अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 27 अगस्त | काबुल एयरपोर्ट में हमला हुआ, लेकिन कौन है जिम्मेदार.. ? अल जजीरा के अनुसार, बम विस्फोटों में मारे गए लोगों में 28 तालिबान सदस्यों सहित 70 से अधिक अफगान शामिल थे।
एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, "काबुल विस्फोटों के साथ, उनके (बाइडेन) हाथ में एक कठिन काम होगा (स्थिति को स्थिर करने में), खासकर जब उनके लोगों से उम्मीदें अधिक थीं (पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हराने के बाद)। अफगानिस्तान की हार से पता चलता है कि ना तो उनके पास अपने घरेलू मोर्चे हैं और ना ही वैश्विक समुदाय को खुश रखने में कामयाब रहे।"
नई दिल्ली, जो अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रही थी, हाल की घटनाओं के मद्देनजर अपनी वाशिंगटन नीति को 'धीरे-धीरे फिर से शुरू' कर सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने भयानक हमलों के बाद एक प्रेस वार्ता में आतंकवादियों से बदला लेने का वादा किया। उन्होंने बम विस्फोटों के बाद व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा, "मैं अपने हितों और अपने लोगों की हर उपाय के साथ रक्षा करूंगा।"
विश्लेषक ने कहा, "हालांकि इस पर अमेरिकी शायद उनके शब्दों पर भरोसा करने को भी तैयार नहीं हैं।"
अफगानिस्तान से बाहर निकलने का फैसला करने वाले बाइडेन को अमेरिकियों का पूरा समर्थन प्राप्त था, लेकिन 'उस फैसले का असफल होना क्षमा ना करने योग्य है।
जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में राजनीति और पत्रकारिता पढ़ाने वाले स्टीवन रॉबर्ट्स ने ब्रूकिंग्स द्वारा प्रकाशित एक लेख में लिखा, "अब समय आ गया है कि बाइडेन ईमानदार हो जाएं। वह हमारे सैनिकों, हमारे सहयोगियों और अमेरिकी लोगों के लिए ऋणी हैं।"
इस बीच ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) ने कहा कि दुनिया भर में सुरक्षा के गारंटर के रूप में अमेरिका की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता को लेकर चिंता है।
ओआरएफ पेपर में कहा गया है, "बाहरी प्रतिबद्धताओं पर अमेरिकी विश्वसनीयता को एक दिए गए रूप में लेना मूर्खता होगी। यूरोप और नाटो के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धताओं के बारे में कम संदेह है, लेकिन इंडो-पैसिफिक में ढीली व्यवस्था कई सवाल खड़े करती है।" (आईएएनएस)
काबुल एयरपोर्ट के नज़दीक़ गुरुवार को दो बम धमाकों के बाद बीती रात से डॉक्टर और नर्सें 150 घायल लोगों के इलाज में लगेहुए हैं.
तालिबान के नियंत्रण के बाद अस्पतालों में स्टाफ़ की कमी है और वहां पर मरीज़ों की भीड़ लगी हुई है.
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल चैरिटी संस्था ‘इमर्जेंसी’, दकाबुल सर्जिकल सेंटर चलाती है. उसका कहना है कि उनके यहां दो घंटे के अंदर 60 घायल पहुंचे थे जिनमें से 16 की वहां आते ही मौत हो गई थी.
संस्था की अध्यक्ष रॉसेला मिचियो जो कि अफ़ग़ानिस्तान में नहीं हैं. उनका कहना है कि जो स्टाफ़ अपनी शिफ़्ट ख़त्म करके चले गए थे वो तुरंत मदद के लिए वहां पहुंचे.
बीबीसी के टुडे प्रोग्राम से उन्होंने कहा, “पूरी रात अस्पताल के तीन ऑपरेशन थिएटर में काम जारी रहा. अंतिम मरीज़ का ऑपरेशन सुबह 4 बजे किया गया था.”
उन्होंने बताया कि कुछ मरीज़ आईसीयू में हैं तो ‘स्थिति अभी भी कुछ गंभीर बनी हुई है.’
अस्पताल के मेडिकल कॉर्डिनेटर ने ट्विटर पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि मरीज़ ‘डरे हुए हैं, उनकी आंखें एकदम सूनी हो चुकी हैं. हमने बहुत कम ही ऐसी स्थिति देखी है.’ (bbc.com)
25 अगस्त 1989 को सुबह क़रीब 7:30 बजे गिलगित से इस्लामाबाद जा रही पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की फ़्लाइट नंबर 404 में यात्रियों और चालक दल के सदस्यों सहित कुल 54 लोग सवार थे. इनमे पांच दुधमुंहे बच्चे भी शामिल थे.
इस फ़्लाइट को गिलगित से रवाना हुए 32 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह अभी तक लापता है.
पाकिस्तान के अधिकारियों के अनुरोध पर, भारतीय वायु सेना ने भी अपने क्षेत्र में विमान के मलबे को खोजने के लिए एक अभियान चलाया था. (bbc.com)
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस का कहना है कि लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकालने वाला ब्रितानी मिशन अगले चंद घंटों में पूरा हो जाएगा.
वॉलेस ने स्काई न्यूज़ से बात करते हुए कहा- "दुखी करने वाली बात ये है कि हर एक को हम बाहर नहीं निकाल पाएंगे."
ब्रिटेन की ओर से अब किसी को एयरपोर्ट पर बुलाया नहीं जाएगा.
उन्होंने बताया कि "ब्रिटेन ने काबुल एयरपोर्ट के पास स्थित बैरन होटल बंद कर दिया है.’’
ब्रिटेन जाने वाले लोगों को यहीं रोका जा रहा था. पश्चिमी देशों की सेना अब काबुल छोड़ने के करीब है और ऐसे में "एयरपोर्ट पर हमलों का ख़तरा और बढ़ गया है.’’
वह कहते हैं,“जैसे ही हम लोग देश छोड़ेंगे कुछ ग्रुप जैसे इस्लामिक स्टेट ये दावा करेंगे कि अमेरिका और ब्रिटेन को बाहर निकालने में उनकी भूमिका थी. आने वाले वक्त में ये नैरेटिव होगा.”
अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों की भूमिका को इतिहास कैसे याद करेगा? इस सवाल के जवाब में वॉलेस कहते हैं-“जैसे अफ़ग़ानिस्तान की परेशानी दूर की गई वैसी कभी ना की जाए. पश्चिमी देश को लगता है कि वह कुछ चीज़ें करेगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा.”
‘’अफ़ग़ानिस्तान में जिस तरह से परेशानी दूर करने की कोशिश की गई वैसी कोशिश नहीं होनी चाहिए- हज़ारों सालों से चली आ रही जनजातीयलड़ाई, युद्धजिसका आप प्रबंधन करते हैं.”
“आप राष्ट्र निर्माण में शामिल होनाचाहते हैं या किसी राष्ट्र का समर्थन करना चाहते हैं, तो एक अंतरराष्ट्रीय निकाय के रूप में आपने काफी अच्छा काम भी किया है. लेकिन आपको वहां लंबे वक़्त तक ठहरना होगा.’’ (bbc.com)
डेनमार्क में रहने वाली अफगानिस्तान की पूर्व फुटबॉलर अपनी टीम की लड़कियों को देश से निकालने की कोशिशों में जुटी हैं. वह किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को बचा लेना चाहती हैं.
खालिदा पोपल कई रातों से सोई नहीं हैं. डेनमार्क में रहने वालीं अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान पोपल दिन रात बस एक ही काम कर रही हैं. अपनी टीम की खिलाड़ियों को अफगानिस्तान से निकालने की कोशिश.
34 साल की पोपल 10 साल पहले एक शरणार्थी के तौर पर डेनमार्क आई थीं. वह बताती हैं, "हमने 75 लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है, जिसमें खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं.” ये 75 लोग ऑस्ट्रेलिया गए हैं.
नाउम्मीद हैं खिलाड़ी
डेनमार्क की फर्स्ट डिविजन टीम एफसी नोर्डशाएलांड में कोऑर्डिनेटर की नौकरी कर रहीं पोपल कहती हैं कि कि अभी उनकी मुहिम खत्म नहीं हुई है और वह और खिलाड़ियों को देश से सुरक्षित निकालना चाहती हैं.
जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, पोपल का फोन लगातार घनघना रहा है. पेशेवर खिलाड़ियों की यूनियन एफआईएफपीआरओ व अन्य संगठनो के साथ मिलकर वह मदद पहुंचा भी रही हैं. उनके फोन पर दर्जनों वॉइसमेल हैं, जिनमें मदद की गुहार सुनी जा सकती है.
अफगानिस्तान की बिखर चुकी फुटबॉल टीम की मैनेजर के तौर पर वही हैं, जो सदमे और डर में जी रहीं खिलाड़ियों की पुकार सुन और समझ सकती हैं. कुछ को धमकियां मिली हैं तो कइयों को पीटा भी जा चुका है. पोपल कहती हैं, "अपनी टीम के साथ मिलकर मुझे इस काम के लिए आगे आना ही पड़ा. वे खिलाड़ी रो रही थीं. नाउम्मीदी में वे मदद मांग रही थीं.”
सुरक्षा कारणों से पोपल यह नहीं बतातीं कि कितनी खिलाड़ी अफगानिस्तान में कहां कहां हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. फुटबॉल उनके लिए दीवानगी का सबब है लेकिन इसे वह अफगान महिलाओं को मजबूत करने का एक जरिया भी मानती हैं. बतौर फुटबॉल खिलाड़ी उन्होंने जो कुछ भी सीखा है, टीम भावना, जज्बा, हिम्मत ना हारना और आखरी पल तक कोशिश करना, ये सारे गुण पिछले कुछ दिन में उनके काम आए हैं.
देश गया, टीम गई
अफगानिस्तान में अपना बचपन याद करते हुए वह कहती हैं कि उन्हें एक बार तालिबान चुराकर ले गए थे. वह बताती हैं, "मैं स्कूल नहीं जा सकती थी. मैं किसी गतिविधि में हिस्सी नहीं ले सकती है. फुटबॉल के जरिए हम बदला लेना चाहते थे. हम कहते थे कि तालिबान हमारा दुश्मन है और फुटबॉल के जरिए हम बदला लेंगी.”
करीब 15 साल पहले अफगानिस्तान में पहली बार महिला फुटबॉल टीम बनाई गई थी. तब से टीम ने जोरदार तरक्की की है. लेकिन काबुल के तालिबान के कब्जे में चले जाने के बाद यह सब रातोरात गायब हो गया है.
पोपल कहती हैं, "हमारे पास तीन से चार हजार लड़िकया थीं जिन्होंने अलग-अलग स्तरों पर फुटबॉल फेडरेशन में रजिस्ट्रेशन कराया था. हमारे पास रेफरी, कोच और महिला कोच सब थे.”
