अंतरराष्ट्रीय
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 22 अगस्त| तालिबान ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें अमेरिकी सैनिकों की आड़ में समूह की कई सेनाएं 1945 में इवो जीमा की लड़ाई के दौरान द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिकी सैनिकों की एक प्रसिद्ध छवि का मजाक उड़ा रही हैं।
रूस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान लड़ाकों की एक कुलीन इकाई अमेरिका निर्मित सामरिक गियर पहने हुए, जिसे उन्होंने पीछे हटने वाले अफगान बलों से जाहिरा तौर पर कब्जा कर लिया था, उसने एक प्रचार तस्वीर के लिए तस्वीर खिंचवाई, जिससे कई नाराज अमेरिकियों ने 'अंतिम अपमान' पाया।
एक तस्वीर में ज्यादातर अमेरिकी रूढ़िवादियों के बीच, तालिबान की कमांडो यूनिट बद्री 313 के सदस्यों को नाइट-विजन गॉगल्स सहित पूर्ण छलावरण और सामरिक गियर दान करते हुए देखा जाता है। 1945 में इवो जीमा की लड़ाई के दौरान माउंट सुरिबाची में अमेरिकी सैनिकों की एक प्रतिष्ठित तस्वीर को अमेरिकी ध्वज को ऊपर उठाते हुए प्रतीत होते हैं।
अधिकांश आक्रोश व्यक्तिगत रूप से अमेरिकी कमांडर-इन-चीफ, राष्ट्रपति जो बाइडेन पर निर्देशित किया गया था, जिन्होंने पिछले सप्ताह अराजक वापसी के लिए बढ़ती आलोचना का सामना किया था जिसने अमेरिकी और सहयोगियों के जीवन को खतरे में डाल दिया था।
टेलीविजन कमेंटेटर जॉन कार्डिलो ने कहा, बाइडेन को इस्तीफा देना चाहिए या महाभियोग और हटा दिया जाना चाहिए, जो हाल ही में न्यूजमैक्स टीवी पर होस्ट थे। यह बस बदतर और बदतर होता जा रहा है!
कांग्रेस की महिला एलिस स्टेफनिक ने कहा, यह जो बिडेन की विरासत है जिसे पूरी दुनिया देख सकती है।
रूढ़िवादी स्तंभकार और पूर्व टीवी होस्ट मेघन मैक्केन, दिवंगत रिपब्लिकन सीनेटर जॉन मैक्केन की बेटी ने कहा, हम दुनिया में हंसी का पात्र हैं।
पिछले कई हफ्तों में, काबुल पर तालिबान के हमले से पहले भी, ऐसे वीडियो सामने आए हैं जिनमें उग्रवादियों को युद्ध की लूट का निरीक्षण करते हुए दिखाया गया है, जिसमें अफगान नेशनल आर्मी (एएनए) से जब्त किए गए यूएस-निर्मित हथियार भी शामिल हैं। एएनए पूरी तरह से ध्वस्त हो गया, क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अपनी वापसी को तेज करना शुरू कर दिया, कुछ इकाइयों ने बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया, और अपने हथियार और उपकरण आतंकवादी समूह को सौंप दिए।
कुछ अनुमानों के अनुसार, तालिबान के पास अब 2,000 से अधिक अमेरिकी यूएस हमवीज और अन्य बख्तरबंद वाहन हो सकते हैं, और 40 से अधिक विमान हो सकते हैं, जिनमें ब्लैक हॉक्स, स्काउट अटैक हेलीकॉप्टर और सैन्य ड्रोन शामिल हैं। यह 2003 के बाद से पेंटागन द्वारा अफगान बलों को उपहार में दिए गए 600,000 एम16 असॉल्ट राइफलों और अन्य पैदल सेना के हथियारों, संचार उपकरणों के कुछ 162,000 टुकड़े और 16,000 नाइट-विजन गॉगल्स के विशाल शस्त्रागार का भी लाभ उठा सकता है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अगस्त| अमेरिका के कब्जे वाले काबुल हवाईअड्डे पर पहुंचने के प्रयास में तालिबान ने अमेरिकियों को पीटा है। किर्बी ने अल अरबिया से कहा, हम मामलों के बारे में जानते हैं, एक छोटी संख्या जिसे हम जानते हैं .. हमारे पास पूर्ण दृश्यता नहीं है, लेकिन हम कुछ ऐसे मामलों के बारे में जानते हैं, जहां कुछ अमेरिकी और निश्चित रूप से, जैसा कि रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने भी उस बयान में कहा था, अफगान-अफगान जिन्हें हम खाली करना चाहते हैं, उन्हें परेशान किया गया है और कुछ मामलों में पीटा गया है।
किर्बी ने कहा कि अधिकांश अमेरिकी जिनके पास उनके साथ अपनी साख है, उन्हें तालिबान चौकियों के माध्यम से अनुमति दी जा रही है।
उन्होंने कहा, हम छिटपुट मामलों से अवगत हैं, जहां उन्हें अनुमति नहीं दी जा रही है, जहां कुछ उत्पीड़न चल रहा है। और हां, पिछले सप्ताह के भीतर कुछ शारीरिक हिंसा हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक तालिबान लड़ाके को या तो नहीं मिला अमेरिकियों को हवाईअड्डे पर जाने की अनुमति देने के लिए शब्द या शब्द का पालन करने का फैसला किया।
अमेरिकी सेना के मेजर जनरल हैंक टेलर ने भी निकासी पर अद्यतन संख्या देते हुए कहा कि इस सप्ताह निकाले गए 17,000 लोगों में से 2,500 अमेरिकी थे। (आईएएनएस)
काबुल, 22 अगस्त| तालिबान ने अफगानिस्तान के अपदस्थ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अशरफ गनी और अमरुल्ला सालेह को अपनी माफी दी है, जिससे दोनों अगर चाहें तो अफगानिस्तान लौट सकते हैं। जियो न्यूज के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, तालिबान के वरिष्ठ नेता खलील उर रहमान हक्कानी ने कहा कि समूह और गनी, सालेह और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, हमदुल्ला मोहिब के बीच कोई दुश्मनी नहीं है।
हक्कानी ने कहा, हम अशरफ गनी, अमरुल्ला सालेह और हमदुल्ला मोहिब को माफ करते हैं। तालिबान और तीनों के बीच दुश्मनी केवल धर्म के आधार पर थी।
उन्होंने कहा, हम अपनी तरफ से सभी को माफ करते हैं, जनरल (जो हमारे खिलाफ युद्ध में लड़े) से लेकर आम आदमी तक।
हक्कानी ने देश से भागने वाले लोगों से ऐसा नहीं करने का आग्रह किया, और कहा कि दुश्मन प्रचार कर रहा था कि तालिबान उनसे बदला लेगा।
उन्होंने कहा, ताजिक, बलूच, हजारा और पश्तून सभी हमारे भाई हैं।
हक्कानी ने कहा कि तालिबान वे नहीं थे जो अमेरिका के खिलाफ युद्ध में गए थे, यह कहते हुए कि समूह ने अमेरिका के खिलाफ हथियार उठाने का फैसला किया था जब उसने अपनी मातृभूमि पर हमला किया और अपनी संस्कृति, धर्म और देश के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उन्होंने कहा, अमेरिकी हमारे खिलाफ, हमारी मातृभूमि पर हथियारों का इस्तेमाल कर रहे थे, भगवान ने तालिबान को अमेरिकी हथियार युद्ध की लूट के रूप में दिए।
उन्होंने कहा कि तालिबान ने अपने दुश्मनों पर एक बड़ी जीत हासिल की है, यह कहते हुए कि अफगानिस्तान सेना में 350,000 सैनिक शामिल थे और उन्हें अमेरिका, नाटो और अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था।
हक्कानी ने कहा कि तालिबान चाहता है कि सभी मुस्लिम देश आपस में मेल-मिलाप करें। उन्होंने दुनिया भर के देशों को अपने नागरिकों को उचित अधिकार प्रदान करने की सलाह दी, और कहा कि अफगानिस्तान में एक समावेशी अफगान सरकार का गठन किया जाएगा।
उन्होंने कसम खाई, अत्यधिक सक्षम, शिक्षित लोग अफगानिस्तान में सरकार बनाएंगे। जनता को एकजुट करने वाले लोगों को नई सरकार में शामिल किया जाएगा।
अफगानिस्तान के भीतर सभी समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार का वादा करते हुए, हक्कानी ने कहा कि सभी विचारधाराओं के लोग तालिबान के प्रति अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 22 अगस्त| अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अमेरिकी एयरलाइंस को अफगानिस्तान से निकासी मिशन में मदद के लिए 18 विमान उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। पेंटागन ने रविवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने एक बयान में कहा कि ऑस्टिन ने अमेरिकी परिवहन कमान के कमांडर को सिविल रिजर्व एयर फ्लीट (सीआरएएफ) के चरण 1 को सक्रिय करने का आदेश दिया है, जो अफगानिस्तान से निकासी का समर्थन करने के लिए पेंटागन को वाणिज्यिक हवाई गतिशीलता संसाधनों तक पहुंच प्रदान करता है।
बयान में कहा गया है, मौजूदा सक्रिय 18 विमान हैं। इनमें हैं अमेरिकन एयरलाइंस, एटलस एयर, डेल्टा एयर लाइन्स और ओमनी एयर से तीन-तीन, हवाईयन एयरलाइंस से दो और युनाइटेड एयरलाइंस से चार।
बयान में कहा गया है कि वाणिज्यिक विमान काबुल हवाईअड्डे पर उड़ान नहीं भरेंगे।
कहा गया, अमेरिकी सैन्य विमान काबुल में और उसके बाहर संचालन पर ध्यान केंद्रित करेगा और वाणिज्यिक विमानों का उपयोग अस्थायी सुरक्षित ठिकानों और अंतरिम मंचन ठिकानों से यात्रियों की आगे की आवाजाही के लिए किया जाएगा।
पेंटागन के अनुसार, इतिहास में यह तीसरी बार है, जब सेना ने सीआरएएफ को सक्रिय किया है। पहला खाड़ी युद्ध के दौरान और दूसरा इराक युद्ध के दौरान।
15 अगस्त को राजधानी काबुल में तालिबान बलों के प्रवेश करने के बाद से अमेरिका अमेरिकियों और उसके अफगान सहयोगियों को देश से निकालने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। (आईएएनएस)
काबुल, 22 अगस्त| काबुल हवाईअड्डे पर अराजक स्थिति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दहशत के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। अमीर खान मुत्ताकी ने रविवार को राजधानी काबुल के तालिबान के अधिग्रहण के बाद पश्चिम पर अफगानिस्तान में घबराहट और अराजकता पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया।
बीबीसी ने बताया कि मुत्ताकी ने दावा किया कि इस समय अराजकता की एकमात्र जगह काबुल हवाईअड्डा है, जहां लोगों की गोली मारकर हत्या की जा रही है।
उन्होंने आगे दावा किया कि अमेरिका एक निकासी नाटक बनाकर अपनी हार छिपाने की कोशिश कर रहा है।
इस बीच, अमेरिका ने अगस्त के अंत से आगे निकासी का विस्तार करने के लिए बढ़ती कॉलों के बीच, निकासी के प्रयासों में मदद करने के लिए वाणिज्यिक एयरलाइनों का मसौदा तैयार किया है।
रिपोर्टों के अनुसार, डेल्टा, युनाइटेड एयरलाइंस और अन्य के विमान अफगानिस्तान से अंतिम गंतव्यों के लिए पहले से ही निकाले गए लोगों को उड़ान भरने में मदद करेंगे। विमान काबुल में उड़ान नहीं भरेंगे, बल्कि इसका उपयोग तीसरे देशों में यात्रियों को स्थानांतरित करने में मदद के लिए किया जाएगा। (आईएएनएस)
सना, 22 अगस्त | यमनी सरकार ने घोषणा की कि सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा शुरू किए गए हवाई हमले में देश के तेल समृद्ध प्रांत मारिब में एक ईरानी सैन्य अधिकारी की मौत हो गई। सूचना मंत्री मुअम्मर अल-एरियानी ने शनिवार को एक बयान में कहा, हैदर सेरजन, जो हौउतियों के सलाहकार के रूप में काम करता था, शुक्रवार की रात नौ अन्य लोगों के साथ मारा गया था।
मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र से 'यमनी मामलों में ईरान के हस्तक्षेप के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने' का आग्रह किया।
सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने हादी की सरकार का समर्थन करने के लिए मार्च 2015 में यमनी संघर्ष में हस्तक्षेप किया।(आईएएनएस)
-नॉरबेर्टो परेडेस
अफ़ग़ानिस्तान में ऐसा क्या है जो इसे पूरी दुनिया में 'साम्राज्यों की कब्रगाह' के रूप में जाना जाता है? आख़िर क्यों अमेरिका से लेकर ब्रिटेन, सोवियत संघ समेत दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां इसे जीतने की कोशिश में नाकाम रहीं.
ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास और भूगोल में मिलता है.
19वीं सदी में, तब दुनिया में सबसे ताक़तवार रहे ब्रितानी साम्राज्य ने अपनी पूरी शक्ति के साथ इसे जीतने की कोशिश की. लेकिन 1919 में आख़िरकार ब्रिटेन को अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर जाना पड़ा और उन्हें स्वतंत्रता देनी पड़ी.
इसके बाद सोवियत संघ ने 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया. मंशा ये थी कि 1978 में तख़्तापलट करके स्थापित की गयी कम्युनिस्ट सरकार को गिरने से बचाया जाए. लेकिन उन्हें ये समझने में दस साल लगे कि वे ये युद्ध जीत नहीं पाएंगे.
ब्रितानी साम्राज्य और सोवियत संघ के बीच एक बात ऐसी है जो दोनों पर लागू होती है. दोनों साम्राज्यों ने जब अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया तो वे अपनी ताक़त के चरम पर थे. लेकिन इस हमले के साथ ही धीरे- धीरे दोनों साम्राज्य बिखरने लगे.
साल 2001 में अमेरिकी नेतृत्व में हमले और उसके बाद कई सालों तक चले युद्ध में लाखों लोगों की जान गयी है. इस हमले के बीस साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला किया है.
ये एक विवादास्पद फैसला था जिसकी दुनिया भर में कड़ी आलोचना की गयी. इस एक फैसले की वजह से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर इतनी तेजी से तालिबान का कब्ज़ा हो गया है.
बाइडन ने अपने इस फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा है कि अमेरिकी नागरिकों को "एक ऐसे युद्ध में नहीं मरना चाहिए जिसे खुद अफ़ग़ानी लोग न लड़ना चाह रहे हों"
'साम्राज्यों की कब्रगाह' के रूप में अफ़ग़ानिस्तान की ख्याति को याद करते बाइडन ने कहा, "चाहें जितनी भी सैन्य शक्ति लगा लें, एक स्थिर, एकजुट और सुरक्षित अफ़ग़ानिस्तान हासिल करना संभव नहीं है."
हालिया सदियों में अफ़ग़ानिस्तान को नियंत्रित करने की कोशिश करने वाली दुनिया की सबसे ताक़तवर सेनाओं के लिए अफ़ग़ानिस्तान एक कब्रगाह जैसा ही साबित हुआ है.
शुरुआत में इन सेनाओं को थोड़ी सफलता भले ही मिली हो लेकिन आख़िरकार इन्हें अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागना ही पड़ा है.
अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास पर 'अफ़ग़ानिस्तान: साम्राज्यों की कब्रगाह' नाम की किताब लिखने वाले डिफेंस और फॉरेन पॉलिसी एनालिस्ट डेविड इस्बी बीबीसी मुंडो को बताते हैं, "ऐसा नहीं है कि अफ़ग़ान काफ़ी शक्तिशाली हैं. बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में जो कुछ हुआ है, वो आक्रमणकारी ताक़तों की ग़लतियों की वजह से हुआ है."
क्यों पस्त हुईं बड़ी शक्तियां?
इस्बी मानते हैं कि निष्पक्षता के साथ देखा जाए तो अफ़ग़ानिस्तान एक कठिन जगह है. ये एक जटिल देश है जहां आधारभूत ढांचा काफ़ी ख़राब है, विकास काफ़ी सीमित है और चारों ओर से ज़मीन से घिरा हुआ है.
इस्बी कहते हैं, "लेकिन सोवियत संघ, ब्रिटेन या अमेरिका, किसी भी साम्राज्य ने अफ़ग़ानिस्तान को लेकर लचीलापन नहीं दिखाया है. वे अपने ढंग से चलना चाहते थे और उन्हें चलना भी पड़ा लेकिन वे कभी अफ़ग़ानिस्तान की जटिलता समझ नहीं पाए."
अक्सर कहा जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान को जीतना असंभव है. ये एक ग़लत बयान है: ईरानियों, मंगोलों और सिकंदर ने अफ़ग़ानिस्तान को जीता है.
लेकिन ये तय है कि ये एक ऐसा दुस्साहस है जिसकी एक कीमत चुकानी पड़ती है. और इससे पहले काबुल पर हमला करने वाले पिछले तीन साम्राज्य अपने प्रयास में बुरी तरह फेल हुए हैं.
ब्रितानी साम्राज्य और तीन आक्रमण
19वीं सदी में ज़्यादातर समय के लिए अफ़ग़ानिस्तान ब्रितानी और रूसी साम्राज्यों के बीच मध्य एशिया को नियंत्रित करने की रस्साकसी में प्रमुख मंच था.
कई दशकों तक रूस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक और राजनीतिक संघर्ष जारी रहा जिसमें आख़िरकार ब्रिटेन की जीत हुई. लेकिन ब्रिटेन को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी.
ब्रिटेन ने 1839 से 1919 के बीच तीन बार अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया और ये कहा जा सकता है कि तीनों बार ब्रिटेन फेल हुआ.
पहले एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध में ब्रिटेन ने 1839 में काबुल पर कब्जा कर लिया. क्योंकि ब्रिटेन को लग रहा था कि अगर उसने ये कदम नहीं उठाया तो उससे पहले रूस काबुल पर कब्ज़ा कर लेगा.
इसके चलते ब्रिटेन को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. कुछ जनजातियों ने बेहद सामान्य हथियारों से दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्क की सेना को बर्बाद कर दिया.
बड़ी हार
तीन साल के आक्रमण के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने आख़िरकार हमलावर सेना को भागने के लिए मजबूर कर दिया.
साल 1842 की छह जनवरी को ब्रितानी कैंप से जलालाबाद के लिए निकली 16000 सैनिकों में सिर्फ एक ब्रितानी नागरिक ज़िंदा लौटा.
इस्बी बताते हैं कि इस "युद्ध ने उप महाद्वीप में ब्रितानी विस्तार को कमजोर कर दिया और इस धारणा को भी प्रभावित किया कि ब्रितानी अजेय हैं."
इसके चार दशक बाद ब्रिटेन ने एक बार फिर कोशिश की. इस बार इसे कुछ सफलता मिली.
साल 1878 से 1880 के बीच हुए दूसरे एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध में अफ़ग़ानिस्तान ब्रितानी संरक्षित राज्य बन गया. लेकिन ब्रिटेन को काबुल में एक रेज़िडेंट मिनिस्टर रखने की अपनी नीति को त्यागना पड़ा.
इसकी जगह ब्रितानी साम्राज्य ने एक नये अफ़ग़ान अमीर को चुनकर देश से अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया.
लेकिन साल 1919 में जब इस नये अमीर ने खुद को ब्रिटेन से आज़ाद घोषित कर दिया तब तीसरा एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध शुरू हुआ.
ये वो समय था जब एक ओर बोल्शेविक क्रांति ने रूसी ख़तरे को कम कर दिया और प्रथम विश्व युद्ध ने ब्रितानी सैन्य खर्च को बेतहाशा बढ़ा दिया. ऐसे में ब्रितानी साम्राज्य में अफ़ग़ानिस्तान के प्रति रुचि कम होती गयी.
इसी वजह से चार महीनों तक चली जंग के बाद ब्रिटेन ने आख़िरकार अफ़ग़ानिस्तान को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
हालांकि, ब्रिटेन आधिकारिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद नहीं था. लेकिन ऐसा माना जाता है कि उन्होंने कई सालों तक अपना प्रभाव वहां बनाए रखा.
साल 1920 के दौरान अमीर अमानुल्लाह ख़ान ने देश को सुधारने की कोशिश की. इनमें महिलाओं के बुरक़ा पहनने की प्रथा को ख़त्म करना शामिल था. इन सुधारवादी प्रयासों ने कुछ जनजातियों और धार्मिक नेताओं को नाराज़ कर दिया जिससे एक गृह युद्ध की शुरुआत हुई.
इस संघर्ष की वजह से अफ़ग़ानिस्तान में कई दशकों तक हालात तनावपूर्ण रहे. और 1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण कर दिया ताकि एक बुरी तरह असंगठित कम्युनिस्ट सरकार को सत्ता में बनाए रखा जा सके.
कई मुजाहिदीन संगठनों ने सोवियत संघ का विरोध करते हुए उनके ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी. इस जंग में मुजाहिदीनों ने अमेरिका, पाकिस्तान, चीन, ईरान और सऊदी अरब से पैसा और हथियार लिए.
रूस ने ज़मीनी और हवाई हमले किए ताकि उन इलाकों के गाँवों और फसलों को नष्ट किया जा सके जिन्हें वे समस्या की वजह मानते थे. इसकी वजह से स्थानीय आबादी अपने घर छोड़ने या मरने के लिए विवश हुई.
इस आक्रमण में बेहद बड़े स्तर पर ख़ून-ख़राबा हुआ. इस युद्ध में लगभग 15 लाख लोगों की मौत हुई और पचास लाख लोग शरणार्थी बन गए.
एक समय में सोवियत संघ की फौज बड़े शहरों और कस्बों को अपने नियंत्रण में करने में सफल हो गयी. लेकिन ग्रामीण इलाकों में मुजाहिदीन अपेक्षाकृत रूप से स्वच्छंदता से घूमते थे.
