 महीनों में 48 देशों को मात्र 88 लाख वैक्सीन डोज दी हैं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
भारत जब कोरोना की खतरनाक दूसरी लहर से जूझ रहा था, चीन दुनियाभर में कोविड-19 वैक्सीन बांटने वाले शक्तिशाली देश के तौर पर स्थापित होने की कोशिश कर रहा था. भारत के वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले ने उसकी और मदद की. इससे न सिर्फ अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश बल्कि भारत के कई दक्षिण एशियाई पड़ोसी भी उससे कोरोना वैक्सीन लेने के लिए मजबूर हो गए. अब नेपाल हो, श्रीलंका या बांग्लादेश, चीन भारत के पुराने सहयोगी रहे इन सभी देशों के लिए वैक्सीन का सबसे बड़ा प्रदाता बना हुआ है. कुछ ही महीनों में वह इन देशों को वैक्सीन देने के मामले में भारत से आगे भी निकल गया है.
पिछले 6 महीने में चीन ने कुल 2.2 करोड़ वैक्सीन डोज दान में दी है. चीन ने अब तक दुनिया के 84 देशों को वैक्सीन दी है. चीन के मुकाबले भारत ने पिछले 6 महीनों में 48 देशों को मात्र 88 लाख वैक्सीन डोज दी है. हालांकि पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट जेनेवा स्थित गावी संस्था के "कोवैक्स" प्रोग्राम का हिस्सा भी है, जो दुनिया के आर्थिक रूप से कमजोर कई देशों को वैक्सीन की सप्लाई करता है. अब गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बार फिर भारत की वैक्सीन जरूरत पूरी होने के बाद ही अन्य देशों को वैक्सीन दिए जाने पर विचार की बात कही है. यानी भारत की ओर से "दुनिया की फार्मेसी" के तमगे को फिलहाल खूंटी पर टांग दिया गया है.
भारत के सारे पड़ोसी चीन के भरोसे
पाकिस्तान का पूरा वैक्सीनेशन प्रोग्राम चीन के भरोसे रहा है. पाकिस्तान के पास अब तक मौजूद कुल 4.4 करोड़ वैक्सीन डोज में से 4.3 करोड़ चीन की बनाई हुई हैं. वहीं बांग्लादेश भी अब चीन से 2 करोड़ वैक्सीन खरीद रहा है. कोरोना की दूसरी लहर के बीच भारत के वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के बाद अप्रैल अंत में बांग्लादेश को अपना वैक्सीनेशन कार्यक्रम रोकना पड़ा था. भारत ही बांग्लादेश का सबसे बड़ा वैक्सीन प्रदाता था. नेपाल भी कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है और उसने भी चीन का रुख कर लिया है. उसे भारत और कोवैक्स प्रोग्राम से सिर्फ 3.5 लाख वैक्सीन ही मिल सकी थीं. जिसके बाद अब वह चीन से सिनोफार्म वैक्सीन की 40 लाख डोज खरीद रहा है.
वहीं श्रीलंका की कोरोना से लड़ाई में भी चीन ही सबसे बड़ा सहारा है. इसे चीन ने सबसे ज्यादा 1.4 करोड़ डोज साइनोवैक दी हैं. मालदीव को भारत और कोवैक्स प्रोग्राम के तहत अब तक 5 लाख एस्ट्राजेनेका वैक्सीन मिली है. वहीं 2 लाख वैक्सीन उसे चीन ने दी है. दक्षिण-एशियाई देशों को तेजी से वैक्सीन देने के चीन के कदम पर जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर डॉ कृष्णा राव कहते हैं, "चीन ने कोरोना महामारी का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है. दुनिया के कई हिस्सों में बड़ी मात्रा में वैक्सीन भेज उसने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है." हालांकि इसे लगाने के बाद भी बड़ी संख्या में संक्रमित हो रहे लोगों को लेकर वे चेताते भी हैं, "WHO ने भले ही साइनोवैक को आपातकालीन मंजूरी दे दी हो लेकिन इसे एस्ट्राजेनेका और फाइजर जैसी वैक्सीन के मुकाबले कम प्रभावी पाया गया है. हालांकि अन्य वैक्सीन लगाने वाले भी संक्रमित हो रहे हैं लेकिन इसकी तुलना में कम."
कोवैक्सीन का निर्यात नहीं कर सकता भारत
दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश भारत के पास फिलहाल एस्ट्राजेनेका कोवीशील्ड की 63 करोड़ वैक्सीन डोज, भारत बायोटेक की 27 करोड़ वैक्सीन डोज और बायोलॉजिकल ई की 30 करोड़ वैक्सीन डोज की सप्लाई है. यहां के सभी वैक्सीन निर्माताओं की एक साल में कुल 5 अरब वैक्सीन निर्माण करने की क्षमता है. बड़े भारतीय वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और पैनेशिया बायोटेक हैं. भारतीय कंपनियों ने रूस की 'स्पूतनिक वी' और अमेरिकी वैक्सीन कंपनी 'जॉनसन एंड जॉनसन' के साथ वैक्सीन निर्माण के लिए करार भी किया है.
पाकिस्तान में टीका सेंटर
लेकिन भारत की एकमात्र स्वदेशी वैक्सीन भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' को अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से इमरजेंसी अप्रूवल का इंतजार है. यह अनुमति मिलने के बाद ही उसे बड़े स्तर पर विदेशों में निर्यात किया जा सकेगा. कंपनी ने अपनी कोवैक्सीन को अब तक सिर्फ नेपाल और मॉरिशस भेजा है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में विदेश संबंधों के असिस्टेंट प्रोफेसर जसप्रताप बरार कहते हैं, "भारत को पहले से अपनी स्थिति का सही अनुमान होना चाहिए था. उसे यह समझना चाहिए था कि वह मात्र वैक्सीन का निर्माता है, मालिक नहीं. यही बात न समझने के चलते, 'दुनिया की फार्मेसी' होने जैसे बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे." वे पूछते हैं, "आखिर दूसरी लहर में लाखों जानें जाने के बाद जब स्पूतनिक, मॉडेर्ना और फाइजर हर वैक्सीन को भारत में निर्माण की अनुमति दी जा रही है तो यही काम पहले क्यों नहीं हुआ."
वैक्सीन की कमी अदूरदर्शिता का परिणाम
जानकार यह भी कहते हैं कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का जेनर इंस्टीट्यूट जब कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रहा था तब माना जा रहा था कि वह दुनिया के हर मैन्युफैक्चरर को यह वैक्सीन बनाने देगा. जिससे भारत "कोवैक्स" प्रोग्राम और विकासशील देशों को आसानी से वैक्सीन दे सकेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डॉ. कृष्णा राव कहते हैं, "कंपनियां ऐसा ही करती हैं लेकिन भारत सरकार ने भी भारत और अन्य देशों के लिए वैक्सीन की जरूरत को बहुत कम करके आंका."
साथ ही भारत ने अपनी वैक्सीन की लाइसेंसिंग और वैक्सीन निर्माताओं की क्षमता बढ़ाने के लिए भी पर्याप्त फंड नहीं दिया. जिससे पड़ोसी विकासशील देशों के पास भी तेजी से एस्ट्राजेनेका कोवीशील्ड खत्म हुई. रही-सही कसर कोरोना की दूसरी लहर ने पूरी कर दी. अब चीन के अलावा अमेरिका जैसे देश इस भरपाई की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अमेरिका ने एशिया के सभी देशों के लिए जो 1.6 करोड़ वैक्सीन देने का ऐलान किया है, वह ऊंट के मुंह में जीरा है. एशिया की कुल जनसंख्या 4.5 अरब है. ऐसे में अमेरिकी प्रयास के जरिए दक्षिण एशियाई देशों के हाथ कुछ लाख वैक्सीन ही आ सकेंगी. जो पूरी तरह नाकाफी होगी. (dw.com)
21 जून को अमेरिकी शहर न्यू यॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में सभी एक हवा में उड़ते हुए इंसान को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। यह इंसान होवरबोर्ड के जरिए उड़ रहा था। ऐसे होवरबोर्ड तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, खासकर युवा पीढ़ी के बीच। आपको फ्रेंकी ज़ापाटा तो याद ही होंगे, जिन्होंने 2019 में फ्लाईबोर्ड पर इंग्लिश चैनल के ऊपर से उड़ान भरी थी? इस दौरान उनके होवरबोर्ड ने 177 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड पकड़ी थी और उन्होंने 35 किलोमीटर की यात्रा सिर्फ 22 मिनट में तय की थी। हालांकि इस बार टाइम्स स्क्वायर पर सभी को हैरान करने वाला यह व्यक्ति कोई और था और उसका होवरबोर्ड भी काफी अलग था।
एक वीडियो में दिखाया गया है कि पूरे प्रोटेक्टिव गियर पहना यह आदमी ड्रोन जैसे दिखने वाले होवरबोर्ड के ऊपर खड़ा है और एक भीड़ भरी जगह में रोड के ऊपर होवर करते हुए निकलता है। वह इस होवरबोर्ड में स्थिरता के साथ शांत खड़ा दिखाई दे रहा है। वीडियो में इस बेहतरीन क्षण को कई लोग अपने फोन या कैमरा में रिकॉर्ड करते भी दिखाई दे रहे हैं। करें भी क्यों न, वर्तमान में भी ऐसा नज़ारा आम बात नहीं है। ट्विटर पर Rex Chapman नाम के एक यूज़र द्वारा शेयर किए गए इस 10 सेकंड के वीडियो को खबर लिखने तक 80 लाख लोगों द्वारा देखा जा चुका था।
इस वीडियो के रिप्लाई में सैंकड़ों मज़ाकिया बाते भी देखने को मिली। कुछ ने इसे स्पाइडर मैन फिल्म के विलन ग्रीन गॉब्लिन बोला, तो कुछ ने इस स्टंट की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई।
Oh nothing - just a dude flying around NYC… https://t.co/qJp2mKgV8R
— Rex Chapman???????? (@RexChapman) June 21, 2021
2002 में रिलीज़ हुई Spider-Man मूवी में विलन के रूप में ग्रीन गॉब्लिन दिखाया गया था। वह भी अमेरिकी शरह में इसी तरह होवरबोर्ड में घूमता था। @blurayangel यूज़रनेम से एक व्यक्ति को इस वीडियो को देख कर ग्रीन गॉब्लिन की ही याद आई। उसने वीडियो को री-शेयर करते हुए कैप्शन में “Green Goblin???” लिखा।
कुछ अन्य रिएक्शन...