पोपल बताती हैं कि काबुल के साथ सब चला गया है. भर्रायी हुई आवाज में वह कहती हैं कि खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में है. वह कहती हैं, "हो सकता है वे फुटबॉल खेलें, लेकिन वे अब अफगानिस्तान के लिए फुटबॉल नहीं खेल पाएंगी. क्योंकि उनके पास कोई देश नहीं होगा, और राष्ट्रीय टीम भी नहीं होगी.”
पोपल को डर है कि अमेरिकी फौजों के देश से चले जाने के साथ ही अफगानिस्तान को भुला दिया जाएगा. वह कहती हैं कि तालिबान ने देश का वो झंडा बदल दिया है, जिसके तले टीम खेलती थी. वह कहती हैं, "हमसे हमारा गर्व छीन लिया गया है.”
वीके/सीके (एएफपी)
काबुल में गुरुवार को एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती बम हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत कम से कम 60 लोग मारे गए हैं.
आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने गुरुवार को काबुल एयरपोर्ट पर हमला किया, जहां से दसियों हजार लोग अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश में जमा थे. काबुल के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक 60 आम नागरिकों की जान गई है.
अफगान पत्रकारों द्वारा साझा किए गए वीडियो में नहर किनारे दर्जनों शवों को देखा जा सकता है. एक चश्मदीद के मुताबिक कम से कम दो धमाके हुए. इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके आत्मघाती हमलावरों ने ‘अमेरिकी सेना के साथ रहे अनुवादकों और साझीदारों' को निशाना बनाया.
पहले से आशंका थी
इस्लामिक स्टेट द्वारा काबुल में हमले की आशंका एक दिन पहले से जताई जा रही थी. इस कारण कई देशों ने चेतावनी भी जारी की थी और अपने नागरिकों से कहा था कि वे एयरपोर्ट के आसपास न जाएं.
बुधवार को अफगानिस्तान में अमेरिकी दूतावास ने चेतावनी जारी कर कहा था कि एयरपोर्ट के करीब न जाएं और अगर वहां हैं तो फौरन उस इलाके को छोड़ दें. न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक उच्च पदस्थ अधिकारी के हवाले से लिखा था कि अमेरिका के पास बहुत सटीक और विश्वसनीय जानकारी है कि आईएसआईएस-के काबुल एयरपोर्ट पर हमला कर सकता है.
हमले के बाद सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा कि अमेरिकी सैनिक ऐसे और हमलों के लिए भी तैयार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि रॉकेट या वाहन-बम आदि के जरिए एयरपोर्ट को निशाना बनाया जा सकता है. जनरल मैंकिजी ने कहा, "तैयारी के लिए जो संभव है, हम कर रहे हैं.”
अमेरिका का बड़ा नुकसान
हमले में अब तक 13 अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. 2011 के बाद एक ही घटना में मारे गए अमेरिकी सैनिकों की यह सबसे अधिक संख्या है. इससे पहले अगस्त 2011 में तालिबान ने एक हेलिकॉप्टर को गिरा दिया था जिसमें 30 सैनिक मारे गए थे.
हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हमलावरों को बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय को आईएसआईएस-के आतंकी संगठन पर हमले की योजना बनाने का आदेश दे दिया गया है.
व्हाइट हाउस से एक टीवी संबोधन में बाइडेन ने कहा, "हम माफ नहीं करेंगे. हम भूलेंगे नहीं. हम तुम्हें खोजकर मारेंगे. तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी."
अफगानिस्तान में 18 महीनों में पहली बार किसी अमेरिकी सैनिक की जान गई है.
तालिबान ने की निंदा
काबुल के धमाकों की अफगानिस्तान पर हाल ही में नियंत्रण करने वाले तालिबान ने भी निंदा की है. एक तालिबान प्रवक्ता ने इस हमले को "शैतानी लोगों" का किया-धरा बताया और कहा कि पश्चिमी सेनाओं के जाने के बाद ऐसी ताकतों को कुचल दिया जाएगा.
इस्लामिक स्टेट तालिबान के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जो अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का वादा करके सत्ता पर काबिज हुए हैं. पश्चिमी देशों को आशंका है कि ओसामा बिन लादेन के संगठन अल कायदा को पनाह देने वाला तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान को उग्रवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना सकता है. तालिबान का कहना है कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा.
इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने वाले लड़ाके 2014 से ही पूर्वी अफगानिस्तान में नजर आने लगे थे और अपनी क्रूरता के लिए चर्चित हो चुके हैं. उन्होंने कई नागरिक और सरकारी ठिकानों पर आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी ली है.
लोगों को निकालने में मुश्किल
एयरपोर्ट पर हुए धमाके ने लोगों को निकालने के काम को प्रभावित किया है. जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा है कि वह लोगों को निकालने पर ध्यान देंगे. उनके मुताबिक अफगानिस्तान में अब भी एक हजार से ज्यादा अमेरिकी नागरिक मौजूद हैं.
कई देशों ने अब लोगों की निकासी का काम बंद कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री पीटर डटन ने कहा कि अब लोगों को निकालने का काम बंद किया जा रहा है क्योंकि उनके सैनिकों के लिए वहां होना खतरनाक है और वह किसी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक की जान खतरे में नहीं डालना चाहते.
अमेरिका के सहयोगी देशों द्वारा लोगों को निकालने का काम बंद करने का अर्थ है कि दसियों हजार ऐसे लोग अफगानिस्तान में ही छूट जाएंगे जो तालिबान के डर से देश छोड़ना चाहते थे. पिछले 12 दिन में अफगानिस्तान से लगभग एक लाख लोगों को निकाला गया है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
भूमि अधिकार से जुड़े खास फैसले से पहले हजारों आदिवासियों ने ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया की सड़कों पर प्रदर्शन किया. खदान मालिक और बड़े कृषि-व्यापारी चाहते हैं कि आदिवासियों का जमीन पर संवैधानिक संरक्षण खत्म किया जाए.
डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
भूमि अधिकार से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले से पहले कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए कई हजार आदिवासी ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया की सड़कों पर उतर आए. ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे मामले की सुनवाई चल रही है, जिसमें आदिवासियों के उनकी जमीनों पर अधिकार खत्म होने का डर है. करीब 170 अलग-अलग आदिवासी समूह इस सुनवाई के खिलाफ साथ आए हैं. उन्होंने राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के प्रशासन पर हर तरह से उत्पीड़न करने का आरोप भी लगाया.
विरोध प्रदर्शन में करीब 6 हजार लोग अपने धनुष और तीर के साथ शामिल हुए. उन्होंने पारंपरिक पोशाकें और मुकुट पहन रखे थे. इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वाले इसे देश के इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन बता रहे हैं.
क्या है पूरा मामला
यह मामला आदिवासियों की जमीन के संवैधानिक संरक्षण का है. कृषि-व्यापारियों ने तर्क दिया है कि सिर्फ उन आदिवासियों को संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए, जो यह साबित कर सकें कि वे उस इलाके में 1988 में रह रहे थे. इसी साल ब्राजील के संविधान को स्वीकार किया गया था. यह एक कानूनी तर्क है, जिसे 'मार्को टेम्पोरल' कहते हैं.
इस तर्क का विरोध करने वाले आदिवासियों ने प्रदर्शन के दौरान जो बैनर थाम रखा था, उस पर लिख था, 'मार्को टेम्पोरल नो'. आदिवासी समूहों का तर्क है कि संविधान में ऐसी किसी तारीख को निर्धारित नहीं किया गया है और आदिवासियों को कई बार अपनी पुश्तैनी जमीनों से बेदखल भी किया गया है, जिससे यह तर्क सही नहीं ठहरता.
आदिवासी या खेतिहर?
सांता कैटरीना की सरकार ने इबिरामा-ला क्लानो के आदिवासी इलाकों को खाली कराने के लिए नोटिस जारी कर दिया है. इन इलाकों में झोकलेंग आदिवासियों के अलावा गुआरानी और काईनगांग आदिवासी समुदाय के लोग भी रहते हैं. इस मामले में निचली अदालत की ओर से आदिवासियों के अधिकारों के खिलाफ फैसला दिया जा चुका है. ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो भी यह कहते रहे हैं कि संख्या में बहुत कम आदिवासी, बहुत ज्यादा जमीन पर रह रहे हैं और खेती के प्रसार को रोक रहे हैं.
झोकलेंग समुदाय के लोगों को उनके शिकार के इलाकों से एक शताब्दी पहले यूरोपीय लोगों को बसाने के लिए निकाल दिया गया था. इनमें से ज्यादातर जर्मन थे, जो अपने देश में आर्थिक और राजनीतिक उठा-पटक के चलते निर्वासित होकर यहां पहुंचे थे. अगर इस मामले में झोकलेंग लोगों की जीत होती है तो 830 किसानों को उनके छोटे जोत से बेदखल होना पड़ेगा, जहां उनके परिवार दशकों से रहते आ रहे हैं.
बोल्सोनारो की धमकी
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जो मामला है, वह दक्षिणी राज्य सांता कैटरीना के एक आरक्षण मामले से जुड़ा है लेकिन इस मामले में कोर्ट जो फैसला करेगा, उसका असर ऐसे ही 230 अन्य लंबित मामलों पर भी पड़ेगा, जिनके चलते फिलहाल अमेजन वर्षावन कटने से बचे हुए हैं.
बोल्सोनारो ने इसी हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट साल 1988 को संरक्षण का आधार मानने के खिलाफ फैसला देता है तो 'अफरा-तफरी' मच जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा होता है तो तुरंत ही हमारे सामने ऐसे सैकड़ों और नए इलाकों के मामले आ जाएंगे, जो इस तरह का सीमांकन चाहते होंगे.
कितनी खास है जमीन?
व्यापारिक समूह इन जमीनों का इस्तेमाल खदानों और औद्योगिक खेती के लिए करना चाहते हैं. राष्ट्रपति बोल्सोनारो लंबे समय से अमेजन इलाके के आर्थिक उपयोग की बात कहते आ रहे हैं. 2018 के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था कि उनके शासन के दौरान इस इलाके की एक इंच जमीन भी संरक्षित नहीं रहेगी.
पूर्वोत्तर राज्य बहिया के पटाक्सो आदिवासी समूह के 32 साल के प्रमुख स्यराटा पटाक्सो ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया कि सरकार आदिवासी लोगों को निशाना बना रही है. उन्होंने कहा, "आज पूरी मानवता अमेजन वर्षावनों को संरक्षित करने की मांग कर रही है. लेकिन सरकार दुनिया के फेफड़े, हमारे वर्षावनों को सोयाबीन के खेतों और सोने की खदानों में बदल देना चाहती है."
