अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 22 जुलाई| मेडिकल प्रवेश परीक्षा 'नीट-यूजी' पहली बार दुबई में भी आयोजित की जाएगी। यह परीक्षा कुवैत में भी आयोजित करवाई जा रही है। यह पहला अवसर है जब यह परीक्षा 11 अन्य भाषाओं के साथ पंजाबी और मलयालम में भी आयोजित की जाएगी। गुरुवार देर रात शिक्षा मंत्रालय में यह जानकारी साझा की है। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने पिछले हफ्ते नीट एग्जाम की तारीखों के जारी होने के साथ ही कुवैत परीक्षा केंद्र खोलने की घोषणा की थी। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने गुरुवार रात जानकारी देते हुए कहा कि अब दुबई में एक और परीक्षा केंद्र खोलने का फैसला किया गया है।
शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने एक पत्र के जरिए भारतीय विदेश सचिव को दुबई को परीक्षा केंद्र के रूप में शामिल करने के बारे में सूचित किया है। अमित खरे ने अपने पत्र में कहा कि खाड़ी देशों में भारतीय समुदाय को इस विषय में उचित तरीके से सूचित किया जा सकता है। शिक्षा मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि कुवैत और दुबई में भारतीय दूतावासों के सहयोग से निष्पक्ष और सुरक्षित तरीके से एनीट (यूजी) 2021 परीक्षा आयोजन हो सकेगा। (आईएएनएस)
दुनिया की सबसे मूल्यवान तेल उत्पादक कंपनी सऊदी अरामको ने बीबीसी से पुष्टि की है कि उनके किसी एक ठेकेदार के ज़रिए कंपनी का डेटा लीक हुआ है.
बताया गया है कि कथित तौर पर इन फ़ाइलों (डेटा) का इस्तेमाल अब कंपनी से पाँच करोड़ डॉलर यानी लगभग 372 करोड़ रुपये की जबरन वसूली के लिए किया जा रहा है.
साइबर सुरक्षा में निवेश ना करने को लेकर तेल और गैस उद्योग से जुड़ी कंपनियों की वैश्विक स्तर पर आलोचना होती रही है.
इसी साल मई में, अमेरिका की नामी कंपनी 'कोलोनियल पाइपलाइन' पर भी साइबर हमला हुआ था, जिसकी काफ़ी चर्चा रही थी.
ईमेल पर भेजे गये एक बयान में, तेल उत्पादक कंपनी आरामको ने बीबीसी को बताया कि हमें हाल ही में इस डेटा-चोरी का पता लगा. एक थर्ड-पार्टी ठेकेदार के ज़रिये हमारे डेटा की चोरी की गई.
हालांकि, कंपनी ने ये नहीं बताया कि किस ठेकेदार के ज़रिये कंपनी का डेटा चोरी हुआ, और ना ही कंपनी ने इस बारे में कोई जानकारी दी कि डेटा आख़िर चोरी हुआ कैसे? क्या सिस्टम हैक किये गए या फ़ाइलें चोरी करने के लिए कोई और तरीक़ा अपनाया गया?
कंपनी का कहना है कि "हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि डेटा हमारे सिस्टम से चोरी नहीं हुआ. हमारे संचालन पर भी इस डेटा लीक का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि हमने साइबर सिक्योरिटी के लिए एक बड़ी व्यवस्था बनाई हुई है."
अमेरिकी समाचार एजेंसी 'असोसिएटिड प्रेस' (एपी) के अनुसार, सऊदी अरामको कंपनी का एक टेराबाइट यानी एक हज़ार गीगाबाइट साइज़ का डेटा ज़बरन वसूली करने वालों के हाथ लगा है. डार्कनेट पर उन्होंने इसकी जानकारी दी है.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, जबरन वसूली करने वालों ने अरामको को ऑफ़र दिया है कि वो पाँच करोड़ डॉलर के बदले में ये डेटा डिलीट कर देंगे. वसूली करने वालों ने ये रकम क्रिप्टोकरेंसी के रूप में माँगी है. हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि फ़िरौती की साज़िश के पीछे किन लोगों का हाथ है.
अमेरिका में साइबर हमले के पीछे रूस पर संदेह क्यों
तेल कंपनी अरामको ने सीधे तौर पर बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया, बल्कि उसने एपी की रिपोर्ट पर अपने स्पष्टीकरण के रूप में बीबीसी को यह जवाब दिया.
विशेषज्ञों की मानें, तो तेल और गैस उत्पादन के क्षेत्र की कंपनियाँ साइबर सिक्योरिटी पर पर्याप्त पैसा ख़र्च नहीं करती हैं जबकि वर्षों से इस बारे में चर्चा होती रही है और कहा जाता रहा है कि इन कंपनियों को साइबर हमलों से बचने के लिए बेस्ट साइबर सिक्योरिटी के बारे में विचार करना चाहिए.
ये पहली बार नहीं है, जब अरामको को साइबर हमले का निशाना बनाया गया है.
2012 में भी कंपनी का कंप्यूटर नेटवर्क तथाकथित शूमन वायरस की चपेट में आया था.
इस साल भी जब अमेरिकी कंपनी 'कोलोनियल पाइपलाइन' पर साइबर हमला हुआ, तो ऊर्जा उद्योग की कंपनियों के कंप्यूटर सिस्टमों की कमज़ोरियाँ दुनिया के सामने आ गईं.
कंपनी ने इसी साल मार्च में अपने एक बयान में कहा था कि हाल के इतिहास में ये कंपनी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण सालों में से एक था.
कंपनी के अनुसार, साल 2019 में अरामको को जितनी कमाई हुई थी, उसकी तुलना में पिछले साल यानी 2020 में 45 फ़ीसदी का नुक़सान हुआ.
पिछले साल कोरोना महामारी को रोकने के लिए दुनिया भर में जिस तरह पाबंदियाँ लगाई गईं, उसकी वजह से उद्योग बंद हो गए थे, लोगों की यात्राएं स्थगित हो गई थीं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कई गतिविधियों में ठहराव आ गया था.
इन सब का असर तेल और ऊर्जा की माँग पर पड़ा और तेल की क़ीमतों में पाँच गुना तक की गिरावट देखी गई.
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ब्रिटेन ने एशियाई समुद्र में दो युद्धपोत स्थायी रूप से तैनात करने का ऐलान किया है. जापान ने चीन के मंसूबों को लेकर चिंता जताई थी, जिसके बाद ब्रिटेन ने यह फैसला किया है.
ब्रिटेन का विमानवाहक युद्धतपोत क्वीन एलिजाबेथ और उसके सहयोगी जहाज सितंबर में जापान पहुंच रहे हैं. जापान के टोक्यो में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद ब्रिटेन ने ऐलान किया है कि उसके दो पोत स्थायी तौर पर एशिया में तैनात रहेंगे. टोक्यो और लंदन के बीच मजबूत होते रणनीतिक संबंधों के बीच यह ऐलान हुआ है. हाल ही में जापान ने चीन के अपनी सीमाओं के प्रसार के मंसूबों को लेकर चिंता जताई थी. इसमें ताईवान को लेकर चीन के इरादों की ओर भी इशारा किया गया था.
जहाजों की स्थायी तैनाती
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने टोक्यो में अपने समकक्षण नोबुओ किशी से मुलाकात की. वॉलेस के जापान दौरे को ब्रिटेन की एशिया में बढ़ती गतिविधियों का ही एक संकेत माना जा रहा है मुलाकात के बाद जारी एक साझा बयान में दोनों नेताओं ने कहा, "जहाजी बेड़े की पहली तैनाती के बाद साल के आखिर में ब्रिटेन दो जहाजों को इस इलाके में स्थायी रूप से तैनात करेगा.” किशी ने बताया कि सितंबर में जापान पहुंचने के बाद क्वीन एलिजाबेथ जहाज और उसके साथ आए सहयोगी पोत अलग-अलग बंदरगाहों पर रहेंगे. बेड़े का एक हिस्सा अमेरिकी बेड़े के साथ रहेगा जबकि दूसरा जापानी नौसेना के साथ.
जापान और अमेरिका पुराने सैन्य सहयोगी हैं. जापान में ही अमेरिका का सबसे बड़ा सैनिक ठिकाना है, जहां युद्धपोत, विमान और हजारों सैनिक तैनात हैं. एफ-35बी विमानों से लैस ब्रिटिश जहाज अपने पहले सफर पर योकोशुका स्थित सैन्य अड्डे पर रहेगा. टोक्यो के नजदीक स्थित इस शहर में जापान के जहाजी बेडे के अलावा अमेरिका का विदेश में मोर्चे पर तैनात एकमात्र विमानवाहक पोत यूएसएस रॉनल्ड रीगन भी है.
दक्षिणी चीन सागर से सफर
टोक्यो में ब्रिटिश दूतावास ने एक बयान में बताया है कि ब्रिटेन के युद्धपोत स्थायी बेस नहीं बनाएंगे. क्वीन एलिजाबेथ पोत के साथ अमेरिका और नीदरलैंड्स से दो डिस्ट्रॉयर, दो फ्राईगेट और दो सहायक नौकाएं व पोत भी होंगे. यह बेड़ा भारत, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में रुकता हुआ दक्षिणी चीन सागर होते हुए जापान पहुंचेगा. दक्षिणी चीन सागर के कुछ हिस्सों को चीन और अन्य दक्षिण-एशियाई देश अपना-अपना बताते हैं.
वॉलेस ने कहा कि आने वाले समय में ब्रिटेन आतंक-रोधी और बचाव अभियानों में विशेष प्रशिक्षण पाए सैनिकों का समूह लिटोरल रिस्पॉन्स ग्रूप भी इलाके में तैनात करेगा. उन्होंने कहा कि उनके जहाजों को जापान आने की आजादी है और इस आजादी को जताना उनका फर्ज है. ब्रिटेन एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई तरह के कदम उठा रहा है. जापान के दौरे पर ब्रिटिश विदेश मंत्री अपने साथ कई सैन्य कमांडरों को प्रतिनिधिमंडल लेकर आए थे.
चीन का दावा
चीन दक्षिणी चीन सागर के बड़े हिस्से पर अपने अधिकार का दावा करता है. यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में तनाव और विवाद की बड़ी वजह है क्योंकि कई अन्य देश भी इन इलाकों पर दावा करते हैं, जिन्हें अमेरिका और यूरोप का भी समर्थन मिलता है. कथित ‘नाईन डैश लाइन' पर उसके अधिकार का दावा द हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में भी खारिज हो चुका है.
वॉलेस ने एक जापानी अखबार द टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा, "यह कोई छिपी बात नहीं है कि चीन एक बहुत ही वैध रास्ते पर जहाजों की आवाजाही को चुनौती देता है. हम चीन का सम्मान करेंगे और उम्मीद करते हैं कि चीन भी हमारा सम्मान करेगा.” पिछले महीने ब्रिटेन का एक जहाज काला सागर से गुजरा था, तब रूस ने उसे अपनी सीमाओं का उल्लंघ बताया था.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक व्यक्ति और उसकी पत्नी को एक भारतीय महिला को गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई है. ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में दासता का यह पहला कानूनी मुकदमा था.
विक्टोरिया राज्य की सर्वोच्च अदालत ने मेलबर्न में रहने वाले एक पति-पत्नी को एक भारतीय महिला को आठ साल तक गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते वक्त जज ने कहा कि यह "मानवता के खिलाफ अपराध” था.
मेलबर्न के कांडासामी और कुमुथिनी कानन को विक्टोरिया की सुप्रीम कोर्ट ने जेल साल की सजा सुनाई है. 53 वर्षीय कुमुथिनी कानन को आठ साल जेल में बिताने होंगे और वह चार साल बाद परोल के लिए आवेदन कर पाएंगी.
57 वर्षीय कांडासामी कानन को छह साल की सजा हुई है और उन्हें तीन साल बाद ही परोल मिल सकेगी. यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया की अदालत में सिर्फ घरेलू दासता से संबंधित कोई मामला आया था. इस दंपति ने भारत की एक तमिल महिला को 2007 से 2017 के बीच आठ साल तक गुलाम बनाकर घर में रखा.
मुकदमे की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी ने बार-बार अपने बेगुनाह होने की बात कही. उनके वकील ने संकेत दिया है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं. पति-पत्नी को अप्रैल में सुनवाई के बाद एक जूरी ने दोषी करार दिया था.
‘घिनौनी मिसाल'
बुधवार को फैसला सुनाने की कार्रवाई लगभग तीन घंटे तक चली, जिसे देखने के लिए 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे. फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जॉन चैंपियन ने कहा, "गुलामी को इंसानियत के खिलाफ अपराध माना जाता है. आपने जो किया है वह आपके बच्चों की मौजूदगी और समझ के दौरान रोज हुआ. आपने दूसरे लोगों के साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए, इसकी आपने उन लोगों के सामने एक बहुत घिनौनी मिसाल पेश की है.
आठ साल तक गुलाम बनाकर रखी गई महिला को कड़ा दुर्व्यवहार सहना पड़ा. उसे शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ीं और जब यह मामला सामने आया तब उसका वजन सिर्फ 40 किलो रह गया था.
जस्टिस चैंपियन ने कहा, ”उसकी जिंदगी आपके घर तक ही सीमित थी और आप लोगों ने इस बात का ख्याल रखा कि उसकी हालत का समुदाय में बाकी लोगों को पता ना चले. यह आपका गंदा राज था. इस घिनौने व्यवहार के लिए अदालत आपकी सार्वजनिक तौर पर भर्त्सना करती है.”
क्या है पूरी कहानी?
पीड़ित महिला अलग-अलग वक्त पर इस दंपती के लिए काम करने के वास्ते तीन बार भारत से ऑस्ट्रेलिया आई थी. दो बार वह भारत लौट गई थी. तीसरी बार 2007 में वह ऑस्ट्रेलिया आई और उसे गुलाम बना लिया गया.
