अंतरराष्ट्रीय
इस्लामाबाद, 13 अगस्त | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान सरकार इस्लामाबाद को लेकर बेहद आलोचनात्मक हो रही है, उसे लगता है कि पाकिस्तान के पास तालिबान को मनाने के लिए कुछ जादुई शक्तियां हैं। डॉन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि वास्तव में तालिबान को राजी करना ज्यादा मुश्किल हो गया है।
उन्होंने कहा, "अब, तालिबान पर हमारा प्रभाव बहुत कम है क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्होंने अमेरिकियों के खिलाफ जीत हासिल की है।"
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के फोन कॉल पर विवाद के बारे में, प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं सुनता रहता हूं कि राष्ट्रपति बाइडेन ने मुझे कॉल नहीं किया है। यह उनका बिजनेस है। ऐसा नहीं है कि मैं किसी फोन कॉल की प्रतीक्षा कर रहा हूं।"
खान की टिप्पणी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ के यह कहने के कुछ दिनों बाद आई है कि यदि बाइडन उनके नेतृत्व की अनदेखी करते रहे तो पाकिस्तान के पास अन्य विकल्प हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 31 अगस्त तक अमेरिकी सैनिकों के पूरी तरह से संघर्ष प्रभावित देश से बाहर निकलने के बाद पाकिस्तान तालिबान को काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को सुरक्षित करने के लिए तुर्की के साथ सीधी बातचीत करने के लिए मनाएगा।
प्रधानमंत्री आवास में विदेशी मीडियाकर्मियों से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हम तुर्की और तालिबान के लिए आमने-सामने बातचीत करने के लिए सबसे अच्छी कोशिश करेंगे, ताकि दोनों काबुल हवाई अड्डे को सुरक्षित करने के कारणों के बारे में बात कर सकें।"
वह एक पत्रकार द्वारा सरकार की स्थिति के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे जब तुर्की ने काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए खुद, पाकिस्तान और हंगरी को शामिल करने वाले एक नए संयुक्त मिशन का प्रस्ताव रखा था।
खान ने बुधवार को तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकार के साथ अपनी बैठक का उल्लेख किया, इस दौरान उन्होंने अफगानिस्तान सहित क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति पर भी चर्चा की।
उन्होंने कहा, "हम तालिबान से भी बात करेंगे और अपने प्रभाव (तुर्की सरकार के साथ बैठक के लिए) का इस्तेमाल करेंगे।" (आईएएनएस)
काबुल, 13 अगस्त | अफगानिस्तान के वर्दक में पुलिस ने तालिबान को प्रमुख प्रांत सौंपने के आरोप में गजनी के गवर्नर दाउद लघमनी को गिरफ्तार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि गवर्नर को उनके डिप्टी और चीफ ऑफ स्टाफ के साथ वर्दक प्रांत में गिरफ्तार कर लिया है।
तालिआन नक लघमनी को जाने दिया और उसे गजनी से वर्दक तक लेकर आया।
मंत्रालय के प्रवक्ता मीरवाइस स्टानिकजई ने कहा कि गजनी के कुछ हिस्से तालिबान के कब्जे में आ गए हैं, जबकि अफगान सेना अभी भी प्रांतीय राजधानी के अन्य हिस्सों में सक्रिय है और लड़ाकों के खिलाफ अभियान शुरू करेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने पुष्टि की कि उन्होंने गजनी प्रांत अपने कब्जे में कर लिया है। इस बीच, फराह प्रांत के गवर्नर, फराह शहर के मेयर और अन्य स्थानीय अधिकारियों ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर पड़ोसी ईरान भाग गए।
इससे पहले जावजान प्रांत के प्रांतीय परिषद के मुखिया भी अपने 12 बंदूकधारियों के साथ तालिबान में शामिल हो गए थे।
तालिबान ने सात दिनों के अंतराल में 10 से अधिक प्रांतों को कब्जे में लेने का दावा किया है। (आईएएनएस)
एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक रूसी अधिकारियों ने शांतिपूर्ण विरोध की संभावना को गंभीर रूप से सीमित कर दिया है. मानवाधिकार संस्था ने 12 अगस्त को रूस पर एक रिपोर्ट जारी की है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि शांतिपूर्ण विरोध को रोकने के लिए रूसी अधिकारी विभिन्न अनुशासनात्मक उपाय अपना रहे हैं. एमनेस्टी के मुताबिक प्रदर्शन विरोधी कानूनों और अत्यधिक पुलिस बल के उपयोग जैसे उपायों, जिसमें तितर-बितर करने के लिए अत्यधिक बल का उपयोग शामिल है.
उसने व्लादीमीर पुतिन सरकार के लिए विरोध प्रदर्शनों पर नकेल कसना आसान बना दिया है. वर्तमान में रूस में आम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी सीमित है कि अब सरकार के खिलाफ बोलना संभव नहीं है.
विरोध-विरोधी कानून
ब्रिटेन स्थित मानवाधिकार समूह की 21-पृष्ठ की रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस में पुतिन सरकार ने हाल के वर्षों में कई कानून पेश किए हैं, जिससे लोगों को अपने अधिकारों के लिए इकट्ठा होने या बोलने की अनुमति सीमित हो रही है. कानून के तहत सड़क पर विरोध प्रदर्शन करना एक तरह का अपराध हो गया है.
इन कानूनों के कारण हाल के सालों में एजेंसियों ने भी प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसी है. रिपोर्ट के मुताबिक रूसी सरकार ने 2004 के बाद से 13 बार संसद में संघीय कानून में संशोधन किया है और इन संशोधनों ने प्रारंभिक कानून को सख्त कर दिया है.
अब एक दर्जन से अधिक संशोधनों के बाद कानून यह निर्धारित करता है कि कौन प्रदर्शन का आयोजन करेगा, कौन इसमें शामिल हो सकता है और यह कहां होगा.
महामारी प्रतिबंध
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सरकार ने घातक कोरोना वायरस जनित बीमारी के प्रसार को कम करने के लिए सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया है. एमनेस्टी के मुताबिक मॉस्को सरकार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को रोकने के संदर्भ में इन प्रतिबंधों का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हट रही है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के रूस के शोधकर्ता ओलेग कोजलोव्स्की का कहना है कि रूसी अधिकारी लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को तेजी से प्रतिबंधित कर रहे हैं. कोजलोव्स्की के मुताबिक, "मॉस्को ने इस मुद्दे पर जितनी ऊर्जा खर्च की है, वह शायद ही किसी अन्य मुद्दे पर केंद्रित है और सड़क पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन अब राज्य की नजर में एक अपराध है."
एमनेस्टी के मुताबिक नए संशोधनों के बाद लोग किसी भी अदालत, जेल, राष्ट्रपति आवास या आपातकालीन सेवाओं के पास इकट्ठा नहीं हो पाएंगे. इसके अलावा विरोध प्रदर्शनों के आयोजकों को किसी भी विरोध के बारे में अधिकारियों को सूचित करना आवश्यक है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा बल के अत्यधिक इस्तेमाल को क्या कहते हैं. अत्यधिक बल के बारे में कहा गया "प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मार्शल आर्ट तकनीकों का उपयोग, बेरहमी से डंडों से पीटना और इलेक्ट्रोशॉक वाले डंडे से वार शामिल है."
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
लंदन, 13 अगस्त | दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड के डेवोन के बंदरगाह शहर प्लायमाउथ में गोलीबारी की घटना में संदिग्ध समेत छह लोगों की मौत हो गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार शाम को डेवोन और कॉर्नवाल पुलिस ने कहा कि "शहर के कीहम इलाके में शाम करीब 6.10 बजे पुलिस को एक गंभीर फायरिंग की घटना के लिए बुलाया गया था।"
"दो महिलाओं और दो पुरुषों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। एक और पुरुष, जिसे अपराधी माना गया उसकी भी घटनास्थल पर ही मौत हो गई।"
इसमें कहा गया, "माना जाता है कि सभी की मौत गोली लगने से हुई है।"
डेवोन और कॉर्नवाल पुलिस ने कहा कि गोली लगने से घायल हुए एक अन्य महिला की बाद में अस्पताल में मौत हो गई।
प्लायमाउथ सटन और डेवोनपोर्ट के सांसद ल्यूक पोलार्ड ने कहा कि शूटिंग में मारे गए लोगों में से एक 10 साल से कम उम्र का बच्चा था।
यूके की गृह सचिव प्रीति पटेल ने ट्वीट किया, "प्लायमाउथ की घटना चौंकाने वाली है और मेरी संवेदना प्रभावित लोगों के साथ है। मैंने मुख्य कांस्टेबल से बात की है और अपना पूरा समर्थन देने की पेशकश की है।"
"मैं सभी से शांत रहने, पुलिस की सलाह का पालन करने और हमारी आपातकालीन सेवाओं को अपना काम करने की अनुमति देने का अनुरोध करती हूं।" (आईएएनएस)
अब तक ‘स्वच्छ’ हाइड्रोजन को पर्यावरण के लिए सुरक्षित ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जाता रहा है. लेकिन एक नए अध्ययन में इसे कोयले से भी ज्यादा खतरनाक बताया गया है.
पर्यावरण के लिए सुरक्षित माने जाने वाले स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में हाइड्रोजन का जिक्र अक्सर होता है. माना जाता रहा है कि यह पेट्रोल और डीजल जैसे प्रदूषक ईंधनों की जगह ले सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी और कई कंपनियां इसका समर्थन कर चुकी हैं.
किंतु एक नए अध्ययन के बाद राय बदल सकती है. गुरुवार को प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि हाइड्रोजन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कोयले से भी ज्यादा हो सकता है. ‘ब्लू हाइड्रोजन' के बारे में शोधकर्ता कहते हैं कि पर्यावरण के आधार पर तो "इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता.”
अकादमिक जर्नल ‘एनर्जी साइंस ऐंड इंजीनियरिंग' में छपे अध्ययन के मुताबिक ब्लू हाइड्रोजन उत्सर्जन मुक्त नहीं है.
उत्सर्जन कोयले से ज्यादा
कॉरनेल विश्वविद्यालय के रॉबर्ट हॉवर्थ और स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी के मार्क जैकबसन ने अपने शोध में पाया है कि हाइड्रोजन के ईंधन के उत्पादन में अच्छी खासी ऊर्जा की जरूरत होती है. वे कहते हैं कि प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन निकालने की प्रकिया में जब उसे गर्म किया जाता है और उस पर दबाव बढ़ाया जाता है, तब कार्बन उत्सर्जन होता है.
वैसे तो ‘ब्लू हाइड्रोजन' में कुछ ही उत्सर्जन होता है लेकिन अध्ययन कहता है कि कार्बन सोखने की प्रक्रिया में भी ऊर्जा लगती है. इस आधार पर शोधकर्ता लिखते हैं कि "इसका कोई फायदा नहीं है” क्योंकि ब्लू और ग्रे हाइड्रोजन का कुल उत्सर्जन असल में डीजल, गैस या कोयले से ज्यादा है.
शोधकर्ता कहते हैं, "हमारा सुझाव है कि हाइड्रोजन को बस ध्यान बंटाने वाली चीज के रूप में देखा जाए जिसकी वजह से वैश्विक ऊर्जा अर्थव्यवस्था को कार्बन से पूरी तरह मुक्त करने में देरी हो सकती है.”
अमेरिका की नीतियों में हाइड्रोजन
इसी हफ्ते बाइडेन सरकार का 1.2 खरब डॉलर का इन्फ्रास्ट्रक्चर बिल सेनेट से पास हुआ है, जिसमें क्षेत्रीय स्तर पर आठ ‘स्वच्छ हाइड्रोजन हब' बनाने के लिए आठ अरब डॉलर आवंटित किये गए हैं. हालांकि इस बिल में ‘ब्लू हाइड्रोजन' का जिक्र नहीं है.