नतीजा जो भी हो, ब्राजील के भविष्य का फैसला करने वाले मामले पर वहां के लोगों की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं. एक ओर अमेजन वर्षा वनों के संरक्षण का सवाल है तो दूसरी ओर जंगलों में सदियों से रह रहे आदिवासियों के परंपरागत तरीके से जीने के अधिकारों का. (dw.com)
दमिश्क, 27 अगस्त | सीरिया के दक्षिणी प्रांत डारा से स्थानीय हथियारबंद लोगों के एक जत्थे को रूस की मध्यस्थता से हुए एक समझौते के तहत देश के उत्तरी हिस्से में विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में पहुंचाया गया, ताकि महीनों से चल रहे तनाव को कम किया जा सके। इसकी रिपोर्ट स्थानीय मीडिया ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि कुल 45 हथियारबंद लोग और उनके परिवार के कुछ सदस्य गुरुवार को उत्तरी सीरिया के लिए बसों से रवाना हुए, जब उन्होंने डारा में सीरियाई अधिकारियों के साथ सुलह करने से इनकार कर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निकासी डारा में सुरक्षा बहाल करने के सौदे का हिस्सा है।
इस बीच, सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा कि गुरुवार को जिन सशस्त्र लोगों को निकाला गया, वे दूसरे जत्थे से थे।
इसमें कहा गया है कि सीरियाई अधिकारी चाहते हैं कि 100 हथियारबंद लोग उत्तरी सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों के लिए डारा छोड़ दें।
24 अगस्त को, डारा में हथियारबंद लोगों को निकालने की तैयारी के लिए 48 घंटे का संघर्ष विराम लागू हुआ।
रूसी सैन्य पुलिस ने निकासी की तैयारी के लिए डारा अल-बलाद इलाके में पड़ोस में प्रवेश किया।
इस वापसी के बाद, सीरियाई सरकार के संस्थान क्षेत्र से भागे हजारों लोगों की वापसी की सुविधा के प्रयासों के बीच डारा लौट आएंगे।
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने हाल ही में डारा के अल-बलाद क्षेत्र और प्रांत के आसपास के क्षेत्रों में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या 38,600 रखी है, जिसमें लगभग 15,000 महिलाएं और 20,400 से अधिक बच्चे शामिल हैं।
सीरियाई सेना ने 2018 में डारा में प्रवेश किया था, जब विद्रोहियों को इदलिब के उत्तर-पश्चिमी प्रांत में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में विस्थापित कर दिया गया था।
हालांकि, डारा में तनाव जारी है और कभी-कभार हमले हो रहे हैं। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 27 अगस्त| पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में तीन सुरक्षाकर्मी मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। एक सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवानी ने मीडिया को बताया कि यह घटना गुरुवार को जियारत जिले के मांगी बांध इलाके में हुई जब अर्धसैनिक पाकिस्तान लेवीज बल का एक वाहन ने बारूदी सुरंग की चपेट में आ गया।
सुरक्षाबल नियमित गश्त पर थे।
विस्फोट के बाद, बचाव दल, पुलिस और सुरक्षा बल घटनास्थल पर पहुंचे और शवों और घायलों को पास के अस्पताल में पहुंचाया।
पुलिस और सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है।
अभी तक किसी भी समूह या व्यक्ति ने हमले का दावा नहीं किया है। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 27 अगस्त| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वह काबुल हवाई अड्डे पर हुए दोहरे बम विस्फोटों का बदला लेंगे, जिसमें 13 अमेरिकी सेवा सदस्य सहित कम से कम 103 लोग मारे गए हैं। यूएस सेंट्रल कमांड के पब्लिक अफेयर्स ऑफिसर बिल अर्बन के नवीनतम अपडेट के अनुसार, हमलों में मारे गए अमेरिकी सेवा सदस्यों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है, वर्तमान में 18 और घायल सैनिकों को देश से बाहर निकालने की प्रक्रिया चल रही है।
गुरुवार को हामिद करजई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हुए बम विस्फोटों के बाद गुरुवार देर रात व्हाइट हाउस से टिप्पणी करते हुए बाइडेन ने कहा कि हम अपने समय में बल और सटीकता के साथ जवाब देंगे।
हवाई अड्डे पर विस्फोट के बाद बगल के बैरन होटल में एक और विस्फोट हुआ, जिसका विवरण अमेरिकी सेना द्वारा पता लगाया जा रहा है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक वरिष्ठ अफगान स्वास्थ्य अधिकारी का हवाला देते हुए बताया कि विस्फोटों में कम से कम 90 अफगान नागरिक मारे गए।
अफगान लोक स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहले पुष्टि की थी कि हमलों में 60 से अधिक मौतें और 140 लोग घायल हुए थे।
बाइडेन ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी सैन्य कमांडरों को आईएसआईएस-के की संपत्ति, नेतृत्व और सुविधाओं पर हमला करने का आदेश दिया है।
उन्होंने कहा कि आईएस आतंकवादी नहीं जीतेंगे। हम अमेरिकियों को बचाएंगे। हम अपने अफगान सहयोगियों को बाहर निकालेंगे, और हमारा मिशन जारी रहेगा।
एक पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए कि क्या वह हमलों के मद्देनजर अफगानिस्तान में अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करेंगे, बिडेन ने कहा कि अगर सेना को अतिरिक्त बल की जरूरत है, तो मैं इसकी अनुमति दूंगा। (आईएएनएस)
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुवार की शाम दो धमाके हुए. पहला धमाका अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के एबी गेट के बाहर हुआ वहीं दूसरा धमाका एबी गेट से थोड़ी दूरी पर स्थित बैरन होटल पर या उसके पास किया गया.
धमाकों में कम से कम 60 लोगों के मरने की ख़बर है. कम से कम 140 लोग ज़ख़्मी हुए हैं.
पेंटागन ने पुष्टि की है कि मारे गए लोगों में अमेरिकी सेना के लोग शामिल थे. मरनेवालों में 11 यूएस मरीन्स और एक नौसेना के मेडिकल सेवा के कर्मचारी हैं.
कथित इस्लामिक स्टेट समूह ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है. उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया के ज़रिए उन्होंने इस धमाके को अंजाम दिया है.
ये धमाके पश्चिमी सरकारों की उस चेतावनी के बाद हुए जिसमें उन्होंने अपने नागरिकों को एयरपोर्ट से दूर रहने की सलाह दी थी. चेतावनी में कहा गया था कि अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े आईएस-के के चरमपंथियों से ख़तरा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को इस घटना की पूरी जानकारी दी गई है. अमेरिका स्थिति पर नज़र बनाए हुए है. वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन धमाकों के सिलसिले में आपातकालीन बैठक करेंगे.
अमेरिका में बीबीसी संवाददाता बारबरा पेलेट अशर ने बताया कि अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट कर रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के धमाके में कई अमेरिकी घायल हुए हैं.
विदेश मामलों और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति समितियों की सदस्य एलिसिया केर्न्स ने कहा कि "बैरन होटल के पास हमले में कई लोग घायल हुआ हैं, वहां ब्रिटेन उन लोगों के नाम को अंतिम रूप दे रहा था जिन्हें वहां से बाहर निकाला जाना है."
उनकी सहयोगी नुस घनी ने कहा कि जब धमाका हुआ तब वे काबुल हवाई अड्डे के बाहर खड़े किसी शख़्स से बात कर रही थीं.
बाद में उन्होंने बताया कि जिस शख़्स से वो बात कर रही थीं वो ठीक हैं और किसी सुरक्षित जगह पर चले गए हैं.
पहला धमाका
एबी गेट पर जहां पहला धमाका हुआ वहां ब्रितानी सैनिक जमा थे. एक अमेरिकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि ये एक आत्मघाती धमाका था. इस दौरान ज़मीन पर गोलियां चलने की ख़बरें भी आ रही थीं.
इसके कुछ समय बाद तालिबान से जुड़े एक अधिकारी ने बताया है कि गुरुवार शाम हुए धमाके में कम से कम 60 लोगों की मौत हुई है.
इस अधिकारी ने बताया है कि मरने वालों में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं. इसके साथ ही कई लोग घायल हुए हैं जिनमें तालिबानी लड़ाके भी शामिल हैं.
फ़्रांस के अफ़ग़ानिस्तान में राजदूत डेविड मार्टिनन ने और विस्फ़ोट के ख़तरों को देखते हुए हवाई अड्डे के प्रवेश द्वारों से लोगों को दूर जाने की अपील की है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "हमारे सभी अफ़ग़ान मित्रों के लिए, यदि आप हवाई अड्डे के द्वार के पास हैं तो तत्काल दूर चले जाएं और कवर ले- दूसरा धमाका संभव है."
फ़्रांस के राजदूत ने इस धमाके में मारे गए लोगों के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट की. साथ ही उन्होंने बताया कि फ़्रांस का कोई सैनिक, पुलिस अधिकारी या राजनयिक एबी गेट पर तैनात नहीं किया गया था.
फ़्रांस अब तक अफ़ग़ानिस्तान से 2,000 अफ़ग़ान और 115 फ्ऱांस के नागरिकों को निकाल चुका है. उसका आखिरी विमान शुक्रवार की शाम काबुल से उड़ान भरेगा.
दूसरा धमाका
इसके कुछ ही देर बाद दूसरे धमाके की ख़बर भी आई.
