अंतरराष्ट्रीय
जर्मनी और फ्रांस ने सुझाव दिया है कि रूस के साथ बातचीत की जानी चाहिए. यह सुझाव कई सदस्य देशों को नागवार गुजरा है. इस कारण यूरोपीय संघ में दरार नजर आ रही है.
रूस को साथ लेकर चलने को लेकर यूरोपीय संघ में दरार नजर आ रही है. जर्मनी और फ्रांस रूस के साथ बातचीत करना चाहते हैं लेकिन कई देश इसका विरोध कर रहे हैं. गुरुवार को ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं के बीच यह दरार उभर कर सामने आ गई.
गुरुवार को ईयू सम्मेलन के बाद जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि रूस से बातचीत करने पर सहमति नहीं बन पाई. मैर्केल ने बताया, “बहुत विस्तार से बातचीत हुई. लेकिन आसान बातचीत नहीं थी. नेताओं के बीच फौरन बैठक कराने पर तो आज कोई सहमति नहीं बन पाई.
फ्रांस और जर्मनी ने कहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को बातचीत के लिए ईयू सम्मेलन में बुलाया जाना चाहिए. यह प्रस्ताव तब आया है जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले हफ्ते ही जेनेवा में व्लादीमीर पुतिन से मुलाकात की है.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ को रूस के साथ सीधी बातचीत करनी चाहिए क्योंकि "अगर आप एक दूसरे से बात करें तो विवाद सुलझाए जा सकते हैं.”
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने भी कहा कि यदि यूरोपीय संघ की स्थिरता के लिए यह जरूरी है तो रूस के साथ संबंधों में गर्माहट लाने की कोशिश की जानी चाहिए. उन्होंने कहा, "रूस के संदर्भ में हम सिर्फ प्रतिक्रिया करने के बारे में ही नहीं सोच सकते.”
क्रीमिया को लेकर चल रहे संघर्ष के कारण यूरोपीय संघ ने 2014 के बाद से रूस के साथ कोई बातचीत नहीं की है.
रूस के साथ कैसे हैं संघ के रिश्ते?
यूरोपीय संघ और रूस के संबंधों में पिछले कुछ समय से तनाव रहा है. यूक्रेन के रूस के साथ संघर्ष के कारण जो खटास दोनों पक्षों के रिश्तों में आ गई थी, उसे रूसी विपक्षी नेता अलेक्सी नावाल्नी के राजनीतिक दमन ने और बढ़ा दिया. नावाल्नी इस वक्त रूस की एक जेल में बंद हैं.
पिछले महीने रेयानएयर के एक विमान को जबरन उतारकर बेलारूस द्वारा एक पत्रकार रोमान प्रातोसेविच को गिरफ्तार किए जाने की घटना ने भी रूस के साथ खींचतान बढ़ाई थी. बेलारूस के नेता लुकाशेंको के रूसी राष्ट्रपति पुतिन से करीबी संबंध हैं. जर्मनी समेत यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों ने एक यात्री विमान को जबरन अपने यहां उतारकर एक पत्रकार को गिरफ्तार करने की कार्रवाई पर बेलारूस से सफाई मांगी थी. इसके बाद मॉस्को ने कई यूरोपीय विमानों को अपने यहां आने से कुछ समय के लिए रोक दिया था.
ऐसे में जर्मनी और रूस द्वारा पुतिन के साथ बातचीत के सुझाव पर कुछ यूरोपीय देशों की सरकारें हैरान हुई हैं. दो वरिष्ठ कूटनीतिज्ञों ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें तो इस प्रस्ताव का पता ही मीडिया से चला.
कई देश नाखुश
लातविया के प्रधानमंत्री क्रिश्यानिस कारिंश भी इस सुझाव को लेकर सशंकित हैं. उन्होंने कहा कि रूसी सरकार पर भरोसा करना मुश्किल होगा. कारिंश ने कहा, "क्रेमलिन को ताकत की राजनीतिक समझ में आती है. क्रेमलिन शक्ति के संकेत के रूप में छूट नहीं देता.”
एक अन्य बाल्टिक देश लिथुआनिया भी जर्मनी और फ्रांस के सुझाव पर उत्साहित नहीं है. वहां के राष्ट्रपति गितानस नौसेदा ने कहा, "यदि रूस के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव के बिना हम बातचीत शुरू करते हैं तो हमारे साझीदारों को बहुत अनिश्चित और बुरा संदेश जाएगा. मुझे तो ऐसा लग रहा है कि हम शहद को सुरक्षित रखने के लिए भालू से बात करने की कोशिश कर रहे हैं.”
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने कहा कि वह यूरोपीय संघ की पुतिन के साथ किसी भी बैठक का बहिष्कार करेंगे. उन्होंने 2014 में यूक्रेन के आसमान में एमएच17 विमान को गिराए जाने की याद दिलाई, जिसमें करीब 300 लोग मारे गए थे. उनमें से ज्यादार डच नागरिक थे.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
-एंड्रियन हार्ट्रिक, डॉमिनिका ओज़िन्स्का
पूर्व में सोवियत संघ में शामिल रहे तुर्कमेनिस्तान के उत्तर में एक बड़ा-सा गड्ढा है जिसे 'गेट्स ऑफ़ हेल' यानी 'नरक का दरवाज़ा' कहा जाता है.
तुर्कमेनिस्तान के 70% हिस्से में काराकुम रेगिस्तान है. 3.5 लाख वर्ग किलोमीटर के इस रेगिस्तान के उत्तर की तरफ गेट क्रेटर यानी दरवाज़ा क्रेटर नाम का बड़ा-सा गड्ढा है.
इस गड्ढे के बारे में कनाडाई एक्सप्लोरर जॉर्ज कोरोनिस ने बीबीसी को बताया "जब मैंने पहली बार इसे देखा और इसके पास की ज़मीन पर मैंने पैर रखा तो इस गड्ढे से आने वाली गर्म हवा सीधे मेरे चेहरे पर लग रही थी. मुझे लगा कि ये ऐसी जगह है जिसमें से शैतान खुद हाथों में हथियार लिए निकला होगा."
69 मीटर चौड़े और 30 मीटर गहरे इस गड्ढे में बीते कई दशकों से आग धधक रही है, लेकिन इसका कारण शैतान नहीं बल्कि इससे निकलने वाली प्राकृतिक गैस (मीथेन) है.
साल 2013 में नेशनल जियोग्राफ़िक चैनल के लिए बनाए जा रहे एक कार्यक्रम के दौरान एक खोजी दल तुर्कमेनिस्तान के इस इलाक़े में पहुंचा था. जॉर्ज कोरोनिस इसी दल के सदस्य थे. वो ये जानने की कोशिश कर रहे थे कि इस गड्ढे में 'लगातार जलने वाली' आग वास्तव में शुरू कब से हुई.
लेकिन उनकी जाँच ने उनके सवालों के पूरे जवाब देने की बजाय और सवाल खड़े कर दिए.
कब लगी थी रहस्यमय आग
इस आग के बारे में कहानी शुरू होती है अस्सी के दशक की शुरूआत से. प्रचलित कहानी की मानें तो साल 1971 में सोवियत संघ के भूवैज्ञानिक काराकुम के रेगिस्तान में कच्चे तेल के भंडार की खोज कर रहे थे.
यहां एक जगह पर उन्हें प्रकृतिक गैस के भंडार मिले, लेकिन खोज के दौरान वहां का ज़मीन घंस गई और वहां तीन बड़े-बड़े गड्ढे बन गए.
इस गड्ढों से मीथेन के रिसने का ख़तरा था जो वायुमंडल में घुल सकता था. एक थ्योरी के अनुसार इसे रोकने के लिए भूवैज्ञानिकों ने उनमें से एक गड्ढे में आग लगा दी. उनका मानना था कि कुछ सप्ताह में मीथेन ख़त्म हो जाएगी और आग अपने आप बुझ जाएगी.
लेकिन कोरोनिस कहते हैं कि इस कहानी को सच माना जा सके इसके पक्ष में उन्हें कोई दस्तावेज़ नहीं मिले.
साल 2013 में अपने पहले दौरे के वक्त उन्होंने कई स्थानीय लोगों से इस बारे में बात की लेकिन उन्हें पता चला कि इस आग के बारे में कोई भी कुछ नहीं जानता.
वो कहते हैं, "इस गड्ढे के बारे में सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात ये थी कि इसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी. इस देश में जा कर भी आप इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं पा सकते."
"मैंने इसके बारे में आधिकारिक रिपोर्ट और दस्तावेज़ ढूंढे. कुछ अख़बारों में इस घटना का ज़िक्र ज़रूर मिला लेकिन कहा जा सकता है कि कुछ नहीं मिला."
तुर्कमेनिस्तान के भूवैज्ञानिकों के अनुसार ये विशाल गड्ढा वास्तव में 1960 के दशक में बना था लेकिन 1980 के दशक में ही इसमें आग लगी.
कोरोनिस कहते हैं इसमें आग कैसे लगी इसे लेकर भी विवाद है. वो कहते हैं, "कुछ लोग कहते हैं कि इसमें जानबूझ कर आग लगाई गई, कई कहते हैं कि आग दुर्घटनावश लगी और कुछ का तो ये भी कहना है कि आग बिजली गिरने से लगी."
एक और थ्योरी के अनुसार भूवैज्ञानिकों से फ्लेयरिंग तकनीक का इस्तेमाल किया हो सकता है. प्राकृतिक गैस को निकालने की प्रक्रिया में आम तौर पर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें सुरक्षा के लिहाज़ से और गैस बचाने के लिए जानबूझ कर बचे गैस में आग लगा दी जाती है.
लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर मामला ऐसा है तो चूंकि सोवियत संघ के लिए रणनीतिक तौर पर अहम मुद्दा था इसलिए इससे जुड़ी रिपोर्ट को टॉप सीक्रेट करार दिया गया होगा.
इतिहासकार जेरोनिम पेरोविक कहते हैं कि 'नरक के दरवाज़े' को लेकर जो रहस्य है वो बिल्कुल तार्किक है.
जेरोनिम ने बीबीसी से कहा, "ये इस बात की तरफ इशारा है कि सोवियत संघ के दौर में काम कैसे होता था. उस वक्त केवल उन अभियानों की जानकारी सार्वजनिक की जाती थी जो सफल रहते थे लेकिन नाकाम अभियानों के बारे में बताया नहीं जाता था. अगर स्थानीय लोगों ने कुछ ग़लत किया है तो वो नहीं चाहेंगे कि इसके बारे में औरों को पता हो."
आग का ये गड्ढा रेगिस्तान के बीच उभरा था ऐसे में इसके कारण जानोमाल के नुक़सान का कोई डर नहीं था और इसके असर भी न के बराबर ही था.
जानकार मानते हैं कि उस दौर में सोवियत संघ के पास प्राकृतिक गैस या ईंधन का कोई कमी नहीं थी, वो हर साल सात लाख क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता था. ऐसे में ये संभव है कि गैस को जला देना उनके लिए व्यावहारिक विकल्प रहा होगा.
वो कहते हैं, "स्विट्ज़रलैंड जैसा देश हर साल 15 हज़ार से 16 हज़ार क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस का इस्तामेल करता था, लेकिन इसका चार गुना जला कर नष्ट कर देना सोवियत के लिए बड़ी बात नहीं थी. इसके लिए तर्कसंगत रूप से ये सोचने की बजाय कि इसे पाइपलाइन में डाल कर दूसरी जगह ले जाया जाए, उन्होंने इसे जलाने का फ़ैसला किया होगा. प्राकृतिक गैस को दूसरी जगह ले जाने के लिए उन्हें यहां बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करना होता."
कोरोनिस के खोजी दल में शामिल रहे माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्टीफ़न ग्रीन कहते हैं कि "मीथेन को अनियंत्रित तरीके से पर्यावरण में घुलने देना ग़लत विचार है" और इसे जला देने के फ़ैसले को समझा जा सकता है.
वो कहते हैं, "ये बेहद ख़तरनाक हो सकता था. क्योंकि जब तक आग लगी रहेगी मीथेन एक जगह पर जमा नहीं होगा, नहीं तो इसमें वक्त-वक्त पर बड़ा धमाका होने का ख़तरा बना रहता."
