अंतरराष्ट्रीय
इस्लामाबाद में अपने राजदूत की बेटी के अपहरण के बाद अफगानिस्तान ने अपने सभी राजनयिक कर्मचारियों को वापस बुला लिया है. पाकिस्तान ने इस कदम पर खेद जताया और कहा कि अफगानिस्तान को फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
बीते शुक्रवार को पाकिस्तान में अफगान राजदूत की बेटी का अपहरण कर लिया गया था और उनके साथ मारपीट के आरोप लगे थे. हालांकि, कुछ घंटों बाद ही उसे रिहा भी कर दिया गया. अफगान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "पाकिस्तान में अफगान राजदूत की बेटी के अपहरण के बाद, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान ने इस्लामाबाद से अफगान दूत और अन्य वरिष्ठ राजनयिकों को वापस काबुल वापस बुला लिया है, जब तक कि सभी सुरक्षा खतरे दूर नहीं हो जाते." मंत्रालय ने अपहरणकर्ताओं की गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने की मांग की.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अफगान विदेश मंत्रालय ने इस्लामाबाद से अपने पूरे राजनयिक स्टाफ को वापस बुलाने के अफगानिस्तान के फैसले को "खेदजनक और निराशाजनक" बताया. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा, "हमें उम्मीद है कि अफगान सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी."
इस्लामाबाद में अफगान राजदूत नजीबुल्लाह अलीखील की बेटी का शुक्रवार, 16 जुलाई को अज्ञात लोगों ने कथित तौर पर अपहरण कर लिया था. अफगान अधिकारियों ने अपहरणकर्ताओं पर अलीखील को प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया था.
खतरा टलने तक कर्मचारी नहीं लौटेंगे
कथित अपहरण के बाद अफगान अधिकारियों ने पहले राजनयिक कर्मचारियों की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की और इसे सुधारने का आह्वान किया. हालांकि रविवार को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस्लामाबाद में तैनात सभी वरिष्ठ कर्मचारियों को पाकिस्तान छोड़ने का निर्देश दिया, जिसमें राजदूत नजीबुल्लाह अलीखील भी शामिल हैं.
अफगान विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सुरक्षा स्थिति में सुधार होने, सुरक्षा चिंताओं को दूर करने और अपराधियों की गिरफ्तारी तक राजनयिक कर्मचारियों को वापस नहीं भेजा जाएगा.
अफगान विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "एक अफगान प्रतिनिधिमंडल जल्द ही सभी प्रासंगिक मुद्दों की समीक्षा करने और मामले पर तत्काल कार्रवाई के लिए पाकिस्तान का दौरा करेगा. यात्रा के नतीजों के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी."
कथित अपहरण से अफगान चिंतित
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा कि अफगान राजदूत की बेटी के अपहरण और उसके बाद के दुर्व्यवहार ने "देश की आत्मा को घायल किया है."
लेकिन पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अफगान सरकार के फैसले की निंदा करते हुए कहा कि पाकिस्तानी अधिकारी प्रधानमंत्री इमरान खान के आदेश के बाद से कथित अपहरण और हमले की उच्च स्तरीय जांच कर रहे हैं. बयान के मुताबिक, "पाकिस्तान में राजदूत, उनके परिवार और अफगान वाणिज्य दूतावास के कर्मचारियों की सुरक्षा भी कड़ी कर दी गई है."
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका
पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में वर्चस्व के लिए लड़ रहे तालिबान की मदद करने के प्रयास करने के आरोप लगते रहे हैं. अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है और तालिबान ने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा करने का दावा किया है. तालिबान ने पिछले हफ्ते ही पाकिस्तानी सीमा के पास स्पिलन बोलदाक जिले पर कब्जा कर लिया था.
बीते शुक्रवार पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता चाहता है. चौधरी के मुताबिक, "पाकिस्तान भविष्य में भी इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, अंत में अफगानों को ही अपने भविष्य के बारे में फैसला करना है." (dw.com)
एए/वीके(एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई एक जांच में दावा किया गया है कि इस्राएली जासूसी तकनीक के जरिए सरकारों ने अपने लोगों की जासूसी की. इनमें भारत के कई बड़े नाम शामिल हैं.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
भारतीय समाचार वेबसाइट द वायर ने खबर दी है कि इस्राएल की निगरानी रखने वाली तकनीक के जरिए भारत के तीन सौ से भी ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई, जिनमें देश के मंत्रियों और विपक्ष के नेताओं से लेकर पत्रकार, जाने-माने वकील, उद्योगपति, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि शामिल हैं.
द वायर और 16 अन्य मीडिया संस्थानों की एक साझी जांच के बाद यह दावा किया गया है कि इस्राएल के सर्वेलांस सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए इन फोन नंबरों की जासूसी की गई. द वायर लिखता है कि इस जांच के तहत कुछ फोन्स की फॉरेंसिक जांच की गई जिससे "ऐसे स्पष्ट संकेत मिले की 37 मोबाइलों को पेगासस ने निशाना बनाया, जिनमें 10 भारतीय थे.”
द वायर कहता है, "बिना किसी फोन के तकनीकी विश्लेषण के यह बता पाना संभव नहीं है कि उस पर सिर्फ हमला हुआ था या उसे हैक किया गया था.”
कैसे हुई जांच?
इस्राएल की कंपनी एनएसओ ग्रुप पेगासस सॉफ्टवेयर बेचता है. द वायर के मुताबिक कंपनी का कहना है कि उसके ग्राहकों में सिर्फ सरकारें शामिल हैं, जिनकी संख्या 36 मानी जाती है. हालांकि कंपनी ने यह नहीं बताया है कि कौन कौन से देशों की सरकारें उसके ग्राहक हैं लेकिन द वायर लिखता है कि कम से कम यह संभावना तो खत्म हो जाती है कि भारत में या बाहर की कोई निजी संस्था इस जासूसी के लिए जिम्मेदार है.
यह जांच फ्रांस की एक गैर सरकारी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज' और एमनेस्टी इंटरनेशनल को मिले एक डेटा के आधार पर हुई है. यह डेटा दुनियाभर के 16 मीडिया संस्थानों का उपलब्ध कराया गया था, जिनमें द वायर, ला मोंड, द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट, डी त्साइट और ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग के अलावा मेक्सिको, अरब और यूरोप के दस अन्य संस्थान शामिल हैं.
इन संस्थानों के पत्रकारों ने मिलकर यह खुफिया जांच की, जिसे प्रोजेक्ट पेगासस नाम दिया गया. ‘फॉरबिडन स्टोरीज' का कहना है कि उसे जो डेटा मिला था, उसमें एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों द्वारा चुने गए फोन नंबर शामिल थे. हालांकि एनएसओ ग्रुप ने इस दावे का खंडन किया है.
भारत में किस-किस का नाम?
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक में इस सूची में भारत के 40 पत्रकार, तीन बड़े विपक्षी नेता, एक संवैधानिक विशेषज्ञ, नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा संस्थानों के मौजूदा और पूर्व प्रमुख और कई उद्योगपति शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर फोन नंबरों को 2018 से 2019 के बीच निशाना बनाया गया था. 2019 में भारत में आम चुनाव हुए थे और नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने थे.
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत मिले डेटा में इन भारतीय लोगों के नाम शामिल हैः
हिंदुस्तान टाइम्स
शिशिर गुप्ता, प्रशांत झा, औरंगजेब नक्शबंदी और राहुल सिंह
सैकत दत्ता (पूर्व)
द हिंदू
विजेता सिंह
इंडियन एक्सप्रेस
मुजामिल जलील, रितिका चोपड़ा, सुशांत सिंह(पूर्व)
इंडिया टुडे
संदीप उन्नीथन
द वायर
सिद्धार्थ वरदराजन, स्वाति चतुर्वेदी, देवीरूपा मित्रा, रोहिणी सिंह, एमके वेणु
द पायनियर
जे गोपीकृष्णन
न्यूजक्लिक
प्रंजॉय गुहा ठाकुरता
फ्रंटियर टीवी
मनोरंजन गुप्ता
स्वतंत्र पत्रकार
शबीर हुसैन बुच
इफ्तिकार गिलानी
प्रेमशंकर झा
संतोष भरतीय
दीपक गिडवानी
भूपिंद सिंह सज्जन
जसपाल सिंह हेरान
इंडियन अहेड
स्मिता शर्मा
कार्यकर्ता
हसन बाबर नेहरू
उमर खालिद
रोना विल्सन
रूपाली जाधव
डिग्री प्रसाद चौहान
लक्ष्मण पंत
कई ऐसे लोग भी सूची में हैं, जिन्होंने मीडिया संस्थानों से अपने नाम सार्वजनिक ना करने का आग्रह किया है.
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए लोगों के फोन हैक करने के दावों को गलत बताया है. एक बयान में सरकार ने कहा है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्र आजादी के लिए प्रतिबद्ध है.
द वायर द्वारा भारत सरकार को भेजे गए सवालों के जवाब कहा गया, "भारत एक स्थापित लोकतंत्र है जो अपने नागरिकों के निजता के अधिकार का एक मूलभूत अधिकार के तौर पर सम्मान करता है. इसी प्रतिबद्धता के तहत पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 और इंन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी (इंटरमीडिएरी गाइडलिन्स ऐंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स 2021 लाया गया ताकि लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा की जा सके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने वाले लोगों को और अधिकार दिए जा सकें.”
‘पेगासस प्रोजेक्ट' के तहत हुए शोध को कमजोर बताते हुए भारत सरकार ने कहा कि चूंकि इन सवालों के जवाब पहले से ही सार्वजनिक मंचों पर मौजूद हैं, इससे पता चलता है कि जाने-माने मीडिया संस्थानों ने कमजोर शोध किया है और जरूरी परिश्रम नहीं किया है.
भारत सरकार कहती है, "चुनिंदा लोगों पर सरकार की जासूसी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है और इनमें कोई सच्चाई नही है. पहले भी भारत सरकार द्वारा वॉट्सऐप पर पेगासस के जरिए जासूसी करने के दावे किए गए थे. उन खबरों का भी कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और सभी पक्षों ने उन्हें खारिज कर दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में वॉट्सऐप का खंडन भी था.”
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन प्रभावित?
‘पेगासस प्रोजेक्ट' का हिस्सा रहे अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक 50 हजार नंबरों की एक सूची है जिसके लिए 37 स्मार्टफोन्स को निशाना बना गया. अखबार लिखता है कि ये नंबर उन देशों में से हैं, जो अपने नागरिकों की जासूसी करने के लिए जाने जाते हैं और एनएसओ ग्रुप के ग्राहक भी हैं.
पूरी सूची में जो नंबर शामिल हैं उनमें से 50 देशों के एक हजार से ज्यादा लोगों की पहचान संभव हो पाई है. इन लोगों में अरब के शाही परिवार के कई सदस्य, कम से कम 65 उद्योगपति, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता, 189 पत्रकार और 600 से ज्यादा नेता और सरकारी अधिकारी शामिल हैं. अखबार स्पष्ट करता है कि इस सूची का मकसद स्पष्ट नहीं हो पाया है.
अखबार के मुताबिक एनएसओ ग्रुप का कहना है कि लोगों के फोन की जासूसी उसके पेगासस स्पाइवेयर लाइसेंस की शर्तों के प्रतिकूल है क्योंकि उसका सॉफ्टवेयर सिर्फ बड़े अपराधियों और आतंकवादियों की जासूसी के लिए है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने एनएसओ प्रमुख शालेव हूलियो के हवाले से लिखा है कि वह इन खबरों से बहुत चिंतित हैं. हूलियो ने अखबार को बताया, "हम हर आरोप की जांच कर रहे हैं और यदि कुछ आरोप भी सत्य पाए जाते हैं तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे. जैसा हमने पहले भी किया है, हम उनके कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर देंगे. यदि किसी ने पत्रकारों की जासूसी की है, चाहे वह पेगासस से हो या नहीं, चिंता की बात है.”
(dw.com)
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक बस और ट्रक की टक्कर में कम-से-कम 30 लोगों की मौत हो गई है और 40 से ज़्यादा व्यक्ति घायल हो गए हैं.
अधिकारियों के अनुसार ये दुर्घटना डेरा ग़ाज़ी ख़ान में इंडस हाइवे पर सुबह के वक़्त हुई. मृतकों में महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं.
एक स्थानीय पत्रकार तारिक़ इस्माइल ने बीबीसी उर्दू को बताया कि 46 सीटों वाली बस के भीतर लगभग 75 लोग सवार थे जबकि लगभग 15 लोग छत पर भी बैठे थे.
ये बस सियालकोट से राजनपुर जब तेज़ गति की वजह से चालक नियंत्रण खो बैठा और बस एक ट्रक से टकरा गई.
ज़्यादातर सवार सियालकोट की फ़ैक्टरियों में काम करनेवाले मज़दूर बताए जा रहे हैं जो बकरीद के मौक़े पर घर जा रहे थे.
पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख़ रशीद ने दुर्घटना पर ट्वीट कर कहा- "अल्लाह मरने वालों को जन्नत नसीब करे और उनके रिश्तेदारों को इस दुख को झेलने की ताक़त दे."
वहीं सूचना प्रसारण मंत्री फ़वाद चौधरी ने उर्दू भाषा में ट्वीट में लिखा- "30 लोगों की जान इस सड़क दुर्घटना में चली गई. एक मुल्क़ के तौर पर हम कब समझेंगे कि ट्रैफ़िक नियमों को तोड़ना जानलेवा होता है. सार्वजनिक वाहन चलाने वाले ड्राइवर लोगों की ज़िंदगियों के रखवाले होते हैं." (bbc.com)
लंदन. ब्रिटेन में कोरोना वायरस की तीसरी लहर के बीच लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दे दी गई है. 19 जुलाई की आधी रात से ज्यादातर कोरोना वायरस प्रतिबंधों को हटा लिया जाएगा. इसे देशवासी फ्रीडम डे के तौर पर सेलिब्रेट कर रहे हैं. लॉकडाउन प्रतिबंधों के हटने के पहले हजारों की तादाद में लोग नाइट क्लब में उमड़ पड़े. 15 महीने में पहली बार बिना किसी पाबंदी के नाइट क्लब के अंदर कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी गई है. आलम यह रहा कि रविवार की रात को नाइट क्लब और बार के बाहर बड़ी-बड़ी लाइनें देखी गईं.
कई लोगों को तो बार और क्लब के अंदर घुसने के लिए एक घंटे तक इंतजार करना पड़ा. पिछले साल मार्च में लगाए गए प्रतिबंधों के बाद पहली बार लोगों ने बिना किसी प्रतिबंध के पार्टी का मजा लिया. वे पूरी रात डांस करना चाहते थे और एक-दूसरे से बात करना चाहते थे.