शोधकर्ताओं की चेतावनी है कि जिस ईंधन में कार्बन को सोखकर रख लेने की प्रक्रिया शामिल है, वह "उसी सीमा तक काम करता है जितना उसमें अनिश्चित काल तक कार्बन को सोख कर रखने की क्षमता हो और उसमें से वह वापस वातावरण में न चली जाए.”
अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने जून में ऐलान किया था कि आधुनिक स्वच्छ हाइड्रोजन पर आधारित योजनाओं के लिए 5 करोड़ 25 लाख डॉलर दिए जाएंगे. 2019 में एक अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि हाइड्रोजन में "ज्यादा स्थिर और सुरक्षित ऊर्जा भविष्य का हिस्सा बनने” की संभावना है.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि यदि तालिबान ने हिंसा से सत्ता हासिल की तो उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर दिया जाएगा. तालिबान ने हेरात और कंधार भी जीत लिए हैं और वह काबुल से 130 किलोमीटर दूर है.
गुरुवार को यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख योसेप बोरेल ने एक बयान जारी कर कहा, "अगर ताकत से सत्ता हथियाई जाती है और एक इस्लामिक अमीरात स्थापित किया जाता है तो तालिबान को मान्यता नहीं मिलेगी और उसे अंतरराष्ट्रीय असहयोग का सामना करना होगा. लड़ाई जारी रहने की संभावना अफगानिस्तान की अस्थिरता भी उसके सामने होंगी.”
बोरेल ने कहा कि यूरोपीय संघ अफगान लोगों के साथ साझीदारी और समर्थन जारी रखना चाहता है लेकिन यह समर्थन शांतिपूर्ण और समावेशी समझौते व महिलाओं, युवाओं और अल्पसंख्यकों समेत सभी अफगान लोगों के मूलभूत अधिकारों के सम्मान की शर्त पर होगा.
बोरेल ने जोर देकर कहा कि पिछले दो दशकों में महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति में जो तरक्की हुई है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में, उसकी सुरक्षा की जाए. उन्होंने अफगानिस्तान में फौरन हिंसा रोकने और काबुल स्थित सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू करने की अपील की.
बोरेल ने अफगानिस्तान की सरकार से भी अपील की है कि वे अपने राजनीतिक मुतभेद सुलझाएं और सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएं तथा एक होकर तालिबान से बातचीत करें.
तालिबान की जीत जारी
यूरोपीय संघ का यह बयान तब आया है जबकि तालिबान तेजी से अफगानिस्तान में एक के बाद एक इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है. गुरुवार को उसने देश के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही 11 प्रांतों की राजधानियों पर उसका कब्जा हो गया है.
गुरुवार को एक हथियारबंद दस्ते ने गजनी प्रांत की राजधानी गजनी पर नियंत्रण कर लिया था. गजनी देश की राजधानी काबुल से महज 130 किलोमीटर दूर है. इसके अलावा कंधार में भी तेज लड़ाई जारी है.
इतनी तेजी से मिल रही जीत को तालिबान ने अपने लिए लोगों का समर्थन बताया है. संगठन के एक प्रवक्ता ने समाचार चैनल अल जजीरा को बताया कि बड़े शहरों पर जल्दी नियंत्रण इस बात का संकेत है कि अफगान तालिबान का स्वागत कर रहे हैं. हालांकि प्रवक्ता ने कहा कि वह राजनीतिक रास्ते बंद नहीं कर रहे हैं.
गुरुवार को ही ऐसी खबरें आई थीं कि अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के सामने सत्ता में हिस्सेदारी का प्रस्ताव रखा था. हालांकि तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि उन्हें ऐसी किसी पेशकश के बारे में नहीं पता है.
जबीउल्लाह ने कहा, ”हम ऐसी कोई पेशकश स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि हम काबुल सरकार के साथ हिस्सेदारी नहीं करना चाहते. उसके साथ हम एक दिन भी ना रहेंगे और ना काम करेंगे.”
अमेरिका, ब्रिटेन ने बुलाई सेना
अमेरिका और ब्रिटेन ने कहा है कि वे नागरिकों को निकालने के लिए हजारों सैनिकों को अफगानिस्तान भेजेंगे. गुरुवार को अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि दूतावास के कर्मचारियों को निकालने के लिए 48 घंटे के अंदर 3,000 जवान भेजे जाएंगे. ब्रिटेन ने 600 जवान भेजने की बात कही है.
यूं तो युद्ध क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने के लिए अमेरिका सैनिक पहले भी भेजता रहा है लेकिन यह पहली बार होगा जबकि उसकी सेना की वापसी की समयसीमा अभी पूरी भी नहीं हुई है कि उसे अतिरिक्त सैनिक भेजने पड़े हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि तालिबान के राजधानी काबुल तक पहुंचने का आम नागरिकों पर बहुत भयानक असर होगा. पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका और जर्मनी ने अपने नागरिकों को फौरन अफगानिस्तान छोड़ देने को कहा है.
इसी हफ्ते अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने देश की जासूसी एजेंसियों के हवाले से खबर छापी थी कि तालिबान को काबुल तक पहुंचने में 30 दिन लगेंगे और 90 दिन के भीतर काबुल उनके कब्जे में हो सकता है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
-अज़ीज़ुल्लाह ख़ान
अफ़ग़ानिस्तान के तख़ार प्रांत की जेल के क़ैदियों को जैसे यह विश्वास हो गया था कि तालिबान के शहर में प्रवेश करते ही उनकी रिहाई संभव हो जाएगी.
तख़ार जेल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें बड़ी संख्या में क़ैदी जेल के प्रांगण में सामान उठाए जा रहे हैं और तालिबान के पक्ष में नारे लगा रहे हैं.
इन क़ैदियों में ख़तरनाक अपराधी भी शामिल थे, जो या तो तालिबान के सदस्य थे या उनके समर्थक थे.
इस वीडियो में एक शख़्स कह रहा है कि यहाँ बड़ी संख्या में क़ैदी मौजूद हैं और दरवाज़े पर मुजाहिदीन इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन ऑपरेशन पूरा होने तक उन्हें छोड़ा नहीं गया. इसके बाद दूसरे वीडियो में दिखाया गया है कि क़ैदी बाहर आ रहे हैं और रिहाई की ख़ुशी में नारे लगा रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने कहा, अगर पश्चिमी संस्कृति नहीं छोड़ी, तो हमें उन्हें मारना होगा
तालिबान के क़ब्ज़े में आने वाले छह शहरों की जेलों से अब तक हज़ारों क़ैदियों को रिहा किया जा चुका है, जिनमें ख़तरनाक अपराधी भी शामिल हैं. इनमें कुंदुज, तख़ार और कुछ अन्य इलाक़ों की जेलें शामिल हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी भी शहर में प्रवेश करने के बाद अफ़ग़ान तालिबान का पहला निशाना जेल होती हैं, जहाँ से क़ैदियों को रिहा किया जाता है, इसके बाद अन्य प्रमुख स्थानों पर क़ब्ज़ा किया जाता है.
हालाँकि, तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद के अनुसार, वो क़ैदियों को रिहा नहीं करते, बल्कि ख़ुद जेल प्रशासन ही उनको रिहा करता है.
वीडियो में महिला क़ैदी भी दिखती हैं!
इन जेलों के वीडियो कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिसमें देखा जा सकता है कि क़ैदी अपना सामान उठाए जेलों में मौजूद हैं और फिर उन्हें जेलों से बाहर निकलते देखा जा सकता है और तालिबान के सदस्य वहाँ मौजूद हैं. क़ैदी तालिबान के पक्ष में नारे लगाते हैं और कुछ क़ैदी तो उन तालिबान के हाथ भी चूमते हैं.
फ़ारयाब और कुंदुज के वीडियो में महिला क़ैदी भी जेल से बाहर आती दिख रही हैं. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने इन वीडियो की प्रमाणिकता की पुष्टि की. उन्हें दो वीडियो भेजे गए, उनके बारे में उन्होंने कहा कि ये वीडियो तीन दिन पहले की हैं और इनमे से एक तख़ार शहर का है और दूसरा कुंदुज शहर की जेल का है.
पहले जेलों से क़ैदी आज़ाद किए जाते हैं
अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल के दिनों में जब से तालिबान विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़े हैं. वहाँ अक्सर यह देखा गया है कि शहर की जेलों के ताले तोड़ दिए जाते हैं और क़ैदियों को रिहा कर दिया जाता है.
ऐसा भी हुआ है कि उस शहर के प्रशासनिक कार्यालय या अहम स्थान पर नियंत्रण बाद में लिया जाता है, पहले जेलों के ताले तोड़े जाते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार समी यूसुफ़ज़ई ने बीबीसी को बताया कि मूल रूप से जेलों से क़ैदियों को रिहा करना और जेल के ताले तोड़ना एक संदेश होता है कि इलाक़े में सरकार का कंट्रोल ख़त्म हो गया है और इस इलाक़े में अब तालिबान आ गया है.
उन्होंने बताया, "दूसरी ओर, जेलों का प्रबंधन करना होता है, क़ैदियों का खाना, उनकी सुरक्षा और अन्य ज़रूरी कार्रवाइयां करनी होती हैं, और चूंकि तालिबान इस समय संगठित नहीं हैं, इसलिए क़ैदियों को नियंत्रित करना उनके लिए मुश्किल होगा."
उनका कहना था कि इन जेलों में 10 से 15 प्रतिशत क़ैदी तालिबान के सहयोगी बताए जाते हैं, जबकि इन पाँच प्रांतों की जेलों से भागे 350 क़ैदी हत्या के आरोप में क़ैद थे.
क़ैदियों की रिहाई का कारण
स्थानीय पत्रकारों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जेल के ताले मुख्य रूप से इसलिए तोड़े जाते हैं, क्योंकि अफ़ग़ान सरकार के शासन के दौरान बड़ी संख्या में तालिबान के सदस्यों और उनके समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया था, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया जाता है.
इसके अलावा, उन्होंने कहा, कि यह तालिबान को नई जनशक्ति भी प्राप्त होती है.
स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि इन शहरों की जेलों से बड़ी संख्या में क़ैदियों को रिहा किया गया है, जिनकी सही संख्या का तो नहीं पता, लेकिन यह संख्या हज़ारों में हो सकती है.
समी यूसुफ़ज़ई के अनुसार प्रांतीय स्तर पर जेलों में क़ैदियों की संख्या बहुत अधिक नहीं होगी, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जेलों से रिहा हुए क़ैदियों की कुल संख्या कितनी हो सकती है. उन्होंने बताया कि 1990 के दशक में भी, जब तालिबान आए थे, उस समय भी जेलों को तोड़ कर क़ैदियों को रिहा किया गया था.
उनका कहना था कि यह एक ख़तरनाक चलन है, क्योंकि इनमें ऐसे क़ैदी भी हैं जिनकी बाहर दुश्मनी होती है, इसलिए ये लोग उनके लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.
तालिबान का क्या है कहना?
इस बारे में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद से संपर्क किया गया , तो उनका कहना था कि वो इन क़ैदियों को रिहा नहीं करते हैं, बल्कि जब तालिबान क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो वहाँ मौजूद जेल प्रशासन ताले तोड़ देता हैं या फिर कर्मचारी वहाँ से चले जाते हैं, तो क़ैदी ख़ुद ताले तोड़ देते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि इनमे तो ख़तरनाक अपराधी भी होते हैं तो इसके लिए तालिबान क्या करता है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह उनके लिए भी चिंता का विषय है, लेकिन चूंकि तालिबान इस समय युद्ध में हैं, इसलिए वो यह पता नहीं लगा सकते कि कौन-कौन अपराधी हैं, इसलिए इस समय उनके लिए यह बहुत कठिन स्थिति है.
ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि वह जानते हैं कि उनमें ख़तरनाक अपराधी भी शामिल होंगे और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और वह चाहते हैं कि इस पर काबू पाया जाए. लेकिन युद्ध की स्थिति में जब बमबारी का ख़तरा भी होता है, तो ऐसे में उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है.
सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में देखा जा सकता है कि जेलों के बाहर तालिबान मौजूद हैं और उन क़ैदियों को लाइन से जाने दे रहे हैं.
यहाँ यह बात भी गौरतलब है कि क़तर में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते में तालिबान ने अफ़ग़ान जेलों में बंद अपने पाँच हज़ार क़ैदियों की रिहाई की मांग सबसे ऊपर रखी थी और कहा था कि जब तक उनके क़ैदी रिहा नहीं हो जाते, वो आगे बातचीत और समझौतों पर अमल नहीं कर पाएँगे.
अफ़ग़ान सरकार की तरफ से बार-बार ये कोशिश की गई है कि इन क़ैदियों को रिहा न किया जाए, क्योंकि उनमें बहुत ही ख़तरनाक अपराधी शामिल थे.
लेकिन तालिबान की ज़िद पर उन्हें रिहा कर दिया गया था.
अफ़ग़ानिस्तान में यह धारणा भी सामने आई है कि इन क़ैदियों की रिहाई के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक घटनाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन इसकी कोई पुष्टि नहीं हो सकी है.
अफ़ग़ान सरकार चुप क्यों है?
अफ़ग़ान सरकार का पक्ष जानने के लिए सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया गया, लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो सका. लेकिन स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि कुछ दिन पहले अफ़ग़ान सरकार का बयान सामने आया था, जिसमें कहा गया था कि सरकार ने बदलती स्थिति को भांपते हुए, अधिकांश ख़तरनाक क़ैदियों को काबुल जेल में स्थानांतरित कर दिया है.
एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अफ़ग़ान सरकार यह स्वीकार नहीं कर रही है कि इतनी सारी जेलों को तोड़ा गया या उन जेलों से क़ैदी फ़रार हुए हैं.
समी यूसुफ़ज़ई ने इस बारे में बताया कि सरकार ने अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है. लेकिन इतना ज़रूर है कि तालिबान के आगे बढ़ने से पहले अफ़ग़ान सरकार ने कुछ क्षेत्रों से क़ैदियों को काबुल जेल में स्थानांतरित किए थे.
तालिबान के साथ अफ़ग़ान सरकार के वार्ता दल के एक प्रमुख सदस्य अहमद नादिर नादरी ने 15 जुलाई को काबुल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, कि अफ़ग़ान तालिबान ने तीन महीने के युद्ध विराम के लिए कहा है. लेकिन उनकी शर्त है कि पहले उनके सात हज़ार क़ैदियों को रिहा किया जाए. उन्होंने कहा था कि "यह एक बड़ी मांग थी."
इस मुद्दे पर अफ़ग़ान सरकार का कोई स्टैंड सामने नहीं आया था, लेकिन यह स्पष्ट था कि, जिस तरह पिछले क़तर समझौते में अफ़ग़ान सरकार पाँच हज़ार क़ैदियों की रिहाई के लिए सहमत नहीं थी, उसी तरह इस मांग पर भी कोई क़दम नहीं उठाया गया था.
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपने 31 जुलाई के अंक में लिखा था कि तालिबान कुंदुज की प्रांतीय राजधानी की तरफ आगे बढ़ रहे हैं और इस जेल में करीब पाँच हज़ार क़ैदी मौजूद हैं.
अख़बार में कहा गया था कि अफ़ग़ान अधिकारियों का कहना था कि अगर उनमें से थोड़े बहुत भी फ़रार होते हैं, तो चरमपंथी और मज़बूत हो सकते हैं जो पहले से ही आगे बढ़ रहे हैं. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 12 अगस्त | देश में आंतरिक दरार के बीच, पाकिस्तान सरकार ने गुरुवार को एक रिपोर्ट पेश करते हुए पश्तून तहफुज मूवमेंट (पीटीएम) पर बड़ा आरोप लगाया है, जो एक नागरिक समाज समूह है, जिसमें मुख्य रूप से पाकिस्तान के कबायली इलाकों में रहने वाले जातीय पश्तून शामिल हैं। पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि पीटीएम भारत, इजरायल और अफगानिस्तान के साथ मिलकर राष्ट्र विरोधी प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत डिजिटल मीडिया विंग ने एक एंटी-स्टेट ट्रेंड्स डीप एनालिटिक्स रिपोर्ट (2019 से 2021) तैयार की है, जिसमें बताया गया कि कैसे सरकार पर दबाव बनाने के लिए हैस्टैग को बढ़ाया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने सभी हैशटैग और उन हैशटैग के पीछे के लोगों का विश्लेषण किया है।
रिपोर्ट में जिन लोगों का उल्लेख किया गया है, उनमें पीटीएम और बलूच अलगाववादी, मुख्यधारा के राजनीतिक दल (पीएमएलएन, एएनपी, जेयूआई-एफ) और अन्य विदेशी शत्रुतापूर्ण एक्टर्स; इजरायल और भारत शामिल हैं। रिपोर्ट में भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी और इजरायल के पत्रकारों पर स्थानीय एक्टर्स के साथ मिलीभगत का भी आरोप लगाया गया है।
रिपोर्ट में स्थानीय तत्वों द्वारा चलाए जा रहे हैशटैग को देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि उनका उद्देश्य शत्रुतापूर्ण विदेशी शक्तियों के सहयोग से फर्जी खबरों का प्रचार करके पाकिस्तान की स्थिति को खराब करना और उसका उपहास करना रहा है।
इसने कहा कि पीटीएम ने अपनी स्थापना के बाद से एक दबाव समूह के रूप में काम किया है। यह न्याय के लिए एक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ और फिर एक राजनीतिक आंदोलन में बदल गया।
रिपोर्ट में कहा गया है, कुछ मांगों से लेकर राज्य के साथ टकराव तक की यह यात्रा पीटीएम द्वारा चलाए जा रहे ट्विटर ट्रेंड्स में परिलक्षित होती है। राष्ट्रीय संस्थानों के खिलाफ उनकी नारेबाजी ऑनलाइन क्षेत्र में फैल गई है और यह उनकी ऑनलाइन उपस्थिति का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, संदिग्ध उद्देश्यों/पृष्ठभूमि वाले असंतुष्ट, बलूच अलगाववादी, सिंधी अलगाववादी, शत्रुतापूर्ण विदेशी सरकारें (भारत और अफगानिस्तान) और कोई भी एक्टर, जो पाकिस्तान के राष्ट्रीय संस्थानों को बदनाम और उनका उपहास करना चाहता है, वह पीटीएम के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
रिपोर्ट में 670 से अधिक दिनों तक पाकिस्तानी ट्रेंड पैनल की समीक्षा की और 125 से अधिक दिनों के लिए पीटीएम ने पाकिस्तान के राष्ट्र संस्थानों को बदनाम करने वाले रुझान चलाए।
रिपोर्ट में कहा गया है, पीटीएम ने पाकिस्तानी सेना पर दुष्कर्म, हत्या, नरसंहार, युद्ध अपराध, यातना, भूमि हथियाने, भ्रष्टाचार और पाकिस्तानियों को मारने के लिए एजेंडा चलाया है।
इसमें कहा गया है कि उनके अधिकांश रुझान अपने एक्टविस्ट्स और गुर्गों को रिहा करने के लिए दबाव बनाने के लिए हैं।
पीटीएम ने यह धारणा बनाई है कि उनकी आवाज दबाई गई है और उन्हें मीडिया द्वारा उचित कवरेज नहीं दिया जाता है।
यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान में उर्दू फ्रैंचाइजी चलाने वाले अधिकांश ऑप-एड और विदेशी प्रकाशन नियमित रूप से ऐसी रिपोर्ट्स प्रकाशित करते हैं, जो न केवल पीटीएम को कवर करते हैं, बल्कि वे चुपचाप अपने दावों और उद्देश्यों को विश्वसनीयता देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, इस मौन समर्थन के कारण पाकिस्तान में वीओए दीवा और आरईएफआरएल पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन प्रतिबंध के बावजूद वे पीटीएम के साथ मिलकर काम करने में जुटे हुए हैं।
इसने यह भी आरोप लगाया कि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी हमेशा इसके हैशटैग के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर और उसका उपयोग करके पीटीएम रुझानों में मदद करती है।
रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया है कि पीटीएम उन हैशटैग का भी उपयोग करता है, जो अफगानिस्तान और भारत में ट्रेंड कर रहे होते हैं और जो पाकिस्तान के खिलाफ हैं और इसे पाकिस्तान में ट्रेंड करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
इसके अलावा यह आरोप भी है कि विकिपीडिया व्यवस्थापकों (ज्यादातर भारतीय) की एक टीम है, जो उल्लेखनीय पीटीएम सदस्यों के लिए उनके प्रोफाइल प्रकाशित करके छवि निर्माण करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है।
रिपोर्ट ने उदाहरण का हवाला दिया कि भारत ने 14 अगस्त, 2019 को 1.45 लाख से अधिक ट्वीट्स के साथ हैशटैग ब्लुचिस्तान सोलिडेटरी डे बड़े पैमाने पर चलाया था। पीटीएम ने इस हैशटैग का इस्तेमाल करना शुरू किया और पाकिस्तान में अभियान का नेतृत्व किया तथा पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर पूरे दिन पाकिस्तान में यह ट्रेंड करता रहा।(आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 13 अगस्त| पाकिस्तान के पूर्वी पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले में गुरुवार शाम एक रक्षा औद्योगिक परिसर में हुए विस्फोट में तीन कर्मचारियों की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह दुर्घटना जिले के वाह कैंट शहर में पाकिस्तान आयुध कारखानों (पीओएफ) के एक संयंत्र में तकनीकी खराबी के कारण हुई। यह इस्लामाबाद से लगभग 37 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है।
सेना के मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने बयान में कहा कि दुर्घटना स्थल को साफ कर दिया गया है और पीओएफ तकनीकी आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम द्वारा स्थिति को नियंत्रित किया गया है।
स्थानीय मीडिया और सूत्रों के अनुसार, विस्फोट से आस-पास के घरों की खिड़की के शीशे टूट गए और पूरे शहर में दहशत फैल गई, जिससे लोगों में दहशत फैल गई।
सैन्य सूत्रों ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर सिन्हुआ से बात करते हुए कहा कि छोटे विस्फोट आमतौर पर संवेदनशील सामग्रियों को रखने और स्थानांतरित करने के दौरान होते हैं, लेकिन गुरुवार की शाम हुआ विस्फोट शक्तिशाली था। (आईएएनएस)
जर्मनी और नीदरलैंड्स ने अफगानिस्तान में बढ़ते तनाव के कारण उन अफगानों को अस्थायी रूप से रहने की अनुमति दी है जो राजनीतिक शरण लेने में विफल रहे हैं.
जर्मन गृह मंत्रालय ने डीडब्ल्यू को बताया कि अफगानिस्तान में अस्थिर सुरक्षा स्थिति के कारण अफगान नागरिकों का निर्वासन अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के साथ तालिबान तेजी से देश पर नियंत्रण हासिल कर रहा है और अब तक कई प्रांतीय राजधानियों समेत देश के बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुका है.
12 अगस्त को तालिबान ने उत्तर पूर्व में बादकशां प्रांत की राजधानी फैजाबाद पर भी कब्जा कर लिया. इसके साथ ही आठ राज्यों की राजधानियों पर उसका पूर्ण कब्जा हो चुका है. कंधार शहर में भी तेज लड़ाई जारी है.
