अंतरराष्ट्रीय
जर्मनी में अचानक हुई भारी बरसात के नतीजे सामने आए तो पता चला वह आम बारिश नहीं, एक आपदा थी. बहुत से घर गिरे, गाड़ियां कीचड़ में डूबीं और दर्जनों की मौत हो गई. आखिर हुआ क्या?
डॉयचे वैले पर महेश झा की रिपोर्ट-
मैं सालों से जर्मनी में रह रहा हूं, लेकिन बहुत कम ऐसी बरसात देखी और एक बरसात से हुआ ऐसा नुकसान तो मुझे याद ही नहीं है. जर्मनी के जो दो राज्य बरसात और उसके बाद आई बाढ़ से प्रभावित हैं, वे पहाड़ी इलाके हैं. वहां खेत हैं, जंगल हैं, छोटे छोटे पहाड़ी नाले हैं और नदियां हैं. पहाड़ी इलाकों में जब तेज बरसात होती है तो पानी तेजी से नीचे की ओर जाता है और अक्सर अपने साथ मिट्टी भी काटता जाता है.
ऐसी ही बरसात बुधवार को हुई. पहले तेज हवाओं की आहट, फिर हल्की हल्की बरसात और फिर तड़तड़ाती बारिश. और कुछ देर में ऊपर से नीचे आते पानी की रफ्तार बढ़ने लगी. छोटी धारा हो, नाला या नदी, सबसे पानी बढ़ने लगा और कुछ देर के बाद पानी सैलाब बन किनारे को भरने लगा और फिर घरों में घुसने लगा. सेलर डूब गए, वहां आम तौर पर रहने वाली हीटिंग की मशीनें और स्टोर का सामान भी. कई जगहों पर इस पानी में बिजली का करंट भी था. अधिकारियों ने ये चेतावनी देनी शुरू की कि वाशिंग मशीन में कपड़े न धोएं. सीवर में बाढ़ का मटमैला पानी भरा था, चेतावनी में यह भी कहा गया कि घर में अगर पानी भरा है, तो उसमें न दाखिल न हों, बिजली का करंट हो सकता है.
हुआ एक अलग तरह का अनुभव
और मुझे याद आ रहा था अपना बचपन. कितना खेला करते थे हम बरसात में और बरसात के पानी में. स्कूल का मैदान तो अक्सर बरसात में भर जाया करता था. कभी चिंता नहीं की कि उस पानी में न जाएं. बिजली उस जमाने में हर जगह हुआ ही नहीं करती थी, इसलिए करंट की चिंता करने की जरूरत नहीं थी. लेकिन फिर भी बरसात की सोच मेरे लिए इतनी खौफनाक कभी नहीं रही, जितनी पिछले दो दिन की घटनाओं को सुनने के बाद हो गई है.
पटना में पढ़ाई के दौरान अक्सर गंगा में पानी को बढ़ते, चढ़ते और उफनते देखा था. जर्मनी में गंगा जैसी कोई नदी नहीं. यहां की सबसे बड़ी नदी राइन है जो बॉन से होकर बहती है और आपने हमारे वीडियो में उसे अक्सर देखा भी होगा. बुधवार की बरसात के बाद तो हमेशा शांत रहने वाली नदियों का नजारा ही कुछ और था. बारिश से आने वाली मिट्टी की वजह से मटमैला रंग बिल्कुल जुलाई अगस्त की गंगा नदी के पानी जैसा. और तेज बरसात के कारण बदहवासी और उच्श्रृंखलता कोशी जैसी.
चूंकि जर्मनी में आम तौर पर ऐसी बरसात नहीं होती, इसलिए पहाड़ों पर घर बने हैं. जहां मोहल्ले बसे हैं, वहां तो पानी की निकासी का इंतजाम है, लेकिन निचले इलाकों में बसे घरों को खतरा तो रहता ही है. देहाती इलाकों में जहां छोटी छोटी बस्तियां हैं, वहां पानी की निकासी का पुख्ता इंतजाम नहीं. इसीलिए जब बुधवार की रात बरसात हुई तो नीचे की ओर जाते हुए पानी ने सारे बंधन तोड़ दिए. तेज पानी ने सड़कों को तोड़ दिया और उसके साथ आए कीचड़ ने बहुत से रास्तों को बंद भी कर दिया. बरसात ने क्या किया इसका पता बहुत से लोगों को गुरुवार सुबह चला. कुछ इलाकों में तो 24 घंटे में प्रति वर्गमीटर 158 लीटर पानी बरसा. अब संभालिए इस पानी को.
बहुत से शहर डूब गए, कई शहरों में मकानों के सेलर में पानी भर गया. कुछ मौतें तो मकान के जमीन के नीचे वाले माले में भरे पानी में बिजली के करंट से हुईं. कई घर गिर गए. बहुत से लोग लापता भी हैं. जर्मनी में इस समय स्कूलों में छुट्टियां चल रही हैं, बहुत से लोग छुट्टी पर निकले हुए हैं. इसलिए राहतकर्मी ये पता करने में लगे हैं कि लापता लोग बाढ़ का शिकार हुए हैं या कहीं और छुट्टियां बिता रहे हैं. सबसे बारे में पता चलने में समय लगेगा. तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी और उसके साथ एक अजीब तरह का अहसास भी.
आपदा तो आपदा है, भले ही मदद मिले
लोग सकते में हैं. जो लोग बाढ़ से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं, वे तो परेशान हैं ही, जो लोग सीधे प्रभावित नहीं हुए हैं, वे भी ये सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसा हुआ क्यों? सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं लोगों की मदद करने में लगी हैं. पुलिस और फायर ब्रिगेड तो हैं ही फौरी मदद के लिए, जर्मनी में तैराकों की संस्था जर्मन जीवन रक्षा संघ के सदस्य भी मदद कर रहे हैं. लोगों को अपना घर छोड़कर इमरजेंसी शेल्टर में रहना पड़ रहा है. बहुत से लोगों को पता नहीं कि उनके घर की क्या हालत है और वे वहां कब लौट पाएंगे. असुरक्षा और अनिश्चितता का माहौल लोगों का चैन छीन रहा है.
दुनिया में हर जगह मौसम का मिजाज बदल रहा है. जर्मनी में भी पिछले सालों में तेज बरसात होने लगी है या अचानक तूफान आने लगा है. लोग भी इस पर बंटे हुए हैं. पर्यावरण की चिंता करने वालों का मानना है कि इसका बहुत कुछ जलवायु परिवर्तन से लेना देना है. ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम चक्र पर भी हो रहा है. जिन लोगों को पुरानी बातें याद रहती हैं, वे कहेंगे कि ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं. घटनाओं की याद उसके आयाम और उससे पड़े प्रभाव से जुड़ी होती है. हर घटना का असर एक जैसा नहीं होता इसलिए उसकी छाप भी अलग होती है. लेकिन ये तय है कि तूफान या अचानक तेज बरसात जैसी घटनाएं अक्सर होने लगी हैं.
जलवायु परिवर्तन को रोकना जरूरी
हर कोई पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को रोकने की बात कर रहा है, लेकिन अगर आसपास देखिए और पूछिए कि उसके लिए हो कितना कुछ रहा है तो पता लगेगा कि शायद कुछ भी नहीं. हम अपनी जिंदगी जिए जा रहे हैं और लगातार उसे आसीन बनाने में लगे हैं, दूसरों की कीमत पर, भले ही उसका नाम पर्यावरण क्यों न हो. जर्मनी में कहर बरपाने वाला लो प्रेशर एरिया बैर्न्ड था. वह काफी समय तक एक ही इलाके में जमा हुआ था.
मौसमविज्ञानी ठीक से बताएंगे कि हाई और लो प्रेशर एरिया को पश्चिम से पूरब की ओर ले जाने वाली जेट स्ट्रीम लगातार कमजोर क्यों होती जा रही है. लेकिन ये हकीकत है. धरती के उत्तर और दक्षिणी हिस्से के तापमान की अंतर लगातार कम होता जा रहा है, और यही जेट स्ट्रीम को हवा देता रहा है. जेट स्ट्रीम कमजोर होगी और ये लो प्रेशर वाले बैर्न्ड को खदेड़ नहीं पाएगी तो उस जगह पर बरसात होगी और तेज बरसात के झटके लंबे समय तक होने वाली बरसात में बदल जाएंगे.
अब समय आ गया है कि जल्द से जल्द धरती को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करने के कदम उठाए जाएं. सरकारें सालों से गपशप और विचार विमर्श करने में लगी हैं और अपने अपने फायदे की सोच रही हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ग्लोबल है, वह सिर्फ एक इलाके को गर्म नहीं कर रही है. सरकारों पर भी अब दबाव बनाने की जरूरत है. विकास के नाम पर पर्यावरण की चिंता नहीं की जाती, लेकिन उस विकास का क्या जिसके बाद इंसान ही न रहे. सरकारों को अपना काम करने दीजिए, हमें अपना काम करना चाहिए. यानि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का काम. (dw.com)
जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा की उड़ानों में अब किसी को "देवियो और सज्जनो" जैसे शब्द नहीं सुनाई पड़ेंगे. कंपनी ने यात्रियों को महिला और पुरुष के नजरिए से देखना बंद कर दिया है.
डॉयचे वैले पर आशुतोष पाण्डेय की रिपोर्ट-
"लेडीज एंड जेंटलमैन, विमान में आपका स्वागत है" जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा लैंगिक पहचान को संबोधित करने वाली ऐसी भाषा इस्तेमाल अब नहीं करेगी. एनाउंसमेंट के लिए तटस्थ शब्दों का प्रयोग किया जाएगा. यह बात लुफ्थांसा ग्रुप की सभी एयरलाइनों पर लागू होगी यानि ऑस्ट्रियन एयरलाइंस, स्विस और यूरोविंग्स भी तटस्थ एनाउंसमेंट करेंगे.
डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कंपनी की प्रवक्ता आन्या स्टेंगर ने कहा कि विविधता कोई लफ्फाजी नहीं है, लुफ्थांसा के लिए यह हकीकत है, "अब से हम अपनी भाषा में भी इस रुख को जाहिर करेंगे."
लुफ्थांसा के क्रू मेम्बर अब "डियर गेस्ट्स," "गुड मॉर्निंग/इवनिंग" या "वेलकम ऑन बोर्ड" जैसी शब्दावली प्रयोग करेंगे. यात्रियों को कैसे संबोधित किया जाए, इसका फैसला विमान में मौजूद चालक दल के सदस्य करेंगे. क्रू मेम्बरों को मई में इसकी जानकारी दे दी गई थी. बदलाव को तुरंत अमल में लाया गया.
अलेक्जांड्रा शीले जर्मनी की बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी में समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र की विशेषज्ञ हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह कदम सांकेतिक स्तर पर काम करता है. इसे 'लैंगिक-संवेदनशीलता' वाले कदम के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो सिर्फ दो लिंगों वाली सोच पर सवाल उठाता है."
ऐसी लिंग व्यवस्था से अलग सोचने वाले लोगों का हवाला देते हुए शीले ने कहा, "ऐसे लोग जो खुद को पुरुष/महिला से इतर देखते हैं और वे लोग भी जो द्विलिंगी सिस्टम पर सवाल उठाते हैं, उनके लिए भी 'लेडीज एंड जेंटलमैन/महिलाओं और पुरुषों' के बिना एनाउंसमेंट बेहतर हो सकती है."
लिंग रहित भाषा क्या है?
लुफ्थांसा ने लिंग की पहचान बताने वाली भाषा से परे ले जाने वाली जुबान का इस्तेमाल ऐसे समय में शुरू किया है, जब ज्यादा से ज्यादा संस्थाएं और कंपनियां जेंडर को लेकर संवेदनशील हो रही हैं. यूएन और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी संस्थाओं ने भी अपने काम काज में लिंग रहित भाषा की गाइडलाइंस अपनाई हैं.
यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वैलिटी की परिभाषा के मुताबिक, लिंग तटस्थ भाषा, "एक ऐसी भाषा है जो किसी लिंग से संबंधित न हो और वह महिला और पुरुष के चश्मे के बजाए लोगों को इंसान के रूप में देखे."
यूरोपीय संसद भी भाषा में लैंगिक तटस्थता को लेकर एक हैंडबुक जारी कर चुकी है. उस किताब के मुताबिक, "लिंग-समावेशी भाषा राजनीतिक रूप सही होने से कहीं ज्यादा बड़ा विषय है." 2018 में रिलीज की गई यह किताब कहती है, "लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा का मकसद उन शब्दों के चुनाव से बचना है जो किसी इंसान के सेक्स या सोशल जेंडर को आधार बनाते हुए शायद पक्षपाती, भेदभावपूर्ण और अपमानजनक हो सकते है."
जर्मन भाषा में ज्यादातर पेशों में लिंग की पहचान स्पष्ट तौर पर जाहिर करने वाले नाम है. पुरुष डॉक्टर को जर्मन में "आर्त्स्ट" कहा जाता है तो महिला डॉक्टर के लिए "आर्त्स्टिन" शब्द इस्तेमाल होता है. "स्टूडेंट" का अर्थ पुरुष छात्र से होता है और "स्टूडेंटिन" महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. तटस्थ भाषा के समर्थक कहते हैं कि लिंग सूचक नाम उन लोगों के साथ खिलवाड़ है, जो नहीं चाहते कि उन्हें सिर्फ पुरुष या महिला के रूप में पहचाना जाए. लिंग सूचक भाषा को वह सेक्सिट धारणा को मजबूत करने वाली मानते हैं. विरोधियों के मुताबिक व्याकरण में बदलाव भाषा पर हमला है.
सांकेतिक कदम काफी नहीं
अमेरिकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड मोटर्स ने जुलाई 2021 की शुरुआत में अपने नियमों में बदलाव कर लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा अपना ली. इसके बाद कंपनी "चेयरमैन" शब्द के बजाए "चेयर" कहा और लिखा करेगी.
अलेक्जांड्रा शीले कहती हैं कि लैंगिक रूप से संवेदनशील भाषा जैसे सांकेतिक कदम लैंगिक समानता के लिए जागरूकता को और ज्यादा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. संस्थानों के भीतर भी ज्यादा व्यावहारिक कदम उठने की जरूरत है.
वह कहती हैं, "संस्थानों में किस स्तर पर अलग अलग लिंगों का प्रतिनिधित्व कम है, किए गए काम को कैसे आंका जाता है और भुगतान कैसे होता है, इसकी समीक्षा करना अहम है. संस्थानों को एक ऐसी संस्कृति विकसित करने की जरूरत है जिसमें भेदभाव वाले कदम सार्वजनिक हों या फिर दिखें ही नहीं."
शीले की मांग है कि अगर किसी कंपनी में लिंग विशेष का प्रतिनिधित्व कम है तो उसे बढ़ाने के लिए कोटे का इस्तेमाल करना चाहिए. भेदभाव, काम को कमतर आंकने और अनुचित वेतन ढांचे से लड़ने के लिए कंपनियों को जेंडर ट्रेनिंग की शुरुआत करनी चहिए. (dw.com)
अंतरिक्ष यात्रा की दुनिया में अगले हफ्ते एक और अध्याय जुड़ेगा जब अमेरिकी उद्योगपति जेफ बेजोस उड़ान भरेंगे. लेकिन इस विमान में कोई पायलट नहीं होगा.
अंतरिक्ष में जाने के मामले में भले ही जेफ बेजोस को ब्रिटिश प्रतिद्वन्द्वी रिचर्ड ब्रैन्सन ने पछाड़ दिया हो, लेकिन अगले हफ्ते वह इतिहास बनाने जा रहे हैं जब दुनिया का पहला बिना पाइलट का विमान उड़ान भरेगा. एमेजॉन के पूर्व सीईओ जेफ बेजोस मंगलवार को अंतरिक्ष के छोर को छूने के लिए निकलेंगे तो उनकी कंपनी ब्लू ऑरिजन का न्यू शेपर्ड विमान अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर रखेगी. विमान में चालक दल के चार सदस्य तो होंगे लेकिन उनमें से पायलट कोई नहीं होगा.
11 मिनट लंबी इस उड़ान में जेफ बेजोस के साथ उनके भाई और उद्योगपति मार्क बेजोस, पूर्व पायलट 80 वर्ष से ऊपर की वॉली फंक और एक किशोर होगा. 60 फुट ऊंचा न्यू शेपर्ड एक पूरी तरह स्वचालित रॉकेट विमान है जिसे भीतर से नहीं चलाया जा सकता. इसलिए चालक दल में सारे नागरिक हैं और ब्लू ओरिजिन का कोई कर्मचारी या अंतरिक्ष यात्री इसमें सवार नहीं होगा.
कोई अंतरिक्ष यात्री नहीं
ब्लू ओरिजिन के अंतरिक्ष यात्री नासा के साथ काम कर चुके निकोलस पैट्रिक भी इस विमान में सवार नहीं होंगे. बेजोस कहते हैं कि अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखने के बाद इस ग्रह के साथ आपका रिश्ता बदल जाता है, इन्सानियत के साथ आपका रिश्ता बदल जाता है. अंतरिक्ष उद्योग के विश्लेषक टील ग्रूप मार्को केसर्स कहते हैं कि ऐसा पहली बार होगा जब एक पूरी तरह स्वचालित रॉकेट, बिना पायलट के उड़ान भरेगी.
पिछले हफ्ते ही रिचर्ड ब्रैन्सन ने अपनी कंपनी वर्जिन गैलक्टिक के रॉकेट विमान में अंतरिक्ष की यात्रा की है. रविवार को न्यू मेक्सिको स्थित हवाई अड्डे से उनके रॉकेट ने उड़ान भरी थी और एक घंटे से ज्यादा समय की यात्रा की. उस विमान में दो पायलटों के अलावा अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग देने वाले एक प्रशिक्षक और इस अभियान के मुख्य इंजीनियर भी शामिल थे.
न्यू शेपर्ड उड़ान के तरीके के लिहाज से भी वर्जिन गैलक्टिक से अलग है. वर्जिन गैलक्टिक एक रॉकेट के सहारे चलने वाले अंतरिक्ष यान था जिसे कैरियर प्लेन ने हवा में ले जाकर लॉन्च किया था. न्यू शेपर्ड रॉकेट की तरह खड़ा होगा और सीधे उड़ान भरेगा. वर्जिन गैलक्टिक की तरह न्यू शेपर्ड पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं करेगा बल्किन यात्रियों को लगभग 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाएगा. वहां से कैपस्यूल पैराशूट के सहारे वापसी करेगा. वर्जिन गैलक्टिक 86 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया था.
21 साल का सफर
ब्लू ओरिजिन को निर्माण में दो दशक का वक्त लगा है. बेजोस ने 2000 में इस कंपनी की स्थापना की थी. कई साल पहले कंपनी ने फैसला किया कि वह अपने अभियान के लिए बिना पायलट के उड़ने वाला विमान इस्तेमाल करेंगे. कंपनी की सोच से परिचित एक व्यक्ति के मुताबिक उनका गणित बहुत साधारण है. वह कहते हैं, "अगर आप ऐसा सिस्टम बनाते हैं कि आपको पायलट या सह पायलट की जरूरत न पड़े, तो जाहिर है आप ऐसे ज्यादा यात्री ले जा पाएंगे जो टिकट के लिए पैसे देंगे.”
न्यू शेपर्ड में थह यात्री यात्रा कर सकते हैं. अंतरिक्ष यात्रा से पहले सवारियों को दो दिन का प्रशिक्षण दिया जाएगा. इन यात्रियों को विमान में बिठाने आदि के लिए दो कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है जो हर तरह की परिस्थितियों को लिए यात्रियों को तैयार करेंगे. कैसर्स कहते हैं, "यह किसी मनोरंजन पार्क में झूले की सवारी करने जैसा है. आप बस भरोसा करते हैं कि सब कुछ जांच लिया गया होगा और ठीक ठाक है. बस फिर आप बैठते हैं और राइड का आनंद लेते हैं.” (dw.com)
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत ने एक फैसले में कहा है कि कंपनियां कुछ परिस्थितियों में कर्मचारियों को हिजाब पहनने से रोक सकती हैं. हिजाब के मुद्दे ने पूरे यूरोप में तीखे विवाद को जन्म दिया है.
यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि कंपनियां कुछ शर्तों के तहत कर्मचारियों को सिर ढकने के लिए हिजाब पहनने पर रोक लगा सकती हैं. जर्मनी की दो मुस्लिम महिलाओं को कार्यस्थल पर हिजाब पहनने पर निलंबित कर दिया गया था. इन दोनों महिलाओं ने इसे कोर्ट में चुनौती दी थी.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "कार्यस्थल में राजनीतिक, दार्शनिक या धार्मिक विश्वासों की अभिव्यक्ति के किसी भी प्रत्यक्ष रूप को पहनने पर प्रतिबंध को नियोक्ता द्वारा ग्राहकों के प्रति एक तटस्थ छवि पेश करने या सामाजिक विवादों को रोकने की आवश्यकता से उचित ठहराया जा सकता है."
दोनों महिलाओं को अल्टीमेटम
मुस्लिम महिलाओं में से एक धर्मार्थ द्वारा संचालित हैम्बर्ग में एक चाइल्डकेयर सेंटर में विशेष देखभालकर्ता के रूप में काम करती है. दूसरी महिला दवा की दुकान में कैशियर है.
अपनी नौकरी शुरू करने के समय उन्होंने हिजाब नहीं पहना था, लेकिन पैरेंटल लीव से वापस आने के वर्षों बाद उन्होंने ऐसा करने का फैसला किया.
अदालत के दस्तावेजों से पता चलता है कि महिलाओं को उनके संबंधित नियोक्ताओं द्वारा बताया गया था कि इसकी अनुमति नहीं है. और अलग-अलग बिंदुओं पर या तो निलंबित कर दिया गया था फिर बिना सिर ढके काम पर आने के लिए कहा गया था. उन्हें अलग काम पर भी रखा गया.
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने केयर सेंटर की कर्मचारी के मामले में कहा कि उसके मामले में सिर ढकने से रोकने वाला नियम सामान्य तरीके से लागू किया गया था क्योंकि नियोक्ता ने एक ईसाई कर्मचारी को धार्मिक चिह्न क्रॉस को हटाने को भी कहा था.
दोनों मामलों में फैसला अब राष्ट्रीय अदालतों पर निर्भर करेगा कि कोई भेदभाव हुआ है या नहीं, और वही अंतिम फैसला सुनाएगा.
मुस्लिम महिलाओं द्वारा सिर पर पारंपरिक हिजाब पहनने को लेकर पिछले कुछ सालों में पूरे यूरोप में विवाद छिड़ गया है, जो मुसलमानों को एकीकृत करने पर तीखे विभाजन को रेखांकित करता है.
इस फैसले के बाद मुसलमानों के बीच भारी प्रतक्रिया देखने को मिल रही है.(dw.com)
एए/ (रॉयटर्स, डीपीए)
उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान शुक्रवार को अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ बैठक करेंगे और हो सकता है कि उन्हें सम्मेलन के लिए न्योता दें.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
पाकिस्तान ने 17-19 जुलाई से तीन दिवसीय अफगान शांति सम्मेलन की मेजबानी करने की घोषणा की है. दूसरी ओर तालिबान का कहना है कि उन्हें प्रस्तावित शांति सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान पड़ोसी मुल्क में शांति के प्रयासों को नई गति देने के लिए अफगानिस्तान पर तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने प्रस्तावित अफगान शांति सम्मेलन को स्थगित करने की खबरों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि कई अफगान नेताओं ने सम्मेलन में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है.