ब्रिटेन में फ्रीडम डे का जश्न मनाने के लिए भले ही नाइट क्लबों ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं, लेकिन 73 फीसदी क्लब जाने वाले लोगों का कहना है कि वे वापस नहीं लौटना चाहते हैं. क्योंकि देश अभी अभी लॉकडाउन से निकला है. ब्रिटेन में कानूनी रूप से मास्क पहना भी जरूरी नहीं है, नाइट क्लब में जाने वालों की संख्या पर अब कोई प्रतिबंध नहीं है. क्लबों का कहना है कि वे और उनके कस्टमर इसी मौके का इंतजार कर रहे थे.
महामारी की तीसरी लहर की चपेट में ब्रिटेन
इस बीच ब्रिटेन के इस फैसले की दुनियाभर में आलोचना भी हो रही है. ब्रिटेन इस समय कोरोना महामारी की तीसरी लहर की चपेट में है. शुक्रवार को 51 हजार 870 नए केस के साथ 6 महीने पुराना रेकॉर्ड टूट चुका है. जनवरी के बाद पहली बार ब्रिटेन में 50 हजार से ज्यादा केस आए हैं, वह भी तब जब करीब 68 प्रतिशत आबादी पूरी तरह वैक्सीनेट हो चुकी है या फिर टीके की कम से कम एक डोज ले चुकी है.
अब तक कितने लोगों को लगी वैक्सीन?
स्वास्थ्य एवं सामाजिक देखभाल विभाग (डीएचएससी) ने कहा कि ब्रिटेन में कोविड टीकों की अब तक कुल 81,959,398 खुराकें दी जा चुकी हैं. इनमें से 46,227,101 (87.8 प्रतिशत) लोगों के पहली जबकि 35,732,297 (67.8) प्रतिशत को दूसरी खुराक दी गई है.
दुनिया में कोरोना के कितने केस
पूरे विश्व में कोरोना के मामले बढ़कर 19 करोड़ हो गए है.18 जुलाई को दुनिया में 4,45,267 नए मामले सामने आए. ऐसे में कोरोना के कुल मामलों की संख्या 19.12 करोड़ हो गई है. रविवार को कोरोना से 6,878 लोगों की मौत हुई और 3,37,306 लोगों ने इसे मात दी. दुनिया में कोरोना से अब तक मरने वालों की कुल संख्या 41.05 लाख हो गई है. रिकवर करने वाले कुल लोगों की संख्या 17.41 करोड़ पहुंच गई है.
लिस्बन, 19 जुलाई| ग्राउंड-हैंडलिंग कंपनी ग्राउंडफोर्स के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पुर्तगाल में रविवार को 327 उड़ानें रद्द कर दी गईं। यह जानकारी पुर्तगाल हवाईअड्डों का प्रबंधन करने वाली कंपनी एएनए के आधिकारिक सूत्र ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को निर्धारित 511 आगमन और प्रस्थान उड़ानों में से 301 को लिस्बन हवाईअड्डे पर और 26 अन्य उड़ानों को पोटरे हवाई अड्डे पर रद्द कर दिया गया।
एएनए ने एक बयान में कहा, "हैंडलिंग सेवा की हड़ताल के कारण, हम रद्द उड़ानों वाले यात्रियों से लिस्बन हवाई अड्डे पर नहीं जाने और अन्य चैनलों, डिजिटल और टेलीफोन के माध्यम से जानकारी लेने की अपील करते हैं।"
लिस्बन हवाई अड्डे पर टर्मिनल 2 का उपयोग करने वाली केवल कम लागत वाली एयरलाइनों ने अपना नियमित संचालन बनाए रखा क्योंकि उन्हें अन्य हैंडलिंग कंपनियों द्वारा सेवा दी जाती है।
ग्राउंडफोर्स की हड़ताल शनिवार को दो मुख्य पुर्तगाली हवाई अड्डों पर 260 उड़ानों को रद्द करने के साथ शुरू हुई।
यूनियन ऑफ एयरपोर्ट हैंडलिंग टेक्नीशियन (एसटीएचए) ने हड़ताल को "अस्थिर वेतन और अन्य आर्थिक घटकों के समय पर भुगतान के संबंध में बुलाया था, जिसका ग्राउंडफोर्स के वर्कर्स ने फरवरी 2021 से सामना किया है।"
ग्राउंडफोर्स का स्वामित्व पासोगल समूह के पास 50.1 प्रतिशत और टीएपी समूह के पास 49.9 प्रतिशत है, जो 2020 से पुर्तगाल द्वारा नियंत्रित है।
ग्राउंडफोर्स ने टीएपी पर पहले से प्रदान की गई सेवाओं के लिए 12 मिलियन यूरो (14.17 मिलियन डॉलर) के कर्ज का आरोप लगाया, लेकिन टीएपी ने कहा कि उसके पास ग्राउंडफोर्स के लिए कोई बकाया नहीं है। (आईएएनएस)
काठमांडू, 18 जुलाई| नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने रविवार को संसद में रविवार को विश्वास मत हासिल कर लिया। हाउस स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने वोट के नतीजे पढ़े, जिसमें देउबा को 165 वोट मिले जबकि 84 सांसदों ने उनके खिलाफ वोट किया। जबकि निचले सदन में वर्तमान में 271 सदस्य हैं, केवल 249 विधायक मतदान के लिए उपस्थित थे क्योंकि कुछ ने मतदान का बहिष्कार किया और कुछ अनुपस्थित रहे।
देउबा को उनकी अपनी नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र), जनता समाजवादी पार्टी के साथ-साथ मुख्य विपक्षी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल के कुछ सांसदों का समर्थन प्राप्त था, जिनकी कुर्सी उनके पूर्ववर्ती के.पी. शर्मा ओली।
नेपाली कांग्रेस के पास 61 सीटें हैं जबकि गठबंधन सहयोगी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के पास 49 सीटें हैं। इसी तरह राष्ट्रीय जनमोर्चा ने भी एक सीट के साथ देउबा को वोट देने का फैसला किया।
लेकिन जनता समाजवादी पार्टी, जिसके कुल 32 सदस्य हैं, के आधे सांसदों ने भी रविवार को कटु चेहरा बना लिया और अचानक देउबा को वोट देने का फैसला कर लिया। (आईएएनएस)
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ़ से जारी बयान मे कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान शांति प्रक्रिया और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक नया राजनयिक प्लेटफ़ॉर्म बनाया गया है जिसमें अमेरिका, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल होंगे.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अनुसार चार देशों के इस राजनयिक प्लेटफ़ॉर्म का संयुक्त अधिवेशन जल्द ही होगा.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार इस नए राजनयिक गठबंधन में शामिल चारों देश अफ़ग़ानिस्तान में स्थाई शांति को क्षेत्रीय सहयोग के लिए अहम समझते हैं. प्रवक्ता ने कहा कि चारों देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के रास्ते खोलने के ऐतिहासिक अवसर को स्वीकार करते हैं, और व्यापार बढ़ाने और व्यवसायी संबंधों को और मज़बूत करने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करने का इरादा रखते हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चारों देशों ने सर्वसम्मति से इस बात को स्वीकार किया है कि अगले महीने इसकी बैठक की जाएगी. (bbc.com)
जंग अख़बार के अनुसार वाटर एंड पावर डेवेलपमेंट अथॉरिटी (वापडा) के प्रवक्ता का कहना है कि डासू बांध परियोजना पर काम करने वाली चीनी कंपनी ने पाकिस्तानी कर्मचारियों को निकालने का नोटिस वापस ले लिया है. प्रवक्ता के अनुसार डासू की घटना के बाद सिविल प्रशासन, वापडा और चीनी कंपनी ने आपस में विचार विमर्श करने के बाद यह फ़ैसला किया गया है. प्रवक्ता के अनुसार चीनी कंपनी इस परियोजना पर दोबारा काम शुरू कर देगी. प्रवक्ता का कहना है कि परियोजना पर काम रोकने का मक़सद सुरक्षा इंतज़ामों की नए सिरे से जाँच करनी है.
पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में 15 जुलाई को हुए एक 'बस हादसे' में कम से कम 13 लोग मारे गए थे जिनमें नौ चीनी नागरिक थे. ये डासू बांध परियोजना पर काम कर रहे थे. ये धमाका अपर कोहिस्तान ज़िले में हुआ था. इस हादसे में मारे गए नौ चीनी इंजीनियरों के अलावा, पाकिस्तान की फ्रंटियर कोर के दो जवान और दो आम नागरिक भी शामिल थे.
चीन ने इस हादसे को बम धमाका बताया था जबकि पाकिस्तान ने पहले तो इसे गैस लीकेज की वजह से हुआ धमाका कहा, लेकिन बाद में पाकिस्तान ने भी इस बात की आशंका जताई कि यह धमाका एक चरमपंथी कार्रवाई हो सकती है. चीनी कंपनी ने काम रोकने का फ़ैसला किया था और इसमें काम करने वाले पाकिस्तानी कर्मचारियों को निकालने का नोटिस जारी कर दिया था.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने चीनी समकक्ष से फ़ोन पर बात की थी और उन्हें विश्वास दिलाया था कि इस मामले की पूरी जाँच होगी. इमरान ख़ान ने कहा था, ''किसी भी शत्रु ताक़त को पाकिस्तान और चीन के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को नुक़सान पहुँचाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.'' (bbc.com)
-इक़बाल अहमद
अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार क़तर की राजधानी दोहा में अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत हुई जिसमें युद्ध रोकने, तालिबान क़ैदियों की रिहाई और अंतरिम सरकार बनाने पर दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी बात रखी.
अख़बार के अनुसार किसी भी मामले में कोई सहमति नहीं बन पाई है. इस अवसर पर अफ़ग़ानिस्तान सरकार के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह ने कहा कि "हम सब की प्राथमिकता युद्ध की पूरी तरह समाप्ति और सर्वसम्मति से सियासी हल की तलाश होनी चाहिए. हम सब की निगाह संयुक्त भविष्य पर होनी चाहिए जिसके अफ़ग़ान नागरिक हक़दार हैं."
इस अवसर पर तालिबान प्रतिनिधि मंडल के नेता अब्दुल ग़नी बिरादर ने कहा कि किसी भी राजनीतिक समझौते तक पहुँचने के लिए सबसे ज़रूरी है कि एक दूसरे पर अविश्वास को ख़त्म किया जाए. उन्होंने कहा, "हमें अपने निजी स्वार्थ को नज़रअंदाज़ कर अफ़ग़ानिस्तान की अवाम की एकता के लिए कोशिश करनी चाहिए."
अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई भी इस बातचीत में शामिल होने वाले थे लेकिन डॉन न्यूज़ के अनुसार वो काबुल में ही रुक गए और बातचीत में शामिल नहीं हो सके. अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत ज़िल्मे ख़लीलज़ाद दोहा बातचीत के दौरान मौजूद थे.
डॉन न्यूज़ के अनुसार तालिबान नेता ने बातचीत में ज़्यादा प्रगति नहीं होने पर अफ़सोस जताया है. अब्दुल ग़नी बिरादर ने कहा, "लेकिन फिर भी उम्मीद पैदा होनी चाहिए और तालिबान बातचीत के सकारात्मक नतीजे के लिए कोशिश करेंगे."
अफ़ग़ानिस्तान सरकार के प्रतिनिधिमंडल की प्रवक्ता नाजिय अनवरी ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि बातचीत तेज़ी से पूरी हों और जल्द ही दोनों पक्ष किसी नतीजे पर पहुँच जाएंगे और अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति का दौर देखें."
दोनों पक्षों ने बातचीत को जारी रखने और ज़्यादा से ज़्यादा संपर्क बनाए रखने पर सहमति जताई लेकिन अभी यह तय नहीं है कि बातचीत कब तक चलेगी और ना ही कोई साझा बयान जारी किया गया.
पिछले साल 29 फ़रवरी को अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता होने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न गुटों के बीच बातचीत की शुरुआत हुई थी लेकिन 10 महीनों तक चली बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला था और बातचीत बंद कर दी गई थी. लेकिन अब दोनों पक्षों के बीच दोबारा बातचीत शुरू हुई है. लेकिन यह बातचीत ऐसे समय में हुई है जब तालिबान हर दिन अफ़ग़ानिस्तान के एक नए इलाक़े पर अपनी पकड़ मज़बूत करते जा रहे हैं. (bbc.com)
वाशिंगटन, 18 जुलाई | अमेरिका के ओरेगन राज्य के पोर्टलैंड शहर में हुई गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कम से कम छह अन्य घायल हो गए। पुलिस ने यह जानकारी दी। पोर्टलैंड पुलिस के अनुसार शनिवार को शूटर मौके से भाग गए, और किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने पुलिस के हवाले से बताया कि एक महिला गंभीर रूप से घायल हो गई और बाद में एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
ओरेगनलाइव की एक रिपोर्ट के अनुसार, अन्य ज्ञात पीड़ित के सर्वाइव करने की उम्मीद है।
पुलिस प्रवक्ता केविन एलन ने कहा कि गोलीबारी के और भी शिकार हो सकते हैं, क्योंकि पुलिस के आने से पहले अन्य लोग घटनास्थल से चले गए होंगे। (आईएएनएस)
जोहानसबर्ग, 18 जुलाई | दक्षिण अफ्रीका के न्याय और सुधार सेवा मंत्री रोनाल्ड लामोला ने 7 जुलाई से लूटपाट और सार्वजनिक हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ त्वरित सुनवाई के निर्देश जारी किए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, निर्देश मांग करते हैं कि हाल ही में हुई सार्वजनिक हिंसा, सार्वजनिक अव्यवस्था और बड़े पैमाने पर लूट के मामलों में तेजी लाई जाए।
लमोला ने शनिवार को कहा कि ये निर्देश हमारी अदालतों और न्याय प्रणाली को हालिया अशांति और सार्वजनिक हिंसा से उत्पन्न मामलों से निपटने के लिए प्रभावी ढंग से और उचित प्रतिक्रिया देने में सक्षम है। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि इन मामलों के प्रसंस्करण में कुछ भी बाधित न हो और जनता को हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली पर भरोसा और विश्वास हो सके।
"निर्देश अन्य बातों के अलावा, ²श्य-श्रव्य लिंक के माध्यम से मामलों को स्थगित करने और प्रत्येक अदालत में एक प्राथमिकता रोल के संकलन के लिए प्रदान किए गए हैं जो अदालतों को प्राथमिकता वाले मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता देने में सक्षम करेगा जिसमें लिंग आधारित हिंसा और यौन अपराध, भ्रष्टाचार, बच्चों से जुड़े मामले और कोविड -19 नियमों का उल्लंघन शामिल हैं।"
लमोला ने कहा, यदि आवश्यक हो, तो अनुभवी सेवानिवृत्त मजिस्ट्रेटों और अभियोजकों के एक पूल सहित अतिरिक्त समर्पित कर्मचारियों को इन मामलों को तेजी से ट्रैक करने के लिए बुलाया जाएगा जहां सैकड़ों गिरफ्तारियां पहले ही प्रभावित हो चुकी हैं।
पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की कैद को लेकर पिछले हफ्ते देश में हिंसक विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में 2,500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मरने वालों की संख्या 212 हो गई है।
हिंसा के मद्देनजर, तैनात दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय रक्षा बल की संख्या बढ़कर 25,000 हो गई है।
तैनाती 12 अगस्त तक रहेगी।
कभी रंगभेद के खिलाफ लड़ाई के लिए जाने जाने वाले जूमा को अदालत के आदेशों की अवहेलना करने के लिए एस्टकोर्ट सुधार केंद्र में 15 महीने की कैद हुई है। (आईएएनएस)
पश्चिमी यूरोप में आई भीषण बाढ़ में अब तक 150 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
बचाव कर्मियों के सामने अब लापता लोगों को खोजने की चुनौती है.