जर्मनी ने दी राहत
गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर के मुताबिक, "जिन लोगों को जर्मनी में रहने का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें देश छोड़ देना चाहिए, लेकिन एक संवैधानिक राज्य अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि देश से निकालने से उनकी जिंदगी खतरे में ना पड़ जाए." जेहोफर ने पहले संघर्ष के बावजूद निर्वासन का समर्थन किया था, लेकिन अब नए फैसले का बचाव किया है.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता स्टीव ऑल्टर ने बुधवार को कहा कि जर्मनी से करीब 30,000 अफगानों को वापस भेजा जाना है. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "मंत्रालय का अभी भी मानना है कि ये वे लोग हैं जिन्हें जल्द से जल्द जर्मनी छोड़ना है."
नीदरलैंड्स का क्या कहना है?
डच उप न्याय मंत्री एंकी ब्रोकर्स-क्नो ने डच संसद को बताया कि अफगानिस्तान में तालिबान की प्रगति के आलोक में अगले 12 महीनों के लिए निर्वासन को निलंबित किया जा रहा है. डच उप न्याय मंत्री ने कहा कि विदेश मंत्रालय अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा कर रहा है.
एक सप्ताह पहले डच सरकार ने अफगान सरकार से अपील की थी कि शरण लेने में विफल रहने वाले अफगानों को आने की अनुमति देना जारी रखें. जर्मनी समेत यूरोपीय संघ के छह अन्य सदस्य देशों ने पहले अफगानों को यूरोप से निर्वासन को रोकने के खिलाफ चेतावनी दी थी.
मई की शुरुआत में अफगानिस्तान से नाटो बलों की वापसी की घोषणा के बाद से तालिबान ने अपने हमले तेज कर दिए हैं और देश के अधिकांश हिस्सों में आगे बढ़ना जारी रखा है.
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि उन्हें अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाने के निर्णय पर कोई पछतावा नहीं है. बाइडेन ने अफगान नेतृत्व से अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने का आह्वान किया. बाइडेन ने कहा कि पिछले 20 साल में अमेरिका ने एक खरब डॉलर खर्च किए और हजारों सैनिकों की जान गंवाई.
एए/सीके (एपी, डीपीए)
लंदन, 12 अगस्त | अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर और मॉडर्ना द्वारा विकसित कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले उतने प्रभावी नहीं हैं, जितनी कि वे वायरस के मूल स्ट्रेन के खिलाफ हैं। एक नए अध्ययन से यह पता चला है। डेली मेल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि अमेरिका के मिनेसोटा में मेयो क्लिनिक के शोधकतार्ओं ने पाया कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन जुलाई में संक्रमण के खिलाफ केवल 42 प्रतिशत प्रभावी पाई गई, जबकि मॉडर्ना वैक्सीन केवल 76 प्रतिशत प्रभावी रही।
प्री-प्रिंटर सर्वर मेडरक्सिव डॉट ओआरजी पर प्रकाशित, जिसकी अभी तक समीक्षा नहीं की गई है, शोधकतार्ओं ने अपने अध्ययन में लिखा है, कई राज्यों (मिनेसोटा, विस्कॉन्सिन, एरिजोना, फ्लोरिडा और आयोवा) में मेयो क्लिनिक हेल्थ सिस्टम साइटों पर एमआरएनए -1273 (मॉडर्ना कोविड वैक्सीन) बनाम बीएनटी 162बी 2 (फाइजर कोविड वैक्सीन) के साथ पूरी तरह से टीकाकरण किए गए व्यक्तियों के बीच संक्रमण की दर की तुलना की गई तो एमआरएनए - 1273 ने बीएनटी 162बी 2 की तुलना में सफलता संक्रमण के खिलाफ दो गुना जोखिम में कमी देखी गई है।
अध्ययन के लिए, टीम ने जनवरी से जुलाई तक 25,000 से अधिक मिनेसोटन पर डेटा एकत्र किया।
जैसा कि दावा किया गया है, जनवरी से जून तक टीके लगभग 90 प्रतिशत प्रभावी रहे, लेकिन जून में इसमें गिरावट शुरू हुई और जुलाई में बड़े पैमाने पर गिरावट देखी गई, क्योंकि तब तक इस वैरिएंट ने अमेरिका में पकड़ बना ली थी।
अध्ययन से पता चला है कि वैक्सीन प्रभावशीलता में परिवर्तन मिनेसोटा में डेल्टा वैरिएंट के प्रसार में भारी वृद्धि के साथ मेल खाता है, जो मई में 0.7 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई में 70 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
इस बीच, अल्फा वैरिएंट, जो कि अमेरिका में पिछला एक प्रमुख स्ट्रेन रहा है, इसी समान समय अवधि में इसके प्रसार में 85 प्रतिशत से 13 प्रतिशत तक कमी देखी गई है।
अमेरिका वर्तमान में डेल्टा वैरिएंट के कारण संक्रमण और मृत्यु में वृद्धि देख रहा है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, गुरुवार सुबह तक, अमेरिका में कुल मामलों और मरने वालों की संख्या क्रमश: 36,185,761 और 618,454 दर्ज की गई है। आने वाले हफ्तों में इसके और बढ़ने का अनुमान है।
शोध में शामिल विशेषज्ञों के अनुसार, हालांकि, टीके अभी भी अस्पताल में भर्ती होने और वायरस से गंभीर मामलों को रोकने में प्रभावी हैं और दोनों के साथ अस्पताल में भर्ती होने की दर 25 प्रतिशत से कम है।
पिछले महीने, फाइजर ने डेटा प्रकाशित किया था, जिसमें दिखाया गया था कि इसके टीके की प्रभावकारिता छह महीने के बाद 86 प्रतिशत तक गिर जाती है।
लेकिन बूस्टर शॉट्स, जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है, जो कि वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और अधिक प्रतिरोधी वेरिएंट से बचाने में मदद कर सकते हैं।(आईएएनएस)
ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने एक ऐसा हाइड्रोजेल विकसित किया है, जिसके एक बार इस्तेमाल करने के बाद पार्किंसंस और शायद अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के खिलाफ लाभदायक होगा.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने फ्लोरी इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ के सहयोग से अमीनो एसिड से बना एक जेल विकसित किया है, जिसे मस्तिष्क में इंजेक्ट किया जा सकता है ताकि क्षति की मरम्मत में मदद मिल सके.
हाइड्रोजेल अमीनो एसिड से बनाया जाता है और इसे शरीर में इंजेक्ट किया जा सकता है. यह जेल मस्तिष्क के उन हिस्सों का इलाज कर सकता है जिनमें सक्रिय तत्व नहीं होते हैं.
हाइड्रोजेल कैसे करता है काम
शोधकर्ताओं ने इस हाइड्रोजेल की खूबियों के बारे में बताते हुए कहा कि इसे हिलाकर तरल में बदल दिया जाता है जिससे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं में प्रवेश करना आसान हो जाता है. नसों में प्रवेश करने के बाद यह अपने मूल रूप में थक्का बनना शुरू कर देता है. इस तरह से यह मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त हिस्सों तक पहुंचने वाली स्टेम कोशिकाओं को आसानी से बदल देता है.
ऑस्ट्रेलिया के नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड निस्बेट कहते हैं, "इस इलाज को गेम चेंजर कहा जा रहा है क्योंकि यह एक बार में इस्तेमाल किया जा सकता है." प्रोफेसर डेविड कहते हैं, "पार्किंसंस के मरीजों के अस्पताल आने पर इस तरह के इंजेक्शन से उन्हें आने वाले कई सालों तक कई और लक्षणों से बचाया जा सकता है."
संभव होगा इलाज
ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं द्वारा आविष्कार किया गया हाइड्रोजेल का अभी तक केवल जानवरों पर परीक्षण किया गया है. चूहों पर इन प्रयोगों के नतीजों से पता चला कि इन चूहों में पार्किंसंस रोग पर इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ा. प्रोफेसर डेविड को उम्मीद है कि एक बार जब यह निश्चित हो जाएगा कि इंसानों के लिए इसका इस्तेमाल सभी प्रकार के खतरों और जटिलताओं से सुरक्षित है, तो अगले 5 सालों में इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो जाएगा.
प्रोफेसर डेविड ने यह भी कहा कि इस नए हाइड्रोजेल का उत्पादन अपेक्षाकृत सस्ता है और इसे आसानी से बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जा सकता है. उनके मुताबिक यह करना और भी आसान हो जाएगा जब इसे नियामकों द्वारा मंजूरी मिल जाएगी.
पार्किंसंस आमतौर पर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. शुरुआत में शरीर कांपने लगता है. बाद में संतुलन कायम करने में समस्या, चलने में परेशानी समेत और भी लक्षण दिखने लगते हैं.
ऑस्ट्रेलिया में लगभग एक लाख लोगों को पार्किंसंस है, जबकि दुनिया भर में करोड़ों लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं. लेकिन इस बीमारी का अब तक पूर्ण इलाज नहीं मिल पाया है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 12 अगस्त | अफगान बलों के तेजी से पतन ने अमेरिकी सहयोगियों को निराश कर दिया है और विदेशों में अमेरिकी प्रतिबद्धताओं के मूल्य के बारे में चिंताओं को पुनर्जीवित किया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली। भारत ने इस सप्ताह एक वाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया है और अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए एक विमान भेजा है। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि अमेरिकी सेना और विदेश विभाग ने इस सप्ताह काबुल में स्थिति के अनुसार अमेरिकी दूतावास को खाली करने की योजना को तेज कर दिया है।
नवीनतम अमेरिकी खुफिया आकलन में कहा गया है, काबुल एक महीने में जल्द से जल्द आतंकवादियों के निशाने पर आ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी अधिकारियों को अब चिंता है कि तालिबान के हमले से पहले अफगान नागरिक, सैनिक और अन्य लोग शहर से भाग जाएंगे।
जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस वसंत में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस लेने के फैसले की घोषणा की, तो उनके प्रशासन को उम्मीद थी कि अफगान सेना, प्रमुख शहरों की रक्षा करेगी और शायद तालिबान से गतिरोध के लिए लड़ाई करेगी। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को: क्रिप्टोकरेंसी हैकिंग का एक अजीब मामला चल रहा है. हैकर्स ने क्रिप्टोकरेंसी ट्रांसफरिंग में स्पेशलाइजेशन रखने वाली एक कंपनी को शिकार बनाया और लगभग 600 मिलियन डॉलर यानी 4,468 करोड़ के क्रिप्टोकरेंसी की चोरी की, जोकि शायद क्रिप्टो के इतिहास में अबतक की सबसे बड़ी चोरी है. लेकिन एक दिन बाद ही चोरों ने लूट के क्रिप्टो में से एक बड़ा हिस्सा लौटा भी दिया. कंपनी ने खुद इसकी जानकारी दी है. Poly Network ने बताया कि हैकरों ने चोरी की क्रिप्टोकरेंसी में एक हिस्सा लौटा दिया है. कंपनी की ओर एक ट्वीट कर कहा गया है कि उसे हैकरों की ओर से चोरी के 600 मिलियन डॉलर की कीमत में क्रिप्टो में से लगभग 4.8 मिलियन डॉलर क्रिप्टो मिल गया है.
हैकरों की ओर से यह कदम तब उठाया गया है, जब साइबर 'व्हाइट हैट' सिक्योरिटी एक्सपर्ट इस चोरी की जांच कर रहे हैं और हैकरों को ट्रैक करने की कोशिश कर रहे हैं. ब्लॉकचेन सिस्टम डिफेंस फर्म SlowMist ने इस लूट की कीमत 610 मिलियन डॉलर लगाई है. उसने कहा है कि वो हैकरों के पीछे लगी हुई है. कंपनी ने एक ट्वीट में बताया, 'SlowMist की सिक्योरिटी टीम को अटैकरों का मेलबॉक्स, आईपी एड्रेस और ऑन-चेन और ऑफ-चेन ट्रैकिंग के जरिए डिवाइस फिंगरप्रिंट मिल गया है. अब वो पॉली नेटवर्क पर किए गए इस हमले के अटैकर की पहचान के सबूतों को ट्रैक कर रही है.'