उसे खाना बनाने, घर की सफाई करने और बच्चों के काम करने के लिए मजबूर किया गया. उसे सिर्फ 3.39 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 185 रुपये रोजाना का मेहनताना दिया गया. ऑस्ट्रेलिया में मौजूदा न्यूनतम मजदूरी 20 डॉलर प्रतिघंटा यानी लगभग 1200 रुपये रोजाना है.
उम्र के छठे दशक में पहुंच चुकी वह महिला वापस नहीं आई तो भारत में उसके परिवार को चिंता होने लगी. वे उससे संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे तो 2015 में उन्होंने विक्टोरिया पुलिस से महिला की खबर लेने का आग्रह किया.
जब अधिकारी पूछताछ करने कानन दंपती के घर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उन्होंने तो महिला को 2007 से देखा ही नहीं है. जबकि तब महिला को एक फर्जी नाम से अस्पताल में भर्ती कराया गया था क्योंकि वह बेहोश होकर गिर पड़ी थी.
गुलामी की परिभाषा
बाद में महिला ने अधिकारियों को बताया कि उसे जमे हुए चिकन से पीटा गया था और उबलते पानी से जलाया गया था. जस्टिस चैंपियन ने फैसला सुनाते वक्त कहा, "वह एकदम कृशकाय हो गई थी और उसका वजन 40 किलो था.”
कानन दंपती के वकीलों ने दलील दी कि महिला की शारीरिक प्रताड़ना के आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि कानन दंपती ने उस महिला को परिवार के सदस्य की तरह रखा और उसे कभी बेड़ियों में नहीं जकड़ा.
जस्टिस चैंपियन ने कहा कि गुलामी की परिभाषा बदले जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें गुलामों की उस छवि को अपने मन से निकालने की जरूरत है जिसमें वे बेड़ियों में जकड़े या खेतों में बंधुआ काम करते नजर आते हैं. गुलामी उससे ज्यादा भी बहुत कुछ हो सकती है और हो सकता है कि उसमें शारीरिक बंधन न हों.”
जर्मन चांसलर के पद से अपनी विदाई से ठीक पहले अंगेला मैर्केल ने अपना एक और बड़ा मकसद भी हासिल कर लिया. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन के विरोधी रहे अमेरिका के साथ जर्मनी का समझौता हो गया है.
अमेरिका और जर्मनी के बीच विवादास्पद नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को लेकर समझौता हो गया है. बुधवार को इस संबंध में दोनों पक्षों ने एक साझा बयान जारी किया. हाल ही में मैर्केल ने अमेरिका की यात्रा की थी और वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की थी.
उस दौरे पर बाइडेन और मैर्केल ने रूस से जर्मनी को आने वाली इस पाइपलाइन पर बातचीत की थी और बाद में मीडिया के सामने सहमत ना होने की बात भी कही थी. हालांकि दोनों पक्षों ने सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी असहमति दर्ज कराई थी.
क्या समझौता हुआ?
नॉर्ड स्ट्रीम 2 रूस से जर्मनी को आने वाली गैस पाइपलाइन है. अमेरिका रूस की यूक्रेन को लेकर मंशाओं पर संदेह करता रहा है इसलिए इस पाइपलाइन के पक्ष में नहीं था. लेकिन जर्मनी के साथ हुए समझौते में दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि यूक्रेन को मदद दी जाएगी और यदि रूस भू-राजनीतिक दृष्टि से ऊर्जा सप्लाई का फायदा उठाने की कोशिश करता है तो उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे.
साझा बयान कहता है, "अमेरिका और जर्मनी अपनी इस प्रतिबद्धता पर एक हैं कि रूस यदि आक्रामक रवैया अपनाता है या प्रतिबंध आदि के रूप में शुल्क लगाने की कोशिश करता है तो उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा. रूस यदि ऊर्जा को यूक्रेन के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है तो जर्मनी
उसे रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई करेगा और यूरोप के स्तर पर प्रभावशाली उपाय करेगा. इन उपायों में प्रतिबंधों से लेकर यूरोप में गैस आदि के निर्यात की उसकी क्षमताओं को सीमित करना शामिल होगा.”
समझौते के तहत जर्मनी यूक्रेन में निवेश करने पर भी सहमत हुआ है. साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करेगा कि रूस और यूक्रेन के बीच एक गैस परिवहन समझौता हो. साथ ही, जर्मनी और अमेरिका एक ‘ग्रीन फंड' स्थापित करेंगे जिसमें एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये का निवेश करेंगे. इस धन का इस्तेमाल यूक्रेन में पर्यावरण के अनुकूल तकनीकी ढांचे और अक्षय ऊर्जा के उत्पादन से जुड़े उद्योग स्थापित करने में किया जाएगा, ताकि यूक्रेन ऊर्जा की जरूरतें खुद पूरी कर सके.
साझा बयान कहता है, "जर्मनी फंड के लिए शुरुआत में कम से कम 17.5 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराएगा और अपने वायदों को आने वालों सालों के बजट में पूरा करने के लिए प्रयास करेगा.”
समझौते पर प्रतिक्रियाएं
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने इस समझौते को रचनात्मक बताया है. उन्होंने कहा कि जर्मनी "रूस के बारे में नीति और ऊर्जा नीति को लेकर अमेरिका के साथ अपने साझे लक्ष्यों और अवधाराणाओं को पूरा करने की ओर लौट आया है.”
मास ने एक ट्वीट में कहा, "मुझे तसल्ली हुई है कि हमने अमेरिका के साथ नॉर्ड स्ट्रीम 2 पर एक रचनात्मक हल खोज लिया है. हम अगले एक दशक में यूक्रेन की ग्रीन एनर्जी सेक्टर बनाने में करेंगे और वहां से होते हुए गैस के सुरक्षित परिवहन पर काम करेंगे.”
जर्मनी के साथ हुआ यह समझौता अमेरिका के रुख में बदलाव का संकेत है, जो अब तक इस पाइपलाइन का विरोध करता रहा है. अमेरिका की चिंता थी कि रूस यूक्रेन और अन्य देशों की ऊर्जा सप्लाई रोक सकता है ताकि उन पर दबाव बनाया जा सके.
डॉयचे वेले की राजनीतिक संवाददाता सिमोन यंग कहती हैं, "वॉशिंगटन से हमें यह संदेश मिल रहा है कि जो बाइडेन सोचते हैं कि इस मुद्दे पर जर्मनी पर दबाव बनाना यूरोप में अमेरिका के विस्तृत रणनीतिक हितों के हित में नहीं होगा.”
यूक्रेन की चिंता
यूक्रेन और पोलैंड दोनों ही इस पाइपलाइन के खिलाफ रहे हैं. उन्हें डर है कि इस योजना से यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ेगी और रास्ते में पड़ने वाले देशों को मिलने वाले शुल्क का भी नुकसान होगा.
ऐसी खबरें थीं कि अमेरिका ने यूक्रेन को जर्मनी के साथ उसके समझौते की आलोचना न करने की हिदायत दी थी. हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ऐसी खबरों का खंडन किया है. अमेरिका का एक दूत इसी हफ्ते यूक्रेन और पोलैंड जाकर दोनों को समझौते की जानकारी देगा.
व्हाइट हाउस ने यह भी ऐलान किया है कि 31 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दीमीर जेलेन्स्की के मुलाकात करेंगे.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने '1971 के युद्ध में भारत के सामने पाकिस्तान के आत्म-समर्पण की यह तस्वीर' शेयर कर माहौल गर्म कर दिया है.
पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तालिबान को लेकर ज़ुबानी जंग चल रही है.
अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान पर तालिबान का समर्थन करने और उन्हें प्रशिक्षण और हथियार मुहैया कराने के आरोप लगाता रहा है.
इसी बीच, अमरुल्लाह सालेह ने बुधवार को ट्विटर पर यह तस्वीर शेयर की और लिखा, "हमारे इतिहास में ऐसी कोई तस्वीर नहीं है और ना ही कभी होगी. हाँ, कल मैं एक बार को हिल गया था क्योंकि एक रॉकेट मेरे ऊपर से उड़कर गया और कुछ मीटर की दूरी पर गिरा. लेकिन पाकिस्तान के प्रिय ट्विटर हमलावरों, तालिबान और आतंकवाद इस तस्वीर के आघात को ठीक नहीं कर सकते. कोई और तरीक़े खोजिए."
उनके द्वारा शेयर की गई इस तस्वीर को पहले तीन घंटे में ही दस हज़ार से ज़्यादा लोगों ने पसंद किया और सैकड़ों लोगों ने उनके ट्वीट पर अपने जवाब लिखे हैं.
कुछ लोगों ने जहाँ उनके ट्वीट पर 'भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान द्वारा आत्म-समर्पण करने का वीडियो' पोस्ट किया है, वहीं कुछ लोगों ने 'अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति के घर के पास रॉकेट गिरते समय, उनके (अमरुल्लाह सालेह के) लड़खड़ा जाने का वीडियो' शेयर किया है.
सोशल मीडिया पर अमरुल्लाह सालेह द्वारा ट्वीट की गई तस्वीर को लेकर गर्मागर्म बहस हो रही है.
सोशल मीडिया पर क्या लिख रहे लोग
पाकिस्तान की टीवी होस्ट और अदाकारा सेहर शिनवारी ने लिखा, "हमने भी इतिहास में ऐसी वीडियो क्लिप नहीं देखी, जिसमें धमाके की आवाज़ सुनकर एक 'बहादुर' उप-राष्ट्रपति की पतलून गीली हो जाती है और वो शर्म के मारे नमाज़ जारी रखता है."
एक ट्विटर यूज़र ने लिखा कि "ये कुछ सेकेंड का वीडियो क्लिप काफ़ी है, यह समझने के लिए कि आईएसआईएस और तालिबानियों ने तुम लोगों का नर्वस सिस्टम कितना कमज़ोर कर दिया है."
अब्दुल्ला नाम के एक पाकिस्तानी ट्विटर यूज़र ने लिखा, "तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के 60 प्रतिशत से ज़्यादा इलाक़े पर कब्ज़ा कर चुका है और उनका उपराष्ट्रपति ट्विटर पर जंग लड़ रहा है."
पाकिस्तान की पूर्व सांसद बुशरा गौहर लिखती हैं, "किसी धमाके की आवाज़ पर आपका रिएक्शन बिल्कुल सहज था. जो इसका मज़ाक बना रहे हैं, उनका दिमाग़ ख़राब है. मज़बूत बने रहिए और हिम्मत रखिये. चरमपंथ के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े रहना ही विकल्प है."
विपुल गुप्ता नाम के एक भारतीय ट्विटर यूज़र ने लिखा है कि अब अफ़ग़ानिस्तान ने भी 'ट्रोल पाकिस्तान' अभियान में भारत का साथ देना शुरू कर दिया है.
भारतीय पत्रकार कादम्बिनी शर्मा लिखती हैं, "युद्ध क्षेत्र में गये पत्रकार जानते हैं कि जब कोई विस्फोट सुनाई देता है या कोई धमाका सुनाई देता है तो आदमी झुकता है. ये सहज है. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के उपराष्ट्रपति को इसके लिए पाकिस्तान के सोशल मीडिया यूज़र्स द्वारा ट्रोल किया गया. आज उन्होंने उसका करारा जवाब दिया."
दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करने वाले ट्विटर यूज़र्स ने सालेह के इस ट्वीट को काफ़ी शेयर किया है और इसके हवाले से पाकिस्तान का काफ़ी मज़ाक़ उड़ाया है.
इमेज स्रोत,SONAM KALARA
कब की है तस्वीर?
सालेह ने ट्विटर पर जो तस्वीर शेयर की है, वो वर्ष 1971 की एक ऐतिहासिक तस्वीर है जिसे पाकिस्तानी सेना के भारतीय फ़ौज के सामने सरेंडर करते समय खींचा गया था. 1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में 'पूर्वी-पाकिस्तान' में पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी को क़रीब 90 हज़ार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा था. इस आत्मसमर्पण के बाद 'पूर्वी पाकिस्तान' का हिस्सा पाकिस्तान से आज़ाद हो गया था और आज उसे ही बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है.
उस समय भारतीय सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा थे जो इस तस्वीर में समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे जनरल नियाज़ी के साथ मेज़ पर बैठे दिखते हैं.
इमेज स्रोत,BHARAT RAKSHAK
पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी को क़रीब 90 हज़ार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था
जानकारों कहते हैं कि भारतीय सेना और बंगाली लोगों के हाथों पाकिस्तानी सेना की शिकस्त और जनरल नियाज़ी का हथियार डाल देना पाकिस्तानी इतिहास में एक काला अध्याय है.
इस घटना के बारे में नौसेना की पूर्व कमान के प्रमुख रहे एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी आत्मकथा 'ए सेलर्स स्टोरी' में लिखा है कि ''ढाका के रेसकोर्स मैदान में एक छोटी सी मेज़ और दो कुर्सियाँ रखी गई थीं, जिन पर जनरल अरोड़ा और जनरल नियाज़ी बैठे थे. मैं, एयर मार्शल देवान जनरल सगत सिंह और जनरल जैकब पीछे खड़े थे. आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ की छह प्रतियाँ थीं जिन्हें मोटे सफ़ेद कागज़ पर टाइप किया गया था.''
"पहले नियाज़ी ने दस्तख़त किए और फिर जनरल अरोड़ा ने. पता नहीं जानबूझ कर या बेख़्याली में नियाज़ी ने अपना पूरा हस्ताक्षर नहीं किया और सिर्फ़ एएके निया लिखा. मैंने जनरल अरोड़ा का ध्यान इस तरफ़ दिलाया. अरोड़ा ने नियाज़ी से कहा कि वो पूरे दस्तख़त करें. जैसे ही नियाज़ी ने दस्तख़त किये बांग्लादेश आज़ाद हो गया."