इससे पहले सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से फोन पर बातचीत की और उन्हें सम्मेलन में शामिल होने का न्योता दिया.
तालिबान को न्योता नहीं?
अफगानिस्तान के तोलो न्यूज के मुताबिक अब्दुल्ला अब्दुल्ला, करीम खलीली, मोहम्मद यूनुस कानूनी, गुलबुद्दीन हिकमतयार, मोहम्मद हनीफ अतमार, सलाहुद्दीन रब्बानी, इस्माइल खान, अता मोहम्मद नूर, सैयद हमीद गिलानी, सैयद इशाक गिलानी, बत्तूर दोस्तम और मीरवाइज यासिनी समेत 21 प्रमुख अफगान नेता इस्लामाबाद में सम्मेलन के लिए आमंत्रित किए गए हैं. चौधरी के मुताबिक कई नेताओं ने पहले ही सम्मेलन में शामिल होने की पुष्टि कर दी है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी इस वक्त उज्बेकिस्तान में हैं और दोनों नेताओं के बीच शुक्रवार को क्षेत्रीय संपर्कों पर बैठक तय है. इमरान गनी को अफगान शांति सम्मेलन के लिए न्योता भी दे सकते हैं.
हालांकि तालिबान के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया है कि आमंत्रितों में उन्हें शामिल नहीं किया गया है. प्रवक्ता का कहना है कि वे पहले ही कई बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं और शांति प्रक्रिया पर विस्तृत चर्चा कर चुके हैं.
पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता चाहता है. चौधरी के मुताबिक, "पाकिस्तान भविष्य में भी इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, अंत में अफगानों को ही अपने भविष्य के बारे में फैसला करना है."
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका
पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में वर्चस्व के लिए लड़ रहे तालिबान की मदद करने के प्रयास करने के आरोप लगते रहे हैं और आगामी सम्मेलन उस धारणा को शांत करने का एक प्रयास नजर आता है.
पाकिस्तान ने ऐसे समय में शांति सम्मेलन की घोषणा की है जब अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है और तालिबान ने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा करने का दावा किया है. तालिबान ने एक दिन पहले पाकिस्तानी सीमा के पास स्पिलन बोलदाक जिले पर कब्जा कर लिया था.
इस बीच एक अफगान अधिकारी ने कहा कि गुरुवार को पश्चिमी प्रांत में स्थानीय तालिबान नेताओं के साथ संघर्ष विराम हो गया है. तालिबान के लड़ाकों ने इस इलाके पर धावा बोल दिया था. बादगीस के गवर्नर हेसामुद्दीन शम्स ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच संघर्षविराम आज सुबह (15 जुलाई) करीब 10 बजे शुरू हुआ. संघर्षविराम की मध्यस्थता कबायली बुजुर्गों ने की थी." (dw.com)
उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान शुक्रवार को अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ बैठक करेंगे और हो सकता है कि उन्हें सम्मेलन के लिए न्योता दें.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
पाकिस्तान ने 17-19 जुलाई से तीन दिवसीय अफगान शांति सम्मेलन की मेजबानी करने की घोषणा की है. दूसरी ओर तालिबान का कहना है कि उन्हें प्रस्तावित शांति सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान पड़ोसी मुल्क में शांति के प्रयासों को नई गति देने के लिए अफगानिस्तान पर तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने प्रस्तावित अफगान शांति सम्मेलन को स्थगित करने की खबरों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि कई अफगान नेताओं ने सम्मेलन में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है.
इससे पहले सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से फोन पर बातचीत की और उन्हें सम्मेलन में शामिल होने का न्योता दिया.
तालिबान को न्योता नहीं?
अफगानिस्तान के तोलो न्यूज के मुताबिक अब्दुल्ला अब्दुल्ला, करीम खलीली, मोहम्मद यूनुस कानूनी, गुलबुद्दीन हिकमतयार, मोहम्मद हनीफ अतमार, सलाहुद्दीन रब्बानी, इस्माइल खान, अता मोहम्मद नूर, सैयद हमीद गिलानी, सैयद इशाक गिलानी, बत्तूर दोस्तम और मीरवाइज यासिनी समेत 21 प्रमुख अफगान नेता इस्लामाबाद में सम्मेलन के लिए आमंत्रित किए गए हैं. चौधरी के मुताबिक कई नेताओं ने पहले ही सम्मेलन में शामिल होने की पुष्टि कर दी है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी इस वक्त उज्बेकिस्तान में हैं और दोनों नेताओं के बीच शुक्रवार को क्षेत्रीय संपर्कों पर बैठक तय है. इमरान गनी को अफगान शांति सम्मेलन के लिए न्योता भी दे सकते हैं.
हालांकि तालिबान के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया है कि आमंत्रितों में उन्हें शामिल नहीं किया गया है. प्रवक्ता का कहना है कि वे पहले ही कई बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं और शांति प्रक्रिया पर विस्तृत चर्चा कर चुके हैं.
पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता चाहता है. चौधरी के मुताबिक, "पाकिस्तान भविष्य में भी इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, अंत में अफगानों को ही अपने भविष्य के बारे में फैसला करना है."
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका
पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में वर्चस्व के लिए लड़ रहे तालिबान की मदद करने के प्रयास करने के आरोप लगते रहे हैं और आगामी सम्मेलन उस धारणा को शांत करने का एक प्रयास नजर आता है.
पाकिस्तान ने ऐसे समय में शांति सम्मेलन की घोषणा की है जब अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है और तालिबान ने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा करने का दावा किया है. तालिबान ने एक दिन पहले पाकिस्तानी सीमा के पास स्पिलन बोलदाक जिले पर कब्जा कर लिया था.
इस बीच एक अफगान अधिकारी ने कहा कि गुरुवार को पश्चिमी प्रांत में स्थानीय तालिबान नेताओं के साथ संघर्ष विराम हो गया है. तालिबान के लड़ाकों ने इस इलाके पर धावा बोल दिया था. बादगीस के गवर्नर हेसामुद्दीन शम्स ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच संघर्षविराम आज सुबह (15 जुलाई) करीब 10 बजे शुरू हुआ. संघर्षविराम की मध्यस्थता कबायली बुजुर्गों ने की थी." (dw.com)
गुरुवार को वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से मुलाकात की, जो पद पर रहते हुए दोनों नेताओं की संभवतया अंतिम मुलाकात थी.
बतौर चांसलर अपनी अंतिम अमेरिका यात्रा पर मैर्केल वॉशिंगटन में हैं. गुरुवार को दोनों नेताओं ने रूस के साथ एक पाइपलाइन योजना पर अपनी-अपनी असहमतियों के बावजूद कई मुद्दों पर सहमत होने की बात कही.
अमेरिका रूस के पाइपलाइन प्रोजेक्ट का विरोध करता है जबकि जर्मनी समर्थन. हालांकि दोनों नेताओं ने कहा कि वे रूस के आक्रामक और चीन के लोकतंत्र विरोधी रवैये के विरोध में साथ खड़े होंगे.
राजनीति से संन्यास लेने से पहल अपने आखिरी दौरे पर व्हाइट हाउस पहुंचीं मैर्केल की बाइडेन ने जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि मैर्केल की जिंदगी जर्मनी की और दुनियाभर की अभूतपूर्व सेवा की एक मिसाल है.
अमेरिका की पिछली सरकार में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते दोनों देशो के संबंधों में काफी खटास आ गई थी. लेकिन इस जनवरी में बाइडेन के पद संभालने के बाद से दोनों नेताओं ने पुरानी खाइयों को पाटने की कोशिश की है.
बाइडेन के पद संभालने के बाद व्हाइट हाउस का दौरा करने वालीं मैर्केल पहली यूरोपीय नेता हैं. उन्होंने कहा, "मैं मित्रता का सम्मान करती हूं."
असहमतियां
भले ही अमेरिका और जर्मनी पुराने सहयोगी हैं, लेकिन बदले भू-राजनीतिक हालात में दोनों पक्षों की असहमतियां स्पष्ट दिखाई दीं. खासकर नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को लेकर. रूस की यह पाइपलाइन बाल्टिक सागर के नीचे से रूस से जर्मनी तक बनाई जा रही है.
अमेरिका इस योजना को लेकर उत्साहित नहीं है क्योंकि उसे डर है कि रूस इसे यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. 11 अरब अमेरिकी डॉलर की यह योजना सितंबर में पूरी होने की संभावना है. हालांकि यह यूक्रेन के कुछ दूर से निकलेगी, जिस कारण उसे शुल्क नहीं मिलेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोहराया कि उन्होंने जर्मनी के खिलाफ प्रतिबंध लगाने से इसलिए परहेज किया क्योंकि योजना अब पूरी होने ही वाली है. बाइडेन के इस फैसले की विपक्षी रिपब्लिकन के अलावा उनकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने भी आलोचना की थी.
बाइडेन ने कहा कि वह और मैर्केल इस बात पर एकमत हैं कि रूस को ऊर्जा का इस्तेमाल एक भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, "अच्छे दोस्त असहमत भी हो सकते हैं. पूर्वी यूरोप में नाटो सहयोगियों के खिलाफ रूस के आक्रामक रवैये के खिलाफ हम साथ खड़े हैं और खड़े रहेंगे."
जर्मनी और अमेरिका चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर भी अलग-अलग मत रखते हैं. जर्मनी चीन के साथ व्यापार को लेकर उत्सुक है जबकि अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगाकर चीन के खिलाफ कड़ा रुख जाहिर किया है.
मैर्केल ने भी असहमतियों का जिक्र किया लेकिन दोनों देशों के बीच सहमति और एकता पर जोर दिया. उन्होंन कहा, "हम सबके मूल्य समान हैं, अपने वक्त की चुनौतियों के प्रति हम सबकी प्रतिबद्धता समान है."
रिश्तों की गहराई
78 वर्षीय बाइडेन और 66 वर्षीय मैर्केल के पास दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के लिए ज्यादा साझा वक्त नहीं है. 2005 से चांसलर मैर्केल इस सितंबर में पद छोड़ रही हैं और राजनीति से संन्यास ले रही हैं.
सितंबर में जर्मनी में आम चुनाव होंगे. सर्वेक्षण कहते हैं कि मैर्केल की पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रैट्स को बढ़त मिलनी तय है लेकिन सरकार बनाने के लिए गठबंधन में वह किसे शामिल करेगी, यह अभी तय नहीं है. बाइडेन की डेमोक्रैटिक पार्टी के पास अमेरिकी कांग्रेस में कमजोर बहुमत है जिसे वह अगले साल होने वाले चुनावों में खो भी सकती है.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की सरकार में जर्मनी में राजदूत रहे जॉन एमरसन कहते हैं कि अमेरिका के लिए जर्मनी एक बहुत जरूरी सहयोगी है क्योंकि वह न सिर्फ नाटो सहयोगी और यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है बल्कि रूस, मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका के साथ संपर्कों और संबंधों में एक अहम पुल का काम भी करता है. जर्मनी में अमेरिका का सैन्य अड्डा भी है जहां 36 हजार सैनिक हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)
लेबनान के मनोनीत प्रधानमंत्री साद हरीरी ने नौ महीने के राजनीतिक गतिरोध के बाद राष्ट्रपति के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए अपना पद छोड़ दिया है.
वो संकटग्रस्त लेबनान में सरकार बनाने में असफल रहे.
बुरी तरह आर्थिक संकट और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी क़र्ज़ नहीं मिलने के बीच हरीरी का यूं पद छोड़ना, संकटग्रस्त लेबनान के लिए और मुश्किलें बढ़ा सकता है.
पद छोड़ने से पहले हरीरी ने कहा कि यह स्पष्ट था कि वह राष्ट्रपति माइकल इयोन के साथ कैबिनेट पदों को लेकर सहमत नहीं हो पाएंगे.