कंपनी ने कई टोकन्स को ब्लैकलिस्ट करने को कहा था
कंपनी ने एक साथ कई ट्वीट करके बताया कि हैकरों ने पॉली नेटवर्क पर हमला किया था और इसके बाद बड़ी चोरी को अंजाम देते हुए हैकरों के नियंत्रण वाले अकाउंट्स में रिकॉर्ड अमाउंट में क्रिप्टोकरेंसी ट्रांसफर कर लिया. कंपनी ने हैकरों की ओर से इस्तेमाल किए गए ऑनलाइन एड्रेस भी शेयर किए और 'इस हैकिंग से प्रभावित ब्लॉकचेन और क्रिप्टो एक्सचेंज को इन एड्रेस से आ रहे टोकन्स को ब्लैकलिस्ट' करने को कहा था.
पॉली नेटवर्क ने हैकरों को संबोधित करते हुए ट्वीट भी किया. कंपनी ने कहा कि 'जो अमाउंट आपने हैक किया है, वो इतिहास का सबसे बड़ा अमाउंट है. जो पैसे आपने चुराए हैं, वो क्रिप्टो कम्युनिटी के हजारों सदस्यों के हैं.' कंपनी ने हैकरों को पुलिस की धमकी दी थी लेकिन यह भी कहा था कि वो 'साथ मिलकर कोई हल निकालने' का रास्ता भी दे रही है.
CipherTrace के आंकड़ों की मानें तो इस साल अप्रैल के अंत तक क्रिप्टोकरेंसी चोरी और धोखाधड़ी में कुल 432 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है. (
तालिबान के लड़ाके महीने भर में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को बाकी मुल्क से अलग-थलग कर सकते हैं और इस पर कब्जा करने में उन्हें 90 दिन लग सकते हैं. अमेरिका के एक रक्षा अधिकारी ने जासूसी एजेंसी के हवाले से यह बात कही है.
रॉयटर्स एजेंसी से बातचीत में इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि तालिबान जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसके आधार पर आकलन किया गया कि उसे काबुल तक पहुंचने में कितना वक्त लगेगा.
इस अधिकारी ने कहा, "यह अंतिम विश्लेषण नहीं है. अफगान सेना ज्यादा विरोध के जरिए बढ़त को उलट भी सकती है.” इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने देश के लगभग 65 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया है. एक यूरोपीय अधिकारी के मुताबिक 11 प्रांतों की राजधानियां या तो कब्जा ली गई हैं या उन पर खतरा मंडरा रहा है.
बुधवार को तालिबान ने उत्तर पूर्व में बादकशां प्रांत की राजधानी फैजाबाद पर भी कब्जा कर लिया. इसके साथ ही आठ राज्यों की राजधानियों पर उसका पूर्ण कब्जा हो चुका है. कंधार शहर में भी तेज लड़ाई जारी है. दक्षिणी कंधार से एक डॉक्टर ने बताया कि बड़ी संख्या में अफगान फौजियों के शव और घायल तालिबान अस्पताल में पहुंचे हैं.
काबुल की किलेबंदी
एक सुरक्षा सूत्र ने बताया है कि पहाड़ियों से घिरी राजधानी काबुल में आने जाने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं. रॉयटर्स एजेंसी से इस सूत्र ने कहा, "इस बात का डर है कि खुदकुश हमलावर शहर के कूटनीतिक दफ्तरों वाले इलाकों में घुसकर हमला कर सकते हैं ताकि वे लोगों को डरा सकें और सुनिश्चित कर सकें कि जल्द से जल्द सारे लोग चले जाएं.”
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले एक महीने में एक हजार से ज्यादा आम नागरिकों की मौत हो चुकी है. रेड क्रॉस ने कहा है कि सिर्फ इस महीने में 4,042 घायल लोगों का 15 अस्पतालों में इलाज हुआ है.
तालिबान आम नागरिकों को निशाना बनाने की बात से इनकार करता है. बुधवार को जारी एक बयान में संगठन के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान ने "आम नागरिकों, उनके घरों या बस्तियों को निशाना नहीं बनाया है बल्कि अभियान चलाते वक्त बहुत सावधानी बरती गई है.”
अमेरिका को पछतावा नहीं
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि उन्हें अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाने के निर्णय पर कोई पछतावा नहीं है. बाइडेन ने अफगान नेतृत्व से अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने का आह्वान किया.
बाइडेन ने कहा कि पिछले 20 साल में अमेरिका ने एक खरब डॉलर खर्च किए और हजारों सैनिकों की जान गंवाई.
वाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अब "अफगानों को यह तय करना होगा कि उनके जवाब देने की राजनीतिक इच्छा और एक होकर लड़ने की क्षमता है या नहीं.”
तालिबान की आगे बढ़ने की रफ्तार ने सरकार और उसके सहयोगियों को हैरान किया है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि तालिबान के हमले 2020 में हुए समझौते की भावना के खिलाफ हैं.
प्राइस ने कहा कि तालिबान ने शांति वार्ता के लिए प्रतिबद्धता जताई थी जो स्थायी और विस्तृत युद्ध विराम सुनिश्चित करे उन्होंने कहा, "सारे संकेत कहते हैं कि तालिबान युद्ध के जरिए जीत हासिल करना चाहता है. प्रांतीय राजधानियों और आम नागरिकों पर हमले समझौते की भावना के खिलाफ हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
वॉशिंगटन,12 अगस्त| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि पिछले सप्ताह वैश्विक संक्रमण की संख्या 200 मिलियन अंक को पार करने के बाद कोविड -19 के विभिन्न प्रकारों की रिपोर्ट करने वाले देशों, क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि जारी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को जारी महामारी पर अपने नवीनतम साप्ताहिक अपडेट में, डब्ल्यूएचओ ने कहा कि विश्व स्तर पर, अल्फा वेरिएंट के मामले 185 देशों, क्षेत्रों (इसके बाद सीटीए) में दर्ज किए गए हैं, 136 सीटीए ने बीटा वेरिएंट, 81 सीटीए गामा वेरिएंट के मामले दर्ज किए गए हैं और 142 सीटीए ने डेल्टा संस्करण के मामलों की सूचना दी है।
5 अगस्त को, वैश्विक स्तर पर कोविड -19 मामलों की संचयी संख्या 100 मिलियन मामलों तक पहुंचने के छह महीने बाद 200 मिलियन से अधिक हो गई।
पिछले सप्ताह के दौरान, डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 42 लाख से अधिक नए मामले और 65,000 से अधिक नई मौतें दर्ज की गईं, जो पिछले सप्ताह की तुलना में मामूली वृद्धि है।
अमेरिका के क्षेत्र और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र द्वारा नए मामलों में सबसे अधिक आनुपातिक वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें क्रमश: 13 लाख और 374,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए गए।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में इस सप्ताह नई मौतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
डब्ल्यूएचओ ने नोट किया कि राज्यों और क्षेत्रों में, 17 प्रतिशत ने पिछले सप्ताह की तुलना में नए मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की, और 15 प्रतिशत ने नई मौतों में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की।
डब्ल्यूएचओ के नवीनतम साप्ताहिक अपडेट के अनुसार, देश स्तर पर, सबसे अधिक नए मामले अमेरिका से सामने आए, जिसमें पिछले सप्ताह की तुलना में 734,354 नए मामलों के साथ 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, गुरुवार सुबह तक, वैश्विक कोरोनावायरस आंकड़ा, मरने वालों की संख्या और टीकाकरण की संख्या 204,626,055, 4,323,778 और 4,527,816,903 थी। (आईएएनएस)
अफ़ग़ानिस्तान के रणनीतिक रूप से अहम समांगन प्रांत की राजधानी को भी तालिबान ने सोमवार को अपने कब्ज़े में ले लिया. इसी दौरान अफ़ग़ानिस्तान सरकार समर्थित एक कमांडर ने भी तालिबान के पक्ष में जाने का फ़ैसला किया.
उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान तेज़ी से बढ़ रहा है. कहा जा रहा है कि अशरफ़ ग़नी सरकार पर इस्तीफ़े का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की है. तभी से तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान में प्रभाव लगातार बढ़ा है. अब तक 90 फ़ीसदी से ज़्यादा अमेरिकी सैनिक वापस जा चुके हैं.
सैनिकों को बुलाने को लेकर दुनिया भर में राष्ट्रपति बाइडन की आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि अमेरिका ने 20 साल तक उस लड़ाई को लड़ा, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला और अफ़ग़ानों को बीच मँझधार में छोड़कर निकल गया.
मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी के फ़ैसले का बचाव किया और कहा कि उन्हें इसके लिए कोई पछतावा नहीं है.
व्हाइट हाउस में मंगलवार को पत्रकारों से बात करते हुए बाइडन ने कहा, ''मैं अफ़ग़ान नेताओं से आग्रह करता हूँ कि वे एकजुट होकर अपने मुल्क के लिए लड़ें. अमेरिका अपनी प्रतिबद्धता को लेकर आज भी डटा हुआ है. हम हवाई मदद कर रहे हैं, सेना को वेतन दे रहे हैं और सैनिकों को उपकरणों के साथ खाद्य सामग्री भी मुहैया करा रहे हैं. उन्हें अपने लिए लड़ना होगा.''
पिछले तीन दिनों में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की चार अन्य प्रांतीय राजधानियों पर कब्ज़ा किया है. कहा जा रहा है कि उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में जितनी तेज़ी से तालिबान बढ़ रहा है, ऐसे में मज़ार-ए-शरीफ़ पर कब्ज़ा भी मुश्किल नहीं है.
कई अहम शहरों में तालिबान और अफ़ग़ान बलों की भीषण लड़ाई चल रही है. अहम संघर्षों में राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की हार के बाद उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है. ग़नी सरकार में लगातार मंत्री और सैन्य कमांडर बदले जा रहे हैं और इसे उथल-पुथल के तौर पर ही देखा जा रहा है.
कहा जा रहा है कि अगर अफ़ग़ानिस्तान में सभी राजनीतिक ताक़तें एकजुट होकर एक युद्ध योजना के साथ नहीं आती हैं तो अशरफ़ ग़नी की सरकार कुछ ही हफ़्तों में बेदख़ल हो सकती है. टोलो न्यूज़ के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान के कार्यकारी वित्त मंत्री ख़ालिद पयिंदा ने देश छोड़ दिया है.
इसी साल अप्रैल महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को बुलाने की घोषणा की थी. तब से ही तालिबान ने देश भर में अफ़ग़ान की वर्तमान सरकार और सेना के ख़िलाफ़ हमला बोला है.
हालाँकि ट्रंप प्रशासन से क़तर के दोहा में फ़रवरी 2020 में तालिबान ने शांतिपूर्ण समाधान की बात मानी थी. अमेरिका से प्रशिक्षित अफ़ग़ान सैनिक तालिबान के सामने कमतर साबित हो रहे हैं.
सरकार समर्थक तालिबान के पाले में क्यों जा रहे?
अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन के हमले के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले जाने-माने कमांडर और राजनीतिज्ञ अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद ब्रिटेन में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत रहे हैं.
उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा है, ''भ्रष्ट नेताओं और सरकार की खातिर लड़ने के लिए सैनिकों के बीच कोई प्रेरणा नहीं है. ये ग़नी के लिए नहीं लड़ रहे हैं. इन्हें ठीक से खाना भी मिल रहा. इन्हें क्यों लड़ना चाहिए? किसके लिए लड़ना चाहिए? ये तालिबान के साथ बेहतर हैं. इसीलिए ये अपना पक्ष बदल रहे हैं.''
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हाल के हफ़्तों में सरकारी नियंत्रण बुरी तरह से ध्वस्त हुआ है लेकिन राष्ट्रपति ग़नी बेतहाशा आशावादी बयान दे रहे हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तालिबान ने शनिवार को प्रांतीय राजधानियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया तो ग़नी सरकारी बैठकों में व्यस्त रहे.