ये बात सच है कि वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड गैस छोड़ना हानिकारिक है लेकिन वातावरण में मीथेन गैस छोड़ना उसके मुक़ाबले अधिक हानिकारक है. इराक़, ईरान और अमेरिका जैसे कई देश भी इसे वातातरण में छोड़ने की बजाय इसे जला देते हैं.
जेरोनिम पेरोविक कहते हैं कि "दुर्भाग्य से ये एक ऐसी समस्या है जिसका अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है"
'डेड' झील कराकुल जहां नाव तक नहीं चल सकती
आग देखने जाते हैं कई लोग
तुर्कमेनिस्तान के अधिकरियों ने एक बार सोचा था कि वो लगातार जल रही इस आग को बुझा दे. लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि ये पर्यटन को बढ़ावा देने का अच्छा रास्ता हो सकता है.
हर साल क़रीब छह हज़ार सैलानियों वाले इस देश के लिए मीथेन उगलने वाला ये गड्ढा देश का सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक बन चुका है.
काराकुम रेगिस्तान में ये गड्ढा रात को भी दूर से दिखाई देता है और कई सैलानी इसे देखने जाते हैं.
इस गड्ढे के पास खड़े होने के अपने अनुभव के बरे में जॉर्ज कोरोनिस बताते हैं, "मैं एक प्रोट्क्टिव सूट पहने खड़ा था और एक अंतरिक्षयात्री की तरह दिख रहा था. मेरे सामने एक स्टेडियम जितना बड़ा आग का ऐसा गड्ढा था जो आग उगल रहा था. मेरे लिए ये धरती में रहते हुए किसी दूसरी दुनिया में जाने जैसा अनुभव था." (bbc.com)
अमेरिका के फ़्लोरिडा राज्य के मयामी शहर के पास में अधिकारियों के अनुसार एक 12-मंज़िला इमारत गिर गई है जिससे अब तक कम-से-कम एक व्यक्ति की मौत हुई है और 50 से ज़्यादा लोग लापता हैं.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि हादसे के समय इमारत में कितने लोग मौजूद थे.
मयामी के उत्तर में सर्फ़साइड कस्बे में ये इमारत 1980 में बनी थी. इसमें 230 फ़्लैट थे जिनमें से आधों पर असर पड़ा है.
फ़्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसैन्टिस ने चेतावनी दी है कि "जिस तरह की तबाही हुई है, उसे देखते हुए हमें बुरी ख़बर के लिए तैयार रहना चाहिए."
एक प्रत्यक्षदर्शी ने सीबीएस मयामी चैनल से कहा, "हमने ज़ोर की आवाज़ सुनी, हमें लगा कोई मोटरसाइकिfल है, मगर सिर घुमाकर देखा तो हमारे पीछे धूल का बड़ा ग़ुबार चला आ रहा था."
एक और व्यक्ति ने कहा कि वहाँ का नज़ारा 9/11 के हमले जैसा था जब 2001 में न्यूयॉर्क में ट्विन टावर्स को चरमपंथी हमलों में ध्वस्त कर दिया गया था. (bbc.com)
नई दिल्ली, 24 जून (आईएएनएस)| अमेरिकी ट्रेजरी ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) ने भारत के नागरिक मनोज सभरवाल को तस्करी नेटवर्क के सदस्यों के बीच नामित किया है, जो ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स-क्यूड्स फोर्स (आईआरजीसी-कोड्स फोर्स) और यमन में हौथियों को फंड देने में मदद करता है। ईरान स्थित हौथी फाइनेंसर सईद अल-जमाल के नेतृत्व में यह नेटवर्क ईरानी पेट्रोलियम जैसी वस्तुओं की बिक्री से यमन में हौथियों के लिए दसियों मिलियन डॉलर का राजस्व उत्पन्न करता है, जिसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा कई देशों में बिचौलियों और विनिमय घरों के एक जटिल नेटवर्क के माध्यम से निर्देशित होता है।
यूएस ट्रेजरी के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात स्थित सभरवाल एक समुद्री शिपिंग पेशेवर है जो अल-जमाल के नेटवर्क के लिए शिपिंग संचालन का प्रबंधन करता है और अल-जमाल को ईरानी तेल उत्पादों की तस्करी पर सलाह देता है।
सभरवाल अल-जमाल की भागीदारी को अस्पष्ट करते हुए पूरे मध्य-पूर्व और एशिया में ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों और वस्तुओं के शिपमेंट के समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
सभरवाल को अल-जमाल को या उसके समर्थन में भौतिक रूप से सहायता, प्रायोजित, या वित्तीय, सामग्री, या तकनीकी सहायता, या सामान या सेवाएं प्रदान करने के लिए नामित किया जा रहा है।
यमन में संघर्ष की शुरुआत के बाद से, हौथियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमनी सरकार और सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ अपने अभियान को चलाने के लिए आईआरजीसी-क्यूएफ के समर्थन पर भरोसा किया है।
तालिबान ने अफगानिस्तान के कई बड़े शहरों पर दोबारा कब्जा कर लिया है. पिछले कुछ दिनों में उसने बड़े सैन्य अभियान चलाए हैं और वह कई प्रांतों की राजधानियों के करीब पहुंच चुका है.
अमेरिका और नाटो सेनाओं की अफगानिस्तान से जारी वापसी के बीच तालिबान ने देश के हिस्सों को कब्जाने के लिए हमले तेज कर दिए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि कई राज्यों की राजधानियों पर जल्दी ही तालिबान का कब्जा हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि है इससे हाल के दिनों में शांति स्थापना को लेकर हुई राजनीतिक प्रगति और लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.
नाटो सेनाओं की 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ देने की योजना है. इसका अर्थ यह होगा कि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय सेना के हाथ में होगी. ऐसी खबरें आ रही हैं कि पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने कई इलाकों में बड़े हमले किए हैं. अफगान अधिकारियों ने जानकारी दी है कि उत्तरी हिस्से में तालिबान तेजी से आगे बढ़ रहा है और अपने पारपंरिक गढ़ से काफी बाहर निकल आया है.
तालिबान लड़ाकों ने मंगलवार को शीर खान बंदर पर कब्जा कर लिया, जो ताजिकिस्तान के साथ लगती सीमा पर अफगानिस्तान का एक अहम शहर है. इससे पहले वे उत्तरी प्रांत बगलान के नाहरीन और बगलान ए मरकजी जिलों को भी कब्जा चुके हैं.
50 जिलों पर कब्जाः यूएन
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स का कहना है कि मई से अब तक देश के 370 में से 50 जिलों पर तालिबान का कब्जा हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उन्होंने बताया, "जो जिले उन्होंने कब्जाए हैं वे प्रांतों की राजधानियों के इर्द गिर्द हैं. इससे संकेत मिलता है कि तालिबान रणनीतिक जगह बना रहा है और विदेशी फौजों के पूरी तरह चले जाने के बाद इन राजधानियों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है.”
ल्योन्स ने कहा कि हाल ही में जो कब्जे तालिबान ने किए हैं वे लड़ाई के दम पर किए हैं और उसके इस तरह के बड़े सैन्य अभियान एक त्रासद बात होगी. उन्होंने कहा, "अफगानिस्तान में लड़ाई बढ़ने का मतलब नजदीक और दूर के बहुत से देशों की सुरक्षा को खतरा है.”
अमेरिका ने कहा है कि देश से उसकी सेनाओं के चले जाने के बाद भी वह तालिबान पर निगाह रखेगा और आतंकवाद विरोधी हमले करता रहेगा. अमेरिका अधिकारियों ने कहा कि तालिबान पर सूचनाएं जुटाना और नजदीकी देशों से इलाके पर सैन्य हमले जारी रहेंगे.
हालांकि अमेरिका के लिए इलाके में नया सैन्य ठिकाना बनाने का काम मुश्किल हो सकता है क्योंकि इससे रूस और चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है, जो मध्य एशिया में अहम भूमिका रखते हैं. अफगानिस्तान के कुछ पड़ोसी देश, जैसे कि पाकिस्तान पहले ही अमेरिकी सेनाओं को जगह देने से इनकार कर चुके हैं.
शांति पर खतरा
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी दूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता की प्रक्रिया में योगदान के लिए उनका देश आर्थिक मदद और कूटनीति का भी इस्तेमाल करेगा.
अमेरिका ने 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के बाद 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया था. दो दशक बाद तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच समझौते के लिए बातचीत चल रही है, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सेनाएं वापसी की तैयारी कर रही हैं.
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि वह 11 सितंबर से पहले हर हाल में अफगानिस्तान से सेनाओं की वापसी चाहते हैं. वापसी की प्रक्रिया पर चर्चा के लिए वह इसी हफ्ते अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिलने वाले हैं. कई मानवाधिकार कार्यकर्ता चिंतित है कि तालिबान यदि वापस अफगानिस्तान की सत्ता हासिल कर लेता है तो क्षेत्र में महिलाओं के अधिकारों की दिशा में हुई प्रगति खतरे में पड़ सकती है.
वीके (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने के मुद्दे के बीच एक बार फिर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का बयान सामने आया है.
ग़ौरतलब है कि हाल ही में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के अफ़ग़ानिस्तान, तालिबान और अमेरिका पर दिए बयान काफ़ी चर्चा में रहे हैं.
रविवार को एचबीओ मैक्स पर प्रसारित हुए इमरान ख़ान के इंटरव्यू के बाद उनके कई बयानों पर चर्चा जारी है. यह इंटरव्यू अमेरिकी समाचार वेबसाइट AXIOS ने लिया था.
इस दौरान इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार जोनाथन स्वैन ने इमरान ख़ान से पूछा था कि क्या अफ़ग़ानिस्तान से इस साल 11 सितंबर को अमेरिकी सेना के चले जाने के बाद पाकिस्तान उसे अपने बेस का इस्तेमाल करने देगा.
इसके जवाब में इमरान ख़ान ने कहा था कि वो इसकी इजाज़त नहीं देंगे.
इसके अलावा इमरान ख़ान ने पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने की भूमिका और चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई पर भी काफ़ी कुछ बोला था.
पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मज़बूत पकड़ रखना चाहता है लेकिन साल 2001 में अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान में घुसने के बाद और तालिबान को सत्ता से हटाने के बाद उसकी पकड़ कमज़ोर हुई है.
लेकिन पाकिस्तान शांति वार्ता के ज़रिए और तालिबान-अमेरिका के बीच समझौता कराने के उद्देश्य से अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पकड़ मज़बूत रखना चाहता है.
पाकिस्तान के शीर्ष नेता लगातार अफ़ग़ानिस्तान को लेकर बयान दे रहे हैं. इसी कड़ी में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हम्दुल्लाह मोहिब के बीच काफ़ी 'तू-तू मैं-मैं' भी देखी जा चुकी है.
अफ़ग़ानिस्तान के NSA कह चुके हैं कि पाकिस्तान जान-बूझकर अफ़ग़ानिस्तान के मामले में दख़ल दे रहा है. और वो पाकिस्तान पर अक्सर ही अफ़ग़ान तालिबान को समर्थन और मदद देने का आरोप लगाते रहे हैं.
हालांकि, इस बात को माना भी जाता है कि जब तक अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान प्रभावी रहा तब तक पाकिस्तान का दख़ल काफ़ी रहा लेकिन 9/11 के हमले के बाद स्थिति बदली और अफ़ग़ानिस्तान में चुनी हुई सरकार आई.
चुनी हुई सरकार आने के बाद से पाकिस्तान की स्थिति अफ़ग़ानिस्तान में कमज़ोर हुई है. अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता में अफ़ग़ानिस्तान की सरकार शामिल नहीं रही थी और जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान भी यही चाहता था.
अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अब इमरान ख़ान ने अमेरिकी अख़बार 'द वॉशिंगटन पोस्ट' में एक लेख लिखा है, जिसका शीर्षक है 'अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान शांति के लिए साझेदार बनने को तैयार है, लेकिन हम अमेरिकी बेस के मेज़बान नहीं होंगे.'
इससे एक बात फिर साफ़ हो गई है कि पाकिस्तान अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वो अपनी ज़मीन को उसे इस्तेमाल नहीं करने देगा.