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने इसकी पुष्टि करते हुए ट्वीट किया कि, "हम इस बात की भी पुष्टि कर सकते हैं कि एबी गेट से थोड़ी दूरी पर स्थित बैरन होटल पर या उसके पास एक अन्य धमाके को अंजाम दिया गया है. हम आगे जानकारी देते रहेंगे." (bbc.com)
काबुल, 26 अगस्त| काबुल हवाईअड्डे पर गुरुवार को एक विस्फोट हुआ, जिसके बाद तालिबान के कब्जे के बाद देश से भागने की कोशिश कर रहे हताश अफगानों की भीड़ तितर-बितर हो गई। विस्फोट में अमेरिकी सैनिकों सहित बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की खबर है। पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने एक बयान में कहा, "हम पुष्टि कर सकते हैं कि काबुल हवाईअड्डे पर आज के जटिल हमले में कई अमेरिकी सेवा सदस्य मारे गए। कई अन्य लोगों के घावों का इलाज किया जा रहा है। हम यह भी जानते हैं कि कई अफगान इस जघन्य हमले के शिकार हुए।"
उन्होंने कहा, "हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं मारे गए और घायल सभी लोगों के प्रियजनों और टीम के साथियों के साथ हैं।"
अमेरिकी मीडिया ने कहा कि कम से कम चार नौसैनिक मारे गए।
इससे पहले, एक ट्वीट में किर्बी ने कहा कि वे पुष्टि कर सकते हैं कि एबी गेट पर विस्फोट एक जटिल हमले का परिणाम था जिसके परिणामस्वरूप कई अमेरिकी और नागरिक हताहत हुए। हम कम से कम एक अन्य विस्फोट की पुष्टि भी कर सकते हैं। बैरन होटल, अभय गेट से थोड़ी दूरी पर।"
बीबीसी ने बताया कि तालिबान के एक नेता ने कहा कि विस्फोट में महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 11 लोग मारे गए और कई तालिबान गार्ड घायल हो गए।
मौके से बाहर की तस्वीरों में शवों का ढेर दिखा और कुछ रिपोटरें में मृतकों की संख्या 40 बताई गई, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
कहा जाता है कि हवाईअड्डा विस्फोट हवाईअड्डे के एक द्वार के बाहर हुआ था जहां निकासी प्रक्रिया की निगरानी के लिए ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। आशंका जताई जा रही है कि यह आत्मघाती हमला है।
हालांकि ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने किसी के हताहत होने से इनकार किया है।
इसने एक ट्वीट में कहा, "काबुल में हुई घटनाओं के बाद ब्रिटेन की सेना या ब्रिटेन सरकार के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। यूके की सेना सुरक्षा और चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए हमारे सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रही है।"
तालिबान ने एक क्षेत्र में दोहरे विस्फोटों की निंदा की, जिसे उन्होंने नोट किया, अमेरिकी सेना के नियंत्रण में था।
प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक ट्वीट में कहा, "इस्लामिक अमीरात काबुल हवाईअड्डे पर नागरिकों को निशाना बनाकर किए गए बम विस्फोट की कड़ी निंदा करता है।"
एक अन्य प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान अपने लोगों की सुरक्षा और सुरक्षा पर पूरा ध्यान दे रहा है।
निकाले गए अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी ने एक ट्वीट में कहा कि विस्फोट एक सीवेज नहर में हुआ जहां अफगानों की जांच की गई थी।
उन्होंने कहा, "एक आत्मघाती हमलावर ने बड़ी भीड़ के बीच में खुद को उड़ा लिया। कम से कम एक और हमलावर ने गोली चलानी शुरू कर दी, इलाके में कई चश्मदीद गवाह और एक दोस्त ने मुझे बताया।"
विदेशी मामलों और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति समितियों की सदस्य, ब्रिटिश कंजर्वेटिव सांसद एलिसिया किर्न्स ने कहा कि बैरन होटल के पास एक हमले में कई लोग आहत हुए, जहां ब्रिटेन निकासी के लिए योग्य ब्रिटेन और अफगानों को संसाधित कर रहा है।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "बैरन के होटल के उत्तरी गेट पर एक बम या गोलियों से हमला। चिंतित यह निकासी को तबाह कर देगा - इतने सारे घायल। मेरा दिल उन सभी घायलों और मारे गए लोगों के साथ है।"
पश्चिमी देशों द्वारा हवाईअड्डे पर आतंकवादी हमले की चेतावनी के बीच हमले हुए, क्योंकि विदेशी नागरिकों की निकासी जारी है।
हालांकि, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जोर देकर कहा कि घातक विस्फोटों के बावजूद ब्रिटिश नागरिकों और पात्र अफगानों को निकालने का अभियान जारी रहेगा। (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 27 अगस्त| काबुल हवाईअड्डे पर गुरुवार को हुए आत्मघाती हमलों का मुख्य संदिग्ध अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट (आईएस) से संबद्ध आतंकी संगठन है, जिसे इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (आइसिस-के या आईएसकेपी) के नाम से जाना जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रविवार को कहा था कि अफगानिस्तान की राजधानी आइसिस-के से निरंतर निकासी के लिए एक तीव्र और 'लगातार' खतरा है, जिसका नाम खोरासान है जो ईरान से पश्चिमी हिमालय तक फैली भूमि के लिए मुस्लिम शाही शासकों की एक श्रृंखला द्वारा इस्तेमाल किया गया है।
चेतावनी, जिसने एक ऐसे समूह पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका अब तक बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय प्रोफाइल था, इस सप्ताह ब्रिटिश और पश्चिमी यूरोपीय अधिकारियों द्वारा प्रतिध्वनित किया गया था।
हाल के महीनों में आइसिस-के से जुड़े हमलों की तीव्रता से कई लोग चिंतित हैं।
द गार्जियन के मुताबिक, आइसिस-के की स्थापना छह साल पहले हुई थी, जब आइसिस के दो प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में अप्रभावित तालिबान कमांडरों और अन्य चरमपंथियों के एक छोटे समूह के साथ बैठक के लिए अपना रास्ता बनाया था, जो इस क्षेत्र में लड़ रहे थे, लेकिन वहां जिहादी आंदोलन के भीतर हाशिए पर महसूस किया।
मुख्य आईएसआईएस मूल संगठन तब अपने चरम पर पहुंच रहा था - एक बिजली अभियान के बाद सीरिया और इराक पर कब्जा कर लिया। समूह ने जीत से पहले ही अपने वैश्विक विस्तार की साजिश रचनी शुरू कर दी थी, जिसने इसे अंतर्राष्ट्रीय ध्यान में लाया और पूरे इस्लामी दुनिया में सहयोगी स्थापित करने के बारे में बताया।
द गार्जियन की रिपोर्ट में कहा गया है कि आइसिस और आईएसआईएस-के का मानना है कि तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत करने की इच्छा, उनकी स्पष्ट व्यावहारिकता और पर्याप्त कठोरता के साथ इस्लामी कानून को लागू करने में उनकी विफलता के कारण इस्लामी विश्वास को त्याग दिया है।
एक विस्फोट ने काबुल हवाईअड्डे को हिला दिया, जो गुरुवार को तालिबान के अधिग्रहण के बाद देश से भागने की कोशिश कर रहे हताश अफगानों की भीड़ से भरा हुआ था, जिसमें अमेरिकी कर्मियों सहित कई लोग मारे गए थे। पास के एक होटल में भी धमाका हुआ, जिसमें और लोग हताहत हुए।
सूत्रों के अनुसार, विस्फोट के बाद शव सड़कों पर बिखर गए। खामा न्यूज ने बताया कि कुछ देर के लिए छिटपुट गोलियों की आवाज भी सुनी गई।
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने घटना की पुष्टि की है।
कथित तौर पर काबुल हवाईअड्डे के बाहर हमले के बाद की तस्वीरों में घायल लोगों को खून से सने कपड़ों के साथ पहिया ठेले में ले जाते हुए दिखाया गया है।
अफगानिस्तान की टोलो समाचार एजेंसी द्वारा ट्विटर पर पोस्ट की गई कुछ तस्वीरों में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को दिखाया गया है - कुछ के सिर पर अस्थायी पट्टियां हैं।
बीबीसी ने बताया कि तालिबान के एक अधिकारी ने कहा है कि काबुल हवाईअड्डे पर हुए हमले में कम से कम 11 लोग मारे गए हैं।
अधिकारी ने कहा कि संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, जबकि कई तालिबान गार्ड भी घायल हुए हैं।
दोनों विस्फोट हवाईअड्डे के एबी गेट प्रवेश द्वार के पास हुए जहां पिछले कई दिनों से बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थी जमा हुए थे।
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, काबुल में अमेरिकी दूतावास ने गुरुवार तड़के एक अलर्ट भेजा था, जिसमें अमेरिकी नागरिकों से कहा गया था कि वे हवाईअड्डे की यात्रा न करें, क्योंकि वहां खतरा है।
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी तार को बताया कि चेतावनी संभावित वाहन बमों से जुड़े विशिष्ट खतरों से संबंधित थी।
बयान में कहा गया है, "काबुल हवाईअड्डे के द्वार के बाहर सुरक्षा खतरों के कारण, हम अमेरिकी नागरिकों को हवाईअड्डे की यात्रा से बचने और इस समय हवाईअड्डे के फाटकों से बचने की सलाह दे रहे हैं, जब तक कि आपको ऐसा करने के लिए अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि से व्यक्तिगत निर्देश नहीं मिलते।"
इसमें कहा गया है, "अमेरिकी नागरिक जो एबी गेट, ईस्ट गेट या नॉर्थ गेट पर हैं, उन्हें अब तुरंत निकल जाना चाहिए।" (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 27 अगस्त | काबुल हवाईअड्डे पर हुए विस्फोट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ब्रिटेन के कंजरवेटिव सांसद और विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष टॉम तुगेंदहट ने गुरुवार को कहा कि जब भी इस्लामी चरमपंथी सत्ता संभालते हैं, आतंक पीछा करता है। उन्होंने कहा, "काबुल हवाईअड्डे पर निर्दोष लोगों पर हमला तालिबान शासन की भयावहता से बचने की कोशिश कर रहा है, वास्तव में दिखाता है कि समूह अपने साथ कौन लाया है। पैटर्न अच्छी तरह से स्थापित है - नाइजीरिया और माली से सीरिया और इराक तक - जब भी इस्लामी चरमपंथी सत्ता लेते हैं, आतंक अनुसरण करता है। तालिबान शासन ने इसे आतंक से बचने की कोशिश कर रहे निर्दोष लोगों के लिए लाया है।"
द गार्जियन ने बताया कि काबुल हवाईअड्डे पर आत्मघाती बम विस्फोट के लिए मुख्य संदिग्ध अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट से संबद्ध है, जिसे इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (आइसिस-के या आईएसकेपी) के रूप में जाना जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रविवार को कहा था कि अफगानिस्तान की राजधानी आइसिस-के से निरंतर निकासी के लिए एक तीव्र और लगातार खतरा है, जिसका नाम खुरासान है जो ईरान से पश्चिमी हिमालय तक फैली भूमि के लिए मुस्लिम शाही शासकों की एक श्रृंखला द्वारा इस्तेमाल किया गया है।
चेतावनी, जिसने एक ऐसे समूह पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका अब तक बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय प्रोफाइल था, इस सप्ताह ब्रिटिश और पश्चिमी यूरोपीय अधिकारियों द्वारा प्रतिध्वनित किया गया था।(आईएएनएस)
हैती में भूकंप की वजह से अपने घर गंवा चुकीं महिलाओं को अब अस्थायी शिविरों में बलात्कार का डर सता रहा है. 2010 के भूकंप के बाद भी इसी तरह शिविरों में रह रही महिलाओं के बलात्कार के सैकड़ों मामले सामने आए थे.
हैती की वेस्ता ग्वेरियर हाल ही में आए भूकंप में खुद को बचाने में तो सफल रहीं लेकिन उनका घर ढह गया. तब से वो एक अस्थायी कैंप में रहती हैं जहां उन्हें यह डर हमेशा सताता है कि उनके साथ कभी भी बलात्कार हो सकता है. 48 वर्षीय ग्वेरियर कहती हैं, "हमलोग सुरक्षित नहीं हैं...हमें कुछ भी हो सकता है. खासकर रात में, कोई भी कैंप में घुस आ सकता है."
यही चिंता दूसरी महिलाओं को भी है जो उस यौन हिंसा के बारे में अच्छी तरह से जानती हैं जो देश में इसके पहले आई प्राकृतिक विपदाओं के बाद हुई है. ग्वेरियर, उनके पति और तीन बच्चों का घर लकड़ी की छड़ियों और प्लास्टिक की चादरों से बनाया कच्चा घर था. उन्होंने उसे राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस के दक्षिण पश्चिम में स्थित प्रायद्वीप के शहर 'ले कायेस' के स्पोर्ट्स सेंटर में बनाया था. इस शहर पर भूकंप का काफी भारी असर हुआ है.