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''छोटे स्तर के कमांडर तालिबान के सामने सरेंडर कर रहे हैं. सोमवार को समांगन के पूर्व सीनेटर और ताजिक जमिअत-ए-इस्लामी पार्टी के प्रमुख आसिफ़ अज़िमी पाला बदलकर तालिबान के साथ चले गए.''
अज़िमी के तालिबान के साथ जाने को बहुत अहम और ग़नी सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि अज़िमी के पाला बदलने का असर बाक़ियों पर भी पड़ेगा. इससे इस तर्क को बल मिलेगा कि तालिबान की जीत को रोकना अब मुश्किल है.
अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में जमीयत-ए-इस्लामी 2001 में अमेरिका के हमले से पहले तालिबान के ख़िलाफ़ एक अहम गठबंधन था.
अज़िमी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से फ़ोन पर कहा है, ''जमीयत-ए-इस्लामी की स्थापना 1980 के दशक में सोवियत समर्थित शासन के ख़िलाफ़ इस्लामिक शासन लागू करने के लिए हुई थी. लेकिन 2001 में अमेरिका के साथ गठबंधन के बाद हम इस रास्ते से भटक गए थे. हम एक इस्लामिक सरकार चाहते हैं. यह सरकार अमेरिका की कठपुतली है. जो भी इस सरकार के ख़िलाफ़ खड़ा होगा, हम उसके साथ हैं. मेरे सभी समर्थन अब इसी रास्ते पर बढ़ेंगे.''
तालिबान हर दिन अपनी लड़ाई तेज़ कर रहा है. पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर पर नियंत्रण के लिए तालिबान ने हमले और मज़बूत कर दिए हैं. तालिबान ने यहाँ तीन तरफ़ से हमला शुरू किया है.
टोलो न्यूज़ के अनुसार तालिबान ने फ़राह शहर के ज़्यादातर हिस्सों को अपने नियंत्रण में ले लिया है. हेरात में अफ़ग़ान बलों के एक कमांडर अब्दुल रज़ाक़ अहमदी ने कहा है कि यहाँ युद्ध जैसी स्थिति है. उन्होंने कहा कि तालिबान ने अपने लड़ाकों को बड़ी संख्या में जुटा लिया है. इन लड़ाकों में विदेशी भी शामिल हैं.
अफ़ग़ान सैनिक इतने लाचार क्यों?
अफ़ग़ानिस्तान में काग़ज़ पर 350,000 सैनिक हैं. इतनी बड़ी संख्या तालिबान को हराने के लिए काफ़ी है लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. लेकिन कहा जा रहा है कि तालिबान के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद 250,000 अफ़ग़ान सैनिक ही सेवा में हैं.
ज़्यादातर लोगों ने गोला-बारूद और खाने-पीने के सामान ख़त्म होने के बाद सरेंडर कर दिया है. कई रिपोर्ट्स के मुताबिक़ सैनिक महीनों से बिना सैलरी के काम कर रहे हैं.
बाइडन ने जुलाई महीने के पहले हफ़्ते में भी अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए अफ़ग़ान सैनिकों की संख्या का हवाला दिया था. उन्होंने कहा था, "अफ़ग़ानिस्तान में एक और साल की लड़ाई कोई हल नहीं है. बल्कि वहाँ अनंत काल तक लड़ते रहने का एक बहाना है."
बाइडन ने इस बात से भी इनकार किया था कि अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के आने से रोका नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा कि तीन लाख अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के सामने 75 हज़ार तालिबान लड़ाके कहीं से नहीं टिक सकेंगे.
अमेरिका ने नेटो सहयोगियों के साथ अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 सालों में जिस सेना को तैयार किया था, वो नाकाफ़ी और निष्प्रभावी साबित हो रही है. अफ़ग़ानिस्तान की सेना और एयर सपोर्ट बाहरी कॉन्ट्रैक्टरों पर आश्रित है.
कहा जा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान जैसे मुल्क में यह व्यवस्था कभी टिकाऊ नहीं हो सकती, जहाँ चीज़ें सीमित और स्किल की कमी है. अफ़ग़ानिस्तान की वायु सेना के पास तालिबान के ख़िलाफ़ मुक़ाबले लायक हथियार भी हैं.
कुछ अफ़ग़ान लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टर उड़ाने में भी सक्षम हैं लेकिन पश्चिमी कॉन्ट्रैक्टर यहाँ से चले गए हैं. ऐसे मुश्किल वक़्त में अफ़ग़ान सैनिक ख़ुद को अकेले पा रहे हैं.
जुलाई में ही अफ़ग़ानिस्तान के एक हज़ार से ज़्यादा सैनिक पड़ोसी देश ताजिकिस्तान भाग गए थे. सैनिकों में कोई उत्साह नहीं है क्योंकि कई स्तरों पर ज़रूरी चीज़ों की कमी है.
न्यूयॉर्क, 11 अगस्त | न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू कुओमो, जो एक डेमोक्रेटिक पार्टी के दिग्गज और कभी महिलाओं के अधिकारों के चैंपियन के रूप में प्रतिष्ठित थे, आज यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे हुए है। कुओमो, जो महामारी के शुरूआती दिनों के दौरान कोविड -19 पर अपनी दैनिक ब्रीफिंग के लिए भारत में भी निम्नलिखित के साथ एक अंतरराष्ट्रीय टीवी स्टार के रूप में उभरे, उन्होंने सोमवार को इस्तीफा देने के बाद राज्य विधायिका द्वारा महाभियोग को रोकने की उम्मीद में अपने इस्तीफे की घोषणा की।
कुओमो कांड यौन पेकेडिलो अमेरिकी राजनेताओं पर एक स्पॉटलाइट डालता है, जिसमें एलियट स्पिट्जर, गवर्नर के रूप में उनके निर्वाचित पूर्ववर्ती शामिल हैं।
स्टेट अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स द्वारा पिछले हफ्ते की गई एक जांच में बताया गया कि उसने एक महिला पुलिस अंगरक्षक सहित 11 महिलाओं को परेशान किया था, जिसके बाद राज्य विधायिका ने महाभियोग की कार्यवाही शुरू की थी, जिससे उसकी सजा निश्चित थी।
जिन महिलाओं ने उनके कार्यालय में काम किया था उन्होंने भय और उत्पीड़न के माहौल की शिकायत की।
कुओमो ने अपने भाग्य को पीढ़ी और सांस्कृतिक बदलाव पर दोषी ठहराया जिसके कारण उनके कार्यों को उत्पीड़न के रूप में व्याख्या किया गया।
अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए, क्युमो ने कहा," मैंने कभी किसी के साथ सीमा को पार नहीं किया है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि रेखा को किस हद तक फिर से खींचा गया है।"
जब जांच रिपोर्ट जारी की गई और बिडेन ने उनके इस्तीफे की मांग की, तो कुओमो ने विभिन्न लोगों और बिडेन को गले लगाते हुए खुद की दर्जनों तस्वीरें जारी करके जवाब दिया, और कहा ये उत्पीड़न नहीं स्नेह दिखाने का तरीका है।
हैशटैग मीटू आंदोलन द्वारा लाए गए संवेदीकरण के साथ, बिडेन को भी कुछ महिलाओं की आलोचना का सामना करना पड़ा, जिन्होंने उन्हें छूकर या गले लगाकर असहज कर दिया था।
जबकि उनकी रिपोर्ट क्युमो के मामले में उत्पीड़न के समान स्तर तक नहीं बढ़ी है, बिडेन ने उन्हें इसी तरह के तर्क के साथ खारिज कर दिया है, उन्होंने ट्वीट किया, "सामाजिक मानदंड बदलना शुरू हो गए हैं, वे स्थानांतरित हो गए हैं। और व्यक्तिगत स्थान की सुरक्षा की सीमाएं हैं, उन्हें रीसेट कर दिया गया है, मैं समझ गया हूं, मैं बहुत अधिक सावधान रहूंगा।"
जब पिछले साल कोविड -19 ने न्यूयॉर्क को तबाह कर दिया था, तो उन्हें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विरोधी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था और उनकी दैनिक ब्रीफिंग एक व्यापक रूप से देखा जाने वाला टीवी शो बन गया था।
उन्होंने चीन में कोविड -19 की उत्पत्ति को खारिज कर दिया, इसके बजाय इस बात पर जोर दिया कि यह ट्रम्प की लापरवाही के कारण यूरोप से राज्य में आया था।
प्रदर्शन से उन्होंने एक विशेष एमी, उच्च टीवी उद्योग पुरस्कार और एक अनुबंध जीता जिसने उन्हें उनके नेतृत्व के बारे में एक पुस्तक के लिए 50 लाख डॉलर दिए गए।
उनके भाई क्रिस कुओमो, एक प्राइम टाइम सीएनएन समाचार कार्यक्रम के मेजबान, भी एक नैतिकता विवाद से घिरे हुए थे, उन्होंने कुओमो को संकट से निपटने की सलाह दी और नकारात्मक कहानियों को तोड़ते हुए उन्हें अपने शो में बुलाया था।
कुओमो के इस्तीफे के बाद उनकी जगह उपराज्यपाल कैथी होचुल लेंगी, जो राज्य का नेतृत्व करने वाली पहली महिला होंगी।(आईएएनएस)
लंदन, 11 अगस्त | भारतीय टीम इंग्लैंड के खिलाफ यहां लॉर्ड्स मैदान पर गुरूवार से होने वाले दूसरे टेस्ट मुकाबले में इस मैदान पर अपना तिलस्म तोड़ना चाहेगी। भारतीय टीम का इतिहास इस मैदान पर अच्छा नहीं रहा है और उसने यहां अबतक खेले गए 18 टेस्ट मैच में से सिर्फ दो ही मुकाबले जीते हैं। भारत को यहां आखिरी बार 2014 के दौरे पर जीत मिली थी, जो उसे 1986 के बाद 28 वर्षो के पश्चात मिली थी।
भारत के शीर्ष बल्लेबाज कप्तान विराट कोहली, अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा का इस वेन्यू पर रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है।
कोहली, पुजारा और रहाणे ने लॉर्ड्स मैदान पर दो-दो टेस्ट मैच खेले हैं। कोहली का औसत 16.25, पुजारा का 22.25 और रहाणे का औसत 34.75 का है। रहाणे ने हालांकि, 2014 में शतक जड़ा था।
भारत के शीर्ष तीन बल्लेबाजों में छह पारियों पर सिर्फ एक शतक लगाया है, वो भी 2014 में रहाणे के बल्ले से निकला था।
भारत को अपनी गेंदबाजी संयोजन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उम्मीद है कि भारतीय टीम चार तेज गेंदबाज और एक स्पिनर के साथ इस मैच में उतर सकती है।
हालांकि, इस बात पर संदेह है कि टीम रविचंद्रन अश्विन को खेलाएगी या नहीं। अश्विन का इंग्लैंड में अबतक रिकॉर्ड बेहतर रहा है। उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ विश्व टेस्ट चैंपियनशिप तथा काउंटी मैच में बेहतर किया था। लेकिन उन्हें पहले टेस्ट मैच में जगह नहीं दी गई थी जिससे कई क्रिकेटर्स आश्चर्यचकित रह गए थे।
भारत की तरफ से शार्दुल ठाकुर दूसरे टेस्ट में उपलब्ध नहीं होंगे और इसकी पुष्टि खुद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने की है।
भारत इस मैच में तेज गेंदबाज इशांत शर्मा को मौका दे सकती है, जिन्होंने 2014 में लॉर्ड्स में भारत को मिली जीत में अहम भूमिका निभाई थी।
32 वर्षीय गेंदबाज ने उस मैच में 23 ओवर में 74 रन देकर सात विकेट लिए थे और भारत को 95 रनों से जीत दिलाई थी।(आईएएनएस)
बीजिंग, 11 अगस्त | शीर्ष चीनी विषाणु विज्ञानी शी झेंगली ने कहा है कि जैसे-जैसे वायरस उत्परिवर्तित होता जाएगा, कोविड-19 के नए रूप सामने आएंगे, इसलिए दुनिया को उनके साथ सह-अस्तित्व के लिए तैयार रहना चाहिए। साउथ चाइना मॉनिर्ंग पोस्ट ने बताया कि झेंगली, जिसे बैट वुमन के रूप में भी जाना जाता है, उन्होंने कोरोनवायरस के खिलाफ टीकाकरण के लिए नए सिरे से आहवान किया।
उन्हें यह भी कहा,चूंकि संक्रमित मामलों की संख्या अभी बहुत बड़ी हो गई है, इसने कोरोनवायरस को उत्परिवर्तित और चयन करने के अधिक अवसर दिए, इसके नए रूप सामने आते रहेंगे।
कोविड -19 का कारण बनने वाले कोरोनवायरस को पहली बार दिसंबर 2019 में मध्य चीनी शहर वुहान से प्रलेखित किया गया था, तब से, यह दुनिया भर में फैलते हुए कई रूपों में यह विकसित हुआ है।
हांगकांग विश्वविद्यालय के एक आणविक वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर जिन डोंगयान ने कहा, जनता को लंबे समय तक या हमेशा के लिए वायरस के साथ सह-अस्तित्व के लिए तैयार रहना चाहिए।
हालाँकि, डोंगयान ने यह भी सुझाव दिया कि सार्स-सीओवी-2 को अंतत: चेचक या पोलियो की तरह समाप्त किया जा सकता है, क्योंकि टीकों में सुधार किया गया है।
डोंगयान ने कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिक वेरिएंट के साथ भी, सार्स-सीओवी-2 की उत्परिवर्तन दर इन्फ्लूएंजा और एचआईवी-1 की तुलना में कम थी। वायरस में उत्परिवर्तित करने की असीमित क्षमता नहीं है।
अब जबकि कोविड -19 अधिक पारगम्य हो गया था, और अधिक उत्परिवर्तन का पालन किया जा सकता था क्योंकि यह विकसित होता रहा - ठीक कई अन्य वायरस की तरह।
उन्होंने कहा,जब यह सबसे अच्छा अनुकूलित हो जाता है, तो यह स्थिर हो सकता है,
इस बीच, झेंगली ने वैज्ञानिक समुदाय से वायरस के खिलाफ ऊपरी श्वसन संक्रमण को रोकने के लिए नए टीकों और दवाओं के विकास में तेजी लाने का भी आहवान भी किया।
डोंगयान ने कहा, मौजूदा टीके हमारी मांसपेशियों में इंजेक्ट किए जाते हैं और हमारे फेफड़ों की रक्षा करते हैं, लेकिन अभी तक हमारे ऊपरी श्वसन तंत्र से संक्रमण को दूर करने में सक्षम नहीं हैं।(आईएएनएस)
इंडोनेशियाई ग्रामीणों और वैज्ञानिकों द्वारा मनोरंजन के लिए डिजाइन किए गए एक होममेड रोबोट का इस्तेमाल महामारी के दौरान हो रहा है. यह रोबोट ऐसे लोगों तक भोजन और उम्मीद की नई रोशनी लेकर पहुंच रहा है जो कोविड से पीड़ित हैं.