"तब नियाज़ी की आँखों में आँसू भर आये. उन्होंने अपने बिल्ले उतारे, रिवॉल्वर से गोलियाँ निकालीं और उसे जनरल अरोड़ा को थमा दिया. फिर उन्होंने अपना सिर झुकाया और जनरल अरोड़ा के माथे को अपने माथे से छुआ, मानो वो उनकी अधीनता स्वीकार कर रहे हों.''
अमरुल्लाह सालेह ने कहा था कि पाकिस्तानी वायु सेना ने अफ़ग़ान नेशनल आर्मी (एएनए) और अफ़ग़ान वायु सेना को चेतावनी दी है कि स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने की किसी भी कोशिश का जवाब पाकिस्तान देगा और जो भी ऐसी कोशिश करेगा उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी.
सालेह ने इस संबंध में एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, "ब्रेकिंग: पाकिस्तान वायु सेना ने अफ़ग़ान सेना और वायु सेना को आधिकारिक रूप से चेतावनी दी है कि अगर किसी ने भी स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने की कोशिश की तो पाकिस्तान वायु सेना उसका जवाब देगी. पाकिस्तानी वायु सेना अब तालिबान को कुछ क्षेत्रों में हवाई सहायता प्रदान कर रही है."
उन्होंने इस संबंध में कुछ प्रमाण पेश करने की भी बात कही थी.
मगर सालेह के आरोपों के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वो अमरुल्लाह सालेह के 'आरोपों' को सिरे से ख़ारिज करता है. विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि उसने अपने अधिकार क्षेत्र में अपने सैनिकों और लोगों की हिफ़ाज़त के लिए आवश्यक उपाय किये हैं.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से ये भी कहा गया कि अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान को पाकिस्तान के चमन सेक्टर के सामने अपने क्षेत्र के अंदर हवाई अभियान चलाने के अपने इरादे से अवगत कराया था, जिसपर पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र में कार्रवाई करने के अफ़ग़ान सरकार के अधिकार पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी.
हालांकि, सालेह को पाकिस्तान की दलीलों पर विश्वास नहीं हुआ.
उन्होंने पाकिस्तान की ओर से प्रतिक्रिया आने पर एक और ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ''पाकिस्तान के इनक़ार पर: बीस सालों से अधिक समय तक पाकिस्तान ने अपनी धरती पर क्वेटा शूरा के या तालिबानी चरमपंथी नेताओं की मौजूदगी से इनक़ार किया. जो लोग इस पैटर्न से परिचित होंगे, चाहे अफ़ग़ानिस्तान के हों या विदेशी, वो अच्छी तरह से जानते होंगे कि यह पहले से लिखा एक ख़ारिजनामा है.''
तालिबान लड़ाकों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान क्षेत्र के बीच स्थित स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग पर नियंत्रण का दावा किये जाने के बाद उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया था.
स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग कंधार के प्रमुख रणनीतिक स्थानों में से एक है जो पाकिस्तान सीमा से लगा हुआ क्षेत्र है.
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी सांसद मोहसीन डावर की हुई तारीफ़
इसी दौरान, पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट के नेता और पाकिस्तान के सांसद मोहसीन डावर ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान की संसद में क्वेटा और पेशावर में तालिबान की रैलियों का मुद्दा उठाने की कोशिश की तो उन्हें बोलने से रोक दिया गया.
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में बोलते हुए डावर ने कहा था कि 'अफ़ग़ानिस्तान में हालात इंतेहाई ख़तरनाक हैं, वहाँ पर जो हो रहा है, ज़ाहिर तौर पर उसका यहाँ भी असर है. पिछले चंद दिनों से हम देख रहे हैं कि तहरीके तालिबान की क्वेटा और पेशावर में रैलियाँ हुई हैं. अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स पर संगीन आरोप लगाये हैं...'
और जब डावर ने ट्विटर पर नेशनल असेंबली का वीडियो पोस्ट किया, तो उसके जवाब में अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा, 'भाई डावर, हम आपकी बात सुन रहे हैं. अमुस से लेकर अब्बासिन तक दसियों लाख लोग आपकी बात साफ़-साफ़ सुन रहे हैं. आतंकवादी तालिबों ने जीएचक्यू (पाकिस्तान का सेना मुख्यालय) से मिल रहे सहयोग की वजह से ज़मीन पर कुछ बदलाव किया है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के इरादे और हिम्मत वैसे ही हैं.'
इससे पहले मोहसीन डावर ने भी पाकिस्तान पर तालिबान लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान भेजने के आरोप लगाए थे.
अफ़ग़ान राजदूत की बेटी का मामला
पाकिस्तान में अफ़ग़ान राजदूत नजिबुल्लाह अलीखेल की बेटी सिलसिला अलीखेल को अगवा कर पीटे जाने के बाद, रविवार को अफ़ग़ानिस्तान प्रशासन ने अपने राजदूत और सभी वरिष्ठ राजनयिकों को वापस बुला लिया था.
अफ़ग़ान प्रशासन का कहना है कि जब तक सुरक्षा से जुड़ी सारी चिंताएं दूर नहीं हो जातीं और अफ़ग़ान राजदूत की बेटी के साथ हुई हिंसा के मामले की जाँच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनके राजदूत और सभी वरिष्ठ राजनयिक अफ़ग़ानिस्तान में ही रहेंगे.
इस घटना के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ट्विटर पर लिखा था कि अफ़ग़ान राजदूत की बेटी के अपहरण और उसके बाद की यातना ने हमारे देश के मानस को ठेस पहुँचाई है. हमारे राष्ट्रीय मानस को प्रताड़ित किया गया है.
ये घटना भी ऐसे समय में हुई जब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के नेताओं के बीच अलग-अलग वजहों से तनाव बढ़ रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैन्य बलों के वापस लौटने के बाद सुरक्षा हालात अस्थिर हुए हैं. तालिबान हर बीतते दिन के साथ नए इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर रहा है.
पिछले सप्ताह ही, मध्य और दक्षिण एशिया संपर्क सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने, जो कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से महज़ कुछ फ़ीट की दूरी पर ही बैठे थे, पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने चरमपंथी समूहों से अपने संबंध नहीं तोड़े हैं.
खुफ़िया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने अपने संबोधन में कठोर शब्दों में कहा था कि पिछले महीने 10,000 से अधिक 'जिहादी' लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान आये हैं, जबकि पाकिस्तान सरकार तालिबान को शांति वार्ता में गंभीरता से भाग लेने के लिए मनाने में असफल रही है. (bbc.com)
जकार्ता, 22 जुलाई| मध्य इंडोनेशिया के पश्चिम कालीमंतन प्रांत में कुछ दिनों पहले तूफान की चपेट में आने के बाद बचाव दल को 24 शव मिले हैं और 31 अन्य लापता लोगों की तलाश जारी है। प्रांत के शीर्ष बचाव दल ने बुधवार को यह जानकारी दी। प्रांतीय खोज एवं बचाव कार्यालय के प्रमुख योपी हरयादी ने कहा कि घटना सांबास जिले में हुई जब दो टग बोट और मछली पकड़ने वाले जहाजों ने पहले ही तट के पास पोजीशन ले ली थी, और कुछ अन्य चरम मौसम की स्थिति की संभावना की मौसम एजेंसी की चेतावनी पर क्षेत्र की ओर जा रहे थे।
उन्होंने कहा, मृतकों की संख्या बढ़कर 24 हो गई है और 31 अभी भी खोज और बचाव अभियान में हमारा लक्ष्य है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, हरयादी ने कहा कि सप्ताह में दो दिन पहले इस क्षेत्र में तूफान आया था।
उन्होंने कहा कि खोज और बचाव अभियान के दौरान जहाजों में सवार कुल 83 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है।
प्रांतीय खोज एवं बचाव कार्यालय की संचालन इकाई के प्रमुख एरिक सुबेरियंतो ने कहा कि प्रक्रियाओं के अनुसार, ऑपरेशन तीन और दिनों में किया जाएगा। (आईएएनएस)
लंदन, 22 जुलाई | हाउस ऑफ लॉर्डस का एक सदस्य उन 400 से अधिक लोगों में शामिल है, जिनके यूके मोबाइल फोन नंबर 2017 और 2019 के बीच एनएसओ ग्रुप क्लाइंट सरकारों द्वारा पहचाने गए नंबरों की लीक सूची में दिखाई देते हैं। द गार्जियन ने कहा कि डेटा के विश्लेषण के अनुसार, यूके के नंबरों के चयन के लिए संयुक्त अरब अमीरात की प्रमुख सरकार जिम्मेदार प्रतीत होती है। संयुक्त अरब अमीरात उन 40 देशों में से एक है जिनके पास एनएसओ स्पाइवेयर तक पहुंच है जो हैक करने में सक्षम है और गुप्त रूप से एक मोबाइल फोन को नियंत्रित कर सकता है।
दुबई, शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मकतूम द्वारा शासित अमीरात शहर को भी एनएसओ क्लाइंट माना जाता है।
शेख मोहम्मद की बेटी राजकुमारी लतीफा, जिन्होंने 2018 में दुबई से बचने के लिए एक असफल बोली शुरू की, और उनकी पूर्व पत्नी राजकुमारी हया, जो देश छोड़कर 2019 में यूके आईं, दोनों के फोन डेटा में दिखाई देते हैं।
इसी तरह दोनों महिलाओं के कई सहयोगियों के फोन भी - जिनमें हया के मामले में, ज्यादातर यूके स्थित नंबर शामिल हैं।
द गार्जियन के अनुसार, सूची में यूके नंबर वाले लोगों में शामिल हैं :
लेडी उद्दीन, हाउस ऑफ लॉर्डस की एक स्वतंत्र सदस्य, जिनकी संख्या 2017 और 2018 दोनों में डेटा पर दिखाई दी। उन्होंने कहा कि अगर संसद के सदस्यों की जासूसी होती है तो यह विश्वास का एक बड़ा उल्लंघन होगा जो हमारी संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
राजकुमारी हया को सलाह देने वाली लंदन की एक कानूनी फर्म के लिए काम करने वाला एक वकील। हया उच्च न्यायालय के न्याय के पारिवारिक प्रभाग में शेख मोहम्मद के साथ कस्टडी हिरासत की लड़ाई में उलझा हुआ है।
जॉन गोस्डेन, न्यूमार्केट में स्थित एक प्रमुख हॉर्स ट्रेनर, जो राजकुमारी हया का दोस्त भी है, जो खुद एक अंतरराष्ट्रीय घुड़सवारी सवार है। हया की सुरक्षा और पीआर टीम के लिए काम करने वाले अन्य लोगों के नंबर भी डेटा में दिखाई देते हैं।
द गार्डियन ने कहा कि रक्षा थिंकटैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुख्य कार्यकारी जॉन चिपमैन, जो बहरीन में एक वार्षिक सम्मेलन चलाता है, संयुक्त अरब अमीरात के सहयोगियों में से एक है।
सूची में दिखाई देने वाले अन्य हाई-प्रोफाइल यूके के नाम पहले ही नामित किए जा चुके हैं, जैसे कि फाइनेंशियल टाइम्स की संपादक राउला खलाफ, जो 2018 में डेटा में दिखाई देने पर डिप्टी एडिटर थीं। एनएसओ ने बाद में कहा कि कोई प्रयास नहीं किया गया था।(आईएएनएस)
पेरिस, 22 जुलाई | फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने फोन नंबर के साथ-साथ उनके पूर्व प्रधानमंत्री और उनके 20 मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल के बहुमत के लीक डेटाबेस में आने के बाद पेगासस प्रोजेक्ट के केंद्र की सिलसिलेवार जांच करने का आदेश दिया है। यह खबर द गार्जियन को दी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांसीसी प्रधानमंत्री जीन कास्टेक्स ने बुधवार को कहा कि एलिसी (फ्रांसीसी राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास) ने खुलासाओं पर रोशनी डालने की कसम खाने के बाद सिलसिलेवार जांच का आदेश दिया।
लेकिन कास्टेक्स ने कहा कि वास्तव में क्या हुआ, यह जाने बिना किसी भी नए सुरक्षा उपायों या अन्य कार्रवाई की टिप्पणी या घोषणा करना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, हम इसे बहुत करीब से देखने जा रहे हैं।
फ्रांस के राजनेताओं ने मैक्रों, पूर्व प्रधानमंत्री एडौर्ड फिलिप और 14 सेवारत मंत्रियों के मोबाइल नंबरों के लीक होने पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिनमें न्याय और विदेश मामलों के मंत्री भी शामिल थे।
पेगासस प्रोजेक्ट की जांच द्वारा किए गए फोरेंसिक विश्लेषण के अनुसार, पूर्व पर्यावरण मंत्री फ्रेंकोइस डी रूगी के मोबाइल फोन में एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर से जुड़ी गतिविधि के डिजिटल निशान दिखाई दिए।
द गार्जियन ने कहा कि पेगासस प्रोजेक्ट के शोध से पता चलता है कि मोरक्को वह देश था जो मैक्रोन और उनकी वरिष्ठ टीम में दिलचस्पी ले सकता था, जिससे यह आशंका बढ़ गई कि उनके फोन फ्रांस के करीबी राजनयिक सहयोगियों में से एक द्वारा चुने गए थे।
डी रूगी ने बुधवार को दोहराया कि फ्रांस और मोरक्को के बीच बेहद करीबी राजनयिक संबंध हैं और स्पष्टीकरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वह बहुत हैरान हैं कि यह मित्र राज्यों के बीच हो सकता है।
उन्होंने कहा कि उन्होंने मोरक्को के राजदूत के साथ एक श्रोता के लिए कहा था और इस मुद्दे को फ्रांसीसी राज्य अभियोजक के पास भेज दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मोरक्को ने कहा है कि वह इन निराधार और झूठे आरोपों को स्पष्ट रूप से खारिज और निंदा करता है, यह कहते हुए कि यह गलत और झूठा था कि देश ने राष्ट्रीय या विदेशी सार्वजनिक हस्तियों के फोन में घुसपैठ की थी।