डर बेवजह नहीं
14 अगस्त को 7.2 तीव्रता का जो भूकंप आया था उसमें 2,200 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. हजारों घर या तो नष्ट हो गए या बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे. अभी भी 2010 के विनाशकारी भूकंप से उबर रहे देश के लिए यह बड़े संकट का समय है.
11 साल पहले आए उस भूकंप में तो 2,00,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. उसके बाद कुछ लोगों को अस्थायी शिविरों में कई साल बिताने पड़े थे जहां हथियारबंद पुरुषों के समूहों ने उनका शोषण किया था. ठसाठस भरे हुए इन शिविरों में ज्यादा रोशनी नहीं होती थी और यह लोग शाम ढलने के बाद इनमें घूमा करते थे.
2011 में एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक आपदा के बाद के लगभग पांच ही महीनों में बलात्कार के 250 से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए. एमनेस्टी ने यह भी कहा कि कई गैर सरकारी समूहों का मानना था कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा थी.
ग्वेरियर जिस कैंप में हैं वहां करीब 200 लोग रह रहे हैं और ऐसे हालात में प्राइवेसी लगभग असंभव है. हमले की आशंका से ग्वेरियर इतनी डरी रहती हैं कि वो अंधेरा होने की बाद ही नहाती हैं और तब भी नहाते वक्त सारे कपड़े नहीं उतारतीं. जब कभी कैंप के अंधेरे में उन पर रोशनी पड़ती है तो वो इस सोच में डूब जाती हैं कि रोशनी डालने वाला उनका कोई पड़ोसी है या कोई ऐसा "जो वो करना चाहता है."
युवा लड़कियों की रक्षा
कैंप में चालू टॉयलेट नहीं हैं जिसकी वजह से ग्वेरियर डरी और लज्जित महसूस करती हैं क्योंकि "लोग आपको हर दिशा से देख सकते हैं." वो कहती हैं, "मैं जो आपको बता रही हूं वो सिर्फ लड़कियां समझ सकती हैं. हम महिलाएं और यहां के छोटे बच्चे, हम बहुत कष्ट भोग रहे हैं."
कैंप में मौजूद दूसरे लोगों ने भी अपने डरों के बारे में बताया. तीन महीनों से गर्भवती फ्रांसिस डोरिमोंड कहती हैं, "हम बहुत डरे हुए हैं. हम अपने बच्चों के लिए सही में डरे हुए हैं. हमें टेंट चाहिए ताकि हम फिर से अपने परिवारों के साथ रहना शुरू कर सकें."
इस कैंप पर हमलों के खतरे की वजह से थोड़ी ही दूर एक और अस्थायी कैंप तैयार हो गया है. पास्टर मिलफोर्ट रूजवेल्ट ने बताया कि वहां "सबसे ज्यादा असुरक्षित" लोगों को रखा गया है. 31 साल के पास्टर ने समझाया, "हम युवा लड़कियों की रक्षा करते हैं. हमने एक सिक्योरिटी टीम बनाई है जो रात को गश्त लगाती है और सुनिश्चित करती है कि कोई भी इन महिलाओं के खिलाफ हिंसा ना कर पाए."
"सही मायनों में जी ही नहीं रहे"
2016 में आए तूफान मैथ्यू ने जिस नाइटक्लब को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, उसके अवशेषों में दर्जनों लोगों ने पनाह ले रखी है. वो दीवारों के बीच लगाए हुए चादरों और तिरपाल के नीचे रह रहे हैं. यहीं पर जैस्मीन नोएल ने अपने 22 महीने के बच्चे के लिए एक बिस्तर बनाने की कोशिश की.
उन्होंने बताया, "जिस रात भूकंप आया था, मैं बगल के मैदान में सोने जा रही थी लेकिन उन लोगों ने मुझसे कहा कि यह ठीक नहीं है, तो उन लोगों ने मुझे यहां जगह दे दी." उन्होंने यह भी कहा, "कुछ लोग हमेशा इस तरह के हालात का फायदा उठा कर कुछ गलत करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कष्टों की वजह से लगता है कि अब वो "सही मायनों में जी नहीं रही हैं."
नोएल उम्मीद कर रही हैं की गलियों में सामान बेचने वाली उनकी मां की उस दिन इतनी कमाई हो गई हो कि वो उनके लिए खाना ला सकें. वो कहती हैं, "हमारे शरीर तो यहीं हैं, लेकिन हमारी आत्माएं नहीं."(dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
अफगानिस्तान में तालिबान ने एक बार फिर सत्ता हासिल कर ली है लेकिन वो अभी तक पंजशीर नहीं पहुंच पाया है. जिसकी सबसे बड़ी वजह अहमद मसूद हैं, जिनके पिता अहमद शाह मसूद को ‘पंजशीर का शेर’ कहा जाता है. उनके नेतृत्व में नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और हर मोर्चे पर आतंकी संगठन पर भारी भी पड़ते दिख रहे हैं. इस बीच ऐसी खबरें आईं कि मसूद सरेंडर कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में ऐसा करने से इनकार कर दिया है.
अहमद मसूद का कहना है कि वह तालिबान के सामने सरेंडर नहीं करेंगे लेकिन उससे बात करने को तैयार हैं. उनका एक इंटरव्यू बुधवार को फ्रेंच मैग्जीन में प्रकाशित हुआ है. पूर्व उपराष्ट्रपति (वर्तमान कार्यवाहक राष्ट्रपति) अमरुल्ला सालेह भी काबुल के उत्तर में स्थित इस पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के साथ हैं . तालिबान के कब्जे के बाद अपने पहले इंटरव्यू में मसूद ने कहा, ‘मैं सरेंडर करने से अच्छा मरना पसंद करूंगा. मैं अहमद शाह मसूद का बेटा हूं. मेरी डिक्शनरी में सरेंडर जैसा शब्द ही नहीं है.’
कोई नहीं कर पाया पंजशीर पर कब्जा
मसूद ने दावा किया कि पंजशीर घाटी में ‘हजारों’ पुरुष उनके नॉर्दर्न अलायंस से जुड़ गए हैं, जिसपर कभी कोई कब्जा नहीं कर सका. उनके पिता ने 1979 में सोवियत आक्रमण के समय भी इस जगह को किले की तरह रखा, जिसे कोई भेद ना सका. ना तो सोवियत संघ यहां पहुंच पाया और ना ही 1996-2001 के दौरान तालिबान यहां आया. हालांकि इस इंटरव्यू के दौरान मसूद ने फ्रेंस राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सहित दूसरे विदेशी नेताओं से एक बार फिर समर्थन देने की अपील की. साथ ही सही वक्त पर हथियार ना मिलने पर नाराजगी जाहिर की.
‘तालिबान के हाथ में हैं अमेरिकी हथियार’
अहमद मसूद ने कहा, ‘मैं उन लोगों की ऐतिहासिक गलती को नहीं भूल सकता, जिनसे मैं आठ दिन पहले काबुल में हथियार मांग रहा था. उन्होंने मना कर दिया. और इन हथियारों में- तोपखाने, हेलीकॉप्टर, अमेरिका में निर्मित टैंक शामिल हैं, जो आज तालिबान के हाथों में हैं.’ मसूद ने कहा कि वह तालिबान से बात करने के लिए तैयार हैं और उन्होंने संभावित समझौते की रूपरेखा भी तैयार कर ली है. वह कहते हैं, ‘हम बात कर सकते हैं. सभी युद्धों में बातचीत होती है. और मेरे पिता ने भी हमेशा इन दुश्मनों से बात की है.’
अल-कायदा ने की थी अहमद शाह मसूद की हत्या
उन्होंने कहा, ‘कल्पना कीजिए कि तालिबान महिलाओं, अल्पसंख्यों के अधिकारों, लोकतंत्र और एक खुले समाज के सिद्धांत के लिए मान जाए. तो क्यों ना ये समझाने की कोशिश की जाए, कि इन सिद्धातों से उन्हें और बाकी अफगानिस्तान के लोगों को क्या लाभ होगा?’ मसूद के पिता के पेरिस और अन्य पश्चिमी देशों के साथ करीबी संबंध थे. उन्होंने 1980 के दशक में अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे और 1990 के दशक में तालिबान शासन के खिलाफ लड़ने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके चलते उन्हें ‘पंजशीर का शेर’ नाम दिया गया. साल 2001 में 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए हमले से ठीक दो दिन पहले अल-कायदा ने उनकी हत्या कर दी थी. (tv9hindi.com)
लॉकडाउन के चलते लोग ऑनलाइन ज्यादा समय बिता रहे हैं, तो गैजेट्स से छुटकारा चाहने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. पर इसका कोई फायदा होता है क्या?
काम से लेकर एक्सर्साइज तक, हर चीज के लिए स्क्रीन को तकते रहने से तंग आ चुकीं आना रेडमन और उनके प्रेमी लंदन के बाहर एक जंगल में एक केबिन में चले गए थे. इन तीन दिनों के लिए उन्होंने अपने फोन एक सीलबंद लिफाफे में डालकर रख दिए थे.
पब्लिक रिलेशंस में काम करने वालीं 29 साल की रेडमन कहती हैं, "कुछ दिन के लिए पहुंच से बाहर हो जाने का ख्याल लुभावना लगा था.” कोविड के कारण हुए लॉकडाउ के दौरान काम से लेकर आराम तक उनकी पूरी जिंदगी ऑनलाइन हो गई थी. नतीजतन उन्हें ‘डिजिटल डिटॉक्स' करने की बहुत ज्यादा इच्छा होने लगी थी.
रेडमन और उनके बॉयफ्रेंड जैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो महामारी के दौरान तकनीकी चीजों के साथ समय बिताकर आजिज आ चुके हैं और इनसे कुछ समय के लिए छुटकारा चाहते हैं.
ऐसे लोगों की इच्छाओं के अनुरूप बहुत से उत्पाद भी बाजार उपलब्ध हो गए हैं. मसलन ऐसे ऐप्स उपलब्ध हैं जो गैजेट को एक निश्चित समय के लिए लॉक कर देते हैं. या फिर ऐसे रीट्रीट यानी आरामघर उपलब्ध हैं जहां वाई फाई की सुविधा सीमित होती है. ऐसे रेस्तरां हैं जहां ग्राहकों को खाने की मेज पर फोन अपने साथ रखने की इजाजत नहीं होती.
बढ़ रही है मांग
विशेषज्ञ कहते हैं कि गैजेट से छुटकारा दिलाने वाली चीजों की मांग और बाजार पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहे हैं. 2018 में ब्रिटेन और अमेरिका में 4,000 से ज्यादा लोगों पर हुए एक सर्वे में रिसर्च करने वाली संस्था जीडब्ल्यूआई ने पाया कि लगभग 20 फीसदी लोगों ने डिजिटल डिटॉक्स किया था और 70 फीसदी अपने ऑनलाइन समय को कम करने की कोशिश में थे.