सोवियत संघ की सेना ने कई तरीकों से चरमपंथ ख़त्म करने की कोशिशें की लेकिन गुरिल्ला सैनिक अक्सर ऐसे हमलों से बच जाते थे.
इसी समय तत्कालीन सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव को अहसास हुआ कि रूसी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश करते हुए युद्ध जारी नहीं रख सकते और 1988 में अपने सैनिकों को वापस लेने का फैसला किया.
लेकिन इस वापसी से सोवियत संघ की छवि कभी उबर नहीं पायी. सोवियत संघ के लिए अफ़ग़ानिस्तान 'वियतनाम युद्ध' बन गया. ये एक बेहद ख़र्चीला और शर्मनाक युद्ध था जिसमें सोवियत संघ अपनी पूरी ताक़त लगाने के बावजूद स्थानीय गुरिल्ला लड़ाकों से हार गया.
इस्बी कहते हैं कि "सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में वैध सत्ता का दावा किया, ठीक ऐसे समय में जब सोवियत प्रणाली में, उसकी सरकार और उसकी सेना में गंभीर और मौलिक अंतर्विरोध थे."
"ये सोवियत संघ की सबसे बड़ी ग़लतियों में से एक थी."
इसके बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया.
अमेरिकी अभियान और विनाशकारी वापसी
अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटेन और सोवियत संघ के असफल प्रयासों के बाद अमेरिका ने 9/11 हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र का समर्थन करने और अल-क़ायदा ख़त्म करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया.
इससे पहले दो साम्राज्यों की तरह अमेरिका भी जल्द ही काबुल जीतने और तालिबान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने में सफल रहा.
तीन साल बाद अफ़ग़ान सरकार अस्तित्व में आई लेकिन तालिबान के हमले जारी रहे. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में सैन्य टुकड़ियों की संख्या में बढ़ोतरी की जिससे तालिबान पीछे हटा. लेकिन ऐसा ज़्यादा दिनों के लिए नहीं हुआ.
साल 2001 में युद्ध की शुरुआत के बाद साल 2014 में सबसे ज़्यादा खूनखराबा देखा गया. नेटो सेनाओं ने अपना मिशन पूरा करके ज़िम्मेदारी अफ़ग़ान सेना पर सौंप दी.
इसकी वजह से तालिबान ने ज़्यादा इलाकों पर कब्जा कर लिया. इसके अगले साल लगातार आत्मघाती बम धमाके दर्ज किए गए. इनमें काबुल की संसद और हवाई अड्डे के नज़दीक किया गया धमाका शामिल है.
इस्बी के मुताबिक़, अमेरिकी हमले में कई चीजें ग़लत ढंग से की गयीं.
वह कहते हैं, "सैन्य और राजनयिक प्रयासों के बावजूद, कई समस्याओं में से एक समस्या ये थी कि अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को छद्म युद्ध छेड़ने से रोक नहीं पाया जिसने अपनी सफलता साबित की है.
"ये अन्य हथियारों से ज़्यादा सफल साबित हुआ है."
हालांकि, सोवियत संघ के युद्ध में ज़्यादा ख़ून-खराबा हुआ लेकिन अमेरिकी आक्रमण ज़्यादा ख़र्चीला साबित हुआ.
सोवियत संघ ने जहां अफ़ग़ानिस्तान में प्रति वर्ष लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए, वहीं अमेरिका के लिए 2010 और 2012 के बीच, युद्ध की लागत प्रति वर्ष लगभग 100 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई थी.
लेकिन काबुल के पतन की तुलना दक्षिण वियतनाम की घटनाओं से भी की गई है.
रिपब्लिकन पार्टी की कांग्रेस सदस्या स्टेफनिक ने ट्वीट करके लिखा है, "यह जो बाइडन का साइगॉन है, "
"अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक विनाशकारी विफलता जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा."
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबानी कब्जे से अफ़ग़ानिस्तान में एक मानवीय संकट पैदा हुआ है जिसके चलते हज़ारों - लाखों लोग बेघर हो गए हैं.
इस्बी कहते हैं, "मध्यम अवधि में, यह देखना आवश्यक होगा कि क्या तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मंजूरी मिलेगी, मुझे इस मामले में काफ़ी संदेह है."
और यदि विश्व बिरादरी के लिए तालिबान से निपटना असंभव हो जाता है, तो यह देखना अहम होगा कि क्या कोई अन्य शक्ति दुनिया में साम्राज्यों की कब्रगाह माने जाने वाले अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण करने का जोख़िम उठाती है. (bbc.com)
काबुल, 22 अगस्त| अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा किया है कि काबुल हवाईअड्डे पर एक दीवार के ऊपर से गुजरते हुए देखा गया एक बच्चा परिवार के साथ फिर से मिल गया है। मेट्रो यूके की रिपोर्ट के अनुसार, माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को सैनिकों को सौंपने का प्रयास अफगानिस्तान में पश्चिम की भागीदारी के अराजक अंत की एक परिभाषित तस्वीर बन गई है।
एक वीडियो में एक अमेरिकी सैनिक को एक हाथ से एक बच्चे को पकड़ने और संरक्षित परिसर में ले जाने के लिए एक कांटेदार तार वाली दीवार पर पहुंचते हुए दिखाया गया है।
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने अब इस बारे में एक अपडेट प्रदान किया है कि शिशु के साथ क्या हुआ।
पत्रकारों को संबोधित करते हुए, किर्बी ने कहा, आप जिस वीडियो के बारे में बात कर रहे हैं, माता-पिता ने मरीन से बच्चे की देखभाल करने के लिए कहा, क्योंकि बच्चा बीमार था, इसलिए आप जिस मरीन को दीवार पर पहुंचते हुए देख रहे हैं, वह उसे नॉर्वे के एक अस्पताल ले गया, जो हवाईअड्डे पर है। उन्होंने बच्चे का इलाज किया और बच्चे को पिता को लौटा दिया।
उन्होंने कहा कि उन्हें अमेरिकी सेना द्वारा अफगान बच्चों को लेने की केवल एक घटना के बारे में पता था और इसे करुणा का कार्य के रूप में वर्णित किया, क्योंकि बच्चे के बारे में चिंता थी। (आईएएनएस)
क्वेटा, 21 अगस्त| बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की एक विशिष्ट इकाई मजीद ब्रिगेड ने पाकिस्तान के बंदरगाह शहर ग्वादर में हुए आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली है, जिसमें शुक्रवार को चीनी नागरिकों को निशाना बनाया गया था। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, निर्माणाधीन ईस्ट-बे एक्सप्रेसवे पर काम कर रहे चीनी नागरिक अपने शिविर में लौट रहे थे, तभी उनका वाहन विस्फोट की चपेट में आ गया।
हमला मछुआरों की एक कॉलोनी के पास तटीय सड़क के किनारे पर हुआ।
पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा, काफिले के वहां पहुंचते ही चीनी वाहनों को निशाना बनाने के लिए एक युवा लड़का कॉलोनी से बाहर भागता देखा गया।
बयान में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना के जवान सादे कपड़ों में उस लड़के को रोकने के लिए दौड़े, जिसने काफिले से करीब 15-20 मीटर की दूरी पर तुरंत खुद को विस्फोट कर उड़ा लिया।
पाकिस्तान में चीनी दूतावास ने शनिवार को आत्मघाती हमले की कड़ी निंदा की और पाकिस्तान से भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए व्यावहारिक और प्रभावी उपाय करने के लिए कहा।
बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान में सुरक्षा की स्थिति गंभीर रही है, क्योंकि पहले भी कई आतंकवादी हमले हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई चीनी नागरिक हताहत हुए हैं।
दूतावास ने पाकिस्तान में चीनी नागरिकों को सतर्क रहने, सुरक्षा सावधानियों को मजबूत करने, अनावश्यक तौर पर घूमना कम करने और प्रभावी सुरक्षा लेने को कहा है।
चीन 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में अरब सागर पर ग्वादर बंदरगाह का विकास कर रहा है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्च र परियोजना का हिस्सा है।
हाल के हफ्तों में देश में चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर अन्य हमले भी हुए हैं।
पिछले महीने के अंत में, एक चीनी इंजीनियर, जो हाल ही में कराची आया था, को शहर के साइट क्षेत्र में एक मोटरसाइकिल पर सवार बंदूकधारियों ने चलती कार में ही गोली मार दी और घायल कर दिया। इंजीनियर को कराची में आयातित एक मशीनरी की मरम्मत करनी थी, मगर उसके इस दौरे के दौरान उस पर हमला हो गया। प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट ने उस हमले की जिम्मेदारी ली थी।
14 जुलाई को, खैबर पख्तूनख्वा के ऊपरी कोहिस्तान जिले के दासु इलाके में चीनी श्रमिकों को ले जा रही एक बस एक विस्फोट के बाद गहरे गड्ढे में गिर गई थी, जिसमें नौ चीनी नागरिकों सहित 13 लोगों की मौत हो गई थी। विस्फोट में 28 अन्य घायल भी हुए थे।
शुरू में यह कहने के बाद कि घटना एक दुर्घटना थी, सरकार ने इस महीने की शुरूआत में कहा था कि एक आत्मघाती हमलावर ने बस पर हमला किया था, जो चीनी श्रमिकों को निमार्णाधीन दासु बांध तक ले जा रही थी। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 21 अगस्त | नासा का पर्सवेरेंस रोवर, जिसने अपने पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर वहां के चट्टान का नमूना एकत्र नहीं किया था, आने वाले हफ्तों में मंगल की चट्टानों का नमूना लाने के एक और प्रयास के लिए तैयार है। रोवर अपना पहला रॉक नमूना लेने के लिए दूसरे शॉट के लिए सिटाडेल नामक एक नए स्थान पर जाएगा।
द वर्ज की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार यह सुनिश्चित करने के लिए कि वास्तव में एक नमूना एकत्र किया गया है, इंजीनियर नमूना ट्यूब की छवियों के वापस आने का इंतजार करेंगे, इससे पहले कि इसे संसाधित किया जाए। इस बार नमूने को रोवर के पेट के अंदर रखा जाएगा।
सैंपलिंग और कैशिंग के मुख्य अभियंता लुईस जांडुरा ने कहा, "हम बहुत उत्साहित थे कि हार्डवेयर ने बिना किसी दोष के शुरू से अंत तक काम किया। फिर आश्चर्य हुआ - कोई नमूना नहीं आया? इस बार नासा की टीम इस कोशिश में है कि मंगल से नमूना आए।"