होवरबोर्ड में हवा में उड़ने वाले इस व्यक्ति को Inside Edition मैग्ज़ीन ने खोज लिया। इस व्यक्ति का नाम Hunter Kowald है, जिसने टाइम्स स्क्वायर में इस स्टंट को करने के लिए सभी संबंधित अथॉरिटी से अनुमति ली थी। उनका कहना है कि उन्होंने इस कारनामे को सुरक्षा और सटीक तरह से अंजाम देने के लिए कई सालों तक महनत की है। उनका कहना है कि यह एकदम बारीकी से बनाया गया डिवाइस है , जिसमें कई सुरक्षात्मक हार्डवेयर जोड़े गए हैं। यहां तक कि उन्होंने इस डिवाइस में दो मोटर लगाई है, जिससे यदि एक मोटर फेल हो जाए, तो दूसरी की बदौलत वह सुरक्षित उतर सके। (gadgets360.com)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि “अफ़ग़ान लोगों को अपना भविष्य ख़ुद ही तय करना होगा.”
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के व्हाइट हाउस दौरे के समय राष्ट्रपति जो बाइडन ने ये बात कही.
उन्होंने राष्ट्रपति ग़नी और ख़ुद को ‘पुराने दोस्त’ बताया. उन्होंने वादा किया कि अमेरिका आगे भी अफ़ग़ानिस्तान का राजनैतिक और आर्थिक सहयोग करता रहेगा और अमेरिका-अफ़ग़ानिस्तान का संबंध कभी कमज़ोर नहीं होगा.
हालांकि, अमेरिका और नेटों की सेनाएं 11 सितंबर तक अफ़ग़ानिस्तान से पूरी तरह निकल जायेंगी.
ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब कट्टरपंथी तालिबान लड़ाकों ने अफ़ग़ानिस्तान के दर्जनों ज़िलों पर फिर से क़ब्ज़ा जमा लिया है और उनका आक्रामक सैन्य अभियान लगातार जारी है.
तालिबान का बढ़ता वर्चस्व
इसी सप्ताह की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान के बढ़ते वर्चस्व को लेकर चिंता ज़ाहिर की थी.
राष्ट्रपति जो बाइडन और अशरफ़ ग़नी की मुलाक़ात से एक दिन पहले ही अमेरिका के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने कहा था कि वो अपने सैनिकों को पूरी तरह वापस बुलाने से पहले उन हज़ारों अफ़ग़ान लोगों को बाहर निकालने का काम करेंगे जिन्होंने क़रीब दो दशक तक अमेरिकी सेना के साथ मिलकर काम किया.
बताया गया है कि ऐसे लोगों की संख्या 50 हज़ार तक हो सकती है जिन्होंने अमेरिकी सेना की किसी ना किसी तरह सहायता की.
अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक़, वर्षों तक अमेरिका के लिए काम करने वाले अफ़ग़ान दुभाषियों को तालिबान से जान का ख़तरा है.
बताया गया है कि इसी डर से कम से कम 18,000 अफ़ग़ान लोगों ने अमेरिकी वीज़ा के लिए आवेदन किया है.
'अफ़ग़ानिस्तान को समर्थन हमेशा रहेगा'
अमेरिका और नेटो के अधिकारियों ने हाल ही में कहा कि तालिबान अब तक अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा कम करने और शांति कायम करने के अपने वादों को निभाने में नाकाम रहा है.
शुक्रवार को ओवल ऑफ़िस में राष्ट्रपति ग़नी से मुलाक़ात के बाद जो बाइडन ने कहा कि “हमारे सैनिक ज़रूर अफ़ग़ानिस्तान छोड़ रहे हैं, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान को हमारा समर्थन कभी ख़त्म नहीं होगा.”
उन्होंने कहा कि “यह अफ़ग़ानिस्तान को ही चुनना है कि उसे किस रास्ते जाना है. लेकिन ये लगातार चलने वाली हिंसा रुकनी चाहिए, वरना भविष्य में बड़ी परेशानियाँ होंगी.”
इस मुलाक़ात के दौरान राष्ट्रपति ग़नी ने कहा कि “वे अमेरिकी प्रशासन के अपनी सेनाएं वापस बुलाने के निर्णय का सम्मान करते हैं.”
उन्होंने बताया कि अफ़ग़ान सुरक्षा बलों ने उन छह ज़िलों को फिर से अपने क़ब्ज़े में ले लिया है, जिन पर तालिबान ने क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश की थी.
उन्होंने कहा, “आप देखेंगे कि दृढ़ संकल्प के साथ, एकता के साथ और साझेदारी के साथ, हम सभी बाधाओं को पार कर लेंगे.”
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के साथ सरकार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अब्दुला अब्दुला भी दो दिवसीय अमेरिकी-यात्रा पर हैं. वहाँ दोनों ने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों, सीआईए के अधिकारियों और अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाक़ात की. (bbc.com)
कोलंबिया के राष्ट्रपति को ले जा रहे हेलीकॉप्टर पर बंदूक़ से हमला किया गया है.
जिस वक़्त वे वेनेज़ुएला की सीमा के पास से उड़ान भर रहे थे, तभी उनके हेलीकॉप्टर पर गोलियों की बौछार की गई.
ये हमला जिस समय हुआ, तब राष्ट्रपति इवान ड्यूक, रक्षा मंत्री और अपनी सरकार में आंतरिक मामलों के मंत्री के साथ नॉर्टे डे सेंटाडेर प्रांत के लिए निकल रहे थे. उनके साथ इस प्रांत के गवर्नर भी थे.
राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने बताया है कि इस हमले में किसी को चोट नहीं आई.
राष्ट्रपति इवान ड्यूक ने इसे ‘कायराना हमला’ बताते हुए कहा कि वो हिंसा और ऐसे आतंकी हमलों से डरने वाले नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि कोलंबिया ऐसे हमलों का सामना करने के लिए बहुत शक्तिशाली है.
उन्होंने कोलंबियाई सुरक्षा बलों को इस हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों का पता लगाने का आदेश दिया है.
स्थानीय अख़बारों के अनुसार, हेलीकॉप्टर में बैठे लोगों को इंजन से किसी चीज़ के टकराने की आवाज़ सुनाई दी थी. तब हेलीकॉप्टर ज़मीन से थोड़ी ही ऊंचाई पर था.
बताया गया है कि जिस क्षेत्र में कोलंबियाई राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर पर हमला हुआ, वहाँ वामपंथी विचारधारा वाली नेशनल लिब्रेशन आर्मी (ईएलएन) काफ़ी सक्रिय है.
ईएलएन देश के सबसे बड़े विद्रोही समूहों में से एक है जिसे ना सिर्फ़ कोलंबिया की सरकार, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय संघ भी एक चरमपंथी संगठन मानता है.
1964 में इस विद्रोही समूह को बनाया गया था जिसका मक़सद देश में भूमि और धन के असमान वितरण के ख़िलाफ़ लड़ना था.