वो इसकी इजाज़त क्यों नहीं देगा इसका तर्क देते हुए इमरान ख़ान ने लिखा है, "अगर पाकिस्तान अमेरिकी बेस की मेज़बानी की अनुमति दे देता है जहां से अफ़ग़ानिस्तान पर बम गिराए जाएं तो फिर एक और अफ़ग़ान गृह युद्ध छिड़ेगा, पाकिस्तान से बदला लेने के लिए आतंकी उसे निशाना बनाएंगे. हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. हम पहले ही बहुत बड़ी क़ीमत इसकी दे चुके हैं. वहीं, अगर अमेरिका इतिहास की सबसे शक्तिशाली सैन्य मशीन के साथ अफ़ग़ानिस्तान के अंदर 20 साल बाद भी युद्ध नहीं जीत सकता तो फिर वो हमारे बेस से कैसे जीत जाएगा?"
लेकिन दूसरी ओर अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में बैठे नागरिक सरकार के वरिष्ठ नेताओं के बयान अक्सर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ रहते हैं, जिससे साबित होता है कि वो पाकिस्तान को इन सबके बीच में नहीं आने देना चाहते हैं.
उनका आरोप रहा है कि पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल अभी भी चरमपंथी अफ़ग़ानिस्तान में हमले के लिए कर रहे हैं. वहीं, पाकिस्तान कहता आया है कि उसने चरमपंथ की भारी क़ीमत चुकाई है.
दोनों देशों के बीच तनातनी की झलक इमरान ख़ान के लेख में भी देखने को मिली है.
इमरान ख़ान ने लिखा, "अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका और पाकिस्तान के हित एक जैसे हैं. हम बातचीत के ज़रिए शांति चाहते हैं न कि गृह युद्ध. हम स्थिरता चाहते हैं और दोनों देशों में आतंकवाद को ख़त्म करना चाहते हैं. हमने उस समझौते का समर्थन किया है जो अफ़ग़ानिस्तान में दो दशकों में हुए विकास को संरक्षित रखेगा. हम आर्थिक विकास चाहते हैं और मध्य एशिया से कनेक्टिविटी चाहते हैं ताकि व्यापार बढ़े और हमारी अर्थव्यवस्था ऊपर उठे. अगर आगे गृह युद्ध हुआ तो हम सभी बह जाएंगे."
इसके अलावा इमरान ख़ान ने अपने लेख में पाकिस्तान को तालिबान और अमेरिका को बातचीत के लिए एक टेबल पर लाने का श्रेय दिया.
उन्होंने लिखा है, "तालिबान को बातचीत की मेज़ पर लाने के लिए हमने वास्तविक कूटनीतिक कोशिशें की हैं. सबसे पहले अमेरिका के साथ और फिर अफ़ग़ान सरकार के साथ. हम जानते हैं कि अगर तालिबान सैन्य जीत घोषित करता है तो इसके कारण न समाप्त होने वाला रक्तपात शुरू होगा. हम आशा करते हैं कि अफ़ग़ान सरकार भी बातचीत में अधिक लचीलापन दिखाएगी और पाकिस्तान को दोष देना बंद करेगी. जैसा कि हम सबकुछ कर रहे हैं हम सैन्य कार्रवाई भी कम कर सकते हैं."
अफ़गानिस्तान में पाकिस्तान के अलावा रूस और चीन की भी ख़ासी रुचि है और इसका ज़िक्र इमरान ख़ान के लेख में भी मिलता है.
लेकिन उधर भारत के अफ़ग़ानिस्तान से मज़बूत रिश्ते पाकिस्तान को परेशान करते रहे हैं.
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के अफ़ग़ान टीवी चैनल टोलो न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में भारत की अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदगी पर सवाल उठाए थे.
टोलो न्यूज़ ने क़ुरैशी से पूछा कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत के कितने काउंसलेट हैं? इस पर क़ुरैशी ने कहा, ''आधिकारिक रूप से तो चार हैं लेकिन अनाधिकारिक रूप से कितने हैं, ये आप बाताएंगे. मुझे लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान की सरहद भारत से नहीं मिलती है. ज़ाहिर है कि अफ़ग़ानिस्तान का भारत से एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में संबंध है.''
''दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध हैं. ये आपका अधिकार है कि भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध रखें. दोनों देशों के बीच कारोबार भी है और इसमें हमें कोई दिक़्क़त नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की मौजूदगी जितनी होनी चाहिए उससे ज़्यादा है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई सीमा भी नहीं लगती है.''
वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने दो सप्ताह पहले साफ़ किया था कि वो अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया के साझेदारों के साथ संपर्क में हैं. भारत किस-किस साझेदार के संपर्क में है यह साफ़ नहीं है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत की तालिबान के नेताओं से भी बातचीत हुई है.
ये सब बातें पाकिस्तान के लिए ख़ास मायने रखती हैं इसीलिए वो बेहद सावधानी से इस मामले में आगे बढ़ रहा है. इमरान ख़ान ने अपने लेख में कुछ ग़लतियों को भी स्वीकार किया है.
उन्होंने लिखा है, "पहले पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में विभिन्न पक्षों को चुनने में ग़लती कर चुका है और उससे उसने सीखा. हमारा कोई चहेता नहीं है और हम किस भी सरकार के साथ काम करना चाहेंगे जिसने अफ़ग़ानी लोगों के भरोसे को जीता हो. इतिहास से साबित हो चुका है कि अफ़ग़ानिस्तान को बाहर से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है."
इमरान ख़ान ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध से पाकिस्तान को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है और उसके कारण 70,000 से अधिक पाकिस्तानी मारे गए हैं. (bbc.com)
काठमांडू, 23 जून| नेपाली सरकार ने और अधिक विदेशी गंतव्यों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें फिर से शुरू करने और घरेलू उड़ानों को आंशिक रूप से फिर से शुरू करने का फैसला किया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। संस्कृति, पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव बुद्धिसागर लामिछाने ने कहा कि कैबिनेट की बैठक ने सोमवार को संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, मलेशिया, दक्षिण कोरिया और जापान के लिए उड़ानों की अनुमति देने का फैसला किया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम तब उठाया गया है जब घाटी में मंगलवार को एक और सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया, लेकिन प्रतिबंधों में ढील दी गई है। हिमालयी देश में महामारी की दूसरी लहर के बीच नए कोविड -19 संक्रमण में हफ्तों से गिरावट आई है।
इससे पहले, नेपाल ने भारत, चीन, तुर्की और कतर के लिए उड़ानें फिर से खोल दी हैं। नए निर्णय के अनुसार तुर्की और कतर के लिए उड़ान में वृद्धि की गई है।
लामिछाने ने कहा कि उनका मंत्रालय बुधवार को तय करेगा कि नए गंतव्यों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की अनुमति कब दी जाएगी। उन्होंने कहा, "संभवत: नए गंतव्यों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को इस सप्ताह के अंत में या अगले सप्ताह की शुरूआत में अनुमति दी जाएगी।"
नेपाल के कैबिनेट के फैसले के अनुसार, सप्ताह में एक से चार उड़ानों को अलग-अलग गंतव्यों से आने-जाने की अनुमति दी गई है।
नेपाल में मई की शुरूआत से घरेलू उड़ानें बंद हैं। कैबिनेट के फैसले के तहत घरेलू उड़ानों का संचालन इस आधार पर किया जाएगा कि सामान्य दिनों में कुल घरेलू उड़ानों में से आधे से ज्यादा उड़ानें नहीं होंगी।
लामिछाने ने कहा, "अगले सप्ताह की शुरूआत से घरेलू उड़ानों को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है।"
चीन के मामले में, नेपाली सरकार ने क्रमश: चेंगदू और ग्वांगझू के लिए एक सप्ताह में दो उड़ानों की अनुमति देने का निर्णय लिया है। लामिछाने ने कहा कि चीनी पक्ष के साथ परामर्श के आधार पर स्थलों को बदला जा सकता है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 23 जून | कोरोना के वैश्विक मामलों की संख्या बढ़कर 17.9 करोड़ हो गई है और इस महामारी से कुल 38.8 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी। बुधवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान वैश्विक कोरोना मामले और मरने वालों की संख्या क्रमश: बढ़कर 179,093,146 और 3,880,341 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,564,660 और 602,455 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 29,977,861 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (18,054,653), फ्रांस (5,821,788), तुर्की (5,381,736), रूस (5,288,766), यूके (4,668,019), अर्जेंटीना (4,298,782), इटली (4,254,294), कोलंबिया (3,997,021) स्पेन (3,768,691), जर्मनी (3,731,304) और ईरान (3,117,336) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 504,717 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
भारत (389,302), मैक्सिको (231,244), यूके (128,272), इटली (127,322), रूस (128,180) और फ्रांस (110,991) में 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
अफगानिस्तान में तालिबान के आतंकियों ने मई के बाद से अबतक देश के 50 से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है। देश से अमेरिकी सेना की वापसी कि घोषणा के बाद से तालिबान का आतंक एक बार फिर से बढ़ने लगा है।
न्यूयॉर्क, एजेंसी। अफगानिस्तान में तालिबान के आतंकियों ने मई के बाद से अबतक देश के 50 से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है। देश से अमेरिकी सेना की वापसी कि घोषणा के बाद से तालिबान का आतंक एक बार फिर से बढ़ने लगा है। डेबोरा लियोन्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि इस साल की शुरुआत में घोषणा की गई थी कि विदेशी सैनिकों को वापस बुला लिया जाएगा। इसके बाद से अफगानिस्तान में तबाही शुरू हो गई है।
सितंबर तक विदेशी सैनिक हो जाएंगे वापस
लियोन्स के मुताबिक, जिन जिलों को प्रांतीय राजधानियों से तालिबान को खदेड़ा गया था। उन्हें तालिबान फिर से वापस लेने की कोशिश कर रहा है। वो बस इस इंतजार में है कि, एक बार विदेशी सेना पूरी तरह से वापस चली जाएं। अफगानिस्तान में 20 सालों तक चले युद्ध के बाद अब अमेरिका ने अपने सैनिक वापस बुलाने शुरू कर दिए हैं, जो की 11 सितंबर तक देश से पूरी तरह से बाहर हो जाएंगे। वहीं नाटो देशों के लगभग सात हजार गैर-अमेरिकी कर्मचारी, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जॉर्जिया के लोग शामिल हैं। वह भी तय तारीख तक अफगानिस्तान से बाहर जाने की योजना बना रहे हैं। इस बीव संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि अमेरिकी सैनिकों को वापस लेने के फैसला बहुत विचार-विमर्श करने के बाद लिया गया है। उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि हम अपने पूर्ण राजनयिक और आर्थिक शक्तियों का इस्तेमाल अफगान लोगों के भविष्य को शांतिपूर्ण बनाने के लिए करेंगे। हम अफगान के सुरक्षा बलों का समर्थन करना जारी रखेंगे।
देश में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन शुक्रवार को व्हाइट हाउस में अफगानिस्तान राष्ट्रपति अशरफ गनी और अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह परिषद के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ मुलाकात करेंगे। कतर में तालिबान और अफगान सरकार के प्रतिनिधियों के बीच राजनीतिक समझौते पर बातचीत ठप हो गई है। लियोन्स ने सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि क्षेत्रीय देशों के समर्थन से दोनों देशों को बातचीत के लिए फिर से राजी किया जाए। (jagran.com)
नेपाल में पिछले कई दिनों से जारी राजनीतिक संकट आज उस वक्त गहरा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार के 20 कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति रद्द कर दी.
बीबीसी नेपाली सेवा के मुताबिक़ 4 और 10 जून को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंत्रिपरिषद का विस्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम फैसले में उस कैबिनेट विस्तार को ही खारिज कर दिया है.
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक़ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा और जस्टिस प्रकाश कुमार धुंगाना ने कहा कि संसद को भंग किए जाने के बाद कैबिनेट का विस्तार करना असंवैधानिक है.
इसलिए ओली सरकार के मंत्री अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकते हैं. इस फैसले के बाद ओली सरकार में प्रधानमंत्री को लेकर केवल पांच मंत्री ही रह जाएंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ सात जून को दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. 69 वर्षीय केपी शर्मा ओली पिछले महीने संसद में विश्वास मत गंवाने के बाद से ही अल्पमत वाली सरकार की अगुवाई कर रहे हैं.
उन्होंने 4 जून और 10 जून को कैबिनेट का विस्तार करके 17 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया था जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी. तीन राज्य मंत्री भी नियुक्त किए गए थे.
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सीनेटर शेरी रहमान ने सीनेट में इमरान ख़ान की सरकार की ओसामा बिन लादेन को लेकर आलोचना की है. शेरी रहमान ने कहा कि जो व्यक्ति हज़ारों की मौत के लिए ज़िम्मेदार है, उसे शहीद कैसे घोषित किया जा सकता है.