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के प्रोजेक्ट मैनेजर जेनिफर ट्रॉस्पर ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा, "मंगल की चट्टान हमारी तरह की चट्टान नहीं थी।"
उन्होंने कहा, "हालांकि हमने सफलतापूर्वक पृथ्वी पर विभिन्न परीक्षण चट्टानों की एक श्रृंखला में 100 कोर से अधिक का अधिग्रहण किया था, लेकिन हमने अपने परीक्षण सूट में किसी चट्टान का सामना नहीं किया था।"
पिछले महीने की शुरुआत में, सेल्फ-ड्राइविंग छह-पहिया रोबोट ने प्राचीन जीवन के संकेतों की तलाश के लिए जेजेरो क्रेटर फर्श पर अपनी यात्रा शुरू की है। क्रेटर ने प्राचीन काल की एक बड़ी झील और एक नदी डेल्टा होने का संकेत दिया था।
टीम ने अपनी 2 मीटर लंबी रोबोटिक भुजा का उपयोग करके मंगल ग्रह पर एक छेद ड्रिल किया था, लेकिन यह नमूने एकत्र और संग्रहीत नहीं कर सका।
नासा ने एक बयान में कहा, "रोवर से टेलीमेट्री इंगित करती है कि इसके पहले कोरिंग प्रयास के दौरान, ड्रिल और बिट को नियोजित किया गया था और नमूना ट्यूब को पोस्ट-कोरिंग के रूप में संसाधित किया गया था।"
उन्होंने कहा, "लेकिन हाल ही में नासा के रोवर द्वारा मंगल ग्रह पर एक रॉक नमूना एकत्र करने और इसे एक नमूना ट्यूब में सील करने के पहले प्रयास के बाद पृथ्वी पर भेजे गए डेटा से संकेत मिलता है कि प्रारंभिक नमूना गतिविधि के दौरान कोई चट्टान एकत्र नहीं किया गया।"
परसेवरेंस रोवर को पिछले साल 30 जुलाई को लॉन्च किया गया था और 203 दिनों की यात्रा के बाद 472 मिलियन किलोमीटर की यात्रा के बाद 18 फरवरी को लाल ग्रह पर पहुंचा। यह मंगल ग्रह की चट्टान और रेजोलिथ -टूटी हुई चट्टान और धूल को इकट्ठा करने वाला पहला मिशन होगा।(आईएएनएस)
काबुल, 21 अगस्त | अफगानिस्तान के उत्तरी बगलान प्रांत के पोल-ए-हेसर जिले में सशस्त्र विद्रोही समूहों के दसियों सदस्यों ने हमला किया और अपने आपको तालिबान से मुक्त करा लिया। 15 अगस्त को जब से तालिबान ने पंजशेर प्रांत को छोड़कर सभी जगहों पर अपना कब्जा जमा लिया था, तभी से लड़ाके अपने पहले सशस्त्र संघर्ष में लगे हुए हैं, जो उनके और लोगों के विद्रोह के बीच भड़क उठा है।
अफगान मीडिया ने बताया कि स्थानीय निवासियों का दावा है कि दो अन्य जिलों - देह सलाह और कसान को भी तालिबान से वापस ले लिया गया है।
पूर्व कार्यवाहक रक्षा मंत्री, बिस्मिल्लाह मुहम्मदी, जो अब पंजशेर प्रांत में रह रहे हैं, ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि लोगों के विद्रोह ने बगलान प्रांत के पोल-ए-हेसर, बानो और देह सलाह जिलों पर फिर से कब्जा कर लिया है।
स्थानीय निवासियों ने भी 40 तालिबान लड़ाकों को मारने और 15 अन्य को घायल करने का दावा किया है, हालांकि, तालिबान ने अभी तक संघर्ष पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
तालिबान के खिलाफ विद्रोह के लिए मैदान में उतरे पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और मारे गए अहमद शाह मसूद के बेटे ने तालिबान का विरोध करने का संकल्प लिया है और कहा है कि वे कभी भी उनके सामने आत्मसमर्पण नहीं करेंगे। उन्होंने पहले कहा था कि प्रतिरोध पंजशेर प्रांत से शुरू किया जाएगा और एएनडीएसएफ के विदेशी सदस्यों को उनके साथ शामिल होने के लिए कहा है।
यह घटनाक्रम तब सामने आया है, जब तालिबान अफगानिस्तान की राजधानी सहित पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर रहा है, लेकिन छह दिनों के बाद अब तक राजनीतिक शून्य को नहीं भर पाया है। (आईएएनएस)
काबुल, 21 अगस्त | अफगानिस्तान में सातवें दिन भी बैंक बंद रहने से अफगानी लोगों में डर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि उनके पास जमा पूंजी खत्म होने वाली है। अफगानिस्तान में बैंक और कैश मशीनें लगातार सातवें दिन से बंद हैं।
बीबीसी कि रिपोर्ट में बताया गया है कि मशीनों के अंदर कोई नकदी नहीं है और बैंक में परिचालन भी बंद है। कोई वेस्टर्न यूनियन कार्यालय नहीं है, जहां विदेशों से लोग आम तौर पर पैसे ट्रांसफर करते हैं। बीबीसी ने बताया कि इनके बंद होने से अब देश में पैसा भेजना लगभग असंभव है।
लोगों का कहना है कि उनके पास धन की कमी हो रही है और राजधानी और अन्य शहरों में चिंता बढ़ रही है।
काबुल में एक पशु बचाव केंद्र चलाने वाले पेन फरथिंग ने कहा कि वह अपने कर्मचारियों को भुगतान नहीं कर पा रहे हैं और लोगों को भोजन की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है।
एक ट्विटर कमेंट्स में कहा गया है, काबुल और पूरे अफगानिस्तान में बैंक बंद हुए आठ दिन हो गए हैं। एटीएम मशीनें खाली हैं।
एक ट्विटर पोस्ट में कहा गया है, अभी के लिए मुझे अपने 3 बच्चों के लिए खाना चाहिए। आज के लिए चाय और रोटी का ही जुगाड़ हो सका। गैस बहुत महंगी है, सभी बैंक बंद हैं, काबुल की दुकानों में अन्य खाद्य सामग्री की कमी है। मोबाइल टॉप अप नहीं मिल रहा है - और हमारे जीवन के लिए भी खतरा है।(आईएएनएस)
काबुल, 21 अगस्त: अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में करीब 150 भारतीयों के अपहरण की खबर को भारत सरकार से जुड़े सूत्रों ने गलत बताया है. सूत्रों ने बताया कि सभी भारतीय पूरी तरह सुरक्षित हैं. उन्होंने कहा कि हम भारतीय की सुरक्षा के वादे और इसमें सहयोग के लिए स्थानीय अधिकारियों का धन्यवाद करते हैं.
वहीं तालिबान ने भी इन आरोपों का खंडन किया है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, तालिबान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि हमने काबुल एयरपोर्ट के पास किसी भारतीय को अगवा नहीं किया, बल्कि उन्हें दूसरे सुरक्षित रास्ते से एयरपोर्ट ले गए हैं.
दरअसल सूत्रों ने बताया कि एयरपोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था भी तालिबान लड़ाकों के लिए नई है. वह यहां यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि कोई अफगान नागरिक देश छोड़कर नहीं भागे. इसलिए उन्होंने पासपोर्ट आदि की जांच के लिए कुछ भारतीय नागरिकों का रोका था.
इससे पहले अफगान पत्रकारों ने दावा किया था कि अफगानिस्तान की राजधानी काबुल (Kabul) में इंटरनेशनल एयरपोर्ट की ओर जा रहे तालिबान (Taliban) लड़ाकों ने 150 लोगों का अपहरण कर लिया है, जिनमें से ज्यादातर भारतीय हैं. अफगान पत्रकारों के मुताबिक अपहरण किए गए लोगों में अफगान के नागरिक और अफगानिस्तान में रहने वाले सिख भी शामिल हैं.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों को रोका गया वह काबुल स्थित हामिद करजई एयरपोर्ट की ओर जा रहे थे. अभी वह एयरपोर्ट के पास पहुंचे ही थे कि तालिबान के लड़ाके वहां पहुंच गए और उन्होंने सभी को अपनी वैन में बैठा लिया. अब इस खबर का खंडन सामने आया है.
हालांकि तालिबान के प्रवक्ता अहमदुल्ला वसीक ने कहा कि अपहरण करने जैसी खबर पूरी तरह से गलत और निराधार है. अहमदुल्ला वसीक ने बताया कि तालिबान ने सुरक्षित तरीके से दूसरे गेट से लोगों को एयरपोर्ट के अंदर पहुंचाया है.
वहीं अफगानिस्तान में विकट हो रहे हालात के बीच भारतीयों को निकालने का काम जारी है. खबर है कि शनिवार को भारतीय वायुसेना का सी-130जे विमान 85 भारतीयों को लेकर काबुल से उड़ान भर चुका है. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार सूत्रों ने बताया, ‘ईंधन भरवाने के लिए विमान तजिकिस्तान में उतरा है. भारतीय नागरिकों को निकालने में काबुल में मौजूद भारतीय सरकारी अधिकारी मदद कर रहे हैं.’ बीते मंगलवार को ही करीब 120 भारतीय नागरिकों को लेकर वायुसेना का सी-17 ग्लोबमास्टर भारत पहुंचा था. (एजेंसी )
मालाबार संयुक्त सैन्य अभ्यास में इस बार एक बार फिर भारत, अमेरिका, जापान, और आस्ट्रेलिया, चारों क्वाड देश शिरकत कर रहे हैं. चारों ओर से घिरा चीन बेशक इस पर खुश नहीं है लेकिन आखिर क्वाड देशों के लिए इसके क्या मायने हैं?
डॉयचे वेले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
इस युद्धाभ्यास के दो चरण होंगे. पहला चरण होगा 21 से 24 अगस्त के बीच बंदरगाह चरण जबकि दूसरा चरण समुद्री चरण होगा जिसके तहत 25 से 29 अगस्त के बीच भागीदार नौसेनाएं समुद्री मोर्चे अपनी तैयारियों का प्रदर्शन करेंगी और परंपरागत या गैर परंपरागत युद्ध की स्थिति में अपने सहयोग की क्षमता को परखेंगी. इसके दौरान क्वाड के चारों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नियमबद्ध आचरण व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए जरूरी कदमों का भी अभ्यास करेंगे.
भारत की तरफ से समुद्री युद्ध और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए खास तौर पर बनाई गई मरीन कमांडो फोर्स की भी शिरकत होगी. पिछले कुछ सालों में भारत ने संयुक्त सैन्य अभ्यास के मोर्चे पर क्वाड के अन्य तीनों देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों मोर्चों पर न सिर्फ सहयोग बढ़ाया है बल्कि सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाने पर भी काफी जोर दिया है. पिछले एक दशक में भारत ने समुद्री सुरक्षा और सैन्य सहयोग के मामले में कई देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है.
भारत की रक्षा नीति में मालाबार अभ्यासों का योगदान
इस लिहाज से मालाबार युद्धाभ्यासों का भारत की सुरक्षा कूटनीति और रक्षा सहयोगों में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. साल 1992 को वैसे तो भारत की लुक ईस्ट नीति की शुरुआत के लिए जाना जाता है लेकिन यह साल अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है. इसी साल मालाबार संयुक्त अभ्यासों की भी शुरुआत हुई जिसके बाद भारत और अमेरिका की नौसेनाओं के बीच सहयोग तेजी से बढ़ा.