इसी महीने की शुरुआत में ईएलएन ने इस क्षेत्र में हुए एक कार बम हमले में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था. इस कार बम हमले में 36 लोग घायल हुए थे जिनमें दो अमेरिकी सैन्य सलाहकार भी शामिल थे. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 26 जून | पाकिस्तान के ऊर्जा मंत्री हम्माद अजहर ने शुक्रवार को यहां कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत 660 केवी मटियारी-लाहौर हाई-वोल्टेज डायरेक्ट करंट (एचवीडीसी) ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट से देश की बिजली व्यवस्था में स्थिरता आएगी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामाबाद और चीन के बीजिंग में वीडियो लिंक के माध्यम से एक साथ आयोजित प्रोजेक्ट के प्रसारण समारोह को संबोधित करते हुए, अजहर ने कहा कि परियोजना पाकिस्तान में संचरण क्षमता को बढ़ाएगी और उपभोक्ताओं को राहत देगी।
मंत्री ने कहा कि परियोजना पाकिस्तान में नई तकनीक लेकर आई है और सिंध में स्थित बिजली संयंत्रों से उत्तरी लोड केंद्रों तक बिजली पहुंचाएगी जिससे उनकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके।
उन्होंने कहा, "सीपीईसी पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह देश को औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने, ऊर्जा और संचार बुनियादी ढांचे को उन्नत करने और क्षेत्र के भीतर कनेक्टिविटी में सुधार करने में सक्षम बनाएगा।"
बीजिंग में समारोह में बोलते हुए, चीन के राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन के प्रमुख झांग जियानहुआ ने कहा कि मटियारी-लाहौर ट्रांसमिशन लाइन सीपीईसी की पहली बड़े पैमाने की ट्रांसमिशन परियोजना है।
इस्लामाबाद में कार्यक्रम में बोलते हुए, पाकिस्तान में चीनी राजदूत नोंग रोंग ने कहा कि सीपीईसी ने औद्योगिक, कृषि और सामाजिक-आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्च गुणवत्ता वाले विकास के एक नए चरण में प्रवेश किया है। उन्होंने कहा कि मटियारी-लाहौर परियोजना पाकिस्तान में स्थिर बिजली आपूर्ति में योगदान देगी और देश के औद्योगीकरण को बढ़ावा देगी।
मटियारी-लाहौर ट्रांसमिशन परियोजना का निर्माण दिसंबर 2018 में शुरू हुआ था और निर्माण अवधि के दौरान स्थानीय लोगों के लिए लगभग 7,000 नौकरियों का सृजन किया गया था। इस परियोजना के इस साल के अंत में वाणिज्यिक संचालन में आने की उम्मीद है और यह सालाना 30 अरब किलोवाट-घंटे से ज्यादा बिजली संचारित कर सकता है। (आईएएनएस)
लंदन, 26 जून | पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) ने शुक्रवार को कहा कि पिछले सप्ताह डेल्टा कोविड -19 वेरिएंट के 35,204 नए मामले सामने आने के साथ, ब्रिटेन में चिंता की लहर है क्योंकि इस मामले में ं 46 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। स्काई न्यूज ने बताया कि पुष्टि किए गए डेल्टा मामलों की कुल संख्या अब 111,157 है - इनमें से 102,019 इंग्लैंड में, 7,738 स्कॉटलैंड में, 788 वेल्स में और 612 उत्तरी आयरलैंड में दर्ज किए गए हैं।
पीएचई ने कहा कि डेल्टा वेरिएंट, जिसे पहले भारत में पहचाना गया था, अब तेजी से ब्रिटेन में भी पैर पसार रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि नया संस्करण अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है या टीकों को कम प्रभावी बनाता है।
इसके अलावा, पीएचई ने उल्लेख किया कि 21 जून, 304 तक के सप्ताह में कोविड के कारण इंग्लैंड में अस्पताल में भर्ती 514 लोगों में से 304 का टीकाकरण नहीं हुआ था।
इंग्लैंड में अब तक मौत के लगभग 117 मामलों की पुष्टि डेल्टा वेरिएंट के रूप में हुई है। इनमें से आठ 50 साल से कम उम्र के थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन आठ लोगों में से छह का टीकाकरण नहीं हुआ था, जबकि दो की मौत 21 दिनों से अधिक समय तक कोरोनोवायरस वैक्सीन की पहली खुराक प्राप्त करने के बाद हुई थी।
पीएचई ने एक ट्वीट में कहा, शुक्रवार को पूरे ब्रिटेन में 15,810 नए मामले सामने आए और 28 दिनों के भीतर 18 लोगों की मौत हो गई।
इसमें कहा गया है कि ब्रिटेन में अब तक 43,877,861 लोगों को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक मिली है, जबकि 32,085,916 लोगों को दूसरी खुराक मिली है।(आईएएनएस)
एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि संभव है कि कोविड-19 का वायरस चीन में अक्टूबर 2019 से ही फैल रहा हो. यह वायरस के फैलने की शुरुआत की जो आधिकारिक जानकारी उपलब्ध है उससे भी दो महीने पहले की अवधि है.
पीएलओएस पैथोजन्स नाम की पत्रिका में छपे एक पेपर के मुताबिक यह दावा किया है ब्रिटेन के केंट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने. उन्होंने संरक्षण विज्ञान के तरीकों का इस्तेमाल करके पता लगाया कि एसएआरएस-सीओवी-2 सबसे पहले अक्टूबर 2019 की शुरुआत से मध्य नवंबर के बीच सामने आया होगा. उनका अनुमान है कि सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि वायरस 17 नवंबर को उभर कर आया हो और जनवरी 2020 तक तो पूरी दुनिया में फैल गया हो.
चीन द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी के मुताबिक वहां कोविड-19 का पहला मामला दिसंबर 2019 में सामने आया और उसका संबंध वूहान के हुआनान सीफूड बाजार से पाया गया. लेकिन कुछ शुरुआती मामले ऐसे भी थे जिनका हुआनान के बाजार से कोई संबंध नहीं पाया गया था. इसका यही मतलब हो सकता है कि वायरस उस बाजार में पहुंचने से पहले प्रचलन में था.
मार्च के अंत में चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मिल-जुल कर किए गए अध्ययन में इस बात को माना गया था कि वूहान से पहले भी छिटपुट मानव संक्रमण होने की संभावना है. इसी सप्ताह छपने से पहले जारी हुए एक पेपर में अमेरिका के सीएटल में फ्रेड हचिंसन कैंसर शोध केंद्र के जेस्सी ब्लूम ने चीन में कोविड-19 के शुरुआती मामलों के जेनेटिक अनुक्रमण के डाटा का फिर से पता लगा लिया. इस जानकारी को नष्ट कर दिया गया था.
डाटा का नष्ट किया जाना
इस डाटा से यह पता चलता है कि हुआनान के बाजार से लिए गए सैंपल पूरे एसएआरएस-सीओवी-2 के नमूने नहीं थे और वो उससे पहले सामने आए एक जेनेटिक क्रम का एक प्रकार थे. आलोचकों का कहना है कि इस डाटा का नष्ट किया जाना इस बात का एक और प्रमाण है कि चीन कोविड-19 की शुरुआत की जांच पर पर्दा डालना चाह रहा था. हार्वर्ड के ब्रॉड इंस्टिट्यूट की शोधकर्ता अलीना चैन ने ट्विटर पर लिखा, "वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय डेटाबेसों को कोविड-19 की शुरुआत के बारे में बताने वाले महत्वपूर्ण डाटा को नष्ट करने के लिए आखिर क्यों कहेंगे?"
चैन ने आगे कहा, "इस सवाल का जवाब आप खुद ही दे सकते हैं." केंट विश्वविद्यालय के अध्ययन पर प्रतिक्रिया देते हुए ऑस्ट्रेलिया की एक मेडिकल रिसर्च संस्था किर्बी इंस्टीट्यूट में सहायक प्रोफेसर स्टुअर्ट टुर्विल ने बताया कि महामारी की शुरुआत के बारे में और पुख्ता जानकारी हासिल करने के लिए सीरम के नमूनों की जांच करने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा, "दुर्भाग्य से इस समय लैब-लीक की जो अवधारणा है और चीन में इस तरह के शोध करने को लेकर जो संवेदनशीलता है, उसकी वजह से इस तरह की रिपोर्ट आने में अभी समय लग सकता है." सीके/एए (रॉयटर्स)
कम वेतन और काम करने की प्रतिकूल स्थितियों की वजह से अफ्रीकी स्वास्थ्य कर्मी विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश में हैं. कोविड महामारी की वजह से प्रवासन नियमों को भी ढीला किया गया है.
डॉयचे वैले पर मार्टीना श्वीकोव्स्की की रिपोर्ट-
रहिमोत अपने पोते के जन्म का इंतजार कर रही हैं. वो अपनी बहू को लागोस स्थित सेंट डिवाइन प्राइवेट क्लिनिक के इमर्जेंसी सेक्शन में ऑपरेशन के लिए लाई हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में रहिमोत कहती हैं, "मेरी बहू को करीब एक बजे रात में दर्द शुरु हुआ. वो इसे और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, इसलिए हम लोगों ने डॉक्टर की सलाह पर तय किया कि उसका ऑपरेशन हो."
नाइजीरिया के इस छोटे से अस्पताल में कर्मचारियों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है.
कई महीने वेतन नहीं मिला
नर्स ग्लोरी ओनीन्वे इस अस्पताल को चलाती हैं. अपने आसपास के इलाकों में वो इसलिए जानी जाती हैं क्योंकि उन्होंने ऐसे तमाम लोगों को इलाज सुलभ कराया है जो सक्षम नहीं थे. ओनीन्वे जैसे निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं ने कोविड महामारी के दौरान नाइजीरिया की स्वास्थ्य सेवाओं को काफी मदद पहुंचाई. ज्यादातर लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है, इसलिए अस्पतालों को मरीजों का खर्च खुद वहन करना पड़ता है और वो खुद दूसरों की मदद पर निर्भर रहते हैं.