घरेलू सामान जैसे बर्तन, कड़ाही और पुराना टेलीविजन मॉनिटर को मिलाकर एक रोबोट तैयार किया गया है. इस रोबोट को अब "डेल्टा रोबोट" नाम दिया गया है. इंडोनेशिया में कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट भारी तबाही मचा रहा है.
इस प्रोजेक्ट के प्रमुख 53 साल के असियांतो कहते हैं, "डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामले और कोरोना के केसों की संख्या को देखते हुए इस रोबोट को सार्वजनिक सेवाओं के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया गया है. जो कीटाणुनाशक का छिड़काव करेगा, ऐसे लोगों तक भोजन पहुंचाएगा जो कोरोना के कारण अलग-थलग घर पर रह रहे हैं."
कचरे से बना रोबोट
रोबोट का सिर कुकर से बनाया गया है और यह है रिमोट से चलता है. इसकी बैटरी करीब 12 घंटे तक काम कर सकती है. यह टेम्बोक गेडे गांव में बने कई रोबोटों में से एक है, इस गांव ने प्रौद्योगिकी के अपने रचनात्मक उपयोग के लिए ख्याति प्राप्त की है.
रोबोट उन गलियों से गुजरता है जहां के लोग घर पर आइसोलेशन में रह रहे हैं. घर पर अलग-थलग रहने वालों के यहां पहुंच कर यह स्पीकर द्वारा सलाम करता है और भोजन पहुंचने का संदेश देता है. साथ ही वह जल्द ठीक होने की कामना भी करता है.
यह गांव इंडोनेशिया के दूसरे सबसे बड़े शहर सुराबाया में पड़ता है, जहां पिछले एक महीने में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी विनाशकारी लहर आई है.
इंडोनेशिया में गंभीर हालात
इंडोनेशिया एशिया का नया कोरोना वायरस केंद्र बन गया है. देश की कुल 27 करोड़ आबादी में से 36 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और एक लाख आठ हजार लोगों की मौत हो चुकी है.
असियांतो कहते हैं, "यह डेल्टा रोबोट बहुत ही सरल है....जब हमने इसे बनाया था, तो हमने अपने इसके लिए इस्तेमाल की गई चीजों का उपयोग किया था."
जापान और अन्य देशों में हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में रोबोट्स का इस्तेमाल होता आया है. अब महामारी के दौरान भी कई देशों में रोबोट तैयार किए गए हैं जो अस्पतालों में कोरोना मरीजों की देखरेख के लिए तैनात किए जा रहे हैं. (dw.com)
एए/वीके (रॉयटर्स)
अलीबाबा कंपनी और सेलिब्रिटी क्रिस वू से जुड़े यौन शोषण के मामलों ने देश में एक बार फिर #MeToo पर चर्चा को शुरू कर दिया है. पिछली बार इस आंदोलन पर चर्चा को दबा दिया गया था.
यौन शोषण और हमले जैसे विषयों पर चीन में पहले सार्वजनिक स्तर पर कम ही चर्चा होती थी. 2018 में दुनिया भर में चल रहे #MeToo आंदोलन ने देश में चर्चा शुरू तो की, लेकिन जल्द ही इंटरनेट पर सेंसरशिप और सरकार का दबाव शुरू हो गया. एक्टिविस्टों को गिरफ्तार भी किया जाने लगा.
अब एक बार फिर ये मुद्दे चर्चा में वापस आ रहे हैं. बीते कुछ दिनों में चीन के सोशल मीडिया मंच वीबो पर कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा यौन शोषण का सामना करने के मामलों पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई है. इस तरह की चर्चाओं को सिर्फ दो दिनों में 50 करोड़ से भी ज्यादा बार देखा गया.
सोशल मीडिया पर छाया विषय
सबसे ज्यादा ट्रेंड कर रहे विषयों में शामिल थे "कामकाजी महिलाओं को सहकर्मियों के साथ शराब पीने के दौरान सामने आने वाली घिनौनी संस्कृति से कौन बचाएगा?" और "कार्यस्थल पर महिलाएं यौन शोषण से अपनी सुरक्षा कैसे करें?"
सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाला जिसमें विशेषज्ञ बता रहे थे कि अगर किसी महिला पर कार्यस्थल के अंदर यौन हमला होता है तो वो उसके सबूत जुटाने के लिए क्या कदम उठा सकती हैं. इस वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए लोगों ने कहा कि पुरुषों पर इसकी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो जानें कि ऐसा करना गलत है.
हाल ही में पुलिस ने चीनी-कैनेडियन पॉप गायक क्रिस वू को नाबालिग महिलाओं को शराब पिला कर बहकाने के आरोप में हिरासत में ले लिया था. इसी सप्ताह तकनीकी कंपनी अलीबाबा ने अपने एक कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जिसके खिलाफ उसकी एक सहकर्मी ने यौन हिंसा का आरोप लगाया था.
इस बार नहीं हो रहा सेंसर
यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है की चीन के सेंसर "ग्रेट फायरवॉल" ने इन दोनों में से किसी भी मामले को अभी तक सेंसर क्यों नहीं किया है. समीक्षकों का कहना है कि ये मामले ऐसे समय पर सामने आए हैं जब सरकार ने सेलेब्रिटियों की अत्यधिक भक्ति को नापसंद करने के संकेत दिए हैं.
इसके अलावा सालों तक चीनी तकनीकी कंपनियों से अपने हाथ दूर रखने के बाद अब उन पर नकेल कसने के चीनी सरकार के अभियान का अलीबाबा सबसे बड़ा शिकार बन गया है. बीजिंग फॉरेन स्टडीज विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त पत्रकारिता के प्रोफेसर शान चियांग का कहना है कि वू और अलीबाबा मामलों पर जनता के ध्यान सरकार के कोई संवेदनशील बात नहीं है.
उन्होंने बताया, "मनोरंजन का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. अलीबाबा इस समय एक तूफान के केंद्र में है और इसका सरकार के हितों से कुछ खास लेना-देना नहीं है, इसलिए सरकार चिंतित नहीं है."
मौजूदा हालात
चीन का कहना है कि वो महिलाओं को सशक्त करना चाहता है और उनके अधिकारों की रक्षा करना चाहता है. पिछले ही साल एक नया कानून लाया गया जिसके तहत पहली बार कौन कौन से कदम यौन शोषण माने जाएंगे इसकी परिभाषा दी गई.
लेकिन चीन इस तरह की गतिविधियों और बातचीत को बर्दाश्त नहीं करता है जिनसे उसे यह चिंता हो कि वो सामाजिक व्यवस्था को हिलाएंगे या सरकार की शक्ति का निरादर करेंगे. महिलावादी समूहों पर दबाव आज भी जारी है. हाल के महीनों में उनके कई ऑनलाइन मंच बंद कर दिए गए हैं.
फिर भी, #MeToo एक्टिविस्टों का कहना है कि वो इस बात से खुश हैं कि वू और अलीबाबा मामलों पर लोगों का जो गुस्सा भड़का है उससे इन विषयों के बारे में नई जागरुकता आ रही है. 2018 में अपने आरोपों से आंदोलन को शक्ति देने वाली झाऊ शिओशुआन मानती हैं, "इसका जरूर सकारात्मक असर होगा."
झाऊ ने टीवी की मशहूर हस्ती झू जुन पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि जुन ने उन्हें जबरन छुआ और चूमा. झाऊ ने झू से हर्जाने की मांग करते हुए उनके खिलाफ अदालत में मामला दर्ज कराया था, लेकिन उनकी शिकायत पर आज तक फैसला नहीं आया है.
उन्होंने हाल के इन नामी मामलों के बारे में कहा,"इनसे महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्थन का विस्तार ही होता है. इससे शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर चर्चा भी होती है." (dw.com)
सीके/एए (रॉयटर्स)
चीन ऐसे गानों को ब्लैक लिस्ट करेगा जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा, धार्मिक प्रथाओं का उल्लंघन या नशीली दवाओं का बढ़ावा मिलता है.
चीन में कैरेओके बार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले, धार्मिक प्रथाओं का उल्लंघन करने या नशीली दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने वाले गानों पर प्रतिबंध लगाने का जिम्मा सौंपा जाएगा.
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने मंगलवार को बताया कि चीन मनोरंजन स्थलों पर "हानिकारक सामग्री" वाले कैरेओके गीतों पर प्रतिबंध लगाएगा.
गाने से भी चीन को दिक्कत
समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि चीनी संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय ऐसे कैरेओके गीतों को गैरकानूनी घोषित करने के लिए एक "ब्लैकलिस्ट" तैयार करेगा, जो समाज के लिए खतरा लगते हैं.