रिकॉर्ड बारिश के बाद जर्मनी और बेल्जियम में आई भीषण बाढ़ में सैकड़ों लोग लापता हैं.
स्विट्ज़रलैंड, लग्ज़मबर्ग और नीदरलैंड्स में भी भारी बारिश हुई है.
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूटे ने देश के दक्षिणी प्रांत में आपातकाल घोषित कर दिया है.
यूरोपीय नेताओं ने इस त्रासदी के लिए जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार बताया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मूसलाधार बारिश की संभावना बढ़ जाती है.
औद्योगिक युग की शुरुआत की बाद से दुनिया का तापमान अब तक 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है.
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वॉल्टर स्टेनमायर ने शनिवार को बाढ़ प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया.
जर्मनी में अब तक सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. वॉल्टमायर ने कहा कि वो बर्बादी देखकर हैरान हैं.
लापता लोगों के लिए बढ़ रही है आशंका
स्टेनमायर ने कहा, "पूरे के पूरे इलाक़ों पर बर्बादी के निशान हैं. बहुत से लोगों ने वो सब खो दिया है, जो उन्होंने ज़िंदगी भर कमाया था."
शुक्रवार को भारी बारिश की वजह से पैदा हुए हालात से बचाव कार्य भी प्रभावित हो रहा है. लापता लोगों के परिजन आशंकाओं से घिरे हैं.
फ़ोन नेटवर्क टूट गया है. सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं और एक लाख से अधिक घरों में बिजली नहीं हैं.
बारिश से सबसे ज़्यादा प्रभावित उत्तरी प्रांत हुए हैं. राइन वेस्टफालिया, राइनलैंड-पालाटिनेट और सारलैंड बुरी तरह प्रभावित हैं.
अधिकारियों के मुताबिक़ राइनलैंड-पालाटिनेट के अर्हवीलर ज़िले में शुक्रवार को 1300 लोग लापता हुए.
हालांकि अधिकारियों का कहना था कि हर घंटे ये आँकड़ा कम हो रहा है.
एक स्थानीय नागरिक ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से बताया, "यहां का दृश्य किसी युद्धक्षेत्र जैसा है, पानी गाड़ियों को बहा ले गया है, मकान टूट गए हैं. हर तरफ बर्बादी का मंज़र है."
प्रांतीय गृह मंत्री ने स्थानीय मीडिया से कहा है कि यहाँ मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है.
बेल्जियम में देश के दस में से चार प्रांतों में सेना को राहत और बचाव कार्यों में लगाया गया है.
20 जुलाई को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया गया है.
बेल्जियम में बाढ़ से कम से कम बीस लोग मारे गए हैं और ये यहाँ हाल के दशकों की सबसे बड़ी त्रासदी है.
दक्षिणी शहर मास्टराइक्ट और आसपास के शहरों में जलस्तर घट रहा है और लोग अपने घरों को लौट रहे हैं.
वैज्ञानिक कई सालों से ये चेतावनी देते रहे हैं कि इंसानों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मियों में होने वाली बारिश और हीटवेव भीषण होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग में हाइड्रोलॉजी की प्रोफ़ेसर हाना क्लॉक कहती हैं, 'यूरोप में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से जो त्रास्दी हो रही है जानें जा रही हैं, इनसे बचा जा सकता था.'
'उत्तरी गोलार्ध के कई हिस्सों में इस समय रिकॉर्ड तोड़ने वाली गर्मी पड़ रही है और आग लग रही है. ये इस बात का संकेत है कि लगातार गर्म होती हमारी धर्ती में मौसम किस हद तक ख़राब हो सकता है.'
वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकारों को कार्बन उत्सर्जन कम करना चाहिए और साथ ही विकट मौसम के लिए तैयार भी रहना चाहिए.
इसी बीच ब्रिटेन में, जहां सोमवार को बाढ़ आई थी, सरकार की जलवायु परिवर्तन पर समिति ने बताया है कि ब्रिटेन खराब मौसम के हालात से निबटने के लिए पांच साल पहले के मुकाबले कम तैयार है.
और इसी सप्ताह ब्रितानी सरकार ने लोगों से कहा है कि उन्हें अपनी हवाई यात्राएं कम करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि विज्ञान के ज़रिए कार्बन उत्सर्जन की समस्या से निबटा जा सकता है.
अधिकतर वैज्ञानिक ये मानते हैं कि ये धारणा एक तरह का जुआ है, जिसमें जीत ही हो, ऐसा नहीं है. (bbc.com)
न्यूज़ ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन (एनबीए) ने केरल हाईकोर्ट में केबल टेलीविजन एक्ट के खिलाफ याचिका दायर करते हुए उसे चुनौती दी है. NBA ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट 1995,(केबल टीवी एक्ट), द केबल टेलीविजन नेटवर्क्स रूल्स 1994 (केबल टीवी रूल्स) और केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (अमेंडमेंट) रूल्स 2021 (अमेंडमेंट रूल्स 2021) के खिलाफ इस आधार पर चुनौती दी है कि केबल टीवी एक्ट, केबल टीवी रूल्स और अमेंडमेंट रूल्स 2021 भारतीय संविधान में दिए गए आर्टिकल 14 के पैरा- III और आर्टिकल 19 (1) (a) और 19(1)(g) का उल्लंघन करता है.
मुख्य रूप से चुनौती अमेंडमेंट रूल्स 2021 के रूल्स 18 से 20 के लिए है, क्योंकि ये न्यूज़ ब्रॉडकास्ट के टेलीविजन चैनलों की सामग्री को विनियमित करने के लिए कार्यपालिका को निरंकुश, बेलगाम और अत्यधिक शक्तियां देते हुए एक निरीक्षण तंत्र बनाते हैं. शिकायत निवारण संरचना का निर्माण और प्रत्यायोजित शक्तियों का मीडिया की सामग्री पर प्रभाव पड़ता है.
इसके अलावा, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स ने केबल टीवी नियमों के नियम 6 (प्रोग्राम कोड) और 7 (विज्ञापन कोड) के उल्लंघन करने वाले हिस्सों को चुनौती देते हुए कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के प्रावधानों से परे हैं. उक्त रूल्स में सामग्री के बारे में गुड टेस्ट, आधा सच, अश्लील, विचारोत्तेजक, दंभपूर्ण रवैया और प्रतिकारक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो अस्पष्ट है और यह सिंगाल बनाम केन्द्र सरकार (2015) के फैसले के अनुरूप नहीं है.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से पेश सीनियर वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि अमेंडमेंट रूल्स 2021 आर्टिकल 19 (1) (a) का उल्लंघन है. उन्होंने यह भी कहा कि उक्त नियम अतिरिक्त सचिव (निगरानी तंत्र) को एक सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा पारित आदेशों पर निर्णय लेने की शक्ति देते हैं, जो कार्यकारी को न्यायिक प्रक्रिया में प्रवेश करने की अनुमति देता है.
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन की परियोजनाओं का लंबे समय से विरोध हो रहा है. इमरान खान ने हाल ही में कहा कि वह उन बलोच अलगाववादियों से बातचीत करना चाहते हैं जो इन परियोजनाओं का पुरजोर विरोध करते हैं.
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह बलूचिस्तान प्रांत में "अलगाववादियों से बात करने" पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "देश के इस पश्चिमी प्रांत का विकास तभी हो सकता है जब इलाके में शांति हो. अगर इस इलाके में विकास का काम होता, तो हमें कभी भी अलगाववादियों को लेकर चिंता नहीं करनी पड़ती." खान ने यह बयान बलूचिस्तान के ग्वादर शहर की अपनी यात्रा के दौरान दिया है. यह शहर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का केंद्र है. सीपीईसी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी अरबों डॉलर की परियोजना है.
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में विकास की कई परियोजनाएं शुरू की थीं. इनके बावजूद, यह देश का सबसे गरीब और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है. पिछले कई दशकों से यहां अलगाववादी समूह सक्रिय हैं. ये समूह इस इलाके को पाकिस्तान से अलग करने की मांग कर रहे हैं. इनका आरोप है कि देश की सरकार उनके संसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है और उनके लोगों का शोषण किया जा रहा है. पाकिस्तान की सरकार ने इन विद्रोहियों और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए 2005 में सैन्य अभियान शुरू किया था. फिर भी, इस इलाके के हालात पहले की तरह ही हैं.
वर्ष 2015 में चीन ने पाकिस्तान में 50 बिलियन डॉलर से अधिक की एक आर्थिक परियोजना की घोषणा की थी. बलूचिस्तान इस परियोजना का अभिन्न हिस्सा है. सीपीईसी के ज़रिए, चीन का लक्ष्य पाकिस्तान और एशिया के अन्य देशों में अपना दबदबा बढ़ाना है. साथ ही, भारत और अमेरिका का मुकाबला करना है. सीपीईसी, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा. इसमें चीन और मध्य पूर्व के बीच संपर्क में सुधार के लिए सड़क, रेल और तेल पाइपलाइन लिंक बनाने की योजना भी शामिल है. हालांकि, बलूचिस्तान के अलगाववादी और कुछ स्थानीय नेता चीन के इस निवेश का विरोध कर रहे हैं.
‘अच्छी पहल'
कराची में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ डॉ. तलत ए विजारत ने बलोच अलगाववादियों के प्रति इमरान खाने के नजरिए में हुए बदलाव का स्वागत किया है. वह कहते हैं, "इस प्रस्ताव से बलूचिस्तान में विकास के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है. यह एक अच्छी पहल है. बलूचिस्तान में शांति स्थापित होने से चीन यहां और ज्यादा निवेश कर सकता है." इस्लामाबाद में रहने वाली विश्लेषक डॉ. सलमा मलिक का मानना है कि प्रधानमंत्री को काफी पहले ही अलगाववादियों से संपर्क करना चाहिए था. वह कहती हैं, "अब थोड़ी देर हो चुकी है. हालांकि, अभी भी इस पहल का स्वागत होना चाहिए."
बलूचिस्तान के अलगाववादियों में चरमपंथी और राजनीतिक समूह दोनों शामिल हैं. दोनों इस इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों का विरोध कर रहे हैं. उनका यह भी मानना है कि बातचीत को लेकर खान का इरादा सही नहीं है. उनका इरादा अशांत प्रांत में चीन की परियोजनाओं को स्थापित कराना है.
पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का कहना है कि चीन बलूचिस्तान में सुरक्षा स्थिति को लेकर चिंतित है. वह कहती हैं, "चीन दुनिया के कई इलाकों में विकास की परियोजनाएं चला रहा है, लेकिन उसे किसी भी जगह उतने खतरों का सामना नहीं करना पड़ रहा है जितना पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में करना पड़ रहा है." विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की चिंताओं की वजह से पाकिस्तान की सरकार का बलोच अलगाववादियों के प्रति नजरिया बदला है.
कराची में रहने वाले विश्लेषक डॉ. तौसीफ अहमद खान लहरी की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "चीन चाहता है कि वह बलूचिस्तान में जो निवेश कर रहा है वह सुरक्षित रहे. इसलिए, इन स्थितियों से निपटने के लिए चीन इमरान खान की सरकार पर दबाव बना रहा है और पाक सरकार दबाव में है."
चीन के खिलाफ गुस्सा
बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार के पूर्व प्रवक्ता जान मुहम्मद बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में कई चीनी परियोजनाओं को सुरक्षा से जुड़े खतरों का सामना करना पड़ रहा है. बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में चीन के खिलाफ बहुत गुस्सा है. स्थानीय लोगों का मानना है कि ग्वादर बंदरगाह और सीपीईसी से संबंधित अन्य परियोजनाएं उनके लिए फायदेमंद नहीं रही हैं.
पाकिस्तान के एक प्रमुख अर्थशास्त्री कैसर बंगाली भी इस बात पर सहमत हैं. वह कहते हैं, "बलोच लोगों का मानना सही है कि इन समझौतों और चीनी परियोजनाओं से उन्हें कुछ नहीं मिला है. चीन ग्वादर बंदरगाह से होने वाली आमदनी का 91 प्रतिशत हिस्सा खुद लेता है और बाकी पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार को जाता है.
ग्वादर में स्थानीय लोगों के पास पीने का साफ पानी तक नहीं है." बंगाली कहते हैं कि ग्वादर में सिर्फ चीनी लोगों के लिए आवासीय परिसर बनाए गए हैं. बलूचिस्तान विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को भी इन परिसरों में जाने की अनुमति नहीं है.
सशस्त्र विद्रोह का सामना
स्थानीय लोगों के पास अपना गुस्सा निकालने के लिए कुछ राजनीतिक रास्ते हैं. वहीं दूसरी ओर, सशस्त्र विद्रोहियों ने न केवल प्रांत में, बल्कि पूरे देश में चीनी परियोजनाओं और ठिकानों को नुकसान पहुंचाने की प्रतिज्ञा ली है. अगस्त 2018 में, एक आत्मघाती हमलावर ने बलूचिस्तान के दलबादीन में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक बस को निशाना बनाया था. इस हमले में तीन चीनी नागरिकों सहित पांच लोग घायल हो गए थे.
नवंबर 2018 में, एक बलोच विद्रोही समूह ने कराची शहर में चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी. इस हमले में चार लोग मारे गए थे. मई 2019 में, अलगाववादियों ने ग्वादर में पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला किया था. इसमें पांच लोग मारे गए थे और छह लोग घायल हो गए थे. जून 2020 में, सशस्त्र अलगाववादियों ने पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला किया था. इस स्टॉक एक्सचेंज में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी तीन चीनी कंपनियों के पास है.