ब्रिटेन का एक स्टार्टअप अनप्लग्ड लंदन के नजदीक ऐसे केबिन उपलब्ध कराता है, जहां गैजेट्स की पहुंच नहीं है. इन्हीं में से एक में रेडमन और उनका प्रेमी रहे थे. अनप्लग्ड ने शुरुआत 2020 में की थी. इसके सह-संस्थापक हेक्टर ह्यूज कहते हैं कि उनके केबिन पूरा साल भरे रहे और इस साल वह पांच और जगहों पर शुरुआत कर चुके हैं.
ह्यूज बताते हैं, "लोग सच में एक ब्रेक चाहते हैं और मुझे लगता है कि यह लॉकडाउन का सीधा असर है जिस दौरान वे सारा समय स्क्रीन के सामने बिता रहे थे. हमने केबिन शहरी जिंदगी से एक घंटा दूर बनाए हैं. लोग वहां जाते हैं अपने फोन एक डिब्बे में बंद कर देते हैं. हम उन्हें एक नक्शा और एक नोकिया देते हैं और तीन रात के लिए छोड़ देते हैं.”
सेहत पर असर?
गैजेट्स से छुटकारे को अक्सर सेहत पर एक सकारात्मक प्रभाव के तौर पर प्रचारित किया जाता है. माना जाता है कि इससे नींद बेहतर होती है, तनाव और अवसाद में मदद मिलती है. लेकिन इस बारे में हुए कुछ शोध अलग तस्वीर पेश करते हैं.
अमेरिका में तकनीक से दूर रखने वाले एक आराम घर पर रिसर्च कर रहीं डिजिटल एंथ्रोपोलोजिस्ट थियोड्रा सटन कहती हैं कि डिजिटल डिटॉक्स के प्रचारित फायदे सिर्फ तकनीक से दूर रहने के कारण नहीं होते बल्कि और भी बहुत सी चीजों पर निर्भर करते हैं.
वह बताती हैं, "लोग कहते हैं कि जंगल में एक हफ्ता बिताने के बाद वे बेहतर महसूस कर रहे हैं. लेकिन असल में वे छुट्टी मना रहे थे जिसका उन्होंने लुत्फ उठाया. अगर आप सिर्फ तकनीक को दूर कर दें और उसकी जगह कुछ न दें, तो उतने मात्र से ही आपको बेहतर नहीं महसूस होगा.”
ग्रीनविच यूनिवर्सिटी में पर्यटन पढ़ाने वाले वेनजिए काई ने डिजिटल डिटॉक्स पर काफी काम किया है और वह कहते है कि उनके अनुभव में जज्बात का खूब उतार-चढ़ाव हुआ. काई बताते हैं कि बिना तकनीक के छुट्टी पर जाने वाले लोगों ने दिन की शुरुआत में और अंत में भी एंग्जाइटी की शिकायत की.
फालतू की बात!
2019 में ब्रिटेन की लोगबरो यूनिवर्सिटी में एक हुए एक अध्ययन का नतीजा था कि 24 घंटे तक स्मार्टफोन से दूर रहने का मूड और एंग्जाइटी पर कोई असर नहीं पड़ा. ऐसा ही एक अध्ययन ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस साल किया. उन्होंने भी पाया कि एक दिन सोशल मीडिया छोड़ देने का लोगों के आत्मसम्मान या संतोष के स्तर पर कोई असर नहीं पड़ा.
इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता ऑक्सफर्ड इंटरनेट इंस्टिट्यूट में एक्सपेरिमेंटल साइकॉलजिस्ट एंड्रयू प्रिजबिल्स्की कहते हैं कि डिजिटल तकनीक के संभावित मानसिक प्रभावों को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.
वह कहते हैं, "संभवतया यह बकवास है कि अपने फोन ऑफ कर देने से आप खुश रहने लगेंगे. बतौर इंसान हम बहुत सारी अलग-अलग चीजों के साथ तालमेल बनाने की कोशिश करते हैं, जैसे कि बतौर पिता, बतौर पति, बतौर प्रोफेसर... तो आपको हमेशा एक संतुलन कायम करना होता है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अफगानिस्तान की स्थिति पर दिए अपने भाषण में कुछ अहम बातें कहीं. उन्होंने कहा कि जर्मनी समयसीमा के बाद भी अफगानों की मदद करता रहेगा.
डॉयचे वेले पर आलेक्स बेरी की रिपोर्ट
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भरोसा दिलाया है कि देश की सेना के साथ काम करने वाले अफगानों को निकालने के लिए पूरी तत्परता से काम किया जा रहा है. बुधवार को जर्मन संसद में एक बयान में मैर्केल ने कहा कि 31 अगस्त की समयसीमा के बाद भी जर्मनी अफगान लोगों की मदद करता रहेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान छोड़ने की समयसीमा बढ़ाने की संभावना से इनकार कर दिया है जिसके बाद कई देश इस उलझन में हैं कि 31 अगस्त के बाद भी छूट गए लोगों का क्या होगा. जर्मन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उसने अब तक 4,600 से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है. इनमें जर्मन नागिरकों के अलावा स्थानीय कर्मचारी रहे लोग भी शामिल हैं.
मैर्केल के भाषण की मुख्य बातें
बुधवार को मैर्केल ने संसद को बताया कि जर्मनी 31 अगस्त के बाद भी उन लोगों की मदद करता रहेगा जिन्होंने अभियान के दौरान जर्मन सेना के साथ काम किया था और अब देश से निकलना चाहते हैं. मैर्केल ने कहा, "कुछ दिन में हवाई संपर्क की समयसीमा खत्म हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि हमारी मदद करने वाले और तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी समस्या में फंसे अफगान लोगों को लोगों की मदद की कोशिशें भी खत्म हो जाएंगी.”
चांसलर मैर्केल ने देश के अब तक के सबसे बड़े निकासी अभियान में जुटी जर्मन सेना को धन्यवाद कहा. उन्होंने अपने भाषण में कुछ बातों की ओर ध्यान दिलाया.
जर्मनी अफगानिस्तान में काम कर रहीं समाजसेवी संस्थाओं की मदद करता रहेगा.
जर्मनी अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों की मदद करेगा
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ बात करनी चाहिए
पश्चिमी देशों ने तालिबान की रफ्तार को कम करके आंका.
अब कड़वी सच्चाई है तालिबान
अंगेला मैर्केल ने कहा कि तालिबान सत्ता में लौट चुके हैं यह एक "एक कड़वी सच्चाई है जिसका हमें सामना करना है.” उन्होंने कहा, "इतिहास में बहुत सी चीजें लंबा वक्त लेती हैं. इसलिए हमें अफगानिस्तान को नहीं भूलना चाहिए, और हम नहीं भूलेंगे. क्योंकि, अभी इस कड़वे समय में दिखाई भले ना दे रहा हो, मुझे पूरा यकीन है कि कोई ताकत या विचारधारा शांति और न्याय की इच्छा को रोक नहीं सकती.”
मैर्केल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि तालिबान के साथ बातचीत करे ताकि नाटो अभियान के दौरान जो प्रगति हासिल हुई है, उसे बचाया जा सके. उन्होंने कहा, "हमारा मकसद होना चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके, 20 वर्ष में अफगानिस्तान में बदलाव के तौर पर हमने जो हासिल किया है उसका जितना हो सके बचा सकें. इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए.”
खूब बरसा विपक्ष
अफगानिस्तान जिस तेजी से तालिबान के हाथों में गया, उसने जर्मन सरकार को हैरान कर दिया था. अब उसकी आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि उसने ऐसी स्थिति के लिए तैयारी क्यों नहीं की. मैर्केल ने बताया कि लोगों को निकालने का काम पहले से शुरू नहीं किया जा सकता था क्योंकि इससे अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार पर लोगों का भरोसा कम होता. बुधवार को हुआ जर्मन संसद का यह सत्र अद्वितीय था क्योंकि सरकार संसद से एक हफ्ता पहले शुरू हो चुके निकासी अभियान की पुष्टि चाहती थी. कैबिनेट ने संसद की मंजूरी से पहले ही अभियान को शुरू करने का फैसला काबुल पर तालिबान के अचानक हुए नियंत्रण के चलते लिया था.
सांसदों ने इस अभियान के पक्ष में मतदान तो किया लेकिन विपक्ष ने सरकार की आलोचना में भी कसर नहीं छोड़ी. बहस के दौरान सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के मुखिया डिएटमार बार्ट्ष ने कहा बतौर चांसलर मैर्केल के 16 साल के कार्यकाल में ‘विफल अफगानिस्तान अभियान' सबसे "निम्नतम स्थिति” है.
ग्रीन पार्टी की ओर से आगामी चुनावों में चांसलर पद की उम्मीदवार आनालेना बेयरबॉक ने पूरी स्थिति को विदेश नीति की असफलता करार दिया. बाजारवाद की समर्थक मानी जाने वाली फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी सरकार पर गैरजिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आरोप लगाया.
सोशल डेमोक्रैट्स पार्टी के संसद में प्रमुख रॉल्फ म्युत्सेनिष ने तो सरकार की पूरी स्थिति को संभालने के मामले की जांच की भी मांग की. संसद में विदेश मामलों की समिति की अध्यक्ष सेविम डागडेलेन ने सरकारी रेडियो डॉयचलांडफुंक से बातचीत में कहा कि जर्मन सेना द्वारा दसियों हजार लोगों को काबुल एयरपोर्ट के रास्ते बाहर निकालने का विचार ही ख्याली पुलाव है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत कर्मचारी तो एयरपोर्ट पहुंच ही नहीं पाए हैं. (dw.com)
इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने वाली और पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा पर काम करने वाली कंपनी टेस्ला के सीईओ ईलॉन मस्क ने स्वीकार किया है कि फुल सेल्फ-ड्राइविंग सिस्टम इतना अच्छा नहीं है.
मस्क ने कहा है कि कंपनी ड्राइविंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए हाईवे और शहर की सड़कों दोनों के लिए सिंगल टेक प्लेटफॉर्म की कोशिश कर रही है. मस्क ने एक ट्वीट में कहा, "फुल स्क्रीन डिस्प्ले बीटा 9.2 वास्तव में महान आईएमओ नहीं है, लेकिन ऑटोपायलट और एआई टीम जितनी जल्दी हो सके सुधार करने के लिए काम कर रही है."
उन्होंने आगे कहा, "हम हाईवे और शहर की सड़कों दोनों के लिए एक तकनीकी स्टैक रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह बड़े पैमाने पर एनएन (तंत्रिका नेटवर्क) को फिर से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है."
द वर्ज की रिपोर्ट के मुताबिक नया एफएसडी फीचर ड्राइवरों को स्थानीय, गैर-हाईवे सड़कों पर ऑटोपायलट मोड के माध्यम से कई उन्नत ड्राइवर-सहायता सुविधाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है.
अतिरिक्त 10,000 डॉलर के लिए, लोग पूर्ण स्व-ड्राइविंग या फुल स्क्रीन डिस्प्ले खरीद सकते हैं, जो मस्क के वादे पूर्ण स्वायत्त ड्राइविंग क्षमता प्रदान करेंगे.