द गार्जियन ने कहा कि एक विवादास्पद पत्रकार और टीवी डिबेट-शो स्टार एरिक जेमोर, जिन्हें फ्रांस का सबसे प्रसिद्ध दूर-दराज विचारक करार दिया गया है, भी डेटा में दिखाई देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में अगले वसंत में राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने पर विचार करते हुए, उन्होंने अपने संभावित लक्ष्यीकरण के बारे में ट्वीट किया : अगर सरकार को पता था लेकिन कुछ नहीं किया, तो यह एक घोटाला है। अगर उन्हें नहीं पता था, तो यह चिंताजनक है।(आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 22 जुलाई| पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक की बेटी का सिर काट दिया गया, क्योंकि युवती ने रिश्ता जोड़ने से इनकार कर दिया। बोल न्यूज ने बताया कि पीड़ित की पहचान 27 वर्षीय नूर मुकादम के रूप में हुई, जो शौकत मुकाकम की बेटी थी। शौकत दक्षिण कोरिया और कजाकिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत थे।
पुलिस ने कहा कि गोलीबारी के बाद उसे चाकू मार दिया गया और एक धारदार हथियार से उसका सिर काट दिया गया, जबकि घटना में एक अन्य व्यक्ति घायल हो गया।
उन्होंने कहा कि घटना में कथित संलिप्तता के लिए लड़की के एक दोस्त को गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस ने कहा कि कथित हत्यारा जहीर जाफर इस्लामाबाद की एक प्रमुख निर्माण कंपनी के सीईओ का बेटा है।
सूत्रों के मुताबिक, नूर की हत्या आरोपी से ब्रेकअप को लेकर हुई थी, जो रिश्ता जोड़ने से इनकार को बर्दाश्त नहीं कर सका और उसकी हत्या कर दी।
शुरुआती खबरों की मानें तो नूर मंगलवार को जफर के घर आई थी। वह सुबह से अपने पिता के संपर्क में नहीं थी। पुलिस का कहना है कि कथित हत्यारा ड्रग एडिक्ट है और उसे मानसिक परेशानी है।
पाकिस्तान विदेश कार्यालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने घटना की निंदा की और संवेदना व्यक्त की।
प्रवक्ता ने ट्विटर पर हैशटैग जस्टिस फॉर नूर जोड़ते हुए लिखा, एक वरिष्ठ सहयोगी और पाकिस्तान के पूर्व राजदूत की बेटी की हत्या से गहरा दुख हुआ। शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना और मुझे उम्मीद है कि इस जघन्य अपराध के अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। (आईएएनएस)
काठमांडू, 21 जुलाई| शेर बहादुर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के एक सप्ताह बाद भी अपने मंत्रिमंडल को पूर्ण आकार देने में विफल रहे हैं। देउबा, जिन्हें उनकी अपनी पार्टी नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र), जनता समाजवादी पार्टी, जनमोर्चा नेपाल, विपक्ष के 22 सांसदों और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल का समर्थन प्राप्त था, अपने पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल का विस्तार करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
13 जुलाई को देउबा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया था। अब उन पर इसका विस्तार करने का दबाव है, लेकिन बड़ी संख्या में मंत्री पद के आकांक्षी होने के कारण, वह गर्मी महसूस कर रहे हैं और यह तय करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि किसे समायोजित किया जाए और किसे नहीं।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, वह 25 सदस्यों से अधिक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर सकते।
नेपाली कांग्रेस के प्रमुख गठबंधन माओवादी केंद्र ने बुधवार को सरकार को सफलतापूर्वक चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों के बीच एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम और नीति तैयार करने का फैसला किया।
पार्टी प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा कि गठबंधन सहयोगियों की एक टास्क फोर्स ऐसे न्यूनतम साझा कार्यक्रमों और नीतियों का खाका तैयार करेगी।
श्रेष्ठ ने कहा, पार्टी की स्थायी समिति की बैठक में देउबा सरकार में शामिल होने पर चर्चा नहीं हुई। हम सरकार में शामिल होने से पहले अन्य गठबंधन सहयोगियों के साथ चर्चा करेंगे।
एक और गठबंधन, जनता समाजवादी पार्टी दो गुटों में विभाजित है, एक उपेंद्र यादव के नेतृत्व में और दूसरा महंत ठाकुर द्वारा। मधेसी पार्टी के नाम से मशहूर जेएसपी के 275 सदस्यीय सदन में 32 विधायक हैं।
इससे पहले ठाकुर गुट ने बहुमत हासिल किया था और केपी शर्मा ओली सरकार में शामिल हो गया था जबकि यादव गुट विपक्ष में रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओली की सरकार गिराए जाने और देउबा के प्रधान मंत्री बनने के बाद अदालत ने 21 मई को सदन को भंग करने के ओली के फैसले को पलट दिया, यादव गुट मजबूत हो गया और कई सांसदों के पक्ष बदलने के बाद पार्टी के अंदर बहुमत हासिल कर लिया।
ठाकुर गुट के पिछली ओली सरकार में शामिल होने के बाद, पार्टी के युद्धरत गुटों ने प्रामाणिकता का दावा करते हुए चुनाव आयोग से संपर्क किया था। मामला चुनाव आयोग के विचाराधीन है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 जुलाई| दुबई की राजकुमारी हया बिंत अल-हुसैन, उनके करीबी सहयोगियों, सलाहकारों और दोस्तों के मोबाइल फोन नंबर दुबई अमीरात के एजेंटों द्वारा संचालित एक कंप्यूटर सिस्टम में दर्ज किए जा रहे थे, जो स्पाइवेयर निर्माता एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों में से एक था। यह बात द गार्जियन की रिपोर्ट में सामने आई है। अमीर की पूर्व पत्नी के करीबी सहयोगी और दोस्त भी डेटाबेस में दिखाई देने लगे, क्योंकि वह यूके चली गई थीं।
अप्रैल 2019 में जैसे ही उसका विमान नीचे उतरा, राजकुमारी हया, जो अपने दो बच्चों के साथ थीं, उन्हें उम्मीद थी कि वह अपने पूर्व पति, दुबई के अमीर, शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मकतूम की पहुंच से बाहर हैं।
हया और उसके आठ करीबी सहयोगियों के फोन नंबर एक डेटासेट में दिखाई देते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह एनएसओ के एक सरकारी ग्राहक के लिए लोगों की रुचि को दशार्ता है। वह डेटा फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा प्राप्त किया गया है, और गार्जियन सहित दुनिया भर के मीडिया संगठनों द्वारा विश्लेषण किया गया है।
लीक किए गए रिकॉर्ड में हया के निजी सहायक, उनकी निजी सुरक्षा फर्म के वरिष्ठ कर्मचारी और यहां तक कि शेख मोहम्मद के साथ उनके हिरासत विवाद में सलाह देने वाले वकीलों में से एक है।
द गार्जियन ने शेख मोहम्मद के साथ उसके संबंधों की सूचना दी, जो सौहार्दपूर्ण था, उनके एक अन्य बच्चे, राजकुमारी लतीफा द्वारा अत्यधिक सार्वजनिक और असफल भागने के प्रयास के बाद बिगड़ना शुरू हो गया।
फैसले के अनुसार, हया ने लतीफा के कल्याण के बारे में पूछताछ करना शुरू कर दिया, लेकिन बाद में शेख और उनके सलाहकारों से अधिक शत्रुतापूर्ण माहौल का अनुभव करने लगीं।
कहा गया है कि भरोसेमंद स्टाफ सदस्यों को उसकी मंजूरी के बिना बर्खास्त कर दिया गया था और हया और उनके प्रतिनिधि को शासक के दरबार से निकाल दिया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह भी पाया गया कि शेख मोहम्मद ने उनके पिता की मृत्यु की बरसी पर 7 फरवरी, 2019 को शरिया कानून के तहत हया को तलाक दे दिया था।
कुछ हफ्ते बाद, फैसले में बताया गया कि कैसे उन्होंने दावा किया कि शेख मोहम्मद ने उन्हें सीधे फोन किया था।
फोन पर कहा गया, "मुझे आपके एक अंगरक्षक के साथ संबंधों का अस्पष्ट संदर्भ देते हुए मुझे आप पर संदेह होने लगा है।"
हया ने अदालत को बताया कि इस कॉल ने उन्हें भयभीत कर दिया। (आईएएनएस)
सऊदी अरब ने हर उम्र की महिलाओं को हज करने के लिए किसी मर्द को साथ रखने की अनिवार्यता खत्म कर दी है. हां, इतनी शर्त जरूर रखी है कि महिलाएं एक समूह में हों.
पाकिस्तानी मूल की 35 वर्षीय बुशरा शाह का कहना है कि हज पर मक्का जाने से उनके बचपन का एक सपना पूरा हो गया. नए नियमों के तहत वो हज बिना किसी पुरुष "अभिभावक" के कर रही हैं, जिन्हें "महरम' भी कहा जाता है. सऊदी अरब के हज मंत्रालय द्वारा लिया गया यह फैसला उन सामाजिक सुधारों का हिस्सा है जिन्हें रियासत के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस सलमान के आदेश पर लागू किया गया है.
सलमान सऊदी अरब की कट्टर इस्लामी छवि को बदलना चाह रहे हैं और तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था को भी खोलना चाह रहे हैं. उनके सत्ता में आने के बाद महिलाओं को गाड़ियां चलाने की और बिना किसी महरम के विदेश जाने की इजाजत दी गई है. हालांकि साथ ही देश में सलमान के आलोचकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी चल रही है. इन आलोचकों में महिला अधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हैं.
'बचपन का सपना'
जेद्दाह स्थित अपने घर से हज के लिए निकलने से पहले बुशरा शाह ने बताया, "ये एक सपने के सच होने जैसा है. हज करना मेरे बचपन का सपना था." अपने पति और बच्चे के साथ हज करने से उनका ध्यान भटक जाता और "पूरी तरह से हज की रीतियों पर ध्यान देने में" बाधा होती. शाह उन 60,000 लोगों में शामिल हैं जिन्हें इस साल हज करने के लिए चुना गया है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से लगातार दूसरे साल हज को नाटकीय ढंग से छोटा कर दिया गया है.
सिर्फ सऊदी अरब के नागरिक ही इसमें हिस्सा ले रहे हैं और उन्हें भी एक लॉटरी के जरिये चुना गया है. अधिकारियों ने कहा है कि इस साल श्रद्धालुओं में 40 प्रतिशत महिलाएं हैं. शाह कहती हैं, "मेरे साथ और भी कई महिलाएं आएंगी. मुझे बहुत गर्व है कि अब हम स्वतंत्र हैं और हमें किसी अभिभावक की जरूरत नहीं है." उनके पति अली मुर्तदा कहते हैं कि उन्होंने इस यात्रा को अकेले करने के लिए अपनी पत्नी को "पुरजोर प्रोत्साहन" दिया था.
सरकार ने इस साल हज में बच्चों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया है. 38 साल के मुर्तदा अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए जेद्दाह में ही रहेंगे. वो कहते हैं, "हमने फैसला किया था कि हममें से किसी एक को जाना चाहिए. हो सकता है वो अगले साल गर्भवती हों या हो सकता है बच्चों को अगले साल भी शामिल ना होने दिया जाए." यह साफ नहीं हो पाया है कि महरम वाला प्रतिबंध मंत्रालय ने कब हटाया.
विरोध के संकेत
कुछ महिलाओं ने बताया है कि यात्रा एजेंसियां अभी भी हज के लिए बिना पुरुष साथी के महिलाओं के आवेदन मंजूर करने में हिचक रही हैं. कुछ ने तो अकेली महिलाओं के समूहों को मना करते हुए विज्ञापन भी निकाले. ये इस बात का संकेत है कि सऊदी अरब के अति रूढ़िवादी समाज में आ रहे सामाजिक बदलावों को कहीं कहीं विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.
सऊदी राजधानी रियाध में रहने वाली मिस्री मूल की मारवा शकर कहती हैं, "बिना महरम के हज करना एक चमत्कार है." 42 वर्षीय मारवा तीन बच्चों की मां हैं और उन्होंने महामारी के पहले कई बार हज पर जाने की कोशिश की थी लेकिन वो असफल रही थीं. उनके पति पहले ही हज करके आ चुके थे और इतनी जल्दी दोबारा जाने की उन्हें अनुमति नहीं थी. एक नागरिक समाज संगठन के लिए काम करने वाली मारवा अब अपनी तीन दोस्तों के साथ मक्का जा रही हैं.
सीके/एमजे (एएफपी) (dw.com)
विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग या मैथेमेटिक्स के पेशों को देखिए तो लड़कियों का तादाद लड़कों के मुकाबले बहुत कम है. एक वजह ये भी है कि लड़कियां इन विषयों की पढ़ाई से हिचकिचाती रही हैं. भारत में अब स्थिति बदल रही है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन भारत में विज्ञान विषयों में छात्राओं की दिलचस्पी बढ़ रही है. अब स्थिति यह हो गई है कि यहां साइंस, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी और मैथेमेटिक्स यानी स्टेम विषयों में महिला ग्रेजुएट्स की संख्या ने अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है. भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) जैसे संस्थानों में छात्राओं की बढ़ती तादाद भी इसका सबूत है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया कि स्टेम में जहां छात्राओं की तादाद लगातार बढ़ रही है वहीं छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है.