ऑपरेशन के दौरान बिजली कटौती हो जाती है, जो कि रोजमर्रा का हिस्सा है. नाइजीरिया में स्वास्थ्य सेवाओं की आर्थिक स्थिति बहुत ही बदहाल है. सरकारी और निजी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव है और तमाम डॉक्टरों को कई महीनों तक बिना वेतन के ही काम करना पड़ता है.
डॉक्टर लुमुंबा ओटीग्बे काफी परेशान हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "डॉक्टर बनने के लिए लोग कितनी कठिन पढ़ाई करते हैं. लेकिन तमाम डॉक्टरों की तरह मेरे पास भी है खुद का एक घर नहीं है. ऐसा नहीं होना चाहिए. हम लोगों की जिंदगी बचाते हैं. लेकिन नाइजीरिया में ऐसा लगता है कि हम अपनी ही जिंदगी की हिफाजत नहीं कर सकते. लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि हम उन लोगों की सेवा नहीं करते हैं जो हमारी देखभाल कर सकते हैं."
महामारी की वजह से प्रतिभा पलायन बढ़ा है
नाइजीरिया में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों का बड़ी संख्या में पलायन कोविड-19 की शुरुआत से पहले ही होना शुरू हो गया था. साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां के करीब 88 फीसद डॉक्टर बाहर जाना चाहते थे. ज्यादातर डॉक्टर अमेरिका और ब्रिटेन जाते हैं. दूसरे अफ्रीकी देशों के डॉक्टर्स, नर्सेज और स्वास्थ्यकर्मी इसलिए देश छोड़कर चले जाते हैं क्योंकि यहां काम करने का माहौल अक्सर खराब रहता है. और कोविड-19 महामारी ने इस स्थिति को और बिगाड़ दिया है.
दक्षिण अफ्रीका के एक एनेस्थीसिया विशेषज्ञ केरोलीन ली कहती हैं, "कोई प्रामाणिक संख्या तो नहीं है, जो इसकी पुष्टि कर सके लेकिन मेडिकल और व्यवसाय इन दोनों क्षेत्रों में ज्यादातर लोग देश के बाहर जाने संबंधी बातें करते हैं. मेरे कई मरीजों ने भी इस बारे में मुझे बताया है."
ली उस हेल्थकेयर वर्कर्स केयर नेटवर्क का संचालन करती हैं जो दक्षिण अफ्रीका में स्वास्थ्यकर्मियों को मनोवैज्ञानिक मदद पहुंचाता है. ली मानती हैं कि कोविड महामारी की वजह से प्रवासन की प्रक्रिया पर भी असर पड़ा है. इसका एक प्रमुख कारण दक्षिण अफ्रीकी सरकार में तेजी से बढ़ता भ्रष्टाचार है. वो कहती हैं, "कोरोनावायरस से लड़ने के लिए जारी किए गए पैसे में ज्यादातर चुरा लिए गए. सुरक्षा के लिए आए कपड़े, खाद्य सामग्री, सामाजिक फंड और बेरोजगार लोग गायब हो गए. ज्यादातर दक्षिण अफ्रीकी यह सोचते हैं कि अब अपने घर में रहकर उनका कोई भविष्य नहीं है."
प्रवेश के आसान तरीके
दक्षिण अफ्रीका में Xpatweb आप्रवासन और उत्प्रवास के लिए सहायता प्रदान करता है. कंपनी के पास जॉब मार्केट में मौजूद अवसरों के ताजा आंकड़े भी हैं. साल 2020-21 के सर्वेक्षण के आधार पर डायरेक्टर मारिसा जैकब्स कहती हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं में काम कर रही पांच फीसद कंपनियों को अच्छे लोग ढूंढ़ने में काफी मुश्किलें आ रही हैं. ज्यादातर कमी नर्सों, फार्मासिस्टों और लैब टेक्नीशियन्स की है.
जैकब कहती हैं, "हम वैश्विक स्तर पर यह ट्रेंड देख रहे हैं. दक्षिण अफ्रीकी लोग चाहते हैं कि उन्हें काम करने का अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिले, बाहर अच्छे पैसे भी हैं और अच्छे मौके भी हैं. कई ऐसे देश हैं जो पासपोर्ट के लिए आवेदन के विकल्प की भी पेशकश करते हैं जिसकी वजह से बाहर जाकर बसने के मौके भी मिलते हैं."
डीडब्ल्यू से बातचीत में जैकब कहती हैं कि हालांकि इसके कुछ नुकसान भी हैं, "दक्षिण अफ्रीका में मेडिकल क्षेत्र में कुछ अच्छे विश्वविद्यालय हैं और वहां बेहतरीन कोर्सेज भी हैं. विदेशों से भी छात्र यहां सीखने आते हैं और उन्हें यहां भी अच्छे अवसरों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इन प्रयासों के जरिए तकनीकी प्रतिभा के पलायन को रोका जा सकता है."
लेकिन मौजूदा समय में उत्प्रवास की प्रवृत्ति बढ़ रही है और स्वास्थ्य क्षेत्र में इसका बड़ा प्रभाव पड़ रहा है. उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम ने पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों के लिए चुनिंदा वीजा आवश्यकताओं में ढील दी है. जैकब कहती हैं, "यह आकर्षक है और इसकी वजह से दक्षिण अफ्रीकी लोगों पर देश छोड़ने का दबाव बन रहा है. कनाडा ने भी स्नातक छात्रों के लिए अपने यहां प्रवेश के रास्तों को आसान बनाया है."
उत्प्रवास के खिलाफ कानून का उपयोग
पड़ोसी देश जिम्बाब्वे में यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पसंदीदा देशों में हैं. महामारी के समय में ज्यादा काम का दबाव और खराब कामकाजी परिस्थितियों ने हाल के दिनों में स्वास्थ्य क्षेत्र के श्रमिकों को हड़ताल करने के लिए भी प्रेरित किया है.
बार-बार विरोध प्रदर्शन तेज हो जाते हैं. मार्च 2020 में जब पुलिस ने व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी और कम वेतन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को गिरफ्तार किया, तब यह स्थिति देखने को मिली.
ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन हालांकि कोई नई बात नहीं है लेकिन डीडब्ल्यू संवाददाता प्रिविलेज मुसवानहिरी का कहना है कि जिम्बाब्वे के स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए देश छोड़ना कठिन हो गया है. मुसवानहिरी कहते हैं कि मौजूदा सरकार भी लालफीताशाही के जरिए लोगों को बाहर जाने से रोकने की कोशिश कर रही है.
मुसवानहिरी के मुताबिक, "यहां एक कानून पारित किया गया है कि डॉक्टर या नर्स जो बाहर जाना चाहते हैं, उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से मंजूरी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करना होगा. जिन लोगों ने हड़ताल में भाग लिया होगा, उन डॉक्टरों को क्लियरेंस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा."
एक बार फिर नाइजीरिया में प्राइवेट क्लिनिक सेंट डिवाइन ग्लोरी की ओर लौटते हैं. रहिमोत की पोती का जन्म हो चुका है, वो भी बिना किसी दिक्कत के. रहिमोत अपने परिवार के सबसे छोटे सदस्य को हाथ में उठाकर बड़ी खुशी से कहती हैं, "लड़की हुई है." (dw.com)
प्रौद्योगिकी ने मिस्र में हजारों महिलाओं के यौन शोषण करना आसान बना दिया है. अन्य लोगों को इससे बचाने के लिए, मिस्र के एक युवक ने एक ऑनलाइन समूह शुरू किया जो कि जबरन वसूली करने वाले ऐसे अभियुक्तों से निपटने को समर्पित है.
डॉयचे वैले पर इहाब जिदान, काहिरा की रिपोर्ट-
पिछली गर्मियों में, मोहम्मद एलियामनी इस खबर से हैरान हो गए थे जब अपने पूर्व प्रेमी से यौन शोषण की धमकी मिलने के बाद एक 17 वर्षीय लड़की उनके पास मदद के लिए पहुंची थी लेकिन बाद में उसने आत्महत्या कर ली.
जब लड़की ने 35 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता एलियामनी को इस बारे में संदेश भेजा, उन्होंने लड़की को पुलिस के पास जाने की सलाह दी. एलियामनी यौन उत्पीड़न और यौन शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए फेसबुक का उपयोग करते हैं और उनके खिलाफ अभियान चलाते हैं जो यौन शोषण के बाद पीड़ितों की निजी और संवेदनशील सामग्री सार्वजनिक करने की धमकी देते हैं.
लड़की के संदेश भेजने के अगले ही दिन, एलियामनी को पता चला कि लड़की के पूर्व प्रेमी ने उसके पिता के पास उसकी कुछ अंतरंग तस्वीरें भेज दीं, जिसके बाद लड़की ने आत्महत्या कर ली. जब एलियामनी ने उस लड़के के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए लड़की के परिवार से संपर्क किया, तो उनकी प्रतिक्रिया थी, "हम बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहते. हमारी लड़की भी अब इस दुनिया में नहीं है."