सोमवार को सीनेट में शेरी रहमान ने कहा, ''ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी को शहीद कैसे कहा जा सकता है. अल-क़ायदा को ख़त्म करने में हमारे लोगों ने क़ुर्बानियाँ दी हैं. इसे अमेरिका भी मानता है. जिसने हज़ारो बेगुनाहों को मारा है, उसके बारे में सुनने में आ रहा है कि वो शहीद है. इस्लाम में बच्चों और औरतों की हत्या करने वाली कौन सी शहादत होती है? ये मदीना की कौन सी रियासत है, जहाँ एक दहशतगर्द को शहीद का दर्जा दिया जा रहा है?''
शेरी रहमान ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के अफ़गानिस्तानी न्यूज़ चैनल टोलो न्यूज़ को दिए इंटरव्यू का हवाला देते हुए संसद में उनकी आलोचना की. क़ुरैशी ने इस इटंरव्यू में ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी कहने से परहेज किया था.
इस इंटरव्यू में टोलो न्यूज़ ने क़ुरैशी से पूछा था कि क्या वो ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी मानते हैं? इसके जवाब में क़ुरैशी ने कहा था कि वो इस पर कुछ नहीं बोलना चाहते हैं. इससे पहले ओसामा बिन लादेन को प्रधानमंत्री इमरान ख़ान एक बार शहीद कह चुके हैं.
शेरी रहमान ने कहा, ''क़ुरैशी का मैं सम्मान करती हूँ, लेकिन उन्होंने इंटरव्यू में इस बात से इनकार नहीं किया वो ओसामा बिन लादेन को शहीद नहीं मानते हैं. आप उस व्यक्ति को दहशतगर्द क्यों नहीं कह सकते, जिसने हमारे मुल्क को इतनी मुश्किल में डाला रहा. इस वक़्त पाकिस्तान की विदेश नीति के लिए सबसे जटिल वक़्त है, तब आप ऐसी ग़लतियाँ कर रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना चार जुलाई तक चली जाएगी और आप फिर से 30साल पुरानी समस्या में फँस जाएंगे. जो बम बरसाता है उसे आप शहीद कहते हैं.'' (bbc.com)
इसराइल के नए विदेश मंत्री येर लेपिड अगले हफ़्ते पहला विदेशी दौरा एक इस्लामिक देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का करने जा रहे हैं.
येर लेपिड इसराइली प्रधानमंत्री बेनेट नेफ़्टाली की गठबंधन सरकार में सबसे बड़े दल के नेता हैं. येर लेपिड इस सराकार में उप-प्रधानमंत्री भी हैं और दो साल बाद वो समझौते के मुताबिक़ प्रधानमंत्री बनेंगे.
नई सरकार बनने के बाद इसराइल का यह सबसे उच्चस्तरीय दौरा है और इस दौरे के लिए यूएई को चुना है.
इसराइली विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि येर लेपिड 29 और 30 जून को यूएई के दौरे पर होंगे. वे इस दौरे में अबू धाबी में इसराइली दूतावास और दुबई में एक वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन करेंगे.
पिछले साल ही यूएई ने इसराइल से रिश्ते सामान्य किए थे और राजनयिक संबंध कायम करने का फ़ैसला किया था. इसमें अमेरिका के तत्कालीन ट्रंप प्रशासन की अहम भूमिका थी.
पू्र्व प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू यूएई के चार दिवसीय दौरे पर जाने की योजना बना रहे थे लेकिन यह कई वजहों से संभव नहीं हो पाया था. नेतन्याहू की सरकार में ही पिछले साल यूएई, सूडान और मोरक्को ने इसराइल को मान्यता देते हुए रिश्ते सामान्य करने की घोषणा की थी.
नेतन्याहू ने यूएई जाने की हालिया कोशिश इसी साल मार्च में महीने में की थी. इसराइली मीडिया के अनुसार तब जॉर्डन नेतन्याहू को अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी थी. इस बीच उनकी सरकार भी चली गई.
येर लेपिड के इस दौरे से साफ़ है कि अरब के देशों में वो अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर बहुत सक्रिय है. हालांकि अरब के कई देश अब भी इसराइल से रिश्ते सामान्य करने को तैयार नहीं है. (bbc.com)
1988 में ईरान-इराक़ युद्ध के बाद राजनीतिक क़ैदियों को सामूहिक फांसी देनेसे जुड़े मामले को लेकर ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की आलोचना होती रही है. इस बार मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर उन्होंने पहली बार टिप्पणी की है.
शुक्रवार को चुनाव में अपनी जीत के बाद सोमवार को रईसी ने पहली बार प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. इस दौरान उन्होंने परमाणु समझौतों से लेकर ईरान-अमेरिकी रिश्तों पर भी बात की.
लेकिन एक पत्रकार ने उनसे उनके मानवाधिकार रिकॉर्डों के बारे में पूछ लिया तो इस पर रईसी ने कहा, “मुझे गर्व है कि मैंने हर स्थिति में अब तक मानवाधिकारों का बचाव किया है.”
उन्होंने चरमपंथी समूह आईएस के संदर्भ में कहा कि वो ‘उन लोगों से भी निपटा हूं जिन्होंने लोगों के अधिकारों को बाधित किया है और दाएशी और सुरक्षा विरोधी कामों में शामिल रहे हैं.’
“अगर एक क़ानून विशेषज्ञ, एक जज या एक प्रोसिक्यूटर लोगों के अधिकारों की और समाज की सुरक्षा की रक्षा करता है तो उसकी लोगों की सुरक्षा करने के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.”
क्या हैं आरोप
इब्राहिम रईसी पर बार-बार मानवाधिकारों का उल्लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं क्योंकि 1988 में जब तक़रीबन 5,000 राजनीतिक क़ैदियों को सामूहिक फांसी की सज़ा दी गई तब वो ईरान के डिप्टी प्रोसिक्यूटर थे.
इन राजनीतिक क़ैदियों में से ज़्यादातर लोग ईरान में वामपंथी और विपक्षी समूह मुजाहिदीन-ए-ख़ल्क़ा या पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान के सदस्य थे.
इसके कारण अमेरिका उन पर प्रतिबंध भी लगा चुका है.
इसराइल के नए प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट ने रविवार को अपनी कैबिनेट की पहली बैठक के दौरान रईसी पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह ‘क्रूर जल्लादों के शासन’ का हिस्सा थे.
बेनेट ने दुनिया की शीर्ष ताक़तों को आगाह किया है कि ईरान के साथ परमाणु समझौते में लौटने से पहले यह अंतिम बार ‘जाग जागने’ वाली कॉल है.
कट्टरपंथी नेता रईसी शनिवार को 62% मतों के साथ ईरान के नए राष्ट्रपति चुने गए थे. इस चुनाव के दौरान ऐतिहासिक रूप से ईरान में सबसे कम मतदान हुआ था. (bbc.com)
वाशिंगटन, 22 जून | अमेरिका के अलबामा में चक्रवाती तूफान क्लॉडेट के तेज हवाओं और भारी बारिश के चलते 14 लोगों की मौत हो गई। नेशनल हरिकेन सेंटर ने एक एडवाइजरी में कहा कि क्लाउडेट में सोमवार को अधिकतम 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने यूएसए टुडे की रिपोर्ट के हवाले से कहा, मौसम विभाग ने पूर्वी उत्तरी कैरोलिना के कुछ हिस्सों में अचानक बाढ़ की चेतावनी जारी की, जहां कई समुद्र तटों के लिए तेज धाराओं को लेकर जोखिम बताया गया था।
बटलर काउंटी में दुर्घटना में 14 पीड़ितों में नौ बच्चे और एक 29 वर्षीय व्यक्ति शामिल थे।
बटलर काउंटी के कोरोनर वेन गारलॉक ने कहा कि वाहन संभवत: बाढ़ के पानी से भरी सड़क जलमगान हो गए हैं।
अधिकारियों ने सोमवार को कहा, अलबामा में भी 31 वर्षीय टिमोथी ब्रैग की बमिर्ंघम में बाढ़ के पानी में डूबने से मौत हो गई।
यूएसए टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, यह तूफान का मौसम सामान्य से अधिक गतिविधि का लगातार छठा साल है। यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिकएडमिनिस्ट्रेशन की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए कि 20 नामित तूफानों का विकास होगा, जो चक्रवाती तूफानों से शुरू होकर हवा की गति को 39 मील प्रति घंटे या अधिक तक बढ़ा सकते हैं।
74 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलने पर चक्रवाती तूफान बन जाते हैं। (आईएएनएस)
यमन के मधुमक्खी पालकों पर जलवायु परिवर्तन की मार तेजी से पड़ रही है. उत्पादन तो कम हो रहा साथ ही साथ वे इस सालों पुराने पेशे से पीछे हटने को मजबूर हो रहे हैं. सिद्र शहद का उत्पादन भी कम होता जा रहा है.
दक्षिणी यमन की उबड़-खाबड़ सड़कों पर कई दिनों तक गाड़ी चलाने के बाद, रदवान हिजाम आखिरकार आदर्श स्थान पर पहुंच गए, जहां उन्हें उम्मीद थी कि उनकी मधुमक्खियां सिद्र के पेड़ों के फूलों से रस चूस सकेंगी. दुनिया भर में सिद्र के पेड़ों वाले शहद मशहूर हैं. लेकिन हिजाम यहां बहुत देर से पहुंचे हैं. बेमौसम बारिश का मतलब था कि सिद्र के पेड़ों पर जल्दी फूल आ गए थे और उनकी पीली पंखुड़ियां हिजाम के आने से बहुत पहले गिर गई थीं. इस कारण से उनकी मधुमक्खियां भूखी रह गईं. सिद्र शहद से होने वाली आमदनी इस साल गिर गई. हिजाम इसका दोष जलवायु परिवर्तन को देते हैं.
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से हिजाम कहते हैं, "यह एक बहुत बड़ा नुकसान था." उन्होंने अनुमान लगाया कि समय से पहले फूल गिर जाने से शहद उत्पादन की तीन चौथाई का उन्हें नुकसान हो गया. 45 वर्षीय हिजाम ने दक्षिण-पश्चिमी यमन के गृह प्रांत ताएजो से कहा, "मधुमक्खी पालन एक पारिवारिक व्यवसाय है, यह हमारी आय का मुख्य स्रोत है. और यमन की संस्कृति का एक हिस्सा. लेकिन जलवायु परिवर्तन इसको खतरे में डाल रहा है."
मधुमक्खी के पालकों पर जलवायु की मार
पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक युद्धग्रस्त यमन की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. सालों से पड़ता सूखा और अत्यधिक गर्म दिनों की बढ़ती संख्या अधिक अस्थिर वर्षा - सभी जलवायु द्वारा प्रेरित हैं. जलवायु सेवा केंद्र जर्मनी द्वारा 2015 के विश्लेषण के मुताबिक गरीब अरब प्रायद्वीप देश ने पिछले 30 सालों में 29 फीसदी वर्षा में वृद्धि का अनुभव किया और औसत तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ा. इस कारण देश के सबसे कीमती उत्पाद को चोट पहुंच रही है. सिद्र शहद, जो प्राचीन वृक्ष के पराग को मधुमक्खियों को खिलाकर पैदा किया जाता है. सिद्र शहद सेहत के लिए लाभदायक बताया जाता है और इसकी कीमत साढ़े पांच हजार रुपये ढाई सौ ग्राम है.
आमतौर पर यमन के मधुमक्खी पालक मधुमक्खी के छत्ते को ट्रक पर लादकर चलते हैं और वार्षिक फूलों के मौसम के समय सिद्र के पेड़ के पास पहुंचते हैं. यह मौसम करीब एक महीने तक चलता है.
बेमौसम बारिश का भी असर
यूएनडीपी की साल 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसम बारिश कहर बरपा रही है. जलवायु परिवर्तन यमन के शहद के काम में जुटे एक लाख परिवार की आजीविका के लिए खतरा बन रहा है. पेड़ पर या तो सामान्य से पहले ही फूल खिलते हैं या मधुमक्खियों के फूलों तक पहुंचने से पहले ही बेमौसम बारिश से फूल गिर जाते हैं.