भारत में हाल के दशक तक उच्च शिक्षा में महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय थी. खासकर हिंदी भाषी प्रदेशों में तो लड़कियों को किसी तरह ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करा दी जाती थी ताकि शादी में सहूलियत हो सके. ज्यादातर मामलों में पढ़ाई का सिलसिला शादी की मंजिल तक पहुंच कर खत्म हो जाता था. लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है. कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. मिसाल के तौर पर आईआईएम, कोझिकोड में इस साल पीएचडी में प्रवेश लेने वाले छात्रों में 53 फीसदी यानी आधे से ज्यादा महिलाएं हैं. इसी तरह एमबीए में उनकी तादाद 39 फीसदी है. आईआईएम, अहमदाबाद में अबकी छात्राओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले छह फीसदी बढ़ कर 28 फीसदी तक पहुंच गई है. आईआईएम, रोहतक ने तो वर्ष 2021-23 के बैच में 69 फीसदी छात्राओं के साथ एक नया रिकॉर्ड बनाया है.
लड़कियों की दिलचस्पी बढ़ने की वजह
लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि छात्राओं की तादाद लगातार बढ़ने लगी. समाजशास्त्रियों की राय में अर्थव्यवस्था की बदलती तस्वीर और समाज के नजरिए में बदलाव इसकी प्रमुख वजहें हैं. इसके साथ ही अब लड़कियों में भी उच्च शिक्षा की महत्वाकांक्षा जोर पकड़ने लगी है. यही वजह है कि आए दिन अखबारों में किसी बेहद गरीब चायवाले और सब्जीवाले की बेटी के आईआईटी, आईआईएम और आईएएस या आईपीएस में चयन की खबरें छपती रहती हैं. पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में एक चाय वाले हरिसाधन मंडल की बेटी सुपर्णा मंडल ने हाल में एक अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षा में शीर्ष दस उम्मीदवारों की सूची में जगह बनाई है. इसी तरह हावड़ा जिले में बसी उत्तर प्रदेश की रिंकी सिंह ने पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस की परीक्षा में टॉप किया है.
सुपर्णा मंडल ने अपने परिवार में ही नहीं बल्कि पूरे गांव में मिसाल कायम की है. उसने बी.टेक की डिग्री ली है. लेकिन आखिर उसके मन में इंजीनियरिंग का ख्याल कैसे आया? वह बताती हैं, "अब पहले जैसा जमाना नहीं रहा. पहले पति की कमाई से घर चल जाता था. मौजूदा परिदृश्य में यह संभव नहीं है. इसके अलावा आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने का सुख अलग है." दरअसल, वह दसवीं पास अपनी बड़ी बहन को शादी के बाद बच्चों और चूल्हा-चौकी में पिसते देख चुकी है. उसके बाद ही उसने उच्च शिक्षा हासिल कर अपने पैरों पर खड़े होने का फैसला किया. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद उसने छात्रवृत्ति के सहारे इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और कैंपस प्लेसमेंट में एक आईटी कंपनी में नौकरी भी हासिल की. लेकिन उसे इससे संतोष नहीं हुआ. इसके बाद उसने सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं देने का मन बनाया और दो साल की मेहनत के बाद उसे आखिरकार कामयाबी मिल ही गई.
आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर
समाजशास्त्री प्रोफेसर हिरण्यमय मुखर्जी कहते हैं, "अब हाल के दशकों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ने के बाद एक और जहां सामाजिक नजरिया तेजी से बदला है, वहीं अब छात्राओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता की कीमत भी समझ में आने लगी है. यही वजह है कि उनमें खासकर विज्ञान विषयों में करियर बनाने की होड़ लगी है. अब पिछड़े इलाकों की युवतियां भी उच्च शिक्षा या शोध के लिए सात समंदर पार विदेशों का रुख करने लगी हैं." उनके मुताबिक, महिलाओं को विज्ञान विषयों में पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से शुरू की गई कई स्कॉलरशिप योजनाओं ने भी इस मामले में अहम भूमिका निभाई है.
समाज विज्ञान के अध्यापक दिनेश कुमार माइती बताते हैं, "विज्ञान में अध्ययन और शोध में प्रवेश लेने वाली महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. यह केवल विज्ञान के कुछ विषयों या देश के कुछ हिस्सों तक ही सीमित नहीं है. पुरुषों की तुलना में उच्च शिक्षा के हर क्षेत्र में लगातार महिलाओं के दाखिला लेने और कामयाबी के झंडे गाड़ने के मामले बढ़ रहे हैं." उनका कहना है कि साठ के दशक में विज्ञान के ज्यादातर विषयों में महिलाओं की गैरहाजिरी को ध्यान में रखें तो मौजूदा स्थिति तक आना सराहनीय उपलब्धि है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता दीपशिखा गांगुली कहती हैं, "पहले समाज में लड़कियों के लिए बहु और मां बनना ज्यादा जरूरी माना जाता था. यह भूमिकाएं गलत नहीं हैं. लेकिन लड़कों के मामले में शुरू से ही करियर और पहचान बनाना अधिक जरूरी माना जाता रहा है. यहीं से तय हो जाता है कि लड़कियां कितना पढ़ेंगी, उनकी पढ़ाई पर कितना खर्च होगा और वे करियर बनाएंगी भी या नहीं."
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को लोकसभा में पूछे गए एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि वर्ष 2016 में भारत में स्टेम स्नातकों में महिलाओं की भागीदारी जहां 42.72 फीसद थी, वहीं अमेरिका में 33.99, जर्मनी में 27.14, ब्रिटेन में 38.10, फ्रांस में 31.81 व कनाडा में 31.43 फीसद थी. यह परंपरा वर्ष 2017 और 2018 में भी बनी रही जब स्टेम स्नातक महिलाओं का हिस्सा क्रमश: 43.93 व 42.73 था. प्रधान ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वे (एआईएसएचई) का आंकड़ा भी साझा किया है. उसमें बताया गया है कि स्टेम स्नातक पुरुषों की संख्या वर्ष 2017-18 में 12.48 लाख थी जो वर्ष 2019-20 में घटकर 11.88 लाख रह गई. लेकिन इस दौरान महिलाओं की संख्या 10 लाख से बढ़कर 10.56 लाख हो गई.
विज्ञान विषयों में लड़कियों की बढ़ती रुचि के पीछे नौकरी पाने की संभावना की भी भूमिका है. लेकिन जानकारों की राय में विज्ञान विषयों में महिलाओं की तादाद बढ़ाने के लिए अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. समाज के दूसरे हिस्सों की तरह शिक्षा और रोजगार में लैंगिक भेदभाव को जड़ से खत्म करने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाना तो जरूरी है ही, ऐसी और योजनाएं भी बनानी होंगी जिनसे इन विषयों में उच्च शिक्षा और शोध की महिलाओं की राह आसान बन सके.(dw.com)
चीन ने एक ट्रेन शुरू की है जो 600 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकती है. यह दुनिया की सबसे तेज रफ्तार ट्रेन होगी. चीन में भी ऐसी ट्रेन कम ही हैं.
चीन के सरकारी मीडिया ने खबर दी है कि देश की नई मेगलेव ट्रेन शुरू हो गई है. इस ट्रेन की अधिकतम गति 600 किलोमीटर प्रति घंटा है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.
चीन ने यह ट्रेन घरेलू स्तर पर ही विकसित की है. इसे तटीय शहर किंगदाओ की एक फैक्ट्री में बनाया गया है. धरती पर यह सबसे तेज गति से चलने वाला वाहन है.
कैसे चलती है मेगलेव ट्रेन
इस ट्रेन में इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फोर्स का इस्तेमाल होता है. चुंबकीय शक्ति के कारण यह ट्रेन ट्रैक से कुछ इंच ऊपर हवा में चलती है. यानी ट्रेन के पहिये और पटरी के बीच कोई संपर्क नहीं होता. हालांकि यह तकनीक नई नहीं है. चीन पिछले दो दशक से यह तकनीक इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन अब तक इसका प्रयोग सीमित रहा है.
शंघाई से पास के एक कस्बे को जाने वाली मेगलेव लाइन है, जहां इस तकनीक पर चलने वाली ट्रेन प्रयोग होती है. चीन में शहरों के अंदर या विभिन्न प्रांतों के बीच भी कोई मेगलेव लाइनें नहीं हैं. फिर भी तेज रफ्तार ट्रेनें चीन में खूब इस्तेमाल होती हैं. और अब मेगलेव ट्रेनों को लंबी दूरी में इस्तेमाल करने को लेकर काम शुरू हो गया है. शंघाई और चेंग्दू जैसे कई शहरों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है.
कम ही हैं ऐसी ट्रेन
600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से इस मेगलेव ट्रेन को बीजिंग से शंगाई की एक हजार किलोमीटर की दूरी तय करने में ढाई घंटे का वक्त लगेगा. विमान से यह सफर साढ़े तीन घंटे का है. और दूसरी तेज रफ्तार ट्रेन इसमें साढ़े पांच घंटे लगाती है.
चीन की देखा-देखी दुनिया के अन्य देशों में भी तेज रफ्तार ट्रेनें चलाने पर विचार हो रहा है. जापान के अलावा जर्मनी भी मेगलेव नेटवर्क तैयार करने पर विचार कर रहे हैं.
हालांकि यह बहुत खर्चीली परियोजना है और ट्रेनों का मौजूदा नेटवर्क मेगलेव तकनीक के लिहाज से पूरी तरह अलग है इसलिए ऐसी योजनाएं कहीं और सिरे नहीं चढ़ पाई हैं. भारत में भी बुलेट ट्रेन के रूप में तेज रफ्तार ट्रेनें चलाने की बात बहुत सालों से चल रही है. भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने से पहले, 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार में देश में बुलेट ट्रेन चलाने का वादा किया था. बाद में मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने का ऐलान भी किया गया लेकिन फिलहाल वह योजना अधर में है.
वीके/सीके (रॉयटर्स)(dw.com)
पाकिस्तान में इमरान खान के फोन केइजरायली जासूसी साफ्टवेयर पेगसास के जरिए हैक होने की खबर से बवाल मचा हुआ है। पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री फर्रुख हबीब ने मंगलवार को संदेह जताया कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल में इमरान खान का फोन हैक हुआ था। हबीब ने कहा कि ऐसी आशंका है कि नवाज शरीफ ने भारत के प्रधानमंत्री और अपने 'दोस्त' नरेंद्र मोदी के जरिए इजरायली साफ्टवेयर की मदद से इमरान खान का फोन हैक कराया।
हबीब ने कहा कि मोदी सरकार भी एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों में शामिल है। उन्होंने फैसलाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'नवाज शरीफ ने मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया था और जम्मू कश्मीर के हुर्रियत नेताओं से मुलाकात नहीं की थी।' हबीब ने कहा कि देश में यह सवाल उठ रहा है कि क्यों प्रधानमंत्री इमरान खान का फोन हैक किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि नवाज शरीफ का जजों के फोन टैप करने का लंबा इतिहास रहा है।
भारत के जासूसी के मुद्दे को जरूरी मंचों पर उठाएगा पाक
इससे पहले पाकिस्तान ने कहा था कि वह भारत के जासूसी के इस मुद्दे को जरूरी मंचों पर उठाएगा। पाकिस्तान के सूचना प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने कहा कि उनका देश प्रधानमंत्री इमरान खान के फोन की भारत से हैकिंग के मुद्दे पर और ज्यादा डिटेल की प्रतीक्षा कर रहा है। चौधरी ने कहा कि जैसे ही इमरान खान के फोन की हैकिंग का पूरा डिटेल आने पर इसे उचित मंचों पर उठाया जाएगा। पाकिस्तानी मीडिया में आई खबरों में कहा गया था कि हैक किए जा रहे फोन्स की लिस्ट में एक नंबर इमरान खान का भी है। एक दावे के मुताबिक भारत समेत कई देशों की सरकारों ने 150 से ज्यादा पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य ऐक्टिविस्ट्स की जासूसी कराई है।
पाकिस्तान के कई सौ नंबर भी इसमें शामिल
डॉन अखबार में द पोस्ट के हवाले से दावा किया गया है कि भारत के कम से कम एक हजार नंबर सर्विलांस लिस्ट में शामिल थे जबकि पाकिस्तान के कई सौ नंबर भी इसमें थे। इनमें से एक नंबर ऐसा था जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी करते थे। हालांकि, पोस्ट ने यह साफ नहीं किया है कि इमरान के नंबर को हैक करने की कोशिश सफल रही या नहीं।
भारत के कई नंबर शामिल
वहीं, भारत में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिस्ट में मिलने से राजनीतिक तूफान और बढ़ गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के 300 नंबर मंत्रियों, विपक्षी नेताओं से लेकर पत्रकारों और वैज्ञानिकों तक के हैं। भारत में रिपोर्ट सामने आने के बाद पाकिस्तानी केंद्रीय मंत्री फवाद चौधरी ने चिंता जताई थी और भारत की मोदी सरकार पर देश का ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया था। साल 2019 में भारत सरकार ने इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का खंडन किया था। सबसे पहले 2016 में यह मालवेयर चर्चा में आया ता जब रिसर्चर्स ने संयुक्त अरब अमीरात के एक शख्स की जासूसी का आरोप इजरायल के NSO समूह पर लगाया था जो यह सॉफ्टवेयर बनाता है। (navbharattimes.indiatimes.com)
अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से लौटता देख लोग पूछ रहे हैं कि इस युद्ध से क्या हासिल हुआ. बहुत से सैनिक मानते हैं कि अमेरिका यह युद्ध हार गया.