2007 में इसका दायरा बढ़ा कर जापान, सिंगापुर, और ऑस्ट्रेलिया को भी इस संयुक्त अभ्यास में जोड़ा गया लेकिन चीनी विरोध के चलते बात ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाई. चीन ने इन देशों के राजदूतों को डीमार्श जारी कर अपना कड़ा विरोध जताया. उस समय चीन से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था लेकिन एक दशक बाद स्थिति बदल गई थी. आखिरकार 2015 में जापान इसका हिस्सा बना और 2020 में ऑस्ट्रेलिया भी वापस जुड़ा.
क्वाड के अलावा कई अन्य सैन्य अभ्यास
आने वाले हफ्तों में भारतीय नौसेना कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय अभ्यास करेगी जिसमें आस्ट्रेलिया के साथ आस-इंडेक्स, इंडोनेशिया के साथ समुद्र-शक्ति, और सिंगापुर के साथ सिम्बेक्स अभ्यास उल्लेखनीय है. इंडो पेसिफिक में अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़ती दिलचस्पी और दक्षिण चीन सागर में चीन के दबदबे के कारण चीन अंतरराष्ट्रीय आलोचना के केंद्र में. साथ ही भारत के साथ बढ़ते तनातनी के कारण भारत भी प्रशांत क्षेत्र को अपनी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मान रहा है.
यही वजह है कि द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों के अलावा बहुपक्षीय युद्धाभ्यासों के मामले में भारतीय सेना की भागीदारी बढ़ रही है. ऑस्ट्रेलिया चाहता है कि 2023 में उसकी मेजबानी में होने वाले तलिस्मान साबर में भारत भी भाग ले. कुल मिलाकर तैयारियां काफी बड़े स्तर पर हो रही हैं और इशारा साफ तौर पर चीन की ओर है. शुरुआती हिचकिचाहट के बाद अब इन देशों को अब कोई हिचक भी नहीं रह गई है.
अमेरिकी प्रशासन का चीन की ओर ध्यान
जो बाइडेन के अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद से ही अमेरिकी सरकार का जोर क्वाड के चतुर्देशीय सहयोग को बढ़ावा देने पर रहा है. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने जिस पहली शिखरवार्ता में शिरकत की वह इसी साल मार्च में हुई क्वाड देशों की ही वर्चुअल शिखरवार्ता थी. राजनयिक सूत्रों के अनुसार अक्टूबर 2021 में क्वाड की शिखर वार्ता हो सकती है जिसमें चारों सदस्य देशों के नेता आमने-सामने बैठ कर बातचीत करें.
जहां तक चीन का सवाल है तो फिलहाल तो उसने कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन माना जा सकता है कि अपने युद्धपोत हिंद महासागर क्षेत्र में तैनात करने, क्वाड देशों की घुमा फिरा कर आलोचना करने और अमेरिका को इंडो-पैसिफिक के देशों को भड़काने का जिम्मेदार बताने के अलावा वह शायद ही कुछ करे. दस साल पहले हालात एकदम अलग थे जब चीन ने भारत, अमेरिका, जापान, और आस्ट्रेलिया को चीन-विरोधी खेमा बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाकर लताड़ा था. आज चीन अमेरिका के साथ थका देने वाले व्यापार युद्ध में उलझा है.
इलाके के देशों से चीन के बिगड़ते रिश्ते
जापान और भारत के साथ सीमा विवाद और आक्रामक रवैये से चीन के इन दोनों देशों के साथ संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं. जापान और भारत की चीन से नाराजगी इस बात में भी दिखती है कि वे अमेरिका के करीब जा रहे हैं. वहीं ऑस्ट्रेलिया, जिसके नीति निर्धारक आज से एक दशक पहले अमेरिका और चीन में से किसी एक को न चुनने की दलील देते थे, आज चीन को ऑस्ट्रलिया और चीन के संबंधों में आई कड़वाहट का जिम्मेदार बताते हैं.
दिलचस्प है कि यह आस्ट्रेलिया ही था जिसने एक दशक पहले मालाबार संयुक्त युद्धाभ्यास से यह कह कर अपने हाथ खींच लिए थे कि वह चीन के साथ अच्छे संबंधों का इच्छुक है और ऐसी किसी गतिविधि में भाग नहीं लेगा जिससे चीन से उसके संबंध खराब हों. लेकिन समय ने ऐसी कठोर करवट ली है कि वही ऑस्ट्रेलिया आज चीन के लगातार व्यापार हमलों से बेबस और बेचैन है और अब चीन के खिलाफ खड़े होने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा. (dw.com)
यूं कहने को तो चीन में साम्यवाद है, लेकिन समय समय पर राष्ट्रवाद अपना चेहरा दिखाता रहता है. ऑनलाइन युग में राष्ट्रवादी ट्रोल खेलों के सहारे अपना चेहरा दिखाते हैं. ओलंपिक के दौरान चीनी और विदेशी एथलीटों को निशाना बनाया.
डॉयचे वेले पर सुंग सिएन ली की रिपोर्ट
"मैं आप सबसे माफी मांगती हूं." टोक्यो ओलंपिक के मिक्स्ड डबल्स में जापानी टीम से खिताब हारने के बाद चीन की टेबल टेनिस खिलाड़ी ल्यू शिवेन ने कुछ इस तरह से देशवासियों का सामना किया. खिताब हारने के बाद उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए आगे लिखा, "मुझे लगता है कि मेरी वजह से टीम हार गई." मैच हारने के बाद देशवासियों से माफी मांगने वाली ल्यू अकेली एथलीट नहीं हैं. इसी तरह का माफीनामा 10 मीटर राइफल शूटिंग में क्वालिफाई न कर पाने वाले वांग लुयाओ ने भी जारी किया था.
वीबो पर एक सेल्फी पोस्ट करते हुए वांग ने लिखा था कि देशवासियों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें बहुत अफसोस है. हालांकि गुस्से से भरी तमाम टिप्पणियों के बाद उन्होंने यह पोस्ट डिलीट कर दी. एक नागरिक की टिप्पणी थी, "मैच हारने के बाद सेल्फी पोस्ट करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ गई?"
इसी तरह का एक अन्य उदाहरण ली जुन्हुई का है जिन्होंने बैडमिंटन की पुरुषों की डबल्स प्रतिस्पर्धा में अपने साथी ल्यू युचेन के साथ पिछले शनिवार को रजत पदक जीता था. चीन की लोकप्रिय माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो पर वो लिखते हैं, "मुझे अफसोस है. हमने पूरी कोशिश की, फिर भी आप सबको निराश होना पड़ा." ली ने यह टिप्पणी ताइवान के बैडमिंटन खिलाड़ियों ली यांग और वान चिलिन से हारने के बाद की थी. ओलंपिक खेलों में ताइवान का नाम "चीनी ताइपे" था और बैडमिंटन में यह उनका पहला स्वर्ण पदक था.
मैच के बाद, ली और ल्यू को भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा. चीन की सोशल मीडिया में इस पर बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं. कई चीनी नागरिकों ने खिलाड़ियों पर अच्छा प्रदर्शन न करने का आरोप लगाया. एक चीनी नागरिक की प्रतिक्रिया थी, "चीन का नाम बदनाम न करो, आप पर शर्म आती है."
'यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा'
चीन में जनता की उम्मीदों पर एथलीटों के खरा न उतर पाने के लिए माफी मांगना बहुत आम है. हालांकि, चीन और अन्य देशों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने गुस्से में राष्ट्रवादी टिप्पणियों की संख्या और तीव्रता को और ज्यादा बढ़ा दिया है. शू गुओकी हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में वैश्वीकरण के इतिहास के प्रोफेसर और विशेषज्ञ हैं और उन्होंने चीन और खेल पर एक पुस्तक भी लिखी है. उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि चीन की सरकार एथलीटों के प्रशिक्षण पर काफी पैसा खर्च करती है. इसलिए, उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है और ऐसा करना एथलीटों की जिम्मेदारी समझी जाती है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में शू गुओकी कहते हैं, "यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा." शू जोर देकर कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के बारे में चीन का दृष्टिकोण पश्चिमी देशों से अलग है. वो कहते हैं, "यह सब राष्ट्रवाद के बारे में है. चीन अच्छे प्रदर्शन के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाना चाहता है कि वो खेलों में कितना समृद्ध और मजबूत है." शू कहते हैं कि चीन का राष्ट्रवाद साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान अपने चरम पर था.
चीन को महान और मजबूत दिखाने को उत्सुक
टोबियास जुसर हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में ग्लोबल स्टडीज प्रोग्राम में लेक्चरर हैं. जुसर भी कहते हैं कि यहां यह बात आमतौर पर प्रचलित है कि चीन के एथलीटों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र की सेवा करना है. ज़ुसर कहते हैं कि पिछले ओलंपिक खेलों के समय की तुलना में, चीनी राष्ट्रवाद इस साल वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल को देखते हुए हो सकता है कि कुछ ज्यादा ही बढ़ गया हो. वे कहते हैं, "कोविड-19 महामारी के मद्देनजर चीन विरोधी बयानबाजी में वृद्धि ने निश्चित रूप से इस राष्ट्रवाद को बढ़ाने में योगदान दिया है. चीन घरेलू राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता देना चाहता है, अपने स्वयं के नागरिकों के प्रभुत्व को प्रदर्शित करता है और महाशक्ति कथा को रेखांकित करता है."
कुछ इसी तरह के विचार नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर चुआंग जिया यिंग भी रखती हैं. वो कहती हैं कि हाल के वर्षों में देश की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति के कारण चीन की वैश्विक छवि प्रभावित हुई है. इसलिए राष्ट्रवादी चीनी चिंतित हैं और दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश महान और मजबूत है.
चीन में अति राष्ट्रवादी लोगों को "लिटिल पिंक" कहा जाता है. चुआंग कहती हैं कि ये लोग इंटरनेट का उपयोग करने वाले युवा लोग हैं जो चीन को इंटरनेट पर सेंसर करने पर अन्य इंटरनेट माध्यमों को अपने राष्ट्रवादी विचारों को व्यक्त करने के लिए चुन लेते हैं. वो कहती हैं, "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है और राष्ट्रवाद को प्रेरित करने का यह नया तरीका है. विदेशी एथलीटों और ताइवान सेलेब्रिटीज की ट्रोलिंग करना भी इसमें शामिल है."
हालांकि चीन के ऐसे ट्रॉल्स की लिस्ट में सिर्फ चीन के ही एथलीट नहीं है. जिम्नास्टिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले जापान के जिम्नास्ट डाइकी हाशिमोटो को चीनी नागरिकों ने "राष्ट्रीय अपमान" तक कह डाला. स्कोर बोर्ड पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए इन लोगों ने ओलंपिक जजों को भी इस बात के लिए कठघरे में खड़ा कर डाला कि हाशिमोटो के लिए पक्षपात किया गया. इस आलोचना के कारण इंटरनेशनल जिम्नास्टिक फेडरेशन को एक बयान देकर स्पष्ट करना पड़ा कि जजों ने "निष्पक्ष और सही" काम किया.