चीनी ठिकानों पर हमला करने के अलावा, बलोच विद्रोही नियमित रूप से पाकिस्तान के सुरक्षा बलों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, और उदारवादी बलोच राजनेताओं को भी निशाना बनाते हैं. साथ ही, उन गैर-बलोच मजदूरों को भी निशाना बनाते हैं जो चीन या पाकिस्तान की तरफ से संचालित विकास परियोजनाओं पर काम करते हैं.
क्यों जरूरी है चीनी निवेश?
चीन के आर्थिक निवेश के समर्थकों का तर्क है कि पाकिस्तान को विदेशी निवेश की जरूरत है. चीन अब तक पाकिस्तान का एक विश्वसनीय भागीदार साबित हुआ है. प्रधानमंत्री इमरान खान के आर्थिक परिषद के सदस्य अशफाक हसन ने डॉयचे वेले को बताया, "पाकिस्तान विरोधी तत्व चीन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं. हम उनके साथ इसलिए अनुबंध करते हैं क्योंकि वे हमारे देश में निवेश करते हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है. चीनी निवेश से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी. साथ ही, बलूचिस्तान को भी फायदा होगा."
पाकिस्तान के कई प्रमुख व्यवसायियों का कहना है कि चीनी निवेश से देश में हजारों नौकरियां पैदा हुई हैं और सहायक परियोजनाओं से हजारों लोगों को लाभ हुआ है. (dw.com)
सौर ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे विश्वव्यापी अपार निवेश को देखते हुए नौकरियों के बड़े अवसर खुल गए हैं. जानकारों का मानना है कि इससे लाखों कामगारों को ही नहीं बल्कि पर्यावरण का भी लाभ होगा, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं.
डॉयचे वैले पर गेरो रुइटर की रिपोर्ट
फाबियान रोखास कहते हैं, "मुझे अपना जॉब वाकई अच्छा लगता है. मैं रोमांचित हूं और बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है.” 26 साल के अर्जेंटीनी इंजीनियर, फाबियान पश्चिमी जर्मनी के कोलोन शहर में एक छोटी कंपनी में पिछले अक्टूबर से काम कर रहे हैं. यह कंपनी छतों पर सौर पैनल लगाती है.
खुद बिजली बनाने का रोमांच
2008 से सौर पैनल बेच रही कंपनी के सीईओ रेने हेगेल ने रोखास को नौकरी पर रखा था. उस समय वो जर्मनी घूमने आए थे. इस तरह कंपनी इलाके में तेजी से बढ़ रही मांग का कुछ हिस्सा पूरा करने में सक्षम हो पा रही है.
रोखास ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे पास बहुत सारी इन्क्वायरी आयी हुई हैं. मैं एक हफ्ते में कम से कम छह ऑफर सामने रखता हूं. हमारे पास अगले चार से पांच महीनों के लिए पहले से ही ऑर्डर पड़े हैं. ग्राहक अपनी बिजली खुद पैदा करना चाहते हैं, अपनी इलेक्ट्रिक कारों को चार्ज करना चाहते हैं और ग्रिड की खपत को कम करना चाहते हैं. जलवायु बचाने में ये सब काम ही आता है.”
रोखास ग्राहकों से बात करते हैं, सौर पैनलों को उनकी जरूरत के हिसाब से बनाते हैं. कभी-कभार वह छतों पर उन्हें लगाने में भी मदद करते हैं. हेगेल के मुताबिक, "फाबियान तेजी से सीख रहे हैं. अगले कुछ महीनों में उन्हें कुछ और व्यवहारिक अनुभव हासिल हो पाएगा. और तब चीजें और बेहतर हो जाएंगी.”
जर्मन सौर इंडस्ट्रीः मदद चाहिए
सौर ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए हेगेल को अपनी चार सदस्यों वाली टीम का विस्तार करना है. यह मांग 2000 के शुरुआती दिनों में जिस तेजी के साथ उभर कर आयी थी, वही स्थिति अब लौट आई है. जर्मनी में पांच गीगावाट वाले सौर ऊर्जा सिस्टम 2020 में लगाए गए थे. ऊर्जा क्षमता और बढ़ने की उम्मीद है. अध्ययन बताते हैं कि इस शताब्दी में वैश्विक तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिए सौर ऊर्जा में छह गुना विस्तार करना होगा, यानी हर साल 30 गीगावाट.
म्युनिख की बेवा आर.ई. कंपनी में सीओओ ग्युंटर हॉग कहते हैं कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सोलर इंडस्ट्री में ज्यादा लोग चाहिए. तेजी से बढ़ती ये कंपनी दुनिया भर में विशाल सोलर और विंड फार्म बना रही है. 2017 में कंपनी में 1100 कर्मचारी थे, आज 2700 हैं.
हॉग कहते हैं, "हमें इंजीनियरों, वित्त विशेषज्ञों, प्रोजेक्ट डेवलेपमेंट के लिए योग्य कर्मचारियों और कस्टमर सर्विस के लिए टेक्निकल ट्रेनिंग वाले लोगों की ज़रूरत है.” कर्मचारियों की तलाश और उन्हें नौकरी पर रखने के लिए हॉग कहते हैं कि "कंपनी अच्छा-खासा निवेश करने को तैयार है और अभ्यर्थियों को खुद ही ट्रेनिंग देने की भी इच्छुक है क्योंकि इस फील्ड में कुशल कारीगर नाकाफी हैं.”
बर्लिन में यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लाइड साइंसेस में रिन्युएबल एनर्जी के प्रोफेसर फोल्कर क्वाशनिंग कहते हैं, "जर्मनी में इस समय फोटोवोल्टेयिक्स में करीब 50 हजार नौकरियां हैं.” वह कहते हैं कि कई लोग कोरोना संकट के चलते नयी नौकरियों की तलाश कर रहे हैं हैं. क्वाशनिंग ने डीडब्ल्यू को बताया, "इसे लेकर अपनी अप्रोच में हमें और स्मार्ट होना होगा, कुशल कारीगरों की कमी पूरी करने के लिए हमें ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू करने होंगे. वरना ये ऊर्जा रूपान्तरण कामगारों की कमी की वजह से फेल हो जाएगा.”
छह करोड़ से ज्यादा नौकरियां
इंटरनेशनल रिन्युएबल एनर्जी एजेंसी (आईरेना) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में करीब एक करोड़ 15 लाख लोग पूरी दुनिया में रिन्युएबल एनर्जी सेक्टर में काम कर रहे थे. इनमें से हर तीसरा व्यक्ति सौर ऊर्जा में था.
आईरेना का मानना है कि कोरोना संकट से उबरते देशों को अर्थव्यवस्था और जॉब मार्केट की बहाली के लिए होने वाले निवेशों में नयी ऊर्जा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. आईरेना के महानिदेशक फ्रांसेस्को ला कामेरा कहते हैं, "हमारा अनुमान है कि इस फील्ड में खर्च होने वाला हर डॉलर, फॉसिल ईंधन वाले ऊर्जा सेक्टर के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा रोजगार सृजित करता है. बहुत सारे नीति-निर्माता, इस सेक्टर की जॉब देने की सामर्थ्य को पहचानने लगे हैं.”
सौर ऊर्जा अब बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता माध्यम है. इसीलिए शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में ये ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के रूप में वैश्विक जगह बना लेगी. पूरी दुनिया में इस समय करीब 850 गीगावॉट की कुल क्षमता वाले फोटोवोल्टेइक सिस्टम लगे हैं. अनुमानतः वे 190 एटमी ऊर्जा संयंत्रों जितनी बिजली पैदा करते हैं.
अध्ययनों का अनुमान ये भी है कि वैश्विक, जलवायु-निरपेक्ष ऊर्जा आपूर्ति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कम से कम 60 हजार गीगावॉट सौर ऊर्जा की जरूरत होगी. इस लिहाज से सौर ऊर्जा इंडस्ट्री को मॉड्यूल उत्पादन और असेंबली के अलावा सिस्टम की देखरेख और मरम्मत के लिए अगले दशक में छह करोड़ से ज्यादा नौकरियां निकालनी होंगी.
उत्सुक बनिए और यहां नौकरी पाइये
कोलोन में कार्यरत इंजीनियर फाबियान रोखास, सोलर और विंड पावर के साथ साथ ऊर्जा बचाने वाली नयी प्रौद्योगिकियों से खासे प्रभावित हैं. वह नियमित रूप से इन विषयों पर अपने एक अर्जेंटीनी दोस्तों के साथ वीडियो कॉल पर बातचीत करते हैं जो अमेरिका में सोलर पावर सिस्टम लगाने जा रहा है.
रोखास कहते हैं, "सौर ऊर्जा की जरूरत पूरी दुनिया में हैं और इसीलिए इस फील्ड में काम करने वालों की दुनिया भर में मांग बढ़ी हैं.” उनके मुताबिक यूरोप के अलावा ये बात एशिया और दक्षिण अमेरिका के लिए भी उतनी ही सच है.
इस इंडस्ट्री में काम करने के इच्छुक लोगों के लिए रोखास की सलाह है- प्रोएक्टिव बनने की. कहते हैं, "खुद को शिक्षित करो, इंटर्नशिप करो. खुशकिस्मती से इंटरनेट पर भी बहुत सारी जानकारी है.” दुनिया में दूसरी जगहों में भी वह सोलर सेक्टर में बहुत से मौके देखते हैं और अपना ज्ञान और अनुभव बांटने को भी तैयार हैं: "मैं यह देखने को बेताब हूं कि हमारे दरवाजे पर अगली दस्तक कौन देगा.” (dw.com)
डिजिटल दुनिया के इस दौर में बिहार में आज भी मिथिलांचल में ऐसी व्यवस्था कायम है जिसके तहत दशकों पहले बनाई गई पंजी (रजिस्टर) के आधार पर पंजीकार सात पुश्तों की कुंडली खंगाल विवाह तय करने की अनुमति देते हैं.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
बिहार के मधुबनी जिले का एक गांव है सौराठ. यह जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व में स्थित है. इस गांव की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है. कहा जाता है कि 12वीं सदी में मुगलों के आक्रमण के दौरान सौराष्ट्र से आकर दो ब्राह्मण यहां बस गए. क्योंकि ये लोग गुजरात के सौराष्ट्र से यहां आए थे इसलिए इस जगह का नाम कालांतर में सौराठ हो गया. इस जगह की एक और खासियत यह भी है कि यहां से थोड़ी दूरी पर ही सोमनाथ मंदिर जैसा एक मंदिर भी बना हुआ है.
हर साल जेठ और आषाढ़ (जून-जुलाई) महीने में यहां एक सभा का आयोजन होता है जिसे सौराठ सभा गाछी कहते हैं. मिथिलांचल में फलों के बगीचे को गाछी कहा जाता है. इस अवधि में 11 दिनों तक मिथिलांचल वासी यहां पहुंचकर वर-वधू का चयन करते हैं. पंजीकार विश्व मोहन चंद्र मिश्र कहते हैं, ‘‘मिथिला के सभी वर्णों व जातियों के विवाह प्रस्ताव मैथिलों के कन्या या वर पक्ष से होने के लिए यह व्यवस्था लागू की गई थी. जिसमें मैथिल ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ या वैश्य वर्ण के लिए पंजी बनाई गई थी.''
वर्ष 1310 से होता आ रहा है आयोजन
सौराठ सभा का इतिहास बहुत पुराना है. 700 साल से अधिक समय से इस सभा का आयोजन होता आया है. कहा जाता है कि सौराठ सभा गाछी की शुरुआत सन 1310 में राजा हरिसिंह देव ने तत्कालीन समाज में विवाह पूर्व विद्यमान सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से की. मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की मंशा भी इसके पीछे काम कर रही थी. पंजीकार विश्व मोहन चंद्र मिश्र के अनुसार मैथिल ब्राह्मणों ने सात सौ साल पहले वर्ष 1310 में यह प्रथा शुरू की थी, ताकि अच्छे कुल-खानदानों के बीच वैवाहिक संबंध तय हो सके. लेकिन अब इसकी लोकप्रियता घट रही है. वे कहते हैं, ‘‘1971 में यहां करीब डेढ़ लाख लोग आए थे. 1991 में भी यह संख्या पचास हजार थी, किंतु दिनों-दिन यहां आने वालों की संख्या घटती ही जा रही है.''
कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव ने पवित्र वैवाहिक संबंध बनाने के लिए 1327 ईस्वी में पंजी व्यवस्था को लागू करवाया, ताकि एक गोत्र में ही विवाह न हो सके. एक गोत्र का तात्पर्य एक पूर्वज की संतान से है. विवाह की गरिमा और पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए पंजीकार बनाए गए जो इलाके के लोगों के कुल-खानदान के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर उसे पंजीकृत करते थे अर्थात रजिस्टर पर चढ़ाते थे. उनकी स्वीकृति के बिना शादियां संभव नहीं होती.
आखिर होता क्या है सौराठ सभा में
सौराठ सभा में सुयोग्य वर-वधू की तलाश में मैथिल ब्राह्मण जमा होते हैं. वे अपने हिसाब से अपने बच्चों के लिए वर या वधू की तलाश में वहां पहुंचते हैं. जब लड़का-लड़की, दोनों पक्ष विवाह के लिए आपसी सहमति बना लेते हैं तब पंजीकारों की भूमिका शुरू होती है. पंजीकार दोनों पक्षों के सात पुश्तों की जन्म कुंडली खंगालते हैं कि कहीं पिछले सात पुश्तों में दोनों पक्ष में कोई वैवाहिक रिश्ता तो नहीं रहा है. अगर सात पुश्त तक दोनों पक्ष में वैवाहिक सबंध नहीं मिलता है तो पंजीकार शादी की सहमति प्रदान कर देते हैं. पंजीकार जन्मपत्री और राशिफल के आधार पर लड़के और लड़की की कुंडली भी मिलाते हैं. कुंडली मिल जाने पर शादी तय कर दी जाती है. सौराठ सभा में पारंपरिक पंजीकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. यहां जो रिश्ता तय होता है, उसे मान्यता पंजीकार ही देते हैं. इसकी मान्यता कोर्ट में भी होती है.