पिछली सरकार ने अगस्त में बेरूत में हुए भीषण विस्फोट के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था. इस हादसे में 200 लोग मारे गए थे.
उस वक़्त से ही लेबनान गंभीर आर्थिक मंदी से जूझ रहा है और अब स्थिति और भी बदतर हो गई है.
लेबनान की मुद्रा पूरी तरह से बिखर गई है और उसकी क़ीमत कौड़ी के भाव हो गई है जिसके कारण महंगाई इस क़दर बढ़ चुकी है कि लोग अपने लिए खाना तक मुश्किल से ख़रीद पा रहे हैं. साथ ही ईंधन, बिजली और दवा की आपूर्ति भी कम हो रही है.
विश्व बैंक ने लेबनान की मौजूदा स्थिति के लिए लेबनान के राजनेताओं को ज़िम्मेदार ठहराया है कि वे ही आगे के रास्ते के लिए सहमत नहीं हुए.
दूसरे देशों ने लेबनान को तब तक के लिए सहायता देने से इनकार कर दिया है, जब तक वहां कोई नई सरकार नहीं बन जाती, जो सुधारों को लागू कर सके और भ्रष्टाचार से निपट सके.
साद हरीरी को संसद के सदस्यों ने पिछले अक्टूबर में एक नई सरकार बनाने के लिए नामित किया गया था. महज़ एक साल के भीतर ही उन्होंने आर्थिक संकट के कारण हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच अपने पद को छोड़ दिया है.
पश्चिमी समर्थक सुन्नी मुस्लिम राजनेता ने वादा किया था कि वह बहुत जल्दी ही टेक्नोक्रेट्स या ग़ैर-पक्षपातपूर्ण जानकारों की एक कैबिनेट बनाएंगे और वो सुधारों को लागू करेगी.
लेकिन ईरान समर्थित चरमपंथी शिया हिज़्बुल्लाह आंदोलन के ईसाई सहयोगी राष्ट्रपति माइकल इयोन ने हरीरी के कई प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
हरीरी ने राष्ट्रपति और उनकी पार्टी पर नियुक्तियों को निर्धारित करके अपने सहयोगियों के लिए वीटो पावर हासिल करने का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति और उनकी पार्टी हरीरी पर भी यही आरोप लग रहे हैं.
बुधवार को उन्होंने 24 टेकनोक्रेटिक मंत्रियों की एक नई सूची सौंपी थी.
लेकिन गुरुवार को एक छोटी बैठक के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि राष्ट्रपति ने "मौलिक" परिवर्तन का अनुरोध किया है, जिसे वह स्वीकार नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति को पुनर्विचार के लिए और समय देने की मांग की थी लेकिन उन्होंने आगे कहा कि "यह स्पष्ट है कि हमारे बीच सहमति नहीं हो पाएगी."
हरीरी ने कहा, "इसलिए मैंने सरकार बनाने से ख़ुद को अलग कर लिया है. अल्लाह इस देश की मदद करें."
एक बयान में इयोन ने कहा, "अगर बातचीत का हर रास्ता बंद कर दिया गया है तो एक और दिन लेने का क्या ही फ़ायदा."
उन्होंने कहा कि वह जल्द ही हरीरी की जगह नए नाम के निर्धारण के लिए परामर्श करने के लिए दिन निर्धारित करेंगे.
लेबनान की धार्मिक सत्ता-साझेदारी प्रणाली के तहत, प्रधानमंत्री एक सुन्नी, राष्ट्रपति एक ईसाई और संसद का अध्यक्ष एक शिया होना चाहिए.
न्यूज़ एजेसी एपी ने अन-नाहर अख़बार के राजनीतिक मामलों के जानकार नबील बौ मोंसेफ के हवाले से लिखा है कि- हरीरी के इस्तीफ़े ने लेबनान के संकट को और बढ़ा दिया है.
वो कहते हैं कि फ़िलहाल जो हालात हैं उन्हें देखते हुए तो लगता है कि हम सरकार बनाने या साद हरीरी का विकल्प खोजने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.
मोंसेफ़ कहते हैं कि हरीरी के पद से हटने से हो सकता है कि राष्ट्रपति माइकल इयोन अपनी जीत के तौर पर देखें लेकिन वास्तव में उन्होंने पूरे देश को संकट में झोंकने का काम किया है.
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के बावजूद हरीरी और इयोन के बीच का गतिरोध ख़त्म नहीं हो सका.
यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख, जोसेप बोरेल ने पिछले महीने लेबनान की यात्रा के दौरान कहा भी था कि राजनीतिक नेताओं के बीच लड़ाई की मुख्य वजह केंद्र में सत्ता संघर्ष और अविश्वास है.
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि लेबनान के सबसे शक्तिशाली सुन्नी मुस्लिम नेताओं में से एक हरीरी की जगह कौन ले सकता है.
लेबनान की सामुदाय आधारित राजनीतिक व्यवस्था के अनुसार, प्रधानमंत्री को सुन्नियों के रैंक से चुना जाता है.
हरीरी इससे पहले दो बार प्रधानमंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. पहली बार 2009-2011 तक. दूसरी बार 2016 में. जब वह इयोन के साथ साझेदारी में आए, उस समय हरीरी ने राष्ट्रपति के लिए इयोन का समर्थन किया था. (bbc.com)
काबुल: अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद देश के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर चुके तालिबान का रवैया भारत को लेकर काफी आक्रामक दिख रहा है। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने दावा किया है कि भारत अफगान सेना को हथियार दे रहा है। इतना ही नहीं, तालिबान ने बातचीत की पहल से पहले भारत को अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए भी कहा है।
'भारत को साबित करनी होगी निष्पक्षता'
फॉरेन पॉलिसी मैगजीन से बातचीत में सुहैल शाहीन ने कहा कि अगर भारत तालिबान के साथ बात करना चाहता है तो उसे पहले अपनी निष्पक्षता साबित करनी होगी। सुहैल हाल में ही रूस में आयोजित शांति वार्ता को खत्म करते कतर की राजधानी दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक मुख्यालय लौटे हैं। इस दौरान तालिबान ने रूस की चिंताओं पर अपनी सफाई दी। तालिबान ने रूस से वादा किया है कि वह पूर्व सोवियत देश तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान की सीमाओं पर शांति बनाए रखेगा।
'विदेशियों की बनाई सरकार का पक्ष ले रहा भारत'
तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि भारत विदेशियों द्वारा स्थापित अफगान सरकार का पक्ष ले रहा था। वे हमारे साथ नहीं हैं। अगर वे अफगानों पर थोपी गई सरकार का समर्थन करने की अपनी नीति पर कायम रहते हैं, तो शायद उन्हें चिंतित होना चाहिए। वह एक है गलत नीति जो उनकी रक्षा नहीं करेगी। भारत शुरू से ही अफगानिस्तान में किसी भी सैन्य संगठन या मिलिशिया का समर्थन करने में चौकन्ना रहा है। नॉर्दन अलायंस को दी गई रक्षा मदद से भी भारत को बड़ी सीख मिली है।
अफगान सरकार को हथियार देने का लगाया आरोप
शाहीन ने आरोप लगाया कि भारत अफगान सरकार को हथियार दे रहा है, जिससे समूह परेशान है।
हमें अपने कमांडरों से रिपोर्ट मिली है कि भारत दूसरे पक्ष को हथियार मुहैया करा रहा है। यह कैसे संभव है कि वे तालिबान से बात करना चाहते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से वे काबुल को हथियार, ड्रोन, सब कुछ उपलब्ध करा रहे हैं? यह विरोधाभासी है।
रूस-चीन और ईरान के साथ तालिबान ने स्वीकारा संबंध
उन्होंने कहा कि हमारे रूस, ईरान और चीन के साथ एक या दो नहीं बल्कि कई वर्षों से राजनीतिक संबंध हैं। हमने कई बार उनसे मुलाकात की है और उन्हें आश्वासन दिया है कि हम अफगानी क्षेत्र को इन देशों के खिलाफ इस्तेमाल होने नहीं देंगे। चीन तो पाकिस्तान के सहारे कई साल से तालिबान के साथ गुपचुप बातचीत कर रहा है। जबकि, तालिबान का रूस के साथ संबंध बहुत पुराना है। (navbharattimes.indiatimes.com)
एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक, तालिबान ने पकड़े गए 7,000 लड़ाकों की रिहाई के बदले अफ़ग़ानिस्तान में तीन महीने के संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा है.
अफ़ग़ान सरकार के मध्यस्थ नादेर नादरी ने इसे "बड़ी मांग" बताया है. सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देगी, इसकी जानकारी फ़िलहाल नहीं दी गई है.
अमेरिकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान से हटने के बाद सरकार और तालिबान के बीच संघर्ष तेज हो गया है.
तालिबान ने हाल ही में दावा किया था कि उनके लड़ाकों ने अफगानिस्तान में 85% क्षेत्र को अपने कब्ज़े में ले लिया है. इस आंकड़े को स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना मुमकिन नहीं है और सरकार इन दावों को ख़ारिज कर रही है.
एक दूसरे अनुमान के मुताबिक तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के 400 ज़िलों में से एक तिहाई से अधिक पर नियंत्रित कर लिया है.
यूएन ब्लैक लिस्ट से नाम हटाने का अनुरोध
नादरी ने कहा कि तालिबान नेताओं ने ये भी अनुरोध किया था कि उनके नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट से हटा दिए जाएं.
बीबीसी संवाददाता लाइसे डौसेट के मुताबिक, पिछले साल 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा किया गया था और ऐसा माना जाता है कि उनमें से कई युद्ध के मैदान में लौट चुके हैं, इससे देश में हिंसा बढ़ गई है.
गुरुवार को तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तान की सीमा पर स्थित अफ़ग़ान चौकियों को अपने कब्ज़े में लेने का दावा किया था.
बीबीसी पश्तो सेवा के अनुसार, तालिबान ने कहा कि उसने दक्षिणी कंधार प्रांत में डूरंड लाइन पर स्थित स्पिन बोल्डक ज़िले, स्थानीय व्यापार मार्ग और बाज़ारों पर कब्ज़ा कर लिया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान से लगी सीमा पर एक चौकी पर क़ब्ज़ा कर लिया है.
अफ़ग़ान अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि पोस्ट अब उनके कब्ज़े में नहीं है.
इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों ने इस्लाम कलां और तोरघुंडी के तालिबान के हाथों में जाने की पुष्टि की थी.
विदेशी सैनिकों के लौटने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से, अफ़ग़ानिस्तान में परिस्थितियाँ लगातार बदल रही हैं. तालिबान ने दावा किया है कि अगर वो चाहे तो दो हफ्तों में पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर सकता है.
एक समझौते के तहत अमेरिका और नैटो सहयोगी देश तालिबान द्वारा अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में किसी भी चरमपंथी समूह को काम करने की अनुमति नहीं देने के की शर्त बदले में सभी सैनिकों को वापस लेने पर सहमत हुए थे.