अपराध बोध से ग्रसित एलियामनी ने संकल्प किया कि वो किसी भी पीड़ित को इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे. जून 2020 में उन्होंने फेसबुक पर कावेम नाम से एक पेज और एक ग्रुप बनाया, जो यौन शोषण पीड़ितों की मदद करता है. आज इस फेसबुक पेज के 2,50,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं.
सामना कैसे किया
कावेम के नेटवर्क में 200 स्वयंसेवक शामिल हैं. नेटवर्क की महिला स्वयंसेवक फेसबुक समूह चलाती हैं और पीड़ितों के संदेशों का जवाब देती हैं तो अन्य लोग जबरन वसूली करने वालों के बारे में जानकारी एकत्र करते हैं. जरूरत पड़ने पर उनके परिवारों, सहकर्मियों इत्यादि की भी जानकारी इकट्ठा करते हैं.
जब स्वयंसेवकों को किसी घटना के बारे में रिपोर्ट मिलती है, तो वे ऑनलाइन जबरन वसूली करने वाले से संपर्क करते हैं. वे उससे पीड़ित के खिलाफ उसकी सभी सामग्री को हटाने के लिए कहते हैं, उसके कृत्यों के परिणामों के बारे में सचेत करते हैं और उस व्यक्ति को उसके परिजनों, दोस्तों और उसके कार्यस्थल पर बेनकाब करने की धमकी भी देते हैं.
अभियुक्त से कहा जाता है कि सामग्री हटाने के दौरान उसका वो वीडियो बनाए और फिर उस वीडियो को कावेम के पास पीड़ित से माफी मांगते हुए भेज दे.
पीछे हटने का दबाव
एलियामनी कहते हैं कि कुछ अभियुक्त तो जब ये जान लेते हैं कि पीड़ित अकेले नहीं हैं तो ऐसा करना स्वीकार कर लेते हैं लेकिन ज्यादातर तब तक ऐसा नहीं करते जब तक कि उन्हें बेनकाब करने की धमकी न दी जाए.
वह कहते हैं, "कभी कभी हम लोग अपने स्वयंसेवकों को अभियुक्तों के पास अकेले में मिलने के लिए भेजते हैं. ये स्वयंसेवक ज्यादातर अभियुक्त के पड़ोसी या आस-पास के लोग ही होते हैं ताकि उस पर दबाव बने. बहुत कम मामलों में, हमें पीड़ित के साथ समन्वय में पुलिस का सहारा लेना पड़ा. ऐसा तब करना पड़ा जब अभियुक्त पकड़ में नहीं आता था.”
कावेम समूह के मुताबिक, इस समय उनके पास हर रोज करीब पांच सौ मामले आ रहे हैं जिनमें से हर हफ्ते करीब दो सौ मामले सुलझाए जा रहे हैं. 29 वर्षीय रानदा को बचाने में भी कावेम ने मदद की थी जब उनके पुरुष मित्र ने संबंध तोड़ने की स्थिति में रानदा की नग्न तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दी थी.
पीड़ित डरते हैं
पिछले साल अगस्त में मिस्र में यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं की पहचान उजागर न करने संबंधी कानून को मंजूरी दी है लेकिन रानदा इसके बावजूद पुलिस में जाने से डर रही थीं.
अजीजा एल्ताविल इजिप्शन इनिशियेटिव फॉर पर्सनल राइट्स नामक स्वतंत्र मानवाधिकार संस्था से जुड़ी एक वकील हैं. उनके मुताबिक, रानदा का डर स्वाभाविक था. एल्ताविल कहती हैं कि कई पीड़ित इसलिए पुलिस के पास जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें यह खबर परिजनों, मीडिया या फिर सोशल मीडिया में फैल जाने का डर लगा रहता है.
एल्ताविल कहती हैं, "कभी-कभी अभियुक्तों के परिजन और उनके वकील पीड़ितों को बदनाम करने की कोशिश करते हैं. कानूनी प्रक्रिया अक्सर चलती रहती है और 18 वर्ष से कम आयु के पीड़ितों को अपने कानूनी अभिभावक के माध्यम से आधिकारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए.”
यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों को देखने वाले वकील यासिर साद कहते हैं कि मिस्र के कानून यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को संरक्षण प्रदान करते हैं और अभियुक्तों को सजा देने वाले हैं. लेकिन इन कानूनों का अनुपालन और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया बेहद जटिल है.
साद के मुताबिक, आधिकारिक शिकायत दर्ज करने और जांच शुरू होने के बीच का समय अभियुक्त को इतना समय देता है कि वे पीड़ित को धमका सकें. वहीं पुलिस थानों में पुरुषवादी संस्कृति अक्सर ऐसे अपराधों के लिए पीड़ितों को ही दोषी ठहराने लगती है.
30 वर्षीय नूरहान कहती हैं कि दक्षिणी मिस्र के असिउत राज्य में उसके पूर्व मंगेतर से पूछताछ करने में 40 दिन लगा दिए. नूरहान ने पिछले साल अक्तूबर में अपने पूर्व मंगेतर के खिलाफ आधिकारिक रूप से यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था.
एताविल कहती हैं कि शिकायत दर्ज कराने और पुलिस कार्रवाई में समय इस बात पर निर्भर करता है कि अभियुक्त का आईपी एड्रेस पुलिस को कितनी जल्दी मिल पाता है.
नूरहान कहती हैं कि हालांकि पुलिस में केस दर्ज कराने की वजह से आखिरकार उनके पूर्व-मंगेतर को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन उन्हें डर था कि उस दौरान उनकी हत्या भी हो सकती थी.
दक्षिणी मिस्र को उसकी परंपरागत संस्कृति और पितृसत्तात्मक समाज के लिए जाना जाता है और साथ ही तथाकथित ऑनर किलिंग के लिए भी, जहां किसी महिला की हत्या कथित तौर पर अनैतिक आचरण के लिए कर दी जाती है.
कुछ मामले मुश्किल हैं
एलियामनी स्वीकार करते हैं कि कावेम के सामने सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब पीड़ित ब्लैकमेलर के बारे में नहीं जानती. वह कहते हैं, "कुछ महिलाएं कई बार अपना फोन किसी दूसरे को बेच देती हैं. बेचने से पहले हालांकि वे तस्वीरें और वीडियो हटा देती हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता कि इन तस्वीरों और वीडियोज को तकनीक के जरिए रीस्टोर किया जा सकता है. ऐसी स्थितियों में फोन खरीदने वाला महिला को ब्लैकमेल करने लगता है, जबकि महिला उसे जानती भी नहीं.”
इन मामलों में वे पीड़ित को सीधे पुलिस के पास जाने की सलाह देते हैं.
एलियामनी कहते हैं कि वे ऐसे मामलों को भी नहीं देखते जिनमें संगठित अपराधी समूह यानी गैंग्स शामिल होते हैं. वह कहते हैं, "कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें मॉडलिंग या विज्ञापन फिल्मों के लिए किसी पीड़ित से तस्वीर मांगी जाती है और फिर उसे ब्लैकमेल किया जाता है. कोविड काल में इस तरह की घटनाएं काफी देखने को मिली हैं.”
काहिरा के उत्तर पूर्व में जगाजिग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के अध्यापक अहमद अब्दुल्ला कहते हैं कि अरब देशों में ज्यादातर लोग मामलों को कानूनी तरीकों के बजाय परंपरागत तरीकों से निबटाना पसंद करते हैं. उनके मुताबिक, "पीड़ित केवल यह चाहते हैं कि उस सामग्री को हटा दिया जाए जिससे कोई अभियुक्त उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है. इसके लिए यदि कानूनी रास्ते की बजाय अनौपचारिक रास्ता मिलता है, तो वो इसी रास्ते को प्राथमिकता देते हैं.” (dw.com)
ब्रिटेन में कोरोनावायरस के डेल्टा वेरिएंट के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
डॉयचे वैले पर स्वाति बक्शी की रिपोर्ट-
ब्रिटेन में कोरोना वायरस के इंडियन वेरिएंट डेल्टा के प्रसार ने ना सिर्फ लॉकडाउन से बाहर निकलने के इरादों पर पानी फेर दिया बल्कि अब डर ये है कि हालात कहीं फिर से बिगड़ ना जाएं. गुरुवार तक दर्ज किए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 18 से 24 जून के बीच 85,177 पॉजिटिव केस दर्ज किए गए जो उससे पिछले हफ्ते के मुकाबले करीब 45 फीसदी ज्यादा हैं.
ताजा शोध रिपोर्टों में साफ तौर पर कहा गया है कि ब्रिटेन में इस वक्त कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों में 90 फीसदी से ज्यादा लोग डेल्टा वेरिएंट की चपेट में हैं. अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है हालांकि ये अभी 80 बरस से ऊपर की उम्र में ज्यादा देखा जा रहा है.
मोटे तौर पर डेल्टा वेरिएंट से बढ़ रहे केस हर ग्यारहवें दिन पर दोगुने हो रहे हैं. सभी उम्र के लोगों में संक्रमण बढ़ा है लेकिन 29 साल से नीचे के आयु-वर्ग में सबसे ज्यादा मामले हैं. इसमें भी स्कूल जाने वाले बच्चों का वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में है. बढ़ते संक्रमण के चलते ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 21 जून से हटने वाले लॉकडाउन को चार हफ्ते आगे बढ़ा दिया है हालांकि उनका कहना है कि वैक्सीन के दो डोज ले चुके लोगों के लिए हवाई यात्रा खोले जाने की प्रबल संभावनाएं हैं.