एक अन्य जापानी एथलीट मीमा इटो भी चीनी राष्ट्रवादियों के सोशल मीडिया में निशाने पर रहीं जब अपने पार्टनर मिजुतानी के साथ उन्होंने टेबल टेनिस के मिक्सड डबल्स में चीनी खिलाड़ियों को हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया. इटो और मिजुतानी ने दावा किया कि उन्हें सोशल मीडिया पर गालियां दी गईं और जान से मारने की धमकी तक दी गई. जुसर कहते हैं कि जापानियों को टार्गेट करना चीनी लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि चीन और जापान एक-दूसरे के ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी हैं.
कुछ भी हो, चीन में इस साल लोगों के उम्मीदें अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा रहीं और जब राष्ट्र गौरव की बात आ जाती है तो ऐसा होना स्वाभाविक है और ऐसा लगता है कि तब सब कुछ दांव पर लगा दिया जाए. चीन के राष्ट्रवादी लोगों की ट्रॉलिंग सिर्फ एथलीटों तक सीमित नहीं है बल्कि मनोरंजन जगत भी इससे अछूता नहीं है. ताइवान के टीवी होस्ट डी ह्सू और ताइवान के पॉप स्टार जोलिन त्साई ट्रॉल्स के निशाने पर खूब रहे हैं.
ह्सू ने ताइवान के एथलीटों की उपलब्धि पर अपनी खुशी को इंस्टाग्राम पर शेयर किया और उन्हें "राष्ट्रीय खिलाड़ियों" की संज्ञा दी. चीनी ट्रॉल्स ने इसे ताइवान की आजादी के तौर पर व्याख्यायित किया गया. इस बीच, त्साई ने ताइवान एथलीटों को उनकी जीत पर बधाई देते हुए अपनी फेसबुक पेज पर उनकी तस्वीरें पोस्ट कीं. चीनी नागरिकों ने उनकी इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने चीनी खिलाड़ियों की जीत का जश्न क्यों नहीं मनाया. चीन, ताइवान को अपना एक हिस्सा मानता है और दोनों के बीच पिछले कुछ सालों से काफी तनाव रहा है.
ट्रॉलिंग को लेकर एथलीट चिंतित हैं
यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ओलंपिक खेलों के दौरान ट्रॉलिंग का ट्रेंड क्या चीन में राष्ट्रवाद की वृद्धि को दर्शाता है. लेकिन दूसरे देशों के एथलीट इस बात को लेकर जरूर चिंतित हैं कि वो चीनी नागरिकों के निशाने पर हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी के टेबल टेनिस खिलाड़ी दिमित्रि ओव्टाकारोव ने सोशल मीडिया में एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि ताइवान के खिलाड़ी के खिलाफ मुकाबला जीतना बड़ा कठिन था और उसके अगले दिन यानी 3 अगस्त को उन्हें जापान के खिलाड़ी का सामना करना होगा.
कुछ चीनी नागरिकों ने इस पोस्ट पर यह कहते हुए टिप्पणी की कि ताइवान को "चीनी ताइपे" कहना चाहिए. दो घंटे के बाद ओव्टाकारोव को अपनी पोस्ट को एडिट करना पड़ा और उन्होंने "ताइवान" और "जापान" शब्दों को बिना कोई वजह बताए हटा दिया. (dw.com)
खुद को 'इस्लामिक स्टेट' कहने वाले चरमपंथी संगठन ने अफ़ग़ानिस्तान के हालिया घटनाक्रम पर कहा है कि तालिबान को वहां कोई जीत हासिल नहीं हुई है बल्कि अमेरिका ने इस मुल्क की कमान उन्हें सौंप दी है.
'इस्लामिक स्टेट' ने अपने साप्ताहिक अख़बार अल-नबा के 19 अगस्त के संपादकीय में कहा है, "ये अमन के लिए जीत है, इस्लाम के लिए नहीं. ये सौदेबाज़ी की जीत है न कि जिहाद की."
आईएस ने 'नए तालिबान' को 'इस्लाम का नक़ाब पहने' एक ऐसा 'बहुरूपिया' करार दिया जिसका इस्तेमाल अमेरिका मुसलमानों को बरगलाने और क्षेत्र से इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति ख़त्म करने के लिए कर रहा है.
इससे पहले इस्लामिक स्टेट के समर्थक ये आरोप लगाते रहे हैं कि तालिबान अमेरिका के गंदे कामों को अंज़ाम दे रहा है.
अपने ताज़ा बयान में आईएस ने कहा है कि वे जिहाद के नए चरण की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया है कि उनका अगला टारगेट क्या है लेकिन जिस संदर्भ में उन्होंने ये बात कही, उससे ये अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि वे अफ़ग़ानिस्तान की ओर संकेत कर रहे हैं.
वो भारतीय महिला जो तालिबान के क़ब्ज़े से पहले अफ़ग़ान जेल में क़ैद थी
तालिबान और इस्लामिक स्टेट की अदावत
अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी को कमज़ोर करने में तालिबान की अहम भूमिका रही है. ख़ासकर साल 2019 में इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ तालिबान, अमेरिका और अफ़ग़ान सुरक्षा बलों ने एक साथ मोर्चा खोल दिया था जिससे पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में आईएस को अपना मजबूत किला गंवाना पड़ा.
इसके बाद से इस्लामिक स्टेट तालिबान पर अमेरिका के साथ मिलीभगत करने का इलज़ाम लगाता रहा है.
फरवरी, 2020 में तालिबान ने अमेरिका के साथ ये समझौता किया था कि वे अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे जिहादी गुटों को नहीं करने देंगे. इस पर इस्लामिक स्टेट ने कहा था कि वे ऐसे समझौतों से बंधे हुए नहीं हैं और अफ़ग़ानिस्तान में अपना जिहाद जारी रखेंगे.
अपने ताज़ा संपादकीय में इस्लामिक स्टेट ने तालिबान के उस वादे पर संदेह जताया है जिसमें 'वास्तविक' शरिया क़ानून को लागू करने की बात कही गई थी.
दोनों की लड़ाई कब शुरू हुई थी?
छह साल पहले साल 2015 के जनवरी महीने में दोनों गुटों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ जंग का एलान कर दिया था. तब इस्लामिक स्टेट ने अपनी 'खुरासन शाखा' के गठन की घोषणा की थी. अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों को इतिहास में खुरासन के नाम से जाना जाता है. तब ये पहली बार हुआ था कि इराक़ और सीरिया में अपनी जड़े रखने वाले इस्लामिक स्टेट ने पहली बार अरब दुनिया से बाहर अपने विस्तार की घोषणा की थी.
इस्लामिक स्टेट या दाएश पहला ऐसा बड़ा चरमपंथी संगठन है जिसने तालिबान के तत्कालीन नेता मुल्ला मोहम्मद उमर की सत्ता को चुनौती दी थी. तालिबान के लड़ाके मुल्ला मोहम्मद उमर को 'इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान' के 'आमिर-उल-मोमिन' (वफ़ादारों का लीडर) माना जाता था.
अल-कायदा के नेताओं ने तालिबान की पनाह ली थी और वे मुल्ला मोहम्मद उमर की सत्ता को स्वीकार करते थे लेकिन इस्लामिक स्टेट उनकी खुलकर मुफालफत किया करता था. आईएस का ये इलज़ाम था कि तालिबान पाकिस्तान की आईएसआई के हितों को बढ़ावा दे रहा है.
इस्लामिक स्टेट बनाम इस्लामिक अमीरात
दोनों जिहादी गुटों के बीच कई मुद्दों को लेकर मतभेद रहे हैं. इस्लामिक स्टेट एक ऐसा चरमपंथी संगठन है जो ऐसे वैश्विक जिहाद की बात करता है जो किसी देश की सरहद से बंधा हुआ नहीं हो. आईएस का लक्ष्य सभी मुस्लिम देशों और इलाकों के लिए एक राजनीतिक इकाई की स्थापना रही है.
दूसरी तरफ़ तालिबान का जोर इस बात पर रहा है कि उनके एजेंडे का दायरा केवल अफ़ग़ानिस्तान तक सीमित है. 'अफ़ग़ानिस्तान को विदेशी कब्ज़े से मुक्त कराना' उनका घोषित लक्ष्य रहा है. तालिबान लंबे समय समय से इस बात ज़ोर देता रहा है कि सभी विदेशी सेनाओं को अफ़ग़ानिस्तान से चले जाना चाहिए.