जेसन लाइली मरीन रेडर नाम के विशेष अमेरिकी बल का हिस्सा थे और उन्होंने इराक व अफगानिस्तान में कई अभियानों में हिस्सा लिया. 41 साल के लाइली जब राष्ट्रपति जो बाइडेन के अफगानिस्तान से सेनाएं वापस बुलाने के फैसले के बारे में सोचते हैं तो जितना उन्हें अपने देश पर प्यार आता है, उतनी ही राजनेताओं के प्रति घिन भी जाहिर करते हैं.
अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध में जो धन और लहू बहाया गया, उस पर लाइली को बहुत अफसोस है. वह कहते हैं कि उन्होंने जो साथी इस युद्ध में खोए हैं, वे बेशकीमती थे. लाइली कहते हैं, "हम यह युद्ध हार गए. सौ फीसदी. मकसद तो तालिबान का सफाया था. और वो हमने नहीं किया. तालिबान फिर से देश कब्जा लेगा.” बाइडेन का कहना है कि अफगानिस्तान के लोगों को अपना भविष्य खुद तय करना होगा और अमेरिका को एक ना जीते जा सकने वाले युद्ध में एक और पीढ़ी बर्बाद नहीं करनी है.
बेमकसद युद्ध
11 सितंबर 2001 को न्यू यॉर्क में अल कायदा द्वारा किए गए आतंकवादी हमले के जवाब में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था. ब्राउन यूनिवर्सिटी के कॉस्ट्स ऑफ वॉर प्रोजेक्ट के तहत दो दशक तक चले इस युद्ध में अमेरिका और उसके सहयोगियों के 3,500 सैनिकों की मौत हुई. 47 हजार से ज्यादा अफगान नागरिक मारे गए. कम से कम 66 हजार अफगान सैनिकों की जान गई और 27 लाख से ज्यादा अफगान नागरिकों ने देश छोड़ दिया.
16 साल तक अमेरिका के ‘आतंक के खिलाफ युद्ध' में मोर्चे पर तैनात रहे लाइली पूछते हैं कि क्या यह युद्ध लड़ने लायक था? वह तो सोचते थे कि फौजों को इसलिए तैनात किया गया है ताकि दुश्मन को हराया जाए, अर्थव्यवस्था को गति मिले और अफगानिस्तान को पूर्ण रूप से ऊपर उठाया जा सके. लेकिन जो हासिल हुआ, उस पर वाइली कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि इसके लिए दोनों तरफ से एक भी जान गंवाई जानी चाहिए थी.”
ऐसा सोचने वाले लाइली अकेले नहीं हैं. दो दशक की जंग के बाद जब अमेरिकी फौजें घर लौट रही हैं तो देश के बहुत से लोग इसके नतीजों पर विचार कर रहे हैं. कई अन्य पूर्व सैनिक लाइली से सहमत नहीं हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि इस युद्ध की बदौलत महिलाओँ की स्थिति बेहतर हुई और नेवी सील कमांडो अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर खत्म करने में कामयाब रहे.
सेना की वापसी सही
हालांकि, सेनाओं को वापस बुलाने के बाइडेन के फैसले के पक्ष में ज्यादातर लोग हैं. इसी महीने हुए रॉयटर्स-इप्सोस के एक सर्वेक्षण के मुताबिक सिर्फ 30 प्रतिशत डेमोक्रैट्स और 40 प्रतिशत रिपब्लिकन मानते हैं कि सेनाओं को वापस बुलाने का फैसला गलत है. लेकिन लाइली और उन जैसे बहुत से पूर्व सैनिक इस युद्ध की तुलना वियतनाम युद्ध से करते हैं. वह कहते हैं कि दोनों ही युद्धों का कोई स्पष्ट मकसद नहीं था. दोनों युद्धों के दौरान एक से ज्यादा राष्ट्रपति बदले और दोनों बार सामना एक बहुत खूंखार दुश्मन से था जिसकी कोई वर्दी नहीं है.
लाइली और उनका नेटवर्क अमेरिकी जनता को युद्ध की कीमत बताने का काम कर रहा है. उन्हीं के नेटवर्क में काम करने वाले 34 वर्षीय जॉर्डन लेयेर्ड कहते हैं कि उनके साथी अफगानिस्तान और इराक को ‘विएतस्तान' कहते हैं. वह अफगानिस्तान के हेल्मंड प्रांत में अक्टूबर 2010 से अप्रैल 2011 के बीच तैनात रहे. इस दौरान उन्होंने 25 साथी खोए और 200 से ज्यादा अपंग हो गए.
साम्राज्यों की कब्रगाह
वाइली कहते हैं कि अफगानिस्तान में तैनाती के दौरान उन्होंने जाना कि क्यों इस जगह को इतिहासकारों ने ‘साम्राज्यों की कब्रगाह' कहा है. 19वीं सदी में ब्रिटेन ने दो बार अफगानिस्तान पर हमला किया और 1842 में सबसे बुरी हार झेली. सोवियत संघ ने 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में जंग लड़ी और 15 हजार लाशें व हजारों घायल सैनिक लेकर लौटा.
लाइली बताते हैं कि अमेरिकी सेना के युद्ध के नियमों को लेकर वह हमेशा सशंकित रहे. जैसे कि उन्हें रात को तालिबान पर हमले की इजाजत नहीं थी. वह कहते हैं, "मरीन सैनिक बच्चों को चूमने और पर्चे बांटने के लिए नहीं बने हैं. हम वहां सफाया करने के लिए होते हैं. हम दोनों काम नहीं कर सकते. इसलिए हमने कोशिश की और हार गए.”
लाइली की आलोचना पर अमेरिका सेना ने कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन लाइली एक तालिबानी कैदी की बात को अक्सर याद करते हैं. उस कैदी ने लाइली से कहा था कि तालिबान अमेरिका के जाने का इंतजार करेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि एक दिन अमेरिकी इस युद्ध पर भरोसा खो बैठेंगे, ठीक वैसे ही जैसे सोवियतों के साथ हुआ था. लाइली कहते हैं, "यह 2009 की बात थी. आज हम 2021 में हैं. और वह सही था.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
एमनेस्टी ने कहा है कि पेगासस की संभावित जासूसी वाली सूची में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों सहित कुल 14 प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और राजा शामिल हैं. फ्रांस ने इस पूरे मामले में जांच करने की घोषणा की है.
एमनेस्टी के महासचिव ऐग्नेस कालामार्ड ने कहा, "इन अभूतपूर्व खुलासों से दुनिया भर के नेताओं को कांप जाना चाहिए." अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि एमनेस्टी और फ्रांसीसी संस्था फॉरबिडन स्टोरीज को लीक किए गए 50,000 फोन नंबरों की एक सूची में मिले संभावित शिकारों में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और इराक के राष्ट्रपति बरहम सालिह का भी नाम है.
इसके अलावा सूची में मोरक्को के राजा मोहम्मद VI और प्रधानमंत्री साद एद्दीन एल ओथमानी, पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान और मिस्र के प्रधानमंत्री मुस्तफा मदबूली शामिल हैं. वॉशिंगटन पोस्ट ने यह भी बताया कि इनमें से किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने अपना फोन जांच के लिए नहीं दिया, जिससे इस बात की पुष्टि हो सकती थी कि उनके फोन पर जासूसी के सॉफ्टवेयर बनाने वाली इस्राएली कंपनी एनएसओ समूह के पेगासस स्पाईवेयर का हमला हुआ था या नहीं.
फ्रांस में जांच
अभी तक आई खबरों में दावा किया गया है कि कम से कम 37 फोनों को या तो हैक कर लिया गया या उनमें हैक किए जाने की कोशिश के संकेत मिले हैं. फ्रांसीसी अखबार ला मोंड ने दावा किया है कि राष्ट्रपति माक्रों के अलावा फ्रांसीसी सरकार के 15 और सदस्यों की भी जासूसी की कोशिश की गई है. माक्रों के फोन पर हमला 2019 में किए जाने की संभावना है.
ला मोंड ने कहा कि माक्रों और दूसरे तत्कालीन सरकारी सदस्यों के नंबर उन हजारों नम्बरों में से थे जिन्हें एनएसओ के किसी ग्राहक ने संभावित रूप सर्विलांस के लिए चुना था. फ्रांस के नंबरों के संबंध में यह ग्राहक मोरक्को की एक अज्ञात सुरक्षा एजेंसी थी. माक्रों के दफ्तर में एक अधिकारी ने कहा कि रिपोर्ट की जांच की जाएगी और अगर यह साबित हो पाया तो यह "बहुत ही गंभीर" होगा.
एनएसओ का इंकार
अखबार ने यह भी कहा कि एनएसओ ने उसे बताया है कि उसके ग्राहकों ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति को कभी निशाना नहीं बनाया. इस बीच पेरिस में प्रोसिक्यूटर के कार्यालय ने कहा है कि वो इस पूरे मामले की जांच कर रहा है. फ्रांस के कानून के तहत जांच में संदिग्ध अपराधी का नाम नहीं दर्ज किया गया है लेकिन जांच का लक्ष्य यह जानना है कि मुकदमा किसके खिलाफ किया जाना है.
सीके/वीके (एपी)
-पॉल रिंकन
अरबपति अमेरिकी कारोबारी और अमेज़न के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस मंगलवार को तीन अन्य लोगों के साथ अंतरिक्ष की उड़ान भरी.
इस यात्रा में बेज़ोस के साथ उनके भाई मार्क बेज़ोस, 82 साल की पूर्व पायलट वैली फ़ंक और 18 साल के छात्र ओलिवर डायमेन भी गए थे. ये सभी 10 मिनट और 10 सैकेंड के बाद पैराशूट के जरिए धरती पर वापस लौट आए.
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खुशी में चीख पड़े अंतरिक्ष यात्री
ये सभी लोग बेज़ोस की कंपनी ब्लू ओरिजन के अंतरिक्ष यान 'न्यू शेफ़र्ड' से रवाना हुए. ब्लू शेफ़र्ड को अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा देने के नज़रिए से डिज़ाइन किया गया है. न्यू शेफ़र्ड में बहुत बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं ताकि इसमें सवार सभी लोग अंतरिक्ष से धरती का ख़ूबसूरत नज़ारा कर सकें.
न्यू शेफ़र्ड ने भारतीय समयानुसार मंगलवार शाम 6:30 बजे के कुछ देर बाद अमेरिका के टेक्सस से उड़ान भरी. इसे जेफ़ बेज़ोस की निजी लॉन्च साइट वैन हॉर्न से एक रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया गया.
उड़ान भरने के बस दो मिनट बाद कैप्सूल रॉकेट से अलग हो गया और सौ किलो मीटर ऊपर अंतरिक्ष की सतह तक गया. वहां पहुंचते ही कैप्सूल में सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों को 'वाउ' कहते सुना गया. सभी खुशी में चीख पड़े.
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वैली फ़ंक ने कहा, "ओह दुनिया को देखो."
सफ़र पर जाने के पहले उन्होने कहा था कि जब अंतरिक्ष में उनका भार शून्य हो जाएगा तो वो सिर ऊपर करके कसरत करेंगी.
वहीं, उड़ान से पहले सीबीएस न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में बेज़ोस ने कहा, "मैं उत्साहित हूँ. लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या मैं नर्वस हूँ. सच कहूँ तो मैं नर्वस नहीं हूँ. मैं उत्सुक हूँ. मैं जानना चाहता हूँ कि हम वहाँ क्या सीखेंगे."
उन्होंने कहा, "हम ट्रेनिंग ले रहे हैं. अंतरिक्ष यान तैयार है. क्रू तैयार है और हमारी टीम अद्भुत है. हम इसके बारे में सचमुच अच्छा महसूस कर रहे हैं."
चार मिनट तक ज़ीरो-ग्रैविटी का अनुभव
चारों यात्रियों ने करीब चार मिनट तक भार हीनता का अनुभव किया.
उन्होंने अपनी सीट की पेटी खोली और हवा में तैरने का अनुभव किया. उन्होंने वहां से बहुत दूर दिख रही धरती को निहारने का मज़ा भी लिया.
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इस सफ़र पर गईं वैली फ़ंक 1960 के दशक में मर्करी 13 नाम के महिलाओं के उस समूह का हिस्सा थीं, जिन्हें पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों की तरह ही टेस्ट और स्क्रीनिंग की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा, लेकिन उन्हें कभी अंतरिक्ष में जाने का मौका नहीं दिया गया.
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न्यू शेफ़र्ड के इस लॉन्च को 'अरबपतियों की स्पेस रेस' का हालिया उदाहरण माना जा रहा है.
जेफ बेज़ोस की ये फ़्लाइट पिछले हफ़्ते अरबपति बिज़नेसमैन सर रिचर्ड ब्रैनसन की कामयाब उड़ान के बाद हुई. सर रिचर्ड ब्रैनसन का वर्जिन गैलेक्टिक रॉकेट प्लेन अंतरिक्ष की छोर तक पहुंचने में कामयाब रहा था.
पिछले हफ़्ते ही रिचर्ड बैनसन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके लिए जेफ़ बेज़ोस को पछाड़ना ज़रूरी नहीं था. उन्होंने बेज़ोस को एक 'दोस्ताना सलाह' भी दी थी. उन्होंने कहा था, "अंतरिक्ष से बस आप बाहर का नज़ारा देखिए. ये ज़िंदगी में एक बार मिलने वाला मौका है."
वर्जिन गैलेक्टिन रॉकेट प्लेन से सफ़र करने के लिए एक आम शख़्स को ढाई लाख डॉलर तक खर्च करना पड़ सकता है. न्यू शेफ़र्ड के टिकट का दाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है.