सना शहर में यूएनडीपी की आर्थिक विकास इकाई के प्रमुख फव्वाद अली कहते हैं कि आकस्मिक बाढ़ भी शहद उत्पादन को कम कर रही है. उनके मुताबिक, "किसान और मधुमक्खी पालक का बाढ़ आने पर एक दूसरे को चेतावनी देने का पारंपरिक तरीका हुआ करता था. वे खास पैटर्न में हवा में गोली चलाते थे. लेकिन अब बाढ़ आने पर चेतावनी देने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं है."
उत्तरी यमन में भी सर्दियों के दौरान सूखे ने मधुमक्खी पालकों को भी चोट पहुंचाई है. मधुमक्खी पालक नशेर कहते हैं, "यह मधुमक्खी पालकों को विचलित करता है, वे मौसम के सामने हार जाते हैं. इसका असर यह होता है कि पूरा सीजन खराब हो जाता है और उत्पादन पर असर पड़ता है."
यमन में 2015 से चल रहे संघर्ष के कारण ग्रामीण मधुमक्खी पालकों के लिए नुकसान भारी होता जा रहा है. परिवहन के रूप में खर्च बढ़ा है तो संघर्ष के कारण जोखिम भी. एक और मधुमक्खी पालक अकारी इस बात को लेकर मायूस हैं कि वह अपने जुनून को जलवायु खतरे के कारण अगली पीढ़ी को सौंप नहीं पाएंगे. वे कहते हैं, "यह पेशा हमारी रगों में दौड़ता है. और मैं इस जीवन में अपने बच्चों को बिना पढ़ाए छोड़ नहीं सकता. मधुमक्खियां मेरे जीवन का हिस्सा हैं."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
बच्चों पर हिंसा को लेकर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल दुनिया के 8,500 से ज्यादा बच्चों को सैनिक के तौर पर इस्तेमाल किया गया, जिनमें से 2,700 से ज्यादा की जान चली गई.
संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2,674 बच्चे दुनियाभर में चल रहे विभिन्न विवादों में मारे गए. दुनियाभर में जारी हिंसक विवादों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेश की सुरक्षा परिषद को दी गई इस रिपोर्ट में बच्चों के मारे जाने, घायल हो जाने और विद्रोही गुटों में भर्ती करने के लिए अगवा कर लेने जैसी घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में जारी 21 हिंसक विवादों के दौरान 19,379 में बच्चों के खिलाफ हिंसा हुई. इनमें से 14,097 लड़के थे और 4,993 लड़कियां. 289 बच्चों के लिंग की जानकारी नहीं है. सबसे ज्यादा घटनाएं बच्चों को सैनिक के तौर पर भर्ती करने की हुईं. 8,521 बच्चों को सैनिक के तौर पर भर्ती किया गया. 2,674 बच्चों की जान चली गई और 5,748 बच्चे घायल हुए. बच्चों के खिलाफ पिछले साल सबसे ज्यादा हिंसा सोमालिया, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, अफगानिस्तान, सीरिया और यमन में हुई.
बच्चों के अपहरण के मामले 90 प्रतिशत बढ़े जबकि यौन उत्पीड़न के 70 फीसदी. अस्पतालों पर हमलों में कमी आई, लेकिन स्कूलों पर हमले बढ़े. खासकर साहेल और चाड में स्कूलों पर हमलों में बहुत बढ़त देखी गई. सैनिक के तौर पर भर्ती किए गए 85 फीसदी बच्चे लड़के थे, जबकि यौन हिंसा का शिकार बच्चों में से 98 प्रतिशत लड़कियां थीं.
भारत की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले साल दो बच्चों के सैनिक के तौर पर भर्ती किए जाने की पुष्टि हुई है. इसके अलावा भारतीय सेना द्वारा तीन बच्चों को 24 घंटे से कम समय के लिए इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट भी है, जिसकी समीक्षा की जा रही है.
सेना ने जम्मू और कश्मीर में चार बच्चों को हथियारबंद समूहों से संपर्क होने के आरोपों में हिरासत में रखा. 9 बच्चों की पेलेट गन से हमले या अन्य वजहों से मौत हुई, जबकि 30 स्थायी रूप से विकलांग हो गए. भारतीय सेना ने चार महीने तक सात स्कूलों का इस्तेमाल किया और उन्हें साल के आखिरी हफ्तों में खाली किया गया.
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेश ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, "मैं जम्मू-कश्मीर में बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर चिंतित हूं और सरकार से जरूरी कदम उठाने का आग्रह करता हूं. बच्चों की सुरक्षा के लिए पेलेट्स का इस्तेमाल बंद करना और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चे किसी तरह सेना से न जोड़े जाएं." गुटेरेश ने बच्चों को यातनाएं दिए जाने और सेना द्वारा स्कूलों का इस्तेमाल किए जाने को लेकर भी चिंता जताई है.
ब्लैकलिस्ट
इस रिपोर्ट में एक ब्लैकलिस्ट भी बनाई गई है जहां कुछ पक्षों के नाम जानबूझकर उजागर किए गए हैं ताकि वे बच्चों को बचाने की दिशा में कुछ कदम उठाएं. इस सूची पर काफी समय से विवाद रहा है क्योंकि कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि सऊदी अरब और इस्राएल दोनों ने हाल के सालों में इस सूची के बाहर रहने के लिए खासा दबाव बनाया है.
इस्राएल को इस सूची में कभी नहीं रखा गया है, जबकि सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन को 2020 में सूची से हटा दिया गया. इससे पहले यह संगठन कई साल तक सूची में रहा था और उन्हें यमन में बच्चों के कत्ल का आरोपी बताया गया था.
2017 में जो सूची जारी की गई थी, उस पर भी काफी विवाद हो गया था क्योंकि उसे दो हिस्सों में बांट दिया गया था. एक हिस्से में वे नाम थे, जिन्होंने बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए हैं. दूसरे हिस्से में कोई कदम न उठाने वाले पक्षों को शामिल किया गया था.
21 जून को जो सूची जारी की गई, उसमें कई बड़े बदलाव देखने को मिले. इस बार सिर्फ दो देश है जिसका नाम बच्चों की सुरक्षा के लिए कदम न उठाने वाली सूची में रखा गया है. म्यांमार की सेना को बच्चों की हत्या, विकलांगता और यौन उत्पीड़न का जिम्मेदार बताया गया है. जबकी सीरिया की सरकारी फौजों को बच्चों की भर्ती, हत्या, यौन उत्पीड़न और स्कूलों व अस्पतालों पर हमलों का जिम्मेदार कहा गया है.
वीके/एए (एपी, एएफपी)
इथियोपिया में चुनाव हो रहे हैं. दशकों बाद देश में इस तरह चुनाव हो रहे हैं जिन पर लोगों को भरोसा है. इस भरोसे के लिए अयाले वेदाजो ने अपना बेटा खोया है.
अयाले वेदाजो के लिए इथियोपिया में सोमवार को हुआ मतदान बेहद अहम था. बेरोजगार मजदूर अयाले वेदाजो ने सोमवार को इथियोपिया के चुनावों में वोट डालने से पहले अपने सबसे बड़े बेटे गेटिनेट की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. गेटिनेट 16 साल पहले लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में मारा गया था. प्रधानमंत्री एबी अहमद ने इन चुनावों को निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों की ओर देश की पहली कोशिश बताया है.
इथियोपिया के ज्यादातर चुनाव दमन और धोखाधड़ी का शिकार रहे हैं. 2005 में एक ऐसे चुनाव हुए थे, जिन पर कुछ भरोसा किया जा सकता था और तब विपक्ष ने कुल 547 में से 147 सीटें जीती थीं, जो ऐतिहासिक था. लेकिन नतीजों पर विवाद हुआ, विरोध प्रदर्शन हुए और दसियों हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. तब प्रदर्शनों के दौरान सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. गेटिनेट उन्हीं में से एक था. अयाले कहते हैं, "2005 के चुनाव में जो खून बहा था, बस और न बहे. उस वक्त जो बच्चे मारे गए थे, बस और न मरें.”
खूनी इतिहास
60 पार कर चुके अयाले सम्राट हेली सेलासी के राज में जन्मे थे. बाइबिल में जिस राजा सोलोमन का जिक्र है, सम्राट सेलासी उसी के वंश के आखिरी शासक थे. 1974 में उनका तख्ता पलट दिया गया. अयाले को याद है कि उस वक्त सड़कों पर सैनिक और आसमान में सेना के हेलिकॉप्टर भर गए थे. तख्ता पलट ने एक क्रूर मार्क्सवादी शासन की शुरुआत की जो 1991 तक रहा. तब अयाले और उनके पड़सियों ने बागियों को अपने घरों में शरण देना शुरू किया था, जो टिग्रे से आए थे. वह बताते हैं, "हमें बहुत उम्मीद थी लेकिन हम गलत थे.”
टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट ने सत्ता हथिया ली और तीन दशक तक एक और क्रूर राज का दौर चला. उसी सरकार के दौरान अयाले का बेटा मारा गया था. आखिरकार जन-प्रदर्शनों की जीत हुई और 2018 में प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. कैदी रिहा किए गए. एक गठबंधन को सत्ता सौंपी गई, जिसका नेतृत्व एबी अहमद ने किया. उन्होंने दसियों हजार राजनीतिक कैदियों को रिहा किया. राजनीतिक दलों पर लगे प्रतिबंध हटाए और बहुतों को अपनी सरकार में जगह दी.
संदेह के बादल
हालांकि कुछ राजनीतिक दल कहते हैं कि वह आजादी अब फिर से छिनने लगी है, लेकिन सरकार इसे खारिज करती है. कुछ इलाकों में चुनाव टाले गए हैं. जैसे कि टिग्रे और अन्य इलाके, जो हिंसा से ग्रस्त हैं. सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य ओरोमिया में विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि क्षेत्रीय सुरक्षा बल उन्हें धमका रहे हैं. इन आरोपों के साथ उन्होंने चुनावों का बहिष्कार किया. इस बारे में जब सत्ता पक्ष के नेताओं से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने जवाब नहीं दिया.
लेकिन अयाले इन आरोपों के बावजूद उम्मीद की एक किरण देख रहे हैं. उन्हें एक बदलाव की उम्मीद है. वह कहते हैं, "बहुत सारे राजनीतिक दल हैं और कम से कम वे ईमानदारी से बोल पा रहे हैं. यह नई बात है. मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा लोकतंत्र है. उसके बाद, मुझे यकीन है कि अर्थव्यस्था का भी विकास होगा. लेकिन सबसे पहले हमें आजाद होना है.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसने पर पश्चिमी देशों ने सैन्य जुंटा पर दबाव बढ़ा दिया है. नए प्रतिबंध ऐसे समय में लगाए गए हैं जब म्यांमार की सेना रूस के साथ संबंध मजबूत कर रही है.
यूरोपीय संघ ने सोमवार को मानवाधिकारों के हनन को लेकर म्यांमार के सैन्य जुंटा प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों पर नए प्रतिबंध लगाए हैं. 27 सदस्यीय ब्लॉक ने आठ अधिकारियों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया है और म्यांमार की सेना से जुड़ी चार "आर्थिक संस्थाओं" पर कार्रवाई की है. यूरोपीय संघ ने "लोकतंत्र और कानून के शासन की अवहेलना करने और गंभीर मानवाधिकारों के हनन" के लिए म्यांमार के अधिकारियों की आलोचना की है.
सेना द्वारा नियंत्रित कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने का उद्देश्य सैन्य जुंटा को आर्थिक रूप से चोट पहुंचाना है. ईयू ने सोमवार को एक बयान में कहा, "इस कदम का उद्देश्य म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों से लाभ उठाने की सेना की क्षमता को सीमित करना है. प्रतिबंध इस तरह से लगाए गए जिससे म्यांमार की जनता को कोई नुकसान न पहुंचे."
ब्रिटेन ने भी सोमवार को म्यांमार की तीन कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिए. इनमें से एक सरकारी स्वामित्व वाली मोती का काम करने वाली कंपनी है और दूसरी लकड़ी का कारोबार करने वाली कंपनी है.
मास्को के साथ मजबूत होते संबंध
प्रतिबंध ऐसे वक्त में लगाए गए हैं जब सैन्य जुंटा मदद के लिए रूस की ओर देख रहा है. इस सप्ताह मॉस्को में एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन से पहले सैन्य जुंटा नेता मिन ऑन्ग ह्लाइंग ने सोमवार को रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रमुख निकोलाई पेट्रोसोव से मुलाकात की.