डेल्टा वेरिएंट जिसे B.1.617.2 भी कहा गया है, कोरोना वायरस का वह स्ट्रेन है जो सबसे पहले भारत में पाया गया. वायरस के इसी स्ट्रेन के चलते भारत में अप्रैल-मई के महीनों में महामारी की भयंकर लहर देखने को मिली.
डेल्टा और बच्चों में खतरा
पैर पसारते डेल्टा से जुड़े आंकड़े देखकर फिलहाल ये कहना जल्दबाजी होगी कि ये ब्रिटेन में तीसरी लहर की आहट है लेकिन आधिकारिक संस्था पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के आंकड़े इस वक्त संक्रमण के कुछ खास पहलुओं पर रोशनी डालते हैं. उदाहरण के तौर पर ये तथ्य कि फिलहाल संक्रमण का सबसे ज्यादा असर पांच से 12 और 18 से 24 साल के लोगों में है. इसका मतलब ये है कि इस उम्र के लोग संक्रमण फैलाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.
इसकी वजह पूछने पर ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापक और जॉन रैडक्लिफ हॉस्पिटल में नवजात शिशु विभाग में कंसल्टेंट डॉक्टर अमित गुप्ता कहते हैं, "इसकी वजह ना तो ये है कि बच्चे जैविक रूप से वायरस फैलाने में ज्यादा सक्रिय हैं, ना ही इसके लिए स्कूलों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसका मुख्य कारण ये है कि 50 और 80 बरस से ज्यादा की उम्र वाले लोगों में वैक्सीन का बढ़िया कवरेज है जबकि बच्चों और युवाओं को वैक्सीन दिए जाने का काम अभी भी बाकी है. संक्रमण के ये बढ़ते केस इसी जरूरत की ओर इशारा कर रहे हैं.”
लंदन के इंपीरियल कॉलेज की एक ताजा शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 साल से नीचे की उम्र के लोगों में वायरस का खतरा, 60 साल से ऊपर के लोगों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा बना हुआ है. ये तथ्य भी वैक्सीन की जरूरत की ओर ही इशारा करता है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि सामाजिक-आर्थिक तौर पर पिछड़े इलाकों में रहने वालों में दोगुनी गति से संक्रमित होने की संभावना है.
वैक्सीन कितनी कारगर
इस शोध रिपोर्ट के मुख्य लेखकों में शामिल शोधकर्ता स्टीवन राइली ने आगाह किया है कि भले ही कम उम्र के लोगों में संक्रमण दिख रहा हो, जिनके बीमार पड़ने की आशंका कम है लेकिन इसका अर्थ ये है कि अगर संक्रमण का स्तर बढ़ता रहेगा तो बूढ़े लोगों को इसकी चपेट में आने से रोकना मुश्किल होगा. इसकी वजह ये है कि वैक्सीन कोविड से बचाने में सौ फीसदी कारगर नहीं हैं और ना ही सभी को दो खुराकें मिली हैं.
कोरोनावायरस वैक्सीन को लेकर लोगों में पूरी तरह भरोसा जगा हो, ऐसा भी नहीं है. ब्रिटेन के एक रेडियो स्टेशन में काम करने वाले भारतीय मूल के पॉल हैरिस 35 बरस के हैं. वैक्सीन के लिए बुलावा आने के बावजूद उन्होंने अब तक जगह बुक नहीं की. उन्होंने बताया, "मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा है कि मेरे शरीर पर वैक्सीन का क्या असर होगा.”
एक तरफ लोगों में इस तरह के डर हैं, दूसरी तरफ लगातार आते वेरिएंट इस सवाल को बार-बार हवा देते हैं कि क्या वैक्सीन लेना वाकई कारगर है. क्या डेल्टा जैसे तेजी से फैलने वाले वेरिएंट को रोकने में वैक्सीन काम आएगी?
बाकी दुनिया की तरह ब्रिटेन में वैज्ञानिक तबका लगातार लोगों से अपील कर रहा है कि वैक्सीन की दो खुराक जरूर लें. ये वायरस से रोकथाम में मदद करने में सक्षम है. डॉक्टर अमित गुप्ता भी कहते हैं, "वैक्सीन आमतौर पर कारगर है, आपको गंभीर रूप से बीमार पड़ने और मौत से बचाने में. इस बात में कोई शक नहीं है कि वेरिएंट कोई भी हो, वैक्सीन के दो डोज लेने वालों को वायरस से अच्छी सुरक्षा मिलती है. वायरस फैलने से रोकने में वैक्सीन का उतना योगदान भले ही ना हो लेकिन जिंदगी बचने की संभावना बढ़ती है.”
वैक्सीन की क्षमता से जुड़े मसले पर ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय का एक शोध बताता है कि हाल ही में ब्रिटेन में किए गए परीक्षणों में ये बात सामने आई कि एक वैक्सीन के पहले डोज के बाद दसवें हफ्ते में इम्यूनिटी कम होती दिखाई दी. यही वजह है कि 50 बरस से ऊपर के लोगों में वैक्सीन की दूसरी डोज का अंतर 12 हफ्ते से घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया है.
डेल्टा वायरस ने ब्रिटेन में कोविड महामारी के एक नए चरण के डर को जगा दिया है. हालांकि उम्मीद यही है कि वैक्सीन प्रबंधन को और मजबूत करके युवाओं को इसकी चपेट से बचाने की कोशिश रंग लाएगी. जुलाई में लॉकडाउन से बाहर आने की आस में बैठे ब्रिटेन के सामने फिलहाल चुनौती है संक्रमण के वर्तमान स्तर को बेकाबू होने से रोकनी की. (dw.com)
दुनिया में हर साल 15 लाख लोग टीबी से दम तोड़ देते हैं, जबकि इस बीमारी का इलाज संभव है और बच्चों के लिए इसका टीका भी. कोरोना के चलते भी टीबी जैसी गंभीर बीमारी के खिलाफ मिली सफलताओं पर ब्रेक लगे हैं.
डॉयचे वैले पर लुइजा राइट की रिपोर्ट-
2010 में दक्षिण अफ्रीका की केप टाउन यूनिवर्सिटी में प्रथम वर्ष की छात्रा फुमेजा टिसिले ने गौर किया था कि वो दूसरे विद्यार्थियों की तरह सीढ़ियां नहीं चढ़ पा रही थीं. वो जल्दी थक जातीं और वजन भी काफी गिर गया था. टिसिले ने डीडब्लू को बताया, "तभी मुझे पता चला कि कुछ गड़बड़ है. लेकिन मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वो टीबी हो सकता था.” जब और कोई बीमारी नहीं निकली तो आखिरकार छाती का एक्सरे लिया गया. उसमें पता चला कि टिसिले को टीबी हो गया था. इसके बाद उपचार का सफर शुरू हो गया जिसमें तीन साल और आठ महीने लग गए.
टीबी का इलाज संभव है और उसे रोका भी जा सकता है, उसके बावजूद इस बीमारी से, डब्लूएचओ के मुताबिक, 2019 में 14 लाख लोग मारे गए थे. एचआईवी और मलेरिया से भी ज्यादा मौतें टीबी से हुई हैं. इस तरह ये दुनिया की सबसे ज्यादा संक्रामक और जानलेवा बीमारी मानी जाती है. टीबी से संक्रमित लोगों की करीब आधी संख्या आठ विकासशील देशों में बसर करती है. लेकिन टीबी के मामले कई देशों में आते रहते हैं.
चार मार्च 2021 को जर्मन शहर क्रेफेल्ड ने 17 साल के एक छात्र के टीबी से मारे जाने की घोषणा की थी. रोग नियंत्रण और बचाव के लिए जिम्मेदार जर्मन सरकार की एजेंसी रॉबर्ट कोख संस्थान के मुताबिक, 2019 में जर्मनी में टीबी के 4791 मामले थे और 129 लोग इस बीमारी से मारे गए थे.
टीबी है क्या?
टीबी माइकोबैक्टीरियम नाम के एक बैक्टीरिया से होता है और ये आमतौर पर फेफड़ों पर असर करता है. लेकिन ये शरीर के दूसरे हिस्सों में भी हो सकता है. टीबी के मरीज जब खांसते, छींकते या थूकते हैं तो ये हवा में फैलता है. एक बर्तन से खाने, हाथ मिलाने, गले लगने, कपड़े या चादर या टॉयलेट सीट को छूने, सेक्स करने या चूमने से टीबी नहीं फैलता है. खांसी, छाती दर्द, थकान, बुखार और वजन में गिरावट इसके लक्षण हैं.
संक्रमित तभी हो सकते हैं जब बहुत नजदीकी या बहुत लंबे समय तक संपर्क में रहें. डब्लूएचओ के मुताबिक दुनिया की एक चौथाई आबादी का, टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित होने का अनुमान है. इनमें से पांच से 15 प्रतिशत लोगों को ही एक्टिव टीबी होता है. बहुत से लोगों का कुछ हफ्ते इलाज चलता है तो वे ठीक हो जाते हैं और संक्रामक नहीं रह जाते.