एक खास बात यह भी है कि जो लोग सौराठ सभा गाछी में वर-वधू का चयन करने के मकसद से नहीं आते हैं वे भी शादी का सिद्धांत लिखवाने अवश्य पहुंचते हैं. सौराठ के ग्रामीण रंजय झा कहते हैं, "आज भी यहां सभा वास के दौरान मिथिलांचल के अलावा नेपाल स्थित मिथिला क्षेत्र और देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. वे यहां वर-वधू का चयन भले न करें, किंतु शादी का सिद्धांत लिखवाने जरूर आते हैं.'' शादी का सिद्धांत लिखवाने का आशय वैवाहिक प्रस्ताव को पंजीकृत करने से है. वे लोग जो मिथिलांचल के मूल निवासी हैं और आज किसी भी वजह से वहां नहीं रह रहे हैं, ऐसे लोग अपने पुत्र-पुत्री की शादी तय होने पर यहां पंजीकारों को सूचित करते हैं, अर्थात शादी का सिद्धांत लिखवाते हैं. कहा जाता है, सौराठ में शादी का सिद्धांत आज भी ताड़ के पत्ते पर लिखने का रिवाज कायम है.
समय के साथ बदला स्वरूप
समय के साथ-साथ सौराठ सभा वास का स्वरूप भी बदल गया है. वहीं इसकी महत्ता भी कम होती जा रही है. पहले जहां लाखों की संख्या में लोग सौराठ सभा वास में पहुंचते थे, वहीं अब हजार लोग भी बमुश्किल जुट पा रहे हैं. समाजशास्त्री ब्रह्मदेव राय कहते हैं, "आधुनिक युग की चकाचौंध में लोग अपने मूल से कट रहे हैं, परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. अब शादी के लिए सौराठ सभा ही एकमात्र मंच नहीं रहा. अब तो गोत्र, मूल,जाति के बंधन की बाध्यता भी समाप्त होती जा रही है. प्रेम विवाह, अंतरजातीय विवाह धड़ल्ले से हो रहे हैं. लड़का- लड़की खुद मिलते हैं और अपनी मर्जी से जीवनसाथी का चुनाव करते हैं. डर से या फिर संतान मोह की वजह से मां-बाप भी बच्चों की खुशी में अपनी खुशी को ढूंढ लेते हैं."
पत्रकार अमित कहते हैं, "सामाजिक ताना-बाना ऐसा होता जा रहा है कि धर्म, जाति, गोत्र की दीवार कमजोर होती जा रही है. सौराठ सभा में पहले दहेज जैसी चीज नहीं थी, लेकिन अब दहेज की भी मांग की जाने लगी है. पहले आवागमन की सुविधा कम थी तब लोगों की मजबूरी थी कि अपने आसपास के इलाके में ही रिश्ता तय करें. ऐसे में सौराठ सभा जैसे मंच लोगों के मिलने-जुलने का जरिया प्रदान करते थे, किंतु अब रिश्ता तय करने का दायरा बढ़ गया है. डर है कि समय के साथ यह परंपरा कहीं लुप्त न हो जाए."
परंपरा बचाए रखने की जद्दोजहद
ऐसा नहीं है कि सौराठ सभा की खोयी गरिमा को पाने के लिए संगठित प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. विभिन्न सामाजिक संगठन इसके लिए आगे आ रहे हैं. सबसे पहले तो डिजिटल युग की मांग के अनुसार पंजी को कम्प्यूटरीकृत करने का काम किया जा रहा है. रिश्ते-नातों के खातों को डिजिटाइज करने से लोगों को भी सहूलियत होगी. इससे मिथिलांचल वासियों को वंशावली संबंधी जानकारी ऑनलाइन मिल सकेगी. प्रसिद्ध गायक एवं अटल भारत फाउंडेशन के संरक्षक उदित नारायण भी सौराठ सभा की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए आगे आए हैं. वे कहते हैं, "गौरवशाली विश्व प्रसिद्ध सौराठ सभा का कायाकल्प किया जाएगा. पंजी को कम्प्यूटरीकृत करने के साथ-साथ सभा परिसर को बेहतर स्वरूप प्रदान करने की योजना बनाई जा रही है." सौराठ सभा परिसर में मंदिर, धर्मशाला, मंडप आदि धार्मिक संरचना के जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण के काम को प्रमुखता दी जा रही है.
अटल भारत फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रदीप झा कहते हैं, "विवाह पूर्व कुल-गोत्र का मिलान धार्मिक व वैज्ञानिक, दोनों ही दृष्टिकोण से आवश्यक है. बदलते समय में मिथिला वासियों के इस वैवाहिक निर्धारण स्थल की महत्ता और भी बढ़ गई है." वहीं सरकारी स्तर पर भी सौराठ सभा की बेहतरी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. मधुबनी जिले की प्रभारी मंत्री लेसी सिंह के अनुसार "मैथिल ब्राह्मणों के विश्व प्रसिद्ध वैवाहिक निर्धारण स्थल सौराठ सभा के विकास की पहल की जाएगी. इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने और राजकीय महोत्सव के रुप में मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा."
राज्य के पीएचईडी मंत्री रामप्रीत पासवान भी पंजी के कम्प्यूटरीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हैं. वे भी कहते हैं, "सौराठ सभा को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने के लिए हरसंभव मदद की जाएगी, ताकि इस अनूठी विश्वस्तरीय परंपरा को बचाया जा सके." बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कार्यकारी कुलपति प्रोफेसर जयप्रकाश नारायण झा कहते हैं, "सौराठ सभा मैथिलों का गौरव तथा पूर्वजों की धरोहर है. इसे हर हाल में सहेजने की जरूरत है." (dw.com)
चीन और अमेरिका की तनातनी के बीच जापान ताइवान और दक्षिण कोरिया लेकर चिंतित है साथ ही भारत के प्रति उत्सुक और आशावान भी. देश की रक्षा नीतियों का जो खाका तैयार हुआ है उससे तो यही पता चल रहा है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
रोचक लेआउट और चमक-धमक के साथ जापान का साल 2021 का रक्षा श्वेत पत्र आ गया है. विशेषज्ञों के बीच इस रक्षा श्वेत पत्र के आवरण पृष्ठ को लेकर ही काफी मंथन चल रहा है. जापान का यह रक्षा श्वेत पत्र मंगलवार को प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा की संस्तुति के बाद औपचारिक तौर पर जारी हुआ. एक काल्पनिक घुड़सवार समुराई योद्धा के चित्र से सजा आवरण पृष्ठ जापान के बदलते तेवर की ओर इशारा करता है. इसके अलावा भी इस रक्षा श्वेत पत्र में कई और बातें है जो इसे महत्वपूर्ण बनाती हैं.
एशिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति होने के नाते जापान के इस सालाना जारी होने वाले रक्षा श्वेत पत्र का खास सामरिक महत्त्व है जिससे जापान की सामरिक चिंताओं, इसकी तैयारियों और भविष्य की सामरिक रणनीतियों का भी पता चलता है. जापान के श्वेत पत्र में कई महत्वपूर्ण बिंदु उभर कर आये हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव. जापान और एशिया के तमाम देशों के लिए अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती तनातनी चिंता का सबब बन रही है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि श्वेत पत्र में भी जापान ने इस सामरिक संकट को पहले से कहीं बड़ा माना है.
वैसे तो जापान चीन और अमेरिका की सामरिक तनातनी से तो वाकिफ है और शायद इससे जुड़ी परिस्थतियों के लिए कमोबेश तैयार भी है लेकिन जापान की श्वेत पत्र में उल्लिखित चिंता इस वजह से ही नहीं है. उसे डर है कि अमेरिका और चीन के बीच घमासान, आर्थिक और 5जी तकनीक, साइबर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स जैसे तकनीकी मुद्दों पर ज्यादा होगी. जापान और इंडो-पैसिफिक के तमाम देशों पर इसका सीधा असर होगा इस बात में भी कोई दो राय नहीं है. 5जी, साइबर सुरक्षा और रीजनल सप्लाई चेन को लेकर बढ़ती उठापटक से यह रुझान साफ दिख रहे हैं.
ताइवान पर बदला रुख
जापानी श्वेत पत्र की एक और खास बात है ताइवान को लेकर जापान सरकार की चिंताएं. ऐसा पहली बार हुआ है कि जापान ने अपने रक्षा श्वेत पत्र में मुखर होकर ताइवान की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर चिंताओं को स्पष्ट रूप से सामने रखा है. प्रपत्र में यह साफ तौर पर लिखा है कि चीन का बार-बार ताइवान की संप्रभु हवाई सीमा में जानबूझ कर अतिक्रमण चिंता का विषय है. इसी के चलते जापान को ताइवान और उसके आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा को लेकर चौकन्ना रहना होगा. यह जापान की खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है.
ताइवान और जापान के बीच की दूरी लगभग 2100 किलोमीटर की है. यह एक बड़ी वजह है जिसके चलते जापान ताइवान की सुरक्षा से खुद को सीधे जोड़ कर देखता है. खास तौर पर जापान का सामरिक नजरिये से महत्वपूर्ण - ओकिनावा द्वीप, ताइवान पर हुए किसी झगड़े में बेवजह लपेटे में आ सकता है. हालांकि यह बात सिर्फ हवाई है और चीन फिलहाल ऐसा करने का इच्छुक नहीं दिखता लेकिन तारो आसो के इस बयान से चीन में खलबली मच गयी. चीन ने इस वक्तव्य पर कड़ा ऐतराज जताया और यह भी कहा कि ऐसे वक्तव्यों से चीन और जापान के कूटनीतिक संबंधों की बुनियाद पर चोट होती है. हालांकि तारो आसो की यह बात हवाई नहीं थी और जापान इस मसले पर पूरी गंभीरता से काम कर रहा है - यह अपने रक्षा श्वेत पत्र के जरिये जापान ने साफ कर दिया है.
‘वन चाइना नीति' के तहत चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है. हालांकि कम्युनिस्ट चीन के जन्म के समय से ही जमीनी हकीकत यही है कि ताइवान का अपना अलग अस्तित्व रहा है. बावजूद इसके चीन ने ताइवान को मेनलैंड चीन में मिला लेने की कसम खा रखी है. माना जाता है कि चीनी सरकार की रणनीति यही है कि 2049 में जब चीन अपनी सौवीं वर्षगांठ मना रहा हो, तब तक ताइवान भी मेनलैंड चीन का हिस्सा बन जाय. इसी रणनीति के तहत चीन ने ताइवान मुद्दे को अपने ‘कोर इंटरेस्ट' की संज्ञा दी है.
2013 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन का ताइवान को लेकर रुख और कड़ा हो गया है. पिछले कुछ महीनों में चीन के आक्रामक रवैये में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है. ताइवान की सम्प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की जिम्मेदारी उठाए अमेरिका ने भी इस मोर्चे पर चीन के हर कदम का डट कर जवाब दिया है. साथ ही ताइवान की सैन्य और सामरिक दोनों ही मोर्चों पर मदद में भी कोई कमी नहीं रख छोड़ी है.
अमेरिका और चीन की के बीच बरसों से चली आ रही इस खींचतान में अब परिवर्तन आ रहे हैं जिनमें से एक बड़ा बदलाव है ताइवान को लेकर जापान का बदलता रूख. पड़ोस में बसे ताइवान को लेकर पिछले कुछ महीनों में जापान पहले से कहीं ज्यादा गंभीर हो रहा है. इसकी एक झलक कुछ ही हफ्ते पहले तब देखने को मिली जब जापान के उप प्रधानमंत्री तारो आसो ने कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में जापानी सेना को अमेरिका की मदद करनी चाहिए.
दक्षिण पूर्व सागर को लेकर भी श्वेत पत्र में चिंताएं जताई गई हैं. जापान का मानना है कि तेजी से दक्षिण चीन सागर में हथियारों की होड़ और द्वीपों का सैन्यीकरण चिंता का विषय है. हालांकि चीन, ताइवान, और इस क्षेत्र के मसले ही जापान की चिंता का सबब नहीं हैं. जापान की एक बड़ी चिंता इस जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े संकटों को लेकर भी है. पिछले कुछ वर्षों में जापान जलवायु परिवर्तन की वजह से आई आपदाओं की मार से बहुत परेशान है. इन आपदाओं से निपटने में मानवीय तकनीक बहुत कारगर नहीं सिद्ध हो रही है यही वजह है कि जापान ने इन मुद्दों को भी अपने रक्षा श्वेत पत्र में जगह दी है.
कोरियाई देशों का जिक्र
सुरक्षा चिंताओं की फेरहिस्त में जापान ने उत्तर कोरिया का भी जिक्र किया है. उसका मानना है कि उत्तरी कोरिया की मिसाइल डिफेंस क्षमताओं में बढ़ोत्तरी चिंता का विषय है. श्वेत पत्र में यह भी कहा गया है कि उत्तरी कोरिया के पास पहले से ही यह क्षमता मौजूद है कि वह जापान पर मिसाइलों से हमला कर दे.
अपने श्वेत पत्र में उत्तर कोरिया के साथ ही दक्षिण कोरिया को भी जापान ने लपेट लिया है. जापान और दक्षिण कोरिया के बीच स्थित दोकडो/ताकेशिमा द्वीप का भी जिक्र किया है और इसे अपना बताया है. जाहिर है इस कदम से दक्षिण कोरिया में नाराजगी है. दक्षिण कोरिया सरकार ने जापान की इस हरकत को तथ्यविहीन और भड़काऊ माना है. दक्षिण कोरिया ने चेतावनी दी है कि वह जापान की ऐसी किसी भी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देगा. इस सिलसिले में दक्षिण कोरियाई विदेश मंत्रालय ने जापानी दूतावास के अधिकारी को भी तलब कर लिया.
इस श्वेत पत्र में भारत को ही काफी तरजीह दी गई है. फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक, क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग और भारत-आस्ट्रेलिया- जापान सामरिक और सैन्य सहयोग - सभी में भारत को एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार सहयोगी माना है. कुलमिलाकर जापान का यह नया रक्षा श्वेत पत्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की तेजी से बदली सामरिक परिस्थितियों का आकलन है - इन तमाम मुद्दों को जापान कैसे देखता है इसका श्वेत पत्र की मदद से एक और सटीक आंकलन करने में जानकारों को और मदद मिलेगी. (dw.com)
एक स्वतंत्र देश के रूप में दक्षिण सूडान के 10 वर्षों को व्यापक असुरक्षा, भयावह मानवीय संकट और भ्रष्टाचार के रूप में चिह्नित किया गया है.
डॉयचे वैले पर क्रिस्टीना क्रिपाल की रिपोर्ट
9 जुलाई 2011 को सूडान से अलग हुए दक्षिण सूडान की आजादी के बाद का उत्साह बहुत छोटा था. डेढ़ साल से भी कम समय में, संसाधन संपन्न यह देश घातक गृहयुद्ध में फंस गया जिसने करीब चार हजार लोगों की जान ले ली. गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप, देश की 1.10 करोड़ की आबादी में से 16 लाख लोग मौजूदा समय में दक्षिण सूडान के भीतर ही विस्थापित हैं, जबकि 20 लाख से ज्यादा लोगों ने दक्षिण सूडान के बाहर अन्य देशों में शरण ली है.