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा और म्यांमार के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की. दोनों देशों ने "द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने की इच्छा" दोहराई.
रूस, म्यांमार की सेना को हथियारों का प्रमुख सप्लायर है. इसी साल फरवरी में आंग सान सू ची के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने और म्यांमार में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से यह ह्लाइंग की दूसरी मॉस्को यात्रा है.
म्यांमार की राजनीतिक स्थिति
म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट कर दिया था और स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची और उनके सत्तारूढ़ एनएलडी के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था. विद्रोह से पहले, सेना ने सू ची की पार्टी पर पिछले साल के चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था.
सू ची पर इस समय अपने अंगरक्षकों के लिए अवैध रूप से वॉकी-टॉकी आयात करने और कोरोना महामारी के नियमों का उल्लंघन करने का मुकदमा चल रहा है. उन पर भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों का भी आरोप लगाया गया है, लेकिन सू ची समर्थकों का कहना है कि आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उनका उद्देश्य उन्हें पद पर दोबारा लौटने से रोकना है.
सू ची के वकीलों ने सोमवार को कहा कि उनके खिलाफ पेश किए गए कुछ सबूत झूठे हैं. विद्रोह के बाद से सेना ने प्रदर्शनकारियों और विरोधियों पर हिंसक कार्रवाई की है. एक प्रमुख मानवाधिकार समूह का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने 860 से अधिक लोगों को मार डाला है, जबकि 4,500 से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया है.
अमेरिका भी म्यांमार के साथ व्यापार समझौता रोक चुका है और उसने कई आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए हैं. मार्च के महीने में अमेरिका ने 2013 के व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौते के तहत म्यांमार से हर तरह के व्यापार पर रोक लगा दी थी. इस समझौते के तहत दोनों देश व्यापार और निवेश के मोर्चों पर एक दूसरे के साथ सहयोग कर रहे थे ताकि म्यांमार को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जा सके. यह समझौता कुछ समय पहले देश को लोकतंत्र की तरफ लौटने की अनुमति देने के सेना के फैसले का इनाम था, लेकिन इस प्रक्रिया को सैन्य तख्तापलट ने अचानक रोक दिया.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
पश्चिम ने ईरान को चेतावनी दी है कि परमाणु संधि को पुनर्जीवित करने के लिए हो रही वार्ताएं असीमित समय तक जारी नहीं रह सकतीं. इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों पक्षों ने वार्ता को कुछ समय के लिए रोक दिया है.
पश्चिमी नेताओं ने ईरान को चेतावनी दी है कि परमाणु संधि को पुनर्जीवित करने के लिए हो रही वार्ताएं असीमित समय तक जारी नहीं रह सकतीं. पिछले हफ्ते ईरान में इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों पक्षों ने वार्ता को कुछ समय के लिए रोक दिया है.
ईरान के साथ पश्चिमी देशों की परमाणु संधि को लेकर बातचीत अप्रैल से विएना में चल रही थी. इस बातचीत में ईरान और अमेरिका के समझौते में दोबारा लौटने को लेकर सहमति बनाने की कोशिश हो रही है. लेकिन पिछले हफ्ते इब्राहिम रईसी ने ईरान में चुनाव जीता है. रईसी पश्चिमी के कट्टर आलोचक और एक कट्टरपंथी माने जाते हैं. उनके राष्ट्रपति बनने के बाद विएना में वार्ताकारों ने करीब दस दिन के लिए बातचीत रोक दने की बात कही है.
रईसी अगस्त में पद संभालेंगे. वह व्यवहारिक माने जाने वाले मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह लेंगे, जिनके शासनकाल में ईरान ने पश्चिमी ताकतों के साथ परमाणु करार किया था. इस करार के तहत ईरान अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने की एवज में अपने परमाणु कार्यक्रम का आकार घटाने को सहमत हो गया था.
रईसी को लेकर संदेह
नए राष्ट्रपति रईसी के रुख को लेकर पश्चिमी देशों में ही नहीं, ईरान में भी फिलहाल संदेह है. हालांकि हर नीति पर आखिरी फैसला ईरान के कट्टरपंथी सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खोमेनी को ही लेना है. फिर भी, कुछ ईरानी नेताओं ने कहा है कि नए राष्ट्रपति के पद संभालने से पहले परमाणु समझौता कर लेना ईरान के हक में हो सकता है.
बातचीत में शामिल एक सरकारी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि यदि रईसी के पद संभालने से पहले समझौता हो जाता है तो ईरान द्वारा दी गई छूट के लिए वह अपने पूर्ववर्ती पर इल्जाम डाल सकेंगे. इस अधिकारी ने कहा, "समझौते को लेकर भविष्य में होने वाली दिक्कतों के लिए रईसी नहीं रूहानी जिम्मेदार होंगे.”
ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी, जिन्हें यूरोप के ई-3 कहा जाता है, इस समझौते के मध्यस्थ की भूमिका में रहे हैं. वे अमेरिका और ईरान को एक सहमति पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. पश्चिमी ताकतों का कहना है कि ईरान जितने ज्यादा समय तक समझौते का उल्लंघन करता रहेगा और प्रतिबंधित परमाणु सामग्री बनाएगा, समझौते को पुनर्जीवित करना उतना ही मुश्किल होगा. ई-3 के कूटनीतिज्ञों ने मीडिया को भेजे एक बयान में कहा, "जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं, वक्त किसी के साथ नहीं है. यह बातचीत हमेशा के लिए जारी नहीं रह सकती.”
भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ
भारत के आम नागरिकों के समूहों ने देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हफ्तों से प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी सत्ताधारी बीजेपी पर मुसलमानों के प्रति इस तथाकथित भेदभावपूर्ण कानून को वापस लेने का दबाव बना रहे थे.
अब जबकि बातचीत रोक दी गई है, तो संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए और ईरान के बीच एक अन्य समझौता आगे बढ़ाने पर बात होगी. ईरान के यहां निगरानी करने को लेकह 2015 में हुआ यह समझौता 24 जून तक था.
रईसी का रवैया
रईसी का ईरान के राष्ट्रपति पद तक पहुंचना अनपेक्षित नहीं था. लेकिन यह समझौते के विरोधी पक्षों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. अमेरिका, इस्राएल और अरब देश पहले ही ईरान के साथ किसी भी समझौते को लेकर आशंकित रहे हैं. रविवार को ही इस्राएल के नए प्रधानमंत्री नफताली बेनेट ने कहा कि रईसी सरकार एक ‘क्रूर जल्लाद' की सरकार होगी, जिसके साथ परमाणु समझौता नहीं किया जाना चाहिए.
रईसी पर अमेरिका ने एक पुराने मामले में प्रतिबंध लगा रखे हैं. यह मामला 1988 का है जिसमें मानवाधिकार संगठनों और अमेरिका ने हजारों राजनीतिक कैदियों की न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगाए थे. हालांकि इस बारे में रईसी ने सार्वजनिक तौर पर कभी कुछ नहीं कहा है. लेकिन परमाणु समझौते पर उनका रुख भी खोमेनी जैसा है कि इसके जरिए अमेरिकी प्रतिबंधों से छुटकारा पाया जा सकता है, क्योंकि इन प्रतिबंधों ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है.
इसलिए कई ईरानी नेता मानते हैं कि वार्ताकारों की मौजूदा टीम आने वाले कुछ महीनों तक काम करती रहेगी. एक अन्य नेता ने बताया, "रईसी का विदेश नीति को लेकर क्या रवैया रहता है, यह तब पता चलेगा जब वह अपना विदेश मंत्री चुनेंगे.”
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
ऐसे समय में जब अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के साथ तालिबान ताकत हासिल कर रहा है, अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ बातचीत के लिए अमेरिकी दौरा करने के लिए तैयार हैं.
व्हाइट हाउस ने रविवार, 20 जून को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इस सप्ताह के आखिर में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात करेंगे. इस बीच, अंतरराष्ट्रीय सेनाओं की वापसी से पहले अफगानिस्तान में हिंसा तेजी से बढ़ी है. अफगान बलों और तालिबान के बीच देश के कई हिस्सों में ऐसे समय में संघर्ष जारी है जब अमेरिका और अन्य विदेशी सेनाएं पूरी तरह से देश छोड़ने की तैयारी कर रही हैं. निकासी पिछले महीने शुरू हुई और इस साल 11 सितंबर तक पूरी होने की उम्मीद है.
इस शुक्रवार को बाइडेन और उनके अफगान समकक्ष अशरफ गनी के बीच बातचीत होनी है. और इस साल जनवरी में बाइडेन के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से दोनों के बीच यह पहली मुलाकात होगी. रिपोर्टों के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति अफगानिस्तान को फिर से आतंकवादियों का अड्डा बनने से रोकने के लिए अफगानिस्तान को राजनयिक, आर्थिक और हर तरह की मानवीय सहायता मुहैया कराने का वादा करेंगे.
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब से अमेरिकी और विदेशी सेनाओं ने अपनी वापसी की घोषणा की है, तब से अफगान बलों और तालिबान के बीच झड़पें बढ़ी हैं, तालिबान ने देश के लगभग 30 और जिलों पर नियंत्रण कर लिया है.
तालिबान की क्या प्रतिक्रिया है?
अफगान राष्ट्रपति गनी राष्ट्रीय सुलह उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ अमेरिका का दौरा करने वाले हैं और शुक्रवार को राष्ट्रपति बाइडेन से मुलाकात करेंगे. हालांकि, तालिबान नेतृत्व ने गनी की अमेरिका की यात्रा को एक निरर्थक प्रयास के रूप में खारिज कर दिया है. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, "वे अपनी शक्ति, ताकत और व्यक्तिगत हितों की रक्षा के लिए अमेरिका से बात करेंगे. इससे अफगानिस्तान को बिल्कुल भी फायदा नहीं होगा.'' यात्रा के बारे में अफगान राष्ट्रपति की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि वे अमेरिका से सुरक्षा गारंटी की मांग करेंगे.
क्या है बाइडेन की योजना?
पिछले दो दशकों से नाटो के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए काम कर रहे अफगानों को अमेरिका सुरक्षित पनाह देने पर भी विचार कर रहा है, इस डर के बीच कि तालिबान ऐसे व्यक्तियों और उनके परिवारों को निशाना बना सकता है. इस महीने की शुरुआत में, कांग्रेस के 20 सदस्यों ने बाइडेन को लिखे एक खुले पत्र में अमेरिका से 18,000 से अधिक अनुवादकों और उनके परिवारों को तत्काल अमेरिकी वीजा देने का आह्वान किया है. डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ने अपने पत्र में लिखा है कि अमेरिका में इस तरह के एक आव्रजन आवेदन को संसाधित करने में आमतौर पर ढाई साल लगते हैं, निकासी के लिए मुश्किल से 100 दिन बचे हैं. वीजा आवेदनों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन ने रविवार को एक बयान में कहा कि यह फैसला व्हाइट हाउस के लिए "बहुत महत्वपूर्ण" है और "इस तरह के अनुरोधों में तेजी लाई गई है." उन्होंने कहा, "हम इन वीजा आवेदनों को संसाधित कर रहे हैं और ऐसे लोगों को रिकॉर्ड गति से देश से बाहर ला रहे हैं. हम वर्तमान में कांग्रेस के साथ काम कर रहे हैं."
कतर में अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता ठप है. दोनों पक्षों के बीच बातचीत पिछले साल सितंबर में शुरू हुई थी, लेकिन पिछले ढाई हफ्तों में हुई बैठकों में कोई प्रगति नहीं हुई है. रविवार को तालिबान ने कहा कि वे शांति वार्ता के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि वह देश में एक वास्तविक इस्लामी व्यवस्था चाहता है.
एए/वीके (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
पिछले फलस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों के दौरान जर्मनी में कई यहूदी-विरोधी घटनाएं होने के बाद जर्मन सरकार ने कुछ कड़े कदम उठाने का फैसला किया है. जर्मन सरकार अपने यहूदी नागरिकों को भी एक संदेश देना चाहती है.
वेल्ट अम जोनटाग अखबार ने खबर दी है कि जर्मन सरकार में शामिल सभी दलों ने प्रदर्शनों के दौरान हमास के झंडे के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को सहमत हो गए हैं. हमास फलस्तीन का कट्टरपंथी संगठन है जिसे अमेरिका समेत कई अंततराष्ट्रीय देशों में आतंकवादी संगठनों की सूची में रखा गया है.