भीड़भाड़ वाली जगहों और तंग घरों, कुपोषण, एचआईवी, नशे की लत और डायबिटीज टीबी के कुछ रिस्क फैक्टर हैं. लोगों में लंबे समय से टीबी का संक्रमण छिपा हुआ रह सकता है जो सालों बाद कभी रोग-प्रतिरोधक प्रणाली के कमजोर पड़ने की स्थिति में सक्रिय हो सकता है.
टीबी के खिलाफ अभियान को धक्का
सार्स-कोवी-2 का टीका बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने दिनरात काम किया है. लेकिन टीबी के लिए एक अकेला असरदार टीका बैसीले कालमेटे-ग्युरिन यानी बीसीजी का है. 1921 में पहली बार इंसानों पर इसका परीक्षण किया गया था. बीसीजी टीका बच्चों में बहुत असर करता है लेकिन बड़ों पर उतना असरदार नहीं होता.
वैज्ञानिकों ने हाल में बीसीजी पर आधारित हाल में एक और टीका बनाया. क्लिनिकल परीक्षण सफल रहे तो टीके को अगले कुछ साल में टीबी के खिलाफ दुनिया भर में इस्तेमाल किया जाने लगेगा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लूएचओ के मुताबिक 2019 के मुकाबले 2020 में टीबी का उपचार पाने वाले करीब 14 लाख लोग कम थे. 80 से ज्यादा देशों से मिले शुरुआती डाटा के आधार पर ये बताया गया. सबसे ज्यादा तुलनात्मक अंतराल इंडोनेशिया (42 प्रतिशत कम टीबी मरीज), दक्षिण अफ्रीका (41 प्रतिशत कम टीबी मरीज), फिलीपींस (37 प्रतिशत कम टीबी मरीज) और भारत (25 प्रतिशत कम टीबी मरीज) में पाया गया.
डब्लूएचओ ने आशंका जताई है कि 2020 में पांच लाख से ज्यादा लोग टीबी से मारे गए हो सकते हैं क्योंकि वे डायग्नोसिस हासिल करने में असमर्थ थे. डब्लूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस गेब्रेयीसस का कहना है कि कोविड-19 के असर, उससे होने वाली मौत और बीमारी से बहुत आगे हैं. उनके मुताबिक, "टीबी के मरीजों को मिलने वाली अनिवार्य सेवाओं में आयी बाधा इस बात का एक त्रासद उदाहरण है कि महामारी किस तरह दुनिया के सबसे गरीब लोगों को कितने अनापशनाप ढंग से प्रभावित कर रही है जो पहले से ही टीबी की चपेट में हैं.”
12 साल की बढ़त खत्म
टीबी के खात्मे पर काम कर रहे संगठनों के एक समूह- स्टॉप टीबी पार्टनरशिप की एक प्रकाशित रिसर्च में बताया गया है कि कोविड के 12 महीनों ने टीबी के खिलाफ लड़ाई में हासिल हुई 12 साल की बढ़त को खत्म कर दिया है. दुनिया में टीबी के 60 प्रतिशत मामलों वाले नौ देशों से मिले डाटा के मुताबिक 2020 में टीबी संक्रमण की पहचान और उपचार में बड़ी गिरावट दर्ज की गयी थी- 16 से 41 प्रतिशत की गिरावट.
स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का कहना है कि इस गिरावट से ये देश, टीबी के मरीजों की पहचान और बीमारी के उपचार के मामले में 2008 वाली स्थिति में आ गए हैं. संगठन के मुताबिक भारत और दक्षिण अफ्रीका से आ रहा डाटा दिखाता है कि टीबी के साथ साथ कोविड-19 से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर, सिर्फ टीबी से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर के मुकाबले तीन गुना ज्यादा है.
एक हेल्थ रिसर्च संगठन आईआरडी ग्लोबल में क्लिनिशियन और चिकित्सा निदेशक उजमा खान इन दिनों एक बहुदेशीय क्लिनिकल ट्रायल से जुड़ी हैं. ये ट्रायल मल्टी-ड्रग-निरोधी टीबी उपचार पर केंद्रित है जो कम अवधि वाला, ज्यादा असरदार और कम विषैला हो. उज्मा खान ने डीडब्लू को बताया कि टीबी की लड़ाई, कोविड-19 जैसी बीमारियों को मिल रही ज्यादा तवज्जो की वजह से कमतर हुई है.
रिकवरी और उपचार का लंबा रास्ता
टीबी का इलाज संभव है लेकिन लंबा चलता है, उसके साइड इफेक्ट तीखे हो सकते हैं और उसमें बहुत सारी दवाएं लगती हैं जिन्हें उपचार के फुल कोर्स के तहत हर रोज लेना होता है, भले ही मरीज खुद को स्वस्थ महसूस करने लगे. बीमारी कई रूपों में आती है. नियमित टीबी का उपचार करीब छह महीने चलता है. अगर मरीज बीच में ही दवा रोक देता है तो उसे एमडीआर-टीबी हो सकता है. इसमें अलग और ज्यादा तीखी टॉक्सिक दवाएं दी जाती हैं और स्ट्रेन को देखते हुए इलाज में एक से दो साल लग जाते हैं. संक्रमित व्यक्ति से भी एमडीआर-टीबी हो सकता है. विस्तृत दवा-रोधी टीबी, एमडीआर-टीबी की ही एक दुर्लभ किस्म है.
टीबी की आम दवाओं से कोई सुधार न होता देख, दक्षिण अफ्रीकी छात्रा टिसिले ने एमडीआर-टीबी का उपचार शुरू किया और हर रोज दवाएं खाईं और एक इंजेक्शन लिया. चार महीने के इलाज ने उन्हें दोनों कानों से बहरा कर दिया, जो इंजेक्शन से दी जाने वाली दवा कैनामाइसिन का साइड इफेक्ट था. अब इलाज में इसकी मनाही हो चुकी है. अपने शरीर में पहले लक्षणों के उभरने के करीब एक साल बाद, उसमें विस्तृत दवा-रोधी टीबी की पहचान हुई जो इस बीमारी का सबसे घातक रूप है. टिसिले को बताया गया कि उनके बचने की 20 प्रतिशत संभावना ही है.
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. दो कॉकलियर इम्प्लांट के बाद वो फिर से सुनने लगीं. टिसिले पढ़ाई की दुनिया में लौट आईं. 2020 के आखिर में केप टाउन यूनिवर्सिटी से वो सोशल साइंसेस की डिग्री के साथ निकलीं. वो अब टीबी की लड़ाई में एडवोकेट हैं और कम खतरनाक और कम विषैले उपचारों के लिए अभियान चलाकर लोगों को बीमारी के बारे में जागरूक करती हैं.
टीबी के और जटिल मामलों में इलाज न मिल पाना एक दूसरी समस्या है. रेगुलर टीबी का मरीज घर पर रहकर अपने लिए घरवालों से रोज दवाएं मंगा सकता है. लेकिन उज्मा खान के मुताबिक एमडीआर-टीबी का इलाज हर देश में अलग अलग है. वो कहती हैं, "एमडीआर-टीबी का मामला तो बिल्कुल ही अलग है. केयर डिलीवरी के मामले में बहुत ही केंद्रीकृत व्यवस्था है. लंबी दूरियां नापकर मरीजों को सेंटरों में इलाज के लिए आना पड़ता है, लैब टेस्ट कराने पड़ते हैं और हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है.”
शर्म और संकोच से छुटकारा
जब टिसिले टीबी अस्पताल में थीं, उन्होंने कोई भेदभाव नहीं महसूस किया, लेकिन जब वो मास्क पहनकर एक आम अस्पताल पहुंचीं तो उनके साथ अलग व्यवहार हुआ. टिसिले कहती हैं, "लोग बिना कुछ कहे भी आपके खिलाफ थे, ये दिखता था.”
टीबी मरीजों का इलाज और उनके पास आते जाते रहने से स्वास्थ्यकर्मियों को भी संक्रमण का खतरा रहता है. उज्मा खान का हाल में ऑक्युलर टीबी का इलाज चला था. ये फेफड़ों के बाहर होने वाला एक दुर्लभ किस्म का टीबी होता है. अपने इलाज के दौरान उन्हें समझ आया कि टीबी मरीजों पर क्या बीतती होगी. एक साल तक हर रोज उन्होंने दवाएं लीं जिनसे उनके जोड़ों में दर्द होने लगा.
टिसिले कहती हैं कि कोविड से मिले सबक टीबी में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, खासकर मास्क पहनने के मामले में. "टीबी के मरीजों को क्लिनिक और अस्पताल में मास्क पहनने में बहुत शर्म आती थी क्योंकि उन्हें डर था कि लोग उनसे छुआछूत करेंगे और उनके बारे में न जाने कितनी बातें बनाएंगे.”