आज, दक्षिण सूडान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ ने इस हफ्ते की शुरुआत में चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान अब तक का सबसे बुरा मानवीय संकट झेल रहा है. यूनिसेफ ने दक्षिण सूडान की दसवीं वर्षगांठ से पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि अकेले पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों के सामने भुखमरी का खतरा है.
रिपोर्ट में, यूनिसेफ ने जोर देकर कहा है कि कमजोर राज्य संरचनाओं, अत्यधिक गरीबी, सामाजिक और आर्थिक संकट, जलवायु परिवर्तन के परिणाम और कोविड-19 महामारी से लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
आजादी के बाद जातीय संघर्ष
दक्षिण सूडान के विशेषज्ञ क्लेमेंस पिनाउड ने डीडब्ल्यू को बताया कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका के रूप में पहचाने जाने वाले इस देश में बहुत कुछ "गलत" हो गया है. इंडियाना यूनिवर्सिटी में हैमिल्टन लुगर स्कूल ऑफ ग्लोबल एंड इंटरनेशनल स्टडीज की सहायक प्रोफेसर पिनाउड कहती हैं, "विभिन्न जातीय समूहों के नागरिकों के खिलाफ नरसंहार जैसी हिंसा संयुक्त राष्ट्र के सबसे युवा सदस्य राज्य के सामने प्रमुख मुद्दों में से एक है. पिनाउड के मुताबिक स्वतंत्रता के लिए दक्षिण सूडान की लड़ाई के दौरान, दक्षिण सूडान के प्रमुख जातीय समूह, डिंका के बीच वर्चस्व की मानसिकता बढ़ी. वो कहती हैं कि यह भावना जातीय वर्चस्व के रूप में बदल गई. आजादी के बाद से ही दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति साल्वा कीर भी डिंका समुदाय से आते हैं.
साल 2013 में, कीर ने सबसे देश के उपराष्ट्रपति रीक मचर को बर्खास्त कर दिया जो देश के दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह, नुएर से संबंध रखते थे. कीर ने माचर पर उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया. हालांकि सूडान से आजादी के लिए संघर्ष में दोनों एक साथ थे. माचर के निष्कासन ने देश को आधुनिक समय के सबसे क्रूर गृहयुद्धों में से एक की ओर धकेल दिया जिसमें नरसंहार, बलात्कार और बाल सैनिकों की भर्ती भी शामिल थी. गृहयुद्ध साल 2018 तक जारी रहा. इसके बाद प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.
छिटपुट हिंसा अभी भी जारी है
हालांकि फरवरी 2020 में आखिरकार गठबंधन सरकार बनी लेकिन स्थानीय स्तर पर संघर्षों का दौर अभी भी जारी है. साल 2020 की दूसरी छमाही में प्रतिद्वंद्वी समुदायों के बीच हुई हिंसा में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए.फरवरी 2021 में दक्षिण सूडान के बारे में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की जारी हुई रिपोर्ट में पाया गया कि ‘सशस्त्र राज्य और विपक्षी बलों के समर्थन से, जातीय आधार पर संगठित सशस्त्र समूहों और मिलिशिया द्वारा नागरिक आबादी के खिलाफ हमलों में तेजी आई है.' सशस्त्र बलों को भी जातीय आधार पर विभाजित किया गया है और राज्य की तुलना में विशिष्ट राजनेताओं के प्रति वे अधिक वफादार होते हैं.
नेतृत्व पर समझौता
पर्यवेक्षकों ने कीर और मचर दोनों पर शांति समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन में देरी करने और अफ्रीकी संघ के साथ साझेदारी में युद्ध अपराध अदालत सहित जवाबदेही तंत्र की स्थापना को अवरुद्ध करके "वेटिंग गेम" खेलने का आरोप लगाया है.
पिनाउड कहती हैं, "यह एक ऐसी सरकार है जो नागरिकों को डराकर और विपक्ष के लोगों को खुश और अपने साथ रखकर काम करती है. सरकार का विरोध करने वाले लोगों के लिए विपक्ष में रहना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसका मतलब है कि आपको सरकारी नियुक्ति या आदेश को अस्वीकार करना होगा.”
हालांकि कुछ विशेषज्ञ तब तक देश के लिए बहुत कम उम्मीद देखते हैं, जब तक मौजूदा राजनेता सत्ता में हैं. साउथ अफ्रीकन इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटी स्टडीज में सीनियर रिसर्चर एंड्र्यूज अटा असामोआ कहते हैं, "आपको नेताओं की एक नई फसल को जगह देनी चाहिए जो एक नई मानसिकता के साथ संघर्ष के बाद दक्षिण सूडान की वास्तविकता और विविधता को प्रतिबिंबित करेंगे. उन्हें इस समय इसी की जरूरत है.”
सरकारी अधिकारियों की गहरी जेबें
देश में जिस तरह से हिंसा अपने चरम पर है, वैसे ही भ्रष्टाचार ने भी देश को अपनी गिरफ्त में ले रखा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अधिकारी "सार्वजनिक धन की लूट के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और कर चोरी में लिप्त हैं." रिपोर्ट के मुताबिक, "समय के साथ, भ्रष्टाचार इतना आम हो गया है कि इसने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र और राज्य के हर संस्थान को संक्रमित कर दिया है.”रिपोर्ट के अनुसार, यह भ्रष्टाचार मानवाधिकारों के हनन को बढ़ावा दे रहा है और दक्षिण सूडान के जातीय संघर्ष का एक प्रमुख कारक है.
देश की व्यापक समस्याओं के बावजूद, यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित करने में विफल हो रहा है. संघर्ष विश्लेषक अट्टा-असामोआ के मुताबिक, ऐसा इसलिए है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय दक्षिण सूडान के एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ते हुए थक गया है. इसके बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय सुधार को लेकर निराश नहीं है. वह दक्षिण सूडान के भविष्य के संबंध में खुद को "आशावाद और निराशावाद के बीच कहीं" मानता है. वो कहते हैं कि बाहरी दबाव महत्वपूर्ण है. उनके मुताबिक, "दक्षिण सूडान में स्थानीय लोगों पर ही यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि वे प्रगति को बनाए रखें और इसे जोड़ने की दिशा में काम करें. (dw.com)
ब्रिटेन में दो वैक्सीन लेने के बावजूद 100 से ज्यादा लोग कोविड-19 से मारे गए हैं. कुछ ऐसे ही मामले अन्य देशों में भी सामने आ रहे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक इसके लिए डेल्टा वैरिएंट और लापरवाही जिम्मेदार है.
ब्रिटेन में कोविड के डेल्टा वैरिएंट के कारण 259 लोग मारे जा चुके हैं. मृतकों में 116 लोग ऐसे थे जिन्हें वैक्सीन की दो डोजें लगी थीं. ये जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाले विभाग पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) ने दी है.
भारत में भी ऐसे मामले सामने आए हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कोरोना से संक्रमित हुए ऐसे 677 लोगों नमूनों की जांच की, जिन्हें कोविशील्ड की एक या दोनों वैक्सीनें लग चुकी थी. वैक्सीन के बावजूद संक्रमित होने वालों में 86 फीसदी मामले डेल्टा वैरिएंट के थे. इनमें से 10 फीसदी से भी कम लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. मृतकों की संख्या 0.4 फीसदी बताई जा रही है.
अमेरिका में वैक्सीनेशन के बावजूद मृतकों की संख्या काफी ज्यादा है. अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक वैक्सीन लेने के बाद भी कोविड की वजह से दम तोड़ने वालों की संख्या 750 से ज्यादा है.
भीड़ भाड़ वाली जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन और मास्क पहनने में लापरवाही को भी इसका एक अहम कारक बताया जा रहा है.
वैक्सीन लगाना बहुत जरूरी
इन आंकड़ों के बावजूद वैक्सीन के असर को खारिज नहीं किया जा सकता. क्लीनिकल ट्रायलों के बाद भी यह बात साफ कही गई थी कि कोई भी वैक्सीन कोविड-19 के खिलाफ 100 फीसदी असरदार नहीं है. भारत, ब्रिटेन और अमेरिका के आंकड़े भी दिखाते हैं कि वैक्सीनों ने कोरोना से होने वाली मौतों को काफी हद तक कम किया है. साथ ही अस्पताल में भर्ती होने का रिस्क भी घटाया है.
जर्मनी के एक मशहूर वायरोलॉजिस्ट क्रिस्टियान ड्रॉस्टेन के मुताबिक, डबल वैक्सीनेशन के बाद भी कोविड से मरने वालों की गहन जांच होनी चाहिए. मृत्यु का असली कारण और प्रक्रिया समझनी जरूरी है.
जर्मनी के हैनोवर मेडिकल कॉलेज में इम्यूनोलॉजी के एक्सपर्ट गियोर्ग बेरेंस कहते हैं, "वैक्सीन बहुत अच्छे ढंग से बचाव करती है. 100 फीसदी सुरक्षा तो कोई भी वैक्सीन नहीं देती है."
आफत बना डेल्टा वैरिएंट
विज्ञान पत्रिका नेचर में छपे एक हालिया शोध के मुताबिक बायोनटेक-फाइजर की वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ काफी असरदार है. लेकिन इस्राएल का डाटा बता रहा है कि ये वैक्सीन जितनी असरदार दूसरे वैरिएंटों के खिलाफ थी, उतना असर डेल्टा पर नहीं कर पा रही है. इस्राएल के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक डेल्टा इंफेक्शन को पूरी तरह रोकने में बायोनेटेक-फाइजर वैक्सीन 64 फीसदी कारगर है.
इस सबके बावजूद टीके के कारण 93 फीसदी लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ने और अस्पताल में भर्ती होने से बचे हैं. इस्राएल के स्वास्थ्य विभाग ने डीडब्ल्यू के पूछे जाने पर इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी.
फाइजर और मॉर्डेना को लेकर चेतावनी
इस्राएल और कनाडा के बाद अमेरिका में भी बायोनटेक-फाइजर और मॉडेर्ना की वैक्सीन का एक साइड इफेक्ट सामने आ रहा है. एमआरएनए तकनीक से बनाई गई इन वैक्सीनों को लेने वाले कुछ किशोरों और युवा वयस्कों में दिल की सूजन के मामले सामने आए हैं. अमेरिकी सेना के मुताबिक जिन 23 सैनिकों में हार्ट इंफ्लेमेशन के मामले सामने आए उनकी औसत उम्र 25 साल है.
इन रिपोर्टों के बाद अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने बायोनटेक-फाइजर और मॉर्डेना की वैक्सीन पर दुर्लभ मामलों में हार्ट इंफ्लेमेशन की चेतावनी लगाने एलान किया है.
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
-अज़ीज़ुल्लाह ख़ान
"मैंने अपने पहले पति की मौत का बदला लेने की ठान ली थी और हत्यारे से दोस्ती की, फिर उससे शादी की और फिर आख़िरकार बदला ले लिया."
पाकिस्तान के क़बायली इलाक़े के बाजौर ज़िले की रहने वाली इस महिला को पुलिस ने गिरफ़्तार कर कोर्ट में पेशी के बाद चकदरा जेल भेज दिया है.
अभियुक्त महिला का कहना है कि वह अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए तीन साल से कोशिश कर रही थीं और इसके लिए, उन्होंने पूरी योजना बनाई थी.
पुलिस को सूचना और कार्रवाई
बाजौर ज़िले के इनायत क़िले में लुइसिम थाने के इंस्पेक्टर विलायत ख़ान ने बीबीसी को बताया कि यह एक मुश्किल केस था, जिसके लिए उन्होंने कोशिश की और कामयाबी हासिल की.
अभियुक्त के पहले पति की तीन साल पहले मौत हो गई थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उनकी हत्या की गई थी या उनकी प्राकृतिक मृत्यु हुई थी. अभियुक्त ने निजी तौर पर पता किया और इनका कहना है कि इनके पति को उनके दोस्त गुलिस्तान ने ज़हर का इंजेक्शन लगाकर मार दिया था.
थाने में उनकी मौत या हत्या का कोई मामला दर्ज नहीं है. पुलिस ने बताया कि तीन साल पहले इस इलाक़े में कोई पुलिस थाना नहीं था और न कोई ऐसा दस्तावेज़ मिला है, जिससे यह पता चले कि शाह ज़मीन की हत्या की गई थी.
पुलिस के मुताबिक़, दो दिन पहले उन्हें सूचना मिली थी कि गुलिस्तान नाम के शख़्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई है.
पुलिस इंस्पेक्टर विलायत ख़ान का कहना था कि इस सूचना के बाद, उन्होंने पास की एक चेक पोस्ट पर पुलिस और अपने सूत्रों को कह दिया था कि उस जगह से कोई भी बाहर न जाने पाए और वह अपनी टीम के साथ पहुँच रहे हैं.
विलायत ख़ान ने बीबीसी को बताया, "जब हम वहां पहुँचे, तो बिस्तर पर ख़ून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी, एक गोली सिर में लगी थी और एक गोली शरीर के दाहिने हिस्से में लगी थी. अभियुक्त मृतक के साथ बैठी थी. घर के बाहर और अंदर बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए थे. हमने लोगों को एक तरफ़ कर जाँच शुरू की और मौक़े पर से सबूत हासिल किए."
क़बायली महिला की अफ़ग़ान शाह ज़मीन से मोहब्बत
पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक़, अभियुक्त ने बताया कि उनके पहले पति अफ़ग़ानिस्तान के कुनार प्रांत के रहने वाले अफ़ग़ान शरणार्थी थे. महिला के अनुसार उनके पति पेशावर में काम करते थे और उनकी ज़िंदगी बहुत ही हंसी ख़ुशी के साथ गुज़र रही थी. पुलिस का कहना है कि उनकी एक बेटी भी थी.
पुलिस के अनुसार अभियुक्त ने अपने बयान में कहा है, "मेरे पति की गुलिस्तान नाम के एक शख़्स से दोस्ती थी. मेरे पति पेशावर से जो कुछ कमाते थे वो सब रखने के लिए गुलिस्तान को भेज देते थे, कि जब ज़रूरत पड़ेगी तो उससे पैसे वापिस ले लेगा. गुलिस्तान के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी."
अभियुक्त के पति कुछ समय बाद वापस आए और गुलिस्तान से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे मेरे पैसे वापस चाहिए, लेकिन गुलिस्तान ने पैसे नहीं लौटाए और कहा कि अभी पैसे नहीं हैं.