इस संगठन के झंडे पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव सबसे पहले चांसलर अंगेला मैर्केल के पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रैटिक यूनियन की ओर से आया था. सीडीयू और उसकी बवेरियाई सहयोगी क्रिश्चन सोशल यूनियन के संसदीय उप प्रवक्ता थॉर्स्टन फ्राई ने कहा, "हम नहीं चाहते कि आतंकी संगठनों के झंडे जर्मनी की धरती पर लहराए जाएं.”
यहूदियों को संदेश
सीडीयू के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल वामपंथी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) ने हालांकि इस प्रतिबंध को लेकर कुछ संवैधानिक चिंताएं जाहिर की थीं लेकिन बाद में उसने भी प्रस्ताव का समर्थन किया. फ्राई ने वेल्ट अम जोनटाग को बताया, "मुझे खुशी है कि एसपीडी ने हमारी पहल का समर्थन किया है. ऐसा करके हम अपने यहूदी नागरिकों को एक स्पष्ट संदेश दे सकते हैं.”
सितंबर में होने वाले चुनावों में सीडीयू की ओर से चांसलर पद के उम्मीदवार आर्मिन लाशेट ने पिछले महीने भी हमास के झंडे पर बैन लगाने की मांग की थी. इस्राएल और हमास के बीच मई में गजा में संघर्ष होने के दौरान दुनिया के कई देशों में प्रदर्शन हुए थे. जर्मनी में हुए फलस्तीन समर्थक प्रदर्शनों के दौरान साइनागॉग्स पर हमले किए गए, इस्राएल के झंडे जलाए गए और यहूदी विरोधी नारे लगाए गए.
जर्मनी ने इस्राएल के समर्थन में ऐसे कदम पहले भी उठाए हैं. मध्य-पूर्व एशियाई लोगों के इस्राएल विरोधी संगठनों के खिलाफ भी इस तरह की कार्रवाई की जा चुकी है. पिछले साल अप्रैल में जर्मनी के गृह मंत्री ने लेबनान के संगठन हिजबुल्ला पर प्रतिबंध लगाने और उसे आतंकवादी संगठनों की सूची में जोड़ने का ऐलान किया था. इसके बाद हिजबुल्ला का सार्वजनिक तौर पर समर्थन करना और उसके झंडे लहराना गैरकानूनी हो गया था. अमेरिका और यूरोपीय संघ, जिसमें जर्मनी भी शामिल है, हिजबुल्ला और हमास दोनों को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं.
क्या है हमस?
हमास असल में हमस से आया है जो हरकत अल-मकवामा अल-इस्लामिया का छोटा रूप है, जिसका अर्थ है इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन. हमास एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ हौसला या बहादुरी होता है. 1987 में इस संगठन की स्थापना हुई थी और 2007 से यह गजा पर शासन कर रहा है. तब से हमास और इस्राएल के बीच कई युद्ध लड़े जा चुके हैं.
मई में दोनों पक्षों के बीच 11 दिनों की लड़ाई के बाद पिछले महीने संघर्ष विराम समझौता हुआ था. इस लड़ाई में लगभग 250 फलस्तीनियों की मौत हुई थी, जिनमें दर्जनों बच्चे और महिलाएं शामिल थीं और 13 इस्राएली नागरिक भी जान से हाथ गंवा बैठे थे. फिर मिस्र की मध्यस्थता के बाद युद्ध विराम समझौता हुआ. इस बीच येरूशलम में एक बार फिर तनाव का माहौल है. पिछले मंगलवार को अतिराष्ट्रवादी दक्षिणपंथी यहूदी प्रदर्शनकारियों ने अरब-बहुल पूर्वी येरुशलम में एक मार्च निकाला और झंडे लहराए. पूर्वी येरुशलम के उस पुराने शहर में यह प्रदर्शन हुआ, जो इस्राएल-फलस्तीन विवाद में सबसे विवादास्पद इलाका है. कथित ‘ध्वज यात्रा' दमिश्क दरवाजे से होती हुई पुराने शहर के बीचोबीच से गुजरी, जहां यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्म के पवित्र स्थल हैं.
इस प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए हजारों इस्राएली पुलिसकर्मी मौजूद थे. पुलिस ने दमिश्क दरवाजे के सामने से मैदान साफ करवा दिया था. सड़कें और बाजार बंद कर दिए गए थे और फलस्तीनी प्रदर्शनकारियों को भी वहां से हटा दिया गया था. फलस्तीनियों ने बताया कि इस दौरान पुलिस के साथ लोगों की झड़पें भी हुईं, जिसके दौरान पांच लोग घायल हुए और छह को गिरफ्तार कर लिया गया. स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया कि 33 फलस्तीनियों को चोटें आई हैं.
अतिराष्ट्रवादी सांसदों इतमार बेन-ग्वीर और बेजालेल समोत्रिच ने भी इस मार्च में हिस्सा लिया. प्रदर्शनकारियों ने उन्हें कंधों पर उठा रखा था. एक वक्त पर तो कुछ युवकों ने ‘अरब मुर्दाबाद' और ‘तुम्हारे गांव जलकर राख हो जाएं' जैसे नारे भी लगाए.
इस्राएल में 14 जून को ही नई सरकार का गठन हुआ है और दक्षिणपंथी नेता नफताली बेनेट ने 12 साल तक प्रधानमंत्री रहे बेन्यामिन नेतन्याहू से कुर्सी हासिल की है. इस सरकार में यहूदी और अरब दक्षिणपंथियों के अलावा वामपंथी दल भी शामिल हैं.
रिपोर्ट: वेज्ली डॉकरी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट AXIOS को दिया इंटरव्यू काफ़ी चर्चा में आ गया है.
यह इंटरव्यू पत्रकार जोनाथन स्वैन ने लिया था जो रविवार को एचबीओ मैक्स के डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर प्रसारित हुआ था.
यह इंटरव्यू प्रसारित होने से पहले तभी चर्चा में आ गया था जब इस इंटरव्यू से जुड़ी एक क्लिप वायरल हो गई थी.
इसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी अभियान के लिए अमेरिका को अपनी ज़मीन इस्तेमाल नहीं करने देगा.
लेकिन अब इस इंटरव्यू में इमरान ख़ान की कही गई एक बात काफ़ी चर्चा में है.
समाज में महिलाओं के कपड़ों को लेकर बोले
उनसे इंटरव्यू के दौरान पर्दा और रेप पीड़ितों पर उनके पुराने बयानों को लेकर सफ़ाई मांगी गई तो उन्होंने कहा कि ‘यह सभी बेहूदा बातें हैं मैंने सिर्फ़ पर्दा के विचार पर बात की थी. हमारे यहां न ही डिस्को हैं और न ही यहां नाइट क्लब हैं. यह बिलकुल अलग समाज है जहां पर जीने का अलग तरीक़ा है. अगर आप यहां पर प्रलोभन बढ़ाएंगे और युवाओं को कहीं जाने का मौक़ा नहीं होगा तो इसके कुछ न कुछ परिणाम होंगे.
इसके बाद जोनाथन ने इमरान से पूछा कि क्या वो महिलाओं के कपड़े पहनने को लेकर यह बात कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा, “अगर यहां पर महिलाएं बहुत छोटे कपड़े पहनती हैं तो इसका असर ज़रूर पुरुषों पर पड़ेगा जब तक कि वो रोबोट न हों.”
जोनाथन ने इमरान खान से पूछा कि क्या वो यह कह रहे हैं कि कपड़े यौन हिंसा को बढ़ावा देते हैं तो इमरान ख़ान ने कहा कि यह इस चीज़ पर निर्भर करता है कि आप किस समाज में रहते हैं, अगर किसी ने किसी चीज़ को नहीं देखा है तो इसका उस पर प्रभाव ज़रूर पड़ेगा.
इमरान ख़ान की पुरानी प्लेबॉय वाली छवि पर भी सवाल
जोनाथन ने इमरान से यह भी पूछ लिया कि जब आप क्रिकेट स्टार थे तो आपकी प्लेबॉय की छवि थी इस पर उन्होंने कहा कि ‘यह मेरी बात नहीं बल्कि मेरे समाज की बात है. मैं अपने समाज के बार में सोचता हूं कि वो कैसे व्यवहार करे जब हम यौन अपराधों के बारे में सुनते हैं तो हम चर्चाएं करते हैं कि इसको कैसे समाप्त करना है.’
पीएम इमरान ख़ान के इस बयान के बाद विपक्षी नेता, पत्रकार और आम लोग सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना कर रहे हैं.
वहीं, डिजिटल मीडिया पर पीएम के प्रमुख सलाहकार डॉक्टर अरसलान ख़ालिद का कहना है कि एक बार फिर इमरान ख़ान के बयान से इतर चुनिंदा संदर्भों पर ही ट्वीट किया जा रहा है.
अरसलान ने कहा कि पीएम इमरान ख़ा ने समाज और वहां रहने वाले लोगों की यौन निराशा पर बात की है.
हालांकि, कुछ महीनों पहले इमरान ख़ान ने पाकिस्तान में यौन हिंसा में बढ़ोतरी के लिए अश्लीलता को ज़िम्मेदार ठहराया था. (bbc.com)
ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी के चुनाव जीतने के बाद दुनियाभर से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
इसी बीच उसके धुर प्रतिद्वंद्वी इसराइल ने दुनिया को ‘जाग जाने’ के लिए कहा है.
इसराइल के नए प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट ने कहा है कि यह ‘क्रूर जल्लाद का शासन’ है.
बेनेट ने दुनिया की शीर्ष ताक़तों को आगाह किया है कि ईरान के साथ परमाणु समझौते में लौटने से पहले यह अंतिम बार ‘जाग जागने’ वाली कॉल है.
बेनेट ने यह टिप्पणी रविवार को अपनी कैबिनेट की पहली बैठक के दौरान कही.
कट्टरपंथी नेता रईसी शनिवार को 62% मतों के साथ ईरान के नए राष्ट्रपति चुने गए थे. इस चुनाव के दौरान ऐतिहासिक रूप से ईरान में सबसे कम मतदान हुआ था.
1988 में ईरान-इराक़ युद्ध के बाद राजनीतिक क़ैदियों को सामूहिक फांसी देने में भागीदारी के कारण अमेरिका ने रईसी पर प्रतिबंध लगाए थे. रईसी ने उस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
यरूशलम में हुई इसराइल के नए प्रधानमंत्री बेनेट की कैबिनेट की बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि ‘ख़ामेनेई (ईरान के सर्वोच्च नेता) उन सभी लोगों में से जिन्हें चुन सकते थे, उन्होंने तेहरान के जल्लाद को चुना, जो ईरानियों के बीच में बदनाम है और जो मौत की समितियों का नेतृत्व करता रहा और सालों तक हज़ारों ईरानी नागरिकों को मारा.’
ईरान के परमाणु समझौते का भविष्य फिर अधर में, बातचीत रुकी
ईरान और छह विश्व शक्तियों के बीच 2015 में हुए परमाणु समझौते को बहाल करने के लिए हो रही बातचीत स्थगित हो गई है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, अधिकारियों का कहना है कि कुछ बिंदुओं को लेकर अब भी असहमतियाँ हैं, जिन्हें हल किए जाने की ज़रूरत है.
ईरान के शीर्ष वार्ताकार अब्बास अरक़ची ने वियना से ईरान के सरकारी टीवी चैनल से कहा, “अब हम समझौते से पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा क़रीब हैं लेकिन अभी भी हमारे बीच कुछ ऐसी दूरियाँ हैं जिन्हें पाटना आसान काम नहीं है. आज रात हम तेहरान लौट जाएंगे.”
हालिया राउंड में क़रीब एक हफ़्ते तक बातचीत करने के बाद अब सभी पक्ष वापस लौट रहे हैं.
बातचीत अब फिर कब शुरू होगी, इसे लेकर अभी कोई तारीख़ निर्धारित नहीं की गई है लेकिन माना जा रहा है कि अगले 10 दिनों में सभी वापस आ सकते हैं.
परमाणु समझौते पर रईसी का रुख़ कैसा होगा?
ईरान में कट्टरपंथी नेता इब्राहीम रईसी देश ने नए राष्ट्रपति चुने गए हैं.