जेफ बेज़ोस दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों में से एक हैं. उन्होंने साल 2000 में अपनी कंपनी 'ब्लू ओरिजिन' की शुरुआत की थी. पिछले महीने उन्होंने इस उड़ान का एलान किया था. उन्होंने कहा था कि वे और उनके भाई इस सफ़र पर जाएंगे.
ज़ेफ़ बेज़ोस के 53 वर्षीय भाई मार्क बेज़ोस एक एडवर्टाइजिंग एजेंसी के संस्थापक और न्यू यॉर्क स्थित चैरिटी कंपनी रॉबिन हुड में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं.
वहीं, 18 वर्षीय ओलिवर डायमेन वित्तीय फ़र्म 'सोमरसेट कैपिटल पार्टनर्स' के सीईओ जोएस डायमेन के बेटे हैं.
ओलिवर डायमेन को ये मौक़ा उस अज्ञात व्यक्ति की जगह पर मिला जिन्होंने इसके लिए एक पब्लिक ऑक्शन में 28 मिलियन डॉलर की आख़िरी बोली लगाई थी.
जेफ बेज़ोस की स्पेस कंपनी 'ब्लू ओरिजिन' ने बताया था कि इस मौक़े के लिए ऑक्शन में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले शख़्स समय की कमी के कारण मिशन पर नहीं जा पा रहे हैं.
'ब्लू ओरिजिन' ने बताया जोएस डायमेन ने दूसरी फ्लाइट के लिए सीट बुक कराई थी, लेकिन जब पहले विजेता ने अपना नाम वापस ले लिया तो उन्हें ये मौक़ा दिया गया. लेकिन इसके बाद जोएस डायमेन ने अपनी जगह बेटे को भेजने का निर्णय लिया.
ओलिवर डायमेन भौतिक विज्ञान के छात्र हैं. वहीं, वैली फ़ंक इस यात्रा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली सबसे उम्रदराज़ शख़्स बन गईं.
हालाँकि अंतरिक्ष में जाने के लिए बेतहाशा खर्च करने पर जेफ़ बेज़ोस और रिचर्ड बैनसन की आलोचना भी हो रही है. कई लोगों का मानना है कि अरबपति इस पैसे का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई या महामारी से निबटने में लगा सकते थे. (bbc.com)
इसराइल ने कन्ज़्यूमर गुड्स बनाने वाली कंपनी यूनिलीवर को गंभीर 'नतीजे भुगतने' की चेतावनी दी है.
दरअसल, यूनिलीवर की स्वामित्व वाली कंपनी 'बेन एंड जेरीज़' ने इसराइल के नियंत्रण वाले इलाकों में आइसक्रीम नहीं बेचने का फ़ैसला लिया है. दूसरी तरफ़ इसराइल ने अमेरिकी प्रांतों से बहिष्कार रोधी क़ानूनों को लागू करने की भी अपील की है.
इसराइल और वेस्ट बैंक की यहूदी बस्तियों में कारोबार को लेकर अमेरिकी प्रांत वर्मोंट से चलने वाली इस कंपनी पर फ़लस्तीन समर्थक समूहों की ओर से दबाव पड़ रहा था जिसके बाद 'बेन एंड जेरीज़' ने सोमवार को ये फ़ैसला लिया है.
कंपनी इसराइल में साल 1987 से ही लाइंसेंस पार्टनर के जरिये कारोबार कर रही है. बेन एंड जेरीज ने कहा है कि अगले साल इसराइली पार्टनर का लाइसेंस ख़त्म हो रहा है जिसे फिर जारी नहीं किया जाएगा.
हालांकि कंपनी इसराइल में कारोबार करती रहेगी लेकिन उसकी शर्तें अलग होंगी. वेस्ट बैंक और उन इलाकों में कंपनी की आइसक्रीम नहीं बेची जाएगी जहां फलस्तीनी आज़ादी की मांग कर रहे हैं.
इसराइल की प्रतिक्रिया
इसराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि उन्होंने यूनिलीवर के चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव ऑफ़िसर एलान जोप से इस 'भड़काऊ इसराइल विरोधी कदम' को लेकर शिकायत की है.
नफ्ताली बेनेट ने एलान जोप से फोन पर कहा, "इसराइल के नजरिये से इस कार्रवाई के गंभीर नतीजे होंगे. नागरिकों को निशाना बनाकर की गई बहिष्कार की किसी भी कार्रवाई के ख़िलाफ़ क़ानूनी और अन्य तरह से कड़ी कार्रवाई की जाएगी."
यूनिलीवर ने इस मामले पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. दुनिया की ज़्यादातर ताक़तें इसराइल की बस्तियों को अवैध मानती हैं. लेकिन इसराइल इन दलीलों को नहीं मानता है. यहूदी बस्तियों वाली ज़मीन के लिए इसराइल ऐतिहासिक और सुरक्षा कारणों का हवाला देता है.
इसराइल के अर्थव्यवस्था मंत्री ओर्ना बार्बिवाई ने एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें वे बेन एंड जेरीज़ की आइसक्रीम का एक टब कचरे में फेंकते हुए दिख रही हैं.
इसराइल के अल्पसंख्यक अरब समुदाय के विपक्षी नेता आयमान ओदेह ने एक तस्वीर ट्वीट की है जिसमें वे मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं.
बेन एंड जेरीज़ इसराइल की दलील
'बेन एंड जेरीज़' इसराइल के सीईओ एवी ज़िंगर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि वे यहूदी बस्तियों में इसराइली नागरिकों को आइसक्रीम बेचने से इनकार करने के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि 'मुझे रोकने का कोई तरीका नहीं है तो उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाने का फ़ैसला किया.'
वाशिंगटन में इसराइल के राजदूत गिलाड एरडान ने कहा है कि उन्होंने बेन एंड जेरी के फैसले को लेकर उन 35 अमेरिकी गवर्नरों को चिट्ठी लिखी है जिनके यहां इसराइल का बहिष्कार करने के ख़िलाफ़ क़ानून लागू है.
इसराइली राजदूत ने लिखा है, "ऐसी यहूदी विरोधी और भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों का जवाब देने के लिए जल्द ठोस कदम उठाना चाहिए."
उन्होंने इसके लिए साल 2018 के एयर्बन्ब की उस घोषणा का भी जिक्र किया जिसमें यहूदी बस्तियों की रेंटल प्रॉपर्टी वेबसाइट से हटाने का एलान किया गया था.
अमेरिका में जब एयर्बन्ब के सामने क़ाननू चुनौतियां आनी शुरू हुईं तो उसने अपना फ़ैसला वापस ले लिया था. लेकिन कंपनी ने कहा था कि उन बस्तियों से मिलने वाली बुकिंग में जो मुनाफा होगा, उसका मानवीय उद्देश्यों से दान किया जाएगा.
फलस्तीनियों ने बेन एंड जेरीज़ के फ़ैसले का स्वागत किया है. वे जिस स्वतंत्र फ़लस्तीन की मांग कर रहे हैं, उसमें वेस्ट बैंक, पूर्वी यरूशलम और गज़ा पट्टी शामिल है.
इसराइल पूरे यरूशलम को अपनी राजधानी मानता है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे मान्यता नहीं देता. गज़ा पर हमास का नियंत्रण है जो इसराइल के साथ सहअस्तित्व नहीं चाहते हैं. (bbc.com)
वॉशिंगटन. दुनिया के सबसे बड़े रईसों में शुमार अमेजॉन के फाउंडर जेफ बेजोस आज स्पेस मिशन पर जाने को तैयार हैं. जेफ बेजोस अंतरिक्ष में जाने वाले सबसे पहले अरबपति भले ही न हों, लेकिन वह इस उड़ान के साथ एक नया इतिहास रचने वाले हैं. मंगलवार को बेजोस अपने भाई के साथ स्पेस में जा रहे हैं. इसके साथ ही वह अपने साथ सबसे बुजुर्ग और सबसे युवा ऐस्ट्रोनॉट को लेकर जा रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस यात्रा के दौरान बेजोस कुल 11 मिनट तक ही अंतरिक्ष में रहेंगे.
बेजोस ने CBS के 'द लेट नाइट शो विद स्टीफेन कोबर' पर अपने साथी यात्रियों से कहा, 'सिट बैक, रिलैक्स, खिड़की के बाहर देखिए और बाहर के नज़ारे को महसूस कीजिए.' बेजोस और उनके भाई मार्क बेजोस जिस रॉकेट से जा रहे हैं, यह पूरी तरह से ऑटोनॉमस है. हालांकि इसमें भी खतरा बना हुआ है.
अंतरिक्ष को जीतने का जो सपना अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस ने साल 2000 में देखा था. वो साल 2021 में पूरा होने जा रहा है, जेफ बेजोस के सपने को स्पेस शटल पूरा करेगा. 60 फुट लंबे इसी स्पेस शटल से जेफ बेजोस 20 जुलाई को धरती से अंतरिक्ष की सैर पर जाएंगे. जिस स्पेस शटल 'न्यू शेफर्ड' से 4 टूरिस्ट स्पेस में जाएंगे, उसे बनाने वाली टीम में भारतीय मूल की संजल गवांडे भी शामिल हैं. यानी जेफ बेजोस को अंतरिक्ष भेजने में भारत की बेटी का भी योगदान है.
टेक्सस में बने लॉन्चिंग पैड से भरेंगे उड़ान
जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन का स्पेस शटल 'न्यू शेफर्ड' अमेरिका के टेक्सस में बने लॉन्चिंग पैड से लॉन्च होने के लिए तैयार है. जेफ बेजोस का न्यू शेफर्ड रॉकेट एक कैप्सूल के साथ अंतरिक्ष में उड़ेगा. धरती से करीब 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर रॉकेट और कैप्सूल अलग-अलग हो जाएंगे. वहां से कैप्सूल धरती से 105 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंचेगा.
जीरो ग्रैवेटी में 4 मिनट तक रुकेगा कैप्सूल
जीरो गुरुत्वाकर्षण में ये कैप्सूल 4 मिनट तक रहेगा और उसके बाद कैप्सूल की धरती पर वापसी की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. धरती की कक्षा में आने के बाद कैप्सूल में लगे पैराशूट खुल जाएंगे और कैप्सूल की लैंडिंग टेक्सस के रेगिस्तान में होगी. इस स्पेस टूर में कुल 11 मिनट लगेंगे.
अफगानिस्तान में 15 राजनयिक मिशनों ने तालिबान के बढ़ते हमले के बीच संघर्ष विराम का आग्राह किया है. यह अपील ऐसे समय में की गई है जब तालिबान इलाकों पर तेजी से कब्जा कर रहा है.
तालिबान और अफगान सरकार के बीच सोमवार, 19 जुलाई को दोहा में शांति समझौता नहीं होने के बाद अफगानिस्तान में नाटो के प्रतिनिधि के साथ-साथ 15 देशों के राजनयिक मिशनों ने तालिबान से जंग रोकने की अपील है.
अफगान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों ने शनिवार और रविवार को कतर की राजधानी दोहा में शांति वार्ता में हिस्सा लिया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद संघर्ष विराम नहीं हो सका.
राजनयिक मिशनों का क्या कहना है?
अफगानिस्तान में लगभग 15 राजनयिक मिशनों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, "तालिबान की कार्रवाई सीधे उनके इस दावे को नकारती है कि वे दोहा में शांति और बातचीत के माध्यम से संघर्षों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
बयान में आगे कहा गया, "ईद के मौके पर तालिबान को बेहतरी के लिए अपने हथियार डालने चाहिए और दुनिया को बताना चाहिए कि वे वास्तव में शांति प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध हैं."
बयान को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी और फ्रांस के साथ-साथ अन्य कई सरकारों द्वारा समर्थित किया गया है. नाटो के वरिष्ठ नागरिक प्रतिनिधि ने इस बयान का समर्थन किया है.
तालिबान का आगे बढ़ना जारी
हाल की ईद की छुट्टियों के दौरान तालिबान ने छोटी अवधि के युद्धविराम की घोषणा यह कहते हुए की थी कि वे अफगानों को शांति के साथ कुछ समय बिताना देना चाहते हैं.
अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी की घोषणा के बाद से तालिबान ने सरकारी बलों पर हमलों की एक श्रृंखला शुरू करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया है, जो अब भी जारी है. इस बीच तालिबान ने सुरक्षाबलों से कई प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा ले लिया है. आधे से अधिक देश अब उनके नियंत्रण में है.
सोमवार के बयान में अधिकारों के उल्लंघन की भी निंदा की गई है, जैसे हाल ही में क्षेत्रों में स्कूलों और मीडिया कंपनियों को बंद करने की कोशिशों का भी जिक्र किया गया है. तालिबान ऐसी कार्रवाइयों से इनकार कर चुका है.
सोमवार को तालिबान लड़ाकों ने काबुल के दक्षिण में स्थित उरुजगान प्रांत के देहरावुड जिले पर नियंत्रण का दावा किया था. तालिबान ने पहले ही हेरात प्रांत के 17 जिलों पर कब्जा कर लिया है, जबकि हेरात शहर की घेराबंदी की जा रही है. राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सोमवार को हेरात की राजधानी का दौरा किया था.
दूर-दूर तक शांति का संकेत नहीं
अफगान सरकार के प्रतिनिधियों और तालिबान के राजनीतिक नेतृत्व ने कहा है कि वे दोहा शांति वार्ता के तहत जल्द ही फिर मिलेंगे. दोनों ने यह भी आश्वासन दिया है कि वे सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. दोहा में तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने उन मीडिया रिपोर्टों से इनकार किया जिसमें कहा गया है कि तालिबान ईद के मौके पर कैदियों की रिहाई के बदले युद्धविराम के लिए सहमत हो गए हैं.