विलायत ख़ान के मुताबिक़, अभियुक्त ने अपने बयान में कहा, "गुलिस्तान ने मेरे पति को पैसे देने के बजाय ये कहा कि अगर तुम बीमार हो, तो मैं तुम्हारे लिए इनायत कली बाज़ार से दवा लाता हूं. गुलिस्तान दो इंजेक्शन और कुछ गोलियां लाया था. एक इंजेक्शन गुलिस्तान ख़ान ने नदी के किनारे शाह ज़मीन को लगा दिया और कहा कि दूसरा इंजेक्शन तुम बाद में घर पर लगा लेना और ये गोलियां भी खा लेना, आप इससे ठीक हो जाएंगे."
बयान में आगे कहा गया है, कि "इंजेक्शन लेने के बाद मेरे पति की हालत और भी ज़्यादा बिगड़ गई और वह ज़मीन पर गिर गए. वहां मौजूद लोग मेरे पति को अस्पताल ले गए और फिर मृत अवस्था में मेरे पति
बदले की योजना
अभियुक्त ने पुलिस को बताया कि इसके बारे में पता लगाया, तो लोगों ने बताया कि गुलिस्तान ने उसके पति को एक इंजेक्शन दिया था, जिसके बाद उनके पति की हालत बिगड़ गई थी.
उन्हें ऐसा लगा जैसे गुलिस्तान ख़ान ने उनके पति को मारा है और उस समय उन्होंने ये तय कर लिया था कि वह अपने पति का बदला ज़रूर लेंगी.
पुलिस के अनुसार, अभियुक्त ने बताया है कि पाँच-छह महीने तक वह अपने पति की मौत का बदला लेने की कोशिश करती रहीं, लेकिन उन्हें मौक़ा नहीं मिला, जिसके बाद उन्होंने फिर से योजना बनाई कि कैसे गुलिस्तान के क़रीब पहुँचें और फिर बदला लिया जाए.
पुलिस ने कहा कि अभियुक्त ने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने फिर गुलिस्तान से शादी करने का फ़ैसला किया और उन्हें मैसेज भिजवाए. हालांकि गुलिस्तान पहले से शादीशुदा थे और उनका एक बेटा भी है, लेकिन उनके अनुसार उन्होंने गुलिस्तान ख़ान को लालच देकर राज़ी कर लिया था.
अभियुक्त महिला ने पुलिस को बताया कि उन्होंने गुलिस्तान से कहा कि "मेरे पास पैसे हैं. तुम एक गाड़ी ख़रीदो और उसमें घूमो. आप अपने वतन पर मज़दूरी करोगे और हम ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ारेंगे."
महिला ने पुलिस को बताया कि पिछले साल बड़ी ईद से पहले, उन्होंने शादी कर ली थी और छह महीने तक वे कभी किसी के घर रहे, कभी गुलिस्तान की बहन के घर में रहे. इसके बाद महिला ने गुलिस्तान को कहा कि किराए पर अपना घर ले लेते हैं. कब तक दूसरों के यहां ज़िंदगी गुज़ारेंगे?
पुलिस ने महिला के बयान का हवाला देते हए कहा, "उन्होंने इनायत कली में तीन हज़ार रुपये प्रति माह के हिसाब से एक मकान किराए पर ले लिया. इसके बाद अभियुक्त महिला ने गुलिस्तान से कहा कि हम यहां अकेले रहते हैं, कोई चोर न आ जाए, इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए घर में एक पिस्तौल ज़रूर होनी चाहिए. गुलिस्तान साढ़े तेरह हज़ार रूपये में एक पिस्तौल ख़रीद लाया."
पुलिस के अनुसार महिला ने आगे कहा, "मेरे पहले पति की मृत्यु को तीन साल हो चुके हैं और दो साल तक मैं इस कोशिश में थी कि कब और कैसे बदला लिया जाए. जब घर में पिस्टल आ गई तो इसके इस्तेमाल करने के मौक़े की तलाश में थी."
घटना वाले दिन का ज़िक्र करते हुए अभियुक्त महिला कहती हैं, "मैं रात को जागती रही और रात को क़रीब एक बजे दूसरे कमरे में गई और पिस्तौल में गोलियां डालकर गुलिस्तान के कमरे में गई. गुलिस्तान सो रहा था मैंने उस पर गोली चलाई, लेकिन फ़ायर नहीं हो रहा था, पिस्तौल ने काम नहीं किया."
पुलिस के अनुसार, वह वापस दूसरे कमरे में गईं और पिस्तौल चेक की. इसके बाद दोबारा गुलिस्तान के कमरे में गई और पहला फ़ायर गुलिस्तान के सिर पर और दूसरा फ़ायर उसके शरीर के दाहिने तरफ़ किया. गोली मारने के बाद वह सूरज निकलने तक वहीं बैठी रहीं. सूरज निकलने पर उन्होंने बाहर लोगों को बताया कि किसी ने उनके पति को मार दिया है, इसके बाद लोग जमा हो गए और फिर पुलिस भी मौक़े पर पहुँच गई.
पुलिस अधिकारी विलायत ख़ान ने बताया कि पहले वह यही कहती रहीं कि उन्होंने हत्या नहीं की है, लेकिन जब पुलिस ने जाँच शुरू की, तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और सब कुछ बता दिया और पिस्तौल के बारे में भी बताया, जोकि संदूक़ में पड़ी थी. पुलिस ने वह पिस्तौल, मारे गए गुलिस्तान के बेटे की मौजूदगी में बरामद किया है.
स्थानीय लोगों का कहना था कि गुलिस्तान एक अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे, वह स्थानीय स्तर पर अपना काम करते थे. पुलिस ने बताया कि अभियुक्त महिला को कोर्ट में पेश करने के बाद, उन्हें जेल भेज दिया गया है. (bbc.com)
बोगोटा, 17 जुलाई | हैती के न्याय मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी ने देश के राष्ट्रपति जोवेनेल मोइस की हत्या का आदेश दिया था। कोलंबिया के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। कोलंबियाई पुलिस के निदेशक जनरल जॉर्ज लुइस वर्गास ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा "जोसेफ फेलिज बडियो, जो न्याय मंत्रालय के एक अधिकारी थे और जनरल इंटेलिजेंस सर्विस के साथ भ्रष्टाचार विरोधी इकाई में काम करते थे, उन्होंने डबरनी कैपडोर (पूर्व कोलंबियाई सैन्य अधिकारी) और जर्मन रिवेरा (कोलम्बियाई सेना के पूर्व एजेंट) को हैती के राष्ट्रपति की हत्या करने के लिए कहा।"
वर्गास ने कहा कि बैडियो ने ऑपरेशन से 'स्पष्ट रूप से तीन दिन पहले' कैपडोर और रिवेरा को सूचित किया था कि आदेश मोइज को गिरफ्तार करने के लिए नहीं, बल्कि उसे मारने के लिए था।
गुरुवार को, कोलंबिया के राष्ट्रपति इवान डुके ने कहा कि देश की सेना के पूर्व सदस्यों ने हत्या में भाग लिया, जिन पर हैतियन न्यायिक प्रणाली द्वारा मुकदमा चलाया जाएगा।
ड्यूक ने कहा कि हत्या में कोलंबियाई भाड़े के सैनिकों के एक समूह के भाग लेने के बाद उनका प्रशासन हैतियन अधिकारियों के साथ 'सहयोग' कर रहा है।
हैती के राष्ट्रपति की 7 जुलाई को उनके आवास पर भाड़े के सैनिकों के एक कमांडो ने हत्या कर दी थी।
हैतियन राष्ट्रपति की हत्या में कम से कम 28 लोगों ने भाग लिया, जिनमें 26 कोलंबियाई और दो हैतियन अमेरिकी शामिल थे।(आईएएनएस)
-सुमी खान
ढाका, 17 जुलाई | प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन अंसार अल-इस्लाम और हेफाजत-ए-इस्लाम के शीर्ष नेता महमूद हसन गुनबी को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में गिरफ्तार किया गया है।
रैपिड एक्शन बटालियन के लीगल एंड मीडिया विंग के निदेशक कमांडर खांडाकर अल मोइन ने आईएएनएस को बताया कि गुनबी को शुक्रवार शाम ढाका के तटबंध क्षेत्र से गिरफ्तार किया गया।
गुनबी मासूम लड़के-लड़कियों को बहकाता था और कहता था कि इस्लाम का पालन करने के लिए खुद को आतंकवादी और आत्मघाती आतंकवादी सदस्य के रूप में पेश करना जरूरी है। उसने कबूल किया कि वह विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से लोगों को गुप्त रूप से आत्मघाती आतंकवादी बनाने के लिए सम्मोहित करना जानता है।
मदरसे के छात्र रिश्तेदारों, परिवार और दोस्तों से अलग रहते हैं। प्रशिक्षुओं को जीवन, समाज, राजनीति, संस्कृति और विज्ञान से दूर रखा जाता है। तब उनका मन धार्मिक गलत व्याख्याओं और सामान्य जीवन के प्रति घृणा से भयभीत हो जाता है। नतीजतन, प्रशिक्षु अपनी भावनाओं, बुद्धि, पारिवारिक संबंधों, न्यायिक ज्ञान आदि को खो देते हैं। इस तरह, किशोर अपना दिमाग खो कर खुद को क्रूर उग्रवादी के रूप में विकसित करते हैं।
5 मई को कानून प्रवर्तन एजेंसियों की छापेमारी में ढाका से गिरफ्तार किए गए आतंकवादी अल शाकिब (20) ने कबूल किया था कि वह गुनबी से प्रभावित था और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के आत्मघाती हमलावर के रूप में खुद को बदलने और बाद में उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाने में विशेष भूमिका निभाई थी।
आतंकवादी संगठन 'दावत ए इस्लाम' का सरगना गुनबी, हूजी, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम, प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन इत्यादि के जरिए 'इस्लाम' के नाम से निर्दोष लोगों को आतंकवादी गतिविधि में शामिल करता था।
उसने आरएबी के साथ अपने इकबालिया बयान में खुद को अल कायदा से जुड़े आतंकवादी संगठन दावत ए इस्लाम बांग्लादेश का प्रमुख होने का दावा किया।
अभियान के दौरान 'जिहादी' किताबें और पर्चे बरामद किए गए।
कमांडर मोइन ने आईएएनएस को बताया कि गुनबी महिलाओं को आतंकवाद में शामिल होने के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर रहा था।
उसके कई करीबी सहयोगी, सैफुल इस्लाम, अब्दुल हमीद, अनीसुर रहमान को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है।
गुनबी अपने फैलते उग्रवाद को छिपाने के लिए 'छाया संगठन' चलाता था। उन्हें दावत ए इस्लाम के 'मन्हाजी' सदस्य कहा जाता है। उन सदस्यों ने संगठन के भीतर उग्रवादी सदस्य बनाए।
उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर उग्रवाद और आतंकवाद को भी उकसाया। उन्होंने 'दावत इस्लाम' के बैनर में अन्य धर्मों के अनुयायियों को शामिल करने और उग्रवाद में शामिल होने के लिए विशेष पहल की। इस मामले में, वे विशेष रूप से 'मनोवैज्ञानिक पश्चाताप' को जगाने के लिए एक रणनीति का उपयोग करते हैं।
गुनबी, हूजी के शीर्ष उग्रवादियों में से एक, पहली बार हूजी (बी) से जुड़ा था, जो एक इस्लामी आतंकवादी संगठन था, जो 1990 के दशक की शुरूआत से पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के दक्षिण एशियाई देशों में सक्रिय था। बांग्लादेश में 2005 में आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
बाद में, वह पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जमात ए इस्लाम की छात्र शाखा और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के संस्थापकों में से एक जसीम उद्दीन रहमानी के संपर्क में आया। रहमानी के करीबी सहयोगी के रूप में, उसपर दार्शनिक अविजित रॉय, बांग्लादेश के अन्य बुद्धिजीवियों और विचारकों जैसे राजीव, दीपोन की हत्या का आरोप भी है। (आईएएनएस)
काबुल, 16 जुलाई | देश भर में हाल ही में हुई हिंसा में कम से कम चार अफगान सुरक्षाकर्मी और 63 तालिबान आतंकवादी मारे गए हैं। सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। एक स्थानीय स्वतंत्र निगरानी समूह, रिडक्शन इन वॉयलेंस (हिंसा में कमी) ने सोशल मीडिया पर कहा, समांगन प्रांत में गुरुवार रात रबातक सुरक्षा चौकी पर तालिबान के हमले में चार सुरक्षा बलों के जवान मारे गए हैं।
रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि गुरुवार रात भी, अफगान वायु सेना (एएएफ) ने उत्तरी साड़ी पुल प्रांत की राजधानी साड़ी पुल शहर के बाहरी इलाके में तालिबान की एक सभा को निशाना बनाया, जिसमें 11 आतंकवादी मारे गए और दो वाहन नष्ट हो गए।
इससे पहले गुरुवार को, मंत्रालय ने कहा था, बदख्शां प्रांत के शुहादा जिले में एएएफ द्वारा किए गए हवाई हमले में 20 तालिबान आतंकवादी मारे गए और 20 अन्य घायल हो गए।
बयान में कहा गया है कि मारे गए लोगों में शुहादा के लिए तालिबान के डिप्टी शेडो जिला प्रमुख थे। छह आतंकवादियों के वाहन और उनके गोला-बारूद की कुछ मात्रा को नष्ट कर दिया गया।
इसके अलावा, हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्कर गाह के बाहरी इलाके में एएएफ के समर्थन से अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों (एएनडीएसएफ) द्वारा किए गए एक सफाई अभियान में 32 तालिबान आतंकवादी मारे गए और 10 अन्य घायल हो गए।
इससे पहले शुक्रवार को तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने सोशल मीडिया पर कहा कि उन्होंने कुंदुज प्रांत में सामरिक हमले में सरकारी बलों के एक हेलीकॉप्टर को नष्ट कर दिया है।
उसने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक फोटो पोस्ट की।
हालांकि, अफगान सैन्य अधिकारियों ने अभी तक रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
जैसे-जैसे अमेरिका और नाटो सैनिक देश छोड़ रहे हैं, अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है। (आईएएनएस)
जर्मनी में अचानक हुई भारी बरसात के नतीजे सामने आए तो पता चला वह आम बारिश नहीं, एक आपदा थी. बहुत से घर गिरे, गाड़ियां कीचड़ में डूबीं और दर्जनों की मौत हो गई. आखिर हुआ क्या?