पूरी तरह सेल्फ-ड्राइविंग क्षमताओं में ऑटोपायलट, ऑटो लेन चेंज, समन (मोबाइल ऐप या चाभी का इस्तेमाल करके अपनी कार को एक तंग जगह से अंदर और बाहर ले जाना) पर नेविगेट करना शामिल है.
टेस्ला ने जुलाई में अपना फुल सेल्फ-ड्राइविंग (फुल स्क्रीन डिस्प्ले) सब्सक्रिप्शन पैकेज 199 डॉलर प्रति माह के लिए लॉन्च किया था. जिन लोगों ने पहले एन्हांस्ड ऑटोपायलट पैकेज खरीदा था, उनके लिए फुल स्क्रीन डिस्प्ले फीचर की कीमत 99 डॉलर प्रति माह होगी.
वेबसाइट के मुताबिक टेस्ला के मालिक किसी भी समय अपनी मासिक एफएसडी सदस्यता रद्द कर सकते हैं.
इलेक्ट्रेक का कहना है ईवी निर्माता का लक्ष्य एक वास्तविक स्तर 5 पूर्ण स्व-ड्राइविंग प्रणाली प्रदान करना है और पैकेज खरीदने वाले लोग टेस्ला पर उस लक्ष्य को प्राप्त करने पर दांव लगा रहे हैं.
नवीनतम बीटा संस्करण लंबे समय से विलंबित है और पहली बार 2018 में वादा किया गया था.
मस्क ने यह भी पुष्टि की कि टेस्ला अपने एफएसडी वी9 बीटा सॉफ्टवेयर अपडेट के साथ एक नया यूजर इंटरफेस जारी करेगी.
2019 में टेस्ला दुनिया में सबसे ज्यादा प्लग-इन और बैटरी इलेक्ट्रिक पैसेंजर गाड़ियां बनाने वाली कंपनी बन गई थी. प्लग-इन श्रेणी में टेस्ला का बाजार के 17 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है और बैटरी इलेक्ट्रिक श्रेणी में 23 प्रतिशत पर.
एए/सीके (रॉयटर्स)
वाशिंगटन,25 अगस्त | अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की अनुमोदन रेटिंग व्हाइट हाउस में उनके सात महीनों में सबसे निचले स्तर पर आ गई है। एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, ताजा कोविड पुनरुत्थान और अफगानिस्तान से अराजक सैन्य वापसी के बीच उनकी रेटिंग पर असर पड़ा है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, 14 से 17 अगस्त तक किए गए एनबीसी न्यूज पोल में पाया गया कि 49 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बाइडेन की नौकरी के प्रदर्शन को स्वीकार किया, जो पहली बार 50 प्रतिशत से नीचे चला गया, जबकि 48 प्रतिशत ने इसे अस्वीकार कर दिया।
अप्रैल में एनबीसी न्यूज के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 53 प्रतिशत अमेरिकियों ने बाइडेन की नौकरी के प्रदर्शन को मंजूरी दी।
पिछले सप्ताह के अन्य चुनावों में भी बाइडेन की अनुमोदन रेटिंग फिसलती हुई पाई गई, जिसमें सीबीएस सर्वेक्षण ने इसे 50 प्रतिशत, इप्सोस को 46 प्रतिशत और यूगोव को 44 प्रतिशत पर रखा।
महामारी के खिलाफ लड़ाई से निपटने के लिए, अगस्त के मध्य में एनबीसी न्यूज पोल में पाया गया कि 53 प्रतिशत अमेरिकियों ने उनके प्रदर्शन को मंजूरी दी, अप्रैल के सर्वेक्षण से 16-बिंदु की गिरावट।
इस महीने केवल 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अफगानिस्तान से वापसी से निपटने के लिए बाइडेन को स्वीकार करते हैं, जिसे तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि अर्थव्यवस्था के लिए बाइडेन का ग्रेड भी गिर गया है।
इस बीच, केवल 29 प्रतिशत अमेरिकियों को लगता है कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है, जबकि 54 प्रतिशत का कहना है कि वे देश के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 25 अगस्त | अमेरिका में अलास्का एयरलाइंस के एक विमान में सैमसंग के एक स्मार्टफोन में कथित तौर पर आग लगने के बाद लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। सिएटल टाइम्स ने मंगलवार को बताया कि न्यू ऑरलियन्स से सिएटल जाने वाली अलास्का एयरलाइंस की फ्लाइट के केबिन के अंदर एक यात्री के सेलफोन में आग लग गई, जो सोमवार शाम सिएटल-टैकोमा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा था।
हवाई अड्डे का संचालन करने वाले पोर्ट ऑफ सिएटल के प्रवक्ता पेरी कूपर ने कहा कि डिवाइस सैमसंग गैलेक्सी ए 21 बताया गया है।
सैमसंग ने अभी तक इस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
लगभग 128 यात्रियों और चालक दल के छह सदस्यों को बस द्वारा टर्मिनल तक पहुंचाया गया। आग से कोई गंभीर चोट नहीं आई है।
एक ट्विटर उपयोगकर्ता जो अलास्का की उड़ान पर था, उसने पोस्ट किया, "यात्री मेरे पीछे विपरीत दिशा में 2-3 पंक्तियों में था। यह एक धूम्रपान मशीन की तरह था। फ्लाइट अटेंडेंट ने बहुत अच्छा काम किया और सभी यात्री बहुत शांत थे।"
सिएटल-टैकोमा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के ट्वीट के अनुसार, यात्रियों को बस से टर्मिनल तक ले जाया गया।
हवाई अड्डे ने ट्वीट किया, "आज शाम की शुरूआत में, पीओएसएफडी ने अलास्का एयरलाइंस की उड़ान 751 के कार्गो होल्ड में आग लग गई। आग पर काबू पा लिया गया और यात्रियों और चालक दल को विमान से निकाल लिया गया।"
इसमें कहा गया, "यात्रियों को बस से टर्मिनल तक पहुंचाया गया,जिसमें से कुछ को मामूली चोटें आईं। विमान को एक गेट पर ले जाया गया और हवाई अड्डे के संचालन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।" (आईएएनएस)
एक ताजा अध्ययन के मुताबिक 1990 के बाद से उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है, जिसमें सभी पीड़ितों में से आधे से लगभग 72 करोड़ लोगों का इलाज 2019 में नहीं हो पाया.
उच्च रक्तचाप सीधे तौर पर हर साल 85 लाख से अधिक मौतों से जुड़ा हुआ है. और यह स्ट्रोक, हृदय और लिवर की बीमारी के लिए प्रमुख कारक है. यह पता लगाने के लिए कि पिछले 30 सालों में विश्व स्तर पर उच्च रक्तचाप की दर कैसे विकसित हुई है, गैर-संचारी रोग जोखिम कारक सहयोग (NCD-RisC) की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया के लगभग हर देश को कवर करते हुए 1,200 से अधिक राष्ट्रीय अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
टीम ने आबादी में उच्च रक्तचाप की दर का अनुमान लगाने के लिए मॉडलिंग का इस्तेमाल किया, साथ ही इस स्थिति के लिए दवा लेने वाले लोगों की संख्या भी जानी. विश्लेषण में पाया गया कि 2019 में 62.6 करोड़ महिलाएं और 65.2 करोड़ पुरुष उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे.
यह 1990 में अनुमानित 33.1 करोड़ महिलाओं और 31.7 करोड़ पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुना है.
बीमारी से अनजान
विश्लेषण में पाया गया कि 41 प्रतिशत महिलाएं और 51 प्रतिशत पुरुष अपनी स्थिति से अनजान थे, जिसका मतलब है कि लाखों लोग प्रभावी उपचार से वंचित थे.
मुख्य शोधकर्ता, इंपीरियल कॉलेज लंदन के माजिद एज्जती के मुताबिक, "दशकों में चिकित्सा और औषधीय प्रगति के बावजूद उच्च रक्तचाप प्रबंधन में वैश्विक प्रगति धीमी रही है और उच्च रक्तचाप वाले अधिकांश लोग इलाज से वंचित रहते हैं."
लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित विश्लेषण में कहा गया है कि कनाडा और पेरू में वयस्कों के बीच उच्च रक्तचाप का अनुपात सबसे कम था, जिसमें लगभग चार में से एक इस स्थिति के साथ जी रहे थे.
ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, स्विट्जरलैंड, स्पेन और ब्रिटेन में महिलाओं में उच्च रक्तचाप की दर 24 प्रतिशत से भी कम थी, जबकि इरीट्रिया, बांग्लादेश, इथियोपिया और सोलोमन द्वीप समूह में पुरुषों में 25 प्रतिशत से कम दर थी.
कोरोना का भी असर
शोध के लेखकों ने कहा कि अध्ययन उच्च रक्तचाप के रोग-निर्णय और इलाज तक पहुंच को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है. वैश्विक स्तर पर चार में से एक महिला और पांच में से एक पुरुष का इलाज उनकी इस स्थिति के लिए किया जा रहा है.
शेफील्ड विश्वविद्यालय में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर रॉबर्ट स्टोरी कहते हैं कि कोविड-19 ने सरकारों को उच्च रक्तचाप की वास्तविकता से ध्यान हटा दिया है.
स्टोरी के मुताबिक, "रक्त संचारी रोग की महामारी को पिछले 18 महीनों में कम ध्यान दिया गया है. अस्वस्थ जीवनशैली, उच्च वसा, चीनी, नमक, शराब, धूम्रपान का सेवन और व्यायाम से बचना. यह दुनिया भर के रुझानों के संबंध को दर्शाता है."
स्टोरी खुद अध्ययन में शामिल नहीं थे. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह जरूरी है कि हृदय रोग और स्ट्रोक के टाइम बम से बचने के लिए सभी देशों की सरकारों को एक नीति अपनानी चाहिए.
एए/वीके (एएफपी)
कोरोना वायरस ने बच्चों को सीधे तौर पर तो प्रभावित नहीं किया लेकिन पाबंदियों के जरिए जानें बहुत लीं. एक रिपोर्ट कहती है कि आर्थिक पाबंदियों ने शिशुओं की जानें लीं.
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए जो आर्थिक पाबंदियां लगाई गईं, उनके कारण कम विकसित और गरीब देशों में दो लाख 67 हजार ज्यादा शिशुओं की जान गई होगी. वर्ल्ड बैंक ने ऐसा अनुमान जाहिर किया है.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे वर्ल्ड बैंक के शोध के मुताबिक गरीब और मध्यम आय वाले देशों में कोरोना वायरस के कारण लगीं पाबंदियों का घातक असर हुआ है. इन पाबंदियों ने आर्थिक असमानता और गरीबी तो बढ़ाई ही है, पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा औसत जानें भी लीं.