रईसी को पश्चिमी देशों का मुखर आलोचक माना जाता है. हसन रूहानी के बाद अब रईसी शुक्रवार को पद पर काबिज़ होंगे.
ईरान परमाणु समझौता हसन रूहानी के शासन काल में ही बिखर गया था.
हालाँकि इसकी उम्मीद कम है कि रईसी इस बारे में ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई से अलग कोई क़दम उठाएंगे.
ईरान में नीतियों से सम्बन्धित लगभग सभी फ़ैसले ख़ामेनेई ही लेते हैं. (bbc.com)
ईरान के कट्टरपंथी नेता और देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली ख़मेनेई के करीबी माने जाने वाले इब्राहीम रईसी ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है.
चुनाव अभियान के दौरान 60 साल के रईसी ने ख़ुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रचारित किया था जो रूहानी शासन के दौरान पैदा हुए भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट से निबटने के लिए सबसे अच्छा विकल्प है.
ईरानी न्यायपालिका के प्रमुख रहे रईसी के राजनीतिक विचार 'अति कट्टरपंथी' माने जाते हैं.
ईरान के कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने साल 1980 में बड़ी संख्या में राजनीतिक क़ैदियों को फाँसी दिए जाने पर उनकी भूमिका को लेकर चिंता जताई है.
काली पगड़ी पहनने वाले रईसी
इब्राहीम रईसी का जन्म साल 1960 में ईरान के दूसरे सबसे बड़े शहर मशहद में हुआ था. इसी शहर में शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली मस्जिद भी है.
रईसी के पिता एक मौलवी थे. रईसी जब सिर्फ़ पाँच साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था.
इब्राहीम रईसी शिया परंपरा के मुताबिक़ हमेशा काली पगड़ी पहनते हैं जो यह बताती है कि वो पैग़ंबर मुहम्मद के वंशज हैं.
उन्होंने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए 15 साल की उम्र से ही क़ोम शहर में स्थित एक शिया संस्थान में पढ़ाई शुरू कर दी थी.
अपने छात्र जीवन में उन्होंने पश्चिमी देशों से समर्थित मोहम्मद रेज़ा शाह के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. बाद में अयातोल्ला रुहोल्ला ख़ुमैनी ने इस्लामिक क्रांति के ज़रिए साल 1979 में शाह को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था.
'डेथ कमेटी' के सदस्य और राजनीतिक क़ैदियों को फाँसी
इस्लामिक क्रांति के बाद उन्होंने न्यायपालिका में काम करना शुरू किया और कई शहरों में वकील के तौर पर काम किया.
इस दौरान उन्हें ईरानी गणतंत्र के संस्थापक और साल 1981 में ईरान के राष्ट्रपति बने अयातोल्ला रुहोल्ला ख़ुमैनी से प्रशिक्षण भी मिल रहा था.
रईसी जब सिर्फ़ 25 साल के थे तब वो ईरान के डिप्टी प्रोसिक्यूटर (सरकार के दूसरे नंबर के वकील) बन गए.
बाद में वो जज बने और साल 1988 में बने उन ख़ुफ़िया ट्राइब्यूनल्स में शामिल हो गए जिन्हें 'डेथ कमेटी' के नाम से जाना जाता है.
इन ट्राइब्यूनल्स ने उन हज़ारों राजनीतिक क़ैदियों पर 'दोबारा मुक़दमा' चलाया जो अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण पहले ही जेल की सज़ा काट रहे थे.
इन राजनीतिक क़ैदियों में से ज़्यादातर लोग ईरान में वामपंथी और विपक्षी समूह मुजाहिदीन-ए-ख़ल्क़ा (MEK) या पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान (PMOI) के सदस्य थे.
इन ट्राइब्यूनल्स ने कुल कितने राजनीतिक क़ैदियों को मौत की सज़ा दी, इस संख्या के बारे में ठीक-ठीक मालूम नहीं है लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इनमें लगभग 5,000 पुरुष और महिलाएं शामिल थीं.
फाँसी के बाद इन सभी को अज्ञात सामूहिक क़ब्रों में दफ़ना दिया गया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता इस घटना को मानवता के विरुद्ध अपराध बताते हैं.
रईसी ने फाँसी को 'उचित' ठहराया था
ईरान के नेता इस पूरे प्रकरण से तो इनकार नहीं करते हैं लेकिन वो इस बारे में विस्तार से बात नहीं करते और न ही सज़ा पाए लोगों के बारे में कुछ कहते हैं.
इब्राहीम रईसी ने इस मामले में अपनी भूमिका से लगातार इनकार किया है लेकिन साथ ही उन्होंने एक बार यह भी कहा था कि ईरान के पूर्व सर्वोच्च नेता अयातोल्ला ख़ुमैनी के फ़तवे के मुताबिक यह सज़ा 'उचित' थी.
पाँच साल पहले 1988 का एक ऑडियो टेप लीक हुआ था जिसमें रईसी, न्यायपालिका के अन्य सदस्यों और तत्कालीन और दूसरे नंबर के धार्मिक नेता अयातोल्ला हुसैन अली मोतांज़ेरी के बीच की बातचीत सामने आई थी,
इस ऑडियो में मोतांज़ेरी राजनीतिक क़ैदियों को फाँसी की घटना को 'ईरान के इतिहास में सबसे बड़ा अपराध' कहते हुए सुने जा सकते हैं.
इसके एक साल बाद मोतांज़ेरी ने अयातोल्ला ख़ुमैनी के तय उत्तराधिकारी के तौर पर अपना पद खो दिया और अयातोल्ला ख़ामेनेई अगले सर्वोच्च धार्मिक नेता बन गए.
रईसी का दबदा
वहीं, रईसी इसके बाद भी ईरान के प्रोसिक्यूटर बने रहे. इतना ही नहीं, इसके बाद वो स्टेट इंस्पेक्टरेट ऑर्गनाइज़ेश के प्रमुख और न्यायपालिका में पहले डिप्टी हेड बने.
इसके बाद साल 2014 में वो ईरान के प्रोसिक्यूटर जनरल (सरकार के प्रमुख वकील) नियुक्त किए गए.
फिर दो साल बाद सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह ख़मेनेई ने उन्हें ईरान के सबसे अहम और समृद्ध धार्मिक संस्थाओं में से एक अस्तन-क़ुद्स-ए-रज़ावी का संरक्षक नामित किया.
यह संस्था मशहद शहर में शिया मुसलमानों की मस्जिदों और इनसे जुड़े अन्य संगठनों का ज़िम्मा संभालती है.
अमेरिका के अनुसार, इस संस्था की कई निर्माण, कृषि, ऊर्जा, टेलीकम्युनिकेशन और फ़ाइनेंशियल सेवाओं में बड़ा निवेश है.
साल 2017 में इब्राहीम रईसी ने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का ऐलान करके सबको चौंका दिया था.
तब हसन रूहानी ने राष्ट्रपति चुनाव का पहला राउंड 57 फ़ीसदी वोटों के साथ जीत लिया था. वहीं, ख़ुद को भ्रष्टाचार-विरोधी नेता बताने वाले रईसी 38 फ़ीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थे.
हार के बावजूद बढ़ता रहा क़द
हालाँकि इस हार ने रईसी की छवि को नुक़सान नहीं पहुँचाया और साल 2019 में अयातोल्ला अली ख़मेनेई ने उन्हें न्यायपालिका प्रमुख के तौर पर नामित किया.
इसके कुछ हफ़्तों बाद ही रईसी को अगला सर्वोच्च धार्मिक नेता चुनने के लिए 88 मौलवियों वाली समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया.
न्यायपालिका प्रमुख के तौर पर इब्राहीम रईसी ने कुछ सुधार नीतियाँ लागू कीं जिनसे ईरान में ड्रग्स से जुड़े अपराधों के कारण मौत की सज़ा पाने वाले लोगों की संख्या में कमी आई. लेकिन इसके बावजूद ईरान, चीन के अलावा पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा लोगों को मौत की सज़ा देने वाला देश बना रहा.
रईसी के समय में न्यायपालिका ने विरोधी आवाज़ों वाले कई ईरानी नागरिकों को (ख़ासकर दोहरी नागरिकता और दूसरे देशों के स्थायी निवासियों को) जासूसी के आरोप में सज़ा देने के लिए सुरक्षा सेवाओं के साथ काम करना जारी रखा.
इस साल रईसी ने जब राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का ऐलान किया तो उन्होंने ख़ुद को 'ईरान को ग़रीबी, भ्रष्टाचार, भेदभाव और अपमान से मुक्त कराने के लिए एक स्वतंत्र' उम्मीदवार के तौर पर पेश किया.
हालांकि रईसी की निजी ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं मालूम है. सिवाय इसके कि उनकी पत्नी तेहरान की शाहिद बेहश्ती यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं और उनके दो बच्चे हैं.
रईसी के ससुर अयातोल्ला अहमद अलामोलहोदा मशहद में होने वाली जुमे की नज़ाम की अगुआई करते हैं. (bbc.com)
बीजिंग, 20 जून | दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इस बीच रविवार को चीन में 7वें इंटरनेशनल योग दिवस की धूम रही। चीन के विभिन्न शहरों में योग प्रेमियों ने योगाभ्यास किया। राजधानी पेइचिंग के इंडिया हाउस में सैंकड़ों की संख्या में जुटे लोगों में योग के प्रति उत्साह देखने लायक था, जिसमें चीनी व भारतीयों सहित कई देशों के नागरिकों ने शिरकत की। सुबह साढ़े छह बजे शुरू हुए कार्यक्रम में योगगुरु मोहन भंडारी के नेतृत्व में योगी योग केंद्र से जुड़े शिक्षकों ने ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिलोकासन व सुप्त पवनमुक्तासन आदि आसन करवाए। इसके बाद स्टेज पर एडवांस लेवल के योग आसन भी किए गए, जिन्हें देखकर इंडिया हाउस के प्रांगण में उपस्थित लोगों ने खूब तालियां बजाईं।
इस मौके पर राजदूत विक्रम मिस्री ने कहा कि पिछले एक साल के दौरान कोरोना महामारी के कारण हम सभी ने जिस बात का सबसे ज्यादा महत्व समझा, वह है स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती। जाहिर सी बात है कि इसके कारण इस साल के योग दिवस की थीम, 'तंदुरुस्ती के लिए योग' रखी गई है।
उन्होंने मन और शरीर को स्वस्थ रखने में योग की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आजकल पूरा विश्व कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। जबकि वैक्सीन व उपचार पर पूरा ध्यान केंद्रित हुआ है। ऐसे में योग न केवल हमें शारीरिक मजबूती प्रदान करने का काम करता है, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति भी देता है।
मिस्री ने यह भी कहा कि दूतावास के स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र द्वारा योग सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन समय-समय पर किया जा रहा है। आने वाले दिनों में योगा प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग के मद्देनजर प्रमाणपत्र भी दिए जाएंगे।
इससे पहले, राजदूत मिस्री ने योगी योगा के संस्थापक मोहन भंडारी, वीयोगा के संस्थापक आशीष बहुगुणा के साथ-साथ योग शिक्षक एन.के.सिंह व सोहन सिंह आदि को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। जबकि योगासनों की वीडियो प्रतियोगिता में वीयोगा की यांग पाई ने पहला, 80 वर्षीय योग प्रेमी वांग शुच्यांग ने दूसरा और ली शुआंगशुआंग ने तीसरा पुरस्कार जीता।
कार्यक्रम को सफल बनाने में डीसीएम एक्विनो विमल, फस्र्ट सेक्रेटरी(कल्चर) राजश्री बेहरा, फस्र्ट सेक्रेटरी दीपक पद्मकुमार, सेकंड सेक्रेटरी(कल्चर) अतुल जनार्दन, दूतावास के कर्मचारियों, योग गुरु मोहन भंडारी व दूतावास के अंशकालिक योग शिक्षक आशीष बहुगुणा आदि ने सक्रियता से भाग लिया।
बता दें कि पूरी दुनिया में योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है। 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने की अपील की थी। इसके बाद 123 सदस्यों की बैठक में इस दिवस का प्रस्ताव पारित हुआ। अमेरिका की अपील के बाद, 90 दिनों के अंदर 177 देशों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव पारित किया।
इस तरह 21 जून 2015 को पूरे विश्व में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। उसके बाद हर वर्ष इस अवसर पर लाखों योग प्रेमी विभिन्न देशों में योग अभ्यास करते रहे हैं।(आईएएनएस)