डॉयचे वैले पर महेश झा की रिपोर्ट-
मैं सालों से जर्मनी में रह रहा हूं, लेकिन बहुत कम ऐसी बरसात देखी और एक बरसात से हुआ ऐसा नुकसान तो मुझे याद ही नहीं है. जर्मनी के जो दो राज्य बरसात और उसके बाद आई बाढ़ से प्रभावित हैं, वे पहाड़ी इलाके हैं. वहां खेत हैं, जंगल हैं, छोटे छोटे पहाड़ी नाले हैं और नदियां हैं. पहाड़ी इलाकों में जब तेज बरसात होती है तो पानी तेजी से नीचे की ओर जाता है और अक्सर अपने साथ मिट्टी भी काटता जाता है.
ऐसी ही बरसात बुधवार को हुई. पहले तेज हवाओं की आहट, फिर हल्की हल्की बरसात और फिर तड़तड़ाती बारिश. और कुछ देर में ऊपर से नीचे आते पानी की रफ्तार बढ़ने लगी. छोटी धारा हो, नाला या नदी, सबसे पानी बढ़ने लगा और कुछ देर के बाद पानी सैलाब बन किनारे को भरने लगा और फिर घरों में घुसने लगा. सेलर डूब गए, वहां आम तौर पर रहने वाली हीटिंग की मशीनें और स्टोर का सामान भी. कई जगहों पर इस पानी में बिजली का करंट भी था. अधिकारियों ने ये चेतावनी देनी शुरू की कि वाशिंग मशीन में कपड़े न धोएं. सीवर में बाढ़ का मटमैला पानी भरा था, चेतावनी में यह भी कहा गया कि घर में अगर पानी भरा है, तो उसमें न दाखिल न हों, बिजली का करंट हो सकता है.
हुआ एक अलग तरह का अनुभव
और मुझे याद आ रहा था अपना बचपन. कितना खेला करते थे हम बरसात में और बरसात के पानी में. स्कूल का मैदान तो अक्सर बरसात में भर जाया करता था. कभी चिंता नहीं की कि उस पानी में न जाएं. बिजली उस जमाने में हर जगह हुआ ही नहीं करती थी, इसलिए करंट की चिंता करने की जरूरत नहीं थी. लेकिन फिर भी बरसात की सोच मेरे लिए इतनी खौफनाक कभी नहीं रही, जितनी पिछले दो दिन की घटनाओं को सुनने के बाद हो गई है.
पटना में पढ़ाई के दौरान अक्सर गंगा में पानी को बढ़ते, चढ़ते और उफनते देखा था. जर्मनी में गंगा जैसी कोई नदी नहीं. यहां की सबसे बड़ी नदी राइन है जो बॉन से होकर बहती है और आपने हमारे वीडियो में उसे अक्सर देखा भी होगा. बुधवार की बरसात के बाद तो हमेशा शांत रहने वाली नदियों का नजारा ही कुछ और था. बारिश से आने वाली मिट्टी की वजह से मटमैला रंग बिल्कुल जुलाई अगस्त की गंगा नदी के पानी जैसा. और तेज बरसात के कारण बदहवासी और उच्श्रृंखलता कोशी जैसी.
चूंकि जर्मनी में आम तौर पर ऐसी बरसात नहीं होती, इसलिए पहाड़ों पर घर बने हैं. जहां मोहल्ले बसे हैं, वहां तो पानी की निकासी का इंतजाम है, लेकिन निचले इलाकों में बसे घरों को खतरा तो रहता ही है. देहाती इलाकों में जहां छोटी छोटी बस्तियां हैं, वहां पानी की निकासी का पुख्ता इंतजाम नहीं. इसीलिए जब बुधवार की रात बरसात हुई तो नीचे की ओर जाते हुए पानी ने सारे बंधन तोड़ दिए. तेज पानी ने सड़कों को तोड़ दिया और उसके साथ आए कीचड़ ने बहुत से रास्तों को बंद भी कर दिया. बरसात ने क्या किया इसका पता बहुत से लोगों को गुरुवार सुबह चला. कुछ इलाकों में तो 24 घंटे में प्रति वर्गमीटर 158 लीटर पानी बरसा. अब संभालिए इस पानी को.
बहुत से शहर डूब गए, कई शहरों में मकानों के सेलर में पानी भर गया. कुछ मौतें तो मकान के जमीन के नीचे वाले माले में भरे पानी में बिजली के करंट से हुईं. कई घर गिर गए. बहुत से लोग लापता भी हैं. जर्मनी में इस समय स्कूलों में छुट्टियां चल रही हैं, बहुत से लोग छुट्टी पर निकले हुए हैं. इसलिए राहतकर्मी ये पता करने में लगे हैं कि लापता लोग बाढ़ का शिकार हुए हैं या कहीं और छुट्टियां बिता रहे हैं. सबसे बारे में पता चलने में समय लगेगा. तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी और उसके साथ एक अजीब तरह का अहसास भी.
आपदा तो आपदा है, भले ही मदद मिले
लोग सकते में हैं. जो लोग बाढ़ से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं, वे तो परेशान हैं ही, जो लोग सीधे प्रभावित नहीं हुए हैं, वे भी ये सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसा हुआ क्यों? सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं लोगों की मदद करने में लगी हैं. पुलिस और फायर ब्रिगेड तो हैं ही फौरी मदद के लिए, जर्मनी में तैराकों की संस्था जर्मन जीवन रक्षा संघ के सदस्य भी मदद कर रहे हैं. लोगों को अपना घर छोड़कर इमरजेंसी शेल्टर में रहना पड़ रहा है. बहुत से लोगों को पता नहीं कि उनके घर की क्या हालत है और वे वहां कब लौट पाएंगे. असुरक्षा और अनिश्चितता का माहौल लोगों का चैन छीन रहा है.
दुनिया में हर जगह मौसम का मिजाज बदल रहा है. जर्मनी में भी पिछले सालों में तेज बरसात होने लगी है या अचानक तूफान आने लगा है. लोग भी इस पर बंटे हुए हैं. पर्यावरण की चिंता करने वालों का मानना है कि इसका बहुत कुछ जलवायु परिवर्तन से लेना देना है. ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम चक्र पर भी हो रहा है. जिन लोगों को पुरानी बातें याद रहती हैं, वे कहेंगे कि ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं. घटनाओं की याद उसके आयाम और उससे पड़े प्रभाव से जुड़ी होती है. हर घटना का असर एक जैसा नहीं होता इसलिए उसकी छाप भी अलग होती है. लेकिन ये तय है कि तूफान या अचानक तेज बरसात जैसी घटनाएं अक्सर होने लगी हैं.
जलवायु परिवर्तन को रोकना जरूरी
हर कोई पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को रोकने की बात कर रहा है, लेकिन अगर आसपास देखिए और पूछिए कि उसके लिए हो कितना कुछ रहा है तो पता लगेगा कि शायद कुछ भी नहीं. हम अपनी जिंदगी जिए जा रहे हैं और लगातार उसे आसीन बनाने में लगे हैं, दूसरों की कीमत पर, भले ही उसका नाम पर्यावरण क्यों न हो. जर्मनी में कहर बरपाने वाला लो प्रेशर एरिया बैर्न्ड था. वह काफी समय तक एक ही इलाके में जमा हुआ था.
मौसमविज्ञानी ठीक से बताएंगे कि हाई और लो प्रेशर एरिया को पश्चिम से पूरब की ओर ले जाने वाली जेट स्ट्रीम लगातार कमजोर क्यों होती जा रही है. लेकिन ये हकीकत है. धरती के उत्तर और दक्षिणी हिस्से के तापमान की अंतर लगातार कम होता जा रहा है, और यही जेट स्ट्रीम को हवा देता रहा है. जेट स्ट्रीम कमजोर होगी और ये लो प्रेशर वाले बैर्न्ड को खदेड़ नहीं पाएगी तो उस जगह पर बरसात होगी और तेज बरसात के झटके लंबे समय तक होने वाली बरसात में बदल जाएंगे.
अब समय आ गया है कि जल्द से जल्द धरती को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करने के कदम उठाए जाएं. सरकारें सालों से गपशप और विचार विमर्श करने में लगी हैं और अपने अपने फायदे की सोच रही हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ग्लोबल है, वह सिर्फ एक इलाके को गर्म नहीं कर रही है. सरकारों पर भी अब दबाव बनाने की जरूरत है. विकास के नाम पर पर्यावरण की चिंता नहीं की जाती, लेकिन उस विकास का क्या जिसके बाद इंसान ही न रहे. सरकारों को अपना काम करने दीजिए, हमें अपना काम करना चाहिए. यानि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का काम. (dw.com)
जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा की उड़ानों में अब किसी को "देवियो और सज्जनो" जैसे शब्द नहीं सुनाई पड़ेंगे. कंपनी ने यात्रियों को महिला और पुरुष के नजरिए से देखना बंद कर दिया है.
डॉयचे वैले पर आशुतोष पाण्डेय की रिपोर्ट-
"लेडीज एंड जेंटलमैन, विमान में आपका स्वागत है" जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा लैंगिक पहचान को संबोधित करने वाली ऐसी भाषा इस्तेमाल अब नहीं करेगी. एनाउंसमेंट के लिए तटस्थ शब्दों का प्रयोग किया जाएगा. यह बात लुफ्थांसा ग्रुप की सभी एयरलाइनों पर लागू होगी यानि ऑस्ट्रियन एयरलाइंस, स्विस और यूरोविंग्स भी तटस्थ एनाउंसमेंट करेंगे.
डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कंपनी की प्रवक्ता आन्या स्टेंगर ने कहा कि विविधता कोई लफ्फाजी नहीं है, लुफ्थांसा के लिए यह हकीकत है, "अब से हम अपनी भाषा में भी इस रुख को जाहिर करेंगे."
लुफ्थांसा के क्रू मेम्बर अब "डियर गेस्ट्स," "गुड मॉर्निंग/इवनिंग" या "वेलकम ऑन बोर्ड" जैसी शब्दावली प्रयोग करेंगे. यात्रियों को कैसे संबोधित किया जाए, इसका फैसला विमान में मौजूद चालक दल के सदस्य करेंगे. क्रू मेम्बरों को मई में इसकी जानकारी दे दी गई थी. बदलाव को तुरंत अमल में लाया गया.
अलेक्जांड्रा शीले जर्मनी की बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी में समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र की विशेषज्ञ हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह कदम सांकेतिक स्तर पर काम करता है. इसे 'लैंगिक-संवेदनशीलता' वाले कदम के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो सिर्फ दो लिंगों वाली सोच पर सवाल उठाता है."
ऐसी लिंग व्यवस्था से अलग सोचने वाले लोगों का हवाला देते हुए शीले ने कहा, "ऐसे लोग जो खुद को पुरुष/महिला से इतर देखते हैं और वे लोग भी जो द्विलिंगी सिस्टम पर सवाल उठाते हैं, उनके लिए भी 'लेडीज एंड जेंटलमैन/महिलाओं और पुरुषों' के बिना एनाउंसमेंट बेहतर हो सकती है."
लिंग रहित भाषा क्या है?
लुफ्थांसा ने लिंग की पहचान बताने वाली भाषा से परे ले जाने वाली जुबान का इस्तेमाल ऐसे समय में शुरू किया है, जब ज्यादा से ज्यादा संस्थाएं और कंपनियां जेंडर को लेकर संवेदनशील हो रही हैं. यूएन और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी संस्थाओं ने भी अपने काम काज में लिंग रहित भाषा की गाइडलाइंस अपनाई हैं.
यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वैलिटी की परिभाषा के मुताबिक, लिंग तटस्थ भाषा, "एक ऐसी भाषा है जो किसी लिंग से संबंधित न हो और वह महिला और पुरुष के चश्मे के बजाए लोगों को इंसान के रूप में देखे."
यूरोपीय संसद भी भाषा में लैंगिक तटस्थता को लेकर एक हैंडबुक जारी कर चुकी है. उस किताब के मुताबिक, "लिंग-समावेशी भाषा राजनीतिक रूप सही होने से कहीं ज्यादा बड़ा विषय है." 2018 में रिलीज की गई यह किताब कहती है, "लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा का मकसद उन शब्दों के चुनाव से बचना है जो किसी इंसान के सेक्स या सोशल जेंडर को आधार बनाते हुए शायद पक्षपाती, भेदभावपूर्ण और अपमानजनक हो सकते है."
जर्मन भाषा में ज्यादातर पेशों में लिंग की पहचान स्पष्ट तौर पर जाहिर करने वाले नाम है. पुरुष डॉक्टर को जर्मन में "आर्त्स्ट" कहा जाता है तो महिला डॉक्टर के लिए "आर्त्स्टिन" शब्द इस्तेमाल होता है. "स्टूडेंट" का अर्थ पुरुष छात्र से होता है और "स्टूडेंटिन" महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. तटस्थ भाषा के समर्थक कहते हैं कि लिंग सूचक नाम उन लोगों के साथ खिलवाड़ है, जो नहीं चाहते कि उन्हें सिर्फ पुरुष या महिला के रूप में पहचाना जाए. लिंग सूचक भाषा को वह सेक्सिट धारणा को मजबूत करने वाली मानते हैं. विरोधियों के मुताबिक व्याकरण में बदलाव भाषा पर हमला है.
सांकेतिक कदम काफी नहीं
अमेरिकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड मोटर्स ने जुलाई 2021 की शुरुआत में अपने नियमों में बदलाव कर लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा अपना ली. इसके बाद कंपनी "चेयरमैन" शब्द के बजाए "चेयर" कहा और लिखा करेगी.
अलेक्जांड्रा शीले कहती हैं कि लैंगिक रूप से संवेदनशील भाषा जैसे सांकेतिक कदम लैंगिक समानता के लिए जागरूकता को और ज्यादा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. संस्थानों के भीतर भी ज्यादा व्यावहारिक कदम उठने की जरूरत है.
वह कहती हैं, "संस्थानों में किस स्तर पर अलग अलग लिंगों का प्रतिनिधित्व कम है, किए गए काम को कैसे आंका जाता है और भुगतान कैसे होता है, इसकी समीक्षा करना अहम है. संस्थानों को एक ऐसी संस्कृति विकसित करने की जरूरत है जिसमें भेदभाव वाले कदम सार्वजनिक हों या फिर दिखें ही नहीं."
शीले की मांग है कि अगर किसी कंपनी में लिंग विशेष का प्रतिनिधित्व कम है तो उसे बढ़ाने के लिए कोटे का इस्तेमाल करना चाहिए. भेदभाव, काम को कमतर आंकने और अनुचित वेतन ढांचे से लड़ने के लिए कंपनियों को जेंडर ट्रेनिंग की शुरुआत करनी चहिए. (dw.com)