लेकिन तालिबान अफ़ग़ान बलों से लड़ना बंद करने के लिए राजी नहीं हुआ था. तालिबान अब अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत कर रहा हैं, जो वो पहले नहीं करता था. बातचीत बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है और हमलों के रुकने के संकेत नहीं दिख रहे. (bbc.com)
जॉय चक्रवर्ती
दुबई, 15 जुलाई | महाराष्ट्र के ठाणे से ऑनलाइन टिकट खरीदने वाले एक भारतीय नागरिक ने दुबई ड्यूटी फ्री मिलेनियम मिलियनेयर ड्रॉ में 10 लाख डॉलर का प्रथम पुरस्कार जीता है।
बुधवार को, टिकट संख्या 0207, जो कि 363वें मिलेनियम मिलियनेयर ड्रा में चुनी गई थी, 36 वर्षीय नाविक (सीमैन) गणेश शिंदे की थी।
अभी पिछले हफ्ते ही एक भारतीय टैक्सी चालक ने नौ अन्य पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और श्रीलंकाई दोस्तों के साथ तीन अबू धाबी के बिग टिकट के लिए क्राउड फंडिंग की और दो करोड़ दिरहम का बड़ा पुरस्कार जीता।
दुबई और अबू धाबी ड्रॉ के अधिकांश विजेता या तो संयुक्त अरब अमीरात के निवासी हैं, या वे लोग हैं जो पर्यटकों के रूप में अमीरात का दौरा कर रहे हैं या किसी अन्य देश से होकर जा रहे हैं।
और भारतीय बहुत भाग्यशाली रहे हैं, जिन्होंने 1999 से अब तक 363 बार के रैफल को 181 बार जीता है।
लेकिन शिंदे का मामला दुर्लभ है, क्योंकि उन्होंने अपने देश से अपना टिकट ऑनलाइन खरीदा था।
शिंदे, जो ब्राजील में एक समुद्री फर्म में कार्यरत हैं, ने कहा कि वह कई बार दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गुजर चुके हैं।
उन्होंने गल्फ न्यूज से कहा, यह अविश्वसनीय है। मैं अभी भी आश्चर्यचकित हूं। मुझे दुबई पसंद है और मुझे जल्द ही आने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा, मुझे एक नई कार, एक नया अपार्टमेंट चाहिए। मैं अपने बच्चे की शिक्षा के लिए पैसे बचाना चाहता हूं। इसलिए, सूची लंबी है। पुरस्कार राशि इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति करेगी।
मिलेनियम मिलियनेयर ड्रॉ के साथ, दो लग्जरी वाहनों - एक रेंज रोवर स्पोर्ट एचएसई डायनेमिक 5.0 कार और एक बीएमडब्ल्यू आर नाइनटी स्क्रैम्बलर मोटरबाइक के लिए भी ड्रॉ आयोजित किया गया था।
ऑस्ट्रेलिया के एक प्रवासी, जस्टिन फ्रेंच ने लग्जरी कार रेंज रोवर जीती, जबकि 30 वर्षीय नेपाली प्रवासी 30 वर्षीय रोहित मोटे, जो एक सुपरमार्केट में काम करता है और अबू धाबी में रहता है, ने शानदार मोटरसाइकिल जीती है।(आईएएनएस)
बुधवार को ताजिकिस्तान में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई, जिसमें भारतीय विदेश मंत्री ने चेतावनी दी कि चीन द्वारा मौजूदा स्थिति में एकतरफा बदलाव को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
बुधवार को भारत के विदेश मंत्री ने चीनी विदेश मंत्री से मुलाकात की और भारत की चिंताएं साझा कीं. बातचीत के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक ट्वीट में कहा, "द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमांत इलाकों में शांति और स्थिरता की पुनर्स्थापना और उसका बने रहना बहुत जरूरी है.”
जयशंकर शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हैं. वहां उन्होंने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. वांग यी ने भी शांति की जरूरत पर बल दिया और कहा कि चीन बातचीत से मसले सुलझाना चाहता है.
चीनी विदेश मंत्रालय ने वांग यी के हवाले से कहा, "चीन-भारत संबंध एक दूसरे को धमकाकर नहीं बल्कि यह साबित करने से परिभाषित होंगे कि एक दूसरे को हम आपसी सहयोग के मौके उपलब्ध कराएं. दोनों मुल्क साझीदार हैं, विपक्षी नहीं, और दुश्मन तो बिल्कुल नहीं.”
सालभर से जारी गतिरोध
भारत और चीन के बीच पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से गतिरोध जारी है. हालांकि मंत्री स्तर के अलावा स्थानीय कमांडरों के बीच और अन्य राजनेताओं के स्तर पर भी बातचीत हो चुकी है. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि दोनों पक्ष वरिष्ठ सैन्य अफसरों की एक बैठक कराने पर सहमत हुए हैं.
पिछले साल चीन और भारत के सैनिकों के बीच एक विवाद हुआ था, जिसमें लाठियों, पत्थरों और लात-घूसों से एक दूसरे पर हमला किया गया. यह विवाद लद्दाख सीमा पर विवादित इलाके में हुआ था. इसमें भारत के 20 सैनिक मारे गए थे जबकि चीन ने कहा था कि उसके चार सैनिक हताहत हुए.
तब से दोनों मुल्कों के बीच तनाव लगातार बना हुआ है. दोनों पक्षों ने बड़े पैमाने पर सेना, तोपें और लड़ाकू विमान ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल' कही जाने वाली सीमा पर जमा कर लिए हैं. ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल' वह रेखा है, जो भारत और चीन के कब्जे वाले इलाकों को उत्तर में लद्दाख ले लेकर पूर्व में अरुणाचल तक बांटती है. अरुणाचल को चीन अपना इलाका बताता है. भारत का कहना है कि चीन ने विवादित इलाके में अपनी सेना की तैनाती बढ़ाई है, जिसके जवाब में उसने भी अपनी स्थिति को मजबूत किया है.
तनावपूर्ण शांति
बुधवार को भारत की सेना ने मीडिया में आ रहीं उन खबरों का खंडन किया कि चीनी सैनिकों के साथ हाल ही में पूर्वी लद्दाख में उसकी झड़प हुई है. भारतीय सेना की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "इस साल फरवरी में समझौता होने के बाद से दोनों ही तरफ से किसी भी इलाके पर कब्जा करने को लेकर कोई कोशिश नहीं हुई है. खबर में बताए गए गलवान या अन्य किसी भी इलाके में कोई झड़प नहीं हुई है.”
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों से जारी है. 1962 में दोनों देश एक युद्ध भी लड़ चुके हैं. पिछले साल के विवाद के बाद कई बार दोनों देशों के नेता मिल चुके हैं. पिछले साल सितंबर में रूस में हुई अपनी बैठक को याद करते हुए भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर विवाद से दूर रहने का जो समझौता हुआ था, उसका पूरी तरह पालन होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इस साल पेंगोंग में विवाद को टालने की एक सफल कोशिश के बाद बाकी मुद्दों को हल करने के लिए सकारात्मक माहौल बनाने में मदद मिली है. भारत ने एक बयान में कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि चीनी अधिकारी इस मकसद को हासिल करने के लिए हमारे साथ काम करेंगे. हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय यह मानता है कि अन्य इलाकों में मुद्दे अब भी उलझे हुए हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के साथ सीमा पर एक-दूसरे देश में आने-जाने वाला एक अहम रास्ता कब्जा लिया है. अमेरिकी फौजों के चले जाने के बाद तालिबान की यह बड़ी जीत मानी जा रही है.
तालिबान द्वारा जारी एक वीडियो में उनके कुरान की आयत लिखे सफेद झंडे को पाक सीमा से सटे वेश शहर पर क्रॉसिंग पर देखा जा सकता है, जहां अफगानिस्तान का झंडा होता था. सीमा के दूसरी ओर पाकिस्तान का चमन शहर है.
इस वीडियो में एक तालिबानी लड़ाका बोल रहा है, "दो दशकों तक अमेरिका और उनके पिट्ठुओं की क्रूरता सहने के बाद तालिबान ने यह दरवाजा और स्पिलन बोलदाक जिला कब्जा लिया है. मुजाहिदीन और उसके लोगों के मजबूत प्रतिरोध ने दुश्मन को यह इलाका छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. जैसा कि आप देख सकते हैं, इस्लामिक अमीरात का झंडा है, वह झंडा जिसे फहराने के लिए हजारों मुजाहिदीन ने अपना लहू बहाया है.”
तालिबान की बड़ी जीत
अफगानिस्तान के दक्षिणी शहर कंधार के पास स्पिन बोलदाक जिले में पाकिस्तान सीमा पर यह क्रॉसिंग देश के दक्षिणी हिस्सों और पाकिस्तान की बंदरगाहों के बीच दूसरे सबसे व्यवस्त रास्ता है. अफगानिस्तान सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यहां से हर रोज 900 ट्रक सीमा पार करते हैं.
अफगान अधिकारियों ने कहा है कि सरकार ने तालिबान को धकेल दिया है और जिले पर उन्हीं का कब्जा है. लेकिन नागरिक और पाकिस्तान अधिकारियों का कहना है कि क्रॉसिंग पर तालिबान का कब्जा बना हुआ है.
सीमा पर तैनात एक पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी ने कहा, "पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के व्यापार के लिए वेश बहुत अहमियत रखता है. और उसे तालिबान ने कब्जा लिया है.” चमन में पाक अधिकारियों ने कहा कि तालिबान ने रास्ते पर सारी आवाजाही रोक दी है.
हाल के दिनों में तालिबान ने हेरात, फराह और कुंदूज प्रांतों में सीमाओं पर कई अहम रास्तों पर कब्जा किया है. काबुल स्थित अफगानिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इन्वेस्टमेंट के अध्यक्ष शफीकुल्ला अताई कहते हैं कि सीमा पर स्थित चौकियों पर कब्जे का अर्थ है कि तालिबान अब शुल्क वसूल सकता है.
20 वर्ष लंबा संघर्ष
2001 में अमेरिका द्वारा सत्ता से बाहर कर दिए जाने से पहले लगभग पांच साल तक तालिबान ने देश पर राज किया था. लेकिन 11 सितंबर 2001 के हमले के लिए अमेरिका ने अल कायदा को जिम्मेदार माना और उसे खत्म करने के लिए अफगानिस्तान पर हमला किया. तब तालिबान को सरकार से बाहर कर दिया गया. तब से तालिबान देश पर कब्जा पाने के लिए लड़ रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया है कि सितंबर से पहले सारी अमेरिकी फौजों को स्वदेश बुला लिया जाएगा. अपने मुख्य सैन्य अड्डे बगराम को अमेरिकी सैनिक दो हफ्ते पहले ही खाली कर चुके हैं, जिसके बाद तालिबान के हौसले बढ़े हैं और वे तेजी से विभिन्न इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं.
अमेरिकी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस महीने के आखिर में एक चार्टर्र विमान भेजा जाएगा और अमेरिकी सेना के साथ काम कर रहे ढाई हजार लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया जाएगा. इस योजना को ‘ऑपरेशन अलाइज रिफ्यूज' नाम दिया गया है.
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने मंगलवार को उत्तरी प्रांत बाल्ख का दौरा किया और वहां की सुरक्षा हालात का जायजा लिया. 72 वर्षीय गनी नागरिकों से भी मिले और उन्हें भरोसा दिलाया कि "तालिबान की रीढ़ तोड़ दी जाएगी.”. तोलो न्यूज नेटवर्क की खबर के मुताबिक गनी ने दावा किया कि सरकारी फौजें जल्दी ही खोए इलाकों को तालिबान से छीन लेंगी.
उप राष्ट्रपति अमरुल्ला साले ने कहा है कि तालिबान बदख्शां प्रांत में एक अल्पसंख्य समुदाय के लोगों को धर्म बदलने या घरों से चले जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं. ट्विटर पर उन्होंने कहा, "ये अल्पसंख्य किरगिज लोग हैं जो सदियों से वहां रह रहे हैं. वे अब ताजिकिस्तान में हैं और अपनी किस्मत का इंतजार कर रहे हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
अफगानिस्तान युद्ध को शुरू करने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पश्चिमी देशों के अफगानिस्तान छोड़ कर जाने को एक गलती बताया है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा कि इससे वहां की महिलाओं को "अकथनीय" नुकसान होगा.
जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय प्रसारक डॉयचे वेले ने जब बुश से पूछा की अफगानिस्तान से पश्चिमी ताकतों का निकलना क्या एक गलती है, तो उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हां ये एक गलती है, क्योंकि मुझे लगता है कि इसके परिणाम अविश्वसनीय रूप से खराब होंगे." अफगानिस्तान में युद्ध बुश के ही कार्यकाल में अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद शुरू हुआ था.