"ब्लैकलिस्ट" में ऐसी सामग्री शामिल है जो राष्ट्रीय एकता, संप्रभुता या क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ उन गीतों को भी शामिल करती है जो पंथ या अंधविश्वास का प्रचार करके राज्य की धार्मिक नीतियों का उल्लंघन करते हैं.
मंत्रालय के मुताबिक जुआ और ड्रग्स जैसी अवैध गतिविधियों को बढ़ावा करने वाले गीतों पर भी प्रतिबंध लगाया जाएगा.
'स्वस्थ और प्रेरक गीतों को बढ़ावा'
मंत्रालय ने कहा कि कैरेओके स्थलों के लिए सामग्री प्रदाता गानों के ऑडिट के लिए जिम्मेदार होंगे. मंत्रालय ने इन स्थलों पर "स्वस्थ और प्रेरक" संगीत देने का आग्रह किया है.
शिन्हुआ के मुताबिक चीन में लगभग 50 हजार मनोरंजन आउटलेट हैं, ऐसी जगहों पर बजाने के लिए इसके संगीत पुस्तकालय में एक लाख से अधिक गाने भी हैं.
पिछले साल चीनी अधिकारियों ने हिंसा को बढ़ावा देने वाले लगभग 100 गानों पर प्रतिबंध लगा दिया था.
चीन सोशल मीडिया मंचों से हिंसा, अश्लील साहित्य या राजनीतिक रूप से आलोचनात्मक टिप्पणी जैसी सामग्री को भारी रूप से नियंत्रित करता है. देश में मीडिया और प्रेस के लिए भी एक तरह का प्रतिबंधात्मक माहौल है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
इथियोपिया की सरकार ने अपनी जनता से टिग्रे के विद्रोही लड़ाकों के खिलाफ हथियार उठाने की अपील की है. सरकार ने मंगलवार को नागरिकों से कहा कि विद्रोहियों के खिलाफ संघर्ष में साथ दे.
इथियोपिया की सरकार ने लोगों से हथियार उठाकर विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने की अपील की है. देश में पिछले लगभग नौ महीने से युद्ध चल रहा है, जो अब टिग्रे से बाहर दूसरे इलाकों में भी पैर पसार रहा है.
प्रधानमंत्री अबी अहमद के दफ्तर की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "अब वक्त आ गया है कि सारे सक्षम इथियोपियाई, जिनकी उम्र सेना, स्पेशल फोर्स और मिलिशिया में भर्ती की हो गई है, अपनी देशभक्ति दिखाएं.”
छह हफ्ते पहले ही सरकार ने टिग्रे इलाके में एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की थी. ऐसा तब हुआ जब विद्रोहियों ने प्रांतीय राजधानी मेकेले पर दोबारा कब्जा कर लिया और आठ महीने से जारी युद्ध का रुख बदल दिया.
कब शुरू हुई लड़ाई
टिग्रे में सरकारी फौजों और टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के बीच युद्ध नवंबर में शुरू हुआ. टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट ने तीन दशक तक इथियोपिया पर राज किया है और अब टिग्रे प्रांत पर उसका कब्जा है. इस लड़ाई के चलते बीस लाख से ज्यादा लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा है. 50 हजार से ज्यादा लोग पड़ोसी देश सूडान में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं.
जून में सरकार ने एकतरफा युद्ध विराम लागू कर दिया था ताकि किसान खेतों में बुआई कर सकें. लेकिन विद्रोही फ्रंट द्वारा राजधानी मेकेले पर कब्जा कर लेने के बाद अब सरकार लोगों से हथियार उठाने की अपील कर रही है.
टिग्रे विद्रोही पहले ही युद्ध विराम को खारिज कर चुके हैं. उनका कहना था कि सरकार को उनकी शर्तें माननी होंगी. जून और जुलाई के बीच विद्रोही प्रांत के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर चुके हैं और अब अफार और अमारा क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने लालीबेला में एक विश्व धरोहर पर भी कब्जा कर लिया है.
संयुक्त राष्ट्र ने पिछले हफ्ते बताया था कि नई लड़ाई के कारण अफार और अमारा में ढाई लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. दुबीती अस्पताल के प्रमुख ने गुरुवार को बताया था कि अफार में हुए एक हमले में 12 ऐसे लोग मारे गए थे जो पहले ही अपने घर छोड़ चुके थे.
इसके अलावा 46 लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जो लोग मारे गए थे वे स्कूलों और अस्पतालों में शरण लिए हुए थे.
भुखमरी का खतरा
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है टिग्रे प्रांत में लगभग साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है. और लाखों लोगों के सामने अकाल का खतरा मंडरा रहा है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने पिछले महीने टिग्रे प्रांत में तत्काल जीवनरक्षक सहायता पहुंचाने के लिए रास्तों को खोले जाने का आग्रह किया था. सरकारी सुरक्षा बलों और हथियारबंद गुटों के बीच लड़ाई जारी रहने से, हिंसा प्रभावित इलाके में साढ़े तीन लाख लोगों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है.
यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रांत के 55 लाख लोगों को तत्काल खाद्य सहायता की जरूरत है. संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का कहना है कि 2010 से 2012 तक सोमालिया में आए अकाल के बाद टिग्रे में खाद्य संकट सबसे खराब है. सोमालिया में उस दौरान ढाई लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी उनमें से आधे से अधिक बच्चे थे.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
अफगानिस्तान का कुंदूज अब तालिबान के कब्जे में है. इस घटना ने जर्मन सैनिकों के भीतर भावनात्मक भूचाल ला दिया है. वे दुखी हैं और गुस्सा भी.
डॉयचे वैले पर बेन नाइट की रिपोर्ट
अफगानिस्तान के कुंदूज में इमारतों पर तालिबान के झंडे फहरा रहे हैं. वही तालिबानी लड़ाके जो दो महीने पहले तक कुंदूज की तरफ देख भी नहीं रहे थे, अब कंधे पर बूंदकें टांगे गलियों में टहल रहे हैं. और ये दृश्य देखकर जर्मनी के कई पूर्व सैनिक न सिर्फ नाराज और दुखी हैं बल्कि बेबस भी महसूस कर रहे हैं.
इसी हफ्ते तालिबान ने कुंदूज पर कब्जा कर लिया है. यह वही शहर है जहां जर्मन सेना का मुख्य अड्डा हुआ करता था. पूर्व जर्मन सैनिकों का कहना है कि कुंदूज का तालिबान के हाथों पड़ जाना जर्मन फौज के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक धक्का है.
पूर्व सैनिक और रॉस्टोक यूनिवर्सिटी में प्रशिक्षण के प्रोफेसर वुल्फ ग्रेगिस कहते हैं, "इसने तो पूर्व सैनिकों के भीतर एक जज्बाती भूचाल ला दिया है. जितने जर्मन सैनिकों की मौत कुंदूज में हुई है, उतनी तो कहीं भी नहीं हुई थी.”
कुंदूज प्रांत में जर्मन सेना को जान ओ माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा था. इसलिए इस जगह से जर्मन सैनिक भावनात्मक तौर पर सीधे जुड़े हैं. ग्रेगिस बताते हैं, "यही जगह है जहां जर्मन सैनिकों ने सबसे पहले यह जाना कि एक विषम युद्ध में लड़ना और मरना क्या होता है और यह कितना भद्दा हो सकता है.”
जर्मन सेना का सबसे खूनी साल
नाटो सहयोगी के तौर पर जर्मन सेना ने जब अफगानिस्तान में अपना अभियान शुरू किया था तो कुंदूज सबसे सुरक्षित जगहों में गिना जा सकता था. वहां जर्मनी ने नाटो की प्रांतीय पुनर्निर्माण टीम के रूप में इलाके को फिर से बनाना शुरू किया था.
लेकिन 2006 के बाद जंग तेज होती गई और बकौल ग्रेगिस, यह कुंदूज ही था, जहां जर्मन सेना के मकसद का सबसे कड़ा इम्तेहान हुआ. वहां कई घातक भयानक घटनाएं हुईं. जैसे कि सितंबर 2009 में एक जर्मन अफसर के आदेश पर अमेरिका ने एक तेल ट्रक पर हवाई हमला किया. उस हमले में 100 से ज्यादा आम नागरिक मारे गए.
उस घटना ने जर्मनी में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था जिसका खामियाजा तत्कालीन रक्षा मंत्री फ्रांत्स योसेफ युंग को इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा. एक साल बाद जर्मनी के सैनिक पहले से कहीं ज्यादा युद्ध में उलझे हुए थे.
‘पहले से पता था'
अप्रैल 2010 की ‘गुड फ्राइडे बैटल' खासी मशहूर हुई थी जबकि जर्मन टुकड़ी और तालिबान के बीच नौ घंटे तक गोलीबारी चली थी. उस लड़ाई में तीन सैनिक मारे गए और आठ घायल हुए जिन्हें अमेरिकी हेलिकॉप्टर की मदद से बचाया जा सका.
इस लड़ाई के साथ उस साल की शुरुआत हुई जिसे जर्मन फौज के इतिहास का सबसे खूनी साल कहा जाता है. कुंदूज में जर्मन सेना 2003 से 2013 तक यानी दस साल तक थी जिस दौरान उसके 59 सैनिकों की जान गई.
अब उसी जगह को तालिबान के पैरों तले रौंदे जाते देख पूर्व जर्मन सैनिक हताश हैं. 2013 में अफगानिस्तान का अपना तीसरा दौर करने वाले आंद्रियास एगर्ट पूर्व सैनिकों की एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. कुंदूज की हार पर अपने जज्बात के बारे में वह कहते हैं, "समझाना तो बहुत मुश्किल है. मेरे भीतर बहुत सी चीजें चल रही हैं. उनमें से एक तो दुख है और दूसरा गुस्सा है.”
डीडबल्यू से बातचीत में एगर्ट ने कहा, "यह गुस्सा तालिबान पर है कि वे लोगों को फिर से अपना गुलाम बनाना चाहते हैं. लेकिन मैं जर्मनी की सरकार और रक्षा मंत्रालय के फैसले पर भी गुस्सा हूं. ये तो पहले से दिख रहा था कि ऐसी बर्बादी होगी.”
जहां बहाया खून, पसीना और आंसू
2010 से 2011 के बीच अपने सात महीने लंबे अफगानिस्तान दौरे के बारे में एक किताब लिखने वाले पूर्व कारपोरल योहानेस क्लेयर कहते हैं, "बहुत ज्यादा खराब लग रहा है. हमने वहां अपना खून, पसीना और आंसू बहाए हैं. हमारे साथी वहां मारे गए थे. और जो हो रहा है, उसका पहले से अंदाजा था. 2014 में, जब लड़ाकू टुकड़ियों को वापस बुलाया गया था, तभी यह स्पष्ट था कि अफगान सेना अपने आप इस स्थिति को काबू नहीं कर पाएगी.”
हालांकि क्लेयर यह भी कहते हैं कि सेनाओँ का इस साल अफगानिस्तान से वापस बुलाया जाना भी निश्चित ही था क्योंकि पूरे अभियान से उत्साह खत्म हो गया था. वह कहते हैं, "मैं इसीलिए गुस्सा हूं क्योंकि वहां की मूलभूत समस्याएं हमें पहले से पता थीं. तब भी, जब मैं 2010 में वहां तैनात था, हमें पता था. फिर भी उन समस्याओं को कभी नहीं सुलझाया गया.”
जर्मन सेना ने 2013 में कुंदूज सैन्य अड्डा अफगानिस्तान सरकार को सौंप दिया था और वे अपने नए मुख्यालय मजार-ए-शरीफ में चले गए थे. इसी साल जून के आखरी हफ्ते में जर्मन सेना ने अफगानिस्तान को पूरी तरह छोड़ दिया था. (dw.com)