स्वास्थ्य सेवाओं पर असर
इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल आर्थिक पाबंदियों ने औसत से 2,67,000 ज्यादा शिशुओं की जानें ली होंगी. वैसे वायरस का शिशुओं की मौत पर सीधा असर बहुत कम हुआ है, लेकिन इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि "आर्थिक प्रभावों और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़े असर के कारण” ज्यादा शिशुओं की जानें गईं.
रिपोर्ट कहती है कि 128 देशों में शिशु मृत्यु दर में लगभग सात फीसदी की वृद्धि का अनुमान है. बदलती अवधि और गंभीरता वाली पाबंदियों ने अमीर और गरीब, ज्यादातर देशों की जीडीपी को प्रभावित किया है. ज्यादातर देशों में कोरोना वायरस को प्राथमिकता देने के कारण अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को या तो कम कर दिया गया या पूरी तरह बंद कर दिया गया.
वर्ल्ड बैंक के शोधकर्ता कहते हैं कि कोरोना वायरस की रोकथाम और इलाज के लिए कोशिशों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन देशों को "सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं” उपलब्ध रहें.
जीडीपी गिरावट से बढ़ी गरीबी
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि गरीब और मध्यम आय वाले देशों में जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट से हर हजार बच्चों पर मृत्यु दर में 0.23 फीसदी की वृद्धि होती है. इन देशों में लॉकडाउन के कारण हो रही आर्थिक तंगी से निपटने के लिए जरूरी धन नहीं था.
इससे पहले भी वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि महामारी और लॉकडाउन ने दुनियाभर में 1.2 से 1.5 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल दिया है.
जून में बैंक ने अनुमान जारी किया था कि 2020 में जीडीपी साढ़े तीन फीसदी की गिरावट के बाद इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था 5.6 फीसदी की दर से बढ़ सकती है. लेकिन यह चेतावनी भी जारी की गई है कि गरीब देशों को एक असमान आर्थिक बहाली से गुजरना होगा.
वीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स)
31 अगस्त के बाद कोई अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में नहीं रहेगा. तो फिर, उन लोगों का क्या होगा जिन्हें निकाला नहीं जा सका? ऐसे लोगों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कह दिया है कि अफगानिस्तान से निकलने के लिए तय की गई 31 अगस्त की तारीख में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इसका अर्थ है कि अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिका के करीब 6,000 सैनिकों उससे पहले देश छोड़ देंगे.
जब बाइडेन ने यह तारीख घोषित की थी तब वहां 2,500 अमेरिकी सैनिक थे. लेकिन तालिबान के काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद और सैनिक भेजने पड़े ताकि वहां मौजूद नागरिकों को निकाला जा सके.
अब क्या होगा?
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि सैनिकों की निकासी शुक्रवार तक शुरू हो जानी चाहिए, तभी 31 अगस्त तक पूरी हो पाएगी क्योंकि इसमें कई दिन लगेंगे. इन सैनिकों में वे भी शामिल हैं जो काबुल एयरपोर्ट का जिम्मा संभाले हुए हैं.
इन सैनिकों को चले जाने के बाद अफगानिस्तान से नागरिकों के निकलने की गति धीमी होने की आशंका है. इस हफ्ते वहां से लगभग 20 हजार लोगों को रोजाना निकाला जा रहा है. लेकिन काबुल एयरपोर्ट के तालिबान के नियंत्रण में आ जाने के बाद लोग कैसे निकल पाएंगे, इस बारे में लोगों को आशंकाएं हैं.
31 अगस्त से पहले कितने लोग निकल सकते हैं?
अमेरिकी राष्ट्रपति ने मंगलवार को बताया कि 14 अगस्त के बाद से 70 हजार से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाला जा चुका है. इनमें अमेरिकी नागरिक, नाटो सैनिक और खतरे में माने जाने वाले वे अफगान नागरिक शामिल हैं.
बाइडेन का कहना है कि अमेरिका अपने हर उस नागरिक को वापस लाएगा जो आना चाहता है. साथ ही जितनी संख्या में हो सके, उन अफगानों को भी लाया जाएगा, जिनकी जान खतरे में हो सकती है.
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने बताया कि अमेरिका मानता है कि 31 अगस्त से पहले सभी इच्छुक अमेरीकियों को निकाला जा सकता है. अब तक 4,000 अमेरिकी नागरिकों को अफगानिस्तान से निकाला जा चुका है. लेकिन अभी और कितने लोग वहां बाकी हैं, इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि सभी ने दूतावास में नामांकन नहीं कराया था.
अमेरिका ने लगभग 500 उन अफगान सैनिकों को भी बचाकर लाने की प्रतिबद्धता जताई है, जो काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा में मदद कर रहे हैं. फिलहाल लोगों को निकालने के काम में अमेरिका और अन्य देशों के दर्जनों सैन्य और असैनिक विमान लगे हुए हैं. और यह गति 31 अगस्त तक जारी रहती है, तो भी इतनी जल्दी उन सभी लोगों को अफगानिस्तान से निकालना संभव नहीं है, जिनके ऊपर तालिबान द्वारा प्रताड़ना का खतरा मंडरा रहा है.
जो छूट गए, उनका क्या होगा?
शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन ऑफ वॉरटाइम अलाइज का अनुमान है कि ढाई लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें अफगानिस्तान से निकाले जाने की जरूरत है. इनमें अनुवादक, दुभाषिए, ड्राइवर और अन्य ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने नाटो सेनाओं के साथ काम किया था. लेकिन जुलाई से अब तक सिर्फ 62 हजार लोगों को निकाला जा चुका है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक जो 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान में रह जाएंगे, उनकी मदद की जाएगी और तालिबान पर दबाव बनाया जाएगा कि वे सुरक्षित अफगानिस्तान छोड़ सकें.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने सोमवार को कहा, "सैन्य अभियान के खत्म होने के साथ हमारी उन अफगान लोगों के साथ प्रतिबद्धता खत्म नहीं होगी, जो खतरे में हैं. हम, और पूरी दुनिया तालिबान से यह सुनिश्चित कराएगी कि जो लोग अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने का मौका मिले.”
अमेरिका के हाथ में क्या है?
बाइडेन सरकार के सामने इस वक्त सबसे बड़ा सवाल ये है कि तालिबान जो सरकार कायम करता है, उसे मान्यता दी जाए या नहीं. इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मदद पाने का भी हक होगा.
2020 में ट्रंप सरकार ने तालिबान के साथ जो समझौता किया था उसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि तालिबान को अमेरिका एक देश नहीं मानता. लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका इस इस्लामिक उग्रवादी संगठन के साथ आतंकवाद जैसे कुछ मुद्दों पर बात करने का उत्सुक है.
सोमवार को अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने तालिबान नेता अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की. अमेरिकी नेताओं का मानना है कि तालिबान इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों का विरोधी है और अमेरिकी सैन्य कमांडर लोगों को निकाले जाने के दौरान लगातार संगठन के संपर्क में रहे हैं.
मानवीय संकट
अमेरिका, उसके सहयोगी देश और संयुक्त राष्ट्र को यह फैसला करना होगा कि तैयार हो रहे एक बड़े मानवीय संकट से कैसे निपटा जाएगा. यूएन का कहना है कि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी, यानी लगभग 1.8 करोड़ लोगों को मदद की दरकार है. देश के आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और मुल्क चार साल में दूसरे गंभीर सूखे की चपेट में है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि उसके पास एक हफ्ते का ही राशन बचा है क्योंकि काबुल एयरपोर्ट के जरिए सप्लाई बंद हो गई है. कोरोना वायरस के मामले बढ़ने की भी आशंका जताई जा रही है.
तालिबान ने भरोसा दिलाया है कि यूएन अपने मानवीय अभियान जारी रख सकता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि उसे सभी नागरिकों तक पहुंचने की आजादी हो और महिला अधिकारों पर कोई आंच ना आए.
वीके/एए (रॉयटर्स)
-अतीत शर्मा
नई दिल्ली, 24 अगस्त : तालिबान के हाजी मोहम्मद इदरीस को अपने शासन का 'अस्पष्ट अधिकारी' करार दिए जाने के बाद से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया है। इस समय, जब देश की आबादी नकदी की भारी कमी और आवश्यक वस्तुओं की अनियंत्रित बढ़ती कीमतों का सामना कर रही है।
1939 में राजधानी काबुल में 12 करोड़ अफगानियों की प्रारंभिक संपत्ति के साथ स्थापित द अफगानिस्तान बैंक अफगानिस्तान का केंद्रीय बैंक है। इसका प्राथमिक उद्देश्य घरेलू मूल्य स्थिरता को प्राप्त करना और बनाए रखना, एक स्थिर बाजार आधारित वित्तीय प्रणाली की तरलता, शोधन क्षमता और प्रभावी कामकाज को बढ़ावा देना और एक सुरक्षित, मजबूत और कुशल राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना है।
पहले से ही 2021 में कोविड-19 के व्यापक प्रभाव और सुरक्षा समस्याओं से निपटने के लिए बैंक को अब तालिबान शासन के तहत देश में वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता और स्थिरता को बनाए रखने के लिए एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
तालिबान का कहना है कि इदरीस आसन्न मुद्दों का 'समाधान' करेगा और अफगानों की बढ़ती समस्याओं का समाधान करेगा।
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने सोमवार देर शाम ट्वीट किया, "सरकारी संस्थानों और बैंकिंग मुद्दों को व्यवस्थित करने और लोगों की समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से इस्लामिक अमीरात के नेतृत्व में हाजी मोहम्मद इदरीस को द अफगानिस्तान बैंक का कार्यवाहक गवर्नर नियुक्त किया गया है।"
माना जाता है कि इदरीस, अब तक तालिबान के आर्थिक आयोग का नेतृत्व कर रहा है। वह अजमल अहमदी की जगह लेता है, जिन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया है और यूएसए के हार्वर्ड कैनेडी स्कूल से अर्थशास्त्र और लोक प्रशासन की डिग्री भी हासिल की है। जून 2020 में डीएबी के कार्यवाहक गवर्नर के रूप में नियुक्त, अहमदी के कार्यकाल के दौरान पहली बार देश के निर्यात का मूल्य बढ़कर एक अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। बैंकिंग और वित्त पर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के एक वरिष्ठ सलाहकार, वह पिछले सप्ताह काबुल से उसी तरह भाग गए, जैसे तालिबान ने अफगान राजधानी पर कब्जा कर लिया था।
हालांकि उनकी शैक्षिक या व्यावसायिक योग्यता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, अब यह इदरीस पर निर्भर है कि वह सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप एक मजबूत वित्तीय क्षेत्र स्थापित करे और समुदाय के सभी स्तरों पर आजीविका में सुधार करे।
मुख्य रूप से हेरोइन की तस्करी और कराधान की अवैध प्रणाली द्वारा उत्पन्न तालिबान के वित्त के प्रबंधन के बाद इदरीस को स्पष्ट रूप से नई भूमिका सौंपी गई है।
(यह सामग्री इंडिया नैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत है)