अमेरिका ने तालिबान के नेता मुल्ला उमर के सामने अंतिम शर्त रखी थी कि या तो वो अल-कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को सौंप दे और आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट कर दे या हमले के लिए तैयार हो जाए. उमर ने शर्त मानने से मना कर दिया था और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के एक गठबंधन ने अक्टूबर में आक्रमण कर दिया था.
'मैर्केल समझ गई थीं'
इस साल की शुरुआत में नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की सेनाओं के निकलने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. अब यह प्रक्रिया पूरी होने ही वाली है. तालिबान के लड़ाके एक एक कर के देश के कई जिलों पर कब्जा जमाते जा रहे हैं और उन्होंने देश के इलाके के एक बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया है.
डॉयचे वेले ने बुश का यह साक्षात्कार जल्द सत्ता छोड़ कर जाने वाली जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के आखिरी अमेरिका दौरे के मौके पर किया. बुश ने प्रसारक को बताया कि मैर्केल ने अफगानिस्तान में सेनाओं की तैनाती का आंशिक रूप से समर्थन किया था "क्योंकि वो समझ गई थीं कि इससे अफगानिस्तान में युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए काफी तरक्की हासिल की जा सकती थी."
मासूमों की बलि
बुश ने कहा, "तालिबान की क्रूरता की वजह से वो समाज कैसे बदल गया, यह अविश्वसनीय है...और अब अचानक...दुखद रूप से...मुझे डर है कि अफगान महिलाओं और लड़कियों का अकथनीय अनिष्ट होगा." 1990 के बाद के दशकों में तालिबान के शासन के दौरान महिलाओं को मोटे तौर पर उनके घरों के अंदर तक ही सीमित कर दिया गया था और लड़कियां शिक्षा हासिल नहीं कर सकती थीं.
अमेरिका और यूरोप के विरोध के बावजूद तालिबान ने इस्लामिक शरिया कानून एक अपने चरम प्रारूप को लागू किया. हालांकि लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा नहीं हुई. बुश ने कहा, "मैं दुखी हूं...लौरा (बुश) और मैंने अफगान महिलाओं के साथ काफी वक्त बिताया था और अब वो डरी हुई हैं. और मैं उन सब अनुवादकों और अमेरिकी और नाटो सैनिकों की मदद करने वाले उन सभी लोगों के बारे में सोचता हूं, तो मुझे लगता है कि वो सब वहीं छूट जाएंगे और इन अति क्रूर लोगों के हाथों बलि चढ़ा दिए जाएंगे. और इससे मेरा दिल टूट जाता है."(dw.com)
सीके/एए (एपी)
म्यांमार से सटे चीनी शहर में कोरोना के प्रकोप को खत्म करने के लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य कोड से जुड़ी चेहरे की पहचान तकनीक का प्रयोग शुरू किया गया है.
चीन दुनिया के सबसे अधिक सर्वेलांस करने वाले देशों में से एक है, जहां सरकार "सभी सार्वजनिक स्थानों को कवर करने" के लिए 20 करोड़ से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाने की जल्दी में है.
चीन में कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए निगरानी का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है, चीन पहला देश है जहां क्यूआर कोड की मदद से टेस्ट परिणाम को लॉग किया गया था और इससे ही कॉन्टैक्ट्स को ट्रैक किया जा सकता है.
यह पहली बार है कि सार्वजनिक रूप से इस बारे में रिपोर्ट किया जा रहा है कि फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की गतिविधि और स्वास्थ्य की स्थिति को ट्रैक करने के लिए किया जा रहा है. जब लोग आवासीय क्षेत्रों, सुपरमार्केट, परिवहन केंद्रों और अन्य सार्वजनिक स्थानों में दाखिल होते हैं और बाहर निकलते हैं.
शहर में एंट्री पर
चीन के युन्नान प्रांत के रुइली में अधिकारियों ने पत्रकारों को बताया, "जो भी रुइली के अंदर आता है और बाहर जाता है, उसे पार होने के लिए अपना (स्वास्थ्य) कोड और चेहरा स्कैन करना होगा है." मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक रुइली में पिछले एक सप्ताह में 155 मामले पाए गए, हाल के महीनों में सबसे खराब वायरस के प्रकोप वाले देशों में चीन भी है.
स्थानीय अधिकारियों ने एक बयान में कहा, "चेहरे की पहचान करने वाले कैमरे, स्मार्ट डोर लॉक्स और रोड बैरियर (पुलिस या सामुदायिक स्वयंसेवकों द्वारा संचालित) जैसे सुरक्षा उपकरण प्रमुख इलाकों में लगाए गए हैं." चीन के राष्ट्रीय रेडियो ने बताया कि स्कैनर व्यक्तियों के तापमान की भी जांच कर सकते हैं.
गोपनीयता पर सवाल
इस बात की कोई जानकारी नहीं कि डेटाबेस कितने समय तक रिकॉर्ड में रहेगा या फिर कोरोना के मामले काबू हो जाने के बाद अधिकारी सिस्टम को बंद कर देंगे. इस तकनीक की निगरानी शहर के महामारी निवारण कार्यबल द्वारा की जा रही है. रुइली की आबादी दो लाख 10 हजार से थोड़ी अधिक है. यह म्यांमार को जोड़ने वाला मुख्य शहर है. म्यांमार में एक फरवरी को हुए तख्तापलट के बाद चिंता बढ़ गई है कि लोग हिंसा से बचने के लिए इस शहर की ओर न आ जाएं.
युन्नान प्रांतीय स्वास्थ्य आयोग के मुताबिक पिछले सप्ताह दर्ज किए गए नए मामलों में से लगभग आधे म्यांमार के नागरिक थे, हालांकि यह साफ नहीं है कि उन्होंने शहर में प्रवेश कैसे किया. चीन में जब महामारी चरम पर थी, उस समय प्रमुख शहरों में पुलिस ने चेहरे की पहचान और इन्फ्रारेड कैमरों से लैस हेलमेट पहने जो पैदल चलने वाले लोगों के तापमान को मापते थे.
अधिकार समूहों ने चीन द्वारा हर जगह निगरानी की आलोचना की है और कहा है कि इसका इस्तेमाल अंसतोष को शांत करने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने एपेक देशों की एक ऐतिहासिक बैठक बुलाई है. रूस और अमेरिका भी इस वर्चु्अल बैठक में हिस्सा लेंगे, जो ट्रंप-काल में आई रुकावटों के दूर होने का संकेत है.
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फोरम की एक विशेष बैठक बुलाई है जिसमें अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों ने भी हिस्सा लेने पर सहमति जताई है. इस ऐतिहासिक बैठक का मकसद एशिया पैसिफिक में कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटना है.
नवंबर में 21 एपेक देशों की सालाना नियमित बैठक होनी है. वैसे तो यह बैठक ऑनलाइन ही होनी है, लेकिन इसका मेजबान देश न्यूजीलैंड है. पर एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जेसिंडा आर्डर्न ने एपेक देशों से एक अतिरिक्त बैठक करने का आग्रह किया है.
आने वाले शुक्रवार को यह ऑनलाइन बैठक होगी, जो एपेक के इतिहास में पहली बार होगा. इस बैठक का मकसद महामारी के आर्थिक प्रभावों की समीक्षा और उसके लिए जरूरी साझा कदमों पर चर्चा करना होगा जेसिंडा आर्डर्न ने मीडिया को बताया कि एपेक के ज्यादातर नेताओं के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने भी इस बैठक में शामिल होने की पुष्टि कर दी है.
ऐतिहासिक बैठक
एक बयान में आर्डर्न ने कहा, "एपेक के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि सर्वोच्च नेतृत्व के स्तर पर सदस्य देश एक अतिरिक्त बैठक के लिए राजी हुए हैं. इससे पता चलता है कि कोविड-19 महामारी और उसके कारण पैदा हुए आर्थिक संकट को हल करने को लेकर हमारी इच्छा कैसी है.”
शुक्रवार को जेसिंडा आर्डर्न द्वारा बुलाई गई बैठक इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि हाल के सालों में एपेक देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाना एक मुश्किल काम साबित हुआ है. इसकी मुख्य वजह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की चीन से खींचतान थी. हालांकि जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका ने हालात को बदलने का वादा किया है.
आर्डर्न ने कहा कि इस महामारी के कारण विश्व युद्ध के बाद एपेक देशों को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा है और आठ करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई हैं. उन्होंने कहा, "विश्व युद्ध के बाद एपेक अर्थव्यस्थाओं में यह सबसे बड़ी सिकुड़न है. 81 मिलियन नौकरियां गई हैं. सारी एपेक अर्थव्यवस्थाओँ का मिलकर क्षेत्र के आर्थिक बहाली के लिए काम करना बहुत महत्वपूर्ण है.”
दुनिया का सबसे बड़ा हिस्सा
एपेक यानी एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फोरम में प्रशांत महासागर के किनारों पर बसे 21 देश शामिल हैं. इनमें अमेरिका से लेकर, चीन, जापान और पापुआ न्यू गिनी तक जैसे देश हैं जो दुनिया के कुल जीडीपी का 60 फीसदी उत्पादन करते हैं. 2021 की सालाना बैठक के मेजबान के तौर पर न्यूजीलैंड पहले से ही ऐसे संकेत दे रहा है कि सदस्यों के बीच चिकित्सा सामग्री और कोविड-19 वैक्सीन का व्यापार तेज किया जाना चाहिए.
आर्डर्न का कहा है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में आर्थिक बहाली के जिन उपायों पर चर्चा हो सकती है, उनमें टीकाकरण को और ज्यादा सक्षम बनाने और सरकारों द्वारा ऐसे जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत शामिल है, जो रोजगार और अर्थव्यवस्थाओं की सुरक्षा कर सकें.
आर्डर्न ने कहा, "मैं चाहूंगी कि क्षेत्र में आर्थिक बहाली के लिए फौरी तौर पर उठाए जाने वाले उपायों के साथ-साथ दीर्घकालिक व समावेशी वृद्धि के लिए जरूरी कदमों पर चर्चा हो. एपेक नेता महामारी से लड़ने के लिए मिलकर काम करेंगे क्योंकि जब तक सभी सुरक्षित नहीं हैं, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है.”
एक दूसरे पर भारी शुल्क
पिछले महीने ही एपेक देशों के व्यापार मंत्रियों की बैठक हुई थी जिसमें एक-दूसरे के साथ व्यापार करने में मौजूद बाधाओं की समीक्षा करने पर सहमति बनी थी. बैठक के बाद तीन बयान जारी किए गए थे जिनमें 21 देशों के मंत्रियों ने कहा था कि कोविड वैक्सीन और संबंधित वस्तुओं के आवागमन को हवा, पानी और जमीन के रास्ते से तेज करने पर काम किया जाएगा.
एक बयान में कहा गया, "हम अपने लोगों को लिए इन चीजों की कीमतों को कम करने के लिए स्वेच्छा से कदम उठाने पर विचार करेंगे, खासकर हर अर्थव्यवस्था को अपनी-अपनी सीमा पर लगने वाले शुल्कों की समीक्षा के लिए उत्साहित करके.” एक अन्य बयान कहा गया कि एपेक देशों को उन गैरजरूरी बाधाओं की पहचान करनी होगी जिनके कारण जरूरी चीजों और सेवाओं के आदान-प्रदान में देरी होती है.
एपेक देशों में वैक्सीन पर शुल्क 0.8 फीसदी के आसपास है लेकिन वैक्सीन से जुड़ी अन्य चीजों जैसे अल्कोहल सॉल्यूशन, फ्रीजिंग इक्विपमेंट, पैकेजिंग और स्टोरेज मटीरियल पर शुल्क 5 से 30 फीसदी तक है.
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
डेल्टा वेरिएंट को सबसे तेजी से फैलने वाले वायरस संस्करण के रूप में बताया गया है. भारत, दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य देशों में इसकी पहचान के बाद अब पाकिस्तान में इसके फैलने की पुष्टि हो गई है.