दोनों संगठनों के बीच धार्मिक मसलों पर भी मतभेद हैं. तालिबान मूलत: सुन्नी इस्लाम की हनफी शाखा पर अमल करने वाले लोग हैं. ज़्यादातर सुन्नी अफ़ग़ान इसी धारा के लोग हैं. दूसरी तरफ़ इस्लामिक स्टेट सुन्नी इस्लाम की वहाबी/सलफी शाखा को मानने वाले लोग हैं. (bbc.com)
ढाका, 20 अगस्त| बांग्लादेश के जॉयपुरहाट में शुक्रवार को एक युवक ने ट्रेन को झंडी दिखाने और रेल लाइन टूट जाने के बाद एक बड़ी दुर्घटना को रोकने के लिए बड़ी होशियारी का परिचय दिया। यह घटना जिले के पंचबीबी उपजिला से हुई, जब शुक्रवार की सुबह पंचगढ़ एक्सप्रेस एक इंटरसिटी ट्रेन से गुजरने वाली थी।
पंचबीबी उपजिला के कोकतारा गांव के 28 वर्षीय शफीकुल इस्लाम ने कहा कि वह अपने घर के पास रेल लाइन के किनारे चल रहे थे कि अचानक उन्हें टूटी हुई रेलवे लाइन दिखाई दी।
ट्रेन को आते देख वह तुरंत घर की ओर दौड़ा, लाल तौलिया लिया और उसे लहराया और ट्रेन के चालक ने टूटे हुए हिस्से से थोड़ा पहले ही ट्रेन रोक दी।
इंजन चालक शाह आलम ने कहा, "ट्रेन 80 किमी प्रति घंटे की गति से चल रही थी। मैंने जैसे ही युवक को लाल तौलिया लहराते हुए देखा, मैंने ट्रेन को रोकने का फैसला किया। मैं वहां नीचे गया और लगभग लाइन में आठ इंच का एक गेप देखा। टूटी हुई लाइन पर ट्रेन चलाने से भयंकर दुर्घटना हो सकती थी।"
रेलवे अधिकारियों ने लाइन के टूटे हुए हिस्से की मरम्मत की और ट्रेन दो घंटे बाद स्टेशन से पंचगढ़ के लिए रवाना हुई।
पंचबीबी के स्टेशन मास्टर अब्दुल अवल ने बताया कि घटना शुक्रवार की सुबह स्टेशन के पास हुई और दो घंटे के लिए सुबह करीब 10 बजे तक मरम्मत का काम होने तक ट्रेन सेवा रोक दी गई। (आईएएनएस)
लाहौर, 20 अगस्त | यहां की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने शुक्रवार को उस व्यक्ति को गिरफ्तारी के बाद जमानत दे दी, जिसने इस सप्ताह की शुरूआत में लाहौर किले में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह की एक प्रतिमा को तोड़ा था। शुक्रवार को आरोपी रिजवान को कोर्ट में पेश किया गया। कार्यवाही के दौरान, जांच अधिकारी ने अदालत से पूछा कि क्या उसे न्यायिक रिमांड पर भेजे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
इस बीच, आरोपी के वकील ने अदालत को सूचित किया कि पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर ली है और आरोपी के कब्जे से एक हथौड़ा बरामद किया है।
उन्होंने आगे अदालत से गुहार लगाई कि जिन धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है, वे जमानती हैं और अदालत से आरोपी को जमानत देने का अनुरोध किया।
इसके बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट के जज ने आरोपी को जमानत दे दी।
प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के कार्यकर्ता आरोपी को मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया गया।
वायरल हुए एक वीडियो में, रिजवान को नारे लगाते और मूर्ति की बांह को तोड़ते हुए और फिर घोड़े से सिंह की प्रतिमा को पूरी तरह से हटाते हुए देखा जा सकता है।
यह तीसरी बार है जब महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा के 2019 में अनावरण के बाद से शासक की 180 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में तोड़ा गया है।
बर्बरता की पहली घटना तब हुई जब दो लोगों ने उस पर लकड़ी की छड़ों से प्रहार किया, जिससे मूर्ति का एक हाथ टूट गया जबकि अन्य हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गए। तोड़फोड़ करने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने का विरोध कर रहे थे, जिसने तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था।
दूसरी घटना दिसंबर 2020 में सामने आई थी, जब एक व्यक्ति ने मूर्ति का एक हाथ तोड़ दिया था। कथित तौर पर एक धार्मिक समूह के सक्रिय सदस्य ने बाद में अपना अपराध कबूल कर लिया था।
लाहौर के अधिकारियों ने किले पर दर्जनों गार्ड तैनात करने का दावा किया है। (आईएएनएस)
क्वेटा (पाकिस्तान), 20 अगस्त| बलूचिस्तान प्रांत के बंदरगाह शहर ग्वादर में शुक्रवार को एक संदिग्ध आत्मघाती हमले में दो बच्चों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। सूत्रों ने कहा कि ग्वादर एक्सप्रेसवे पर एक चीनी वाहन के पास विस्फोट हुआ, जिसमें दो बच्चों की मौत हो गई और एक चीनी नागरिक सहित अन्य घायल हो गए।
घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है।
पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां विस्फोट स्थल पर पहुंच गई हैं और आगे की जांच के लिए इलाके की घेराबंदी कर दी गई है।
यह घटना बलूचिस्तान विधानसभा और उच्च न्यायालय के पास क्वेटा के हली रोड चौराहे पर एक मोटरसाइकिल बम विस्फोट के दो सप्ताह से भी कम समय बाद हुई है, जिसमें दो पुलिसकर्मियों की जान चली गई, जबकि 12 पुलिसकर्मियों सहित 21 अन्य घायल हो गए।
पाकिस्तान के बंदरगाह शहर ग्वादर में पानी और बिजली की भारी कमी और आजीविका के लिए खतरों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं। जिसके लिए चीनियों को दोषी ठहराया गया है।
इस हफ्ते, मछुआरों और अन्य स्थानीय श्रमिकों सहित प्रदर्शनकारियों ने बलूचिस्तान के तटीय शहर ग्वादर में सड़कों को जाम कर दिया था।
उन्होंने टायर जलाए, नारे लगाए और पानी और बिजली की मांग के लिए शहर को बंद कर दिया और चीनी ट्रॉलरों को पास के पानी में अवैध रूप से मछली पकड़ने और फिर चीन को पकड़ने के लिए रोक दिया था।
अधिकारियों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई कार्रवाई में दो लोग घायल हो गए।
एक स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ता फैज निगोरी ने कहा, "हम एक महीने से अधिक समय से चीनी ट्रॉलरों और पानी और बिजली की कमी के खिलाफ विरोध और रैली कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने कभी भी हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। हमें पूर्ण बंद हड़ताल का पालन करना पड़ा और जिला प्रशासन द्वारा हम पर हमला किया गया।" (आईएएनएस)
-सारा अतीक़
दुनिया के कई नेताओं ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने को बेताब लोगों की मदद करने का वादा किया है. लेकिन, ऐसा लगता है कि उनकी मदद बढ़ने की बजाए उनकी राह में रूकावटें बढ़ती जा रही हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि शरणार्थियों की मदद के लिए इस समय दुनिया में क्या हो रहा है? सवाल यह भी उठता है कि कहीं अब अंतरराष्ट्रीय प्रवासी संकट तो नहीं मंडरा रहा है?
सतह पर देखें तो अभी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सबसे व्यस्त सीमा पर स्थिति लगभग सामान्य-सी दिख रही है. लेकिन ज़रा ग़ौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि अब कितना कुछ बदल गया है.
कुछ दिन पहले, घबराए हुए सैकड़ों अफ़ग़ान सीमावर्ती शहर तोर्ख़म में इकट्ठा हुए थे. लेकिन केवल व्यापारियों या वैध यात्रा दस्तावेज़ों वाले लोगों को ही सीमा पार करने की अनुमति दी जा रही है. पाकिस्तान सीमा पर मौजूद अधिकारियों ने बीबीसी उर्दू को बताया कि उन्होंने पाकिस्तान में आने की कोशिश करने वालों की जांच पहले से बढ़ा दी है.
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने बताया कि पाकिस्तान में पहले से ही क़रीब 14 लाख पंजीकृत अफ़ग़ान दशकों से रह रहे हैं. गैर-पंजीकृत लोगों को ध्यान में रखेंगे तो ये आंकड़ा दोगुना हो जाता है.
बढ़ती रुकावटें
तालिबान के क़ब्ज़े के बाद, संभावित बड़े प्रवासी संकट से बचाव के लिए दुनिया के कई देशों ने उपाय करना शुरू कर दिया है.
यूएनएचसीआर के अनुसार, ईरान में अभी क़रीब 7,80,000 अफ़ग़ान वैध रूप से रहे हैं. ईरान ने अब सीमा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे किसी भी अफ़ग़ान को अपने देश में न आने दें.
तुर्की में इस समय सीरिया के 36 लाख पंजीकृत शरणार्थियों के साथ दूसरे देशों के भी 3.2 लाख शरणार्थी रह रहे हैं. वह लंबे समय से ईरान के ज़रिए अपने देश में आने वाले अफ़ग़ान प्रवासियों की संभावित लहर से परेशान है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने ईरान से लगती अपनी सीमा पर एक दीवार खड़ी करने का वादा किया है. यहां पिछले कुछ हफ़्तों में सैकड़ों अफ़ग़ान सीमा पार कर देश में घुस चुके हैं.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय मदद के लिए क्या कर रहा है?
इस बीच, अमेरिका और यूरोपीय देश पिछले 20 साल के सैन्य अभियान के दौरान अपने साथ काम कर चुके अफ़ग़ानिस्तान के हजारों इंटरप्रेटर और अन्य स्टाफ़ को वहां से निकाल रहे हैं.
इसके लिए अमेरिका ने 26 हज़ार से अधिक विशेष आप्रवासी वीज़ा (एसआईवी) जारी किया है ताकि उनके काम आ चुके लोगों और उनके परिवार वालों को अमेरिका ले जाया जा सके.
अमेरिका की उप-विदेश मंत्री वेंडी शरमन ने बुधवार को बताया कि अमेरिकी सैन्य विमानों ने पिछले 24 घंटों में क़रीब दो हज़ार लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकाला है.
हालांकि उन्होंने कहा कि तालिबान अपने सार्वजनिक बयानों के विपरीत देश से बाहर जाने वाले अफ़ग़ानों को एयरपोर्ट तक पहुंचने से रोक रहा है.
अमेरिका के अनुरोध पर युगांडा भी 2,000 अफ़ग़ानियों को अपने यहां शरण देने पर सहमत हो गया है.
इस बीच, कनाडा ने घोषणा की है कि तालिबान के प्रतिशोध से लोगों को बचाने के लिए वह 20 हज़ार महिला नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को शरण देगा.
ब्रिटेन ने भी पांच साल के दौरान 20 हज़ार लोगों को अपने यहां बसाने का वादा किया है. इसके तहत पहले 5,000 शरणार्थियों के इस साल आने की उम्मीद है.
बुधवार को उज़्बेकिस्तान से अफ़ग़ान शरणार्थियों को लेकर आने वाली पहली फ़्लाइट जर्मनी पहुंची.
जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ने कहा है कि 10,000 लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने की आवश्यकता होगी. इन लोगों में अफ़ग़ानों के साथ जर्मन लोगों के साथ काम करने वाले लोग, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और ख़तरे में पड़े अन्य लोग शामिल हैं.
वो अफ़ग़ान महिला जो तालिबान के साथ मिलकर महिलाओं के लिए काम करना चाहती हैं
वहीं यूरोपीय संघ के नेताओं ने चिंता जताई है कि अफ़ग़ानिस्तान की ताज़ा स्थिति के बाद यूरोप में बड़ा प्रवासी संकट आ सकता है.
सोमवार को एक टीवी संबोधन में, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यूरोप के देशों को "प्रवासियों के वृहत अनियमित प्रवाह से ख़ुद को बचाना और इनकी संख्या का अनुमान लगाना चाहिए."
'लोगों को सुरक्षित लेकर आएं'
अफ़ग़ान संकट पर पश्चिमी देशों के रुख़ ने पहले ही इस आलोचना को जन्म दे दिया कि ऐसे देश जोख़िम के वक़्त अफ़ग़ानों की पर्याप्त मदद नहीं कर रहे.
शरणार्थियों के लिए काम करने वाली एलीना ल्यापिना ने कहा कि उनकी सरकार अफ़ग़ानियों की मदद करने में विफल हो गई है. उन्होंने इस बारे में बर्लिन में एक विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया जिसकी मांग थी कि जर्मन सरकार और अधिक शरणार्थियों को अपने यहां बुलाए.
एलीना ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "हम ख़तरे में पड़े अफ़ग़ानियों की सुरक्षा के लिए उन्हें तत्काल एयरलिफ़्ट करके जर्मनी लाने की मांग करते हैं."
कुछ समय पहले तक पश्चिमी देश अफ़ग़ानिस्तान से दूसरे देशों में रहने गए लोगों को वापस उनके देश भेजने वाली उड़ानें चला रहे थे.
बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रांडी ने ऐसे देशों से अनुरोध किया था कि वे आगे से निर्वासन की इस मुहिम को रोक दें.(bbc.com)
ग्रांडी ने अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों, विशेषकर ईरान और पाकिस्तान से अपील की कि वे ख़तरे में पड़े अफ़ग़ानों को बचने के लिए अपनी सीमाओं को खोल दें.