वो मानती हैं कि लोगों को टीबी होने की शर्म में नहीं पड़ना चाहिए और जो भी आगे बढ़कर अपनी बात कह सके वो अच्छा है क्योंकि अगले व्यक्ति को उससे आसानी होगी. टिसिले कहती हैं, "मैं अब भी समझ नहीं पाती हूं कि लोग टीबी को इतनी अहम बीमारी की तरह नहीं देखते हैं. मैं जानती हूं कि इस पर गरीबों की बीमारी का तमगा लगा है लेकिन ये बात भी तो सच है कि सांस लेने वाले और जिंदा रहने वाले हर इंसान को टीबी हो सकता है.” (dw.com)
पाकिस्तान में कोविड-19 के मामलों की संख्या में गिरावट आ रही है क्योंकि पूरे देश में टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा है. हालांकि, टीके की पर्याप्त आपूर्ति न होने की वजह से समस्या बनी हुई है.
डॉयचे वैले हारून जंजुआ (इस्लामाबाद से) की रिपोर्ट-
पाकिस्तान के मुल्तान शहर की रहने वालीं 25 वर्षीय पत्रकार लाईबा जैनब ने 10 जून को कोरोना वायरस टीके की पहली खुराक ली. वह चीन के सिनोफार्म कोविड वैक्सीन की पहली खुराक ले रही थीं. इस मौके पर वह काफी उत्साहित दिखीं. उन्हें टीका लगवाने के लिए देश में टीकाकरण की शुरुआत के बाद पांच महीने तक का इंतजार करना पड़ा.
टीके की आपूर्ति में कमी और टीके को लेकर हिचकिचाहट की वजह से, इस साल पाकिस्तान में टीकाकरण अभियान की शुरुआत बेहद खराब रही. फरवरी महीने में, सिर्फ वरिष्ठ नागरिकों को ही टीका लगाने का निर्देश दिया गया था. हालांकि, पिछले महीने चीनी टीके आने के बाद, पाकिस्तान ने सभी व्यस्कों को टीका लगाने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया. इसके लिए ऑनलाइन सिस्टम बनाया गया.
देश के लोगों को टीका लगवाने के लिए सबसे पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है. टीके की उपलब्धता होने के बाद, टीका लगाने वाले को मेसेज के जरिए एक कोड मिलता है. इस कोड की मदद से, वे देश भर में फैले 2,000 टीकाकरण केंद्रों में से किसी एक पर जाकर टीका लगवा सकते हैं.
जैनब को टीका लगाने के लिए नंबर मिलने में कई सप्ताह लग गए. वह कहती हैं, "सरकार ने जब 18 साल या उससे ज्यादा के उम्र के लोगों को टीका लगाने की घोषणा की, उसके बाद से मैं हर दिन रजिस्ट्रेशन के लिए मेसेज करती थी. कभी-कभी एक दिन में दो या तीन बार तक.”
मई महीने में पूरे दक्षिण एशिया में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े. जैनब कहती हैं कि वह काफी सतर्क रहती थीं और टीका लगवाना काफी जरूरी हो गया था. वह कहती हैं, "टीका लगाने की प्रक्रिया काफी आसान थी और इसमें महज 20 मिनट लगे. मैं लोगों से आग्रह करती हूं कि वे टीका लगवाएं. मैंने सोशल मीडिया पर भी अपना अनुभव शेयर किया, ताकि टीका लगाने से जुड़ी अफवाह दूर हो सकें.”
तेज हुआ टीकाकरण अभियान
पाकिस्तान की कुल आबादी करीब 23 करोड़ है. इनमें से 1.3 करोड़ लोगों को टीके की पहली खुराक लग चुकी है. जुलाई महीने में दूसरी खुराक लगेगी. पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री फैसल सुल्तान ने डॉयचे वेले को बताया, "टीका लगाने की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. यह संख्या 4 लाख खुराक प्रतिदिन तक पहुंच चुकी हैं. हमें उम्मीद है कि यह रफ्तार और तेज होगी. हम एक दिन में 5 लाख लोगों को टीका लगा पाएंगे.”
स्वास्थ्य नीति और प्रबंधन के विशेषज्ञ और सरकारी चिकित्सक फरीहा इरफान ने डॉयचे वेले को बताया कि पाकिस्तान की सरकार ने टीकाकरण की व्यवस्था को बेहतर बनाया है और देश की जनता भी टीका लेने को लेकर जागरूक हुई है. वह कहती हैं, "कोरोना संक्रमण के मामले काफी कम हुए हैं. अब सरकार लोगों तक पहुंच रही है. इससे आम जनता के लिए टीका लगाना काफी सुविधाजनक हो जाएगा.”
पिछले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के मामलों में काफी कमी आई है. बीते सोमवार को 660 नए मामले दर्ज किए गए और 25 मौतें हुईं, जो पिछले आठ महीनों में सबसे कम है. सरकार ने इस साल के अंत तक 7 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
टीके की कमी
पिछले सप्ताह, पाकिस्तान में टीके की अस्थायी तौर पर कमी देखी गई. इससे यह चिंता बढ़ रही है कि लोगों को टीके की दूसरी खुराक लगने में देर हो सकती है. जैनब को उम्मीद है कि जुलाई महीने में उन्हें दूसरी खुराक लग जाएगी, लेकिन टीके की आपूर्ति में कमी के कारण उन्हें देर होने का डर है. बीते सोमवार को लाहौर में एस्ट्राजेनेका की खुराक में कमी को लेकर सैकड़ों लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया.
सरकारी चिकित्सक फरीहा इरफान कहती हैं, "टीके की खरीद के लिए काफी ज्यादा प्रतिस्पर्धा है और इसके लिए पैसे चाहिए होते हैं. एक संघर्षरत अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए पर्याप्त मात्रा में खुराक खरीद पाना मुश्किल है. पश्चिमी देश पहले से ही काफी मात्रा में टीके की खुराक खरीद चुके हैं और एडवांस ऑर्डर भी दे चुके हैं. इस वजह से कम विकसित देशों को टीका खरीदने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. आपूर्ति प्रभावित हो रही है.”
इस्लामाबाद में रहने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कमर चीमा ने डॉयचे वेले को बताया कि "सरकार ने टीकाकरण के लिए पर्याप्त व्यवस्था कर रखी है, लेकिन समय पर टीके की खरीद और आपूर्ति नहीं हो पा रही है.” वे आगे कहते हैं, "स्वास्थ्य व्यवस्था और चीनी टीकों के प्रति विश्वास की कमी भी समस्या की एक वजह है. सरकार को सभी प्रकार के टीके खरीदने चाहिए. हालांकि, यूरोपीय और पश्चिमी देश इस बात पर जोर देते हैं कि केवल उन लोगों को ही यूरोप की यात्रा करने की अनुमति दी जाएगी जिन्हें फाइजर, एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना या जॉनसन एंड जॉनसन के टीके लगाए गए हैं.”
स्वास्थ्य मंत्री सुल्तान ने कहा कि पाकिस्तान "चीन, अमेरिका, यूरोप और रूस सहित कई अन्य देशों से टीके खरीदने पर लगातार काम कर रहा है.” वह कहते हैं, "हमने फाइजर वैक्सीन की 1.3 करोड़ खुराक खरीदने का समझौता किया है. पाकिस्तान के भीतर एक चीनी वैक्सीन का आंशिक तौर पर उत्पादन भी शुरू कर दिया है.”
टीके को लेकर अफवाह
पाकिस्तान में टीकाकरण के खिलाफ मिथक और पोलियो का टीका लगाने से जुड़ी अफवाह फैलाने का एक लंबा इतिहास है. इन अफवाहों को बच्चे पैदा करने और पश्चिमी देशों की कथित साजिशों से जोड़ दिया जाता है. कोरोना के टीके को लेकर भी इसी तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं. इसमें कहा जा रहा है कि टीका लगाने से उनके शरीर पर बुरा असर पड़ेगा और पश्चिमी देश उनके ऊपर निगरानी रख सकेंगे. जैनब कहती हैं, "टीके को लेकर मैंने अपना अनुभव सोशल मीडिया पर शेयर किया, ताकि लोग जागरूक हो सकें और टीका लगवाने के लिए प्रेरित हों.”
स्वास्थ्य मंत्री सुल्तान ने कहा कि सरकार "विभिन्न चैनलों पर प्रचार-प्रसार के माध्यम से" वैक्सीन से जुड़ी अफवाहों को दूर कर रही है. वह कहते हैं, "जहां तक संभव हो, हम टीका लगाने के लिए लोगों तक पहुंच रहे हैं. हम शिक्षा, वाणिज्य, और सरकारी विभागों से जुड़े लोगों को अलग-अलग तरीकों से प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि वे टीका लगवाएं.”
हालांकि, कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के शुरुआती चरण में पाकिस्तानी अधिकारी बेहतर काम कर सकते थे. इरफान कहती हैं, "हमने कोविड को लेकर लोगों को अच्छे से जागरूक नहीं किया. यही वजह रही कि अधिकांश लोगों ने वायरस को तब तक गंभीरता से नहीं लिया जब तक कि वे खुद और उनके परिवार के लोग संक्रमित नहीं हो गए. लोगों को अधिक जागरूक करने के लिए हमें सामुदायिक नेताओं को शामिल करना चाहिए.” (dw.com)