पाकिस्तानी सरकारी अधिकारियों ने आधिकारिक तौर पर कई क्षेत्रों में कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के फैलने की पुष्टि की है. डेल्टा के मामले में बढ़ोतरी ने आम जनता में यह आशंका बढ़ा दी है कि संस्करण से प्रभावित क्षेत्रों में एक सख्त तालाबंदी की जा सकती है. डेल्टा वेरिएंट को पहली बार भारत में साल 2020 के आखिर में पाया गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 31 मई 2021 को इसे डेल्टा संस्करण का नाम दिया था. पाकिस्तान में पिछले महीने गिरावट के बाद जुलाई में नए संक्रमण तेजी से बढ़े हैं. पड़ोसी देश भारत में डेल्टा वेरिएंट की तबाही के बाद अब पाकिस्तान में इसके मामले सामने आ रहे हैं.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार में वरिष्ठ मंत्री असद उमर पहले ही कह चुके हैं कि देश जुलाई में कोरोना की चौथी लहर का सामना कर सकता है. अब उनका डर सच साबित होने लगा है. कई शहरों में, डेल्टा वेरिएंट के डर से जांच के लिए हजारों लोग हर रोज अलग-अलग परीक्षण केंद्रों पर कतार में लग रहे हैं.
इस संदर्भ में पाकिस्तान के स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता अफजल खान ने समाचार एजेंसी डीपीए से बात करते हुए इस बात की पुष्टि की कि वास्तव में लोग इस वेरिएंट से डरे हुए हैं. खान के मुताबिक, "डेल्टा वेरिएंट के फैल जाने के बाद से हजारों भयभीत लोग जांच केंद्रों में सुबह से ही कतार में लग जाते हैं. वे सभी परेशान लग रहे हैं."
लग रहा है लॉकडाउन
स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और रावलपिंडी में डेल्टा के मामले सामने आने के बाद लगभग दो दर्जन इलाकों में लॉकडाउन लगाया गया है.
इस्लामाबाद जिला स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख जईम जिया के मुताबिक, "पाकिस्तान में कोरोना के जितने वेरिएंट आए उसके मुकाबले डेल्टा वेरिएंट बहुत तेजी से फैल रहा है. यह चिंता का विषय है."
जिया ने यह भी कहा कि सरकार स्थिति से अवगत है और इसे प्रभावित क्षेत्रों तक सीमित रखने की पूरी कोशिश कर रही है.
पाकिस्तान में चौथी लहर!
घातक वायरस की चौथी लहर का सामना कर रहे पाकिस्तान ने इस सप्ताह रोजाना संक्रमण में 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की और 22,500 से अधिक मौतें. देश में अब तक कोरोना के 10 लाख के करीब मामले आ चुके हैं.
पाकिस्तान सरकार के स्वास्थ्य मामलों के विशेष सहायक डॉ. फैसल सुल्तान का कहना है कि अब तक पाकिस्तान कोविड-19 के चंगुल में आने से कुछ हद तक बच गया था लेकिन डेल्टा संस्करण ने चिंता बढ़ा दी है. पड़ोसी देश भारत में तबाही का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान में ऐसा हुआ तो यह भारी तबाही होगी.
रावलपिंडी में एक बच्चे के पिता 42 वर्षीय मुदस्सर इरशाद कहते हैं, "हमने अपने टेलीविजन स्क्रीन पर देखा है कि इस वेरिएंट ने भारत में क्या किया है. मुझे डर है कि अगर पाकिस्तान में भी ऐसा ही होता है, तो यह बहुत बड़ी त्रासदी होगी."
पाकिस्तान में कोरोना के खिलाफ टीका लगाने की रफ्तार बहुत सुस्त है. वैक्सीन की सप्लाई में कमी के कारण अब तक सिर्फ दो करोड़ लोगों को ही टीका लग पाया है. 22 करोड़ की आबादी वाला देश अपनी जनता को वैक्सीन लगाने के लिए विदेशी टीकों पर निर्भर पर है.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
चीन में शंघाई के पास के शहर सुज़ू में एक होटल के ढहने से कम-से-कम 17 लोगों की मौत हो गई है. हादसे के 36 घंटे बाद बचावकर्मियों ने मलबे से शवों के साथ छह और लोगों को जीवित निकाला.
ग्लोबल टाइम्स अख़बार के मुताबिक़ शुरूआती जाँच से पता चला है कि होटल के मालिक़ ने इमारत के ढाँचे में बदलाव किया था जिससे ये हादसा हुआ.
बताया जा रहा है कि जियांग्सू प्रांत में स्थित इस होटल में हाल के वर्षों में कई बार बदलाव किए गए.
एक स्थानीय निवासी ने रेड स्टार न्यूज़ को बताया- इस होटल में पहले केवल तीन मंज़िल थी, मगर वो पिछले कुछ सालों में इसमें लगातार और मंज़िलें जोड़ते चले गए.
हादसा सोमवार को स्थानीय समयानुसार दोपहर साढ़े तीन बजे हुआ.
बचाए गए छह लोगों में से पाँच की हालत स्थिर है. छठे व्यक्ति को कोई चोट नहीं लगी.
चीन में इसके पहले भी ऐस हादसे हुए हैं जिनके लिए ख़राब निर्माण कार्य को ज़िम्मेदार समझा जाता है. (bbc.com)
मिस्र की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने यौन उत्पीड़न अपराधों के लिए कड़े कानून बनने के बाद उसे बेहतर ढंग से लागू करने का आह्वान किया है.
मिस्र की संसद ने 11 जुलाई को यौन अपराधों के खिलाफ एक नए कानून को मंजूरी दे दी. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों को पुनर्वर्गीकृत कर न्यूनतम सजा को एक साल से बढ़ाकर दो साल कर दिया गया है. वहीं जुर्माना भी कम से कम 6,400 डॉलर कर दिया गया है.
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कानून का स्वागत तो किया है, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि यह तभी प्रभावी होगा जब लागू करने वालों में सुधार किया जाएगा. उनका कहना है कि पुलिस, जजों और समाज में कानून के प्रति जागरूकता पैदा करने की जरूरत है.
सामाजिक रूप से रूढ़िवादी मिस्र में महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों में कानूनी संशोधन नवीनतम है. सालों से मुस्लिम बहुल देश में सैकड़ों लोग सोशल मीडिया का सहारा यौन उत्पीड़न की निंदा करने के लिए करते आ रहे हैं.
सराहनीय कदम
मिस्र में महिलाओं के कानूनी जागरूकता केंद्र और मार्गदर्न के निदेशक रेदा एलदानबुकी कहते हैं कि यह "सराहनीय कदम" है, लेकिन कानून को लेकर जागरूकता बढ़ाने और इसे लागू करना असली चुनौती है.
एलदानबुकी के मुताबिक, "कानून को लागू करना वास्तव में महत्वपूर्ण है. यौन उत्पीड़न के खतरों के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ाना
और कानून को लागू करने के लिए तंत्र तैयार करना होगा."
महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था की रंदा फख्र अल-दीन कहती हैं कानून का पुनर्वर्गीकरण से कानूनी प्रक्रिया और पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी का जोखिम है.
अल-दीन के मुताबिक, "वास्तव में अब जो मायने रखता है, वह है आगे क्या होता है. यह महत्वपूर्ण है कि हिंसा करने वालों को जेल में डाला जाए, ना कि उन्हें छोड़ा जाए."
लंबी सजा, ज्यादा जुर्माना
नए कानून में अपराधियों के लिए जेल की पहले से ज्यादा सजा का प्रावधान है जबकि बार-बार अपराध करने वालों के लिए सजा को बढ़ाने के साथ-साथ जुर्माने को भी बढ़ा दिया गया है.
यौन हिंसा पर मिस्र में पिछले साल तब आंदोलन शुरू हुआ जब एक 22 वर्षीय छात्रा ने एक हाई-प्रोफाइल अभियान की शुरुआत की. कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म और ब्लैकमेल करने के आरोपी युवक की गिरफ्तारी की मांग को लेकर कई महिलाएं सामने आईं.
कुछ हफ्तों बाद इसमें एक सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया जिसमें शक्तिशाली, धनी परिवारों के नौ संदिग्ध शामिल थे. कई संदिग्ध गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन मई महीने में केस को अभियोजकों ने अपर्याप्त सबूत का हवाला देते हुए बंद कर दिया. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कदम की आलोचना की थी.
इसी साल अप्रैल में संसद ने महिला खतने के खिलाफ जुर्माने को और अधिक बढ़ा दिया था. (dw.com)
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
ढाका, 13 जुलाई | बांग्लादेशी सरकार ने ईद-उल-अजहा से पहले गुरुवार से एक सप्ताह के लिए जारी लॉकडाउन में ढील देने का फैसला किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के प्रेस सूचना विभाग (पीआईडी) ने सोमवार रात यह घोषणा करते हुए कहा कि मुस्लिम त्योहार के अवसर पर 22 जुलाई तक लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, जो 21 जुलाई को मनाया जाएगा।
घोषणा में कहा गया है कि देश का कैबिनेट डिवीजन मंगलवार को प्रतिबंधों में ढील के बारे में एक अधिसूचना जारी करेगा।
कैबिनेट डिवीजन के एक अधिकारी ने कहा कि लॉकडाउन के उपायों में ढील देने के तहत, सरकार स्वास्थ्य नियमों का पालन करने की शर्त पर सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को फिर से शुरू करने की अनुमति दे सकती है।
अधिकारी ने कहा कि दुकानों और शॉपिंग मॉल को भी सख्त स्वास्थ्य दिशानिर्देशों के साथ फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाएगी।
इसके अलावा, बांग्लादेश में अधिकारियों ने कोविड -19 महामारी के बीच त्योहार से पहले राजधानी शहर में निर्देश दिये हुए स्थानों पर संचालित करने के लिए कम से कम 21 पशु बाजारों को मंजूरी दी है।
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने कहा कि बांग्लादेश ने पिछले 24 घंटों में 13,768 नए मामले दर्ज किए, जो कि एक दिन का सर्वाधिक मामला है, जिसके साथ कुल मामले 1,034,957 हो गये हैं।
साथ ही, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि में 220 और मौतें दर्ज की गईं, जिससे मरने वालों की संख्या बढ़कर 16,639 हो गई है।
वायरस के प्रसार को रोकने के लिए, बांग्लादेश में 1 जुलाई को एक सप्ताह के सख्त लॉकडाउन लगा, जिसे बाद में 14 जुलाई तक बढ़ा दिया गया था।
कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सेना के जवानों को नागरिक बलों के साथ गश्त के लिए तैनात किया गया है। (आईएएनएस)
मेक्सिको सरकार ने कहा है वर्तमान प्रशासन के दौरान 2018 के आखिर से अब तक 68 मानवाधिकार-पर्यावरण कार्यकर्ता मारे गए और 43 पत्रकारों की हत्या कर दी गई है.
आंद्रेस मानुएल लोपेज ओब्राडोर ने 1 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी. उसके बाद से मेक्सिको में 68 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पर्यावरण कार्यकर्ता मारे गए. चिंता की बात यह है कि 2018 के बाद से देश में 43 पत्रकार मौत के घाट उतार दिए गए हैं.
यह मुद्दा मई के अंत और जून की शुरुआत तब गरमाया जब एक महीने के अंतराल में तीन कार्यकर्ताओं को अलग-अलग घटनाओं में मार दिया गया.
पत्रकारों की हत्या के पीछे कौन?
ओब्राडोर ने राष्ट्रपति बनने के बाद पत्रकारों की सुरक्षा करने का वादा किया था, लेकिन अब आलोचक सवाल कर रहे हैं कि क्या सरकार पर्याप्त कदम उठा रही है.
देश के आंतरिक विभाग ने 12 जुलाई को कहा कि 1,478 कार्यकर्ता और पत्रकारों को वर्तमान में सरकारी सुरक्षा मिली हुई है. लेकिन मारे गए नौ लोग सरकार के सुरक्षा कार्यक्रम में थे.