हालांकि फ़िलिपो ग्रांडी ने स्वीकार किया है कि ये दोनों देश लंबे समय से अफ़ग़ानों के लिए एक आश्रय स्थल रहे हैं. उन्होंने कहा कि शरणार्थी समस्या से निपटने के लिए इन देशों को आगे शायद ख़ासी वित्तीय और रसद की जरूरत पड़ेगी.
लंबी अवधि के दौरान इस संकट को दूर करने के लिए एक बड़े पुनर्वास कार्यक्रम की आवश्यकता हो सकती है.
हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें संदेह है कि बड़े पैमाने पर प्रवासी संकट पैदा होगा क्योंकि अफ़ग़ानों को बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है.
उन्होंने आगे कहा, "हम एक महत्वपूर्ण चीज़ न भूलें, वो ये कि अफ़ग़ानिस्तान के भीतर ही क़रीब 30 लाख लोग विस्थापित हैं. लाखों लोग पिछले कुछ दिनों में विस्थापित हुए हैं. उन्हें तत्काल मदद की आवश्यकता है."
ग्रांडी के अनुसार, "अफ़ग़ानिस्तान में आए भूचाल के बावजूद हालात को शांत करने के लिए काम जारी रखने वाली मानवतावादी संस्थाओं की मदद करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि ज़्यादातर लोगों के लिए यही प्रयास एकमात्र सहारा होगा."
मोगादिशु, 20 अगस्त | सोमालिया की राजधानी मोगादिशु में एक आत्मघाती बम विस्फोट में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। एक पुलिस अधिकारी ने यह जानकारी दी। अधिकारी ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि गुरुवार को जुबा जंक्शन के रेस्तरां में एक आत्मघाती हमलावर घुस गया और उसने खुद को बम से उड़ा लिया, जिससे कई लोग हताहत हो गए।
उन्होंने कहा, "अब तक, हम जानते हैं कि आत्मघाती हमलावर सहित चार लोग मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हुए हैं।"
हमले का दृश्य राष्ट्रीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसी (एनआईएसए) मुख्यालय के पास है और रेस्तरां में सुरक्षा बलों का आना-जाना लगा रहता है।
अधिकारियों ने इसकी जानकारी नहीं दी कि विस्फोट में सुरक्षा अधिकारी हताहत हुए हैं या नहीं, जो कि उच्च सदन के चुनाव के रूप में आते हैं।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि सुरक्षा बलों ने घटनास्थल को सील कर दिया है।
किसी भी समूह ने अशांत शहर में हुए ताजा हमले की तत्काल जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन अलकायदा से संबद्ध आतंकवादी समूह आमतौर पर ऐसे हमलों को अंजाम देता है।
सोमालिया में आतंकवादियों ने हमले तेज कर दिए हैं, जबकि सरकारी बलों ने हाल के महीनों में मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में चरमपंथियों के खिलाफ सघन अभियान चलाए हैं। (आईएएनएस)
खारतूम, 20 अगस्त | सूडान के अधिकारियों ने घोषणा की है कि हाल ही में देश में आई मूसलाधार बारिश और बाढ़ से 43 लोगों की मौत हो गई है। सूडान की राष्ट्रीय नागरिक सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता अब्दुल-जलील अब्दुल रहीम ने गुरुवार को एक बयान में कहा, "कुल 43 लोग मारे गए हैं और हजारों घर ढह गए हैं।"
उन्होंने कहा कि 2,838 घर पूरी तरह से ढह गए हैं, जबकि 8,621 अन्य आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने बताया कि नील नदी के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। उन्होंने साथ ही देश के दक्षिणी हिस्से के नागरिकों से बारिश के मौसम के अगले चरण के दौरान भारी बारिश की उम्मीदों के बीच सतर्क रहने का आग्रह किया।
बुधवार को संयुक्त राष्ट्र की मानवीय एजेंसी ओसीएचए ने कहा कि देश के 18 राज्यों में से आठ में करीब 12,000 लोग भारी बारिश से प्रभावित हुए हैं।
सूडान अक्सर जून से अक्टूबर तक भारी बारिश के कारण बाढ़ का गवाह बनता है।
पिछले साल बाढ़ ने 138 लोगों की जान ले ली थी और सूडान में हजारों घर तबाह हो गए थे। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 20 अगस्त | टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलोन मस्क ने घोषणा की है कि उनकी कंपनी ह्यूमनॉइड रोबोट पर काम कर रही है और इसका प्रोटोटाइप अगले साल लाएगा। मस्क ने गुरुवार को 'एआई डे' कार्यक्रम के दौरान घोषणा की कि 5.8 इंच के बॉट का उपयोग टेस्ला कारखानों में स्वचालित मशीनों को संभालने के लिए किया जाएगा, साथ ही कुछ हार्डवेयर और सॉ़फ्टवेयर जो ऑटोपायलट ड्राइवर सहायता सॉ़फ्टवेयर को शक्ति प्रदान करते हैं।
मस्क ने कहा, मूल रूप से, यदि आप सोचते हैं कि हम कारों के साथ अभी क्या कर रहे हैं, तो टेस्ला यकीनन दुनिया की सबसे बड़ी रोबोटिक्स कंपनी है क्योंकि हमारी कारें पहियों पर अर्ध-संवेदी रोबोट की तरह हैं।
उन्होंने कहा, बॉट का उद्देश्य दोस्ताना और मनुष्यों के लिए बनाई गई दुनिया के माध्यम से नेविगेट करना है।
टेस्ला रोबोट का वजन 125 पाउंड होगा और इसकी चाल 5 मील प्रति घंटे की होगी। साथ ही चेहरे पर एक स्क्रीन होगी।
कंपनी ने कहा, बॉट का कोड नाम ऑप्टिमस है।
रोबोटों को असुरक्षित, रेपिटेशन या बोरिंग कमों को करने के लिए डिजाइन किया जाएगा।
टेस्ला के अनुसार, इसका उद्देश्य अगली जनरेशन के स्वचालन को विकसित करना है, जिसमें एक सामान्य उद्देश्य, द्वि-पेडल, ह्यूमनॉइड रोबोट शामिल है।
कंपनी ने कहा, हम अपने कारों की लाईन से परे हमारी एआई विशेषज्ञता का लाभ उठाने में मदद करने के लिए मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंट्रोल और सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की तलाश कर रहे हैं। (आईएएनएस)
संजीव शर्मा
न्यूयॉर्क, 20 अगस्त | अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की अराजक और दुखद वापसी के मुद्दे पर चुप्पी बरकरार रखने पर अमेरिकियों ने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के प्रति नाराजगी जताई है।
गुरुवार को जारी रासमुसेन रिपोर्ट्स सर्वेक्षण के अनुसार, 55 प्रतिशत संभावित मतदाताओं का कहना है कि कैलिफोर्निया के पूर्व सीनेटर राष्ट्रपति पद के कर्तव्यों को संभालने के लिए 'योग्य नहीं' या 'बिल्कुल योग्य नहीं' हैं।
न्यूयार्क पोस्ट के अनुसार, इसके विपरीत, 43 प्रतिशत हैरिस को कमांडर इन चीफ के रूप में 'योग्य' या 'बहुत योग्य' मानते हैं।
इसी सर्वेक्षण में अप्रैल में पाया गया था कि 49 प्रतिशत संभावित मतदाताओं ने कहा कि हैरिस राष्ट्रपति बनने के योग्य हैं, हालांकि 51 प्रतिशत मतदाताओं ने उनके बारे में 'प्रतिकूल' राय दी थी।
मतदान 12 से 15 अगस्त के बीच हुआ, जब तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान में अपने व्यापक हमले शुरू कर दिए थे, जिसके कारण अमेरिकी लड़ाकू बलों की पूरी वापसी से कुछ सप्ताह पहले देश की पश्चिमी समर्थित सरकार का पतन हो गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हैरिस ने पिछले हफ्ते से कोई सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया है।
तब से, उन्होंने राष्ट्रपति बाइडेन और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम के साथ कम से कम चार ब्रीफिंग में भाग लिया है, लेकिन अफगानिस्तान के बारे में अपने सार्वजनिक बयानों को ट्विटर तक ही सीमित कर दिया है। (आईएएनएस)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वे अमीर और गरीब के बीच की खाई को न बढ़ाएं. डब्ल्यूएचओ ने अमीर देशों के अपने नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक देने की योजना की आलोचना की है.
कुछ विकसित और अमीर देशों ने अपने नागरिकों को कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक देने का फैसला किया है. इस्राएल में वैक्सीन की तीसरी खुराक पहले से ही दी जा रही है. कुछ ऐसा ही फैसला अमेरिका ने भी किया है. यूरोपीय देशों में भी कुछ ऐसा ही करने का विचार किया जा रहा है.
इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आपातकाल प्रमुख माइकल रायन ने इस विचार का मजाक उड़ाते हुए कहा, "हम उन लोगों को अतिरिक्त लाइफ जैकेट देने की योजना बना रहे हैं जिनके पास पहले से लाइफ जैकेट हैं, जबकि हम अन्य लोगों को डूबने के लिए छोड़ रहे हैं."
वैक्सीन की तीसरी खुराक
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के निदेशक रोशेल वलेंस्की ने कहा कि अमेरिकी नागरिकों को तीसरी खुराक दी जाएगी और उनका मुख्य लक्ष्य अमेरिकियों को वैसे भी सुरक्षित रखना था.
कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक के बारे में अमेरिकी और इस्राएली वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के साथ इंसानी शरीर में वैक्सीन की प्रभावशीलता कम होने लगती है और इसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए तीसरी खुराक या बूस्टर डोज की जरूरत होती है. इनमें से कई देश नए कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट को खतरनाक स्ट्रेन मानते हैं.
डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामले के बाद इस्राएली सरकार ने 50 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को टीके की तीसरी खुराक देना शुरू कर दिया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन अभी तक कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक देने पर सहमत नहीं हुआ है. बूस्टर डोज की जरूरत के बारे में संगठन कम आश्वस्त है. उसका कहना है कि विज्ञान ने अभी तक बढ़ी हुई प्रभावशीलता का स्पष्ट प्रमाण नहीं दिया है.
वैक्सीन में भी भेदभाव
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने भी पहली खुराक देने के बजाय पहले से सुरक्षित लोगों को तीसरा टीका देने के लिए दुनिया के ऐसे देशों की आलोचना की है. गेब्रयेसुस का कहना है कि इस प्रक्रिया से अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होगी.
गेब्रयेसुस ने वैक्सीन निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की भी आलोचना की है. गेब्रयेसुस ने अमेरिकी वैक्सीन निर्माता कंपनी के बारे में उन रिपोर्टों का जिक्र किया जिनमें कहा जा रहा है कि कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका में बने लाखों टीके को समृद्ध यूरोपीय संघ के देशों में बूस्टर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भेज दिया है.
महानिदेशक ने दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन को प्राथमिकता के आधार पर अफ्रीकी देशों को अपने टीके उपलब्ध कराने के लिए कहा है. उनका कहना है कि अमीर देशों के पास पहले से ही अन्य टीकों की आसान पहुंच है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)