सोमवार को अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के शांति दूत जलमय खलीलजाद ने इस्लामाबाद का दौरा किया और प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से मुलाकात की. अमेरिकी दूतावास के एक बयान में कहा गया, "अफगानिस्तान और तालिबान के बीच एक व्यापक राजनीतिक समझौते की तात्कालिकता पर खलीलजाद ने जोर दिया है."
खलीलजाद का पाकिस्तान दौरा ऐसे समय में हुआ है जब अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है. दोनों देशों के बीच आरोपों का नया सिलसिला छिड़ गया है. अफगान सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान तालिबान को शरण दे रहा है.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
कोरोनावायरस के कारण एक बार फिर समुद्र में एक संकट तैयार हो रहा है. एक लाख लोग ऐसे हैं जो समुद्र में भटक रहे हैं और जमीन देखने को तरस गए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इसे मानवीय संकट करार दिया है.
"मैंने आदमियों को रोते हुए देखा है.” कैप्टन तेजिंदर सिंह का यह कहना सुनकर लोग चौंक जाते हैं. बीते सात महीनों से सिंह ने जमीन पर कदम नहीं रखा है और उन्हें बिल्कुल पता नहीं कि वह कब अपने घर जा पाएंगे. महीनों से समुद्र में भटक रहे सिंह कहते हैं कि हम ‘भुलाए हुए लोग हैं जिनकी किसी को परवाह नहीं है. वह कहते हैं, "लोगों को पता नहीं है कि उनकी सुपरमार्किट में सामान कहां से आता है.”
तेजिंदर सिंह एक जहाज के कैप्टन हैं जो पिछले सात महीने से यहां से वहां भटक रहा है. वह और उनके चालक-दल के 20 सदस्य भारत से अमेरिका होते हुए चीन पहुंचे और हफ्तों तक वहीं फंसे रहे. वहां उन्हें अपने जहाज से सामान उतारना था लेकिन जहाजों की भीड़ के कारण नंबर ही नही आया. अब वह ऑस्ट्रेलिया के रास्ते पर हैं.
भटक रहे हैं एक लाख लोग
तेजिंदर सिंह जैसे एक लाख से ज्यादा लोग हैं जो इस वक्त दुनिया के अलग-अलग समुद्रों में फंसे हुए हैं. आमतौर पर ये लोग तीन से नौ महीने तक एक बार में यात्रा करते हैं लेकिन इंटरनेशनल चैंबर ऑफ शिपिंग के मुताबिक इन एक लाख लोगों को अपने तय समय कहीं ज्यादा हो चुका है, जबकि ये समुद्र में ही हैं. यहां तक कि जमीन पर इन्हें आमतौर पर मिलने वाला ब्रेक भी नहीं मिला है. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा नाविक ऐसे हैं जो जहाज पर नहीं जा पा रहे हैं और बेरोजगार हैं.
इस वक्त कोरोनावायरस का डेल्टा वेरिएंट एशिया के कई देशों में कहर बरपा रहा है. ऐसे में कई देशों ने समुद्री जहाजों को अपने यहां आने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है. एशिया में 17 लाख से ज्यादा नाविक हैं, जो इन पाबंदियों से प्रभावित हुए हैं. आईसीएस का अनुमान है कि नाविकों में से सिर्फ ढाई फीसदी को ही वैक्सीन मिली है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसे एक मानवीय संकट बताया है और सरकारों से आग्रह किया है कि नाविकों को जरूरी कामगार माना जाए. दुनिया के व्यापार में 90 फीसदी सामान की आवाजाही समुद्र के रास्ते ही होती है, इसलिए यह संकट व्यापारों पर भी कहर बनकर टूटा है क्योंकि तेल से लेकर खाद्य पदार्थों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों तक तमाम चीजों की सप्लाई प्रभावित है.
कोई उम्मीद नहीं
तेजिंदर सिंह को फिलहाल तो कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. उन्होंने कहा है कि पिछली बार वह 11 महीने तक समुद्र में फंसे रहे थे. वह बताते हैं कि उनके चालक दल के भारतीय और फिलीपीनी नाविक 15x6 फुट के एक केबिन में बसर करने को मजबूर हैं. सिंह कहते हैं, "बहुत ज्यादा समय तक समुद्र में रहना बहुत मुश्किल होता है. सबसे मुश्किल सवाल होता है बच्चों का, कि पापा घर कब आओगे.”
आईसीएस के महानिदेशक गाय प्लैटन कहते हैं कि दुनिया के एक तिहाई कमर्शल नाविक भारत और फिलीपीन से ही आते हैं और दोनों ही देश इस वक्त कोविड की मार झेल रहे हैं. वह कहते हैं समुद्र में यह दूसरा संकट तैयार हो रहा है. पिछली बार 2020 में भी ऐसा ही हुआ था जब दो लाख नाविक महीनों तक समुद्र में फंसे रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र नाविकों के लिए एक बार में अधिकतम 11 महीने की यात्रा की ही इजाजत देता है. लेकिन एक सर्वे के मुताबिक फिलहाल नौ प्रतिशत मर्चेंट सेलर ऐसे हैं जो अधिकतम सीमा पार कर चुके हैं. मई में ऐसे नाविकों की संख्या 7 प्रतिशत थी.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
विश्लेषकों का मानना है कि चीन और अमेरिका के बीच की तनातनी ने एशिया में हथियारों की एक दौड़ छेड़ दी है और वे एशियाई देश भी मिसाइलों का जखीरा जमा कर रहे हैं, जो आमतौर पर निष्पक्ष रहते थे.
चीन बड़ी तादाद में डीएफ-26 मिसाइलें बना रहा है. ये मिसाइल चार हजार किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. उधर अमेरिका भी प्रशांत क्षेत्र और चीन के साथ विवाद को ध्यान में रखते हुए हथियार विकसित कर रहा है. इस तनातनी का नतीजा यह हुआ है कि अन्य एशियाई देश भी मिसाइलें खरीद रहे हैं या विकसित कर रहे हैं.
सैन्य अधिकारियों और विश्लेषकों का कहना है कि इस दशक के आखिर तक एशिया में ऐसी मिसाइलों के बड़े-बड़े जखीरे तैयार हो जाएंगे, जो लंबी दूरी तक मार कर सकती हैं. पैसिफिक फोरम के अध्यक्ष डेविड सानतोरो कहते हैं, "एशिया में मिसाइलों का परिदृश्य बदल रहा है, और बहुत तेजी से बदल रहा है.”
विशेषज्ञ मानते हैं कि खतरनाक और आधुनिक मिसाइलें तेजी से सस्ती हो रही हैं और जब कुछ देश उन्हें खरीद रहे हैं तो उनके पड़ोसी भी पीछे नहीं रहना चाहते. मिसाइलें न सिर्फ अपने दुश्मनों पर भारी पड़ने का जरिया होती हैं बल्कि ये भारी मुनाफा कमाने वाला निर्यात उत्पाद भी हैं.
सानतोरो कहते हैं कि इस आने वाले समय में हथियारों की यह दौड़ क्या नतीजे देगी, यह कहना तो अभी मुश्किल है लेकिन शांति स्थापना में और शक्ति संतुलन में इन मिसाइलों की भूमिका संदिग्ध ही है. वह कहते हैं, "ज्यादा संभावना इस बात की है कि मिसाइलों का प्रसार एक दूसरे पर संदेह बढ़ाएगा, हथियारों की दौड़ को हवा देगा, तनाव बढ़ाएगा और अंततः संकट ही पैदा करेगा, जिनमें युद्ध भी शामिल हैं.”
घरेलू मिसाइलें
एक गोपनीय सैन्य रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक कमांड फर्स्ट आईलैंड चेन पर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें तैनात करने की योजना बना रही है. इस नेटवर्क में रूस और चीन के पूर्वी तटों को घेरे हुए देश जैसे कि जापान, ताईवान और अन्य प्रशांतीय द्वीप शामिल हैं.
नए हथियारों में लॉन्ग रेंज हाइपरसोनिक वेपन भी शामिल है, जो 2,775 किलोमीटर की दूरी तक वॉरहेड ले जा सकती है और वह भी ध्वनि की गति से पांच गुना तेज रफ्तार से. इंडोपैसिफिक कमांड के एक प्रवक्ता ने हालांकि कहा है कि ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है कि ये मिसाइल कहां तैनात होंगी.
इसकी एक वजह यह भी हो सकती है प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों में से कोई भी फिलहाल इन मिसाइलों को अपने यहां तैनात करने को लेकर राजी नहीं हुआ है. मसलन, जापान यदि अपने यहां इस मिसाइल की तैनाती की इजाजत देता है तो उसे चीन की नाराजगी बढ़ने का खतरा उठाना होगा. और यदि इसे अमेरिकी क्षेत्र गुआम में तैनात किया जाता है तो वहां से यह चीन तक पहुंच नहीं पाएगी.
सबको चाहिए मिसाइल
अमेरिका के सहयोगी देश अपनी मिसाइलें भी बना रहे हैं. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में ऐलान किया था कि आने वाले दो दशको में वह आधुनिक मिसाइल बनाने पर 100 अरब डॉलर खर्च करेगा. ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटिजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के माइकल शूब्रिज कहते हैं कि यह सही सोच है.
वह कहते हैं, "चीन और कोविड ने दिखा दिया है कि संकट के समय, और युद्ध में अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन पर निर्भर रहना एक गलती होती है.इसलिए ऑस्ट्रेलिया में उत्पादन क्षमता होना एक समझदारी भरी रणनीतिक सोच है.”
जापान ने लंबी दूरी की एक हवा से मार करने वाली मिसाइल पर करोड़ों खर्च किए हैं और अब वह जहाज-रोधी मिसाइल विकसित कर रहा है, जिसे ट्रक पर से लॉन्च किया जा सकता है और जो एक हजार किलोमीटर तक मार करेगी.
अन्य अमेरिकी सहयोगी दक्षिण कोरिया ने भी अपना बेहद तीव्र मिसाइल कार्यक्रम शुरू कर रखा है. हाल ही में अमेरिका के साथ हुए एक समझौते से इस कार्यक्रम में और मजबूती आई. उसकी हायुनमू-4 मिसाइल का दायरा आठ सौ किलोमीटर है, यानी चीन के काफी भीतर तक.
चीन चिंतित, अमेरिका बेपरवाह
जाहिर है, चीन भी इन गतिविधियों पर नजर रख रहा है. बीजिंग स्थित रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ जाओ टोंग ने हाल ही में लिखा था, "जब अमेरिका के सहयोगियों की लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता बढ़ती है तो क्षेत्रीय विवाद में उनके इस्तेमाल की संभावना भी बढ़ती है.”
पर चीन की इन चिंताओं के बावजूद अमेरिका का कहना है कि वह अपने सहयोगियों को प्रोत्साहित करता रेहगा. अमेरिकी संसद की हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमिटी के सदस्य, सांसद माइक रोजर्स कहते हैं, "अमेरिका अपने सहयोगियों और साझीदारों को उन रक्षा क्षमताओं में निवेश को प्रोत्साहित करता रहेगा, जो समन्वयित अभियानों के अनुकूल हैं.”
विशेषज्ञों की चिंता सिर्फ इन मिसाइलों को लेकर नहीं बल्कि इनकी परमाणु क्षमताओं को लेकर भी है. चीन, उत्तर कोरिया और अमेरिका के पास परमाणु हमला कर सकने लायक मिसाइलें हैं. अमेरिका स्थित आर्म्स कंट्रोल असोसिएशन की नीति निदेशक केल्सी डेवनपोर्ट कहती हैं कि जैसे-जैसे इन मिसाइलों की संख्या बढ़ेगी, इनके इस्तेमाल होने का खतरा भी बढ़ेगा.
वीके/एए (रॉयटर्स)
इराक़ की राजधानी बग़दाद के एक बाज़ार में सोमवार को हुए एक बम धमाके में कम से कम 25 लोग मारे गए हैं और दर्जनों घायल हो गए हैं.
इस धमाके में जान गँवाने और ज़ख्मी होने वालों में ज़्यादातर वो लोग हैं जो बाज़ार में ईद की खरीदारी करने गए थे.
यह बग़दाद में पिछले छह महीनों में हुआ सबसे भयानक बम धमाका है.
व्यस्त अल-वुहालियत बाज़ार में यह धमाका एक डिवाइस के ज़रिए किया गया.
हमले की ज़िम्मेदारी इस्लामी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट समूह (आईएस) ने ली है. आईएस का कहना है कि उसके ही एक सदस्य ने धमाके वाली डिवाइस को उड़ाया.
इराक़ की सरकार ने साल 2017 के अंत में सुन्नी मुसलमान जिहादी समूह आईएस के ख़िलाफ़ अपनी जीत का ऐलान किया था.
हालाँकि इसके बाद भी इराक़ में आईएस की स्लीपर सेल लगातार सक्रिय है.
जान गँवाने वालों में औरतें और बच्चे
इससे पहले अप्रैल में शहर के बाज़ार में एक कार में एक बम धमाका हुआ था जिसमें चार लोग मारे गए थे.
आईएस ने इस हमले की भी ज़िम्मेदारी ली थी. बग़दाद के जिस इलाके में ये धमाके हुए हैं, वहां ज़्यादातर शिया मुसलमान रहते हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को सूत्रों ने बताया कि धमाके में मारे जाने वालों में महिलाएं और बच्चे भी थे. धमाके के बाद कुछ दुकानों में आग भी लगा दी गई थी.
इराक़ी सेना के एक प्रवक्ता ने बताया कि प्रधानमंत्री मुस्तफ़ा अल-कदीमी ने बाज़ार की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार पुलिस इंचार्ज़ की गिरफ़्तारी के आदेश दिए हैं और मामले की जाँच शुरू कर दी गई है. (bbc.com)