माना जाता है कि कई हत्याओं का आदेश नशीली दवाओं की तस्करी में लगे गिरोहों, भ्रष्ट अधिकारी या फिर गलत धंधे से जुड़े लोगों द्वारा दिया गया था. लेकिन बहुत कम ही मामलों का समाधान किया गया है और दोषियों को सजा हुई.
मेक्सिको के राष्ट्रपति ओब्राडोर दिसंबर 2018 में अपराधों से ग्रस्त देश को हिंसा और हत्या से छुटकारा दिलाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे, लेकिन वे इसमें सफल होते नहीं दिख रहे हैं.
आंकड़ों के मुताबिक 2019 में हत्या के करीब 35 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. यानी हर दिन करीब 95 लोगों ने अपनी जान गंवाई. पिछले 20 सालों से मेक्सिको आपराधिक हत्या के मामलों के रिकॉर्ड रख रहा है. 2019 के आंकड़ों ने नया रिकॉर्ड बनाया है.
सार्वजनिक सुरक्षा कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के मुकाबले 2019 में हत्याओं के एक हजार मामले बढ़े हैं जो हत्या के मामले में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि है.
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक 2020 में पूरी दुनिया में कम से कम 42 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए. संस्था का कहना है कि पिछले तीन दशकों में पूरी दुनिया में 2,658 पत्रकार मारे गए हैं. इसी साल यूरोप से लेकर एशिया तक पत्रकारों पर जानलेवा हमले हुए और कई हमले में पत्रकारों की मौत भी हुई.
एए/वीके (एएफपी)
अपने कई रिकॉर्डों के बीच दुनिया के सबसे ऊंचे टावर के साथ दुबई में अब दुनिया का सबसे गहरा स्विमिंग पूल भी बन गया है. यह स्विमिंग पूल दर्शकों को आकर्षित करने के लिए तैयार है.
संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी राज्यों के सबसे बड़े शहर ने अब धरती पर सबसे गहरा स्विमिंग पूल तैयार किया है. इसका नाम डीप डाइव दुबई रखा गया है. यहां गोताखोरी के शौकीनों के लिए 60 मीटर की गहराई तक जाने का मौका है. यह न केवल एक स्विमिंग पूल है बल्कि गोताखोरी के शौकीनों के लिए स्वर्ग भी है.
डीप डाइव दुबई का उद्घाटन 7 जुलाई को हुआ था, लेकिन शुरुआत में केवल आधिकारिक निमंत्रण वाले लोग ही यात्रा कर सकते हैं.
सबसे गहरा स्विमिंग पूल
एएफपी न्यूज एजेंसी को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स से इस बात की पुष्टि मिली है कि दुबई का यह स्विमिंग पूल 60 मीटर यानी करीब 200 फीट गहरा है. यह किसी भी अन्य पूल से 15 मीटर गहरा है. इसका मतलब है कि गोताखोरी के शौकीन इस पूल में बहुत गहराई तक जा सकते हैं.
दुबई के इस स्विमिंग पूल में 1.46 करोड़ लीटर पानी है. इसका ताजा पानी ओलंपिक आकार के छह स्विमिंग पूल में डाले जाने वाले पानी जितना बराबर है. इसका परिवेश, संगीत और रंग-बिरंगी लाइटें इसे और भी आकर्षक बनाती हैं.
सतह पर गोताखोर टेबल फुटबॉल और इसके अंदर अन्य खेल खेल सकते हैं या फिर इसके रास्तों में वनस्पतियां का आनंद ले सकते हैं. पूल में मनोरंजन के साथ-साथ गोताखोरों और दर्शकों की सुरक्षा के लिए 50 से अधिक कैमरे लगाए गए हैं.
मजे के लिए खर्च करने होंगे कितने पैसे?
एक घंटे के लिए स्विमिंग पूल में गोता लगाने वालों को टिकट के लिए 10 हजार रुपये से थोड़ा अधिक खर्च करना पड़ेगा और अगर वे गहरा गोता लगाना चाहते हैं तो टिकट की कीमत 30 हजार से ज्यादा होगी. इसे जल्द ही जनता के लिए खोल दिया जाएगा.
डीप डाइव दुबई के निदेशक जैरड जब्लोन्सकी बताते हैं कि इस पूल का आकार सीप की तरह है. स्विमिंग पूल यूएई की 'पर्ल डाइविंग परंपरा' को समर्पित है.
इससे पहले दुबई बुर्ज खलीफा बनाकर दुनिया को अंचभित कर चुका है. बुर्ज खलीफा 828 मीटर की ऊंचाई के साथ दुनिया की सबसे ऊंची इमारत है और यह 160 मंजिला इमारत है. अन्य अनूठी विशेषताओं के अलावा, इस इमारत में दुनिया की सबसे लंबी लिफ्ट भी है.
एए/वीके (एएफपी)
संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने विभिन्न देशों से आग्रह किया है कि दासता और साम्राज्यवाद की विरासत और नस्लवादी भेदभाव की प्रतिक्रिया स्वरूप क्षतिपूर्ति के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
दुनियाभर में फैले नस्लवाद और अफ्रीकी मूल के लोगों पर इसके असर के बारे में एक रिपोर्ट पेश करते हुए मिशेल बैचलेट ने कहा कि वित्तीय और अन्य माध्यमों से क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए. 2020 में एक श्वेत अमेरिकी पुलिस अफसर द्वारा एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या किए जाने के बाद इस अध्ययन की मांग उठी थी.
अध्ययन में एक भी ऐसा मामला नहीं मिला जबकि किसी देश ने अपने बीते वर्षों में किए गए कृत्यों को पूरी तरह से स्वीकार किया हो या अफ्रीकन लोगों पर हुए असर को पूरी तरह से समझा ही हो. ऐसा तब है जबकि कुछ देशों ने माफी मांगी है, कुछ अपील जारी हुई हैं और कुछ स्मारक भी बनाए गए हैं.
अमेरिका ने किया रिपोर्ट का स्वागत
बैचलेट ने सिफारिश की है कि विभिन्न देश एक "विस्तृत प्रक्रिया तैयार करें, उसे लागू करें और उसके लिए धन उपलब्ध करवाएं” जो इतिहास में हुए कृत्यों और उनकी वजह से आज तक हो रहे प्रभावों की पूरी सच्चाई उजागर करे. उन्होंने कहा, "इसमें प्रभावित समुदायों की भागीदारी होनी चाहिए.”
बैचलेट ने कहा कि यह प्रक्रिया हमारे समाजों के घाव भरने में और खौफनाक अपराधों के लिए न्याय करने में बहुत अहम साबित होगी.
जेनेवा में अमेरिका के उप-राजदूत बेन्जामिन मोएलिंग ने इस ‘गहरी और बेबाक' रिपोर्ट का स्वागत किया है. काउंसिल को भेजे एक वीडियो संदेश में मोएलिंग ने कहा, "अमेरिका घर के अंदर और बाहर, दोनों ही जगह इन चुनौतियों को हल कर रहा है. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ नस्लवादी भेदभाव और पुलिस द्वारा जरूरत से ज्यादा बल इस्तेमाल किए जाने के पीछे की वजहों को दूर किया जा रहा है.”
दासता और सामाजिक व न्यायिक भेदभाव की क्षतिपूर्ति करने के विचार पर अमेरिका में बहस जारी है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने यह रिपोर्ट विस्तृत अध्ययन के बाद तैयार की है. बैचलेट ने कहा कि उन्होंने पुलिस द्वारा कत्ल किए गए अफ्रीकी मूल के लोगों के परिवारों से मुलाकात की. 340 से ज्यादा लोगों से बातचीत की गई, जिनमें से ज्यादातर अफ्रीकी मूल के थे. विभिन्न देशों और पक्षों से 110 लिखित प्रतिक्रियाएं भी मिलीं.
बैचलेट ने बताया कि इस रिपोर्ट में जाहिर होता है कि अफ्रीकी मूल के लोगों को जिंदगी के हर पहलू में भेदभाव से गुजरना पड़ता है, जिसकी शुरुआत बचपन में ही हो जाती है. उन्होंने कहा, "अफ्रीकी मूल के बच्चों को अक्सर स्कूलों में भेदभाव सहना पड़ता है. उनकी शिक्षा के नतीजे प्रभावित होते हैं और बहुत बार तो कम उम्र से ही उनसे अपराधियों की तरह सलूक किया जाता है.”
बैचलेट के मुताबिक उनके दफ्तर को कानूनपालकों के हाथों अफ्रीकी मूल के कम से कम 190 लोगों की मौत की सूचना मिली. इनमें से 98 प्रतिशत यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में हुईं.
उन्होंने कहा, "बहुत से देशों ने बल प्रयोग को लेकर स्पष्ट और प्रभावशाली कानून नहीं बनाए हैं, जिस कारण इनके उल्लंघन के खतरे बढ़ जाते हैं. साथ ही, कानूनपालक अधिकारियों को मानवाधिकार उल्लंघन और अफ्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ अपराधों के लिए सजा भी शायद ही कभी होती है. ढीली-ढाली जांच, शिकायत और जवाबदेही की प्रक्रिया और अफ्रीकी मूल के लोगों के दोषी होने की पूर्व-अवधारणा भी अहम कारक हैं” (dw.com)
बगदाद, 13 जुलाई| इराक के एक अस्पताल में कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड में आग लगने से 50 लोगों की मौत हो गई है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिणी शहर नसीरिया के अल-हुसैन अस्पताल में लगी आग पर सोमवार देर रात काबू पा लिया गया।
आग लगने के सही कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है, लेकिन प्रारंभिक रिपोटरें से पता चला है कि ऑक्सीजन टैंक में विस्फोट होने के चलते यह आग लगी है।
पत्रकारों ने इमारत से जले हुए शवों को बाहर निकाले जाने की बात कही है। बचावकर्मी अभी भी जीवित बचे लोगों की तलाश में जुटे हुए हैं।
स्वास्थ्य अधिकारी हैदर अल-जमीली ने एक प्रमुख मीडिया आउटलेट को बताया, "आशंका जताई जा रही है कि लोग अभी भी वार्ड के अंदर फंसे हुए हैं, जिसमें कथित तौर पर 60 रोगियों के लिए जगह है।"
आग लगने के बाद प्रदर्शनकारियों ने अस्पताल के बाहर प्रदर्शन किया और लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अधिकारियों के इस्तीफे की मांग की।
इराक के संसद अध्यक्ष मोहम्मद अल-हलबौसी ने ट्वीट किया कि इस तरह से आग लगना इराकी लोगों के जीवन की रक्षा करने में विफलता का स्पष्ट प्रमाण है और यह इस विनाशकारी विफलता को समाप्त करने का समय है। (आईएएनएस)
जेनेवा, 13 जुलाई| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ट्रेडोस अदनोम घेबियस ने सोमवार को कोविड-19 के डेल्टा संस्करण के कारण होने वाले विनाशकारी प्रकोप की चेतावनी देते हुए कहा कि वायरस के नए स्ट्रेन का तेजी से प्रसार हो रहा है। ट्रेडोस ने जिनेवा से एक आभासी संवाददाता सम्मेलन में कहा, "पिछले हफ्ते वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के बढ़ते मामलों के लगातार चौथे सप्ताह को चिह्न्ति किया गया है। दस सप्ताह की गिरावट के बाद मौतें फिर से बढ़ रही हैं।"
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर में भारत में सबसे पहले इस वेरिएंट की पहचान की गई है। इसके बाद से इसका प्रसार लगातार जारी है। अब तक 104 देशों में इसके होने का पता लगाया जा चुका है।
वह कहते हैं, "डेल्टा वेरिएंट तेजी से फैल रहा है और इससे मामलों और मौतों की संख्या में पुन: वृद्धि देखी जा सकती है।" (आईएएनएस)